Students should regularly practice West Bengal Board Class 7 Hindi Book Solutions सहायक पाठ Chapter 1 गुलिवर की यात्राएँ to reinforce their learning.
WBBSE Class 7 Hindi Solutions सहायक पाठ Chapter 1 Question Answer – गुलिवर की यात्राएँ
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
प्रश्न : 1
गुलिवर का ‘एण्टीलोप’ नामक जहाज पर यात्रा के दौरान उत्पन्न हालात का विवरण दें।
उत्तर :
गुलिवर की ‘एण्टीलोप’ नामक जहाज पर यात्रा बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण रही। आरंभ में दिन बड़े आराम से बीते। कुछ दिनों के बाद जहाज एक तूफान में फँस गया। लोग रास्ता भूल गए। कई दिनों तक इधर-उधर भटकते रहे । भोजन सामग्री भी समाप्त हो गई, लोग भूखे रहने लगे। भूख और कठिन मेहनत के कारण बारह आदमी मर गए।
फिर जहाज एक चट्टान से टकरा गया। लेकिन जहाज के दूट कर दो टुकड़े होंने से पहले गुलिवर अपने बचे हुए छः साथियों के साथ एक छोटी सी नाव में निकल भागा। अचानक फिर तूफान आया और यह छोटी सी नाव उलट गई। सभी साथी डूब गए। केवल गुलिवर बच सका। तैरते-तैरते थक गया पर किसी तरह किनारे लगा। इस प्रकार गुलिवखकी ‘एण्टीलोप’ की दुखद यात्रा समाप्त हुई।
प्रश्न 2
गुलिवर को यात्रा के दौरान किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा? संक्षेप में लिखो।
उत्तर :
गुलिवर को यात्रा के दौरान अनेक विषम, भयंकर, खतरनाक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। आरंभ में जहाज एक तूफान में फँस गया। एक चट्टान से टकरा कर जहाज के दो दुकड़े हो गए एक छोटी नाव द्वारा गुलिवर ने प्राण बचाया। नाव के उलट जाने पर तैरते हुए लिलिपुट द्वीप के किनारे पहुंचा गया। यहाँ के बौने लोगों ने उसे बंदी बना लिया। गुलिवर ने ब्लेफुस्कू के साथ युद्ध में लिलिपुट के राजा की सहायता की।
दरबारियों के षड़यंत्र से छुट कारा पाने के लिए वह ब्लेफुस्कू पहुँचा। वहाँ के राजा ने उसका आदर सत्कार किया और घर लौटने में उसकी सहायता की। दो महीने तक घर पर रहने के बाद गुलिवर एडवेंचर जहाज पर दूसरी यात्रा आरंभ की। इस यात्रा में भी उसका जहाज तूफान में फँस गया। किसी प्रकार जहाज दानवों के देश के तट पर पहुँचा। यहाँ के लोग विशाल आकार-प्रकार वाले दैत्याकार थे।
यहाँ एक किसान के घर वह कुछ दिन आराम से रहा, पर लोभी किसान धन कमाने की लालसा से खेल-तमाशा दिखाने में उसका उपयोग करने लगा.। वह बिल्कुल कमजोर हो गया। अन्त में राजदरबार में पहुँचा। वहाँ राजा तथा रानी ने उसका खूब सत्कार किया। अन्त में समुद्र के किनारे की हवा खाने के बहाने वह समुद्र तट से अनेक विषम परिस्थिति के बावजूद स्वदेश वापस लौटने में सफल हो गया।
प्रश्न 3.
लिलिपुट के महाराज ने गुलिवर के साथ कैसा व्यवहार किय्य? संक्षेप में लिखो।
उत्तर :
लिलिपुट के महाराज ने शुरू में गुलिवर के साथ अच्छा व्यवहार किया। महाराज की आज्ञा से खाने-पीने सोने के लिए बिस्तरे तथा सुरक्षा की उचित व्यवस्था की गई। भोजन सामग्री के लिए राजा अपने जेब से खर्च देता था। उस देश की भाषा पढ़ाने के लिए छ: बड़े पंडितों को आदेश दिया। कुछ शर्तों को मान लेने के बाद उसकी जंजोरें खोल दी गई और उसे रिहा कर दिया गया।
ब्लेफुस्कू से युद्ध के दौरान गुलिवर ने महाराज की मदद कर विजय दिलाई शत्रु के जहाजों को खींचकर लिलिपुट के किनारे लाया। राजा ने प्रसन्न हो कर उसका स्वागत किया। सभी लोग उसकी प्रशंसा करने लगे। किन्तु दरबार में कुछ लोग उसके खिलाफ षड़यंत्र करने लंग । उसे देशद्रोह का अपराधी मानकर सजा देने का निश्यय कर लिए। इस प्रकार राजा का व्यवहार गुलिवर के प्रति विल्कुल विपरीत हो गया।
प्रश्न 4.
ब्लेफुस्कू द्वीप में गुलिवर के साथ कैसा व्यवहार हुआ? संक्षेप में लिखो।
उत्तर :
गुलिवर के ब्लेफुस्कू द्वीप पहुँचने पर राजा और उसके दरबारी अपने घोड़ों से उतर कर उसका स्वागत और उसके प्रति सम्मान व्यक्त किए। बेगम और नौकर चाकर भी स्वागत के लिए साथ में रहे । इस प्रकार राजा अपेनदरबारियों के साथ गुलिवर का शानदार स्वागत किया। उसे शहर घुमाने के लिए दो आदमी दिए। उसके ठहरने खाने-पीने तथा सोने की अच्छी व्यवस्था की गई। समुद्र के जल में एक उलटी हुई नाव को देखकर गुलिवर ने उसे किनारे लाने के लिए राजा से मदद माँगी।
राजा ने इसके लिए बीस बड़े जहाज और तीन हजार आदमी दे दिए। लिलिपुट के राजा ने गुलिवर को वापस भेजने की प्रार्थना की किन्तु उसे यहाँ के राजा ने अस्वीकार कर दिया। ब्लेफूस्कू के राजा की अनुकंपा से ही गुलिवर प्रसन्नता पूर्वक स्वदेश रवाना हुआ। राजा ने उसका सम्मान करते हुए रुपयों से भरी पचास थैलियाँ और अपना एक बड़ा सा चित्र भी दिया।
प्रश्न 5.
गुलिवर के साथ दोनों द्वीपों के महाराजाओं के व्यवहार में किसका व्यवहार आपको अच्छा लगा तथा क्यों?
उत्तर :
गुलिवर के साथ दोनों द्वीपों के महाराजाओं के व्यवहार में लिलिपुट के महाराजा की अपेक्षा ब्लेफुस्कू के महाराज का व्यवहार अच्छा था। लिलिपुट के राजा और जनता ने उसके पैरों में जंजीरें बाँधी थी।उस पर तीर बरसाए गए। कुछ दरबारी चाहते थे कि उसके चेहरे पर जहरीला तीर चला कर हत्या कर दी जाए। उसकी तलाशी ली गई।
पाकेट की सारी वस्तुएँ ले ली गई। उसे कभी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा गया। कुछ दरबारी सदा उसके खिलाफ षड़यंत्र करते रहे। उसे देशद्रोह के लिए अपराधी माना गया। उसकी आँखें फोड़ देने की सजा का फरमान हुआ। ब्लेफुस्कू के राजा और दरबारियों ने गुलिवर का शानदार स्वागत किया। शहर में घुमाने के लिए दो आदमी रखे गए। एक नाव की मरम्मत करा कर उसे स्वदेश भेजने में मदद की। इस प्रकार ब्लेफुस्कू के राजा का व्यवहार तुलना में अधिक अच्छा और प्रशंसनीय रहा।
प्रश्न 6.
गुलिवर ने लिलिपुट के लोगों के साथ जो व्यवहार किया उससे आपको क्या शिक्षा मिली? संक्षेप में लिखो।
उत्तर :
गुलिवर ने लिलिपुट के लोगों के साथ प्रेम, सद्भाव तथा मानवीय सहानुभूति का व्यवहार किया। लिलिपुट के लोगों ने उस पर तीर की वर्षा की और जंजीरों से बाँध दिया, उसे देशद्रोही अपराधी मानकर आँख फोड़ने का निश्चय किया। गुलिवर ने उसके साथ बदले की भावना न दिखाई। यदि वह चाहता तो उन सभी की हत्या कर देता।
पूरे द्वीप में कोई आदमी न बचता। सारे द्वीप का विनाश कर सकता था। पर अपनी शक्ति का प्रयोग उनका अहित करने में न किया। धैर्य पूर्वक कष्ट सहकर उनके आदेश का पालन करता रहा। राजा का भी सदा सम्मान किया। अत: गुलिवर के व्यवहार से यह शिक्षा मिलती है कि बदले की भावना से किसी का नुकसान नहीं करना चाहिए। अपनी शक्ति का प्रयोग किसी का अहित करने में नहीं करना चाहिए। जैसे को तैसा व्यवहार न कर क्षमाशील होना चाहिए।
प्रश्न 7.
‘दानवों के देश में’ कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर :
गुलिवर एडवेंचर जहाज से हिन्दुस्तान के लिए रवाना हुआ। ‘गुडहोप’ अन्तरीप के पास पहुँचने पर पीने के लिए पानी भरने, जहाज में हुए छेद की मरम्मत करने तथा बीमार कप्तान के स्वस्थ होने के लिए कुछ दिन रुकना पड़ा। यात्रा आरंभ करने पर कुछ दूर जाते ही जहाज एक बड़े तूफान में फँस गया। फिर भटकता हुआ जहाज समुद्र के किनारे लगा। वह बड़ी अजीब जगह थी। इस प्रकार गुलिवर दानवों के देश में पहुँच गया।
यहाँ के मनुष्य विशाल डील डौल के दैत्याकार थे। भागता हुआ गुलिवर जौ के खेत में पहुँच गया। वहाँ से एक मजदूर उसे अपने मालिक किसान के पास ले गया। किसान समझ गया कि यह एक भला प्राणी है अत: उसे नुकसान न पहुँचाया। दोपहर को उसे खाना खिलाया। किसान के घर में उसने विशालकाय बिल्ली तथा चूहे देखे। किसान के घर उसे रहने, खाने, सोने की व्यवस्था हो गई। मालिक किसान की छोटी लड़की ग्लम गुलिवर के प्रति दयालु थी।
सुख सुविधा का सदा ध्यान रखती थी। अब गुलिवर के रूप में छोटे प्राणी को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आने लगे। किसान पैसा कमाने के लिए उसे तमाशा बनाकर दूरदूर गाँवों तथा बाजारों में ले जाने लगा। दिनभर तमाशा दिखाने के कारण वह बेहद कमजोर हो गया। एक दिन तमाशा देखने के लिए महारानी ने उसे बुला भेजा। महारानी ने उसके व्यवहार से प्रसन्न होकर किसान की बेटी समेत उसे किसान से खरीद लिया।
महाराज ने भी उसकी हिफाजत और आराम के लिए निर्देश दिया। एक दिन गुलिवर ने समुद्र के किनारे की हवा खाने की इच्छा प्रकट की। उसे घुमाने के लिए एक नौकर एक डिब्बे में बंद कर समुद्र के किनारे गया। अचानक एक विशालकाय बाज डिब्बे को लेकर आकाश में उड़ने लगा। दूसरे बाजों की छीना-झपटी में डिब्बा समुद्र में गिर गया। सौभाग्य से गुलिवर के देश के एक जहाज के नाविकों ने बहते हुए डिब्बे को देखा। उन लोगों ने डिब्बे को खींच कर गुलिवर को बचा लिया। इस प्रकार गुलिवर दैत्यों के देश से स्वदेश अपने बाल-बच्चों के पास पहुँच गया। अब उसने जीवन में लम्बी यात्रा न करने का निश्चय किया।
प्रश्न 8.
एडवेंचर नामक जहाज पर गुलिवर की यात्रा कैस रही? अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर :
गुलिवर ने ‘एडवेंचर’ नामक जहाज पर हिन्दुस्तान के लिए यात्रा आरंभ की। कुछ दिनों तक यात्रा बड़ी सुखद रही। कुछ दिनों में वह अफ्रीका के दक्षिण सिरे पर ‘गुडहोप’ अन्तरीप के पास पहुँचा। यहाँ पीने का पानी खत्म हो गया और जहाज में एक छेद हो गया। मरम्मत के लिए सारा सामान किनारे उतार दिया गया। जब जहाज की मरम्मत हो गई। परंतु यात्रा के आरंभ के समय ही अचानक कप्तान की तबीयत खराब हो गई।
कुछ दिन बाद यात्रा आरंभ हुई। मैडागास्कर जलडमरुमध्य तक यात्रा बड़ी आराम से हुई। उस द्वीप के उत्तर की ओर बढ़ते ही एक बड़े तूफान में फँस गए। पहले तो हवा उत्तर से पश्चिम की ओर बहती रही। बीस दिन के बाद हवा पूर्व की ओर बहने लगी। हवा के विरुद्ध जाना संभव नहीं था। तूफानी हवा के सहारे भटकता हुआ जहाज न मालूम कहाँ पहुँच गया। जहाज के सबसे ऊँचे मस्तूल पर बैठे आदमी को अचानक एक दिन जमीन दिखाई दी। कप्तान ने जहाज को किनारे लगा दिया। वह बड़ी अजीब जगह थी।
प्रश्न 9.
‘दानवों के देश में’ कहानी में दानव किसान का व्यवहार गुलिवर के साथ कैसा था? अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर :
‘दानवों के देश में’ कहानी के आरंभ में किसान का व्यवहार गुलिवर के प्रति प्रीति पूर्ण था। वह उसे भला प्राणी समझ कर उसे नुकसान पहुँचाना नहीं चाहता था। उसके खाने-पीने और सुरक्षा की उचित व्यवस्था कर दी। किसान के लायक सादा भोजन देता था। उसे तंग किए जाने पर किसान ने अपने बेटे को भी फटकार लगाई।
किसान उसे अधिक से अधिक आराम देना चाहता था। पर किसान लोभ के कारण गुलिवर को तमाशा का साधन बना लिया। एक दिन में कई बार तमाशा दिखाने पर वह थक कर चूर हो जाता था। मुनाफा कमाने के लालच में उसे बड़े-बड़े शहरों में ले जाने लगा। रोज उसे इतनी मेहनत करनी पड़ती थी कि वह अत्यंत दुबला और कमजोर हो गया। स्थिति ऐसी हो गई कि वह मरने के करीब पहुँच गया। किसान उसके आराम और खाने-पींने का बिल्कुल ख्याल नहीं रखता था।
प्रश्न 10.
‘दानवों के देश में’ गुलिवर का राजमहल में बिताए गए समय का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
राजमहल में बिताया गया समय गुलिवर की दुखद यात्राओं का सब से अच्छा समय था। किसान के शोषण से उसे मुक्ति मिल गई। गुलिवर ने आदर सहित रानी के प्रश्नों का उत्तर देकर अपनी कुशलता तथा बुद्धिमत्ता से महारानी तथा महाराज को प्रभावित कर लिया। राजा ने कहा कि इसकी खूब हिफाजत होनी चाहिए और इसके आराम का पूरा इन्तजाम होना चाहिए। महारानी ने उसके साथ हमदर्दी प्रकट की। उसके खाने-पीने, की अच्छी व्यवस्था हुई। सोने तथा सुरक्षा का इन्तजाम किया गया। महारानी तो इतनी खुश थी कि उसके बिना खाना नहीं खाती थी। गुलिवर वहाँ के रोतिरिवाज, व्यवहार सब सीख गया।
राजा तो इतना सम्मान करता था कि एक सम्मानित अतिथि की तरह मिलता था। राजमहल के सभी लोग उसके प्रति स्नेह और आदर का भाव रखते थे। राजमहल में महारानी के एक बौना नौकर से गुलिवर परेशान था। बौना उसे चिढ़ाने की कोशिश करता था। एक दिन तो उसने गुलिवर को दूध में डुबों दिया पर ग्लम के आकार की मक्खियों से परेशान रहता था, लेकिन तलवार से उन्हें मार कर लोगों से प्रशंसा पाता था। मुझे मक्खियों से डरते देख लोग बड़े खुश होते थे। इस प्रकार ‘दानवों के देश में’ राजमहल में गुलिवर का समय आनंदमय था।
प्रश्न 11.
‘दानवों के देश में’ कहानी में दानव किसान की बेटी का गुलिवर के साथ कैसा व्यवहार था? अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर :
कहानी में दानव किसान की बेटी ग्लम नौ साल की कोमल मति बालिका थी। वह अच्छे स्वभाव की लड़की थी। वह दिनभर गुलिवर से खेला करती थी। उसे अपनी भाषा सिखाती थी। वह गुलिवर का बहुत ख्याल रखती थी। इसके कारण ही घर या बाहर का कोई उसे छेड़ नहीं पाता था। दोनों में बड़ी दोस्ती हो गई थी। उसका पिता ने जब गुलिवर को खेल दिखाने के लिए ले जाने का निश्चय किया तो वह रोने लगी।
किसान ने जब उसे तमाशा दिखाने के लिए बाजार ले जाने लगा तो वह भी साथ चलती रही। वहाँ भी गुलिवर के सुख-दुख तथा खान-पान के लिए सचेष्ट रहती थी। गुलिवर के कहने पर उसे डिब्बे से बाहर निकाल कर हवा में घुमाती थी। वास्तव में पवित्र दिल की बालिका बिना स्वार्थ के गुलिवर के प्रति हमदर्दी रखती तथा उसके सुख के प्रयत्न करती। गुलिवर के प्रस्ताव को मानकर रानी ने ग्लम को भी रख लिया।
इस प्रकार गुलिवर के प्रति स्नेह तथा आत्मीयता के कारण ही बिना किसी लाभ और लोभ के वह लड़की अपना घर परिवार छोड़कर गुलिवर के साथ रहने को राजी हो गई। समुद्र की हवा खाने के लिए जाते समय भावी वियोग की आशंका सं ग्लम की आँखों में आँसू आ गए। वह गुलिवर के राजमहल से स्वदेश जाने की गुप्त योजना को जानते हुए भी मौन रही, किसी को नहीं बतलाया। इस प्रकार गुलिवर के साथ किसान की बेटी का व्यवहार अत्यंत आत्मीयता पूर्ण था।
WBBSE Class 7 Hindi गुलिवर की यात्राएँ Summary
पाठ का सारांश :
अंग्रेजी साहित्य के सुप्रसिद्ध रचनाकार जोनाथन स्विफ्ट रचित गुलिवर की यात्राएँ (गुलिवर ट्रवेल्स) अंग्रेजी साहित्य की प्रसिद्ध रचना है। यह एक काल्पनिक कथा पर आधारित है। गुलिवर द्वारा एक जहाज पर यात्रा से कथा का आरंभ होता है। पूरी कथा अत्यंत रोचक, रोमांचक तथा आश्चर्यजनक है।
गुलिवर ने ‘एण्टीलोप’ नामक जहाज पर अन्य यात्रियों के साथ यात्रा शुरू की। आरंभ में दिन बड़े मजे में बीतें। एक बार दक्षिण सागर से आगे बढ़ने पर जहाज एक चद्टान से टकरा गया। जहाज के दो टुकड़े हो जाने से पहले ही गुलिवर अपने छ: साथियों के साथ एक छोटी सी नाव में निकल भागा। पुन: तूफान से नाव उलट गई, परंतु वह तैरते-तैरते किनारे पहुँच गया। थकान के कारण वह लेट गया। नींद खुली तो सबेरा हो गया था।
अनचाहे ही वह लिलिपुट द्वीप में अजीबोगरीब बौने लोगों के बीच था। बहुत सारे बौने मिलकर गुलिवर को कैद कर लिए। लिलिपुट के बादशाह को खबर मिली तो वह उसे राजधानी में लाने की आज्ञा दी। समझदार बादशाह ने गुलिवर के खान-पान की अच्छी व्यवस्था की। राजा की व्यवस्था से गुलिवर ने थोड़ी-थोड़ी उनकी भाषा भी सीख ली। फिर राजा ने अपने वजीर तथा कप्तान से स्वीकृति लेकर गुलिवर को जंजीरे खोल रिहा कर दिया गया।
लिलिपुट के उत्तर पूर्व में ब्लेफुस्कू साम्राज्य स्थित था दोनों देशों के बीच छिड़े युद्ध में गुलिवर ने लिलिपुट के राजा की सहायता की। फलस्वरूप वह राजा का विश्चास पात्र बन गया। लेकिन कुछ दरबारी दरबार में मेरे खिलाफ षड़यंत्र रचने लगे। ब्लेफुस्कू के राजा के निमंत्रण पर गुलिवर वहाँ के राजा के दरबार में पहुँचा राजा तथा दरबारियों ने गुलिवर का खूब स्वागत किया। राजा ने मुझे अपने देश जाने की इजाजत भी दे दी। राजा और वहाँ के निवासियों के सहयोग से एक नाव तैयार करने में मैं सफल हो गया। एक दिन सबेरे ही गुलिवर अपने देश के लिए रवाना हुआ। अपने देश जा रहे एक जहाज के कप्तान ने मेरी नाव को समुद्र में थपेड़े खाते देख अपने जहाज पर चढ़ा लिया। कई दिनों की यात्रा के बाद हमारा जहाज इंग्लैंड के किनारे लगा। इस प्रकार लिलिपुट की रोमांचक यात्रा समाप्त हुई।
दो महीने बाद गुलिवर को ‘एडवेंचर’ नामक जहाज में काम मिल गया। जहाज हिन्दुस्तान के लिए रवाना हुआ। लेकिन जहाज एक बड़े तूफान में फँस गया बड़ी मुश्किल से जहाज एक बड़ी अजीब जगह किनारे पर लगा। पानी की तलाश में गुलिवर कुछ दूर तक भटकता रहा। फिर लौट कर समुद्र के किनारे आया तो देखा कि उसके साथी नाव में बैठ कर तेजी से जहाज को बढ़ा रहे हैं। उसने देखा कि एक बहुत बड़ा आदमी पैदल ही उसका पीछा कर रहा है।
अब गुलिवर अकेला रह गया और जान बचाने के लिए उल्टे पैरों भागा। वह एक ऊँची पहाड़ी पर चढ़ कर देख़ा कि वहां विशाल आकारप्रकार के दैत्याकार थे अन्त में वह एक किसान के हाथ लगा। किसान देखकर समझ गया कि यह कोई भला प्राणी है इसलिए इसे किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए। अपने घर किसान ने गुलिवर के खाने-पीने तथा सुरक्षा की उचित व्यवस्था की। किसान की बेटी ग्लम उससे काफी स्नेह रखती थी। किसान उसे अधिक से अधिक आराम देना चाहता था। किसान की लड़की उसे अपनी भाषा भी सिखाती थी। उसे कोई तकलीफ नहीं होने देती थी।
गुलिवर भी उसका आदर करता था कुछ दिन के बाद किसान ने पड़ोसी की राय से बाजार में ले जाकर उसे तमाशा के रुप में दिखा कर पैसे कमाने लगा। उसे लेकर शहरों का चक्कर लगाने लगा। तमाशा दिखाते-दिखाते वह थक कर चूर हो जाता था। वह बेहद् कमजोर हो गया एक दिन महारानी ने खेल देखने के लिए बुला भेजा। गुलिवर अपने व्यवहार से रानी को खुश कर दिया। अन्त में रानी ने एक हजार सोने की मोहरें देकर किसान से उसकी बेटी के साथ गुलिवर को खरीद लिया। राजा ने उसकी खूब हिफाजत तथा आराम की व्यवस्था के लिए सहेजा। रानी तो उसके बिना खाना नहीं खाती थी। ग्लम उसे राजमहल में घुमाती रहती थी। अब उसके दिन बड़े आनंद से बीतने लगे राजा भी उसका बड़ा सम्मान करता था।
गुलिवर उनके रीतिरिवाज व्यवहार, बोलचाल दरबारो संस्कृति सब सीख लिया। राजा और रानी अपने राज्य का दौरा करते समय समुद्र के किनारे अपने एक महल में पहुँचे। गुलिवर और ग्लम दोनों साथ थे। गुलिवर ने समुद्र के किनारे की हवा खाने की इच्छा प्रकट की। एक नौकर मुझे डिब्बे में लेकर गया और समुद्र के किनारे रखकर स्वयं खेलने लगा। एक बड़े-आकार का बाज डिब्बे को लेकर उड़ने लगा। दूसरे बाजों के छिना झपटी में डिब्बा पानी पर गिर गया।
इंग्लैंड का एक जहाज वहाँ से आगे बढ़ रहा था । जहाज के मल्लाहों ने डिब्बे को तथा उसमें बंद गुलिवर को देख लिया। उसे बचाकर अपनी जहाज में बैठा लिया। जहाज के कप्तान ने मेरी सारी दास्तान सुनकर मेरा सत्कार किया। इस प्रकार गुलिवर दैत्यों के देश से अपने घर वापस पहुँचा। उसने ईश्चर को धन्यवाद दिया। भविष्य में अब लम्बी यात्रा के लिए न जाने का निश्चय किया।