WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

Detailed explanations in West Bengal Board Class 10 Geography Book Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति offer valuable context and analysis.

WBBSE Class 10 Geography Chapter 5A Question Answer – भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK

प्रश्न 1.
दक्षिण भारत की सबसे लम्बी नदी का नाम क्या है ?
उत्तर :
गोदावरी।

प्रश्न 2.
भारत के किस वन में शेर पाए जाते हैं ?
उत्तर :
गुजरात के गीर वन में।

प्रश्न 3.
झारखण्ड और पश्चिम बंगाल की संयुक्त बहुद्देशीय नदी योजना का नाम लिखिए।
उत्तर :
दामोदर घाटी योजना।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 4.
भारत का सबसे ऊँचा पर्वत दर्रा कौन है ?
उत्तर :
डुंगरीला या मन्ना-दर्रा।

प्रश्न 5.
संसार का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
सुन्दरवन क्षेत्र या गंगा बह्यपुत्र डेल्टा क्षेत्र

प्रश्न 6.
भारतीय प्रामाणिक मध्याह्नरेखा का मान कितना है ?
उत्तर :
82° 30′ पूरब।

प्रश्न 7.
म्यानमार का प्राचीन नाम क्या है ?
उत्तर :
बर्मा।

प्रश्न 8.
कौन-सी रेखा आठ राज्यों से होकर गुजरती है ?
उत्तर :
कर्क रेखा।

प्रश्न 9.
प्राकृतिक संसाधनों की अधिकता के कारण प्राचीन काल में भारत को क्या कहा गया ?
उत्तर :
सोने की चिड़िया।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 10.
कौन-देश भारत की मत्रार की खाड़ी तथा पाक जल सन्धि से अलग होता है ?
उत्तर :
श्रीलंका।

प्रश्न 11.
किस शहर को भारत का बॉलीवुड कहा गया है ?
उत्तर :
मुम्बई।

प्रश्न 12.
भारत का दिल (Heart of India) किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
नई दिल्ली।

प्रश्न 13.
किन राज्यों को सात बहनो की पहाड़ी (Seven Sister of Hills) कहा जाता है ?
उत्तर :
भारत के पूर्वोतर राज्यों को।

प्रश्न 14.
भारत का सबसे लम्बा हिमनद क्या है ?
उत्तर :
सियाचीन हिमनद।

प्रश्न 15.
हिमालय के प्रसिद्ध हिमनद क्या हैं ?
उत्तर :
गंगोत्री एवं जमुनोत्री।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 16.
नैनीताल किस हिमालय श्रेणी में स्थित है ?
उत्तर :
लघु या मध्य हिमालय श्रेणी में।

प्रश्न 17.
भौगोलिक दृष्टिकोण से भारत को क्या कहा जाता है ?
उत्तर :
उपमहाद्वीप।

प्रश्न 18.
भारत को कब संप्रभुतासम्पन्न गणराज्य घोषित किया गया था ?
उत्तर :
26 जनवरी, 1950 ई० में।

प्रश्न 19.
संविधान के अनुसार भारत के राज्यों को कितने श्रेणियों में रखा गया है ?
उत्तर :
चार।

प्रश्न 20.
सबसे छोटा केन्द्रशासित राज्य है।
उत्तर :
लक्षद्वीप।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 21.
दक्कन ट्रेप का अर्थ क्या है ?
उत्तर :
सीढ़ीनुमा भूमि।

प्रश्न 22.
थार मरूस्थल में ऊँचे कठोर चट्टान के टीले को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
द्वीपगिरी (Insellberge)।

प्रश्न 23.
किस पठार को भारत के खनिजों का भण्डार कहा जाता है ?
उत्तर :
छोटानागपुर का पठार।

प्रश्न 24.
चिल्का झील किस समुद्री तट पर स्थित है ?
उत्तर :
उड़िसा राज्य के उत्तरी सरकार तट पर।

प्रश्न 25.
पश्चिम बंगाल की एक बहुउद्देशीय नदी का नाम लिखिए।
उत्तर :
दामोदर नदी।

प्रश्न 26.
हीराकुण्ड परियोजना कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
उड़िसा के महानदी पर।

प्रश्न 27.
नीरू-भीरू कार्यक्रम कहाँ चलाया गया।
उत्तर :
आन्ध्रदेश में।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 28.
मानसून शब्द की उत्पत्ति किस भाषा से हुई है ?
उत्तर :
अरबी भाषा से।

प्रश्न 29.
उत्तरी भारत के एक स्थानीय गर्म एवं शुष्क वायु का नाम लिखिए।
उत्तर :
‘लू’ (LOO)।

प्रश्न 30.
काली मिट्टी का दूसरा नाम क्या है ?
उत्तर :
रेगूर मिट्टी।

प्रश्न 31.
एक वृक्ष एक पुत्र के समान कहने का अर्थ क्या है ?
उत्तर :
अधिक पेड़ लगाओ एवं रक्षा करो।

प्रश्न 32.
CAZRI का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर :
Central Arid Zone Research Institute. (सेन्ट्रल एरीड जोन रिर्सच इन्सीचिऊ)।

प्रश्न 33.
विश्व के सबसे बड़ा डेल्टा का नाम क्या है ?
उत्तर :
गंगा-बह्मपुत्र नदियों का डेल्टा ‘सुन्दरवन’।

प्रश्न 34.
भारत में लगभग कितना प्रतिशत वर्षा मानसून के समय होती है ?
उत्तर :
लगभग 75 प्रतिशत।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 35.
किस वन क्षेत्र को शीलास के नाम से जाना जाता है ?
उत्तर :
आर्द्र उपोष्ण पहाड़ी वन क्षेत्र।

प्रश्न 36.
कयाल क्या है ?
उत्तर :
मालाबार तट के सहारे स्थित लैगूनों को कयाल कहते हैं।

प्रश्न 37.
नर्मदा नदी की प्रसिद्ध जलप्रपात का नाम बताओ।
उत्तर :
नर्मदा नदी पर जबलपुर के निकट प्रसिद्ध जलप्रपात ‘धुआंधार’ है।

प्रश्न 38.
भारत की जलवाय को कौन-सी वायु मुख्यतः नियंत्रित करती है ?
उत्तर :
मानसूनी वायु।

प्रश्न 39.
भारत के एक गिरिश्रृंग का उदाहरण दो।
उत्तर :
हिमालय की नीलकण्ठ चोटी।

प्रश्न 40.
SAARC का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर :
SAARC का पूरा नाम है दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Co-operation)।

प्रश्न 41.
रोही क्या है ?
उत्तर :
अरावली के पर्वतपदीय क्षेत्र में स्थित जलोढ़ मैदान को रोही कहते हैं।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 42.
भारत का सबसे ऊँचा जलप्रताप कौन है ?
उत्तर :
शरावती नदी पर स्थित जोग जलप्रताप।

प्रश्न 43.
भारत एवं चीन के मध्य की सीमा रेखा का क्या नाम है।
उत्तर :
मैकमोहन लाइन।

प्रश्न 44.
आप्रवर्षा कहाँ होती है ?
उत्तर :
दक्षिण भारत में।

प्रश्न 45.
भारत के किस राज्य में वनाच्छादित भूमि सबसे अधिक है ?
उत्तर :
मध्य प्रदेश।

प्रश्न 46.
भारत की प्रामाणिक मध्यांह्न रेखा कौन है ?
उत्तर :
821/2° E

प्रश्न 47.
भारत का वन अनुसंधान केन्द्र कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
देहरादून में।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 48.
प्रतिवर्ग कि॰मी० की दृष्टि से भारत का औसत जनघनत्व कितना है ?
उत्तर :
382 व्यक्ति प्रति वर्ग कि॰मी०।

प्रश्न 49.
Malnad क्या है ?
उत्तर :
मालनद : ‘मालनद’ शब्द कन्नड़ भाषा से लिया गया है, कर्नाटक के समतल भूमि को मालनद कहा जाता है।

प्रश्न 50.
भारत के उत्तर में स्थित किन्हीं दो देशों का नाम लिखिए।
उत्तर :
नेपाल और चीन

प्रश्न 51.
लघु या मध्य हिमालय की चौड़ाई कितनी है ?
उत्तर :
80 से 100 कि०मी०।

प्रश्न 52.
गंगा के मैदान का विस्तार किन राज्य में है ?
उत्तर :
उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल राज्य में है।

प्रश्न 53.
दक्कन के पठार के पश्चिमी एवं पूर्वी भाग में कौन सा पर्वत है ?
उत्तर :
पश्चिमी में सह्याद्रि पर्वत एवं पूर्वी भाग में मलयाद्रि पर्वत है।

प्रश्न 54.
कपास की काली मिट्टी का प्रदेश किस प्रदेश को कहते हैं ?
उत्तर :
प्रायद्वीपीय या मुख्य दक्कन का पठार प्रदेश को।

प्रश्न 55.
कर्नाटक तथा केरल तटों को संयुक्त रूप से क्या कहते है ?
उत्तर :
मालाबार तट।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 56.
ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे स्थित किन्हीं दो शहरों का नाम लिखिए।
उत्तर :
गौहाटी और डिबूगढ़।

प्रश्न 57.
भारत की कितनी कृषियोग्य भूमि सिंचित है ?
उत्तर :
53 % भूमि सिंचित है।

प्रश्न 58.
भारत में सबसे अधिक नलकूप किस राज्य में है ?
उत्तर :
उत्तर प्रदेश में है।

प्रश्न 59.
भारत में कर्क रेखा के दक्षिणी भाग की जलवायु कैसी है ?
उत्तर :
उष्ण जलवायु है।

प्रश्न 60.
किस पर्वत की स्थिति के कारण पश्चिमी तटीय मैदान में प्रचुर वर्षा होती है ?
उत्तर :
हिमालय पर्वत

प्रश्न 61.
हमारे देश के कितने प्रतिशत भाग पर वन हैं ?
उत्तर :
19.27 %

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 62.
हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में कितनी ऊँचाई पर नुकीली पत्ती वाले सदाबहार वन पाये जाते है ?
उत्तर :
1525 से 3500 मीटर की ऊँचाई।

प्रश्न 63.
नदियों के डेल्टाई क्षेत्र में किस प्रकार के वन पाए जाते हैं ?
उत्तर :
ज्वारीय वन

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS

प्रश्न 1.
कर्नाटक पठार के दो भूप्राकृतिक विभागों का नाम लिखिए।
उत्तर :
मालावार तट के गोवा से मंगलोर तक के तट को कर्नाटक तथा मंगलोर से कुमारी अंतरीप तक के तट को केरल त्ट कहते हैं।
अथवा
वर्षा जल संग्रहण के दो उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर :
(i) वर्षा के जल के संग्रहण द्वारा जल की कमी की समस्या को दूर करने का प्रयास किया जा सकता है।
(ii) वर्षा जल संग्रहण प्रत्यक्ष रूप से भूजल पुनर्भरण के लिए होता है।

प्रश्न 2.
सीढ़ीनुमा जुताई का क्या महत्व है ?
उत्तर :
पहाड़ी ढालों को सीढ़ीदार क्यारियों (Terraced-beds) के रूप में बदल देना चाहिए। इससे उपजाऊ मिट्टी का कटाव नहीं होता है।

प्रश्न 3.
मानसून विस्फोट की परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी हवायें उत्तरी-पश्चिमी भारत की ओर तीव्र गति से चलती है । इन हवाओं से भारत के पश्चिमी तट पर भारी वर्षा होती हैं। इसलिए इसे मानसून का फट पड़ना या मानसून विस्फोट(Burst of Monsoon) कहते है।

प्रश्न 4.
सामाजिक वानिकी के दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर :
(i) वनों का विकास एवं संरक्षण करके अतिरिक्त वनोत्पादों से इंधन, चारा, लकड़ी, फल आदि प्राप्त करके स्थानीय लोगों को लाभ पहुँचाना।
(ii) अनुपयोगी भूमि का समुचित एवं लाभकारी उपयोग करना।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 5.
खादर एवं बागर में अन्तर लिखिए।
उत्तर :

खादर बागर
1. नये जलोढ़ मैदान को खादर कहा जाता है। 1. पुराने जलोढ़ मैदान को बागर कहता जाता है।
2. इस क्षेत्र में प्रतिवर्ष बाढ़ का पानी पहुँचता है। 2. इस क्षेत्र में बाढ़ का पानी नहीं पहुँच पाता है।
3. इसमें चिका मिट्टी की अधिकता होती है। 3. इसमें कैल्सियम की अधिकता होती है।

प्रश्न 6.
सुरक्षित वन से तुम क्या समझते हो ?
उत्तर :
सुरक्षित वन : इन वनों में लकड़ी काटना या पशु चराना बिल्कुल मना है। ये सरकारी सम्पत्ति होते हैं और बाढ़ के रोक-थाम, भूमि-कटाव से बचाव तथा मरूस्थल के प्रसार को रोकने के लिए इस वन का महत्व अधिक है। ऐसे वनों का विस्तार लगभग 383 लाख हेक्टर भूमि में है।

प्रश्न 7.
संरक्षित वन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
संरक्षित वन : ये वन भी सरकारी ही है, किन्तु इनमें सरकार की ओर से लाइसेंस देकर वनों को काटने की मंजूरी दी जाती है। इन वनों में पशु भी चराया जा सकता है। लेकिन वन विभाग द्वारा इस पर पूरा निगरानी रखा जाता है।

प्रश्न 8.
वर्षा के आधार पर भारत को कितने वर्गों में बांटा गया है ?
उत्तर :
भारत में लगभग 75 % वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून से होती है। वर्षा के स्रोतों के आधार पर भारत को चार वर्गो में रखा गया है।

  1. अधिक वर्षा वाले क्षेत्र :- 200 से०मी॰ से अधिक।
  2. सामान्य वर्षा वाले क्षेत्र :- 100 से॰मी० से अधिक।
  3. अल्प वर्षा वाले क्षेत्र :- 50 से॰मी॰ से 100 से॰मी॰ तक।
  4. अत्यल्प वर्षा वाले क्षेत्र :- 50 से०मी० से कम।

प्रश्न 9.
मानसून विभंगता क्या है ?
उत्तर :
मानसूनी वर्षा लगातार नहीं होती बल्कि कुछ दिनों के अन्तर से रूक-रूक कर हुआ करती है। कभी-कभी एक बार वर्षा होने के बाद दूसरी वर्षा एक माह बाद तक होती है। इस घटना को ही मानसून विभंगता कहा जाता है।

प्रश्न 10.
रबी फसल क्या है ?
उत्तर :
रबी फसल :- इस फसल को शीतकालीन फसल भी कहा जाता है। भारत में यह फसल नवम्बर-दिसम्बर में रोपी जाती है तथा मार्च-अप्रैल तक काट ली जाती है तो इसे रबी फसल कहा जाता है। जैसे – गेहूँ, चना इत्यादि।

प्रश्न 11.
खरीफ फसल से आप क्या समझते हो ?
उत्तर :
खरीफ फसल : इस फसल को वर्षाकालीन फसल भी कहा जाता है। वे फसले जो मध्य जून-जुलाई में रोपी जाती है तथा अक्टूबर-नवम्बर तक काट ली जाती है तो इसे खरीफ फसल कहा जाता है। जैसे – धान, जूट इत्यादि।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 12.
मिट्टी की समस्याओं का उल्लेख करें।
उत्तर :
मिट्टी की समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

  1. मिट्टी का अपरदन अधिक होना
  2. जल जमाव
  3. अम्लीय, लवणीयता एवं क्षारीयता
  4. वन भूमि की समस्या
  5. मरूस्थलीकरण
  6. मानव भूमि द्वारा भूमि का अत्यधिक शोषण।

प्रश्न 13.
परत अपरदन क्या है ?
उत्तर :
परत अपरदन (Sheet Erosion) :- जब जल, वायु, मिट्टी की ऊपरी परत को बहा कर या उड़ा कर ले जाते हैं तो इसे परत अपरदन कहा जाता है।

प्रश्न 14.
अवनलिका अपरदन क्या है ?
उत्तर :
अवनलिका अपरदन (Gully Erosion) :- जब तेज गति से बहता हुआ जल मिट्टी को काट कर गहरी नालियों, खड्डों का निर्माण कर देता है तो इसे अवनलिका अपरदन कहते हैं।

प्रश्न 15.
वन जीवन कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य क्या है ?
उत्तर :
वन जीवन कार्यक्रम का उद्देश्य –

  1. जीवों के प्राकृतिक आवास की सुरक्षा।
  2. सुरक्षित क्षेत्रों में जीवों का उचित रख-रखाव।
  3. पौधों एवं प्राणियों के लिए जैवमण्डल संरक्षणशालाओं की स्थापना।

प्रश्न 16.
भारत में यातायात कितने प्रकार का है ?
उत्तर :
भारत में यातायात के लिए चार प्रमुख साधन है –

  1. स्थल परिवहन (सड़कें एवं रेलमार्ग)
  2. जल परिवहन (समुद्री तथा आंत्रिक नदियाँ)
  3. वायु परिवहन
  4. पाइप लाइन।

प्रश्न 17.
जिला सड़कें क्या हैं ?
उत्तर :
ये सड़कें गाँवों एवं कस्बों को एक दूसरे से तथा जिला मुख्यालय से जोड़ती है। इनके निर्माण एवं रख रखाव की जिम्मेदारी जिला परिषदों की होती है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 18.
वर्तमान समय में भारत में कितने राज्य और केन्द्रशासित प्रदेश हैं ?
उत्तर :
वर्तमान समय में भारत में 29 राज्य तथा 6 केन्द्रशासित राज्य है।

प्रश्न 19.
भारत में सबसे लम्बी नदी का नाम लिखो।
उत्तर :
गंगा भारतीय सीमा में बहने वाली सबसे लम्बी नदी है। इसकी लम्बाई 2530 कि०मी० है।

प्रश्न 20.
लाल मिट्टी का निर्माण किस शैल से हुआ है ?
उत्तर :
यह मिट्टी ग्रेनाइट नीस आदि चट्टानों की दूट-फूट से बनती है।

प्रश्न 21.
निछालन से क्या समझते हो ?
उत्तर :
वह प्रक्रिया जिसके द्वारा मिट्टी में विद्यमान घुलनशील संघटक पानी में घुल जाते है और रिसते हुए पानी के साथ मिट्टी में से होकर नीचे के स्तरों में पहुँच जाते है।

प्रश्न 22.
समुद्रवर्ती वन की एक वनस्पति का नाम लिखो।
उत्तर :
समुद्रवर्ती वन में पाए जाने वाले वनस्पति मैंग्रोव वनस्पति है।

प्रश्न 23.
तमिलनाडू में जल संचयन क्यों महत्त्वपूर्ण हैं ?
उत्तर :
नीरू- भीरू कार्यक्रम आन्धप्रदेश में चालू की गई है। इसके अर्त्तगत लोगों के सहयोग से विभिन्न जल संग्रहण संरचनाएं जैसे अन्त : स्रण तालाब तल की खुदाई की गई है और रोक बाँध बनाए गए है। तामिलनाडू में घरों में जल संग्रह संरचना को बनाना आवश्यक कर दिया गया है।

प्रश्न 24.
हिमालय के तीन तीर्थ स्थलों, हिमनदों, घाटियों एवं सर्वोच्च चोटियों का नाम लिखिए।
उत्तर :
हिमालय के तीर्थ स्थलों में अमरनाथ, केदारनाथ तथा बद्रीनाथ है। प्रमुख हिमनद गंगोत्री जमुनोत्री एवं सियाचिन, प्रमुख घाटी कश्मीर, कुलू एवं कुमायूँ, तथा माउण्ट एवरेस्ट, नन्दादेवी, नंगा पर्वत प्रमुख चोटियाँ है।

प्रश्न 25.
भारत के सबसे बड़े डेल्टा एवं सबसे बड़े नदी द्वीप का नाम लिखिए।
उत्तर :
भारत के सबसे बड़ा डेल्टा गंगा-ब्मापुत्र का डेल्टा एवं सबसे बड़ी नदी द्वीप ब्रह्मपुत्र नदी की माजुली द्वीप है।

प्रश्न 26.
पश्चिमी घाट की पूर्व वाहिनी नदियों का नाम लिखिए।
उत्तर :
गोदावरी और कृष्णा नदी।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 27.
भारत में वर्षा या सूखा क्यों आते रहते हैं ?
उत्तर :
प्रशान्त महासागर से होकर जब एल-निनो हिन्द महासागर में पहुँचती है तो हिन्द महासागर का तापमान अचानक बढ़ जाता है जिससे यहाँ से उत्पन्न होनेवाली ग्रीष्मकालीन (दक्षिणी-पश्चिमी) मानसूनी हवाएँ कमजोर पड़ जाती है जिससे भारतीय उपमहादेश में वर्षा या सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 28.
आर्द्र सदाबहार वनों के चार वृक्षों के नाम बताइये।
उत्तर :
इन वनों के प्रमुख वृक्ष महोगनी, रबर, लौह-काष्ठ, गुर्जन आदि है।

प्रश्न 29.
भारत के किन भागों में आर्द्र सदाबहार वन पाये जाते हैं ?
उत्तर :
ये वन बंगाल व उड़ीसा के मैदानी भागों, असम नागालैण्ड मैघालय, आदि क्षेत्रों में पाऐ जाते है।

प्रश्न 30.
गंगा-ब्रह्मपुत्र डल्टाई क्षेत्र को सुन्दरवन क्यों कहते हैं ?
उत्तर :
गंगा-ब्मयुत्र डेल्टाई क्षेत्र में सुन्दरी नाम के वृक्ष अधिक पाए जाते है। इसलिए इसे सुन्दरवन कहते है।

प्रश्न 31.
भारतवर्ष के किस क्षेत्र में नमकीन मिट्टी पायी जाती है ?
उत्तर :
तट के समीप के निम्न मैदान एवं डेल्टाई भागों में जहाँ ज्वार का खारा जल पहुँचता रहता है। वहाँ खारी या नमकीन मिट्टी मिलती है।

प्रश्न 32.
भारत के किस क्षेत्र में सदावाहिनी नहरों से अधिक सिंचाई होती है ?
उत्तर :
उत्तरी भारत में सतलज गंगा के मैदानी क्षेत्र में नहरों से अधिक सिंचाई होती है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 33.
दामोदर घाटी के तीन जलविद्युत शक्ति केन्द्रों का नाम लिखिए।
उत्तर :
मैथान, पंचेत तथा दुर्गापुर दामोदर घाटी के जलविद्युत शक्ति के केन्द्र है।

प्रश्न 34.
हिमालय के प्रमुख दर्रों का नाम लिखिए।
उत्तर :
गोमल, मकरान, खैबर तथा बोलन हिमालय के प्रमुख दर्रे है।

प्रश्न 35.
पश्चिमी तटीय मैदान दलदली एवं बालुकामय क्यों है ?
उत्तर :
इस मैदान के निर्माण में नदियों की अपेक्षा समुद्र का हाथ अधिक है। समुद्री कटाव के कारण तटीय भाग में छोटीछोटी लैगून झीलें बन गई है। ज्वार का पानी पहुँच जाने के कारण पश्चिमी तटीय भाग दलदली एवं बालुकामय है।

प्रश्न 36.
दक्षिण भारत की नदियाँ सदावाहिनी क्यों नहीं है ?
उत्तर :
दक्षिणी भारत की नदियाँ, उत्तर भारत की निदियों की तरह हिमाच्छादित शिखरों से नहीं निकलती है जिससे इन्हें वर्ष भर हिम का पिघला जल नहीं मिलता है। दूसरे, इस भाग में वर्षा भी कम होती है अत: ये नदियाँ सदावाहिनी, नहीं है।

प्रश्न 37.
दक्षिण भारत की नदियों का अपरदन कार्य नगण्य क्यों है ?
उत्तर :
दक्षिण भारत की नदियाँ कटाव के आधार-तल को प्राप्त कर चुकी है। अत: अब इसका अपरदन कार्य नगण्य है।

प्रश्न 38.
भारत के उत्तर के मैदान में अधिक नहरें क्यों है ?
उत्तर :
यहाँ नहरों का जाल बिछा हुआ है क्योंकि यहाँ भूमि समतल, उपजाऊ एवं मुलायम है तथा नदियाँ सदावाहिनी है।

प्रश्न 39.
एल-निनो तथा ला-निनो किस प्रकार भारत के जलवायु को प्रभावित करती है ?
उत्तर :
एल-निनो का प्रभाव – प्रशान्त महासागर से होकर जब यह हिन्द महासागर में पहुँचती है तो हिन्द महासागर का तापमान अचानक बढ़ जाता है जिससे यहां से उत्पन्न होनेवाली ग्रीष्मकालीन (दक्षिणी-पश्चिमी) मानसूनी हवाएँ कमजोर पड़ जाती है जिससे भारतीय उपमहादेश में वर्षा कम होती है एवं सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ला-निनो का प्रभाव-हिन्द महासागर में ला-निनो के आगमन से उच्च वायुदबाव का गठन होता है, जिससे भारतीय उपमहादेश की ओर आनेवाली ग्रीष्मकालीन मानसुनी हवाएँ प्रबल हो जाती है तथा पर्याप्त वर्षा करती है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 40.
तामिलनाडू तट पर शीत ऋतु में भी वर्षा क्यों होती है ?
उत्तर :
भारत में शीतकाल में हवाएँ स्थल से समुद्र की ओर चलती है। इसी से इन हवाओं को उत्तरी-पूर्वी मानसून या शीतकाल का मानसून कहते है। स्थल से आने के कारण ये हवायें आमतौर पर शुष्क होती है और इनसे वर्षा नहीं होती। परन्तु यही हवायें जब बंगाल की खाड़ी को पार करती है तो इनमें जलवाष्प आ जाता है। अत: ये हवाएँ पूर्वी घाट की पहाड़ियों से टकराकर तामिलनाडु में जाड़े में भी वर्षा करती है।

प्रश्न 41.
लैटेराइट मिट्टी अनुपजाऊ क्यों होती है ?
उत्तर :
इस मिट्टी में लोहे के ऑक्साइड एवं अल्युमिनियम का अंश तो अधिक परन्तु नाइट्रोजन, चूना, फॉंस्फोरस एवं जीवांश की मात्रा कम होती है। यह मिट्टी छिद्रदार एवं अनुपजाऊ होती है अतः यह कृषि के योग्य नहीं है।

प्रश्न 42.
ज्वारीय वन के वृक्षों की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
इन वनों की कुछ विशेषताएँ इस प्रकार है –
(i) नमकीन मिट्टी में पेड़ों की जड़ों को साँस लेने में कठिनाई होती है। अत: वृक्षों की कुछ जड़े पानी के ऊपर निकल आती है। इन्हें श्वसन मूल कहते है।
(ii) दलदली भाग में पेड़ को गिरने से बचाने के लिए उनमें तिरछी जड़े पाई जाती है,

प्रश्न 43.
भारत में उगाई जानेवाली फसलों का उपयोग के आधार पर वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर :
उपयोग के आधार पर भारत की फसलों को मोटे तौर पर चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है :

  1. खाद्यात्र : चावल, गेहूँ, ज्वार-बाजरा, मक्का, चना आदि।
  2. पेय पदार्थ : चाय और कहवा
  3. व्यावसायिक एवं मुद्रादायिनी फसलें : कपास, जूट, चाय, कहवा, गन्ना, तिलहन आदि।
  4. रेशेदार फसलें : कपास और जूट आदि।.

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 44.
भारतवर्ष के विस्तार का वर्णन करो।
उत्तर :
क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्य का सातवाँ बड़ा देश है इसका क्षेत्रफल लगभग 32,87,263 वर्ग किलोमीटर है। यह उत्तर से दक्षिण 3214 कि॰मी॰लम्बा तथा पूर्व से पश्चिम 2933 कि॰मी० चौड़ा है। इसकी स्थलीय सीमा 15 , 200 कि०मी॰ तथा समुद्र सीमा 7516.6 कि०मी०।

प्रश्न 45.
भारत के भौतिक विभाजन का वर्णन करो।
उत्तर :
भौतिक दृष्टि से भारत को निम्नलिखित छ: प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है :

  1. उत्तर का पर्वतीय भाग
  2. सतलज-गंगा-ब्रहुपुत्र का मैदान
  3. दक्षिण का पठारी भाग
  4. समुद्रतटीय मैदान
  5. थार का मरूस्थल
  6. द्वीपसमूह

प्रश्न 46.
नहरों द्वारा सिंचाई से क्या लाभ है ?
उत्तर :
(i) नहरों द्वारा सिंचाई करने से भूमि की उर्वरा-शक्ति बढ़ जाती है। अच्छे किस्म के अन्न पैदा होने लगते है।
(ii) नहरों द्वारा सिंचाई करने से बंजर व अनउपजाऊ भूमि में भी खेती होने लगती है और वे हरे-भरे हो जाते है।

प्रश्न 47.
मृदा संरक्षण क्या है ?
उत्तर :
विभिन्न उपायों से मिट्टी की समस्याओं को दूर करके उसे लम्बे समय तक उपजाऊ एवं कृषि के योग्य बनाए रखने को मिट्टी का संरक्षण कहते है।

प्रश्न 48.
हरियाणा मे कृषि क्यों उन्नत है ?
उत्तर :
हरियाणा में प्रति एकड़ उत्पादकता देश के अन्य राज्यों की तुलना में काफी अधिक है। राज्य की ओर से कृषि साख एवं विपणन की उचित व्यवस्था ने यहाँ कृषि को और अधिक प्रोत्साहित किया है जिससे यह राज्य कृषि के क्षेत्र में भारत का सर्वाधिक समृद्ध राज्य है।

प्रश्न 49.
संरचनात्मक उद्योग का वर्णन करो।
उत्तर :
प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं से प्राप्त उत्पादों का कच्चे माल के रूप में उपयोग करके उनके रूप एवं गुणों में परिवर्तन करके उन्हें अधिक उपयोगी एवं मूल्यवान बनाने की प्रक्रिया को वस्तु निर्माण उद्योग कहते है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जिन प्रक्रियाओं द्वारा प्राथमिक उत्पादनों को अधिक उपयोगी रूपो में परिवर्तित किया जाता है, उन्हें वस्तु निर्माण उद्योग कहा जाता है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 50.
उत्तर भारत की नदियों की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :

  1. उत्तर भारत की सभी नदियाँ हिमनद से निकलती है।
  2. ये नदियाँ सदावाहिनी है।
  3. ये नदियाँ नाव चलाने योग्य है।
  4. इनसे नहरें निकाल कर वर्ष भर सिंचाई की जा सकती है।

प्रश्न 51.
हिमालय क्षेत्र में बड़े उद्योगों का विकास क्यों नहीं हुआ है ?
उत्तर :
किसी भी उद्योग की स्थापना के लिए कुछ मौलिक कारको की आवश्यकता होती है जैसे कच्चे माल की सुविधा, परिवहन की सुविधा आदि। हिमालय की धरातल बनावट असमान है। वहाँ खनिजों का अभाव है। जिसके कारण हिमालय क्षेत्र में किसी भी बड़े उद्योगों का विकास नहीं हुआ है।

प्रश्न 52.
हिमालय की पर्वतीय श्रृंखला में भूकम्प क्यों आते हैं ?
उत्तर :
हिमालय पर्वत श्रेणियाँ नवीन मोड़दार पर्वत है। इस क्षेत्र में भूपटल में मोड़ पड़ने और ऊपर उठने की प्रक्रिया जारी है जिसके कारण इस क्षेत्र का भू-संतुलन बिगड़ता रहता है। इसलिए हिमालय के समीपवर्ती क्षेत्रों में भूकम्प आता रहता है।

प्रश्न 53.
दक्षिण भारत की नदियाँ तीव्र प्रवाह से क्यों बहती हैं ?
उत्तर :
दक्षिण भारत की अधिकांश नदियों का प्रवाह अनुगामी है, अर्थात इनका अपवाह धरातल के स्वाभाविक ढाल के अनुरूप ही हुआ है। इसलिए यहाँ को नदियाँ तीव्र प्रवाह से बहती है।

प्रश्न 54.
पहाड़ी मिट्टी चाय की कृषि के उपयुक्त क्यों होती है ?
उत्तर :
चाय की जड़ो में पानी का रूकना हानिकारक होता है। अत: चाय की कृषिग्यहाड़ी ढालो पर की जाती है ताकि जड़ों में पानी न रूक सके।

प्रश्न 55.
मरुस्थली मिट्टी शुष्क क्यों होती है ?
उत्तर :
वर्षा के अभाव एवं उच्च दैनिक तापान्तर के कारण चट्टानों के विखण्डन से इस मिट्टी की रचना हुई है। हवा द्वारा महीन कणों के उड़ जाने के कारण इस मिट्टी में बालू के मोटे कण मिलते है।अत: इसमें जल धारण करने की क्षमता नहीं है। इस इसलिए यह मिट्टी शुष्क होती है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 56.
नीलगिरि की पहाड़ियों पर कॉफी की कृषि क्यों होती है ?
उत्तर :
कॉफी के पौधे के लिए ढालुआ भूमि का होना आवश्यक है क्योंकि इसकी जड़ो में पानी का रूकना हानिकारक है। 750 से 1500 मीटर के ढलान पर अरविका कॉफी की उत्तम कृषि होती है। अत: नीलगिरि की पहाड़ियों की ढ़ाल इसके लिए सर्वोत्तम है।

संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 3 MARKS

प्रश्न 1.
भारत के वन संरक्षण के तीन प्रमुख उपाय संक्षेप में बताइए।
उत्तर :
वन संरक्षण एवं वन विकास :

  1. वानिकी शिक्षा बढ़ाई जाए। वन-अनुसंधान केन्द्र खोले जाएँ। वन-विभाग का मुख्य अनुसंधान केन्द्र हिमालय-स्थित देहरादून में स्थापित किया गया है। राँची, पालमपुर, बंगलूर, कोयम्बटूर और अकोला में भी वानिकी शिक्षा आरंभ की गई है।
  2. वनों के प्रति नया दृष्टिकोण अपनाया जाए और प्राचीनकाल की वन्य संस्कृति को पुनर्जीवित किया जाए।
  3. प्रतिवर्ष नए वन लगाए जाएँ। 1981 ई० के बाद से अबतक मध्यप्रदेश और पंजाब में ही वनक्षेत्र बढ़ाए जा सके हैं। पिछले कुछ वर्षो से केरल, कर्नाटक और मेघालय इस दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं।
  4. वनसंरक्षण के लिए विशेष योजनाएँ चालू की जाएँ, जैसे – बाघ परियोजना, हाथी परियोजना, अभयारण्यों की स्थापना। 1952 ई० से भारत वनमहोत्सव मनाकर इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए सचेष्ट है। देश में 17 वनविकास निगम स्थापित किए जा चुके हैं।

वनों के संरक्षण के लिए विभिन्न प्रकार के उपाय किए जा रहे हैं, यद्यपि मानव-जनसंख्या और पशुओं की संख्या में अत्यधिक वृद्धि से यह संरक्षण कठिन हो गया है।

प्रश्न 2.
भारतीय द्वीपसमूह का संक्षेप में विवरण दे।
उत्तर :
भारतीय द्वीपसमूह : भारत की मुख्य भूमि से हटकर दो द्वीपसमूह ‘अंडमान निकोबार’ और ‘लक्षद्वीप’ भारत के ही अंग हैं। अंडमान-निकोबार के अंतर्गत प्रमुख 223 द्वीपें हैं जो सागरमग्न पर्वतश्रेणी पर स्थित हैं। इनमें कुछ ज्वालामुखी के उद्गार से बने हैं। भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी इन्हीं द्वीपों पर स्थित है। लक्षद्वीप के अंतर्गत 27 द्वीपें हैं जिनमें आबाद 10 हैं।

ये द्वीप समुद्री जीव मूँगे (प्रवाल, Coral) के निक्षेप से बने हैं। इनमें कुछ द्वीपों की आकृति घोड़े की नाल जैसी हैं जिन्हें प्रवाल द्वीपवलय (atoli) कहते हैं। स्पष्ट है कि दोनों द्वीपसमूह की रचना दो भिन्न तरीकों से हुई है । ये द्वीप भारत की प्राकृतिक छटा ही नहीं बढ़ाते बल्कि काष्ठ-उद्योग,मत्स्योधम, पर्यटन और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए नौसैनिक अड्डे की स्थापना को भी बढ़ावा देते हैं। एक द्वीप (पेम्बन) भारत और श्रीलंका के बीच मन्नार की खाड़ी में स्थित है।

प्रश्न 3.
सिन्धु नदी की प्रवाह तंत्र की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
प्रवाह तंत्र : सतलज, व्यास, चेनाव और झेलम प्रमुख नदियाँ है जो दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती हैं और सिंधु से मिलकर अरबसागर में गिर जाती हैं। सिंधु का उद्गम स्थल हिमालय के पार मानसरोवर झील है। पश्चिम की ओर बहती हुए यह नदी गिलगिट के निकट दक्षिण की ओर मुड़ जाती है। आज कल यह पाकिस्तान की सर्वप्रमुख नदी है। इसकी सहायक नदियों में केवल व्यास ही पूर्ण रूप से भारतीय सीमा में बहती है, शेष नदियों की सिर्फ ऊपरी धाराएँ ही भारत में हैं और निचली धाराएँ पाकिस्तान में।

सतलज नदी तिब्बत की साढ़े चार मीटर ऊँचाई से चलकर शिपकी दर्रे हिमाचल प्रदेश में पार करती हुई पंजाब के मैदान में उतरती है। सतलज नदी पर ही भाखड़ा-नंगल बाँध का निर्माण किया गया है। प्राचीन भारत में सतलज को शताद्रु, व्यास को विपाशा, रावी को इरावती और चेनाब को चंद्रभागा कहते थे। झेलम का नाम विताशा था। इन सबका उद्गम हिमालय का हिमाच्छादित प्रदेश है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 4.
गंगा नदी के अपवाह तंत्र की व्याख्या कीजिए।
अथवा
गंगा को आदर्श नदी क्यों कहा जाता है ?
अथवा
गंगा नदी के गतिपथ का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
गंगा नदी : गंगा की सहायक नदियों में यमुना, रामगंगा, गोमती, शारदा, सरयू, गंडक, बूढ़ी गंडक, कोशी और महानंदा उत्तर के पर्वतीय भाग से तथा चंबल, बेतवा, केन, सोन और पुनपुन दक्षिणी पठार से निकलनेवाली नदियाँ हैं। ये नदियाँ गंगा में मिलकर अपना जल पूरब की ओर ले जाती हैं और अंत में बंगाल की खाड़ी में गिरा देती हैं। भारत के पूरे क्षेत्रफल का एकतिहाई भाग गंगा-व्यवस्था के अंतर्गत है। भारत की सभी नदियों में जितना जल बहता है उसका 30 प्रतिशत गंगा और उसकी सहायक नदियों में बहता है।

गंगा हिमालय के गंगोत्री हिमनद से निकलती है। यह भारत की सर्वप्रमुख नदी है। भागीरथी और अलकनंदा इसी के नाम हैं (पहाड़ी अंचल में)। हरिद्वार के पास यह पहाड़ से नीचे उतरती है और अपने नाम से मैदान में (उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल में) बहती है। हुगली इसी की एक शाखा है जिसके किनारे कलकत्ता बसा है। गंगा की कुल लंबाई 2,510 किलोमीटर है। आर्थिक दृष्टिकोण से इस नदी का महत्व सबसे अधिक है। इस नदी मार्ग के द्वारा जलमार्ग के साथ ही जलविद्युत का भी निर्माण किया है। सिंचाई की सुविधा भी इस नदी द्वारा किया गया है।

प्रश्न 5.
ब्रह्मपुत्र नदी व्यवस्था का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर :
ब्रह्मपुत्र-व्यवस्था की नदियाँ : बह्मपुत्र सर्वप्रधान नदी है। यह मानसरोवर झील के समीप से निकलकर उत्तर-पूर्व से भारत में प्रवेश करता है। ब्रह्मपुत्र तिब्बत में साँपो (साङ्यो) नाम से जाना जाता है। नमचा बरुआ शिखर के निकट यह अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश कर असम घाटी में उतरता है। पश्चिम में बहता हुआ ग्वालपाड़ा के निकट दक्षिण मुड़कर गंगा की धारा (मेघना) में मिल जाता है। इसकी कुल लंबाई 2,703 किलोमीटर है। इसकी सहायक नदियों में तिस्ता, सुवनसिरी (स्वर्णश्री) और लुहित प्रमुख हैं। ब्रह्मपुत्र-व्यवस्था दक्षिण-पश्चिम की ओर प्रवाहित है। इसकी नदियाँ गंगा से मिलकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं।

प्रश्न 6.
भारत सरकार द्वारा भारतीय वनों को कितने भागों में बांटा गया है ? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर :
वन हमारी राष्ट्रीय संपत्ति है। देश के पर्यावरण से भी इसका घनिष्ठ संबंध है। भारत सरकार का वन-विभाग भारतीय वनों की देखरेख करता है। व्यवस्था, नियंत्रण एवं सुरक्षा की दृष्टि से भारतीय वनों को तीन भागों में बाँटा गया है –
i. सुरक्षित वन (Reserved forest) : इन वनों में लकड़ी काटना या पशु चराना वर्जित है। ये सरकारी संपत्ति हैं और बाढ़ की रोकथाम, भूमि-कटाव से बचाव तथा मरुस्थल के प्रसार को रोकने की दृष्टि से बड़े महत्त्व के हैं। ऐसे वनों का विस्तार 383 लाख हेक्टर भूमि में है।

ii. संरक्षित वन (Protected forests) : ये वन भी सरकारी ही है, मगर इनमें सरकार की ओर से लाइसेंस प्राप्त लोग लकड़ी काट सकते हैं या पशु चरा सकते हैं। ऐसे वनों पर भी सरकार की कड़ी निगरानी रहती है। इनका क्षेत्रफल 282 लाख हेक्टर है।

iii. अवर्गीकृत या स्वतंत्र वन (Unclassified forests) : इन वनों में लकड़ी काटने तथा पशु चराने में सरकार की ओर से कोई प्रतिबंध नहीं है, पर उपयोग करनेवाले को टैक्स देना पड़ता है। लकड़ी काटने के लिए ये वन प्रायः ठेके पर दिये जाते हैं। ये वन 82 लाख हेक्टर भूमि में विस्तृत हैं।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 7.
लैटेराइट मिट्टी की विशेषता लिखिए।
उत्तर :
लैटेराइट मिट्टी की विशेषताएँ :

  1. इस मिट्टी में चूना, फॉसफोरस और पोटाश की मात्रा कम पाई जाती है।
  2. शुष्क मौसम में यह मिट्टी सूखकर ईंट की भाँति सख्त हो जाती है तथा गीली होने पर चिपचिपी हो जाती है।
  3. इस मिट्टी में लोहा, सिलिका, एल्यमिनियम की मात्रा अधिक पाई जाती है।
  4. यह मिट्टी ऊँचे प्रदेशों में कँकरीली तथा पारगम्य होती है, इस कारण यह पानी को शीघ्र सोख लेती है। अतः इन भागों में यह मिट्टी कृषि योग्य नहीं होती, परंतु निचले भागों में चिकनी मिट्टी मिल जाने से इसमें नमी धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है और कृषि योग्य बन जाती है।

वितरण : यह मिट्टी विशेषकर मध्य प्रदेश, पूर्वी और पश्चिमी घाटों के समीप, कर्नाटक, दक्षिणी महराष्ट्र, केरल, राजमहल की पहाड़ियाँ, उड़ीसा तथा असम के कुछ भागों में पाई जाती है।

प्रश्न 8.
‘भारत की पश्चिम वाहिनी नदियों के मुहाने पर डेल्टा का निर्माण क्यों नहीं होता है?
उत्तर :
नदी के मुहाने के पास नदियों का प्रवाह मन्द होना चाहिए तथा सागरीय लहरों का वेग कम होना चाहिए जिससे अवसादों का निक्षेपण आसानी से हो सके। जिन नदियों के मुहानों पर ये दशाएँ उपस्थित नहीं रहती हैं, वहाँ डेल्टा का निर्माण सम्भव नहीं होता। चूंकि भारत की पृश्चिम बाहिनी नदियाँ तीव्र गति से प्रवाहित होते हुए अरब सागर में गिरती हैं, मुहाने पर प्रवाह गति तीव्र होने के कारण इनके द्वारा बहाकर लाए गए अवसाद समुद्र में दूर तक फैल जाते हैं, जिससे ये डेल्टा का निर्माण नहीं कर पातीं।

प्रश्न 9.
पश्चिमी हिमालय की भू-प्रकृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
पश्चिमी हिमालय की भू-प्रकृति :- पश्चिमी हिमालय सिंधु एवं सतुलज नदी के बीच फैला हुआ है। यह भाग कश्मीर एवं हिमालय प्रदेश में स्थित है, हिमालय की सर्वाधिक चौड़ाई इसी भग्र में मिलती है इसकी लम्बाई 560 कि॰मी० है। लद्दाख, जास्कर, पीर पाजल एवं चौलाधर श्रेणियाँ उसी भाग में स्थित हैं। इस भाग में कुछ महत्वपूर्ण दर्रे पाये गए हैं जिनमें बुर्जिल एवं गोजीला, शिष्कीला, थागा-ला, लीपू-लेख-ला आदि हैं।

इस हिमालय क्षेत्र की प्रमुख चोटियाँ नंगा पर्वत (8126 मी०), नंदादेवी (7817 मी०), है। यहाँ नदी अपहरण के लक्षण की दृष्टि गोचर होती है यहाँ अनेक नदी घाटियाँ और हिम-घाटियाँ मिलती है। इसी क्षेत्र की कश्मीर घाटी को ‘पृथ्वी का स्वर्ग’ कहा गया. है। अलेम नदी भी इसी घाटी से होकर बहती हैं। डल और वुलर झोलDal and Water Lake मीठे जल को दो प्रसिद्ध झीलें हैं।

प्रश्न 10.
गोदावरी नदी को दक्षिण भारत की गंगा क्यों कहते हैं।
उत्तर :
यह दक्षिण के पठार की सबसे बड़ी नदी है। यह महाराष्ट्र राज्य में नासिक के समीप पश्चिमी घाट पर्वत से निकलती है। यह दक्षिण-पूर्व की ओर बहती हुई पूर्वी घाट पर्वत को पार करके डेल्टा बनाती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। प्रभारा, मुला, मंजीरा, वर्धा पेनगंगा और इन्द्राबती इसकी सहायक नदियां है। यह नदी 1465 किलोमीटर लम्बी है। इसे दक्षिण भारत की गंगा कहते हैं।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 11.
पूर्वी तटीय और पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना करो।
उत्तर :

पूर्वी तटीय मैदान पशिचमी तटीय मैदान
i. यहु तटीय मैदान अधिक चौड़ा है। i. यह तटीय मैदान कम चौड़ा है।
ii. इस क्षेत्र की भूमि की ऊँचाई कम है। ii. इस क्षेत्र की भूमि की ऊँचाई अधिक है।
iii. भूमि अधिक उपजाऊ है अत: कृषि का विकास अधिक हुआ है। iii. भूमि कम उपजाऊ होने के कारण कृषि का का विकास कम हुआ है।
iv. इस क्षेत्र की नदियाँ मंद गति से बहती है। iv. इस क्षेत्र की नदियाँ तीव्रगति से बहती है।
v. इस क्षेत्र की नदियाँ मुहानों पर डेल्टा बनाती है। v. इस क्षेत्र की नदियाँ मुहानों पर डेल्टा नहीं बनाती है।

प्रश्न 12.
हिमालय पर विभिन्न प्रकार के वन क्यों पाये जाते हैं ?
उत्तर :
हिमालय पर्वत पर ऊँचाई के अनुसार वर्षा तापक्रम में भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। अतः यहाँ विभिन्न प्रकार के वन मिल्ले हैं। पूर्वी हिमालय अंचल में पश्चिमी हिमालय अंचल की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है। अतः पूर्वी हिमालय में तराई अंचल से लेकर 1525 मी० की ऊँचाई तक आर्द्र सम शीतोष्ण सदाबहार के वन मिलते हैं। यहाँ कहीं-कहीं साल जैसे पतझड़ के वृक्ष लतायें एवं लम्बी घासें मिलती हैं। यहाँ के मुख्य वृक्ष साल शीशम एवं बाँस है। पश्चिमी हिमालय में इस तक छोटे छोटे वृक्ष एव झाड़याँ मिलती हैं।

यहाँ के मुख्य वृक्ष साल, शीशम ढाँक तथा आँवला आदि है। यहाँ 1525 मी॰ से 2500 मी० तक ऊँचाई वाले भागों में शीतोष्ण कटिबंधीय चौड़ी पत्ती वाले पतझड़ के वन मिलते हैं। यहाँ के मुख्य वृक्ष ओक. बंच, चीड़, बर्च और मैपिल आदि है। यहाँ 2500 से 4500 मी॰ की ऊँचाई पर नुकीली पत्ती वाले कोणधारी वन मिलते हैं। इन वनों के मुख्य वृक्ष पाइन, फर, लारेल और देवदार आदि हैं। यहाँ 4500 मी० से अधिक ऊँचाई पर छोटीछोटी घासे एवं सुन्दर फूलों वाले बन मिलते है।

प्रश्न 13.
मैग्रोव जाति के वृक्ष केवल खारी भूमि में क्यों पाये जाते हैं ?
उत्तर :
मैग्रोव जाति के वृक्ष केवल खारी भूमि में पाये जाते है क्योंकि यह वृक्ष खारे जल में अपना अस्तीत्व बनाये रखने के लिए अपना अनुकूलन करता है।
(i) नमकीन मिट्टी में पेड़ों की जड़ों को सांस लेने में कठिनाई होती है अत: मैग्रोव वृक्षों की जड़े पानी के ऊपर निकल जाती है इन्हें श्वसन मूल कहते है।
(ii) भूमि दलदली होने के कारण पेड़ों के गिरने का भय रहृता है अतः उनकी जडे तिरछी होती है।

प्रश्न 14.
उत्तर से दक्षिण हिमालय का वर्गीकरण कीजिए तथा संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
उत्तर से दक्षिण हिमालय में तीन समानान्तर श्रेणियाँ मिलती है :
महान या आन्तरिक हिमालय : यह हिमालय की सबसे उत्तरी एवं सबसे ऊँची पर्वत श्रेणी है। इसकी औसत ऊँचई 6000 मीटर तथा चौड़ाई 40 कि०मी० है। इसकी 100 से भी अधिक शिखरे वर्ष भर हिमाच्छादित रहती है। इसी से इसे हिमाद्रि कहते है। संसार के सर्वोच्च पर्वत-शिखर इसी भाग में स्थित है। माउण्ट एवरेस्ट (8848 मीटर) विश्च की सबसे ऊँची चोटी है। अन्य महत्वपूर्ण चोटियाँ नन्दादेवी ( 7818 मी०), नंगा पर्वत (8126 मी०), गोसाईथान (8013 मी०) कंचनजंघा (8598 मी०) मैकालू (8481 मी०), धौलागिरि (8172 मी०), आदि शिखर है। गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, कोसी, सिन्धु आदि नदियाँ इसी भाग से निकलती है।

लघु या मध्य हिमालय : यह श्रेणी महान हिमालय के दक्षिण तथा उसके समानान्तर स्थित है। इसकी औसत ऊँचाई 3000 से 5000 मीटर तथा चौड़ाई 80 से 100 कि॰मी० है। यहाँ नीस तथा ग्रेनाइट चट्टानों की अधिकता है। यहाँ केवल जाड़े की ऋतु में हिमपात होता है। गर्मी की ऋतु सुहावनी होती है। श्रीनगर, दर्त्रिलिंग, शिमला, नैनीताल, मसूरी आदि स्वास्थ्यवर्दक स्थान तथा अमरनाथ, केदारनाथ तथा वद्रीनाथ जैसे धार्मिक स्थान इसी भाग में स्थित है।

शिवालिक या वाह्य हिमालय : इसे उप-हिमालय भी कहते है। यह हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी है। इसकी ऊँचाई सबसे कम ( 600 से 1500 मी०) है। यह 8 से 48 कि॰मी० चौड़ी है। इसका विस्तार पश्चिम में पोटवार बेसिन से पूर्व में बहपपुत्र नदी तक है। यह हिमालय का सबसे नवीन भाग है। गंगा के मैदान की भाँति यह श्रेणी भी चिकनी मिट्टी बालू और कंकड़ से निर्मित है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 15.
सतलज-गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान की भू-प्रकृति का संक्षेप वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भू-प्रकृति के अनुसार उत्तर-भारत के मैदान को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है :
सतलज का मैदान : दिल्ली के निकट आरावली की उच्च भूमि जल विभाजक का कार्य करती है। इसके पश्चिमी भाग को सतलज नदी का मैदान कहते है। इस मैदान का ढाल उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर है । यह मैदान समुद्र तल से 200 से 240 मी॰ ऊँचा है। इस मैदान की प्रमुख नदियाँ सतलज, रावी, चिनाव झेलम और व्यास है।

गंगा का मैदान : यह मैदान पश्चिम में यमुना नदी के पूर्वी तट से लेकर पूर्व में बंग्लादेश तक फैला हुआ है। यह पश्चिम में चौड़ा तथा पूर्व में क्रमशः सकरा होता चला गया है। यह पश्चिम में समुद्र तल से 200 मी॰ ऊँचा तथा पूर्व में 50 मी० ऊँचा है। इसका ढाल पूर्व की ओर है। इस मैदान की प्रमुख नदी गंगा है। इसके अन्तर्गत उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल राज्य आते है।

ब्रह्मपुत्र का मैदान : इस मैदान की औसत ऊँचाई समुद्र तल से लगभग 160 मी० है। यह उत्तर में अरूणाचल प्रदेश और दक्षिण में मेघालय के बीच स्थित है। इस मैदान का निर्माण ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा हुआ है। अतः इसे ब्रह्मपुत्र घाटी भी कहते है। इस मैदान का ढाल पूर्व से पश्चिम की ओर है। यह मैदान 600 कि॰मी० लम्बा तथा 160 कि०मी० चौड़ा है। तिस्ता, लोहित आदि ब्रहमुत्र की सहायक नदियाँ है। ब्रह्मपुत्र नदी के जल में बहुत अधिक अवसाद रहते है। मैदानी भाग में आते ही इसकी गति मन्द हो जाती है। यह नदी गंगानदी से मिलकर अपने मुहाने पर विश का सबसे बड़ा डेल्टा बनाती है। इसे सुन्दरवन का डेल्टा कहते है।

प्रश्न 16.
महाबालेश्वर में पूना से अधिक वर्षा क्यों होती है।
उत्तर :
अरब सागर की मानसूनी पवनें सर्वप्रथम पश्चिमी घाट की पहाड़ियों से टकराकर पश्चिमी तटीय मैदान में 300- 500 सेमी॰ वर्षा करती है। ये मानसूनी पवने महाबालेश्वर में 625 सेमी॰ तक वर्षा कर देती है। पश्चिमीघाट पर्वत का पूर्वी भाग इन पवनों के वृष्टिछाया प्रदेश में पड़ता है। अत: यहाँ वर्षा कम होती है। इसके फलस्वरूप पून्त में 50 सेमी० से भी कम वर्षा होती है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 17.
तामिलनाडु में दो वर्षा ऋतुएँ क्यों पायी जाती हैं।
उत्तर :
ग्रीष्म काल में तामिलनाडु में दक्षिण पश्चिम मानसून से वर्ष होती है। लेकिन शीत ऋतु में बंगाल की खाड़ी के ऊपर से होकर जाने वाली उत्तरी-पूर्वी मानसूनी हवायें खाड़ी से आर्द्रता ग्रहण करके तामिलनाडु में पूर्वीघाट की पहाड़ियों से टकराकर पूर्वी तटीय मैदान में कुछ वर्षा करती है अत: तामिलनाडु में शीत काल में भी (वर्ष में दो बार) वर्षा होती है।

प्रश्न 18.
उत्तरी भारत में पूर्व से पश्चिम कम वर्षा क्यों होती है।
उत्तर :
गर्मी के दिनों में उत्तरी भारत व्यापारिक हवाओं के प्रभाव में रहते है। इन हवाओं से पूर्वी भाग में तो वर्षा होती है, पर पश्चिमी भाग में आते आते शुष्क हो जाती है, अतः महाद्वीपो के पश्चिम भाग आते-आते वर्षा कम हो जाती है।

प्रश्न 19.
भारत में जाड़े में नाममात्र की वर्षा क्यों होती है।
उत्तर :
जब सूर्य मकर रेखा पर चमकता है तो उत्तरी गोलार्द्ध में शीत ऋतु होती है। इस समय स्थल भाग समुद्र को अपेक्षा अधिक ठंडा हो जाता है जिससे मध्य एशिया में अधिक सर्दी पड़ने के कारण उच्च दाब का केन्द्र बन जाता है। इस समय हवायें स्थल भाग से समुद्र की ओर चलती है। इन्हें जाड़े की मानसूनी हवाएं कहते है। भारत में इनकी दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर होती है। अतः इन्हें उत्तरी-पूर्वी मानसून कहते है। स्थल से आने के कारण शुष्क होती है। अतः इनसे वर्षा नहीं होती।

प्रश्न 20.
थार के मरुस्थल में गर्मी एवं जाड़े के तापमान में बहुत अन्तर क्यों पाया जाता है।
उत्तर :
थार के मरूस्थल में गर्मी एवं जाड़े के तापमान में अन्तर होने के निम्न कारण है :

  1. थार का मरूस्थल राजस्थान के विल्कुल पश्चिम में स्थित है। विल्कुल शुष्क क्षेत्र में पड़ता है।
  2. यह मरुस्थल समुद्र से अधिक दूर स्थित है। इसलिए इस पर समुद्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  3. इस मरुस्थल का अधिकांश भाग बालू एवं पत्थर से निर्मित जो बहुत जल्द ग़र्म भी होते है और ठण्ड भी हो जाते है। जिससे दिन में भीषण गर्मी पड़ती है तथा रात में काफी ठण्ड पड़ती है।
  4. इस क्षेत्र में कोई भी ऊँची पहाड़ी नहीं है। जिसके कारण मानसून हवा सीधे निकल जाती है और वहाँ वर्षा नहीं होती है। अतः इन्हीं सब कारणों से थार के मरुस्थल में गर्मी एवं जाड़े में तापमान में बहुत अन्तर पाया जाता है।

प्रश्न 21.
मेघालय के पठार में सर्वाधिक वर्षा क्यों होती है।
उत्तर :
दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की बंगाल की खाड़ी की शाखा मेघालय में सबसे अधिक शक्तिशाली हो जाती है। यहाँ पश्चिम से पूर्व अर्द्धचन्द्राकार रूप में स्थित गारो, खासी एवं जयन्तियाँ पहाड़ियों से एक कीप के आकार का क्षेत्र बनता है। मानसून हवाएँ 1520 मीटर ऊँची खासी पहाड़ी से टकराकर अचानक लगभग 1300 मीटर ऊँची उढ जाती है। जिससे खासी पहाड़ी के दक्षिण पवनविमुख ढाल पर स्थित चैरापूँजी से 16 कि॰मी॰ पश्चिम स्थित मौसिनराम गांव में विश्व में सबसे अधिक वर्षा 1392 से॰मी॰ होती है।

दीर्घउत्तरीय प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 5 MARKS

प्रश्न 1.
उष्णकटिबन्धीय मौसमी जलवायु क्षेत्र की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
उष्णकटिबन्धीय मौसमी जलवायु क्षेत्र की प्रमुख विशेषताएँ :
वितरण : उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु उन क्षेत्रों में पाई जाती है, जहाँ पवनों की दिशा में पूर्णरूप से मौसम परिवर्तन हे जाता है। इस जलवायु में ग्रीष्मकाल में उष्ण महासागरो में स्थल की ओर चलनेवाली हवाओ से भारी वर्षा होती है, जबकि शीत ऋतु में स्थल से महासागरों की ओर चलनेवाली हवाएं मौसम को शुष्क बना देती है।

जलवायुविक विशेषता : मानसूनी जलवायु प्रदेशों में जलवायु उष्ण एवं आर्द्र होती है। इन प्रदेशों में वार्षिक तापान्तर अधिक मिलता है। ग्रीष्म ॠतु में अत्यधिक गर्मी पड़ती है, जबकि औसत तापमान 30° C से 38°C रहता है। भारत में उत्तरी-पश्चिमी भाग में तापमान 49°C तक हो जाता है। उत्तर भारत में मई-जून में लू (गर्म लहर) चलती है। ग्रीष्म ऋतु गरम एवं नम होती है। शीत ऋतु नवम्बर से फरवरी माह तक रहती है। शीत ऋतु का औसत तापमान 15° से 18° तक रहता है। भारत के उत्तरी भाग में न्यूनतम तापमान 5°C से भी नीचे गिर जाता है। यहाँ तापान्तर 20° से 25° तक रहता है। किन्तु समुद्र तं पर 10°C से भी कम रहता है। शीत ऋतु शीतल एवं शुष्क रहती है।

प्राकृतिक वनस्पत -विशेषता : मानसूनी प्रदेशों की वनस्पति मुख्यतः वर्षा को मात्रा पर निर्भर करता है। 200 से॰मी॰ से अधिक वर्षा वंल भागों में सदाबहार वनों में महोगनी, रबर, सिनकोना आदि तथा 100 से 200 से॰मी॰ वार्षिक वर्षा वाले भागों में साल, सा गौन, शीशम, आम आदि वृक्ष पाये जाते है। 50 से 100 से॰मी॰ वार्षिक वर्षा वाले भागों में खैर, कीकर, बबूल, इमली आदि के शुष्क वन तथा घास के मैदान पाए जाते है। 50 से०मी० से कम वर्षिक वर्षा वाले भागों में शुष्क व कँंटीली झाड़ीदार वनस्पति पाई जाती है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 2.
भारत के पश्चिमी हिमालय के भूप्रकृति का संक्षिप्त वर्णन दीजिए।
उत्तर :
पश्चिमी हिमालय (Western Himalaya) : पश्चिमी हिमालय कश्मीर से लेकर नेपाल की सीमा तक विस्तृत है। पूर्व से पश्चिम इनके निम्नलिखित उपविभाग है –
कश्मीर हिमालय (Kashmir Himalaya) : विभिन्न पर्वतों की कई शृंखलाएँ कश्मीर राज्य में अवस्थित है, जो एक ही पर्वत निर्माणकारी काल में बने है। उत्तर से दक्षिण इन पर्वतो का क्रम है – सबसे उत्तर में काराकोरम श्रृंखला है, इसके दक्षिण में लद्दाख, पुन: जास्कर, पीर पंजाल एवं शिवालिक श्रेणी की स्थानीय श्वृंखला जम्मू एवं पंच पहाड़ियाँ। पीरपंजाल एवं जास्कर पर्वत श्रेणियों के बीच विश्व प्रसिद्ध कश्मीर घाटी अवस्थित है, जो सरोवरीय निक्षेप से निर्मित है। इन्हें स्थानीय रूप से करेवा कहा जाता है। काराकोरम श्रेणी में ही गॉड़िन ऑस्टीन (K2) अवस्थित है, जो भारत की सर्वोच्च चोटी है, यद्यपि यह पाक अधिकृत कश्मीर का हिस्सा है ।

हिमांचल हिमालय (Himachal Himalaya) : यह श्वृंखला हिमाचल प्रदेश में स्थित है। उत्तर में महान हिमालय की श्रेणियां है। इसके दक्षिण में मध्यवर्ती हिमालय की चार श्रेणियाँ धौलाधर, पीरपंजाल, नाग तीवा एवं मुसौरी अवस्थित है। सबसे दक्षिण में शिवालिक पर्वत श्रेणी अवस्थित है। इस भाग में पर्यटन की दृष्टि से कई महत्वपूर्ण स्थलों का विकास हुआ है। यहाँ की अर्थव्यवस्था फलों की कृषि एवं पर्यटन पर आधारित है।

कुमायूँ या उत्तरांचल हिमालय (Kumaon or Uttaranchal Himalaya) : उत्तरांचल राज्य के उत्तरी भागों में इसका विस्तार है। इस भाग में शिवालिक एवं मध्यवर्ती हिमालय की श्रेणियां विस्तारित है। केदारनाथ, बद्रीनाथ, कामेत प्रमुख पर्वत चोटियाँ इसी भाग में है। गंगोत्री एवं यमुनोत्री हिमनद इसी भाग में अवस्थित है जिनसे, क्रमशः गंगा एवं यमुना नदियाँ निकलती है। इन भाग में कई अनुप्रस्थ घाटियाँ पायी जाती है, जिसे दून एवं दुआर कहते हैं।

प्रश्न 3.
पश्चिमी तटीय मैदान एवं पूर्व तटीय मैदान की व्यख्या कीजिए।
उत्तर :
पश्चिम तटीय मैदान (West Coastal Plain) : यह पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच में स्थित है। इसका फैलाव उत्तर में खंभात की खाड़ी से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी अंतरीप तक है (लगभग 1,600 किलोमीटर लंबा और 60 मीटर चौड़ा)। यह पहले समुद्र से घिरा द्वीप था, जो अब आसपास की नदियो द्वारा लाई मिट्टी आदि से जुड़कर प्रायद्वीप गन गया है। उत्तरी खारी मिट्टीवाली दलदल भूमि बड़ा रन (Great Rann) और उसके निकट की भूमि छोटा रन (Little Rann) के नाम से प्रसिद्ध है।

काठियावाड़ के मैदानी क्षेत्र में गिरनार पहाड़ी (1,117 मीटर) मिलती है । पश्चिमतीीय मैदान का सबसे चौड़ा भाग गुजरात का मैदान कहलाता है। गोवा तक यह तटीय मैदान ‘कोंकण तट’ (Konkan Coast) कहलाता है, गोवा से मंगलोर तक के तटीय मैदान को कर्नाटक तट और मंगलोर से कुमारी अंतरीप तक को केरल तट कहते हैं। कर्नाटक तट और केरल तट का संयुक्त नाम ‘मालाबार तट’ (Malabar Coast) हैं।

पश्चिमतटीय मैदान में नर्मदा और ताप्ती दो बड़ी नदियों के मुहाने मिलते हैं, किंतु वहाँ डेल्टा नहीं बनता (जलोढ़ की कमी और ज्वारभाटे के प्रभाव के कारण)। साबरमती, मांडवी, जुआरी, कालिंदी, सरस्वती, नेत्रवती, पेरियर आदि प्रमुख नदियाँ है जो बहुत छोटी हैं। इस तट पर कांडला, बंबई, मर्मागोवा, मंगलोर और कोचीन उत्तम प्राकृतिक पत्तन हैं। दक्षिण में खारे पानी की छोटी-छोटी झीलों (लैगुन या कपाल) की अधिकता है जिसमें कोचीन की निकटवर्ती वेम्बानद (Lake Vembanad) उल्लेखनीय है। मालाबार तट पर बालू के ढेर मिला करते हैं।

पूर्व तटीय मैदान (East Coastal Plain) : यह पूर्वी घाट और बंगाल की खाड़ी के बीच में स्थित है। इसका फैलाव उत्तर में महानदी घाटी से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक लगभग 1,500 किलोमीटर है। इसकी चौड़ाई 100 किलोमीटर से अधिक है, खास कर महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी के डेल्टाओं में (क्रमशः उड़ीसा, आध्रप्रदेश और तमिलनाहु राज्यों के अंतर्गत)। इस तटीय मैदान का आधा उत्तरी भाग ‘गोलकुंड़ा तट’ या ‘उत्तरी और दक्षिणी सरकार तट’ और आधा दक्षिणी भाग (नेलोर से कन्याकुमारी तक) ‘कोरोमंडल तट’ (Coromandal Coast) कहलाता है।

पूर्वतटीय मैदान से महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी चार बड़ी नदियाँ गुजरती हैं। इस तट पर लैगूनों का विकास भी पाया जाता है। चिल्का और पुलिकट दो प्रमुख झीलें हैं जिनका जल खारा है। भारत में खारे पानी की सबसे बड़ी झील चिल्का ही है जिसका क्षेत्रफल 780 वर्गकलोमीटर और 1,144 वर्गकिलोमीटर के बीच घटता-बढ़ता रहता है। गोदावरी-कृष्णा डेल्टाओं के बीच कोलेरू झील मिलती है जो मीठे पानी की है । इस तट पर पारादीप, विशाखापत्तनम और मद्रास प्रमुख पत्तन हैं जिनमें मद्रास का पोताश्रय कृत्रिम है। दक्षिण में तूतीकोरिन पत्तन भी कृत्रिम पोताश्रय पर विकसित है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A 1

तटीय मैदान ने विदेशी व्यापार में अपार मदद पहुँचाई है। कलकत्ता को छोड़कर सभी छोटे-बड़े पत्तन समुद्री तट पर भी स्थित हैं जो व्यापार के केन्द्र बन गए हैं। देश के भीतरी भागों से वे रेलमार्ग या सड़क द्वारा जुड़े हुए हैं। समुद्र की समीपता ने इस प्रदेश के लोगों को साहसी नाविक बनने को प्रेरित किया है। यहाँ समुद्री मछुआरे भी बहुत मिलते हैं जो मछली पकड़ने जैसे आर्थिक क्रियाशीलन में लगे हुए हैं। नारियल, गर्म मसाले, धान आदि की खेती के लिए ये महत्वपूर्ण स्थल हैं।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 4.
भारत के भू-प्रकृति को कितने भागों में बाँटा गया है ? किसी एक का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भारत की भू-प्रकृति : भारत को भूगर्भीय संरचना के आधार पर तीन भागों में बाँटा जाता है – प्रायद्वीपीय भारत का विस्तृत पठार, उत्तरी पर्वतमाला और विशाल उत्तरी मैदान। प्राकृतिक रूप और भू-आकृतियों को देखते हुए इसके निम्नलिखित विभाग किए जा सकते हैं –

  1. उत्तर और उत्तर-पूर्व के पर्वतीय भाग
  2. उत्तरी विशाल मैदान
  3. प्रायद्वीपीय पठार या दक्षिणी पठार
  4. समुद्रतटीय मैदान,
  5. भारतीय द्वीपसमूह।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A 2

उत्तर और उत्तर-पूर्व के पर्वतीय भाग : भारत के उत्तरी भाग में विस्तृत मोड़दार पर्वत मुख्य रूप से ‘हिमालय’ के नाम से विख्यात है जिसकी लंबाई लगभग 2,5000 किलोमीटर है और चौड़ाई 100 से 400 किलोमीटर है। विश्व की सर्वोच्च चोटी इसी में मिलती है (नेपाल-स्थित ‘एवरेस्ट’ ; ऊँचाई 8848 मीटर)। इस पर्वतीय भाग की औसत ऊँचाई 6000 मीटर है।

हिमालय के उत्तर में (भारत की सीमा में) तीन और समांतर पर्वतश्रेणियाँ मिलती हैं, जो ‘जस्कर श्रेणी’, ‘लद्दाख श्रेणी’ और ‘काराकोरम श्रेणी’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। जस्कर और लद्दाख श्रेणियों के बीच सिंधु नद का पश्चिमोत्तर प्रवाह-मार्ग है। काराकोरम श्रेणी में विश्व की द्वितीय सर्वोच्च चोटी ‘गाडविन आस्टिन’ K2, ऊँचाई 8,611 मीटर) मिलती है। इसी श्रेणी को (पूर्व बढ़ने पर तिब्बत में) ‘कैलाश पर्वत’ के नाम से पुकारा जाता है। पहले भारतभूमि का विस्तार उत्तर में कैलाश पर्वत श्रेणी तक था लद्दाख श्रेणी से सटा ‘लद्दाख पठार’ मिलता है जो भारत का सबसे ऊँचा पठार है (ऊँचाई 4 किलोमीटर)। इस पठार पर नदियों का आंतरिक प्रवाह पाया जाता है। उपर्युक्त तीनों हिमालय-पार की पर्वतश्रेणियाँ (Trans-Himalayan Ranges) हैं।

हिमालय का विस्तार पूर्वी भारत की सीमा पर भी देखा जा सकता है। एकाएक मुड़कर यह उत्तर-दक्षिण दिशा में फैल जाता है। वहाँ इसके अलग-अलग कई नाम हैं – पटकाई बुम, नागा पर्वतश्रेणी और लुशाई पर्वतश्रेणी। ये हिमालय की मुख्य श्रेणियाँ भले ही न हों, पर इन्हें हिमालय का विस्तार माना जाएगा। हिमालय और इन पूर्वी पर्वतश्रेणियाँ के बीच बह्मपुत्र नद का पश्चिमी प्रवाह देखा जा सकता है। हिमालय के पूर्वी छोर पर (बह्मपुत्र से पूरब) दक्षिण की ओर मुड़नेवाली उसकी एक शाखा ‘पूर्वाचल’ (Eastern mountains) है। यह भारत और म्यानमार (बर्मा) के बीच सीमा बनाती है। उत्तर-पूर्वी पर्वतश्रेणी मध्य में पश्चिम की ओर बढ़कर मेघालय तक आ गई है जहाँ इसे खासी, जयंतिया और गारो पहाड़यों के नाम से पुकारा जाता है।

उत्तर और उत्तर-पूर्व की पर्वतश्रेणियों से सटे पड़ोसी देशों में अनेक पर्वतश्रेणियाँ मिलतों हैं; जैसे – क्युनुलन, अराकान। उत्तर-पश्चिम में भी हिमालय दक्षिण की ओर मुड़ा हुआ है।

हिमालय का निर्माण टेथिस सागर में जमा हुए अवसादों (तलछटों) से हुआ। भारतीय भूखंड (प्लेट) जब उत्तर की ओर सरककर चीनी भूखंड (प्लेट) से टकराया तो दोनों भूखडों के बीच की तलछटी चट्टाने मुड़कर ऊपर उठ गई जिनसे हिमालय का निर्माण हुआ। इसके निर्माण में लाखों-करोड़ों वर्ष लगे।
मुख हिमालय सिंधु और ब्रापुत्र की सँकरी गहरी घाटियों (Gorges) के बीच स्थित है। यह तीन समांतर श्रेणियों में हिमाद्रि, हिमालय और शिवालिक में विस्तृत है।

हिमाद्रि सर्वोच्च श्रेणी है। सबसे उत्तरी श्रेणी भी यही है। भारतीय सीमा में इसकी प्रमुख चोटियाँ हैं – नंगा पर्वत ( 8,126 मीटर, कश्मीर में), नंदादेवी ( 7,817 मीटर, उत्तर प्रदेश में), कामेत ( 7,756 मीटर, उत्तर प्रदेश में), कंचनजंघा ( 8,598 मीटर, सिक्किम-नेपाल सीमा पर)। सिंधु, सतलज, गंगा, यमुना, कोसी और बहलपुत्र नदियों का उद्गम हिमाद्रि (वृहल हिमालय) ही है। सिया-ला, मारणो-ला, ससेर ला, उमासी ला, बुर्जील, जोंजिला माना ला, शिपकी ला, जलेप ला, नाथू-ला, ऋषि-ला, बोमाडि-ला, से-ला आदि हिमालय के कुछ प्रसिद्ध दर्रे (Gaps) हैं। हिमाद्रि में 6,000 मीटर से अधिक ऊँची चोटियाँ सौ से अधिक हैं और ये सभी हिमाच्छादित हैं।

हिमाचल वास्तव में मध्य हिमालय है जिसमे नदी-घाटियाँ और हिम-घाटियाँ मिलती हैं। यहाँ नदी-अपहरण के लक्षण भी दृष्टिगोचर होते हैं। कश्मीर और काठमांडू की चित्ताकर्षक घाटियाँ इसी भाग में हैं। कश्मीर-घाटी को ‘पृध्वी का स्वर्ग’ कहा गया है। झेलम नदी इसी घाटी से होकर बहती है। इसमे डल और वुलर (Dal and Wular lakes) मीठे जल की दो प्रसिद्ध झीलें अवस्थित हैं। वुलर मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है (भारत में)। डल के किनारे श्रीनगर बसा है जहाँ पहुँचने के लिए पीरपंजाल श्रेणी के बनिहाल दरें से होकर जाना पड़ता है। वहाँ ढाई किलोमीटर लंबा जबाहर सुरंग (Jawahar Tunnel) बनाया जा चुका है। कश्मीर में हिमचाल का पीरपंजाल कहकर पुकारते हैं। कुलू और काँगड़ा की प्रसिद्ध घाटयाँ भी हिमाचल में ही मिलती हैं। शिमला, मसूरी, नैनीताल, दार्जिलिंग आदि प्रसिद्ध पर्वतीय नगर तथा केदारनाथ, बदरीनाथ और अमरनाथ जैसे पावन तीर्थस्थल हिमालय के इसी भाग में बसे हैं। इसकी औसत ऊँचाई 4,000 मीटर है। हिमाचल को ‘लघु हिमालय’ भी कहा गया है।

शिवालिक हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी है जिसकी ऊचाई 900 से 1500 मीटर के बीच है। यहु हिमालय की नवीनतम रचना है। इसमें कंकड और मिट्टी से बने कई ऊँचे मैदान मिलते हैं जिन्हे ‘दून’ या ‘द्वार’ कहते हैं(उदाहरणार्थदेहरादून, हरिद्वार) । इन ऊँचे मैदानों की स्थिति हिमाचल और शिवालिक के बीच में है। इस भाग में अनेक झ़ीले मिलती है जो ‘ताल’ कहलाती है (उदाहरणार्थ-नैनीताल, भीमताल)। शिवालिक और इसकी तराई में घने वन मिलते हैं।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A 3

हिमालय भारत का प्रहरी ही नहीं, जलवायविक दशाओं का नियंत्रक भी है। मानसून पवनों के मार्ग में खड़ा होकर यह उनसे वर्षा कराता है। हिमालय न होता तो उत्तरी विशाल मैदान अस्तित्व में न आ पाता। इसंकी तलहटी में प्राकृतिक गैस और खनिज तेल के भंडार है। पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ते हुए हिमालय को इन नामों से भी पुकारा जाता है –

  1. कश्मीर हिमालय
  2. पंजाब हिमालय
  3. कुमायूँ हिमालय (काली और तिस्ता नदियो के बीच का हिमालय)
  4. नेपाल हिमतालय
  5. असम हिमालय (तिस्ता और ब्रह्नपुत्र के बीच का हिमालय)।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 5.
उत्तर भारत के विशाल मैदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
उत्तरी भारत के विशाल मैदान : यह मैदान हिमालय के दक्षिण करीबन 2,400 किलोमीटर में (पूर्वपश्चिम) फैला हुआ है। इसकी चौड़ाई 240 से 300 किलोमीटर (उत्तर-दक्षिण) है। यह समतल है और इसमे कोई पर्वत नहीं है। सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों के जलोढ़-निक्षेपों (Alluvial deposits) से बना यह विशाल मैदान 300 मीटर से भी कम ऊँचा है और अत्यंत उपजाऊ है। इसका निर्माण हिमालय के निर्माण के बाद टेथिस सागर के बचे तलछटों से हुआ है। इस मैदान में जलोढ़-निक्षेपों की मोटाई 2 हजार मीटर से भी अधिक है।

यह विशाल मैदान एक इकाई होते हुए भी चार उपविभागों में बंटा हुआ. है – i. पंजाब का मैदान, ii. राजस्थान का मैदान, iii. गंगा का मैदान, (iv) बह्मपुत्र का मैदान।

i. पंजाब का मैदान : उत्तरी विशाल मैदान का यह सबसे पश्चिमी भाग है जिसकी ऊँचाई 200 से 250 मीटर (समुद्रतल से) है। इसके उत्तर में हिमालय और दक्षिण में राजस्थान का मरुस्थल है। इसकी ढाल दक्षिण-पश्चिम की ओर है। सतलज इस मैदान की प्रमुख नदी है। सतलज के नाम से इसे ‘सतलज का मैदान’ भी कहा जाता है। दिल्ली पहाड़ी या सरहिंद जलविभाजक (300 मीटर ऊँचा) द्वारा यह गंगा के मैदान से अलग होता है। मैदान का विस्तार पश्चिम में सिंधु नदी के पार तक है जो अब पाकिस्तान में है। यहाँ नहरों का जाल बिछा हुआ है।

ii. राजस्थन का मैदान : यह अरावली के पश्चिम में विस्तृत है, किन्तु जलवायु-परिवर्तन के कारण यह मैदान रेतीला बन गया है। यहाँ बालू के टीलों की प्रधानता है। लूनी इस मैदान की एकमात्र नदी है। खारे जल की झीलें अनेक हैं जिसमें साँभर सर्वप्रमुख है।

iii. गंगा का मैदान : यह मुख्यतः पश्चिम में यमुना और पूर्व में ब्रह्मपुत्र के बीच का समतल भाग है जिसकी ढाल दक्षिण-पूर्व की ओर है। ढाल इतना मंद है कि साधारणतया पता ही नहीं चलता। इसकी लंबाई 1,400 किलोमीटर और चोड़ाई 140 से 500 किलोमीटर है। गंगा सर्वप्रमुख नदी है जिसके नाम पर इसे गंगा का मैदान कहा गया है। गंगा अनेक सहायक नदियों का जल, कीचड़ और बालू लेकर आगे बढ़ती है, अतः यहाँ हर साल बाढ़ के समय नई मिट्टी बिछ जाती है। इस मैदान में पुरानी तलछट (Older alluvium) नई तलछट (Newer alluvium) दोनों की परते पाई जाती हैं जिन्हे क्रमश: ‘बाँगर’ और ‘खादर’ कहा गया है। बाँगर उच्च भाग है और बाढ़ से बच जाता है। खादर निम्न भाग होने के कारण बाढ़ के समय जलमग्न हो जाता है।

‘चौर’ भी निम्न भाग है। बह्मपुत्र के साथ मिलकर गांगा अपने मुहाने पर ‘डेल्टा’ बनाती है जो संसार में सबसे बड़ा है। गंगा के डेल्टा में दलदल भूमि मिलती है जो ज्वारभाटा या वर्षाजल से भरकर ‘बील’ की संज्ञा पाती है। यहाँ मछलियाँ खूब पकड़ी जाती है। डेल्टा का अधिकतर भाग बँगलादेश में पड़ गया है। यह ‘सुंदरवन’ के नाम से भी प्रसिद्ध है। डेल्टा के अग्र भाग में कई द्वीप मिलते हैं ;

जैसे – सागर द्वीप। हाल में बने द्वीप का नाम पुनर्वासा रखा गया है। गंगा की पश्चिमी शाखा भागीरथी के नाम से प्रसिद्ध है जो आगे बढ़कर हुगली कहलाती है। हुगली में ज्वार के प्रवेश करने पर ही बड़े-बड़े समुद्री जहाज उसके साथ कलकत्ता पहुँच पाते हैं। गंगा के मैदान के तीन भाग किए जाते हैं –

  • ऊपरी गंगा का मैदान (प्रयाग तक),
  • मध्य गंगा का मैदान (प्रयाग से राजमहल तक) और
  • निम्न गंगा का मैदान (पश्चिम बंगाल में)। निम्नभाग में गंगा डेल्टा बनाती है।

ब्रह्मपुत्र का मैदान : उत्तरी विशाल मैदान का सबसे पूर्वी भाग बहापुत्र का मैदान है जिसकी ढ़ाल पूर्व से पश्चिमी की और है। गह मैदान लगभग 600 किलोमीटर लंबा और 100 किलोमीटर चौड़ा है। इसकी सामान्य ऊँचाई 150 मीटर है। यह रेंप घाटी (Ramp valley) है जो ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों द्वारा जमा की गई मिट्टी, बालू और कंकड़ों के निक्षेप से वर्तमान रूप में आई है। इस मैदान में भीषण बाढ़ आती है और उससे भारी क्षति पहुँचती है। इस मैदान को पार कर ब्रह्मपुत्र नदी दक्षिण की ओर मुड़ती है और गंगा से मिलकर डेल्टा बनाती है। गंगा और ब्रह्मपुत्र की संयुक्त धारा ‘मेघना’ कहलाती है। तिस्ता, सुवनसिरी और लोहित ब्रह्मपुत्र की कुछ सहायक नदियाँ हैं।

बहापुत्र के मैदान की दो दिशेषताएँ ध्यान देने योग्य हैं – i. तेजपुर से धुबरी के बीच नदी के दोनों ओर एकाकी घर्षित पहाड़ियाँ (Monadnocks) बहुत अधिक है, ii. भूमि की मंद ढाल के कारण नदी गुंफित (Braided) हो गई है जिससे इसकी पेटी में असंख्य द्वीप (River Islands) बन गए हैं। एक ऐसा द्वीप ‘मजुली’ (क्षेत्रफल 929 वर्गकिलोमीटर) है जो विश्व का सबसे बड़ा नदी-द्वीप है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 6.
प्रायद्वीपीय पठार को कितने में बांटा गया है? किन्हीं एक का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
प्रायद्वीपीय पठार : दक्षिणी भारत प्रायद्वीप है और सबसे पुराना पठार भी। यह ग्राचीन गोंडवानाभूमि का एक खंड है और मुख्य रूप से कड़ी रवादार चट्टानों (Hard crystalline rocks) से बना हुआ है। इसकी ऊँचाई मुख्यत: 400 से 900 मीटर तक है। यह उत्तर की और चौड़ा और दक्षिण की ओर पतला होता गया है। इसके तीनों ओर पहाड़ियाँ मिलती हैं – उत्तर में अरावली, विध्याचल और सतपुरा; पश्चिम में पश्चिमी घाट (सह्याद्रि) और पूर्व में पूर्वी घाट। विंध्याचल और सतपुरा के बीच नर्मदा की भंश-घाटी (Rift valley) है जो प्रायद्वीपीय पठार को दो स्पष्ट भागों में बाँट देती है – उत्तर-स्थित उच्चभूमि (Highlands) और दक्षिण-स्थित डेक्कन या दक्कन का पठार (Deccan Plateau)।

उत्तरी उच्चभूमि – दक्षिण भारत के पश्चि्चोत्तर (राजस्थान) में अरावली श्रेणी मिलती है। यह अवशिष्ट पर्वत है जिसकी एक शाखा दिल्ली की ओर चली गई है (Delhi Ridge)। अरावली की अधिकतम ऊँचाई अब 1,722 मीटर रह गई है (आबू-स्थित गुरु शिखर)। यह हिमालय से भी पुराना पहाड़ है। इसे विश्व का सबसे पुराना वलित पर्वत माना जाता है। इससे सटे पूर्व में पूर्वी राजस्थान की उच्चभूमि है जो 500 मीटर तक ऊँची है।

इससे पूर्व की ओर बढ़ने पर क्रमश: ‘बुंदेलखण्ड पठार’, ‘बघेलखंड पठार’ और ‘छोटानागपुर पठार’ मिलते हैं। चंबल, बेतवा और सोन इस भाग की प्रमुख नदियाँ हैं जो उत्तर की ओर (गंगा के मैदान की ओर) बहती हैं। बुंदेलखण्ड पठार को यमुना-पार का मैदान भी कहा जाता है, कितु यह ग्रेनाइटी चट्टान की उच्चभूमि है जिसकी ऊँचाई 350 मीटर तक है। इसमें कई सुंदर जलप्रपात मिलते हैं। यहाँ चंबल, बेतवा और सोन नदियों ने ग्रेनाइटी सतह पर मिट्टी का निक्षेप कर रखा है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A 4

अरावली के दक्षिण से पूर्व की ओर बढ़ने पर ‘मालवा पठार’ मिलता है जो लावानिर्मित है। इससे पूर्व बढ़ने पर सीढीनुमा उच्चभूमि मिलती है। यह क्षेत्र ‘विंध्याचल की पाटभूमि’ है जिसमें बालूपत्थरों की प्रधानता है। विध्य पर्वत मध्यप्रदेश के आरपार चला गया है। इसमें कोई शिखर नहीं मिलता। इसके दक्षिण में उससे सटे नर्मदा-घाटी है जिसके बाद सतपुरा की श्रेणी मिलती है। सतपुरा के पूर्व में महादेव पहाड़ी (1,117 मीटर) है जिससे पूरब बढ़ने पर मैकाल की पहाड़ियाँ मिलती हैं (सर्वोच्च चोटी अमरकंटक, 1,0136 मीटर)।

महादेव पहाड़ी पर ही पंचमढ़ी नगर (1,062 मीटर) स्थित है। मैकाल से पूरब बढ़ने पर ‘छोटानागपुर पठार, आ जाता है। यह पठार रिहंद नदी से लेकर राजमहल की पहाड़ियों तक विस्तृत है। राजमहल पर जुरैसिक काल के लावा निक्षेप मिलते हैं। छोटानागुर पठार के अंतर्गत राँची, हजारीबाग और कोडरमा के उप-पठार सम्मिलित है जहाँ ग्रेनाइट-नाइप चट्टानें मिलती हैं। सबस ऊँचे राँची पठार की ऊँचाई 600 मीटर है। छोटानागपुर पठार की प्रमुख नदियाँ सोन, कोयल, दामोदर, बराकर, स्वर्ण रेखा और शंख हैं।

दामोदर की भ्रंशा घाटी इसी में है जहाँ गोंडवाना काल का कोयला-भंडार उपलब्ध है। कोडरमा की रूपांतरित चट्टानों में अभक भंडार है। छोटानागपुर पठार कितने ही खनिजों से भरा है और ‘भारतीय खनिजों का भंडारघर’ (Storehoue of Indian Minerals) कहलाता है। सुदूर पूर्व में ‘मेघालय पठार’ है जो कट-छँटकर गारो, खासी और जयतिया पहाड़ियाँ कहलाता है। खासी पहाड़ी का आंतरिक भाग ‘शिलंग पठार’ के नाम से प्रसिद्ध है। मेघालय की उत्तरी सीमा पर बह्मपुत्र नदी पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है।

उत्तरी उच्चभूमि से सटे अरावली के पश्चिम में दूर तक मरुभूमि मिलती है जो ‘थार मरुस्थल’ (The-Desert) के नाम से प्रसिद्ध है। यह प्रायद्वीपीय भारत का पश्चिमोत्तर भाग है, जो कभी हराभरा प्रदेश था। यह प्राचीन सभ्यता का केंद्र रह चुका है। सभ्यता के अत्यधिक विकास से इस क्षेत्र का वन-वैभव समाप्त हो गया, फलतः यह वर्षाविहीन हो गया। वनों की अंधाधुंध कटाई ने इसे वीरान ही नहीं बनाया, यहाँ की नंगी पहाड़ियों को बाह्य प्राकृतिक शक्तियों के आगे घुटने टेकने को मजबूर भी कर दिया।

यह क्षेत्र सिकताकणों में बदल गया। वह बालूमय प्रदेश पौराणिक सरस्वती नदी को पाताल ले गया। आज दक्षिणी भाग में एकमात्र लूनी नदी मिलती है। इस प्रदेश की पुरानी नदियों में कुछ ने मार्ग-परिवर्तन कर लिया (जैसे सतलज ने) और कुछ लुप्त हो गई (जैसे सरस्वती)। ताप की अधिकता और वर्षा के अभाव में चट्टानों का टूटना जारी है। अपरदित छत्रकशिलाएँ और बालुकास्तूप यहाँ की सामान्य स्थलाकृतियाँ हैं। थार मरुस्थल का विस्तार ढाई लाख वर्गकिलोमीटर पहुँच चुका है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 7.
दक्कन के पठार का सक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
प्रायद्वीपीय या दक्कन के पठार की भू-प्रकृति लिखिए।
उत्तर :
दक्कन का पठार : दक्षिण भारत का यह भाग उत्तरी उच्चभूमि की अपेक्षा अधिक ऊँचा और अधिक विस्तृत है। यह अत्यंत पुरानी, कड़ी और रवादार परिवर्तित चट्टानों से बना है। उत्तर – पश्चिमी भाग लावा-प्रदेश (Lava Region or Deccan Trap) है जहाँ अनक चपटे पहाड़ मिलते हैं; जैसे – सतपुरा, अजंता। सतपुरा से ही दक्कन पठार आरंभ होता है। सतपुरा का सबसे ऊँचा भाग धुपगढ़ चोटी (1,350 मीटर) है। अजंता पहाड़ ताप्ती के दक्षिण में है। बैसाल्ट चट्टानों से बने लावाप्रदेश में रेगुड़ या काली मिट्टी (Regur or black soil) मिलती है जो कपास की उपज के लिए बहुत प्रसिद्ध है। अजंता पहाड़ ताप्ती नदी के भंश-क्षेत्र में है जिसके दक्षिण में बालाघाट है। इन दोनों के बीच गोदावरी-घाटी है। बालाघाट के दक्षिण में भीमाघाटी है जिसके दक्षिण कृष्णा का उद्गम क्षेत्र है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A 5

ताप्ती को छोड़कर सभी नदियाँ दक्षिण-पूर्व की ओर बहती है। दक्कन के पठार का पश्चिमी किनारा भंशन (Faulting) के कारण सीधी और खड़ी दालवाला है जो पश्चिमी घाट बनाता है। पश्चिमी घाट के कई नाम हैं (विभिन्न क्षेत्रों में); यथा- सह्याद्रि पर्बत, नीलगिरि और कार्डेमम। पश्चिमी घाट का विस्तार ताप्ती नदी से लेकर कन्याकुमारी तक है। दक्षिण की ओर इसकी ऊँचाई बढ़ती जाती है। सबसे अधिक ऊँचाई अनयमुदी चोटी की है (2,695 मीटर) और यह अनयमलव पहाड़ी में है (केरल राज्यांतर्गत)।

अनयमुदी ही दक्षिण भारत की सबसे ऊँची चोटी है। नीलगिरि की सबसे ऊँची चोटी दोदाबेटा की ऊँचाई अपेक्षाकृत कम है (2,680 मीटर)। दक्षिण भारत का सबसे सुंदर पर्वतीय नगर ‘ऊटी’ (ऊटकमंड) यहीं स्थित है। पश्चिमी घाट की शिखरेखा के लिए स्थानीय नाम ‘घाटमाथा’ है। पश्चिमी घाट में तीन महत्वपूर्ण दर्रे (Gaps) मिलते हैं – थालघाट, भोरघाट और पालघाट। इनमें प्रथम दो महाराष्ट्र राज्य में पड़ते हैं और अंतिम केरल को तमिलनाडु से मिलाता है।

दक्कन के पठार का दक्षिण-पूर्वी भाग मुख्य दक्कन प्रदेश (Main Deccan Region) कहलाता है जहाँ पूर्वी घाट की पहाड़ियाँ मिलती हैं। पश्चिमी घाट की तरह पूर्वी घाट श्रृंखलाबद्ध या अविच्छित्र नहीं है और इसकी ऊँचाई भी उतनी अधिक नहीं है। उड़ीसा का महेंद्रगिरि, आंधप्रदेश के नलामलय, पालकोंडा, वेलीकोंडा, तथा तमिलनाडु के पचामलय और शिवराय पूर्वी घाट के ही अंग है। सर्वोच्च भाग वह है जहाँ पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट आपस में मिलते हैं।

यही भाग ‘नीलगिरि’ कहलाता है जिसकी सबसे ऊँची चोटी दोदाबेटा है। प्राचीन नाइस और ग्रेनाइट चट्टानों से बने इस पठार में लाल मिट्टी (Red soil) मिलती है जो अधिक उपजाऊ नहीं होती। भूमि की ढाल पूर्व की ओर है जो महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों के मार्गों से ज्ञात होता है। दक्षिणी पठार के इस भाग, तेलंगाना और कर्नाटक या मैसूर पठार’ के नाम से भी जाना जाता है। बाबाबूदन पहाड़ी (Iron Hill) यहीं है जो 1,925 मीटर ऊँची है।

प्रायद्वीपीय पठार रत्मगर्भा है। यहाँ लोहा, कोयला, ताँबा, मैंगनीज, अभ्रक, चूनापत्थर, सोना, हीरा इत्यादि खनिज द्रव्य प्राप्त हैं। पहाड़ी भूमि होने के कारण यहाँ वनवैभव भी मिलता है, कितु वनों का विस्तार सीमित क्षेत्र में है। अधिकतर भाग वनविहीन है। भूमि भी अनुर्वर है। हाँ, जलविद्युत उत्पादन में यह आगे है। पहाड़ी नदियों से और अधिक जलशक्ति का विकास किया जा सकता है। लावा के विखंडन से प्राप्त काली मिट्टी के क्षेत्र कपास-उत्पादन के लिए अत्युत्तम सिद्ध हुए हैं। पूर्व और पश्चिम में तटीय मैदान है। सुदूर दक्षिणी छोर कन्याकुमारी अंतरीप बनाता है।

प्रश्न 8.
आर्थिक दृष्टिकोण से नदियों के महत्व का उल्लेख करें।
उत्तर :
भारतीय अर्थव्यवस्था में नदियों के निम्नांकित महत्व हैं –

  1. ये सिंचाई के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। भारत की आधी सिंचित भूमि नदियों से निकली नहरों द्वारा सींची जाती है।
  2. ये बाढ़ के समय नई मिट्टियाँ बिछाकर मैदानी भाग में उर्वरा-शक्ति बढ़ाती हैं। सारा मैदानी भाग नदियों की मिट्टी से ही बना होने के कारण उपजाऊ है।
  3. ये यातायात का साधन रही हैं । प्राचीन और मध्ययुग में नदियों से ही अधिक व्यापार होता था। आज भी ब्रह्यपुत्र, गंगा और यमुना में दूर-दूर तक स्टीमर चलते हैं।
  4. ये जलविद्युत उत्पन्न कर रही हैं और जलशक्ति का संभावित भंडार हैं।
  5. भारत में अधिकतर मछलियाँ नदियों में ही पकड़ी जाती हैं।
  6. ये उद्योग-केन्द्रों और नगरों की स्थापना और विकास में मदद पहुँचाती हैं ; जैसे – स्वणरिखा के किनारे जमशेद्युर की स्थिति।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 9.
बहुउद्देशीय नदी घाटी योजना से आप क्या समझते हो ?
उत्तर :
बहुउद्देश्यीय नदी घाटी योजना (Multipurpose River Valley Project) : वहुउद्देशीय नदी घाटी योजना के अन्तर्गत नदियाँ हमारे आर्थिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसका उपयोग केवल सिंचाई और यातायात के लिए ही नहीं बल्कि विभिन्न कार्यों के लिए किया जा रहा है । ऐसी नदी घाटी योजनाएँ तैयार की गई है जिनमें निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा गया है।

  1. सिंचाई की समुचित व्यवस्था करना
  2. जल विद्युत उत्पादन पर बल देना
  3. नदियों में बाढ़ जैसे प्रकोप की रोकथाम करना
  4. मिट्टी का कटाव रोका जाय तथा मिट्टी का रक्षा करना
  5. जल एकत्र करने के लिए झीलें बनाई जाती हैं ताकि उनमें मत्स्य पालन किया जा सके
  6. नौका विहार के द्वारा मनोरंजन का साधन
  7. पीने योग्य पानी की सुविधा उपलब्ध करना
  8. मलेरिया जैसे खरतनाक बिमारी पर रोकथाम लगाना
  9. वनों के क्षेत्र का विस्तार करना, तथा
  10. स्वास्थवर्द्धक स्थान बनाया जाना आदि।

भारत में निम्नलिखित नदी घाटी योजनाएँ हैं : –

  1. दामोदर घाटी योजना – पश्चिम बंगाल तथा झारखण्ड राज्य
  2. महनदी योजना – उड़िसा
  3. मयूराक्षी योजना – पश्चिम बंगाल तथा झारखण्ड
  4. कंसावती योजना – पश्चिम बंगाल
  5. कोसी योजना – बिहार तथा नेपाल
  6. रिहण्ड बांध योजना – उत्तर प्रदेश
  7. भाखड़ा नांगल योजना – पंजाब
  8. नागार्जुन सागर योजना – आन्ध्र प्रदेश
  9. फरक्का योजना – पश्चिम बंगाल

प्रश्न 10.
भारत की जलवायु का आर्थिक जीवन पर क्या प्रभाव है ? वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भारत की जलवायु का आर्थिक जीवन पर प्रभाव :

  1. गर्मी में उच्च तापमान और ग्रीष्मकालीन वर्षा के कारण भारतीय जलवायु में कुछ विशिष्ट फसलों की खेती होती है; जैसे – धान, जूट और चाय । ये फसलें मानसूनी जलवायु की ही उपज हैं।
  2. धान की खेती से अधिकाधिक लोगों का भरण-पोषण संभव है, अत: ऐसे क्षेत्र घने आबाद होते हैं।
  3. अधिक गर्मी पड़ने के कारण लोग सुस्त हुआ करते हैं जो आर्थिक विकास के लिए बाधक है।
  4. वर्षभर वर्षा न होने के कारण लोगों को शुष्क ऋतु में बेकार रहना पड़ता है। कृषिकार्य मुख्य रूप से वर्षा शूरू होने पर ही आरंभ होता है।
  5. वर्षा के असमान वितरण के कारण सिंचाई-व्यवस्था करनी पड़ती है।
  6. कहा गया है – मनसून वह धुरी है जिसपर भारत का समस्त जीवनचक्र घूमता है। तात्पर्य यह है कि इसी पर भारत की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। भारतीय कृषि को मानसून के साथ जुआ खेलना कहा गया है।
  7. पश्चिमोत्तर भारत में शीतकालीन वर्षा के कारण गेहूँ, जौ आदि की अच्छी उपज होती है।
  8. चक्रवाती या तूफानी वर्षा से फसलों, पशुओं और गरीब लोगों को बहुत नुकसान पहुँचता है। ओलों से खड़ी फसलें मारी जाती हैं।
  9. अधिक वर्षा से कुछ क्षेत्रों में भीषण बाढ़ आती है।
  10. मूसलधार वर्षा से मिट्टी का कटाव होने लगता है।
  11. अत्यल्प वर्षा के क्षेत्र मरूस्थलों में परिणत होने लगते हैं।

प्रश्न 11.
प्रायद्वीपीय भारत या दक्षिणी पठारी भाग से निकलने वाली नदियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
प्रायद्वीपीय भारत या दक्षिणी पठार से निकलनेवाली नदियाँ :- प्रारद्वीपीय पठार से निकलनेवाली नदियाँ अनुगामी या अनुवर्ती नदी-प्रणाली के अंतर्गत आती हैं। हिमालय की नदियों के विपरीत इनके विकास में धरातलीय स्वरूप का प्रभाव प्रमुख है । ये हिमालय की नदियों से अधिक पुरानी भी हैं। नर्मदा और ताप्ती तथा बगाल की खाड़ी में गिरनेवाली कितनी ही नदियों ने कटाव के चरम स्तर या आधारतल को प्राप्त कर लिया है। इन नदियों का अपरदन-कार्य नगण्य रह गया है। ये नदियाँ अंतिम अवस्था में अपेक्षाकृत चौड़ी और छिछली घाटियाँ बनाती हैं। इनमें पुराने होने के अर्थात् वृद्धावस्था के सभी लक्षण विद्यमान हैं।

पठार की नदियों में कुछ ऐसी हैं जो भंश-घाटियों में बहती हैं। नर्मदा और ताप्ती ऐसी ही नदियों के उदाहरण हैं। पूर्वी भाग में दामोदर भी भंशघाटी में बहनेवाली नदी है। नर्मदा की लंबाई 1,312 किलोमीटर, ताप्ती की 724 किलोमीटर और दामोदर की 541 किलोमीटर है। नर्मदा की घाटी में संगमरमर और दामोदर की घाटी में कोयला प्राप्य हैं।

पश्चिमोत्तर भाग में एकमात्र नदी लूनी समुद्र तक पहुँच पाती है, शेष थार मरुभूमि में अपना अस्तित्व खो बैठती हैं। मरुस्थलीय भाग आतंरिक अपवाह क्षेत्र है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A 6

प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ उत्तर की नदियों से सर्वथा भिन्न हैं । ये बरसाती हैं और जल के लिए मानसून पर पूरी तरह आश्रित हैं। बहाव की दिशा को देखते हुए इन्हें भी तीन भागों में बाँटा जा सकता है –

  1. नर्मदा और ताप्ती जो पश्चिम की ओर बहती है
  2. महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी और वैगाई जो पूर्व की ओर बहती है तथा
  3. चंबल, बेतवा, सोन इत्यादि नदियाँ जो उत्तर की ओर बहती हैं।

दक्षिण की नदियों में सबसे बड़ी गोदावरी है, जिसकी लंबाई 1,465 किलोमीटर है । गंगा के बाद भारत में सबसे बड़ा नदी-प्रदेश इसी का है – देश के समस्त क्षेत्र का दशांश। गोदावरी पश्चिमी घाट से (नासिक के निकट) निकलकर महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और आंधप्रदेश राज्यों से होकर बहती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है । अपने मुहाने पर यह डेल्टा-निर्माण करती है । पेनगंगा, वर्धा और इंद्रवती इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।

महानदी गोदावरी से उत्तर है जो मध्यप्रदेश और उड़ीसा राज्यों में बहती हुई बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। यह भी अपने मुहाने पर डेल्टा-निर्माण करती है। चिल्का झील की स्थिति इसके मुहाने के निकट है। महानदी पर भी हीराकुंड बाँध बनाया गया है। यह लगभग 900 किलोमीटर लंबी है।

कृष्णा गोदावरी से दक्षिण है जो महाबालेश्वर के निकट पश्चिमी घाट से निकलकर महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंधप्रदेश राज्यों से होकर बहती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है (लंबाई 1,290 किलोमीटर)। दक्षिण भारत की यह दूसरी बड़ी नदी है। भीमा, तुंगभद्रा और मूसी इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। अमरावती, विजयवाड़ा, कृष्णा नदी के ही तट पर स्थित हैं।

कावेरी नदी पश्चिमी घाट के बहागिरि से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है (लम्बाई 760 मिलोमीटर)। कृष्णराज सागर बाँध इसी पर है। इसका डेल्टा बड़ा ही उपजाऊ है। पवित्रता के कारण कावेरी ‘दक्षिण की गंगा’ कहलाती है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 12.
भारतीय वनस्पतियों का वर्गीकरण कर किसी एक का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भारत में विशाल वृक्षों से लेकर झाड़ियों और घास तक, अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। उष्णक्षेत्रीय, शीतोष्णक्षेत्रीय और उच्च पर्वतीय सभी प्रकार की वनस्पतियाँ यहाँउगती हैं। वनस्पति की विविधता देखते ही बनती है। वर्षा की मात्रो, धरातल के स्वरूप तथा वृक्षों की जाति के आधार पर भारतीय वनों की निम्नलिखित पाँच पेटियाँ हैं –

  1. चिरहरित वन की पेटियाँ
  2. पर्णपाती वन या पतझड़ मानसून वन की पेटियाँ
  3. शुष्क और कँटीले वन की पेटी
  4. पर्वतीय वन की पेटी
  5. ज्वारीय वन की पेटियाँ।

चिरहरित वन की पेटियाँ : ये पेटियाँ उण्ण एवं अधिक वर्षावाले (200 से॰मी॰ या इससे अधिक) क्षेत्रों में हैं। पश्चिमी घाट, अंडमान द्वीप, हिमालय की तराई, पूर्वी हिमालय के उप-प्रदेश तथा असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिजोराम, त्रिपुरा ऐसे ही क्षेत्र हैं। पश्चिमी घाट में चिरहरित वन के क्षेत्र 450 से 1,350 मीटर की ऊँचाई के बीच और असम में 1,000 मीटर की ऊँचाई तक मिलते हैं। वैसे क्षेत्रों में जहाँ 250 से०मी॰ से अधिक वर्षा होती है, ये वन विशेष रूप से सघन हैं। जहाँ अकेक्षाकृत कम वर्षा है, ये वन चिरहरित से अर्द्ध-चिरहरित में बदल जाते हैं।

उच्च तापमान एवं अधिक वर्षा के कारण ही ये वन अत्यंत घने होते हैं और इनमें पेड़ों की उँचाई 30-40 मीटर तक चली जाती है। पेड़ों के ऊपरी सिरों सर इतनी शाखाएँ होती हैं कि पेड़ छाते का आकार ले लेते हैं। विषुवतीय वनों की तरह ही इनकी लकड़ी कड़ी होती है। प्रमुख पेड़ महोगनी, आबनूस, बेंत, बाँस, जारूल, ताड़ , सिनकोना और रबर हैं। बाँस मुख्यतः नदियों के किनारे और रबर पश्चिमी घाट तथा अंड्रमान में मिलते हैं। इन वनों में प्रवेश कर लकड़ी काटना कठिन कार्य है (एक तो लकड़ी कड़ी और भारी होती है, और दूसरे, एक स्थान पर एक ही किस्म के पेड़ न मिलकर अनेक प्रकार के पेड़ मिला करते है)।

प्रश्न 13.
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित है –
स्थिति एवं अक्षांशीय विस्तार : भारत वर्ष उत्तरी गोलार्द्ध में 8° 4 उत्तरी अर्षांश से लेकर 37° 6 उत्तरी अक्षांश तक विस्तार है। कर्क रेखा देश के मध्य से गुजरती है। कर्क रेखा के उत्तर का भाग शीतोष्ण कटिबन्ध में तथा दक्षिण का भाग उष्ण कटिबन्ध के अन्तर्गत भूमध्यरेखा के निकट स्थित होने के कारण वर्षभर तापमान ऊँचा रहला है तथा दैनिक तथा वार्षिक तापान्तर कम होने के साथ दक्षिण भारत में सम जलवायु पाई जाती है। जबकि उत्तरी भारत में विषम जलवायु पाई जाती है।

हिमालय का प्रभाव : देश की उत्तरी सीमा पर स्थित हिमालय पर्वत एक प्रभावी जलवायु विभाजक की भूमिका का निर्वाह करता है। हिमालय पर्वत दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी हवाओं को रोककर भारत में वर्षा करता है। तथा शीतकाल में मध्य एशिया से चलने वाली ठण्डी शीतल हवाओं को भारत में प्रवेश करने से रोककर उत्तर भारत को और शीतल होने से बचाती है।

भू-प्रकृति : भारत की भू-प्रकृति तापमान, वायुदाब पवनो की गति एवं दिशा तथा ढाल की मात्रा और वितरण को प्रभावित करता वर्षा ऋतु में पश्चिमी घाट पर्वत तथा असम के पवनविमुखी ढाल अधिक वर्षा प्राप्त करते है जबकि इसी दौरान पवनाविमुखी स्थिति के कारण दक्षिणी पठार कम वर्षा प्राप्त करता है।

समुद्र से दूरी : भारत के पूर्वी तटीय एवं पश्चिमी तटीय प्रदेशों में समकारी जलवायु पाई जाती है तथा समुद्र से दूर स्थित भागों में महाद्वीपीय जलवायु पायी जाती है। अर्थात तटीय भागों में ग्रीष्मकाल ठण्डा रहता है तथा शीतकाल में गर्म रहता है जबकि आन्तरिक भागों में ग्रीष्मकाल में अधिक गर्मी तथा शीतकाल में अधिक ठण्डक पड़ती है।

मानसूनी हवाएं : भारत की जलवायु पर मानसूनी हवाओ का प्रभाव पड़ता है। भारत की 90 % वर्षा मानसूनी हवाओं द्वारा ही होती है। अधिकांश वर्षा एक ऋतु विशेष में जून से सितम्बर के बीच हो जाती है बाकी आठ महीनो तक प्रायः वर्षा नहीं होती है वर्षा का भी वितरण सर्वत्र एक समान नहीं है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 14.
मृदा अपरदन के क्षेत्र का वर्णन करो।
उत्तर :
मृदा अपरदन से प्रभावित क्षेत्र (Affected regions of soil erosion) : भारत में मृदा अपरदन से प्रभावित क्षेत्र निम्नलिखित है :
उत्तरी-पूर्वी भारत : उत्तरी-पूर्वी भारत की भूमि पर्वतीय है। यहाँ वर्षा ऋतु में वर्षा अधिक होती है। वनों की कटाई, पर्वतीय ढालों पर सीढ़ीनुमा खेतों में कृषि तथाझूम-कृषि के कारण यहाँ मिट्टी का कटाव बहुत अधिक होता है। प्रमुख मृदा अपरदन का क्षेत्र होने के कारण इसे रेंगती मिट्टी का क्षेत्र कहते हैं। यहाँ की 60 % भूमि मृदा अपरदन की समस्या से प्रभावित है।

चम्बल एवं यमुना नदी घाटी : चम्बल एवं यमुना नदी घाटियों में लगभग 36 लाख हेक्टेयर भूमि मृदा अपरदन से प्रभावित है। वनस्पतियों के आवरण के अभाव वाला यह क्षेत्र अवनलिका अपरदन से ग्रसित है तथा बीहड़ (Ravine) के रूप में बदल गया है

हिमालय क्षेत्र : पर्वतीय भूमि, वर्षा काल में अधिक वर्षा, भूस्खलन, वनों के कटाव आदि के कारण हिमालय प्रदेश में अधिकांश क्षेत्र मिट्टी के कटाव की समस्या से ग्रसित है।

छोटानागपुर प्रदेश : वनों की कटाई, खनन कार्य, उद्योगों की स्थापना तथा रेल मार्गों एवं सड़कों के निर्माण कार्य के कारण यह प्रदेश मृदा अपरदन की समस्या से जूझ रहा है।

मरूस्थलीय क्षेत्र : पश्चिमी राजस्थान का शुष्क क्षेत्र इसके अन्तर्गत आता है। तीव्र वायु यहाँ मृदा अपरदन का मुख्य कारण है।

प्रश्न 15.
वनो से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
वनों से लाभ : वनों से हमें प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों लाभ मिलते हैं।
प्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित हैं –

  1. ये हमें भवन-निर्माण के लिए टिकाऊ लकड़ियाँ प्रदान करते हैं।
  2. बक्सा-पेटी, दियासलाई, कागज की लुग्दी, फर्नीचर आदि तरह-तरह की वस्तुएँ तैयार करने के लिए उपयोगी लकड़ियाँ प्रदान करते हैं।
  3. ये ईंधन की आपूर्ति करते हैं।
  4. इनसे गौण उत्पाद के रूप में लाह, राल, गोंद, रेजिन, कत्था, जड़ी-बूटियाँ, बीड़ी के पत्ते, फल, मधु, रेशम, चमड़ा रंगने के सामान आदि प्राप्त होते हैं।
  5. इनसे कितने ही लोगों को रोजी-रोटी मिल जाती है।

अप्रत्यक्ष लाभ भी अनेक हैं, जैसे –

  1. ये जलवायु को सम रखते हैं।
  2. वर्षा लाते हैं (बादलों को आकृष्ट करके)।
  3. मिट्टी का कटाव रोकते हैं।
  4. आँधी-तूफान और बाढ़ रोकते हैं।
  5. इनकी पत्तियों से खाद तैयार होती है जिससे भूमि उपजाऊ बनती है।

प्रश्न 16.
सामाजिक वन से तुम क्या समझते हो ? वन संरक्षण एवं वन विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
सामाजिक वन : परती जमीन पर जल्द तैयार होनेवाले उपयोगी पेड़ लगाना जिससे फल, काष्ठ, ईंधन आदि की समस्या हल हो तथा वातावरण को संतुलित बनाए रखने की योजना में मदद पहुँचे, ‘सामाजिक वानिकी’ (Social forestry) कहलाता है। सड़क के किनारे भी पेड़ लगाने की योजना है।
वन संरक्षण एवं वन विकास :
1. शिक्षा बढ़ाई जाए। वन-अनुसंधान केन्द्र खोले जाएँ। वन-विभाग का मुख्य अनुसंधान केन्द्र हिमालय-स्थित देहरादून में स्थापित किया गया है। राँची, पालमपुर, बंगलूर, कोयम्बटूर और अकोला में भी वानिकी शिक्षा आरंभ की गई है।
2. वनों के प्रति नया दृष्टिकोण अपनाया जाए और प्राचीनकाल की वन्य संस्कृति को पुनर्जीवित किया जाए।
3. प्रतिवर्ष नए वन लगाए जाएँ। 1981 ई० के बाद से अबतक मध्यप्रदेश और पंजाब में ही वनक्षेत्र बढ़ाए जा सके हैं। पिछले कुछ वर्षो से केरल, कर्नाटक और मेघालय इस दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं।
4. वनसंरक्षण के लिए विशेष योजनाएँ चालू की जाएँ, जैसे – बाघ परियोजना, हाथी परियोजना, अभयारण्यों की स्थापना। 1952 ई० से भारत वनमहोत्सव मनाकर इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए सचेष्ट है । देश में 17 वनविकास निगम स्थापित किए जा चुके हैं।

वनों के संरक्षण के लिए विभिन्न प्रकार के उपाय किए जा रहे हैं, यद्यपि मानव-जनसंख्या और पशुओं की संख्या में अत्यधिक वृद्धि से यह संरक्षण कठिन हो गया है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 5A भारत : स्थिति एवं प्रशासनिक विभाग, भू-प्रकृति, जल संसाधन, जलवायु, मिट्टियाँ एवं प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 17.
भारतीय मिट्टी को कितने भागों में बाटा गया है ? किसी एक का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भारतीय मिट्टी के प्रकार (Types of Indian Soils) : ‘भारतीय कृषि अनुसंधान’ समिति ने भारत में पाई जाने वाली मिट्टियों को आठ वर्गों में विभाजित किया हैं, जो निम्नलिखित हैं –

  1. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil)
  2. रेगूर या काली मिट्टी (Regur of Black Soii)
  3. लाल मिट्टी (Red Soil)
  4. लेटेराइट मिट्टी (Laterite Soil)
  5. पर्वतीय या वनों वाली मिट्टी (Mountain or Forest Soil)
  6. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil)
  7. लवण मिश्रित क्षारयुक्त मिट्टी (Saline and Alkali Soils)
  8. हल्की-काली व दलदली मिट्टी (Saline and Alkali Soils)

जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil) : जलोढ़ मिट्टी उपजाऊपन की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण होती है। भारत की कृषि के विकास में इसका महत्वपूर्ण योगदान है। इस मिट्टी पर कृषि करना सुविधानजनक है। इसी कारण इस मिट्टी के क्षेत्र सघन जनसंख्या वाले प्रदेश हैं।
संरचना : जलोढ़ मिट्टी का निर्माण नदियों के निक्षेपण से नदी-घाटियों, बाढ़ के मैदानों तथा डेल्टाई प्रदेशों में हुआ है।
क्षेत्रफल : जलोढ़ मिट्टी भारत के कुल क्षेत्रफल के 7.7 लाख वर्ग किलोमीटर अर्थात 4.7 % क्षेत्र पर पाई जाती है।

विशेषताएँ :

  1. उर्वरता की दृष्टि से यह मिट्टी सबसे श्रेष्ठ है।
  2. यह बहुत बारीक कणों से युक्त है, अत्यधिक रंभ्रयुक्त तथा इतनी हल्की है कि इसको आसानी से जोता जा सकता है।
  3. जलोढ़ मिट्टी का निर्माण चट्टानों के विभिन्न प्रकार के पदार्थों के खुरचने से हुआ है जिसके कारण इसमें उच्च कोटि के नमक की विविधिता है।
  4. यह मृदा पोटाश, फॉसफोरस, अम्ल एवं मृत जीवाश्म के दृष्टिकोण से समृद्ध है।
  5. संरचना के दृष्टिकोण से इस मिट्टी में क्षारीय तत्व, बालू एवं चीका के अनुपात तथा उर्वरता में भिन्नता पाई जाती है।
  6. इस मिट्टी में नाइट्टोजन एवं वनस्पति के अंशों की कमी पाई जाती है।
  7. जलोढ़ मिट्टी के क्षेत्र अधिक आबादी वाले हैं और इनको ‘गेहूँ और चावल के कटोरे’ के क्षेत्र के रूप में जाना जाता है।
  8. पुरातन जलोढ़ मिट्टी को बाँगर और नवीन जलोढ़ को खादर कहते हैं। खादर में पाई जाने वाली जलोढ़ मिट्टी में महीन कण पाए जाते हैं। जबकि बाँगर की जलोढ़ मिट्टी में मिट्टी का अंश अधिक पाया जाता है।
  9. जलोढ़ मिट्टी में सिंचाई की सहायता से गन्ना, कपास, चावल, जूट, गेहूँ, तंबाकू, तिलहन, मक्का, फल एवं सब्जियाँ अधिकता से पैदा की जाती हैं।

वितरण : यह मिट्टी उत्तरी भारत के मैदानों में पंजाब से लेकर असम तक, महानदी, गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के डेल्टाई भागों में तथा पूर्वी और पश्चिमी समुद्री तटीय मैदानों तथा नर्मदा और ताप्ती नदिर्यों की घाटियों में पाई जाती है।

प्रश्न 18.
काली मिट्टी की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
रेगूर या काली मिट्टी (Regur or Black Soils) : इस मिट्टी का रंग काला होता है तथा यह मिट्टी कपास की कृषि के लिए अधिक उपयुक्त है। इस मिट्टी में कपास का उत्पादन अधिक होने के कारण इसे ‘कपास की मिट्टी’ भी कहा जाता है।
संरचना : इस मिट्टी का निर्माण हजारों साल पहले दक्कन के पठारी भाग में लावा चट्टानों के विखंडन से हुआ है।
क्षेत्रफल : यह मिट्टी भारत के लगभग 5.18 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाई जाती है।

विशेषताएँ :

  1. इसका रंग गहरा-काला तथा कणों की रचना सघन होती है।
  2. इसमें फॉसफोरस, नाइट्रोजन तथा जीवाश्मों का अभाव पाया जाता है।
  3. इस मिट्टी में चूना, पोटाश, मैग्नीशियम, एल्यूमिनियम तथा लोहांश पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं।
  4. इस मिट्टी में अपने अंदर अधिक समय तक आर्द्रता को बनाए रखने की क्षमता होती है जिसके कारण यह मिट्टी कपास जैसी फसलों के लिए उत्तम होती है।
  5. पहाड़ी एवं पठारी भागों में यह मिट्टी हल्की, बड़े छेदों वाली तथा कम उर्वर होती है, अत: इसमें केवल ज्वार, बाजरा व दालें पैदा होती हैं। निम्न भागों में यह अधिक गहरी, काली तथा उर्वर होती है, अतः इसमें कपास मूँगफली, तंबाकू, ज्वार, बाजरा आदि फसलें उगाई जाती हैं।
  6. इसमें अधिक समय तक जल ठहर सकता है किन्तु सूख जाने पर इसमें दरारें पड़ जाती है, परंतु वर्षा ऋतु में यह चिपचिपी हो जाती है और इसमें हल चलाना मुश्किल हो जाता है।
  7. यह मिट्टी अपने उपजाऊपन के लिए विख्यात है तथा बिना खाद दिए हुए एवं लगातार कृषि कार्य करने पर भी इसकी उपजाऊ शक्ति नष्ट नहीं होती।

विरतण : यह मिट्टी मुख्य रूप से आंध प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ भागों में पाई जाती है।

प्रश्न 19.
लाल मिट्टी का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
लाल मिट्टी (Red Soils) : इस मिट्टी में लाल रंग की प्रधानता होने के कारण इसको लाल मिट्टी कहते हैं। यह मिट्टी उत्तर, दक्षिण और पूर्व में काली मिट्टी से घिरी हुई है।
संरचना : लाल मिट्टी की उत्पत्ति शुष्क एवं आर्द्र मौसम के क्रमशः अपर्वतन होने पर प्राचीन रवेदार शैलों के विखंडित होने से होती है। लोहे की उपस्थिति के कारण इसका रंग लाल होता है।
क्षेत्रफल : यहो मिट्टी भारत के लगभग 90,800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर फैली हुई हैं।

विशेषताएँ :

  1. अनेक प्रकार की चट्टानों से बनी होने के कारण यह गहराई और उर्वरा शक्ति में विभिन्नता लिए हुए होती है।
  2. यह अत्यंत रंध्रयुक्त होती है।
  3. इस मिट्टी में लोहा, एल्यूमिनियम एवं चूना अधिक मात्रा में पाया जाता हैं किंतु नाइट्रोजन, फॉसफोरस और ब्यूमस की मात्रा कम पाई जाती है।
  4. ऊँचे शुष्क मैदानों में पाई जाने वाली मिट्टी उपजाऊ नहीं होती। यहाँ यह हलके रंग की, पथरीली और कम गहरी होती है। इसमें बालू के समान मोटे कण पाए जाते हैं किंतु निचले मैदानी भागों में यह गहरे लाल रंग की, अधिक गहरी और उपजाऊ होती है।
  5. यह मिट्टी चावल, गेहूँ, कपास, आलू दालें, तंबाकू, ज्वार, बाजरा आदि फसलों की कृषि के लिए अधिक उत्तम है।

वितरण :
यह मिट्टी तमिलनाडु, कर्नटटक, आंभ्र प्रदेश, दक्षिणी महाराष्ट्र, पूर्वी मध्य प्रदेश, उड़ीसा, और छोटा नागपुर पठार के कुछ भागों में पाई जाती है।

प्रश्न 20.
पर्वतीय मिट्टी एवं मरूस्थलीय मिट्टी का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
हिमालय पर्वत पर पाई जाने वाली मिट्टियाँ नई और अवयस्क हैं। अधिकांशत: ये मिट्टियाँ कम गहरी, दलदली और छिद्रमय होती हैं। नदियों की घाटियों और पहाड़ी ढालों पर ये अधिक गहरी पाई जाती हैं।
क्षेत्रफल : यह मिट्टी देश के पहाड़ी क्षेत्रों पर लगभग 2.85 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है।

विशेषताएँ :

  1. इसमें ह्यूमस की मात्रा अधिक पाई जाती है।
  2. इस मिट्टी में चूना, पोटाश एवं फॉसंफोरस की कमी पाई जाती है।
  3. इस मिट्टी से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए अधिक खाद की आवश्यकता होती है।
  4. उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में अपरिपक्व, पतली तथा छिद्रमय मिट्टियाँ मिलती हैं। निचले ढ़ालों व घाटियों में कहीं-कहीं गहरी तथा उर्वर मिट्टियाँ उपलब्ध होती हैं।
  5. यह मिट्टी चाय, काँफी, मसाले और फलों के उत्पादन के लिए उत्तम हैं।

मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soils) : इस प्रकार की मिट्टी का निर्माण शुष्क एवं अर्ध-शुष्क दशाओं में देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में होता है।
क्षेत्रफल : यह मिट्टी लगभग 1.42 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है।

विशेषताएँ :

  1. इस मिट्टी में खनिज अधिक मात्रा में पाए जाते हैं किंतु यह जल में शीघ्र घुल जाते हैं।
  2. मिट्टी प्रधानत: बालू हैं जिसमें छोटे कण पाए जाते हैं।
  3. इस मिट्टी में फॉसफोरस की अधिकता किंतु नाइट्रोजन की कमी पाई जाती है।
  4. इस मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा कम पाई जाती है।
  5. इस मिट्टी में नमी की कमी रहती है।
  6. जल मिल जाने पर यह मिट्टी उपजाऊ हो जाती है। सिंचाई की सहायता से गेहूँ, गब्ना, कपास, ज्वार, बाजरा, सब्जियाँ आदि पैदा की जाती हैं, जहाँ सिंचाई की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं वहाँ भूमि बंजर पड़ी रहती है।

वितरण : इस प्रकार की मिट्टी अरावली और सिंधु घाटी के मध्यवर्ती क्षेत्रों में विशेषतः पश्चिमी राजस्थान, पंजाब एवं हरियाणा के दक्षिणी जिले तथा गुजरात में कच्छ के रन में पाई जाती है।

प्रश्न 21.
लवण मिट्टी से तुम क्या समझते हो ? दलदली मिट्टी क्या है ?
उत्तर :
लवण मिश्रित एवं क्षारयुक्त मिट्टी (Saline and Alkali Soils) : क्षारयुक्त मिट्टी में चूना एवं सोडियम के तत्वों का सम्मिश्रण रहता है जबकि लवणयुक्त (Saline) मिट्टी में हाइड्रोजन के तत्व सम्मिलित रहते है जो कैल्सियम एवं सोडियम का स्थानांतरण करते हैं। लवणयुक्त एवं क्षार मिश्रित मिट्टी मुख्य रूप से भारत के सभी जलवायु क्षेत्रों में पाई जाती हैं। उत्तरी भारत के शुष्क भागों में विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब तथा राजस्थान में इस प्रकार की मिट्टी से कई हेक्टेयर भूमि में कृषि को नुकसान पहँचता है।

दलदली मिद्टी : हल्की-काली व द्लदली मिट्टी उड़ीसा के तटीय भागों, सुंदरवन तथा पश्चिम बंगाल के सीमित भागों, उत्तरी बिहार तथा तमिलनाडु के दक्षिणी पूर्वी तट पर फैली है।

प्रश्न 22.
मिट्टी अपरदन के कारण का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
मिट्टी अपरदन के कारण (Causes of Soil Erosion) : मृदा अपरदन के निम्नलिखित कारण हैं

  1. वर्षा ऋतु के आगमन से पूर्व मरुस्थलीय क्षेत्रों में गरम आंधियाँ चलती हैं जो भूमि की ऊपरी परत की ढीली मिट्टी को उड़ा ले जाती हैं। इस क्रिया द्वारा मिट्टी की ऊपरी परत नष्ट होती रहती है और कालान्तर में ये क्षेत्र अनुपजाऊ बन जाते हैं।
  2. कृषि के अवैज्ञानिक ढंग अपनाकर किसान स्वय मृदा अपरदन को बढ़ाता है। ढालू क्षेत्र में समोच्च रेखाओं से, समानांतर जुताई न करने से, दोषयुक्त फसल चक्र अपनाने से मृदा का अपरदन बढ़ता है।
  3. जब मूसलाधार वर्षा होती है तो वर्षा का जल धरातल पर बहता है और वह मृदा का अपरदन करता है।
  4. जिन क्षेत्रों में वनस्पति को नष्ट कर दिया गया है वहाँ मिट्टी का अपरदन अधिक होता है, क्योंकि वनस्पति की जड़ें मिट्टी को जकड़े रखती हैं, इसलिए जहाँ वनस्पति अधिक पाई जाति है, मृदा अपरदन कम होता है।
  5. आवश्यकता से अधिक पशुचारण से भी मिट्टी का अपरदन होता है, क्योंकि पशु चरते समय अपने खुरों से मिट्टी को उखाड़कर ढीला कर देते हैं जिससे मिट्टी वर्षा तथा वायु के प्रभाव से अपरदित हो जाती है।
  6. भारत के कुछ भागों में स्थानांतरी कृषि की जाती है। यह विधि मृदा अपरदन में सहायक होती है।

प्रश्न 23.
पूर्वी तटीय मैदान एवं पश्चिमी तटीय मैदान की तुलनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय मैदान की तलना :

पूर्वी तटीय मैदान पश्चिमी तटीय मैदान
1. विस्तार : पूर्वी तटीय मैदान उत्तर में सुवर्ण रेखा नदी से दक्षिण में कुमारी अंतरीप विस्तृत है। 1. विस्तार : पश्चिमी तटीय मैदान प्रायद्वीप के पश्चिमी भाग में खंभात की खाड़ी से कुमारी अंतरीप एक विस्तृत है।
2. लंबाई और चौड़ाई : पूर्वी तटीय मैदान 1,100 किलोमीटर लंबाई और 120 किलोमीटर चौड़ाई में विस्तृत है। 2. लंबाई और चौड़ाई : पश्चिमी तटीय मैदान 1,500 किलोमीटर लंबे तथा 64 किलोमीटर चौड़े हैं।
3. विभाग : पूर्वी तटीय मैदान को उत्कल का मैदान, आंध्र का मैदान तथा तमिलनाडु का मैदान विभागों में बाँटा गया है। 3. विभाग : पश्चिमी तटीय मैदान को गुजरात का मैदान, कोंकण का तटीय मैदान, मालावर का तटीय मैदान, केरल का तटीय मैदान आदि भागों में बाँटा गया है।
4. धरातल : महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी जैसी बड़ी-बड़ी नदियों ने बड़े-बड़े डेल्टा बनाए हैं। इसकी सीधी तटीय रेखा है। विशाखपट्टनम तथा चेन्नई यहाँ के बड़े बंदरगाह है। 4. धरातल : इस मैदान में कई छोटी व तीव्रगामी नदियाँ बहती हैं जो डेल्टा बनाने में असमर्थ हैं। इसकी तटीय रेखा ऊबड़-खाबड़ है। पश्चिमी तट पर मुंबई, कांडला, मंगलौर तथा कोचीन आदि प्रसद्धि बंदरगाह हैं।
5. जलवायु : उष्ण कटिबंधीय जलवायु, उच्च आर्द्रता तथा सामान्य वर्षा। 5. जलवायु : सम जलवायु पूरे वर्ष, उच्च तापमान, अधिक वर्षा।

प्रश्न 24.
मिट्टी अपरदन को कितने भागों में बाटा गया है ?संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
मृदा अपरदन के प्रकार (Types of Soil Eriosion) : मृदा अपरदन दो प्रकार के होते हैं –
i. परतदार अपरदन (Sheet Erosion)
ii. नालीदार अपरदन (Gulley Erosion)

i. परतदार अपरदन (Sheet Erosion) : जब अत्यधिक वर्षा के कारण निर्जन पहाड़ियों की मिट्टी जल में घुलकर बह जाती है या वायु मिट्टी की ऊपरी परत को अपने साथ उड़ा ले जाती है तो उसे परतदार अपरदन कहते हैं। इस प्रकार का अपरदन ढ़ालू खेत, खाली पड़ी भूमि में तथा अत्यधिक चराई, वनों के नाश तथा बदलती खेती के फलस्वरूप होता है। परतदार अपरदन राजस्थान, पंजाब, दक्षिणी-पश्चिमी हरियाणा के क्षेत्र तथा हिमालय क्षेत्र में होता है। परतदार अपरदन की क्रिया बहुत हीं धीमी गति से होती है जिसका आभास नहीं होता, परंतु इस प्रक्रिया के द्वारा एक विस्तृत क्षेत्र की मिट्टी की उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है।

ii. नालीदार अपरदन (Gulley Erosion) : तीव्र ढाल तथा अधिक वर्षा वाले भागों में बहता हुआ जल मिट्टी को कुछ गहराई तक काट देता है जिससे धरातल में कई फुट गहरे गड्दु बन जाते हैं। चंबल नदी की घाटी में इस प्रकार का अपरदन देखने को मिलता है।
मरुस्थलीय भागों में वायु द्वारा भी मृदा का अपरदन होता रहता है। इसके द्वारा मृदा को काटकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाकर बिनाया जाता है। इसे वायु द्वारा अपरदन कहते हैं।

प्रश्न 25.
लक्षद्वीप एवं अंडमान निकोबार द्वीप समूह में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लक्षद्वीप एवं अंडमान निकोबार द्वीप समूह में अन्तर :

लक्षद्वीप अंडमान निकोबार द्वीप समूह
1. स्थिति : ये द्वीप समूह 8° से 12° उत्तर और 71° 40′ से 74° पूर्वी देशान्तर के बीच फैले हैं। 1. स्थिति : ये द्वीप समूह 4° से 10° 20′ उत्तरी अक्षांश और 92° 20′ से 94° पूर्वी देशांतरों के बीच फैले हैं।
2. क्षेत्रफल : ये 108.78 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं। 2. क्षेत्रफल : ये 8326.85 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं।
3. उत्पत्ति : इनकी उत्पत्ति प्रवाल से हुई है। जिनका विकास ज्वालामुखी चोटियों के आस-पास हुआ है। 3. उत्पत्ति : ये नवीन बलित पर्वत हैं और इनमें से कुछ की उत्पत्ति ज्वालामुखी क्रियाओं से हुई है।
4. विभाग : उत्तरी भाग अमन द्वीप; शेष भाग लक्षद्वीप और सुदूर दक्षिणी भाग को मिनीकोय कहते हैं। 4. विभाग : इसके अंडमान और निकोबार के रूप में दो भाग हैं। अंडमान में उत्तरी, मध्य और दक्षिणी भाग सम्मिलित हैं। दक्षिणी भाग जिसे महान निकोबार कहते हैं सबसे बड़ा द्वीप समूह है।
5. द्वीपों की संख्या : लक्ष द्वीप समूह में 43 द्वीप हैं। 5. द्वीपों की संख्या : अंडमान निकोबार द्वीप समूह में 204 द्वीप हैं।

प्रश्न 26.
भारत में सिंचाई के विभिन्न पद्धति का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भारत में स्थलाकृति एवं जलवायु की दृष्टि से काफी विविधता पायी जाती है। इस विविधता के कारण भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग सिंचाई साधनों का प्रयोग किया जाता है।
भारत में सिंचाई के ग्रमुख साधन है :

  1. नहरें (Canals)
  2. कुए एवं नलकूप (Well and Tubewell)
  3. तालाब (Tank)

नहरें (Canais) :- नहरें भारत में सिंचाई का एक महत्वपूर्ण साधन है। भारत में विश्व का सर्वाधिक नहर सिंचित क्षेत्र है। नहर मुख्यत: दो प्रकार के हैं। कुल 35 % नहर के द्वारा सिंचाई किया जाता है।
(क) अनित्यवाही नहरें (Imperenial Canals)
(ख) नित्यवाही नहेरें (Perenial Canals)

कुएँ एवं नलकूप (Well and Tubewell) :- वर्तमान समय में कुएँ एवं नलकूपों का योगदान 57 % है, इनमें नलकूप सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता क्योंकि यह एक प्रकार का आधुनिक सिंचाई का साधन है, जबकि कुएँ सबसे प्राचीन सिंचाई के साधन हैं। नलकूप के द्वारा 30 % पूरे भारत में सिंचाई किया जाता है।

नलकूपों द्वारा सिंचाई मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तर-प्रदेश, पंजाब, हरियाणा एवं गुजरात में की जाती है। इन क्षेत्रों की चट्टाने मूलायम हैं एवं 15 से 90 मीटर की गहराई के बीच भूमिगत जल का भंडार काफी अधिक मात्रा में मौजुद है। नलकूपों की सर्वाधिक संख्या 50 % से अधिक उतर प्रदेश में है, पुन: भारत के तीन चौथाई-नलकूपा हरियाणा, पंजाब एवं उतर प्रदेश में हैं।

तालाब (Tank) :- भारत में तालाब द्वारा सिचित क्षेत्र का लगभग 17.2 % भाग सींचा जाता था जो वर्तमान में घटकर मात्र 7 % हो चुका है। तालाबों द्वारा सिंचाई मुख्य रूप से मध्य एवं दक्षिणी भारत में होती है। इन क्षेत्रों में तालाब सिंचाई के महत्वपूर्ण साधन होने का निम्नलिखित कारण है :

  1. इन क्षेत्रो में अधिकांश नदियाँ बरसाती है। अत: सदावाहनी नहरें नहीं निकाली जा सकती है।
  2. कठोर संरचना एवं भूमिगत जल स्तर काफी नीचा होने के कारण कुएँ एवं नलकूपों का निर्माण कठिन है
  3. ऊबड़-खाबड़ भूमि के कारण प्रायद्वीपीय भारत में अनेक प्राकृतिक तालाब पाये जाते हैं।

प्रश्न 27.
हिमालय पर्वत और प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली नदियों में अन्तर स्पष्ट करें। अथवा, उत्तर भारत अथवा दक्षिण भारत की नदियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :

हिमालय पर्वत की निदयाँ अथवा, उत्तर भारत की नदियाँ प्रायद्वीपीय पठार की नदियाँ अथवा, दक्षिण भारत की नदियाँ
1. हिमालय से निकलने वाली नदियाँ वलित पर्वतों से निकलती हैं जिसके कारण अपने पर्वतीय खंड में उनकी धारा बहुत तेज होती है। ये अभी अपने मार्ग की शैलों को काटने का कार्य कर रही हैं। 1. प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली नदियाँ अधिक प्राचीन हैं। उनकी घाटियाँ चौड़ी एवं छिछली हैं तथा प्रपातों को छोड़कर इनका ढाल साधारण है।
2. हिमालय की नदियाँ हिमाच्छदित प्रदेशों से निकलती हैं जिसके कारण पूरे साल पानी से भरी रहती हैं। 2. प्रायद्वीपीय नदियाँ वर्षा पर निर्भर रहती हैं, जिसके कारण ये नदियाँ ग्रीष्म ऋतु में सूर जाती हैं।
3. हिमालय की नदियाँ बहुत कम प्रपात बनाती हैं। 3. प्रायद्वीपीय पठार से निकलन वाली नदियाँ प्रायः पठार से उतरते समय मार्ग में झरने बनाती हैं।
4. हिमालय की नदियाँ मैदानी भाग में विसर्प बनाती हुई बहती हैं। 4. प्रायद्वीपीय नदियाँ उथली घांटियों में बहती हैं।
5. हिमालय की नदियाँ विशाल गार्ज बनाती हैं। 5. प्रायद्वीपीय नदियाँ गार्ज नहीं बनाती हैं।
6. हिमालय की नदियाँ पूर्ववर्ती नदियाँ हैं। 6. प्रायद्वीपीय नदियाँ अनुवर्ती नदियाँ हैं।
7. हिमालय की नदियों का बेसिन काफी बड़ा है तथा उनका जलग्रहण क्षेत्र हजारों वर्ग मीटर में फैला हुआ है। 7. प्रायद्वीपीय नदियों का बेसिन तथा जल ग्रहण क्षेत्र अपेक्षाकृत छोटा है।
8. हिमालय की नदियों की अपरदन-शक्ति बहुत अधिक है। वे अपने साथ अधिक मात्रा में तलछट बहाकर ले जाती हैं। 8. प्रायद्वीपीय नदियों की अपरदन शक्ति बहुत ही कम है क्योंकि वे प्रौढ़वस्था में पहुँच गई हैं।

प्रश्न 28.
भारत के किन्हीं दो प्राकृतिक वनस्पति क्षेत्रों के वितरण एवं विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर :
चिरहरित वन की पेटियाँ (उष्ण कटिबंधीय वर्षा पवन) – ये पेटियाँ उष्ण एवं अधिक वर्षावाले (200 सेंटीमीटर या इससे अधिक) क्षेत्रों में हैं। पश्चिमी घाट, अंडमान द्वीप, हिमालय की तराई, पूर्वी हिमालय के उपप्रदेश तथा असम, मेघालय, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम एवं त्रिपुरा आदि ऐसे ही क्षेत्र हैं। पश्चिमी घाट में चिरहरित वन के क्षेत्र 450 से 1,350 मीटर की ऊँचाई के बीच और असम में 1,000 मीटर की ऊँचाई तक मिलते हैं। वैसे क्षेत्रों में जहाँ 250 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है, ये वन विशेष रूप से सघन हैं।

जहाँ अपेक्षाकृत कम वर्षा है, ये वन चिरहरित (सदाबहार) से अर्द्धचिरहरित में बद़ल जाते हैं। उच्य तापमान एवं अधिक वर्षा के कारण ही ये वन अत्यंत घने होते हैं और इनमें पेड़ों की ऊँचाई 60 मीटर तक चली जाती है। पेड़ों के ऊपरी सिरों पर इतनी शाखाएँ होती हैं कि पेड़ छाते का आकार ले लेते हैं। विषुवतीय वनों की तरह ही इनकी लकड़ी कड़ी होती है। इन वनों में विविध प्रकार के पेड़ मिले होते हैं। प्रमुख पेड़ों में महोगनी, आबनूस, रोजवुड, बेत, जारूल, ताड़, सिनकोना और रबड़ हैं। बाँस मुख्यतः नदियों के किनारे और रबड़ पश्चिमी घाट तथा अंडमान में मिलते हैं।

इन वनों में प्रवेश कर लकड़ी काटना कठिन कार्य है (एक तो लकड़ी कड़ी और भारी होती है और दूसरे, एक स्थान पर एक ही किस्म के पेड़ न मिलकर अनेक प्रकार के पेड़ मिला करते है)। इन वनों में बंदर, लंगूर और तरह-तरह के पक्षी बहुतायत से मिलते हैं। एक सींगवाला गैंडा इसी वन का जंगली पशु है जो मुख्य रूप से असम क्षेत्र में पाया जाता है। विशाल जंगली पशु हाथी भी यहाँ पाये जाते हैं।

शुष्क और कँटीले वन की पेटियाँ – इसमें वे क्षेत्र आते है जहाँ वार्षिक वर्षा 50 सेंटीमीटर से 70 सेंटीमीटर तक होती है। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के दक्षिणी भाग तथा मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात इत्यादि शुष्क वन की पेटी में पड़ते हैं। यहाँ के अधिकांश वन साफ किए जा चुके हैं, अतः कहीं भी विस्तृत वन नहीं मिलते। वर्षा की कमी और जलवायु की विषमता के कारण यहाँ ऊँचे पेड़ो का अभाव है। प्रायः छोटे पेड़ तथा झाड़ियाँ उगती हैं। इनकी जड़ें लंबी और पत्तियाँ छोटी होती हैं; छाल कड़ी, कंटीली और मोटी हुआ करती है।

इनमें कीकर, बबूल, खैर, खजूर, झाऊ, नागफनी इत्यादि के पेड़ प्रमुख हैं। जहाँ-तहाँ शीशम, आँवला आदि के भी पेड़ उगे हुए देखे जाते हैं। विविध उपयोग में आने के कारण बबूल का आर्थिक महत्व उल्लेखनीय है। 50 सेटीमीटर से कम वर्षावाले क्षेत्रों में नाममात्र की वनस्पति उगती है। जहाँ-तहाँ सवाना की भाँति घास उगती है। मरुस्थलीय प्रदेश की वनस्पति में कंटीली झाड़ियाँ ही प्रमुख हैं। शुष्क वन क्षेत्रों में जंगली गधे, ऊँट आदि पशु मिलते हैं।

प्रश्न 29.
दामोदर घाटी योजना (D.V.C) का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
दामोदर घाटी योजना : दामोदर नदी छोटानागपुर की पहाड़ी से निकलकर झारखंण्ड और पश्चिम बंगाल के हजारीबाग, मानभूमि, वर्द्धमान, बाकुड़ा, हुगली और हावड़ा जिलों में बहती हुई कोलकत्ता से 50 कि०मी० दक्षिण हुगली नदी में मिल जाती है। अब तक इस नदी में प्रत्येक तीसरे वर्ष बाढ़ आती रहती थी। इसी कारण इसे पश्चिम बंगाल की शोक नदी भी कहा जाता है। दामोदर के ऊपरी उपत्यका में उर्वरा मिट्टी, जल, वन और खनिज सभी उपयोगी वस्तुएँ हैं। नदी के दोनों तरफ रानीगंज, झरिया, बोकरो, रामगढ़ और कर्णपुरा के कोयला क्षेत्र हैं।

अमेरिका की टेनसी घाटी योजना के आधार पर सन् 1945 ई० में दामोदर घाटी योजना तैयार की गई। 1948 ई० में दामोदर घाटी कार पोरेशन की स्थापना हुई। इसकी देखभाल के लिये तिलैया, कोनार मेभन और पंचेत पहाड़ी के बाँध बने। बोकोर में कोयला द्वारा गालित विद्युत घर बनाया गया जो एशिया का सबसे संचालित विद्युत घर है। दुर्गापुर में सिंचाई के लिए 672 मीटर लम्बा और 11.50 मीटर ऊँचा बाँघ बनाया गया है। इससे नहरें निकालकर वर्द्धमान और बाकुड़ा में सिंचाई होती है।

दामोदर घाटी योजनाएँ निम्नलिखित बातों को ध्यान में रख कर बनाया गया है :

  1. सिंचाई की समुचित व्यक्स्था कराना।
  2. जल विद्युत उत्पादन पर बल देना।
  3. नदियों में बाढ़ जैसे प्रकोप की रोकथाम करना।
  4. मिट्टी का कटाव रोका जाय तथा मिट्टी की रक्षा करना।
  5. पीने योग्य पानी की सुविधा उपलब्ध कराना।
  6. नौका बिहार द्वारा मनोरंजन का साधन।
  7. वनों के क्षेत्र का विस्तार करना।
  8. स्वास्थवर्द्वक स्थान बनाया जाना।
  9. जल एकत्रित कर तालाब में मत्सय पालन करना।
  10. मलेरिया जैसे खतरनाक बिमारी पर रोकथाम करना।

प्रश्न 30.
वन संरक्षण पर इतना अधिक जोर क्यों दिया गया है?
उत्तर :
वन संरक्षण की आवश्यकता : निम्नलिखि कारणों से वनों का संरक्षण आवश्यक है :
विभिन्न प्रकार की उपजों की प्राप्ति : वनों से न केवल बहुमुल्य लकड़ियाँ ही प्राप्त होती है बल्कि इनसे कई प्रकार के अन्य पदार्थ भी प्राप्त होते है लकड़ियाँ जलावन, फर्नीचर एवं भवन निर्माण के काम आती है। इनसे कागज तथा दियासलाई जैसे उद्योगो के लिए कच्चे माल प्राप्त होते है। इनसे फल, गोंद, लाख, रेशम, मधु आदि भी प्राप्त होते है अत: इन पदार्थों को प्राप्त करने के लिए वनों का संरक्षण आवश्यक है।

वायु प्रदूषण को कम करना : मनुष्य एवं अन्य जीव श्वसन की क्रिया में ऑक्सीजन लेते है और कार्बन-डाईआक्साइड गैसे छोड़ते है। अगर यह वायु शुद्ध न हो तो वायुमण्डल में कार्बन-डाई-ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाएगी जिससे जीवधारियो को श्वांस लेने में कठिनाई होगी और वे मर जाएंगे परन्तु पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में इस दूषित वायु को ग्रहण करते है जिसमें से वे कार्बन को ले लेते है तथा शुद्ध ऑक्सीजन वायु छोड़ते है। इस प्रकार पौधे वायु को शुद्ध करके वायुमण्डल को प्रदूषण से रक्षा करते है।

मिट्टी के कटाव की रोकथाम : वन वायु एवं पानी की गति को कम करते है। साथ ही पौधों की जड़े भूमि को जकड़ लेती है। इस प्रकार वन मिट्टी के कटाव को रोककर मानव का काफी उपकार करते है।

वर्षा में सहायक : वन भाप भरी हवाओ को रोक कर वर्षा कराने में सहायक होते है।

बाढ़ की रोकथाम : वन पानी के बहाव की गति धीमी कर देती है जिससे बाढ़ का प्रकोप कम हो जाता है।

मरुस्थलो के विस्तार को रोकना : वन बालू को आगे बढ़ने से रोकते है। इस प्रकार बनों से मरुस्थलो के प्रसार पर नियंत्रण होता है।

प्राकृतिक सौदर्य के भण्डार : वन सुन्दर एवं मोहक दृश्य उपस्थित करते है और वे देश के प्राकृतिक सौंदर्य की वृद्धि करते है। इस प्रकार वन पर्यटन व मनोरंजन के केन्द्र होते है।

Leave a Comment