Students should regularly practice West Bengal Board Class 9 Hindi Book Solutions and व्याकरण व्युत्पत्ति के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण to reinforce their learning.
WBBSE Class 9 Hindi व्याकरण व्युत्पत्ति के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर :-
प्रश्न 1.
शब्द किसे कहते हैं ?
उत्तरः
ध्वनियों के ऐसे समूह को शब्द कहते हैं जिससे काई अर्थ व्यक्त होता हो। अर्थ ही शंब्द का प्रधान लक्षण है। जिस ध्वान-समूह से कोई अर्थ नहीं निकलता, वह ध्वनि-समूह शब्द नहीं है। उदाहरणतः क, म, ल, ध्वानियाँ हैं जिनका अपने आप में काई अर्थ नहीं है। किन्तु इन तीनों का मिलाकर कमल ध्वनि-समूह बनता है जिसका एक अर्थ होंता है। अत ‘कमल ध्वान-समूह एक शब्द हुआ। पर ‘मकल’ ध्वनि समूह शब्द नहीं हैं, क्योंकि इसका कोई अर्थ नहीं है। अतः सार्थक ध्वनि समूह ही शब्द है।
भाषा की सरलतम, सार्थक और लघुतम इकाई शब्द है। शब्द के अभाव में वाक्य की रचना ही संभव नहीं। भाषा रूपी वृक्ष का मूल शब्द ही है। शब्द किसी न किसी वस्तु, व्यक्ति, भाव, विचार आदि का प्रतीक है और इस कारण अंकला शब्द भी कभी-कभी हमारा आशय प्रकट कर देता है, जैसे – ‘आओ’, रुको’।
प्रश्न 2.
अर्थ की दृष्टि से शब्दों के कितने भेद हैं ?
उत्तरः
अर्थ की दृष्टि से शब्दों के दो भेद हैं :-
(क) सार्थक शब्द :-जिन शब्दों से किसी अर्थ का बोध होता है, उन्हें सार्थक शब्द कहते हैं। जैसे – वृक्ष, आकाश, पुस्तक, गाड़ी आदि।
(ख) निरर्थक शब्द :-जिन शब्दों से किसी अर्थ का बोध नहीं होता है, उन्हें निरर्थक शब्द कहते हैं। जैसे – चक, फुथ आदि
प्रश्न 3.
उत्पत्ति या व्यवहार (प्रयोग) के विचार से हिन्दी के शब्दों को कितने वर्गों में बाँटा गया है?
उत्तरः
दो वर्गों में :-
(क) भारतीय मूल के शब्द या देशज शब्द
(ख) विदेशी मूल के शब्द या विदेशज शब्द
प्रश्न 4.
भारतीय मूल के शब्दों को कितने वर्गों में बाँटा गया है ?
उत्तरः
भारतीय मूल के शब्दों को चार वर्गो में बाँटा गया है –
(क) तत्सम्
(ख) अर्द्धतत्सम्
(ग) तद्भव
(घ) देशज।
प्रश्न 5.
व्युत्पत्ति किसे कहते हैं ?
उत्तरः
किसी शब्द के मूल रूप से अन्य नए शब्द बनाने की प्रक्रिया व्युत्पत्ति कहलाती है।
प्रश्न 6.
व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्द कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तरः
व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्द तीन प्रकार के होंते हैं –
(क) रूढ़ शब्द
(ख) यौगिक शब्द
(ग) योगरूढ़ शब्द
प्रश्न 7.
रूपान्तर की दृष्टि से शब्द कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तरः
रूपान्तर की दृष्टि से शब्द दो प्रकार के होते हैं :-
(क) विकारी शब्द,
(ख) अविकारी शब्द
प्रश्न 8.
विकारी शब्द कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तरः
विकारी शब्द चार प्रकार के होंते हैं :-
(क) संज्ञा
(ख) सर्वनाम
(ग) विशेषण
(घ) क्रिया।
प्रश्न 9.
अविकारी शब्द कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तरः
अविकारी शब्द चार प्रकार के हांत हैं :-
(क) क्रिया-विशेषण
(ख) संबंधसृचक
(ग) समुन्चबांधक
(घ) विस्मयादिबांधक
प्रश्न 10.
शब्दों का क्या महत्व है ?
उत्तरः
शब्द भाषारूपी भवन के लिए ईंटों का काम करते हैं। शब्दों से ही वाक्य बनते है जो अपन अभीप्ट अर्थ को प्रस्तुत करते हैं।
प्रश्न 11.
शब्द-भंडार किसे कहते हैं ?
उत्तरः
किसी भी भाषा में समय के साथ-साथ नए-नए शब्दों का समावश होता जाता है तथा अनुपयांगी शब्ध लुप्त हांते जाते है। जैसं आजकल केप्यूटर, टी वी , दूरदर्शन, इलैक्ग्रानिक मीडिया, चैनल, आदि नए शब्ध जुडतं जा रहं है, जबकि संर, छटाँक जैसे पुरान शब्द अब प्रचलन में नहीं हैं तथा लुप्त होंत जा रहे हैं। भापा में प्रयुक्त शब्ब-समूह का शब्द-भंडार कहते हैं।
प्रश्न 12.
संकर शब्द से आप क्या समझते हैं ?
उत्तरः
दो भिन्न भाषाओं के शब्दों को मिलाकर जो नया शब्द बनता है, उसं ‘संकर शब्द’ कहते हैं। हिन्दो में कुद्ध प्रचलित संकर शब्द निम्नलिखित हैं –
(क) हिन्दी और संस्कृत – वर्षगाँठ, कपडा-उद्यांग, पूँजोर्पति, माँगपत्र।
(ख) हिन्दी और अरबी/फारसी – थानंदार, घडीसाज, कितायघर, बैठकबाज।
(ग) संस्कृत और अंग्रेजी – रोडियोतरंग, रेलयाज्री, याजना-कमीशन।
(घ) अरबी-फारसी और अंग्रेजो – बीमापोंलिसी, पार्टीबाजो, अफसरशाही।
प्रश्न 13.
निम्नांकित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें :-
(क) तत्सम् शब्द
(ख) अर्द्धतत्सम् शब्द
(ग) परंपरागत तत्सम् शब्द
(घ) तद्भव शब्द
(ङ) देशज शब्द
(च) आगत शब्द
(छ) संकर शब्द
(ज) रूढ़ शब्द
(झ) यौगिक शब्द
(अ) योगरूढ़ शब्द
(त) विकारी शब्द
(थ) अविकारी शब्द।
उत्तरः
तत्सम शब्द : तत्सम (तत् + सम) शब्द का अर्थ है उसके समान। किसी भाषा में जब दूसरी भाषा या भाषाओं के शब्द ज्यों के त्यों अपने शुद्ध रूप में सम्मिलित कर लिए जाते हैं, तब वे तत्सम शब्द कहलांत हैं। इस आधार पर हिन्दी मे प्रयुक्त अन्य भापाओं के शब्द भी अगर मूल रूप में आ गये हैं तो उन्हें तत्सम कहना चाहिए। किन्नु हिन्दी में केवल संस्कृत भाषा के शब्दों को तत्सम’ शब्द कहा जाता है। यही परम्परा है और हिन्दो को संस्कृत को पुन्री: कहा जाता है।
हिन्दी में प्रयुक्त तत्सम शब्दों के कुछ उदाहरण –
अग्न, पुष्ष, कार्य, हस्त, प्रन्थ, यात्रा, काव्य, वत्स, चूर्ण, कृष्ण, अक्ष, अक्षर , कृपा, मयृर, शत्माका पुग्य सत्य, आकाश, रावि, सूर्य, भानु, चन्द्र, शाश, जल, वायु, समीर, जीवन, मरण, मृत्यु, बाल वुद चि प्रातः, उषा, कन्या, पुत्र, सुत, सुता, व्याघ्र, सिंह, काक, पिक, वसन्न, हैमन्त, सुख-दुःख, दिवम गत्र मना पन्न देवता, ईश, ईश्वर आदि।
अर्द्धतत्सम शब्द :- जिन तत्सम शब्दों का स्वरूप किंचित परिवर्तन के साथ हिन्दों मे प्रयुक्त हा रहा है , वे अर्द्ध तत्सम शब्द् कहलाते है. जैसे : कर्म – ‘करम’। कृष्ण – ‘किशुन’
अन्य उदाहरण :-
परम्परागत तत्सम :- ऐसे शब्द संस्कृत साहित्य से लिये गये हैं। आकाश, सूर्य, चन्द्र, लता, मुख आदि अपने वास्तविक रूप में (मूल रूप में) प्रचलित हैं। निर्मित तत्सम शब्द वे शब्द है जो संस्कृत व्याकरण के आधार पर आर्धुनिक विचारों और व्यापारों को व्यक्त करने के लिए गढ़े जाते हैं, जैसे-आकाशवाणी, दूरदर्शन, वायुयान आदि
तद्भव शब्द :- ऐसे शब्द जो संस्कृत और प्राकृत से होते हुए हिन्दी में परिवर्तित रूप मे प्रयुक्त होते हैं, तद्भव कहलाते हैं, जैसे – आँख, बाघ, साँप, रात, मोद, साँझ, गागर, काम, आग, बच्चा आदि।
तत्सम से तदीभव के उदाहरण
देशज (देशी) (मॉडल प्रश्न – 2011) :- देशज शब्दों की व्युत्पत्ति के सम्बन्ध में कुछ पता नहीं है। बहुधा ये लोकभाषाओं और बोलियों के शब्द हैं, जो आंचलिक क्षेत्रों में बोली गई बोलियों से हिन्दी में सम्मिलित कर लिये गये हैं।
उदाहरण :-
- भिखारियों को खिचड़ी खिलाओ।
- उसने वह डिबिया खो दी।
- हम कबड्डी खेलेंग।
- झाड् से कमरे की फर्श झाड़ दो।
- तुमने खिड़की से क्या देखा ?
उपर्युक्त वाक्यों में प्रयुक्त खिचड़ी, डिबिया, कबड्डी, झाड् और खिड़की के अतिरिक्त तेंदुआ, चिड़िया, कटोरा, चसक, जूता, कलाई, फुनगी, पगड़ी, लोटा, डोंगा आदि शब्द देशज शब्द हैं।
आगत (विदेशी शब्द या प्रतिवेशी शब्द) :- हिन्दी भाषा में विदेशी भाषाओं से आये शब्द विदेशी शब्द’ कहलाते हैं। इनमें फारसी, अरबी, तुर्की, अगरेजी, पुर्तगाली और फ्रांसीसी भाषाएँ मुख्य हैं। हिन्दी में उनका प्रयोग कुछ अपने मूल रूप में और कुछ सामान्य परिवर्तन के साथ किया जाता है।
कुछ विदेशी शब्द प्रस्तुत हैं-
अंग्रेजी शब्द :- टेबुल, स्टेशन, अफसर, अपील, आर्डर, इंजन, इंच, एजेन्सी, कम्पनी, कमिश्नर, कमीशन, कैम्प, क्लास, फोर्स, कोर्ट, क्वार्टर, किकेट, गार्ड, गजट, जेलर, जेल, डायरी, डिप्टी, डिस्ट्रिक्ट, ड्राइवर, टचूशन, टीचर, पेन, टिकट, नोटिस, नर्स, नम्बर, पार्टी, पार्सल, प्लेट, पाउडर, मीटिंग, बोतल, मील, थियेटर, मेम्बर, फेल, पास, चेयरमैन, काउन्सिल, थर्मामीटर, दिसम्बर, पेट्रोल, कलक्टर, फाउन्टेन पेन आदि।
कुछ अधिक परिवर्तन के साथ प्रयुक्त अंग्रेजी शब्दों के उदाहरण
सिलेट, कप्तान, टिकस, लालटेन, अस्पताल, गिलास, थेटर, सिनेमा आदि।
अरबी शब्द :- अक्ल, अखबार, अख्तियार, अजब, अजल, अजान, अजायब, अजीज, अजीब, अजूबा, काफिला, अत्तार, अदद, अदना, अदब, अदा, अदालत, अदालती, अदावत, अफववाह, अबीर, अमन, अमीन, अमीर, अमीराना, अमीरी, अरबी, चिक्कारना, अलगरज़ी।
फारसी शब्द :- अंगूर, अंगूरी, अंजाम, अंजुमन, अंदरूनी, फीता, अंदाज, अंदाज़न, अंदेशा, अंबार, अंजीर, अचार, मेज, अजनबी, अगर-मगर, बगल, अफसोस, अमानत, अमानी, अयाल, अरमान, अर्ज़ी, अस्तबल, अस्तर, लगाम-गज, आईन, आईना, आगोश, आजमाइश, आज़माना, लबादा, आज़ूदा, आज़ाद, आज़ादी, आतिश, आतिशी, शीशा, कारबारी, कारबार, कारनामा, साया।
तुर्की शब्द :- उर्दू, कैंची, कैंचा, कुली, चकमक, तमगा, तलाश, तोप, बेगम, कुरता, काबू, चिक, जाजम, मुगल, मुगलानी, दारोगा, बुलबुल, बेगम, लाख।
पुर्तगाली शब्द :- आलपीन, दुबैको, काज, पैड़ें, मस्तूल, इस्पात, ईस्वी, कमीज, कमरा, बोतल, आलमारी, चाबी, गमला, गोदाम, तौलिया आदि।
लैटिन शब्द :- कैमरा।
चीनी शब्द :- चाय, चीनी, लीची।
फ्रेंच :- कारतूस, कूपन, फ्रांस, ब्रीच आदि।
ड्च शब्द :- तुरुप, बम।
जापानी शब्द :- रिक्शा।
संकर शब्द :- प्रयोग के क्षेत्र में कुछ ऐसे शब्द भी प्रवेश कर गये हैं जो किसी एक भाषा से संबंधित नहीं हैं। जैसे वर्ष तथा गाँठ के मिलने से बना शब्द ‘वर्ष-गाँठ’ हुआ। इसमें ‘वर्ष’ संस्कृत का शब्द है तथा “गाँठ” हिन्दी का। इसी तरह संस्कृत एवं अंग्रेजी शब्दों के योग से बना शब्द योजना-कमीशन है। ऐसे भिन्न भाषाओं के शब्दों के मेल से बने शब्द ‘संकर शब्द’ कहलाते हैं। अन्य उदाहरण-
हिन्दी और संस्कृत :- माँग-पत्र, पूँजीपति, कपड़ा-उद्योग।
हिन्दी और अरबी / फारसी :- किताबघर, थानेदार, बैठकबाज, घड़ीसाज।
संस्कृत और अंग्रेजी :- रेलयात्री, रेडियों-तरंग, स्टेशन-अधीक्षक।
हिन्दी और अंग्रेजी :- टिकट-घर, रेलगाड़ी, सिनेमाघर, मालगोदाम।
अरबी / फारसी और अंग्रेजी :- पार्टीबाजों, बीमा-पॉलिसी, अफसरशाही। इस तरह हिन्दी भाषा में विश्व की विभिन्न भाषाओं के शब्द हैं।
रूढ़ शब्द :- जिन शब्दों का खण्ड करने से उन खण्डों का कोई अर्थ न निकले, उन्हें रूढ़ कहते हैं। ये किसी अन्य शब्द से नहीं बनते। जैसे – कान शब्द का खण्ड इस प्रकार होगा – का + न। जब ये दोनों खण्ड मिलते हैं तभी अर्थ निकलता है।
यौगिक शब्द – जो शब्द दा या अधिक शब्दों या प्रत्यय के योग से बनते हैं और जिनके खण्डों का अर्थ भी होता है, उन्हें यौगिक शब्द कहते हैं। जैसे – विद्यासागर = विद्या + सागर। इसमें ‘विद्या’ और सागर’ दोनों का अर्थ पूर्ण है। इसी प्रकार विद्यालय = विद्या + आलय। घुड़सवार = (घोड़ा और सवार)। हिमालय = हिम + आलय आदि यौगिक शब्दों का अभीष्ट अर्थ खण्डों के योग से ही निकलता है।
योगरूढ़ शब्द :- वे यौगिक शब्द जो साधारण अर्थ को छोड़कर विशेष अर्थ का बोध कराते हैं, उन्हें योगरूढ़ शब्द कहते हैं। जैसे – लम्बोदर। इसका सामान्य अर्थ है लम्बा (बड़ा) पेट, पर इसका अर्थ विशेष रूप में गणेशजी के लिए भी ग्रहण किया जाता है। इसी प्रकार पीताम्बर (श्रीकृष्ण), पकज (कमल), चक्रपाणि (विष्गु), दशानन (रावण), जलद (बादल) आदि विशेष अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। ऐसे शब्द योगरूढ़ कहलाते हैं।
विकारी शब्द – जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक और काल के कारण विकार अर्थात् परिवर्तन होता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं। जैसे- बच्चा दौड़ता है। बच्चे को रोको। बच्चों ने फल खा लिया। इन तीनों वाक्यों में ‘बच्चा’ शब्द बच्चा, बच्चे और बच्चों के रूप में प्रयुक्त हुआ है। इसमें परिवर्तन भी हुआ है। यही परिवर्तन विकार या रूपान्तर कहलाता है।
अविकारी शब्द :- जिन शब्दों का रूप लिंग, वचन, कारक, पुरुष और काल के आधार पर परिवर्तित नहीं होता, उन्हें अविकारी (अव्यय) शब्द कहते हैं।
प्रश्न 14.
तत्सम् से तदभव में रूपांतरित हुए शब्दों की एक सूची प्रस्तुत करें।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर :-
प्रश्न 1.
व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्द के भेद उदाहरण-सहित लिखें।
उत्तरः
करीब 12 वीं शताब्दी से आधुनिक भाषाओं का काल प्रारंभ होता है। तब से लेकर 60 वर्ष पूर्व तक भारत में विदेशी शासन रहा है। वर्तमान में हिन्दी की कुल शब्द-सम्पदा दो लाख से अधिक है। इनमें से लगभग 85 प्रतिशत शब्द हिन्दी के अपने हैं तथा शेष लगभग 15 प्रतिशत शब्द विदेशी हैं। यह हिन्दी भाषा की जीवंतता और उदारता का प्रमाण है कि उसने विदेशी तथा अन्य भारतीय भाषाओं से शब्द ग्रहण किए और अपने-आपको सम्पन्न किया। इसका परिणाम यह हुआ कि विदेशी शब्दों तक का हिन्दीकरण हो गया है।
व्युत्पत्ति की दृष्टि से हिन्दी के शब्द-समूह को हम मोटे तौर पर पाँच भागों में बाँट सकते हैं-
(क) तत्सम् शब्द
(ख) तद्भव शब्द
(ग) देशज शब्द
(घ) द्रविड़ परिवार की भाषा के शब्द और
(ङ) विदेशी शब्द।
तत्सम् शब्द :- तत्सम् शब्द का अर्थ है – तत् + सम् अर्थात् उसके समान (संस्कृत के समान)। चूँकि संस्कृत हिन्दी भाषा की जननी है, इसलिए स्वाभाविक रूप से हिन्दी की अधिकांश शब्दावली संस्कृत से ही आई हुई है। लेकिन हिन्दी के इन शब्दों का भी रूप बदल गया है। ऐसे शब्द हैं –
कक्षा, अग्नि, विद्या, कवि, अनंत, अग्रज, कनिष्ठ, काव्य, कृपा, क्रोध, आदि। हिन्दी में राशियों के नाम भी प्राय: तत्सम् रूप में ही प्रचलित है। इसके साथ ही संस्कृत के सभी उपसर्ग हिन्दी में नए शब्दों की रचना करते हैं। ऐसे 22 उपसर्ग हैं।
तद्भव शब्द :- तद्भव शब्द का अर्थ है-तद् + भव, अर्थात् उससे उद्भुत (उत्पन्न)। अपने से का अर्थ संस्कृत से है। इसके अन्तर्गत वे शब्द आते है, जो संस्कृत शब्दों से उत्पन्न होकर विकसित हुए हैं। इनमें वर्तमान में काफी परिवर्तन आ गया है। हिन्दी के आधे से अधिक शब्द इसी वर्ग के हैं। हिन्दी के सभी कियापद और सर्वनाम तद्भव हैं। कुछ तद्भव शब्द उदाहरण के तौर पर यहाँ रखे जा रहे हैं –
देशज शब्द :- इसके अंतर्गत वे शब्द आते हैं, जिनका जन्म संस्कृत में नहीं ढूँढ़ा जा सकता। वस्तुत: ये वे शब्द हैं, जो लोकभाषा में प्रचलित होते हैं और इनकी व्युत्पत्ति का भाषाई सोत नहीं मिलता, ऐसे कुछ शब्द हैं तड़ातड़, धक्का, टक्कर, जगमग, ठनक, झिलमिल, डगमग, झनकार, ढील-ढाल आदि।
इसके अंतर्गत उन शब्दों को भी रखा जा सकता है, जो दो भिन्न भाषाओं के शब्दों से मिलकर बने हैं। उदाहरण के लिए, ‘जेबघड़ी’ शब्द को ले सकते हैं। इसमें ‘जेब’ शब्द फारसी का है तथा ‘घड़ी’ शब्द हिन्दी का। इसी प्रकार के अन्य शब्द हैं — तिमाही (हिन्दी + फारसी), फूलदान (हिन्दी + फारसी) रेलयात्रा (अंग्रेजी + संस्कृत) आदि।
मूलत: द्रविड़ परिवार की भाषाओं से हिंदी में आए शब्दों को भी देशज् शब्द समूह के अतर्गत रखा जाता है, लेकिन यहाँ सुविधा की दृष्टि से उन शब्दों को द्रविड़ परिवार की भाषा के अंतर्गत रखा गया है।
द्रविड़ परिवार की भापाओं के शब्द :-हिन्दी ने अनेक शब्द द्रविड़ परिवार की भाषाओं से लिए हैं। जैसे हिन्दी का ‘काफी’ शब्द तमिल के काप्पी’ का रूपान्तर है। इसी प्रकार ‘चुरुट’ तमिल के शुरुट’ का तथा ‘पिल्ल’ (हिन्दी तथा उर्दू दोनों में) तेलगू के पिल्ला’ से लिया गया शब्द है। इसी प्रकार के अन्य शब्द हैं – अर्क, काक, कानन, कुटिल, कुण्ड कुंडल, कोप, चतुर, चंदन, चूड़ा, तामरस, तूल, दण्ड, नीर, मयूर, माता, मीन, मुकुट, लाला, शव आदि।
विदेशी (विदेशज) शब्द :- हिन्दी में विदेशी शब्दों का प्रयोग 10 वों – 11 वीं शताब्दी में विदेशी आक्रमणकारियों के साथ ही होने लगा था। आधुनिक काल में अंग्रेजी तथा अन्य यूरोपीय शब्द पर्याप्त मात्रा में हिन्दी में गए हैं। हिन्दी ने उन अधिकांश शब्दों को अपनी प्रकृति के अनुकूल ढालकर स्वीकार किया है। हिन्दी में मुख्य रूप से निम्न विदेशी भाषाओं के शब्द आए हैं –
फारसी के शब्द :- हिन्दी में फारसी के करीब 2-3 हजार शब्द हैं। ये शब्द हिन्दी में इतने लंबे समय से प्रयोग में आ रहे हैं कि लगता ही नहीं कि ये शब्द हिन्दी के अपने नहीं होंगे।
कुछ ऐसे शब्द हैं – कमीज़, पायजामा, देहात, शहर, सब्जी, अंगूर, हलवा, जलेबी, कुर्सी, सख्त, मकान, दवा, मरीज़, हकीम, बुखार आदि।
अरबी के शब्द :-अदालत, किताब, कलम, कागज़, शैतान, मुकदमा, फैसला आदि।
तुर्की शब्द :- बहादुर, कैंची, बेगम, बाबा, कुर्ता, गलीचा, चाकू , गनीमत, लाश, सुराग आदि।
पश्तो शब्द :- पठान, गुण्डा, अचार, डेरा, गड़बड़, नगाड़ा, हमजोली, मटरगश्ती आदि।
पुर्तगाली शब्द :- हिन्दी में पुर्तगाली के करीब एक हजार शब्द प्रचलित हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं आलमारी, स्त्री, आया, कनस्तर, गोदाम, चाबी, गमला, तौलिया, परात, पावरोटी, पिस्तौल, बालटी, बिस्कुट, बोतल, तम्बाकू आदि।
अंग्रेजी शब्द :- अंग्रेजों द्वारा लंबे समय तक शासित होने तथा अंग्रेजी शिक्षा के परिणामस्वरूप अंग्रेजी के शब्दों का जीवन के हर क्षेत्र में प्रभाव पड़ा। वर्तमान में अंग्रेजी के करीब तीन हजार शब्द हिन्दी में घुलमिल गए हैं और उनका बहुलता से प्रयोग होता है ; जैसे – इंजन, मोटर, कैमरा, रेडियो, टेलीविजन, मीटर, फीस, कंपनी, टीम, परेड, प्रेस, अपील, कोर्ट, पाकिट, टाई, टावर, आदि।
फ्रांसीसी – कारतूस, कूपन, बेसिन।
हालैंड – बम, तुरुप।
चीनी – चाय, लीची।
जापानी – रिक्शा।
तिब्बती – डांडी।