Students should regularly practice West Bengal Board Class 7 Hindi Book Solutions Poem 2 संगठन to reinforce their learning.
WBBSE Class 7 Hindi Solutions Poem 2 Question Answer – संगठन
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
कवि किसकी सेवा करने की कामना करता है?
(क) माता-पिता की
(ख) गुरुजनो की
(ग) स्वदेश की
(घ) दुश्मनों की।
उत्तर :
(ग) स्वदेश की।
प्रश्न 2.
कवि बीस वर्षों तक किस व्रत का पालन करना चाहता है?
(क) बृहस्पति व्रत
(ख) वहायर्य वत
(ग) वाणप्रस्थ वत
(घ) गृहस्थ व्रत।
उत्तर :
(ख) बहाचर्य व्रत
प्रश्न 3.
हमारी वीरता किसके लिए भय का कारण बने ?
(क) दोस्त के लिए
(ख) दुश्मनों के लिए
(ग) अपनों के लिए
(घ) भिखारी के लिए
उत्तर :
(ख) दुश्मनों के लिए।
प्रश्न 4.
कवि किस बंधन को तोड़ना चाहता है?
(क) पारिवारिक
(ख) सामाजिक
(ग) कुरीति
(घ) मेल-जोल
उत्तर :
(ग) कुरीति
प्रश्न 5.
‘संगठन’ किस कवि की रचना है ?
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) मुकुटधर पाण्डेय
(ग) रामनरेश त्रिपाठी
(घ) श्रीधर पाठक
उत्तर:
(ग) रामनरेश त्रिपाठी
प्रश्न 6.
रामनरेश त्रिपाठी का जन्म कहाँ हुआ था ?
(क) जौनपुर
(ख) गोरखपुर
(ग) भोजपुर
(घ) सुस्तानपुर
उत्तर :
(क) जौनपुर
प्रश्न 7.
‘संगठन’ कविता में कवि ने किनको तोड़ने की बात की है ?
(क) परंपरा को
(ख) कुरीतियों को
(ग) संबंधों को
(घ) रीतियों को
उत्तर :
(ख) कुरीतियों को
प्रश्न 8.
हमारी वीरता किसके लिए भय का कारण बने ?
(क) दोस्त के लिए
(ख) दुश्मन के लिए
(ग) अपनों के लिए
(घ) भिखारी के लिए
उत्तर :
(ख) दुश्मन के लिए
प्रश्न 9.
हमारी वीरता से कौन कांप जाए ?
(क) दुष्ट
(ग) कवि
(ग) गुजन
(घ) अनामिका
उत्तर :
(क) दुष्ट
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
कवि ईश्वर से क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर :
कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि हमें देश सेवा एवं मानव की भलाई में लगे रहने की प्रेरणा दें ।
प्रश्न 2.
इस कविता के माध्यम से कवि ने हमें क्या सन्देश दिया है?
उत्तर :
इस कविता के माध्यम से कवि ने हमें कर्तव्य मार्ग से न चूकने, स्वदेश की रक्षा के लिए तत्पर बने रहने तथा कभी निर्बल न बनने का संदेश दिया है।
प्रश्न 3.
कवि किन साधनों को प्राप्त करने की कामना करता है?
उत्तर :
कवि बल, बुद्धि, विद्या तथा धन जैसे अनेक साधनों को प्राप्त करने की कामना करता है।
प्रश्न 4.
किन परिस्थितियों में कवि हिम्मत न हारने की सलाह हमें दे रहा है?
उत्तर :
संकटों में चाहे हम दरिद्र बन जाएँ, विपत्ति-बाधाओं से चाहे हम घिर जाएँ, ऐसी परिस्थिति में हिम्मत न हारने की सलाह कवि हमें दे रहा है।
प्रश्न 5.
कवि के अनुसार हमारा उद्देश्य क्या होना चाहिए ?
उत्तर :
उनके अनुसार बल, बुद्धि, विद्या रूपी धन को प्राप्त कर देश को सर्मां्षित कर देना ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए।
प्रश्न 6.
रामनरेश त्रिपाठी का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर :
रामनरेश त्रिपाठी का जन्म 1889 ई० में हुआ था।
प्रश्न 7.
कवि देश को क्या समर्पित करना चाहते हैं ?
उत्तर :
कवि देश को बल, बुद्धि और विद्या को प्राप्त कर देश को समार्षित करना चाहते हैं।
प्रश्न 8.
कवि किनकी शक्तियाँ लगाना चाहता है ?
उत्तर :
कवि मन और देह (आध्यात्म और भौतिक) शक्तियाँ लगाना चाहता है।
बोधमूलक प्रश्नोत्तर
(क) संगठन कविता का मूल सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
प्रस्सुत कविता में कवि भगवान से ऐसी शान्ति पाने की प्रार्थना करता है कि भारत संगठित बना रहे। हम अपना सर्वस्ब देश के लिए समर्मित कर दें। मन और तन को शान्ति संपन्न बनाने के लिए बहलचर्य का पालन करें। सारी कुरीतियों को तोड़ डालें। किसी भी संकट के समय साहस न छोड़े। हमारी वीरता से शत्रु भयभीत हो उठे। प्राण रहते हम स्वदेश की रक्षा करते रहें। सारे संसार को हम अपना बना सकें। सर्वत्र हमारी सुकीर्ति गूँजे।
(ख) कवि मातृभूमि की सेवा कैसे करना चाहता है ?
उत्तर :
कवि चाहता है कि स्वदेश की सेवा में ही अपना शरीर अर्पित कर दें। बल, बुद्धि, विद्या, धन के सभी साधनों को देश के लिए सर्मार्पित कर देना चाहता है। वह चाहता है कि स्वदेश के प्रति उसमें सच्चाप्देम बना रहे। जब तक उसके शरीर में प्राण का संचार हो, तब तक देश की रक्षा करता रहे । इस प्रकार कवि देश सेवा को ही सबसे बड़ी सेवा और देश पर मर मिटने को ही सबसे बड़ा बलिदान मानता है। इस प्रकार कवि मातृभूमि की सेवा करना चाहता है।
(ग) कवि निर्बलता एवं पतन से बचने के लिए हमें क्या सलाह देता है?
उत्तर :
कवि यह सलाह देना चाहता है कि हम समाज में फैली सारी कुरीतियों के बंधन को तोड़ दें और बीस वर्ष तक बहाचर्य का पालन कर मानसिक और शारीरिक दृष्टि से शक्ति संपन्न बन जाएँ। जिससे हम कभी निर्बल न हों और कभी हमारा पतन न हो।
(घ) कवि ईश्वर से शक्ति क्यों माँगता है?
उत्तर :
कवि ईश्वर से शक्ति माँगता है, ताकि उसे पाकर वह सारे संसार को अपना बना सके। प्रभु को फिर से देश में बुला सके। सुख के समय प्रभु को न भूले तथा टु:ख में हार न माने। कर्तव्य से कभी न हटे। समस्त संसार में उसकी सुकीर्ति गूंज उठे।
(ङ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर यथा निर्देश दीजिए-
(अ) छीने न कोई हमसे प्यारा वतन हमारा।
प्रश्न 1.
कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
उत्तर :
मस्तुत पंक्ति के कवि श्री रामनरेश त्रिपाठी हैं। यह संगठन कविता से उद्धृत है।
प्रश्न 2.
उक्त अंश में कवि क्या संदेश देता है और क्यों?
उत्तर :
इस प्रश्न का उत्तर कविता 4 की व्याख्या देखें।
(ब) गाएँ सुयश खुशी से जग में सुजन हमारा।
प्रश्न 1.
सुयश और सुजन का अर्थ लिखिए-
उत्तर :
सुयश का अर्थ है- सुन्दर प्रशंसनीय कीर्ति और सुजन का अर्थ है- भले लोग जो सदा अछ्छा कार्य करते हैं।
प्रश्न 2.
संसार के लोग हमारा सुयश कैसे गा सकते हैं?
उत्तर :
इस प्रश्न का उत्तर कविता 5 की व्याख्या में देखें।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘संगठन’ कविता द्वारा कवि ने हमें क्या प्रेरणा दी है?
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में कवि ने देश प्रेम की भावना को व्यक्त किया है। इस कविता से हमें देश सेवा तथा मानव कल्याण में लगे रहने की प्रेरणा मिलती है। प्रभु से हमें ऐसी शक्ति मिले जिससे हमारा संगठन, पारस्परिक समन्वय सदा बना रहे। हम अपनी सारी शक्ति, बुद्धि धन, अर्थात् सर्वस्व देश को समर्पित कर दें। देश की सेवा में अपने को न्योछावर कर दें। समाज में युगों से व्याप्त रूढ़ियों, गलत कुरीतियों के बन्धन को तोड़कर अपने धर्म और विवेक पर दृढ़ बने रहे।
मानसिक तथा शारीरिक शक्तियों के लिए ब्रह्मचर्य व्वत का पालन करें। अपने देश की रक्षा तथा सम्मान के लिए हँसते हुए प्राण त्यागने के लिए सदा प्रस्तुत रहें। हम पर लाखों संकट आए, मुसीबतें सिर पर सवार हो जाएँ, चाहे हम भिखारी बन जाएँ, पर कभी भी हिम्मत न हारें, निराश न हों। हर हालत में अपने मानसिक संतुलन को बनाए रखें। कहा गया है- मन के हारे हार है मन के जीते जीत। अत: मन को विचलित न होने दें, सदा मन स्थिर बना रहे।
कवि देशवासियों को प्रेरणा दे रहा है कि हमें ऐसी शक्ति प्राप्त करना है जिससे हमारी वीरता को सुनकर सभी दुष्ट अत्याचारी भयभीत हो उठें। भारतवासियों के भय से कोई भी व्यक्ति न्याय के पथ से विचलित न हो। सभी लोग सच्चे न्याय के पथ पर दृढ़ बने रहें। जब तक शरीर में एक भी नस फड़क रही हो, जब तक एक भी साँस बाकी हो, जब तक शरीर में रक्त की एक बूँद भी शेष रहे, तब तक हम स्वदेश की रक्षा में तत्पर बने रहें। हमारे प्यारे वतन को कोई न छीन सकें। हम अपनी स्वाधीनता की, अपने देश की रक्षा प्राणों से करते रहें।
कवि चाहता है कि उसमें ऐसी शक्ति तथा विवेक का भाव हो जिससे अखिल विश्व को अपना बना सकें। सुख के समय हम ईश्वर को न भूल सकें। विपत्ति के समय भी कभी हार न माने, मन में कभी हीन ग्रंथि की भावना न लाएँ। कर्त्तव्य मार्ग पर सदा आरुढ़ बने रहें। कवि की अभिलाषा है सारे संसार में हमारी सुकीर्ति, हमारी न्याय परंपरा का डंका बजे। सारा संसार हमारी महत्ता को स्वीकार करे। अपने सद्कर्त्तव्य, उदारता, सेवा, सहानुभूति, देश प्रेम जैसे महान कार्यों से हम अपने देश और समाज को उत्कृष्ट बना सकते हैं।
भाषा – बोध
(क) उपसर्ग अलग करो-
शब्द — उपसर्ग
संगठन — सम् + गठन
स्वदेश — स्व + देश
निरंतर — नि: + अन्तर
कुरीति — कु + रीति
सुजन — सु + जन
(ख) पर्यायवाची शब्द-
देश – राष्ट्र, जनपद, जन्मभूमि।,
विद्या – ज्ञान, बोध, विद्वता।,
देह – शरीर, तन, बदन।
जग – संसार, विश्व, दुनिया।,
भिखारी – भिक्षुक, याचक, मांगनेवाला।
(ग) कुछ तत्सम शब्द –
स्वदेश, समर्पण, शक्ति, धर्म, न्याय, सुयश।
(घ) विलोम शब्द –
निर्बल – सबल
संगठन – विघटन
स्वदेश – विदेश
पतन – उत्थान
भिखारी – दाता, दानी
WBBSE Class 7 Hindi संगठन Summary
जीवन वरचचय
श्री रामनरेश त्रिपाठी का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जनपद के कोइरीपुर गाँव में सन् 1889 में हुआ था। नौवीं कक्षा तक विद्यालय में शिक्षा प्राप्तकर इन्होंने घर पर ही रहकर अध्ययन किया और साहित्य साधना में लग गए। सन् 1962 में इनका स्वर्गवास हो गया। त्रिपाठी के काव्य में गंगा-यमुना के कछारों तथा विन्ध्याचल की रमणीय घाटियों का सुन्दर चित्रण मिलता है।
वे उच्चकोटि के आदर्शवादी कवि, कथाकार, नाटककार, आलोचक तथा संपादक थे। लोकगीतों के क्षेत्र में इन्होंने योगदान किया। इनकी रचनाओं में राष्ट्रीयता के साथ-साथ आदर्शवाद का पुट भी मिलता हैं। इनकी भाषा सरल, सरस, प्रवाहमय, तथा बोधगम्य है। इनकी प्रमुख रचनाएँ पथिक, मिलन, स्वप्न, मानसी, ग्राम्यगीत, कविता कौमुदी, आदि हैं।
पद – 1
भगवन् रहे निरंतर दृढ़ संगठन हमारा।
छूटे स्वदेश की ही सेवा में तन हमारा।।
बल, बुद्धि और विद्या धन के अनेक साधन।
कर प्राप्त हम करेंगे निज देश को समर्पण।।
वह शक्ति दो कि भगवन् निभ जाय प्रण हमारा।। छूटे।।
शब्दार्थ :
- निरंतर – लगातार
- दृढ़ – मजबूत
- निज – अपना
- स्वदेश – अपना देश
- समर्पण-अर्पण, बलिदान
- निभ – निर्वाह होना
- प्रण – अटल निश्चय, प्रतिज्ञा
- संगठन – बिखरी हुई शक्तियों या
लोगों का एकत्रीकरण, लोगों का मिलना।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘संगठन’ पाठ से ली गईहैं। इसके कवि श्री रामनरेश त्रिपाठी हैं।
प्रसंग – इन पंक्तियों में कवि ने देश पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने की शक्ति प्राप्त करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की है।
व्याख्या – कवि ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हमारे देश की बिखरी हुई शक्तियाँ संगठित हों और लोगों का संगठन सदा दृढ़ बना रहे। अपने प्यारे देश की सेवा करते हुए ही हमारा यह शरीर छूटे । शक्ति, बुद्धि, विद्या तथा धन के सभी उपायों को प्राप्त कर हम अपने देश पर सब न्योछावर कर दें। देश सेवा तथा देश के लिए अपना बलिदान कर देना ही हमारा लक्ष्य है। हे प्रभु, हमें ऐसी शक्ति दीजिए, जिससे हमारी प्रतिज्ञा, बलिदान-भावना का निर्वाह हो जाए। देश की सेवा करते हुए ही हम अपना जीवन समर्पित कर दें।
पद – 2
हममें विवेक जागे, हम धर्म को न छोड़ें,
बन्धन कुरीतियों के हम एक-एक तोड़ें।
व्रत ब्रह्मचर्य कम से कम बीस वर्ष पालें,
मन और देह दोनों की शक्तियाँ कमा लें।
निर्बल न हों कभी हम, कि न हो पतन हमारा।। छूटे।।
शब्दार्थ :
- विवेक-बुद्धि, भले बुरे का ज्ञान
- व्रत – पवित्र संकल्प, दृढ़ निश्चय
- बन्धन – प्रतिबंध निर्बल – कमजोर
- कुरीति – बुराई पतन – ह्रास, विनाश, अधोगति
व्याख्या – प्रस्तुत अवतरण में कवि ने सद्बुद्धि प्राप्त कर मानसिक तथा दैहिक शक्तियों को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की है। कवि का कथन है कि हम भारतवासियों में सद्बुद्धि जागे, सत् असत् का ज्ञान हो। हम अपने धर्म का परित्याग न करें। समाज में व्याप्त सभी बुराइयों के जाल को हम तोड़ डालें। कम से कम बीस वर्ष तक बह्मचर्य व्रत का पालन करें। ब्रह्मचर्य पालन के दृढ़ निश्चय से हमारा मन तथा तन दोनों शक्ति सम्पन्न बने। हम कभी भी शक्तिहीन न बने। यदि हमारे तन-मन की शक्ति बनी रहेगी तो कभी भी हमारा विनाश नहीं होगा, बल्कि सदा उत्थान, प्रगति होती रहेगी।
पद – 3
मरना अगर पड़े तो मर जायें हम खुशी से,
निज देश के लिए पर छूटे लगन न जी से।
पर संकटों में चाहे बन जायें हम भिखारी,
सिर पर मुसीबतें ही आ जायें क्यों न सारी।
हिम्मत कभी न हारें, विचले न मन हमारा ।। छूटे।।
शब्दार्थ :
- लगन – लगाव, प्रेम
- संकटों – कठिनाइयाँ
- मुसीबतें – विपत्ति, तकलीफ
- हिम्मत – साहस
- विचले – विचलित होन
- जी – मन
व्याख्या – प्रस्तुत अवतरण में कवि ने स्पष्ट किया है कि भारतीयों की वीरता तथा भय से सभी दुष्ट लोग डर से काँप उठें। हम भारतवासियों के शौर्य तथा पराक्रम को सुनकर सारे दुष्टजन भयभीत हो उठें। हमारे दबदबे तथा प्रभाव को देखकर कोई भी न्याय के पथ से विचलित न हो। जब तक हमारे शरीर में एक भी नस फड़कती रहे, जब तक शरीर में रक्त की एक बूँद भी बची रहे, जब तक शरीर में प्राण का संचार रहे, तब तक दुनिया की कोई भी शक्ति हमारी प्यारी जन्मभूमि भारतवर्ष को छीन न सके। देश की रक्षा तथा देश पर मर-मिटना हर भारतवासी का पुनीत कर्त्तव्य होना चाहिए।
पद – 4
सुन वीरता हमारी काँप जाएँ दुष्ट सारे,
कोई न न्याय छोड़े आतंक से हमारे।
जब तक रहे फड़कती नस एक भी बदन में,
हो रक्त बूँदभर भी जब तक हमारे तन में।
छीने न हमसे कोई प्यारा वतन हमारा। छछूटे।।
शब्दार्थ :
- आतंक – रोब, दबदबा, भय
- नस – रक्तवाहिनी नाड़ी
- बदन – शरीर
- वतन- जन्मभूमि, स्वदेश
- फड़कती – हिलती-डुलती
- दुष्ट – खल, नीच
व्याख्या – प्रस्तुत अवतरण में कवि ने स्पष्ट किया है कि भारतीयों की वीरता तथा भय से सभी दुष्ट लोग डर से काँप उठें।
हम भारतवासियों के शौर्य तथा पराक्रम को सुनकर सारे दुष्टजन भयभीत हो उठें। हमारे दबदबे तथा प्रभाव को देखकर कोई भी न्याय के पथ से विचलित न हो। जब तक हमारे शरीर में एक भी नस फड़कती रहे, जब तक शरीर में रक्त की एक बूँद भी बची रहे, जब तक शरीर में प्राण का संचार रहे, तब तक दुनिया की कोई भी शक्ति हमारी प्यारी जन्मभूमि भारतवर्ष को छोन न सके। देश की रक्षा तथा देश पर मर-मिटना हर भारतवासी का पुनीत कर्त्तव्य होना चाहिए।
पद – 5
वह शक्ति दो कि जग को अपना बना सकें हम,
वह शक्ति दो कि तुमको फिर से बुला सकें हम।
सुख में तुम्हें न भूलें, दु:ख में न हार मानें,
कर्त्तव्य से न चूकें, तुम को परे न जानें।
गाएँ सुयश खुशी से जग में सुजन तुम्हारा। ।छूटे।।
शब्दार्थ :
- जग – संसार
- हार – पराजय
- सुयश – सुन्दर कीर्ति
- चूकें- सुअवसर को खो देना, भूल करना
- परे – पराया
- सुजन- भले लोग
व्याख्या – प्रस्तुत.पंक्तियों में कवि ईश्वर से ऐसी शक्ति की याचना कर रहा है जिससे वह कर्त्तव्य मार्ग पर स्थिर बना रहे और प्रभु को न भूले। कवि ईश्वर से वह शक्ति देने के लिए कह रहा है जिससे वह समस्त संसार को अपना हितैषी बना सके। उस शक्ति को पाकर वह प्रभु को फिर भारत के पवित्र धरती पर बुला सके।
आनंद के समय में वह प्रभु को न भूले और दु:ख- विपत्ति के समय पराजित होने की मनोवृत्ति न बनाएँ। कभी मन में हीन भावना न ले आएँ। सत्कर्त्तव्य के सुअवसर को न खोएँ, अर्थात् कर्त्तव्य पथ पर दृढ़ बने रहें। प्रभु को वह पराया न समझे। सारे संसार के लोग सानंद भारतीयों की कीर्ति का, महत्व का गुणगान करें। हे प्रभु ऐसी शक्ति दीजिए।
पद – 6
तोड़ दो मन में कसी सब श्रृंखलाएँ,
तोड़ दो मन में बसी संकीर्णताएँ।
बिंदु बनकर मैं तुम्हें ढलने न दूँगा,
सिंधु बन तुमको उठाने आ रहा हूँ ।
शब्दार्थ :
- शृंखलाएँ – बन्धन, जंजीर।
- संकीर्णता – क्षुद्रता, ओछापन
व्याख्या – कवि लोगों को प्रेरणा है दे रहा कि वे अपने मन के सारे बंधनों को, मन में स्थित समस्त तुच्छ ओछी भावनाओं, विचारों को छोड़ दे। उदार एवं स्वच्छ मन वाला बने। कवि उन्हें बिन्दु से सागर बनाना चाहता है। वह उन्हें तुच्छ स्थिति में नहीं रहने देगा, सागर की भाँति महान तथा उदार बनाना चाहता है।