WBBSE Class 8 Hindi Solutions Poem 2 भारतमाता का मंदिर

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WBBSE Class 8 Hindi Solutions Poem 2 Question Answer – भारतमाता का मंदिर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न :

प्रश्न 1.
भारत माता के मंदिर में किसका संवाद होता है?
(क) क्षमता का
(ख) ममता का
(ग) समता का
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर :
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।

प्रश्न 2.
‘ईसा’ किस धर्म के संस्थापक थे?
(क) हिन्दू धर्म
(ख) बौद्ध धर्म
(ग) ईसाई धर्म
(घ) जैन धर्म
उत्तर :
(ग) ईसाई धर्म ।

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प्रश्न 3.
‘मिला सत्य का हमें पुजारी’ किसे कहा गया है?
(क) महात्मा गाँधी को
(ख) जवाहरलाल नेहरू को
(ग) अब्दुल कलाम को
(घ) लाल बहादुर शास्त्री को
उत्तर :
(क) महात्मा गाँधी को।

प्रश्न 4.
‘अज्ञात शत्रु’ बनने के लिए क्या आवश्यकता है?
(क) सभी शत्रुओं को मार देना
(ख) सब के समक्ष नत मस्तक होना
(ग) सदा खामोश रहना
(घ) सब को मित्र बना लेना
उत्तर :
सबको मित्र बना लेना।

प्रश्न 5.
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म कब हुआ था ?
(क) 1686 ई० में
(ख) 1786 ई० में
(ग) 1886 ई० में
(घ) 1986 ई० में
उत्तर :
(ग) 1886 ई० में

प्रश्न 6.
बुद्ध ने किस धर्म की स्थापना की –
(क) इस्लाम
(ख) जैन
(ग) बौद्ध
(घ) सिख
उत्तर :
(ग) बौद्ध

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प्रश्न 7.
‘विषाद’ का क्या अर्थ है –
(क) खुशी
(ख) दु:ख
(ग) क्रोध
(घ) प्रेम
उत्तर :
(ख) दु:ख

प्रश्न 8.
कवि के अनुसार भारत क्या है ?
(क) केवल देश
(ख) राज्य
(ग) भारत माता का मंदिर
(घ) भारत-भूमि
उत्तर :
(ग) भारत माता का मंदिर

प्रश्न 9.
यहाँ सबसे अधिक किसको महत्व दिया जाता है ?
(क) समन्वय
(ख) समानता
(ग) धर्म
(घ) रीतिरीवाजों
उत्तर :
(ख) समानता

प्रश्न 10.
भव का क्या अर्थ है ?
(क) समानता
(ख) संसार
(ग) भौंरा
(घ) समानता
उत्तर :
(ख) संसार

प्रश्न 11.
कवि एकजुट होकर क्या करने का आह्वान करते हैं ?
(क) जयनाद
(ख) बराबरी
(ग) कल्याण
(घ) उपकार
उत्तर :
(क) जयनाद

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प्रश्न 12.
सभी लोगों को किसका परिचय देना चाहिए ?
(क) सुख: दुख:
(ख) एकजुटता
(ग) भाई-भाई
(घ) जयनाद
उत्तर :
(ख) एकजुटता

प्रश्न 13.
सभी को आपस में क्या बाँट लेना चाहिए ?
(क) एकजुटता
(ख) भाई-चारा
(ग) सुख: दुख:
(घ) स्वप्न
उत्तर :
(ग) सुख: दुख:

लघुउत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
भारत का मंदिर किसे कहा गया है?
उत्तर :
भारत का मंदिर भारत वर्ष को कहा गया है।

प्रश्न 2.
भारत में किस बात का भेद-भाव नहीं है?
उत्तर :
भारत में जाति, धर्म, या संप्रदाय का भेद-भाव नहीं है।

प्रश्न 3.
तीर्थ किसे कहते है ?
उत्तर :
किसी पवित्र स्थल या पुण्य स्थान को तीर्थ कहते हैं। यहाँ पवित्र हृदय को तीर्थ कहा गया है।

प्रश्न 4.
भारत के लोग किसके अनुयायी है?
उत्तर :
भारत के लोग महात्मा गांधी के अनुयायी है।

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प्रश्न 5.
भाई-भाई आपस में क्या बाँटते है?
उत्तर :
भाई-भाई आपस में हर्ष और विषाद बाँटते हैं।

प्रश्न 6.
किसकी आराधना इसी भूमि पर संभव है ?
उत्तर :
राम, रहीम, बुद्ध और ईसा सबकी आराधना इसी भूमि पर संभव है।

प्रश्न 7.
भारत माता के मंदिर में किसके लिए कोई भी स्थान नहीं है ?
उत्तर :
भारतमाता के इस पावन मंदिर में शत्रुता और वैर भाव के लिए कोई भी स्थान नहीं है।

प्रश्न 8.
किसके द्वारा शत्रुओं को भी मित्र बनाया जा सकता है ?
उत्तर :
ब्दय की पवित्रता और प्रेम के द्वारा ही अपने शत्रुओं को भी मित्र बनाया जा सकता है।

प्रश्न 9.
गाँधीजी किस दम पर भारत को स्वतंत्र करा पाये ?
उत्तर :
गाँधीजी सत्य और अहिंसा के दम पर ही देश के स्वाधीनता आंदोलन को सफल बनाया और भारत स्वतंत्र हो पाया।

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प्रश्न 10.
हमें गाँधीजी के रूप में क्या मिला ?
उत्तर :
हमें गाँधीजी के रूप में सत्य का पुजारी मिला।

बोध मूलक प्रश्न :

प्रश्न 1.
‘भारत माता का मंदिर’ कविता के रचनाकार ने भारतीयों से क्या अपेक्षा की है?
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में कवि गुप्तजी ने भारतीयों से यहु अपेक्षा की है कि वे सभी धर्म, संप्रदाय का स्वागत करें। सभी का सम्मान करें। वैर-भाव को छोड़कर आपस में प्रेम तथा सद् भाव का व्यवहार करें। सबको अपना मित्र बनाकर आदर्श चरित्र का गठन करें। सभी अपने देश के लिए विजय की घोषणा करें। आपस में भाई-चारे को महत्त्व दें। सुख-दु:ख में सदा सबके साथ रहे। सबके साथ सहानुभूति दिखलाएँ।

प्रश्न 2.
भारत माता के मंदिर की क्या विशेषताएँ है?
उत्तर :
भारत माता के मंदिर में सबके साथ बराबरी का वर्ताव होता है। किसी को बड़ा या छोटा नहीं समझा जाता। सभी को भलाई तथा सभी को वरदान मिलता है। यहाँ जाति धर्म या संप्रदाय को लेकर भेद-भाव नहीं है। विभिन्न संस्कृतियों की विशेषताओं का यहाँ महत्व है। यहाँ परस्पर शत्रुता नहीं, प्रेम का वातावरण है। इस पावन मंदिर में अपने हृदय को पवित्र बनाने, सभी को अपना मित्र बनाने की प्रेरणा मिलती है। करोड़ों कठठों से यहाँ विजय की घोषणा होती है। यहाँ गाँधीजी के निर्देशों से स्वाधीनता को मुख्य कर्तव्य माना जाता है। इस पवित्र आँगन में भाई चारे की भावना हैं। सभी एक दूसरे के सुख-दुःख में सम्मिलित हो जाते हैं।

प्रश्न 3.
भिन्न-भिन्न भव संस्कृतियों के गुण गौरव का ज्ञान यहाँ के माध्यम से क्या संदेश देने की कोशिश की गई है?
उत्तर :
कवि ने यह संदेश दिया है कि अलग-अलग संस्कृतियों का यहाँ समन्वय हो। सांस्कृतिक समन्वय की गरिमा का, उसकी महत्ता का सर्वर्र प्रचार हो। हमें सारे भेद-भाव, जाति-धर्म, संम्पदाय की संकीर्ण भावना को त्यागकर भारतीय संस्कृति की गरिमा की रक्षा तथा प्रचार करना चाहिए। भारत एक ऐसा गौरवमय देश है जहाँ विभिन्न संस्कृतियों का समन्वय हुआ है। यही समन्वय की भावना भारतीय एकता का मूल मंत्र है।

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प्रश्न 4.
‘एक साथ मिल’ बाँट लो बैठ अपना हर्ष-विषाद यहाँ, का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत अवतरण में कवि ने स्पष्ट किया है कि हमें अपने सुख-दु:ख को मिलकर बाँट लेना चाहिए। व्यक्ति को केवल अपने ही सुख-दुःख की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। एक दूसरे के प्रति हमदर्दी होनी चाहिए। दूसरों के दर्द को दूर करने के लिए हर संभव प्रयत्न करना चाहिए। अपने सुख को बढ़ा कर सभी को सुखी बनाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। उसे स्वार्थी नहीं परमार्थी होना चाहिए। हर व्यक्ति को उदार विचार रखना चाहिए। यह समझना चाहिए कि सहानुभूति ही मनुष्य का सबसे बड़ा गुण हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
भारत माता का मंदिर कविता से हमें क्या प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर :
प्रस्तुत कविता से हमें एकता, समता तथा समन्वय की भावना की प्रेरणा मिलती है। जाति, धर्म तथा संप्रदाय के संकीर्ण भेदभाव को छोड़कर हमें समस्त मानव के साथ आदर, समान सम्मान तथा सभी के स्वागत का भाव रखना चाहिए। हमें राम-रहीम, बुद्ध-ईसा के आदर्शों का समान रूप से स्मरण-ध्यान करना चाहिए। भारत एक ऐसा महान देश है जहाँ भिन्न-भिन्न संस्कृतियों का समन्वय हुआ है। उसकी गरिमा को बनाए रखना है। शत्रुता, आपसी नफरत को छोड़कर परस्पर प्रेम, सौहाद्र तथा भाई-चारा की भावना को प्रश्रय देना चाहिए। सभी के कल्याण तथा प्रगति की बात को महत्व देना चाहिए। हुदय की पवित्रता में ही समस्त तीर्थों की पवित्रता निहित है। हमें सभी को मित्र बनाकर अज्ञात शत्रु बनना है। संसार के सभी महानीय आदर्शों को लेकर हमें एक चरित्र का गठन करना है। भारतवर्ष के कोटि-कोटि निवासियों के केठों से सदा विजय घोष की दर्शन का उच्चारण होना चाहिए।

हमारे देश को भारतवासियों का सौभाग्य है कि हमें सत्य-अहिंसा के महान पुजारी, मानवता के शुभ चिन्तक के रूप में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी मिल गए। इन्होंने न्याय विवेक संद्धर्भ से लक्ष्य को प्राप्त करने में पूर्ण सफलता प्राप्त कर ली। गाँधी जी समस्त अनुयायियों को मुक्ति के लिए हर संभव कर्त्तव्य का निर्वाह किया। अत: भारत माता के पवित्र प्रांगण मैं सभी भेद-भाव को त्याग कर परस्सर भाई-चारे के बंधन में बंध जाना चाहिए। अपनी प्रसन्रता तथा पीड़ा, हर्ष तथा विषाद आपस में मिलकर उसे भोगना चाहिए। सभी के सुख-दु:ख सम्मिलित होने के लिए कवि ने प्रेरित किया है।

भाषा बोध :

1. निम्नलिखित समानोच्चरित शब्दों के अन्तर बताइए :

  • प्रासाद – महल बहुत बड़ा मकान।
  • प्रसाद – प्रसन्नता, देवता को चढ़ाई जानेवाली वस्तु।
  • बाट – रास्ता, बटखरा।
  • बाँट – बाँटना, वितरण करना।
  • बेर – एक प्रकार का फल, बदरी।
  • बैर – शत्रुता, विरोधी।
  • मुक्त – बंधन रहित।
  • मुक्ति – छुटकारा, स्वतंत्रता
  • भव – संसार
  • भाव – विचार, अभिप्राय।

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2. विशेषण बनाइए – इक, इत, ई प्रत्यय जोड़कर

  • धर्म – धार्मिक।
  • संप्रदाय – सांप्रदायिक।
  • हर्ष – हर्षित।
  • प्रेम – प्रेमी।
  • उन्माद – उन्मादी।
  • अर्थ – आर्थिक
  • विकास – विकसित
  • जापान – जापानी

WBBSE Class 8 Hindi भारतमाता का मंदिर Summary

कवि परिचय :

गुप्तजी का जन्म सन् 1886 ई. उत्तर प्रदेश में झाँसी जनपद के चिरगाँव में एक प्रतिष्ठित अग्रवाल परिवार में हुआ था। इनके पिता सेठ रामचरण निष्ठावान राम भक्त तथा कवि थे। राम भक्ति तथा कवित्व शक्ति इन्हे पैतृक संपत्ति के रूप में प्राप्त हुई। गुप्तजी ने संस्कृत, हिन्दी, बंगला का गहन अध्ययन किया। इनके काव्य गुरु आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी थे। गुप्त जी अनेक वर्ष तक राज्य सभा के सदस्य रहे । आगरा विश्व विद्यालय ने इन्हें डी० लिद्० की उपाधि से सुशोभित किया।

भारत सरकार ने ‘पद्म भूषण’ अलंकार से सम्मानित किया। सन्1964 ई. को इनका देहावसान हो गया। गुप्तजी की प्रमुख रचनाएँ साकेत, यशोधरा, द्वापर, जयभारत, सिद्धराज, पंचवटी, जयद्रथ वध आदि है। झंकार इनके गीतों का संग्रह है। गुप्त जी की रचनाओं में प्राचीन भारतीय संस्कृति तथा गौरव की झाँकी मिलती है। ‘साकेंत’ महाकाव्य पर इन्हें मंगला प्रसाद’ पारितोषिक मिल चुका है। ‘भारत भारती’ रचना में राष्ट्र के अतीत वर्त्तमान तथा भविष्य पर ओजस्वी विचार प्रस्तुत है।

1. भारत माता का मन्दिर यह समता का संवाद जहाँ,
सबका शिव कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ।
जाति धर्म या सम्रदाय का नहीं भेद व्यवधान यहाँ,
सबका स्वागत, सबका आदर, सबका सम सम्मान यहाँ।
राम-रहीम, बुद्ध-ईसा का सुलभ एक-सा ध्यान यहाँ,
भिन्न-भिन्न भव संस्कृतियों कें गुण गौरव का ज्ञान यहाँ।

शब्दार्थ :

  • प्रसाद = आशीर्वाद ।
  • कल्याण = भलाई, शुभ, मंगलम्रद।
  • समता = बराबरी।
  • व्यवधान = अड़चन ।
  • संवाद = बातचीत।
  • सम = बराबर।
  • शिव = मंगलकारी।
  • सुलभ = सहज प्राप्त।
  • भिन्न-भिन्न = अलग-अलग।
  • भव = संसार।
  • ‘गुण = निपुणता, प्रशंसनीय।
  • गौरव = बड़प्पन, आदर।

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प्रसंग : प्रस्तुत्त अवतरण में कवि श्री गुप्तजी ने भारतवर्ष की सांस्कृतिक एकता व सभी धर्मों में समन्वय की भावना को स्पष्ट किया है।

व्याख्या – भारत माता के मंदिर की विशेषताओं का वर्णन करते हुए कवि ने स्पष्ट किया है कि इस मंदिर में हर प्रकार के भेद-भाव को छोड़कर बराबरी की ही बातचीत तथा व्यवहार होता है। यहाँ किसी प्रकार की संकीर्णता नहीं, सभी के मंगल तथा शुभ भलाई का ही यहाँ स्थान है। यहाँ बिना भेद-भाव के सभी को उनके मंगल के लिए आशीर्वाद मिलता है।

यहाँ जाति, धर्म, संप्रदाय को लेकर किसी प्रकार का भेदभाव या अड़चन नहीं है। चाहे किसी भी जाति का हो, अथवा किसी धर्म, मत का अनुयायी हो, यहाँ सभी को समान सम्मान प्राप्त है। सभी का यहाँ स्वागत होता है। सभी का आदर सम्मान होता है। सभी को एक समान समझकर सम्मान दिया जाता है। यहाँ धर्म को लेकर भेद भाव नहीं है। सभी धर्म के आराध्य यहाँ सभी के द्वारा सम्मानित होते हैं। ‘यहाँ राम-रहीम, गौतम बुद्ध, ईसामसीह सभी का एक समान सर्वत्र ध्यान, आराधना सहज सुलभ है। धर्म के मामलें में कोई विरोध या रोक टोक नहीं। एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के आराध्य का सम्मान करते हैं। संसार की भिन्न-भिन्न संस्कृतियों की विशेषताओं को यहाँ गौरव मिलता है। सभी का आदर किया जाता है।

2. नहीं चाहिए बुद्धि वैर की, भला प्रेम उन्माद यहाँ,
सबका शिव कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ।
सब तीर्थों का एक तीर्थ यह हुदय पवित्र बना लें हम,
आओ यहाँ अजात शत्रु बन, सबको मित्र बना लें हम।
रेखाएँ प्रस्तुत हैं अपने मन के चित्र बना लें हम,
सौ-सौ आदर्शों को लेकर, एक चरित्र बना लें हम।

शब्दार्थ :

  • वैर = शत्रुता।
  • आदर्श = अनुकरणीय, श्रेष्ठ।
  • उन्माद = विक्षिप्तता, उन्मत्तता।
  • अजात शत्रु = जिसका कोई शत्रु न हो।

व्याख्या : भारत माता के इस पावन मंदिर में किसी के प्रति किसी के मन में शत्रुता या विरोध का विचार पैदा ही नहीं होता। यहाँ सभी एक दूसरे के प्रति प्रेम तथा सद्भावना में उन्मत्त बने रहते हैं। यह सभी की भलाई, सभी के हित तथा उत्थान का स्थान है। सभी को यहाँ मंगलमय आशीर्वाद मिलता है।

यहाँ सभी तीर्थों का तीर्थ है। सभी को यहाँ अपना हुदय पवित्र बना लेना है। हृदय की कलुषता दूर कर लेना है। हम लोग यहाँ सभी को अपना मित्र बनाकर अजात शत्रु बन जाएँ। धरती पर कोई भी हमारा शत्रु न रहे। अपने व्यवहार से हम सभी को अपना बना लें। आज हमारे सामने सच्चे उदार आदर्श हैं, रेखाएँ हैं, उनसे हमें अपने मन का चित्र बना लेना चाहिए। सैकड़ों श्रेष्ठ आदर्शों को लेकर हमें अपना श्रेष्ठ अनुकरणीय आदर्श चरित्र बना लेना चाहिए।

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3. कोटि-कोटि कंठों से मिलकर उठे एक जयनाद यहाँ,
सबका शिव कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ।
मिला सत्य का हमें पुजारी, सफल काम उस न्यायी का
मुक्ति-लाभ कर्त्तव्य यहाँ है, एक-एक अनुयायी का,
बैठो माता के आंगन में, नाता, भाई-भाई का,
एक साथ मिल बैठ बाँट लो, अपना हर्ष-विषाद यहाँ।

शब्दार्थ :

  • कोटि-कोटि = करोड़ो।
  • जयनाद = विजय की घोषणा।
  • मुक्तिलाभ = स्वतंत्रता प्राप्ति ।
  • हर्ष = प्रसन्नता, खुशी।
  • नाता = संबंध।
  • विषाद = दु:ख।.
  • अनुयायी = अनुसरण करनेवाला।

व्याख्या : स्वदेश भारतवर्ष के करोड़ों नर-नारियों के कंठ से विजय की घोषणा उठती रहे। विजय के मार्ग पर लोग बढ़ते रहें। यहाँ सभी की प्रगति हो सभी का जीवन सफल एवं प्रसन्न बने, सभी को यहाँ वरदान प्राप्त हो।

हमारे देश के समस्त लोगों को सत्य-अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी मिल गए हैं। वे सदा सच्चे न्याय के रास्ते पर अडिग बने रहे। उन्होंने अपने जीवन में भारत को मुक्ति का लाभ दिया। उनकें सत्पयास से भारत को स्वतंत्रा मिली। भारत के लोग उनके सच्चे अनुयायी हैं। हर अनुयायी का यह कर्त्तव्य है कि इस मुक्ति का सही उपयोग करे।

कवि ने हमें यह प्रेरणा दी है कि भारत माता के इस पावन मंदिर में बैठकर हम परस्मर भाई-चारे को जीवन में सच्चे अर्थो में स्वीकार करें, एक दूसरे को बन्धु समझे। एक साथ बैठकर सभी यहाँ एक दूसरे की खुशी तथा दुःख में सम्मिलित हों। सभी के साथ सहानुभूति की भावना रखें।

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