WBBSE Class 7 Hindi Solutions Poem 6 वरदान माँगूँगा नहीं

Students should regularly practice West Bengal Board Class 7 Hindi Book Solutions Poem 6 वरदान माँगूँगा नहीं to reinforce their learning.

WBBSE Class 7 Hindi Solutions Poem 6 Question Answer – वरदान माँगूँगा नहीं

प्रश्न 1.
इस कविता में कवि ने जीवन को क्या कहा है?
(क) खण्डहर
(ख) महासंग्राम
(ग) वरदान
(घ) नदी
उत्तर :
(ख) महासंग्राम

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प्रश्न 2.
कवि इस कविता में किसकी प्रेरणा देता है?
(क) संधर्ष एवं कर्च्वव्य परायणता
(ख) स्मृति की
(ग) संपत्ति प्राप्ति की
(घ) भौख माँगने की
उत्तर :
(क) संघर्ष एवं कर्त्तव्य परायणता

प्रश्न 3.
‘सुमन’ किसका उपनाम है ?
(क) शिवमंगल सिंह
(ख) सूर्यकांत त्रिपाठी
(ग) सुमित्रानंदन पंत
(घ) शामशेर बहादुर सिंह
उत्तर :
(क) शिवमंगल सिंह

प्रश्न 4.
‘वरदान माँगूँगा नहीं’ किसकी रचना है ?
(क) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(ख) गजानंद माधव ‘मुक्तिबोध’
(ग) शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
(घ) श्रौधर पाठक
उत्तर :
(ग) शिवमंगल सिह ‘सुमन’

प्रश्न 5.
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जन्म कब हुआ ?
(क) सन् 1905
(ख) सन् 1910
(ग) सन् 1915
(घ) सन् 1920
उत्तर :
(ग) सन् 1915

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प्रश्न 6.
शिवमंगल सिंद ‘सुमन’ का जन्म कहाँ हुआ था ?
(क) गढ़कोला
(ख) उम्नाव
(ग) ग्वालियर
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ख) उन्नाव

प्रश्न 7.
कवि कैसी भीख नहीं चाहता ?
(क) प्रेम
(ख) दया
(ग) धन
(घ) बल
उत्तर :
(ख) दया

प्रश्न 8.
कवि के अनुसार जीवन क्या है ?
(क) महासंग्राम
(ख) महान
(ग) हार
(घ) जय
उत्तर :
(क) महासंग्राम

प्रश्न 9.
कवि ने क्या माँगूँगा नही कहते हैं ?
(क) भीख
(ख) वरदान
(ग) भोजन
(घ) सुख
उत्तर :
(ख) बरदान

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प्रश्न 10.
कविता में ताप का अर्थ क्या है ?
(क) झूठा
(ख) श्राप
(ग) कष्ट
(घ) गर्मी
उत्तर :
(ग) कष्ट

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किसके लिए कवि विश्व की संपत्ति नहीं चाहता?
उत्तर :
कवि अपने सुखद क्षणों को यादगार बनाने के लिए, अपने अभाबों की पूर्णता के लिए, भग्न अवशेषों के निर्माण के लिए विश्व की संपत्ति नहीं चाहता है।

प्रश्न 2.
‘लघुता’ शब्द से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
‘लघुता’ का अर्थ है तुच्छता या हल्कापन। यहाँ कवि ने बड़े लोगों से तुलना करते हुए अपने को उनके दृष्टिकोण से छोटा या अल्प शक्ति, सामर्थ्य वाला कहा है।

प्रश्न 3.
कवि किससे वरदान की कामना नहीं कर रहा है?
उत्तर :
कवि अपने को सामान्य वर्ग का व्यक्ति मानता है। वह अपने आपको महान, श्रेष्ठ, सर्वसाधन संपन्न समझने वाले लोगों से दूर ही रखना चाहता है। वे महान बने रहें। कवि ऐसे लोगों से वरदान की कामना नहीं कर रहा है।

प्रश्न 4.
कवि ने हार को क्या माना है ?
उत्तर :
कवि ने हार को विराम माना है।

प्रश्न 5.
संघर्ष पथ पर कवि को क्या-क्या स्वीकार है ?
उत्तर :
संघर्ष पथ पर कवि को हार-ज़ीत सब स्वीकार है।

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प्रश्न 6.
कवि कहाँ से भागना नहीं चाहता है ?
उत्तर :
कवि कर्तव्य पथ से भागना नहीं चाहता है।

बोधमूलक प्रश्नोत्तर

(क) ‘वरदान माँगूँगा नहीं’ कविता का संक्षिप्त सार लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में कवि जीवन को एक महासंग्राम तथा जीवन में पराजय को एक पड़ाव मानता है। वह किसी भी परिस्थिति में दया की भिक्षा नहीं माँग सकता। अपने सुखद यादों के लिए या अपने अभाव को पूरा करने के लिए भी वह विश्व का वैभव नहीं चाहता। महान बने लोगों से दूर रहकर वह अपने दिल के दर्द को नहीं छोड़ेगा। उसे कष्ट मिले या श्राप किन्तु वह कर्त्तव्य मार्ग पर अडिग बना रहेगा। वह कभी भी किसी से वरदान की याचना नहीं करेगा।

(ख) कवि किन-किन परिस्थितियों में वरदान नहीं माँगने की बात करता है?
उत्तर :
कवि अपने जीवन में चाहे तिल-तिल कर मिट जाए पर वह वरदान नहीं माँग सकता। अपनी सुखद यादों के लिए, अपनी कमी को पूर्ण करने के लिए, अपने हुदय की पीड़ा को दूर करने के लिए तथा संताप या अभिशाप की स्थिति में भी कवि वंरदान नहीं माँगना चाहता।

(ग) निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए :

प्रश्न 1.
संघर्ष पथ पर जो मिले, यह भी सही वह भी सही, वरदान माँगूँगा नहीं।
उत्तर :
कवि जीवन को महा संग्राम बतलाता है। यह जीवन यात्रा में आने वाली भयंकर स्थितियों से संघर्ष करना चाहता है। इस संघर्ष में हार या जीत होती है। पराजय एक पड़ाव के समान है। इस जीवन युद्ध में कवि तिल-तिल कर मिट जाने के बावजूद किसी से दया की भिक्षा स्वीकार नहीं कर सकता। अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए किसी की अनुकंपा नहीं चाहता। वह किसी से वरदान नहीं माँग सकता। वह किसी देवता या गुरुजन के सम्मुख इष्ट फल की प्राप्ति के लिए याचना नहीं कर सकता।

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प्रश्न 2.
कुछ भी करो कर्त्तव्य पथ से किन्तु भाँगूँगा नहीं।
उत्तर :
कवि किसी भी महान व्यक्ति से, देवता से अथवा धन-कुबेर या राजनेता से किसी भी प्रकार की इष्ट वस्तु नहीं चाहता। चाहे उसके ह्बदय को पीड़ा मिले, चाहे श्राप मिले या उस पर मिथ्यावाद लगे। उससे चाहे जैसा भी व्यवहार हो, पर वह किसी भी परिस्थिति में कर्त्तव्य मार्ग से दूर नहीं हटेगा। कवि अपने जीवन को संघर्ष से ही सफल बनाना चाहता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
प्रस्तुत कविता के द्वारा कवि ने हमें क्या प्रेरणा दी है?
उत्तर :
प्रस्तुत कविता के द्वारा कवि ने हमें अपने जीवन को सफल बनाने के लिए संघर्ष और कर्त्तव्य परायण बनने की प्रेरणा दी है। देश के लोगों को बतलाया है कि जीवन में पराजय एक विराम की तरह है। समग्र जीवन ही एक महासंग्राम है। इसलिए हर मुसीबत के बावजूद उन्हें भिक्षा याचना नहीं करनी चाहिए। किसी से इष्ट बस्तु भी माँगना नहीं

चाहिए। अपनी अतीत की यादों को सुखद बनाने के लिए, अपने जीवन की कमियों को पूरा करने के लिए भी वरदान नहीं माँगना चाहिए। संसार में संपत्ति प्राप्त करने के लिए याचना करना स्वाभिमान के खिलाफ है। जीवन एक संग्राम है। इसमें चाहे जय मिले या पराजय, पर व्यक्ति को विन्दुमात्र भी भयभीत या निराश नहीं होना चाहिए। हार-जीत तो होती ही रहती हैं। संघर्ष के पथ पर सदा अग्रसर होते रहना हीं सच्चा कर्त्रव्य है। जय या पराजय दोनों को सही समझ कर स्वीकार करना चाहिए। ऐसे समय में भी किसी के सामने हाथ फैलाना उचित नहीं है।

जो भी व्यक्ति अपने को सब प्रकार से संपन्न तथा महान समझता है, समझता रहे, उसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। अगर हमें छोटा समझता है तो उसकी भी परवाह नहीं करनी चाहिए। व्यक्ति को अपने मन की पीड़ा को अपने मन में ही रखना चाहिए। व्यर्थ में उस पीड़ा को नहीं त्यागना चाहिए। अन्तर्वेदना को दूर करने के लिए किसी से भी वरदान माँगना उचित नहीं।

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हर स्थिति में कर्त्तव्य मार्ग पर दृढ़ बने रहना चाहिए। हृदय को चाहे कितनी भी पौड़ा मिले, चाहे हमें अभिशाप ही मिले, पर कभी भी सत्कर्त्तव्य पथ से भागना नहीं चाहिए।

भाषा-बोध

(क) विलोम शब्द

  • हार – जीत
  • जीवन-मृत्यु
  • स्मृति – विस्मृति
  • लघुता – गुरुता
  • वरदान – अभिशाप

(घ) उपसर्ग अलग कीजिए –

  • वरदान — वर + दान
  • अभिशाप — अभि + शाप
  • विराम — वि + राम
  • प्रहर — प्र + हर
  • सुखद — सु+खद
  • संग्राम — सम् + ग्राम
  • व्यर्थ — वि + अर्थ

(ग) पाठ से ता, ना और ओ प्रत्ययों से बने शब्दों को चुनकर लिखिए।
ता = लघुता, ओ – प्रहरों, खंडहरों। ना = वेदना

(घ) वाक्य प्रयोग – अभिशाप – प्रदूषण आज अभिशाप बन गया है।
कर्त्तव्य – सभी को अपने कर्त्तव्य का पालन करना चाहिए।
महासंग्राम – जीवन एक महासंग्राम है।
खण्डहर – सेतु के खण्डहर दिखलाई पड़ते हैं।
संघर्ष – संघर्ष से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।

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WBBSE Class 7 Hindi वरदान माँगूँगा नहीं Summary

जीवन्रिचिय

डॉ० शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जन्म उत्तरप्रदेश के उन्नाव जनपद के झगरपुर नामक ग्राम में सन् 1916 ई० में हुआ। सुमन ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम०ए० और डी० लिट० की उपाधियाँ प्राप्त की। इनकी रचनाओं में प्रगतिवादी विचारों के साथ प्रेम और शृंगार का भी चित्रण हुआ है। इन्होंने अपनी रचनाओं में शोषित मानव की पीड़ा, सामाजिक विषमता, वर्ग संघर्ष का भी चित्रण किया है।

इनकी रचनाएँ सहज, सरल तथा प्रभावोत्पादक हैं। इनकी रचनाएँ हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय सृजन पर आँखें नहीं भरी, विं्न हिमालय, विश्वास बढ़ता ही गया तथा मिट्टी की बारात आदि हैं। ‘मिट्टी की बारात’ पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है।

पद – 1

यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिट्यूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं,
वरदान माँगूँगा नहीं।

शब्दार्थ :

  • तिल-तिल मिटना – कण-कण खत्म हो जाना।
  • हार – पराजय, असफलता।
  • वरदान – देवता अथवा गुरुजन की प्रसन्नता के फलस्वरूप प्राप्त फल, इष्ट वस्तु की फल प्राप्ति।
  • विराम – पड़ाव, ठहराव, विश्राम।
  • महासंग्राम – जीवन यात्रा में आनेवाली कठिनाइयों से लड़ना, जीवन संग्राम।
  • संदर्भ – प्रस्तुत अंश ‘वरदान माँगूँगा नहीं’ कविता से उद्धृत है। इस कविता के लेखक डॉ० शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ हैं।
  • प्रसंग – कवि इन पंक्तियों में अपनी अभिलाषा व्यक्त की है कि वह किसी भी स्थिति में वरदान नहीं माँगेगा।

व्याख्या – कवि जीवन को महा संग्राम बतलाता है। यह जीवन यात्रा में आने वाली भयंकर स्थितियों से संघर्ष करना चाहता है। इस संघर्ष में हार या जीत होती है। पराजय एक पड़ाव के समान है। इस जीवन युद्ध में कवि तिल-तिल कर मिट जाने के बावजूद किसी से दया की भिक्षा स्वीकार नहीं कर सकता। अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए किसी की अनुकंपा नहीं चाहता। वह किसी से वरदान नहीं माँग सकता। वह किसी देवता या गुरुजन के सम्मुख इष्ट फल की प्राप्ति के लिए याचना नहीं कर सकता।

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पद – 2

स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की सम्पत्ति चाहूँगा नहीं,
वरदान माँगूँगा नहीं।

शब्दार्थ :

  • खंडहर – भग्नावशेष, दूटा फूटा घर
  • सुखद – सुख देने वाली
  • प्रहर – समय संपत्ति – वैभव
  • स्मृति – याद
  • जान लो – समझ लो

व्याख्या – कवि कह रहा है कि वह अपने जीवन में सुख की अनुभूति कराने वाली स्मृतियों के लिए तथा टूटे-फूटे को सजाने या अपनी अधूरी, बिखरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कभी किसी भी देवता या महान लोगों से वरदान की याचना नहीं कर सकता। सब को अपने विचारों से समझा देना चाहता है कि वह अपने जीवन में समस्त संसार के ऐश्वर्य एवं वैभव की कामना नहीं करता है। उसे जीवन में सुख, अधूरी इच्छा की पूर्ति तथा धन संपत्ति की कामना नहीं है।

पद – 3

क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही,
वरदान माँगूँगा नहीं।

शब्दार्थ :

  • किंचित- कुछ, थोड़ा
  • भयभीत – डर
  • संघर्ष – विरोध, टकराव
  • सही – सच।

व्याख्या – कवि ने स्पष्ट किया है कि जीवन यात्रा में चाहे विजय मिले या पराजय, मैं किसी भी परिस्थिति में तनिक भी भयभीत नहीं हो सकता। जीवन में विरोधी स्थिति भी आती है, टकराव भी होते हैं, पर मैं सभी को सच माऩकर स्वीकार करूँगा। किसी के सामने याचना नहीं करूँगा।

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पद – 4

लघुता न अब मेरी छुओ
तुम ही महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं,
वरदान माँगूँगा नहीं।

शब्दार्थ :

  • छुआ – स्पर्श करना
  • लघुता – तुच्छता, छोटापन, हल्कापन
  • त्यागूँगा – छोडूँगा
  • वेदना – पीड़ा

व्याख्या – प्रस्तुत अंश में कवि का कथन है कि वह अपनी स्थिति को यथावत् बनाए रखना चाहता है। इसलिए वह कहता है कि मेरी तुच्छता का मेरे हल्केपन को स्पर्श भी मत कीजिए। अपनी महानता को लेकर अहंकारी जीवन बिताते रहिए। अपने दिल के दर्द को मैं बेकार में नहीं छोड़ सकता। मेरी पीड़ा सदा मेरे मन में बनी रहेगी। पीड़ा को सहते हुए भी मैं किसी के सामने हाथ नहीं फैलाऊँगा। किसी से वरदान की याचना नहीं करूँगा।

पद – 5

चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्त्तव्य पथ से किन्तु मैं भागूँगा नहीं,
वरदान माँगूँगा नहीं।

शब्दार्थ :

  • ताप – कष्ट पीड़ा
  • कर्त्तव्य पथ – करने योग्य मार्ग या कार्य
  • अभिशाप – श्राप, झूठा दोष

व्याख्या – कवि किसी भी महान व्यक्ति से, देवता से अथवा धन-कुबेर या राजनेता से किसी भी प्रकार की इष्ट वस्तु नहीं चाहता। चाहे उसके ह्बदय को पीड़ा मिले, चाहे श्राप मिले या उस पर मिथ्यावाद लगे। उससे चाहे जैसा भी व्यवहार हो, पर वह किसी भी परिस्थिति में कर्त्तव्य मार्ग से दूर नहीं हटेगा। कवि अपने जीवन को संघर्ष से ही सफल बनाना चाहता है।

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