Students should regularly practice West Bengal Board Class 8 Hindi Book Solutions Poem 4 जनगीत to reinforce their learning.
WBBSE Class 8 Hindi Solutions Poem 4 Question Answer – जनगीत
वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
प्रश्न 1.
जन-गीत के रचनाकार है-
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) मैथिलीशरण गुप्त
(ग) महादेवी वर्मा
(घ) सुमित्रानंदन पंत
उत्तर :
(घ) सुमित्रानंदन पंत
प्रश्न 2.
‘विषाद की निशा”‘ क्यूँ बीत रही है?
(क) एक प्राण होने से
(ख) नई सुबह होने से
(ग) निशान उड़ने से
(घ) गीत गाने से।
उत्तर :
(ख) नई सुबह होने से
प्रश्न 3.
‘शोषित”‘ का अर्थ है-
(क) जो शोषण करता है
(ख) जिसका शोषण किया गया हो
(ग) जो रस खींचता हो
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर :
(ख) जिसका शोषण किया गया हो।
प्रश्न 4.
“नवयुग” में नया क्या हैं?
(क) नई सरकार
(ख) नये नेता
(ग) नये प्रशासक
(घ) नये नियम
उत्तर :
(घ) नये नियम
प्रश्न 5.
हमारे जीवन में संकट आ गये।
(क) गहरे
(ख) शोषीत
(ग) पीड़िता
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(क) गहरे
प्रश्न 6.
सब में कैसी भावना हो ?
(क) पीड़ा
(ख) प्रेम
(ग) शोषीत
(घ) विकास
उत्तर :
(ख) प्रेम
प्रश्न 7.
अब कैसा जमाना आ गया ?
(क) नया
(ख) पुराना
(ग) रंगीन
(घ) सदगुण
उत्तर :
(क) नया
प्रश्न 8.
पंतजी का जन्म कब हुआ था ?
(क) सन् 1600
(ख) सन् 1700
(ग) सन् 1800
(घ) सन् 1900
उत्तर :
(घ) सन् 1900
प्रश्न 9.
पंत को किस रचना के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला ?
(क) गुंजन
(ख) चिदंबरा
(ग) युगांत
(घ) ग्राम्या
उत्तर :
(ख) चिदंबरा
प्रश्न 10.
‘जन-गीत’ के रचनाकार हैं –
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) मैथिलीशरण गुप्त
(ग) महादेवी वर्मा
(घ) सुमित्रानंदन पंत
उत्तर :
(घ) सुमित्रानंदन पंत
प्रश्न 11.
कवि ने जन-मन का ताज किसे कहा है ?
(क) शक्ति
(ख) सौंदर्य
(ग) गुण
(घ) भक्ति
उत्तर :
(ग) गुण
प्रश्न 12.
कवि के अनुसार कैसा समाज होना चाहिए ?
(क) संगठित
(ख) विभाजित
(ग) कमजोर
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(क) संगठित
लघु उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1.
कवि पंत के अनुसार हम एकजुट कब होते हैं?
उत्तर :
कवि पंत के अनुसार विषाद की निशा बीत जाने पर जीवन में नया सबेर आने पर हम एकजुट होते हैं।
प्रश्न 2.
भारतवासी किस नींद से जगे हैं?
उत्तर :
भारतवासी शुद्ध स्वार्थ और काम की नींद से जगे हैं।
प्रश्न 3.
कवि का मन अब क्या नहीं सहना चाहता?
उत्तर :
कवि का मन किसी का शोषण किया गया हो तथा पीड़ा और अन्याय नहीं सहना चाहता।
प्रश्न 4.
पंतजी समाज को किस रूप में देखना चाहते हैं?
उत्तर :
पंतजी संकट, पीड़ा अभाव से मुक्त सुसंगठित समाज को देखना चाहते हैं।
प्रश्न 5.
कवि जन मानस में क्या भाव भर रहे हैं ?
उत्तर :
कवि जन मानस में जोश तथा उत्साह का भाव भर रहें है।
प्रश्न 6.
कवि का क्या कथन है ?
उत्तर :
कवि का कथन है कि अब फिर जीवन में नया सबेरा आए।
प्रश्न 7.
हम भारतवासियों में कैसी भावना हो गई थी ?
उत्तर :
हम भारतवासियों में धर्म, जाति संप्रदाय को लेकर आपस में नफरत की भावना हो गई थी।
प्रश्न 8.
हमारी फूट का क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर :
हमारी फूट का परिणाम हुआ कि हम विनाश के गर्त में गिर गए।
प्रश्न 9.
हम किस कारणवश उत्यान की ओर अग्रसर हो रहे हैं ?
उत्तर :
एकता तथा एकरूपता के कारण आज हम प्रगति और उत्थान की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
प्रश्न 10.
कवि लोगों को क्या प्रेरणा दे रहा हैं ?
उत्तर :
कवि लोगों को यह प्रेरणा दे रहा है कि अब समाज में, देश में आमूल परिवर्तन हो रहा है।
बोध मूलक प्रश्न :
प्रश्न 1.
कवि कैसी निशा के बीत जाने की बात कह रहा है? और क्यों?
उत्तर :
कवि विषाद (दु:ख) की निशा बीत जाने की बात कह रहा है क्योंकि दुःख की रात अब बीतने जा रही है। नया सबेरा आ रहा है। सभी निर्भय होकर प्रगति की ओर प्रयाण कर रहे हैं, अब सभी लोग मिलकर समवेत स्वर में जयगान का उच्चारण करेंगे।
प्रश्न 2.
जन-गीत कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में पंतजी ने स्पष्ट किया है कि नई सुबह होने से विषाद की रात बीत रही है। अब सब एकजुट हो कर निडर होकर प्रगति के पंथ पर बढ़ेंगे। आपसी वैमनस्य तथा भेद भाव से हमारा पतन तथा एकता, परस्पर मेल मिलाप से विकास संभव है। भारतवासी अब स्वार्थ तथा काम की नींद से जाग गए हैं। अब जन निर्माण, समाज उत्थान के काम में जुट जाएँ। सभी के रक्त में जोश है, अत: उत्साह से लोग देश की प्रगति में समर्पित हो जाएँ। अब कहीं किसी का शोषण न हो, अन्याय, परपीड्न, अब असह्य है। जीवन निर्माताओं को प्रमुखता मिले। कष्ट अभाव से रहित सुसंगठित समाज का निर्माण हो। लोगों में सद्युणों का समादर हो। अब नये युग के लिए नये नियम बने।
प्रश्न 3.
‘नवयुग का अब नया विधान हो’- इस पंक्ति के आधार पर बताइए कि कवि नये युग को किस रूप में देखना चाहता है?
उत्तर :
कवि देखना चाहता है कि नये युग के लिए नये नियम कानून बने। जिसमें शोषण पीड़ा, अन्याय के लिए कोई स्थान न हो सद्गुणों की कद्र हो। दुःख रहित सुसंगठित समाज का निर्माण हो। पुरानी परंपराओं के स्थान पर नवीन परंपरा, नवीन विचार धारा के आधार पर नये समाज का गठन हो।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1.
‘जन-गीत’ कविता में कवि ने क्या आशा व्यक्त की है ?
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में कवि ने यह आशा व्यक्त की है कि भारतवासियों के जीवन में नया सुपभात हो। सभी का एक ही विचार शक्ति हो सभी एक ही स्वर समता, सरसता, प्रेम के गीत गाएँ। अब दुःख की काली रात बीत गई है। प्रस्थान के प्रगति की राह दिखाई पड़ रही है। हमारा आकाश का प्रगति की राह दिखाई पड़ रही है। हमारा आकाश को छूने वाला ऐसा, चिह्न हो जो सब प्रकार से भय रहित हो। यह निश्चित सिद्धांतं है – मतभेदों में विनाश होता है, संगठन में मतैक्य एवं प्रगति होती है। आपसी नफरत, भेदभाव तथा फूट के कारण ही हमारा विनाश हुआ। लेकिन आज हम सारे मत भेदों को भूल कर एक सूत्र में बांध रहे हैं, इसलिए अब हम निश्चित रूप से प्रगति एवं विकास के शिखर पर पहुँच सकते हैं।
सभी का कल्याणकारी उत्तम एक ही धर्म हो, सब का सब के प्रति समान, प्रेम भाव होना चाहिए। अपनी व्यक्ति तुच्छ कामनाओं, तथा स्वार्थ को छोड़ कर सभी महान, मंगलदायक लोक कर्म में प्रवृत्त बने। सभी में शक्ति, उत्साह का भाव बना रहे । सभी के रक्त में उष्गता, तेजस्विता उफनती रहे। समाज से शोषण, परपीड़िन, अन्याय का कहीं भी बोलबाला न हो। कहीं कोई गरीब, मजदूर शोषित न हो। जीवन के जो सच्चे कलाकार हैं उन्हें समाज तथा देश में प्रमुखता मिले। हमारा समाज हर प्रकाश स्वतंर, दु:ख रहित बने। दृढ़ संगठन बन सके। समाज में जितने भी शिल्पी, कलाकार, गुणों के आगार लोग हैं, उनका सम्मान होना चाहिए। हमेशा के लिए नया विधान-नई प्रणाली हो जिससे समाज का कल्याण हो।
भाषा बोध :
1. निम्नलिखित शब्दों का समास विग्रह कर समास का नाम लिखिए-
अभय – न भय – नज् समास।
अभिन्न – नहीं है भिन्न जो – बहुवीहि समास,
लोककर्म – लोक का कर्म – तत्पुरुष समास।
जीवन-शिल्पी – जीवन का शिल्पी – तंत्रुषु समास।
नवयुग – नया युग – कर्मधारण समास
2. विशेषण और विशेष्य का मिलान कीजिए :-
अभय – निशान
शुद्ध – स्वार्थ
काम – नींद्
संगठित – समाज
नव-युग
WBBSE Class 8 Hindi जनगीत Summary
कवि परिचय :
प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म सन् 1900 ई॰ में अल्मोड़ा जनपद के कौसानी नामक ग्राम में हुआ था। सन् 1921 में असहयोग आन्दोलन प्रारंभ होने पर पंतजी पढ़ाई छोड़कर साहित्य साधना में लग गए। सन् 1977 ई. में पंतजी का देहावसान हो गया। अरबिन्द के जीवन दर्शन से ये अत्यधिक प्रभावित हुए। इनकी प्रमुख काव्य रचनाएं-पल्लव, गुंजन, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, उत्तरा और चिदम्बरा आदि है। इनकी पाँच कहानियाँ और ज्योत्सना नामक नाटक भी प्रसिद्ध हैं। ‘चिदम्बरा’ काव्य पर इन्हें भारतीय ज्ञान पीठ का पुरस्कार प्रदान किया गया। भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मभूषण’ अलंकार से सम्मानित किया। पंतजी छायावाद के स्तंभ माने जाते हैं। पंतजी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है यह कोमल कान्त पदावली से युक्त है। छायावादी कवियों में विशिष्ट स्थान रखते हुए पंतजी प्रगतिवादी काल का सूर्रपात्र करनेवालों में प्रमुख माने जाते हैं। पंतजी के काव्य में प्रकृति के विविध सुन्दर तथा मनोरम चित्र प्राप्त होते हैं।
शब्दार्थ :
- निशान = लक्षण, ध्वजा।
- विहान = सुबह।
- विनाश = ध्वंस, संकट।
- विषाद = दु:ख।
- अभिन्न = एक रूप, घनिष्ठ, जो भिन्न न हो।
- निशा = रात।
- श्रेय = श्रेष्ठ, मंगलदायक धर्म, राश।
- प्रयाण = गमन, प्रस्थान, युद्ध यात्र।
- उफान = उबाल, जोश।
- अभय = निडर, निर्भय।
- शोषित = जिसका शोषण किया गया हो।
- शिल्मी = कलाकार
- मुक्त = स्वतंत्र।
- व्यथित = दु:खी।
- किरीट = मुकुट।
1. जीवन में फिर नया विहान हो,
एक प्राण, एक कंठ गान हो!
बीत अब रही विषाद की निशा,
दिखने लगी प्रयाण की दिशा,
गगन चूमता अभय निशान हो!
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य मेला’ के जन-गीत कविता से उद्धृत हैं। इस कविता के कवि श्री सुमित्रानंदन पंत है।
प्रसंग – इन पंक्तियों में पंतजी ने स्षष्ट किया है कि अब नव युग नई समृद्धि तथा खुशहाली के साथ हमारे जीवन में आ रहा है।
व्याख्या – कवि जन मानस में जोश तथा उत्साह का भाव भर रहा है। कवि का कथन है कि अब फिर जीवन में नया सबेरा आए। सभी में एक प्राण शक्ति हो, सभी अपने कंठ से एक ही स्वर, एक ही.गीत गाएँ। उनके दु:ख की रात समाप्त हो रही है। लोगों के जीवन का अभाव पीड़ा, निराशा अब समाप्त हो रही है। सामने बढ़ने प्रगति पंथ पर अग्रसर होने की दिशा दिखाई पड़ रही है। निर्भय होकर जनता आकाश की ओर प्रगति के निशान को स्पर्श कर रही है।
2. हम विभिन्न हो गये विनाश में;
हम अभिम्न हो रहे विकास में,
एक श्रेय, प्रेम अब समान हो।
शुद्ध स्वार्थ काम-नींद से जगे,
लोक-कर्म में महान सब लगें,
रक्त मे उफान हो, उठान हो।
व्याख्या – हम भारतवासियों में धर्म, जाति संप्रदाय को लेकर आपस में नरफरत की भावना हो गई थी। हमारी फूट का परिणाम हुआ कि हम विनाश के गर्त में पड़ गए। हमारे जीवन में गहरे संकट आ गए। पर एकता तथा एकरूपता के कारण आज हम प्रगति और उत्थान की ओर अग्रसर हो रहे हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हमारा अब एक श्रेय अर्थात् मंगलदायक धर्म हो। सब में समान प्रेम की भावना हो। हम स्वार्थ और अपनेपन की नींद से जागें। स्वार्थ को छोड़ कर सब के साथ हमदर्दी दिखलाएँ। सभी लोग लोक कल्याण के कर्म में अपने को समर्पित कर दें। सभी के रक्त में नया जोश तथा उबाल हो। इस प्रकार शक्ति तथा उत्साह के साथ लोग लोक सेवा तथा लोक निर्माण के कार्य में जुट जाएँ।
3. शोषित कोई कहीं न जन रहें,
पीड़न-अन्याय अब न मन सहे
जीवन-शिल्पी प्रथम, प्रधान हो।
मुक्त व्यथित, संगठित समाज हो,
गुण ही जन-मन किरीट ताज हो,
नव-युग़ का अब नया विधान हो।
व्याख्या – कवि लोगों को यह प्रेरणा दे रहा है कि अब समाज में, देश में आमूल परिवर्तन हो रहा है। इसलिए अब हमारे बीच कोई व्यक्ति शोषण का शिकार न हो। किसी भी व्यक्ति का कहीं दमन न हो। पीड़ा तथा अत्याचार अब किसी को भी सहना न पड़े। जो लोग जीवन निर्माता है, जीवंन का समाज का न्याय पूर्वक गठन करने वाले हैं, उन्हें महत्व मिले। समाज में उनकी प्रधानता हो। जिससे उनका मनोबल बढ़े। एक ऐसा सुव्यवस्थित सुसंगठित समाज बने, जिसमें कोई पीड़ित न हो। सभी मुक्त जीवन बिताएँ, सद्गुण, सत्य, न्याय, परोपकार ही जनमानस का मूर्धन्य बने। समाज में सद्युणों की ही प्रतिष्ठा हो। अब नया जमाना आ गया। अत: हमारा नया विधान नये नियम हैं। पुराने दकियानूसी विचारों तथा विधि विधानों को किनारा कर देने की जरूरत है।