WBBSE Class 8 Hindi Solutions Poem 1 सूर के पद

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WBBSE Class 8 Hindi Solutions Poem 1 Question Answer – सूर के पद

वस्तुनिष्ठ प्रश्न :

प्रश्न 1.
अनाथ होकर कवि कहाँ बैठे है ?
(क) पेड़ की डाल पर
(ख) छत पर
(ग) सड़क पर
(घ) नाव में
उत्तर :
(क) पेड़ की डाल पर।

प्रश्न 2.
कवि प्रसन्न होकर किसका जय-जयकार करता है ?
(क) बहेलिया का
(ख) सर्प का
(ग) ईश्वर का
(घ) पक्षी का
उत्तर :
(ग) ईश्वर का।

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प्रश्न 3.
‘सुमिरत’ से क्या संकेत मिलता है?
(क) दर्शन करना
(ख) ईश्वर का नाम लेना
(ग) तीर्थ करना
(घ) पूजा करना
उत्तर :
(ख) ईश्वर का नाम लेना।

प्रश्न 4.
सर्प को दूध पिलाने का त्योहार किस दिन मनाया जाता है?
(क) होली में
(ख) दीपावली में
(ग) गणेश चतुर्थी के दिन
(घ) नाग पंचमी के दिन
उत्तर :
(घ) नाग पंचमी के दिन।

प्रश्न 5.
सूर्य के डूबते ही कमल की पंखुड़ियाँ क्या हो जाती हैं?
(क) फैंल जाती हैं
(ख) सिकुड़ जाती है
(ग) गिर जाती है
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर :
(ख) सिकुड़ जाती हैं।

प्रश्न 6.
सूरदास का जन्म कब हुआ था ?
(क) सन् 1478 में
(ख) सन् 1479 में
(ग) सन् 1578 में
(घ) सन् 1579 में
उत्तर :
(क) सन् 1478 में ।

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प्रश्न 7.
सूरदास का जन्म किस गाँव में हुआ था ?
(क) तरौनी
(ख) रूनकता
(ग) ब्रज
(घ) गोकुल
उत्तर :
(ख) रूनकता ।

प्रश्न 8.
सूरदास के गुरू कौन थे ?
(क) रामानंद
(ख) कबीर
(ग) बल्लभाचार्य
(घ) विट्ठलदास
उत्तर :
(ग) बल्लभाचार्य ।

प्रश्न 9.
सूर किसके भक्त थे ?
(क) कृष्ण
(ख) कंस
(ग) नंद
(घ) यशोदा
उत्तर :
(क) कृष्ण ।

प्रश्न 10.
सूरदास की मृत्यु कहाँ हुई थी ?
(क) मिथिला में
(ख) गोवर्द्धन के निकट परसौली गांव में
(ग) बज में
(घ) काशी में
उत्तर :
(ख) गोवर्द्धन के निकट परसौली गांव में ।

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प्रश्न 11.
सूरदास की मृत्यु कब हुई ?
(क) सन् 1563 में
(ख) सन् 1663 में
(ग) सन् 1763 में
(घ) सन् 1863 में
उत्तर :
(क) सन् 1563।

प्रश्न 12.
खल शब्द का अर्थ है –
(क) विवेकवान
(ख) दयालु
(ग) दुष्ट
(घ) सज्जन
उत्तर :
(ग) दुष्ट

प्रश्न 13.
असहाय पक्षी किसका नाम जप करने लगा ?
(क) सुरदास का
(ख) ईश्वर का
(ग) बहेलिया का
(घ) बाज का
उत्तर :
(ख) ईश्वर का

प्रश्न 14.
किसके कृपा से बहेलिया तथा बाज दोनों खत्म हो गए ?
(क) कवि के
(ख) माता यशोदा के
(ग) प्रभु के
(घ) जसुदा के
उत्तर :
(ग)’प्रभु के

प्रश्न 15.
किसे पवित्र गंगा जल में स्नान कराने से कोई लाभ नहीं होता –
(क) कुत्ते को
(ख) बहेलिया को
(ग) कवि को
(घ) बाज को
उत्तर :
(क) कुत्ते को

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प्रश्न 16.
कठोर पत्थर पर किसका कोई असर नहीं पड़ता ?
(क) जल का
(ख) विमुख लोगों का
(ग) वाण का
(घ) कवि का
उत्तर :
(ग) वाण का

प्रश्न 17.
माता यशोदा किसे सुला रही है ?
(क) दाऊ को
(ख) कृष्ण को
(ग) सुदामा को
(घ) कवि को
उत्तर :
(ख) कृष्ण को

प्रश्न 18.
अरून शब्द का अर्थ है –
(क) कृष्ण
(ख) हृद्दय
(ग) लाल
(घ) शोभा
उत्तर :
(ग) लाल

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प्रश्न 19.
लोचन शब्द का अर्थ है –
(क) आँख
(ख) बह्मा
(ग) दशा
(घ) भौरा
उत्तर :
(क) आँख

लघुउत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
कवि किससे प्रार्थना करता हैं?
उत्तर :
कवि भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना करता है।

प्रश्न 2.
बान कौन साधता है?
उत्तर :
बान एक बहेलिया (खग-भक्षक) साधता है।

प्रश्न 3.
मन को किसका साथ छोड़ देने के लिए कहा गया है?
उत्तर :
मन को ईश्वर के विराधी नास्तिकों का साथ छोड़ देने के लिए कहा गया है।

प्रश्न 4.
‘पय पान’ कराने पर भी कौन विष का त्याग नहीं करता?
उत्तर :
पय पान कराने पर भी सर्ष विष का त्याग नहीं करता।

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प्रश्न 5.
गंगा नहाने की बात किसके लिए कही गई है?
उत्तर :
गंगा नहाने की बात कुत्ते के लिए कही गई है?

प्रश्न 6.
कवि के अनुसार कौन कभी ईश्वर भक्त नहीं हो सकता ?
उत्तर :
जो काम क्रोध अंहंकार लोभ तथा अज्ञान में रातों दिन लिप्त रहता है।

प्रश्न 7.
इस पद में कवि ने किसका वर्णन किया है ?
उत्तर :
इस पद में भक्त कवि सूरदासजी ने ईश्वर की महिमा का वर्णन किया है।

प्रश्न 8.
किसके स्मरण से भयंकर संकट से मुक्ति मिल जाती है ?
उत्तर :
ईश्वर के स्मरण से भयंकर संकट से भी तत्काल मुक्ति मिल जाती है।

प्रश्न 9.
कौन असहाय होकर वृक्ष की डाली पर बैठा हुआ है ?
उत्तर :
पक्षी असहाय होकर वृक्ष की डाली पर बैठा हुआ है।

प्रश्न 10.
कौन ऊपर छिपा बैठा था ?
उत्तर :
ऊपर बाज भी छिपा बैठा था।

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प्रश्न 11.
किस परिणाम स्वरूप बहेलिया के हाथ से वाण छूट गया ?
उत्तर :
प्रभु की कृपा से एक सर्प ने बहेलिया को डँस लिया। परिणाम स्वरूप उसके हाथ से धुनष पर रखा हुआ वाण छूट गया।

प्रश्न 12.
कवि प्रसन्न होकर क्या कहते हैं ?
उत्तर :
कवि प्रसन्न होकर ईश्वर की जय-जयकार करते है।

प्रश्न 13.
किसके शरीर में सुन्दर आभूषण व्यर्थ है ?
उत्तर :
बन्दर के शरीर में सुन्दर आभूषण व्यर्थ है।

प्रश्न 14.
किस प्रकार के लोगों के स्वभाव को नहीं बदला जा सकता है ?
उत्तर :
ईश्वर से विमुख (नास्तिक) लोगों के स्वभाव को नहीं बदला जा सकता है।

प्रश्न 15.
बालक कृष्ण की किस क्रिया को देखकर तीनों लोक काँपने लगते हैं ?
उत्तर :
बालक कृष्ण की निद्रा लेने (सोने) की क्रिया (दशा) को देखकर प्रलय की आशंका से तीनों लोक भयभीत होकर काँपने लगते हैं।

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प्रश्न 16.
कृष्णा के साँसें लेते समय उनका हृदय किस प्रकार का लगता है ?
उत्तर :
साँसे लेते समय उनका हंदय इस प्रकार लगता है मानों दूध का समुद्र शोभायमान हो रहा हो।

बोधमूलक प्रश्न :

प्रश्न 1.
सूरदास ने भक्ति मार्ग में कौन-सी बाधाएँ पाई है और उनसे मुक्ति का क्या तरीका बताया है?
उत्तर :
सूरदास सगुण कृष्गमार्गी धारा के अनन्य कृष्ण भक्त थे। वे हरि से विमुख ईंश्वर विरोधी नास्तिकों को भक्ति मार्ग में सबसे बड़ी बाधा मानते है। नास्तिक व्यक्ति स्वयं तो ईश्वर की भक्ति नहीं करते, औरों की भक्ति में बाधा डालते हैं। ऐसे लोगों के संपर्क से मन में बुरे विचार पैदा होते हैं। ईश्वर की आराधना में भी बाधा पड़ती है। सूरदास जी ऐसे लोगों का साथ तुरतं छोड़ देने की सलाह देते हैं। अत: ईश्वर पर विश्वास न करने वालों का साथ छोड़ देने से ही भक्ति मार्ग की बाधा दूर हो जाती है, और भक्ति मार्ग प्रशस्त बन जाता है।

प्रश्न 2.
देखि सयन गति त्रिभुवन कपै ईस बिरंचि भ्रमावै।’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत अवतरण मे सूरदास जी ने स्पष्ट किया है कि माता यशोदा गोपाल कृष्ण को सुला रही हैं। बालक कृष्ण की निद्रा लेने की दशा को देखकर तीनों लोकों में हड़कंप मच जाता है। यहाँ तक कि महादेव शिव तथा व्रहा भी भ्रमित हो जाते हैं। इस पंक्ति में कृष्ण के ईश्वरत्व का बोध कराया गया है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
सूरदास ने हरि विमुख लोगों कासाथ छोड़ देने की लिए क्यों कहाहै ?
उत्तर :
सूरदास ने ईश्वर से विमुख लोगों (नास्तिकों) का साथ छोड़ देने के लिए कहा है। वे ऐसे लोगों का साथ छोड़ देने के लिए कहते हैं जो ईश्वर के विरोधी हैं। ऐसे लोगों के साथ रहने से उनके सम्पर्क से मन में बुरे विचार पैदा होती है और ईश्वर के भजन, प्रार्थना तथा उपासना में बाधा पड़ती है। ऐसे लोग कभी भी अपना स्वभाव तथा विचार नहीं छोड़ सकते। किसी भी उपदेश या शिक्षा से उन्हें सुधारा नहीं जा सकता। वे कभी भी आस्तिक-ईश्वर भक्त नहीं बन सकते। कई उदाहरणों से कवि ने इसे स््ष्ट किया है। सर्ष को दूध पिलाने से कोई लाभ नहीं होता। क्योंकि दूध पीने पर भी वह अपना विष नहीं त्यागता। कौए को कपूर खिलाना भी व्यर्थ हो जाता है, क्यों कि कपूर खिलाने पर भी वह अपनी कॉवकॉव की कठोर आवाज नहीं छोड़ता। उसकी वाणी कभी मधुर नहीं हो सकती। गधे को सुगंधित चंदन का लेप करने से भी कोई लाभ नहीं होता।

इससे वह विद्वान नहीं बन जाता और कीचड़ में लोटने-पोटने लगता है। बन्दर के शरीर में आभूषण पहना देने से भी उसकी शोभा नहीं बढ़ती, वह तुरंत उन्हें तोड़-फोड़ कर फेंक देता है। हाथी को नदी के स्वच्छ जल में नहला देने से भी उसे स्वच्छ नहीं रखा जा सकता। वह तुरंत अपने शरीर को धूल-मिट्टी से धूसरित कर लेता है। कठोर पत्थर पर वाण का कोई असर नहीं पड़ता। तरकस के सारे वाण बेकार हो जाते हैं, वे वाण कभी भी कठोर पत्थर को बेध नहों पाते। काले कम्बल पर कभी दूसरा रंग नहीं चढ़ सकता। इसी प्रकार ईश्वर के विरोधी दुर्जनों का कभी भी सुधार कर ईश्वर भक्त आस्तिक नहीं बनाया जा सकता। ऐसे दुष्ट जन सदा काम, कोध, अहंकार, लोभ तथा मायाममता में रातों-दिन व्यस्त रहते हैं। इन्हीं कारणों से कवि ऐसे लोगों का साथ छोड़ देने के लिए कहा है।

भाषा बोध :

1. ब्रजभाषा के शब्द – खड़ी बोली हिन्दी रूप

डरिया – डाल
सुमिरत – स्मरण
बिमुखन – विमुख
तजत – त्याग
हवाये – नहलाए, स्नान
रीतो – रिक्त, खाली

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2. निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए –

ऊपर – उपरि
कपूर – कर्पूर
स्वान – श्वान
आलस – आलस्य
फन – फण

WBBSE Class 8 Hindi सूर के पद Summary

कवि परिचय :

सूरदास भक्तिकालीन सगुण कृष्ण मार्गी धारा के सर्वश्रेष्ठ भक्त कवि थे। इनका जन्म सन् 1478 ई. में रूनकता नामक ग्राम (मथुरा) में हुआ था। सन् 1585 ई. के आसपास पारसोली नामक ग्राम में इनकी इह लीला समाप्त हुई। सूरदास महाप्रभु बल्लभाचार्य के शिष्य थे। भगवान कृष्ण इनके इष्टदेव थे। ये वात्सल्य और शृगार के अन्यतम कवि है। इनकी कविता ब्रजभाषा का शृंगार कही जाती है। इनके काव्य की भाषा सरल और मधुर ब्रजभाषा है। इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ सूर सागर, सूरसारावली और साहित्य-लहरी हैं। इनके काव्य में कृष्ण की बाल लीलाओं तथा प्रेम लीलाओं की मनोरम झाँकी मिलती है। सूर सागर में भक्ति और विनय संबंधी पदों की अधिकता है। सूर काव्य में साहित्य और संगीत का सुन्दर संयोग है।

पद 1.
अब कैं राखि लेहु भगवान ।
हौं अनाथ बैठ्यो द्नुम-डरिया, पारधि साधै बान।
ताकैं डर हौं भाज्यौ चाहत, ऊपर ढुक्यो सचान।
दुहूँ भाँति दुख भयौ आनि यह, कौन उबारै प्रान।
सुमिरत ही अही डस्यौ पारधी, कर छूटच्यौ संधान।
सूरदास सर लग्यौ सचानहि, जय-जय कृपानिधान।।

शब्दार्थ :

  • अनाथ = असहाय।
  • द्रुम-डरिया = वृक्ष की डाल।
  • पारधि = बहेलिया।
  • साधे = साधना।
  • बान = बाण।
  • भाज्यो = भागना।
  • सन्चान = बाज।
  • उबारै = उद्धार करना, मुक्त करना।
  • सुमिरत = ईश्वर के नाम का जप।
  • अहि = सर्प।
  • डस्यौ = डँसना।
  • ढुक्यो = छिपा।
  • कर = हाथ।
  • संधान = तीर, धनुष पर बाण रखना ।
  • सर = बाण।
  • कृपा निधान = दयालु भगवान करुणा के सागर।

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प्रसंग – प्रस्तुत पद ‘साहित्य मेला’ के सूर के पद पाठ से उद्धृत है। इसके कवि महात्मा सूरदासजी है।
संदर्भ – इस पद में भक्त कव्रि सूरदासजी ने ईश्वर की महिमा का वर्णन किया है। कवि ने स्पष्ट किया है कि ईश्वर के स्मरण से भयंकर संकट से भी तत्काल मुक्ति मिल जाती है।

व्याख्या – सूरदासजी एक पक्षी के माध्यम से स्पष्ट किया है कि ईश्वर किस प्रकार भक्त की रक्षा करते हैं। एक अनाथ पक्षी वृक्ष की डाली पर बैठा हुआ था। वह ईश्वर से प्रार्थना करता है कि हे प्रभु, अब मेरी रक्षा कर लीजिए। मैं असहाय होकर वृक्ष की डाली पर बैठा हुआ हूँ। नीचे से एक बहेलिया मुझे मारने के लिए बाण चलाने की तैयारी कर रहा है। उसके डर से मैं भागना चाहता हूँ, पर ऊपर बाज भी छिपा बैठा है। दोनों ओर से मेरे प्राणों पर संकट बना हुआ है। इस भयंकर दु:ख से अब आप के सिवा कौन मेरे प्राण बचा सकता है।

इस प्रकार वह असहाय पंक्षी ईश्वर के नाम का जप करने लगा। प्रभु की कृपा से एक सर्प बहेलिया को डँस लिया। परिणाम स्वरूप इसके हाथ से धुनष पर रखा हुआ बाण छूट गया। वह बाण ऊपर जाकर बाज को लगा। इस प्रकार प्रभु की कृपा से बहेलिया तथा बाज दोनों खत्म हो गए और ईश्वर के नाम को जपने वाला पक्षी के प्राण संकट से बच गये। सचमुच प्रभु अतिशय कृपालु हैं। कवि प्रसन्न होकर ईश्वर की जय-जयकार करता है।

पद 2.
छाँड़ि मन हरि बिमुखन को संग।
जाके संग कुबुद्धि उपजै, परत भजन में भंग।
काम क्रोध मद लोभ मोह में, निसि दिन रहत उमंग।
कहा भयो पय पान कराये, बिष नहिं तजत भुजंग।
कागहि कहा कपूर खवाये, स्वान न्हवाये गंग।
खर को कहा अरगजा लेपन, मरकत भूषन अंग।
पाहन पतित बान नहिं भेदत, रीतो करत निषंग।
सूरदास खल कारी कामरी, चढ़ै न दूजो रंग।।

शब्दार्थ :

  • विमुखन = ईश्वर के विरोधी, नास्तिक।
  • मद = अहंकार, घमंड।
  • तजो = छोड़ना।
  • मरकट = बंदर।
  • पयपान = दूध पिलाना।
  • पाहन = पत्थर।
  • कागहि = कौआ।
  • कारीकामोरी = काला कम्बल।
  • अरगजा = चन्दन।
  • दूजो = दूसरा।
  • भूषन = गहना ।
  • खल = दुष्ट ।
  • खर = गधा।
  • पतित = गिर हुआ।
  • कुबुद्धि = बुरे विचार ।
  • रीतो = खाली हो जाना।

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प्रसंग – प्रस्तुत पद में श्री कृष्ण के अनन्य भक्त सूरदासजी ने कई उदाहरण देकर बतलाया है कि जो ईश्वर के विरोधी हैं, उनका साथ छोड़ देने में ही भलाई है।

व्याख्या – सूरदास जी ईश्वर से विमुख लोगों (नास्तिकों) का साथ छोड़ देने के लिए कहते हैं। वे अपने मन को संबोधित करते हुए कहते हैं – हे मन, तू ऐसे लोगों का साथ छोड़ दे जो ईश्वर के विरोधी (नास्तिक) हैं। ऐसे लोगों के साथ से मन मे बुरे विचार पैदा होते हैं तथा भगवान के भजन-कीर्तन में बाधा पड़ती है। ऐसे लोग अपना स्वभाव नहीं छोड़ते। किसी भी उपदेश या शिक्षा से उन्हें सुधारा नहीं जा सकता। वे कभी ईश्वर भक्त (आस्तिक) नहीं हो सकते। वे काम, क्रोध, अहंकार, लोभ तथा अज्ञान में रातों दिन लिप्त रह कर आनंदित रहते है। जिस प्रकार सर्प को चाहे जितना दूध पिलाया जाये, पर वह अपना विष नहीं छोड़ता। कौआ को कपूर खिलाने पर भी वह कठोर वाणी ही बोलता है। कुत्ते को पवित्र गंगा जल में स्नान कराने से भी कोई लाभ नहीं होता। वह फिर गंदगी में ही मुँह डालता है। गधे को सुगंधित चंदन से लेप करने पर भी विद्वान नहीं बन जाता, फिर कीचड़ में लोटता है। बन्दर के शरीर में सुन्दर आभूषण व्यर्थ है, वह तुरंत तोड़-फोड़ कर फेंक देता है।

कठोर पत्थर पर बाण का कोई असर नहीं पड़ता। तरकश के सारे बाण खत्म हो जाते है, पर वे पत्थर को बेध नहीं पाते। काले कम्बल पर भी दूसरा रंग नहीं चढ़ संकता। इसी प्रकार ईश्वर से विमुख (नास्तिक) लोगों के स्वभाव को नहीं बदला जा सकता। वे कभी ईश्वर भक्त नहीं बन सकते।

पद 3.
जसुदा मदन गुपाल सोवाबै।
देखि सयन गति त्रिभुवन कपै ईस बिरंचि भ्रमावै।
असित अरून
सित आलस लोचन उभय पलक परिआवै।
जनु रवि गत संकुचित कमल जुग निसि अलि उड़न न पावै।
स्वास उदर उरसति यौं मानौ दुगध सिंधु छबि पाबै।
नाभि सरोज प्रगट पदमासन उतरि नाल पछितावै।।
कर सिर तर करि स्याम मनोहर अलक अधिक सोभावै।
सूरदास मानौ पन्नगपति प्रभु ऊपर फन छाबै।

शब्दार्थ :

  • जसुदा = यशोदा।
  • गति = दशा, परिणाम।
  • मदन गुपाल = श्रीकृष्ण।
  • अलि = भौंरा।
  • सयन = निद्रा लेने की क्रिया।
  • संकुचित = सिकुड़ना।
  • बिरंचि = बह्मा।
  • उरसति = हाय।
  • भ्रमावै = भ्रमित करना।
  • छवि = शोभा।
  • असित = काला, श्याम।
  • सरोज = कमल।
  • अरुन = लाल।
  • पदमासन = कमल का आसन।
  • सित = श्वेत, सफेद।
  • पन्नगपति = शेषनाग।
  • लोचन = आँख।
  • मनोहर = सुन्दर ।
  • जुग = दो।
  • ईस = महादेव, शिव।
  • अलक = केश, लट, बाल।
  • छाबै = शोमायमान।

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प्रसंग – प्रस्तुत पद में सूरदास जी ने भगवान कृष्ण की निद्रा लेने की क्रिया के प्रभाव का वर्णन किया है।

व्याख्या – माता यशोदा बालक कृष्ण को सुला रही हैं। बालक कृष्ण की निद्रा लेने (सोने) की क्रिया (दशा) को देखकर प्रलय की आशंका से तीनों लोक भयभीत होकर काँपने लगते हैं। यहाँ तक कि महादेव शिव तथा ब्रह्मा भी भ्रमित हो जाते हैं। कृष्ण नींद के आलस्य से अपनी श्वेत, श्याम, रतनार (लाल) आँखों के पलको को हिलाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे सूर्य के डूबने पर कमल की पंखुरियाँ सिकुड़ गई हों और उसमें रसपान का लोभी भौरा बन्दी बन गया हो। वह उड़ नहीं पाता। साँसें लेते समय उनका हुदय इस प्रकार लगता है मानों दूध का समुद्र शोभायमान हो रहा हो। उनकी नाभि में कमल पदमासन के रूप में प्रतीत होता है। वह कमल की डंडी से उतर कर पछताने लगता है। कृष्ण अपने सिर के नीचे हाथ रख कर सो रहे हैं। उनकी अलकें अत्यधिक शोभायमान लग रही है। उस समय ऐसा लग रहा था मानो शेषनाग प्रभु कृष्ण के ऊपर अपना फण फैलाए हुए शोभित हो रहे हैं।

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