WBBSE Class 9 Hindi Solutions Chapter 4 ठेले पर हिमालय

Students should regularly practice West Bengal Board Class 9 Hindi Book Solutions Chapter 4 ठेले पर हिमालय to reinforce their learning.

WBBSE Class 9 Hindi Solutions Chapter 4 Question Answer – ठेले पर हिमालय

ससंदर्भ आलोचनात्मक व्याख्या

प्रश्न 1.
तत्काल शीर्षक मेरे मन में कौंध गया, ‘ठेले पर हिमालय’।
– उक्त कथन किस रचनाकार के किस पाठ से लिया गया है ? उक्त कथन द्वारा लेखक क्या कहना चाहते हैं ?
उत्तर :
उक्त कथन धर्मवीर भारती के यात्रा-वृतांत ‘ठेले पर हिमालय’ सं. लिया गया है।
एक दिन लंखक अपने उपन्यासकार मित्र के साथ पान की दुकान पर खड़े थे कि तभी एक बर्फवाला ठेले पर बर्फ की सिल्लियाँ लादे आया। उस बर्फ से भाप उड़ रही थी। मित्र ने बर्फ से उड़ते भाप के सौंदर्य के प्रभावित होकर कहा – यही बर्फ तो हिमालय की शोंभा है। बस फिर क्या था। लेखक को अपने ताजी रचना के लिए तुरंत बैठे बिठाए एक शीर्षक मिल गया – ‘ठेले पर हिमालय’।

WBBSE Class 9 Hindi Solutions Chapter 4 ठेले पर हिमालय

प्रश्न 2.
ओ नये कवियों ! ठेले पर लादो । पान की दुकानों पर बिको।
– वक्ता कौन है ? पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
वक्ता लंखक धर्मवीर भारती हैं।
लंखक ने अपनन उपन्यासकार मित्र के कथन पर अपनी रचना के लिए तत्काल शीर्षक बना डाला – ‘ठंले पर हिमालय’। यह शीर्षक उन्हें इतना अच्छा लगा कि उन्होंने नए कवियों को भी सलाह दे डाली कि यदि उन्हें भी यह शीर्षक पसंद आया हों तो वे भी हिमालय को अपनी रचना से निकाल कर ठेले और पान की दुकानों तक ले आए ताकि वह सामान्य पाठक के लिए भी माह्म हो सके। साधारण लोग भी उसका आनंद उठा सकें।

प्रश्न 3.
मैं जानता हूँ, क्योंकि वह बर्फ मैंने भी देखी है।
– वक्ता कौन है ? अंश का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वक्ता धर्मवौर भारती हैं।
लखक ने ‘ठेले पर हिमालय’ वाली बात अपने उपन्यासकार मित्र को बताई तो उनके हाव-भाव से यह लगा कि यह बात उनके मन को खरोंब गई है। मित्र की एसी प्रतिक्किया स्वभाविक थी क्योंक जिसने भी एक बार हिमालय के सौंदर्य को देख लिया है उसके मन पर वह एक ऐसी खरों छोड़ जाती है, जिसे याद कर दुख ही होता है। लेखक को भी यही अनुर्भुति थी क्यांक उन्हांने भी हिमालय के उस असौम सौंदर्य को देखा है, गहराई से महसूस किया है।

प्रश्न 4.
कितना कष्टप्रद, कितना सूखा और कितना कुरूप है वह रास्ता।
– यहाँ किस रास्ते के बारे में कहा गया है ? रास्ते का वर्णन करें ?
उत्तर :
यहाँ उस रास्ते के बारे में कहा गया है जो कोसी से कौसानी को ओर जाता है। उस रास्ते में पानी का कहीं नामो-निशान नहीं है, पहाड़ भी हरियाली के अभाव में सूखे और भूरे नजर आते है। कुल मिलाकर वह रास्ता कष्टप्रद, सुखा और कुरूप दिखाई देता है।

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प्रश्न 5.
शुक्ल जी जैसा सफर का साथी पिछले जन्म के पुण्यों से ही मिलता है।
– शुक्ल जी कौन हैं ? उनके बारे में ऐसा क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
शुक्ल जी लंखक के मिम्र हैं।
शुक्ल जी के द्वारा प्रात्साहित किए जाने पर ही लेखक अपने मित्र तथा पत्नी के साथ कौसानी के लिए रवाना हुए थे। इतना ही नहीं, शुक्ल जी ने पूरे सफर के लिए उनका गाइड बनना भी स्वीकार कर लिया था तथा अपने दिए गए समय के अनुसार वे लेखक के सामने उपस्थित भी हो गए। शुक्ल जी की इसी व्यवहार कुशलता के कारण यह कहा गया है कि उनके जैसा सफर का साथी पिछले जन्म के पुण्यों से ही मिलता है।

प्रश्न 6.
उन्हें देखते ही हमारी भी सारी थकान काफूर हो जाया करती थी।
– रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें। पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
रचना का नाम ‘ठेले पर हिमालय’ तथा रचनाकार धर्मवीर भारती हैं।
शुक्ल जी लेखक के मित्र हैं। वे अपनी बात तथा धुन के पक्के हैं। सबसे बड़ी खूबी उनकी व्यवहार कुशलता तथा खुशामजाजी है। इन्हीं गुणों के कारण लेखक जब भी शुक्ल जी को देखते हैं तो उनकी सारी थकान दूर हो जाती है ।

प्रश्न 7.
और खासी अटपटी चाल थी बाबू साहब की ।
– यहाँ किसके बारे में कहा गया है। उसकी चाल को अटपटा क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
शुक्ल जी अपने साथ अपने एक और मित्र को लेकर आए थे। लेखक ने उस मित्र का वर्णन इस प्रकार किया है – ” लम्बा-दुबला शरीर, पतला-साँवला चेहरा, एमिल जोला-सी दाढ़ी, ढीला-ढाला पतलून, कधे पर पड़ी हुई ऊनी जार्कन, बगल में लटकता हुआ जाने थर्मस या कैमरा या बाइनाकुलर।” – इन सारी चीजों को मिलाकर लेखक को उनकी चाल काफी अटपटी मालूम हो रही थी।

प्रश्न 8.
कोसी से बस चली तो सारा दृश्य बदल गया ।
– ससंदर्भ आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
प्रस्तुत कथन धर्मवीर भारती के यात्रा-वृतांत ‘ठेले पर हिमालय’ से लिया गया है।
मझकाली से कोसी तक का सफर आँखों को बड़ा ही थका देने वाला था। कहीं कोई हरियाली नहीं, पानी का तो नामो-निशान भी नहीं। लेकिन बस ज्योहि कोसी से चली तो प्राकृतिक सौंदर्य ही बदल गया – कल-कल करती कोसी नदी, छोटे-छोटे सुन्दर गाँव, मखमली खेत, पहाड़ी डाकखाने और नदी-नाले पर बने हुए पुल- ये सब मिलकर एक जादुई वातावरण की सृष्टि कर रहे थे।

प्रश्न 9.
पर ज्यों-ज्यों वह आगे बढ़ रही थी, त्यों-त्यों हमारे मन में एक अजीब-सी निराशा छायी जा रही थी।
– आगे कौन बढ़ रही थी ? किसके मन में निराशा छायी जा रही थी और क्यों ?
उत्तर :
बस आगे बढ़ रही थी।
लेखक सांच रहं थे कि उनकी बस ज्यों-ज्यों कौसानी के निकट आती जाएगी दृश्य और भी सुंदर होता जाएगा लेकिन बात उल्टी हो गई। कौसानी से करीब छ: किलोमोटर दूर रहने पर भी कौसानी के उस सौददर्य का कहों नामो-निशान न था। यह देखकर ही लेखक के मन में निराशा छायी जा रही थी।

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प्रश्न 10.
बिल्कुल ठगे गए हम लोग। कितना खिन्र था मैं।
– ससंदर्भ आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति धर्मवीर भारती के यात्रा-वृतांत ‘ठेले पर हिमालय’ से ली गयी है।
जब लेखक अपने मित्रों के साथ कौसानी के बस-अह्डु पर उतरे तों पहली नज़र में उन्हे केवल एक छोटा-सा, बिल्कुल उजडाा-सा गाँव नजर आया। बर्फ का तो कहीं नामो-निशान न था। यह देखकर उन्हें लगा कि वे यहाँ आकर उगे गए हैं और यही सोचकर उनका मन खिन्न हो आया।

प्रश्न 11.
अकस्मात् हम एक-दूसरे लोक में चले आए थे।
– रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें। पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
रचना का नाम ‘ठेले पर हिमालय’ तथा रचनाकार धर्मवौर भारती हैं।
बस से उतरने पर जब लेखक की नजर सामने घाटी की ओर गई तो वे वहाँ का दृश्य देखकर बिल्कुल ठगे-से रह गए। घाटी में प्रकृति का अपार सौंदर्य बिखरा पड़ा था। यह सब देखकर लेखक तथा उनके मित्रों को ऐसा लगा कि वे अचानक एक दूसरे ही लोक में घले आए हैं।

प्रश्न 12.
गाँधी जी ने यहीं अनासक्ति योग लिखा था।
– ससंदर्भ आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : प्रस्तुत पंक्ति धर्मवीर भारती के यात्रा-वृतांत ‘ठेले पर हिमालय’ से ली गई है।
गाँधी जी ने भी अपना कुछ समय कौसानी में बिताया था। यहाँ का प्राकृतिक वातावरण ऐसा है जो हमें सांसारिकता सं अलग करके आध्यात्मिकता से जोड़ देता है। यही कारण है कि ‘अनासक्ति योग’ नामक पुस्तक की रचना गाँधी जी ने यहीं की थी।

प्रश्न 13.
खिड़की से झाँक रहा है, कहीं गिर न पड़े।
– पाठ का नाम लिखें। पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
पाठ का नाम है – ‘ठेले पर हिमालय’।
कौसानी पहुँचने पर एक क्षण के लिए लेखक को एक हिम शिखर के दर्शन हुए लेकिन फिर वह बादलों के पीछे तुरंत लुप्त हो गया। इस मनोरम दृश्य को लेखक के अतिरिक्त उनके साथ आए सभी ने देखा। उस हिम शिखर के बारे में
लेखक कल्पना करते हैं मानो उसे बाल शिखर जान किसी ने भीतर खोंच लिया क्योंकि वह कहीं आकाशरूपी खिड़की से कहीं नीचे न गिर पड़े।

प्रश्न 14.
सारी खिन्नता, निराशा, थकावट – सब छू-मन्तर हो गयी। हम सब आकुल हो उठे।
– उद्धुत कथन के वक्ता कौन हैं ? वक्ता के ऐसा कहने का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
उद्धृत कथन के वक्ता लेखक धर्मवीर भारती हैं।
लेखक तथा उनके साथ के सोगों ने हिम शिखर के दर्शन मात्र कुछ ही समय के लिए किए थे लेकिन उसी दर्शन ने उनलोगों की सारी खिन्रता, निराशा तथा थकावट को छू-मन्तर कर दिया था। एक बार पुनः उसी सौदर्य के दर्शन के लिए वे सब आकुल हो उठे।

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प्रश्न 15.
निरावृत…. असीम सौंदर्य-राशि हमारे सामने अभी-अभी अपना घूँघट धीरे से खिसका देगी और ….. और तब ?
– प्रस्तुत पंक्ति कहाँ से ली गई है ? पंक्ति का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर :
प्रस्तुत पक्ति ‘ठेले पर हिमालय’ पाठ से ली गई है।
लेखक एक क्षण के लिए हिम शिखर के दर्शन कर पाए थे और फिर वह बादलों में छिप गया। वे अब उस क्षण की प्रतीक्षा कर रहे थे – जब बादलरूपी घूँघट हट जाएंगे और हिमालय की निरावृत ….. असीम सौंदर्य राशि उनके सामने होगी – तब वे जी भर कर उस सौंदर्य को अपनी आँखों से देख पाएंगे।

प्रश्न 16.
सचमुच मेरा दिल बुरी तरह धड़क रहा था।
– रचना का नाम लिखें। किसका दिल बुरी तरह क्यों धड़क रहा था ?
उत्तर :
रचना का नाम है – ‘ठले पर हिमालय’।
लेखक उस समय की कल्पना कर रहे थे जब हिमालय का निरावृत अपार सौंदर्य उनके सामने होगा। उस सौंदर्य को अपनी आँखों से दंखना और उसकी सुंदरता का पान करने की कल्पना मात्र से ही लेखक का दिल वुरी तरह धड़क रहा था।

प्रश्न 17.
अब समझे यहाँ का जादू।
– उक्त कथन किस रचनाकार के किस पाठ से लिया गया है ? पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
उक्त कथन धर्मवीर भारती के यात्रा-वृतांत ‘ठेले पर हिमालय’ से लिया गया है।
जब तक लेखक ने कौसानी की कत्यूर घाटी तथा हिम शिखर के सौंदर्य के दर्शन नहीं किए थे तब तक उनका मन खिन्न था लेकिन अब उनकी सारी खित्रता दूर हो गयी थी। शुक्ल जी लेखक में आए इसी बदलाव को देखक मुस्कुरा रहे थे मानो कह रहे हों – “इतने अधीर थे, कौसानी आयी भी नहीं और मुँह लटका लिया। अब समझे यहाँ का जादू।”

प्रश्न 18.
और फिर सब खुल गया।
– वक्ता कौन है ? अंश का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वक्ता लेखक धर्मवीर भारती हैं।
लेखक तथा उनके साथ आए सभी लोग डाक बंगले के बरामदे में बैठकर हिम शिखर के सौंदर्य को निहार रहे थे। हिम शिखरों पर छाए बादल धीरे-धीरे नीचे की ओर सरक रहे थे तथा एक-एक करके नये-नये शिखरों की हिम रेखाएँ, उनका सौदर्य खुलता जा रहा था। और फिर सारे बादलो के हट जाने से पूरे हिम शिखरों का सौंदर्य एकबारगी आँखों के सामने आ गया।

प्रश्न 19.
हिम्मत है ? ऊँचे उठोगे ?
– उक्त कथन किस रचनाकार के किस पाठ से लिया गया है ? यह कौन, किससे कह रहा है ?
उत्तर :
उक्त कथन धर्मवीर भारती के ‘ठेले पर हिमालय’ पाठ से लिया गया है।
लेखक को ऐसा लगता है कि वह हिमालय की ऊँचाई के सामने छोटे भाई की तरह है। लेखक को नीचे कुण्ठित तथा लज्जित भाव से खड़ा हुआ देखकर मानो हिमालय उसे उत्साहित करते हुए बड़े भाई की तरह उसे चुनौती दे रहा हो “हिम्मत है? ऊँचे उठोगे ?”

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प्रश्न 20.
हम हर पर्सपेक्टिव हिमालय देखूँगा।
– व्रक्ता कौन है ? अंश का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वक्ता शुक्ल जी के साथ आया चित्रकार सेन हैं ।
चित्रकार सेन अचानक ही बातें करते-करते सिर के बल खड़ा होकर हिमालय को देखने लगे – ‘हम हर पर्सपक्टिव (क्षैतिज) हिमालय देखूँगा।’ उसके इस कथन में उन चित्रकारों तथा चित्र शैलियों के प्रति विक्षोभ है जोकिसी चीज को सीधे न देखकर उसे विभिन्न कोणों से देखते हैं तथा वह आम आदमी की समझ से बाहर हो जाता है।

प्रश्न 21.
आज भी उसकी याद आती है, तो मन पिरा उठता है।
अथवा
प्रश्न 22.
उस दर्द को समझता हूँ।
– उपर्युक्त कथन के वक्ता कौन हैं ? कथन का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
उपर्युक्त कथन के वक्ता धर्मवीर भारती हैं।
लेखक को जब भी कौसानी तथा वहाँ से हिम शिखरों के सौंदर्य की याद आती है तो वहाँ से अलग होने का भाव उनके मन को दुःख देता है। पहले उन्होंने अपने उपन्यासकार मित्र के दुःख को नहीं समझा था लेकिन जब से उन्होने स्वयं उस सौंदर्य को देखा है – वे अपने मित्र के उस दर्द को समझ सकते हैं।

प्रश्न 23.
किसी ऐसे क्षण में ऐसे ही ठेलों पर लदे हिमालयों से घिरकर ही तो तुलसी ने कहा था- ‘कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो’
– पाठ और रचनाकार का नाम लिखें। पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर :
पाठ ‘ठेले पर हिमालय’ तथा इसके रचनाकार धर्मवीर भारती हैं।
लेखक की इच्छा थी कि वे हमेशा उसी हिम शिखरों के सौंदर्य के बीच रहें लंकिन यह संभव नही है। कुछ ऐसी ही भावनाओं के वशीभूत तुलसीदास ने भी यह कहा होगा कि आखिर मैं कब तक इस दशा में पड़ा रहूँगा, कब आपके (श्री राम) दर्शन होंगे।

प्रश्न 24.
वहीं मन रमता है, मैं करूँ तो क्या करूँ ?
– वक्ता कौन है ? वह ऐसा क्यों कहता है ?
उत्तर :
वक्ता धर्मवीर भारती हैं।
लेखक भले ही कौसानी से लौट आए हैं लेकिन हिमालय का, वहाँ की घाटियों का वह सौंदर्य आज भी उनको आँखों के सामने नाय रहा है। वे बार-बार वहाँ जाना चाहते हैं। उनके मन में यह भाव आता है कि अपने आने का संदेशा हिमालय को भेज दे क्यांकि उनका मन तो वहीं रम गया है और मन है कि उनका कहना नहीं मानता, कहीं और वास करना नहीं चाहता।

प्रश्न 25.
मन में बेसाख् यही आया कि इन बेलों की लड़ियों को उठाकर कलाई में लपेट लूँ, आँखों से लगा लूँ।
– वक्ता कौन है ? वक्ता के कथन का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
वक्ता धर्मवीर भारती हैं।
जब लेखक ने कत्यूर घाटी के सौदर्य को देखा तो वे उसके सौदर्य में बँधकर रह गए। हरे मखमली खेत, रास्त के किनारे सफेद पत्थरों के कतार और इधर-उधर से आकर आपस में मिल जानेवाली नदियाँ ऐसी लगती थी मानो फूलों की लड़ियाँ हों। यह सौंदर्य देखकर लेखक के मन में यह ख्याल आता है कि इन लड़यों को उठाकर वे कलाई में लपंट ले या फिर इन्हें अपनी आँखो से लगाकर उसकी शीतलता, उसके सुगंध को अनुभव करें।

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प्रश्न 26.
आप लोग खुशकिस्मत हैं साहब।
अथवा
प्रश्न 27.
आज तो आपके आते ही आसार खुलने के हो रहे हैं।
– वक्ता और श्रोता कौन हैं ? वक्ता के ऐसा कहने का कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वक्ता कौसानी डाक बँगले का खानसामा है तथा श्रोता लेखक तथा उनकी मित्र-मंडली हैं।
लेखक के आने के चौदह दिनों पहल से ही कई दूरिस्ट हिमालय के दर्शन के लिए रूके थे लंकिन वे हिमालय के हिम-शिखरों को नहों देख पाए। लेखक और उनके मित्र को पहले ही दिन हिम शिखरों के सौदद्य के दर्शन हो गए इसलिए खानसामा उन्हें खुर्शकिस्मत बता रहा है। इतना ही नहों, उनलोगों के आते हो बादल भी छँटने लगे थे। मौसम खुलने लगा था।

प्रश्न 28.
यह पहली बार मेरी समझा में आ रहा था।
– किसकी समझ में पहली बार क्या आ रहा था ?
उत्तर :
कौसानी से हिमालय के दर्शन से लेखक को ऐसा लगा मानो उसके सारे संघर्ष, अन्तर्द्धन्द्ध तथा ताप नप्ट हो रहे हैं । अब लखक के समझ में यह बात आई कि क्यों प्राचीन साधक अपन दैहिक, दैविक तथा भौतिक तापों से मुक्ति पाने के लिए हिमालय की ही शरण मे ज्ञात थे।

प्रश्न 29.
पर सब चुपचाप थे।
– ससंदर्भ पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
प्रस्तुत प्रक्त धर्मवोर भारती के गात्रा-वृतांत ‘ठले पर हिमालय’ से लो गई है।
कौसानी में जब सूरज डुबने लगा तो उसकी लालिमा से ग्लेशियरों के जल भी पिघले हुए केसर के समान लगने लगे सफंद कमल का रंग लाल हो गया तथा धाटियों का रंग गहरा नीला प्रतीत होने लगा। सौदर्य के इस बदलतं रूप को सब अपनी आँखों सं चुपचाप निहार रहे चं मानों सबकी वाणी मूक हो गई हो। वह सौदर्य केवल अनुभव करने की चीज़ थी।

प्रश्न 30.
यह मेरा मन इतना कल्पनाहीन क्यों हो गया है ?
– वक्ता का नाम लिखें। वह ऐसा क्यों कहता है ?
उत्तर :
वक्ता धर्मवीर भारती है।
रात में चाँद के निकलन के बाद लेखक डाक बँगले के बरामदे में एक आराम कुर्सी लेकर र बसे अलग-थलग बैठकर यह सांचने लगं – आज तक हिमालय के सौंदर्य का देखकर न जाने कितने कवियों ने कितनी ही रचनाएँ की है। और एक वे हैं कि कावता लिखना तो दुर उनके मन में इस सौंदर्य का वर्णन करने वाला एक शब्द भी नहीी जग रहा है। आखिर उनके साथ ऐसा क्यों हों गहा है ? उनका मन इतना कल्पनाविहीन क्यों हो गया है ?

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प्रश्न 31.
भगवान का क्या-क्या करतूत इस हिमालय में होता है।
– वक्ता का नाम लिखें। कथन का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर :
वक्ता चित्रकार संन हैं।
कौसानो तथा हिमालय के सौंदर्य ने सबको अभिभूत किया था लेकिन इस सौंदर्य से सबसे ज्यादा खुश चित्रकार सेन था। वह प्रकृति के क्षण-प्रति-क्षण बदलते रूप को देखकर आश्चर्यचकततथा। अपने इसी भाव को व्यक्त करने के लिए वह कह उठना है कि न जाने भगवान का क्या-क्या करतूत इस हिमालय में होता है।

प्रश्न 32.
कुछ विदेशियों ने इसीलिए इस हिमालय की बर्फ को कहा है – चिरन्तन हिम।
– रचना तथ्रा रचनाकार का नाम लिखें। अंश का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर :
गचना ‘ठेले पर हिमालय’ तथा रचानाकार धर्मवीर भारती हैं।
हिमालय के शिखर आदिकाल से हो बर्फ सं ढके है। इसके शिखर करी भी हिमविहीन नहीं होंते सालों भर इनपर बर्फ जमा ही रहता है। हिमालय की इसी विशेषता से प्रभावित होकर कुछ विदेशियों ने हिमालय की बर्फ को चिरन्तन हिम कहा हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न – 1 : ‘ठेले पर हिमालय’ का सारांश अपने शब्दों में लिखें ।
प्रश्न – 2: ‘ठेले पर हिमालय’ में वर्णित लेखक की कौसानी-यात्रा का वर्णन करें ।
प्रश्न – 3 : यात्रा वृतांत की दृष्टि से ‘ठेले पर हिमालय’ की समीक्षा करें।
प्रश्न – 4 : ‘ठेले पर हिमालय’ के आधार पर लेखक की यात्रा का वर्णन करें।
प्रश्न – 5 : कौन-सी घटना थी जिसने लेखक को कौसानी-यात्रा के लिए प्रेरित किया? ‘ठेले पर हिमालय’ शीर्षक रचना के आधार पर वर्णन करें।
प्रश्न – 6 : ‘ठेले पर हिमालय’ में वर्णित लेखक के विभिन्न अनुभवों के बारे में लिखें ।
प्रश्न – 7: ‘ठेले पर हिमालय’ के शीर्षक की सार्थकता पर विचार करें ।
उत्तर : किसी भी यात्रा-वृतांत की सबसे बड़ी विशेषता उसका कौतूहल होता है । अगर पाठक मे यात्रा-वृतांत से कौतूहल न पैदा हो तो वह सफल यात्रा-वृतांत नहीं हो सकता । इस दृष्षि से धर्मवीर का यात्रा-वृतांत ‘ठेले पर हिमालय’ को श्रेष्ठ यात्रा-वृतांत कहा जा सकता है क्यांकि इसका शीर्षक ही मन में कौतूहल पैदा करता है ।

लेखक एकबार पान की दुकान पर अपने एक उपन्यासकार मित्र के साथ खड़े थे कि तभी ठेले पर बर्फ लांद हुए बर्फ वाला आया । उसमें से भाप उड़ रही थी । उपन्यासकार मित्र अल्मोड़ा के थे । वे उस बर्फ के सौदर्य में खो गए और कहा – ‘यही बर्फ तो हिमालय की शोभा है।’ बस क्या था लेखक को अपनी रचना के लिए बना-बनाया तत्काल एक शीर्षक मिल गया – ‘ठेले पर हिमालय’।

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उस घटना से प्रेरित होकर हिमालय पर जमे बर्फ के सौंदर्य को देखन के लिए लेखक ने अपने मित्रों के साथ कौसानी की यात्रा तय कर ली । कौसानी में आगे के मार्गदर्शन के लिए जब उन्हांन बस से शुक्लजो को देखा तो अब तक की यात्रा की सारी थकान गायब हो गयी । शुक्ल जी के साथ उनके शहर के मशहूर चित्रकार सनन भी थे जिनकी वेशभूषा तथा व्यक्तित्व बड़ा अटपटा-सा था ।

जबतक लेखक और उनके मित्र सोमेश्वर घाटी नहीं पहुँचे, वे रास्ते के सौदर्य सं निराश थे। लेकिन वहाँ पहुँचते ही उन्हें यह आभास हो गया कि कौसानी की तुलना स्विटजरलेण्ड से क्यां की गई है –
” इइतना सुकुमार, इतना सुंदर, इतना सजा हुआ और इतना निष्कलंक कि लगा इस धरती पर तो जूते उतारकर, पॉँव पोंछकर आगे बढ़ना चाहिए ।”

डाकबंगले पर पहुंनते ही उनलोगों को एक क्षण के लिए बर्फ से ढके हिमालय के दर्शन हुए और फिर वह बादलों के बीच छिप गया । इस क्ष के दर्शन से ही लेखक को जो सुखद अनुभूति हुई उससे वे समझ गए कि प्राचीन काल में साधक अपने दैहिक, दैविक तथः मौतिक ताप को नष्ट करने के लिए हिमालय क्यों जाते थे ।

उस यात्रा को काफी समय के बाद भो जब लेखक हिमालय के उस सौददर्य को याद करते हैं तो उन्हें अपने मित्र तथा उनके दर्द की याद करते हैं । लेकिन बार-बार उस सौदर्य के दर्शन कर पाना संभव नही है। न जान फिर वह अवसर जीवन में कब आ पाएगा । तुलसी ने भी इसी भावना के वश में होकर कहा होगा –
‘कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो’

फिर भी लेखक निराश नहीं हैं। वह अवसर उनके जीवन मे कभी न कभी फिर अवश्य आएगा।
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि लेखक की कौसानी-यात्रा का वर्णन हमे प्रारंभ से लेकर अंत तक बाँधे रखती है तथा लेखक जिन अनुभूतियों से गुजरते हैं – वह अनुभूति पाठक की हो जाती है। सफल यात्रा-वृतांत का यही सबसे बड़ा गुण है तथा इस आधार पर इसका शीर्षक ‘ठले पर हिमालय’ भी सर्वथा उपयुक्त है ।

अति लघूत्तरीय/लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
यही बर्फ तो हिमालय की शोभा है – यह किसने क्या देखकर कहा ?
उत्तर :
लेखक के उपन्यासकार मित्र ने ठले पर रखे बर्फ से उठती भाप की सुंदरता का देखकर कहा।

प्रश्न 2.
लेखक को अपने यात्रा-वृतांत का शीर्षक ‘ठेले पर हिमालय’ की प्रेरणा किसकी बात से मिल्नी ?
उत्तर :
लेखक को अपने यात्रा-वृतांत के शीर्षक की प्रेरणा अपने उपन्यासकार मित्र की बात से मिलो।

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प्रश्न 3.
अपने शीर्षक ‘ठेले पर हिमालय’ के बारे में लेखक ने नए कवियों से क्या कहा है ?
उत्तर :
अपने शीर्षक ‘ठेले पर हिमालय’ के बारे में लेखक ने नए कवियों से कहा है – “इसे ले जायँ और इस शीर्षक पर दो-तीन सौ पंक्तियाँ बैडोल-बेतुकी लिख डालें ।”

प्रश्न 4.
नये कवियों की पंक्तियों को लेखक ने ‘बेडोल-बेतुकी’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
नये कवियों की कविता न तो मन को छूती है और न ही छंद के नियमों का पालन करती है. इसलिए उनकी पंक्तियों को लेखक ने बैडोल-बेतुकी कहा है ।

प्रश्न 5.
सुललित गीतकारों से लेखक ने बर्फ को क्या कहकर डाँटने को कहा है ?
उत्तर :
सुललित गीतकारों से लेखक ने बर्फ को यह कहकर डाँटने को कहा है – “उतर आओ। ऊँचे शिखर पर बन्दरों की तरह क्यों चढ़े बैठे हो ?’

प्रश्न 6.
लेखक ने जब अपने मन की अनुभूति को उपन्यासकार मित्र को बताया तो उसकी क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर :
लेखक ने जब अपने मन की अनुभूति को उपन्यासकार मित्र को बताया तो उनक मित्र को प्रतिक्रिया से ऐसा लगा मानो वह बर्फ उनके मन को कहीं खराँच गई है ।

प्रश्न 7.
किसके मन पर हिमालय की बर्फ एक ऐसी खरोंच छोड़ जाती है, जो हर बार याद आने पर पिरा उठती है ?
उत्तर :
जिसने एक बार भी हिमालय के सौदर्य को देख लया है उसके मन पर हिमालय की बर्फ एक ऐसी खरोंच छोड़ जाती है, जो हर बार याद आने पर पिरा उठती है ।

प्रश्न 8.
कितना कहप्रद, कितना सूखा और कितना कुरूप है – यह किसके बारे में कहा गया है ?
उत्तर :
गह उस रास्ते के बारे में कहा गया है जो रास्ता कोसी से कौसानी की ओर जाता है।

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प्रश्न 9.
‘बिल्कुल शैतान की आँत मालूम पड़ता है’ – प्रस्तुत वाक्य किसके लिए कहा गया है?
उत्तर :
प्रस्तुन वाक्य कासी से कौसानी की आर जाने वाले सूखे, भूरे, ढाल को काटकर बनाए गए रास्ते के बारे में कहा गया है ।

प्रश्न 10.
हमलोगों की जान में जान आयी – किनलोगों की जान में जान आई और क्यों ?
उत्तर :
जब लंखक और उनके मित्र ने लॉरीी (बस) से शुक्लजी को उतरते देखा तो उनकी जान में जान आई क्योंकि आगे के सफर के मार्गदर्शक वही थे ।

प्रश्न 11.
पर शुक्लजी के साथ यह नई मूर्ति कौन है – यहाँ किसके बारे में कहा जा रहा है ?
उत्तर :
यहाँ शुक्लजी के चित्र्रकार मित्र संन के बारे में कहा जा रहा है।

प्रश्न 12.
उमी रुपये से घूपकर छुद्वियाँ बिता रहे हैं – कौन, किस रुपये से घूमकर छुद्वियाँ बिता रहा है?
उन्तर :
शुक्लजी के वित्रकार मित्र संन को उनके कुछ चित्रों पर अकादमी की और से पुरस्कार स्वरूप रुपये मिले थे। वे उन्हों रुपयों सं अपनी खुद्टियाँ बिता रहे थे।

प्रश्न 13.
आते समय लेखक के सहयोगी ने कौसानी के बारे में क्या कहा था ?
उत्तर :
लखक के एक सहययागी ने कौसानी आते समय उनसे यह कहा था कि कश्मीर के मुकाबले उन्हे कौसानी ने अधिक मांह है, गाँधीजी ने अनासक्ति-यांग यहीं लिखा था और यं भी कहा था कि स्विटजरलेण्ड का आभास कौसानी में हो होता है ।

प्रश्न 14.
गाँधीजी ने अनासक्ति योग कहाँ लिखा था ?
उत्तर :
गाँधी जी नं अनासक्तियोग कौसानी में लिखा था।

प्रश्न 15.
कौसानी कहाँ बसा हुआ है ?
उत्तर :
सांमश्वर की घाटी के उत्तर में ऊँची पर्वतमाला के शिखर पर कौसानी बसा हुआ है।

प्रश्न 16.
कौसानी के बस अड्डे पर पहुँचकर लेखक को क्या लगा ?
उत्तर :
कौसानी के बस अड्डे पर पहुँचकर लेखक की कह लगा कि वे ठगे गए हैं क्योंकि वहाँ एक उजड़ा-सा गाँव था और वर्फ का नों कहीं नामो-निशान न था।

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प्रश्न 17.
लेखक ने किन्नर और यक्ष के कहाँ वास करने का अंदाजा लगाया ? क्यों ?
उत्तर :
कॉसानी पर्वतमाला की कत्यृर घाटी में किन्नर और यक्ष के वास करने का अंदाजा लेखक ने लगाया क्यांकि वहाँ का सौंदर्य अनुपम है।

प्रश्न 18.
आपस में उलझ जानेवाली बेलों की लड़ियों-सी नदियों को देखकर लेखक के मन में क्या खयाल आया ?
उत्तर :
बेलों की लड़यों सी उलझी नदियों कां देखकर लेखक के मन में यह खयाल आया कि इन लड़ियों को उठाकर वे कलाई में लपेट लें, आँखों से लगा लें ।

प्रश्न 19.
इतना सुकुमार, इतना सुन्दर, इतना सजा हुआ और इतना निष्कलंक-किसे कहा गया है?
उत्तर :
कत्यूर की रग-बिरगी घाटी का इतना सुकुमार, इतना सुन्दर, इतना सजा हुआ और निष्कलक कहा गया है।

प्रश्न 20.
खिड़की से झाँक रहा है, कहीं गिर न पड़े – किसके बारे में कहा गया है ?
उत्तर :
यह बर्फ से ढंक बाल-हिमाशिखर जो बादलों के पीछे छिप गया था, के बारं में कहा गया है ।

प्रश्न 21.
किसकी सारी खिन्नता, निराशा, थकावट सब छू-मन्तर हो गई ? क्यों ?
उत्तर :
लंखक को सारी खिन्नता, निराशा, थकावट – सब छू-मंतर हो गई क्योंकि उसने एक क्षण के लिए ही सही पर हिमाशिखर के दर्शन कर लिए थे।

प्रश्न 22.
निरावृत…असीम सौंदर्य राशि हमारे सामने अभी-अभी अपना घूँघट धीरे से खिसका देगी किसके बारे में कहा जा रहा है ?
उत्तर :
यहाँ हिमालय के सौंदर्य के बार में कहा जा रहा है ।

प्रश्न 23.
‘अब समझे यहाँ का जादू’ – कौन, किससे कह रहा है ?
उत्तर :
यह लेखक के मित्र शुक्लजी लंखक से कह रहे हैं।

प्रश्न 24.
आप लोग खुशकिस्मत हैं साहब – वक्ता और श्रोता कौन हैं ?
उत्तर :
वक्ता कौसानी डाकबंगले का खानसामा तथा श्रोता लेखक व उनके मित्र हैं।

प्रश्न 25.
और फिर सब खुल गया – सब खुल गया का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
‘सब खुल गया’ का अर्थ हिमालय के शिखरों का बादलों के परदे से निकल आना है ।

प्रश्न 26.
यह पहली बार मेरी समझ में आ रहा था ? किसकी समझा में पहली बार क्या आ रहा था ?
उत्तर :
लेखक को हिमालय का सौंदर्य देखकर पहली बार यह समझ में आ रहा था कि प्राचीन काल में साधक अपनी दैहिक, दैविक तथा भौनिक ताप को कम करने के लिए हिमालय क्यो जाते थे।

प्रश्न 27.
विदेशियों ने हिमालय के बर्फ को क्या कहा है ?
उत्तर :
विद्देशियों ने हिमालय के बर्फ को ‘चिरतन हिम’ कहा है ।

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प्रश्न 28.
लेखक हिमालय को किसकी तरह कहते हैं ?
उत्तर :
लेखक हिमालय को अपने बड़े भाई की तरह कहते हैं।

प्रश्न 29.
‘बाद में मालूम हुआ’ – किसे क्या बाद में मालूम हुआ ?
उत्तर :
लेखक को यह बाद मे मालूम हुआ कि चित्रकार सेन बम्बई की अत्याधुनिक चित्रशैली से थोड़ा नाराज है ।

प्रश्न 30.
‘आज भी उसकी याद आती है तो मन पिरा उठता है’ – किसकी याद आने पर किसका मन पिरा उठता है ?
उत्तर :
हिमालय और उसके सौंदर्य की याद आने पर आज भी लेखक का मन पिरा उठता है।

प्रश्न 31.
कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो – किसने कहा था ?
उत्तर :
यह तुलसीदास ने कहा था ।

प्रश्न 32.
लेखक का मन कहाँ रमता है ?
उत्तर :
लंखक का मन हिमालय-शिखरों पर रमता है ।

प्रश्न 33.
उन्हीं डँचाइयों पर तो मेरा आवास है – किन उँचाइयों पर किसका आवास है ?
उत्तर :
हिमालय को उँचाइयों पर लेखक के मन का आवास है।

प्रश्न 34.
रबीन्द्र की पंक्ति कौन गा उठा ?
उत्तर :
रवोन्द्र की पक्ति चित्रकार सेन गा उठा।

प्रश्न 35.
ज्यों-ज्यों कौसानी निकट आने लगा – उसका क्या प्रभाव लेखक पर दिखने लगा?
उत्तर :
कौसानी के निकट आते- आते अधैर्य, असतोष तथा क्षोभ का भाव लेखक पर दिखने लगा।

प्रश्न 36.
अकस्मात् वह शीर्षासन करने लगा – कौन शीर्षासन करने लगा ?
उत्तर :
अकस्मात् चित्रकार सेन शीर्षासन करने लगा ।

प्रश्न 37.
लेखक क्या देखकर पत्थर की मूर्ति-सा स्तब्ध खड़ा रह गया ?
उत्तर :
जब लेखक कौसानी बस अड्डे पर उतरे तो सामने की घाटी का आपार सौदर्य देखकर पत्थर की मूर्चि-से स्तख्ध रह गए

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प्रश्न 38.
सचमुच मेरा दिल बुरी तरह धड़क रहा था – किसके दिल क्यों बुरी तरह धड़क रहा था?
उत्तर :
लेखक का दिल बुरी तरह धड़क रहा था कि क्या होगा जब हिमालय उसके सामने ससौददर्य और अनावृत होगा।

प्रश्न 39.
लेखक के साथ कौन-कौन कौसानी गए थे ?
उत्तर :
लंखक के साथ उनकी पत्नी, चित्रकार सेन, शुक्ल जी तथा एक मित्र कौसानी गए थे।

प्रश्न 40.
नगाधिराज, पर्वत सम्राट किसे कहा गया है ?
उत्तर :
हिमालय को नगाधिराज, पर्वत समाट कहा गया है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
घर्मवीर भारती का जन्म कब हुआ था ?
(क) 25 दिसंबर सन् 1926
(ख) 24 दिसंबर सन् 1925
(ग) 26 दिसंबर सन् 1927
(घ) 28 दिसंबर सन् 1931
उत्तर :
(क) 25 दिसंबर सन् 1926

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प्रश्न 2.
भारती जी ने निम्नलिखित में से किन दो साप्ताहिक पत्रों का संपादन किया था ?
(क) ‘दिनमान’ और ‘संगम’
(ख) ‘संगम’ और ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’
(ग) ‘संगम’ और ‘धर्मयुग’
(घ) ‘धर्मयुग’ और ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’.
उत्तर :
(ग) ‘संगम’ और ‘धर्मयुग’।

प्रश्न 3.
भारती जी को निम्न में से किस उपाधि से अलंकृत किया गया ?
(क) पद्माश्री
(ख) साहित्य अकादमी
(ग) भारती सम्मान
(घ) साहित्य भूषण
उत्तर :
(क) पड्शश्री।

प्रश्न 4.
धर्मवीर भारती ने निम्न में से किस विधा में नहीं लिखा ?
(क) कविता
(ख) कथा
(ग) नाटक
(घ) व्यंग्य
उत्तर :
(घ) व्यंग्य ।

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प्रश्न 5.
‘गुनाहों का देवता’ (उपन्यास) किसकी रचना है ?
(क) प्रिमचंद की
(ख) जैनेनेन्र की
(ग) धर्मवीर भारती की
(घ) यशपाल की
उत्तर :
(ग) धर्मवीर भारती की।

प्रश्न 6.
‘सूरज का सातवां घोड़ा’ (उपन्यास) के लेखक कौन हैं ?
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) धर्मवीर भारती
(ग) उषा प्रियवदा
(घ) दिनकर
उत्तर :
(ख) धर्मवौर भारती।

प्रश्न 7.
‘कनुप्रिया’ (काव्य) के कवि कौन हैं ?
(क) धर्मवीर भारती
(ख) पंत
(ग) प्रसाद
(घ) निराला
उत्तर :
(क) धर्मवीर भारती।

प्रश्न 8.
‘ठण्डा लोहा’ (काव्य) के कवि कौन हैं ?
(क) महादेवी
(ख) प्रसाद
(ग) बिहारी
(घ) धर्मवीर भारती
उत्तर :
(घ) धर्मवीर भारती।

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प्रश्न 9.
‘अन्धायुग’ (काव्य-नाटक) किसकी रचना है ?
(क) दिनकर की
(ख) धर्मवोर भारती की
(ग) मैथिलीशरण गुप्त की
(घ) तुलसी की
उत्तर :
(ख) धर्मवौर भारती की।

प्रश्न 10.
‘सात गीतवर्ष’ (कविता) के रचयिता कौन हैं ?
(क) प्रसाद
(ख) पंत
(ग) निराला
(घ) धर्मवीर भारती
उत्तर :
(घ) धर्मवीर भारती।

प्रश्न 11.
‘मानस-मूल्य’ के लेखक कौन हैं ?
(क) जैनेन्द्र
(ख) अरुण कमल
(ग) धर्मवीर भारती
(घ) यशपाल
उत्तर :
(ग) धर्मवौर भारती।

प्रश्न 12.
‘साहित्य’ किसकी रचना है ?
(क) प्रेमचंद्य की
(ख) नगेन्द्र की
(ग) रामचंद्र शुक्ल की
(घ) धर्मवीर भारती की
उत्तर :
(घ) धर्मवीर भारती की।

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प्रश्न 13.
‘नदी प्यासी थी’ के रचनाकार कौन है ?
(क) महादेवी
(ख) प्रियंवदा
(ग) धर्मवीर भारती
(घ) सर्वेश्वर
उत्तर :
(ग) धर्मवीर भारती ।

प्रश्न 14.
‘कही-अनकही’ (निबंध-संग्रह) के निबंधकार कौन हैं ?
(क) हरिशंकर परसाई
(ख) धर्मवीर भारती
(ग) प्रेमचंद
(घ) महावीर प्रसाद द्विवेदी
उत्तर :
(ख) धर्मवीर भारती ।

प्रश्न 15.
‘ठेले पर हिमालय’ किसकी रचना है ?
(क) धर्मवीर भारती की
(ख) अरुण कमल की
(ग) दिनकर की
(घ) द्विवेदी की
उत्तर :
(क) धर्मवीर भारती की।

प्रश्न 16.
‘पश्यन्ती’ के रचनाकार कौन हैं ?
(क) रामचंद्र शुक्ल
(ख) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ग) धर्मवीर भारती
(घ) प्रेमचंद
उत्तर :
(ग) धर्मवीर भारती ।

प्रश्न 17.
‘ठेले पर हिमालय’ किस विधा की रचना है ?
(क) कहानी
(ख) नाटक
(ग) उपन्यास
(घ) यात्रा-वृतांत
उत्तर :
(घ) यात्रा-वृतांत ।

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प्रश्न 18.
‘ठेले पर हिमालय’ में कहाँ से कहाँ तक की यात्रा का विवरण है ?
(क) नेनीताल के कौसानी तक
(ख) राजगीर से कौसानी तक
(ग) नौनीताल से कोसी तक
(घ) कोसी से कत्यूर तक
उत्तर :
(क) नैनीताल के कौसानी तक ।

प्रश्न 19.
विश्व की प्रसिद्ध भाषाओं की कविताओं का अनुवाद भारती जी ने किस नाम से किया है ?
(क) मतान्तर
(ख) देशान्तर
(ग) दिशान्तर
(घ) लिप्यान्तर
उत्तर :
(ख) देशान्तर ।

प्रश्न 20.
‘सपना अभी भी’ (काव्य) के रचनाकार कौन हैं ?
(क) मोहन राकेश
(ख) रेणु
(ग) धर्मवीर भारती
(घ) अश्क
उत्तर :
(ग) धर्मवीर भारती ।

प्रश्न 21.
‘आद्यन्त’ (काव्य) किसकी रचना है ?
(क) धर्मवीर भारती की
(ख) निराला की
(ग) नागार्जुन की
(घ) अजेय की
उत्तर :
(क) धर्मवौर भारती की।

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प्रश्न 22.
‘मुर्दों का गाँव’ (कहानी-संग्रह) किसकी रचना है ?
(क) अज्ञेय की
(ख) कमलेश्वर की
(ग) धर्मवीर भारती की
(घ) राजेन्र्र यादव की
उत्तर :
(ग) धर्मवौर भारती की।

प्रश्न 23.
‘बन्द गली का आखिरी मकान’ किसकी कृति है ?
(क) मन्नू भंडारी की
(ख) राजेन्द्र यादव की
(ग) यशपाल की
(घ) धर्मवीर भारती की
उत्तर :
(घ) धर्मवोर भारती की ।

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प्रश्न 24.
‘साँस की कलम से’ के रचनाकार कौन हैं ?
(क) कमलेश्वर
(ख) प्रेमचंद
(ग) धर्मवीर भारती
(घ) निर्मल वर्मा
उत्तर :
(ग) धर्मवोर भारती ।

प्रश्न 25.
‘ग्यारह सपनों का देश’ के उपन्यासकार कौन हैं ?
(क) प्रेमचंद
(ख) इंशाअल्ला खाँ
(ग) भारतेन्दु
(घ) धर्मवीर भारती
उत्तर :
(घ) धर्मवौर भारती।

प्रश्न 26.
‘कुछ चेहरे, कुछ चिन्तन’ के निबंधकार कौन हैं ?
(क) हरिशकर परसाई
(ख) मंजुल भगत
(ग) भौष्म साहनी
(घ) धर्मवीर भारती
उत्तर :
(घ) धर्मवीर भारती ।

प्रश्न 27.
‘स्वर्ग और पृथ्वी’ के उपन्यासकार कौन हैं ?
(क) प्रेमचद
(ख) पाश
(ग) धर्मवीर भारती
(घ) निर्मल वर्मा
उत्तर :
(ग) धर्मवोर भारती।

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प्रश्न 28.
‘मुक्त क्षेत्र : युद्ध क्षेत्रे’ रिपोतार्ज किसने लिखा है ?
(क) ज्ञान प्रकाश
(ख) धर्मवौर भारती
(ग) रेणु
(घ) निराला
उत्तर :
(ख) धर्मबीर भारती ।

प्रश्न 29.
‘युद्ध-यात्रा’ रिपोतार्ज के रचनाकार कौन हैं ?
(क) निराला
(ख) ज्ञानरंजन
(ग) धर्मवोर भारती
(घ) प्रेमचंद
उत्तर :
(ग) धर्मवीर भारती।

प्रश्न 30.
‘यात्रा-चक्र’ यात्रा-वृतांत के लेखक कौन हैं ?
(क) धर्मवीर भारती
(ख) प्रेमचंद
(ग) अरुण कमल
(घ) महादेवी वर्मा
उत्तर :
(क) धर्मवौर भारती ।

प्रश्न 31.
लेखक के मित्र का जन्म-स्थान कहाँ है ?
(क) अल्मोड़ा
(ख) कौसानी
(ग) नैनीताल
(घ) दिल्ली
उत्तर :
(क) अल्मोड़ा

प्रश्न 32. लेखक के मित्र पेशे से क्या हैं ?
(क) शिक्षक
(ख) शिक्षक एवं उपन्यासकार
(ग) दुकानदार
(घ) डॉक्टर
उत्तर :
(ख) शिक्षक एवं उपन्यासकार ।

प्रश्न 33.
लेखक कौसानी क्यों गए थे ?
(क) बर्फ देखने
(ख) गाँव देखने
(ग) घाटी देखने
(घ) पूजा-पाठ करने
उत्तर :
(क) बर्फ देखने ।

प्रश्न 34.
कोसी से कौसानी जानेवाली सड़क कैसी लगती है ?
(क) सीधी
(ख) शैतान की आँत
(ग) सॉप की आँत
(घ) उवड़-खाबड़
उत्तर :
(ख) शैतान की आंत ।

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प्रश्न 35.
कौसानी में लेखक किसका इंतजार कर रहे थे ?
(क) बस का
(ख) रेल का
(ग) शुक्ल जी का
(घ) सेन का
उत्तर :
(ग) शुक्ल जी का ।

प्रश्न 36.
मुसाफिरों के चेहरे पीले क्यों पड़ गए थे ?
(क) भय से
(ख) बीमारी से
(ग) लापरवाह ड्राइवर के कारण
(घ) रंग पड़ जाने से
उत्तर :
(ग) लापरवाह ड्राइवर के कारण ।

प्रश्न 37.
कैसा सफर का साथी पिछले जन्म के पुण्यों से मिलता है ?
(क) सेन जैसा
(ख) खानसामा जैसा
(ग) शुक्लजी जैसा
(घ) लेखक जैसा
उत्तर :
(ग) शुक्लजी जैसा।

प्रश्न 38.
किसने लेखक को कौसानी आने का उत्साह दिलाया था ?
(क) शुक्ल जी ने
(ख) सेन ने
(ग) रवीन्द्र ने
(घ) पत्नी ने
उत्तर :
(ख) शुक्ल जी ने ।

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प्रश्न 39.
शुक्ल जी के साथ नई मूर्त्ति कौन थे ?
(क) खानसामा
(ख) ड्राइवर
(ग) चित्रकार सेन
(घ) गणेश
उत्तर :
(ग) चित्रकार सेन ।

प्रश्न 40.
शुक्लजी के साथ आए व्यक्ति का नाम क्या था ?
(क) सेन
(ख) गुप्ता जी
(ग) रवीन्द्र
(घ) राजेन्द्र
उत्तर :
(क) सेन ।

प्रश्न 41.
अकादमी से किसकी कृतियों पर पुरस्कार मिला था ?
(क) लेखक
(ख) खानसामा
(ग) सेन
(घ) रवीन्द्र
उत्तंर :
(ग) सेन ।

प्रश्न 42.
शुक्लजी के मित्र सेन पेशे से क्या थे ?
(क) चित्रकार
(ख) फोटोग्राफर
(ग) डॉकटर
(घ) शिक्षक
उत्तर :
(क) चित्रकार ।

प्रश्न 43.
कोसी के पहला पड़ाव कौन-सा आया ?
(क) सोमेश्वर की घाटी
(घ) कौसानी
(ग) कश्मीर घाटी
(घ) कत्यूर
उत्तर :
(क) सोमेश्वर की घाटी।

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प्रश्न 44.
कोसी से कौसानी की दूरी कितनी है ?
(क) 20 कि०मी०
(ख) 24 कि०मी०
(ग) 30 कि॰मी०
(घ) 50 कि०मी०
उत्तर :
(ख) 24 कि॰मी० ।

प्रश्न 45.
स्विटजरलैण्ड का आभास कहाँ होता है ?
(क) कौसानी में
(ख) कश्मीर में
(ग) नैनौताल में
(घ) दार्जीलिंग में
उत्तर :
(क) कौसानी में।

प्रश्न 46.
गाँधी जी ने ‘अनासक्तियोग’ कहाँ लिखा था ?
(क) गुजरात में
(ख) अहमदाबाद में
(ग) कौसानौ में
(घ) दक्षिण अफ्रीका में
उत्तर :
(ग) कौसानी में।

प्रश्न 47.
सोमेश्वर की घाटी के उत्तर में क्या है ?
(क) ऊँची पर्वतमाला
(ख) कल-कारखाने
(ग) सेव के बाग
(घ) स्विट जरलैण्ड
उत्तर :
(क) ऊँची पर्वतमाला ।

प्रश्न 48.
कल्यूर घाटी कहाँ स्थित है ?
(क) कौसानी में
(ख) कशमीर में
(ग) दार्जीलिंग में
(घ) देहरादून में
उत्तर :
(क) कौसानी में ।

प्रश्न 49.
कित्रर कौन हैं ?
(क) देवज्ञाति
(ख) सुर
(ग) असुर
(घ) राक्षस
उत्तर :
(क) देवजाति।

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प्रश्न 50.
यक्ष कौन हैं ?
(क) रक्षक
(ख) भक्षक
(ग) दानव
(घ) डाकू
उत्तर :
(क) रक्षक

प्रश्न 51.
आपलोग खुशकिस्मत हैं साहब – वक्ता कौन है ?
(क) लेखक
(ख) सेन
(ग) खानसामा
(घ) चित्रकार
उत्तर :
(ग) खानसामा ।

प्रश्न 52.
निम्न में से कौन ताप की श्रेणी में नहीं आता है ?
(क) दैहिक
(ख) दैविक
(ग) आध्यात्मिक
(घ) भौतिक
उत्तर :
(ग) आध्यात्मिक।

प्रश्न 53.
सब चुपचाप थे – सब कौन हैं ?
(क) घाटी
(ख) बस के यात्री
(ग) लेखक के साथवाले लोग
(घ) खानसामे
उत्तर :
(ग) लेखक के साथवाले लोग ।

प्रश्न 54.
सेन किसकी पंक्ति गा उठा ?
(क) मुकेश की
(ख) रवीन्द्र की
(ग) कबीर की
(घ) निराला की
उत्तर :
(ख) रवीन्द्र की।

प्रश्न 55.
हिमालय का सौंदर्य देखकर लेखक की टोली में सबसे अधिक खुश कौन था ?
(क) लेखक
(ख) शुक्ल जी
(ग) सेन
(घ) पत्नी
उत्तर :
(ग) सेन ।

प्रश्न 56.
किसकी याद आने से लेखक का मन पिरा उठता है ?
(क) पत्नी की
(ख) मित्र की
(ग) हिमालय की
(घ) यात्रा की
उत्तर :
(ग) हिमालय की।

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प्रश्न 57.
लेखक को कौन बार-बार बुलाती हैं ?
(क) पत्नी
(ख) सुन्दरता
(ग) हिमशिखरों की उँचाइयाँ
(घ) घाटी
उत्तर :
(ग) हिमशिखरों की ऊँचाइयाँ ।

प्रश्न 58.
नहीं बन्धु…… आऊँगा । बंधु कौन है ?
(क) लेखक
(ख) मित्र
(ग) सेन
(घ) हिमालय
उत्तर :
(घ) हिमालय ।

प्रश्न 59.
मैं करूँ तो क्या करूँ-वक्ता कौन है ?
(क) सेन
(ख) शुक्लजी
(ग) मित्र
(घ) लेखक
उत्तर :
(घ) लेखक ।

प्रश्न 60.
कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो – किसका कथन है ?
(क) कबीर का
(ख) लेखक का
(ग) सूरदास का
(घ) तुलसीदास का
उत्तर :
(घ) तुलसीदास का।

टिप्पणियाँ

किन्नर :- प्रस्तुत शब्द् धर्मवोर भारती के यात्रा वृतांत ‘ठेले पर हिमालय’ से लिया गया है।
महाभारत और पुराणों में हिमालय क्षेत्र में बसनेवाली इस जाति का उल्लेख है। किनररों को देवताओं का गायक और भक्त कहा गया है। किन्नरों के दाढ़ी-मूँछ नहीं के बराबर निकलती है और कभी-कभी चेहरा देखकर तुरंत स्त्री-पुरुष में अंतर नहीं मालूम होता है।

यक्ष :- प्रस्तुत शब्द धर्मवीर भारती के यात्रा वृतांत ‘ठेले पर हिमालय’ से लिया गया है।
यक्ष देवयानन की एक जाति थी। इसे महाभारत में शूद्रदेवता कहा गया है। ये लोग कुबेर के उपासक थे और उसकी सपन्ति की रक्षा करते थे। कुबेर का यक्ष का राजा कहा गया है।

तुलसी (तुलसीदास) :- प्रस्तुत शब्द धर्मवोर भारती के यात्रा वृतांत ‘ठेले पर हिमालय’ से लिया गया है।
‘रामचरितमानस’ के रचयिता संत तुलसीदास के जन्म स्थान के बारे में विवाद है। तुलसीदास द्वारा राित काव्य भारतीय समाज के लिए प्रेरणादायक, जोवन को मर्यादित करनेवाली तथा उपयोगी है। तुलसीदास द्वारा रचित ग्रंथों में रामचरितमानस, कवितावली, विनय पत्रिका, दोहावली, गीतावली, जानकीमंगल, हनुमान चालीसा, बरवै रामायण आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

गोमती :- प्रस्तुत शब्द धर्मवीर भारती के यात्रा वृतांत ‘ठेले पर हिमालय’ से लिया गया है।
गोमती नदी का उल्लेख ‘ऋग्वेद’ तथा ‘महाभारत’ मे हुआ है। ॠग्वेद में इस सिंधु की सहायक नदी बताया गया है। कुछ मंथों में यह वैदिक सभ्यता का केन्द्र स्थल है और कुरूक्षेत्र में बहती है। वर्तमान गोमती उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले सं नकलकर नंमिषारण्य और लखनऊ होती हुई जौनपुर के निकट गंगा में मिलती है।

कोसी :- प्रस्तुत शब्द धर्मवीर भारतो के यात्रा वृतांत ‘ठेले पर हिमालय’ से लिया गया है।
गंगा की यह सबसे बड़ी सहायक नदी है। यह एवरेस्ट और कंचनजंघा के बीच से प्रवाहित होकर जयनगर नामक स्थान पर मैदान में उतरती है। इसकी धारा बड़ी भयानक है तथा यह तेजी से अपना मार्ग बदलती है। 200 वर्ष पहले यह बिहार में पूर्णिया के निकट बहती थी लंकिन अब लगभग 70 मील पश्चिम में खिसक गई है। इसे बिहार की ‘शोक नदी’ भी कहतं हैं।

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कश्मीर :- प्रस्तुत शब्द धर्मवौर भारती के यात्रा वृतांत ‘ठेले पर हिमालय’ से लिया गया है।
कश्मीर का पूरा नाम ‘जम्मृ और कश्मीर’ है। यह देश के धुर उत्तर में स्थित एक सीमांत प्रदेश है। इसकी सीमायें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और तिब्बत से मिलती है। यह प्रदेश अपनी प्राकृतिक शोभा के लिए पूरी दुनिया में विख्यात है। भारत के लिए सामरिक दृष्टि से भी इसका बड़ा महत्व है।

ताप :- प्रस्तुत शब्द धर्मवीर भारती के यात्रा वृतांत ‘ठेले पर हिमालय’ से लिया गया है।हमार प्राचीन साहित्य में ताप (कष्ट) तीन प्रकार के बताए गए हैं – दैहिक, दैविक तथा भौतिक। दैहिक का अर्थ देह से जुड़ी, दैविक का अर्थ देवताओं से जुड़ी तथा भौतिक अर्थ सासारिक कष्टों से जुड़ा है। इन कष्टों को दूर करने के लिए ग्राचौन साधक हिमालय जाते थे।

चाँद (चंद्रमा) :- प्रस्तुत शब्द धर्मवीर भारती के यात्रा वृतांत ‘ठेले पर हिमालय’ से लिया गया है।
चंद्रमा पृथ्वी का अकेला छोटा उपप्रह है। चंदमा के निर्माण के बारे में कई मत हैं। एक के अनुसार यह पृथ्वी के दूटने से बना है। अन्य मत के अनुसार यह सौरमंडल में कहीं और से भटक कर आया और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में बँध गया।

शैतान :- प्रस्तुत शब्द धर्मवोर भारतो के यात्रा वृतांत ‘ठेले पर हिमालय’ से लिया गया है।
शैतान एक फरिश्ता था जिसने ईश्वर को आज्ञा का उल्लंधन किया और स्वर्ग से निकाला गया। तब से वह मनुष्यों को पाप की आर उन्मुख करता है। शैतान शब्द का प्रयोग वैसे मनुष्य के लिए भी किया जाता है जो दूसरों का बुरा चाहता है।

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बाइनाकुलर (दूरबीन) :- प्रस्तुत शब्द धर्मवीर भारती के यात्रा वृतात ‘ठेले पर हिमालय’ से लिया गया है।
बाइनाकुलर लंबी नलीनुमा एक यंत्र होता है जिसमें लेंस लगा होता है। इससे हमें दूर की वस्तु भी निकट तथा साफसाफ दिखाई देती है। अभी बड़े-बड़े शक्तिशाली बाइनाकुलर से तारों का भी अध्ययन किया जाता है अब तो ऐसे बाइनाकुलर भो हैं जिनसे रात के अंधेरे में भी देखा जा सकता है।

पाठ्याधारित व्याकरण :

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WBBSE Class 9 Hindi ठेले पर हिमालय Summary

डॉं० धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसंबर सन् 1926 को इलाहाबाद (प्रयाग) के अतरसुइया मुहल्ले में हुआ था । इनके पिता का नाम श्री चिरंजीव लाल वर्मा तथा माता का नाम श्रीमती चंदा देवी था । धर्मवीर भारती पाँच भाइयों में से एक थे ।

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बालक धर्मवीर बचपन में एक-दो वर्ष पिता के साथ आज़मगढ़ और मऊनाथ भंजन में रहे। प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई । इलाहाबाद के डी० ए० वी० हाई स्कूल में पहली बार चौथी क्लास में नाम लिखाया गया। आठवीं कक्षा में थे तभी पिता का देहांत हो गया । उसके बाद बहुत गरीबी में दिन बीते। प्रयाग में बसे मामा श्री अभयकृष्ण जौहरी के परिवार के साथ रहकर उच्च शिक्षा प्राप्त की। कायस्थ पाठशाला इंटर कॉलेज से सन् 1942 में इंटरमीडियट पास किया ।

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बयालीस के आंदोलन में भाग लिया और पढ़ाई एक बरस रुक गयी । सन् 1945 में प्रयाग विश्वविद्यालय से बी० ए० की डिग्री प्राप्त की व हिन्दी में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर चिंतामणि घोष मैडल के हकदार बने । सन् 1947 में वही से प्रथम श्रेणी में एम० ए० करने के बाद डॉ० धीरेन्द्र वर्मा के निर्देशन में सिद्ध साहित्य पर शोध प्रबंध लिखकर पी-एच० डी० की डिग्री प्राप्त की।

इन्हें छात्र जीवन से ही द्यूशनें कर आत्मनिर्भर होना पड़ा । एम० ए० की पढ़ाई का खर्च ‘अभ्युदय’ (सम्पादक : श्री पद्यकांत मालवीय) में पार्ट टाइम काम करके निकाला । 1948 में ‘संगम’ (सम्पादक : श्री इलाचंद्र जोशी) में सहकारी संपादक नियुक्त हुए । दो वर्ष वहाँ काम करने के बाद हिंदुस्तानी अकादमी में उपसचिव का कार्य किया । तदुपरांत प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अध्यापक नियुक्त हुए । सन् 1960 तक वहाँ कार्य किया ।

प्रयाग विश्वविद्यालय में अध्यापन के दौरान ‘हिंदी साहित्य कोश’ के सम्पादन में सहयोग दिया। ‘निकष’ पत्रिका निकाली तथा ‘आलोचना’ का सम्पादन भी किया । उसके बाद ‘धर्मयुग’ में प्रधान सम्पादक पद पर बम्बई आ गये । ‘धर्मयुग’ हिंदी के सर्वश्रेष्ठ साप्ताहिक के रूप में स्थापित हुआ । 1987 में डॉ० भारती ने अवकाश ग्रहण किया । 1989 में हृदय रोग से गंभीर रूप से बीमार हो गये । गहन चिकित्सा के बाद प्राण तो बच गये किन्तु स्वास्थ्य पूरी तरह कभी सुधरा नहीं और 4 सितंबर 1997 को देहावसान हो गया। नींद में ही मृत्यु ने वरण कर लिया ।

यात्राएँ : सन् 1961 में कामनवेल्थ रिलेशन्स कमेटी के आमंत्रण पर प्रथम विदेश यात्रा पर इंगलैंड तथा यूरोप भ्रमण । पश्चिम जर्मन सरकार के आमंत्रण पर 1964 में जर्मनी यात्रा तथा 1966 में भारतीय दूतावास के निमंत्रण पर इंडोनेशिया तथा थाइलैंड की यात्राएँ की । सितंबर 1971 में मुक्तिवाहिनी के साथ बांग्ला देश की गुप्त

यात्रा की तथा क्रांति का पहला आँखों देखा प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत किया । भारत-पाक युद्ध 1971 के दौरान भारतीय स्थल सेना के साथ वास्तविक युद्ध स्थल पर निरंतर उपस्थित रहकर युद्ध के वास्तविक मोर्चे के रोमांचक अनुभवों को लिपिबद्ध किया । इसके पहले ऐसा काम कभी किसी पत्रकार ने नहीं किया। भारतीय मूल की मारिशसीय जनता की समस्याओं का अध्ययन करने के लिए जून 1974 में मारिशस की यात्रा की ।

फिर ऐफ्रो-एशियाई कान्क्रेंस में भाग लेने के लिए पुन: मारिशस गये । 1978 में चीन की सिनुआ संवाद समिति के आमंत्रण पर भारत सरकार के डेलीगेशन के सदस्य के रूप में चीन की यात्रा पर गये। 1991 में परिवार के साथ अमरीका यात्रा पर गये और अपने भारत देश के तो हर प्रांत में बार-बार अनेक यात्राएँ कीं । यात्राएँ डॉ० भारती को बहुत सुख देती थीं।

अलंकरण तथा पुरस्कार : 1972 में पद्म श्री से अलंकृत हुए । 1997 में महाराष्ट्र रांज्य हिंदी साहित्य अकादमी ने हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ रचना को प्रतिवर्ष 51,000 रु० का पुरस्कार देने की घोषणा की । पुरस्कार का नाम है – “धर्मवीर भारती महाराष्ट्र सारस्वत सम्मान”। 1999 में युवा कहानीकार उदाय प्रकाश के निर्देशन में साहित्य अकादमी दिल्ली के लिए डॉ० भारती पर वृत्त चित्र का निर्माण हुआ।

अनेक पुरस्कारों में से कुछ इस प्रकार है –

  • 1997 – संगीत नाटक अकादमी के मनोनीत सदस्य
  • 1984 – हल्दी घाटी श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार (महाराणा मेवाड़ फाउडेशन)
  • 1985 – साहित्य अकादमी रल्न सदस्यता सम्मान
  • 1986 – संस्था सम्मान – उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान
  • 1988 – सर्वश्रेष्ठ नाटककार पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली
  • 1989 – डॉ० राजेन्द्रपसाद शिखर सम्मान, बिहार सरकार
  • 1989 – गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा
  • 1989 – भारत भारती पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान
  • 1990 – महाराष्ट्र गौरव – महाराष्ट्र सरकार
  • 1991 – साधना सम्मान, केडिया स्मृति न्यास
  • 1992 – महाराष्ट्राच्या सुपुत्रांचे अभिनंदन सम्मान, वसंत राव नाईक प्रतिष्ठान
  • 1994 – व्यास सम्मान, के० के० बिड़ला फाउंडेशन
  • 1996 – शासन सम्मान, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान
  • 1997 – उत्तर प्रदेश गौरव, अभियान सम्मान संस्थान

साहित्य-परिचय :-

कहानी-संग्रह :

  • मुर्दों का गाँव – 1946
  • स्वर्ग और पृथ्वी – 1946
  • चाँद और दूटे हुए लोग – 1955
  • बंद गली का आखिरी मकान – 1969
  • साँस की कलम से (समस्त कहानियाँ एक साथ) – 2000

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कविता :

  • ठंडा लोहा – 1952
  • अंधायुग – 1954
  • सात गीत वर्ष – 1959
  • कनुप्रिया – 1959
  • सपना अभी भी – 1993
  • आद्यन्त – 1999

उपन्यास :

  • गुनाहों का देवता – 1949
  • सूरज का सातवां घोड़ा – 1952
  • ग्यारह सपनों का देश (प्रारंभ व समापन) – 1960

निबंध :

  • ठेले पर हिमालय – 1958
  • पश्यंती – 1969
  • कही अनकहनी -1970
  • कुछ चेहरे कुछ चिंतन -1995
  • शब्दिता – 1997

रिपोर्टिंग

  • युद्ध-यात्रा -1992
  • मुक्त क्षेत्र : युद्ध क्षेत्रे – 1973

आलोचना :

  • प्रग्गतिवाद-एक समीक्षा – 1949
  • मानव-मूल्य और साहित्य – 1960

एकांकी-संग्रह :

  • नदी प्यासी थी – 1954

अनुवाद :

  • ऑस्कर वाइल्ड की कहानियाँ – 1946
  • देशांतर (इक्कीस देशों की आधुनिक कविताएँ) – 1960

शोध प्रबंध :

  • सिद्ध साहित्य – 1968

यात्रा-विवरण :

  • यात्रा चक्र – 1968

पत्र-संकलन :

  • अक्षर अक्षर यज्ञ -1999

साक्षात्कार :

  • धर्मवीर भारती से साक्षात्कार – 1999

ग्रंथावली :

  • धर्मवीर भारती ग्रंथावली (9 खंडों में) -1998

शब्दार्थ

पृष्ठ सं० – 52

  • दिलचस्प = आकर्षक
  • यकीन = विश्वास
  • सिलें = बड़े दुकड़े
  • तत्काल = तुरंत
  • कौंध = चमक।
  • बैडौल = अनगढ़
  • बेतुकी = बिना तुक के
  • सुललित = अच्छे

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पृष्ठ सं० – 53

  • तमाम = बहुत सारी पिरा = दु:ख ।
  • कष्टप्रद = कष्ट देने वाला ।
  • कुरूप = असुंदर
  • एकरस = एक जैसा ।
  • नौसिखिया = नया-नया सीखा हुआ
  • लापरवाह = परवाह नहीं करनेवाला
  • उमस = गर्मी
  • लारीं = बस ।
  • प्रसन्नवदन = खुशी से खिले हुए ।
  • सफर = यात्रा ।
  • काफूर = गायब।
  • जर्किन = जैकेट
  • बाइनाकुलर = दूरबीन
  • अटपटी = अजीब।
  • सोंकिया = सींक के जैसा ।
  • ताड़कर = समझकर ।
  • मशहूर = प्रसिद्ध ।
  • कृतियों = रचना, चित्र।
  • करतब = करिश्मा
  • सुडौल = गोल-मटोल ।

पृष्ठ सं० – 54

  • कल-कल = पानी की आवाज ।
  • निर्जन = जहाँ कोई जन (व्यक्ति) न हो ।
  • कंकड़ीली = कंकड़ (छोटे – छाटे पत्थर के टुकड़े) से भरी ।
  • सुहावना = अच्छा ।
  • तन्द्रालस = नींद से बोझिल।
  • अतुलित = जिसकी तुलनां न की जा सके ।
  • माह = आकर्षित ।
  • आभास = अनुभव ।
  • संशय = शक, संदेह ।
  • क्षोभ = गुस्सा ।
  • खिन्न = चिढ़ा हुआ ।
  • अनखाते = झुंझलाते।
  • अपार = जिसका पार (सीमा ) न हो ।
  • किन्नर = देवताओं की एक जाति ।
  • शिलाएँ = पत्थर ।
  • बेलों = फूलों।
  • लड़ियों = मालाओं ।
  • लोक = दुनिया।
  • सुकुमार = कोमल ।
  • निष्कलंक = बिना कलंक के ।
  • कोहरे = कुहासे ।
  • अकस्मात् = अचानक।

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पृष्ठ सं० – 55

  • अटल = नहीं टलने वाला ।
  • रूपहला = चाँदी के रंग का ।
  • नगाधिराज = हिमालय।
  • हर्षातिरेक = खुशी के कारण।
  • लुप्त = गायब ।
  • छू-मन्तर = गायब ।
  • आकुल = बेचैन ।
  • निरावृत = बिना किसी आवरण के, नंगा ।
  • असीम = जिसकी सीमा न हो ।
  • अभिप्राय = मतलब ।
  • अधीर = व्याकुल ।
  • खानसामे = खाना बनानेवाला ।
  • आसार = उम्मीद ।
  • रहस्यमयी = रहस्य से भरी ।
  • पीर = दर्द ।
  • संवेदन = भाव ।
  • अन्तर्द्वन्द्व = अंदर का द्वंद्व (असमंजस) ।
  • दैहिक = देह से जुड़ी हुई।
  • दैविक = देवताओं से जुड़ी हुई ।

पृष्ठ सं० – 56

  • भौतिक = सांसारिक ।
  • उदित = उगा, प्रकट हुआ ।
  • शाश्वत = लागातार, निरंतर ।
  • अविनाशी = कभी नहीं नाश होने वाला ।
  • सुदूर = बहुत दूर ।
  • दर्रों = दो पर्वतों के बीच की संकरा रास्ता।
  • ग्लेशियर = बर्फ का पहाड़ ।
  • अन्धड़ = तूफान ।
  • आत्मलीन = आत्मा में लीन।
  • सम्राट = महाराज।
  • समक्ष = सामने।
  • चेष्टा = कोशिश ।
  • सहसा = अचानक ।
  • तन्द्रा = नींद ।
  • सक्रिय = क्रियाशील।
  • अदम्य = जिसका दमन (दबाया) नहीं किया जा सके ।
  • वण्डरस्ट्रक = आश्चर्यच्चकि।
  • करतूत = करिश्मा ।
  • अकस्मात् = अचानक ।
  • शीर्षासन = सिर के बल किया जाने वाला एक योगासन।
  • अत्याधुनिक = अत्यंत आर्धुनिक ।
  • उज्ज्वल = सफेद ।
  • भेंट = मिला ।

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पृष्ठ सं० – 57

  • पिरा = दुःख ।
  • स्मृतियों = यादों ।
  • कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो = कबतक इस दशा में रहूँगा ।
  • हिमशिखर = बर्फ
  • से ढकी शिखर । सन्देशा = संदेश ।
  • बंधु = भाई ।
  • आवास = घर ।
  • मन रमता है = मन लगता है ।

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