WBBSE Class 9 Hindi Solutions Chapter 1 स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खण्डन

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WBBSE Class 9 Hindi Solutions Chapter 1 Question Answer – स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खण्डन

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न – 1 : ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ निबंध का मूल भाब अपने शब्दों में लिखें।
प्रश्न – 2 : ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ निबंध में द्विवेदी जी के व्यक्त विचारों को लिखें ।
प्रश्न – 3 : ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ निबंध के माध्वम से दिवेदी जी ने हमें क्या संदेश देना चाहा है ?
प्रश्न – 4 : ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ शीर्षक निबंध में किन कुतर्कों का खंडन किया गया है – समझाकर लिखें ।
प्रश्न – 5 : ‘स्ती-शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’ की मूल संवेदना को लिखें।
उत्तर :
भारत का नवजागरणकाल वह काल था जिसमें चिंतकों तथा समाज सुधारकों ने समाज में जनतांत्रिक एवं वैज्ञानिक चेतना जगाने के लिए काफी प्रयास किया। द्विवेदी जी ने भी साहित्य तथा ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से स्वीशिक्षा के बारे में समाज को जागरुक करने का प्रयास किया । प्रस्तुत निबंध ‘स्र्री-शिक्षा के विरांधी कुतको का खडन’ पहली बार ‘सरस्वती’ पत्रिका में छपी थी । इस निबध का उद्देश्य उन लोगों तक अपनी बात पहुँचानो है जो स्त्री-शिक्षा को समाज के लिए अनर्थकारी समझंत हैं

निबंध के प्रारंभ में द्विवेदीजी ने लोगों को उस मानसिकता पर दु ख व्यक्त किया है कि स्त्री-शिक्षा गृह-सुख के नाश का कारण है । ऐसे लोग अपने पक्ष में निम्नलिखित नर्क देते हैं –

  • प्राचीन संस्कृत-कवियों ने अपं साहित्य में कुलीन स्वियों से भी अपढ़ों की भाषा में बातचीत करवाई है।
  • शंकुतला ने दुष्यंत को जो कड़वं वाक्य कहे वह स्त्री-शिक्षा का ही बुरा परिणाम था।
  • अनपढ़ और गंवारो की भाषा भी स्त्रियों को पढ़ाना उन्हें बरबाद करना है ।

लेकिन ऐसे तर्क देनेवाले यह भूल जाते हैं कि संस्कृत में बातें न करना मूर्खता की निशानी नहीं है। क्या आज जो लोग अंग्रेजी में अपनी भावना को व्यक्त नहीं कर सकते, क्या उन्हें अनपढ़ और गवारों की श्रेणी में रखा जा सकता है ? उस समय भी संस्कृत सर्वसाधारण की भाषा नहीं थी। आम लोग प्राकृत में ही बातें किया करते थे।

अगर लोगों का यह मानना है कि स्त्री-शिक्षा से अनर्थ होता है तो इतिहास साक्षी है कि पुरुषों से ज्यादा अनर्थ स्त्रयों ने कभी नहीं किया । संसार में जितने भी अपराध होते हैं उनमें पुरुषों की भागीदारी के सामन स्त्रियों की संख्या नगण्य है। अगर इस अनर्थ के लिए भी शिक्षा ही देषी है तो दुनिया के सारे स्कूल, कॉलेज को बंद कर देना चाहिए।

जो लोग शकुतला के कटु वचन के लिए उसकी शिक्षा को दोष दंते हैं वे भूल जाते हैं कि उसी क्राव ने राम द्वारा सीता को महल से निकाले जाने पर सीता से क्या कहलवाया है –
“‘लक्ष्मण ! ज़रा उस राजा से कह देना कि मैंने तो तुम्हारी आँखों के सामने ही आग में कूदकर अपनी विशुद्धता साबित कर दी थी । इस पर भी तुमने केवल लोगों की झूठी बातों पर विश्वास कर मुझे छोड़ दिया । क्या यह बात तुम्हारे कुल, तुम्हारी विद्वता या महत्ता के अनुरूप है ?”

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सीता का यह वाक्य कटु नहीं है ? अगर किसी स्त्री पर उसके ही पति द्वारा अत्याचार होता है तो उसका यह कहना शत-प्रतिशत सही है। शिक्षा से ही गलत-सही भेद करने की, गलत का विरोध करने की श््कि आती है। इसलिए स्त्रिया को अवश्य ही पढ़ाया जाना चाहिए। स्त्रियों को निरक्षर रखना केवल परिवार, समाज के लिए ही नहीं राप्र्र के लिए भी अहितकर है क्योंकि स्त्रियों से ही भावी पीढ़ी, उन्नत समाज व राष्ट का निर्माण होता है।

निबंध के अंत में द्विवेदो जो ने यह सुझाव दिया है कि यदि कोई शिक्षा-प्रणाली स्त्रियों के लिए उपयुक्त नहीं है तो उसमें संशोधन करने की आवश्यकता है न कि शिक्षा ही बंद कर दननी चाहिए । सच तो यह है कि अशिक्षा ही सारे अनर्थ तथा गृह-सुख के नाश का कारण है ।

सच तो यह है कि पुरुषों ने नारी से डर कर उसे सांस्कृतिक, शैक्षणिक और पारिवारिक बंधनों में जकड़ रखा है । समाज की संरचना में स्त्री और पुरुष एक-दृसरे के पूरक हैं। उन्मुक्त वातावरण में नारियों का विकास ही हमारी प्रगति का मार्ग खोल सकता है । नारी के विकास में ही देश, समाज और हम सबका विकास हो सकता है। इसीलिए ग्रसाद जी ने लिखा है –
नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत पग-पग तल में । पीयूष स्रोत-सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में ।।

प्रश्न – 6 : आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की निबंध-शैली की विशेषताओं को लिखें।
प्रश्न – 7 : एक निबंधकार के रूप में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का परिचय दें ।
प्रश्न – 8 : आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंधों की भाषागत विशेषताओं को लिखें।
उत्तर :
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी साहित्य के युग-निर्माता के रूप में सम्मानित हैं । अपने निबंधों तथा समालोचनाओं के माध्यम से ये अपने युग के साहित्यकारों को निरतर प्रेरणा देते रहे । कठिन से कठिन विषय को भी सरलता से व्यक्त कर देना इनकी विशेंषता थी। अपने निबंधों में इन्होंने व्यास-शैली का प्रयोग किया है। द्विवेदीजी के अधिकांश निबंध विचारात्मक हैं। ‘रसज़-रंजन’ तथा ‘साहित्य-सीकर’ इनके प्रसिद्ध निबंध-ग्रंथ हैं ।

इनके निबंधों के बारे में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है कि – “द्विवेदी जी के लेख अधिकतर बातों के संग्रह के ही रूप में हैं । स्थायी निबंधों की श्रेणी में दो ही चार लेख जैसे ‘कवि और कविता’, ‘प्रतिभा’ आदि आ सकते हैं।” फिर भी हमें तो यह मानने को विवश होना ही पड़ेगा कि द्विवेदी जी ने जो कुछ लिखा है तथा हिन्दी भाषा और साहित्य के लिए जो काम किया है, वह महत्वपूर्ण और प्रशंसनीय है ।

द्रिवेदी जी के निबंधों में एक शिक्षक का रूप मिलता है। अपनी शैली में ये प्रत्येक विषय को समझा-समझाकर लिखते थे । भाषा को व्याकरण-सम्मत बनाने के ये पूर्ण पक्षपाती थे, इसलिए अपने सहयोगियों को भी इन्होंने ऐसी भाषा लिखने के लिए प्रंरित व प्रोत्साहित किया।

जब ये गंभीर विषयों का वर्णन करते हैं तो इनकी शैली गंभीर हो जाती है । उसमें संस्कृत के शब्द भी आ जातेहैं फिर भी भाव को आसानी से समझा जा सकता है । भाषा-प्रयोग के बारे में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने स्वयं लिखा है –
“बोलचाल से मतलब उस भाषा से है जिसे खास और आम सब बोलते हैं । जो मुहावरा सर्वसम्मत हो वही प्रयोग करना चाहिए । हिन्दी और उर्दू में कुछ शब्द अन्य भाषाओं के भी आ गए हैं । वे यदि बोलचाल के हैं तो उनका प्रयोग दोष नहीं माना जा सकता ।”

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इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि सन् 1903 में द्विवेजी के सम्पादक के रूप में ‘सरस्वती’ का कार्य-भार संभालने से हिन्दी भाषा और साहित्य में एक क्रांतिकारी परिवर्तन का युग आरंभ हुआ । जिस प्रकार भरतेंदु तथा उनके दल के अन्य साहित्य-सेवियों ने वर्तमान हिन्दी की सेवा उसके शैशव-काल में की, उसी लगन के साथ द्विवेदीजी तथा उनके सहयोगियों ने हिन्दी (भाषा) और उसकी आत्भा (विचार-भाव) को अधिक पुष्ट एवं शक्तिशाली बनाया। इनकी असाधारण साहित्य-सेवा और विद्वता पर मुग्ध होकर काशी की नागरी-प्रचारिणी-सभा ने इन्हें ‘आचार्य’ की पदवी दी।

अति लघूत्तरीय/लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. बड़े शोक की बात है ।

प्रश्न :
पंक्ति किस पाठ से ली गई है ? पंक्ति का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर :
पांक्ति ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’ नामक पाठ से ली गई है ।
द्विवेदीजी ने इस बात पर शोक व्यक्त किया है कि जब देश में चारों ओर पुनर्जागरण का दौर चल रहा हो तो ऐसे में कुछ लोगो का स्त्री-शिक्षा का विरोंध करना बहुत ही बुरा है । संसार परिवर्तनशील है। इसी प्रकार स्त्रियों की स्थिति में र्पारवर्तन आया। समाज में घृणित विचारधारा ने उन्हें पुरुषों की बराबरी के पद से हटा दिया। उनको परदे में रहने के लिए विवश किया तथा शिक्षा का अधिक्रार भी छीन लिया । यहाँ तक कि तुलसीदास जैसे कवि ने भी कहा – “जिमि स्वतंत्र होहिं बिगरहिं नारी” । लेकिन आज स्थिति बदल चुकी है, अतः लोगों को भी अपनी मानसिकता में बदलाव लाना चाहिए।

2. पुराने संस्कृत-कवियों के नाटकों में कुलीन स्त्रियों से अपढ़ों की भाषा में बातें कराई गई हैं ।
अथवा
3. इससे प्रमाणित है कि इस देश में स्त्रियों को पढ़ाने की चाल न थी ।

प्रश्न :
रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें । पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
रचना ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतको का खंडन’ है तथा इसके रचनाकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हैं। जिस प्रकार आज अंग्रेजी विशेष लोगों की तथा हिन्दी सर्वसाधारण की भाषा है, उसी प्रकार प्राचीन काल में संस्कृत विशिष्ट लोंगों की भाषा थी तथा जनसाधारण का काम आम बोलचाल की भाषा – प्राकृत में चलता था। इसका यह अर्थ नहीं कि संस्कृत नहीं जानने वालों को अनपढ़ मान लिया जाय। क्या आज अंग्रेजी न जाननेवालों को हम अपढ़ की श्रेणी में रख सकते है? कदापि नहीं। केवल इसी कुतर्क के आधार पर यह मान लेना कि इस देश में स्त्रियों को पढ़ाने की चाल न थी – बिलकुल भ्रामक तथा मिथ्या बात है ।

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4. स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं ।

प्रश्न : कथन किसका है ? कथन का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर :
यह कथन उन लोगों का है जो स्त्री-शिक्षा के विरोधी हैं।
प्रस्तुत वाक्य उन लोगों का तर्क है जो स्वी-शिक्षा के विरोधी हैं । पर सच्चाई यह नहीं है। सच्चाई तो यह है कि प्राचीन काल में स्तियों को भी पुरुषों के समान शिक्षा मिलती थी, उन्हे पुरुषो के समान अधिकार प्राप्त थे । स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं ऐसा कहनेवाले यह क्यों भूल जाते हैं कि संसार में जितने भी महापुरुष हुए चाहे वो जिस किसी क्षेत्र के हो – उनक्को जन्म देने वाली स्वी ही थी । माँ ही बच्चे की पहली पाठशाला भी होती है ।

5. नाटकों में स्त्रियों का प्राकृत बोलना उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं ।
अथवा
6. प्राकृत बोलना और लिखना अपढ़ और अशिक्षित होने का चिह्न नहीं ।

प्रश्न :
पाठ का नाम लिखें । पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
पाठ का नाम है ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतकों का खंडन’
जिस प्रकार आज हरेक स्त्री अंग्रेजी में बोल या अपने भाव व्यक्त नहीं कर सकती हैं ठीक वैसे ही प्राचीन काल में संस्कृत थी । केवल इस आधार पर हम स्वियों को अपढ़ की श्रेणी में नहीं रख सकते। अगर ऐसा है तो आज अंग्रेजी को छोड़कर प्रादेशि:क भाषा या हिन्दी में बात करने वालों चाहे वो स्ती हो या पुरुष – उन्हें अनपढ़ों की श्रेणी में रखना पड़ेगा।

7. यह सारा दुर्चार स्त्रियों को पढ़ाने का ही कुफल है ।
अथवा
8. यह सब पापी पढ़ने का अपराध है ।

प्रश्न :
यह किसका कथन है ? ‘यह सब’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
यह कथन स्त्री-शिक्षा के विरोधियों का है ।
द्विवेदीजो ने शिक्षित स्वियों का उदाहरण देते हुए कहा है कि आत्रि की पत्नी ने पत्नी – धर्म पर घंटों अपना विचार व्यक्त किया था, गार्गी ने बड़े-बड़े बह्पवादियों को अपने ज्ञान से पराजित किया था, मंडन मिश्र की पत्नी ने शंकराचार्य को बुरी तरह पराजित किया था । यदि उनकी इस शिक्षा को पाप तथा दुराचार की श्रेणी में रखा जाय तो इस भारतवर्ष का भाग्य भगवान के ही हाथों है ।

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9. स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घूँट ।

प्रश्न :
रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें । पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
रचना ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’ है तथा इसके रचनाकार आचार्य महाबौर प्रसाद द्विवेदी हैं। पुरुष का अहंकार स्त्रियों से ऊँचा होता है । यदि कोई स्त्री पुरुष को अपने ज्ञान से पराजित कर दे तो यह उसके लिए असह्य हो जाता है । ऐसे में वह शिक्षा जो पुरुषों के लिए अमृत के समान है, स्त्रियों के लिए विष के समान हो जाता है। अपनी पराजय का सारा दोष वह स्वी-शिक्षा को दे डालता है ।

10. उसके प्राकृत में होने का उल्लेख भागवत में तो नहीं ।

प्रश्न :
यहाँ किसके बारे में कहा गया है ? पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
यहाँ उस पत्र के बारे में कहा गया है जो रुक्मिणी ने श्रीकृष्ग को लिखा था।
रुक्मिणी ने जो पत्र कृष्ण को भेजा था वह ग्राकृत में न होकर संस्कृत में था । भागवत में भी इसका उल्लेख कहीं नहीं है कि वह पत्र प्राकृत में लिखा गया था । इस प्रकार यह कैसे कहा जा सकता है कि प्राचीन काल में स्त्रियाँ अपढ़ हुआ करती थीं तथा उन्हें संस्कृत भाषा का कोई ज्ञान न था – ऐसा कहना सरासर गलत होगा।

11. सीता का यह संदेश कटु नहीं तो क्या मीठा है ?

प्रश्न :
सीता ने कौन-सा संदेश किसे दिया था और क्यों ?
उत्तर :
सीता ने यह संदेश राम को दिया था – “‘लक्ष्मण ! जरा उस राजा से कह देना कि मैंने तो तुम्हारी आँखों के सामने ही आग में कूदकर अपनी विशुद्धता साबित कर दी थी। तिस पर भी, लोगों के मुख से निकला मिथ्यावाद सुनकर ही तुमने मुझे छोड़ दिया । क्या यह बात तुम्हारे कुल के अनुरूप है ?’
राम ने लोगों की झूठी बातों में आकर सीता को राजभवन से निकाल दिया जबकि सीता अपनी सत्यता की अग्निपरीक्षा पहले ही दे चुकी थी । जब लक्ष्मण सीता को जंगल में छोड़कर जाने लगते हैं तो सीता उसी के द्वारा यह संदेश राम को भेजती है ।

12. अनर्थ का बीज उसमें हरगिज नहीं
अथवा
13.पढ़ने-लिखने में स्वयं कोई बात ऐसी नहीं जिससे अनर्थ हो सके ।

प्रश्न :
वक्ता कौन है ? पंक्ति में किसके बारे में कहा गया है ?
उत्तर :
वक्ता महावीर प्रसाद द्विवेदी हैं।
सारे अनर्थो की जड़ स्त्री-शिक्षा को बताना हैसी की बात है। आदर्श गृहिणी के लिए सबसे पहले शिक्षा की आवश्यकता है । शास्वों में गृहिणी के कई रूप बताए गए हैं। वह विपत्ति के समय मित्र का कर्तव्य-पालन करती है, माता के समान बिना स्वार्थ के सेवा करती है, सुख के समय पति को सुख्ख पहुँचाती है तथा गुरू की तरह पति तथा बच्चों को बुरे मार्ग पर चलने से रोकती है । अतः स्वियों के लिए तो शिक्षा को सबसे अधिक आवश्यकता है।

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14. अनर्थ पुरुषों से भी होते हैं।

प्रश्न :
रचना का नाम लिखें । पंक्ति में निहित आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
रचना का नाम है – ‘स्त्रो-शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’ ।
द्विवेदीजी की ऐसी मान्यता है कि यदि शिक्षा के कारण ही स्त्रियाँ अनर्थ करती हैं तो संसार में सबसे ज्यादा अनर्थ तो पुरुषों के द्वारा ही किए जाते हैं। रिश्वत लेना, डाके डालना, हत्या करना, आतंक फैलाना – कौन-से ऐसे अनर्थ नहीं हैं जो पुरुषों के द्वारा नहीं किए जाते हैं । ऐसे में स्तियों की अपेक्षा पुरुषो की शिक्षा तो ज्यादा अनर्थकारी प्रतीत होती है।

15. स्त्रियों को निरक्षर रखने का उपदेश देना समाज का अपकार और अपराध करना है – समाज की उन्रति में बाधा डालना है ।

प्रश्न :
रचनाकार कौन हैं ? पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
रचनाकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हैं।
द्विवेदी जो ने कहना चाहा है कि जो लोग स्वी-शिक्षा के विरोधी हैं, वे यह भूल जाते हैं कि माचीन काल में नारियों का व्यक्तित्व पूर्ण रूप से सुरक्षित था । उनमें इतनी योग्यता थी कि वे अपना हानि-लाभ समझ सकें । अपनी योग्यता और विवेक-पूर्ण बुद्धि से द्रोपदी की तरह अपने पतियों को भी सही सलाह एवं शिक्षा देने को प्रस्तुत रहती थीं। गृहस्थाश्रम का संपूर्ण अस्तित्व नारी के कंधों पर ही आधारित था । न उन्हें आर्थिक परतंत्रता थी, न दासता। बिना गृहिणी के घर की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

16. ‘शिक्षा’ बहुत व्यापक शब्द है ।

प्रश्न :
पंक्ति किस पाठ से ली गई है ? ‘शिक्षा’ शब्द को व्यापक क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति ‘स्वी-शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’ पाठ से ली गई है।
द्विवेदी जी ने स्र्री-शिक्षा के बारे में यह कहा है कि शिक्षा का तात्पर्य केवल स्कूली शिक्षा से नहीं है । शिक्षा के अनेक क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें नारियों को अपनी स्वतंत्र पहचान मिल सकती है। उदाहरण के लिए पाकशास्व, गृह-विज्ञान, शरीरविज्ञान, स्वास्थ्य-रक्षा, गृह-परिचर्या आदि ऐसे ही विषय हैं। आज की स्त्रियाँ घर के सीमित क्षेत्र को छोड़कर समाज-सेवा की ओर बढ़ रही हैं।

17. ऐसा कहना सोलहों आना मिथ्या है ।

प्रश्न :
पाठ का नाम लिखें । कैसा कहना सोलहों आना मिथ्या है ?
उत्तर :
पाठ का नाम है – ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतको का खंडन’ ।
स्तियों के बारे में ऐसा कहना कि स्वियों की शिक्षा अनर्थकारी तथा गृह-सुख का नाश करनेवाला है – सोलहों आने झूठ है । ऐसा कहनेवाले ये भूल जाते हैं कि भारत में जितने भी महापुरुष हुए हैं, उनके जीवन पर उनकी माताओं के उज्ज्वल चरित्र की छाप अंकित हुई है। छत्रपति शिवाजी की माता जीजाबाई ने घर की प्राथमिक पाठशाला में जो शिक्षा उन्हें दे दी वही जीवन के अंतिम क्षणों तक सबल बनकर उनके साथ रही । इस प्रकार के एक-दो नहीं, असंख्य उदाहरण दिए जा सकते हैं।

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18. लड़कों की ही शिक्षा-प्रणाली कौन-सी बड़ी अच्छी है ।

प्रश्न :
लेखक का नाम लिखें । लड़कों की शिक्षा-प्रणाली की तुलना किससे की गई है?
उत्तर :
लेखक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हैं।
द्विवेदीजी की ऐसी मान्यता है कि यदि हम स्त्रियों के पतन के लिए उनकी शिक्षा को दाषी मानत है तो लड़कों के निरंतर पतन के लिए उनकी शिक्षा-प्रणाली को दोष क्यों नहीं दिया जा सकता है । आज के विद्यालय तथा महाविद्यालयों की शिक्षा तो उन्हें जीवन के अयोग्य बना रही है। उनमें धर्माचरण और सदाचरण के स्थान पर पापाचरण घर करता जा रहा है ।

19. समाज की दृष्टि में ऐसे लोग दंडनीय हैं।

प्रश्न :
वक्ता कौन हैं ? कैसे लोग दंडनीय हैं ?
उत्तर :
वक्ता महावीर प्रसाद द्विवेदी है ।
जो लोग स्त्री-शिक्षा के विरोध में प्राचीन काल की शिक्षा-व्यवस्था का झूठा उदाहरण पेश करते हैं, वास्तब में ऐसे लोगो को दंड दिया जाना चाहिए । वे जान-बूझकर इन तथ्यों पर परदा डालना चाहते है कि प्राबीनकाल में नारियों को उच्च स्थान प्राप्त था । पुरुषों के समान ही उन्हें सामाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक कृत्यों मे भाग लेने का अधिकार था ‘मनुस्मृति’ में स्त्रियों का विवेचन करते हुए स्पष्ट लिखा हुआ है कि जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है – “यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवता: 1 ”

20. क्या यह बात तुम्हारे कुल के अनुरूप है ?

प्रश्न :
वक्ता कौन है ? वह ऐसा किससे और क्यों कह रहा है ?
उत्तर :
वक्ता सीता है।
सीता ने हरेक बुरे समय में राम का साथ दिया था । उसने राम के साथ वनवास के कष्ष भी भोगे। आगर वह वन न जाती तो रावण उसका अपहरण भी न कर पाता । इन सबके बावजूद सीता ने अपने सतीत्व का परिचय भी अग्न-परीक्षा से दिया । फिर भी राम ने उसकी बात न मानकर उसे राजमहल से परित्यक्त कर दिया । इसलिए सीता राम के इस व्यवहार से क्षुव्ध होकर पूछती है कि उसने सीता के साथ जो कुछ किया, वह क्या राम के कुल के अनुरूप है?

21. शकुंतला ने दुष्यंत को कटु वाक्य कहकर कौन-सी अस्वाभाविकता दिखाई ?

प्रश्न : पाठ का नाम लिखें । पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
पाठ का नाम है – ‘स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’।
‘महाभारत’ के अनुसार दुष्यंत एक बार शिकार खेलते हुए कण्व ॠषि के आश्रम में पहुँचे। वहाँ वे मेनका की पुत्री शकुंतला पर मुग्ध हो गए। दोनों ने गांधर्व विवाह कर लिया। कण्व ₹षि के आने पर जब गर्भवतो शकुतला दुप्यंत के पास पहुँची तो लोक-लाज वश राजा ने उसे स्वीकार नहीं किया। अगर ऐसे में शंकुतला ने दुष्यंत को कहु वाक्य कहे तो यह बिलकुल स्वाभाविक था।

22. वह उसके अपढ़ और अल्पज्ञ होने अथवा गँँवारपन का सूचक नही ।

प्रश्न :
‘वह’ से कौन संकेतित है ? भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
‘वह’ से स्वी-जाति संकेतित है।
द्विवेदीजी का ऐसा मानना है कि अगर प्राचीन काल में स्तियाँ अपने भाव को संस्कृत में व्यक्त न करके प्राकृत में व्यक्त करतो थी तो इस आधार पर उसे अपढ़ और अल्पज्ञ या गववार साबित नहीं किया जा सकता । आज भी पूरे भारतवर्ष में स्त्रियाँ ही क्यों पुरुष भी रोजाना के काम-काज के लिए प्रादेशिक भाषा का ही सहारा लेंत हैं।

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23.पर अब तो है ।

प्रश्न :
यह पंक्ति किस पाठ से उद्धुत है ? पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
यह पंक्ति ‘स्री-शिक्षा के विरोधी कुतकों का खंडन’ पाठ से उदृत है।
द्विवेदीजी का ऐसा कहना है कि यदि थोड़ी देर के लिए हम यह मान भी लें कि प्राचीन काल में स्वी-शिक्षा का अभाव था तो हो सकता है उस समय उनकी शिक्षा की आवश्यकता को महसूस न किया गया होगा । लेकिन आज बगैर शिक्षित हुए नारी का काम नहीं चल सकता। जिसके कंधे पर पूरे घर का दायित्व हो तथा वही अशिक्षित हो तो फिर कैसे काम चल सकता है ?

24. शकुंतला ने जो कदु वाक्य दुष्यंत को कहे, वह इस पढ़ाई का ही दुष्परिणाम था ।

प्रश्न :
शंकुतला कौन थी ? उसने दुष्यंत को कदु वाक्य क्यों कहे ?
उत्तर :
शंकुतला मेनका और विश्वामिन्र की पुत्री थी ।
एक बार राजा दुष्यंत जंगल में कण्व ॠषि के आश्रम पहुँचे तो शकुतला कों देखकर उस पर मुगध हो गए । दोनों ने आपस में गांधर्व विवाह कर लिया । कण्व ₹षि के आने पर जब वह दुष्यंत के महल पहुँची तो दुष्यंत ने उससेविवाह की बात तो दूर पहचान ने से भी इन्कार कर दिया । ऐसे में शंकुतला का दुष्यंत को कदु वाक्य कहना उसकी पढ़ाई का दुष्षरिणाम नहीं कहा जा सकता । शंकुतला के स्थान पर कोई भी युवती दुष्यंत से यही व्यवहार करती ।

25. इस तरह की दलीलों का सबसे अधिक प्रभावशाली उत्तर उपेक्षा ही है ।

प्रश्न : दलील से क्या तात्पर्य है ? पंक्ति का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर :
यहाँ दलोल का तात्पर्य उन कुतकों से है, जो स्त्री-शिक्षा के विरोध में कहे जाते हैं।
द्विवेदी जी ने उन कुतकों को प्रस्तुत किया है जो स्ती-शिक्षा विरोधी लोगो के द्वारा दिए जाते हैं। ये ऐसे कुतर्क है, जिनका जवाब देना वे आवश्यक नहीं समझते । इन कुतर्को का एक ही जवाब हो सकता है कि इनकी उपेक्षा कर दी जाय। एसे लोगों को समझाना केवल अपनी उर्जा तथा समय की बर्बादी ही है।

प्रश्न 26.
हमारे पुराणों में स्त्री-शिक्षा का उल्लेख क्यों नहीं मिलता है ?
उत्तर :
हमारे पुराणों में स्त्री-शिक्षा का उल्लेख निम्नलिखित दो कारणों से नहीं मिलता है –

  • प्राचीनकाल में स्तियों के लिए अलग विश्वविद्यालय नहीं थे ।
  • अगर शिक्षा का कोई प्रमाण रहा भी होगा तो वे नष्ट हो चुके होंगे ।

प्रश्न 27.
हमारा कौन-सा व्यवहार वेद-विरोधी है ?
उत्तर :
स्री-शिक्षा का विरोध करना हमारा वेद-विरोधी व्यवहार है क्योकि वेद के अनेक मंत्रों की रचना स्वियों ने की है।

प्रश्न 28.
वेदों का विरोध ईश्वर का विरोध कैसे है ?
उत्तर :
वेदों की रचना ईश्वर ने की थी इसलिए वेदों का विरोध ईश्वर का विरोध है।

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प्रश्न 29.
प्राचीन नारियों ने किस प्रकार अपने ज्ञान की धाक जमाई थी ?
उत्तर :
प्राचीन नारियों में जैसे ऋषि की पत्नी, गार्गी, मंडन मिश्र की पत्नी आदि ने अपने ज्ञान, तर्क, दर्शन तथा उपदेश से धाक जमाई थी ।

प्रश्न 30.
द्विवेजी ने ऐसा क्यों कहा है कि सारी शिक्षण-संस्थाएँ बंद हो जानी चाहिए ?
उत्तर :
आज के पुरुष वर्ग तथा पढ़े-लिखे लोग ही तरह-तरह के अपराध तथा व्यभिचार में लिप्त हैं। यदि यह उनकी पढ़ाई का ही परिणाम है तो सारी शिक्षण-संस्थाएँ बंद कर देनी चाहिए ।

प्रश्न 31.
शंकुतला के किस कटु वाक्य को स्वाभाविक कहा गया है ?
उत्तर :
अपने प्रेमी तथा पति दुष्यंत द्वारा भुला दिए जाने पर शकुंतला ने जो कुछ भी दुष्यंत से कहा उसे स्वाभाविक कहा गया है ।

प्रश्न 32.
द्विवेदी जी ने पुरुषों के किस व्यवहार पर चिंता प्रकट की है ?
उत्तर :
जो पुरुष शिक्षित होकर भी तरह-तरह के अपराध में लिप्त रहते हैं, एसे पुरुषों के व्यवहार पर द्विवेदी जी ने चिंता प्रकट की है।

प्रश्न 33.
वाल्मीकि ने राम पर कोध क्यों प्रकट किया ?
उत्तर :
सीता ने अपनी सत्यता का प्रमाण अग्नि-परीक्षा देकर दिया फिर भी लोगों के आक्षेपों के कारण राम ने निरपराध सीता को राजमहल से निष्काषित कर दिया। राम के इसी व्यवहार पर वाल्मीकि ने अपना क्रांध प्रकट किया।

प्रश्न 34.
‘अनर्थ का बीज’ किसे कहा गया है ? वह किसमें नहीं है ?
उत्तर :
‘अनर्थ का बीज’ स्त्री-शिक्षा को कहा गया है । जहाँ तक अनर्थ करने की बात है वह सुशिक्षित पुरुष भी करते हैं इसलिए वह केवल स्त्रियों में नहीं है ।

प्रश्न 35.
समाज की दृष्टि में कैसे लोगों को दंडनीय कहा गया है ?
उत्तर :
समाज की दृष्टि में वैसे लोगों को दंडनीय कहा गया है जो स्वी-शिक्षा का विरोध कर स्वियों को अनपढ़ रखने की बातें करते हैं तथा समाज की उत्रति में बाधा पहुँचाते हैं।

प्रश्न 36.
शिक्षा के बारे में द्विवेदी जी का मत क्या है ?
उत्तर :
शिक्षा के बारे में द्विवेदी जी का मानना है कि पुरुषों के समान स्त्रियों को भी शिक्षित होना चाहिए । अगर स्वी सुशिक्षित होगी तो आनेवाली पीढ़ी भी सुशिक्षित होगी।

प्रश्न 37.
किस बात को सोलहों आने मिथ्या कहा गया है ?
उत्तर :
स्त्री-शिक्षा को गृह-सुख का नाश करने वाली, अभिमान पैदा करने का दोषी मानना आदि बातों को सोलहों आने मिथ्या कहा गया है।

प्रश्न 38:
द्विवेदी जी ने किन तर्कों के द्वारा स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया है ?
उत्तर :
द्विवेदी जी ने निम्नलिखित तर्कों के द्वारा स्र्री-शिक्षा का समर्थन किया है –

  • संस्कृत नाटकों में स्त्रियों का प्राकृत बोलना उनके अनपढ़ होने का प्रमाण नहीं है क्योंकि उस समय प्राकृत आम लोगों की बोलचाल की भाषा थी।
  • प्रमाणों के अभाव में यह नहीं कहा जा सकता कि प्राचीन काल में स्त्री-शिक्षा नहीं थी।
  • प्राचीन भारत में अनेक नारियों ने अपने ज्ञान का लोहा मनवाया है अतः उन्हें शिक्षा से वंचित नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न 39.
प्राचीन ग्रंथों में कुमारिकाओं के लिए किस-किस शिक्षा का प्रबंध किया गया था ?
उत्तर :
प्राचीन ग्रंथों में स्त्रियों के लिए चित्र बनाने, नाचने, गाने, बजाने, फूल गूंथने तथा पैर मलने की विद्या सिखाई जाती थी । अगर इन विद्याओं का प्रचलन था तो उनके लिए शिक्षा का भी प्रबंध अवश्य ही रहा होगा।

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प्रश्न 40.
‘स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घूँट’ – ‘कालकूट’ और ‘पीयूष का घूँट’ का अर्थ स्पष्ट करें ।
उत्तर :
‘कालकूट’ का अर्थ है – प्राणघातक विष तथा ‘पीयूष का घूँट’ का अर्थ है जीवन प्रदान करनेवाली अमृत।

प्रश्न 41.
शिक्षण-प्रणाली में संशोधन की बात क्यों कही गई है ?
उत्तर :
यदि किसी को ऐसा लगता है कि वर्तमान शिक्षण-प्रणाली का बुरा असर स्त्रियों पर पड़ रहा है तो निश्चय ही उसमें संशोधन किया जाना चाहिये ताकि वह स्त्रियों के अनुकूल हो सके ।

प्रश्न 42.
‘शिक्षा’ बहुत व्यापक शब्द है – आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
शिक्षा का अर्थ केवल पढ़ाई-लिखाई ही नहीं है । इसके अन्तर्गत सारी कलाएँ भी आ जाती है, जैसे चित्रकला, पाककला, बुनाई-कढ़ाई, नृत्य आदि । सच कहा जाय तो प्राचीन ग्रंथों में वर्णित चौंसठ कलाओं का समावेश इसी एक शब्द ‘शिक्षा’ में हो जाता है।

प्रश्न 43.
कुछ लोग स्त्रियों को अनपढ़ रखकर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं – में कौन-सा व्यंग्य छिपा है ?
उत्तर :
इस वाक्य में यह व्यंग्य छिपा है कि स्वी-शिक्षा का विरोध करना, इसके लिए कुतकों का सहारा लेना आदि भारतवर्ष को कलंकित करना है । स्री-शिक्षा का विरोध करके, उन्हें अनपढ़ रखकर भारतवर्ष का गौरव नहीं बढ़ाया जा सकता।

प्रश्न 44.
स्त्रियों को ककहरा पढ़ाने का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
स्त्रियों को ककहरा पढ़ाने का अर्थ है – स्त्रियों को अक्षर-ज्ञान देना ।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘द्विवेदी युग’ का नामकरण किस साहित्यकार के नाम पर हुआ ?
(क) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ख) प्रभाकर द्विवेदी
(ग) महावीर प्रसाद द्विवेदी
(घ) सोहनलाल द्विवेदी
उत्तर :
(ग) महावीर प्रसाद द्विवेदी।

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प्रश्न 2.
‘सरस्वती’ पत्रिका का प्रकाशन किस वर्ष प्रारंभ हुआ ?
(क) 1903 ई० में
(ख) 1893 ई० में
(ग) 1901 ई० में
(घ) 1900 ई० में
उत्तर :
(घ) 1900 ई० में।

प्रश्न 3.
‘सरस्वती’ पत्रिका का प्रकाशन कहाँ से होता था ?
(क) इलाहाबाद
(ख) काशी
(ग) कानपुर
(घ) कलकत्ता
उत्तर :
(ख) काशी

प्रश्न 4.
महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादक का कार्यभार किस वर्ष संभाला?
(क) 1903 ई० में
(ख) 1900 ई० में
(ग) 1902 ई० में
(घ) 1905 ई० में
उत्तर :
(क) 1903 ई० में ।

प्रश्न 5.
‘सरस्वती’ पत्रिका के प्रकाशक कौन थे ?
(क) चिंतामणि घोष
(ख) रामचंद्र शुक्ल
(ग) जयशंकर प्रसाद
(घ) निराला
उत्तर :
(क) चिंतामणि घोष ।

प्रश्न 6.
‘संपत्ति शास्त्र’ के रचनाकार कौन हैं ?
(क) रामचंद्र शुक्ल
(ख) महावीर प्रसाद द्विवेदी
(ग) श्यामसुंदर दास
(घ) नगेन्द्र
उत्तर :
(ख) महावीर प्रसाद द्विवेदी।

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प्रश्न 7.
महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म कब हुआ था ?
(क) सन् 1861 में
(ख) सन् 1862 में
(ग) सन् 1863 में
(घ) सन् 1864 में
उत्तर :
(घ) सन् 1864 में ।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से कौन-सा द्विवेदी जी का निबंध-संग्रह नहीं है ?
(क) रसज़ रंजन
(ख) साहित्य-सीकर
(ग) साहित्य-संदर्थ
(घ) आध्यात्मिकी
उत्तर :
(घ) आध्यात्मिकी ।

प्रश्न 9.
‘संपत्ति शास्त्र’ द्विवेदीजी की किस विषय से संबंधित पुस्तक है ?
(क) अर्थशास्त्र
(ख) राजनीति शास्त्र
(ग) दर्शनशास्त्व
(घ) इतिहास
उत्तर :
(क) अर्थशास्त्र ।

प्रश्न 10.
द्विवेदी जी ने महिलाउपयोगी कौन-सी पुस्तक लिखी ?
(क) इंकार
(ख) सेवासदन
(ग) महिला मोद
(घ) नीरजा
उत्तर :
(ग) महिला मोद ।

प्रश्न 11.
द्विवेदी जी की दर्शन से संबंधित कौन-सी पुस्तक है ?
(क) भारतीय-दर्शन
(ख) आध्यात्मिकता
(ग) आलाप
(घ) रसझ-रंजन
उत्तर :
(ख) आध्यात्मिकता।

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प्रश्न 12.
‘अद्भुत आलाप’ के रचनाकार कौन हैं ?
(क) प्रेमचंद
(ख) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ग) महावीर प्रसाद द्विवेदी
(घ) नगेन्द्र
उत्तर :
(ग) महावीर प्रसाद द्विवेदी ।

प्रश्न 13.
संस्कृत नाटकों में स्त्रियों से किस भाषा में बात करायी गई है ?
(क) संस्कृत
(ख) प्राकृत
(ग) पाली
(घ) बज
उत्तर :
(ख) प्राकृत।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से कौन-सा ग्रंथ संस्कृत में नहीं है ?
(क) गाथा सप्तशती
(ख) सेतुबंध
(ग) कुमार पाल चरित
(घ) त्रिपिटक
उत्तर :
(घ) त्रिपिटक

प्रश्न 15.
निम्न में से कौन-सी भाषा प्राचीन काल की नहीं है ?
(क) शौरसेनी
(ख) मगधी
(ग) बाँग्ला
(घ) पाली
उत्तर :
(ग) बाँग्ला।

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प्रश्न 16.
कुछ लोग प्राचीन भारत की स्त्रियों को क्या बताते हैं ?
(क) सुंदर
(ख) अपढ़
(ग) कुरूप
(घ) अभिमानी
उत्तर :
(ख) अपढ़ ।

प्रश्न 17.
वाल्मीकि ने अपना क्रोध निम्न में से किस पर प्रकट किया है ?
(क) राम
(ख) सीता
(ग) लक्ष्मण
(घ) रावण
उत्तर :
(क) राम ।

प्रश्न 18.
निम्न में से किसे द्विवेदी जी ने सामाजिक अपराध माना है ?
(क) स्वियों को पढ़ाना
(ख) स्त्रियों को निरक्षर रखना
(ग) स्त्रियों को सम्मान देना
(घ) स्वियों को बराबरी का स्थान देना
उत्तर :
(ख) स्त्रियों को निरक्षर रखना ।

प्रश्न 19.
निम्न में से किसका उल्लेख द्विवेदी जी के निबंध में नहीं है ?
(क) शकुंतला
(ख) शीला
(ग) द्रौपदी
(घ) रुक्मिणी
उत्तर :
(ग) द्रौपदी ।

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प्रश्न 20.
क्या कहना सोलहों आने मिश्या है ?
(क) स्व्री-शिक्षा अनर्थकर है
(ख) शिक्षा बहुत व्यापक शब्द है
(ग) स्त्रियों को पढ़ाना चाहिए
(घ) संस्कृत
उत्तर :
(क) स्त्री-शिक्षा अनर्थकर है।

प्रश्न 21.
शकुंतला ने किस भाषा में श्लोक लिखी थी ?
(क) हिन्दी
(ख) संस्कृत
(ग) मगधी
(घ) प्राकृत
उत्तर :
(घ) प्राकृत ।

प्रश्न 22.
कालिदास-भवभूति के जमाने में लोग किस भाषा में बातें किया करते थे ?
(क) मगधी
(ख) पाली
(ग) प्राकृत
(घ) संस्कृत
उत्तर :
(ग) प्राकृत ।

प्रश्न 23.
रुक्मिणी ने किस भाषा में श्रीकृष्ण को पत्र लिखा था ?
(क) संस्कृत
(ख) प्राकृत
(ग) पाली
(घ) ब्रज
उत्तर :
(क) संस्कृत

प्रश्न 24.
बौद्धों का ‘त्रिपिटक’ किस भाषा में लिखा गया है ?
(क) शौरसेनी
(ख) प्राकृत
(ग) महाराष्टी
(घ) पाली
उत्तर :
(ख) माकृत ।

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प्रश्न 25.
‘गाथा-सप्तशती’ की भाषा क्या है ?
(क) शौरसेनी
(ख) महाराष्ट्री
(ग) संस्कृत
(घ) प्राकृत
उत्तर :
(घ) प्राकृत ।

प्रश्न 26.
सेतुबंध-महाकाव्य की भाषा क्या है ?
(क) शौरसेनी
(ख) संस्कृत
(ग) प्राकृत
(घ) पाली
उत्तर :
(ग) प्राकृत ।

प्रश्न 27.
‘कुमारपाल चरित’ की भाषा क्या है ?
(क) प्राकृत
(ख) संस्कृत
(ग) शौरसेनी
(घ) पाली
उत्तर :
(क) प्राकृत।

प्रश्न 28.
वेदों की रचना किसने की ?
(क) ईश्वर ने
(ख) मुनियों ने
(ग) वाल्मीकिने
(घ) तुलसीदास ने
उत्तर :
(क) ईश्वर ने ।

प्रश्न 28.
‘थेरीगाथा’ किस ग्रंथ का अंश है ?
(क) रामायण
(ख) त्रिपिटक
(ग) गाथा-सप्तशती
(घ) कुमारपाल चरित
उत्तर :
(ख) त्रिपिटक।

प्रश्न 29.
शंकराचार्य के छक्के किसने छुड़ाए ?
(क) मंडन मिश्र की पत्नी ने
(ख) शीला ने
(ग) विज्जा ने
(घ) शकुंतला ने
उत्तर :
(क) मंडन मिश्र की पत्नी ने ।

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प्रश्न 30.
स्त्री-शिक्षा विरोधी स्त्री-शिक्षा को क्या मानते हैं ?
(क) पीयूष-घूँट
(ख) कालकूट
(ग) विद्वता
(घ) मूर्खता
उत्तर :
(ख) कालकूट ।

प्रश्न 31.
व्रह्यवादियों को किसने पराजित किया था ?
(क) शकुंतला ने
(ख) सीता ने
(ग) दुष्यंत ने
(घ) गार्गी ने
उत्तर :
(घ) गार्गी ने ।

प्रश्न 32.
महावीर प्रसाद द्विवेदी का संपूर्ण साहित्य किसमें संगृहीत है ?
(क) साहित्य-सीकर में
(ख) साहित्य-संदर्भ में
(ग) संपत्तिशास्त्र में
(घ) महावीर प्रसाद द्विवेदी रचनावली में
उत्तर :
(घ) महावीर प्रसाद द्विवेदी रचनावली में ।

प्रश्न 33.
हिन्दी में पहली बार समालोचना को स्थापित करने का श्रेय किसे जाता है ?
(क) प्रेमचंद को
(ख) महावीर प्रसाद द्विवेदी को
(ग) दिनकर को
(घ) महादेवी वर्मा को
उत्तर :
(ख) महावीर प्रसाद द्विवेदी को ।

प्रश्न 34.
निम्न में से द्विवेदी जी ने किस विधा में रचना नहीं की ?
(क) भाषा विज्ञान
(ख) उपन्यास
(ग) इतिहास
(घ) अर्थशास्त्र
उत्तर :
(ख) उपन्यास ।

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प्रश्न 35.
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’ पहले किस शीर्षक से प्रकाशित हुआ था?
(क) पढ़े-लिखों का पांडित्य
(ख) पांडित्य पढ़े-लिखों का
(ग) स्त्री-शिक्षा का विरोध
(घ) स्त्री-शिक्षा के विरोध का खंडन
उत्तर :
(क) पढ़े-लिखों का पांडित्य ।

टिप्पणियाँ

1. शकुंतला :- प्रस्तुत शब्द महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतको का खंडन’ से लिया गया है।
शंकुतला मेनका नामक अप्सरा तथा ऋषि विश्वामित्र की कन्या थी । इसका लालन-पालन कण्व नामक ऋषि के आश्रम में हुआ क्योंकि मेनका इसे जन्म देते ही वन मे छोड़कर चली गई थी । शकुन नामक पक्षियों ने इसकी रक्षा की, इसीलिए यह शकुंतला कहलाई ।

2. दुष्यंत :- प्रस्तुत शब्द महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘स्री-शिक्षा के विरोधी कुतकों का खंडन’ से लिया गया है। दुष्यंत चंद्रवंशी राजा थे। इनके माता-पिता के बारे में भिन्न-भिन्न मत हैं। ‘भागवत’ के अनुसार रैम, ‘हरिवेश’ के अनुसार संतु को, ‘महाभारत’ में ऐति को तथा ‘वायुपुराण’ में मल्लि को इनका पिता बताया गया है । इसी प्रकार कहीं पर माँ का नाम उपदानवी मिलता है और कहीं पर स्तनतरी।

3. प्राकृत :- प्रस्तुत शब्द महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतरों का खंडन’ से लिया गया है ।
प्राकृत भारतीय आर्यभाषा का एक प्राचीन रूप है । इसके प्रयोग का समय 500 ई० पू॰ से 1000 ई० सन् तक माना जाता है। धार्मिक कारणों से जब संस्कृत का महत्व कम होने लगा तो प्राकृत भाषा का प्रयोग अधिक होने लगा। संस्कृत के प्राचीन नाटकों में भी स्त्री पात्रों तथा सर्व-साधारण के बोलचाल के लिए प्राकृत भाषा का ही प्रयोग हुआ है।

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4. भवभूति :- प्रस्तुत शब्द महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘स्री-शिक्षा के विरोधी कुतकों का खंडन’ से लिया गया है।
भवभूति आठवीं शताब्दी के आरंभ में संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध नाटककार थे । इनका वास्तविक नाम श्रीकंठ था पर रचनाएँ भवभूति के नाम से की है । इनके तीन प्रसिद्ध नाटक हैं – ‘मालती माधव’, ‘महावीर-चरित’ तथा ‘उत्तर रामचरित’।

5. उत्तर रामचरित :- प्रस्तुत शब्द महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ से लिया गया है ।
‘उत्तर रामचरित’ संस्कृत नाटककार भवभूति के द्वारा लिखा गया । इसमें राम के राज्याभिषेक के बाद के उनके शेष जीवन का वर्णन किया गया है । अपने इस नाटक में भवभूति ने राम और सीता का पुनर्मिलन दिखाकर पूरी कथा को सुखांत बना दिया है।

6. भारतवर्ष :- प्रस्तुत शब्द महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘स्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ से लिया गया है। प्राचीन साहित्य के अनुसार जंबूद्वीप के अंतर्गत सर्वश्रेष्ठ भूमि का नाम ‘भारतवर्ष’ ॠषभ के पुत्र भरत के नाम पर पड़ा। इसका क्षेत्रफल 9000 योजन बताया गया है। पहले इसका नाम अजनाभ था।

7. मंडन मिश्र :- प्रस्तुत शब्द महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘स्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ से लिया गया है।
पूर्व मीमांसा दर्शन के आचार्य मंडन मिश्र अद्वैत वेदांत के भी विद्वान थे । इनकी पत्ली भारती भी इन्हीं के समान विदुपुरी थीं। कुमारिल भट्ट इनके गुरू थे । शास्वार्थ में शंकराचार्य से पराजित होने के बाद मंडन मिश्र और उनके शिष्य सन्यासी हो गए। इन्होंने सन्यास लेंने के पहले और उसके बाद भी अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की।

8. पुराण :- प्रस्तुत शब्द महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘ख्वी-शिक्षा के विरोधी कुतकों का खंडन’ से लिया गया है। धार्मिक संस्कृत साहित्य में पुराणों का बड़ा महत्व है । कुल पुराण 18 हैं – यह्न, पद्म, विष्णु, शिव, भागवत, नारद, मार्कंडेय, अग्नि, भविष्य, वह्ववैवर्त, लिंग, वराह, स्कंद, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरूड़ और ब्रहांड। इनमें सृष्टि, मनुष्य, देवों, दानवों, राजाओं, ॠषियों तथा मुनियों के वृतांत अंकित हैं।

9. गार्गी :- प्रस्तुत शब्द महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘स्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ से लिया गया है।
गार्गी उपनिषदकाल की एक विदुषी महिला थी । गर्ग अषि के गोर्र में उत्पन्न होने के कारण उसका नाम गार्गी पड़ा।

10. वेद-मंत्र :- प्रस्तुत शब्द महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘स्वी-शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’ से लिया गया है।
वेद विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं । वेद चार हैं – ॠगेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। वेद के द्रष्टां ने जो भी शृचा, छंद या स्तुति में कहा वह सब मंत्र है । बाहाण ग्रंथों में अंकित गद्य-पद्य सब मंत्र कहलाते हैं।

11. त्रिपिटक :- प्रस्तुत शब्द महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘स्वी-शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’ से लिया गया है।
भगवान बुद्ध के उपदेश जो तीन खंडों है ‘त्रिपिटक’ कहलाते हैं। ये तीन खण्ड हैं – विनयपिटक, सुत्तपिटट और अभिधम्मपिटक । त्रिपिटक में बुद्दे के उपदेश, भिणुओं के आचरण, नैतिक धर्म तथा निर्वाण का उल्लेख है। त्रिपिटक बैद्धधर्म का मुख ग्रंथ है ।

12. सीता :- प्रस्तुत शब्द महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘स्वी-शिक्षा के विरोधी कुतकों का खंडन’ से लिया गया है।
सीता विदेह देश के राजा सीरध्धज जनक की पुत्री और श्रीराम की पत्नी थी । ‘वाल्मीकि रामायण’ के अनुसार यह भूमि के अंदर से जनक को उस समय मिली जब राजा यज्ञ-भूमि तैयार करने के लिए हल चला रहे थे।

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13. राम :- प्रस्तुत शब्द महावीर पसाद द्विवेदी के निबंध ‘स्वी-शिक्षा के विरोधी कुतकों का खंडन’ से लिया गया है।
राम अयोध्या नरेश दशरथ तथा कौशल्या के पुर्र थे । वशिष्ठ मुनि ने उन्हें शिक्षा दी । जनकपुर जाकर सीता के स्वयंवर में धनुष भंग करके सीता से विवाह किया । पिता की आज्ञा मानकर 14 वर्षों तक वनवास किया। वनवास की इस अवधि में सीता का हरण हुआ और राम-रावण युद्ध में राम की विजय हुई । वनवास की अवधि पूरी होने पर उन्होंने राजपाट संभाला और एक आदर्श राजा के रूप में शासन किया।

14. लक्ष्मण :- प्रस्तुत शब्द महावार प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘स्वी-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ से लिया गया है।
लक्ष्मण अयोध्या नरेश दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र थे । इनके सहोदर भाई का नाम शजुछ्ध था। लक्ष्मण बड़े भाई राम के बड़े भक्त थे । ये राम के साथ सीता-स्वयंवर में गए और राम के विवाह के साथ ही उसी मंडप में इनका विवाह राजा जनक की पुर्री उर्मिला से हुआ। कैकेयी द्वारा राम के राज्याभिषेक में बाधा डालने पर ये इतने कुद्ध हुए कि अपने पिता और कैकेयी को बंदी बनाने के लिए तैयार हो गए थे ।

15. राजा जनक :- प्रस्तुत शब्द महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘स्वी-शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’ से लिया गया है।
मिथिला नरेश जनक सीता के पिता थे । वे ‘विदेह’ और ‘सीरध्वज’ नाम से भी प्रसिद्ध हैं। सांसारिक जीवन से अनासक्त और जीवन-मुक्त दार्शनिक होने के कारण ये ‘विदेह’ कहलाए। याज्ञवल्क्य जैसे दार्शनिक राजा जनक के दरबार की शोभा बढ़ाते थे ।

16. वाल्मीकि :- प्रस्तुत शब्द महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘स्वी-शिक्षा के विरोधी कुतकों का खंडन’ से लिया गया है।
संस्कृत भाषा के आदि कवि और ‘रामायण’ के रचयिता के रूप में वाल्मीकि प्रसिद्ध हैं। एक बार ध्यान में बैठे हुए इनके शरीर को दीमकों ने अपना दूह बनाकर ढक लिया था। साधना पूरी करके जब ये दीमक-दूह से (जिसे वाल्मीकि कहते हैं) बाहर निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे।

17. रुक्मिणी :- पस्तुत शब्द महावीर प्रसाद द्विवदी के निबंध ‘स्वी-शिक्षा के विरोधी कुत्तको का खंडन’ से लिया गया है। रुक्मिणी विदर्भ नरेश भौस्मक की पुरी थी। वयस्क होने पर एकबार इसने नारद से कृष्ण के रूप तथा गुण का वर्णन सुना। तभी उसने कृष्ण से विवाह करने का निश्चय कर लिया। रुविमणी के भाई रुकिम ने उसका विवाह शिश्रुपाल के साथ तय कर दिया। विवाह के एक दिन पहले श्रीकृण ने उसका हरण कर लिया और द्वारका पहुँचकर उसके साष विजाह कर लिया।

18. अत्रि :- प्रस्तुत शब्द महावीर प्रसाद द्विवेदो के निबध स्वी-शिक्षा के विरोषी कुतकों का खंडन’ से लिया गया है।
कहा जाता है कि कषि अत्रि का जन्म क्रहा के नेत्रों से हुआ था। अभि का विवाह दक्ष प्रजापति की कन्या अनुसूया से हुआ धा। वनवास काल में राम, सौता और लक्ष्मण धिक्कूट में इनके आश्रम में मिले धे। ‘अनुसूया’ नांम से प्रासद्ध यह स्थान आज भी तीर्थ माना जाता है।

पाठ्याधारित व्याकरण :

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लेखक परिचय

महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1864 में उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के दौलतपुर नामक ग्राम में हुआ था । इनके पिता इस्ट इंडिया कंपनी, बम्बई में नौकरी करते थे । वहीं इन्होंने संस्कृत, गुजराती, मराठी और अंग्रेजी सीखी । इनके पड़ोस में अनेक रेलवे क्लर्के रहते थे । उनकी देखा-देखी इन्होंने भी रेलवे में नौकरी कर ली । अपनी योग्यता, ईमानदारी तथा मेहनत के बल पर ये स्टेशन मास्टर के पद तक पहुँच गए । एक बार अंग्रेज अधिकारी के व्यवहार से इनके स्वाभिमान को ठैस लगी तथा 150 रु० मासिक की नौकरी को लात मारकर कानपुर आ गए। सन् 1903 में इन्होंने प्रसिद्ध हिंदी मासिक पत्रिका ‘सरस्वती’ का संपादन शुरु किया तथा सन् 1920 तक उसके संपादन से जुड़े रहे ।

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महावीर प्रसाद द्विवेदी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । वे एक साथ प्रतिभावान संपादक, भाषा वैज्ञानिक, इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता, अर्थशास्त्री, समाजशास्र्री, वैज्ञानिक चिंतन एवं लेखन के संस्पापक, समालोचक, समाज सुधारक तथा सफल अनुवादक थे।

एक संपादक के रूप में जब इन्होंने ‘सरस्वती’ पत्रिका का संपादन शुरु किया तो हिन्दी भाषा और इतिहास में एक क्रांतिकारी परिवर्तन का युग प्रारंभ हुआ । हिन्दी भाषा को मानक रूप देनेवालों में द्विवेदी जी का स्थान महत्वपूर्ण है । भारतेंदु के समान ही ये भी युग-निर्माता के रूप में सम्मानित हैं। निबंधों, समालोचनाओं द्वारा ये साहित्यकारों को ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से निरंतर प्रेरणा देते रहे । ये कठिन से कठिन विषय को सरल बनाने में सिद्धहस्त थे । द्विवेदी जी सफल निबंधकार थे । इनके अधिकांश निबंध विचारात्मक हैं। द्विवेदीजी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं –

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निबंध-ग्रंथ : रसज्ञ रंजन, साहित्य-सीकर ।
काव्य-ग्रंथ : काव्य मंजूषा-सुमन ।
अनुवादित ग्रंथ : स्नेहमाला, विहार-वाटिका, कुमार-संभव, गंगा लहरी, विचार-रत्नावली, रघुवंश, मेघदूत, किरातार्जुनीय आदि ।आलोचना : नैषधचरित चर्चा, कालिदास की समालोचना, नाटक-शास्त्र, साहित्य-संदर्भ, सुकविकीर्तन, वक्तृत्व-कला।
अर्थशास्त्र : संपत्ति शास्त्र ।
महिलापयोगी रचना : महिला मोद ।
दर्शन : आध्यात्मिकी ।

संकलित निबंध ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी’, ‘कुतर्को का खंडन’, सर्वप्रथम सितंबर 1914 के ‘सरस्वती’ के अंक में ‘पढ़े-लिखों का पांडित्य’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था । बाद में ‘महिला मोद’ नामक पुस्तक में संकलित करते समय द्विवेदी ने इसका शीर्षक ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतकों का खंडन’ कर दिया था। 21 दिसंबर सन् 1938 में द्विवेदी जी का देहावसान हो गया ।

शब्दार्थ

पृष्ठ सं० – 31

  • कुतर्कों = बुरे तर्को (बहस) ।
  • खंडन = किसी बात को न मानना ।
  • विद्यमान = मौजूद ।
  • सुशिक्षित = अच्छी तरह शिक्षित ।
  • पेशा = व्यवसाय ।
  • कुमार्गगामियों = बुरे रास्ते पर चलनेवाले ।
  • सुमार्गगामी = अच्छे रास्ते पर चलने वाले ।
  • अधार्मिक = धर्म को नहीं माननेवाले ।
  • दलीलें = तर्क।
  • कुलीन = अच्छे कुल (वंश) वाले ।
  • अपढ़ों = निरक्षरों, अनपढ़ ।
  • चाल = परंपरा ।
  • प्रणाली = तरीका, व्यवस्था ।
  • अनर्थ = बुरा ।
  • श्लोक = दोहा (दो पंक्तियों की संस्कृत कविता)।
  • कटु = कड़वा।
  • दुष्परिणाम = बुरा परिणाम।
  • प्राकृत = एक भाषा जो संस्कृत के समकक्ष आम आदमी की भाषा थी।
  • वेदांतवादिनी = वेदांत की बातें करनेवाली ।
  • समुदाय = वर्ग ।

पृष्ठ सं० – 32

  • प्रचलित = चालू ।
  • धर्मोपदेश = धर्म का उपदेश ।
  • सर्वसाधारण = आम आदमी ।
  • नियमबद्ध = नियम में बंधा हुआ।
  • शास्त्र = पुस्तक ।
  • द्वीपांतरों = एक द्वीप से दूसरे द्वीप ।
  • हवाले = वर्णन।
  • प्रगल्भ = निपुण।
  • नामोल्लेख = नाम का उल्लेख ।
  • तत्कालीन = उस समय ।
  • तर्कशास्त्जता = तर्कशास्त्र को जानना ।
  • ईश्वर-कृत = ईश्वर के द्वारा किया गया ।
  • ककहरा = अक्षर-ज्ञान ।

WBBSE Class 9 Hindi Solutions Chapter 1 स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खण्डन

पृष्ठ सं० – 33

  • आदृत = आदर पाई हुई ।
  • पद्य = काव्य ।
  • कुमारिकाओ = कुंवारियो, जिनकी शादी न हुई हो।
  • विज्ञ = विद्वान ।
  • पांडित्व = पंडित, विद्वान होने का प्रमाण ।
  • ब्रह्मवादियों = जो यह विश्वास करते हैं कि ईे्वर सत्य है, संसार मिथ्या है
  • सहधर्मचारिणी = साथ रहकर धर्म का पालन करनेवाली अर्थात् पत्नी।
  • दुराचार = बुरा व्यवहार ।
  • कुफल = बुरा फल
  • कालकूट = विष, जहर।
  • पीयूष = अमृत ।
  • दलीलों = बहसो ।
  • दृष्टांतों = उदाहरणों ।
  • अतएव = इसलिए ।

पृष्ठ सं० – 34

  • विप्षि्षियों = विरोधियों ।
  • हवाले = प्रमाण, सुबूत, उदाहरण ।
  • एकांत = जहाँ कोई न हो ।
  • अल्पज्ञ = कम जाननेवाला।
  • प्राक्कालीन = उस समय की ।
  • पुराणकार = पुराण की रचना करने वाले ।
  • नरहत्या = आदमी की हत्या करना ।
  • विक्षिप्तों = पागलों ।
  • ग्रहग्रस्तों = बुरे ग्रह से ग्रस्त ।
  • मुकर जाना = अपनी बात से बदल जाना ।
  • सदाचार = अच्छा व्यवहार ।
  • किंचित = थोड़ा ।
  • दुर्वाक्य = बुरे वाक्य।
  • परित्यक्त = घर से निकाला जाना ।
  • मिथ्यावाद = झूठी बात।
  • अनुरूप = अनुसार ।
  • महत्ता = महानता।

पृष्ठ सं० – 35

  • मन्वादि = मन्व (एक ॠषि) आदि ।
  • नीतिज्ञ = नीति को जाननेवाला ।
  • हरगिज = बिलकुल ।
  • मुमानियत = मनाही, रोक ।
  • अभिज्ञता = जानना ।
  • निरक्षर = जिसे अक्षर का ज्ञान न हो।
  • दंडनीय = दंड पाने के योग्य ।
  • अपकार = बुराई।
  • व्यापक = विस्तृत ।
  • समावेश = शामिल ।
  • संशांधन = सुधार।
  • अनर्थकर = अनर्थ करनेवाला ।
  • अभिमान = घमंड।
  • उत्पादक = पैदा करने वाला ।
  • गृह-सुख = घर का सुख ।
  • सोलहों आने मिथ्या = सौ प्रतिशत झूठ ।

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