Students should regularly practice West Bengal Board Class 8 Hindi Book Solutions Chapter 4 भिखारिन to reinforce their learning.
WBBSE Class 8 Hindi Solutions Chapter 4 Question Answer – भिखारिन
वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
प्रश्न 1.
रोजाना अंधी कहाँ जाकर खड़ी रहती है?
(क) झोपड़ी के दरवाजे पर
(ख) महल के दरवाजे पर
(ग) मस्जिद के दरवाजे पर
(घ) मन्दिर के दरवाजे पर
उत्तर :
(घ) मन्दिर के दरवाजे पर
प्रश्न 2.
झोपड़ी में उसके साथ कितने वर्ष का लड़का रहता था?
(क) पाँच
(ख) आठ
(ग) दस
(घ) बारह
उत्तर :
(ग) दस
प्रश्न 3.
उस लड़के का क्या नाम था ?
(क) सोहन
(ख) रोहन
(ग) मोहन
(घ) भुवन
उत्तर :
(ग) मोहन
प्रश्न 4.
सेठ के पास जमा नकदी को कितने वर्ष बाद वह माँगने गई?
(क) दो वर्ष
(ख) तीन वर्ष
(ग) चार वर्ष
(घ) पाँच वर्ष
उत्तर :
(क) दो वर्ष
प्रश्न 5.
‘नहीं तो, इस नाम पर एक पाई भी जमा नहीं है।’ कौन कहता है?
(क) सेठ
(ख) सेठानी
(ग) मुनीम
(घ) नौकर
उत्तर :
(ग) मुनीम
प्रश्न 6.
रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म कब हुआ था ?
(क) 7 मई 1861 ई० में
(ख) 7 मई 1862 ई० में
(ग) 8 मई 1863 ई० में
(घ) 9 मई 1864 ई० में
उत्तर :
(क) 7 मई 1861 ई० में
प्रश्न 7.
‘नोबेल पुरस्कार’ पाने वाले पहले भारतीय कौन हैं ?
(क) सत्येन्द्र सत्यार्थी
(ख) अमर्त्य सेन
(ग) डॉ॰ हरगोविंद खुराना
(घ) रवीन्द्रनाथ ठाकुर
उत्तर :
(घ) रवीन्द्रनाथ ठाकुर।
प्रश्न 8.
रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म कहाँ हुआ था ?
(क) महिषादल
(ख) जोड़ासाँकू
(ग) रवीन्द्र सदन
(घ) रवीन्द्र सारणी
उत्तर :
(ख) जोड़ासाँकू।
प्रश्न 9.
रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने किस संस्था की स्थापना की ?
(क) शांतिनिकेतन
(ख) संगीत निकेतन
(ग) नृत्य निकेतन
(घ) बाऊल निकेतन
उत्तर :
(क) शांतिनिकेतन।
प्रश्न 10.
रवीन्द्रनाथ टैगोर की पत्नी का नाम था –
(क) शिवानी देवी
(ख) मृणालिनी देवी
(ग) साविश्री देवी
(घ) इसमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ख) मृणालिनी देवी
प्रश्न 11.
सेठजी का पूरा नाम क्या था ?
(क) सेठ कन्हैयालाल
(क) सेठ बनवारी दास
(ग) सेठ बनारसी दास
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ग) सेठ बनारसी दास
प्रश्न 12.
मोहन के शरीर के किस अंग पर लाल निशान था ?
(क) हाथ
(ख) पीठ
(ग) पेट
(घ) जाँघ
उत्तर :
(घ) जाँघ
प्रश्न 13.
बुखार उतरने पर मोहन के मुँह से सबसे पहला शब्द क्या निकला ?
(क) माँ
(ख) अम्मा
(ग) मम्मी
(घ) उपरोक्त कोई नहीं
उत्तर :
(क) माँ
प्रश्न 14.
“इसमें तुम्हारी धरोहर है”‘ – यहाँ धरोहर का संबंध किससे है ?
(क) जमीन
(ख) रुपयाापैसा
(ग) संतान
(घ) सोना-चाँदी
उत्तर :
(ख) रुपया-पैसा
प्रश्न 15.
औरत क्या दे देती थी ?
(क) प्रसाद
(ख) पैसे
(ग) अनाज
(घ) पीने का पानी
उत्तर :
(ग) अनाज
प्रश्न 16.
बूढ़िया किसे आशिर्वाद देते हुए चली गयी ?
(क) बच्चे को
(ख) सेठजी को
(ग) मुनीमजी को
(घ) लेखक को
उत्तर :
(ख) सेठजी को
प्रश्न 17.
कितने वर्ष बाद लड़के को ज्वर हो गया ?
(क) दो वर्ष
(ख) तीन वर्ष
(ग) चार वर्ष
(घ) पाँच वर्ष
उत्तर :
(क) दो वर्ष
प्रश्न 18.
किसने कहा “भगवान तुम्हें बहुत्त दे”‘ –
(क) भिखारिन
(ख) सेठजी
(ग) भक्त
(घ) मुनीमजी
उत्तर :
(क) भिखारिन
प्रश्न 19.
अंधी को किससे नफरत हो गई ?
(क) सेठजी से
(ख) मन्दिर से
(ग) भक्त से
(घ) मुनीमजी से
प्रश्न 20.
मोहन के जाँघ पर किस रंग का चिन्ह था ?
(क) काले रंग का
(ख) नीले रंग का
(ग) लाल रंग का
(घ) हरे रंग का
उत्तर :
(ग) लाल रंग का
प्रश्न 21.
अंधी निराश होकर कहाँ चल दी ?
(क) झोपड़ी में
(ख) घर में
(ग) मन्दिर में
(घ) मस्जिद में
उत्तर :
(क) झोपड़ी में
प्रश्न 22.
मोहन कितने दिनों में स्वस्थ हो गया ?
(क) आठ-दस
(ख) दस-पन्द्रह
(ग) दस-बारह
(घ) सात से पन्द्रह
उत्तर :
(ख) दस-पन्द्रह
लघुउत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1.
मन्दिर में कैसे लोग आते हैं?
उत्तर :
मंदिर में सहृदय और श्रद्धालु लोग आते हैं।
प्रश्न 2.
अंधी को बच्चा कितने वर्ष पहले कहाँ मिला?
उत्तर :
अंधी को बच्चा पाँच वर्ष पहले किसी मेले में मिला था।
प्रश्न 3.
पैसा माँगने पर सेठ ने अंधी को गुस्से में क्या कहा?
उत्तर :
पैसा माँगने पर सेठ ने अंधी को गुस्से में कहा- जाती हो या फिर नौकर को बुलाऊँ।
प्रश्न 4.
अंधी को किस शब्द ने बेचैन कर दिया?
उत्तर :
सेठजी नेकहा कि बच्चा मेरा है, अब मिला है, इसलिए इसे कहीं जाने न दूँगा। सेठजी के ये शब्द सुनकर अंधी बेचैन हो गई।
प्रश्न 5.
अंधी माँ से मिलने पर वह कितने दिन में ठीक हुआ?
उत्तर :
अंधी माँ से मिलने पर वह दस-पन्द्रह दिन में ठीक हो गया।
प्रश्न 6.
निम्न पंक्तियाँ कौन किससे कह रहा है?
(क) ‘कैसी जमा-पूँजी? कैसे रुपये?’
उत्तर :
सेठजी अंधी भिखारिन से कह रहे हैं।
(ख) ‘अच्छा’ भगवान तुम्हें बहुत दे।’
उत्तर :
अंधी भिखारिन सेठजी से कह रही है।
(ग) ‘इसमें तुम्हारी धरोहर है, तुम्हारे रुपये। मेरा वह अपराध. . ।’
उत्तर :
सेठजी ने अंधी भिखारिन से कहा।
प्रश्न 7.
रवीन्द्रनाथ ठाकुर के माता-पिता का नाम लिखें।
उत्तर :
र्वीन्द्रनाथ ठाकुर के पिता का नाम श्री देवेन्द्रनाथ ठाकुर तथा माता का नाम शारदा देवी था।
प्रश्न 8.
रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर :
कलकत्ता (कोलकाता) के जोड़ासाँकू स्थित ‘प्रासादोपम भवन’ में हुआ था।
प्रश्न 9.
रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म कब हुआ था?
उत्तर :
7 मई, सन् 1861 को।
प्रश्न 10.
रवीन्द्रनाथ ठाकुर की प्राथमिक शिक्षा कहाँ हुई थी?
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ ठाकुर की प्राथमिक शिक्षा घर पर ही हुई थी।
प्रश्न 11.
रवीन्द्रनाथ ठाकुर बैरिस्ट्री पढ़ने के लिए कहाँ गए थे?
उत्तर :
लंदन।
प्रश्न 12.
रवीन्द्रनाथ ने नाईटहुड की उपाधि क्यों लौटा दी ?
उत्तर :
जालियाँवाला बाग हत्याकाण्ड से आहत होकर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने नाईटहुड की उपाधि लौटा दी।
प्रश्न 13.
कौन लोग धन्नासेठों से महान तथा उदार होते हैं ?
उत्तर :
अभावग्रस्त लाचार लोग अपने विचारों तथा कर्मों से धन्नासेठों से महान तथा उदार होते हैं।
प्रश्न 14.
काशी के सेठ कैसे व्यक्ति थे ?
उत्तर :
काशी के सेठ बनारसी दास बहुत प्रसिद्ध देशभक्ल, धर्मात्मा व्यक्ति थे।
प्रश्न 15.
भिखारिन किसके लिये पैसे इकट्टे किये हैं ?
उत्तर :
भीख माँग कर बच्चे के लिए पैसे इकट्टे किए हैं।
प्रश्न 15.
भिखारिन किसलिए सेठजी को जमा पूँजी देने के लिये कहा ?
उत्तर :
अंधी ने किसी डॉक्टर से इलाज कराने का निश्चय किया। इसलिए वह सेठ जी के पास जाकर अपनी जमा पूँजी में से कुछ रुपये देने के लिए कहने लगी।
प्रश्न 16.
अंधी ने ठहाका लगाकर क्या कही ?
उत्तर :
अंधी ने ठहाका लगाकर कहीं कि तुम्हारा बच्चा है इसलिए लाख प्ययल् करके तुम बचाओगे, पर मेरा बच्चा होता तो उसे मर जाने देती।
प्रश्न 17.
सेठजी निश्चय कर कहाँ पहुँचे ?
उत्तर :
सेठजी निश्चय कर अंधी की झोपड़ी में पहुँचे।
प्रश्न 18.
अंधी ने सेठ को क्या जवाब दिया ?
उत्तर :
अंधी ने जवाब दिया कि अब हम माँ-बेटे दोनों एक साथ स्वर्वलोक जाएँगे, वहाँ बच्चा सुख में रहेगा।
प्रश्न 19.
रवीन्द्रनाथ को नोबेल पुरस्कार कब और क्यों दिया गया ?
उत्तर :
सन् 1913 में रवीन्द्रनाथं को उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना ‘गीतांजलि’ के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया।
प्रश्न 20.
सफेद वस्त्र वाले राहगीरों का बूढ़िया के प्रति कैसा व्यवहार होता था ?
उत्तर :
सफेद वस्त्र वाले अधिकार राहगीर बूढ़िया को भिक्षा देने के बजाय झिड़कियाँ दिया करते थे।
प्रश्न 21.
मोहन सेठ कौन था ?
उत्तर :
मोहन सेठ बनारसीदास का खोया हुआ बेटा था, जिसका पालन-पोषण अंधी भिखारिन ने किया।
प्रश्न 22.
अंधी भिखारिन ने सेठजी से कब विदाई माँगी ?
उत्तर :
मोहन के पूरी तरह से स्वस्थ हो जाने के बाद अंधी भिखारिन ने सेठजी से विदाई माँगी।
बोध मूलक प्रश्न :
प्रश्न 1.
काशी के सेठ के बारे में लोग क्या जानते थे?
उत्तर :
काशी के सेठ के बारे में लोग जानते थे कि वे बहुत बड़े भक्त और धर्मात्मा है। धर्म में उनकी बड़ी रुचि है। स्नान-ध्यान में संलग्न रहते हैं।
प्रश्न 2.
अंधी भिखारिन से पैसे ले उसके साथ क्या व्यवहार किया गया?
उत्तर :
अंधी भिखारिन से पैसे लेकर उसके साथ बिल्कुल अन्याय किया। सेठजी बिल्कुल नकार गए कि उसकी पूँजी उनके पास जमा है। उसे धमकी मिली की कि वह तुरंत वहाँ से चली जाए। उसे मारने का डर दिखाया गया। उसके रोने गिड़गिड़ाने पर भी उसके पैसे उसे न मिले।
प्रश्न 3.
अंधी ने ठहाका क्यों लगायी?
उत्तर :
सेठजी ने अंधी से कहा कि यह बच्चा उनका है, इसलिए वे इसे कहीं जाने नहीं देंगे और लाख कोशिशें करके भी इसके प्राण बचाएंगे। सेठजी के इसी वचन पर अंधी ने ठहका लगायी और कहा कि बच्चा तुम्हारा है, इसलिए लाख प्रयल करके उसे बचाएँगे। यदि मेरा बच्चाहोता तो उसे मर जाने देते क्यों? यह भी कोई न्याय है।
प्रश्न 4.
सेठ और भिखारिन में किसे महान कहा जा सकता है? और क्यों?
उत्तर :
सेठ और भिखारिन में भिखारिन को महान कहा जा सकता है। भिखारिन ने अपनी धरोहर के रुपये भी सेठजी को ही लौटा दिया। सेठजी को भिखारी बना दिया ओर स्वयं को देने वाली। सेठजी ने उससे बेईमानी की, बच्चे को भी छीन लिए, पर वह ममता के कारण बच्चे की सेवा की। स्वस्थ्य हो जाने पर सेठजी के यहाँ रहने को राजी न हुई। सेठ उसके सामने नतमस्तक हो गए।
प्रश्न 5.
इस पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर :
इस पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को कभी भी अपना धर्म-कर्त्तव्य, ईमानदारी को नहीं भूलना चाहिए। तुच्छ धन के लिए बेईमान बनना मानवता के खिलाफ है। सहुदयता, दया, प्रेम, दीनों, अपाहिजों, भिखारियों के प्रति सहद्य होना चाहिए। व्यक्ति को अपने विचारों तथा कर्मों से महान बनना चाहिए। महानता धन में नहीं ममता में मानवता में सहृदयता में होती है।
व्याख्या मूलक प्रश्न :
प्रश्न :
प्रस्तुत कहानी में मानवीय मूल्य बोध को मार्मिक ढंग से उजागर किया गया है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत कहानी में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने एक अंधी भिखारिन के चरित्र से मानवीय मूल्य बोध को स्पष्ट किया है, तथा इस तथ्य को स्पष्ट किया है कि अंधी भिखारिन अभावग्रस्त, अंधी थी, पर विचारों और कर्मों से वह अतिशय महान थी। प्रतिदिन वह मंदिर के दरवाजे पर खड़ी रहकरे भिक्षा माँगती थी। शाम के समय अपनी झोपड़ी में पहुँच कर दस साल के एक लड़के से स्नेह दिखाती, उसका माथा चूमती। वह लड़का काशी के बड़े सेठ का लड़का था, जो सात साल पूर्व एक मेले में खो गया था। न जाने कैसे वह भिखारिन के पास पहुँचा। वह भिखारिन को ही माँ समझने लगा। अंधी झोपड़ी में एक हंडिया गाड़ रखी थी। जो कुछ माँग कर लाती उसे सुरक्षा के लिए उसमें डाल देती थी।
काशी के सेठ बनारसी दास बहुत बड़े धर्मात्मा, देशभक्त तथा प्रसिद्ध व्यक्ति थे। अंधी अपनी पूँजी सेठ जी के पास धरोहर रूप में रखने के लिए आई। उसने सेठजी को अपनी हंडिया की पूँजी जमा कर लेने के लिए कहा। सेठजी के संकेत पर मुनीम ने बुढ़िया से उसका नाम पूछा और नकदी गिनकर जमा कर दिया। बुढ़िया सेठजी को आशीर्वाद देती हुई अपनी झोपड़ी में चली गई। दो वर्ष बाद एक दिन लड़के को तेज ज्वर हो गया। झाड़-फूँक टोने-टोटके के प्रयोग से लड़के का ज्वरन उतरा। उसने किसी डॉक्टर से इलाज कराने का निश्चय किया। अंधी सेठ जी के पास जाकर अपनी जमा पूँजी में से दस-पाँच रुपये इलाज के लिए माँगने लगी।
पर सेठजी अंधी की जमा-पूँजी को बिल्कुल नकार गए। सेठ जी के इशारे पर मुनीम ने भी कहा कि इस नाम पर एक पाई भी जमा नहीं है। रोती हुई बुढ़िया धर्म के नाम पर कुछ माँगने लगी जिससे उसका बच्चा जी जाए। पर पत्थर में कोमलता न आई। फिर वह सेठजी को आशीर्वाद देकर बुझे दिल से चली गई। इतना धनी आदमी उस अंधी का रुपये नकार गए इससे अधिक मानवीयता का लोप और क्या हो सकता है।
एक दिन अंधी तेज ज्वर से जलते शरीर वाले बच्चे को गोद में उठाकर ठोकरे खाती सेठजी के पास पहुँची। सेठजी ने नौकरों को उसे भगा देने के लिए कहा। पर वह अपने स्थान से न हिली। सेठजी बाहर आए और उस बच्चे को पहचान गए। सात वर्ष पहले मेले में उनका बेटा खो गया था। मोहन की जाँघ पर लाल चिह्न को देखकर निश्चय कर लिया कि अपना बच्चा है और उसे अपनी गोद में ले लिए। बुढ़िया अपने बच्चे के लिए चिल्लाने लगी। निराश वह चली गई। दूसरे दिन मोहन का बुखार उतर गया। वह माँ के लिए बेचैन हो उठा। फिर ज्वर से पीड़ित हो गया। डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया।
फिर सेठजी ने विवश होकर बुढ़िया के सामने रोकर गिड़गिड़ाकरले आए बुढ़िया के हाथ के स्पर्श से मोहन स्वस्थ होकर माँ तुम आ गई कहने लगा। मोहन के पूरी तरह ठीक हो जाने पर बुढ़िया जाने के लिए तैयार हो गई सेठजी के मिन्नत करने पर भी वह न रुक सकी। सेठजी ने बुढ़िया की रुपयो की थैली देते हुए कहा कि यह तुम्हारी धरोहर है। मेरे अपराध को क्षमा कर दो। बुढ़िया ने कहा कि यह रुपये तो मैने तुम्हारे मोहन के लिए इकट्ठे किए थे, उसी को दे देना। एक भिखारिन होते हुए भी वह उस प्रसिद्ध सेठ से महान थी। इस समय सेठ भिखारी का और वह देने वाली थी। इस प्रकार लेखक ने मानवीय गुणों को स्पष्ट किया है।
भाषा बोध :
1. निम्न शब्दों में तत्सम् और तद्भव शब्दों को अलग करें –
तत्सम् – तद्भव
सहृदय – हाथ
मिथ्या – आँसू
नेत्र – बुढ़िया
शाप – बच्चा
वस्तु – कोशिश
वस्त्र
याचना
दृष्टि
2. जिन शब्दों का प्रयोग किसी संज्ञा के स्थान पर किया जाता है, उसे सर्वनाम कहते हैं। नीचे दिए वाक्यों में सर्वनाम शब्द रेखांकित कीजिए।
(क) उसकी गोद में एक बच्चा देखा, वह रो रहा था।
(ख) मेरें रुपये तो हजम कर गए, अब क्या मेरा बच्चा भी मुझसे छीन लोगे।
(ग) मैं उसको अपने हृदय से नहीं जाने दूँगा।
(घ) तुम्हारे जाने से वह बच जाएगा।
3. निम्नलिखित शब्दों का समास-विग्रह कर समास का नाम लिखिए-
मन-ही-मन – मन में ही – अव्ययी भाव समास
थोड़ा बहुत – थोड़ा या बहुत – द्वून्द्व समास
देश भक्त – देश का भक्त – तत्पुरुष समास
धर्मात्मा – धार्मिक है आत्मा जिसकी वह – बहुव्रीहि समास
खून पसीना – खून और पसीना – द्वन्द्ध समास
4. जो अक्षर या अक्षर समूह शब्दों के अन्त में लगाए जाते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं (क) कृत (ख) तद्धित।
निम्नलिखित शब्दों से मूल शब्द और प्रत्यय अलग कीजिए-
नम्रता – नम्र + अता
बुढ़िया – बूढ़ा + इया
नकदी – नकद + ई
भिखारिन – भिखारी + इन
श्रद्धालु – श्रद्धा + आलु
चिन्तित – चिन्ता + इत
धनी – धन + ई
भिखारी – भिखार + ई
WBBSE Class 8 Hindi भिखारिन Summary
लेखक-परिचय :
रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म कोलकाता के जोड़ासाँकू में ठाकुर परिवार में 1861 ई. में हुआ। बचपन में रवीन्द्रनाथ ने अपने पिता से ध्यान, प्रार्थना, एकान्त्रेम, शांति आदि बाते सीखीं। साहित्य सृजन में इनकी रुचि बचपन से ही थी। रवीन्द्रनाथ ने लगभग एक हजार से अधिक कविताएँ दो हजार से अधिक गीत तथा उपन्यास, कहानी नाटक आदि लिखे।
उन्हें गीतांजलि रचना पर नोबेल पुरस्कार मिला। 1940 ई० में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्षिटी ने इन्हें डी० लिद् की उपाधि दी। वे एक सच्चे देश भक्त, समाज सेवी तथा शिक्षाविद् थे। साहित्यकार के साथ-साथ वे संगीतकार और कलाकार थे। स्मरण, खेवैया, नौका डूबी इनकी मार्मिक कृतियाँ है। विश्व साहित्य में सौन्दर्य पूजा की दृष्टि से चित्रा और उर्वशी उनकी बेजोड़ रचनाएँ हैं। रवीन्द्रनाथ ठाकुर की साहित्यिक उपलब्धियाँ विशिष्ट हैं। इनका सन् 1941 अगस्त महीना मे देहावसान हो गया।
सारांश :
प्रस्तुत कहानी में लेखक ने एक अंधी भिखारिन की कथा के माध्यम से स्सष्ट किया है कि अभावग्रस्त लाचार लोग अपने विचारों तथा कर्मों से धन्नासेठों से महान तथा उदार होते हैं। एक अन्धी भिखारिन प्रतिदिन एक मंदिर के दरवाजे पर खड़ी रहकर दर्शन कर लौटने वालों से अपना हाथ फैलाकर नम्रता पूर्वक दया की याचना करती थीं। मन्दिर में आनेवाले सह्दय श्रद्धालु उसमे हाथ पर कुछ पैसे रख देते। औरतें कुछ अनाज दे देती थीं।
शाम को वह नगर से बाहर अपनी झोपड़ी में पहुँच जाती। एक दिन पड़ोस के लोगों ने उसकी गोद में एक बच्चा देखा। बच्चा अन्धी के पास था और प्रसन्न था। बच्चा दस साल का हो गया। अंधी के आते ही बच्चा उससे चिपट जाता। अंधी टटोल कर उसके माथे को चूमती.। अंधी अपने से अच्छा उसे खिलाती-पिलाती। अंधी अपनी झोपड़ी में एक हंडिया गाड़ रखी थी। शाम को जो कुछ माँग कर लाती उसमें डाल देती। सुबह वह बच्चे को खिलाकर फिर मंदिर के दर वाजे पर खड़ी हो जाती।
काशी के सेठ बनारसी दास बहुत प्रसिद्ध देशभक्त, धर्मात्मा व्यक्ति थे। सैकड़ों भिखारी अपनी जमा पूँजी उनके पास धरोहर के रूप में रखते थे। हॉडी के भर जाने पर अंधी भी उसे उखाड़ कर सेठ के पास जमा करने पहुँची। उसने बतलाया कि भीख माँग कर बच्चे के लिए पैसे इकट्ठे किए हैं। इन्हें जमा कर लीजिए। सेठ का इशारा पाकर मुनीमजी ने नकदी गिनकर उसके नाम पर जमा कर लिया। बुढ़िया सेठ जी को आशीर्वाद देते हुई चली गई। दो वर्ष बाद लड़के को ज्वर हो गया। झाड़-फूंक, टोटके से ठीक न हुआ। अंधी ने किसी डॉक्टर का इलाज कराने का निश्चय किया।
इसलिए वह सेठ जी के पास जाकर अपनी जमा पूँजी में से कुछ रुपये देने के लिए कहने लगी। सेठ बिल्कुल नकार गए। फिर सेठ जी के इशारे पर मुनीमजी से बही में नाम देखने को कहा कि इसके नाम पर कुछ जमा है, मुनीमजी बोले नहीं है। अंधी रो-रोकर प्रार्थना करने लगी कि परमात्मा के नाम पर धर्म के नाम पर कुछ दे दीजिए, जिससे मेरा बच्चा जी जाए। पर सेठजी क्रुद्ध हो कर उसे तुरंत हट जाने को कहा। अंधी उन्हें ‘भगवान तुम्हें बहुत दें’ कहकर चली गई।
अंधी को सेठ से नफरत हो गई। एक दिन वह बच्चे को अपनी गोद में उठाकर सेठजी के पास पहुँची और दरवाजे पर धरना देकर बैठ गई। नौकर के डराने धमकाने पर भी वह नहीं टली। सेठ जी स्वयं बाहर आए। बच्चे को देखकर उन्हें अचम्भा हुआ कि उसकी रूपाकृति उनके सात वर्ष पूर्व मेले में खोए बच्चे मोहन से मिलती-जुलती थी। मोहन की जाँघ पर एक लाल रंग का चिह्न था। उन्होंने बच्चे की जाँध पर चिह्न देखकर यकीन कर लिया कि यह उन्हीं का बच्चा है।
उन्होंने बच्चे को लेकर अपने कलेजे से चिपका लिया। बच्चे का शरीर बुखार से तप रहा था। नौकर को डॉक्टर लाने के लिए भेजा और स्वयं मकान के अंदर चले गए। अंधी बच्चे के लिए चिल्लाने लगी। सेठजी ने कहा कि बच्चा मेरा है, लाख प्रयत्न करके इसे बचाऊँगा। अंधी ने ठहाका लगाकर कहा कि तुम्हारा बच्चा है इसलिए लाख प्रयत्न करके तुम बचाओगे, पर मेरा बच्चा होता तो उसे मर जाने देते। अंधी निराश होकर अपनी झोपड़ी की ओर चल दी।
ईश्वर की कृपा से दवा ने प्रभाव डाला या टोटका ने। मोहन का बुखर उतर गया। होश में आने पर वह माँ कहकर अंधी को खोजने लगा। फिर उसका ज्वर तेज हो गया। डॉक्टरों ने जबाब दे दिया। सेठजी निश्चय कर अंधी की झोपड़ी में पहुँचे। अंधी का शरीर भी अग्नि की तरह तप रहा था। सेठजी ने कहा कि बच्चा तुम्हें पुकार रहा है। डॉक्टर निराश हो गए हैं। अब चलकर तुम्हीं उसके प्राण बचा सकती हो। अंधी ने जवाब दिया कि अब हम माँ-बेटे दोनों एक साथ स्वर्ग लोक जाएँगे, वहाँ बच्चा सुख में रहेगा। सेठजी रोने लगे। बोले कि ममता की लाज रख लो। तुम उसकी माँ हो- तुम्हारे जाने से बच जाएगा।
अंधी चलने को प्रस्तुत हो गई। फिटन पर बैठकर दोनों कोठी पर पहुँचे। सेठजी सहारा देकर अंधी को उतारकर अन्दर ले गए। अंधी मोहन के माथे पर हाथ फेरने लगी। बच्चे ने आँखें खोल दी। कहा कि माँ तुम आ गई। दस-पन्द्रह दिन में मोहन बिल्कुल स्वस्थ हो गया। मोहन के ठीक हो जाने पर अंधी वहाँ रहने के लिए राजी न हुई। वह चलने लगी तो सेठजी ने रुपयों की थैली उसके हाथ में देकर कहा कि यह तुम्हारी धरोहर है, तुम्हारे ही रुपये हैं। अंधी ने कहा कि यह रुपये तो मैने मोहन के लिए इकट्ठे किये थे, उसी को दे देना। अंधी थैली वहीं छोड़कर चल दी। बाहर घर की ओर नेत्र उठाए। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। एक भिखारिन होते हुए भी वह सेठजी से महान थी। इस समय सेठ भिखारी था, वह देनेवाली थी।
शब्दार्थ :
- सहृदय – दयालु, दूसरों के दुःख को समझनेवाला ।
- पूँजी – धन, संपत्ति ।
- श्रद्धालु – जिसके मन में श्रद्धा हो, श्रद्धावान् ।
- ज्वर – बुखार ।
- मिथ्या – गलत, असत्य ।
- धरोहर – थाती ।
- दुआएँ – आशीर्वाद ।
- नफरत – घृणा ।
- सराहती – प्रशंसा करती ।
- राजी – तैयार हो जाना ।
- बनिस्बत – मुकाबले में की अपेक्षा ।
- जान में जान आना – संतोष मिलना ।
- राहगीरो यात्रियों ।
- टस से मस न होना – अपने स्थान से न डिगना ।
- हंडिया – मिट्टी का बर्तन ।
- खून पसीना एक करना – बहुत मेहनत करना ।
- संलग्न – लीन, लगा हुआ।
- सिरहाने – सिर के पास ।
- चिपट – चिपकाना।
- ममता – माता का पुत्र पर स्नेह, मोह।