Students should regularly practice West Bengal Board Class 9 Hindi Book Solutions Poem 1 विनय के पद to reinforce their learning.
WBBSE Class 9 Hindi Solutions Poem 1 Question Answer – विनय के पद
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न – 1 : पठित पदों के आधार पर तुलसीदास की भक्ति-भावना का वर्णन करें।
प्रश्न – 2 : तुलसीदास की भक्ति-भावना पर प्रकाश डालें ।
प्रश्न – 3 : एक भक्त कवि के रूप में तुलसीदास का वर्णन करें ।
प्रश्न – 4 : तुलसी असाधारण कवि, लोकनायक और महात्मा थे – पठित पदों के आधार पर वर्णन करें।
प्रश्न – 5 : तुलसी अपने युग के प्रतिनिधि कवि थे – वणर्न करें ।
उत्तर :
गोस्वामी तुलसीदास ने एक स्थान पर कहा है –
कीरति भनित भूति भल सोई,
सुरसरि सम सब कह हित होई ।
अर्थात् यश, कविता और वैभव वही श्रेष्ठ है, जिससे गंगा के समान सबका कल्याण हो। इस दृष्टिकोण से तुलसी की समस्त भक्ति-काव्य सभी प्रकार के व्यक्तियों के लिए उपयोगी है। ऊँच-नीच, योग्य-अयोग्य सभी उनमें से अपने काम की बाते निकाल सकते है ।
पाठ में संकलित पदों में तुलसीदास श्रीराम के प्रति अपनी एकनिष्ठ भक्ति-भावना को प्रदर्शित करते हुए कहते हैं कि श्रीराम की भक्तिरूपी गंगा से ही मनुष्य इस भवबंधन से छुटकारा पा सकता है। इसके अतिरिक्त किसी अन्य की उपासना करना तो ओसकण से प्यास बुझाने की तरह है –
ऐसी मूढ़ता या मन की ।
परिहरि राम-भगति-सुरसरिता, आस करत ओसकन की ।।
तुलसीदास का ऐसा मानना है कि जब तक भगवान एवं गुरू की करुणा नहीं होगी तब तक हमारी बुद्धि, हमारा विवेक स्वच्छ नहीं होगा । बिना विवेक के कोई संसाररूपी सागर को पार नहीं कर सकता –
तुलसीदास हरि-गुरू-करुना बिनु, बिमल बिबेक न होई।
बिनु बिबेक संसार-घोर-निधि, पार न पावै कोई ।।
जबतक मन सासारिक विषय-वासनाओं में डूवा रहेगा तबतक इस संसार के विभिन्न योनियों में जन्म लेकर ही भटकना पड़ेगा । विषय-वासनाओं से युक्त मन को कभी सपने में भी सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती –
जब लगि नहि निज हुद प्रकास, अरु बिघय-आस मन माहीं।
तुलसीदास तब लगि जग-जोनि भ्रमत, सपने हुँ सुख नाहीं ।।
अंत में तुलसीदास श्रौ राम से यह विनतो करते हैं कि आखिर कबतक वे इस दशा में रहेंगे। इस दशा से निकलने का एक ही मार्ग बचा है कि वे समस्त सासारिक माया-माह, दुख-सुख से अपने-आप को विरक्त करके प्रभु की भक्ति मे लोन कर लें –
परिहरि देह-जनित चिंता, दुख-सुखा समवुद्धि सहौंगो ।
तुलसीदास प्रभु यहि पथ रहि, अबिचल हरि भक्ति लहौंगो ।।
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि भक्ति के क्षेत्र में तुलसीदास अपने समय के परितिनिधि कवि.थे । सूरदास प्रेम और वात्सल्य को छोड़कर अन्य किसी भाव को सफलतापूर्वक व्यक्त भी न कर सके, परंतु तुलसी की प्रतिभा सर्वतोमुखी रही और उन्होंने जीवन के प्रत्यक क्षेत्र को प्रकाशित किया । तुलसीदास की ‘विनय-पत्रिका’ में जो गूढ़ आध्यात्मिक विचार है, उनका निर्णय करने में विद्वान आज तक समर्थ नहीं हो पाए हैं। साहित्यिक दृष्टि से ‘विनय-पत्रिका’ इनकी सर्वश्रेष्ठ रचना है।
तुलसौदास अपनी इन्हीं विशेषताओ के कारण हिन्दो साहित्याकाश के शशि हैं । उनके दिव्य संदेश ने मृतमाय हिन्दू जाति के लिए संजीवनी का कार्य किया । उनका भक्त, कवि और लोकनायक तीनों रूप मिलकर एकाकार हो गए हैं। इन तोनों रूपों में उनका कोई रूप किसी रूप में कम नहीं। नि:संदेह तुलसी और उनका काव्य दोनों ही महान है। कविता के विषय में तो साहित्यक विद्वानों की प्रसिद्ध उक्ति है –
‘कविता करके तुलसी न लसे, कविता लसी पा तुलसी की कला ।’
प्रश्न – 6 : तुलसीदास की भाषा-शैली के बारे में लिखें ।
प्रश्न – 7 : तुलसीदास की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालें ।
प्रश्न – 8 : तुलसी की भाषा पर विचार कीजिए ।
प्रश्न – 9 : तुलसी की भाषा की विशेषताओं के बारे में लिखें ।
उत्तर :
तुलसी जैसे बहुमुखी प्रतिभा के कवि किसी भाषा को सौभाग्य से ही मिलते हैं। इनके जैसे बहु-व्यक्तित्व संपन्न कवि को प्राप्त करने का सौभाग्य हिन्दी को ही प्राप्त हुआ है। अपने समय में प्रचलित अवधी और ब्नज दोनों का प्रयोग इन्होंने पूरे अधिकार के साथ किया है। अवधी के सर्वश्रेष्ठ कवि होने का गौरव इन्हीं को प्राप्त हुआ ।
अपने समय और अपने समय से पहले की प्रर्चालत सभी काव्य-शैलियों को अपनाने में इन्हें अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई । चन्द के छपय, कुण्डलियाँँ, कबीर के दोहे-पद, सूर और विद्यापति की गीति-पद्धात, रहीम के बरवै, गय आदि की सवैया-पद्धात एवं तत्कालीन जनता में प्रचलित सोहर, नहछू, गोत आदि रागों में इन्होंन कविता की है । साथ ही जन-भाषा को अपनाकर कवि ने बड़ी दूरदर्शिता का परिचय दिया । इन सबके बावजूद तुलसी ने अहकारशून्यता के साथ लिखा है –
“भाषा भनित मोर मति थोरी, हैंसिबे जोग हैँसे नहिं खोरी ।”
रामर्चरितमानस में जहाँ-तहाँ लिखित संस्कृत-श्लोको से इनके संस्कृत भाषा के प्रगाढ़ ज्ञान का पता तो लग ही जाता है । सच बात तो यह है कि तुलसी का उद्देश्य जनता के जीवन को सच्ची ज्योति से जगमगाना था। भाव के अनुकूल भाषा लिखकर कवि को अपने उद्देश्य में पूर्ण सफलता मिली है – इसमे कोई संदेह नहीं । जायसी अवधी लिख सकते थे और सूर बजभाषा, पर तुलसी ने अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं में समान अधिकार के साथ कमाल का लिखा है।
भारत के विभिन्न जनपदों में प्रचलित लोक-संस्कृति के विभिन्न रूपों, संस्कार गीतों, पर्व-त्योह्हार और विभिन्न ॠतुओं के लोकगीतों आदि से तुलसी ने लोकोक्ति तथा दृष्थांत भी लिए जो ठठ ग्रामौण जीवन से लिए गए हैं । इसके अतिरिक्त उन्होंने उपमान, रुपक, प्रतोक, बिम्ब, मुहावरे आदि भी इसी लोक-संस्कृति से ग्रहण किए हैं ।
शब्द-चयन की दृष्टि से भी तुलसीदास संकीर्णतावाद से मुक्त थे । तुलसी की रचनाओं में ब्रज, अवधी, बुंदेलखंडी, भोजपुरी तथा कुछ नितांत स्थानीय शब्दों के साथ अरबी और फारसी भाषा के शब्द भी आ जाते हैं। तुलसी ने अपनी रचनाओं में इतने अधिक अरबी-फारसी शब्दों का प्रयोग किया है, जितना शायद हिंदी के किसी भी पुराने या आधुनिक कवि ने नहीं किया।
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. ऐसी मूढ़ता या मन की ।
परिहरि राम-भगति-सुरसरिता, आस करत ओसकन की ।।
प्रश्न :
प्रस्तुत अंश कहाँ से लिया गया है ? पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
प्रस्तुत अंश तुलसीदास के ‘विनय-पत्रिका’ से लिया गया है।
तुलसीदास कहते हैं कि यह तो मन की मूर्खता ही है जो राम की भक्तिरूपी गंगा को छोड़कर अन्य देवताओं की भक्तिरूपी ओसकण से अपना प्यास बुझाने की आशा करता है ।
2. धूम-समूह निरखि चातक ज्यों, तृषित जानि मति घन की
नहिं तहाँ सीतलता न बारि, पुनि हानि होत लोचन की ।।
प्रश्न : प्रस्तुत पंक्ति के रचनाकार कौन हैं ? पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
प्रस्तुत पक्ति के रचनाकार भक्त कवि तुलसीदास हैं।
तुलसीदास कहते हैं कि चातक पक्षी धुएँ को देखकर उसे बादल समझ अपनी प्यास बुझाना चाहता है लेकिन वहाँ उसे न तो शीतलता ही मिलती है और न जल ही । धुएँ के कारण वह अपनी आँखों को भी कष्ष पहुँचाता है ।
3. कहँ लों कहौं कुचाल कृपानिधि, जानत हौ गति जन की ।
तुलसीदास प्रभु हरहु दुसह दुख, करहु लाज निजपन की ।।
प्रश्न :
रचनाकार का नाम लिखें । पंक्ति का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर :
रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास हैं।
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से तुलसौदास श्रौरामसे विनती करते हुए कहते हैं कि मेरे मनके कुचाल के बारे में आप तो जानते ही हैं अतः मेरे दुःख को दूर कर अपने वचन का निर्वाह करें ।
4. माधव ! मोह-फाँस क्यों टूटै ।
बाहर कोटि उपाय करिय, अभ्यंतर ग्रंथि न छूटै ।।
प्रश्न :
प्रस्तुत पंक्तियाँ कहाँ से उद्धुत हैं ? पंक्तियों में निहित भाव को स्पष्ट करें ।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियाँ गोस्वामी तुलसीदास की ‘विनय पत्रिका’ से उद्धृत हैं ।
पद की इन पंक्तियों में तुलसीदास कहते हैं कि हे प्रभु ! मेरी मोह रूपो यह फाँसी कब छूटेगी? बाहर से मैं कितना ही उपाय करूँ लेकिन अंदर की यह गाँठ छूटने वाली नहीं है।
5. धृतपूरन कराह अंतरगत, ससि-प्रतिबिम्ब दिखावै ।
ईंधन अनल लगाय कलपसत, औटत नास न पावै ।।
प्रश्न :
पंक्तियों के रचनाकार का नाम लिखें । पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
इन पक्तियों के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास हैं।
इन पंक्तियों के माध्यम से तुलसीदास यह कहना चाहते हैं कि जिस प्रकार घी से भरे कड़ाह में चन्द्रमा की जो परछाई होती है, वह सौ कल्प तक ईधन और आग लगाकर औटने से भी नष्ट नहीं हो सकती । इसी प्रकार जब तक मोह रहेगा तब तक आवागमन का भी बंधन रहेगा ।
6. तरु-कोटर महँ बस बिहंग, तरु काटे मरै न जैसे ।
साधन करिय बिचार-हीन, मन सुद्ध होइ नहिं तैसे ।।
प्रश्न :
रचनाकार का नाम लिखें । पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास हैं।
तुलसीदास कहते हैं कि जिस प्रकार किसी पेड़ के कोटर में रहने वाले पक्षी को पेड़ काटने से नहीं मारा जा सकता, जैसे साँप के बिल के बाहर अनेक प्रकार से प्रहार करने से भी साँप को नहीं मारा जा सकता ठीक उसी प्रकार बिना विवेक के मन शुद्ध नहीं हो सकता
7. साधन करिय बिचार-हीन, मन सुद्ध होइ नहिं तैसे ।।
अंतर मलिन बिषय मन अति, तन पावन करिय पखारे ।।
प्रश्न :
प्रस्तुत अंश के रचनाकार का नाम लिखें । पंक्ति में निहित आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
प्रस्तुत अंश के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास हैं।
इस अंश में तुलसीदास कहते हैं कि बिना विवेक के मन शुद्ध नहीं हो सकता ठीक वैसे ही जैसे शरीर को खूब रगड़रगड़ कर धोने से मन पवित्र नहीं हो सकता।
8. तुलसीदास हरि-गुरु-करुना बिनु, बिमल बिबेक न होई ।
बिनु बिबेक संसार-धोर-निधि, पार न पावै कोई ।।
प्रश्न :
कवि का नाम लिखें । पंक्ति के भाव को स्पप्ट करें ।
उत्तर :
कवि गोस्वामी तुलसीदास हैं।
प्रस्तुत पंक्तियों में तुलसीदास कहते हैं कि जब तक भगवान और गुरू की करुणा हमारे ऊपर नहीं होगी, तब तक विवेक नहीं होगा । बिना विवेक के कोई इस घोर संसार से पार नहीं हो सकता।
9. बिनु तव कृपा दयालु ! दास-हित ! मोह न छूटै माया ।।
बाक्य-ग्यान अत्यंत निपुन, भव पार न पावै कोई ।।
प्रश्न :
दयालु किसे कहा गया है ? पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
दयालु श्रीराम को कहा गया है।
तुलसीदास कहते है कि हे राम ! मेरी समझ से आपकी कृपा के बिना माया-मोह से छुटकारा नहीं मिल सकता। ठीक वैसे ही जैसे केवल घर के बीच दीपक की चर्चा करने से अंधकार दूर नहीं हो सकता ।
10. जैसे कोई एक दीन दुखित अति, असन-हीन दुख पावै ।
चित्र कलपतरु कामधेनु गृह, लिखे न बिपत्ति नसाबै ।।
प्रश्न :
पंक्ति के रचनाकार कौन हैं ? पंक्ति में निहित आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर :
पंक्ति के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास हैं।
पांक्ति का निहित आशय है – जिस प्रकार एक व्यक्ति जो भोजन के अभाव में दुःख पा रहा हो, उसके कहों का निवारण घर में कल्पतर या कामधेनु का चित्र बनाकार नहीं किया जा सकता ।
11. घटरस बहु प्रकार भोजन कोड, दिन अरु रैन बखानै ।
बिनु बोले संतोष-जनित सुख, खाइ सोइ पै जानै ।।
प्रश्न :
षटरस (षडरस) क्या है ? पंक्ति का अर्थ लिखें ।
उत्तर :
षटरस का अर्थ है – छ: प्रकार के ख्वाद – मीठा, नमकीन, कड़वा, तीता, कसैला और खट्टा।
तुलसीदास कहते हैं कि भोजन करने के बाद जो संतुष्षि होती है वह संतुष्टि केवल छ: रसों से परिपूर्ण भोजन की बाते करने से नहीं हो सकती । इन छ: प्रकार के स्वादों के सुख को वही जानता है, जिसने खाया है ।
12. जब लगि नहिं निज हृद प्रकास, अरु बिषय-आस मन माहीं ।
तुलसीदास तब लगि जग-जोनि भमत, सपनेहूँ सुख नाहीं ।।
प्रश्न :
रचनाकार का नाम लिखें । पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर :
रचनाकार का नाम गोस्वामी तुलसीदास है।
तुलसीदास कहते हैं कि जब तक इदय में ज्ञानरूपी प्रकाश नहीं होगा और मन विषय-वासनाओं में ही भटकता रहेगा तब तक सपने में भी सुख की प्राप्ति नहीं होगी तथा इस जगत के विभिन्न योनियों में जन्म लेकर भटकना पड़ेगा।
13. कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो ।
श्री रघुनाथ-कृपालु-कृपा तें, संत-सुभाव गहौंगो ।।
प्रश्न :
पंक्ति के रचनाकार का नाम लिखें । पंक्ति का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर :
पंक्ति के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास हैं।
गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि भला मैं कब तक इस दशा में रहूँगा। कब मेरे ऊपर श्री रघुनाथ की कृपा होगी तथा उनकी कृपा से मै संतों के स्वभाव को ग्रहण कर पाऊँगा।
14. जथालाभ संतोष सदा, काहू सों कछु न चहौंगो ।
परहित-निरत निरंतर, मन-क्रम-बचन नेम निबहौंगो ।।
प्रश्न :
पंक्ति कहाँ से उद्धुत है । पंक्ति का अर्थ लिखें ।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति तुलसीदास की ‘विनय-पत्रिका’ से उद्दृत है ।
तुलसीदास कहते हैं कि जब श्रीराम की कृपा होगी तो मैं संतों के स्वभाव को ग्रहण कर लूँगा। मुझे जितना मिलेगा उसी में संतोष कर लूंगा, किसी से कुछ न चाहूँगा । दूसरों की भलाई में रत रहकर मन, वचन और कर्म से नियमों का पालन करूँगा ।
15. परुष बचन अति दुसह स्रवन सुनि, तेहि पावक न दहौंगो ।
बिगत मान, सम सीतल मन, पर गुन नहिं, दोष कहौंगो ।।
प्रश्न :
कवि का नाम लिखें । पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
कवि भक्तिकाल के सिरमौर कवि गोस्वामी तुलसीदास हैं।
पद के इस अश में तुलसीदास कहते हैं कि श्रीराम की कृपा होने पर मैं दूसरों के कठोर-असहनीय वचन सुनकर भी उसकी आग में नहीं जलूँगा । अपने मान को भूलकर, मन को शीतल रखूंगा तथा जीवन में आने वाले सुख-दुःख दोनों को समान भाव से ग्रहण करूँगा ।
16. परिहरि देह-जनित चिंता, दुख-सुख समबुद्धि सहौंगो
तुलसीदास प्रभु यहि पथ रहि, अबिचल हरि-भक्ति लहौंगो ।।
प्रश्न :
कवि कौन हैं ? पंक्ति का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर :
कवि गोस्वामी तुलसीदास हैं।
तुलसीदास कहते हैं कि श्रीराम की कृषा होने पर मैं संतों के समान देह से जुड़ी चिंताओं को छोड़कर, दुःख और सुख दोनों को समान बुद्धि से ग्रहण करूगा । मैं भक्ति के इसी पथ पर चलकर अविचल भाव से ईश्वर की भक्ति करूगगा।
अंति लघूत्तरीय/लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
तुलसीदास ने राम-भक्ति की तुलना किससे की है ?
उत्तर :
सुरकरिता अर्थात् गंगा से ।
प्रश्न 2.
चातक को धुएँँ से किसका भ्रम होता है ?
उत्तर :
बादल का।
प्रश्न 3.
पुनि हानि होत लोचन की – किसके लोचन की हानि होती है और क्यों ?
उत्तर :
चातक के लोचन की हानि होती है क्योंकि वह धुएँ के समूह को ही बादल समझ लेता है।
प्रश्न 4.
गरूड़ काँच के फर्श में अपनी छाया देखकर क्या सोचता है ?
उत्तर :
जब गरूड़ काँच के फर्श में अपनी छाया देखता है तो उसे अपना शिकार समझता है जिससे वह अपनी भूख मिटाएगा ।
प्रश्न 5.
किससे अपने दासों के मन की दशा छिपी नहीं है ?
उत्तर :
श्रीराम से अपने दासो (भक्तों) के मन की दशा छ्छिपी नहीं है ।
प्रश्न 6.
तुलसीदास श्रीराम से क्या प्रार्थना करते हैं ?
उत्तर :
तुलसीदास श्रीराम से यह प्रार्थना करते है कि आप मेरे दुःखो को दूर करके भक्तों के उद्धार के वचन को पूरा करें।
प्रश्न 7.
तुलसीदास ने कृपा का भण्डार किसे कहा है ?
उत्तर :
श्रीराम को ।
प्रश्न 8.
तुलसीदास ने ‘माधव’ कहकर किसे संबोधित किया है ?
उत्तर :
श्रीराम को ।
प्रश्न 9.
बाहर से करोड़ों कोशिश करके भी कौन-सी गांठ नहीं छूट सकती ?
उत्तर :
बाहर से करोड़ों कोशिश करने पर भी हुदय की अज्ञानतारूपी गांठ नहीं छूट सकती ।
प्रश्न 10.
तुलसीदास के अनुसार किसकी दया के बिना विवेक की प्राप्ति नहीं होगी ?
उत्तर :
ईश्वर तथा गुरु की द्या के बिना विवेक की प्राप्ति नहीं हो सकती है ।
प्रश्न 11.
इस गहन संसार-सागर से कैसे पार हुआ जा सकता है ?
उत्तर :
विवेक एवं ईश्वर कृपा की सहायता से हो इस गहन संसार-सागर से पार हुआ जा सकता है।
प्रश्न 12.
अस कुछु समुझि परत रघुराया – में रघुराया का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
श्रीराम ।
प्रश्न 13.
वाक्य-ग्यान अत्यंत निपुन, भव पार न पावै कोई – अर्थ स्पष्ट करें ।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ है कोई बाचक कितना ही ज्ञानवान हो लेकिन केवल इसी के भरोसे वह इस भव-सागर को पार नहीं कर सकता|
प्रश्न 14.
कौन-से चित्र से घर की विपत्ति दूर नहीं हो सकती ?
उत्तर :
कल्पवृक्ष तथा कामधेनु के चित्र से ।
प्रश्न 15.
चित्र कल्पतरु कामधेनु ग्रह, लिखे न बिपत्ति नसाबै – अर्थ स्पष्ट करें ।
उत्तर :
कल्पतरु तथा कामधेनु का चित्र धर में बनाने से विप्ति का नाश नहीं हो सकता ।
प्रश्न 16.
पटरस बहु प्रकार भोजन कोड़ दिन अरु रैन बखाने – अर्थ स्पष्ट करें ।
उत्तर :
तुलसीदास कहते हैं कि केवल छः रसों से परिपूर्ण भोजन की बाते करने से संतुष्टि नहीं मिल सकती है।
प्रश्न 17.
तुलसीदास के अनुसार कब तक विभिन्न योनियों में जन्म लेकर भटकना पड़ेगा ?
उत्तर :
जब तक मन में सांसारिक विषय-वासनाओं की आशा बनी है तब तक इस संसार के विभिन्न योनियों में ही जन्म लेकर भटकना पड़ेगा|
प्रश्न 18.
कबहुँक हौँ यहि रहनि रहौंगे – यह किसकी उक्ति है ? अर्थ लिखें ।
उत्तर :
यह तुलसीदास को उक्ति है । इसका अर्थ है कि आखिर में कब तक इस दशा में रहूँगा।
प्रश्न 19.
किसकी कृपा से तुलसीदास संतों का – सा स्वभाव ग्रहण करेंगे ?
उत्तर :
श्रीराम की कृपा से तुलसीदास संतों का-सा स्वभाव ग्रहण करेंगे ।
प्रश्न 20.
चातक किसका प्रतीक है ?
उत्तर :
चातक एकनिष्ठ भक्त का प्रतीक है।
प्रश्न 21.
तुलसीदास ने मन को मूर्ख क्यों कहा है ?
उत्तर :
यह मन राम भक्तिरूपी गगा को छोड़कर अन्य देवो की भक्तिरूपी ओसकण से अपनी प्यास बुझाना चाहता है इसलिए तुलसीदास ने मन को मूर्ख कहा है।
प्रश्न 22.
चातक किसकी ओर निहारता है और क्यों ?
उत्तर :
चातक स्वाति नक्षत्र के बादलो की ओर निहारता है? क्योंकि वह प्यास केवल स्वाति नक्षत्र की बूँदों से ही बुझाता है ।
प्रश्न 23.
‘करहु लाज निजपन की’ – यह किसके द्वारा रचित है वक्ता का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
यह तुलसीदास के द्वारा रचित है । वक्ता का आशय है कि प्रभु अब अपना वचन निभाएँ।
प्रश्न 24.
तुलसीदास ने अभ्यंतर ग्रंथि किसे कहा है ?
उत्तर :
तुलसौदास ने हदय में स्थित अज्ञान, मोह-माया, अहंकार आदि भावनाओं को अभ्यंतर ग्रंथि कहा है।
प्रश्न 25.
घटरस का अर्थ क्या है ?
उत्तर :
षटरस का अर्थ है छ: प्रकार के रस या स्वाद । ये हैं – मीठा, नमकीन, कड़वा, तीता, कसेला और खट्टा।
प्रश्न 26.
मोह-फाँस का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
मोह-फाँस का अर्थ है मोह रूपी फाँसी । सांसारिक माया-मोह आदि ही मोह रूपी फाँसी है।
प्रश्न 27.
‘जथालाभ संतोष सदा, काहू सों कहु न चहौंगो’ – का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ है कि जितना प्राप्त होगा मैं उतने से ही संतोष करूँगा तथा इसके अतिरिक्त किसी से कुछ न चाहूँगा।
प्रश्न 28.
अर्थ स्पष्ट करें – परहित-निरत निरंतर, मन-क्रम-बचन नेम निबहैंगो ।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति में तुलसीदास कहते हैं कि मैं सदा दूसरों की भलाई में रत रहकर मन, कर्म और वचन से यह नियम निभाऊँगा ।
प्रश्न 29.
परुष बचन अति दुसह स्वप्न सुनि, तेहि पावक न दहौंगो – में कौन क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
प्रस्तुत पद में तुलसीदास कहना चाहते हैं कि मैं दूसरों के कठोर वचन सुनकर भी उसकी अग्नि में नहीं जलूँगा, अर्थात् प्रतिशोध की आग में नहीं जलूँगा।
प्रश्न 30.
तुलसीदास किस चिंता को छोड़ देने की बात करते हैं ?
उत्तर :
तुलसीदास शरीर से जुड़ी चिंता को छोड़ देने की बात कहते हैं।
प्रश्न 31.
तुलसीदास ने किसे समबुद्धि (समान भाव) से ग्रहण करने की बात कही है ?
उत्तर :
तुलसीदास ने दुख और सुख दोनो को समान भाव से ग्रहण करने की बात कही है ।
प्रश्न 32.
तुलयीदास श्रीराम से अपनी कौन-सी इच्छा प्रकट करते हैं ?
उत्तर :
तुलसादास संतों के बताए मार्ग पर चलकर हरि-भक्ति को प्राप्त करने की इच्छा श्रीराम से प्रकट करते हैं।
प्रश्न 33.
तुलसीदास, अनुसार हद्य में ज्ञानरूपी प्रकाश कब तक नहीं फैल सकता है ?
उत्तर :
तुलसीदास के अनुसार जब तक यह मन सांसारिक विषय-वासनाओं में फसा रहेगा तब तक इसमे ज्ञानरूपी प्रकाश नही फैल सकता है।
प्रश्न 34.
तुलसीदास भवसागर से मुक्ति पाने के लिए किससे विनती करते हैं ?
उत्तर :
श्री राम से ।
प्रश्न 35.
किन बातों से इस भवसागर से पुक्ति नहीं मिलनेवाली है ?
उत्तर :
केवल कल्पना करने या बातें बनाने से इस भवसागर से मुक्ति नहीं मिलनेवाली है ।
प्रश्न 36.
किसकी कृपा से तुलसीदास संत-स्वभाव को ग्रहण करेंगे ?
उत्तर :
श्री राम की कृपा से तुलसीदास संत-स्वभाव को ग्रहण करेंगे ।
प्रश्न 37.
तुलसीदास के अनुसार आवागमन का बंधन कब तक रहेगा ?
उत्तर :
जब तक यह मन सासारिक विषय-वस्तुओं में लिप्त रहेगा तब तक आवागमन का बंधन नष्ट नहीं होगा।
प्रश्न 38.
मन की शुद्धि के लिए क्या आवश्यक है ?
उत्तर :
मन की शुद्धि के लिए विवेक का होना आवश्यक है।
प्रश्न 39.
किसकी कृपा के बिना माया-मोह से छुटकारा नहीं मिल सकता ?
उत्तर :
श्रीराम की कृपा के बिना माया-मोह से छुटकारा नहीं मिल सकता।
प्रश्न 40.
घटरस के स्वादों के सुख को कौन जान सकता है ?
उत्तर :
जिसने षटरस का स्वाद चखा है वही उसके सुख को जान सकता है ।
प्रश्न 41.
तुलसीदास ने मूर्ख मन की तुलना किससे की है ?
उत्तर :
तुलसीदास ने मुख्ख मन की तुलना चातक और गरुड़ पक्षी से की है ।
प्रश्न 42.
कौन धुएँ के समूह को बादल समझ लेता है ?
उत्तर :
चातक धुएँ के समूह को बादल समझ लेता है।
प्रश्न 43.
तुलसीदास किसके स्वभाव को ग्रहण करना चाहते हैं ?
उत्तर :
तुलसीदास संतों के स्वभाव को ग्रहण करना चाहते हैं।
प्रश्न 44.
तुलसीदास ने कृपानिधि किसे कहा है ?
उत्तर :
तुलसीदास ने श्रीराम को कृपानिधि कहा है।
प्रश्न 45.
तुलसीदास ने इस संसार की तुलना किससे की है ?
उत्तर :
तुलसीदास ने इस संसार की तुलना सागर से की है ।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
तुलसीदास का जन्म कब हुआ था ?
(क) सन् 1497 ई० में
(ख) सन् 1498 ई० में
(ग) सन् 1499 ई० में
(घ) सन् 1418 ई० में
उत्तर :
(क) सन् 1497 ई० में।
प्रश्न 2.
तुलसीदास द्वारा रचित प्रामाणिक ग्रंथों की संख्या कितनी है ?
(क) सोलह
(ख) चौदह
(ग) बारह
(घ) दस
उत्तर :
(ग) बारह ।
प्रश्न 3.
निम्न में से कौन-सी रचना तुलसीदास की नहीं है ?
(क) दोहावली
(ख) कवितावली
(ग) गोतावली
(घ) आरती
उत्तर :
(घ) आरती ।
प्रश्न 4.
निम्न में से कौन-सी रचना तुलसीदास की नहीं है ?
(क) रामर्चारिमानस
(ख) रामाज्ञा प्रश्न
(ग) विनय पत्रिका
(घ) गीता
उत्तर :
(घ) गीता ।
प्रश्न 5.
निम्न में से कौन-सी रचना तुलसीदास की नहीं है ?
(क) रामलला नहछू
(ख) सूरसागर
(ग) पार्वती मगल
(घ) जानकी मंगल
उत्तर :
(ख) सूरसागर ।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किसकी रचना तुलसीदास ने नहीं की है ?
(क) बरवै रामायण
(ख) वैराग्य संदीपनी
(ग) बाल्मीकि रामायण
(घ) श्रोकृष्ग गीतावली
उत्तर :
(ग) बाल्मीकि रामायण ।
प्रश्न 7.
तुलसीदास का सर्वेत्कृष्ट महाकाव्य कौन-सा है ?
(क) रामचरितमानस
(ख) बरवै रामायण
(ग) पार्वती मंगल
(घ) जानकी मंगल
उत्तर :
(क) रामर्चरितमानस ।
प्रश्न 8.
‘रामचरितमानस’ किस कथा पर आधारित है ?
(क) कृष्णाकथा
(ख) रामकथा
(ग) लोककथा
(घ) पुरानकथा
उत्तर :
(ख) रामकथा।
प्रश्न 9.
‘रामचरितमानस’ का मुख्य चरित्र कौन-सा है ?
(क) सुग्रौव
(ख) रावण
(ग) राम
(घ) सीता
उत्तर :
(ग) राम ।
प्रश्न 10.
‘रामचरितमानस’ की नायिका/प्रमुख स्त्री पात्र कौन है ?
(क) कैंकेयी
(ख) कौशल्या
(ग) मंदादरी
(घ) सीता
उत्तर :
(घ) सीता ।
प्रश्न 11.
‘रामचरितमानस’ की भाषा क्या है ?
(क) खड़ीबोली
(ख) राजस्थानी
(ग) अवधी
(घ) संस्कृत
उत्तर :
(ग) अवधी ।
प्रश्न 12.
तुलसीदास का सर्वोत्तम गीतिकाव्य निम्न में से कौन है ?
(क) विनय पत्रिका
(ख) पार्वती मंगल
(ग) भ्रीकृष्षण गीतावली
(घ) जानकी मंगल
उत्तर :
(क) विनय पत्रिका ।
प्रश्न 13.
‘विनय पत्रिका’ किस भाषा में लिखी गई है ?
(क) अवधी
(ख) ब्रजभाषा
(ग) भोजपुरी
(घ) राजस्थानी
उत्तर :
(ख) ब्रजभाषा।
प्रश्न 14.
तुलसीदास का दूसरा उत्कृष्ट गीतिकाव्य कौन-सा है ?
(क) विनय पत्रिका
(ख) रामर्चरितमानस
(ग) बरवै रामायण
(घ) गीतावली
उत्तर :
(घ) गीतावली ।
प्रश्न 15.
‘गीतावली’ का वणर्य-विषय क्या है ?
(क) राम-वनगमन
(ख) राम-रावण युद्ध
(ग) वात्सल्य-वर्णन
(घ) सीता-सौदर्य
उत्तर :
(ग) वात्सल्य-वर्णन ।
प्रश्न 16.
‘कवितावली’ के रचनाकार कौन हैं ?
(क) कबीरदास
(ख) सूरदास
(ग) तुलसीदास
(घ) मीरा बाई
उत्तर :
(ग) तुलसीदास ।
प्रश्न 17.
तुलसीदास किसके अनन्य भक्त हैं ?
(क) श्रीकृष्ण के
(ख) राम के
(ग) दुर्गा के
(घ) विष्णु के
उत्तर :
(ख) राम के।
प्रश्न 18.
‘कवितावली’ किस भाषा में लिखी गई है ?
(क) अवधी
(ख) सधुक्कड़ी
(ग) बजभाषा
(घ) खड़ी बोली
उत्तर :
(ग) ब्रजभाषा ।
प्रश्न 19.
तुलसीदास की भक्ति-पद्धति में किस भाव की अधिकता है ?
(क) विनय
(ख) प्रेम
(ग) आसक्ति
(घ) दैन्य
उत्तर :
(घ) दैन्य ।
प्रश्न 20.
निम्नलिखित में से किसकी रचना अवधी में नहीं की गई है ?
(क) रामचरितमानस
(ख) रामलला नहछू.
(ग) विनय पत्रिका
(घ) बरवै रामायण
उत्तर :
(ग) विनय पत्रिका ।
प्रश्न 21.
निम्नलिखित में से किसकी रचना अवधी में नहीं की गई है ?
(क) कवितावली
(ख) पार्वती मंगल
(ग) जानकी मंगल
(घ) रामाज्ञा प्रश्न
उत्तर :
(क) कवितावली।
प्रश्न 22.
निम्नलिखित में से किसकी रचना ब्रजभाषा में नहीं की गई है ?
(क) श्रीकृष्ण गीतावली
(ख) रामाज्ञा प्शश्न
(ग) दोहावली
(घ) गौतावली
उत्तर :
(ख) रामाज्ञ प्रश्न।
प्रश्न 23.
निम्नलिखित में से किसकी रचना ब्रजभाषा में नहीं की गई है ?
(क) विनय पत्रिका
(ख) वैराग्य संदीपनी
(ग) कवितावली
(घ) जानकी मंगल
उत्तर :
(घ) जानकी मंगल।
प्रश्न 24.
तुलसीदास किस सम्रदाय के हैं ?
(क) सखी सम्पदाय
(ख) पुष्टि-मार्ग
(ग) श्री संपदाय
(घ) अंछाप
उत्तर :
(ग) श्री सम्पदाय ।
प्रश्न 25.
तुलसीदास के गुरू का नाम क्या है ?
(क) नरहर्यानंद
(ख) बेनोमाधव
(ग) रामानुज
(घ) रहीम
उत्तर :
(क) नरहर्यानंद ।
प्रश्न 26.
‘सुरतिय नरतिय, सब चाहति अस होय ।’ – पंक्ति के रचनाकार हैं ?
(क) कबीर
(ख) तुलसी
(ग) रहीम
(घ) देव
उत्तर :
(ख) तुलसी।
प्रश्न 27.
‘रामचरितमानस’ को पूरा करने में तुलसीदास जी को कितने समय लगे ?
(क) एक वर्ष
(ख) चार वर्ष
(ग) तीन वर्ष
(घ) दो वर्ष सात महीने
उत्तर :
(घ) दो वर्ष सात महीने ।
प्रश्न 28.
‘रामचरितमानस’ की रचना किस पद्धति पर की गई है ?
(क) गीत-पद्धति
(ख) कविन्त-सवैया पद्धात
(ग) दोहा-चौपाई पद्धति
(घ) छपय पद्धति
उत्तर :
(ग) दोहा-चौपाई पद्धति।
प्रश्न 29.
‘रामचरितमानस’ में कितने काण्ड हैं ?
(क) सात
(ख) पाँच
(ग) नौ
(घ) दस
उत्तर :
(क) सात ।
प्रश्न 30.
‘वैराग्य संदीपनी’ किस कवि की रचना है ?
(क) कबीर
(ख) वियोगी हरि
(ग) तुलसीदास
(घ) रैदास
उत्तर :
(ग) तुलसीदास ।
प्रश्न 31.
तुलसी की ‘दोहावली’ में कुल कितने दोहे हैं ?
(क) चार सौ बहत्तर
(ख) पाँच सौ बहत्तर
(ग) पाँच सौ
(घ) चार सौ
उत्तर :
(ख) पाँच सौ बहत्तर ।
प्रश्न 32.
‘रामचरितमानस’ की रचना का आरंभ किस क्षेत्र से हुआ ?
(क) अयोध्या
(ख) सोरो
(ग) वृंदावन
(घ) श्रोलंका
उत्तर :
(क) अयोध्या।
प्रश्न 33.
तुलसीदास की भक्ति किस भाव की है ?
(क) माधुर्य
(ख) सख्य भाव
(ग) दास्य भाव
(घ) निर्वेद भाव
उत्तर :
(ग) दास्य भाव ।
प्रश्न 34.
‘पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं’ – किसकी उक्ति है ?
(क) कबीर
(ख) रैदास
(ग) सूर
(घ) तुलसी
उत्तर :
(घ) तुलसी ।
प्रश्न 35.
‘जाके प्रिय न राम वैदेही,
सो नर तजिड कोटि बैरी सम, जदपि परम सनेही ।’
– यह तुलसी के किस काव्यग्रंथ की उक्ति है ?
(क) विनय पत्रिका
(ख) कवितावली
(ग) गीतावली
(घ) रामचरितमानस
उत्तर :
(क) विनय पत्रिका ।
प्रश्न 36.
‘कवित्त विवेक एक नहिं मोरे” – किसकी पंक्ति है ?
(क) घनानंद
(ख) कबीर
(ग) रामानंद
(घ) तुलसी
उत्तर :
(घ) तुलसी।
प्रश्न 37.
‘रामचरितमानस’ की रचना गोसाई जी ने कब प्रारंभ की ?
(क) 1580 ई० में
(ख) 1574 ई॰ में
(ग) 1800 ई०में
(घ) 1600 ई०में
उत्तर :
(ख) 1574 ई०में।
प्रश्न 38.
किस कवि को हिंदी का जातीय कवि कहा जाता है ?
(क) तुलसीदास को
(ख) सूर को
(ग) कबीर को
(घ) रामानंद को
उत्तर :
(क) तुलसीदास को।
प्रश्न 39.
भारतीय जनता के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं ?
(क) कबीर
(ख) सूर
(ग) जायसी
(घ) तुलसी
उत्तर :
(घ) तुलसी।
प्रश्न 40.
‘विनय पत्रिका’ में कितने पद हैं ?
(क) दो सौ पचास
(ख) चार सौ
(ग) तीन सौ
(घ) छ: सौ
उत्तर :
(ग) तीन सी।
प्रश्न 41.
‘बरवै रामायण’ में कितने कांड और कितने छंद हैं ?
(क) 797 कांड 67 छंद
(ख) 5 कांड 30 छंद
(ग) 3 कांड 79 छंद
(घ) 9 कांड 110 छंद
उत्तरं :
(क) 797 कांड 67 छंद ।
प्रश्न 42.
तुलसीदास की दोहावली में कुल कितने दोहे हैं ?
(क) 205
(ख) 572
(ग) 463
(घ) 271
उत्तर :
(ख) 572
प्रश्न 43.
‘गीत पद्धति’ पर तुलसीदास ने कौन-सी रचना की ?
(क) रामचरितमानस
(ख) विनय पत्रिका
(ग) रामलाला हछ्ह
(घ) जानकी मंगल
उत्तर :
(ख) विनय पत्रिका ।
प्रश्न 44.
“बुद्ध देव के बाद भारत के सर्वाधिक बड़े लोकनायक तुलसीदास हैं” – किसकी पंक्ति है ?
(क) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ख) ग्रियर्सन
(ग) नगेन्द्र
(घ) नंददुलारे वाजपेयी
उत्तर :
(ख) ग्रियर्सन ।
प्रश्न 45.
“तुलसीदास जी उत्तरी भारत की समग्र जनता के द्वृय- मंदिर में पूर्ण प्रेम-प्रतिष्ठा के साथ विराज रहे हैं” – यह कथन किसका है ?
(क) रामचंद्र शुक्ल
(ख) रामविलास शर्मा
(ग) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(घ) परशुराम चतुर्वेदी
उत्तर :
(क) रामचंद्र शुक्ल ।
प्रश्न 46.
“तुलसीदास का सारा काव्य समन्वय की विराट चेप्रा है” – किसका कथन है ?
(क) डाँ० नगेन्द्र का
(ख) रामचंद्र शुक्ल का
(ग) हजारी प्रसाद द्विवेदी का
(घ) रामकुमार वर्मा का
उत्तर :
(ग) हजारी प्रसाद द्विवेदी का ।
प्रश्न 47.
‘लोटा तुलसीदास को, लाख टका को मोल’ – पंक्ति किसकी है
(क) सूरदास की
(ख) रहीम की
(ग) तुलसी की
(घ) प्रियादास की
उत्तर :
(घ) प्रियादास की।
प्रश्न 48.
तुलसीदास ने कलियुग का वर्णन ‘रामचरितमानस’ के किस कांड में किया है ?
(क) अयोध्याकांड
(ख) उत्तरकांड
(ग) अरण्यकांड
(घ) बालकांड
उत्तर :
(ख) उत्तरकांड ।
प्रश्न 49.
‘रामचरितमानस’ को हिन्दी साहित्य के इतिहास में इतना महत्व क्यों दिया जाता है ?
(क) रामभक्ति के कारण
(ख) उदान्त भावों के लिए
(ग) लोकभाषा में रचे जाने के कारण ।
(घ) विभिन्न संप्रदायों के बीच समन्वय की स्थापना के लिए
उत्तर :
(घ) विभिन्न संप्रदायों के बीच समन्वय की स्थापना के लिए ।
प्रश्न 50.
‘रामचरितमानस’ का महत्व आज क्यों है ?
(क) भक्ति-साधना के कारण
(ख) रामलोला-गान के कारण
(ग) जीवन-मूल्यों के निर्धारण के कारण
(घ) लोकमंगल-कामना के कारण
उत्तर :
(घ) लोकमंगल-कामना के कारण।
प्रश्न 51.
तुलसीदास ने गंभीर बीमारी से पुक्ति पाने के लिए कौन-सी रचना की ?
(क) रामलला नहछ्.
(ख) हनुमानबाहुक
(ग) दोहावली
(घ) विनय पत्रिका
उत्तंर :
(ख) हनुमानबाहुक ।
प्रश्न 52.
तुलसीदास ने रामभक्ति की तुलना किससे की है ?
(क) कुएँ से
(ख) समुद्र से
(ग) सुरसरिता से
(घ) ओसकण से
उत्तर :
(ग) सुरसरिता से ।
प्रश्न 53.
तुलसीदास ने किसकी मूर्खता की बात की है ?
(क) मन की
(ख) श्रीराम की
(ग) चातक की
(घ) गरुड़ की
उत्तर :
(क) मन की।
प्रश्न 54.
तुलसीदास के अनुसार किसकी कृपा के बिना विवेक नहीं हो सकता है ?
(क) गुरु की
(ख) ईश्वर की
(ग) श्रोकृषग की
(घ) ईश्वर और गुरु की
उत्तर :
(घ) ईश्वर और गुरु की।
प्रश्न 55.
तुलसीदास ने संसार की तुलना किससे की है ?
(क) कल्पतर से
(ख) सागर से
(ग) पेंड़ से
(घ) वृक्ष के कोटर से
उत्तर :
(ख) सागर से ।
प्रश्न 56.
किसकी कृपा के बगैर मोह-माया से छुटकारा नहीं पाया जा सकता है ?
(क) श्रीकृष्ण की
(ख) श्रोराम की
(ग) विष्णु की
(घ) चातक की
उत्तर :
(ख) श्रीराम की।
प्रश्न 57.
तुलसीदास ने कृपानिधि किसे कहा है ?
(क) स्वय को
(ख) गरुड़ को
(ग) श्रोराम को
(घ) विष्णु को
उत्तर :
(ग) श्रीराम को ।
प्रश्न 58.
कौन धुएँ के समूह को बादल समझ लेता है ?
(क) कौआ
(ख) मोर
(ग) चातक
(घ) गरुड़
उत्तर :
(ग) चातक
प्रश्न 59.
तुलसीदास किस चिंता को छोड़ने की बात कहते हैं ?
(क) धन की
(ख) संसार की
(ग) घर की
(घ) शरीर की
उत्तर :
(घ) शारीर की ।
प्रश्न 60.
तुलसीदास किसके स्वभाव को ग्रहण करना चाहते हैं ?
(क) श्रीराम के
(ख) गरुड़ के
(ग) चातक के
(घ) संते
उत्तर :
(घ) संत के ।
प्रश्न 61.
तुलसीदास किसे समान भाव से ग्रहण करने की बात करते हैं ?
(क) हानि-लाभ
(ख) सुख-दुख
(ग) जीवन-मरण
(घ) यश-अपयश
उत्तर :
(ख) सुख-दुख।
प्रश्न 62.
तुलसीदास किसे नियमपूर्वक निबाहने की बात करते हैं ?
(क) मन, कर्म और बचन
(ख) मन
(ग) कर्म
(घ) वचन
उत्तर :
(क) मन, कर्म और वचन ।
प्रश्न 63.
किसके चित्र से विपत्ति का नाश नहीं हो सकता है ?
(क) श्रीराम
(ख) लक्ष्मी
(ग) कल्पतरु तथा कामधेनु
(घ) दीपक
उत्तर :
(ग) कल्पतरु तथा कामधेनु ।
प्रश्न 64.
तुलसीदास ने मूर्ख मन की तुलना किससे की है ?
(क) चातक
(ख) गरुड़
(ग) चातक और गरुड़
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ग) चातक और गरुड़।.
टिप्पणियाँ
1. रामचरित मानस : यह ग्रंथ हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवि गोस्वामी तुलसीदास का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है। इसमें तुलसी ने राम के आदर्श जीवन का सुन्दर ढंग से विकास कर लोकशिक्षा का सर्वोत्तम आदर्श प्रस्तुत किया है । राम-सीता, भरतलक्ष्मण, हनुमान, केवट आदि आदर्श चरित्रों को पढ़कर कोई भी व्यक्ति प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता । इस ग्रंथ में उन्होंने राम के कल्याणकारी शक्ति, शील और सौंदर्यपूर्ण स्वरूप का यथार्थ चित्रण कर उन्हें भी अमर, प्रात: स्मरणीय और जन-जन का हृदय-सम्ाट बना दिया। प्रम की जो उच्च शालीनता, सौंदर्य के जो अनूठे वर्णन और भक्ति के भाव इस ग्रंथ में सहज सुलभ हैं वे अन्य कहीं भी देखने को नहीं मिलते।
2. विनय-पत्रिका : ‘विनय-पत्रिका’ तुलसीदास का भक्ति-प्रधान ग्रंथ है । इसमें आत्म-निवेदन की प्रधानता है । कवि ने इस ग्रंथ में गणेंश, शंकर, पार्वती, गंगा, हनुमान, लक्ष्मण, भरत, शतुछ्न आदि सबकी प्रार्थना की है परंतु इन्होंने राम-भक्ति को ही सर्वश्रेष्ठ माना है। इसके प्रत्येक पद के शब्द-शब्द में कवि का घदय झलकता है ।
3. दोहावली : यह भी तुलसीदास की प्रमुख रचनाओं में से एक है। इसमें ईश्वर-भक्ति संबंधी उपदेशपूर्ण 573 दोहे हैं। इसके कुछ दोहे ‘रामचरितमानस’ तथा ‘रामाज्ञा-प्रश्न’ में भी पाए जाते हैं। इसलिए इसे तुलसी का संग्रह-ग्रंथ माना जाता है ।
4. कविन्त रामायण : इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं । इसका नाम ‘कवितावली’ भी है। इसकी रचना कवित्त, सवैया, धनाक्षरी, छप्यय, झूलना आदि छंदों में हुई है। इसमें पदों की कुल संख्या 345 है । इसका रचनाकाल सं० 1665 तथा 1679 के बीच का है।
5. गीतावली : तुलसीदास ने इस ग्रंथ की रचना शुद्ध बजभाषा में की है । इसके सात खण्डों में कुल मिलाकर 328 पद हैं। इस पर ‘सूरसागर’ का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। इसके पदों में सरलता, सरसता और मधुरता का समवेश तो प्रचुर मात्रा में है, पर सूर का जादू तुलसी के सिर पर चढ़कर नहीं बोल सका। ‘किंधौं सूर को पद लग्यो बेधत सकल शरीर’ वाली बात इनके पदों में नहीं आ सकी ।
6. कृष्ण गीतावली : इस ग्रंथ में तुलसीदास ने कृष्णकथा का वर्णन कुल 51 पदों में सरस शैली में किया है। वर्णन करने में कृष्ण की मर्यादा का ध्यान रखा गया है । ऐसा प्रतीत होता है कि यह ग्रंथ संवत् 1644 के बाद लिखा गया है ।
7. राम/रघुनाथ/माधव : प्रस्तुत शब्द तुलसीदास के ‘विनय के पद’ से लिया गया है ।
राम अयोध्या के राजा दशरथ तथा कौशल्या के पुत्र थे । वशिष्ठ मुनि ने उन्हें शिक्षा दी । जनकपुर जाकर सीता के स्वयंवर में शिव का धनुष-भंग कर सीता से विवाह किया। पिता की आज्ञा मान कर 14 वर्ष वनवास में बिताए। वनवास की इस अवधि में सीता हरण हुआ और राम-रावण युद्ध में राम की विजय हुई । वनवास की अवधि पूरी होने पर उन्होंने राजपाट संभाला और एक आदर्श राजा के रूप में शासन किया ।
8. चातक : प्रस्तुत शब्द तुलसीदास के ‘विनय के पद’ से लिया गया है ।
चातक एक पक्षी है । इसके बारे में कहा जाता है कि यह केवल स्वाती नक्षत्र की वर्षा की बूंदों से ही अपनी प्यास बुझाता है। चातक पक्षी को एकनिष्ठ भक्त के उदाहरण के रूप में भक्तिकाल के कवियों ने प्रस्तुत किया है।
9. गुरु : प्रस्तुत शब्द तुलसीदास के ‘विनय के पद’ से लिया गया है ।
भक्तिकाल के प्रायः सभी कवियों ने अपने जीवन तथा काव्य में गुरु को अत्यधिक महत्व दिया है। गुरु का अर्थ ही होता है – अंधकार को दूर करने वाला । अर्थात् सच्चे गुरु की पहचान है कि वह हमारे जीवन से अज्ञानतारूपी अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैला दे । कबीर ने तो गुरु का स्थान ईश्वर सं भी ऊपर बताया है।
10. भव/संसार : प्रस्तुत शब्द तुलसीदास के ‘विनय के पद’ से लिया गया है ।
संसार शब्द का प्रयोग पृथ्वी के लिए, जिसमें मनुष्य निवास करता है, किया जाता है । हमारी पृथ्वो ब्रह्मांड का एक बहुत ही छोटा भाग है, पर मनुष्य के लिए यही सबकुछ है । अनुमान लगाया गया है कि संसार में मनुष्य 5 लाख वर्ष से रह रहा है पर मनुष्य के बारे में 5 हजार वर्ष से पुराने प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। जिन प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष उपलब्ध हुए हैं, उनका विकास भारत में सिंधु घाटी, मेसापांटामिया (ईराक), परसिया (ईरान), मिस, चीन तथा यूनान में हुआ था।
11. कल्पतरु (कल्पवृक्ष) : प्रस्तुत शब्द तुलसीदास के ‘विनय के पद’ से लिया गया है ।
ऐसी मान्यता है कि देव-दानवो द्वारा किए गए समुद्र-मंथन से जो चौदह रत्न निकले, उनमें एक कल्पवृक्ष भी था। यह इन्द्र को दे दिया गया था । यह विश्वास रहा है कि इस वृक्ष का कभी नाश नहीं होता और इससे मांगी हुई कोई भी वस्तु प्राप्त हो जाती है । जैन धर्म के विश्वास के अनुसार प्रथम सृष्टि मे मनुष्यों के जो जोड़े पैदा हुए वे जीविका के लिए कोई उद्यम नहीं करते थे । उनकी सब इच्छाएँ कल्पवृक्ष से ही पूरी हो जाती थी ।
12. कामधेनु : प्रस्तुत शब्द तुलसीदास के ‘विनय के पद’ से लिया गया है ।
कामधेनु के बारे में अनेक प्रकार का उल्लेख मिलता है । एक के अनुसार यह समुद्रमंथन से निकली एक गाय है जो मनोवांछित फल देती है । यह दक्ष प्रजापति और अश्विनी की पुर्री मानी जाती है । बह्या की उपासना करके कामधेनु ने अमरत्व प्राप्त किया था । एक प्राचीन मान्यता के अनुसार संसार के संपूर्ण गोवंश की जननी कामधेनु है।
पाठयाधारित व्याकरण
WBBSE Class 9 Hindi विनय के पद Summary
कवि परिचय
तुलसीदास हिन्दी साहित्य के स्वर्णकाल-भक्तिकाल के रामभक्ति शाखा के प्रमुख कवि हैं। इनका जन्म संवत् 1589 वि० (सन् 1532) में बाँदा जिले के राजापुर नामक गाँव में हुआ था । ऐसा कहा जाता है कि जन्म लेते ही इनके मुख से राम-नाम का उच्चारण हुआ । इसलिए इनके बचपन का नाम रामबोला (राम को गुलाम नाम रामबोला राख्यौ राम) रखा गया । माता ने इन्हें अपनी एक दासी को दे दिया ।
पाँच साल बाद वह भी चल बसी, तब बालक रामबोला को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी और रोटी-रोटी के लिए तरसना पड़ा । गुरु नरहरि दास की छत्र-छाया प्राप्त होने पर इनके जीवनरूपी रात्रि का सुप्रभात हुआ । उन्होंने ही इन्हें रामकथा सुनाकर रामभक्ति की प्रेरणा प्रदान की । इनके गुणों के कारण दीनबंधु पाठक ने अपनी पुत्री रत्नावली का विवाह इनसे कर दिया। अपनी पत्नी के ऊपर ये बहुत अधिक आसक्त थे । एक दिन वह इनकी अनुपस्थिति में अपने भाई के साथ मायके चली गई। ये भी पीछे-पीछे ससुराल जा धमके । रत्नावली ने इन्हें धिक्कारते हुए कहा –
लाज न आवत आपको, दौड़े आयहु साथ ।
धिक् धिक् ऐसे प्रेम को, कहा कहौं मैं नाथ ।।
अस्थि चर्ममय दे मम, ता में ऐसी प्रीति ।
ऐसी हो श्रीराम में, होति न तौ भवभीति ।।
यह सुनकर इन्होंने गृहस्थ जीवन का त्याग करके संवत् 1597 में वैराग्य ले लिया तथा काशी, चित्रकूट, अयोध्या आदि पवित्र तीर्थों में जीवन व्यतीत करने लगे । संवत्1616 में चित्रकूट में सूरदास इनसे मिले । मीराबाई ने भी यहीं तुलसीदास के दर्शन की । संवत् 1680 वि० (सन् 1623 ई०) में इनका देहावसान हो गया –
संवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर ।
श्रावण कृष्णा तीज शनि, तुलसी तज्यौ शरीर ।।
तुलसीदास की प्रमुख कृतियाँ – रामचरित मानस, विनय पत्रिका, दोहावली, कवित्त रामायण, गीतावली, कृष्ण गीतावली, वैराग्य संदीपनी, बरवै रामायण, रामलला नहछू, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, रामाज्ञा प्रश्न।
तुलसी के संपूर्ण काव्य का विषय है – श्री राम की भक्ति । ‘रामचरितमानस’ में उन्होंने राम के संपूर्ण जीवन की झाँकी प्रस्तुत की है । ‘ििनय-पत्रिका’ में तुलसीदास की श्रीराम के प्रति विनय की भावना मधुर भाव में प्रकट हुई है ।
तुलसी को बजभाषा तथा अवधी पर समान रूप से अधिकार था। उन्होंने ‘रामचरितमानस’ की रचना अवधी में तथा ‘विनय-पत्रिका’ की रचना ब्रजभाषा में की है। उपमा, रुपक, उत्पेक्षा, अनुप्रास आदि अलंकारों के सुंदर प्रयोग से भाषा में सरसता आ गई है तथा यह आज भी पाठकों का कंठहार बनी हुई है ।
दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित्त और सवैया तुलसीदास के प्रिय छंद हैं।
तुलसीदास का संपूर्ण काव्य जनकल्याण की भावना से प्रेरित होकर लिखा गया है । उनकी वाणी में तेज है, शक्ति है, मधुरता है, आकर्षण है और है जनकल्याण की वह अलौकिक भावना – जिससे मानव-जीवन ऊपर उठा है । तुलसी अपनी इन्हीं भावनाओं के कारण केवल कवि की नहीं हैं, वे राष्ट्र-निर्माता भी हैं ।
ससंदर्भ आलोचनात्मक व्याख्या
पद सं० – 1
ऐसी मूढ़ता या मन की ।
परिहरि राम-भगति-सुरसरिता, आस करत ओसकन की ।।
धूम-समूह निरखि चातक ज्यों, वृषित जानि मति धन की।
नहिं तहैँ सीतलता न बारि, पुनि हानि होत लोचन की ।।
ज्यों गच-काँच बिलोकि सेन जड़, छाँह आपने तन की।
दूटत अति आतुर अहार-बस, छति बिसारि आनन की ।।
कहँ लों कहौं कुचाल कृपानिधि, जानत हौ गति जन की ।
तुलसीदास प्रभु हरहु दुसह दुख, करहु लाज निजपन की ।।
शब्दार्थ :
- मूढ़ता = मूर्खता।
- या = इस ।
- परिहरि = छोड़कर ।
- राम-भगति-सुरसरिता = राम की भक्ति रूपी गंगा।
- आस = आशा।
- ओसकन = ओस के कण ।
- धूम-समूह = बादलों का समूह ।
- निरखि = देखकर ।
- वृषित = प्यासा ।
- मति = बुद्धि ।
- तहाँ = वहाँ।
- सीतलता = शीतलता, ठंडक ।
- बारि = जल ।
- पुनि = फिर ।
- लोचन = आँख।
- गच-काँच = काँच का फर्श ।
- बिलोकि = देखकर ।
- बिसारि = भूलकर ।
- आनन = चेहरा ।
- कुचाल = बुरी चाल।
- हरहु = हरण करें, दूर करें।
- दुसह = नहीं सहने योग्य ।
- निजपन = अपना वचन (पणण) ।
संदर्भ : प्रस्तुत पद तुलसीदास द्वारा रचित है तथा यह ‘विनय-पत्रिका’ से लिया गया है ।
व्याख्या : प्रस्तुत पद में तुलसीदास कहते हैं कि यह मन ऐसा मूर्ख है कि यह श्रीराम की भक्ति रूपी गंगा को छोड़कर अन्य देवताओं की भभ्तिरूपी ओस की बूंदों से तृप्त होना चाहता है। इस मन की दशा तो उस प्यासे पपीहे की तरह है जो धुएए के पुंज को मेघ समझ लेता है लेकिन वहाँ जाने पर उसे न शीतलता मिलती है और न ही जल। उलटे धुएँ से उसकी आँखें फूट जाती हैं।
मेंरे मन की दशा उस मूर्ख बाज पक्षी की तरह है जो अपनी ही परछाई को काँच के फर्श में देखता है और उसे चोंच से मारकर अपनी भूख मिटाना चाहता है । ठीक इसी प्रकार मेरा मन भी सांसारिक विषयवासनाओं पर टूट पड़ता है । हे कृपा के भण्डार ! अपने मन के इस कुचाल का मै कहाँ तक वर्णन करूँ। आपसे तो अपने दासों की दशा छिपी नहीं है। इसलिए आप मेरे दु:खों को दूर करें तथा अपने भक्तों के उद्धार का प्रण (वचन) पूरा करें।
काव्यगत विशेषताएँ :
1. प्रसुत पद में तुलसीदास ने अपने अराष्य के प्रति विनती की है कि वे उसके मन के कुचाल को दूर करें।
2. प्सस्तुत पद के ‘राम-भगति-सुरसरिता’ में उपमा अलंकार है ।
3. अपने मन की दशा का वर्णनन करने के क्रम में उन्होंने चातक तथा बाज पक्षी का दृष्थांत दिया है, अत: दृष्धांत अलंकार है ।
4. पद के ‘हानि होति’, ‘अति आतुर अहार’ तथा ‘कहौं कुचाल’ में अनुपास अलंकार है।
5. आत्म-निवेदन की प्रधानता है ।
6. पद के प्रत्येक शब्द में कवि-हृदय झलकता है।
7. भाषा बजभाषा है।
पद सं० – 2
माधव ! मोह-फाँस क्यों टूटै।
बाहर कोटि उपाया करिय, अभ्यंतर ग्रंधि न छूटै ।।
धृतपूरन कराह अंतरगत, ससि-प्रातिबिम्ब दिखावै ।
ईंधन अनल लगाय कलपसत, औटत नास न पावै ।।
तरु-कोटर महँ बस बिहंग, तरु काटे मरै न जैसे ।
साधन करिय बिचार-हीन, मन सुद्ध होड़ नहिं तैसे ।।
अंतर मलिन बिषय मन अति, तन पावन करिय पखारे ।
मरइ न उरग अनेक जतन, बालमीकि बिविध बिधि मारे ।।
तुलसीदास हरि-गुरु-करुना बिनु, बिमल बिबेक न होई ।
बिनु बिबेक संसार-धोर-निधि, पार न पावै कोई ।।
शब्दार्थ :
- मोह-फाँस = मोहरूपी फॉंसी
- कोटि = करोड़ ।
- अभ्यंतर = भीतर (अन्दर ) ।
- ग्रंथि = गांठ ।
- घृतपूरन = घी से भरा हुआ ।
- कराह = कड़ाह ।
- ससि-प्रतिबिंब = चंद्रमा की परछाई ।
- अनल = आग ।
- कलपसत = सो कल्प तक।
- तरु-कॉटर = पेड़ का कोटर ।
- महँँ = में ।
- बिहंग = पक्षी।
- पखारे = धोकर ।
- उरग = साँप ।
- जतन = कोशिश ।
- हरिगुरु-करुना = ईश्वर और गुरु की करुणा।
- बिनु = बिना ।
- बिमल बिबक = सुंदर बुद्धि ।
- संसार-घोर-निधि = संसाररूपी गहरा समुद्र।
संदर्भ : प्रस्तुत पद तुलसीदास द्वारा रचित है तथा यह ‘विनय-पत्रिका’ से लिया गया है।
व्याख्या : प्रस्तुत पद में कवि तुलसीदास अपनी दैन्य-भावना को प्रकट करते हुए कहते हैं कि हे माधव ! मेरे मोह की यह फाँसी किस प्रकार टूटेगी ? में बाहर से चाहे करोड़ो कोशिश करूँ लेकिन उससे हुदय की अज्ञानता रूपी गांठ नहीं छूट सकती । जिस प्रकार घी से भरे हुए कड़ाह मे चन्द्रमा की जो परछाई होती है वह सौ कल्प तक ईधन और आग लगाकर औटने (खौलाने) से भी नष्ट नहीं हो सकती । ठीक इसी प्रकार जबतक मोह रहेगा तबतक यह आवागमन की फाँसी भी रहेगी ।
जैसे किसी पेड़ के कोटर में रहनवाल पक्षी को पेड़ काटने से नहीं मारा जा सकता, जैसे साँप के बिल के बाहर अनकक प्रहार करने से साँप नहीं मरता है, ठीक वैसे ही शरीर का खूब्ब रगड़-रगड़ कर धोने से मन कभी पवित्र नहीं हो सकता। तुलसीदास कहते हैं कि जबतक भगवान और गुरु की दया नहीं होगी, तब तक विवेक नही होगा।और बिना विवेक के कोई इस गहन-संसार सागर से पार नहीं हो सकता ।
काव्यगत विशेषताएँ :
1. प्रस्तुत पद में तुलसीदास ने भवसागर से मुक्ति पाने के लिए श्रीराम से विनती की है।
2. पद के ‘माधव मोह’, ‘बस बिहग’, ‘बिबिध विधि’, ‘बिमल बिबेक’ तथा ‘बिनु बिबेक’ में अनुप्रास अलंकार है ।
3. पूरे पद में दृष्टांत अलकार है ।
4. आत्म-निवेदन की प्रधानता है।
5. पद के प्रत्येक शब्द में कवि-हुदय झलकता है।
6. भाषा बजभाषा है ।
पद सं० – 3
अस कछु समुझि परत रघुराया ।
बिनु तव कृपा दयालु ! दास-हित ! मोह न छूटै माया ।।
बाक्य-ग्यान अत्यंत निपुन, भव पार न पावै कोई ।
निसि गृहमध्य दीप की बातन्ह, तम निबृत्त नहिं होई ।।
जैसे कोई एक दीन दुखित अति, असन-हीन दुख पावै ।
चित्र कलपतरु कामधेनु गृह, लिखे न बिपत्ति नसाबै ।।
घटरस बहु प्रकार भोजन कोड, दिन अरु रैन बखानै ।
बिनु बोले संतोष-जनित सुख, खाइ सोइ पै जानै ।।
जब लगि नहिं निज हृद प्रकास, अरु बिषय-आस मन माहीं ।
तुलसीदास तब लगि जग-जोनि भ्रमत, सपनेहुँ सुख नाहीं ।।
शब्दार्थ:
- अस = एसा ।
- परत = पड़ता है ।
- तव = तुम्हारे ।
- वाक्य-ज्ञान = वाक्यरूपी ज्ञान।
- निसि = रात्रि ।
- गृहमध्य = घर के बीच ।
- बातन्ह = बातें ।
- तम = अंधकार ।
- निदृत = छुटकारा।
- आसन-हीन = भोजन से हीन, भोजन के अभाव में ।
- कलपतरु = कल्पतर ।
- षटरस = छ: प्रकार के रस ।
- सोइ = वही ।
- जग-जोनि = संसार की योनि ।
- सपनेहुं = सपने में भी ।
संदर्भ : प्रस्तुत पद तुलसीदास द्वारा रचित है तथा यह ‘बिनय-पत्रिका’ से लिया गया है।
व्याख्या : प्रस्तुत पद में कवि तुलसीदास श्री राम से विनती करते हुए कहते हैं कि हे रघुनाथ! मेरी समझ्भ से आपकी कृपा के बिना माया-मोह से छुटकारा नहीं मिल सकता है । जैसे रात में घर के अंदर केवल दीपक की चर्चा करने से ही अंधकार दूर नहीं हो सकता है, ठीक वैसे ही जैसे कोई वाचक कितना ही ज्ञानवान हो लेकिन वह इस भव-सागर को पार नहीं कर सकता ।
जिस प्रकार एक दीन व्यक्ति जो भोजन के अभाव में दु ख पा रहा हो और वह घर में कल्पवृक्ष तथा कामधेनु का चित्र बनाकर अपनी विपन्ति को दूर करना चाहे तो दूर नहीं हो सकता है । इसी प्रकार केवल शास्त्रों की बातें भर करने से मोह-माया से छुटकारा नहीं पाया जा सकता है । भोजन करने के बाद जो संतुष्टि होती है, वह संतुष्टि केवल छ: रसों से परिपूर्ण भोजन की बातें करने से नहीं हो सकती है। इसी प्रकार केवल बातें बनाने से किसी कार्य की सिद्धि नहीं होती है जब तक मन में सांसारिक विषय-वासनाओं की आशा बनी है तब तक इस संसार के विभिन्न योनियों में ही जन्म लेकर भटकना पड़ंगा, सपने में भी सुख की प्राप्ति नहीं होगी ।
काव्यगत विशेषताएँ :
1. प्रस्तुत पद ने भव-सागर से मुक्ति पाने के लिए राम की कृपा को आवश्यक बताया है ।
2. केवल कल्पना करने या बातें बनाने से इस भवसागर से मुक्ति नहीं मिलने वाली है ।
3. यहाँ तुलसीदास ने विभिन्न योनियों की बात कहकर पुनर्जन्म के बारे में अपना विश्वास व्यक्त किया है।
4. प्सत्तुत पद के ‘निबृत्त नहिं’ , दीन दुखित’, ‘बिनु बोले’, ‘जग-जोनि’, तथा ‘सपने हुँ सुख’ में अनुपास अलंकार है।
5. पूरे पद में दृष्षांत अलंकार है ।
6. पद के प्रत्येक शब्द में कवि-हुदय झलकता है ।
7. भाषा ब्रजभाषा है ।
पद सं० -4
कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो ।
श्री रघुनाथ-कृपालु-कृपा तें, संत-सुभाव गहौंगो ।।
जथालाभ संतोष सदा, काहू सों कछु न चहौंगो ।
परहित-निरत निरंतर, मन-कम-बचन नेम निबहौंगो ।।
परुष बचन अति दुसह स्रवन सुनि, तेहि पावक न दहौंगो ।
बिगत मान, सम सीतल मन, पर गुन नहि, दोष कहौंगो ।।
परिहरि देह-जनित चिंता, दुख-सुख समबुद्धि सहौंगो ।
तुलसीदास प्रभु यहि पथ रहि, अबिचल हरि-भक्ति लहौंगो ।
शब्दार्थ :
- कबहुँक = कब तक ।
- यहि रहनि = इस दशा में ।
- रहौंगे = रहुँगा ।
- तें = से ।
- सुभाव = स्वभाव ।
- गहौंगो = ग्रहण करूँगा ।
- जथालाभ = जो भी लाभ होगा ।
- काहू सों = किसी से।
- चहौंगो = चाहँगा ।
- परहित = दूसरों के हित।
- निरत = लीन ।
- निरंतर = लगातार ।
- क्रम = कर्म ।
- बचन = वचन।
- नेम = नियम ।
- निबहींगे = निर्वाह करूँगा ।
- परुष = कठोर ।
- तेहि = उसके ।
- पावक = आग ।
- दहौगो = जलूँगा ।
- बिगत = भूलकर ।
- मान = सम्मान ।
- कहौंगो = कहूँगा ।
- परिहरि = त्याग कर ।
- देह-जनित = देह/शरीर से जुड़ी चिंता ।
- समबुद्धि = समान युद्धि से ।
- सहौंगो = सहन करूगगा ।
- अबिचल = बिना विचलित हुए
- लहौंगो = लूँगा ।
संदर्भ : प्रस्तुत पद तुलसीदास द्वारा रचित है तथा यह ‘विनय-पष्रिका’ से लिया गया है।
व्याख्या : प्रस्तुत पद में तुलसीदास ने अपनी अवस्था का वर्णन करते हुए श्रीराम से कृपा करने की विनती की है। तुलसीदास कहते हैं कि आखिर मैं कबतक इस दशा में रहूँगा। कब श्रीराम की कृपा से मै संतों का-सा स्वभाव ग्रहण कर सकृँगा ! जो कुछ मिलेगा मै उसी में संतुष्ट रहूँगा तथा किसी से भी कुछ नहीं चाहूँगा। मैं निरतर दूसरों की भलाई करने में ही अपना जीवन व्यतीत करूँगा ।
मन, वचन और कर्म से अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मबर्य, अपरिग्रह, शौच, सन्तोष, तष, स्वाध्याय और ईश्वर-प्राणिधान का पालन करूँगा। अपने कानों से अत्यंत कठोर तथा असह्य वचन सुनकर भी कोष के आग में नहीं जलूँगा । अपना अभिमान छोड़कर हरेक परिस्थिति में समान भाव से रहूँगा । मैं दूसरों की स्तुति या निंदा भी नहीं करूगगा क्योंकि जब मेरा मन आपकी भक्ति में लगा रहेगा तो इन सबके लिए समय ही नहीं मिलेगा । मैं अपने शरीर से जुड़ी चिंताओं को छोड़कर सुख और दु:ख दोनों को ही समान भाव से ग्रहण करूँगा। तुलसीदास कहते हैं कि मैं भक्ति के इसी मार्ग पर चलकर अविचल भाव से आपकी भक्ति करूँगा।
काव्यगत विशेषताएँ :
1. प्त्तुत पद में तुलसीदास ने अपने-आपको श्रीराम की भक्ति में लीन करने हेतु उनसे प्रार्थना की है ।
2. संसार की सारी बुराइयों से मुख मोड़कर ही ईश्वर-भक्ति के मार्ग पर चला जा सकता है।
3. प्रस्तुत पद के ‘कृपालु कृपांते’, ‘संत-सुभाव’, ‘निरत-निरंतर’, ‘नेम निबहौंगो’, ‘समसीतल’ तथा ‘समबुद्धि सहौंगो’ मे अनुप्रास अलंकार है ।
4. पद में वर्णित दस नियम ही ‘यम नियम’ कहलाते हैं।
5. पद के प्रत्येक वाक्य में कवि-हदय झलकता है ।
6. भाषा बजभाषा है।