Students should regularly practice West Bengal Board Class 8 Hindi Book Solutions Chapter 3 नीलू to reinforce their learning.
WBBSE Class 8 Hindi Solutions Chapter 3 Question Answer – नीलू
वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
प्रश्न 1.
नीलू पाठ हिन्दी साहित्य की कौन-सी गद्य विधा है?
(क) कहानी
(ख) संस्मरण
(ग) रेखाचित्र
(घ) प्रहसन
उत्तर :
(ख) संस्मरण
प्रश्न 2.
नीलू किस प्रजाति का कुत्ता था?
(क) अल्सेशियन
(ख) भूटिया
(ग) अल्लेशियन-भूटिया वर्ण संकर
(घ) देशी
उत्तर :
(ग) अल्सेशियन-भूटिया वर्ण संकर
प्रश्न 3.
महादेवी वर्मा की जन्म-मृत्यु की कौन-सी तिथि सही है?
(क) सन् 1907-1980
(ख) सन् 1980-2014
(ग) सन् 1807-1887
(घ) सन् 1907-1987
उत्तर :
(ग) सन् 1907,1987
प्रश्न 4.
लूसी की मृत्यु कैसे हुई?
(क) ठंड लगने से
(ख) भूटिया कुत्ते द्वारा मारने
(ग) लकड़बग्घे द्वारा
(घ) कजली और बादल के द्वारा
उत्तर :
(ग) लकड़बघ्घे द्वारा
प्रश्न 5.
‘नीलू’ किस गद्य विधा की रचना है ?
(क) कहानी
(ख) संस्मरण
(ग) रेखाचित्र
(घ) प्रहसन
उत्तर :
(ख) संस्मरण
प्रश्न 6.
लूसी किस प्रजाति का कुत्ता था ?
(क) भूटिया
(ख) अल्सेशियन
(ग) जंगली
(घ) देशी
उत्तर :
(ख) अल्सेशियन
प्रश्न 7.
लूसी ने कितने बच्चों को जन्म दिया था ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर :
(ख) दो
प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से कौन-सा गुण नीलू में था ?
(क) पूँछ हिलाना
(ख) अकारण भौंकना
(ग) दीनभाव से पीछे घूमना
(घ) दर्प्भाव
उत्तर :
(घ) दर्पभाव
प्रश्न 9.
किन दौनों में गहरी दोस्ती थी ?
(क) नीलू-लूसी में
(ख) कजली-बादल में
(ग) नीलू-कजली में
(ङ) नीलू-बादल में
उत्तर :
(ग) नीलू-कजली में
प्रश्न 10.
नीलू का जीवन-काल कितने वर्षों का था ?
(क) ग्यारह
(ख) बारह
(ग) तेरह
(घ) चौदह
उत्तर :
(घ) चौदह
प्रश्न 11.
नीलू की मृत्यु कैसी थी ?
(क) शांत-निर्लिप्त
(ख) दैन्य
(ग) भयानक
(घ) असामयिक
उत्तर :
(क) शांत-निर्लिप्त
प्रश्न 12.
कौन रोशनदानों से नीचे गिर जाते थें ?
(क) नीलू
(ख) गौरैया
(ग) गौरैया के बच्चे
(घ) लूसी
उत्तर :
(ग) गौरैया के बच्चे
प्रश्न 13.
रात को कंपाउंड का चक्कर लगाकर कौन पहरेदारी करता था ?
(क) लूसी
(ख) नीलू
(ग) खरगोश
(घ) लेखक
उत्तर :
(ख) नीलू
प्रश्न 14.
किसको बिल्ला और सियार का आहार बनना पड़ा ?
(क) खरगोश को
(ख) गौरया को
(ग) नोलू
(घ) मोर को
उत्तर :
(क) खरगोश को
प्रश्न 15.
सरदी लगने से किसको निमोनिया हो गया ?
(क) नीलू को
(ख) लेखक को
(ग) खरगोश को
(घ) मोर को
उत्तर :
(क) नीलू को
प्रश्न 16.
लेखिका सबसे अधिक किसको महत्व देती थी ?
(क) लूसी को
(ख) नीलू को
(ग) खरगोश को
(घ) मोर को
उत्तर :
(ख) नीलू को
लघुउत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1.
लूसी कौन थी?
उत्तर :
लूसी उत्तरायण में रहने वाली एक अल्सेशियन कुतिया थी। वह नीलू की माँ थी।
प्रश्न 2.
उत्तरायण के लोग लूसी से सामान कैसे मँगवाते थे?
उत्तर :
उत्तरायण के लोग लूसी के गले में रुपये और सामग्री की सूची के साथ एक कपड़ा बाँध कर उससे सामान लाने का अनुरोध करते थे। लूसी दुकान तक पहुँच जाती थी। दुकानदार उसके गले से कपड़ा खोलकर रुपया, सूची लेने के बाद सामान की गठरी उसके गले या पीठ से बाँध देता और लूसी बोझ के साथ बर्फोला रास्ता पार कर सकुशल लौट आती थी। लोग अपना सामान प्राप्त कर लेते थे।
प्रश्न 3.
लेखिका को मित्र के आने की सूचना नीलू से कैसे मिलती थी?
उत्तर :
नीलू किसी विशेष परिचित को आया देखकर, धीरे-धीरे भीतर आकर लेखिका के कमरे के दरवाजे पर खड़ा हो जाता। नीलू का इस प्रकार आना ही लेखिका के लिए किसी मित्र के आने की सूचना थी।
प्रश्न 4.
नीलू अकेले कैसे रह गया?
उत्तर :
नीलू कुत्तों में केवल कजली के सामीप्य से प्रसन्न रहता था, परंतु कजली और बादल एक क्षण के लिए भी एक दूसरे से अलग नहीं रह सकते थे। इस प्रकार बेचारा नीलू अकेला रह गया।
प्रश्न 5.
अल्सेशियन और भूटिया कुत्तों के स्वभाव में क्या अन्तर होता है?
उत्तर :
अल्सेशियन कुत्ते आखेट प्रिय होते हैं। भूटिया कुत्ते हिंसक और कोधी स्वभाव के होते हैं।
प्रश्न 6.
गौरैया कहाँ अपना घोंसला बना लेती थी?
उत्तर :
गौरैया लेखिका के बँगले के रोशनदानों में अपना घोंसला बना लेती थी।
प्रश्न 7.
नीलू की मृत्यु क्या सामान्य कुत्तों की भाँति हुई?
उत्तर :
नीलू की मृत्यु सामान्य कुत्तों की भौंति नहीं हुई। सामान्य कुत्ते बड़े टुःख के साथ कराहते हुए मरते हैं। पर नीलू की मृत्यु कष्ट रहित, शांत निर्लिप्त भाव से हुई।
प्रश्न 8.
महादेवी वर्मा जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
महादेवी वर्मा जी का जन्म 26 मार्च, 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के फरूरखाबाद जिला में हुआ था।
प्रश्न 9.
जब लेखिका दाना देने निकलती है, तो कौन प्रत्येक कक्ष का निरीक्षण करता था ?
उत्तर :
जब लेखिका मोर, खरगोश आदि को दाना देने निकलती तो नीलू सदा उनके साथ घूमता और प्रत्येक कक्ष का निरीक्षण करता।
प्रश्न 10.
नीलू कैसे अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होता था ?
उत्तर :
रात में सबके सो जाने पर वह पूरे कंपाउंड का चक्कर लगाकर पहरेदारी करता था। जाड़ा हो, गरमी या बरसात वह अपने कर्त्तव्य से कभी विमुख नहीं होता था।
प्रश्न 11.
मोटर दुर्घटना में किसे अस्पताल जाना पड़ा ?
उत्तर :
एक बार मोटर दुर्घटना में आहत होने पर लेखिका को असताल जाना पड़ा।
प्रश्न 12.
नीलू कुत्तों में किसके निकटता से प्रसन्न रहता था ?
उत्तर :
कुत्तों में वह केवल कजली की निकटता से ही प्रसन्न रहता।
प्रश्न 13.
अपरिचित को देखकर नीलू क्या करता था ?
उत्तर :
अपरिचित को आया देखकर वह कमरे के दरवाजे पर आकर खड़ा हो जाता, फिर लेखिका के संकेत करने पर पुन: दरवाजे पर जा बैठता था।
प्रश्न 14.
नीलू का स्वभाव आश्चर्यजनक था कैसे ?
उत्तर :
तेरह वर्ष के जीवन में नोलू कभी भी किसी पशु पक्षी पर नहीं झपटा। उसका यह स्वभाव सचमुच आश्चर्यजनक था।
बोध मूलक प्रश्न :
प्रश्न 1.
लूसी की रूपाकृति का वर्णन करो।
उत्तर :
लूसी सामान्य कुत्तों से भिन्न थी। हिरणी के समान वह तीव्रगति वाली थी। उसकी देह मानों साँचे में ढली हुई थी। काला लगनेवाले पीली कांति वाले रोयें थे। आँखेे काली छोटी, सजग खड़े कान, रोएँदार लंबी पूँछ थी। वह बड़ी आकर्षक प्रतीत होती थी।
प्रश्न 2.
लूसी का स्वभाव स्वच्छंद सहचरी के समान क्यों था?
उत्तर :
अल्सेशियन कुत्ता एक ही स्वामी को स्वीकार करता है। यदि एक व्यक्ति का स्वामित्व उसे नहीं मिल पाता तो वह सब के साथ सहचर जैसा आवरण करने लगता है। वह आदेश किसी का नहीं मानता, पर सबके सेहपूर्ण अनुरोध की रक्षा करता है। अल्लेशियन जाति होने के कारण लूसी की स्थिति भी स्वच्छंद सह चरी के समान हो गई थी।
प्रश्न 3.
नीलू ने खरगोशों की प्राण रक्षा किस प्रकार की?
उत्तर :
खरगोश सुरंग कर दूसरे कंपाउंड में जा निकले। आगे पहुँचने वाले खरगोशों के अंग जंगली बिल्ला द्वार क्षतविक्षत कर दिए गए। कुछ खरगोश बिल्ले या सियार के आहार बन गएं। पहरे के नित्य क्रम में घूमते हुए नींलू ने चाहरदीवारी के पार देखा। खरगोशों के संकट को देखकर वह कूदकर उस पार पहुँच गया। उसके पहुँचते ही बिल्ला भाग गया। खरगोश को बाहर निकलने से रोकने और उनकी सुरक्षा के लिए वह रात भर ओस से भींगता हुआ सुरंग के द्वार पर खड़ा रहा। इस प्रकार नीलू ने खरगोशों की रक्षा की।
प्रश्न 4.
नीलू के स्वभाव गत विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर :
नीलू का स्वभाव अन्य कुत्तों से बिलकुल भिन्न था। वह खाने के लिए लालांयित नहीं रहता था। प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए पूँछ हिलाना, कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए चाहना, स्वामी के पीछे-पीछे घूमना, अकारण भौंकना, काटना आदि उसके स्वभाव में नहीं था। वह दीनता से रहित दर्प भाव से युक्त था। अपनी सहज चेतना से वह अपरिचित को पहचान लेता था। वह हिंसक स्वभाव का नहीं था।
प्रश्न 5.
लेखिका का नीलू प्रेम अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
नीलू की माँ के मर जाने पर लेखिका शावक नीलू को दुग्ध-चूर्ण से दूध बनाकर पिलाया। कोमल ऊन डालिया रख कर उसमें सुलाया। आने के समय उसे प्रयाग ले आई। नीलू हमेशा घर के बाहरी बरामदे में ही बैठा करता। नीलू के निमोनिया हो जाने पर उसे दवा तथा इंजेक्शन लगवाकर उसे स्वस्थ्य बनाया। जन्म से मृत्युतक वह हमेशा. लेखिका के साथ रहा।
प्रश्न 6.
लूसी के अभाव में नीलू का पालन-पोषण कैसे हुआ?
उत्तर :
माँ के अभाव में नीलू दूध के लिए शोर मचाने लगा। लेखिका ने दुग्ध-चूर्ण से दूध बनाकर पिलाया। रजाई में भी उसे माँ के पेट की गर्मी न मिलती और रोने चिल्लाने लगता। फिर लेखिका ने उसे कोमल ऊन और अधबुने स्वेटर की डालिया में रख दिया। अब वह आराम से सोने लगा। आने के समय लेखिका उसे भी प्रयाग लेते आई।
प्रश्न 7.
‘जीवन के समान उसकी मृत्यु भी दैन्य से रहित थी’ आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति में लेखिका ने स्पष्ट किया है कि नीलू का जीवन मस्ती और आनंद से भरा था। उसमें दीनता की हीन भावना नहीं थी। उसी प्रकार उसकी मृत्यु भी कष्ट रहित थी। उसकी मृत्यु अत्यंत शांत भाव से हुई। मृत्यु के समय वह निर्लिप्त बना रहा।
प्रश्न 8.
‘एक व्यक्ति का स्वामित्व उसे सुलभ नहीं होता, तो वह सबके साथ सहचर जैसा आचरण करने लगता है।’ आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत अवतरण में लेखिका ने अल्सेशियन कुत्ते के स्वभाव का चित्रण किया है। अल्सेशियन कुत्ते को यदि कोई एक स्वामी (मालिक) नहीं मिल जाता तो वह सब के साथ सहचर जैसा व्यवहार करने लगता है। वह किसी का आदेश नहीं मानता, परंतु सहचर की तरह प्रेम भरे अनुरोध को स्वीकार करता है।
व्याख्या मूलक प्रश्न :
प्रश्न :
‘नीलू’ के माध्यम से स्पष्ट कीजिए कि पशु मानव समाज के लिए बड़े उपयोगी होते हैं?
उत्तर :
लेखिका ने अपने पालतू कुत्ते नीलू और उसकी माँ लूसी की जीवन गाथा से उनके संबंध, क्रिया कलाप, स्वामिभक्ति, कर्त्तव्यपरायणता का सहज वर्णन किया है। इनके क्रिया कलाप से यह सिद्ध हो जाता है कि पशु मानव के लिए बड़े उपयोगी हैं।
उत्तरायण में लूसी की स्थिति स्वच्छंद सहचरी के समान थी। उत्तरायण से एक रास्ता दो पहाड़ियों के बीच से मोटर मार्ग तक जाता था। उसके अन्त में मोटर स्टाप पर एक ही दुकान थी। जिसमें आवश्यक खाद्य सामग्री प्राप्त हो सकती थी। शीतकाल में बर्फ से ढक जाने से रास्ते का चिह्न भी नहीं रह जाता था। उस समय उत्तरायण के निवासी दुकान तक पहुंचने में असमर्थ हो जाते थे। ऐसी स्थिति में लूसी ही उनका सहयोग करती थी। उत्तरायण के निवासी लूसी के गले में रुपये और सामग्री की सूची के साथ एक कपड़ा या चादर बाँध कर सामान लाने का अनुरोध करते थे।
वंश परपरा से बर्फ में मार्ग बना लेने की सहज चेतना के कारण लूसी सारे व्यवधान पार कर दुकान तक पहुँच जाती थी। दुकानदार उसके गले से कपड़ा खोलकर रुपया सूची आदि लेने के बाद सामान की गठरी उसको गले या पीठ से बाँध देता और लूसी सारे बोझ के साथ बर्फीला मार्ग पार करती हुई सकुशल लौट आती। किसी किसी दिन उसे कई बार आना-जाना पड़ता था। इस प्रकार वह चीनी, चाय, आटा, आलू आदि सामग्री लोगों को पहुँचाकर उनकी भलाई किया करती थी।
नीलू अत्यंत समझदार कुत्ता था। वह बारह वर्ष तक लेखिका के घर के बाहरी बरामदे में रहता था। वह प्रत्येक आनेजाने वाले की भली-भाँति देखता था। लेखिका से मिलने वालों में सभी को पहचानता था। किसी अपरिचित को देखकर भीतर आकर कमरे के दरवाजे पर खड़े हो कर भौंकता था। इस प्रकार वह लेखिका को किसी मित्र की उपस्थिति की सूचना दे देता था। नीलू का ध्वनिज्ञान सूँबने का अत्यंत गहरा था। बाहर घूमतें समय यदि कोई कह देता कि तुम्हें गुरुजी बुला रही हैं तो तुरंत कमरे के सामने आकर खड़ा हो जाता था। कभी किसी पशु या पक्षी पर आक्रमण नहीं करता था। बँगले के रोशन दानों में गौरैया के घोंसले बने थे। उनसे कभी उनके बच्चे गिर पड़ते थें। उस समय नीलू बड़ी सतर्कता के साथ कुत्तों तथा बिल्लियों से उन शावकों की रक्षा किया करता था।
सब के सो जाने पर गरर्मियों में बाहर लॉन पर और सर्दियों में बरामदे में बैठकर पहरेदारी सजगता के साथ किया करता था। एक रात में लेखिका के खरगोश बिल खोदकर दूसरे कंपाउंड में निकल गए। जैसे ही वे बाहर निकलते सियार यां मार्जार उन्हें आहार बना डालते। संकेत से यह जानकर नीलू कूदकर दूसरी ओर सुरंग के पास पहुँच गया। उसे देखते ही बिल्ला भाग गया। खरगोशों की रक्षा के लिए वह रातभर जाड़े में खड़ा रहा। मोटर-दुर्टटना में आहत हो जाने पर लेखिका अस्पताल में भर्ती हुई। नोलू वहाँ भी पलंग के चारों घूमता और प्रहरी की तरह पलंग के नीचे जा बैठता। इन क्रिया कलापों से स्पष्ट हो जाता है कि पशु कितने समझदार और मनुष्य के सहायक तथा मित्र होते हैं।
भाषा बोध :
1. निम्न शब्दों का संधि विच्छेद कर संधि का नाम लिखिए।
उत्तरायण = उत्तर + अयन – स्वर संधि
कालान्तर = काल + अन्तर – स्वर संधि
स्वभाव = सु + भाव – स्वर संधि
कुहराच्छन्न = कुहरा + आच्छन्न – स्वर संधि
प्रतिक्षा = प्रति + इक्षा – स्वर संधि
2. निम्नलिखित शब्दों से मूल शब्द और उपसर्ग अलग कीजिए-
परिस्थिति परि + स्थिति
आचरण आ + चरण
सकुशल स + कुशल
सुडौल सु + डौल
निर्लिप्त निर + लिप्त
सतर्क स + तर्क
3. क्रिया की विशेषता बताने वाले शब्द को क्रिया विशेषण कहते है। जैसे- नीलू धीरे-धीरे खरगोशों के पास गया। ऐसे कुछ क्रियाविशेषण चुनिए-
(क) स्वामी के पीछे-पीछे घूमना उसे पसंद न था।
(ख) वह सदर्प धीरे-धीरे आकर दरवाजे पर खड़ा हो जाता।
4. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग करो-
कुत्ते की मौत मरना – बुरी तरह मरना।
उत्तरायण होना – उत्तर की ओर, उत्तर गति होना।
अवज्ञा होना – उपेक्षा या तिरस्कार करना।
कुत्ते की मौत मरना – जो व्यक्ति जीवन में बुरा आचरण करता है, वह अन्त में कुत्ते की मौत मरता है।
उत्तरायण होना – भीष्म पितामह उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते रहे।
अवज्ञा करना – हमें बड़ों को कभी अवज्ञा नहीं करनी चाहिए।
WBBSE Class 8 Hindi नीलू Summary
लेखक-परिचय :
आधुनिक युग की मीरा हिन्दी साहित्य की यशस्वी कवयित्री महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फरूखाबाद में सन् 1907 ई. में होली के दिन हुआ था। छायावादी काव्य चेतना के उन्नयकों में महादेवी जी का अन्यतम स्थान हैं। इन्होंने संस्कृत में प्रथम श्रेणी में एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रयाग महिला पीठ की प्रधानाचार्य के पद पर रहकर उन्होंने नारी-शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सन् 1987 ई. में इनका देहावसान हो गया।
इनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ – नीहार, रशिम, नीरजा, दीपा शिखा, यामा तथा गद्य रचनाएँ- अतीत के चलचित्र, श्रृंखला की कड़ियाँ, पथ के साथी और मेरा परिवार आदि हैं। कविता और गद्य पर उनका समान अधिकार है। भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ अलंकार में सम्मानित किया। ‘यामा’ और ‘दीप शिखा’ पर उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से विभूषित किया गया। महादेवी जी की भाषा शुद्ध संस्कृत निष्ठ, कोमल खड़ी बोली है। इन्होंने गद्ध और पद्य दोनों विधाओं में रचनाकर हिन्दी साहित्य को नये शिखर पर पहुँचा दिया।
साराश :
प्रस्तुत पाठ में लेखिका ने अपने पालित कुत्ते नीलू तथा उसकी माँ लूसी की जीवन गाथा के साथ जुड़ी स्मृतियों का सहज वर्णन किया है। नीलू की अल्सेशियन माँ उत्तरायण में लूसी नाम से पुकारी जाती थी। लूसी सामान्य कुत्तों से भिन्न थी। काली छोटी आँखें, सघन खड़े कान, लंबी पूँछ से युक्त लूसी की देह साँचे में ढली हुई लगती थी। लूसी स्वछंद सहचरी की तरह साथ के स्नेहपूर्ण अनुरोध की रक्षा करती थी। उत्तरायण से मोटर स्टाप तक एक पगडंडी जाती थी। वहीं एक दुकान थी जिसमें आवश्यक खाद्य-सामग्री प्राप्त हो सकती थी। शीतकाल में बर्फ के भर जाने से यह रास्ता चिद्न लुप्त हो जाता था।
आवागमन बंद हो जाता था। उत्तरायण के निवासी दुकान तक पहुँचने में असमर्थ हो जाने पर लूसी से सामान मँगवाते थे। वे लूसी के गले में रुपये और सामग्री की सूची के साथ एक अँगोछा या चादर बाँधकर उससे सामान लाने का अनुरोध करते थे। वह सारे व्यवधान पार कर दुकान तक पहुँच जाती थी। दुकानदार उसके गले से कपड़ा खोलकर रुपया, सूची लेकर सामान की गठरी गले या पीठ से बाँध देता था। लूसी बर्फीला रास्ता पार कर सकुशल लौट जाती थी। इस प्रकार चीनी, चाय, आटा, आलू आदि लोग उससे मँगबाते थे। एक दिन भटकता एक भूटिया कुत्ता दुकान पर आ गया और लूसी से उसकी मिश्रता हो गई। उन्हीं सरदियों में लूसी ने दो बच्चों को जन्म दिया। एक बच्चा तो शीत के कारण मर गया पर दूसरा जीवित बचा रहा। चार-पाँच दिन के बाद लूसी बच्चे को छोड़ कर फिर दुकान तक आने जाने लगी। एक संध्या लूसी गई फिर लौट न सकी। हुआ यह कि एक लकड़बग्घे से संघर्ष करती वह दम तोड़ दी।
लूसी के लिए गाँव के सभी लोग रोए। उसके बच्चे को दुग्ध चूर्ण से दूध बनाकर पिलाया गया। आने के समय लेखिका उसे अपने साथ प्रयाग ले आई। बड़े होने पर वह अपनी माँ के समान ही विशिष्ट था। उसका सिर बड़ा और चौड़ा, पूँछें सघन रोमों से युक्त, पैर लंबे, पंजे मजबूत, आँखें शहद के रंग के समान थीं। नीलू के बल और स्वभाव में भी विशेषता थी। अन्य कुत्तों की भाँति वह दीनभाव से स्वामी के पीछे-पीछे घुमना, अकारण भौंकना, काटना आदि कुत्तों के स्वाभाविक गुणों का उसमें अभाव था। नीलू कभी प्रिय खाद्य-पदार्थ को यदि अवज्ञा से दिया जाता तब स्वीकार न करता।
इसमें अलभ्य दर्प का भाव था। डाँट देने पर फिर उसकी भिन्न करनी पड़ती थी। वह सदा लेखिका के घर के बाहरी बरामदे में ही बैठता था और घर आने जाने वालों का निरीक्षण करता था। घर मिलने वाले को पहचानता था। अपरिचित को आया देखकर वह कमरे के दरवाजे पर आकर खड़ा हो जाता, फिर लेखिका के संकेत करने पर पुनः दरवाजे पर जा बैठता था।
नीलू का ध्वनि ज्ञान बड़ा गहरा था। बाहर या रास्ते में घूमते समय यदि उसे किसी से संकेत मिलता तो वह तुरंत जाकर, उनके सामने खड़ा हो जाता, फिर जब तक जाने का संकेत नहीं मिलता तब तक खड़ा रहता। उसमें हिंसा की प्रवृत्ति बिलकुल नहीं थी। तेरह वर्ष के जीवन में नीलू कभी भी किसी पशु पक्षी पर नहीं झपटा। उसका यह स्वभाव सचमुच आश्चर्य जनक था।
लेखिका के बँगले के रोशनदानों में प्राय: गौरैया तिनकों से घोंसला बना लेती थी। कभी-कभी गौरैया के बच्चे उड़ने में असफल प्रयास में रोशन दानों से नीचे गिर जाते थे। इन दिनों नीलू सावधानी से इनकी रक्षा करता था। कोई भी कुत्ता या बिल्ली उसके भय से यहाँ आने, उन्हें हानि पहुँचाने की हिम्मत नहीं कर पाता था। कभी-कभी वह छोटे पक्षी-शावकों को मुख में हौले से दबाकर लेखिका के पास ले आता, ताकि वे पुनः उन बच्चों को घोंसलें में पहुँचा दें। जब लेखिका मोर, खरगोश आदि को दाना देने निकलती तो नीलू सदा उनके साथ घूमता और प्रत्येक कक्ष का निरीक्षण करता।
रात में सबके सो जाने पर वह पूरे कंपाउंड का चक्कर लगाकर पहरेदारी करता था। जाड़ा हो या गर्मी या बरसात वह अपने कर्त्तव्य से विमुख नहीं होता था। एक रात लेखिका के खरगोश बिल खोद कर दूसरे कंपाउंड में निकल गये। बाहर निकलने पर उन्हें बिल्ला और सियार का आहार बनना पड़ा। नीलू खरगोशों के संकट को पहचान कर कूद कर दूसरी ओर पहुँच गया। उसके पहुँचते ही बिल्ला तो भाग गया, पर नीलू खरगोशों को रोकने के लिए रात भर ओस से भींगता हुआ सुरंग के द्वार पर खड़ा रहा। सरदी लगने से नीलू को न्यूमोनिया हो गया। वह शांति पूर्वक कड़वी दवा खा लेता तथा सुई लेने का कष्ट सहता।
एक बार मोटर दुर्घटना में आहत होने पर लेखिका को अस्पताल जाना पड़ा। कपड़े-चादर, कंबल आदि अस्पताल ले जाते देख नीलू की सहज चेतना के किसी अनिष्ट का आभास हो गया। तीन दिन तक उसने न खाया, न पिया। डॉक्टर से अनुर्मति लेकर उसे अस्पताल लाया गया। वह पलंग के चारों ओर घूमता और रक्षक की तरह पलंग के नीचे बैठता। वह नियमित रूप से अस्पताल आने लगा। डॉक्टर और नर्सें भी उससे परिचित हो गई।
नीलू को चौदह वर्ष का जीवन मिला था। वह जन्म से मृत्यु के क्षण तक लेखिका के पास ही रहा। कुत्तों में वह केवल कजली की निकटता से ही प्रसन्न रहता। पर कजली और बादल एक क्षण के लिए एक दूसरे से अलग नहीं रह सकते थे। इसलिए नीलू सदा एकाकी ही रहा। अत्यंत शांत निर्लिप्त भाव से नीलू की मृत्यु हुई। लेखिका अपने पाले हुए अनेक जीव-जंतुओं में नीलू को ही सर्वाधिक महत्त्व देती थी।
शब्दार्थ :
- अल्सेशियन = कुत्तों की एक नस्ल।
- ऊष्मा = ऊर्जा, गर्मी, आवेश।
- वेगवती = तेज गति वाली ।
- स्तब्ध = हक्काबक्का हो जाना, जड़ीभूत।
- पीताभ = पीली कांति।
- भूटिया = कुत्ते की एक नस्ल।
- स्वच्छंद = स्वतंत्र, मुक्त।
- तुषार = बर्फ, हिम।
- व्यवधान = रुकावट।
- अनगढ़, शिलखंड = ऊबड़-खाबड़, पत्थर।
- पनीले = जल युक्त। अवज्ञा = उपेक्षा।
- वर्ण संकर = दो विभिन्न जातियों से उत्पन्न।
- निरपेक्ष =तटस्थ, उदासीन ।
- स्तब्धता = सन्नाटा, स्थिरता।
- व्यतिक्रम = बिना क्रम के।
- अलभ्य दर्प = असाधारण गर्व।
- विषादमयी = दु:ख से भरी।
- निर्लिप्त = जो किसी विषय में आसक्त न हो।
- काम्य = बांछनीय, प्रिय।