WBBSE Class 8 Hindi Solutions Chapter 1 श्रम की प्रतिष्ठा

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WBBSE Class 8 Hindi Solutions Chapter 1 Question Answer – श्रम की प्रतिष्ठा

वस्तुनिष्ठ प्रश्न :

प्रश्न 1.
‘श्रम की प्रतिष्ठा’ किस विधा की रचना है?
(क) कहानी
(ख) कविता
(ग) निबंध
(घ) एकांकी
उत्तर :
(ग) निबंध

प्रश्न 2.
‘श्रम की प्रतिष्ठा’ के लेखक का नाम है-
(क) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(ख) जयशंकर प्रसाद
(ग) आचार्य विनोबा भावे
(घ) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
उत्तर :
(ग) आचार्य विनोबा भावे

प्रश्न 3.
जो शखस पसीने से रोटी कमाता है वह हो जाता है-
(क) वीर पुरुष
(ख) धर्म पुरुष
(ग) कायर पुरुष
(घ) महापुरुष
उत्तर :
(ख) धर्म पुरुष

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प्रश्न 4.
आज समाज में किसकी प्रतिष्ठा है?
(क) श्रम की
(ख) मन की
(ग) तन की
(घ) धन की
उत्तर :
(घ) धन की।

प्रश्न 5.
किसने कहा कि वे आदरणीय तो है पर नालायक नहीं ?
(क) भगवान ने
(ख) ज्ञानी ने
(ग) कर्मयोगी ने
(घ) मजदूर ने
उत्तर :
(क) भगवान ने

प्रश्न 6.
लाचारी से काम करने वाले क्या नहीं हो सकते हैं ?
(क) धर्मयोगी
(ख) कर्मयोगी
(ग) प्रतिष्ठित
(घ) सम्मानित
उत्तर :
(ख) कर्मयोगी

प्रश्न 7.
श्रम करने वाले को कैसा वेतन मिलता है ?
(क) ज्यादा
(ख) कम से कम
(ग) आधा
(घ) एक चौथाई
उत्तर :
(ख) कम

प्रश्न 8.
कौन समय निकाल कर सूत काट लेते थे ?
(क) मजदुर
(ख) महात्मा गाँधी
(ग) लेखक
(ङ) कर्मयोगी
उत्तर :
(ख) महात्मा गाँधी

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प्रश्न 9.
पहले कौन धोती तथा खाने का अधिकारी था ?
(क) मजदूर
(ख) लेखक
(ग) ब्राह्मण
(घ) मेहतर
उत्तर :
(ग) बाह्मण

प्रश्न 10.
लेखक ने क्या प्रेरणा दी है ?
(क) श्रम करने का
(ख) विद्या का
(ग) पढ़ने का
(घ) सम्मान करने का
उत्तर :
(क) श्रम करने का

प्रश्न 11.
‘श्रम की प्रतिष्ठा’ किसने लिखा है ?
(क) आचार्य रामचंद्र शुक्ल
(ख) जयशंकर प्रसाद
(ग) आचार्य विनोबा भावे
(घ) आचार्य हजारी प्रसाद द्विकेदी
उत्तर :
(ग) आचार्य विनोबा भावे

प्रश्न 12.
विनोबा भावे ने शेषनाग किसे माना है ?
(क) ज्ञानी को
(ख) गुरू को
(ग) श्रमिक को
(घ) वैद्य को
उत्तर :
(ग) श्रमिक को

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प्रश्न 13.
थका-मादा शरीर क्या चाहता है ?
(क) दौड़-भाग
(ख) आराम
(ग) कोलाहल
(घ) अशांति
उत्तर :
(ख) आराम

प्रश्न 14.
कैसे लोगों को जीवन में ज्यादा पाप दिखता है ?
(क) फुरसती
(ख) मेहनती
(ग) कायर
(घ) श्रमिक
उत्तर :
(क) फुरसती

प्रश्न 15.
आंज समाज में किसकी प्रतिष्ठा नहीं है ?
(क) श्रम की
(ख) मन की
(ग) तन की
(घ) धन की
उत्तर :
(क) श्रम की

प्रश्न 16.
दिमागी काम के मुकाबले आज श्रम का मूल्य आंका जाता है।
(क) कम
(ख) अधिक
(ग) बराबर
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(क) कम

लघुउत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
आचार्य विनोबा भावे का वास्तविक नाम क्या था?
उत्तर :
आचार्य विनोबा भावे का वास्तविक नाम विनायक राव भावे था।

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प्रश्न 2.
पृथ्वी का भार किसके मस्तक पर स्थित है?
उत्तर :
पृथ्वी का भार शेषनाग के मस्तक पर स्थित है।

प्रश्न 3.
किसने मजदूरों का कर्मयोगी कहा है?
उत्तर :
भगवान ने मजदूरों को कर्मयोगी कहा है।

प्रश्न 4.
कौन-सा शख्स धर्म-पुरुष हो जाता है?
उत्तर :
जो शखस पसीने से रोटी कमाता है वह धर्म पुरुष हो जाता है।

प्रश्न 5.
अपने समाज में किसकी प्रतिष्ठा नहीं है?
उत्तर :
अपने. समाज में श्रम की प्रतिष्ठा नहीं है।

प्रश्न 6.
लेखक के अनुसार पृथ्वी किसके मस्तक पर स्थित है –
उत्तर :
पृथ्वी शेषनाग के मस्तक पर स्थित है।

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प्रश्न 7.
कौन कर्मयोगी नहीं हो सकता है ?
उत्तर :
जो श्रम से बचना चाहता है वह कर्मयोगी नहीं हो सकता है।

प्रश्न 8.
देहाती लोग अपने बच्चे को क्यों पढ़ाते हैं ?
उत्तर :
देहाती लोग अपने बच्चे को धार्मिक, विचारशील बनाने के लिए नहीं पढ़ाते, बल्कि चाहते हैं कि लड़के को नौकरी मिले।

प्रश्न 9.
लेखक ने किसका उदाहरण देकर श्रम के महत्व को स्थापित किया है ?
उत्तर :
लेखक ने रामायण में सीताजी तथा महाभारत में से भगवान श्रीकृष्ण का उदाहरण देकर श्रम के महत्व को स्थापित किया है।

प्रश्न 10.
लेखक के अनुसार किस वर्ग के कारण बेकारी बढ़ेगी ?
उत्तर :
ज्ञानी, योगी, बूढ़े, व्यापारी, वकील, अध्यापक, विद्यार्थी को काम नहीं करना चाहिए। इतने बेकार वर्ग के कारण बेकारी बढ़ेगी।

प्रश्न 11.
किस कारण से समाज में श्रम की प्रतिष्ठा नहीं हैं ?
उत्तर :
जो काम टालते हैं, काम नहीं करते उनका जीवन धार्मिक नहीं होता। इस कारण अपने समाज में श्रम की प्रतिष्ठा नहीं है।

प्रश्न 12.
कैसे श्रम करने वालों को लोग नीच समझते हैं ?
उत्तर :
शरीर से श्रम करने वाले को लोग नीच समझते हैं।

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प्रश्न 13.
जीवन कैसे पापी बनता है ?
उत्तर :
बिना काम किए खाने से जीवन पापी बनता है।

प्रश्न 14.
सभी श्रम की प्रतिष्ठा कब होगी ?
उत्तर :
कामों का मूल्य समान होना चाहिए। जब यह होगा तब श्रम की प्रतिष्ठा होगी।

प्रश्न 15.
किसका मुल्य ज्यादा कम रखना ठीक नहीं है ?
उत्तर :
दिमागी काम और श्रम का मुल्य ज्यादा कम रखना ठीक नहीं है।

बोधमूलक प्रश्न :

प्रश्न 1.
धर्म पुरुष किसे कहा जाता है?
उत्तर :
कुछ मजदूर दिन भर मजदूरी करते हैं और पसीने से रोटी कमाते हैं। जो पसीने से रोटी कमाता है वह व्यक्ति धर्म पुरुष कहा जाता है।

प्रश्न 2.
कौन से लोग हैं जो खा सकते हैं और आशीर्वाद दे सकते हैं, काम नहीं करते?
उत्तर :
ज्ञानी अर्थात् विद्वान लोग खा सकते हैं और आशीर्वाद दे सकते हैं, पर काम नहीं करते।

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प्रश्न 3.
‘श्रम की प्रतिष्ठा’ निबेंध का सारांश लीखिए।
उत्तर :
इस प्रश्न का उत्तर पाठ का सरांश में देखिए।

प्रश्न 4.
‘श्रम की प्रतिष्ठा’ पाठ से क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर :
इस पाठ से लेखक ने प्रत्येक व्यक्ति को कुछ न कुछ काम करने की प्रेरणा दी है। हमारे देश में सम्पन्न व बौद्धिक लोग श्रम से बचते हैं। शारीरिक श्रम करनेवालों को निम्न श्रेणी का मानते हैं और हेय दृष्टि से देखते हैं। परंतु श्रम करने वाला व्यक्ति श्रेष्ठ होता है। श्रम करने वालों के जीवन में पाप नहीं होता। दिमागी काम का और श्रम का मूल्य कम ज्यादा रखना ठीक नहीं है। हर व्यक्ति को थोड़ा-थोड़ा शारीरिक श्रम करना चाहिए। इससे सभी की इज्जत और प्रतिष्ठा बढ़ेगी। हर काम का मूल्य समान होने से ही श्रम की प्रतिष्ठा बढ़ेगी।

प्रश्न 5.
‘लेकिन सिर्फ कर्म करने से कोई कर्मयोगी नहीं होता।’ इसके रचनाकार का नाम बताते हुए पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति के रचनकार आचार्य विनोबा भावे हैं। केवल काम करने से कोई कर्मयोगी नहीं होता। विवशता से जो कर्म करता है, कर्म को वो पूजा नहीं समझता, वह कर्मयोगी नहीं है।

व्याख्या मूलक प्रश्न :

प्रश्न :
‘श्रम की प्रतिष्ठा’ निबंध का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत निबंध के लेखके ने परिश्रम के महत्व को स्पष्ट किया है। प्रत्येक व्यक्ति को कुछ न.कुछ परिश्रम करने की प्रेरणा दी है। हमारे देश मे सम्पन्न व बौद्धिक लोग श्रम से बचते हैं। शारीरिक परिश्रम करने वालों को हेय दृष्ट से देखा जाता है। लेखक श्रम करने वालों का महत्व (श्रेष्ठ) समझता है। श्रमिकों को शेष नाग सिद्ध करते हुए उन्हें ही आधुनिक जगत की प्रगति और जीवन का आधार माना है। श्रम करने वालों के जीवन में पाप नहीं होता, रामायण में सीताजी तथा महाभारत से श्री कृष्ण का उदाहरण देकर श्रम की महत्ता को स्थापित किया है। दिमागी काम करने वालों तथा शारीरिक परिश्रम करने वलों का वेतन समान होना चाहिए। हर काम का मूल्य समान होने से ही श्रम की प्रतिष्ठा होगी। हर व्यक्ति को थोड़ा-थोड़ा परिश्रम करना ही चाहिए इससे सभी की इज्जत और प्रतिष्ठा बढ़ेगी। इस प्रकार श्रम की महत्ता को लेखक ने स्पष्ट किया है।

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प्रश्न :
पाठ में वर्णित महाभारत की कथा का उल्लेख कीजिए। उससे हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर :
पाण्डवों में सबसे बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर थे। वे सत्यवादी तथा धर्मपुरुष शे। महाभारत युद्ध में विजय के बाद धर्मराज युधिष्ठिर हस्तिनापुर के सम्राट बने। उन्होंने राजसूय यज्ञ किया। उस यज्ञ में भारत के सभी राजे-महाराजे उपस्थित हुए। कृष्ण भी वहाँ गए थे। कृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से उस समारोह के अपने लिए कुछ काम करने के लिए प्रस्ताव रखा। धर्मराज ने कहा कि आपको हम क्या काम दे। आप तो हमारे लिए पुज्य है। आदरणीय है। इसलिए आपके लायक हमारे पास कोई काम नहीं है।

भगवान कृष्ण ने कहा – हम आदरणीय तो हैं लेकिन नालायक या अकर्मण्य नहीं है। हम काम कर सकते हैं। धर्मराज ने कहा कि आप ही अपना काम ढूँढ़ लीजिए। भगवान ने अपने करने के लिए जूठी पत्तले उठाने और पोंछा लगाने का काम लिया। इस प्रकार द्वारिकाधीश, सभी राजा, महाराजाओं से सम्मानित भगवान कृष्ण ने यह काम स्वीकार कर सभी कोयह शिक्षा दी है कि किसी भी काम को तुच्छ नहीं समझना चाहिए। छोट़ा काम करने से कोई भी महान पुरुष छोटा नहीं हो जाता, बल्कि उसकी महत्ता बढ़ जाती है। जूठी पत्तलें उठाने और पोंछा लगाने से भगवान का महत्व घटा नहीं, बल्कि जन मानस में उनका स्थान और भी महान आदरणीय बन गया।

भाषा बोध

1. निम्नलिखित शब्दों का वाक्य में प्रयोग कर लिंग निर्णय करें-

  • पृथ्वी – यह पृथ्वी धन-धान्य से भरी है- स्त्रीलिंग।
  • कर्मयोगी – कर्मयोगी काम को पूजा समझता है- पुलिंग।
  • तालीम – हर लड़के को अच्छी तालीम मिलनी चाहिए- स्ब्रीलिंग
  • प्रतिष्ठा – अच्छे आचरण से प्रतिष्ठा मिलती है- स्व्रीलिंग।
  • मजदूर – मजदूर दिन भर परिश्रम करता है-पुलिंग।
  • इज्जत – अच्छे काम से इज्जत बढ़ती है- स्त्रीलिंग।
  • व्यवस्था – हमारे यहाँ खान-पान की अच्छी व्यवस्था है- स्र्रीलिंग।

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2. निम्नलिखित वाक्यांशों में आए कारक विभक्तियों का नाम लिखिए-

(क) रामायण में भी कहानी है।
(ख) सीता का जाना कैसे होगा।
(ग) धर्मराज ने राजसूय यज्ञ किया।
(घ) बूढ़ों को काम से मुक्त रहना ही चाहिए।
उत्तर :
(क) रामायण में – अधिकरण कारक।
(ख) सीता का – सम्बन्ध कारक।
(ग) धर्मराज ने – कर्त्ताकारक, राजसूय यज्ञ – कर्म कारक।
(घ) बूढ़ों को – कर्म कारक। काम से – अपादान कारक

3. निम्नलिखित शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए –

पृथ्वी – आकाश
पाप – पुण्य
नालायक – लायक
जीवन – मरण, मृत्यु
उपकारी – अपकारी
उचित – अनुचिन
नीच – ऊँच

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4. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए –

पृथ्वी – धरती, धरा, भूमिं।
भगवान – परमात्मा, प्रभु, जगदीश।
रात – रात्रि, निशा, रजनी।
शरीर – देह, तन, काया।
लज्जा – लाज, शर्म, हया।

WBBSE Class 8 Hindi श्रम की प्रतिष्ठा Summary

लेखक-परिचय :

आचार्य विनोबा भावे का जन्म सन् 1895 ई. में महाराष्ट्र के गगोदा गाँव में हुआ था। वे बचपन से ही प्रतिभाशाली थे। उन्होंने विद्यार्थी जीवन में गणित तथा संस्कृत का गहन अध्ययन किया। महात्मा गांधी के प्रभाव से वे लंबे समय तक साबरमती आश्रम में उनके संपर्क में रहे। उन्होंने सत्य और अहिंसा के सिद्धांत को अपना मूल आधार बनाया। सर्वोदय उनका मूल दर्शन था। वे भूदान, ग्रामदान, तथा संपत्तिदान के द्वारा क्रांति लाने के लिए प्रयत्नशील रहें। भारतीय दर्शन में उनकी गहरी आस्था थी। हिन्दी को उन्होंने राष्ट्रभाषा के रूप में उपयुक्त माना। उनकी प्रमुख रचनाएँ- गीता प्रवचन, विनोबा के विचार, शांतियात्रा, भूदान यज्ञ, जमाने की माँगे, सर्वोदय यात्रा, साहित्यिकों से, जीवन और शिक्षण आदि हैं। आचार्य विनोबा भावे का वास्तविक नाम विनायक राव भावे था।

सारांश :

प्रस्तुत निबंध में विनोबा जी ने श्रमिक को शेषनाग सिद्ध करते हुए उनके महत्व को स्पष्ट किया है। पृथ्वी शेषनाग के मस्तक पर स्थित है। अगर शेषनाग का आधार टूट जाए तो पृथ्वी स्थिर नहीं रह सकेगी। यह टुकड़े-टुकड़े में हो जाएगी। दिन भर परिश्रम करनेवाले मजदूर ही शेषनाग है। सबका आधार मजदूरों पर ही है। भगवान ने मजदूरों को कर्मयोगी कहा है। लेकिन सिर्फ कर्म करने से कोई कर्म योगी नहीं होता। हमारे देश में कुछ मजदूर खेतों में, कुछ रेलवे में, कुछ कारखानों में काम करते हैं। दिन भर मजदूरी कर अपने पसीने से रोटी कमाने वाला शख्स धर्म पुरुष हो जाता है। यह दिन भर काम करता है, इसलिए पाप कर्म करने के लिए उसे समय ही नहीं मिलता। रात को गहरी नींद में सो जाता है। जिस जीवन में पाप की गुंजाइश नहीं हो उसे धार्मिक जीवन होना चाहिए।

केवल श्रमं करने से कोई कर्मयोगी नहीं हो सकता। जो श्रम से बचना चाहता है वह कर्मयोगी नहीं हो सकता। जिनके पास खाली समय रहता है, वहाँ शैतान का काम शुरू होता है। जो लोग कर्म को पूजा नहीं समझते, लाचारी से कर्म करते हैं, यदि कर्म से मुक्ति मिले तो राजी हो जाएँगे। यह सच्चे कर्मयोगी की हालत नहीं है। देहाती लोग अपने बच्चे को धार्मिक, विचारशील बनाने के लिए नहीं पढ़ाते, बल्कि चाहते हैं कि लड़के को नौकरी मिले। उसे मजदूरों की तरह खटना न पड़े। दिमागी काम करने वाले मजदूरों को नीच समझते हैं। वे थोड़ी मजदूरी देकर ज्यादा काम कराना चाहते हैं। मजदूर भी काम से नफरत करते हैं, उन्हें काम सम्मान जनक नहीं लगता।

लेखक ने रामायण में सीता जी तथा महाभारत में से भगवान श्रीकृष्ण का उदाहरण देकर श्रम के महत्व का स्थापित किया है। राम के वन गमन के समय सीताजी भी उनके साथ जाने के लिए तत्पर हो उठी। कौशल्या ने कहा कि सीताजी को मैने दीप की बाती भी जलाने नहीं दी। यहाँ काम की प्रतिष्ठा नहीं मानी गई। इसमें सच्चाई है कि ससुर के घर लड़की को बेटी के समान माना गया। पर मेहनत को हीन माना गया। धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में श्री कृष्ण ने अपने करने के लिए कोई काम माँगा। धर्मराज ने उन्हे पूज्य तथा आदरणीय समझकर उन्हें कोई काम देना उचित न समझा। भगवान ने कहा कि वे आदरणीय तो है पर नालायक नहीं। अन्त में भगवान ने स्वयं अपने लिए जूठी पत्तले उठाने और पोंछा लगाने का काम किया। इस कथा में श्रम की महत्ता दिखाई पड़ती है।

ज्ञानी खा सकते हैं और आशीर्वाद दे सकते हैं, पर काम नहीं कर सकते। ज्ञानी, योगी बूढ़े, व्यापारी, वकील, अध्यापक, विद्यार्थी को काम नहीं करना चाहिए। इतने बेकार वर्ग के कारण बेकारी बढ़ेगी। ऐसी समाज रचना में मजदूर भी काम से छुट्टी चाहता है। लाचारी से काम करने वाले कर्मयोगी नहीं हो सकते। जो काम टालते हैं, काम नहीं करते उनका जीवन धार्मिक नहीं होता। इस कारण अपने समाज में श्रम की प्रतिष्ठा नहीं है। दिमागी काम करने वालों को अधिक तथा श्रम करने वालों को कम से कम वेतन मिलता है। इसलिए दिमगी काम करने वालों का महत्व बढ़ गया है। महात्मा गांधी समय निकाल कर सूत कात लेते थे। अतः काम की इज्जत करनी चाहिए। कर्म सभी को करना चाहिए।

दिमागी काम और श्रम का मूल्य कम ज्यादा रखना ठीक नहीं है। पहले ब्राह्मण ज्ञानी होता था। वह केवल धोती तथा खाने का अधिकारी था। आजकल पढ़ाने वाले मूल्य माँगते हैं। विद्या बेचने लगे हैं। कर्मयोग की महिमा, श्रम की प्रतिष्ठा कायम करनी है तो कीमत में अन्तर नहीं होना चाहिए। शरीर-श्रम करने वाले को लोग नीच समझते हैं। उन्हें प्रतिष्ठा, सम्मान नहीं मिलता। मेहतर जो महत्तर है उसे हम नीच मानते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हर व्यक्ति थोड़ा श्रम करें। बिना काम किए खाने से जीवन पापी बनता है। दूसरी चीज यह है कि कामों का मूल्य समान होना चाहिए। जब यह होगा सब श्रम की प्रतिष्ठा होगी। इस प्रकार लेखक ने प्रत्येक व्यक्ति को कुछ न कुछ श्रम करते रहने की प्रेरणा दी है।

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शब्दार्थ :

  • पृथ्वी = धरती।
  • तालीम = शिक्षा।
  • आधार = अवलंब, सहारा।
  • दिमागी = बौद्धिक।
  • श्रम = मेहनत।
  • वृत्ति = आदत।
  • प्रतिष्ठा = सम्मान।
  • नालायक = अयोग्य।
  • मस्तक = माथा।
  • अपरिग्रही = धन संग्रह न करने वाला।
  • जर्रा-जर्रा = नष्ट भ्रष्ट ।
  • मेहतर = सफाई कर्मी ।
  • कर्मयोगीं= कर्म में विश्वास करने वाला।
  • लचारी = मजबूरी।
  • शख्स = व्यक्ति ।
  • गौरव = सम्मान, गर्व।
  • गुंजाइस = संभावना।
  • निष्ठुरता = कठोरता, निर्दयता।
  • व्यसन = लत, दुर्गुण।
  • व्यवस्था = इंतजाम।
  • फाजिल = खाली, फजूल।
  • उपकारी = भलाई करने वाला।
  • पैदावार = उपज।
  • मुक्त = स्वतंत्र।
  • फुरसती = खाली।
  • फर्क = अन्तर।
  • महत्तर = किसी से बड़ा या अच्छा।
  • देहाती = गँवार।

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