WBBSE Class 10 Hindi रचना आत्मकथात्मक निबंध

Students should regularly practice West Bengal Board Class 10 Hindi Book Solutions and रचना आत्मकथात्मक निबंध to reinforce their learning.

WBBSE Class 10 Hindi रचना आत्मकथात्मक निबंध

पुस्तक की आत्मकथा

रूपरेखा :

  • भूमिका
  • उपयोगिता
  • राम की जीवन गाथा
  • उपसंहार।

मैं हिन्दी-साहित्य का एक प्रमुख महाकाव्य हूँ, मेरी रचना तुलसीदास ने की थी । उस महापुरुष ने मेरी रचना कर हिन्दी-साहित्य को धन्य बनाया । मैं भी अन्य पुस्तकों की भाँति ही एक पुस्तक हूँ, लेकिन मेरा सौभाग्य इसी में है कि मेरे प्रमुख पात्र, मर्यादा एवं शील सम्पन्न प्रभु श्री रामचन्द्रजी हैं । मुझे कई बार पढ़ने के बाद भी पाठकगण बार-बार पढ़ना चाहते हैं। राम का नाम लेने से मुक्ति मिल सकती है, किन्तु मुझमें इस प्रकार की कोई शक्ति विद्यमान नहीं है जिससे मैं मनुष्यों को मोक्ष दे सकूँ । यह शक्ति तो प्रभु श्री रामचन्द्र जी में है, जो प्रत्येक युग में अवतार लेकर लोगों के दु:ख-दर्द का हरण करते हैं तथा अत्याचारियों का विनाश करते हैं। मेरे रचयिता के शब्दों में –

जब-जब होहि धरम की हानी, बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी ।
तब-तब धर प्रभु मनुज शरीरा, हरहि कृपा निधि सज्जन पीरा ।

मुझे सामान्य जन ही नहीं, बड़े-बड़े ॠषि-मुनि एवं ज्ञानी महात्मा जन भी अपने घर में श्रद्धा और भक्ति के साथ रखते हैं। वे लोग प्रभु श्री रामचन्द्रजी की गाथा पढ़ने एवं सुनने के लिए मुझे अपने पास रखते हैं। मेरी सुरक्षा के लिए वे मुझे लाल रंग के आवरण से हमेशा ढँककर रखते हैं तथा पढ़ते समय वे मुझे खोलकर एक रेहल नामक सुविधाजनक आसन पर रख देते हैं। यदि आपको मेरे सम्बन्ध में और अधिक जानकारी प्राप्त करनी है तो, आप उन महात्माओं से नि:संकोच पूछ सकते हैं जो लोग सदैव मुझे अपने पास रखते हैं।

मैं भर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र की जीवन-गाथा हूँ। इसीलिए लोग मुझे ‘रामचरित-मानस’ कहते हैं। श्री रामचन्द्र परमेश्वर हैं। शक्ति, शील और सौन्दर्य-उनकी तीन विभूतियाँ हैं।
मेरे रचयिता ने मुझे शंकर-पार्वती के संवाद के रूप में प्रस्तुत किया है। शिव पार्वती से कहते हैं :-

उमा कहौं मैं अनुभव अपना।
बिनु हरिभजन जगत सब सपना।।

श्रीराम भी शिव का पूजन करते हैं और कहते हैं :-

शिव द्रोही मम दास कहावा ।
सो नर मोहि सपनेहु नहि भावा ।।

श्री रामचन्द्रजी ने तो यहाँ तक कह डाला है कि-

शंकर प्रिय मम द्रोही शिव द्रोही ममदास ।
सो नर करहि कल्प-भर घोर नरक मँह वास ।

मुझसे अत्याचारी राजा भी भयभीत होते हैं, क्योंकि मैं उन्हें चेतावनी देते हुए यह कहती हूँ कि-

जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी ।
सो नृप अवसि नरक अधिकारी ।

मेरे अन्दर वे तमाम गुण उपलब्ध हैं जिनका अनुकरण कर व्यक्ति एक आदर्श नागरिक बन सकता है। माता का पुत्र के साथ, पिता का पुत्र के साथ, भाई का भाई के साथ, स्वामी का सेवक के साथ, राजा का प्रजा के साथ, कैसा सम्बन्ध होना चाहिए इन सबका वर्णन मुझमें निहित है ।

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गंगा की करुण गाथा

रूपरेखा :

  • भूमिका
  • गंगा के प्रदूषित होने के कारण
  • प्रदूषण से बचाने के उपाय
  • उपसंहार।

मैं गंगा हूँ – वही गंगा, जिसे भागीरथ ने स्वर्ग से धरती पर उतारा था और जिसमें सगर पुत्रों का उद्धार किया था। तब से लेकर आज तक मैं लोगों की आस्था तथा श्रद्धा का पात्र हूँ । पृथ्वी पर मेरा जन्म भूगोलवेताओं के अनुसार हिमालय की गोद से हुआ । गंगोत्री से लगभग 15 मील दूर गोमुख से मैं प्रकट होती हूँ । मेरे बारे में यह विश्वास आदिकाल से हो चला आ रहा है कि गंगा का जल कभी खराब नहीं होता। समय बदलने के साथ ही मेरी स्थिति में भी परिवर्तन आया। अब मेरा जल इतना प्रदूषित हो चुका है कि लोग गंगाजल की बजाय ‘मिनरल वाटर’ को अधिक महत्व देने लगे हैं।

आजकल मुझमें न जाने कितने ही प्रकार की गंदगी, दूषित जल और अनेक प्रकार के जहरीले पदार्थ बहा दिए जाते हैं । जैसे-जैसे कल-कारखानों, उद्योगों की संख्या बढ़ती जा रही है, मेरा जल प्रदूषित होता जा रहा है । मेरे तट के पास के कारखानों से टनों-टन कूड़ा-करकट तथा दूषित जल मेरी धारा में प्रतिदिन बहाए जा रहे हैं । जो लोग मुझमें स्नान करने आते हैं, जल को प्रदूषित करने में उनका भी कम योगदान नहीं हैं। वे मेरे जल में साबुन, गंदे कपड़े धोने, जानवरों को नहलाने तथा मरे जानवरों को बहाने के साथ लाश को भी बहा देते हैं। इससे मेरा जल दिन-प्रतिदिन प्रदूषित होता जा रहा है ।

वैज्ञानिकों की गंभीर चेतावनी के बाद सन् 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी में गंगाजल के शुद्धिकरण की दिशा में लोगों को जागृत करने के लिए कदम उठाए । लेकिन उनकी मृत्यु के कारण कुछ समय के लिए यह कार्यक्रम थम-सा गया। 5 जनवरी, 1985 को राजीव गाँधी के समय में ‘केन्द्रीय गंगा प्रधिकरण’ की स्थापना की गई तथा 292 करोड़ रुपए का एक वृहत् कार्यक्कम बनाया गया । इस संदर्भ में पहला गंगा-शद्धिकरण का पहल कार्य हरिद्वार तथा ॠषिकेश और फिर वाराणसी में हुआ । मेरी शुद्धिकरण के प्रति केवल भारत-सरकार ही नहीं बल्कि कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का भी योगदान है । इसमें मुख्य रूप से नीदरलैण्ड, ब्रिटेन और फ्रांस सहयोगी हैं ।

यदि लोगों तथा सरकार का मेरे प्रति यह सहानुभूतिपूर्ण रवैया रहा तो निश्चय ही मैं अपनी खोई हुई गरिमा को फिर से पाने में सफल हो सकूंगी । लेकिन अपने लाभ के लिए मैं उद्योग-धंधों को भी नष्ट नहीं करना चाहती । ऐसी व्यवस्था की जाय जिससे कारखाने और उद्योग तो बने रहें लेकिन उनसे उत्पन्न प्रदूषण का खात्मा हो जाय । जिस दिन ऐसा होगा, उसी दिन मेरी करुण गाथा का अंत होगा लेकिन क्या कभी ऐसा हो पाएगा ?

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