Students should regularly practice West Bengal Board Class 9 Hindi Book Solutions Poem 3 पेड़ का दर्द to reinforce their learning.
WBBSE Class 9 Hindi Solutions Poem 3 Question Answer – पेड़ का दर्द
दिर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न – 1 : ‘पेड़ का दर्द’ शीर्षक कविता का मूलभाव अपने शब्दों में लिखें ।
प्रश्न – 2 : ‘पेड़ का दर्द’ कविता के माध्यम से व्यक्त कवि के संदेश को अपने शब्दों में लिखें।
प्रश्न – 3 ‘पेड़ का दर्द’ कविता का सारांश लिखें ।
प्रश्न – 4 : ‘पेड़ का दर्द’ कविता में पर्यावरण के प्रति कवि का गहरा दर्द झालकता है – विवेचना करें।
प्रश्न – 5 : ‘पेड़ का दर्द’ कविता के मूल भाव को अपने शब्दों में लिखें ।
उत्तर :
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना में परिवेश के प्रति सजगता अपने समकालीन कवियों से अधिक है । जब स्थिति में अराजकता फैलती है और सत्ता बेढंगे रास्ते पर चलने लगती है तो उनका दर्द ‘जंगल का दर्द’ बन जाता है। उनकी कविताओं में यथार्थ को मोहक सतरंगे आवरण में ढकने वाली कल्पना नहीं है, वह यधार्थ से खेलनेवाली है।
पर्यावरण के प्रति कवि अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहते है कि मुझे उन जंगलों की याद मत दिलाओ जो अब केवल कल्पना में ही जीवित बची है। निरतर कटते जंगलों से हरियाली-विहोन धरती को देखकर कवि अपना दर्द व्यक्त करते हुए कहते हैं कि धुआँ, लपटें, कोयले और राख के अवशेष को छोड़ता हुआ मैं घूल्हे में लकड़ी की तरह जल रहा हूं। नश होते जंगलों का यह दर्द ही कवि का दर्द है इसलिए कवि का कहना है कि कोई मुझे उन नष्ट हो गए जंगलों की याद अब न दिलाए।
कवि उन दिनों की याद करता है जब हेरे-भरे जंगलों के वृक्षों की तरह उसका भी अस्नत्व था। हरें-भरे पंड़ों की डालों पर चिड़ियाँ चहचहाया कर्ती थीं, धामिन पेड़ों से लिपटी रहती थी तथा गुलदार डालों पर बैठकर पड़ों के प्रति अपना स्नेह जताता था। हंरे भरे पेड़, फूलों से लदो डालियाँ कवल सुख ही नही पदान करती थी बल्कि वह काव के व्यक्तित्व का एक हिस्सा भी थी।
कवि को अब जगलों को नही बल्कि उन कुल्हाड़याओ की याद शंष रह गई है जिन कुल्हाड़यों ने जगल के पड़ों का काम तमाम कर दिया था । कवि को केवल उन आरों की याद शेष रह गई है जिन्होंने पंड़ों को दुकड़ों में बाँट डाला था। पड़ों का दुकड़ों में बँटना कवि को अपने व्यक्तित्च का बँटना अनुभव होता है क्योंक उन्हीं पेड़ो से कवि के व्यक्तित्व को संपूर्णता मिली थी । कवि को लगता है जैसे उसकी संपूर्णता उससे छीन ली गई हो – अब वह अपने-आप में इन जंगलों को तरह आधा-अधूरा है
जंगलों को यूँ कबतक नष्ष किया जाता रहेगा – यह कवि को पता नहीं । अनिश्चितता की इस स्थिति में कवि सोचता है कि वह तो चूल्हे में जलती लकड़ी के समान है, जिसे यह भी नहीं पता कि चूल्हे पर रखी हाँड़ी में कुछ पक भी रहा है या नहीं । न जाने उससे किसी का पेट भो भरेगा या फिर वह हाँड़ी यूँ ही खुदबुद कर रही है।
कवि यह चाहता है कि लोग भी उसकी तरह आँच से तषें, तमतमाएँ, उनके भी चेहरे गुस्से से लाल हों और वे उसका साथ देने के लिए व्यवस्था क विरोंध में उठ खड़े हों । लंकिन भीतर ही भीतर कहीं एक शका भी है – कहीं ये लोग पानी डालकर उसे ही न बुझा दें । अगर एसा ही होना है तो कवि लोगों से उन जंगलों की याद दिलाने को नहीं कहते हैं।
कविता के अंत में कवि कहते हैं कि बूल्हे में जलती लकड़ी सं निकलती एक-एक चिनगारी, चिनगारी नहीं है – वह ता पड़ो से झरतो पत्तियाँ हैं । इन चिनगारी रूपी पत्तियों को चूम लेना चाहते है, इस धरती को चूम लेना चाहते हैं जिसमे पेड़ो की जड़े थीं। चिनगारी में पत्तियों को देखना और धरती को चूमने में कवि का विश्वास झलकता है कि कभी न कभी हम अपनी गलतियों से सबक लेंग। कभी न कभी फिर यह धरती जंगलों को हरा-भरा देखेगी ।
प्रश्न – 6 : सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की काव्यगत विशेषताओं को लिखें ।
प्रश्न – 7 : भाषा एवं शिल्प के स्तर पर सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं की विशेषताओं को लिखें।
प्रश्न – 8 : सर्वेश्वर दयाल सक्सेना भाषा को कवि-कर्म की ईमानदारी का प्रतीक मानते हैं विवेचना करें ।
उत्तर :
सर्वश्वर के काव्य में परम्परागत काव्य-भाषा का अभाव मिलता है । इसका कारण यह रहा है कि वं उस भाषा को जन-जीवन की सामान्य अनुभूतियो का उजागर करने में अक्षम मानते थे। उनकी काव्य-भाषा में पांडित्य का नहीं बल्कि आम बोलचाल की भाषा का समावेश हुआ है । उनकी काव्य-भाषा भारी भरकम शब्दों एवं कठिन पदबधों से मुक्त है ।
रोजमर्रा के शब्दों, मुहावरों का प्रयोग ही उनके काव्यों में नजर आता है। खेत-खलिहान, गली-मोहल्ले, चूल्हेचौपाल से आयी यह भाषा सर्वेश्वर की कविता की मूल संबेदना-ग्रामीण संवेदना की प्रामाणिकता की पहचान है । उनकी भाषा में लोक-जोवन और जन-सामान्य से जुड़ाव आसानी से देखा जा सकता है ।
यहाँ बड़ा दिखने की बात का अर्थ भाषा को गहनता से है । बोलचाल की भाषा को जब कवि काव्य-भाषा के रूप में अपनाता है, तो इसका मतलब यह नहीं होंता कि वह ‘सपाटबयानी’ करता है । बल्कि इसका मतलब यह होता है कि बालचाल की भाषा की स्पष्टता और सरलता तो कविता में होती हो है अर्थ की विशिष्टता और गहनता का भी समावेश कविता में हो जाता है –
कुछ इतना बड़ा न हो
जो मुझसे खड़ा न हो
सामने पहाड़ हो ।
लेकिन अड़ा न हो
भाषा को कवि ने कवि-कर्म की ईमानदारी का प्रतीक माना है –
एक गलत भाषा में
गलत बयान देने से
मर जाना बेहतर है ।
सर्वेश्वर की भाषा में खड़ी-बोली, अवधी, उर्दू के साथ बोलचाल की भाषा की अंग्रेजी मिश्रित शब्दावली का प्रयोग हुआ है –
तुम
जिसके बालों में बनावटी कर्ल नहीं
जिसकी आँखों में न गहरी चटक शोखी है
थर्मामीटर के पारे से
चुपचाप जिसमें भावनाएँ चढ़ती उतरती है।
ग्रामीण संवेदना और लोकभाषा के साथ सर्वेश्वर की कविता में लोक-छन्दों और लोकोक्तियों का भी समावेश हुआ है । मुक्तछंद के प्रयोग में सर्वेश्वर की कविता निराला की परम्परा में दिखाई देती है । अपनी संवेदना और शिल्प के माध्यम से नयी कविता को नया मुहावरा दिया है । सर्वेश्वर की भाषा स्पष्ट और सरल होने के साथ ही अर्थगर्भित और प्रतीकात्मक भी हैं। उदाहरण के तौर पर हम इन पंक्तियों को देख सकते है –
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. चूल्हे में लकड़ी की तरह मैं जल रहा हूँ
मुझे जंगल की याद मत दिलाओ ।
प्रश्न :
रचना और रचनाकार का नाम लिखें । पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
रचना ‘पेड़ का दर्द’ है तथा इसके रचनाकार सर्वेश्वरदयाल सक्सेना हैं।
इन पंक्तियों में कवि कह रहे हैं कि जंगलों को कटने से न रोक पाने की विवशता में वे बेबसी में चूल्हे में लकड़ी की तरह जल रहे हैं। नस्ट हो चुके जंगलों की याद कवि के दर्द को बढ़ाती है। इसलिए वे लोगों से कहते हैं कि कोई उन्हें खो चुके जंगलों की याद न दिलाए।
2. जंगल की याद
अब उन कुल्हाड़ियों की याद रह गई है ।
प्रश्न :
रचना और रचनाकार का नाम लिखें । पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
रचना ‘पेड़ का दर्द’ है तथा इसके रचनाकार सर्वेश्वरदयाल सक्सेना हैं।
इन पंक्तियों में पर्यावरण के प्रति कवि का दर्द उभर आया है । लोगों ने और सत्ता में आसीन नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए जंगलों को नष्ट कर दिया । उन हरे-भरे जंगलों की जगह अब केवल केक्रीट के जंगल ही नज़र आतेहैं तथा उन कुल्हाड़ियों की याद ही शेष रह गई हैं जिन्होंने बेरहमी से पेड़ों को काटकर जंगलों का सफाया कर दिया ।
3. लकड़ी की तरह अब मैं जल रहा हूँ
बिना यह जाने, कि जो हाँड़ी चढ़ी है
उसकी खुदबुद झूठी है ।
प्रश्न :
रचना और रचनाकार का नाम लिखें । पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
रचना ‘पेड़ का दर्द’ है तथा इसके रचनाकार सर्वश्वरदयाल सक्सेना हैं।
कवि का कहना है कि वे यह नहीं समझ पाते है कि चूल्हे में लकड़ी की तरह जलने में उनकी सार्थकता क्या है । उन्हें यह भी नहीं पता कि चूल्ह के ऊपर हॉड़ी चढ़ो है उसमें कुछ पक भो रहा है या फिर उसके खुदबुदाने की आवाज झूठी है ।
4. एक-एक चिनगारी
झरती पत्तियाँ हैं
जिन्हें अब भी मैं चूम लेना चाहता हूँ ।
प्रश्न :
रचना और रचनाकार का नाम लिखें । पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
रचना ‘पड़ का दर्द’ है तथा इसके रचनाकार सर्वेश्वरदयाल सक्सेना हैं।
कविता के इस अश में कवि कहना चाहते हैं कि चूल्हे में जलती लकड़ी की चिनगारियाँ उन्हे ऐसीं प्रतीत होतो हैं मानों पेड़ से पत्तियाँ झर रही हों । जलती लकड़ी में भी कवि उन हरी- भरी पत्तियों की याद को अपनी स्मृति से नहीं निकाल पाते हैं ।
प्रश्न 5.
कवि जंगल की याद दिलाने क्यों नहीं कहते हैं ?
उत्तर :
कवि चाहते हैं कि यह पर्यावरण उसी तरह हरा-भरा रहे जैसा उनके बचपन में था। आज विकास के नाम पर जगलों कों काटकर नए किया जा रहा है जो कवि के लिए काफी दु:खदायी है। इसीलिए कवि जगल की याद दिलाने को नही कहते हैं।
प्रश्न 6.
कवि के व्यक्तित्व की संपूर्णता किससे थी ? वह संपूर्णता किसने छीन ली ?
उत्तर :
कवि के व्यक्तित्व की सपूर्णता हर भर जगलों से थी । कवि की वह सपूर्णता कुल्हाड़ियों तथा आरों ने छीन ली ।
प्रश्न 7.
‘उसकी खुदबुद झूठी है’ – से क्या आशय है ?
उत्तर :
पर्यावरण की रक्षा तथा हरं भर जगलों को बचान का आश्वासन सरकार द्वारा निरतर दी जाती है लंकिन यह आश्वासन उतना ही झूटा है जितना कि बिना अन्न के हाँडी में पानी की खुदबुदाहट।
प्रश्न 8.
कवि किसे चूम लेना चाहते हैं और क्यों ?
उत्तर :
कवि इस धरतो को चृम लेना चाहतं हैं व्यांक इसी धरती में उनकी जड़े थीं, जो कवि के व्यक्तित्च का हिस्सा थीं।
अति लघूतरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘पेड़ का दर्द’ कविता में कौन किसके दर्द से पीड़ित है ?
उत्तर :
‘पेड़ का दर्द’ कविता में पंड़ जंगलों के कटने के दर्द से पोड़ित है।
प्रश्न 2.
पेड़ कहाँ और किस रूप में जल रहा है ?
उत्तर :
मेड़ चूल्हे में लकड़ी की तरह तरह जल रहा है|
प्रश्न 3.
‘पेड़ का दर्द’ कविता में कौन, किसकी याद न दिलाने को कह रहा है ?
उत्तर : ‘
पेड़ का दर्द’ कविता में पड़ जंगलों की याद न दिलाने को कह रहा है।
प्रश्न 4.
जलता हुआ पेड़ अपने पीछे क्या छोड़े जा रहा है?
उत्तर :
जलता हुआ पंड़ अपने पीछे कुछ्ध धुँआ, लपटें, कोयले और राख छाड़े जा रहा है।
प्रश्न 5.
हरे- भरे जंगल में कौन संपूर्ण रूप से खड़ा था ?
उत्तर :
हरे -भरे जगल में पेड़ सम्पूर्ण रूप से खड़ा था।
प्रश्न 6.
पेड़ से कौन लिपटी रहती थी ?
उत्तर :
पड़ सं धामिन लिपटी रहती थी।
प्रश्न 7.
कौन उछलकर कंधे के ऊपर बैठ जाता था ?
उत्तर :
गुलदार उछलकर कंधे के ऊपर बैठ जाता था।
प्रश्न 8.
जंगल की याद के बदले अब किसकी याद शेष रह गई है ?
उत्तर :
जगल की याद के बदल अब केवल उन कुल्हाड़ियों और आरों की यांद रह गई हैं जिसने पेड़ों के टुकड़े किए थे।
प्रश्न 9.
पेड़ की संपूर्णता किसने छीन ली थी ?
उत्तर :
कुल्हाड़े तथा आरों ने पेड़ की संपूर्णता छीन ली थी।
प्रश्न 10.
पेड़ अब किसकी तरह जल रहा है ?
उत्तर :
पेड़ अब चूल्हे की लकडी की तरह जल रहा है।
प्रश्न 11.
पेड़ क्या बिना जाने चूल्हे में लकड़ी की तरह जल रहा है ?
उत्तर :
पेड़ बिना यह जाने कि चूल्हे पर जो हॉड़ी चढ़ी है, उसकी खुदबुद की आवाज झूठी है या फिर उससे किसी का पेट भरेगा – लकड़ी की तरह जल रहा है।
प्रश्न 12.
किसी की आत्मा कब तृप्त होगी ?
उत्तर :
जब किसी का पेट भरेगा तभी पेड़ की आत्मा तृप्त होगी।
प्रश्न 13.
पेड़ को चूल्हे से निकलती एक-एक चिनगारी किसके समान प्रतीत होती है ?
उत्तर :
पेड़ को चूल्हे से निकलती एक-एक चिनगारी झरती हुई पत्तियों के समान प्रतीत होती है।
प्रश्न 14.
पेड़ किसे चूम लेना चाहता है और क्यों ?
उत्तर :
पेड़ धरती को चूम लेना चाहता है क्योंकि इसी धरती में उसकी जड़ेे थीं।
प्रश्न 15.
‘पेड़ का दर्द’ कविता का वर्ण्य विषय क्या है ?
उत्तर :
‘पेड़ का दर्द’ कविता का वर्ण्य विषय नष्ट होता पर्यावरण है।
प्रश्न 16.
‘पेड़ का दर्द’ कविता के माध्यम से कवि हमें क्या संदेश देना चाहते हैं ?
उत्तर :
‘पेड़ का दर्द’ कविता के माध्यम से कवि हमें यह संदेश देना चाहते हैं कि हम जगल को नष्ट न करें अन्यथा इसका परिणाम बुरा होगा।
प्रश्न 17.
किसकी आँच से कौन तमतमा रहा है ?
उत्तर :
चूल्हे में जलती लकड़ी की आँच से लोगों के चेहरे तमतमा रहे हैं।
प्रश्न 18.
‘मुझ पर पानी डाल सो जाएँगे’ – का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
इसका तात्पर्य यह है कि अधिकांश लोगों को आज भी जगलों के नष्ट होने का कोई दु:ख नहीं है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म कब हुआ था ?
(क) सन् 1924 में
(ख) सन् 1925 में
(ग) सन् 1926 में
(घ) सन् 1927 में
उत्तर :
(घ) सन् 1927 में ।
प्रश्न 2.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना किस तार-सप्तक के कवि हैं ?
(क) पहले
(ख) दूसरे
(ग) तीसरे
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ग) तीसरे ।
प्रश्न 3.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने निम्न से किस पत्रिका में संपादक का कार्य किया ?
(क) पराग
(ख) चंदामामा
(ग) कादम्बिनी
(घ) हंस
उत्तर :
(क) पराग ।
प्रश्न 4.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने निम्न में से किस पत्रिका में प्रमुख उप-सम्पादक के पद पर कार्य किया?
(क) धर्मयुग
(ख) हिंदुस्तान
(ग) दिनमान
(घ) साप्ताहिक हिंदुस्तान
उत्तर :
(ग) दिनमान ।
प्रश्न 5.
‘काठ की घंटियाँ’ के रचनाकार कौन हैं ?
(क) रामेश्वर शुक्ल अंचल
(ख) शमशेर
(ग) सर्वेश्वर दयाल सकसेना
(घ) निराला
उत्तर :
(ग) सर्वेश्वर द्याल सक्सेना।
प्रश्न 6.
‘बाँस का पुल’ किसकी रचना है ?
(क) निराला की
(ख) नागार्जुन की
(ग) सर्वेश्वर दयाल सक्संना की
(घ) पंत की
उत्तर :
(ग) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की।
प्रश्न 7.
‘एक सूनी नाव’ के रचनाकार कौन हैं ?
(क) सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की
(ख) नागार्जुन की
(ग) केदारनाथ सिंह की
(घ) धूमिल की
उत्तर :
(क) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की।
प्रश्न 8.
‘गर्म हवाएँ” किसकी रचना है ?
(क) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की
(ख) कुँवर नारायण की
(ग) पाश की
(घ) अज्ञेय की
उत्तर :
(क) सर्वेश्वर टयाल सक्सेना की।
प्रश्न 9.
‘गर्म हवाएँ” किस विधा की रचना है ?
(क) कविता
(ख) नाटक
(ग) उपन्यास
(घ) निबंध
उत्तर :
(क) कविता ।
प्रश्न 10.
‘बकरी’ किस विधा की रचना है ?
(क) व्यंग्य
(ख) नाटक
(ग) कविता
(घ) एकांकी
उत्तर :
(ख) नाटक
प्रश्न 11.
‘अब गरीबी हटाओ’ के रचनाकार कौन हैं ?
(क) प्रसाद
(ख) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(ग) निराला
(घ) पंत
उत्तर :
(ख) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ।
प्रश्न 12.
‘लड़ाई’ (नाटक) के रचयिता कौन हैं ?
(क) नरेन्द्र शर्मा
(ख) शमशेर
(ग) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(घ) धर्मवीर भारती
उत्तर :
(ग) सर्वेश्वर दययाल सक्सेना
प्रश्न 13.
‘कल फिर भात आएगा’ की रचना किसने की ?
(क) अश्क ने
(ख) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने
(ग) रेणु ने
(घ) केदारनाथ सिंह ने
उत्तर :
(ख) सर्वेश्वर दथाल सवसेना ने ।
प्रश्न 14.
‘राज-बाज बहादुर’ के रचयिता निम्न में से कौन हैं ?
(क) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(ख) वियोगी
(ग) यशपाल
(घ) केदारनाथ सिंह
उत्तर :
(क) सर्वेश्वर दयाल सक्संना ।
प्रश्न 15.
‘रानी रूपमती’ किसकी रचना है ?
(क) नरेश मेहता की
(ख) प्रेमचंद की
(ग) सरेशे्वर द्याल सक्सेना की
(घ) अज्ञेय की
उत्तर :
(ग) सर्वेश्वर द्याल सक्सेना की।
प्रश्न 16.
‘पागल कुत्तों का मसीहा’ किसकी रचना है ?
(क) अज्ञयय की
(ख) धर्मवीर भारती की
(ग) नागार्जुन की
(घ) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की
उत्तर :
(घ) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की ।
प्रश्न 17.
‘सोया हुआ जल’ किस विधा की रचना है ?
(क) कविता
(ख) नाटक
(ग) उपन्यास
(घ) एकांकी
उत्तर :
(क) कविता
प्रश्न 18.
‘चरचे और नरखे’ किस विधा की रचना है ?
(क) उपन्यास
(ख) निबंध-संग्रह
(ग) कविता
(घ) संस्मरण
उत्तर :
(ख) निबध-सग्रह ।
प्रश्न 19.
‘खूँटियों पर टँगे लोग’ किसकी रचना है ।
(क) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की
(ख) निराला की
(ग) मुक्तिबोध की
(घ) रघुवीर सहाय की
उत्तर :
(क) सर्वेश्वर द्याल सक्सेना की।
प्रश्न 20.
‘चरचे और चरखे’ के रचनाकार कौन हैं ?
(क) शमशेर
(ख) अंजय
(ग) मुक्तिबोध
(घ) सर्वेश्वर दयाल सक्संना
उत्तर :
(घ) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना।
प्रश्न 21.
‘सोया हुआ जल’ के रचयिता कौन हैं ?
(क) अज्ञेय
(ख) कुँवर नारायण
(ग) सर्वेश्वर द्याल सक्सेना
(घ) निराला
उत्तर :
(ग) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना।
प्रश्न 22.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने अपनी तुलना किससे की है ?
(क) चलल्हे से
(ख) चल्हे में जलती लकड़ी से
(ग) पेड़ से
(घ) जागल से
उत्तर :
(ख) चूल्हे में जलती लकड़ी सं ।
प्रश्न 23.
कवि किसकी याद न दिलाने को कहते हैं ?
(क) पेड़ की
(ख) पत्ती की
(ग) जंगल की
(ख) चूल्हे की
उत्तर :
(ग) जंगल की ।
प्रश्न 24.
जंगल की बजाय अब किसकी याद शेष रह गई है ?
(क) आरों की
(ख) लकड़ी की
(ग) पत्तियों की
(घ) कुल्हाड़ियो की
उत्तर :
(घ) कुल्हाड़ियों की ।
प्रश्न 25.
कवि किसे चूम लेना चाहता है ?
(क) जंगल को
(ख) धरती को
(ग) पत्तियों को
(घ) धामिन को
उत्तर :
(ख) धरती कां।
प्रश्न 26.
‘कुआनो नदी’ किसकी रचना है ?
(क) शमशेर की
(ख) अज्ये की
(ग) मुक्तिबांध की
(घ) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की
उत्तर :
(घ) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की।
प्रश्न 27.
‘बतुता का जूता’ के रचनाकार कौन हैं ?
(क) अझेय
(ख) पंत
(ग) नागार्जुन
(घ) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
उत्तर :
(घ) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना।
प्रश्न 28.
‘लाख की नाक’ किसकी रचना है ?
(क) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की
(ख) नरेन्द्र शर्मा की
(ग) धर्मवीर भारती की
(घ) महादेवी वर्मा की
उत्तर :
(क) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की।
प्रश्न 29.
‘महाँगू की टाई’ के रचयिता कौन हैं ?
(क) नरन्द्र शर्मा
(ख) चन्द्रकांत देवताले
(ग) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(घ) अरुण कमल
उत्तर :
(ग) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ।
प्रश्न 30.
‘भौं-भौं, खौं-खौं किसकी रचना है ?
(क) अरुण कमल की
(ख) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की
(ग) कैफी आज़मी की
(घ) कुँवर नारायण की
उत्तर :
(ख) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की।
प्रश्न 31.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना को निम्न में किस रचना पर ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ मिला?
(क) खूँटयों पर टँगे लोग
(ख) सोया हुआ जल
(ग) बकरी
(घ) वाँस का पुल
उत्तर :
(क) खूटयों पर टँगे लोग ।
टिप्पणियाँ
1. गुलदार :- प्रस्तुत शब्द सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता ‘पेड़ का दर्द’ से लिया गया है। गुलदार तेंदुआ प्रजाति का एक जंगली पशु होता है। जो पेड़ों पर आसानी से चढ़ जाता है।
2. जंगल :- प्रस्तुत शब्द सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता ‘पेड़ का दर्द’ से लिया गया है।
वह स्थान जो अपने-आप उगनेवाले वृक्षों, झाड़ों तथा वन्य पशुओं से युक्त हो, जंगल कहलाता है। पर्यावरण की दृष्टि से जंगलों का हमारे लिए बहुत महत्व है लेकिन विकास के नाम पर हम जंगलों को काटकर अपने पर्यावरण को भारी नुकसान पहुँचा रहे हैं।
3. धामिन :- प्रस्तुत शब्द सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता ‘पेड़ का दर्द’ से लिया गया है ।
धामिन साँप की एक प्रजाता है जो अधिकतर जंगलों में पेड़ों पर पाया जाता है । इस साँप की विशेषता यह है कि इसके पूँछ में विष रहता है ।
4. आत्मा :- प्रस्तुत शब्द सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता ‘पेड़ का दर्द’ से लिया गया है ।
आत्मा इस शरीर का प्राणतत्व है। ऐसी मान्यता है कि आत्मा परमात्मा का ही अंश है तथा शरीर के नष्ट हो जाने के बाद भी आत्मा नष्ट नहीं होती । वह दूसरे शरीर को धारण कर लेती है ।
5. साहित्य अकादमी (पुरस्कार) :- भारतीय साहित्य के संवर्धन के लिए भारत सरकार द्वारा स्थापित एक स्वायत्तशासी संस्था। इसका उद्घाटन 12 मार्च 1925 ई॰ को हुआ था । इस संस्था का प्रबंध विभिन्न क्षेत्रों के 70 चुने हुए विद्वानों की एक परिषद् के हाथों में है । इस परिषद के प्रथम अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू थे ।
अकादमी के उद्देश्य इस प्रकार है :
- भारतीय साहित्य का विकास करना,
- साहित्यिक प्रतिमान कायम करना,
- विविध भारतीय भाषाओं में होनेवाले साहित्यिक कार्यों को अग्रसर करना, उनमें मेल पैदा करना तथा,
- उनके माध्यम से देश की सांस्कृतिक एकता का उन्नयन करना। यह संस्था साहित्य-निर्माण को प्रोत्साहित करती है तथा साहित्यकारों को पुरस्कृत और सम्मानित करती है ।
पाठयाधारित व्याकरण
WBBSE Class 9 Hindi पेड़ का दर्द Summary
कनकि- पारिचाय
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना आधुनिक हिंदी साहित्य के बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार हैं। नई कविता के कवियों में उनका नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिला में 15 सितंबर सन् 1927 को हुआ । इन्होंने एंग्लो संस्कृत विद्यालय, बस्ती से हाई स्कूल पास करने के बाद क्वींस कॉलेज वाराणसी में प्रवंश लिया । एम ए. की परीक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण की और इसके बाद जीवन एवं काव्यक्षेत्र में उतर आए । कुछ समय तक आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर के रूप में कार्य करने के बाद इन्होंने ‘दिनमान’ के प्रमुख उपसम्पादक और फिर बच्चों की लोकप्रिय पत्रिका ‘पराग’ का संपादन-कार्य भी किया
अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरे तारसप्तक (1959) के माध्यम सं इनको पहचान नई कविता के कवि-रूप में हुई । सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविताओं में रोमानियत, मांसल प्रेम, प्रकृति के प्रति लगाव तथा तत्कालीन राजनीतिक-सामाजिक प्रश्न प्रमुखता से दिखाई देते हैं । इन्होंन अपनी कविताओं में जीवन के विविध पक्षों को नए रंग-ढुंग से व्यक्त किया है। ये युवाओं को लीक पर न चलकर नई खोज के लिए प्रोत्साहित करते हैं क्योंक –
लीक पर वे चलें जिनवे चरण दुर्बल एवं हारे हैं ।
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैं।।
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की साहित्यिक कृतियाँ इस प्रकार हैं –
काव्य-संग्रह : काठ की घंटियाँ, वाँस का पुल, एक सूनी नाव, गर्म हवाएँ, जंगल का दर्द, खूटियों पर टँगे लोग, कुआनो नदी ।
नाटक : बकरी, कल फिर भात आएगा, लड़ाई, अब गरीबी हटाओ, राज-बाज बहादुर और रानी रूपमती, हांरी धूम मचा री।
उपन्यास : पागल कुत्तों का मसीहा, सोया हुआ पल, सड़क
निबंध-संग्रह : चरचे और चरखे ।
बाल-साहित्य : बतूता का जूता, मँहगू की टाई, भौं-भौं खौं-खों तथा लाख की नाक।
इनकी काव्य-संग्रह ‘खूँटियों पर टंगे लोग’ को सन् 1983 के ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
23 सितंबर 1983 को मात्र 56 वर्ष की आयु में इनका देहांत हो गया।
ससंदर्भ आलोचनात्मक व्याख्या
1. कुछ धुआँ
कुछ लपटें
कुछ कोयले
कुछ राख छोड़ता
चूल्हे में लकड़ी की तरह मैं जल रहा हैँ
मुझे जंगल की याद मत दिलाओ ।
संदर्भ : प्रस्तुत पक्तियाँ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ‘जंगल का दर्द’ से उद्दुत की गई हैं। सक्सेना नई कविता के प्रमुख कवियों में से एक हैं । पर्यावरण के प्रति चिता तथा आदमी की पीड़ा को उनकी कवितां में वाणी मिली है।
व्याख्या : सक्सेना की इन पंक्तियों में स्वपों के टूटने, आस्थाओं के बिखरने की पस्तो तथा निराशा है । आजादी के बाद अपनी पाकृतिक संपदा के साथ जो खिलवाड़ हुआ है, वही कवि का दर्द है।
पर्यावरण के प्रति कवि अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं कि मुझे उन जंगलो की याद मत दिलाओ जो अब केवल कस्पना में ही जीवित बची हैं। निरतर कटते जंगलों से हरियाली-विहीन धरती को देखकर कवि अपना दर्द व्यक्त करते हुए कहते हैं कि धुआँ, लपटें, कोयले और राख के अवशेष को छोड़ता हुआ मैं चूल्हे में लकड़ी की तरह जल रहा हूँ। नष्ट होते जगलो का यह दर्द ही कवि का दर्द है इसलिए कवि का कहना है कि कोई मुझे उन नष्ष हो गए जगलों की याद अब न दिलाए।
इन हरे-भरे जगलों के नए होने के लिए वे उस सत्ता को उत्तरदायी मानते हैं जो इस अपसंस्कृति को बढ़ावा दे रही है –
एक तेंदुआ
सारे जंगल को
काले तेंदुए में बदल रहा है ।
काव्यगत विशेषताएँ :
1. कविता की इन पंक्तियों में पर्यावरण के प्रति कवि का गहरा दर्द झलकता है।
2. लोक-जीवन और लोक संस्कृति से गहरी जुड़ाव उनकी कविता में प्रत्यक्ष रूप से झलकती है।
3. अधिकाश प्रतीक प्रकृति और ग्रामीण जीवन से आए हैं।
4. कवि ने प्रकृति का चित्र एकदम नए ढग से खींचा है।
5. बिंब नए प्रकार के हैं।
6. भाषा सहज और सरल है ।
2. हरे-भरे जंगल की
जिसमें मैं संपूर्ण खड़ा था
चिड़ियाँ मुझ पर बैठ चहचहाती थीं
धामिन मुझसे लिपटी रहती थी
और गुलदार उछलकर मुझ पर
बैठ जाता था ।
संदर्भ : प्तस्तुत पंक्तियाँ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ‘जंगल का दर्द’ से उद्धृत की गई हैं। सक्सेना नई कविता के प्रमुख कवियों में से एक हैं । पर्यावरण के प्रति चिंता तथा आदमी की पीड़ा को उनकी कविता में वाणी मिली है।
व्याख्या : कवि उन दिनों की याद करता है जब हरे-भरे जंगलों के वृक्षों की तरह उसका भी अस्तित्व था । हरेभरे पेड़ों की डालों पर चिड़ियाँ चहचहाया करती थीं, धामिन पेड़ों से लिपटी रहती थी तथा गुलदार डालों पर बैठकर पेड़ों के प्रति अपना स्नेह जताता था । हरे- भरे पेड़, फूलों से लदी डालियाँ केवल सुख ही नहीं प्रदान करती थी यल्कि वह कवि के व्यक्तित्व का एक हिस्सा भी थी। कवि ने अपने इस अनुभव को अन्य कविता में इस प्रकार व्यक्त किया है –
फूलों भरी जल
जिसको था पकड़ इतराता
फूल गिरी मुझपर अजगर-सी
ठंडी एक लपेट ने
मुझे आज फिर कसा
जहाँ कहीं भी कवि प्रकृति के सौंदर्य को आंकते हैं वहाँ बिंबों की एक खास तरह की ताज़गी प्रस्तुत हांती है।
काव्यगत विशेषताएँ :
1. कविता की इन पंक्तियों में पर्यावरण के प्रति कवि का गहरा दर्द झलकता है।
2. लोक-जीवन और लोक संस्कृति से गहरी जुड़ाव उनकी कविता में प्रत्यक्ष रूप से झलकती है।
3. अधिकाश प्रतीक प्रकृति और ग्रामीण जोवन से आए हैं।
4. कवि ने प्रकृति का चित्र एक दम नए ढंग से खींचा है ।
5. बिंब नए प्रकार के हैं।
6. भाषा सहज और सरल है।
3. जंगल की याद
अब उन कुल्हाड़ियों की याद रह गई है
जो मुझ पर चली थीं
उन आरों की जिन्होंने
मेरे दुकड़े-टुकड़े किए थे
मेरी संपूर्णता मुझसे छीन ली थी ।
संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ सवेशे्वर दयाल सक्सेना की काविता ‘जंगल का दर्द’ से उद्धत की गई हैं। सक्सेना नई कविता क प्रमुख कवियों में से एक हैं। पर्यावरण के पति चिता तथा मनुष्य की पौड़ा को उनकी कविता में वाणी मिली है ।
व्याख्या : कवि का अब जंगलों की नहीं बल्कि उन कुल्हाड़ययों की याद शेष रह गई है जिन कुल्हाड़ियों ने जंगल वे पेड़ों का काम तमाम कर दिया था। कवि को केवल उन आरों की याद शेष रह गई है जिन्होंने पड़ों को टुकडों में बाँट डाला था । पेड़ों का टुकड़ों में बटटना कवि को अपने व्यक्तित्व का बँटना अनुभव हांता है क्यांकि उन्हीं पेड़ों से कवि के व्यंकित्व को संपूर्णतता मिली थी। कवि को लगता है जैसे उसकी संपूर्णता उससे छीन ली गई हो – अव वह अपने- आप में इन जगलों की तरह आधे-अधूरे हैं। जंगलों के बिना कवि को अब वह दृश्य याद नहीं आता-
आकाश का साफा बाँधकर
सूरज की चिलम खींचता
बैठा है पहाड़
घुटनों पर पड़ी है नदी चादर-सी ।
काव्यगत विशेषताएँ :
1. कविता की इन प्रक्तयों में पर्यावरण के प्रति कवि का गहरा दर्द झलकता है।
2. लोक-जीवन और लोक संस्कृति से गहरी जुड़ाव उनकी कविता में प्रत्यक्ष रूप से झलकती है।
3. अधिकांश प्रतीक प्रकृति और ग्रामीण जीवन से आए हैं।
4. कवि ने प्रकृति का चित्र एक दम नए दंग से खींचा है ।
5. बिंब नए प्रकार के हैं।
6. भाषा सहज और सरल है ।
4. चूल्हे में
लकड़ी की तरह अब मैं जल रहा हूँ
बिना यह जाने, कि जो हाँड़ी चढ़ी है
उसकी खुदबुद झूठी है ।
या उससे किसी का पेट भरेगा
आत्मा तृप्त होगी ।
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियाँ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता जजग का दर्द’ से उद्धुत की गई हैं। सक्सेना नई कविता के प्रमुख कवियों में से एक हैं। पर्याववरण के प्रति चिंता तथा आदमी की पोड़ा को उनकी कविता में वाणी मिली है।
व्याख्या : सक्सेना की इन पंक्तियों में स्वपनों के दूटने, आस्थाओं के बिखरने की पस्ती तथा निराशा है । आजादी के बाद अपनी प्राकृतिक संपदा के साथ जो खिलवाड़ हुआ है, वही कवि का दर्द है ।
जगलों को यूँ कबतक नए किया जाता रहेगा – यह कवि को पता नहीं । अनिश्चितता की इस स्थिति में कवि सोचता है कि वह तो चूल्हे में जलती लकड़ी के समान है, जिस यह भी नहीी पता कि चूल्हे पर रखी हाँड़ी में कुछ पक भी रहा है या नहीं । न जाने उससे किसी का पेट भी भरेगा या फिर वह हाँड़ो यूँ ही खुदबुद कर रही है । दरअसल यहाँ कवि की वह पौड़ा व्यक्त हुई है कि वह चाहकर भो इन जंगलों को नहीं वचा पा रहा है । उसकी नियति तो केवल लकड़ी की तरह जलते रहना है। उसका दर्द है कि वह इस कुव्यवस्था को क्यों नहीं बदल पा रहा है । आखिर समाज में ऐसा कबतक होता रहेगा कि बड़ी मछली छोटी मछली का निगलती रहेगी –
ताकतवर ने सब खा लिया
कमजोर ने उच्छिष्टू (जूठन) से
संतोष कर, दर्द से मुँह छिपा लिया ।
काव्यगत विशेषताएँ :
1. कविता की इन पंक्तियों में पर्यावरण के प्रति कवि का गहरा दर्द झलकता है।
2. लोक-जीवन और लोक संस्कृति से गहरो जुड़ाव उनकी कविता में प्रत्यक्ष रूप से झलकती है ।
3. अधिकाश प्रतीक प्रकृति और ग्रामीण जीवन से आए हैं।
4. कवि ने प्रकृति का चित्र एक दम नए ढंग से खींचा है।
5. बिंब नए प्रकार के हैं।
6. भाषा सहज और सरल है ।
5. बिना यह जाने
कि जो चेहरे मेरे सामने हैं
वे मेरी आँच से
तमतमा रहे हैं
या गुस्से से,
वे मुझे उठाकर चल पड़ेंगे
या मुझ पर पानी डाल सो जाएँगे
जंगल की याद मुझे मत दिलाओ ।
संद्रा्भ : पस्तुत पंक्तियाँ सर्वेश्वर दयाल सवसना की कविता ‘जंगल का दर्द’ से उद्धत की गई हैं। सक्सेना नई कविता के प्रमुख कवियों में से एक है । पर्यावरण के प्रति चिता तथा मनुष्य की पोड़ा को उनकी कविता में वाणी मिली है ।
व्याख्या : सक्सेना की इन पंक्तियों में स्वप्नों के टूटने, आस्थाओ के बिखरने की पस्ती तथा निराशा है। आजादी के बाद अपनी प्राकृतिक संपदा के साथ जो खिलवाड़ हुआ है, वही कवि का दर्द है।
कवि यह चाहता है कि लोग भी उसकी तरह आँच से तपे, तमतमाएँ, उनके भी चेहरे गुस्से से लाल हों और वे उसका साथ देने के लिए व्यवस्था के विरोध में उठ खड़े हों । लंकिन भीतर ही भीतर कहीं एक शंका भी है – कहीं ये लोग पानी डालकर उसे ही न बुझा दें । अगर ऐसा ही होना है तो कवि लोगों से उन जगलों की याद दिलाने को नहीं कहते हैं। इन सबके बावजूद कवि के सीने में कहीं न कहीं आशा की एक चिनगारी भी है । वे कहते हैं –
तुम्हारी मृत्यु में
प्रतिबिंबित है हम सब की मृत्यु
कवि कहीं अकेला मरता है !
विशेष :
1. कविता की इन पंक्तयों में पर्यावरण के प्रति कवि का गहरा दर्द झलकता है।
2. लोक-जीवन और लोक संस्कृति से गहरी जुड़ाव उनकी कविता में पत्यक्ष रूप से झलकती है।
3. अधिकांश प्रतीक प्रकृति और ग्रामोण जीवन से आए हैं।
4. कवि ने प्रकृति का चित्र एक दम नए दंग से खींचा है ।
5. बिंब नए प्रकार के हैं।
6. भाषा सहज और सरल है।