Students should regularly practice West Bengal Board Class 6 Hindi Book Solutions Poem 7 कठपुतली to reinforce their learning.
WBBSE Class 6 Hindi Solutions Poem 7 Question Answer – कठपुतली
वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
प्रश्न 1.
गुस्से से कौन उबली ?
(क) कठपुतली
(ख) लड़की
(ग) खेल्ली
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(क) कठपुतली।
प्रश्न 2.
कठपुतली के आगे-पीछे क्या है ?
(क) कठपुतली
(ख) धागा
(ग) आदमी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ख) धागा।
प्रश्न 3.
कठपुतली ने दूसरी कठपुतिलयों से क्या कहा ?
(क) बंधन तोड़ने के लिए
(ख) आत्मनिर्भर होने के लिए
(ग) स्वतंत्र होने के लिए
(घ) दिए गए सभी
उत्तर :
(घ) दिए गए सभी।
प्रश्न 4.
कठपुतलियों ने पहली कठपुतली के समक्ष क्या सहमति दी ?
(क) स्वतंत्र हो जाए
(ख) भाग जाए
(ग) धीरे-धीरे आगे बढ़ने की
(घ) एक साथ मिलकर आगे बढ़ने की
उत्तर :
(क) स्वतंत्र हो जाए।
प्रश्न 5.
‘हमें अपने मन के छंद हुए’ से क्या तात्पर्य है ?
(क) अपने लिए जीना
(ख) अपने मन की बात सुनना
(ग) इशारों पर नाचना
(घ) नया जीवन जीना
उत्तर :
(ख) अपने मन की बात सुनना।
प्रश्न 6.
पहली कठपुतली क्या सोचने लगी ?
(क) क्या बंधन टूट जाएँगे ?
(ख) क्या स्वतंत्र होना सुखमय होगा ?
(ग) क्या आगे बढ़ पाएँगे ?
(घ) क्या लक्ष्य पा लेंगे ?
उत्तर :
(ख) क्या स्वतंत्र होना सुखमय होगा ?
प्रश्न 7.
क्या कठपुतलियाँ स्वतंत्र हो पाई ? यदि हो पाई तो कौन-सी ?
(क) नहीं, कोई भी नहीं
(ख) आधी हो गई
(ग) हाँ
(घ) सबसे छोटी वाली हो गई
उत्तर :
(क) नहीं, कोई भी नहीं।
प्रश्न 8.
‘कठपुतली’ शब्द का क्या अर्थ है?
(क) कटी हुई पुतली
(ख) काठ की पुतली
(ग) काठ और पुतली
(घ) उपर्युक्त सभी गलत
उत्तर :
(ख) काठ की पुतली।
प्रश्न 9.
कठपुतली का जीवन कैसा था ?
(क) रस्सी में बँधा हुआ
(ख) स्वतंत्र का
(ग) परतंत्रता का
(घ) आजादी का
उत्तर :
(ग) परतंत्रता का।
प्रश्न 10.
कठपुतली को किस बात का दु:ख था ?
(क) हर समय नाचने का
(ख) मुस्कराते रहने का
(ग) धागे में बँधने का
(घ) दूसरों के इशारे पर नाचने का
उत्तर :
(घ) दूसरों के इशारे पर नाचने का।
प्रश्न 11.
‘पाँवों पर छोड़ देने’ का क्या भाव है ?
(क) स्वतंत्र कर देना
(ख) गुलाम बना लेना
(ग) सहारा लेना
(घ) सहारा छीन लेना
उत्तर :
(क) स्वतंत्र कर देना।
लघूतरीय प्रश्नोत्तर :
प्रश्न 1.
कठपुतली को गुस्सा क्यों आया ?
उत्तर :
कठपुतली ने सोचा कि वह धागे से बँधी हुई पराधीन है। उसके आगे-पीछे धागे हैं। वह अपने पाँव पर खड़ी नहीं हो सकती। इसीलिए कठपुतली को गुस्सा आया।
प्रश्न 2.
कठपुतली क्या तोड़ने के लिए कहती है ?
उत्तर :
कठपुतली अपने आगे-पीछे के धागों के बंधन को तोड़ने के लिए कहती है ।
प्रश्न 3.
कठपुतली की बात का समर्थन किसने किया ?
उत्तर :
कठपुतली की बात का समर्थन सभी कठपुतलियों ने किया।
प्रश्न 4.
पहली कठपुतली क्या सोचने लगी ?
उत्तर :
पहली कठपुतली सोचने लगी कि हमारे मन में यह कैसी इच्छा उत्पन्न हो गई। यह चुनौती भरा कदम समझदारी से उठाना चाहिए।
प्रश्न 5.
उपर्युक्त पद्यांश किस कविता से लिया गया है ?
उत्तर :
उपर्युक्त पद्यांश ‘कठपुतली’ नामक कविता से लिया गया है।
प्रश्न 6.
कठपुतली क्यों कोधित हो गई ?
उत्तर :
कठपुतली धागे से बँधे-बँधे तथा दूसरों के इशारों पर नाचते-नाचते परेशान हो गई थी, इसलिए वह क्रोधित हो गई थी।
प्रश्न 7.
कठपुतली ने क्या कहा ?
उत्तर :
कठपुतली ने कहा कि मेरे आगे-पीछे ये धागे क्यों हैं, इन्हें तोड़कर मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।
प्रश्न 8.
“मुझें मेरे पाँवों पर छोड़ दो।” पंक्ति से कठपुतली का क्या आशय है ?
उत्तर :
कठपुतली आत्मनिर्भर होना चाहती है। वह अपनी इच्छानुसार कार्य करना चाहती है, इसलिए उसने कहा कि मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो।
प्रश्न 9.
कठपुतली के कथन का क्या आशय है ?
उत्तर :
कठपुतली के कथन का आशय है कि वह स्वतंत्र होना चाहती है।
बोधमूलक प्रश्नोत्तर :
प्रश्न 1.
कठपुतली कविता का उद्देश्य लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में कवि ने कठपुतली के माध्यम से स्वतंत्रता के महत्त्व को स्सष्ट किया है। पराधीनता किसी को भी अच्छी नहीं लगती। गुलामी की बेड़ययों को सभी उतार कर फेंक देना चाहते हैं। धागे में बँधी हुई पराधीन कठपुतली को दूसरों के इशारे पर नाचने से दु:ख होता है। वह अपने पाँव पर खड़ा होना चाहती है। गुलामी को दूर करने के लिए वह विद्रोह का स्वर मुखर करती है। स्वाधीनता के महत्त्व को बतलाना ही कविता का उद्देश्य है।
प्रश्न 2.
कठपुतली स्वयं को अपने पांवों परँछोड़ द्रेने के लिए क्यों कहती है ?
उत्तर :
कठुपुली को धागों का बंधन पसंद नहीं है। वह धागों में बँधी हुई पराधीन है। उसे दूसरों के इशारे पर नाचना पड़ता है। वह अपने पाँवों पर खड़ा होना चाहती है। इसीलिए वह ख्वयं को अपने पाँवों पर छोड़ देने के लिए कहती है।
प्रश्न 3.
‘ये कैसी इच्छा मेरे मन में जगी’ पहली कठपुतली के ऐसा सोचने का क्या कारण है ?
उत्तर :
पहली कठपुतली की बात सभी को अच्छी लगी। सभी कठपुतलियाँ स्वतंत्र होना चाहती थीं। अब पहली कठपुतली पर सब की स्वतंत्रता की जिम्मेदारी आ गई तो उसने भली-भाँति सोच-विचार कर ही कोई कदम उठाना चाही। इसीलिए पहली कठपुतली सोचने लगी कि मेरे मन में एकाएक यह कैसी इच्छा उत्पन्न हो गई?
प्रश्न 4.
कठपुतली को गुस्सा क्यों आया ?
उत्तर :
कठपुतली बहुत दिनों से धागे से बँधी थी तथा उसे दूसरे लोग अपनी अँगुलियों के इशारों पर नचा रहे थे। वह इस पराधीनता से मुक्त होना चाहती थी। वह आज़ाद रहना चाहती थी तथा अपनी इच्छा के अनुसार काम करना चाहती थी, इसलिए उसे गुस्सा आया।
प्रश्न 5.
कठपुतली को अपने पाँवों पर खड़ी होने की इच्छा है, लेकिन वह क्यों नहीं खड़ी होती ?
उत्तर :
कठपुतली को स्वतंत्र रूप से अपने पाँवों पर खड़े होने की इच्छा है, लेकिन वह खड़ी नहीं होती क्योंकि वह धागों से बँधी हुई है। वह दूसरों के अधीन है। उसका स्वयं पर कोई वश नहीं चलता। दूसरों की इच्छा पर ही वह अपने हाथ-पैर हिला सकती है।
प्रश्न 6.
पहली कठपुतली की बात दूसरी कठपुतलियों को क्यों अच्छी लगी ?
उत्तर :
आज़ादी सबको अच्छी लगती है। पराधीन रहना किसी को पसंद नहीं। सभी अपनी इच्छा के अनुसार काम करना चाहते हैं। किसी भी कठपुतली को धागे से बँधे रहना और दूसरों की इच्छा से नाचना पसंद नहीं था। इसीलिए पहली कठपुतली की बात दूसरी कठपुतलियों को अच्छी लगी।
प्रश्न 7.
पहली कठपुतली ने स्वयं कहा कि – ‘ये धागे क्यों हैं मेरे पीछे-आगे / इन्हें तोड़ दो / मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो।’ तो फिर वह चिंतित क्यों हुई कि – ‘ये कैसी इच्छा / मेरे मन में जगी ?’ नीचे दिए वाक्यों की सहायता से अपने विचार व्यक्त कीजिए –
उसे दूसरी कठपुतलियों की ज़िम्मेदारी महसूस होने लगी।
उसे शीघ्र स्वतंत्र होने की चिंता होने लगी।
वह स्वतंत्रता की इच्छा को साकार करने और स्वतंत्रता को हमेशा बनाए रखने के उपाय सोचने ली।
वह डर गई, क्योंकि उसकी उप्र कम थी।
उत्तर :
जब पहली कठपुतली बंधन का जीवन जीते-जीते दु:खी हो गई थी, उसे अपनी पराधीनता पर कोध आ गया, तब उसने स्वतंत्र होने की इच्छा जताई, लेकिन जब सारी कठपुतलियाँ उसकी ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाने लगी और उसके नेतृत्व में विद्रोह के लिए तैयार होने लगी, तो वह डर गई। वह सोच में पड़ गई कि सबकी जिम्मेदारी लेकर वह इतना बड़ा कदम कैसे उठाए। अब तक सभी दूसरों पर आश्रित रहे हैं, एकदम से मिली स्वतंत्रता में कहीं उनके कदम लड़खड़ा तो नहीं जाएँगे। यही कारण था कि पहली कठपुतली चिंतित होकर अपने फैसले के विषय में सोचने लगी।
(क) सुनकर बोली और – और
कठपुतलियाँ
कि हाँ
बहुत दिन हुए
हमें अपने मन के छंद छुए।
(i) प्रस्तुत पद्यांश किस कवि की किस रचना से उद्धुत है ?
उत्तर :
प्सस्तुत पद्यांश भवानी प्रसाद मिश्र रचित ‘कठुुतली’ कविता से उद्धृत हैं।
(ii) ‘मन के छंद छुए’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पहली कठपुतली की स्वतंग्रता की बात सुन कर सभी कठुुतलियाँ कहने लगी कि बहुत दिनों से हमारे मन में कोई उमंग, कोई खुशी नहीं आई। बंधन के कारण मन सदा वुझा सा रहता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर :
प्रश्न 1.
‘कठपुतली’ कविता के आधार पर बतलाइए कि पराधीनता या गुलामी का जीवन हर प्रकार से दु:खद है।
उत्तर :
कठपुतली अपने हाथ-पाँव धागे या रस्सियों से बँधा देखकर क्रोध से उबल पड़ती है। वह उन धागों को तोड़कर स्वतंत्र होने तथा अपने पाँवों पर खड़े होने की इच्छा व्यक्त करती हैं। अन्य कठपुतलियाँ भी उसके प्रस्ताव का समर्थन करती है। दीर्घकाल से वे सभी पराधीनता के कारण अपने मन के स्वतंत्र विचार को व्यक्त करने की इच्छानुसार व्यवहार करने में असमर्थ बनी रहीं। पहली कठपुतली सोचने लगी कि एकाएक मन में यह इच्छा क्यों उत्पन्न हुई? विचार कर परिणाम सोचकर ही किसी क्रांति या आन्दोलन का नेतृत्व करना चाहिए।
इस प्रकार इस कविता में कवि ने स्पष्ट किया है कि पराधीनता का जीवन हर प्रकार से दुखदाई होता है। पराधीनता में सपने में भी सुख नहीं होता। पशु-पक्षी भी पराधीनता को अभिशाप समझते हैं। पराधीनता की जंजीरों को तोड़कर सभी आजाद होना चाहते हैं। अपने अधीन रहना, स्वाधीन जीवन जीना सब प्रकार से सुखद होता है। पर वश में रहना कभी सुख संतोष, शांतिमय नहीं हो सकता। क्रांति या आन्दोलन द्वारा स्वतंत्र होना कौन नहीं चाहता। पर इसका अगुआ होना सभी के वश की बात नहीं। परिणाम क्या होगा इसे कोई नहीं सोच सकता।
अत: सफलता-असफलता के गंभीर परिणाम को भलीभाँति सोच-विचार कर उचित कदम उठाना चाहिए। दूसरे के अधीन और नियंत्रण में रहना कोई नहीं चाहता। पराधीनता की स्थिति में मन तथा बुद्धि कुंठित हो जाती है। अनुचित बंधन से मन उबलने लगता है। प्राण और मन पर यह बोझ जीवन को धोर निराशा तथा पीड़ा से भर देता है। गुलामी की स्थिति में सुख के सारे साधक भी व्यर्थ प्रतीत होते हैं। सोने के पिंजड़े में कैद पक्षी मुक्त होना चाहता है। अत: स्वाधीनता हर प्रकार के सुख, शांति एवं उल्लास से जीवन को भर देती है।
भाषा-बोध :
(क) पर्यायवाची शब्द लिखें –
मुन – चित्त, जी, अंतर, मानस।
इच्छा – चाह, कामना, अभिलाषा।
गुस्सा – कोप, कोध, रोष, क्षोभ।
दिन – वार, दिवस, वासर, दिवा।
(ख) लिंग बताइए –
कठपुतली – स्त्रीलिंग
दिन – पुलिंग
छंद – पुलिंग
इच्छा – स्व्रीलिंग
मन – पुलिंग
WBBSE Class 6 Hindi कठपुतली Summary
जीवन-परिचय :
इनका जन्म सन् 1913 ई० में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में हुआ था। प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा सोहागपुर, जबलपुर एवं होशंगाबाद में हुई थी। बी. ए. की शिक्षा के बाद ये कल्पना में सम्पादक हुए फिर ऑल इन्डिया रेडियो में नौकरी की। इनकी प्रमुख रचनाएँ – कमल के फूल, वाणी की दीनता, सतपुड़ा के जंगल आदि हैं। इनकी मृत्यु सन् 1985 ई० में हुई ।
कविता का सारांश – प्रस्तुत कविता में कठपुतलियाँ स्वाधीन होने की इच्छा व्यक्त करती हैं। पहली कठपुतली सभी धागों को तोड़ देने की बात कहती है। वह अपने पाँव पर खड़ा होना चाहती है। उसकी बात सुनकर सभी कठपुतलियाँ प्रसन्न होती हैं। पर पहली कठपुतली स्वतंग्रता की जिम्मेदारी के प्रश्न पर सोच-समझकर कदम उठाना चाहती है।
शब्दार्थ :
- कठपुतली – काठ की बनी हुई पुतली ।
- गुस्से – कोध ।
- पुतली – गुड़िया ।
- पाँवों – पैरों ।
- इच्छा-कामना; चाह ।
- जगी – पैदा हुई।
- उबली – नाराज हुई ।
पद -1
कठपुतली
गुस्से से उबली
क्यों हैं मेरे पीछे-आगे ?
इन्हें तोड़ दो
मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ कठपुतली पाठ से ली गई है। इसके कवि भवानी प्रसाद मिश्र हैं। इन पंक्तियों में पहली कठपुतली स्वतंत्र होने की इच्छा व्यक्त कर रही है।
व्याख्या – धागे में बँधी हुई कठपुतली अपनी पराधीनतां को देखकर क्रोध और आवेग से भर उठती है। वह जोश में आकर कहने लगती है कि उसके आगे-पीछे ये धागे क्यों हैं ? इन धागों को तोड़ दीजिए, मुझे मेरे चरणों पर खड़े होने तथा चलने के लिए मुक्त कर दीजिए। वह अपने पाँव पर खड़ा होना चाहती है। इस प्रकार पराधीनता के दुःख से बाहर निकलने के लिए वह विद्रोह कर देती है।
पद – 2
सुंनकर बोली और- और
कठपुतलियाँ
कि हाँ ।
बहुत दिन हुए।
हमें अपने मन के छंद हुए।
व्याख्या – पहली कठपुतली की बात सभी कठपुतलियों को अच्छी लगती है क्योंकि स्वतंत्र रहना सभी चाहती हैं। अजादी सभी को अच्छी लगती है। वे कहने लगती हैं कि बहुत दिनों से हमारे मन में कोई उमंग, कोई खुशी नहीं आई। धागे में बँधी हुई हम सदा से पराधीन हैं। दूसरों के इशारे पर हमें नाचना पड़ता है। अपने मन के अनुसार हम कोई काम नहीं कर सकतीं।
पद -3
मगर
पहली कठपुतली सोचने लगी
ये कैसी इच्छा
मेरे मन में जगी।
व्याख्या – पहली कठपुतली के द्वारा कही गई स्वतंत्र होने की इच्छा का सभी कठपुतलियों ने स्वागत किया लेकिन पहली कठपुतली पर जब स्वतंत्रता की जिम्मेदारी आती है तो वह सोच समझ कर कदम उठाना चाहती है। इस लिए वह कहने लगती है कि मेरे मन में एकाएक यह कैसी इच्छा उत्पन्न हो गई? यह चुनौती भरा कदम समझदारी से समझ-बूझ कर ही उठाना चाहिए।