WBBSE Class 9 History Solutions Chapter 4 औद्योगिक क्रांति, उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद

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WBBSE Class 9 History Chapter 4 Question Answer – औद्योगिक क्रांति, उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK

प्रश्न 1.
सर्वप्रथम औद्योगिक क्रान्ति का आरम्भ कहाँ हुआ ?
उत्तर :
औद्योगिक क्रान्ति का शुरूआत इंग्लैण्ड में हुई।

प्रश्न 2.
इंग्लैण्ड के पश्चात् सर्वप्रथम किस देश में औद्योगिक क्रान्ति हुई?
उत्तर :
फ्रांस।

प्रश्न 3.
किस युग में मनुष्य ने अपना लम्बा समय गुजारा है ?
उत्तर :
पाषाण युग में।

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प्रश्न 4.
औद्योगिक क्रान्ति ने किस युग को जन्म दिया है ?
उत्तर :
आधुनिक युग को।

प्रश्न 5.
बुनाई मशीन जेनी का आविष्कार कब हुआ था ?
उत्तर :
1764 ई० में।

प्रश्न 6.
मार्क्सवाद के जन्मदाता कौन है ?
उत्तर :
मार्लमार्क्स।

प्रश्न 7.
पेरिस कम्यून का गठन कब हुआ ?
उत्तर :
1871 ई० में।

प्रश्न 8.
‘बैंक ऑफ रसिया’ की स्थापना किसने की ?
उत्तर :
अलेक्जेण्डर द्वितीय ने।

प्रश्न 9.
औद्योगिक क्रांति सर्वप्रथम कहाँ शुरू हुई ?
उत्तर :
औद्योगिक क्रांति की शुरुआत सबसे पहले इंगलैण्ड में हुई।

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प्रश्न 10.
चार्टिस्ट आन्दोलन कब हुआ था?
उत्तर :
1832 ई० में इंग्लैण्ड में चार्टिस्ट सुधार आन्दोलन हुआ था ।

प्रश्न 11.
इंग्लैण्ड में 1846 ई० कौन सा नियम पास किया गया था?
उत्तर :
सस्ता ट्रेन नियम पास किया गया।

प्रश्न 12.
तार द्वारा समाचार भेजने की पहली प्रक्रिया कब शुरू हुई?
उत्तर :
1844 ई० में।

प्रश्न 13.
“औद्योगिक क्रान्ति ने मजदूर को अपने ही देश में एक भूमिहीन परदेशी बना दिया था”-यह कथन किसका है।
उत्तर :
सिडनी वेब।

प्रश्न 14.
सर्वप्रथम भाप से चलने वाले रेल इंजन ‘रॉकेट’ का निर्माण कब और किसने किया ?
उत्तर :
जार्ज स्टीफेन्सन ने 1830 ई० में।

प्रश्न 15.
इंग्लैण्ड के दो शहर बताएँ जहाँ औद्योगिक क्रान्ति हुई थी?
उत्तर :
मैनचेस्टर तथा वर्सले ।

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प्रश्न 16.
जब इंग्लैण्ड़ में औद्योगिक क्रान्ति हुई थी, उस समय इंग्लैण्ड का राजा कौन था?
उत्तर :
जार्ज तृतीय ।

प्रश्न 17.
जापान ने चीन को कब हराया?
उत्तर :
1895 ई० में ।

प्रश्न 18.
चीन पर ब्रिटिश प्रभाव कब से पड़ा ?
उत्तर :
1890 ई० में।

प्रश्न 19.
जापान ने चीन को कब हराया ?
उत्तर :
1895 ई० में।

प्रश्न 20.
जर्मनी में औद्योगिक दशक कौन-सा जाना जाता है।
उत्तर :
1850 ई० से 1860 ई० का दशक।

प्रश्न 21.
रूस में किस शासक का काल औद्योगिक प्रगति का काल था ?
उत्तर :
अलेक्जेण्डर तृतीय का काल।

प्रश्न 22.
मार्क्सवादी विचरधारा के संस्थापक कौन थे?
उत्तर :
कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंजिल्स।

प्रश्न 23.
भौगोलिक आविष्कार यूरोप में कब हुआ था?
उत्तर :
19 वीं सदी के प्रारम्भ के साथ।

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प्रश्न 24.
ब्रिटेन में कब प्रथम रेल आरम्भ हुआ था?
उत्तर :
14 जून, 1830 ई० में।

प्रश्न 25.
प्रथम बार टेलिग्राफ मैसेज कब भेजा गया था?
उत्तर :
1844 ई० में।

प्रश्न 26.
स्वेज नहर कितने वर्षों में बनकर तैयार हुई ?
उत्तर :
10 वर्षों।

प्रश्न 27.
जापान ने रूस को कब हराया ?
उत्तर :
1905 ई० में।

प्रश्न 28.
प्रथम विश्व युद्ध कब प्रारम्भ हुआ ?
उत्तर :
1914 ई० में।

प्रश्न 29.
स्वेज नहर कितनी लम्बी और चौड़ी है ?
उत्तर :
165 कि०मी० लम्बाई तथा 48 मी० चौड़ाई है।

प्रश्न 30.
पुर्तगाली चीन कब पहुँचे थे ?
उत्तर :
1514 ई० में।

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प्रश्न 31.
बर्लिन में एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन कब बुलाया गया ?
उत्तर :
1885 ई० में।

प्रश्न 32.
प्रथम विश्व युद्ध का श्रीगणेश कब हुआ?
उत्तर :
28 जुलाई 1914

प्रश्न 33.
प्रथम विश्वयुद्ध कब खत्म हुआ ?
उत्तर :
प्रथम विश्वयुद्ध 11 नवम्बर 1918 ई. को खत्म हुआ।

प्रश्न 34.
‘फ्लाइंग शटल’ का निर्माण किसने किया ?
उत्तर :
‘फ्लाइंग शटल’ का निर्माण जॉन के ने किया।

प्रश्न 35.
पावरलूम का आविष्कार कब और किसने किया ?
उत्तर :
1785 ई० में एडमंड कार्ट राइट ने।

प्रश्न 36.
कोयले से लोहा गलाने की प्रक्रिया का आविष्कार किसने किया।
उत्तर :
अब्राहम डर्बी ने।

प्रश्न 37.
कच्चे लोहे की अशुद्धियों को दूर करने का तरीका किसने निकाला।
उत्तर :
हेनरी कोर्ट ने।

प्रश्न 38.
अफ्रीका का पता किसने लगाया ?
उत्तर :
स्टेनली नामक खोजकर्ता ने।

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प्रश्न 39.
प्रथम विश्व युद्ध के दोनों पक्ष कौन-कौन थे ?
उत्तर :
प्रथम पक्ष – जर्मनी, अस्ट्रिया इटली।
दोनों पक्ष – इग्लैण्ड, फ्रांस, रूस तथा जापान।

प्रश्न 40.
जब इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति हुई थी, उस समय इंग्लैण्ड का राजा कौन था ?
उत्तर :
जार्ज तृतीय।

प्रश्न 41.
भौगोलिक आविष्कार यूरोप में कब हुआ था ?
उत्तर :
औद्योगिक क्रान्ति के काल में।

प्रश्न 42.
ब्रिटेन में कब प्रथम रेल आरम्भ हुई थी ?
उत्तर :
1830 ई० में।

प्रश्न 43.
प्रथम बार टेलिग्राफ मैसेज कब भेजा गया था ?
उत्तर :
सैमुअल्स मोर्स ने सर्वप्रथम 1844 ई० में तार द्वाग़ा समाचार भेजा था।

प्रश्न 44.
सॉ सिमों की सर्वाधिक लोकप्रयि पुस्तक का क्या नाम था ?
उत्तर :
New Christianity

प्रश्न 45.
औद्योगिक कान्ति ने किन दो वर्गों को जन्म दिया ?
उत्तर :
पूँजीपति वर्ग तथा श्रंमिक वर्ग।

प्रश्न 46.
आदर्शवादी समाजवाद किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
वर्गहीन समाज को स्थापना को आदर्शवादो समाज कहा जाता है।

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प्रश्न 47.
वैज्ञानिक समाजवाद की स्थापना किसने की ?
उत्तर :
कार्ल मार्क्स ने।

प्रश्न 48.
कार्ल मार्क्स द्वारा रचित दो पुस्तकों के नाम लिखो।
उत्तर :
समाजवादी घोषणा पत्र तथा दास कैपिटल।

प्रश्न 49.
उग्र राष्ट्रवाद का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
राष्ट्रीय स्वार्थ की तीव्रता को उग्र राष्ट्रवाद कहते हैं।

प्रश्न 50.
किस संधि के द्वारा प्रथम अफीम युद्ध की समाप्ति हुई ?
उत्तर :
नानकिंग की संधि (1842 ई.) के द्वारा प्रथम अफीम युद्ध की समाप्ति हुई।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS

प्रश्न 1.
औद्योगिक क्रांति से क्या समझते हो ?
उत्तर :
18 वीं सदी के दूसरे चरण में शारीरिक श्रम के बदले वैज्ञानिक मशीनों से औद्योगिक उत्पादन किया जाना एवं इसके फलस्वरूप सामग्री के गुणों एवं परिमाण में व्यापक अग्रगति की घटना को औद्योगिक क्रांति के नाम से जाना जाता है। प्रसिद्ध दार्शनिक अगस्त ब्लंकी ने 1837 ई. में सर्वप्रथम ‘औद्योगिक क्रांति’ शब्द का व्यवहार किया था।

प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप नये वर्ग का उदय किस प्रकार हुआ ?
उत्तर :
प्रेस, समाचार-पत्र व पुस्तकों की सहायता से बुद्धिजीवी वर्ग ने अपने विचारों का प्रचार करना आरम्भ किया। समाजवादी विचारधाराएँ जोर पकड़ने लगीं। इस नवीन वर्ग ने मजदूरों के जीवन में परिवर्तन लाया तथा मालिकों और सरकार से इनका हक भी इन्हे दिलाने का प्रयास किया।

प्रश्न 3.
घेराबन्दी प्रथा का वर्णन करें।
उत्तर :
इंगलैण्ड में जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े को बड़े जमीन के हिस्से में मिलाकर इन पर मशीनों द्वारा उत्पादन करने के कारण अधिक संख्या में किसान बेकार होकर शहर जाकर मजदूर बन गये।

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प्रश्न 4.
पूँजीवाद किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
औद्योगिक क्रान्ति से पहले जन्मी पूँजीवादी व्यवस्था में पूँजीपतियों द्वारा धन एवं लाभ प्राप्ति को ही पूँजीवाद कहा जाता है।

प्रश्न 5.
उपनिवेशवाद क्या है ?
उत्तर :
औद्योगिक क्रान्ति के कारण उद्योग प्रधान देशों द्वारा अपने माल की खपत तथा कच्चे माल की प्राप्ति के लिये जिन-जिन जगहों में अपने-अपने उपनिवेश बनाये गये उसे उपविनेशवाद कहते हैं।

प्रश्न 6.
औद्योगिक क्रान्ति का महिलाओं पर क्या असर पड़ा ?
उत्तर :
औद्योगिकीकरण का प्रभाव स्त्रियों पर भी पड़ा। कल-कारखानों की स्थापना से उनके जीवन में भी परिवर्तन आया। उन्हें भी पुरुषों के साथ कल-कारखानों में काम करना पड़ा। इन्हें भी उद्योगपति पुरुषों से कम वेतन पर ही कारखानों में रखते थे। इन्हें लगातार कई घटों तक कड़े नियंत्रण में काम करना पड़ता था। सूती वस्त्र उद्योग में स्त्रियों को बड़ी संख्या में लगाया गया।

प्रश्न 7.
औद्योगिक क्रांति की कुछ विशेषताओं के नाम लिखो।
उत्तर :
औद्योगिक क्रांति की कुछ विशेषताएँ हैं –

  1. स्थिर गति एवं सुनिर्दिष्ट नियम से उद्योग का धारावाहिक प्रसार
  2. उद्योग-धंधों में छोटी-बड़ी मशीनों का प्रयोग
  3. अधिक मूलधन (पूंजी) का विनिवेश
  4. कच्चे माल एवं तैयार माल के लिये उपनिवेशों (बाजार) का दखल
  5. शुरू में इंगलैण्ड फिर अन्य देशों में प्रसार
  6. नगर केन्द्रित औद्योंगिक सभ्यता का विकास इत्यादि।

प्रश्न 8.
औद्योगिक क्रान्ति कब और कहाँ हुई थी?
उत्तर :
औद्यागिक क्रान्ति 1760 – 1830 ई० के बीच इंग्लैण्ड में ।

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प्रश्न 9.
औद्योगिक क्रान्ति के दो आविष्कारों का वर्णन करें।
उत्तर :
जाँज्ज स्टींशन ने रेल इंजन तथा मोर्स ने टेलीग्राफ यंत्र का आविष्कार किया ।

प्रश्न 10.
औद्योगिक क्रान्ति के राजनीतिक प्रभाव का वर्णन दो वाक्यों में करें।
उत्तर :
औद्योगिक क्रान्ति ने साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद की प्रवृत्ति को बढ़वा दिया जिससे प्रथम विश्व युद्ध का जन्म हुआ।

प्रश्न 11.
कम्युनिस्ट घोषणा पत्र को किसने लिखा था तथा इसका प्रकाशन कब हुआ?
उत्तर :
कार्ल मार्क्स और एंजिल्स ने ‘कम्युनिस्ट घोषणा पत्र’ लिखा था । इसका प्रकाशन 1848 ई० में हुआ ।

प्रश्न 12.
बोलशेविक क्रान्ति कब और कहाँ हुई थी?
उत्तर :
बोलशेविक क्रान्ति 1917 ई० में रूस में हुई थी ।

प्रश्न 13.
‘दास कैपिटल’ की रचना किसने और कब की थी?
उत्तर :
‘दास कैपिटट’ की रचना कार्ल मार्क्स ने 1867 ई० में की थी ।

प्रश्न 14.
जापान ने कब कोरिया पर दावा किया और कौन देश उसे रोक रहा था?
उत्तर :
1894 में जापान ने कोरिया पर दावा किया। चीन उसे रोक रहा था ।

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प्रश्न 15.
प्रथम विश्व युद्ध कब शुरू और कब खत्म हुआ था?
उत्तर :
1914 में शुरू हुआ और नवम्बर 1918 में खत्म हुआ ।

प्रश्न 16.
औद्योगिक क्रान्ति ने किन विचारों को जन्म दिया ?
उत्तर :
श्रमिक वर्ग में औद्योगिक क्रान्ति ने साम्यवादी तथा वैज्ञानिक साम्यवाद के विचारों को जन्म दिया।

प्रश्न 17.
वाटर फ्रेम का आविष्कार किसने और कब किया था ?
उत्तर :
1769 ई० में रिजर्ड आर्कराइट ने वाटर फ्रेम का आविष्कार किया।

प्रश्न 18.
भारतवर्ष में पहली रेल कब और कहाँ चली थी ?
उत्तर :
भारतवर्ष में पहली रेलगाड़ी 1853 ई॰ में मुम्बई से थाने तक चली थी।

प्रश्न 19.
किस व्यक्ति ने पहली बार मनुष्यों की आवाज तार द्वारा सुना था और कब ?
उत्तर :
अलेक्जेण्डर ग्राहम बेल ने 1876 ई० में पहली बार मनुष्य की आवाज को तार के द्वारा सुना था।

प्रश्न 20.
रेलवे के आने से विश्व के जन जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा।
उत्तर :
रेलवे के आने से आवागमन में विशेष सुविधा हुई। रेलवे से उत्पादित सामानों के आयात-निर्यात करने में काफी सुविधा हो गई। भाप के इंजन से व्यापार के विकास में अभूतपूर्व उन्नति हुई। डेविस महोदय ने लिखा है कि अगर इस वाष्षइंजन की खोज नहीं हुई होती तो व्यापार में यह अभूतपूर्व और आश्चर्यजनक विकास नहीं हुआ होता।

प्रश्न 21.
इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम औद्योगिक क्रांति के शुरू होने के क्या कारण थे ?
उत्तर :
इंगलैण्ड में सर्वप्रथम औद्योगिक क्रांति शुरू होने के निम्न कारण थे –

  1. इंगलैण्ड का अनुकूल प्राकृतिक परिवेश,
  2. कारखानों की स्थापना के लिये पूंजी की उपलब्धता
  3. सस्ते श्रमिक
  4. कच्चे माल का संग्रह एवं तैयार माल के लिये बाजार (उपनिवेश) का प्रसार
  5. विकसित यातायात एवं परिवहन व्यवस्था
  6. सरकारी सहयोग
  7. वैज्ञानिक मशीनों का आविष्कार इत्यादि।

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प्रश्न 22.
साम्राज्यवाद के कारण ही प्रथम विश्वयुद्ध हुआ- आलोचना करो।
उत्तर :
औद्योगिक क्रांति के कारण यूरोपीय देश अपने बढ़ते उत्पादन सामग्री को बेचने के लिये नये बाजारों की तलाश में नये उपनिवेश बनाने और दखल करने की होड़ में लग गये। जर्मनी, फ्रांस, इंगलैण्ड तथा रूस आदि देशों की इस दखल करने की साम्राज्यवादी नीति ने ही विश्व को एक नये महायुद्ध की ओर झोक दिया।

प्रश्न 23.
औद्योगिक क्रान्ति का रूस पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर :
औद्योगिक क्रान्ति ने रूसी क्रान्ति को जन्म दिया । फलस्वरूप समाजवादी सरकार की स्थापना हुई ।

प्रश्न 24.
औद्योगिक क्रान्ति ने कैसे आर्थिक साम्राज्यवादी को बढ़ावा दिया?
उत्तर :
औद्योगिक क्रान्ति ने बढ़े पैमाने के उत्पादन को, बढ़े पैमाने के उत्पादन ने बाजारवाद को, बाजारवाद ने पूँजीपति वर्ग व आर्थिक साम्राज्यवाद को जन्म दिया ।

प्रश्न 25.
औद्योगिक क्रान्ति पर मजदूरों की दशा पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर :
औद्योगिक क्रान्ति ने मजदूरों के शोषण तथा वर्ग संघर्ष को जन्म दिया। फलस्वरूप उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आया ।

प्रश्न 26.
जर्मन उद्योग के विस्तार में बिस्मार्क की दो प्रचेष्टाओं का उल्लेख करो।
उत्तर : जर्मनी उद्योग के विस्तार में बिस्मार्क की दो प्रमुख प्रचेष्टाएँ हैं-(1) बिस्मार्क ने विदेशी प्रतियोगिता से जर्मन उद्योग को बचाने के लिये उद्योग में संरक्षण नीति चालू की एवं (2) उन्होंने जर्मनी के विभिन्न राज्यों में एक ही तरह की मुद्रा, वजन, माप, शुल्क इत्यादि चालू करके वाणिज्य की अग्रगति को दिशा दी।

प्रश्न 27.
रूस के औद्योगिकीकरण में विलंब होने के दो कारणों का उल्लेख करो।
उत्तर :
रूस के औद्योगिकीकरण में विलंब होने के दो कारण निम्न हैं- (1) रूस के सामन्त प्रभु उद्योग से अधिक कृषि को पसंद करते थे। (2) उद्योग में पूंजी लगाने के लिये मूलधन का अभाव था।

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प्रश्न 28.
औद्योगिक क्रांति के राजनैतिक परिणामों का उल्लेख करो।
उत्तर :
औद्योगिक क्रांति के राजनैतिक परिणाम थे-

  1. मिल-मालिक (पूंजीपति) एवं श्रमिक श्रेणी का उद्भव
  2. भूस्वामी एवं सामन्तों का अन्त,
  3. पूंजीपतियों का राजनीतिक वर्चस्व
  4. श्रमिक आन्दोलन की शुरुआत
  5. कच्चा माल एवं तैयार माल के बाजार के लिये उपनिवेशों के दखल का युद्ध आदि।

प्रश्न 29.
औद्योगिक क्रांति के सामाजिक परिणामों का उल्लेख करो।
उत्तर :
औद्योगिक क्रांति के सामाजिक परिणाम थे-

  1. इंगलैण्ड में मैनचेस्टर, लिवरपुल, बिस्टल, वर्किघम आदि उद्योग नगरी का उद्भव
  2. गाँव छोड़कर शहरों में लोगों का आगमन
  3. गाँव की जनसंख्या में कमी तथा दुर्दशा में वृद्धि एवं
  4. मालिक मजदूर दो वर्ग का जन्म आदि।

प्रश्न 30.
औद्योगिक क्रांति के अर्थनैतिक परिणामों का उल्लेख करो।
उत्तर :
औद्योगिक क्रांति के अर्थनैतिक परिणाम थे-

  1. ग्रामीण कुटीर उद्योगों का नष्ट हो जाना।
  2. बृहत कलकरखानों से फैक्ट्री प्रथा का उद्भव
  3. श्रम विभाजन नीति का जन्म
  4. औद्योगिकीकरण का विस्तार आदि।

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प्रश्न 31.
औद्योगिक क्रांति के बाद ग्रामीण समाज क्यों दूट गया ?
उत्तर :
औद्योगिक क्रांति के बाद गाँव के अधिकांश गरीब किसान शहर में नगद मजदूरी पर काम के लिये आने लगं जिसके कारण गाँव की आबादी कम होने लगी तथा क्रमश: गाँव उजाड़ होने लगे।

प्रश्न 32.
औद्योगिक क्रांति के दो सामाजिक दुष्परिणामों का उल्लेख करो।
उत्तर :
औद्योगिक क्रांति के दो महत्वपूर्ण सामाजिक दुष्परिणाम हैं-
1. गाँव के अधिकांश गरीब कृषक नौकरी के लिये शहरों में.आने लगे, फलस्वरूप गाँव खाली होने लगे
2. कारखानों में मजदूरी मिलने एवं अधिक समय तक काम करने के कारण श्रमिकों की दुर्दशा होने लगी।

प्रश्न 33.
फैक्ट्री प्रथा क्या है ?
उत्तर :
औद्योगिक क्रांति के कारण यूरोप के विभिन्न देशों में बृहत कल-कारखाने निर्मित हुए। इन कारखानों में मशीनों के व्यवहार से औद्योगिक उत्पादन में गुणगत्रत एवं परिमाणगत उन्नति हुई। कारखानों में इस व्यवस्था को फैक्ट्री प्रथा के नाम से जाना गया।

प्रश्न 34.
‘घेटो’ क्या है ?
उत्तर :
‘घेटो’ शहर के उस निर्दिष्ट इलाकों को कहा जाता है जहाँ पर कोई विशेष सामाजिक, अर्थनैतिक या धार्मिक संख्यालघु के लोग रहते हैं। वेनिस शहर में यहूदियों के रहने के निर्दिष्ट इलाको को चिह्नित करने के लिये ‘घेटो’ शब्द का प्रथम व्यवहार हुआ। बाद में बाहर से आये लोगों के रहने के इलाकों के लिये ‘घेटो’ का व्यवहार होने लगा।

प्रश्न 35.
‘श्रम-विभाजन’ नीति से क्या समझते हो ?
उत्तर :
यूरोप में औद्योगिकीकरण के बाद कारखाने में उत्पादन के काम में एक-एक श्रमिक एक-एक विशेष कार्य के लिये नियुक्त रहता था। इसे श्रम-विभाजन नीति कहा जाता था।

प्रश्न 36.
‘लुडाइट दंगा’ क्या है ?
उत्तर :
इंगलैण्ड का मजदूर वर्ग कारखाने की मशीनों को अपना असली दुश्मन मानते थे क्योंकि इन कारखानों में काम करने के कारण ही उनके जीवन में दुर्दशा का आगमन हुआ, इसलिये नेडलुड नामक एक श्रमिक के नेतृत्व में श्रमिक वर्गों ने मशीनों को तोड़कर अपनी दुर्दशा से मुक्ति पाने की चेष्टा की। इंगलैण्ड में 1811-17 ई. तक चले इस मशीन तोड़ आन्दोलन को ‘लुडाइट दंगा’ कहा जाता है।

प्रश्न 37.
‘कम्बलधारी अभियान’ क्या है ?
उत्तर :
ब्रिटिश सरकार द्वारा ‘हेवियस कारपस’ कानून से श्रमिकों के सभा-बैठक पर पाबंदी लगाये जाने से 1819 ई. में प्राय: 50 हजार श्रमिक इस कानून के प्रतिवाद में मैनचेस्टर के सैंटपीटर मैदान में जमा हुए। शीत के मौसम के कारण मजदूर कम्बल लेकर आये थे। इसीलिये इस अभियान को कम्बलधारी अभियान कहा जाता है।

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प्रश्न 38.
‘पीटरलू हत्याकाण्ड’ क्या है ?
उत्तर :
बिंटिश सरकार के ‘हेवियस कारपस’ कानून द्वारा मजदूरों की सभा बैठक पर पाबंदी के खिलाफ प्रायः 50 हजार श्र्रमिक मैनचेस्टर के सेंट पीटर मैदान में इकट्ठे हुए। इस बैठक पर ब्रिटिश सेना वाहिनी द्वारा गोली चलाने से 11 श्रमिक मारे गये एवं सैकड़ों मजदूर गंभीर रूप से घायल हुए। यह हत्याकाण्ड ‘पिटरलू हत्याकाण्ड’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 39.
‘जून महीने का गृहयुद्ध’ कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
फ़ांस में 1848 ई, के निर्वाचन में प्रजातंत्र वर्ग के विजयी होने पर वहाँ की राष्ट्रीय कर्मशालाओं को बन्द करके श्रमिकों को भगा दिया गया। इसके कारण जून, 1848 ई. में हजारों-हजार समाजतंत्रियों ने पेरिस की सड़कों की नाकाबंदी की। सेनापति कैडिगनैक के गोलियों से प्राय: 500 श्रमिक मारे गये। इस घटना को जून महीने का गृहयुद्ध कहा जाता है।

प्रश्न 40.
‘खूनी मई सप्ताह’ क्या है ?
उत्तर :
फ्रांस के श्रमिक वर्ग द्वारा पेरिस के शासन संचालन के लिये 1871 ई. में पेरिस कम्युन गठन किये जाने पर सरकारी सेनावाहिनी ने एक सप्ताह (22-29 मई 1871 ई.) तक श्रमिकों पर निर्मम हत्यालीला चल्माया। यह घटना ‘खूनी मई सप्ताह’ के नाम से परिचित है।

प्रश्न 41.
कार्ल मार्क्स के राजनैतिक मतवाद किन पुस्तकों में वर्णित है ?
उत्तर :
कार्ल मार्क्स के राजनैतिक मतवाद-

  1. कम्युनिस्ट मेनीफेस्टो
  2. दास कैपिटल
  3. क्रिटिक ऑफ पालिटिकल इकोनोमी
  4. पावर्टी ओंफ फिलासफी एवं
  5. द होली फैमिली आदि में वर्णित है।

प्रश्न 42.
मार्क्सवाद की प्रमुख नीतियाँ क्या हैं ?
उत्तर :
कार्ल मार्क्स की वेज्ञानिक समाजतांत्रिक मतादर्श मार्क्सवाद के नाम से परिचित है। इनकी प्रमुख नीतियाँ हैं-

  1. द्वन्द्वमूलक वस्तुवाद
  2. ऐतिहासिक वस्तुवाद
  3. अधिशेष मूल्यतत्व
  4. श्रेणी संग्राम एवं
  5. क्रांति।

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प्रश्न 43.
विश्व का प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन कौन-सा है ? यह कब और किसकी प्रचेष्टा से बना था ?
उत्तर :
विश्व का प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन है- कम्युनिस्ट लीग। ‘कम्युनिस्ट लीग’ की स्थापना 1847 ई. में कार्ल मार्क्स की प्रचेष्टा से हुई थी।

प्रश्न 44.
19 वीं सदी में नये उपनिवेशवाद के क्या कारण थे ?
उत्तर :
19 वी सदी में नये उननिवेश्वाद के निम्न कारण थे-

  1. मालिको या पूंजीपतियों के हाथ में अथाह धन-सम्पदा जमा होने पर उसे विनिवेश करने के लिये नई जगहों की तलाश
  2. ईसाई धर्मपयार
  3. राजनीतिक दबद्बा की आकांक्षा एवं
  4. उग्र राष्ट्रीयतावाद का विस्तार आदि।

प्रश्न 45.
आधुनिक साग्राज्यवाद या नया उपनिवेशवाद के कारणों की व्याख्या हाब्सन ने किस रूप में की है ?
उत्तर :
आधुनिक साम्राज्यवाद या नया उपनिवेशवाद की व्याख्या हाब्सन के मतानुसार –

  1. औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप पूंजीपतियों के हाथ में पर्याप्त धन-सम्पति संचित हुई है।
  2. तैयार माल बेचने के लिये नये बाजार या उपनिवेश बनाने में अर्थ निवेश करके और मुनाफा कमाने के उद्देश्य से नया उपनिवेश दखल,
  3. उपनिवेश दखल करके वहाँ पर पूंजीविनियोग करके और मुनाफा कमाना ही उनका उद्देश्य था।

प्रश्न 46.
उपनिवेशवाद की समाप्ति के लिये हाब्सन की पद्धति का उल्लेख करो।
उत्तर :
हाब्सन अपने ‘साग्राज्यवाद : एक समीक्षा’ पुस्तक में कहा है कि पूंजीवाद में पूंजीपति श्रेणी के हाथों में जो पर्याप्त अर्थसम्पदा है उसे गरीबों में वितरण एवं सामाजिक विकास के कारों में खर्च करने से मुनष्य के जीवन की अग्रगति बढ़ेगी। फलस्वरूप वे लोग कारखाने के उत्पाद को खरीद सकेंगे और इस तरह तैयार माल बेचने के लिये उपनिवेश दखल की जरूरत नहीं पड़ेगी।

प्रश्न 47.
लेनिन के अनुसार उपनिवेश दखल का कारण क्या है ?
उत्तर :
लेंनि अपनी पुस्तक ‘सांम्राज्यवाद: पूंजीवाद का सर्वोच्च स्तर’ में कहा है कि अधिक मुनाफा के लिये पूंजीपति वर्ग देश के लोगों की जरूरत की अपेक्षा अधिक उत्पादन करते हैं। इस अधिशेष सामग्री की बिक्री के लिये बाजार दखल एवं कच्चेमाल के संग्रह के लिये वे लोग उपनिवेश दखल करते हैं।

WBBSE Class 9 History Solutions Chapter 4 औद्योगिक क्रांति, उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद

प्रश्न 48.
स्वेज नहर बनाने का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :
यूरोप के औद्योगिक उन्नत देश समुद्रीमार्ग से अफ़ीका महादेश के चारों ओर घूमकर पूर्वी देशों में व्यापार के लिये आते थे। इसके कारण उनका बहुत सारा समय एवं धन खर्च होता था। पश्चिम के साथ पूरब का सम्पर्क सहज बनाने के लिये मिस्र के रास्ते से स्वेज नहर खनन किया गया।

प्रश्न 49.
मुक्तद्वार नीति क्या है ?
उत्तर :
अमेरिकी विदेश सचिव सर जॉन हे द्वारा घोषित मुक्तद्वार नीति में कहा गया है कि-
(i) चीन सब देशों के लिये बराबर है,
(ii) विभिन्न शक्तियों द्वारा चीन के दखल किये गये विभिन्न क्षेत्रों में अमेरिका को व्यापार करने का समान अवसर देना होगा।

संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 4 MARKS

प्रश्न 1.
इंगलैण्ड में सबसे पहले औद्योगिक क्रांति होने के क्या कारण थे ?
उत्तर :
इंगलैण्ड में सर्वप्रथम औद्योगिक क्रांति होने के कारण :
प्राकृतिक परिवेश : इंगलैण्ड का नम (आर्द्र) मौसम, धारा प्रवाह नदियाँ, जल विद्युत उत्पादन की सुविधा, वायुशक्ति व्यवहार का सुयोग, उच्च श्रेणी के कोयले-लोहे के भण्डार आदि की उपस्थिति ने औद्योगिक क्रांति का वातावरण बना दिया था।
मजदूरों की उपलब्धि : इंगलैण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों से अनेक बेरोजगार लोगों के शहरों में काम की तलाश में आने से कल-कारखानों में सस्ते श्रमिकों का मिलना भी इसमें सहायक बना।
कच्चे माल की आपूर्ति : 18 वीं सदी के इंगलैण्ड में कृषि क्रांति के कारण कारखाने के लिये आवश्यक कच्चे माल का उत्पादन होने लगा था, इसके अलावा इंग्लैण्ड के अनेक उपनिवेशों से कच्चे माल की आपूर्ति भी सहज ही हो जाती है।
मूलधन (पूंजी) का विनिवेश : इंगलैण्ड में बैंकिंग व्यवस्था का प्रसार तथा औपनिवेशिक देशों के शोषण से प्राप्त अर्थ-सम्पदा कल-कारखानों के लिये पूंजी के रूप में लगाना आदि भी औद्योगीकरण का एक प्रमुख कारण था।
बाजार : उस समय इंगलैण्ड के कृषकों की आर्थिक अवस्था अच्छी होने से उनकी क्रयक्षमता में वृद्धि हुई ! दूसरी तरफ इंगलैण्ड के उपनिवेश उसके उत्पादों की बिक्री के लिये बड़े बाजार थे।
यातायात की सुविधा : इंगलैण्ड का विशाल जल मार्ग एवं बन्दरगाहों के द्वारा दूर-दूर तक कच्चे माल एवं उत्पादित सामग्री के आवागमन से औद्योगीकरण को बड़ा बल मिला।
वैज्ञानिक आविष्कार : 18 वीं सदी में विभिन्न वैज्ञानिक आविष्कार जैसे फ्लाइंग शटल, स्पिनिंग जेनी, वाटर फ्रेम, म्यूल आदि ने औद्योगिक क्रांति में बहुत ही सहायता की।

प्रश्न 2.
परिवहन व यातायात की दिशा में क्रान्ति किस प्रकार सम्पन्न हुई ?
उत्तर :
1800 ई० तक इंग्लैण्ड में केवल एक चीज की कमी रह गयी – तेज रफ्तार से चलने वाले तथा विश्वसनीय परिवहन के साधन की। 1769 तथा 1830 ई० के बीच नहरों का जाल बिछाकर देश के एक छोर से दूसरे छोर तक माल ले जाने ले आने का काम बहुत सहज और कम-खर्चीला कर दिया गया था।

यतायात का विकास विशेष रूप से रेलवे का आविष्कार हो जाने के बाद आवागमन के साधनों में स्टीम इंजन के आविष्कार के बाद इससे रेलवे इंजन चलने लगे जिनकी सहायता से अधिक मात्रा में माल ढोया जा सकता था तथा आदमी भी बड़ी संख्या में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते थे।

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प्रश्न 3.
औद्योगिक क्रान्ति में रेल विकास पर चर्चा करें।
उत्तर :
जॉर्ज़ स्टीफेन्सन ने 1830 ई० में अपने प्रसिद्ध भाप के इंजन – रॉकेट का आविष्कार किया। इंग्लैण्ड में हजारों मील लंबे रेलमार्ग बनने लगे। 1803 ई० में 1600 मील और 1808 ई० में 5000 मील लंबी रेल पटारियाँ बिछ गई। रेलवे से उत्पादित सामानों के आयात-निर्यात करने में काफी सुविधा हो गई। भाप के इंजन से व्यापार के विकास में अभूतपूर्व उत्नति हुई। डेविस महोदय ने लिखा है कि अगर इस वाष्प-इंजन की खोज नहीं हुई होती तो व्यापार में यह अभूतपूर्व और आश्चर्यजनक विकास नहीं हुआ होता।

प्रश्न 4.
औपनिवेशिक प्रतिद्वन्द्विता के आर्थिक पहलू का उल्लेख करें।
उत्तर :
नए साम्राज्यवाद के विस्तार में 1871 ई० के उपरांत सैकड़ों कल-कारखाने इटली फ्रांस, जर्मनी, बिंटन इत्यादि में खोले गए और अपरिमित मात्रा में व्यापारिक वस्तुओं का उत्पादन किया जाने लगा। बिटेन पहले से ही उत्पादन के क्षेत्र में अग्रगण्य था। जब अन्य यूरोपीय देशों के सामान विभिन्न देशों के बाजारों में बिक्री के लिए पहुँचने लगे, तब बिटेन को और अधिक चिन्ता हुई। इस चिन्ता का सबसे बड़ा कारण यह था कि अब तक यूरोपीय देशों को बाजारों में बिंटेन के एकाधिकार पर चोट पड़ने लगी। अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए बिटेन ने एक उपाय निकाला। उसने संरक्षण की नीति का अवलंबन किया तथा आयात वाली व्यापारिक सामग्री पर भारी कर लगाना प्रारंभ किया। इसके फलस्वरूप, विभिन्न देश अतिरिक्त उत्पादित सामग्री की बिक्री के लिए नए-नए बाजार खोजने लगे। इसी खोज ने उपनिवेशवाद की नींव डाली।

प्रश्न 5.
चीन में औपनिवेशिक प्रतिद्वन्द्विता एवं लूट खसोट का उल्लेख करें।
उत्तर :
ब्रिटिश व्यापारी चीन से चाय, रेशम तथा दूसरी वस्तुएँ खरीदते थे। ब्रिटिश व्यापारियों ने बड़े पैमाने पर चीन में अफींम की तस्करी आरंभ कर दी। अफीम का यह गैरकानूनी व्यापार ब्रिटिश व्यापारियों के लिए बहुत लाभदायी था।
चीन में साप्राज्यवाद के प्रसार का दूसरा महत्वपूर्ण चरण जापान के साथ चीन के युद्ध तब हुआ जब जापान ने अपना प्रभाव कोरिया पर बढ़ाना चाहा जो कि चीन के आधिपत्य (ओवरलार्डंशिप) में था। चीन ने इसका विरोध किया।

प्रश्न 6.
अफ्रीका के विभाजन का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर :
अफ्रीका के विभाजन के लिए बर्लिन में एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में विश्व के सभी प्रभुख राष्ट्रों ने भाग लिया था। यूरोप के राश्ट्रों ने बर्लिन अधिनियम की उपेक्षा करके अपने-अपने ढंग से अफ़ीका में उपनिवेश स्थापित करना प्रारम्भ कर दिया। अफ्रीका के विभाजन में फ्रांस, इंग्लैण्ड, इटली व जर्मनी ने सक्रिय रूप से भाग लिया था। 1878 के बाद 30 वर्ष के अल्प समय में विशाल महाद्वीप का विभाजन बिना किसी विनाशकारी युद्ध के पूरा हुआ। अफ्रीका के विभाजन की सर्वाधिक विशेषता यह है कि यह तीव्र गति के साथ सम्पन्न किया गया था। अफ्रीका परतंत्र हो गया लेकिन इसके साथ ही ‘वहाँ के जनजातीय युद्ध प्लेग, अमानवीय मान्यताएँ आदि समाप्त हो गई तथा आवागमन के साधनों और शिक्षा के प्रचार का प्रसार हुआ।

प्रश्न 7.
औद्योगिक कान्ति ने जिस औपनिवेशक विस्तार को जन्म दिया वह साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा में कैसे बदल गया ?
उत्तर :
सभी देशों ने अमेरिका, अफ्रीका व एशिया महाद्वीपों में ऐसे क्षेत्रों की खोज की जो अविकसित थे किन्तु वहाँ पर कच्चे माल के स्रोत पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थे तथा जहाँ पर निर्मित माल की बिक्री भी की जाती थी। धीरे-धीरे इन क्षेत्रों पर यूरेशिया के देशों का अधिकार होने लगा तथा इस कार्य के लिए उनमें परस्पर प्रतियोगिता बढ़ने लगी। इंग्लैण्ड, फ्रांस, बेल्जियम, होंलैण्ड ने विश्व के विभिन्न भामों में अपने उपनिवेश स्थापित कर लिये थे। सन् 1870 के पश्चात् जर्मनी व इटली ने भी इस दिशा में प्रयत्म करना प्रारम्भ कर दिया था। औपनिवेशिक क्षेत्र में विभिन्न देशों की महत्वाकांक्षा तथा प्रतियोगिता की भावना ने परस्पर कटुता व वैमनस्य की भावना को जन्म दिया था।

प्रश्न 8.
तार द्वारा समाचार भेजने की पद्धति का वर्णन करें।
उत्तर :
1837 ई॰ में इंग्लैण्ड और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने इलेक्ट्रानिक टेलीग्राफ का अपने-अपने देश में स्वतंत्र रूप से आविष्कार किया और 19 वीं शताब्दी के अंत होते-होते संचार के सभी प्रमुख व्यापारिक केन्द्रों का पारस्परिक संबंध टेलीग्राफ के द्वारा चलने लगा। एक अंग्रेज रॉलैंड हिल ने पुरानी, धीमी, महँगी और अविश्वस्त डाक व्यवस्था को बदल डाला। उसने एक व्यवस्था की जिसके द्वारा एक पेंस के टिकट से कोई भी पत्र ग्रेट ब्रिटेन में किसी भी जगह भेजा जा सकता था। इसी कारण, उसको आधुनिक डाक व्यवस्था का जनक कहा जाता है। 1874 ई० में अंतराष्ट्रीय डाक संघ की स्थापना हुई। इस संस्था के द्वारा लगभग सभी देश अंतर्राष्ट्रीय पत्रों, पार्सल और धनादेशों को बहुत कम दर पर तथा स्थान पर पहुँचाने में सहयोग करते हैं।

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प्रश्न 9.
इंगलैण्ड एवं महादेश के अन्य देशों के औद्योगिकीकरण में मौलिक अन्तर क्या था ?
उत्तर :
18 वीं सदी के दूसरे चरण में सर्वपथम इंगलैण्ड में औद्योगिक क्रांति शुरू हुई। इसके प्राय: 50 वर्षो के पश्चात यूरोप के अन्य देश-फ्रांस, जर्मनी, हालैण्ड, बेल्जियम, स्विद्जरलैण्ड, रूस आदि देशों में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई।
इंगलैण्ड एवं महादेशीय औयोगिकी में अन्तर
निम्नलिखित तालिका में अन्तर दिखाया गया है :-
विषय
प्रतियोगिता
उपनिवेश
यन्न-मशीनें
कारखानों में पूंजी निवेश
इंगलैण्ड का आद्योगिकिकरण
इंगलैण्ड में सर्वप्रथम औद्योगिक क्रांति की शुरुआत होने से उनके उद्योगों को प्रतियोगिता का सामना नहीं करना पड़ा। पृथ्वी के अधिकतर स्थानों में इंगलण्ड के उपनिवेश फैले हुए थे जहाँ उन्हें कच्चे माल एवं उत्पादन सामग्री की खरीदबिक्री की सुविधाएँ मिलती थीं।
इंगलैण्ड अपने आविष्कारों के माध्यम से औद्योगिक क्रांति लाने में सफल हुआ था।
इंगलैण्ड के कल-कारखानों में व्यक्तिगत पूंजी निवेश की प्रधानता थी। वहाँ देश एवं सरकार की भूमिका गौण थी।
महादेशीय औद्योगिकीकरण
यूरोप के अन्य देशों में इंगलैण्ड के बाद प्राय: एक ही साथ औद्योगिक विकास होने के कारण प्रतियोगिता में उतरना पड़ा। अन्य यूरोषीय देशों के पास इंगलैण्ड की तरह सुविशाल उपनिवेश नहीं होने के कारण कच्चे माल एवं उत्पादित सामग्री की खरीद-बिक्री के लिये सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थी।
अन्य यूरोपीय देशों ने इंगलैण्ड में विकसित यंत्र-मशीनों की सहायता से अपने-अपने देश में औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात किया। यूरोष्प के अन्य देशों में राष्ट्र, सरकार एवं बैंक द्वारा पूंजी लगाकर कल-कारखानों की स्थापना की गयी थी।

प्रश्न 10.
फ्रांस के औद्योगिकीकरण की अग्रगति का उल्लेख करो।
उत्तर :
इंगलैण्ड की औद्योगिक क्रांति के प्राय: आधी सदी के बाद फ्रांस में औद्योगिकीकरण की शुरुआत हुई। इतिहासकार रस्टो की राय में 1830 ई. से लेकर 1860 ई. के बीच फ्रांस में उद्योग-धंधों का विकास हुआ।
फ्रांस में औद्योगिक प्रगति : विभिन्न फ्रांसीसी सम्राटों की प्रचेष्टा से फ्रांस में औद्योगिक प्रगति का प्रसार-विस्तार हुआ जिसका संक्षिप्त वर्णन निम्नरूप है :
लुई सोलहवें का शासनकाल : फ्रांसीसी सम्राट लुई सोलहवें के अर्थ मंत्री कैलोन फ्रांस ने औद्योगिक विकास के लिये इंगलैण्ड से विशेषजों का दल लाकर फ्रांस में कल-कारखानों की स्थापना करवायी।
नेपोलियन का शासनकाल : सम्राट नेपोलियन (1799-1814 ई.) इंगलैण्ड के विरुद्ध महादेशीय अवरोध व्यवस्था की घोषणा, उद्योग-धंधों के लिये सस्ते सूद पर मूलधन, यंत्र-मशीनों के आविष्कार के लिय वैज्ञानिकों को उत्साह आदि प्रदान करके फ्रांस ने औद्योगिकीकरण की चेष्टा की।
लुई फिलिप का शासनकाल : लुई फिलीप (1830-1848 ई.) ने बैंक व्यवस्था का आधुनिकीकरण, सड़क एवं जलमार्ग से यातायात व्यवस्था का विस्तार किया। 1832 ई. में फ्रांस में रेलमार्ग के निर्माण होने के फलस्वरूप वोर्दो, तुलों तथा आलसास आदि जगहों पर कोयला, लोहा, सूती वस्त्र उद्योग का विकास हुआ।
नेपोलियन तृतीय का शासनकाल : सम्राट तृतीय नेपोलियन ने (1848-1870 ई.) क्लेदी मविलिये एवं क्लेदी फँसिये नामक औद्योगिक बैंकों की स्थापना की एवं श्रमिक तथा मालिकों की समस्याओं के समाधान के लिये ‘कनसिलियेन बोर्ड’ का गठन करके औद्योगिकीकरण को फ्रांस में गति प्रदान की।
विभिन्न उद्योग : फ्रांस में विभिन्न उद्योगों की स्थापना के फलस्वरूप रेल मार्ग का विस्तार, लौह-इस्सात तथा कोयला आदि उद्योगों का विकास हुआ। इसके अलावा वस्त्र, कागज, चीनी, रेशम, रासायनिक आदि उद्योगों का भी विस्तार हुआ।

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प्रश्न 11.
जर्मनी की औद्योगिक प्रगति का उल्लेख करो।
उत्तर :
इंगलैण्ड एवं फ्रांस के औद्योगिक विकास के बाद 19 वीं सदी के प्रथम चरण में जर्मनी के विभिन्न राज्यों में उद्योगधंधों का विकास आरंभ हुआ।
जर्मनी में उद्योग-धंधों का विकास : औद्योगिक विकास के मामले में जर्मन राज्यों में सबसे पहले पर्सिया सचेष्ट हुआ।
श्रमिकों की आपूर्ति : पर्सिया में भूमिदास प्रथा की समाप्ति (1815 ई.) के बाद भूमिदास कारखानों में श्रमिक के रूप में काम करने के लिये शहरों में आकर बसने लगे।
जोल्वेराइन : 1834 ई. में जर्मन राज्यों में जोल्वेराइन नामक शुल्कनीति चालू होने से जर्मनी के सभी राज्यों में समान शुल्क नीति की शुरुआत हुई एवं औद्योगिक विकास में तेजी आई।
रेल मार्ग की स्थापना : जर्मनी में 1835 ई. में रेलमार्ग विकसित होने से शहरों से सम्पर्क पैदा हुआ तथा यातायात की सुविधा से औद्योगिकीकरण और मजबूत हुआ।
आलसास-लोरेन की प्राप्ति : जर्मनी को फ्रांस से कोयला एवं लौह-खनिज संपन्न दो नगर अलसास एवं लोरेन के मिल जाने से (1870 ई.) जर्मनी के उद्योगों में लौह एर्व कोयले की आपूर्ति होने लगी।
पूंजी की आपूर्ति : जर्मनी की फ्रांस से प्रचूर आर्थिक क्षतिपूर्ति राशि प्राप्त किया। चान्सलर बिस्मार्क द्वारा जर्मन बैंक की व्यवस्था को पुनगर्ठित किया गया जिससे उद्योग-धंधों में पूंजी निवेश होने लगी।
विभिन्न उद्योग-धंधे : जर्मनी के एकीकरण होने पर बहुत सारे कल-कारखानों की स्थापना हुई। वहाँ लौह-इस्पात, कोयला, सूती कपड़ा मिल, अस्त्र-शस्त्र निर्माण, रेल पथ, जहाज-निर्माण, मशीन निर्माण आदि अनेक उद्योगों का विकासहुआ।

प्रश्न 12.
‘औद्योगिक क्रांति’ से क्या समझते हो ?
उत्तर :
18 वीं सदी के प्रथम चरण में यूरोपीय अर्थनीति मूलतः कृषि पर निर्भर थी। इस सदी के दूसरे चरण में उद्योग-धंधों में मशीनों के प्रयोग से उत्पादन में अधिक वृद्धि होने लगी।
औद्योगिक क्रांति :
औद्योगिक क्रांति की धारणा : साधारणतः कहा जाता है कि 18 वीं सदी के मध्य भाग से विभिन्न यंत्रों के आविष्कार एवं उद्योग-धंधों में उनके व्यवहार से उत्पादित या तैयार सामग्री के गुणों एवं परिमाण में वृद्धि के गुणगत परिवर्तन का नतीजा ही औद्योगिक क्रांति के नाम से परिचित है।

फिशर का मत: इतिहासकार फिशर की राय में शारिरीक श्रम के बदले मशीनी व्यवहार से उत्पादन एवं इसमें वृद्धि की घटना औद्योगिक क्रांति है।.

फिलिस डिन का मत : अध्यापक फिलिस डिन की राय में –

  1. बृहद् पूंजी का विनियोग
  2. पूंजी लगाने के लिये बैंकों की स्थापना
  3. मशीनों से कारखाना चलाना
  4. उत्पादन कार्यों में मजदूरी के बदले श्रमिकों को लगाना
  5. उत्पादों की बिक्री करके मुनाफा कमाना
  6. कच्चा माल एवं उत्पादों के परिवहन के लिये यातायात की व्यवस्था का विस्तार ही औद्योगिक क्रांति है।

प्रश्न 13.
औद्योगिक क्रान्ति के कारण नये शहरों का विकास कैसे हुआ ?
उत्तर :
औद्योगिक क्रान्ति ने नगरों को जन्म दिया और उनकी व्यावसायिक प्रमुखता कायम की। जहाँ-जहाँ उद्योग के केन्द्र खुले, वहाँ-वहाँ नगर बस गए। क्रान्ति-पूर्व यूरोप में, लगभग 83 नगर थे। क्रान्ति के बाद शीघ्र ही उनकी संख्या बढ़कर 180 हो गई। 18 वीं शताब्दी का अंत होते-होते संसार की आबादी का अधिकांश इन नगरों में आकर बस गया। अत:, गाँवों की तुलना में नगरों की आबादी का महत्त्व बढ़ गया।

प्रश्न 14.
बुर्जुआ वर्ग का संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर :
इंग्लैण्ड का बुर्जुआ वर्ग : 18 वी शताब्दी में इंग्लैण्ड में बुर्जुआ वर्ग की शक्ति में वृद्धि हुई। इस उच्च वर्ग के लोगों ने गाँवों में अपनी जमीनों से लगे छोटे किसानों की जमीनों को खरीदकर बड़े-बड़े फार्म हाउस बनाया जिससे कृषि उत्पादन बढ़ा। इस कारण इनकी आमदनी भी बढ़ी। इनमें से ही बहुत से लोगों ने शहरी कारखानों में पूँजी लगायी और कारखानों के विकास से पूँजीपति वर्ग का जन्म हुआ। इंग्लैण्ड की संसद में बुर्जुआ वर्ग एवं पूँजीपति वर्ग का प्रतिनिधित्व था। इस तरह बुर्जुआ पूँजीपति राजनीतिक व्यवस्था का विकास हुआ। संसद के सदस्य जिनमें भू-स्वामी (बुर्जुआ), उत्पादक (पूँजीपत) तथा पेशेवर लोग शामिल थे, जो कामगारों को वोट का अधिकार दिये जाने के खिलाफ थे। उन्हांने अनाज कानून (Corn Law) का समर्थन किया। इस कानून के अन्तर्गत देश-विदेश से सस्ते अनाज के आयात पर रोक लगा दी गयी थी जब तक कि बिटेन में इन अनाजों की कीमत में एक स्वीकृत स्तर तक वृद्धि नह गई हो।

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प्रश्न 15.
आधुनिक युग में उपनिवेश का जन्म कैसे हुआ ?
उत्तर :
औद्योगिक क्रान्ति ने व्यापारिक प्रतियोगिता को जन्म दिया। यूरोप के विभिन्न देशों में व्यापारिक सामग्री का उत्पादन काफी मात्रा में होने लगा, जिनकी बिक्री के लिए बाजारों की आवश्यकता थी, जिनकी प्राप्त विभिन्न देशों पर अधिकार काय़म करके ही की जा सकती थी। इसी प्रकार व्यापारिक उपनिवेशों के विस्तार के लिए इटली भी चिंतित था। अतः औद्योगिक विकास ने आर्थिक समाज्यवाद की भावना का सृजन किया और आर्थिक साम्राज्यवाद ने अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्विता को जन्म दिया।

प्रश्न 16.
आधुनिक युग में भारत में आयात और निर्यात में बदलाव कैसे आये ?
उत्तर :
सत्रहवीं शताब्दी में भारत का समान रूप से शहरीकरण हुआ तथा आर्थिक रूप से निर्यात में आगे था क्योंकि सूती वस्त्र का वह काफी मात्रा में निर्यात करता था। इस सदी के अंत तक भारत सूती वस्त्र का प्रमुख उत्पादक देश था जो बिटेन के साथ ही साथ यूरोप के अन्य देशो में ईस्ट इंडिया के माध्यम से निर्यात करता था। जब अठारहवीं सदी कें अंत तक ब्रिटिश सूती वस्त्र उद्योग में तकनीकी क्रांति चल रही थी तो भारतीय उद्योग स्थिर हो गया था तथा भारत में औद्योगीकरण रुका हुआ था। भारत पर शासन करके बिटेन को काफी लाभ हुआ। भारत की अधिकांश आबादी बिटिश उद्योगों के लिए एक बड़ा बाजार थी। उदाहरणस्वरूप 1880 ई० में ब्रिटेन के कुल उत्पादन का 20 प्रतिशत निर्यात भारत में होता था। भारत ने वास्तव में बिटिश शासन के अधीन खाद्यानों का आयात शुरू किया था क्योंकि भारतीय तब नगदी फसल कपास तथा चाय का उत्पादन कर रहे थे, जो ब्रिटेन भेज दिए जाते थे।

प्रश्न 17.
जिन्गोइस्टीक राष्ट्रीयता की चर्चा करें।
उत्तर :
अफ्रीका महादेश में मोरक्को पर अधिकार स्थापित करने में फ्रांस काफी तत्परता से काम ले रहा था चूँकि इससे अफ्रीका में फ्रेंच उपनिवेशों की स्थिति काफी मजबूत हो जाती थी। सन् 1904 ई० में फ्रांस के विदेश मंत्री वेल्कासे ने इंग्लैंड और उसके बाद स्पेन से मिलकर संधियाँ कर लीं और अपनी स्थिति को मजबूत बना लिया। जर्मनी को यह अच्छा नहीं लगा। उसने फ्रास पर दबाव डाला कि वह वेल्कासे को पद्च्युत कर दे। फलत: भयवश फ्रांस ने वेल्कासे को पद्च्युत कर दिया। मोरक्को के प्रश्न पर जर्मनी ने फ्रांस को एक सम्मेलन बुलाने के लिए कहा। सन् 1906 में अलजियर्स की सभा में लगभग बारह राज्यों के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए जिसमें अस्ट्रिया, हंगरी और जर्मनी को छोड़ सबने फ्रांस का ही पक्ष लिया। अत: मोरक्को पर फ्रांस को स्पेन के साथ मिलकर शांति सुरक्षा स्थापित करने का दायित्व सौंपा गया। अल्जियर्स ने जर्मनी को कुछ न दिया, अतः जर्मनी का चिढ़ जाना स्वाभाविक था।

4 नवम्बर, 1911 ई० को एक समझौते के अनुसार जर्मनी ने मोरक्को पर फ्रांस का संरक्षण इस शर्त के साथ मान लिया कि मोरक्को पर फ्रांस का संरक्षण इस शर्त के साथ मान लिया कि मोरक्को में वाणिज्य संबंधी मुत्तद्वार की नीति का पालन किया जायेगा तथापि फ्रांस एवं जर्मनी के बीच कटु संबंधों से भावी युद्ध की पृष्ठभूमि बनने लगी।.

प्रश्न 18.
जर्मनी और फ्रांस के संकट का वर्णन करें।
उत्तर :
जर्मनी और फ्रांस के संकट का तात्पर्य इन दोनों देशों की आपसी दुश्मनी का पर्याय था। जर्मनी का उद्देश्य त्रिराष्ट्र समझौते को एक सम्मेलन बुलाकर अंतराष्ट्रीय कानून के स्तर पर तोड़ना था । फ्रांस द्वारा मोरक्को को गैरकानूनी राष्ट्र घोषित कर दिया गया तथा इस विषय पर जर्मनो से उसका तनाव चल रहा था। फ्रांस मोरक्को पर पूरा अधिकार करना चाहता था इसलिए उसने उस पर अपना प्रभाव बढ़ाकर अपने समर्थक को मोरक्को की गद्दी पर सुल्तान बनाकर बैठा दिया। फ्रांस की सेना ने मई 1911 ई० मे अपने समर्थक सुल्तान के विरुद्ध बगावत को दबाने के लिये मोरक्को की राजधानी फेज पर कब्जा कर लिया।

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प्रश्न 19.
बोस्निया संकट का संक्षिप्त इतिहास लिखें।
उत्तर :
बड़ी शक्तियों की रोकथाम के कारण बाल्कन के लोगों का संघर्ष विरोधियों के आपस में लड़ने का कारण मुश्किल हों गया था। रूस आस्ट्रिया तथा जर्मनी का इस क्षेत्र में अधिक रुझान था। आर्थिक तथा सांस्कृतिक कारणों से रूस की गहरी रुचि श्री तथा साथ ही साथ रूस को अपने उत्पाद के निर्यात के लिये दक्षिण में एक बन्दरगाह की भी जरूरत थी। रूस का आधा से ज्यादा प्राय; सभी प्रकार के अनाज इसी रास्ते से निर्यात किये जाते थे, अतः उसकी मंशा अपनी जल सेना के लिये एक गर्म पानी का बंदरगाह बनाना था।

प्रश्न 20.
‘औद्योगिक्र क्रांति’ शब्द की उत्पत्ति के बारे में क्या जानते हो ? सर्वप्रथम कहाँ एवं कब औद्योगिक क्रांति हुई ?
उत्तर :
18 वीं सदी के द्वितीय चरण में यूरोप के उद्योगों में यंत्रों के वैज्ञानिक आविष्कार एवं उनके व्यवहार के फलस्वरूप उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि एवं सुधार की जो अग्रगति हुई उसे औद्योगक क्रांति कहा गया।

‘औद्योगिक क्रांति’ शब्द की उत्पत्ति : अंग्रेजी में industrial Revolution शब्द का हिन्दी रूपान्तर औद्योगिक क्रांति है। फ्रांसीसी दार्शनिक अगस्त ब्लांकी ने 1837 ई में सर्वपथम औद्योगिक क्रांति शब्द का व्यवहार किया। बाद में अंग्रेज इतिहासकार अर्नाल्ड ट्येनबी अपने ऑक्सफोर्ड व्याख्यान में ‘औद्योगिक क्राति’ शब्द का व्यवहार करके इसे लोकप्रिय् बनाया।

औद्योगिक क्रांति सर्वप्रथम कहाँ शुरू हुई ? सर्वप्रथम इंगलैण्ड में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई। बाद में फ्रांस, जर्मनी, रूस, स्विद्जरलैण्ड आदि देशों में औद्योगिक क्रांति का प्रचार-प्रसार एवं विकास हुआ।

औद्योगिक क्रांति का आरंभिक काल : औद्योगिक क्रांति को इतिहास में साधारणत: उद्योग की उड़ान या Take off कहा जाता है। इस Take oft या उड़ान के सूत्रपात के समय को लेकर विद्वानों में मतभेद है- (1) अर्नाल्ड टयेनवी की राय में 1760 ई. में इंगैैण्ड में इसकी शुरुआतहुई। (2) कुछ लोगों की राय में 1780 ई का दशक है, लेकिन अधिकांश इतिहासकार इसे 18 वीं सदी के 60 एवं 80 के बीच अर्थांत् 1760 से 1780 ई. के बीच के समय को ही आरंभिक काल मानते हैं।

प्रश्न 21.
औद्योगिक क्रांति की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करो।
उत्तर :
18 वी सदी के दूसरे चरण में इंगलैण्ड में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई जो बाद में यूरोप के विभिन्न देशों में फैल गई। औद्योगिक क्रांति की विशेषताएँ :
धारावाहिक प्रसार : यूरोप में सब जगह एक ही साथ औद्योगिक क्रांति आरंभ नहीं हुई। सर्वप्रथम इंगलैण्ड में औद्योगिक क्रांति शुरू हुई एवं बाद में अन्य यूरोपीय देशों में इसका प्रसार हुआ।
मशीनों पर निर्भरता : औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप मनुष्य के शारीरीक श्रम के बदले विभिन्न कल-कारखानों में वेज़ानिक यंत्र अर्थात मशीनों के जरिये उत्पादन होने लगा।
पूंजी निवेशकारी : औद्योगिक क्रांति से वृहद कल-कारखानों की स्थापना होने लगी जिसमें बैक एवं पूंजीपतियों के द्वारा पर्याप्त मात्रा में पूजी निवेश किया गया।
औद्योगिक मजदूर का जन्म : औद्योगिक क्रांति से यूरोप के विभिन्न नगरों एवं शहरों में कल-कारखाने स्थापित होने लगे जिनमें गाँव से गरीब किसान शहरों में आकर मजदूरी करने लगे।

प्रश्न 22.
औद्योगिक क्रांति के अर्थनैतिक परिणाम क्या थे ?
उत्तर :
यूरोष में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप वहाँ की कृषि निर्भर अर्थनीति उद्योग निर्भर अर्थनीति में बदल गयी। औद्योगिक क्रांति के अर्थनैतिक परिणाम :
व्यापार-वाणिज्य का विस्तार : औद्यागिक क्रांति के फलस्वरूप आधुनिक कल-कारखानों में कम समय में पर्याप्त परिमाण में उत्पादन सामग्री उत्पन्न होने लगी। इसके कारण अपने देश की आवश्यकता को पूरा करने के बाद अतिरिक्त उत्पाद विदेश के बाजारों में बिक्री करने के लिय भेजना आरंभ हुआ।
उपनिवेशिक विरोध : अपने उत्पादों की विक्री के लिये विभिन्न यूरोपीय देश उपनिवेशिक बाजारों को दखल करने का होड़ में प्रतिद्वन्दिता करने लगे, जिसके कारण उनके बीच में विरोध आरंभ हुआ।
फैक्ट्री प्रथा का उद्भव : औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप फैक्ट्री प्रथा का जन्म हुआ अर्थांत कुंटार उद्योग के स्थान पर बड़े-बड़े कल-कारखानों का निर्माण होने लगा।
श्रम विभाज़न : औद्योगिक क्रांति के कारण कल-कारखानों में श्रम विभाजन नीति की शुरुआत हुई। इस प्रथा के अनुसार कल-कारखानों में विभिन्न श्रमिक भिन्न-भिन्न कामों के लिये नियुक्त होते थे।
औद्योगिक पूँजी : औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप पूंजीपति वर्ग अपने व्यापारिक पूंजी का निवेश कल-कारखानों में करने लगे। अतः व्यापारिक पूंजी अब औद्योगिक पूंजी बन गयी।
शोषण : औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप कल-कारखानों के मालिक अर्थात पूंजीपति वर्ग मजदूरों को कम मजदूरी देकर 17-18 घंटे तक काम कराकर उनका शोषण करने लगे।

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प्रश्न 23.
प्रथम विश्वयुद्ध के प्रत्यक्ष कारण क्या थे ?
अथवा
‘सेराजेवो हत्याकाण्ड’ क्या था ?
उत्तर :
28 जून 1914 ई. को बोस्निया की राजधानी सेराजेवो शहर में ऑस्ट्रिया के युवराज फार्दिनाद एवं उनकी स्त्री सोफिया की आततायियों द्वारा हत्या की गई। यह घटना सेराजेवो हत्याकाण्ड के नाम से परिचित है।
प्रथम विश्वयुद्ध का प्रत्यक्ष कारण : सेराजेवो हत्याकाण्ड
स्लाव जाति का आन्दोलन : बर्लिन समझौता (1878 ई.) द्वारा स्लाव जाति के क्षेत्र बोस्तिया एवं हार्जगोबिना में ऑस्ट्रिया का आधिपत्य होने पर भी कुछ दिनों के बाद ऑस्ट्रिया ने दोनों राज्यों को दखल कर लिया। किन्तु दोनों राज्य सर्विया के साथ युक्त न होने के लिये तीव आन्दोलन शुरू कर दिये। सर्बिया भी इस आन्दोलन में ईधन दिया।

हत्याकाण्ड : ऑस्ट्रिया के युवराज फार्दिनान्द एवं उनकी स्त्री सोफिया के बोस्निया की राजधानी सेराजेवो शहर में आने पर ब्लैक हैण्ड’ या ‘यूनियन ऑफ डेथ’ नामक आतकवादी संगठन का सदस्य स्लाव जाति का युवक नैवरिलो प्रिन्सेप ने दिन दहाड़े राजपथ पर उन्हे गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।

चरमपत्र (अल्टिमेटम) : सेराजेवो हत्यकाण्ड के लिये आंस्ट्रिया स्लाव जाति को ‘आततायियों की जाति’कहकर सम्बोधित किया गया। ऑस्ट्रिया ने इस हत्याकाण्ड के लिये स्लाव जाति इलाका सर्बिया को दोषी करार देकर एक अल्टिमेटम (23 जुलाई) भेजा।

बेलग्रेड आक्रमण : आस्ट्रिया द्वारा दी गई चरमपत्र की अधिकांश बातों को मान लेने पर भी कुछ मांगों पर चर्चा के लिए उसे अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रस्ताव के रूप में रखा गया। ऑस्ट्रिया ने उस प्रस्ताव को नहीं माना एवं 28 जुलाई 1914 ई, को सर्बिया की राजधानी बेलग्रेड पर आक्रमण करने पर ऑस्ट्रो-सर्बिया युद्ध आरंभ हो यगा। इस युद्ध में शीं्र ही विभिन्न राष्ट्रों के जुड़ जाने से यह विश्व युद्ध में बदल गया।

प्रश्न 24.
यूरोप के बाहर यूरोपीय साप्राज्य विस्तार पर एक लेख लिखो।
उत्तर :
एशिया और अफ्रीका के अधिकांश देश अभी हाल तक साम्राज्यवादी देश के नियंत्रण में थे। इनमें वे देश भी शामिल हैं जिन पर साम्राज्यवादी देशों का प्रत्यक्ष शासन न था। एशिया, अफ्रीका तथा अमेरिकी महाद्वीप पर सामाज्यवादी नियंत्रण स्थापित करने तथा उनको उपनिवेश बनाने के बोच के काल में यूरोपीयों द्वारा शोषण तथा भौगोलिक खोजों के बाद पुर्तगाल, स्पेन, इग्लेण्ड, हालैंड और फ्रांस ने बड़े-बड़े औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित किए थे। उत्तरी अमेरिका के कुछ भागों पर इंग्लैण्ड तथा फ्रांस ने कब्जा किया। औद्योगिक क्रान्ति के आरंभिक काल में उपनिवेशों की यह दौड़ तथा ये औपनिवेशिक शत्रुताएं 19 वीं सदी की आखरी चौथाई में फिर सें उभरीं। 1875 के आस-पास आरंभ होकर 1914 तक बने रहने वाले साम्राज्यवाद के इस चरण को अक्सर ‘नव साम्राज्यवाद’ कहा जाता है।

प्रश्न 25.
नवीन श्रेणी के उदय की चर्चा करें।
उत्तर :
औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप समाज में पूँजीपति वर्ग का विकास हुआ। कुलीन और सम्पन्न व्यक्तियों ने जोखिम उठाकर कल-कारखानों की स्थापना की। कारखानेदारी प्रथा के विकास ने पूँजीपति वर्ग के अलावा श्रमिक वर्ग को भी जन्म दिया। कारखानों में रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में भूमिहीन किसान और मजदूर बसने लगे। इनके श्रम पर ही औद्योगिक इकाइयाँ चलीं, परन्तु मजदूरों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी।

प्रश्न 26.
ब्रिटेन किस तरह भारत को एक जवहरात (रत्)) की तरह लेता था ?
उत्तर :
आरम्भ में अंग्रेजी उप निवेशों में आयात अधिक और निर्यात कम होता था क्योंकि वहाँ अंग्रेज पूँजी विनिमय के लिये मुद्रा का आयात करते थे। भारत में मुद्रा का जो आयात होता था वह मुद्रा प्रणाली के लिये होता था। उसके बदले प्रतिदिन निर्यात करना पड़ता था । भारत से 3 करोड़ 70 लाख का निर्यात हुआ जबकि 7 करोड़ पौण्ड तो आयात के रूप में रेलवे निर्माण के लिये ऋण के रूप में लिये गये थे। इसका भुगतान करने के लिये 10 करोड़ से अधिक का निर्यात करना पड़ा। यह क्रम दूसरे विश्वयुद्ध के आरम्भ तक चलता रहा।

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प्रश्न 27.
कारखाना विधि से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
वैज्ञानिक आविष्कारों की खोज के क्रम में सन् 1769 में रिचर्ड आर्कराइट ने ‘वाटर फ्रेम’ का आविष्कार कर कारखाना पद्धति की नींव डाली। इंग्लैण्ड के वैज्ञानिकों ने अपनी खोजों के द्वारा यातायात, परिवहन, दूर-संचार आदि क्षेत्रों में भी क्रांतिकारी सुधार ला दिया। भाप के इंजन ने उद्योग और खानों के काम में क्रांति ला दी। ‘रोटरी मशीन” की खोज के बाद कपड़े के कारखानों में भाप के इंजनों का प्रयोग होने लगा। रेलों के विस्तार के कारण उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि होने लगी। लोहे और कोयले की खानों से मनचाहा लोहा और कोयला निकाला जाने लगा। वस्त्र उद्योग से आरम्भ कर इंग्लैण्ड ने विभिन्न उद्योगों के कारखाने स्थापित कर लिये थे। जहाजों के द्वारा विश्व भर में फैले उपनिवेशों में इंग्लैण्ड का वाणिज्य-व्यवसाय फल-फूल रहा था।

प्रश्न 28.
औद्योगिक कान्ति के बाद शिल्प समाज का उद्भव तथा उसके बीच विभाजन की चर्चा करें।
उत्तर :
औद्योगिक क्रान्ति ने दो नवीन सामाजिक वर्गो को जन्म दिया – पूँजीपति तथा मजदूर वर्ग। पूँजीवादी व्यवस्था में पूँजीपति वर्ग धनी हो गये जिनके पास अधिक पैसे थे, वे कारखानों और मशीनों के स्वामी थे । बड़ी-बड़ी कम्पनियों का हजारों लोगों के जीवन पर नियंत्रण हो गया। पूँजीपति और मजदूर इन दो वर्गों के साथ इस क्रान्ति ने तीसरे वर्ग को भी जन्म दिया। यह वर्ग शिक्षित मध्यम वर्ग था। इस वर्ग के लोग कारखानों में प्रबन्ध एवं हिसाब-किताब का काम देखते थे। औद्योगिक समाज में मजदूर वर्ग की बहुलता थी। इनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। नये औद्योगिक नगरों में गाँव से आकर रहने वाले लोग ग्रामीण लोगों की तुलना में काफी छोटी आयु में मर जाते थे। शहरों की आबादी में वृद्धि वहाँ पहले से रह रहे परिवारों में नये पैदा हुए बच्चों से नहीं बल्कि बाहर से आकर बसने वाले नये लोगों से ही होती थी।

प्रश्न 29.
भारत के निर्यातक से आयातक बनने ने क्या भारत को गरीब बनाया ?
उत्तर :
17 वीं और 18 वीं सदियों में भारत इंग्लैण्ड और दूसरे यूरोपीय देशों को सूती वस्त्र भेजने वाला प्रमुख देश था। औद्योगिक क्रान्ति के बाद इंग्लैण्ड में सूती वस्त्र उद्योग के विकास के कारण तथा यूरोप में आयातों पर बढ़ते प्रतिबंधों के कारण ब्रिटिश सरकार ने भारतीय उद्यागों को नष्ट करने की नीति अपनाई। भारत कुछ ही दशकों के अंदर एक प्रमुख निर्यातक की स्थिति से गिरकर विदेशी वस्तुओं का सबसे बड़े आयातक देशों में एक हो गया। 19 वी सदी के उत्तरार्द्ध में भारत में सूती वस्त्र, जूट और कोयला-खदान उद्योग प्रमुख थे। हालांकि इन उद्योगों का विकास बहुत ही बेढब रहा और इन पर अनेक प्रतिबंध लगाए गए फिर भी आधुनिक उद्योगों का विकास भारतीय इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ।

प्रश्न 30.
काउण्ट सेन्ट-साइमन और चार्ल्स फुरियेर का संक्षिप्त इतिहास लिखें।
उत्तर :
काउण्ट सेन्ट साइमन : यह फ्रांसीसी समाजवाद का असली संस्थापक था। फ्रांस की प्रथम क्रान्ति के समय वह रिपब्लिकन दल का सदस्य बन गया था। द न्यू क्रिस्चियानिटी (1825) में उसने अपने समाजवादी विचारों का प्रतिपादन किया। वह विज्ञान का प्रबल समर्थक था। उसका विचार था कि समाज का वैज्ञानिक ढंग से पुनर्गठन हो तथा उद्योगपतियों द्वारा उसका नियन्त्रण होना चाहिए। श्रमिकों का जीवन-स्तर ऊँचा उठाना चाहिए।

चाल्स फूरियेर : सेण्ट साइमन की सामाजिक व्यवस्था की आलोचना को चार्ल्स फुरियेर (1772 – 1837) ने आगे बढ़ाया। वह लियोस में एक व्यापारी के यहाँ क्लर्क था, परन्तु उसकी समाजवादी विचारधारा तथा योजनाओं ने यूरोपीय चिन्तन को प्रभावित किया। असंख्य निर्धन श्रमिकों की स्थिति में सुधार लाने के लिए उसने एक योजना बनाई। इसके अनुसार समाज को 1600 व्यक्तियों के छोटे-छोटे समूहों में विभाजित कर देना चाहिए जिससे कि वे सामूहिक ढंग से एक दूसरे की वस्तुओं का उपयोग कर सकें।

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प्रश्न 31.
औद्योगिक क्रान्ति और औद्योगिक समाज की विभिन्न समालोचनाओं का वर्णन करें।
उत्तर :
पश्चिमी इतिहासर राइकर (Riker) के अनुसार, ” “हस्तकारी के स्थान पर वाष्प-यंत्रों द्वारा चालित, उत्पादन और यातायात की प्रक्रियाओं में परिवर्तन लाना ही औद्योगिक क्रान्ति है।” इसी प्रकार एच० ए० डेविस ने लिखा है – औद्योगिक क्रान्ति का अर्थ उन परिवर्तनों से है जिनके कारण यह संभव हो गया कि मनुष्य उत्पादन (निर्माण) कर सके। औद्योगिक क्रान्ति के बढ़ने के साथ-साथ पूँजीवाद भी बढ़ा। औद्योगिक क्रान्ति ने साधारण व्यापारियों को पूँजीपति बना दिया। ऐसे बहुत से पूँजीपति होने लगे; जिन्होंने मशीनें और कच्चा माल खरीदने के लिए मजदूरों को रखने के लिए अपने जीवनभर की बचत को लगाने का जोखिम उठाया अथवा बैंकों से ऋण लिया और अपने उद्योगों के नेता बन गए।

प्रश्न 32.
किन वैज्ञानिक आविष्कारों ने इंगलैण्ड में सर्वप्रथम औद्योगिक क्रांति लाने में मदद की ?
उत्तर :
इंगलैण्ड के औद्योगिकीकरण में वैज्ञानिक आविष्कार :
जिन वैज़ानिक आविष्कारों ने इंगलैण्ड में सर्वप्रथम औद्योगिक क्रांति की लाने में मदद को वे निम्नलिखित हैं :
कपड़ा-उद्योग के लिए यंत्र-आविष्कार : 18 वीं सदी में विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक आविष्कार वस्त्र उद्योग की अग्रगति में बहुत ही सहायक सिद्ध हुआ। ये आविष्कार हैं –

  1. जॉन के का फ्लाईंग शटल (उड़न्त माकू)
  2. हरग्रिब्स का स्पिनिंग जेनी
  3. आर्कराइट का वाटर फ्रेम
  4. क्रॉम्पटन का म्यूल
  5. कार्टराइट का पावरलूम इत्यादि।

वाष्प इंजन : जेम्स वाट के वाष्प इंजन आविष्कार ने उद्योग में ज़ान डाल दिया।

लौह-इस्पात में प्रयुक्ति-विज्ञान :

  1. अबाहम उर्वि द्वारा आविष्कृत लोहां गलाने की पद्धति
  2. जॉन स्मिटन आविष्कृत ब्लास्ट फरनेस (लोहा गलाने की भट्ठी)
  3. हेनरी बेसमार आविष्कृत इस्पात बनाने की कारीगरी आदि ने इंगलैण्ड के औद्योगिकीकरण को आगे बढ़ाया।

सेफ्टी लैम्प : जमीन के नीचे सुरक्षित कोयला खनन बढ़ाया तथा विभिन्न खनिज सम्पदा के ख़न में हम्फे डेवी द्वारा आविष्कृत सेफ्टी लैंप ने खनन उद्योग को बहुत विकसित किया।

परिवहन :

  1. टेलफोर्ड एवं मैकाडाम द्वारा पीच की पक्की सड़क
  2. जॉर्ज स्टीफेन्सन द्वारा आविष्कृत वाष्पचालित रेल इंजन
  3. फुलटन आविष्कृत वाष्प-स्टीमर
  4. टेलीग्राफ एवं टेलीफोन का आविष्कार इंगलैण्ड के औद्योगिकीकरण में बहुत सहायक हुआ।

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प्रश्न 33.
महादेश के दूसरे देशों में औद्योगिकीकरण के देर से प्रारम्भ होने के क्या कारण थे?
उत्तर :
18 वीं सदी के दूसरे चरण में सर्वप्रथम इंगलैण्ड में औद्योगिक क्रांति होने के प्रायः 50 साल बाद महादेश के दूसरे देश फ्रांस, जर्मनी, हालैण्ड, बेल्जियम, रूस आदि देशों में औद्योगिकीकरण प्रारम्भ हुआ।

महादेश के दूसरे देशों में औद्योगिकी कारण में विलंब के कारण :
सस्ते मजदूरों का अभाव : इंगलैड में औद्योगिकीकरण के लिये सस्ते मजदूरों की कमी नहीं थी किन्तु अन्य यूरोपीय देशों जैसे-क्रांस, हालैण्ड, जर्मनी आदि में सस्ते श्रमिकों का अभाव था।
उपनिवेश की कमी : इंगलेण्ड की तरह उपनिवेशों की अधिकता फ्रांस, जर्मनी आदि के पास नहीं थी। इसके अतिरिक्त कच्चे माल, कोयला, लोहा आदि का विशाल खनिज भंडार भी नहीं था।
यातायात की सुविधा का अभाव : महादेश के अन्य देशों में इंगलैण्ड की तरह यातायात की सुविधाएँ नहीं थीं।
कृषि की प्रधानता : फ्रांस के कुलीन वर्ग कल-कारखानों की अपेक्षा कृषि को ज्यादा महत्व देते थे। इसके अतिरिक्त जर्मनी के जंकार नामक जमींदार वर्ग इसे सम्मानजनक पेशे के रूप में नहीं मानते थे।

प्रश्न 34.
फ्रांस की औद्योगिकीकरण में प्रमुख बाधाएँ क्या थीं ?
अथवा
फ्रांस में औद्योगिकीकरण की गति धीमी क्यों थी ?
उत्तर :
इंगलैण्ड की औद्योगिक क्रांति के बहुत बाद में फ्रांस का औद्योगिकिकरण आरंभ हुआ।
फ्रांस की औद्योगिकीकरण में बाधाएँ :
उद्योग सहायक सामग्री का अभाव : सस्ते श्रमिक, कच्चे माल की आपूर्ति, उत्पादन सामग्री के लिये बाजार, यातायात व्यवस्था की कमी आदि ने फ्रांस की औद्योगिकीकरण को विलंब से शुरू करने के लिये बाध्य किया।
सामंतवादी मानसिकता : फ्रांस के जमींदार, कुलीन वर्ग उद्योग-धंधे को नफरत की दृष्टि से देखने शे, वे जमीन एवं कृषि कार्य को ही पसंद करते थे।
संरक्षण का अभाव : इंगलैण्ड के पूंजीपति वर्ग को सरकार से जैसी सहायता एवं उत्साह प्रेरणा मिली, फ्रांस में इसका नितान्त अभाव था।
सामाजिक मर्यादा में कमी : फ्रांस के धनी वणिक (बनिया) वर्ग तृतीय सम्भायाय के अन्तर्गत आते थे। अर्थसम्पदा के मालिक होते हुए भी उन्हें समाज में कुलीनों, सामन्तप्रभुओं की तरह मर्यादा नहीं मिलती थी जिसने उन्हें औद्योगिकीकरण से दूर कर दिया।
राजनैतिक अस्थिरता : फ्रांस में लगातार क्रांति की बाढ़ ने औद्योगिकीकरण को पीछे धकेल दिया।
परिसेवा की कमी : फ्रांस में उन्नत किस्म का कोयला, लोहा, खनिज भंडार की कमी, पूंजी की कमी एवं वैज्ञानिक आविष्कारों की कमी औद्योगिकीकरण में विलंब का कारण बनी।

प्रश्न 35.
औद्योगिक क्रांति का सामाजिक क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ा था ?
उत्तर :
औद्योगिक क्रांति ने सामाजिक क्षेत्र पर भी अत्यधिक प्रभाव डाला। इस क्रांति के पहले लोग गावों में निवास करते थे तथा खेती-बाड़ी व पशुपालन उनकी प्रमुख जीविका थी। लेकिन औद्योंगिकीकरण के कारण शहरों का विकास तेजी से होने लगा। लोग रोज-रोटी के लिये शहरों में आने लगे। मजदूर वर्ग मजदूरी के बदले अपना श्रम बेचने लगे। क्रमशः कलकारखानों में अच्छी कारीगरी के लिये लांगों को अच्छी नौकरिया मिलने लगी। औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप अच्छी उत्पादन सामग्री लोगों को मिलने लगी जिससे उनके जीवन स्तर में काफी सुधार हुआ। औद्योगक क्रांति ने तत्कालीन समाज को दो नये वर्ग में बाँट दिया – (1) श्रमिकवर्ग (2) मालिक – पूंजीपति वर्ग।

प्रश्न 36.
रूस के औद्योगिकीकरण की प्रमुख समस्याएँ / बाधाएँ क्या थीं ?
अथवा
रूस में औद्योगिक क्रांति के देर से आरंभ होने के क्या कारण थे ?
उत्तर :
इंगलैण्ड में औद्योगिक क्रांति होने के बहुत दिनों के बाद में रूस में औद्योगिक कांति की शुरुआत हुई।
रूस के औद्योगिकीकरण की प्रमुख बाधाएँ / समस्याएँ
सामन्तवाद : 19 वीं सदी के प्रंथम चरण में रूसी समाज में एक तरफ शोषक सामन्त वर्ग एवं दूसरी तरफ शोषित भूमिदासों, कृष्को का समुदाय था। इस ढ़ांचे में रूस में औद्योगिक कांति सम्भव नहीं थी।
मजदूरों का अभाव : सामन्तों की अनुमति के बिना भूमिदास गाव छोड़कर कहीं भी नहीं जा सकते थे, फलस्वरूप रूस के कल-कारखानों में मजदूरों की बहुत कमी थी।
बुर्जुआ श्रेणी की अनुपस्थिति : हरंक देश के औद्योगिक विकास में बुर्जुआ श्रेणी की बहुत बड़ी भूमिका होती है जो पूंजी निवेश करता है। रूस के तत्कालीन समाज में सामन्तवाद एवं शोषित भूमिदासों के बीच कोई बुर्जुआ आश्रेणी का उद्भव नहीं हुआ था।
परिवहन समस्या रूस के अन्दर सड़को एवं जल-मार्ग का समुचित विकास नहीं हुआ था जिसे औद्योगिकीकरण में देर हुई।
पूंजी का अभाव : 19 वीं सदी के आरंभ में रूस में मुद्रा एवं बैंकंग व्यवस्था नहीं थी जिससे कारखानों में आवश्यक पूंजी का अभाव था।
बाजार की कमी : उत्पादन सामग्री की बिक्री के लिये गरीब किसानों के पास क्रय-क्षमता नहीं थी और न ही कोई बाजार विकसित हुआ था।

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प्रश्न 37.
औद्योगिक क्रांति के राजनैतिक परिणाम क्या थे ?
उत्तर :
18वीं सदी के दूसरे चरण में सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रांति आरंभ हुई। बाद में यूरोप के अन्य देशों में इसका विस्तार हुआ।
औद्योगिक क्रांति के राजनैतिक परिणाम :
नई श्रेणी का उद्भव : औद्योगिक क्रांनि के फलस्वरूप दो नई श्रेणी – पूंजीपति श्रेणी एवं श्रमिक श्रेणी का जन्म हुआ। इसके कारण पहले के सामन्त एवं कुलीन श्रेणी का राजनैतिक दबदबा प्राय: खत्म हो गया।
श्रमिक आन्दोलन : देश-विदेश सब जगह के श्रमिक अपने प्रजातांत्रिक अधिकारों को लेकर आन्दोलन आरंभ कर दिये।
मताधिकार की मांग : औद्योगिक क्रांति के बाद विभिन्न देशों में उत्पन्न श्रमिक श्रेणी अपने मताधिकार की मांग को लेकर विभिन्न तरह के आन्दोलन करने लगी जैसे इंगलैण्ड में चार्टिस्ट आन्दोलन आदि का विस्तार हुआ।
उपनिवेशों का विस्तार : औद्योंगिक क्रांति के कारण उत्पादन सामग्री के बाजार के लिये विभिन्न यूरोपीय देशों ने अपने उपनिवेशों का विस्तार, नये उपनिवेश की खोज एवं दखल करना शुरू कर दिया।
समाजवादी चिन्ताधारा का विकास : औद्योगिककरण से मिल मालिक या पूंजीपति वर्ग और अधिक धनी तथा मजदूर और गरीब होंने लगे। इस अवस्था में अर्थनैतिक संतुलन बनाने के लिये मजदूरों में समाजवादी चिन्ताधारा का विकास आरंभ हुआ।

प्रश्न 38.
औद्योगिक क्रांति के सामाजिक परिणाम क्या थे ?
उत्तर :
18 वीं सदी के दूसरे चरण में सर्वप्रथम इंगलैण्ड में औद्योगिक क्राति हुई एवं बाद के एक सदी के बीच यूरोप के अन्य देशों में इसका प्रसार-विस्तार हुआ।
औद्योगिक क्रांति के सामाजिक परिणाम : यूरोष तथा विश्व के दूसरे देशों में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप सामाजिक क्षेत्र में दूरगामी परिणाम निकले जो निम्नलिखित हैं :
पूंजीपति श्रेणी का जन्म : औद्योंगिक कांति के कारण यूरोप में प्रचलित सामन्तवादी प्रथा टूट गयी एवं पूंजीपति वर्ग का उदय हुआ जिन्होंने उद्योग-धंधे, कल-कारखाने स्थापित करने के लिये पर्याप्त धन राशि एवं पूंजी का निवेश किया और अति अल्प समय में अत्यधिक मुनाफा कमा कर पूंजीपति बन बैठे।
श्रमिक श्रेणी का जन्म : उद्योगों के विस्तार से यूरोपीय समाज में एक दूसरा वर्ग अर्थात श्रमिक वर्ग का जन्म हुआ जो गांव से आकर शहरों में बस गये।
ग्राम्य जीवन पर प्रभाव : शहर के कल-कारखानों में मजदूरी करने के लिये लोग गांव छोड़कर शहरों में आने लगे। इसके कारण ग्राम्य जीवन प्रभावित हुआ।
श्रमिकों की जीवनचर्या : श्रमिक वर्ग सामान्य मजदूरी के लिये दिन-भर कारखानों में काम करने को बाध्य थे। अस्वास्थकर परिस्थिति में रहना उनके जीवन की नियति बन गयी।
श्रमिक आन्दोलन : श्रमिक वर्ग ने शोषण से मुक्ति पाने के लिये एवं अपने नागरिक अधिकारों की प्राप्ति के लिये आन्दोलन करना शुरू किया। इसके कारण पूरे यूरोप महादेश में श्रमिक आन्दोलन फैल गया।

प्रश्न 39.
औद्योगिक क्रांति का परिणाम भारत में कैसा रहा ?
उत्तर :
18 वीं सदी के द्वितीयार्द्ध में इंगलैण्ड में हुई औद्योगिक क्रांति के बाद पूरे यूरोष में औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया शुरू हो गयी।
भारत में औद्योगिक क्रान्ति के परिणाम : भारत में औद्योगिक क्रांति के विभिन्न परिणाम देखने को मिले जो निम्नलिखित हैं –
निर्यात बन्द : एक समय भारत का मसलिन, कार्पोस एवं अन्य उत्पादन सामग्री इंगलैण्ड में निर्यात की जाती थी। किन्तु औद्योगिक क्रांति के कारण इंगलैण्ड में प्रर्यात मात्रा में सामग्री उत्पत्न होने लगी जिससे भारतीय निर्यात बन्द हो गया।
कुटीर उद्योग की समाप्ति : इंगलैण्ड के उत्पाद सस्ते होने के कारण एवं भारत के बाजारों में यूरोपीयन उत्पादन सामग्री की भरमार से देश की लघु एवं कुटीर उद्योग बीमार हो गये।
कच्चे माल की रवानगी : इंगलैण्ड में औद्योगिक क्रांति से भारत के कच्चे माल जैसे-कपास, रुई आदि सामग्री समुद्री पथ से इंगलैण्ड चले जाने से उन देशों में औद्योगिक विकास होने लगा।
बेरोजगारी की समस्या : भारत में छोटे एवं मझोले उद्योगों के नष्ट होने से लाखों लोग बेरोजगार हो गये जिसके कारण गाँवों में कृषि पर निर्भरशीलंता और बढ़ी।
शहरी जीवन में ठहराव : भारत में कुटीर उद्योगों के नष्ट होने से ढाका, मुर्शिदाबाद, बनारस, सूरत आदि शहर के लोगों का जीवन कष्टसाध्य हो गया।
अंग्रेजों के गोदाम : बहुत से अंग्रेजों ने भारत में कृषि जमीन खरीद कर वहाँ कच्चा माल रखने के लिये बड़े-बड़े गोदाम बनवाये जिनमें पाट, चाय, नील आदि की खेती करने लायक सामग्री का संग्रह करके मुनाफा कमा सके।
इस प्रकार औद्योगिक क्रांति के कारण भारत का शहरी एवं ग्रामीण जीवन बहुत ही बुरी तरह प्रभावित हुआ।

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प्रश्न 40.
पेरिस कम्युन क्या है ?
उत्तर :
1789 ई में फ्रांस में लगातार क्रांति एवं जन-जागरण होने लगा था। इस जनजागरण में फ्रांस का तृतीय सम्र्रदाय विशेष कर पेरिस के गरीब श्रमिकों की बहुत बड़ी भूमिका थी।
पेरिस कम्युन : क्रांति के समय पेरिस के गरीब श्रमिकों के प्रतिनिधियों को लेकर 18 मार्च 1871 ई. को पेरिस कम्युन का गठन किया गया।
उद्देश्य : पेरिस कम्युन के गठन के उद्देश्य थे –

  1. पेरिस शहर में क्रांतिकारी म्यूनिसिपल प्रशासन का संचालन करना
  2. पेरिस का गौरव एवं मर्यादा की वृद्धि करना एवं
  3. क्रमशः समूचे फ्रांस में पेरिस कम्यून का वर्चस्व प्राप्त करना।

जन समर्थन : पेरिस कम्युन को वहाँ की आम जनता का प्रबल समर्थन था। देश प्रेम एवं तीव्र जर्मन विरोधिता ने ही देश के लोगों में राष्ट्रीयता का संचार किया और आन्दोलन के प्रति सचेतन बनाया।

जनता का अंश ग्रहण : पेरिस कम्युन आन्दोलन को जैकोबिन, समाजतंत्री आदि विभिन्न दलों के समर्थक श्रमिकवर्ग का सहयोग मिला। लंबी अवधि तक आन्दोलन का नेतृत्व क्रांतिकारी नेता अगस्त ब्लांकी ने किया। उनके नेतृत्व में कम्युन के सदस्यों ने पेरिस प्रशासन के संचालन में अपनी भूमिका का निर्वाह किया।

कार्य : पेरिस कम्युन –

  1. सरकार एवं चर्च से शिक्षा व्यवस्था को मुक्त किया।
  2. श्रमिकों के कल्याण के लिये अनेक सुधारों को कार्यान्वित किया।

सरकार के साथ विरोध : 1870 ई. में फ्रांस में तृतीय प्रजातंत्र की सरकार बनी। फ्रांस की अस्थायी प्रजातांत्रिक सरकार द्वारा जर्मनी के साथ अमर्यादित फ्रैंकफर्ट की संधि (1871 ई.) करने पर पेरिस कम्युन प्रजातांत्रिक सरकार के खिलाफ आन्दोलन शुरू कर दिया।

पतन (समाप्ति) : पेरिस कम्युन के दो माह के शासन के बाद वर्साई की प्रजातांत्रिक सरकार कम्युन के हाथ से प्रशासन छीन लिया और इस तरह पेरिस कम्युन का पतन हुआ।

प्रश्न 41.
औद्योगिक क्रांति के साथ नारी समाज के सम्बन्ध की चर्चा करो।
उत्तर :
इंगलैण्ड में औद्योगिक क्रांति से पहले कृषि निर्भर समाज में महिलाओ का प्रमुख कार्य गृहस्थी का काम संभालना था तथा कृषि उत्पादन में पुरुषों का साथ देना था।
औद्योगिक क्रांति एवं नारी : औद्योगिक क्रांति के बाद पुरुषवर्ग द्वारा उद्योगों में श्रमिक के रूप में शामिल होने पर महिलायें भी विभिन्न उद्योगों से जुड़ गयीं।
पहले की नारी : औद्योगिक क्रांति के पहले कृषि निर्भर समाज में औरतें, पुरुषों के साथ मिलकर कृषि उत्पादम में हाथ बँटाती थीं, इसके अतिरिक्त घर संभालना एवं कुटीर उद्योग में उनकी हिस्सेदारी रहती थी।
औद्योगिक नगरी में आगमन : औद्योगिक क्रांति के बाद ग्राम से पुरुष नौकरी करने के लिये शहरों में आने लगे। उनके साथ परिवार की महिलायें भी आने को बाध्य हुई।
श्रमिक के रूप में नियोग : श्रमिकों का वेतन कम होने के कारण उनके नौकरी से परिवार का खर्च चलना मुश्किल था, अतः महिलायें भी कल-कारखानों में काम करने के लिय मजबूर हुई।
दुर्दशा : नारी श्रमिकों द्वारा पुरुष श्रमिकों के बराबर काम करने पर भी उन्हें समान वेतन नहीं मिलता था। इसके अलावा कारखाने के बाद उन्हे घर का भी काम संभालना पड़ता था।
पारिवारिक समस्या : परिवार के पुरुषों के साथ महिलाओं को भी कारखानों में काम करने के कारण पारिवारिक काम एवं सन्तानों की देखभाल की उपेक्षा होने लगी। फलस्वरूप विभिन्न पारिवारिक समस्याओं का जन्म हुआ।

WBBSE Class 9 History Solutions Chapter 4 औद्योगिक क्रांति, उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद

प्रश्न 42.
समाजतांत्रिक / साम्यवादी विचारधारा के उद्भव एवं विकास सम्बन्धी आलोचना करो।
उत्तर :
सम्पत्ति पर व्यक्तिगत मालिकाना के बदले सामाजिक मालिकाना एवं आय के बँटवारे में साम्य प्रतिष्ठा की विचारधारा साधारणतः समाजतंत्र के नाम से परिचित है।
समाजतांत्रिक / साम्यवादी विचारधारा का उद्भव एवं विकास :
औद्योगिक क्राति के बाद शोषित श्रमिक श्रेणी के बीच समाजतांत्रिक या साम्यवादी विचारधारा क्रमशः लोकप्रिय होने लगी।
पृष्ठभूमि :

  1. निम्न मजदूरी के बदले में श्रमिकों से अधिक समय तक काम करवाना,
  2. पूंजीपतियों के हाथ में पर्याप्त मुनाफा का जमा होना,
  3. श्रमिकों के दैनिक जीवन में अन्तहीन अभाव एवं दुर्दशा की समाप्ति के लिये कुछ दार्शनिकों ने 18 वीं सदी के अन्त में एवं 19 वीं सदी के आरंभ में समाजतांत्रिक मतादर्श का प्रचार करना शुरू किया।

मौलिक चिन्ताधारा : समाजवाद की मूल नीतियाँ थीं –

  1. सम्पत्ति में व्यक्तिगत मालिकाना की समाप्ति
  2. उत्पादन के साधन पर समाज एवं देश का अधिकार
  3. धन के बँटवारे में असमानता को खत्म करना,
  4. श्रमिक तथा गरीब तबके का कल्याण करना आदि।

आदि समाजतंत्रवाद : समाजतंत्र के सूचनाकाल में राबर्ट ओवेन, साँ सिमों, शार्ल फुरियर, लुई ब्लाँ, प्लूटा-डे आदि समाजवादी चितकों ने समाजवाद के मतादर्श का प्रचार किया। ये ‘यूटोपियन’ या ‘कल्पनाविलासी’ के नाम से परिचित हैं।

वैज्ञानिक समाजवाद : आदि समाजवादी चिंतक अर्थनैतिक विषमता का सटीक दिशा निर्देशन नहीं दिखा सके। बाद में कार्ल मार्क्स एवं उनके मित्र फ्रेडरिक एंजेल्स ने अर्थनैतिक विषमता को दूर करने की वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत की। उन्होंने इसका नाम ‘साम्यवाद’ दिया। ये लोग वैज्ञानिक समाजतंत्रवादी कहलाये।

जनप्रियता : शोषित श्रमिक श्रेणी के बीच समाजतांत्रिक या साम्यवादी विचारधारा दुनिया के विभिन्न देशों में लोकप्रिय हो उठा। 20 वीं संदी में मजदूर वर्ग के आन्दोलन से रूस एवं चीन में समाजवाद की स्थापना हुई।

प्रश्न 43.
वैज्ञानिक समाजवाद का मौलिक मतादर्श क्या है ?
उत्तर :
कार्ल मार्क्स (1818-83 ई.) एवं उनके मित्र फ्रेडरिक एंजेल्स (1820-95 ई.) आधुनिक वैज्ञानिक समाजवाद के प्रवर्तक थे। वैज्ञानिक समाजवाद का मतादर्श :
प्राकृतिक सम्पदा का अधिकार : वैज्ञानिक समाजवादी समझते थे कि किसी व्यक्ति या समुदाय का प्राकृतिक सम्पदा जैसे जमीन, पानी, जंगल आदि पर व्यक्तिगत मालिकाना उचित नहीं है। उन्होंने इन पर सबों के अधिकार की समानता की वकालत की।
सम्पत्ति के बँटवारे में समानता : पूंजीवादी व्यवस्था में अल्पसंख्यक पूंजीपतियों के हाथ में अथाह सम्पत्ति के जमा होने से श्रमिक नि: स्व एवं दरिद्र हैं। वैज्ञानिक समाजवादियों का कहना है कि सम्पत्ति के बटँवारे में समानता होने से मालिक एवं श्रमिक के बीच की विषमता समाप्त होगी।
राष्ट्रीय नियंत्रण : वैज्ञानिक समाजवादियों का लक्ष्य था उत्पादन के साधन में व्यक्तिगत मालिकाना को समाप्त करके राष्ट्रीय नियंत्रण की प्रतिष्ठा करना। इसके फलस्वरूप पूंजीवाद एवं उत्पादन को लेकर प्रतियोगिता एवं शोषण की समाप्ति होगी।
काम का अधिकार : वैज्ञानिक समाजवादियों ने प्रत्येक के लिए काम के अधिकार की मांग की। उनके विचार से बेरोजगारों के लिए रोजगार की व्यवस्था करना देश की सरकार का प्रमुख दायित्व है।
सर्वहारा का एकनायकत्व : वैज्ञानिक समाजवादी एक ऐसे श्रेणीविहीन और शोषणहीन समाज की स्थापना के पक्षधर थे, जिसके संचालन में नेतृत्व श्रमिकवर्ग देगा। इससे सर्वहारा का नया समाज बनेगा।

प्रश्न 44.
यातायात व्यवस्था के विकास में स्वेज नहर की भूमिका क्या थी?
उत्तर :
औद्योगिकीकरण के विस्तार के कारण कच्चे माल एवं उत्पादित सामग्री के आवागमन के लिये प्राकृतिक जलमार्ग के साथ-साथ कृत्रिम नहर खोदने का काम भी शुरू हुआ।
स्वेज नहर का निर्माण : औद्योगिक देशों ने जिन कृत्रिम नहरों का निर्माण किय उनमें से स्वेज नहर का निर्माण प्रमुख है :
उद्देश्य : पश्चिमी देश का पूरब के देशों के साथ व्यापार करने के लिये अफ्रीकी महादेश के चारों तरफ घूमकर जाते थे जिसके कारण उन्हें अधिक सभय, परिश्रम एवं पैसा खर्च करना पड़ता था। इसे सहज एवं सरल बनाने के लिये मिस्न देश के मध्य होकर फ्रांस ने 1859 ई. में स्वेज नहर खनन का काम आरंभ किया।

इंग्लैण्ड की भूमिका : भारत के साथ यातायात की सुविधा के लिये इंग्लेण्ड स्वेज नहर पर नियत्रण रखने के लिये बेचैन था। स्वेज नहर अंचल में इंगलैण्ड एवं फ्रांस के संयुक्त प्रयास से ‘कन्डोमिनियन’ (1878 ई.) गठित हुआ एवं यहाँ पर इंग-फ्रांसिसी शक्ति का आधिपत्य प्रतिष्ठित हुआ।

यातायात का शुभारम्भ : स्वेज नहर से 1869 ई. में व्यापारिक जहाजों का आवागमन आरंभ हुआ। इंगलैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, डेनमार्क, बेल्जियम, स्पेन, पुर्तगाल आदि यूरोपीय देश पूरब के साथ व्यापार करने के लिये स्वेज नहर का उपयोग करने लगे।

सुरक्षा : स्वेज नहर की सुरक्षा के लिये ब्रिटिश सरकार ने 1956 ई. तक इस अंचल में बिंटिश सेना की तैनाती का अधिकार पाया। फलस्वरूप स्वेज नहर अंचल पर मिस्त का अधिकार एक प्रकार से खत्म हो गया।

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प्रश्न 45.
टेलीग्राफ का आविष्कार एवं इस व्यवस्था के प्रसार-विस्तार का परिचय दो।
उत्तर :
टेलीग्राफ यंत्र की सहायता से लिखित संदेश की असली कॉपी नहीं भेजकर भींउस संदेश को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाता है। 19 वीं सदी के बीच के समय में यूरोप में टेलीग्राफ का व्यवहार बहुत लोकप्रिय हो उठा था।
टेलीग्राफ : 19 वीं सदी में टेलीम्राफ व्यवस्था ने औद्योगिक देशों के औपनिवेशिक साम्राज्य की प्रतिष्ठा एवं विस्तार के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
अमेरिका से सम्पर्क : 1851 ई. में अमेरिका में दीर्घ 20 हजार मील टेलीग्राफ लाईन की व्यवस्था हुई। 1866 ई. में ‘अटलांटिक केबल’ प्रतिष्ठित होने से टेलीग्राफ के जरिये इंगलैण्ड के साथ अमेरिका का सम्यर्क स्थापित हुआ।

अफ्रीका के साथ सम्यर्क : अफ्रीका के विभिन्न उपनिवेशों के साथ टेलीग्राफिक संपर्क स्थापित हुआ। जैसे –

  1. 1883 ई. में स्पेन के साथ एवं कैनेरी द्वीप के साथ
  2. 1884 ई. में सेनेगल के साथ टेलीग्राफिक संपर्क स्थापित हुआ।

अन्य देश :

  1. डेनमार्क की एक कम्पनी चीन में 1871 ई. में सर्वप्रथम टेलीग्राफिक व्यवस्था चालू हुई,
  2. 1872 ई. में आस्ट्रेलिया में सर्वप्रथम टेलीग्राफिक व्यवस्था चालू हुई।
  3. बाद में मलया, वियतनाम आदि देशों में टेलीग्राफिक सम्पर्क स्थापित हुआ। इसके अतिरिक्त 1870 ई. के दशक में ब्राजील के साथ विभिन्न यूरोपीय उपनिवेशिक शक्तियों का टेलीग्राफिक सम्पर्क जुड़ गया।

औपनिवेशिक शक्ति में वृद्धि : टेलीग्राफिक संपर्क के फलस्वरूप –

  1. यूरोपीय शक्तियाँ अपने उपनिवेशों के साथ शीघ्र सम्पर्क स्थापित करने में सक्षम हुई।
  2. उपनिवेशों पर विदेशी शासन का प्रभाव और मजबूत हुआ।
  3. औद्योगिक देशों के व्यापार में अपार वृद्धि हुई।

प्रश्न 46.
ब्रिटिश शासनकाल के आरंभ में भारत के निर्यात-वाणिज्य का परिचय दो।
उत्तर :
भारत में ब्रिटिश उर्पनवेशिक शासन के मजबूत होने के पहले यूरोप के विभिन्न देशों में भारत से विभिन्न सामानों का निर्यात होता था।
भारत का निर्यात व्यापार : यूरोप के विभिन्न बाजारों में देशी उत्पादों का निर्यात करके भारत पर्याप्त विदेशी मुद्रा की आमदनी करता था।

बंगाल : 18 वीं सदी के मध्यभाग तक बंगाल से विभिन्न सामानों का निर्यात होता था। विदेशी बाजारों में बंगाल का मसलिन, सूती वस्त, रेशम, चीनी, नमक, कच्चा रेशम, पाट, सोरा, अफीम आदि का निर्यात यूरोप के विभिन्न देशों में किया जाता था।

बंगाल से बाहर : बंगाल से बाहरी राज्यों में जैसे लखनऊ, आगरा, मुल्तान, लाहौर, वाराणसी, सूरत, अहमदाबाद, विशाखापट्टनम, मदुराई आदि स्थानो पर सूती वस्त्र उद्योग का केन्द्र बन गया था। धातु, चर्म आदि उद्योग भी बहुत विकसित था।

भारत की समृद्धि : 18 वीं सदी में अंग्रेज-सहित विभिन्न यूरोपीय व्यापारी भारत के वस्त्र एवं अन्य सामग्री, मसाला आदि इस देश से खरीदकर अपने देशों में भेजा करते थे। भारत के इस निर्यात व्यापार से देश बहुत समृद्ध हो गया था।

निर्यात व्यापार को चोट : भारत में बिटिश सरकार के सुप्रतिष्ठित होने के बाद भारत के बाजारों में विदेशी सामानों की भरमार हो गयी। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत निर्यातक देश से आयातक देश बन गया।

प्रश्न 47.
प्रथम विश्वयुद्ध के प्रमुख कारणों का उल्लेख करो।
उत्तर :
मानव सभ्यता के इतिहास में सबसे बड़ा युद्ध प्रथम विश्व युद्ध था। इस महायुद्ध में लाखों लोग मारे गये एवं अपार धन-सम्पदा की क्षति हुई।
प्रथम विश्वयुद्ध के प्रमुख कारण : 1814 ई में सेराजेवा हत्याकाण्ड की घटना को लेकर यह युद्ध आरंभ होते हुए भी इसके और भी विभिन्न कारण थे-
शक्ति गुट : 1814 ई. से 1870 ई. के बीच यूंग परस्पर विरोधी दो सशस्त्र खेमों में बँट गयो। एक तरफ जर्मनी, ओंस्ट्रिया एव इटली को लेकर ‘रिशक्ति समझैता’ एवं दृसरी नरफ इगलेण्ड, फ्रांस एवं रूस को लेकर ‘त्रिशाक्ति मैत्री’ बन गयी।
उपनिवेश दखल : अपन तैयार माल को बेचने के उद्देश सं यूरोप के विभिन्न देश विश्व के विभन्न भागों में उपनिवेशों को दखल करने लग। इसके फलस्वर्ष इगलेण्ड, फ्रास, रूस आदि देशो के साथ जर्मनी और ऑस्ट्रिया में संघर्ष अनिवार्य हो गया।
उग्र राष्ट्रवाद : जर्मनी सहित बूराप के अन्य देश उग्र एवं सकीर्ण राष्ट्रवाद नीति के चलते खुद को श्रेष्ठ एवं दूसरों को निकृष्ट कहकर प्रचार करने लंग। इसके फलस्वरूप यूराप में जाति विद्वृष ने प्रबल रूप से धारण कर लिया
अतृप्त राष्ट्रीयतावाद : यूरांप के विभिन्न देश स्वाधीनता की मांग पर विद्राह आरंभ कर दिये। अन्य देशों द्वारा उनके समर्थन में ईधन देने से यूराप की परिस्थिति ज्वालामुखी के समान हो गयी।
जर्मनी की भूमिका : जर्मन कैसर द्वितीय विलियम के वरम आग्रासन साक्राज्यवादी नोति एवं धारावाहिक अस्तशक्ति की वृद्ध ने यूरोप के अन्य देशों के सन्देह एवं अशांति को चरम उत्कर्ष पर ला दिया था।
अन्तर्राष्ट्रीय संकट : मोरक्को सकट, अगादोर की अटना, बाल्कन संकट आदि विषय ने यूरोष का अशान्त कर दिया था।
प्रत्यक्ष कारण : ऑस्ट्रिया के गुवराज फर्दिनाद एब उनकी पत्नी सोफिया की सेराजेवो शहर में हत्या की घटना से क्रोधित होंकर आस्ट्रिया द्वारा 28 जुलाई 1914 ई. को सर्बिया की राजधानो बेलग्रेड पर आक्रमण करने से प्रथम विश्वयुद्ध का सूत्रपात हुआ।

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प्रश्न 48.
प्रथम विश्वयुद्ध के लिये जर्मनी कहाँ तक जिम्मेवार था ?
उत्तर :
ऑस्ट्रिया के युवराज ड्यूक ऑंफ फर्दिनान्द एवं उनकी स्नी संफिया की हत्या होने पर ‘ऑस्ट्रिया द्वारा सर्बिया पर आक्रमण (28 जुलाई 1814 ई.) से प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत हुई।
प्रथम विश्वयुद्ध के लिये जर्मनी की जिम्मेदारी :
प्रथम विश्व युद्ध के लिये कुछ इतिहासकार जर्मनो को और कुछ जर्मनी के साथ औरों को भी जिम्मेदार ठहराते हैं-
जर्मनी का दाबित्व : विभिन्न इतिहासकारो को राय में –

  1. बिस्मार्क की शान्ति की नीति को त्याग कर जर्मन कैसर ने विश्व राजनीति में जोर-जबरदस्ती अपना वर्चस्व कायम करने की चेष्टा को।
  2. कैसर द्वारा रूस के स्मथ ‘युद्ध नहीं समझौता रद्ध करने से रूस ने फ्रांस के साथ मित्रता स्थापित की।
  3. कैसर इगलैण्ड के उपनिवेशों में बिना कारण हस्तक्षेप किया।
  4. कैसर ने बाल्कन अंचल में अंस्ट्रिया के आग्रासन का पक्ष लिया।

अन्य राष्ट्रों का दायित्व : कुछ इतिहासकार पश्रम विश्व युद्ध के लिये जर्मनी के दायित्व को स्वीकार करते हुए भी दूसरी शक्तियों को भी कसूरवार ठहराते हैं-

  1. इगलैण्ड, फ्रास एवं रूस ने अपनी सेनावाहिनी के जरिये जर्मनी को चारों ओर से घेर लिया था।
  2. कोई बड़ा युद्ध शुरू होने से दार्दनेल्स प्राणाली से जहाजों की आवाजाही हो सकती है – यह रूस सोचता था।
  3. रूस ने ऑस्ट्रिया को उकसा कर सर्विया के विरुद्ध उग्रनीति ग्रहण करने को प्रेरित किया।
  4. विश्व के उपनिवेशों को अपने दखल में रखने के लिये इंग्लेण्ड अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाता रहा।

विवरणात्मक प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 8 MARKS

प्रश्न 1.
इंगलैणड में सर्वप्रथम औद्योगिक कांन्ति होने के प्रमुख कारण क्या थे ?
अथवा
महादेशीय भूखण्ड में औद्योगीकरण क्यों विलंब से आरंभ हुआ था ?
उत्तर :
यूरोपीय देशों में सर्वप्रथम इंगलेण्ड में 18 वीं सदी के दूसरे चरण में औद्योगिक क्रांति हुई। महादेश के अन्य देश फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम, हालैण्ड, रूस आदि देशों में औद्योगीकरण और भी 50 साल बाद शुरू हुआ। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे :
अनुकूल प्राकृतिक परिवेश : इंगलैण्ड में (i) कोयला एवं लोहे का अक्षय भंडार, (ii) वस्त्र उद्योग के लिये नम हवा (iii) तीव्र वायु एवं जलप्रवाह की उपलब्धता आदि औद्योगिकीकरण में अनुकूल सहायक तत्व थे किन्तु अन्य यूरोपीय देशों में ऐसी प्राकृतिक सुविधाएँ उपलब्ध नही थी।

कच्चे माल की उपलब्धता : इगलैण्ड के अधीन कई उपनिवेश होने से कच्चे माल उपलब्ध थे, किन्तु इस तरह की सुविधाएँ अन्य यूरोपीय देशों के पास नहीं थीं।

बाजार : इंगलैण्ड उत्पादित सामग्री को अपने देश में बिक्री करने के बाद अतिरिक्त उत्पादों की बिक्री अपने उर्पनवेशों में करता था। किन्तु दुसरे देशों के समक्ष इतन बाजार नहीं थे जहाँ वे अपने उत्पादों की बिक्री कर सकें।

सस्ते श्रमिक : 18 वीं सदी में इंगलैण्ड की जनसंख्या में वृद्धि के फलस्वरूप कल-कारखानों में मजदूरी के लिये उसके पास मजदूर आसानी से मिल जाते थे। इसके अतिरिक्त उसके विशाल उपनिवेशी नेटवर्क भी इसके लिये काम करते थे जबकि अन्य यूरोपीय देशों के पास न तो अपने खुद के देश में श्रमिक सुलभ थे और न ही उनके पास इतने उप्पनिवेश ही थे।

कृषि को प्रधानता : 18 वीं सदी में इंगलैण्ड में कृषि में भी तेजगति से प्रगति हुई थी। फलस्वरूप (1) उद्योग के लिये कच्या माल उपलब्ध था। (2) श्रमिको को खाद्य का अभाव नहीं होता था। (3) कृषक उत्पादन सामग्री खरीद सकते थे। कृषि की ऐसी अग्रगति अन्य यूरोपीय देशों में नहीं हुई थी।

राजनैतिक स्थिरता : 18 वीं सदी में इंगलैण्ड की राजनीति में स्थिरता आई जो उद्योगीकरण का एक प्रमुख कारक था। किन्तु दूसरे यूरोपीय देश जैसे- फ्रांस के भीतरी भागों में क्रांति का लम्बा दौर चल रहा था, अतः उसें औद्योगिकीकरण को शुरू करने में देर कर दी।

सरकारी संरक्षण : इंगलैण्ड के उद्योगीकरण में सरकार द्वारा मालिकों एवं पूंजीपतियों को हर तरह से सहायता की गयी किन्तु अन्य यूरोपीय देशों में ऐसा माहौल नहीं था।

व्यापार में रुचि : इंगलेण्ड 17 वीं सदी के मध्यभाग से ही कृषि निर्भर राष्ट्र से व्यापार निर्भर राष्ट्र में बदल गया था। विदेशों के साथ व्यापार एवं वाणिज्य के फलस्वरूप इंग्लैण्ड आर्थिक रूप से अन्य यूरोपीय देशों की अपेक्षा उन्नत हो गया था।

यातायात एवं परिवहन : (i) समुद्र से घिरे इंगलैण्ड की नौशक्ति विश्व में सर्वश्रेष्ठ थी। इंगलैण्ड के जहाज विश्व के किसी भी कोने में आवागमन कर सकते थे। (ii) देश के समुद्री तट पर अवस्थित किसी भी बन्दरगाह से, नहरों, नदियों के रास्ते इंगलैै्ड के मालवाही जहाज कहीं भी आ-जा सकते थे। अन्य यूरोपीय देशों के पास ये सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं।

वैज्ञानिक आविष्कार : 18 वीं सदी में हुए विभिन्न वैज्ञानिक आविष्कार ने इंगलैण्ड के उद्योगीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जैसे – (i) उड़न्त माकू, स्पिनिंग जेनी, वाटरफ्रेम, म्यूल, पावरलूम आदि यांत्रिक मशीनों ने वस्त्र उद्योग को बहुत विकसित किया था। (ii) वाष्प इंजन, ब्लास्ट फरनेस, सेफ्टी लैम्प आदि के आविष्कार कल-कारखानों के विकास में सहायक सिद्ध हुए। यूरोप के दूसरे देशों में ऐसी स्थिति नहीं थी।
मूल्यांकन : चूंकि इंगलैण्ड के उद्योगीकरण के लिये सभी सहायक तत्व मौजूद थे, अतः वहाँ सबसे पहले औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई। दूसरे देशों में यदि देखा जाय तो उद्योगीकरण के सहायक तत्व यदि एक था, तो दूसरा नहीं। यही कारण है अन्य यूरोपीय देशों में औद्योगिकीकरण बहुत विलंब से आरंभ हुआ।

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प्रश्न 2.
पूर्व एशिया में साप्राज्यवाद की स्थिति पर प्रकाश डालिये।
उत्तर :
अफ्रीका के पहले ही एशिया साम्राज्यवाद का शिकार बन चुका था। सन् 1870 ई. के पहले ही अफ्रीका के अधिकतर भाग बँट चुके थे। एशिया के प्रायः तिहाई भाग पर रूस का अधिकार था। भारत तो अंग्रेजों के अधीन था। जापान को अधीन बनाने की चेष्टा विफल हो गयी थी। चीन पर सबकी नजरें गड़ी हुई. थीं। एशिया में चीन से बढ़ कर शोषण का नया क्षेत्र कोई दूसरा न था। चीन में कोयले की बड़ी-बड़ी खाने थीं। चीन की उपजाऊ जमीन में चावल बहुत पैदा होता था। कपास, चाय तथा रेशम के क्षेत्र में चीन विश्व में प्रसिद्ध था। चीन का शासन मंचू वंश के अन्तर्गत कमजोर और भ्रष्ट हो चुका था। मंचू शासन के विरुद्ध बहुत पहले से ही विद्रोह हो रहे थे। 1800 ई. में श्वेत कमल समिति (White Lotus Society) एवं 1813 ई. में स्वर्गिक बौद्धिक समिति (Heavenly Reason Society) ने विद्रोह किया। सबसे बड़ा विद्रोह 1850 ई. का ताइपिंग विद्रोह (Taipinig Rebeilion) था। मंचू वंश के शासन के विरुद्ध विद्रोह ने यह स्पष्ट कर दिया कि चीन में साम्राज्यवाद की स्थापना आसान है।

चीन में ब्रिटेन के सामाज्यवाद का पहला कदम पड़ा। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी यहाँ अफीम का व्यवसाय करती थी। चीन की सरकार ने जब अफीम के व्यापार पर रोक लगा दी तो 1840 ई. में ब्रिटेन चीन से युद्ध में उतर गया। इस युद्ध को अफीम युद्ध (Opium war) कहते हैं। युद्ध में चीन की हार हुई। इसने बिटेन के साथ 1842 ई. में नानकिंग संधि कर ली। संधि के अनुसार चीन ने हांगकांग को ब्रिटेन के हवाले कर दिया तथा उसे पाँच बन्दरगाह और खोलने पड़े जहाँ अंग्रेज रह सकें और बिना किसी रोक-टोक के व्यापार कर सकें।

अफीम युद्ध के बाद चीन में बड़ी सरगर्मी फैल गई। चीनी नहीं चाहते थे कि बंदरगाहों के बाहर विदेशी उनके देश में प्रवेश करें। विदेशियों ने चीन को लूटना-खसोटना प्रारम्भ कर दिया। इसी प्रसंग में फ्रांस और बिटेन ने चीन के साथ सन् 1856 ई. में दूसरी बार युद्ध किया। ब्रिटेन और फ्रांस की सेना ने चीन की राजधानी पेकिंग को घेर लिया और सम्माट के ग्रीष्मकालीन राजमहल को नष्ट कर दिया। चीन को बाध्य होकर 1857 ई. में टिनटिन की संधि करनी पड़ी। इसके अनुसार चीन को छह और अतिरिक्त बंदरगाह खोलने पड़े। अफीम के व्यापार की आज्ञा देनी पड़ी और ईसाई धर्म प्रचारकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी लेनी पड़ी। 1840 ई. और 1856 ई. के युद्धों के फलस्वरूप चीन में विदेशियों का प्रवेश बिल्कुल आसान हो गया।

वे अब बिना रोक-टोक के व्यापार कर सकते थे। इतना ही नहीं, उनके वासस्थानों को चीनी कानूनों से मुक्त कर दिया गया था। अतिरिक्त आवास की इस सुविधा के अनुसार विदेशी चीन में रहकर भी चीन के कानून से नहीं बल्कि अपने देश के कानून से संचालित होते थे। इसी बीच रूस ने मंचूरिया के समुद्री तटवर्ती भागों पर अधिकार कर लिया। 1860 ई. में इसने ब्लाडीबोस्टक बंदरगाह खोला। फ्रांस द्वारा चीन के विरोध किये जाने के बावजूद 1883 ई. में अनाम को अपने संरक्षण में कर लिया। बाद में टोकिन प्राप्त कर इण्डोचाइना की स्थापना की गई। 1886 ई. में अंग्रेजों ने बर्मा पर अधिकार कर लिया।

इसी बीच 1897 ई. में जर्मनी के दो धर्म-प्रचारकों की चीनीयों ने हत्या कर दी। इसके दंड स्वरूप जर्मनी ने चीन के किया चाऊ (Kiao Chow) को 90 वर्षों के लिये पट्टे पर ले लिया। इसके साथ ही चूँकि धर्म प्रचारकों की हत्या शांतुंग (Shantung) में हुई थी, अत: शांतुंग प्रान्त में चीन को जर्मनी के अतिरिक्त आवास के अधिकार को स्वीकार करना पड़ा। रूस ने लियोतुंग को पट्टे पर चीन से ले लिया और इस तरह पोर्ट अर्थार को अपने अधीन कर लिया। साथ ही इसने मंचूरिया में रेलवे लाइन का अधिकार भी प्राप्त कर लिया। फ्रांस ने स्वांग चाऊ (Swang Chow) को पट्टे पर ले लिया और इसने टोकिन से यूनान तक रेलवे लाइन बनाने का अधिकार भी प्राप्त कर लिया। चीन को टुकड़े-टुकड़े में बाँटने के लिये लिटेन भी शामिल हो गया। इसने वेहे-वी को पट्टे पर ले लिया और हांगकांग का भी सीमा विस्तार कर लिया।

प्रश्न 3.
औद्योगिकीकरण के बाद हुए श्रमिक आन्दोलनों के बारे में आलोचना करो।
उत्तर :
सर्वप्रथम इंगलैण्ड एवं बाद में यूरोप के अन्य देशों में उद्योगीकरण के विस्तार के फलस्वरूप स्थापित कलकारखानों में मजदूरों की भर्ती हुई।
श्रमिक आन्दोलन : श्रमिक श्रेणी के उद्भव के कुछ ही दिनों बाद विभिन्न देशों में मजदूर वर्ग अपनी विभिन्न मांगों के आधार पर आन्दोलन शुरू करने लगे।
आन्दोलन के कारण : श्रमिक श्रेणी ने विभिन्न कारणों से आन्दोलन शुरू किया –

  1. श्रमिकों की मजदूरी कम थी।
  2. उन्हें प्रतिदिन कम-से-कम 17-18 घंटे काम करना पड़ता था।
  3. उनके काम की कोई गारन्टी नहीं थी।
  4. उनके परिवार के सदस्यों को अनाहार-अर्द्धाहार तथा अस्वास्थ्यकर परिवेश में रहना पड़ता था।
  5. चिकित्सा की व्यवस्था नहीं होने के कारण उनकी अकालमृत्यु भी हो जाती थी।

लुडाइट दंगे : सर्वपथम इंगलैण्ड में श्रमिक आन्दोलन आरंभ हुआ। श्रमिको की दुर्दशा भरी जिन्दगी से निजात पाने के लिये मजदूरों ने मशीनों की तोड़-फोड़ शुरू कर दी। यह आन्दोलन ‘लुडाइट दंगे’ के नाम से परिचित है।

चार्टिस्ट आन्दोलन: इंगलेंण्ड के श्रमिकवर्ग ने अपने मताधिकार तथा गुप्त बैलेट के जरिये निर्वाचन की मांग पर जोरदार आन्दोलन शुरू किया। इसे चर्टिस्ट आन्दोलन (1838 ई.) के नाम से जाना जाता है।

कम्बलधारी अभियान : ब्रिटिश सरकार द्वारा श्रमिकों की सभा-समिति पर पाबंदी लगाये जाने से शीतकाल में प्राय: 50 हजार मजदूर कम्बल ओढ़कर मैनेचेस्टर के सेंट पिटार मैदान में इकट्ठ हुए। इसे कम्बलधारी अभियान कहा जाता था।

पिटरलू हत्याकाण्ड : कम्बलधारी अभियान के समय श्रमिकों के ऊपर ब्बिटिश सेना द्वारा गोली चलाई जाने से 1 श्रमिकों की मृत्यु हुई एवं हजारों लोग घायल हुए। इस घटना को ‘पिटरलू हत्याकांड’ (819 ई.) के नाम से इतिहास में जाना गया।

श्रमिक कल्याण : श्रमिक आन्दोलन के दवाब से (i) इंगलैण्ड में फैक्ट्री कानून (1833 ई.) द्वारा 10 साल से कम उम्र के शिशुओं को दैनिक 8 घंटा से अधिक काम पर लगाने की मनाही हुई। (ii) श्रमिक वर्ग ने 1867 ई. में मताधिकार एवं 1871 ई. में श्रमिक यूनियन बनाने का अधिकार प्राप्त किया।

मूल्याकंन : श्रमिक आन्दोलन के प्रचार-प्रसार से विश्व के विभिन्न देशों में समाजवादी चिन्ताधारा जनप्रिय होने लगी। लेनिन के नेतृत्व में रूस में मजदूर वर्ग द्वारा बोल्शेविक क्रांति में सक्रिय हिस्सा लेकर उस देश में आत्याचारी जारशाही का खात्मा करके समाजतान्त्रिक सरकार की स्थापना की गई। दूसरे देशों में भी इन श्रमिक आन्दोलनों से बुर्जुआ एवं पूंजीपतिवर्ग आतंकित हो उठे।

WBBSE Class 9 History Solutions Chapter 4 औद्योगिक क्रांति, उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद

प्रश्न 4.
कार्ल मार्क्स का संक्षिप्त परिचय कीजिए।
उत्तर :
19 वीं सदी में चार्ल्स डारविन के बाद कार्ल मार्क्स ही सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्ति थे। आधुनिक सामाजिक दार्शनिकों में उनका नाम अत्यंत आदर के साथ लिया जाता है। वे वैज्ञानिक समाजवाद के प्रवर्तक थे, प्रारम्भिक समाजवादियों के उद्देश्य तो बिल्कुल स्पष्ट थे किन्तु उन उद्देश्यों की प्राप्ति के साधनों में अन्तर था। कार्ल मार्क्स ने इन्हीं दोषों को दूर कर समाजवाद को वैज्ञानिक रूप प्रदान किया।

कार्ल मार्क्स का जन्म सन् 1818 ई. में पर्सिया के एक यहूदी परिवार में हुआ था। उनके पिता एक वकील थे। मार्क्स की प्रारम्भिक शिक्षा पर्सिया में हुई और उन्होंने उच्च शिक्षा जर्मनी के बॉन (Bonn) और बर्लिन (Berlin) विश्वविद्यालयों में पूरी की। बर्लिन विश्वविद्यालय में मार्क्स ने हीगेल के दार्शनिक विचारों का अध्ययन किया और उसके खण्डन में वे रुचि लेने लगे। उन्होंने एक शोध प्रंथ प्रस्तुत कर पीएचडी (PHD) की उपाधि हासिल की। अध्ययन के पश्चात वे पत्रकारिता करने लगे और ‘रेनिश गजट’ नामक पत्रिका में नौकरी की। कुछ समय बाद वे उसके सम्पादक बन गये। अपने क्रांतिकारी विचारों एवं सरकार की आलोचना करने के कारण उन्हें देश से निष्कासित कर दिया गया।

सन् 1943 ई. में वे पेरिस चले गये जहाँ उनकी मित्रता फ्रेडरिक एंजेल्स से हुई। क्रांतिकारी विचारों के कारण ही उन्हें पेरिस छोड़कर बूसेल्स जाना पड़ा। वहाँ उन्होंने साम्यवादी संघ की स्थापना की। उसी समय फ्रेडरिक एंजेल्स भी ब्रूसेल्स चले आये। सन् 1848 ई. में दोनों मिलकर साम्यवादी घोषणापत्र की रचना की और इसे प्रकाशित किया। इसके द्वारा उन्होंने समाजवाद की नयी वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत की। आज भी यह पुस्तक समाजवादी चिन्ताधारा की बाइबिल मानी जाती है।

उन्होंने सन् 1859 ई. में राजनीतिशास्त्र की अर्थनीति पर पुस्तक-अर्थशास्त्र की समीक्षा (A critique of polical economy) लिखी। बूसेल्स छोड़कर उन्हें इंगलैण्ड जाना पड़ा। वहाँ उन्होंने सन् 1867 ई. में अपना प्रसिद्ध ग्रंथ दास कैपिटल (Das Capital) लिखा। यह पुस्तक मार्क्स की अमर कृति है। इसने वर्तमान अर्थव्यवस्था को अत्यधिक प्रभावित किया और इस युग की आर्थिक विचारधारा में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला दिया। सन् 1864 ई. में मार्क्स द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ (International Working Mens’ Association) की स्थापना हुई जो प्रथम साम्यवादी अन्तर्राष्ट्रीय (First Communist International) के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी प्रथम अन्तराष्ट्रीय महासभा लंदन में हुई जिसमें यूरोप के विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया और सबने मार्क्स के विचारों का समर्थन किया। सन् 1883 में कार्ल मार्क्स की मृत्यु हुई।

WBBSE Class 9 History Solutions Chapter 4 औद्योगिक क्रांति, उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद

प्रश्न 5.
औद्योगिक क्रांति के दूसरे चरण में किस प्रकार फ्रांस, जर्मनी एवं रूस ने प्रगति की ?
उत्तर :
सन् 1840 तक इंगलेण्ड में वस्त्र उद्योग का ही विकास होता रहा। 1840 ई. के बाद इंगलैण्ड में लोहा, कोयला, इस्पात आदि उद्योगों के विकास पर ध्यान दिया गया। यही औद्योगिक क्रांति के दूसरे चरण की शुरुआत थी। इस चरण में ही यूरोप के अन्य राष्ट्र अर्थात फ्रांस, जर्मनी, रूस, बेल्जियम, स्पेन, हालैण्ड आदि ने अपने-अपने औद्योगिक विकास में सक्रियता दिखायी। फ्रांस, जर्मनी एवं रूस ने काफी तेजी से प्रगति की।

जर्मनी : जर्मनी में औद्योगिक क्रांति सन् 1870 में उसके एकीकरण के बाद ही वास्तविक रूप में विकसित हुई। 19वीं सदी के मध्य तक तो केवल पर्सिया ही औद्योगिक क्रांति से प्रभावित था। वहाँ मशीनों के प्रयोग से वस्त्र-उद्योग विकसित होने लगा था। सन् 1839 ई. में ब्रिटिश सहायता से जर्मनी में पहली रेल लाईन बिछाई गई। धीरे-धीरे जर्मनी के अनेक क्षेत्रों में कल-कारखाने स्थापित होने लगे। जर्मनी का रूर क्षेत्र लोहा एवं कोयला से भरपूर था। 1870 ई. में जर्मनी इस्पात निर्माण के क्षेत्र में दूसरे स्थान पर था जबकि इंगलैण्ड प्रथम स्थान पर था। एकीकरण के बाद जब जर्मनी में राजनीतिक स्थिरता कायम हुई तब वह पूरी शक्ति के साथ औद्योगिक क्षेत्र में आगे बढ़ने लगा। सन् 1890 ई. के बाद जर्मनी प्रथम श्रेणी का औद्योगिक राष्ट्र बन गया।

फ्रांस : औद्योगिक क्रांति के दिनों में नेपोलियन बोनापार्ट ने फ्रांस की व्यावसायिक एवं आर्थिक उन्नति के लिये प्रयास किया। उसके द्वारा तकनीकी स्कूल खोले गए एवं उत्पादन वृद्धि के लिये सरकारी सहायता प्रदान की गई। किन्तु कोयले की कमी के कारण तथा उद्योग-धंधे लगाने में संपन्न वर्ग द्वारा रुचि न लेने के कारण इसमें प्रगति नहीं हो पाई। फ्रांस की औद्योगिक प्रगति 1848 ई. के बाद ही दिखाई पड़ी। फ्रांस में यद्यपि लुई फिलिप ने पूंजीपतियों को कारखाने खोलने के लिये प्रोत्साहित किया किन्तु सच्ची क्रांति नेपोलियन तृतीय के शासनकाल में हुई। नेपोलियन तृतीय द्वारा रेल मार्ग का निर्माण करके देश के विभिन्न भागों को रेलमार्ग से जोड़ दिया गया।

उसके शासनकाल में फ्रांस ने लौह-इस्पात तथा ताम्र उद्योग में पर्याप्त उन्नति की। अंग्रेज विशेषज्ञों की सहायता से फ्रांस दिन-प्रतिदिन तरक्की करने लगा। नेपोलियन तृतीय ने मजदूरों की भलाई के लिये कई कल्मणमूलक कार्य किये। बैंक आफफ फ्रांस की अनेक शाखाएँ खोली गयीं। इस तरह उद्योग-धंधों के लिये ऋण की सुविधा दी जाने लगी। फ्रांस की औद्योगिक प्रगति में तेजी 19 वीं सदी के मध्य में ही आ पाई जब उत्तर-पूर्वी फ्रांस में कोयले का भारी उत्पादन आरंभ हुआ। साबुन, तेल, कागज, शराब, शीशा, घड़ी आदि के उद्योग भी विकसित होने लगे। 1870 ई. तक फ्रांस इंगलैण्ड के बाद दूसरा प्रमुख औद्योगिक देश बन गया।

रूस : रूस में लोहे का उत्पादन इंगलेण्ड और फ्रांस से अधिक तथा जर्मनी से दुगुना था। सन् 1805 ई. में वहाँ बिटेन से अधिक लोहा निकाला जाता था किन्तु 1815 ई. से 1854 ई. के मध्य रूस का आर्थिक जीवन प्राचीन ढंग का था। आर्थिक अभाव एवं स्वतंत्र मजदूरों की कमी के कारण उसका औद्योगिक विकास विलंब से हुआ।1861 ई. में रूस में कृषि भूमिदासों को आजादी मिली और विदेशों से पूंजी भी मिलने लगी। इसके बाद ही वहाँ उद्योग का तेजी से विकास हुआ। 1843 ई. में रूस की सरकार द्वारा पारस्य से लेकर पोलिश-ऑस्ट्रियन सीमा तक रेल लाइन बिछाई गई। 1857 ई. में मास्को से पीट्सबर्ग तक एक अन्य रेल लाईन निर्मित हुई तथा 1861 ई. तक 1000 मील और 1880 ई. तक 14000 मील (22,400 Km.) तक रेल लाइनें बिछ गई थीं। आरम्भ में बड़े-बड़े कारखाने स्थापित किये गये। वास्तविक प्रगति अलेक्जेण्डर द्वितीय के शासनकाल में हुई। 1914 ई. तक रूसी उद्योगों में दो अरब रुबल से अधिक विदेशी पूंजी लग चुकी थी। रूस में आत्म निर्भरता 1917 ई. के बोल्शेविक क्रांति के बाद ही पैदा हुई।

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