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WBBSE Class 9 Hindi व्याकरण समास
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर :-
प्रश्न 1.
समास किसे कहते हैं ?
उत्तरः
समास शब्द का अर्थ है-संक्षिप्त करने की रचना-विधि या छोटा करने का ढंग। अपनी बात को कम से कम शब्दों में कहना मानव का स्वभाव है। इसीलिए वह अनेक बार भाषा के एक से अधिक शब्दों को मिलाकर एक शब्द बना देता है। एक से अधिक शब्दों को मिलाने की यह विधि ही समास कहलाती है।
अथवा
परस्पर संबंध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्दों के मेल को समास कहते हैं।
अथवा
समास वह शब्द रचना है जिसमें अर्थ की दृष्टि से परस्पर स्वतंत्र संबंध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्द मिलकर किसी अन्य स्वतंत्र शब्द की रचना करते हैं।
जैसे – रसो
ई + घर = रसोईघर : पीत + अम्बर = पीताम्बर।
प्रश्न 2.
समास-विग्रह किसे कहते हैं ?
उत्तरः
दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से नये शब्द बनाने की क्रिया को समास कहते हैं। इस विधि से बने शब्दों को समस्त-पद कहते हैं। जब समस्त-पदों को पृथक-पृथक किया जाता है तो उसे समास-विप्रह कहते हैं।
अथवा
जब समस्त-पद के सभी पद अलग-अलग किए जाते हैं, तब उस प्रकिया को ‘समास विप्रह’ कहते हैं जैसे ‘मातापिता’ समस्त पद का विग्रह होगा माता और पिता।
प्रश्न 3.
‘पूर्वपद’, ‘उत्तरपद’ तथा ‘समस्त-पद’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तरः
समास रचना में दो शब्द (पद) होते हैं। पहला पद ‘पूर्वपद’ कहा जाता है और दूसरा पद ‘उत्तरपद’ तथा इन दोनों के समास से बना नया शब्द समस्त-पद’ कहलाता है। समास रचना के क्रम में का विभक्ति लोप हो जाता हैं। जैसे-
प्रश्न 4.
हिन्दी में समास प्रक्रिया के अंतर्गत कितने प्रकार से शब्दों की रचना हो सकती है ?
उत्तरः
हिन्दी में समास प्रक्रिया के अंतर्गत तीन प्रकार से शब्दों की रचना हो सकती है-
- तत्सम + तत्सम शब्दों के समास से, जैसे – राजा + पुत्र = राजपुत्र
- तद्भव + तद्भव शब्दों के समास से, जैसे – बैल + गाड़ी = बैलगाड़ी
- विदेशी + विदेशी शब्दों के समास से, जैसे – जेब + खर्च = जेबखर्च
प्रश्न 5.
संकर समास किसे कहते हैं ? सोदाहरण लिखें।
उत्तरः
हिन्दी में ऐसे समास भी मिलते है जो दो भिन्न भाषाओं के मेल से बने हैं। इन्हें ही संकर समास कहते हैं। जैसे –
- योजना कमीशन (तत्सम् + विदेशी)
- डाकखाना (तद्भव + विदेशी)
- पॉकेटमार (विदेशी + तद्भव)
प्रश्न 6.
समास की विशेषताओं को लिखें।
उत्तरः
समास की निम्नलिखित विशेषताएँ है –
- समास में दो या दो से अधिक पदों का एक पद के रूप में संक्षेपीकरण अथवा योग होता है।
- समास में दो या अधिक पदों के बीच के विभक्ति चिह्न, प्रत्यय आदि का लोप हो जाता है।
- समास की प्रक्रिया में पदों के बीच संधि की स्थिति पैदा हो जाने पर संधि अवश्य हो जाती है। इस नियम का पालन हिन्दी की बजाय संस्कृत में अति आवश्यक है।
प्रश्न 7.
सन्धि और समास में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तरः
सन्धि और समास में निम्नांकित अंतर हैं :-
सन्धि में अक्षरों का और समास में पदों (शब्दों) का मेल होता है –
सन्धि
विद्यालय = विद्या + आलय
नयन = ने + अन्
समास
विद्या का आलय
माता-पिता=माता और पिता
समास में सन्धि के नियमों का पालन आवश्यक है, पर सन्धि में समास का नियम पालन आवश्यक नहीं है। यह ऊपर के उदाहरणों से स्पष्ट हो गया है।
समास और सन्धि दोनों में पदों को तोड़ते हैं। समास में पदों को तोड़ने की क्रिया ‘विग्रह’ कहलाती हैं और सन्धि में इसे ‘विच्छेद’ कहते हैं।
समास में जोड़ (+) चिन्ह की कोई आवश्यकता नहीं होती, पर सन्धि में (+) चिह्न आवश्यक है।
समास में शब्द का यथार्थ रूप सामान्यत: बना रहता है, किन्तु सन्धि में कभी एक अक्षर और कभी दोनों में परिवर्तन होता है। कभी-कभी दोनों के बदले तीसरा अक्षर आ जाता है। जैसे-
समास
गृह-प्रवेश = गृह में प्रवेश
भाई-बहन = भाई और बहन
गंगाजल = गंगा का जल
नीलगाय = नीली है जो गाय
प्रश्न 8.
समास के कितने भेद हैं ?
प्रश्न 8.
समास के कितने भेद हैं ?
उत्तरः
हिन्दी में समास के निम्नलिखित छ: भेद है :-
- तत्पुरुष
- कर्मधारय
- द्विगु
- द्वन्द्ध
- बहुवीहि और
- अव्ययी भाव।
कुछ वैयाकरण नज्’ नामक सातवाँ भेद भी मानते हैं।
प्रश्न 9.
तत्पुरुष समास किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तरः
तत्पुरुष समास – जिस समास में दूसरा पद प्रधान हो तथा पहले पद की विभक्ति आदि का लोप हो, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे –
राजपुत्र = राजा का पुत्र। पाठशाला = पाठ के लिए शाला आदि।
ऊपर के उदाहरणों में ‘का’, के लिए’ का लोप है।
प्रश्न 10.
तत्पुरुष समास के भेदों को सोदाहरण लिखें :-
उत्तरः
तत्पुरुष समास के छ: भेद हैं – (क) कर्म तत्पुरुष, (ख) करण तत्पुरुष, (ग) सम्प्रदान तत्पुरुष, (घ) अपादान तत्पुरुष, (ङ) सम्बन्ध तत्पुरुष, (च) अधिकरण तत्पुरुष।
(क) कर्म तत्पुरुष :- इसमें कर्म का चिह्न को’ समास होने पर लुप्त हो जाता है। जैसे – गिरहकट = गिरह को काटने वाला; जलज = जल को देने वाला।
(ख) करण तत्पुरुष :- इसमें करण का ‘से’ या द्वारा’ चिह्न लुप्त रहता है। जैसे-शोकाकुल = शोक से आकुल; तुलसीकृत = तुलसी द्वारा कृत (बनाई गई)।
(ग) सम्प्रदान तत्पुरुष :- इसमें सम्प्रदान का चिह्न को’ या ‘के लिए’ हट जाता है। जैसे-देश-प्रेम = देश के लिए प्रेम; मार्गव्यय = मार्ग के लिए व्यय।
(घ) अपादान तत्पुरुष :- इसमें अपादान का चिह्न ‘से’ हट जाता है। जैसे-पदच्युत = पद से च्युत, धर्मविमुख = धर्म से विमुख।
(ङ) सम्बन्ध तत्पुरुष :- इसमें सम्बन्ध के चिह्न ‘का’, के, की’ हट जाते हैं। जैसे-यंगाजल = गंगा का जल; राजपुत्र = राजा का पुत्र।
(च) अधिकरण तत्पुरुष :- इसमें अधिकरण का चिह्न ‘में’, पर’ लुप्त रहता है। जैसे-वनवास = वन में वास; प्रेममग्न = प्रेम में मग्न।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें :-
कर्मधारय समास, द्विगु समास, द्वन्न्व समास।
उत्तरः
कर्मधारय समास :- जिस सामासिक पद में विशेषण और विशेष्य (संज्ञा), विशेषण तथा उपमान और उपमेय का मेल होता है, उसे कर्मधारय समास कहते हैं। जैसे-पीताम्बर = पीत अम्बर; नीलगाय = नीली गाय।
लाल-पीला (दोनों विशेषण); चन्द्रमुख = चन्द्र की तरह मुख (उपमान-उपमेय का मेल)।
द्विगु समास :- जिस सामासिक पद (शब्द) का पहला पद संख्यावाचक विशेषण हो, उसे द्विगु समास कहते हैं। जैसेत्रिभुवन = तीनों भुवनों का समाहार; चौराहा = चार राहों का समाहार।
द्वन्द्ध समास :- जिस सामासिक पद (शब्द) के दोनों या सभी पद प्रधान हों, उसे द्वन्द्व समास कहते हैं। जैसेमाँ-बाप = माँ और बाप; दालभात = दाल और भात (इसमें और, एवं, या हट जाते हैं)।
प्रश्न 12.
द्वन्द्व समास के कितने भेद हैं ? परिभाषा व उदाहरण भी लिखें।
उत्तरः
द्वन्द्ध समास के तोन भेद हैं – (क) इतरेतर द्वृन्द्ध (ख) वैकल्पिक द्वन्द्व और (ग) समाहार द्वन्द्व।
(क) इतरेतर द्वन्द्व :- जिस दून्द्व समास में ‘और का लोप होता है, उसे इतरेतर दून्द्ध समास कहते हैं। जैसे-सीताराम = सीता और राम; राजा-रानी = राजा और रानी।
(ख) वैकल्पिक द्वन्द्ध :- जिस द्वन्द्ध समास में विरोधी शब्दों का मेल हो और उन शब्दों के बीच का विकल्पसूचक समुच्चयबोधक व’ या ‘अथवा’ का लोप हो उसे वैकल्पिक द्वन्द्ध कहते हैं। जैसे – मान-अपमान = मान व अपमान; पाप-पुण्य = पाप अथवा पुण्य।
(ग) समाहार द्वन्द्ध : जिस द्वन्द्ध समास में विरोधी शब्दों के पदों के अलावा उसी तरह का दूसरा अर्थ व्यंजित हो, उसे समाहार द्वन्द्ध समास कहते हैं। जैसे-चोर-डाकू; भूल-चूक; हाथ-पाँव आदि।
प्रश्न 13.
बहुव्रीहि समास की परिभाषा व उदाहरण लिखें।
उत्तरः
बहुव्रीहि समास :- जिस सामासिक पद (शब्द) का कोई भी पद प्रधान न हो, बल्कि समस्त पद अपना विशेष अर्थ व्यक्त करे, वहाँ बहुवीहि समास होता है। जैसे-नीलकंठ = नीला है कंठ जिसका (शिवजी); लम्बोदर = लम्बा है उदर जिसका (गणेश जी)।
प्रश्न 14.
बहुव्रीहि समास के कितने भेद हैं ? परिभाषा व उदाहरण लिखें।
उत्तरः
बहुव्रीहि समास के चार निम्नलिखित भेद माने जाते हैं –
(क) समानाधिकरण बहुव्वोहि, (ख) व्यधिकरण बहुवीहि, (ग) तुल्ययोग या सहबहुवीहिहि तथा (घ) व्यतिहार बहुवीहि।
(क) समानाधिकरण बहुवीहि समास :- जिस बहुव्रीहि समास का समस्त पद कर्तांकारक की विभक्ति का हो और विग्रह करने पर कर्म से लेकर अधिकरण कारक तक किसी का भी कारक चिह्न (विभक्ति) उसमें लगा हो और उसका विशेष अर्थ व्यंजित हो, तो उसे समानाधिकरण बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे-दशानन = दस हैं आनन जिसके = सम्बन्ध तत्पुरुष। जितेन्द्रिय = इन्द्रियाँ जीती गई हैं जिसके द्वारा (से )= करण तत्पुरुष।
(ख) व्यधिकरण बहुव्रीहि समास :-जिस बहुव्वीहि समास के विग्रह करने पर पहले पद में कर्त्ताकारक और दूसरे पद में सम्बन्ध या अधिकरण का चिह्न लगता है, उसे अधिकरण बहुव्रीह समास कहते हैं। जैसे-चक्रपाणि = चक्र हैं पाणि में जिसके। चन्द्रचूड़ = चन्द्र है चूड़ पर जिसके
(ग) तुल्ययोग या सहबहुव्रीहि समास :- जिस बहुव्रीहि समास का पहला पद सह (साथ) हो, उसे तुल्ययोग या सहबहुवीहि समास कहते हैं। जैसे-सतेज = तेज के साथ जो हो। सकुशल = कुशल के साथ जो हो।
(घ) व्यतिहार बहुव्रीहि समास :- जिस बहुवीहि समास से घात-प्रतिघात का भाव प्रकट होता है, उसे व्यतिहार बहुवीहि समास कहते हैं। जैसे- बाताबाती = बात-बात में लड़ाई का बोध होता है। लातालाती = लात-लात से लड़ाई का बोध होता है।
प्रश्न 15.
व्यतिहार बहुव्रीहि के कितने भेद माने जाते हैं ? परिभाषा व उदाहरण भी लिखें।
उत्तरः
व्यतिहार बहुव्रीहि के निम्नलिखित भेद माने जाते हैं –
(क) करण बहुवीहि,
(ख) सम्प्रदान बहुव्रीहि
(ग) अपादान बहुवीहि
(घ) सम्बन्ध बहुव्वीहि और
(ङ) अधिकरण बहुवीहि।
विशेष :- इस समास के भेद में कर्ता, कर्म और सम्बोधन को छोड़कर (कारकों के चिह्न – ने, को, हे, अरे) शेष जिस कारक का चिह्न (विभक्ति) लगता है, उसी के अनुसार इसका नाम होता है। जैसे-
(क) करण बहुव्वीहि समास :- कृतकार्य = किया गया है काम जिससे (जिसके द्वारा), वही।
(ख) सम्प्रदान बहुव्रीहि समास :- दिया गया है धन जिसको, वह।
(ग) अपादान बहुव्राहि समास :- निर्मल = निर्गत है मल जिससे, वह।
(घ) सम्बन्ध बहुव्रीहि समास :- चतुर्भुज = चार हैं भुजाएँ जिसकी, वह।
(ङ) अधिकरण बहुव्रीहि समास :- प्रफुल्लकुसुम = फूले हैं कुसुम जिसमें, वह।
प्रश्न 16.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें :- अव्ययीभाव समास।
उत्तरः
अव्ययीभाव समास :- जिस सामासिक पद (शब्द) का पहला या दोनों शब्द अव्यय हों, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसमें पहला पद प्रधान होता है और समस्त पद क्रिया-विशेषण के रूप में प्रयोग में आता है।
विशेष-द्रष्टव्य :- संज्ञा की आवृत्ति (द्विरुक्ति) से भी अव्ययीभाव समास बनते हैं। जैसे-
(क) घर-घर, कदम-कदम, दर-दर आदि।
(ख) क्रिया-विशेषण की द्विरुक्ति से भी अव्ययीभाव समास बनते हैं।
जैसे – धीरे – धीरे, पहले -पहले आदि।
(ग) अव्ययीभाव में कभी-कभी पहला पद अव्यय नहीं रहता, पर वह क्रिया-विशेषण रूप में काम करता है। जैसे – मन ही मन; डगर-डगर आदि।
(घ) कुछ अव्ययीभाव समास के पूर्वपद विकृत होकर आते हैं। जैसे-हाथों-हाथ, बीचो-बीच आदि।
प्रश्न 17.
कर्मधारय समास तथा बहुव्रीहि समास में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तरः
कर्मधारय समास और बहुव्रीहि समास में अन्तर :-
कर्मधारय समास में पहला पद विशेषण और दूसरा पद विशेष्य (संज्ञा) के रूप में आता है, किन्तु बहुव्वीहि समास में सभी पद किसी दूसरे पद का विशेषण होता है। जैसे-
कर्मधारय समास
बहुव्रीहि समास
पीताम्बर = पीला वस्त्र
पीला वस्त्र हो जिसका, वह (कृष्ण)
ऊपर के उदाहरणों में कर्मधारय में विशेषण-विशेष्य का मेल दिखाया गया है और बहुवीहि में एक विशेष अर्थ का बोध होता है।
प्रश्न 18.
तत्पुरुष समास और कर्मधारय समास में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तरः
तत्पुरुष समास और कर्मधारय समास में अन्तर :-
तत्पुरुष समास में अलग-अलग विभक्तियाँ लगते हैं और कर्मधारय समास में खण्ड करते समय केवल एक ही विर्भिक्ति लगाई जाती है।
जैसे –
तत्पुरुष समास-
राजपुत्र = राजा का पुत्र
माखनचोर = माखन का चोर
कर्मधारय समास-
चन्द्रमुख = चन्द्र जैसा मुख
नीलकमल = नीला कमल
प्रश्न 19.
तत्पुरुष तथा बहुव्रीहि समास में अन्तर को सोदाहरण बताएँ।
उत्तरः
तत्पुरुष और बहुव्रीहि समास में अन्तर :- तत्पुरुष और बहुव्वीहि में यह भेद है कि तत्पुरुष में प्रथम पद द्वितीय पद का विशेषण होता है, जबकि बहुव्रीहि में प्रथम और द्वितीय दोनों पद मिलकर अपने से अलग किसी तीसरे के विशेक्ण होते हैं। जैसे-पीत + अम्बर = पीताम्बर (पीला कपड़ा) कर्मधारय तत्पुरुष है, तो पीत है अम्बर जिसका वह-पीताम्बर (विष्णु) बहुव्रीहि। इस प्रकार यह विग्रह के अन्तर से ही समझा जा सकता है कि कौन तत्पुरुष है और कौन बहुवीहि। विग्रह के अन्तर होने से समास का और उसके साथ ही अर्थ का भी अन्तर हो जाता है। पीताम्बर’ का तत्रुरुष में विग्रह करने पर पीला कपड़ा’ और बहुव्रीहि में विग्रह करने पर ‘विष्यु’ अर्थ होता है।
प्रश्न 20.
बहुव्रीहि तथा द्विगु समास के अंतर को उदाहरण के साथ दिखलाएँ।
उत्तरः
बहुवीहि और द्विगु समास में अन्तर –
जहाँ पहला पद संख्यावाचक होता है और दूसरा पद ‘विशेष्य’ की विशेषता ‘संख्या में’ बताता है वहाँ “द्विगु’ समास होता है।
जहाँ समस्त पद किसी तीसरे की ओर संकेत करता है वहाँ बहुव्रीहि समास होता है।
उदाहरण :
(i) चतुरानन = चार आननों का समाहार (द्विगु)
चतुरानन = चार आनन हों जिसके – बहा (बहुव्रीहि)
(ii) त्रिलोचन = तीन लोचनों का समाहार (द्विगु)
त्रिलोचन = तीन लोचन हैं जिसके = शिव (बहुव्रीहि)
प्रश्न 21.
बहुव्रीहि समास की विशेषताओं को लिखें।
उत्तरः
बहुवीहि समास की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
- यह दो या दो से अधिक पदों का समास होता है।
- इसका विम्रह शब्दात्मक या पदात्मक न होकर वाक्यात्मक होता है।
- इसमें अधिकतर पूर्वपद कर्ता कारक का होता है या विशेषण।
- इस समास से बने पद विशेषण होते हैं। अतः, उनका लिंग विशेष्य के अनुसार होता है।
प्रश्न 22.
टिप्पणी लिखें – नअ समास।
उत्तरः
“नअ समास ” तत्पुरुष का एक भेद है जिसमें पूर्व पद “अभाव” अथवा “निषेध” का अर्थ व्यक्क करता है। अभाव एवं निषेध को व्यक्त करने वाले उपसर्ग हिन्दी में ‘अ’ तथा ‘अन’ है। इनके उदाहरण हैं-अधर्म (न धर्म), अन्याय (न न्याय), असमर्थ (नहीं समर्थ), अनिष्ट (न् इष्ट), अनचाहा (न चाहा), अनधिकार (न अधिकार), अपूर्ण (न पूर्ण), अनकहा (न कहा) आदि।
विशेष : (क) उर्दू में “ना” तथा “गैर” से बननेवाले शब्द, जिनका हिन्दी में प्रयोग होता है, नज् समास में ही माने जाएंगे। यथा – नालायक (नहीं लायक), नाबालिग (नहीं बालिग), नापसन्द (नहीं पसन्द), गैर हाजिर (नहीं हाजिर), गैरवाजिब (नहीं वाजिब) आदि।
(ख) हिन्दी में निषेध का अर्थ व्यक्त करने वाले ‘न’ अव्यय से बननेवाले शब्द नज्’ समास के अन्तर्गत आते हैं, जैसे – नास्तिक (न आस्तिक), नगण्य (नहीं गण्य), नक्षत्र (नहीं क्षत्र) आदि।
प्रश्न 1.
समास के समस्त भेदों के अनुसार समासों की सूची प्रस्तुत करें तथा उनका विग्रह भी करें।
उत्तरः
समास-सूची (तत्पुरुष समास) :-
द्वितीय तत्पुरुष (कर्म-तत्पुरुष) :-
समस्त पद – विग्रह
गिरिधर – गिरि (को) धारण करनेवाला।
जलधर – जल (को) धारण करनेवाला।
हलधर – हल (को) धारण करनेवाला।
भूधर – भू (को) धारण करनेवाला।
वंशीधर – वंशी (को) धारण करनेवाला।
विषधर – विष (को) धारण करनेवाला।
मनोहर – मन (को) हरनेवाला।
स्वर्गप्राप्त – स्वर्ग (को) प्राप्त करनेवाला।
मोक्षप्राप्त – मोक्ष (को) प्राप्त करनेवाला।
यशप्राप्त – यश (को) प्राप्त करनेवाला।
सुख्याप्त – सुख (को) प्राप्त करनेवाला।
पॉकेटमार – पॉकेट (को) मारनेवाला।
चिड़ीमार – चिड़ियों (को) मारनेवाला।
कठखोदवा – काठ (को) खोदनेवाला।
कठफोड़वा – काठ (को) फोड़नेवाला।
दु:खापन्न – दु:ख को आपन्न (प्राप्त)।
संकटापन्न – संकट को आपन्न।
स्थानापन्न – स्थान को आपन्न।
अग्निभक्षी – अग्नि (को) भक्षण करनेवाला।
सर्वभक्षी – सर्व या सब (को) भक्षण करनेवाला।
गगनचुम्बी – गगन (को) चूमनेवाला।
गृहागत – गृह को आगत।
तृतीया तत्पुरुष (करण-तत्पुरुष) :-
समस्त पद – विग्रह
देहघोर – देह से चोर
मुंहवोर – मुँह से चोर
कामचोर – काम से चोर
प्रेमसिक्त – प्रेम से सिक्त
जलसिक्त – जल से सिक्त
अकालपीड़ित – अकाल से पीड़ित
रोगपीड़ित – रोग से पीड़ित
धर्मान्ध – धर्म से अंधा
जन्मान्ध – जन्म से अंधा
मदान्ध – मद से अंधा
शोकार्त्त – शोक से आर्त्त
दुखार्त्त – दुःख से आर्त्त
आतपजीवी – आतप से जीनेवाला
श्रमजीवी – श्रम से जीनेवाला
शोकमस्त – शोक से प्रस्त
रोगग्रस्त – रोग से मसस्त
करुणापूर्ण – करुणा से पूर्ण
कष्टसाध्य – कष्ट से साध्य
रसभरा – रस से भरा
मदमाता – मद से माता
जलावृत्त – जल से आवृत्त
मेघाच्छन्न – मेघ से आव्छन्न
तुलसीकृत – तुलसी द्वारा कृत
नियमबद्ध – नियम से आबद्ध
मुँहमाँगा – मुँह से माँगा
पददालित – पद से दलित
दु:ख-संतप्त – दु:ख से संतप्त
फलावेष्टित – फल से आवेष्टित
शोकाकुल – शोक से आकुल
रोगमुक्त – रोग से मुक्त
चतुर्थी तत्पुरुष (संप्रदान-तत्पुरुष) :-
समस्त पद – विग्रह
शिवालय – शिव के लिए आलय
न्यायालय – न्याय के लिए आलय
गोशाला – गाय के लिए शाला
धर्मशाला – धर्म के लिए शाला
रसोईघर – रसोई के लिए घर
स्नानघर – स्नान के लिए घर
देशभक्ति – देश के लिए भक्ति
भक्ति – गुरु के लिए भक्ति
त्रशोक – पुत्र के लिए शोक
पितुशोक – पितृ (लिता) के लिए शोक
हुदक्षिणा – गुरु के लिए दक्षिणा
शिवार्पण – शिव के लिए अर्पण
देवबलि – देव के लिए बलि
सभाभवन – सभा के लिए भवन
फलाकांक्षी – फल के लिए आकांक्षी
लोकहितकारी – लोक के लिए हितकारी
मार्गव्यय – मार्ग के लिए व्यय
मालगोदाम – माल के लिए गोदाम
राहखर्च – राह के लिए खर्च
डाकमहसूल – डाक के लिए महसूल
विधानसभा – विधान के लिए सभा
पंचमी तत्पुरुष (अपादान-तत्पुरुष) :-
समस्त पद – विग्रह
शक्तिहीन – शक्ति से हीन
अन्नहीन – अन्न से हीन
दयाहीन – दया से हीन
क्रियाहीन – क्रिया से हीन
बलहीन – बल से हीन
नेत्रहीन – नेत्र से हीन
जातिभ्रष्ट – जाति से भ्रष्ट
पथभ्रष्ट – पथ से भ्रष्ट
स्थानभ्रष्ट – स्थान से भ्रष्ट
पदभष्ट – पद से भ्रष्ट
ॠणमुक्क – ॠण से मुक्त
पापमुक्त – पाप से मुक्त
व्ययमुक्त – व्यय से मुक्त
बंधनमुक्त – बंधन से मुक्त
मरणमुक्त – मरण से मुत्ता
धनहीन – धन से हीन
पदच्युत – पद से च्युत
धर्मव्य्यत – धर्म से च्युत
स्थानच्युत – स्थान से च्युत
वनरहित – वन से रहित
लक्षणरहित – लक्षण से रहित
धनरहित – धन से रहित
मायारिक्त – माया से रिक्त
ईश्वरविमुख – ईश्वर से विमुख
जलरिक्त – जल से रिक्क
प्रेमरिक्त – प्रेम से रिक्त
धर्मविमुख – धर्म से विमुख
मरणोत्तर – मरण से उत्तर
जजात – जल से जात
ज्ञर – लोक से उत्तर
षष्ठी तत्पुरुष (संबंध-तत्पुरुष) :-
समस्त पद – विग्रह
अन्नदान – अन्न का दान
कन्यादान – कन्या का दान
श्रमदान – क्रम का दान
भूदान – भू का दान
विद्यालय – विद्या का आलय
देवालय – देव का आलय
देशसेवा – देश की सेवा
बालुकाराशि – बालुका की राशि
राजकन्या राजा की कन्या
राजमहल – राजा का महल
राजगृह – राजा का गृह
राजभवन – राजा का भवन
औषधालय – औषध का आलय
न्यायालय – न्याय का आलय
हिमालय – हिम का आलय
पुस्तकालय – पुस्तक का आलय
मदिरालय – मदिरा का आलय
सेनानायक- सेना का नायक
जननायक – जनों का नायक
गुरुसेवा – गुरु की सेवा
वीरकन्या – वीर की कन्या
कृष्णोषासक – कृष्ण का उपासक
त्रिपुरारि – त्रिपुर का अरि
शकारि – शक का अरि
दनुजारि – दनुजों का अरि
शांतिदूत – शांति का दूत
राजदूत – राजा का दूत
आनन्दमठ – आनन्द का मठ
आनन्दाश्रम – आनन्द का आश्रम
अमृतपात्र – अमृत का पात्र
रामायण – राम का अयन
उल्कापात – उल्का का पात
राजपुत्र – राजा का पुत्र
राजदरबार – राजा का दरबार
सभापति – सभा का पति
राष्ट्रपति – राष्ट्र का पति
सेनाध्यक्ष – सेना का अध्यक्ष
सभाध्यक्ष – सभा का अध्यक्ष
विद्यार्थी – विद्या का अर्थी
शिक्षार्थी – शिक्षा का अर्थी
प्रेमोपासक – प्रेम का उपासक
गंगाजल – गंगा का जल
गणेश – गण का ईश
चन्द्रोदय – चन्द्र का उदय
देशभक्त – देश का भक्त
चरित्रचित्रण – चरित्र का चिन्रण
अमरस – आम का रस
विद्यासागर – विद्या का सागर
मामोद्धार – प्राम का उद्धार
सभाभवन – सभा का भवन
विद्याभ्यास – विद्या का अभ्यास
रत्नागार – रत्नों का आगार
सप्तमी तत्पुरुष (अधिकरण-तत्पुरुष) :-
समस्त पद – विग्रह
कविश्रेष्ठ – कवियों में श्रेष्ठ
मुनिश्रेष्ठ – मुनियों में श्रेष्ठ
कुलश्रेष्ठ – कुल में श्रेष्ठ
यतिश्रेष्ठ – यतियों में श्रेष्ठ
नरोत्तम – नरों में उत्तम
पुरुषोत्तम – पुरुषो मे उत्तम
सर्वोत्तम – सर्व में उत्तम
आनन्दमग्न – आनन्द में मग्न
ध्यानमग्न – ध्यान में मग्न
प्रेममग्न – प्रेम में मग्न
प्रेमासक्त – प्रेम में आसक्त
फलासक्त – फल में आसक्त
नराधम – नरों में अधम
क्षत्रियाधम – क्षत्रियों में अधम
पुरुषससिंह – पुरुषों में सिंह
कार्यकुशल – कार्य में कुशल
म्रामवास – ग्राम में वास
गृहपववेश – गृह में प्रवेश
शास्भ्भवीण – शास्त्रों में प्रवीण
रणशूर – रण में शूर
शरणागत – शरण में आगत
दानवीर – दान में वीर
धर्मवीर – धर्म में वीर
रणवीर – रण में वीर
हरफ.नमौला – हर फन में मौल
घुड़सवार – घोड़े पर सवार
आपबीती – आप पर बीती
आत्मनिर्भर – आत्म पर निर्भर
कर्मधारय समास :
विशेषणवाचक :-
समस्त पद विग्रह
पीताम्बर – पीत अम्बर
महाकाव्य – महान् काव्य
महात्मा – महान् आत्मा
महावीर – महान् वीर
महापुरुष – महान् पुरुष
सद्भावना – सत् भावना
सज्जन – सत् जन
नवयुवक – नवयुवक
श्वेताम्बर – श्वेत अम्बर
कापुरुष – कुत्सित पुरुष
कदन्न – कुत्सित अन्न
छुटभैये – छोटे भैये
नीलकमल – नीला कमल
नीलोत्पल – नील उत्पल
परमेश्वर – परम ईश्वर
वीरबाला – वीर बाला
उपमावाचक :-
समस्त पद – विग्रह
चरणकमल – कमले समान चरण
नेत्रकमल – कमल के समान नेत्र
करकमल – कमल के समान कर
मुखकमल – कमल के समान मुख
कमलनयन – कमल के समान नयन
कुसुमकोमल – कुसुम के समान कोमल
किसलय कोमल – किसलय के समान कोमल
शोकसागर – शोकरूपी सागर
ज्ञानसागर – ज्ञानरूपी सागर
संसारसागर – संसाररूपी सागर
विरहसागर – सागर के समान विरह
घनश्याम – घन के समान श्याम
मेघ कुन्तल – मेघ के समान कुन्तल
शैलोन्नत – शैल के समान उन्नत
विद्युन्चंचला – विद्युत्-जैसी चंचला
विद्युतवेग – विद्युत के सामन वेग
ज्ञानालोक – ज्ञानरूपी आलोक
शोकानल – शोकरूपी अनल
भक्ति सुधा – भक्तिरूपी सुधा
प्राणधान – प्राणरूपी धन
कीर्तिलता – कीर्तिरूपी लता
मुखचन्द्र – चन्द्र के समान मुख
मुखारविन्द – अरविन्द के समान मुख
प्राणप्रिय – प्राण के समान प्रिय
लौह पुरुष – लौह के समान पुरुष
मृगनैनी – मृग के नयन के समान नयनवाली
शशिमुख – शशि के समान मुख
नज् (नकारात्मक) :-
समस्त पद – विग्रह
अकर्म – नकर्म
अगोचर – न गोचर
अचल – न चल
अचेतन – न चेतन
अदृश्य – न दृश्य
अधर्म – न धर्म
अछूत – न छूत
अजात – न जात
अज्ञात – न ज्ञात
अतृप्त – न तृप्त
अपढ़ – न पढ़
अपार – न पार
अधीर – न धीर
अनादि – न आदि
अन्मचार – न आधार
अनिष्ट – न इष्ट
अनिच्छुक – न इच्छुक
अमंगल – न मंगल
अव्यय – न व्यय
असभ्य – न सभ्य
असार – न सार
अहित – न हित
द्विगु समास :
समस्त पद – विग्रह
दोपहर – दो पहरों का समाहार
दुअन्नी – दो आनों का समाहार
काल – तीन कालों का समाहार
नित्र – तीन नत्रों का समाहार
कला – तीन फलों का समाहार
लोक – तीन लोकों का समाहार
भुवन – तीन भुवनों का समाहार
गन – तीन गुणों का समाहार
पाद – तीन पादों का समाहार
शूल – तीन शूलों का समाहार
देव – तीन देवों का समाहार
तिकोना – तीन कोनों का समाहा
तिमाही – तीन माहों का समाहा
चवन्नी – चार आनों का समाहार
चौमासा – चार मासों का समाहार
चतुर्वेद – चार वंदों का समाहार
पसेरी – पाँच सेरों का समाहार
पंचवटी – पाँच वटों का समाहार
सप्तशती – सात सौ (श्लोक) का समाहार
पंचपात्र – पाँच पात्रों का समाहार
पंचमुख – पाँच मुखों का समाहार
षड्रस – छ: रसों का समाहार
सतसई – सात सौ (दोहा) का समाहार
अठकोना – आठ कोनों का समाहार
अष्टाध्यायी – आठ अध्यायों का समाहार
चौराहा – चार राहों का समाहार
बहुव्रीहि समास :
समस्त पद – विग्रह
चतुरानन – चार हैं आनन जिसके
पंचानन – पाँच हैं आनन जिसके
दशानन – दश हैं आनन जिसके
बडानन – बट् हैं आनन जिसके
सहस्साक्ष – सहस्त हैं अक्ष जिसे
सहस्तानन – सहस्स हैं आनन जिसके
दिगम्बर – दिक् है अम्बर जिसका
दशमुख – दश (दस) हैं मुख जिसे
निर्धन – नहीं है धन जिसको
शांतिप्रिय – शांति है प्रिय जिसे
बोदोर – लम्बा है उदर जिसका
हिरण्यगर्भ – हिरण गर्भ है जिसका
नीलाम्बर – नीला है अम्बर जिसका
पीताम्बर – पीत है अम्बर जिसका
चतुर्भुज – चार हैं भुजाएँ जिसका
जितेन्द्रिय – जीती है इन्द्रियाँ जिसने
नेकनाम – नेक है नाम जिसका
वजदेह – वज है देह जिसकी
वजायुध – वज्ज है आयुध जिसका
मरीचिमाली – मरीचि है माला जिसकी
मिठबोला – मीठी है बोली जिसकी
शूलपाणि – शूल है पाणि में जिसके
वीणापाणि – वीणा है पाणि में जिसके
हभान – चन्द्र है भाल पर जिसके
अव्ययीभाव :
समस्त पद – विग्रह
प्रत्यक्ष – अक्षि के प्रति (आगे)
समक्ष – अक्षि के सामने
परोक्ष – अक्षि के परे
बेरहम – बिना रहम के
बेकाम – बिना काम का
बेलाग – बिना लाग के
बेफायदा – बिना फायदे का
बेखटके – बिना खटके का
प्रत्यंग – हर अंग
प्रतिमास – हर मास
प्रत्येक – हर एक
भरसक – सक (शक्ति) भर
यथार्थ – अर्थ के अनुसार
शक्ति – शक्ति के अनुसार
रपेट – पेट भरकर
यथासंभव – जितना संभव हो
यथाशीघ्र – जितना शीघ्र हो
अनजाने – बिना जाने हुए
निर्भय – बिना भय का
निधड़क – बिना धड़क के
निर्विकार – बिना विकार के
निर्विवाद – बिना विवाद के
प्रत्युपकार – उपकार के प्रति
आपादमस्तक – पाद से मस्तक तक
उपकूल – कूल के समीप
बख़बी – खूबी के साथ
अकारण – बिना कारण के
अभूतपूर्व – जो पूर्व (पहले) नही भूत (हुआ) है।
द्वंद्व समास :
समस्त पद – विग्रह
राधाकृष्ण – राधा और कृष्ण
सीताराम – सीता और राम
गौरीशंकर – गौरी और शंकर
शिवपार्वती -शिव और पार्वती
देवासुर – देव और असुर
भाई-बहन – भाई और बहन
माँ-बाप – माँ और बाप
राजा-रानी – राजा और रानी
हरिशंकर – हरि और शंकर
हाथी-घोड़ा – हाथी और घोड़ा
गाय-बैल – गाय और बैल
अन्न-जल – अन्न और जल
लोटा-डोरी – लोटा और डोरी
नाक-कान – नाक और कान
भात-दाल – भात और दाल
एड़ी-चोटी – एडी़ और चोटी
आग-पानी – आग और पानी
आगा-पीछा – आगा और पीछा
फल-फूल – फल और फूल
भला-बुरा – भला और बुरा
शीतोष्ग – शीत और उष्ण
लेन-देन – लेना और देना
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर :
प्रश्न 1.
प्रयोग की दृष्टि से समास के कितने भेद हैं ? प्रत्येक की परिभाषा व उदाहरणालिखें।
उत्तरः
प्रयोग की दृष्टि से समास के तीन भेद किए जा सकते हैं :
- संयोगमूलक समास
- आश्रयमूलक समास
- वर्णनमूलक समास
संयोगमूलक समास :- संयोगमूलक समास को द्वनन्दू समास अथवा संज्ञा-समास कहते हैं। इस प्रकार के समास में दोनों पद संज्ञा होते हैं। दूसरे शब्दों में, इसमें दो संज्ञाओं का संयोग होता है। जैसे -माँ-बाप, भाई-बहन, माँ-बेटी, सास-पतोहू, दिन-रात, बेटा-बेटी, माता-पिता, दही-बड़ा, दूध-दही, थाना-पुलिस, सूर्य-चन्द्र इत्यादि। इसमें सभी पद प्रधान होते है। किन्तु, जहाँ योजक चिह्न (-) नहीं लगता, वहाँ तत्पुरुष समास होता है। तत्पुरुष में भी दो संज्ञाओं का संयोग होता है। जैसे – पाठशाला, गंगाजल, राजपुत, पर्णकुटीर इत्यादि।
आश्रयमूलक समास :- यह विशेषण प्राय: कर्मधारय समास होता है। इस समास में प्रथम पद विशेषण होता है, किन्तु द्वितीय पद का अर्थ बलवान होता है। कर्मधारय का अर्थ है कर्म अथवा वृत्ति धारण करनेवाला। यह विशेषणविशेष्य, विशेष्य-विशेषण, विशेष्य पदों द्वारा सम्पन्न होता है। जैसे –
(क) जहाँ पूर्वपद विशेषण हो; यथा-कच्चाकेला, शीशमहल, महारानी।
(ख) जहाँ उत्तरपद विशेषण हो; यथा-घनश्याम।
(ग) जहाँ दोनों पद विशेषण हो, यथा-लाल-पीला, खट्टा-मीठा।
(घ) जहाँ दोनों पद विशेष्य हों, यथा-मौलवीसाहब, राजबहादुर।
वर्णनमूलक समास :- इसके अन्तर्गत बहुवीहि और अव्ययीभाव समास का निर्माण होता है। इस समास (अव्ययीभाव) में प्रथम पद साधारणत: अव्यय होता है और दूसरा पद संज्ञा। जैसे-यथार्ति, यथासाध्य, प्रतिमास, यथासम्भव, घड़ी-घड़ी, प्रत्येक, भरपेट, यथाशीघ्र इत्यादि।
प्रश्न 2.
दून्द्ध समास के कितने भेद हैं ? परिभाषा व उदाहरण सहित वर्णन करें।
उत्तरः
द्वन्द्व समास के तीन भेद हैं –
- इतरेतर द्वन्द्ध
- समाहार द्वन्द्ध और
- वैकल्पिक द्वृन्द्ध।
इतरेतर द्वन्द्ध :- यह द्वन्द्, जिसमें ‘और से सभी पद जुड़े हुए हों और पृथक अस्तित्व रखते हों, इतरेतर द्वनन्द कहलाता है। इस समास से बने पद हमेशा बहुवचन मे प्रयुक्त होते हैं, क्योंकि ये दो या दो से अधिक पदों के मेल से बने होते हैं।
जैसे – राम और कृष्ण = राम-कृष्ण, भरत और शतुछ्न = भरत-शत्रुछ्न, ॠषि और मुनि = कषि-मुनि, गाय और बैल = गाय-बैल, भाई और बहन = भाई-बहन आदि।
समाहार दून्द् :- ‘समाहार का अर्थ है समष्टि या समूह। जब दृन्द्व समास के दोनों पद ‘और समुच्चयबोधक से जुड़े होने पर भी पृथक्-पृथक् अस्तित्व न रखे, बल्कि समूह का बोध कराये, तब वह समाहार दून्दू कहलाता है। समाहार द्वनन्द्व में दोनों पदों के अतिरिक्त अन्य पद भी छिपे रहते हैं और अपने अर्थ का बोध अप्रत्यक्ष रूप से कराते हैं। जैसे-आहारनिद्रा = आहार और निद्रा (केवल आहार और निद्रा ही नहीं, बल्कि इसी तरह की और बातें भी); दालरोटी = दाल और रोटी (अर्थात्, भोजन के सभी मुख्य पदार्थ); हाथपाँव = हाथ और पाँव (अर्थात्, हाथ और पाँव तथा शरीर के दूसरे अंग भी)।
कभी-कभी विपरीत अर्थवाले या सदा विरोध रखनेवाले पदों का भी योग हो जाता है। जैसे-ऊँच-नीच, लेन-देन, आगा-पीछा, चूहा-बिल्ली, शीतोष्ण इत्यादि।
जब दो विशेषण-पदों का संज्ञा के अर्थ में समास हो, तो समाहार द्वन्द होता है। जैसे-लँगड़ा-लूला, भूखा-प्यासा, अंधा-बहरा इत्यादि। उदाहरण लँगड़े-लूले यह काम नहीं कर सकते ; भूखे-प्यासे को निराश नहीं करना चाहिए, इस गाँव में बहुत से अंधे बहरे हैं।
द्रष्टव्य :- यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि जब दोनों पद विशेषण हों और विशेषण के ही अर्थ में आये हों तब वहाँ द्वान्द्व समास नहीं होता, वहाँ कर्मधारय समास हो जाता है। जैसे-लँगड़ा-लूला आदमी यह काम नहीं कर सकता; भूखा-प्यासा लड़का सो गया; इस गाँव में बहुत से लोग अंधे-बहरे हैं-इन प्रयोगों में लाँगड़ा-लूला, , भूखा-प्यासा और ‘अंधा-बहरा’ द्वन्द् समास नहीं है।
वैकल्पिक द्वन्न्व :- जिस द्वन्द्ध समास मे दो पदों के बीच ‘या, ‘अथवा’ आदि विकल्पसूचक अव्यय छिपे हों, उसे वैकल्पिक द्वन्द्व कहते हैं। इस समास में बहुधा दो विपरीतार्थक शब्दों का योग रहता है। जैसे-पाप-पुण्य, धर्माधर्म, भला-बुरा, थोड़ा-बहुत इत्यादि। यहाँ पाप-पुण्य’ का अर्थ ‘पाप’ और ‘पुण्य’ भी प्रसंगानुसार हो सकता है।