WBBSE Class 7 Hindi Solutions Poem 1 मीरा के पद

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WBBSE Class 7 Hindi Solutions Poem 1 Question Answer – मीरा के पद

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गिरधर का अर्थ है-
(क) गिर कर उठना
(ख) गिरगिट
(ग) कृष्ण
(घ) गिरि को धारण करनेवाला
उत्तर :
(ग) कृष्ण

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प्रश्न 2.
कृष्ण ने किसकी लाज बचाई?
(क) मीरा की
(ख) द्रौपदी की
(ग) धुव की
(घ) प्रहाद की
उत्तर :
(ख) द्रौपदी की

प्रश्न 3.
राजा हरिश्चन्द्र किसके यहाँ काम किए?
(क) माली के यहाँ
(ख) कुम्हार के यहाँ
(ग) डोम के यहाँ
(घ) बाह्यण के यहाँ
उत्तर :
(ग) डोम के यहाँ

प्रश्न 4.
इन्द्रासन पाने के चक्कर में पाताल कौन गया?
(क) रावण
(ख) मेघनाद
(ग) बलि
(घ) कुम्भकर्ण
उत्तर :
(ग) बलि

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प्रश्न 5.
मीरा किस काल की रचनाकार हैं ?
(क) आदिकाल
(ख) भक्तिकाल
(ग) रीतिकाल
(घ) आधुनिककाल
उत्तर :
(ख) भक्तिकाल

प्रश्न 6.
मीरा के पिता का क्या नाम था ?
(क) जोधराज
(ख) रत्नसिंह
(ग) राणा सांगा
(घ) भोजराज
उत्तर :
(ख) रलसिंह

प्रश्न 7.
मीरा की मृत्यु कब हुई ?
(क) 1246 ई०
(ख) 1346 ई०
(ग) 1446 ई。
(घ) 1546 ई०
उत्तर :
(घ) 1546 ई०

प्रश्न 8.
मीरा की भाषा क्या है ?
(क) खड़ी बोली
(ख) अवधी
(ग) राजस्थानी मिश्रित ब्रज
(घ) मैथिली
उत्तर :
(ग) राजस्थानी मिश्रित ब्रज

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प्रश्न 9.
कृष्णा की सूरत कैसी है ?
(क) मोहनी
(ख) साँवरी
(ग) गोरा
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ख) साँवरी

प्रश्न 10.
डूबते गजराज की रक्षा किसने की ?
(क) राम
(ख) रावण
(ग) कृष्ण
(घ) कंस
उत्तर :
(ग) कृष्ण

प्रश्न 11.
हाड़ का क्या अर्थ है ?
(क) माँस
(ख) रक्त
(ग) हड्डी
(घ) धमनी
उत्तर :
(ग) हड्डी

प्रश्न 12.
सतबादी (सत्यवादी) किनको कहा जाता है ?
(क) हरिश्चंद्र
(ख) ईश्वरचंद्र
(ग) केशवचंद्र
(घ) प्रेमचंद
उत्तर :
(क) हरिश्चंद्र

प्रश्न 13.
माता यशोदा किस बेला में कन्हैया को जगा रही है ?
(क) दोपहर बेला
(ख) प्रभात बेला
(ग) संध्या बेला
(घ) रागी बेला
उत्तर :
(ख) प्रभात बेला

प्रश्न 14.
इस संसार में हर व्यक्ति को किसका परिणाम भोगना पड़ता है ?
(क) कर्म का
(ख) पुन्य का
(ग) गति का
(घ) विष का
उत्तर :
(क) कर्म का

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प्रश्न 15.
किसने विष को अमृत बना दिया ?
(क) यशोदा ने
(ख) मीरा ने
(ग) प्रभु ने
(घ) राजा ने
उत्तर :
(ग) प्रभु ने

प्रश्न 16.
कौन स्वर्ग नहीं पहुँचे ?
(क) बलि
(ख) हरिश्चन्द्र
(ग) अधम
(घ) राणा जी
उत्तर :
(क) बलि

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मीरा किसकी भक्तन थी?
उत्तर :
मीरा भगवान श्रीकृष्ण की भक्तन थी।

प्रश्न 2.
द्रौपदी की लाज किसने और कैसे बचाई?
उत्तर :
द्रौपदी की लाज प्रभु कृष्ण ने उसकी चीर (साड़ी) बढ़ाकर बचाई।

प्रश्न 3.
कृष्ण के होठों पर क्या सुशोभित हो रहा है?
उत्तर :
कृष्ण के होठो पर बाँसुरी (मुरली) सुशोभित हो रही है।

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प्रश्न 4.
गडवन के रखवारे किसे और क्यों कहा गया है?
उत्तर :
गउवन के रखवारे कृष्णाजी को कहा गया है क्योंकि वे गायों के रक्षक गोपाल थे।

प्रश्न 5.
विष से अमृत का क्या अर्थ है?
उत्तर :
राणा ने मीरा को मारने के लिए विष का प्याला भेजा था, पर प्रभु की कृपा से विष अमृत बन गया है। मीरा पर विष का कोई प्रभाव न पड़ा।

प्रश्न 6.
मीरा का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
मीरा का जन्म 1504 ई० में जोधपुर (राजस्थान) में हुआ था।

प्रश्न 7.
द्रोपदी की लाज किसने और कैसे बचाई ?
उत्तर :
द्रोपदी की लाज कृष्ण ने उसका वस्त्र (चीर) बढ़ाकर बचाई।

प्रश्न 8.
पाण्डव कितने थे ? उनके नाम लिखें।
उत्तर :
पाण्डब पाँच थे – युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, और सहदेव।

प्रश्न 9.
भगवान भक्त प्रहलाद को बचाने के लिए कौन-सा रूप थारण किये थे ?
उत्तर :
भगवान भक्त प्रहलाद को बचाने के लिए नरसिंह रूप धारण किये थे।

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प्रश्न 10.
प्रभु ने हाथी की रक्षा किससे की थी ?
उत्तर :
प्रभु ने हाथी को मगरमच्छ के मुँह से बचाया था।

बोधमूलक प्रश्नोत्तर

(क) मीरा के नेत्रों में कृष्ण का कौन-सा रूप बस चुका है?
उत्तर :
जिसकी मूर्ति मन को मुग्ध कर लेती है, जिसका रूप साँवला सलोना है, आँखें विशालहैं, मस्तक पर मोर मुकुट, कानों में मकर के आकार के कुंडल, मस्तक पर लाल टीका, अधरों पर मुरली, वक्षस्थल पर वैजंती माला, कमर की करधनी में घुँचरू, पैरों में नूपुर शोभाय- मान हो रहे हैं। कृष्णा का यही रूप मीरा के नेत्रों में बस चुका है।

(ख) कृष्ण ने अपने किन-किन भक्तों की कैसे रक्षा की?
उत्तर :
श्री कृष्ण ने द्रौपदी के लाज की रक्षा उसका चीर (साड़ी) बढ़ाकर, भक्त प्रह्षाद की रक्षा नृसिंह का रूप धारण कर हिरण्यकश्यप को मारकर, जल में डूबते हुए गजराज की रक्षा उसे जल से बाहर निकाल कर की ।

(ग) गोकुल के प्रभात का वर्णन कीजए।
उत्तर :
गोकुल में प्रभात (सुबह) हो जाने पर हर घर के दरवाजे खुल गए। सभी लोग जाग गए। गोपियाँ दधि (दही) मथने लर्गी। उनके कंगन की ध्वनि सुनाई पड़ने लगी। कृष्ण के दरवाजे पर देवता, मनुष्य सभी खड़े हो गए। गोप बालक जय-जयकार करने लगे।

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(घ) ‘करम गति टारे नाहिं टरे’ के सन्दर्भ में मीरा ने किन-किन उदाहरणों को प्रस्तुत किया है?
उत्तर :
इस सन्दर्भ में मीरा ने उदाहरण दिया है कि सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र को वाराणसी में डोम के यहाँ काम करना पड़ा। पाण्डवों, कुन्ती तथा द्रौपदी को हिमालय के बर्फ में गल जाना पड़ा। बलि ने स्वर्ग के लिए यज्ञ किया पर उसे पाताल जाना पड़ा। अत: कर्म की गति अटल है।

(ङ) निम्नलिखित पंक्तियों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए।

(अ) ‘उठो लाल जो भोर भयी है, सुरनर ठाढ़े द्वारे।
ग्वाल बाल सब करत कोलाहल जय जय सबद उचारे।’
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियों में माता यशोदा सबेरा हो जाने पर प्यारे कन्हैया को जगाते हुए कहती है-हे लाल, प्रभात वेला हो गई है, इसलिए अब जाग जाओ। देवता और मनुष्य दरवाजे पर तुम्हारे दर्शन और तुम्हारी वंदना करने के लिए खड़े हैं।
सबेरा हो जाने पर सभी गोप बालक जयकार शब्द का उच्चारण करते हुए कोलाहल कर रहे हैं। सभी तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं।

(ब) ‘यज्ञ किया बलि लेन इन्द्रासन, से पाताल धरे।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, विष से अमृत करे।’
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियों में मीरा ने स्यष्टिया है कि भाग्य प्रबल होता है। संसार में हर व्यक्ति को कर्म का परिणाम भोगना पड़ता है। राजा बलि ने इन्द्र का साम्राज्य स्वर्ग प्राप्त करने के लिए महान यज्ञ किया पर कर्म की गति के अनुसार पाताल लोक में जाना पड़ा। कहावत है कि बलि चाहा आकाश (स्वर्ग) को भेज दिया पात्राल। गिरि को धारण करने वाले भगवान कृष्ण मीरा के एकमात्र स्वामी हैं। उन्होंने कृपा कर विष को भी अमृत बना दिया। राणा ने मीरा को मारने के लिए प्याले में विष भेजा, पर प्रभु ने विष को अमृत बना कर मीरा की रक्षा की।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पठित पदों के आधार पर मीरा की भक्ति भावना का परिचय दीजिए।
उत्तर :
मीरा कृष्ण भक्ति में पूर्णतया आसक्त थी। उनके काव्य में कृष्ण भक्ति का बड़ा ही सरस तथा मधुर रूप मिलता है। मीरा अपने इष्टदेव कृष्ण की प्रेमिका थीं। मीरा के लिए उनके आराध्य कृष्ण ही सर्वस्व थे। प्रिय के लिए ही मीरा ने सभी-सगे संबंधियों तथा कुल-मर्यादा के बंधनों को त्याग दिया।

मीरा अपने नेत्रों में अपने प्रिय कृष्ण की मूर्ति को बसाना चाहती थीं। वे नंदलला के उसी रूप को आँखों में बसाना चाहती थी जिनका साँवला सलोना रूप अत्यंत मोहक है, जिनके नेत्र विशाल हैं। जिनके माथे पर तिलक तथा सिर पर मयूर पंखों से निर्मित मुकुट शोभायमान है। अधरो पर मुरली, वक्ष पर बैजन्ती माला, कमर में करधनी तथा पैरों में नूपुर शोभायमान है। मीरा का स्पष्ट कथन है कि प्रभु कृष्णा सन्तों को सुख देने वाले तथा भक्तों के अत्यंत प्यारे हैं।

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मीरा अपने प्रिय के ऐसे मोहक रूप की उपासिका थीं। वंशीधारण करने वाले प्रिय कृष्ण सदा उनके इदय में बसते हैं। कृष्ण अत्यंत चतुर हैं। उन्होंने ब्रज वासियों की रक्षा के लिए गोवर्षन पर्वत को अपनी उँगली पर उठा लिया था। ऐसे प्रभु को संबोधित करते हुए मीरा निवेदन करती हैं कि हे प्रभु मैं आपके शरण में हूँ। अत: इस संसार सागर से मेरा उद्धार कर मुझे अपना लीजिए।

मीरा कर्म की गति को स्वीकार करती थी। इस संदर्भ में उन्होंने सत्यवादी हरिश्चन्र, पाण्डवों, द्रौपदी तथा बलि का उदाहरण दिया है। प्रभु की महिमा का वर्णन करते हुए बतलाया है कि प्रभु अपने भक्तो की रक्षा के लिए विष को भी अमृत बना देते हैं। तल्कालीन राणा जी ने मीरा की इहलीला समाप्त करने के लिए विष का प्याला भेजा। मीरा हैसते हुए प्रभु का स्मरण कर उसे पी गई। ईश्वर की कृपा से विष अमृत बन गया। उसे पीकर मीरा अमर हो गई। सासारिक बाधाओं, कष्टों को झेलते हुए भी मीरा अपनी दृढ़ निष्ठा के साथ अनन्य भक्ति-भावना पर अडिग बनी रहीं। मीरा का समग्र जीवन ही कृष्णमय बन गया था। मीरा के लिए कृष्ण भक्ति उनके जीवन का शाश्वत वरदान तथा अमूल्य संपत्ति है। मीरा की यह माधुर्य भाव की भक्ति सचमुच अनुपम थी।

प्रश्न 2.
भगवान ने अपने भक्तों की रक्षा किस प्रकार की ? मीरा उन भक्तों का हवाला क्यों देती हैं ? क्या मीरा का ऐसा करना आपकी दृष्टि से उचित है ? तर्क सहित उत्तर लिखिए।
उत्तर :
भगवान ने अपने भक्तों की रक्षा अनेक प्रकार से की। उन्होंने द्रौपदी की लाज बचाने के लिए उसे वस्त्र प्रदान किए। जब दुर्योधन और उसके साथियों द्वारा भरी सभा में द्रैपदी की साड़ी उतारी जा रही थी तो कृष्ण ने वहाँ उपस्थित होकर उसे वस्व प्रदान किए। उन्होंने प्रहलाद को बचाने के लिए हिरण्यकश्यप का नाश किया। इसके लिए उन्होंने नरसिंह का रूप धारण किया और उसका पेट फाड़ा डाला। इसी प्रकार उन्होंने डूबते हुए हाथी को अपना सहारा देकर मगरमच्छ के मुँह से बचा लिया।

मीरा इन भक्तो का हवाला इसलिए देती हैं ताकि वह ईश्वर के हुदय में अपने प्रति दया जगा सकें। एक भक्त का ऐसा करना बिल्कुल स्वाभाविक है। हर भक्त अपने आराध्य की कृपा चाहता है। वह अपने कष्टों की मुक्ति के लिए उससे अपेक्षा रखता है। एक भक्त अपने आराध्य से नहीं माँगेगा तो फिर वह किसी सांसरिक व्यक्ति से अपेक्षा रखेगा जिससे उसका सम्मान भी कम होगा। संसार की अपेक्षा भगवान से रखना अधिक अच्छा है।

प्रश्न 3.
मीराबाई ने हरि से स्वयं का कष्ट दूर करने की जो विनती की है, उसमें स्वयं का कृष्ण से कौनसा संबंध बताया है ? जिन भक्तों के उदाहरण दिए हैं उनमें से एक पर की गई कृष्ण-कृपा को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
मीराबाई ने स्वयं को कृष्ण की दासी बताया है। इस रूप में उसने कृष्ण से अपने कष्ट हरने की विनती की है। कृष्ण ने अपने भक्तों पर बहुत कृपा की थी। उनका एक भक्त प्रहलाद अपने पिता हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से बहुत दुखी था। हिरण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानता था और कृष्ण के बजाय अपनी भक्ति कराना चाहता था। प्रहलाद ने तब हरि को याद किया तो हरि ने प्रहलाद के दुखों का अंत करने के लिए नरासंह का रूप धारण करके उस दुष्ट का नाश किया था और प्रहलाद को अत्याचारों से मुक्त किया था।

प्रश्न 4.
कृष्ण का चीर बढ़ाना किस कथा की ओर संकेत करता है ?
उत्तर :
महाभारत की कथा में कौरवो ने दुर्योधन के संकेत पर पांडवों की वधू द्रौपदी को भरे दरबार में नग्न करने का बड्यंत्र किया था। तब कृष्ण ने द्रौपदी की लाज-रक्षा के लिए अपनी और से चीर अर्षित किया था।

प्रश्न 5.
अपने आराध्य श्रीकृष्ण के दर्शन पाने के लिए मीरा क्या-क्या उपाय करती हैं ?
उत्तर :
मीरा अपने आराध्य श्रीकृष्ण के दर्शन पाने के लिए अनेक उपाय करती हैं। वे उनकी चाकर बनकर उनके महल में रहना चाहती हैं। वे उनके लिए बाग लगाना चाहती हैं जिसमें वे आनंदपूर्वक विहार कर सकें। वे वृन्दावन की गलियों में जा जाकर उनकी आराधना के गीत गाना चाहती हैं ताकि वे उनके प्रति प्रेम प्रकट कर सकें और उनका ध्यान अपनी और खींच सकें। वे कृष्ण का स्नेह और सान्निध्य पाने के लिए कोई भी वेश धारण करने के लिए तैयार हैं।

व्याकरण एवं बोध

(क) शब्दों के शुद्ध रूप
सोभित – शोभित ।
सबद – शब्द ।
कारन – कारण ।
सरीर – शरीर ।
सतबादी – सत्यवादी ।
मूरति – मूर्ति

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(ख) पर्यायवाची शब्द
नन्दलाल – कृष्ण, श्याम, मोहन, गिरिधर।
नीर – जल, पानी, तोय, वारि।
सरीर – तन, काया, देह, बदन।
रजनी – रात, निशा, रात्रि, रैन, विभावरी।
विष-जहर, गरल, हलाहल, माहुर।

(ग) विलोम शब्द
अमृत-विष । पाताल – आकाश । भक्त – भगवान । साँवरी – गोरी । दधि – दूध । छुद्र-विशाल ।

(घ) अर्थ लिखकर वाक्य प्रयोग कीजिए –
गिरिधर-कृष्ण – भगवान कृष्ण को गिरिधर कहते हैं।
गजराज – श्रेष्ठ हाथी – भगवान ने जल में डूबते गजराज की रक्षा की।
पीर – पीड़ा – भगवान भक्तों की पीर हर लेते हैं।
माखन – मक्खन – बच्चों को माखन रोटी अच्छी लगती है।
इन्द्रासन – स्वर्ग का राज्य – बलि ने इन्द्रासन के लिए यज्ञ किया।

WBBSE Class 7 Hindi मीरा के पद Summary

जीवन वरचचय

कृष्ण प्रेम में दीवानी मीरा का जन्म सन् 1503 ई० में राजस्थान में मेड़ता के पास कुड़की नामक ग्राम में हुआ था। ये मेड़तिया के राठौर रत्नसिंह की पुत्री थी। इनका विवाह उदयपुर के राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ हुआ। विवाह के कुछ समय के बाद ही इनके पति का देहांत हो गया। मीरा बचपन से ही कृष्ण भक्ति में लीन रहती थी। इनकी कृष्णभक्ति दिन प्रति दिन बढ़ती गई। मीरा प्रायः मंदिरों में जाकर श्री कृष्ण की मूर्ति के सामने भक्तों और सन्तों के बीच आंंदमग्न होकर नाचती और भक्तिमय पदों को गाया करती थी।

इनके इस आचरण को राजकीय मर्यादा के प्रतिकूल समझकर तत्कालीन राणा ने विष देकर इनकी जीवन लीला समाप्त करने की चेष्टा की। पर भगवान की कृपा से विष का कोई प्रभाव न पड़ा। इनकी मृत्यु सन् 1546 ई० में द्वारका में हुई। मीरा अपने इष्टदेव भगवान कृष्ण को प्रियतम या पति के रूप में मानकर उनकी उपासना करती थी। मीरा का संपूर्ण काव्य कृष्ण प्रेम और भक्ति का काव्य है। इनकी भाषा राजस्थानी मिश्रित ब्रज भाषा है। भाषा अत्यंत मधुर, सरस तथा प्रभावपूर्ण हैं। मीरा रचित चार काव्य पुस्तकें प्राप्त हैं-नरसीजो मायरो, गीत-गोविन्द टीका, राग गोविन्द, राग सोरठा के पद। मीरा की माधुर्य भाव की भक्ति सचमुच साहित्य की अनुपम निधि है।

WBBSE Class 7 Hindi Solutions Poem 1 मीरा के पद

पद -1

बसौ मेरे नैनन में नंदलाल।
मोहिनी मूरति साँवरि सूरति, नैना बने विशाल।
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, अरुण तिलक दिए भाल।
अधर सुधारस, मुरली राजति, उर वैजंती माल।
छुद्र घंटिका कटि तट सोभित, नूपुर शब्द रसाल।
मीरा के प्रभु सन्तन सुखदाई, भगत बछल गोपाल।।

शब्दार्थ :

  • नैनन – आँखों
  • नंदलाल – नंद के कुमार कृष्ण
  • मोहिनी – मन मोह लेने वाली
  • सूरति – रूप, आकृति
  • विशाल – बड़े
  • मकराकृत – मकर के आकर का
  • अरुण – लाल
  • भाल – मस्तक
  • बछल (वत्सल) प्रेम से पूर्ण
  • अधर – ओठ
  • सुधारस – अमृतरस
  • राजाति – सुशोभित होती है।
  • उर – हृदय
  • छुद्र (क्षुंद्रे) – छोटा
  • कटि – कमर
  • नूपुर – घुँधरू, पायल
  • रसाल-मधुर
  • गोपाल – गौ पालक (श्री कृष्ण)

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य मेला’ के ‘मीरा के पद’ नामक पाठ से लिया गया है। इसकी रचयिता मीराबाई हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पद में कवयित्री मीरा ने अपने इष्टदेव भगवान कृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति भावना प्रकट की है। वे गोपाल कृष्ण की सुन्दर छवि (शोभा) को अपने नेत्रों में बसा लेना चाहती हैं।

व्याख्या – मीरा नंद के कुमार श्री कृष्ण को अपने नेत्रों में बसाना चाहती हैं। वे कहती हैं कि हे प्रभु, आप सदा हमारे नयनों में निवास कीजिए। मीरा कृष्ण का वह रूप अपने नेत्रों में बसाना चाहती हैं, जिनका रूप मन भावन है, जो साँवले, सलोने रूपवाले हैं, नेत्र विशाल हैं और जिनके मस्तक पर मयूर पंखों से बना मुकुट शोभायमान है।

WBBSE Class 7 Hindi Solutions Poem 1 मीरा के पद

मकर के आकार के कुंडल कानों में शोभित हैं। मस्तक पर लाल टीका है। उनके अधरों पर अमृत रस का पान करती मुरली सुशोभित होती हैं। वक्षस्थल पर वैजयन्ती की माला है। कमर में छोट-छोटे घुँघरू सुशोभित हैं। पैरों में नुपुर की ध्वनि बड़ी मधुर है। मीरा कहती हैं कि प्रभु कृष्ण सन्तों को आनंद प्रदान करनेवाले तथा अपने भक्तों के प्यारे हैं। मनभावन कन्हैया का यही भव्य रूप मीरा के नेत्रों में बस चुका है।

पद – 2

हरि तुम हरो जन की पीर।
द्रोपदी की लाज राख्यौ, तुम बढ़ायो चीर।
भक्त कारनरूप नर हरि, धर्यो आप शरीर।
हिरनकस्यप मारि लीन्हों, धर्यो नाहिन धीर।
डूबते गजराज राख्यौ, कियो बाहर नीर।
दासी मीरा लाल गिरधर, हरो मेरी पीर।।

शब्दार्थ :

  • हरो – दूर करना, हर लेना
  • पीर- कष्ट, पीड़ा
  • चीर – वस्त्र
  • जन – भक्त, सेवक
  • धर्यो – धारण किया
  • नरहरि – नृसिंह
  • नीर – पानी
  • राख्यों – रक्षा किया
  • गिरधर – कृष्ण (गिरि को धारण करनेवाले)

व्याख्या – प्रस्तुत पद में माता यशोदा प्रभात वेला में प्यारे कन्हैया को जगा रही हैं। यशोदा जी कह रही हैं प्यारे ललन, वंशी वर कन्हैया जाग जाओ। रात बीत गई, सुन्दर प्रभात हो गया है। हर घर के दरवाजे खुल गए हैं। हर घर के लोग जाग गए हैं। गोपियाँ दही मथने लगी हैं। उनके दही मथने की ध्वनि सुनाई पड़ती है। उनके कंगन की झंकार (ध्वनि) गूँज रही है।

प्यारे लाल उठो, सबेरा हो गया है । दरवाजे पर देव तथा मनुष्य सभी खड़े हैं। गोप बालक जयकार शब्द का उच्चारण कर रहे हैं। उनकी आवाज सुनाई पड़ रही है। मैं हाथ में मक्खन रोटी ले रखी है। तुम तो गायों के रक्षक गोपाल हो उठो। गिरि को धारण करने वाले प्रिय चतुर कृष्ण को संबोधित करते हुए मीरा कहती हैं – हे प्रभु आप मेरे स्वामी हैं। मैंने आपका आश्रय (शरण) ग्रहण किया है। अत: आप मुझे इस संसार-सागर से उद्धार कर दीजिए।

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पद – 3

जागो वंशी वाले, ललना, जागो मेरे प्यारे।
रजनी बीती भोर भयो है, घर-घर खुले किवारे।
गोपी दधि मथियत सुनियत हैं, कंगन के झनकारे।
उठो लाल जो भोर भयी है, सुरनर ठाढ़े द्वारे।
ग्वाल बाल सब करत कोलाहल, जय जय सबद उचारे।
माखन रोटी हाथ में लीनी, गउवन के रखवारे।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सरण गहे को तारे।।

शब्दार्थ :

  • रजनी – रात
  • भोर – प्रभात, सबेरा
  • किवारे – दरवाजे
  • कंगन – कलाई पर पहनने का आभूषण
  • तारे – उद्धार करता
  • सुरनर – देव-मनुष्य
  • कोलाहल – शोर हल्ला
  • गउवन – गायों
  • रखवारे – रक्षक
  • नागर – चतुर

व्याख्या – प्रस्तुत पद में माता यशोदा प्रभात वेला में प्यारे कन्हैया को जगा रही हैं। यशोदा जी कह रही हैं प्यारे ललन, वंशी वर कन्हैया जाग जाओ। रात बीत गई, सुन्दर प्रभात हो गया है। हर घर के दरवाजे खुल गए हैं। हर घर के लोग जाग गए हैं। गोपियाँ दही मथने लगी हैं। उनके दही मथने की ध्वनि सुनाई पड़ती है। उनके कंगन की झंकार (ध्वनि) गूँज रही है।

प्यारे लाल उठो, सबेरा हो गया है। दरवाजे पर देव तथा मनुष्य सभी खड़े हैं। गोप बालक जयकार शब्द का उच्चारण कर रहे हैं। उनकी आवाज सुनाई पड़ रही है। मैं हाथ में मक्खन रोटी ले रखी है। तुम तो गायों के रक्षक गोपाल हो उठो। गिरि को धारण करने वाले प्रिय चतुर कृष्ण को संबोधित करते हुए मीरा कहती हैं – हे प्रभु आप मेरे स्वामी हैं। मैंने आपका आश्रय (शरण) ग्रहण किया है। अत: आप मुझे इस संसार-सागर से उद्धार कर दीजिए।

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पद – 4

करम गति टारे नाहिं टरे।
सतबादी हरिश्चन्द्र से राजा नीच घर नीर भरे।
पाँच पाण्डु अरु कुन्ती द्रोपदी, हाड़, हिमालय गरे,
यज्ञ किया बलि लेन इन्द्रासन से पाताल धरे।
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, विष से अमृत करे।।

शब्दार्थ :

  • करम – कर्म, भाग्य
  • गति – दशा, परिणाम
  • सतबादी- सत्यवादी
  • नीर – पानी
  • गरे – गल गए
  • हाड़ – हड्डी
  • अरु – और
  • विष – जहर

व्याख्या – प्रस्तुत पद में मीरा का कथन है कि इस संसार में हर व्यक्ति को कर्म का परिणाम भोगना पड़ता है, मीरा कहती हैं कि कर्म का परिणाम सभी को भोगना पड़ता है। कर्म की गति टालने से नहीं टल सकती। पौराणिक उदाहरणों से इस तथ्य को समझाया गया है। प्राचीन युग में राजा हरिश्चन्द्र बड़े ही सत्यवादी थे, पर उन्हें अधम (डोम) के घर पानी भरना पड़ा।

पाण्डवों ने महाभारत युद्ध में विजय हासिल की। उनकी वीरता अनुपम थी। पर पाँचों पांडव, कुन्ती तथा द्रौपदी सभी की हड्डियाँ हिमालय के बर्फ में गल गईं। राजा बलि ने इन्द्र का आसन-स्वर्ग का राज्य पाने के लिए यज्ञ किया, पर वे स्वर्ग नहीं पहुँचे। बल्कि पाताल में जाना पड़ा। मीरा का कथन है कि गिरिधर गोपाल ही उसके जीवन के सर्वस्व हैं। प्रभु ने अपनी कृपा से विष को भी अमृत बना दिया। राणा जी ने उन्हें मारने के लिए विष का प्याला दिया, लेकिन उनका कुछ नहीं बिगड़ा। प्रभु ने विष को अमृत बना दिया।

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