Students should regularly practice West Bengal Board Class 6 Hindi Book Solutions Chapter 8 गूदड़ साईं to reinforce their learning.
WBBSE Class 6 Hindi Solutions Chapter 8 Question Answer – गूदड़ साईं
वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
प्रश्न 1.
साईं को कौन पुकार रहा था ?
(क) लेखक
(ख) मोहन
(ग) 10 वर्ष का बालक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ख) मोहन
प्रश्न 2.
मोहन के पिता थे –
(क) वेदांती
(ख) अघोरी
(ग) आर्य समाजी
(घ) नास्तिक
उत्तर :
(ग) आर्य समाजी
प्रश्न 3.
गुदड़ी के लाल किसे कहा गया है ?
(क) मोहन को
(ख) 10 वर्ष के बालक को
(ग) साई को
(घ) आर्य समाजी को
उत्तर :
(ग) साई को।
प्रश्न 4.
गूदड़ साईं क्या था ?
(क) वैरागी
(ख) कामायनी
(ग) प्रसिद्ध
(घ) लालची
उत्तर :
(क) वैरागी।
प्रश्न 5.
गूदड़ साईं क्या खाकर तृप्ति का अनुभव करता था ?
(क) फल
(ख) साग-रोटी
(ग) दूध-रोटी
(घ) सब्जी-चावल
उत्तर :
(ख) साग-रोटी।
प्रश्न 6.
मोहन कितने वर्ष का था?
(क) पाँच वर्ष
(ख) दस वर्ष
(ग) आठ वर्ष
(घ) नौ वर्ष
उत्तर :
(ग) आठ वर्ष।
प्रश्न 7.
साईं को पीछे से किसने आवाज लगाई ?
(क) पिताजी
(ख) मोहन
(ग) बच्चे
(घ) लेखक
उत्तर :
(ख) मोहन।
प्रश्न 8.
कौन अचानक गुदड़ छीनकर भागने लगा ?
(क) मोहन
(ख) एक लड़का
(ग) पिताजी
(घ) लेखक
उत्तर :
(ख) एक लड़का।
प्रश्न 9.
किस वजह से साईं ने मोहन के द्वार पर आना छोड़ दिया ?
(क) पीटने के
(ख) डांटने के
(ग) चिल्लाने के
(घ) गुस्से के
उत्तर :
(ख) डांटने के।
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर :
प्रश्न 1.
मोहन को साई से क्यों लगाव था ?
उत्तर :
मोहन साईं को गरीब और भिखमंगा समझता था। साईं बड़े ही प्यार तथा आत्मीयता से मोहन से बातें किया करता था। बच्चे स्नेह तथा प्यार के बर्ताव को समझते हैं। इसीलिए मोहन को साईं से लगाव था।
प्रश्न 2.
साईं की अक्षय तृप्ति का क्या कारण था ?
उत्तर :
बालक मोहन साई को साग-रोटी दे देता तथा साई के मुख पर पवित्र मित्रता का भाव झलकने लगता था। बड़े. चाव से उसे खाता था और मोहन के द्वारा दी हुई एक रोटी उसकी अक्षय तृप्ति का कारण हो जाती थी।
प्रश्न 3.
मोहन के पिता क्यों नाराज हो गए ?
उत्तर :
मोहन के पिता इन फकीरों को ढोंगी समझते थे। इसलिए वे मोहन को साई के साथ बात करना और उसे रोटी देते देखकर नाराज हो गए।
प्रश्न 4.
मोहन के पिता के आश्चर्यचकित होने के क्या कारण थे ?
उत्तर :
जिस नटखट लड़के ने साई का चीथड़ खींचकर भागने की चेष्टा की थी, उसे मोहन के पिता ने पकड़ लिया। लोग उसे मारने-पीटने लगे। साई उस लड़के को छुड़ाने लगा और उस लड़के को रोता देख स्वयं रोने लगा। साई ने कहा कि मेरे चीथड़ को छीन कर रामरूप भगवान प्रसन्न होते हैं। फिर वह उस बच्चे के गले में प्यार से बाँहे डालकर चल दिया। साई के इस व्यवहार को देखकर मोहन के पिता आश्चर्यचकित हो गए।
प्रश्न 5.
साईं क्यों रोने लगा ?
उत्तर :
साई का गूदड़ छीनकर भागने वाले लड़के की लोगों न पिटाई कर दी जिससे लड़का रोने लगा। उस लड़के को रोते देखकर साई भी रोने लगा।
प्रश्न 6.
गूदड़ के साईं कीन चीजों से दूर थे ?
उत्तर :
गूदड़ के साई माया, मोह से दूर था।
प्रश्न 7.
मोहन के पिताजी को मोहन के किसका साथ पसन्द नहीं था ?
उत्तर :
मोहन के आर्यसमाजी पिता को मोहन और साई का साथ पसन्द नहीं था।
प्रश्न 8.
साई की आँखों में आंसू क्यों आ गये ?
उत्तर :
लड़का को पीटता देख साई की आँखों में आँसू आ गये ।
प्रश्न 9.
लड़के ने किस ख्याल से गूदड़ छीनकर भागने लगा ?
उत्तर :
लड़के ने चिढ़ाने के ख्याल से गूदड़ छीनकर भागने लगा ।
प्रश्न 10.
मोहन के घर साईं के न जाने के क्या कारण थे ?
उत्तर :
मोहन के घर साई के न जाने के कारण मोहन के पिता की नाराजगी थी।
प्रश्न 11.
क्या बात मोहन के पिता को जँच गई ?
उत्तर :
भगवान लड़के के रूप में प्रतिदिन गूदड़ छीनते हैं और मैं वापस ले लेता हूँ। इससे ईश्वर की लीला चलती रहती है। यह बात मोहन के पिता को जँच गई।
बोधमूलक प्रश्नोत्तर :
प्रश्न 1. क.
साई का स्वभाव कैसा था ?
उत्तर :
साई संसार के माया-मोह से विरक्त था। इसमें क्रोध, अहंकार बिल्कुल नहीं था। वह बच्चों को भगवान का ही रूप मानता था। इसलिए उसके दिल में बच्चे के प्रति प्यार तथा ममत्व का भाव था। किसी के डाँटने या तिरस्कार करने का उस पर कोई असर नहीं पड़ता था। वह सदा स्वच्छ पवित्र मन तथा विचार का फकीर था। उसमें सहानुभूति की भावना थी। अहंकार करने वालों से भी वह प्यार का बर्ताव करता था।
प्रश्न ख.
मोहन से रोटी मिलने के बाद साई क्या सोचता ?
उत्तर :
मोहन से रोटी मिलने के बाद साई के मुख पर पवित्र मैद्री का भाव झलकता था। वह स्वयं एक बालक के समान अभिमान, प्रशंसा तथा उलाहना की सोच एवं विचार के साथ रोटी खाकर संतुष्ट हो जाता थां
प्रश्न ग.
कई दिनों के बाद लौटने के पश्चात् साईं मोहन के घर की ओर क्यों नहीं गया ?
उत्तर :
मोहन के पिता ने साई के सामने ही मोहन को डाँटा और कहा कि वह इन लोगों के साथ बातें न किया करे। वे आर्य समाजी थे और इन फकीरों को ढोंगी समझते थे। यही समझकर साई मोहन के घर की ओर नहीं गया।
प्रश्न घ.
साईं ने चीथड़े छीनकर भागनेवाले लड़के को मारने से क्यों रोका ?
उत्तर :
साई बच्चों को भगवान का स्वरूप मानता था। उसका विचार था कि चीथड़े को छीनकर बच्चे प्रसन्न होते हैं। वह बच्चों से छिनवाने के लिए उनके मनोविनोद के लिए बच्चों से चिथड़े को लड़कर छीन लेता था। भागने वाले लड़के को वह भगवान का रूप मानता था। इसलिए लड़के को मारने से रोका।
प्रश्न 2.
निर्देशानुसार उत्तर दीजिए :
(क) बाबा मेरे पास दूसरी कौन ……….. प्रसन्न करता।
(i) पाठ व रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत अवतरण ‘गूदड़ साई’ पाठ से उद्धुत है। इसके लेखक श्री जयंशकर प्रसाद है।
(ii) राम रूप किसे कहा गया है ?
उत्तर :
राम रूप बच्चों के लिए कहा गया है।
(iii) उक्त पंक्ति की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
साई सिर फटने पर भी न रोया, पर लड़के को रोते देख कर वह रोने लगा। मोहन के पिता ने उससे पूछा कि यही लड़का चिथड़ा छीन कर भाग रहा था, तब तुम चिथड़े के लिए उसके पीछे क्यों दौड़े। उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए साई कहने लगा कि उसके पास इस चीथड़े के अतिरिक्त कोई भी वस्तु नहीं है। इसलिए इस चीथड़े को देकर ही बच्चों को प्रसन्न बनाता हूँ। ये बच्चे ही राम रूप भगवान हैं।
(ख) ‘पर चीथड़े पर भगवान ही दया करते हैं।’
(i) उक्त पंक्ति के वक्ता व श्रोता का नाम लिखें।
उत्तर :
उक्त पंक्ति के वक्ता गूदड़ साईं व श्रोता मोहन के पिता हैं।
(ii) उक्त पंक्ति की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर :
साई मोहन के पिता से कहने लगा कि सोने के कीमती खिलौने को उचक्के, ठग, चोर छीन कर भागते हैं। इस चिथड़े पर उनकी नजर नहीं जाती, क्योंकि चिथड़े पर भगवान ही कृपा करते हैं। भगवान बालक के रूप में चिथड़े को छीनते हैं।
प्रश्न 3.
मोहन के पिता के स्वभाव में हुए परिवर्तन को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
मोहन के पिता पहले गूदड़ साई को ढोंगी, भिखमंगा फकीर समझते थे। इसलिए उसे महत्त्व नहीं देते थे। उससे नफरत का भाव रखते थे। जब उन्होंने देखा कि साई चीथड़ छीन कर भागने वाले लड़के पर दया दिखलाता है। लड़के को मारने वाले लोगों को मना करने लगता है, उसे रोता देख कर स्वयं रोने लगता है। बालक के आँसू पोंछ कर मित्र के समान उसके साथ चल देता है। यह देखकर उनका स्वभाव बदल गया। वे साई को ढोंगी नहीं बल्कि गुदड़ी का लाल समझने लगे।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर :
प्रश्न 1.
‘गूदड़ साई’ सचमुच गुदड़ी का लाल था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
गूदड़ साईं सच्चे अर्थों में फकीर था। वह बच्चों में ईश्वर का ही प्रतिबिम्ब देखा करता था। उसके पास न कोई सम्पत्ति थी, न उसकी कोई बड़ी-बड़ी इच्छाएँ थीं । साई प्रेम का भूखा कोई था। वह मोहन के घर बड़े पवित्र भाव से सागरोटी खाता था और मोहन से बड़े भाव से बातें भी किया करता था। 10 वर्ष के बालक के समान अभिमान, सराहना और उलाहना के आदान-प्रदान के बाद मोहन की दी हुई एक रोटी बड़े चाव से खाता था। मोहन के पिता के बिगड़ने के कारण वह बालक मोहन के घर की ओर नहीं गया, पर मोहन के कहने पर साईं सारे मान-अपमान को भूलकर पुन: मोहन के घर जाने को तत्पर हो उठा।
एक दिन एक लड़का साई का गूदड़ खींच कर भागा। गूदड़ लेने के लिए साईं उसके पीछे दौड़, चौराहे तक दौड़तेदौड़ते उसे ठोकर लगी और वह गिर पड़ा। सिर से खून बहने लगा। गूदड़ लेकर भागने वाला लड़का डर से वहीं ठिठक गया। इस सारी घटना को देखकर मोहन के पिता ने उस लड़के को पकड़ लिया। दूसरे हाथ से साईं को पकड़ कर उठाया।
नटखट लड़के के सिर पर चपत पड़ने लगे । यह देख साई उठकर खड़ा हो गया, साई ने उसे मारने से मना किया और कहा कि इसे चोट आती होगी। फिर वह लड़के को छुड़ाने लगा। मोहन के पिता ने साई से पूछा कि वे चीथड़ के लिये उसके पीछे क्यों दौड़ रहे थे। सिर फटने पर भी साई को रुलाई नहीं आयी किन्तु उस लड़के को रोते देखकर रोने लगे। मोहन के पिता से साईं ने कहा कि मेरे पास कोई दूसरी वस्तु तो है नहीं, जिसे देकर इस राम रूप भगवान को प्रसन्न कर सके।
फिर साईं ने कहा कि इस गूदड़ को लेकर भगवान भागते हैं और मैं उनसे लड़कर छीन लेता हूँ फिर उन्हीं से छिनवाने के लिए गूदड़ रखता हूँ। जिनसे उनका मनोविनोद हो सके। इन गूदड़ों पर तो भगवान भी दया करते हैं। इतना कहकर बालक का मुँह पोंछते हुए मित्र के समान गलबांही डाले हुए चल दिए। मोहन के पिता ने आश्चर्य से कहा कि यह गूदड़ साई केवल गूदड़ ही नहीं बल्कि गूदड़ी का लाल है। इस प्रकार गूदड़ साईं अपने अनोखे स्वभाव के कारण मानअपमान से परे रहने का कारण खिंझाने वाले को भी मित्र समझने के कारण गुदड़ी का लाल था।
भाषा-बोध :
1. पर्यायवाची शब्द लिखें :
अभिमान – घमंड, दर्प, गर्व
फकीर – भिक्षुक, भिखारी, याचक
आँख – नयन, नेत्र, चक्षु
प्रसन्न – खुश, आनंदित, हर्षित
भगवान – ईश्वर, प्रभु, जगदीश
2. तद्भव तत्सम शब्द लिखें –
तद्भव – तत्सम
साई – स्वामी
आठ – अष्ट
बरस – वर्ष
आँख – अक्षि
मुँह – मुख
सोना – स्वर्ण
3. लिंग निर्णय कीजिए –
रोटी – स्त्रिलिंग
बैरागी – पुल्लिंग
अभिमान – पुल्लिंग
चीथड़ – पुल्लिंग
आश्चर्य – पुल्लिंग
WBBSE Class 6 Hindi गूदड़ साईं Summary
जीवन-परिचय :
जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 ई॰ में वाराणसी के एक प्रसिद्ध वैश्य कुल में हुआ था। सातवीं कक्षा तक ही इन्हें क्विन्स कालेज से शिक्षा मिली। घर पर ही रह कर प्रसाद ने संस्कृत तथा अंग्रेजी, इतिहास, पुराण, दर्शन का अध्ययन किया। सन् 1936 में इनकी इह लीला समाप्त हो गई। प्रसाद अपने युग के सबसे बड़े पौरुषवान कवि थे। इनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ – कामायनी, आँसू, झरना, लहर तथा नाटक – स्कन्दगुप्त, अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त, धुवस्वामिनी, कहानी – संग्रह – आकाशदीप, छाया, प्रतिध्वनि आदि हैं।
कहानी का सारांश – गूदड़ साई एक बैरागी था। वह माया, मोह से दूर था। कुछ दिनों से वह दोपहर को 8 वर्ष के बालक मोहन के घर जाता था और उससे बाते किया करता था। मोहन पिता की नजर बचाकर माँ से माँग कर सागरोटी उसे खाने के लिए दे दिया करता था। गूदड़ साईं बड़ेप्रेम से खाकर तृष्ति का अनुभव करता था। एक दिन कट्टर आर्य समाजी मोहन के पिता यह देखकर मोहन को डाँटे कि वह ऐसे लोगों के साथ बातें न करे। साई हँस पड़ा और वहाँ से चल पड़ा।
उसके बाद कई दिन साई मोहन के मकान की ओर न गया। एक दिन पढ़कर लौटते समय मोहन ने देखकर साई को पुकारा और वह लौट पड़ा। मोहन ने इनसे कहा कि वे आया करें। रोटी खाया करें। कल जरूर आइए। इस बीच एक लड़का साई का गूदड़ खींच कर भागा। गूदड़ लेने के लिए साई उसके पीछे दौड़ा। दौड़ते समय गिर पड़ा। सिर से खून बहने लगा । खिझाने के लिए गूदड़ लेकर भागने वाले लड़के को मोहन के पिता ने पकड़ लिया। दूसरे हाथ से साई को उठाया।
साई ने उस लड़के को न मारने की प्रार्थना की। लड़के को रोता देख स्वयं रोने लगा। उसने कहा इस चीथड़े को भगवान लेकर भागते हैं और मैं लड़कर उनसे छीन लेता हूँ । चीथड़ों पर भगवान ही दया करते हैं। ‘रामरूप’ भगवान को प्रसन्न करने के लिए मेरे पास दूसरी कौन वस्तु है। इतना कहकर बालक का मुँह पोंछते हुए साई चला गया। मोहन के पिता ने कहा कि गूदड़ साई सचमुच गुदड़ी का लाल है।
शब्दार्थ :
- अक्षय = क्षय रहित।
- मनोविनोद = मन का आनंद।
- यत्न = प्रयास।
- बैरागी = विरक्त, उदासीन।
- कटृर = कठोर ।
- सराहना = प्रशंसा ।
- गूदड़ = फटा चिथड़ा-कपड़ा।
- उलाहना = शिकायत।
- ओझल = ओट, गायब।
- मुहल्ला = शहर का एक हिस्सा।
- ढोंगी = पाखंडी।
- तृप्ति = संतुष्टि।
- नटखट = चंचल, उपद्रवी।
- उचक्के = ठग।
- गलबाही = गले में प्रेम से बाँह डालना।
- गुदड़ी के लाल = गरीबी में गुणवान।