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WBBSE Class 9 Hindi व्याकरण संज्ञा
संज्ञा शब्द ‘सम्’ और ‘ज्ञा’ के योग से बना है जिसका अर्थ है ‘सम्यक् ज्ञान्’ या पूर्ण और सही परिचय (सम + ज्ञा = संज्ञा, अर्थात् सम्यक् ज्ञान कराने वाला)। संज्ञा का दूसरा पर्याय है – नाम। व्यक्ति, वस्तु या स्थान आदि के सम्यक् ज्ञान, पूर्ण परिचय के लिए भाषा में उन्हें कुछ नाम दे दिए गए हैं। ये नाम ही संज्ञा है।
परिभाषा – किसी भी वस्तु, व्यक्ति, गुण, भाव, स्थिति का परिचय कराने वाले शब्द को ‘संज्ञा’ कहते हैं।
अथवा, किसी भी प्राणी, व्यक्ति, वस्तु, स्थान या भाव के नाम को संज्ञा कहते हैं।
उदाहरण –
- सौरभ दिल्ली में निवास करता है।
- नारियाँ स्वभाव से कोमल होती हैं।
- मानव प्रेम सुंदरता-असुंदरता को नहीं देखता।
- गाय एक उपयोगी पशु है।
- बुढ़ापा दुखों का घर है और यौवन आनंद का।
- आगरा यमुना के किनारे बसा हुआ है।
उपर्युक्त काले शब्द संज्ञा शब्द हैं। संज्ञा शब्दों का इसलिए भी विशेष महत्व है कि संज्ञा शब्दों के बिना भाषा बन ही नहीं सकती। हम जब भी कोई बात कहते हैं, पूछते हैं, करते हैं तो अनायास ही संज्ञा शब्दों का प्रयोग करते हैं। व्याकरण में जो शब्द किसी के नाम को बताता है संज्ञा शब्द कहलाते हैं। किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, स्थिति, गुण अथवा भाव के नाम का बोध करानेवाले शब्दों को संज्ञा कहते हैं।
संज्ञा के भेद (Kinds of Nouns)
संज्ञा शब्दों से प्रायः किसी व्यक्ति, जाति अथवा भाव के नाम का बोध होता है। इसलिए संज्ञा के तीन प्रमुख भेद बताए गए हैं –
- व्यक्तिवाचक संज्ञा (Proper Noun)
- जातिवाचक संज्ञा (Common Noun)
- भाववाचक संज्ञा (Abstract Noun)
व्यक्तिवाचक संज्ञा : जो शब्द किसी विशेष व्यक्ति, विशेष वस्तु, विशेष स्थान अथवा विशेष प्राणी के नाम का बोध कराते हैं, उन्हें व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे –
महात्मा गाँधी, सुभाषचंद्र बोस, सीता, राधा, राम, कृष्ण, कुसुम, रेखा, पूनम, सौरभ, सचेत, अपर्णा, अपराजिता – व्यक्तियों के नाम
कपिला (गाय), गौरा (गाय), सोना (हिरनी), ऐरावत (हाथी) – प्राणियों के नाम
दिल्ली, कानपुर, आगरा, अलीगढ़, बरेली, मद्रास, देहरादून, शिमला, बिजौली, अंबाला, गुड़गाँव, जापान स्थानों के नाम
रामचरितमानस, रामायण, गीता, कुरान, कावेरी, नीलगिरि, गांडीव, हल्दी, नमक, चीनी – वस्तुओं के नाम
जातिवाचक संज्ञा : जो शब्द किसी प्राणी, पदार्थ या समुदाय की पूरी जाति का बोध कराते हैं, वे जातिवाचक संज्ञा कहलाते हैं। उदाहरणार्थ – हाथी, कुत्ता, फल, गाय, विद्यार्थी तथा अध्यापक आदि।
ये शब्द संपूर्ण जाति के परिचायक हैं किसी एक मनुष्य, एक नर या एक प्रांत के नहीं। जातिवाचक संज्ञा के दो उपभेद हैं-
(क) द्रव्यवाचक संज्ञा (ख) समूहवाचक संज्ञा। अंग्रेजी व्याकरण के अनुसार संज्ञा के पाँच भेद स्वीकार किए गए हैं। उसी आधार पर हिंदी के कुछ विद्वान भी संज्ञा के पाँच भेद मानते हैं। वैसे, द्रव्यवाचक संज्ञा तथा समूहवाचक संज्ञाएँ भी एक प्रकार से जाति का बोध कराती हैं। अत: इन्हें जातिवाचक संज्ञा के उपभेदों के रूप में ही स्वीकार किया गया है।
(क) द्रव्यवाचक संज्ञा – किसी पदार्थ अथवा द्रव्य का बों कराने वाले शब्दों को द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे- स्टोल, पीतल, लोहा (फर्नीचर के लिए), सोना-चाँदो (आभूषण के लिए)।
द्रव्यवाची संज्ञा शब्दों का प्रयोग प्राय: एकवचन में ही किया जाता है क्योंकि ये शब्द गणनीय नहीं हैं।
(ख) समूहवाचक संज्ञा – जो संज्ञा शब्द किसी समुदाय या समूह का बोध कराते हैं वे समूहवाचक संज्ञा शब्द कहलाते हैं। जहाँ भी समूह होगा वहाँ एक से अधिक सदस्यों की संभावना होगी, जैसे – सेना, कक्षा, झुंड, भीड़, जुलूस, दरबार, दल सभी समूहवाचक शब्द हैं।
इन शब्दों का प्रयोग एकवचन में ही होता है क्योंकि ये एक ही जाति के सदस्यों के समूह को एक इकाई के रूप में व्यक्त करते हैं। गौरा, सोना, ऐरावत, कामधेनु जानवर हैं, कुसुम, रेखा, पूनम, सौरभ मनुष्य हैं, गंगा, यमुना, गोमती, कावेरी नदियाँ हैं। इस प्रकार ‘नगर’, ‘जानवर’, ‘मनुष्य’, ‘नदी’ आदि शब्द किसी जाति विशेष का बोध कराते हैं।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जो शब्द किसी जाति, पदार्थ, प्राणी, समूह आदि का बोध कराते हैं, ‘जातिवाचक संज्ञा’ शब्द कहलाते हैं।
तुलना देखिए –
भावाचक संज्ञा
जिन संज्ञा शब्दों से किसी व्यक्ति अथवा वस्तु के गुण-धर्म, दोष, शील, स्वभाव, भाव, संकल्पना आदि का बोध होता है, वे ‘भाववाचक संज्ञा शब्द’ कहे जाते हैं। जैसे –
गुण-दोष-लंबाई, चौड़ाई, सुंदरता, कुरूपता, चतुरता, ऊँचाई, नीचाई
दशा – बचपन, बुढ़ापा, यौवन, भूख, प्यास
भाव – आशा, निराशा, कोध, वैर, युद्ध, शान्ति, मित्रता, शत्रुता, भय, प्रेम
कार्य – सहायता, निंदा, प्रशंसा, सलाह
एक संज्ञापद का दूसरे संज्ञापद के रूप में प्रयोग – कभी-कभी जातिवाचक और व्यक्तिवाचक संज्ञापद का एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग जातिवाचक के रूप में कर दिया जाता है।
व्यक्तिवाचक संज्ञा का जातिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग – कुछ व्यक्तियों के जीवन में प्राय: अन्य लोगों के जीवन से भिन्न कोई ऐसी विशेषता, गुण अथवा अवगुण होता है जिसके कारण उनका नाम उस गुण या अवगुण का प्रतिनिधित्व करने लगता है। ऐसी स्थिति में वह नाम व्यक्ति-विशेष का नाम होकर जातिवाचक शब्द बन जाता है। जैसे भीष्म पितामह का नाम दृढ़ प्रतिज्ञा के लिए प्रसिद्ध है। जैसे –
- आज कौन हरिश्चंद्र हो सकता है।
- भारत तो सीता-सावित्री का देश है।
- विभीषणों से बचो।
- इन्हीं जयचंदों के कारण देश गुलाम हुआ।
- देश में जयचंदों की कमी नहीं है ।
- तुम तो एकलव्य हो जो गुरु के लिए कुछ्छ भी कर सकते हो।
यहाँ हरिश्चंद्र ‘सच्चाई’ का, सीता-सावित्री ‘पवित्रता’ का, विभीषण ‘विश्वासघात’ का, जयचंद ‘गद्दार’ का, एकलव्य ‘गुरुभक्ति’ का प्रतीक है।
जातिवाचक संज्ञा का व्यक्तिचावक संज्ञा के रूप में प्रयोग – कभी-कभी कुछ जातिवाचक शब्द किसी व्यक्ति-विशेष या स्थान विशेष के अर्थ में रूढ़ हो जाते हैं तब वे जाति का बोध न कराकर केवल एक ‘व्यक्ति या स्थानविशेष’ का बोध कराते हैं। जैसे –
महात्मा जी ने भारत को आजाद् कराया
– महात्मा गाँधी
स्वतंत्रता के बाद सरदार ने रियासतें समाप्त की
– सरदार पटेल
पंडित जी देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे
– पं० जवाहरलाल नेहरू
शास्त्री जी भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री थे।
– लाल बहादुर शास्त्री
पुरी की पवित्रता सर्वविदित है
– जगन्नाथपुरी
भाववाचक संज्ञा शब्दों का जातिवाचक संज्ञा के रूप में पयोग – भाववाचक संज्ञा शब्दों का प्रयोग एकवचन में होता है, किन्तु जब कभी कुछ भाववाचक संज्ञा शब्द बहुवचन में प्रयुक्त होते हैं तब वे जातिवाचक संज्ञा कहलाते हैं। जैसे –
बुराई से बुराइयाँ – हम सभी में अनेक बुराइयाँ व्याप्त हैं।
पढ़ाई से पढ़ाइयाँ – निर्धन व्यक्ति की बच्चों की पढ़ाइयाँ मार देती हैं।
दूरी से दूरियाँ – कभी-कभी दूरियाँ ही अपनेपन का आभास कराती हैं।
प्रार्थना से प्रार्थनाएँ – गरीबों की प्रार्थनाएँ व्यर्थ नहीं जातीं।
ऊँचाई से ऊँचाइयाँ – ऊँचाइयाँ नापनी हैं तो हिमालय का भ्रमण करो।
हिंदी के भाववाचक संज्ञा शब्दों में मूल शब्द तथा यौगिक शब्द दोनों ही मिलते हैं।
मूल भाववाचक संज्ञा शब्द-यौगिक भाववाचक संज्ञा शब्दों की रचना सभी प्रकार के शब्दों से हो सकती है। ये प्राय: पाँच प्रकार के शब्दों से बनती है –
- जातिवाचक संज्ञाओं से
- सर्वनामों से
- विशेषणों से
- क्रियाओं से
- अव्ययों से
(हिंदी के भाववाचक संज्ञा शब्दों के मूल शब्द तथा यौगिक शब्दों को भाववाचक संज्ञाएँ रूढ़ तथा निर्मित भी कहा जाता है)
जातिवाचक संज्ञा से –
सर्वनामों से –
विशेषण से –
क्रिया पद से (क्रियाओं से)
अव्ययों से (अविकारी शब्दों से) –
संज्ञा शब्दों की रूप-रचना
हिंदी से संज्ञा शब्द वाक्य के अंतर्गत कभी अपने मूल रूप में तथा कभी परिवर्तित रूप में प्रयुक्त होते हैं, जैसे –
लड़का खेल रहा है।
लड़के खेल रहे है ।
लड़कों को बुलाकर लाओ।
पहले वाक्य में ‘लड़का’ शब्द मूल रूप में प्रयोग हुआ है जबकि दूसरे व तीसरे वाक्य त्रमश: ‘लड़के’ तथा ‘लड़कों’ – शब्दों का प्रयोग ‘लड़का’ शब्द का ही परिवर्तित रूप है।
रूप रचना से यह ज्ञात होता है कि प्रयुक्त शब्दों में क्या परिवर्तन आया है ? यह परिवर्तन क्यों और कैसे आया है ? परिवर्तन आने से शब्द के जो रूप बनते हैं उनको दर्शाना अथवा अंकित करना ही रूप-रचना कहलाती है। संज्ञा शब्दो का रूप-परिवर्तन लिंग, वचन और परसर्ग (विभक्ति) के कारण होता है। यही संज्ञा की रूप-रचना कहलाती है।
संज्ञा शब्दों में वचन का प्रभाव
हिंदी में ‘लिंग’ संज्ञा शब्दों की प्रमुख विशेषता है। शब्दों के बहुवचन रूप बनाने के लिए और वाक्य में इनका सही प्रयोग करने हेतु शब्दों के सही लिंग की पहचान अति आवश्यक हो जाती है। हिंदी में पुलिंग तथा स्त्रीलिंग शब्दों के बहुवचन बनाने के नियम अलग-अलग हैं।
शब्दों को पुलिंग और स्त्रीलिंग दों वर्गों में विभक्त कर सकते हैं-
पुलिंग शब्द – बेटा, बच्चा, कवि, पानी, कमरा, धोबी, नौकर, सेवक , लड़का, छाता, पाठक, मित्र, घर, घोड़ा, भालू, शेर, हाथी।
स्त्रीलिंग शब्द – बेटी, लड़की, गायिका, वस्तु, वधू, बहन, मोरनी, माला, रानी, बुढ़िया, बछिया, विधि, गति, गली, कुर्सी, आँख, मेज, किलाब, शेरनी।
हिंदी के संज्ञा शब्दों की रूप-रचना और परसर्ग (विभक्ति) के अनुसार होती है।
परसर्ग (विभक्ति) रहित शब्द को मूल शब्द कहते हैं। जैसे – बालक-बालिका।
परसर्ग (विभक्ति) सहित शब्द को तिर्यक् शब्दो के बहुवचन रूप में ‘याँ’, ‘ओं’, नहीं ‘या’ तथा ‘ओ’ परसर्ग लगता है। हिंदी के संज्ञा शब्द रूप-रचना की दृष्टि से चार वर्गों में विभक्त किए जा सकते हैं –
1. आकारांत पुलिंग शब्द – जैसे-बेटा, बच्चा, कमरा, लड़का, घोड़ा, लाला आदि । इस वर्ग में कुछ अपवाद भी मिलते है – कुछ संज्ञा शब्द ऐसे है जो ‘आकारांत’ होते हुए भी इस रूप-रचना अथवा रूपावली के अंतर्गत नहीं आते। जैसे – (क) संस्कृत शब्द – महात्मा, योद्धा, नेता, पिता, राजा, दाता आदि।
(ख) संबंध सूचक शब्द – चाचा, जीजा, मामा, दादा, नाना, बाबा आदि।
(ग) तद्भव शब्द – अगुआ, मुखिया आदि।
2. “आकारांत”‘से भिन्न पुलिंग शब्द। जैसे – कवि, रवि, पति, मुनि, माली, गुरु, घर, बालक, डाकू, साधु आदि।
3. “इ/ई” अथवा ” इया” प्रत्यांत स्त्रीलिंग शब्द, जैसे- चिड़िया, कुटिया, बुढ़िया, कोठरी, बेटी, नदी, विधि, रीति आदि।
4. “इ/ई” अथवा “इया’ प्रत्यांत से भिन्न स्त्रोलिंग शब्द, जैसे – माता, गीता, वधू, बालू, बहन, वस्तु, गौ आदि। संज्ञा शब्दों (लड़का, लड़कें, लड़कियों) में होने वाले परिवर्तन से संबंधित कुछ नियम इस प्रकार हैं –
1. अकारांत शब्दों (जैसे घर) में विभिक्ति-प्रत्यय मात्रा के रूप में लगते हैं। जैसे – घरों।
2. आकारांत पुलिंग शब्दों में भी विभिक्ति प्रत्यय मात्रा के रूप में लगत हैं। जैसे –
लड़का-लड़कें-लड़कों, घोड़ा-घोड़ें-घोड़ों।
जिन स्र्रीलिंग शब्दों के अंत में इया प्रत्यय आता है उनमें भी यही नियम लागू होता हैं जैसे – बुढ़िया-बुढ़ियाँ-बुढ़ियों
3. आकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के बाद में एँ तथा ओं लगाकर नए शब्द बनते हैं जैसे – माता-माताएँ-माताओ।
4. अकारांत अथवा आकारांत प्रत्ययों से भिन्न शब्दों के साथ विभक्ति प्रत्यय उनके मूल रूपों में एँ तथा ओं लगाकर बनते हैं। जैसे –
गुरु-गुरुओं, वस्तु-वस्तुएँ-वस्तुओं
इकारांत/ईकारांत शब्दों के बाद प्रत्ययों से पहले ‘य’ का आगम भी होता है। जैसे –
साली-सालियों, नदी-नदियों
5. संबोधन बहुवचन में ‘ओं’ नहीं, ‘ओ’ प्रयुक्त होता है। जैसे –
हे छात्रों ! अरे लड़कों-लड़कियों !
कुछ अपवदों को छोड़कर आकारांत पुलिंग शब्दों जैसे – बेटा, लड़का, घोड़ा, बच्चा आदि के रूप निम्न प्रकार हो सकते हैं।
आकारांत पुलिंग शब्द-बच्चा
बेटा
इसमें बेटा, बेटे, बेटो और बेटों – ये चार रूप बनते हैं।
अपवाद – राजा, पिता, योद्धा, दाता, महात्मा, नेता, वह्मा, नाना, बाबा, मामा, चाचा, दादा, जोजा, मुखिया, अगआ आदि।
“आकारांत” से भिन्न पुलिंग शब्द
माली
अकारांत ‘बालक’ के रूप
इकारान्त पुलिंग ‘मुनि’ के रूप
(रावि, कवि, पति, क्रसषि आदि पुलिंग शब्दों के रूप भी इसी प्रकार बनते हैं, ईकारांत पुलिंग धोबी, माली, ऊकारांत शब्द डाकू, गुरु के रूप में इसी प्रकार बनते हैं।)
लड़की
“’इया प्रत्यांत’” स्र्रीलिंग शब्द-कुटिया
(निर्जीव संज्ञाओं के साथ संबोधन कारक का प्रयोग नहीं किया जाता है।)
इकारांत/ईकारांत अथवा ”इया” प्रत्यांत से भिन्न स्त्रीलिंग शब्द
औकारांत स्त्रीलिंग ‘गौ’
अन्य कारकों में भी रूप इसी प्रकार होंगे, किंतु चिह्न उन कारकों के अनुसार लगंगे। ‘गो’ जैसे अन्य औकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के रूप भी इसी प्रकार बनेंगे।
रूप-रचना हेतु विशेष निर्देश
1. सभी “आकारांत” (स्व्वीलिग/पुलिंग), “आकारांत” पुलिंग तथा “इया प्रत्यांत” शब्दों में विभिक्ति प्रत्यय मात्रा रूप में लगते हैं। जैसे -लड़के, लड़कों, बहनें, बहनों, बालक, बालकों आदि।
2. “अकारांत” और ‘आकारांत’ से भिन्न शब्दों में विभक्ति-प्रत्यय अपने मूलरूप (एँ, ओं) में लगते हैं। जैसेवस्तु-वस्तुएँ।