Students should regularly practice West Bengal Board Class 9 Hindi Book Solutions सहायक पाठ Chapter 10 रवीन्द्रनाथ ठाकुर to reinforce their learning.
WBBSE Class 9 Hindi Solutions सहायक पाठ Chapter 10 Question Answer – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न – 1 : रवीन्द्रनाथ ठाकुर सर्वतोमुखी प्रतिभासंपन्न , साहित्यकार, कलाकार, शिक्षक, कवि, गीतकार और अभिनेता थे – पठित पाठ के आधार पर लिखें ।
प्रश्न – 2 : बहुमुखी साहित्यकार के रूप में रवीन्द्रनाथ ठाकुर का मूल्यांकन करें ।
प्रश्न – 3 : संकलित पाठ के आधार पर रवीन्द्रनाथ ठाकुर का साहित्यिक परिचय दें ।
उत्तर :
अगर हम ऐसा कहें कि कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि थे तो ऐसा कहना अतिशयोक्ति न होगी। इनका जन्म 7 मई, सन् 1861 को सोमवार के दिन जोड़ासाँकू (कलकत्ता) में हुआ था।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर एक ही साथ कवि, कलाकार, शिक्षक, कवि, संत, विचारक और मानवता के सच्चे पुजारी थे। साहित्य की कोई ऐसी विधा नहीं थी, जिसमें उन्होंने न लिखा हो – कहानी, उपन्यास, नाटक, प्रहसन, गीत, गीतिका, कीर्त्तन, आलोचना आदि उन्होंने सब लिखा।
विषय की बात करें तो उन्होने धर्म, शिक्षा, समाज, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्व, विज्ञान, संगीत आदि सभी विषयों पर लिखा । यह भी लिए गर्व की बात है कि किसी भी भारतीय साहित्यकार की रचनाओं का अनुवाद उतनी भाषाओं में नहीं हुआ जितनन रवीन्द्धनाथ ठाकुर की रचनाओं का । संसार की अनेक भाषाओं में इनके ग्रंध आ चुके हैं। श्री ठाकुर का दर्शन-ज्ञान भी अपूर्व था। भारतीय दर्शन पर उनके व्याख्यान को सुनकर यूरोप और अमेरिकावाले भी दंग रह जाते थे । इनकी कविताओं की पंक्ति-पंक्ति में संगीत भरा है । कंठ भी सुंदर था । जब ये गाने लगते तो ऐसा प्रतीत होता मानो संगीत पंख लगाकर चारों और मंडराते हुए उड़ रहे हों ।
सत्तर वर्ष की आयु में इन्होंने चित्रकला प्रारंभ की । टेढ़ी-मेढ़ी लकीरों से रंगों का समन्वय कुछ ऐसा किया कि संसार के चित्रकला-मर्मझ भी विस्मय-विमुग्ध रह गए। संसार की बड़ी-बड़ी आर्ट-गैलरियों में इनके चित्र रखे गए। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर केवल साहित्यिक या कवि ही नहीं थे, उनका व्यक्तित्व भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में ऊँचा स्थान प्राप्त कर चुका था।
वास्तव में रवीन्द्र की प्रतिभा में भारतीय संस्कृति के विविध अंगों का समावेश और समन्वय की सामर्श्य प्रचुरता से पायी जाती है । इसलिए उनकी काव्यधारा में एक साथ ही वेदान्त, वैष्णववाद, यौद्धदर्शन, सूफी मत, बाऊल सम्पदाय, ईसाई धर्म सभी का एक अभूतपूर्व समन्वय माप्त होता है । सन् 1941 में यह ‘भारत-रवि’ अस्त हो गया।
प्रश्न – 4 : संकलित पाठ के आधार पर रवीन्द्रनाथ ठाकुर के ईश्वर-संबंधी विचारों को लिखें।
प्रश्न – 5 : रवीन्द्रनाथ का धर्म उनकी दृष्टि और अनुभव पर आधारित है, न कि ज्ञान पर – विवेचना करें।
प्रश्न – 6 : टैगोर के लिए ईश्वर, मानव और प्रकृति एक में ही समाविष्ट है – पठित पाठ के आधार पर टैगोर के थर्म-संबंधी विचारों को लिखें ।
प्रश्न – 7 :
धर्म को आचरण के आडा्बर या समारोहपूर्वक पूजा-पाठ मानकर भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए प्रस्तुत पंक्ति के आलोक में रवीन्दनाथ ठाकुर के धर्म तथा ईश्वर-संबंधी विचारों को लिखें।
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ धार्मिक, ईश्वरवादी के साथ-साथ मानवतावादी भी थे । यह उनके दर्शन की विशिश्रता है कि भारतीय वेदान्तिक परम्परा से प्रेरणा लेते हुए मानव को ईश्वर का ही अंश माना । ईश्वर और मानव का संबंध रबीन्द्रकाव्य में एक अपूर्व रूप ले लेता है । असीम ईश्वर और ससीम (जिसकी सीमा हो) मानव में कोई भेद नहीं है । मानव और ईश्वर दोनों में एक सेतु (पुल) है – प्रेम का सेतु । संत रविदास ने भी ईश्वर को नरहरि कहकर संबोधित किया है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर का ईश्वर संबंधी दर्शन भक्तकवि चण्डीदास से प्रभावित था –
“सुन हे मानुष भाई
सबार ऊपरे मानुष सत्य
ताहार ऊपरे नाई ।”
हैगोर के लिए यह संसार विविध, सुन्दर और नवीन है । उनके अनुसार मानव तो प्रेम और प्रेम पाने के लिए ही पैदा हुआ है । इस प्रेम को पाने के लिए आत्मिक शुद्धि बहुत आवश्यक है। इसलिए मनुष्य को धर्म के नाम पर आडम्बर या समरोहपूर्वक पूजा-पाठ न मना कर भ्रम से दूर ही रहना चाहिए। अहंकार के लोप से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है ।
टैगोर के लिए सामाजिक उद्देश्य और आध्यात्मिक जीवन में कोई टकराहट नही है। रवान्द्रनाथ के लिए आत्मसंयम ही तपस्या है और वह सांसारिक कर्मों से पलायन नहीं है। यही वह बिन्दु है उन्हें मानवधर्म या मानवतावाद की ओर ले जाता है। रवौन्द्रनाथ अंधविश्वासों से रहित, मानव स्वतंगता की सर्जनात्मकता तथा विवेक की सार्थक्ता को ही ईश्वर-दर्शन मानते थे । उनका यह कहना था कि प्राचीन अंधविश्वास हमारे दिल-दिमाग को नहीं कृते – उन्हें बंदलना होगा।
टैगोर ने अपने मानवतावादी — ईश्वरवाद का प्रतिपादन अपने सर्व श्रेष्ठ ग्रंथ, जो धर्म-दर्शन पर है – “The Religion of Man” में विस्तृत रूप से किया है । उनके धर्म-दर्शन का साराश यह है कि ईश्वर मानव की आत्मा में ही निवास करता है । मानव से प्रेम करना ही ईश्वर से प्रेम करना है ।
प्रश्न – 8 : भारतीय स्वाथीनता-संग्राम में रवीन्र्रनाथ ठाकुर के योगदान का उल्लेख करें ।
प्रश्न – 9 : “जब बुराई पनपने लगे तो यह हमारे लिए जरूरी हो जाता है कि हम आवाज उठाएँ” प्रस्तुत पंक्ति के आलोक में रवीन्द्रनाथ ठाकुर के राजनीतिक जीवन का उल्लेख करें।
प्रश्न – 10 : रवीन्द्रनाथ ठाकुर केवल कवि – साहित्यकार ही नहीं महान क्रांतिकारी भी थे संकलित पाठ के आधार पर लिखें ।
उत्तर :
रबीन्द्ननाथ ठाकुर मूलतः साहित्यिक कलाकार थे लेकिन जब भी देश में अन्याय हुआ तो उन्होंने उसका विरोध किया। उनका यह विचार था कि जब भी वुराई पनपने लगे तो हमारा यह दायित्व बनता है कि विरोध करें। सन् 1995 में जब राजद्रोह विधेयक पास हुआ और तिलक को गिरफ्तार कर लिया, टैगोर ने ऐसे समय में सरकार की दमन-नीति के विरुद्ध आवाज उठाई और उनके बचाव के लिए धन इकट्टा करने में अपना योगदान दिया। जन सन् 1905 में बंगाल का विभाजन हुआ तो इसने टैगोर को विचलित कर दिया। उस समय उन्होने देशप्रेम से भरे गीतों की रचना करके लोगो में चेतना जगाने की कोशिश की।
जब जालियांवाला बाग में हजारों निर्दोष मारे गए तो उन्होने अंग्रेजी सरकार को अपना ‘नाइटहुड’ का खिताब लौटा दिया। इतना ही नहीं विरोध व्यक्त करने के लिए उन्हांने वायसराय चेम्सफोर्ड को पत्र लिखा। इस पत्र का अंतिम अंश था –
“अब समय आ गबा है जब सम्मान के तमगे विशिप्टता के उस विसंगत संदर्भ में, जिसमें मेरे देशवासी अपनी तथाकथित हीनता के कारण वह अपमान सह रहे हैं, जो मानवोचित नहीं है – हमारी शर्म को और उजागर करते हैं ।'”
अंग्रेजों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति के विरोध में उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जहाँ-जहाँ अलगाव की भावना सर्वोपरि है वहाँ-वहाँ अंधकार का राज्य है। वे राजनीति में हिंसा के विरोधी थे। उनका कहना था – सभ्यता हिंसा में जीवित नहीं रह सकती। केवल आध्यात्मिक मूल्यों को पुन: अपनाकर ही मानवता को विनास से बचाया जा सकता है । उनके मन में किसी भी जाति या सम्पदाय के लिए घृणा का भाय न था –
“‘इन मुसलमानों का जिन्होंने प्राचीनकाल से और अनेक पीढ़ियों से अपने जन्म और मरण से इस मिद्वी को अपना कहा है, उसका भी भारत के इतिहास में स्थान है ।.यहाँ तक कि अंग्रेज भी हमारे इतिहास के अंग हैं ।”
राजनीति में मानव-मात्र से प्रेम का उदाहरण सी०एफ०एण्डुज को लिखे पत्र में उनके इस कथन में मिलता है –
“बिटेन राप्प्र से अपनी सभी शिकायतों के बावजूद मैं आपके देश को प्रेम करने के लिए विवश हूँ. जिन्होंने मुझे अनेक परम प्रिय मित्र दिए हैं । मैं इस सच्चाई के कारण अत्यंत प्रसन्न हूँ क्योंकि धृणा करना एक घृणित कार्य है । सत्य बह है कि सभी देशों के सबसे अच्छे लोग आपस में प्रेम करते हैं ।”
WBBSE Class 9 Hindi रवीन्द्रनाथ ठाकुर Summary
शब्दार्थ
पृष्ठ सं० – 45
- सर्वतोमुखी = बहुमुखी ।
- अभिनेता = अभिनय करनेवाले ।
- उदार = खुले दिल का ।
- मान्यताएँ = विचार ।
- आलोक = प्रकाश ।
- सौहाद्र = प्रेम ।
- साकार = आकार के साथ ।
- शाश्वत = जो हमेशा से है ।
- जीवन्त = जिंदा।
- उद्दाम = साहस।
- मिश्रित = मिला हुआ ।
- कौतूहल = जानने की उत्सुकता ।
- हिमायत = पैरवी ।
- क्रूर = कठोर ।
- संक्रमण = बीमारियों से ग्रस्त होना ।
- परिधानों = वस्त्रों ।
- दुराग्रहों = बुरे चीजों के लिए आग्रह, जिद्न ।
- जड़ता = मूखर्खता ।
पृष्ठ सं० – 46
- पुनर्नवीकरण = पुन: नया करना ।
- पुनसर्मपण = फिर से सर्मपण ।
- सार = तत्व ।
- असीम = जिसकी सीमा न हो।
- राग = प्रेम ।
- व्यक्त = प्रकट ।
- परिष्कृत = अच्छा ।
- एकांतसेवी = एकांत में रहनेवाले।
- पूर्वानुभूति = पहले से होनेवाली अनुभूति ।
- भावी = होनेवाला ।
- पूर्वपीठिका = भूमिका ।
- नीड़ = घोंसला।
- अवास्तविकता = जो वास्तविक नहीं है ।
पृष्ठ सं० – 47
- स्मारक = स्मृति का स्थान ।
- कामना = इच्छा ।
- सामंज्यस = तालमेल ।
- प्रशांत = विशाल ।
- सहकार = सहयोग करने वाले ।
- परिवेश = वातावरण ।
- अतृप्त = जो तृप्त न हो ।
- द्वंद्व = युद्ध ।
- अपयशकारी = कलंक लगाने वाली ।
- आचरण = व्यवहार ।
- तपोवन = वह वन जहाँ ॠषि तप किया करते थे ।
पृष्ठ सं० – 48
- नगण्य = नहीं गिनने योग्य ।
- उपरान्त = बाद ।
- कतिपय = कुछ ।
- प्रवासी = जो दूसरे देश में वास करता हो ।
- एकत्व = एक होने की भावना ।
- विखण्डत्व = अलगाव ।
पृष्ठ सं० – 49
- प्रज्ञा = विवेक, ज्ञान ।
- दार्शनिक = विचारक ।
- प्रखर = तेज ।
- बौद्विक = बुद्धि से जुड़ा हुआ ।
- आभास = अनुभव।
- दृष्टिगोचर = दृष्टि से दिखाई देने वाली ।
- स्पर्श = छूने ।
- अपितु = बल्कि ।
- अन्तरिक्ष = शून्य ।
- यन्त्रवत् = मशीन की तरह।
- अन्धाधुन्ध = बिना सोचे-समझे ।
- नकारने = नहीं मानना ।
पृष्ठ सं० – 50
- मुक्ति = आज़ादी ।
- सुदूर = बहुत दूर ।
- छोर = सिरे ।
- तान = धुन ।
- धरातल = धरती का तल, सतह ।
- अन्यतम = जिसके समान अन्य न हो ।
- गहन = घना।
- अज्ञान = नहीं जानना ।
- ज्ञान = जानना।
पृष्ठ सं० =51
- सघन = बहुत घना ।
- बोध = ज्ञान ।
- कोहरा = धुंध ।
- आन्तरिक = अंदर का ।
- आलोक = प्रकाश।
- निरर्थक = जिसका कोई अर्थ न हो ।
- एकाकार = एक में सिमटना ।
- दीप्तिमान = उज्ज्चल ।
- वर्णनातीत = वर्णन से परे, अलग।
- परम सत्य = सबसे बड़ा सत्य
- अमर = नहीं मरनेवाला ।
- रीति = विधि, तरीका ।
- अनन्त = जिसका अंत न हो ।
- नितांत = बिलकुल ।
- निजी = अपना ।
- मुख = चेहरा, मुँह ।
- स्मरण = याद ।
- कृपापात्र = कृपा पाने का अधिकारी ।
पृष्ठ सं० – 52
- परे = अलग ।
- अभिव्यक्ति = अपने विचारों को प्रकट करना ।
- आत्म-प्रकटीकरण = अपने भावों को प्रकट करना।
- संज्ञाहीन = जिसका कोई नाम न हो ।
- पालनहार = पालन करनेवाला ।
- समाविष्ट = समाये हुए ।
- कटु = कड़वा ।
पृष्ठ सं० – 53
- अन्यथा = वरना ।
- अस्तित्व = होना ।
- आडम्बर = दिखावा ।
- भम = जो वस्तु जो नहीं है उसे वही मना लेना, जैसे – रस्सी को साँप या साँप को रस्सी मान लेना ।
- पुननिर्माण = फिर से निर्माण ।
- अहम् = अहंकार।
- लोप = गायब।
- अर्पण = अर्पित करना, न्योछावर करना, बलिदान करना
पृष्ठ सं० – 54
- बिम्ब = चित्र ।
- एकाकार = मिलकर एक हो जाना ।
- बन्धुवत् = मित्र की तरह ।
- स्कुलिंग = चिनगारी।
- इंगित = ईशारा ।
- अवहेलना = उपेक्षा ।
- अन्धविश्वास = अंधे की तरह विश्वास करना ।
- वंचित = जिसे प्राप्त न हुआ हो ।
- स्वप्नद्रष्टा = सपने देखने वाला ।
- भविष्यवक्ता = भविष्य के बारे में बोलने वाला ।
- निरंतर = लगातार ।
- संतरी = रक्षक ।
पृष्ठ सं० – 55
- आत्मसंयम = अपने पर संयम रखना ।
- आशय = भाव ।
- सृजन = सृष्टि ।
पृष्ठ सं० – 56
- निष्क्रिय = क्रियाहीन ।
- अनुसरण = पीछे चलना ।
- शिवम् = कल्याण ।
- पूर्ण संयोग = पूरी तरह मिलना ।
- कर्मच्युत = कर्म से भागना ।
- समक्ष = सामने ।
- विस्तृत = फैला हुआ ।
- शिखर = चोटी ।
- आकृष्छ = आकार्षि ।
पृष्ठ सं० – 57
- चिरयौवन = हमेशा युवा ।
- तरुणाई = युवावस्था ।
- कालखण्ड = समय का टुकड़ा ।
- अभिपाय = मतलब ।
- तरुण = जवान ।
- सचेत = सावधान ।
पृष्ठ सं० – 58
- स्वर्ण = सोना ।
- संकोच = लज्जा ।
- सर्जक = सृष्टि करने वाला, सृजन करनेवाला ।
- परे = अलग।
- संयोग = मिलना।
- वियोग = बिद्धुरना ।
- अपरिहार्य = जरूरी, आवश्यक ।
- परिवेश = वातावरण ।
पृष्ठ सं० =59
- विकासवाद = वह विचारधारा जो यह विश्वास करती है कि मनुष्य क्रमश: विकास करता हुआ इस अवस्था तक पहुँचा है ।
- फ्रायड = एक मनोविज्ञानी ।
- अचेतन = जहाँ चेतना न हो ।
- प्रतिवर्ती = एक-दूसरे से जुड़ी ।
- योगदान = सहायता ।
- रहित = बिना ।
- अपशकुन = बुरा, अमंगल का सूचक ।
- बाधित = बाधा पहुँचाना ।
- तानाशाह = मनमानी करने वाला ।
- उन्नायक = विकास कराने वाला ।
- हनन = दबाना ।
- अमूल्य = जिसका मूल्य न हो सके।
- अर्जित = इकट्ठा।
- धरोहर = याती, पूर्वजों द्वारा दी गई संपत्ति ।
पृष्ठ सं० -60
- अम्बार = ढ़ेर ।
- अशक्तता = कमज़ोरी ।
पृष्ठ सं० – 61
- खिताब = सम्मान ।
- विसंगत = विशेष संगत ।
- हीनता = बुरीस्थिति ।
- मानवोचित = मानव के लिए उचित ।
- घातक = घात करनेवाला, चोट पहुँचानेवाला ।
- दायित्व = जिम्मेवारी ।
- आकृष्ट = आकर्षित।
पृष्ठ सं० – 62
- विचलित = व्याकुल, चिंतित ।
- बर्बरता = जंगलीपन ।
- उबार = निकाल ।
- विध्वंसक = विध्वंश करने वाला ।
- विलगाव = अलगाव ।
- गरिमा = सम्मान ।
पृष्ठ सं० – 63
- पुनरूत्थान = फिर से उत्थान ।
- पथप्रदर्शक = रास्ता दिखानेवाला ।
- प्रवक्ता = उपदेशक ।
- वसीयत = अंतिम इच्छा।