WBBSE Class 8 Hindi Solutions Poem 6 कोई नहीं पराया

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WBBSE Class 8 Hindi Solutions Poem 6 Question Answer – कोई नहीं पराया

वस्तुनिष्ठ प्रश्न :

प्रश्न 1.
कवि गोपालदास ‘नीरज’ किसे अपना घर मानते हैं?
(क) सारे घर को
(ख) सारे संसार को
उत्तर :
(ख) सारे संसार को।

प्रश्न 2.
कवि ‘नीरज’ का आराध्य कौन हैं?
(क) गुलाम
(ख) भीड़
(ग) आदमी
(घ) देवता।
उत्तर :
(ग) आदमी।

प्रश्न 3.
‘काई नहीं पराया’ में कवि क्या सिखलाना चाहते हैं?
(क) सिर्फ अपने लिये सुख की तलाश
(ख) स्वर्ग पाने की कोशिश
(ग) जियो और जीने दो की भावना
(घ) देवत्व पाने की भावना
उत्तर :
(ग) जियो और जीने दो की भावना।

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प्रश्न 4.
इस कविता का मुख्य संदेश क्या है ?
(क) संसार के सभी प्राणी समान है
(ख) सारा संसार अपना घर है
(ग) सुख-दु:ख आते-जाते रहते हैं
(घ) हमेशा हसते रहना चाहिए
उत्तर :
(ख) सारा संसार अपना घर है।

प्रश्न 5.
कवि के अनुसार ईश्वर का निवास कहाँ है ?
(क) मन्दिर में
(ख) मस्जिद में
(ग) हर मनुष्य में
(घ) जल में
उत्तर :
(ग) हर मनुष्य में

प्रश्न 6.
कवि के अनुसार सबसे प्रिय कौन है ?
(क) ईश्वर
(ख) मनुष्य
(ग) गाय
(घ) दलित
उत्तर :
(ख) मनुष्य

प्रश्न 7.
‘नीरज’ किसका उपनाम है ?
(क) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(ख) जयशंकर प्रसाद
(ग) गोपाल दास
(घ) रामेश्वर शुक्ल
उत्तर :
(ग) गोपाल दास

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प्रश्न 8.
‘कोई नहीं पराया’ नामक कविता किस काव्य-संग्रह से लिया गया है ?
(क) संघर्ष
(ख) अंतध्विनि
(ग) विभावरी
(घ) प्राण-गीत
उत्तर :
(घ) प्राण-गीत

प्रश्न 9.
कवि को क्या भाता है ?
(क) देवत्व
(ख) मनुषत्व
(ग) अमरत्व
(घ) पशुता
उत्तर :
(ख) मनुष्त्व

प्रश्न 10.
हमारे अपने सुख में और किसका हिस्सा है ?
(क) नदी का
(ख) पहाड़ का
(ग) हवा का
(घ) संसार का
उत्तर :
(घ) संसार का

लघु उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
कवि मंदिर मस्जिद के बजाय कहाँ सिर टेकना चाहता है?
उत्तर :
कवि मंदिर मस्जिद के बजाय हर द्वार पर सिर टेकना चाहता है, क्योंकि हर द्वार उसके लिए देवालय है और आदमी ही आराध्य है।

प्रश्न 2.
कवि को किस पर अभिमान है और उसे क्या भाता है?
उत्तर :
कवि को अपनी मानवता पर अभिमान है और उसे मनुष्य (मानवता) भाता है।

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प्रश्न 3.
कवि को स्वर्ग-सुख की कहानियों से ज्यादा क्या प्रिय है?
उत्तर :
कवि को स्वर्ग सुख की कहानियों से ज्यादा प्रिय अपनी धरती है।

प्रश्न 4.
कवि किस प्रकार हँसने और चलने का संदेश देता है?
उत्तर :
कवि संदेश देता है कि इस प्रकार हँसों कि तुम्हारे साथ पैरों से कुचली धूल भी हँसे और इस प्रकार चलों कि स तुम्हारे चरणों से कोई काँटा भी न कुचल जाये।

प्रश्न 5.
प्रस्तुत अंश में कवि ने क्या स्पष्ट किया है ?
उत्तर :
प्रस्तुत अंश में कवि ने क्या स्पष्ट अंश में कवि स्पष्ट किया है कि सारा संसार ही अपना घर है। यहाँ कोई भी पराया नहीं है, सभी अपने हैं।

प्रश्न 6.
कवि अपने आप को क्यों असमर्थ मानते हैं ?
उत्तर :
कवि अवि मन्दिर-मस्जिद के सामने सिर झुकाने में स्वयं को असमर्थ मानते हैं।

प्रश्न 7.
गोपाल दास ‘नीरज’ का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
गोपाल दास ‘नीरज’ का जन्म 4 जनवरी 1925 ई० को इटावा जिला (उत्तर प्रदेश) के पुंरावली गाँव में हुआ था।

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प्रश्न 8.
गोपाल दास ‘नीरज’ के चार प्रमुख काव्य-संग्रहों के नाम लिखें।
उत्तर :
दर्द दिया, प्राण-गीत, बादल बरस गये, दो गीत, संघर्ष आदि।

प्रश्न 9.
कवि के अनुसार हमारी धरती कैसी है ?
उत्तर :
कवि के अनुसार हमारी धरती सैकड़ों स्वर्गों से ज्यादा सुकुमार है।

प्रश्न 10.
कवि लोगों में क्या बाँटने का संदेश देते हैं ?
उत्तर :
कवि लोगों में प्रेम बाँटने का संदेश देते हैं।

प्रश्न 11.
विश्व को शांति और सुखमय कैसे बनाया जा सकता है ?
उत्तर :
‘जिवो और जीने दो’ का शाश्वत् सिद्धांत अपनाकर ही विश्व को शांति और सुखमय बनाया जा सकता है।

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प्रश्न 12.
डाली का फूल डाली का नहीं पहले बगीचे की शोभा बढ़ाये इसका निष्कर्ष क्या है ?
उत्तर :
इसका निष्कर्ष यह है कि व्यक्ति को केवल अपने सुख स्वार्थ की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। परमार्थ की चिन्ता होनी चाहिए। पृथ्वी को अपना परिवार समझना चाहिए।

बोध मूलक प्रश्न :

प्रश्न 1.
इस कविता को पढ़कर क्या आपको लगता है कि आज भी एकता विद्यामान है?
उत्तर :
जाति, धर्म संप्रदाय की विभिन्नता के होते हुए भी मानव समुदाय में एकता विद्यमान है। सभी धर्म के लोग एक साथ रहते हैं। सभी के सुख-दुःख में सम्मिलित होते हैं। सभी अपने देश से प्यार करते हैं। विभिन्न विचार, रहन-सहन के बावजूद मानवता सभी में मौजूद हैं। संकीर्णता को त्याग कर आज उदारता का माहौल बना है। अपनी धरती सभी को प्यारी है। सभी अपने देश, अपनी संस्कृति पर गर्व का अनुभव करते हैं। करुणा, परोपकार मानवता की भावनासभी को एकता के सूत्र में जोड़े हुए है। विश्व बंधुत्व की भावना को सभी स्वीकार करते हैं। एकता के रास्ते में व्यवधान के बावजूद एकता का अस्तित्व बना हुआ है।

प्रश्न 2.
‘मुझको अपनी मानवता पर बहुत-बहुत अभिमान है।’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने स्पष्ट किया है कि मानव का परिचय मानवता ही होता है। मानवता ही जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है। कवि को मानवता पर अर्थात् मानव के सद्युणों पर गर्व है। मनुष्य ही अपने दिव्य गुणों से, सेवा, त्याग, स्नेह, परोपकार की भावना से पूजनीय बन जाता है। इसीलिए कवि को मानवता पर गर्व का अनुभव होता है।

प्रश्न 3.
‘हँसों इस तरह, हैसे तुम्हारे साथ दलित यह धूल भी’ का क्या तात्पर्य हैं?
उत्तर :
कवि ने लोगों को सलाह दी है कि वे इस प्रकार हँसे कि उनके पैरों के नीचे दबी, कुचली, धूल भी हँस पड़े। व्यक्ति मन से खुश होकर मन की खुशी को प्रकट करने के लिए हँसता है पर उसे दबे, कुचले, दुर्बल कमजोर लोगों को प्रसन्न बनाना चाहिए। उनके मन में भी खुशियों का संचार होना चाहिए। तभी वे भी अपनीप्रसन्नता को व्यक्त करने के लिए हँसेंगे। हँसने का सच्चा आनन्द तभी है, जब उसके आश्रित कमजोर लोग भी हँसे।

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प्रश्न 4.
कवि प्यार को बाँटने की सलाह क्यों देता है ?
उत्तर :
कवि ने लोगों को यह सलांह दी है कि वे प्यार बाँटकर विश्व प्रेम तथा विश्व मानवता की भावना को प्रतिष्ठित करें। प्यार बाँटने से अर्थात् ध्रर्म, जाति, संप्रदाय, के भेद-भाव को त्याग कर सभी के साथ प्रेम करने से भाई-चारे की भावना आएगी। एकता की भवना दृढ़ बनेगी। प्यार या प्रेम ऐसी शक्ति हैं जिससे पराये भी अपने हो जाते हैं। इसी कारण जीवन को सुखमय बनाने के लिए कवि ने प्यार बाँटने की सलाह दी है।

व्याख्या मूलक प्रश्न :

प्रश्न :
हम कविता के द्वारा कवि ने क्या प्रेरणा दी है?
उत्तर :
इस कविता में कवि ने सभी प्राणियों के प्रति अपनापन का भाव रखते अपने पराये के संकीर्ण विचार को त्यागने एकता तथा भाईचारा के सूत्र में बाँधने की प्रेरणा दी है। मनुष्य को चाहिए कि वह देश, जाति, धर्म, संप्रदाय, ऊँच-नीच की संकीर्ण भावना से ऊपर उठकर विश्व को एक परिवार के रूप में देखें। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ सारी पृथ्वी ही हमारा परिवार है, इस विचार को प्रश्रय दे।

व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि इस दुनिया में कोई भी प्राणी पराया नहीं है। सारा संसार अपने घर के समान है। किसी धर्म का गुलाम न बनकर मंदिर या मस्जिद में माथा न टेककर हर आदमी को देवता तथा हर घर को मंदिर समझना चाहिए। संसार के किसी भी कोने में रहे, पर इंसान के प्रति प्यार तथा ममत्व की भावना बनी रहे। अपनी मानवता तथा मानवीय गुणों-सत्य, धर्म, दया, परोपकार की भावना से हममें अभिमान बना रहे। देवत्व नहीं मनुज्त्व अर्थात् मानवता हो मुझे सदा प्रिय बनी रहे। सच्चे मनुष्य प्यार को छोड़कर अमरता की प्राप्ति भी स्वीकार नहीं। स्वर्गीय सुख की कोमल कहानियाँ उतनी प्रिय तथा ग्राह्व नहीं है, जितनी प्रिय धरती की कोमलता, सहजता तथा दिव्यता है।

अपनी पृथ्वी की गाथा ही सबसे प्यारी तथा रुचिकर है। सारी मानवता को ‘जिओ ओर जीने दो’ के शाश्वत् सिद्धान्त की शिक्षा देकर विश्व में शान्ति सुख और अमन-चयन का केन्द्र बनाया जा सकता है। अपना प्यार बाँटना सभी से सच्चा प्यार करना ही सबसे महत्वपूर्ण कर्त्वव्य है। अपनी हँसी – खुशी को सार्वजनिक बनाना संसार के कण-कण को हँसी से सम्मित करना चाहिए। अपने कर्त्तव्य के व्यवहार से एक काँटो को भी दबाना या पीड़ा देना उचित नहीं है। अपने व्यक्तिगत सुख में सारे संसार को भी भागीदार बना लेना चाहिए। सोचना यह चाहिए कि हमारे सुख में संसार भर के लोगों की भागीदारी है। फूल की डाली के पहले उपवन का श्रृंगार करना चाहिए। हमेशा इस तथ्य को स्वीकार कि करना चाहिए सारा संसार ही हमारा घर है।

भाषा बोध :

1. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए –
संसार – विश्व, दुनिया।
उपवन – बाग, बगीचा।
इंसान- मानव, आदमी।
शूल-काँटा, कंटक।
घर – गृह, सदन।

2. निम्नलिखित शब्दों का समास-विग्रह कर समास का नाम लिखिए-
देश काल – देश और काल – द्वन्न्व समास।
घट-घट – प्रत्येक घट – अव्ययी भाव समास
देवालय – देव के लिए आलय – तत्पुरुष समास।
स्वर्ग-सुख-स्वर्ग का सुख-तत्पुरुष समास।

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3. निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए –

पराया – अपना
गुलाम – स्वामी
प्यार – नफरत, घृणा
स्वर्ग – नरक
स्वीकार – अस्वीकार
शूल-फूल
मानवता – दानवता

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कवि परिचय :

श्री गोपाल दास ‘नीरज’ का जन्म सन् 1926 ई. में उत्तर प्रदेश के इटावा जनपद के पुराबला नामक ग्राम में हुआ था। नीरज वर्तमान समय के लोकप्रिय कवि एवं गीतकार हैं। ये मंचीय गीतकार के रूप में पर्याप्त लोक प्रिय हुए हैं। इनके गीतों में अतृष्ति, नियति तथा मृत्युबोध की छाया है। इसके प्रमुख गीत संग्रह-संर्ष, विभावरी, अन्तर्ध्वीने, प्राण-गीत, दर्द दिया है, आसावरी, बादल बरस गए, नदी किनारे आदि हैं। नीरज की भाषा सरल, सरस, तथा प्रवाहपूर्ण है।

1. कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार हैं।
मैं न बाँधा हूँ देश काल की जंग लगी जंजीर में,
मैं न खड़ा हूँ जाति-पाँति की ऊँची-नीची भीड़ में।
मेरा धर्म न कुछ स्याही-शब्दों का सिर्फ गुलाम है,
मै बस कहता हूँ कि प्यार है तो घट-घट में राम है।
मुझसे तुम न कहो मन्दिर-मस्जिद पर मैं सर टेक दूँ,
मेरा तो आराध्य आदमी देवालय हर द्वार है।
कोई नही पराया मेरा घर सारा संसार है।

शब्दार्थ :

  • पराया = दूसरा।
  • जंग = लोहे का मोरचा।
  • स्याही शब्दों = काले अक्षरों।
  • जंजीर = बेड़ी।
  • गुलाम = दास, पराधीन।
  • घट-घट में = प्रत्येक प्राणी के हृदय में।
  • आराध्य = पूजनीय।
  • देवालय = मंदिर, देवस्थान।

सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘कोई नहीं पराया’ कविता से ली गई हैं। इसके रचनाकार श्री गोपालदास ‘नीरज’ है।
प्रसंग – इस अवतरण में कवि ने समस्त मानव को अपना समझने की प्रेरणा दी है। संकीर्णता को छोड़कर विश्व को ही परिवार समझना चाहिए।

व्याख्या – प्रस्तुत अंश में कवि ने स्पष्ट किया है कि सारा संसार ही अपना घर है। यहाँ कोई भी पराया नहीं है, सभी अपने हैं। देश तंथा कालकी जंग लगी बेड़ी में मैं नहीं बँध हूँ। अर्थात् देश काल की संकुचित सीमा को तोड़कर पृथ्वी को ही परिवार समझता हूँ। जाति-पाँति, ऊँचा-नीच की संकीर्ण विचारधारा को मैने त्याग दिया है। हर प्राणी के हृदय में ईश्वर विराजमान है, इसलिए हर प्राणी से प्यार करना ईश्वर प्रेम का रूप है। मंदिर तथा मस्जिद में माथा टेकना, उपासना करना व्यर्थ है, मुझे वह स्वीकार नहीं है। मेरे लिए हर घर का दर वाजा मन्दिर-देव स्थान है तथा व्यक्ति हमारे लिए पूजनीय है। ईश्वर मंदिर-मस्जिद में नहीं, हर व्यक्ति के हृदय में निवास करते हैं। इसी कारण मैं सारे संसार को ही अपना घर मंदिर समझता हूँ। अपने-पराये का भेद-भाव मैंने छोड़ दिया है। क्योंकि इस विश्व में मेरा कोई पराया नहीं है।

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2. कहीं रहे कैसे भी मुझको प्यारा यह इंसान है,
मुझको अपनी मानवता पर बहुत-बहुत अभिमान है।
अरे नहीं देवत्व, मुझे तो भाता है मनुजत्व ही,
और छोड़ कर प्यार नहीं स्वीकार सकल अमरत्व भी।
मुझे सुनाओ तुम न स्वर्ग-सुख की सुकुमार कहानियाँ,
मेरी धरती, सौ-सौ स्वर्गों से ज्यादा सुकुमार हैं।
कोई नहीं पराया मेरा घर सारा संसार है।

शब्दार्थ :

  • अभिमान = स्वाभिमान।
  • देवत्व = देवता की विशेषता।
  • इंसान = मनुष्य।
  • अमरत्व = अमरता, मृत्यु का अभाव
  • मानवता = आदमीयत।
  • धरती = पृथ्वी।
  • मनुजत्व = मानव के गुण।
  • सुकुमार = कोमल।

व्याख्या – प्रस्तुत अवतरण में कवि ने बताया है कि यह धरती स्वर्ग से भी अधिक प्रिय तथा आकर्षक है। कवि को संसार में सबसे प्रिय मनुष्य है। उसे अपनी मानवीय विशेषताओं उसकी अच्छाइयों पर बहुत अभिमान है। मानवता को ही वह सबसे प्यारा समझता है। देवत्व की उपेक्षा वह मनुजत्व को ही अधिक प्रिय समझता है। उसे देवता नहीं मनुष्य ही बन्दनीय है। मानव मानवता से प्यार करे, यही कवि की अभिलाषा है। वह मानवता के प्यार को ठुकरा कर अमरता को भी स्वीकार नहीं कर सकता। कवि को स्वर्ग के सुख, वैभव की कहानियाँ प्रिय नहीं है, उन्हें वह सुनना नहीं चाहता। कवि इसं पृथ्वी को सैकड़ों स्वर्ग से भी कोमल तथा मनोरमा समझता है। वह सारी पृथ्वी को ही अपना घर समझता है।

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3. मैं सिखलाता हूँ कि जियो और जीने दो संसार को,
जितना ज्यादा बाँट सको तुम बाँटो अपने प्यार को।
हँसो इस तरह, हँसे तुम्हारे साथ दलित यह घूल भी,
चलो इस तरह कुचल न जाय पग से कोई शूल भी।
सुख न तुप्हारा सुख केवल, जग का भी उसमें भाग है,
फूल डाल का पीछे, पहले उपवन का श्रृंगार है।
कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।

शब्दार्थ :

  • दलित = दबाया हुआ, कुचला हुआ।
  • उपवन = बगीचा।
  • कुचल = पैरों से रौंदना।
  • शृंगार = साज-सज्जा।
  • शूल = काँटा।
  • जग = संसार।

व्याख्या – कवि ने इस अवतरण में बतलाया है कि ‘जिओ और जीने दो’ का शाश्वत् सिद्धांत अपनाकर ही विश्व को शांति और सुखमय बनाया जा सकता है। कवि संपूर्ण संसार को ‘जियो और जीने दो’ की शिक्षा दे रहा है। जितना भी संभव हो सके सभी में अपनत्व बाँटो। इस तरह हँसों कि तुम्हारे पैरों से दबी-कुचली धूल भी हँसने लगे। इस तरह खुशी मनाओं जिससे लोग भी खुशी में भागीदार बने। इस प्रकार चलो कि कोई काँटा भी तुम्हारे पैरों से दबा या कुचला जाये, ने ऐसी चेष्टा हो कि तुम्हारे किसी भी क्रिया कलाप से तुम्हारे शत्रु को भी कष्ट न हो। तुम्हारे सुख में संसार भी सम्मिलित हो। अपने को विस्तृत कर सारे संसार को सुखी बनाने का प्रयास करो। डाली का फूल डाली का नहीं, पहले बगीचे की शोभा बढ़ाए। निष्कर्ष यह है कि व्यक्ति को केवल अपने सुख स्वार्थ की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। परमार्थ की चिन्ता होनी चाहिए। पृथ्वी को परिवार समझना चाहिए।

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