Detailed explanations in West Bengal Board Class 9 History Book Solutions Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति के विभिन्न पहलू offer valuable context and analysis.
WBBSE Class 9 History Chapter 1 Question Answer – फ्रांसीसी क्रांति के विभिन्न पहलू
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK
प्रश्न 1.
प्रोटेस्टेंटों को कैसी यातनाएूं दी जाती थीं?
उत्तर :
कठोर यातनाएं।
प्रश्न 2.
फ्रांस में बिना अभियोग की गिरफ्तारी का एक वारंट पत्र किसके पास होता था।
उत्तर :
राजा के सामंतों के पास होता था।
प्रश्न 3.
फ्रांस में राज्य क्रांति कब हुई थी ?
उत्तर :
1789 ई० में।
प्रश्न 4.
टेनिस कोर्ट का शपथ ग्रहण कब हुआ था?
उत्तर :
टेनिस कोर्ट का शपथ ग्रहण 20 जून 1789 ई० को हुआ था।
प्रश्न 5.
फ्रांस की राज्य क्रान्ति में दार्शनिक का योगदान था, उनमें से दो लोगों के नाम बतायें।
उत्तर :
वाल्टेयर, मांटेस्क्यू।
प्रश्न 6.
फ्रांस की क्रान्ति के समय लुई XVI की पत्नी का क्या नाम था ?
उत्तर :
मेरी एंत्वायनेत।
प्रश्न 7.
फ्रांस की राजधानी कहाँ थी ?
उत्तर :
फ्रांस की राजधानी पेरिस में थी।
प्रश्न 8.
फ्रांस के राजा कहाँ रहते थे ?
उत्तर :
वार्साय में।
प्रश्न 9.
दाँते कौन था ?
उत्तर :
दाँते जैकोबिन दल का प्रमुख सदस्य था।
प्रश्न 10.
ला फायते कौन था ?
उत्तर :
ला फायते फ्रांसीसी सेना का सेनापति था।
प्रश्न 11.
फ्रांस के राजा लुई XVI को कब फांसी दी गई ?
उत्तर :
21 जनवरी, 1793 ई०।
प्रश्न 12.
प्रथम एस्टेट में फ्रांस के कौन लोग आते थे ?
उत्तर :
पादरी वर्ग के लोग।
प्रश्न 13.
तृतीय एस्टेट में फ्रांस के कौन लोग आते थे ?
उत्तर :
साधारण लोग एवं बुर्जुआ वर्ग के लोग।
प्रश्न 14.
वार्साय का महल किसने बनवाया था ?
उत्तर :
लुई चतुर्दश ने वार्साय का महल बनवाया था।
प्रश्न 15.
फ्रांस में दो प्रकार के कर के नाम बताएं।
उत्तर :
गैबेल तथा कार्वी।
प्रश्न 16.
बैस्टील दुर्ग का पतन क्यों हुआ ?
उत्तर :
बैस्टील दुर्ग को निरकुशता का प्रतीक माने जाने के कारण उसका जनता द्वारा पतन हुआ।
प्रश्न 17.
‘मैं ही राष्ट्र हूँ।’ – किसका कथन है ?
उत्तर :
यह फ्रांस के समाट लुई चौदहवें का कथन है।
प्रश्न 18.
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस का राजा कौन था ?
उत्तर :
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस का राज़ा वुर्वो वंशीय लुई सोलहवां था।
प्रश्न 19.
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस की रानी कौन थी ?
उत्तर :
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस की रानी वुर्वो वंशीय मेरी एंत्वायनेत थी।
प्रश्न 20.
फ्रांस में सात वर्ष से बड़े व्यक्ति को साल में कितना नमक खरीदना आवश्यक था।
उत्तर :
सात पौण्ड।
प्रश्न 21.
फ्रांस की क्रान्ति के समय अर्द्धदासों की संख्या कितनी थी ?
उत्तर :
तकरीबन 5 लाख।
प्रश्न 22.
बैस्टिल दुर्ग का पतन कब हुआ?
उत्तर :
14 जुलाई 1789 ई०
प्रश्न 23.
डेनिस दिदेरो कौन था ?
उत्तर :
डेनिस दिदेरो एक विचारक, दार्शनिक तथा फ्रांसीसी क्रान्ति का प्रेरक था।
प्रश्न 24.
फ्रांस पर जैकोबिन दल का प्रभुत्व कब स्थापित हुआ?
उत्तर :
1792 ई० को।
प्रश्न 25.
किसने और कब ‘व्यक्ति एवं नागरिक के अधिकार’ की घोषणा की ?
उत्तर :
फ्रांसीसी संविधान सभा ने 26 अगस्त 1789 ई० को ‘व्यक्ति एवं नागरिक के अधिकार’ की घोषणा की।
प्रश्न 26.
फ्रांस के क्रान्ति के बाद आतंक राज्य किस दल ने कायम किया था?
उत्तर :
जैकोविन दल ने।
प्रश्न 27.
फ्रांस में सामंतों का अन्त कब हुआ?
उत्तर :
4 अगस्त, 1789 ई० को राष्ट्रीय सभा की प्रथम बैठक में हुआ।
प्रश्न 28.
आंतक का राज्य फ्रांस में कब से कब तक था?
उत्तर :
जून 1793 से जुलाई 1794 तक।
प्रश्न 29.
द्वितीय स्टेट के अन्तर्गत आने वाले वर्ग कौन-कौन थे ?
उत्तर :
कुलीन एवं सामन्त।
प्रश्न 30.
जैकोबिन दल के प्रमुख नेता के नाम बताएं।
उत्तर :
सुमारियाज।
प्रश्न 31.
जैकोबिन दल फ्रांस में गणतंत्र की स्थापना कैसे करना चाहता था ?
उत्तर :
आतंक का राज्य स्थापित करके।
प्रश्न 32.
दक्षिणमार्गी दल के किसी एक नेता का नाम लिखें।
उत्तर :
रोब्सपियर।
प्रश्न 33.
वाममार्गी दल के किसी एक नेता का नाम लिखें।
उत्तर :
कार्ल मार्क्स।
प्रश्न 34.
“सौ चूहों की अपेक्षा एक सिंह का शासन उत्तम है ।” फ्रांसीसी क्रान्ति से सम्बन्धित यह कथन किसका है ?
उत्तर :
वाल्टेयर का।
प्रश्न 35.
‘मैं जो चाहूँ, वही कानून है।’ – यह कथन किसका है ?
उत्तर :
यह कथन फ्रांस के सम्राट लुई सोलहवें का है।
प्रश्न 36.
फ्रांस में वंशानुक्रमिक कुलीन किस नाम से परिचित थे ?
उत्तर :
फ्रांस में वंशानुक्रमिक कुलीन ‘नोबिलिटी ऑंफ द सोर्ड’ के नाम से परिचित थे।
प्रश्न 37.
कब और किस वंश के शासनकाल में फ्रांसीसी क्रान्ति हुई थी ?
उत्तर :
1789 ई० में वुर्वो राजवंश के शासनकाल में फ्रांसीसी क्रांति हुई थी।
प्रश्न 38.
‘क्रांति’ का अर्थ क्या है ?
उत्तर :
क्रांति का अर्थ प्रचलित व्यवस्था में तेज एवं कार्यकर परिवर्तन सें है।
प्रश्न 39.
‘मैं ही राष्ट्र हूँ।’ – किसका कथन है ?
उत्तर :
यह फ्रांस के समाट लुई चौदहवें का कथन है।
प्रश्न 40.
‘मेरे बाद ही महाप्रलय आयेगा।’ – किसने कहा था ?
उत्तर :
यह फ्रांस के सम्राट लुई पन्द्रहवें ने कहा था।
प्रश्न 41.
फ्रांस में प्राक्-क्रांति समय को किसने – ‘राजनीतिक कारागार’ कहकर संबोधित किया था ?
उत्तर :
दार्शनिक वाल्टेयर ने फ्रांस के प्राक्-क्रांति समय को – ‘राजनीतिक कारागार’ कहकर संबोधित किया था।
प्रश्न 42.
प्राक्-क्रांति काल के फ्रांस को किसने ‘भ्रामक अर्थनीति का जादूघर’ कहकर संबोधित किया था ?
उत्तर :
ब्रिटिश अर्थशास्ती एडम स्मिथ ने प्राक्-क्रांतिकाल के फ्रांस को ‘भ्रामक अर्थनीति का जादूघर’ कहकर संबोधित किया था।
प्रश्न 43.
फ्रांसीसी पादरियों द्वारा लिये जाने वाले कुछ करों के नाम लिखो।
उत्तर :
फ्रांसीसी पादरियों द्वारा लिये जाने वाले करों के नाम हैं- टाइद या धर्म कर, मृत्यु कर, विवाह कर इत्यादि।
प्रश्न 44.
फ्रांसीसी पादरी कितने श्रेणियों में बँटे थे ?
उत्तर :
फ्रांसीसी पादरी मुख्यतः उच्च एवं निम्न-इन दो श्रेणियों में बंटे थे।
प्रश्न 45.
फ्रांस के किन सम्र्रदायों को सरकार द्वारा लागू बाध्यतामूलक करों से छूट मिली थी ?
उत्तर :
पादरी एवं कुलीन वर्ग को सरकार द्वारा लागू बाध्यतामूलक करों से छूट मिली थी।
प्रश्न 46.
फ्रांसीसी क्रांति की तीन नीतियाँ क्या थीं ?
उत्तर :
फ्रांसीसी क्रांति की तीन नीतियाँ थीं – समानता, मैत्री एवं आजादी।
प्रश्न 47.
किसने सबसे पहले ‘समानता, मैत्री एवं आजादी’ – आदर्श की बात कही ?
उत्तर :
रूसो ने सबसे पहले ‘समानता, मैत्री एवं आजादी’ – आदर्श की बात कही।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS
प्रश्न 1.
‘फ्रांस राजतंत्र के अधीन राजनीतिक बन्दी का राष्ट्र बन गया’ – इस कथन कीं व्याख्या करो।
उत्तर :
यहाँ वैयक्तिक स्वतंत्रता भी अंतिम साँस ले रही थी। राजा किसी भी समय किसी को कैद कर सकता था और बिना मुकदमा चलाए उसे अपराधी ठहरा सकता था। ऐसी स्थिति में जनता की वैयक्तिक स्वतंत्रता खतरे में पड़ गई थी। वाल्टेयर और मिराबो को इसी प्रकार बन्दी बनाकर वर्षों बन्दीगृह में रखा गया था।
प्रश्न 2.
फ्रांस के नये संविधान ने क्रान्ति की रक्षा कैसे की ?
उत्तर :
किसी भी क्रान्ति के पश्चात्, क्रान्ति से हुए परिवर्तनों को बनाए रखना अत्यन्त कठिन होता है क्योंकि क्रान्ति विरोधी तत्व पुन: पूर्व स्थिति लाने का प्रयास करते हैं। इन परिस्थितियों में ‘आतंक के शासन’ की स्थापना की गयी। आतंक के शासन का उद्देश्य फ्रांस में शान्ति एवं सुव्यवस्था स्थापित करने साथ ही विदेशी आक्रमणों से फ्रांस की रक्षा करना था।
प्रश्न 3.
फ्रांसीसी सम्रदाय कितने भागों में विभक्त था और कौन-कौन ?
उत्तर :
फ्रांस में क्रांति से पहले सम्रदाय तीन श्रेणियों में विभक्त था। जैसे –
- धनी व्यवर्सायी, पूंजीपति, बैंकर्स, आदि को लेकर उच्च वर्ग,
- एड़ोकेट, न्यायाधीश, चिकित्सक, शिक्षक आदि को लेकर मध्य वर्ग एवं
- दुकानदार, कारीगर, कृषक, श्रमिक, सर्वहारा आदि को लेकर निम्न वर्ग।
प्रश्न 4.
क्रांति से पहले फ्रांसीसी समाज में कितने एवं कौन-कौन सामाजिक स्तर थे ?
उत्तर :
क्रांति से पहले फ्रांसीसी समाज के तीन सामाजिक स्तर थे। जैसे –
- प्रथम श्रेणी : पादरी सम्पदाय
- द्वितीय श्रेणी : कुलीन सम्र्रदाय
- तृतीय श्रेणी : मध्यवित्त (बुर्जुआ), व्यवसायी, कृषक, श्रमिक, सर्वहारा आदि।
प्रश्न 5.
पुरातन व्यवस्था जो फ्रांस क्रान्ति से पहले थी उस पर दो वाक्यों में अपना मत दें।
उत्तर :
फांस में क्रांति के पहले की राजतंत्र व्यवस्था को पुरातन व्यवस्था के नाम से जाना जाता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता राजतंत्र की निरकुशता थी।
प्रश्न 6.
फ्रांस में क्रान्ति के पहले सामन्तों की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर :
फ़ांस में क्रान्ति के पूर्व फ्रांस की कुल भूमि का चौथाई भाग सामन्तों के अधीन था, जिसकी आय से ये लोग विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। सामन्तों में भी दो वर्ग थे – सैनिक सामन्त तथा न्यायाधीश।
प्रश्न 7.
क्रान्ति पूर्व फ्रांस में राजा के अधिकार को बताएं।
उत्तर :
राजा ही कानून बनाता, वही कर लगाता, खर्च भी अपनी इच्छानुसार करता, युद्ध की घोषणा तथा अपनी स्वेच्छा से ही अन्य राष्ट्रों के साथ संधि करता था। राजा किसी भी व्यक्ति को बिना अभियोग लगाए बन्दी बना सकता था।
प्रश्न 8.
क्रान्ति पूर्व फ्रांस में बेगारी-प्रथा क्या थी ?
उत्तर :
बेगारी-प्रथा : समाज में अर्द्धदासों का एक वर्ग या जो गुलाम से कुछ बेहतर होते थे। उन्हें अपने सामन्तों, पादरियों और बड़े किसानों के यहाँ सप्ताह में तीन दिन बेगारी करनी पड़ती थी। बेगारी का तात्पर्य ऐसे श्रम से है जिसमें उत्पादन तो हीता है किन्तु प्रारिश्रमिक का भुगतान नहीं किया जाता है।
प्रश्न 9.
फ्रांस की बुर्जुआ श्रेणी के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर :
फ्रांस के वैषम्यमूलक समाज व्यवस्था के तृतीय श्रेणी का अन्यतम अंश था मध्यवित्त या बुर्जुआ श्रेणी। यह श्रेणी ही क्रांति की अम्यूत थी। यह श्रेणी तीन भागों में विभक्त थी –
- धनी व्यवसायी, बैंक मालिक, पूँजीपति आदि थे उच्च वर्ग के लोग
- शिक्षक, चिकित्सक, वकील आदि मध्य वर्ग एवं
- साधारण व्यवसायी, दुकानदार, कृषक, श्रमिट कारीगर आदि निम्न वर्ग़।
प्रश्न 10.
‘कार्वि’ क्या है ?
उत्तर :
क्रांति के पहले फ्रांस के किसान मालिकों के विभिन्न कामों के लिए बिना मजदूरी के बेगार खटने को बाध्य थे। इसी को श्रमकर या. कार्वि कर कहा जाता था।
प्रश्न 11.
क्रांति पूर्व फ्रांस में द्वितीय स्टेट की स्थिति को बताए।
उत्तर :
क्रान्ति से पहले द्वितीय स्टेट अर्थात् कुलीन वर्ग की स्थिति सम्पन्न एवं प्रभावशाली थी।
प्रश्न 12.
रूसो कौन थे ? उनके प्रसिद्ध ग्रन्थ का नाम क्या है ?
उत्तर :
रूसो (1712-1778 ई०) 18 वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध दार्शनिक थे। उनके द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रन्य है – ‘सोशल काण्ट्रैक्ट’ या ‘सामाजिक समझौता’। यह पुस्तक क्रांति की बाइबिल नाम से परिचित है।
प्रश्न 13.
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस के राजा एवं रानी कौन थे? वे लोग किस राजवंश के थे ?
उत्तर :
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस के राजा एवं रानी क्रमशः लुई सोलहवे एवं मेरी एंत्वायनेत थे। ये दोनों बुर्वों राजवंश के थे।
प्रश्न 14.
फ्रांस क्रान्ति के समय पादरी और निम्न पादरियों में क्या अन्तर था ?
उत्तर :
बड़े पादरियों के पास काफी धन और आलीशान महल था लेकिन निम्न पादरियों की आय बहुत ही सीमित थी। बड़े पादरियों द्वारा इन्हें बड़ी हीन दृष्टि से देखा जाता था। इनका समाज में कोई विशेष आदर नहीं था। इनकी अवस्था अत्यन्त दयनीय हो चुकी थी। यह अधिकतर छोटे-छोटे शहरों तथा देहातों में रहते थे।
प्रश्न 15.
बैस्टील दुर्ग का पतन कैसे हुआ ?
उत्तर :
राष्ट्रीय सभा के बुर्जुआ प्रतिनिधियों के दबाव से फ्रांस के राजा द्वारा तीनों सम्रदाय के प्रतिनिधियों को एक साथ सभा में बैठने एवं प्रत्येक प्रतिनिधि को मताधिकार प्रयोग करने का प्रस्ताव मान लेने पर पेरिस की जनता अत्यंत खुश हुई इसके बाद 14 जुलाई 1789 ई० को उत्तेजित जनता ने बैस्टील दुर्ग के कारारक्षियों की हत्या करके बैस्टील दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
प्रश्न 16.
बास्टील दुर्ग पर आक्रमण कब हुआ ? और आक्रमण किसने किया?
उत्तर :
14 जुलाई 1789 ई० को फ्रांस के उत्तेजित जनता ने बैस्टील दुर्ग पर आक्रमण किया।
प्रश्न 17.
नवीन संविधान के निर्माण के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
फ्रांस के नवीन संविधान राजतन्त्र का अन्त कर दिया तथा आतंक के राज्य के स्थापना में सदद की।
प्रश्न 18.
माण्टेस्क्यू द्वारा रचित दो ग्रन्थों के नाम लिखो।
उत्तर :
माण्टेस्क्यू द्वारा रचित दो महत्वपूर्ण प्रन्थ हैं – (i) द स्पिरिट ऑफ लॉ एवं (ii) द पर्सियन लेटर्स।
प्रश्न 19.
फ्रांस में जनता से कौन-कौन सा कर लिया जाता था?
उत्तर :
फ्रांस में प्रचलित कुछ करों के नाम :
- टाइले या भूमिकर
- कैपिटेशन या उत्पादन कर
- भिंटिंयेमे या आयकर
- गैबेला या नमक कर
- टाइद या धर्मकर
- कार्वि या श्रमकर (मालिक के यहाँ बाध्यतामूलक बेगारी करना) इत्यादि।
प्रश्न 20.
फ्रांस की दो राजनीतिक दलों के नाम बताइए।
उत्तर :
- दक्षिणपंथी शासनतांत्रिक दल,
- वामपन्थी जिरन्दिस्त दल,
- उग्र वामपन्थी जैकोबिन दल एवं
- मध्यपन्थी निरपेक्ष दल।
प्रश्न 21.
पार्लेमा के निम्नलिखित मुद्दे क्या थे ?
उत्तर :
पेरिस की पार्लेमा (Parlement) के निम्नलिखित मुद्दे :
- राजा को न्यायाधीशों को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है।
- प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति की सुनवाई उचित न्यायालय में होनी चाहिए।
- प्रान्तीय पार्लेमा के अधिकार अक्षुण्ण हैं।
प्रश्न 22.
‘टेनिस कोर्ट की शपथ’ क्या है ?
उत्तर :
फ्रांस की राष्ट्रीय सभा के तृतीय सम्रदाय के सदस्यगण 20 जून 1789 ई० को संसद भवन में प्रवेश करने पर देखा कि सभाकक्ष बन्द है। इसके बाद क्षुब्ध सदस्यगण मिराबो एवं आवेसिएसेस के नेतृत्व में निकटवर्ती टेनिस कोर्ट मे एकत्रित होकर शपथ ली कि फ्रांस के लिये एक नये संविधान की रचना नहीं होने तक वे लोग एक साथ मिलकर कार्य करते रहेंगे। इस घटना को ‘टेनिस कोर्ट की शपथ’ कहते हैं।
प्रश्न 23.
इस्टेट जेनरल की बैठक कब और कहाँ हुई थी ?
उत्तर :
इस्टेट जेनरल की बैठक 5 मई, 1789 ई० को सभा भवन में हुई।
प्रश्न 24.
फ्रांस क्रान्ति में लाफायते कौन थे ?
उत्तर :
फ्रांस क्रान्ति में लाफायते फ्रांस का सेनापति था।
प्रश्न 25.
फ्रांस क्रान्ति के समय मध्य वर्ग में कौन-कौन से लोग आते थे?
उत्तर :
बुद्धिजीवी, व्यवसायी और सरकारी कर्मचारी आते थे।
प्रश्न 26.
फ्रांस क्रान्ति के समय राजा को किस दल ने फाँसी दिया और कब?
उत्तर :
लुई 16 वाँ को 21 जनवरी, 1793 को फाँसी दिया गया।
प्रश्न 27.
राष्ट्रीय संवैधानिक सभा के कार्य बताएं।
उत्तर :
राष्ट्रीय संवैधानिक सभा के कार्य :
- सामन्तवादिता का अन्त
- मानव अधिकारों की घोषणा
- चर्च की जागीरों एवं मठो का अन्त
- नवीन संविधान का निर्माण
- आर्थिक दशा सुधारने हेतु किए गए कार्य।
प्रश्न 28.
सॉ कूलोट किसे कहा जाता था ?
उत्तर :
सॉ कूलोट : फ्रांस के शहरों में रहने वाले मजदूर वर्ग के लोगों को सॉ कूलोट कहा जाता है। ऐसा उन्हें इसलिए कहा जाता था क्योंकि वे लोग उच्च श्रेणी की लोगों की तरह Silk के परिधान को धारण नहीं कर सकते थे।
प्रश्न 29.
‘व्यक्ति एवं नागरिक के अधिकार’ में क्या कहा गया है ?
उत्तर :
‘व्यक्ति एवं नागरिक के अधिकार’ में कहा गया है –
- स्वाधीनता मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है।
- कानून की दृष्टि में सभी समान हैं।
- जनता ही सार्वभौम शक्ति की जनक है।
- वाक्स्वाधीनता, धार्मिक स्वाधीनता, सम्पत्ति भोग एबं अधिकार आदि मनुष्य के मौलिक अधिकार हैं।
प्रश्न 30.
‘व्यक्ति एवं नार्गरिक के अधिकार’ की घोषणा का क्या महत्व है ?
उत्तर :
‘व्यक्ति एवं नागरिक के अधिकार’ की घोषणा में महत्वपूर्ण तथ्य थे –
(i) इस घोषणापत्र के जरिये पुरातनतंत्र को नष्ट करने की चेष्टा हुई।
(ii) उदारवाद, राष्ट्रीयतावाद एवं मानवधिकार की रक्षा के लिये लोग जागरूक हुए।
प्रश्न 31.
किस दल के नेतृत्व में कितने समय तक फ्रांस में आतंक-राज कायम रहा ?
उत्तर :
उग्र वामप्थी जैकोबिन दल के नेतृत्व में 2 जून 1793 ई० से 27 जुलाई 1794 तक फ्रांस में आतंक-राज कायम था।
प्रश्न 32.
फ्रांसीसी क्रान्ति के तीन आदर्श क्या थे ?
उत्तर :
स्वतंत्रता, समानता एवं बन्धुत्व फ्रांसीसी क्रान्ति के तीन आदर्श थे।
प्रश्न 33.
पुरातन व्यवस्था से क्या समझते है ? इसका प्रतिष्ठाता कौन था ?
उत्तर :
फ्रांस में क्रांति के पहले की व्यवस्था को स्थापित करने को पुरातन व्यवस्था कहा जाता है। उसका प्रतिष्ठाता लुई 14वाँ था।
प्रश्न 34.
‘सस्पेन्सिव विटो’ क्या है ?
उत्तर :
फ्रांसीसी संविधान सभा के निर्णय के आधार पर संसद द्वारा प्रवर्तित किसी कानून को राजा सम्पूर्ण रद्द न करने पर भी कुछ समय के लिए उसे स्थगित रख सकते थे। राजा की इस शक्ति को ‘सस्पेन्सिव विटो’ कहा जाता था।
प्रश्न 35.
‘पादुआ की घोषणा’ क्या है ?
उत्तर :
ऑस्ट्रिया के सम्राट लिओपोल्ड पादुआ नामक स्थान से 6 जुलाई 1791 ई० को एक घोषणा की। इसमें उन्होंने फ्रांसीसी राजतन्त्र के पक्ष में यूरोपीय राजा वर्ग को सशस्त्र हस्तक्षेप करने का आवेदन किया। इस घोषणा को पादुआ की घोषणा’ नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 36.
‘पिलनिज की घोषणा’ क्या है ?
उत्तर :
ऑस्ट्रिया के राजा लिओपोल्ड एवं पर्सिया के राजा फ्रेडरिक द्वितीय विलियम 27 अगस्त 1791 ई० को पिलनिज नामक स्थान से संयुक्त रूप से एक घोषणा पत्र के द्वारा फ्रांसीसी राजतंत्र के पक्ष में यूरोप के राजवर्ग को फ्रांस में सशस्त्र हस्तक्षेप का आवेदन किया। यह घोषणा ‘पिलनिज की घोषणा’ नाम से परिचित है।
प्रश्न 37.
‘ब्रांसविक घोषणा’ क्या है ?
उत्तर :
1792 ई० के अगस्त महीने में पर्सिया के सेनापति बांसविक ने एक घोषणा के माध्यम से फ्रांसीसीयों को सतर्क कर दिया कि फ्रांस के राज-परिवार को कोई नुकसान होने पर, वे पेरिस शहर को नष्ट कर देंगे। यह घोषणा ‘ब्रांसविक घोषणा’ के नाम से परिचित है।
प्रश्न 38.
‘टाइद’ क्या है ?
उत्तर :
‘टाइद’ धर्मकर था। फ्रांसीसी गिरजा देश के तृतीय श्रेणी के लोगों से 10 % की दर से यह टैक्स वसूल करता था। गिरजा के पादरी लोग इस टैक्स से विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे।
प्रश्न 39.
मांटेस्क्यू कौन थे ?
उत्तर :
मांटेस्क्यू (1689-1755 ई०) फ्रांसीसी क्रांति के प्राक्-काल के एक प्रसिद्ध दार्शनिक थे। वे नियमतान्त्रिक राजतंत्र के समर्थक एवं राजा के तथाकथित ऐश्वरिक शक्ति-धारण के विरोधी थे।
प्रश्न 40.
वाल्टेयर कौन थे ? उनके द्वारा रचित ग्रंन्थ का नाम क्या है ?
उत्तर :
वाल्टेयर (1694-1778 ई०) फ्रांस की क्रांति के प्राक्-काल के एक विख्यात दार्शनिक थे। उनका वास्तविक नाम था फ्रांसोया मारी आरूए। उनके द्वारा रचित उल्लेखनीय पुस्तक का नाम- कॉंदिद एवं ‘दार्शनिक शब्दकोश’ है।
प्रश्न 41.
गिलोटिन क्या है ?
उत्तर :
गिलोटिन एक तरह का यंत्र है। इसका आविष्कार करने वाले फ्रांसीसी डॉ॰ गिलोटिन थे। इस यंत्र की सहायता से फ्रांस के आतंक राज में हजारों लोगों की हत्या की गयी।
प्रश्न 42.
बैस्टील दुर्ग के पतन का महत्व क्या है ?
उत्तर :
बैस्टील दुर्ग के पतन के महत्व हैं –
- इस दुर्ग से निर्दोष बन्दी मुक्त हुए
- राजा की निरंकुशता नष्ट हुई
- वास्तिल दुर्ग के पतन के जरिये क्रांति की सूचना हुई।
प्रश्न 43.
पेरी कम्यून क्या है ?
उत्तर :
बैस्टील दुर्ग के पतन (14 जुलाई 1789 ई०) के बाद कांतिकारी जनता ने पेरिस शहर की नगरपालिका के संचालन के लिये एक कमेटी का गठन किया। यह पेरी कम्यून के नाम से परिचित है।
प्रश्न 44.
‘सन्देह का कानून’ क्या है ?
उत्तर :
फ्रांस में आतक के शासनकाल में एक विशेष कानून के द्वारा –
(i) क्रांति विरोधी सन्देह में किसी को गिरफ्तार किया जा सकता था एवं
(ii) क्रांतिकारी अदालत में उसका विचार होता था। यह विशेष कानून ‘सन्देह के कानून’ नाम से परिचित है।
प्रश्न 45.
‘इस्टेट’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
क्रांति से पहले फ्रांस की सामाजिक व्यवस्था में तीन पृथक सम्पदाय का अस्तित्व था। प्रत्येक को ‘इस्टेट’ कहा जाता था।
प्रश्न 46.
‘पैट्रियाटिक पार्टी’ का गठन किनके द्वारा किया गया ?
उत्तर :
मिराबो, लाफायेत, ओवेसियस प्रमुख आदि कुलीन लोगों ने तृतीय सम्रदाय के सहायोग से पैट्रियाटिक पार्टी का गठन किये।
प्रश्न 47.
राब्सपियर कौन थे ?
उत्तर :
राब्सपियर फ्रांस के उप्र वामपंथी जैकोबिन दल के एक प्रमुख नेता एवं आतंक-राज के प्रधान संचालक थे। उनके नेतृत्व में हजारों लोगों की बलि चढ़ाई गयी.। वे अपने घनिष्ठ मित्र हिवर्ट एवं दाँते को भी आतंक द्वारा हत्या की। अन्त में उदारपंथी लोगों के द्वारा उनकी हत्या कर देने पर आतंक के शासन का अन्त हुआ।
प्रश्न 48.
क्रांति के पहले के कुछ उल्लेखनीय दार्शनिकों के नाम लिखो।
उत्तर :
क्रांति के पहले के कुछ उल्लेखनीय दार्शनिक थे
- मांटेस्क्यू (1689-1755 ई०)
- वाल्टेयर (1694-1778 ई०)
- ज्यों जैक रूसो (1712-1778 ई०) आदि।
प्रश्न 49.
जैकोबिन कौन थे ? इस दल के कुछ नेताओं के नाम लिखो।
उत्तर :
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस में जिस उग्र वामपंथी दल का उदय हुआ था एवं फ्रांस के संकटकाल में जिन लोगों ने आतंक का शासन लागू किया था वे जैकोबिन के नाम से परिचित थे।
उसके प्रमुख नेता थे – राब्सपियर, हिवर्ट, दाँते आदि।
प्रश्न 50.
किसने और कब फ्रांस में प्रथम प्रजातन्त्र की प्रतिष्ठा की ?
उत्तर :
फ्रांस की राष्ट्रीय महासभा या नेशनल कन्वेंशन ने 22 सितम्बर 1792 ई० को फ्रांस के राजतंत्र को समाप्त कर प्रथम प्रज़ातन्त्र की स्थापना किया।
संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 4 MARKS
प्रश्न 1.
फ्रांसीसी क्रान्ति का आरम्भ कब और कैसे हुआ ?
उत्तर :
1789 ई० की फ्रांसीसी राज्य क्रांति के मूल में जनसाधारण की आर्थिक दुरवस्था एक महत्त्वपूर्ण कारण थी। राजकीय विलासिता एवं राजनीतिक अव्यवस्था के कारण राजकोष खाली हो गया था। प्रजा पर मनमाने कर (Tax) लगाये जा रहे थे और उस धन का अधिकांश भाग सामंतों, जागीरदारों तथा राजकर्मचारियों द्वारा हड़प लिया जाता था। राजकोष में बहुत ही कम अंश पहुँच पाता था। कुलीन वर्ग कर मुक्त था, उनपर नाम मात्र का कर लगाया जाता था जो वे देते भी नहीं थे। दूसरी ओर किसानों के परिश्रम का बहुत बड़ा अंश कर चुकाने में चला जाता था, जिससे उनके परिवार को भर पेट भोजन भी नहीं मिल पाता था। कर नहीं चुका पाने पर उन्हें तरह-तरह के अत्याचार और दंड भोगने पड़ते थे।
इसी तरह फ्रांस के दोर्शनिको दिदरो, क्वेसने, हैवलाक आदि ने फ्रांस की जनता के हुय में निरंकुश राजतंत्र के प्रति घृणा तथा जनतंत्र के प्रति जनता के हुदय में भीषण क्रांति की ज्वाला भड़का दी।
20 जून 1789 ई० को स्टेट्स जनरल ने सम्राट की इच्छा के विरुद्ध स्वयं को राष्ट्रीय सत्ता घोषित कर सत्ता अपने हाथों में ले ली। राष्ट्रीय सभा की माँग स्वीकार कर लेने पर भी सम्राट कुलीनों और पुरोहितों के प्रभाव में आकर सत्ता के कार्यों में बाधा पहुँचाता रहा। 11 जुलाई 1789 ई० को उसने अपने अति लोकप्रिय प्रधान मंत्री नेकर को हटा दिया। राजा के कार्यों से जनता भड़क उठी और 14 जुलाई को हजारों पेरिसवासी लाठी, भाले, बन्दूक, तोप आदि लेकर बैस्टील के दुर्ग की ओर चल पड़ी। भीड़ ने बैस्टील दुर्ग में घुसकर भीषण लूटपाट और तोड़फोड़ की। उसने बंदियों को मुक्त कर दिया और दुर्ग को ध्वस्त कर दिया। इस घटना के कारण 14 जुलाई को फ्रांस ने राष्ट्रीय पर्व का दिन घोषित कर दिया।
इसके पश्चात् पेरिस राज-नियंत्रण के बाहर चला गया और पेरिस का शासन पेरिस नगर समिति के हाथों में चला गया। बैस्टील के पतन की सूचना पाकर प्रांतों में भी लोगों ने नगरपालिकाएँ तथा रक्षक दल बना लिये, जमींदारों तथा जागीरदारों के गढ़ों और चर्च के मठों को लूट लिया गया तथा उनमें आग लगा दी।
प्रश्न 2.
स्टेट्स जनरल के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर :
स्टेट्स जनरल (Estates General) : फ्रांस में स्टेट्स जनरल की स्थापना 1320 ई० में हुई थी तथा वर्ष में एक बार अथवा जरूरत होने पर अनेक बार इसका अधिवेशन बुलाया जा सकता था। स्टेट्स जनरल का मुख्य कार्य परामर्श देना था। प्रत्येक प्रतिनिधि अपने-अपने क्षेत्र की समस्याओं व उनके निदान को भी इस सभा में प्रस्तुत करता था। कालान्तर में, निरकुशवादी तत्वों के बढ़ने से स्टेट्स जनरल का महत्व शनै: शनै: कम होने लगा। इसका अन्तिम अधिवेशन 1617 ई० में हुआ। अब लगभग 175 वर्षों के उपरान्त पुन: इसका अधिवेशन बुलाए जाने की मांग जोर पकड़ने लगी थी क्योंकि फ्रांस की जनता व पारलमाँ का विचार था कि फ्रांस की शोचनीय आर्थिक स्थिति का सामना करने के लिए इसका अधिवेशन बुलाना आवश्यक था।
प्रश्न 3.
बैस्टील दुर्ग के पतन का क्या महत्व है ?
उत्तर :
फ्रांस के राजा लुई सोलहवें बुर्जुआ के दबाव से सहमत होने पर भी पुरातनतंत्र की वापसी के लिये लोकप्रिय ‘अर्थमंत्री नेकार को बर्खास्त कर पेरिस एवं वर्साई में सेना नियुक्त किये। इससे आक्रोशित होकर पेरिस की जनता 14 जुलाई ‘ 1789 ई० को वास्तिल दुर्ग पर आक्रमण कर उसे दखल कर लिया। बैस्टील दुर्ग के पतन का महत्व :
राजा की स्वीकृति : बैस्टील दुर्ग के पतन से आतंकित राजा पेरिस आकर तिरंगा (लाल-नील-सादा) झंडा को फ्रांस का झंडा मानना स्वीकार कर लिये। क्रांतिकारी वेइली को पेरिस नगरपालिका के मेयर पद पर बैठाया गया। राष्ट्रीय सुरक्षावाहिनी को संगठित करके क्रांतिकारी लाफायेत को इसका प्रधान सेनापति बनाया गया।
निरंकुश राजतंत्र पर आघात : कुख्यात बैस्टील दुर्ग निरंकुश राजतंत्र एवं मध्ययुगीन एकनायकत्व तथा सामन्तवाद का प्रतीक था। यहाँ बिना विचार किये निर्दोष प्रजा को बन्दी बनाकर रखा जाता था। इसीलिये इसके पतन से राजतंत्र पर गहरा असर पड़ा और राजतंत्र के प्रतिरोध करने की क्षमता कमजोर हो गयी।
जनता की शक्ति वृद्धि : बैस्टील दुर्ग का पतन फ्रांस के आम लोगों में शक्ति संचार का माध्यम बना। प्रचंड प्रतापशाली राजतंत्र के विरुद्ध युद्ध में आम जनता की विजय हो सकती है, बैस्टील दुर्ग के पतन ने इसे प्रमाणित कर दिया।
कुलीन का देशत्याग : बैस्टील दुर्ग की घटना से आतंकित अधिकांश कुलीन लोग डर कर विदेश भाग गये। उनका विश्वास था कि विदेशी शक्ति की सहायता के बिना उन्हें विशेष अधिकार वापस मिलना सम्भव नहीं है।
प्रश्न 4.
फ्रांसीसी राजा लुई सोलहवें को मृत्युदण्ड कैसे हुई ?
उत्तर :
फ्रांसीसी राजा लुई सोलहवें के ऊपर क्षुब्ध होकर जिरन्दिष्ट दल के नेतृत्व में प्रायः 8 हजार सशस्त्र लोगों के एक बड़े जुलूस ने ट्यूलारिज राजमहल पर आक्रमण (20 जून, 1792 ई०) किया। इस समय पर्सिया के सेनापति डयूक ऑफ ब्रान्सविक एक घोषणा के माध्यम से फ्रांस के लोगों को सतर्क किया कि फ्रांस के राज-परिवार की कोई क्षति होने से वे कठोर सजा देंगे।
मृत्युदण्ड :
राजतंत्र-समाप्ति की माँग : ब्रांसविक की घोषणा से फ्रांस के क्रांतिकारियों ने सन्देह किया कि राजपरिवार विदेशियों के साथ षड्यन्त्र करके फ्रांस में क्रांतिकारी वर्ग को खत्म करना चाहता है। फलस्वरूप उत्तेजित जनता 10 अगस्त 1792 ई० को दूसरी बार राजमहल पर आक्रमण करके प्राय: 800 अंगरक्षकों की हत्या कर दी। आतंकित राजपरिवार निकटवर्ती विधानसभा में शरण ली। आक्रोश से भरी जनता विधानसभा पहुँच कर राजतंत्र की समाप्ति की माँग करने लगी।
राजा का न्याय : उत्तेजित जनता के दबाव में विधानसभा द्वारा राजा को बर्खास्त करके, उसे न्याय के लिये टेम्पल दुर्ग में बन्दी बना लिया गया। राजा के न्याय को केन्द्र करके जिरन्दिष्ट एवं जैकोबिन दलों में तीव्र विरोध आरंभ हुआ। जिरन्दिष्ट दल राजा को मृत्युदण्ड के बदले जनमत के जरिये कोई दूसरी सजा देने के पक्ष में थी। लेकिन उग्र वामपन्थी जैकोबिन दल इसके लिये सहमत नहीं था।
मृत्युदण्ड : अन्त में राष्ट्रीय सभा में कुछ मतों के अन्तर से राजा के प्रति मृत्युदण्ड का निर्णय लिया गया। 21 जनवरी 1793 ई० को फ्रांस के राजा लुई सोलहवें को गिलोटिन द्वारा मृत्युदण्ड दिया गया। इससे पूरा यूरोप स्तम्भित रह गया। इतिहासकार हैजेन का कहना है कि ‘सिहासन की तुलना में फांसी के मंच पर राजा अधिक महान लग रहे थे।”
प्रश्न 5.
फ्रांस की क्रान्ति में कृषकों की भूमिका क्या थी ?
उत्तर :
फ्रांस में किसानों की संख्या अधिक थी। ये फ्रांस की संख्या के 80 % थे। किसानों में दो भाग था, स्वतंत्र किसान, दूसरा अर्द्धदास किसान। गरशॉय का मत है कि ‘ किसान इतने दुःखी हो चुके थे कि वे स्वयं ही एक क्रान्तिकारी तत्व के रूप में परिणत हो गए। उन्हें क्रान्ति करने के लिए मात्र एक संकेत की आवश्यकता थी तथा उन्हीं की प्रमुख भूमिका ने 1789 ई० की क्रान्ति को सफल बनाया था।
प्रश्न 6.
व्यवस्थापिका सभा पर निबन्ध लिखें।
उत्तर :
व्यवस्थापिका सभा (Legislative Assembly) : राष्ट्रीय सभा का मुख्य उद्देश्य फ्रांस के लिए संविधान का निर्माण करना था। अपने उद्देश्य को पूरा करने के पश्चात् राष्ट्रीय सभा भंग हो गयी। नवीन संविधान के अनुसार व्यवस्थापिका सभा के लिए निर्वाचन हुए व 1 अक्टूबर, 1791 ई० को व्यवस्थापिका सभां की पहली बैठक हुई। व्यावस्थापिका सभा के प्रथम अधिवेशन के समय सम्पूर्ण फ्रांस में खुशियां मनायी गयी क्योंकि राजा द्वारा नवीन संविधान को स्वीकार कर लिया गया था। फ्रांस की जनता का विचार था कि क्रान्ति समाप्त हो गयी है व सुखमय भविष्य के चिह्न उन्हें दृष्टिगत हो रहे थे, किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं हुआ। व्यवस्थापिका सभा में सदस्यों की कुल संख्या 745 थी। व्यवस्थापिका सभा के अधिकांश सदस्य मध्यम वर्ग के थे, अतः क्रान्तिकारी विचारों से प्रभावित थे।
प्रश्न 7.
राष्ट्रीय सभा का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर :
राष्ट्रीय सभा : टेनिस कोर्ट की शपथ से डरकर राजा ने 23 जून 1789 ई० को तीन सदनों की एक बैठक बुलाई। राजा ने सुधार की योजना को सदन के सामने पेश किया और भाषण के बाद सदन से बाहर आ गया। सभी इस्टेट को अलग-अलग बैठने का अदेश भी दिया। प्रथम और द्वितीय इस्टेट के लोग राजा के पीछे चले गये जबकि तृतीय इस्टेट के प्रतिनिधियों ने यह घोषणा कि वे जनता की राय से वहाँ आये है और केवल तलवार के दम पर ही इन्हें हटाया जा सकता है। बाध्य होकर 27 जून 1789 को राजा ने तीनों सदनों को एक साथ बैठने का आदेश दिया। इस प्रकार राष्ट्रीय सभा को वैधानिक दर्जा प्राप्त हो गया। संविधान बनाने का कार्य करने के लिए संविधान-सभा बनाया गया।
प्रश्न 8.
1789 ई० के पहले फ्रांस की सामाजिक अवस्था कैसी थी ?
अथवा
फ्रांस की क्रान्ति से पूर्व फ्रांस के सामाजिक ढाँचे का वर्णन करें।
उत्तर :
फ्रांस की क्रांति (1789 ई०) के पहले फ्रांस की सामाजिक अवस्था मध्ययुगीन, सामन्ततान्त्रिक एवं अत्यन्त वैषम्यमूलक थी। समाज में लोग मुख्यतः तीन सम्रदाय या ‘इस्टेट’ में विभक्त थे-
- पादरी लोगों को लेकर गठित प्रथम सम्रदाय,
- कुलीन लोगों को लेकर गठित द्वितीय सम्र्रदाय एवं
- बुर्जुआ, मध्यवित्त, व्यापारी, दरिद्र कृषक-श्रमिक एवं सर्वहारा लोगों को लेकर तृतीय सम्र्रदाय।
1789 ई० के पहले फ्रांस की सामाजिक अवस्था :
प्रथम सम्प्रदाय : पादरी सम्र्रदाय समाज का सबसे अधिक सुविधाभोगी सम्र्रदाय था। उनकी कुल जनसंख्या 01 % से कम होने पर भी देश की 1 / 5 भाग कृषि जमीन उनके कब्जे में थी। इसके लिये वे लोग राजा को कोई कर भी नहीं देते थे। गिरजा की आय एवं वसूला गया धर्म कर, मृत्यु कर, विवाह कर आदि से अत्यंत विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे।
द्वितीय सम्र्रदाय : कुलीन वर्ग भी अत्यंत सुविधावादी सम्रादाय था। इनकी कुल जनसंख्या केवल 1.5 % होने पर भी देश की 1 / 3 भाग कृषि जमीन इनके पास थी जिसके लिये ये लोग राजा को कोई कर नहीं देते थे। ये लोग प्रजा से विभिन्न प्रकार का सामन्तकर अदाय करते थे तथा प्रशासन एवं न्यायविभाग के ऊँचे पदों पर ये ही आसीन थे।
तुतीय सम्रदाय : बुर्जुआ, धनी व्यापारी, पूंजीपति, बैंकर्स, शिक्षक, डॉक्टर, किसान, मजदूर, सर्वहारा आदि तुतीय सम्रदाय में आते थे। देश की लगभग 98% आबादी होने के बाद भी इन्हें कोई सुयोग-सुविधा एवं अधिकार नहीं था। यद्यपि इन्हें सब तरह के कर देने पड़ते थे।
प्रश्न 9.
फ्रांसीसी क्रांति में महिलाओं की भागीदारी का विवरण दो।
उत्तर :
1789 ई० के मध्य भाग में राजा लुई सोलहवें द्वारा स्टेट्स जनरल का अधिवेशन बुलाकर, बुर्जुआ सम्रदाय की माँगें अर्थात सभी सम्र्रदाय को एक साथ सभा में बैठने एवं प्रत्येक सदस्य को मताधिकार को बाध्य होकर मान लेने पर भी महंगाई, खाद्याभाव आदि की घटना को सामने रखकर तृतीय श्रेणी के लोग कांति में कूद पड़े।
फ्रांसीसी क्रांति में महिलाओं का अंशग्रहण :
खाद्याभाव : 1789 ई० के द्वितीय भाग में फ्रांस के ग्रामांचल में खाद्याभाव ने अपने चरम संकट का रूपं धारण कर लिया था। खाद्य की माँग को लेकर पेरिस में हंगामा शुरू हो गया। इस दशा में प्राय: 6 हजार महिलाओं ने 5 अक्टूबर को भारी बारिश की उपेक्षा करके जुलूस बनाकर वर्साई में राजमहल को घेर लिया। लाफाएत के नेतृत्व में राष्ट्रीय सुरक्षावाहिनी के 20 हजार सदस्य इस जुलूस का अनुसरण करते रहे।
राजतंत्र की शवयात्रा : आन्दोलनकारी महिलाओं 6 अक्टूबर को राजमहल के सुरक्षा-कर्मियों की हत्या की एवं सभी राज-परिवार को बन्दी बनाकर पेरिस आने के लिये बाध्य कर दिया। इतिहासकार राईकर ने इस घटना को ‘राजतंत्र की शवयात्रा’ कहा है।
प्रश्न 10.
फ्रांस की राज्य कान्ति में शहरों और गाँवों की गरीब जनता की भागीदारी का वर्णन करें।
उत्तर :
ग्रामीण और शहरी गरीबों की क्रान्ति में हिस्सेदारी (Participation of urban and rural poor in the Revolution) : फ्रांस की क्रान्ति में शहरी और ग्रामीण गरीब वर्ग के लोगों ने समान रूप से भाग लिया। फ्रांस में जो व्यवस्था थी उनमें गरीब लोगों का शोषण सबसे अधिक होता था। फ्रांस में जनता पर जो अप्रत्यक्ष कर लगाये जाते थे, वे अत्यन्त कष्टप्रद्ध थे। इस प्रकार का एक कर नमक कर था। इसके अन्तर्गत सात वर्ष से बड़े प्रत्येक व्यक्ति का वर्ष में कम से कम सात पौण्ड नमक खरीदना आवश्यक था।
जिन लोगों के पास खाने को रोटी न थी वे नमक कहाँ से खरीदते? नमक न खरीदने की स्थिति में उन्हें कठोर दण्ड दिया जाता था। इसी प्रकार की दूषित प्रणाली शराब के लिए भी थी। शराब फ्रांस का प्रसिद्ध उद्योग था। उस पर इतने कर लगा दिए गये कि यह उद्योग ठप्प हो गया। यह कर भी सम्पूर्ण देश में समान नहीं थे। कितने आश्चर्य की बात है कि जो वर्ग कर देने में सक्षम था, उसे कर नहीं देना पड़ता था और जो भूखे पेट थे, उनसे शरीर की हड्डियाँ भी मांगी जाती थीं। यही कारण है कि फ्रांस में कहा जाता था, ‘सामन्त युद्ध करते हैं, पादरी पूजा करते हैं तथा गरीब जनता कर देती है।”
प्रश्न 11.
फ्रांस की समाज व्यवस्था में पादरी सम्रदाय का परिचय दो।
उत्तर :
फ्रांस की क्रांति (1789 ई०) के पहले फ्रांसीीसी समाज में तीन प्रमुख सम्पदाय थे जिनमें से एक था पादरियों को लेकर गठित प्रथम सम्र्रदाय।
पादरी सम्रदाय : फ्रांसीसी समाज में पादरी सम्प्रदाय की कुछ विशेषताएँ थीं जो निम्न हैं :
जनसंख्या : 1789 ई० में फ्रांस में याजकों की कुल संख्या थी एक लाख 20 हजार, अर्थात देश की आबादी का मात्र 0.5 %। इतनी कम जनसंख्या होने पर भी समाज एवं देश में इसका ही बोलबाला था।
जमीन से आय : फ्रांस की कुल कृषि भूमि का 1 / 5 भाग गिरजा के अधीन था जिसके लिये ये लोग सरकार को कोई कर भी नहीं देते थे। ये लोग ‘कांट्रेक्ट ऑफ पोइसी’ नामक समझौते के अनुसार सरकार को स्वेच्छा कर देते थे। गिरजा की इस भूमि से सालाना 13 लाख आय होती थी।
कर-वसूली : ये लोग जनता से विभिन्न तरह से कर जैसे : टाइद या धर्म कर, मृत्यु कर, विवाह कर आदि वसूल करते थे।
याजकों का विभाग : पादरी मूलत: दो श्रेणियों में विभक्त थे। जैसे – विशप एवं मठाधीश आदि को लेकर गठित उच्च याजक एवं गाँव के साधारण दरिद्र पादरियों को लेकर गठित निम्न पादरी। उच्च पादरी-वर्ग गिरजा के आय का अधिकांश अति विलासितापूर्ण ढंग से खर्च करता था एवं इसके लिये निम्न पादरी-वर्ग इनसे ईर्ष्या तथा घृणा करता था।
प्रश्न 12.
फ्रांस में दैवीय राजतंत्र की धारणा तथा निरंकुशतावाद की समालोचना करें।
उत्तर :
फ्रांस में निरंकुश राजतंत्र था। राजा अपने को ईश्वर का प्रतिनिधि समझता था। उसकी इच्छाएँ की कानून थीं। उन कानूनों का उल्लंघन दैव आदेश की अवमानना जैसा पाप माना जाता था। जनता को किसी प्रकार की राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं थी। राजा की आज्ञा का उल्लंघन करने पर प्राणदंड दिया जाता था।
प्रश्न 13.
संविधान सभा का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर :
राष्ट्रीय सभा ने एक संविधान समिति की स्थापना की और खुद संविधान परिषद का रूप धारण किया। इस परिषद के सभी सदस्य अनुभवहीन थे। यह परिषद एक साधारण सभा में बदल गयी। 6 अक्टूबर 1789 को सभा पर पेरिस की आम जनता का अधिकार हो गया।
प्रश्न 14.
फ्रांस की क्रान्ति के समय सितम्बर 1792 की हत्याकाण्ड की क्या घटना थी ?
उत्तर :
फ्रांसीसी सम्राट लुई सोलहवें को फ्रांस की विधानसभा ने दाँते की अध्यक्षता में राजपद से च्युत कर दिया था तथा उसने दाँते को सेना के पुनर्गठन का दायित्व सौंपा। दाँते ने पेरिस कम्यून की सहमति से लगभग 3000 लोगों को देशद्रोह के संदेह में गिरफ्तार कर दिया। कम्यून ने बंदियों की हत्या करने का निर्णय लिया क्योंकि उन दिनों फ्रांस विदेशियों से युद्ध कर रहा था और सैनिक उन बंदियों को जिंदा छोड़कर युद्ध में जाने से हिचकिचा रहे थे। उन्हें भय था कि उनकी अनुपस्थिति में बंदी जेल से भागकर परिवारवालों को मार डालेंगे। फलत: 2 सितम्बर से 4 सितम्बर 1793 ई० तक अकेले पेरिस में 1400 लोग मारे गये। यही सितम्बर हत्याकाण्ड कहलाया।
प्रश्न 15.
फ्रांस राज्य क्रान्ति के समय राजतंत्र के प्रति अभिजातों का विरोध हो रहा था, इसका संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर :
आर्थिक संकट को दूर करने के लिए लुई XVI ने सन् 1788 में देश की सभी प्रादेशिक पार्लियामेण्ट को समाप्त करं दिया और सभी वर्गों से कर लेने का प्रयास किया। इसंसे क्षुब्ध होकर सुविधावादी वर्ग ने राजा के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। इस घटना को इतिहासकार मातिए और जार्ज रूने ने अभिजात विद्रोह कहा है।
प्रश्न 16.
टेनिस कोर्ट की शपथ के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर :
1789 ई० के.नव-निर्वाचित राष्ट्रीय सभा के प्रथम अधिवेशन में तृतीय सम्पदाय के प्रतिनिधिगण एक ही कक्ष में बैठने तथा प्रत्येक सदस्य के लिए मताधिकार की माँग करने लगे।
टेनिस कोर्ट की शपथ :
बुर्जुआ श्रेणी का क्षोभ : तृतीय श्रेणी के प्रतिनिधियों की माँगें नहीं माने जाने से क्षुख्ध प्रतिनिधिगण ने 17 जून को आयोजित अपनी सभा को वास्तविक राष्ट्रीय सभा घोषित की एवं माँग की कि कर निश्चित करने का अधिकार केवल उनलोगों को ही है। इतिहासकार ग्रांट एवं टेम्परली इस घटना को ‘फ्रांसीसी क्रांति का छोटा प्रतींक’ कहा है।
शपथ ग्रहण : तृतीय सम्र्रदाय के प्रतिनिधिगण ने सभाकक्ष में जाकर देखा कि वहां तालाबन्द है। इससे क्षुब्ध होकर वे लोग मिराबो एवं आवेसियस के नेतृत्व में निकटवर्ती टेनिस खेल के मैदान में एकत्रित हुए। वहाँ पर उन्होंने शपथ ली कि जबतक वे लोग फ्रांस के लिये एक नयी संविधान की रचना नहीं कर लेते, तब तक एकजुट होकर काम करते रहेंगे। इस घटना को ‘टेनिस कोर्ट की शपथ’ कहते हैं।
राजा की भूमिका : उक्त घटना के तीन दिन बाद तीनों सम्पदाय के एकत्रित अधिवेशन में राजा ने प्रथम दो सम्रदाय का पक्ष लेकर तृतीय सम्रदाय की सभी माँगों को अवैध करार दिया। इसके बाद राजा के सभाकक्ष छोड़ने पर भी तृतीय सम्र्रदाय के प्रतिनिधिगण सैनिक धमकी की उपेक्षा कर सभाकक्ष में धरना देते रहे।
परिणाम : आखिरकार दबाव में आकर राजा ने तृतीय सम्रदाय की समस्त शर्तो को मान लिया। इस तरह बुर्जुआ क्रांति का प्रथम चरण सफलता के साथ संपन्न हुआ।
प्रश्न 17.
क्रान्ति के बाद उत्पन्न आन्तरिक संकट और विदेशी आक्रमण से जैकोबिन शासन ने क्रांस को कैसे बचाया ?
उत्तर :
फ्रांस में आतंक राज्य (Reigme of Terror) : राष्ट्रीय सम्मेलन ने जिस समय शासन आरम्भ किया, उस समय फ्रांस चारों ओर से संकटों से घिरा हुआ था। फ्रांस में गृह-युद्ध के आसार नजर आ रहे थे तथा सीमा पर आस्ट्रिया एवं पर्सिया की सेनायें दस्तक दे रहीं थीं। इसी समय जैकोबिनों ने राष्ट्रीय सम्मेलन पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। इस प्रकार फ्रांस में जैकोबिनों का शासन प्रारम्भ हुआ। दांतों, रॉब्सपीयर, सेंट जस्ट और कानों आदि इस दल के नेता थे। इन नेताओं का विचार था कि फ्रांस में व्याप्त अशान्ति, दुराचार व अव्यवस्था को समाप्त करने के लिए एक शक्तिशाली सरकार की स्थापना की जाय।
अत: सरकार को शक्तिशाली बनाने के लिए लोग सुरक्षा समिति, सामान्य सुरक्षा समिति एवं क्रान्तिकारी न्यायालय का गठन किया गया। लोक सुरक्षा समिति को कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के असीमित अधिकार सौपे गये। सामान्य सुरक्षा समिति को भी असीमित अधिकार दिए गये। क्रान्ति व क्रान्ति के सिद्धान्तों का विरोध करने वालों पर मुकदमा चलाने व दण्डित करने के लिए पेरिस में क्रान्तिकारी न्यायालय की स्थापना की गयी। शीघ्र ही सम्पूर्ण फ्रांस में ऐसे यायालयों की स्थापना हो गयी। इस प्रकार विभिन्न अधिकारों से अपने को शक्तिशाली बनाने के पश्चात् जैकोबिन दल ने आतंक राज्य की स्थापना की। जैकोबिन दल ने आदेश दिया कि जो लोग क्रान्ति का विरोध करेंगे उन्हें मृत्युद्ण्ड दिया जायेगा।
प्रश्न 18.
फ्रांस में क्रान्ति के समय अऱाजकता की स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर :
अराजकता की स्थिति (Condition of anarchy) : 10 अगस्त 1792 ई० को राजा को हटाये जाने पर 20 सितम्बर, 1792 ई० को राष्ट्रीय कन्वेशन का अधिवेशन प्रारंभ होने के समय तक समस्त फ्रांस में अराजकता की स्थिति थी। फ्रांसीसी सेनापति लाफायते ने पेरिस के विरुद्ध विरोध के कारण आस्ट्रिया की सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। आस्ट्रिया तथा प्रशा की सेना फ्रांस पर हावी होती चली गयी। 2 सितम्बर 1792 को फ्रांस की जनता को समाचार मिला कि आस्ट्रिया और पर्सिया की संयुक्त सेनाओं ने ‘बर्दून’ तथा ‘लांगवे’ के दुर्गो पर अपना अधिकार कर लिया है।
प्रश्न 19.
फ्रांस के ‘ऑसियॉ रेजिम’ या पुरातनतंत्र से क्या समझते हो ?
अथवा
क्रांति पूर्ववर्ती फ्रांस की सामाजिक संरचना तथा दैव सत्तात्मक राजतंत्र की अवधारणा का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
फ्रांसीसी क्रांति (1789.ई०) के पहले मध्ययुगीन पादरीतंत्र, कुलीन, निरककुश दैव राजतंत्र, सामाजिक वैषम्य आदि विषय फ्रांस के सामाजिक, अर्थनैतिक एवं राजनैतिक व्यवस्था को दृढ़ता से दबा कर रखा था। फ्रांस के इस मध्ययुगीन व्यवस्था को साधारणतः पुरातनतंत्र या ऑसिया रेजिम (Old Regime) कहा जाता है।
ऑंसिया रेजिम या पुरातनतंत्र के विभिन्न पहलू थे – जैसे –
स्वेच्छाचारी दैव राजतंत्र : फ्रांस के वुर्बो राजवंश के अधीन तीव्र स्वेच्छाचारी दैव राजतंत्र प्रतिष्ठित हुआ था। राजा खुद को ईश्वर का प्रतिनिधि मानते थे। इसके लिये वे अपने कर्मों को प्रजा के प्रति उत्तरदायी नहीं मानते थे। पुरातनतंत्र के धारक एवं वाहक वुर्बो राजवंश के राजाओं में प्रमुख थे लुई तेरहवें, लुई चौदहवें, लुई पन्द्रहवें एवं लुई सोलहवें आदि।
सामाजिक श्रेणी भेद : समाज में श्रेणी भेद एवं सामाजिक वैषम्य तीव्र आकार धारण किये हुए था। समाज मूलत: तीन श्रेणियों में बँटा हुआ था- पादरी वर्ग, कुलीन वर्ग एवं बुर्जुआ, मध्यवित्त, दरिद्र, साँकुलोत आदि को लेकर तृतीय श्रेणी। पादरी एवं कुलीन वर्ग विशेष सुविधाभोगी श्रेणी में आते थे एवं अन्य तृतीय श्रेणी में आते थे।
पादरी एवं कुलीन वर्ग का आधिपत्य : पादरी एवं कुलीन वर्ग पर्याप्त सम्पत्ति के मालिक होते हुए भी ये सरकार को किसी तरह का कर नहीं देते थे। तृतीय सम्रदाय से पादरी वर्ग टाइद या धर्मकर, कुलीन वर्ग कार्वि या श्रमकर सहित विभिन्न सामन्तकर अदाय करते थे।
प्रश्न 20.
फ्रांसीसी समाज व्यवस्था में कुलीन सम्रदाय का परिचय दो।
उत्तर :
फ्रांस की क्रांति (1789 ई०) के पहले जो तीन सम्रदाय थे उनमें से एक कुलीन वर्ग को लेकर गठित द्वितीय सम्र्रदाय था। फ्रांसीसी समाज में कुलीन सम्रदाय की कुछ विशेषताएँ थी जो निम्न हैं :
जनसंख्या : फ्रांस में क्रांति से पहले इनकी कुल संख्या 3 लाख 50 हजार थी जो देश की कुल आबादी का मात्र 1.5 % था। इसके बावजूद यह सम्प्रदाय फ्रांसीसी समाज एवं राष्ट्र में पर्याप्त क्षमता का अधिकारी था।
आय : आबादी अत्यंत कम होने पर भी फ्रांस की कुल कृषि-भूमि का 1 / 3 भाग इन्हीं लोगों के पास था। इसके बावजूद ये लोग सरकार को कोई भूमि कर नहीं देते थे। यही नहीं ये लोग विटिंयेमे या कैपिटेशन कर भी नहीं देते थे बल्कि प्रजा से विभिन्न प्रकार का जुर्माना, वानालिते, कर्वि सहित अनेक तरह के सामन्ती कर वसूल करते थे।
वर्चस्व : फ्रांसीसी समाज में कुलीन वर्ग का हर क्षेत्र में वर्चस्व था। ये लोग राजदरबार से लेकर विभिन्न भत्ते, पुरस्कार एवं अन्य सुयोग-सुविधाएँ उपभोग करते थे। विचार-विभाग, प्रशासनिक एवं अन्य सरकारी विभागों में ये ही उच्च पदों पर आसीन थे।
प्रश्न 21.
फ्रांसीसी समाज व्यवस्था में तृतीय सम्प्रदाय का परिचय दो।
उत्तर :
फ्रांस की कांति (1789 ई०) से पहले समाज में विद्यमान तीन सम्रदाय में से एक था – बुर्जुआ, कृषक, श्रमिक एवं सर्वहारा वर्ग जिसे तृतीय सम्रदाय कहा जाता था।
फ्रांसीसी समाज व्यवस्था में तृतीय सम्रदाय : फ्रांसीसी समाज व्यवस्था के तृतीय सम्रदाय की विशेषताएँ निम्न हैं –
जनसंख्या : 1789 ई० में तुतीय सम्पदाय की कुल आबादी 98 % थी। इस अधिकतम आबादी के बावजूद भी यह सम्र्रदाय सभी अधिकारों व सुख-सुविधाओं से वंचित था।
श्रेणी विभाग : यह मूलत: तीन श्रेणियों में विभक्त था –
- धनी व्यापारी, पूँजीपति, बैंकर्स थे उच्च वर्ग
- वकील, बैरिस्टर, डॉक्टर, शिक्षक आदि थे मध्य वर्ग एवं
- कारीगर, किसान, श्रमिक, छोटे व्यापारी आदि थे निम्न वर्ग।
सामाजिक अवस्था : बुर्जुआ श्रेणी का धनी वर्ग विद्या-बुद्धि या धन दौलत में कुलीन वर्ग से आगे था किन्तु उनकी तरह वंशागत नहीं होने से समाज एवं राष्ट्र में विभिन्न अन्याय-अविचार का शिकार था। ये लोग कुलीन वर्ग के लिये घृणा के पात्र थे।
करों का बोझ : तृतीय सम्रदाय से आयकर का 96 % वसूला जाता था। राष्ट्र, गिरजा, सामन्त उननसे भूमि कर, उत्पादन कर, आय कर, नमक कर तथा धर्म कर आदि विभिन्न करों की वसूली करते थे।
प्रश्न 22.
क्रांति के पहले फ्रांस का राज्यकोष खाली होने के प्रमुख कारण क्या थे ?
उत्तर :
क्रांति (1789 ई०) से पहले फ्रांस की अर्थनीति गंभीर संकट के सम्मुखीन हुई एवं राजकोष एकदम खाली हो गया। प्रमुख कारण :
त्रुटिपूर्ण राजस्व प्रणाली : पादरी एवं कुलीन सम्रदाय फ्रांस की कुल आबादी का 2-3 % होने पर भी देश की कृषि भूमि के वृहद अंश के मालिक थे फिर भी इसके लिये उन्हें किसी प्रकार का बाध्यतामूलक कर नहीं देना पड़ता था। देश का 96 % कर बोझ तृतीय सम्पदाय ही वहन करता था।
युद्ध नीति : फ्रांस के राजा विभिन्न युद्धों में शामिल होकर पर्याप्त मात्रा में अर्थ व्यय कर दिये। लुई चौदहवें एवं लुई पन्द्रहवें ने कई युद्धों में सहयोग देकर राजकोष का अर्थ नष्ट किया। लुई सोलहवें के समय में भी यह चलता रहा। उन्होंने अमेरिका की स्वाधीनता के लड़ाई में शामिल होकर बिना सोचे-समझे राजकोष की भारी राशि खर्च कर दी।
फिजुलखर्ची : राजपरिवार की सीमाहीन विलासिता एवं फिजुलखर्ची भी राजकोष को खाली करने की जिम्मेवार है। गुडविन ने कहा है कि वर्साई राज्यसभा में कर्मचारियों की संख्या 18 हजार थी। रानी के व्यक्तिगत नौकर-नौकरानी ही 500 थे।
कर्ज का बोझ : सरकार ने बहुत भारी मात्रा में कर्ज लेकर देश के आर्थिक संकट को और बढ़ा दिया। कर्ज चुकाने में भी राजकोष से बहुत सारा धन निकल गया।
प्रश्न 23.
फ्रांस में क्रांति के पहले वैषम्यमूलक कर-प्रणाली का परिचय दो।
उत्तर :
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम स्मिथ ने क्रांति के पूर्ववर्ती फ्रांस को ‘भामक अर्थनीति का जादूघर’ कहा है। इस भामक अर्थनीति का अन्यतम पहलू था देश की असमान एवं विश्रांतिकर कर-प्रणाली क्योंकि कर व्यवस्था में अधिकार प्राप्त पादरी एवं कुलीन सम्पदाय तथा अधिकार से वंचित तृतीय सम्रदाय के असहाय, दरिद्र, श्रमिक-कृषको के लिये अलग-अलग व्यवस्थाएँ थीं।
असमान कर-प्रणाली :
अधिकारभोगी श्रेणी : ‘अधिकारभोगी’ पादरी एवं कुलीन वर्ग के पास फ्रांस की 50 % से ज्यादा कृषि भूमि थी। फिर भी इसके लिये वे लोग कर देने के लिये विवश नहीं थे। वे लोग समाज एवं राष्ट्र से जिन सुविधाओं का भोग करते थे, उसके लिये भी उन्हें कोई कर नहीं देना पड़ता था।
अधिकारहीन श्रेणी : अधिकार भोगी सम्रदायों को कर से छूट के कारण समस्त करों का बोझ दरिद्र कृषक सम्रदाय को ढोना पड़ता था। इतिहासकार लाबुज का कहना है – ‘अठारहवी’ सदी के फ्रांस में सबसे अधिक शोषित श्रेणी किसानों की थी।’ देश के कुल राजस्व का 96 % कर तृतीय सम्रदाय को देना पड़ता था।
विभिन्न कर : राष्ट्र, सामन्तप्रभु एवं गिरजा तृतीय सम्र्रदाय से विभिन्न तरह के कर वसूल करते थे। इनमें (1) टाइले या भूमिकर, (2) कैपिटेशन या उत्पादन कर, (3) विटिंयेमे या आयकर, (4) गैबेला या नमक कर, (5) टाइद या धर्म कर (6) कर्वि या बाध्यतामूलक बेगार श्रमदान आदि। इस तरह के करों को देने के बाद उनकी आय का सिर्फ 1 / 5 अंश ही बचता था जिससे उन्हें अपने परिवार का भरण-पोषण करना पड़ता था।
प्रश्न 24.
फ्रांसीसी क्रांति की पृष्ठभूमि रचना में दार्शनिक माण्टेस्क्यू एवं वाल्टेयर की क्या भूमिका थी ?
उत्तर :
किसी भी क्रांति के पहले मनुष्य के भाव जगत में क्रांति की चेतना का विकास होना जरूरी है। फ्रांसीसी क्रांति (1789 ई०) के क्षेत्र में भी देश के साधारण लोगों में क्रांतिकारी चेतना जागृत की थी फ्रांस के विभिन्न दार्शनिकों ने। इनमें से प्रमुख थे – दार्शनिक माण्टेस्क्यू एवं दार्शनिक रूसो।
माण्टेस्क्यू : फ्रांसीसी दार्शनिक माण्टेस्क्यू (1689-1755 ई०) देश के शोषित, दरिद्र, वंचित श्रेणी के प्रांणपुरुष थे। उन्होंने अपने ग्रंथ ‘द स्पिरिट ऑफ लॉ’ या ‘कानून की आत्मा’ में राजा के स्वेच्छाचारी शासन एवं स्वर्गीय अधिकारतत्व की तीव्र समालोचना की हैं। ‘द पर्सियन लेटर्स’ या ‘पर्सिया की पत्रावली’ नामक एक और पुस्तक में नियमतान्त्रिक राजतंत्र के समर्थक माण्टेस्क्यू ने फ्रांस के पुरातनतंत्र, कुलीन एवं स्वेच्छाचारी राजतंत्र की तीव्र समालोचना किये हैं। क्षमता स्वतंत्रीकरण नीति के समर्थक माण्टेस्क्यू ने मानव की व्यक्ति स्वाधीनता की रक्षा के उद्देश्य से देश के कानून-विभाग, शासन विभाग एवं विचार विभाग को अलग करने की माँग की।
रूसो : 18 वीं सदी में फ्रांस के सबसे उल्लेखनीय एवं जनग्रिय दार्शनिक थे त्याँ जैक रूसो (1712-1778 ई०)। उन्होंने अपने सबसे लोकप्रिय ग्रन्थ ‘सामाजिक समझौता’ (Social contract) में राजा की ऐश्वरिक क्षमता को युक्ति-तर्क के साथ खण्डन किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्र की सार्वभौम क्षमता का स्रोत है जनता, क्योंकि जनता की इच्छा (General will) के अनुसार ही एक समझौते के माध्यम से राजा को शासन की क्षमता प्राप्त हुई। अत: राजा को किसी भी समय क्षमता से हटाना जनता के अधिकार में है। उन्होंने अपने ‘विषमता का सूत्रपात’ (Origin of Inequality) पुस्तक में कहा है कि मनुष्य स्वाधीन एवं समान अधिकार लेकर पैदा होता है किन्तु वैषम्यमूलक समाज व्यवस्था उसे दरिद्र एवं पराधीन बना देती है।
प्रश्न 25.
देश को आर्थिक संकट से उबारने के लिये राज़ा लुई सोलहवें द्वारा नियुक्त वित्त मंत्रियों द्वारा क्या कदम उठाये गये ?
उत्तर :
राजपरिवार द्वारा असीमित फिजूलखर्ची, त्रुटिपूर्ण राजस्व-व्यवस्था, युद्ध में बेतहाशा खर्च, कर्ज के ऊपर सूद आदि के कारण फ्रांस का राजकोष एकदम शून्य हो गया था। इसको दूर करने के लिये राजा लुई सोलहवें ने विभिन्न अर्थ मंत्रियों की नियुक्ति की।
विभित्र वित्तमंत्रियों द्वारा उठाय गये कदम :
तुर्गो का सुधार : वित्तमंत्री तुर्गो ने राजपरिवार की फिजूलखर्ची, सरकारी व्यय, युद्ध सम्बन्धी खर्च को कम करने के लिये कहा एवं पादरी एवं कुलीन वर्ग के ऊपर भूमिकर लगाने का प्रस्ताव दिया जिसके कारण रानी एंत्वायनेत एवं कुलीन वर्ग के दबाव से उनका पतन (1776 ई०) हुआ।
नेकर का सुधार : वित्तमंत्री नेकर (1778-81 ई०) राजपरिवार को व्यय-संकोचन एवं धनी नागरिकों के ऊपर कर लगाने का प्रस्ताव दिया। फलत: रानी एवं कुलीन वर्ग के दबाव में उन्हें पदत्याग करना पड़ा।
कैलोन का सुधार : वित्तमंत्री कैलोन ने (1783-87 ई०), समस्त सम्प्रदाय के ऊपर भूमिकर, नमक-कर, अबाध वाणिज्य नीति का प्रवर्तन, कार्वि का लोप, अन्तः शुल्क लोप आदि का प्रस्ताव दिया। नेतृत्वकारी कुलीन वर्ग को लेकर ‘गणमान्य परिषद’ कैलोन के प्रस्तावों का विरोध किया एवं उन्हें भी पदत्याग करना पड़ा।
ब्रियाँ का सुधार : वित्तमंत्री (1787-88 ई०) द्वारा स्टाम्प टैक्स एवं भूमि सुधार का प्रस्ताव करने पर पेरिस की पार्लियामेण्ट ने इसका विरोध किया। उनकी माँग थी कि करारोपण का अधिकार सिर्फ स्टेट्स जनरल को है, उनकी अनुमति के बिना करारोपण नहीं हो सकता। इसी बीच पार्लियामेण्ट एवं राजा के बीच विरोध आरंभ हो गया एवं राजा के विरुद्ध कुलीन वर्ग ने विद्रोह आरंभ कर दिया।
प्रश्न 26.
कुलीन विद्रोह के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर :
फ्रांसीसी राजा लुई सोलहवें के वित्तमंत्री ब्रियाँ के अन्य सम्रदायों के साथ कुलीन वर्ग पर भी करारोपण का प्रस्ताव देने पर कुलीन सम्प्रदाय क्षुब्ध हो उठा। राजा के साथ उनका सम्पर्क बिगड़ गया।
कुलीन विद्रोह :
स्टेट्स जनरल का अधिकार : कुलीन सम्पदाय द्वारा ब्रियाँ के कुछ प्रस्ताव मान लेने पर भी स्टाम्प कर एवं भूमिकर का प्रस्ताव नहीं माना गया। उन्होंने माँग की कि एकमात्र स्टेट्स जनरल को करारोपण का अधिकार है।
सदस्य को निर्वासन : लुई सोलहवें ने पार्लियामेण्ट के कुछ सदस्यों के आचरण से क्षुब्ध होकर अपने भाई ड्यूक ऑफ आर्लियेन्स सहित तीन सदस्यों को निर्वासित कर दिया। इससे पार्लियामेण्ट नाराज हो गयी एवं राजा के खिलाफ कुछ कानून पारित कर नागरिकों को गिरफ्तार, विचारकों को हटाना आदि राजा के अधिकार को छीन लिया।
पार्लियामेण्ट स्थगित : पार्लियामेण्ट के कानून से क्षुब्ध होकर समाट ने देश के सभी प्रदेशों की पार्लियामेण्ट को स्थगित कर दिया एवं 57 नये न्यायालयों की स्थापना करके अपने द्वारा प्रस्तावित सुधारों को कानून में रूपांतरित किया।
विद्रोह की सूचना : राजा के द्वारा पार्लियामेण्ट स्थगित करने से क्षुब्ध होकर कुलीन वर्ग ने उनके खिलाफ विद्रोह आरंभ कर दिया। तुलों, दाफिने, दूजों आदि स्थानों पर व्यापक विद्रोह फैल गया।
महत्व : कुलीन वर्ग द्वारा राजा के विरुद्ध विद्रोह आरंभ होने से अनजाने में वे लोग फ्रांस के स्वेच्छाचारी दैव राजतंत्र एवं पुरातनतंत्र पर ही कुठाराघात किये।
प्रश्न 27.
कुलीन विद्रोह की विशेषताओं का उल्लेख करो।
उत्तर :
फ्रांस के राजा लुई सोलहवें द्वारा 1788 ई० में देश के सभी प्रादेशिक पार्लियामेण्ट को स्थगित करके, देश के सभी नागरिकों पर करारोपण और उसकी वसूली की व्यवस्था ग्रहण की गयी जिससे क्षुब्ध होकर सुविधाभोगी कुलीन श्रेणी ने राजा के खिलाफ विद्रोह आरंभ कर दिया।.
कुलीन विद्रोह की विशेषताएँ :
फ्रांसीसी क्रांति का सूत्रपात : कुलीन विद्रोह से ही 1789 ई० में फ्रांसीसी क्रांति हुई। विद्रोह के प्रथम चरण में कुलीन वर्ग के सहयोगी बुर्जुआ थे। द्वितीय चरण में बुर्जुआ एवं अन्तिम चरण में कृषक-वर्ग ने विद्रोह का नेतृत्व किया।
जनविद्रोह का क्रम : राजा के खिलाफ कुलीन विद्रोह में शीघ्र ही पादरी वर्ग एवं बुर्जुआ शामिल हो गये। फलस्वरूप इस विद्रोह ने शीघ्र ही जनविद्रोह का रूप ले लिया।
राजतंत्र की मर्यादा पर आघात : कुलीन विद्रोह के दबाव में राजा स्टेट्स जेनेरल का अधिवेशन बुलाने को बाध्य हो गये। इसके फलस्वरूप स्वेच्छाचारी राजतंत्र की मर्यादा पर आघात लगा। राजा की ऐश्वरिक क्षमता एवं राजतंत्र कमजोर पड़ गया।
पुरातनतंत्र पर चोट : राजा फ्रांस के राजतंत्र एवं कुलीन वर्ग के विशेष अधिकारों के रक्षक थे। अब कुलीन वर्ग ने राजतंत्र को दुर्बल बनाने में पुरातनतंत्र को ही दुर्बल कर दिया।
प्रश्न 28.
बुर्जुआ क्रांति के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर :
कुलीन विद्रोह के दबाव से फ्रांस के राजा लुई सोलहवें ने बध्य होकर 5 मई (1789 ई०) को स्टेटस जेनेरुल या राष्ट्रीय सभा का अधिवेशन बुलाया। इस सभा में बुर्जुआ श्रेणी के प्रतिनिधिगण ने राजतंत्र के विरुद्ध विद्रोह आरंभ कर दिया। बुर्जुआ क्रांति :
बुर्जुआ प्रतिनिधि : राष्ट्रीय सभा में कुल 1218 निर्वाचित प्रतिनिधियों में पादरी वर्ग 308, कुलीन वर्ग 285 एवं तृतीय सम्प्रदाय के 621 सदस्य थे। इससे पहले प्रतिनिधि सम्रदाय के आधार पर अलग-अलग कक्ष में बैठते थे।
मतदान पद्धति : राष्ट्रीय सभा में सदस्यों को सम्प्रदाय के अनुसार मत देना पड़ता था अर्थात पादरी, कुलीन एवं तृतीय सम्रदाय के एक-एक मत थे। पादरी एवं कुलीन का स्वार्थ एक होने के कारण वे सर्वदा एक पक्ष में वोट देते थे। इससे कोई निर्णय लेने में वे अपने दो मतों से तृतीय सम्रदाय को पराजित कर देते थे।
विद्रोह की शुरुआत : सभा का अधिवेशन आरंभ होते ही तृतीय सम्प्रदाय के सभी सदस्य एक साथ एक कक्ष में बैठने एवं प्रत्येक सदस्य के लिए मताधिकार की माँग करने लगे। प्रथम दो सम्रदाय एवं राजा के विरोध करने पर बुर्जुआ ने विद्रोह आरंभ कर दिया।
विद्रोह की तीव्रता : भिरोवा, लाफायेत, आवेसियस आदि उदारपन्थी सदस्य तृतीय सम्रदाय के साथ मिल जाने से बुर्जुआ विद्रोह तीव्र हो उठा। तृतीय श्रेणी के प्रतिनिधि ने एक सभा में सम्मिलित होकर अपनी सभा को ही ‘राष्ट्रीय सभा’ घोषित की। इतिहासकार ग्रांट एवं टेम्परली ने इस घटना को ‘फ्रांसीसी क्रांति का क्षुद्र प्रतीक’ कहा है।
प्रश्न 29.
बुर्जुआ क्रांति के महत्व का उल्लेख करो।
उत्तर : दीर्घ 175 वर्षो के बाद 5 मई 1789 ई० को वर्साई नगर में स्टेट्स जनरल या राष्ट्रीय सभा का अधिवेशन आरंभ हुआ। इस अधिवेशन में तृतीय सम्रदाय के सदस्यों द्वारा एक ही कक्ष में बैठने एवं प्रत्येक सदस्य को मताधिकार देने की माँग करने से बुर्जुआ विद्रोह आरंभ हो गया।
बुर्जुआ क्रांति का महत्व :
तृतीय सम्र्रदाय की विजय : बुर्जुआ श्रेणी के विद्रोह के दबाव से आतंकित राजा ने तीनों सम्रदाय का एकत्रित अधिवेशन एवं प्रत्येक सदस्य के मताधिकार की माँग को मान लिया। इससे बुर्जुआ श्रेणी की बड़ी विजय हुई।
फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत : बुर्जुआ कांति की सफलता के साथ ही फ्रांसीसी क्रांति का सूत्रपात हुआ। बुर्जुआ क्रांति के कुछ दिनों के भीतर ही तृतीय श्रेणी के दरिद्र कृषक एवं श्रमिक इसमें शामिल हो गये।
प्रतिक्रियाशील शक्तियाँ : बुर्जुआ कांति के साथ ही प्रतिक्रियाशील शक्तियाँ भी सक्रिय हो उठीं क्योंकि बुर्जुआ लोगों की सफलता को राजा मन से नहीं माने थे। कुलीन वर्ग भी बुर्जुआ श्रेणी के साथ समझौता करने के लिये राजी नहीं थे। फलस्वरूप राजा द्वारा नये सिरे से सैन्य वाहिनी संगठित करने पर मुश्किलें और बढ़ गयी।
जन विद्रोह : बुर्जुआ क्रांति में तृतीय सम्रदाय के दरिद्र कृषक एवं श्रमिकों के मिल जाने से फ्रांसीसी क्रांति ने जन विद्रोह का रूप ले लिया। शहर से लेकर गाँव तक क्रांति की लहर फैल गयी। पेरिस की उत्तेजित जनता ने 14 जुलाई को कुख्यात बैस्टील दुर्ग पर कब्जा कर लिया।
प्रश्न 30.
बैस्टील दुर्ग के पतन के बारे में क्या जानते हो ?
अथवा
पेरिस की आम जनता के प्रयास से क्रांति के प्रसार की आलीचना करो।
उत्तर :
फ्रांसीसी राजा लुई सोलहवें ने बुर्जुआ श्रेणी के प्रचण्ड दबाव के कारण तीनों सम्पदाय को एक साथ सभा में बैठने एवं प्रत्येक को मत देने का अधिकार मान लिया। इस घटना से फ्रांस के आम लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ा।
बैस्टील दुर्ग का पतन :
राजा का पदक्षेप : प्रचण्ड दबाव के कारण राजा द्वारा बुर्जुआ श्रेणी की माँगे मान लेने पर भी वे मानसिक रूप से इसे नहीं मानते थे। वे पेरिस एवं वर्साई नगर में प्रायः 30 हजार सेना संगठित की। इसके बाद लुई सोलहवें द्वारा लोकप्रिय अर्थमंत्री नेकार को पद से हटाने (22 जून) पर पेरिस की जनता आक्रोश से उत्तेजित एवं हिंसक हो उठी। बैरिकेड तोड़ दिया गया। जनता अस्त्रों की दुकान एवं गिर्जाघरों को लूटने लगी।
पेरिस की परिस्थिति : इसी समय खाद्य-सामग्री की माँगों को लेकर गाँव की हजारों जनता पेरिस की उत्तेजित जनता के साथ मिलकर सरकारी दफ्तरो में घुसकर दस्तावेजों को जला दिया। इसके बाद प्राय: 7-8 हजार लोग 14 जुलाई 1789 ई० को कुख्यात् बैस्टिल दुर्ग के सुरक्षा-कर्मियों की हत्या कर दुर्ग को दखल किया एवं बन्दियों को मुक्त कर दिया।
महत्व : बैस्टील दुर्ग एकनायकत्व का प्रतीक था। बिना विचार किये बहुत सारे निर्दोष लोगों को यहाँ पर बन्दी बनाकर रखा जाता था। बैस्टिल दुर्ग के पतन से राजतंत्र एवं कुलीनों के ऊपर बहुत चोट पहुँची। पेरिस की शासन क्षमता बुर्जुआ श्रेणी के हाथों में आ गयी। पेरी कम्यून बनाकर वे लोग रास्ते पर ही पेरिस का शासन चलाने लगे। इतिहासकार गुड़विन के मतानुसार, “बैस्टिल दुर्ग के पतन की घटना समग्र विश्व में स्वाधीनता के प्राक् काल के रूप में चिह्हित है।”
प्रश्न 31.
ग्रामांचल में फ्रांसीसी क्रांति के प्रसार के संबंध में आलोचना करो।
उत्तर :
कई वर्षो तक चला तीव्र आर्थिक संकट, अकाल, खाद्याभाव आदि के कारण फ्रांस के ग्रामांचल में निराशा फैल गयी थी और इस स्थिति में ग्राम के दरिद्र लोगों में उत्तेजना.थी।
ग्रामांचल में फ्रांसीसी क्रांति का विस्तार :
जागीरदारों के खिलाफ विद्रोह : ग्रमांचल में कृषक कार्वि या श्रमकर, टाइद या धर्मकर, टाइले या भूमिकर सहित विभिन्न तरह के जागीरदारी कर देने को बाध्य थे। 14 जुलाई 1789 ई० को बैस्टील दुर्ग के पतन होने पर जागीरदारों के विरुद्ध ग्रामांचल के साधारण लोगों का आक्रोश और बढ़ गया।
महाआतंक : बैस्टील दुर्ग के पतन के बाद ग्रामांचल में अफवाह फैल गयी कि कुलीनों के भाड़े के गुण्डे एवं राजा की सैन्यवाहिनी गाँव के किसानों को दण्ड देने के लिये आ रही हैं। इस अफवाह को महाआतंक के नाम से जाना जाता है। महाआतंक के दौरान गांवों की विद्रोही जनता जागीरदारों और उनके नौकरों को खदेड़ने, उनके मकान एवं गिरजा घरों को नष्ट करने, कर्ज के कागजों को आग में जलाने लगी तथा चारागाहों एवं अनाज के गोदामों पर दखल कर लिया।
जागीरदारी पर चोट : विद्रोह के दबाव से बहुत से जमींदारों ने भी अपनी जागरीदारी अधिकारों का त्याग कर दिये। 4 अगस्त से 11 अगस्त के बीच कानून के माध्यम से अधिकांश सामन्त कर, भूमिदास प्रथा, सामाजिक विभाजन आदि का अन्त किया गया। लगभग 20 हजार कुलीन एवं पादरी देश छोड़ने को बाध्य हुए।
पुरातनतंत्र का अवसान : ग्रामांचल में भयंकर विद्रोह के कारण ही सामन्तवाद के साथ मध्ययुगीन परम्परा का भी अन्त हुआ।
प्रश्न 32.
जागीरदारी उन्मूलन के लिये फ्रांस की संविधान सभा (1789 ई०) का पदक्षेप क्या था ?
उत्तर :
संविधान संभा का गठन : फ्रांस के लिये संविधान की रचना के उद्देश्य से संविधान सभा (1789 ई०) गठित हुई। इस संविधान सभा ने मूल संविधान की रचना के पूर्व जो दो महत्वपूर्ण कार्य किये उनमें एक था सामन्तवाद का अन्त। तृतीय श्रेणी के दबाव से कुलीन एवं पादरी वर्ग ने 4 अगस्त 1789 ई० की एक घोषणा के जरिये अपनी जागीरदारी अधिकारों को त्याग दिया।
जागीरदारी कर का अन्तः राष्ट्रीय सभा ने 11 अगस्त को एक घोषणा के माध्यम से कहा कि ‘एतद्-द्वारा जागरीदारी प्रथा का अन्त हुआ।” सामन्त प्रभु जो विभिन्न तरह के कर लेते थे उन सबको भी इस सभा द्वारा समाप्त किया गया।
सामन्तों के अधिकार का अन्त : सामंत एवं कुलीन वर्ग के विशेष अधिकारों का अन्त हुआ। भूमिदास प्रथा, सामन्तप्रभु के वंशगत अधिकार, पदवी, जमींदारी, स्वत्व, निरकुश सरकारी नौकरी का अधिकार आदि समाप्त हुआ। राजा की खास जमीन एवं गिरजा की जमीनें जब्त हुई।
महत्व : संविधान सभा द्वारा तत्काल सामन्तवाद के सम्पूर्ण उन्मूलन में व्यर्थ होने पर भी सामंतवाद की मृत्यु अवधारित थी।
प्रश्न 33.
टिप्पणी लिखो : व्यक्ति एवं नागरिक के अधिकार अथवा नागरिक के लोकतान्रिक अधिकार।
उत्तर :
फ्रांसीसी संविधान सभा ने मूल संविधान की रचना के पूर्व ‘व्यक्ति एवं नागरिक अधिकार की घोषणा’ नामक एक दस्तावेज प्रकाशित किया। (Declaration of Rights of Man and Citizen) 26 अगस्त, 1789 ई०।
व्यक्ति एवं नागरिक के अधिकारों की घोषणा :
घोषणापत्र का आधार : फ्रांसीसी संविधान संघर्ष सभा द्वारा प्रकाशित ‘व्यक्ति एवं नागरिक के अधिकार के घोषणापत्र’ की रचना में ‘अमेरिका के स्वाधीनता का घोषणापत्र.’ एवं इंगलैण्ड का ‘मैगना कार्टा’ तथा ‘बिल ऑफ राइट्स’ साथ ही लक, रूसो, माण्टेस्क्यू आदि दार्शनिको के मतादर्श विशेष रूप से लक्षित होता है।
मनुष्य के अधिकार की घोषणा : व्यक्ति एवं नागरिक के अधिकार के घोषणा पत्र में कहा गया है कि –
- मनुष्य जन्म से ही मुक्त एवं स्वाधीन है
- मनुष्य के जन्मगत अधिकार पवित्र एवं अलंघनीय हैं
- कानून की नजर में सभी मनुष्य समान हैं।
- राष्ट्र की सार्वभौम क्षमता का वास्तविक अधिकारी जनता है।
- योग्यतानुसार सरकारी नौकरी पाने का अधिकार
- वाक् स्वाधीनता, समाचारपत्रों की स्वाधीनता, धार्मिक स्वाधीनता, सम्पत्ति का अधिकार आदि मनुष्यों के सार्वजनिक अधिकार हैं।
सीमाबद्धता : व्यक्ति एवं नागरिक के अधिकार के घोषणापत्र की कुछ सीमाबद्धताएँ थी। जैसे –
- घोषणा पत्र में सामाजिक समानता स्पष्ट नहीं थी।
- इसमें मनुष्य के अर्थनैतिक अधिकार को स्वीकृति नहीं दी गयी।
- इसमें शिक्षा के अधिकार के बारे में कुछ नहीं कहा गया।
- मनुष्य द्वारा संग्ठित आन्दोलन करने के अधिकार के सम्पर्क में भी घोषणापत्र नीरव है,
- नागरिक के अधिकार की बात करने पर भी दायित्व एवं कर्त्त्य के बारे में भी इसमें कुछ नहीं कहा गया।
महत्व : कुछ सीमाबद्धताएँ होते हुए भी व्यक्ति एवं नागरिक के अधिकार के घोषणापत्र के महत्व को अस्वीकार नहीं किया जा सक़ता। इतिहासकार ऊलार का कहना है कि इस घोषणा पत्र के माध्यम से ‘विशेष अधिकार एवं असमानता के विरोध में मनुष्य के अधिकार एवं समानता की नीति प्रतिष्ठित हुई है। उन्होंने इस ऐतिहासिक घोषणापत्र को ‘पुरातनतंत्र की मौत का फरमान’ के नाम से संबोधित किया है।
प्रश्न 34.
फ्रांस की नई विधानसभा (1791 ई०) के विषय में क्या जानते हो ?
उत्तर :
फ्रांस की नई विधानसभा के विभिन्न उल्लेखनीय बिन्दु थे :-
विषयः नई विधानसभा फ्रांस के मौलिक सार्वभौम क्षमता का अधिकारी थी। पूरे देश के लिये कानून बनाना, विदेशनीति का संचालन, अर्थ उपलब्धि इत्यादि इसके महत्वपूर्ण विषय थे।
राजा की भूमिका : विधान सभा द्वारा पारित किसी कानून को रहद करना या विधानसभा भंग कर देना राजा की क्षमता में नहीं था। लेकिन वे विटो के प्रयोग के जरिये इसे कुछ समय के लिये स्थगित कर सकते थे। विधानसभा द्वारा लगातार तीन बार पास हो जाने से वह राजा की सम्मति के बिना ही कानून में रूपांतरित हो जाता था।
कठिनाइयाँ : 1 अक्टूबर 1791 ई० को विधानसभा का प्रथम अधिवेशन हुआ। आरंभ से ही यह विधानसभा कई समस्याओं के सम्मुखीन हुई।
- इस सभा के सभी सदस्य ही नये एवं अनभिज्ञ थे।
- राजतंत्र के स्थान पर प्रजातत्र की प्रतिष्ठा की माँग होने पर भी नई विधानसभा को प्रजातंत्र की प्रतिष्ठा में कोई दिलचस्पी नहीं थी
- नये संविधान द्वारा विधानसभा के साथसाथ राजतंत्र के अस्तित्व को जारी रखने पर भी राजा इस क्रांतिकारी संविधान को मानने के लिये सहमत नहीं थे।
प्रश्न 35.
स्टेट्स जनरल या राष्ट्रीय सभा के अधिवेशन से संबंधित राजा के साथ जिरन्दिष्ट एवं जैकोबिनों के विरोध के बारे में लिखो।
उत्तर :
फ्रांसीसी राजा लुई सोलहवें के द्वारा गुप्त रूप से बुर्जुआ के विरुद्ध सेना संगठठित करने से परिस्थिति गंभीर हो उठी। इस पृष्ठभूमि में राजा के साथ जिरन्दिष्ट एवं जैकोबिनों के समर्थकों में विरोधिता आरंभ हो गयी।
विरोघ :
नया कानून : 1791 ई० में फ्रांस की नई विधानसभा में जिरन्दिष्ट एवं जैकोबिन दल के सदस्यों ने राजा विरोधी दो कानून पास किये। इस कानून में कहा गया है कि –
1. पादरियों को नये सिरे से ‘धर्म याजक के संविधान’ के प्रति शपथ लेनी होगी।
2. एमिम्री अर्थात देशत्यागी कुलीनों के दो माह के भीतर देश न लौटने पर उनकी सम्पत्ति जब्त कर ली जायेगी एवं देशद्रोहिता के आरोप में उन्हें मृत्युदण्ड दिया जायेगा।
द्वितीय फ्रांसीसी क्रांति : राजा लुई सोलहवें ने उक्त दोनों कानून को विटो का प्रयोग करके स्थगित कर दिया। फलस्वरूप जैकोबिन दल के नेतृत्व में उत्तेजित जनता ने राजमहल पर आक्रमण (10 अगस्त, 1792 ई०) करके राजा के अंगरक्षको की हत्या कर दी। अन्त में विधानसभा द्वारा राजा को क्षमताच्युत कर उन्हें टेम्पल दुर्ग में बन्दी बना लिया गया। इतिहासकार लेफेयर ने इस घटना को ‘द्वितीय फ्रांसीसी कांति’ का नाम दिया है।
सितम्बर हत्याकाण्ड : राजा के पदच्युत होने के बाद दोनों दलों के बहुत से लोगों को राजा का समर्थक समझकर बन्दी बना लिया गया एवं जेल में घुसकर चार दिन तक (2-5 सितम्बर, 1792 ई०) हजारो-बन्दियों की हत्या की गयी। इस घटना को ‘सितम्बर हत्याकाण्ड’ के नाम से जाना जाता है।
प्रजातंत्र की प्रतिष्ठा : राजतंत्र के समाप्त होने के बाद दोनों दलों ने फ्रांस में प्रजातंत्र की प्रतिष्ठा की और यही फ्रांस का प्रथम प्रजातंत्र था। कुछ दिनों के भीतर ही जैकोबिन दल ने न्याय का नाटक कर राजा लुई सोलहवें को मृत्युद्ध्ड (21 जनवरी 1793 ई०) को दे दिया।
प्रश्न 36.
फ्रांस की नई विधानसभा में विभित्र राजनैतिक दलों के परिचय का उल्लेख करो।
उत्तर :
1791 ई० में प्रवर्तित संविधान के आधार पर फ्रांस में सक्रिय नागरिकों के वोट के आधार पर नई विधानसभा गठित हुई। 1 अक्टूबर 1791 ई० को 745 सदस्य एक कक्ष में इसके अधिवेशन में बैठे।
विभिन्न राजनैतिक दल
दक्षिणपंथी शासनतांत्रिक दल : फिउलैण्ट नामक यह दक्षिणपंथी दल विधानसभा में स्पीकर की दाहिनी तरफ बेठता था। इसकी संख्या 264 थी। राजतंत्र, कुलीन सम्रदाय एवं पादरियों के प्रति सहानुभूतिशील एवं क्रांति विरोधी यह दल देशत्यागी कुलीन वर्ग को वापस लाने एवं पादरी वर्ग के अधिकार को लौटाने का समर्थन करता था।
जिरन्दिष्ट दल : व्रिसो के नेतृत्व में वापमन्यी जिरन्दिष्ट दल स्पीकर की बायीं तरफ बैठता था। सुमारियाज, कूँत, कन्दरसे आदि इस दल के प्रमुख नेता थे। ग्रामांचल में इस दल का व्यापक प्रभाव था।
जैकोबिन दल : उग्र वामपन्थी जैकोविन दल राजतंत्र का विरोधी एवं प्रजातंत्र का समर्थक था। इस दल के संदस्य स्पीकर की बायीं ओर बैठते थे। इस दल में 136 सदस्य थे। इसके प्रमुख नेता रोब्सपियर, दाँते, माराट आदि थे। कारीगर, छोटे व्यापारी, निम्न वर्ग इस दल के मुख्य समर्थक थे।
मध्यपंथी दल : यह दल निरपेक्ष था। इस दल के समर्थक किसी खास दल या मत के समर्थक नहीं थे। इस दल के सदस्य विधानसभा के बीच में बैठते थे।
प्रश्न 37.
जैकोबिन शासन के बारे में लिखो।
उत्तर :
क्रांति के समय फ्रांस में उग्र वामपंथी राजनैतिक दल जैकोबिन था। इस दल के प्रमुख नेता रोब्सपियर, दाँते, माराट आदि थे।
जैकोबिन शासन :
आदर्श : जैकोबिन दल फ्रांस में सम्पत्ति के आधार पर मतदान का सख्त विरोधी था। राजतंत्र को समाप्त करके प्रजातंत्र को प्रतिष्ठित करना इस दल का मुख्य लक्ष्य था। यह दल रूसो के समाजवादी आदर्श में विश्वास रखता था। दरिद्र और गरीब श्रेणी के लोग इसके कट्टर समर्थक थे।
जिरन्दिष्ट दल के शत्रु : जैकोबिन दल ने फ्रांस के सर्वहारा वर्ग के सहयोग से जिरन्दिष्ट दल को भगाकर विधानसभा तथा शासन-व्यवस्था में एकक्षत्र अधिकार द्वारा राजतंत्र को समाप्त किया।
आतंक : देश के संकटकाल में जैकोबिन दल के नेतृत्व में फ्रांस में आतंक-शासन की शुरुआत हुई। ये लोग फ्रांस की रक्षा के नाम पर बिना सोचे-समझे हजारों निर्दोष लोगों की हत्याएँ की। राजपरिवार के सभी लोगों को गिलोटिन के द्वारा फाँसी पर लटका दिया गया। जैकोबिन नेता हिवर्ट का कहना था कि, ‘सुरक्षा के लिए सबकी हत्या करनी होगी’। जैकोबिन दल ने अपनी तीनों संस्थाओं की मदद से फ्रांस में निरंकुश शासन की प्रतिष्ठा की – जैकोबिन क्लब, क्रांतिकारी कम्युन एवं कन्वेशन कमिटी।
जनकल्याण : अपने आतक के शासनकाल में जैकोबिन दल ने बहुत से जनकल्याणकारी कार्य किये :
- मजदूरी वृद्धि करने के उद्देश्य से विभिन्न ठोस कदम।
- दैनिक आवश्यक सामग्री की उच्च मूल्य दर एवं निम्नतम मजदूरी दर
- दास प्रथा का खात्मा,
- कुलीन वर्ग की जमीनों को जब्त करके गरीब किसानों में बाँटना
- अवैतनिक सर्व शिक्षा की शुरुआत एवं
- क्रिश्चियन कैलेण्डर के स्थान पर प्रजातांत्रिक कैलेण्डर की शुरुआत आदि।
प्रश्न 38.
मैसूर के राजा टीपू सुल्तान के साथ जैकोबिन क्लब के सम्बन्ध के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर :
भारतवर्ष में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान दक्षिण के मैसूर में हैदर अली ने एक स्वाधीन राज्य का निर्माण किया। बाद में उनके बेटे टीपू सुल्तान ने (1782-1799 ई०) इसकी स्वाधीनता की रक्षा के लिये ब्रिटिश शक्ति के विरुद्ध लड़ाई करते रहे। जैकोबिन क्लब एवं टीपू सुल्तान
फ्रांस से मदद की प्रार्थना : अंग्रेजों के हाथ से मैसूर राज्य को बचाने के लिये टीपू सुल्तान ने बहुत से कदम उठाये। अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिये उन्होंने फ्रांस के क्रांतिकारी प्रजातांत्रिक सरकार से मदद की अपील की किन्तु उनका यह प्रयास सफल नहीं हुआ।
स्वाधीनता का वृक्षारोपण : टीपू सुल्तान स्वयं स्वेच्छाचारी शासक होते हुए भी फ्रांस के क्रांतिकारी जैकोबिन सरकार के प्रति अनुरक्त हुए। फ्रांसीसी क्रांति एवं फ़ांस में प्रजातंत्र की प्रतिष्ठा को समर्थन दिखाने के उद्देश्य से अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम में ‘स्वाधीनता का वृक्षारोपण’ किया।
जैकोबिन क्लब के सदस्य : टीपू सुल्तान फ्रांस के उम्र वामपन्थी जैकोबिन क्लब के आदर्श के प्रति श्रद्धाशील थे। वे खुद जैकोबिन क्लब की सदस्यता ग्रहण की एवं उन्हें अपनी राजधानी में आने के लिये आमन्त्रित किया।
अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण : सुदूर फ्रांस की क्रांति एवं क्रांतिकारी आदर्श के प्रति श्रद्धा एवं समर्थन टीपू सुल्तान के अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकाण को दर्शाता है।
प्रश्न 39.
थर्मीडोरीय प्रतिक्रिया क्या है ?
उत्तर :
2 जून 1793 से 27 जुलाई 1794 ई० तक फ्रांस में एक आपातकालीन शासन व्यवस्था चालू थी जिसे आतंकराज के नाम से जाना जाता है। इस शासन के प्रमुख संचालक क्रांतिकारी नेता राब्सपियर थे।
थर्मीडोरीय प्रतिक्रिया
लाल आतंक : राब्सपियर के नेतृत्व में दीर्घ 13 महीने में फ्रांस में प्राय: 50 हजार निर्दोष लोगों को गिलोटिन से हत्या की गयी प्राय: तीन लाख लोगों को बन्दी बनाया गया। कितने लोग हमेशा के लिये लापता हो गये। मेरी एंत्वायनेत, मैडम रोलाँ, बिसो, बेइली, हिवर्ट, दाँते जैसे प्रसिद्ध लोग भी इसके शिकार हुए। आतंक की इस दौड़ को फ्रांस के क्रांतिकारी इतिहास में लाल आतंक के नाम से जाना जाता है।
राब्सपियर की मृत्यु : आतंक के इस भयंकर लीला से आतंकित होकर जिरन्दिष्ट, जैकोबिन एवं अन्य दलों के सदस्य रोबसपियर एवं उसके अनुयायियों को बन्दी (27 जुलाई 1794 ई०) बनाकर, दूसरे दिन रोबसपियर एवं उसके 24 अनुयायियों को गिलोटिन से हत्या कर दी। यह घटना इतिहास में ‘थर्मीडोरीय प्रतिक्रिया’ के नाम से परिचित है। रोबसपियर के क्षमता से हटने के बाद अक्टूबर, 1794 से नेशनल कन्वेशन के शासनकाल को थर्मीडोरीय प्रतिक्रिया के शासनकाल के नाम से जाना जाता है।
प्रतिक्रिया : थर्मीडोरीय प्रतिक्रिया से –
- जैकोबिन दल के बद्ले जिरन्दिष्ट एवं मध्यपन्थी दल का समर्थन बढ़ गया,
- जैकोबिन क्लब एवं क्रांतिकारी संगठन बन्द कर दिये गये।
- सभी गिरफ्तारी फरमान रद्द हुए
- 40 हजार बन्दियों की रिहाई हुई।
- पेरिस कम्युन पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया तथा 90 कांतिकारियों को मृत्युदण्ड दिया गया।
- देशत्यागियों को स्वदेश लौौने की अनुमति दी गयी एवं
- धार्मिक आजादी को स्वीकृति मिली।
प्रश्न 40.
फ्रांस के नये संविधान (1795 ई०) के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर :
राब्सपियर के मृत्युदण्ड के बाद जैकोबिनों का पतन हो गया एवं जिरन्दिष्ट तथा मध्यपंथी दल शासन में आये। फलस्वरूप फ्रांस में बुर्जुआ एवं मध्यमवर्ग को प्रधानता मिली।
फ्रांस का नया संविधान :
प्रतिक्रांति : जिरन्दिष्ट दल के शासनकाल में प्रतिक्रांति का रूप विस्तृत हो गया। मृत राजा लुई सोलहवें का भाई लुई अठारहवां वेरानों से एक घोषणा पत्र के जरिये फ्रांस में पूर्व का राजतंत्र एवं पुरातनतंत्र लौटाने की घोषणा की।
संविधान की रचना : फ्रांस में राजतंत्र की वापसी की सम्भावना को दूर करने के लिये राष्ट्रीय अधिवेशन (1795 ई०) में अतिशीघ्र एक संविधान रचना का कार्य आरंभ किया गया। बुर्जुआ श्रेणी के प्रवक्ता वयोसि द एंग्लास द्वारा इस संविधान की रचना की गई।
संवैधानिक पदक्षेप : 1795 ई० के संविधान द्वारा – (i) नागरिकों के अधिकार के साथ-साथ उनके कर्त्त्यों की घोषणा (ii) सर्वसाधारण के मताधिकार के बदले सम्पत्ति के आधार पर मताध्किर (iii) द्विकक्षीय विधानसभा का गठन (iv) शासन-कार्य के संचालन हेतु पाँच साल की अवधि के लिये एक पाँच सदस्यीय डाइरेक्टरी की प्रतिष्ठा इत्यादि नये संविधान द्वारा लागू की गयी।
विद्रोह का विरोध : राष्ट्रीय कन्वेंशन द्वारा प्रवर्तित 1795 ई० का संविधान कुलीन, राजतंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा-वाहिनी, पेरिस की जनता – किसी को भी खुश नहीं कर सका। उनलोगों के द्वारा अधिवेशन का विरोध जताने से सेनापति नेपोलियन ने उसका दमन किया। फलस्वरूप फ्रांस में मध्यमवर्ग बुर्जुआ श्रेणी फिर से क्षमता में आ गयी।
प्रश्न 41.
फ्रांस में डाइरेक्टरी के शासनकाल (1795-99) के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर :
आतंक-शासन के बाद फ्रांस में जैकोबिनों का राज्य खत्म हो गया। मध्यपंथी बुर्जुआ श्रेणी फ्रांस में पुन: प्रतिष्ठित हुई। इस समय फ्रांस में डाइरेक्टरी शासन (1795-99 ई०) नामक एक नये प्रकार का शासन शुरू हुआ।
डाइरेक्टरी शासन :
डाइरक्टरी शासन का सूत्रपात : 1795 ई० के संविधान के अनुसार 5 विशिष्ट सदस्यों वाली ‘डाईरेक्टरी’ के हाथ में देश का शासन सौंप दिया गया। इसमें कहा गया कि – (i) डाइरक्टरी के सदस्यों की उम्र कम-से-कम 40 साल होगी। (ii) वे लोग विधानसभा द्वारा नियुक्त होंगे। (iii) उनके कार्यकाल की अवधि 5 साल की होगी (iv) प्रत्येक साल एक सदस्य पदत्याग करेंगे, उसकी जगह पर नया सदस्य नियुक्त होगा।
वासकुल नीति : सर्वप्रथम डाइरक्टरी के जो पाँच सदस्य नियुक्त हुए – वे हैं – वारास, ला रावेनिलये, लार्तूनायेव, रिउवेल एवं कारनो। इनमें से अधिकांश अयोग्य शासक थे। इन्हे शुरू से ही वामपंथी जैकोविन एवं दक्षिणपंथी राजतंत्री दल के विरोध का सामना करना पड़ा। फलस्वरूप उन्होंने दोनों दलों को मानकर चलने की नीति अपनायी। इसे वासकुल नीति के नाम से जाना जाता है।
शक्ति : राष्ट्रीय शासन, स्थानीय शासन, सेनावाहिनी, विदेश नीति निर्धरणण आदि विषयों में डाइरक्टरी के शासकों के पास निरंकुश शक्ति थी किन्तु वे लोग जनप्रतिनिधि की तरह आचरण नहीं करके राजतंत्री शासको जैसा आचरण करते थे। कानून की रचना या कानून विषयक प्रस्ताव लेने की शक्ति डाइरक्टरी के पास नहीं थी।
पतन : डाइरक्टरी शासनकाल फ़ांस की क्रांति के इतिहास में सबसे निकम्मी, भष्टाचारी एवं प्रतिक्रियावादी शासनकाल था। इस शासनकाल में देश के भीतर अत्याचार, महँगाई आदि ने भयकर रूप धारण कर लिया था।। फलस्वरूप देश में चारों तरफ विद्रोह होने लगा। इस मौके का फायदा उठाकर फ्रांस के सेनापति नेपोलियन बोनापार्ट 1799 ई० ने फ्रांस में ‘कन्सुलेट’ शासन की स्थापना की।
विवरणात्मक प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 8 MARKS
प्रश्न 1.
फ्रांस की क्रांति में दार्शनिकों की भूमिका/योगदान के बारे में संक्षेप में आलोचना करो।
अथवा
फ्रांसीसी राजतंत्रीय निरंकुशवाद और आर्थिक नीति के विषय में दर्शजिकों के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इतिहासकार टेइन, रूस्तान, सेतोव्वियो, मादेला, जोरेस, भातिएं आदि का मत है कि 1789 ई० की फ्रांस की क्रांति में दार्शनिकों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। वे अपनी लेखनी द्वारा देश की व्यवस्था की त्रुटियों को देश की जनता के सामने रखते थे। इससे फ्रांस की जनता धीरे-धीरे व्यवस्था के विरोध की मानसिकता से भर उठी।
दार्शनिकों की भूमिका :
माण्टेस्क्यू : फ्रांसीसी दार्शनिक माण्टेस्क्यू (1689-1755 ई०) देश के वंचित, दरिद्र, गरीब जनता के प्राण पुरुष थे। माण्टेस्क्यू ने अपनी पुस्तक ‘द स्पिरिट ऑफ लॉ’ या ‘कानून की आत्मा’ में सम्राट के स्वेच्छाचारी शासन एवं ईश्वरीय अधिकार तत्व की तीव्र समालोचना की हैं। ‘द पर्सियन लेटर्स’ या ‘पार्सिया की पत्रावली’ नामक एक अन्य ग्रन्थ में नियमतांत्रिक राजतंत्र के समर्थक माण्टेस्क्यू फ्रांस के पुरातनतंत्र, कुलीनवाद एवं स्वेच्छाचारी राजतंत्र की कठोर समालोचना की हैं। क्षमता की स्वाधीन नीति के समर्थक माण्टेस्क्यू ने व्यक्ति स्वाधीनता की रक्षा के उद्देश्य से देश की विधानसभा, शासन विभाग एवं न्यायालय को अलग करने की माँग की।
वाल्टेयर : वाल्टेयर (1694-1778 ई०) फ्रांस के अन्यतम दार्शनिक, साहित्यिक एवं चिन्तक थे। वे फ्रांस के स्वेच्छाचारी राजतंत्र के तीव्र निन्दक थे। उन्होंने अपनी व्यंग्यात्मक शैली में फ्रांस के गिरजा घरों के भ्रष्टाचार, कुसंस्कार, अन्धविश्वास के ऊपर आकमण किये। उन्होंने कैथोलिक गिरजा को ‘विशेष अधिकार प्राप्त उत्पात’ कहा है। उनकी उल्लेखनीय दो पुस्तके हैं ‘कैनदिद’ (Candide) एवं ‘दार्शनिक का कोष’ (Philosophical Dictionary)।
रूसो : अठारहवीं सदी के फ्रांस के सर्वाधिक उल्लेखनीय एवं लोकप्रिय दार्शनिक जाँ जैक रूसो (1712-1778 ई०) थे। उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सामाजिक समझौता’ (Social contract) में राजा की ईश्वरीय क्षमता का युक्ति के साथं खण्डन किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्र की सार्वभौम शक्ति का स्रोत जनता है क्योकि ‘जनता की इच्छा’ (General will) के आधार पर ही एकदिन समझौते के द्वारा राजा को क्षमता मिली थी। अत: राजा को किसी भी समय क्षमता से हटाना जनता का अधिकार है। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘असमानता का सूत्रपात’ में कहा है कि मनुष्य स्वाधीन होकर एवं अधिकार लेकर पैदा होता है किन्तु विषमतामूलक समाज व्यवस्था उसे दरिद्र एवं पराधीन बना देती है।
डेनिस दिदेरो एवं डि’एलेमवर्ट : डेनिस दिदेरो एवं डि’एलेमवर्ट एक प्रमुख दार्शनिक थे जिन्होंने राष्ट्र एवं गिरजा के अन्याय-आचरण की तीव्र समालोचना की। उन लोगों ने कठिन परिश्रम से सत्रह खण्डों में विश्वकोश की रचना की। इनमें विभिन्न दार्शनिकों की रचना के साथ राजनैतिक, सामाजिक, अर्थनैतिक, ऐतिहासिक विषयों के आलेख-आदि हैं।
फिजिओक्रैट वर्गः अठारहवीं सदी के फ्रांस में फिजिओक्रैट नामक एक अर्थनीतिविद वर्ग ने फ्रांस के वाणिज्य में शुल्क-नीति एवं नियंत्रण प्रथा की तीव्र समालोचना करके एवं अबाध वाणिज्य नीति एवं गैर-सरकारी उद्योग स्थापना की माँग की। इस मतवाद के अन्यतम समर्थक केने थे।
प्रश्न 2.
फ्रांसीसी संविधान सभा (1789 ई०) की कार्यावली के बारे में आलोचना करो।
अथवा
राष्ट्रीय संवैधानिक सभा के कार्य बताएं।
उत्तर :
9 जुलाई 1789 ई० को फ्रांसीसी राष्ट्रीय सभा का संविधान सभा में रूपांतरण हुआ। इस सभा के अधिकतर सदस्य बुर्जुआ या मध्यवित्त वर्ग के थे।
संविधान सभा की कार्यावली (1789 ई०) :
सामन्तवाद का अन्त : फ्रांसीसी राष्ट्रीय सभा ने 4 अगस्त, 1789 ई० से 11 अगस्त के बीच फ्रांस की सामन्तवादी व्यवस्था को समाप्त करने की घोषणा की। इस घोषणा के द्वारा – सामन्त प्रथा, भूमिदास प्रथा, विभिन्न सामन्ती कर, कर्वि या बेगारी, टाइद या धर्म-कर की समाप्ति हुई, साथ ही सामन्त श्रेणी एवं पादरीवर्ग के विशेष अधिकार को भी खत्म किया गया।
व्यक्ति एवं नागरिक का अधिकार पत्र : संविधान सभा का दूसरा उल्लेखनीय कदम 26 अगस्त, 1789 ई० को घोषित ‘व्यक्ति एवं नागरिक का अधिकारपत्र’ था। इसके माध्यम से कहा गया कि –
- स्वाधीनता मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है
- कानून की नजर में सभी समान हैं।
- जनता ही देश की सार्वभौम क्षमता का अधिकारी है।
- बिना विचार के किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
- व्यक्ति स्वाधीनता, सम्पत्ति का क्रय-विक्रय एवं उपभोग का अधिकार, वाक्स्वाधीनता, धार्मिक स्वाधीनता आद् प्रत्येक मनुष्य का मौलिक अधिकार है।
- सभी के लिये उचित तरीके से करारोपण तय होना चाहिये।
संविधान द्वारा अन्यान्य कार्य :
शासनतंत्र में सुधार : संविधान के जरिये विभिन्न शासनतंत्रों में सुधार हुआ।
- प्रशासन, विधायिका एवं न्यायपालिका विभाग को सम्पूर्ण रूप से अलग किया गया।
- राजा की शक्ति को खत्म करके फ्रांस में नियमतंत्र राजतंत्र की प्रतिष्ठा की गयी।
- कानून बनाना, राजकोष से खर्च आदि अधिकारों से राजा को वंचित किया गया।
- राजा के दैवीय अधिकार को खत्म करके उन्हें ‘फ्रांस का राजा’ के नाम से घोषित किया गया।
- राजा के द्वारा विधायिका की विधाओं को खत्म करना या विधानसभा को भंग करनें के अधिकार को समाप्त कर दिया गया।
- सम्पत्ति की मात्रा के आधार पर जनता को सक्रिय एवं निष्किय दो भागों में बांटकर वोट का अधिकार दिया गया।
- समस्त देश को 83 डिपार्टमेण्ट या प्रदेश में एवं प्रत्येक प्रदेश को जिलों में बाँट दिया गया।
आर्थिक सुधार : देश के तीव्र आर्थिक संकट को दूर करने के उद्देश्य से –
- सभी तरह के अप्रत्यक्ष करों को हटा दिया गया
- जमीन एवं अचल सम्पत्ति के ऊपर करारोपण किया गया
- गिरजा घरों की सभी सम्पत्तियाँ जब्त कर ली गई।
- इस जब्त सम्पत्ति को अमानत के रूप में रखकर ‘आसाईनेट’ नामक कागजी नोट चालू किया गया।
- श्रमिकों की हड़ताल एवं ट्रेड यूनियन करने के अधिकार को खत्म कर दिया गया।
न्यायपालिका में सुधार :
- सामन्तों के कोर्ट को खत्म कर दिया गया।
- जनता के द्वारा निर्वाचित सदस्य को न्यायाधीश बनाया गया।
- फौजदारी मामलों में जूरी प्रथा आरंभ की गई।
- बिना विचार के किसी को बन्दी बनाने पर रोक लगा दी गई।
- निम्न अदालत की राय के विरुद्ध उच्च अदालत में अपील करने के अधिकार को मंजूरी दी गयी।
गिरजा घरों की व्यवस्था में सुधार : संविधान सभा ने गिरजाघरों की व्यवस्था में सुधार के लिये
- गिरजा घरों की सभी सम्पत्ति को जब्त करके उसे अमानत के तौर पर रखा गया एवं घोषणापत्र ‘आसाईनेट’ नामक कागजी नोट चालू किया गया।
- ‘सिविल कान्सटीट्यूशन ऑफ द क्लर्जी’ या ‘पादरी का संविधान’ द्वारा गिरजा घरों के ऊपर पोप के सभी अधिकारों को समाप्त किया गया। गिरजा घर एक राष्ट्रीय कार्यालय के रूप में काम करने लगा।
- जनता द्वारा पादरियों का निर्वाचन एवं सरकार से वेतन का नियम चालू हुआ।
प्रश्न 3.
फ्रांस में आतंक का शासन चालू होने के कारण क्या थे ?
उत्तर :
फ्रांस के राजा लुई सोलहवें के मृत्युदण्ड (21 जनवरी 1793 ई०) के बाद क्रांतिकारी, फ्रांस के भीतरी एवं विदेशी दोनों तरफ से विभिन्न समस्याओं से जूझ रहे थे। इस परिस्थिति में उन्होंने आपातकालीन शासन चालू किया। इस आपातकालीन शासन को आतंक राज के नाम से जाना जाता है।2 जून 1793 ई० से 27 जूलाई, 1794 ई० तक फ्रांस में आतंक-राज कायम रहा।
आतंक राज का कारण :
आतंकी संगठन : आतंक राज के संगठन में – (1) जन-सुरक्षा समिति, (2) सामान्य सुरक्षा समिति, (3) सन्देह का कानून, (4) क्रांतिकारी न्यायालय आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। जन-सुरक्षा समिति आतंक परिचालन की नीति निर्धीरित करती थी, सामान्य सुरक्षा समिति सन्देह होने वाले लोगों की लिस्ट बनाती थी। सन्देह के कानून द्वारा सन्देहम्यस्त लोगों को गिरफ्तार किया जाता था, क्रांतिकारी न्यायालय द्वारा उनका विचार करके मृत्युदण्ड दिया जाता था एवं गिलोटिन द्वारा उनकी हत्या की जाती थी।
जैकोबिन एवं जिरन्दिष्टों का विरोध : आतंक के प्रथम चरण में जैकोबिन एवं जिरन्दिष्ट दल संयुक्त रूप से शासन का संचालन किया। किन्तु कुछ ही दिनों में उनमें विरोध शुरू हो गया एवं आतंक द्वारा जैकोबिन दल जिरन्दिष्टों पर काबू पा लिया। रोबसपियर, हिवर्ट, दाँते, कार्नो आदि ने आतंक शासन के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
लाल आतंक : कुछ ही दिनों के भीतर हिवर्ट, दाँते आदि के आतंक का विरोध करने पर रोब्सपियर ने अपने मित्र हिवर्ट एवं दाँते को भी मृत्युदण्ड दे दिया। रोब्सपियर अप्रैल 1794 ई० में आतंक शासन के सर्वेसर्वा बन गये। उनके नेतृत्व में बाद का 3 माह आतंक का विकराल एवं डरावना रूप लोगों के सामने आया। इस दौरान के शासनकाल को लाल आतंक कहा जाता है।
आतंक की भयावहता : आतंक द्वारा फ्रांस में लगभग 50 हजार निर्दोष लोगों की हत्या की गयी तथा बहुत से लोग हमेशा के लिये लापता हो गये। प्राय: 3 लाख लोगों को सन्देह के तहत गिरफ्तार किया गया। आतंक के माध्यम से रानी मेरी एंत्वायनेत, मैडम रोलाँ, ब्रियों, वारनाम वेली, लावएसिए आदि’को मृत्युदण्ड दिया गया।
आतंक का अन्त : आतंक के इस विकराल रूप से यूरोप के लोग स्तंभित हो गये। इससे आतंकित होकर जैकोबिन, जिरन्दिष्ट एवं मध्यमपंथी दल के नेता रोब्सपियर एवं उनके अनुयायियों को बन्दी बनाकर (27 जुलाई, 1794 ई०) 28 जुलाई को राष्ट्रीय सभा के निर्देश पर रोब्सपियर एवं उनके 24 अनुयायियों को गिलोटिन द्वारा मृत्युदण्ड दिये जाने के बाद फ्रांस में आतंक राज का अन्त हुआ।
प्रश्न 4.
आतंकी शासन के परिणाम के बारे में आलोचना करो।
उत्तर :
फ्रांस की कांति के माध्यम से फ्रांस में राजतंत्र का पतन एवं राजा के मृत्युदण्ड के बाद देश में एक संकटजनक परिस्थिति पैदा हो गयी थी। इस परिस्थिति में फ्रांस के कांतिकारी नेताओं ने आपातकालीन शासन लागू कर नया शासन चलाया जिसे आतंक का शासन कहा जाता है।
परिणाम : फ्रांस में दीर्घ 13 माह व्यापी (जून 1793 ई० से जुलाई 1794 ई० तक) आतंकी शासन के परिणाम की विशेषता थी –
क्रांति की रक्षा : आतंकी शासन द्वारा फ्रांस में प्रति-क्रांति अर्थात् देश के भीतर विद्रोह, गृहयुद्ध, अराजकता आदि बन्द हुआ। विदेशी आक्रमण के हाथ से कांतिकारी फ्रांस की रक्षा हुई।
हत्याकाण्ड : प्रतिक्रांति को कुचलने के नाम पर फ्रांस में बिना विचार के हजारों निर्दोष लोगों की हत्याएँ की गई ‘एवं लाखों लोगों को बन्दी बनाया गया। लाखों लोग तो हमेशा के लिये लापता भी हो गये। रानी एंत्वायनेत, मैडम रोलाँ, त्रिसों, वारनाम, वेइली, दाँतो आदि प्रसिद्ध व्यक्तियों को मृत्युदण्ड दिया गया।
प्रगतिशील सुधार : आतंकी शासन में फ्रांस में कई प्रगतिशील सुधार किये गये। जैसे –
- फ्रांस के समाज में पुरातनतंत्र एवं सामाजिक विषमता दूर करके समानता की प्रतिष्ठा के लिये विभिन्न कदम उठाये गये।
- देशत्यागी कुलीनों की सम्पत्ति जब्त करके उसे दरिद्र जनता में बाँट दिया गया।
- राष्ट्रीय सेनावाहिनी में शामिल होना बाध्यतामूलक कर दिया गया।
- खाद्य-सामग्री का सर्वोच्च मूल्य निश्चित कर दिया गया।
- पिता की सम्पत्ति में सबका समान अधिकार सुनिश्चित किया गया।
- शिशु, वृद्ध, असहाय तथा विधवाओं के लिये सरकारी अनुदान सुनिश्चित कियां गया।
आतंकी शासन की स्वीकृति का विचार :
आतंक के विपक्ष में तर्क : इतिहासकार तेइन ने आतंक के शासन की समालोचना की है। उनके मत के विपक्ष में निम्नोक्त तर्क प्रस्तुत किया गया है –
- क्रांतिकारियों का बलिदान : बहुत सारे सच्चे क्रांतिकारी इसके बलि हुए।
- अति सक्रियता : देश के शासन काल में आतंक का कुछ प्रयोजन था पर इतना नहीं।
- साधारण लोगों की मृत्यु : सर्वहारा वर्ग के बहुत से गरीब साधारण लोग बिना विचारे मारे गये।
- उश्रृंखलता : आतक शासन के सुयोग का लाभ उठाकर कुछ लोग उश्रृंखल होकर सरकारी कानून अपने हाथ में ले लिया था।
- गणतंत्र का विनाश : आतंक के शासन ने फ्रांस में गणतंत्र का विनाश किया।
आतंक के पक्ष में तर्क : ओलर’ मातिये, लेफेवर आदि इतिहासकार आतंक राज के पक्ष में विभिन्न तर्क प्रस्तुत किये हैं –
- आपातकालीन कदम : फ्रांस के अन्दर तथा विदेशी संकट के विरुद्ध आतंक के सिवा और कोई रास्ता नहीं था।
- क्रांति की रक्षा : आतंकी शासन के कारण फ्रांस में फैली अराजकता दूर हुई एवं कानून-व्यवस्था कायम हुई। विदेशी आक्रमण की संभावना भी टल गई। इस तरह फ्रांस की क्रांति सफल हुई।
- जनकल्याण: आतंकी राज में महैंगाई पर नियन्त्रण, न्यूनतम मजदूरी, भूमिहीनों में जमीन वितरण आदि जनकल्याणमूलक कानून पास किये गये।
प्रश्न 5.
फ्रांसीसी क्रांति के आर्थिक कारणों की आलोचना करो।
उत्तर :
फ्रांसीसी क्रांति (1789 ई०) आधुनिक विश्व के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है। इतिहासकार कोवान ने फ्रांस की क्रांति को एक बड़ी नदी के छोटे-छोटे सोत में बिखरकर बाढ़ के भयानक रूप के साथ तुलना की है।
आर्थिक कारण : फ्रांस की कांति के लिये विभिन्न आर्थिक कारण जिम्मेवार थे, जैसे –
सरकारी फिजुल खर्ची : फ्रांसीसी राजपरिवार ने बिना सोचे-समझे फिजुल खर्च करके राष्ट्र की अर्थव्यवस्था एवं आर्थिक शक्ति को कमजोर बना दिया था। लुई वौदहवें (1643-1715 ई०), लुई पन्द्रहवें (1715-1774 ई०) एवं लुई सोलहवें (1774-1793 ई०) के शासनकाल में सम्राट एवं राजपरिवार की अनियमितता एवं विलासिता अपने चरम शिखर पर पहुँच गया था। फलस्वरूप फ्रांस का राजकोष खाली हो गया।
खर्चीला युद्ध : राजा लुई चौदहवें एवं पन्द्रहवें ने कई युद्धों में भाग लेकर पर्याप्त धन-राशि खर्च की। सोलहवें लुई ने अमेरिका की स्वाधीनता संघर्ष में शामिल-होकर बहुत सारा धन लुटाया। इस तरह देश में आर्थिक संकट गहराता गया।
अधिकार भोगियों की आय : फ्रांस की लगभग आधी कृषि-जमीन पादरी एवं कुलीन वर्ग के पास थी। इस जमीन से आय होने पर भी वे लोग सरकार को टाइले या भूमिकर, कैपिटेशन या उत्पादन कर, विटिंयेमे या आयकर आदि नहीं देते थे। इसके विपरीत सरकार द्वारा प्रद्त्त सभी सुयोग-सुविधाओं का भोग किया करते थे।
तृतीय श्रेणी पर करों का बोझ : राष्ट्र, गिरजा एवं सामन्त जमीनदार वर्ग तृतीय श्रेणी से विभिन्न तरह के कर वसूलते थे। टाइले, कैपिटेशन, विटिंयेमे जैसे प्रत्यक्ष कर के अलावा गैबेला या नमक-कर, खाद्य-वस्तुओं पर कर, पादरियों द्वारा टाइद या धर्मकर, एइद या शराब, तम्बाकू आदि पर कर, कर्वि या मालिक की जमीन पर बेगारी करना, सामन्त प्रभुओं के रास्ता घाट व्यवहार कर फसलों की कटाई कर, सेवा कर यानी प्रत्येक वस्तु पर कर आदि देने पर बेचारे किसान के पास मात्र 20 % पैसा बचता था।
मध्यमवर्ग की दुखद स्थिति :अर्थशास्त्री एडम स्मिथ ने क्रांति के पहले फ्रांस की आर्धिक दशा के बारे में कहा था अभंत अर्थनीति का जादूघर’। दोषपूर्ण अर्थनीति के कारण देश में महँगाई की लगातार वृद्धि से गरीबों का जीना मुश्किल हो गया था। दूसरी तरफ धनी बुर्जुआ, व्यापारी, पूँजीपति आदि स्वतंत्र व्यापार के लिये टैक्स एवं नियंत्रण को खत्म करने की माँग करने लगे।
प्रश्न 6.
फ्रांसीसी क्रांति के राजनैतिक कारणों की आलोचना करो।
अथवा
फ्रांसीसी क्रांति की उत्पत्ति में राजतंत्र कितना जिम्मेदार था ?
उत्तर :
अठारहवीं सदी में फ्रांस में वुर्वों वंश के नेतृत्व में स्वेच्छाचारी राजतंत्र प्रतिष्ठित हुआ था। ईश्वरीय क्षमता में विश्वांसी इस राजतंत्र के राजा देश के सर्वोच्च शासक, कानून निर्माता एवं प्रधान विचारक थे। शासन व्यवस्था में आम जनता के विचारों का कोई मूल्य नहीं था।
फ्रांसीसी क्रांति का राजनैतिक कारण :
राजाओं की कमजोरी : फ्रांसीसी राजा लुई चौदहवें (1643-1715 ई०) निरकुश स्वेच्छाचारी थे। उनका कहना था कि, “मैं ही राष्ट्र हूँ।” आलसी एवं विलासी राजा लुई 15 वें (1715-74 ई०) अपनी छोटी पत्नी मादाम द पम्पादूर द्वारा प्रभावित होकर शासन चलाने से प्रशासन में भष्टाचार एवं भाई-भतीजावाद का चारों ओर बोलबाला था। इसके बाद :अयोग्य राजा लुई सोलहवें ने (1774-1793 ई०) राजतंत्र के पतन को और करीब ला दिया।
कुलीन वर्ग का वर्चस्व : प्रशासन के हर विभाग में कुलीन वर्ग के वर्चस्व ने शासन-व्यवस्था में अनुशासनहीनता पैदा किया। प्रशासन पूरी तरह से भ्रष्ट हो चुका था। इन्टेंडेण्ट नामक भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी बहुत शक्तिशाली हो गये थे। कुलीन राजपुरुष वर्ग ‘लेत्र द कैचे’ नामक एक राजकीय फरमान द्वारा किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करके बिना विचार किये बन्दी बनाकर रखने का अधिकार पा गये थे।
त्रुटिपूर्ण कानून : अठारहवीं सदी में फ्रांसीसी कानून अत्यंत त्रुटिपूर्ण, जटिल एवं कठिन था। देश के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार के कानून प्रचलित थे। ये बड़े कठोर एवं निष्ठुर थे। सामान्य अपराध के लिये भी कई बार मृत्युदण्ड भी दिया जाता था।
न्यायपालिका में त्रुटियाँ : फ्रांसीसी न्यायपालिका अत्यन्त जटिल, खर्चीली एवं भ्रष्ट थी। अधिकांश न्यायाधीश बेईमान, झूठे एवं भ्रष्ट थे। अपराधियों से घूस लेना, जुर्माना वसूलना आदि के द्वारा भ्रष्ट न्यायाधीश पर्याप्त धन कमाते थे।
फिजूलखर्ची : फ्रांसीसी राजपरिवार बहुत ही खर्चीला था। राजपरिवार के सेवाकार्य के लिये 18 हजार कर्मचारी नियुक्त थे। रानी मेरी एंत्वायनेत के ही 500 कर्मचारी थे। राजपरिवार की इस बेतहाशा खर्च करने की आदत ने देश के आर्थिक संकट को और गंभीर बना दिया।
त्रुटिपूर्ण राजव्यवस्था : देश की 95 % सम्पदा पादरी वर्ग एवं कुलीनवर्ग के पास होने पर भी उन्हें सरकार को किसी प्रकार का बाध्यतामूलक कर नहीं देना होता था। फलस्वरूप समस्त करों का बोझ तृतीय सम्रदाय के ऊपर लाद दिया गया था। इसके अलावा पादरी एवं कुलीन सामन्तों को अनेक तरह के कर-संग्रह करने का अधिकार तृतीय सम्पदाय से था।
लुई सोलहवें की भूमिका : देश की आर्थिक परिस्थिति अत्यन्त खराब हो जाने पर राजा लुई सोलहवें के लिए उचित था कि वह पादरीएवं कुलीन वर्ग के विशेष अधिकार को खत्म करके और उनके ऊपर कर लगाकर देश की आर्थिक संकट को दूर करने के ऊपर ध्यान दें, किन्तु राजा द्वारा कोई उचित कदम नहीं उठाये जाने से जनता का आक्रोश और बढ़ गया।
प्रश्न 7.
फ्रांस में क्रांति से पहले विभिन्न सामाजिक श्रेणी एवं सामाजिक विषमता का रूप कैसा था ?
अथवा
फ्रांस में सामाजिक विषमता तथा धन के असमान वितरण के विरुद्ध जनमत का विकास कैसे हुआ ?
उत्तर :
कांति के पहले फ्रांसीसी समाज मध्ययुगीन एवं सामन्तवादी था। फ्रांस की इस समाजव्यवस्था को दार्शनिक वाल्टेयर ने ‘राजनैतिक कारागार’ कहा है। समाज में चारों ओर असमानता का बोल-बाला था।
समाज में श्रेणी एवं असमानता : इस समय फ्रांस में मूलतः तीन वर्ग था –
(i) पादरी वर्ग या प्रथम श्रेणी
(ii) कुलीन वर्ग या द्वितीय श्रेणी एवं
(iii) बुर्जुआ एवं कृषक सम्रदाय या तृतीय श्रेणी। इन तीनों श्रेणियों में पादरी एवं कुलीन सम्रदाय को विशेष अधिकार प्राप्त था एवं तृतीय श्रेणी अधिकारहीन श्रेणी थी।
पादरी सम्रदाय या प्रथम श्रेणी : फ्रांसीसी समाज व्यवस्था में प्रथम सम्रदाय या श्रेणी पादरियों की थी। इसकी जनसंख्या एक लाख बीस हजार थी यानी फ्रांस की कुल आबादी के 0.5 % थी। ये संख्या में अति अल्प होते हुए भी फ्रांस की कुल कृषि जमीन का 1 / 5 भाग इनके अर्थात गिरजा के कब्जे में था। इसके लिये पादरीवर्ग कोई नियमित कर नहीं देते थे। ‘कांट्रैक्ट ऑफ पोइसी’ नामक एक समझौते के अनुसार ये लोग राजा को स्वेच्छाकर देते थे। गिरजा की अथाह सम्पत्ति एवं आय का पादरी वर्ग भोग करता था। इसके अलावे भी ये जनता से टाईद या धर्मकर, मृत्युकर, विवाहकर आदि वसूल करते थे।
कुलीन सम्रदाय या द्वितीय श्रेणी : कुलीन सम्र्रदाय फ्रांस का द्वितीय वर्ग था। इनकी संख्या कांति के पहले 3 लाख 50 हजार अर्थात देश की कुल आबादी का केवल 1.5% थी। इनकी आबादी कम होने पर भी फ्रांस की कुल कृषि जमीन का 1 / 2 भाग इनके दखल में था। इसके लिये उन्हें सरकार को कोई भूमिकर नहीं देना पड़ता था। कुलीन वर्ग अपने वंशमर्यादा के प्रभाव से कई तरह का सुयोग-सुविधा (Privilege) भोग करते थे एवं कई प्रकार के सामन्ती कर की वसूली भी करते थे। प्रशासनिक, न्यायालय एवं सरकारी नौकरियों में उच्च पदों पर इनका आधिपत्य था।
बुर्जुआ एवं कृषक सम्रदाय या तृतीय श्रेणी : फ्रांसीसी समाज व्यवस्था में एक तरफ बुर्जुआ या मध्यमवर्ग, व्यवसायी, बुद्धिजीवी आदि धनी वर्ग एवं दूसरी तरफ गरीब, सर्वहारा, कृषक, मजदूर, दरिद्र वर्ग तृतीय श्रेणी के अन्तर्गत थे। धनी बुर्जुआ श्रेणी व्यवसाय-व्यापार के जरिये पर्याप्त धन-दौलत के मालिक होते हुए भी वे लोग कभी भी कुलीन वर्ग की तरह सामाजिक मर्यादा एवं अधिकार नहीं पाते थे। तृतीय श्रेणी का बड़ा अंश दरिद्र कृषक, श्रमिक, कारीगर, दुकानदार, दिन-मजदूर आदि का था। अनाहार, अर्द्धाहार, अत्याचार एवं शोषण से तंग यह श्रेणी फ्रांस की प्रचलित समाज व्यवस्था से विक्षुब्ध थी।
प्रश्न 8.
फ्रांसीसी क्रांति में दार्शनिकों की भूमिका का मूल्यांकन करो।
अथवा
फ्रांसीसी क्रांति में दार्शनिकों की भूमिका के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क दो।
उत्तर :
इतिहासकारों के एक वर्ग की यह सोच है कि क्रांति के पहले फ्रांस में माण्टेस्क्यू, वाल्टेयर, रूसो, वेनिस दिदेरो, डि’ एलेमवर्ट सहित कई दार्शनिक अपनी रचनाओं के माध्यम से फ्रांस की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक भूल-तुटियों को साधारण लोगों के सामने रखकर उनकी आँखें खोल देने से फ्रांस में क्रांति हुई थी, किन्तु इतिहासकारों का एक दूसरा वर्ग फ्रांस में क्रांति के प्रति दार्शनिकों की भूमिका को उतना महत्व नहीं देते हैं।
मूल्यांकन :
दार्शनिकों की भूमिका के पक्ष में तर्क :इतिहासकार टेइन, रूस्तान, राईकर, सेतोवियाँ, मादेला, जोरेसा, मातिए, लाबुज, मर्ने आदि प्रमुख इतिहासकारों का कहना है कि फ्रांस की क्रांति के पीछे दार्शनिकों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इनका तर्क है –
जनता की जागरुकता : किसी समाज एवं राष्ट्रव्यवस्था में असमानता रहने से ही किसी देश में क्रांति नहीं हो जाती है। इन भूल-नुटियों के खिलाफ राष्ट्र की जनता जागरुक हो जाने पर इस व्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाने लगती हैं। फ्रांस के दार्शनिकों जनता को जागरूक करने का ही काम किया था।
दार्शनिकों की लोकप्रियता : अठारहवीं सदी में फ्रांस में कई दार्शनिकों के विचार बहुत ही लोकप्रिय थे। पेरिस की चाय-दुकानों एव क्लबों में भी दार्शनिकों के कथन आदि की चर्चाएँ होती थीं और इन सब जगहों से उनके विचार देश की जनता में फैल जाते थे।
दार्शनिकों की मौलिक चिन्ता : फ्रांस के तत्कालीन दार्शनिक मौलिक चिन्तनधारा के प्रतीक एवं आदर्शवादी थे, अतः उनके विचारों में अन्तर होना स्वाभाविक है। इसके बावजूद सामाजिक एवं राष्ट्रीय अन्याय-अविचार के बारे में सभी दार्शनिक एकमत थे।
दार्शनिकों की भूमिका के विपक्ष में तर्क : लेफेवयर, मनियार, मार्स स्टीफेंस, मैले-द-पान आदि इतिहासकार फ्रांस की क्रांति में दार्शनिकों की भूमिका को नहीं मानते हैं। उनका तर्क हैं :
प्रत्यक्ष सम्पर्क का अभाव : फ्रांस के दार्शनिक फ्रांस के पुरातनतंत्र एवं समाज व्यवस्था की भूल-त्रुटियों का उल्लेख करने पर भी वे लोग खुद क्रांति के नेता या क्रांतिकारी नहीं थे।
पुरातनतंत्र : फ्रांस की सामाजिक, आर्थिक एवं राष्ट्रीय व्यवस्था में जो असंख्य दोष थे, उससे ही फ्रांस में क्रांति हुई। इसमें दार्शनिकों की भूमिका नगण्य थी। मर्स स्टिफेंस ने कहा है, ‘ ‘फ्रांस में क्रांति का मूल कारण अर्थनैतिक एवं राजनैतिक था, दार्शनिक एवं सामाजिक नहीं।”
दार्शनिकों में मतांतर : तत्कालीन फ्रांस के कई अग्रणी दार्शनिकों के मतों में अन्तर था। माण्टेस्क्यू नियमतांत्रिक राजतंत्र के समर्थक थे जबकि दूसरी ओर रूसो प्रजातंत्र के समर्थक थे।
निरक्षरता : फ्रांस में क्रांति के पहले साधारण लोगों की आबादी प्राय: निरक्षर ही थी। वे लोग दार्शनिकों की रचनाएँ नहीं पढ़ सकते थे। अतः दार्शनिकों के मतवाद फ्रांस के साधारण लोगों के बीच कैसे फैल सकता था।
प्रश्न 9.
फ्रांस की नयी संविधान सभा (1791-1792 ई०) का परिचय दो।
उत्तर :
फ्रांस की कांति के समय तृतीय सम्पदाय के प्रतिनिधि 17 जून 1789 को अपनी सभा को राष्ट्रीय सभा के रूप में घोषित किया।
फ्रांस की नयी संविधान सभा :
नयी संविधान सभा : 20 जून, 1789 ई० को टेनिस कोर्ट के शपथ ग्रहंण के बाद फ्रांसीसी संविधान सभा ने फ्रांस के लिये एक नया संविधान रचने का कार्य आरंभ किया। फ्रांस के नये संविधान के अनुसार सक्रिय नागरिकों के वोट से नई संविधान सभा गठित हुई। इनकी सदस्य संख्या 745 थी।
विधायिका की समस्या : फ्रांस की नयी विधायिका आरंभ से ही विभिन्न समस्याओं के सम्मुखीन हुई। जैसे
- संविधान सभा के किसी सदस्य को नई विधायिका में जगह नहीं दी गयी। फलस्वरूप विधायिका में योग्य एवं दक्ष लोगों की कमी थी।
- विधायिका के नये सदस्यों के साथ राजा का विरोध लगा रहता था।
- देश की जनता प्रजातांत्रिक शासन चाहती थी, किन्तु विधायिका के सदस्य प्रजातंत्र के इच्छुक नहीं थे।
विभिन्न दल : 745 सदस्यों वाली विधायिका में प्रमुख चार दल थे।
- दक्षिणीपंथी दल : नियमतान्त्रिक राजतंत्र के समर्थक इस दल की सदस्य संख्या 264 थी।
- जैकोबिन दल : उग्र वामपंथी जैकोबिन दल राजतंत्र विरोधी एवं प्रजातंत्र का समर्थक था। इस दल की सदस्य संख्या 136 थी।
- जिरन्दिष्ट दल एवं
- मध्यपंथी दल : व्रिसो के नेतृत्व में वामपंथी जिरन्दिष्ट एवं निरपेक्ष मध्यपंथी दल की सदस्य संख्या 345 थी।
राजा के साथ विरोध : नई विधायिका के प्रथम अधिवेशन में ही विधायकों के साथ शींघ्र ही राजा का विरोध शुरू हो गया। इस समय विधायिका ने दो कानून पास किये।
1. पादरियों को नये सिरे से ‘पादरियों का संविधान’ के प्रति शपथ लेनी होगी।
2. एमिग्री अर्थात देशत्यागी कुलीनों के दो महीने के भीतर वापस नहीं लौटने पर उनकी सम्पत्ति जब्त कर ली जायेगी साथ ही देशद्दोह का अभियोग एवं मृत्युदण्ड भी हो सकता है। राजा ने दोनों कानून पर ‘विटो’ लगाकर उसे स्थगित कर दिया।
युद्ध को लेकर मतभेद : फिउलैण्ट का मानना था कि विदेशी युद्धों को जीतने पर ही फ्रांस के भीतर के संकट को दूर करना सम्भव है। इसी से यह दोनों दल विदेशी शक्तियों के साथ युद्ध करने के पक्षपाती थे। दूसरी तरफ जैकोबिन दल का मानना था कि युद्ध कांति को पीछे कर देगा। इसीलिये वे लोग युद्ध के विरोधी थे।
राजमहल पर आक्रमण : फिउलैण्ट मंत्रिमंडल के बाद जिरन्दिष्ट मंत्रिमंडल गठित (1792 ई० मार्च) होने पर राजा लुई सोलहवें ने इस मंत्रिमंडल के कुछ सदस्यों के आचरण से विक्षुब्ध होकर उन्हें बर्खास्त कर दिया (13 जून 1792 ई०)। इससे उत्तेजित होकर जैकोबिन दल के नेतृत्व में राजमहल पर आक्रमण (10 अगस्त 1792 ई०) हुआ।
प्रश्न 10.
फ्रांसीसी क्रांति के परिणाम के बारे में चर्चा करो।
उत्तर :
1789 ई० में फ्रांस में क्रांति के द्वारा पुरातनतंत्र को ध्वंस करके आधुनिक चिन्ता-चेतना सम्पन्न एक नये युग का आरंभ हुआ। इतिहासकार डेविड टामसन का कहना है कि प्रथम विश्वयुद्ध के पहले फ्रांस की क्रांति ही आधुनिक यूरोप के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना है।
सामन्ततंत्र का अन्त : क्रांति के फलस्वरूप फ्रांस में मध्ययुगीन सामन्ततंत्र का अन्त हुआ। पादरी एवं कुलीन सम्पद्राय के विशेष अधिकार, सामाजिक असमानता इत्यादि खत्म हुए। सभी सामन्ततान्त्रिक कर समाप्त कर दिये गये। व्यक्ति स्वाधीनता, कानून की दृष्टि में सभी समान, सरकारी नौकरियों में योग्यता का आधार बनाया गया।
प्रजातंत्र की प्रतिष्ठा : 26 अगस्त, 1789 ई० को ‘व्यक्ति एवं नागरिक के अधिकार’ घोषणापत्र द्वारा राजतंत्र के बहुत से अधिकार खत्म किये गये। 1791 ई० में नियमतांत्रिक राजतंत्र प्रतिष्ठित हुई एवं 1792 ई० में राजतंत्र का अन्त एवं प्रजातंत्र की प्रतिष्ठा हुई।
गिरजा घरों के आधिपत्य का अंत : फ्रांसीसी क्रांति के फलस्वरूप सीमाहीन भ्रष्ट गिरजा व्यवस्था एवं पादरीतंत्र की शक्ति समाप्त हुई। गिरजा की सम्पत्ति को जब्त करके, जनता द्वारा पादरियों का निर्वाचन एवं सरकार द्वारा उनके वेतन भत्ते की व्यवस्था हुई।
जनता का हक : क्रांति के फलस्वरूप स्वेच्छांचारी राजतंत्र के बदले में सार्वभौम प्रजातंत्र की स्थापना हुई। फ्रांसीसी राष्ट्रीय सभा 1789 ई० में ‘व्यक्ति एवं नागरिक के अधिकार’ घोषणापत्र के माध्यम से प्रजातंत्र की घोषणा करके व्यक्ति स्वाधीनता, समाचार पत्र की स्वाधीनता, अभिमत व्यक्त करमे की स्वाधीनंता, सभा-समिति गठन करने का अधिकार तथा मताधिकार आदि स्वीकृत हुआ।
सुशासन प्रतिष्ठा : फ्रांसीसी क्रांति के कारण फ्रांस में सुशासन की प्रतिष्ठा हुई। फ्रांस में सर्वत्र एक ही तरह की मुद्रा एवं कानून लागू हुआ। प्रशासनिक नियोग में योग्यता को आधार के रूप में स्वीकृति मिली।
राष्ट्रीयता का प्रचार-प्रसार : राजतंत्र के बदले देश एवं राष्ट्र के प्रति फ्रांसीसियों में भावना व्याप्त हुई। राजतंत्र के विरोध में फ्रांसीसी जनता एकजुट होकर आन्दोलन आरंभ किया। इस तरह फ्रांस में देशप्रेम एवं राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ।
समानता, मित्रता एवं स्वाधीनता का आदर्श : फ्रांसीसी क्रांति के द्वारा फ्रांस में समानता, भाईचारा एवं आजादी का आदर्श लोकप्रिय हुआ। कांति ने पादरी एवं कुलीन वर्ग के विशेष अधिकार, सामाजिक असमानता आदि को दूर कर सामाजिक समानता की प्रतिष्ठा की।
शिक्षा, संस्कृति की अग्रगति : फ्रांसीसी क्रांति ने शिक्षा व्यवस्था को गिरजा से मुक्त करके देश के नियन्त्रण में लाया। जैकोविन ने प्रधानत: प्राथमिक शिक्षा एवं थर्मीडोरीय उच्च शिक्ष के ऊपर महत्व देकर फ्रांस की शिक्षा-व्यवस्था में अग्रगति एवं साहित्य, विज्ञान, शिल्पकला आदि के प्रचार-प्रसार में भी विकास किया।
पूंजीवादी अर्थनीति का विकास : फ्रांस में पहले मध्यवित्त श्रेणी के नेतृत्व में क्रांति तेज हुई। बाद में बुर्जुआ श्रेणी ने ही क्रांति का सफल भोग किया। संविधान सभा में बुर्जुआ श्रेणी ने देश में पूंजीवादी अर्थ व्यवस्था को विकसित किया।
साम्यवाद का आदर्श : इंतिहासविद क्रपोटकिन के मत से, आधुनिककाल के साम्यवाद एवं समाजवाद की धारणा का सोत फ्रांसीसी कांति है। वेवीउफु ने क्रांति के समय फ्रांस में ऐसी धारणा का प्रचार किया।