Detailed explanations in West Bengal Board Class 10 Life Science Book Solutions Chapter 4B अनुकूलन offer valuable context and analysis.
WBBSE Class 10 Life Science Chapter 4B Question Answer – अनुकूलन
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK
प्रश्न 1.
नमक के प्रति सहनशीलता के लिए सुन्दरी के पौधे में एक अनुकूलन का उल्लेख करो।
उत्तर :
सुन्दरी पौधों की पत्तियों में कुछ महत्त्वपूर्ण लवणीय ग्रंथियाँ पायी जाती है जो मिट्टी में जल के साथ घुलित अधिक लवण का उत्सर्जन करने में मदद करती है।
प्रश्न 2.
वाष्पोत्सर्जन रोकने के लिए कैक्टस के अनुकूलन अंग का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
वाष्पोत्सर्जन रोकने के लिए कैक्टस की पत्तियाँ काँटों में बदल जाती है, जो वाष्पोत्सर्जन रोकने के लिए अनुकूलन अंग है।
प्रश्न 3.
किस प्रकार के पौधे में श्वसन मूल पाया जाता है ?
उत्तर :
हैलोफाइट्स।
प्रश्न 4.
कबूतर का पंख किस अंग का रूपान्तरण है ?
उत्तर :
अग्रबाहु।
प्रश्न 5.
एक पौधा का नाम बताओ जिसमें श्वृसन मूल पाया जाता है।
उत्तर :
राइजोफोरा।
प्रश्न 6.
किस पौधे में पितृस्थ अंकुरण होता है ?
उत्तर :
राइजोफोरा।
प्रश्न 7.
उड़ने वाली मछली का नाम बताओ।
उत्तर :
एक्सोसीटस (Exocoetus)
प्रश्न 8.
किस पौधे की पत्तियाँ अनुकूलन के लिए काँटों के रूप में विकसित होती है ?
उत्तर :
नागफनी (Cactus)
प्रश्न 9.
एक पक्षी का नाम बताओ जिसमें वायुथैली पायी जाती है।
उत्तर :
कबूतर।
प्रश्न 10.
एक पक्षी का नाम बताओ जो जल में तैर सकती है।
उत्तर :
बत्तख।
प्रश्न 11.
रोहू मछली का कौन सा अंग हाइड्रोस्टैटिक अंग कहलाता है ?
उत्तर :
वाताशय (Air bladder)
प्रश्न 12.
मछलियों में उत्प्लावकता के लिए कौन अंग सहायता करता है ?
उत्तर :
स्विम ब्लैडर (Swim bladder)
प्रश्न 13.
दलदली भूमि में उगने वाला पौधा किस प्रकार का होता है ?
उत्तर :
हैलोफाइट्स।
प्रश्न 14.
एक हैलोफाइट का नाम बताओ।
उत्तर :
राइजोफोरा
प्रश्न 15.
मछलियों की प्रचलन पेशी का नाम बताओ।
उत्तर :
मायोटोम (Myotome)
प्रश्न 16.
हैलोफाइट में अनुकूलन के लिए एक अंग का नाम बताओ।
उत्तर :
न्यूमैटोफोर (Pneumatophore)
प्रश्न 17.
‘सुन्दरी’ पौथे के दो अनुकूलन विशेषताओं का उल्लेख करो।
उत्तर :
सुन्दरी वृक्ष के दो अनुकूलन –
(i) लवण युक्त जल को सहन करने की क्षमता
(ii) न्युमैटोफोर्स (Neumatophores).
प्रश्न 18.
फाइलोक्लेड का एक अनुकूलन गुण लिखिए।
उत्तर :
फाइलोक्लेड हरा होने के कारण प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन निर्माण एवं मांसल होने के कारण जल संचय करता है। इस पर क्युटिकल एवं रोम पाया जाता है जिससे जल का क्षय कम होता है।
प्रश्न 19.
मरूस्थलीय प्राणियों में जल संरक्षण के लिए एक अनुकूलन लिखिए।
उत्तर :
ऊँट मरूस्थलीय प्राणी है, जिसकी त्वचा के नीचे अनेक उभार-धँसाव होते हैं। इसकी कोशिकाएँ जल संप्रह करती है, जिससे ऊँट $10-15$ दिनों तक पानी पीये बिना रह सकता है।
प्रश्न 20.
जीरोफाइट्स क्या है ?
उत्तर :
मरुस्थलीय वातावरण में उगने वाले पौधे को जीरोफाइट्स कहते हैं, जैसे- नागफनी।
प्रश्न 21.
गलफड़ का कार्य क्या है ?
उत्तर :
गलफड़ जल में घुलित O2 तथा CO2 के आदान-प्रदान का कार्य करता है।
प्रश्न 22.
सजीव प्रजक अंकुरण किस प्रकार के पौधे में होता है ?
उत्तर :
हैलोफाइट पौधे में सजीव प्रजक अंकुरण होता है।
प्रश्न 23.
कबूतर में स्थित उड़न पेशियों के नाम बताओ।
उत्तर :
पेक्टोरैलिस मेजर (pectoralis major), पेक्टोरैलिस माइनर (pectoralis minor) तथा कोरैको ब्रौकिएल्स।
प्रश्न 24.
Mangrove vegetation क्या है ?
उत्तर :
नदियों के मुहाने या दलदली मिट्टी में उगने वाले पौधों के समूह को Mangrove vegetation कहते हैं।
प्रश्न 25.
वोलेन्ट अनुकूलन क्या है ?
उत्तर :
अधिक ऊँचाई पर उड़ने वाले पक्षियों के अनुकूलन को वोलेन्ट अनुकूलन कहते हैं।
प्रश्न 26.
मछली में कितने पखने होते हैं ?
उत्तर :
मछली में कुल सात पखने (2 जोड़े में तथा 3 बिना जोड़े के) होते हैं।
प्रश्न 27.
मछली में किस प्रकार का हृदय पाया जाता है।
उत्तर :
मछली में venous heart पाया जाता है।
प्रश्न 28.
मछली में वाताशय की क्या भूमिका है ?
उत्तर :
वाताशय हवा के आयतन को नियंत्रित करता है तथा उत्ल्लावकता प्रदान करता है।
प्रश्न 29.
रोहू मछली का आकार कैसा होता है ?
उत्तर :
रोहू मछली के शरीर का आकार नौकाकार होता है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS
प्रश्न 1.
कबूतर के वायुकोषों के अनुकूलन में दो महत्वों का उल्लेख करो।
अथवा
वायुथैलियों से क्या समझते हो ?
उत्तर :
कबूतर के फेफड़े से लगे वायुकोष पाये जाते हैं। ये वायुकोष ऊँचाई पर उड़ते समय कबूतर को उत्प्लावकता तथा O2 प्रदान करते हैं तथा शरीर के ताप को नियंत्रित करते हैं।
प्रश्न 2.
रोहू मछली के जलीय अनुकूलन में पटिका (स्वीम ब्लैडर) की भूमिका क्या है ?
अथवा
मछली के स्वीमब्लैडर का कार्य क्या है ?
उत्तर :
- स्वीमब्लैडर किसी निक्षित गहराई तक ले जाने में सहायता करता है।
- जल में किसी स्थान पर स्थिर रहने में सहायक है।
- जल के अन्दर शरीर को संतुलित बनाये रखता है।
- पानी की सतह पर उतराने में सहायक है।
प्रश्न 3.
सुन्दरी का पौधा किस प्रकार अतिरिक्त लवण का उत्सर्जन करता है ?
उत्तर :
सुन्दरी पौधों की पत्तियों पर लवण ग्रंथियाँ पायी जाती हैं जो लवण की अधिक मात्रा का उत्सर्जन करती है। इस पौधे की पुरानी पत्तियों में भी लवण की कुछ मात्रा जमा होते रहता है। जब पत्तियाँ पौधे से अलग होती है तो इनमें जमा उत्सर्जी पदार्थ भी अलग हो जाता है।
प्रश्न 4.
किसी मधुमक्खी के छत्ते की मधुमक्खी दूसरी मधुमक्खी को भोजन के स्रोत एंव स्थिति की जानकारी कैसे देती है ?
अथवा
मधुमक्खियाँ किस प्रकार से मकरन्द् प्राप्ति स्थान का संकेत देती हैं ? समझाओ।
उत्तर :
मधुमक्खियाँ भोजन की तलाश में अपने मधुछत्ते से बाहर जाती हैं। भोजन की खोज के बाद वह अपने मधुछत्ते में वापस आकर एक विशेष प्रकार का शारीरिक प्रदर्शन करती है जो देखने में अंग्रेजी की 8 संख्या की तरह होता है इस समय इनका पेट हिलता रहता है। वह कैसे और कितने समय तक यह नाच करती है उस आधार पर उस मधुछत्ते की अन्य मधुमक्खियाँ बाहर निकलती हैं और अपने खाद्य के स्रोत पर शीघ्रतापूर्वक पहुँच जाती हैं।
प्रश्न 5.
चिंपैंजी में समस्या समाधान के दो व्यवहारिक अनुकूलनों का उल्लेख करो।
अथवा
चिम्पैंजी के व्यवहारिक (बर्ताव) अनुकूलन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
चिपैंजी में समस्या का समाधान (Problem solving in Chimpanzees):
(i) चिपैंजी एक वृक्ष की शाखा की पत्तियों को खींचता है और तब इस शाखा को दीमक के घोंसले के प्रवेश द्वार पर भोजन को प्राप्त करने के लिए चिपका देता है। घोंसले से दीमक इस शाखा की सहायता से बाहर निकलते हैं और चिपैंजी इसे भोजन के रूप में खाता है।
(ii) ये काष्ठफल (nuts) को फोड़ने (crack) के लिए लकड़ियों के टुकड़ो का उपयोग हथौड़ा (hammer) और निहाई के रूप में करते हैं। जब ये खास परजीवियों से संक्रमित हो जाते हैं तो औषधीय पौधों की पत्तियों को भी खाते हुए परिलक्षित होते हैं।
प्रश्न 6.
हैलोफाइट्स क्या है ?
उत्तर :
ऐसे पौधे जो अकार्बनिक लवण से युक्त मिट्टी या जल में उगत हैं, उन्हे हैलोफाइट कहते हैं। जैसे- राइजोफोरा, सुन्दरी आदि।
प्रश्न 7.
न्यूमैटोफोर क्या है ?
उत्तर :
हेलोफाइद पौथे जैसे – राइजोफोरा आदि में पाये जाने वाले श्रसन मूल हैं जो मिट्टी में $\mathrm{O}_2$ को ग्रहण करते हैं।
प्रश्न 8.
सजीव प्रजक अंकुरण से क्या समझते हो ?
उत्तर :
फल के अन्दर स्थित बीजों के अंकुरण होने की क्रिया को सजीव प्रजक अंकुरण (Viviparous germination) कहते हैं। जैसे- राइजोफोरा आदि।
प्रश्न 9.
प्राथमिक वोलेन्ट अनुकूलन क्या है ?
उत्तर :
वे प्राणी जो स्वतंत्रतापूर्वक तथा स्थाई रूप से वायु में उड़ सकते हैं उन्हे प्राथमिक वोलेन्ट कहते हैं, जैसे- कौआ, कबूतर आदि।
प्रश्न 10.
द्वितीयक वोलेन्ट अनुकूलन क्या है ?
उत्तर :
वे जन्तु जो अस्थाई रूप से कुछ देर तक वायु में उड़ सकते हैं, उन्हें द्वितीयक वोलेन्ट कहते हैं। जैसेएक्सोसीट्स मछली, उड़ने वाला टोड आदि।
प्रश्न 11.
वायवीय अनुकूलन में उड़न पेशियों की भूमिका क्या है ?
उत्तर :
कबूतर की उड़न पेशियाँ पूर्ण रूप से विकसित होती हैं। ये उड़न पेशियाँ हैं- पेक्टोरलिस मेजर (pectoralis major), पेक्टोरलिस माइनर (pectoralis minor) तथा कोराका ब्रांकियालिस (coraca brachiales)। इन सभी पेशियों की सहायता से यह विभिन्न दिशाओं में आसानी से उड़ सकता है। इन पेशियों की सहायता से डैनों को ऊपर नीचे कर सकता है।
प्रश्न 12.
कबूतर की हड्डियाँ स्पंजी तथा वायु से भरी क्यों होती हैं ?
उत्तर :
कबूतर की हड्डियाँ छिद्रयुक्त तथा हवा से भरी होती है, जिसके कारण इसका शरीर हल्का होता है। शरीर हल्का होने से उड़ने में सहायता मिलती है तथा वायु के अधिक दबाव को भी आसानी से सहन कर सकती है।
प्रश्न 13.
जीरोफाइट्स क्या है ?
उत्तर :
ऐसे पौधे जो शुष्क वातावरण में पाये जाते हैं और जिन्हें जल अत्यन्त अल्प मात्रा में उपलब्ध होता है, उन्हें जीरोफाइट कहते हैं। जीरोफाइट पौधे प्राय: मरुस्थल में उगते हैं। जैसे- बबूल, नागफनी आदि।
प्रश्न 14.
अनुकूलन क्या है ?
उत्तर :
जीवों के शरीर का वह गुण जो जीवों के लिए लाभकर होने के कारण साथ ही उसे वातावरण में सर्वानुकूल बनाता है, अनुकूलन कहलाता है।
प्रश्न 15.
प्राथमिक अनुकूलन क्या है ?
उत्तर :
किसी जीव में उपस्थित वह अनुकूलन जो वर्तमान समय में भी अपने पूर्वजों के वास-स्थान में रहकर जीवन-यापन की क्रियाओं को सामान्य ढंग से करके अपने वंश परम्परा को कायम रखने में सफल है, प्राथमिक अनुकूलन कहलाता है। जैसे- जल में रहने के लिए मछलियों में पाये जाने वाले अनुकूलन।
प्रश्न 16.
द्वितीयक अनुकूलन क्या है ?
उत्तर :
जब अपने पूर्वजो के वातावरण को छोड़कर सजीव नए वातावरण में अपना अनुकूलन कर लेता है तो इस प्रकार का अनुकूलन द्वितीयक अनुकूलन कहलाता है। जैसे- चमगादड़ स्तनधारी होते हुए भी वायु में उड़ता है।
प्रश्न 17.
जलीय अनुकूलन क्या है ?
उत्तर :
जलीय जन्तु के जल में आसानीपूर्वक निवास करने के लिए जो अनुकूलन होता है उसे जलीय अनुकूलन कहते हैं। जैसे- मछलियाँ।
प्रश्न 18.
शरीर में अधिक जल की मॉग की पूर्ति के लिए ऊँट के दो शारीरिक अनुकूलनों का उल्लेख करें।
उत्तर :
(i) पेट में जल संचय के लिए water cells (hunch) होते हैं।
(ii) इसके आमाशय में जल संग्रह के लिए जल संग्रह कोशिकायें पाई जाती हैं। इसके कारण ऊँट को प्यास बहुत कम लगती है।
प्रश्न 19.
चिम्पैंजी के दो व्यावहारिक अनुकूलन को लिखिए।
उत्तर :
(i) किसी पौधे के डण्ठल को तोड़कर उनके पत्तों को साफ कर उस डण्ठल को छड़ी बनाकर उसे दीमक के घरों में प्रवेश कराकर अपने खाद्य अर्थात् दीमक को बाहर निकालते हैं।
(ii) दूसरी अनुक्रिया में वे काठ के किसी टुकड़े को हथौड़ी और निहाई (hammer and anvil) के रूप में प्रयोग कर बादाम (nuts) फोड़ते हैं।
प्रश्न 20.
अनुकूलन तथा जैव विकास में क्या संबंघ है ?
उत्तर :
अनुकूलन तथा जैव विकास निम्न प्रकार से एक दूसरे से संबंधित हैं –
- अनुकूलन के कारण ही क्रम विकास में विभिन्नताएँ पाई जाती है।
- अंगों के उपयोग तथा अनुषयोग द्वारा जीव अपने को वातावरण के अनुरूप बनाता है।
- जब अनुकूलन के बिना जीवन ही सम्भव नहीं है तो उसमें क्रम विकास का प्रश्न ही नहीं उठता।
प्रश्न 21.
नागफनी में होने वाले दो अनुकूलन को लिखो।
उत्तर :
नागफनी में होने वाले अनुकूलन –
(i) नागफनी में मूल तंत्र विकसित होता है। जल की खोज में जड़े गहराई तक चली जाती है।
(ii) इसकी बाह्य त्वचा पूर्ण विकसित होती है। यह क्यूटिकल की मोटी परत से ढ़का रहता है जिससे वाष्पोत्सर्जन की क्रिया अत्यन्त धीमी गति से होती है।
प्रश्न 22.
‘सुन्दरी’ पौधे के दो अनुकूलन विशेषताओं का उल्लेख करो।
उत्तर :
सुन्दरी वृक्ष के दो अनुकूलन –
(i) लवण युक्त जल को सहन करने की क्षमता
(ii) न्युमैटोफोर्स (Neumatophores).
प्रश्न 23.
ऊँट के अनुकुलन में RBC की भूमिका क्या है ?
उत्तर :
ऊँट का RBC (लाल रक्त कणिक) अण्डाकार एवं केन्द्रक युक्त होता है। यह उतलाकर (Biconvex) होता है। यह आक्सीजन एवं CO2 का परिवहन करता है। यह रक्त की सान्द्रता बनाये रखता है।
प्रश्न 24.
वैगल या वायगल नाच क्या है ?
उत्तर :
मधुमक्खियाँ भोजन के स्रोत्र की खोज में सफल होकर जब अपने छत्ते में वापस लौट आती है, तो छत्ते के पास 8 अंक की तरह अपने उदर को इधर-उधर घुमाते हुए नाचती हैं। इसे वायगल नाच कहते हैं।
प्रश्न 25.
Phyllode क्या है ?
उत्तर :
ऐसे पौधे जिसकी पत्तियाँ शीघ्र झड़ जाती हैं उनके पर्णवृन्त या मध्य नाड़ी का कोई भाग हरा तथा चपटा होकर पत्ती का कार्य करने लगता है। यह चपटा पर्णवृन्त ही phyllode कहलाता है। जैसे- आस्ट्रेलिया बबूल।
प्रश्न 26.
ऊँट के दो आकर्षक अनुकूलन क्या हैं ?
उत्तर :
(i) ऊँट की टाँगें लम्बी तथा पंजे गद्दीदार होती हैं।
(ii) पेट में जल संचय के लिए water cells (hunch) होते हैं।
प्रश्न 27.
यदि मछली के पूँछ का पखना काट दिया जाय तो प्रचलन में क्या कठिनाई होगी ?
उत्तर :
मछलियों के पूँछ का पखना मछलियों के तैरते समय जल को पीछे की ओर ढकेलता है जिससे मछली आगे की ओर बढ़ती है। साथ ही साथ यह नाव के पतवार की तरह दिशा परिवर्तन में भी सहायक होता है। इसलिए यदि मछलियों के पूँछ का पखना काट दिया जाय तो मछली ठीक से तैर नहीं पायेगी।
प्रश्न 28.
नागफनी की पत्तियाँ काँटे में रूपान्तरित हो जाती हैं, व्याख्या करो।
उत्तर :
नागफनी एक जीरोफाइट है। वातावरण बिल्कुल शुष्क होने के कारण अपने शरीर से जल खर्च को नियंत्रित करना इसका एक अनिवार्य कार्य होता है ताकि वाष्पोत्सर्जन द्वारा जलवाष्प बाहर न निकल सके। जब पत्तियाँ कंटकों में बदल जाती हैं तो स्टोमेटा समाप्त हो जाते हैं और वाष्पोत्सर्जन की क्रिया रुक जाती है।
संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 3 MARKS
प्रश्न 1.
नागफनी में होने वाले तीन अनुकूलन को लिखो।
उत्तर :
नागफनी में होने वाले अनुकूलन –
- नागफनी में मूल तंत्र विकसित होता है। जल की खोज में जड़ें गहराई तक चली जाती है।
- पत्तियाँ छोटी, पतली तथा काँटों में रूपान्तरित हो जाती हैं जिसे वास्पोत्सर्जन द्वारा जल का ह्रास कम से कम होता जाता है।
- इसकी बाह्य त्वचा पूर्ण विकसित होती है। यह क्यूटिकल की मोटी परत से ढका रहता है जिससे वाष्पोत्सर्जन की क्रिया अत्यन्त धीमी गति से होती है।
प्रश्न 2.
मछली के जलीय अनुकूलन में वायुथैली तथा पखना की क्या भूमिका है ?
उत्तर :
पखना (Fins) : मछलियों में तैरने के लिए फिन रेज युक्त पखने पाये जाते हैं। पखनों को फैलने तथा सिकुड़ने के लिए फिन रेज पायी जाती हैं। मछली में कुल सात पखने पाये जाते हैं।
- डार्सल फिन – यह मछली को आगे बढ़ने में सहायता करता है।
- काडल फिन – दिशा परिवर्तन में सहायता करता है।
- एनल फिन – यह मलद्वार की रक्षा करता है।
- पेक्टोरल फिन तथा पेल्भिक फिन(Pectoral fin and Pelvic fin) – यह जल में किसी गहराई में स्थिर रखने में सहायक है।
वायु थैली (Air bladder) : मछलियों के उदरगुहा में वायु थैलियाँ पाई जाती हैं। इसमें वायु भरी रहने के कारण शरीर हल्का होता है। इससे किसी भी गहराई में जल दबाव को नियंत्रित कर शरीर को स्थिर रखने में सहायता मिलती है।
प्रश्न 3.
कबूतर की उड्दुयन पेशियों के नाम बताओ। न्यूमैटिक हड्डियाँ क्या हैं ?
उत्तर :
कबूतर की उड्डयन पेशियाँ : पेक्टोरलिस मेजर (Pectoralis major), पेक्टोरलिस माइनर (Pectoralis minor), कोराको ब्रैकियल्स (Coraco brachiales)।
न्यूमैटिक हड्डियाँ : छिद्रयुक्त तथा स्पंजी हड्डियों को pneumatic bones कहते हैं। जैसे- कबूतर की हड्डियाँ।
प्रश्न 4.
उड़न से संबंधित कबूतर में होने वाले तीन अनुकूलन को लिखो।
उत्तर :
कबूतर में निम्नलिखित अनुकूलन पाया जाता है –
- कबूतर का शरीर नौकाकार या स्पिन्डिलनुमा होता है जिससे वायु मे उड़ते समय वायु का प्रतिरोध तथा घर्षण का प्रभाव कम पड़ता है।
- कबूतर की उड्डययन पेशियाँ जैसे- पेक्टोरलिस मेजर, पेक्टोरलिस माइनर तथा कोराका वैकियल्स इस तरह विकसित होती हैं कि उड़ते समय यह आसानी से अपने डैने को ऊपर-नीचे कर सकता है।
- इसके फेफड़े में पतली दिवार वाली वायु थैलियाँ पाई जाती हैं, जिससे इनका शरीर का वजन हल्का होता है तथा ये आसानी से उड़ते हैं।
प्रश्न 5.
ऊँट में होने वाले अनुकूलन का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर :
ऊँट में निम्नलिखित अनुकूलन पाया जाता है –
- ऊँट के पैर लम्बे होते हैं तथा गर्दन लम्बी होती है जिससे रेत की गर्मी से मस्तिष्क अधिक गर्म होने से सुरक्षित रहता है।
- इसकी आँख तथा कर्ण बड़े-बड़े रोम से ढ़के रहते हैं जिससे बालू के कण आँख या कान में आसानी से प्रवेश नहीं कर पाते।
- इसके खूर चौड़े तथा गद्दीदार होते हैं जिससे यह रेत पर आसानी से तेज चल सकता है।
- इसके आमाशय में जल संग्रह के लिए जल संग्रह कोशिकायें पाई जाती हैं। इसके कारण ऊँट को प्यास बहुत कम लगती है।
- इसके पीठ के नीचे चर्बी की जालिका स्थित रहती है जो मेटाबोलिज्म द्वारा जल उत्पन्न करती है।
- ऊँट की त्वचा में रच्च नहीं पाये जाते हैं जिससे वाष्प के रूप में जल का क्षय नहीं होता है।
प्रश्न 6.
नागफनी की पत्तियाँ काँटे में रूपान्तरित हो जाती हैं, व्याख्या करो।
उत्तर :
नागफनी एक जीरोफाइट है। वातावरण बिल्कुल शुष्क होने के कारण अपने शरीर से जल खर्च को नियंत्रित करना इसका एक अनिवार्य कार्य होता है ताकि वाष्पोत्सर्जन द्वारा जलवाष्प बाहर न निकल सके। जब पत्तियाँ कंटकों में बदल जाती हैं तो स्टोमेटा समाप्त हो जाते हैं और वाष्पोत्सर्जन की क्रिया रुक जाती है।
प्रश्न 7.
अनुकूलन का क्या महत्व है ?
उत्तर :
अनुकूलन के निम्नलिखित महत्व हैं –
- अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए अनुकूलन आवश्यक है।
- भोजन तथा अन्य वस्तुओं की प्राप्ति के लिए अनुकूलन आवश्यक है।
- वंश परंपरा को कायम रखने के लिए।
- शत्रुओं या बाहरी आक्रमण से अपनी रक्षा के लिए।
- प्रतिकूल परिस्थिति में भी अपने आपको जीवित रखने के लिए।
- आवश्यक वस्तुओं को शरीर से बाहर निकलने से रोकने के लिए।
प्रश्न 8.
मछलियाँ जल के बाहर जमीन पर जीवित नहीं रह सकती हैं, क्यों ?
उत्तर :
प्राय: सभी मछलियों का भ्वसन अंग ग्लिस (gills) होता है जो केवल जल में घुली हुई O2 को अवशोषित कर सकते है। पानी के बाहर ये बेकार हो जाते हैं क्योंकि वायुमण्डल की O2 को ग्रहण करने की क्षमता इनमें नहीं होती है। अतः स्थल में धसन क्रिया नहीं होने के कारण मछलियाँ जीवित नहीं रह पाती हैं।
कुछ मछलियों जैसे- मांगुर, कवई, सिंघी इत्यादि में गिल्स के अतिरिक्त एक और सहायक श्वसन अंग होता है जिसके कारण मछलियाँ जल के बाहर भी कुछ देर तक जीवित रह सकती हैं।
प्रश्न 9.
रात में खिलने वाले पौधे रंगहीन पर सुगंधित होते हैं, क्यों ?
उत्तर :
कीट परागण के लिए फूल विभिन्न प्रकार से उपायोजित होते हैं। इसके लिए अधिकांश फूलों की पंखुड़ियाँ चटकीले रंग की होती है। पर रात में चटकीले रंग कीटों को दिखाई नहीं पड़ता है। अतः तीव गंध ही इन्हें आकर्षित करता है। सफेद रंग रात में दिखाई भी पड़ जाता है। इस प्रकार के फूल रात में कीटों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल होते हैं जिससे इन पौधों में कीट परागण आसानी से हो जाता है।
दीर्घउत्तरीय प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 5 MARKS
प्रश्न 1.
पानी के बृहत् क्षय को सहने की क्षमता ऊँटों में किस प्रकार (RBC) के विशिष्ट लक्षण से संबंधित है? खाद्य संग्रह तथा रोगों से बचने के लिए समस्या निवारण हेतु तरीके जो चिंपाजी अपनाते है उनके उदाहरण दो। 2 + 3
उत्तर :
ऊँट के RBC उसके शरीर में पानी की कमी (dehydration) के समय सिमट कर उसे सुरक्षा प्रदान करते हैं क्योंकि ऊँट के RBC कोशिकाओं का आकार अण्डाकार होता है जो मोटे रक्त में भी आसानी से संचरण कर लेते हैं।
जल की प्राप्ति (rehydration) के समय RBC पुन: फैल जाते हैं।
चिपैंजी द्वारा खाद्य संग्रह तथा रोगों से बचने के लिए समस्या का समाधान हेतु तरीके : (i) चिपेंजी एक वृक्ष की शाखा की पत्तियों को खींचता है और तब इस शाखा को दोमक के घोंसले के प्रवेश द्वार पर भोजन को प्राप्त करने के लिए चिपका देता है। घोंसले से दीमक इस शाखा की सहायता से बाहर निकलते हैं और चिपेंजी इसे भोजन के रूप में खाता है।
(ii) ये काष्ठफल (nuts) को फोड़ने (crack) के लिए लकड़ियों के टुकड़ों का उपयोग हथौड़ा (hammer) और निहाई के रूप में करते हैं।
(iii) जब ये खास परजीवियों से संक्रमित हो जाते हैं तो औषधीय पौधों की पत्तियों को भी खाते हुए परिलक्षित होते हैं।
प्रश्न 2.
व्यावहारिक अनुकूलन क्या है ? मधुमक्खियों में वार्तालाप (Communication in honeybees) से क्या समझते हो ? वैंगल या वायगल नाच से क्या समझते हो ?
अथवा
किसी मधुमक्खी के छत्ते की मधुमक्खी दुसरी मधुमक्खी को भोजन के श्रोत एवं स्थति की जानकारी कैसे देती है।
उत्तर :
आवश्यकता की पूर्ति हेतु किसी जीव द्वारा अपनायी गयी युक्ति को व्यावहारिक अनुकूलन कहते हैं।
मधुमक्खियों में वार्तालाप : मधुमक्खियाँ भोजन की तलाश में अपने मधुछते से बाहर जाती है। भोजन की खोज के बाद वह अपने मधुछत्ते में वापस आकर एक विशेष प्रकार का शारीरिक प्रदर्शन करती है जो देखने में अंग्रेजी की 8 संख्या की तरह होता है इस समय इनका पेट हिलता रहता है। वह कैसे और कितने समय तक यह नाच करती है उस आधार पर उस मधुछत्ते की अन्य मधुमक्खियाँ बाहर निकलती हैं।
मधुमक्खियों द्वारा भोजन के स्रोत एक स्थिति की जानकारी देने व्यवस्था : भोजन के सोत से बाहर कुछ दूर जाती है। भोजन के स्रोत का सफलता पूर्वक पता लगाकर एक मधुमक्खी छत्ते में लौट आती है और छत्ते के उदग्र सतह पर एक वृत्त में नृत्य करने लगती है। इससे अन्य मधुमक्खियों को भोजन के सही स्रोत का पता चल जाता है। भोजन के सोत की दिशा और दूरी बताने के लिए छत्ते में लौटी मधुमक्खी बैगल नृत्य करती है। इसे बैगल या वायगल नाच कहते हैं।
यह नृत्य S की आकृति में होता है जिसमें मधुमक्खी पहले बाँयी ओर उदर को भी इधर-उधर घूमाती है। भोजन की खोज के गई मधुमक्खी द्वारा नृत्य के समय बैगल नृत्य से भोजन के स्रोत के काफी दूर होने पर वह मक्खी धीरे-धीरे बेगल करती है जबकि भोजन का स्रात नजदीक होने पर यह उग्र रूप में नृत्य करती है तथा अधिक बैगल उत्पन्न करती है। प्रत्येक बैगल से एक प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है जिसके द्वारा ही अन्य मधुमक्खियाँ भोजन के स्रोत का पता लगा लेती है। अन्य मधुमक्सियाँ शीघ्र ही अपने छत्ते को छोड़ देती है और भोजन के सोत की ओर जाने लगती है।
प्रश्न 3.
‘हॉट डाइलुट सूप’ एवं ‘कोएसरवेट’ क्या है ? लवणोद्भिद सुन्दरी पौधे की तीन अनुकूलन की विवेचना कीजिए। 2 + 3 = 5
उत्तर :
(i) हाट डाइलुट सूप : समुद्र के गर्म जल को जिसमें विभिन्न प्रकार की रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप जटिल कार्बनिक यौगिकों का निर्माण होता है और जिसके फलस्वरूप प्रोटोसेल जैसी रचनाएँ उत्पन्न होती है, उसे ‘हाट डाइलट सपू’ कहते हैं।
(ii) कोएसरवेट : जटिल यौगिकों को लिपिड झिल्लि से ढ़ँकने से उत्पन्न रचना को कोएसरवेट कहते हैं।
सुन्दरी पौधों की अनुकूलन :
- इसकी कोशिकाएँ अत्यधिक लवणों की सांद्रता को सहन करने में समर्थ है।
- तना और पत्ती के जल की सहायता से कोशिकाओं में ये आयन्स की सांद्रता को कम करते हैं।
- इनमें लवण ग्रंथियाँ पायी जाती हैं, जिसकी सहायता से लवण का उत्सर्जन होता है।
- लवण की कुछ मात्रा जड़ के द्वारा भी बाहर की मिट्टुी और जल में वापस लौटा दी जाती है
प्रश्न 4.
अनुकूलन तथा क्रम विकास में क्या संबंध है ? कबूतर के किन्हीं चार वायवीय अनुकूलन का उल्लेख करो।
उत्तर :
अनुकूलन तथा क्रम विकास में संबंध : समय के परिवर्तन के साथ-साथ सजीव के आसपास तथा उसके वास स्थान के वातावरण में परिवर्तन होता रहता है। सजीवों को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए वातावरण में होने वाले इन निरन्तर परिवर्तनों के अनुरूप अपने शरीर की आन्तरिक तथा बाहरी रचनाओं को बदलना पड़ता है। सजीवों के शारीरिक रचना में यह परिवर्तन स्थायी होता है जो अनुकूलन कहलाता है। यह अनुकूलन प्राकृतिक वरण (Natural selection) द्वारा होता है।
इस प्रक्रिया में कुछ अंग का प्रयोग किया जाता है तथा कुछ अंगों का अनुपयोग होता है तथा प्राय: ये अंग स्थायी रूप से विलुप्त या अवशेषी हो जाते हैं। फलस्वरूप एक नये जीव का आर्विभाव होता है। अनुकूलन के फलस्वरूप विभिन्नताएँ उत्पन्न होती है जो क्रम विकास का कच्चा पदार्थ है। स्थिर तथा मन्द गति से एक जीव के अनुकूलन के फलस्वरूप दूसरे नये जीव की उत्पत्ति ही क्रम विकास है, जो प्रजनन की क्रिया द्वारा विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से होता है। अत: अनुकूलन के फलस्वरूप जब तक विभिन्नताएँ उत्पन्न नहीं होती है, क्रम विकास असम्भव है। अतः अनुकूलन क्रम विकास का पूरक है तथा ये एक दूसरे से अभिन्न रूप से संबंधित है।
कबतर में वायवीय अनकलन :-
- शारीरिक संरचना : कबूतर का शरीर नौकाकार या स्पिण्डलनुमा होता है जिससे वायु का प्रतिरोध तथा घर्षण कम होता है तथा उड़ने में आसानी होती है।
- हड्डियाँ : कबूतर की हड्डियाँ स्पंजी तथा हल्की छिद्रयुक्त होती हैं। ये हड्डियाँ हवा से भरी रहती हैं जिससे उड़ते समय कबूतर का भार हल्का होता है।
- निरर्थक भारी अंगों का अभाव : शरीर के भार को हल्का रखने के लिए इनमें दाँत का सर्वथा अभाव रहता है तथा आहारनाल अत्यधिक अपघटित अवस्था में उपस्थित रहता है। केवल एक अण्डाशय विकसित होता है।
(iv) वायु थैलियाँ : कबूतर के छोटे-छोटे फेफड़ों के साथ नौ पतली झिल्ली वाली वायु थैलियाँ जुड़ी रहती हैं। वायु थैलियाँ गर्म हवा से भरी रहती हैं। उड़ान के समय अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिससे श्वसन दर बढ़ जाता है तथा अत्यधिक O2 की आवश्यकता होती है। अतः O2 की इस अतिरिक्त मात्रा की पूर्ति इन वायु थैलियों में उपस्थित O2 द्वारा होती है। इन थैलियों के कारण शरीर का भार भी हल्का रहता है। उड़ान के समय, उड़ान पेशियों के मध्य होने वाले घर्षण को कम करती है तथा फेफड़े की कार्यक्षमता बढ़ा देती है। उड़ान के समय अधिक शारीरिक ताप को वितरित करती है।
प्रश्न 5.
कैक्टस या नागफनी के संरचनात्मक अनुकूलन का वर्णन करो।
उत्तर :
नागफनी में संरचात्मक अनुकूलन : नागफनी मरुस्थल में उगने वाला पौधा है। यह शुष्क वातावरण तथा शुष्क मिट्टी में उगता है। शुष्क वातावरण में पाये जाने के कारण इन पौधों में जल की आपूर्ति बहुत कम होती है। अत: इन पोधों के भीतर से वाष्पोत्सर्जन क्रिया द्वारा जल का क्षय कम करने, अधिक मात्रा में जल संचय करने के लिए तथा शुष्क वातावरण में जीवित रहने के लिए इन पौधों में एक विशेष प्रकार का अनुकूलन होता है, जिसे शुष्क अनुकूलन कहते हैं। ये अनुकूलन निम्नलिखित प्रकार वे हैं –
जड़ों में : (i) मूल तंत्र बहुत अधिक विकसित, लम्बा, मोटा, कड़ा, काष्ठीय तथा अत्यधिक शाखान्वित होता है, क्योंकि जड़ों को जल की तलाश में बहुत गहराई तक प्रवेश करना पड़ता है। (ii) जड़ों पर मूलरोम तथा मूलटोप पाये जाते हैं।
- शरीर : इसका शरीर मांसल तथा स्पंजी होता है जिससे इसके शरीर में अत्यधिक जल का संग्रह हो सके।
- तने में : इसके तने हरे, चपटे, मांसल तथा पत्तीनुमा होते हैं तथा काँटों द्वारा ढके रहते हैं जिसे फाइलोक्लेड (Phylloclade) कहते हैं। ये तने जल संचय तथा पत्तियों की तरह प्रकाश संश्लेषण की क्रिया सम्पादित करते हैं।
- पत्तियों में : पत्तियाँ छोटे-छोटे काँटों में रूपान्तरित हो जाती है, जिससे वाष्पोत्सर्जन क्रिया का वर्ग क्षेत्र कम हो जाने से जल का क्षय कम हो जाता है।
प्रश्न 6.
रोहू मछली के जलीय वातावरण में होने वाले जलीय अनुकूलन का वर्णन करो।
उत्तर :
मछली जलीय प्राणी है। इसमें निम्नलिखित अनुकूलन पाये जाते हैं-
शरीर का आकार : मछलियों का शरीर नौकाकार होता है, जिससे तैरते समय जल का प्रतिरोध कम होता है और ये सुगमतापूर्वक जल में तैरती रहती है।
शरीर का आवरण : अधिकांश मछलियों का सम्पूर्ण शरीर शल्कों से ढँका रहता है। परन्तु कुछ मछलियों का शरीर म्यूकस (Mucous) या श्लेष्म द्वारा ढँका रहता है। मछलियों के शरीर पर एक प्रकार का चिकना पदार्थ पाया जाता है जिससे ये आत्मरक्षा करती है।
पंख : मछलियों में जल में तैरने के लिए पाँच प्रकार के पखने पाये जाते हैं। पेक्टोरल (Pectoral) तथा पेल्विक (Pelvic) फिन्स, युग्मक फिन्स (Paired fins) होते हैं। डार्सल (Dorsal), एगल (Anal) तथा कॉडल (Caudal) फिन्स अयुग्मक फिन्स (Unpaired fins) होते हैं। पखनों को फैलने तथा सिकुड़ने के लिए fin rays होते हैं। पेक्टोरल तथा पेल्विक पंख मछली के शरीर को जल में किसी भी गहराई में स्थिर रखने में सहायता करते हैं। डार्सल फिन आगे की ओर बढ़ने में सहायता करते हैं। कॉडल पखने तैरते समय दिशा बदलने में तथा एनल पंख मलद्वार की रक्षा करते हैं।
पार्श्व रेखा : मछलियों के शरीर के दोनों सतहों पर गल्फर से लेकर पूँछ तक पार्श रेखा (lateral line) फैली रहती है। यह मछली के स्पर्शेन्द्रिय का कार्य करती है। इसकी सहायता से जल की गहराई, दवाब, तापक्रम, जल प्रवाह आदि का अनुभव करती है। ध्वनि ग्रहण करने का भी कार्य करती है।
वायु थैली : मछलियों के उद्रगुहा में वायुथैलियाँ पाई जाती हैं। इसमें वायु भरी रहती है। वायु भरी रहने के कारण शरीर हल्का रहता है तथा जल में तैरने में या जल में किसी भी गहराई में शरीर को स्थिर रखने में सहायता मिलती है।
श्वसन अंग : मछलियों का श्वससन अंग गलफड़ (gills) है जो मुँह के दोनों ओर गलफड़ कोटरों में स्थित होते हैं तथा ऑपरकूलम द्वारा ढँके रहते हैं। गलफड़ में रक्त कोशिकाओं का जाल बिछा रहता है जिसके द्वारा जल में घुलित O2 तथा CO2 का आदान-प्रदान होता रहता है।
मायोटोम पेशियाँ : मछलियों में मेरुद्ण्ड के दोनों ओर V आकार की पेशियाँ पाई जाती है, जिन्हें मायोटोम पेशियाँ (Myotome muscle) कहते हैं। इन पेशियों की सहायता से मछली जल में दबाव उत्पन्न करके शरीर को इधर उधर घुमाती रहती है तथा जल में तैरती रहती है।
प्रश्न 7.
मछली के पार्श्व रेखा तथा स्विम ब्लैडर की भूमिका का वर्णन करो।
उत्तर :
मछली के पार्श्व रेखा की भूमिका : मछलियों के शरीर में गलफड़ से लेकर पूँछ तक पार्श्व रेखा पायी जाती है। यह मछलियों के संवेदी अंगों का कार्य करती है। इनकी सहायता से जल की गहराई, दबाव, तापक्रम, जल प्रवाह की दिशा आदि को महसूस करती है तथा ध्वनि ग्रहण करती है।
स्वीम ब्लैडर की भूमिका : मछलियों के उदरगुहा में पतली झिल्ली वाला वाताशय में हवा के आयतन को कम कर अपने शरीर के विशिष्ट गुरुत्व को बढ़ाकर रोहु ऊपर से नीचे की ओर डूबती है। इसकी सहायता से रोहू किसी भी गहराई में जल द्बाव को नियंत्रित कर स्थिर रह सकता है।
प्रश्न 8.
कबूतर में वोलेन्ट अनुकूलन का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर :
कबूतर में वोलेन्ट अनुकूलन : कबूतर प्राथमिक वोलेन्ट प्राणी है। इसको उड़ने में सहायता करने वाले दो अंग डैना तथा पंख हैं।
डैना (Wings) : कबूतर का उड्डयन अंग डैना है। इसका अग्रबाहु डैना में परिवर्तित हो जाता है। यह एक जटिल रचना युक्त होता है। यह पतली हड्डियों, नर्व, रक्त नलिकाओं तथा पंखों से मिलकर बने होते हैं। डैना शरीर की ओर मोटा तथा बाहर की ओर पतला होकर डैनों को थोड़ा ऊभरा हुआ आकार प्रदान करते हैं, जिसके कारण वायु का दबाव डैनों के नीचे की ओर ज्यादा होता है और पक्षियों को ऊपर उड़ने में सहायता मिलती है।
पंख (Feathers) : पंख कबूतर के सम्पूर्ण शरीर को ढ़के रखता है। यह शरीर के तापक्रम को नियंत्रित रखता है। पंख जल निरोधक का भी कार्य करता है। कबूतर के पंख पत्ते के समान होते हैं। पंखों के केन्द्रीय धूरी को कालामस (Calamus) कहते हैं। कालामस के दोनों ओर पत्ती के समान आकृति को भेन (Vane) कहते हैं।
भेन के दोनों ओर Barb पाये जाते हैं। बार्ब से बार्बुल (Barbul) उत्पन्न होते हैं। यह सभी रचना डैनों को चौड़ा आकार प्रदान करता है। डैनों के पंख उड़ने में सहायता करते हैं।
प्रश्न 9.
अनुकूलन की परिभाषा दो। अनुकूलन का उद्देश्य क्या है ?
उत्तर :
अनुकूलन : एक विशेष वातावरण में सरलतापूर्वक जीवन व्यतीत करने एवं वंश वृद्धि हेतु, वातावरण में होने वाले परिवर्तन के अनुरूप सजीवों के शरीर में जो रचनात्मक एवं क्रियात्मक स्थाई परिवर्तन उत्पन्न होता है, उसे अनुकूलन (Adaptation) कहते हैं।
अनुकूलन का उद्देश्य : जीवधारियों में अनुकूलन के निम्न उद्देश्य है –
- जीवधारियों के आसपास के वातावरण में निरंतर होने वाले परिवर्तनों के अनुरूप जीवों के अस्तित्व को कायम रखने तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवों की रक्षा के लिए।
- जीवधारियों को भोजन तथा अन्य आवश्यकताओं के लिए लड़ाई में सफलता प्रदान करने के लिए।
- वातावरणीय प्रतिकूल परिस्थितियों तथा जीवधारियों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए।
- जीवधारियों को अपनी वंश परंपरा कायम रखने के लिए, प्रजनन की क्षमता प्रदान करने तथा अपने संतानों के पालनपोषण में सहायता करने के लिए।
- जीवधारियों की वंश परंपरा को सुरक्षित तथा संतुलित रखने के लिए।
प्रश्न 10.
ऊँट का जलीय अनुकूलन से क्या समझते हो ? ऊँट के अनुकूलन में RBC का क्या भूमिका है ? ऊँट मरुस्थल में किस प्रकार सुखपूर्वकरहता है ?
उत्तर :
ऊँट का जलीय अनुकूलन : ऊँट की त्वचा मोटी होती है। इसकी तहों में पानी संचय करने का अनुकूलन होता है। पेट में जल संचय की व्यवस्था रहती है, जिससे यह एक बार पानी पीकर कई साताह तक बिना जल के जीवित रहता है। एक ऊँट एक समय में 0 गैलन के लगभग पानी अपने आमाशय में भर सकता है। भूखे ऊँट का कूबड़ कम हो जाता है भोजन कर लेने के बाद वास्तविक आकार ले लेता है। यह अपने शरीर से बहुत कम पानी उत्सर्जित करता है। यह साँस भी धीमी गति से लेता है। ऊँट अपने शरीर का ताप 41° C अथवा 42° C तक बढ़ा सकता है।
ऊँट के RBC उसके शरीर में पानी की कमी (dehydration) के समय सिमट कर उसे सरक्षा प्रदान करते हैं क्योंकि ऊँट के RBC कोशिकाओं का आकार अण्डाकार होता है जो मोटे रक्त में भी आसानी से संचरण कर लेते हैं। जल की प्राप्ति (rehydration) के समय RBC पुन: फैल जाते हैं।
ऊँट की शारीरिक रचना मरुस्थलीय वातावरण के अनुरूप होती है। यही कारण है कि यह मरुस्थल में सुखी रहता है। इसके कुछ मुख्य उपायोजन निम्न हैं –
- यह कंटीली झाड़ियों को खाकर पचा लेने में सक्षम होता है।
- पैर का निचला सिरा चौड़ा तथा गद्दीदार होता है जिससे चलते समय यह बालू में नहीं धँसता है।
- ऊंट के मूत्र का गाढ़ा होना ही इनके शरीर में जल खर्च की दर कम होने का प्रमाण है।
- इसकी त्वचा में पसीने की ग्रंथियाँ नहीं के बराबर होती हैं, अतः पसीने के रूप में भी जल खर्च नहीं होता है।
इन्हीं सब कारणों से ऊँट को रेगिस्तानी जहाज भी कहा जाता है।