Students should regularly practice West Bengal Board Class 9 Hindi Book Solutions Poem 2 धीरे-धीरे उतर क्षितिज से to reinforce their learning.
WBBSE Class 9 Hindi Solutions Poem 2 Question Answer – धीरे-धीरे उतर क्षितिज से
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न – 1 : ‘धीरे-धीरे उतर क्षितिज से’ कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखें ।
प्रश्न – 2 : पठित कविता के आधार पर महादेवी वर्मा के प्रकृति-प्रेम का वर्णन करें ।
प्रश्न – 3 : ‘धीरे-धीरे उतर क्षितिज से’ कविता का सारांश लिखें ।
उत्तर : महादेवी वर्मा के बारे में यह कहा जाता है कि उनके अलौकिक प्रम में भी प्रकृति का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है । छायाव्रादी कवियों की दृष्षि में तो प्रकृति सजीव मानवी रूप में दिखाई देती है, इसालिए उसमें अपनी ही भावनाओं का प्रतिबिंब दिखाई दे जाना सहज स्वभाविक है । महादेवी जो भी प्रकृति के क्रिया-कलापों में अपने प्रणय के स्वप्नों का साक्षात्कार करती हैं। यही वह भावना है जिससे कवयित्री के जीवन में आशा और उल्लास का संचार होता है –
“मुस्काता संकेत भरा नभ अलि क्या प्रिय आनेवाले हैं ।”
‘धीरे धीरे उतर क्षितिज से’ कविता में महादेवी वर्मा ने जड़ तथा चेतन में अंतर न मानते हुए उसे एक ही सत्ता का अंश माना है तथा वसत-रजनी को एक सुंदर युवती के रूप में चित्रित किया है, जो धीरे – धीरे क्षितिज से पृथ्वी पर उतर रही है ।
वे वंसतरूपी रजनी से आग्रह करती हैं कि वह अपनो वेणी में तारो को सजाए धीरे-धीरे क्षिजित से नीचे उतरे । वे चाहती हैं कि बसंत-रजनी जब पृथ्वी पर उतरे तो फूले हुए शीश को घूघट तथा चद्रमा की रुपहली किरणों को अपने कंगन की तरह सजा ले । जब वह पृथ्वी पर आए तो अपने हृदयरूपी सुंदर मांतियों को पुरी पृथ्वी पर सजा दे । उसका पृथ्वी पर आगमन पुलक से भरा है। कवयित्री का ऐसा मानना है कि एक ही सत्ता से जड़ और बतन दोनो प्रकाशित होते हैं इसलिए वह जड़ और चेतन में कोई अंतर नहीं करती हैं ।
जब वसंत रजनी क्षितिज से उतरती है तो पत्तो की मर्मर ध्वनि उसके घुँघरूओं तथा भौंर की आवाज पैरों की किकिणि की सुमधुर ध्वनि की तरह प्रतीत होते हैं। उसका प्रत्येक पग अलसता की तरंग से भरा हुआ है। कवायत्री चाहती हैं कि यह बसंत-रजनी अपनी मधुर मुस्कान से पूरी पृथ्वी पर तरल चाँदो की धारा-सी बहा दे । चद्रमा की चाँदनी ही चाँदी की धारा है । बह चाहती हैं कि जब वह धीरे-धीरे पृथ्वी पर उतरे तो उसके होठों पर मृदुल मुस्कान हो।
कबयित्री महादेवो वर्मा यह कल्पना करती हैं कि जब वसंत-रजनी धीरे-धीरे इस धरती पर उतरे ता स्वप्नों से उसकी रोमावली पुलकित हो तथा उसकी अर्जलि स्मृतियों से भरी हो। वह मलयानिलरूपी रेशमी वस्त्र को धारण किए हो। तथा उसकी श्याम-सी छाया इस संसार को उस स्थान के रूप में परिवर्तित कर दे जहाँ प्रेमी और प्रेमिका संसार से छिपकर आपस में मिलते हो। चूँकि यहाँ वसंत-रजनी की कल्पना उस प्रेमिका के रूप में की गई है जो अपने प्रेमी से मिलने जा रही है, अत: कवयित्री चाहती हैं कि वसंत-रजनी लजाते हुए, शरमाते हुए धीरे – धीरे क्षिजित से इस पृथ्वी पर उतरे ।
अपने पियतम से मिलने की कल्पना से ही वसत-रजनी का सरिता रूपी हदय सिहर-सिहर उठना है । फूल भी औसकोण के भर आने से खिल उठते हैं तथा प्रिय के आने की पद-चाप सुनकर धरती भी पुलकित हो उठती है। कवयित्री अंत में वसंत-रजनी से कहती है कि इस सौदर्य तथा मादकता भरे वर्णन में क्षितिज से धीर-धौरे सहरती हुई पृथ्ची पर आए ताकि उसका प्रिय से मिलन हो सके ।
प्रश्न – 4 : महादेवी वर्मा की काव्यगत विशेषताओं के बारे में लिखें ।
प्रश्न – 5 : महादेवी वर्मा की कविताओं की भाषागत विशेषताओं को लिखें ।
प्रश्न – 6: महादेवी वर्मा की काव्य-कला एवं भाषा-शैली की विशेषताओं के बारे में लिखें।
प्रश्न – 7: संकलित कविता के आधार पर महादेवी वर्मा के प्रकृति-चित्रण का वर्णन करें।
उत्तर :
छायावाद के प्रमुख चार स्तंभों प्रसाद, निराला, पंत एव महादेवी में महादेव वर्मा का स्थान सर्वोर्परि है।इनकी भाषा मोती के समान स्वच्छ, सुंदर एवं आकर्षक हैं। महादववी वर्मा की भाषा के बारे में डॉ० नगेन्द्र ने लिखा है –
‘ भाषा के रंगों को हल्के-हल्के स्पर्श से मिलाते हुए मृदुल तरल चित्र आँक देना महादेवी की कला की विशेषता है । उनकी कला में रंगधुली तरलता है जैसाकि पंखुड़ियों में होती है ।”
हालॉंकि महादेवी की भाषा में तत्सम् शब्दों का प्रयोग अधिक हुआ है लंकिन उसमें कानों को अप्रिय लगनेवाले शब्दों का सर्वथा अभाव है । ध्वनिपूर्ण संगीतमय भाषा इनकी अपनी विशेषता है –
सिहर-सिहर उठता सरिता-उर,
खुल-खुल पड़ते सुमन सुधा-भर,
मचल-मचल आते पल फिर-फिर,
सुन प्रिय की पद-चाप हो गई
पुलकित यह अवनी !
सरलता, सरसता, सुकुमारता, स्वाभाविकता आदि महादेवी की भाषा के प्रधान गुण हैं। इनके गोतों में आहें सोती है, आशा मुस्कराती है, प्रभात हँसता है और मचलती है किरणें। सरल से सरल शब्दों द्वारा ऊँची से ऊँची भाव-व्यजना जितनी सफलता के साथ महादेवी ने की है, उतना अन्य किसी कवि ने नहीं –
मधुंर-मधुर मेरे दीपक जल!
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
महादेवो जी के शब्दों के मधुर आसव से बेसुध पाठक ध्वनि-चमत्कार में लीन रह जाते है। शब्द-चित्रों के पीछे क्या है, वह नहीं पूछता दर असल महादेवी का काव्य उनकी निजी अनुभूतियों का काव्य है । अपनी अनुभूतियों को ये अधिकाशत : मकृति और उसके पीछे छिपी हुई सत्ता के माध्यम से व्यक्त करती हैं। अज्ञात प्रिय से मिलन की आकाक्षा भी उनके काव्य का प्रमुखं अंश रहा है –
जो तुम आ जाते एक बार !
कितनी करुणा कितने सँदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग !
उस अज्ञात प्रिय सं मिलन की आकाक्षा कभी-कभी वो अनुभूति की जिन उच्चाइयों को छूती है, वह वर्णन करना सबक वश़ की बात नहीं –
छा जाता जीवन में वसन्त
लुट जाता चिर संचित चिराग,
आँखें देती सर्वस्व वार !
निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकत हैं कि कांमलकांत पदावली, चित्रमयो भाषा के माध्यम 1 महादेवी वर्मा ने अपनी भाषा तथा अपनी अभिव्यक्ति को अत्यन प्रभावशाली बनाया है। गीतिकाव्य की जितनी विशेयताएँ है, उन सबका समावेश इनके गोतों में मिलता है । उनकी अराधना अपनी है, जोवन अपना है, उनकी कविता अपनी है और उनकी काव्य-कला की ज्योन से हमारा काव्य-मांदर जगमगा रहा है।
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. शीश-फूल कर शशि का नूतन
रश्मि-वलय सित धन अवगुण्ठन,
मुक्ताहल अभिराम बिछा दे
चितवन से अपनी !
प्रश्न :
रचयिता का नाम लिखें । पंक्ति का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर :
रवायिता आधुनिक युग को मीराबाई महादेवी वर्मा हैं
कवयित्री चाहती हैं कि वसत-रजनी जब पृथ्वी पर उतरे तो फूले हुए शीश कों घूँघट तथा चद्रमा की रुपहली किरणों कां अपन कगन की तरह सजा ले । जब वह पृथ्वी पर आए तो अपने हुदय की भावनारूपी युंदर मांतियों कों पूरी पृथ्वी पर सजा दे । उसका पृथ्वी पर आगमन पुलक से भरा हो।
2. मर्मर की सुमधुर नुपूर-ध्वनि,
अलि-गुंजित पद्यों की किंकिणि
भर पद-गति में अलस तरंगिणि,
तरल रजत की धार बहा दे
मृदु स्मित से सजनी !
प्रश्न :
रचना तथ्रा रचनाकार का नाम लिखें । पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
रचना ‘धौरे -धीरे उतर क्षितिज से’ है तथा रचना कार महादेवी वर्मा हैं।
कविता के प्रस्तुत अंश में कवयित्री वसंत-रजनी के बारे में यह कहती हैं कि पत्तों की मर्मर-धवर्वान उसके घुंघरुओं तथा भौरे की आवाज किकिणी के मधुर ध्वनि की तरह प्रतौत होते हैं। उसका प्रत्येक पग अलसता की तरंग से भरा हुआ है। कवययत्रो चाहती हैं कि वसंत-रजनी अपनी मधुर मुस्कान से पूरी पृथ्वी पर तरल चाँदी की धारा-सी बहा दे । जब वह पृथ्वी पर आए तो उसके होठों पर मधुर मुस्कान हो।
3. पुलकित स्वप्नों की रोमावलि ।
कर में हो स्पृतियों की अंजलि,
मलयानिल का चल दुकूल अलि ।
प्रश्न :
रचनाकार का नाम लिखें । पंक्ति का भाव स्पप्ट करें ।
उत्तर :
रचनाकार महादेवी वर्मा हैं।
इन पंक्तियों में कवयित्री यह कल्पना करती हैं कि जब वसत-रजनो धोंग – धौंर इस पुथ्यी एा उने नां स्वन्ं से उसकी रोमावली पुलकित हो। उसकी अंजलि स्मृतियों से भरी हों तथा वह मलयानिल रूपी रशकी चन्न पू प्ना किया हो।
4. घिर छाया सी श्याम, विश्व को
आ अभिसार बनी !
प्रश्न :
प्रस्तुत अंश कहाँ से उद्धृत है ? पंक्ति में निहित आशय को स्पE करें ।
उत्तर :
प्रस्तुत अंश महादेवो वर्मा की कविता ‘धीरे-औरे उतर क्षिजित से’ काविता स उद्रन है
कविता उस अंश में कबयित्री कहती हैं कि जब वसत-रजनी इस पृथ्वी पर उतां नो उसनी या-यी छाया इस
5. सिहर सि, उठता सरिता-उर
खुल-खुल ग़़ते सुमन सुधा-भर
प्रश्न :
कविता व नाम लिखें । पंक्ति में निहित आशय को स्पप्ठ करें।
उत्तर :
प्रस्तुत अंश महादेवो वर्मा की कविता ‘धौर-धौरे उतर क्षिजित सं’ कविता सं उद्धन है सरितारूपी ह्दय सिहर-सिहर उठता है तथा फूल भी आसकण के भर जान स खिल उठने उन्ग नीग कै क फृल प्राय: रात्रि-बेला में ही खिलते हैं।
6. सुन प्रिय की पद-चाप हो गई
पुलकित यह अवनी !
प्रश्न :
कविता का नाम लिखें । पंक्ति में निहित आशय को स्पप्र करें ।
उत्तर :
प्रस्तुत अंश महादेवी वर्मा की कविता धीरे-धीरे उनर क्षिजित से कविता मे सदून है
कवयित्री वसंत-रजनी के पृथ्वी पर आने के प्रभाव का वर्णन करतो हुई कहतो है कि उसके आंन पान वाप सुनका ही धरती भी पुलकित हो उठती है कि अब उसका प्रिय सं मिलन हांगा।
अति लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
धीरे-धीरे कौन क्षितिज से उतर रहा है ?
उत्तर :
बसत रूपी रजनी धीरें – धीरे क्षितिज से उतर रही है।
प्रश्न 2.
बसंत-रजनी ने अपनी वेणी में क्या गुंशा है ?
उत्तर :
बसंत-रजनी ने अपनी वण्ी में तारों को गुंथा है ।
प्रश्न 3.
कवयित्री बसंत-रजनी से कैसे आने को कहती है ?
उत्तर :
कवययद्री बसंत-रजनी को पुलकत हुए आंन का कहती है
प्रश्न 4.
‘धीरे-धीरे उतर क्षितिज से’ – कविता में कवयित्री ने किसका चित्रण किया है ?
उत्तर :
‘धोरे-धीरे उतर क्षितिज से’ कविता में कवयित्रो ने बसंत की रात्रि का मुट्र जिगण विय्या है।
प्रश्न 5.
कवयित्री बसंत-रजनी से किसे घूँघट की तरह सजाने को कहती है ?
उत्तर :
कवययत्री बसंत रजनी को फूले हुए शीश तथा चंद्रमा की मूपहलो किगणों कों अपनन गूंधय को नरह सजाने को कहती है ?
प्रश्न 6.
किसका आना पृथ्वी पर पुलक की तरह भरा है ?
उत्तर :
बसंत-रजनी का पृथ्वी पर आना पुलक को तरह भरा है
प्रश्न 7.
‘मुक्तहल अभिराम बिछा दे, चितवन से अपनी’ – यहाँ कौन, किससे, क्या कह रहा है?
उत्तर :
यहाँ कवयित्री बसंत रजनी से कह रही हैं कि जब वह पृथ्वी पर आए तो हृदय की भावनारूपी सुंदर मोतियों को पूरी पृथ्वी पर सजा दे|
प्रश्न 8.
किसकी ध्वनि घुँघरूओं और किंकणी की सुमधुर ध्वनि की तरह प्रतीत होते हैं ?
उत्तर :
पत्तों की मर्मर ध्वनि बसंत रजनी के घुँघरूओं तथा भौरे की आवाज पैरों की किंकणि की सुमधुर ध्वनि की तरह प्रतीत होते हैं।
प्रश्न 9.
किसका प्रत्येक पग अलसता की तरंग से भरा हुआ है ?
उत्तर :
बसंत रजनी का प्रत्येक पग अलसता की तरंग से भरा हुआ है।
प्रश्न 10.
विहँसती आ बसंत-रजनी – का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
कवयिय्री चाहती हैं कि जब बसंत-रजनी धीरेर-धीरे पृथ्वी पर उतरे तो उसके होठों पर मृदुल मुस्कान हो।
प्रश्न 11.
बसंत-रजनी की कल्पना कवयित्री ने किस रूप में की है ?
उत्तर :
बसंत-रजनी की कल्पना कवयित्री ने उस प्रेमिका के रूप में की है जो अभिसार के लिए जा रही है ।
प्रश्न 12.
‘कर में हो स्मृतियों की अंजलि’ – भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
कवयित्री चाहती हैं कि जब बसंत-रजनी पृथ्वी पर उतरे तो उसकी अंजलि स्मृतियों से भरी हो।
प्रश्न 13.
किसकी कल्पना से बसंत-रजनी का हृदय सिहर-सिहर उठता है ?
उत्तर :
प्रियतम से मिलने की कल्पना से ही बसंत रजनी का हृदय सिहर-सिहर उठता है ।
प्रश्न 14.
बसंत-रजनी का हृदय क्या है ?
उत्तर :
सरिता ही बसंत रूपी रजनी का द्दयय है ।
प्रश्न 15.
नुपुर-ध्वनि किसे कहा गया है ?
उत्तर :
पत्तों की मर्मर को ही नुपुर-ध्वनि कहा गया है ।
प्रश्न 16.
‘सजनी’ कहकर किसे संबोधित किया गया है ?
उत्तर :
‘सजनी’ कहकर बसंत-रजनी को संबोधित किया गया है।
प्रश्न 17.
किसकी पदचाप सुनकर अवनी (घटती) पुलकित हो जाती है ?
उत्तर :
प्रिय की पद्प सुनकर अवनी पुलकित हो जाती है ।
प्रश्न 18.
कवयित्री किससे तरल रजत (चाँदी) की धार बहाने को कहती है ?
उत्तर :
कवयित्री बसंत-रजनी से तरल रजत की धार बहाने को कहती है।
प्रश्न 19.
क्या भर जाने से सुमन खुल-खुल पड़ते हैं ?
उत्तर :
सुधा भर जाने से सुमन खुल-खुल पड़ते हैं।
प्रश्न 20.
‘रश्मि-वलय’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
रश्मि-वलय का अर्थ है ‘किरणों का कंगन’।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
छायावाद के जाने-माने चार स्तंभों में निम्न में से कौन नहीं हैं ?
(क) माखनलाल चतुर्वेदी
(ख) महादेवी वर्मा
(ग) निराला
(घ) प्रसाद
उत्तर :
(क) माखनलालं चतुर्वेदी ।
प्रश्न 2.
‘दीपशिखा’ किसकी रचना है ?
(क) रामकुमार वर्मा की
(ख) महादेवी वर्मा की
(ग) निराला की
(घ) प्रसाद की
उत्तर :
(ख) महादेवी वर्मा की ।
प्रश्न 3.
‘नीहार’ किसकी रचना है ?
(क) प्रसाद की
(ख) पंत की
(ग) निराला की
(घ) महादेवी की
उत्तरं :
(घ) महादेवी की।
प्रश्न 4.
‘प्रथम आयाम’ किसकी आरंभिक रचना है ?
(क) प्रसाद की
(ख) पंत की
(ग) महादेवी की
(घ) निराला की
उत्तर :
(ग) महादेवी की।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन महादेवी वर्मा का काव्य नहीं है ?
(क) नीहार
(ख) रशिम
(ग) नीरजा
(घ) क्षणपदा
उत्तर :
(घ) क्षणदा ।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन महादेवी वर्मा का काव्य नहीं है ?
(क) संध्यागीत
(ख) गीतपर्व
(ग) दीपशिक्षा
(घ) संकलित
उत्तर :
(घ) संकलित।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन महादेवी वर्मा का काव्य नहीं है ?
(क) संधिनी
(ख) परिक्रमा
(ग) पथ के साथी
(घ) नौलांबरा
उत्तर :
(ग) पथ के साथी।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से कौन महादेवी वर्मा का काव्य नहीं है ?
(क) नीलांबरा
(ख) क्षणदा
(ग) आत्मिक
(घ) दीपगीत
उत्तर :
(ख) क्षाणदा ।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से कौन-सी रचना महादेवी वर्मा की नहीं है ?
(क) श्रुखला की कड़ियाँ
(ख) क्षणदा
(ग) जूही की कली
(घ) संकलित
उत्तर :
(ग) जूही की कली।
प्रश्न 10.
महादेवी वर्मा किसे धीरे-धीरे क्षितिज से उतरने को कहती हैं ?
(क) शशि को
(ख) तारे को
(ग) वसंत को
(घ) वसंत-रजनी को
उत्तर :
(घ) वसंत-रजनी को ।
प्रश्न 11.
‘धीरे-धीरे उतर क्षितिज से’ कविता में किसका मानवीकरण किया गया है ?
(क) वसंत का
(ख) चंद्रमा का
(ग) वसंत-रजनी का
(घ) क्षितिज का
उत्तर :
(ग) वसंत-रजनी का ।
प्रश्न 12.
किसका प्रत्येक पग अलसता की तरंग से भरा हुआ है ?
(क) कवयिन्री का
(ख) संध्या-सुंदरी का
(ग) वसंत-रजनी का
‘(घ) मलयानिल का
उत्तर :
(ग) वसंत-रजनी का।
प्रश्न 13.
‘मलयानिल’ का क्या तात्पर्य है ?
(क) मलय पर्वत
(ख) नीला मलय
(ग) वसंती हवा
(घ) मलय पर्वत से आनेवाली हवा
उत्तर :
(घ) मलय पर्वत से आनेवाली हवा।
प्रश्न 14.
किसका सरिता रूपी हद्य सिहर-सिहर उठता है ?
(क) कवयित्री का
(ख) फूल का
(ग) वसंत-रजनो का
(घ) मलयानिल का
उत्तर :
(ग) वसंत-रजनी का।
प्रश्न 15.
‘अतीत के चलचित्र’ किसकी रचना है ?
(क) कैफ़ी आजमी की
(ख) पाश की
(ग) मन्नू भंडारी की
(घ) महादेवी की
उत्तर :
(घ) महादेवी की।
प्रश्न 16.
महादेवी को उनकी किस रचना पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला ?
(क) ‘यामा’ और ‘दीपशिखा’
(ख) यामा
(ग) दीपशिखा
(घ) नीहार
उत्तर :
(क) ‘यामा’ और ‘दीपशिखा’ ।
प्रश्न 17.
‘मेरा परिवार’ किस विधा की रचना है ?
(क) रेखाचित्र
(ख) निबंध
(ग) नाटक
(घ) उपन्यास
उत्तर :
(क) रेखाचित्र ।
प्रश्न 18.
‘पथ्र के साथी’ किसकी रचना है ?
(क) महादेवी की
(ख) प्रेमचंद की
(ग) निराला की
(घ) प्रसाद की
उत्तर :
(क) महादेवी की।
प्रश्न 19.
‘क्षणदा’ के रचनाकार कौन हैं ?
(क) निराला
(ख) महादेवी
(ग) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(घ) पाश
उत्तर :
(ख) महादेवी ।
प्रश्न 20
‘संधिनी’ के रचनाकार कौन हैं ?
(क) कैफी आजमी
(ख) महादेवी
(ग) उषा प्रियंवदा
(घ) धर्मवीर भारती
उत्तर :
(ख) महादेवी ।
प्रश्न 21.
‘दीपगीत’ किसकी रचना है ?
(क) अरुण कमल की
(ख) कुँवर नारायण की
(ग) महादेवी की
(घ) पाश की
उत्तर :
(ग) महादेवी की।
प्रश्न 22.
‘संकलित’ में किसके निबंध संकलित हैं ?
(क) महादेवी के
(ख) दिनकर के
(ग) महावौर के
(घ) प्रेमघंद के
उत्तर :
(क) महादेवी के।
प्रश्न 23.
‘नीलांबरा’ किसकी रचना है ?
(क) निराला की
(ख) प्रसाद की
(ग) महादेवी की
(घ) पंत की
उत्तर :
(ग) महादेवी की।
प्रश्न 24.
‘गीतपर्व’ किस कोटि की रचना है ?
(क) कविता
(ख) कहानी
(ग) निब्ध
(घ) संस्मरण
उत्तर :
(क) कविता
प्रश्न 25.
‘आत्मिक’ के रचनाकार निम्न में से कौन हैं ?
(क) पंत
(ख) प्रसाद
(ग) महादेवी
(घ) निराला
उत्तर :
(ग) महादेवी।
प्रश्न 26.
‘अतीत के चलचित्र’ किस विधा की रचना है ?
(क) उपन्यास
(ख) संस्मरण
(ग) नाटक
(घ) कविता
उत्तर :
(ख) संस्मरण ।
प्रश्न 27.
‘स्मृति की रेखाएँ’ किस विधा की रचना है ?
(क) सस्मरण
(ख) कहानी
(ग) कविता
(घ) इतिहास
उत्तर :
(क) संस्मरण ।
प्रश्न 28.
‘नीरजा’ के रचनाकार कौन हैं ?
(क) पंत
(ख) महादेवी
(ग) मीरा
(घ) प्रसाद
उत्तर :
(ख) महादेवी ।
प्रश्न 29.
निम्न में से किसने ‘साहित्य अकादमी’ की स्थापना में अपना योगदान किया ।
(क) महादेवी
(ख) प्रेमचंद
(ग) भारतेंदु
(घ) निराला
उत्तर :
(क) महादेवी ।
टिप्पणियाँ
1. शशि/चंद्रमा :- प्रस्तुत शब्द महादेवी वर्मा की कविता ‘धीरे-धीरे उतर क्षितिज से’ से लिया गया है । शाशि या चंद्रमा पृथ्वी का अकेला उपग्रह है लेकिन उससे बहुत छोटा। यह पृथ्वो के चारों ओर अंडाकार घूमता है। एक मत के अनुसार यह पृथ्वी के टूटने से बना है। अन्य मत के अनुसार यह सौरमंडल में कहीं और से भटक कर आया और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में बँध गया। मनुष्य के चंद्रमा पर उतरने के बाद चंद्रमा संबंधी पौराणिक मान्यताएँ समाप्त हो गयी।
2. मलयानिल :- प्रस्तुत शब्द महादेवी वर्मा की कविता ‘धीरे-धीरे उतर क्षितिज से’ से लिया गया है।
मलय पर्वत से आने वाली हवा को मलयानिल कहते हैं। दक्षिण में कर्नाटक राज्य से सटा हुआ है मलय पर्वत । ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में यहाँ अगस्य मुनि निवास करते थे। यहाँ चंदन के जंगल हैं। मलय पर्वत पर रंभा देवी के नाम से एक सती की मूर्ति भी स्थापित है।
3. क्षितिज :- प्रस्तुत शब्द महादेवी वर्मा की कविता ‘धीरे-धीरे उतर क्षितिज से’ से लिया गया है।
जहाँ पृथ्वी और आकाश आपस में मिलते प्रतीत होते हैं उसे क्षितिज कहते हैं । यह आभास पृथ्वी के गोल होने के कारण होता है। वास्तव में पृथ्वी और आकाश आपस में कभी मिलते नहीं हैं ।
4. मुक्ताहल :- प्रस्तुत शब्द महादेवी वर्मा की कविता ‘धीरे-धीरे उतर क्षितिज से’ से लिया गया है।
मुक्ताहल का अर्थ मोती होती है। मोती एक बहुमूल्य रत्न है जो सीप से निकलता है । मोती शब्द का प्रयोग सुंदर भावनाओं तथा किसी की सुंदरता के लिए भी होता है ।
5. अवगुंठन :- प्रस्तुत शब्द महादेवी वर्मा को कविता ‘धीरे-धीरे उतर क्षितिज से’ से लिया गया है।
जब स्त्री अपने सिर तथा चेहरे को ढकती है या घूंघट निकालती है तो उसके लिए अवगुंठन शब्द का प्रयोग किया जाता है । पूजा-पाठ के दौरान उंगलियों को मिलाकर विशेष मुद्रा बनाने को भी अवगुठन कहते हैं।
पाठयाधारित व्याकरण
WBBSE Class 9 Hindi धीरे-धीरे उतर क्षितिज से Summary
कवि परिचय
आधुनिक युग की मीरा कही जानेवाली महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जिला के एक सुशिक्षित मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था । पिताश्री गोविंद प्रसाद, एम.ए, एल-एल. बी. की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद प्रधानाध्यापक के रूप में कार्यरत् थे और माता हेमरानी देवी भी शिक्षित तथा धार्मिक विचारोंवाली कुशल गृहिणी थी । नौ वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह इंदौर के श्री रूपनायारण वर्मा से हुआ।
वहीं पर इन्होंने मिडिल से लेकर एम.ए संस्कृत तक की औपचारिक शिक्षा प्राप्त की। अपनी शैक्षणिक योग्यता के कारण एम. ए. करते ही इन्हें प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्राचार्या का पद मिला। बाद में वे वहीं की कुलपति भी बनीं। विक्रम कुमायुँ तथा दिल्ली विश्वविद्यालय ने इन्हें डी. लिट. की मानद उपाधि से विभूषित किया । ‘यामा’ और ‘दीपशिखा’ पर इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला । सन् 1987 में ये हमारे बीच नहीं रहीं।
सन् 1929 में महादेवी जीवन में आए असमय वैधव्य के कारण बौद्ध धर्म की दीक्षा लेकर बौद्ध-भिक्षुणी बनना चाहती थीं लेकिन गाँधी जी से प्रेरित होकर वे समाज-सेवा में लग गई। शिक्षा तथा साहित्य के क्षेत्र में इनका अभूतपूर्व योगदान है । सन् 1954 में साहित्य अकादमी की स्थापना में इन्होंने अपना अप्रतिम योगदान दिया । इनकी साहित्यिक सेवाओं के कारण इन्हें उत्तर प्रदेश की विधानपरिषद् की सदस्या मनोनीत किया गया ।
महादेवी वर्मा की कुल रचनाएँ निम्नांकित हैं –
काव्य – ‘नीहार’, ‘रशिम’, ‘नीरजा’, ‘संध्यागीत’, ‘गीतपर्व’, ‘दीपशिखा’, ‘संधिनी’, ‘परिक्रमा’, ‘नीलांबरा’, ‘आत्मिक’, तथा ‘दीपगीत’ आदि ।
रेखाचित्र और संस्मरण – ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘मेरा परिवार’, ‘पथ के साथी’ ।
निबंध-संकलन – ‘शृंखला की कड़ियाँ’, ‘क्षणदा’, ‘संकलित’ आदि ।
अनुवाद – सप्तपर्णा (वेदों से लेकर ‘गीत गोविंद’ तक के महत्वपूर्ण और सुंदर अंशों का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद) ।
स्मरणीय तथ्य
महादेवी जी तब प्रीवियस में पढ़ती थी। अचानक मन में भिक्षुणी बनने का विचार आया। उन्होंने लंका के बौद्ध.विहार में महास्थविर (प्रधान भिक्षुक) को पत्र लिखा –
“मैं भिक्षुणी बनना चाहती हूँ । दीक्षा के लिए लंका आऊ या आप भारत आएंगे ?”
वहाँ से उत्तर मिला –
“हम भारत आ रहे हैं, नैनीताल में ठहरेंगे, तुम वहाँ आकर मिल लेना ।”
महादेवी जी ने अपनी सब संपत्ति दान कर दी । नैनीताल पहुँची । सिंहासन पर गुरुजी बैठे थे । उन्होंने चेहरे को पंखे से ढ़क रखा था । उन्हें देखने को महादेवी जी दूसरी ओर बढ़ीं, उन्होंने मुँह फेरकर फिर से चेहरा ढ़क लिया । वे देखने की कोशिश करतीं और महास्थविर चेहरा ढक लेते। कई बार यही हुआ । जब उनके सचिव महोदय महादेवी जी को वापस पहुँचाने बाहर तक आए, तब उन्होंने उनसे पूछा, “महास्थविर मुख पर पंखा क्यों रखते हैं ? सचिव ने उत्तर दिया, “वे स्त्री-का मुँह नहीं देखते ।”
उत्तर सुनते ही महादेवी जी ने भी साफ-साफ कह दिया, ” देखिए, इतने दुर्बल व्यक्ति को हम गुरु नहीं बनाएंगे आत्मा न तो स्त्री है, न पुरुष, केवल मिट्टी के शरीर को इतना महत्व कि यह देखेंगे, वह नहीं देखेंगे ।”
इस तरह महादेवी जी बौद्ध भिक्षुणी बनते-बनते रह गई ।
ससंदर्भ आलोचनात्मक व्याख्या
1. घीरे धीरे उतर क्षितिज से
आ वसन्त-रजनी
तारकमय वन वेणीबन्धन ।
शीश-फूल कर शशि का नूतन,
रश्मि-वलय सित धन अवगुण्ठन,
मुक्ताहल अभिराम बिछा दे
चितवन से अपनी !
पुलकती आ वसन्त-रजनी !
शब्दार्थ :
- क्षितिज = जहाँ पृथ्वी और आकाश मिलते प्रतीत होते हैं ।
- तारकमय = तारों से आच्छादित ।
- शीश = एक प्रकार का घास ।
- शशि = चन्द्रमा ।
- नूतन = नया ।
- रशिम-वलय = किरणों का कंगन (गोल घेरा) ।
- सित = चाँदी, शुक्ल पक्ष ।
- अवगुण्ठन = घूँघट डालना ।
- मुक्ताहल = मोती ।
- अभिराम = सुन्दर ।
- चितवन = हृदय ।
- वसन्त-रजनी = वसंतरूपी रात्रि ।
संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ महादेवी वर्मा की कविता ‘धीरे-धीरे उतर क्षितिज से’ से ली गई हैं।
व्याख्या : प्रस्तुत अंश में महादेवी वर्मा ने वसंत की रात्रि का बड़ा ही सुंदर चिर्रण किया है। वे वंसतरूपी रजनी से आग्रह करती हैं कि वह अपनी वेणी में तारों को सजाए धीरे-धीरे क्षिजित से नीचे उतरे । वे चाहती हैं कि वसंत-रजनी जब पृथ्वी पर उतरे तो फूले हुए शीश को घूंघट तथा चंद्रमा की रुपहली किरणों को कंगन की तरह सजा ले। जब वह पृथ्वी पर आए तो अपने हृदय की भावना-रूपी सुंदर मोतियों को पूरी पृथ्वी पर सजा दे । उसका पृथ्वी पर आगमन पुलक से भरा है। कवयित्री का ऐसा मानना है कि एक ही सत्ता से जड़ और चेतन दोनों प्रकाशित होते हैं इसलिए वह जड़ और चेतन में कोई अंतर नहीं करती हैं।
काव्यगत विशेषताएँ :
1. यहाँ कवयित्री ने जड़ और चेतन में अंतर नहीं मानते हुए वसंत की रात्रि को सुंदर युवती के रूप में चित्रित किया है।
2. पूरी कविता में मानवीकरण अलंकार है।
3. हृदयरूपी मोतियों से ही प्रियतम का पथ आलोकित किया जा सकता है।
4. भाषा तत्सम् प्रधान खड़ी बोली हिन्दी है ।
2. मर्मर की सुमधुर नुपूर-ध्वनि,
अलि-गुंजित पद्यों की किंकिणि
भर पद-गति में अलस तरंगिणि,
तरल रजत की धार बहा दे
मृदु स्मित से सजनी !
विहँसती आ वसन्त-रजनी !
शब्दार्थ :
- सुमधुर = अत्यंत ही मधुर ।
- मर्मर = पत्तों की आवाज ।
- नुपूर = घुंघरु ।
- अलि-गुंजित = भौरे की आवाज से गूंजता हुआ ।
- पदमों = कमलों ।
- किकणि = पैरों का एक प्रकार का आभूषण, जिसमें से चलने के समय मधुर आवाज होती है ।
- पद-गति = पैरों की गति ।
- अलस = आलस्य ।
- मृदुस्मित = मीठी मुस्कान ।
- सजनी = सखी, प्रेमिका ।
- बिहँसती = मचलती।
संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ महादेवी वर्मा की कविता ‘धीरे-धीरे उत्तर क्षितिज से’ से ली गई हैं।
व्याख्या : कविता के इस अंश में कवयित्री महादेवी वर्मा ने जड़ तथा चेतन में अंतर न मानते हुए उसे एक ही सत्ता का अंश माना है । यही कारण है कि उन्होंने वसंत-रजनी को एक सुंदर युवती के रूप में चित्रित किया है जो धीरे-धीरे क्षितिज से उतर रही है ।
जब वसंत रजनी क्षितिज से उतरती है तो पत्तों की मर्मर ध्वनि उसके घुँघरुओं तथा भौरे की आवाज पैरों की किंकिणि की सुमधुर ध्वनि की तरह प्रतीत होते हैं । उसका प्रत्येक पग अलसता की तरंग से भरा हुआ है। कवयित्री चाहती हैं कि यह वसंत-रजनी अपनी मधुर मुस्कान से पूरी पृथ्वी पर तरल चाँदी की धारा-सी बहा दे । चंद्रमा की चाँदनी ही चाँदी की धारा है । वह चाहती हैं कि जब वह धीरे-धीरे पृथ्वी पर उतरे तो उसके होठों पर मृदुल मुस्कान हो।
काव्यगत विशेषताएँ :
1. प्रस्तुत अंश में कवयित्री ने जड़ और चेतन में अंतर नहीं मानते हुए वसंत की रात्रि को सुंदर युवती के रूप में चित्रित किया है ।
2. पूरी कविता में मानवीकरण अलंकार है ।
3. संपूर्ण प्रकृति का सौंदर्य ही इस वसंत-रजनी का सौंदर्य है ।
4. चाँदनी को ‘तरल रजत की धार’ के रूप में देख पाना केवल महादेवी के काव्य में ही संभव है ।
5. भाषा तत्सम् प्रधान खड़ी बोली हिन्दी है।
3. पुलकित स्वप्नों की रोमावलि ।
कर में हो स्पृतियों की अंजलि,
मलयानिल का चल दुकूल अलि ।
घिर छाया सी श्याम, विश्व को
आ अभिसार बनी !
सकुचती आ वसन्त-रजनी !
शब्दार्थ :
- रोमावलि = रोमों की पंक्ति जो नाभि से ऊपर की और होती है ।
- कर = हाथ ।
- स्मृतियों = यादों ।
- अंजलि = कर-संपुट (दोनों हथेलियाँ मिलकर जब एक पात्र का रूप लेती है।)
- मलयानिल = मलय पर्वत से आनेवाली हवा ।
- दुकूल = पद्ट वस्व ।
- अभिसार = वह स्थान जहाँ प्रेमी-प्रेमिका मिलते हैं ।
- सकुचती = सकुचाते, शरमाते हुए।
संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ महादेवी वर्मा की कविता ‘धीरे-धीरे उत्तर क्षितिज से’ से ली गई हैं।
व्याख्या : कविता के इस अंश में कवयित्री महादेवी वर्मा यह कल्पना करती हैं कि जब वसंत-रजनी धीरे-धीरे इस धरती पर उतरे तो स्वप्नों से उसकी रोमावली पुलकित हो तथा उसकी अंजलि स्मृतियों से भरी हो । वह मलयानिलरूपी रेशमी वस्व को धारण किए हो । तथा उसकी श्याम-सी छाया इस संसार को उस स्थान के रूप में परिवर्तित कर दे जहाँ प्रेमी और प्रेमिका संसार से छिपकर आपस में मिलते हों । चूंकि यहाँ वसंत-रजनी की कल्पना उस प्रेमिका के रूप में की गई है जो अपने प्रेमी सं मिलने जा रही है अतः कवयित्री चाहती है कि वसंत-रजनी लजाते हुए, शरमाते हुए धीरे-धौरे क्षिजित से इस पृथ्वी पर उतरे ।
काव्यगत विशेषताएँ :
1. प्रस्तुत अंश में कवयित्री ने जड़ और चंतन में अंतर नहीं मानते हुए वसंत की रात्रि को सुंदर युवती के रूप में चित्रित किया है।
2. पूरी कविता में मानवीकरण अलंकार है
3. यहाँ वसंत-रजनी का चित्रण उस युवती के रूप में किया गया है जो अपने प्रेमी से मिलने जा रही हो।
4. यह पूरी पृथ्वी ही वसंत-रजनी के लिए अभिसार के समान है।
5. भाषा तत्सम् प्रधान खड़ी बोली हिन्दी है ।
4. सिहर सिहर उठता सरिता-उर,
खुल-खुल पड़ते सुमन सुधा-भर,
मचल-मचल आते पल फिर फिर,
सुन प्रिय की पद-चाप हो गई
पुलकित यह अवनी !
सिहरती आ वसन्त-रजनी
शब्दार्थ :
- सरिता-उर = नदी का हृदय ।
- सुमन = फूल ।
- सुधा = अमृत ।
- पद-चाप = पैरों की आवाज।
- अवनी= धरती ।
संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ महादेवी वर्मा की कविता ‘धौरे-धौरें उतर क्षितिज से’ से ली गई हैं।
व्याख्या : कविता के इस अंश में कवयित्री महादेवो वमां ने वसंत-रजनी को प्रमिका के रूप में चित्रित किया है जो अपने प्रियतम से मिलने जा रही है । अपन प्रियतम से मिलन की कल्पना से ही वसंत-रजनी का सरितारूपी हंदय सिहरसिहर उठता है । फूल भी औसकोण के भर आने से खिल उठते हैं तथा प्रिय के आने की पद-चाप सुनकर धरती भी पुलककत हो उठती है । कवयित्री अंत में वसंत-रजनी से कहती है कि इस सौदर्य तथा मादकता भरे वर्णन में क्षितिज से धोरे – धीरे सिहरती हुई पृथ्वी पर आए ताकि उसका प्रिय सं मिलन हो सके ।
काव्यगत विशेषताएँ :
1. प्रस्तुत अंश में कव्वयित्री ने जड़ और चंतन में अंतर नहीो मानते हुए वसंत की रात्रि को सुंदर युवती के रूप में चित्रित किया है।
2. पूरी कविता में मानवीकरण अलंकार है ।
3. वसंत-रजनी के आगमन का प्रभाव सरिता, सुमन तथा पृथ्वी पर भी व्यापक रूप सं चड़तहै ।
4. वसंत-रजनी रूपी प्रिय के आंनें धरतो भी पुर्लकित हो उठती है।
5. ‘सिहर-सिहर’, ‘मचल-मचल’ तथा ‘फिर-फिर’ में छेकानुमास अलंकार है।
6. भाषा तत्सम पधान खड़ी बाली हिन्दी है ।