WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5B भारत : कृषि, उद्योग, जनसंख्या, परिवहन एवं संचार पद्धति

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WBBSE Class 10 Geography Chapter 5B Question Answer – भारत : कृषि, उद्योग, जनसंख्या, परिवहन एवं संचार पद्धति

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK

प्रश्न 1.
कौन मिट्टी चावल की कृषि के लिए सर्वोत्तम है ?
उत्तर :f
चिकनी, कछारी तथा दोमट मिट्टी।

प्रश्न 2.
भारत की कौन-सी मिट्टी कपास की खेती के लिए उत्तम है ?
उत्तर :
सामान्य ढालुआ भूमि।

प्रश्न 3.
दिल्ली, बम्बई, चेत्रई और कलकत्ता किस सड़क मार्ग से जुड़े हैं ?
उत्तर :
स्वर्णिम चतुर्भुज (Golden Quadrilateral)।

प्रश्न 4.
भारत के किस राज्य में गेहूँ की प्रति हेक्टेयर पैदावर सबसे अधिक है ?
उत्तर :
पंजाब।

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प्रश्न 5.
दक्षिण भारत के किस राज्य में चाय का उत्पादन सबसे अधिक होता है ?
उत्तर :
तमिलनाडु।

प्रश्न 6.
गन्ने के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन सा स्थान है ?
उत्तर :
दूसरा।.

प्रश्न 7.
किस गन्ना उत्पादन क्षेत्र को भारत का ‘जावा’ कहते हैं ?
उत्तर :
तराई क्षेत्र या गोरखपुर-देवरिया क्षेत्र।

प्रश्न 8.
भारत का कौन राज्य ज्वार का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है ?
उत्तर :
महाराष्ट्र।

प्रश्न 9.
भारत की सबसे प्रमुख कृषि फसलें कौन हैं ?
उत्तर :
चावल और गेहूँ।

प्रश्न 10.
भारत का सबसे बड़ा चावल उत्पादक राज्य कौन है ?
उत्तर :
पश्चिम बंगाल।

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प्रश्न 11.
भारत में लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या है ?
उत्तर :
कृषिं।

प्रश्न 12.
भारत में चाय के सबसे बड़े उत्पादक राज्य का नाम बताओ।
उत्तर :
असम।

प्रश्न 13.
महाराष्ट्र की प्रमुख नगदी फसल कौन सी है ?
उत्तर :
कपास।

प्रश्न 14.
नीलगिरि पर कौन सी फसल उत्पन्न की जाती है ?
उत्तर :
कहवा।

प्रश्न 15.
जूट के उत्पादन में भारतवर्ष का विश्व में कौन सा स्थान है ?
उत्तर :
पहला।

प्रश्न 16.
भारत के किस राज्य का जूट के उत्पादन में पहला स्थान है ?
उत्तर :
पश्चि बंगाल।

प्रश्न 17.
दक्षिण भारत के एक प्रमुख कहवा उत्पादक क्षेत्र का नाम लिखिए।
उत्तर :
कर्नाटक।

प्रश्न 18.
किस फसल को सुनहला रेशा कहते हैं ?
उत्तर :
जूट।

प्रश्न 19.
प्रति एकड़ गेहूँ का उत्पादन किस राज्य में सबसे अधिक है ?
उत्तर :
पंजाब।

प्रश्न 20.
भारत के केन्द्रीय गेहूँ अनुसंधानशाला कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
पूसा (नई दिल्ली) में।

प्रश्न 21.
चाय के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन सा स्थान हैं ?
उत्तर :
पहला।

प्रश्न 22.
भारत की अधिकांश चाय किस बन्दरगाह से निर्यात की जाती है ?
उत्तर :
कोलकाता बन्दरगाह से।

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प्रश्न 23.
भारत की सबसे बड़ी नदी घाटी योजना का नाम क्या है ?
उत्तर :
भाखरा नांगल।

प्रश्न 24.
गेहूँ किस प्रकार की फसल है।
उत्तर :
रबि फसल।

प्रश्न 25.
पश्चिम बंगाल में चाय की कृषि किन जिलों में होती है ?
उत्तर :
जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग तथा कूचबिहार।

प्रश्न 26.
भारत का सबसे बड़ा चाय उत्पादन राज्य कौन है ?
उत्तर :
असम।

प्रश्न 27.
भारत का सबसे बड़ा काफी उत्पादक राज्य कौन है ?
उत्तर :
कर्नाटक।

प्रश्न 28.
कपास की कृषि के लिए कौन सी मिट्टी सर्वोत्तम होती है ?
उत्तर :
काली मिट्टी।

प्रश्न 29.
जूट की कृषि के लिए कौन सी मिट्टी सर्वोत्तम होती है ?
उत्तर :
नयी जलोढ़ मिट्टी।

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प्रश्न 30.
प्रति हेक्टेयर गत्रा का उत्पादन किस राज्य में सर्वाधिक है ?
उत्तर :
तमिलनडु।

प्रश्न 31.
भारत में केन्द्रीय धान अनुसंधान केन्द्र कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
कटक (उड़िसा में)।

प्रश्न 32.
भारत में केन्द्रीय जूट अनुसंधान केन्द्र कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
बैरकपुर (पश्चिम बंगाल) में।

प्रश्न 33.
वर्तमान में भारत में प्रति व्यक्ति उपलब्ध भूमि कितनी है ?
उत्तर :
0.08 हेक्टेयर है।

प्रश्न 34.
कम तापमान एवं कम वर्षा वाली फसलें कौन सी हैं ?
उत्तर :
गेहूँ, जो, चना, मटर, सरसों आदि।

प्रश्न 35.
उष्षाद्र जलवायु वाली फसलों के नाम बताएँ।
उतर :
धान, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि।

3प्रश्न 6.
भारत के कुल क्षेत्रफल का कितना हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है ?
उत्तर :
19.5 करोड़ हेक्टेयर।

प्रश्न 37.
भारत में उगाए जाने वाले प्रमुख पेय फसले क्या हैं ?
उत्तर :
चाय और कहवा।

प्रश्न 38.
भारत की मुद्रादायिनी फसलों के नाम लिखें।
उत्तर :
कपास, जूट, चाय, कहवा, गन्ना आदि।

प्रश्न 39.
खरबूज, ककड़ी, मेथी किस प्रकार की फसलें हैं ?
उत्तर :
जायद (Jayed)।

प्रश्न 40.
चावल के उत्पादन में भारत को विश्व में कौन सा स्थान है ?
उत्तर :
दूसरा।

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प्रश्न 41.
चावल की कृषि के लिए कौन सी मिट्टी सर्वोत्तम होती है ?
उत्तर :
चिकनी, कछारी, दोमट अथवा डेल्टाई मिट्टी।

प्रश्न 42.
आजकल भारत में किस विधि से चावल की कृषि की जा रही है ?
उत्तर :
जापानी विधि से।

प्रश्न 43.
चावल की कुछ उत्तम किस्म की बीजों के नाम लिखो।
उत्तर :
रत्ना, विजया, IR-20 एवं मंसूरी।

प्रश्न 44.
पश्चिम बंगाल में चावल की कितनी फसलें बोई जाती है ?
उत्तर :
तीन फसले (अमन, औस तथा बोरो)।

प्रश्न 45.
कहाँ का बासमती चावल अपने स्वाद व सुगन्ध के लिए विख्यात है ?
उत्तर :
देहरादून।

प्रश्न 46.
भारत के किस राज्य में प्रति एकड़ चावल उत्पादन सबसे अधिक है ?
उत्तर :
पंजाब।

प्रश्न 47.
गेहूँ के उत्पादन में कौन सा राज्य अग्रगण्य है ?
उत्तर :
उत्तर प्रदेश।

प्रश्न 48.
ज्वार उत्पादन में किस राज्य का प्रथम स्थान है ?
उत्तर :
महाराष्ट्र।

प्रश्न 49.
ज्वार के नये बीज कौन है ?
उत्तर :
CSH-5 एवं CSH-6

प्रश्न 50.
भारत में सबसे अधिक किस राज्य में बाजरा का उत्पादन होता है ?
उत्तर :
राजस्थान।

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प्रश्न 51.
बाजरा के उत्तम बीजों का नाम लिखो।
उत्तर :
BH-104 तथा BK-650

प्रश्न 52.
सबसे अधिक सूखा सहन करने वाला अनाज कौन है ?
उत्तर :
रागी।

प्रश्न 53.
रागी के उत्पादन में किस राज्य का प्रथम स्थान है ?
उत्तर :
कर्नाटक।

प्रश्न 54.
चाय के निर्यात में भारत का विश्व में कौन सा स्थान है ?
उत्तर :
तीसरा!

प्रश्न 55.
वर्तमान में भारत का सबसे बड़ा चाय का ग्राहक कौन सा देश है ?
उत्तर :
रूस।

प्रश्न 56.
चाय के निर्यात में किस देश का प्रथम स्थान है ?
प्तर :
श्रोलंका ।

प्रश्न 57.
भारत में कहवा की कौन सी किस्में उगाई जाती है ?
उत्तर :
कॉफी अरेबिका तथा कॉफी रोबस्टा।

प्रश्न 58.
भारतीय कहवा को क्या कहा जाता है ?
उतर :
मधुर कहवा (Mild Coffee)!

प्रश्न 59.
भारतीय कहवे का मुख्य ग्राहक कौन देश हैं ?
उत्तर :
रूस, इटली एवं जर्मनी।

प्रश्न 60.
भारत में किस बन्दरगाह से कहवे का निर्यात सबसे अधिक होती है ?
इत्तर :
मंगलौर बन्दरगाह।

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प्रश्न 61.
कपास के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन सा स्थान है ?
उत्तर :
बौथा।

प्रश्न 62.
कपास किस प्रकार का पौधा है ?
उतर :
उष्णा एवं उपोष्ण पौधा।

प्रश्न 63.
कपास का शत्रु कौन है ?
उतर :
पाला।

प्रश्न 64.
कपास की कृषि के लिए कितने दिन पाला-रहित होना आवश्यक है ?
उतर :
200 दिन।

प्रश्न 65.
कपास के पौधों पर किस प्रकार के कीड़े का प्रकोप होता है ।
उत्तर :
बाल-वीविल (Ball-Weevil)।

प्रश्न 65.
कपास का व्यापार किस बन्दरगाह से होता है ?
उत्तर :
मुम्बई।

प्रश्न 67.
कपास का मुख्य ग्राहक कौन देश है ?
उत्तर :
जापान।

प्रश्न 68.
भारत में कपास का केन्द्रीय अनुसंधान केन्द्र कहाँ है ?
उत्तर :
नागपुर (महाराष्ट्र में)।

प्रश्न 69.
गत्रे के उत्पादन में विश्व में पहला स्थान किसका है ?
उतर :
बाजील।

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प्रश्न 70.
भारत में कितने भू-भाग पर कृषि कार्य होता है ?
उत्तर :
17.11 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर।

प्रश्न 71.
गत्ना किस प्रकार का पौधा है ?
उत्तर :
उष्ण कटिबन्ध का पौधा है।

प्रश्न 72.
गन्ने के उत्पादन में किस राज्य का प्रथम स्थान है ?
उत्तर :
उत्तर प्रदेश।

प्रश्न 73.
भारत का जावा किसे कहते है ?
उत्तर :
तराई क्षेत्र या गोरखपुर-देवरिया क्षेत्र को।

प्रश्न 74.
भारत में गत्ना शोध संस्थान कहाँ है ?
उत्तर :
कोयम्बटूर (तमिलनाडु) में।

प्रश्न 75.
भारत में सबसे अधिक कपास का उत्पादन किस राज्य में होता है ?
उत्तर :
गुजरात।

प्रश्न 76.
तृतीय व्यवसाय का एक उदाहरण दें।
उतर :
संचार।

प्रश्न 77.
मोटे आनाज जैसे ज्वार-बाजरा, रागी आदि फसलों के अनुसंधानशाला केन्द्र कहाँ स्थापित हैं ?
उत्तर :
योधपुर, राजस्थान में।

प्रश्न 78.
स्थानान्तरणशील कृषि को वियतनाम में क्या कहते हैं ?
उत्तर :
रे (Ray)

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प्रश्न 79.
किस कृषि पद्धति में फसल चक्र का प्रयोग किया जाता है।
उत्तर :
स्थानबद्ध कृषि (Sedentary Agriculture) में।

प्रश्न 80.
मिश्रित कृषि का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
फसल उत्पादन के साथ-साथ पशुपालन।

प्रश्न 81.
नित्यवाही नहर का अर्थ क्या है ?
उत्तर :
सालों भर नहर में पानी।

प्रश्न 82.
तुंगभद्रा परियोजना किस नदी पर स्थित है ?
उत्तर :
तुंगभद्रा नदी पर।

प्रश्न 83.
नहर द्वारा सिंचाई सबसे अधिक किस राज्य में होती है ?
उत्तर :
जम्मु-कश्मीर में।

प्रश्न 84.
भारत में किस राज्य का स्थान जूट उत्पादन में प्रथम है ?
उत्तर :
पश्चिम बंगाल।

प्रश्न 85.
भारत की अधिकांश चाय किस बन्दरगाह से निर्यात होती है ?
उत्तर :
कोलकाता बन्दरगाह।

प्रश्न 86.
चाय के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन सा स्थान है ?
उत्तर :
प्रथम।

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प्रश्न 87.
हरित क्रांति (Green Revolution) का शुरुआत किस वर्ष किया गया ?
उत्तर :
1960 ई० में।

प्रश्न 88.
M.R.V.P. का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर :
बहुद्देशीय नदी घाटी परियोजना (Multi River Valley Project)।

प्रश्न 89.
सेरीकल्चर किसे कहते हैं ?
उत्तर :
सिल्क का उत्पादन और सिल्क के कीटों का पालन सेरीकल्चर कहलाता है।

प्रश्न 90.
हर्टीकल्चर क्या है ?
उत्तर :
हरी सब्जियों, फलों और फूलों की कृषि को हर्टीकल्चर कहा जाता है।

प्रश्न 91.
सिंचाई के प्रमुख साधन क्या-क्या हैं ?
उत्तर :
सिंचाई के प्रमुख साधनों में – कुआँ, तालाब, नहर तथा नलकूप आदि हैं।

प्रश्न 92.
भारत में प्रमुख गेहूँ उत्पादक राज्यों का उल्लेख करो।
उत्तर :
प्रमुख गेहूँ उत्पादक राज्य : उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और मध्यप्रदेश हैं।

प्रश्न 93.
लौह-इस्पात उद्योग में प्रमुख कच्चा माल किस प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
अशुद्ध कच्चे माल होते है।

प्रश्न 94.
टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी की स्थापना किन नदियों के संगम स्थल पर हुई है ?
उत्तर :
स्वर्णरिा तथा खरकोई नदियों के संगम पर।

प्रश्न 95.
भारत का सबसे बड़ा इस्पात कारखाना कौन है ?
उत्तर :
बोकारो।

प्रश्न 96.
हिन्दुस्तान मशीन टुल्स लिमिटेड कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
बंगलौर में।

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प्रश्न 97.
भारत के एक मोटरगाड़ी निर्माण केन्द्र का नाम लिखिए।
उत्तर :
महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा लिमिटेड (मुम्बई)।

प्रश्न 98.
कौन तीन शहर मिलकर सिलिकन त्रिभुज का निर्माण करते हैं ?
उत्तर :
बंगलौर, पुणे एवं हैदराबाद।

प्रश्न 99.
देश का सबसे बड़ा पेट्रोरसायन समूह कौन है ?
उत्तर :
रिलायंस पेट्रोकेमिकल (जामनगर) है।

प्रश्न 100.
भारत की सूचना प्रौद्योगिकी की राजधानी तथा सिलिकन वेली किसे कहते हैं ?
उत्तर :
बंगलौर को।

प्रश्न 101.
भारत में पहला पेट्रोरसायन कारखाना कब और कहाँ स्थापित हुआ ?
उत्तर :
सन् 1966 ई० में ट्राम्बे में।

प्रश्न 102.
भारतवर्ष का भारी इंजीनियरिंग समूह कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
राँची।

प्रश्न 103.
दक्षिण भारत के सबसे विकसित उद्योग का नाम लिखो।
उत्तर :
मशीनी-औजार निर्माण उद्योग।

प्रश्न 104.
पश्चिम बंगाल का मोटर कार निर्माण केन्द्र कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
कोलकाता के निकट उत्तरपाड़ा में हिन्दुस्तान मोटर्स लिमिटेड है ।

प्रश्न 105.
त्रिवेणी स्ट्रक्चरल कम्पनी कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
इलाहाबाद के निकट नैनी में।

प्रश्न 106.
एम० ए० एम० सी० कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
दुर्गापुर में।

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प्रश्न 107.
भारतवर्ष में सूतीवस्त्र उद्योग का अग्रणी स्थान कौन है ?
उत्तर :
‘अहमदाबाद (गुजरात)।

प्रश्न 108.
भारत का सबसे बड़ा लौह-इस्पात कारखाना कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
बोकारो में।

प्रश्न 109.
किस शहर को उत्तरी भारत का मांचेस्टर कहते हैं ?
उत्तर :
अहमदाबाद को।

प्रश्न 110.
किस शहर को भारत का मांचेस्टर कहते हैं ?
उत्तर :
कानपुर को।

प्रश्न 111.
भारत का डीजल इंजन निर्माण कारखाना कहाँ स्थित हैं ?
उत्तर :
वाराणसी।

प्रश्न 112.
निर्माण प्रक्रिया में अपना वजन खोने वाले कच्चे माल को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
अशुद्ध कच्चा माल कहते हैं।

प्रश्न 113.
दो कृषि आधारित उद्योगों का नाम लिखे।
उत्तर :
सूती वस्त्र उद्योग, जूट उद्योग आदि।

प्रश्न 114.
दो पशु आधारित उद्योगों का नाम लिखे।
उत्तर :
डेयरी उद्योग और जूता निर्माण उद्योग।

प्रश्न 115.
दो वन आधारित उद्योगों का नाम लिखो।
उत्तर :
कागज उद्योग और लाख उद्योग।

प्रश्न 116.
दो खनिज आधारित उद्योगों का नाम लिखे।
उत्तर :
लौह-इस्पात उद्योग और एल्यूमीनियम उद्योग।

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प्रश्न 117.
किस उद्योग को आधारभूत या बुनियादी उद्योग कहते है ?
उत्तर :
लौह-इस्पात उद्योग को।

प्रश्न 118.
कच्चा लोहा या ढलुआ लोहा (Pig-iron) किस खनीज के सहयोग से बनता है ?
उत्तर :
लौह-अयस्क, कोकिंग कोयला और चूना पत्थर।

प्रश्न 119.
भारत में सबसे पहला लौह इस्पात कारखाना कब और कहाँ स्थापित हुई ?
उत्तर :
सन् 1907 ई० में टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी जमशेदपुर में।

प्रश्न 120.
भारत में दूसरा लौह इस्पात कारखाना कब और कहाँ स्थापित हुआ ?
उत्तर :
इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, वर्नपुर (1918 ई०)।

प्रश्न 121.
भारत में तीसरा लौह इस्पात कारखाना कब और कहाँ स्थापित हुआ ?
उत्तर :
कर्नाटक में मैसूर आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, भद्रावती (1921 ई०)।

प्रश्न 122.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद किस संस्था की सहायता से लौह-ड़स्पात उहोग स्थापित किक्रु गएल,
उत्तर :
हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड।

प्रश्न 123.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में कौन से कारखाने स्थापित किए गए ?
उत्तर :
राउरकेला, भिलाई, दुर्गापुर तथा बोकारो।

प्रश्न 124.
वर्तमान समय में देश में कुल कितने लघु कारखाने Mini Steel Plants है।
उत्तर :
169 है।

प्रश्न 125.
टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी की स्थापना कब और किसके द्वारा हुई ?
उत्तर :
सन् 1907 ई० में जमशेद जी टाटा द्वारा।

प्रश्न 126.
इणिड्डसन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी ने अपने कारखाने कहाँ स्थापित किए।
उत्तर :
पश्चिम बंगाल के बर्द्धमान जिले में।

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प्रश्न 127.
कुल्टी कारखाना किस नदी के किनारे स्थित है ?
उत्तर :
बराकर नदी।

प्रश्न 128.
विश्वेसरैया आयरण एण्ड स्टील लिमिटेड को पहले किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर :
मैसूर आयरन एण्ड स्टील कम्पनी।

प्रश्न 129.
राउरकेला इस्पात कारखाना किसके अन्तर्गत आता है ?
उत्तर :
हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड के अन्तर्गत।

प्रश्न 130.
राउरकेला कहाँ के विशेषज्रों की सहायता से बनाया गया है ?
उत्तर :
जर्मनी के विशेषज्ञों की सहायता से।

प्रश्न 131.
राउरकेला किस नदी के संगम पर स्थित है ?
उत्तर :
सांख्य एवं कोयल नदियों के संगम पर।

प्रश्न 132.
भिलाई कारखाना किसके सहयोग से बनाया गया है ?
उत्तर :
रूसी विशषज्ञो के सहयोग से।

प्रश्न 133.
भारत का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात कारखाना कहाँ है ?
उत्तर :
भिलाई कारखाना।

प्रश्न 134.
दुर्गापुर कारखाना किसके सहयोग से बनाया गया है ?
उक्षर :
ब्रिटेन के सहयोग से।

प्रश्न 135.
विशाखापट्दनम् इस्पात कारखाना कोकिंक कोयला कहाँ से आयात करता है ?
उत्तर :
आस्ट्रेलिया से।

प्रश्न 136.
भारत में प्रथम सूती वस्त्र उद्योग कब और कहाँ स्थापित हुआ ?
उत्तर :
सन् 1818 ई० में कोलकाता के निकट घुसुड़ी में हुआ।

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प्रश्न 137.
पूर्वी भारत में पेट्रोरसायन उद्योग कहाँ पर स्थापित हुआ है ?
उत्तर :
हृल्दिया में।

प्रश्न 138.
सूती वस्त्र के उत्पादन में भारत में किसका स्थान प्रथम है ?
उत्तर :
महाराष्ट्र का।

प्रश्न 139.
सूती वस्त्र की राजधानी किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
महाराए्ट का।

प्रश्न 140.
सूत व सूती वस्त्र के निर्यात में भारत का कौन सा स्थान है ?
उत्तर :
दूसरा।

प्रश्न 141.
रेलवे इंजिन, जलयान, वायुयान आदि किस उद्योग के अन्तर्गत आते हैं ?
उत्तर :
भारी इंजीनियरिंग उद्योग।

प्रश्न 142.
साइकिल, सिलाई की मशीनें, घड़ियाँ आदि किस उद्योग के अन्तर्गत आते हैं ?
उत्तर :
हल्के इंजीनियरिंग उद्योग।

प्रश्न 143.
हिन्दुस्तान मशीन दूलस लिमिटेड कारखाने की स्थापना किसकी सहायता से हुई है ?
उत्तर :
स्विस सरकार की सहायता से।

प्रश्न 144.
हिन्दुस्तान मशीन टूल्स लिमिटेड की स्थापना कहाँ हुई ?
उत्तर :
बंगलौर में।

प्रश्न 145.
H.M.T. घड़ियों का निर्माण किसकी सहायता से किया जा रहा है ?
उत्तर :
जापानी कम्पनी की सहायता से।

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प्रश्न 146.
भारत में भारी इंजीनियरिंग निगम की स्थापना किसके सहयोग से हुआ है ?
उत्तर :
सोवियत संघ एवं चेकोस्लोवाकिया के सहयोग से।

प्रश्न 147.
भारत में भारी इंजीनियरिंग उद्योग की स्थापना कब और कहाँ हुई ?
उत्तर :
सन् 1958 ई० में राँची के निकट हटिया में।

प्रश्न 148.
टेलिफोन-निर्माण उद्योग की स्थापना कहाँ हुई है ?
उत्तर :
बंगलौर।

प्रश्न 149.
हिन्दुस्तान केबुल्स लिमिटेड की स्थापना कहाँ हुई है ?
उत्तर :
रूपनारायरणपुर (पश्चिम बंगाल)।

प्रश्न 150.
सूचना प्रोद्योगिकी उद्योग किस पर आधारित उद्योग है ?
उत्तर :
ज्ञान आधारित उद्योग है।

प्रश्न 151.
भारत का सर्वप्रथम साफ्टेवेयर एवं हार्डवेयर केन्द्र कहाँ है ?
उत्तर :
बंगलौर में।

प्रश्न 152.
किस शहर को भारत का मैनचेस्टर कहा जाता है ?
उत्तर :
अहमदाबाद को भारत का मैनचेस्टर कहते हैं।

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प्रश्न 153.
किस शहर को भारत का रूर कहा जाता है ?
उत्तर :
दुर्गापुर को भारत का रूर कहते हैं।

प्रश्न 154.
भारत के दो प्रधान एयरक्राफ्ट सेण्टर कहाँ हैं ?
उत्तर :
हवाई जहाज के कारखाने कानपुर तथा बंगलोर में हैं।

प्रश्न 155.
किस स्टील प्लाण्ट का उत्पादन सबसे अधिक है ?
उत्तर :
बोकारो स्टील प्लाण्ट का।

प्रश्न 156.
भारत का सबसे बड़ा सूती वस्त्र उद्योग केन्द्र कौन है ?
उत्तर :
मुम्बई भारत का वर्तमान में सबसे बड़ा सूती वस्त्र उद्योग का केन्द्र है।

प्रश्न 157.
पश्चिमी तट के जलयान निर्माण केन्द्र के नाम लिखो।
उत्तर :
कोचीन और मुम्बई पश्चिमी तट के जलयान निर्माण केन्द्र हैं।

प्रश्न 158.
भारत के वायुयान निर्माण केन्द्रों के नाम लिखो।
उत्तर :
हिन्दुस्तान एकरोनाटिक्स लिमिटेड, बैंगलोर वायुयान निर्माण का केन्द्र है।

प्रश्न 159.
भारत में सबसे बड़ा जलपोत निर्माण केन्द्र कौन है एवं कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
विशाखापट्टनम जो आंधप्रदेश में स्थित है भारत का सबसे बड़ा जलपोत निर्माण केन्द्र है।

प्रश्न 160.
भारत के किस औद्योगिक क्षेत्र को भारत का रूर कहा जाता हैं ?
उत्तर :
दुर्गापुर औद्योगिक क्षेत्र को भारत का रूर कहा जाता है।

प्रश्न 161.
किस स्टील प्लाण्ट का निर्माण U.S.S.R की सहायता से किया गया है ?
उत्तर :
भिलाई स्टील प्लाण्ट (छत्तीसगढ़) की स्थापना U.S.S.R की सहायता से किया गया है।

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प्रश्न 162.
कृषि पर अधारित दो उद्योगों के नाम लिखो।
उत्तर :
कृषि पर आधारित दो उद्योग – (i) जूट उद्योग एवं (ii) सूती वस्त्र उद्योग।

प्रश्न 163.
दो पेट्रो रसायन उद्योग केन्द्रों के नाम लिखो।
उत्तर :
पेट्रो रसायन उद्योग के दो केन्द्र – मुम्बई और बड़ौदरा हैं।

प्रश्न 164.
भारत का भारी इन्जिनीयरिंग निगम कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
राँची के पास हटिया में भारी इंजीनियरिंग कारपोरेशन स्थित है।

प्रश्न 165.
त्रिवेनी स्ट्रकचरल कम्पनी कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
इलाहाबाद के पास नैनी में त्रिवेनी स्ट्रकचरल कम्पनी स्थित है।

प्रश्न 166.
सूती वस्त्र उद्योग का कच्चा माल क्या है ?
उत्तर :
इस उद्योग का प्रमुख कच्चा माल कपास या रूई है।

प्रश्न 167.
भारत में किस प्रकार के कपास का उत्पादन होता है।
उत्तर :
भारत में छोटे या मध्यम रेशे वाली कपास का उत्पादन होता है।

प्रश्न 168.
जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में कौन सा स्थान है ?
उत्तर :
दूसरा।

प्रश्न 169.
विश्व में किस देश की जनसंख्या सबसे अधिक है ?
उत्तर :
चीन की।

प्रश्न 170.
2011 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल की कितनी जनसंख्या है ?
उत्तर :
9,13,47,736 (लगभग)।

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प्रश्न 171.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या का घनत्व कितना है ?
उत्तर :
382 व्यक्तित्रिति वर्ग कि॰मी०।

प्रश्न 172.
भारत के स शहर की जनसंख्या सबसे अधिक है ?
उत्तर :
मुम्बई (1,24,78,447) (लगभग)।

प्रश्न 173.
भारत के किस राज्य की जनसंख्या का घनत्व सबसे अधिक है ?
उत्तर :
बिहार (1102)।

प्रश्न 174.
भारत के किस राज्य में जनसंख्या का घनत्व सबसे कम है ?
उत्तर :
अरूणाचल प्रदेश ( 17 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०)।

प्रश्न 175.
भारत के किस केन्द्रशासित राज्य में जनसंख्या का घनत्व सबसे अधिक है ?
उत्तर :
दिल्ली।

प्रश्न 176.
भारत की कितनी प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में रहती है ?
उत्तर :
68.84% ।

प्रश्न 177.
भारत की जनसंख्या का कितना प्रतिशत भाग शहरों में निवास करती हैं ?
उत्तर :
31.16 % ।

प्रश्न 178.
भारत के किस राज्य की जनसंख्या सबसे अधिक है ?
उत्तर :
उत्तर प्रदेश की।

प्रश्न 179.
भारत की कार्यरत जनसंख्या का कितना प्रतिशत भाग कृषि में लगी हुई है ?
उत्तर :
49% ।

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प्रश्न 180.
भारत की कितनी प्रतिशत जनसंख्या बाल आयु वर्ग के अन्तर्गत आती है ?
उत्तर :
13.12 प्रतिशत।

प्रश्न 181.
2011 में भारत में नगरों की कुल संख्या कितनी है ?
उत्तर :
4041 नगर है।

प्रश्न 182.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल आबादी का कितना प्रतिशत जनसंख्या नगरों में निवास करती है ?
उत्तर :
31.16 प्रतिशत आबादी।

प्रश्न 183.
भारत का औसत जन घनत्व कितना है ?
उत्तर :
382 व्यक्ति प्रति वर्ग मी०।

प्रश्न 184.
भारत का क्षेत्रफल विश्व के क्षेत्रफल का कितना प्रतिशत है ?
उत्तर :
2.4 प्रतिशत है।

प्रश्न 185.
भारत में विश्व की कितनी प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है ?
उत्तर :
17 प्रतिशत।

प्रश्न 186.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या कितनी है ?
उत्तर :
121.02 करोड़।

प्रश्न 187.
1901 में भारत में नगरों की संख्या कितनी थी ?
उत्तर :
1834 नगर थे।

प्रश्न 188.
भारत में 2001 से 2011 में दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर कितनी है ?
उत्तर :
17.64 प्रतिशत।

प्रश्न 189.
भारत में पहली जनगणना कब हुई ?
उत्तर :
1872 ई० में।

प्रश्न 190.
भारत में पहली जनगणना किसके कार्यकाल में हुई ?
उत्तर :
लार्ड लिटन।

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प्रश्न 191.
भारत में क्रमवार सम्पूर्ण जनगणना कब और किसके समय में हुई ?
उत्तर :
सन् 1881 ई० में लार्ड रिपन के समय।

प्रश्न 192.
भारत की अंतरिम जनगणना के आकड़े कब जारी किए गए ?
उत्तर :
31 मार्च सन् 2011 को।

प्रश्न 193.
भारत का लिंग अनुपात कितना है ?
उत्तर :
940 प्रति हजार है। (2011 के अनुसार)

प्रश्न 194.
भारत के किस राज्य का लिंग अनुपात सबसे अधिक है ?
उत्तर :
केरल।

प्रश्न 195.
केरल का लिंग अनुपात कितना है ?
उत्तर :
1084 प्रति हजार।

प्रश्न 196.
भारत के किस राज्य का लिंग अनुपात सबसे कम है ?
उत्तर :
हरियाणा।

प्रश्न 197.
हरियाणा का लिंग अनुपात कितना है ?
उत्तर :
861 प्रति हजार।

प्रश्न 198.
केन्द्रशासित राज्यों में सबसे कम लिंग अनुपात किसका है ?
उत्तर :
दमन एवं द्वीप।

प्रश्न 199.
भारत में 40-59 आयु वर्ग वाले व्यक्ति को किस वर्ग में रखा गया है ?
उतर :
प्रौढ़ आयु वर्ग।

प्रश्न 200.
जनगणना 2011 के आँकड़ों के अनुसार भारत की कितने प्रतिशत जनसंख्या साक्षर हैं ?
उत्तर :
74.04 प्रतिशत।

प्रश्न 201.
भारत में कितने प्रतिशत पुरुष साक्षर हैं ?
उत्तर :
282.2 प्रतिशत।

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प्रश्न 202.
भारत में कितने प्रतिशत महिलाएँ साक्षर हैं ?
उत्तर :
65.46 प्रतिशत।

प्रश्न 203.
भारत में सबसे अधिक साक्षरता वाला राज्य कौन है ?
उत्तर :
केरल (99%) ।

प्रश्न 204.
भारत में सबसे कम साक्षरता वाला राज्य कौन है ?
उत्तर :
बिहार (63.82 %) ।

प्रश्न 205.
सबसे अधिक साक्षरता वाला केन्द्रशासित प्रदेश कौन है ?
उत्तर :
लक्षद्वीप (92.28 %) ।

प्रश्न 206.
सबसे कम साक्षरता वाला केन्द्रशासित प्रदेश कौन है ?
उत्तर :
दादर एवं नगर हवेली (77.65 %) ।

प्रश्न 207.
भारत में सबसे अधिक बेरोजगार किस राज्य में है ?
उत्तर :
सिक्किम में।

प्रश्न 208.
भारत में सबसे कम बेरोजगार किस राज्य में है ?
उत्तर :
छत्तीसगढ़ में।

प्रश्न 209.
पश्चिम बंगाल में बेरोजगारी की दर कितनी है ?
उत्तर :
4.5 % है।

प्रश्न 210.
नवीनतम् आँकड़े के अनुसार सम्पूर्ण विश्व की औसत जीवन प्रत्याशा कितना है ?
उत्तर :
67.88 वर्ष है।

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प्रश्न 211.
विकसित देशों की औसत जीवन प्रत्याशा कितना है ?
उत्तर :
78 वर्ष है।

प्रश्न 212.
विकाशशील देशों में औसत जीवन प्रत्याशा कितना है ?
उत्तर :
65 वर्ष है।

प्रश्न 213.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में औसत जीवन प्रत्याशा कितना है ?
उत्तर :
65.48 वर्ष है।

प्रश्न 214.
विश्व में सबसे अधिक जीवन प्रत्याशा किस देश के लोगों का है ?
उत्तर :
जापान (83 वर्ष०) और स्वीटजरलैण्ड का।

प्रश्न 215.
विश्व में सबसे कम जीवन प्रत्याशा किस देश के लोगों का है ?
उत्तर :
सियरा नियोन (47 वर्ष)।

प्रश्न 216.
भारत में सर्वाधिक शिशु मृत्यु दर वाला राज्य कौन है ?
उत्तर :
मध्य प्रदेश (प्रति हजार पर 67)।

प्रश्न 217.
भारत में सबसे कम शिशु मृत्यु दर वाला राज्य कौन है ?
उत्तर :
केरल (प्रति हजार 28 पर)।

प्रश्न 218.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल कार्यशील जनसंख्या का कितना प्रतिशत प्राथमिक व्यवसाय में है ?
उत्तर :
49 %

प्रश्न 219.
जनघनत्व की दृष्टि से पश्चिम बंगाल का कौन सा स्थान है ?
उत्तर :
दूसरा (1029 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०)।

प्रश्न 220.
केन्द्रशासित राज्यों में जनघनत्व का प्रथम स्थान किसका है ?
उत्तर :
दिल्ली (11,297 व्यक्ति प्रति वर्ग कि॰मी०)।

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प्रश्न 221.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कितना प्रतिशत नगरीकरण है ?
उत्तर :
13.16 प्रतिशत।

प्रश्न 222.
आधुनिक युग में किसी भी देश के विकास का मुख्य आधार क्या है ?
उत्तर :
परिवहन एवं संचार।

प्रश्न 223.
परिवहन का सबसे धीमा तथा सस्ता साधन कौन-सा है ?
उत्तर :
जल परिवहन।

प्रश्न 224.
परिवहन का सबसे तीव्र तथा महँगा साधन कौन-सा है ?
उत्तर :
वायु परिवहन।

प्रश्न 225.
पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस के परिवहन के लिए किस साधन का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर :
पाइप लाइन परिवहन।

प्रश्न 226.
स्थल परिवहन के कौन-कौन से साधन हैं ?
उत्तर :
सड़क एवं रेलमार्ग।

प्रश्न 227.
जल परिवहन के कौन-कौन से साधन है ?
उत्तर :
समुद्र, आंतरिक नदी तथा नहर।

प्रश्न 228.
भारत में रेलवे का आरम्भ कब हुआ था ?
उत्तर :
1853 ई० में।

प्रश्न 229.
भारत में पहली रेल किन स्थानों के बीच चली ?
उत्तर :
मुम्बई से ठाने।

प्रश्न 230.
भारतीय रेल में कितने लोगों को रोजगार प्राप्त है ?
उत्तर :
15.5 लाख लोग।

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प्रश्न 231.
भारत में प्रतिदिन कितनी रेलगाड़ियाँ चलती हैं ?
उत्तर :
लगभग 1200 रेलगाड़याँ।

प्रश्न 232.
भारत में कुल कितने रेलवे स्टेशन हैं ?
उत्तर :
7023 रेलवे स्टेशन हैं।

प्रश्न 233.
भारतीय रेलमार्ग को कितने खण्डों में विभाजित किया गया है ?
उत्तर :
16 खण्डों में।

प्रश्न 234.
आन्तरिक जल परिवहन में देश के कुल परिवहन का कितना प्रतिशत योगदान है ?
उत्तर :
मात्र 0.15 प्रतिशत योगदान है।

प्रश्न 235.
भारत में सड़कों की कुल लम्बाई कितनी है ?
उत्तर :
41 लाख कि०मी०।

प्रश्न 236.
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग की देखभाल की जिम्मेदारी किस पर है ?
उत्तर :
केन्द्रीय सार्वजनिक निर्माण विभाग पर।

प्रश्न 237.
वर्तमान समय में देश में राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल संख्या कितनी है ?
उत्तर :
221

प्रश्न 238.
राष्ट्रीय राजमार्गो की कुल लम्बाई कितनी है ?
उत्तर :
66,631 कि०मी०।

प्रश्न 239.
देश का सबसे लम्बा राजमार्ग कौन है ?
उत्तर :
NH. 7 (2369 कि॰मी०)

प्रश्न 240.
NH-7 भारत के किन दो स्थानों को जोड़ता है ?
उत्तर :
वाराणसी को कन्याकुमारी से जोड़ता है।

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प्रश्न 241.
स्वर्णिम चतुर्भुज महामार्ग की कुल लम्बाई कितनी है ?
उत्तर :
5846 कि०मी०।

प्रश्न 242.
स्वर्णिम चतुर्भुज महामार्ग कितने लेन में निर्मित है ?
उत्तर :
6 लेन में निर्मित है।

प्रश्न 243.
स्वर्णिम चतुर्भुज महामार्ग की सबसे अधिक लम्बाई किन महानगरों के बीच है ?
उत्तर :
मुम्बई-कोलकत्ता के बीच।

प्रश्न 244.
स्वर्णिम चतुर्भुज महामार्ग की सबसे कम लम्बाई किन महानगरों के बीच है ?
उत्तर :
मुम्बई-चेन्नई के बीच।

प्रश्न 245.
उत्तर-दक्षिण तथा पूर्व-पश्चिम गलियारा की कुल लम्बाई कितनी है ?
इत्तर :
7300 कि०मी०।

प्रश्न 246.
भारत की आंतरिक जल परिवहन व्यवस्था की कुल लम्बाई कितनी है ?
उत्तर :
14500 कि०मी०।

प्रश्न 347.
आंतरिक जल परिवहन में देश के कुल परिवहन का कितना प्रतिशत योगदान है ?
उत्तर :
मात्र 0.15 प्रतिशत।

प्रश्न 248.
NW-1 आंतरिक जलमार्ग के लम्बाई कितनी है ?
उत्तर :
1620 कि०मी०।

प्रश्न 249.
NW- 1 आंतरिक जल मार्ग किन स्थानों को जोड़ती है ?
उत्तर :
इलाहाबाद को हल्दिया से।

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प्रश्न 250.
ब्रहापुत्र नदी राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या- 2 की लम्बाई कितनी है ?
उत्तर :
891 कि॰मी०।

प्रश्न 251.
बिहार में किस नहर द्वारा जल परिवहन का कार्य होता है ?
उत्तर :
सोन की नहरें।

प्रश्न 252.
पंजाब का प्रमुख जल परिवहन नहर कौन-सा है ?
तत्तर :
सरहिन्द नहर।

प्रश्न 253.
कारोमण्डल तट पर कौन-सा नहर स्थित है ?
उत्तर :
बकिंघम नहर तथा कृष्ण नहर।

प्रश्न 254.
केरल में कौन-सा नहर है ?
उत्तर :
बैकवाटर्स नहर।

प्रश्न 255.
देश का कितना प्रतिशत व्यापार समुद्री मार्ग द्वारा होता है ?
उत्तर :
लगभग 99 %

प्रश्न 256.
भारत के समुद्र तट की कुल लम्बाई कितनी है ?
उत्तर :
7516 कि॰मी॰।

प्रश्न 257.
भारत में कुल कितने बन्दरगाह हैं ?
उत्तर :
12 बड़े एवं 187 छोटे एवं मझोले बन्दरगाह हैं।

प्रश्न 258.
भारत के किस बन्दरगाह पर कम्प्युटर नियंत्रित तकनीक का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर :
न्हावाशेवा या न्यू मुम्बई बन्दरगाह।

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प्रश्न 259.
कराँची बन्दरगाह के पाकिस्तान चले जाने के कारण किस बन्दरगाह का विकास किया गया है ?
उत्तर :
काण्डला बन्दरगाह।

प्रश्न 260.
किस बन्दरगाह से आयात की तुलना में निर्यात अधिक होता है ?
उत्तर :
मर्मुगाओ।

प्रश्न 261.
किस बन्दरगाह से लौह-अयस्क का आयात-निर्यात अधिक होता है ?
उत्तर :
न्यू मैंगलोर बन्दरगाह।

प्रश्न 262.
भारत की नदी बंदरगाह का नाम लिखो।
उत्तर :
कोलकाता बंदरगाह।

प्रश्न 263.
भारत का सबसे गहरा बंदरगाह कौन-सा है ?
उत्तर :
विशाखापत्तनम।

प्रश्न 264.
भारत में पहली वायु उड़ान कहाँ हुई थी ?
उत्तर :
इलाहाबाद से नैनी तक।

प्रश्न 265.
भारत में वायुयान द्वारा सबसे पहले कौन सा कार्य हुआ ?
उत्तर :
डाक सेवा शुरू की गयी।

प्रश्न 266.
वर्तमान समय में एयर इण्डिया के कितने बड़े विमान है ?
उत्तर :
26 विमान हैं।

प्रश्न 267.
भारत में कुल कितने अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं ?
उत्तर :
16 हवाई अड्डे हैं।

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प्रश्न 268.
छत्रपति शिवाजी अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा कहाँ है ?
उत्तर :
मुम्बई में।

प्रश्न 269.
पेट्रोरसायन उद्योग के विकेन्द्रीकरण में कौन-सा परिवहन सहायक सिद्धि होता है ?
उत्तर :
पाइप लाइन परिवहन।

प्रश्न 270.
दो परम्परागत दूर संचार का उदाहरण दें।
उत्तर :
डाक सेवा तथा रेडियो प्रसारण।

प्रश्न 271.
वर्तमान समय में व्यक्तिगत दूरसंचार के साधन क्या हैं ?
उत्तर :
सेलफोन तथा इंटरनेट।

प्रश्न 272.
स्वतंत्रता के समय भारत में कितनी टेलिफोन एक्सचेंज थी ?
उत्तर :
300 टेलिफोन एक्सचेंज थे।

प्रश्न 273.
ई-मेल (E-mail) का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर :
इलेक्ट्रॉनिक मेल।

प्रश्न 274.
व्यापारिक जहाजरानी बेड़े की दृष्टि से भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है ?
उत्तर :
17 वाँ स्थान है।

प्रश्न 275.
भारत के वृहद पेट्रो-रसायन केन्द्र का नाम बताओ।
उत्तर :
कोयली, गुजरात।

प्रश्न 276.
पश्चिम बंगाल में प्रमुख सूचना-प्राद्यौगिक औद्योगिक पार्क कहाँ स्थापित है ?
उत्तर :
साल्टलेक में।

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प्रश्न 277.
भारत के एक कर-मुक्त बन्दरगाह का नाम बताओ।
उत्तर :
कांडला बंदरगाह।

प्रश्न 278.
भारत के सबसे बड़ा समाचार संगठन का नाम लिखिए।
उत्तर :
Press Trust of India (P.T.I.), जो नई दिल्ली में स्थित है।

प्रश्न 279.
किस परिवहन व्यवस्था में स्वर्णिम चतुर्भुज शब्द का उपयोग होता है ?
उत्तर :
सड़क परिवहन।

प्रश्न 280.
भारत में किस प्रकार की सिंचाई व्यवस्था सर्वाधिक प्रचलित है ?
उत्तर :
नहरों द्वारा सिंचाई।

प्रश्न 281.
ज्वार, बाजरा, रागी को किस फसल के नाम से जाना जाता है ?
उत्तर :
ज्वार, बाजरा, रागी को मिलेट (Millet) या मोटे फसल के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 282.
भारत में उत्पन्न होने वाले एक नगदी फसल का नाम लिखिए।
उत्तर :
चाय और जूट नगदी फसलें हैं जो भारत में उत्पादित होते हैं।

प्रश्न 283.
बुलविल सामान्यत: किस फसल में लगते हैं ?
उत्तर :
कपास में ।

प्रश्न 284.
किस उद्योग को सभी उद्योगों की रीढ़ कहते हैं ?
उत्तर :
लौह-इस्पात उद्योग को 1

प्रश्न 285.
भारत में सबसे कम जनसंख्या किस राज्य की है ?
उत्तर :
सिक्किम।

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प्रश्न 286.
भारत के एक भारी उद्योग का उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
लौह-इस्पात उद्योग।

प्रश्न 287.
TISCO की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1907 ई० में।

प्रश्न 288.
VISL को लौह अयस्क कहाँ से मिलता है ?
उत्तर :
केमानगुण्डी की खानों से लौह-अयस्क प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न 289.
भारी इंजीनियरिंग उद्योग का एक उदाहरण दो।
उत्तर :
औद्योगिक मशीनरी, रेलवे इंजिन आदि।

प्रश्न 290.
पेट्रोरसायन का एक कच्चा माल लिखो।
उत्तर :
नेष्था, बेजीन, विटुमिन आदि।

प्रश्न 291.
मल्टीमीडिया क्या है ?
उत्तर :
किसी बात या सूचना को शब्द, ध्वनि, ग्राफिक तथा एनीमेशन, एनीमेशन के मध्यम से एक साथ सम्पादित करना मल्टीमीडिया कहलाता है।

प्रश्न 292.
भारत में कुल पुरुषों संख्या कितनी है ?
उत्तर :
62.37 करोड़ है।

प्रश्न 293.
भारत में कुल जनघनत्व क्या है ?
उत्तर :
382

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प्रश्न 294.
कृषि क्षेत्र में भारत की जनसंख्या का प्रतिशत कितना है ?
उत्तर :
49 %

प्रश्न 295.
भारत में उद्योग क्षेत्र जनसंख्या का प्रतिशत कितना है ?
उत्तर :
24 %

प्रश्न 296.
यातायात और व्यापार के क्षेत्र में भारत की जनसंख्या का प्रतिशत कितना है ?
उत्तर :
23 %

प्रश्न 297.
देश की कितनी प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है ?
उत्तर :
65 %

प्रश्न 298.
कुल कृषिगत क्षेत्र पर कितने भाग में खाद्यान्न फसलें उगायी जाती है ?
उत्तर :
66 %

प्रश्न 399.
धान की कृषि के लिए कितनी वर्षा चाहिये ?
उत्तर :
100 से 200 से०मी० तक वार्षिक वर्षा।

प्रश्न 300.
रागी का सबसे अधिक उत्पादन कहाँ किया जाता है ?
उत्तर :
तमिलनाडु, आन्द्र प्रदेश और कर्नाटक थे।

प्रश्न 301.
कपास के उत्पादन के लिए कैसी मिट्टी चाहिए ?
उत्तर :
काली मिट्टी।

प्रश्न 302.
चाय के उत्पादन के लिए कैसी मिट्टी चाहिए ?
उत्तर :
लौहयुक्त उपजाऊ मिट्टी।

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प्रश्न 303.
कच्चे माल के प्रकृति पर उद्योगों को कितने भाग में बाँटा गया है ?
उत्तर :
दो भागों में बाँटा गया है।

प्रश्न 304.
भारी इंजीनियरिंग उद्योग का एक उदाहरण दो।
उत्तर :
औद्योगिक मशीनरी, रेलवे इंजिन उद्योग आदि।

प्रश्न 305.
हल्का इंजीनिग्ररिंग उद्योग का एक उदाहरण दो।
उत्तर :
साइकिल, सिलाई की मशीने, धड़ियाँ आदि।

प्रश्न 306.
संरचनात्मक इंजीनियरिंग उद्योग का एक उदाहरण दो।
उत्तर :
मशीनरी यन्त्रों तथा मशीनरी का निर्माण उद्योग।

प्रश्न 307.
भारत की दो पेय फसलों का नाम बताइये जिनका निर्यात होता है।
उत्तर :
चाय एवं कहवा।

प्रश्न 308.
वन आधारित एक उद्योग का नाम बताइये।
उत्तर :
कागज उद्योग।

प्रश्न 309.
भारत के किस भाग में पेट्रो-रसायन उद्योग का सबसे अधिक विकास हुआ है ?
उत्तर :
पश्चिमी क्षेत्र में।

प्रश्न 310.
सेल फोन से क्या समझथे हैं ?
उत्तर :
यह एक लम्बी दूरी का इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जिसे विशेष बेस स्टेशनो के नेटवर्क के आधार पर मोबाइल आवाज या डेटा संचार के लिए उपयोग करते है। इन्हें सेल सारटों के रूप में जाता है।

प्रश्न 311.
भारत के पश्चिमी भाग में लौह-इस्पात उद्योग का विकास न होने का एक कारण बताइये।
उत्तर :
खनिजों के अभाव के कारण।

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प्रश्न 312.
भारत के किस राज्य में गेहूँ की प्रति हेक्टेयर पैदावार सबस अधिक है ?
उत्तर :
पंजाब (4,696 कि० ग्रा० प्रति हेक्टेयर)

प्रश्न 313.
किस गत्रा उत्पाद क्षेत्र को ‘भारत का जावा’ कहते हैं।
उत्तर :
उत्तरी भारत को।

प्रश्न 314.
भारत की कितनी प्रतिशत जनसंख्या बाल आयु वर्ग के अन्तर्गत आती है ?
उत्तर :
31.2 %

प्रश्न 315.
व्यापारिक जहाजरानी बेड़े की दृष्टि से भारत का विश्व में कौन सा स्थान है ?
उत्तर :
17 वाँ स्थान है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS

प्रश्न 1.
संधारणीय विकास (Sustainable development) से क्या समझते हैं ?
उत्तर :
संसाधनों के संरक्षण के साथ विकास को ही रक्षणीय विकास या संधारणीय विकास (Sustainable development) कहते है।

प्रश्न 2.
जीवन निर्वहन कृषि से क्या समझते हैं ?
उत्तर :
भारतीय कृषि जीवन निर्वहन प्रकृति की है। रोजगार के अवसरों की कमी के कारण यहाँ अधिकांश लोग कृषि कार्य में लगे हुए है तथा कृषक अधिकांश उत्पादन का उपयोग स्वयं कर लेते है। वास्तव में कृषक कृषि इसी उद्देश्य से करता है कि कृषि उत्पादन से उसके परिवार की न्यूनतम आवश्यकताएँ पूरी हो सकें।

प्रश्न 3.
कृषि क्या है ?
उत्तर :
Agriculture शब्द की उत्पत्ति लैटिन के दो शब्द ‘agar’ और ‘cultura’ से हुई है। ‘Agar’ का मतलब भूमि और ‘Cultura’ का मतलब कृषि होता है। अत: Agriculture का तात्पर्य फसलों के उत्पादन के लिए भूमि की कृषि है।

प्रश्न 4.
गहन कृषि की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
गहन कृषि की विशेषता –
(i) गहन कृषि छोटी जोतों पर की जाती है।
(ii) उत्तम बीज, खाद एवं रासायिनक उर्वरक तथा सिंचाई की सुविधा का प्रयोग करके प्रति हेक्टेयर ऊपज बढ़ाना।

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प्रश्न 5.
जीविका कृषि से आप क्या समझते हो ?
उत्तर :
जीविका कृषि में कृषक अपनी तथा अपने परिवार के सदस्यों की उदारपूर्ति के लिए फसले उगाता है। चावल सबसे महत्तपूर्ण फसल है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में गेहूँ, जो, मक्का, ज्वार-वाजरा, सौयाबीन, दाल, तिलहन भी बोये जाते हैं। इस कृषि भूमि पर जनसंख्या के अधिक दबाव के कारण भूमि का गहनतापूर्वक उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 6.
भारत में किन तिलहनों का उत्पादन किया जाता है ?
उत्तर :
भारत में मूँगफली, रेपसीड, तिल, अलसी, सरसों, राई, कपास का बीज, सोयाबीन, नारियल, रेंडी उगाया जाता है।

प्रश्न 7.
अनित्यवाही नहर क्या है ?
उत्तर :
अनित्यवाही नहरों में जल वर्षा के समयकाल में ही रहता है। ऐसी नहरों की लम्बाई बहुत कम होती है, जैसे कृष्णा एवं कावेरी डेल्टा।

प्रश्न 8.
फजेण्डा क्या है ?
उत्तर :
ब्राजील कहवा का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यहाँ कहवा की कृषि बड़े-बड़े बगानों में की जाती है जिन्हें फजेण्डा के नाम से पुकारा जाता है।

प्रश्न 9.
जायद फसल क्या है ?
उत्तर :
जायद फसलें वे हैं जो ग्रीष्म या वसन्त ॠतु के शुरू में रोपी जाती है और ग्रीष्म ऋतु अन्त में ही वर्षा ऋतु के पहले काट ली जातीहै । जैसे – खरबूज-तरबूज, ककड़ी आदि।

प्रश्न 10.
पेय फसल से तुम क्या समझते हो ?
उत्तर :
पेय फसल के अन्तर्गत कहवा और चाय आता है। अर्थात् वे फसलें जो पीने के रूप में प्रयोग किया जाता है उन्हें पेय फसल कहा जाता है।

प्रश्न 11.
ट्रक फार्मिंग क्या है ?
उत्तर :
यह एक विशेष प्रकार की कृषि है । बाजार से कृषि क्षेत्र की दूरी को तय करने में जो समय लगता है उसे ट्रक फार्मिंग कहा जाता है। इसके अन्तर्गत उद्यान कृषि को रखा जाता है जिसमें फल, फूल तथा सब्जियों की खेती की जाती है।

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प्रश्न 12.
भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में कितने किस्म की चावल पैदा की जाती है ?
उत्तर :
भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में तीन किस्म की चावल पैदा की जाती है जिनमें अमन, औस और वोरो का नाम आता है। चावल उत्पादन में पश्चिम बंगाल का स्थान प्रथम है।

प्रश्न 13.
रेशेदार फसल से आप क्या समझते हो ?
उत्तर :
वे फसलें जिनसे रेशा प्राप्त किया जाता है उन्हें रेशेदार फसल कहा जाता है। जैसे – कपास एवं जूट। कपास को श्वेत-रेशादार तथा जूट को सुनहले रेशेदार फसल कहा जाता है।

प्रश्न 14.
बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजना का दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजना का अर्थ होता है बहुत सा उद्देश्य –

  • सिंचाई की समुचित व्यवस्था करना।
  • जलविद्युत उत्पन्न करना।
  • मछली पालन करना।
  • नौका बिहार के साथ मनोरंजन करना।

प्रश्न 15.
उत्तर-पूर्वी भारत एवं दक्षिणी भारत के प्रमुख चाय उत्पादक राज्यों के नाम लिखिए।
उत्तर :
उत्तर-पूर्वी भारत के चाय उत्पादक राज्यों में पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग, असम, त्रिपुरा तथा दक्षिण भारत के तामिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश एवं केरल हैं।

प्रश्न 16.
झुमिंग कृषि क्या है ?
उत्तर :
स्थानांतरी कृषि को उत्तर-पूर्वी भारत में झुमिंग कृषि कहा जाता है। यह कृषि क्षेत्र दो-तीन वर्षों के बाद बदलता रहता है। इस प्रकार की कृषि में कृषकों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानातरण होना पड़ता है असम, मिजोराम, मणिपुर, त्रिपुरा, नागालैण्ड एवं मेघालय में इस प्रकार की कृषि की जाती है।

प्रश्न 17.
कपास की प्रमुख प्रजातियाँ कितनी है ?
उत्तर :
कपास की प्रमुख तीन प्रजातियाँ है :-

  • लम्बे रेशेवाली
  • मध्यम रेशे वाली तथा
  • छोटे रेशेवाली।

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प्रश्न 18.
रवि फसलों से क्या समझते हो ?
उत्तर :
रवि फसल (Rabi Crops) : जो फसलें जाड़े के प्रारम्भ में बोई जाती है एवं मार्च-अप्रेल में काटी जाती है, रवि फसलें कही जाती है। जैसे गेहूँ, चना, सरसों, मसूर, मटर आदि।

प्रश्न 19.
खरीफ फसलों से क्या समझते हो ?
उत्तर :
खरीफ फसल (Kharif Crops) : वे फसलें जो बरसात से पहले अप्रेल-मई में बोई जाती है तथा नवम्बर दिसम्बर में काट ली जाती है, खरीफ फसलें कहलाती है। जैसे – ज्वार, बाजरा, धान आदि।

प्रश्न 20.
नकदी फसलों से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
नकदी फसल (Cash Crops) : नकदी फसलों से आशय उन फसलों से है जिनका उत्पादन उपयोग के लिए न होकर विक्रय के लिए होता है। जैसे काफी, जूट, गन्ना आदि।

प्रश्न 21.
बागानी फसलें क्या है ?
उत्तर :
बागानी फसल (Plantation Crops) : बागानी कृषि से तात्पर्य उस कृषि से है जिसमें बड़े पैमाने पर एक फसली कृषि एक कुशल व्यवस्था एवं पर्याप्त पूंजी के अन्तर्गत होती है। इसमें फसलें प्रति वर्ष नहीं रोपी जाती है, जैसे – चाय एवं काफी की फसलें।

प्रश्न 22.
बहुफसलीय कृषि क्या है ?
उत्तर :
जहाँ पर वर्षा और सिंचाई की सुविधा है वहाँ पर एक ही खेत में वर्ष में दो फसलें या दो से अधिक फसलें उगायी जाती है, इसे बहुफसलीय कृषि कहते हैं। बहुफसलीय कृषि से फसल-चक्र में सहायता मिलती है जिससे भूमि की उर्वरता बढ़ती है।

प्रश्न 23.
भारत में गहन कपास कैसे उगाया जाता है ?
उत्तर :
भारत में कपास का उत्पादन केरल और पश्चिम बंगाल को छोड़कर शेष सभी राज्यों में किया जाता है। कपास का उत्पादन समुद्र तल से 1000 मी॰ की ऊँचाई तक तथा 50 से॰मी॰ 25 से॰मी॰ वर्षा वाले क्षेत्रों में किया जाता है। कपास गुजरात और महाराष्ट्र में विशेष तौर पर उगाया जाता है।

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प्रश्न 24.
भारत की दो सिंचाई नहरों का नाम लिखो।
उत्तर :
ऊपरी गंगा नहर, नांगल बांध की नहरें, राजस्थान नहर, सोन नहर।

प्रश्न 25.
दामोदर घाटी के तीन जलविद्युत शक्ति केन्द्रों के नाम लिखिए।
उत्तर :
दामोदर घाटी के तीन जलविद्युत केन्द्रों के नाम पंचेत, तिलैया एवं मैथन है।

प्रश्न 26.
चाय की खेती के लिए ढालू भूमि की आवश्यकता क्यों पड़ती है ?
उत्तर :
चाय की जड़ों में पानी का रूकना हानिकारक होता है। अत: चाय की कृषि पहाड़ी ढालों पर की जाती है ताकि जड़ों में पानी न रूक सके।

प्रश्न 27.
चाय की खेती के लिए कौन सा खाद उपयोगी होती है ?
उत्तर :
चाय के लिए अमोनियम सल्फेट, हड्डी की खाद तथा हरी खाद उपयोगी होती है।

प्रश्न 28.
असम के कौन से जिले चाय के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है ?
उत्तर :
असम राज्य के शिव सागर, उत्तरी सागर, उत्तरी दराग, लखीमपुर, करीमगंज एवं कछार जिले चाय के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 29.
दार्जिलिंग की चाय अपने विशेष स्वाद के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। क्यों ?
उत्तर :
दार्जिलिंग की मिट्टी में पोटास तथा फॉस्फोरस की मात्रा अधिक होती है जिससे यहाँ की चाय अपने विशेष स्वाद के लिए विश्व में प्रसिद्ध है।

प्रश्न 30.
भारतीय चाय के प्रमुख ग्राहक विश्व के कौन-कौन से देश है ?
उत्तर :
भारतीय चाय के प्रमुख ग्राहक ग्रेट ब्रिटेन, रूस, नीदरलैण्ड, ईरान, इराक, जापान, जर्मनी, अफगनिस्तान, संयुक्त अरब, गणराज्य एवं संयुक्त राज्य अमेरिका है।

प्रश्न 31.
भारत में सर्वप्रथम कहवा की कृषि कब, कहाँ और किसके द्वारा किया गया ?
उत्तर :
भारत में सर्वप्रथम सत्रहवीं शताब्दी में कहवा की कृषि का प्रारम्भ तब हुआ जब बाबाबूदन साहब ने सौदी अरब से कहवा के बीज लाकर उन्हें कर्नाटक राज्य के बाबा बूदन की पहाड़ी पर उगाया।

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प्रश्न 32.
कहवा के लिए कौन सी मिट्टी उत्तम होती है ?
उत्तर :
कहवा के लिए लोहा, चूना, पोटाश, नाइट्रोजन एवं ह्यूमस युक्त उपजाऊ दोमट मिट्टी उत्तम होती है।

प्रश्न 33.
गन्ने की कृषि उसके खपत क्षेत्र के समीप होना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
गन्ने को काटने के एक दिन के भीतर ही उसे पेर कर उसका रस निकाल लिया जाता है। देर करने से गत्ना सूख जाता है और उससे कम रस निकलता है। अतः इसके लिए पर्याप्त बाजार का नजदीक में मिलना आवश्यक होता है।

प्रश्न 34.
दक्षिणी भारत में उपयुक्त भौगोलिक दशाओं के बावजुद भी गन्ने का उत्पादन उत्तर भारत की अपेक्षा कम होता है। क्यों ?
उत्तर :
यद्यपि गन्ने की कृषि के लिए उत्तरी भारत की अपेक्षा दक्षिणी भारत भौगोलिक सुविधाओं की दृष्टि से अधिक अनुकूल है फिर भी देश का लगभग 80 प्रतिशत गत्ना उत्तरी भारत में ही उत्पन्न होता है। इसका कारण यह है कि दक्षिणी भारत में गत्रा को कपास एवं मूँगफली जैसी नगदी फसलों से प्रतियोगिता लेनी पड़ती है।

प्रश्न 35.
भारत में गन्ने की उपज को बढ़ाने के लिए क्या किया जा रहा है ?
उत्तर :
भारत में गन्ने की उपज को बढ़ाने के लिए इण्डोनेशिया से अधिक रस एवं चीनी देने वाले गन्ने के बीजों का आयात किया जा रहा है।

प्रश्न 36.
हरित क्रान्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर :
हरित क्रान्ति (Green Revolution) : देश को खाद्यानों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सन् 1966-67 ई० से सरकार द्वारा काफी प्रयास किया गया। सिंचाई, अधिक उत्पादन देने वाले बीजों के प्रयोग, स्वाद, कृषि के आधुनिक यंत्रों, वैज्ञानिक विधियों तथा कीटनाशक दवाओं के प्रयोग से कृषि के क्षेत्र में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। कृषि के उत्पादन में हुई इस अचानक वृद्धि को ही हरित क्रान्ति कहते है।

प्रश्न 37.
भारत द्वारा प्रमुख आयातित एवं निर्यातित फसलें क्या हैं ?
उत्तर :
प्रमुख कृषि निर्यात : चाय, जूट के सामान, कहवा, तम्बाकू, गन्ना, मसालें, लाख आदि हैं। प्रमुख कृषि आयात :- कच्चा ऊन, कच्चा जूट, कच्चा कपास आदि है।

प्रश्न 38.
बागानी कृषि क्या है ?
उत्तर :
जब लम्बे कृषि क्षेत्रफल पर आधुनिक विज्ञान और मशीनरी का प्रयोग कर एवं उन्नतशील बीज, खाद, दवाओं तथा अत्यधिक पूंजी लगाकर वर्ष में निश्चित कृषि भाग से एक फसल बड़े पैमाने पर उगायी जाती है तो उसे बागानी कृषि कहते हैं। जैसे – चाय, कहवा और रबर की कृषि।

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प्रश्न 39.
शुष्क कृषि क्या है ?
उत्तर :
ऐसे भूभाग जहाँ अल्प वर्षा होती है अथवा सिंचाई की सुविधा नहीं है वहाँ पर असिंचित कृषि की जाती है। ऐसे क्षेत्रों में विशेषकर ज्वार, बाजरा, तीसी, रेंडी, अरहर, जौ, जई, आदि फसलें उगाई जाती है। ऐसे क्षेत्रों की खूब जुताई करके मिट्टी को बारीक बना दिया जाता है जिससे अनावश्यक पौधों से जलशोषण एवं वाष्पीकरण न हो।

प्रश्न 40.
सीमित कृषि क्या है ?
उत्तर :
सीमित कृषि उसे कहते हैं जिसमें उत्पादन की मात्रा उत्पादकों की आवश्यकता पूर्ति तक सीमित रहती है। इस कृषि में उत्पादित फसलें केवल खाद्यान्न ही हैं। कांगो बेसिन, मध्य एशिया एवं भारत के पहाड़ी क्षेत्रें में इसी तरह की कृषि होती है।

प्रश्न 41.
सफेद क्रान्ति या बाढ़ योजना क्या है ?
उत्तर :
दुग्ध के क्षेत्रों में उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अपनाये गये कार्यक्रमों को सफेद क्रांति या बाढ़ योजना कहते हैं।

प्रश्न 42.
पशुपालन क्या है ?
उत्तर :
यह एक ऐसी कृषिकार्य है जिसमें पशुओं का लालन-पालन दुग्ध व्यवसाय के लिए, मांस, चमड़ा और ऊन की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

प्रश्न 43.
मिश्रित कृषि किसे कहते हैं ?
उत्तर :
प्राय: सर्वत्र कृषि के साथ-साथ पशुपालन किया जाता है। ऐसी कृषि को मिश्रित कृषि कहते हैं। अधिक उत्पादन के लिए एवं उत्पादन में विशिष्टता लाने के लिए इनकी अलग खेती भी की जाती है।

प्रश्न 44.
भारत के एक अल्वाय स्टील प्लाण्ट एवं कृषि यंत्र निर्माण केन्द्र का नाम लिखो।
उत्तर :
एक अल्वाय स्टील प्लाण्ट दुर्गापुर है और कृषि यंत्रों का निर्माण केन्द्र हिन्दुस्तान मशीन टूल्स (H.M.T.) पिंजोर (हरियाणा) में स्थित है।

प्रश्न 45.
किसी एक इलेक्ट्रिकल संयत्र नाम बताएँ।
उत्तर :
BHEL जिसकी शाखाएँ भोपाल, मध्यप्रदेश, हरिद्वार (उत्तरांचल) तिरूचिरार्षल्ली (तमिलनाडू) में स्थित है।

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प्रश्न 46.
सहायक उद्योग क्या है ?
उत्तर :
वे उद्योग जो वृहद् उद्योगों के आस-पास पूरक उद्योग के रूप में या वृहद उद्योगों पर अधारित होते हैं, उसे सहायक उद्योग कहते हैं। जैसे – मोटर गाड़ी उद्योग, साइकिल उद्योग आदि।

प्रश्न 47.
भारत का सबसे बड़ा आयरन एण्ड स्टील प्लाण्ट कौन सा है ?
उत्तर :
बोकारो आयरन एण्ड स्टील प्लाण्ट वर्तमान समय में सबसे बड़ा उत्पादन देने वाला स्टील प्लाण्ट है।

प्रश्न 48.
जलयान, रेलवे इंजन और एयर क्राफ्ट बनाने वाले केन्द्रों के नाम बताओ।
उत्तर :
विशाखापत्तनम में जलयान निर्माण, चित्तरंज़न में रेल इंजन एवं बंगलोर में हवाई जहाज निर्माण केन्द्र है।

प्रश्न 49.
भारत में जलयान उत्पादन करने वाले केन्द्रों के नाम बताओ।
उत्तर :
जलयान निर्माण केन्द्र – विशाखापत्तनम, गार्डेनरीच, मर्मुगांव, कोचीन।

प्रश्न 50.
पूर्वी भारत के चार लौह-इस्पात उद्योग के केन्द्रों के नाम बताओ।
उत्तर :
हीरापुर, कुल्टी एवं उड़ीसा में राउरकेला।

प्रश्न 51.
भारत में कितने प्रकार के सूती वस्त्र उद्योग है ?
उत्तर :
भारत में सूती वस्व उद्योग दो प्रकार का है –
(i) हस्त चालित तांत उद्योग
(ii) सूती कपड़ों की मिलें।

प्रश्न 52.
सूती वस्त्र उद्योग में कितने प्रकार की मिले होती है ?
उत्तर :
सूती कपड़े की मिलें तीन प्रकार की है –

  • स्पीनिंग मिल
  • वीमिंग (बुनने की) मिल
  • सूता बुनाई की मिल।

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प्रश्न 53.
भारत में प्रथम सूती वस्त्र मिल कब और कहाँ स्थापित हुई ?
उत्तर :
भारत में सूती वस्त्र का प्रथम मिल पश्चिम बंगाल में कोलकाता के पास फोर्ट ग्लास्टर में सन्र 1812 ई० में स्थापित हुई।

प्रश्न 54.
इंजीनिररिंग उद्योग क्या है ?
उत्तर :
इस्पात तथा अन्य धातुओं को कच्चा माल के रूप में व्यवहार कर मशीन, औजार आदि के निर्माण को इंजीनियेरिंग उद्योग कहते है।

प्रश्न 55.
लोकोमोटिव उद्योग से क्या समझते हो ?
उत्तर :
लोकोमोटिव उद्योग उस उद्योग को कहते हैं जहाँ पर रेल के इंजनों का निर्माण होता है।

प्रश्न 56.
लौह इस्पात उद्योग में कौन से कच्चे माल लगते हैं ?
उत्तर :
लौह अयस्क, कोक कोयला, चूना पत्थर या डोलोमाइट, मैंगनीज, लौह मिश्र धातु, पानी और हवा इस्पात उद्योग के प्रमुख कच्चे माल है।

प्रश्न 57.
एक टन इस्पात बनाने में कितने हवा की आवश्यकता होती है ?
उत्तर :
एक टन इस्पात बनाने में 4 टन हवा की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 58.
भारत का कौन सा शहर भारत का ग्लासगो कहा जाता है और क्यों ?
उत्तर :
ग्रेट ब्रिटेन में क्लाइड नदी के मुहाने पर स्थित ग्लासगो जलयान निर्माण का विश्व प्रसिद्ध केन्द्र है। भारत का विशाखापत्तनम भी जलयान निर्माण का केन्द्र है, अत: इसे भारत का ग्लासगो कहा जाता है।

प्रश्न 59.
लौह-इस्पात उद्योग के लिए आवश्यक कच्चे मालों का उल्लेख करो।
उत्तर :
लौह-इस्पात उद्योग के लिए आवश्यक कच्चे मालों में लौह अयस्क, डोलामाइट, चूना-पत्थर, मैंगनीज एवं कोकिंग कोयला आदि उल्लेखनीय हैं।

प्रश्न 60.
मुम्बई सूती वस्त्र उद्योग के लिए क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर :
महाराष्ट्र में सूती वस्त्र उद्योग में सबसे आगे है। यहाँ पर पूरे भारत का 38 % कपड़ा तथा 30 % सूत तैयार किया जाता है। यहाँ कुल 122 कपड़ा के मिले हैं जिसमें 63 मिलें अकेले मुम्बई में हैं।

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प्रश्न 61.
माइल्ड स्टील क्या है ?
उत्तर :
वह स्टील जिसमें कार्बन की मात्रा 0.25 % से कम रहती है और बिना किसी विशिष्ट धातु एलाब के मिश्रण से तैयार किया जाता है उसे माइल्ड स्टील कहते हैं। यह अपेक्षाकृत नरम होता है।

प्रश्न 62.
भारत के मशीन दूल्स निर्माण केन्द्रों को लिखो।
उत्तर :
बैंगलोर (HMT), दुर्गापुर, ॠषिकेश, नैनी (इलाहाबाद), हैदराबाद, नासिक, कानपुर, पंजाब, पश्चिम बंगाल आदि।

प्रश्न 63.
कौन सी जूट मिल प्रथम एवं कौन सी सबसे बड़ी है ?
उत्तर :
बाऊरिया प्रथम जूट मिल है एवं हुकुमचन्द जूट मिल (नैहट्टी) सबसे बड़ी जूट मिल है।

प्रश्न 64.
भारत का सबसे बड़ा लौह इस्पात कारखाना कौन है ?
उत्तर :
भिलाई भारत का सबसे बड़ा लौह-इंस्पात कारखाना है। इसकी उत्पादन क्षमता 4.2 मिलियन टन है।

प्रश्न 65.
एक निजी क्षेत्र के लौह-इस्पात कारखाना का नाम लिखो।
उत्तर :
निजी क्षेत्र का एक लौह-इस्पात कारखाना TISCO – टाटा आयरन एण्ड कम्पनी, जमशेदपुर है।

प्रश्न 66.
सेल क्या है ?
उत्तर :
स्टील अथारिटी आफ इणिडया लिमिटेड (SAIL) एक संख्था (Organisation) है जो भारत में लौह-इस्पात के उत्पादन का देखभाल करती है।

प्रश्न 67.
कास्ट आयरन क्या है ?
उत्तर :
कास्ट आयरन का निर्माण पिग आयरन के इस्पात के साथ फिर से गरम करके किया जाता है। इसमें बालू या कुछ दूसरे प्रकार के धातु भी मिलाये जाते हैं। इसमें अशुद्धता होती है, अतः यह कुड़कुड़ा हाता है या सहजही टूट जाता है।

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प्रश्न 68.
मिश्र धातु क्या है ?
उत्तर :
मिश्र धातु (alloy) : मिश्र धातु एक धात्विक पदार्थ है जिसका निर्माण दो या दो से अधिक धातुओं के मिश्रण से किया जाता है। जैसे – स्टील (लौह + कार्बन) एवं बांज (तांबा + जिंक)।

प्रश्न 69.
फेरो-अल्वाय क्या है ?
उत्तर :
जब खनिजो को अल्प अनुपात में लौह-इस्पात के साथ मिलाकर इसे काफी मजबूती प्रदान की जाती है तो इसे फेरो-अल्वाय कहा जाता है। जैसे – मैंगनीज, टंगस्टन, निकेल, कोबाल्ट, क्रोमियम आदि।

प्रश्न 70.
रेटिंग क्या है ?
उत्तर :
रेटिंग एक विधा है जिसे अपनाकर फसल को हल्का सा सड़ाकर (Partial decay) रेशों (Fibers) को डंठल से अलग किया जाता है। उदाहरण – नारियल का खुज्जा, जूट आदि।

प्रश्न 71.
स्टील क्या है ?
उत्तर :
स्टील का निर्माण करने के लिए पिग लौह को पिघलाकर उसमें से अशुद्धता को दूर किया जाता है और 0.3 % से 2.2 % कार्बन और फेरो-अल्वाय मिलाया जाता है।

प्रश्न 72.
स्वतंत्रता के बाद स्थापित लौह-इस्पात कारखानों के नाम लिखो।
उत्तर :
स्वतंत्रता के बाद के स्टील प्लाण्ट का निर्माण एवं विकास – भिलाई, राउरकेला, दुर्गापुर, बोकारो, सलेम, विशाखापट्टनम, द्वैतारी।

प्रश्न 73.
स्वतंत्रता पूर्व स्थापित लौह-इस्पात कारखानों के नाम लिखो।
उत्तर :
स्वतंत्रतापूर्व विकसित स्टील कारखाना – TISCO (जमशेदपुर), IISCO (बर्नपुर), भद्रावती, विश्वैसरैया आयरन एण्ड स्टील लिमिटेड (VISL)।

प्रश्न 74.
भारत के दो छोटे स्टील प्लाण्टों के नाम लिखो।
उत्तर :
छोटे स्टील प्लाण्ट – (i) सलेम, तमिलनाडू । (ii) बालाचेराबू, आधभ्रदेश।

प्रश्न 75.
भारत का पहला सार्वजनिक क्षेत्र में एल्वाय स्टील प्लण्ट कहाँ और कब स्थापित हुआ ?
उत्तर :
भारत का प्रथम एल्वाय और स्टील प्लाण्ट सार्वजनिक क्षेत्र में दुर्गापुर में23 जनवरी 1956 ई० को स्थापित किया गया था।

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प्रश्न 76.
जलपोत, रेलवे इंजन, वायुयान निर्माण केन्द्रों के नाम लिखो।
उत्तर :
जलपोत निर्माण केन्द्र – विशाखापट्टनम।
रेलवे इंजिन निर्माण केन्द्र – चित्तरंजन।
वायुयान निर्माण केन्द्र – बैंगलोर, कानपुर।

प्रश्न 77.
लौह-इस्पात उद्योग में मैंगनीज का उपयोग क्यों किया जाता है ?
उत्तर :
लौह इस्पात उद्योग में मैंगनीज का प्रयोग लोहे को जंगरोधी एवं कड़ा करने के लिए किया जाता है।
मैंगनीज उत्पादक केन्द्र – बालघाट, छिंदवारा, क्योंझर, कोरापुर, कालाहांडी, नागपुर, भण्डार, रत्लगिरि, नोवामुण्डी आदि हैं।

प्रश्न 78.
जनगणना (Census) किसे कहते हैं ?
उत्तर :
आबादी सम्बन्धी आँकड़ों के संप्रह करने की कार्य प्रणाली को जनगणना (Census) कहते हैं।

प्रश्न 79.
भारत में पहली जनगणना कब और किसके कार्यकाल में हुई ?
उत्तर :
भारत में पहली जनगणना 1872 ई० में लार्ड लिटन के कार्यकाल में हुई थी।

प्रश्न 80.
भारत में क्रमवार सम्पूर्ण जनगणना कब और किसके शासन काल में हुई ?
उत्तर :
भारत में क्रमवार सम्पूर्ण जनगणना सन् 1881 ई० में लार्ड रिपन के समय हुई।

प्रश्न 81.
सन् 2011 की जनगणना से क्या ज्ञात होता है ?
उत्तर :
जनगणना (Census) 2011 : भारत में 31 मार्च सन् 2011 को राष्ट्रीय जनगणना 2011 के अंतरिम आकड़े जारी किए गए। उसके अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 1,21,01,93,422 थी, जो 2001 में देश की जनसंख्या की तुलना में 18.14 करोड़ अधिक थी।

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प्रश्न 82.
लिंग अनुपात (Sex Ratio) क्या है ?
उत्तर :
प्रति हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात कहते हैं। भारत का लिंग अनुपात 940 प्रति हजार है।

प्रश्न 83.
जनसंख्या की वृद्धि दर से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
जनसंख्या की वृद्धि दर (Population Growth Rate) : प्रति हजार जनसंख्या पर जन्म दर एवं मृत्यु दर के अन्तर को ‘जनसंख्या की वृद्धि दर’ कहते हैं।

प्रश्न 84.
बेरोजागरी जनसंख्या से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
बेरोजगारी जनसंख्या (Unemployed Population) : सक्रिय जनसंख्या के उस अंश को बेरोजगार की संज्ञा दी जाती है जो आर्थिक कार्य करने में सक्षम तथा कार्य करने को इच्छुक होता है, परन्तु काम के अभाव के कारण कार्यरत नहीं होता है तथा काम की खोज में रहता है।

प्रश्न 85.
जीवन प्रत्याशा (Life expectancy) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
जीवन प्रत्याशा जन्म के समय व्यक्ति के लिए प्रत्याशित औसत आयु को प्रदर्शित करती है। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि किसी क्षेत्र विशेष में एक व्यक्ति के जीवन की संभावित आयु क्या होगी?

प्रश्न 86.
जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना (Occupational structure of population) : जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना से तात्पर्य कुल कार्यशील जनसंख्या का विभिन्न व्यवसायों में वितरण से है।

प्रश्न 87.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना कैसा है ?
उत्तर :
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल कार्यशील जनसंख्या का 49 % प्राथमिक व्यवसाय में, 24 % द्वितीयक व्यवसाय में तथा 27 % तृतीयक व्यवसाय में लगी हुई है। यह पहली बार हुआ है जब प्राथमिक व्यवसाय में लगी जनसंख्या का प्रतिशत 50 से कम है।

प्रश्न 88.
जनसंख्या का घनत्व (Density of Population) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
जनसंख्या का घनत्व (Density of Population) : किसी प्रदेश के इकाई क्षेत्रफल (जैसे प्रति वर्ग किलोमीटर या प्रति वर्ग मील) में रहने वाले मनुष्यों की औसत संख्या को वहाँ की जनसंख्या का घनत्व कहते हैं।

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प्रश्न 89.
सबसे पहले किस देश में जनगणना के होने के संकेत मिलते हैं ?
उत्तर :
बेवीलोन, मिस्त्र तथा चीन के विभिन्न भागों में 3000 ईसा पूर्व जनगणना किए जाने के संकेत मिलते हैं।

प्रश्न 90.
आधुनिक पद्धिति से सबसे पहले जनगणना कब और कहाँ हुई है ?
उत्तर :
आधुनिक पद्धिति से पहलीबार जनगणना 1749 ई० में स्वीडेन में की गयी।

प्रश्न 91.
दशकीय जनगणना की शुरूआत कब और कहाँ हुई ?
उत्तर :
दशकीय जनगणनाओं की शुरूआत 1790 ई० में संयुक्त राज्य अमेरिका एवं 1801 ई० में ब्रिटेन में प्रारम्भ हुआ।

प्रश्न 92.
नगरीकरण (Urbanisation) क्या है ?
उत्तर :
नगरीकरण एवं नगरों का विकास एक ऐसी शास्वत प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति गाँवों से प्रास्थान कर नगरों में निवास करने लगता है। इस प्रकार ग्रामों से नगरों की ओर जनसंख्या की अभिमुखता ही नगरीकरण है, इसमें व्यक्तियों द्वारा कृषि के स्थान पर गैर-कृषि कायों को म्रहण करने की प्रकृति होती है।

प्रश्न 93.
नगरीकरण का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
पर्यावरणीय प्रदूषण में वृद्धि : घनी जनसंख्या, औद्योगिक विकास, उचित निकास व्यवस्था का अभाव, मोटर-वाहनों का अधिकाधिक प्रयोग, आवास के लिए पेड़ों की कटाई, अपशिष्टों के उचित प्रबन्धन का अभाव आदि के कारण पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।

प्रश्न 94.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या कितनी है ?
उत्तर :
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 121 करोड़ 1 लाख 93 हजार 422 है।

प्रश्न 95.
मानव-भूमि अनुपात क्या है ?
उत्तर :
मनुष्य-भूमि अनुपात गुणवत्ता से सम्बन्धित है जिसके अन्तर्गत मनुष्य की योग्यता तथा संसाधन की उपलब्धता दोनों सम्मिलित हैं।

प्रश्न 96.
जनसंख्या के घनत्व की एक विशेषता लिखें।
उत्तर :
जनसंख्या का घनत्व संख्यात्मक माप है। इसमें भूमि की गुणवत्ता का आकलन नहीं होता है।

प्रश्न 97.
जमीन जनसंख्या घनत्व और जनसंख्या के घनत्व में एक अन्तर लिखें।
उत्तर :
मनुष्य भूमि अनुपात को कुल जनसंख्या और भूमि क्षेत्र की कुल उत्पादकता के अनुपात में व्यक्त किया जाता है, जबकि जनसंख्या के घनत्व को कुल जनसंख्या और कुल भूमि के अनुपात में व्यक्त किया जाता है।

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प्रश्न 98.
जनाधिक्य क्या है ?
उत्तर :
संसाधन के अनुपात में यदि जनसंख्या अधिक होती है तो उसे जनाधिक्य कहते हैं।

प्रश्न 99.
भारत में जनाधिक्य क्यों है ?
उत्तर :
भारत में संसाधनों की कमी एवं रोजगार के अभाव के कारण जनाध्रिक्य है।

प्रश्न 100.
कम जनसंख्या से क्या समझते हैं ?
उत्तर :
संसाधन के अनुपात में जनसंख्या के कम होने पर उसे जनसंख्या की न्यूनता कहते हैं।

प्रश्न 101.
आदर्श जनसंख्या किसे कहते हैं ?
उत्तर :
आदर्श जनसंख्या जनाधिक्य और जन न्यूनता के बीच की स्थिति है जहाँ जनसंख्या एवं संसाधनों की समानता होती है। आदर्श जनसंख्या एक काल्पनिक अवधारणा है।

प्रश्न 102.
जनसंख्या वृद्धि के निर्धारक तत्व क्या हैं ?
उत्तर :
जनसंख्या वृद्धि के निर्धारक तत्व हैं – प्रजनन, मरणशीलता की दर, प्रवसन या स्थान परिवर्तन।

प्रश्न 103.
जनसंख्या के असमान वितरण के दो भौतिक कारक क्या हैं ?
उत्तर :
जनसंख्या के असमान वितरण के दो भौतिक कारक हैं – (i) भू-प्रकृति एवं (ii) जलवायु ।

प्रश्न 104.
जनसंख्या के असमान वितरण के दो सामाजिक कारक क्या हैं ?
उत्तर :
जनसंख्या के असमान वितरण के कारक से तात्पर्य गैर-प्राकृतिक कारकों से है, जैसे – राजनैतिक और सामाजिक परिस्थितियाँ, शहरीकरण।

प्रश्न 105.
उच्च घनत्व के दो कारण क्या हैं ?
उत्तर :
उच्च घनत्व के कारण –
(i) कृषि की उन्नत अवस्था
(ii) उद्योगों का विकास ।

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प्रश्न 106.
अति न्यूनतम जन घनत्व के दो कारण क्या हैं ?
उत्तर :
(i) क्षेत्र की अतिशीलता या गर्म होना
(ii) लगातार वर्षा होना।

प्रश्न 107.
जन्म दर क्या है ?
उत्तर :
जन्म दर : एक हजार व्यक्तियों में एक वर्ष में पैदा हुए जीवित बच्चों की संख्या को जन्मदर कहते हैं।

प्रश्न 108.
मृत्यु दर क्या है ?
उत्तर :
एक हजार व्यक्तियों में एक वर्ष में कुल मृत्यु को मृत्यु दर कहते हैं।

प्रश्न 109.
आन्तरिक जलमार्ग से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
किसी देश के आन्तरिक भाग में स्थित विभिन्न जल सोतों अर्थात् नदियों, झीलों या नहरों के माध्यम से विभिन्न साधनों (नाव, स्टीमर आदि) द्वारा सामानों का परिवहन किया जाना आन्तरिक जल मार्ग कहलाता है।

प्रश्न 110.
सड़क यातायात के दो लाभ लिखें।
उत्तर :
(i) सड़क यातायात सर्व सुलभ एवं सुविधाजनक साधन है।
(ii) कम दूरी के लिये यह उपयोगी साधन है।

प्रश्न 111.
रेल यातायात के दो लाभ लिखें।
उत्तर :
(i) लम्बी दूरी की यात्रा के लिए यह सुविधाजनक साधन है।
(ii) इसके द्वारा अधिक यात्री एवं माल की ढुलाई होती है।

प्रश्न 112.
जल परिवहन के दो लाभ लिखें।
उत्तर :
(i) यहु परिवहन का सबसे सस्ता साधन है।
(ii) इसके द्वारा बड़े पैमाने पर माल ढोया जाता है।

प्रश्न 113.
वायु परिवहन की दो कमियों को लिखें।
उत्तर :
(i) वायु यातायात से यात्रा करना बहुत खर्चीला होता है।
(ii) मौसम की गड़बड़ी होने पर वायु यातायात के संचालन में कठिनाई होती है।

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प्रश्न 114.
भारत में कितने प्रकार की सड़कें पाई जाती हैं ?
उत्तर :
भारत में निम्नांकित चार प्रकार के सड़क मार्ग है :-

  • स्थानीय सड़के
  • जिले की सड़के
  • राजकीय सड़कें
  • राष्ट्रीय सड़कें।

प्रश्न 115.
यातायात के किस साधन को आर्थिक विकास का जीवन रेखा कहा जाता है और क्यों ?
उत्तर :
जल परिवहन को आर्थिक उन्नति की जीवन रेखा कहा जाता है। यह यातायात का सबसे सस्ता एवं सुगम साधन हैं। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में क्रांति लाने में इसका सर्वाधिक योगदान है।

प्रश्न 116.
जहाजी कम्पनी (Shipping line) का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
जहाजों या जलयानों का निर्माण करने वाली कम्पनियों को जहाजी कम्पनी कहा जाता है। यहां मालवाही एवं यान्त्रिक जलयानों का निर्माण होता है।

प्रश्न 117.
जहाजी मार्ग (Shipping lane) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
जहाजी मार्ग का अभिप्राय जलयान मार्ग से है। ये मार्ग गहरें सागरों में होते हैं। समुद्री संकटों से बचने के लिए सागरो में कुछ निश्चित मार्गो का निर्धरण किया गया है ताकि जलयानों को कोई खतरा न हो।

प्रश्न 118.
संचार तंत्र से आप क्या समझते हो ?
उत्तर :
एक स्थान से सूचना या सन्देश को दूसरे स्थान तक पहुँचाने की व्यवस्था की संचार तंत्र कहते हैं। यह सूचना या संन्देश का आदान-प्रदान करने का माध्यम है।

प्रश्न 119.
संचार तंत्र के साधन क्या हैं ?
उत्तर :
समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन, टेलीप्राफ, इण्टरनेट, ई-मेल, फैक्स, सिनेमा, मोबाइल फोन आदि संचार तंत्र के साधन हैं।

प्रश्न 120.
व्यक्तिगत संचार तंत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिस संचार व्यवस्था द्वारा व्यक्तिगत सूचनाएं या संदेश प्राप्त किए जाते है, उन्हें व्यक्तिगत संचार तंत्र कहा जाता है। इसके अन्तर्गत डाक सेवा, कम्प्यूटर, टेलीफोन, मोबाइल फोन, ई-मेल, फैक्स आदि आते हैं।

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प्रश्न 121.
जन संचार माध्यम किसे कहते हैं ?
उत्तर :
संचार के वे माध्यम जिनका उपयोग व्यक्तिगत न होकर सार्वजनिक रूप में होता है, उन्हे जन संचार माध्यम कहते हैं। इनके अन्तर्गत समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा आदि साधन आते हैं।

प्रश्न 122.
संचार तंत्र के दो लाभों को लिखें।
उत्तर :
(i) संचार तंत्र के माध्यम से सूचना या संदेश भेजने या पाने में समय कम लगता है।
(ii) इसमें खर्च कम लगता है।

प्रश्न 123.
परिवहन किसे कहते हैं ?
उत्तर :
वस्तुओं और मनुष्यों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर आवागमन को परिवहन कहते हैं।

प्रश्न 124.
संचार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
सूचनाओं को उनके उद्गम स्थल से गतव्य स्थान तक किसी चैनल के माध्यम से पहुँचाने की प्रक्रिया को संचार कहते हैं।

प्रश्न 125.
स्वर्णिम-चतुर्भुज किन महानगरों को जोड़ता है ?
उत्तर :
यह महामार्ग चार महानगरों दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई तथा कोलकता को जोड़ता है।

प्रश्न 126.
उत्तर-दक्षिण तथा पूर्व-पश्चिम गलियारा देश के किन-किन क्षेत्रों को जोड़ता है ?
उत्तर :
यह महामार्ग उत्तर से दक्षिण श्रीनगर को कन्याकुमारी से तथा पूरब से पश्चिम सिलघर को पोरबदर से जोड़ता है।

प्रश्न 127.
देश में प्रांतीय राजमार्ग की भूमिका क्या है ?
उत्तर :
राज्य के भीतर व्यापारिक एवं सवारी यातायात का मुख्य आधार प्रांतीय राज्यमार्ग है। ये राज्य के सभी कस्बों को राज्य की राजधानी, सभी जिला मुख्यालयों, राज्य के महत्वपूर्ण स्थलों तथा राष्ट्रीय राजमार्गों से संलग्न क्षेत्रों के साथ जोड़ते हैं। इनके निर्माण एवं देखभाल की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है।

प्रश्न 128.
जिला की सड़कें जिला के किन हिस्सों को जोड़ते हैं ?
उत्तर :
ये सड़के गाँवों एवं कस्बों को एक-दूसरे से तथा उन्हें जिला मुख्यालय से जोड़ते हैं।

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प्रश्न 129.
सीमा सड़कों का उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर :
इसका उद्देश्य जंगली, पर्वतीय एवं मरूस्थलीय क्षेत्रों में आर्थिक विकास को गति देने तथा देश की सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ रखने के लिए सीमावर्ती इलाकों तथा दुर्गम क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण एवं देखरेख है।

प्रश्न 130.
भारत की प्रमुख जहाजी इकाई कौन-सी है तथा इसके पास कुल कितने जलपोतों का बेड़ा है ?
उत्तर :
भारतीय जहाजरानी निगम देश की सबसे महत्वपूर्ण जहाजी इकाई है जिसके पास लगभग 79 जलपोतों का बेड़ा है।

प्रश्न 131.
भारत में वायु परिवहन सर्वप्रथम कब और कहाँ प्रारम्भ हुआ ?
उत्तर :
भारत में वायु परिवहन के विकास का इतिहास 1911 ई० से प्रारम्भ होता है जब इलाहाबाद से नैनी तक वायुयान द्वारा डाक सेवा शुरु की गयी।

प्रश्न 132.
भारत में पहली आंतरिक वायु सेवा कब और कहाँ आरम्भ की गयी ?
उत्तर :
भारत में पहली आंतरिक वायु सेवा 1922 ई० में करांची-मुम्बई-चेन्नई के बीच आरम्भ की गयी।

प्रश्न 133.
इण्डियन एयर लाइन्स भारत में किस प्रकार की वायु सेवा उपलब्ध करा रही है ?
उत्तर :
यह देश की प्रमुख घरेलू हवाई सेवा है। घरेलू सेवा के अतिरिक्त यह पड़ोसी देशों जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों एवं मध्य-पूर्व के लिए भी अपनी सेवाएं प्रदान करती है।

प्रश्न 134.
पाइन लाइनों का प्रयोग किसके परिवहन के लिए किया जाता है ?
उत्तर :
पाइप लाइनों द्वारा पेट्रोलियम, पेट्रोलियम उत्पादों तथा गैस की भारी मात्रा में लम्बी दूरी तक पहुँचाने में आसानी होती है।

प्रश्न 135.
रोप वे का प्रयोग, किस कार्य के लिए होता है ?
उत्तर :
दुगर्म पर्वतीय अंचलों में अल्पदूरी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए रोप वे का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 136.
भू-गर्भ रेल का विकास किस उद्देश्य से किया गया ?
उत्तर :
घने बसे महानगरों में परिवहन की समस्या को हल करने के लिए भू-गर्भ रेल के परिचालन की व्यवस्था भी कि गयी है।

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प्रश्न 137.
सर्वप्रथम भू-गर्भ रेल सेवा कब और कहाँ शुरू हुआ था ?
उत्तर :
सर्वपथम भू-गर्भ रेल सेवा की शुरुआत कोलकाता महानगर में हुई जो एस्लानेड से लेकर भवानीपुर तक 24 अक्टूबर 1984 ई० में शुरू हुआ था।

प्रश्न 138.
संचार व्यवस्था के अंतगर्त किन सेवाओं को सम्मिलित किया गया है ?
उत्तर :
संचार व्यवस्था के अंतगर्त डाक, दूर संचार, रेडियो प्रसारण, टेलिविजन, टेलीफोन, सेल फोन, फैक्स तथा इंटरनेट सेवाओं को सम्मिलित किया जा सकता है।

प्रश्न 139.
भरत में पहली टेलीग्राफ तथा टेलिफोन सेवा कब और कहां आरम्भ हुई ?
उत्तर :
पहली टोल T के सा 1851 ई० में तथा टेलिफोन सेवा 1881 ई० में कोलकाता में आरम्भ हुई।

प्रश्न 140.
वर्तमान सम० “इंटरनेट की क्या भूमिका है ?
उत्तर :
अब इंटरनेट के रा शिक्षा का प्रसार किया जा रहा है। इसके माध्यम से यात्रा टिकटों की बुकिंग, सरकारी एवं गैर सरकारी बिलों का भुः तान उपभोक्ता सामानों की आपूर्ति घर बैठे ही की जा सकती है।

प्रश्न 141.
आनुषांगिक (सहायक) उद्योग से तुम क्या समझते हो ?
उत्तर :
सहायक उद्योग (Ancilliary Industry) : किसी बड़े उद्योग के उत्पादों के निर्माण के लिए विभिन्न प्रकार के कल-पुर्जे या उसमें लगने वाली अन्य छोटी वस्तुओं का निर्माण और पूर्ति करने वाले उद्योग सहायक उद्योग कहलाते हैं। ये उद्योग बड़े उद्योगों के सहायक उद्योग के रूप में काम करते हैं। जैसे किसी मोटरगाड़ी उद्योग के पास विभिन्न प्रकार के कल-पूर्जों, सीटों आदि के उद्योग।

प्रश्न 142.
‘इन्ट्रीपोर्ट’ क्या है ?
उत्तर :
राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापर के लिए जिस बन्दरगाह को नि:शुल्क गोदाम बनाकर रखा जाता है उसे पुनर्निर्यात बन्दरगाह कहा जाता है।

प्रश्न 143.
पूर्वी भारत के लौह-इस्पात उद्योग के केन्द्रों का नाम लिखिए।
उत्तर :
इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (IISCO) विशेशरैया आयरन एण्ड़ स्टील लिमिटेड भिलाई, दर्गापुर, बोकारो, पूर्वी भारत के केन्द्र है।

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प्रश्न 144.
इन्जिनीयरिंग उद्योग का क्या अर्थ है?
उत्तर :
वे उद्योग, जो लोहा-इस्पात को कच्चे माल के रूप में व्यवहार करके उससे विभिन्न प्रकार के औजार, मशीने एवं इस्पात के अन्य सामानों का निर्माण करते है, इंजीनियरिंग उद्योग कहे जाते है।

संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 3 MARKS

प्रश्न 1.
‘आधुनिक संचार व्यवस्था’ से क्या समझते हैं ?
उत्तर :
आज दुनिया बहुत तेजी से बढ़ रही है। दुनिया की इस तेजी में आधुनिक संचर्चर व्यवस्था का सबसे बड़ा योगदान है। इण्टरनेट, ई-मेल, सेल फोन आदि आधुनिक संचार व्यवस्था की सबसे बड़ी देन है। इसे पूरे संसार को एक आफिस में समेट लिया है।

प्रश्न 2.
पंजाब एवं हरियाणा में कृषि विकास के तीन मुख्य कारणों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर : पंजाब और हरियाणा में कृषि की उन्नति के निम्नलिखित कारण है :-
(i) हरित क्रान्ति : हरित क्रान्ति का सबसे अधिक प्रभाव गेहुँ उत्पादन पर पड़ा। सन् 1964-65 ई० में पंजाब तथा हरियाणा मिलकर भारत का 7.5 % खाद्यान्न पैदा करते थे जो 1983-84 ई० में बढ़कर 14.3 % हो गया। 1983-84 ई० में इन दो राज्यों ने भारत का 30.8 % गेहूँ पैदा किया।
(ii) जलवायु : अंतर्देशिय उपोष्ण कटिबंधीय अवस्थिति के कारण पंजाब तथा हरियाणा की जलवायु अर्द्धशुष्क से अर्द्धनम के बीच है, जो खाद्यात्र कृषि के अनुकूल भौगोलिक दशाएँ हैं।
(iii) सिंचाई : पंजाब तथा हरियाणा में कृषि उन्नति का सबसे प्रमुख कारण यहाँ की सिंचाई व्यवस्था है। अकेले पंजाब में ही सिंचाई के लिए कुल 1134 सरकारी नहरें है। यहाँ सिंचाई के तीनों साधन से नहरें, नलकूप, कुआँ से सिंचाई की जाती है । यहाँ नहरों का जाल बिछा हुआ है। सरहिन्द नहर, नांगल नहर, रणजीत सिंह बांध आदि प्रमुख परियोजनाएँ हैं विश्व बैंक की सहायता से यहाँ सिंचाई एवं जल परियोजना का दूसरा चरण पूरा हो गया है।

प्रश्न 3.
भारत में नगरीकरण की तीन मुख्य समस्याओं का विवरण दीजिए।
उत्तर :
असंतुलित नगरीकरण की प्रवृत्ति के कारण अधिवासीय (Settlement) परिवर्तन से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुई है। कुछ महत्वपूर्ण समस्याएँ निम्नलिखित है –
अनियोजित नगरीकरण (Unplanned Urbanisation) : यद्यपि यह प्रवृत्ति स्वतन्त्रता के पूर्व से ही है, लेकिन स्वतन्त्रता के बाद नगरों के नियोजन का प्रयास किया गया। किन्तु इन प्रयासों के बावजूद भी अनियोजित अकारिकी में लगातार वृद्धि हुई है। अत: गैर कानूनी निर्माण कार्य, निम्न स्तरीय निर्माण कार्य, गलत नियोजन आदि के कारण अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

शहरों में बसने की लोगो की प्रकृति (People Tendency to settle in cities) : लोगों की यह प्रवृत्ति हो गई है कि उन्हें शहरों में बेहतर जीवन सुविधाएँ तथा रोजगार के अवसर प्राप्त होते है। जिसके कारण गाँव का एक बहुत बड़ा हिस्सा शहरों में आकर बसने लगा है, जिससे लगातार शहरों की जनसंख्या में वृद्धि हो रही है।

बुनियादी सुविधाओं की कमी (Lack of Infrastructure) : बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण आज कल शहरों में रहना मुश्किल हो गया है। कुछ निम्नलिखित बुनियादी सुविधाओं की कमी जैसे – आवासीय, परिवहन, स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, मजलन प्रणाली है।

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प्रश्न 4.
सामाजिक वानिकी का उद्देश्य लिखिए।
उत्तर :
सामाजिक वानिकी के उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. वनों का विकास एवं संरक्षण करके अतिरिक्त वनोत्पादों से ईंधन, चारा, लकड़ी फल आदि प्राप्त करके स्थानीय लोगों को लाभ पहुँचाना :
  2. रोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर परिवार की आय को बढ़ाना।
  3. प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन में ग्रामीणों को सक्षम बनाना।
  4. अनुपयोगी भूमि का समुंचित एवं लाभकारी उपयोग करना।
  5. पर्यावरणीय संतुलन को कायम रखना तथा मृदा एवं जल का संरक्षण करना।

प्रश्न 5.
नगदी फसलें, बागानी फसलें और वाणिज्यिक फसलें क्या हैं ?
उत्तर :
नगदी फसलें (Cash Crops) : वे फसलें जो बाजार में बेचकर पैसा कमाने के उद्देश्य से उगायी जाती है, उन्हें मुद्रादायिनी (नगदी) फसल कहते हैं। जैसे – जूट, चाय, कहवा, गत्ना आदि।
बागानी फसलें (Plantation Crops) : उष्णार्द्र प्रदेशों में जब लम्बे पैमाने पर वर्ष भर (लम्बे क्षेत्रफल वाले भूभाग पर) वर्ष में एक या दो मुद्रादायिनी फसलें उगायी जाती है तो इसे बागानी कृषि कहते हैं। इसके अन्तर्गत विशेषकर चाय, काफी और रबर की कृषि आती है। भारत में चाय की कृषि बागानी कृषि का उत्तम उदाहरण है।
व्यापारिक फसलें (Commercial Crops) : ऐसी फसलें जिनका व्यवहार प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जाता है बल्कि इनके विभिन्न उत्पादों एवं उप-उत्पादों का प्रयोग किया जाता है, व्यापारिक फसलें कहलाती हैं। जैसे – कपास, जूट, तोसी, रेड़ी, चाय, कॉफी और रबर आदि।

प्रश्न 6.
रबी और खरीफ की फसलें क्या हैं ?
उत्तर :
रबी की फसलें (Rabi crops): वे फसलें जिनको नवम्बर में बोया जाता है और अप्रैल-मई तक काट लिया जाता है, उन्हें रबी की फसल कहते हैं। जैसे – गेहूँ, चना , जी आदि।
खरीफ की फसलें : वे फसलें जिनको जून-जुलाई में बोया जाता है तथा सितम्बर-अक्टूबर तक काट लिया जाता है, उन्हें खरीफ की फसल कहते हैं। जैसे – धान, जूट, कपास, गत्ना, मक्का और ज्वार-बाजरा आदि।

प्रश्न 7.
फसल प्रणाली क्या है ? भारत में अपनायी जानेवाली फसल प्रणाली का वर्णन करो।
उत्तर :
फसल प्रणाली : फसल प्रणाली वह विधा है जिसके अन्तर्गत फसलें किसी भूभाग पर निश्चित समयावधि में उगायी जाती है। भारत में तीन प्रकार की फसल प्रणाली अपनायी जाती है –

  • एकल फसल प्रणाली (Monoculture)
  • मिश्रित कृषि (Mixed cropping)
  • बहु फसल प्रणाली (Multiple cropping)

प्रश्न 8.
एक फसली प्रणाली से क्या समझते हो ? इसका एक उदाहरण दो।
उत्तर :
एकल प्रणाली के अन्तर्गत एक ही फसल प्रत्येक वर्ष एक ही भूमि पर उगायी जाती है। धान की फसल व्यापक तौर पर एक फसल प्रणाली में उगायी जाती है। भारत में कृषि खेतों का आकार छोटा होने से यह मुख्य रूप से प्रत्येक वर्ष उगायी जाती है। खेत इतनी ही हैं कि किसानों के पास मुख्य खाद्यान्र उगाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। धान उगाये जाने वाले क्षेत्र निम्न भू-भाग है जहाँ वर्षा का जल इकट्ठा होता है, अत: जमीन अन्य फसलों के उत्पादन के लिए अनुकूल नहीं रहती है।

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प्रश्न 9.
भारत में अपनायी जानेवाली कृषि की कौन-कौन सी पद्धतियाँ है ?
उत्तर :
फसलों के उत्पादन और उपयोग के आधार पर भारतीय कृषि को कुल पाँच प्रमुख प्रकारों में बांटा गया है

  1. स्थानान्तरणशील कृषि (Shifting Agriculture)
  2. प्रारम्भिक निर्वाहक कृषि (Sedentary Peasant Agriculture)
  3. खाद्यान्न फसलें अथवा सिंचित कृषि (Food Crops or Irrigated)
  4. नकदी फसलों अथवा शुष्क या सिंचित कृषि (Cash Crops, Dry or Irrigated)
  5. वाणिज्यिक कृषि (Commercial Farming)।

प्रश्न 10.
जूट केवल पश्चिम बंगाल में उगाया जाता है – क्यों ?
उत्तर :
पश्चिम बंगाल की जलवायु जूट की फसल के उत्पादन के अनुकूल है। जूट की कृषि के लिए 26° C तापमान, 100 से॰मी॰ वर्षा और सिंचाई की सुविधा चाहिए। जलोढ़ मिट्टी और समतल जमीन जूट उत्पादन में सहायक है। जुताई, बोने के लिए, काटने के लिए तथा जूट को पानी में ड्बोकर रेशे को अलग करने के लिए यहाँ पर प्रचुर मात्रा में मजदूर उपलब्ध है। साथ ही पश्चिम बंगाल में जूट मिलों में कच्चे माल के रूप में जूट की काफी माँग है। इस प्रकार पश्चिम बंगाल में जूट का उत्पादन किया जाता है। उपर्युक्त सभी सुविधाएँ पश्चिम बंगाल में जूट की कृषि के लिए उबलब्ध हैं।

प्रश्न 11.
गुजरात में सबसे अधिक कपास उगाया जाता है – क्यों ?
उत्तर :
गुजरात में कपास उत्पादन के लिए आर्दश दशाएँ पायी जाती हैं। कपास के उत्पादन के लिए चूना तथा पोटाश मिश्रित काली मिट्टी, मिट्टी में नाइट्रोजन वाले तत्वों की कमी, नमी धारण करने की क्षमता, 50 से॰मी॰ वर्षा, 26° C तापमान आदि अनुकूल भौगोलिक दशाएँ हैं। गुजरात में उपर्युक्त सभी दशाएँ पायी जाती है। अत: गुजरात कपास का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।

प्रश्न 12.
स्थानान्तरित कृषि की परिभाषा दो और व्याख्या करो।
उत्तर :
स्थानान्तरण कृषि को आसाम में झूम, केरल में पूनम, आंधपदेश और उड़ीसा में पोडू, मध्यप्रदेश में बेवार, माशन, पेंडा और बेरा नामो से पुकारा जाता है। यह कृषि जनजातीय लोगों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक वर्ष लगभग 20 लाख हेक्टेयर जंगलों को काटकर और जलाकर साफ किया जाता है। इस खाली जगलीय भू-भाग पर 2-3 वर्षों तक कृषि की जाती है। जब जमीन अनुउपजाऊ हो जाती है तो इसे खाली (परती) छोड़ दिया जाता है। यहाँ पर धान, गेहूँ, ज्वार, बाजरा, तम्बाकू आदि फसलें उगायी जाती हैं। झूम कृषि के लिए विशेषत: शुष्क पतझड़ के वनों का इस्तेमाल किया जाता है। यह कृषि बहुत अल्प जनसंख्या का भरण-पोषण करती है।

प्रश्न 13.
भारत में कौन-कौन सी तिलहन फसलें उगायी जाती हैं तथा इनका क्या उपयोग है ?
उत्तर :
भारत विश्व में सबसे अधिक तिलहन उत्पादक देश है। भारत में मुंगफली, रेंडी, तीसी, तिल, सरसों, नारियल आदि तिलहन फसलें उगायी जाती हैं। तिलहन देश की प्रमुख नकदी फसल है। तिहलन का उपयोग तेल निकालने, सलाद, विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थ, वार्निश, मोमबत्ती, साबुन आदि में होता है। भारत में खाद्य एवं अखाद्य दो प्रकार के तिहलन है। खाद्य तिलहन (edible oilseeds) में मूँगफली, रेपसीड, तिल, अलसी, सरसों, राई, कपास का बीज और सोयाबीन आदि हैं। अखाद्य तिलहन (Non-edible) में प्रमुख रेंडी है।

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प्रश्न 14.
धान, गेहूँ, जूट और कपास के अधिक उत्पादन देने वाले बीजों का नाम लिखों।
उत्तर :
धान के उन्नतशील बीज – I.R. – 8, TN-1, I.R. – 20, रत्मा, विजया, मसूरी, सोना।
गेहूँ के उन्नतशील बीज – लश्मा राजो, सोनारा – 63 , सोनारा – 64 , सोना – 227, कल्याण सोना, सोनालिका – 30
जूट के उन्नतशील बीज – जे॰ आर० सी० – 212, जे॰ आर० सी० – 321, जे॰ आर० सी० – 7447, JRD – 632, JRO – 7835 , JRO – 620 ।
कपास के उन्नतशील बीज – सुजाता, वारा, लक्ष्मी, एम. सी. यू – 5 , एम. सी. यू – 4 , हाई विक्र – 4।

प्रश्न 15.
धान, जूट, कपास एवं गन्ना के केन्द्रीय शोध संस्थान कहाँ है ?
उत्तर :
धान – केन्द्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (The Central Rice Research Institute) की स्थापना कटक में, Indian Council of Research नई दिल्ली के अन्तर्गत हुई है।
जूट – जूट के उत्पादन एवं गुणवत्ता में वृद्धि के लिए The Jute Agricultural Institute की स्थापना पश्चिम बंगाल में बैरकपुर में हुई है।
कपास – भारत में कपास की मात्रा एवं उसकी गुणवत्ता में विकास के लिए महाराष्ट्र में नागपुर में The Central Institute for Cotton Research की स्थापना हुई है।
गन्ना – उत्तर प्रदेश में लखनऊ में Central Sugarcane Research Institure एवं कोयम्बटूर में Sugarcane Research Institure की स्थापना की गयी है।

प्रश्न 16.
भारत में प्रमुख फसलों का औसत उत्पादन क्या है ?
उत्तर :
भारत में प्रति एकड़ फसलों का उत्पादन निम्न है। भारत में चावल का उत्पादन जापान की तुलना में 1 / 5 है। गेहूँ का प्रति एकड़ बल्जियम और हालैण्ड की तुलना में 1 / 3 है। गत्रा का प्रति एकड़ उत्पादन क्यूबा और हवाई की तुलना में 1 / 4 है। भारत में प्रमुख फसलों का प्रति हेक्टेयर औसत उपज चावल – 1070 कि०ग्रा०, गेहूँ – 100 कि०ग्रा०, ज्वार 220 कि०ग्रा०, बाजरा – 150 कि०ग्रा० और जूट 250 कि०ग्रा० है। मुंगफली का उत्पादन -870 कि०ग्रा० तथा कपास का प्रति हेक्टेयर उत्पादन – 120 कि०ग्रा० है।

प्रश्न 17.
विश्व के सन्दर्भ में भारत का प्रमुख फसलों के उत्पादन में कौन सा स्थान है ? उस फसल में अन्य प्रथम स्थान वाले देशों को दर्शाओ।
उत्तर :

फसल (Crops) रैंकिग (Ranking)
चाय प्रथम
चावल द्वितीय (चीन प्रथम)
जूट चतुर्थ (U.S.A. प्रथम)
कपास प्रथम
तम्बाकू प्रथम
गन्ना प्रथम
गेहूँ चतुर्थ (C.I.A. प्रथम)

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प्रश्न 18.
रेशेदार फसल क्या है ? तीन विभिन्न रेशेदार फसले कौन-कौन हैं ?
उत्तर :
रेशेदार फसलें : वे फसलें जिनसे रेशे प्राप्त किये जाते हैं और इन रेशों का प्रयोग सूता निर्माण में किया जाता है जिसे बुनकर विभिन्न प्रकार के कपड़े बनाये जाते हैं, उन्हें रेशेदार फसले कहते है । तीन विभिन्न Fibres –

  • जूट और काटन है।
  • सिल्क और ऊन पशुओं से प्राप्त रेशे हैं एवं
  • नाइलन और रेयान कृषि रूप से तैयार किये जाते हैं जिसे सिन्थेटिक धागा कहते हैं।

प्रश्न 19.
भारत में चावल उत्पादन के कौन-कौन सी ऋतुएँ हैं ?
उत्तर :
केरल और पश्चिम बंगाल में चावल पूरे वर्ष भर उगाया जाता है। चावल की निम्न फसलें हैं –

  1. आऊस – मई-जून में बोया जाता है तथा सितम्बर-अक्टूबर में काटा जाता है।
  2. अमन – जून-जुलाई में बोया जाता है तथा नवम्बर-दिसम्बर में काटा जाता है।
  3. बोरो – नवम्बर दिसम्बर में बोया जाता है तथा मार्च-अप्रिल में काटा जाता है।

प्रश्न 20.
रबी और खरीफ की फसलो में अन्तर करो।
उत्तर :
रबी की फसलें – रबी की फसलें जोड़े में बोई जाती है और बसन्त ऋतु मे काटी जाती है – गेहूँ, सरसों और तीसी रबी की फसलें हैं।
खरीफ की फसलें – वे फसलें जो ग्रीष्म ऋतु में बोयी जाती है और शरद ऋतु में काटी जाती है जैसे – चावल, ज्वारबाजरा, कपास आदि।

प्रश्न 21.
भारत के किस क्षेत्र में चाय, बाजरा और सरसों उगाया जाती है ?
उत्तर :
चाय का उत्पादन : उत्तरी पर्वतीय क्षेत्रों – आसम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और दक्षिण में नीलगिरि पर्वत के ढालों पर किया जाता है।
बाजरा का उत्पादन : राजस्थान, महाराष्ट्र, आधंप्रदेश, तमिलनाडू में किया जात है।
सरसों का उत्पादन : उत्तर प्रदेश सरसों के उत्पादन में प्रथम स्थान पर एवं अन्य क्षेत्रों में राजस्थान, पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब एवं हरियाणा है।

प्रश्न 22.
उद्यानी कृषि क्या है ?
उत्तर :
उद्यानी कृषि (Horticulture) : इसके अन्तर्गत फल-फूल और साग-सब्जियों की खेती की जाती है। इस कृषि के विकास में आवागमन के साधनों का विशेष महत्व है। इसे Market Gardening भी कहते हैं। अधिक उत्पादन के लिए सिंचाई एवं अधिक खाद का प्रयोग किया जाता है। उत्पादित वस्तुँओं के आधार पर इसे दो भागों में बाँटा गाया है –
(i) साग-सब्जियों की कृषि (Truck farming)
(ii) फलों की कृषि (Fruit farming)।

प्रश्न 23.
फसल चक्र से आप क्या समझते हो ?
उत्तर :
फसल चक्र (अदल-बदल की कृषि) : मिट्टी में विभिन्न प्रकार के तत्व पाये जाते हैं। खास प्रकार के फसलें कुछ खास खनिजों का शोषण करती है। पर फसलों की हेरा-फेरी करके जमीन की उपजाऊ शक्ति को बचाये रखा जा सकता है। इस नई कृषि पद्धति के अन्तर्गत जब वर्ष में अनेक फसलें बोई जाती है तो फसलों को अदल-बलद कर बोया जाता है। एक फसली कृषि में जिस भूमि पर एक वर्ष गेहूँ की कृषि होता है, उस पर दूसरे वर्ष दलहन की खेती है।

प्रश्न 24.
गत्रा, गेहूँ, चावल, जूट और चाय के अनुसंधानशाला केन्द्र का नाम लिखो।
उत्तर :

  • गन्ना – कोयम्बदूर, दक्षिणभारत, दिलखुशनगर, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)।
  • जूट – बैरकपुर।
  • चाय – जोरहाट एवं यूनाइटेड प्लाण्टर्स एसोसियेशन।
  • गेहूँ – पूसा (नई दिल्ली)।
  • धान – कटक (उड़िसा)।

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प्रश्न 25.
गंगा की डेल्टा में जूट की कृषि होने के क्या कारण है ?
उत्तर :
गंगा डेल्टा में जूट की कृषि अधिक होने के कारण –

  1. जलवायु – जूट की कृषि उष्ण एवं आर्द्र जलवायु में होती है । यहाँ की जलवायु उष्णार्द्र है । तापमान 25° C से 30° C के बीच रहता है।
  2. वर्षा – यहाँ पर जूट की कृषि के लिए 150 से॰मी॰ से 250 से॰मी॰ तक आवश्यक वर्षा होती है।
  3. मिट्टी – गंगा डेल्टा में नदियों द्वारा लाई गई नवीन दोमट मिट्टी पायी जाती है जो जूट के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है।
  4. श्रम – यहाँ जूट को काटने, उसे पानी में गाड़ने, रेशे को डंठल से अलग करने के लिए पर्याप्त मानव श्रम उपलब्ध है।

अत: पश्चिम बंगाल के गंगा डेल्टा के वर्दवान, 24 परगना, मुर्शिदाबाद, नदिया, मालदा, हुगली में जूट की खेती की जाती है।

प्रश्न 26.
कृषि वानिकी (Agro-forestry) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
कृषि वनिकी, सामाजिक वानिकी का ही एक संशेधित रूप है। इसके अन्तर्गत एक ही समय में किसी भूमि को कृषि, वानिकी एवं पशुपालन के लिए प्रयुक्त किया जाता है। खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा कृषि-वन विकास, कृषि-चारागाहवन विकास पद्धतियों को कृषि वानिकी में सहकारी व्यवस्था के अन्तर्गत उपलब्ध भूमि पर वृक्ष या झाड़ियाँ उगाकर शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में ईधन के लिए लकड़ी, पशुओं के लिए चारा, लघु इमारती लकड़ी आदि की आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास किया जाता है।

प्रश्न 27.
भारत में उगाई जानेवाली फसलों का उपयोग के आधार पर वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर :
फसलों का वर्गीकरण – उपयोग के आधार पर भारत की कृषि-उपजों (फसलों) को मोटे तौर पर चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –

  1. खाद्यान्र (Food-grains or Cereals) – चावल, गेहूँ, ज्वार-बाजरा, मक्का, चना आदि।
  2. पेय पदार्थ (Beverage Crops) – चाय और कहवा आदि।
  3. व्यावसायिक एवं मुद्रादायिनी फसलें (Commercial and Cash Crops) – कपास, जूट, चाय, कहवा, गन्ना, तिलहन आदि। इनका उत्पादन औद्योगिक कार्यों के लिए किया जाता है। औद्योगिक कच्चे माल के रूप में इनका क्रय- विक्रय होता है।
  4. रेशेदार फसलें (Fibre Crops) – कपास और जूट आदि।

प्रश्न 28.
भारत में उगाई जानेवाली फसलें को बोने एवं काटने के समय के आधार पर कितने भागों में बाँटा जा सकता है।
उत्तर :
फसलों के बोने एवं काटने के समय के आधार पर भारत की फसलों को तीन प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है – (i) खरीफ (ii) रबिं (iii) जायद।
(i) खरीफ – ये फसलें वर्षा ॠतु के आरम्भ में बोई जाती हैं और वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद काट ली जाती है। जैसे -धान, मक्का, ज्वार-बाजरा तथा जूट आदि।
(ii) रबी – ये फसलें जाड़े में बोई जाती हैं तथा गर्मी के आरम्भ होते ही (मार्च – अप्रैल) में काट ली जाती है, जैसे गेहूँ, जौ, चना, मटर आदि।
(iii) जायद (Zaid) – ये फसले ग्रीष्म ऋतु या वसन्त ऋतु के आरम्भ में बोयी जाती है तथा ग्रीष्म ऋतु के अन्त में या वर्षा ऋतु के प्रारम्भ होने के पहले काट ली जाती हैं। खरबूज-तरबूज; सब्जियाँ, ककड़ी, मूँग, उड़द, मेथी आदि जायद की फसलें हैं, जो हल्की सिंचाई के द्वारा उगाई जाती है।

प्रश्न 29.
हरित क्रांति से तुम क्या समझते हो ?
उत्तर :
हरित क्रांति (Green Revolution) : देश के स्वाधीन होंने के समय हमारे देश में कृषि की अवस्था दयनीय थी। हमें प्रतिवर्ष विदेशों से बहुत अधिक मात्रा में खाद्यात्र का आयात करना पड़ता था। अत: देश को खाद्यान्रों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सन् 1966-67 ई० से सरकार द्वारा काफी प्रयास किया गया। सिंचाई, अधिक उत्पादन देने वाले बीजों के प्रयोग, खाद, कृषि के आधुनिक यंत्रों, वैज्ञानिक विधियों तथा कीटनाशक द्वाओं के प्रयोग से कृषि के क्षेत्र में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। मुख्यतः गेहूँ के प्रति एकड़ उत्पादन में कई गुना वृद्धि हुई । पंजाब व हरियाणा राज्यों में इसका प्रभाव विशेष रूप से दिखाई पड़ा। फलस्वरूप हम खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर हुए हैं। कृषि के उत्पादन में हुई इस अचानक वृद्धि को ही हरित क्रांति कहते हैं।

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प्रश्न 30.
भारत के उन स्थानों के नाम बताओ जहाँ योजना काल में लौह-इस्पात उद्योगों की स्थापना हुई है।
उत्तर :
पंचवर्षीय योजना काल में भिलाई, दुर्गापुर, राउरकेला तथा बोकारो में इस्पात कारखानें स्थापित किये गये। तृतीय योजना काल में सलेम (तमिलनाडु), विजय नगर (कर्नाटक) तथा विशाखापत्तनम (आन्ध्र प्रदेश) में लौह-इस्पात उद्योग स्थापना की योजना बनी।

प्रश्न 31.
इंजिनीयरिंग उद्योग का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
इस्पात एवं अन्य धातुओं को कच्चा माल के रूप में व्यवहार कर मशीन एवं औजार आदि के निर्माण को इंजिनीयरिंग उद्योग कहते हैं। इंजीनियरिंग उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
भारी इंजीनियरिंग उद्योग :
(a) भारी मशीनरी उद्योग
(b) मशीनी औजार उद्योग
(c) औद्योगिक मशीनरी उद्योग
(d) रेल उद्योग
(e) जलयान उद्योग
(f) जलपोत उद्योग।

हल्के इंजीनियरिंग उद्योग :
(a) साइकिल निर्माण उद्योग
(b) टाइपराइटर निर्माण उद्योग
(c) सिलाई मशीन निर्माण उद्योग
(d) घड़ी निर्माण उद्योग
(e) रेडियो, टेलीफोन आदि के निर्माण उद्योग।

प्रश्न 32.
पेट्रो रसायन औद्योगिक कम्प्लेक्स पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
पेट्रो रसायनों एवं उनके उत्पाद की बढ़ती मांग को देखते हुए सरकार ने बड़े-बड़े पेट्रो केमिकल औद्योगिक कम्पलेक्स की स्थापना की है। इस क्षेत्र में उद्योगों के विकास के लिए 56000 लाख रुपये निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों द्वारा लगाये गये हैं। नई सरकारी नीति के अंतर्गत पेट्रो रसायन उद्योगों का विकेन्द्रीकरण किया गया है। तेल शोधनागारों के पास कोयली, बरौनी, हल्दिया और चेत्रई में पेट्रोरसायन उद्योगों की स्थापना की गई है। असम के बोंगाई गांव और पश्चिम बंगाल के हल्दिया में भी पेट्रो रसायन औद्योगिक कम्लेक्स की स्थापना की गई है।

प्रश्न 33.
पेट्रो रसायन उद्योग क्या है ?
उत्तर :
पेट्रोलियम के शोधन के बाद उससे अनेक प्रकार के उपजात पदार्थ प्राप्त होते हैं, जैसे – नेष्था, बेंजीन, ईंथेन, बिटुमिन, प्रोटेन, इथालेन, प्रोपालिन आदि। इन उपजात पदार्थों को कच्चे माल के रूप में उपयोग कर जिन उद्योगों का विकास किया जाता है, उन्हें पेट्रो रसायन उद्योग कहते हैं। इन उद्योगों के प्रमुख उत्पाद हैं पालीमर, सन्थेटिक रेशा, रबर, सिन्थेटिक डिटरजेन्ट।

प्रश्न 34.
पेट्रोलियम शोधशालओं के निकट ही पेट्रो रसायन उद्योग की स्थार्पना क्यों होती है ?
उत्तर :
पेट्रो शोधन कारखानों के पास पेट्रो रसायन उद्योगों की स्थापना का प्रधान कारण यह है कि पेट्रोलियम को साफ करते समय इससे नेष्था, बेंजीन, ईंथेन, विटुमिन, प्रोपेन आदि उपजात पदार्थ प्राप्त होते हैं और इन्हीं का उपयोग पेट्रो रसायन उद्योग में कच्चे माल के रूप में होता है।

प्रश्न 35.
दुर्गापुर को भारत का रूर क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
दुर्गापुर को भारत का रूर क्षेत्र इसलिए कहा जाता है कि रूर क्षेत्र पश्चिमी जर्मनी का लौह उद्योग का प्रमुख क्षेत्र है जो कोयला क्षेत्र में स्थित है। रूर क्षेत्र के समान ही दुर्गापुर क्षेत्र भी कोयला क्षेत्र के पास है।

  1. रूर क्षेत्र लौह इस्पात का विश्व का प्रमुख केन्द्र है। इसी प्रकार दुर्गापुर भारत का प्रमुख केन्द्र है।
  2. दोनों क्षेत्रों के पास खनिज लोहे का अभाव है अतः लौह अयस्क आयात करते हैं। रूर फ्रांस के लारेन तथा स्वीडेन की खानों से लोहा आयात करता है। दुर्गापुर के लिए लौह अयस्क उड़ीसा की मयूरभंज की खानों से मंगाया जाता है।
  3. दोनों क्षेत्रों में उद्योग की स्थापना का श्रेय कोयले की प्राप्ति को है। रूर को वेस्फेलिया की खान से तथा दुर्गापुर को झरिया की खानों से कोयला मिलता है।
  4. रूर क्षेत्र के समान ही दुर्गापुर में भी नहरें, रेल यातायात तथा सड़क यातायात की सुविधा है। इसलिए दुर्गापुर को भारत का रूर कहते हैं।

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प्रश्न 36.
अहमदाबाद को भारत का मैनचेस्टर क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
मैनचेस्टर ग्रेट बिटेन का सूती वस्त्र उद्योग का केन्द्र है। वहाँ पर सूती वस्त्र उद्योग का विकास कच्चे माल की सुविधा के कारण हुआ है। वहाँ की जलवायु नम है तथा कुशल श्रमिक उपलब्ध है और ये सभी सुविधायें अहमदाबाद को भी प्राप्त है, अतः यहां भी सूती वस्त्र उद्योग का विकास हुआ है। यही कारण है कि अहमदाबाद को भारत का मैनचेस्टर कहा जाता है।

प्रश्न 37.
अधीनस्थ सहायक उद्योग क्या है ?
उत्तर :
किसी बड़े उद्योग के उत्पादों के निर्माण के लिए विभिन्न प्रकार के कल-पुर्जे या उसमें लगने वाली अन्य छोटी वस्तुओं का निर्माण और पूर्ति करने वाले उद्योग सहायक उद्योग कहलाते हैं। ये उद्योग बड़े उद्योगों के सहायक उद्योग के रूप में काम करते हैं। जैसे किसी मोटरगाड़ी उद्योग के पास विभिन्न प्रकार के कल-पूर्जों, सीटों आदि के उद्योग।

प्रश्न 38.
शुद्ध एवं अशुद्ध कच्चा माल से आप क्या समझते है।
उत्तर :
शुद्ध एवं अशुद्ध कच्चा माल : कच्चे माल की उपलब्धता एवं प्रकृति उद्योगों की स्थिति पर गहरा प्रभाव डालती है। जो उद्योग उन कच्चे मालों पर आधारित होते हैं, जो भारी एवं स्थूल होते हैं तथा वस्तु निर्माण प्रक्रिया में अपना भार खोते हैं ऐसे उद्योग कच्चे मालों के स्रोतों के निकट ही स्थापित होने की प्रवृत्ति रखते हैं। इन उद्योगों में प्रयुक्त कच्चे माल जो निर्माण प्रक्रिया में अपना वजन खोते हैं अशुद्ध कच्चा माल कहलाते हैं। लौह-इस्पात उद्योग, चीनी उद्योग, सीमेन्ट उद्योग, लुग्दी निर्माण उद्योग आदि में प्रयुक्त कच्चे माल अशुद्ध कच्चे माल होते हैं।

जिन कच्चे मालों का भार उत्पादन प्रक्रिया में कम नहीं होता ऐसे कच्चे माल शुद्ध कच्चा माल कहलाती है। शुद्ध कच्चा माल प्रयुक्त करने वाले उद्योगों में कच्चे माल तथा तैयार माल के वजन में कोई विशेष कमी नहीं होती है, जैसे वस्त्र उद्योग। ऐसे उद्योगों की स्थापना पर परिवहन लागत, श्रम लागत एवं बाजार आदि कारकों का अधिक महत्तपूर्ण स्थान होता है।

प्रश्न 39.
खनिज पदार्थों की प्रकृति के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर :
खनिज पदार्थों की प्रकृति के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण – कच्चे माल की प्रकृति के आधार पर उद्योगों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –
i. कृषि पर आधारित उद्योग (Agro-based Industries) : कृषि क्षेत्र से कच्चा माल प्राप्त करने वाले उद्योगों को कृषि पर आधारित उद्योग कहते हैं। सूती वस्त्र उद्योग, जूट उद्योग, रेश्मी वस्त्र उद्योग, शक्कर उद्योग तथा वनस्पति तेल उद्योग आदि इसी श्रेणी में आते हैं।

ii. पशु आधारित उद्योग (Animal based Industries) : कच्चे माल की प्राप्ति के लिए पशुओं पर निर्भर उद्योग पशु आधारित उद्योग कहलाते हैं। डेयरी उद्योग, चमड़ा उद्योग, जूता निर्माण उद्योग तथा पशुओं की हड्डुयों से निर्मित वस्तुओं का निर्माण करने वाले उद्योग इसी श्रेणी में आते हैं।

iii. वन आधारित उद्योग (Forest based Industries) : वन क्षेत्र से कच्चा माल प्राप्त करने वाले उद्योग वन आधारित उद्योंग कहलाते हैं। कागज, लाख, काष्ठ, टोकरी निर्माण आदि उद्योग वनों से ही अपना कच्चा माल प्राप्त करते हैं।

iv. खनिज आधारित उद्योग (Mineral based Industries) : विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थो का उपयोग कच्चे माल के रूप में करने वाले उद्योग खनिज आधारित उद्योग के अन्तर्गत आते हैं। लौह-इस्पात उद्योग, एल्युमिनियम उद्योग, सीमेन्ट निर्माण उद्योग आदि खनिज आधारित उद्योग हैं।

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प्रश्न 40.
पेट्रोरसायन उत्पादों की लोकप्रियता के क्या कारण हैं ?
उत्तर :
वर्तमान समय में पेट्रोरसायन उद्योग एवं उत्पाद काफी लोकप्रिय हैं तथा इनका प्रचलन काफी बढ़ गया है। इनकी लोकप्रियता के निम्नलिखित कारण है –

  1. ये सस्ते एवं टिकाऊ होते हैं।
  2. राष्ट्रिय आय में इनका योगदान रहता है।
  3. ये लगभग तीन मिलियन लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं।
  4. पेट्रो रसायन उद्योग कृषि से प्राप्त कच्चे मालों के ऊपर नहीं है, अतः जलवायु कारकों के कारण इनका उत्पादन प्रभावित नहीं होता है।

प्रश्न 41.
सूती वस्त्र उत्पादन क्षेत्रों को उत्पदान केन्दों के साथ लिखो।
उत्तर :
औद्योगिक केन्द्र एवं उत्पादन – भारत में सूती वस्त्र का उत्पादन पूरे देश में किया जाता है। फिर भी पूरे देश में 5 प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित है –

  1. पश्चिमी क्षेत्र – महाराष्ट्र एवं गुजरात।
  2. पूर्वी क्षेत्र – पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, असम।
  3. दक्षिणी क्षेत्र – तमिलनाडु, आंध प्रदेश, केरल, कर्नाटक, गोवा।
  4. उत्तरी क्षेत्र – पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर-प्रदेश एवं दिल्ली।
  5. मध्य क्षेत्र – मध्य प्रदेश।

वर्तमान समय में पूरे देश में कुल 1842 कारखाने हैं। इनमें से 1561 सूत काटने के तथा 281 कताई और बुनाई की मिलें हैं।

प्रश्न 42.
भद्रावती स्टील प्लाण्ट के बारे में लिखो।
उत्तर :
विश्वेसरैया लौह-इस्पात केन्द्र (Visvesaraya Iron and Steel Ltd.) : इसकी स्थापना 1923 ई० में तत्कालीन मैसूर स्टेट द्वारा कर्नाटक राज्य के शिमोगा जिले में भद्रावती नदी के किनारे पर भद्रावती नामक स्थान पर की गई थी। 1962 से यह कर्नाटक सरकार तथा केन्द्रीय सरकार के संयुक्त अधिकार में है। इस कारखाने को निम्नलिखित सुविधायें प्राप्त हैं।
(i) भद्रावती नदी की घाटी 13 कि०मी० चौड़ी है जिस कारण इस कारखाने के लिए पर्याप्त भूमि उपलब्ध है।
(ii) लौह-अयस्क बाबाबूदन पहाड़ी में केमनगुड़ी (चित्रदुर्ग) की खानों से प्राप्त होता है। यह खान भद्रावती से केवल 40 कि॰मी० की दूरी पर है जहाँ कारखाना सन् 1966 में यूनियन कार्बाइड इण्डिया लिमिटेड (Union Carbide India Ltd) द्वारा मुम्बई के निकट ट्रोम्बे (Trombay) में खोला गया। सन् 1969 में कोयली (Koyali) तेल परिष्करणाशाला पर भी एक कारखाना खोला गया।

प्रश्न 43.
भारत के प्रमुख अद्योगिक क्षेत्रों के नाम लिखो।
उत्तर :
भारत के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र –

  1. कोलकाता के चारों तरफ हुगली औद्योगिक क्षेत्र।
  2. बाम्बे-अहमदाबाद औद्योगिक क्षेत्र।
  3. अहमदाबाद औद्योगिक क्षेत्र।
  4. दामोदर घाटी – छोटानागपुर एवं जमशेदपुर क्षेत्र।
  5. नीलगिरि औद्योगिक क्षेत्र।
  6. कानपुर औद्योगिक क्षेत्र।

प्रश्न 44.
भारतीय जूट उद्योग की समस्यायें क्या हैं ?
उत्तर :
भारतीय जूट की समस्यायें –

  1. पुरानी मशीनों को बदल कर नयी मशीनें लगायी गयी हैं।
  2. मूल्य निर्धारण के लिए भारतीय जूट निगम की स्थापना।
  3. भारतीय जूट उत्पादों के विभिन्न साधनों द्वारा प्रचार।
  4. दामोदर घाटी में कच्चे जूट के उत्पादन द्वारा कच्चे माल की कमी दूर और
  5. जूट उद्योग का संरक्षण।

प्रश्न 45.
सूती वस्त्र उद्योग की समस्या को दूर करने के लिए अपनाये गये उपाय का वर्णन करो।
उत्तर :
सूती वस्त्र उद्योग की समस्याओं को दूर करने के उपाय –

  1. मिलों में विशिष्ट बुनाई मशीनों को बैठाना।
  2. किसानों को लम्बे रेशे के कपास उत्पादन करने को बढ़ावा।
  3. लेबर-कमीशन द्वारा मजदूरों की समस्या का निराकरण।
  4. विदेशी बाजार की प्रतियोगिता के लिए विभिन्न प्रकार के उत्पादों को बढ़ावा।

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प्रश्न 46.
भारतीय लौह-इस्पात उद्योग के केन्द्रों को लिखो।
उत्तर :

  1. TISCO – जमशेदपुर।
  2. बोकारो – कुल्टी एवं बर्नपुर।
  3. दुर्गापुर – पश्चिम बंगाल
  4. राउरकेला – उड़ीसा
  5. भिलाई – मध्य प्रदेश
  6. VISL – भद्रावती (कर्नाटक)
  7. विजयनगर स्टील प्लाण्ट – कर्नाटक
  8. सलेम स्टील प्लाण्ट – तमिलनाडू
  9. विशाखापट्टनम – आंधप्रदेश

प्रश्न 47.
भारत में ओटोमोबाइल केन्द्रों के नाम लिखो । कौन सबसे बड़ा है ?
उत्तर :
ओटोमोबाइल केन्द्र –

  1. हिन्दुस्तान मोटर (हिन्द मोटर), कलकत्ता
  2. दि प्रीमियर ओटोमोबाइल लिमिटेड (बाम्बे)
  3. महिन्द्रा एवं महिन्द्रा लिमिटेड (बाम्बे एवं कोलकाता)
  4. स्टैण्डर्ड मोटर प्रोडक्टस आफ इण्डिया लिमिटेड (मद्रास)
  5. अशोक लिलैण्ड लिमिटेड (मद्रास)
  6. बजाज टैम्पो लिमिटेड (पुने एवं लखनऊ)
  7. टाटा इंजीनियरिंग एण्ड लोकोमोटिव कम्पनी लिमिटेड (बाम्बे एवं जमशेदपुर)
  8. मारूती उद्योग (गुड़गाँव)
  9. शक्तिमान ट्रक (नासिक)
  10. निसान जीप्स (जबलपुर)
  11. इनसम ओटो लिमिटेड (उ०प्र०)
  12. DCM टायोटा (कोलकाता एवं दिल्ली)

हिन्दुस्तान मोटर, कोलकाता सबसे बड़ी अटोमोबाइल केन्द्र है।

प्रश्न 48.
वायुयान निर्माण केन्द्रों के नाम लिखो।
उत्तर :
वायुयान निर्माण केन्द्र –

  1. हिन्दुस्तान ‘एअरोनाटिक्स लिमिटेड – बैंगलोर।
  2. नासिक – महाराष्ट्र
  3. कारापुट – उड़ीसा
  4. कानपुर – हवाई जहाज
  5. हैदराबाद- इंजिन एवं इलेक्ट्रानिक्स

बैंगोर भारत का सबसे बड़ा वायुयान निर्माण केन्द्र है।
Hindustan Aircraft LTD (Banglore)
Hindustan Antibiotic LTD (Pimpri)

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प्रश्न 49.
भारत के लोकोमोटिव केन्द्रों के नाम लिखो ? कौन सबसे बड़ा है ?
उत्तर :
लोकोमोटिव उत्पादक केन्द्र –

  • चित्तरंजन लोकोमोटिव फैक्टरी – डीजल और इलेक्ट्रिक इंजन निर्माण केन्द्र, चित्तरंजन
  • डीजल लोकोमोटिव वर्क्स – वाराणसी
  • टाटा लोकोमोटिव वर्क्स – नैरोगेज इंजिन का निर्माण केन्द्र
  • डीजल कम्पोनेन्टस् वर्क्स – पटियाला

चित्तरंजन भारत का सबसे बड़ा लोकोमोटिव उत्पादक केन्द्र है।

प्रश्न 50.
जलयान निर्माण केन्द्रों के नाम लिखो। कौन सबसे बड़ा है ?
उत्तर :
जलयान-निर्माण केन्द्र –

  • हिन्दुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड – विशाखापट्टनम
  • हिन्दुस्तान शिपयार्ड – कोचीन
  • गार्डेन रीच वर्कशॉप – कोलकाता
  • दि मजगाँव डक – मुम्बई

विशाखापट्टनम भारत का सबसे बड़ा शिपयार्ड है।

प्रश्न 51.
विशाखापट्टनम में शिपयार्ड का विकास क्यों हुआ है ?
उत्तर :
विशाखापट्टनम में शिपयार्ड के विकास की सुविधाएँ –

  1. विशाखापट्टम एक गहरा और प्रकृतिक बन्दरगाह है जिससे यहाँ पर लहरों और प्राकृतिक तूफानों से सुरक्षा है।
  2. यह एक ऐसा बन्दरगाह है जो सड़कों एवं रेलवे से जुड़ा हुआ है।
  3. इसे कोयला और खनिज तेल की आपूर्ति आसानी से सम्भव है।
  4. भिलाई स्टील प्लाण्ट से इसे लौह इस्पात की आपूर्ति की सुविधा है।
  5. नजदीक के जंगलो सें इसे लकड़ी की आपूर्ति होती है।
  6. कुशल मजदूरों की यहाँ पर उपलब्धता है।
  7. बन्दरगाह से आवश्यक मशीनों को विदेशों से मंगाया जाता है।
  8. कुशल इंजीनियर और डिजाइन यहाँ पर उपलब्ध है।
  9. शुष्क डक और आर्द्र डक की सुविधा प्राप्त है।
  10. काफी खुला मैदान शिपयार्ड के लिए उपलब्ध है।
  11. राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यहाँ से निर्मित जहाजों की माँग है।

प्रश्न 52.
रेलवे कोच निर्माण केन्द्रों के नाम लिखो।
उत्तर :
रेलवे कोच निर्माण केन्द्र –

  1. ) रेलवे कोच फैक्टरी – पेरम्बूर
  2. रेलवे कोच फैक्टरी – कपूरथला
  3. रेल एण्ड स्लीपर्स बार्स – जमशेदपुर, दुर्गापुर, राउरकेला
  4. भारत अर्थ मूवर्स – बैंगलोर
  5. रेलवे बैगन्स – बर्न स्टैण्डर , ब्रेथलेट एवं कम्पनी – कोलकाता

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प्रश्न 53.
भारी और हल्का उद्योग क्या है ?
उत्तर :
भारी उद्योग (Heavy Industry) : वे उद्योग जिनमें वजनी कच्चे मालों का प्रयोग किया जाता है और बड़े उत्पादों का निर्माण होता है उन्हें भारी उद्योग कहते हैं, जैसे – लौह इस्पात उद्योग।
हल्के उद्योग (Light Industry) : वे उद्योग जिनमें भारी कच्चे मालों का उपयोग नहीं होता है और हल्के सामानों का उत्पादन किया जाता है। इसमें महिला-मजदूरों के श्रमों का भी उपयोग किया जाता है जैसे – साइकिल उद्योग।

प्रश्न 54.
मिट्टी की उर्वरकता एवं सिंचाई की सुविधा जनसंख्या वितरण को कैसे प्रभावित करते हैं ?
उत्तर :
जमीन की उर्वरा शक्ति एवं सिंचाई की सुविधा जहाँ होगी, जनसंख्या वहाँ अधिक होगी। मिट्टी की उर्वरा शक्ति एवं सिंचाई के कारण ही विश्व की प्राचीन सभ्यताओं का जन्म एवं पोषण नदियों की घाटियों में हुआ है। यही कारण है कि गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र तथा सिन्धु घाटी के मैदानों में जनसंख्या घनत्व अधिक है। खाद्य की आपूर्ति के लिए अनाज एवं फल तथा उद्योगों के लिए कच्चा माल प्राप्त होता है। अत: जनसंख्या घनी होती है।

प्रश्न 55.
जनसंख्या घनत्व से क्या समझते हो ?
उत्तर :
जनसंख्या घनत्व से तात्पर्य है प्रति वर्ग कि०मी॰ में रहने वाली जनसंख्या है। जैसे उत्तर प्रदेश की जनसंख्या का घनत्व प्रति वर्ग कि॰मी॰ 471 व्यक्ति का निवास है। यह सम्पूर्ण क्षेत्र के लिए घनत्व का औसत होता है, वास्तविक घनत्व नहीं होता।

प्रश्न 56.
पश्चिम बंगाल घना आबाद क्यों है ?
उत्तर :
पश्चिम बंगाल में मिट्टी उपजाऊ है, वर्षा अधिक होती है तथा धान एवं जूट की कृषि होती है । यहाँ अनेक उद्योगों का विकास हुआ है। यहाँ जलवायु भी सम है। यहाँ अनेक खनिज पदार्थ पाये जाते हैं। यातायात की सुविधा, कलकत्ता बन्दरगाह की स्थिति के कारण उद्योगों के साथ व्यापार का भी विकास हुआ है। बंगलादेश से आये घुसपैठियों एवं शरणार्थियों ने भी यहाँ की जनसंख्या बढ़ा दी है। 2001 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल भारत का सबसे घनी जनसंख्या वाला राज्य है। यहाँ जनसंख्या का घनत्व 904 व्यक्ति प्रति वर्ग कि॰मी॰ है।

प्रश्न 57.
पंजाब एवं हरियाणा में कम वर्षा होती है, फिर भी इनकी जनसंख्या सघन क्यों है ?
उत्तर :
पंजाब तथा हरियाणा में वर्षा कम होती है। अत: वहाँ कृषि उपजों के अभाव के कारण जनसंख्या का घनत्व कम होना चाहिए पर ऐसी बात नहीं है। पंजाब में 482 तथा हरियाणा में जनसंख्या का घनत्व 477 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० है, जो विरल न होकर घनी जनसंख्या है। पंजाब एवं हरियाणा में वर्षा के अभाव की पूर्ति सिंचाई के साधनों से होती है। पंजाब, हरियाणा में नहरों का जाल बिछा हुआ है। यही कारण है कि ये दोनों प्रान्त गेहूँ, कपास, गत्ना आदि का उत्पादन करते हैं। यहाँ प्रति एकड़ उत्पादन भी अधिक है। पंजाब एवं हरियाणा में सरकारी सहयोग से अनेक कुटीर उद्योग भी स्थापित हुए हैं। अत: कृषि की सुविधा, यातायात तथा उद्योगों के विकास के कारण जनसंख्या घनी है।

प्रश्न 58.
वर्षा की मात्रा जनसंख्या वितरण को क्यों निश्चित करती है ?
उत्तर :
वर्षा जनसंख्या को प्रभावित करने वाला कारक है। पर्याप्त वर्षा, कृषि के साथ-साथ जल यातायात, मत्स्यपालन, सिंचाई तथा बिजली उत्पादन में सहायक होती है। जहाँ खाद्य पदार्थ नहीं पाये जाते है वहाँ जनसंख्या विरल होती है जैसे राजस्थान। उत्तर के विशाल मैदान में वर्षा पूरब से पश्चिम को जैसे कम होती है, वैसे-वैसे जनसंख्या का घनत्व कम होता जाता है । इस तथ्य की सत्यता निम्नलिखित आंकड़े से होती है –

राज्य वर्षा की मात्रा इंच में जनसंख्या का घनत्व प्रतिवर्ग किमी
पश्चिम बंगाल 63 766
बिहार 51 497
उत्तर प्रदेश 39 471
पंजाब 24 401

प्रश्न 59.
दक्षिण के पठार की जनसंख्या औसत क्यों है ?
उत्तर :
दक्षिण के पठारी भाग में जनसंख्या औसत है क्योंकि दक्षिण के पठारी भागों में कृषि योग्य भूमि का अभाव है। यहाँ पर जमीन ऊँची-नीची, उबड़-खाबड़ है तथा वर्षा की कमी है। जमीन समतल नहीं है। वर्षा की अनुपस्थिति में सिंचाई का भी विकास कम हुआ है। मिट्टी में उर्वरक तत्वों की कमी है। यातायात के साधनों का विकास भी नहीं हो पाया है। इन कारणों से अधिकतर स्थानों पर जनसंख्या औसत है पर कुछ स्थानों पर सघन जनसंख्या पायी जाती है, जैसे छोटानागपुर का पठार। इस भाग में खनिज पदार्थ की बहुलता है, जलशक्ति का विकास हुआ है। यातायात विकसित है, नये-नये उद्योगधन्धे खुल रहे हैं। अतः जनसंख्या का घनत्व अपेक्षाकृत अधिक है। लावा का पठार भी घनी जनसंख्या वाला क्षेत्र है।

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प्रश्न 60.
पर्वतीय क्षेत्रों की अपेक्षा मैदानी भागों में घनी जनसंख्या क्यों पाई जाती है ?
उत्तर :
जीवन में सुविधाएं जहाँ सुलभ होती हैं वहाँ जनसंख्या सघन होती है, पर जहाँ जीवन कठिन होता है वहाँ जनसंख्या विरल होती है। मैदानी भागों में मिट्टी उपजाऊ होती है, उद्योग विकसित होते हैं, यातायात के विभिन्न साधन विकसित होते हैं तथा व्यापार-व्यवसाय विकसित होते है। इसके विपरीत पहाड़ी भागों में कृषि फसलों का अभाव होता है उद्योग-धन्धों की कमी होती है। जीवन कृ्टकर होता है। अतः जनसंख्या कम होती है। इन्हीं सब कारणों से मैदानी भागों को जनसंख्या सघन तथा पहाड़ी भागों की जनसंख्या विरल होती है।

प्रश्न 61.
दिल्ली में जनाधिक्य क्यों है ??
उत्तर :
दिल्ली भारत की राजधानी है। यह यमुना नदी के बायें किनारे पर स्थित भारत का अति प्राचीन नगर है। इसका इतिहास करीब 4000 वर्ष पुराना है। वर्तमान में यह स्थल एवं वायुमर्गा से देश एवं विदेश से जुड़ा हुआ है। प्रशासनिक केन्द्र होने के साथ ही यह व्यापारिक, औद्योगिक एवं शैक्षणिक केन्द्र के रूप में भी विकसित हुआ है। ऐतिहासिक महत्व तो अति प्राचीन काल से है ही। यह नगर पश्चिम उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पंजाब के पास है। अतः इन सभी प्रदेशों से यह प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। इस प्रकार उत्तम भौगोलिक स्थिति, विकसित उद्योग एवं व्यापार, यातायात एवं परिवहन व्यवस्था, शैक्षणिक एवं स्वास्थ्य सुविधा के कारण दिल्ली की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ी है और यहाँ जनाधिक्य की समस्या उपस्थित हो गयी है।

प्रश्न 62.
सक्षिप्त टिप्पणी लिखें –
(i) लिंग अनुपात (Sex Ratio)
(ii) जनगणना (Census)
(iii) उत्पादक जनसंख्या (Productive Population)
(iv) आश्रित जनसंख्या (Dependent Population)
(v) जनसांख्यिकी (Demography)
उत्तर :
(i) लिंग अनुपात : प्रति हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात कहते हैं। भारत में लिंग अनुपात 1000 पुरुषों पर 933 स्त्रियाँ हैं।
(ii) जनगणना : सन् 1881 ई० से प्रति 10 वर्ष पर जनगणना तथा आबादी से सम्बंधित तथ्यों का संग्रह जिस प्रणाली के द्वारा किया जाता है, उसे जनगणना कहते हैं।
(iii) उत्पादक जनसंख्या : कुल जनसंख्या का वह भाग जो आर्थिक क्रियाओं में संलग्न रहता है तथा उत्पादन कार्य कर करता है, अर्जक या उत्पादक जनसंख्या कहलाते हैं।
(iv) आश्रित जनसंख्या : कुल जनसंख्या का वह भाग जो स्वयं आर्थिक क्रिया नहीं करता बल्कि अर्जक या उत्पादन जनसंख्या पर निर्भर करता है, आश्रित जनसंख्या कहलाते हैं।
(v) जनसांख्यिकी : जिस विज्ञान के द्वारा जनसंख्या के विविध आँकड़ों एवं जनसंख्या में परिवर्तन जैसी अनेक बातों का अध्ययन किया जाता है, उसे जनसांख्यिकी कहते हैं।

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प्रश्न 63.
जनघनत्व से क्या समझते हो ?
उत्तर :
जनसंख्या घनत्व (Population density) : जनसंख्या घनत्व किसी क्षेत्र की सम्पूर्ण जनसंख्या और सम्मूर्ण घनत्व क्षेत्रफल का अनुपात है। जनसंख्या घनत्व को निकालने के लिए किसी क्षेत्र की सम्पूर्ण जनसंख्या को वहाँ के पूरे क्षेत्रफल से भाग दे देते हैं। परिणाम जनसंख्या घनत्व कहलाता है।

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जैसे 1991 में भारत का प्रति किलोमीटर जनसंख्या का घनत्व =267 व्यक्ति/वर्ग किलो मी०

प्रश्न 64.
2011 की जनगणना के अनुसार प्रथम तीन राज्यों का नाम लिखो।
उत्तर :
2011 की जनगणना द्वारा जनघनत्व के आधार पर भारत के प्रथम तीन राज्य –

  1. बिहार – 1106 व्यक्ति/वर्ग कि॰मी०
  2. पश्चिम बंगाल – 1028 व्यक्ति/वर्ग कि०मी०
  3. केरल – 860 व्यक्ति/वर्ग कि॰मी०

प्रश्न 65.
जनघनत्व के आधार पर भारत का सम्भावित विभाजन प्रस्तुत करो।
उत्तर :
जनसंख्या घनत्व के आधार पर भारत को पाँच भागों में बांटा गया है –

  1. बहुत कम घनत्व वाले क्षेत्र – 50 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०
  2. कम घनत्व के क्षेत्र – 51-100 व्यक्ति प्रति वर्ग कि॰मी०
  3. मध्यम घनत्व वाले क्षेत्र – 101-200 व्यक्ति प्रति वर्ग कि॰मी॰
  4. उच्च घनत्व के क्षेत्र – 201 से 400 व्यक्ति प्रति वर्ग कि॰मी०
  5. अत्यधिक उच्च घनत्व के क्षेत्र – 400 से अधिक व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०

प्रश्न 66.
हिमाचल प्रदेश में विरल जनसंख्या क्यों है ?
उत्तर :
हिमाचल प्रदेश की जनसंख्या का घनत्व 109 व्यक्ति प्रतिवर्ग कि॰मी० है। हिमाचल प्रदेश में विरल जनसंख्या पाये जाने के निम्न कारण है –

  1. कृषि योग्य भूमि का अभाव – यहाँ की जमीन पथरीली है। यह असमतल एवं अनुपजाऊ है, अतः कृषि के लिए अयोग्य है।
  2. अनुपयुक्त जलवायु – उच्च पर्वतीय भाग होने से यहाँ पूरे वर्ष कठोर शीत पड़ती है जो मानव निवास के प्रतिकूल है।
  3. यातायात के साधनों का अभाव – आसमतल और पथरीला धरातल होने के कारण यहाँ सड़कों और रेलवाहनों का पर्याप्त विकास नहीं हुआ है।
  4. उद्योगों का अभाव – यहाँ पर बड़े उद्योग-धंधों का विकास नहीं हुआ है। उपर्युक्त कारणों से हिमाचल प्रदेश की जनसंख्या विरल है।

प्रश्न 67.
राजस्थान में विरल जनसंख्या क्यों पाई जाती है ?
उत्तर :
राजस्थान विरल बासा भारतीय राज्य है। यहाँ पर घनत्व 165 व्यक्ति प्रति वर्ग कि॰मी० है। राजस्थान में कम जन घनत्व के निम्न कारण है –

  1. कम उपजाऊ मिट्टी – राजस्थान की मिट्टी कम उपजाऊ है अत: यह कृषि योग्य नहीं है।
  2. कठोर जलवायु – राजस्थान की जलवायु विषम है। यहाँ अत्यधिक गर्मी और अत्यधिक सर्दी पड़ती है। गर्मियों में कठोर ‘लू’ चलती है। अत: यह मानव निवास योग्य नहीं है।
  3. अल्प वर्षा – अरावली की स्थिति मानसूनी हवाओं के समानान्तर होने के कारण यहाँ अल्प वर्षा होती है जिससे पर्याप्त मात्रा में कृषि नहीं होती है।
  4. अविक्रसित यातायात – यहाँ पर विषम धरातल होने के कारण सड़क और रेल यातायात का विकास कम हुआ है।
  5. उद्योग धंघों की कमी – यातायात, खनिज एवं विद्युत आपूर्ति के अभाव में यहाँ पर उद्योगों का पर्याप्त विकास नहीं हुआ है। इस पर उपर्युक्त आसुविधाओं के चलते राजस्थान में जनघनत्व कम है।

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प्रश्न 68.
केरल घना आबाद है – क्यों ?
उत्तर :
वर्तमान समय में केरल भारत का तीसरा जनघनत्व वाला राज्य है। यहाँ की जनसंख्या का घनत्व 819 व्यक्ति प्रति वर्ग कि॰मी॰ है। अत्यधिक जनघनत्व के निम्न कारण हैं –
1. वर्षा (Rainfall) : अरब सागर से आनेवाली मानसूनी हवाओं से यहाँ खूब वर्षा होती है जो कृषि कार्य में सहायक है।
2. चावल की गहन कृषि : केरल में अधिक वर्षा चावल की गहन कृषि में सहायक है जिससे अधिक लोगों का भरण-पोषण आसानी से हो रहा है।
3. उपजाऊ भूमि : केरल का तटीय प्रदेश नदियों द्वारा लाये गये जलोढ़ मिट्टी से निर्मित है, अतः उपजाऊ मिट्टी के कारण यहाँ कृषि काफी विकसित दशा में है।
4. नकदी एवं व्यापारिक फसलों का उत्पादन : केरल की लैटराइट मिट्टी में कहवा, चाय एवं रबड़ की बागानी कृषि, मूंगफली एवं गन्ने की खेती होती है। केरल के दक्षिणी भाग में काली मिर्च, लवंग, इलायची एवं नारियल तथा सुपारी की कृषि होती है। इस प्रकार यहाँ व्यावसायिक एवं नकदी फसलों की कृषि जनघनत्व को काफी बढ़वा दिया है।
5. मत्स्य व्यापार : तटीय प्रदेश होने के कारण यहाँ मत्स्य व्यापार खूब विकसित है। मछली द्वारा लोगों का भरणपोषण एवं व्यापार दोनों की भरपाई हो रही है।
6. बन्दरगाह : कटे-फटे होने के कारण केरल में उत्तम प्राकृतिक बन्दरगाहों का विकास हुआ है।
उपर्युक्त सुविधाओं के कारण केरल अत्यधिक घना बसा प्रदेश है।

प्रश्न 69.
पंजाब और हरियाणा में कम वर्षा होती है फिर भी घना बसा है – क्यों ?
उत्तर :
पंजाब और हरियाणा में वर्षा कम होती है। इस प्रकार राजस्थान की तरह यहाँ जनघनत्व कम होना चाहिए किन्तु ये दोनों राज्य अत्यधिक घने बसे हैं। यहाँ का जनघनत्व क्रमशः 482 एवं 477 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। घनी जनसंख्या के निम्न कारण हैं –

  1. उपजाऊ भूमि – इन राज्यों के मैदानी भाग का निर्माण सिन्धु-गंगा द्वारा लायी गई नदियों के जमाव से हुआ है। अत: भूमि अत्यधिक उपजाऊ है और गेहूँ की कृषि बड़े पैमाने पर की जाती है। यहाँ कपास, गत्रा, आलू और धान की फसलें भी उगाई जाती है।
  2. सिंचाई की सुविधा – हिमालय पर्वत से निकलने वाली सततवाही नदियों से सिंचाई की उत्तम व्यवस्था है। सिंचाई की सुविधा पूरे वर्ष उपलब्ध है जो कृषि में सहायक है।
  3. यातायात की सुविधा – समतल भू-भाग होने के कारण यहाँ पर यातायात की सुविधाएँ उन्नत स्थिति में हैं। उत्तम यातायात ने बड़े उद्योगों के विकास में सहायता प्रदान किया है।

इस प्रकार उपजाऊ भूमि, सिंचाई की सुविधा, उन्नत यातायात एवं विकसित उद्योग-धन्धों के कारण पंजाब-हरियाणा का जन घनत्व अधिक है जबकि इन दोनों राज्यों में अल्प वर्षा होती है।

प्रश्न 70.
अरुणाचल प्रदेश में विरल आबादी पायी जाती है – क्यों ?
उत्तर :
अरुणाचल प्रदेश भारत का सबसे कम जन घनत्व वाला राज्य है। यहाँ का जन घनत्व मात्र 13 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० है। इस प्रदेश में कम जनघनत्व पाये जाने के निम्न कारण है –

  1. पर्वतीय एवं अनुपजाऊ भूमि – अरुणाचल हिमालय पर्वत की पूर्वी श्रेणियों की गोद में स्थित है। यहाँ की भूमि असमतल, पथरीली तथा अनुपजाऊ है जो मानव निवास के प्रतिकूल है।
  2. कठोर जलवायु – पर्वतीय क्षेत्र तथा समुद्रतल से ऊँचाई पर होने के कारण यहाँ वर्ष के अधिकांश भाग में कठोर शीत पड़ती है जो मानव निवास के योग्य नहीं है।
  3. अविकसित यातायात – पथरीली और उबड़-खाबड़ धरातल होने से यहाँ यातायात के साधनों का विकास नहीं हुआ है।
  4. हिंसक पशु – पर्वतीय और जंगली भाग होने के कारण यहाँ पर अनेक हिंसक पशु पाये जाते है जो मानव के दुश्मन हैं। उर्प्युक्त प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण अरुणाचल प्रदेश की जनसंख्या बहुत कम है।

प्रश्न 71.
लिंग अनुपात क्या है ?
उत्तर :
जनसंख्या में स्त्री-पुरुष अनुपात के साम्य को जनसंख्या की लिंग संरचना कहते हैं। 1991 की जनगणना के अनुरूप भारत में 1000 पुरुषों के पीछे 929 स्त्रियाँ थीं। यह अनुपात जापान में 1000 पुरुषों के पीछे 1069 स्त्रियाँ हैं। भारत में स्त्रियों की संख्या पुरूषों की अपेक्षा निरन्तर घट रही है। लिंग संरचना के अध्ययन के म्राध्यम से राष्ट्र की सामाजिक और आर्थिक प्रगति का बोध हो जाता है।

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प्रश्न 72.
जनगणना से क्या समझते हो ?
उत्तर :
जनगणना सरकार द्वारा करायी जाने वाली जनसंख्या का आंकड़ा है। यह प्रत्येक 10 वर्षों के अन्तराल पर करायी जाती है। इसके अन्तर्गत किसी देशी पूरी जनसंख्या, स्त्री-पुरुष अनुपात, सक्षरता, लोगों के आय-व्यय, जनघनत्व व्यक्तियों के विभिन्न वर्गों का जीवन स्तर आदि आँकड़े सम्मिलित रहते हैं।

प्रश्न 73.
भारत में भोजन की समस्या का वर्णन करें।
उत्तर :
भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा घना देश है, अत: यहाँ पर भोजन की बहुत बड़ी मांग है। किन्तु देश की उत्पादित कुल अनाज लोगों के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त नहीं है। जिस तरह से जनसंख्या बढ़ रही है उस दर से भोजन का उत्पादन नहीं बढ़ रहा है।
भारत की कृषि मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर है। किन्तु वर्षा या तो कृषि के लिए पर्याप्त नहीं होती या तो फिर बाढ़ आ जाया करती है। इस प्रकार सूखा और बाढ़ से कृषि असफल हो जाती है।
किन्तु पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि पर काफी ध्यान दिया गया तथा हरित क्रान्ति (Green Revolution) से भारत वर्तमान समय में अनाज के उत्पादन में आत्म निर्भर हो चुका है।

प्रश्न 74.
भारत में जनाधिक्य से उत्पत्न समस्याओं का वर्णन करें।
उत्तर :
अत्यधिक जनसंख्या से निम्न समस्यायें बढ़ती हैं –

  1. भोजन, कपड़ा, मकान की समस्या।
  2. अशिक्षा को बढ़ावा।
  3. बेरोजगारी में वृद्धि।
  4. खनिजों की कमी (संसाधनों में जनसंख्या के अनुपात में कमी)।
  5. लोगों के स्वास्थ्य में गिरावट।
  6. प्रति व्यक्ति आय में कमी।
  7. लोगों के जीवन स्तर में गिरावट।

प्रश्न 75.
लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर क्यों जाते हैं ?
उत्तर :
लोग एक जगह से दूसरी जगह निम्न कारणों से पलायित होते है –

  1. अच्छे रोजगार और जीवन स्तर में वृद्धि के लिए।
  2. धार्मिक संरक्षण के लिए।
  3. राजनैतिक सुरक्षा के लिए।
  4. प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए।

प्रश्न 76.
डैमोग्रैफी क्या है ?
उत्तर :
डैमोग्रैफी : जन्म-दर और मृत्यु-दर के अन्तर को डैमोग्रैफी गैप कहते हैं। जब जन्मदर, मृत्युदर से अधिक है तो डैमोग्रैफी गैप धनात्मक होती है। जब मृत्युदर, जन्मदर से अधिक होता है तो डैमोग्रैफी गैप ऋणात्मक होती है। इस प्रकार डेमोग्रैफी जनसंख्या के आकार, संरचना, वितरण एवं बदलाव की सांख्यिकी अध्ययन है।

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प्रश्न 77.
ग्रांड ट्रंक रोड का विवरण दीजिए ?
उत्तर :
ग्रांड ट्रंक राष्ट्रीय राजमार्ग (Grand Trank National Highway) : यह भारत की सबसे अधिक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय राजमार्ग है। इसे G.T. Road तथा राष्ट्रीय राजमार्ग नम्बर 2(NH<sub>2</sub>) कहते हैं। यह एक ऐतिहासिक सड़क है, इसका निर्माण शेरशाह सूरी ने कराया था। यह सड़क कलकत्ता से पेशावर तक जाती थी। भारत में इसकी लम्बाई 1490 km. है। यह राजमार्ग कोलकाता से दुर्गापुर, आनसोल, धनबाद, हजारीबाग, गया, वाराणसी, इलाहाबाद, कानपुर, आगरा, दिल्ली, अम्बाला, लुधियाना, जालन्धर, अमृतसर होते हुए पेशावर (पाकिस्तान) तक जाती है। यह राजमार्ग भारत की घनी आबादी एवं कृषि सम्पन्न क्षेत्रों से होकर गुजरती है। अत: यह भारत की सबसे अधिक व्यस्त राजमार्ग है।

प्रश्न 78.
स्वर्णिम चतुर्भुज महामार्ग क्या है ?
उत्तर :
स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग (Golden Qudrlatoral Highways) : भारत सरकार ने दिल्ली-कोलकता, चेन्नई-मुंबई व दिल्ली को जोड़ने वाली 6 लेन वाली महा राजमार्गो की सड़क परियोजना प्रारम्भ की है। इस परियोजना के तहत दो गलियारे प्रस्तावित हैं। पहला उत्तर-दक्षिण जो श्रीनगर को कन्याकुमारी से जोड़ता है तथा दूसरा पूर्व-पश्चिमी गलियारा जो सिलचर (असम) तथा पोरबंदर (गुजरात) को जोड़ता है। इस महा राजमार्ग का मुख्य उद्देश्य भारत के मेगासिटी (Mega cities) के मध्य की दूरी व परिवहन समय को न्यूनतम करना है। यह राजमार्ग परियोजना भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAl) के अधिकार क्षेत्र में है।

प्रश्न 79.
आधुनिक युग में परिवहन एवं संचार के महत्व को समझाइए।
उत्तर :
परिवहन एवं संचार का महत्व (Importance of transport and communication) : आधुनिक युग में किसी भी देश के विकास का मुख्य आधार परिवहन एवं संचार ही है। धातुओं एवं सेवाओं को उनके उत्पादन क्षेत्रों से उपयोग क्षेत्रों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करके परिवहन सेवाएँ माँग एवं पूर्ति में संतुलन बनाए रखती है। परिवहन एवं संचार तंत्र के बन्द हो जाने की स्थिति में सम्पूर्ण आर्थिक तंत्र एवं विकास परियोजनाएँ रूक जाएगी। अत: देश के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में परिवहन एवं संचार का वही महत्व है जो मानव शरीर में धमनियों एवं शिराओं का है।

प्रश्न 80.
परिवहन सेवाओं को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं ?
उत्तर :
परिवहन सेवाओं को प्रभावित करने वाले कारक : परिवहन को प्रभावित करने वाले दो मुख्य कारक हैं।
मार्ग : परिवहन सुनिश्चित मार्गों पर होता है। कस्बों, गाँवों, औद्योगिक केन्द्रों, कच्चे माल, उनके बीच जमीन की बनावट, मार्ग की लम्बाई पर आने वाले व्यवधानों को दूर करने के लिए उपलब्ध विधियों पर मार्ग निर्भर करते हैं।
मांग : परिवहन के लिए माँग जनसंख्या के आकार पर निर्भर करता है। जनसंख्या का आकार जितना बड़ा होगा परिवहन की माँग उतनी अधिक होगी।

प्रश्न 81.
राष्ट्रीय राजमार्गों के उद्देश्य बताइये।
उत्तर :
हमारे देश के विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ राष्ट्रीय राजमार्ग देश के विभिन्न दूर-दराज के इलाको को जोड़ने का कार्य करता है। यह प्राथमिक सड़क तंत्र है। इसके निर्माण एवं रख-रखाव का भार केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD) द्वारा किया जाता है। अनेक प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम दिशाओं में फैले हुए हैं। दिल्ली व अमृतसर के मध्य ऐतिहासिक शेरशाह सूरी मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या- 1 के नाम से जाना जाता हैं।

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प्रश्न 82.
भारत की प्रमुख वायु सेवाएँ कौन-कौन सी है? इनका संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर :
वायु सेवाएँ –
एयर इण्डियाँ : यह विदेशों के लिए वायु सेवाएँ प्रदान करता है। वर्तमान समय में इसके बेड़े में 26 विमान हैं।

इण्डियन एयर लाइन्स : यह देश की प्रमुख घरेलू हवाई सेवा है। घरेलू सेवा के अतिरिक्त यह पड़ोसी देशों जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों एवं मध्य-पूर्व के लिए भी अपनी सेवाएँ प्रदान करती है। वर्तमान समय में यह 14 पड़ोसी राष्ट्रों के लिए अपनी सेवाएँ उपलब्ध करा रही है। वायुदूत लिमिटेड का इण्डियन एयरलाइन्स में विलय हो चुका है।

पवन हंस लिमिटेड : यह तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम, आयल इण्डिया लिमिटेड तथा चेन्नई की हार्डी एक्सप्लोरेशन कंपनी को हेलिकॉप्टर की सहायता से सेवा उपलब्ध करा रहा है। इसके अतिरिक्त अरूणाचल प्रदेश सहित कई राज्य सरकारों एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को भी यह अपनी सेवाएँ उपलब्ध कराता है।

प्रश्न 83.
भारत में भू-गर्भ रेल के विकास का वर्णन प्रस्तुत करें।
उत्तर :
भू-गर्भ रेल : भारत के बड़े-बड़े नगरों में परिवहन व्यवस्था काफी जटिल हो गई है। सड़क पर भार बढ़ता जा रहा है, ट्रॉफिक एक समस्या हो गई है। लोगों को घण्टों जाम में खड़ा रहना पड़ता हैं। उससे छुटकारा पाने के लिए शहरों में भू-गर्भ रेलों का निर्माण किया जा रहा है। इस दिशा में सबसे पहला प्रयास किया गया। भारत में सबसे पहली भू-गर्भ रेल कोलकाता में बनाई गई जिसके विस्तार का कार्य आज भी जारी है। इसके अलावा दिल्ली, बंगलेरू आदि शहरों में भी भूग र्भ रेल का निमार्ण हो गया है जिससे लाखों लोग प्रतिदिन यात्रा करते हैं।

प्रश्न 84.
भारत में रोप-वे परिवहन के विकास एवं वितरण का वर्णन करें।
उत्तर :
भारत में रोप-वे का अधिक उपयोग हिमालय के उच्च भागों में चाय उद्योग एवं कोयला खानों में होता है। भारत में करीब 100 रोपवे हैं। विश्व के सबसे लम्बे (30 कि०मी०) रोपवे का निर्माण बिहार के झरिया में 1966 में हुआ। इस रज्जुपथ से दामोदर नदी में होकर कोयला खान क्षेत्र में 1350 टन बालू ढोया जाता है। 1968 में दार्जिलिंग में एक साथ ही यात्री और माल ढोने के लिए 9 कि॰मी॰ लम्बे एक रोपवे का निर्माण किया गया है।
अन्य रोप-वे मार्ग दार्जिलिंग, विजनवाती, कालिम्पोंग हैं। चेरापूँजी और मेघालय के दुर्गम क्षेत्रों में एवं दक्षिण अन्नामलाई पहाड़ पर रोप-वे का निर्माण किया गया है। राजगीर एवं मंसूरी में भी पर्यटकों के लिए रोप-वे का निर्माण किया गया है।

प्रश्न 85.
आधुनिक संचार व्यवस्था में इंटरनेट की क्या भूमिका है ?
उत्तर :
सूचनाओं के एकीकरण से अब दूर संचार धीरे-धीरे कम्प्यूटर का अंग बनता चला जा रहा है। इसकी इंटरनेट के माध्यम से एक समन्वित तंत्र का निर्माण हुआ है। इंटरनेट मेजबान कम्यूटरों की आपस में जुड़ी हुई एक प्रणाली है, जिसमें विभिन्न प्रकार की सूचनाए एवं आँकड़े उपलब्ध रहते हैं। ये मेजबान कम्प्यूटर आवश्यकत्मानुसार सूचनाओं का आदान-प्रदान करते रहते हैं। अब इंटरनेट के द्वारा शिक्षा का प्रसार किया जा रहा हैं। इसके माध्यम से यात्रा टिकटों की बुकिंग, सरकारी एवं गैर-सरकारी बिलों का भुगतान, उपभोक्ता समानों की आपूर्ति घर बैठे ही की जा सकती हैं। प्रतिवर्ष लाखों नए ग्राहक इंटरनेट से जुड़ रहे हैं, अतः सूचना संचार के क्षेत्र में इसका महत्व दिनों-दिन बढ़ता चला जा रहा हैं।

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प्रश्न 86.
संचार सेवा का क्या महत्व है ?
उत्तर :
संचार सेवाएँ (Communication Service) : संचार राष्ट्र निर्माण के प्रयासों में भागीदारी करने में सहायता करता है। संचार सेवाओं में शब्दों, संदेशो, तथ्यों और विचारों का आदान-प्रदान सम्मिलित है। जैसे ही लेखन का आविष्कार हुआ, संदेशों को सुरक्षित किया जाने लगा तथा इन्हें भेजा जाने लगा। इन्हें भेजने के लिए पहले तो परिवहन के साधनों पर ही पूर्णत: निर्भर रहना पड़ता था, किन्तु अब वैज्ञानिक खोजों तथा विभिन्न माध्यमों, यथा-दूरभाष, इन्टरनेट तथा उपग्रह ने संचार सेवाओं के लिए परिवहन की निर्भरता कम कर दी है।

प्रश्न 87.
दूरसंचार के बारे में संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर :
दूरसंचार (Tele Communication) : दूर संचार ने कांति उत्पन्न की है। इसके माध्यम से बहुत कम समय में सूचनाएँ भैजी जाती है। अब मोबाइल फोन ने तो दूरस्थ क्षेत्रों में भी क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिया है।
तीव सामाजिक और आर्थिक विकास में दूरसंचार क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका पूरे विश्व में स्वीकार की गई है। दूरसंचार क्षेत्र के विकास में निजी क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। निजी क्षेत्र द्वारा दिये गये वायरलेस, टेलीफोन आदि शहरी क्षेत्रों में ग्राहकों की पंसद हैं।

टेलीग्राफ और टेलीफोन के आविष्कार के तुरन्त बाद ही भारत में दूरसंचार सेवाओं की शुरूआत हो गयी थी। दूरसंचार विभाग की सेवाएँ उपलब्ध कराने सम्बन्धी कार्य को अलग करने तथा सरकारी सेवा प्रदाता सहित सभी सेवा प्रदाताओं को समान अवसर उपलब्ध कराने का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है।

प्रश्न 88.
तृतीयक आर्थिक क्रियाकलाप से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
तृतीयक आर्थिक क्रियाकलाप के अन्तर्गत वे सेवाएँ आती हैं जो प्रत्यक्ष रूप से उत्पादन में योगदान नहीं देते हैं, किन्तु अप्रत्यक्ष रूप में इनका महत्वपूर्ण योगदान होता है । इसके अन्तर्गत यातायात एवं परिवहन सम्बन्धी सेवाएँ, संचार एवं संचार वाहन, वितरण, विनिमय, व्यापार, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवाएं आती हैं।

प्रश्न 89.
सड़क परिवहन कैसे औद्योगिक विकास में सहायक होते हैं ?
उत्तर :
देश के अन्दर होने वाले औद्योगिक विकास में सड़क यातायात सर्वाधिक महत्वर्पूण साधन है। सड़क मार्ग द्वारा देश के समस्त भाग एक-दूसरे के साथ जुड़े होते हैं। अतः औद्योगिक केन्द्रों तक कच्चे मालों को पहुचाने तथा तैयार माल को उपभोक्ता क्षेत्र तक पहुँचाने की सुविधा होती है। पहाड़ी क्षेत्रों के दुर्गम स्थानों तक सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है।

प्रश्न 90.
वेदिकानुमा कृषि एवं स्ट्रिप फार्मिंग में अन्तर बताओ।
उत्तर :
वेदिकानुमा कृषि (Terrace farming) : पहाड़ी ढालों पर सीढ़ी बनाकर जल की धारा को दूसरी तरफ मोड़ दिया जाता है, जिससे मिट्टी को सुरक्षा मिलती है। ढलानों पर मिट्टी की मेड़ भी बनाई जा सकती है और इस तरह उस स्थान पर वेदिकानुमा कृषि की जाती है।
धारीदए कृषि (Spripe farming) : इसके अन्तर्गत पौधों को कतार में रोपा जाता है जिससे वे जल बहाव को रोकते हैं और स्ट्रिप फार्मिंग का कार्य किया जाता है।

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प्रश्न 91.
भारत में जनाधिक्य से उत्पन्न समस्याओं का वर्णन करें।
उत्तर :
अत्यधिक जनसंख्या से निम्न समस्यायें बढ़ती है –

  1. भोजन, कपड़ा, मकान की समस्या।
  2. अशिक्षा को बढ़ावा।
  3. बेरोजगारी में वृद्धि।
  4. खनिजों की कमी (संसाधनों में जनसंख्या के अनुपात में कमी)।
  5. लोगों के स्वास्थ्य में गिरावट।
  6. प्रति व्यक्ति आय में कमी।
  7. लोगों के जीवन स्तर में गिरावट।

प्रश्न 92.
लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर क्यों जाते हैं ?
उत्तर :
लोग एक जगह से दूसरी जगह निम्न कारणों से पलायित होते है –

  1. अच्छे रोजगार और जीवन स्तर में वृद्धि के लिए।
  2. धार्मिक संरक्षण के लिए।
  3. राजनैतिक सुरक्षा के लिए।
  4. प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए।

प्रश्न 93.
दूरसंचार के बारे में संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर :
दूरसंचार (Tele Communication) : दूर संचार ने क्रांति उत्पन्न की है। इसके माध्यम से बहुत कम समय में सूचनाएँ भेजी जाती है। अब मोबाइल फोन ने तो दूरस्थ क्षेत्रों में भी कांतिकारी परिवर्तन कर दिया है।
तीव सामाजिक और आर्थिक विकास में दूरसंचार क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका पूरे विश्व में स्वीकार की गई है। दूरसंचार क्षेत्र के विकास में निजी क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। निजी क्षेत्र द्वारा दिये गये वायरलेस, टेलीफोन आदि शहरी क्षेत्रों में ग्राहको की पंसद हैं।
टेलीग्राफ और टेलीफोन के आविष्कार के तुरन्त बाद ही भारत में दूरसंचार सेवाओं की शुरूआत हो गयी थी। दूरसंचार विभाग की सेवाएँ उपलब्ध कराने सम्बन्धी कार्य को अलग करने तथा सरकारी सेवा प्रदाता सहित सभी सेवा प्रदाताओं को समान अवसर उपलब्ध कराने का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है।

प्रश्न 94.
भारत में जनसंख्या की व्यावासायिक संरचना कैसी है ?
उत्तर :
जन्संख्या की व्यावसायिक संरचना (Occupational structure of population) जनसंख्या की व्यावसायिका संरचना से तात्पर्य कुल कार्यशील जनसंख्या की विभिन्न व्यवसायों में वितरण हैं। सम्पूर्ण व्यवसायों (आर्थिक क्रियाओं) को प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक वर्ग में विभक्त किया जाता हैं। प्रकृति से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित व्यवसाय जैसे शिकार करना, पशुपालन, खनन तथा कृषि आदि प्राथमिक व्यवसाय हैं। प्राथमिक उत्पादनों पर आधारित क्रियाएँ जैसे विनिर्माण उद्योग, सड़क निर्माण आदि द्वितीयक व्यवसाय हैं तथा प्रत्यक्ष रूप से कोई उत्पादक नहीं करनेवाली परन्तु उत्पादन में सहायक क्रियाएँ जैसे परिवहन, व्यापार, शिक्षा, चिकित्सा तथा अन्य सेवाएँ आदि तृतीयक क्रियाएँ हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल कार्यशील जनसंख्या का 49 % प्राथमिक व्यवसाय में, 24 % द्वितीयक व्यवसाय में तथा 27 % तृतीयक व्यवसाय में लगी हुई हैं। यह पहली बार हुआ है जब प्राथमिक व्यवसाय में लगी जनसंख्या की प्रतिरात 50 से कम हैं।

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प्रश्न 95.
जनसंख्या वृद्धि एवं संपोषणीय विकास पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
जनसंख्या वृद्धि एवं रक्षणीय विकास की अवधारण : 18 वीं सदी तक जनसंख्या कोई समस्या नही थी, क्योंकि प्रकृति के पास वह सब कुछ या जिससे मनुष्य का जीवन आराम से व्यतीत हो जाता था। जनसंख्या और संसाधनो के बीच का अन्तग 18 वीं सदी के बाद तेजी से बढ़ा है। विगत 300 वर्षों में विश्व के संसाधनों में थोड़ी बहुत वृद्धि हुई है जबकि मानव जनसंख्या में और उसकी आवश्यकता में बहुत वृद्धि हुई है। विकास ने केवल विश्च के सीमित संसाधनो के बहुविध प्रयोगों को बढ़ाने में योगदान ध्या है जबकि इन संसाधनों की मांग में अतिशय वृद्धि हुई है। अत: आज की सबसे बड़ी समस्या जनसंख्या और संसाधनों के बीच समता बनाये रखना है। भारत में जनसंख्या बड़ी तीव्रगति से बढ़ रही है।

भारत में जनसंख्या की वृद्धि संसाधनो की तुलना में अधिक होने के कारण भारत को जनादिक्य वाला देश (over populated) माना जाता है। विकास सामान्य रूप से और मानव विकास विशेष रूप से सामाजिक विज्ञानों में प्रयुक्त होने वाली एक जटिल संकल्पना है। यह जटिल है क्योंकि युगो से यही सोचा जा रहा है कि विकास एक मूलभूत संकल्पना है और यदि एक बार विकास को प्राप्त कर लिया जाय तो यह समाज की सभी सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय समस्याओ का निदान हो जायेगा।

यद्यपि विकास मानव जीवन की गुणवत्ता में अनेक प्रकार के सुधार किया है, पर इसने एक भीषण समस्या को जन्म भी दे दिया है। विकास के कारण प्राकृतिक संसाधानो का दोहन इतनी तीव्रगति से हुआ है कि मनुष्य के सामने दो विकट समस्याओ ने जन्म ले लिया है। पहली समस्या यह है कि विकास ने जन्म ले लिया है। पहली समस्या यह है कि विकास ने प्राकृतिक पर्यावरण को इतना क्षतिग्रस्त कर दिया है कि मनुष्य एवं जीव जगत के सम्मुख अस्तित्व का खतरा उपस्थित हो गया है।

दूसरी समस्या यह है कि कुछ संसाधनों को प्राकृति ने लाखो करोड़ो वर्षो में तेयार किया है, एक बार समाप्त होने के बाद उनकी पुन: आपूर्ति सम्भव नहीं है, जबकि इनकी जरूरत सदा बनी रहेगी। अत: आवश्यकता यह है कि विकास भी हो और संसाधनो का संरक्षण भी हो। संसाधनों के संरक्षण के साथ विकास को ही संपोषीय विकांस कहा जाता है।

प्रश्न 96.
चाय की खेती के लिए ढालू भूमि की आवश्यकात क्यों पड़ती है ?
उत्तर :
पर्वतीय क्षेत्रों में चाय की कृषि उत्तम होती है, चाय के वृक्षों की जड़ों में जल लगने से चाय का नुकसान होता है। यही कारण है कि पहाड़ी पर चाय की कृषि उत्तम होती हैं।

प्रश्न 97.
खनिज पदार्थों की प्रकृति के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर :
खनिज पदार्थों की प्रकृति के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण (Classification of industries on the basis of nature of raul matarials) : कच्चे माल की प्रकृति के आधार पर उद्योगों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –
कृषि पर आधारित उद्योग (Agro-based Industries) : कृषि क्षेत्र से कच्चा माल प्राप्त करने वाले उद्योगों को कृषि पर आधारित उद्योग कहते है। भूमि वस्त्र उद्योग, जूट उद्योग, रेशमी वस्त्र उद्योग, शक्कर उद्यांग तथा वनस्पति तेल उद्योग आदि उद्योग इस श्रेणी में आते है।

पशु आधारित उद्योग (Animal based Industires) : कच्चे माल की प्राप्ति के लिए पशुओं पर निर्भर उद्योग पशु आधारित उद्योग कहलाते है। डेयरी उद्योग, चमड़ा, उद्योग, जूता निर्माण उद्योग तथा पशुओं की हड्डियों से निर्मित वस्तुओं का निर्माण करने वाले उद्योंग इसी श्रेणी में आते है।

वन आधारित उद्योंग (Forest -besed Industries) : वन क्षेत्र से कच्चा माल प्राप्त करने वाले उद्योग वन आधारित उद्योग कहलाते है। कागज, लाख, काष्ठ टोकरी, निर्माण आदि उद्योंग वनों से ही अपना वाच्चा माल प्राप्त करते हैं।

खनिज आधारित उद्योग (Mineral – based Industries) : विभिन्न प्रकार के खनिज आधारित उद्योग कच्चे माल के रूप में करने वाले उद्योग खनिज आधारित उद्योग के अन्तर्गत आते है। लौहु इस्पात उद्योग एल्यूमीनियम उद्योग, सीमेन्ट निर्माण उद्योग आदि खनिज आधारित होता है।

दीर्घउत्तरीय प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 5 MARKS

प्रश्न 1.
भारत में नगरीकरण के क्या कारण है ?
उत्तर :
भारत में नगरीकरण के कारण – नगरीकरण के अन्तर्गत नए नगरों का निर्माण, पुराने नगरों का विस्तार तथा ग्रामीण जनसख्खा का नगरों की ओर पलायन आदि बाते आती हैं। सन् 1921 के बाद भारत में नगरीकरण में वृद्धि तेजी से हुई है। इसके निम्नलिखित कारण हैं –
i. औद्योगिक विकास – देश में उद्योग-धन्धों का विकास तेजी से हो रहा है। नौकरी पाने के लिए लोग गाँव छोड़कर कारखानों में आते हैं। कारखानों के पास जनसंख्या के बढ़ जाने से नए नगर बस जाते हैं।
ii. शिक्षा का प्रसार – भारत में शिक्षा का प्रसार तेजी से हो रहा है। पड़े-लिखे लोग गाँवों में रहकर खेती करना पसन्द नहीं करते हैं । वे नगरों की ओर बढ़ते हैं जिससे नगरीय जनसंख्या की वृद्धि होती है। साथ ही शिक्षा के केन्द्रों के पास भी नए नगर बस जाते हैं।
iii. यातायात के साधनों का विकास – भारत में रेलों, सड़कों व वायुमार्गों का विकास तेजी से हो रहा है। विभिन्न भागों के संगम स्थानों तथा बन्दरगाहों, स्टेशनों एवं हवाई अड्डों के समीप नये नगर बस गए हैं तथा पहले से बने नगरों का तेजी से विकास हो रहा है।
iv. व्यापार का विकास – उद्योग-धन्धों के विकास के साथ ही आन्तरिक एवं विदेशी व्यापार की भी वृद्धि तेजी से हुई है। फलतः व्यापार कार्य के लिए भी नगरों का विकास हुआ है।

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प्रश्न 2.
कपास की खेती के लिए आवश्यक भौतिक दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
कपास (Cotton) : कपास का जन्म स्थान भारत माना जाता है। ॠग्वेद तथा मनुस्मृति में कपास के धागों का उल्लेख मिलता है। आज भी यह भारत की प्रमुख उपज है। कपास के उत्पादन में भारत का चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका व रूस के बाद विश्व में चौथा स्थान है। यहाँ विश्व के कपास क्षेत्रों के 23 प्रतिशत भाग पर कपास की खेती होती है परन्तु प्रति हेक्टेयर उपज अत्यन्त कम होने से यहाँ विश्व का केवल 8.6 प्रतिशत कपास ही उत्पत्न होता है।
भौगोलिक दशाएँ :
i. उच्च तापक्रम : कपास उष्ण एवं उपोष्ण कटिबन्ध का पौधा है। इसके लिए 20° C से 25° C तापक्रम की आवश्यकता पड़ती है। पाला इसका शत्रु है। कम से कम 200 दिन पाला-रहित होना आवश्यक होता है।
ii. कम वर्षा : कपास के लिए 50 से 100 से॰मी॰ वर्षा उपयुक्त है। कम वर्षा के क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। सिंचित कपास उच्चकोटि का होता है। चुनाई के समय चमकीली धूप एवं उच्च तापक्रम का होना आवश्यक है। पकते समय वर्षा होने से उसकी बोड़ियाँ ठीक से नहीं खिलती हैं जिससे चमकीली कपास नहीं प्राप्त होती है।
iii. समुद्री हवा : समुद्री हवा कपास की कृषि के लिए अत्यन्त लाभदायक होती है। इसी से तटीय व द्वीपीय भाग कपास की कृषि के लिए अत्यन्त उपर्युक्त होते हैं।
iv. मिट्टी : कपास के लिए नमी धारण करने की क्षमता रखने वाली उपजाऊ चूनायुक्त मिट्टी उत्तम होती है। काली एवं दोमट मिट्टियाँ इसके लिए सर्वोत्तम होतो हैं।
v. सस्ता श्रम : कपास की कृषि में बोने, निराने एवं बोड़ियों को चुनने के लिए सस्ते, कुशल एवं पर्याप्त मजदूरों की आवश्यकता पडती है।
vi. कीटाणुनाशक दवा की प्राप्ति : कपास के पौधों पर बाल वीविल (Ball-weevil) नामक कीड़े का प्रकोप होता है। इन कीटों को मारने के लिए पौधो पर कीटाणुनाशक दवाओं का प्रयोग आवश्यक है।

प्रश्न 3.
भारत के पूर्वी भाग में इस्पात उद्योग की स्थापना के क्या कारण हैं ?
अथवा
पूर्व और मध्य भारत में लौह-इस्पात उद्योगों के विकास के प्रमुख कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
भारत के पूर्वी भाग में इस्पात उद्योग की स्थापना के कारण : भारत के पूर्वी भाग में पश्चिम बंगाल में दुर्गापुर एवं कुल्टी, बर्नपुर तथा झारखण्ड के बोकारो तथा उड़ीसा के राउरकेला में लौह-इस्पात उद्योग की स्थापना के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
i. लौह अयस्क की सुविधा – लौह अयस्क झारखण्ड के सिंहभूम जिले तथा उड़ीसा के मयूरभंग एवं क्योंझर की खानों से प्राप्त होता है।
ii. कोयला की सुविधा – कोयला, रांनीगंज, झरिया तथा बोकारो की खानों से प्राप्त होता है। जो गाड़ियां, झारखण्ड तथा पश्चिम बंगाल से कोयला राऊरकेला को ले जाती है, वही वहाँ से लौह अयस्क दुर्गापुर तथा कुल्टी-बर्नपुर के लिए लाती है। दुर्गापुर जमशेदपुर तथा बोकारो कोयला क्षेत्र में ही पड़ते हैं। अत: इन कारखानों को कोयला प्राप्ति की सुविधा है।

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iii. अन्य कच्चे मालों की सुविधा – कोयला और लौह अयस्क के अतिरिक्त चूना पत्थर, गंगपुर, वीरमित्रपुर तथा हाथी बाड़ी से मैंगनीज, डोलोमाइट, उड़ीसा के वीरमित्रापुर क्षेत्रों से तथा पास के क्षेत्रों से ताप प्रतिरोधक इंटे मिलती है। इस प्रकार अन्य खनिज इस क्षेत्र में ही मिलते हैं।
iv. जल की प्राप्ति – पूर्वी भाग में अनेक छोटी-छोटी नदियाँ हैं। अत: दुर्गापुर कारखाने को जल दुर्गापुर बैरेंज से, राउरकेला को ब्राह्मणी नदी से, बोकारो को दामोदर नदी से जल मिल जाता है।
v. सस्ते श्रमिक – घनी जनसंख्या के कारण इस क्षेत्र में मजदूर आसानी से मिल जाते हैं।
vi. पठारी भाग – भारत के पूर्वी भाग में छोटा नागपुर के इस क्षेत्र की भूमि पठारी है जो कृषि के अनुपयुक्त है, अत: उद्योगों की स्थापना के लिए पर्याप्त अनुपजाऊ भूमि उपलब्ध है।
vii. कलकत्ता बंदरगाह की सुविधा – इस क्षेत्र में कलकत्ता बंदरगाह है जहाँ से मशीनों को मंगाने एवं माल को विदेशों में भेजने में सुविधा होती है।
viii. विस्तृत बाजार – यह क्षेत्र घनी जनसंख्या का क्षेत्र है, अत: लौह इस्पात का विस्तृत बाजार क्षेत्र है।

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प्रश्न 4.
भारत में जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले किन्हीं पांच कारकों की व्याख्या कीजिए। अथवा, भारत में जनसंख्या के असमान वितरण के लिए पाँच कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भारत में जनसंख्या के क्षेत्रीय वितरण को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं –
i. उच्चावच (Relief) : धरातल की बनावट जनसंख्या घनत्व को प्रभावित करती है। ऊबड़-खाबड़ तथा मरूस्थलीय क्षेत्रों में मैदानों की अपेक्षा कम घनी जनसंख्या होती है। उदाहरण जम्मू-कश्मीर के उत्तरी-पूर्वी भाग तथा मरूस्थलीय प्रदेश में जनसंख्या का घनत्व कम है, जबकि गंगा की घाटी में घनत्व काफी अधिक है।
ii. जलवायु (Climate) : उपयुक्त जलवायु वाले क्षेत्रों जैसे उत्तरी मैदानों में घनी जनसंख्या पाई जाती है। इसके विपरीत अति शीत जम्मू-कश्मीर, अति गर्म जैसे रेगिस्तानी भागों में कम जनसंख्या पाई जाती है।
iii. मृदा (Soil) : मृदा की उर्वरता भी जनसंख्या वितरण को प्रभावित करती है। जिन क्षेत्रों में मृदा अधिक उपजाऊ है अधिक जनसंख्या निवास करती है। जैसे पंजाब तथा उत्तर प्रदेश।
iv. उद्योग-धंधे (Industries) : जहाँ पर उद्योग-धंधे अधिक विकसित हैं वहाँ लोगों को रोजगार के अवसर अधिक मिलते हैं, अत: वहाँ घनी जनसंख्या पाया जाता है। जैसे – उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, महाराष्ट्र आदि।
v. कृषि (Agriculture) : अधिक कृषि उत्पादन वाले क्षेत्रों में अधिक जनसंख्या निवास करती है, जैसे उत्तरी मैदान।
vi. यातायात (Transport) : यातायात के साधन तथा खनिज पदार्थ वाले क्षेत्र में भी अधिक जनसंख्या निवास करती है। जिन क्षेत्रों में रेलमार्ग तथा सड़क मार्ग अधिक विकसित है, वहाँ जनसंख्या अधिक पाई जाती है जैसे उत्तरी मैदान। जहाँ ये साधन कम हैं जनसंख्या का घनत्व भी कम है। जैसे राजस्थान तथा गुजरात आदि।

प्रश्न 5.
पेट्रोरसायन उद्योग की स्थिति किन कारकों से प्रभावित होती है ?
अथवा
पश्चिमी भारत में पेट्रोकेमिकल उद्योग क्यों अधिक विकसित हैं ?
उत्तर :
पेट्रोरसायन उद्योगों की स्थिति निम्नलिखित दो कारकों से प्रभावित होती है – i. तेल शोधन शालाओं की उपस्थिति ii. बाजार एवं बंदरगाह की सुविधा।
i. तेल शोधनशालाओं की उपस्थिति – पेट्रोरसायन उद्योग के कच्चा माल पेट्रोलियम शोधन से प्राप्त उपपदार्थ हैं। अत: कच्चे माल की प्राप्ति को ध्यान में रखकर इन उद्योगों की स्थापना उन्हीं स्थानों पर हुई है, जहाँ तेलशोधन शालाएँ मौजूद हैं। कोयली, जामनगर, हल्दिया, मंगलोर, चेन्नई, मुम्बई आदि स्थानों पर पेट्रो-रसायन उद्योग की स्थापना का मुख्य कारण यहाँ तेल शोधन शालाओं का स्थित होना है।
ii. बाजार एवं बंदरगाह की सुविधा – भारत के तटीय क्षेत्रों में स्थित तेल शोधनशालाओं के निकट स्थापित पेट्रोरसायन प्लाण्टों को बंदरगाह की सुविधा प्राप्त है। तट के पास स्थित होने के कारण ये सस्ते जलमार्ग द्वारा कच्चा माल आसानी से मंगा लेते है। बंदरगाहों की सुविधा के कारण उत्पादित धातुओं के निर्यात में भी सुविधा के कारण अंतराष्ट्रीय व्यापार का लाभ मिलता है।

प्रश्न 6.
भारत में गत्ने की खेती के लिए आवश्यक भौतिक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
गत्रा (Sugarcance) : गत्ना भारत की सबसे महत्वपूर्ण औद्योगिक एवं व्यापारिक उपज है। यह चीनी का मुख्य स्रोत है। इससे गुड़ एवं शक्कर भी बनाया जाता है। गन्ने के पेड़ का ऊपरी भाग पशुओं को खिलाया जाता है। गन्ने की खोई इंधन के काम में आती है। खोई से कागज व दफ्ती भी बनाई जाती है।

गन्ने का जन्म-स्थान भारत माना जाता है। आज भी विश्व के गत्रा-उत्पादक देशों में क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का प्रथम स्थान है। परन्तु देश में गन्ने का प्रति हेक्टेयर उत्पादन हवाई द्वीप तथा क्यूबा देशों से बहुत कम है। गन्ने के उत्पादन में इस समय भारत का विश्व में ब्राजील के बाद दूसरा स्थान है।
भौगोलिक अवस्थाएँ :-
i. तापक्रम : गन्ना उष्ण कटिबन्धीय पौधा है। इसकी कृषि के लिए 21° C से 28° C तापक्रम उत्तम होता है। पाला एवं कुहरा गत्रे के लिए हानिकार होते हैं। समुद्री वायु गन्ना के पौधे के विकास के लिए विशेष अनुकूल होती है।
ii. वर्षा : गन्ने की कृषि के लिए 150 से॰मी॰ वर्षा आवश्यक है। 100 से॰मी० से कम वर्षा के क्षेत्रों में सिंचाई आवश्यक है। पकने के समय वर्षा का होना हानिकारक है। क्योंकि इससे गन्ने का रस पतला पड़ जाता है।
iii. समुद्री वायु (Sea Breeze) : समुद्री वायु गन्ने की कृषि के लिए काफी उपयुक्त होती है। इसी से समुद्र तटीय भागों एवं द्वीपों पर गन्ने की अच्छी खेती होती है।
iv. मिट्टी : गन्ने की कृषि के लिए गहरी दोमट, चिकनी, जलोढ़ अथवा काली मिट्टियाँ, जिनमें चूना एवं नमक की मात्रा अधिक हो, उत्तम होती है।
v. खाद : गन्ना की उपज बढ़ाने के लिए प्राकृतिक एवं रासायनिक खादों का प्रयोग आवश्यक होता है।
vi. सस्ता श्रम : गन्ने की बुवाई, निराई, कटाई करने तथा खेत में सिंचाई करने के लिए पर्याप्त एवं सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है।
vii. बाजार या खपत क्षेत्र की समीपता : गन्ने को काटने के एक दिन के भीतर ही उसे पेर कर उसका रस निकाल लिया जाता है। देर करने से गन्ना सूख जाता है और उससे कम रस निकलता है। अतः इसके लिए पर्याप्त बाजार का नजदीक में मिलना आवश्यक होता है।
viii. यातायात की सुविधा : गन्ने को चीनी मिल तक शीघ्र पहुँचने के लिए यातायात के तेज एवं सस्ते साधनों का होना आवश्यक है।

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प्रश्न 7.
धान की खेती के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
चावल की खेती के लिए आवश्यक भौतिक दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
चावल (Rice) : छिलकारहित चावल को धान (Paddy) कहते हैं। चावल भारत का सबसे प्रमुख खाद्यान्न है। देश को खाद्यान्नों की कुल उपज का 43 % भाग चावल से ही प्राप्त होता है। भारत को समस्त बोई गयी भूमि के 25 प्रतिशत भाग पर चावल उत्पन्न किया जाता है। चावल के उत्पादन में भारत का चीन के बाद में दूसरा स्थान है। विश्व के कुल उत्पादन का 21.6 प्रतिशत चावल भारत में उत्पन्न होता है। चावल की कृषि को खुरपे की कृषि भी कहा जाता है। भौगोलिक अवस्थाएँ :-
i. उच्च तापक्रम : चावल उष्ण कटिबन्धीय पौधा है। इसके लिए 16° C से 27° C तापक्रम की आवश्यकता पड़ती है।
ii. अधिक वर्षा : चावल का पौधा जल का प्रेमी है, अत: चावल के खेतों में कई दिनों तक जल का जमा होना आवश्यक है। इसकी कृषि के लिए 100 से 200 से० मी० तक वार्षिक वर्षा आवश्यक है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई आवश्यक है।
iii. मिट्टी : चावल की कृषि लिए ऐसी मिट्टी की आवश्यकता पड़ती है जिसमें आर्द्रता ग्रहण करने की शक्ति हो। इसके लिए चिकनी, कछारी, दोमट अथवा डेल्टाई मिट्टी उत्तम होती है।
iv. धरातल : धरातल समतल हो ताकि उसमें जल एकत्र किया जा सके। पहाड़ी भागों में सीढ़ीदार खेत बनाकर चावल की कृषि की जाती है।
v. सस्ता श्रम : चावल की कृषि में मशीनों का प्रयोग बहुत कम होता है। इसकी कृषि का अधिकांश काम हाथ से ही होता है। अतः चावल की कृषि के लिए सस्ते, कुशल तथा अधिक श्रमिको का मिलना आवश्यक है।
vi. खाद : चावल का पौधा भूमि की उर्वराशक्ति को नष्ट कर देता है।अतः इसकी खेती के लिए हरी तथा रासायनिक खादों का प्रयोग आवश्यक है। चावल के लिए फॉस्फोरस की अधिक आवश्यकता है, जो सुपरफॉस्फेट खाद से प्राप्त होती हैं। बोआई विधियाँ : भारत में चावल तीन प्रकार से बोया जाता है :- (1) छिटक कर, (2) हल चलकार और (3) रोप कर। भारत में आजकल जापानी विधि से चावल की कृषि की जा रही है। यह रोपण का ही विकसित रूप है।
प्रति एकड़ उपज बढ़ाने के लिए अधिक उत्पादन क्षमता वाले (High Yielding Variety or HYV) बीजो जैसे IR8, TN-1, IR-20, रत्ना, ताईचुंग, जया, विजया, पद्या, हंसा, सोना, पंकज, गोविन्दा, आदित्य, मंसूरी का प्रयोग किया जा रहा है। इनमें रत्ना, विजया, IR-20 एवं मंसूरी उत्तम किस्म के महीन चावल हैं।

प्रश्न 9.
भारत में गेहूँ के उत्पादन क्षेत्र का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर :
उत्पादन क्षेत्र : विश्व में गेहूँ के उत्पादन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। गेहूँ मुख्यतः उत्तरी एवं मध्य भारत की उपज है। प्रमुख गेहूँ उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा तथा मध्य प्रदेश हैं।
i. उत्तर प्रदेश : गेहूँ के उत्पादन में उत्तर प्रदेश राज्य भारत में प्रथम स्थान रखता है। यहाँ देश का लगभग 34.4 प्रतिशत गेहूँ उत्पन्न होता है। गंगा-यमूना तथा गंगा-घाघरा द्वाब गेहूँ की उपज के लिए प्रसिद्ध हैं। प्रमुख गेहूँ उत्पादक जिसे मेरठ, मुजफ्फरनगर, इटावा, गोरखपुर, देहरादून तथा सहारनपुर हैं।
ii. पंजाब : गेहूँ के उत्पादन में पंजाब राज्य दूसरे स्थान पर है, जो देश का लगभग 2.11 प्रतिशत गेहूँ उत्पन्न करता है। यहाँ नहरों द्वारा सिंचाई की सुविधा है। साथ ही अच्छे बीजों का प्रयोग खूब होता है । अत: यहाँ की प्रति हेक्टेयर पैदावार (4,696 कि० ग्रा०) भारत में सबसे अधिक है।
iii. हरियाणा : यहाँ मुख्यतः दक्षिणी-पूर्वी जिलों में भाखरा-नांगल योजना की नहरो द्वारा सिंचाई की सहायता से गेहूँ उत्पन्न किया जाता है। गेहूँ के उत्पादन में इस राज्य का भारत मेंतीसरा स्थान है। यहाँ देश का लगभग 12.8 % गेहूँ उत्पन्न होता है।
iv. मध्य प्रदेश : गेहूँ के उत्पादन में मध्य प्रदेश राज्य का चतुर्थ स्थान है। यहाँ मुख्यतः सागर, होशंगाबाद, जबलपुर, ग्वालियर, निमाड, देवास, उज्जैन आदि जिलों में गेहूँ की कृषि की जाती है। यहाँ से देश का लगभग 11.2 प्रतिशत गेहूँ उत्पन्न किया जाता है।
v. राजस्थान : गेहूँ के उत्पादन में भारत में राजस्थान राज्य का अब पाँचवा स्थान है जहाँ देश का लगभग 9 प्रतिशत गेहूँ उत्पन्न किया जाता है। मुख्य गेहूँ उत्पादक जिले गंगानगर, भरतपुर, कोटा, अलवर आदि हैं।
इनके अतिरिक्त बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात एवं पश्चिम बंगाल राज्यों में भी गेहूँ की कृषि की जा रही है।
भारत का केन्द्रीय गेहूँ अनुसंधानशाला पुसा (नई दिल्ली) में है।

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प्रश्न 8.
भारत के प्रमुख चावल उत्पादक राज्य का संक्षिप्त में वर्णन करें।
उत्तर :
चावल उत्पादक : भारत में प्रमुख चावल उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, बिहार, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश व उड़ीसा हैं।

प्रश्न 10.
गेहूँ की खेती के आवश्यक भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
गेहूँ (Wheat) : चावल के बाद गेहूँ भारत का दूसरा प्रमुख खाद्यान्न है। भारत के कुल खाद्यानों की उपज का 36.2 % भाग गेहूं से प्राप्त होता है। गेहूं के उत्पादक देशों में क्षेत्रफल तथा उत्पादन की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। भारत की कृषि भूमि के 14 प्रतिशत भग पर गेहूँ की कृषि की जाती है। भारत में विश्व का 12.9 प्रतिशत भाग गेहूँ उत्पन्न किया जाता है।

भौगोलिक अवस्थाएँ : भारत में गेहूँ रबी की फसल है। भारत में यह अक्टूबर-नवम्बर के महीनों में बोई जाती है तथा मार्च में काटी जाती है। इसकी कृषि के लिए निम्नलिखित दशाएँ आवश्यक हैं :
i. तापक्रम : गेहूँ शीतोष्ण कटिबन्धीय फसल है। इसके लिए बोते समय 10° C, बढ़ते समय 15° C तथा पकते समय 21° C तापक्रम उपयुक्त है। इसके लिए पाला हानिकारक होता है।
ii. साधारण वर्षा : इसके लिए 50 से 75 से० मी॰ वर्षा लाभदायक है। पकते समय वर्षा का होना हानिकारक है। बोने के 15 दिन बाद तथा पकने के 15 दिन पहले वर्षा बहुत लाभदायक होती है। कम वर्षा के क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
iii. मिट्टी : गेहूँ की कृषि के लिए दोमट मिट्टी उत्तम होती है। चिकनी तथा काली मिट्टियों में भी इसकी उपज अच्छी होती है।
iv. धरातल : धरातल समतल परन्तु हल्का ढालू हो ताकि खेतों में जल एकत्र न होने पाये।
v. सस्ता श्रम : गेहूँ की कृषि में मशीनों का प्रयोग आसान होता है। जहाँ मशीनों का प्रयोग संभव नहीं है वहाँ सस्ते व कुशल श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है।
vi. खाद : गेहूँ की कृषि के लिए प्राकृतिक तथा रासायनिक खादों की आवश्यकता पड़ती है। शोरा तथा अमोनिया सल्फेट की खाद लाभदायक होती है।

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उपज बढ़ाने के लिए अधिक उत्पादन क्षमता वाले (HYV) बीज जैसे – लर्मा राजो 644, सफेद लर्मा, सोनरा – 63 , सोनरा – 64 , सोना – 227, कल्यान सोना, सोनालिका – 308 , छोटी लर्मा एवं शर्बती सोनरा आदि बीजों का आदि बीजों का प्रयोग किया जा रहा है।

प्रश्न 11.
चाय की खेती के लिए आवश्यक भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
चाय (Tea) : चाय भारत की प्रमुख बागानी फसल (Plantation crop) है। यह भारत का प्रमुख पेय पदार्थ है, जो एक झाड़ीदार पौधे की पत्तियों को सुखाने से प्राप्त होता है।
भौगोलिक अवस्थाएँ :
i. उच्च तापक्रम : चाय उपोष्ण कटिबन्धीय पौधा है। इसके लिए 20° C से 30° C तापक्रम उत्तम होता है। इसका पौधा हल्क्की छाया में तीव्र गति से बढ़ता है।
ii. अधिक वर्षा : चाय के लिए 150 से 250 से॰मी॰ वर्षा उपयुक्त होती है। वर्षा लगातार होनी चाहिए। शुष्क मौसम में पत्तियाँ कम निकलती हैं।
iii. ढालू भूमि : चाय की जड़ों में पानी का रुकना हानिकारक होता है। अतः चाय की कृषि पहाड़ी ढालों पर की जाती है ताकि जड़ों में पानी न रुक सके।
iv. मिट्टी : चाय के लिए लौहयुक्त उपजाऊ मिट्टी जिसमें पोटाश, मैगनीज, फॉस्फोरस तथा ह्यूमस की मात्रा अधिक हो, उत्तम होती है।
v. खाद : चाय के लिए अमोनियम सल्फेट, हड्डी की खाद तथा हरी खाद उपयोगी होती है।
vi. सस्ता श्रम : चाय की पत्तियों को चुनने, सुखाने और डिब्बों में भरने के लिए अधिक और सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है। चाय की पत्तियों को बार-बार तोड़ना पड़ता है। स्त्रियाँ अपनी कोमल अँगुलियों से पत्तियाँ सावधानी से तोड़ती हैं।

प्रश्न 12.
भारत में कहवा की खेती के लिए आवश्यक भौतिक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
कहवा (Coffee) : चाय के बाद कहवा भारत का दूसरा प्रमुख पेय पदार्थ हैं। कहवा भी चाय की तरह एक बागानी फसल है। यह एक प्रकार के पेड़ के फलों के बीजों को सुखा कर पीसने पर प्राप्त होता है। भारत में सर्वप्रथम सत्रहवं शताब्दी में कहवा की कृषि का प्रारम्भ तब हुआ जब सौदी अरब से कहवा के बीज लाकर उन्हें कर्नाटक राज्य की बाबा बूदन की पहाड़ी पर उगाया गया। परन्तु व्यापारिक दृष्टि से इसकी कृषि सन् 1826 ई० में कर्नाटक राज्य में चिकमलूर के पास शुरू हुई। भारत में कहवा की दोनों किस्मों – कॉफी अरेबिका तथा कॉफी रोबस्टा का समान मात्रा में उत्पादन होता है। भारतीय कहवा को मधुर कहवा (Mild Coffee) कहा जाता है।
भौगोलिक परिस्थितियों : कहवा की कृषि के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ आवश्यक हैं :-
i. उच्च तापक्रम : कहवा उष्ण कटिबन्धीय पौधा है। इसकी कृषि के लिए 15° C से 30° C तापक्रम उत्तम होता है। पाला इसका शत्रु है।
ii. धूप से रक्षा : कहवा का पौधा अधिक धूप एवं आँधी को नहीं सह सकता। अतः इनके बीच में केला, रबर, नारंगी एवं सिलवर ओक आदि के छायादार वृक्ष लगाये जाते हैं।
iii. अधिक वर्षा : कहावा के लिए 150 से 275 से॰मी॰ वर्षा आवश्यक है। वर्षा वर्ष भर होनी चाहिए। अधिक सूखा पड़ने से इसका उत्पादन घट जाता है।
iv. ढालू भूमि : कहवा की जड़ों में पानी का रुकना हानिकारक है, अत: इसकी कृषि के लिए ढालू भूमि आवश्यक है। साधारणत: यह 900 से 1800 मीटर की ऊँचाई तक उगाया जाता है।
v. मिट्टी : कहवा के लिए लोहा, चूना, पोटाश, नाइट्रोजन एवं ह्यूमस युक्त उपजाऊ दोमट मिट्टी उत्तम होती है। लाल एवं लेटराइट मिट्टियाँ विशेष रूप से उपयुक्त हैं। वनों के साफ की गई भूमि एवं ज्वालामुखी के उद्नार से निकली हुई लावा मिट्टी भी इसकी कृषि के लिए उत्तम होती है।

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प्रश्न 13.
भारत में चाय के उत्पादन क्षेत्र का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर :
उत्पादक क्षेत्र : भारत में चाय-उत्पादन के तीन प्रमुख क्षेत्र निम्नोक्त है :-
उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र : इस क्षेत्र से भारत का 75 % चाय प्राप्त होता है। इसके अन्तर्गत मुख्यतः असम तथा पश्चिम बंगाल के चाय उत्पादक क्षेत्र आते हैं। चाय उत्पादन में असम राज्य का पहला स्थान है, जो अकेले ही देश का लगभग 50 % चाय उत्पन्न करता है। यहाँ ब्रह्मपुत्र तथा सूरमा नदियों की घाटियों में चाय के बगान मिलते हैं। असम राज्य के शिव सागर, उत्तरी दरांग, लखीमपुर, करीमगज एवं कछार जिले चाय के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। असम की चाय अपनी सुगध के लिए प्रसिद्ध है। पश्चिम बंगाल राज्य का दूसरा स्थान है जहाँ देश का 22 % चाय उत्पन्न किया जाता है। दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी तथा कूचबिहार प्रमुख चाय उत्पादक जिले हैं। दार्जिलिंग की मिट्टी में पोटास तथा फॉस्फोरस की मात्रा अधिक होती है जिससे यहाँ की चाय अपने विशेष स्वाद के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। इनके अतिरिक्त मेघालय एवं त्रिपुरा के पर्वतीय ढालों पर भी चाय की कृषि होती है।

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दक्षिणी क्षेत्र : दक्षिणी भारत देश का 25 % चाय उत्पन्न करता है। यहाँ नीलगिरि, अन्नामलाई, पलानी व इलाचयी की पहाड़ियों पर चाय के बगान हैं। तमिलनाडु, केरल तथा कर्नाटक मुख्य चाय उत्पादक राज्य हैं। चाय के उत्पादन में भारत में तमिलनाडु का तीसरा तथा केरल राज्य का चौथा स्थान है। तमिलनाडु देश का लगभग 15 % तथा केरल देश का लगभग 9 % चाय उत्पन्न करते हैं। तमिलनाडु के मदुराई, तिरुनवेली, नीलगिरि एवं कोयम्बटूर जिलों में, केरल के पालघाट तथा क्यूलोन जिलों में तथा कर्नाटक के चिकमलूर, कुर्ग, हसन, शिमागा एव कादूर जिलों में चाय के बगान हैं।

हिमालय प्रदेश : यहाँ उत्तर प्रदेश के देहरादून, हिमाचल प्रदेश की कांगड़ाघाटी तथा कश्मीर की घाटी में देश का लगभग 5 % चाय उत्पन्न होता है। इनके अतिरिक्त झारखण्ड के राँची एवं हजारीबाग जिलों में भी चाय की खेती होती है। चाय के उत्पादन में भारत का विश्व में पहला स्थान है। यहाँ विश्व की लगभग 27.2 % चाय उत्पन्न होती है। भारत में चाय की प्रति हेक्टेयर उपज 1875 कि० ग्रा० है।

व्यापार : कई वर्षों से चाय के उत्पादन व निर्यात में भारत का विश्व में पहला स्थान रहा है परन्तु अब हमारे देश का चाय के निर्यात में श्रीलंका एवं केनिया के बाद तीसरा स्थान हो गया है। चाय भारत की प्रमुख मुद्रादायिनी फसल है। भारत अपनी कुल उपज का 24 % भाग चाय निर्यात करता है। भारतीय चाय के प्रमुख ग्राहक ग्रेट ब्रिटेन, रूस, नीदरलैण्ड, ईरान, इराक, जापान, जर्मनी, अफगानिस्तान, संयुक्त अरब गणराज्य एवं संयुक्त राज्य अमेरिका हैं। अब भारत की चाय का सबसे बड़ा ग्राहक रूस है। चाय का निर्यात मुख्यतः कोलकता, चेन्नई, कोचीन, बंगलौर तथा मुम्बई बन्दरगाहों से होता है। चाय के निर्यात में भारत को श्रीलंका आदि देशों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।

प्रश्न 14.
भारत में कहवा के उत्पादन क्षेत्र का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
उपज के क्षेत्र : भारत में कहवा का उत्पादन मुख्यतः दक्षिण भारत में कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाडु राज्यों में होता है।
कर्नाटक : कहवा उत्पादन में भारत में कर्नाटक राज्य अग्रगण्य है। इस राज्य में देश का 57 प्रतिशत कहवा का क्षेत्र

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प्रश्न 15.
भारत की प्रमुख बागानी फसलें क्या हैं ? ये फसलें कहाँ उगायी जाती हैं ?
उत्तर :
भारत की प्रमुख बागानी फसल (Plantation crops) :- चाय, कहवा और रबर भारत की प्रमुख बागानी फसलें है :
चाय (Tea) :- भारत में चाय के बगान करीब 420 हजार हेक्टेयर जमीन में फैले हुए हैं। चाय के कुल उत्पादन का 80 % चाय उत्तर-पूर्व भारत एवं पूर्व से तथा 20 % चाय दक्षिण भारत से प्राप्त होता है।
उत्तर भारत :- इस क्षेत्र के अन्तर्गत असम, पश्चिम बंगाल, सिक्किम और त्रिपुरा हैं।
असम :- यहाँ कुल चाय का 53 % भाग उत्पन्न किया जाता है। असम के शिवसागर, लखीमपुर, डिबुगढ़, कछार में चाय की कृषि होती है।
पश्चिम बंगाल :- पश्चिम बंगाल में कुल चाय का 23 % उत्पादन किया जाता है । यहाँ दार्जिलिंग, डुअर्स, तराई क्षेत्रों में कूचबिहार तथा जलपाइगुड़ी में चाय उगायी जाती है।
दक्षिण भारत :- तमिलनाडु (नीलगिरि, कोयम्बटूर), केरल (कुइलन, पालघाट), कर्नाटक (चिकमगलूर) में चाय का उत्पादन किया जाता है। दक्षिण भारत की 98 % चाय की कृषि केरल और तमिलनाडु में होती है।
कहवा (Coffee) :- भारत में 1,28,785 हेक्टेयर भूमि पर कॉफी की कृषि की जाती है।
कर्नाटक :- यहाँ पूरे उत्पादन का 50 % अकेले पैदा किया जाता है कुर्ग, चिकमगलूर, हसन, विलिगिरिज एवं सिमोगा प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।
केरल :- केरल में पालाघाट, कोट्टायम, आलोधि, कुइलन और अर्नाकुलम में कहवा के बगान पाये जाते है।
तमिलनाडु :- तमिलनाडु में नीलगिरि के पर्वतीय क्षेत्रों में कहवा उगाया जाता है।
रबर (Rubber) :- भारत में सर्वप्रथम 1895 ई० में रबर की कृषि प्रारम्भ हुई। भारत विश्व का चौथा बड़ा रबर उत्पादक देश है।
केरल :- सम्पूर्ण रबर का 86.1 भाग केवल केरल से अकेले पैदा किया जाता है। यहाँ रबर का उत्पादन कोचीन, कोजीकोड, क्वोलोन एवं ट्रावनकोर में किया जाता है।
तमिलनाडु :- तमिलनाडु में रबर का उत्पादन कर्नाटक तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूहों में किया जाता है। थोड़ी मात्रा में रबर का उत्पादन त्रिपुरा एवं उत्तरी-पूर्वी राज्यों में भी होता है।

प्रश्न 16.
भारत में कपास के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
उत्पादन क्षेत्र : भारत की दो-तिहाई कपास दक्षिणी भारत की काली मिट्टी के क्षेत्र से प्राप्त होती है। महाराट्र, गुजरात एवं आन्ध प्रदेश मिलकर देश का लगभग 58.4 प्रतिशत कपास उत्पन्न करते हैं।
i. महाराष्ट्र : कपास उत्पादन में महाराष्ट्र राज्य का भारत में पहला स्थान है। देश के लगभग 37 % कपास क्षेत्र इसी राज्य में है, परन्तु प्रति एकड़ उपज कम (162 कि० ग्रा०) होने के कारण यहाँ देश का केवल 26.6 प्रतिशत कपास उत्पन्न होता है। यहाँ भी काली मिट्टी के क्षेत्र में उत्तम श्रेणी की कपास उत्पन्न होती है। यहाँ शोलापुर, नासिक, वर्धा, नागपुर, औरंगाबाद, अकोला, अमरावती आदि जिलों में कपास की कृषि की जाती है।

ii. गुजरात : कपास के उत्पादन में भारत में गुजरात राज्य का दूसरा स्थान है। यहाँ देश का लगभग 18 प्रतिशत कपास उत्पन्न होता है। भडौंच, अहमदाबाद तथा सूरत मुख्य कपास उत्पादक जिले हैं। यहाँ काली मिट्टी के क्षेत्र में उच्चकोटि की लम्बे रेशे की कपास उत्पन्न होती है।

iii. आन्द्र प्रदेश : कपास के उत्पादन में इस राज्य का भारत में तीसरा स्थान है, जहाँ से देश का लगभग 13.8 प्रतिशत कपास प्राप्त होता है। मुख्य कपास उत्पादक जिले आदिलाबाद, कर्नूल एवं अनन्तपुर हैं।

iv. हरियाणा : कपास के उत्पादन में हरियाणा राज्य का भारत में चौथा स्थान है, जहाँ से भारत के कुल कपास के क्षेत्र के 63 % भाग पर कपास की कृषि की जाती है परन्तु प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक होने से यहाँ से देश का 11.3 % कपास उत्पादन किया जाता है। यहाँ मुख्य कपास उत्पादक जिले अम्बाला, हिसार, रोहतक एवं सिरसा हैं।

v. राजस्थान : राजस्थान भारत का पाँचवाँ सबसे बड़ा कपास उत्पादक राज्य है। राज्य का लगभग आधा कपास गंगा नगर जिले से प्राप्त होता है। अन्य कपास उत्पादक जिले भीलवाड़ा, चित्तौरगढ़ कोटा, उदयपुर एवं अजमेर हैं। अधिकांश कपास की कृषि सिंचाई की सहायता से की जाती है।

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vi. पंजाब : कपास उत्पादन में पंजाब राज्य का भारत में अब छठा स्थान हो गया है। यहाँ का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 347 कि०ग्रा० है, जो भौरत में सबसे अधिक हे। यहाँ कृषि की आधुनिक प्रणाली द्वारा कपास की कृषि की जाती है। पटियाला, भटिंडा, गुरुदासपुर, होशियारपुर, फिरोजपुर इत्यादि जिलों में सिंचाई की सहायता से प्रचुर मात्रा में कपास की कृषि की जाती है। यहाँ देश का लगभग 25 प्रतिशत कपास उत्पन्न किया जाता है।
इनके अतिरिक्त कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु तथा उत्तर प्रदेश राज्यों में भी कपास की कृषि की जाती है

प्रश्न 17.
भारत में मौसमी फसलें क्या हैं ? उनका संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर :
भारत में कृषि के लिए मुख्य रूप से दो मौसम है – i. रवि की फसलें और ii. खरीफ की फसलें।
खरीफ की फसलें (Kharif crops) : खरीफ की फसलों को मानसून की फसल भी कहते हैं। इनका उत्पादन जूनजुलाई में किया जाता है जब भारत में मानसूनी वर्षा शुरू हो जाती है। मुख्य रूप से ये फसले जून में बोई जाती है तथा सितम्बर तक काट ली जाती है । धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास और जूट प्रमुख फसलों का उत्पादन खरीफ में किया जाता है।
रबी की फसलें (Rabi crops) :- रबी की फसले अक्ट्बर से दिसम्बर में बोई जाती है तथा अप्रैल से मई तक काट ली जाती है। इस ऋतु में उगायी जाने वाली प्रमुख फसलें गेहूँ, चना, जो, मटर, सरसों, तीसी और बोरो धान हैं।
दक्षिणी भारत में जहाँ तापमान उच्च है तथा शीत-ऋतु में वर्षा होती है वहाँ पर धार, ज्वार और कपास लगातार पूरे वर्ष भर उगाये जाते हैं।
गन्ना की फसल 10-18 महीनों में तैयार होती है अतः यह न तो रबी की फसल है और न ही खरीफ की फसल है। सिंचाई की सुविधा द्वारा हरी सब्जियाँ पूरे वर्ष उगाई जाती है।

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प्रश्न 18.
भारत में मोटे अनाज के प्रमुख फसलों का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
मोटे अनाज (Millets) : मोटे अनाजों में ज्वार-बाजरा तथा रागी (मडुवा) मुख्य हैं। सामान्यत: यह गरीबों का मुख्य भोजन है। इसकी कृषि के लिए उच्च तापक्रम तथा कम वर्षा की आवश्यकता पड़ती है। इसकी कृषि अनुपजाऊ तथा शुष्क भागों में भी की जा सकती है। प्राय: जो भूमि गेहूँ या चावल की कृषि के अनुपयुक्त होती है, वहाँ मोटे अनाजों की खेती होती हैं।
मोटे अनाज उत्पन्न करने वाले देशो में भारत विश्व में प्रथम स्थान रखता है, जहाँ विश्व के आधे से भी अधिक मोटे अनाज उत्पन्न किये जाते हैं।

ज्वार (Jowar) : ज्वार के लिए उच्च तापक्रम (26° C t. से 32° C), सामान्य वर्षा (40 से 50 से॰मी॰), चिकनी तथा काली मिट्टी उपयुक्त होती है। पठारी प्रदेश के लाल व काली मिट्टियों में भी ज्वार उगाया जाता है। देश का 3 / 4 भाग ज्वार दक्षिणी भारत के पठारी भाग में उत्पन्न किया जाता है। प्रमुख ज्वार उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात तथा राजस्थान हैं। महाराष्ट्र राज्य का भारत में पहला स्थान है, जो अकेले ही देश का लगभग एकतिहाई ज्वार उत्पन्न करता है। उत्तरी भारत में उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा राजस्थान मुख्य ज्वार-उत्पादक राज्य हैं।

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बाजरा (Bajra): बाजरा के लिए 25° C से 35° C तापक्रम तथा 43 से 50 से॰मी॰ वर्षा उत्तम होती है। कम उपजाऊ तथा बलुई भूमि में भी बिना खाद डाले बाजरा उत्पन्न किया जा सकता है। बाजरा उत्पादन में भारत में राजस्थान राज्य का प्रथम स्थान है।

इनके अतिरिक्त गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पंजाब, कर्नाटक तथा उत्तर प्रदेश राज्यों में भी बाजरा की कृषि की जाती है।
रागी (Ragi) : यह सबसे अधिक सूखा सहन करने वाला अनाज है, जो शुष्क कृषि की प्रणाली द्वारा उत्पत्र किया जाता है। मुख्य रागी उत्पादक राज्य तमिलनाडु, आन्ध प्रदेश और कर्नाटक हैं। इनके अतिरिक्त बिहार, महाराष्ट्र, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश में भी रागी उत्पन्न किया जाता है। रागी के उत्पादन में भारत में कर्नाटक राज्य का पहला स्थान है।

प्रश्न 19.
भारत के प्रमुख गत्रा उत्पादक क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
उत्पादन क्षेत्र : भारत में गन्ना के प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्, तमिलनाडु, आन्ध प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा, बिहार तथा पंजाब है। यद्यपि गन्ने की कृषि के लिए उत्तरी भारत की अपेक्षा दक्षिणी भारत भौगोलिक सुविधाओं की दृष्टि से अधिक अनुकूल है फिर भी देश का लगभग 80 प्रतिशत गन्ना उत्तरी भारत में ही उत्पन्न होता है। इसका कारण यह है कि दक्षिणी भारत में गन्ना को कपास एवं मूँगफली जैसी नगदी फसलों से प्रतियोगिता करनी पड़ती है।

उत्तर प्रदेश : गन्ना उत्पादन में उत्तर प्रदेश राज्य का स्थान भारत मेंप्रथम है। यहाँ भारत के कुल गन्ना के क्षेत्रफल का 53 प्रतिशत भाग पड़ता है परन्तु प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होने से यहाँ भारत की केवल 38.6 प्रतिशत उपज प्राप्त होती है। यहाँ गत्रा उत्पादन की दो पेटियाँ हैं – (1) तराई क्षेत्र या गोरखपुर-देवरिया क्षेत्र- इसे ‘भारत का जावा’ कहते हैं। (2) गंगायमुना दोआब की पेटी, जो मेरठ से इलाहाबाद तक फैली हुई है। मुख्य गन्ना उत्पादक जिले मेरठ, मुजफ्फरनगर, शाहजहाँपुर, सहारनपुर, बरेली, फैजाबाद, बुलन्दशहर, देवरिया, गोरखपुर, आजमगढ़, बलिया आदि हैं।

महाराष्ट्र : गन्ना उत्पादन में महाराष्ट्र राज्य का भारत में दूसरा स्थान है। मुख्य गन्ना उत्पादक जिले अहमदनगर, नासिक, पूना तथा शोलापुर हैं। महाराष्ट्र में देश के केवल 9 % भाग पर गन्ना की खेती होती है परन्तु गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज अधिक होने के कारण यहाँ देश का लगभग 17.8 % गन्ना उत्पन्न होता है।

तमिलनाडु : यह भारत का तीसरा प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य है। यहाँ कोयम्बटूर, दक्षिणीं अरकाट तथा मदुराई जिलों में गन्ने की खेती होती है। कायेम्बट्र में गत्ना शोध संस्थान (Sugarcane Research institute) है जहाँ इसकी उत्तम किस्मों का विकास किया जा रहा है। यहाँ देश का लगभग 10 % गत्ना उत्पन्न होता है। यहाँ का प्रति हेक्टेयर उपज भारत में सबसे अधिक (106 टन) है।

इनके अतिरिक्त कर्नाटक के मंड्या, शिमोगा तथा बेलगाँव जिलों, आन्य्र प्रदेश के गोदावरी तथा कृष्णा नदियों के डेल्टाई क्षेत्रों तथा बिहार के सारण, चम्पारण, सीवान, मुजफ्फरपुर, भोजपुर तथा दरभंगा जिलों में भी गन्ने की खेती होती है।

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व्यापार : गन्ना एक भारी पदार्थ है। इसका रस सूखने लगता है। अत: गन्ने का निर्यात नहीं किया जाता है। पहले कुछ मात्रा में गन्ने की चीनी का निर्यात किया जाता था, परन्तु अब अधिक जनसंख्या के कारण हमारे देश में ही चीनी की खपत अधिक हो गया है। अत: भारत से चीनी का निर्यात नगण्य है। हमे कभी-कभी चीनी का आयात भी करना पड़ता है।

प्रश्न 20.
भारतीय कृषि की समस्याएँ तथा उनके समाधान की विवेचना कीजिए।
उत्तर :
भारतीय कृषि की समस्याएँ एवं समाधान (Problems of Indian agriculture and solutions) :- भारत एक कृषि प्रधान देश है, यहाँ की अधिकांश जनसंख्या कृषि कार्य में लगी हुई है। कृषि-क्षेत्र देश में सबसे अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है तथा कुल राष्ट्रीय आय में उसका योगदान भी महत्वपूर्ण है। देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाली भारतीय कृषि व्यवस्था अनेक समस्याओं से जूझ रही है तथा विकसित देशों की तुलना में काफी पिछड़ी हुई है। अग्रलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत हग़ देखेंगे कि भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याएँ क्या हैं तथा उनका समाधान कैसे किया जा सकता है –
सिंचाई की सुविधा का अभाव :- भारत के कुल कृषि योग्य भूमि के 41 प्रतिशत भाग पर ही सिंचाई की सुविधा है। शेष कृषि योग्य भूमि पर फसलों का उत्पादन मानसूनी वर्षा के सहारे होता है। मानसूनी वर्षा की मात्रा एवं समय में अर्निश्चिता के कारण इन क्षेत्रों में फसलों का उत्पादन प्रभावित होता है। सिंचाई की सुविधा के अभाव में कृषि में उन्नत बीजों एवं खादों का प्रयोग भी समुचित ढंग से नहीं हो पाता है। अत: कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए कृषियोग्य भूमि के विस्तार एवं गहन कृषि की आवश्यकता है, तभी बढ़ती जनसंख्या का भरण-पोषण किया जा सकता है। अतः इसके लिए सिंचाई के साधनों का विकास करना होगा।

किसानों की प्रवृत्ति :- भारतीय किसानों की प्रवृत्ति भाग्यवादी का है। कृषि फसलों को प्राकृतिक प्रकोषों एवं रोगों से रक्षा करने की जगह वह उन्हें भाग्य के भरोसे छोड़ देता है। जिससे समय-समय पर कृषि उत्पादन में काफी गिरावट आ जाती है। किसानों की भाग्यवादी प्रवृत्ति में परिवर्तन लाने के लिए उन्हें शिक्षित करने की आवश्यकता है, जिससे वे प्राकृतिक संकटों एवं रोगों से फसलों को बचाने के लिए वैज्ञानिक साधनों का उपयोग कर सकें।

भूमि की उर्वरता : जनबहुल देश होने के कारण भारत में खाद्यान्नों एवं अन्य कृषि उपजों की माँग काफी अधिक है। कृषि उपजों की ऊँची माँग के कारण यहाँ एक ही भूमि पर साल में दो या तीन फसलें उगाई जाती हैं, जिससे भूमि या मिट्टी की उर्वरता का निरन्तर ह्रास हो रहा है। अत: मिट्टी की उर्वरता को पुनः प्राप्त करने के लिए कृषि में जैविक खादों के प्रयोग को बढ़ाना होगा तथा समय-समय पर भूमि को परती भी छोड़ना होगा।

मिट्टी का कटावः तीव्र मानसूनी वर्षा, अनियंत्रित पशुचारण, वृक्षों की अनियंत्रित कटाई, खेतो की दोषपूर्ण जुताई आदि के कारण भारत में पर्वतीय क्षेत्रों में अवर्नलका अपरदन एवं मैदानी क्षेत्रों में परत अपरदन के कारण कृषि क्षेत्रों में मिट्टी के कटाव से भूमि की उर्वरता नष्ट हो रही है। अतः उचित प्रवाह व्यवस्था, ढालों के आर-पार जुताई, पशुचारा पर रोक तथा वृक्षोरोपण आदि के द्वारा मिट्टी के कटाव को रोककर भूमि की उर्वरता को बचाने का प्रयास किया जा सकता है।

कृषि साख संस्थाओं की कमी : कृषि में निवेश के लिए भारतीय किसानों के लिए सस्ते दर पर ऋण प्राप्ति का पर्याप्त बैकिंग एवं वित्तीय सुविधाओं का अभाव है। कुछ वर्ष पहले तक वह ॠण प्राप्ति के लिए महाजनों, साहूकारों आदि के ऊपर आश्रित था जो किसानों का भरपूर शोष्षण करते थे। परन्तु अब नियोजन के अन्तर्गत कृषि एक प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र बन गया है। अत: ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों की अधिकाधिक शाखाओं को खोलने का प्रयास होना चाहिए जिससे किसान कृषि में आधुनिक यंत्रों, उन्नत बीजों एवं रासायनिक खादों में प्रयोग के लिए सस्ते दर पर ऋण प्राप्त कर सके।

दोषपूर्ण बाजार व्यवस्था : कृषि उपजों की बिक्री के लिए उचित सरकारी व्यवस्था नहीं होने के कारण किसान अपनी उपजों को स्थानीय व्यापारियों को सस्ते दर पर बेच देते हैं, जिससे उन्हें उपज का उचित मूल्य प्राप्त नहीं होता है। अतः कृषि उपजों की बिक्री के लिए उचित सरकारी व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे किसानों को उचित मूल्य प्राप्त हो सके।

प्राकृतिक प्रकोप : भारत में वर्षा के समय एवं मात्रा में अनिश्चितता के कारण अक्सर बाढ़ एवं सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिससे फसलों को काफी नुकसान पहुँचता है। समय-समय पर फसलों में लगने वाले विभिन्न प्रकार के रोग भी कृषि उत्पादन को काफी प्रभावित करते हैं। इन प्रकोपों के कारण कृषकों को काफी हानि पहुँचती है जिससे वे कृषि कार्य के प्रति हतोत्साहित होने लगते हैं। फसलों की बीमा द्वारा किसानों के नुकसान की भरपाई करके उन्हें प्राकृतिक प्रकोपों से होने वाली क्षति से बचाने का प्रयास किया जा सकता है।

भारतीय कृषि में उपरोक्त समस्याओं के अतिरिक्त भूमि का दोषपूर्ण वितरण, खेतों का छोटा आकार, कृषि में उन्नत बीजों के प्रयोग की कमी, कृषकों का अशिक्षित होना, मिट्टी परीक्षण केन्द्रों का अभाव, कृषि अनुसंधान की जानकारी का अभाव आदि अन्य अनेक समस्याएँ हैं, जिन्हें उचित कदम उठाकर दूर करने का प्रयास करना होगा।

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प्रश्न 21.
हरित क्रांति के दौरान पंजाब एवं हरियाणा में कृषि की समृद्धि का कारण क्या था ?
उत्तर :
पंजाब एवं हरियाणा में कृषि की समृति के कारण (Causes of agricultural prosperity in Punjab and Haryana) : पंजाब एवं हरियाणा उत्तरी भारत में गंगापार प्रदेश (Trans-Ganga Plain Region) के अन्तर्गत आते हैं। हरित कांति के उद्गम क्षेत्र होने के कारण यहाँ कृषि का सर्वाधिक आधुनिकीकरण और नशीनीकरण हुआ है। ये दोनों ही राज्य कृषि की दृष्टिकोण से भारत के सर्वाधिक समृद्ध राज्य हैं। इन राज्यों में कृषि के विकास के निम्नलिखित कारण हैं –
समतल भूमि : पंजाब एवं हरियाणा दोनो ही मैदानी राज्य हैं। इन राज्यों की भूमि समतल है जिसका निर्माण नदियों के द्वारा लायी गयी जलोढ़ मिट्टी के निक्षेपण से हुआ है। यह समतल भूमि कृषि कार्य के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।

उपजाऊ मिट्टी : दोनों ही प्रान्तों में उपजाऊ दोमट मिट्टी पायी जाती है जो कृषि के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।

नहरों का जाल : पंजाब एवं हरियाणा दोनों ही सिंचाई सघन राज्य है, अर्थात् यहाँ कुल कृषि योग्य भूमि के 70 % से भी अधिक भाग सिंचित हैं। नहरें एवं नलकूप यहाँ सिंचाई के प्रमुख साधन हैं। भाखड़ा-नागल परियाजना से नहरें निकाल कर सिंचाई की व्यवस्था की गई है, जिसका पंजाब एवं हरियाणा के कृषि विकास में महत्वपूर्ण योगदान है।

रासायनिक खादों का प्रयोग : सम्पूर्ण कृषि के विकास का 70 प्रतिशत रासायनिक खादों के प्रयोग पर निर्भर करता है । प्रति एक टन खाद के प्रयोग से 8 से 10 टन खाद्यात्र उत्पादन की वृद्धि होती है। समुचित सिंचाई व्यवस्था के कारण पंजाब ( 221 कि०ग्राम/हे०) तथा हरियाणा (202 कि०ग्राम/हे०) भारत के सर्वाधिक उर्वरक उपभोग करने वाले राज्य हैं, अत: यहाँ कृषि के विकास में आशातीत सफलता मिली है।

बीजों का प्रयोग : हरित क्रांति अपनाए जाने के बाद से भारत में उन्नत बीजों के विकास एवं उन्हें लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया जा रहा है । उन्नत सिंचाई व्यवस्था तथा कृषि में आधुनिक यंत्रों एवं रासायनिक खादों का पर्याप्त प्रयोग किए जाने के कारण पंजाब एवं हरियाणा में फसलों के उत्पादन के लिए उत्नत बोजों का प्रचलन सर्वाधिक है। बीजों के उच्च उत्पादक किस्मों के प्रयोग से ही इन राज्यों में गेहूँ, चावल, गत्रा तथा कपास के उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है।

प्रश्न 22.
भारतीय कृषि की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
भारतीय कृषि की मुख्य विशेषताएँ :- कृषि भारतीयों का प्राचीन, परम्परागत एवं मौलिक व्यवसाय है। यह भारतीयों की जीवन पद्धति के साथ जुड़ा होने के कारण अपनी कुछ मूलभुत विशेषताएँ बनाये हुए है। इन विशेषताओं के कारण भारत का कृषि व्यवसाय अन्य देशों के कृषि व्यवसाय से पृथक हो जाता है। भारतीय कृषि की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं –
सालों भर कृषि उत्पादन :- भारतीय जलवायु कृषि कार्य के लिए साल भर अनुकूल बनी रहती है। यहाँ साल भर फसलों का उत्पादन होता रहता है। अन्य शीत-प्रधान देशों की तरह भारत में हिमावरण या अत्यधिक उष्णता के कारण कृषि को स्थगित नहीं किया जाता। गन्ना और अरहर ऐसी फसलें हैं जो तैयार होने में8 माह तक का समय ले लेती है।

उत्पादन में विभिन्नता :- भारत में जलवायु दशाओं के परिवर्तन, मिट्टी तथा वर्षा के वितरण में भिन्नता होने के कारण विविध प्रकार की फसलें उगायी जाती है। उदाहरण के लिए पंजाब में गहूँ, उत्तर प्रदेश में गन्ना, बंगाल में जूट, असम में चाय, उड़ीसा में चावल, महाराष्ट्र में कपास तथा केरल में रबड़ का उत्पादन इसके पत्यक्ष प्रमाण हैं। भारतीय कृषि में 80 % खाद्यान्र, 12 % व्यापारिक फसले तथा 8 % अन्य फसले उगायी जाती है।

कृषि की अव्यावसायिक प्रकृति :- भारतीय कृषक अपने गुजारे के लिए कृषि व्यवसाय को अपनाये हुए हैं। अत: कृषि यहाँ लाभ का व्यवसाय न होकर अलाभकारी व्यवसाय बनकर रह गया है । यहाँ कृषि में प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम है, अतः इससे कृषको को बहुत कम आय होती है । भातीय कृषि को व्यवसाय रूप नहीं दिया गया है।

प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि का कम क्षेत्रफल :- भारत में मात्र 1,556 करोड़ हैक्टेर भूमि कृषि कार्य से जुड़ा हुआ है जहाँ जनसंख्या के आकार की दृष्टि से प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल घटता जा रहा है।

खेतो की जोतों का आकार छोटा होना :- भारत में कृषि जोतों का आकार बहुत छोटा है । यहाँ उत्तराधिकार नियम के कारण भूमि छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटती जा रही है। भारत में कृषि जोतो का औसत आकार 2 हेक्टेयर ही रह गया है। छोटे-छोटे खेतों में कृषि कार्य सुगमतापूर्वक नहीं हो पाता है। इससे कृषि उत्पादन प्रभावित होता है।

कृषि की प्राचीन प्रणालियाँ :- भारतीय कृषक परम्परागत ढंग से तथा प्राचीन प्रणालियों से कृषि कार्य करता है। यहाँ का कृषक आज भी हल-फावड़े से खेती करने में लगा हुआ है। पुराने बीज, कुड़े-कर्कट की खाद तथा पुराना हल खेती को विकास की ओर जाने से रोके हुए है। नवीन विधियों तथा तकनीक के अभाव में भारतीय कृषि पिछड़ी हुई दशा में है।

मिश्रित कृषि :- भारतीय कृषक मिश्रित खेती करता है। वह एक साथ कई अनाज बोकर फसल प्राप्त करता है। मिश्रित कृषि के कारण उपजों की विविधता बनी रहती है।

बाढ़ एवं सूखे से ग्रस्त :- भारतीय कृषि बाढ़ एवं सूखे से ग्रस्त है। भारत में लगभग 4 करोड़ हैक्टेयर भूमि बाढ़ से तथा 7 करोड़ हैक्टेयर भूमि सूखे से प्रभावित होती है। बाढ़ एवं सूखा फसलों को चौपट कर देते हैं।

सिंचाई सुविधाओं का अभाव :- भारत में सिंचाई की सुविधाओं का विस्तार आवश्यकता से कम हुआ है। देश की 30 % कृषि योग्य मूमि को ही सिंचाई की सुविधा प्राप्त है। देश की अधिकांश कृषि आज भी मानसूनी वर्षा पर ही निर्भर है। आज भी भारत की कृषि ‘मानसून का जुआ’ बनी हुई है।

दोषपूर्ण संगठन एवं बेकारी :- भारतीय कृषि का संगठन दोषपूर्ण रहा है जिसके कारण यहाँ का कृषक ॠणग्रस्त रहा है। भारत में कृषि भूमि पर जनसंख्या का अधिक दबाव होने के कारण छिपी बेरोजगारी पायी जाती है।

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प्रश्न 23.
भारत में कृषि के महत्व का वर्णन करो।
उत्तर :
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व :- कृषि व्यवसाय भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि प्रमुख भूमिका निभाता है। कृषि का भारत की अर्थव्यवस्था में महत्व निम्न प्रकार है –
i. कृषि भारत की 70 % जनसंख्या को आजीविका का साधन उपलब्ध कराती है। रोजगार के अवसर जुटाने की दृष्टि से कृषि का भारत में महत्व्वूर्ण स्थान है।
ii. कृषि राष्ट्रीय आय का 50 % जुटाती है। यह भारत की राष्ट्रीय आय का प्रमुख सोत बन गयी है
iii. कृषि से चीनी, सूती वस्त्र, रबड़, चाय, वनस्पति घी तथा अन्य उद्योगों को कच्चा माल प्राप्त होता है। अतः यह देश के औद्योगीकरण का आधार बनी हुई है।
iv. भारतीय कृषि देश के 87 करोड़ लोगों के लिए खाद्यान्न, वस्त्र, साक-सब्जी तथा अन्य पदार्थ जुटाती है।
v. कृषि से पशुआ को भूसा, हरा चारा तथा खली आदि प्राप्त होते हैं। पशु भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख अंग है जो पूर्णतः कृषि पर ही आधारित है।
vi. कृषि में अनेक ऐसे पदार्थ उगाये जाते हैं जिनका निर्यात किया जाता है। इस प्रकार कृषि विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का प्रमुख स्रोत बन गयी है। भारत के निर्यात मदों में 55 % योग कृषि का ही रहता है।
vii. कृषि से उत्पादकों को भरपूर आय होती है जिससे वे बचत करते हैं। पूँजी बचत का ही परिणाम है। पूँजी संचय से राष्ट्र का औद्योगिक ढांचा प्रभावित होता है। पूँजी आर्थिक विकास को तीव्र गति प्रदान करती है।
viii. कृषि उपजों को लाने तथा ले जाने के लिए परिवहन के साधनों का विकास होता है। परिवहन व्यवस्था आर्थिक विकास को गति प्रदान करती है। परिवहन के साधनों के फलस्वरूप व्यापार तथा वाणिज्य भी विकसित होता है।
ix. केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों की आय का मुख्य स्रोत कृषि ही है। इससे सरकार को लगान, उत्पादन कर, निर्यात कर, सिंचाई शुल्क तथा कृषि आयकर आदि उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं।
x. भारत चाय, गन्ना, मूंगफली आदि के उत्पादन क्षेत्र में संसार में प्रथम स्थान रखता है। भारत चावल, जूट, तिल, अखण्डी तथा खांडसारी के उत्पादन में एशिया में दूसरा स्थान बनाये हुए है। इस प्रकार कृषि व्यवसाय से भारत को अंतराष्ट्रीय महत्व प्राप्त होता है।
xi. कृषि के कारण ही भारत अब खाद्यान्रों में आत्मनिर्भर बन गया है। वह कुछ खाद्यां का निर्यात भी करने लगा है।
xii. भारत कृषि उपजों का निर्यात करके विदेशों से अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ प्राप्त कर सकता है। ये वस्तुएँ आर्थिक विकास के साथ-साथ नागरिकों के लिए भी बहुत आवश्यक है जैसे खनिज ते इसका उदाहरण है।
इस प्रकार यदि देखा जाय तो जहाँ कृषि भारतीय की जीवन पद्धति बनी हुई है वहीं यह भारतीय अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण एवं अभिन्न अंग भी है। भारतीय कृषि ने राष्ट्र की सम्पन्नता एवं विकास के क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निभायी है।

प्रश्न 24.
भारतीय कृषि में सिंचाई आवश्यकता है क्यों ?
उत्तर :
सिंचाई की आवश्यकता : भारत जैसे कृषि ग्रधान एवं वर्षा की अनिश्चिता एवं अनियमितता वाले देश में सिंचाई की आवश्यकता के निम्नलिखित कारण हैं :
वर्षा की अनिश्चतता : मानसूनी वर्षा काफी अनिश्चित होती है। कभी सामान्य से अधिक वर्षा हो जाती है, तो कभी वर्षा की मात्रा सामान्य से काफी कम होती है। सामान्यत: औसतन तीन से चार वर्ष में एक बार सूखा पड़ जाता है। वर्षा की विभिन्नता उन क्षेत्रों में अधिक होती है जहाँ वर्षा की मात्रा कम होती है।अत: उन क्षेत्रों में सिंचाई अनवार्य हो जाता है।

वर्षा की अनियमितता : कभी मानूसन देर से आता है तो कभी काफी पहले ही बला जाता है। ऐसा पाया गया है कि 10 वर्षों में केवल 2 वर्ष ही मानूसन समय पर आता है एवं समय पर चला भी जाता है। शेष 8 वर्षों में उसके आने व जाने का समय अनिश्चित होता है।

वर्षा का असमान वितरण : भारत में औसत वर्षा की मात्रा 109 से॰ मी॰ है। परतु वर्षा का वितरण अत्यंत ही असंतुलित है। एक ओर जहाँ पश्चिमी तटीय प्रदेश एवं उत्तर-पूर्वी भारत में 250 से॰ मी॰ से अधिक वर्षा होती है, वहीं दूसरी ओर विशाल मैदान के पश्चिमी भाग एवं पश्चिमी घाट पर्वत के वृष्टि-छाया प्रदेश में वर्षा की मात्रा 7.5 से॰ मी॰ से भी कम होती है। ऐसे क्षेत्रों में सिंचाई के साधनों का विकास अत्यंत आवश्यक हो जाता है।

मानसून की विभंगता : कभी-कभी वर्षा काल के बीच में लगातार कुछ सप्ताह तक वर्षा अत्यल्य या बिल्कुल ही नहीं होती है, जिससे फसले सूखने लगती हैं। ऐसे समय में सिंचाई की आवश्यकता होती है।

वर्षा का सीमित होना : भारत में 80 % से भी अधिक वर्षा जून एवं सितंबर के महीनों में होती है। इन चार महीना में भी वास्तविक वर्षा के दिन कम ही होते हैं। अतः वर्ष के शेष भाग में उगायी जाने वाली फसलों (विशेषकर रबी फसल) के लिए सिंचाई सुविधाओं का विकास अनिवार्य हो जाता है।

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प्रश्न 25.
उद्योगों के स्थानीयकरण के क्या कारण हैं ?
उत्तर :
उद्योगों के स्थानीयकरण के कारण : किसी स्थान पर उद्योग-धंधों के विकास या केन्द्रीकरण पर निम्नलिखित बातों का प्रभाव पड़ता है – (a) भौगोलिक दशाएँ, (b) आर्थिक दशाएँ।
(a) भौगोलिक दशाएँ :
कच्चे माल की प्राप्ति – प्राय: कोई भी उद्योग वहीं स्थापित किया जाता है, जहाँ उसके लिए आवश्यक कच्चा माल आसानी से प्राप्त हो जाता है। उदाहरण के लिये पश्चिम बंगाल में जूट उद्योग, महाराष्ट्र में सूती वस्त्र उद्योग तथा उत्तर प्रदेश में चीनी उद्योग की उन्नति का प्रमुख कारण वहाँ कच्चे माल की सुलभ प्राप्ति ही है। ऐसे उद्योग जिनके कच्चे माल की अपेक्षा निर्मित माल का भार व आकार काफी घट जाता है, उन उद्योगों की स्थापना कच्चे माल की प्राप्ति के स्थानों पर ही होती है अन्यथा दुलाई का खर्च अधिक पड़ता है।

शक्ति के साधनों की सुविधा – औद्योगिक मशिनें शक्ति के साधनों जैसे कोयला-पेट्रोलियम या जलशक्ति आदि से ही चलती हैं। अतः उद्योगों की स्थापना वहीं होती है जहाँ शक्ति के साधन आसानी से मिल जाते हैं। हमारे देश के प्रायः सभी उद्योग कोयला क्षेत्रों अथवा जलविद्यत केन्द्रों के आस-पास ही केन्द्रीत हैं।

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अनुकूल जलवायु – अधिक गर्म या अधिक ठण्डे भागों में मजदूरों की कार्यक्षमता घट जाती है। अत: उद्योगों की स्थापना मुख्यतः वही हाती है जहाँ की जलवायु सम-शीतोष्ण होती है। साथ ही विशेष उद्योगों के लिए विशेष प्रकार की जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में सूती वस्त्र उद्योग के विकसित होने का एक कारण वहाँ की जलवायु का नम होना है जिससे सूत के धागे टूटते नहीं हैं।

(B) आर्थिक दशाएँ –

i. यातायात की सुविधा – कच्चे माल एवं आवश्यक पदार्थों के मंगाने एवं निर्मित माल को खपत केन्द्रों तक भेजने के लिए यातायात के साधनों का विकसित होना आवश्यक है।
ii. बाजार की सुविधा – निर्मित माल को बेचने के लिए बाजार का निकट होना आवश्यक है। बाजार जितना निकट होगा, यातायात व्यय उतना ही कम होगा। कानपुर में सूती वस्त्र उद्योग के विकसित होने का एक प्रमुख कारण उसके आसपास सघन जनसंख्या का होना है क्योंकि इससे वहाँ का तैयार माल आसानी से वहीं खप जाता है।
iii. सस्ते एवं कुशल श्रमिकों का होना – कारखानों में काम करने के लिए भारी संख्या में मजदूरों की आवश्यकता पड़ती है। श्रमिक जितने ही सस्ते एवं कुशल होंगे उत्पादन उतना ही सस्ता एवं उत्तम होगा। अत: उद्योग वहीं केन्द्रित होते है जहाँ सस्ते एवं कुशल श्रमिक पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं।
iv. पर्याप्त पूंजी – बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना में कारखाने बनाने, मशीन तथा कच्चा माल खरीदने के लिए पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता पड़ती है।
v. बैंक की सुविधाएँ – बैंक न केवल उद्योगों के लिए ऋण की सुविधा प्रदान करते हैं बल्कि माल के क्रय-विक्रय के लिए भुगतान में भी सहायक होते हैं।

अन्य दशाएँ –
i. पूर्वारम्भ की सुविधा – जब किसी स्थान पर कोई उद्योग सबसे पहले प्रारम्भ हो जाता है तो वह स्थान उस उद्योग के लिए प्रसिद्ध हो जाता है। इससे नये उद्योगपति वहाँ उस उद्योग की स्थापना में लग जाते हैं।
ii. सरकारी नीति – जिस उद्योग को सरकार संरक्षण प्रदान करके आर्थिक सुविधा प्रदान करती है उस उद्योग का विकास अधिक होता है। इसके विपरीत सरकार जिन उद्योगों पर भारी कर लगा देती है, उन उद्योगों का विकास रुक जाता है।

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प्रश्न 26.
भारत में मशीनी औजार निर्माण उद्योग का संक्षिप्त वितरण दीजिए।
उत्तर :
मशीनी-औजार निर्माण उद्योग – मशीनी औजार एक प्रकार का शक्ति चालित यंत्र होता है, जो धातु को काटकर एक विशिष्ट रूप देने के काम में प्रयुक्त होता है। यह एक आधारभूत उद्योग है। देश के औद्योगिक विकास में इस उद्योग का महत्वपूर्ण स्थान है। मशीनी औजार निर्माण उद्योग के प्रमुख केन्द्र निम्नलिखित हैं –

हिन्दुस्तान मशीन टुल्स लिमिटेड – भारत सरकार ने स्विस सरकार की सहायता से बंगलौर के निकट जेलहली में सन् 1956 ई० में इस कारखाने को स्थापित किया। इसकी एक दूसरी इकाई भी बंगलोर में स्थापित की गई है। यह कारखाना सूक्ष्म मशीन तथा मशीनी उपकरण तैयार कर रहा है। जापानी कम्पनी की सहायता से यहीं H.M.T. घड़ियों का निर्माण किया जा रहा है। इसका तीसरा कारखाना हरियाणा में चण्डीगढ़ के पास पिंजौर में है। यहाँ कृषि यंत्र (मुख्यतः ट्रेक्टर) बनते हैं। चौथा कारखाना केरल में एर्नाकुलम के पास कालामासमारी में छपाई की मशीनें तैयार करता है। पांचवा कारखाना आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में धातु निर्मित विविध यंत्र तैयार कर रहा है। इसी कम्पनी द्वारा कश्मीर के जैनकोट में घड़ी का निर्माण किया जा रहा है।
इनके अतिरिक्त अजमेर, मुम्बई के समीप अम्बरनाथ तथा हैदराबाद के उत्तर सिकंदराबाद में भी मशीनी औज़ार के कारखाने हैं।

भारी इंजीनियरिंग निगम रांची – इस संस्था की स्थापना सन् 1958 ई० में सोवियत संघ एवं चेकोस्लोवांकिया के सहयोग से भारी मशीनों के निर्माण के लिए रांची के निकट हटिया में हुई। यह धातु के यंत्र बनाने का सबसे बड़ा कारखाना है। यह विदेशों को भी मशीनों का निर्यात करता है। इससे देश के विभिन्न भागों में कारखानों के स्थापित करने में काफी सहायता मिली है।

त्रिवेणी स्ट्रकचरल कम्पनी – इसकी स्थापना जुलाई सन् 1965 ई० में इलाहाखाद के निकट नैनी में हुई । यह सरकारी कारखाना विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के ढांचे और क्रेन का निर्माण करता है।
कर्नाटक राज्य के तुंगभद्रा स्थान पर निर्मित कारखाने में विभिन्न प्रकार की मशीन तथा वस्तु-निर्माण के ढांचे बनते हैं। इनके अतिरिक्त भारत हैवी प्लेट्स एण्ड वेसल्स लिमिटेड, विशाखापट्टनम, जेसप एण्ड कम्पनी लिमिटेड, कोलकाता में भारी मशीनें बनती है । माइनिंग एण्ड एलाएड मशीनरी कॉरपोरेशन (M.A.M.C.) दुर्गापुर में खान की मशीनें बनती है।

प्रश्न 27.
भारत में मोटरगाड़ी निर्माण उद्योग (Automobile industry) के विकास का विवरण दीजिए।
उत्तर :
मोटर गाड़ी उद्योग : स्वंत्रता प्राप्ति से पूर्व देश में मोटर वाहन उद्योग नहीं के बराबर था। केवल आयातित कल-पूरों को जोड़कर वाहन बनाए जाते थे। सन् 1928 में ‘जलरल मोटर्स’ मुम्बई में ट्रकों तथा कारों का समायोजन शुरू किया था। फोर्ड मोटर कम्पनी (इण्डिया) लि० ने चेन्नई में 1930 में तथा मुम्बई में 1931 में कारों तथा ट्रको का संयोजन शुरू किया था। भारत में इस उद्योग का वास्तविक विकास प्रीमियर ऑंटोमोबाइल लि०, कुर्ला (मुंबई) की स्थापना 1941 में तथा हिन्दुस्तान मोटर्स लि० उत्तर पाड़ा कोलकाता की स्थापना 1948 में होने से शुरु हुआ। पिछले 3-4 दशको में इस उद्योग ने देश में काफी प्रगति की है। 1991 ई० की औद्योगिक उदारीकरण की नीति से इस उद्योग को काफी लाभ मिला और आज यह उद्योग देश की अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग बन गया है।

इस समय हमारे देश में 15 कम्पनियाँ सवारी कारें बहुउद्देश्यीय वाहन व कम्पनियाँ व्यवासायिक वाहन, 14 कम्पनियाँ, 2 / 3 पहिया वाहन, 14 कम्पनियाँ ट्रेक्टर तथा 5 कम्पनियाँ इंजन बनाने में लगी हुई है। हैदराबाद, मुम्बई, चेन्नई, जमशेदपुर, जबलपुर, कोलकाता, गुड़गांव, रूपनगर, पुणे, कानपुर आदि मोटर वाहन बनाने के प्रमुख केन्द्र हैं।

सरकारी गाड़ी बनाने वाली प्रमुख कम्पनियों में मारूति, महिन्द्रा, फोर्ड, हुंडई, जनरल मोटर्स आदि हैं। दो पहिया वाहनो में बजाज आटो, हीरो तथा होण्डा प्रमुख है। भारी वाहनों के निर्माण में टाटा, अशोक लेलैण्ड आदि प्रमुख हैं।

भारतीय मोटर वाहन उद्योग ने उत्पादन की दृष्टि से बहुत अधिक उन्नति की है और साथ में गुणवत्ता का भी ख्याल रखा है। इन्हीं कारणों से भारत अब मोटर वाहनों का निर्यात करने लगा है।

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प्रश्न 28.
भारत में पेट्रोरसायन उद्योग के विकास का विवरण दीजिए।
उत्तर :
पेट्रोलियम से प्राप्त किये गये रसायनों को पेट्रो-रसायन कहते हैं। इस उद्योग में खनिज तेल तथा प्राकृतिक गैस को कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है। इससे विभिन्न प्रकार के चिकने पदार्थ प्राप्त होते हैं। इन पदार्थों का विभिन्न उद्योगों में प्रयोग होता है। इस उद्योग में खनिज तेल का प्रयोग होने से इसका महत्व बढ़ गया है। भारत में यह उद्योग अभी नया है। इस उद्योग का प्रथम कारखाना 1966 ई० में यूनियन कार्बाइड इण्डिया लिमिटेड, मुम्बई के निकट ट्राम्बे में स्थापित किया गया है।

भारत में इस उद्योग का दूसरा कारखाना कोयली तेल परिष्करणशाला पर भी एक कारखाना खोला गया है। इसके पश्चात् जवाहर नगर में एक कारखाना स्थापित हुआ है। हल्दिया और बरौनी में भी पेट्रो-रसायन के कारखाने निर्माणाधीन हैं। पेट्रो-रसायन उद्योग ने भारत के औद्योगिक स्वरूप में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है। हमारे देश में भवन निर्माण में परम्परागत पदार्थों, जैसे – लकड़ी, शीशा और धातुओं का प्रयोग किया जाता था। परंतु आज इनके स्थान पर पेट्रो-रसायन उद्योग द्वारा निर्मित वस्तुओं का प्रयोग होने लगा है। इस उद्योग में प्लास्टिक, संश्लेषित रेंशे, रबड़ और अन्य अनेक प्रकार के पदार्थ बनते हैं।

प्रश्न 29.
भारत में बंगलौर में सूचना प्रोद्योगिकी उद्योगों का विकास क्यों हुआ है ?
उत्तर :
बंगलौर में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग के विकास के निम्नलिखित कारण हैं –

  1. विश्वस्तरीय सूचना प्रौद्योगिकी अवसंचरनाओं की उपलब्धता
  2. सुहावनी तथा आरामदायक जलवायु
  3. सूचना प्रौद्योगिकी कम्पनियों का केन्द्रीकरण तथा उच्च स्तरीय अनुसंधान एवं विकास संस्थाओं का पाया जान
  4. अनुकूल सरकारी नीतियाँ
  5. अंतर्राष्ट्रीय कांक्र्रेस एवं वर्कशाप का केन्द्र।

साफ्टवेयर के निर्यात में वर्ष प्रति वर्ष लगातार हो रही वृद्धि से भारत की साख विदेशो में जम गयी है। यहाँ की साफ्टवेयर कम्पनियाँ उत्कृष्ट कोटि का उत्पादन करने में विशेष रूप से दक्ष है, इसीलिए इनमें से कुछ को अंर्राष्ट्रीय गुणवत्ता प्रमाण पत्र भी मिले हैं। पंरतु हार्डवेयर के क्षेत्र में भारत की प्रगति चीन, दक्षिण कोरिया, ताइवान आदि की तुलना में बहुत कम है 1997-98 की तुलना में 19992000 में यहाँ हार्डवेयर का निर्यात घटा था, परंतु इसके बाद से इसके निर्यात में उतरोत्तर वृद्धि हो रही है।

प्रश्न 30.
भारत में सूचना प्रोद्योगिकी उद्योग (Information Technology Industry) के विकास का विवरण दीजिए।
उत्तर :
यह एक ऐसा उद्योग है जिसके लिए किसी कच्चे माल की आवश्यकता नहीं पड़ती है और न ही अन्य उद्योगों के समान अन्य परिस्थितियों की भी आवश्यकता पड़ती है। भारतीय अर्थव्यवस्था में यह सबसे अधिक विकसित होने वाला उद्योग है जिसमें लाखों युवकों को रोजगार मिला हुआ है। प्रत्येक वर्ष सबसे ज्यादा रोजगार भारतवर्ष में किसी औद्यागिक क्षेत्र में उपलब्ध हो रहा है तो वह सूचना तकनीकी उद्योग है। इसमें लाखों लोगों को रोजगार मिला हुआ है जिसमें महिलाओं की संख्य 30 % से भी अधिक है।

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वर्तमान समय में भारत में सॉफ्ट प्रोद्योगिकी पार्क 20 केन्द्रों पर विकसित है । बंगलुरू इलेक्ट्रानिक उद्योग की राजधानी के रूप में विकसित है। बंगलुरू का इलेक्ट्रानिक शहर काफी प्रसिद्ध है। वहाँ 200 से भी अधिक कम्पनियाँ हैं जो इस कार्य में लगी हुई है। बंगौर के अलावा पूरे, हैदराबाद, मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता, गुड़गांव, नोयडा आदि अन्य महत्वपूर्ण केन्द्र हैं। यह उद्योग वर्तमान समय में विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण सोत बन गया है। हमारे देश में हाईडवेयर और सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में लगातार तेजी से हो रहे विकास की वहज से सूचना तकनीकी उद्योग सफल हो सका है।

इस उद्योग के आउटसोसिंग में भारत को चुनौती देने वाला विश्व का कोई देश नहीं है। इस उद्योग में लगभग आधे भाग पर भारत का अधिकार है। सन् 2008 में सूचना सेवा उद्योग से भारत ने 31 अरब डॉलर का लाभ कमाया था जिसमें लगभग आधा भाग BPO क्षेत्र का रहा। सूचना तकनीकी उद्योग ने अलग से 64 अरब डॉलर की कमाई की। इस उद्योग में 20 लाख से भी अधिक युवकों को रोजगार मिला हुआ है।

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प्रश्न 31.
दुर्गापुर को भारत का रूर क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
दुर्गापुर को भारत का रूर क्षेत्र कहा जाता है। रूर क्षेत्र पश्चिमी जर्मनी का प्रमुख उद्योग क्षेत्र है। रूर क्षेत्र के समान ही दुर्गापुर क्षेत्र को उद्योगों की स्थापना की निम्न सुविधायें हैं –
i. जर्मनी की रूर क्षेत्र लौह इस्पात का विश्व प्रमुख केन्द्र है। इसी प्रकार दुर्गापुर भारत का प्रमुख लौह-इस्पात केन्द्र है।
ii. दोनों क्षेत्रों के पास खनिज लोहे का अभाव है अतः लौह अयस्क आयात करते हैं। रूर फ्रांस के लारेन तथा स्वीडेन की खानों से लौह-अयस्क आयात करता है। दुर्गापुर की लौह अयस्क उड़ीसा की मयूरभंज की खानों से एवं झारखण्ड से मांगया जाता है।
iii. दोनों क्षेत्रों में उद्योग की स्थापना का श्रेय कोयले की प्राप्ति की है । रूर को वेस्टफेलिया की खान से तथा दुर्गापुर को झरिया की खानों से कोयला मिलता है।
iv. रूर क्षेत्र के समान ही दुर्गापुर में भी नहर, रेल यातयात तथा सड़क यातायात की सुविधा है। इसलिए दुर्गापुर को भारत का रूर कहते हैं।

प्रश्न 32.
लौह-इस्पात उद्योग के लिए आवश्यक दशाओं का उल्लेख करो।
उत्तर :
लौह-इसात उद्योग की स्थापना के लिए उपयुक्त आवश्यक कारण – भारत में लौह-इसात उद्योग के विकसित होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं :
i. कच्चे मालों की सुविधा – लौह-इस्पात उद्योग में लौह अयस्क, कोयला, मैंगनीज, चूना पत्थर आदि कच्चे मालों की भारी मात्रा में आवश्यकता पड़ती है। जहाँ ये कच्चे माल आसानी से पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाते हैं, वहीं इस उद्योग का विकास होता है। पूर्वी भारत में इस उद्योग को पर्याप्त सुविधा उपलब्ध है। यही कारण है कि पूर्वी भारत में खास कर पश्चिम बंगाल, उड़ीसा एवं झारखण्ड राज्य में इस उद्योग का अधिक विकास हुआ है।
ii. शक्ति के साधनों की सुविधा – लौह इस्सात उद्योग में प्रचुर मात्रा में कोयले की आवश्यकता पड़ती है जो शक्ति के साधन के साथ-साथ कच्चे माल के रूप में भी प्रयुक्त होता है। यही कारण है कि लौह उद्योग कोयला उत्पादक क्षेत्रों के निकट स्थापित किये जाते हैं।
iii. स्वच्छ जल की सुविधा – लौह इस्पात उद्योग को अधिक मात्रा में जल की आवश्यकता होती है। इसलिए लौह इस्पात के कारखाने नदियों के किनारे स्थापित किए जाते हैं।
iv. उच्च परिवहन व्यवस्था – कच्चे मालों को कारखानों तक पहुँचाने तथा निर्मित मालों को खपत केन्द्रों तक पहुँचाने के लिए सस्ते एवं सुलभ परिवहन, खासकर सड़क परिवहन, रेल परिवहन एवं जल परिवहन की पर्याप्त सुविधा होनी चाहिए।
v. मांग – लौह इस्पात उद्योग इस बात पर भी निर्भर करता है कि उत्पादित वस्तु की मांग निरंतर बनी रहे।
vi. सस्ते एवं कुशल श्रमिक – लौह इस्पात उद्योग में पर्याप्त मात्रा में सस्ते एवं कुशल श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है।
vii. इसके अलावा पर्याप्त पूंजी एवं बैंकिग की सुविधा तथा वैज्ञानिक विकास आदि का भी प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 33.
किसी उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले पांच कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
उद्योगों के स्थापना को प्रभावित करने वाले कारक – किसी भी स्थान पर उद्योगों के स्थापित होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
(क) भौगोलिक कारक : उद्योगों के लिए एक स्थान के चयन को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारकों का विवरण नीचे दिया गया है –
कच्चे माल की निकटता – कच्चे माल के रूप में भारी भरकम पदार्थों का उपयोग करने वाले उद्योग कच्चे माल के स्तोत के निकट ही लगाए जाते है। झारखंड, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में लौह-इस्पात के कारखाने, हुगली नदी के किनारे में जूट के कारखाने और महाराष्ट्र में चीनी बनाने के कारखाने कच्चे माल के स्रातों के आस-पास ही लगाए गए है। प्राकृतिक गैस या खनिज तेल पेट्रो-रसायन उद्योग के लिए कच्चा माल है। गुजरात में पेट्रो-रसायन उद्योगों के संकेन्द्रण का मुख्य कारक यही है।

जल की आवश्यकता – भारी उद्योगों को काफी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है। लोहा और इस्पात उद्योग, वस्त्र उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण, कागज और जूट उद्योग, रसायन उद्योग या परमाणु बिजली घर जल के सोतों के निकट ही लगाए गए हैं। मिनरल वाटर और शीतल पेयों का तो कच्चा माल ही प्रमुख रूप से जल है।

विद्युत की सुविधा – आधुनिक उद्योगों के लिए शक्ति के साधन जैसे कोयला, बिजली, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, परमाणु ऊर्जा आदि में से कोई न कोई अनिवार्य है। लोहा और इस्पात उद्योग सामान्यत: कोयले के बिना नहीं चल सकता। अतः इस उद्योग को कोयले की खानों के निकट लगाया जाता है। कुछ धातु उद्योगों और रसायन उद्योगों को बिजली अवश्य चाहिए। अतः ऐसे उद्योग बिजली के स्रोतों के निकट स्थापित किए जाते है।

परिवहन की सुविधा – उद्योगों के लिए कच्चा माल लाने और तैयार माल के वितरण के लिए परिवहन के अच्छे साधनों का होना जरूरी है। कोलकाता, मुम्बई और चेन्नई बंदरगाह अपने पृष्ठ प्रदेशों से रेल मार्गों और सड़कों से जुड़े थे। अत: वहाँ तरह-तरह के उद्योग विकसित हो गये और आज भी क्रम जारी है। श्रमिकों के अपने घरों से उद्योग केन्द्रों तक आने-जाने के लिए भी सुव्यवस्थित परिवहन प्रणाली अनिवार्य है।

कुशल एवं सस्ते श्रमिक – उद्योगों को चलाने के लिए पर्याप्त संख्या में श्रमिक जरूरी है। अब तो अनेक उद्योगों के लिए कुशल और प्रशिक्षित श्रमिक अनिवार्य हो गए हैं। वैसे श्रमिक बहुत गतिशील है, लेकिन ये नगरों में आसानी से मिलते हैं। कुछ उद्योग श्रम प्रधान हैं। इन्हें विशेष दक्षता वाले श्रमिकों की जरूरत होती है।

बाजार की निकटता – उद्योगों में वस्तुए उपभोक्ताओं के लिए बनाई जाती है। अतः उद्योगों में तैयार माल के लिए उपभोक्ताओं का होना जरूरी है। आजकल तो प्रचार और संचार के माध्यमों से पूरा देश ही क्या, सारा संसार ही औद्योगिक उत्पादों का बाजार बन गया है। पंरतु भारी वस्तुओं को बेचने के लिए बाजार की निकटता आज भी प्रभावी कारक है।

पूंजी की सुविधा – भारी उद्योगों को स्थापित करने के लिए काफी मात्रा में पंजी की आवश्यकता होती है इसके लिए पूंजीपतियों के साथ-साथ वित्तीय संस्थाओं की भी भागेदारी आवश्यकता होती है।

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प्रश्न 34.
सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना के लिए आवश्यक दशाओं का वर्णन करो ?
उत्तर :
भारत में सूती वस्त्र उद्योग को विकसित होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
i. उत्तम जलवायु – सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना पर, नम जलवायु का काफी प्रभाव पड़ता है क्योंकि इस जलवायु में धागा के टूटने का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि अधिकांश सूती वस्त्र की मिलें समुद्रों एवं नदियों के किनारे, जहाँ नम जलवायु पाई जाती है, स्थापित है।

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कच्चे माल की सुविधा – सूती वस्त्र का प्रमुख कच्चा माल कपास है, अतः यहाँ कपास आसानी से उपलब्ध हो सकता है। इस उद्योग का विकास अधिक हुआ है। भारत में पश्चिमी भारत में कपास की दृष्टि अधिक होती है। इसीलिए पश्चिमी भारत में कपास की उपलब्धता के कारण इस उद्योग का विकास अधिक होता है।

स्वच्छ जल की सुविधा – सूती वस्त्र उद्योग में अधिक मात्रा में स्वच्छ जल की आवश्यकता पड़ती है, यही कारण है कि यह उद्योग नदियों के किनारे स्थापित किया गया है।

विद्युत की सुविधा – सूती वस्त्र उद्योग में अधिक शक्ति के साधन के रूप में विद्युत उपयोग किया जाता है। यही कारण है कि यहाँ सस्ती विद्युत की सुविधा उपलब्ध है इस उद्योग की स्थापना में सहायता मिलती है। पश्चिमी भारत में सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना में जल विद्युत की सुविधा का विशेष योगदान है।

सस्ते एवं कुशल श्रमिकों की सुविधा – सूती वस्त्र उद्योग काफी मात्रा में सस्ते एवं कुशल श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है। यही कारण है कि घने आबाद क्षेत्र जहाँ से काफी मात्रा में सस्ते एव कुशल श्रमिक उपलब्ध हो जाते है। इस उद्योग के विकास के उपयुक्त माने जाते है।

माँग – सूती वस्त्र उद्योग की उन्नति, सूती वस्त्र की माँग पर भी निर्भर करती है। चुंकि भारत एक गर्म जलवायु वाला देश है जहाँ सूती वस्त्र की काफी माँग है जिससे इस उद्योग को काफी प्रोत्साहन मिला है।

इसके अलावा परिवहन की सुविधा, पूंजी तथा बैंकिग की सुविधा का भी प्रभाव पड़ता है।
भारत के सूती वस्त्र उद्योग के प्रमुख केन्द्र : सूरत, अहमदाबाद, राजकोट, बाराणसी, कानपुर, दिल्ली, शोलापुर, भिवाण्डी, पूना, मैसूर, कोलकाता, कोचीन आदि।

प्रश्न 35.
भारत में सूती वस्त्र की क्या समस्याएँ और संभावनाएँ हैं ?
उत्तर :
सूती वस्त्र उद्योग की समस्यायें – सूती वस्त्र उद्योग की प्रमुख समस्यायें व सम्भावनायें निम्न हैं –
नवीनीकरण का अभाव – भारत की अधिकतर मशीनें करीब 100 वर्ष पुरानी है। पूँजी के अभाव तथा नवीन मशीनों की देश में अनुपलब्धता के कारण पुरानी मशीनें बदली नहीं जा रही है अतः पुरानी मशीनों के कारण उत्पादन लागत अधिक आती है।

कच्चे माल एवं अन्य वस्तुओं का अभाव – कपास का उत्पादन एवं आपूर्ति घटती-बढ़ती रहती है। यहाँ जो कपास पैदा होती है उसकी किस्म निम्न श्रेणी की है। लम्बे रेशेवाली कपास का आयात मिस्र, सुडान आदि से किया जाता है। सूती कपड़ों की कुल लागत में कपास का हिस्सा 40 % से 50 % होता है। अन्य कच्चे मालों, जैसे – डाइज, रसायन का मूल्य प्रतिवर्ष बढ़ रहे हैं। बिजली की कटौती एवं कोयले की समय से आपूर्ति न होने के कारण भी उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

सूती कपड़ों की कम माँग – सिन्थेटिक कपड़े सस्ते एवं टिकाऊ होते है, अत: सूती कपड़ों की माँग दिनप्रतिदिन कम होती जा रही है। सिन्थेटिक कपड़े की रख-रखाव लागत भी कम आती है।

सूती मिलों का बीमार होना – क्षमता के अनुरूप, उत्पादन न होना, ऊँची लागत, मजदूरी की बढ़ती माँग, कच्चे माल, शक्ति के साधन कोयला, यातायात आदि की अविश्वसनीय आपूर्ति, तकनीकी ज्ञान का अभाव, वित्त एवं बाजार आदि की असुविधाओं के कारण अधिकतर सूती मिलें सिक मिलें हो गयी हैं।

सम्भावनायें :

  1. बढ़ती जनसंख्या – बढ़ती जनसंख्या एवं जीवन स्तर ऊँचा होने के कारण सूती वस्त्र उद्योग का भविष्य उज्ज्वलहै।
  2. निर्यात की संभावनायें – निर्यात की सम्भावना भी उज्ज्वल है क्योंकि प्रसिद्ध सूती वस्त्रोद्योग के केन्द्रों मैनचेस्टर, ओसाका ने अपनी सूती वस्त्र मिलों को सिन्थेटिक मिलों में बदल दिया है, अत: भारत को विदेशी बाजार मिलेगा।
  3. कच्चे माल की आपूर्ति में सुधार – पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र एवं गुजरात में लम्बे रेशों वाली कपास का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है, अतः लम्बे रेशे वाली कपास का अभाव कम हो जाएगा।
  4. नवीनीकरण – सूती वस्त्र की मिलों के नवीनीकरण के लिए नवीनीकरण फण्ड की स्थापना की गई हैं।
  5. बीमार इकाइयों में सुधार के लिए नेशनल टेक्सटाइल कारपोरेशन (NTC) की स्थापना की गयी है।
  6. सरकार द्वारा बीमार इकाइयों की पहचान – अब तक 122 इकाइयों को जो बीमार इकाई घोषित की जा चुकी थी, उनका अधिग्रहण (NTC) द्वारा किया जा चुका हैं।
  7. अनेक मिले जो सूती वस्त्र के माँग की कमी के कारण नहीं चल पा रही थी, उन्होंने अपने उत्पादन क्षेत्र में परिवर्तन कर लिया है।

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प्रश्न 36.
कच्चे माल के स्रोत के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर :
कच्चे मालों के स्वभाव के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण –
i. कृषि पर आधारित उद्योग धंधे – वे उद्योग धंधे जिनमें कच्चे माल के रूप में कृषि उपज से प्राप्त उत्पादों का उपयोग किया जाता है उन्हें इसके अन्तर्गत रखा जाता है, जैसे – जूट उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग, रेशम उद्योग, चीनी उद्योग, चाय उद्योग आदि।
ii. पशुओं पर आधारित उद्योग – इसके अन्तर्गत वे उद्योग धंधे आते हैं जिनके कच्चे माल मात्र पशुओं से प्राप्त पदारों पर निर्भर करते है। जैसे – दुग्ध उद्योग केन्द्र।
iii. वनों पर आधारित उद्योग – वे उद्योग धंधे जिनमें वनों से प्राप्त लड़कियों का कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है उन्हें इसके अंतर्गत रखा जाता है। जैसे – माचिस उद्योग, लकड़ी कटाई-चिराई उद्योग, कागज एवं लुगदी उद्योग आदि।
iv. खनिजों पर आधारित उद्योग – वे उद्योग धन्धे खनिज पदार्थों का कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है उन्हें इसके अंतर्गत रखा जाता है। जैसे – लौह इस्पात उद्योग, सीमेन्ट उद्योग, पेट्रोरसायन उद्योग आदि।

प्रश्न 37.
भारत में रेलवे वैगन, कोच एवं रेल इंजन उद्योग का संक्षिप्त विररण प्रस्तुत करें।
उत्तर :
रेलवे वैगन, कोच एवं रेल इंजन उद्योग-एशिया महादेश में भारत में रेलों का विस्तार सबसे अधिक है। भारत रेलवे के सभी उपकरणों के बारे में सिर्फ आत्म निर्भर ही नहीं हैं अपितु निर्यातक भी हैं। रेलवे उद्योग के प्रमुख केन्द्र निम्नलिखित है –
i. इण्टीग्रल कोच विल्डिंग फैक्टरी (ICF) – इसकी स्थापना 1955 में तमिलनाडु राज्य में पेरम्थुर में हुई। इस कारखाने में पैसेन्जर डब्बे बनते है।ICF के कारखाने के सहायक दो और कारखाने हैं। i. भारत अर्थ मूवर्स, बंगगोर, कर्नाटक ii. जेशप एण्ड कम्पनी, दमदम, पश्चिम बंगाल। दी ह्वील एण्ड एक्सल कारखाना ये लाहैं का(Yelahanka) बंगलोर में रेल के पहिए एवं एक्सल का निर्माण करता है। दि सेन्ट्रल कोच फैक्टरी पंजाब में कपूरथला के पास हुसैनपुर में हैं।
ii. जेसप कम्पनी दमदम (कोलकाता) – पश्चिम बंगाल इन्जिनियरिंग क० लि० एवं भारत वैगन, भरतपुर, राजस्थान में रेलवे के बैगनों का निर्माण होता है।
iii. चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स (CLW) – चित्तरंजन (पश्चिम बंगाल) में डीजल बिजली के रेल के इंजन बनते हैं।
iv. डीजल लोकोमोटिव वर्क्स (DLW) – मडुआडीह, वाराणसी, उत्तर प्रदेश में रेल के डीजल इंजन बनते हैं।
v. डीजल कम्पोनेंट वर्क्स (DCW) – पटियाला में डीजल इंजन के पुर्जे बनते हैं।
vi. रेलवे मशीन पाद्र्स बनाने की इकाई – रेललाइन एवं स्लीपर की छड़ का उत्पादन भिलाई एवं जमशेदपुर में होता हैं। रेलगाड़ियों के पहियों, टायर एवं एक्सल का निर्माण लौह इस्पात कारखानों में होता हैं।
vii. रेलवे रिपेयर वर्कसाप – रेलवे की मरम्मत का काम आंधप्रदेश के तिरुपति पश्चिम बंगाल के कचड़ापाड़ा, आगरपाड़ा एवं खड़कपुर में होता है।

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प्रश्न 38.
भारत में जलपोत निर्माण उद्योग का संक्षिप्त वितरण प्रस्तुत करें।
उत्तर :
जलपोत निर्माण उद्योग – भारत में जलपोत निर्माण के चार कारखाने हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित हैं –
i. हिन्दुस्तान शिपयार्ड लि० – यह कारखाना आंधप्रदेश में विशाखापट्टनम में स्थित है। इसकी उत्पादन क्षमता 21,500 DWT वाले छ: जहाजों की वार्षिक है। सन् 1941-52 तक इसका स्वामित्व सिंधिया स्टीम नेविगेशन के पास था।
ii. कोच्ची शिपयार्ड – यह केरल राज्य के कोची में जापान के सहयोग से बना है। इसमें 85,000 DWT क्षमता वाले जहाज और 8600 DWT क्षमतावाले टेंकर बनते हैं। यह 1 लाख DWT क्षमतावाले जलपोतों की मरम्मत का कारखाना भी हैं।
iii. गार्डनरिचशिप विल्डर्स एण्ड इन्जिनियर्स लि० – यह कारखाना कोलकाता में स्थित हैं। यहाँ पर टग (जहाज को खींचने वाली नाव) बड़ी नाव तथा तटीय भाग में चलनेवाली नावो या जहाजों का निर्माण होता हैं। वर्तमान में यह सुरक्षा विभाग के अंतर्गत हैं।
iv. मंज गांव डक, मुम्बई महाराष्ट्र – यह सुरक्षा की इकाई है। इसमें भारतीय नौ सेना के लिए लड़ाई वाले जहाज, लंच तथा टग का निर्माण होता है। यहाँ पर 2700 DWT क्षमता वाले व्यापारिक जलपोत भी बनते हैं। इसकी उत्पादक ईकाइया गोवा, मुम्बई और मंगलौर में हैं।

प्रश्न 39.
हुगली औद्योगिक क्षेत्र के जूट उद्योग की प्रधान समस्याओं का वर्णन करो।

उत्तर : भारतीय जूट-उद्योग की समस्याएं : विगत पचास वर्षो में विश्व के जूट उद्योर्ग में भारत का एकाधिपत्य रहा हैं, किन्तु भविष्य में अपनी स्थिति बनाए रखेगा, यह संदिग्ध ही लगता है। आज भारत के जूट उद्योग के सम्मुख निम्नलिखित समस्याएं हैं –
i. कच्चे माल की कमी – भारत के बंटवारे के पश्चात् अपनी मिलों के लिए कच्चे जूट की कमी होने लगी। नये क्षेत्रों में जूट की कृषि को प्रोत्साहन दिया गया, फिर भी हमें अपनी आवश्यकता के लिए बंगलादेश पर निर्भर रहना पड़ता है। बंगलादेश के साथ बढ़ते हुए कटु संबंध की स्थिति में यह स्थिति हितकर नहीं लगती।

बंगलादेश एवं अन्य उपभोक्ता देशों की प्रतियोगिता – अभी हाल तक भारत जूट उद्योग में अकेला था, किन्तु अब मिस्र, इराक, म्यानमार, चीन तथा फिलिपाइस जो भारत के जूट के वोरों के प्रमुख ग्राहक थे अब स्वयं उत्पादक बन गए हैं। यही नहीं, बंगलादेश नई मशीनों के साथ इस उद्योग में उतर गया। सस्ते कच्चे माल, नवीन मशीनों एवं सस्ते सामान लेकर विश्व के बाजार में भारत का प्रबल प्रतिद्वन्द्वी बंगलादेश है। बाजील भी अपनी आवश्यकता भर जूट के समान स्वयं निर्मित कर रहा है। निकट भविष्य में यह भी भारत का प्रतिदन्द्वी बन सकता है।

जूट के बदले अन्य वस्तुओं से वने पदार्थों की वृद्धि – द्वितीय विश्व युद्ध के समय विदेशों में जूट से बने सामानों की पर्याप्त पूर्ति नहीं हो सकी ; इसलिए पैंकिग के लिए तथा सामान रखने के लिए सिसलहेम्प, कागज एवं कपड़ा से बने बोरों का तथा सिन्थेटिक थैलों का प्रयोग किया जाने लगा। इस प्रकार भारत के इस उद्योग को विश्व के बाजार में इन वस्तुओं की प्रतिद्वन्द्विता में भी खड़ा होना पड़ता है। यद्धपि सस्तेपन एवं टिकाऊपन के कारण जूट को इससे विशेष खतरा नहीं है किन्तु जिन देशों में उपर्युक्त वस्तुएं सस्ती हैं वहाँ से जूट के सामान की मांग कम है। इस स्थिति में भारत को बहुत सतर्क रहना है।

भारतीय जूट की वस्तुओं की अधिक कीमत – कच्चे माल की कमी एवं उसकी खराबी एवं पुरानी मशीनों के प्रयोग के कारण भारत में जूट से बनी वस्तुएं बंगलादेश की अपेक्षा बहुत मँहगी पड़ती है। इस प्रकार विदेशी बाजार में इसकी स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती।

आंतरिक बाजार में कम खपत – भारतीय जृट उद्योग में निर्मित वस्तुओं की आंतरिक बाजार में खपत बहुत कम है। खपत का बड़ा भाग विदेशी बाजार के लिए ही है, अत: इसकी स्थिति बदलते हुए विदेशी बाजार पर निर्भर करती हैं।

एक ही प्रकार की वस्तुओं का निर्माण – भारत में जूट की एक ही प्रकार की वस्तुएँ बनती है जबकि यूरोप में इससे कई प्रकार की वस्तुओं का निर्माण होता है। ऐसी अवस्था में अन्य देशों से मुकाबला करना मुश्किल हैं।

मालिक मजदूरों के बीच असंतोष एवं शक्ति के साधनों का अभाव – पश्चिम बंगाल में मालिक मजदूरों के बीच असंतोष एवं शक्ति साधनों की कमी इस उद्योग की सबसे बड़ी समस्या है।

इस प्रकार प्रमुख विदेशी मुद्रा अर्जन करने वाली यह उद्योग विकट परिस्थितियों से गुजर रहा है, अतः आवश्यकता इस बात की है कि देश में जूट से बने सामानों की खपत बढ़ाई जाय और मिलों में आधुनिक मशीनों का प्रयोग किया जाय जिससे कम दामों में अधिक वस्तुएं बनायी जा सके।

प्रश्न 40.
बर्नपुर के लौह इस्पात कारखाने की स्थापना की क्या सुविधायें हैं ?
उत्तर :
इण्डियन अयरन एण्ड स्टील कम्पनी (IISCO) बर्नपुर : भारत में लौह एवं इस्पात के उद्योग की स्थापना में इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी बर्नपुर का दूसरा स्थान है। इसका उत्पादन केन्द्र आसनसोल के समीप बर्नपुर में और कार्यालय कोलकाता में हैं। इसकी स्थापना 1918 ई० में हुई। 1937 में बंगाल आयरन कम्पनी भी इसी में मिल गई। यह केन्द्र कलकत्ता से 227 कि०मी० दूर है और बराकर नदी पर स्थित है। इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी को निम्नलिखित सुविधायें प्राप्त हैं –
i. कच्चा लोहा – इस कारखाने को कच्चा लोहा गुवा, जमदा एवं मनोहरपुर (बिहार) 279 कि०मी॰ से प्राप्त होता है।)
ii. कोयले की सुविधा – इसे कोक कोल की प्राप्ति रामनगर तथा झरिया ( 136 कि०मी०) से प्राप्त होती है । इस दृष्टिकोण से बर्नपुर की स्थिति जमशेदपुर की अपेक्षा अधिक सुविधापूर्ण है।
iii. चूना-पत्यर तथा डोलोमाइट की प्राप्ति – चूना-पत्थर सिंहभूम क्षेत्र ( 157 कि०मी० है तथा मैंगनीज बीरमित्रापुर ( 317 कि०मी०) उड़ीसा से आता है।
iv. जल की प्राप्ति – इस इस्पात के कारखाने को दामोदर नदी से पर्याप्त जल मिलता है।
v. यातायात के साधन की सुविधा – यह कारखाना आसनसोल से केवल 6.5 कि०मी० की दूरी पर स्थित है और आसनसोल से रेलमार्ग द्वारा मिला हुआ है। असनसोल पूर्वी रेलवे का प्रधान केन्द्र है, अतः इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी को यातायात की अच्छी सुविधा प्राप्त है।
vi. सस्ते मजदूर एवं विस्तृत बाजार की सुविधा – बर्नपुर का यह कारखाना बिहार तथा उत्तर-प्रदेश के घनी आबादी के क्षेत्रों के समीप है। अतः सस्ते मजदूरों की प्राप्ति तथा विस्तृत बाजार दोनों की सुविधाये इस कारखाने को मिलीहै । लोहा तथा इस्पात की खपत का प्रमुख कारखाना चित्तरंजन लोकोमोटिव इससे 32 कि०मी० से कम ही दूरी पर स्थित है।

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प्रश्न 41.
भारत में लौह-इस्पात उद्योग की क्या समस्याएँ हैं ?
उत्तर :
भारत में उत्पादित इस्पात अपने गुण एवं मात्रा दोनों के विचार से अवनत हैं। इसका प्रमुख कारण निम्नलिखित है-
कोक कोयले का अभाव – इस्पात उद्योग में जो कोकिंग कोयला लगता है उसमें राख की मात्रा 17 % से अधिक नहीं होनी चाहिए। भारत के कोयले में राख की मात्रा 19 % से अधिक होती है। इसकी कमी आयातित कोक से पूरी की जाती हैं जो खर्चीला पड़ता है।

उत्पादन क्षमता का पूर्ण उपयोग न होना – उचित देख-रेख का अभाव, पुराने पूर्जों को बदलने में देरी एवं व्यवस्था संबधो दोष, प्रबन्धकों एवं मजदूरों के बीच आपसी सहयोग का अभाव कोकिंग कोयले की कमी, शक्ति की आपूर्ति की कमी, परिवहन असुविधा आदि के कारण इन कारखानों मे उत्पादन क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता।

अपर्याप्त नियोजन एवं अत्यधिक नियंत्रण – टाटा स्टील को छोड़कर अन्य कारखानों का प्रबन्ध सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा होता है। सरकारी नियंत्रण के कारण नियोजन उचित नहीं होता, आपसी सहयोग का अभाव होता है, जिससे कारखानों में उत्पादन ठीक से नहीं होता, अतः लागत अधिक आती है।

बीमार छोटी इकाइयाँ – इस्पात उद्योग की छोटी इकाइयों को कच्चे माल जैसे स्क्रेप तथा शक्ति संसाधन की आपूर्ति समय से नहीं होती, अतः उनका उत्पादन ठीक से नहीं होता।

मिश्रित एवं विशेष प्रकार के इस्पात का कम उत्पादन – भारत का 90 % इस्पात रेल, शीट, प्लेट, छड़ आदि के रूप में होता हैं, यहाँ पर मिश्रित एवं विशिष्ट इस्पात का उत्पादन नाम मात्र का होता है।

प्रश्न 42.
इन्जिनीयरिंग उद्योग क्या है ? भारत के कुछ इन्जिनीयरिंग उद्योगों के नाम बताओ । इस उद्योग के विकास के कुछ कारणों का वर्णन करो।
उत्तर :
इस्पात तथा अन्य धातुओं को कच्चा माल के रूप में व्यवहार कर मशीन, औजार आदि के निर्माण को इंजीनियरिंग उद्योग कहते हैं।
इंजीनियरिंग उद्योग निम्नलिखित हैं –
i. भारी इंजीनियरिंग उद्योग :
(a) भारी मशीनरी उद्योग
(b) मशीनी औजार उद्योग
(c) औद्योगिक मशीनरी उद्योग
(d) रेल उद्योग
(e) जलयान उद्योग
(f) जलपोत उद्योग

ii. हल्के इंजीनियरिंग उद्योग :
(a) साइकिल निर्माण उद्योग
(b) टाइपराइटर निर्माण उद्योग
(c) सिलाई मशीन निर्माण उद्योग
(d) घड़ी निर्माण उद्योग
(e) रेडियो, टेलीफोन आदि के निर्माण के उद्योग।

इंजीनियरिंग उद्योग के विकास की निम्नलिखित शर्ते हैं –
i. कच्चे माल की उपलब्धता – इंजीनियरिंग उद्योग का प्रमुख कच्चा माल इस्पात है जो भारी होता है, अत: इंजीनियरिंग उद्योग के पास इस्पात उद्योग होना चाहिए।
ii. शक्ति के साधनों की उपलब्धता – इंजीनियरिंग उद्योग में शक्ति के साधनों का अधिक उपयोग होता है, अतः कोयला एवं जल-विद्युत की सुविधा होनी चाहिए।
iii. यातायात की सुविधा – इंजीनियरिंग उद्योग में कच्चे माल की आपूर्ति एवं तैयार माल की निकासी के लिए यातायात के साधनों का विकास आवश्यक है।

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iv. मशीनों की सुविधा – इंजीनियरिंग उद्योग में बड़ी-बड़ी कीमती मशीनों की आवश्यकता होती है ।
v. पूँजी एवं तकनीकी सुविधा – इंजिनियरिंग उद्योग के लिए पूँजी एवं तकनीकी ज्ञान की सुविधा आवश्यक है।

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प्रश्न 43.
लोकोमोटिव उद्योग से क्या समझते हो ? चित्तरंजन में रेल इंजन उद्योग की स्थापना के कारण क्या हैं ? अन्य केन्द्रों का भी वर्णन करो।
उत्तर :
लोकोमोटिव उद्योग उस उद्योग को कहते हैं जहाँ पर रेल के इंजनों का निर्माण होता है।
(a) चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स – भारत सरकार द्वारा स्थापित भारत का रेलवे इन्जिन बनाने का यह कारखाना देशबन्धु चित्तरंजन दास के नाम पर स्थापित किया गया। इस कारखाने में बने प्रथम इन्जिन का नाम भी देशबन्धु ही रखा गया। इस कारखाने में रेलवे इन्जिन बनाने का कार्य सन् 1950 में आरम्भ हुआ। पहले इन्जिन संबंधी सभी पुर्जे विदेश से आते थे किन्तु सन् 1958 के बाद सभी पुर्जे इस कारखाने में ही बनने लगे।
यह कारखाना विभिन्न प्रकार के इंजनों का निर्माण कर रहा है। यहाँ प्रतिवर्ष 500 इंजन तैयार होता है।

चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स की चित्तरंजन में स्थापना के लिए निम्नलिखित सुविधायें हैं –
शक्ति के साधनों की प्राप्ति – रेलवे इन्जिन बनाने के लिए शक्ति के साधन के रूप में कोयला तथा बिजली दोनों ही उपलब्ध हैं। कोयला झरिया की खानों से प्राप्त होता है। ये खाने यहाँ से दस-पन्द्रह मील ही दूर हैं। जल-विद्युत की प्राप्ति दामोदर-घाटी योजना से होती है। यह केन्द्र चित्तरंजन के कारखाने से केवल 5 कि०मी० दूर हैं। जल-विद्युत की प्राप्ति दामोदर घाटी-योजना के मैथन बांध केन्द्र से होती हैं।

यातायात की सुविधा – प्रारम्भ में इस कारखाने के लिए पूर्जे आयात करने पड़ते थे, अत: रेल-मार्ग की सुविधा आवश्यक थी। कलकत्ता बन्दरगाह से पूर्जे आयात किये जाते थे और रेल-मार्ग द्वारा पहुँचाये जाते थे । पुन: रेलवे इंजन को विभिन्न भागों में भेजने में कोई असुविधा नहीं थी। इस केन्द्र को रेल-मार्ग की सुविधा प्राप्त है, क्योंकि यह पूर्वी रेलवे का प्रधान स्टेशन है।

लोहे एवं इस्पात की प्राप्ति – इस कारखाने को लौह एवं इस्पात की आवश्यकताओं की पूर्ति टाटा कम्पनी से होती है। टाटा नगर से यह रेल-मार्ग द्वारा मिला हुआ है।

सस्ते श्रमिकों की प्राप्ति – इस केन्द्र को सस्ते मजदूर अधिक संख्या में बिहार एवं उत्तर-प्रदेश से प्राप्त होते हैं। यह स्थान स्वास्थ्य के अनुकूल पड़ता है और देश के प्रत्येक भाग से आने की सुविधा है, अत: यहाँ मजदूर आसानी से आ सकते हैं।

(b) टाटा इन्जिनियरिंग एण्ड लोकोमोटिव कम्पनी (TELCO) जमशेदपुर – भारत का दूसरा रेलवे इंजिन बनाने का कारखाना भारत के इस्पात नगर टाटानगर में स्थित हैं। इसका संचालन टाटा कम्पनी के हाथ में हैं। इस कारखाने में प्रति वर्ष 68 इंजन तैयार किये जाते हैं।
टाटा नगर में इसकी स्थिति के कारण इसे कोयले की, लोहे की एवं रेलमार्ग की सुविधायें अनायास ही मिली हुई हैं। इस स्थान पर पहले से यह उद्योग था भी।

(c) डीजल लोकोमोटिव वर्क्स वाराणसी – बनारस के पास मडुआडीह में रेल इंजन का कारखाना 1964 में स्थापित हुआ। इसकी उत्पादन क्षमता 150 इंजन प्रतिवर्ष है। चतुर्थ पंचवर्षीय योजना में 652 इन्जन तैयार हुआ जिसमें 369 डीजल तथा 283 बिजली से चलने वाले हैं।

प्रश्न 44.
अहमदाबाद को भारत का मैनचैस्टर क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
अहमदाबाद को भारत का मैनचैस्टर इसलिए कहा जाता है क्योंकि अहमादाबाद में सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना एवं उसके विकास के लिए निम्नलिखित सुविधायें प्राप्त हैं –
कच्चे माल की प्राप्ति – अहमदाबाद की सबसे बड़ी सुविधा उत्तम कपास की प्राप्ति की है। यह काली मिट्टी के कपास उत्पादक क्षेत्र के मध्य ही स्थित है; अत: मुम्बई की अपेक्षा कपास की सुविधा अहमदाबाद को अधिक है।

सस्ते एवं कुशल श्रमिक – अहमदाबाद के लिए मजदूरों की प्राप्ति गुजरात प्रदेश से ही हो जाती हैं। कुछ श्रमिक राजस्थान एवं मध्यप्रदेश से भी मिल जाते हैं। यही नहीं, अहमादाबाद के समीपवर्ती क्षेत्रों में गृह-उद्योग के रूप में इस उद्योग का विकास बहुत पहले हुआ था, इसलिए अहमदाबाद की मिलों के लिए कुशल श्रमिकों की सुविधा अधिक है। मुम्बई की तुलना में यहाँ श्रमिकों की मजदूरी कम है क्योंकि यहाँ रहन-सहन का स्तर मुम्बई की तरह ऊँचा नहीं है।

मजदूरों के लिए निवास की सुविधा – अहमदाबाद में मुम्बई की तरह न तो मिलों की स्थापना के लिए और न मजदूरों के निवास के लिये ही स्थान की कमी है, अतः जब मजदूरों के सामने इन दोनों केन्द्रों में से चुनाव का प्रश्न आता है, तो वे प्रधानता अहमदाबाद को ही देते हैं।

कर में कमी – अहमदाबाद में स्थानीय करों की कमी है। अतः यहाँ बने वस्त्रों की लागत कम पड़ती है।

मुम्बई एवं कांडला के बन्दरगाहों की सुविधा – विदेशों से मशीनों के आयात के लिये अहमदाबाद को मुम्बई एवं कांडला दोनों बन्दरगाहों की सुविधायें प्राप्त हैं।

बाजार की सुविधा – अहमदाबाद के वने वस्त्रों के लिये पंजाब, पश्चिमी उत्तर-प्रदेश एवं राजस्थान का विस्तृत बाजार मुम्बई की अपेक्षा निकट हैं। साथ ही इन क्षेत्रों में कपड़ा आसानी से पहुँचाया भी जा सकता है। यहाँ मुम्बई की तरह रेलवे के डिब्बों के मिलने में असुविधा नहीं होती।

अच्छे वस्त्रों के निर्माण में एकाधिकार – अहमदाबाद में बने वस्त्र भारत में अपनी उत्तमता के लिए प्रसिद्ध है इसलिए यहाँ की बनी वस्तुओं के बाजार में कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं है।

अहमदाबाद में प्राप्त सुविधाओं से सूती वस्त्र के लिए इसे भारत के मैनचेस्टर की संज्ञा दी गई है। यही नहीं, इसे पूरब का वोस्टन भी कहते हैं। भारत में इस उद्योग का सर्व प्रथम केन्द्र मुम्बई है।

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प्रश्न 45.
हुगली औद्योगिक क्षेत्र में जूट उद्योग के केन्द्रीकरण के क्या कारण हैं ?
उत्तर :
हुगली नदी की निचली घाटी में जूट-उद्योग के केन्द्रीकरण के निम्नलिखित कारण हैं –
विदेशी पूँजी एवं संगठन की सुविधा – भारत का यह उद्योग विदेशी पूँजी द्वारा स्थापित हुआ था। उस समय भारत में कोलकाता ही ब्रिटिश साम्राज्य का केन्द्र था। अतः इस उद्योग के लिए आवश्यक पूँजी और उत्तम प्रबंध की सुविधा जितनी इस क्षेत्र में थी उतनी भारत के किसी भाग में नहीं थी।

कच्चे माल की सुविधा – हुगली क्षेत्र को कच्चे माल की प्राप्ति की सुविधा बहुत अधिक है। यहाँ निकटवर्ती क्षेत्र से हुगली नदी द्वारा जूट आसानी से मिल जाता है। कोलकाता बहुत पहले से जूट का केन्द्र रहा है। संपूर्ण बंगाल का पहले जूट का निर्यात कोलकाता बंदरगाह से ही होता था, इसीलिए कोलकाता को अनायास ही जूट की प्राप्ति हो जाती थी।

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कोलकाता बन्दरगाह की सुविधा – जूट उद्योग के लिए मशीनों के आयात तथा जूट से बनी ( 80 % से अधिक) वस्तुओं के निर्यात के लिए कोलकाता बन्दरगाह से सुविधा मिलती है। कोलकाता के इस निकटतम पृष्ठ-प्रदेश में हुगली ही यातायात का एकमात्र साधन है अथवा अधिक उचित शब्दों में हुगली कोलकाता बन्दरगाह का एक अंग हैं।

कोयले की प्राप्ति – जूट की मिलों को चलाने के लिए यहाँ कोयले की प्राप्ति की अच्छी सुविधा है। भारत का सबसे प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र रानीगंज और झरिया की खाने कोलकाता से 208 कि॰मी० के अंदर ही पड़ती है। कोयला लाने के लिए नदी मार्ग, रेलमार्ग तथा सड़कों की पर्याप्त सुविधाएं हैं।

उपयुक्त जलवायु – जूट उद्योग के लिए नम जलवायु आवश्यक है। अधिक वर्षा के कारण पश्चिम बंगाल के इस क्षेत्र की जलवायु आवश्यकतानुसार नम हैं।

श्रमिकों की प्राप्ति – कोलकाता एक प्रसिद्ध औद्योगिक नगर है अत: यहाँ बंगाल, बिहार, उड़ीसा एवं उत्तरप्रदेश से अधिक संख्या में सस्ते श्रमिक मिल जाते हैं।

विशेषज्ञों एवं कारीगरों की सुविधा – कोलकाता एवं उसके समीप का संपूर्ण क्षेत्र उद्योग-धन्धों में विकसित है, अतः इस उद्योग में आवश्यक विशेषज्ञों की प्राप्ति सुलभ है। अन्य क्षेत्रों में ऐसी सुविधा नहीं मिल सकती।

पूर्व प्रारम्भ की सुविधा – भारत का यह उद्योग सबसे पहले कोलकाता के समीप ही स्थापित हुआ। अतः इस क्षेत्र को पूर्व प्रारम्भ की सुविधा प्राप्त थी।

प्रश्न 46.
भारत में बढ़ते नगरीकरण के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं का संक्षिप्त विवरण दो।
उत्तर :
भारत में नगरीकरण की समस्या : अन्य देशों के समान भारत में भी तीव्र गति से नगरीकरण में वृद्धि एवं विस्तार होता जा रहा है और सरकार भी नगरों को बढ़ावा देने के लिए ही कार्य कर रही है। एक ओर जहाँ नगरीकरण में वृद्धि हो रही है, वहीं आज नगरीकरण के कारण कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो रही है, जो निम्नलिखित हैं –
i. अनियोजित नगरीकरण – भारत में कई ऐसे नगर हैं जो अनियोजित ढंग से बसाए गए हैं। इसलिए वहाँ कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो गई है जिनमें जल अभाव, रास्ता जाम, आवास की कमी आदि प्रमुख हैं।
ii. शहरों में ही बसने की लोगों की प्रवृत्ति – आज गांवों में कोई भी पढ़ा-लिखा युवक नहीं रहना चाहता है, हर नौजवान की यही इच्छा होती है कि वह शहर में ही रहे। क्योंकि उसकी यही धारणा होती है कि जो सुविधा शहरों में उपलब्ध है वह गांवों में नहीं है। इसलिए शहरों की संख्या में निरतंर वृद्धि होती जा रही है।
iii. अधिवास की समस्या – नगरों की संख्या एवं विस्तार के बावजूद भी आज लाखों लोगों को रहने की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसलिए शहरों में आज आवास एक प्रमुख समस्या है।
iv. परिवहन की समस्या – आज बड़े-बड़े महानगरों में जिस गति से जनसंख्या बढ़ रही है, परिवहन एक प्रमुख समस्या है। लोगों को अपने गंतव्य स्थान तक पहुँचने के लिए काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
v. स्वास्थ्य सेवाओं की कमी – जिस अनुपात में शहरीकरण हो रहा है तथा शहरों की आबादी बढ़ रही है, उस अनुपात में ख्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही है। सरकारी अस्पतालों का अभाव है तथा उन अस्पतालों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।
vi. विद्युतीकरण – जनसंख्या वृद्धि के कारण विद्युत की मांग में काफी वृद्धि हो रही है। मांग की तुलना में उत्पादन कम होने के कारण आज विद्युत एक प्रमुख समस्या हो गई है। बड़े-बड़े शहरों में आए दिन 5-6 घण्टे तक विद्युत आपूर्ति बाधित रहती है।
vii. जल निकाशी की समस्या – बड़े-बड़े शहरों में जल निकाशी आज एक प्रमुख समस्या है। बढ़ती हुई आबादी के कारण आज आए दिन शहरों में सड़कों पर थोड़ा सा भी बारिश हो जाने के कारण पानी भर जाया करता है। दिल्ली, मुम्बई एवं कोलकाता में यह समस्या आम बात है।

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प्रश्न 47.
भारत में जनसंख्या वृद्धि का विवरण दीजिए।
उत्तर :
किसी भी स्थान की जनसंख्या परविर्तनशील होती है। अनुकूल परिस्थितियों में जनसंख्या वृद्धि होती है तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में जनसंख्या घट जाती है। दो समय बिन्दुओं के बीच जनसंख्या में होने वाले परिवर्तन को जनसंख्या वृद्धि कहा जाता है। जनसंख्या वृद्धि निम्नलिखित दो प्रकार की होती है।
i. धनात्मक वृद्धि : दो समय बिन्दुओं के बीच जनसंख्या में होने वाली वृद्धि को धनात्मक वृद्धि कहा जाता है। जब जन्मदर मृत्युदर से अधिक हो जाती है तो उसे धनात्मक वृद्धि कहा जाता है।
ii. ऋणात्मक वृद्धि : दो समय बिन्दुओं के बीच जनसंख्या के घटने को ऋणात्मक वृद्धि कहा जाता है। जब जन्म दर मृत्युदर से कम हो जाती है तो उसे ॠणात्मक वृद्धि कहा जाता है।
सन् 1901 में भारत की जनसंख्या जहाँ 23.84 करोड़ थी वह 2011 में बढ़कर 121 करोड़ से भी अधिक हो गई। सन् 2001-2011 के दशक में भारत में जनसंख्या की औसत वृद्धि दर 17.64 थी । जनसंख्या की वृद्धि दर में क्षेत्रीय भिन्नताएं भी मिलती है। दक्षिणी राज्यों में वृद्धि दर काफी कम है। छोटे राज्यों में वृद्धि दर काफी अधिक हैं।

भारत में जनसंख्या का आकार एवं वृद्धि दर 1901-2011

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प्रश्न 48.
भारत में पाए जाने वाले प्रमुख नगरों का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर :
प्रमुख या विशिष्ट प्रकार्यों के आधार पर भारत में नगरों और कस्बों को निम्न रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है i. प्रशासनिक कस्बे और नगर – प्रमुख प्रशासनिक मुख्यालय के रूप में विकसित नगरों को प्रशासनिक नगर कहा जाता है। जैसे चंडीगढ़, नई दिल्ली, भोपाल, शिलांग आदि ऐसे नगरों के उदाहरण हैं।
ii. औद्योगिक नगर – उद्योग ही ऐसे नगरों की प्रेरक शक्ति होते हैं जैसे मुम्बई, सलेम, कोयंबटूर, मोदीननगर, जमशेदपुर, हुगली, भिलाई आदि
iii. परिवहन नगर – ये नगर मुख्य रूप से आयात और निर्यात की गतिविधियों में लिप्त पत्तन हो सकते हैं। जैसेकांडला, कोच्चि, कालीकट, विशाखापट्टनम आदि। कुछ आंतरिक परिवहन के केन्द्र हो सकते हैं। जैसे – आगरा, धुलिया, मुगलसराय, इटारसी, कटनी आदि।
iv. व्यापार नगर – व्यापार में विशिष्टता प्राप्त करने वाले कस्बे और नगर इसी वर्ग में शामिल किए जाते हैं। जैसे कोलकाता, सहारनपुर, सतना आदि।
v. खनन नगर – रानीगंज, झारिया, डिगबोई, अंकलेश्वर, सिंगरौली आदि।
vi. छावनी नगर – अंबाला, जालंधर, मऊ, बबीना, मेरठ कैंट आदि।
vii. शैक्षिक नगर – रूड़की, वाराणसी, अलीगढ़, पिलानी आदि।
viii. धार्मिक और सांस्कृतिक नगर – वाराणसी, मथुरा, अमृतसर, मदुरई, तिरूपति आदि।
ix. पर्यटन नगर – नैनीताल, मसूरी, शिमला, पंचमढी, ऊटी, माउन्ट आबू आदि विशिष्ट नगर भी महानगरों के रूप में विकसित होने के बाद वहुप्रकार्यात्मक बन जाते है। तब इनमें उद्योग, व्यापार, प्रशासन और परिवहन आदि कार्य प्रमुख हो जाते है।

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प्रश्न 49.
भारत में जनसंख्या के शहरीकरण को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं ?
उत्तर :
भारतीय जनसंख्या का शहरीकरण – भारत में जनसंख्या का नगरीकरण हो रहा है अर्थांत् गांवों से जनसंख्या शहरों की तरफ भाग कर आ रही हैं। भारत में 1981 से 2001 के बीच महानगरों की संख्या 12 से बढ़कर 27 हो गयी है। शहरों की जनसंख्या रोज़ बढ़ रही है। इस बढ़ती जनसंख्या के कारण हैं :
शहर में जीवनदायक वस्तुओं की आपूर्ति – नागरिको की जागरूकता के कारण जीबन के लिए आवश्यक आवश्यकताओं जैसे आवास, भोजन आदि की आपूर्ति आसानी से हो पाती है। गांवों की अपेक्षा शहरों में सरकारी शासन प्रणाली की उत्तम व्यवस्था होती है, अतः समय पर भोजन आदि की आपूर्ति हो जाती है।

रोजगार की सुविधा – गांवों में कृष् के अलावे रोजगार का अन्य साधन नहीं है, नगरों में अनेक छोटे-बड़े रोजगार होते हैं जिससे लोगों को काम मिल जाता है।

अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति – बिजली, पानी, यातायात आदि की जितनी सुविधा शहरों में है उतनी गांवों में नहीं है, अत: लोग गांव को छोड़ शहरों में आ रहे है।

शांति, सुरक्षा एवं शिक्षा की सुविधा – सामाजिक क्रांति के चलते बिहार के कुछ गांवों में लोगों के समक्ष संपत्ति एवं जीवन की सुरक्षा का प्रश्न उपस्थित हो गया है क्योंकि पुलिस के लिए सबको सुरक्षा देना संभव नहीं है, अतः शांति-सुरक्षा के लिए गांवों के सम्पन्न लोग मात्र बच्चों की शिक्षा के लिए नगरों में रहने लगे हैं।

शरणार्थियों एवं विदेशियों का आगमन – ऐसा अनुमान है कि बंगलादेश, पाकिस्तान से आये करीब दो करोड़ लोग भारत के विभिन्न नगरों में बस गये हैं। ये विदेशी अधिकतर बड़े शहरों में ही जाकर बसते है क्योंकि बड़े शहरों में उन्हें रोजगार मिल जाता है। वे शहरों के लोगों से इस प्रकार मिल जाते हैं कि उन्हें कठिनाई से अलग किया जा सकता है। कश्मीर से आये शरणार्थी भी दिल्ली आदि नगरों में बस गये हैं।

सामाजिक मान्यता – गांव के लोग जिनके पास पर्याप्त मात्रा में भूमि है आरामदायक जीवन एवं समाज में प्रतिष्ठा पाने के लिए नगरों में नौकरी करने आ जाते हैं।
इस प्रकार हम देखते है कि भारत में जनसंख्या का नगरीकरण हो रहा है।

प्रश्न 50.
भारत में जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करे। अथवा, भारत में जनसंख्या के असमान वितरण का क्या कारण है ?
उत्तर :
जनसंख्या के असमान वितरण का कारण निम्नलिखित है –
(A) प्राकृतिक कारण :
i. वर्षा – जनसंख्या की वृद्धि या कमी में खाद्य फसलों का उत्पादन महत्वपूर्ण होता है। जहाँ पर वर्षा अधिक होती है, वहाँ कृषि की उपज अच्छी होती है। अतः जहाँ वर्षा अधिक होती है, वहाँ घनी जनसंख्या पाई जाती है। जहाँ वर्षा कम होती है वहाँ विरल जनसंख्या पायी जाती है। यदि हम गंगा के विशाल मैदान में पूर्व से पश्चिम जायेंगे तो पाते हैं कि पश्चिम बंगाल से बिहार, बिहार से उत्तर प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश से पंजाब में वर्षा की मात्रा घटती जाती है एवं जनसंख्या का घनत्व क्रमशः कम होता जाता है। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल तथा केरल में अधिक वर्षा होती है और यहाँ जनसंख्या का घनत्व देश में सर्वधिक है।

ii. तापमान – बहुत ऊँचा और बहुत निम्न तापमान जनसंख्या के घनत्व पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। यही कारण है कि हिमालय के पर्वतीय भागों एवं थार के मरूस्थल में विरल जनसंख्या पायी जाती है। इसके विपरीत जहाँ तापमान सम रहता है, सघन जनसंख्या पायी जाती है, जैसे – उत्तर प्रदेश, बिहार आदि में।

iii. आर्द्रता – आर्द्र जलवायु स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, अतः भावर क्षेत्र और गंगा के डेल्टा प्रदेश में आर्द्र जलवायु के कारण जनसंख्या विरल है।

iv. धरातल – मैदानी भागों में मिट्टी उपजाऊ होती है, निवास स्थान बनाने में सुविधा होती है। उद्योग-धंधों की स्थापना सुविधाजनक होती है। अतः समतल मैदानों पर सघन जनसंख्या पायी जाती है, इसके विपरीत जहाँ धरातल असमान, पहाड़ी, पठारी होता है, वहाँ कृषि योग्य भूमि का अभाव होता है, यातायात की सुविधा नहीं रहती, घर बनाना कष्षकर होता है, अत: यहाँ विरल जनसंख्या पायी जाती है।

v. कृषि का ढंग – जिन स्थानों पर वर्ष में एक से अधिक फसलों की कृषि की जाती है, वहाँ सघन जनसंख्या मिलती है, क्योंकि लोग खाद्य फसलों की कृषि करके अपना पेट भरते हैं तथा अन्य फसलों की कृषि करके अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार करते हैं। जहाँ धान की कृषि होती है वहाँ पर सघन जनसंख्या पायी जाती है। धान की फसल अन्य खाद्यानों की अपेक्षा अधिक लोगों का पेट भरती है।

vi. खनिज पदार्थों की उपलब्धता – जिन स्थानों पर नये खनिजों का पता लगता है, वहाँ उनकी खुदाई होने तथा उससे सम्बन्धित उद्योगों की स्थापना से जनसंख्या बढ़ जाती है। उड़ीसा, झारखण्ड तथा छत्तीसगढ़ के उन क्षेत्रों में जहाँ नयी खानों का पता लगा, जनसंख्या बढ़ गयी। टाटानगर, बोकारो, भिलाई, दुर्गापुर में भी जनसंख्या वृद्धि का यही कारण है।

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(B) अप्राकृतिक प्रभाव :
i. सांस्कृतिक प्रभाव – विभिन्न सांस्कृतिक स्थानों पर जनसंख्या की वृद्धि होती है, जैसे – बनारस में विश्वविद्यालय की स्थापना, इलाहाबाद में हाईकोर्ट की स्थापना, दिल्ली को राजधानी बनाये जाने आदि के कारण वहाँ जनसंख्या बढ़ गयी, राजस्थान में गंगा नहर के निर्माण के कारण जनसंख्या में वृद्धि हो गयी। अत: शिक्षण संस्थानों की स्थापना, धार्मिक महत्व में वृद्धि, वैज्ञानिक एवं तकनीकि विकास के कारण जनसंख्या बढ़ जाती है।

ii. यातायात व्यवस्था – जिन स्थानों पर यातायात के साधनों सड़क, रेल, जल यातायात और वायु यातायात का विकास होता है वहाँ जनसंख्या बढ़ जाती है। जिन स्थानों पर यातायात का अभाव है, वहाँ जनसंख्या विरल ही रहती है। जैसे उत्तरी पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र के राज्य में जनसंख्या विरल है। मैदानी भागों में यातायात के विभिन्न साधनों का विकास होने के कारण सघन जनसंख्या पायी जाती है।

iii. औद्योगिक उन्नति – जिन स्थानों पर नये-नये उद्योगों की स्थापना होती है, वहाँ नये-नये नगर बस जाते है और जनसंख्या बढ़ जाती है, छोटानागपुर के क्षेत्रों में खनिजों की खोज एवं उद्योगों की स्थापना के कारण जनसंख्या में वृद्धि हो गयी।

iv. राजनीतिक प्रभाव – राजनीतिक प्रभाव के कारण भी जनसंख्या में वृद्धि हो जाती है । जैसे – देश के विभाजन के फलस्वरूप पंजाब एवं पश्चिम बंगाल में शरणार्थियों के आने से जनसंख्या में वृद्धि हो गयी है।

प्रश्न 51.
जनसंख्या के घनत्व के आधार पर भारत का वर्गीकरण करें।
उत्तर :
जनसंख्या के घनत्व के हिसाब से भारत को तीन भागों में बांटा जा सकता है –
प्रति वर्ग० कि० 450 से अधिक व्यक्ति – अधिक घनत्व वाले क्षेत्रों में सबसे महत्वपूर्ण सिंघु-गंगा के मैदान में बसने वाले राज्य पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर-प्रदेश, हरियाणा और पंजाब हैं। यहाँ पर घनी जन संख्या का कारण है उपजाऊ भूमि, नम जलवायु, नहरों का विस्तार, सिंचाई की सुविधा तथा विस्तृत मैदान। यहाँ पर पश्चिम बंगाल के डेल्टाई भाग एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के औद्योगिकरण ने भी जनसंख्या के घनत्व में वृद्धि की है। केरल एवं तमिलनाडु के तटीय भागों में भी जनसंख्या सघन है। यहाँ बागानी कृषि एवं गहन कृषि सघन जनसंख्या के कारण है । इन क्षेत्रों में देश के अन्य भागों की अपेक्षा शहरीकरण तीव्र गति से हुआ है। असम के ब्रहुपुत्र घाटी में भी कुछ स्थानों पर सघन जनसंख्या पाई जाती है।

अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र एवं जनसंख्या का घनत्व – पश्चिम बंगाल (1,028), बिहार (1,106), केरल (860), उत्तर प्रदेश (829), पंजाब (551), तमिलनाडु (555), हरिहाणा (573)

साधारण घनत्व वाले क्षेत्र (200 – 450 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०) – महाराष्ट्र का अधिक भाग, गुजरात, तेलगाना एवं आंध्र प्रदेश का तटीय भाग, तमिलनाडु का कुछ भाग कर्नाटक का दक्षिणी भाग आदि साधारण घनत्व के क्षेत्र है। झारखण्ड के छोटानागुपर के पठार का कुछ भाग, उत्तरी राजस्थान तथा पंजाब, हरियाणा एवं असम के कुछ भागों में भी इस प्रकार की जनसंख्या पायी जाती है। कुछ स्थानों पर पहले विरल जनसंख्या थी पर विकास के कारण घनत्व साधारण हो गया है, जैसे – उत्तरी राजस्थान।

साधारण जनसंख्या वाले क्षेत्र एवं जनसंख्या का घनत्व – गोवा (394), असम (398), झारखण्ड (414), महाराष्ट्र (365), त्रिपुरा (350)।

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विरल जनसंख्या वाले क्षेत्र (200 से कम व्यक्ति प्रति कि०मी०) – विरल जनसंख्या के क्षेत्र हैं राजस्थान का बड़ा हिस्सा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा। इन क्षेत्रों में विरल जनसंख्या का कारण है पठारी ऊबड़-खाबड़ भूमि, रेगिस्तान, उद्योगों का विकसित न होना, देश का यह क्षेत्र आर्थिक रूप अविकसित क्षेत्र है। विरल जनसंख्या का दूसरा क्षेत्र है कर्नाटक का पूर्वी भाग एवं आंध्र प्रदेश । विरल जनसंख्या का तीसरा क्षेत्र है उत्तरी पूर्वी भारत जिसके अतर्गत आनेवाले राज्य हैं मणिपुर, नागालेण्ड, मेघालय, मिजोराम एवं अरूणाचल प्रदेश। यहाँ पर भू-प्रकृति पर्वतीय है अतः जनसंख्या विरल है।

विरल जनसंख्या वाले क्षेत्र तथा जनसंख्या का घनत्व – अरुणाचल प्रदेश (17), मिजोरम (52), उत्तरांचल (189), राजस्थान (200), नागालैण्ड (119), मणिपुर (115), मध्य प्रदेश (236), सिक्किम (86), जम्मू कश्मीर (124)।

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प्रश्न 52.
क्या भारत में जनाधिक्य है ?
उत्तर :
भारत में जनाधिक्य है और इसके समर्थन में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किए जा सकते हैं –
i. भारत में बेरोजगारी है – भारत में जनसंख्या वृद्धि रोजगार के अवसरों की तुलना में तीव्र गति से बढ़ रही है।
ii. बेरोजगारी एवं अदृश्य बेरोजगारी – भारत में बेरोजगारी के साथ अदृश्य बेरोजगारी भी है। जैसे किसी खेत पर एक पिता जाम करता था, बड़ा होने पर लड़के के पास कोई काम न होने से वह भी लग जाता है, पर वह कोई अतिरिक्त उत्पादन नहीं करता { }^* ।
iii. गरीबी और जोषण – यहाँ पर इतनी गरीबी है कि कुछ लोगों को भोजन भी नहीं मिलती है तथा कुछ लोगों का केवल पेट भरता है, उनके भोजन में प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलती है।
iv. जीवन निवार्ह की गहन कृषि – बढ़ती जनसंख्या के पास रोजगार का अवसर न होने से और लोग उसी कृषि में लगते हैं और गहन कृषि करते हैं।
v. अपर्याप्त मूलभूत सुविधायें – जीवन की मूलभूत सुविधायें जैसे रोटी, कपड़ा, मकान तथा शिक्षा सब लोगों को उपलब्थ नहीं है।
अतः हम इस निष्कर्स पर पहुँचते हैं कि प्रतिवर्ष आस्ट्रेलिया के बराबर करीब एक करोड़ जनसंख्या की वृद्धि करने वाला भारत में जनाधिक्य है।

प्रश्न 53.
जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना का क्या अर्थ है ? भारत में पाये जाने वाले व्यावसायिक संरचना के चार प्रमुख वर्गों की उदाहरण सहित व्याख्या करो।
उत्तर :
जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना – जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना से तात्पर्य कुल कार्य शील जनसंख्या का विभिन्न व्यवसायों में वितरण है। सम्पूर्ण व्यवसायों को प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक वर्ग में विभक्त किया जाता है। प्रकृति से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित व्यवसाय जैसे शिकार करना, पशुपालन, खनन तथा कृषि आदि प्राथिक व्यवसाय है। प्राथमिक उत्पादनों पर आधरित क्रियाएं जैसे विनिर्माण उद्योग, सड़क निर्माण आदि द्वितीयक व्यवसाय हैं तथा प्रत्यक्ष रूप से कोई उत्पादन नहीं करेनवाली पंरतु उत्पादन में सहायक क्रियाएं जैसे परिवहन, व्यापार, शिक्षा, चिकित्सा तथा अन्य सेवाएँ प्रदान करने वाली तृतीयक व्यवसाय है।

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल कार्यशील जनसंख्या का 49 % ग्राथमिक व्यवसाय में, 24 % द्वितीयक व्यवसाय में तथा 27 % तृतीयक व्यवसाय में लगी हुई है। यह पहली बार हुआ है जब प्राथमिक व्यवसाय में लगी जनसंख्या का प्रतिशत 50 से कम है।
उपरोक्त वर्गीकरण को निम्नलिखित चार साधारण वर्गों में व्यक्त किया जाता है –

  1. प्राथमिक व्यवसाय में कृषि, मत्स्यपालन, आखेटन, वानिकी आदि को सम्मिलित किया जाता है
  2. द्वितीयक व्यवसाय में निर्माण उद्योग तथा शक्ति उत्पादन आती है।
  3. तृतीयक व्यवसाय में परिवहन, संचार, व्यापार तथा सेवाएं सम्मिलित की जाती है।
  4. चतुर्थक व्यवसाय बौद्धिकतापूर्ण क्रियाओं से संबधित है। इनका कार्य चितन, शोध तथा विचारों का विकास करना है।

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प्रश्न 54.
भारत में पाई जाने वाली जनसंख्या का आयु के अनुसार वर्गीकरण प्रस्तुत करें।
उत्तर :
भारत में जनसंख्या की आयु संरचना – भारत में जनसंख्या की आयु संरचना के अध्ययन के लिए इसे निम्नलिखित आयु वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है –
i. बाल आयु वर्ग (0 वर्ष – 14 वर्ष) : भारत में 31.2 % जनसंख्या बाल आयु वर्ग के अंतर्गत आती है। इसमें 6 वर्ष से कम आयु के शिशुओं का प्रतिशत 13.12 है। बाल आयु वर्ग भी औसत जनसंख्या के अंतर्गत आता है। अतः बाल आयु वर्ग में जनसंख्या की अधिकता समाज को आर्थिक पिछड़ेपन की ओर ले जाती है।

ii. युवा आयु वर्ग ( 15 वर्ष – 39 वर्ष) : भारत की जनसंख्या का लगभग 41.4 % युवा आयु वर्ग के अंतर्गत है। यह सक्रिय जनसंख्या का प्रमुख अंग है, जिस पर देश की उत्पादकता और सुरक्षा का दायित्व होता है।

iii. प्रौढ़ आयु वर्ग ( 40 वर्ष – 59 वर्ष) : भारत में 40 – 59 आयु वर्ग को प्रौढ़ आयु वर्ग माना जाता है। इस आयु वर्ग में भारत की लगभग 16.8 % जनसंख्या पायी जाती है। भारत में पौढ़ आयु वर्ग की संख्या युवा आयु वर्ग की संख्या के आधे से भी कम है जिसका मुख्य कारण जीवन प्रत्यशा का कम होना है। यह सक्रिय जनसंख्या है तथा कुल क्रियाशील जनसंख्या का 30 % इसके अंतर्गत आता है।

iv. वृद्ध आयु वर्ग ( 60 वर्ष – एवं इससे अधिक) : भारत में जीवन प्रत्याशा विकसित देशों की तुलना में कम होने के कारण 60+ को वृद्ध आयु वर्ग माना जाता है। 1999 ई० में भारत की 7 % जनसंख्या इसी वर्ग के अंतर्गत थी। मृत्यु दर में कमी तथा जीवन प्रत्याशा में वृद्धि के कारण इस आयु वर्ग में वृद्धि की प्रवृत्ति देखी जा रही है।

प्रश्न 55.
भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण क्या हैं ?
उत्तर :
भारत में जनसंख्या वृद्धि की इस तीव्र गति के निम्नलिखित कारण हैं –
i. जन्मदर में वृद्धि या स्थिरता के साथ मृत्यु दर में कमी – आधुनिक वैज्ञानिक स्वास्थ्य की सुविधाओं ने महामारियों पर नियन्तण पा लिया है। एक तरफ तो जन्म दर में स्थिरता आयी है और दूसरी तरफ मृत्यु दर में कमी आ गयी हैं। 1911-2000 के बीच जन्मदर प्रति हजार 48.1 % थी, पर मृत्युदर 48.6 % जबकि 1971 – 1980 के दौरान जन्म दर तो प्रति हजार 36.2 % हो गयी पर मृत्यु दर 14.8 % हो गयी और 1981-1990 तक जन्म दर 27.5 % हो गयी और मृत्यु दर कम होकर 9.5 पर आ गयी है। इस प्रकार जनसंख्या बढ़ रही है।

ii. आकाल पर नियंत्रण – बंगाल के भीषण अकाल में लाखों की संख्या में लोग मर गये थे ; पर अन्न की पैदावार बढ़ने तथा यातायात के कारण अकालों पर नियंत्रण पा लिया गया है, अत: मृत्यु दर में कमी आ गयी हैं।

iii. 1914 से 1940 के बीच दो विश्व-युद्ध हुए पर अब लड़ाइयाँ भी कम हो रही है अत: इनसे लोगों की कम मृत्यु होती है।

iv. शरणार्थियों एवं घुसपैटियों का आगमन – देश के बँटवारे के फलस्वरूप पश्चिमी पाकिस्तान तथा पूर्वी पाकिस्तान (अब बंगलादेश) से बहुत से शरणार्थी आये जिनसे भारत की जनसंख्या बढ़ गयी है। गैरसरकारी आकड़ों के अनुसार भारतदर्ष में केवल बंगलादेश से ही आये घुसपैठियों की संख्या 2 करोड़ के लगभग हैं। यही कारण है कि जहाँ 19.81 में जनसंख्या के घनत्व के दृष्टिकोण से पश्चिम बंगाल का स्थान दूसरा था, अब 1991 के जनगणना से प्राप्त आकड़ों के अनुसार इस राज्य का जनसंख्या घनत्व के दृष्टिकोण से स्थान पहला हो गया है।

v. बड़े परिवार – भारत में बहुसंख्यक आबादी कृषकों एवं गरीब लोगों की हैं। अतः उनका जीवन-स्तर निम्न कोटि का है। अंतः लोग यह सोचते हैं की जितने अधिक हाथ होंगे आय के स्रोत उतने ही अधिक होंगे, अत: वे अधिक बच्चे पैदा होने से घबड़ाते नहीं अपितु खुश होते है।

vi. सामाजिक रीति रिवाज – भारत में ऐसी सामाजिक मान्यता हैं कि बिना पुत्र के मोक्ष नहीं मिलता, अतः प्रत्येक व्यक्ति पुत्र की आकांक्षा करता है।

vii. धर्म द्वारा परिवार नियोजन का विरोध – प्रत्येक धर्म परिवार नियोजन का विरोध करता है। भारत के लोग धर्म के प्रति अंधे होते हैं, अतः परिवार नियोजन एक पाप माना जाता है।

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प्रश्न 56.
भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर के स्वरूप का वर्णन करों।
उत्तर :
भारत में परिवर्तित जनसंख्या वृद्धि दर के आधार पर वर्तमान शताब्दी को तीन भागों में विभाजित किया जा संकता हैं – i. सन् 1901 – 1921 ii. 1921 – 1951 iii. 1951 – 2006
i. सन् 1901 – 1921 : इस काल में उच्च मृत्युदर के कारण जनंसख्या वृद्धि दर स्थिर रही। इन वर्षों में जनसंख्या वृद्धि मात्र 130 लाख हुई। सन् 1918-1919 में महामारियों से कुल जनसंख्या का 5 % समाप्त हो गया।
ii. सन् 1921 – 1951 : इन तीस वर्षों में जनसंख्या वृद्धि लगातार होती रही। इन तीस वर्षों में जनसंख्या की वृद्धि 44 % हुई । दसकीय वृद्धि 1921 – 1931 में 11 % थी जो 1931 – 41 में 14.2 % तथा 1941-1951 में 13.3 % थी।
iii. सन् 1951-2001: इस काल को स्वतंत्रता के बाद का प्रारंभिक दौर माना जाता है। इस दौरान जनसंख्या वृद्धि 660 मिलियन हुई जो 1951 के स्तर से 284 % बढ़ी। इस दौरान 1961 – 1971 के बीच दसकीय वृद्धि दर सर्वाधिक 24.8 % रही। इसके बाद दसकीय वृद्धि दर 2001 में 21.3 % हो गयी।

प्रश्न 57.
हिमाचल प्रदेश की जनसंख्या विरल क्यों है ?
उत्तर :
हिमाचल प्रदेश की विरल ज़नसंख्या के कारण निम्नलिखित हैं –
i. कृषि कार्य के लिए अनुपयुक्त भूमि – हिमाचल प्रदेश एक पर्वतीय प्रदेश है, अतः समतल कृषि योग्य भूमि का आभाव है। यहाँ जीवन यापन के लिए कृषि नहीं हो सकती जो आदर्श जनसंख्या के लिए आवश्यक है।

ii. विषम जलवायु – अत्यधिक ऊँचाई के कारण सम्पूर्ण प्रदेश में कठोर ठण्डक पड़ती है, अतः यहाँ पर कम लोग ही रहते हैं। अनेक स्थान तो निवास के लिए पुर्णत: अनुपयुक्त है।

iii. उद्योग धंधों एवं यातायात का अभाव – धरातल की बनावट, जलवायु के विषम होने के कारण यहाँ यातायात का आभाव है, कच्चे माल की आपूर्ति में असुविधा के कारण यहाँ उद्योग धन्धों का भी विकास नहीं हुआ है।

प्रश्न 58.
पश्चिम बंगाल में जनसंख्या के उच्च घनत्व का कारण बताओ।
उत्तर :
पश्चिम बंगाल भारत का सबसे अधिक जनघनत्व वाला राज्य है। यहाँ पर प्रति वर्ग कि॰मी० 904 व्यक्ति निवास करते हैं। यहाँ पर घनी जनसंख्या के निम्नलिखित कारण हैं –
i. समतल एवं उपजाऊ भूमि – पश्चिम बंगाल का अधिकांश भाग का निर्माण गंगा एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा लायी गई मिट्टी से हुआ है, अत: भूमि समतल है और मिट्टी उपजाऊ हैं। यहाँ पर वर्ष में दो -तीन फसलों की कृषि होती है।
ii. पर्याप्त वर्षा एवं सिंचाई की सुविधा – यहाँ पर पर्याप्त वर्षा होती है तथा नहरों द्वारा सिंचाई की व्यवस्था है। वर्षा एवं सिंचाई की सुविधा के कारण यहाँ धान की कृषि अधिक होती है जो अधिक लोगों का पोषण करने में समर्थ है।
iii. उद्योग-धन्धों का विकास – पश्चिम बंगाल में बहुत पहले से उद्योगों का विकास हुआ है, अतः अन्य प्रदेशों से आकर लोग यहाँ बस गये हैं।
iv. यातायात की सुविधा – समतल भूभाग एवं नदियों की अधिकता के कारण यहाँ स्थल एवं जल मार्ग का विकास हुआ है, अत: उद्योगों का विकास हुआ है और यहाँ जनसंख्या अधिक हैं।
v. व्यापार का केन्द्र – कोलकाता एवं आसपास का क्षेत्र व्यापार का केन्द्र है और अत: यहाँ पर लोग व्यापार के लिए आते हैं।
vi. शिक्षा एवं संस्कृति के केन्द्र – पश्चिम बंगाल आदि काल से शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी रहा है, अतः यहाँ पर शिक्षा ग्रहण करने लोग आते हैं।
vii. शरणार्थियों का आगमन – देश के विभाजन के कारण बहुत से लोग बंगलादेश से यहाँ आकर बस गये। आज भी शरणार्थियों का आगमन जारी है, अत: पश्चिम बंगाल में जनघनत्व अधिक है।

प्रश्न 59.
महत्व की दृष्टि से भारतीय सड़कों को कितने भागों में विभाजित किया गया है ?
उत्तर :
महत्व की दृष्टि से भारत की सड़कों को निम्नलिखित पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है –
राष्ट्रीय राजमार्ग (National Highway) : ये राजमार्ग देश की चौड़ाई एवं लम्बाई के अनुसार बिछाए गए हैं। ये राज्यों की राजधानियों, बंदरगाहों, औद्योगिक एवं खनन क्षेत्रों तथा राष्ट्रीय महत्व के शहरों एवं कस्वों को जोड़ते हैं। इनकी देखभाल की जिम्मेदारी केन्द्रीय सार्वजनिक निर्माण विभाग पर है। वर्तमान समय में देश में राष्ट्रीय राजमार्गो को संख्या 221 हैं तथा इनकी कुल लम्बाई 66,631 किलोमीटर है। राष्ट्रीय राजमार्ग 7 (2369 कि॰मी॰) देश का सबसे लम्बा राजमार्ग है जो वाराणसी को कन्याकुमारी से जोड़ता है।

प्रांतीय राजमार्ग (State Highways) : राज्य के भीतर व्यापारिक एवं सदारी यातायात का मुख्य आधार प्रांतीय राज्यमार्ग हैं। ये राज्य के सभी कस्वों को राज्य की राजधानी, सभी जिला मुख्यालयों, राज्य के महत्वपूर्ण स्थलों तथा राष्ट्रीय राजमार्गों से संलग्न क्षेत्रों के साथ जोड़ते हैं। इनके निर्माण एवं देखभाल की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है।

जिला की सड़के (District Roads) : ये सड़कें गाँवों एवं कस्वों को एक-दूसरे से तथा जिला मुख्यालय से जोड़ती हैं। इनके निर्माण एवं रख-रखाव की जिम्मेदारी जिला परिषदों की होती हैं।

ग्रामीण सड़कें (Village Roads) : विभिन्न गाँवों को आपस में जोड़ने के साथ-साथ ये जिला सड़को से जोड़ती है। ये प्राय: सँकरी होती है एवं भारी वाहन यातायात के अनुपयुक्त होती हैं।

सीमा सड़कें : इन सड़कों का निर्माण सीमा सड़क संगठन द्वारा किया जाता है। सीमा सड़क संगठन वोर्डों की स्थापना 1960 ई० में की गई थी। इसका उद्देश्य जंगली, पर्वतीय एवं मरुस्थलीय क्षेत्रों में आर्थिक विकास को गीत देने तथा देश की सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ रखने के लिए सीमावर्ती इलाकों तथा दुर्गम क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण एवं देखरेख हैं।

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प्रश्न 60.
भारत में रेल परिवहन के महत्व का वर्णन कीजिए ?
उत्तर :
रेल परिवहन का महत्व : रेल परिवहन का महत्व एवं योगदान निम्नलिखित है –
i. सवारी एवं माल के महत्वपूर्ण अनुपात का परिवहन – भारतीय रेल सड़क परिवहन के साथ कड़ी प्रतियोगिता का सामना करते हुए भी सवारी एवं सामग्री के एक महत्वपूर्ण अनुपात का परिवहन करती है।
ii. उपयोगयी वस्तुओं के परिवहन में महत्वपूर्ण भूमिका – भारतीय रेल द्वारा कोयला, लौह-इसात, खनिज तेल, खाद्यान्न, सीमेन्ट, उर्वरक, इमारती पत्थर, धातु अयस्क आदि उपयोगी वस्तुओं के यातायात का लगभग 80 % पूरा किया जाता है।
iii. कृषि एवं उद्योग के विस्तार एवं विकास में सहायक – रेल परिवहन द्वारा कृषि एवं उद्योग के विस्तार एवं विकास में काफी सहायता मिलती है। रेलवे कच्चे माल, मशीनरी, तैयार माल, श्रमिक एवं ईंधन का परिवहन सम्बंधित स्थानों पर करके बाजार के एकीकरण में सहायता करती है, जिससे कृषि एवं उद्योग के विकास एवं विस्तार तथा व्यापारिक गतिविधियों में तीव्रता हुई है।
iv. आबादीग्रस्त क्षेत्रों में अनिवार्य वस्तुओं की तीव्रगति से पूर्ति – रेलवे सूखा तथा अन्य आपदाओं से ग्रस्त क्षेत्रों में अनिवार्य वस्तुओं की तीव्रगति से आपूर्ति करके इनके नियंत्रण में सहायक होती है।

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v. राष्ट्रीय एकीकरण को मजबूत करना – रेलवे देश के विभिन्न भागों को एक-दूसरे से जोड़ने का काम करती है। इस प्रकार यह राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया को मजबूती प्रदान करने का काम करती है।

प्रश्न 61.
सड़क परिवहन के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
सड़क परिवहन का महत्व : हमारे देश में सड़क परिवहन के महत्व को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है –
i. महत्वपूर्ण स्थल परिवहन – सड़क परिवहन स्थल परिवहन का मुख्य साधन है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहाँ सवारी यातायात का लगभग 83 % तथा माल यातायात का लगभग 60 % सड़क परिवहन के द्वारा ही सम्पन्न होता है।
ii. छोटी एवं मध्यम दूरी का महत्वपूर्ण साधन – यह छोटी एवं मध्यम दूरी तय करने का महत्वपूर्ण साधन है। यह विश्वसनीय एवं लचीला साधन है जो घर-घर जाकर सेवाएँ उपलब्ध कर सकता है। शीघ्र नष्ट होने वाले खाद्य पदार्थों को शीघ्र बाजार तक पहुँचाने में सड़क परिवहन सबसे महत्वपूर्ण है।
iii. सुदूरवर्ती क्षेत्रों को देश की मुख्य धारा से जोड़ना – सड़क परिवहन सुदूरवर्ती पर्वतीय, मरुस्थलीय तथा पिछड़े क्षेत्रों को देश की मुख्य धारा से जोड़ता है। इसके साथ ही साथ यह गाँवों को बाजारों, कस्वों, प्रशासनिक एवं सांस्कृतिक केन्द्रों से जोड़ कर सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक गतिशीलता में वृद्धि करता है।
iv. देश की आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा में सहायक – सशस्त्र सैन्य एवं पुलिस बल को समय पर यथास्थान पहुँचाने में सड़क मार्ग की ही सहायता ली जाती है। इस प्रकार यह देश की आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा में सहायक हैं।
v. औद्योगिक विकास में सहायक – कच्चे माल को औद्योगिक केन्द्रों तक पहुँचाने तथा तैयार माल को बाजार तक भेजने में सड़के मुख्य भूमिका निभाकर औद्योगिक विकास में सहायक सिद्ध होती है।
vi. बेरोजगारी के निवारण में सहायक – श्रम की गतिशीलता में बृद्धि करके सड़के बेरोजगारी के निवारण में सहायक सिद्ध होती हैं । सड़क मार्ग से श्रमिक रोजगार के अवसर वाले स्थानों पर शीघ्र पहुँचकर रोजगार प्राप्त करते हैं, जिससे उनकी बेरोजगारी की समस्या हल होती है।

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प्रश्न 62.
भारत की आंतरिक जल परिवहन एवं समुद्री जल परिवहन का विवरण दीजिए।
उत्तर :
आन्तरिक जल परिवहन : भारत की आतरिक जल परिवहन अवस्था 14500 कि॰मी॰ लम्बी है। यहाँ मुख्य नदियों की 3700 कि॰मी॰ लम्बाई में यांत्रिक जलयानों का संचालन हो सकता है। परन्तु 2000 कि॰मी॰ का ही प्रयोग होता है। भारत की कुल नहर लम्बाई ( 4500 कि॰मी०) का 900 कि॰मी॰ ही नौका संचालन के योग्य है, परन्तु मात्र 300 कि०मी० का ही उपयोग होता है । इस प्रकार आंतरिक जल परिवहन का देश के कुल परिवहन में मात्र 0: 15 प्रतिशत का योगदान है। भारत में आंतरिक जल परिवहन के विकास के लिए केन्द्रीय अन्तःदेशीय जल परिवहन बोर्ड की स्थापना नई दिल्ली में की गई है।
प्रमुख आंतरिक जलमार्ग –
i. एन डब्लु – 1 : इलाहाबाद से हल्दिया तक 1620 कि॰मी० लम्बी गंगा नदी प्रणाली राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या – 1 ।
ii. एन डब्लु – 2 : सदियों से धुबरी तक 891 कि॰मी० लम्बी बहमपतुत्र नदी राष्ट्रीय जल्मार्ग संख्या – 2
iii. एन डब्लु – 3 : पश्चिम तट पर केरल में (नहरों से होकर) इसकी कुल लम्बाई 168 कि०मी०। इसे जलमार्ग संख्या 3 घोषित किया गया है।

समुद्री जल परिवहन : समुद्री जल मार्य की दृष्टि से भारत की स्थिति अनुकूल है। देश का लगभग 99 प्रतिशत व्यापार समुद्री मार्ग से होता है। विकासशील देशों में भारत के पास व्यापारिक जहाजों का सबसे बड़ा बेड़ा है तथा व्यापारिक जहाजरानी बेड़े की दृष्टि से विश्व में 17 वाँ स्थान है। भारतीय जलयान विश्व के सभी समुद्री मार्गों पर चलते है। देश में लगभग 140 जहाजरानी कम्पनियाँ हैं जिनमें से दो सार्वजनिक क्षेत्र में है। भारतीय जहाज रानी निगम देश की सबसे महत्वपूर्ण जहाजी इकाई है जिसके पास लगभग 79 जलपोतों का बेड़ा है। भारत के 7516 कि०मी० लम्बे समुद्र तट पर 12 बड़े एवं 187 छोटे व मझोले बन्दरगाह हैं। बड़े बन्दरगाहों के प्रबन्ध एवं विकास की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की है। जबकि अन्य बन्दरगाहों का प्रबन्धन संबद्ध राज्य सरकार करती है।

प्रश्न 63.
भारत में प्रचलित संचार व्यवस्था का विवरण दीजिए।
उत्तर :
संचार द्वारा संदेश तथा विचार एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाए जाते हैं। आधुनिक विश्व में संचार तकनीक के विकास के बिना अपेक्षित आर्थिक विकास को प्राप्त करना असम्भव है। संचार व्यवस्था के अन्तर्गत डाक, दूर संचार, रेडियो प्रसारण, टेलीफोन, टेलीविजन, सेल फोन, फैक्स तथा इंटरनेट सेवाओं को सम्मिलित किया जा सकता है। संचार तकनीक के विकास से समय और स्थान की सभी बाधाएँ दूर हो गयी हो तथा पूरा संसार एक वैश्विक ग्राम में बदल गया है।

वर्तमान समय में भारत विश्व के बड़े दूर संचार तंत्रों का संचालन करने वाले देशों में से एक है। परम्परागत दूर संचार के माध्यमों जैसे डाक सेवा, कुरियर सेवा, रेडियो प्रसारण, टेलीफोन का महत्व तो सार्वजनिक दूर संचार के लिए ही है परन्तु व्यक्तिगत दूर संचार के माध्यम के रूप में सेलफोन तथा इंटरनेट का प्रयोग बहुत अधिक बढ़ गया है। ऐसा नहीं है कि इनका प्रयोग सार्वाधिक दूर संचार के लिए नहीं किया जाता है।

भारत में टेलीग्राम और टेलीफोन आविष्कार के तुरन्त बाद दूर संचार आरम्भ हो गई थी। पहली टेलीग्राफ 1851 ई० में तथा टेलीफोन सेवा 1881 ई० में कोलकाता में आरम्भ हुई। स्वतन्त्रता के समय भारत में टेलीफोन एक्सचेंज की संख्या 300 थी जिनकी संख्या सन् 2006 तक 37903 हो गयी। 31 मार्च 2006 तक भारत में दूर संचार नेटवर्क के अन्तर्गत 14.20 करोड़ टेलीफोन कनेक्शन तथा 23.40 लाख सार्वजनिक टेलिफोन थे। उस समय तक देश में सेलफोन उपभोक्ताओं की संख्या 6.92 करोड़ थी जिसमें निस्तर वृद्धि होती ही जा रही है।

प्रश्न 64.
भारत के पश्चिमी तट पर स्थित प्रमुख बन्दरगाह का विस्तृत वर्णन करें।
उत्तर :
पश्चिमी तट पर स्थित प्रमुख बन्दरगाह :
i. मुम्बई बंदरगाह – सालसट द्वीप पर स्थित मुम्बई बन्दरगाह भारत का सबसे बड़ा बन्दरगाह है। भारत में सभी बन्दरगाहों से होने वाले कुल व्यापार का 20 % से भी अधिक व्यापार इसी बन्दरगाह से होता है। इसका पोताश्रय प्राकृतिक है।
ii. न्हावाशेवा या न्यू मुम्बई बन्दरगाह – मुम्बई के निकट ही न्हावाशेवा बन्दरगाह की स्थापना की गयी है। इसे जवाहरलाल नेहरू पत्तन के नाम से जाना जाता है। यह भारत का आधुनिक बन्दरगाह है, यहाँ कम्यूटर नियंत्रित तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
iii. काण्डला बन्दरगाह – देश विभाजन के बाद करांची बन्दरगाह के पाकिस्तान में चले जाने के कारण इस बंदरगाह का विकास किया गया है। यह एक ज्वारी बन्दरगाह है तथा इसका पोताश्रय प्राकृतिक है। यह एक नि:शुल्क बन्दरगा है।
iv. मर्मुगांव – ग्रीष्म तट पर स्थित यह पश्चिमी तट का प्रमुख बंदरगाह है। इसका पोताश्रय प्राकृतिक है। इस बंदरगाह से आयात की तुलना में निर्यात अधिक होता है।
v. न्यू मैंगलोर – पश्चिमी तट पर स्थित यह कर्नाटक का प्रमुख बंदरगाह है। इस बंदरगाह से लौह-अयस्क के निर्यात की सुविधा विशेष रूप से उपलब्ध कराई गयी है।
vi. कोचीन – यह केरल तट का मुख्य प्राकृतिक बंदरगाह है । पालघाट दर्रे से होकर बनाए गए रेलमार्ग द्वारा यह दक्षिण भारत के भितरी भागों से जुड़ा हुआ है।

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प्रश्न 65.
भारत के पूर्वी तट पर स्थित प्रमुख बन्दरगाह का संक्षिप्त वर्णन करें ।
उत्तर :
पूर्वी तट पर स्थित प्रमुख बंदरगाह –
कोलकाता – हुगली नदी के बाएं तट मुहाने से 129 कि०मी० दूर पर स्थित यह एक नदी बंदरगाह है। यह भारत का ही नहीं बल्कि एशिया का प्रमुख बंदरगाह रहा है। हुगली नदी में अवसादों के जमाव के कारण 64 कि॰मी॰ दूर खुली खाड़ी में डायमण्ड पोताश्रय का निर्माण किया गया है। यहाँ से विविध वस्तुओं का आयात-निर्यात होता है।
हल्दिया – इसका निर्माण हुगली नदी के ठीक मुहाने पर कोलकाता बंदरगाह के सहायक बंदरगाह के रूप में किया गया है। बड़े जलयान जो कोलकाता तक नहीं पहुँच पाते, वे यहीं आते हैं।
चेत्रई – यह पूर्वी तट का सबसे पुराना एवं कृत्रिम बंदरगाह है।
विशाखापत्तनम – यह देश का सबसे गहरा बंदरगाह है। इसका पोताश्रय प्राकृतिक है। डालफिननोज नामक पहाड़ी भाग के उभार के फलस्वरूप इसका पोताश्रय एक सुरक्षित पोताश्रय है।
पाराद्वीप – उड़ीसा तट पर स्थित यह एक कृत्रिम बंदरगाह है।
तूतीकोरिन – यह मन्नार की खाड़ी में स्थित है। जल की गहराई अधिक होने से यहाँ बड़े जलयान सरलता से आवागमन करते हैं।

प्रश्न 66.
परिवहन व्यवस्था में सड़क मार्गों के लाभ लिखिए।
अथवा
सड़क परिवहनों की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
सड़क-मार्गों के लाभ – सड़क से हमें निम्नलिखित लाभ होते हैं-

  1. सड़को द्वारा कृषि उत्पादों की बिक्री के स्थाई बाजार उपलब्ध होने लगे और वस्तुओं की कीमते बड़े-बड़े क्षेत्रों में एकसमान होने लगी।
  2. सड़कों के विकास से औद्योगिक विकास को बड़ी सहायता मिलती है क्योंकि सड़कों द्वारा उद्योगों के लिए कच्चे तथा निर्मित माल का परिवहन सुगम हो जाता है।
  3. सामान तथा यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक सड़कों द्वारा आसानी से पहुँचाया जा सकता है।
  4. छोटी दूरी के लिए सड़क यातायात अत्यन्त सुविधाजनक है।
  5. सड़क यातायात में समान को बार-बार उतारना तथा चढ़ाना नहीं पड़ता।
  6. सड़क यातायात द्वारा सामान को उत्पादक के द्वार से उपभोक्ता के द्वार तक प्रहँचाया जा सकता है, जो रेलों द्वारा सम्भव नहीं है।
  7. सड़क दुर्गम पहाड़ी तथा बृहद् क्षेत्रों में भी बनाई जा सकती है। ऐसे क्षेत्रों में रेलों और जलमार्गों का पहुँचाना लगभग असम्भव होता है।

प्रश्न 67.
वायु परिवहन की क्या विशेषता है ?
अथवा
वायु परिवहन के क्या लाभ हैं ?
उत्तर :
वायु परिवहन की विशेषताएँ –

  1. यह परिवहन का सबसे तीव्र तथा सबसे महँगा साधन है।
  2. इसमें भारी तथा सस्ती वस्तुएँ नहीं ढोयी जा सकती।
  3. यह हल्की, कीमती तथा जल्दी खराब होने वाली वस्तुयों को ढोने का सबसे अच्छा साधन है।
  4. प्राकृतिक विपदाओं में फँसे हुए लोगों को दवाइयाँ, भोजन तथा अन्य आवश्यक वस्तुएँ पहुँचाने के लिए वायुयानों का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है।
  5. युद्ध में वायु परिवहन किसी भी देश की सबसे बड़ी शक्ति मानी जाती है।
  6. पहाड़ी इलाकों में यह परिवहन बहुल लाभकारी है क्योंकि वहाँ पर रेल व सड़कें नहीं बनाई जा सकती।

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प्रश्न 68.
वायु परिवहन के क्या दोष हैं ?
उत्तर :
वायु परिवहन के दोष –

  1. यह परिवहन का सबसे महँगा साधन है। अत: इसका लाभ केवल धनी लोग ही उठा पाते हैं।
  2. वायु परिवहन में सुरक्षा सम्बंधी कई समस्याएँ सामने आती है।
  3. खराब मौसम में वायु-सेवा उपलब्ध नहीं होती।
  4. विभिन्न प्रकार की बिमारियों एवं मच्छर व कीड़े-मकोड़े अनजाने में ही वायुयानो द्वारा एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पहुँच जाते हैं।
  5. वायुयानी की दुर्घटनाएं एवं अपहरण जैसी समस्याएँ कई बार भयकर रूप धारण कर लेती है।

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प्रश्न 69.
पाइप लाइन परिवहन के चार गुण और चार अवगुण लिखिए।
उत्तर :
पाइप लाइन परिवहन के गुण –

  1. पाइपलाइनों को कठिन, ऊबड़-खाबड़ भू-भागों तथा पानी के नीचे भी विछाया जा सकता है।
  2. प्रारम्भ में इसके बिछाने में अधिक धन खर्च होता है, परन्तु बाद में इन्हें चालू रखने तथा इनके रख-रखाव में कम खर्चा होता है।
  3. पाइपलाइनें पदार्थों की निरंतर आपूर्ति निश्चित करती है।
  4. इनके द्वारा परिवहन में न तो समय नष्ट होता है और न ही किसी प्रकार की बर्बादी होती है।
  5. इसमें बहुत कम ऊर्जा खर्च होती है।
  6. यह परिवहन का तीव्र, सस्ता, सक्षम तथा पर्यावरण हितैषी है।

पाइप लाइन परिवहन के दोष –

  1. पाइपलाइनों में कई कोच नहीं होती।
  2. एक बार बनाने के बाद इसकी क्षमता को न तो घटाया जा सकता और न ही बढ़ाया जा सकता है।
  3. कुछ इलकों में इनकी सुरक्षा की व्यवस्था करना कठिन है।
  4. पाइपलाइनों में रिसाव का पता लगाना भी एक बड़ी समस्या है।
  5. कहीं पर पाइपलाइनों के फट जाने से उसकी मरम्मत करना कठिन है।

प्रश्न 70.
पाइप लाइन तरल पदार्थों एवं गैसों के परिवहन का सर्वोत्तम साधन है – व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
पाइप लाइन : भारत के परिवहन मानचित्र पर पाइपलाइन एक नया परिवहन का साधन है। पहले शहरों व उद्योगों में पानी पहुँचाने के लिए पाइपलाइन का इस्तेमाल होता था। आज इसका इस्तेमाल कच्चा तेल, पेट्रोल उत्पाद तथा तेल से प्राप्त प्राकृतिक तथा गैस क्षेत्र से उपलब्ध गैस शोधनशालाओं, उर्वकर कारखानों व बड़े ताप विद्युत गृहों तक पहुँचाने में किया जाता है। गैस पदार्थों को तरल अवस्था में परिवर्तित कर पाइपलाइनों द्वारा ले जाया जाता है। सुदूर आंतरिक भागों में स्थित शोधनशालाएं जैसे बरौनी, मधुरा, पानीपत तथा गैस पर आधारित उवर्रक कारखानों की स्थापना पाइपलाइनों के जाल की वजह से ही संभव हो गई है। परिवहन के लिए पाइपलाइनों को बिछाने में समय यद्यपि अधिक मात्रा में धन को खर्च करना पड़ता है तथापि उसके पश्चात इसके रख-रखाव में बहुत कम लागत वहन करना पड़ता है।

प्रश्न 71.
सड़क परिवहन, परिवहन का एक सर्वोत्तम साधन है – व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
स्थलीय यातायात के साधनों में सड़क-मार्ग सबसे पुराना तथा सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला साधन है। प्राचीन काल में पगडण्डिया एवं कच्ची सड़कों का प्रयोग किया जाता था। इन मार्गों पर मनुष्य तथा पशुओं द्वारा भार ढोया जाता था। पहिए के आविष्कार के बाद इन मार्गों पर बैलगाड़ी, ऊँटगाड़ी तथा घोड़ागाड़ी आदि चलने लगी। 19 वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में मोटरगाड़ी के बनने से सड़कों के निर्माण में एक नया युग शुरू हुआ। आज विश्व के सभी भागों में सड़कों का निर्माण तथा प्रयोग किया जा रहा है।

प्रश्न 72.
भारत के आर्थिक विकास में सड़कों की भूमिका का वर्णन किजिए। अथवा, परिवहन का महत्व समझाइए।
उत्तर :
आधुनिक युग के आर्थिक विकास में परिवहन में साधनों की भूमिका का विवरण निम्नांकित है –
स्थान उपयोगिता का सृजन (Creation of place validity) : वस्तुओं को उत्पादन स्थल से उपभोक्ता क्षेत्र तक पहुँचाने का काम यातायात के साधनों द्वारा किया जाता है। उत्पन्न मालों को ग्राहकों तक पहुँचाना, उत्पादन व्यवस्था का मुख्य कार्य है। पहले एक स्थान की उत्पादित वस्तु अधिक दूरी तक नहीं पहुँच पाती थी, किन्तु इस समय यातायात एवं परिवहन के तीवगामी साधनों के विकास के कारण एक जगह की उत्पादित वस्तु बहुत दूर-दूर तक बड़ी आसानी से पहुँच जाती है।

विशिष्टीकरण में सहायक (Helpful in specialization) : परिवहन के साधनों के विकास के साथ-साथ श्रम एवं पूँजी के उपभोग में भी वृद्धि हुई है। पहले एक स्थान की वस्तुएं दूसरे स्थान तक बहुत कम मात्रा में पहुँच पाती थी। आजकल एक स्थान की उत्पादित वस्तुएं सर्व सुलभ होती है। जिनका उत्पादन सरलतापूर्वक और बड़े पैमाने पर किया जा सकता है। अरिरिक्त वस्तुओं को उन भागों में भेज दिया जाता है जहाँ इसका उत्पादन कम होता है।

बड़े पैमाने पर उत्पादन (Large production) : यातायात के साधनों का विकास बड़े पैमानें पर उत्पादन के लिए उत्तरदायी है। आज विश्व के विभिन्न भागों में उत्पादित कच्चे मालों का औद्योगिक संस्थानों द्वारा सदुपयोग हो रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में क्रान्तिकारी विकास का मूल कारण यातायात का विकास है और इसके परिणामस्वरूप आर्थिक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर उत्पादन को बल मिला है।

प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग (Utilisation of Natural Resources) : प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के लिए यातायात के साधनों का विकास जरूरी होता है। ये संसाधन सर्वत्र समान रूप से नहीं पाए जाते हैं। जैसे चाय और रबड़ का उत्पादन कुछ विशिष्ट प्रदेशों में ही होता है किन्तु इसका व्यापार पूरे विश्व में हो रहा है । यातायात के साधनों के विकास के अभाव में इस प्राकृतिक सम्पदा का उपयोग नहीं हो पाता है।

मूल्यों में समानता और स्थिरीकरण (Stabilisation and Equalisation of Price) : आज यातायात के साधनों के विकास के कारण लम्बी दूरियों को कम से कम समय में पूरा किया जा सकता है। अधिकांश वस्तुएँ आज अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में सुगमतापूर्वक पहुँच रही हैं। इस क्षेत्र में जहाँ एक प्रतियोगिता की प्रवृत्ति पनप रही है, वहीं दूसरी ओर मूल्य में स्थिरता और समानता बनाए रखने में सफलता मिली है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5B भारत : कृषि, उद्योग, जनसंख्या, परिवहन एवं संचार पद्धति

प्रश्न 73.
पूर्वी भारत में लौह इस्पात उद्योग की स्थापना क्यों हुई है ?
उत्तर :
भारत के पूर्वी भाग में इस्पात उद्योग की स्थापना के कारण – भारत के पूर्वी भाग में पश्चिम बंगाल में दुर्गापुर एवं कुल्टी-वर्नकर तथा झारखण्ड के बोकारों तथा उड़ीसा के राउकेला में लौह स्पात उद्योग की स्थापना के प्रमुख कारण कारण है।
1. लौह अयस्क की सुविधा – लौह अयस्क झारखण्ड के सिंहभूम जिलें तथा उड़ीसा के मयूरभंज एवं क्योझार की खानों से प्राप्त होता है।
2. कोयला की सुविधा कोयला रानीगंज, झरिया तथा बोकारो की खानों से प्राप्त होता है, जो गाड़ियाँ झारखण्ड तथा पश्चिम बंगाल से कोयला राउरकेला को ले जाती है। वही लौह अयस्क दुर्गापुर तथा कुल्टी वर्नपुर के लिए लाती है। दुर्गापुर, जमशेदपुर तथा बोकारो कोयला क्षेत्र में ही पड़ते है। अतः इन कारखानों को कोयला प्राप्ति की सुविधा है।
3. अन्य कच्चे मालो की सुविधा – कोयला और लौह अयस्क के अतिरिक्त चूना पत्थर गंगापुर, वीरमित्रापुर तथा हाथी बाड़ी से , मैगनीज, डोलोमाइट उड़ीसा के वीरमित्रापुर क्षेत्रों से तथा पास के क्षेत्रों से ताप प्रतिरोधक इटे मिलती हैं। इस प्रकार अन्य खनिज इस क्षेत्र में ही मिलते हैं।
4. जल की प्राप्ति – पूर्वी भाग में अनेक छोटी-छोटी नदियाँ है। अत : दुर्गापुर कारखाने को जल दुर्गापुर बैरेंज से, राउरकेला को बहाणी नदी में जल मिल जाता है।
5. सस्ते श्रमिक – घनी जनसंख्या के कारण इस क्षेत्र में मजदूर आसानी से मिल जाते हैं।
6. पठारी भाग – भारत के पूर्वी भाग में छोटा नागपुर के इस क्षेत्र की भूमि पठारी है, जो कृषि के अनुपयुक्त है। अंतः उद्योगों की स्थापना के लिए पर्याप्त अनुपजाऊ भूमि है।
7. कलकत्ता बन्दरगाह की सुविधा – इस क्षेत्र में कलकत्ता बन्दरगाह है। जहाँ से मशीनों को मगाने एवं माल को विदेशों में भेजने में सुविधा होती है।
8. विस्तृत बाजार – यह क्षेत्र घनी जनसंख्या का क्षेत्र हैं, अतः लौह इसात का विस्तृत क्षेत्र है।

प्रश्न 74.
पश्चिमी भारत में सूती वस्त्रोद्योग की स्थापना क्यों हुई हैं?
उत्तर :
पश्चिमी भारत में सूती वस्त्रोद्योग की स्थापना के निम्नलिखित कारण है –
(a) कच्चे माला की सुविधा (Facility of raw Material) : सूती वस्त के लिए अर्द्ध जलवायु चाहिए जिससे धागे जल्दी-जल्दी न दूटें और महीन तथा अधिक लम्बे रहों समुद्र के किनारें और द्र० पथ्विमी समुद्री हवाओं के प्रवाह क्षेत्र में स्थित के कारण यहाँ वर्ष भर वायुमण्डल में नमी रहती है। यहाँ की मिट्टी काली है जिसमें कपास की कृषि होती है।
(b) शक्ति के साधन की सुविधा (Power) इस उद्योग की स्थापना के प्रारम्भिक काल में शक्ति के साधनों के अभाव जरूर रहा, किन्तु कोयले की प्राप्ति (सन् 1915 से पहले) इसें द- अफ्रिका से सुविधापूर्वक हो जाती थी। अब तो यहाँ की मिलो के लिए पश्चिमी के पर्वतीय क्षेत्र से जल विद्युत की प्राप्ति होती है।
(c) सस्ते मजदूर (Cheap Labour) बम्बई के निकटवर्ती क्षेत्रों से मजदूर कोकण, सतारा तथा शोलापुर के जिलों से आते है। मध्यपदेश से भी मजदूर यहाँ काम के लिये आते हैं। किन्तु यहाँ जीवत स्तर ऊँचा होने के कारण पाश्चिमिक अधिक पड़ता हैं।
(d) बन्दरगाह की सुविधा (Port Facility) सूती वस्त्र – उद्योग की मशीनों का निर्माण विदेशों में ही होता था, अतः उन्हे आयात करने के लिए भारत का सबसे उत्तम बन्दरगाह इस उद्योग को मिला। बम्बई यूरोप से भारत आनेवाले जहाजों के लिए सबसे पहला बन्दरगाह था।
(e) विस्तृत बाजार एवं यातायात के साधनों की सुविधा (Market) : बम्बई के इस उद्योग के लिए भारत को विशाल बाजार की सुविधा। प्राप्त थी। देश के सम्पूर्ण भागों से रेलमार्ग एवं सड़क मार्ग द्वारा सम्बन्धित होने के कारण यह निर्मित माल के पूर्ण विस्तार भी सक्षम था। आज की बम्बई की मिलों में बने कपड़े भारत के प्रत्येक्र भाग में प्रयूक्त होते हैं।

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प्रश्न 75.
भारत के चाय उत्पादन में विभित्र राज्यों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
चाय उत्पादन के प्रमुख दो क्षेत्र में – (a) उत्तरी पूर्वी और पूर्वी भारत (b) दक्षिणी भारत।
(a) उत्तरी पूर्वी एवं पूर्वी भारत : इस क्षेत्र के अंतर्गत असम, पश्चिम बंगाल, सिक्किम एवं त्रिपुरा आते है। असम एवं पश्चिम बंगाल कुल चाय उत्पाद का 3 / 4 भाग चाय उत्पन्न करते हैं। असम-असम चाय का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है जो देश की कुल चाय उत्पादन की आधी चाय अकेले उत्पन्न करता है। असम में चाय उत्पादन को दो प्रमुख क्षेत्र है – (क) असम घाटी (ख) कछार असम घाटी तथा त्रह्मपुत्र घाटी असम की कुल चाय की 90 % चाय उत्पन्न करते हैं। प्रमुख चाय उत्पादन क्षेत्र में ऊपरी बह्मपुत्र घाटी के जिले लखीमपुर, शिवसागर और दरंग। निचली ब्रह्मपुत्र घाटी के चाय उत्पादक जिले में, बवगंव, कामरूप और ग्वाल पाढ़ा। कछार में सूरमा घाटी प्रमुख चाय उत्पादक क्षेत्र है। यहाँ चाय उत्पादन की प्रमुख सुविधायें हैं – अधिक वर्षा, उच्च तापक्रम एवं उपयुक्त मिट्टी। असम में चाय उत्पादन वहां के लोगों की आर्थिक स्थिति तथा रोजगार का आधार हैं।

पश्चिम बंगाल – यह चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक प्रान्त है जो कुल चाय का 1 / g भाग चाय उत्पन्न करता है। पश्चिम बंगाल के चाय उत्पादक जिले हैं जलपाईगुडी, कूचबिहार एवं दार्जिलिंग। जलवाईगुड़ी एवं कूचबिहार में चाय का प्रति एकड़ उत्पादन अधिक है, पर गुणवत्ता के दृष्टिकोण से यहाँ की चाय उच्चकोटि की हैं। दार्जिलिंग की चाय अपने स्वाद के कारण विश्च विख्यात हैं।

(b) दक्षिण भारत – दक्षिण भारत के तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक देश के कुल उत्पादन की / 4 भाग चाय उत्पादन करते हैं। तमिलनाडु -यह भारत का तीसरा बड़ा चाय उत्पादक राज्य है। यहाँ पर नीलगिरी और अनयमलायी के पहाड़ी ढालों पर चाय की कृषि होती है।
केरल – यहाँ पर मध्य त्रावनकोर एवं कानन देवान्स से चाय की खेती होती है।
कर्नाटक – यहाँ पर मैसूर एवं कोडागू जिलों में चाय की खेती होती है।

(c) अन्य – उपर्युक्त राज्यों के अतिरिक्त हिमांचल प्रदेश के कांगडा और मंडी, उत्तरांचल के देहरादून, झारखण्ड के राँची, सिक्किम एवं त्रिपुरा में चाय की कृषि होती है।

प्रश्न 76.
भारत के पूर्वी तथा मध्य भाग में लौह इस्पात उद्योग के केन्द्रीकरण के कौन से कारक उत्तरदायी हैं?
उत्तर :
भारत के पूर्वी भाग में इस्पात उद्योग की स्थापना के कारम – भारत के पूर्वी भाग में पश्चिम बंगाल में दुर्गापुर एवं कुल्टी-वर्नपुर तथा झारखण्ड के बोकारों तथा उड़ीसा के राउकेला में लौह स्पात उद्योग की स्थापना के प्रमुख कारण है।
i. लौह अयस्क की सुविधा -लौह अयस्क झारखण्ड के सिंहभूम जिलें तथा उड़ीसा के मयूरभंज एवं क्योझार की खानों से प्राप्त होता है।
ii. कोयला की सुविधा – कोयला रानीगंज, झरिया तथा बोकारो की खानों से प्राप्त होता हैं, जो गाड़ियाँ झारखण्ड तथा पश्चिम बंगाल से कोयला राउरकेला को लें जाती है। वही लौह अयस्क टुर्गापुर तथा कुल्टी वर्नपुर के लिए लाती है, दुर्गापुर, जनशेंदपुर तथा बोकारो कोयला क्षेत्र में ही पड़ते हैं। अंत इन कारखानों को कोयला प्राप्ति की सुविधा है,
iii. अन्य कच्चे मालों की सुविधा – कोयला और लौह अयस्क के अतिरिक्त चूना पत्थर गंगापुर, वीरमित्रापुर तथा हाथी बाड़ी से, मैगनीज, डोलोमाइट उड़ीसा के वीरमित्रापुर क्षेत्रों से तथा पास के क्षेत्रों से तापप्रतिरोधक इटे मिलती हैं। इस प्रकार अन्य खनिज इस क्षेत्र में ही मिलते हैं।
iv. जल की प्राप्ती – पूर्वी भाग में अनेक छोटी-छोटी नदियाँ हैं। अंत: दुर्गापुर कारखाने को जल दुर्गापुर बैरेंज सें, राउरकेंला को बाहाणी नदी में जल मिल जाता है।
v. सस्तें श्रमिक – घनी जनसंख्या के कारण इस क्षेत्र में मजदूर आसानी से मिल जाते हैं।
vi. पठारी भाग – भारत के पूर्वी भाग में छोटा नागपुर के इस क्षेत्र की भूमि पठारी है, जो कृषि के अनुपयुक्त है। अत: उद्योगो की स्थापना के लिए पर्याप्त अनुपजाऊ भूमि है।
vii. कलकत्ता बन्दरगाह की सुविधा – इस क्षेत्र में कलकत्ता बन्दरगाह है, जहाँ से मशीनों को मंगाने एवं माल को विदेशों में भेजने में सुविधा होती है।
viii. विस्तृत बाजार – यह क्षेत्र घणी जनसंख्या का क्षेत्र हैं, अतः लौह इस्पात का विस्तृत क्षेत्र है।

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