Students should regularly practice West Bengal Board Class 9 Hindi Book Solutions Poem 4 जरुरतों के नाम पर to reinforce their learning.
WBBSE Class 9 Hindi Solutions Poem 4 Question Answer – जरुरतों के नाम पर
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न – 1 : ‘जरुरतों के नाम पर’ कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखें ।
प्रश्न – 2: ‘जरुरतों के नाम पर’ कविता का सारांश लिखें ।
प्रश्न – 3 : ‘जररतो के नाम पर’ कविता के माध्यम से कुँवर नारायण ने क्या संदेश देना चाहा है, लिखें ।
प्रश्न – 4 : ‘जरुरतों के नाम पर’ कविता में निहित संदेश को अपने शब्दों में लिखें ।
उत्तर :
‘नयी कविता’ के प्रमुख कवियां में से एक कुँवर नारायण ने अपनी कविताओं में ऐसे सवालों को उठाया है जिसका सबंध मनुष्य के पूर्ण अस्तित्व से है । आज हमारे समाज का यह दुर्भाग्य ही है कि साहित्यकार को वह सम्मान, इज्जत तथा पहचान नहीं मिल पाती जिसके वे हकदार होंते हैं। उन्हे पहचाननेवालं लोग थे किन्तु वे सत्तासीन नहीं थे, ईमानदार थे । …एक व्यक्ति की पहचान के रास्ते जों स्ता के गलियारों, मीडिया की चकाचौंध से होकर जाते है, कुँवर नारायण को स्वीकार न थे। जिस व्यवस्था के खिलाफ वे सीना तानकर खड़े थे, उसकी गुलामी भी वे कैसे कर सकते थे।
यहु उनकी प्रकृति में है कि गलत को गलत कह डालते हैं, उस पर सही होने की पॉलिश नहीं चढ़ांते । उनकी इसी प्रकृति तथा सच्याई का साथ देने के कारण उन्हें गलतफहमियो का शिकार बनाकर उन्हीं गलतफहमियों से अपने- आपको लड़ने के लिए छोड़ दिए जाते हैं। इस गलतफहमी के सबसे बड़े शिकार वे तब होते है जब उन्हे इस संशय में डाल दिया जाता है कि जिसे वे गलत कह रहे हैं, वास्तव में वह गलत है भी या नहीं ।
कवि ने उन लोगों के बारे में कहा है जो जीवन में खुद तो कभी इस व्यवस्था से जीत नहीं पाए लेकिन अगर कोई जीतता है तो उसकी जीत भी उनसे सहन नहीं होता। उनके सह न पाने की परिस्थितियों के बीच उन्हें उसी प्रकार अस्वीकार कर दिया जाता है जिस म्रकार किसी अपमानजनक रिश्ते को बिना किसो माया-मोह के तोड़ दिया जाना है ।
कवि इस सच्चाई को अच्छी तरह से समझते हैं कि लोंग कितनी चालाकी से उनकी अपेक्षा कर दराकिनार (एक किनारे) कर देते है । दर असल नई कविता मूलतः एक परिस्थिति के भीतर पलते हुए मानव एवं व्यक्ति की निजो स्थिति की कविता है। कवि अच्छी तरह जानते हैं कि समाज में उनकी स्थिति ठोक वैसी है जैसी कि किसी घरलू उपन्यास के अंत में जोड़ी गई शिक्षाप्रद कहानियों की सूवी को होती है – उन्हें कोई नही पढ़ता फिर भी वह पुस्तक का अश होती है। ठीक यही स्थिति कवि की है – वह समाज में रहते हुए भी समाज के कचडे के समान हैं जिसकी कोई उपयांगिता नहीं है।
कवि को ऐसा प्रतीत होता है कि वे समाज के भीड़ में अकेले पड़ गए हैं क्योंकि उनमें सही को सही और गलत को गलत कहने का साहस है । ये लोग मिलकर कवि की सच्चाई को भी झुठला देते हैं और यह कहते हैं कि यहों समय की माँग है । जरुरत के नाम पर वे कवि की जिन्दगो से खिलवाड़ करते है – इनकी भावनाओं का मजाक उड़ांते हैं तथा फिर उन्हीं से पूछते हैं कि जिंदगी क्या है ? जिदगी कहते किसे हैं ?
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि कुँवर नारायण ने प्रस्तुत कविता के माध्यम से समाज में रह रहे मध्यवर्गीय, बुद्धिजीवी व्यक्ति के मन के बाह्य और भीतरी संघर्ष, जिंदा रहने की छटपटाहट में फेसे हुए जन तथा इसके साथ ही साहित्यकार तथा साहित्य से जुड़े अनेक सवालों को उठाया है।
प्रश्न – 5 : कुँवर नारायण की काव्यगत-विशेषताओं को लिखें ।
प्रश्न – 6 : नयी कविता के प्रमुख कवि के रूप में कुँवर नारायण का मूल्यांकन करें ।
प्रश्न – 7 : कुँवर नारायण की कविताओं की भाषा व शिल्य पर विचार करें ।
प्रश्न – 8 : कुँवर नारायण की एक कवि के रूप में उनकी विशेषताओं को लिखें ।
उत्तर :
कुँवर नारायण को पढ़ने समय हमें बराबर यह अनुभव होता है कि वे विचारों, मूल्यों के कवि है । चाहे वह प्रेम हो, विषाद हो या फिर मृत्यु से जुड़े सवाल – उनका अपना अनुभव कविता मे नया विचार बनता है ! कुँवर नारायण का आत्मबोध केवल अपने- आप तक सीमित नहीं है, वह व्यक्ति और व्यापक सत्य के बीच एक नया सबंध बनाता है।
आज़ादी के बाद भारत के पारिवारिक ढाँचे, सामाजिक संबंधों, जीवन मूल्यों में ऐसे परिवर्तन हुए जिसकी कल्पना मनुष्य ने नहीं की थी। ये परिवर्तन सकारात्मक के साथ-साथ नकारात्मक भी हैं । कुँवर नारायण के शब्दों में ‘ पहियों और पंखोंवाली इस बेसिर-पैर की सभ्यता में ‘ यह पता लगाना आसान नहीं है कि कौन किसे चला रहा है – व्यक्ति समाज को या समाज व्यक्ति को, आदमी सत्ता को या सत्ता आदमी को । ऐसे में जीवन के प्रति जिस ऊब, खीझ, निराशा और कुठा की अभिव्य्यक्ति होगी वह कुछ इस प्रकार होगो –
प्रत्येक रोचक प्रसंग से हटा कर
शिक्षाप्रद पुस्तकों की सूची की तरह
घरेलू उपन्यासों के अंत में
लापरवाही से जोड़ दिया जाता हूँ ।
कुँवर नारायण ने आज़ादी से पूर्व ही लिखना शुरू किया था । आजादी से पहले जनता को यंह विश्वास थां कि देश आजाद होने के बाद हमारे नेता एक ऐसे भारत का निर्माण करेंगे जिसमें रोटी, कपड़ा, मकान का अभाव नहीं होगा । जाति, भाषा, रंग तथा पद आदि के आधार पर किसी में कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा ।
लेकिन ये सब आदर्श थे। यथार्थ तो यही था कि राप्ट्रीय आदोलन के लगभग सभी नेता जिस वर्ग से आए थे वह समाज का अभावग्रस्त नहीं बल्कि समाज का खाता-पीता वर्ग था। इसलिए यह स्वाभाविक था कि वे समाज के इस वर्ग और पूँजीपति वर्ग के हितों की रक्षा करें तथा इसके लिए उन लोगों की उपेक्षा कर दी जाय जो सच्चाई के पक्षधर है –
वे सब मिल कर
मेरी बहस की हत्या कर डालते हैं
जरूरतों के नाम पर…
और एक कवि से पूछते हैं कि जिन्दगी क्या है
जिन्दगी को बदनाम कर ।
जहाँ तक कुँवर नारायण के रचनाओं की भाषा शिल्य आदि का सवाल है – वह भाषा आम आदमी की भाषा है । लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि साहित्य की भाषा अलग होती है – कुँवर नारायण की भाषा ने यह भेद मिटा दिया है –
शिक्षाप्रद पुस्तकों की सूची की तरह
घरेलू उपन्यासों के अंत में
लापरवाही से जोड़ दिया जाता हूँ ।
काव्य-शिल्प के बारे में कुँवर नारायण का ऐसा मानना है कि नयी कविता की शैली की प्रमुखता यह है कि वह सीधेसीधे चेतना को छूना चाहती है। कुँवर नारायण काव्य-शिल्य के सिद्ध कवि हैं। वे कम से कम शब्दों का प्रयोग कर बड़ी बात कह जाते हैं। इससे उनकी कवित्व की शक्ति और सौमा का एक साथ पता चल जाता है।
निष्कर्ष के तौर पर हम यह कह सकते हैं कि कुँवर नारायण नयी कविता के ऐसे कवि हैं, जिन्होने काव्य-भाषा और काव्य-शिल्प की दृष्टि से हिन्दी कविता को नयी समृद्धि दी । इससे नयी कविता की पहचना बनी ।
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. गलतफहामियों के बीच
बिल्कुल अकेला छोड़ दिया जाता हूँ …
प्रश्न :
इसके रचनाकार कौन हैं ? प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर :
इसके रचनाकार कुँवर नारायण हैं।
प्रस्तुत पंकित के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि बूँकि वे गलत को गलत साबित कर देते हैं इसलिए उन्है गलतफहमियों का शिकार बना कर उन गलतफहमियों से लड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया जाता है । लोग अपनी बहस के बाद उन्हे इस गलतफहमी में डाल देते हैं कि जिन्हें वे लगत कह रहे हैं, वास्तव में वह गलत है भी या नहीं।
2. वे जो अपने से जीत नहीं पाते
सही बात का भी जीतना सह नहीं पाते
प्रश्न :
कवि और कविता का नाम लिखें । पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
कवि कुँवर नारायण तथा कविता का नाम ‘जरुरतों के नाम पर’ है।
कवि का कहना है कि जो लोग अपनी ही कमजोंरयों से जीत नहीं पाते वे लगत को गलत और सही को सही कहने का साहस नहीं कर पाते । इसका परिणाम यह होता है कि सही व्यक्ति की जोत कों भी वे नहीं सह पाते क्योंकि वैसे व्यक्ति की जीत में उन्हें अपनी हार दिखती है।
3. घरेलू उपन्यासों के अंत में
लापरवाही से जोड़ दिया जाता हैँ ।
प्रश्न :
प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से ली गई है । पंक्ति का भाव स्पप्व करें ।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति ‘जकुरों के नाम पर’ पाठ से ली गई है।
आज समाज में सही व्यक्ति की कोई कद्र नहीं रह गई है । उन्हें समाज नकारा (किसी काम का नहीं) समझ कर एक किनारे कर देती है । ठीक वैसे ही जैसे किसी घरेलू उपन्यास के अंत में संदर्भ-सूची के तौर पर शिक्षाप्रद पुस्तकों के नाम जोड़ दिए जाते हैं, जिनका कोई उपयोग नहीं होता
4. और एक कवि से पूछते हैं कि जिन्दगी क्या है
जिन्दगी को बद्नाम कर ।
प्रश्न :
रचना का नाम लिखें । पंक्ति का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर :
रचना का नाम है ‘जरुतों के नाम पर’
आज समाज में वैसे व्यक्ति की कोई पूछ नहीं जो सच्चाई को बंधड़क कह डालतं हैं । इतिहास साक्षी है कि ऐसं लोगों कां समाज ने ही मिटा डाला । इससे बड़े दुःख की बात और क्या हो सकतो है कि जो दूसरों की जिन्दगो को तबाह कर डालतं हैं वही जिन्द्री की परिभाषा पूछते हैं कि आखिर जिन्दगी किस चिड़िया का नाम है ?
5. मैं किसी अपयानजनक नाते की तरह
बेमुरौवत तोड़ दिया जाता हूँ ।
प्रश्न :
‘मै” का प्रयोग किसके लिए किया गया है ? पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
‘मै’ का प्रयोग कवि कुँवर नारायण ने अपने लिए किया है ।
जब भी कवि किसी गलत को गलत उहराने की कांशिश करतं है तो लोग कुचक्र चलाकर बेवजह बहस में फसा कर उन्हे हो गलत ठहराने की कांशिश करते हैं। यह बहस उनकी जरूरतों कां पूरा करने का एक हिस्सा है । इसका परिणाम यह होता है कि कवि को समाज से उसी तरह ताड़ दिया जाता है जिस प्रकार किसी अपमानजनक रिश्ते को बिना किसी मुरौवत के एक झटके से तोड़ दिया जाता है ।
6. वे सब मिलकर
मेरी बहस की हत्या कर डालते हैं
प्रश्न :
‘वे सब’ कौन हैं ? वे किसके बहस की हत्या कर डालते हैं और क्यों ?
अथवा, पंक्ति का भाव स्पप्ट करें ।
उत्तर :
‘वे सब’ वे लोग हैं जिनमें गलत को गलत कहन का साहस नहीं है।
इस पंक्ति में कवि ने एसं लोगों की ओर ईशारा किया है जो इस सड़ी-गलो व्यवस्था के अंग बन चुके हैं तथा व्यवस्था को चलाते रहने के लिए सच्चाई की हत्या करने से भी नहीं हिचकेते
अति लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
कौन गलत को साबित कर देता है ?
उत्तर :
कवि गलत को साबित कर देते हैं।
प्रश्न 2. कौन, किसके बीच अकेला छोड़ दिया जाता है?
उत्तर :
कवि को गलतफहमियां के बीच अकेला छांड़ दिया जाता है।
प्रश्न 3.
कवि को क्या दिखाने को अकेला छोड़ दिया जाता है ?
उत्तर :
कवि को वह सब दिखाने को अंकला छाड़ दिया जाता है जो सब उसने कह दिखाया है।
प्रश्न 4.
कौन-से लोग सही बात का भी जीतना नहीं सह पाते हैं ?
उत्तर :
वैसे लोग जो अपने से जोत नहीं पाते, वें सही बात का जोतना नहीं सह पाते।
प्रश्न 5.
किसे अपमानजनक नाते की तरह बेमुरव्वत तोड़ दिया जाता है ?
उत्तर :
सही को सही कहने वाले व्यक्ति को अपमानजनक नाते की तरह बेमुरव्यत तोड़ दिया जाता है।
प्रश्न 6.
‘जरूरतों के नाम पर’ कविता में कवि ने अपनी तुलना किससे की है ?
उत्तर :
‘जरूरतों के नाम पर’ कविता में कवि ने अपनी तुलना शिक्षाप्रद पुस्तको की सूची से की है।
प्रश्न 7.
घरेलू उपन्यासों के अंत में किसे लापरवाही से जोड़ दिया जाता है ?
उत्तर :
घरेलू उपन्यासों के अंत में शिक्षाप्रद पुस्तकों पुस्तकों की सूची को लापरवाही से जोड़ दिया जाता है।
प्रश्न 8.
कौन लोग कवि के बहस की हत्या कर डालते हैं ?
उत्तर :
जो लोग गलत को हो सही ठहराते है, वैसे ही लोग कवि के बहस की हत्या कर डालते हैं।
प्रश्न 9.
कवि अपने आपको बिल्कुल ही अकेला क्यों पाते हैं ?
उत्तर :
कवि उन लोगों की भीड़ में शामिल नहीं हो पांत, जों गलत को भी सही ठहराते हैं; इसलिए कवि अपने आपकां बिल्कुल ही अंकला पाते हैं:
प्रश्न 10.
‘जरूरतों के नाम पर’ का आशय क्या है ?
उत्तर :
‘जरूरतों के नाम पर’ का आशय यह है कि अपनी आवश्यकता के अनुसार गलत को सही और सही को गलत ठहराना।
प्रश्न 11.
‘प्रत्येक रोचक-प्रसंग से हटाकर’ का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
‘प्रत्येक रोचक-प्रसंग से हटाकर’ का तात्पर्य है कि जहाँ कवि को ख्याति मिलने वाली होती है, वहाँ से उसे दरकिनार कर दिया जाता है।
प्रश्न 12.
‘जरूरतों के नाम पर’ कविता के अंत में कवि से कौन-सा प्रश्न पूछा जाता है ?
उत्तर :
‘जरूरतों के नाम पर’ कविता के अंत में कवि से यह प्रश्न पूछा जाता है जिंदगो क्या है?
प्रश्न 13.
‘जरूरतों के नाम पर’ कविता में किसकी हत्या का जिक्र है ?
उत्तर :
‘जरूरतों के नाम पर’ कविता में कवि की वहस की हत्या का जिक है।
प्रश्न 14.
‘उनकी असहिप्युता के बीच’ में किसकी असहिष्पुता की बात की गई है ?
उत्तर :
‘उनकी असहिष्गुता के बीच’ में उन लोगों की अस्ाहिष्युता की वात की गई है, जो न तो स्वयं जीत पाते हैं और न ही किसी सही बात
का जीतना सह पाते हैं।
प्रश्न 15.
‘जरूरतों के नाम पर’ कविता का मूल कथ्य क्या है ?
उत्तर :
‘जरूरतों के नाम पर’ कविता का मूल कध्य यह है कि वैसे लोग जो सही को सही और गलत को गलत क्हते हैं. अवसरवादो लोंग उन्हें पसंद नहीं कर पातं।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
कुँवर नारायण का जन्म कब हुआ था ?
(क) 19 सितबर 1927 को
(ख) 20 सितंबर 1928 को
(ग) 21 सितबर 1929 को
(घ) 30 सितंबर 1926 को
उत्तर :
(क) 19 सितंबर 1927 को।
प्रश्न 2.
कुँवर नारायण किस सप्तक के प्रमुख कवि हैं ?
(क) तार सप्तक
(ख) दूसरा सप्तक
(ग) तौसरा सप्तक
(घ) इनमें से किसी के नहीं
उत्तर :
(ग) तीसरा सप्तक ।
प्रश्न 3.
कुँवर नारायण की कविताओं का प्रमुख विषय क्या है ?
(क) धर्म
(ख) राजनोति
(ग) मिथक
(घ) इतिहास और मिथक
उत्तर :
(घ) इतिहास और मिथक
प्रश्न 4.
कुँवर नारायण किस काल के कवि हैं ?
(क) आदिकाल
(ख) भक्तिकाल
(ग) रीतिकाल
(घ) आधुनिक काल
उत्तर :
(घ) आधुनिक काल।
प्रश्न 5.
कुँवर नारायण ने किस पत्रिका के लिए अनुवाद का कार्य किया ?
(क) हंस
(ख) सारिका
(ग) माधुरी
(घ) तनाव
उत्तर :
(ग) तनाव ।
प्रश्न 6.
कुँवर नारायण को किस वर्ष ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ मिला ?
(क) सन् 2001 में
(ख) सन् 2003 में
(ग) सन् 2005 में
(घ) सन् 2007 में
उत्तर :
(ग) सन् 2005 में।
प्रश्न 7.
कुँवर नारायण किस पत्रिका के संपादक मंडल के सदस्य रहे ?
(क) हंस
(ख) नया प्रतीक
(ग) माधुरी
(घ) दिनमान
उत्तर :
(ख) नया प्रतीक।
प्रश्न 8.
कुँवर नारायण का प्रथम काव्य-संग्रह इनमें से कौन-सा है ?
(क) तीसरा सप्तक
(ख) परिवेश : हम-तुम
(ग) आमने-सामने
(घ) चक्रव्यूह
उत्तर :
(घ) चक्रव्यूह ।
प्रश्न 9.
‘वाजश्रवा के बहाने’ के रचनाकार कौन हैं ?
(क) कैफ़ी आजमी
(ख) चन्द्रकांत देवताले
(ग) कुँवर नारायण
(घ) अरुण कमल
उत्तर :
(ग) कुँवर नारायण ।
प्रश्न 10.
‘आत्मजयी’ के रचनाकार कौन हैं ?
(क) सर्वेश्वर
(ख) उषा प्रियंवदा
(ग) दिनकर
(घ) कुँवर नारायण
उत्तर :
(घ) कुँवर नारायण
प्रश्न 11.
‘दूसरा कोई नहीं’ किसकी रचना है ?
(क) पंत की
(ख) अज्ञेय की
(ग) कुंवर नारायण की
(घ) अरुण कमल की
उत्तर :
(ग) कुँवर नारायण की !
प्रश्न 12.
‘इन दिनों’ किसकी रचना है ?
(क) कुँवर नारायण की
(ख) हरिशकर परसाई की
(ग) जयशंकर प्रसाद की
(घ) महादेवी वर्मा की
उत्तर :
(क) कुँवर नारायण की ।
प्रश्न 13.
‘आकारों के आसपास’ किस विधा की रचना है ?
(क) उपन्यास
(ख) कविता
(ग) कहानी
(घ) आलोचना
उत्तर :
(ग) कहानी
प्रश्न 14.
‘आत्मजयी’ का रचना-काल क्या है ?
(क) सन् 1955
(ख) सन् 1960
(ग) सन् 1965
(ग) सन् 1970
उत्तर :
(ग) सन् 1965 ।
प्रश्न 15.
‘वाजश्रवा के बहाने’ का रचना-काल क्या है ?
(क) सन् 2008
(ख) सन् 2010
(ग) सन् 2012
(घ) सन् 2014
उत्तर :
(क) सन 2008
प्रश्न 16.
निम्नलिखित में से कौन-सी रचना कुँवर नारायण की नहीं है ?
(क) दूसरा कोई नहीं
(ख) इन दिनों
(ग) चक्रव्यूह
(घ) क्षणदा
उत्तर :
(घ) क्षणपा ।
प्रश्न 17.
निम्न में से कौन-सी समीक्षा-विचार कुँवर नारायण का नहीं है ?
(क) मेंर साक्षात्कार
(ख) आज और आज से पहल
(ग) संकल्पत्ता
(घ) साहित्य के कुछ अन्तविष्विषयक संदर्भ
उत्तर :
(ग) संकल्पिता ।
प्रश्न 18.
निम्नलिखित में कौन-सा संकलन कुँवर नारायण का नहीं है ?
(क) कुँवर नारायण – संसार
(ख) कुँवर नारायण उपस्थिति
(ग) कुंवर नारायण : प्रार्तानिि कविताएँ
(घ) कल्पलता
उत्तर :
(घ) कल्पलता।
प्रश्न 19.
‘आज और आज से पहले’ के रचनाकार हैं ?
(क) नामवर सिंह
(ख) दिनकर
(ग) कुँवर नारायण
(घ) नगेंद्र
उत्तर :
(ग) कुँवर नारायण ।
प्रश्न 20.
निम्न में से कौन-सा पुरस्कार कुँवर नारायण को नहीं मिला ?
(क) आशान पुरस्कार
(ख) प्रेमचंद पुरस्कार
(ग) मंगलाप्रसाद पारितोषिक
(घ) राध्रैय कबीर सम्मान
उत्तर :
(ग) मगलाप्रसाद पारितांषिक
प्रश्न 21.
निम्न में से कौन-सा पुरस्कार कुँवर नारायण को नहीं मिला ?
(क) साहित्य अकादमी पुरस्कार
(ख) व्यास सम्मान
(ग) शलाका सम्मान
(घ) नाँबेल पुरस्कार
उत्तर :
(घ) नाबेल पुरस्कार ।
प्रश्न 22.
निम्न में से कौन-सा सम्पान कुँवर नारायण को नहीं मिला ?
(क) मेंडल ऑफ वॉरसा
(ख) माखनलाल चतुर्वेदो पुरस्कार
(ग) प्रीमियो फेरेनिया सम्मान
(घ) शलाका सम्मान
उत्तर :
(ख) माखनलाल चतुत्वेदी पुरस्कार ।
प्रश्न 23.
‘तीसरा सप्तक’ का प्रकाशन काल क्या है ?
(क) सन् 1959
(ख) सन् 9960
(ग) सन् 1961
(घ) सन् 1962
उत्तर :
(क) सन् 1959
प्रश्न 24.
‘परिवेश : हम-तुम’ का प्रकाशन-काल क्या है ?
(क) सन् 1959
(ख) सन् 1960
(ग) सन् 1961
(घ) सन् 1962
उत्तर :
(ग) मन् 1961
प्रश्न 25.
‘कोई दूसरा नहीं’ का प्रकाशन-वर्ष क्या है ?
(क) सन् 1991
(ख) सन् 1992
(ग) सन् 1993
(घ) सन् 1994
उत्तर :
(ग) सन् 1993
प्रश्न 26.
‘आकारों के आसपास’ का प्रकाशन-वर्ष क्या है ?
(क) सन् 1973
(ख) सन् 1974
(ग) सन् 1975
(घ) सन् 1970
उत्तर :
(क) सन् 1973।
प्रश्न 27.
‘आज और आज से पहले’ का प्रकाशन-वर्ष क्या है ?
(क) सन् 1970
(ख) सन् 1998
(ग) सन् 1980
(घ) सन् 1981
उत्तर :
(ख) सन् 1998
प्रश्न 28.
‘मेरे साक्षात्कार’ का प्रकाशन-वर्ष क्या है ?
(क) सन् 1999
(ख) सन् 2000
(ग) सन् 2002
(घ) सन् 2008
उत्तर :
(क) सन् 19991
प्रश्न 29.
‘साहित्य के कुछ अन्तर्विषयक संदर्भ’ का प्रकाशन-वर्ष क्या है ?
(क) सन 2004
(ख) सन् 2003
(ग) सन् 2001
(घ) सन् 2000
उत्तर :
(ख) सन् 2003
प्रश्न 30.
‘कुँवर नारायण-संसार’ का प्रकाशन-वर्ष क्या है ?
(क) सन् 2002
(ख) सन् 2003
(ग) सन् 2004
(घ) सन् 2005
उत्तर :
(क) सन् 2002
प्रश्न 31.
‘कुँवर नारायण उपस्थिति’ का प्रकाशन-वर्ष क्या है ?
(क) सन 1900
(ख) सन 2000
(ग) सन् 2008
(घ) सन् 2002
उत्तर :
(घ) सन् 20021
प्रश्न 32.
‘कुँवर नारायण चुनी हुई कविताएँ’ का प्रकाशन-वर्ष क्या है ?
(क) सन्. 2003
(ख) सन् 2000
(ग) सन् 1998
(घ) सन् 2000
उत्तर :
(क) सन 2003।
प्रश्न 33.
‘कुँवर नारायण-प्रतिनिधि कविताएँ’ का प्रकाशन-वर्ष क्या है ?
(क) सन् 2003
(ख) सन् 2008
(ग) सन् 1990
(घ) सन् 1955
उत्तर :
(ख) सन् 2008 ।
प्रश्न 34.
कौन गलत को गलत साबित कर देता है ?
(क) अरुण कमल
(ख) कैफी आजमी
(ग) कुँवर नारायण
(घ) शुकदेव प्रसाद
उत्तर :
(ग) कुँवर नारायण ।
प्रश्न 35.
किसे गलतफहमियों के बीच अकेला छोड़ दिया जाता है ?
(क) कुँवर नारायण कों
(ख) अरुण कमल को
(ग) पाश को
(घ) सर्वेश्वर को
उत्तर :
(क) कुँवर नारायण कां।
प्रश्न 36.
कौन कवि की बहस की हत्या कर डालते हैं ?
(क) प्रेमचंद
(ख) धर्मवीर भारती
(ग) लोग
(घ) चेखव
उत्तर :
(ग) लोंग।
प्रश्न 37.
कौन सही बात को भी जीतना नहीं सह पाते ?
(क) कवि
(ख) लंखक
(ग) जो अपने से जोत नहीं पाते
(घ) जो जीतना नहीं चाहते
उत्तर :
(ग) जो अपने से जीत नहीं पाते ।
प्रश्न 38.
‘जरूरतों के नाम पर’ किसकी रचना है ?
(क) अरुण कमल की
(ख) चंद्रकांत देवतालं की
(ग) कुॅवर नारायण की
(घ) पाश की
उत्तर :
(ग) कुँवर नारायण की।
प्रश्न 39.
कुँवर नारायण की पहचान मुख्य रूप से किस में है ?
(क) कवि
(ख) निबंधकार
(ग) उपन्यासकार
(घ) कहानोकार
उत्तर :
(क) काव
प्रश्न 40.
‘कवि से पूछते हैं कि जिन्दगी क्या है’ – कवि कौन है ?
(क) सूर
(ख) तुलसी
(ग) अरुण कमल
(घ) कुँवर नारायण
उत्तर :
(घ) कुँवर नारायण
टिप्पणियाँ
1: नई कविता :- साहित्य में यह विवाद का विषय रहा है कि जिस ‘नई कविता’ के नाम से जाना जाता है, वह किन अर्थों में नई है क्योंक हरेक कविता अपने-आप मे नई होती है । इस दृष्पिकोण से इसे नयी कविता कहना सही नहीं है । सच तो यह है कि इस नई कावता पर भी प्रर्गतिशील और प्रगतिवाद ही नहीं, छायावाद का भी प्रभाव दिखाई देता है। इस प्रकार नई कविता की कोई सर्वंमान्य परिभाषा देना एक कठिन कार्य है। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि नई कविता का संबंध अपने युग के यथार्थ से है लेकिन इस यथार्थ को व्यक्त करनंबाली दृष्पियाँ भी एक नहीं, भिन्न-भिन्न है :
2. घरेलू उपन्यास :- प्रस्तुत शब्द कुँवर नारायण की कविता ‘जरुरतों के नाम पर’ कविता से लिया गया है । सर्वप्रथम घरेलू उपन्यासों की शुरूआत करने का श्रेय किशोंरीलाल गास्वामी को ज्ञाता है। इन्होने ‘उपन्यास’ पत्रिका निकाली जिसमें उनके 65 छोटे-बड़े उपन्यास प्रकाशित हुए । इनके उपन्यासं की पृष्ठ भूमि घरेलू तथा सामाजिक थी । लेकिन इन उपन्यासों में विलासिता का चित्रण अधिक था।
3. शिक्षाप्रद पुस्तक :- प्रस्तुत शब्द कुँवर नारायण की कविता ‘जरूरतों के नाम पर’ कविता के लिया गया है ।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है – शिक्षापद पुस्तक का तात्पर्य वैसी पुस्तकों से है जो हमें शिक्षा देने का कार्य करती हैविशेष कर चरित्र-निर्माण संबंधी । प्राचीन काल से ही ऐसी पुस्तको को छारोपयोगी माना जाता रहा है। पंचतंत्र की कहानियाँ, हितोपदेश, विशप की कहानियाँ तथा गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित अनेक पुस्तको को शिक्षाप्रद पुस्तको के अतर्गत रखा जा सकता है।
पाठ्याधारित व्याकरण
WBBSE Class 9 Hindi जरुरतों के नाम पर Summary
कुँवर नारायण का जन्म 19 सितंबर सन् 1927 को हुआ था। इनकी कवि के रूप में मुख्य रूप से पहचान अझेय द्वारा संपादित ‘तीसरा सप्तक’ से बनी। ये नई कविता के प्रमुख कवियों में से हैं। कुँवर नारायण मूलतः कवि हैं। इनकी कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन्होंने इतिहास तथा मिथक के माध्यम से वर्तमान की समस्याओ को उठाया है । कविता के अलावे कुँवर नारायण ने कहानियों, लेख तथा समीक्षाएँ भी लिखीं हैं, साथ ही साथ इन्होंने सिनेमा, रंगमंच एवं साहित्य की अन्य कलाओं पर भी अपनी लेखनी चलाई है । इनकी रचनाएँ ऐसी हैं जिन्हें पाठक सहज ही समझ पाते हैं ।
अधिकांश रचनाओं में इन्होंने नए-नए प्रयोग भी किये हैं – जो नयी कविता की विशेषता है । इनकी अनेक रचनाएँ ऐसी हैं जिनका अनुवाद कई विदेशी भाषाओं में हो चुका है । इतना ही नहीं स्वयं इन्होने ‘तनाव’ पत्रिका के लिए कवाफी तथा ब्रोर्खस की कविताओं का हिन्दी में अनुवाद किया है । सन् 2009 में कुँवर नारायण को उनकी साहित्य-सेवा के लिए वर्ष 2005 के लिए देश का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कुँवर नारायण की प्रकृति चिंतन-मनन की ओर अधिक है – यह बात उनकी काव्य भाषा में आसानी से देखी जा सकती है ।
कुँवर नारायण की महत्वपूर्ण प्रकाशित कृतियाँ निम्नलिखित हैं –
काव्य-संग्रह : चक्रव्यूह (1956), तीसरा सप्तक (1959), परिवेश : हम-तुम (1961), आमने-सामने (1971), कोई दूसरा नहीं (1993), इन दिनों (2002), कुँवर नारायण : चुनी हुई कविताएँ (2003), कुँवर नारायण-प्रतिनिधि कविताएँ (2008) ।
खण्ड-काव्य : आत्मजयी (1965) और वाजश्रवा के बहाने (2008) ।
कहानी-संग्रह : आकारों के आसपास (1973) ।
निबंध-संग्रह : कुँवर नारायण – संसार (2002), कुँवर नारायण उपस्थिति (2002) ।
समीक्षा : आज और आज से पहले, मेरे साक्षात्कार, साहित्य के कुछ अन्तर्विषयक संदर्भ ।
पुरस्कार सम्मान : ज्ञानपीठ पुरस्कार के अलावे साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान, कुमार आशान पुरस्कार, प्रेमचंद पुरस्कार, राष्ट्रीय कबीर सम्मान, शलाका सम्मान, मेडल ऑफ वेरसा, प्रीमियो फेरेनिया सम्मान, पद्मभूषण सम्मान ।
ससंदर्भ आलोचनात्मक व्याख्या
1. क्योंकि मैं गलत को साबित कर देता हूँ
इसलिए हर बहस के बाद
गलतफहमियों के बीच
बिल्कुल अकेला छोड़ दिया जाता हैँ
बह सब कर दिखाने को
जो सब कह दिखाया ।
संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ कुँवर नारायण की कविता ‘जरूरतो के नाम पर’ से उद्दुत की गई हैं ।
व्याख्या : कविता की इन पंक्तियों में कुँवर नारायण ने जीवन के भोगे हुए अनुभवों को व्यक्त किया है । यह उनकी प्रकृति में है कि गलत को गलत कह डालते हैं, उस पर सही होने की पोलिश नहीं चढ़ाते । उनकी इसी मकृति तथा सच्चाई का साथ देने के कारण गलत-फहमियों का शिकार बनाकर उन्ही गलतफहमियों से अपने-आपको लड़ने के लिए छोड़ दिए जाते हैं ।
इस गलतफहमी के सबसे बड़े शिकार वे तब हॉंते हैं जब उन्हें इस संशय में डाल दिया जाता है कि जिसे वे गलत कह रहे है, वास्तव में वह गलत है भी या नहीं । लोग उन्हें अपन हाल पर छांड़ देते हैं कि उन्होंने जो कुछ भी कहा है उसे करके भी दिखाएँ – समाज इसमें उनकी कोई मदद करनेवाला नहीं है । वह केवल तमाशबौन बनकर तमाशा देखना चाहते हैं।
काव्यगत विशेषताएँ :
1. कविता कवि के निजी अनुभव्रों का बखान करती है ।
2. यहाँ कवि ने ऐसे सवालों को उठाया है जिसका संबध मनुष्य के सपूर्ण अस्तत्व से है।
3. वर्तमान माहौल के प्रति कवि के मन में गहरा आक्रोश है
4. काव्य-भाषा में चितंन की प्रवृत्ति दिखाई दती है ।
5. ‘भीड़ में अंकेला पड़ता व्यक्ति’ नयी कावता की प्रमुख विशेषता रही है, जो इस कावता में साफ-साफ झलकती है।
2. वे जो अपने से जीत नहीं पाते
सही बात का भी जीतना सह नहीं पाते,
और उनकी असहिष्युता के बीच
मैं किसी अपमानजनक नाते की तरह
बेमुरौवत तोड़ दिया जाता हूँ ।
शब्दार्थ :
- असहिष्गुता = नहीं सह पाना ।
- नाते = रिश्ते, संबंध ।
- बेमुरौवत = बिना किसी दया के
संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ कुँवर नारायण की कविता ‘जरुतों के नाम पर’ से उद्दुत की गई हैं ।
व्याख्या : कविता के प्रस्तुत अंश में कवि ने उन लोगों क बारं में कहा है जो जीव्रन में खुद तो कभी इस व्यवस्था से जीत नहीं पाए लेकन अगर कोई जीतता है तो उसकी जीत भी उनसे सहन नहीं होती। उनके सह न पाने की परिस्थितियों के बीच उन्हें उसी प्रकार अस्वीकार कर दिया जाता है जिस प्रकार किसी अपमानजनक रिश्ते को बिना किसी माया-मोह के तोड़ दिया जाता है। यहाँ कवि मध्यवर्ग के प्रतिर्नाध के रूप में हमार सामने आंत है जिसकी सबसं बड़ी इच्छा है व्याक्ति की निजी स्वतंत्रता । कविता के इस अंश में कवि की अनास्था, निराशा, विफसता, कुठा तथा टृटन जैस भाव स्पष्ट रूप में दिखाई देते हैं।
काव्यगत विशेषताएँ :
1. कविता कवि के निजी अनुभवों का बखान करती है ।
2. यहाँ कवि ने एसे सवालो को उठाया है जिसका संबंध मनुष्य के सपूर्ण अस्तित्व से है।
3. वर्तमान माहौल के प्रति कवि के मन मे गहरा आक्रोश है।
4. काव्य-भाषा में चितंन की प्रवृन्ति दिखाई देती है ।
5. ‘भीड़ में अकेला पड़ता व्यक्ति’ नयी कविता की प्रमुख विशेषता रही है, जो इस कविता में साफ-साफ झलकती है
3. प्रत्येक रोचक प्रसंग से हटा कर,
शिक्षाप्रद पुस्तकों की सूची की तरह
घरेलू उपन्यासों के अन्त में
लापरवाही से जोड़ दिया जाता हूँ ।
शब्दार्थ :
- रोचक = रचिकर, अच्छा लगनेवाला ।
- शिक्षाप्रद = शिक्षा देनेवाली ।
- लापरवाही = विना किसी परवाह के ।
संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ कुँवर नारायण की कविता ‘जरुरतों के नाम पर’ से उद्दृत की गई हैं।
व्याख्या : कविता के प्रस्तुत अंश में कुँवर नारायण की इस व्यवस्था में फिट न होने की पौड़ा साफ-साफ झलकती है । कवि इस सच्चाई को अच्छी तरह से समझते हैं कि लोग कितनी चालाकी से उनकी अपेक्षा कर दरकिनार (एक किनारे) कर देते हैं । दरअसल नई कविता मूलतः एक परिस्थिति के भीतर पलते हुए मानव की व्यक्ति की निजी स्थिति की कविता है।
कवि अच्छी तरह जानते हैं कि समाज में उनकी स्थिति ठीक वैसी है जैसी कि किसी घरेलू उपन्यास के अंत में जोड़ी गई शिक्षाप्रद कहानियों की सूची की होती है – उन्हे कोई नहीं पढ़ता फिर भी वह पुस्तक का अंश होता है। ठीक यही स्थिति कवि की है – वह समाज में रहते हुए भी समाज के कचड़े के समान हैं जिसकी कोई उपयोगिता नहीी है ।
काव्यगत विशेषताएँ :
1. कविता कवि के निजीं अनुभवों क्या बखाम करती है।
2. यहाँ कवि नै ऐसे संबम्लों को उढया हैं जिसक्क संब्ध मनुष्य के संपूर्ण अस्तित्व से है।
3. वर्तमान माहॉल के प्रति कवि के मन में गहरा आक्रंशश है ।
4. काव्य-भाषा में चितन की प्रवृत्ति दिखाई देती है।
5. ‘भीड़ में अंकला पड़ता व्यक्ति’ नयी कविता की प्रमुख विशेषता रही है, जो इस कविता में साफ-साफ झलकती है ।
4. वे सब मिल कर
मेरी बहस की हत्या कर डालते हैं
जरुरतों के नाम पर…
और एक कवि से पूछते हैं कि जिन्दगी क्या है
जिन्दगी को बद्नाम कर ।
संद्र्भ : ग्रस्तुत पंक्तियाँ कुँवर नारायण की कविता ‘जरुतों के नाम पर’ से उद्धत की गई हैं।
व्याख्या : कवि को ऐसा ग्रतीत होता है कि वे समाज के भीड़ में अकेले पड़ गए हैं क्योकि उनमें सही को सही और गलत को गलत कहने का साहस है । ये लोग मिलकर कवि की सच्चाई को भी झुठला देते हैं और यह कहते हैं कि यही समय की माँग है । जरूरत के नाम पर वे कवि की जिन्दगी से खिलवाड़ करते हैं – इनकी भावनाओं का मजाक उड़ाते हैं तथा फिर उन्हीं से पूछते हैं कि जिंदगी क्या है, जिंदगी कहते किसे हैं ? यहाँ आज़ादी के बाद की स्थिति को लेकर कवि में असंतोष का भाव स्पष्ट रूप से झलकता है । यह स्थिति नयी कविता के लगभग सारे कवियों की है कि वे स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद की स्थिति से असंतुष्ट थे ।
काव्यगत विशेषताएँ :
1. कविता कवि के निजी अनुभवों का बखान करती है ।
2. यहाँ कवि ने ऐसे सवालों को उठाया है जिसका संबंध मनुष्य के संपूर्ण अस्तित्व से है।
3. वर्तमान माहौल के प्रति कवि के मन में गहरा आक्रोश है ।
4. काव्य-भाषा में चितंन की प्रवृत्ति दिखाई देती है ।
5. ‘भीड़ में अकेला पड़ता व्यक्ति’ नयी कविता की प्रमुख्ख विशेषता रही है, जो इस कविता में साफ-साफ झलकतीहै।