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WBBSE Class 9 Hindi व्याकरण प्रत्यय
(क) लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर :-
प्रश्न 1.
प्रत्यय किसे कहते हैं ?
उत्तरः
वे शब्दांश, जो धातु रूप या शब्दों के अंत में लगकर नए शब्दों का निर्माण करते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं।
उदाहरण – होन + हार = होनहार, महान + ता = महानता, गा + वैया = गवैया।
प्रश्न 2.
प्रत्यय के कितने भेद हैं ?
उत्तरः
प्रत्यय के दो भेद हैं –
(क) कृत या कृदन्त प्रत्यय
(ख) तद्वित प्रत्यय
प्रश्न 3.
कृत प्रत्यय की परिभाषा सोदाहरण लिखें।
उत्तरः
जो प्रत्यय क्रिया के मूल धातु-रूप के साथ लगकर संज्ञा अथवा विशेषणों का निर्माण करते हैं, वे कृत प्रत्यय कहलाते हैं।
उदाहरण – घिस + आई = घिसाई। इसमें ‘आई ‘रत्यय है।
कृत प्रत्यय के कुछ अन्य उदाहरण नीचे दिए गए हैं –
प्रश्न 4.
हिन्दी में प्रचलित कृत प्रत्ययों को लिखें तथा उनसे कम से कम दो-दो शब्द बनाएँ।
उत्तरः
हिन्दी में प्रचलित कृत प्रत्यय और उनसे निर्मित शब्द निम्नलिखित हैं –
अन – ढक + अन = ढक्कन, मनन, झाड़न, मरण, चिन्तन।
अक्कड़ – घूम + अक्कड़ = घुमक्कड़, पियक्कड़, रुअक्कड़।
अंत – गढ़ + अन्त = गढ़ंत, रटंत।
आ – सोच + आ = सोचा, भूला, समझा, पढ़ा, लिखा, भटका।
आई – पिटा + आई = पिटाई, लिखाई, लड़ाई, चढ़ाई, कमाई, पढ़ाई।
आऊ – कमा + आऊ = कमाऊ, बिकाऊ, चलाऊ, टिकाऊ।
आक – तैर + आक = तैराक , चालाक।
आका – लड़ + आका = लड़ाका, धड़ाका।
आकू – लड़ + आकू = लड़ाकू , पढ़ाकू, उड़ाकू।
आन – मिल + आन = मिलान, लगान, उठान, कटान, उड़ान, चालान।
आवट – सज + आवट = सजावट, मिलावट, लिखावट , बनावट , थकावट।
आवना – सुह + आवना = सुहावना, लुभावना, डरावना।
आवा – दिख + आवा = दिखावा, भुलावा, बुलावा, पहनावा।
आलू – झगड़ + आलु = झगड़ालु, दयालु, लजालु।
आस – पी + आस = प्यास, छपास, निकास।
आहट – चिल्ला + आहट = चिल्लाहट, घबराहट, मुस्कराहट।
इयल – मर + इयल = मरियल, सड़ियल, दड़ियल।
इया – बढ़ + इया = बढ़िया, जड़िया, घटिया।
ई – हँस + ई = हँसी, खिड़की, घुड़की, धमकी, बुहारी, बोली।
ऊ – खा + ऊ = खाऊ, चालू, रददू, उतारू, झाडू।
एरा – लूट + एरा = लुटेरा, कमेरा।
ऐया – खेव + ऐया = खिवैया, गवैया, पढ़ैया, रखैया।
ऐल – रख + ऐल = रखैल।
औती – मान + औती = मनौती, फिरौती।
औना – बिछ + औना = बिछौना, खिलौना।
क – लिख + क = लेखक, पालक।
कर – लिख + कर = लिखकर, पढ़कर, गिनकर, सोचकर, सोकर।
त – बच + त = बचत, खपत, लिखत।
ता – डूब + ता = डूबता, जाता, रमता, बहता, पीटता, मारता।
ती – चल + ती = चलती, फिरती, गिनती, बढ़ती, घटती।
न – बेल + न = बेलन, चलन, पान, खान, लेन-देन।
ना – लिख + ना = लिखना, पढ़ना, टहलना, पाना, जीना, बैठना।
नी – जन + नी = जननी, चटनी, मथनी, करनी, भरनी, ओढ़नी।
या – बो + या = बोया, खोया, पाया, जाया, सोया।
वाई – सुन + वाई = सुनवाई, कटवाई, चिरवाई, तुलवाई।
प्रश्न 5.
संस्कृत के निम्नलिखित प्रत्ययों से शब्द-निर्माण करें –
अन, अनीय, अना, आ, ई, उक, ऐया, क, ता, ति, य, र, व्य, स्थ।
उत्तरः
संस्कृत के प्रत्ययों से बने शब्द –
- अन – गमन, भवन, जलन, चलन, श्रवण, करण।
- अनीय – पठनीय, गोपनीय, करणीय।
- अना – भावना, वंदना, प्रार्थना, कामना।
- आ – पूजा, इच्छा, विद्या।
- ई – त्यागी, उपकारी।
- उक – भिक्षुक, भावुक।
- ऐया – शख्या।
- क – पाठक, सेवक, गायक, चालाक, कारक।
- ता – नेता, दाता, कर्ता, वक्ता, विक्रेता, अभिनेता।
- ति – गति, मति, यति, शक्ति, नीति।
- य – देय, गेय, पेय।
- र – नम्र, हिंस्त।
- व्य – कर्त्तव्य, मंतव्य, गंतव्य।
- स्थ – गृहस्थ, स्वस्थ, दूरस्थ।
प्रश्न 6.
तद्धित प्रत्यय किसे कहते हैं ?
उत्तरः
तद्धित प्रत्यय :- जो प्रत्यय क्रिया के धातु रूपों को छोड़कर संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण सूचक शब्दों के साथ जुड़ते हैं, वे तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं। जैसे – पंजाब + ई = पंजाबी। यहाँ ‘ई तद्धित प्रत्यय है, क्योंकि यह पंजाब’ नामक संज्ञा के साथ मिलकर नया शब्द बना रहा है। हिन्दी में संस्कृत के अतिरिक्त अरबी-फारसी के प्रत्यय भी पर्याप्त मात्रा में प्रचलित हैं।
प्रश्न 7.
हिन्दी के तद्धित प्रत्ययों को लिखें तथा उनसे शब्द् बनाएँ।
उत्तरः
हिन्दी के तद्वित प्रत्यय और उनसे बने शब्द निम्नलिखित हैं –
आ – मैल + आ = मैला, ठंडा, भूखा, प्यासा, घना।
आई – भला + आई = भलाई, बुराई, मिठाई, चतुराई, ठकुराई, पंडिताई, अच्छाई।
आऊ – 34 + जाऊ = उपजाऊ, पंडिताऊ।
आना – साल + आना = सालाना, जुर्माना, घराना, रोजाना।
आनी – जेठ + आनी = जेठानी, देवरानी, मेहतरानी, पंडितानी।
आर – चम + आर = चमार, तुहार, सुनार।
आरी – जुआ + आरी = जुआरी, भिखारी, पुजारी।
आस – मीठा + आस = मिठास, खटास, भड़ास।
आहट – गरम + आहट = गरमाहट, चिकनाहट, कड़वाहट।
इक – समाज + इक = सामाजिक, साहित्यिक, धार्मिक, वैदिक, नैतिक, दैनिक।
इम – सुनार + इन = सुनारिन, लुहारिन, पुजारिन, कहारिन।
ई – बुद्धिमान + ई = बुद्धिमानी, चाची, नानी, धनी, लालची, घंटी, रस्सी, ऊनी।
इन – नमक + ईन = नमकीन, शौकीन, रंगीन।
ईला – रंग + ईला = रंगीला, चमकीला, नुकीला, सुरीला, रसीला, बर्फीला।
एरा – साँप + एरा = संपेरा, चितेरा, ममेरा, फुफेरा, मौसेरा, अन्धेरा।
एँ – पुस्तक + एँ = पुस्तके, बोतलें, सड़कें।
कार – पत्र + कार = पत्रकार, कथाकार, कलाकार, स्वर्णकार, चित्रकार, नाटककार, साहित्यकार, कहानीकार, इतिहासकार।
खोर – हराम + खोर = हरामखोर, सूदखोर, घूसखोर।
गर – सौदा + गर = सौदागर, कारीगर, जादूगर।
गुना – सौ + गुना = सौगुना, तिगुना, दुगना, चौगुना।
ची – अफीम + ची = अफीमची, तोपची, खजांची।
ड़ा – दुख + ड़ा = दुखड़ा, मुखड़ा, बछड़ा।
तया – विशेष + तया = विशेषतया, सामान्यतया, मुख्यतया।
दार – देन + दार = देनदार, लेनदार, दुकानदार, ईमानदार, जमींदार।
पन – बच्चा + पन = बचपन, लड़कपन, कालापन।
पा – मोटा + पा = मोटापा, बुढ़ापा, पुजापा।
री – कोठी + री = कोठरी, बाँसुरी, छतरी।
ला – पीछे + ला = पिछला, अगला, लाड़ला।
वाँ – दस + वाँ = दसवाँ, पाँचवाँ, सातवाँ, आठवाँ।
वान – कोच + वान = कोचवान, गाड़ीवान, देहवान, धनवान।
वाला – चाय + वाला = चायवाला, रिक्शावाला, इक्केवाला, ताँगेवाला, मिठाईवाला, बंदरवाला।
हरा – इक + हरा = इकहरा, दुहरा, तिहरा।
हारा – सर्व + हारा = सर्वहारा, लकड़हारा।
वान् – गुण + वान् = गुणवान्, बलवान्, धनवान्, दयावान्।
प्रश्न 8.
उर्दू के निम्नलिखित प्रत्ययों से शब्द-निर्माण करें :- अंदाज, आना, इंदा, इश, ई, ईना, दान, मन्द, बाज, साज।
उत्तरः
- अंदाज – गोलदांज, तीरंदाज।
- आना – सालाना, मेहनताना, शुकराना, नजराना।
- इंदा – आइंदा, जिंदा।
- इश – कोशिश, फरमाइश, आजमाइश।
- ई – आमदनी।
- ईना – महीना, पसीना, कमीना।
- दान – पीकदान, कलमदान, इत्रदान।
- मन्द – दौलतमंद, जरूरतमंद, अक्लमंद।
- बाज – चालबाज, धोखेबाज, पतंगबाज।
- साज – जालसाज।
प्रश्न 9.
उपसर्ग तथा प्रत्यय का प्रयोग एक साथ किस प्रकार होता है ? उदाहरण सहित दिखाएँ।
उत्तरः
हिंदी में शब्द-रचना के लिए उपसर्ग और प्रत्यय दोनों का एक साथ भी प्रयोग होता है और उनसे एक नया शब्द बन जाता है। जैसे –
प्रश्न 10.
कृदन्त’ किसे कहते हैं ? ये कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तरः
क्रिया या धातु के अन्त में लगनेवाले प्रत्यय कृत’ प्रत्यय कहलाते हैं और कृत् प्रत्यय से बनने वाले शब्द ‘कृदन्त’ कहलाते हैं। जैसे – लड़ाई = लड़ (धातु) + आई (प्रत्यय); चलता = चल (धातु) + ता (प्रत्यय)। इनमें ‘आई’ और ता’ कृत् प्रत्यय हैं।
कृत् प्रत्यय जोड़ने से दो प्रकार के शब्द बनते हैं – 1. विकारी शब्द और 2. अविकारी शब्द।
विकारी कृदन्त :- विकारी कृदन्त से निम्नलिखित शब्द बनते हैं-
(क) कर्तृवाचक संज्ञा
(ख) भाववाचक संज्ञा
(ग) गुणवाचक विशेषण
(घ) क्रियार्थक संज्ञा
(ङ) वर्तमानकालिक कृदन्त और
(च) भूतकालिक कृदन्त।
अविकारी (शब्द) कृदन्त :- अविकारी (शब्द) कृदन्त से निम्न प्रकार के शब्द बनते हैं –
(क) पूर्ण क्रियाद्योतक शब्द
(ख) अपूर्ण कियाद्योतक शब्द
(ग) पूर्वकालिक शब्द और
(घ) प्रत्यय शब्द।
प्रश्न 11.
कृत और तद्धित प्रत्यय में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तरः
कृत और तद्धित प्रत्यय में अंतर इस प्रकार है –
कृत प्रत्यय :- क्रिया के धातु रूप में जो प्रत्यय लगते हैं, उन्हें कृत प्रत्यय कहते हैं और बने हुए नये शब्दों को ‘कृदन्त’ कहते हैं। जैसे – पढ़ + आई = पढ़ाई; लिख + आई = लिखाई; खड़खड़ा + हट = खड़खड़ाहट; बना + वट = बनावट।
तद्धित प्रत्यय :- क्रिया को छोड़कर अन्य शब्दों के अन्त में जो प्रत्यय आते हैं, उन्हेंतद्धित प्रत्यय कहते हैं। इनसे बने शब्दों को ‘दद्धितान्त’ कहते हैं। जैसे-सुन्दर + ता = सुन्दरता; गाड़ी + वान = गाड़ीवान; झगड़ा + आलू = झगड़ालू ; नाक + ऐं = नाकें।
प्रश्न 12.
कृत और कृदन्त में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तरः
क्रिया के धातु रूप में लगने वाले प्रत्यय को कृत प्रत्यय कहते हैं तथा इससे बने हुए नए शब्दों को कृदन्त कहते हैं।
उदाहरण :-
पढ़ + आई = पढ़ाई
यहाँ ‘आई’ कृत प्रत्यय है तथा थढ़ाई’ कृदन्त।
प्रश्न 13.
कृदन्त तथा तद्धितांत में क्या अंतर है ?
उत्तरः
क्रिया के धातु रूप में कृत प्रत्यय के लगने से बनने वाले शब्द को कृदन्त कहते हैं जब्बांक किया के धातु रूपों को छोड़कर संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण सूचक शब्दों के अंत में जब प्रत्यय के जुड़ने से नए शब्द बनते हैं तो उन्हें तद्धितांत कहते हैं।
उदाहरण :-
लड़ (क्रिया) + आई = लड़ाई – कृदंत
पत्र (संज्ञा) + कार = पत्रकार – तद्धितांत
प्रश्न 14.
कर्तुवाचक संज्ञा किसे कहते हैं ? कर्तृवाचक संज्ञाओं का निर्माण किन प्रत्ययों से होता है? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तरः
कर्तुवाचक संज्ञा :- धातु या क्रिया के अन्त में प्रत्यय लगने से कर्ता अर्थात् करनेवाले का बोध होता है, उसे कर्तृवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – बेचना = बेचनहार, लिखना = लिखनेवाला इत्यादि।
ऊपर के उदाहरणों में हार और ‘वाला प्रत्यय लगाकर कर्तृवाचक संज्ञाएँ ‘बेचनहार’ और ‘लिखनेवाला’ बनाई गई हैं। कर्तवाचक संज्ञा निम्न प्रकार के प्रत्ययों से बनती है-
- प्रत्यय – कर्विवाचक संज्ञाएँ
- आक – तैरना-तैराक; पैरना-पैराक।
- आका – लड़ना-लड़ाका; उड़ना-उड़ाका।
- आकू – लड़ना-लड़ाकू; पढ़ना-पढ़ाकू।
- आऊ – बिकना-बिकाऊ; टिकना-टिकाऊ।
- इयल – मरना-मरियल; सड़ना-सड़ियल।
- इया – गढ़ना-गढ़िया; जुड़ना-जुड़िया।
- वैया – गाना-गवैया; खेना-खेवैया।
प्रश्न 15.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें :-
(क) भाववाचक कृदन्त
(ख) गुणवाचक कृदन्त
(ग) क्रियार्थक कृदन्त
(घ) वर्तमानकालिक कृदन्त
(ङ) भूतकालिक कृदन्त।
उत्तरः
(क) भाववाचक कृदन्त :- धातु या क्रिया में प्रत्यय लगने से जो कृदन्त भाव, गुण, दशा, व्यापार आदि के नाम का बोध कराता है, उसे भाववाचक कृदन्त कहते हैं। जैसे-छापना-छापा, खाँसना-खाँसी।
इसमें ‘आ’ और, ‘ई’ अव्यय से (कृदन्त) भाववाचक संज्ञाएँ बनाई गई हैं।
निम्नम्रकार के प्रत्ययों से भाववाचक कृदन्त संज्ञाएँ बनती हैं – अ, आ, ई, आई, आ, आन, न, ती, आवट, आहट आदि।
लड़ना – लड़ाई; देना-देन; सजना-सजावट; उड़ना-उड़ान; घेरना-घेरा; चढ़ना-चढ़ाई आदि।
(ख) गुणवाचक कृदन्त :- जो कृदन्त प्रत्यय लगाने से गुणवाचक विशेषण का रूप धारण करते हैं, उन्हें गुणवाचक कृदन्त कहते हैं। जैसे-उपजना – उपजाऊ; जड़ना-जड़ाऊ; काँटा-कँटीला आदि।
(ग) क्रियार्थक कृदन्त :- क्रिया के (धातु) के अन्त में ‘ना प्रत्यय जोड़ने से जो कृदन्त बनते हैं, उन्हें क्रियार्थक कहते हैं। जैसे-टहल-टहलना; गान-गाना; पी-पीना आदि।
(घ) वर्तमानकालिक कृदन्त :- वर्तमानकालिक कृदन्त वर्तमान काल की क्रिया के धातु रूप में ‘ता’ प्रत्यय लगाकर बनते हैं। जैसे-चढ़ना-चढ़ता; चलना-चलता; उठना-उठता आदि। कभी-कभी ‘हुआ’ भी लगाकर बनाते हैं। जैसे – बहना – बहता हुआ; उड़ना-उड़ता हुआ आदि।
(ङ) भूतकालिक कृदन्त :- जिन प्रत्ययों के लगने से कृदन्त का भूतकालिक रूप बन जाता है, उन्हें भूतकालिक कृदन्त कहते हैं। जैसे-पढ़-पढ़ा, लिख-लिखा, छू-छुआ, बो-बोया आदि।
प्रश्न 16.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें :-
(क) अनुषंग शब्द
(ख) निष्पन्न शब्द
(ग) अनुकरणमूलक शब्द
(घ) द्वैत या द्वित् शब्द
(ङ) अपूर्ण क्रियाद्योतक शब्द
(च) पूर्वकालिक क्रिया शब्द
(छ) तात्कालिक शब्द।
उत्तरः
(क) अनुषंग शब्द :- हिन्दी में बहुत से ऐसे शब्द हैं जो ध्वनि के आधार पर बने हैं, इन्हें अनुषंग या ध्वन्यात्मक शब्द भी कहा जाता है। जैसे – टनटन, टपटप, खटखट, फटफट, कलकल आदि। इन्हीं ध्वनियों को हम अपनी रचनावली में अर्थ के अनुसार प्रयोग करते हैं। ये शब्द क्रिया और अन्य रूपों में भी प्रयोग में आते हैं।
(ख) निष्पन्न शब्द :- जो भाषा जितनी शब्द- भंडार से युक्त होती है, वह उतनी ही समृद्धशाली बनती है। धातु और अन्य शब्दों के अन्त में प्रत्यय लगा देने से नये-नये शब्दों की रचना होती है। ये प्रत्यय ही नवीन शब्दों को जन्म देते हैं। हिन्दी में संस्कृत और देशी भाषा के अतिरिक्त फारसी, अरबी, अंग्रेजी, पुर्तगाली आदि प्रत्यय भी शब्दों में जुड़कर नये शब्दों की सृष्टि करते हैं, उन्हें ‘निष्पन्न शब्द’ कहते हैं।
(ग) अनुकरणमूलक शब्द :- हिन्दी में बहुत से ऐसे शब्द हैं जो किसी ध्वनि या आवाज के आधार पर अपने अर्थ को व्यक्त करते हैं, जिन्हें अनुकरणमूलक शब्द कहते हैं। जैसे-कचकच, खटखट, टनटनाना, फड़फड़ाना, भनभनाना, भिनभिनाना आदि। इनके अन्त में प्राय: प्रत्यय लगते हैं।
(घ) द्वैत या द्वित् शब्द :- कुछ ऐसे शब्द हैं जिनका उच्चारण हम एक साथ दो बार करते हैं और इस तरह उनके अर्थ भिन्न हो जाते हैं, इन्हें ही शब्द द्वैत’ या ‘द्वित्’ कहते हैं। कभी-कभी ये विपरीत शब्द, द्वन्द्ध समास आदि के रूप में भी प्रयुक्त होते हैं। जैसे – बार-बार; घर-घर; बात-बात; हाथ-हाथ; साथ-साथ; संग-संग; भीतरभीतर; घन-घन आदि।
(ङ) अपूर्ण क्रियाद्योतक शब्द :- धातु में ए’ जोड़ने से जो शब्द बनते हैं, उन्हें अपूर्ण क्रियाद्योतक शब्द कहते हैं। जैसे-गाना-गाते; घबराना-घबराते आदि।
(च) पूर्वकालिक क्रिया शब्द :- धातु में ‘कर’ जोड़कर बनाए गए शब्द पूर्वकालिक क्रिया शब्द कहलाते हैं। जैसे – पढ़ना-पढ़कर; खाना-खाकर; सोना-सोकर आदि।
(छ) तात्कालिक शब्द :- अपूर्ण क्रियाद्योतक के बाद ‘ही’ जोड़कर बनाए गए शब्दों को तात्कालिक शब्द कहते हैं। जैसे – सोना-सोते ही, चलना-चलते ही, खाना-खाते ही आदि।
प्रश्न 17.
हिन्दी के कृत प्रत्ययों से शब्द-निर्माण करें।
उत्तरः
ये प्रत्यय सारी धातुओं (क्रियाओं) में लगते है। इन प्रत्यय से बना हुआ अव्यय पूर्व-कालिक कृदन्त कहलाता है। इसका प्रयोग क्रिया-विशेषण के समान तीनों कालों में होता है।
इस प्रत्यय से अपूर्ण कियाद्योतक कृदन्त बनाए जाते हैं जिनका प्रयोग क्रिया-विशेषण की तरह किया जाता है।
[कर (ना) + नी = करनी इसी तरह ऊपर दिए गए और उदाहरणों को समझें।
यह प्रत्यय सारी क्रियार्थक संज्ञाओं में लगता है और इसके योग से संज्ञा और विशेषण बनते हैं। इस प्रत्यय के लगने से सामान्य क्रिया का ‘आ, ए’ में बदल जाता है। पढ़ना + वाला = पढ़नेवाला।
प्रश्न 17.
तद्धित प्रत्ययों के योग से संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण आदि से शब्दों की रचना करें।
उत्तरः
प्रश्न 18.
ध्वन्यात्मक शब्द किसे कहते हैं ? उदाहरण देकर समझाएँ
उत्तरः
ध्वन्यात्मक शब्द :- हिन्दी भाषा में विभिन्न ध्वनिमूलक शब्द प्रचलित हैं जिनका प्रयोग किन्हीं विशेष अर्थो में ही किया जाता है। ये ध्वनियाँ विभिन्न पशुओं तथा पक्षियों की होती हैं, अथवा एक प्रकार की अन्य प्राकृतिक उपादानों तथा जड़ वस्तुओं के प्रयोग से जन्म लेती हैं। यथा – चूँ-चूँ करना (चूहा), भिनभिनाना (मक्खी), झंकारना (झींगुर), गरजना (शेर), खनखनाना (चूड़ियाँ)। अन्य वाक्य प्रयोगगत उदाहरण –
- उल्लू घुघुआता है।
- ऊँट बलबलाता है।
- कबूतर गुटरता है।
- बकरी मिमियाती है।
- झींगुर झनकारता है।
- साँप फुफकारता है।
- मक्खियाँ भिनभिनाती हैं।
- बन्दर दाँत किटकटाते हैं।
- मेढक टरटराता है।
- साँड़ डकारता है।
- मेघ गरजते हैं।
- चिता चटचटाती है।
- पत्ते खड़खड़ाते हैं।
- शस्त्र झनझनाते हैं।
- जूता मचमचाता है।
- हवा सनसनाती है।
- चूड़ियाँ खनखनाती हैं।
- रुपये खनखनाते हैं।
- कपड़ा फड़फड़ाता है।
- बिजली कड़कती है।
प्रश्न 19.
आवृत्ति-निर्मित शब्द किसे कहते हैं? वाक्य-प्रयोग द्वारा सोदाहरण समझाएँ।
उत्तरः
जहाँ एक ही शब्द कम से कम दो या उससे अधिक बार आता है, तो उसे आवृत्ति-निर्मित शब्द् कहते हैं।
(क) वह घर-घर घूम रहा है।
(ख) वह दाने-दाने को मोहताज है।
(ग) रेशा-रेशा अलग कर दो।
(घ) रंग-रंग के फूल खिले हैं।
(ङ) बच्चा रोते-रोते सो गया।
प्रश्न 20.
पर्यायवाची शब्दों की द्विरुक्ति के पाँच उदाहरण वाक्य-प्रयोग द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तरः
(क) ज्यादा लाड़-प्यार दिखाने की जरुरत नहीं है।
(ख) वह सीधी-सादी लड़की है।
(ग) माया-मोह छोड़ देने में ही भलाई है।
(घ) ये ऋषि-मुनियों की बातें हैं।
(ङ) रबड़ी-मलाई रोज नहीं मिलती।
प्रश्न 21.
वाक्य-प्रयोग द्वारा विपरीतार्थक शब्द-युग्म के पाँच उदाहरण दें।
उत्तरः
(क) मृत्यु राजा-रंक में भेद नहीं करती।
(ख) हार-जीत तो लगी ही रहती है।
(ग) हमेशा जीवन-मरण की बातें न करें।
(घ) अपना-पराया सोंचना नीच का काम है।
(ङ) बात आस्था-अनास्था की नहीं है।
प्रश्न 22.
भिन्नार्थक शब्द द्वित किसे कहते हैं ? वाक्य प्रयोग द्वारा उदाहरण दें।
उत्तरः
भिन्न-भिन्न अर्थों वाले शब्दों के जोड़े को भिन्नार्थक शब्द द्वित कहते हैं।
वाक्य प्रयोग द्वारा उदाहरण :-
(क) रोने-चिल्लाने से कोई फायदा नहीं।
(ख) तुम्हारी आशा-अभिलाषा पूरी हो।
(ग) वह खा-पीकर सो गया।
(घ) भूकंप में धन-जन की काफी क्षति हुई।
(ङ) घर-गृहस्थी से पीछा कैसे छूटे ?
(ख) दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर :-
प्रश्न 1.
तद्धित प्रत्यय से किस प्रकार के शब्द बनते हैं ? विस्तारपूर्वक तथा उदाहरणसहित लिखें।
उत्तरः
तद्धित प्रत्यय से निम्नप्रकार के शब्द बनते है –
(क) कर्तृवाचक संज्ञा
(ख) भावचाचक संज्ञा
(ग) अपत्यवाचक संज्ञा
(घ) उनवाचक संज्ञा
(ङ) करणवाचक संज्ञा
(च) अधिकारवाचक संज्ञा
(छ) वस्त्रवाचक संज्ञा
(ज) स्थानवाचक संज्ञा
(झ) समुदायवाचक संज्ञा
(अ) सम्बन्धवाचक संज्ञा
(ट) गुणवाचक संज्ञा
(ठ) सादृश्यवाचक संज्ञा और
(ङ) पूर्णतावाचक संज्ञा।
(क) कर्तृवाचक संज्ञा – जिन तद्धितान्त शब्दों से कर्ता का बोध होता है, उन्हें तद्धितान्त कर्तृवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – साँप + ऐरा = संपेरा, तेल + ई = तेली आदि।
इसमें एरा, आर, ई, इया, हारा, वाला, ऐत आदि प्रत्यय लगते हैं। दुखिया, लकड़हारा, लठैत, गाड़ीवाला, लोहार, पुजारी, भिखारी आदि।
(ख) भाववाचक संज्ञा – तद्धित प्रत्यय के योग से बने वे शब्द जिनसे भाव, दशा, स्थिति, गुण आदि का बोध होता है, उन्हें भाववाचक संज्ञा (तद्धितांत) कहते हैं। जैसे – बच्चा + पन = बच्चापन, चिकना + आहट = चिकनाहट आदि।
इनमें पा, पन, ता, त्व, आहट, आयत, आई, आ, आका, क, त, य, स आदि प्रत्यय लगते हैं – बचपन, बुढ़ापा, मूर्खता, भलाई, सौन्दर्य, ठंडक, रंगत आदि।
(ग) अपत्यवाचक संज्ञा – तद्धित प्रत्यय से बनी हुई वे संज्ञाएँ जो वंश, नाम का बोध कराती हैं, उन्हें अपत्यवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – पाण्डु से पाण्डव, कुन्ती से कौन्तेय आदि।
इसमें ‘अ’, इ, एय’, ई, य आदि प्रत्यय लगते हैं- वसुदेव, कौरव, दाशरथ, गांगेय, दैत्य, द्यानन्दी आदि।
(घ) ऊनवाचक संज्ञा – तद्धित प्रत्यय से बने हुए वे शब्द जो न्यूनता (लघु या छोटा) का बोध कराते हैं, उन्हें ऊनवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – छतरी, चुहिया, खटिया, पहाड़ी आदि। इसमें इइया’, ‘ई’, ‘ओला’, ‘डा’, ‘ली’, री’ आदि प्रत्यय लगते हैं।
(ङ) करणवाचक संज्ञा – जिन संज्ञाओं से करण (साधन) का बोध होता है, उन्हें करणवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – हाथ से हथौड़ा; लेख से लेखनी आदि। इसमें ‘औड़ा’ व ‘नी’ प्रत्यय लगते हैं।
(च) अधिकारवाचक संज्ञा – जिन तद्धितीय संज्ञाओं से अधिकार का बोध होता हैं, उन्हें अधिकारवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – पोलवान, द्वारपाल, दरवान आदि। इनमें ‘वान’ और पाल’ प्रत्यय लगते हैं।
(छ) वस्त्रवाचक संज्ञा – वे तद्धितीय संज्ञाएँ जिनसे वस्त्रों का बोघ हो, उन्हें वस्त्रवाचक संज्ञा कहते हैं जैसे – जाँघिया, लँगोटी, अँगोछी आदि। इनमें इया’, ‘ओटी’, और ‘ओछी प्रत्यय लगते हैं।
(ज) स्थानवाचक संज्ञा – वे तद्धितीय संज्ञाएँ जिनसे स्थान का बोध होता है, उन्हें स्थानवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – राजस्थान, राजपूताना, ससुराल, ननिहाल आदि।
(झ) समुदायवाचक संज्ञा – वे तद्धितीय संज्ञाएँ जिनसे समूह या समुदाय का बोध होता है, उन्हें समुदायवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-कागजात, जवाहरात आदि। इसमें ऐरा’, ‘जो’, ‘आल, ‘ओई’ और ‘आन’ प्रत्यय अधिक लगते हैं।
(अ) सम्बन्धवाचक संज्ञा – वे तद्धितीय संज्ञाएँ जो सम्बन्ध बताती हैं, उन्हें सम्बन्धवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-जेठानी, देवरानी, भतीजा, बहनोई, ननदोई आदि। इसमें ‘एरा’, ‘जो, ‘आल’, ‘ओई’ और ‘आन’ प्रत्यय अधिक लगते हैं।
(ट) गुणवाचक संज्ञा – वे तद्धितीय संज्ञाएँ जिनसे गुण का बोध होता है, उन्हें गुणवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – झगड़ालू, जंगली, बनैला, बाजारू, शीलवंत, रसीला, लाडला, मानसिक, भूखा आदि। इसमें ‘आ’, ‘आलू, ‘इक, ‘ई, ईईला, ‘ऐला’, ‘ला’, ऊ’ और उआ’ प्रत्यय लगते हैं।
(ठ) सादृश्यवाचक संज्ञा – जिस शब्द से सादृश्य का बोध होता है, उसे सादृश्यवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – सुनहरा; मुझसा; काला-सा आदि। इसमें ‘सा’ और ‘हरा आदि प्रत्यय लगते हैं।
(ङ) पूर्णतावाचक संज्ञा – जिस शब्द से पूर्णता का बोध होता है, उसे पूर्णतावाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – पाँचवाँ, चौथा, दूसरा, तीसरा आदि। इसमें ला’, ‘रा, ‘वाँ, ‘था और ‘ठा आदि प्रत्यय लगते हैं।
प्रश्न 2.
प्रत्यय पृथक कीजिए एवं उनके रूप लिखिए –
उत्तरः