WBBSE Class 6 Hindi Solutions Poem 1 वृंद के दोहे

Students should regularly practice West Bengal Board Class 6 Hindi Book Solutions Poem 1 वृंद के दोहे to reinforce their learning.

WBBSE Class 6 Hindi Solutions Poem 1 Question Answer – वृंद के दोहे

वस्तुनिष्ठ प्रश्न :

प्रश्न 1.
वृंद किस काल के कवि हैं ?
(क) आदिकाल
(ख) भक्तिकाल
(ग) रीतिकाल
(घ) आधुनिक काल
उत्तर :
(ग) रीतिकाल।

प्रश्न 2.
कवि वृंद के पिता का क्या नाम था ?
(क) रूपजी
(ख) स्वरूपजी
(ग) भूपजी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(क) रूपजी।

प्रश्न 3.
वृंद के गुरु कौन थे ?
(क) रामानंद
(ख) तारा पंडित
(ग) नरहरिदास
(घ) बल्लभाचार्य
उत्तर :
(ख) तारा पंडित।

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प्रश्न 4.
वृंद किसके दरबारी कवि थे ?
(क) अकबर के
(ख) शाहजहाँ के
(ग) औरंगजेब के
(घ) बहादुरशाह के
उत्तर :
(ग) औरंगजेब के।

प्रश्न 5.
युद्ध में क्या शोभा नहीं देता हैं ?
(क) तलवार
(ख) वीरता
(ग) श्रृंगार
(घ) भाला
उत्तर :
(ग) शृंगार।

प्रश्न 6.
सौर का क्या अर्थ हैं ?
(क) सूर्य
(ख) चादर
(ग) पेड़
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ख) चादर ।

प्रश्न 7.
विष को कंठ में किसने बसाया हैं ?
(क) बह्मा ने
(ख) विष्णु ने
(ग) शिव ने
(घ) इन्द्र ने
डत्तर :
(ग) शिव ने।

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प्रश्न 8.
कवि के अनुसार सब लोग किसकी सहायता करते हैं ?
(क) निर्बल की
(ख) सबल की
(ग) दुर्बल की
(घ) इनमें से किसी की नहीं
उत्तर :
(ख) सबल की

प्रश्न 9.
हमें दान किसको देना चाहिए ?
(क) हीन को
(ख) प्रवीन को
(ग) दीन को
(घ) किसीं को नहीं
उत्तर :
(ग) दीन को

प्रश्न 10.
कौन आग को बढ़ा देता है और दीपक को बुझा देता है ?
(क) पानी
(ख) बादल
(ग) हवा
(घ) वर्षा
उत्तर :
(ग) हवा

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर :

प्रश्न 1.
दान किसको देना चाहिए ?
उत्तर :
दान दीन को अर्थात् गरीब व्यक्ति को देना चाहिए।

प्रश्न 2.
विद्या की प्राप्ति के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर :
विद्या की प्राप्ति के लिए प्रयत्न, परिश्रम तथा उद्यम करना चाहिए।

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प्रश्न 3.
मीठी बोली बोल कर तोता कहाँ कैद हो जाता है ?
उत्तर :
मीठी बोली बोलकर तोता पिंजड़े में कैद हो जाता है।

प्रश्न 4.
कौन अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता है ?
उत्तर :
दुष्ट अर्थात् नीच व्यक्ति अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता है।

प्रश्न 5.
विष कौन-सा गुण नहीं त्यागता है ?
उत्तर :
विष अपनी स्यामला अर्थात् कालिमा गुण को नहीं त्यागता है।

प्रश्न 6.
कवि वृंद का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
कवि वृदद का जन्म 1643 ई० मे बीकानेर के मेड़ता नामक गाँव में हुआ था।

प्रश्न 7.
कवि वृंद ने किस प्रकार की रचनाएँ लिखी हैं ?
उत्तर :
कवि वृंद ने रीति और नीतिपरक रचनाएँ लिखी हैं।

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प्रश्न 8.
वृंद की प्रमुख रचनाओं के नाम लिखें।
उत्तर :
बारहमासा, नयन पचीसी, यमक-सतसई, इत्यादि वृंद की कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं।

प्रश्न 9.
प्यास कहाँ नहीं बुझती हैं?
उत्तर :
रीते सरवर अर्थात् सूखे तालाब के पास जाने से प्यास नहीं बुझुती है।

प्रश्न 10.
औषधि किसको देनी चाहिए ?
उत्तर :
औषधि बीमार व्यक्ति को देनी चाहिए।

प्रश्न 11.
सबकी चिंता कौन करता है ?
उत्तर :
सबकी चिंता ईश्वर करता है।

प्रश्न 12.
रिश्ता तोड़कर जोड़ने पर क्या होता है?
उत्तर :
रिश्ता तोड़कर पुनः जोड़ने पर मन में एक गाँठ पड़ जाती है अर्थात् शंका रह जातीं है।

बोधमूलक प्रश्नोत्तर :

प्रश्न 1.
दुष्ट की दुष्टता का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
दुष्ट व्यक्ति कभी भी अपनी दुष्टता को नहीं छोड़ता। उसे कितना ही बड़ा स्थान मिल जाय अथवा बड़े लोगों की संगति मिल जाय पर वह अपनी दुष्टता को, अपनी बुराइयों को नहीं छोड़ पाता। जैसे विष अपने स्वाभाविक धर्म-गुण को नहीं छोड़ता, उसी प्रकार दुष्ट लोग भी अपने दोष को कभी नहीं छोड़ सकते।

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प्रश्न 2.
बिना अवसर की बात कैसी लगती है ?
उत्तर :
बिना अवसर के कही गई अच्छी बात भी बुरी लगती है। शृंगार की बात संभी को अच्छी लगती है लेकिन युद्ध या लड़ाई के समय यदि भृंगार रस की बात कही जाय तो वह किसी को अच्छी नहीं लगेगी। उचित अवसर पर ही उचित बात का महत्व होता है। कितनी भी अन्छी बात हो, पर अनुपयुक्त अवसर पर कही जाती है तो किसी को अच्छी नहीं लगती।

निर्देशानुसार उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
“जाही ते कछु पाइये ………. कैसे बुझत पिआस’
(i) पाठ और कवि का नाम बताइये।
उत्तर :
प्रस्तुत दोहा ‘वृंद के दोहे’ पाठ से लिया गया है। इसके कवि का नाम वृंद है।

(ii) उपर्युक्त अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत नीति-परक दोहे में कवि वृंद ने यह व्यावहारिक शिक्षा दी है कि जिससे कुछ प्राप्त करने की उम्मीद हो, उसी की आशा करनी चाहिए। ऐसे व्यक्ति से कभी भी कुछ आशा नहीं करनी चाहिए जो स्वयं अक्षम हो। वहाँ से निराशा ही हाथ लगेगी। जैसे सूखे, जलहीन सरोवर में जाने पर किसी की प्यास नहीझ सकती।

प्रश्न 2.
“विद्या धन उद्यम बिना ………… ज्यों पंखे का पौन।”
(i) विद्या रूपी धन की प्राप्ति कैसे हो सकती है ?
उत्तर :
विद्या रूपी धन की प्राप्ति प्रयास, परिश्रिम तथा उद्यम करने से हो सकती है। आलसी व्यक्ति को, परिश्रम से जी चुराने वाले व्यक्ति को विद्या की प्राप्ति नहीं हो सकती।

(ii) उपर्युक्त पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि वृंद ने बतलाया है कि परिश्रमी व्यक्ति ही अपनी मेहनत से विद्या रूपी धन की प्राप्ति कर सकता है। आलसी तथा निठल्ला व्यक्ति कभी भी विद्या को नहीं प्राप्त कर सकता। इस संबंध में कवि ने पंखे की हवा का उदाहरण दिया है। हवा की प्राप्ति के लिए, शरीर को सुख पहुँचाने के लिए पंखे को हिलाने का श्रम करना पड़ता है। बिना डुलाए, बिना परिश्रम किए हवा नहीं मिल सकती। उसी प्रकार विद्या-रूपी अमूल्य धन को पाने के लिए सद़ा परिश्रम करना ही पड़ता है।

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प्रश्न 3.
“कबहूँ प्रीति न जोरिये ………… गाँठि परति गुन माहि।’
(i) कवि यहाँ क्या नहीं करने को कहता है ?
उत्तर :
कवि यहाँ प्रीति न जोड़ने और जोड़ कर न तोड़ने के लिए कह रहा है।

(ii) इस दोहे से कवि क्या संदेश देना चाहता है ?
उत्तर :
इस दोहे से कवि व्यावहारिक जीवन में सफल होने का संदेश देना चाहता है। कवि ने इस सच्चाई को सष्ट किया है कि प्रीति कर के उसे तोड़ देने का परिणाम अच्छा नहीं होता।

इसलिए यदि किसी से लगाव बनाते हैं तो उसका निर्वाह कीजिए। प्रीति करके कभी उसे मत तोड़िए क्योंकि एक बार जब प्रीति दूट जाती है तो फिर नहीं जुड़ती, यदि जुड़ती भी है तो उसमें गाँठ पड़ जाती है। एक रस्सी के उदाहरण से कवि ने इसे समझाया है। जिस प्रकार रस्सी के तोड़ने तथा फिर जोड़ने से उसमें गाँठ पड़ जाती है, उसी प्रकार प्रीति के टूट जाने पर फिर सच्चा प्रेम नहीं हो पाता। संदेह की गाँठ पड़ जाती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर :

प्रश्न 1.
वृंद के दोहों से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर :
कवि वृंद को मानव प्राकृति और व्यवहार का अच्छा ज्ञान था। इनके नीतिपूर्ण दोहे मानव जीवन में बड़े ही उपयोगी हैं। इनके कुछ दोहे लोक-जीवन की वाणी बने हुए हैं। कवि ने व्यावहारिक शिक्षा देते हुए कहा है कि मनुष्य को अवसर के अनुकूल ही कोई बात कहनी चाहिए। बिना अवसर के कही गई अच्छी बात भी बुरी लगती है। जैसे युद्ध के की उम्मीद हो, जो समर्थ हो, उसी से पाने की आशा रखनी चाहिए। जलहीन सूखे तालाब में जाने पर प्यास नहीं बुझ सकती।

कवि ने कहा है कि मनुष्य को अपनी क्षमता, साधन तथा स्थिति के अनुकूल ही कार्य करना चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं करता तो कष्ट में पड़ जाता है, उसे उसका कुफल भोगना पड़ता है। कहा भी गया है कि चादर जितनी लंबी हो हमें अपना पाँव उतना ही फैलाना चाहिए। चादर के बाहर पैर पसारना कष्ट को आमंत्रित करना है। कार्य आरंभ करने के पूर्व अपनी क्षमता, स्थिति तथा साधन का मूल्यांकन कर लेना चाहिए। यदि हम अपनी क्षमता और साधन के अनुकूल कार्य करते हैं तो हम निश्चय ही सफलता और सुख-शांति की प्राप्ति करने में सफल होंगे।

परिश्रम के बिना इस संसार में कोई भी व्यक्ति विद्या-रूपी अमूल्य धन नहीं पा सकता। इस जगत् में शक्ति संपन्न व्यक्ति की ही सब लोग सहायता करते हैं। कभी-कभी गुण भी दोष बन जाता है। अच्छाई भी दु:ख का कारण बन जाती है। मधुर वाणी बोलने के कारण ही तोता को पिंजड़े में कैद होना पड़ता है। कवि बड़ी उपयेगीी बात बतलाई है कि हमें अभावग्रस्त, पीड़ित गरीब व्यक्ति को ही दान देना चाहिए जिससे उसकी दरिद्रता दूर हो जाए। दबा उसी को दी जानी चाहिए जिसके शरीर में रोग हो। अतः सम्पन्न व्यक्ति को दान देना व्यर्थ है। महान स्थान पाकर भी दुष्ट अपनी दुष्टता को नहीं छोड़ता। महादेव के गले में स्थान पाकर भी विष अपनी कालिमा का परित्याग नहीं करता।

कवि ने परमेश्वर की प्राणियों पर असीम अनुकेपा का वर्णन किया है। ईश्वर जगत के सभी प्राणियों के कल्याण की चिन्ता करते हैं। बच्चे के जन्म के पहले ही प्रभु उसे जीवित रहने के लिए माता की छाती में दूध की व्यवस्था कर देते हैं। बच्चे को दुग्ध पान की व्यवस्था ईश्वर की अतिशय कृपा है। फिर नीति की उपयोगी बात कवि ने बतलाई है। व्यक्ति को कभी भी अपने परस्पर के प्रेम संबंध को नहीं तोड़ना चाहिए। एक बार यदि प्रेम संबंध टूट जाता है फिर वह नहीं जुड़ता है। जुड़ता भी है तो उसमें संदेह की गाँठ पड़ जाती है। पूर्व जैसी एकरसता नहीं रह जाती। कवि ने रस्सी के उदाहरण से स्पष्ट किया है रस्सी के टूट जाने पर यदि पुनः उसे जोड़ा जाता है तो उसमें गाँठ पड़ जाती है। अतः हमें अपने प्रेम संबंध को बचाकर रखना चाहिए।

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भाषा-बोध :

(क) शब्दों के शुद्ध रूप –

सिंगार – शृंगार
पिआस – प्यास
करतब – कर्त्तव्य
पौन – पवन
सबन – सब
प्रीति – प्रीति (प्रेम)

(ख) पर्यायवाची शब्द –

अवसर – मौका, समय, संयोग।
सरवर – सरोवर, तालाब, जलाशय।
पवन – वायु, हवा, अनिल।
आग – अग्नि, पावक, अनल।
शरीर – तन, देह, बदन, काया।

WBBSE Class 6 Hindi वृंद के दोहे Summary

जीवन-परिचय :

वृंद का जन्म सन् 1643 में जोधपुर के मेड़ते ग्राम में एक बाह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से ही ये सुशील, गंभीर और तीव्र बुद्धि के थे। काशी में तारा पंडित के पास रहकर इन्होंने, व्याकरण, वेदान्त, साहित्य तथा गणित आदि का ज्ञान प्राप्त किया। औरंगजेब के दरबारी कवि रहे। इनकी मृत्यु सन् 1723 में हुई । इनकी प्रमुख रचनाएं बारह मासा, नयन पचीसी, पवन पचीसी और यमक सतसई हैं। इनके दोहे सरल, सरस तथा कलापूर्ण हैं। इनके दोहे लोकजीवन की वाणी बन गए हैं। सूक्तिकार के रूप में ही ये अधिक प्रसिद्ध हैं। इनकी भाषा परिष्कृत ब्रज भाषा है। नीति काव्य रचना के क्षेत्र में कवि वृन्द का स्थान अन्यतम है।

पद – 1, 2

नीकी पै फीकी लगै, बिन अवसर की बात।
जैसे बरनत युद्ध में, नहिं सिंगार सुहात ।।
जाही ते कछु पाइये, करिये ताकी आस ।
रीतै सरवर पर गये, कैसे बुझत पिआस ।।

शब्दार्थ :

  • नीकी = अच्छी।
  • जाही ते = जिससे।
  • फीकी = बुरी, खराब।
  • ताकी = उसकी।
  • बरनत = वर्णन करना।
  • आस = आशा।
  • सिंगार = शृंगार।
  • रीते = खाली।
  • सुहात = अच्छा लगना।
  • सरवर = तालाब।
  • बुझत = बुझना ।
  • पिआस = प्यास।

सन्दर्भ – प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य मेला’ के ‘वृंद के दोहे’ नामक पाठ से लिया गया है। यहाँ कवि ने नीति की उपयोगी शिक्षा दी है।

व्याख्या – कविवर वृंद कहते हैं कि अच्छी बात भी अगर बिना अवसर के कही जाती है तो वह खराब लगती है। अर्थात् उपयुक्त अवसर पर कही गई बात ही अन्छी लगती है। जैसे युद्ध के समय यदि श्रृंगार का वर्णन किया जाता है तो वह किसी को अच्छा नहीं लगता।

कवि ने यह व्यावहारिक शिक्षा दी है कि जिससे कुछ पाने का निश्चय हो, उसी की आशा करनी चाहिए। जैसे खाली (जल रहित) तालाब में जाने पर कैसे प्यास बुझ सकती है। अर्थात् बिना जलवाले सूखे तालाब में जाने पर किसी की प्यास नहीं बुझ सकती। अतः जिसके दिल में दया, परोपकार की भावना नहीं है, जो स्वभाव से कंजूस है, उसके पास जाना, उससे कुछ पाने की आशा रखना व्यर्थ है।

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पद – 3,4

अपनी पहुँच विचारि कै, करतब करिये दौर ।
तेते पाँव पसारिये, जेती लंबी सौर ।।
विद्या धन उद्यम बिना, कहा जु पावै कौन ।
बिना डुलाये ना मिले, ज्यों पंखे का पौन।।

शब्दार्थ :

  • पहुँच = सामर्थ्य।
  • उद्यम = उद्योग।
  • करतब = कर्त्रव्य ।
  • पावै = पाना ।
  • दौर = दौड़कर ।
  • डुलाये = हिलाना।
  • तेते = उतना।
  • ज्यों = जिस प्रकार ।
  • पाँव = पैर।
  • पौन = हवा।
  • पसारिये = फैलाइए।
  • सौर = चादर।

संदर्भ – प्रस्तुत दोहे में कवि वृंद ने यह शिक्षा दी है कि अपने साधनों के अनुसार ही व्यक्ति को काम करना चाहिए। व्याख्या – मनुष्य को अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही दौड़ कर अपना कर्त्वव्य करना चाहिए। जितनी लंबी चादर हो, उतना ही पैर फैलाना चाहिए अर्थात् अपनी आमदनी के अनुसार ही खर्च करना चाहिए। आमदनी से अधिक खर्च करने से मुसीबत का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार इस दोहे में कवि ने शिक्षा दी है कि मनुष्य को अपनी क्षमता तथा साधन के अनुसार ही कोई कार्य करना चाहिए। तभी उसे सफलता मिल सकती है।

प्रस्तुत दोहे में कवि वृंद ने विद्या की प्राप्ति के लिए प्रयत्न, परिश्रम तथा उद्यम की आवश्यकता पर बल दिया है।
विद्या रूपी धन परिश्रम के बिना कोई कैसे पा सकता है , अर्थात् प्रयत्न और मेहनत के बिना कोई भी मनुष्य विद्या रूपी धन को प्राप्त नहीं कर सकता। इस संबंध में कवि ने पंखे की हवा का उदाहरण दिया है। पंखा हिलाए बिना पंखे की हवा नहीं मिल सकती। हमें हवा प्राप्त करने के लिए पंखा हिलाने का परिश्रम करना पड़ता है। अत: विद्या की प्राप्ति के लिए हमें परिश्रम करना ही होगा। आलसी को विद्या नहीं मिल सकती।

पद – 5, 6

सबै सहायक सबल को, कोई न निबल सहाय।
पवन जगावत आग को, दीपहि देत बुझाय।।
कहूँ-कहूँ गुन ते अधिक, उपजत दोष सरीर।
मधुरी बानी बोलि कै, परत पींजरा कीर।।

शब्दार्थ :

  • सबल = शक्तिशाली।
  • कहूँ = कहीं।
  • निबल = कमजोर।
  • गुन = गुण।
  • पवन = हवा।
  • उपजत = उत्पन्न होना।
  • दीपहि = दीये को।
  • मधुरी = मीठी।
  • सहाय = सहायक।
  • बानी = वाणी।
  • जगावत = जगाना।
  • कीर = तोता।

सन्दर्भ : प्रस्तुत दोहे में कवि ने बतलाया है कि सभी लोग ताकतवर व्यक्ति की ही सहायता करते हैं, कमजोर की कोई नहीं।

व्याख्या : इस संसार में शक्तिशाली व्यक्ति के सहायक सभी हो जाते हैं पर कमजोर-दुर्बल व्यक्ति की सहायता कोई नहीं करता। हवा और दीपक के उदाहरण से कवि ने इसे समझाया है। हवा आग को जगा देती है अर्थात् तीव्र बना देती है पर वही हवा छोटे दीपक को अपने झोंके से बुझा भी देती है।

प्रतुत दोहे में कवि ने बतलाया है कि कभी-कभी गुण भी दोष बन जाता है और प्राणी के जीवन को दु:खी कर देता है।
कहीं-कहीं शरीर का गुण ही दोष उत्पन्न कर देता है। तोता की मीठी बोली ही उसके लिए बुराई बन जाती है। मधुर वाणी के कारण वह पींजरे में पड़कर बन्दी का जीवन जीता है। मीठी बोली के कारण ही लोग तोते को पिंजड़े में बन्द करके पालते हैं।

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पद – 7, 8

दान दीन को दीजिए, मिटै दरिद की पीर ।
औषधि वाको दीजिए, जाके रोग शरीर।।
दुष्ट न छाड़ै दुष्टता, बड़ी ठौर हूँ पाय।
जैसे तजत न स्यामला, विष शिव कंठ बसाय।

शब्दार्थ :

  • दीन = गरीब।
  • दुष्ट = नीच।
  • मिटै = खतम होना।
  • दुष्टता = नीचता।
  • दरिद = दरिद्र, गरीब।
  • ठौर = स्थान ।
  • पीर = पीड़ा।
  • तजत = छोड़ना।
  • औषधि = दवा।
  • स्यामला = कालिमा।

संदर्भ : प्रस्तुत नीति परक दोहे में कवि ने गरीब की सहायता करने के लिए कहा है।

व्याख्या : गरीब व्यक्ति को ही दान देकर उसकी सहायता करनी चाहिए। इससे उस दीन-हीन दुखी व्यक्ति की पीड़ा, उसकी दरिद्रता खत्म हो जायगी। दवा उसी को दी जानी चाहिए जिसके शरीर में कोई रोग हो। नीरोगी को दवा देना व्यर्थ है। उसी प्रकार जरूरतमंद की ही सहायता करनी चाहिए।

प्रस्तुत दोहे में कवि ने बतलाया है कि सम्मानजनक बड़ा स्थान पाकर भी दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता को, अपनी स्वाभाविक बुराई को नहीं छोड़ता। जैसे विष शिव जी के गलेमें स्थान पाकर भी अपनी कालिमा को, अपने दोष को नहीं छोड़ता।

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पद – 9

प्रभु को चिन्ता सबन की, आपु न करिये ताहिं।
जनम आगरू भरत है, दूध मातृ-धन माहिं।।

शब्दार्थ :

  • प्रभु = ईश्वर।
  • जनम = जन्म।
  • सबन = सब।
  • आगरू = पहले ही।
  • आपु = स्वयं।
  • भरत = भर देते हैं।
  • चिन्ता = सोच, फिक्र।
  • मातृ = माँ।

व्याख्या : प्रस्तुत दोहे में ईश्वर की महिमा का वर्णन करते हुए कवि ने बतलाया है कि ईश्वर सब प्रकार से सभी प्राणियों की रक्षा करते हैं। सचमुच ईश्वर सभी की चिन्ता करते हैं। सभी के हित के विषय में सोचते हैं। इसलिए व्यक्ति को स्वयं चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। प्रभु को लोगों के हित की इतनी चिन्ता रहती है कि शिशु के जन्म के पहले ही वे माँ की छाती में दूध भर देते हैं, जिससे जन्म लेते ही बच्चे को माँ का दूध मिलने लगता है।

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पद – 10

कबहूँ प्रीति न जोरिए, जोरि तोरिये नाहिं।
ज्यों तोरे-जोरे बहुरि, गाँठ परति गुन माहिं।।

शब्दार्थ :

  • प्रीति = प्रेम ।
  • ज्यों = जैसे, जिस प्रकार।
  • जोरिये = जोड़ना।
  • बहुरि = फिर, पुनः।
  • तोरिये = तोड़ना।
  • गुन = रस्सी।

व्याख्या : इस दोहे में कवि ने नीति की उपयोगिता पर शिक्षा दी है। कवि का कथन है कि बहुत सोच-समझकर ही प्रेम संबंध बनाना चाहिए। बिना विचारे प्रेम नहीं करना चाहिए। प्रेम संबंध बनाकर तोड़ना नहीं चाहिए। प्रेम के टूट जाने पर यदि पुन: जोड़ने की चेष्टा की जाती है तो उसमें गाँठ पड़ जाती है। जिस प्रकार रस्सी के टूट जाने पर यदि उसे जोड़ा जाता है तो उसमें गाँठ पड़ जाती है, उसी प्रकार प्रेम के टूट जाने पर यदि फिर प्रेम संबंध जोड़ा जाता है तो उसमें संदेह की गाँठ पड़ जाती है। पहले जैसे प्रेम की सरसता नहीं रह जाती।

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