WBBSE Class 8 Hindi Solutions Poem 5 यदि फूल नहीं बो सकते तो

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WBBSE Class 8 Hindi Solutions Poem 5 Question Answer – यदि फूल नहीं बो सकते तो

वस्तुनिष्ठ प्रश्न :

प्रश्न 1.
‘यदि फूल नहीं बो सकते तो’ किस विधा की रचना है?
(क) कहानी
(ख) नाटक
(ग) कविता
(घ) एकांकी
उत्तर :
(ग) कविता

प्रश्न 2.
कवि के अनुसार किसका मन कमजोर है?
(क) दानव
(ख) मानव
(ग) राघव
(घ) उपरोक्त में कोई नहीं।
उत्तर :
(ख) मानव।

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प्रश्न 3.
‘कटुता का शमन’ कहाँ होता है ?
(क) माता की शीतल छाया में
(ख) भाता के कोमल काया में
(ग) पिता के सान्निध्य में
(घ) उपरोक्त मे कोई नहीं
उत्तर :
(घ) उपरोक्त में कोई नहीं।

प्रश्न 4.
पग-पग पर शोर मचाने से क्या नहीं जमता है?
(क) विकल्प
(ख) संकल्प
(ग) कायाकल्प
(घ) प्रकल्प
उत्तर :
संकल्प।

प्रश्न 5.
कवि के अनुसार ज्ञान की घाटी है –
(क) दुर्गम
(ख) सहज
(ग) कमजोर
(घ) शीतल
उत्तर :
(क) दुर्गम

प्रश्न 6.
शुक्ल अंचल का जन्म किस जिले में हुआ ?
(क) बनारस
(ख) मेदिनीपुर
(ग) फतेहपुर
(घ) मिर्जापुर
उत्तर :
(ग) फतेहपुर

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प्रश्न 7.
‘यदि फूल नहीं बो सकते तो’ किस विधा की रचना है ?
(क) कहानी
(ख) नाटक
(ग) कविता
(घ) एकांकी
उत्तर :
(क) कहानी

प्रश्न 8.
चेतना की घाटी कैसी है ?
(क) विशाल
(ख) अगम
(ग) सुगम
(घ) क्षुद्र
उत्तर :
(ख) अगम

प्रश्न 9.
क्षुब्द शब्द का क्या अर्थ है ?
(क) अशांत
(ख) प्रशांत
(ग) शांत
(घ) निशांत
उत्तर :
(क) अशांत

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प्रश्न 10.
जो सुख की अभिमानी मदिरा में जाग सका वह क्या है ?
(क) जड़
(ख) चेतन
(ग) रुढ़िवादी
(घ) परंपरावादी
उत्तर :
(ख) चेतन

लघु उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
ममता की शीतल छाया में किसका शमन होता है?
उत्तर :
ममता की शीतल छाया में कटुता का शमन होता है।

प्रश्न 2.
मन में संकल्प कब नहीं जमता है?
उत्तर :
हर पं पर निंरतर शोर मचाने से मन में संकल्प नहीं जमता है।

प्रश्न 3.
‘मारुत’ शब्द का प्रयोग कैसे व्यक्ति के लिए किया गया है ?
उत्तर :
मारुत शब्द का प्रयोग ऐसे व्यक्ति के लिए किया गया है जो वायु की तरह गतिशील तथा कर्त्तव्यपरायण रहता है। वह किसी भी अवरोध सेरुकता नहीं।

प्रश्न 4.
कवि ने ‘चेतन’ किसे कहा है?
उत्तर :
कवि न कवि ने चेतन प्रबुद्ध व्यक्तियों को कहा है, जो सुख में भी सचेत बने रहते हैं।

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प्रश्न 5.
मन के भीतर की ज्वाला जब ठंडी होती है तो क्या होता है ?
उत्तर :
मन के भीतर की ज्वाला जब ठंडी होती है, तब बंद आँखें खुल जाती है।

प्रश्न 6.
कवि के अनुसार हमारा उद्देश्य कैसा होना चाहिए ?
उत्तर :
कवि कहते हैं कि दुःख, तकलीफ और विपत्तियों में अगर हमारे होठों पर मुस्कान न हो, तो भय से घबड़ाकर आँसू बहाना भी हमारा उद्देश्य नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 7.
“आप माथे पर चाँदनी अर्थात शीतलता का चंदन लगाये” का तात्पर्य है –
उत्तर :
तात्पर्य है कि मन और बुद्धि को निर्मल, शान्त और विकारहीन बनाये रखें।

प्रश्न 8.
रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ का जन्म 1 मई 1915 ई० को फतेहपुर जिला के किशनपुर गाँव में हुआ था।

प्रश्न 9.
‘भय से कातर’ का क्या आश्य है ?
उत्तर :
डर से व्याकुल।

प्रश्न 10.
संकट का वेग कैसे कम नहीं होता है ?
उत्तर :
संकट से मुँह फेर लेने से भी उसका वेग कम नहीं होता है।

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प्रश्न 11.
दुनिया की रीति क्या है ?
उत्तर :
मानव शरीर दु:खों को सहन करता है, फिर भी मानव मन दूसरे के हिते के लिए व्याकुल रहता है, यही संसार की वास्तविक रीति है।

बोध मूलक प्रश्न :

प्रश्न 1.
कवि अपने सपनों पर विश्वास करने के लिए क्यों कहते हैं?
उत्तर :
मनुष्य को अपने सपनों पर विश्वास करना चाहिए। मनुष्य की दृढ़ इच्छा शक्ति में कलात्मक सर्जना शक्ति होती है। उसका आत्म बल बढ़ता है। वह आत्म विश्वास के साथ आगे बढ़ता है। बिना आत्म विश्वास के व्यक्ति अक्षम बन जाता है। मनुष्य की भावना, उसकी कल्पना उसका मार्ग दर्शन कराती है।

प्रश्न 2.
कवि ने लोगों को क्या-क्या करने की सलाह दी है? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि ने लोगों को सलाह दी है कि वे मानव मात्र की भलाई करें। यदि दूसरों की भलाई न सकें तो किसी का बुरा भी न करें। अपनत्व की भावना अपनाकर आपसी वैर-भाव, कहुता को शांत कर दें। कठिन मुसीबत के समय भी हँसते रहे, भय से व्याकुल न हो। अपने सपनों पर सदा विश्वास करें। अतीत के दु:खों को याद न करें। जो बीत गया उसे बीत गया ही समझें। सुख-ऐश्वर्य के समय भी सावधान बने रहें। घमंड में चूर होकर कर्त्तव्य पथ न भूलें। विलासिता का जीवन न अपनाएँ। मन में संदेह को न पनपने दें। क्योंकि संदिग्ध आत्मा वाले व्यक्ति के मन में विश्वास नहीं ठहरता। पुराने मूल्यहीन विचारों को त्याग कर नये प्रगतिशील विचारों को अपनाएँ।

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प्रश्न 3.
प्रस्तुत कविता के मूल भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में कवि ने लोगों को सलाह दिये हैं कि मनुष्य यदि दूसरों की भलाई नहीं कर सकते तो उसे किसी का बुरा भी नहीं करना चाहिए। सब के साथ मधुर व्यवहार कर वैर-भाव को समाप्त कर देना चाहिए। मन की शांति तथा पवित्र भावना से मन की व्याकुलता समाप्त हो जाती है। मन को शांति तथा सुख की अनुभूति होती है। विपत्ति में हँसनां यदि संभव न हो तो रोना भी नहीं चाहिए। अपनी कल्पना शक्ति पर विश्वास करना चाहिए। अतीत के दुःखों को कभी याद नहीं करना चाहिए। उससे शांति नहीं, दु:ख ही बढ़ता है। सुख-आनन्द के समय सावधान तथा सजग बने रहना ही उचित है। घमंड में सन्मार्ग को नहीं भूलना चाहिए। शोर मचाने से मन में दृढ़ संकल्प नहीं जमता। मन में यदि संदेह का भाव है तो उसमें विश्वास नहीं टिक सकता।पुरानी रुढ़ियों को छोड़कर प्रगति के मार्ग पर निरंतर गतिशील बने रहना चाहिए। आंत्म विश्वास तथा दृढ़ इच्छा शक्ति से व्यक्ति जीवन में सफल होता है।

प्रश्न 4.
‘अनसूना-अचीन्हा करने से संकट का बेग नहीं कमता’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जो व्यक्ति अपने जीवन में आए हुए संकटों तथा विपत्ति-बाधाओं को अनसुना कर देता है, उन्हें नहीं पहचानता और समझता है इस प्रकार हम उन संकटों पर ध्यान नहीं देंगे, उसकी परवाह नहीं करेंगे तो संकट से हम मुक्त . रहेंगे, पर यह सोचना गलता है। इससे संकट कम नहीं होगा, बल्कि अवसर और संकट बढ़ता ही जाएगा। अतः संकट की नब्ज को पहचानकर तुरंत प्रतिकार करना चाहिए।

व्याख्या मूलक प्रश्न :

1. पग पग पर शोर मचाने से मन में संकल्प नहीं जमता, अनसुना अचिन्हा करने से संकट का वेग नहीं कमता, संशय का सूक्ष्म कुहासों में विश्वास नहीं क्षणभर रमता, बादल के घेरों में भी तो जयघोष न मारूत का क्षमता, यदि बढ़ न सको विश्वासों पर, साँसों के मुरदे मत ढोओ, यदि फूल नहीं बो सकते तो, काँटे कम से कम मत बोओ।

प्रश्न :
(क) उपर्युक्त पंक्तियाँ किस कवि की किस कविता से उद्धृत है?
(ख) मन में संकल्प कब नहीं जमा है?
(ग) इसका भवार्थ लिखिए।
उत्तर :
(क) प्रस्तुत पंक्तियाँ रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ रचित कविता ‘यदि फूल नहीं बो सकते तो’ कविता से उद्धृत है।
(ख) केवल शोरगुल मचाने और नारेबाजी करने से मन में संकल्प नहीं जगता है।
(ग) कवि ने स्पष्ट किया है कि संकल्पों की पूर्ति शोरगुल मचाने तथा नारे लगाने से नहीं होती। उसके लिए तो दृढ़ निश्चय तथा कर्म साधना की जरूरत होती है। व्यक्ति को कभी भी आए हुए संकटों को टालना उन्हें नजर अंदाज कर देना उचित नहीं है। बल्कि तुरंत उनका समाधान कर डालना चाहिए। संकटों को ऐेलकर ही व्यक्ति उससे मुक्ति पा सकता हैं। संशय से मुक्त को झेलकर ही व्यक्ति उससे मुक्ति पा सकता है, संशय से मुक्त हो कर ही मन में विश्वास को टिकाया जा सकता है। जहाँ विश्वास नहीं वहाँ जीवन व्यर्थ है। हमें आत्म विश्वास के बल पर ही जीना चाहिए। हमें अपने कर्म, वचन, मन से दूसरों की लिए दु:ख का सुजन नहीं करना चाहिए।

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भाषा बोध :

1. निम्नलिखित शब्दों के विपरीत शब्द लिखिए –

शीतल – उष्ण
कटुता – मधुरता
कातर – निडर, साहसी
शोर – शान्ति
मुर्दा – जिन्दा

2. निम्नलिखित शब्दों का वचन परिवर्तित कीजिए –

ज्वालाएँ – ज्वाला
नयन – नयनों
काँटे – काँटा
रीति – रीतियाँ
साँसों – साँस

WBBSE Class 8 Hindi यदि फूल नहीं बो सकते तो Summary

कवि परिचय :

रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ का जन्म सन् 1915 ई. में फतेहपुर जनपद के किशनपुर ग्राम में हुआ। अंचल ने कानपुर विश्वविद्यालय से एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनकी प्रमुख रचनाएँ – अपराजिता; मधूलिका, किरण बेला, करील, लालचूनर, वर्षात के बादल, विराम चिह्न आदि हैं। इनकी भाषा सरल तथा प्रवाहपूर्ण है।

1. यदि फूल नहीं बो सकते, तो काँटे कम से कम मत बोओ।
है अगम चेतना की घाटी, कमजोर बड़ा मानव का मन,
ममता की शीतल छाया में होता कटुता का स्वयं शमन।
ज्वालाएँ जब धुल जाती हैं, खुल-खुल जाते है मुँदे नयन,
होकर निर्मलता में प्रशांत बहता प्राणों का क्षुब्ध पवन।
संकट में यदि मुसका न सको, भय से कातर हो मत रोओ।
यदि फूल नहीं बो सकते, तो काँटे कम से कम मत बोओ।

शब्दार्थ :

  • अगम = दुर्गम, कठिन, अपार।
  • कटुता = अप्रिय, कडुआ।
  • चेतना = ज्ञान, इच्छा, मन, बुद्धि।
  • शमन = निवारण करना।
  • घाटी = स्थान, दरी ।
  • ज्वालाएँ = दाह, ताप ।
  • ममता = ममत्व, अपनापन।
  • प्रशांत = शांत, स्थिर ।
  • क्षुब्ध = व्याकुल, अधीर।
  • कातर = व्याकुल, भयभीत।

संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य मेला’ के ‘यदि फूल नहीं बो सकते तो’ पाठ से उद्धृत है। इसके रचनाकार श्री रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ हैं।

प्रसंग – इन पंक्तियों में कवि ने बतलाया है कि यदि हम दूसरों की भलाई नहीं कर सकते तो किसी का अनभल (अहित) भी नहीं करना चाहिए।

व्याख्या – प्रस्तुत अवतरण में कवि ने बड़ी ही उपयोगी शिक्षा दी है कवि ने बताया है कि यदि मनुष्य दूसरों के हित के लिए कुछ नहीं कर सकता तो उसे किसी का अहित या बुरा भी नहीं करना चाहिए। व्यक्ति की बुद्धि तथा इच्छा का धरातल अत्यंत दुर्गम तथा कठिन है मनुष्य की इच्छा शक्ति अपार, असीम है, पर उसका मन अत्यंत कमजोर है। सबके साथ ममत्व तथा अपनापन के मधुर वातावरण में ही आपस की कटुता, वैमनस्य का भाव शांत होता है। सभी प्राणियों में अपनत्व का भाव सभी को अपना बना लेता है। जब कठोर प्रवृत्तियाँ साफ हो जाती है, तो बंद नेत्र खुल जाते हैं। आँखों को सही दिशा दिखलाई पड़ने लगती है। पवित्र भावना में प्राणों की व्याकुलता शांत हो जाती है। विपत्ति के समय यदि आदमी मुस्करा नहीं सकता तो भय से बेचैन होकर रोना नहीं चाहिए। दु:ख को धैर्य पूर्वक सहना चाहिए। जितना हो सके, दूसरों का कल्याण करना चाहिए, यदि ऐसा न हो सके तो किसी का बुरा भी नहीं करना चाहिए।

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2. हर सपने पर विश्वास करो, लो लगा चाँदनी का चंदन,
मत याद करो, मत सोचो – ज्वाला में कैसे बीता जीवन,
इस दुनिया की है रीति यही – सहता है तन, बहता है मन,
सुख की अभिमानी मदिरा में जो जाग सका, वह है चेतन,
इसमें तुम जाग नहीं सकते, तो सेज बिछाकर मत सोओ।
यदि फूल नहीं बो सकते, तो काँटे कम से कम मत बोओ।

शब्दार्थ :

  • सपना = भावना, कल्पना।
  • अभिमानी = अहंकारी, गर्वयुक्त।
  • ज्वाला = आग की लपट, कष्ट के दिन।
  • चेतन = बुद्धि युक्त।
  • रीति = ढंग, नियम, परिपाटी।
  • मदिरा = शराब।

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण में कवि ने हमें अपने सपनों पर विश्वास करने तथा अतीत के दु:खों को याद न करने की सलाह दी है।

व्याख्या – कवि ने लोगों को यह सलाह दी है कि अपनी कल्पना, अपनी शक्ति पर विश्वास करें। अपने तन-मन, मस्तिष्क को सदा शान्त एवं सुस्थिर रखें। अतीत के दुःख भरे दिनों को याद कर दुःख का अनुभव न करें। जो बीत गया उसे याद न करें। संसार के लोगों की यही परिपाटी है। जीने का यही ढंग है कि उनका मन पर नियंत्रण नहीं होता, मन भटकता है, पर शरीर को सहना पड़ता है। सुख के समय लोग अभिमानी बनकर कर्त्तव्य मार्ग भूल जाते हैं, परन्तु उस समय जो सावधान सचेत रह सका वही प्रबुद्ध है। इस स्थिति में यदि मनुष्य त्याग नहीं सकता, सजग नहीं होता, तो भी उसे सुख पूर्वक आराम नहीं करना चाहिए। अपने कर्त्तव्य को नहीं भूलना चाहिए। सुख के समय सदा सचेत रहना चाहिए।

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3. पग-पग पर शोर मचाने से मन में संकल्प नहीं जमता,
अनसुना-अचीन्हा करने से संकट का वेग नहीं कमता,
संशय के सूक्ष्म कुहासों में विश्वास नहीं क्षण-भर रमता,
बादल के घेरों में भी तो जय-घोष न मारुत का थमता,
यदि बढ़ न सको विश्वासों पर, साँसों के मुरदे मत ढोओ,
यदि फूल नहीं बो सकते, तो काँटे कम से कम मत बोओ।

शब्दार्थ :

  • सूक्ष्म = बारीक, महीन।
  • कुहासों = कुहरा।
  • संकल्प = दृढ़ निश्चय।
  • वेग = गति।
  • संशय = संदेह।
  • मारुत = वायु।

प्रसंग – इन पंक्तियों में कवि ने लोगों को अपने मन में दृढ़ इच्छाशक्ति बनाए रखने की सलाह दी है।

व्याख्या – प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने स्पष्ट किया है कि निरंतर हर पग पर शोर गुल करने से मन में दृढ़ निश्चय नहीं हो पाता। मनुष्य जीवन का संकट उसकी उपेक्षा करने या उसके प्रति अनभिज्ञता प्रकट करने से दूर नहीं होता, बल्कि डटकर मुकाबला करना चाहिए। यदि मन में किसी भी प्रकार की संदेह भावना है तो उसके मन में विश्वास नहीं ठहर सकता। संशय भरे चित्त में विश्वास टिक नहीं सकता। वायु की विजय घोषणा बांदल के फैलाव में भी कम नहीं होती। अर्थात् जो साहसी हैं, निरंतर गतिशील तथा कर्त्तव्य परायण हैं, उनकी विजय गर्जना को भीड़ भी नहीं रोक सकती। अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति पर आगे बढ़ते रहना चाहिए। उसे मृत दकियानूसी विचारों में पड़कर नहीं रुकना चाहिए। निरंतर प्रर्गतिशील रहकर मन-वच-कर्म से दूसरों के हित की बात करना चाहिए।

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