WBBSE Class 7 Hindi Solutions Poem 4 जागरण गीत

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WBBSE Class 7 Hindi Solutions Poem 4 Question Answer – जागरण गीत

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

सही विकल्प चुनकर उत्तर दीजिए :

प्रश्न 1.
‘जागरण गीत’ कविता के कवि हैं :
(क) माखन लाल चतुर्वेदी
(ख) माहेश्वरी प्रसाद द्विवेदी
(ग) सोहनलाल द्विवेदी
(घ) हरिकृष्ण प्रेमी
उत्तर :
(ग) सोहनलाल द्विवेदी

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प्रश्न 2.
कवि इस कविता के द्वारा कैसे लोगों को जगाने की बात कर रहा है ।
(क) वास्तविक जीने वाले को
(ख) कल्पनात्मक जीवन जीने वालों को
(ग) कर्मशील जीवन वाले को
(घ) निराश जीवन वाले को
उत्तर :
(ख) कल्पनात्मक जीवन जीने वाले को।

प्रश्न 3.
‘जागरण गीत’ कविता का कवि लोगों को कहाँ नहीं जाने देगा ?
(क) उदयाचल
(ख) अस्ताचल
(ग) विंध्याचल
(घ) अरूणांचल
उत्तर :
(ख) अस्ताचल

प्रश्न 4.
कवि इस कविता द्वारा कैसे लोगों को जगाने की बात कर रहा है ?
(क) वास्तविक जीवन वाले
(ख) कल्पनात्मक जीवन वाले
(ग) कर्मशील जीवन वाले
(घ) निराश जीवन वाले
उत्तर :
(ख) कल्पनात्मक जीवन वाले

प्रश्न 5.
कवि ने किसको तोड़ने की बात की है ?
(क) श्रृंखलाएँ संकीर्णताएँ
(ख) संबंध
(ग) आवरण
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(क) श्रृंखलाएँ संकीर्णताएँ

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प्रश्न 6.
‘सिंधु’ शब्द का शाष्दिक अर्थ क्या है ?
(क) सागर
(ख) नदी
(ग) लहर
(घ) झरना
उत्तर :
(क) सागर

प्रश्न 7.
कवि शूल को क्या बनाने आ रहे हैं ?
(क) फूल
(ख) धूल
(ग) भूल
(घ) मूल
उत्तर :
(क) फूल

प्रश्न 8.
कविता में शूल तथा फूल किसका प्रतीक हैं ?
(क) दुख:सुख
(ख) हँसी-खुशी
(ग) न्याय-अन्याय
(घ) चल-अचल
उत्तर :
(क) दुख:सुख

प्रश्न 9.
‘शूल’ शब्द का अर्थ क्या है ?
(क) नदी
(ख) कवि
(ग) काँटा
(घ) फूल
उत्तर :
(ग) कॉटा

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प्रश्न 10.
कवि के अनुसार किसके उठने से धरती और आकाश का सिर उठेगा ?
(क) जीवन
(ख) लोगों
(ग) कल्पना
(घ) धीरज
उत्तर :
(ख) लोगों

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘उदयाचल’ और ‘अस्ताचल’ शब्दों का क्या अर्थ है?
उत्तर :
उदयाचल का अर्थ है- पूर्व दिशा में स्थित वह काल्पनिक पर्वत जहाँ से सूर्य उदित होता है। यह जीवन में प्रगति का प्रतीक है। अस्ताचल का अर्थ है- पश्चिम का वह कल्पित पर्वत जिसके पीछे सूर्य का अस्त होना माना जाता है।

प्रश्न 2.
‘विपथ’ होने का आशय क्या है?
उत्तर :
यह उनके लिए कहा गया है जो अज्ञान और अकर्मण्यता के कारण सच्चे रास्ते को छोड़कर पथभ्रष्ट बन जाते हैं। अपने लक्ष्य पथ से भटक जाते हैं।

प्रश्न 3.
‘कल्पना में उड़ने’ से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
कल्पना में उड़ने से तात्पर्य है- कल्पना के हवाई महल बनाना, मन में ऊँची-ऊँची कल्पनाएँ करना, मन में करोड़ों की संपत्ति जोड़ना। ऐसे लोग कर्मठ बनकर कार्य सिद्ध करने की चेष्टा नहीं करते। केवल बड़ी-बड़ी बातें किया करते रहते हैं।

प्रश्न 4.
मँझधार में कवि किसको और कैसे पार लगाएगा?
उत्तर :
जो लोग मँझधार को देखकर घबड़ा जाते हैं उन्हें कवि पार लगाना चाहता है। उन्हें कवि सहारा दे रहा है कि पतवार लेकर घबड़ाएँ नहीं। कवि उन्हें तट पर थकने नहीं देगा, उन्हें पार लगाने की चेष्टा करेगा।

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प्रश्न 5.
सोहनलाल द्विवेदी के जन्म का समय लिखें।
उत्तर :
सोहनलाल द्विवेदी का जन्म सन् 1905, में हुआ था।

बोधमूलक प्रश्नोत्तर

(क) प्रस्तुत कविता में कवि किसे जगा रहा है तथा उन्हें क्या हिदायतें दे रहा है ?
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में कवि उन लोगों को जगा रहा है जो वास्तविक स्थितियों से मुंह मोड़कर कल्पनाओं की दुनिया में जीते हैं। कवि उन्हें हिदायत दे रहा है कि अब कल्पना करना छोड़कर वास्तविक जीवन जीने का प्रयास करें। अपने को पतन की ओर नहीं, प्रगति की ओर ले जाएँ। प्रयत्ल करने से वे पीछे न हटें। आकाश छोड़कर धरती पर अपनी निगाह रखें। कर्मठ, कर्त्तव्य परायण बनें। अज्ञान की नींद छोड़कर सजग सावधान बनें।

(ख) मानव मन की किन संकीर्णताओं का वर्णन पाठ में हुआ है? उनका वर्णन करें।
उत्तर :
कवि ने मानव मन की अनेक संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है। आज लोगों के मन में जाति, धर्म, संप्रदाय, अमीर, गरीब को लेकर संकीर्णताएँ बनी हुई हैं। लोगों में हीन ग्रंथि बनी हुई है। उनके मन को नाना प्रकार के सामाजिक बंधन, रूढ़ियाँ, अंध विश्वास जकड़ रखे हैं। जब तक मन में साहस शक्ति का संचार नहीं होगा, आत्मबल नहीं बढ़ेगा, तब तक वह प्रगति मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकता।

(ग) कवि लोगों को क्या करने और क्या न करने का संदेश दे रहा है?
उत्तर :
कवि लोगों को यह संदेश दे रहा है कि वे सजग, सावधान होकर कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ें। कल्यना लोक में विचरना बंद कर वास्तविक जगत् में रहे। मन में कवेल ऊँची-ऊँची कल्पनाएँ न करें। वास्तविक जीवन के बारे में सोचें। धरती के प्राणी बनें। कठिन कार्य के निर्वाह में सच्चा सुख मिलता है। प्रतिकूल स्थिति तथा रास्ते की कठिनाइयों को देखकर वे विचलित न हों। मन की संकीर्ण रूऩियों के बंधन को तोड़कर उदारवादी तथा मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाएँ।

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(घ) निम्न पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 1.
प्रगति के पथ पर बढ़ाने आ रहा हूँ।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति में कवि कह रहा है कि वह लोगों को प्रगति की ओर ले जाने के लिए प्रस्तुत है। कवि लोगों के मन में शक्ति, साहस का संचार कर रहा है और मेरित कर रहा है कि वे आलस्य, अकर्मण्यता छोड़कर कर्त्तव्य परायण बने, कल्पना करना छोड़कर वास्तविक धरातल पर जोएँ। पथभष्टन बनें, सच्चे रास्ते का परित्याग न करें, मन में कभी हीन भावना न लाएँ, अपने को कमजोर न समझें । तभी निश्चित् रूप से वे जीवन में उन्नति करेंगे और प्रगति की और बढ़ेंगे।

(ङ) शूल तुम जिसको समझते थे अभी तक
फूल मैं उसको बनाने आ रहा हूँ।
उत्तर :
कवि लोगों को आश्वस्त कर रहा है कि वे जिसे काँटा समझ रहे हैं उसे वे फूल बनाने के लिए प्रस्तुत हैं। वे लोगों के दु:ख को दूर कर उसे सुख के रूप में बदलना चाहते है। इसलिए कवि ने स्सष्ट किया है कि बड़ी-बड़ी कल्पनाएँ करना ही सुख नहीं है। इस झूठे सुख में नहीं पड़ना चाहिए। साहस के साथ कठिन से कठिन कर्त्त्य का निर्वांह करना ही सच्चा सुख है। सच्चा सुख उत्तरदायित्व के निर्वाह में ही मिलता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न : प्रस्तुत कविता के द्वारा कवि ने हमें क्या प्रेरणा दी है?
उत्तर :
प्रस्तुत कविता के द्वारा कवि ने भारतवासियों को सजग, कर्मशील बनने की प्रेरणा दी है। अब इस बात की जरूरत है कि हमारे देशवासी आलस्य, निद्रा, अकर्मण्यता को छोड़कर कर्मठ बने, कवि उन्हें जगाने का प्रयल कर रहा है। अब वे पीछे न जाकर आगे बढ़े, सूर्योंय की भॉंति दीप्यमान बनकर चतुर्दिक रोशनी फैलाएँ।

कल्पना के महल बनाना छोड़ कर वास्तविक संसार में विचरण करें। आज तक वे कर्महीन एवं निश्चेष्ट रहकर प्रयत्न और परिश्रम से मुँह मोड़ते रहे। पर अब वे आकाश में उड़ने की कल्पना त्याग कर वास्तविक जीवन में रहें, धरती पर रहकर घरती के वास्तविक जीवन की बात करें। बड़े-बड़े सपने बनाना, बड़ी-बड़ी कल्पनाएँ करना कभी सुखद नहीं हो सकती, कल्पना के मोदक से कभी तन-मुन को संतुष्टि नहीं हो सकती।

उत्तरदायित्व का निर्वाह करने में, गुरुतर भार वहन करने से कभी दुःख नहीं होता, इससे तो मन और आत्मा को संतुष्टि मिलती है। जिसे लोग अभी तक काँटा अर्थात्दुःख समझते रहे, कवि उस कांटे को फूल बनाकर उनके मार्ग को प्रशस्त करना चाहता है। यदि मनुष्य प्रयत्न और परिश्रम का सदुपयोग करे तो निश्चय ही शूल को फूल अर्थात् पीड़ा को आंनद में बदल सकता है। व्यक्ति में इतना साहस और हिम्मत हो जिससे वह भयंकर लहरों वाली धारा को देखकर विचलित न हो, घबड़ाए नहीं।

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वीर पुरुष सामने की कठिनाई को देखकर घबड़ाता नहीं, पतवार लेकर घबड़ाए नहीं, बल्कि तेज धारा की ओर पतवार घुमाकर आगे बढ़े। कवि चाहता है कि वह तट पर थके नहीं, बल्कि पार उतरने के लिए तत्पर होकर सफल हो। आज इस बात की आवश्यकता है कि व्यक्ति सारे बंधनों को तोड़ कर मन में युगों से मौजूद क्षुद्रता व तुच्छ भावना का परित्याग कर उदारता दिखलाए। सभी के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाए, उसे आज बूँद नहीं समुद्र बनने की जरूरत है।

अतः व्यक्ति हीन प्रवृत्ति को छोड़कर तेजस्वी बने। मन, कर्म और वचन से दिव्य कर्मों का अनुष्ठान करे। व्यक्ति के आगे बढ़ने, उन्नति के शिखर पर पहुँचने पर सारी पृथ्वी सारा आकाश उठकर उसका स्वागत करेगा। उसके गतिशील होने पर नवीन गति झनझ्षना उठेगी। कवि चाहता है कि व्यक्ति सन्मार्ग से कभी विचलित न हो। सही दिशा से कभी न भटके, व्यक्ति को प्रग्गति और विकास के चरम शिखर पर पहुंचना है। इस प्रकार कवि ने हमें साहसी, कर्त्तव्यपरायण, आशावादी, प्रगतिशील बनने की प्रेरणा दी है।

(क) वाक्य प्रयोग –

  • प्रगति – उत्थान- कर्मठ बनकर ही मनुष्य जीवन में प्रगति कर सकता है।
  • अरुण – लाल सूर्य – प्रभात होते ही बाल अरुण उदय हो जाता है।
  • शूल – काँटा (दु:ख) – मनुष्य प्रयत्न कर शूल को फूल बना सकता है।
  • शृंखला – बंधन – हमें सभी शृंखलाओं को तोड़ देना चाहिए।
  • पतवार – पार उतारने का साधन – हाथ में पतवार लेकर नाविक थकता नहीं।

(ख) विलोम शब्द –

  • आकाश – पाताल
  • कल्पना – यथार्थ
  • दु:ख-सुख
  • गुरु – लघु
  • फूल – शूल

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(ग) उपसर्ग लगे शब्द –

  • प्र – प्रगति
  • वि-विपथ
  • अ – अतल.
  • सम् – संकीर्णताएँ

पर्यायवाची शब्द –

  • नभ – आकाश, गगन, आसमान।
  • धरती – धरा, पृथ्वी, भू।
  • फूल – पुष्प, सुमन, कुसुम।
  • सिन्धु – सागर, समुद्र, रत्नाकर।

WBBSE Class 7 Hindi जागरण गीत Summary

जीवनल रिचय

सुकवि श्री सोहनलाल द्विवेदी का जन्म सन् 1905 ई० में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद में बिंदकी गाँव में एक सम्पन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मालवीय जी के संपर्क से इनके हदय में राष्ट्रीयता की भावना जागी। काव्य रचना के साथ-साथ इन्होंने स्वाधीनता आन्दोलन में भी भाग लिया। इनकी कविता में गाँधीवादी विचारधारा दिखाई पड़ती है।

सन् 1988 ई० में इनका देहावसान हो गया। इनकी प्रमुख रचनाएँ – भैरवी, पूजा गीत, सेवाग्राम, प्रभाती, जय भारत, जय, कुणाल, वासवदता, वासंती आदि हैं। इन्होंने बालोपयोगी कविताएँ भी लिखी हैं। इनकी भाषा सीधी-सादी, सरल तथा बोधगम्य है। इनके काव्य में राष्ट्रीय जागरण, भारत की गरिमा, संस्कृति, ग्राम सुधार, समान सुधार की भावना है।

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पद – 1

अब न गहरी नींद में तुम सो सकोगे,
गीत गाकर मैं जगाने आ रहा हूँ ।
अतल अस्ताचल तुम्हें जाने न दूँगा,
अरुण उदयाचल सजाने आ रहा हूँ ।

शब्दार्थ :

  • अतल – अथाह, बहुत गहरा
  • अरुण – लाल

उदयाचल – पूर्व दिशा में स्थित वह पर्वत जहाँ से सूर्य उदित होता है।
आस्ताचल – पश्चिम का कल्पित पर्वत जिसके पीछे सूर्य का अस्त होना मानाजाता है, पश्चिमाचल पर्वत।

संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘जागरण गीत’ कविता से उद्धृत हैं। इसके कवि श्री सोहनलाल द्विवेदी हैं।

प्रसंग – इस कविता में कवि ने लोगों को जगाने का प्रयास किया है। कवि लोगों में साहस, कर्म तथा आशावादी भावना का विकास करना चाहता है।

व्याख्या – कवि भारतवासियों को संबोधित करते हुए उन्हें प्रेरणा दे रहा है कि अब वे आलस्य तथा अकर्मण्यता की नींद को त्याग कर कर्मशील बनें। कवि उन्हें जगा कर कर्त्तव्य मार्ग पर लाना चाहता है। अब उन्हें अतल में अस्ताचल की ओर नहीं जाने देगा। वह तो अब जहाँ से बाल रवि उदित होते हैं उसे सजाने के लिए प्रस्तुत है।

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पद – 2

कल्पना में आज तक उड़ते रहे तुम,
साधना से सिहरकर मुड़ते रहे तुम ।
अब तुम्हें आकाश में उड़ने न दूँगा,
आज धरती पर बसाने आ रहा हूँ।

शब्दार्थ :

  • कल्पना – भावना, अनुमान
  • साधना – किसी कार्य को सिद्ध करना
  • धरती-पृथ्वी
  • सिहर कर – डरकर

व्याख्या – कवि लोगों को कर्त्तव्यशील तथा प्रबुद्ध बनने के लिए कह रहा है। आज तक तो लोग कल्पना की दुनिया में हवाई महल बनाते रहे, सदा भावनाओं में बहते रहे। कार्य तथा साधना से डर कर पीछे हटते रहे, पर अब कवि उन्हें कोरी कल्पना नहीं करने देगा। उन्हें आकाश में उड़ने नहीं देगा। उन्हें पृथ्वी पर बसाने के लिए वह प्रयत्नशील है। अर्थात् कल्पना से हटाकर वास्तविकता की दुनिया में लाने की चेष्टा कर रहा है।

पद – 3

सुख नहीं यह, नींद में सपने सँजोना,
दुख नहीं यह, शीश पर गुरु भार ढोना ।
शूल तुम जिसको समझते थे अभी तक,
फूल में उसको बनाने आ रहा हूँ ।

शब्दार्थ :

  • शूल – काँटा, कविता में शूल दु:ख का तथा फूल सुख का प्रतीत है।
  • सपने सजाना – बड़ी-बड़ी कल्पना करना।
  • गुरु भार – बड़ा उत्तरदायित्व्व।
  • शीश – मस्तक

व्याख्या – कवि लोगों को सावधान कर रहा है कि बड़ी-बड़ी कल्पनाएँ करने से सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती। बड़े कर्त्तव्य का पालन करने, उत्तरदायित्व का निर्वाह करने से दु;ख नहीं होता। जिसे तुम अभी तक काँटा अर्थात् दु:ख समझते रहे, उसे मैं फूल अर्थात् सुख बनाने के लिए प्रयत्नशील हूँ।

पद – 4

देखकर मँझधार को घबरा न जाना,
हाथ ले पतवार को घबरा न जाना।
मैं किनारे पर तुम्हें थकने न दूँगा,
पार मैं तुमको लगाने आ रहा हूँ ।

शब्दार्थ :

  • मंझधार – नदी के बीच की धारा,
  • किनारे – तद
  • पतवार – पार उतारने का साधन।

व्याख्या – कवि लोगों को उत्साहित करने के लिए कह रहा है कि नदी के बीच की धारा को देखकर घबराना नहीं चाहिए। हाथ में पतवार लेकर धैर्य नहीं खोना चाहिए। कवि तट पर उन्हें थकने नहीं देगा। वह लोगों को पार लगाने के लिए प्रस्तुत है। तात्पर्य यह है कि जीवन पथ पर कठिनाइयों को देखकर व्यक्ति को कभी घबड़ाना नहीं चाहिए। कवि उन्हें साहस प्रदान कर सफल करना चाहता है।

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पद – 5

तोड़ दो मन में कसी सब श्रृंखलाएँ,
तोड़ दो मन में बसी संकीर्णताएँ।
बिन्दु बनकर मैं तुम्हें ढलने न दूँगा,
सिंधु बन तुमको उठाने आ रहा हूँ।

शब्दार्थ :

  • श्रृंखलाएँ- बंधन, जंजीर, कड़ियाँ।
  • संकीर्णता- क्रुद्रता, ओछापन, तंगदिली।

व्याख्या : कवि लोगों को उदार महान बनने की प्रेरणा दे रहा है। लोगों के मन में जकड़ी हुई जाति पाँति ऊँच-नीच छुआधूत, धर्म-संप्रदाय आदि की रूढ़ियों अंधविशासों के बंधन तथा क्नुद्रता, ओछापन को तोड़कर सागर की भाँति विशाल बनने की प्रेरणा दी है। कवि कह रहे हैं कि मैं तुम्हें बूँद की क्षुद्र-सीमित दायरे में नहीं रहने दूँगा, बल्कि सागर के विशाल कलेवर के समान विशाल एवं उदार बनाने के लिए तत्पर हूँ।

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