Detailed explanations in West Bengal Board Class 9 History Book Solutions Chapter 3 19वीं सदी का यूरोप राजतांत्रिक एवं राष्ट्रवादी विचारधारा में संघर्ष offer valuable context and analysis.
WBBSE Class 9 History Chapter 3 Question Answer – 19वीं सदी का यूरोप राजतांत्रिक एवं राष्ट्रवादी विचारधारा में संघर्ष
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK
प्रश्न 1.
1815 में इटली के चार देश भक्त का नाम बताएं।
उत्तर :
गैरीबाल्डी, मेजिनी, विक्टर इमानुएल तथा काबूर थे।
प्रश्न 2.
मेटरनिख किसका प्रतीक था ?
उत्तर :
प्रतिक्रियावादी का।
प्रश्न 3.
ऑटोमन साप्राज्य का दूसरा नाम क्या था ?
उत्तर :
उस्मानी साम्राज्य।
प्रश्न 4.
बाइजेर्टाइन का नाम बदल कर तुर्को ने क्या रखा ?
उत्तर :
इस्तानबुल।
प्रश्न 5.
1815 में आस्ट्रिया के प्रधानमंत्री का क्या नाम था ?
उत्तर :
मेटरनिख।
प्रश्न 6.
‘रक्त और लौह’ की नीति किसने दी थी?
उत्तर :
ओटो वॉन बिस्मार्क ने ‘लौह और रक्त’ की नीति दी थी।
प्रश्न 7.
1830 ई० के आन्दोलन के बाद फ्रांस की गद्दी पर कौन बैठा?
उत्तर :
लुई फिलिप।
प्रश्न 8.
नेपोलियन की पराजय में किस प्रधानमंत्री का प्रमुख हाथ था ?
उत्तर :
मेटरनिख।
प्रश्न 9.
मेटरनिख का पूरा नाम क्या था ?
उत्तर :
काउण्ट क्लोमेंस वान मेटरनिख।
प्रश्न 10.
नेपोलियन का पतन कब हुआ था ?
उत्तर :
1815 ई० में।
प्रश्न 11.
स्पेन में किस वंश का शासन था ?
उत्तर :
राजवंश का।
प्रश्न 12.
वियना सम्मेलन ने फ्रांस की गद्दी पर किसे बैठाया ?
उत्तर :
लुई 18 वें को।
प्रश्न 13.
वियना सम्मेलन में वारसा राज्य किसे मिला ?
उत्तर :
रूस को।
प्रश्न 14.
मेटरनिख का जन्म किस नगर में हुआ था ?
उत्तर :
काबलेन्ज नामक नगर में।
प्रश्न 15.
मेटरनिख का विवाह किसके साथ हुआ ?
उत्तर :
आस्ट्रिया के प्रधानमंत्री के पोती के साथ विवाह हुआ था।
प्रश्न 16.
फ्रांस में राजतंत्र को समाप्त करके गणतंत्र की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1848 ई० में।
प्रश्न 17.
तुर्को का कब्जा कब कंस्टेंटाइनेपोल पर हुआ ?
उत्तर :
1453 ई० में।
प्रश्न 18.
इस्ताम्बुल किसकी राजधानी थी ?
उत्तर :
बाइजेन्टाइन
प्रश्न 19.
जर्मनी का एकीकरण कब हुआ ?
उत्तर :
1871 ई० में ।
प्रश्न 20.
हालैण्ड में दास प्रथा का अंत कब हुआ ?
उत्तर :
1814 ई० में।
प्रश्न 21.
मेटरनिख व्यवस्था का जनक कौन था ?
उत्तर :
मेटरनिख।
प्रश्न 22.
मेजिनी कौन था ?
उत्तर :
यंग इटली का संस्थापक।
प्रश्न 23.
कावूर कौन था ?
उत्तर :
कावूर का पूरा नाम केमिल बेंसो कावूर। इटली के राज्य पिडमांट-सर्डिनिया के प्रधानमंत्री एवं इटली के एकीकरण आन्दोलन के एक प्रमुख नेता थे। उनकी यथार्थ नीति के कारण इटली एक हो सका।
प्रश्न 24.
एक राष्ट्रीय राज्य का नाम लिखिए?
उत्तर :
प्रशिया।
प्रश्न 25.
वियना सम्मेलन ने फ्रांस की गद्दी पर किसे बैठाया?
उत्तर :
लुई अठारहवें को फ्रांस का राजा बनाया गया।
प्रश्न 26.
यूरोप का मरीज किस देश को कहा जाता था?
उत्तर :
तुर्की को यूरोप का मरीज कहा जाता था।
प्रश्न 27.
जार अलेक्जेन्डर ॥ क्यों महान है ?
उत्तर :
दास प्रथा का अंत करने के लिए।
प्रश्न 28.
फ्रांस में बुर्बो वंश के बाद कौन वंश आया ?
उत्तर :
ओर्लियन्स वंश।
प्रश्न 29.
जोलवेरिन जर्मनी में कब लागू हुआ था ?
उत्तर :
1834 ई० में।
प्रश्न 30.
लियोपोल्ड कौन था ?
उत्तर :
सेन का प्रिन्स था।
प्रश्न 31.
यूनान कब स्वतंत्र हुआ ?
उत्तर :
1829 ई० में।
प्रश्न 32.
कब और किनके बीच कीमिया का युद्ध हुआ ?
उत्तर :
1834-1856 ई० में तुरस्क, इग्लैण्ड, फ्रांस एवं पिडमांट गुट तथा रूस के बीच क्रीमिया का युद्ध हुआ था।
प्रश्न 33.
जर्मनी एकीकरण में सबसे ज्यादा किसका योगदान था?
उत्तर :
ओटो वॉन बिस्मार्क।
प्रश्न 34.
फ्रांस में औद्योगीकरण का विकास किसके शासन काल में हुआ ?
उत्तर :
लुई फिलिप के शासन काल में।
प्रश्न 35.
“इटली इटली वालों के लिए है” यह नारा किस संस्था का था ?
उत्तर :
यंग इटली का।
प्रश्न 36.
मेजिनी का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
मेजिनी का जन्म 1805 ई० में जेनेवा में हुआ था।
प्रश्न 37.
नेपोलियन ने ‘राइन राज्य संघ’ का निर्माण कब किया था ?
उत्तर :
1806 ई० में।
प्रश्न 38.
प्रेसबर्ग की संधि कब और किसके बीच हुई थी?
उत्तर :
प्रेसबर्ग की संधि 1805 ई० में फ्रांस और आस्ट्रिया के बीच हुई।
प्रश्न 39.
प्रशा में चुंगी सुधार विधान किसने और कब लागू किया ?
उत्तर :
पर्शिया ने 1834 ई० में।
प्रश्न 40.
कीमिया युद्ध कब प्रारम्भ हुआ था ?
उत्तर :
जुलाई 1853 ई० को।
प्रश्न 41.
रूस के इतिहास में मुक्तिदाता किसे कहा जाता है।
उत्तर :
अलेक्जेंडर द्वितीय को।
प्रश्न 42.
सेण्ट साइमन की योजना क्या थी ?
उत्तर :
सेष्ट साइमन की योजना थी कि सरकार उत्पादन के साधनों पर अधिकार कर ले।
प्रश्न 43.
इटली केवल “भौगोलिक अभिव्यक्ति मात्र है” यह कथन किसने और कब कहा था ?
उत्तर :
मेटरनिख ने 1815 ई० में कहा था।
प्रश्न 44.
1830 ई० की इटली क्रान्ति में गुप्त समितियों में मुख्य भूमिका किसकी थी ?
उत्तर :
कार्बोनारी नामक गुप्त संस्था की।
प्रश्न 45.
‘ईश्वर और जनता’ किस संस्था का नारा था।
उत्तर :
यंग इटली संस्था का।
प्रश्न 46.
जर्मनी के एकीकरण का नायक कौन था ?
उत्तर :
बिस्मार्क।
प्रश्न 47.
‘लौह और रक्त’ की नीति किसने अपनायी ?
उत्तर :
बिस्मार्क।
प्रश्न 48.
गैरीबाल्डीं कौन था ?
उत्तर :
‘लाल कुर्ता’ दल का संस्थापक।
प्रश्न 49.
जोलबेरिन से क्या समझते हो ?’
उत्तर :
चुंगी संघ।
प्रश्न 50.
किसे ‘यूरोप का बीमार राष्ट्र’ कहा जाता है ?
उत्तर :
तुर्की।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS
प्रश्न 1.
प्रो. हेज के अनुसार राष्ट्रीयतावाद की परिभाषा लिखें ?
उत्तर :
मो॰ हेज ने राष्ट्रीयतावाद की परिभाषा देते हुए लिखा था, “राष्ट्रीयता राष्ट्रीय राज्य तथा राष्ट्रीय देशभक्ति का एक अद्भुत समन्वय है।” कहने का तात्पर्य यह है कि राष्ट्रीयतावाद एक जाति अथवा समुदाय के लोगों को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना सिखलाती है तथा किसी विदेशी अथवा बाह्य आक्रमण के विरुद्ध अपने अधिकारों और स्वतंत्रता को सुरक्षित बनाये रखने के लिये नागरिकों का आह्नान करती है।
प्रश्न 2.
बाल्कन समस्या से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
उन्नसवीं सदी के प्रारम्भ में यूरोप के पूर्वी भाग में स्थित बाल्कन क्षेत्र एशिया के आटोमन तुर्की शासकों के अधीन था। तुर्की की कमजोरी का लाभ उठाकर रूस बाल्कन क्षेत्र में हस्तक्षेप करने लगा। दूसरी तरफ अंग्रेज और फ्रांसीसी बाल्कन क्षेत्र में रूस के हस्तक्षेप का विरोध करने को आगे आये। बाल्कन क्षेत्र में रूस के हस्तक्षेप के कारण रूस और तुर्की के बीच क्रिमिया का युद्ध (1854-56 ई०) शुरू हुआ। युद्ध में इंग्लैण्ड और फ्रांस ने टर्की का साथ दिया। अत: युद्ध में रूस की पराजय हुई।
प्रश्न 3.
1830 ई० में पोलिग्नेक का नाम क्यों आता है ?
उत्तर :
विलेले तथा मार्टिनाक के बाद पोलिग्नाक (Polignac) फ्रांस का प्रधानमंत्री बना। वह सांविधानिक शासन का शत्रु एवं निरकुश राजतंत्र का समर्थक था। उसकी राय से सम्राट चार्ल्स दशम ने 26 जुलाई, 1830 ई० को चार अध्यादेशों की घोषणा की, जिनके द्वारा – प्रेस की स्वतंत्रता समाप्त हो गई, प्रतिनिधि सभा भंग हो गई, निर्वाचन तथा मताधिकार का रूप बदल गया, निर्वाचन की तिथि सितम्बर में घोषित की गई। ये अष्यादेश “अधिकार-पत्र” विरोषी थे। अतः जनता भड़क गई।
प्रश्न 4.
विएना कांग्रेस में भाग लेने वाले प्रमुख देश और उनके प्रतिनिधि का नाम लिखें?
उत्तर :
इस सम्मेलन में यूरोप के कई छोटे-छोटे देश शामिल हुए किन्तु नीति निर्माण के संबंध में चार मुख्य देशों के प्रतिनिधियों की भूमिका महत्वपूर्ण रही। ये नेता थे- आस्ट्रिया का चांसलर मेटरनिक, रूस का जार एलेक्जेंडर, इग्लैंड का विदेश मंत्री लॉर्ड कैसलरे तथा फ्रांसीसी विदेश मंत्री तैलरा।
प्रश्न 5.
क्रीमिया का युद्ध क्यों हुआ था ?
उत्तर :
क्रीमिया का युद्ध के कारण :
- टर्की के सुल्तान की अयोग्यता
- जार निकोलस प्रथम का स्वार्थ
- नेपोलियन तृतीय की महत्वाकांका
- फ्रांस और इंग्लैण्ड की मित्रता
- रूस द्वारा मोल्डाविया व वेलेशिया पर अधिकार।
प्रश्न 6.
मेटरनिख कब भाग गया और क्यों ?
उत्तर :
आस्ट्रिया की जनता मेटरनिख के प्रतिक्रियावादी शासन से ऊब चुकी थी। 1848 ई० की क्रांति ने उनमें उत्साह की नयी लहर उत्पत्न की। तथा 13 मार्च, 1848 ई० को उन्होंने मेटरनिख तथा सम्माट के महलों को घेर लिया। मेटरनिख त्यागपत्र देकर आस्ट्रिया छोड़कर. भागने पर विवश हुआ।
प्रश्न 7.
1815 ई० से 1848 ई० तक के काल को मेटरनिख युग क्यों कहा गया ?
उत्तर :
नेपोलियन के पतन के उपरान्त गूरोप में एक महान राजनीतिज़ का आविर्भाव हुआ, जिसका नाम मैटरनिख था। मैटरनिख लगभग 33 वर्षों तक यूरोप की राजनीति पर छाया रहा, इसी कारण 1815 ई० से 1848 ई० के समय को ‘मैटरनिख का युग’ कहा जाता है।
प्रश्न 8.
राष्ट्रवाद से क्या समझते हो ?
उत्तर :
राष्ट्रवाद एकता के बंधन में बंधे लोगों का एक समूह है जो प्रभुसत्ता सम्पन्न करता है एवं विदेशी अधीनता से स्वाधीन होने के लिए संघर्ष कर रहा है।
प्रश्न 9.
राष्ट्रीय राज्य किसे कहते हैं ?
उत्तर :
ऐसा प्रदेश जो राष्ट्रीयता की दृष्टि से टुकड़ों में विभाजित थे तथा जिनपर अन्य राष्ट्रों का आधिपत्य स्थापित था वह राष्ट्रीय राज्य कहलाता है।
प्रश्न 10.
वियना सम्मेलन का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :
वियना सम्मेलन का उद्देश्य था – यूरोप के राजनैतिक ढाँचे को ठीक करना, नेपोलियन द्वारा प्रताड़ित राजवंशों की पुन:प्रतिष्ठा, फ्रांस को भविष्य में शक्ति वृद्धि से रोकना, नेपोलियन के विरुद्ध हुए युद्धों में क्षतिग्रस्त देशों के लिए क्षतिपूर्ति की व्यवस्था करना तथा यूरोप में शक्ति-साम्य को प्रतिष्ठित करना आदि।
प्रश्न 11.
फ्रांस की क्रान्ति कब हुई थी तथा उसका विचार क्या था ?
उत्तर :
1848 ई० में फ्रांस में क्रान्ति हुई। उसका विचार सुधारों के उत्सव थे।
प्रश्न 12.
रूस की क्रान्ति कब हुई थी और उसमें किसको हटा दिया गया था ?
उत्तर :
फरवरी 1917 ई० से नवम्बर 1917 ई० के बीच जारशाही के शासक निकोलस द्वितीय को हटा दिया गया था।
प्रश्न 13.
वियना सम्मेलन कब हुआ था और क्यों हुआ था ?
उत्तर :
वियना सम्मेलन 1815 ई० में ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में बुलाया गया था।
प्रश्न 14.
वियनासंधि की दो शर्त लिखें ?
उत्तर :
वियना कांग्रेस की प्रधान नीतियाँ थीं –
- न्यायोचित राजवंश का सिद्धान्त।
- शक्ति सन्तुलन का सिद्धान्त।
- पुरस्कार एवं दग्ड का सिद्धान्त।
प्रश्न 15.
विएना कांग्रेस के सम्मुख प्रमुख समस्याएँ क्या थी ?
उत्तर :
विएना कांग्रेस के सम्मुख प्रमुख समस्याएँ :
- शान्ति की स्थापना
- पराजित राजाओं को दण्डित करना
- यूरोप का पुनर्निर्माण
- फ्रांस की शक्ति पर अंकुश लगाना
- चर्च की समस्या
- क्रांति की समस्या तथा
- विजित प्रदेशों का बटवारा आदि।
प्रश्न 16.
चार्ल्स दशम् की प्रतिक्रियावादी नीति क्या थी ?
उत्तर :
चार्ल्स दशम घोर प्रतिक्रियावादी था। उनकी प्रतिक्रियावादी नीति थी : चार्ल्स द्वारा चर्च की प्रधानता, क्रान्ति के सिद्धान्तों तथा मान्यताओं की अवहेलना, राष्ट्रीय धन का अपव्यय, उदारवादियों का प्रभाव।
प्रश्न 17.
वियना सम्मेलन में भाग लेनेवाले कौन थे ?
उत्तर :
वियना सम्मेलन में भाग लेनेवाले थे – ऑस्ट्रिया के प्रधानमंत्री मेटरनिख, रूस का जार प्रथम अलेक्जेण्डर, ब्रिटिश विदेशमंत्री कासालरी एवं फ्रांस के प्रतिनिधि तिलेराँ। मेटरनिख वियना सम्मेलन के सभापति थे।
प्रश्न 18.
मेटरनिख युग से क्या समझते हो ?
उत्तर :
1815 ई० से 1848 ई० तक यूरोपीय राजनीति के प्रमुख नियंत्रक ऑंस्ट्रिया के प्रधानमंत्री प्रिन्स मेटरनिख थे। इस अवधि में यूरोप के अधिकांश शासक मेटरानि के आदर्श से प्रभावित होकर अपना-अपना शासनकार्य संचालित करते थे। इस समयकाल को मेटरनिख युग के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 19.
चार्ल्स दशम् का सेण्ट क्लाउड का अध्यादेश क्या था ?
उत्तर :
1830 की फांसीसी क्रान्ति का तात्कालिक कारण चार्ल्स के सेण्ट क्लाउड के अध्यादेश थे। चार्ल्स दशम् ने अपने विरोधियों के प्रभाव को नष्ट करने के उद्देश्य से अध्यादेश जारी किया जिसके द्वारा चार दमनकारी कानून लागू किए गए।
प्रश्न 20.
चार्ल्स दशम् ने सिंहासन परित्याग तथा फ्रांस से पलायन क्यों किया ?
उत्तर :
जब वार्ल्स की सैन्य शक्ति क्रान्तिकारियों के सामने पराजित हो गयी तो उसने क्रान्तिकारियों से समझौता करना चाहा लेकिन वह अपनी इस कूटनीतिक चाल में असफल रहा। अन्त में 31 जुलाई को चार्ल्स दशम अपने 10 वर्षीय पौत्र काउण्ट ऑफ चेम्बोर्ड के पक्ष में सिंहासन का परित्याग कर स्वयं इंग्लैण्ड भाग गया।
प्रश्न 21.
यूरोपीय कन्सर्ट किसने और कब बनाया था ?
उत्तर :
रूस ने नवम्बर 1815 ई० में एक चतुर्मुखी संधि की जो यूरोपीय कन्सर्ट के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 22.
लाफायते कौन था ?
उत्तर :
लाफायते फ्रांसीसी सेना का सेनापति था।
प्रश्न 23.
यंग इटली की स्थापना किसने की और क्यों ?
उत्तर :
यंग इटली की स्थापना जोसेफ मैजिनी ने की। इसका उद्देश्य था विदेशी आधिपत्य समाप्त करना एवं संयुक्त गणतंत्र स्थापित करना।
प्रश्न 24.
विस्मार्क कहाँ का चांसलर और उसने क्या किया ?
उत्तर :
विस्मार्क प्रशा का चांसलर (म्रधानमंत्री) 1862 ई० में सम्माट के द्वारा नियुक्त किया गया तथा उसने राजतंत्र के माध्यम से ही जर्मनी की राष्ट्रीयता को एकसूत्र में बाँधे रखने का प्रयास किया।
प्रश्न 25.
तुर्की साप्राज्य का दूसरा नाम क्या है तथा इसकी राजधानी कहाँ थी ?
उत्तर :
तुर्की साम्राज्य का दूसरा नाम उस्माती तथा इसकी राजधानी इस्तांबुल में थी।
प्रश्न 26.
लुई फिलिप की निषेधात्मक नीति क्या थी ?
उत्तर :
1848 ई० की क्रान्ति का प्रमुख कारण लुई फिलिप की निषेधात्मक नीति थीं। वह किसी प्रकार का सुधार या परिवर्तन करने को तैयार नहीं था। फ्रांस में अनेक वर्ग थे जो सुधार चाहते थे और शासन को लोकतंत्रात्मक बनाना चाहते थे, उन्हें घोर निराशा हुई। उन्हें स्पष्ट हो गया कि केवल क्रान्ति द्वारा ही सुधार किया जा सकता था। फरवरी, 1848 ई० में इन सुधारवादियों ने ही सुधार उत्सवों का आयोजन किया था।
प्रश्न 27.
गीजो कौन था ? उसकी अनुदार नीति क्या थी ?
उत्तर :
प्रधानमंत्री गीजो की अनुदार नीति के कारण जनता के असंतोष वृद्धि हुई। गीजो भी राजा लुई फिलिप के समान विश्वास रखता था कि स्वर्णिम मध्यम मार्ग सर्वश्रेष्ठ था और संविधान तथा प्रशासन में किसी प्रकार के सुधार या परिर्वतन की आवश्यकता नहीं थी।
प्रश्न 28.
बाल्कन-लीग का निर्माण क्यों किया गया ?
उत्तर :
तुर्की को यूरोप से निकालने तथा ईसाई जनता को उसके अत्याचारों से मुक्त करने के लिए सर्बिया, बुल्गारिया और ग्रीस ने बाल्कन-लीग का निर्माण किया था।
प्रश्न 29.
सिबास्टपोल का घेरा क्या था ?
उत्तर :
यद्यपि रूस ने मोल्डाविया एवं वेलेशिया खाली कर दिए तथापि मित्र-राष्ट्र रूस की शुक्ति कुचलना चाहते थे और रूस के सैनिक अड्डे सिबोस्टपोल को अपने अधिकार में लेना चाहा। रूस की सेना ने आल्मा में मित्र-राष्ट्रों की सेना का सामना किया, भयानक युद्ध के पश्चात् रूसी सेना पीछे हट गई। मित्र-राष्ट्रों की सेनाओं ने सिबास्टपोल को 11 महीनों तक घेरे रखा।
प्रश्न 30.
किसको और क्यों ‘मुक्तिदाता जार’ कहा जाता है ?
उत्तर :
रूस जार द्वितीय अलेक्जेण्डर को ‘मुक्तिदाता जार’ कहा जाता है क्योंकि उन्होंने 1861 ई० में एक कानून के द्वारा रूस के भूमिदासों को मुक्त कर दिया था।
प्रश्न 31.
काउण्ट काबूर कौन थे ?
उत्तर :
काउण्ट कैमिलो द काबूर इटली के राज्य पिडमांट सर्डिनिया के प्रधानमंत्री एवं इटली के एकीकरण आन्दोलन के एक प्रमुख नेता थे। उनकी यथार्थ नीति के कारण इटली एक हो सका।
प्रश्न 32.
वियना सम्मेलन की प्रमुख नीतियाँ कितनी एवं क्या-क्या थीं ?
उत्तर :
वियना सम्मेलन की प्रमुख तीन नीतियाँ थीं –
(i) न्याय अधिकार नीति
(ii) क्षतिपूर्ति नीति एवं
(iii) शक्ति-साम्य नीति।
प्रश्न 33.
वियना सम्मेलन की न्याय अधिकार नीति द्वारा क्या-क्या पदक्षेप लिया गया ?
उत्तर :
वियना सम्मेलन की न्याय अधिकार नीति द्वारा फ्रांसीसी क्रांति के पहले के राजा एवं राजवंश को अपने-अपने देश में पुन: प्रतिष्ठित किया गया। इस नीति के द्वारा फ्रांस के सिंहासन पर वुर्वो वंश को पुन: प्रतिष्ठित किया गया एवं फ्रांस को क्रांति के पहले की राज्य सीमा लौटा दी गई।
प्रश्न 34.
वियना सम्मेलन की शक्ति-साम्य नीति द्वारा फ्रांस के चारों ओर किन देशों द्वारा घेरा डाला गया ?
उत्तर :
वियना सम्मेलन की शक्ति साम्य नीति द्वारा फ्रांस के उत्तर-पूर्व सीमान्त में लक्सेमवर्ग एवं बेल्जियम को हालैण्ड के साथ, पूर्व सीमान्त में राइन जिलों को पर्शिया के साथ, दक्षिण-पूर्व सीमान्त में कुछ जिलों को स्विद्जरलैण्ड के साथ एवं दक्षिणी सीमान्त के सेवाम एवं जेनेवा को पिडमांट के साथ जोड़कर फ्रांस को शक्तिशाली देशों द्वारा घेर लिया गया।
प्रश्न 35.
वियना सम्मेलन की दो प्रमुख त्रुटियों का उल्लेख करो।
उत्तर :
वियना सम्मेलन की दो प्रधान त्रुटियाँ थीं – सम्मेलन के नेतागण आधुनिक गणतन्त्र एवं राष्ट्रवाद को महत्व नहीं दिये तथा इस सम्मेलन की नीतियाँ स्थायी नहीं थीं।
प्रश्न 36.
वियना सम्मेलन के दो महत्वपूर्ण बिन्दुओं का उल्लेख करो।
अथवा
वियना सम्मेलन के पक्ष में दो तर्क लिखो।
उत्तर :
वियना सम्मेलन के दो महत्वपूर्ण बिन्दु थे – यह व्यवस्था यूट्रेक्टे की संधि (1713 ई०) या वर्साय संधि (1919 ई०) की अपेक्षा लचीली थी। यह व्यवस्था यूरोप में कम-से-कम 40 वर्ष के लिये शान्ति स्थापना करने में सक्षम हुई थी।
प्रश्न 37.
ऑस्ट्रिया में मेटरनिख की दो दमनकारी नीतियों का उदाहरण दो।
उत्तर :
ऑस्ट्रिया में मेटरनिख –
(i) विश्वविद्यालय के उदारपंथी छात्र एवं शिक्षकों को जेल में डाल दिया गया
(ii) इतिहास, राजनीतिशास्त्र एवं दर्शन के पठन-पाठन को बंद कर दिया गया।
प्रश्न 38.
जर्मनी में मेटरनिख की दो दमनकारी नीतियों के उदाहरण दो।
उत्तर :
मेटरनिख ने ‘कार्ल्सबाड डिक्री’ (1819 ई०) जारी करके – जर्मनी में राजनैतिक दलों पर पाबंदी लगा दी एवं उदारपंथी अध्यापकों को निष्कासित कर दिया।
प्रश्न 39.
यूरोपीय शक्ति-समिति क्या है ?
उत्तर :
वियना सम्मेलन (1815 ई०) के बाद यूरोप में शान्ति को बहाल रखना, वियना सम्मेलन के सिद्धान्तों को प्रभावी बनाना, फ्रांस की शक्ति वृद्धि को रोकना आदि उद्देश्यों को लेकर यूरोप में एक विशाल शक्तिशाली अन्तर्राष्ट्रीय संगठन बनाया। यह यूरोपीय शक्ति-समिति के नाम से परिचित है।
प्रश्न 40.
यूरोपीय शक्ति-संगठन का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :
यूरोपीय शक्ति-संग़ठ का उद्देश्य था –
(i) फ्रांसीसी क्रांति के प्रभाव को दूर करना
(ii) यूरोप में शान्ति-शृंखला की बहाली
(iii) वियना सम्मेलन के सिद्धान्तों को लागू करना एवं
(iv) शक्ति-संगठन के सदस्य-देशों में सुसम्बन्ध स्थापित करना।
प्रश्न 41.
ट्रपो की घोषणापत्र (1820 ई०) के अनुसार कौन-कौन पदक्षेप लिये गये ?
उत्तर :
ट्रपो की घोषणापत्र के अनुसार शक्तिसंगठन –
(i) इटली के नेपल्स एवं सिसिली का विद्रोह दमन किया
(ii) स्पेन के उदारवादी आन्दोलन को दमन किया
(iii) जुलाई क्रांति (1830 ई०) के समय पार्मा, मडेना एवं पोप के राज्य के विद्रोह को दमन किया।
प्रश्न 42.
मेटरनिखवाद के पक्ष में दो तर्क प्रस्तुत करो।
Ans.
मेटरनिखवाद के पक्ष में दो तर्क हैं –
(i) मेटरनिखतन्त्र क्रांति से क्षतिग्रस्त यूरोप में कम-से-कम 20 साल के लिये शान्ति प्रतिष्ठा बहाल रखने में सक्षम हुआ,
(ii) अपने राष्ट्र आंस्ट्रिया में ऐक्य एवं शान्तिरक्षा के लिये मेटरनिख की रक्षणवाही नीति विशेष आवश्यक थी।
प्रश्न 43.
मेटरनिखतन्त्र के विपक्ष में दो तर्क दो।
Ans.
मेटरनिखतन्त्र के विपक्ष में दो तर्क हैं –
मेटरनिखतन्त्र संकीर्ण एवं प्रगति-विरोधी विचारधारा थी। मेटरनिखतन्त्र स्थायी नहीं हो सका।
प्रश्न 44.
जुलाई आर्डिनेन्स क्या है ?
उत्तर :
फ्रांसीसी सम्राट चार्ल्स दशम ने आर्डिनेन्स ऑफ सेंट क्लाड नाम का एक आर्डिनेन्स (25 जुलाई, 1830 ई०) जारी किये जो जुलाई आर्डिनेन्स के नाम से जाना जाता है। इसके द्वारा विधान परिषद भंग कर दी गयी, समाचारपत्रों की स्वाधीनता पर पाबंदी लगा दी गयी, बुर्जुआ श्रेणी का मताधिकार समाप्त कर दिया गया और 1814 ई० का सनद रद्द कर दिया गया।
प्रश्न 45.
फ्रांस के भीतर जुलाई कांति के दो प्रभावों का उल्लेख करो।
उत्तर :
फ्रांस के भीतर जुलाई क्रांति के दो उल्लेखनीय प्रभाव हैं –
(i) जुलाई क्रांति के जरिये चार्ल्स दशम के स्वेच्छाचारी शासन को समाप्त कर नियमतान्त्रिक राजतन्त्र की स्थापना हुई।
(ii) क्रांतिकारी अर्लियं वंशीय लुई फिलिप को सिंहासन पर बैठाने से वियना सम्मेलन की न्याय अधिकार नीति व्यर्थ प्रमाणित हुई।
प्रश्न 46.
फ्रांस के बाहर जुलाई क्रांति के दो प्रभावों का उल्लेख करो।
उत्तर :
फ्रांस के बाहर जुलाई क्रांति के दो महत्वपूर्ण प्रभाव हैं –
(i) हालैण्ड की पराधीनता अस्वीकार करके बेल्जियम स्वाधीन हुआ
(ii) जुलाई क्रांति के प्रभाव से इंग्लैण्ड में चार्टिस्ट आन्दोलन आरंभ हुआ।
प्रश्न 47.
जुलाई क्रांति के दो कारणों का उल्लेख करो।
उत्तर :
जुलाई क्रांति के दो कारण थे –
(i) राजा चार्ल्स दशम के फ्रांस में चरम स्वैरतन्त्र, कुलीनवाद एवं कैंथोलिक गिरजा की प्रधानता प्रतिष्ठित करने की चेष्टा एवं
(ii) चार स्वैराचारी आर्डिनेन्स (25 जुलाई, 1830 ई०) जारी करके जनगण के अधिकारों को छीन लेने की कोशिश।
प्रश्न 48.
लुई फिलिप के राजतन्त्र को जुलाई-राजतन्त्र क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
फांस में जुलाई क्रांति (1830 ई०) के फलस्वरूप वुर्वो वंशीय चार्ल्स दशम का पतन हुआ एवं अलिए वंशीय लुई फिलय फ्रांस की गद्दी पर बैठा। जुलाई क्रांति के द्वारा लुई फिलिप का राजतन्त्र प्रतिष्ठित होने पर उसका शासनकाल (1830 – 1848 ई०) जुलाई-राजतन्त्र के नाम से परिचित है।
प्रश्न 49.
फरवरी क्रांति के दो कारणों का उल्लेख करो।
उत्तर :
फरवरी क्रांति के दो कारण थे –
(i) सम्माट लुई फिलिप की दुर्बल विदेश नीति से जनता क्षुब्ध थी।
(ii) लुई फिलिप के शासनकाल में श्रमिकों की हालत बहुत दयनीय थी।
प्रश्न 50.
फ्रांस के भीतर फरवरी क्रांति के दो प्रभाव का उल्लेख करो।
उत्तर :
फ्रांस के भीतर फरवरी क्रांति के दो प्रभाव हैं –
(i) फरवरी क्रांति के बाद फ्रांस में प्रजातन्त्र की स्थापना हुई।
(ii) फ्रांस में मताधिकार लागू हुआ।
संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 4 MARKS
प्रश्न 1.
राष्ट्रवाद की अवधारणा क्या थी ?
उत्तर :
सामान्यत: राष्ट्रीयवाद का अर्थ राष्ट्रीय स्वाभिमान, शक्ति तथा प्रतिष्ठा से लिया जाता है। यह एक तत्व नहीं है अपितु तत्वों का सम्मिश्रण है। प्रो० हेज ने राष्ट्रीयतावाद की परिभाषा देते हुए लिखा था, ‘ ‘राष्ट्रीयता राष्ट्रीय राज्य तथा राष्ट्रीय देशभक्ति का एक अद्भुत समन्वय है।” इसे एक मनोवैज्ञानिक धारणा भी कहा जा सकता है जो एक जाति अथवा समुदाय को लोगों को अपने अधिकारों के प्रति सज़ रहना सिखलाती है तथा किसी विदेशी अथवा बाह्य आक्रमण के विरुद्ध अपने अधिकारों और स्वतंत्रता को सुरक्षित बनाये रखने के लिये नागरिको का आह्नान करती है। राष्ट्रीयतावाद का उद्गम राष्ट्रीयवाद की भावना से हुआ है और एक राष्ट्रीय समुदाय के साथ प्रेम होने पर इसका विकास होता है। इस प्रकार राष्ट्रीयतावाद केवल एक कोरी राजनीतिक कल्पना नहीं है यद्यपि राजनीतिक आकांक्षाएँ इसको विकसित करती हैं और सांस्कृतिक तथा आर्थिक वाँछनाएँ इसका पोषण करती हैं।
प्रश्न 2.
वियना सम्मेलन क्या था? वियना संधि के अनुसार मानचित्र में क्या परिवर्तन आया ?
अथवा
विएना सम्मेलन का मूल्यांकन करें।
उत्तर :
नेपोलियन ने अपनी विजयों के द्वारा यूरोप के मानचित्र में जो परिवर्तन कर दिया था, उसका पुनर्निर्माण करने के लिए आस्ट्रिया की राजधानी विएना में यूरोप के प्रमुख राजनीतिक एकत्र हुए। इस सम्मेलन को विएना कांग्रेस या विएना सम्मेलन कहा जाता है। इस सम्मेलन के लिए विएना को चुनने का कारण यह था कि यह महाद्वीप के मध्य में था। इसके अतिरिक्त यह नेपोलियन के युद्धों का केन्द्र रहा था तथा नेपोलियन की पराजय में आस्ट्रिया के प्रधानमंत्री मेटरनिख का प्रमुख हाथ रहा था। विएना कांग्रस में कुल 90 बड़े महांराजा तथा 63 राजा या उनके प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। यूरोप के इतिहास में पहली बार इतना विशाल सम्मेलन का आयोजन हुआ। यद्यपि विएना सम्मेलन में विशाल संख्या में प्रतिनिधियों ने भाग लिया था, किन्तु चार महाशक्तियों (इंग्लैण्ड, रूस, आस्ट्रिया व प्रशा) को इसमें विशेष स्थान प्राप्त था तथा इस कांग्रेस के निर्णय भी मुख्यतया इनके प्रतिनिधियों द्वारा ही निर्धारित किए गए थे।
प्रश्न 3.
जुलाई क्रान्ति की घटनाएँ क्या थीं ?
उत्तर :
जुलाई क्रांति :- फ्रांस का तुर्वो वंशीय राजा चार्ल्स दशम के शासनकाल में 1830 ई. फ्रांस में जुलाई क्रांति फैल गयी।
कारण :- दशम चार्ल्स के प्रधानमंत्री पलिपनैक 26 जुलाई को चार स्वेराचारी आडिनेन्स जारी करके, जनगण का अधिकार छीन लेने के फलस्वरूप जुलाई क्रांति शुरू हो गयी।
चार्ल्स दशम का पतन : विद्रोहियों ने फ्रांस के पेरिस शहर को दखल कर लिया एवं 30 जुलाई चार्ल्स दशम को सिंहासन से हटाकर लुई फिलिप को राजा के रूप में घोषित किया।
प्रभाव : जुलाई क्रांति का प्रभाव वेल्जियम, जर्मनी, इटली, पोलैण्ड, इंगलैण्ड, स्पेन, पुर्तगाल आदि देशों में फैल गया।
प्रश्न 4.
नेपिल्स और सार्डीनिया में विद्रोह का वर्णन करें।
उत्तर :
1820-21 ई० में इस संस्था ने स्पेन के विद्रोह की प्रेरणा से नेपिल्स और पीडमाण्ड में विद्रोह किया। नेपिल्स के राजा फर्डीनिन्ड ने क्रान्तिकारियों की माँग पर संविधान प्रदान कर दिया, लेकिन उसने आस्ट्रिया से भी सहायता माँगी। मेटरनिख आस्ट्रिया की सुरक्षा के लिए इटली में क्रान्तिकारी आन्दोलन का दमन करना आवश्यक मानता था। अत: आस्ट्रियन सेना ने नेपिल्स के विद्रोह को कुचल दिया और राजा की निरकुश सत्ता स्थापित कर दी। इसके बाद ही पीडमाण्ड में विद्रोह हुआ और यहाँ भी आस्ट्रिया की सेना के दमन का कार्य किया। 1830 ई० में परमा, मोडेना और पोर के राज्य में विद्रोह हुए। इन विद्रोहों में कारबोनारी का हाथ था। इस बार भी आस्ट्रिया ने सेना भेज कर इन विद्रोहों को कुचल दिया।
प्रश्न 5.
रिसर्जिमेंटो के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर :
इटली का एकीकरण : फ्रांसीसी क्रान्ति से पहले इटली अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था।
आन्दोलन की शुरुआत : विदेशी शासकों को बाहर कर इटली के एकीकरण का मांग आन्दोलन पिडमांट सर्डिनिया के नेतृत्व में शुरू हुआ। 19 वी सदी के प्रथम भाग में ‘कार्बोनरी’ नामक गुप्त समिति का गठन हुआ और रिसर्जिमेण्टो या नवजागरण आन्दोलन शुरु हुआ।
नेतृत्व : इटली के एकीकरण के नेता थे – मैत्सिनी, कैबूर और गैरीबाल्डी। मैत्सिनी ने यंग इटली दल द्वारा आन्दोलन चलाया। कैबूर ने कूटनीति और युद्ध द्वारा मिलान, लोम्बार्डी एवं मध्य इटली के कईं स्थानों का एकीकरण किया। गैरीबाल्डी ने सिसिली और नेपल्स पर अधिकार कर उसे इटली के साथ जोड़ दिया। सन् 1870 में रोम के मिल जाने से इटली का एकीकरण पूर्ण हुआ।
प्रश्न 6.
मेटरनिख पद्धति / मेटरनिख व्यवस्था से क्या समझते हो?
उत्तर :
मेटरनिख पद्धति / मेटरनिख व्यवस्था : मेटरनिख जब तक ऑस्ट्रिया के प्रधानमंत्री थे तब तक उन्होंने ऑस्ट्रिया में तथा 1815 ई० से वियना सम्मेलन के सिद्धांत द्वारा अन्य देशों में तीव्र रक्षणशील कदम उठाया। इनका प्रमुख उद्देश्य था।
1. यूरोप में क्रांति के पूर्ववर्ती राजनैतिक व्यवस्था को वापस लाना
2. फ्रांसीसी कांति से उत्पन्न उदारवाद राष्ट्रवाद, गणतंत्र आदि प्रगतिशील चिन्तनधारा की अग्रगति को रोकना
3. ऑंस्ट्रिया की स्वार्थ सिद्धि करना एवं यूरोप में ऑंस्ट्रिया का वर्चस्व कायम करना। इन नीतियों को रूपायित करने के लिये मेटरनिख ने ऑस्ट्रिया तथा यूरोप में जिन दमनकारी नीतियों को चालू किया उसे मेटरनिख पद्धति या मेटरनिख व्यवस्था कहते हैं।
प्रश्न 7.
जुलाई क्रांति (1830 ई.) के विभिन्न कारणों का उल्लेख करो। अथवा, जुलाई क्रांति की घटनाएं क्या थी?
उत्तर :
जुलाई क्रांति के कारण : तीव प्रतिक्रियाशील् चार्ल्स दशम के विरुद्ध 1830 में जुलाई क्रांति हुई। इसक् निम्नलिखित कारण थे :
क्षतिपूर्ति : फ्रांस में क्रांति के समय देशत्यागी कुलीन वर्ग की जमीन को जब्त करके किसानों में बाँट दिया गया था। चार्ल्स दशम ‘एक्ट ऑफ जस्टिस’ नामक एक कानून पास करके उस जब्त जमीन के लिये कुलीनों को क्षतिपूर्ति देने में प्रचुर धन खर्च कर दिये।
मध्यम नीति को रद्द करना : पूर्व सम्राट लुई अठारहवें की मध्यम नीति को रद्द करके चार्ल्स दशम फ्रांस में निरंकुश स्वेच्छाचार, कुलीनतंत्र एवं कैथोलिक गिरजा के वर्चस्व की प्रतिष्ठा एवं समाचार पत्र की स्वाधीनता पर पाबंदी लगा दी। अधिकांश संवाददाताओं को जेल में बंदी बना लिया गया।
धार्मिक कट्टरता : चार्ल्स दशम द्वारा धर्म विरोधी कानून (1827 ई.) पास करके स्कूलों में गिरजा की प्रधानता को प्रतिष्ठित किया गया, गिरजा के खिलाफ समालोचना के अधिकार को छीन लिया गया, जेसूट नामक निर्वासित पादरी सम्रदाय को देश में वापस लाकर उन्हें उच्च पदों पर बैठाया गया।
जुलाई आर्डिनेन्स : चार्ल्स दशम द्वारा जुलाई आर्डिनेन्स (25 जुलाई 1830 ई.) जारी करके निर्वांचित विधान सभा भंग कर दी गई, समाचारा पत्रों की स्वाधीनता छीन ली गई, बुरुआ श्रेणी का मताधिकार समाप्त कर सिर्फ जमीनवालों को वोट देने का अधिकार या गया एवं लुई अठारहवें के समय का सनद खारिज़ कर दिया गया।
इस आर्डिनेन्स की घोषणा के विरुद्ध पूरे फ्रांस में जुलाई विद्रोह की शुरुआत हुई। उस क्रांति के फलस्वरूप चार्ल्स दशम का पतन हुआ एवं अर्लिय वंशीय लुई फिलिप फ्रांस की गद्दी पर बैठे।
प्रश्न 8.
इटली और जर्मनी में मेटरनिख व्यवस्था की क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर :
मेटरनिख को प्रतिक्रियवादी व्यवस्था की स्थापना करके भी संतोष नहीं हुआ। वह इस व्यवस्था को सम्मूर्ण यूरोप विशेषकर इटली और जर्मनी में लागू करना चाहता था, जहाँ क्रांति पूर्व पुरातन व्यवस्था अब भी मौजूद थी। जर्मन उदावादी अपने देश का एकीकरण करना चाहता थे। उनकी गतिविधियों के केन्द्र जर्मनी के विश्वविद्यालय थे, जहाँ वर्शेनसाफटेन के नाम की कई संस्थाएँ उदारवादी विचारों का प्रचार-प्रसार करती थीं। कार्ल्सवाद से कुछ घोषणाएँ निकाल कर उसने उदारवाद के प्रचार पर रोक लगा दी। सभी राष्ट्रवादी संस्थाओं को बन्द कर दिया गया और विश्वविद्यालयों में शिक्षक तथा छात्रों पर कड़ी निगरानी रखी गई।
कुछ इसी तरह की बात इटली के साथ भी हुई। वियना कांग्रेस ने इटली में पुराने स्वतंत्र राज्यों को एक बार फिर स्थापित कर दिया और लोम्बार्डी तथा वेनेशिया को ऑंस्ट्रिया को सुपुर्द कर दिया। मेटरनिख ने प्रारम्भ से ही वहाँ पूर्ण निरकुशता की नीति अपनायी और सभी इटालवी राजाओं को निरकुशता कायम करने के लिए बाध्य किया। प्रतिक्रियावाद के इस गहन अंधकार में भी इटली के राष्ट्रवादी देशभक्त कार्बोनरी नामक संगठन के निर्देशन में विद्रोह करते रहे परन्तु मेटरनिख के दमन चक्र के आगे इनकी एक न चली और इटली प्रतिक्रियावाद के गहन अंधकार में डूब गया।
प्रश्न 9.
वियना सम्मेलन की समस्याएँ क्या थीं ?
उत्तर :
वियना सम्मेलन की समस्याएँ :
- यूरोप का पुनर्गठन : नेपोलियन के चरम साम्राज्यवादी नीति के कारण यूरोप की राजनैतिक ढाँचे में काफी बदलाव आया जिससे उसका पुनर्गठन करना जरूरी था।
- राजवंश की पुन:प्रतिष्ठा : नेपोलियन यूरोप के जिन राजवंशों को गद्दी से हटा दिया था उन्हें फिर से पुन: प्रतिष्ठित करना।
- क्षतिपूर्ति : नेपोलियन के विरुद्ध संग्राम में क्षतिग्रस्त देशों को क्षतिपूर्ति करना।
- शक्ति साम्य : भविष्य में यूरोपीय शक्ति साम्य को बरकरार रखने की व्यवस्था करना।
- फ्रांस का प्रतिरोध : फ्रांस जिससे भविष्य में पुन: शक्तिवृद्धि न कर सके, उसकी व्यवस्था करना।
- समझौते की स्वीकृति : नेपोलियन के विरुद्ध युद्ध के समय विभिन्न देश जो सब गुप्त समझते किये थे उन्हें स्वीकृति देना।
- नयी व्यवस्था : इटली, जर्मनी, पोलैण्ड में नेपोलियन द्वारा जिन संगठनों को बनाया गया था, उन्हें भंग कर नयी व्यवस्था करना।
प्रश्न 10.
मेटरनिख व्यवस्था का पतन किस प्रकार हुआ ?
उत्तर :
नेपोलियन बोनापार्ट के पतनोपरांत यूरोप के राजनीतिक मंच पर सर्वप्रमुख भूमिका का निर्वाह करने वाला मेटरनिख ही था। यूरोप की राजनीति में मेटरनिख 1815 ई० से 1848 ई० तक छायानहा। 33 वर्षों की यह अवधि यूरोप के इतिहास का मेटरनिख युग कहलाया। इतने लंबे समय तक वह यूरोष में होनेवाली घटनाओं का भाग्य-निर्णय करता रहा। नरे यूरोप के निर्माता के रूप में उसका महान सम्मान था, किन्तु उसमें यह दुर्बलता थी कि वह उस युग में पनपती ‘क्रांति’ और “स्वेच्छाचारी शासन” के बीच तालमेल नहीं बैठा सका। 1830 ई० की जुलाई क्रांति हुई और फ्रांस के राजतंत्र का अंत हुआ। 1848 ई० की फ्रांसीसी क्रांति की लहर तो सारे यूरोप पर छा गई। मेटरनिख के भरपूर प्रयास करने पर भी हंगरी, विएना और बोहेमिया में विद्रोह हुए। स्थिति को बिगड़ती देख अस्ट्रियन समाट ने मेटरनिख को पद्च्युत कर दिया।
प्रश्न 11.
ऑटोमन साग्राज्य का संक्षिप्त इतिहास लिखें।
उत्तर :
उस्मान के द्वारा तुर्की साम्राज्य की स्थापना की गयी थी, अतः इसको ‘उस्मानी साप्राज्य या आटोमन साम्राज्य’ भी कहते हैं। तुर्की साम्राज्य एक महत्त्वपूर्ण राज्य था। इस पर आटोमन तुर्की परिवार का शासन था। 1453 ई० में आटोमन तुर्कों ने कंस्टेंटाइनिोोल के बाइजेन्टाईन शहर पर कब्जा कर लिया। 17 वीं शताब्दी तक तुर्की साम्राज्य का विकास हुआ! लेकिन कमजोर शासकों के आने के कारण साम्राज्य का पतन आरम्भ हो गया। इस साप्राज्य ने बाल्कन के बहुत बड़े भाग पर अपना अधिकार जमा लिया, जिस पर भिन्न-भिन्न जातियों के लोग निवास करते थे जो भाषा, रक्त, धर्म आदि में तुर्की से सर्वत्र भिन्न थे।
प्रश्न 12.
मेजिंनी की तरुण इटली संस्था क्या थी? और इसका क्या उद्देश्य था ?
उत्तर :
मेजिनी ने 1831 ई० में फ्रांस में ‘युवा इटली’ नामक एक संस्था की स्थापना की। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य जन साधारण में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार करना था। 18 से 40 वर्ष तक की आयु वाले नवयुवक ही इस संस्था के सदस्य बन सकते थे। इन्होंने जनता में स्वतंत्रता के लिए चेतना जागृत की। इस प्रकार ‘युवा इटली’ संस्था ने समस्त इटली में राष्ट्रीय आन्दोलन का वातावरण बनाया। मेजिनी इटली को एक भौगोलिक चिद्न मात्र नहीं मानता था वरन् एक राष्ट्र के रूप में देखता था। युवा इटली नामक संस्था के सदस्यों के इटली के एक कोने से दूसरे कोने में घूमकर राष्ट्रीय चेतना का प्रचार किया । इस प्रकार इन सदस्यों ने राष्ट्रीय आन्दोलन का वातावरण तैयार कर दिया।
प्रश्न 13.
राष्ट्र राज्य की विचारधारा 19 वीं शताब्दी में यूरोष में किस तरह की थी ?
उत्तर :
नेपोलियन बोनापार्ट ने अपनी नीति और कार्यो के परिणामस्वरूप अनायास ही जर्मनी के राष्ट्रीय एकीकरण की पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी। नेपोलियन ने जर्मनी की शक्ति को नष्ट करने का प्रयास किया, लेकिन उसके इन प्रयासों ने अप्रत्यक्ष रूप से जर्मनी के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त कर दिया। जर्मनी छोटे-बड़े 200 राज्यों में विभक्त था। नेपोलियन ने एक ढीला-ढाला संघ बनाकर 39 राज्यों का संगठन बनाया जिसमें जटिल राजव्यवस्था के नाम पर सरल शासन प्रणाली स्थापित की। नेपोलियन के इस कार्य से जर्मनी में संघीय एकता की भावना उत्पन्न हुई जिसका अन्ततोगत्वा परिणाम यह निकला कि उन राज्यों में स्वतंत्रता की भावना का उद्भव और विकास हुआ। इस प्रकार नेपोलियन के अनजाने में ही जर्मनी की राष्ट्रीय चेतना को ललकारा था।
प्रश्न 14.
इटली में राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रसार कैसे हुआ ?
उत्तर :
इटली का राष्ट्रीय एकीकरण यूरोप के राष्ट्रीय आन्दोलन की महान उप्लख्थि थी। यह घटना विश्व के समस्त राष्ट्रभक्तों केलिए अदम्य प्रेरणा का सोत बन गई थी और विश्व के अन्य राष्ट्रीय आन्दोलनों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा था। इटली का राष्ट्रीय आन्दोलन जनसंघर्ष का एक आश्वर्यजनक उदाहरण था जिसने अर्द्ध-शताब्दी तक यूरोप के इतिहास को प्रभावित किया। यह आन्दोलन इटली की समस्त जनता का संघर्ष था। इसकी सफलता, राष्ट्रवाद, प्रजातंत्र और उदारवाद की विजय थी। इस आन्दोलन में मेजिनी के विचारों ने नैतिक शक्ति प्रदान की और एकीकरण की भावना को यथार्थ रूप दिया। गैरीबाल्डी और उसके स्वय सेवकों ने साहस और बलिदान का आदर्श प्रस्तुत किया और काबुर की कूटनीति ने राष्ट्रीय आकांक्षाओं को सफलता प्रदान की। इटली का एकीकरण एक जनतांत्रिक आन्दोलन था।
प्रश्न 15.
क्रिमिया युद्ध यूरोप के इतिहास में क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर :
अठारहवीं शताब्दी से पूर्व समस्या विकट एवं गम्भीर रूप धारण करने लगी थी। इस समस्या के उत्पन्न होने के तीन प्रमुख कारण थे। पहला कारण, टर्की में घटती हुई शक्ति का होना था, दूसरा कारण बाल्कन प्रदेश में छोटे-छोटे अनेक ईसाई राज्यों की स्थापना हो चुकी थी और तीसरा कारण प्रथम दोनों कारणों का यूरोप की शक्तियों पर प्रभाव पड़ना तथा उसका इस समस्या में भाग लेना था। उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही रूस की आंखें कुस्तुन्तुनियां पर थीं और वह काला सागर के दक्षिणी तट की ओर बढ़ता जा रहा था। 1854 ई० में काफी प्रयत्नों के उपरान्त भी युद्ध को ढाला न जा सका और युद्ध प्रारम्भ हो ही गया, इस युद्ध को क्रिमिया युद्ध के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 16.
यूनान में राष्ट्रवाद के विकास और स्वतंत्रता का इतिहास बताएं।
उत्तर :
यूनान की जनता ने अपने देश को स्वतंत्र करने के लिए विएना कांग्रेस (1815 ई०) के निर्णय के बाद प्रयास किया और स्वांत्य्य आन्दोलन का सूत्रपात किया। उनका आंदोलन कुछ विशेष कारणों से प्रारंभ हुआ। स्वातंत्रता संग्राम का कारण था यूनानियों में अपनी जाति तथा देश के प्राचीन गौरव की चेतना का जागरण और यूनानियों का तुर्की शासन द्वारा किया गया शोषण, शासकों की विमाता नीति। क्रांति की समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व की भावना ने यूनानियों के हुय एवं मस्तिष्क को मथ डाला। राष्ट्रवाद के विकास में यूनान के बौद्धिक लोगों ने भी सहयोग किया। बुद्विज़ीवियों ने राष्ट्रवाद के विकास में आग में घी का काम किया। यूनानियों की साम्राज्य में अच्छी स्थिति भी जागरण का कारण बनी। स्वातंत्रता संग्राम के प्रस्फुटन का अंतिम कारण गुप्त क्रान्तिकारी समितियां थीं, जिनका संगठन राष्ट्रवादी नागरिकों ने कर डाला था।
प्रश्न 17.
यूरोप के पुलिस मैन के रूप में मेटरनिख के योगदान का वर्णन करो। उसके पतन के कारणों का उल्लेख करो।
उत्तर :
आस्ट्रिया का प्रधानमंत्री मेटरनिख अपने युग $(1815-1848)$ का अति प्रभावशाली व्यक्ति था।
1815 ई० से 1848 ई० तक की अवधि इतिहास में “मेटरनिख युग” के नाम से जानी जाती है। मेटरनिख ने समकालीन यूरोप में जिस राजनीतिक पद्धति को जन्म दिया वह ‘ ‘मेटरनिख पद्धति’’ कहलाई।
मेटरनिख अच्छी तरह ज़ानता था कि यदि फ्रांस के क्रांतिकारी आदर्श यूरोप में फैले तो इससे बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा। वियना कांग्रेस के बाद के युग में आस्ट्रिया, पर्शिया और इंग्लैंड के महान राज्यों ने ‘कन्सर्ट ओंफ यूरोप’ नामक संस्था बनाकर यूरोप में यथा स्थिति बनाये रखने की वेष्टा की। उस संस्था ने यूरोपीय राज्यों में प्रजातंत्रीय हरकतों तथा राष्ट्रीय चेतना के जागरण को रोकने का प्रयास किया। मेटरनिख अच्छी तरह जानता था कि यदि इन हरकतों को बढ़ावा मिला तो आस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। अत: मेटरनिख ने ग्रीक-स्वतंत्रता संग्राम(1821-29) के मार्ग में बाधा पहुँचाई। उसने परमा, मोडेना और इटली के ‘पैपल राज्यों (Papal States)” में सेना के बल पर क्रांतिकारी आंदोलनों का दमन कर दिया।
मेटरनिख पद्धति की असफलता : अंततः मेटरनिख की नीति को असफलता का मुँह देखना पड़ा चूँकि प्रगतिशील तत्वों का दमन अधिक समय तक नहीं किया जा सकता है। मेटरनिख पद्धति समय के साथ नहीं चल पा रही थी चूँकि वह किसी भी सामयिक परिवर्तन के विरुद्ध थी। तीस वर्षों तक उसने दमन की नीति का अनुकरण कर प्रगति की राह रोकी, किन्तु उसका ही पतन हो गया। फ्रांस के 1830 ई० और 1848 ई० के क्रांति-आंदोलन से राष्ट्रीयता और प्रजातंत्र का जो ज्वार उठां उसमें मेटरनिख नीति बह गई। मेटरनिख उस ज्वार के आगे असहाय होकर इंग्लैंड भाग गया और वहाँ आश्रय लिया। 19 वीं सदी के इतिहास से जन्मे स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व, प्रजातंत्र तथा राष्ट्रीयता के आदर्शों पर मेटरनिख का कोई दबाव काम नहीं आया और उसका ही पतन हो गया।
प्रश्न 18.
इटली और जर्मनी में राष्ट्रवादी विचारधाराओं की उत्पत्ति किस प्रकार हुई ?
उत्तर :
यूरोप को जो सबसे बड़ी वस्तु नेपोलियन से मिली वह थी – राष्ट्रीयता की भावना। वह पहला व्यक्ति था, जिसने इटली और जर्मनी के राज्यों को भौगोलिक नाम के स्थान पर वास्तविक रूपरेखा प्रदान की, जिससे इटली तथा जर्मनी के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ। इटली पर नेपोलियन का आधिपत्य हो जाने से वहाँ पर एक संगठित एवं एकरूप शासन स्थापित हुआ। इटली ने फ्रांसीसी शासन के अन्तर्गत अत्यधिक प्रगति की। इन सबके परिणामस्वरूप इटली के एकीकरण का मार्ग खुला। नेपोलियन ने जर्मनी के 200 से अधिक स्वतंत्र राज्यों के स्थान पर 39 राज्यों का एक शिथिल संघ स्थापित किया। उसने पवित्र रोमन साप्राज्य को समाप्त कर जर्मनी की जनता को राष्ट्रीयता की भावना से ओत प्रोंत किया। नेपोलियन की साम्राज्यवादी भावना ने स्पेन में राष्ट्रीय भावना को जन्म दिया। यदि वह स्पेन पर आक्रमण नहीं करता, तो वहाँ के बच्चेबच्चे के दिल में राष्ट्रीय भावना प्रबल नहीं होती।
प्रश्न 19.
नेपोलियन के पतन के बाद यूरोप में राजतंत्रीय तथा राष्ट्रवादी विचारों में संघर्ष का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर :
नेपोलियन के पतन के बाद 1815 ई० से 1848 ई० तक का काल प्रतिक्रिया का युग था। इस काल की विशेषता है कि यूरोप के सभी देशों में उदारवादी और रूढ़िवादी दो वर्गों में राष्ट्र का विभाजन हो गया था। रूढ़िवादी वर्ग क्रान्ति के सभी प्रभावों को नष्ट करके राज्य में क्रान्ति-पूर्व की व्यवस्था को सुरक्षित रखना चाहता था। इस वर्ग में राजा, सामन्त वर्ग, पादरी वर्ग था। दूसरा वर्ग उदारवादियों का था जो सामन्तों तथा पादरियों का विरोधी था और संविधान, स्वतंत्रता तथा समानता का समर्थक था। इस वर्ग में विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक, विद्यार्थी तथा अन्य बुद्धिजीवी थे जिनका दृष्टिकोण राष्ट्रवादी था। इस वर्ग में कृषक तथा श्रमिक लोग भी थे जो सुधार चाहते थे। इन्हीं दोनों वर्गो के संघर्ष के कारण 1930 और 1848 की क्रान्तियाँ हुई और अन्त में यूरोप के अधिकांश देशों में प्रतिक्रियावाद पराजित हुआ, लेकिन यह सत्य है कि 1815 ई० में नेपोलियन के पतन के बाद यूरोप के राजाओं तथा जनता में क्रान्ति विरोधी भावनाएँ थीं।
प्रश्न 20.
मेटरनिख की विदेश नीति का वर्णन करें।
उत्तर :
मेटरनिख राजा के दैवी अधिकारों का संरक्षक था। क्रांति, राष्ट्रीयंता और जनतंत्र का भीषण शत्रु था। उसका मत था कि यूरोप को शांति और व्यवस्था चाहिए, स्वतंत्रता या लोकतंत्र नहीं। वह राजतंत्र की नहीं निरंकुश राजतंत्र का कट्टर समर्थक था। राजनीति में वह प्रतिक्रियावादी था। 1815 ई० से 1848 ई० तक मेटरनिख ने सारे यूरोप को अपने प्रभाव में रखा और उसकी नीति ही सारे राष्ट्रों की शांति नीति पर छाई रही। उसकी व्यवस्था में क्रांतिकारी आंदोलन को भयावह विस्फोट और अव्यवस्था का कारण माना जाता था और वह सदैव उन्हें कुचल देने का प्रयास करता रहा। उसने सदा यही कहा और किया – Keep things as they are an innovation is madness. अर्थात् जो जैसा है उसे वैसा ही रखा, सारी नवीनता एक पागलपन है।
प्रश्न 21.
इटली को राष्ट्र-राज्य बनाने में सहायक तत्वों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर :
इटली के नवयुवकों में राष्ट्रीयता और एकता की भावना प्रबल हो उठी और उन्होंने संगठित होकर क्रांतिकारी आंदोलन छड़ने का संकल्प लिया। कई गुप्त समितियाँ सक्रिय हो उठीं जिनमें गणतंत्रवादियों की कार्बोनरी समिति अधिक सुसंगठित और सक्रिय थी। तरुण इटली के सदस्य धर्म-प्रचारकों के रूप में समस्त इटली में घूम-घूम कर देशभक्ति का प्रचार करते रहे । दो वर्षो में ही तरुण इटली की सदस्य संख्या लगभग 60 हजार हो गई। इटली के स्वतंत्रता-संग्राम के भावी नेता गैरीबाल्डी इसी संस्था का सदस्य था। इसी संस्था की प्रेरणा से इटली का एकीकरण हुआ और वह एक स्वतंत्र राष्ट्र बना।
प्रश्न 22.
जर्मनी में राष्ट्रवादी विचारधारा का विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर :
सम्भवत: नेपोलियन प्रथम व्यक्ति था जिसने जर्मनी में राष्ट्रीयता की भावना का बीजारोपण किया था। नेपोलियन ने सन् 1806 में ‘राइन राज्य संघ” का निर्माण किया तथा इस संघ में जर्मनी के राज्यों को सम्मिलित कर लिया गया। इस संघ की स्थापना करने में नेपोलियन का उद्देश्य आस्ट्रिया व प्रशा की शक्ति के विरुद्ध जर्मनी के संगठित राज्यों का एक मोर्चा तैयार करना था। इस प्रकार नेपोलियन ने जर्मन राज्यों में राष्ट्रवाद की भावना के उदय व विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। स्वतंत्रता, राष्ट्रीयता, देशभक्ति तथा भातृत्व की भावनाओं का प्रचार इन राज्यों के अन्तर्गत व्यापक रूप से हुआ था।
प्रश्न 23.
जर्मनी के राष्ट्र-राज्य बनने का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर :
1815 ई० के विएना कांग्रेस में जर्मन देशभक्त स्टीन ने जर्मनी के विभिन्न राज्यों को एकसूत्र में संगठित करने का प्रस्ताव रखा। जर्मनी का एकीकरण न होने से यहाँ के व्यापारियों को भारी असुविधा उठानी पड़ी थी। व्यापारी-वर्ग परेशान हो उठा था। उन्हें सब राज्यों में चुंगी देनी पड़ती थी। फलत: जर्मनी के एकीकरण के लिए व्यापारी वर्ग ने पूरा सहयोग दिया। जर्मनी के अधिकांश देशभक्त इस सत्य को स्वीकार करते थे कि उनके देश के एकीकरण में सबसे बड़ी बाधा आस्ट्रिया है। जर्मन राज्य संघ में प्रशा अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता था। अत: उसने अधिकांश जर्मन राज्यों के नेतृत्व को अपने हाथ में लेना प्रारम्भ कर दिया।
प्रशा की शक्ति के विकास के साथ जर्मनी के एकीकरण की संभावना भी बढ़ती जाती थी। बिस्मार्क भलीभाँति समझता था कि राजा को जनता का हितैषी होने का साथ-साथ ईमानदार, पराक्रमी, परिश्रमी तथा दूरदर्शी होना चाहिए। उसने जर्मनी के एकीकरण में प्रशा की भूमिका के महत्व का बखूबी आकलन कर लिया था। प्रशा की सैन्य शक्ति को अजेय बनाने के लिए उसने बिस्मार्क को फांस से बुलाकर प्रशा का सेनापतित्व उसे सौंप दिया। बिस्मार्क की दृष्टि सम्पूर्ण जर्मनी को प्रशा के नेतृत्व में एकीकृत करने की थी। औद्योगिक क्रान्ति का प्रभाव जर्मनी के उद्योग-धंधों की प्रगति तथा तत्सम्बन्धी समस्याओं पर पड़ा। 1850 ई० से 1860 ई० के दशक में जर्मनी का आर्थिक कायापलट हो गया।
प्रश्न 24.
बिस्मार्क तथा उसकी रक्त और लौह नीति का वर्णन करें।
उत्तर :
जर्मनी के एकीकरण कार्य बिस्मार्क ने सम्पत्र किया। वह असाधारण प्रतिभा-सम्पन्न व्यक्ति था। बिस्मार्क की नीति रक्त और लौह की नीति थी। उसका विश्वास था कि जर्मनी की समस्याओं को लोकतांत्रिक प्रणाली से हल नहीं किया जा सकता था। उसने फ्रैंकफर्ट के बुद्धिजीवियों की अव्यावहारिकता को देखा था। उसे उदारवादियों का यह मत स्वीकार नहीं था कि पीठमॉण्ट की तरह प्रशा एक लोकतांत्रिक राज्य बने। 1863 ई० में अपनी नीति स्पष्ट करते हुए उसने कहा था कि प्रशा के लोग उदारवाद के भूखे नहीं थे, बल्कि वे उसे शक्तिशाली बनाने के इच्छुक थे। उसका कहना था कि प्रशा अपनी सेनाओं को सुसंगठित करे और उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा करे। निचले सदन में उसने घोषणा की थी, ‘किसी भी काल की महान समस्याओं का निर्णय भाषणों और बहुमत से नहीं बल्कि रक्त और लौह की नीति से होता है।
प्रश्न 25.
यूरोप में राष्ट्रवादी चिन्ताधारा के विकास का परिचय दो।
उत्तर :
यूरोप में राष्ट्रवादी चिन्ताधारा का विकास : क्रांति के बाद के समय में यूरोप की परिस्थितियाँ बदल गयीं एवं राजतंत्र विरोधी राष्ट्रवादी चिन्तन का उन्मेष हुआ।
फ्रांस में राष्ट्रवाद : फ्रांस में क्रांति के बाद आम जनता स्वेच्छाचारी राजा एवं राजतंत्र के बदले देश एवं जाति के प्रति अनुराग दिखाना शुरू किया। इस तरह उनके मन में राष्ट्र एवं राष्ट्रवाद के प्रति लगाव का जन्म हुआ। क्रांस का विधान सभा द्वारा 1792 ई० में ‘पितुभूमि विपन्न’ कहकर घोषणा किये जाने पर फ्रांसीसियों के बीच तीव्र राष्ट्रवाद का प्रसार हुआ। देश में एक ही तरह का नियम-कानून लागू होने से देशवासियों में राष्ट्रीयता की भावना और तीव्र हो गयी।
फ्रांस के बाहर राष्ट्रवाद : फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन ने अपने साम्राज्यवाद द्वारा क्रांतिकारी चिंताधारा को यूरोप के विभिन्न देशों में फैला दिया। फलस्वरूप फ्रांसीसी जाति चेतना यूरोप के अन्य देशों में भी फैल गयी। इसके फलस्वरूप फ्रांस के बाहर इटली, जर्मनी, पोलैण्ड, पुर्तगाल, ऑंस्ट्रिया, ग्रीस, बेल्जियम, बाल्कन आदि अंचलों में राष्ट्रवादी मुक्ति संग्राम आरंभ हो गया।
नेपोलियन के विरुद्ध मुक्ति युद्ध : फ्रांसीसी क्रांति के बाद फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन द्वारा साम्राज्यवादी नीति अपनाने पर यूरोप की विभिन्न जातियों को पददलित कर उन्हें फ्रांसीसी साम्राज्य में शामिल कर लिया गया, किन्तु उनके शासनकाल के आखिरी समय में यूरोप के विभिम्न प्रान्तों में राष्ट्रवादी चिन्तनधारा का प्रसार हुआ। फलस्वरूष नेपोलियन के विरुद्ध स्पेन, पुर्तगाल, जर्मनी आदि देशों में मुक्तियुद्ध आरंभ हो गया।
प्रश्न 26.
फ्रांसीसी क्रांति के बाद यूरोप में जाति-राष्ट्र विषयक चिन्ताधारा के विकास के बारे में आलोचना करें। उत्तर : जाति-राष्ट्र विषयक चिन्ताधारा का विकास :
विदेशी शासन का उदाहरण : फ्रांसीसी क्रांति के पहले इटली, जर्मनी, पोलैण्ड आदि यूरोपीय देश विभिन्न विदेशी शासन के अधीन थे। पिडमांट-सार्डीनिया को छोड़कर इटली के सभी राज्य ऑस्ट्रिया एवं अन्य विदेशी शक्ति द्वारा शासन में थे। जर्मनी में प्राय 300 छोटे राज्यों में, ऑस्ट्रिया का शासन था। पोलैण्ड में पर्सिया, रूस एवं ऑस्ट्रिया का शासन था।
स्वाधीनता की माँग : 19 वीं सदी के यूरोप में जाति-राष्ट्र विषयक धारणा का विकास हुआ। फलस्वरूप विदेशी शासन के अधीन यूरोप के छोटे-बड़े विभिन्न पराधीन देशों में स्वाधीनता की आवाज या आत्मनियंत्रण का अधिकार की मांग होने लगी।
आन्दोलन : राष्ट्रीयता की भावना से जागृत यूरोप के विभिन्न पराधीन देशों में ‘एक जाति, एक राष्ट्र’ की प्रतिष्ठा की मांग क्रमश: जोर पकड़ने लगी। वे धर्मों, रीतिनीति, संस्कृति आदि विषयों में मतभेद के आधार पर अलग-अलग राष्ट्र की प्रतिष्ठा की मांग करने लगे एवं इसी के साथ आन्दोलन आरंभ हो गया।
प्रश्न 27.
19 वीं सदी के प्रथमार्द्ध तक यूरोप में राजतंत्र एवं राष्ट्रवादी चिन्ताधारा के संघर्ष का परिचय दो।
उत्तर :
19वीं सदी के प्रथमार्द्ध तक यूरोप में एक ओर वंशगत स्वेच्छाचारी राजतंत्र, दैव अधिकार आदि बहाल रखने की चेष्टा कर रहे थे, दूसरी ओर विभिन्न देशों में आधुनिक राष्ट्रवादी चिन्तनधारा का प्रसार हो रहा था।
राजतंत्र एवं राष्ट्रवादी चिन्तनधारा में संघर्ष :
- राजतंत्र का शक्ति प्रदर्शन : फ्रांसीसी क्रांति द्वारा राजतंत्र पर आघात करने के बावजूद यूरोप के विभिन्न देश राजतंत्र की शक्ति दिखाने में जुटे थे।
- फ्रांस में राजतंत्र की पुन: प्रतिष्ठा : फ्रांसीसी क्रांति (1789 ई०) के जरिये फ्रांस में राजतंत्र की समाप्ति होने पर भी नेपोलियन ने 1804 ई० में ‘समाट’ उपाधि ग्रहुण कर राजतंत्र को पुन: प्रतिष्ठित किया।
- वियना बन्दोबस्त : वियना बन्दोबस्त (1815 ई०) के न्याय अधिकार नीति द्वारा यूरोप के विभिन्न देशों में राष्ट्रवादी चिन्तनधारा को नष्ट करके स्वेच्छाचारी राजवंश को क्षमता में पुन: वापस लाया गया।
- कुलीनवर्ग की तत्परता में वृद्धि : फ्रांस की कांति के समय फ्रांस तथा यूरोप के विभिन्न देशों के अनेक कुलीन देश त्याग करने पर भी क्रांति की चिंगारी बुझने से अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस पाने को तत्पर हो उठे।
प्रश्न 28.
वियना सम्मेलन (1815 ई०) की क्या पृष्ठभूमि थी ?
उत्तर :
वियना सम्मेलन की पृष्ठभूमि
राष्ट्रीयतावाद की विरोधिता : नेपोलियन द्वारा विजयी यूरोपीय राजतांत्रिक शक्तियों ने अपनी सुरक्षा के लिये राष्ट्रीयतावाद की विरोधिता शुरू कर दी। वे राष्ट्रीयतावाद की अग्रगति रोकने के लिये स्वेच्छाचारी राजतंत्र को मजबूत करने लगे।
भूखण्ड का पुनरुद्धार : फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन ने प्रबल साम्राज्यवादी नीति ग्रहण करने पर यूरोप के विभिन्न भूखण्ड को दखल करके फ्रांसीसी साम्राज्य की सीमा को बहुत दूर तक बढ़ा लिया। उसके पतन के बाद (1814 ई०) विजित स्थानों को वापस कर दिया गया एवं विजयी शक्तिवर्ग नये सिरे से यूरोप के पुनर्गठन में लग गये।
प्रश्न 29.
वियना सम्मेलन (1815 ई०) की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं ?
उत्तर :
वियना सम्मेलन की विशेषताएँ :
उद्देश्य : वियना सम्मेलन का उद्देश्य था :
- यूरोपीय राज्यों का पुनर्गठन करना
- विभिन्न देशों की सीमाओं का पुर्गठन एवं क्षेत्र निर्धारण करना
- नेपोलियन के साम्राज्यवाद से सृष्ट समस्याओं का समाधान करना।
सम्मेलन में व्यवधान : 1814 ई० में वियना सम्मेलन के आयोजित होने पर भी नेपोलियन के अकस्मात फ्रांस लौट आने पर (1 मार्च, 1815 ई०) विजयी शक्तिवर्ग ने सम्मेलन के कामकाज को बन्द रख उसके विरुद्ध युद्ध की शुरुआत कर दी। वाटरलू के युद्ध (18 जून, 1815 ई०) में नेपोलियन की बुरी तरह हार के बाद वे फिर से सम्मेलन का कार्य शुरू किये।
वृहत सम्मेलन : वियना सम्मेलन विश्व का प्रथम वृहत् अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन था। रोम के पोप एवं तुरस्क के सुल्तान को छोड़कर यूरोप के सभी देशों के प्रधानों ने इसमें भाग लिया।
चार प्रधान : वियना सम्मेलन में यूरोप के अधिकांश देशों के प्रतिनिधि उपस्थित रहने पर भी ऑस्ट्रिया, रूस, पर्शिया एवं इंगलैण्ड – इन चार देशों का आधिपत्य था।
प्रश्न 30.
वियना सम्मेलन के नेतृत्च, उनके मनोभाव एवं दृष्टिकोण का उल्लेख करो।
उत्तर :
वियना सम्मेलन के प्रमुख नेता थे – ओंस्ट्रिया के प्रधानमंत्री मेटरनिख, रूस के जार प्रथम अलेक्जेण्डर, इंगलैण्ड के विदेशी मंत्री कैसेलरी एवं फ्रांस के प्रतिनिधि तिलेराँ। ये लोग प्रत्येक भिन्न मानसिकता लेकर सम्मेलन में शामिल हुए थे।
(i) ऑस्ट्रिया की मानसिकता : नेपोलियन के विरुद्ध युद्ध में ऑस्ट्रिया को बहुत नुकसान हुआ था। अब वियना सम्मेलन में ऑंस्ट्रिया के प्रधानमंत्री मेटरनिख नये भूखण्ड दखल करके क्षतिपूर्ति करना चाहते थे। विभित्र जाति एवं भाषाभाषी लोगों को लेकर निर्मित हुई एकता की रक्षा के लिये मेटरनिख सम्मेलन में रक्षणशील मनोभाव लिये हुए थे।
(ii) इंगलैण्ड की मानसिकता : इंगलैण्ड भी रक्षणशील मानसिकता लेकर यूरोप में क्रांतिकारी विचारधारा को रोकने के लिये शामिल हुआ था।
(iii) फ्रांस की मानसिकता : पराजित फ्रांस के प्रतिनिधि तिलेराँ का प्रमुख लक्ष्य था सम्मेलन में आये प्रतिनिधियों के, नाराजगी से फ्रांस की रक्षा करना।
(iv) रूस की मानसिकता : रूस जार प्रथम अलेक्जेण्डर मेटरनिख से विपरीत मनोभाव रखते थे। वे उदारवादी मनोभाव लेकर यूरोप के निपीड़ित लोगों के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करने के लिये सम्मेलन में शामिल हुए थे।
प्रश्न 31.
वियना सम्मेलन (1815 ई०) में विजयी चतुर्थ-शक्ति गुट के प्रमुख शक्तियों का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर :
घोषित उद्देश्य : बृहत्त शक्तियाँ ‘न्याय एवं सत्य के आधार पर’ यूरोप का पुनर्गठन, यूरोप के राजनैतिक व्यवस्था का पुनर्जीवन, यूरोप मे ‘स्थायी शान्ति प्रतिष्ठा’ आदि अन्य आदर्शों की घोषणा की किन्तु वास्तव में वे रक्षणशीलता की प्रतिष्ठा एवं अपने भौगोलिक स्वार्थों की पूर्ति के लिये अधिक तत्पर थे।
रक्षणशीलता : ऑस्ट्रिया, पर्शिया एवं इंगलैण्ड वियना सम्मेलन में प्रतिक्रियाशील मनोभाव ग्रहण किया। यूरोप में क्रांतिकारी विचारधारा को रोकने के लिये रक्षणशीलता को बहाल रखना ही उनका उद्देश्य था।
भौगोलिक स्वार्थ : विजयी शक्ति अपने भौगोलिक सीमा की वृद्धि के लिए तत्पर थे। ऑस्ट्रिया पोलैण्ड के राजवंश एवं इटली में अपने आधिपत्य को बहाल रखना चाहता था। इसके अतिरिक्त वह रूस की शक्तिवृद्धि एवं जर्मनी में पर्शिया की प्रधानता का प्रबल विरोधी था। रूस का प्रमुख उद्देश्य था पोलैण्ड में अपना वर्चस्व कायम करना। बिटेन जेनेवा के स्वाधीनता के पक्ष में था। पर्शिया पोलैण्ड में राजवश की माँग करता था।
प्रश्न 32.
वियना सम्मेलन की प्रमुख नीतियाँ क्या थीं ?
उत्तर :
वियना सम्मेलन की तीन प्रमुख नीतियाँ थीं –
न्याय अधिकार नीति : वियना सम्मेलन के प्रतिनिधि न्याय अधिकार नीति द्वारा यूरोप में क्रांति के पूर्व के राजवंश शासन की वापसी लाना चाहते थे। इसके फलस्वरूप –
- फ्रांस में वुर्वो वंश
- स्पेन, नेपल्स एवं सिसली में वुर्वो वंश की दूसरी शाखा
- हालैण्ड में ऑरेंज वंश
- सेवाय, जेनेवा, सार्डीनिया एवं पिडमंट में सेवाय वश
- मध्य इटली में पोप क्षमता लाभ किये।
- इसके अतिरिक्त इटली एवं जर्मनी में आंस्ट्रिया की प्रधानता स्थापित हुई।
क्षतिपूर्ति नीति : ऑस्ट्रिया, पर्शिया, रूस, इंगलैण्ड, स्वीडेन आदि देशों में नेपोलियन के विरुद्ध संग्राम में अनेक क्षति हुई थी। अब उन्होंने विभिन्न भूखण्डों को दखल कर लिया।
शक्ति-साम्य नीति : भविष्य में फ्रांस शक्तिशाली न होने पाये एवं विजयी चतुर्थ शक्तिगुट में कोई शक्ति वृद्धि न करे, इसके लिये शक्ति-साम्य नीति अपनायी गयी।
प्रश्न 33.
वियना सम्मेलन में गृहीत न्याय अधिकार नीति का परिचय दो।
उत्तर :
न्याय अधिकार नीति :
अर्थ : न्याय अधिकार नीति का अर्थ है वैध अधिकार की प्रतिष्ठा। इस नीति के द्वारा वियना सम्मेलन के आयोजक यूरोप में फ्रांसीसी कांति ( 1789 ई०) के पहले के प्रतिष्ठत राजवंशीय शासन को पुन: लाना चाहते थे।
गृहीत पदक्षेप : न्याय अधिकार नीति के द्वारा – फ्रांस में वुर्वों राजवंश की पुन: प्रतिष्ठा की गयी। हालैण्ड में आरेंज वश, सार्डीनिया एवं पिडमंट में सेवाय वंश एवं मध्य इटली में पोप की क्षमता को पुन: प्रतिष्ठित किया गया। उत्तर इटली एवं जर्मनी में ऑंस्ट्रिया को पुन: प्रतिष्ठित किया गया।
नीति का उल्लंघन : वियना सम्मेलन के आयोजकों ने विभित्र क्षेत्रों में न्याय अधिकार नीति का उल्लंघन किया जैसे – वेनिस एवं जेनेवा में क्रांति के पहले प्रजातंत्र रहने पर भी वहाँ प्रजातंत्र की वापसी नहीं हुई। पहले न रहते हुए भी अब बेल्जियम को हालैण्ड के साथ एवं नार्वे को डेनमार्क से ले लिया गया और उन्हें स्वीडेन के साथ जोड़ दिया गया।
प्रश्न 34.
वियना सम्मेलन में गृहीत क्षतिपूर्ति नीति के विभिन्न प्रयासों का उल्लेख करो।.
उत्तर :
क्षतिपूर्ति नीति :
अर्थ : आंस्ट्रिया, रूस, इंगलैण्ड एवं स्वीडेन सहित विभिन्न भूखण्ड था। इसकी क्षतिपूर्ति के लिये वे वियना सम्मेलन क्षतिपूर्ति नीति द्वारा विभिन्न भूखण्ड दखल कर आपस में बाँट लिया।
गृहीत पदक्षेप : क्षतिपूर्ति नीति द्वारा ओंस्ट्रयया, पर्शिया, रूस, इंगलैण्ड एवं स्वीडेन ने विभिन्न भूखणंड प्राप्त किये। ऑस्ट्रिया उत्तर इटली का लम्बर्डी एवं विनिशा, टाइरल, साल्सवर्ग, इलिरिया अंचल एवं पोलैण्ड के कुछ हिस्सों को पाया। ऑंस्ट्रिया का हैप्सवर्ग वंश ने इटली का पार्मा, मडेना एवं टास्कनी में शासन की प्रतिष्ठा की। सैक्सनी के उत्तरी हिस्से, पश्चिम पोमेरोनिया, पोजेन थर्न, डानजिय एवं राइन अंचल पर्शिया को। रूस को मिला पोलेण्ड का अधिकतर हिस्सा, फिनलैण्ड एवं तुरस्क इंगलैण्ड को भूमध्यसागर का भाल्टा, आमनीय द्वीप, हेलिगोलैण्ड, केप कलोनी, ट्रिनिदाद, मारिशस एवं सिंहल मिला। स्वीडेन ने, पश्चिम पोमेरेनिया को छोड़कर नार्वे का अधिकतर अंश पाया।
प्रश्न 35.
वियना सम्मेलन में गृहीत शक्ति साम्य नीति के प्रयासों का विवरण दो।
उत्तर :
शक्ति साम्य नीति :
अर्थ : भविष्य में फ्रांस शक्तिशाली होकर यूरोप की शांति को भंग न करने पाये, इसलिये वियना सम्मेलन में शक्तिसाम्य नीति ग्रहण किया गया। फ्रांस सहित विभिन्न यूरोपीय देशों में शक्ति संतुलन बनाये रखने के उद्देश्य से इस नीति को ग्रहण किया गया।
गृहीत प्रयास : शक्ति संतुलन द्वारा विभिन्न कदम उठाये गये – शक्तिह्नास : फ्रांस को कांति के पूर्व के रांजनैतिक सीमा में लौटा दिया गया। फ्रांस के ऊपर 70 करोड़ फ्रांक क्षतिपूर्ति का बोझ लाद दिया गया। फ्रांस की सेना वाहिनी भंग कर दी गयी। फ्रांस में 5 साल के लिये मित्र देशों की सेना को तैनात कर दिया गया। इसका खर्च भी फ्रांस वहन करेगा। घेरा : फ्रांस के उत्तर-पूर्व में लक्सेमवर्ग एवं बेल्जियम को हालैण्ड से जोड़ दिया गया। पूर्व में राइन जिलों को पर्सिया से जोड़ दिया गया। दक्षिणपूर्व में फ्रांस के तीन जिलों को स्विद्जरलेण्ड से जोड़ा गया। दक्षिण में सेवाय एवं जेनोवा को पिडमंट के साथ जोड़ा गया।
प्रश्न 36.
वियना सम्मेलन के विपक्ष में विभिन्न तर्कों का उल्लेख करो।
उत्तर :
सम्मेलन नहीं था : वियना सम्मेलन में 5 वृहत् शक्ति – ऑस्ट्रिया, पर्सिया, रूस, इंगलैण्ड एवं फ्रांस के प्रतिनिधि, सम्मेलन के बाहर गुप्त मीटिंग में पहले से ही सब निर्णय ले चुके थे। फलस्वरूप इस सम्मेलन में अन्य प्रतिनिधियों की कोई विशेष भूमिका नहीं थी।
विश्वासघात : वियना सम्मेलन को बहुत समालोचकों ने प्रताड़ना एवं विश्वासघात कहकर संबोधित किया है क्योंकि आदर्श की बात के पीछे असल में पराजित देशों के भूखण्डों को दखल करके यहाँ आत्मस्वार्थ की पूर्ति की गई थी।
रक्षणशीलता : सम्मेलन के नेतागण युगधर्म को सम्पूर्ण अस्वीकार करके गणतंत्र, उदारवाद एवं राष्ट्रवाद आदि आधुनिक चिन्ताधारा का विरोध किये एवं पुरातनपंथी रक्षणशील, प्रतिक्रियाशील नीतियों को ग्रहण किया।
अस्थायी : सम्मेलन के रक्षणशील नेताओं ने यूरोप में पुरातनवाद को वापस लाने के लिये विभिन्न निर्णय लिया, किन्तु इनके विरुद्ध यूरोप में शीघ्र ही आन्दोलन शुरू हो गया। फलत: ये सिद्धांत अस्थायी साबित हुए।
नीतियों का उल्लंघन : सम्मेलन के आयोजकों के द्वारा विभिन्न नीतियों की घोषणा करने पर भी विभिन्न समय में वे अपने स्वार्थ पूर्ति के लिये खुद उन नीतियों को नहीं मानते थे। जैसे – वेनिस एवं जेनोवा में पहले की तरह प्रजातंत्र नहीं मानते थे।
प्रश्न 37.
वियना सम्मेलन के पक्ष में विभिन्न तर्कों का उल्लेख करो।
उत्तर :
शान्ति की स्थापना : कांति एवं युद्ध विध्वस से यूरोप के की जनता शांति की स्थापना के लिये तड़प रही थी। इतिहासकार डेविड टामसन ने कहा है कि वियना सम्मेलन यूरोप में कम-से-कम 40 सालों के लिये शांति स्थापना करने में सक्षम हुआ। जिसके कारण यूरोप में शिल्प, साहित्य, विज्ञान की अप्रगति हुई।
आधुनिक चिन्ताधारा : 1815 ई० की परिस्थित में यूरोप में गणतंत्र राष्ट्रीयतावाद आदि आधुनिक चिन्ताधारा बहुत कम व्यक्ति ही समझते थे। इस कारण उस युग में वियना सम्मेलन के आयोजको ने कोई गलत नहीं किया।
उदारता : वियना सम्मेलन के सिद्धांत यूट्रेक्ट की संधि (1713 ई०) एवं वार्साय संधि (1919 ई०) आदि से कहीं अधिक उदार था। इस कारण इनमें कोई भविष्य का युद्ध नहीं छिपा था।
अन्तर्राष्ट्रीयता : वियना सम्मेलन अन्तर्राष्ट्रीयतावाद का सूचक था। इसके आधार पर ही राष्ट्रसंघ आदि की प्रतिष्ठा हुई।
प्रश्न 38.
मेटरनिख के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर :
ग्रिन्स क्लेमेन्स मेटरनिख (1773 – 1859 ई०) समकालीन यूरोप के एक उज्जवल राजनैतिक व्यक्तित्व थे। वे 1809 से 1848 ई० तक ऑस्ट्रिया के प्रधानमंत्री रहे।
गुणावली : उच्चशिक्षित चरित्र की बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न एवं सुदर्शन, सुवाग्मी तथा मार्जित संस्कार युक्त मेटरनिख कानून, राजनीति भाषा आदि कई विषयों के विद्वान थे। रूसों एवं वाल्टेयर के मतवार्द, शेक्सपीयर के नाटक, विधोवेन के संगीत न्यूटन के वैज्ञानिक तत्वों के प्रति उनकी रुचि थी।
आलोचनात्मक चरित्र : अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये वे कोई भी काम करने के लिये सदैव तत्पर रहते थे। तालीरँ ने कहा है, “ मेटरनिख रेशम के मोजे में रंगे गंदे पैर वाले थे। कासेलरी ने उन्हें राजनीति का जोकर कहा है। रूस के जार प्रथम अलेक्जेण्डर ने उन्हें झूठा कहा है।”
वियना सम्मेलन का आकर्षण : समकालीन युग के श्रेष्ठ कूटनैतिक मेटरनिख को फूटनीति का राजकुमार कहा जाता है। यद्यपि वे वियना सम्मेलन के प्राण पुरुष थे।
मेटरनिख युग : 1815 से 1848 ई० तक मेटरनिख ने यूरोप की राजनीति में असीम आधिपत्य की प्रतिष्ठा की। वास्तव में उस समय यूरोप के भाग्यविधाता वे ही थे। उस समयकाल को यूरोप में मेटरनिख युग कहा जाता है।
प्रश्न 39.
फ्रांसीसी क्रांति एवं क्रांतिकारी चिन्तनधारा के प्रति मेटरनिख का कैसा मनोभाव था ?
उत्तर :
मेटरनिख एवं फ्रांसीसी क्रांति :
राजनैतिक महामारी : मेटरनिख का मानना था कि फ्रांसीसी क्रांति से उत्पन्न चिन्तनधाराएँ महामारी एवं अराजकता के दूत हैं। उन्होंने फ्रांस की क्रांति को हजार मुँह वाला दैत्य करार दिया एवं उसे गर्म लोहे से जलाने की बात कही।
राजतंत्र का महत्व : उनका सोचना था कि राजा एवं कुलीनवाद ही सभ्यता के धारक, वाहक एवं रक्षक हैं। एकमात्र वे ही नि:स्वार्थ रूप से देश की सेवा कर सकते हैं।
मध्यमवर्ग की विरोधिता : फ्रांसीसी कांति के फलस्वरूप प्रगतिशील एवं शिक्षित मध्यम वर्ग का विकास हुआ। यह श्रेणी प्रजातंत्र एवं उदारतंत्र के प्रमुख प्रचारक थे। इसीलिये राजतंत्र एवं कुलीन वर्ग इसे सहन नहीं कर पाते थे।
परिवर्तन की विरोधिता : फ्रांसीसी क्रांति के फलस्वरूप समाज एवं देश के सामान्य जीवन में जो बदलाव आया, मेटरनिख इसके कट्टर विरोधी थे।
प्रश्न 40.
मेटरनिख की सफलता के क्या कारण थे ?
उत्तर :
मेटरनिख की सफलता के कारण :
प्रशासनिक दक्षता : मेटरनिख ने ऑस्ट्रिया के पूर्व प्रधानमंत्री काउण्ट कौनिक की पोती से विवाह करके अति शीघ्र ही ऑस्ट्रिया के प्रशासन में अपने आपको प्रतिष्ठित किया।
गुणावली : मेटरनिख सुदर्शन, सुभाषी, प्रखर बुद्धि एवं बहुमुखी प्रतिभा-सम्पन्न व्यक्ति थे। वे किसी जटिल समस्या को खूब सहज ही समाधान करके सभी को अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे।
ऑस्ट्रिया के प्रधानमंत्री : मेटरनिख तत्कालीन यूरोप के शंक्तिशाली राष्ट्र ऑस्ट्रिया के प्रधानमंत्री के रूप में यूरोप की राजनीति में विशेष मयार्दित थे।
नेपोलियन का पतन : नेपोलियन के पतन (1814 ई०) में मेटरनिख की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इससे यूरोप में उनकी मर्यादा और बढ़ गयी। वे गर्व के साथ खुद को नेपोलियन विजेता कहते थे।
कूटनैतिक दक्षता : वे अपने समयकाल के सर्वश्रेष्ठ कूटनैतिक नेता थे।
अहंकारी : मेटरनिख बहुत अहंकारी एवं षड्यंत्रकारी थे। चरम विपत्ति में भी वे अपने कदम को ठीक बताते थे। यह आत्मविश्वास ही उनकी सफलता का कारण था।
प्रश्न 41.
यूरोप के विभिन्न देशों में मेटरनिख पद्धति के प्रयोग का उल्लेख करो।
उत्तर :
ऑस्ट्रिया : ऑस्ट्रिया में क्रांतिकारी चिन्तनधारा को रोकने के लिये मेटरनिख ने –
- उदारपंथी छात्र एवं अध्यापकों को जेल में डाल दिया
- ऑस्ट्रिया में इतिहास, राजनीति शास्त्र का पठन-पाठन निषिद्ध कर दिया
- शिक्षा में कैथोलिक गिरजा की प्रधानता को प्रतिष्ठित किया एवं
- उद्योगों की अग्रगति को रोका।
जर्मनी : जर्मन बुंड या राज्य-समिति के सभापति के रूप में उसने जर्मनी में राष्ट्रीयतावाद एवं छात्र आंदोलन को रोकने के लिये जर्मन शासकों को कार्ल्सवाड डिकी का प्रयोग करने के लिये बाध्य किया एवं जर्मनी में छात्र एवं राजनैतिक संगठनों को निषिद्ध करवा दिया।
यूरोप के अन्य देशों में : मेटरनिख ने ट्रपो का घोषणा पत्र (1820 ई०) जारी कर कांति के जरिये संविधान या सत्ता परिवर्तन पर पाबंदी लगा दी। शक्ति-संगठन के जरिये इटली के नेपल्स, पिडमंट, पार्मा, मडेना आदि राज्य एवं स्पेन के गण आंदोलन का दमन किया। ग्रीस के स्वाधीनता आन्दोलन में रूस की मदद को बन्द करवा दिया।
प्रश्न 42.
यूरोपीय शक्ति-समवाय (समिति) के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर :
वियना सम्मेलन (1815 ई०) के बाद यूरोप में एक विशाल शक्तिशाली संगठन निर्मित हुआ जिसे यूरोपीय शक्तिसंगठन या Concert of Europe के नाम से जाना जाता है।
यूरोपीय शक्ति-संगठन
प्रतिष्ठा का उद्देश्य :
- वियना सम्मेलन के निर्णयों को स्थायी रूप से लागू करना,
- फ्रांस में जिस तरह नेपोलियन का उत्थान हुआ था, भविष्य में ऐसा न हो, सुनिश्चित करना,
- यूरोप में स्थायी शांति को प्रतिष्ठित करना,
- फ्रांसीसी क्रांति की तरह विध्वंसकारी घटना से यूरोप की रक्षा करना।
शक्ति-संगठन की नींव : मुख्यतः दो समझौतों के माध्यम से शक्ति-संगठन प्रतिष्ठित हुआ-
- रूस जार प्रथम अलेक्जेण्डर द्वारा रूपायित पवित्र समझौता (1815 ई०) एवं
- ऑस्ट्रिया के प्रधानमंत्री मेटरनिख द्वारा रूपायित चतुर्थशक्ति समझौता (1815 ई०)।
सम्मेलन : 1818 ई० से 1825 ई० के बीच चतुर्थ शक्ति समझौते के पाँच सम्मेलन अनुष्ठित हुए –
- आई-लासापेल सम्मेलन (1818 ई०)
- ट्रपो सम्मेलन (1820 ई०)
- लाइबॉख बैठक (1821 ई०)
- वेरोना बैठक (1822 ई०) एवं
- सेंट पीट्सबर्ग बैठक (1825 ई०)।
पतन : तुरस्क के अधीन ग्रीस की स्वाधीनता की माँग को लेकर विद्रोह शुरू होने पर रूस ने ग्रीस का समर्थन किया। इसके लिये रूस जार द्वारा बुलायी गई सेंट पीट्सबर्ग के शक्ति संगठन के पांचवें सम्मेलन में इंगलैण्ड शामिल नहीं हुआ। इसके अलावा, ग्रीस के बारे में संगठन के सदस्यों में प्रबल मत विरुोध दिखाई दिया। फलस्वरूप यह संगठन दूट गया (मई, 1825 ई०)
प्रश्न 43.
मेटरनिख पद्धति के प्रयोग में यूरोपीय शक्ति संगठन की क्या भूमिका थी ?
उत्तर :
वियना सम्मेलन (1815 ई.) के बाद ऑंस्ट्रिया के प्रधानमंत्री मेटरनिख के सहयोग से यूरोपीय शक्ति संगठन का निर्माण हुआ।
शक्ति संगठन द्वारा मेटरनिख पद्धति का प्रयोग :
रक्षणशील नीतियों को यूरोप के विभिन्न देशों में प्रयोग कर मेटरनिख के अपने दमनात्मक उद्देश्य से यूरोपीय शक्ति संगठन का व्यवहार किया।
ट्रपो का घोषणापत्र : मेटरनिख के नेतृत्व में प्रकाशित ट्रपो के घोषणापत्र (1820 ई.) में कहा गया था कि जनता को सरकार बदलने का कोई अधिकार नहीं है। जनता द्वारा किसी देश में आन्दोलन करने परं वहाँ बल प्रयोग के द्वारा उसका दमन किया जायेगा।
आन्दोलन का दमन : शक्ति संगठन ने इटली के नेपल्स एवं पिडमेंट के जन-विद्रोह का दमन किया। शक्ति संगठन के परामर्श से फ्रांस ने स्पेन के उदारवादी आन्दोलन का दमन किया।
अन्य उपाय : रूस जार प्रथम अलेक्जेण्डर ने ग्रीस के स्वाधीनता संग्राम (1814 ई.) में सहायता करना चाहा लेकिन मेटरनिख ने उन्हें नहीं करने दिया। जुलाई क्रांति (1830 ई.) में इटली के पार्मा, मडेना, एवं पोप के राज्य में जनविद्रोह को मेटरनिख ने कड़ाई से कुचल दिया।
समस्त यूरोप में प्रभाव : मेटरानिख ने अपने शक्ति संगठन का व्यवहार कर समस्त यूरोप में रक्षणशील व्यवस्था कायम किया। इसी से उन्हें यूरोप की रक्षणशीलता का जनक कहा जाता है।
प्रश्न 44.
मेटरनिख पद्धति का मूल्यांकन करो।
उत्तर :
ऑस्ट्रिया के प्रधानमंत्री मेटरनिख ने यूरोप में उदारतंत्र, प्रजातंत्र, राष्ट्रीयतावाद आदि प्रगतिशील चिन्तनधाराओं की अग्रगति को अवरुद्ध करने के लिये 1815 ई. से 1848 ई. के बीच जिस रक्षणशील एवं दमनकारी नीतियों को लागू किया उसे मेटरनिख पद्धति के नाम से जाना जाता है।
मेटरनिख पद्धति के पक्ष में : मेटरनिख पद्धति के पक्ष में प्रमुख तर्क हैं-
- यूरोप में युद्ध से अशान्ति एवं राजनैतिक अस्थिरता दूर करके मेटरनिख ने कम-से-कम 30 वर्षों के लिये शान्ति एवं स्थिरता को प्रतिष्ठित करने में सक्षम हुए।
- शान्ति स्थापित होने के कारण यूरोप में साहित्य एवं संस्कृति का पर्याप्त विकास हुआ।
- बहु-जाति एवं भाषा प्रभावित ऑस्ट्रिया को एक रखने के लिये मेटरनिख नीति जरूरी थी ।
- मेटरनिख की रक्षणशील नीति के पीछे ऑंस्ट्रिया , के सम्राट फ्रांसिस जोसेफ एवं मंत्री काउण्ड कोलवर्ट की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
मेटरनिख के विपक्ष में : मेटरनिख पद्धति के विपक्ष में प्रमुख तर्क है
- मेटरनिख की नीति नकारात्मक, संकीर्ण एवं सुधार विरोधी था।
- मेटरनिख फ्रांस की क्रांति से उत्पन्न उदारवाद, प्रजातंत्र, राष्ट्रीयतावाद आदि आधुनिक चिन्तनधारा के महत्व को समझने में व्यर्थ हुए।
- वे युगधर्म कों अस्वीकार करके इतिहास की प्रगतिशील धारा के विरुद्ध जाने की चेष्टा कर रहे थे।
- वे नये युग की चिन्तनधारा के साथ पुरातनतन्त्र को संतुलित करने में व्यर्थ हुए।
- उनकी उम्र बढ़ने के साथ-साथ दक्षता एवं जनग्रियता कम होने से रक्षणशील नीति को लागू करना कठिन हो गया।
प्रश्न 45.
जुलाई आर्डिनेन्स क्या है ?
उत्तर :
फ्रांस के सम्माट चार्ल्स दशम के प्रधानमंत्री पलिगनैक ने (1829-1830 ई.) विभिन्न क्षेत्रों में अत्यंत प्रतिक्रियाशील पदक्षेप उठाये थे।
जुलाई आर्डिनेन्स :
फ्रांस में उदारपंथियों के नेतृत्व में नवगठित विधान सभा ने पलिगनैक के पदत्याग की माँग की।
आर्डिनेन्स जारी : पलिगनैक के परामर्श से राजा चार्ल्स दशम द्वारा विधान सभा भंग कर नया निर्वाचन कराने पर वहाँ भी सरकार विरोधियों की जीत हुई। इस अवस्था में पलिगनैक के प्रभाव से चार्ल्स दशम द्वारा ‘आर्डिनेन्स ऑफ सेंट क्लड’ या ‘जुलाई आर्डिनेन्स’ (25 जुलाई, 1830 ई.) जारी किया गया।
आर्डिनेन्स की विधि : जुलाई आर्डिनेन्स के द्वारा –
- नयी विधान सभा को भंग कर दिया गया,
- समाचार पत्रों की स्वाधीनता समाप्त कर दी गयी।
- बुर्जुआ श्रेणी का मताधिकार खत्म कर केवल जमीन-सम्पदा वाले को मताधिकार दिया गया
- लुई अठारहवें द्वारा जारी सनद (1814 ई.) को रद्द कर दिया गया।
जुलाई कांति : प्रतिक्रियाशील जुलाई आर्डिनेस्स घोषणा के दूसरे दिन ही फ्रांस में भारी प्रतिवाद आरंभ हो गया। थिमर्स, लाफायेत, तालिर”, गिजो आदि के नेतृत्व में आन्दोलन चारों ओर फैल गया। समाज के सभी वर्गों के लोग इस आन्दोलन में शामिल हुए।
राजा का पदत्याग : आन्दोलन के दबाव में चार्ल्स दशम अपने नाबालिग पोते के लिये सिंहासन का त्याग किया किन्तु क्रांतिकारी नेतागण अर्लिर वंशीय लुई फिलीप को फ्रांस के राजा के रूप में घोषित किया। इस तरह जुलाई क्रांति सफल हुई।
प्रश्न 46.
फ्रांस के बाहर जुलाई क्रांति (1830 ई.) का कैसा प्रभाव पड़ा था?
उत्तर :
1830 ई. के जुलाई कांति के फलस्वरूप फ्रांस के वुर्वो वंशीय राजा चार्ल्स दशम का पतन हुआ एवं अर्लिय वंशीय लुई फिलिप फ्रांस की गद्दी पर बैठे।
फ्रांस के बाहर विभिन्न देशों में जुलाई क्रांति का बहुत प्रभाव पड़ा था जो निम्नलिखित है :-
- बेल्जियम : जुलाई क्रांति से लाभ उठाकर हालेण्ड की अधीनता त्याग कर बेल्जियम स्वाधीन हो गया। लिओपोल्ड प्रथम बेल्जियम के राजा बने।
- जर्मनी : जुलाई क्रांति के प्रभाव से जर्मनी के सैक्सनी, हैनोवर, हेस वैडेन, वेभेरिया आदि जगहों में तीव्र विद्रोह आरंभ हो गया। विद्रोहियों उदारवादी संविधान के लिये शासकों को बाध्य किया।
- इटली : शासन सुधार की माँग पर इटली के पार्मा, मडेना, रोम आदि स्थानों पर व्यापक जन आन्दोलन आरंभ हो गया लेकिन मेटरनिख की दमन नीति से वह शान्त हो गया।
- पोलैण्ड : रूस के अधीन पोलैण्ड में स्वाधीनता की मांग पर तीव्र विद्रोह होने लगा किन्तु रूस के जार प्रथम अलेक्जेण्डर ने दमन नीति अपनाकर उसे बन्द किया।
- इंगलैण्ड : जुलाई क्रांति से प्रभावित इंगलैण्ड में चर्टिस्ट आन्दोलन की शुरुआत हुई।
- स्पेन, पुर्तगाल एवं स्विद्जरलैण्ड : जुलाई क्रांति के फलस्वरूप स्पेन, पुर्तगाल एवं स्विद्जरलैण्ड आदि देशों में उदारवादी शासन आरंभ हुआ।
प्रश्न 47.
जुलाई क्रांति के प्रति राजा राममोहन राय का क्या दृष्टिकोण था ?
उत्तर :
जुलाई क्रांति एवं राजा राममोहन राय :
भारतीय समाज सुधारक एवं ‘भारत के आधुनिक पुरुष’ राजा राममोहन राय द्वारा यूरोप में जुलाई क्रांति के प्रति आन्तरिक समर्थन ज्ञापन किया गया।
वुर्वो वंश का पतन : जुलाई क्रांति के फलस्वरूप फ्रांस के स्वैराचारी वुर्वों राजवंश का पतन हुआ। इस घटना से राजा राममोहन राय बहुत ही प्रसन्न हुए।
फ्रांसीसियों को अभिनंदन : राममोहन इंगलैण्ड जाकर फ्रांसीसियों को अभिनन्दन देने के लिये व्यग्र हो उठे। उन्होंने फ्रांसीसी नौवाहिनी में लगे क्रांतिकारी तिरंगा झंडे का अभिवादन किया। इस घटना से राममोहन के विश्व भाई-चारे का परिचय मिलता है।
स्वाधीनता का उन्माद : फ्रांस में हुई जुलाई क्रांति ने दुनिया भर के स्वाधीनता प्रेमी देशों को प्रेरित किया। राजा राममोहन राय ने स्वाधीनता की इस अदम्य इच्छा का समर्थन किया।
अमेरिका में स्वाधीनता आन्दोलन : जुलाई क्रांति के प्रभाव से अमेरिका के स्पेनी उपनिवेशों में स्वाधीनता आन्दोलन आरंभ हुआ एवं कई उपनिवेश स्पेन की गुलामी से आजाद हो गये। इस खबर से राजा राममोहन राय आनन्दित हुए।
इटली की व्यर्थता : जुलाई क्रांति के प्रभाव से ऑस्ट्रिया के विरुद्ध इटली के नेपल्स में बहुत बड़ा विद्रोह फैल गया लेकिन यह विद्रोह सफल नहीं हो सका। इस घटना से राजा राममोहन राय बहुत ही दु:खी हुए।
प्रश्न 48.
जुलाई राजतेत्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर :
1830 ई. की जुलाई क्रांति के बाद अर्लिय वशीय लुई फिलीप फ्रांस के राजा बने। इसी से उनके शासन को जुलाई राजतंत्र के नाम से जाना जाता है। जुलाई राजतंत्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं :-
1830 ई. का सनद : फ्रांसीसी पार्लियामेण्ट द्वारा रचित 1830 ई. की सनद की लुई फिलिप को मान लिया। इस सनद के अनुसार कैथोलिक धर्म को बहुसंख्यक धर्म की स्वीकृति एवं अन्य धर्म को धार्मिक स्वाधीनता की मान्यता मिली। समाचार पत्रों की आजादी बहाल की गई एवं राजा द्वारा आर्डिनेन्स जारी करने के अधिकार को खत्म किया गया। मताधिकार का प्रसार बढ़ा।
समन्वय : जुलाई राजतंत्र में पुरातनतन्त्र का ईश्वरीय अधिकार एवं रूसो की साधारण इच्छा का समन्वय मिलता है, क्योंकि लुई फिलीप के विधान सभा के आहवान पर गद्दी पर बैठने से भी देश में वास्तविक प्रजातंत्र की प्रतिष्ठा नहीं हुई बल्कि देश में वही निरंकुश राजतंत्र की धारा ही बहती रही।
बुर्जुआ राजतंत्र : जुलाई राजतंत्र को कुछ लोग बुर्जुआ राजतंत्र कहते हैं क्योंकि जुलाई क्रांति के जरिये पादरी एवं कुलीन तंत्र को खत्म किया गया एवं बुर्जुआ श्रेणी का राजनेतिक वर्चस्व कायम हुआ।
प्रश्न 49.
फ्रांस की फरवरी क्रांति (1848 ई.) के कारणों का उल्लेख करो।
उत्तर :
1848 ई. की फरवरी क्रांति के फलस्वरूप फ्रांसीसी सम्माट लुई फिलीप का पतन हुआ एवं फ्रांस में द्वितीय प्रजातंत्र की प्रतिष्ठा हुई।
फरवरी क्रांति के कारण :
बुर्जुआ श्रेणी का आधिपत्य : लुई फिलिप के शासन काल में बुर्जुआ श्रेणी का दबदबा था। इस कारण दरिद्र श्रमिक एवं कृषक क्षुख्य थे।
जन समर्थन का अभाव : लुई फिलिप के प्रति आम लोगों का समर्थन नहीं था। नेपोलियन बोनापार्ट के अनुयायी कैथोलिक, प्रजातंत्री, न्याय अधिकार नीति के समर्थक, किसी का भी समर्थन उनके प्रति नहीं था।
त्रुटिपूर्ण विदेश नीति : लुई फिलिप को शान्ति एवं सुरक्षा नीति ग्रहण करके पोलैण्ड, इटली, बेल्जियम, मिस्, तुरस्क आदि देशों में फ्रांसीसी अधिकार प्रतिष्ठा का सुयोग होते हुए भी वे ऐसा नहीं कर पाये। जिसके कारण फ्रांस की जनता नाराज थी।
श्रमिकों का क्रोध : फ्रांस में श्रमिकों का अधिक देर तक काम करना, कम मजदूरी पाना, हानिकारक परिवेश में रहना आदि के कारण उनका जीवन बहुत कष्टकर हो गया था किन्तु सरकार उनके प्रति उदासीन थी।
आर्थिक संकट : 1840 के दशक में फ्रांस में सूखा तथा फसलों के नुकसान से खाद्य की कमी, उद्योग एवं व्यापार में मंदा, बेरोजगारी समस्या आदि ने विशाल रूप ग्रहण कर लिया था। सरकार इस चरम आर्थिक संकट को सुलझाने में विफल रही।
मताधिकार की मांग : थियर्स, ला-मार्टिन आदि नेतागण मताधिकार में वृद्धि एवं विधान सभा निर्वाचन में भष्टाचार रोकने की मांग को लेकर जनांदोलन आरंभ कर दिये।
प्रश्न 50.
इटली के एकीकरण आन्दोलन में जोसेफ मैजिनी के अवदानों का उल्लेख करो।
उत्तर :
फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन द्वारा इटली के छोटे-छोटे राज्यों को जीतकर और उसे एक करने पर भी उसके पतन के बाद वियना बन्दोबस्त द्वारा इटली को फिर से विभिन्न राज्यों में विभक्त कर विदेशी शक्तियों द्वारा दखल कर लिया गया। जोसेफ मैजिनी एवं यंग इटली आन्दोलन :
आदर्श : मैजिनी ने सामाज्यवादी ओंस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध में इटली की युवाशक्ति को कूद पड़ने के लिये प्रेरित किया। उनका आदर्श था विदेशी शक्ति से मदद लिए बिना इटलीवासी के खून से देश को स्वाधीन प्रजातंत्र देना।
शुरुआती जींवन : मैजिनी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में कार्बोनारी नामक एक गुप्त संगठन में शामिल होकर इटली को विदेशी शासन से मुक्त करने की चेष्ट की, किन्तु उसकी कमजोरी को जानकर इस दल को छोड़ दी, विद्रोह में शामिल होने के आरोप में उन्हें जेल एवं निर्वासन दोनों ही भोगना पड़ा।
यंग इटली दल का गठन : मैजिनी ने निर्वासित अवस्था में फ्रांस के वार्साय शहर में 1832 ई. में ‘यंग इटली’ नामक एक युवादल का गठन किया। यंग इटली नाम से उन्होंने एक पत्रिका भी निकाली।
फरवरी क्रांति : 1848 ई. में फ्रांस में फरवरी क्रांति आरंभ होने पर मैजिनी निर्वासन त्याग कर इटली आकर यंग इटली के सदस्यों के साथ आन्दोलन में कूद पड़े। उनके नेतृत्व में रोम एवं टस्कनी में प्रजातंत्र की प्रतिष्ठा हुई।
व्यर्थता : संगठन का अभाव, ऑस्ट्रिया एवं फ्रांस की चरम दमनकारी नीति के कारण मैजिनी का आन्दोलन व्यर्थ हो गया। निराश होकर एम्स ने जीवन का शेष समय लंदन में गुजारा।
प्रश्न 51.
एम्स टेलीग्राम क्या है ?
उत्तर :
पर्सिया के प्रधानमंत्री अटोफन बिस्मार्क जर्मनी के डेनमार्क एवं ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध में जीत के जरिये जर्मनास्के एकीकरण में बहुत हद तक सफल हुए।
एम्स टेलीग्राम :
पर्सिया के प्रधानमंत्री बिस्मार्क ने फ्रांस के विरुद्ध युद्ध में उकसाने के लिये एम्स टेलीग्राम प्रकाशित किया —
स्पेन के सिंहासन पर दखल : फ्रांस के पूर्वी सीमान्त पर लगातार जर्मनी के उत्थान के कारण फ्रांस की सुरक्षा खतरे में दिखाई दी। इस अवस्था में स्पेन के सिंहासन पर पर्सिया राजवंश के लिओपोल्ड को बैठाने की व्यवस्था की गयी। फलस्वरूप फ्रांस पूर्व में जर्मनी एवं पश्चिम में स्पेन द्वारा घिर जाने से फ्रांस की जनता उत्तेजित हो उठी।
वेनेदेत्ती की मुलाकात : पर्सिया के राजा प्रथम विलियम ने पहाड़-प्रवास काल में फ्रांस के राष्ट्रदूत काउण्ट वेनेदेत्ती के साथ मुलाकात कर मांग की कि भविष्य में स्पेन के सिंहासन पर पर्सिया राजवश का कोई व्यक्ति नहीं बैठा। इस आशय का लिखित आश्वासन राजा को देना होगा।
टेलीग्राम प्रकाशन : राजा प्रथम के विलियम वेनेदेत्ती के साथ मुलाकात के विषय को टेलीग्राम के जरिये प्रधानमंत्री बिस्मार्क को बताया गया। बिस्मार्क ने टेलीग्राम के कुछ शब्द छोड़कर इसको समाचार पत्रों में ऐसे प्रकाशित किये कि इससे फ्रांसीसियों को लगे कि पर्सिया के राजा बेनेदेत्ती का अपमान किया गया है। दूसरी ओर जर्मनवासियों को यह धारणा हुई कि वेनेदेत्ती ने पर्सिया के राजा का अपमान किया हैं। बिस्मार्क द्वारा प्रकाशित इस टेलीग्राम को एम्स टेलीग्राम के नाम से जाना जाता है।
विवरणात्मक प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 8 MARKS
प्रश्न 1.
फ्रांस की फरवरी क्रांति (1848 ई.) के कारण क्या थे ?
उत्तर :
चार्ल्स दशम के शासनकाल (1830 ई०) के दौरान मात्र तीन दिन की जुलाई क्रांति के जरिये फ्रांस के आलिएँ वंशीय शासन की शुरुआत हुई एवं इस वंश के राजा लुई फिलिप फ्रांस के सिंहासन पर बैठे। उनके राजतंत्र को ‘जुलाई राजतंत्र’ भी कहा जाता है। 1848 ई. की फरवरी क्रांति के फलस्वरूप लुई फिलिप एवं जुलाई राजतंत्र का पतन हुआ एवं फ्रांस में द्वितीय प्रजातंत्र की प्रतिष्ठा हुई।
फरवरी क्रांति के कारण :
बुर्जुआ श्रेणी का वर्चस्व : लुई फिलिप का एक बुर्जुआ पार्लियामेंट द्वारा राजपद पर निवर्वित होने के कारण उनके शासन के दौरान देश में बुर्जुआ श्रेणी की ही स्वार्थ सिद्धि अधिक हुई जिसके कारण गरीब किसान और मजदूर नाराज हो उठे।
जनसमर्थन की कमी : विभिन्न कारणों से लुई फिलिप को लोगों का समर्थन प्राप्त नहीं हुआ जैसे नेपोलियन के अनुयायी उसके भतीजे लुई बोनापार्ट को गद्दी पर बैठाना चाहते थे। न्याय अधिकार नीति के समर्थक चार्ल्स दशम के उत्तराधिकारी इयक ऑफ बेरी को गद्दी पर बैठाना चाहते थे। कैथोलिक वर्ग लुई फिलिप की धर्म-निरपेक्ष नीति एवं प्रजातन्त्रोगण राजतन्त्र के प्रबल विरोधी थे।
मजदूर वर्ग की नाराजगी : फ्रांस में मजदूरों को अधिक समय तक मजदूरी करना, कम मजदूरी पाना अस्वास्थ्यकर परिसर में रहना आदि के कारण उनका जीवन कष्टमय हो गया था। सरकार द्वारा श्रमिकों के कल्याण के लिये कोई कदम नही उठाये जाने से श्रमिक वर्ग उसके खिलाफ थे। लुई ब्लाँ, साँ सिमो आदि प्रमुख समाजवादी नेता श्रमिकों को संघबद्ध करने में जुट गये।
त्रुटिपूर्ण विदेश नीति : लुई फिलिप ने किसी भी कीमत पर युद्ध से बचने के लिये, शान्ति रक्षा की नीति ग्रहण की। वे पोलैण्ड एवं इटली के राष्ट्रीयतावादी आन्दोलन के प्रति उदासीन रहे। बेल्जियम के स्वाधीनता युद्ध में नेतृत्व ग्रहण में व्यर्थ हुए, मिस्र एवं तुरस्क के विरोध में भूल नीति ग्रहण की। अफ्रीका एवं निकटवर्ती देशों में गलत विदेश नीति ग्रहण की। इस तरह की गलत विदेश नीतियों से फ्रांस की जनता क्षुब्ध थी।
आर्थिक संकट : 1840 ई. के दशक में सूखा, दुर्भिक्ष, भुखमरी आदि आर्थिक संकट से फ्रांस और अधिक कमजोर हो गया था। उद्योग तथा व्यापार में मंदी, बेरोजगारी महँगाई से फ्रांस की स्थिति भयावह ही गयी। सरकार द्वारा इन संकटों को सुलझाने में व्यर्थता से फ्रांस में चारों ओर विद्रोह आरंभ हो गया।
मताधिकार की मांग : लुई फिलिप के शासन काल के दौरान फ्रांस के लोग जब हताश थे, थियर्स, ला-मार्टिन जैसे प्रमुख नेताओं ने मताधिकार में वृद्धि एवं विधान सभा में भष्टाचारिता को बन्द करने की माँग पर आन्दोलन शुरू किये। आन्दोलनकारियों की माँगों को लुई फिलिप के प्रधानमंत्री गिजों द्वारा अस्वीकार किये जाने पर पेरिस में एक जनसभा (22 फरवरी, 1848 ई.) हुई किन्तु पुलिस ने इस जनसभा को भंग कर दिया। पुलिस द्वारा जनसभा भंग करने पर मजदूरों ने सड़कों पर नाकेबन्दी की। गिजो के निवास स्थान पर विक्षोभ प्रदर्शन में पुलिस की फायरिंग से 23 लोग मारे गए। इस घटना से पेरिस समेत पूरे फ्रांस में विद्रोह की आग फैल गयी। इसके दबाव में लुई फिलिप ने गद्दी छोड़कर इंगलैण्ड में शरण ली। 26 फरवरी को फ्रांस में दूसरी बार प्रजातंत्र की स्थापना हुई। इस तरह फ्रांस में फरवरी क्रांति सफल हुई।
प्रश्न 2.
इटली के एकीकरण आन्दोलन में जोसेफ मैजिनी एवं उनके यंग इटली आन्दोलन की भूमिका का उल्लेख करो।
उत्तर :
प्राचीन सभ्यता की रंगभूमि इटली, फ्रांसीसी क्रांति (1789 ई.) के पहले विभिन्न छोटे-बड़े परस्पर विरोधी राज्यों में विभक्त था। फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन द्वारा इन राज्यों को जीत कर और उनका एकीकरण करने पर भी उनके पतन के बाद वियना बन्दोबस्त द्वारा इटली को पुन: विभिन्न राज्यों में विभक्त करके वहाँ पर ऑस्ट्रिया सहित विभिन्न विदेशी शक्तियों का अधिकार हो गया।
जोसेफ मैजिनी एवं यंग इटली आन्दोलन :
19 वीं सदी के दूसरे चरण में इटली के राष्ट्रवादी नेतागणों ने राजनैतिक एकता की माँग पर आन्दोलन आरंभ किया। इस आन्दोलन के नायक जोसेफ मैजिनी (1805-72 ई.) थे। इतिहासकार ग्लेनविल की राय में मैजिनी इटली के एकीकरण आन्दोलन के मस्तिष्क एवं विधिप्रेरित नायक थे।
प्राथमिक जीवन : मैजिनी देशप्रेमी, सुलेखक, चिन्तक, वाग्मी एवं क्रांतिकारी थे। वे इटली के जेनोवा प्रदेश में पैदा (1805 ई.) हुए थे। बचपन से ही उन्होंने स्वाघीन एवं एकीकृत इटली का सपना देखना शुरू कर दिया। आरंभिक दिनों में उन्होंने कार्वोनारी नामक एक गुप्त समिति के साथ जुड़े एवं इटली को विदेशी शासकों से मुक्त करने की चेष्टा की। किन्तु शीघ्र ही इस आन्दोलन की कमजोरी को समझने के बाद इस दल को छोड़ दिया। विद्रोह उकसाने के अभियोग में उन्हें जेल एवं निर्वासन मिला।
आदर्श : मैजिनी ने महसूस किया था कि इटली के एकीकरण की राह में सबसे बड़ी बाधा ऑस्ट्रिया है। ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध में उन्होंने इटली की युवाशक्ति को कूद पड़ने के लिये प्रेरित किया। उनका आदर्श था बिना विदेशी शक्ति की मदद के इटलीवासी खून बहाकर देश में स्वाधीन प्रजातंत्र की प्रतिष्ठा करेंगे। उनका कहना था- ‘शहीदों का जितना खून बहेगा, आदर्श का बीज उतना ही फलेगा।”
यंग इटली दल का गठन : देशवासियों को देशप्रेम से प्रेरित करने के उद्देश्य से मैजिनी ने निर्वासित अवस्था में फ्रांस के वार्साय शहर में 1832 ई. में यंग इटली या नव इटली नामक एक युवा दल का गठन किया। इस दल ने शिक्षा, आत्मत्याग एवं चरित्र गठन द्वारा देशवासियों के बीच राष्ट्रीयतावाद का प्रसार करने का वत लिया। यह दल शीघ्र ही अत्यन्त लोकप्रिय हो उठा। 1833 ई. के मध्य इस दल की सदस्य संख्या 30 हजार तक पहुँच गयी। मैजिनी यंग इटली नामक एक पत्रिका का प्रकाशन भी करते थे।
फरवरी क्रांति : 1848 ई. में फ्रांस में फरवरी क्रांति आरंभ होने पर इटली में भी इसका प्रभाव विशाल जनजागरण के रूप में देखने को मिला। वेनिस में प्रजातंत्र प्रतिष्ठित हुआ। नेपल्स, मिलान, लम्बारी, आदि स्थानों में तीव्र आन्दोलन शुरू हो गया। पिडमंट सर्डिनिया के राजा चार्ल्स अल्बर्ट ने आस्ट्रिया के विरुद्ध इस आंदोलन का नेतुत्व किया। इस समय मैजिनी निर्वासन छोड़कर इटली लौट आये एवं यंग इटली के सदस्यों के साथ आन्दोलन में कूद पड़े। उनके नेतृत्व में रोम एवं टास्क्नी में प्रजातंत्र की स्थापना हुई।
व्यर्थता : संगठन का अभाव, ऑस्ट्रिया एवं फ्रांस की चरम दमनकारी नीति के कारण यंग इटली आंदोलन दुर्बल हो गया। अन्त में यह आन्दोलन व्यर्थ हो गया। रोम एवं टास्क्नी की प्रजातांत्रिक व्यवस्था नष्ट हो गई। मैजिनी ने निराश होकर बाकी जीवन लंदन में गुजारा।
मूल्यांकन : मैजिनी व्यर्थ हुए थे किन्तु उन्होंने इटलीवासियों के हृदय में देशप्रेम की चिंगारी सुलगा दी थी जो बाद में इटली के एकीकरण आन्दोलन को मजबूत बनाने में मददगार हुआ। मैजिनी की विफलता एक महान विफलता थी। इतिहासकार लिपसन ने कहा है कि ‘नये इटली के निर्माण में मैजिनी ने एक अविस्मरणीय स्थान प्रप्त किया है।”
प्रश्न 3.
बिस्मार्क के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण कैसे हुआ अथवा जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का वर्णन करो।
उत्तर :
जर्मनी के एकीकरण आन्दोलन के प्रथम चरण के व्यर्थ होने पर जर्मनी में हताशा एवं जटिल समस्याओं का उदय हुआ। इस संकटजनक परिस्थिति में 1862 ई. में पर्सिया के प्रधानमंत्री पद पर सुदक्ष कूटनीतिविद ऑटोफन बिस्मार्क पदासीन हुए।
जर्मनी की एकता स्थापना में बिस्मार्क का अवदान : बिस्मार्क ऐक्यबद्ध जर्मनी के नायक थे। जर्मनी को एक करने में उनकी भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण थी। बिस्मार्क ने पर्सिया की प्रतिनिधि सभा की राय को ठुकराते हुए एक शक्तिशाली सैन्यदल का गठन किया एवं मूलतः 1864 से 1871 ई. के बीच तीन सफल युद्धों के द्वारा जर्मनी को एक किया।
डेनमार्क के विरुद्ध युद्ध : (i) युद्ध : डेनमार्क के राजा ने लंदन समझौते (1852 ई.) का उल्लंघन करके 1863 ई. में श्लेषविग एवं हलस्टाअन नामक दो प्रदेशों पर प्रत्यक्ष दखल कर लिया। फलस्वरूप बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया को साथ लेकर डेनमार्क के विरुद्ध युद्ध की घोषणा (1864 ई.) कर दी (ii) गैस्टिन का समझौता : युद्ध में पराजित डेनमार्क गैस्टिन का समझौता (1865 ई.) करने को बाध्य हुआ। इस समझोते के द्वारा तय हुआ कि पर्सिया श्वेषविग एवं ऑस्ट्रिया हलस्टाइन पायेगा। भविष्य में ऑंस्ट्रिया एवं पर्सिया मिलजुल कर हलस्टाइन एवं श्लेषविग की समस्या का समाधान करेगा। ऑंस्ट्रिया इन समस्याओं का उल्लेख जर्मनबुण्ड में नहीं करेंग।
ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध : इसी बीच ऑस्ट्रिया की लोकप्रियता कम हो जाने पर जर्मनबुण्ड की सभा में श्लेषविग एवं हलस्टाइन प्रदेशों को ड्यूक ऑफ अगेस्टेनवर्ग को देने का प्रस्ताव दिया गया। फलस्वरूप गैस्टिन समझौते के उल्लंघन का आरोप लगाकर बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा (1866 ई.) कर दी। ऑस्ट्रिया साडोवा के युद्ध में पर्सिया से बुरी तरह पराजित हुआ। पर्सिया से हारकर ऑस्ट्रिया प्राग की संधि (1866 ई.) के लिये बाध्य हुआ। इस संधि द्वारा मेन नदी के उत्तरी जर्मन राज्य पर्सिया के साथ जुड़ गये एवं युद्ध के समय जो बड़े राज्य ऑस्ट्रिया के साथ थे उन्हें बिस्मार्क ने दखल कर लिया।
फ्रांस के विरुद्ध युद्ध : सेडान का युद्ध : विभिन्न घटनाओं के कारण पर्सिया एवं फ्रांस के सम्बन्धों में खटास आने से उनके बीच 1870 ई. में युद्ध आरंभ हो गया जिसमें फ्रांस बुरी तरह से पराजित हुआ। पराजित फ्रांस पर्सिया के साथ फ्रैंकफर्ट की संधि (1871 ई.) के लिये बाध्य हुआ जिसके द्वारा फ्रांस ने आलसास एवं लोरेन दो राज्य जर्मनी को छोड़ दिया साथ ही 5 मिलियन डॉलर क्षतिपूर्ति देने को सहमत हुआ। दक्षिण एवं उत्तर जर्मनी पाने के लिये फ्रांस राजी हो गया।
मूल्यांकन : उपरोक्त तीन युद्धों के द्वारा बिस्मार्क जर्मनी को एक करने में सफल हुए। पर्सिया के राजा प्रथम विलियम एकीकृत जर्मनी के सम्राट बने। ऐक्यबद्ध जर्मनी में बिस्मार्क ने एक संविधान लागू किया। नवगठित जर्मन राष्ट्र बाद में यूरोप तथा विश्व के शक्तिशाली देशों में गिना जाने लगा।
प्रश्न 4.
क्रीमिया के युद्ध के क्या कारण थे ?
उत्तर :
कीमिया के युद्ध के कारण निम्नलिखित थे :
लंदन की संधि : रूस तुरस्क पर उनकियार स्केलेस्की की संधि (1830 ई.) करके वसफोरस एवं दार्दनेल्स प्रणाली में रूसी जहाजों के यातायात का अधिकार पा लिया। रूस की शक्ति वृद्धि से आतंकित इंगलैड, फ्रांस एवं ऑस्ट्रिया रूस पर दबाव देकर अन्त में लंदन की संधि (1840 ई.) द्वारा युद्ध के समय उस प्रणाली से सभी जहाजों का चलना बन्द करवा दिया।
रूस की जबरदस्ती : कृष्ण सागर के अंचल में आधिपत्य विस्तार के उद्देश्य से रूस के जार प्रथम निकोलस ने 1853 ई. में इंगलैंड के समक्ष प्रस्ताव रखा कि तुरस्क को रूस एवं इंगलैंड में बाँट दिया जाये।
इंगलैंड की भूमिका : रूस के प्ररताव पर इंगलैंड कुछ नहीं कहकर चुप रहा। इससे रूस को लगा कि इंगलैंड राजी है एवं रूस तुरस्क में जंब दखल देने लगा तो इंगलैण्ड भी मुखर हो उठा।
फ्रांस की युद्धाकांक्षा : फ्रांसीसी सम्राट तृतीय नेपोलियन रूस के विरुद्ध युद्ध लगाना चाहते थे क्योंकि वे अत्यंत सक्रिय विदेशनीति अपनाकर फ्रांस की मर्यादा बढ़ाना चाहते थे। वे रूस को पराजित कर वियना संधि (1815 ई.) को तोड़ने की चेष्टा में थे।
ऑस्ट्रिया का उद्देश्य : ऑस्ट्रिया सोचता था कि बाल्कन अंचल में रूस का प्रभाव बढ़ने से उसके हित एवं सुरक्षा की हानि होगी। इसलिये रूस के विरोध में ऑस्ट्रिया शत्रुतामूलक निरपेक्ष नीति ग्रहण की एवं इंगलैंड तथा फ्रांस को समर्थन दिया।
ग्रीक चर्च को अधिकार : तुरस्क के अन्तर्गत ईशासामसीह का जन्म स्थान यरूशलम, ग्रोटो का गिरजा एवं अन्य कुछ स्थानों एवं ग्रीक क्रिश्चियन प्रजा की देखभाल का अधिकार रूस के हाथ में देने के लिये तुर्की सुल्तान के पास दूत के माध्यम से उसने मांग की। तुरस्क द्वारा इस मांग को अस्वीकार करने पर रूस ने तुरस्क के अन्तर्गत मल्डेविया एवं बालकिया प्रदेश को दखल कर लिया। इस घटना को लेकर 1853 ई. में रूस एवं तुरस्क में युद्ध आरंभ हो गया।
वियना नोट : रूस के दबदबे से आतंकित होकर इंगलैंड, फ्रांस, ऑंस्ट्रिया आदि देश वियना में बैठकर वियना नोट या वियना प्रस्ताव ग्रहण करके माल्डेविया एवं बालकिया से रूसी सेना की वापसी की मांग करने लगे। रूस द्वारा इस मांग को नहीं मानने पर तुरस्क के पक्ष में इंगलैण्ड, फ्रांस एवं पिडमांट-सर्डिनिया युद्ध में शामिल हो गये। इसके कारण सन् 1854 ई. में क्रिमिया का युद्ध शुरु हो गया।
मूल्यांकन : दो साल तक चले इस युद्ध में रूस पराजित होकर पेरिस संधि मानने पर मजबूर हो गया। इस सन्धि (1856 ई.) के द्वारा तुरस्क में रूस की दखलंदाजी बन्द हुई एवं इंगलैंड, फ्रांस, ऑस्ट्रिया जैसी बृहत शक्तियाँ तुरस्क की अखण्डता की रक्षा के लिए वचनबद्ध हुई एवं तुरस्क को अन्तर्राष्ट्रीय संविधान के अधीन लाया गया।
प्रश्न 5.
इटली के एकीकरण आन्दोलन में काउण्ट काबूर की भूमिका के बारे में आलोचना करो।
उत्तर :
19 वीं सदी के प्रथम चरण में इटली विभिन्न छोटे-बड़े राज्यों में विभक्त था तथा पिडमांट-सार्डिनिया को छोड़कर इटली के संभी राज्यों पर विभिन्न विदेशी शक्तियों का आधिपत्य था।
इटली के एकीकरण आन्दोलन में काउण्ट काबूर की भूमिका
विदेशी ताकतों को इटली से भगा कर विभक्त इटली को एक करने के लिये जिन लोगों ने असाधारण कार्य किया उनमें से एक नेता थे काउण्ट कैमिलो वेनसो डि काबूर (1810-1861 ई.)
मतादर्श : वास्तववादी काबूर ने महसूस किया कि वैदेशिक शक्ति की मदद बिना ऑस्ट्रिया जैसी शक्तिशाली देश को इटली से नहीं भगाया जा सकता। काबूर ने पिडमंट सार्डिनिया के सेवाय राजवंशीय के अधीन इटली को ऐक्यवद्ध करने का निर्णय लिया। पिडमंट की शक्ति वृद्धि के लिये उन्होंने अनेक सुधारमूलक कार्यक्रम ग्रहण किये।
विदेशी मदद : (i) यंग फ्रांसीसी शक्ति को मदद-ऑंस्ट्रिया के विरुद्ध विदेशी शक्ति की मदद पाने के लिये काबूर ने क्रिमिया के युद्ध में इंग्लैड और फ्रांस की सहायता की। (ii) पेरिस बैठक का सुयोग युद्ध के बाद पेरिस की शक्ति बैठक (1856 ई.) में ऑंस्ट्रिया के विरुद्ध इटली ने अपनी शिकायतों को रखने का सुयोग पाया। प्लोवियर्स का समझौता-काबूर फ्रांस के साथ प्लोमविर्मस का गुप्त समझौता किया। इसके द्वारा इटली की एकीकरण आन्दोलन में ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध में फ्रांस पिडमांट को मदद देने के लिये राजी हुआ।
ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध : फ्रांस के साथ गुप्त समझौता के बाद काबूर ऑस्ट्रिया को विभिन्न प्रकार से युद्ध के लिये भड़काने लगे। इसके कारण आँस्ट्रिया ने पिडमांट के विरुद्ध युद्ध की घोषणा (1859 ई.) की एवं फ्रांस भी पिडमांट के पक्ष में युद्ध में शामिल हो गया। फ्रांस ने ऑस्ट्रिया को मैजेण्टा एवं सलफरिनो के युद्ध में पराजित करके लम्बर्डी दखल कर लिया। किन्तु फ्रांसीसी समाट तृतीय नेपोलियन ने बीच राह में ही युद्ध रोक कर ऑंस्ट्रिया के साथ विल्लाफ्रांका की संधि (1859 ई.) कर लिया। इस सन्धि द्वारा पिडमांट के साथ लम्बर्डी एवं मिलान युक्त हुआ।
क्षोभ : काबूर द्वारा विल्लाफ्रांका की संधि का विरोध करने पर भी पिडमांट के राजा विक्टर इमानुएल ने महसूस किया कि फ्रांस की मदद के बिना ऑस्ट्रया के विरुद्ध युद्ध जारी रखना और युद्ध में जीत पाना सम्भव नहीं है। इसीलिये वे युद्ध विराम के लिए राजी हुए एवं इस संधि को मान कर उन्होंने ऑस्ट्रिया के साथ ज्यूरिख संधि (1859 ई.) की। इस घटना से क्षुब्ध होकर काबूर ने पदत्याग किया।
फ्रांस के साथ समझौता : ज्यूरिख की सन्धि द्वारा मध्य इटली का पार्मा, मडेना, टास्कनी, रोमाना इत्यादि राज्यों में पुराने विदेशी शासन की पुन: प्रतिष्ठा की बात् कही गयी किन्तु वहाँ की जनता ने इस निर्णय का विरोध किया। वह पिडमांट के साथ रहना चाहती थी। इसमें फ्रांस एवं ऑस्ट्रिया ने आपत्ति की। देश की इस संकटजनक परिस्थिति में काबूर ने देश के हित में पुन: प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया (1860 ई)। उन्होंने फ्रांसीसी सम्राट तृतीय नेपोलियन के साथ एक समझौता किया। इसके द्वारा तय हुआ कि (1) फ्रांस मध्य इटली के उन राज्यों के जोड़ने पर आपत्ति नहीं करेगा। (2) इसके लिये फ्रांस को सेवाय एवं निस मिलेगा।
मूल्यांकन : जनमत के माध्यम (1860 ई.) से पिडमांट के साथ मध्य इटली के राज्य शामिल किये गये, लेकिन काबूर द्वारा इटली के सेवाय एवं निस फ्रांस को प्रदान करने की बचनवद्धता से विक्टर इमानुएल एवं गैरी बाल्डी असन्तुष्ट हुए क्योंकि पिडमांट राजवंश का आदिनिवास सेवाय एवं गौरीबाल्डी का निस था। गैरीबाल्डी ने काबूर से कहा कि आपने मुझे अपने ही देश में परदेशी बना दिया।
प्रश्न 6.
19वीं सदी में बाल्कन / पूर्वाचल / निकट प्राच्य समस्या के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर :
यूरोप के दक्षिण-पूर्व हिस्से में अवस्थित इजियन सागर एवं डेन्यूब नदी के मध्यवर्ती प़ाड़ी अंचल बाल्कन अंचल के नाम से परिचित है। 15 वीं सदी के अन्त में ग्रीस, बुल्गारिया, भल्देविया, रोमानिया, सर्विया आदि यूरोपियन देशों पर एशियन अटामान तुर्की लोगों का शासन प्रतिष्ठित हुआ।
बाल्कन समस्या के कारण :
तुर्की साम्राज्य की कमजोरी : 18 वीं सदी के अन्त से (1) यूरोपीय राष्ट्र आधुनिक सामरिक शक्ति से शक्तिशाली होने पर भी तुरस्क आधुनिक युग के लिए उपयुक्त सामरिक शक्ति का गठन नहीं कर पाया था। (2) तुरस्क की विख्यात जान्जारी सैन्यवाहिनी के विद्रोह से सुल्तान ने इसको भंग कर दिया। (3) तुरस्क मध्ययुगीन मूलातंत्र एवं धार्मिक ढकोसले से बँधा होने के कारण पिछड़ गया। शासकों की अयोग्यता, प्रादेशिक शासको का क्षमता लोभ तथा प्रशासन में भ्रष्टाचार आदि के कारण तुर्की साम्राज्य बहुत कमजोर हो गया था।
रूस का जार : रूस का जार पीटर द ग्रेट (1721-1725 ई.) ने कमजोर तुर्को में जोर-जवरदस्ती की नीति अपनाकर बर्फमुक्त कृष्णासागर के किनारे तक अपना साम्राज्य विस्तार कर लिया। इसे उष्णा जल नीति के नाम से जाना जाता है। रूस ने जारिना द्वितीय कैथेरीन (1762-1976 ई.) ने तुरस्क अभियान चलाकर युक्रेन एवं क्रिमिया दखल कर लिया 19वीं सदी में भी रूस ने इसे जारी रखा।
बाल्कन राष्ट्रवाद : बाल्कन देश तुरस्क की अधीनता त्याग कर आजादी के लिये तत्पर हो उठे। उसने अपने स्वाधीन राष्ट्र के लिये आन्दोलन आरंभ कर दिया। रूस ने इस आन्दोलन का समर्थन किया एवं तुर्की साम्माज्य को ध्वंस करके इन अंचलों को अपने दखल में कर लिया।
यूरोपीय शक्तिवर्ग की भूमिका : बाल्कन अंचलों में रूस की दखलदारी से इंगलैंड, फ्रांस आदि देश सन्देह करने लगे कि उन अंचलों में उनका प्रभुत्व नष्ट हो जायेगा। इसलिये वे लोग तुर्की में रूस के विरुद्ध सामने खड़े हो गये। फलस्वरूप बाल्कन समस्या जटिल हो गयी।
क्रिमिया का युद्ध : बाल्कन समस्या को लेकर तुरस्क एवं रूस के बीच क्रिमिया का युद्ध (1854-1856 ई ) आरंभ हुआ। तुरस्क की अखण्डता की रक्षा के लिये इंगलैंड, फ्रांस एवं पिडमांट-सडिंनिया इस युद्ध में रूस के विरुद्ध शामिल हुए। युद्ध में रूस पराजित हुआ एवं पेरिस संधि (1856 ई.) द्वारा यह युद्ध समाप्त हुआ।
रोमानिया का जन्म : पेरिस संधि के बाद मलडेविया एवं बालकिया नामक दो तुर्की प्रदेशों ने स्वाधीनता की मांग की। इस मांग का इंगलैंड एवं ऑस्ट्रिया ने समर्थन किया। फलस्वरूप 1859 ई. में दोनों प्रदेश स्वाधीन होकर रोमानिया के नाम से जाने गये।
सानस्टेफानों की संधि : 1870 ई. के दशक में तुरस्क के विरुद्ध वाल्गेरिया में विशाल विद्राहह होने पर तुर्की सेना ने बड़ी बेरहमी से बुल्गारीनों की हत्या की। बाल्कन देशों पर तुर्की लोगों के अत्याचार के नाम पर रूस ने तुरस्क के विरुद्ध युद्ध की घोषणा (1877 ई.) कर दी। पराजित तुरस्क ने सानस्टेफाने की संधि (1877 ई.) द्वारा तुरस्क सर्विया, रोमानिया एवं मंटिनेग्रो की स्वाधीनता मान ली। स्वाधीन बुल्गारिया राष्ट्र गठित हुआ। तुरस्क कुछ जगहों को रूस के लिए छोड़ दिया एवं क्षतिपूर्ति देने के लिये राजी हुआ।