Students should regularly practice West Bengal Board Class 6 Hindi Book Solutions Chapter 5 क्या निराश हुआ जाए to reinforce their learning.
WBBSE Class 6 Hindi Solutions Chapter 5 Question Answer – क्या निराश हुआ जाए
वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
प्रश्न 1.
एक बड़े आदमी ने किसे सुखी कहा है ?
(क) जो कुछ करता है
(ख) जो कुछ नहीं करता
(ग) जो सब कुछ करता है
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ख) जो कुछ नहीं करता।
प्रश्न 2.
कौन सा चित्र सब समय आदर्शों द्वारा चालित नहीं होता ?
(क) व्यक्ति चित्र
(ख) पशु चित्र
(ग) प्रतिष्ठित चित्र
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(क) व्यक्ति चित्र।
प्रश्न 3.
आजकल हर व्यक्ति किस दृष्टि से देखा जा रहा है ?
(क) प्रेम की दृष्टि से
(ख) शक की दृष्टि से
(ग) घृणा की दृष्टि से
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ख) शक की दृष्टि से।
प्रश्न 4.
भारतवर्ष किसे सदा धर्म के रूप में देखता आ रहा है ?
(क) कानून को
(ख) रंगून को
(ग) मानव को
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(क) कानून को।
प्रश्न 5.
किसमें रस लेना बुरी बात है ?
(क) अच्छाई में
(ख) बुराई में
(ग) फरेब में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ख) बुराई में ।
प्रश्न 6.
लोग दूसरों में क्या खोजते हैं?
(क) गुण
(ख) दोष
(ग) गौरव
(घ) कष्ट
उत्तर :
(ख) दोष।
प्रश्न 7.
नियम कानून किसके लिए बनते हैं ?
(क) प्रष्टाचारी के लिए
(ख) ईमानदारो के लिए
(ग) सब के लिए
(घ) चोरो के लिए.
उत्तर :
(ग) सब के लिए।
प्रश्न 8.
आज किसको लोग मजाक समझने लगे ?
(क) आदर्शों को
(ख) शिक्षा को
(ग) स्वास्थ्य को
(घ) ईमानदारी को
उत्तर :
(क) आदर्शों को।
प्रश्न 9.
लेखक गलती से रेलवे स्टेशन पर कितने का नोट दे दिया ?
(क) 20 की जगह 100 के नोट
(ख) 10 की जगह 100 के नोट
(ग) 50 की जगह 100 के नोट
(घ) 20 की जगह 10 के नोट
उत्तर :
(ख) 10 की जगह 100 के नोट।
प्रश्न 10.
कौन चकित रह गए ?
(क) लेखक
(ख) टिकट बाबू
(ग) पत्नी
(घ) बच्चे
उत्तर :
(क) लेखक।
प्रश्न 11.
कौन साइकिल लेकर तुरंत चल दिया ?
(क) लेखक
(ख) बस कंडक्टर
(ग) टिकट बाबू
(घ) ड्राइवर
उत्तर :
(ख) बस कंडक्टर।
प्रश्न 11.
ड्राइवर को किसने बचाया ?
(क) टिकट बाबू
(ख) बस कंडक्टर
(ग) यात्री
(घ) लेखक
उत्तर :
(घ) लेखक।
प्रश्न 12.
हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म कहाँ हुआ था?
(क) आरा
(ख) बलिया
(ग) छपरा
(ग) गाजीपुर
उत्तर :
(ख) बलिया ।
प्रश्न 13.
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का जन्म कब हुआ था?
(क) सन् 1906 ई.
(ख) सन् 1907 ई.
(ग) सन् 1908 ई.
(घ) सन् 1909 ई.
उत्तर :
(ख) सन् 1907 ई.।
प्रश्न 14.
द्विवेदी जी निम्न में से किस विश्वविद्यालय में हिन्दी-विभागाध्यक्ष के पद पर नहीं रहे?
(क) शांति-निकेतन
(ख) काशी हिन्दू विश्चविद्यालय
(ग) दिल्ली विश्धविद्यालय
(घ) पंजाब विश्चविद्यालय
उत्तर :
(ग) दिल्ली विश्वविद्यालय।
प्रश्न 15.
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के पिता का नाम क्या था ?
(क) पंडित अनमोल द्विवेदी
(ख) पंडित श्यामसुंदर द्विवेदी
(ग) पंडित मोहन प्रसदा द्विवेदी
(घ) पंडित श्रीधर द्विवेदी
उत्तर :
(क) पंडित अनमोल द्विवेदी।
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर :
प्रश्न 1.
कौन अपने गौरव को त्याग नहीं सकता ?
उत्तर :
भारत कभी अपने गौरव को त्याग नहीं सकता।
प्रश्न 2.
आज कौन लोग कष्ट पा रहे हैं ?
उत्तर :
आज ईमानदार तथा सच्चे इंसान कष्ट पा रहे हैं।
प्रश्न 3.
आज कौन लोग फल-फूल रहे हैं ?
उत्तर :
बेईमान, धोखेबाज लोग फल-फूल रहे हैं।
प्रश्न 4.
सच्चाई कैसे लोग के हिस्से पड़ी है ?
उत्तर :
सच्चाई केवल भीरू और लाचार लोगों के हिस्से पड़ी है।
प्रश्न 5.
किसके प्रति लोगों का विश्वास हिलने लगा ?
उत्तर :
जीवन के महान मूल्यों के प्रति लोगों का विश्वास हिलने लगा है।
प्रश्न 6.
भारत में किन वस्तुओं के संग्रह को महत्व नहीं दिया जाता ?
उत्तर :
भारत में कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को महत्त्व नहीं दिया।
प्रश्न 7.
आज लोग किस संग्रह को अच्छा नहीं समझते ?
उत्तर :
भ्रष्टाचार तथा गलत तरीके से धन संग्रह को अच्छा नहीं समझता।
प्रश्न 8.
लेखक के बच्चे क्यों चिल्ला रहे थे ?
उत्तर :
लेखक के बच्चे पानी के लिए चिल्ला रहे थे।
प्रश्न 9.
कौन ड्राइवर को मारने के लिए उतारू हो गये ?
उत्तर :
कुछ यात्री बस ड्राइवर को मारने के लिए उतारू हो गए।
प्रश्न 10.
लेखक के अनुसार आज के समाज में कौन-कौन सी बुराइयाँ दिखाई देती हैं ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार आज के समाज में ठगी, डकेती, चोरी, तस्करी, भ्रष्टाचार की बुराइयाँ दिखाई देती हैं। हर आदमी संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है।
प्रश्न 11.
क्या कारण है कि आज हर आदमी में दोष अधिक दिखाई दे रहे हैं ?
उत्तर :
आज जो आदमी जो कुछ भी करता है उसमें उतने अधिक दोष दिखाए जाते हैं। उसके सारे गुण भुला दिए जाते हैं, दोषों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जाने लगा है। यही कारण है कि आज हर आदमी में दोष अधिक दिखाई देता है।
प्रश्न 12.
लेखक दोषों का पर्दाफाश करते समय किस बात से बचने के लिए कहता है ?
उत्तर :
लेखक का विचार है – दोषों का पर्दाफाश करते समय किसी के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करके उसमें रस नहीं लेना चाहिए। दोष उद्घाटन को एकमात्र कर्त्तव्य नहीं मान लेना चाहिए। बुराई में रस लेना उचित नहीं है।
प्रश्न 13.
कुछ यात्री बस ड्राइवर को मारने के लिए क्यों उतारू हो गए ?
उत्तर :
यात्रियों ने सोचा कि कंडक्टर डाकुंओं को बुलाने चला गया है। इस भय के कारण कुछ यत्रियों ने ड्राइवर को मारने के लिए उतारू हो गए।
प्रश्न 14.
लेखक क्या देखकर चकित हो जाता है ?
उत्तर :
टिकट बाबू लेखक को पहचान कर विनम्रता के साथ उनके हाथ में नब्बे रुपये रख दिए और अपनी गलती भी स्वीकार की। अपनी ईमानदारी के कारण टिकट बालू के चेहरे पर संतोष और गरिमा झलकने लगी। इसे देखकर लेखक चकित हो गया।
बोधमूलक प्रश्नोत्तर :
प्रश्न 1.
हमारे महापुरुषों के सपनों का भारत का क्या स्वरूप था ?
उत्तर :
हमारे महापुरुषों ने एक महान भारत का सपना देखा था। तिलक और गाँधी ने एक ऐसे भारत का सपना देखा था जहाँ कोई दु:खी न हो, किसी प्रकार समाज में भेद-भाव न हो। सत्य-अहिंसा लोगों का व्रत हो, ईमानदारी, सच्चाई का ही माहौल हो। रवीन्द्रनाथ ठाकुर, मालवीय जैसे महान व्यक्तियों ने संस्कृतिमय भारत की कल्पना की थी। विभिन्न संस्कृतियों को आत्मसात् एक महान विश्वव्यापी संस्कृति की कल्पना की थी।
प्रश्न 2.
भ्रष्टाचार आदि के विरुद्ध आक्रोश प्रकट करना किस बात को प्रमाणित करता है ?
उत्तर :
भष्टाचार आदि के विरुद्ध आक्रोश से यह प्रमाणित होता है कि आज भी लोग गलत तरीके से धन या मान संग्रह करने वालों को गलत समझते हैं और ऐसे तत्त्वों की समाज में प्रतिष्ठा कम करना चाहते हैं।
प्रश्न 3.
जीवन के महान मूल्यों के प्रति आज हमारी आस्था क्यों हिलने लगी है ?
उत्तर :
इन दिनों ऐसा वातावरण बन गया है कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलाने वाले निरीह और भोलेभाले मजदूर पिस रहे हैं और झूठ तथा फरेब का रोजगार करने वाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूख्खता समझा जा रहा है। केवल भीरु और लाचार लोग ही सच्चाई पर चल रहे हैं। ऐसी स्थिति में आज जीवन के महान् मूल्यों के प्रति हमारी आस्था हिलने लगी है।
प्रश्न 4.
जो आज ऊपर-ऊपर दिखाई दे रहा है वह कहाँ तक मनुष्य निर्मित नीतियों की त्रुटियों की देन है ?
उत्तर :
जो आज ऊपर-ऊपर दिखाई दे रहा है वह मनुष्य निर्मित नीतियों की त्रुटियों की देन हैं। मनुष्य अपनी बुद्धि से नई परिस्थितियों का सामना करने के लिए नये सामाजिक विधि-निषेधों को बनाता है। ठीक साबित न होने पर उन्हें बदलता है। एक ही नियम-कानून कभी-कभी सब के लिए सुखकर नहीं होते। कानून कभी आदर्शों से टकराते है। कभी ऊपरी सतह पर उनका मंथन होता है पर इससे निराश नहीं होना चाहिए।
प्रश्न 5.
रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने भगवान से क्या प्रार्थना की और क्यों ?
उत्तर :
कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने भगवान से प्रार्थना की कि संसार में केवल नुकसान ही उठाना पड़े, धोखा ही खाना पड़े तो ऐसे अवसरों पर प्रभु उन्हें ऐसी शक्ति दे कि वे उनपर संदेह न करें।
प्रश्न 6.
“वर्तमान परिस्थितियों में भी हताश हो जाना ठीक नहीं है।” इस कथन की पुष्टि में लेखक ने क्या-क्या उदाहरण दिया हैं ?
उत्तर :
आज विषम से विषम परिस्थितियों में भी मनुष्य को निराश नहीं होना चाहिए। इस कथन की पुष्टि लेखक ने टिकट बाबू की ईमानदारी तथा बस कंडक्टर की कर्त्त्य्यपरायणता तथा मानवता का उदाहरण देकर स्पष्ट किया है।
प्रश्न 7.
“महान भारतवर्ष को पाने की संभावना बनी हुई है और बनी रहेगी।” लेखक के इस कथन से हमें क्या संदेश मिलता है ?
उत्तर :
लेखक के इस कथन से यह संदेश मिलता है कि अभी आशा की रोश्नी बुझी नहीं है। मन को निराश होने की जरूरत नहीं है। सच्चाई, ईमानदारी जैसे गुण अभी लुप्त नहीं हुए हैं। गलत परिणाम तक पहुँचने वाली मनुष्य निर्मित विधियों को बदल कर मानव हित में उपयोगी विधियों को अमल में लाना होगा।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर :
प्रश्न :
लेखक के साथ घटी दोनों घटनाओं का उल्लेख कीजिए तथा बताइए कि इससे हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर :
जीवन में सैकड़ों घटनाएँ घटती हैं जिन्हें उजागर करने से लोक चित्त में अच्छाई के प्रति अच्छी भावना जगती है। एक बार रेलवे स्टेशन पर टिकट लेते हुए गलती से लेखक ने दस के बजाय सौ रुपये के नोट दिये। फिर जल्दी-जल्दी जाकर गाड़ी में बैठ गए। थोड़ी देर में टिकट बाबू सेकण्ड क्लास के डिब्बे में हर आदमी का चेहरा पहचानता हुआ आया। उसने लेखक को पहचान कर बड़ी विन्रता के साथ उनके हाथ में नब्बे रुपये रख दिए। अपनी भूल स्वीकार की। उनके चेहरे पर विचिर्र संतोष की गरिमा थी। लेखक चकित रह गए।
दूसरी घटना इस प्रकार है कि एक बार लेखक अपनी पत्ली और तीन बच्चों के साथ बस में यूत्रा कर रहे थे। बस में कुछ खराबी आ गई इसलिए गंतव्य से आठ किलोमीटर पहले ही एक सुनसान स्थान में रुक गई। रात के दस बजे थे, सभी यात्री घबरा गए। कंडक्टर उतर गया और एक साइकिल लेकर चलता बना। लोगों को संदेह हो गया कि उन्हें धोखा दिया जा रहा है। डकैती की आशंका से लोग भयभीत हो गए। लोगों ने ड्राइवर को पकड़ कर उसे मारने-पीटने का निश्चय किया। ड्राइवर ने कातर दृष्टि से लेखक की ओर देखने लगा और बोला कि हमलोग बस का कोई उपाय कर रहे हैं, इसलिए हमें बचाइए। लेखक ने यात्रियों को समझाया कि मारना ठीक नहीं है। लोगों ने ड्राइवर को मारा तो नहीं पर, एक जगह घेर कर रखा।
यात्रियों ने सोचा कि यदि दुर्घटना होती है तो ड्राइवर को समाप्त कर देना उचित होगा। इसी समय बस कंडक्टर अड्डे से एक नयी बस लेकर आग गया। सभी यात्रियों को उसमें बैठने के लिए कहा। लेखक के पास एक लोटा पानी और थोड़ा सा दूध लेकर आया और बोला पंडितजी बच्चों का रोना मुझसे देखा नहीं गया, वहीं से थोड़ा दूध और पानी लेता आया हूँ। सबने उसे धन्यवाद दिया। ड्राइवर से माफी मांगी। बारह बजे से पहले ही सब लोग बस अन्डे पर पहुँच गए।
इन कहानियों से यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्यता एकदम समाप्त नहीं हो गई है। लोगों में अब भी दया-माया की भावन बची हुई है। अत: ईमानदारी, सच्चाई, सेवा, परोपकार जैसे सद्गुण अभी लुप्त नहीं हुए हैं। इसलिए व्यक्ति को निराश नहीं होना चाहिए।
भाषा-बोध :
(क) निम्नलिखित वाक्यों में सर्वनाम छाँटते हुए उनके नाम बताइए।
- मेरा मन कभी-कभी बैठ जाता है।
- दोष किसमें नहीं होता।
- इन दिनों कुछ ऐसा माहौल बना है।
- आज भी वह मनुष्य से प्रेम करता है।
- रात के कोई दस बजे हैं।
उत्तर :
- मेरा – संबंध वाचक सर्वनाम।
- किसमें – प्रश्नवाचक सर्वनाम।
- कुछ – अनिश्चयवाचक सर्वनाम।
- वह – पुरुषवाचक सर्वनाम।
- कोई – अनिश्चयवाचक सर्वनाम।
(ख) विलोम शब्द लिखें :-
ईमानदार – बेईमान
सुखी – दुःखी
गुण – दोष
निश्चय – अनिश्चय
रोजगार – बेरोजगारी
WBBSE Class 6 Hindi क्या निराश हुआ जाए Summary
जीवन-परिचय :
द्विवेदी जी का जन्म सन् 1907 में बलिया जिला के दूबेछपरा गाँव में हुआ था। 20 वर्षों तक द्विवेदी जी शान्ति निकेतन में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय तथा चंडीगढ़ विश्वविद्यालय के भी अष्यक्ष रहे। सन् 1971 में इनका देहान्त हो गया। इनकी प्रमुख रचनाएँ – हिन्दी साहित्य की भूमिका, अशोक के फूल, बाणभट्ट की आत्मकथा, चारुचन्द्रलेख, पुनर्नवा, अनामदास का पोथा आदि हैं। भारत सरकार ने इन्हे पद्यविभूषण की उपाधि से सम्मानित किया।
सारांश – समाचार पत्रों में चोरी, तस्करी, भ्रष्टाचार आदि की खबरों से लेखक का मन बैठ जाता है। दोषारोपण के कारण लगता है कि देश में कोई ईमानदार रह ही नहीं गया है। लोग दूसरों में दोष ही खोजते हैं, गुणों को भुला दिया जाता है पर हमारे मनीषियों का भारत के प्रति जो सपना है वह समाप्त नहीं हो सकता। विभिन्न संस्कृति का मिलन केन्द्र भारत कभी अपने गौरव को त्याग नहीं सकता।
आज ईमानदार तथा सच्चे इंसान कष्ट पा रहे हैं। बेईमान, धोखेंबाज लोग फल-फूल रहे हैं। सच्चाई केवल भीरू और लाचार लोगों के हिस्से पड़ी है। जीवन के महान मूल्यों के प्रति लोगों का विश्वास हिलने लगा है।
नियम-कानून सब के लिए बनते हैं पर सदा वे नियम सबके लिए सुखकर नहीं होते। भारत में कभी भी भौतिक वस्तुओं के संप्रह को महत्त्व नहीं दिया। लोभ-मोह-कोध आदि स्वाभाविक विचारों के इशारेषर मन तथा बुद्धि को छोड़ देना बुरा आचरण है। उन पर संयम रखने का प्रयत्न करना चाहिए। गरीबों की अवस्था को सुधारने, कृषि, व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ को उन्नत और सुचारु बनाने की जिम्मेदारी जिन्हें सौंपी जाती है वे लक्ष्य को भूलकर अपनी सुख-सुविधा पर ज्यादा ध्यान देते हैं।
आज आदर्शों को लोग मजाक समझने लगे हैं। संयम को पुरातनपंधी मान लिया गया है। पर भारत के प्राचीन आदर्श महान और उपयोगी बने हुए हैं। भारतवर्ष सदा कानून को धर्म के रूप में देखता है। धर्म कानून से बड़ी चीज है। अब भी सेवा, सच्चाई, ईमानदारी, आध्यात्मिकता के मूल्य बने हुए हैं। आज भी मनुष्य एक दूसरे से प्रेम करता है। महिलाओं का सम्मान करता है, झूठ, चोरी, पर पीड़ा को पाप समझता है। भ्रष्टाचार तथा गलत तरीके से धन संग्रह को अच्छा नहीं समझता। बुराई में रस लेना बुरी बात है। दोषपूर्ण कथन को कर्त्तव्य मान लेना अनुचित है। किसी के सदुगुणों को उजागर न करना बुरी बात है। अच्छी घटनाओं के उजागर करने से लोगों के मन में अच्छी भावना जगती है।
एक बार लेखक ने रेलवे स्टेशन पर टिकट लेते हुए गलती से दस के बजाय सौ रुपये का नोट दे दिए। फिर जल्दी से जाकर गाड़ी में बैठ गए। थोड़ी देर में टिकट बाबू ने डिब्बे में आकर उन्हें पहचान लिया और उनके हाथ में नब्बे रुपये देकर संतोष की गरिमा का अनुभव किया। लेखक चकित रह गए। इससे स्पष्ट होता है कि दुनिया से सच्चाई- ईमानदारी लुप्त नहीं हुई है।
एक बार लेखक अपनी पत्नी तथा तीन बच्चों के साथ बस में यात्रा कर रहे थे। कुछ खराबी के कारण बस गंतव्य से पहले ही एक सूनसान स्थान में रुक गई। बस कंडक्टर एक साइकिल लेकर तुरंत चल दिया। लोगों को संदेह हुआ कि उन्हें धोखा दिया जा रहा है। लेखक के बच्चे पानी के लिए चिल्ला रहे थे। कुछ यात्री बस ड्राइवर को मारने के लिए उतारू हो गए। लेखक ने किसी तरह ड्राइवर को बचाया। इसी समय बस कंडक्टर अड्डु से एक नई बस लेकर आ गया और लोगों को उसमें बैठने के लिए कहा। लेखक के बच्चों के लिए एक लोटे में पानी और थोड़ा दूध भी लेता आया था। वह बोला कि बच्चों का रोना मुझसे देखा नहीं गया। सबने उसे धन्यवाद दिया। ड्राइवर से माफी माँगी। बारह बजे से पहले सब लोग बस अड्डे पर पहुँच गए। इन घटनाओं से सिद्ध हो जाता है कि मनुष्यता एकदम समाप्त नहीं हो गई है। लोगों में दयामाया, सेवा की भावना आज भी मौजूद है।
दोनों प्रकार की स्थितियाँ समाज में बनी हुई है। धोखा, छल, कपट, विश्वासघात भी है तो लोगों के द्वारा दूसरे की अकारण सहायता भी है। इससे निराश मन को सांत्वना मिलती है। कविवर रवीन्द्रनाथ ने भगवान से प्रार्थना की कि संसार में केवल नुकसान ही उठाना पड़े, धोखा ही खाना पड़े तो ऐसे अवसरों पर प्रभु उन्हें ऐसी शान्ति दे कि वे उनपर संदेह न करें। अभी आशा की ज्योति बुझी नहीं है। महान भारतवर्ष को पाने की संभावना बनी हुई है, बनी रहेगी। अत: निराश होने की जरूरत नहीं है।
शब्दार्थ :
- तस्करी – चोरी।
- भीरु – डरपोक।
- भ्रष्टाचार – घूसखोरी।
- निरीह – असहाय।
- आरोप – इलजाम।
- बेवश – लाचार।
- दोष – बुराई, अवगुण।
- आस्था – विश्वास।
- अतीत – बीता हुआ।
- विधि-निषेध – करने न करने का नियम ।
- गह्वर – गुफा।
- परीक्षित – परखे हुए।
- मनीषियों – ज्ञानी, विचारशील।
- निर्मित – बनाया।
- माहौल – वातावरण।
- तुटियाँ – गलतियाँ।
- संदेह – शक।
- जीविका – रोजी-रोटी।
- विकार – बुराई।
- श्रमजीवी – मजदूर।
- निकृष्ट – बुरा आचरण।
- फरेब – धोखा।
- संग्रह – जमा।
- आलोड़न – सोच विचार, मंथन।
- दकियानूसी – पुरातन पंथी।
- मनुष्यता मानवीय गुण।
- उपेक्षा – निरादर, तिरस्कार।
- अकारण – बिना कारण के ।
- अवांछित – अनचाहा।
- ढाढ़स – दिलासा, सांत्वना।
- लुप्त – गायब।
- नुकसान – हानि।
- वंचना – धोखा, छल।
- ज्योति – रोशनी।