Students should regularly practice West Bengal Board Class 9 Hindi Book Solutions एकांकी Chapter 1 बहू की विदा to reinforce their learning.
WBBSE Class 9 Hindi Solutions एकांकी Chapter 1 Question Answer – बहू की विदा
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न – 1: बही किदा एकांकी का सारोश अपने शब्दों में लिखें।
प्रश्न – 2 ‘बहू की विदा’ एकोकी दहेज-प्रथा की बुराइयों का पर्दाफाश करती है – समीक्षा करें।
प्रश्न – 3. ‘बहू की विदा’ देहज-प्रथा की समस्या पर आधारित एकांकी है – समीक्षा करें।
प्रश्न – 4: ‘बहू की विदा’ एकांकी के माध्यम से एकांकीकार ने क्या संदेश देना चाहा है ?
प्रश्न – 5 : ‘बहू की विदा’ में व्यक्त एकांकीकार के विचारों को अपने शब्दों में लिखें।
प्रश्न – 6 : ‘बहु की विदा’ एकांकी में किस समस्या को उठाया गया है – लिखें।
प्रश्न – 7 : ‘बहू की विदा’ एकाकी के उद्देश्य को अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर :
‘बहू की विदा’ विनोद रस्तोगी की एकांकी है, जिसकी पृष्ठभूमि समाज में कोढ़ की तरह फैली हुई दहेजप्रथा है। वैसे दहेज-प्रथा हमारे देश के लिए कोई नई प्रथा नहीं है। हमारे देश में यह वैदिक काल से ही चली आ रही है। यास्क ने अपने ‘निरूक्त’ में ‘दुहिता’ शब्द का अर्थ बताया है – ‘जो अपने पिता से धन दुहती हो, वह दुहिता है।’
पार्वती के विवाह के अवसर पर उसके पिता हिमवान ने दासी, घोड़े, रथ, हाथी, गाएँ, वस्ब, मणी आदि तरह-तहर की चीजें, अन्न तथा सोने के बरतन रथों में भरकर इतना दहेज दिया था कि उनका वर्णन नहीं हो सकता। लेकिन तब आज जैसी स्थिति नहीं थी। अभाव के दंश में पलते हुए पिता के ऊपर कोई अनिवार्य बंधन नहीं था।
आज स्थिति बिल्कुल विपरीत है। प्रस्तुत एकांकी में रस्तोगी जी ने इसे ही दिखाने की कोशिश की है। जीवनलाल अपनी बहू कमला को सावन में विदा नहीं करने की कसम खाए बैठे हैं। कारण यह है कि दहेज उनके मनलायक नहीं आया। कमला का भाई प्रमोद के लाख खुशामद करने के बाद भी उनका दिल नहीं पसीजता है। तभी कमला की सास राजेश्वरी प्रमोद से कहती है कि वह दहेज के बकाये पाँच हजार रुपया उससे लेकर जीवनलाल के मुँह पर मारे और कमला को विदा कराकर ले जाए।
तभी कमला का पति रमेश लौटकर आता है। उसकी बहन की शादी भी अभी-अभी हुई है तथा वह भी सावन के लिए उसे विदा कराने गया था। लेकिन दहेज के लोभी उसके ससुरालवालों ने गौरी को विदा नहीं किया। उन्हें दहेज में और भी बहुत कुछ चाहिए।
बस जूववनलाल का दिमाग ठिकाने आ जाता है। अब उसे राजेश्वरी की यह बात समझ में आ जाती है कि जब तक वे बहू और बेटी को एक-सा नहीं समझेंगे तबतक उन्हें सुख और शांति नहीं मिलेगी। जीवनलाल राजेश्वरी से कमला को विदा करने की तैयरी करने को कहते हैं। एकांकी यहीं समाप्त हो जाती है।
इस एकांकी के अंत में तो जीवनलाल को तो समझ आ जाती है लेकिन अधिकांश लोग ऐसे हैं जिनकी अक्ल पर पत्थर पड़ा हुआ है । प्रेमचंद ने भी दह्हेज-प्रथा की बुराईयों की करूण-गाथा अपने उपन्यास ‘निर्मला’ तथा ‘कर्मभूमम’ में पेश की है । वी० शांताराम ने भी ‘दहेज’ फिल्म बनाकर इसकी बुराइयों पर प्रकाश डाला है। अनगिनत टी. वी. धारावाहिक भी विषय पर दिखाए जाते हैं लेकिन परिणाम वही- ढाक के तीन पात। लेकन प्रयास आज भी जारी है। रस्तोगी जी ने इस एकांकी के माध्यम से दहेज-प्रथा के विरुद्ध एक संदेश देना चाहा है, दहेज-प्रथा की समाप्ति उनका उद्देश्य है – अपने प्रयास में उन्हें पूरी-पूरी सफलता मिली है ।
प्रश्न – 9 : ‘बहू की विदा’ एकांकी के जिस पात्र ने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया है उसका चरित्र-चित्रण करें।
प्रश्न – 10 : ‘बहु की विदा’ की राजेश्वरी का चरित्र-चित्रण करें।
प्रश्न – 11 : राजेश्वरी का चरित्र एक आदर्श सास का चरित्र है – समीक्षा करें।
प्रश्न – 12 : ‘बहू की विदा’ की राजेश्वरी एक आदर्श चरित्र है – समीक्षा करें।
प्रश्न – 13 : ‘बहू की विदा’ की राजेश्वरी की चारित्रिक विशेषताओं को लिखें।
उत्तर :
राजेश्वरी ‘बहू की विदा’ एकांकी की प्रमुख पात्रों में से एक है। हालॉंक उसका प्रवेश एकांकी के मध्य से होता है फिर भी वह पाठकों पर अपनी छाप छोड़ जाती है। उसके चरित्र में कई ऐसी विशेष्ताएँ है जिसके कारण वह मेरी प्रिय पात्र है ।
राजेश्वरी की चारित्रिक विशेषताओं को इन शीर्षकों के अंतर्गत देखा जा सकता है –
(क) अपने-पराए का भेद नहीं – जब तक प्रमोद कमला की सास राजेश्वरी से नहीं मिला था उसे लगता था कि वह भी जीवनलाल की ही तरह दहेज की लोभी होगी। लेकिन उसकी शंका निराधार साबित हो जाती है जब वह प्रमोद को यह कहती है –
“मुझसे शर्म कैसी ? मेरे लिए जैसा रमेश वैसे ही तुम। बोलो, कितना रुपया चाहते हैं वे ?”
(ख) दूसरों के दर्द को समझनेवाली – राजेश्वरी स्वयं भी माँ है तथा एक माँ के दिल में अपनी बेटी के लिए क्या दर्द होता है वह इसे अच्छी तरह समझती है। दहेज के अभाव मे जब प्रमोद कमला को बिना विदा कराए ही जाने की बात करता है तो वह दो टूक शब्दों में कहती है –
‘ ‘मेरे रहते विदा न हो यह कभी नहीं हो सकता। मैं माँ हैँ, माँ के दिल को समझती हूँ। जिस तरह उतावली होकर मैं गौरी की राह देख रही हूँ, उसी तरह तुम्हारी माँ भी कमला की राह देख रही होगी।’’
(ग) बेटी और बहू में फर्क नहीं करनेवाली – राजेश्वरी एक सास होते हुए भी अपनी बेटी और बहू में कोई अंतर नहीं करती। जितना भरोसा वह बेटी पर करती है उतना ही बहू पर भी। यही कारण है कि वह तिजोरी से रुपये निकालने के लिए बहू को चाभियो का गुच्छा ही पकड़ा देती है। इतना ही नहीं, जब कमला सिसकती है तो वह ‘मेरी बेटी’ कहकर उसे हूदय से लगा देती है।
(घ) दहेज-लोभी नहीं – राजेश्वरी देहज-प्रथा की विरोधी है। अपने पति जीवनलाल से भी इस बारे में उसकी नहीं बनती। जब बाकी दहेज के लिए जीवनलाल प्रमोद को प्रताड़ित करते हैं तो वह प्रमोद से कहती है –
“ममं देती हूँ तुम्हें रुपये। उनके मुँह पर मारकर कहना कि ये लो कागज के रंग-बिरंगे टुकड़े, जिन्हें तुम आदमी से ज्यादा प्यार करते हो।”
(ङ) आदर्श सास के साथ आदर्श पत्नी भी – राजेश्वरी दहेज के नाम पर प्रमोद को प्रताड़ित करने पर पति को खड़ी-खोटी सुनाती है। लेकिन वह पाति को समझाने की भरसक कोशिश भी करती है –
” जो व्यवहार अपनी बेटी के लिए तुम दूसरे से चाहते हो, वही दूसरे की बेटी को भी दो। जब तक बहू. और बेटी को एक-सा नहीं समझोगे न तुम्हें सुख मिलेगा और न शांति।”
निष्कर्ष के तौर पर हम यह कह सकते हैं कि राजेश्वरी एक आदर्श नारी, आदर्श सास और आदर्श माँ है। यदि भारत के प्रत्येक घर में ऐसी नारी हो तो वह दिन दूर नहीं जब दहेज-प्रथा का कोई नामो-निशान न होगा ; दहेज के नाम पर किसी बहू को प्रताड़ित न किया जाएगा।
प्रश्न – 14 : ‘बहृ की विदा’ एकांकी के प्रमुख पुरुष पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
प्रश्न – 15 : जीवनलाल का चरित्र-चित्रण करें।
प्रश्न – 16 : ‘बहू की विदा’ शीर्षक एकांकी का जीवनलाल दहेज लोलुप व्यक्ति का प्रतीक है स्पष्ट करें।
प्रश्न – 17: जीवनलाल के चारित्रिक गुणों-अवगुणों की चर्चा करें।
उत्तर :
जीवनलाल ‘बहू की विदा’ एकांकी के प्रमुख पात्र हैं। एकांकी के प्रारंभ में जीवनलाल का चरित्र जितना रूखा, लालची तथा अहंकारी प्रतीत होता है – वह एकांकी के अंत में बिल्कुल विपरीत हो जाता है। यूँ कह सकते हैं कि एकांकी के अंत में जीवनलाल का हदय-परिवर्तन हो जाता है। एकांकी में जीवनलाल का चरित्र धीरे-धीरे आदर्श होता जाता है।
जीवनलाल के चारित्रिक गुण-अवगुण को इन शीर्षकों के अंतर्गत देखा जा सकता है-
(क) दहेज-लोलुप – जीवनलाल दहेज के बहुत बड़े लोभी हैं। यद्यापि वे बहू के परिवार की आर्थिक स्थिति को जानते हैं फिर भी प्रमोद के सामने बार-बार दहेज के बकाये रकम की ही रट लगाते हैं-
“‘अगर तुम्हारी सामार्थ्य कम थी तो अपनी बराबरी का घर देखते। झोपड़ी में रहकर महल से नाता क्यों जोड़ा।”
मानो वे कसम खाकर बैठै हों कि जब तक उन्हें बकाये पाँच हजार रुपये न मिलेंगे तबतक वे कमला को विदा न करेंगे।
(ख) प्रताड़ित करने वाले – जीवनलाल दहेज के बकाये पाँच हजार रूपये के लिए न केवल बहू को मानसिक प्रताड़ना देते है बल्कि वे उसके भाई प्रमोद को भी प्रताडित करने से बाज नहीं आते –
“देना तो दूर, बारात की खातिर भी ठीक से नहीं की गई। मेरे नाम पर जो धब्बा लगा, मेरी शान को जो ठेस पहुँची, भरी बिरादरी में जो हैँसी हुई उस करारी चोट का घाव आज भी गहरा है।”
(ग) अपने थन का घमंड – जीवनलाल को अपने धनी होने का बहुत घमंड है – यह उनके चेहेरे तथा हाव-भाव से ही झलकता है। धन के नशे में वे रिश्ते की मर्यादा को भी भूल जाते है। जब प्रमोद उनसे यह कहता है कि उनके बहनोई अगर रमेश बाबू सामने होते तो विदा कराने में दिक्कत नहीं होती- तो जीवनलाल का यहु जवाब होता है –
“तो वह क्या कर लेता ? मेरे सामने मुँह खोलने की हिम्मत नहीं है उसमें। वह मेरा बेटा है। तुप्हारी तरह बड़ों के मुँह लगने की बदतमीजी करनेवाला कोई आवारा छोकरा नहीं।”’
(घ) बेटी के ससुरालवालों से आहत – जब जीवनलाल की खुद की बेटी गौरी को उसके ससुराल वाले और अधिक दहेज पाने की लालच में विदा नहीं करते है तो उनका कलेजा दो टूक हो जाता है। अब उन्हें दहेज की बुराई सामने नज़र आने लगती है –
“हमने तो जीवन भर की कमाई दे दी और उनकी नज़र में दहेज पूरा नहीं दिया गया। लोभी कहीं के।”
जो जीवनलाल थोड़ी देर पहले प्रमोद के सामने अकड़े हुए थे वही अब शराफत और इन्सानियत को दुहाई देने लगते हैं।
(ङ) चोट खाकर हुदय-परिवर्तन-जब जीवनलाल अपनी बेटी के विदा न होने से चोट खाते हैं तब उन्हें पत्नी की ये बातें समझ में आने लगती हैं –
“जो व्यवहार अपनी बेटी के लिए तुम दूसरे से चाहते हो, वही दूसरे की बेटी को भी दो। जब तक बहू और बेटी को एक-सा नहीं समझोगे, न तुम्हें सुख मिलेगा न शांति।”
(च) अपनी गलती को स्वीकारने वाले – एकांकी के अंत में जीवनलाल को अपनी गलती का अहसास हो जाता है तथा वे इसे स्वीकारते हैं। अपनी गलती को सुधारने के लिए वे पत्नी राजेश्वरी को निर्देश देते हैं –
“अरे, खड़ी-खड़ी हमारा मुँह क्या ताक रही हो ? अंदर जाकर तैयारी क्यों नहीं करती ? बहू को विदा नहीं करना है क्या ?’
इस प्रकार जो जोवनलाल एकांकी के प्रारंभ में पत्थर का कलेजा रखनेवाले लगते हैं वही अंत में पिघलते मोम की तरह हो जाते है। यह उनका संतान-प्रेम ही है जो उन्हें दानव से देवता में बदल देता है तथा वे आदर्श पिता व ससुर में बदल जाते हैं।
प्रश्न – 18 : ‘बहू की विदा’ एकांकी के प्रमोद का चरित्र-चित्रण करें।
प्रश्न – 19 : ‘बहू की विदा’ का प्रमोद दहेज प्रथा के सामने एक विवश व्यक्ति नज़र आता है- समीक्षा करें।
प्रश्न – 20 : ‘बहू की विदा’ के प्रमोद की चारित्रिक विशेषताओं को लिखें।
प्रश्न – 21 : ‘बहू की विदा’ आज के नवयुवकों के प्रतिकूल चरित्रवाला है – वर्णन करें।
उत्तर :
‘बहू की विदा’ एक उद्देश्यपूर्ण एकांकी है। इस एकांकी का उद्देश्य दहेज-प्रथा से उत्पन्न समस्याओं पर प्रकाश डालना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए एकांकीकार रस्तोगी जी ने विभिन्न पात्रों की सृष्ठि की है। प्रमोद भी ऐसे ही पात्रों में से एक है ।
प्रमोद की चारित्रिक – विशेषताएँ इस प्रकार हैं –
(क) आदर्श बवुक-प्रमांद आजकल के नवयुवकों की तरह बात-बात में उत्तेजित होने वाला तथा बड़ों की कद्र नहीं करने वाला नवयुवक नहीं है। उसमें एक आदर्श युवक के सारे गुण हैं। जीवनलाल जी बातों को वह सहता है तथा उत्तेजित नही होंता।
(ख) बहन से बहुत प्रेम करने वाला – प्रमोद के दिल में अपनी बहन कमला के लिए अथाह प्रेम है। उसकी खुशो के लिए वह बड़ा से बड़ा अपमान झेल सकता है तथा बड़ी से बड़ी कुर्बानी भी दे सकता है। इसीलिए वह तरह-तरह से बहन को बिदा कराने के लिए जीवनललाल जी को समझने की बेष्टा करता है –
‘”यदि मैं कमला को बिना लिए ही गया तो माँ का हृद्य टूट जाएगा।”
(ग) स्पष्ट वक्ता – यद्यषि प्रमोद जीवनलाल की कड़वी से कड़वी बाते भी सह लेता है लेकिन जहाँ आवश्यक है वह स्पष्ट बोलने में जरा-सा भी नहीं हिचकिचाता –
” यह तो सरासर अन्याय है। शिकायत आपको हमसे है। उस भोली-भोली लड़की ने आपका क्या बिगाड़ा है जो विदा न करके आप उससे बदला ले रहे हैं ?”
(घ) स्वाभिमानी – प्रमोद दहेज की रकम पूरी न कर पाने के कारण जीवनलाल जी से प्रताड़ित होंता है। जब जीवनलाल की पत्नी पाँच हजार रुपये अपने पास से प्रमोद को देकर उसे बहन को विदा कराने को कहती है तो उसका स्वाभिमान जाग उठता है –
“मुझे रुपये नहीं चाहिये। मैं बिना विदा कराये ही जा रहा हूँ।”
(ङ) धन के महत्व को स्वीकारने वाला – प्रमोद इस बात को अच्छी तरह समझता है कि इस ज्राने में धन ही लोगों का सबकुछ है। यदि उसके पास भी धन होता तो उसे यूँ प्रताड़ित नहीं होना पड़ता – जीवनलाल जी की इस बात को वह स्वीकार करता है –
“‘ठीक ही कहा है आपने, आज के युग में पैसा ही नाक और मूँछ है, जिसके पास पैसा नहीं वह नाक और मूँछ होते भी नकटा है, मूँछकटा है।”
इस प्रकार हम पाते हैं कि प्रमोद का चरित्र ही इस एकांकी की जान है, यदि हम इस एकांकी से प्रमोद का चरित्र निकाल दें तो जीवनलाल जी तथा राजेश्वरी का चरित्र भी अधूरा हो जाएगा। एकांकीकार के उद्देश्य को पूरा करने में प्रमोद का चरित्र अपनी अहम् भूमिका निभाता है।
अति लघूत्तरीय/लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘बहू की विदा’ के लेखक कौन हैं ?
उंत्तर :
विनोद रस्तोगो।
प्रश्न 2.
‘बहु की विदा’ किस विधा की रचना है ?
उत्तर :
एकांकी।
प्रश्न 3.
एकांकी के प्रारंभ में जीवनलाल क्या निर्णय लेते हैं ?
उत्तर :
बहू विदा नहीं होगी जबतक दहेज के बकाये पाँच हजार रुपये नहीं मिल जाते है
प्रश्न 4.
मैंने उसकी दशा का ठेका नहीं लिया है – वक्ता कौन है ?
उत्तर :
जीवनलाल।
प्रश्न 5.
हर लड़की जादी के बाद पहले सावन के बारे में क्या सपना देखती है ?
उत्तर :
हर लड़क. गदी के बाद पहले सावन के बारे में यह सपना देखती है कि उस सावन कों बह् अपनी सखीसहेलियों के साथ हँस-खल कर बिताए।
प्रश्न 6.
जीवनलाल प्र-नद से विवाह के बारे में क्या शिकायत करते हैं ?
उत्तर :
जीवनलाल प्रमोद से विवाह के बारे में यह शिकायत करते हैं कि पूरा दहज देना तो दूर, बारात की खातिर भी ठीक से नहीं की गई। इससे उनकी शान को धक्का लगा तथा भरी बिरादरी मे हँसी हुई सो अलग।
प्रश्न 7.
प्रमोद कमला की विदाई करने की बात पर जीवनलाल से क्या कहता है ?
उत्तर :
जब जोवनलाल कमला की विदाई के लिए तैयार नहीं होते है तो प्रमाद उनसे यह कहता है कि उनका ऐया करना सरासर अन्याय है। ऐसा करके वे भोली भाली कमला से बदला ले रहे है।
प्रश्न 8.
जीवनलाल अपनी बेटी गौरी की शादी के बारे में प्रमोद को क्या बतलाते हैं ?
उत्तर :
जीवनलाल प्रमोद को गौरी की शादी के बारे में कहते हैं कि उन्होंने बारातवालों की इतनी खातिरदारी की कि वे लोग दंग रह गये। दहेज देखकर देखने वालों ने दाँतों तले उंगली दबा ली।
प्रश्न 9.
जीवनलाल जी कमला के सपने के बारे में क्या कहते हैं ?
उत्तर :
जीवनलाल जी कमला के सपने के कभी पूरी न होने की बात करते हैं तथा यह भी कहने हैं कि उसके सपनों के खून का दाग प्रमोद के हाथों तथा उसकी माँ के आँघल पर होगा।
प्रश्न 10.
प्रमोद जीवनलाल की कठोरता के बारे में कमला से क्या कहता है ?
उत्तर :
जीवनलाल जी की कठोरता के बारे में प्रमोद कमला से यह कहता है कि तुप्हारे आसुओं का मूल्य समझनेवाला यहाँ कोई नहीं है। पानी में पत्थर नहीं पिघल सकता।
प्रश्न 11.
कमला अपनी ननद गौरी के बारे में क्या कहती है ?
उत्तर :
कमला गौरी की प्रशंसा करते हुए कहती है कि गौरी का स्वभाव बहुत अच्छा है। वह हर समय हैंसती-हैसाती रहती है। उसके आ जाने से कमला को अपनी सहेलियों की कमी नहीं खलेगी।
प्रश्न 12.
कमला किसे ममता की मूर्ति कहती है ?
उत्तर :
कमला अपनी सास राजेश्वरी को ‘ममता की मूर्ति’ कहती है।
प्रश्न 13.
राजेश्वरी बहू कमला की विदाई के बारे में प्रमोद को क्या बताती है ?
उत्तर :
राजेश्वरी बहू कमला की विदाई के बारे में ग्रमोद को यह बताती है कि विदाई की चिद्ठी आने के बाद से ही जीवनलाल मना कर रहे थे। उसके लाख समझाने पर भी जीवनलाल पर कोई असर नहीं पड़ा।
प्रश्न 14.
राजेश्वरी रुपये देने के बारे में प्रमोद से क्या कहती है ?
उत्तर :
राजेश्वरी जीवनलाल को रुपये देने के बारे मे प्रमोद से कहती है कि रुपये मैं तुम्हें देती हूँ। ये रुपये उनके मुँह पर मारकर कहना कि आदमी से भी ज्यादा प्यारे ये कागज के रंग-बिरंगे दुकड़े लो।
प्रश्न 15.
कमला के विदा न होने के बारे में राजेश्वरी प्रमोद से क्या कहती है ?
उत्तर :
कमला की विदाई न होने के बारे में राजेश्वरी कहती है कि ऐसा कभी नहीं हो सकता। मैं भी माँ हूँ तथा माँ के दिल को समझ्झती हूँ। मेरी तरह तुम्हारी माँ भी कमला की राह देख रही होगी। इसलिए कमला की विदाई जरूर होगी।
प्रश्न 16.
राजेश्वरी जीवनलाल को बहू से व्यवहार के बारे में क्या सीख देती है ?
उत्तर :
राजेश्वरी जीवनलाल को बहू से व्यवहार के बारे में यह सीख देती है कि आप जो व्यवहार अपनी बेटी के लिए चाहते हैं वही व्यवहार दूसरे की बेटी के साथ भी करें। जब तक बहू और बेटी को एक-सा नहीं समझेंगे तबतक आपको न तो सुख मिलेगा न शांति मिलेगी।
प्रश्न 17.
कभी-कभी चोट भी मरहम का काम कर जाती है – वक्ता और श्रोता के नाम लिखें।
उत्तर :
वक्ता जीवनलाल हैं तथा श्रोता प्रमोद, रमेश, कमला तथा राजेश्वरी हैं।
प्रश्न 18.
‘बहू की विदा’ एकांकी में किस समस्या को उठाया गया है ?
उत्तर :
‘बहू की विदा’ एकांकी में दहेज-प्रथा की समस्या को उठाया गया है कि आखिर कब तक दहेज के कारण युव्वतियों को प्रताड़ित होना पड़ेगा। इतने युगों के बाद भी आज तक इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाया है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘बहु की विदा’ किसकी रचना है ?
(क) शैल रस्तोगी की
(ख) विनोद रस्तोगी की
(ग) महादेवी वर्मा को
(घ) इनमें से किसी की नहीं
उत्तर :
(ख) विनोद रस्तोगी की।
प्रश्न 2.
‘बहू की विदा’ में कितने पात्र हैं ?
(क) तीन
(ख) चार
(ग) पाँच
(घ) छ:
उत्तर :
(ग) पाँच।
प्रश्न 3.
परदा उठने पर जीवनलाल कहाँ खड़े दिखायी देते हैं ?
(क) दरवाजे के पास
(ख) राजेश्वरी के पास
(ग) खिड़की के पास
(घ) प्रमोद के पास
उत्तर :
(ग) स्विड़की के पास।
प्रश्न 4.
जीवनलाल की उम्र कितनी है ?
(क) 40 वर्ष
(ख) 45 वर्ष
(ग) 50 वर्ष
(घ) 55 वर्ष
उत्तर :
(ग) 50 वर्ष।
प्रश्न 5.
राजेश्वरी की उम्र कितनी है ?
(क) 36 वर्ष
(ख) 46 वर्ष
(ग) 56 वर्ष
(घ) 66 वर्ष
उत्तर :
(ख) 46 वर्ष।
प्रश्न 6.
मैं मजबूर हूँ – वक्ता कौन है ?
(क) प्रमोद
(ख) रमेश
(ग) कमला
(घ) जीवनलाल
उत्तर :
(घ) जीवनलाल
प्रश्न 7.
कमला के पति का नाम क्या है ?
(क) दिनेश
(ख) सुरेश
(ग) रमेश
(घ) विनोद्
उत्तर :
(ग) रमेश।
प्रश्न 8.
प्रमोद की उप्र कितनी है ?
(क) 19 वर्ष
(ख) 20 वर्ष
(ग) 22 वर्ष
(घ) 23 वर्ष
उत्तर :
(घ) 23 वर्ष।
प्रश्न 9.
कमला की उप्र कितनी है ?
(क) 18 वर्ष
(ख) 16 वर्ष
(ग) 19 वर्ष
(घ) 22 वर्ष
उत्तर :
(ग) 19 वर्ष।
प्रश्न 10.
रमेश की उम्र कितनी है ?
(क) 18 वर्ष
(ख) 20 वर्ष
(ग) 22 वर्ष
(घ) 24 वर्ष
उत्तर :
(ग) 22 वर्ष।
प्रश्न 11.
‘कल के छोकरे’ किसे कहा गया है ?
(क) रमेश को
(ख) प्रमोद को
(ग) कमला को
(घ) जोवनलाल को
उत्तर :
(ख) प्रमोद को।
प्रश्न 12.
‘मरहम’ का सांकेतिक अर्थ क्या है ?
(क) दवा
(ख) मलहम
(ग) मरा हुआ
(घ) दहेज के रुपये
उत्तर :
(घ) दहेज के रुपये।
प्रश्न 13.
‘मुँह खोलना’ का अर्थ है ?
(क) मुँह को खुला रखना
(ख) मुँह बंद न करना
(ग) विरोध करना
(घ) थैले को खोलना
उत्तर :
(ग) विरोध करना।
प्रश्न 14.
‘आवारा छोकरा’ किसे कहा गया है ?
(क) रमेश को
(ख) प्रमोद को
(ग) लेखक को
(घ) कवि को
उत्तर :
(ख) प्रमोद् को।
प्रश्न 15.
‘दाँतों तले उँगली दबाना’ का अर्थ है ?
(क) उंगली को दाँत से दबाकर रखना
(ख) आश्चर्य करना
(ग) क्रोध करना
(घ) उँगली चबा जाना
उत्तर :
(ख) आश्चर्य करना।
प्रश्न 16.
रमेश कहाँ गया था ?
(क) ऑफिस
(ख) बाजार
(ग) अपने ससुराल
(घ) बहन का ससुराल
उत्तर :
(घ) बहन का ससुराल।
प्रश्न 17.
रमेश की बहन का नाम क्या है ?
(क) राखी
(ख) गौरी
(ग) हीरा
(घ) कमला
उत्तर :
(ख) गौरी।
प्रश्न 18.
‘चाँद-सा सुंदर मुखड़ा’ किसको कहा गया है ?
(क) जीवनलाल को
(ख) राजेश्वरी को
(ग) गौरी को
(घ) कमला को
उत्तर :
(च) कमला को ।
प्रश्न 19.
जीवनलाल के मरहम की कीमत कितनी है ?
(क) पाँच सौ रुपये
(ख) पचास रुपये
(ग) हज्ञार रुपये
(घ) पाँच हजार रुपये
उत्तर :
(घ) पाँच हुजार रूपये।
प्रश्न 20.
जीवनलाल अपने लॉन में किसके लिए झूला डलवाते हैं ?
(क) राजेश्वरी के लिए
(ख) कमला के लिए
(ग) गौरी के लिए
(घ) अपने लिए
उत्तर :
(ग) गौरी के लिए।
प्रश्न 21.
पानी में पत्थर नहीं पिघल सकता – ‘पत्थर’ किसे कहा गया है ?
(क) प्रमोद को
(ख) राजेश्वरी को
(ग) रमेश को
(घ) जीवनलाल को
उत्तर :
(घ) जीवनलाल को।
प्रश्न 22.
कमला किस बात के लिए प्रमोद को सौगंध देती है ?
(क) जीवनलाल से बात न करने के लिए
(ख) विदा कराने के लिए
(ग) घर न बेचने के लिए
(घ) विमला के ब्याह के लिए
उत्तर :
(ग) घर न बेचने के लिए।
प्रश्न 23.
कमला की बहन का नाम क्या है ?
(क) श्यामला
(ख) विमला
(ग) निर्मला
(घ) गौरी
उत्तर :
(ख) विमला।
प्रश्न 24.
मुझसे शर्म कैसी – वक्ता कौन है ?
(क) रमेश
(ख) कमला
(ग) गौरी
(घ) राजेश्वरी
उत्तर :
(घ) राजेश्वरी।
प्रश्न 25.
मुझे रुपये नहीं चाहिए – वक्ता कौन है ?
(क) जीवनलाल
(ख) प्रमोद
(ग) रमेश
(घ) राजेश्वरी
उत्तर :
(ख) प्रमोद
प्रश्न 26.
तुम अकेले नहीं जाओगे – वक्ता कौन है ?
(क) राजेश्वरी
(ख) प्रमोद
(ग) जौवनलाल
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(क) राजेश्वरी।
प्रश्न 27.
वह नहीं आयी – वक्ता कौन है ?
(क) जीवनलाल
(ख) राजेश्वरी
(ग) रमेश
(घ) कमला
उत्तर :
(ग) रमेश।
प्रश्न 28.
लोभी कहीं के – वक्ता कौन है ?
(क) रमेश
(ख) राजेश्वरी
(ग) प्रमांद
(घ) जोवनलाल
उत्तर :
(घ) जीवनलाल।
प्रश्न 29.
अब भी आँखें नहीं खुलीं ? – वक्ता कौन है ?
(क) प्रमोद
(ख) रमेश
(ग) राजेश्वरी
(घ) जीवनलाल
उत्तर :
(ग) राजेशवरी।
प्रश्न 30.
अजीब उलझने हैं – वक्ता कौन है ?
(क) जीवनलाल
(ख) प्रमोद
(ग) राजेश्वरो
(घ) गौरी
उत्तर :
(क) जीवनलाल।
ससंदर्भ आलोचनात्मक व्याख्या
प्रश्न 1.
मैने उसकी दशा का ठेका नहीं लिया है।
– रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें। पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
रचना ‘बहू की विदा’ है तथा इसके रचनाकार विनोद रस्तोगी हैं।
जब प्रमोद जीवनलाल जी से यह कहता है कि अगर उन्होंने कमला की विदाई नहीं की तो न मालूम उसकी क्या दशा होगी। हर लड़की शादी के बाद पहला सावन अपनी सखी-सहेलियों के साथ हँस-खेलकर अपने मायके में बिताती है। अगर कमला मायके न जा पाई तो उसे बहुत बुरा लगेगा।
प्रश्न 2.
जानता हूँ।
– वक्ता कौन है ? पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर :
वक्ता कमला के श्वसुर जीवनलाल जी हैं।
प्रमोद अपनी बहन के विदा कराने के लिए आया है। लेकिन जीवनलाल जी ने यह ठान रखा है कि वह कमला को विदा नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें दहेज की पूरी रकम नहीं मिली है । प्रमोद उन्हें यह समझाने की कोशिश करता है कि शादी के बाद हरेक लड़की पहला सावन मायके में अपनी सखी-सहेलियों के साथ हँसकर-खेलकर बिताने का सपना देखती है। इस पर जीवनलाल का टका-सा उत्तर मिलता है कि जानता हूँ। उनके कहने का भाव यह है कि उन्हें कमला के सपने से कोई लेना-देना नहीं है।
प्रश्न 3.
कल के छोकरे मुझे बेवकूफ बनाना चाहते हो।
– वक्ता और श्रोता का नाम लिखें। पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
वक्ता कमला के श्वसुर जीवनलाल तथा श्रोता कमला का भाई प्रमोद है।
कमला को विदा कराने के संदर्भ में प्रमोद जीवनलाल जी से विनती करता है कि वे उसे विदा कर दें। गौने के समय वह उनकी सारी माँगें पूरी कर देगा। लेकिन जीवनलाल जी को लगता है कि प्रमोद उन्हें धोखा देने की कोशिश कर रहा है। वे प्रमोद से कहते हैं कि उनके बाल धूप में सफेद नहीं हुए हैं और प्रमोद उन्हें बेवकूफ बनाने की कोशिश न करे ।
प्रश्न 4.
मेरा फैसला आखिरी है।
– वक्ता कौन है ? आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
वक्ता कमला के श्वसुर जीवनलाल जी हैं।
जीवनलाल जी ने ठान लिया है कि उन्हें जब तक बेटे रमेश के दहेज के बाकी पाँच हजार रुपये न मिलेंगे तब तक वे कमला को विदा न करेंगे चाहे कोंई कितना भी कुछ कहे । यह उनका आखिरी फैसला है तथा वे अपने फैसले पर अडिग हैं।
प्रश्न 5.
यह तो सरासर अन्याय है।
– वक्ता तथा श्रोता का नाम लिखें। वक्ता ऐसा क्यों कहता है ?
उत्तर :
वक्ता प्रमोद तथा श्रोता कमला के श्वसुर जीवनलाल जी हैं।
जीवनलाल जी प्रमोद को अपना आखिरी फैसला सुना देते हैं कि दहेज के बकाए रकम को लिए बिना वे उसकी बहन कमला को विदा नहीं करेंगे। यह बात प्रमोद को बहुत बुरी लगती है तथा वह प्रतिवाद करता हुआ यह कहता है कि यह सरासर अन्याय है। दहेज के नाम पर वे भोली-भाली लड़की को विदा न करके उससे प्रतिशोध ले रहे हैं। ऐसा लगता है कि दहेज की पूरी रकम न दे पाने के पीछे कमला का ही दोष है।
प्रश्न 6.
लेकिन तुम्हारी तरह नहीं।
– पाठ का नाम लिखें। पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर :
पाठ का नाम ‘बहू की विदा’ है।
प्रमोंद की बहन कमला के साथ जीवनलाल जी जो व्यवहार कर रहे हैं उससे प्रमोद बहुत दुःखी है। वह उन्हें यह याद दिलाता है कि वे यह न भूलें कि वे भी बेटी वाले हैं। इस पर जीवनलाल जी का यह खरा-सा उत्तर होता है कि हाँ, वे भी बेटी वाले है लेकिन प्रमोद की तरह नहीं। उनकी और प्रमोद के घरवालों की इस बारे में कोई तुलना नहीं।
प्रश्न 7.
बेटी बेटी है और बहू बहू।
– वक्ता कौन है ? वक्ता की मानसिकता के बारे में लिखें।
उत्तर :
वक्ता कमला के श्वसुर जीवनलाल जी हैं।
जीवनलाल की मानसिकता संकुचित है। वे बहू और बेटी में जमीन-आसमान का अंतर मानते हैं। उनकी नज़र में बहू कभी भी बेटी का स्थान नहीं ले सकती क्योंकि वह पराए घर से आयी है। पराए घर की लड़की कभी भी बेटी की बराबरी नहीं कर सकती।
प्रश्न 8.
पानी में पत्थर नहीं पिघल सकता।
– वक्ता कौन है ? वह ऐसा क्यों कहता है ?
उत्तर :
वक्ता प्रमोद है।
कमला अपने विदा न होने की बात पर रोने लगती है तो प्रमोद उसे चुप कराते हुए कहता है कि इस घर में तुम्हारे आँसुओं की कोई कीमत नहीं है। जीवनलाल पत्थर दिल इसान हैं और कमला के आसू उन्हें नहीं पिघला सकते। जिस व्यक्ति के लिए रूपये ही सबकुछ हो उसे किसी की भावना, आँसू से क्या लेना-देना ?
प्रश्न 9.
आपको मेरे सुख-सुहाग की सौगंध।
– कौन, किसे, किस बात की सौगंध दे रहा है और क्यों ?
उत्तर :
कमला का भाई प्रमोद यह निर्णय लेता है कि घर बेचकर दहेज के बाकी रुपये चुका देगा। इसी बात पर कमला प्रमोद को अपने सुख-सुहाग की सौगंध देती है कि वह ऐसा न करे क्योंक ब्याहने के लिए अभी छोटी बहन बिमला बची है। उसके ब्याह के लिए भी तो कुछ बचाकर रखना है।
प्रश्न 10.
बहुत अच्छा स्वभाव है उसका।
प्रश्न 11.
आप विश्वास करें, भैया !
– पाठ का नाम लिखें। पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
पाठ का नाम है – ‘बहू की विदा।’
विदा न होने की स्थिति में कमला प्रमोद से कहती है कि वह चिन्ता न करे। यदि वह सखी-सहेलियों से न मिल पायेगी तो कोई बात नहीं क्योकि उसकी ननद गौरी अपने ससुराल से आ रही है। उसके साथ रहकर कमला को अपनी किसी सखी-सहेली की कमी नहीं खलेगी।
प्रश्न 12.
मुझसे शर्म कैसी ?
– वक्ता कौन है ? पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर :
वक्ता कमला की सास राजेश्वरी है।
जीवनलाल द्वारा माँगे गए पाँच हजार रुपयों की बात कमला का भाई प्रमोद राजेश्वरी से छिपाना चाहता है। इस पर राजेश्वरी कहती है तुम्हारे और रमेश में मेरे लिए कोई अंतर नहीं है। वो कहती है कि तुम शर्म मत करो तथा रुपये मुद्यसे लेकर जीवनलाल के मुँह पर दे मारो।
प्रश्न 13.
मुझे रुपये नहीं चाहिए।
– वक्ता कौन है ? उसे कौन-से रुपये नहीं चाहिए ?
उत्तर :
वक्ता कमला का भाई प्रमोद है।
कमला की सास राजेश्वरी प्रमोद को अपने पास से रुपये देने को कहती है ताकि कमला की विदाई हो सके। इस पर प्रमांद कहता है कि उसे रुपये नहीं चाहिए। वह अपनी बहन को विदा कराये बगैर ही जाने की बात करता है।
प्रश्न 14.
मैं माँ हैँ, माँ के दिल को समझती हूँ।
– ससंदर्भ पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति विनोद रस्तोगी के एकांकी ‘बहू की विदा’ से ली गई है।
कमला की सास राजेश्वरी कहती है कि वह हर हाल मे बहू को विदा करेगी। जिस तरह वह अपनी बेटी गौरी की प्रतीक्षा कर रही है ठीक उसी प्रकार कमला की माँ भी उसकी राह देख रही होगी। माँ होने के नाते वह माँ के दिल को अच्छी तरह समझती है। इसलिए उसके रहते उसकी बहू विदा न हो – ऐसा नहीं हो सकता।
प्रश्न 15.
गालियों के अलावा कभी सीधी बात नहीं निकलती मुँह से ?
– यह कौन, किसे, क्यों कह रहा है ?
उत्तर :
यह कमला की सास राजेश्वरी अपने पति जीवनलाल से कह रही है। जीवनलाल ने कटाक्ष करते हुएप्रमोद से कहा था कि जरा प्रमोद भी देख ले कि नाकवाले अपनी बेटी का ख्वागत कैसे करते हैं। इसी बात कें उत्तर में राजेश्वरी ने अपने पति से यह कहा कि उसके मुँह से कभी सीधी बात नहीं निकलती, निकलती है तो केवल गालियाँ।
प्रश्न 16.
उन्होंने विदा नहीं की।
प्रश्न 17.
विदा नहीं की ? क्यों नहीं की ?
– ससंदर्भ पंक्ति का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति विनोद रस्तोगी के एकांकी ‘बहू की विदा’ से ली गई है।
जब रमेश लौटकर जीवनलाल जी को यह बताता है कि गौरी के ससुरालवालों ने उसे विदा नहीं किया तो ऐसालगता है कि किसी ने उनकी छाती में जोर से घूँसा मारा हो। उसके ससुरालवालों को दहेज में और भी बहुत कुछ चाहिए।
प्रश्न 18.
लोभी कहीं के।
प्रश्न 19.
मगर शराफत और इन्सानियत……
– वक्ता कौन है ? पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
वक्ता जीवनलाल हैं।
जब रमेश लौटकर पिता को यह बताता है कि और अधिक दहेज पाने की लालच में ससुरालवालों ने गौरी को विदा नहीं किया तो उनका पारा सातवें आसमान पर चढ़ जाता है। अब उन्हे लड़कीवाले होने की लाचारी और बेबसी नजर आती है और वे शराफत तथा इन्सानियत की दुहाई देने लगते हैं।
प्रश्न 20.
बहुत चुप रही । अब नहीं रहूँगी।
– वक्ता कौन है ? पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
वक्ता जीवनलाल की पत्नी राजेश्वरी है।
जब रमेश गौरी की विदाई के बगैर ही लौट आता है तो जीवनलाल उल्टा-सीधा बोलना शुरू करते हैं। यह सुनकर राजेश्वरी से रहा नहीं जाता। वह विरोध करती है तो जीवनलाल उसे चुप रहने को कहते हैं। राजेश्वरी कहती है कि अब मैं चुप रहने वाली नहीं। यह तुम्हीं हो जो कुछ देर पहले तक दहेज की खातिर अपनी बहू को विदा नहीं करने की कसम खाए बैठे थे। और अब वही व्यवहार तुम्हारे साथ हो रहा है तो तुम्हें बुरा लग रहा है।
प्रश्न 21.
अब भी आँखें नहीं खुलीं ?
– वक्ता और श्रोता का नाम लिखते हुए पंक्ति का आशय स्पप्ट करें।
उत्तर :
वक्ता जीवनलाल की पल्ली राजेश्वरी तथा श्रोता जीवनलाल हैं।
राजेश्वरी कहती है कि दहेज के कारण तुम्हारी बेटी गौरी की विदाई रोक दी गई। यह सब देखने के बाद भी तुम्हारी आँखें नहीं खुलीं। तुम अपनी बेटी के लिए जो व्यवहार चाहते हो वही व्यवहार बहू को भी दो। बहू और बेटी को एक समझो। जबतक तुम ऐसा न करोगे तुम्हें सुख-शांति नहीं मिलेगी।
प्रश्न 22.
अजीब उलझंने हैं। कुछ समझ में नहीं आता।
– ससंदर्भ पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति विनोद रस्तोगी के एकांकी ‘बहू की विदा’ से ली गई है।
जीवनलाल ने दहेज लेने के चक्कर में जो जाल अपनी बहू के लिए बिछाया था उसमें वह खुद फंस गए। उनकी बेटी की विदाई भी उसके ससुरालवालों ने रोक दी। इधर प्रमोद के साथ-साथ पत्नी राजेश्वरी भी उनका खुलकर विरोध कर रही है। वे ऐसी उलझन में फैस गए हैं कि उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा है कि इस उलझन को कैसे सुलझाएँ।
प्रश्न 23.
शायद तुम ठीक कहती हो।
– वक्ता कौन है ? वह किसकी ज्ञात को ठीक कह रहा है ?
उत्तर :
वक्ता जीवनलाल हैं।
राजेश्वरी उन्हें गौरी की विदाई रूक जाने के बाद काफी भला-बुरा कहती हैं। वह जीवनलाल को समझाते हुए कहती है कि अगर अपनी बेटी के साथ अच्छा व्यवहार चाहते हो तो बहू के साथ भी अच्छा व्यवहार करो। वह भी किसी की बेटी है। जबतक तुम ऐसा न करोगे, सुख-शांति मिलनेवाली नहीं है। जीवनलाल को पत्नी की यह बात सही लगती है। वे उसकी बातो का समर्थन करते हैं।
प्रश्न 24.
मेरी चोट का इलाज बेटी की ससुरालवालों ने दूसरी चोट से कर दिया है।
प्रश्न 25.
कभी-कभी चोट भी मरहम का काम कर जाती है।
– वक्ता का नाम लिखें। पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
वक्ता जीवनलाल हैं।
जीवनलाल की बेटी गौरी की विदाई उसके ससुरालवाले और अधिक दहेज के लालच में रोक देते हैं। इस घटना से उन्हे यह समझ में आ जाता है कि वे बहू के साथ क्या व्यवहार कर रहे थे। इसी घटना से उन्हें यह सीख मिलती है कि अधिक दहेज के लालच में बहू के साथ बुरा व्यवहार करना कितना दु खद है। इसी बात को स्वीकारते हुए वे कहते हैं कि कभी-कभी चोट भी मरहम का काम कर जाती है।
टिप्पणियाँ
1. चिद्ठी :- प्रस्तुत शब्द विनोद रस्तोगी के एकाकी ‘बहू की विदा’ से लिया गया है।
हिंदी में सामान्यत: पत्र के लिए ‘चिट्ठी’ शब्द का इस्तेमाल होता है। न केवल बोलचाल में, वल्कि साहित्यिक लेखों, निबंधों, पर्र-पत्रिकाओं आदि में भी पत्र के लिए ‘चिट्ठी’ शब्द का व्यापक प्रयोग मिलता है।
2. दहेज :- प्रस्तुत शब्द विनोद रस्तोगी के एकांकी ‘बहू की विदा’ से लिया गया है।
दहेज की पररपरा भारत में प्राचीन काल से ही चली आ रही है। मनुस्मृति मे लिखा है कि कन्या के विवाह के समय कन्या का पिता अपनी शक्ति-भर धन या भेंट आदि देता है वह ‘दहेज’ कहलाता है। लेकिन आज दहेज स्वेच्छा से नहीं विवशता से दिया जाता है।
पाठ्याधारित व्याकरण
WBBSE Class 9 Hindi कर चले हम फ़िदा Summary
लेखरनक- परिचाया
हिन्दी एकांकी साहित्य एक समृद्ध साहित्य है, जिसमें विनोद रस्तोगी एक सफल नाम है। इनकी एकांकियों का विषय मुख्यतः सामाजिक समस्या ही है जहाँ समाज में हो रहे शोषण को दर्शाना है। यदि ये एकांकी में समस्या उठाते हैं तो उसका समाधान भी पाया जाता है। आज के वर्तमान समय में दहेज का दानव न जाने कितनी युवतियों का हंसता-खेलता संसार समाप्त कर चुका है। जीवन के बुनियादी अधिकारों से वंचित नारी समाज आखिर कब तक इस दशा को झेलता रहेगा और क्यों? यह एक यक्ष प्रश्न अभी भी अनुत्तरित रह गया है। रस्तोगी जी की यह एकांकी इस प्रश्न का एक छोटा उत्तर देती दिख रही है।
शब्दार्थ
पृष्ठ सं० – 90
- अवस्था = उम्न।
- गंजा = जिसके सिर पर बाल न हो।
- समृद्धि = अमीरी, संपन्नता।
- विनम्र = विनीत।
- निराशाजन्य = निराशा से जन्मा हुआ।
पृष्ठ सं० – 91
- निर्णय = फैसला।
- सामर्थ्य = क्षमता।
- नाता = रिश्ता।
- आवेश = कोध।
- खातिर = स्वागत।
- धब्बा = कलंक ।
- ठेस = धक्का।
- बिरादरी = अपनी जातिवाले।
- करारी = तीखी।
- गौने = विवाह के बाद लड़की के ससुराल से आने के बाद की विदाई।
पृष्ठ सं० – 92
- सरासर = बिल्कुल ।
- मुँह खोलने = बोलने।
- बदतमीजी = बुरा व्यवहार ।
- आवरा = लफंगा।
- दंग = आश्चर्यचकित।
- दाँतों तले उँगली दबाना = आश्चर्यचकित रह जाना।
- एक तराजू में तोलना = एक समान समझना।
- घटा = बादल।
पृष्ठ सं० – 93
- आर्द्र = भीगे, करूण।
- पानी में पत्थर का नहीं पिघलना = निर्दयों में दया नहीं होती।
- कलेजे में घाव होना = दु:ख छोनाना।
- सौगंध = कसम।
- कामना = इच्छा।
- कागज के टुकड़े = रुपये।
पृष्ठ सं० – 94
- गूढ़ी = गहरी।
- द्वार = दरवाजे।
- मूर्तिवत = मूर्ति की तरह।
पृष्ठ सं० – 95
- राह देखेंगा = इतजजार करना।
- कुंजियों = चाभियों।
- नाकवाले = प्रतिष्ठा, इज्जतवाले।
- नकटे = बिना नाक, बिना
पृष्ठ सं० – 96
- ओट = आड़, पीछे।
- बरसाती कोट = वर्षा से बचने के लिए कोट ।
- अनसुनी = जान बूझकर न सुनना।
पृष्ठ सं० – 97
- चीखकर = चिल्ला कर।
- आँखें न खुलना = होश न होना,ज्ञान न होना।
- हाथ मलना = पछताना।
पृष्ठ सं० – 98
- आज्ञा = अनुमति ।
- लज्जित = शर्मिंदा।
- ताकना = देखना ।
- शीघ्रता = तेजी ।
- मन्द गति = धीमी चाल से ।
- यवानिका = परदा।