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WBBSE Class 9 Hindi व्याकरण संधि
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर :
प्रश्न 1.
‘सन्धि’ किसे कहते हैं ?
उत्तरः
दो या दो से अधिक वर्णों के मेल से जो विकार (परिवर्तन) उत्पन्न होता है, उसेस्थि कहते हैं।
इसमें दो शब्द निकट होते हैं। यह विकार कभी एक वर्ण में, कभी दो वर्णों में होता है, कभी-कभी उनके स्थान पर एक तीसरा वर्ण भी आ जाता है । जैसे – सु + आगत = स्वागत ; देव + इन्द्र = देवेन्द्र आदि ।
प्रश्न 2.
सन्धि के कितने प्रकार हैं ?
उत्तरः
सन्धि के तीन प्रकार हैं :-
- स्वर सन्धि
- व्यंजन सन्धि और
- विसर्ग सन्धि ।
प्रश्न 3.
स्वर सन्धि किसे कहते हैं ? इसके कितने भेद हैं ?
उत्तरः
स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे स्वर सन्धि कहते हैं।
स्वर सन्धि के भेद :-
- दीर्घ सन्थि
- गुण सन्धि
- वृद्धि सन्धि
- यण् सन्धि और
- अयादि सन्धि।
प्रश्न 4.
दीर्घ सन्धि क्या है ? उदाहरण भी दें ।
उत्तरः
दीर्घ सन्धि :- ‘अ, ‘आ’, ‘ई, ‘ई, उ’, ऊ’, ‘ओ, ऊ’ में से कोई भी स्वर वर्ण की अपने सजातीय हैस्व या दीर्घ स्वर, सन्धि होने पर दोनों के बदले वैसा ही दीर्घ स्वर (आ, ई, ऊ, ऋ) होता है।
जैसे –
(क) अ + अ = आ – राम + अवतार = रामावतार
अ + अ = आ – शब्द + अर्थ = शब्दार्थ
अ + अ = आ – कोण + अर्क = कोणार्क
अ + आ = आ – परम + आत्मा = परमात्मा
अ + आ = आ – स + आश्चर्य = साश्चर्य
आ + अ = आ – विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
आ + आ = आ – माया + अधीन = मायाधीन
आ + अ = आ – लज्जा + अभाव = लज्जाभाव
आ + आ = आ – विद्या + आलय = विद्यालय
आ + आ = आ – प्रभा + आकर = प्रभाकर
आ + आ = आ – महा + आशय = महाशय
(ख) इ + इ = ई – कवि + इन्द्र = कवीन्द्र
इ + इ = ई – कवि + इच्छा = कवीच्छा
इ + इ = ई – गिरि + इन्द्र = गिरीन्द्र
इ + ई = ई – गिरि + ईश = गिरीश
इ + ई = ई – कवि + ईश्वर = कवीश्वर
इ + ई = ई – कवि + ईश = कवीश
ई + इ = ई – मही + इन्द्र = महीन्द्र
ई + इ = ई – नदी + इन्द्र = नदीन्द्र
ई + ई = ई – नदी + ईश = नदीश
ई + ई = ई – मही + ईश = महीश
ई + ई = ई – मही + ईश्वर = महीश्वर
(ग) उ + उ = ऊ – भानु + उदय = भानूदय
उ + उ = ऊ – प्रभु + उदय = प्रभूदय
उ + ऊ = ऊ – लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
उ + ऊ = ऊ – मधु + ऊषा = मधूषा
ऊ + उ = ऊ – वधू + उत्सव = वधूत्सव
ऊ + उ = ऊ – भू + उत्सर्ग = भूत्सर्ग
ऊ + ऊ = ऊ – वधू + ऊहन = वधूहन
ऊ + ऊ = ऊ – भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व
प्रश्न 5.
गुण सन्धि किसे कहते हैं ? इस सन्धि के उदाहरण भी दें ।
उत्तरः
गुण सन्धि :- ‘अ’ या ‘आ’ के साथ ‘इ’ या ‘ई’, ‘उ’ या ‘ऊ’ और ऋ’ के मेल से क्रमशः दीर्घ ए, ‘ओ’ तथा अन्तस्थ ‘र्, हेने हैं । इस विकार को गुण सन्धि कहते हैं । जैसे-
(क) अ + इ = ए – सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
अ + इ = ए – नग + इन्द्र = नगेन्द्र
अ + इ = ए – शुभ + इच्छा = शुभेच्छा
(ख) अ + ई = ए – परम + ईश्वर = परमेश्वर
अ + ई = ए – सुर + ईश = सुरेश
अ + ई = ए – खग + ईश = खगेश
(ग) आ + ई = ए – महा + ईश = महेश
आ + ई = ए – रमा + ईश = रमेश
(घ) अ + उ = औ – प्राम + उद्धार = ग्रामोद्धार
अ + उ = औ – सह + उदर = सहोदर
अ + उ = औ – सूँय + उदय = सूर्योदय
(ङ) अ + ऊ = ओ – सेंमुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि
अ + ऊ = ओ – जल + ऊर्मि = जलोर्मि
अ + ऊ = ओ – नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा
(च) आ + उ = ओ – महा + उत्सव = महोत्सव
आ + उ = ओ – गंगा + उदक = गंगोदक
(छ) आ + उ = ओ – गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि
आ + उ = ओ – महा + ऊर्मि = महोर्मि
(ज) अ + ॠ = अर – महा + ॠषि = महर्षि
अ + ॠ = अरशीत + ॠतु = शीतर्तु
प्रश्न 6.
वृद्धि सन्धि की परिभाषा सोदाहरण लिखें ।
उत्तरः
वृद्धि सन्धि :- ‘अ’ अथवा ‘आ’ के बाद ए’ या ‘ऐ’ रहे तो दोनों मिलकर ‘ऐ’ और ‘ओ’ अथवा ‘औ’ रहे तो दोनों मिलकर ‘औ’ होते हैं । इस विकार को वृद्धि सन्धि कहते हैं । जैसे-
(क) अ + ए = ऐ – एक + एक = एकैक
अ + ए = ऐ – मत + एकता = मतैकता
(ख) अ + ऐ = ऐ – मत + ऐक्य = मतैक्य
अ + ऐ = ऐ – देव + ऐश्वर्य = देवैश्वर्य
(ग) आ + ए = ऐ – सदा + एव = सदैव
आ + ए = ऐ – तदा + एव = तदैव
(घ) अ + ऐ = ऐ – महा + ऐशेवर्य = महैश्वर्य
(ङ) अ + औ = औ – जल + ओध = जलौध
(च) अ + ओ = औ – परम + ओजस्वी = परमौजस्वी
अ + ओ = औ – महा + ओज = महौज
(छ) आ + औ = औ
महा + औदार्य = महौदार्य
प्रश्न 7.
यण सन्धि किसे कहते हैं? उदाहरण द्वारा समझाएँ ।
उत्तरः
यण सन्धि :- इ’, ई’, उ, ऊ, और ऋ के आगे कोई भी दूसरा स्वर आये तो इनके समकक्ष अन्तस्थ (सघोष) व्यंजन हो जाते हैं, इसे ‘यण सन्धि’ कहते हैं। जैसे-
‘इ’ और ‘ई’ के लिए ‘य्’ ‘उ’ या ‘ऊ’ के बदले ‘व्’ और ‘ॠ’ के बदले ‘र’ हो जाता है-
(क) इ + अ = य – अति + अल्प = अत्यल्प
इ + अ = य – यदि + अपि = यद्यपि
इ + अ = य – रीति + अनुसार = रीत्यानुसार
(ख) इ + आ = या – अति + आचार = अत्याचार
इ + आ = या – इति + आदि = इत्यादि
(ग) इ + उ = यु – अति + उक्ति = अत्युक्ति
इ + उ = यु – प्रति + छंपक्काई = प्रत्युप्यकार
+ उ = यु – प्रति + बचरच = प्रत्युन्तर
(घ) इ + ऊ = यू – नि + ऊंब = स्यून
इ + ऊ = यू – अलि + ऊन = अल्यून
(छ) इ + ए = ये – प्रति + एक्क = प्रत्येक
इ + ऐ = यै – अति + ऐश्वर्य = अत्यैश्वर्य
(च) ई + अ = य – नद्वी + अर्पण = नद्रार्पण
ई + आ = या – सखी + आगमन = सख्यागमन
ई + उ = यु – सखी + उचित = सखंखुषित
ई + ऊ = यू – नदी + ऊर्मि = नद्यूर्मि
ई + औ = यौ – वाणी + औचित्य = वाणयौचित्य
(छ) उ + अ = व – अनु + अर्थ = अन्दर्ष
उ + अ = व – सु + अल्य = स्वल्य
उ + अ = व – अनु + अय्य = अन्वय
(ज) उ + आ = वा – सु + आगत = स्बामा
(घ) उ + इ वि – अनु + इष्ट = अन्विष्ट
उ + इ = वि – अनु + इति = अन्विति
(अ) उ + ए = वे – अनु + एषण = अन्वेषण
(ट) उ + ऐ = वै – बहु + ऐश्वर्य = बहैश्वर्य
ऊ + आ = वा – वधू + ऐश्वर्य = वध्वैश्वर्य
ऊ + औ = वौ – वधू + औदार्ष = वधध्वौदार्य
ॠ + अ = र – पितृ + अनुमति = पित्रनुमति
ऋ + इ = रि – पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा
ॠ + ई = री – पितृ + ईहा = पित्रीहा
ॠ + उ = रु – पितृ + उपदेश = पित्रुपदेश
ॠ + ऊ = रू – पितृ + ऊह = पित्रूह
ॠ + ए = रे – पितृ + एषण = पित्रेषण
ॠ + ऐ = रै – पितृ + ऐश्वर्य = पित्रैश्वर्य
ॠ + ओ = रो – पितृ + ओक = पित्रोक
ॠ + औ = रौ – पितृ + औदार्य = पित्रौदार्य
प्रश्न 8.
अयादि सन्थि को सोदाहरण समझाएँ ।
उत्तरः
अयादि सन्धि :-गुण कोटि के स्वर-ए’, ‘ओ’, तथा वृद्धि कोटि के स्वर गे’, ‘ओ’ अन्य स्वरों के पहले आएँ तो इनके स्थान पर क्रमश: अय्, आय्, आव् होता है । जैसे-
(क) ए + अ = अय – ने + अन = नयन
ए + अ = अय – शे + अन् = शयन
(ख) ऐ + अ = आय – नै + अक = नायक
ऐ + अ = आय – गै + अक = गायक
(ग) + इ = आव – पो + इत्र = पवित्र
(घ) ओ + इ = अव – गो + ईश = गवीश
(ङ) औ + अ = अव – पौ + अक = पावक
(च) औ + ई = आव – नौ + इक = नाविक
(छ) औ + उ = आव – भौ + उक = भावुक
विशेष :- कुछ सन्धियाँ उपर्युक्त नियमों के अन्तर्गत नहीं आतीं, वे अपवाद हैं।
जैसे-कुल + अटा = कुलटा, बिम्बा + ओष्ठ = बिम्बोष्ठ, पर + अक्ष = परोक्ष आदि ।
प्रश्न 9.
व्यंजन सन्धि क्या है ? व्यंजन सन्थि के प्रमुख नियमों को उदाहरण सहित समझाएँ ।
उत्तरः
व्यंजन के साथ व्यंजन या स्वर के मेल से जब व्यंजन में विकार उत्पन्न होता है, वहाँ व्यंजन सन्धि’ होती है। व्यंजन सन्धि के प्रमुख नियम इस प्रकार हैं –
‘क्, च्, ‘द्, त्, प्’ के आगे कोई स्वर अथवा घोष व्यंजन हो (अनुनासिक को छोड़कर) तो क्रमशः ‘ग्, ‘ज्’, ‘ड्’, द्, ‘व् होता है । जैसे-
वाक् + ईश = वागीश
वाक् + जल = वाग्जल
अच् + अन्त = अजन्त
षट् + अंग = षडंग
षट् + दर्शन = षड्दर्शन
सत् + आचार = सदाचार
सुप् + अन्त = सुवन्त
‘क्, ‘च्, ‘द्, ‘त्, ‘प्’ के आगे कोई अनुनासिक व्यंजन हो तो इनका क्रमश: ड, ज, ण, न्, म्, होता है। (वर्ण का पंचम वर्ण)
जैसे-
वाक् + मय = वाङ्मय
षद् + मास = षण्मास
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
अप् + मय = अम्मय
‘त्, या ‘द्’, के बाद ‘श’ हो तो ‘त् के स्थान में ‘च्’ और ‘श्’ के स्थान में ‘छ्’ होता है । जैसे-
उत् + श्वास = उच्छ्वास
उत् + श्रृंखल = उच्छृखल
स्वरों तथा ‘ग्, ‘घ्’, ‘द्, ‘ध्’, ‘ब्, ‘भ्’, य्’, र्, ल्, ‘व्, से पहले आने पर ‘त्’ का ‘द्’ होता है । जैसे-
सत् + आचार = सदाचार
जगत् + ईश = जगदीश
बृहत् + ग्रन्थ = बृहद्यन्थ
सत् + धर्म = सद्धर्म
तत् + रूप = तद्रूप
उत् + घाटन = उद्घाटन
भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति
भगवत् + गीता = भगवद्गीता
‘त् और ‘द् यदि ‘च् और ‘छ् से पहले आए तो ‘च्’ ज् ‘झ्’ द्् और ‘ह् से पहले आए तो ‘द् ‘ड्’ और ‘द्’ से पहले आए तो ‘ड्’ तथा ल’ से पहले आए तो ‘ल्’ में परिवर्तित होते हैं । जैसे-
सत् + चिदानन्द = सच्चिदानन्द
उत् + चारण = उच्चारण
महत् + छत्र = महच्छत्र
सत् + जन = सज्जन
विपद् + जन्य = विपज्जन्य
सत् + टीका = सट्टीका
तत् + लीन = तल्लीन
‘त्’ और ‘द्’ के आगे श्’ हो तो ‘त्’ और ‘द्’, च्’ तथा ‘श् का ‘छ’ होता है । त्’ और ‘द्’ के साथ पर ‘द्’ तथा ह’ के स्थान पर ‘ध’ होता है । जैसे-
सत् + शासन = सच्छासन
तत् + हित = तद्धित
शरद् + शशि = शरच्छशि
उत् + हार = उद्धार
‘छ’ के पूर्व स्वर हो तो ‘छ’ के बदले ‘च्छ’ होता है । जैसे-
छत्र + छाया = छत्रच्छाया
आ + छादन = आच्छादन
परि + छेद = परिच्छेद
त वर्ग को छोड़कर शेष सभी वर्गों के पहले दो व्यंजनों से पूर्व आने पर ‘स’ के स्थान पर ‘श्’ और च्’ होता है। जैसे-
दुस् + काल = दुष्काल
दुस् + चरित्र = दुश्चरित्र
निस् + पक्ष = निष्पक्ष
निस् + फल = निष्फल
सभी वर्गों के अन्तिम तीन व्यंजनों में से किसी के स्थान के पहले आने पर स् के बदले र् होता है । जैसे-
निस् + गुण = निर्गुण
दुस् + दशा = दुर्दशा
दुस् + जन = दुर्जन
दुस् + नाम = दुर्नाम
दुस् + बल = दुर्बल
दुस् + भाग्य = दुर्भाग्य
निस् + मल = निर्मल
अन्तस्थ व्यंजनों से पूर्व आने पर ‘स्’ ‘र्’ में बदल जाता है । जैसे-
दुस् + यश = दुर्यश
निस् + रोचक = निरोचक
दुस् + लक्ष्य = दुर्लक्ष्य
दुस् + वचन = दुव्वचन
‘श’ के पहले स्’ हो तो वह भी ‘श हो जाता है । जैसे-
दुस् + शील = दुश्शील
‘च् और ‘ज्’ के बाद न् रहने से न्’ के स्थान में ज’ होता है । जैसे-
याच् + ना = याच्ञा
राङ् + नौ = रांजी
ष्’ के बाद त्त् या ‘थ्’ रहने से त्’ की जगह ‘द्’ और ‘थ्’ की जगह ‘ठ्’ होता है । जैसे-
शिष् + त = शिष्ट
पृष् + थ
‘न् या ‘म्’ के बाद अगर वर्गों का कोई वर्ण रहे तो न्र और म् के स्थान में दूसरे पद के प्रथम वर्ण के वर्ग का पंचम वर्ण होता है या ‘न’ अथवा ‘म’ को अनुस्वार (‘) भी कर दिया जाता है । जैसे-
सम् + कट = संकट।
शम् + कर = शंकर।
पद के अन्त में स्थित ‘म्’ के बाद अन्तस्थ या ऊष्मवर्ण रहे तो स्’ में अनुस्वार (‘ ) होता है। जैसे-
सम् + सार = संसार
सम् + यम = संयम
‘सम्’ और परिं उपसर्ग के बाद ‘कृ धातु रहने से कृ’ के पहले स् या ष् जुट जाता है। जैसे-
सम् + कृत = संस्कृत
सम् + कार = संस्कार
परि + कृत = परिष्कृत
‘अ अथवा ‘आ’ के अतिरिक्त कोई भिन्न स्वर हो और उसके बाद ‘स’ हो तो ‘स’ के स्थान में ब’ हो जाता है। जैसे-
वि + सम् = विषम
अभि + सेक = अभिषेक
नि + सेध = निषेध
यदि ‘झ्, र् या ‘ब्’ के बाद न’ आये और बीच में चाहे स्वर, कवर्ग, पवर्ग, अनुस्वार या ‘य, व’, हह’ रहे तो ‘न’ के बाद ण’ हो जाता है। जैसे-
राम + अयन = रामायण
नार + अयन = नारायण
भूष + अन = भूषण
प्रश्न 10.
विसर्ग सन्धि की परिभाषा लिखते हुए इससे सम्बन्थित प्रमुख नियमों को सोदाहरण समझाएँ।
उत्तरः
स्वर और व्यंजन वर्ण के मेल से विसर्ग में जो विकार उत्पन्न होता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं। विसर्ग सन्धि के प्रमुख नियम इस प्रकार हैं –
विसर्ग के पहले यदि ‘अ’ और आगे घोष व्यंजन हो और आगे भी ‘अ’ हो, तो पहले वाला ‘अं विसर्ग के साथ ‘ओ में बदल जाता है तथा बाद वाले ‘अ’ का लोप हो जाता है । जैसे-
मन: + हर = मनोहर
मन: + रथ = मनोरथ
मन: + भाव = मनोभाव
मन: + योग = मनोयोग
वय: + वृद्ध = वयोवृद्ध
विसर्ग के पहले यदि ‘अ’ हो, आगे ‘अ’ के अलावा कोई अन्य स्वर हो तो विसर्ग का लोप होता है। जैसे-
अतः + एव = अतएव
यश: + इच्छा = यशइच्छा
यदि किसी विसर्ग के पहले ‘अ ‘आ’ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तथा विसर्ग के आगे कोई स्वर या घोष व्यंजन हो तो विसर्ग के बदले र् होता है, यदि विसर्ग से बने ‘र’ के आगे भी ‘ T ‘ का लोप होता है तो इसका पूर्ववर्ती हस्व दीर्घ हो जाता है। जैसे-
नि: + अर्थ = निरर्थ
नि: + आकार = निराकार
दु: + आचार = दुराचार
दु: + उपयोग = दुरुपयोग
नि: + गुण = निर्मुण
नि: + धन = निर्धन
नि: + रस = नीरस
नि: + रोग = नीरोग
नि: + अर्थ = निरर्थ
नि: + आकार = निराकार
दु: + आचार = दुराचार
दु: + उपयोग = दुरुपयोग
नि: + गुण = निर्गुण
नि: + धन = निर्धन
नि: + रस = नीरस
नि: + रोग = नीरोग
छछ और ‘व’ से पहले आने पर विसर्ग का ‘श्, द् और ‘द्य से पहले \% ‘ तथा ‘त और ‘थ’ से पहले ‘स’ होता है। जैसे-
नि: + चल = निश्चल
नि: + छल = निश्छल
धनु: + टंकार = धनुष्टकार
मन: + ताप = मनस्ताप
यदि विसर्ग के पूर्व ‘इ’ या ‘उ’ हो तथा विसर्ग के आगे ‘क’, ‘ख’ या ‘प’, फ’ हो तो विसर्ग के स्थान पर ष्’ होता है । जैसे-
नि: + कपट = निष्कपट
दु: + कर्म = दुष्कर्म
नि: + पाप = निष्याप
नि: + फल = निकल
विसर्ग के बाद ‘श’, ष’, ‘स’ होने पर या तो विसर्ग ही रह जाता है या विसर्ग का भी क्रमशः ‘श्’, ष’, ‘स्’ हो जाता है। जैसे-
दु: + शासन = दु:शासन, दुश्शासन
नि: + सार = नि:सार, निस्सार
नमः, पुरः, सिर: के विसर्ग के बाद कृ धातु का प्रयोग किया जाय तो विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ होता है । जैसे-
नम: + कार = नमस्कार
पुर: + कार = पुरस्कार
तिर: + कार = तिरस्कार
यदि विसर्ग के पूर्व ‘अ’ हो और उसके बाद ‘क’, ख’, प’ अथवा फ’ हो तो विसर्ग में विकार नहीं होता। जैसे-
उप: + काल = उष:काल
अध: + पतन = अध:पतन
अपवाद – पर: + पर = परस्पर
वृहत् + पति = वृहस्सति
वन: + पति = वनस्सति
यदि विसर्ग के आगे-पीछे ‘अ’ हो तो विसर्ग और पहले वाला अ’ मिलकर ‘ओ हो जाता है और बाद के अ’ का लोप हो जाता है और उसके स्थान पर ‘ओ हो जाता है । जैसे-
प्रथम: + अध्याय = प्रथमोध्याय
जब ‘अ’ के अलावा दूसरा स्वर बाद में आये तो यह नियम नहीं लागू होता, केवल विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे-
अत: + एव = अतएव
यथ: + इच्छा = यथाइच्छा
प्रश्न 11.
निम्नलिखित शब्दों के सन्धि-विच्छेद के भेदों के नाम लिखिए :-
उत्तरः