WBBSE Class 6 Hindi Solutions Poem 6 जीवन का झरना

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WBBSE Class 6 Hindi Solutions Poem 6 Question Answer – जीवन का झरना

वस्तुनिष्ठ प्रश्न :

प्रश्न 1.
कवि ने जीवन की तुलना की है –
(क) नदी से
(ख) वायु से
(ग) झारने से
(घ) समुद्र से
उत्तर :
(ग) झरने से

प्रश्न 2.
निर्झर हमें क्या करने को कहता है ?
(क) आगे बढ़ने को
(ख) मस्ती करने को
(ग) सोचने को
(घ) विश्राम करने को
उत्तर :
(क) आगे बढ़ने को

प्रश्न 3.
जीवन रूपी निर्झर के दो तीर हैं –
(क) जय-पराजय
(ख) सुख-दु;ख
(ग) हानि-लाभ
(घ) उत्थान-पतन
उत्तर :
(ख) सुख-दुख

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प्रश्न 4.
यह जीवन क्या है ?
(क) नदी
(ख) निर्झर
(ग) आकाश
(घ) वायु
उत्तर :
(ख) निर्झर।

प्रश्न 5.
निईर का जन्म कहाँ होता है?
(क) पर्वत के भीतर
(ख) जल में
(ग) तालाब में
(घ) आकश में
उत्तर :
(क) पर्वत के भीतर।

प्रश्न 6.
‘जीवन का झरना’ किसकी रचना है ?
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) श्रीधर पाठक
(ग) आरसी प्रसाद सिंह
(घ) भवानी प्रसाद मिश्र
उत्तर :
(ग) आरसी प्रसाद सिंह।

प्रश्न 7.
‘आरसी प्रसाद सिंह’ का जन्म किस राज्य में हुआ था ?
(क) बिहार
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) मध्य प्रदेश
(घ) हरियाणा
उत्तर :
(क) बिहार।

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प्रश्न 8.
चंदा मामा किस तरह की रचना है ?
(क) स्त्री साहित्य
(ख) दलित साहित्य
(ग) प्रबंध काव्य
(घ) बाल साहित्य
उत्तर :
(घ) बाल साहित्य।

प्रश्न 9.
कवि ने जीवन की तुलना की है –
(क) नदी से
(ख) वायु से
(ग) झरने से
(घ) समुद्र से
उत्तर :
(ग) झरने से।

प्रश्न 10.
निर्झर हमें क्या करने को कहता है ?
(क) आगे बढ़ने को
(ख) मस्ती करने को
(ग) सोचने को
(घ) विश्राम करने को
उत्तर :
(क) आगे बढ़ने को।

प्रश्न 11.
जीवन रूपी निर्झर के दो किनारे (तीर) हैं –
(क) जय-पराजय
(ख) सुख-दुःख
(ग) हानि-लाभ
(घ) उत्थान-पतन
उत्तर :
(ख) सुख-दु:ख।

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प्रश्न 12.
‘दुर्दिन’ शब्द का क्या अर्थ है ?
(क) दु:ख भरे दिन
(ख) दूर के मित्र
(ग) दूर के दिन
(घ) इनमें से कुछ नहीं
उत्तर :
(क) दु:ख भरे दिन।

प्रश्न 13.
‘निई्झर कहता है
(क) लड़े चलो
(ख) भाग चलो
(ग) बढ़े चलो
(घ) सोये रहो
उत्तर :
(ग) बढ़े चलो।

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर :

प्रश्न 1.
झरना हमें क्या संदेश देता है ?
उत्तर :
झरना हमें सतत् गतिशील बने रहने, जीवन-पथ पर सदा आगे बढ़ते रहने का संदेश देता है।

प्रश्न 2.
निर्झर की धुन क्या है ?
उत्तर :
निई्ईर की सिर्फ एक धुन सतत् चलते रहने, आगे बढ़ते रहने की है।

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प्रश्न 3.
झरने की गति रुक जाने पर क्या होगा ?
उत्तर :
झरने की गति रुक जाने पर उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।

प्रश्न 4.
जीवन का आनंद किस बात में है ?
उत्तर :
जीवन का आनंद सतत कर्म करते रहने तथा जीवन में आगे बढ़ते रहने में ही है।

प्रश्न 5.
जीवन की उपमा किससे दी गई है ?
उत्तर :
जीवन की उपमा झरना से दी गई है।

प्रश्न 6.
आरसी प्रसाद सिंह का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
आरसी प्रसाद सिंह का जन्म 19 अगस्त, 1911 ई० को बिहार के दरभंगा जिला के एरोट नामक गाँव में हुआ था ।

प्रश्न 7.
निर्झर’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
‘निर्झर’ झरना का पर्याय है और झरना जीवन की गतिशीलता का।

प्रश्न 8.
झरना हमें क्या संदेश देता है ?
उत्तर :
झरना हमें निरंतर आगे बढ़ते रहने का संदेश देता है ।

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प्रश्न 9.
निईरार हमें क्या संदेश देता है ?
उत्तर :
निईर की बस एक ही धुन है – सतत् चलते रहने की ।

प्रश्न 10.
झरने की गति रुक जाने पर क्या होगा ?
उत्तर :
झरने की गति रुक जाने पर वह सूख जाएगा, अर्थात् उसकी मृत्यु हो जाएगी।

प्रश्न 11.
जीवन का आनन्द किस बात में है ?
उत्तर :
जीवन का आनन्द सतत् आगे बढ़ने, मुसीबतों को हराकर पार करने तथा सुख-दुःख दोनों में अविचलित हुए बगैर चलते रहने में है।

बोधमूलक प्रश्नोत्तर :

प्रश्न 1.
कवि ने किन कारणों से जीवन की तुलना निईरा से की है?
उत्तर :
कवि ने जीवन की तुलना झरने से की है क्योंकि मनुष्य का जीवन झरने के समान है। जिस प्रकार झरना दो किनारों के बीच स्वच्छंद गति से चलता है उसी प्रकार मनुष्य भी सुख-दु:ख दो किनारों के बीच जीवन बिताता है।

प्रश्न 2.
जीवन का झरना कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर :
पाठ के प्रारंभ में दिया गया हैं।

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प्रश्न 3.
निर्झर का जन्म कहाँ होता है? वह अपनी यात्रा में किन-किन अवरोधों का सामना करता है ?
उत्तर :
निर्झर का जन्म पर्वत के अन्तस्थल से होता है। वह अपनी यात्रा में अनेक अवरोधों का सामना करता है। उसके रास्ते पर रोड़े आकर बाधा डालते हैं, कठोर चट्टानें पड़ जाती हैं। जंगल के वृक्ष रास्ते में पड़ जाते हैं पर वह सभी बाधाओं को पार कर आगे बढ़ता जाता है।

निर्देशानुसार उत्तर दीजिए :

(क) यह जीवन क्या ……….. मनमानी है।
(i) इस अंश के रचनाकार कौन हैं?
उत्तर :
इस अंश के रचनाकार आरसी प्रसाद सिंह हैं।

(ii) जीवन की उपमा किससे दी गई है ?
उत्तर :
जीवन की उपमा निर्झर से दी गई है ।

(iii) उपर्युक्त अंश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कविता संख्या 1 की व्याख्या देखिए।

(ख) चलना है केवल चलना है ……….. निईर झर कर यह कहता है।
(i) यह अंश किस पाठ से लिया गया है ?
उत्तर :
यह अंश जीवन का झरना पाठ से लिया गया है।

(ii) उपर्युक्त अंश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कविता सात की व्याख्या देखिए ।

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(ग) बाधा के रोड़ों से लड़ता ……….. यौवन से मदमाता।
(i) बाधा के रोड़ों से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
निई्झर के रास्ते में पत्थर के कठोर टुकड़े आ जाते हैं। वे इसके मार्ग को रोककर बाधा बनते हैं। पर निर्झर अपनी शक्ति से उनसे लड़ता हुआ आगे बढ़ता जाता है।

(ii) इस अंश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कविता की व्याख्या देखिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर :

प्रश्न :
कवि ने इस कविता में जीवन की तुलना झरने से किस प्रकार की है? यह कविता हमें क्या संदेश देती है?
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में कवि ने जीवन की तुलना झरने से की है। कवि ने झरने के माध्यम से जीवन को समझाने की कोशिश की है कि मनुष्य का यह जीवन एक झरना है। इस जीवन रूपी झरने के पानी जीवन का आनंद है। सुख और दु:ख इस जीवन रूपी झरने के दो किनारे हैं। मानव जीवन सदा सुख-दुःख में बीतता रहता है। जीवन में सदा सुख-दुःख का क्रम बना रहता है। झरना पर्वत से निकल कर विभिन्न अंचलों से नीचे उतरता है। फिर विभिन्न घाटियों से होता हुआ समतल क्षेत्र में बहने लगता है। व्यक्ति का जीवन भी अनेक पड़ावों से गुजरता हुआ, अपनी समस्याओं का समाधान करता हुआ स्थिर शान्त जीवन बिताने लगता है।

झरना अपनी मस्ती में गाता हुआ निरंतर गतिशील बना रहता है। आगे बढ़ते रहना ही उसका जीवन है। मनुष्य को भी सादा अपने लक्ष्य पर आगे बढ़ते रहने का दृढ़ निश्चय कर लेना चाहिए। झरना अपने मार्ग में पड़ने वाले पत्थरों से लड़ता हुआ, पेड़ों से टकराता हुआ अपने यौवन की शक्ति से संपन्न वह आगे बढ़ता रहता है। मनुष्य भी अपने जीवन पथ में आने वाली समस्त बाधाओं से संघर्ष करता हुआ अपने लक्ष्य तक पहुँचता है ।

झरने की गतिशीलता ही उसका जीवन है। जिस दिन उसकी गति रूक जाएगी, उसी दिन उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। मनुष्य के जीवन में ही चलते रहना, कर्म करते रहना ही जीवन है, रुकना, जड़ हो जाना ही मौत है। जिस दिन मनुष्य अपने कर्त्तव्य से विमुख होकर निष्क्रिय बन जाएगा, उस दिन उसका भी अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। इसलिए जीवित रहना है तो कर्त्तव्य करते रहना चाहिए। झरना कभी पीछे मुड़कर नहीं देखता, सदा अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहता है, अन्त में अपने लक्ष्य पर पहुँच कर ही दम लेता है। मनुष्य को भी पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। मनुष्य को किसी प्रकार सोच-विचार में न पड़कर केवल अपने लक्ष्य पर चलना ही उचित है। मनुष्य को जीवन में निरतंतर चलते रहना चाहिए। रुकना मर जाना है। कर्म से विरत हो जाने, निष्क्रिय हो जाने से जीवन का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है।

‘जीवन का झरना’ कविता हमें संदेश देती है कि निरंतर आगे बढ़ते रहना, गतिशील बने रहना ही जीवन है। चलना, गतिशील रहना तथा सक्रिय रहने में ही जीवन में सुख शांति है। जीवन-पथ पर गतिशील रह कर ही बाधाओं तथा विपत्तियों को परास्त कर अपना जीवन प्रशस्त बना सकते हैं। गतिशीलता एवं सक्रियता में ही जीवन का सच्चा आनंद है। निष्क्रियता तो नारकीय पीड़ा है। चलते रहना ही जीवन की निशानी है।

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भाषा-बोध :

(क) लिंग निर्णय कीजिए –
जीवन -पुलिंग
गति – स्त्री लिंग
पानी – पुलिंग
चट्टान – स्त्री लिंग

(ख) पर्यायवाची शब्द लिखिए –
पानी – जल, नीर, वारि, तोय
पेड़ – वृक्ष, विटप, तरु, पादप
मानव – मनुष्य, आदमी, इंसान, मनुज
जग – संसार, विश्व, जगत्, दुनिया
गिरि – पहाड़, अचल, पर्वत, नग

(ग) विलोम शब्द लिखें –
समतल – असमतल, खुरदरा
सुख – दु:ख
अन्तर – समान
गति – रुकना
दुर्दिन-सुदिन

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(घ) वचन बदलिए –
तारों – तारा
पेड़ों – पेड़
चट्टानों – चट्टान
राह – राहें
बाधा – बाधाएँ
मानव – मानवों

WBBSE Class 6 Hindi जीवन का झरना Summary

जीवन-परिचय :

इनका जन्म सन् 1911 ई॰ में बिहार के दरभंगा जनपद में ‘एरोट’ गाँव में हुआ था। इन्होंने प्रकृति और जीवन की विविध प्रवृत्तियों का सरल, सुगम व मधुर हिन्दीभाषा में रचित रचनाओं द्वारा अत्यन्त सरस एवं प्रभावपूर्ण किया है। इनकी प्रमुख रचनाएं-शतदल, सूर्यमुखी, जीवन और यौवन, पांचजन्य आदि हैं। इन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन साहित्य-साधना में लगा दिया।

कविता का सारांश – प्रस्तुत कविता में कवि झरने के माध्यम से बतलाया है कि मनुष्य का जीवन झरने के समान होना चाहिए। सुख-दु:ख जीवन रूपी झरने के दो किनारे हैं। झरना पर्वत के ह्रदय से फूटकर विभिन्न प्रदेशों से नीचे उतरता है। वह समतल भूमि पर आकर बहने लगता है। इसलिए वह मस्ती से गाते हुए आगे बढ़ता रहता है। रास्ते में पत्थरों से लड़ता हुआ, पेड़ों से टकराता हुआ चट्टानों पर चढ़ जाता है।

आगे बढ़ते रहना ही उसका जीवन है। जिस दिन उसकी गति रुक जाएगी, उसी दिन उसका अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा। उसी दिन वह भी इस संसार से दिन गिनकर समाप्त हो जाएगा। मनुष्य भी जिस दिन रुक जाएगा, कर्त्तव्य से विमुख हो जाएगा । झरना, सदा आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देता रहता है। कहता है कि चलते रहना ही जीवन है । रूक जाना ही मृत्यु है। अत: मनुष्य को सदा सन्मार्ग पर चलते रहना चाहिए।

शब्दार्थ :

  • निर्झर – झरना।
  • मस्ती – आनंद।
  • तीर – किनारा।
  • गिरि – पर्वत।
  • अन्तर – हृदय।
  • अंचल – प्रदेश।
  • गति – चाल।
  • धुन – लगन।
  • समतल – समान भूमि।
  • रोड़ा – चट्टान।
  • जग – संसार।
  • दुर्दिन – बुरा समय।
  • राह – रास्ता।
  • यौवन – जवानी।
  • बाषा – रुकावट ।
  • घड़ियाँ – क्षण, पल।
  • घाटी – पर्वतों के बीच की समतल भूमि।

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पद – 1

यह जीवन क्या है ? निई्झर है,
मस्ती ही इसका पानी है।
सुख – दुःख के दोनों तीरों से,
चल रहा चाल मनमानी है।

व्याख्या – प्रस्तुत कविता ‘जीवन का झारना’ पाठ से उद्धृत है। इसके कवि आरसी प्रसाद सिंह हैं। यहाँ कवि ने मनुष्य जीवन की तुलना झरने से की है। यह संदेश दिया है कि झरने की तरह मनुष्य को सदा गतिशील रहना चाहिए। क्योंकि गतिशीलता ही जीवन है । मनुष्य का जीवन झरने के समान है। उसके जीवन की खुशियाँ ही उसका जल है। जिस प्रकार झरना दोनों किनारों के बीच स्वच्छंद गति से आगे बढ़ता है, उसी प्रकार मनुष्य सुख-दु:ख इन दो किनारों के बीच जीवन जीता रहता है।

पद – 2

कब फूटा गिरि के अन्तर से,
किस अंचल से उतरा नीचे।
किस घाटी से बहकर आया,
समतल में अपने को खींचे।

व्याख्या – यह झरना पहाड़ के भीतर से न जाने कब निकला और न जाने किस प्रदेश से नीचे उतरा । विभिन्न घाटियों से बहता हुआ यह अपने को आगे खींचता हुआ मैदान की समतल भूमि पर आ गया।

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पद – 3

निर्झर में गति है, यौवन है,
वह आगे बढ़ता जाता है।
धुन एक सिर्फ है चलने की
अपनी मस्ती में गाता है।

व्याख्या : झारने में गति है, जवानी की शक्ति है। इसलिए वह तेज गति से आगे बढ़ता जाता है। उसके मन में केवल आगे बढ़ने की लगन है। अपनी मस्ती में वह कल-कल की ध्वनि करता हुआ आगे बढ़ता जाता है।

पद – 4

बाधा के रोड़ों से लड़ता,
वन के पेड़ों से टकराता।
बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता,
चलता यौवन से मदमाता।

व्याख्या : झरने के रास्ते में पत्थर के टुकड़े आकर उसे बाधा पहुँचाते हैं, परंतु झरना अपनी शक्ति से उनसे लड़ता हुआ आगे बढ़ता जाता है। कठोर चट्टानों पर भी चढ़ जाता है। जंगल के वृक्षों से टकराकर आगे निकल जाता है। जवानी की शक्ति से भरा हुआ वह मस्ती के साथ आगे बढ़ता रहता है।

पद – 5

निर्झर में गति ही जीवन है,
रुक जाएगी यह गति जिस दिन ।
उस दिन मर जाएगा मानव,
जग-दुर्दिन की घड़ियाँ गिन-गिन ।

व्याख्या : हमेशा आगे बढ़ते रहना, गतिशील बने रहना ही झरने का जीवन है। जिस दिन उसकी गति रुक जाएगी, उसी दिन उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। मनुष्य भी जब तक गतिशील है तभी तक उसका जीवन है। जिस दिन उसके जीवन की गति रुक जाएगी, वह चलना, आगे बढ़ना बंद कर देगा, उसी दिन वह सांसारिक बुरे क्षण को देख कर समाप्त हो जाएगा।

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पद – 6

निईर कहता है – ‘बढ़े चलो’
तुम पीछे मत देखो मुड़कर।
यौवन कहता है – बढ़े चलो,
सोचो मत क्या होगा चलकर।

व्याख्या : झारना हमेशा यह संदेश देता रहता है कि गतिहीन हो जाने पर मनुष्य का जीवन निस्सार एवं मृत्यु-तुल्य हो जाता है। अपने जीवन में निरंतर आगे बढ़ता जाए। कभी भी पीछे मुड़कर न देखे। मनुष्य की शक्ति, उसका यौवन (जवानी) भी यही प्रेरणा देता है कि जीवन में सदा आगे बढ़ते चलो। परिणाम के विषय में मत सोचो।

पद – 7

चलना है केवल चलना है,
जीवन चलता ही रहता है।
मर जाना है बस, रूक जाना,
निर्झर झरकर यह कहता है।

व्याख्या : मनुष्य का जीवन आगे बढ़ते रहने के लिए ही है। मनुष्य जीवन की सार्थकता आगे बढ़ने में ही है। सदा आगे बढ़ता हुआ झरना भी यही संदेश देता है कि चलते रहना ही जीवन है और रुक जाना ही मृत्यु है। इसलिए मनुष्य को सदा कर्त्रव्य करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए। जीवन में सदा गतिशील बने रहना ही सच्चा जीवन है।

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