Detailed explanations in West Bengal Board Class 9 History Book Solutions Chapter 2 क्रांतिकारी आदर्श, नेपोलियन का साम्राज्य एवं राष्ट्रवाद offer valuable context and analysis.
WBBSE Class 9 History Chapter 2 Question Answer – क्रांतिकारी आदर्श, नेपोलियन का साम्राज्य एवं राष्ट्रवाद
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK
प्रश्न 1.
आस्ट्रिया ने नेपोलियन के साथ कैम्पोफोर्मिया की संधि कब की ?
उत्तर :
1797 ई० में।
प्रश्न 2.
नेपोलियन कोड किस वर्ष सम्पूर्ण फ्रांस में लागू कर दिया गया ?
उत्तर :
1804 ई० में।
प्रश्न 3.
कौम्पो कॉर्निया की सन्धि क्या है ?
उत्तर :
लोम्बार्डी पर फ्रांस का अधिकार एवं आस्ट्रिया द्वारा फ्रांस को बेल्जियम प्रदान करना।
प्रश्न 4.
अमीन्स की संधि किसके-किसके बीच हुई थी ?
उत्तर :
अमीन्स की संधि फ्रांस और इंग्लैण्ड के बीच 1802 ई० में हुई।
प्रश्न 5.
नेपोलियन बोनापार्ट का जन्म स्थल कहाँ था?
उत्तर :
नेपोलियन बोनापार्ट का जन्म स्थल फ्रांस में स्थित कोर्सिका द्वीप के अजाचियो है ।
प्रश्न 6.
शुरुआती दौर में नेपोलियन फ्रांस के किस दल का सदस्य था?
उत्तर :
जैकोबिन दल का ।
प्रश्न 7.
‘सिविल मैरेज” का नियम क्या था ?
उत्तर :
“सिविल मैरेज” के नियम का तात्पर्य फ्रांस में शादी के समय वर-वधू द्वारा नेपोलियन की संहिता की धाराओं के अनुसार शपथ लेनी होती है।
प्रश्न 8.
नेपोलियन ने प्रशा को किस वर्ष पराजित किया ?
उत्तर :
1806 ई० में।
प्रश्न 9.
नेपोलियन किस द्वीप पर जन्मा था?
उत्तर :
फ्रांस में स्थित कोर्सिका द्वीप में।
प्रश्न 10.
नेपोलियन ने किससे पहले विवाह किया था?
उत्तर :
जोसेफिन से।
प्रश्न 11.
नेपोलियन कब फ्रांस के कॉन्सल के पद पर आजीवन के लिए चुना गया?
उत्तर :
1802 ई० में ।
प्रश्न 12.
फ्रांस राज्य क्रांति के बाद किसने फ्रांस के लिए विधि-संहिता का निर्माण किया?
उत्तर :
नेयोलियन ने ।
प्रश्न 13.
‘बर्लिन आदेश’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
नेपोलियन द्वारा ब्रिटिश द्वीप समूह तथा अंग्रेजी उपनिवेशों की घेराबन्दी को नवम्बर 1806 ई० की बर्लिन आदेश के रूप में जाना जाता है।
प्रश्न 14.
नेपोलियन फ्रांस की सेना में सब-लेफ्टिनेंट के पद पर कब नियुक्त हुए और उस समय उनकी उप्र क्या थी?
उत्तर :
1789 ई० में। उस समय उनकी उम्र 19 वर्ष थी।
प्रश्न 15.
‘मैं ही क्रान्ति हूँ” इस कथन की व्याख्या स्पष्ट करें?
उत्तर :
नेपोलियन के इस कथन का अभिप्राय है कि मैं ही क्रान्ति का प्रतिक हूँ ।
प्रश्न 16.
पवित्र संघ की स्थापना किसने की थी?
उत्तर :
पवित्र संघ की स्थापना रूस, ऑस्ट्रिया और प्रशा के राजाओं ने मिलकर की थी।
प्रश्न 17.
कानून संहिता का निर्माण किसने किया था ?
उत्तर :
नेपोलियन ने किया था।
प्रश्न 18.
ब्रिटेन, रूस, ऑस्ट्रिया और प्रशा ने मिलकर एक संधि की उसका नाम क्या था ?
उत्तर :
शोमेण्ट की संधि!
प्रश्न 19.
‘आर्डर-इन-कौसिल’ क्या था?
उत्तर :
इग्लैण्ड द्वारा फ्रांस से व्यापारिक सम्बन्ध समाप्त करने का आदेश पत्र था ।
प्रश्न 20.
कब और किस युद्ध में नेपोलियन बुरी तरह पराजित हुआ ?
उत्तर :
1815 ई० के 18 जून को वाटरलू के युद्ध में नेपोलियन बुरी तरह पराजित हुआ।
प्रश्न 21.
नेपोलियन कब और कहाँ पैदा हुआ था ?
उत्तर :
15 अगस्त 1769 ई० में भूमध्यसागर के कार्सिका द्वीप में नेपोलियन का जन्म हुआ था।
प्रश्न 22.
ट्राफलगर का युद्ध कब और किनके बीच हुआ था ?
उत्तर :
ट्राफलगर का युद्ध 1805 ई० (21 अक्टूबर) में फ्रांस एवं इंग्लेण्ड के बीच हुआ था।
प्रश्न 23.
टिलसिट की सन्धि कब और किसके बीच हुई थी ?
उत्तर :
1807 ई० में फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन एवं रूस के जार प्रथम अलेक्जेण्डर के बीच टिलंसिट की सन्धि हुई थी।
प्रश्न 24.
फ्रांस में किसे “द्वितीय जस्टीनियन”‘ की उपाधि मिली थी?
उत्तर :
नेपोलियन।
प्रश्न 25.
फ्रांस का कौन शासन अपने को क्रान्ति का पुत्र कहता था?
उत्तर :
नेपोलियन।
प्रश्न 26.
नेपोलियन कब फ्रांस का सम्राट बना था?
उत्तर :
मार्च 1804 ई० में नेपोलियन फ्रांस का सम्माट बना।
प्रश्न 27.
नेपोलियन ने स्पेन जीत कर किसको राजा बनाया था?
उत्तर :
नेपोलियन ने अपने भाई जोजफ को स्पेन का राजा बनाया था।
प्रश्न 28.
नेपोलियन ने हालैण्ड जीत कर किसको राजा बनाया था ?
उत्तर :
अपने छोटे भाई लुई बोनापार्ट को।
प्रश्न 29.
1795 ई० में नेपोलियन ने किस प्रान्त को फ्रांस में मिला लिया था?
उत्तर :
रनिश प्रान्त को।
प्रश्न 30.
एस्टेट किसे कहा जाता था ?
उत्तर :
फ्रांस के सामाजिक, वर्ग विभाजन को एस्टेट कहा जाता था।
प्रश्न 31.
फ्रांस की कान्ति में मानवाधिकार की घोषणा कब की गई थी ?
उत्तर :
26 अगस्त, 1789 ई०
प्रश्न 32.
“मैं ही राज्य हूँ और मेरे शब्द ही कानून है ।” – यह किसकी उक्ति है ?
उत्तर :
लुई 16 वाँ।
प्रश्न 33.
किसने ‘लिजियन ऑफ ऑनर’ पुरस्कार देने की प्रथा चालू की थी ?
उत्तर :
नेपोलियन बोनापार्ट ने ‘लिजियन ऑफ ऑनर’ पुरस्कार प्रदान करने की प्रथा चालू की।
प्रश्न 34.
‘मैं ही क्रांति हूँ और मैने ही क्रांति को ध्वंस किया है।’ – यह कथन किसका है ?
उत्तर :
यह कथन नेपोलियन बोनापार्ट का है।
प्रश्न 35.
कब और किन्हें लेकर फ्रांस-विरोधी द्वितीय गुट तैयार हुआ था ?
उत्तर :
1799 ई० के 12 मार्च को इंग्लैण्ड, रूस, ऑस्ट्रिया, नेपल्स, पुर्तगाल एवं तुर्की को लेकर फ्रांस-विरोधी द्वितीय गुट बना था।
प्रश्न 36.
मारेंग्पा का युद्ध कब और किनके बीच हुआ था ?
उत्तर :
1800 ई० में मारेंग्पा का युद्ध फ्रांस और ऑस्ट्रिया के बीच हुआ था।
प्रश्न 37.
होहेनलिण्डेन का युद्ध कब और किनके बीच हुआ था ?
उत्तर :
1800 ई० में फ्रांस और ऑस्ट्रिया के बीच होहेनलिण्डेन का युद्ध हुआ था।
प्रश्न 38.
कब और किनके बीच लुनविल की सन्धि हुई थी ?
उत्तर :
1801 ई० में फ्रांस एवं ऑस्ट्रिया के बीच लुनविल की सन्धि हुई थी।
प्रश्न 39.
किसने कब और कहाँ नेपोलियन का अभिषेक संपन्न कराया ?
उत्तर :
पोप सप्तम पायस ने 1804 ई० के 2 दिसम्बर को नतोरदम गिरजाघर में नेपोलियन का अभिषेक सम्पन्न किया।
प्रश्न 40.
नेपोलियन का श्रेष्ठ सेनापति कौन था ?
उत्तर :
नेपोलियन का श्रेष्ठ सेनापति मेसेना था।
प्रश्न 41.
किसने और कब ‘कोड नेपोलियन’ का प्रवर्तन किया?
उत्तर :
फ्रांस के सम्माट नेपोलियन ने, 1804 ई० में ‘कोड नेपोलियन’ का प्रवर्तन किया।
प्रश्न 42.
किस पुस्तक को ‘फ्रांसीसी समाज का बाईबिल’ कहा जाता है ?
उत्तर :
नेपोलियन के आचार-संहिता को ‘फ्रांसीसी समाज का बाईबिल’ कहा जाता है।
प्रश्न 43.
किसे और क्यों ‘द्वितीय जस्टिनियन’ कहा जाता है ?
उत्तर :
फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन के ‘कोड नेपोलियन’ के नाम से आचार-संहिता की रचना के लिये उसे द्वितीय जस्टिनियन कहा जाता है।
प्रश्न 44.
कब और किनके द्वारा फ्रांस विरोधी तृतीय गुट बना ?
उत्तर :
1805 ई० में इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रिया, रूस एवं स्वीडेन के सहयोग से फ्रांस-विरोधी तृतीय गुट तैयार हुआ।
प्रश्न 45.
ऊल्म की लड़ाई कब और किनके बीच हुई थी ?
उत्तर :
1805 ई० में फ्रांस एवं ऑस्ट्रिया के बीच ऊल्म का युद्ध हुआ था।
प्रश्न 46.
लाइपजिंग की लड़ाई कब और किनके बीच हुई थी ?
उत्तर :
1813 ई० में फ्रांस एवं चतुर्थ गुट के बीच लिपजिंग की लड़ाई हुई थी।
प्रश्न 47.
कब और किनके बीच अस्टरलित्से का युद्ध हुआ था ?
उत्तर :
1805 ई० में फ्रांस एवं ऑस्ट्रो-रूस संयुक्त वाहिनी के बीच अस्टरलित्से का युद्ध हुआ था।
प्रश्न 48.
कौन और कब प्रेसवा की सन्धि के लिये बाध्य हुआ ?
उत्तर :
अस्टरलित्से के युद्ध में अस्ट्रो-रूस वाहिनी फ्रांस से पराजित होकर, आस्ट्रिया में फ्रांस के साथ सन्धि करने के लिये (प्रेसवा) बाध्य हुआ।
प्रश्न 49.
कौन और कब स्कलब्रान की सन्धि करने के लिये बाध्य हुआ था ?
उत्तर :
जेना एवं वारस्टेट के युद्ध में फ्रांस से पराजित होकर प्रशिया 1806 ई० में स्कलब्रान की सन्धि के लिए बाध्य हुआ था।
प्रश्न 50.
नेपोलियन यूरोप के किन दो देशों के पुनर्गठन के लिये महत्वपूर्ण भूमिका का पालन किया ?
उत्तर :
जर्मनी एवं इटली – इन दो देशों के पुनर्गठन में नेपोलियन की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS
प्रश्न 1.
नील नदी का युद्ध किसके बीच और कब हुआ ? उसमें कौन पराजित हुआ ?
उत्तर :
नील नदी का युद्ध अंग्रेजी सेनापति नेल्सन और नेपोलियन बोनापार्ट के बीच हुआ था। इस युद्ध में नेपोलियन पराजित हुआ।
प्रश्न 2.
नेपोलयन की पादरियों पर से पोप के नियंत्रण को समाप्त करने के लिए तीन प्रमुख व्यवस्थाएँ क्या थीं ?
उत्तर :
समझौते के अनुसार निर्णय लिए गये –
- पोप ने चर्च की जब्त की गयी सम्पत्ति तथा भूमि पर से अपना अधिकार त्याग दिया।
- शिक्षा संस्थाओं पर राज्य का नियन्त्रण स्वीकार किया गया।
- राज्य की आज़ा के बिना कोई पादरी देश से बाहर आ-ज़ा नहीं सकता था।
प्रश्न 3.
नेपोलियन के रूसी अभियान का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर :
14 अक्टूबर, 1806 ई० को प्रशिया को पराजित करने के पश्चात् नेपोलियन ने रूस पर आक्रमण कर दिया। ईलों के युद्ध में दोनों पक्षों के बीच घमासान युद्ध हुआ परन्तु युद्ध परिणामहीन रहा। इसके बाद फ्रीडलैण्ड के युद्ध में रूस पराजित हुआ। टिलसिट की संधि में नेपोलियन ने रूस को अपना मित्र बना लिया।
प्रश्न 4.
विधि संहिता में बुर्जुआ वर्ग के अधिकार की चर्चा करें।
उत्तर :
नेपोलियन की विधि संहिता ने बुर्जुआ वर्ग के हितों की रक्षा पर ज्यादा जोर दिया। भूमि-सम्बन्धी अधिकारों को और मजबूत बनाया गया और व्यक्तिगत सम्पत्ति की रक्षा के लिए भी कई कानून बनाए गए। ट्रेड यूनियन बनाना कानूनी अपराध माना गया। मुकदमे की स्थिति में मजदूरी की दलीलों के बदले मालिकों की बातों को न्यायालयों को मानने को कहा गया।
प्रश्न 5.
प्रथम कन्सुल के रूप में नेपोलियन की क्या क्षमता थी ?
उत्तर :
प्रथम कन्सुल के रूप में नेपोलियन के पास पर्याप्त क्षमता थी। उनके नियंत्रण में सैन्यवाहिनी एवं प्रशासन के कर्मचारी, मंत्री, राष्ट्रदूत सबकी नियुक्ति, कानून बनाना, युद्ध की घोषणा, शान्ति स्थापना आदि था।
प्रश्न 6.
एल्बाद्वीप क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर :
उत्नीस मील लम्बा और छः मील चौड़ा एल्बा द्वीप टस्कनी तट पर स्थित है। इसी टापू पर 21 मई, 1814 ई० से तकरीबन 10 महीने तक मार्च 1815 ई० तक नेपोलियन ने अपना निर्वासित जीवन व्यतीत किया था। लिपजिंग की रणभूमि में नेपोलियन को मित्रराष्ट्रों की सेनाओं से भयकर भार मिला और उसे फॉउण्टेनब्लू की संधि करनी पड़ी उसी संधि के अनुसार ढाई करोड़ फ्रैंक की पेंशन तथा सम्राट के पद के साथ एल्बा नामक टापू दे दिया गया था।
प्रश्न 7.
फोन्टेनबल्यू की संधि किन देशों के बीच हुई थी?
उत्तर :
फोन्टेनबल्यू की संधि 1814 ई० में नेपोलियन एवं मित्र देशों के बीच हुई थी ।
प्रश्न 8.
स्वतन्त्रता के सिद्धान्त और नेपोलियन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
लोकतंत्रवाद का स्वाभाविक परिणाम यह हुआ कि फांस में पहली बार नागरिक स्वतंत्रता का उदय हुआ। इस स्वतंत्रता का तात्पर्य था – सम्पत्ति का अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता, शरीर की स्वतंत्रता तथा वाणी एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुरक्षित रहे। क्रांति युग में फ्रांस में जो शासन विधान व कानून बना उनमें नागरिक स्वतंत्रता को प्रमुख स्थान दिया गया।
प्रश्न 9.
समानतावाद के सिद्धान्त को क्या नेपोलियन ने अपने शासन में निभाया था ?
उत्तर :
‘नेपोलियन-संहिता’ (Code of Napoleon) में नेपोलियन ने अपनी क्रान्ति के श्रेष्ठ सिद्धान्त और कानून संग्रहीत किये। उसने समानता के सिद्धान्त को मानकर अपने सेवक तथा सेनापति, सबको सामाजिक स्थिति के आधार पर नहीं, वरन् योग्यता के आधार पर चुना। उसने फ्रांसीसी क्रान्ति के प्रभाव को अमरत्व प्रदान किया।
प्रश्न 10.
कोड नेपोलियन क्या है ?
उत्तर :
फ्रांस का शासक नेपोलियन देश के विभिन्न प्रान्तों में प्रचलित कानूनों के अन्तर को दूर कर परस्पर-विरोधी कानूनों में सामंजस्य रखकर 1804 ई० में देश में एक नयी कानून व्यवस्था लागू की। इसे कोड नेपोलियन कहा जाता है।
प्रश्न 11.
पवित्र संघ की विचारधारा क्या थी ?
उत्तर :
यूरोप में शान्ति-व्यवस्था बनाये रखने के लिए सर्वपथम रूस के जार अलेक्जेंडर प्रथम ने यूरोप के महान राष्ट्रों के सामने पवित्र संघ की योजना रखी। यह योजना उसकी धार्मिक प्रवृत्ति से अत्यधिक प्रभावित थी। एक घोषणा द्वारा यूरोप के समस्त राजाओं को बाइबिल में प्रतिपादित भ्रातृत्व की भावनाओं के अनुसार शासन धर्म, न्याय एवं शान्ति की स्थापना तथा आचरण करने के लिए कहा गया। 26 सितम्बर 1815 ई० को इस घोषणा-पत्र पर इंग्लैंड के राजा, तुर्की के सुल्तान और रोम के पोप के अतिरिक्त अन्य यूरोप के सभी आमंत्रित राजाओं ने हस्ताक्षर कर दिये और वे पवित्र संघ के सदस्य हो गये।
प्रश्न 12.
फ्रांस में नेपोलियन के विरुद्ध प्रतिक्रिया के क्या कारण थे ?
उत्तर :
जनता ने 1812 ई० के पश्चात् नेपोलियन पर विश्वास रखना छोड़ दिया था। इसका प्रमुख कारण – नेपोलियन का क्रांति के आदर्शों के विपरीत नीति, वैदेशिक नीति, नेपोलियन की लिपजिंग में पराजय और 1813 ई० की गैर फ्रांसीसी सैनिकों की भर्ती थी। जनता शांति चाहती थी इसलिए जब मित्र राष्ट्रों ने नेपोलियन के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया तब उन्होंने उनके आक्रमणों का विरोध नहीं किया।
प्रश्न 13.
आईबेरियाई जनता नेपोलियन के विरुद्ध क्यों थी ?
उत्तर :
आइबेरिया पुर्तगाल का अंग था तथा यह बिटेन का सबसे पुराना व्यापारिक मित्र था। जब नेपोलियन ने अपने महाद्वीपीय व्यवस्था के माध्यम से इस प्रदेश में अंग्रेजी व्यापार एवं वाणिज्य को रोकने का प्रयास किया तो पुर्तगाली सरकार ने इस बात को मानने से इंकार कर दिया। इस द्वीप समूंह के लोगों ने नेपोलियन का विरोध किया।
प्रश्न 14.
किसे और क्यों ‘द्वितीय जस्टिनियन’ कहा जाता है ?
उत्तर :
फ्रांसिसी शासक नेपोलियन ने 1804 ई० में कोड नेपोलियन नामक नयी आचार-संहिता की रचना की। तत्कालीन समय में यह कानून व्यवस्था नेपोलियन का श्रेष्ठ सुधार कार्य एवं कीर्ति माना जाता था। इसी कारण उन्हें द्वितीय जस्टिनियन कहा जाता है।
प्रश्न 15.
शामों की संधि की बाते क्या थीं ?
उत्तर :
इंग्लैण्ड, रूस, प्रशा और आस्ट्रिया ने परस्पर सन्धि करके यह निश्चय किया कि नेपोलियन के साथ कोई देश पृथक रूप से संधि नहीं करेगा। सभी मित्र-राष्ट्रों ने नेपोलियन की पराजय को अपना सामूहिक लक्ष्य घोषित किया। प्रत्येक राष्ट्र ने 1.50 लाख सैनिक और इंग्लैण्ड ने 50 लाख पौण्ड युद्ध खर्च देना तय किया।
प्रश्न 16.
अर्डार्स-इन-कौंसिल क्या है ?
उत्तर :
फ्रांस के सम्राट नेपोलियन ने बर्लिन डिकी (1806 ई०) के द्वारा इंग्लैण्ड के विरुद्ध महादेशीय अवरोधों की घोषणा करने पर इंग्लैण्ड भी 1807 ई० में फ्रांस एवं उसके मित्र देशों के विरुद्ध जबावी घोषणा की जिसे ‘अर्डार्स-इन-कौन्सिल के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 17.
स्पेन का आघात क्या है ?
उत्तर :
फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन द्वारा स्पेन का दखल किये जाने पर वहाँ के लोग नेपोलियन के खिलाफ तीव्र मुक्ति संग्राम में कूद पड़े। स्पेन के युद्ध में नेपोलियन की सेना के बुरी तरह हारने के बाद जोसेफ बोनापार्ट को स्पेन छोड़ फ्रांस लौटने को बाध्य होना पड़ा। स्पेन में नेपोलियन के इस पराजय को स्पेनीय आघात के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 18.
महाद्विपीय व्यवस्था किसे कहते हैं?
उत्तर :
महाद्वीपीय व्यवस्था नेपोलियन की एक रणनीति थी। इस रणनीति का मुख्य लक्ष्य था कि बिटेन और फ्रांस के साथ वाले सभी राज्यों के बीच व्यापार पर प्रतिबंध लगाकर ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को कमजोर किया ज़ाए, जो काफी हद तक असफल साबित हुआ और नेपोलियन के गिरावट का कारण बना।
प्रश्न 19.
नेपोलियन कब और किसके शासन काल में फ्रांस का महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गया?
उत्तर :
1775 ई० में डॉयरेक्टरी के शासन काल में नेपोलियन फ्रांस का महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गया ।
प्रश्न 20.
नेपोलियन ने यूरोप के सभी देशों के साथ युद्ध लड़ा और विजयी हुआ लेकिन का कौन सा देश था जिसमे उसने लड़ाई नहीं की और क्यों?
उत्तर :
स्वीजरलेण्ड से नेपोलियन कभी लड़ाई नहीं की क्योंकी वह तटस्थ देश था ।
प्रश्न 21.
नेपोलियन की विधि संहिता में किस वर्ग के हितों की रक्षा की गई थी?
उत्तर :
बुर्जुआ वर्ग के हितों की रक्षा की गई थी ।
प्रश्न 22.
किन लड़ाइयों के कारण फ्रांसीसी सेना को नेपोलियन के समय स्पेन छोड़ना पड़ा?
उत्तर :
रूस और जर्मनी दोनों देशों से लड़ाई लड़ने के कारण नेपोलियन की सेना को स्पेन छोड़ना पड़ा ।
प्रश्न 23.
लिपजिंग युद्ध में कौन देश पराजित हुआ और कब ?
उत्तर :
1814 ई० में लिपजिंग युद्ध में फ्रांस पराजित हुआ ।
प्रश्न 24.
विमीयरो के युद्ध में कौन देश पराजित हुआ और कब?
उत्तर :
1806 ई० में फ्रांस देश द्वारा पुर्तगाल पराजित हुआ ।
प्रश्न 25.
टिलसिट संधि कब और किसके-किसके बीच हुई थी?
उत्तर :
टिलसिट की संधि 8 जुलाई 1807 इे० में फ्रिडलैंड के टिलिटिट शहर में फ्रांस के सम्राट नेपोलियन और रूस के सम्राट अलेक्जेंडर के बीच हस्ताक्षर किए गए थे।
प्रश्न 26.
मास्को आक्रमण किसने और कब किया ?
उत्तर :
मास्को आक्रमण नेपोलियन ने जून, 1812 ई० में किया ।
प्रश्न 27.
कन्मुलेट शासन क्या है ?
उत्तर :
फ्रांसीसी सेनापति नेपोलियन 1799 ई० ने डाइरक्टरी शासन का अन्त कर 9 नवम्बर 1799 ई० को फ्रांस में एक नयी व्यवस्था चालू की। इसमें नेपोलियन सहित कुल 3 कन्सुल के हाथ में फ्रांस का शासन भार सौंप दिया गया। यही कन्सुलेट शासन के नाम से परिचित है।
प्रश्न 28.
कन्सुलेट शासनकाल में फ्रांस के तीनों कन्सुल के नाम लिखो।
उत्तर :
कन्सुलेट शांसनकाल में फ्रांस के प्रथम कन्सुल नेपोलियन थे जो फ्रांस की सर्वोच्च क्षमता के अधिकारी थे। अन्य दो कन्सुल आवेसियस एवं रोजर डुकोस थे।
प्रश्न 29.
नेपोलियन ने किस प्रकार प्रादेशिक प्रशासन को विभाजित किया था ?
उत्तर :
नेपोलियन ने पूरे फ्रांस को 83 विभाग या प्रदेशों में एवं प्रदेशों को 547 कैंटन या जिलों में बाँट दिया था। प्रदेश एवं जिला के शासक को ‘प्रिफेक्ट’ एवं सब-प्रिफेक्ट’ कहा जाता था।
प्रश्न 30.
नेपोलियन प्रथम कौंसुल कैसे बना ?
उत्तर :
1799 में नेपोलियन कुछ सैनिक अधिकारियों के साथ मिलकर डायरेक्टरी-शासन का तख्ता पलट दिया और फ्रांस की व्यवस्थापिका सभा ने एक प्रस्ताव पास करके उसे प्रथम कॉन्सुल के पद पर नियुक्त कर दिया।
प्रश्न 31.
राष्ट्रवाद कैसे नेपोलियन के पतन का कारण बना ?
उत्तर :
नेपोलियन ने राष्ट्रीयता की लहर यूरोपीय देशें में फैलाई। वास्तव में जहाँ-जहाँ नेपोलियन की सेना गई, वहाँ-वहाँ राश्ट्रवाद का उदय हुआ। विजित देशें ने जब देखा कि नेपोलियन स्वयं शासन करने लगा है और अपने रिश्तेदारों को अपने प्रतिनिधि के रूप में विभिन्न जगहों पर आसीन करने लगा है, तो वे फ्रांसीसी सेना के विरुद्ध उठ खड़े हुए। इस संगठित आंदोलन को चलाने में उनमें राष्ट्रीयता की भावना का संचार हुआ।
प्रश्न 32.
भँदेभिया की घटना क्या है अथवा अक्टूबर की घटना क्या है ?
उत्तर :
फ्रांसीसी कांति (1789 ई०) के बाद राजतंत्र के समर्थक उत्तेजित जनता द्वारा 1795 ई० के 5 अक्टूबर को फ्रांस की राष्ट्रीय सभा पर आक्रमण करने पर फ्रांस के ब्रिगेडियर जेनरल नेपोलियनने बहुत ही मामूली संख्या में सेना को लेकर जनता को तितर-बितर किया एवं राष्ट्रीय सभा को नष्ट होने से बचाया। इसी घटना को भंदेभिया या अक्टूबर घटना कहते हैं।
प्रश्न 33.
18 लुमेया की घटना क्या है ?
उत्तर :
नेपोलियन बोनापार्ट ने फ्रांस के क्रांतिकारी कैलेण्डर के अनुसार बुमेया महीने के 18 तारीख को डाइरक्टरी शासन का अन्त करके फ्रांस की शासन व्यवस्था पर दखल किया। इस घटना को 18 बुमेया की घटना कहते हैं।
प्रश्न 34.
सिजालपाईन प्रजातंत्र क्या है ?
उत्तर :
नेपोलियन द्वारा इटली के लम्बार्डी को दखल करके वहाँ जिस गणतंत्र की प्रतिष्ठा की गई उसे सिजालपाईन प्रजातंत्र कहते हैं।
प्रश्न 35.
डाइरेक्टरी के शासनकाल के दौरान इटली में नेपोलियन की सफलता का उल्लेख करो।
उत्तर :
डाइरक्टरी के शासनकाल (1795-99 ई०) में नेपोलियन ने इटली के सार्डिनिया को पराजित करके स्यामय एवं निस दखल किया। इटली के पार्मा, मडेना एवं नेपल्स के शासक ने नेपोलियन के समक्ष आत्मसमर्षण कर दिया तथा नेपोलियन ऑस्ट्रिया को पराजित करके लम्म्बार्ड, वेनिस एवं मिलान दखल कर लिया।
प्रश्न 36.
किसने, कहाँ ‘वटाविया’ गणतंत्र की प्रतिष्ठा की ?
उत्तर :
फ्रांसीसी सेनापति पेशेग्रु ने हालैण्ड दखल करके वहाँ पर फ्रांस के अधीन में एक तॉवेदार गणतंत्र की स्थापना की। यह वटाविया गणतंत्र के नाम से परिचित है।
प्रश्न 37.
नेपोलियन द्वारा नियुक्त कुछ उच्च पदाधिकारियों के नाम लिखो।
उत्तर :
नेपोलियन द्वारा नियुक्त उच्च पदाधिकारियों में विदेश विभाग के तालिराँ, आर्थिक मामलों के गोदिन एवं पुलिस विभाग के फूचे आदि थे।
प्रश्न 38.
कोड नेपोलियन की कुछ प्रमुख त्रुटियों का उल्लेख करो।
उत्तर :
कोड नेपोलियन की प्रमुख त्रुटियाँ तीन थीं –
- समाज में महिलाओं की मर्यादा में कंमी
- पत्नी के ऊपर पति का आधिपत्य
- श्रमिकों की कोई अहमियत नहीं।
प्रश्न 39.
कोड नेपोलियन का महत्व क्या था?
उत्तर :
कोड नेपोलियन के कई महत्व थे जैसे –
(i) आचार-संहिता की मौलिक नीतियों को तत्कालीन समय में आधुनिक माना जाता था।
(ii) ये कानून बाद में यूरोप के कई देशों के कानून व्यवस्था में शामिल किये गये।.
प्रश्न 40.
लिजियन ऑफ आनर क्या है ?
उत्तर :
फ्रांसिसी सम्राट नेपोलियन ने अपने राज्य कर्मचारियों को उत्साहित करने के लिये एक विशेष राष्ट्रीय सम्मान प्रदान करने की व्यवस्था की थी जिसे ‘लिजियन ऑफ आनर’ कहा जाता है।
प्रश्न 41.
फ्रांस के विरुद्ध कुल कितने शक्तिगुट बने थे तथा कौन-कौन ?
उत्तर :
फ्रांस के विरुद्ध कुल चार शक्तिगुट बने थे –
- प्रथम शक्तिगुट (1793 ई०)
- द्वितीय शक्तिगुट (1799 ई०)
- तृतीय शक्तिगुट (1804-05 ई०) एवं
- चतुर्थ शक्तिगुट (1813 ई०)
प्रश्न 42.
नेपोलियन ने जर्मनी के पुनर्गठन के लिये क्या किया ?
उत्तर :
नेपोलियन ने जर्मनी के 300 राज्यों को तोड़कर 39 राज्यों में बाँट दियां। इनको लेकर तीन राज्य मंडली बनाया –
- कन्फेडरेशन ऑफ द राइन
- किंगडम ऑफ वेस्टफिलिया
- ग्रैंड डैची ऑफ वार्स।
प्रश्न 43.
कम्फेडरशन ऑफ द राइन क्या. है ? इसके प्रतिष्ठाता कौन थे ?
उत्तर :
फ्रांस के सम्माट नेपोलियन जर्मनी के डटेमवर्ग, बेडेन, हेसवर्ग आदि छोटे-छोटे राज्यों को हड़प कर और इन्हें मिलाकर कन्फेडेरेशन या राष्ट्र-समन्वय गठन किया। यही कन्फेडेरेशन ऑफ द राइन के नाम से परिचित है। इसके प्रतिष्ठाता फ्रांस के सम्राट नेपोलियन थे।
प्रश्न 44.
किंगडम ऑफ वेस्टफेलिया क्या है ?
उत्तर :
नेपोलियन ने एल्बा नदी के पश्चिम हैनोवर, साक्सनी आदि जर्मन राज्यों को दखल करके एक समन्वय ‘किंगडम ऑफ वेस्टफिलिया’ बनाकर अपने छोटे भाई जेरोम बोनापार्ट को वहाँ का राजा बनाया।
प्रश्न 45.
ग्रैंड डाची ऑफ वार्स क्या है ?
उत्तर :
नेपोलियन ने पर्सिया के अधीन पोलैण्ड एवं रूस के कुछ अंश को लेकर एक राष्ट्र-समन्वय बनाया जो ग्रैंड डाची ऑफ वार्स के नाम से परिचित है। सैक्सनी के राजा ने वहाँ के शासन का भार लिया।
संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 4 MARKS
प्रश्न 1.
टिलसिट संधि की क्या शर्ते थीं ?
उत्तर :
14 जून, 1807 ई० को फ्रीडलैंड के युद्ध में पराजित रूस को फ्रांस के साथ संधि करनी पड़ी। 8 जुलाई 1807 ई० को रूसी सम्राट अलेक्जेण्डर प्रथम और फ्रांसीसी समाट नेपोलियन के बीच टिलसिट की संधि हुई। इस संधि में यूरोप दो भागों में खण्डित हो गया। पूर्वी यूरोप पर रूस का तथा पश्चिमी यूरोप पर फ्रांस के अधिकार को स्वीकार कर लिया गया। प्रशिया को कायम रख़ते हुए उसके पश्चिमी भाग को अलग ‘वारसा’” का राज्य बनाया गया। राइन राज्यसंघ में कुछ राज्य जोड़ दिये गये। इस तरह इस संधि ने नेपोलियन को यूरोप महादेश का स्वामी बना दिया।
प्रश्न 2.
महाद्वीपीय व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
1906 ई० में नेपोलियन ने बर्लिन से घोषणा की – ‘ इंग्लैण्ड तथा उसके उपनिवेशों के साथ सारे संबंध तोड़ लिये जाएँ और उसके जहाजों को यूरोप के किसी भी बन्दरगाह पर न आने दिया जाए। अगर फ्रांस एवं संरक्षित राज्यों में कोई अंग्रेज पाया जाए तो उसे कैद कर लिया जाए।’ इसके प्रतिरोध में इंग्लैंड ने ‘ ‘आर्डर्स इन कौंसल’ द्वारा फ्रेंच साम्माज्य और उसके साथी राष्ट्रों के सभी बन्दरगाहों को प्रतिरुद्ध घोषित कर दिया। अन्य राष्ट्रों को उसने अपने साथ व्यापार की अनुपति दे दी। इंग्लैण्ड की घोषणा से क्षुब्ध होकर नेपोलियन ने 1807 ई० में इटली के मिलान नगर से दूसरी घोषणा की कि जो यूरोपीय देश इंग्लैण्ड के साथ व्यापारिक संबंध रखेगा उसका जहाज लूट लिया जायेगा।
प्रश्न 3.
स्पेन के युद्ध में नेपोलियन की पराजय के क्या कारण थे ?
अथवा
स्पेन के युद्ध में फ्रांस की व्यर्थता के क्या कारण थे ?
उत्तर :
स्पेन का वातावरण : पहाड़ों-पर्वतों एवं जलीय-भूमि से परिपूर्ण स्पेन के भौगोलिक वातावरण के कारण युद्ध में फ्रांस की सेनावाहिनी को असुविधाएँ हुई। दरिद्र सेन में खाद्य की कमी एवं यातायात का अभाव भी फ्रांस की सेना को भारी मुश्किलों में डाल दिया।
विभिन्न संकट : नेपोलियन के विभिन्न संकटों में लगातार घिरे रहने के कारण स्पेन के युद्ध में अधिक महत्व देने में वह व्यर्थ हुआ। 1809 ई० के बाद वह सेन में फिर जा नहीं सका।
स्पेनवासियों का देशप्रेम : फ्रांसीसी आक्रमण के विरुद्ध स्पेन वासियों का देशप्रेम एवं राष्ट्रवाद की भावना ने स्पेन के आम लोगों को एकजुट बनाकर रखा।
गुरिल्ला युद्ध : सेन की गुरिल्ला युद्धवाहिनी फ्रांसीसी सैनिकों को अचानक आक्रमण से आतंकित करके रखता था। गोरिल्ला युद्ध के सैनिकों ने फ्रांसीसी सेनावाहिनी के खाद्य एवं सम्पर्क सूत्र को नष्ट करके उन्हे नाकों चने चबवा दिया।
इंग्लैण्ड की सहायता : इंग्लैण्ड ने अर्थ, शस्त्र एवं सैन्य सहायता के साथ ही अपने ब्रिटिश सेनापति आर्थर वेलेजली को स्पेन के युद्ध में भेजक्र फ्रांसीसी वाहिनी के मनोबल को पूरी तरह से भंग कर दिया।
जोसेफ की अयोग्यता : नेपोलियन द्वारा अपने भाई जोसेफ को स्पेन के सिंहासन पर बैठाने से भी वह स्पेन की कठिन परिस्थिति को सम्भालने में अक्षम था।
प्रश्न 4.
नेपोलियन की विधि संहिता पर संक्षिप्त निबन्ध लिखो।
अथवा
नेपोलियन विधान-संहिता क्या थी? उसकी मुख्य विशेषताएं बताएँ ?
उत्तर :
नेपोलियन का सबसे स्थायी कार्य नेपोलियन कोड (नागरिक कानूनो) का संकलन था। क्रान्ति से पूर्व फ्रांस में अनेक कानून थे और उसमें परस्पर असंगतियाँ थीं। नेपोलियन ने कानूनों की एक संहिता तैयार करवायी, जिसे ‘नेपोलियन की कानून संहिता’ कहा जाता है। इस विधि संहिता के निर्माण में नेपोलियन ने व्यक्तिगत रुचि का प्रदर्शन किया था और उसकी इच्छानुसार ही इसका निर्माण हुआ। इस संहिता में कोई नयी बात न थी तथापि जिस रूप में इसको प्रस्तुत किया था उससे फ्रांस के कानूनों को एक नया रूप मिला था। फ्रांस में क्रान्ति से पहले तथा क्रान्तिकाल में बने असंख्य कानूनों को समाप्त कर दिया गया। इन कानूनों को बनाने में पुरातन एवं नवीन कानूनों का समन्वय किया गया था, जिसमें एक ओर पुराने कानूनों के दोषों को दूर किया गया, दूसरी ओर क्रान्तिकारी समय के नवीन और उपयोगी कानूनों को सही तरीके से रखा गया।
प्रश्न 5.
नेपोलियन के शुरुआती समय का परिचय दें।
उत्तर :
नेपोलियन का जन्म 15 अगस्त 1769 ई० को कार्सिका में हुआ था। कार्सिका फ्रांस के अधीन था। नेपोलियन के पिता चार्ल्स बोनापार्ट एक वकील थे और उसकी माता लितिज्या रोमोलिनो रूपवती, शाही तथा स्वाभिमानी महिला थीं। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। नेपोलियन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा फ्रांस के बिने नामक स्थान में नि:शुल्क शिक्षा के रूप में प्राप्त की। प्रतिभाशाली होने के कारण उसे सैनिक विद्यालय में अध्ययन का सुयोग मिल गया। विद्यार्थी नेपोलियन गंभीर, धैर्यवान, सहनशील और कर्तव्य परायण था। 20 वर्ष की आयु में नेपोलियन स्थल सेना के तोपखाने में द्वितीय लेफ्टीनेन्ट के पद पर नियुक्त हुआ।
छुट्टियों के कारण उसे सेना से निकाल दिया गया। शीघ्र ही उसे सेना में पुनः ले लिया गया। 1793 ई० में उसने तूलों बंदरगाह की लड़ाई में तोपों से भीषण गोलीबारी करके अंग्रेजी सेना को भगा दिया। उसे ब्रिगेडियर जनरल बना दिया गया। डाइरेक्टरी की आज्ञा से नेपोलियन ने मिस्न पर आक्रमण किया किन्तु नील की लड़ाई में ब्रिटिश नौ सेना ने उसे हरा दिया। नेपोलियन फ्रांस लौट आया एवं लोगों ने उसका अभूतपूर्व स्वागत किया। तत्पश्चात् ही उसने शासन में भाग लिया, डाइरेक्टरी भंग की और कान्सुलेट का शासन स्थापित किया।
प्रश्न 6.
कोड नेपोलियन के बारे में क्या जानते हो ?
अथवा
नेपोलियन कोड क्या है?
उत्तर :
कोड नेपोलियन :
कानून की रचना : नेपोलियन की देख-रेख में गठित कमीशन ने 1804 ई० में फ्रांस के लिये नये कानूनों की रचना किया। यह ‘कोड नेपोलियन’ (Code Napoleon) के नाम से जाना जाता है।
कानूनों का वर्गीकरण : कोड नेपोलियन में कुल 2287 कानून थे। इन्हें तीन भागों में बाँटा गया था। (1) दीवानी, (2) फौजदारी और (3) व्यापारिक।
विशेषता : कोड नेपोलियन द्वारा –
- कानून की नजर में सभी बराबर हैं,
- सामन्तवादी असमानता को दूर किया गया,
- योग्यता के आधार पर सरकारी नौकरी,
- व्यक्तिगत स्वाधीनता की स्वीकृति
- सम्पत्ति के अधिकार को मान्यता,
- धार्मिक सहनशीलता एवं
- अपराध के दण्ड के रूप में जुर्माना, जेल, सम्पत्ति-जब्त, मृत्युदण्ड आदि की व्यवस्था की गयी।
त्रुटियाँ : कोड नेपोलियन में कुछ त्रुटियाँ थी। जैसे –
- इससे समाज में महिलाओं की मर्यादा में कमी आयी
- पत्नी के ऊपर पति का वर्चस्व
- पारिवारिक सम्पत्ति के अधिकार से महिलाओं को वंचित किया गया एवं
- श्रमिक श्रेणी को कोई अधिकार नहीं दिया गया।
प्रश्न 7.
पवित्र संघ क्या है बतायें ?
उत्तर :
यूरोप में शांति-व्यवस्था बनाए रखने के लिये सर्वप्रथम रूस के जार अलेक्जेंडर प्रथम ने यूरोप के महान राष्ट्रों के सामने पवित्र संघ की योजना रखी। यह योज़ना उसकी धार्मिक प्रवृत्ति से अत्यधिक प्रभावित थी। 26 सितम्बर, 1815 ई० को इस घोषणा-पत्र पर सबने हस्ताक्षर किये। यह पवित्र संघ 1825 ई० तक कायम रहा तथा जार की मृत्यु के साथ ही संघ का अन्त हो गया।
प्रश्न 8.
जर्मनी का एकीकरण में पहला कार्य नेपोलियन ने किया था, फिर भी नेपोलियन की विरोधिता क्यों ?
उत्तर :
19 वीं सदी के पूर्वार्द्ध में जर्मनी विभक्त और दुर्बल था। वह एक भौगोलिक अभिव्यक्त मात्र था। वे नाम मात्र के पवित्र रोमन साम्राज्य के सदस्य थे। साम्राज्य का संगठन शिथिल था। भिन्न-भित्र राज्यों के बीच दुश्मनी थी। आस्ट्रिया तथा प्रशा प्रधान राज्य थे और जर्मनी में दोनों अपनी प्रधानता स्थापित करना चाहते थे। फ्रांसीसी क्रांति का विशेषकर नेपोलियन प्रथम का बड़ा भारी प्रभाव जर्मनी पर पड़ा। जर्मनवासियों ने फ्रांसीसी क्रांति के स्वतंत्रता, समानता, भातृत्व सिद्धान्तों का हार्दिक स्वागत किया।
1803 ई० में जर्मनी के 300 राज्यों की संख्या घटाकर 39 कर दी गई, एवं दो वर्ष के बाद बवेरिया एवं वर्टेम्बर्ग के प्रदेशों का विस्तार किया गया। नेपोलियन ने 1805 ई० में आस्ट्रिया तथा 1806 ई० में प्रशा को पराजित कर दिया एवं इसके पश्चात जर्मनी के पुनर्निर्माण की ओर ध्यान दिया। 1806 ई० में पवित्र रोमन साम्माज्य को तोड़ दिया गया एवं फ्रांस के संरक्षण मे जर्मन राज्यों के लिए एक संघ बनाया गया जिसे राइन संघ(Confederation of the Rhine) कहते हैं।
नेपोलियन के विरोध में जर्मनी में राष्ट्रीय आन्दोलन : रसिया में नेपोलियन की पराजय से उत्साहित होकर जर्मनी में राष्ट्रीय आन्दोलन शुरू हुआ। इसके कारण थे –
(i) जागृति : रूस में नेपोलियन की शोचनीय पराजय के बाद जर्मनी के लोगों की आँख खुली और वहाँ पर तीव्र राष्ट्रीय आन्दोलन शुरू हो गया।
(ii) लिज्जिंग का युद्ध : इसी बीच चतुर्थ शक्ति गठजोड़ के देशों प्रशा, रसिया, आस्ट्रिया, स्वीडेन ने फ्रांस पर चारों ओर से आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में नेपोलियन की पराजय हुई और जर्मनी नेपोलियन के शासन से स्वतंत्र हो गया।
प्रश्न 9.
नेपोलियन ने रूस पर आक्रमण क्यों किया था ?
अथवा
नेपोलियन द्वारा रूस पर आक्रमण के क्या कारण थे ?
उत्तर :
- टिलसिट की सन्धि में त्रुटि : टिलसिट की सन्धि (1807 ई०) में नेपोलियन द्वारा तुरस्क एवं स्वीडेन के विरुद्ध युद्ध में रूस को सहायता का वादा करने पर भी उसने उसे मदद नही किया। इससे रूस नाराज हो गया।
- ओल्डेनवर्ग दखल : महादेशीय अवरोध व्यवस्था मानने से इन्कार करने पर नेपोलियन ने रूस के जार के बहनोई ओल्डेनवर्ग के ड्यूक वर्ग के राज्य को दखल कर लिया। इससे रूस का जार बहुत क्षुब्ध हुआ।
- फ्रांस एवं ऑस्ट्रिया की घनिष्ठता : नेपोलियन द्वारा ऑस्ट्रिया के हैप्सवर्ग वंश की राजकन्या मेरी लुयसा से विवाह करने से रूस का जार यह-सोच कर आतंकित हुआ कि फ्रांस एवं ऑस्ट्रिया मिलकर रूस की क्षति करेंगे।
- महादेशीय अवरोध व्यवस्था : रूस ने नेपोलियन की महादेशीय व्यवस्था को मानने पर भी 1810 ई० में इसे मानने से इन्कार कर दिया। फलस्वरूप नेपोलियन रूस से नाराज हुआ।
प्रश्न 10.
नेपोलियन के सौ दिन के शासन का वर्णन करें तथा उसका परिणाम भी लिखें।
उत्तर :
फोंटेनब्लू की संधि के अनुसार नेपोलियन ने फ्रांस पर अपने सारे अधिकार त्याग दिये । उसके बदले उसे एल्बा द्वीप का राजा बना दिया गया। एल्बा में नेपोलियन का मन नहीं लगता था। वहाँ वह दस महीने तक रहा एवं हमेशा चिन्तनशील रहा। जब उसको पता चला कि फ्रांस में लुई अठारहवे का शासन अलोकप्रिय है तो वह एक दिन (26 फरवरी, 1815 ई०) चुपके से एल्बा से चल पड़ा और 1 मार्च 1815 ई० को पुन: फ्रांस लौट आया। उसके एल्बा से फांस लौटने के दिन से वाटरलू की पराजय के उपरांत आत्म-समर्पण तक का समय सौ दिन या शत दिवस के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रश्न 11.
नेपोलियन के साप्राज्य के विरुद्ध राष्ट्रवादी प्रतिक्रिया क्या थी ?
उत्तर :
नेपोलियन राष्ट्रीयता का विरोधी : यूरोप में राष्ट्रीयता के नये विचार पनपने लगे थे। राष्ट्रीयता का अर्थ यह है कि एक वंश परम्परा, समान धर्म और समान संस्कृति मानने वाले का अपना एक राष्ट्र होना चाहिए। नेपोलियन एक साम्राज्यवादी था। उसका एकमात्र यह उद्देश्य था कि पूरे विश्व पर उसका साम्राज्य स्थापित हो जाय। नेपोलियन का साम्राज्य राष्ट्रीयता पर आधारित नहीं था। अतः राष्ट्रीयता की नवीन भावना उसके साम्राज्य के विरोधी हो रही थी।
1808 के बाद स्पेन, इंटी, जर्मनी तथा अन्य यूरोपियन देशों की जनता यह भलीभाँति अनुभव करने लग गयी थी कि हमलोग सेनिश हैं, इटालियन हैं और वह जर्मन है। हमें किसी अन्य देश के अधीन नहीं रहना चाहिए। हमारा अपना पृथक् व स्वतंत्र राज्य होना चाहिए। संसार के इतिहास में यह एक नयी भावना थी। इसके पूर्व लोग ऐसा नहीं समझते थे। इस भावना के कारण विविध राष्ट्रों में जो अपूर्व शक्ति उत्पन्न हुई उसने नेपोलियन के साम्माज्य का जबरदस्त विरोध करना शुरू किया ह)
प्रश्न 12.
नेपोलियन द्वारा यूरोप के पुनर्गठन के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर :
नेपोलियन द्वारा यूरोप का पुनर्गठन :
पुनर्गठन की नीति : अधिकृत भूखण्डों को लेकर नेपोलियन ने फ्रांस के चारों ओर नये राज्यों की स्थापना की। आरंभ में इन सब जगहों पर जैसे, सिजलपाईन, वाटाविया आदि में गणतंत्र स्थापित होने पर भी 1804 ई० में ‘सम्राट’ होने पर वहाँ राजतंत्र प्रतिष्ठित हुआ एवं इन सभी स्थानों पर उसने अपने भाई, पुत्र एवं निकट सम्बन्धियों को गद्दी पर बैठा दिया।
इटली का पुनर्गठन : नेपोलियन द्वारा इटली से ऑस्ट्रिया को विभक्त कर इटली के मानचित्र में बहुत कुछ परिवर्तन किया गया। उसने इटली में सिजलपाईन एवं वाटाविया राज्य की स्थापना करके पहले गणतंत्र एवं बाद में राजतंत्र की प्रतिष्ठा की। इटली, जेनेवा, टासकनी एवं पार्मा आदि को फ्रांस में शामिल किया गया एवं रोम के पोप का राज्य फ्रांस के एक प्रदेश में बद्ल दिया गया। दक्षिण इटली में नेपल्स राज्य की स्थापना करके नेपोलियन ने वहाँ के सिंहासन पर अपने भाई जोसेफ को बैठाया।
जर्मनी का पुनर्गठन : जर्मनी के प्राय: 300 राज्यों को तोड़कर 39 राज्य बनाए गए। इनको लेकर –
- कनफेडरेशन ऑफ द राईन
- किंगडम ऑफ वेस्टफैलिया एवं
- म्रैंड डची ऑफ वार्स नामक तीन राज्यमंडलों का गठन किया गया।
प्रश्न 13.
नेपोलियन द्वारा फ्रांस की क्रांति के किन-किन आदर्शों की प्रतिष्ठा की गई ?
उत्तर :
नेपोलियन द्वारा क्रांतिकारी आदर्शों की प्रतिष्ठा :
- ईश्वरीय सिद्धांत की समाप्ति : नेपोलियन द्वारा सत्ता प्राप्ति के बाद फ्रांसीसी राजतंत्र की ईश्वरीय सिद्धांत का उन्मूलन करके सभी वयस्क नागरिको को मताधिकार प्रदान कर प्रजातंत्र की प्रतिष्ठा की गयी।
- समानता : नेपोलियन ने अपने आचार-संहिता द्वारा सांमाजिक असमानता को समाप्त किया एवं घोषणा की कि कानून की नजर में सभी बराबर हैं।
- सामन्तवाद की समाप्ति : फ्रांस में सामन्तवादी रीति-नीति एवं टैक्स क्रांति के समय ही खत्म हो गया था। नेपोलियन ने इन्हें नहीं लौटाया।
- योग्यता को स्वीकृति : नेपोलियन द्वारा वंशगत परम्परा को समाप्त कर योग्यता के आधार पर सरकारी नौकरी को मान्यता दी गई।
- धर्म निरपेक्षता : नेपोलियन ने देश में धर्म निरपेक्षता के सिद्धांत को प्रतिष्ठित करने के लिये विभिन्न कदम उठाया।
- क्रांतिकारी आदर्श : नेपोलियन द्वारा फ्रांस के बाहर विभिन्न देशों में क्रांतिकारी आदर्श का प्रचार-प्रसार किया गया। उसकी सैन्य-वाहिनी ने विभित्र जगहों पर अभियान चलाकर पुरातनतंत्र को ध्वस्त कर दी।
प्रश्न 14.
“नेपोलियन, क्रान्ति का पुत्र और विनाशक दोनों था” – स्पष्ट करें।
उत्तर :
नेपोलियन अपने को क्रान्ति का पुत्र कहता था और यह भी सत्य है कि फ्रांस की क्रान्ति ने ही ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न की थी जिनके कारण वह प्रथम कौन्सुल बना और उसके बाद क्रान्ति का पुत्र नेपोलियन फ्रांस का सम्राट बन गया। वह स्वभाव से निरंकुश था। उसने फ्रांस की क्रान्ति को देखा था।
संविधान का निर्माण करने के बाद नेपोलियन ने एक कानून बनवा लिया जिससे स्थानीय प्रशासन पर उसका पूरा अधिकार स्थापित हो गया। प्रत्येक विभाग (जिला) का एक अधिकारी होता था जो प्रीफेक्ट होता, उपविभाग का अधिकारी उपप्रीफेक्ट और प्रत्येक नगर या कम्यून का प्रमुख मेयर कहलाता था। इस प्रकार नागरिकों को अपने स्थानीय मामलों का प्रबंध करने के अधिकार से वंचित कर दिया गया और स्वशासन का जो अनुभव होता था उसका अन्त हो गया।
एक अवसर पर नेपोलियन ने कहा था, ‘मैं क्रान्ति हूँ।” दूसरे अवसर पर उसने कहा कि ‘ ‘मैने क्रान्ति को नष्ट कर दिया है।” इन दोनों कथनों में कुछ झूठ और कुछ सत्य था। कौन्सुल-व्यवस्था तथा उसके बाद नेपोलियन की साम्राज्यीय व्यवस्था, दोनों के अन्तर्गत क्रान्ति का बहुत कुछ कार्य अक्षुण्ण बना रहा, किन्तु नये शासक नेपोलियन के विचारों और उसके निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए अनेक चीजें नष्ट कर दी गयीं। नेपोलियन के क्रान्ति तथा फ्रांसीसी जनता और अपनी महत्वाकांक्षा के सम्बन्ध में निश्चित विचार थे। 1799 के बाद फ्रांस के जीवन में उसके इन विचारों का सबसे गहरा प्रभाव पड़ा। नेपोलियन क्रान्ति के एक आदर्श समता से सहानुभूति रखता था या यों कहिए कि उसे कम से कम सहन करने को तैयार था किन्तु दूसरे आदर्श अर्थात् स्वतंत्रता से घृणा करता था।
अत: नेपोलियन को क्रान्ति का पुत्र स्वीकार करना कठिन है। इस विषय में ग्रांट एण्ड टेम्परले का कथन उल्लेखनीय है। उन्होंने लिखा है, ‘नेपोलियन क्रान्ति का पुत्र था, किन्तु उसने उन सिद्धान्तों व उद्देश्यों को उलट दिया, जिनसे उसका आविर्भाव हुआ था।”
प्रश्न 15.
नेपोलियन के उत्थान एवं शासक बनने का वर्णन करो।
उत्तर :
नेपोलियन का उत्थान एवं शांसक बनना :-
उत्थान : नेपोलियन मात्र 17 वर्ष की उम्म में फ्रांस की सेना में लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्त हुआ था। उस समय अंग्रेज सेनावाहिनी के अवरोध से फ्रांस के तुलों बन्दरगाह को आजाद (1793 ई०) करके सैनिक सफलता प्रदर्शित कर ब्रिगेडियर जेनरल के पद पर नियुक्त हुआ। उसने कोधित जनता के आक्रमण से राष्ट्रीय सभा की रक्षा (1795 ई०) की। फलस्वरूप उसे मेजर जेनरल बना दिय गया।
सैनिक सफलता : डाइरक्टरी के शासनकाल (1795-99 ई०) में नेपोलियन ने इटली की सार्डिनिया, पार्मा, मडेना एवं नेपल्स को परास्त किया। ऑस्ट्रिया को परास्त कर मिलान दखल किया एवं बाद में ऑस्ट्रिया को कैम्पो-फर्मियों की सन्धि (1797 ई०) के लिये बाध्य किया। पोप के राज्य पर आक्रमण करके टलेन्टिना की संधि के लिये बाध्य किया। इंग्लैण्ड़ के विरुद्ध पिरामिड के युद्ध ( 1798 ई०) में विजय प्राप्त करके भी नील नदी के युद्ध (1798 ई०) में पराजित हुआ।
क्षमता दखल : डाइरक्टरी के शासनकाल की व्यवस्था में चरम भष्टाचारिता एवं स्व्च्छाचारिता के फलस्वरूप नेपोलियन ने सेनावाहिनी के सहयोग से डाइरेक्टरी के शासकों को शासन से हटाकर (1799 ई०) फ्रांस में कन्सुलेट शासनतंत्र की स्थापना की। वह पहले 10 वर्ष के लिये एवं बाद में संविधान संशोधन करके आजीवन कन्सोल बना रहा। 1804 ई० में सम्राट की उपाधि ग्रहण के माध्यम से नेपोलियन ने फ्रांस में वंशगत राजतंत्र की प्रतिष्ठा की।
प्रश्न 16.
फ्रांस की क्षमता दखल में नेपोलियन की सफलता के क्या कारण थे ?
उत्तर :
फ्रांस की क्षमता दखल में नेपोलियन की सफलता के कारण :
नेपोलियन की गुणावली : नेपोलियन की व्यक्तिगत गुणावली, आकर्षक व्यक्तित्व, वाक्पटुता, उसके द्वारा तुँलो बन्दरगाह का पुनरुद्वार, इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रिया एवं इटली युद्ध में लगातार विजय इत्यादि ने उसकी लोकप्रियता बहुत बढ़ा दी। इतिहासकार काल्टन हेज का कहना हैं कि उस समय फ्रांस में सबसे अधिक चर्चा नेपोलियन को लेकर ही होती थी।
क्रांति को लेकर निराशा : क्रांति के आतंकराज में मनुष्य के जीवन एवं सम्पत्ति की सुरक्षा सम्पूर्ण नष्ट होने से फ्रांस की जनता क्रांति को लेकर निराश हो गयी थी। इस परिस्थिति में जनता को यही उम्मीद थी कि नेपोलियन जैसा शक्तिशाली सेनापति देश में कानून की प्रतिष्ठा करेगा एवं मनुष्य के जीवन एवं सम्पत्ति की सुरक्षा करेगा।
डायरेक्टरी का कुशासन : प्रष्ट, बेईमान एवं अकुशल डायरेक्टरों के शासनकाल (1795-1799 ई०) में महँगाई वृद्धि एवं खाद्याभाव ने देश को गंभीर संकट में डाल दिया था। इतिहासकार डेविड का कहना है कि क्रांति की तेज गति शेष होने पर सांगठनिक एवं सामरिक प्रतिभाशाली सैनिक की क्षमता प्राप्ति का रास्ता साफ हो जाता है।
सुविधावाद : अत्यन्त मौकापरस्त एवं सुविधावादी नेपोलियन एक बार जैकोबिन दल के सदस्य के रूप में उस दल के समर्थन में प्रचार पत्र लिखते थे। बाद में उसने मौका का फायदा उठाया जब रोब्सपियर के पतन के बाद उसका रास्ता साफ हो गया।
क्रांतिकारी आदर्श : आदर्श के प्रति नेपोलियन की श्रद्धा, विभिन्न क्रांतिकारी सुधार, जनहितकारी कार्यक्रम, विरोधी दलों के प्रति उदार मनोभाव आदि ने जनता को बहुत ही आकर्षित किया। वह क्रांति के प्रतीक रूप में परिणत हुआ।
प्रश्न 17.
नेपोलियन के नेतृत्व में कन्सुलेट के शासन (1799-1804 ई०) का वर्णन करो।
उत्तर :
कन्सुलेट का शासन :
कन्मुल : संविधान विशारद आवेसियस ने कन्सुलेट के संविधान की रचना की। इसके द्वारा –
- तीन सदस्यों को लेकर गठित एक परिषद के हाथों में फ्रांस का शासन भार सौंप दिया गया।
- प्रथम कन्सुल के रूप में नेपोलियन देश के सर्वोच्च क्षमता का अधिकारी बना एवं उसके नियंत्रण में संविधान बनाना, मंत्री, राष्ट्रदूत, सामरिक एवं असामरिक कर्मचारी नियोग, युद्ध की घोषणा तथा शान्ति प्रतिष्ठा आदि क्षमता थी।
- अन्य दो सदस्य आवेसियस एवं रोजर डुकास को प्रथम कन्सुल का सहायक अधिकारी बनाया गया।
विधायिका : फ्रांसीसी विधायिका को चार भागों में बाँटा गया –
- कौन्सिल ऑफ स्टेद्स : विधायिका का यह कक्ष विधान का प्रस्ताव उपस्थित करता था।
- ट्राईबुनेट : यह कक्ष प्रस्तावित विधान के बारे में चर्चा करता था।
- व्यवस्थापक सभा : यह कक्ष प्रस्तावित विधान को मतदान के माध्यम से पारित करता था।
सिनेट : उक्त विधान की प्रासंगिकता को विचार कर उसे स्वीकार या अस्वीकार करता था।
तानाशाह की प्रतिष्ठा : कन्सुलेट के संविधान के अनुसार नेपोलियन 10 साल के लिये कन्सोल बने थे लेकिन 1802 ई० में संविधान संशोधन करके वे आजीवन कन्सोल के पद पर नियुक्त हुए । इस तरह फ्रांस में क्रमशः प्रजातंत्र नष्ट होकर तानाशाह-तंत्र प्रतिष्ठित हुआ।
प्रश्न 18.
काँनकाँरडेट या धर्म-निर्णय समझौता के ऊपर टिप्पणी लिखो।
उत्तर :
काँनकाँरडेट या धर्म-निर्णय समझौता :
समझौता : फ्रांस की कांति की समय शासनतंत्र के साथ पोप का जो विरोध हुआ बाद में उसे नेपोलियने दूर करने का निर्णय किया। फ्रांस की शासन क्षमता पाने के बाद उसने पोप सप्तम पायेस के साथ 1801 ई० में कॉनकॉरॉड़ेट या धर्मनिर्णय समझौता किया।
समझौते की शर्ते : इसके द्वारा
- पोप ने फ्रांस के गिरजा एवं गिरजा की सम्पत्ति का राष्ट्रीयकरण मान लिया।
- फ्रांस में रोमन कैथोलिक धर्म एवं गिरजा को स्वीकृति दी गई।
- यह निर्णय लिया गया कि सरकार पादरियों को नियुक्त करेगी एवं पोप उन्हें स्वीकृति देगा।
- सरकार पादरियों को वेतन देगी एवं
- पादरियों के ऊपर बिशप का वर्चस्व रहेगा।
महत्व : धर्म-निर्णय समझौता के फलस्वरूप कैथोलिक गिरजा बहुत कुछ सरकार के ऊपर निर्भरशील हो गई। फ्रांस में धर्म सहिष्णुता का सिद्धांत ग्रहण किये जाने पर दूसरे धर्म के लोगो को स्वाधीन रूप से धर्म चर्चा का अवसर मिला। देश के साथ पोप का सम्बन्ध फिर से स्वाभाविक हुआ।
प्रश्न 19.
ट्राफलार युद्ध (1805 ई०) के कारण क्या थे ?
उत्तर :
कारण :
- अमीन्स की सन्धि : अमीन्स की संधि (1802 ई०) की शर्त में इंग्लैण्ड को माल्टा द्वीप छोड़ने को कहा गया था किन्तु इंग्लैण्ड ने उसे नहीं छोड़ा।
- निगरानी : इंग्लैण्ड द्वारा माल्टा द्वीप को नहीं छोड़े जाने पर नेपोलियन ने भी जर्मनी में ब्रिटिश-राज्य की सम्पत्ति पर सेना की निगरानी बैठा दी।
- फ्रांसीसी जहाज पर आक्रमण : इंग्लैण्ड की नौवाहिनी बार-बार फ्रांस के व्यापारिक – जहाजों पर आक्रमण करने लगी। इसका बदला लेने के लिये नेपोलियन ने फ्रांस में 1000 अंग्रेज पर्यटकों को बन्दी बना लिया।
- अफवाह : इंग्लैण्ड के अखबारों में नेपोलियन के विरुद्ध लगातार असत्य प्रचार किया गया एवं अफवाह फैलाया गया। फलस्वरूप नेपोलियन के कोधित होने पर दोनों देशों में विरोध आरंभ हो गया।
- फ्रांस की नौवाहिनी शक्ति में वृद्धि : सामुद्रिक वाणिज्य एवं नौयुद्ध में इंग्लैण्ड के प्रभाव को नष्ट करने के लिये फ्रांस अपनी नौशक्ति बढ़ाने में लग गया। इससे इग्लेण्ड आतंकित हो उठा।
प्रश्न 20.
ट्राफल्गार युद्ध (1805) ई० के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर :
ट्राफलार युद्ध (1805 ई०)
नेपोलियन की युद्ध तैयारी : इंग्लैण्ड एवं फ्रांस के बीच एमिएन की संधि ( 1802 ई०) दूट जाने के बाद, साथ ही कई घटनाओं के कारण नेपोलियन इग्लैण्ड के ऊपर क्षुब्ध हो गया। वह सीधे इंग्लिस चैनेल पार करके इंगलैण्ड के ऊंपर आक्रमण करने के लिये इंगिलस चैनेल एवं उत्तरी सागर के किनारे 2 लाख से अधिक सैनिकों को इकट्ठा किया।
तृतीय शक्तिगुट : इस परिस्थिति का सामना करने के लिये इंग्लैण्ड के नेतृत्व में ऑंस्ट्रिया, रूस एवं स्वीडेन को लेकर 1805 ई० में फ्रांस-विरोधी तृतीय शक्तिगुट तैयार किया गया। इस शक्तिगुट को तोड़ने के लिये नेपोलियन ने अति शीघता से आंस्ट्रिया पर आक्रमण करके उल्म के युद्ध (1805 ई०) में उसे परास्त किया।
ट्राफल्गर का नौसेना-युद्ध : नेपोलियन के इंग्लैण्ड आक्रमण की योजना के सच हीने के पहले ही अंग्रेज नौसेनापति नेल्सन ने फ्रांसीसी सेनापति विल्लेऊम को ट्राफल्गर युद्ध (21 अक्टूबर, 1805 ई०) में बुरी तरह पराजित किया। इस युद्ध में फ्रांसीसी नौसेना के जहाजे पूरी तरह नष्ट हो गए।
प्रश्न 21.
नेपोलियन द्वारा फ्रांस की क्रांति के किन-किन सिद्धांतों को नष्ट किया गया ?
उत्तर :
- राजतंत्र की प्रतिष्ठा : फ्रांसीसी क्रांति द्वारा राजतंत्र के ध्वंस होने पर भी नेपोलियन ने स्वयं को सम्माट के रूप में घोषणा (1804 ई०) करके देश में पुन: उम्र अधिकारवादी वंशगत राजतंत्र की प्रतिष्ठा किया।
- स्वाधीनता की समाप्ति : नेपोलियन द्वारा प्रादेशिक विधायिकाओं की क्षमता, जनता की वाक्स्वाधीनता एवं समाचारपत्रों की स्वाधीनता आदि खत्म कर तथा नागरिकों के ऊपर कठोर अनुशासन लागू करके लोगों की आजादी छीन ली गयी।
- शिक्षा के क्षेत्र में हस्तक्षेप : नेपोलियन द्वारा इतिहास एवं राजनीति शास्त्र पाठ्यक्रम में परिवर्तन करके देश में एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था लागू हुई जिससे विद्यार्थी, सम्राट एवं राष्ट्र के प्रति आकर्षित हो। उसने क्रांतिकारी जैकोबिनों के सार्वजनिक प्राथमिक शिक्षा को समाप्त कर दिया।
- क्रांति को नष्ट करने वाला : इतिहासकार टामसन एवं गाराट का कहना है कि नेपोलियन ने कई क्षेत्रों में क्रांतिकारी आदर्श को त्याग दिया।
प्रश्न 22.
महादेशीय अवरोध व्यवस्था से क्या समझते हो ?
उत्तर :
महादेशीय अवरोध व्यवस्था :
इंग्लैण्ड की वीरता : नौशक्ति की दुर्बलता के कारण 1805 ई० में नेपोलियन ट्राफल्गर के युद्ध में जब इंग्लैण्ड से हार गया तब उसने महसूस किया कि यूरोप की सभी शक्तियाँ उससे पराजित होकर उनसे मित्रता करने को बाध्य होने पर भी एकमात्र समुद्र की रानी इंग्लैण्ड उसके द्वीप में बैठकर अपनी बहादुरी दिखा रही है।
अर्थनैतिक अवरोध : इंग्लैण्ड को युद्ध में पराजित नहीं कर सकने के कारण नेपोलियन ने इंगलैण्ड की आर्थिक शक्ति नष्ट करने की चेष्टा की। इसी कारण उसने इंगलैण्ड के विरुद्ध अर्थनैतिक अवरोध की घोषणा की।
घोषणा : नेपोलियन द्वारा बर्लिन डिकी, मिलान डिकी, वार्स डिक्री, फॅतेनब्लू डिक्री आदि के जरिये घोषणा की गयी कि कोई भी बिटिश जहाज यूरोप के किसी भी देश के बन्दरगाह में प्रवेश नहीं कर सकता है एवं कोई भी यूरोपीय देश किसी भी ब्रिटिश द्रव्य-सामग्री की खरीद नहीं कर सकता है। नेपोलियन द्वारा घोषित इस अवरोध को महादेशीय अवरोध व्यवस्था (Continental System) कहा जाता है।
प्रश्न 23.
नेपोलियन ने किस उद्देश्य से महादेशीय अवरोध की घोषणा की थी ?
उत्तर :
उद्देश्य :
उद्योग-धन्धों को नष्ट करना : नेपोलियन ने सोचा था कि यूरोपीय देशों में इंग्लैण्ड की द्रव्य-सामग्री की बिक्री बन्द करने से उसके उद्योग-धन्धे नष्ट हो जायेंगे।
आर्थिक दुर्दशा : अवरोध के माध्यम से इंग्लैण्ड के उद्योग-धंधे नष्ट हो जायेंगे, कल-कारखाने बन्द हो जायेंगे एवं लाखों लोग बेरोजगार होने से इंग्लैण्ड में आर्थिक महामारी फैल जायेगी।
फ्रांस में उद्योगों का विकास : यूरोप के देशों में इंग्लैण्ड की द्रव्य-सामग्री नहीं पहुँचने से वहाँ फ्रांस की द्रव्यसामग्री की माँग बढ़ जायेगी एवं फ्रांस में उद्योगों का विकास होगा।
मर्यादा में वृद्धि : इतिहासकार कोवान का मानना है कि फ्रांस में उद्योगों के विकास से वहाँ के सामानों की विश्वबाजार में माँग से उसकी मर्यादा में वृद्धि होगी। ऐसा ही सपना नेपोलियन ने देखा था।
राजनीतिक लक्ष्य : इंगलैण्ड को नीचा दिखाने के लिये फ्रांस के उद्योगों का तेजी से विकास होने से उसके शासन की लोकप्रियता बढ़ेगी, यही उसका राजनीतिक लक्ष्य था।
प्रश्न 24.
नेपोलियन ने किन डिक्रियों के माध्यम से महादेशीय अवरोध की घोषणा की ?
उत्तर :
महादेशीय अवरोध की घोषणा :
बर्लिन डिक्री : नेपोलियन ने बर्लिन डिकी (1806 ई०) जारी करके कहा कि इंग्लैण्ड या उसके उपनिवेशों के किसी जहाज को फ्रांस या फ्रांस के मित्र या निरपेक्ष किसी देश में प्रवेश करने नहीं दिया जायेगा। इन सब देशों के किसी जहाज में ब्रिटिश द्रव्य-सामग्री पाये जाने से उसे जब्त कर लिया जायेगा।
मिलान डिक्री : नेपोलियन ने मिलान डिक्री ( 1807 ई०) जारी करके कहा कि कोई मित्र देश या निरपेक्ष देश द्वारा अवरुद्ध देशों में जहाज भेजने पर उसे जब्त कर लिया जायेगा। किसी निरपेक्ष देश का जहाज इंग्लैण्ड में प्रवेश करने पर उसे शत्रु देश समझा जायेगा।
प्रश्न 25.
नेपोलियन के महादेशीय अवरोध के विरुद्ध इंग्लैण्ड ने क्या व्यवस्था ग्रहण की थी ?
उत्तर :
इंग्लैण्ड की व्यवस्था – अर्डार्स-इन-कौन्सिल
जहाज प्रवेश पर निषेधा ज्ञा : फ्रांस एवं उसके मित्र देश के बन्दरगाहों पर अन्य किसी देश का जहाज प्रवेश नहीं कर सकता था। किसी भी देश द्वारा उस आदेश का उल्लंघन करने पर इंग्लैण्ड उस जहाज को जब्त कर लेगा।
अनुमति : किसी निरपेक्ष देश के जहाज को फ्रांस एवं उसके मित्र के किसी बन्दरगाह पर जरूरी होने से उसे पहले इंग्लेण्ड के किसी बन्दरगाह पर आना होगा एवं सटीक फीस एवं लाइसेंस या अग्रिम अनुमति लेनी होगी, तभी वह फ्रांस में जा सकेगा।
डेनमार्क का जहाज ध्वस्त : ब्रिटिश विदेश मंत्री कैनिंग ने अनुभव किया था कि डेनमार्क के शक्तिशाली जहाज को फ्रांस दखल करके अपनी नौ-शक्ति बढ़ाकर इंग्लैण्ड का अवरोध तोड़ देगा। अत: डेनमार्क के उस जहाज को इंगलण्ड ने पहले ही ध्वस्त कर दिया।
प्रश्न 26.
नेपोलियन द्वारा महादेशीय अवरोध व्यवस्था लागू करने के लिये किन व्यवस्थाओं को ग्रहण किया गया था ?
उत्तर :
नेपोलियन की व्यवस्था :
प्रशिया, रूस एवं ऑस्ट्रिया पर दखल : नेपोलियन से परास्त होकर प्रशिया (1806 ई०), रूस (1807 ई०) एवं ऑष्ट्रिया (1809 ई०) ने उसके महादेशीय अवरोध व्यवस्था को मान लिया।
स्वीडेन पर आक्रमण : स्वीडेन द्वारा महादेशीय अवरोध व्यवस्था को नहीं मानने पर नेपोलिय्रन के मित्र देश रूस ने स्वीडेन पर आक्रमण कर उसे मानने को मजबूर कर दिया।
पुर्तगाल पर दखल : इंग्लैण्ड का मित्र पुर्तगाल द्वारा महादेशीय अवरोध मानने से इन्कार करने पर नेपोलियन ने पुर्तगाल पर 1807 ई० में दखल कर लिया।
स्पेन पर दखल : पुर्तगाल से वापसी में नेपोलियन ने स्पेन को दखल कर अवरोध व्यवस्था को लागू करने का निर्णय लिया (1807 ई०)।
पोप को बन्दी बनाना : रोम के शासक पोप द्वारा नेपोलियन के महादेशीय अवरोध व्यवस्था नहीं मानने पर नेपोलियन ने 1809 ई० में उसे बन्दी बना लिया।
जर्मनी के समुद्री तट का दखल : हेलिगोलैण्ड में ब्रिटिश की चोरी के धन्धे को बन्द करने के लिये नेपोलियन ने जर्मनी के विशाल समुद्री तटों का दखल 1810 ई० में कर लिया।
प्रश्न 27.
इंग्लैण्ड में नेपोलियन के महादेशीय अवरोध व्यवस्था का क्या प्रभाव पड़ा था ?
उत्तर :
आरंभ में इंग्लैण्ड को हानि : नेपोलियन के महादेशीय अवरोध व्यवस्था से आरंभ में इंग्लैण्ड को बहुत बड़ी हानि हुई। यूरोप में ब्रिटिश सामानों की बिक्री बन्द होने से कारखानें बन्द होने लगे, बेरोजगारी में वृद्धि हुई तथा खाद्याभाव आदि घटनाओं ने इंग्लैण्ड को गंभीर आर्थिक संकट में डाल दिया।
नये बाजारों पर दखल : इंग्लैण्ड कुछ दिनों के भीतर ही अपने शुरुआती संकट को झेलकर नये बाजार ब्राजील, अर्जेन्टीना, तुरस्क, अटलांटिक एवं बाल्टिक के समुद्री द्वीपों को दखल कर अपनी द्रव्य-सामग्रियों की बिक्री आरंभ कर दी।
फ्रांस में नौशक्ति का अभाव : नेपोलियन द्वारा महादेशीय अवरोध के होते हुए भी ब्रिटेन चोरी-छिपे विभिन्न देशों में अपने सामानों की बिकी करने में सक्षम हुआ। पर्याप्त नौशक्ति के अभाव में नेपोलियन इस मामले में अक्षम था।
अर्डार्स-इन-कौंसिल : महादेशीय अवरोध के जबाव में इंग्लेण्ड ने ‘अर्डार्स-इन-कौंसिल के जरिये घोषणा की और इसके माध्यम से निरपेक्ष देशों को अबाध व्यापार के लिये लाइसेन्स की बिकी करके प्रचूर मुनाफा कमाया।
प्रश्न 28.
नेपोलियन द्वारा पुर्तगाल अभियान का वर्णन करो।
उत्तर :
इंग्लैण्ड – पुर्तगाल सम्बन्ध : इंग्लैण्ड का मित्र देश पुर्तगाल ने नेपोलियन के अवरोध व्यवस्था को मानने से इन्कार किया क्योंकि पुर्तगाल ब्रिटिश वाणिज्य का महत्वपूर्ण केन्द्र था एवं दोनों देशों में दीर्घकालीन व्यापारिक सम्बन्ध था।
बर्लिन डिक्री : नेपोलियन द्वारा बर्लिन डिक्री (1806 ई०) जारी करके पुर्तगाल को इंग्लैण्ड के साथ व्यापारिक सम्बन्ध समाप्त करके बिटिश द्रव्य-सामग्री जब्त करने का निर्देश दिया गया, किन्तु पुर्तगाल द्वारा इस निर्देश को मानने से इन्कार किया गया।
फँतेनब्लू डिक्री : नेपोलियन ने स्पेन के साथ फेंतेनब्लू डिक्री के माध्यम से यह निर्णय लिया कि फ्रांस एवं स्पेन की संयुक्त वाहिनी पुर्तगाल पर आकमण कर उसे दखल करेगी एवं उसके उपनिवेशों को आपस में बाँट लेगी।
पुर्तगाल दखल : फ्रांस एवं स्पेन की संयुक्तवाहिनी 1807 ई॰ में सेनापति मार्शल जूनों के नेतृत्व में स्पेन के रास्ते पुर्तगाल पर आक्रमण कर उसे दखल करके महादेशीय अवरोध व्यवस्था चालू की।
प्रश्न 29.
नेपोलियन के स्पेन अभियान के कारण क्या थे ?
उत्तर :
मुक्तिदाता नेपोलियन : स्पेन दखल करने के बाद वहाँ पर फ्रांस की तरह उदारनैतिक शासन एवं क्रांतिकारी सुधारों को लागू करने से सेनवासी खुश होंगे एवं उसे मुक्तिदाता के रूप में सम्मान देंगे-ऐसा नेपोलियन ने सोचा था।
स्पेन द्वारा आक्रमण की संभावना : नेपोलियन को गुप्त सूत्रों से सूचना मिली थी कि सेन के शक्तिशाली मंत्री गोदय के सहयोग से स्पेन एवं पर्सिया संयुक्त रूप से फ्रांस पर आक्रमण की योजना बना रहे हैं। इसे तोड़ने के लिये नेपोलियन ने उसके पहले ही स्पेन पर आक्रमण कर दिया।
स्पेन की नौवाहिनी : ब्रिटिश नौवाहिनी के साथ युद्ध के लिये नेपोलियन अपनी नौशक्ति की वृद्धि करने को सोच रहा था। ट्राफल्गर नौयुद्ध ( 1805 ई०) के समय वह स्पेन की नौवाहिनी की शक्ति एवं दक्षता से मुग्ध हुआ था। इसीलिये उसने स्पेन की नौवाहिनी का दखल कर फ्रांसीसी नौशक्ति की वृद्धि का निर्णय लिया।
स्पेनवासियों का विद्रोह : स्पेन की अनुमति के बिना ही नेपालियन द्वारा पुर्तगाल पर आक्रमण किया गया था। इससे स्पेनवासियों ने नेपोलियन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
प्रश्न 30.
नेपोलियन के विरुद्ध ऑस्ट्रिया के विद्रोह का परिचय दो।
उत्तर :
तैयारी : नेपोलियन के विरुद्ध भविष्य में युद्ध की तैयारी के लिये आंस्ट्रिया के युवराज आर्कड्यूक चार्ल्स एवं मंत्री स्टाडियन देश की सेनावाहिनी को फिर से सजाने एवं ऑष्ट्रिया की सैनिक शक्ति को बढ़ाने में लग गये।
फ्रांस में संकट : नेपोलियन के वेलने के युद्ध (1808 ई०) में स्पेन से परास्त होने से आँस्ट्रिया का साहस बढ़ गया। उस समय फ्रांस में ओंस्ट्रिया के राष्ट्रदूत मेटरनिखं ने ओंस्ट्रिया की सरकार को कहा था कि नेपोलियन के हाथ से ऑस्ट्रिया की खोई हुई शक्ति को हासिल करने का यही सही वक्त है।
वाग्राम का युद्ध : ऑंस्ट्रिया द्वारा 1809 ई० में नेपोलियन के विरुद्ध विद्रोह घोषणा करने से नेपोलियन भारी संकट में पड़ गया। वह पूरे जोश से विद्रोह को कुचलने में लम गया। वाग्राम के युद्ध (1809 ई०) में ऑस्ट्रिया बुरी तरह से पराजित होकर नेपोलियन की अधीनता मानने को विवश हुआ।
परिणाम : युद्ध में परास्त होकर ऑस्ट्रिया ईलिरिया छोड़ने के लिए बाध्य हुआ। नेपोलियन ने ऑस्ट्रिया की युवा रानी मेरी लुइसा से विवाह किया।
प्रश्न 31.
रूस के युद्ध में नेपोलियन की पराजय के कारण क्या थे ?
अथवा
रूस के युद्ध में फ्रांस की व्यर्थता के कारण क्या थे ?
उत्तर :
रूस की विशालता : रूस का आयतन विशाल होने के कारण रूसी सेनावाहिनी ‘गाँव जलाओ’ नीति अपनाकर पीछे हटने लगी तथा फ्रांसीसी सेनावाहिनी देश के भीतर आगे बढ़ने लगी। रास्ते में उन्हें खाद्याभाव, पीने के पानी का संकट एवं रूस की गोरिल्ला वाहिनी का आक्रमण झेलने की विपत्ति में फँसा दिया।
नेपोलियन का घमण्ड : नेपोलियन के घमण्ड ने उसे असलियत से दूर कर दिया। इंग्लैण्ड एवं समुद्रतटीय युद्ध को समाप्त नहीं करके वह अपने को रूस के युद्ध में शामिल कर लिया तथा अनुशासनहीन विभिन्न जातियों के विशाल सेनावाहिनी का गठन कर बड़ी भूल की।
प्राकृतिक प्रकोप : रूस के भीतरी भाग एवं स्वदेश वापसी के रास्ते में शीत, बर्फबारी, ओलावृष्टि आदि प्राकृतिक प्रकोप से फ्रांस की सेनावाहिनी के असंख्य लोग मारे गये।
महामारी का प्रकोप : रूस के युद्ध में फ्रांस की सेनावाहिनी में ‘टाइफस’ नामक खतरनाक महामारी का रोग फैलने से हजारों फ्रांसीसी सैनिकों की अकाल मृत्यु हो गयी।
रूसवासियों का जबाव : प्रसिद्ध उपन्यासकार लिओ टालस्टाय ने अपने उपन्यास ‘वार एण्ड पीस’ में रूस में नेपोलियन की हार का प्रमुख कारण रूसवासियों की संग्रामी मानसिकता को बताया है।
प्रश्न 32.
नेषोलियन ने किस प्रकार जर्मनी में फ्रांसीसी शासन की स्थापना की? नेषोलियन के विरुद्ध जर्मनी में राष्ट्रवादी आन्दोलन की आलोचना करो।
उत्तर :
जर्मनी में फ्रांसीसी साग्राज्य की स्थापना : फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन जर्मनी में ऑंस्ट्रिया के शासन को समाप्त कर छोटे-छोटे प्राय: 300 जर्मन-राज्यों को मिलाकर तीन राष्ट्र-को-आपरेटिव तैयार किया।
- कनफेडरेशन ऑफ द राईन : इस समिति के प्रोटेक्टर के रूप में नेपोलियन ने खुद को प्रतिष्ठित किया।
- किंगडम ऑफ वेस्टफेलिया: इस समिति के सिंहासन पर नेपोलियन ने अपने भाई जेरोम को बेठाया।
- ग्रैंड डाची ऑफ वार्स : सेक्सनी को इस समिति के संचालन का दायित्व देकर यहाँ अपना नियंत्रण रखा।
नेपोलियन के विरुद्ध जर्मनी में राष्ट्रवादी आन्दोलन : रूस में नेपोलियन की पराजय के बाद् उसके विरुद्ध जर्मनी में तीव्र राष्ट्रवादी आन्दोलन आरंभ हुआ।
(i) जागरण : रूस के युद्ध में नेपोलियन की भारी पराजय से जर्मनी के प्रदेशों में नेपोलियन के खिलाफ उग्र राष्ट्रवादी आन्दोलन आरंभ हो गया i इस आन्दोलन के नेतृत्व में प्रशिया आगे आया।
(ii) लाइपजिग का युद्ध : इसी बीच तैयार चतुर्थ शक्तिगुट के सदस्य पर्सिया, रूस, ऑंस्ट्रिया, स्वीडेन, इंग्लैण्ड आदि देशों ने फ्रांस पर चारों ओर से आक्रमण कर दिया। जर्मनी के लाइपजिग युद्ध (1813 ई०) में नेपोलियन की बुरी तरह से हार हुई एवं जर्मनी मेपोलियन के शासन से मुक्त हुआ।
प्रश्न 33.
लिपजिंग युद्ध (1813 ई०) के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर :
रूस अभियान (1812 ई०) में फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन की बुरी तरह से पराजय के बाद रूस, पर्शिया, इंग्लैण्ड, तुरस्क, स्वीड़ेन, आदि देशों ने नेपोलियन के विरुद्ध 1813 ई० में चतुर्थ शक्ति गुट बनाये।
लिपजिंग का युद्ध :
जर्मनी का मुक्ति आन्दोलन : 1812 ई० में नेपोलियन के विरुद्ध जर्मनी में राष्ट्रवादी आन्दोलन आरंभ हुआ। इसका नेतृत्व जर्मन राज्य पर्शिया के लोगों ने किया। पर्शिया का यह फ्रांस-विरोधी जागरण पूरे जर्मनी में फैल गया।
शक्तिगुट द्वारा चौतरफा फ्रांस पर आक्रमण : इसी दशा में चतुर्थ शक्ति गुट के सदस्य रूस, पर्शिया, स्वीडेन, ऑंस्ट्रिया आदि देशों ने चारों तरफ से फ्रांस पर आक्रमण कर दिया। नेपोलियन ने ड्रेसडेन के युद्ध (1813 ईं) में आंस्ट्रिया को पराजित किया।
लिपजिंग में दुर्दशा : मित्रशक्ति ने शीघ्य ही फ्रांस को चारों तरफ से घेरकर आक्रमण किया। जर्मनी के लिपजिंग में लगातार तीन दिनों तक चले युद्ध में नेपोलियन की वाहिनी बुरी तरह से दूट कर पीछे हटने लगी। फलस्वरूप जर्मनी नेपोलियन के शासन से मुक्त हुआ।
फ्रांसीसी साप्राज्य का पतन : लिपजिंग के युद्ध में पराजय के बाद नेपोलियन का विशाल साम्राज्य बिखरने लगा। फ्रांस से वेस्टफैलिया, मेक्लेनवर्ग, कनफेडरेशन ऑफ द राईन आदि देश अलग हो गये। हालैण्ड स्वार्धीन हो गया एवं ऑस्ट्रिया अपने खोये हुए साम्माज्य को वापस पा गया।
प्रश्न 34.
लिपजिंग युद्ध के बाद नेपोलियन के विरुद्ध विभित्र देशों के मुक्तियुद्ध का परिचयेय दो।
उत्तर :
नेपोलियन के लिपजिंग युद्ध (1813 ई०) में चतुर्थ शक्तिगुट द्वारा बुरी तरह हार के बाद भपोलियन के विरुद्ध यूरोप के विभिन्न देशों में मुक्ति संग्राम एवं आन्दोलन का जागरण शुरू हो गया।
नेपोलियन के विरुद्ध मुक्ति आन्दोलन :
फ्रैंकफर्ट प्रस्ताव : नेपोलियन के विरुद्ध लिपजिंग युद्ध में विजयी मित्र देश फ्रैंकफर्ट का प्रस्ताव (नवम्बर, 1813 ई०) द्वारा – (i) नेपोलियन को फ्रांस के राजा के रूप में स्वीकार कर लिया गया, एवं (ii) फ्रांस को अपने प्राकृतिक राज्य सीमा बरकरार रखने की अनुमति दी गयी किन्तु नेपोलियन ने इस प्रस्ताव को नहीं माना।
फ्रांस पर आक्रमण : नेपोलियन के फ्रैंकफर्ट प्रस्ताव नहीं मानने से मित्र देशों ने फ्रांस को चारों तरफ से घेर लिया एवं मार्च 1814 ई० में आक्रमण करके पेरिस को दखल कर लिया।
फाँडण्टेनब्लू की संधि : पराजित सम्राट नेपोलियन विजयी मित्र देशों के साथ फाँउण्टेनब्लू संधि (6 अप्रैल, 1814 ई०) द्वारा फ्रांसीसी सिंहासन छोड़ने के लिये बाध्य हुआ। उसे भूमध्यसागर के एल्बा द्वीप में निर्वासित किया गया।
पेरिस की संधि : विजयी मित्रदेश पेरिस की प्रथम सन्धि (मई, 1814 ई०) द्वारा – (i) बुर्वो वंश के रांजा लुई अठारहवें को फ्रांस की राजंगद्दी पर बैठाया गया एवं (ii) फ्रांस को कांति के पहले वाली सीमा में वापस लौटा दिया गया।
प्रश्न 35.
वाटरलू युद्ध के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर :
वाटरलू का युद्ध :
आक्रमण की तैयारी : नेपोलियन विरोधी मित्र शक्ति नेपोलियन को ‘कानून के बाहर व्यक्ति’ की घोषणा करके एकजुट होकर फ्रांस पर आक्रमण की तैयारी करने लगी।
आक्रमण : इंग्लैण्ड, पर्शिया, रूस तथा ऑस्ट्रिया के सैन्यदल चारों ओर से फ्रांस पर आक्रमण करने लगे। तीव्र आक्रमण के बावजूद नेपोलियन की सेनावाहिनी शुरुआत में लिंजी एवं क्वाटरब्बास के युद्ध (1815 ई०) में विजयी हुई।
वाटरलू के युद्ध में पराजय : नेपोलियन की शुरुआती सफलता के बाद ब्रिटिश सेनापति आर्थर वेलेसली ने (डियूक ऑफ वेलिंगटन) के साथ वाटरलू के युंद्ध (18 जून, 1815 ई०) में नेपोलियन को बुरी तरह से परास्त किया। 15 जुलाई को नेपोलियनने बिटिश नौवाहिनी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
निर्वासन : वाटरलू के युद्ध में नेपोलियन के पराजित होने पर विजयी मित्र शक्ति ने उसे भूमध्य सागर के सेण्ट हेलेना द्वीप में निर्वासित कर दिया। वहाँ पर बड़े ही अनादर एवं अपमान के साथ इस वीर योद्धा का देहांत 5 मई, 1821 ई० को हो गया।
विवरणात्मक प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 8 MARKS
प्रश्न 1.
नेपोलियन द्वारा किये गये विभिन्न सुधारों का वर्णन करो।
अथवा
प्रथम कान्सल के रूप में नेपोलियन द्वारा किये गये सुधारों का वर्णन करें।
उत्तर :
फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन ने सिर्फ एक कुशल योद्धा का ही नहीं बल्कि सुदक्ष सुधारक का भी परिचय दिया है। इतिहासकार फिशर का कहना है कि नेपोलियन का साम्राज्य अल्पायु होते हुए भी फ्रांस में उनकी सामाजिक सुधार प्रेनाईट पत्थर की शक्तिशाली नींव पर निर्मित हुआ था।
नेपोलियन का सुधार : नेपोलियन द्वारा किये गये सामाजिक सुधार निम्नलिखित हैं :
शासनतांत्रिक सुधार : नेपोलियन ने फ्रांस में कानून का शासन, आम लोगों के जीवन एवं सम्पत्ति की सुरक्षा की व्यवस्था की। पूरे फ्रांस के 83 विभागों को प्रदेशों में विभक्त कर वहाँ पर ‘प्रिफेक्ट’ नामक शासक को नियुक्त किया। प्रदेशों को विभिन्न जिलों में विभक्त कर ‘सब-प्रिफेक्ट’ नाम से शासकों को नियुक्त किया।
अर्थनैतिक सुधार : देश की अर्थनैतिक संकट को दूर करने के लिये उसने बहुत सारे कदम उठाये। जैसे-
- सरकारी लाभ-हानि एवं ऑंडिं प्रथा लागू करना,
- सबको आयकर देने के लिये बाध्य करना,
- नया कर नहीं लगाकर, पुराने कर-अदायगी पर जोर देना,
- बैंक ऑफ फ्रांस की स्थापना करना,
- व्यापार संवर्द्धन के लिये व्यापारी संघ का पुनर्गठन करना आदि।
शिक्षा सुधार : शिक्षा सुधार की दिशा में नेपोलियन द्वारा –
- फ्रांस में बहुत-से माध्यमिक, चिकित्सा, कारीगरी, कानून, आदि के पठन-पाठन के लिये स्कूल, कॉलेजों की स्थापना हुई।
- 29 लाईसी या आवासिक (Residential) स्कूलों की स्थापना,
- फ्रांस विश्वविद्यालय की स्थापना (1808 ई०) भी उसने की।
धार्मिक सुधार : नेपोलियन द्वारा पोप सप्तम पायस के सथथ कन्कर्डटी या धर्म-निर्णय समझौता (1801 ई०) करके पोप के साथ चल रहे विरोध को मिटा दिया गया। इस समझौते के द्वारा –
- पोप ने फ्रांस के गिरजा एवं गिरजा की सम्पत्ति का राष्ट्रीयकरण मान लिया।
- फ्रांस की सरकार रोमन कैथोलिक धर्ममत एवं गिरजा को स्वीकृति दी।
- यह तय किया गया कि सरकार पादरियों की नियुक्ति करेगी एवं पोप उन्हें स्वीकार करेगा।
कानूनी सुधार : नेपोलियन ने विभिन्न प्रदेशों में प्रचलित अलग-अलग कानूनों में सुधार लाकर सन् 1804 ई० में 2287 कानून आधारित ‘कोड नेपोलियन’ नामक एक आचार-संहिता का प्रवर्तन किया। इसके प्रधान विषय में
- सामन्तवाद की समाप्ति
- व्यक्ति स्वाधीनता एवं सम्पत्ति के अधिकार की स्वीकृति
- कानून की नजर में सभी बुराबर हैं
- धार्मिक सहिष्णुता
- सरकारी नौकरियों में योग्यता के आधार पर नियुक्ति आदि सम्मिलित थे।
प्रश्न 2.
नेपोलियन के पतन में महादेशीय अवरोध की भूमिका क्या थी?
अथवा
नेपोलियन के पतन के क्या कारण थे उसका संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर :
नेपोलियन द्वारा महादेशीय अवरोध व्यवस्था को बल-प्रयोग द्वारा लागू किये जाने से वह विभिन्न संकटों से घिर गया जो उसके पतन का कारण बना।
फ्रांस की अर्थनैतिक क्षति : नेपोलियन की महादेशीय अवरोध व्यवस्था परोक्ष रूप से फ्रांस की अर्थनैतिक क्षति का कारण बना। इंग्लैण्ड का ‘आर्डर-इन-कौसिल’ नामक समुद्री प्रतिरोध के फलस्वरूप फ्रांस का समुद्री व्यवसाय पूरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ। इसके कारण फ्रांस में मजदूरों की छँटनी, बेरोजगारी, कल-कारखाने बन्द आदि अनेक समस्याओं ने विकराल रूप धारण कर लिया।
समुद्री तट दखल : नेपोलियन ने जबरदस्ती महादेशीय अवरोध व्यवस्था लागू करने के लिये यूरोप के प्राय: दो हजार मील समुद्री तटों को दखल कर लिया। इसके अलावे बहुत से निरपेक्ष एवं शान्तित्रिय देशों को भी दखल करने के कारण उन देशों में इसके विरोध में विद्रोह आरंभ हो गया।
अतिरिक्त खर्च : महादेशीय अवरोध व्यवस्था लागू करने के लिये नेपोलियन ने जिन विशाल भूखण्डों को दखल किया उसकी देख-रेख के लिये उसे सैन्य दलों एवं शासकों का अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ा।
रोम तथा हालैण्ड में विद्रोह : रोम एवं हालैण्ड द्वारा महादेशीय अवरोध व्यवस्था मानने से इन्कार किये जाने पर नेपोलियन द्वारा रोम के पोप को गद्दी से हटाकर बन्दी बनाने पर क्रिश्चियन कैथोलिक समुदाय के लोग नेपोलियन से क्षुब्ध हो गये। हालैण्ड के शासक लुई (नेपोलियन का भाई) को गद्दी से हटाकर हालैण्ड को दखल कर लिया।
उपद्वीप के युद्ध में असंतोष : पुर्तगाल द्वारा महादेशीय अवरोध व्यवस्था नहीं मानने पर नेपोलियन ने स्पेन की अनुमति से स्पेन होकर पुर्तगाल पर आक्रमण किया एवं उसे महादेशीय अवरोध व्यवस्था मानने को बाध्य किया। पुर्तगाल से वापसी पर उसने स्पेन को भी दखल कर अपने भाई जोसेफ को गद्दी पर बैठाया। इसके कारण स्पेन एवं पुर्तगाल में नेपोलियन के विरुद्ध तीव्र लड़ाई शुरू हो गयी। यह युद्ध उपद्वीपीय युद्ध (1808 – 1814 ई०) के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में स्पेन के साथ ब्रिटेन के सहयोग से फ्रांस की पराजय हुई।
रूस में पराजय : रूस के महादेशीय अवरोध व्यवस्था नहीं मानने पर नेपोलियन ने रूस पर आक्रमण (1812 ई०) कर दिया किन्तु रूस में नेपोलियन की ग्रैंड आर्मी बुरी तरह परास्त हुई एवं अधिकांश सैनिक भूख, महामारी एवं भयकर शीत से मारे गये।
प्रश्न 3.
नेपोलियन फ्रांसीसी क्रांति की किन धारणाओं को प्रतिष्ठित किया ?
उत्तर :
फ्रांस की कांति से संबंधित महत्वपूर्ण तीन आदर्श थे – समानता, दोस्ती एवं स्वाधीनता। नेपोलियन सन् 1799 ई० में फ्रांस का शासक बना एवं 1814 ई० तक फ्रांस पर शासन किया।
क्रांतिकारी आदर्श की प्रतिष्ठा : नेपोलियन अपने शासनकाल में कांति की समानता एवं मैत्री के आदर्शों की प्रतिष्ठा किया। जैसे –
ईश्वरीय अधिकार तत्व की समांप्ति : फ्रांस में क्रांति से पहले वुर्वो राजाओं द्वारा खुद को भगवान का प्रतिनिधि मानकर शासन चलाया-जाता था। नेपोलियन ने सिंहासन पर बैठने के बाद ईश्वर के अधिकार तत्व को समाप्त कर सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार प्रदान किया एवं प्रजातंत्र की स्थापना की।
समानता की प्रतिष्ठा : फ्रांस में क्रांति से पहले असमान श्रेणियों में फ्रांस की जनता बँटी हुई थी। नेपोलियन ने फ्रांस में समानता की प्रतिष्ठा करके उन्हें कानूनी दायरे में लाने के लिये आचार-संहिता की रचना कर, उसे चालू किया।
सामन्तवाद की समाप्ति : फ्रांस में क्रांति से पहले वुर्वो राजतंत्र ने जिन सामन्तशाही शासन व्यवस्था का प्रचलन किया था, उन्हें खत्म कर नेपोलियन ने खुद को ‘सम्राट’ घोषित किया और उन रीतियों का सफाया कर दिया।
योग्यता को स्वीकृति : नेपोलियन ने वंश-क्रम अधिकार को समाप्त करके योग्यता को स्वीकृति दी। योग्यता के आधार पर लोगों को सरकारी नौकरियों में वरीयता मिली।
धर्म निरपेक्षता : नेपोलियन द्वारा धर्मनिरपेक्षता को आदर्श के रूप में प्रहण किया गया। 1791 ई० में ‘सिविल कन्स्टीट्यूशन ऑफ़ द क्लर्जी’ को समाप्त करने से पोप नाराज हुए। नेपोलियन ने पोप सप्तम पायस के साथ कन्कर्डटी या धर्म निर्णय समझौता (1801 ई०) करके इस गतिरोध को दूर किया।
क्रांतिकारी आदर्श का प्रसार : नेपोलियन द्वारा फ्रांस के बाहर विभिन्न देशों में कांति के आदर्शों का प्रसार किया गया। नेपोलियन की सैन्यवाहिनी ने जर्मनी तथा इटली के साथ ही अन्य देशों में भी प्रचार चलाकर पुरातनपंथी शासनव्यवस्था को समाप्त कर प्रजातंत्र की स्थापना की।
प्रश्न 4.
नेपोलियन द्वारा फ्रांस की क्रांति के किन आदर्शों को अस्वीकार किया गया ?
उत्तर :
1799 ई० में फ्रांस का शासन भार संभालने के बाद क्रांति की समानता तथा मैत्री के आदर्श प्रतिष्ठा को मान्यता देते हुए नेषोलियन ने स्वाधीनता एवं अन्य क्रांतिकारी आदर्शों की अवहेलना की।
राजतंत्र की प्रतिष्ठा : फ्रांस के क्रांतिकारियों ने वंशक्रम राजतंत्र को समाप्त करके प्रजातंत्र की प्रतिष्ठा की थी किन्तु नेपोलियन के शासक बनने के बाद 1804 ई॰ में वह स्वयं को सम्माट घोषित करके पुन: तानाशाही राजतंत्र की स्थापना की। इससे क्रांति का मूल उद्देश्य ही नष्ट हो गया।
स्वाधीनता के आदर्श की अवहेलना : नेपोलियन द्वारा फ्रांस के नागरिकों की आजादी छीन ली गई। उसने –
- प्रादेशिक कानून सभाओं की क्षमता समाप्त कर दी
- लोगों के बोलने के अधिकार एवं समाचारपत्रों की आजादी छीन ली
- बगैर विचार के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का आदेश पुन: चालू किया
- नाटक एवं धियेटरों पर पुलिस बैठा दी
- सर्व वयस्क मताधिकार की घोषणा के बावजूद आम लोगों के प्रत्यक्ष मतदान का अधिकार स्वीकार नहीं किया
- बुर्जुआ श्रेणी को ज्यादा सुयोग-सुविधा दी गयी।
शिक्षा के क्षेत्र में हस्तक्षेप : नेपोलियन ने कांतिकारी जैकोबिनों द्वारा घोषित प्राथमिक शिक्षा के आदर्श को समाप्त करके ऐसी शिक्षा प्रणाली लागू की जो विद्यार्थियों को सम्राट, सरकार एवं देश के प्रति अनुरागी बनाये जिससे छात्र सम्राट तथा सरकार के विरुद्ध आवाज नहीं उठाये इसीलिये राजनीति एवं इतिहास के पाठ्यक्रम में परिवर्तन किया।
क्रांतिकारी सन्तान नहीं : फ्रांस के क्रांतिकारी आदर्शों को नष्ट करनेवाला नेपोलियन के बारे में इतिहासकार जार्ज रूडे का कहना है कि वह क्रांतिकारी सन्तान नहीं था। नेपोलियन स्वयं अपनी आत्मजीवनी में स्वीकार किया है कि वह क्रांतिकारी सन्तान नहीं बल्कि क्रांति को नष्ट करनेवाला था।
प्रश्न 5.
नेपोलियन के सामरिक अभियान एवं साम्राज्य विस्तार के बारे में वर्णन करो।
उत्तर :
नेपोलियन बोनापार्ट ने शुरुआत में फ्रांस के सेनापति एवं बाद में फ्रांस के कन्सोल के रूप में एवं फिर सम्राट के रूप में यूरोप के विशाल इलाके को दखल करके फ्रांसीसी सांग्राज्य का विस्तार किया।
प्रथम शक्तिगुट के विरुद्ध युद्ध : नेपोलियन डाइरेक्टरी के शासनकाल (1795-99 ई०) में फ्रांस विरोधी प्रथम शक्तिगुट (1792-97 ई०) के विरुद्ध युद्ध की शुरुआत की।
इटली : नेपोलियन ने इटली के युद्ध में सर्डिनिया को पराजित करके सेवाय एवं निस पर दखल किया। इटली का पार्मा, मडेना, नेपल्स के शासक भी उससे मित्रता करने को बाध्य हुए। वह उत्तरी इटली के युद्ध में ऑस्ट्रिया को हराकर वेनिस, मिलान एवं लम्बार्डी को दखल किया। रोम के शासक पोप को हराकर उसे टलेन्टिनों की सन्धि के लिये बाध्य किया।
ऑस्ट्रिया : ऑस्ट्रिया में सैनिक अभियान चलाकर वह ऑष्ट्रिया को कैम्पोफार्मिओ की संधि (1797 ई०) के लिये बाध्य किया।(3) इंग्लैण्ड : नेपोलियन ने इंग्लैण्ड के विरुद्ध मिस्र के पिरामिड युद्ध (1798 ई०) में विजयी होकर भी नील नदी के युद्ध (1798 ई०) में पराजित हुआ।
द्वितीय शक्तिगुट के विरुद्ध युद्ध : फ्रांस के विरुद्ध ब्रिटेन, ऑस्ट्रिया एवं रूस द्वितीय शक्तिगुट की कूटनीति ने इस गुट से रूस को अलग किया एवं ऑस्ट्रिया को मेरेनो के युद्ध (1800 ई०) में पराजित करके इटली में फ्रांस के खोये हुए स्थानों को पुन: दखल किया। इसके बाद ऑंस्ट्रिया को उसने होहेनलिण्डेन के युद्ध (1800 ई०) में परास्त कर लूनविल की संधि के लिये बाध्य किया। इंग्लैण्ड ने अमीन्स की संधि द्वारा फ्रांस को विभिन्न उपनिवेश लौटा दिया।.
तृतीय शक्तिगुट के विरुद्ध युद्ध : फ्रांस के विरुद्ध इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रिया, रूस एवं स्वीडेन द्वारा तृतीय शक्तिगुट (1805-06 ई०) बनाया गया । इस गुट के सदस्य ऑस्ट्रिया पर अचानक नेपोलियन ने आक्रमण कर उसे उल्म के युद्ध (1805 ई०) में पराजित कर दिया। नेपोलियन ब्रिटिश सेनापति नेलसन के साथ ट्राफलगर के युद्ध (1805 ई०) में परास्त होने पर भी ऑंस्ट्रिया फ्रांस के साथ प्रेसवर्न की संधि (1805 ई०) के लिये बाध्य हुआ।
अन्य युद्ध : नेपालियन ने पर्शिया को जेना एवं अराष्टाडाट के युद्ध (1806 ई०) में पराजित किया एवं स्कालबान की संधि द्वारा पर्शिया का बहुत बड़ा हिस्सा दखल कर लिया। उसने फ्रिडलैण्ड के युद्ध (1807 ई०) में रूस को हरकर टिलसिट की संधि (1807 ई०) के लिये उसे बाध्य किया।