WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 2 वायुमण्डल

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WBBSE Class 10 Geography Chapter 2 Question Answer – वायुमण्डल

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK

प्रश्न 1.
वायुमण्डल के किस स्तर से जेट हवाई जहाज आवागमन करते हैं ?
उत्तर :
समतापमण्डल (Stratosphere)

प्रश्न 2.
संतृप्त वायु की आपेक्षिक आर्द्रता कितनी होती है ?
उत्तर :
100 %

प्रश्न 3.
अल्बेडो की मात्रा क्या है ?
उत्तर :
34 %

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प्रश्न 4.
वायु दाब मापक इकाई का नाम बताओ।
उत्तर :
वायुभार को बैरोमीटर यंत्र से मापा जाता है।

प्रश्न 5.
जल वाष का जल बूँदों में बदलने की क्रिया को क्या कहा जाता है ?
उत्तर :
संघनन।

प्रश्न 6.
चीन सागर में उत्पन्न होने वाले चक्रवात का क्या नाम है ?
उत्तर :
टाइफून।

प्रश्न 7.
एनाबेटिक पवन क्या है ?
उत्तर :
घाटी से पर्वतीय ढालों की ओर चलने वाले घाटी समीर को एनाबेटिक पवन कहते हैं।

प्रश्न 8.
एनिमोमीटर क्या है ?
उत्तर :
वायु की गती मापने वाले यंत्र को एनिमोमीटर कहते हैं।

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प्रश्न 9.
वायुमण्डल की सबसे नीचे की परत क्या है ?
उत्तर :
क्षोभमण्डल।

प्रश्न 10.
अयन मण्डल को क्या कहा जाता है ?
उत्तर :
तापमण्डल।

प्रश्न 11.
वायुमण्डल के बाह्य मण्डल का तापमान लगभग कितना है ?
उत्तर :
लगभग 5568°C

प्रश्न 12.
कौन-सी गैस पराबैगनी किरणों से जीवों की रक्षा करती है ?
उत्तर :
ओजोन गैस।

प्रश्न 13.
सूर्य के केन्द्रीय भाग का तापमान लगभग कितना है ?
उत्तर :
लगभग 1.5 से 2 करोड़ डिग्री K

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प्रश्न 14.
सूर्य की ऊपरी सतह से निकलने वाले उर्जा को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
फोटान।

प्रश्न 15.
सूर्य से पृथ्वी पर पहुँचने वाली ऊर्जा किस रूप में पहुँचती है ?
उत्तर :
लघु तरंगों के रूप में (Short waves)

प्रश्न 16.
समुद्र तल से 1 कि० मी० अथवा 1000 मीटर की ऊँचाई पर कितना सेल्सियस तापमान गिर जाता है ?
उत्तर :
6.4°C

प्रश्न 17.
पृथ्वी की सतह से ऊष्मा किस रूप में विकिरित होती है ?
उत्तर :
दीर्घ तरंगों के रूप में (Long Waves)

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प्रश्न 18.
तापमान को नियन्त्रित करने वाले एक कारक को लिखिए।
उत्तर :
भूमध्य रेखा से दूरी अथवा अक्षांश।

प्रश्न 19.
जिस तापमान पर पानी खौलने लगता है, उसे क्या कहते हैं ?
उत्तर :
उबालांक (Boiling Point)

प्रश्न 20.
तापमान की विलोमता का क्या कारण है ?
उत्तर :
रात्रि का लम्बा होना।

प्रश्न 21.
दिन का अधिकतम और रात्रि का न्यूनतम तापमान मापने के लिए किस प्रकार का थर्मामीटर का प्रयोग किया जाता है।
उत्तर :
सिक्स का अधिकतम और न्यूनतम थर्मामीटर (Six Maximum and Minimum Thermometer)

प्रश्न 22.
ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से बचने के लिए कुल कितने देश विश्व व्यापी सम्मेलन में भाग लिये थे ?
उत्तर :
159 देश।

प्रश्न 23.
किसी वस्तु के अधिक गर्म कणों द्वारा अपने सम्पर्क के कम गर्म कणों को ताप देने को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
संचालन (Conduction)

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प्रश्न 24.
वायुदाब किस रेखा द्वारा दिखाया जाता है ?
उत्तर :
समदाब रेखा (Isobar)।

प्रश्न 25.
समदाब रेखाओं का वितरण किस रूप में है ?
उत्तर :
क्षैतिज रूप में।

प्रश्न 26.
वायुमण्डल में वायुभार के घटने-बढ़ने की क्रिया को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
वायुदाब उच्चावचन (Barometric Tide)

प्रश्न 27.
समुद्र तल पर औसत वायुदाब कितना इंच होता है ?
उत्तर :
29.92 इंच।

प्रश्न 28.
उत्पत्ति की प्रक्रिया के आधार पर वायुदाब की पेटियों को कितने भागों में बाँटा गया है ?
उत्तर :
दो।

प्रश्न 29.
30° से 35° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांश को क्या कहा जाता है ?
उत्तर :
अश्व अक्षांश (Horse Latitude)।

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प्रश्न 30.
किस पवन को ग्रहीय पवन भी कहा जाता है ?
उत्तर :
प्रचलित या स्थायी पवन को।

प्रश्न 31.
भूमध्य रेखा के निकट किस पवन के बाद मूसलाधार वर्षा होती है।
उत्तर :
पूर्वी पवन के।

प्रश्न 32.
वायुदाब को प्रभावित करने वाले एक तत्व का नाम लिखिए।
उत्तर :
तापमान।

प्रश्न 33.
भूमध्य रेखीय या विधुवत रेखीय निम्न वायु दाब कटिबन्ध में किस प्रकार की धारा उत्पत्र होती है?
उत्तर :
संवहनीय (Convectional)

प्रश्न 34.
ग्लोब या पृथ्वी कॉरिआलिस बल (Coriolis Force) कहाँ शून्य रहता है ?
उत्तर :
विषुवत रेखा या भूमध्य रेखा पर।

प्रश्न 35.
वायुयान में तथा पर्वतों पर चढ़ते समय किस बैरोमीटर का प्रयोग़ किया जाता है ?
उत्तर :
एनीरायड बैरोमीटर (Aneroid Barometer)।

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प्रश्न 36.
कारिआलिस बल (Coriolis Force) की खोज किस वैज्ञानिक ने किया था ?
उत्तर :
फ्रांसीसी वैज्ञानिक जी० जी० कारिआलिस ने (G. G. Coriolis)।

प्रश्न 37.
विरुद्ध व्यापारिक पवन या पछुवा पवन का प्रभाव किस गोलार्द्ध में नाविकों द्वारा सबसे अधिक अनुभव किया जाता है ?
उत्तर :
दक्षिणी गोलार्द्ध में 40° से 65° अक्षांशों के बीच।

प्रश्न 38.
भूमध्य रेखीय निम्न दाब की पेटी में वायुमण्डलीय दशा के अत्यधिक शान्त रहने के कारण उसे किस कटिबन्ध के नाम से पुकारा जाता है।
उत्तर :
डोलड्रम या शांत कटिबन्ध (Doldrum or Calm belt)।

प्रश्न 39.
दोनों गोलार्द्धों के उपध्रुवीय क्षेत्र में किस प्रकार की वायु दाब पेटियाँ पायी जाती हैं ?
उत्तर :
निम्न वायुदाब की पेटियाँ (Low Pressure Belts)!

प्रश्न 40.
किस सामयिक पवन (Periodical Winds) को गुरुत्वाकर्षण अथवा उत्रेक्षक पवन (Gravity or Catabatic Wind) भी कहा जाता है?
उत्तर :
पर्वतीय समीर को (Mountain Breeze)।

प्रश्न 41.
स्विद्जरलैण्ड की घाटियों को शीतकाल में क्या कहा जाता है ?
उत्तर :
जलवायु मरूद्यान (Climatic Oasis)

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प्रश्न 42.
मौसम सुहावना तथा बड़ा ही स्वास्थ्यप्रद समझी जाने वाली हवा कौन है ?
उत्तर :
हरमाट्टन (Harmattan)।

प्रश्न 43.
‘हिम झंझावातों का घर’ (House of the Blizzard) का प्रभाव कहाँ एवं किस गोलार्द्ध में देखने को मिलता है?
उत्तर :
दक्षिणी गोलार्द्ध के एडीलेण्ड में।

प्रश्न 44.
जेट स्ट्रीम (Jet Stream) का सर्वाधिक औसत वेग किस कटिबन्ध के ऊपर होता है ?
उत्तर :
उपोष्ण उच्च वायुभार कटिबन्ध।

प्रश्न 45.
उष्णा कटिबन्ध चक्रवात की उत्पत्ति किस ऋतु में होती है ?
उत्तर :
ग्रीष्म ऋतु में।

प्रश्न 46.
चक्रवात (Cyclone) के केन्द्र में कौन-सा वायुदाब पाया जाता है ?
उत्तर :
निम्न वायुदाब।

प्रश्न 47.
शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में प्राय: समदाब रेखाओं की आकृति कैसी होती है ?
उत्तर :
समदाब रेखाएँ प्राय: V आकार की।

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प्रश्न 48.
ITCZ का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर :
अन्तरा-उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र (Inter-Tropical Covergence Zone)

प्रश्न 49.
आर्द्रता किसे कहते हैं ?
उत्तर :
आर्द्रता (Humidity) : वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प को आर्द्रता कहते हैं।

प्रश्न 50.
संतृत्प वायु से आप क्या समझते हो ?
उत्तर :
संतृप्त वायु (Saturated Air) : जब किसी वायु में उसकी क्षमता के बाराबर जलवाष्प आ जाय तो उसे संतृप्त वायु कहते है।

प्रश्न 51.
निरपेक्ष आर्द्रता को किस रूप में व्यक्त किया जाता है ?
उत्तर :
निरपेक्ष आर्द्रता (Absolute Humidity) को ग्राम प्रतिघनमीटर (gram /m2) के रूप में व्यक्त किया जाता है।

प्रश्न 52.
सहिम वृष्टि क्या है ?
उत्तर :
सहिम वृष्टि (Sleet) : जल वृष्टि और हिम वृष्टि के सम्मिलित रूप को सहिम वृष्टि कहा जाता है।

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प्रश्न 53.
किस बादल को मिध्या पक्षांभ (False Cirrrus) कहा जाता है ?
उत्तर :
कपासी-वर्षी मेघ को मिथ्या पक्षाय (False Cirus) कहा जाता है।

प्रश्न 54.
उष्णा कटिबन्ध का विस्तार पृथ्वी पर कहाँ तक फैला हुआ है ?
उत्तर :
उष्ण कटिबन्ध पृथ्वी पर भूमध्य रेखा के दोनों ओर 23 1/2° उत्तर एवं दक्षिण अर्थात् कर्क और मकर रेखा तक फैला हुआ है।

प्रश्न 55.
सवाना (Savana) क्या है ?
उत्तर :
उष्ण कटिबन्ध आर्द्र एवं शुष्क जलवायु वाले प्रदेश को ही सवाना कहा जाता है।

प्रश्न 56.
मध्य तापीय (Mesothermal) किसे कहते हैं ?
उत्तर :
उष्ण आर्द्र शीतोष्ण जलवायु समूह को मध्य तापीय (Mesothermal) जलवायु भी कहा जाता है।

प्रश्न 57.
किस जलवायु प्रदेश को चीन तुल्य जलवायु (China Type of Climate) कहा जाता है ?
उत्तर :
CW जलवायु अर्थांत उष्ण शीतोष्ण आर्द्र जलवायु को चीन तुल्य जलवायु (China Type of Climate) कहा जाता है।

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प्रश्न 58.
किस जलवायु के अन्तगर्त शीत ऋतु में वर्षा होती है।
उत्तर :
भूमध्य सागरीय जलवायु के अन्तर्गत शीत ऋतु में वर्षा होती है।

प्रश्न 59.
ऊँचाई के आधार पर बादल को कितने भागों में बॉटा गया है ?
उत्तर :
ऊँचाई के आधर पर बादलों को चार भागों में रखा गया है।

प्रश्न 60.
पूर्वी भारत में स्थित वृष्टि-छाया प्रदेश का नाम लिखिए।
उत्तर :
पूर्वी भारत में स्थित वृष्टि-छाया प्रदेश (Rain Shadow Area) का नाम शिलांग है।

प्रश्न 61.
इन्द्रधनुष क्या है ?
उत्तर :
इन्द्रधनुष (Rainbow) : मेघयुक्त आकाश पर प्रात: काल अथवा सांध्य समय कभी-कभी सूर्य की किरणें परावर्तित होकर सात रंगों के धनुष के रूप में दिखाई पड़ती है उसे ही इन्द्रधनुष कहा जाता है।

प्रश्न 62.
मौसम के प्रमुख दो तत्व लिखिए।
उत्तर :
तापमान और वायुदाब।

प्रश्न 63.
पाला क्या है ?
अथवा
‘पाला’ शब्द का अर्थ क्या है ?
उत्तर :
पाला (Frost) : ‘पाला’ शब्द का प्रयोग धरातल पर अथवा घास-पतियों पर भाप के ठोस अवस्था में हल्की चमकदार बर्फ के तह के रूप में जम जाने के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 64.
वायुमण्डल के संगठन में जलवाष्प का प्रतिशत कितना होता है ?
उत्तर :
वायुमण्डल के संगठन में जलवाष्प का प्रतिशत 2 से 5 तक हो सकता है।

प्रश्न 65.
संघनन किसे कहते हैं ?
उत्तर :
संघनन (Condesation) : जलवाष्प के जलरूप (ठोस-हिम या तरल) में बदलने की क्रिया को संघनन कहते हैं।

प्रश्न 66.
ओला (Hail) क्या है ?
उत्तर :
ओला (Hail) : जब बर्फ की कड़ी एवं बड़ी गोलियों की बौछार होने लगती है तो इसे ओला कहा जाता है।

प्रश्न 67.
ट्रिगर प्रभाव (Trigger Effect) क्या है ?
उत्तर :
ट्रिगर प्रभाव (Trigger Effect) : पर्वतो द्वारा वायु के ऊपर उठने में जो सहायता मिलती है, उसे ट्रिगर प्रभाव कहा जाता है।

प्रश्न 68.
वर्षण क्या है ?
उत्तर :
संघनन प्रक्रिया के परिणामस्वरूप वायु के जलवाष्प जल बूँद में बदल जाती है।

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प्रश्न 69.
आर्द्रता का मापन कैसे करते हैं ?
उत्तर :
WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 2 वायुमण्डल 1

प्रश्न 70.
भूमध्यरेखीय जलवायु प्रदेश किन अक्षांशों के बीच पाया जाता है ?
उत्तर :
यह जलवायु भूमध्य रेखा के दोनो ओर 5° से 10° तक पाई जाती है।

प्रश्न 71.
भूमध्यसागरीय जलवायु के दो प्रदेशों का नाम लिखो।
उत्तर :
(i) भू मध्य सागर के उत्तर पुर्तगाल से टकी तक तथा ईरान के पठारी क्षेत्र।
(ii) भू मध्य सागर के दक्षिणी किनारे मोरक्को, उत्तरी नाइजीरिया, टयूनीशिया तथा बलीनिया में बेंगाजी का उत्तरी क्षेत्र।

प्रश्न 72.
डोलड्रम (Doldrum) क्या है ?
उत्तर :
डोलड्रम (Doldrum) :- विषुवतीय निम्न दाब पेटी में वायुमण्डलीय दशा के अत्यधिक शांत रहने के कारण ही इस कटिबंध को डोलड्रम कहा जाता है, जिसका विस्तार विषुवत से दोनों गोलार्द्ध में 5° अक्षांशों के बीच रहता है।

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प्रश्न 73.
स्टेपी जलवायु के मुख्य दो विशेषताओं को बताओ।
उत्तर :
(i) समुद्र से दूर स्थल के भीतर स्थित होने से यहाँ वर्षा कम होती है।
(ii) अधिकांश वर्षा ग्रीष्म को प्रारम्भ में तथा वसन्त ऋतु में होती है।

प्रश्न 74.
वायुमण्डल में आक्सीजन की मात्रा कितनी है ?
उत्तर :
20.99 %

प्रश्न 75.
वायुमण्डल की सबसे निचली परत कौन-सी है ?
उत्तर :
क्षोभमण्डल (Troposphere)

प्रश्न 76.
आयनमण्डल की एक विशेषता बताइये।
उत्तर :
इस मण्डल की सहायता से बेतार के तार का संचार व्यवस्था संभव होता है।

प्रश्न 77.
प्रत्येक महीने के औसत तापमान के योग में 12 का भाग देने पर जो ताप ज्ञात होता है, उसे क्या कहते हैं ?
उत्तर :
औसत वार्षिक तापक्रम।

प्रश्न 78.
शीत कटिबंध की स्थिति बताइये।
उत्तर :
यह शीतोष्ण कटिबन्ध से उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तरी ध्रुव (North pole 90° ) तक तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी धुव (South Pole 90°) तक फैला है।

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प्रश्न 79.
किसी एक ग्रीन हाउस गैस का नाम बताइये।
उत्तर :
कार्बन डाई-आक्साइड (CO2)

प्रश्न 80.
वैश्विक तापन का एक प्रभाव बताइये।
उत्तर :
हिम का पिघलना तथा सागर तल में वृद्धि होना।

प्रश्न 81.
किसी एक ठण्डी स्थानीय हवा का नाम बताइये।
उत्तर :
ब्लिजर्ड (Blizzard) सह ध्रुवीय हवा है।

प्रश्न 82.
किस शक्ति के कारण वायुमण्डल धरातल से टिका हुआ है।
उत्तर :
पृथ्वी की आकर्षण शक्ति के कारण।

प्रश्न 83.
वायुमण्डल में जलवाष्प की अधिकतम मात्रा कितनी हो सकती है ?
उत्तर :
5% से अधिक कभी भी नहीं होती है।

प्रश्न 84.
वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा कितनी ऊँचाई तक पायी जाती है ?
उत्तर :
वायुमण्डल में 120 कि॰मी॰ की ऊँचाई तक आते-आते ऑक्सीजन की मात्रा नगण्य हो जाती है।

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प्रश्न 85.
वायुमण्डल में विद्यमान गैसों में नाइट्रोजन की मात्रा कितनी है ?
उत्तर :
78.03 %

प्रश्न 86.
वायुमण्डल की किस परत में ऊँचाई के साथ तापमान एवं वायुदबाव में परिवर्तन होता रहता है ?
उत्तर :
अधोमण्डल या क्षोभ मण्डल (Troposphere)

प्रश्न 87.
किस वर्ग के रसायन ओजोन परत के क्षरण के लिए उत्तरदायी हैं ?
उत्तर :
क्लोरो-फ्ल्यूरो कार्बन वर्ग के रसायन।

प्रश्न 88.
सूर्य से प्राप्त ताप की कितनी मात्रा पृथ्वी को प्राप्त होती है ?
उत्तर :
51 % ताप प्राप्त होती है।

प्रश्न 89.
पृथ्वी के किस कटिबंध में दिन-रात की लम्बाई 24 घण्टे से अधिक होती है ?
उत्तर :
शीत कटिबन्ध (Frigid zone) में।

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प्रश्न 90.
मानचित्र पर कौन रेखाएँ समान सागर तलीय तापमान वाले स्थानों को दर्शाती है ?
उत्तर :
समताप रेखायें (Isotherms)

प्रश्न 91.
मौसम के सभी तत्त्व किसके द्वारा नियंत्रित होते हैं ?
उत्तर :
मौसम के सभी तत्व वायुदाब द्वारा नियन्त्रित होते है।

प्रश्न 92.
किन अक्षांशों को अश्व अक्षांश कहते हैं ?
उत्तर :
30°-35° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांश को अरब अक्षांश कहा जाता है।

प्रश्न 93.
पृथ्वी पर कोरियोलिस बल कहाँ शून्य रहता है ?
उत्तर :
विषुवत वृत पर कोरियोलिस बल शून्य होता है।

प्रश्न 94.
किन हवाओं को दैनिक मानसून कहते हैं ?
उत्तर :
जलीय व स्थलीय हवाओं को दैनिक मानसून कहते है।

प्रश्न 95.
निरपेक्ष आर्द्रता किसमें व्यक्त की जाती है ?
उत्तर :
यह ग्राम प्रति घनमीटर वायु में व्यक्त की जाती है।

प्रश्न 96.
संतृप्त वायु की सापेक्षिक आर्द्रता कितनी रहती है ?
उत्तर :
संतृप्त वायु की सापेक्ष आर्द्रता 100 % होती है।

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प्रश्न 97.
जलीय चक्र की कितनी अवस्थाएँ हैं ?
उत्तर :
जलीय चक्र की तीन अवस्थाएँ होती है –

  • वाष्पीकरण
  • संघनन
  • वर्षन

प्रश्न 98.
जेट धारा की सामान्य गतिकितनी होती है ?
उत्तर :
इसकी सामान्य गति 150 से 200 कि॰मी॰ प्रति घण्टा होती है।

प्रश्न 99.
जब ओसांक हिमांक बिंदु के नीचे होता है तो संघनन किस रूप में होता है ?
उत्तर :
हिमकण के रूप में होता है।

प्रश्न 100.
पर्वतों के पवन विमुख ढाल को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
पवन-विमुख ढाल (Leeward slope) कहते है।

प्रश्न 101.
समुद्री जलवायु के दो प्रदेशों का नाम लिखो।
उत्तर :
रोम और दक्षिणी इटली।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS

प्रश्न 1.
चिनक क्या है ?
उत्तर :
चिनूक (Chinook) : चिनूक शब्द का अर्थ है – ‘हिम भक्षी’। यह पवन अमेरिका एवं कनाडा में रॉकी पर्वत श्रेणों के पूर्वी ढाल पर नीचे उतरती है। रॉकी के पूरब भाग में स्थित चारागाहों को हिम के प्रभाव से मुक्त रखती है।

प्रश्न 2.
जेट स्त्रोत (धारा) की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
(i) ये अक्षांशीय उष्मा संतुलन को कायम रखने में सहायक होती है।
(ii) ये चक्रवातों के मार्ग को प्रभावित करती है।

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प्रश्न 3.
ज्वारीय-भित्ति क्या है ?
उत्तर :
नदी के खुले व चौड़े मुहाने से ज्वार इसकी तंग एवं सकरी घाटी में तीब गति से प्रवेश करता है। दूसरी तरफ नदी की जल धारा समुद्र की ओर आती है। दोनों के आपस में टकराने से जल एक ऊँची दीवार सदृश्य उठ जाता है। इसे ज्वारीय भित्ति (Tidal Bore) कहते है।

प्रश्न 4.
दक्षिणी गोलार्द्ध के दो उष्ण मरूस्थलों के नाम बताओ।
उत्तर :
दक्षिणी गोलार्द्ध के दो उष्ण मरूस्थलों के नाम कालाहारी एवं अटकामा।

प्रश्न 5.
चेरी क्लासम और आप्र वृष्टि क्या हैं ?
उत्तर :
चेरी ब्लासम : कनटिक में नार्वेस्टर से होने वाली वर्षा को चेरी ब्लासमकहा जाता है, जो कॉफी की कृषि के लिए लाभदायक है।
आप्र वृष्टि : नार्वेस्टर से होने वाला वर्षा से दक्षिण भारत में आम की खेती लाभदायक सिद्ध होती हैं इसलिए आम्र वृष्टि कहते हैं।

प्रश्न 6.
वर्नियर स्थिर (Vernier Constant) क्या है ?
उत्तर :
वर्नियर स्थिर (Vernier Constant) : वायुमण्डलीय काँच की नली के दिखाई देने वाले भाग पर वायुमण्डलीय दाब मिलीबार में अंकित की जाती है। इस मापनी पर एक वर्नियर मापनी लगी रहती है जिसे ही वर्नियर स्थिर कहा जाता है।

प्रश्न 7.
सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity) क्या है ?
उत्तर :
सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity) :- किसी भी तापमान पर वायु में उपस्थित जलवाष्प तथा उसी तापमान पर उसी वायु की जलवाष्प धारण करने की क्षमता को सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं। इसे प्रतिशत मात्रा में व्यक्त किया जाता है।

प्रश्न 8.
हिमरेखा (Snow Line) क्या है ?
उत्तर :
हिमरेखा (Snow Line) :- हिम रेखा वह कल्पित रेखा है, जिसके ऊपर पूर्णतया बर्फ कभी नहीं पिघलती है अर्थात जहाँ बर्फ सालों भर जमी रहती है।

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प्रश्न 9.
ओसांक विन्दु तापक्रम (Dew Point Temperature) क्या है ?
उत्तर :
ओसांक विन्दु तापक्रम (Dew Point Temperature) :- बिना भाप के बटाये-बढ़ाये ही जिस तापमान पर वायु संतृप्त हो जाती है, उस तापमान को ओसांक विन्दु तापक्रम कहा जाता है।

प्रश्न 10.
वायु विलय पात्र (Aerosol) क्या है।
उत्तर :
वायु विलय पात्र (Aerosol) :- वायु में विभित्र प्रकार के ठोस एवं तर पदार्थ के मिश्रण को ही वायु विलय पात्र कहा जाता है।

प्रश्न 11.
हिमभक्षि (Snow-eaters) क्या है।
उत्तर :
हिमभक्षि (Snow-eaters) : – सं० रा० अ० में चिनूक हवाओं के कारण बर्फ के पिघलते ही पानी वाष्प बन कर इन हवाओं में मिल जाता है। इन हवाओं को इसीलिए हिमभक्षि (Snow-eaters) कहा जाता है।

प्रश्न 12.
चक्रवातीय वर्षा (Cyclonic Rain) क्या है ?
उत्तर :
चक्रवातीय अथवा वाताग्री वर्षा (Cyclonic or Frontal Rainfall) : चक्रवातों द्वारा होने वाली वर्षा को चक्रवाती या वाताग्री वर्षा कहा जाता है। शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में उष्ण एवं आर्द्र वायु राशि हल्की होने के कारण शीतल एवं शुष्क राशि के ऊपर चढ़ जाती है, इससे गर्म पवन में उपस्थित जलवाष्ष का संघनन हो जाता है और वर्षा होती है। इस प्रकार की वर्षा शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के क्षेत्रों में होती है। शीत ॠतु में उत्तर-पश्चिम भारत में भी वर्षा चक्रवातो द्वारा ही होती है।’

प्रश्न 13.
उपोष्ण चक्रवात (Trorical Cyclone) क्या है ?
उत्तर :
उपोष्ण चक्रवात (Trorical Cyclone) :- ग्लोब पर दोनों गोलार्द्धों में 8° से 24° अंक्षाशों के बीच उत्पन्न चक्रवातों को उपोष्ण चक्रवात कहा जाता है।

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प्रश्न 14.
बोफर्ट मापक्रम (Bofert Scale) क्या है ?
उत्तर :
बोफर्ट मापक्रम (Bofert Scale) :- यह एक अन्तर्राष्ट्रीय वायु गति मापक यंत्र है जिसमें वायु की न्यू नतम
उत्तर :
बोफटे मापक्रम (Bofert Scale) :- यह एक अन्तरांत्ट्रीय वायु गता अधिकतम गति 12 इकाई दिखाया जाता है।

प्रश्न 15.
समताप मण्डल में ही जेट विमान क्यों उड़ते हैं ?
उत्तर :
क्या कारण है कि जेट विमान समतापमण्डल में ही उडते हैं ? समतापमण्डल परिवर्तनमण्डल के ऊ : 80 कि०मी० की ऊँचाई तक पाया जाता है। ऊँचाई के साथ समतापमण्डल में तापक्रम का परिवर्तन नहीं होता है। तापक्रम लगभग स्थिर रहता है। समतापमण्डल में जलवाष्प एवं धूल-कण बहुत कम पाये जाए हैं। अत: इस मण्डल में आँधी, तूफान हिम-वर्षा एवं धन गर्जन नहीं होते। समान तापमान, बादनलों का अपेक्षाकृत अभाव और हल्की वायु के कारण जेट विमान समतापमण्डल में ही अधिक उड़ना चाहता है।

प्रश्न 16.
विषम मण्डल क्या है ?
उत्तर :
विषम मण्डल (Heterosphere) : यह वायुमण्डल की सबसे ऊपरी परत है, इस मण्डल की ऊँचाई 90 कि०मी० से 10,000 कि०मी० तक है। इस मण्डल में स्थित विभिन्न परतों के रासायनिक एवं भौतिक गुणों की विषमता के कारण ही इसका नाम विषम मण्डल है।

प्रश्न 17.
वायु विज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर :
वायु विज्ञान : विसे कहत्तान (Aerology) : वायुमण्डल के सबसे ऊपरी परतो के अध्ययन को ही वायु विज्ञान कहा जाता है।

प्रश्न 18.
ऋतु विज्ञान क्या है?
उत्तर :
ऋतु : वतु विज्ञान (Meteorology) : वायुमण्डल के सबसे नीचली परतों के अध्ययन को ऋतु विज्ञान कहा जाता है।

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प्रश्न 19.
सामान्य ह्रास दर किसे कहते हैं ?
उत्तर :
सामान्य ह्रास दर (Normal Lapse Rate) : क्षोभमण्डल की परत में ऊँचाई के साथ-साथ तापमान कम होता जाता है। तापमान की गिरावट की दर 1°C प्रति 165 मीटर होती है, इसे ही सामान्य ह्रास दर कहते हैं।

प्रश्न 20.
सम मण्डल से क्या समझते हैं?
उत्तर :
सम मण्डल (Homosphere) : सम मण्डल वायु मण्डल का निचला भाग है। समुद्र तल से इस मण्डल की ऊँचाई 90 कि॰मी॰ मानी गयी है। इस मण्डल की रचना मुख्यत: नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन दोनों गैसों से हुई है। ये दोनों गैसें वायुमण्डल के 99 प्रतिशत भाग को घेरे हुए हैं।

प्रश्न 21.
वायुमण्डल का प्रमुख संघटन क्या है ?
उत्तर :
वायुमण्डल अनेक गैसों का मिश्रण है। गैसों के अलावा वायुमण्डल में जलवाष्प तथा धूलकण भी वायुमण्डल का संघटन है।

प्रश्न 22.
वायुमण्डल की परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
वायुमण्डल (Atmosphere) : वायुमण्डल दो शब्दों से मिल कर बना है – वायु + मण्डल, अर्थात वायु का विशाल भण्डार जो पृथ्वी को एक खोल अर्थात लीफाफे की भॉति चारों ओर से घेरे हुए है, वायुमण्डल कहलाता है। यह वायुमण्डल अपने आप में अपने को रंगहीन, गंधहीन तथा स्वादहीन प्रकट करता है।

प्रश्न 23.
उत्तर ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Borealis) और दक्षिणी ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Australis) क्या हैं?
उत्तर :
धुवीय प्रकाश पर सूर्य के धब्बों के परिर्वतन का भी काफी प्रभाव पड़ता है, अतः सूर्य के विद्युत विसर्जन से भी यह प्रकाश संबधित है। उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य से प्राप्त रंग-विरंगी प्रकाश पूँज को उत्तर ध्रुवीय प्रकाश तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उसी प्रकाश पूँजों को दक्षिण धुवीय प्रकाश कहा जाता है।

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प्रश्न 24.
क्षोभ सीमा क्या है ?
उत्तर :
क्षोभ सीमा (Tropopause) : क्षोभ मण्डल और समताप मण्डल के बीच स्थित पतली परत को क्षोभ सीमा कहा जाता है। इसकी ऊँचाई 1.5 कि०मी० होती है।

प्रश्न 25.
संवाहन प्रदेश किसे कहते हैं?
उत्तर :
संवाहन प्रदेश (Convectional Zone) : क्षोभ मण्डल में लम्बवत वायु की धाराएँ पायी जाती हैं और ये परते संचालन (Conduction), विकिरण (Radiation), तथा संवाहन (Convection) द्वारा गर्म और ठण्डी होती रहती है। इस भाग में संवाहन का नियम अधिक प्रचलित है, इसी कारण इसको संवाहन प्रदेश भी कहते हैं।

प्रश्न 26.
टिप्पणी लिखिए : (i) घूलकण, (ii) जलवाष्प।
उत्तर :
(i) धूलकण (Dust Particles) : वायुमण्डल में वायु के गति के कारण सुक्ष्म धूल के कण उड़ते रहते हैं। ये धूल के कण विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होते हैं। इनमें सूक्ष्म मिट्टी, धूल, समुद्री नमक, धुएँ की कालिख, राख तथा उल्कापात के कण सम्मिलित हैं। धूलकण प्रायः वायुमण्डल की निचली परत में पायी जाती है। धूलकण अधिकांश आर्द्रताग्माही केन्द्र बन जाते हैं, जिन पर वायुमण्डलीय जल वाष्प का संघनन होता है। इस प्रकार बादल बनते हैं और वर्षा होती है। सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय आकाश में लाल और नारंगी रंग की छटाओं के लाली को प्रभात (Dawn) तथा गोधूलि बेला (Twilight) कहते हैं।

(ii) जलवाष्प (Water Vapour) : अभी तक हम केवल शुष्क वायु में ही विभिन्न गैसों की मात्रा तथा उनके महत्व के बारे में जानते हैं, लेकिन वायमण्डल में विभिन्न गैसों के अलावा जलवाष्प की उपस्थिति भी होती है। वायुमण्डल में जलवाष्प की मात्रा इसके कुल आयतन का 4 से 5 प्रतिशत है। धवुीय क्षेत्रों के शुष्क वायुमण्डल में जलवाष्प 1 % तथा उष्णआर्द्र प्रदेशों में इसकी मात्रा 4 % होती है। इस प्रकार ऊँचाई के वृद्धि के साथ-साथ जलवाष्प की मात्रा में कमी आती जाती है। जलवाष्प की मात्रा वायुमण्डल के 8 कि०मी० की ऊँचाई तक सीमित है।

प्रश्न 27.
आकाश का रंग नीला दिखाई देता है क्यों ?
उत्तर :
चाँकि वायुमण्डल में उपस्थित धूलकण पाये जाते हैं, धूलकण सूर्यताप को रोकने तथा उसे परावर्तित करने का कार्य करते हैं। धूलकण प्राय: वायुमण्डल की निचली परत में पायी जाती है। सूर्य से आने वाली किरणों में प्रकीर्णन इन कणों द्वारा होती है, जिस कारण आकाश का रंग नीला दिखाई देता है।

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प्रश्न 28.
सूर्याताप से क्या समझते हो ?
उत्तर :
सूर्याताप (Insolation) से पृथ्वी तक पहुँचने वाले सौर विकिरण को सूर्याताप कहते हैं।
दूसरे शब्दों में सूर्य से पृथ्वी तक पहुँचने वाली विकिरण उर्जा को सूर्याताप कहते हैं।

प्रश्न 29.
सौर स्थिरांक अथवा अपरिवर्तनशील शक्ति क्या है ?
उत्तर :
सौर स्थिरांक अथवा अपरिवर्तनशील (Solar Constant) : वायुमण्डल की बाहरी सीमा पर सूर्य से प्रति मिनट प्रति वर्ग सेंटीमीटर पर 1.94 कैलोरी ऊष्मा प्राप्त होती है। ऊष्मा की इस मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता। इसलिए इसे सौर स्थिरांक कहते हैं।

प्रश्न 30.
पृथ्वी का एल्बिडो किसे कहते है ?
उत्तर :
पृथ्वी का एल्बिडो (Albedo of the earth) : वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर प्राप्त होने वाली कुल-ऊष्मा को यदि 100 इकाई मान लिया जाय तो इसमें से 35 इकाईयाँ पृथ्वी के धरातल पर पहुँचने से पहले ही अंतरिक्ष में लौट जाती है सौर विकिरण की इस मात्रा, अर्थात् 35 इकाई को ही पृथ्वी का एल्बिडो कहा जाता है।

प्रश्न 31.
पार्थिव विकिरण अथवा भौमिक विकिरण से क्या समझते हो ?
उत्तर :
पार्थिव विकिरण अथवा भौमिक विकिरण (Terrestrial Radiation) : सूर्याताप का 51 % भाग ही पृथ्वी की सतह पर पहुँच कर उसे गर्म करता है। पृथ्वी भी ऊष्मा को दीर्घ तरंगों के रूप में विकिरित करती है, उसे ही पार्थिव विकिरण या भौमिक विकिरण कहा जाता है।

प्रश्न 32.
पृथ्वी का उष्मा बजट क्या है ?
उत्तर :
पृथ्वी का उष्मा बजट (Heat Budget of the Earth) : पृथ्वी पर औसत तापमान एक समान रहता है। यह सूर्याताप एवं भौमिक विकिरण में संतुलन के कारण ही संभव हुआ है। इस संतुलन को ही पृथ्वी का उष्मा बजट कहा जाता है।

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प्रश्न 33.
35° सेण्टीग्रेड तापमान को फारेनहाइट में बदलो।
उत्तर :
फारेनहाइट = 35 × \(\frac{9}{5}\) + 32 = 63 + 32 = 95° फारेनहाइट

प्रश्न 34.
212° फारेनहाइट को सेण्टीग्रेड में बदलो।
उत्तर :
सेण्टीग्रेड = \(\frac{5}{9}\) (212-32) = \(\frac{5}{9}\) × 180 = 100° सेण्टीग्रेड

प्रश्न 35.
सिक्स का अधिकतम एवं न्यूनतम थर्मामीटर क्या है ?
उत्तर :
सिक्स का अधिकतम एवं न्यूनतम थर्मामीटर (Six Maximum and Minimum Thermometer) : दिन का अधिकतम तथा रात्रि का न्यूनतम तापमान मापने के लिए एक विशेष प्रकार का थर्मामीटर का प्रयोग किया जाता है जिसका अविष्कार जे० सिक्स (J. Six) नामक विद्धान ने किया था।

प्रश्न 36.
समताप रेखाओं से क्यासमझते हो ?
उत्तर :
समताप रेखाएँ : समताप रेखा अम्रेंजी के शब्द ‘ISO’ और ‘therm’ दो शब्दों से मिल कर बना है जिनमें ISO का अर्थ ‘सम’ तथा ‘Therm’ का अर्थ ‘ताप’ अर्थात समताप होता है। समताप रेखाएं वे कल्पित रेखाएं है जो मानचित्र पर समान तापमान वाले स्थानों को मिलाती हैं।

प्रश्न 37.
दैनिक तापान्तर अथवा दैनिक ताप परिसर से क्या समझत हो ?
उत्तर :
दैनिक तापान्तर (Daily Range of Temperature): एक दिन के अधिकतम तापमान और न्यूनतम तापमान के अन्तर को ही दैनिक तापान्तर कहते हैं।

प्रश्न 38.
वार्षिक तापान्तर कैसे ज्ञात करते हैं ?
उत्तर :
वार्षिक तापान्तर (Annual Range of Temperature) : एक वर्ष में किसी माह का अधिक तापमान से न्यूनतम तापमान को घटा देने पर जो तापमान ज्ञात होता है वार्षिक तापान्तर होता है। जैसे 40°C-12°C=28°C

प्रश्न 39.
मासिक तापान्तर से क्या समझते हो ?
उत्तर :
मासिक तापान्तर (Monthly Range of Temperature) : एक माह के अधिकतम तापमान और न्यूनतम तापमान के अन्तर को ही मासिक तापान्तर कहा जाता है।

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प्रश्न 40.
दैनिक औसत तापमान किसे कहते हैं ?
उत्तर :
दैनिक औसत तापमान (Average Daily Temperature) : किसी स्थान के किसी दिन के सबसे अधिकतम तापमान तथा रात के सबसे न्यूनतम तापमान के औसत को ही औसत तापमान कहा जाता है।
जैसे – अधिकतम तापमान -29°C
न्यूनतम तापमान -15°C
अर्थात् अधिकतम और न्यूनतम तापमान को जोड़ कर दो से भाग देने पर प्राप्त तापमान ही दैनिक औसत तापमान होगा।
(29°C + 15°C) ÷ 2
= 44° ÷ 2 = 22°C

प्रश्न 41.
तापान्तर से क्या समझते हो ?
उत्तर :
तापान्तर (Range of Temperature): किसी क्षेत्र के अधिकतम और न्यूनतम तापमान के अन्तर को ही तापान्तर कहा जाता है।
अत: तापान्तर = अधिकतम तापमान – न्यूनतम तापमान
जैसे :- 55°C – 40°C = 15°C

प्रश्न 42.
हिमांक और उबालांक से क्या समझते हो ?
उत्तर :
जिस तापमान पर पानी जमने लगता है उसे हिमांक (Freezing Point) और जिस तापमान पर पानी खौलने लगता है उसे उबालांक (Boiling Point) कहते हैं।

प्रश्न 43.
तापीय भूमध्य रेखा क्या है ?
उत्तर :
तापीय भूमध्य रेखा (Thermal Equator) : पृथ्वी के उच्चतम वार्षिक तापमान वाले स्थानों को मिलाते हुए जो समताप रेखा खींची गयी है उसे तापीय भूमध्य रेखा कहते हैं।

प्रश्न 44.
वायुमण्डल को गर्म तथा ठण्डा करने के कौन-कौन सी विधियाँ हैं ?
उत्तर :
अन्य पदार्थों की भांति वायुमण्डल भी विकिरण (Radiation), संचालन (Conduction), संवहन (Convection) और अभिवहन (Advection) द्वारा गर्म तथा ठण्डा होता है।

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प्रश्न 45.
औसत वार्षिक तापक्रम से क्या समझते हो ?
उत्तर :
औसत वार्षिक तापक्रम (Average Annaul Temperature) : किसी स्थान के वर्ष भर के औसत मासिक तापक्रमों को जोड़कर उसमें 12 से भाग देने से उस स्थान का औसत वार्षिक तापक्रम कहते है।
जैसे :- 12 महीने अर्थात जनवरी से दिसम्बर तक का कुल तापक्रम 306° है तो 306° ÷ 12 = 25.5° वार्षिक औसत तापक्रम होगा।

प्रश्न 46.
औसत मासिक तापक्रम कहने का अर्थ क्या है ?
उत्तर :
औसत मासिक तापक्रम (Average Month Temperature) : किसी क्षेत्र के महीने भर के औसत दैनिक तापक्रमों को जोड़कर उसमें एक महीने के दिनों से भाग देने पर उस क्षेत्र का औसत मासिक तापक्रम ज्ञात होता है। जैसे :- 600° 30.20°C औसत मासिक तापक्रम होगा।

प्रश्न 47.
रूद्धोष्म अथवा एडियाबेटिक ताप परिवर्तन क्या है ?
उत्तर :
रूद्धोष्म अथवा एडियाबेटिक ताप परिवर्तन (Adiabotic Temperature change) : जब किसी वस्तु में ऐसा परिवतर्न होता है कि वह वस्तु न तो बाहरी माध्यम को उष्मा दे एवं न ही उससे उष्मा ले, परन्तु उसका ताप बदल जाये, तब ऐसे परिवर्तन को ही रूद्धोष्म परिवर्तन कहा जाता है।

प्रश्न 48.
तापमान का व्युत्क्रमण या विलोमता से क्या समझते हो ?
उत्तर :
तापमान का व्युत्क्रमण या विलोमता (Inversion of Temperature) : साधारणत: ऊँचाई के अनुसार तापक्रम घटने लगता है परन्तु, कभी-कभी ऐसा देखा जाता है कि ऊँचाई बढ़ने पर भी तापमान घटने की अपेक्षा बढ़ता जाता है और वायु की तहें सामान्य अवस्था के विपरीत शीलत, उष्ण और अधिक रूप में पायी जाती है। वायु तहों की ऐसी अवस्था को ही तापमान का व्युत्क्रमण या विलोमता कहा जाता है।

प्रश्न 49.
ग्रीनहाउस प्रभाव के प्रमुख गैसों का नाम लिखिए।
उत्तर :
ग्रीन हाउस प्रभाव के प्रमुख गैस कार्बन डाई-आक्साइड (CO2), मिथेन (CH4), नाइट्रस आक्साइड (N2O) हाइड्रोफ्लोरो कार्बन, पर फ्लूरो कार्बन (CFCs), एवं सल्फर हेक्सा क्लोराइड है

प्रश्न 50.
तापक्रम के आधार पर विश्व के कटिबन्धों को कितने भागों में बांटा गया है ?
उत्तर :
तापक्रम के आधार पर विश्व के कटिबन्धों को निम्न तीन भागों में बांटा गया है।
1. उष्ण कटिबन्ध (Tropical or Torrid Zone)
2. शीतोष्ण कटिबन्ध (Temperate Zone)
3. शीत कटिबन्ध (Frigid or Cold Zone)

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प्रश्न 51.
विकिरण खिड़की किसे कहते हैं ?
उत्तर :
विकिरण खिड़की (Radiation Window) : ऊँचाई के साथ-साथ’आने वाला एवं बहिंगामी दोनों ही विकिण बढ़ता रहता है, अतः उच्च पर्वतों को पृथ्वी की विकिरण खिड़की कहा जाता है।

प्रश्न 52.
तापमान को मापने के लिए दो प्रमुख थर्मामीटर का नाम लिखिए।
उत्तर :
दो प्रमुख थर्मामीटर हैं :- (i) सेण्टीग्रेड थर्मामीटर (ii) फारेनहाइट थर्मामीटर

प्रश्न 53.
सूखे और नमीयुक्त बल्ब वाला तापमापी क्या हैं?
उत्तर :
ताप मापने में ताप और आर्द्रता का तुलनात्मक सम्बन्ध जानने के लिए एक और तापमापी यंत्र का प्रयोग किया जाता हैं। इसे ही सूखे एवं नमीयुक्त बल्ब वाला तापमापी (Dry and Wet Bulb Thermometer) कहते हैं।

प्रश्न 54.
वायुदाब से आप क्या समझते हो ?
उत्तर :
वायुदाब : धरातल पर या सागर तल पर प्रति इकाई के क्षेत्रफल पर स्थित वायुमण्डल की समस्त परतों के पड़ने वाले भार को ही वायुदाब या वायुभार कहा जाता है।

प्रश्न 55.
समदाब या समभार रेखा क्या है ?
उत्तर :
समदाब या समभार (Isobars) : समदाब या समभार का अंग्रेजी रूपान्तरण आइसोबार (Isobar) है। Isobar अंग्रेजी के दो शब्दों Iso का अर्थ सम तथा Bar का अर्थ ‘भार’ या ‘दाब’ होता है, अर्थात् समदाब। समदाब वे कल्पित रेखायें हैं जो समुद्र तल से समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाते हुए खींचा जाता है।

प्रश्न 56.
वायुदाब ज्वार क्या है ?
उत्तर :
वायुदाब ज्वार (Barometric Tide) : किसी स्थान पर दिन भर वायु का भार एक समान नहीं होता है। वस्तुतः किसी स्थान पर वायुभार दो बार बढ़ता एवं दो बार घटता है। वायुदाब के इस घटने-बढ़ने की क्रिया को वायुदाब ज्वार कहा जाता है।

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प्रश्न 57.
वायुदाब कटिबन्ध किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
वायुदाब कटिबन्ध (Pressure Belt) : ग्लोब पर दोनों गोलार्द्धी में भूमध्य रेखीय निम्न दाब पेटी के अलावा दो-दो उच्च वायु पेटियाँ तथा एक-एक निम्न वायु दाब की पेटियाँ पायी जाती हैं, अर्थात् कुल सात पेटियाँ या कटिबन्धें पायी जाती हैं जिन्हें वायुदाब कटिबन्ध (Pressure Belt) कहा जाता है।

प्रश्न 58.
कारिऑलिस बल क्या है? अथवा कारिऑलिस का नियम क्या है ?
उत्तर :
कारिऑलिस बल (Coriolis Force) : पवनें सामान्यत: उच्च दाब से निम्न दाब की ओर चलती हैं, किन्तु पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ये पवनें अपनी मूल दिशा में विक्षेपित (Deflect) हो जाती हैं। फ्रासीसी वैज्ञानिक G.G. Coriolis ने 1835 ई० में इस बल के प्रभाव का खोज किया। इसलिए इसे कारिऑलिस बल या कारिऑलिस का नियम भी कहा जाता है।

प्रश्न 59.
फेरल का नियम से तुम क्या समझते तो? अथवा फेरल का नियम क्या है ?
उत्तर :
फेरल का नियम (Farrel’s Law) : पृथ्वी की दैनिक गति के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में पवनें अपनी दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर मुड़ जाती हैं। इस विक्षेप को फेरल नामक वैज्ञानिक ने सिद्ध किया था। अत: इसे फेरल का नियम कहा जाता है।

प्रश्न 60.
बाइज-बैलेट का नियम क्या है? बाइज-बैलेट के नियम से तुम क्या समझते हो ?
उत्तर :
बाइज-बैलेट का नियम (Bays-Ballot Law) : इस नियम के अनुसार यदि हम उत्तरी गोलार्द्ध में पवन की ओर पीठ करके खड़ा हो जायें तो उच्च वायु दाब हमारी दायीं ओर और निम्न वायु दाब बायीं ओर होगा। दक्षिणी गोलार्द्र में यह स्थिति इसके ठीक विपरीत होगा।

प्रश्न 61.
डोलड्रम या शान्त कटिबन्ध क्या है ?
उत्तर :
डोलडूम या शान्त कटिबन्ध (Doldrum or Calm Belt) : विषुवत रेखीय निम्न दाब कटिबन्ध में धरातलीय क्षैतिज पवनें नहीं चलती बल्कि अधिक तापमान के कारण वायु हल्कि होकर ऊपर को उठती है और संहवनीय धराओं का जन्म होता है। इसलिए इस कटिबन्ध को भूमघ्य रेखीय शांत कटिबन्ध या डोलड्रम कहा जाता है। इसका विस्तार भूमध्य रेखा से 5° उत्तर एवं 5° दक्षिण अक्षांशों के बीच होता है।

प्रश्न 62.
अश्व अक्षांश किसे कहा जाता है ?
अथवा
घोड़े का अक्षांश (Horse Latitude) से तुम क्या समझते हो ?
उत्तर :
अश्व अक्षांश (Horse Latitude) : ग्लोब पर दोनों गोलार्द्धों में 30°-50° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांश को अश्व अक्षांश कहा जाता है। घोड़े से लदे जहाज को बचाने के लिए इन अक्षाशों के बीच समुद्र में घोड़े को फेंक दिया जाता था। इसलिए इसे घोड़े का अक्षांश भी कहा जाता है।

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प्रश्न 63.
हैडली नियम क्या है ?
उत्तर :
हैडली का नियम (Hadley’s Law) : पृथ्वी की दैनिक गति के कारणअअकेन्द्रीय बल उत्पन्न होती है एवं पवन की दिशा में परिवर्तन आ जाता है, जिसे हैड़ी का नियम कहा जाता है।

प्रश्न 64.
अन्तरा-उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र क्या है ?
उत्तर :
अन्तरा-उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र (ITCZ) : यह प्रदेश विषुवतरेखीय न्यून वायुदाब की पेटी पर विस्तृत है। यहाँ जब कभी उत्तरी-पूर्वी तथा दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक हवाएँ मिलती हैं तो वाताग्र का निर्माण हो जाता है। इस प्रकार यहाँ व्यापारिक हवाओं के अभिसरण को ही अन्तरा-उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र कहा जाता है।

प्रश्न 65.
बहादुर पछुवा पवन से तुम क्या समझते हो ?
उत्तर :
बहादुर पछुआ पवन (Brave Westerlies) : उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्ध से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध की ओर बहने वाली पवन पहुआ पवन कहलाती है। जब यह पवन दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थल के अभाव के कारण बहुत ही तीव्र गति से प्रवाहित होती है तो इसे बहादुर पछुआ पवन भी कहा जाता है।

प्रश्न 66.
जेट स्ट्रीम क्या है ?
उत्तर :
जेट स्ट्रीम (Jet Stream) : जेट स्ट्रीम उच्च पवन संचार का अंग है। क्षोभ मण्डल (Troposphere) की ऊपरी मण्डल अर्थात क्षोभसीमा की सीमा पश्चिम से पूरब की ओर अत्यन्त ही तीव गति से चलने वाली पवन धाराओं को जेट स्ट्रीम कहा जाता है।

प्रश्न 67.
बैरोमीटर क्या है ?
उत्तर :
बैरोमीटर (Barometer) : वायुमण्डलीय वायु के अन्तर्गत भार होता है तथा वह हमेशा पृथ्वी पर दबाव डालती रहती है। इस वायुभार को मापने वाले यंत्र को बैरोमीटर या वायुदाब मापी (Barometer) कहते हैं।

प्रश्न 68.
चक्रवात का आँख क्या है ?
उत्तर :
चक्रवात का आँख (Eye of Cyclone) उष्ण कटिबन्धीय चकवातों (Tropical cyclone) की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इनके केन्द्र में शांत क्षेत्र पाया जाता है जिसके ऊपर आकाश मेघ रहित होता है इस वृत्ताकार केन्द्र प्रदेश को ही चक्रवात का आँख या चक्षु (Eye of Cyclone) कहा जाता है।

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प्रश्न 69.
फॉन क्या है ?
उत्तर :
फॉन (Fohn) : यह एक प्रकार का स्थानीय गर्म हवा है जो बहुत ही जोरदार झोकेंवाली एवं शुष्क होती है यह हवा दक्षिणी आल्पस पर्वत के सहारे ऊपर उठती उत्तरी ढाल पर नीचे उतरती है। जब यह हवा नीचे उतरती है तो अधिक दाब के कारण गर्म हो जाती है। फ्रांस, इटली देशों में यह हवा प्रवाहित होती है।

प्रश्न 70.
सिराक्को से आप क्या समझते हो? अथवा खूनी वर्षा क्या है?
उत्तर :
सिराक्को (Sirocco) : सहारा मरूस्थल से इटली में प्रवाहित होने वाली यह गर्म हवा है जो बालू के कणों से युक्त रहती है। इटली में जब वर्षा होती है तो इन बालू के कणों के कारण वर्षा की बूंद लाल रंग की हो जाती है। इस प्रकार की वर्षा को इटली में खूनी वर्षा (Blood Rain) कहा जाता है। इस हवा को मिस्र में खामसिन तथा लीविया में गिबली कहा जाता है।

प्रश्न 71.
बोरा क्या है ?
उत्तर :
बोरा (Bora) : मध्य यूरोप के पर्वतीय क्षेत्रों में युगोस्लाविया के ऐड्रयांटिक तट की ओर चलने वाली ठण्डी वायु को बोरा कहा जाता है। यह वायु उत्तर-पूरब से दक्षिण-पश्चिम की ओर चलती है।

प्रश्न 72.
मिस्ट्रल क्या है ?
उत्तर :
मिस्ट्रल (Mistal) : भूमध्य सागर के उत्तरी-दक्षिणी भाग के तटीय प्रदेशों में विशेषकर फ्रांस की राइन नदी के डेल्टा में उत्तर-पश्चिम से आकर चलने वाली ठण्डी वायु को मिस्ट्रल कहा जाता है। इस वायु के आगमन पर तापक्रम हिमांक से नीचे गिर जाता है तथा मौसम सर्द हो जाता है।

प्रश्न 73.
‘लू’ क्या है ?
उत्तर :
‘लू’ (LoO) : उत्तरी भारत में गर्मी के दिनों में उत्तर-पश्चिम तथा पश्चिम से पूरब की दिशा में बहने वाली प्रचण्ड उष्ण तथा शुष्क हवा को ‘लू’ कहते हैं। यह हवा उत्तर भारत तथा पाकिस्तान के मैदानी भागों में मई तथा जून के महीने में बहती है। इस हवा के प्रभाव से तापमान 45°C से 50°C तक पहुँच जाता है।

प्रश्न 74.
ब्लिजार्ड क्या है?
उत्तर :
ब्लिजार्ड (Blizzard) : यह एक प्रकार का ध्रुवीय पवन (Polar wind) है जो अत्यधिक सर्द एवं हिम-कणों से युक्त होती है। यह पवन साइबेरिया एवं उत्तरी अमेरिका के उत्तरी भाग में प्रवाहित होती है।

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प्रश्न 75.
टेबल क्लॉथर या केप डॉक्टर क्या है ?
उत्तर :
टेबल क्लाथर (Table Clother) या केप डॉक्टर (Cap Doctor) : तीव्र शीतल हवा, जो दक्षिणी अफ्रीका के पठारी क्षेत्र से चलकर दक्षिण तट की ओर प्रवाहित होती है। टेबल क्लाथर कहा जाता है उसे जब यह हवा पठारी क्षेत्रों को ढक कर बादल का निर्माण करत है तो इसे केप डॉक्टर भी कहा जाता है।

प्रश्न 76.
वायुदाब और हवाओं के सम्बन्ध में दो महत्वपूर्ण नियम बताएँ।
उत्तर :
वायुदाब और हवाओं के सम्बन्ध में दो महत्वपूर्ण नियम निम्न है।
(i) पवन प्रवाह सदैव उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर होता है।
(ii) पवन की प्रवाह गति वायुदाब के अन्तर की न्यूनधिकतापर निर्भर करती है।

प्रश्न 77.
‘मानसून’ का अर्थ क्या है तथा इससे आप क्या समझते हो ?
उत्तर :
मानसून (Monsoon) : ‘मानसून’ शब्द मूल रूप से अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से बना है जिसका तात्पर्य ‘मौसम’ होता है। इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अरब सागर पर चलने वाली हवाओं के लिए किया गया था जो छ: माह उत्तर-पूरब दिशा से और छः माह दक्षिण-पश्चिम दिशा से चला करती थी।

प्रश्न 78.
जलीय चक्र (Hydrological Cycle) से आप क्या समझते हो ?
उत्तर :
जलीय चक्र (Hydrological Cycle) : समुद्रों, झीलों, नदियों आदि से जलवाष्पीकरण द्वारा जलवाष्प में, जलवाष्म बादल में और जल बादलों से अपक्षेपण द्वारा पृथ्वी पर द्रव रूप में परिवर्तित से जाता है तथा पृथ्वी से नदियों द्वारा पुनः समुद्र में पहुँच जाता है। जल के इस चक्र को जलीय चक्र कहा जाता है।

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प्रश्न 79.
वर्षा कितने प्रकार के होते हैं ? प्रत्येक का नाम लिखिए।
उत्तर :
वर्षा मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है।
(i) संवहनीय वर्षा (Convectional Rainfall) (ii) पर्वतीय वर्षा (Orographic Rainfall) (iii) चक्रवातीय वर्षा (Cylonic Rainfall)

प्रश्न 80.
जलवायु से तुम क्या समझते हो ?
उत्तर :
जलवायु में एक विस्तृत क्षेत्र में काफी लम्बे समय को वायुमण्ड की अवस्थाओं का विवरण होता है, अर्थात् वायुमण्डल की स्थायी औसत अवस्थाओं का नाम ही जलवायु है।

प्रश्न 81.
वाष्पीकरण क्या है ?
उत्तर :
वाष्पीकरण (Evaporation) : सम्पूर्ण पृथ्वी पर सागर, नदी, तालाब, झील एवं जलाशय आदि का पानी, सूर्य की तत्प किरणों द्वारा भाप में निरंतर परिवर्तित होता रहता है। अतः वाष्पोकरण वह प्रक्रिया है जिसमे जल द्रव अवस्था से गैसीय अवस्था में बदल जाता है।

प्रश्न 82.
ओस बिन्दु या ओसांक किसे कहते हैं?
उत्तर :
ओस बिन्दु या ओसांक (Dew Point) : वायु का कोई भी नमूना बिना जलवाष्प की मात्रा को बढ़ाये संतृप्त हो सकता है। यदि उसके तापमान में आवश्यक मात्रा में गिरावत हो जाय या हवा का कोई भी नमूना जिस तापमान पर सतृप्त हो जाय, उस तापमान को ही ओस बिन्दु या ओसांक (Dew Point) कहा जाता है।

प्रश्न 83.
ओस (Dew) क्या है ?
उत्तर :
ओस (Dew) : हवा का जलवाष्प जब संघनित होकर छोटी-छोटी बूंदों के रूप में धरातल पर पड़ी वस्तुओं पर जमा हो जाता है तो इसे ओस कहते हैं।

प्रश्न 84.
कोहरा या कुहरा किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कोहरा (Fog) : कोहरा एक प्रकार का बादल है। जब जलवाष्प का संघनन धरातल के बिल्कुल समीप होता है तो कोहरा का निर्माण होता है। कोहरे में कुहासे की तुलना में जल के कण अधिक छोटे एवं सघन होते हैं।

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प्रश्न 85.
बादल का निर्माण कैसे होता है ?
अथवा
बादल या मेघ से तुम क्या समझते हो ?
उत्तर :
बादल या मेघ (Cloud) : वायुमण्डल में ऊपर उठती हुई वायु का तापमान जब ओसांक बिन्दु के नीचे गिर जाता है तो शीतलता के कारण जलवायु अत्यंत सूक्ष्म जल सीकरों और हिम सीकरों में बदल जाती है। इनके समूह का विस्तार और गहराई दोनों अधिक होने पर ये घने रूप में दिखाई देते हैं उसे बादल या मेघ कहा जाता है।

प्रश्न 86.
उष्ण विषुवतरेखीय जलवायु की निम्न दो विशेषता लिखिए।
उत्तर :
उष्म विषुवत रेखीय जलवायु या उष्णा भूमध्य रेखीय जलवायु की विशेषताएँ :-
(i) सालों भर समान उच्च तापक्रम
(ii) सालों भर समान उच्च वर्षा
इस जलवायु के अन्तर्ग अमेजन अमगेन बेसिन, कांगो वेसिन, गिनी तट, पूर्वी द्वीप समूह तथा फिलीपाइस को सम्मिलित किया जाता है।

प्रश्न 87.
शुष्क जलवायु प्रदेश को कितने भागों में बाँटा गया है।
उत्तर :
शुष्क जलवायु प्रदेश को निम्न दो उप विभागों में बाँटा गया है :-
(i) शुष्क या मरूस्थलीय जलवायु।
(ii) अर्द्धशुष्क या स्टेपी जलवायु।

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प्रश्न 88.
भूमध्यसागरीय जलवायु प्रदेश के वनस्पतियों और फलों के नाम लिखिए।
उत्तर :
भूमध्यसारगीय जलवायु प्रदेश के प्रमुख वनस्पतियाँ ओक, वालनट, चेस्टनट, सिडार तथा फलो के रूप में नीबु, संतरा, अंजीर, अंगूर, जैतून आदि का नाम आता है।

प्रश्न 89.
टुण्ड़ा जलवायु प्रदेश की विशेषता क्या है ?
उत्तर :
टुण्ड्रा जलवायु प्रदेश की विशेषताएँ :-

  1. लम्बी एवं ठण्डी जाड़े की ॠतु तथा छोटी एवं शीतल ग्रीष्म ॠतु का होना।
  2. वर्ष में 2 से 4 महीने ऐसे होते हैं जबकि तापमान हिमांक बिन्दु से ऊँचा रहता है।
  3. यहाँ वर्षा बिल्कुल नहीं होती, जो कुछ वर्षा हाती है वह हिम के रूप में।

प्रश्न 90.
पवनाभिमुख ढाल और पवन-विमुख ढाल में क्या अन्तर है ?
उत्तर :
पर्वत के जिस ढाल के सहारे हवा ऊपर बढ़ती है उसे पवनभिमुख ढाल (Wind Ward Slope) कहते हैं तथा जिस ढाल के सहारे हवा विपरीत ढाल पर नीचे उतरती है उसे पवन ढाल (Lee Ward Slope) कहा जाता है।

प्रश्न 91.
कैण्डोलिल द्वारा विश्व के वनस्पति मण्डलों को कितने भागों में बॉटा गया है ?
उत्तर :
कैण्डोलिन द्वारा विश्व को पाँच वनस्पति मण्डलों में बाँटा गया है।

  1. मेगाथर्मल
  2. मेसोथर्मल
  3. माइकोथर्मल
  4. हेकिस्टोथर्मल
  5. जेरोफाइट्स।

प्रश्न 92.
मानचित्र पर सागर की शांत और सपाट लहरो को किस संकेत के रूप में दिखाया जाता है ?
उत्तर :
सागर के शांत लहर को Cm तथा सागर की सपात लहर को Sm के संकेत में दिखाया जाता है।

प्रश्न 93.
वायु मण्डल की कौन-सी परत संचार क्रिया को संभव बनाती है ?
उत्तर :
आयन मण्डल (lonosphere) संचार क्रिया को संभव बनाती है।

प्रश्न 94.
किस परत में मौसम परिवर्तन होता है?
उत्तर :
अधोमण्डल, परिवर्तन मण्डल या क्षोभ मण्डल (Troposphere) में मौसम परिवर्तन होता है।

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प्रश्न 95.
परा बैगनी किरणें पृथ्वी के सतह पर क्यों नहीं पहुँचती हैं ?
उत्तर :
ओजोन मण्डल में स्थित ओजोन गैस सूर्य से निकलने वाली गर्म तथा हानिकारक परा बैगनी किरणो को सोख लेती है।

प्रश्न 96.
भूमध्यरेखीय क्षोभ मण्डल की ऊँचाई कितनी है ?
उत्तर :
इस स्तार की ऊँचाई भूमध्य रेखा के समीप 18 कि० मी॰ है।

प्रश्न 97.
जलवायु एवं मौसम के तत्व कौन-कौन हैं ?
उत्तर :
तापमान, वायुदाब, आर्द्रता हवाओं एवं वर्षा मौसम तथा जलवायु के तत्व है।

प्रश्न 98.
वायुमण्डल तापमान के विभिन्न स्रोत क्या है ?
उत्तर :
वायुमण्डल के गर्म होने का मुख्य सोत सौर्यिक विकिरण से प्राप्त ऊर्जा द्वारा पृथ्वी से परिचालन संवहन तथा विकिरण है।

प्रश्न 99.
ताप छाया प्रदेश क्या है ?
उत्तर :
पर्वतों के विमुख ढाल वाले क्षेत्र जो सूर्य की लम्बवत् किरणों से वंचित रहते है। ढालो को ताप छाया प्रदेश कहते है।

प्रश्न 100.
मेघाच्छादित रातें मेघरहित रातों की अपेक्षा गर्म होती है।
उत्तर :
जब रात में आकाश में बदल छाये रहते है तो पृथ्वी के भूपट से उसका विसर्जन तीव्र गति से नहीं हो पाता है। यही कारण है कि स्वच्छ रातो की अपेक्षा बादलों से आच्छादित राते गर्म होती है।

प्रश्न 101.
समुद्र तटीय भाग में तापान्तर बहुत कम होता है।
उत्तर :
जल भाग स्थल भाग की अपेक्षा देर से गर्म तथादेर से ठण्डा होता है। इसलिए समुद्र तट के समीप भाग में तापान्तर बहुत कम होता है।

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प्रश्न 102.
वायुमण्डलीय वायुभार, हवा की दिशा, हवा की गति, आर्द्रता एवं वर्षा मापने के यंत्रों का नाम बताइये।
उत्तर :
वायुभार arrow वायु दाब मापी यन्त्र (बैरो) हवा की दिशा arrow एनिमोमीटर (Anemometer) हवा की गति arrow एनिमोमीटर हवा की आर्द्रता एवं वर्षा arrow हाइग्रोमीटर (Hygrometer),

प्रश्न 103.
स्मोग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर :
स्मोग वायुमण्डल में उपस्थित धुआँ (smook) और कुहासा (Fog) से बना है। इसीसे इसका नाम smook + Fog अर्थात् smog बना। वास्तव में smog पानी के कणो धुए में उपस्थित कार्बन के कणो के मिश्रित होने से बनता है। और यह सर्दी के मौसम में अधिक होता है। क्योंकि उस समय कोहरे में पानी के कण हवा में होते है और कार्बन के कण उनमें मिश्रित हो जाते है।

प्रश्न 104.
रासायनिक संगठन के आधार पर वायुमण्डल को कितने भागों में बाँटा गया है ?
उत्तर :
रासायनिक संगठन के आधार पर वायुमण्डल को दो भागों में बाँटा जा सकता है :-
(i) सम मण्डल (Homosphere)
(ii) विषम मण्डल (Heterosphere)

प्रश्न 105.
क्षोभमण्डल क्या है ?
उत्तर :
वायु के सबसे निचले भागों की जिसकी ऊँचाई धरातल से 12 कि०मी० होती है, क्षोभ मण्डल कहा जाता है।

प्रश्न 106.
चुम्बक मण्डल क्या है ?
उत्तर :
आयन के ऊपर वाले वायुमण्डलीय का भाग को चुम्बक मण्डल कहते है इस मण्डल में वान अलेन रैडियेशन बेल्ट की स्थिती होती है। जिसमें पृथ्वी को मैग्नेटिक फील्ड द्वारा पकड़े गये आवेशित कण पाये जाते है। इस मण्डल की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें औरोरा आस्ट्रालिए एवं औरोरा बोरियालिस की होने वाली घटनायें है।

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प्रश्न 107.
शहरीकरण एवं औद्योगीकरण का जलवायु पर क्या प्रभाव है ?
उत्तर :
शहरीकण एवं औद्योगीकरण की दर में तीब्र गति से वृद्धि होने के कारण वायुमण्डल में कार्बन डाइ-ऑक्साइड (CO2) की मात्रा धरती की सतह से परावर्तित किरणों द्वारा उत्सर्जित होने वाली तापीय ऊर्जा को वायुमण्डल से बाहर जाने से रोकती है। इस प्रकार तापीय ऊर्जा के वायुमण्डल में सान्द्रण से धरती के औसत तापमान में निरन्तर वृद्धि होती हैद्व जिससे जलवायु गर्म होता जा रहा है।

प्रश्न 108.
वैश्विक उष्मन से क्या समझते हो ?
उत्तर :
वैश्विक उष्मन से ताप्तर्य वायुमण्डली तापमान में होने वाली क्रमिक वृद्धि से है।

प्रश्न 109.
एलनीनो क्या है ?
उत्तर :
एल-निनो पीरू के पश्चिमी तट के पास लगभग 180 कि०मी० दूर दक्षिण की ओर प्रवाहित होने वाली एक गर्म धारा है।

प्रश्न 110.
वायुदाब और ऊँचाई में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर :
जैसे जैसे हम समुद्र की सतह से ऊँचाई पर जाते है, वायुमण्डल की मोटाई कम होती जाती है और वायुभार कम हांता जाता है। साथ ही वायमुण्डल के निचले भाग में ऊपरी भागो की अपेक्षा भरी गैसे एवं धूल कण अधिक मात्रा में मिलने के कारण वायु अधिक धनी होती है और वायुभार अधिक रहता है।

संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 3 MARKS

प्रश्न 1.
ट्रोपोस्फीयर में ऊचाई बढ़ने के साथ-साथ उष्णता क्यों घटती है ?
उत्तर :
ट्रोपोस्फीयर या क्षोभमण्डल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें बढ़ती ऊँचाई के साथ में प्रति 1000 मीटर पर 6.5°C की दर से तापमान में कमी होती जाती है। ऊँचाई के साथ तापमान में यह कमी ऊँचाई के साथ वायुमण्डलीय गैसों के घनत्व, वायुदाव एवं कणिकीय पदार्थों में कमी के कारण होती है। यह परत वायुमण्डल में परिचालन, संवहन एवं विकिरण विधियों के स्थानान्तरण से गर्म होता है।

प्रश्न 2.
समुद्री पवन एवं स्थलीय पवन में अन्तर स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर :

समुद्री पवन स्थलीय पवन
i. ये हवाएँ प्रातः 10 बजे से शाम 8 बजे तक चला करती है। i. ये हवाएँ सांय काल 10 बजे से प्रात: 8 बजे तक चला करती है।
ii. समुद्र से आने के कारण ये हवाएँ नम होती है। ii. स्थल से आने के कारण ये हवाएँ सूखी होती है।
iii. इन हवाओं को डॉक्टर वायु (Doctor Wind) भी कहते है। iii. इन हवाओं को दैनिक मानसून (Daily Monsoon) भी कहते है।

प्रश्न 3.
मानसूनी वायु पर जेट स्ट्रीम के प्रभाव का वर्णन करो।
या
धरातलीय मौसम पर जेट स्ट्रीम के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
जेट स्ट्रीम (Jet Stream) उच्च स्तरीय पवन संचार व्यवस्था का अंग है। क्षोभमण्डल की ऊपरी परतों में क्षोभसीमा के निकट पश्चिम से पूरब की ओर अत्यंत तीव्र गीत से चलने वाली पवन धाराओं को जेट स्ट्रीम कहा जाता है।

धरातल पर पाये जाने वाले मौसम एवं जेट स्ट्रीम में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार धवुौय वाताग्र, जहाँ शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति होती है तो इसका सम्बन्ध जेट स्ट्रीम से होता है। अपनी पूर्ण विकसित अवस्था में शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात का विस्तार क्षोभमण्डल के ऊपरी भाग तक होता है। जब इनका पथ जेट स्ट्रीम के नीचे पड़ता है तो उनकी प्रचण्डता में वृद्धि हो जाती है एवं वर्षा की मात्रा भी अधिक हो जाती है। चक्रवातों तथा प्रतिचक्रवातों के अलावा जेट स्ट्रीम के प्रभाव के कारण कभी बाढ़ भी आ जाती है तो कभी सूखा पड़ जाता है। इन्हीं के कारण मौसम असाधारण रूप में कभी गर्म तो कभी शीतल हो जाता है।

भारतीय मानसून की उत्पत्ति पर उष्षण पूर्वी जेट एवं उपोष्ण जेट का प्रभाव भी पड़ता है। इस प्रकार वर्षा, तूफान, हिमपात एवं शीत लहरिया आदि जेट स्ट्रीम द्वारा प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होती है।

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प्रश्न 4.
मौसम और जलवायु में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

मौसम (Weather) जलवायु (Climate)
1. मौसम किसी स्थान विशेष की वायुमण्डलीय दशा का अध्ययन है। 1. जलवायु किसी विस्तृत क्षेत्र के वायुमण्डलीय दशा का अध्ययन है।
2. इसमें मौसम तत्वों की अल्प अवधि का अध्ययन होता है। 2. इसमें मौसम दशओं का लम्बे समय अर्थात 30-35 वर्षों तक अध्ययन का औसत है।
3. यह जलवायु विज्ञान का एक अंग है। 3. यह अपने आप में पूर्ण विज्ञान है।
4. मौसम अत्यंत ही परिवर्तनशील अर्थात् क्षणिक दशा है। 4. जलवायु मौसम की अपेक्षा स्थायी होता है।

प्रश्न 5.
ओजोत परत क्षरण क्या है ?
उत्तर :
ओजोत परत क्षरण (Depletion of Ozone layer) : ओजोन परत सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों (Ultra violet rays) को अवशोषित करके पृथ्वी को सुरक्षा प्रदान करती है लेकिन क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन (CFCs) की मात्रा में वृद्धि से यह परत नष्ट हो रही है। ओजोन परत में कमी आने से पृथ्वी के धरातल पर चर्म कैंसर एवं आँखों की बिमारियों में वृद्धि की सम्भावना बढ़ जायेगी।

प्रश्न 6.
सिराक्को या सिमूम से क्या समझते हैं ?
उत्तर :
यह एक गर्म, शुष्क एवं रेत से भरी हुई हवा होती है जो कि सहारा रेगिस्तान के उत्तर दिशा में भूमध्य सागर की ओर चलकर इटली, स्पेन आदि देशों में प्रवेश करती है। सिराक्को हवा के साथ लाल रेत की मात्रा अधिक होती है। जब यह हवा भूमध्य सागर के ऊपर से होकर गुजरती है तो जलवाष्प ग्रहण कर लेती है एवं इटली में जब कभी-कभी वर्षा होती है तो रेत नीचे बैठने लगती है जिससे लगता है कि रक्त वृष्टि हो रही है। सहारा के मरुस्थल में चलने वाली इन्हीं गर्म हवाओं को सिमूम कहा जाता है। इटली में इन हवाओं के कारण मौसम काफी कष्टप्रद हो जाता है।

प्रश्न 7.
पछुआ हवा से अधिक वर्षा होती है क्यों ?
उत्तर :
पछुआ हवाएँ गर्म प्रदेशों से ठण्डे भागों की ओर चलती हैं। गर्म होने के कारण इनमें वाष्प ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती हैं। समुद्र से होकर आने के कारण इनमें पर्याप्त जलवाष्प आ जाता है। ठण्डे भागों में जाने के कारण ये भाप भरी हवाएँ क्रमशः ठण्डी हो जाती हैं जिससे पर्वतों से टकराकर महाद्वीपों के पश्चिमी भाग में खूब वर्षा करती हैं।

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प्रश्न 8.
तापमान प्रतिलोम या विलोमता के उत्पत्न होने के प्रमुख कारण क्या हैं ?
उत्तर :
तापमान प्रतिलोम या विलोमता के उत्पन्न होने के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ होनी आवश्य है।

  • लम्बी रातों का होना
  • स्वच्छ आकाश
  • शुष्क वायु
  • शांत वायु
  • हिमाच्छादित या बर्फ से ढके धरातल का होना।

प्रश्न 9.
वायुमण्डल में धरातल से ऊँचाई पर जाने से तापक्रम घटने लगता है क्यों ?
उत्तर :
ऊँचाई के साथ तापक्रम घटने लगता है क्योंकि वायुमण्डल का निचला भाग पृथ्वी के सम्पर्क में होने से शीघ्र उष्मा प्राप्त कर लेता है तथा स्वयं गरम हो लेने के बाद ही संवहन तरंगों से उष्मा ऊपर की ओर स्थानांतरित करता है। इस प्रकार वायुमण्डल की प्रत्येक ऊपर की परत अपनी निचली परत की अपेक्षा देर से तथा कम मात्रा में उष्मा प्राप्त करती है। इसके अलावा ऊपर स्थित वायु परत में भार अधिक होता है तथा ऊपर जाने पर हवा का घनत्व कम हो जाता है और हवा फैलकर विरल हो जाती है। ऊँचाई के साथ पार्थिव ऊर्जा के घटते अवशोषण के कारण भी तापक्रम घटने लगता है।

प्रश्न 10.
वायुमण्डल सूर्याताप की अपेक्षा भौमिक विकिरण से अधिक गरम होता है क्यों ?
उत्तर :
वायुमण्डल सूर्याताप की अपेक्षा भौमिक विकिरण से अधिक गरम होता है क्योंकि पृथ्वी की धरातल सूर्याताप का एक अच्छा अवशोषक है और उत्सर्जक (Radiator) भी, जो सूर्याताप से प्राप्त उष्मा को पूर्णत: विकरित कर देता है। इसके अलावा वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्म, कार्बन डाई-आक्साइड गैसें लम्बी तरंगों वाली विकिरण को अच्छी तरह अवशोषित करती रहती है। वायुमण्डल सूर्याताप के लिए अधिक पारगम्य है जो सूर्य विकिरण की कुछ लम्बाइयों वाली तरंगों का अवशोषण नहीं करता है जैसे दिखने वाले प्रकाश का होता है।

प्रश्न 11.
अक्षांशीय उष्मा संतुलन से क्या समझते हो ?
उत्तर :
अक्षांशीय उष्मा संतुलन (Latitudinal Heat Balance) : सम्पूर्ण धरातल पर औसत वार्षिक तापक्रम हमेशा समान रहता है क्योंकि पृथ्वी सूर्याताप और भौमिक विकिरण के बीच एक संतुलन बनाए रखती है। परन्तु पृथ्वी के प्रत्येक अक्षांश पर प्राप्त उष्मा तथा नष्ट उष्मा में समानता नहीं हो पाती है क्योंकि सूर्याताप की मात्रा विषुवत रेखा से धुवों की ओर लगातार घटती जाती है। इसी प्रकार भौमिक विकिरण की मात्रा में भी भिन्नताएँ होती है।

40° से नीचे वाले अक्षांशों पर भौमिक विकिरण द्वारा अंतरिक्ष में खोई गई उष्मा की तुलना में सौर विकिरण द्वारा अंतरिक्ष में खोई गई उष्मा की मात्रा अधिक होती है। इसके विपरीत, उच्च अक्षांशों पर प्राप्त उष्मा की तुलना में खोई जाने वाली उष्मा की मात्रा अधिक होती है। अधिकांश उष्मा का आदान-प्रदान मध्य अक्षांशों अर्थात 30° से 60° अक्षांशों के बीच होता है। इस प्रकार निम्न अक्षांशों से अतिरिक्त उष्मा को उच्च अक्षांशों के कम उष्मा वाले क्षेत्रों में स्थानान्तरण की प्रक्रिया धरातल पर संतुलन बनाए रखती है।

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प्रश्न 12.
विषुवत या भूमध्य रेखा पर सूर्याताप की मात्रा सर्वार्थिक होती है क्यों ?
उत्तर :
विषुवत या भूमध्य रेखा पर सूर्याताप की मात्रा सर्वाधिक होती है क्योंकि यहाँ पर दिन-रात की लम्बाई बराबर होती है तथा सूर्य की किरणें लगभग सालों पर लम्बवत होती हैं। परन्तु सूर्य के दक्षिणायन और उत्तरायण की स्थितियों के कारण अत्यधिक सूर्याताप मण्डल विषुवत रेखा के दोनों ओर खिसकता रहता है। विषुवत रेखा से सुर्याताप धुवों की ओर कम होता जाता है जिसके परिणामस्वरूप तापक्रम भी कम होता जाता है।

प्रश्न 13.
तापमान असंगति धनात्मक और तापमान असंगति ऋणात्मक से क्या समझते हो तथा यह कैसे होता है?
उत्तर :
तापमान असंगति घनात्मक और ऋणात्मक (Temperature Anomaly Positive and Negative) : ग्लोब पर किसी भी स्थान विशेष के औसत तापक्रम और उस स्थान के अक्षांश के औसत तापक्रम के अन्तर को तापमान असंगति (Temperature Anomaly) कहते हैं।
समुद्र तल से ऊँचाई पर जल और स्थल की विषमता, प्रचलित पवने तथा समुद्री धाराओं के प्रभाव के कारण एक ही अक्षांश पर स्थित विभिन्न स्थानों के तापक्रम में अन्तर पाया जाता है।

जैसे, यदि 30° अक्षांश का औसत वार्षिक तापक्रम 35°C है तथा उसी अक्षांश पर स्थित ‘A’ स्थान का औसत वार्षिक तापक्रम 55°C है तो तापीय असंगति 20°C होगा। उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल भाग की अधिकता के कारण दक्षिणी गोलार्द्ध की अपेक्षा तापमान की अधिकता में असंगतियाँ पायी जाती है। जब स्थान का तापक्रम उसके अक्षांश की अपेक्षा अधिक होता है तो तापमान असंगति धनात्मक होती है। इसे ही असंगति धनात्मक तापमान कहा जाता है, इसके विपरीत जब किसी स्थान का तापमान उसके अक्षांश के औसत तापमान से कम हो तो इसे असंगति ऋणात्मक तापमान कहा जाता है।

प्रश्न 14.
पृथ्वी की उष्मा बजट से क्या समझते हो और यह कैसे संतुलित होता है ?
उत्तर :
पृथ्वी की उष्मा बजट (Heat Budget of the Earth) : वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर प्राप्त होने वाली कुल उष्मा को यदि हम 100 इकाई मान लें तो इसमें से 35 इकाईयाँ पृथ्वी के धरातल पर पहुँचने से पहले ही अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाती है। 35 इकाईयों को छोड़कर बाकी 65 इकाईयाँ अवशोषित होती हैं जिसमें से 14 इकाईयाँ वायुमण्डल द्वारा तथा 51 इकाईयाँ पृथ्वी के धरातल द्वारा।

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पृथ्वी द्वारा अवशोषित यह 51 इकाईयाँ पुन: भौमिक विकिरण या पार्थिव विकिरण (Terrestrial Radiation) के रूप में लौटा दी जाती है। इनमें से 17 इकाईयाँ सीधे अंतरिक्ष में चली जाती है और शेष 34 इकाईयों में से 6 इकाइयाँ विकिरण द्वारा, 9 इकाईयाँ संवहन के द्वारा तथा 19 इकाईयाँ संघनन की गुप्त उष्मा के रूप में वायुमण्डल को प्राप्त होती है। 34 इकाईयों के अलावा वायुमण्डल 14 इकाई ऊर्जा का प्रत्यक्ष रूप से अवशोषण करता है। इस प्रकार वायुमण्डल का कुल 14 + 34 इकाईयाँ अर्थात् 48 इकाईयों का अवशोषण होता है।

वायुमण्डल विकिरण द्वारा इन 48 इकाईयों को भी अंतरिक्ष में वापस लौटा देता है। पृथ्वी के धरातल तथा वायुमण्डल से अंतरिक्ष में लौटने वाली विकिरण की इकाईयाँ क्रमशः 17 एवं 48 हैं जिनका योग 65 होता है। इस प्रकार पृथ्वी तथा इसके वायुमण्डल को प्राप्त हुई उष्मा उनके द्वारा छोड़ी गई उष्मा के बराबर है। अत: पृथ्वी तथा वायुमण्डल द्वारा प्राप्त ताप तथा उनके द्वारा ताप के ह्रास के संतुलन को ही उष्मा बजट अथवा उष्मा संतुलन कहा जाता है।

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प्रश्न 15.
दैनिक तापान्तर कैसे प्रभावित होता है ?
उत्तर :
दैनिक तापान्तर प्रभावित होने के निम्न कारक है :
i. समुद्र तट से दूरी : जो स्थान समुद्र तट से दूर महाद्वीपों के भीतर स्थित होते हैं वहाँ का दैनिक तापान्तर समुद्र के निकट वाले स्थान से अधिक रहता है।

ii. समुद्र तल से ऊँचाई : ऊँची पहाड़ी और पठारी भागों में वायु के हल्के होने के कारण दिन में धरातल जल्द ही गरम हो जाता है और रात्रि में शीघ्र ठण्डा। इसलिए ऊँचे स्थानों पर मैदानी भागों की अपेक्षा दैनिक तापान्तर अधिक पाया जाता है।

iii. धरातलीए विशेषता : जो भू-भाग बर्फ से ढके रहते हैं उन स्थानों का दैनिक तापान्तर अधिक रहता है। इसी प्रकार खुले उष्ण मरुस्थलों में शुष्क वायु तथा स्वच्छ आकाश होने के कारण तापान्तर बहुत अधिक पाया जाता है।

iv. मेघाच्छादन : जब आकाश बादलों से ढका रहता है तो तापान्तर कम हो जाता है, क्योंकि बादल सूर्याभिताप को पृथ्वी तक पहुँचने और पार्थिव ताप को विकिरण द्वारा नष्ट होने में बाधा डालते हैं। इसके विपरीत मेघरहित प्रदेशों में दिन के समय तापमान अधिक बढ़ जाता है तथा रात्रि में पार्थिव विकिरण द्वारा तापमान कम हो जाता है, अत: इन प्रदेशों में तापान्तर बहुत अधिक हो जाता है।

प्रश्न 16.
तापमान प्रतिलोमन का प्रत्यक्ष रूप से मानव जीवन और उसके आर्थिक विकास पर कैसे प्रभाव पड़ता है ? अथवा, तापमान की विलोमता का महत्व पर संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
तापमान की प्रतिलोमन या विलोमता वायुमण्डल की स्थानीय क्रिया है, इसके कारण कई प्रकार के मौसम तथा जलवायु सम्बन्धी प्रभाव मानव जीवन तथा उसके आर्थिक विकास पर पड़ता है।
i. ऊपर गरम तथा नीचे ठण्डी वायु की परतों के कारण कुहरा (Fog) शुरू हो जाता है। कुहरा द्वारा हानि भी होता है तथा लाभ भी। घने कुहरे के कारण दृश्यता कम हो जाने से जल एवं स्थलीय भागों पर दुर्घटनाएँ होती रहती है।
ii. तापमान में विलोमता के समय यदि ऊपर स्थित गरम वायु में आर्द्रता उपस्थित होती है तो नीचे स्थित ठण्डी वायु का तापक्रम हिमांक बिन्दु से कम हो जाता है तो पाला (Frost) पड़ने लगता है। पाला निश्चित रूप से साग-सब्जियों पर प्रभाव डाल कर आर्थिक दृष्टिकोण से हानिकारक होता है।
iii. तापमान में विलोमता के कारण ही वायुमण्डल में स्थिरता आ जाती है जिस कारण वायु का उपरीमुखी तथा अधोमुखीय संचलन स्थगित हो जाता है जिस कारण वर्षा की सम्भावनाएँ कम हो जाती हैं और मानव जीवन के साथ-साथ आर्थिक विकास में भी बाधा पहुँचता है।

प्रश्न 17.
धरातल पर तापमान का क्षैतिज वितरण कैसे दिखाया गया है और क्यों ?
उत्तर :
धरातल पर तापमान का वितरण समताप रेखाओं (Isotherms) द्वारा दिखाया गया है। समताप रेखायें वे हैं जो समान औसत तापमान वाले स्थानों को मिलाती है। सामान्य रूप से समताप रेखाएँ पूरब-पश्चिम दिशा में खींची जाती है जो कि प्राय: अक्षांशों के समानान्तर होती है जिससे साफ प्रमाणित होता है कि तापक्रम के क्षैतिज वितरण पर अक्षांशों का सर्वाधिक नियंत्रण होता है। समताप रेखाएँ प्रायः सीधी खींची जाती हैं परन्तु महासागरों तथा महाद्वीपों की मिलन सीमा पर उसमें झुकाव आ जाता है जिसका प्रमुख कारण जल तथा जल के गरम और ठण्डा होने के स्वभाव में अन्तर का होना है।

दक्षिणी गोलार्द्ध में जल की अधिकता के कारण समताप रेखाएँ दूर-दूर तक सीधी रेखाओं के रूप में होती है और जब समताप रेखाएँ पास-पास होती हैं तो उससे तापक्रम में तेजी से परिवर्तन का आभास होता है तथा वे तीव्र ताप-प्रवणता (Steep Temperature Gradient) को दिखाता है। इसके विपरीत उनका दूर-दूर होना क्षीण ताप-प्रवणता (Slow Temperature Gradient) को दिखाता है। सागर से स्थल की ओर जाने पर समताप रेखाओं की स्थिति में अन्तर आ जाता है।

प्रश्न 18.
भूमण्डलीय उष्णता से बचने के लिए उपाय क्या-क्या हैं ?
उत्तर :
भूमण्डलीय उष्णता से बचने के उपाय (Preventive stepts to avoid Global Warming): भूमण्डलीय उष्णता से बचने के लिए निम्न उपाय अपनाया जाना चाहिए।

  1. जीवाश्म ईधन जैसे कोयला, पेट्रोल का कम प्रयोग किया जाय।
  2. क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन (CFC) के विकल्प का विकास किया जाय।
  3. वृक्षों की मनमाने ढंग से कटाई को कम करके अथवा रोक लगाकर और अधिक मात्रा में वृक्षारोपन के द्वारा भूमण्डलीय उष्णता को बढ़ने से रोका जा सकता है।

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प्रश्न 19.
हरित गृह प्रभाव से क्या समझते हो ?
उत्तर :
हरित गृह प्रभाव (Green House Effects) : वायुमण्डल के कार्य की तुलना ग्लास हाउस या ग्रीन हाउस के कार्य से की जा सकती है। ठण्ड प्रदेशों में सब्जियों और फूलों के पौधे ‘ग्लास हाउसों’ अर्थात काँच के घरों में उगाए जाते हैं। ‘काँच घर’ का आन्तरिक भाग बाहर की अपेक्षा गरम रहता है, क्योंकि काँच, सूर्याताप को अन्दर तो जाने देता है, लेकिन पार्थिव विकिरण (Terrestrial Radiation) को तत्काल बाहर नहीं निकलने देता। पृथ्वी को चारों तरफ से घरेने वाला वायुमण्डल ‘ग्रीन हाउस’ की भाँति ही कार्य करता है। यह सूर्याताप को अपने में से गुजरने देता है परन्तु बाहर जाने वाली दीर्घ किरणों का अवशोषण कर लेता है। इसे ही वायुमण्डल का ‘हरित गृह प्रभाव’ कहते हैं।

प्रश्न 20.
सूर्याताप और तापमान में अन्तर लिखिए।
उत्तर :
सूर्याताप और तापमान में अन्तर :

सूर्याताप (Insolation) तापमान (Temperature)
i. सूर्याताप उष्मा है जिससे गर्मी पैदा होती है। i. तापमान उष्मा में पैदा हुई गर्मी का माप है।
ii.  सूर्याताप को कैलोरी में मापा जाता है। ii. तापमान को थर्मामीटर डिग्री $F / C में मापा जाता है।
iii. गर्मी कारण मात्र है। किसी पदार्थ को गर्मी देने पर उसका तापमान बढ़ा है। iii. तापमान गर्मी का प्रभाव है, गर्मी मिलने से तापमान बढता है।

प्रश्न 21.
सौर विकिरण और पार्थिव विकिरण में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :

सौर विकिरण (Solar Radiation) पार्थिव विकिरण (Terrestrial Radiation)
i. सौर विकिरण द्वारा निकली उष्मा लघु तरंग के रूप में होती है। i. पार्थिव विकिरण उष्मा दीर्घ तरंग के रूप में होती है।
ii. सौर विकिरण द्वारा उर्जा को एकत्रित किया जा सकता है। ii. पार्थिव विकिरण उर्जा का रूप बदल जाने के कारण एकत्रित नहीं किया जा सकता है।
iii. सौर विकिरण द्वारा में सूर्य से प्राप्त प्रत्यक्ष उर्जा 34 % होता है। iii. पार्थिव विकिरण उर्जा में विपिरीत उर्जा 23 % होता है।

प्रश्न 22.
सूर्याताप को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक क्या-क्या हैं ?
उत्तर :
सूर्याताप को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक :-

  1. आपतन कोण
  2. सूर्य से प्रकाश की अवधि
  3. सूर्य से पृथ्वी की दूरी में अन्तर
  4. सौर विकिरण की मात्रा में विभिन्नता
  5. वायुमण्डल की पारदर्शकता।

प्रश्न 23.
भूमध्य रेखा तथा ध्रुवों पर निम्न वायुदाब की पेटी पायी जाती है क्यों ?
अथवा
वायुदाब पर पृथ्वी की दैनिक गति का प्रभाव किस प्रकार देखा गया है ?
उत्तर :
वायुदाब पर पृथ्वी की दैनिक गति का भी प्रभाव देखा जाता है। पृथ्वी की दैनिक गति के कारण वायुदाब बदलता रहता है। पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण आकर्षण शक्ति उत्पन्न होती है जो धरातल की समस्त वस्तुओं को पृथ्वी के केन्द्र की ओर खींचती है और उन्हें पृथ्वी से अलग नहीं होने देती। यही कारण है कि अधिक ताप के कारण भूमध्य रेखा से उठी हुई वायु पुनः मध्य अक्षांशों के निकट नीचे उत्तर जाती है। पृथ्वी की दैनिक गति के कारण भूमध्य रेखा के समीप वायु केन्द्र से दूर हटती है परन्तु ध्रुवों की वायु केन्द्र की ओर खिंचती है। इसलिए वायु का अधिकतर भाग मध्य अक्षांशों में एकत्रित होता जाता है और वहाँ वायु का दबाव वढ़ जाता है, परन्तु भूमध्य रेखा के समीप और धुवों पर वायु का दबाव कम होता है तथा निम्न वायु भार की पेटी पायी जाती है।

प्रश्न 24.
30° से 35° उत्तर-दक्षिण अक्षांशों को अश्व अक्षांश (Horse Latitude) क्यों कहा जाता है ?
अथवा,
25° से 35° उत्तर-दक्षिण अक्षांशों के बीच उपोष्ण उच्च वायुदाब की पेटियाँ क्यों पायी जाती है ?
उत्तर :
ग्लोब पर दोनो गोलार्द्धो में 25° से 35° अक्षांशों के बीच उपोष्ण उच्च वायुदाब की पेटियाँ पायी जाती है। इस भाग में शीतकाल के दो महीनों को छोड़कर सालों भर उच्च तापक्रम रहता है। इस पेटी का उच्च दाब तापक्रम से सम्बन्धित न होकर पृथ्वी की दैनिक गति तथा वायु के अवतलन से सम्बन्धित है। भूमध्य रेखा से उठी वायु तथा उप धुवीय निम्न वायुदाब की वायु इन अक्षांशों में नीचे उतरकर बैठती है, जिस कारण इनका आयतन कम होने से वायदाब अधिक हो जाता है। इस प्रकार यह उच्च वायु गति जन्य (Dynamically Induced) होता है।

इस पेटी को अश्व अक्षांश की कहा जाता है क्योंकि प्राचीन काल में यूरोप के व्यापारियों को घोड़ों से लदे नौकाओं द्वारा इस पेटी में पहुँचने पर वायु शांत रहने के कारण आगे बढ़ने में कठिनाई होती थी। ऐसी अवस्था में वे अपनी नौकाओं का भार हल्का करने के लिए घोड़ों को समुद्रो में फेक देते थे। इसलिए 30°-35° उत्तर-दक्षिण अक्षांशों को अश्व अक्षांश (Horse Latitude) कहा जाता है।

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प्रश्न 25.
चक्रवात तथा प्रतिचक्रवात की विशेषता बताएँ।
अथवा
चक्रवात और प्रतिचक्रवात में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :

चक्रवात (Cyclone) प्रति-चक्रवात (Anticyclone)
1. चक्रवात में निम्न वायुदाब केन्द्र में होता है तथा केन्द्र से बाहर की ओर वायुदाब बढ़ता जाता है। 1. प्रति-चक्रवात में उच्च वायुदाब केन्द्र में होता है तथा केन्द्र से बाहर की ओर घटता जाता है।
2. चक्रवात में वायु की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी के सुई के विपरित (Anticlockwise) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध मे वड़ी के सुई के अनुरूप (Clockwise) होती है। 2. प्रति-चक्रवात में वायु की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी के सुई के अनुरूप (Clockwise) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी के सुई के विपरित (Anti Clockwise) होती है।
3. चक्रवात की आकृति प्राय: गोलाकार, अण्डाकार अथवा वी V आकार की होती है। 3. प्रति-चक्रवात में समदाब रेखाए प्रायः गोलाकार हांती है

प्रश्न 26.
ग्लोब पर जनवरी माह और जुलाई माह में वायुदाब की स्थिति क्या है और कैसे ?
उत्तर :
जनवरी माह में समदाब का सबसे अधिक प्रभाव दक्षिणी गोलार्द्ध के मध्य भाग में होता है क्योंकि उत्तरी गोलार्द्ध में अधिक दाब के अन्य क्षेत्र उस समय 30° उत्तरी अक्षांश के करीब कैलीफोर्निया के पश्चिम में प्रशांत महासागर कोलंबिया का पठार, सहारा मरूस्थल और अन्ध महासागर में पाए जाते हैं और इस समय दक्षिणी गोलार्द्ध में इस ऋतु में उच्च दाब के केन्द्र दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट के समीप प्रशांत महासागर, पश्चिमी अफ्रीका के तट के पास अन्ध महासागर और अस्ट्रेलिया के पश्चिम में हिन्द महासागर में पाए जाते हैं।

इसी समय न्यून वायुदाब के क्षेत्र उत्तरी गोलार्द्ध में अन्ध महासागर में आइलेंड और उत्तरी प्रशान्त महासागर में एल्युशियन द्वीपों में फैले रहते हैं तथा यह वायुदाब लगभग 1026 Mb रहता है। 30° दक्षिणी गोलार्द्ध के आस-पास उच्च वायुदाब की पेटी बिना किसी रूकावट के विस्तृत भाग में फैली हुई पायी जाती है। उत्तरी गोलार्द्ध में इस ऋतु में उच्च वायुदाब के क्षेत्र उत्तरी अन्ध महासागर में एजोर्स द्वीप और उत्तरी अमेरिका में पश्चिमी नट के समीप उत्तरी प्रशान्त महासागर में स्थित है। इसके विपरीत न्यून वायुदाब यूरोशियन के मध्य भाग, आइसलैंड और कनाडा के उत्तर में बेफिन की खाड़ी आदि स्थानों में फैले हुए पाए जाते हैं। इस प्रकार इस गोलार्द्ध में समुद्र पर न्यून वायुदाब र्धल खण्डों पर पाया जाता है।

प्रश्न 27.
पर्वतीय समीर एवं घाटी समीर से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
पर्वतीय समीर (Mountain Breeze or Catabatic Wind or Gravity wind) : पर्वतीय समीर एक सामयिक पवन है, रात्रि के समय पर्वतीय ढालों तथा ऊपरी भागों पर विकिरण द्वारा ताप ह्नास अधिक होता है, जिस करण हवाएँ ठण्डी हो जाती हैं। ये ठंडी तथा भारी हवाएँ पर्वतीय ढालों के सहारे घाटियों में नीचे उतरती हैं। इन्हें ही पर्वतीय समीर या गुरुत्वाकर्षण पवन या कैटाबेटिक पवन कहते हैं।
घाटी समीर (Valley Breeze or Anabatic wind) : घाटी समीर एक सामयिक पवन है जो दिन के समय पर्वतीय घाटियों के निचले भागों में अधिक तापमान के कारण हवाएँ गर्म होकर ऊपर उठती है तथा पर्वतीय ढलानों के सहारे घटी से ऊपर उठती है। इन्हें ही घाटी समीर या एनाबेटिक पवन कहा जाता है।
जब ये हवाएँ पर्वत की चोटी तक पहुँच जाती है तब वहाँ वर्षा पदार्थ करती है। मेघालय में चेरापुँजी तथा मौसिमराम में होंने वाली वर्षा इसी कारण होता है।

प्रश्न 28.
पृथ्वी पर हवा की पेटियों के खिसकाव का संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
पृथ्वी पर हवा की पेटियों का खिसकाव (Shifting of the Wind Belts on the Earth) : पृथ्वी का अपनी कक्ष पर झुकी हुई होने तथा अण्डाकार मार्ग पर सूर्य की परिकमा करने के फलस्वरूप धरातल पर सूर्य की किरणें कभी एक सी नहीं चमकती। सूर्य कभी कर्क रेखा और कभी मकर रेखा पर सीधा चमकता है। सूर्य के इस प्रकार कभी उत्तरायण तो कभी दक्षिणायण होने के कारण वायुदाब और हवाओं की पेटियाँ कुछ उत्तर तथा कुछ दक्षिण की ओर खिसकती रहती है। 21 जून को सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत चमकता है जिस कारण सभी वायुदाब की पेटियाँ उत्तर दिशा में खिसक जाती है। भूमध्य-रेखीय दाब 0° तथा 10° अक्षांशों के बीच उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च दाब 30°-40° अक्षांशों के बीच हो जाता है, इस कारण उनसे संबंधित वायुदाब की पेटियां भी अपने निर्दिष्ट स्थान से उत्तर की ओर खिसक जाती हैं।

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21 जून के बाद सूर्य भूमध्य रेखा की ओर अग्रसर होता है तथा 23 सितम्बर को भूमध्य रेखा पर लम्बवत् चमकता है जिस कारण वायु-पेटियाँ अपनी वैसी ही स्थिति में आ जाती है, उसके बाद सूर्य दक्षिणायण हो जाता है तथा 22 दिसम्बर को मकर रेखा पर लम्बवत् होता है, जिस कारण वायुदाब तथा वायु पेटिया दक्षिण की ओर खिसक जाती है। पुनः सूर्य 21 मार्च को भूमध्य रेखा पर लम्बवत् होने के कारण ये पेटयाँ वैसी ही स्थिति में आ जाती है। इस तरह ऋतु परिवर्तन के साथ वायु पेटियों में स्थानान्तरण होता रहता है।

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प्रश्न 29.
संघनन की क्रिया के लिए किन-किन दशओं का होना अत्यंत आवश्यक है ?
उत्तर :
संघनन की क्रिया के लिए निम्नलिखित दशाओं का होना अत्यंत आवश्यक है।
(i) शांत वायु का शीतल पदार्थों से सम्पर्क :- रात्रि के समय वायु सामान्यतः शांत होती है उस समय वायु में जो वाष्प होती है वह ठण्डे धरातल के सम्पर्क में आकर बूँदो में बदल जाती है।
(ii) नम तथा ठण्डी वस्तुओं से स्पर्श :- जिस समय नम वायु ठण्डी धाराओं, ठण्डे जल अथवा हिमाच्छादित प्रदेशों से होकर बहती है तो इनके स्पर्श करने से उसकी नमी जल बूँदों में बदल जाती है।
(iii) गरम वायु का ऊपर उठकर फैलना :- ऊँचाई के साथ-साथ तापक्रम कम होता जाता है। इस प्रकार धरातल की वायु ऊपर उठती है तथा फैलती है जिससे उसके तापमान में कमी के कारण उसमें जल, वाष्प धारण करने की शक्ति कम हो जाती है, परिणामत: वह जल बूँढों में बदल जाती है।

प्रश्न 30.
भूमध्य रेखीय अथवा विषुवत रेखीय प्रदेशों में सालों भर वर्षा होती है क्यों ?
उत्तर :
भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें सालों पर लम्बवत् चमकता है जिससे दिन में धरातल के असाधारण रूप से गर्म हो जाने पर उससे लगी हुई वायु गर्म होकर फैलती है और हल्की हो जाती है। यह हल्की वायु ऊपर उठने लगती है तथा संवहनीय धराओं का निर्माण होता है। ऊपर उठकर वायु ठण्डी हो जाती है और उसमें उपस्थित जलवाष्प का संघनन शुरु हो जाता है जिसे आकाश गहरे कपासी वर्षा मेघो में घिर जाता है और अंतत: भूमध्यरेखीय प्रदेशों में प्रतिदिन नियमित रूप से वर्षा होती है। यह वर्षा प्रायः दोपहर बाद हुआ करती है इसलिए इसे चार बजे वाली वर्षा (40′ Clock Rain fail) भी कहा जाता है। यहाँ संवहनीय वर्षा होती है।

प्रश्न 31.
आर्द्रता किनते प्रकार के होते हैं? प्रत्येक का संक्षिप्त में वर्णन करें।
उत्तर :
आर्द्रता निम्नलिखित तीन प्रकार की होती है।
(i) निरपेक्ष आर्द्रता (Absolute Humidity) : वायु की प्रति इकाई आयत में उपस्थित जलवाष्म की मात्रा को निरपेक्ष आर्द्रता कहा जाता है और इसे ग्राम प्रति घन मीटर में व्यक्त किया जाता है। निरपेक्ष आर्द्रता प्राय: भूमध्य रेखा के निकट सबसे अधिक पाया जाता है जबकि ध्रुवों की ओर बढ़ने पर यह कम होती जाती है।

(ii) विशिष्ट आर्द्रता (Specific Humidity) : वायु के प्रति इकाई भार में जल/वाष्प के भार को विशिष्ट आर्द्रता कहते हैं, उसे ग्राम प्रति किलोग्राम की इकाई में मापा जाता है।

(iii) सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity) : किसी निश्चित तापक्रम पर निश्चित आयतन वाली वायु की अत्यधिक नमी धारण करने की क्षमता तथा उसमें उपस्थित आर्द्रता की वास्तविक आर्द्रता के अनुपात को सापेक्ष आर्द्रता कहा जाता है, उसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।

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प्रश्न 32.
विकिरण कोहरा और अभिवहन कोहरा से तुम क्या समझते हो ?
उत्तर :
विकिरण कोहरा (Radiation Fog) : विकरण कोहरा का निर्माण उस समय होता है जब ठण्डे धरातल के ऊपर गरम और आर्द्र वायु होती है। इस कारण ऊपर स्थित उष्णार्द्र वायु ठण्डी होकर संघनित हो जाती है और जल कण आर्द्रतागाही कणों के चारों ओर एकत्रित होकर जल-सीकरों में बदलकर कुहारे का निर्माण करते हैं। इस प्रकार बने कोहरे को विकिरण कोहरा कहते है।

अभिवहन कोहरा (Advection Fog) : जब उण्डे धरातल पर गर्म तथा आर्द्र वायु का आगमन होता है तो उष्णार्द्र एवं ठण्डी वायु के समिश्रण से उत्पन्न कोहरे को अभिवहन कोहरा कहा जाता है। उस तरह का कोहरा प्राय: स्थलीय भागों पर जाड़े में तथा सागरीय भागों पर गर्मी में होता है क्योंकि शीत ऋतु में स्थलीय भाग सागरीय भाग की अपेक्षा ठण्डे होते हैं।

प्रश्न 33.
वृष्टि किसे कहते हैं? वृष्टि कितने प्रकार के होते हैं? प्रत्येक का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर :
वृष्टि (Precipitation) : जब वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प संघनन द्वारा तरल या ठोस अवस्था में परिवर्तित होकर धरातल पर गिरते हैं तो इसे वृष्टि कहते हैं।
वृष्टि के प्रकार (Types of Precipitation) : धरातल पर होने वाली वृष्टि मुख्यत चार प्रकार की होती है।
i. हिम वृष्टि (Snow Fall) : जब वायु का तापक्रम हिमांक के नीचे गिर जाता है तो जल के कण जम जाते हैं और वे बर्फ के रूप में धरातल पर गिरने लगते हैं तो इसे हिम वृष्टि कहा जाता है।
ii. ओला वृष्टि (Hail Fall) : वायु मे उपस्थित जलवाष्प तेजी से हिम के मोटे-मोटे कणों में बदल जाते हैं और वे गोलों के रूप,में धरातल पर गिरने लगते हैं तो इसे ओला वृष्टि कहा जाता है।
iii. सहिम वृष्टि (Sleet) : वर्षा की बूंदें अथवा पिघले हिम वृष्टि के जल के पुन: जम जाने से सहिम वृष्टि की रचना होती है।
iv. वर्षा (Rain Fall) : वायु मण्डल में थोड़ी बहुत जलवाष्प हमेशा मिली रहती हैं। वायु में निहित वाष्प प्रवीभूत होने पर जब बूँदों के रूप में धरातल पर गिरने लगते हैं तो उसे वर्षा या जल वृष्टि कहा जाता है।

प्रश्न 34.
पवन विमुख ढाल को वृष्टि छाया प्रदेश कहा जाता है, क्यों ?
उत्तर :
पवन विमुख ढाल को वृष्टि छाया प्रदेश कहा जाता है क्योंकि जब पवनामुखी ढाल के सहारे जलवाष्प भरी हवाएँ ऊपर उठती हैं तथा पवन विमुख ढ़ाल सहारे नीचे उतरती है तो वे केवल शुष्क ही नहीं होती बल्कि अधिक दबाव के कारण गर्म भी हा जाती है जिससे वर्षा करने के स्थान पर उनकी भाप धारण करने की शक्ति बढ़ जाती है। अतः पर्वतों के दूसरे और पवन विमुख ढ़ाल वर्षा से अछूते रह जाते हैं इसलिए उसे वृष्टि छाया प्रदेश (Rain Shadow Area) कहा जाता है।

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प्रश्न 35.
कुहरा और कुहासा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :

कुहरा (Fog) कुहासा (Mist)
1. कुहरा एक प्रकार का बादल है। 1. कुहासा एक प्रकार का कुहरा है।
2. इसमें जलवाष्प का संघनन धरातल के बिल्कुल समीप होता है। 2. कुहासा में कुहरे की अपेक्षा दृश्यता (Visibility) दूर तक रहती है।
3. कुहरा में जल के कण अधिक छोटे तथा संघन होते हैं। 3. कुहासा में जल के कण अधिक मोटे तथा संघन होते हैं।

प्रश्न 36.
थार्नथ्वेट तथा कोपेन के जलवायु वर्गीकरण की तुलना कीजिए।
उत्तर :
थार्नथ्वेट तथा कोपेन के जलवायु वर्गीकरण की तुलना :

थार्नथ्वेट कोपेन
1. यह वर्गीकरण संख्यात्मक है। 1. यह वर्गीकरण भी संख्यात्मक है।
2. थार्नथ्वेट ने जलवायु की सीमाओं को P/E तथा T/E सूत्र में माना है। 2. कोपेन ने जलवायु की सीमाएँ ताप तथा वर्षा के निश्चित मानदण्डों के अनुसार माना है।
3. इसके वर्गीकरण में संकेतों की कमी है और याद करना सरल है। 3. इसके वर्गीकरण में संकेतों की अधिकता है और याद करना कठिन है।

प्रश्न 37.
थार्नथ्वेट का तापीय दक्षता अनुपात सूत्र क्या है ?
उत्तर :
थार्नथ्वेट ने जलवायु के वर्गीकरण में तापीय दक्षता अनुपात (T/E Ratio) पर भी समान रूप से बल दिया है । उसने तापीय दक्षता अनुपात तथा तापीय दक्षता सूची ज्ञात करने के लिए निम्न सूत्र दिये हैं।
(i) तापीय दक्षता अनुपात ( T / E ratio) = \(\frac{T}-32}{4}\) औसत मासिक वर्षा।
(ii) तापीय दक्षता सूची (T/E Index) = \($\Sigma^{12}\left(\frac{T-32}{4}\right)$\)

प्रश्न 38.
वर्षण प्रभाविता (P/E) क्या है ?
उत्तर :
वर्षण प्रभाविता (P / E ) : थार्नथ्वेट के अनुसार वर्षण प्रभाविता से तात्पर्य कुल वार्षिक वर्षा के केवल उस भाग से है जो वनस्पति के विकास को प्रभावित करता है। इस प्रकार वर्षण प्रभाविता वर्षा की मात्रा और वाष्पीकरण का अनुपात होता है। थार्नथ्वेट ने वर्षा के लिए (P) और प्रभाविता के लिए (E) के अनुपात का परिकलन किया है।

प्रश्न 39.
ग्रहीय हवाओं से क्या समझते हो ?
उत्तर :
पृथ्वी एक ग्रह है। पृथ्वी के परिभ्रमण एवं सूर्य की सापेक्ष स्थिति के कारण पृथ्वी पद उच्च एपं निम्न वायु-दाब क पंटियाँ पायी जाती है जिससे हवाओं की उत्पति होती है। पवन उच्चवायु दाब से निम्नवायु दाब की ओर चला करते है। पृथ्वी के परिभ्रमण के कारण पवन की दिशा में भी विचलन होता है। हवाओं की उत्पति एवं उनकी दिशा के निर्धारण का कारण पृथ्वी (ग्रह) का सूर्य से सम्बन्ध है अत: इन्हें प्रहीय पवन कहा जाता है। स्थायी रूप से चलने के कारण इन्हें स्थायी पवन भी कहा जाता है।

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प्रश्न 40.
वैश्विक उष्मन क्या है ?
उत्तर :
वायुमण्डल में कार्बन-डाई-आक्साइड (CO2) की मात्रा बढ़ने से वायुमण्डल के तापमान में होने वाली सामान्य वृद्धि को ही भूमण्डलीय उष्णता कहते है।

प्रश्न 41.
वर्षन से क्या समझते हो ?
उत्तर :
संघनन प्रक्रिया के परिणास्वरूप वायु की जलवाष्म जल – बूँद में बदल जाती है। ये जल बूँद आपस में मिलकर इतने बड़े आकार के हो जाते है कि वायु इन्हें सम्भालने में असमर्थ हो जाती है, तो ये जल-कण धरातल पर गिरना आरम्भ कर देती है। इस प्रकार जल कणो का पृथ्वी पर गिरने की क्रिया को वर्षण (Precipitation) कहते है।

प्रश्न 42.
मानसून से आप क्या समझते हैं? इनकी उत्पत्ति कैसे होती है ?
उत्तर :
मानसूनी पवनें (monsoon) अरब भाषा के Mausimशब्द में लिया गया है जिसंका अर्थ है – मौसम या ॠतु। अतः मानसून हवाओं का तात्पर्य है कि ये पवने मौसम के अनुसार दिशाएँ बदल देती है। ये पवनें 6 महीना स्थल के समुद्र की ओर तथा 6 महीना समुद्र से स्थल की ओर चलती है।

मानसून पवनों की उत्पति : मानसून पवनों की उत्पत्ति का सबसे प्रमुख कारण स्थल और समुद्र के तापमान की भिन्नता है। ग्रीष्म ऋतु में भारत एवं एशिया का स्थलीय भाग अत्यधिक गर्म रहता है जिसके कारण धरातल के समीप की हवाएँ गर्म व हल्की होकर ऊपर उठती है अतः स्थल पर निम्न वायुदाब क्षेत्र का निर्माण हो जाता है। इसके विपरीत समुद्र ठण्डा होता है। अतः समुद्रात की पवने ठण्डी व सिकुड़ जाती है जिससे समूद्र तट उच्च वायु क्षेत्र बन जाता हे। अत: पवन समुद्र में स्थल की ओर चलने लगती है। शीत ऋतु में विपरीत दशा मिलती है। जिससे पवने स्थल से समुद्र की ओर चलती है। इसी सिद्धान्त के आधार पर मानसूनी पवनों की उत्पत्ति होती है।

प्रश्न 43.
विभिन्न प्रकार की मानसूनी पवनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
मानसूनी पवनों के प्रकार : ये मौसम के अनुसार दो प्रकार की होती है।
i. ग्रीष्मकालीन मानसून : ग्रीष्म ऋतु में जब सूर्य कर्क रेखा 23 \(\frac{1}{2}\) % उत्तर पर चमकता है तो एशिया का वृद्ध भूखण्ड सूर्य ताप से गर्म हो जाता है। इस भू-खण्ड के समीप की वायु गर्म व हल्की होकर ऊपर उठने लगती है। अत: निम्न वायु क्षेत्र (Low Pressure) बन जाता है। इस समय भूध्मण्डल की अपेक्षा समुद्री क्षेत्र ठण्डा होता है, अतः जलीय क्षेत्रपर पवने ठण्डी होकर सिकुड़ जाती है जिसे समुद्री सतह पर उच्च वायु दाब बनने लगता है। ये समुद्र से चलने के कारण भाप भारी होती है ; अतः ये पवनें एशिया के देशों में वर्षा करती है। इन्हें दक्षिण पश्चिम से चलने के कारण दक्षिणी पश्चिमी मानसून कहते है।

ii. शीतकालीन मानसून पवन : शीत ऋतु में सूर्य मकर रेखा 23 \(\frac{1}{2}\) दक्षिण अक्षांश रेखा पर लम्बवत् चमकता है। अतः हिन्द महासागर के पश्चिमोत्तर सीमा के आस पास निम्न दाब बनने लगता है। इसके विपरीत एशिया भू खण्ड के समीप की वायु ठण्डी होती है। इसीलिए उच्च वायु दाब कम बनता है। अत: स्थलीय भाग से पवनें समुद्र की ओर बहने लगती है। ये पवनें स्थल से आने के कारण शुष्क होती है।अतः इन पवनों से वर्षा नहीं होती है।

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प्रश्न 44.
भूमध्य सागरीय प्रदेशों में जाड़े में वर्षा क्यों होती है ?
उत्तर :
भू-मध्य सागरीय प्रदेश 30° से 45° अक्षांशों के मध्य महाद्वीपों के पश्चिमी भाग में स्थित है। यह भाग व्यापारिक एवं पहुआ हवाओं की पेटियों के मध्य स्थित है। वायु भार एवं हवा की पेटियों के खिसकने के कारण ये भाग गर्मी में व्यापारिक पवनों के पेटी में आ जाते है जिससे महाद्वीपों के पूर्वी भाग में वर्षा होती है, पश्चिमी भाग तक आते आते ये पवन शुष्क हो जाते हैद्व, जाड़े में ये प्रदेश पहुआ पवनों की पेटी में पड़ते है। पछुआ पवन महासागरो से आने के कारण वाष्पपूर्ण होती है। अतः महाद्वीपों के पश्चिमी भाग में स्थित भूमध्य सागरीय क्षेत्र में जाड़े में वर्षा होती है।

प्रश्न 45.
अयन रेखाओं के समीप महद्वीपों के पश्चिमी भाग में मरुस्थल क्यों पाये जाते हैं ?
उत्तर :
अयन रेखाओं (कर्क एवं मकर रेखाओ) के समीप महाद्वीपों के पश्चिमी भाग में मरूस्थल पाये जाने के प्रमुख कारण निम्न है :-

  1. गर्मी में ये प्रदेश व्यापारिक हवाओं के प्रभाव में रहते है। व्यापारिक हवाओं से पूर्वी भाग में तो वर्षा होती है, पर पश्चिमी भाग में आते-आते शुष्क हो जाती है; अतः महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर वर्षा नहीं होती।
  2. जाड़े में प्रदेश उपोष्ण उच्च वायु भार की पेटियो में आ जाते है। यहाँ हवाए ऊपर से नीचे उतरती है। ये हवाये गर्म होती है अतः इनसे वर्षा नहीं होती है।
  3. इन प्रदेशों के समीप ठण्डी धारायें बहती है। इन धाराओं के ऊपर से बहने वाली हवाऐं ठण्डी हो जाती है अतः उनसे भी वर्षा नहीं होती है।

प्रश्न 46.
स्थलीय समीर और समुद्री समीर में अन्तर लिखिए।
उत्तर :

स्थलीय समीर समुद्री समीर
1. ये हवाऐं स्थल से समुद्र की ओर बहती है। 1. ये हवाऐं समुद्र से स्थल भाग की ओर चलते है।
2. ये समीर सूर्यास्त के 4 बजे से सुबह 8 बजे तक बहती है। 2. ये पवनें दिन में लगभग नौ बजे से सूर्यास्त के करीब आठ बजे तक बहती है।
3. यहा दिन में भूखण्ड गर्म हो जाता है इसलिए निम्न वायु दाब बन जाता है। और समुद्र में उच्च वायु दाब बनता है। 3. यहा रात में भूखण्ड ठण्डा होने के कारण उच्च दाब तथा समुद्र गर्म रहने के कारण निम्न वायु दाब बनता है।

प्रश्न 47.
वाष्पीकरण एवं संघनन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :

वाष्पीकरण (Evaporation) संघनन (Condesation)
1. जलकणों का वाष्प के रूप में बदलने की क्रिया को वाष्पीकरण कहते है। 1. जलवाष्प के जल कणों के रूप में बदलने की क्रिया को संघनन कहते है।
2. वायु में उपस्थित सुक्ष्म कणों के पास गर्म होने से वाष्पीकरण होता है। 2. वायु में उपस्थित सूक्ष्म कणों के पास ठण्ड होने से संघनन होता है।
3. वाष्पीकरण प्रक्रिया का मुख्य कारक वायुमण्डल के तापमान में वृद्धि है। 3. संघनन प्रक्रिया के मुख्य कारक तापमान में कमी तथा हवा की सापेक्ष आर्द्रता है।

प्रश्न 48.
निरपेक्ष आद्रता और सापेक्ष आर्द्रता में अन्तर बताइये।
उत्तर :

निरपेक्ष आद्रेता (Absolute Humidity) सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity)
1. किसी निश्चित आयतन की मात्रा में मौजूद जलवाष्प की मात्रा को निरपेक्ष आर्द्रता कहते है। 1. किसी निश्चित तापक्रम पर वायु में विद्यमान जलवाष्प तथा जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता के अनुपात को सापेक्ष आर्द्रता कहते है।
2. निरपेक्ष आर्द्रता से वर्षा की सम्भावना का पता नहीं चलता है। 2. सापेक्ष आर्द्रता से वर्षा की सम्भावना का अनुमान लगता है।
3. इसे ग्राम प्रति घनमीटर वायु में व्यक्त किया जा सकता है। 3. इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जा सकता है।

प्रश्न 49.
क्षोभ मण्डल को परिवर्तन मण्डल क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
मौसम सम्बन्धी प्राय: सभी घटनायें कुहरा, बादल, ओला, तुषार, आंधी, तूफान, मेघ, गर्जन आदि क्षोभमण्डल में सम्पादित होते है। इसी मण्डल में ऋतु परिवर्तन भी हुआ करता है इसीलिए इसे मण्डल को परिवर्तन मण्डल कहा जाता है।

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प्रश्न 50.
ओजोन मण्डल को पृथ्वी का रक्षा कवच क्यों कहते हैं ?
उत्तर :
आजोन मण्डल को पृथ्वी का रक्षा कवच क्योंकि इस आवरण के कारण सूर्य की पराकासमी किरणें समतापमण्डल तथा पृथ्वी सतह तक नहीं पहुंच पाती क्योंकि ओजोन गैस इन विकिण तरंगों का अवशोषण कर लेती है। यदि किरणें धरातल तक पहुंच पाती तो तापक्रम इतना बढ़ जाता कि किसी भी प्रकार का जीवन जीना भूतल तथा सागर में संभवन नहीं हो पाता।

प्रश्न 51.
शुष्क वायु में विद्यमान चार प्रमुख गैसों का उनकी मात्रा सहित नाम लिखिए।
उत्तर :
शुष्क वायु में उपस्थित गैसे :

गैसे कुल भार का %
i. नाइट्रोजन 78.08
ii. आक्सीजन 20.95
iii. कार्बन-डाई-आक्साइड 0.03
iv. आर्गन 0.9323
v. ओजोन 0.0006

प्रश्न 52.
संघनन एवं वर्षण में अन्तर लिखिए।
उत्तर :

संघनन वर्षण
1. संघनन प्रक्रिया में जल वाष्प का रूप धारण कर वायुमडल में फैल जाता है। 1. वर्षण प्रक्रिया में वायुमण्डल में संघनीय आद्रता जल के बूंद का समूह रूप में धरातल पर गिरते है।
2. ओस, पाला, कुहरा, धुन्ध आदि संघनन के रूप है। 2. जलदृष्टि, हिम वर्षा, तुषार, ओला आदि वर्षण के रूप है।
3. संघनन असंतृप्त वायुमण्डल में होता है। 3. वायुमण्डल जब बहुत ज्यादा संतृप्त हो जाता है तो वर्षण होता है।

प्रश्न 53.
वायुमण्डल की किस परत को तापमण्डल कहते हैं तथा क्यों ?
उत्तर :
वायुमण्डल के समतापमण्डल के तापमंडल कहते है। क्योंकि इस भाग में सौर्य शक्ति का शोषण और निष्कमण दोनों बराबर होते है। अत: यहाँ तापमान सदैव एक समान रहता है।

प्रश्न 54.
सूर्य की पराकासी किरणें किस प्रकार जैव जगत के लिए हानिकारक होती हैं ?
उत्तर :
प्रकाश की वह तरंग जिसकी लम्बाई बैगनी किरण से कम होती है पराबैगनी किरण भी uV rays कही जाती है। ओजोन मण्डल में छिद्र हो जाने के कारण इसका प्रभाव ज्यादा बढ़ गया है। पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है साथ ही कैंसर जैसे बिमारी भी इसी से फैल रहा है।

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प्रश्न 55.
पृथ्वी के उष्मा संतुलन के बारे में लिखिए।
उत्तर :
पृथ्वी का उष्मा संतुलन (Heat Balance of the eath) सूर्य से प्राप्त ताप का 35 % भाग पुन: अतंरिक्ष (Spac) में लौट जाता है। 14 % भाग जलवाष्प, बादल, धूल-कण तथा गैसों द्वारा सोख ली जाती है। शेष 51 % ताप पृथ्वी को प्राप्त होता है। परन्तु यदि यह ताप प्रतिदिन पथ्वी को मिलता ही रहे और नष्ट न हो तो पृथ्वी का तापक्रम आवश्यकता से काफी अधिक बढ़ जाएगा। परन्तु पृथ्वी इस 51 % ताप को किसी न किसी रूप में वायमण्डल एवं अंतरिक्ष को अंतरिक्ष को लौटा देती है। 13 % भाग धरातल से दीर्घ तरंगों के रूप में परावर्तित हो जाता है।

23 % भाग वाष्पीकरण करने में खर्च हो जाता है। यह गुप्त ताप (Leaent heat) बादल के रूप में ऊपर जाता है। संघनन के बाद वायुमण्डल में मिल जाता है। 16 % भाग वायुमण्डल को गर्म करने में खर्च होता है, 9 % भाग उष्मा विक्षोभ तथा संवहन में खर्च हो जाता है। इस प्रकार पृथ्वी सूर्य से जो 5 ताप-प्राप्त करती है उसे वायुमण्डल एवं अंतरिक्ष में लौटा देती है जिससे पृथ्वी पर उष्मा की मात्रा प्राय समान रहती है। इसे ‘पृथ्वी का उष्मा संतुलन’ कहते है।

प्रश्न 56.
सूर्य की लम्बवत् किरणों से अधिक गर्मी क्यों प्राप्त होती है ?
उत्तर :
लम्बवत् किरणे धरातल के कम क्षेत्र पर पड़ती है, जिस कारण उस स्थान ताप अधिक हो जाता है, और वहाँ अधिक गर्मी प्राप्त होती है।

प्रश्न 57.
समवायु भार या वायुदाब प्रवणता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
किन्ही दो स्थानों के बीच वायु दबाव के अन्तर को वायुभार ढाल या दाब प्रवणता (Pressure gradient) या वायुबमापी ढाल (Barometric) कहते है।

प्रश्न 58.
उपधुवीय क्षेत्रों में निम्न वायुदबाव के गठन के क्या कारण हैं ?
उत्तर :
उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की पेटियाँ (sub-palar low pressure Betles) : ये वायुदाब पेटियाँ क्रमश: 45 % उत्तरी एवं दक्षिणी अंक्षाशों से क्रमश: आर्कटिक एवं अंटार्कटिक वृतों की बीच दोनों गोलाद्धों में स्थित है। सालों पर कम तापमान होने के कारण भी यहाँ निम्न वायुदाब मिलता है स्पष्ट है कि इस कम वायुदाब का तापमान से कोई संबंध नहीं है। वास्तव में पृथ्वी की दैनिक गति के कारण इन अंक्षाशों से वायु फैलकर स्थानांतरित हो जाती है, जिस कारण गति जन्य (Dynamically Induced) वायुदाब का आविर्भाव होता है। यद्यपि इस प्रक्रिया का प्रभाव सबसे अधिक ध्रवों पर होना चाहिए, परन्तु वहाँ पर तापमान इतना न कम हो जाता है कि पृथ्वी की दैनिक गति के कारण वाय के फैलने का कारक कम जोड़ पड़ जाता है, जिसके कारण धुवो पर उच्च दाब हो जाता है ज़बकि उपधुव पर निम्न वायुदाब हो जाता है।

प्रश्न 59.
व्यापारिक हवाएँ महादेशों के पूर्वी भाग में अधिक वर्षा क्यों करती हैं ?
उत्तर :
यह हवा ठण्डे भागों से गर्म भागों की ओर बहती है। अत: ये वातावरण को ठण्डे और आरामदायक बनाती है। महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में मरुस्थलों के पाये जाने के कारण यह भी है कि पूर्व की ओर आने का कारण इनसे महाद्वीपों के पूर्वी भाग में वर्षा होती है : परन्तु पश्चिमी भाग में आते-आते शुष्क हो जाती है।

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प्रश्न 60.
किन हवाओं को गरजती चालीसा कहते हैं तथा क्यों ?
उत्तर :
पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध में 40 और 50 डिग्री दक्षिण के अक्षांशों (लैटीट्यूड) के बीच चलने वाली शक्तिशाली पहुआ पवन को गरजती चालीसा कहते हैं।

प्रश्न 61.
जलीय चक्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
वाष्पीकरण तथा पेड़ पौधों द्वारा वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रियाओं से जल वाष्प में बदलता है तथा संघनन की क्रिया से वाष्प जल में बदलती है। इस प्रकार धरातल एवं वायुमण्डल के बीच जलवाष्प एवं जल का निरन्तर आदान-प्रदान होता रहता है। जलवाष्प एवं जल के प्राकृतिक रूप से होने वाले इस आदान-प्रदान को ‘जलीय चक्र’ कहा जाता है।

प्रश्न 62.
विषुवत् रेखीय प्रदेश में संवाहनिक वर्षा क्यों होता है ?
उत्तर :
जब किसी स्थान पर अधिक गर्मी पड़ती है, तो गर्म धरातल के सम्पर्क से नीचे की वायु गर्म होकर फैलत है तथा हल्की होकर ऊपर उठती है। इस खाली स्थान को बरने के लिये आस-पास से ठण्डी हवाएँ आती हैं परन्तु वे भी गर्म होकर ऊपर उठती हैं। इस प्रकार वायु में संवहन धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं। भूमध्य रेखा पर सूर्य सालो भर लम्बत चमकता हैं जिसके कारण वहाँ संवाहनिय धारा उत्पन्न हो जाती हैं और प्रतिदिन दिन के तीसरे पहर बादलों की गरज तथा बिजली की चमक के साथ मूसलाधार होती है। वर्षा के बाद सांयकाल आकाश साफ हो जाता है।

प्रश्न 63.
वृष्टिछाया प्रदेश से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
ऊँचाई के साथ-साथ वर्षा की मात्रा बढ़ती जाती है। इस प्रकार पर्वत का जो ढाल पवन के सामने होता है वहाँ अधिक वर्षा होती है उसे पवनाभिमुख ढाल (Windward slope) कहते हैं। परन्तु जैसे ही पवन पर्वत की दूसरी ढलाव पर उतरने लगती है वह गर्म और शुष्क होने लगती है और वर्षा कम करती है तो उसे पवनाविमुख ढाल अथवा वृष्टिछाया प्रदेश (Leenward side or Rain shadow Area) कहते हैं।

प्रश्न 64.
तापमान के क्षैतिज वितरण की व्याख्या करो।
उत्तर :
तापमान के क्षैतिज वितरण (Horizontal Distribution) : धरातल को ताप प्राप्ति का मुख्य साधन सौर्यिक उष्मा है लेकिन यह भी प्रत्येक जगह समान नहीं है। भूमध्य रेखा की अपेक्षा धुवो की ओर तापक्रम क्रमशः तीव्र गति से घटता जाता है। तापक्रम के इस घटने की दर को ताप प्रवणता कहा जाता है। कर्क और मकर रेखाओ के मध्य लगभग 450 अक्षांशीय पेटी में तापक्रम अधिक ही होता है।
तापक्रम के क्षैतिज वितरण का प्रदर्शन तथा अध्ययन समताप रेखाओ के द्वारा किया जाता है।

दीर्घउत्तरीय प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 5 MARKS

प्रश्न 1.
प्रचलित या स्थायी या ग्रहीय पवन के विभित्र प्रकार क्या-क्या है ? उनकी व्याख्या सचित्र कीजिए।
अथवा
ग्लोब पर वायुभार की पेटियों के अनुसार ग्रहीय पवन की चित्र के साथ वर्णन कीजिए।
अथवा
धरातलपर पायी जाने वाली स्थायी वायुदाब पेटियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए। अथवा, पृथ्वी पर ग्रहीय या स्थायी पवनों की उत्पत्ति एवं प्रवाह-पथ चित्रसहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
प्रचलित या स्थायी या ग्रहीय या निश्चित पवनें (Prevailing or Permanent or Planetary or Invariable Winds) : वह पवन जो सालों भर एक ही क्रम में एक निश्चित दिशा की ओर चलती रहती है तो इसे प्रचलित या स्थायी पवनें कहा जाता है चूंकि इनका विस्तार पूरे ग्लोब पर होता है। इसलिए इन्हें ग्लोबल पवनें भी कहा जाता है। प्रचलित पवनों की उत्पत्ति पूरे ग्लोब के तापमान तथा पृथ्वी की दैनिक गति से उत्पन्न उच्च तथा निम्न वायुदाब से सम्बन्धित है। वायुदाब तथा ताप कटिबन्धों के अनुसार इन पवनों को निम्नलिखित तीन वर्गों में सचित्र बाँटा गया है :-
i. व्यापारिक या वाणिज्य या पूर्वी पवन (Trade Wind or Easterlies)
ii. विरुद्ध व्यापारिक या पछुवा पवन (Anti Trade Wind or Westerlies)
iii. ध्रुवीय पवन (Polar Wind)

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i. व्यापारिक या वाणिज्य या पूर्वी पवन (Trade Wind or Easterlies) : उपोष्ण उच्चदाब कटिबन्ध से भूमध्य रेखीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध की ओर दोनों गोलार्द्धों में चलने वाली पवन को व्यापारिक पवन कहा जाता है। इसे ‘अंग्रेजी में ट्रेड विंड कहा जाता है। ‘ट्रेड’ एक जर्मन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘ निर्दिष्ट पथ’। अत: ट्रेड पवन निर्दिष्ट पथ पर एक ही दिशा में निरंतर चलने वाली पवन है। फेरल के नियमानुसार ये पवने उत्तरी गोलार्द्ध में दायीं और तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती है। अतः उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी चलने की दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तथा दक्षिणी गोलार्द्ध दक्षिण-पूरब से उत्तर-पश्चिम की ओर होती है, इसलिए इन्हें पूर्वी पवन (Easterlies) भी कहा जाता है प्राचीन काल में व्यापारियों को पालायुक्त जलयानों के संचालन में पर्याप्त सुविधा मिलने के कारण इनका नामकरण व्यापारिक पवन किया गया था।

जब यह पवन महाद्वीपों के पूर्वी भागों से चलती हैं तो वर्षा अधिक होती है और पश्चिम की ओर बढ़ती है तो शुष्क हो जाती है। यही कारण है कि व्यापारिक पवन के प्रदेशों में महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में प्रायः मरूस्थल मिलते हैं। हिन्द महासागर में यह पवन मानसून के रूप में परिवर्तित होकर चलता है।

iii. विरुद्ध व्यापारिक या पछुवा पवन (Anti Trade Wind or Westerlies) : यह पवन व्यापारिक पवन के बिल्कुल विपरीत चलता है, इसलिए इसे विरूध व्यापारिक पवन कहा जाता है। उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्ध से उपधुवीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध की ओर चलने वाली पवन को पछुवा पवन कहा जाता है। यह पवन उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूरब की ओर और दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूरब की ओर प्रवाहित होती है।

पछुवा पवन का सर्वोत्तम विकास दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थल के अभाव के कारण 40° से 65° दक्षिणी अक्षांशों के बीच अधिक हुआ है और यह पवन बहुत ही तीव वेग के साथ चला करता है तो उसे बहादुर के साथ चला करता है तो उसे बहादुर पछुवा पवन (Brave Westerlies) के नाम से जाना जाता है।

पछुवा पवन के प्रचंडता के कारण दक्षिणी गोलार्द्ध में 40° दक्षिणी अक्षांश पर गरजता चालिसा (Roaring Forties), 50° दक्षिणी अक्षांश पर प्रचण्ड पचासा (Furious Fifties) तथा 60° दक्षिणी अक्षांश पर चिखता साठा (Shrieking Sixties) आदि नामों से पुकारा जाता है। ये सभी नामकरण नाविकों के द्वारा दिया गया है।

इस पवन के प्रभाव से महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में वर्षा सालों भर बना रहता है जहाँ से शीतोष्ण कटिबन्धीय निम्नदाब की ओर पवन चलने लगता है। उत्तरी गोलार्द्ध में इस पवन की दिशा उत्तर-पूरब से दक्षिण-पश्चिम की ओर और दक्षिणी गोलार्द्ध में इसकी दिशा दक्षिण-पूरब से उत्तर-पश्चिम की ओर होती है दोनों गोलाद्धों में पूरब क्षेत्र से आने के कारण इसे धुवीय पूर्वी पवन (Polar Easterlies) भी कहा जाता है।
इस पवन की वायु राशि अल्यंत ठण्डी और भारी होती है। बहुत कम तापमान वाले क्षेत्र से अपेक्षाकृत अधिक तापमान वाले क्षेत्र की ओर बहने के कारण यह पवन शुष्क होती है।

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प्रश्न 2.
‘ग्रीन हाउस’ से क्या अभिप्राय है ? भूमण्डलीय उष्षता या वैश्विक तापन के प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
अथवा
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का उल्लेख करें।
अथवा
वैश्विक उष्णता के प्रभाव का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर :
‘मीन हाउस’ का अभिग्राय है – ऐसा हाउस जिसकी छते एवं दीवारें काँच का पारदर्शी, प्लास्टिक जैसे उष्मारोधी पदार्थो से बनी हो और उसमें कोई पौधा लगाया जाये तो वह हरा-भरा रहे। इस प्रकार के घरों का प्रयोग शीतोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में सब्जियों, फसलों एवं फलदार वृक्षों को उगाने के लिए किया जाता है। शीत ऋतु में ऐसे घरों में प्रीष्म ॠतु में पैदा होने वाली सब्ज़याँ एवं फसलें उगायी जाती हैं। इन कमरों में सूर्य की किरणें ऊष्मारोधी दीवारों को भेदकर कमरे में ताप बढ़ा देती है किन्तु कमरे से बाहर की ओर ऊष्मा का विकिरण नगण्य होता है। इस प्रकार सूर्य की ऊष्मा अन्दर प्रवेश कर वहीं अटक जाती है। फलत: शीत- ॠतु में कमरे का तापमान बाहरी वातावरण की अपेक्षा अधिक रहता है।

दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि ‘पृथ्वी की वनस्पतियों तथा प्राणियों के जीवित रहने के लिए तापमान बनाए रखने की प्राकृतिक व्यवस्था को ही हरितगृह प्रभाव (Green House Effect) कहा जाता है।”
भूमण्डलीय उष्णता या ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव (Impact of Global Warming) : भूमण्डलीय उष्णता के अब तक अनेक प्रभाव दृष्टिगत हो चुके हैं जिनका विवरण निम्नलिखित रूप से प्रस्तुत है :
i. ध्रुवीय हिमचादर का पिघलन (Melting of Polar Ice Caps) : वायुमण्डल में कार्बन-डाई-आक्साइड (CO2) की मात्रा में वृद्धि होने से हिमानियाँ पिघलने लगती हैं। यदि 21 वीं सदी के मध्य तक इसकी मात्रा चार से दस गुना वृद्धि हो जाय तो पृथ्वी के तापक्रम में 7°C से 12°C तक वृद्धि होगी। उस दशा में हिम चादर पिघल जाएँगी तथा समुद्र का तटीय, निचले एवं सघन बसे घने द्वीपीय भाग डूब जायेंगे और मछलियाँ नष्ट हो जायेगी।

ii. वर्षण प्रतिरूप में बदलाव (Change the Precipitation Pattern) : भूमण्डलीय उष्णता के कारण वर्षण प्रतिरूप में बदलाव आ जाएगा। कुछ स्थानों पर अधिक एवं कुछ स्थानों पर कम वर्षण होगा, जो फिलहाल ही हमें देखने को मिल रहा है।

iii. मरूस्थलीय क्षेत्र का विस्तार (Expansion of Deserts Area) : वर्तमान कृषि उत्पादन क्षेत्र मरूस्थलीय क्षेत्रों में बदल जायेंगे। इससे विश्वभर में खाद्य संकट उत्पन्न होने का गम्भीर खतरा सामने आ सकता है।

iv. प्रादेशिक जलवायु प्रतिरूप में परिवर्तन (Change in Regional Climate Pattern) : भूमण्डलीय उष्णता के कारण प्रादेशिक जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति, कृषि फसल प्रतिरूप एवं जलापूर्ति में परिवर्तन हो सकता है। यह मानव तथा पशुओं के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है।

v. ओजोन परत की कमी (Depletion of Ozone layer) : ओजोन परत सूर्य की हानिकारक पराबेंगनी किरणों (Ultra violet rays) को अवशोषित करके पृथ्वी को सुरक्षा प्रदान करती है लेकिन क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन (CFCs) की मात्रा में वृद्धि से यह परत नष्ट हो रही है। ओजोन परत में कमी आने से पृथ्वी के धरातल पर चर्म कैंसर एवं आँखों की बिमारियों में वृद्धि की सम्भावना बढ़ जायेगी।

vi. पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव (Alteration in Ecosystems) : भूमण्डलीय उष्णता के बढ़ने से पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव आ जायेगा। वर्तमान समय में बहुत से पक्षियों और जीव-जन्तुओं का तो नामों निशान मिट चुका है।

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प्रश्न 3.
वायुमण्डलीय तापमान को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
अथवा
किसी स्थान या क्षेत्र के तापमान को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख करें।
अथवा
ग्लोब पर तापमान के वितरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
वायुमण्डलीय तापमान में भित्रता के क्या कारण हैं?
उत्तर :
तापमान के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting the temperature distribution) : किसी भी स्थान या क्षेत्र में तापमान का वितरण निम्नलिखित कारकों द्वारा प्रभावित होता है।
i. अक्षांश (Latitude) या भू-मध्य रेखा से दूरी : भू-मध्य रेखा पर सूर्य की किरण लम्बवत पड़ती है जिसके कारण भूमध्य रेखा पर दिन-रात की समान अवधि के साथ-साथ सर्वाधिक सूर्याताप प्राप्त होता है तथा तापक्रम अधिक पाया जाता है। भू-मध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर बढ़ते अक्षांश के साथ दिन की अवधि अधिक होने पर भी सूर्य की किरणों के अधिक तिरछापन के कारण सूर्याताप घटता जाता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि अक्षांश बढ़ता है तो औसत वार्षिक तापक्रम घटता है।

ii. ऊँचाई (Altitude) : समुद्र तल पर उच्च ताप पाया जाता है। समुद्र तल से ऊँचाई के साथ तापक्रम घटता जाता है। वायुमण्डल अपनी अधिक उष्मा पृथ्वी द्वारा होने वाला विकिरण से प्राप्त लेता है, अत: धरातल के सम्पर्क में आने वाला भाग सबसे अधिक उष्मा प्राप्त करता है। सामान्यत: 165 मीटर की ऊँचाई पर 1°C अथवा 1 कि०मी० की दूरी पर 6.4°C तापक्रम गिर जाता है। यही कारण है कि पर्वतीय भाग मैदानों की अपेक्षा अधिक ठण्डे होते हैं। नई दिल्ली की अपेक्षा शिमला का तापक्रम कम है, क्योंकि शिमला नई दिल्ली की अपेक्षा ऊँचाई पर स्थित है।

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iii. समुद्र तट से दूरी (Distance from the sea coast) : समुद्र के पर्वतीय भागों में तापक्रम का प्रभाव समकारी होता है क्योंकि स्थल की अपेक्षा जल देर से गरम होता है और देर से ही ठण्डा होता है। यही कारण है कि समुद्र के निकटवर्ती भागों में तापान्तर कम होता है तथा उससे दूर जाने पर तापान्तर बढ़ता जाता है। उदाहरण के लिए मुम्बई का तापमान नई दिल्ली के तापक्रम की अपेक्षा अधिक समकारी है क्योंकि मुम्बई समुंद्र तट पर स्थित है जबकि नई दिल्ली समुद्र तट से काफी दूरी पर स्थित है।

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iv. महासागरीय धाराएँ (Ocean Currents) : महासागरीय धाराएँ भी तटवर्ती क्षेत्रों के तापक्रम को प्रभावित करती हैं। जिन क्षेत्रों में गरम धारा बहती हैं वहाँ का तापक्रम अधिक होता है, इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में ठण्डी धारा बहती है, उन क्षेत्रों का तापक्रम कम हो जाता है। उदाहरण के रूप में, गल्फस्ट्रीम यूरोप के उत्तरी-पश्चिमी भाग तथा क्यूरोशिया जापान तथा उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट पर बहने वाली गरम धाराएँ है जो इन क्षेत्रों का तापक्रम ऊँचा बनाए रखती है। इसके विपरीत लेख्याडोर, पीरू तथा कैलीफोर्निया धाराएँ ठण्डी होने के कारण प्रभावित क्षेत्रों में तापक्रम अधिक नीचा कर देते हैं।

v. पवन की दिशा (Direction of Wind) : जिन स्थानों पर गरम पवनें आती हैं वहाँ का तापक्रम अधिक तथा जहाँ पर ठण्डी पवनें आती हैं वहाँ का तापक्रम कम होता है। जैसे – उत्तरी भारत के मैदानी भाग में ग्रीष्म ऋतु में चलने वाली लू से कई बार तापक्रम 45°C तक पहुँच जाता है। इसी प्रकार शीत ऋतु में हिमालय पर्वतीय क्षेत्र से आने वाली ठण्डी वायु अर्थात बर्फीली हवा से तापक्रम काफी नीचे गिर जाती है।

vi. भूमि का ढाल (Slope of the land) : यह कथन सत्य है कि भूमि का जो ढाल सूर्य के समाने आते हैं वे अधिक सूर्याताप प्राप्त करते हैं और वहाँ का तापक्रम भी अधिक होता है। इसके विपरीत, जो ढाल सूर्य से परे होते हैं वहाँ पर सर्याताप कम प्राप्त होता है और वहाँ का तापक्रम भी कम होता है ।
जैसे – हिमालय तथा आल्पस पर्वतों के दक्षिणी ढलानों पर तापक्रम अधिक तथा उत्तरी ढलानों पर तापक्रम कम पाया जाता है।

vii. भू-तल का स्वभाव (Nature of the Surface) : हिम तथा वनस्पति से ढँक हुए भू-तल सूर्य से प्राप्त हुए अधिकांश ताप को परावर्तित कर देते हैं। अतः इन क्षेत्रों में तापक्रम अधिक नहीं हो पाता। इसके विपरीत, बालू तथा काली मिट्टी से ढके हुए क्षेत्र अधिकांश सूर्याताप का अवशोषण कर लेते हैं और वहाँ पर तापक्रम अधिक होता है।

viii. मेघ तथा वर्षा (Cloud and Rainfall) : जिन प्रदेशों में मेघ छाए रहते हैं तथा वर्षा होती है वहाँ का तापक्रम अधिक नहीं होता क्योंकि मेघ सूर्य की किरणों का परावर्तन कर देते हैं। उदाहरणतया, भूमध्य रेखीय खण्ड में सूर्य की किरणों के लम्बवत पड़ने के अलावा भी वहाँ पर इतना अधिक तापक्रम नहीं हो पाता जितना मेघरहित उष्ण मरूस्थलीय भागों में हो जाता है।

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प्रश्न 4.
वायुमण्डल के संकेन्द्री-परतों का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा
वायुमंडल के क्षोभमंडल एवं समतापमंडल के स्तरों का संक्षेप में वर्णन करो।
अथवा
वायुमण्डल को कितने भागों में बाँटा गया है प्रत्येक का वर्णन करो।
उत्तर :
पृथ्वी के तल से लेकर अपनी उच्चतम सीमा तक वायुमंडल सकेन्द्री परतों के रूप में विस्तृत है जो अपने घनत्व, तापमान तथा गैसीय संघटन की दृष्टि से एक दूसरे से हमेशा अलग है। वायुमण्डल की पर्त निम्नलिखित हैं जिसे नीचे सचित्र वर्णन किया जा रहा है

क्षोभमण्डल (Troposphere) : यह वायुमण्डल की सबसे निचली एवं सघन परत है, जिसमें वायु के सम्पूर्ण भार का 75 % भाग पाया जाता है। धरातल से इस परत की औसत ऊँचाई 14 कि॰मी० मानी जाती है। यह परत भूमध्य रेखा से धुवों की ओर पतली होती जाती है। भूमध्य रेखा पर संवहन धारा के कारण इसकी ऊँचाई 18 कि०मी० एवं ध्रुवों पर 8 से 10 कि॰मी० होती है। जलवाष्प तथा धूल-कण की उपस्थिति के कारण बादलों का निर्माण, तूफान, चकवात आदि की उत्पत्ति जैसी मौसम सम्बन्धित घटनाएँ इसी मण्डल में होती है। इस मण्डल को संवहन मण्डल भी कहा जाता है क्योंकि संवहन धाराएं इस मण्डल के बाह्य सीमा तक सीमित होती है।

इस परत में ऊँचाई के साथ-साथ तापमान में गिरावट दर 1°C प्रति 165 मी० या 3.6°F 100 मीटर है। इसलिए इसे सामान्य हास दर (Normal Lapse Rate) कहा जाता है। बादल, तूफान आदि के कारण यह मण्डल वायुयानों के उड़ने के लिए उपयुक्त नहीं होता है। यह मण्डल विकिरण (Radiation), संचालन (Conduction), और संवहन (Convection) द्वारा गर्म एवं ठण्डा होता है। क्षोभमण्डल एवं समतापमण्डल के बीच स्थित संक्रमण स्तर को क्षोभ सीमा (Tropopause) कहा जाता है।

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प्रश्न 5.
अल नीनो (EL-Nino) का प्रभाव ग्लोब पर कैसा है व्याख्या कीजिए।
अथवा
अल नीनो का विश्व पर कैसे प्रभाव पड़ता है वर्णन कीजिए।
उत्तर :
अल नीनो का वैश्विक प्रभाव (Effect of El-Nino) :- लगभग उसे 8 वर्षो के अंतराल के पश्चात महासागरों एवं विश्व की जलवायु में एक विचित्र परिवर्तन देखने को मिलता है। इसकी शुरूआत पूर्वी प्रशान्त महासागर से होती है एवं लगभग एक वर्ष की अवधि के लिए उसका प्रभाव सम्पूर्ण विश्व में फल जाता है।

अलनीनो की उत्पत्ति के साथ ही तटवर्ती क्षेत्र में सतह के नीचे जल का स्तर उपर आना बंद हो जाता है उसके फलस्वरूप ठण्डे जल का स्थानातंरण पश्चिम से आने वाले गर्म जल द्वारा होने लगता है एवं प्लैस तथा मछलियाँ विलुप्त होने लगती हो इन मछलियों पर निर्भर पक्षी भी मरने लगती है।

अलनीनो के कारण दक्षिणी मध्य प्रशान्त महासागर में भयानक उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति होती है। जब पश्चिमी प्रशान्त महासागर के उच्च दाब क्षेत्र का फैलाव फिलीपीन, श्रीलंका एवं भारत तक हो जाता है, तो उस भाग में सूखा पड़ता है। अलनीनो की घटनाओं के बीच एक विपरीत एवं पूरक घटना देखने को मिलता है जिसे ला-नीनो (La-Nino) कहा जाता है।

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प्रश्न 6.
पृथ्वी पर हवा की पेटियों के खिसकाव का संक्षिप्त व्यख्या कीजिए।
उत्तर :
पृथ्वी पर हवा की पेटियों का खिसकाव (Shifting of the Wind Belts on the Earth) : पृथ्वी का अपनी कक्ष पर झुकी हुई होने तथा अण्डाकार मार्ग पर सूर्य की परिक्रमा करने के फलस्वरूप धरातल पर सूर्य की किरणें कभी एक सी नहीं चमकती। सूर्य कभी कर्क रेखा और कभी मकर रेखा पर सीधा चमकता है। सूर्य के इस प्रकार कभी उत्तरायण तो कभी दक्षिणायण होने के कारण वायुदाब और हवाओं की पेटियाँ कुछ उत्तर तथा कुछ दक्षिण की ओर खिसकती रहती है। 21 जून को सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत चमकता है जिस कारण सभी वायुदाब की पेटियाँ उत्तर दिशा में खिसक जाती है। भूमध्य-रेखीय दाब 0° तथा 10° अक्षांशों के बीच उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च दाब 30°-40° अक्षांशों के बीच हो जाता है, इस कारण उनसे संबंधित वायुदाब की पेटियां भी अपने निर्दिष्ट स्थान से उत्तर की ओर खिसक जाती हैं।

21 जून के बाद सूर्य भूमध्य रेखा की ओर अग्रसर होता है तथा 23 सितम्बर को भूमध्य रेखा पर लम्बवत् चमकता है जिस कारण वायु-पेटियाँ अपनी वैसी ही स्थिति में आ जाती है, उसके बाद सूर्य दक्षिणायण हो जाता है तथा 22 दिसम्बर को मकर रेखा पर लम्बवत् होता है, जिस कारण वायुदाब तथा वायु पेटियां दक्षिण की ओर खिसक जाती है। पुन: सूर्य 21 मार्च को भूमध्य रेखा पर लम्बवत् होने के कारण ये पेटयाँ वैसी ही स्थिति में आ जाती हैं। इस तरह ॠतु परिवर्तन के साथ वायु पेटियों में स्थानान्तरण होता रहता है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 2 वायुमण्डल 8

प्रश्न 7.
मुख्य ज्वार एवं गौण ज्वार के उत्पति के कारण क्या है ?
उत्तर :
मुख्य ज्वार (Primary tide) : पृथ्वी के उस भाग के समुद्री जल के चढ़ाव को प्रत्यक्ष ज्वार कहते हैं जो चन्द्रमा व सूर्य के समीपस्थ पड़ता है। वहाँ केन्द्रापसारी बल की अपेक्षा गुरुत्वाकर्षण शक्ति अधिक होती है। अत: इस भाग का जल चन्द्रमा की ओर आकर्षित होकर ऊपर उठ जाता है। इस जल चढ़ाव को प्रत्यक्ष ज्यार (Direct tide) या प्रारम्भिक या मुख्य ज्वार (Primary tide) कहते हैं।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव (Impact of Climatic Change) : वर्तमान समय में विश्वभर में हो रहे जलबायु परिवर्तन की व्याख्या निम्नलिखित रूप से की जा रही है।

  1. विश्व के बहुत से स्थानों का तापमान बढ़ रहा है। यह संभवतः मानवीय क्रियाकलापों से ग्रीन हाउस गैसों जैसे CO2, CFCs, CH4, N2O के बढ़ने के कारण हुआ है।
  2.  तापमान के बढ़ने से विभिन्न प्रदेशों में आने वाले भयकर तुफानों की संख्या बढ़ी है।
  3. विश्व के बहुत से आर्द्र प्रदेश शुष्क हो गए हैं और उनमें फैलाव की संभावना है।
  4. विश्व के कुछ भागों में भयकर तूफान के आने से बाढ़ें आ सकती हैं।

गौण ज्वार (Indirect Tide) : पृथ्वी का वह भाग जो चन्द्रमा के ठीक विपरीत दूरस्थ भाग पर पड़ता है तो इस भाग में गुरुत्वाकर्षण शक्ति की अपेक्षा केन्द्रापसारी बल अधिक होता है। अत: इस भाग का जल चन्द्रमा से दूर हट कर उपर उठ जाता है। इसे अप्रत्यक्ष ज्वार या गौण ज्वार कहते हैं।

प्रश्न 8.
ओजन परत की सृष्टि कैसे होती है ? ओजोन परत क्षरण के प्रमुख गैस की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
ओजोन छिद्र का पता सर्वप्रथम 1985 में अंटार्कटिका के ऊपर फारमान द्वारा लगाया गया, उसके बाद ओजोन छिद्र का पता आकर्टिक एवं उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में भी लगाया गया।

समताप मंडल में 20 से 35 कि॰मी० के बीच ओजोन गैस की परत पाई जाती है। ओजोन की यह परत सूर्य की किरणों से विकरित पाराबैगनी किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकती है। जब विभित्र सोतों से उत्सर्जित क्लोरिन गैस ऊपर उठती है तो वह (ओजन) से प्रतिक्रिया करके क्लोरीन मोनो आक्साइड एवं आक्सीजन का निर्माण होता है। क्लोरीन का एक अणु ओजोन के अनेक अणुओं का विनाश करने में सक्षम होता है, चूकि ध्रुवों के निकट ओजोन मण्डल की ऊँचाई कम होती है। अत: यहाँ ओजोन क्षरण की समस्या सर्वाधिक गम्भीर है।

ओजोन क्षरण का मुख्य कारण (CFCs) है। उस गैस का प्रयोग प्रशीतक, प्रणोदक, इलेक्ट्रानिक वस्तुओं की सफाई तथा आग वाली प्लास्टिक के निर्माण आदि कार्यो में होता है। इसके अलावा काबर्न-डाई-आक्साइड मिथेन आदि गैस है। ये गैसें पृथ्वी के चारों ओर प्रवाहित होकर एक घना आवरण बन देती है। जिससे पृथ्वी पर सौर विकिरण तो आ जाता है परन्तु ये गैस इन्हें वापस आंतरिक्ष में नहीं जाने देती है। उसके फलस्वरूप किरण के तापमान में वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 9.
भूमण्डलीय उष्पता के लिए प्रमुख उत्तरदायी कारकों का वर्णन कीजिए।
अथवा
वैश्विक तापन या ग्लोबल वार्मिंग से क्या अभिप्राय है ? विश्व के तापमान में वृद्धि के क्या कारण हैं ?
उत्तर :
भूमण्डलीय उष्णता या वैश्विक तापन या ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) : वायुमण्डल में कार्बन-डाई-आक्साइड (CO2) की मात्रा बढ़ने से वायुमण्डल के तापमान में होने वाली सामान्य वृद्धि को ही भूमण्डलीय उष्णता (Global Warming) कहते हैं।
भूमण्डलीय उष्णता के लिए उत्तरदायी कारक (Factors Responsible for Global Warming) :भूमण्डलीय उष्णता के लिए उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं :-
i. जीवाश्म ईंधन का जलना (Burning of Fossil Fuels) : उद्योगों तथा वाहनों के द्वारा जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, पेट्रोल का अधिक मात्रा में प्रयोग करने पर वायुमण्डल में कार्बन-डाइ-आक्साइड (CO2) की मात्रा पिछले सौ वर्षो से 20-25 प्रतिशत तक बढ़ गई है।

ii. जंगलों का विनाश (Destruction of Forests) : तेजी से बढ़ते हुए औद्योगीकरण के कारण प्राकृतिक वनस्पतियों को मनमाने ढंग से काटा जा रहा है। पेड़-पौधे कार्बन-डाई-आक्साइड (CO2) को अवशोषित करते हैं तथा वायु में आक्सीजन (O2) छोड़ते हैं। वृक्षों की अंधाधुन कटाई के कारण, कार्बन-डाई-आक्साइड (CO2) की मात्रा वायुमण्डल में बढ़ जाने से भूमण्डलीय उष्णता भी अधिक हो गई है।

iii. मिथेन गैस की मात्रा बढ़ना (Increasing amount of the Methane) : पेड़-पौधे एवं जानवरों के अवशेष के सड़ने-गलने से मीथेन (CH4) गैस की उत्पत्ति होती है जो वायुमण्डल के तापक्रम को बढ़ाने में सहायक है।

iv. क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन का बढ़ना (Increasing of Chloro-Fluoro-Carbons) : क्लोरा-फ्लोरोकार्बन (CFCS) गैस का प्रयोग फ्रिज और हवाई छिड़काव के लिए किया जाता है। इस गैस की मात्रा में वृद्धि, पृथ्वी के तापमान की वृद्धि के लिए उत्तरदायी है।

v. ओजोन परत का क्षरण (Depletion of Ozone Layer) : ओजोन परत के क्षय के कारण सूर्य की पराबैंगनी किरणों को सीधे पहुँचने से धरातल के तापमान में वृद्धि हो रही है, जिससे भूमण्डलीय उण्णता भी अधिक हो गई है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 2 वायुमण्डल

प्रश्न 10.
जलवायु परिवर्तन से आप क्या समझते हो? वर्तमान समय में विश्व में हो रहे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
जलवायु परिवर्तन (Climatic Change ) : जलवायु, दूसरे भौतिक तत्वों के समान नहीं है बल्कि परिवर्तनशील है। कम या अधिक इसमें हमेशा परिवर्तन होता रहता है। आजकल जलवायु परिवर्तन को भविष्य में होने वाली एक विशेष घटना के रूप में देखा जाता है। अन्तरराष्ट्रीय पैनेल में जलवायु परिवर्तन के द्वारा समय-समय पर वायुमण्डल में उपस्थित हरित गृह गैसों की सान्द्रता एवं इसमें वृद्धि का आकलन किया जाता है तथा इसमें हो रहे दुष्भभावों की व्याख्या भी की जाती है।

अभी तक वैश्विक तापन के फलस्वरूप पृथ्वी के तापक्रम में 1°C का बढ़ोतरी पहले से ही चुका है और विकास एवं औद्योगीकरण की दर यदि यही बनी रही तो 21 वीं शताब्दी के अन्त तक पृथ्वी के तापक्रम में 1.5°C से लेकर 5.4°C तक की वृद्धि दर्ज की जा सकेगी। इस प्रकार पृथ्वी के गर्माने से हवाओं के रूख में परिर्वतन हो जायेंगे और वर्षा के क्रम में भी अनेक परिवर्तन उत्पन्न होंगे।

प्रश्न 11.
ग्लोब पर तापमान के प्रादेशिक वितरण का वर्णन कीजिए।
अथवा
विश्व के तापकटिबन्धों या पेटियों की सचित्र व्याख्या कीजिए।
अथवा
ताप कटिबंधों की व्याख्या करो।
उत्तर :
ग्लोब पर प्रमुख तापकटिबन्धों या पेटियों का विभाजन (Division of Main Temperature Zones on the Globe) : तापमान के आधार पर विश्व को निम्नलिखित तीन कटिबन्धो में विभाजित किया गया है।
i. उष्ण कटिबन्ध (Tropical or Torrid Zones)
ii. शीतोष्ण कटिबन्ध (Temperate Zones)
iii. शीत कटिबन्ध (Frigid or Cold Zones)

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i. उष्ण कटिबन्ध (Tropical or Torrid Zone) : इसे विषुवत रेखीय कटिबन्ध (Tropical Equatorical Zone) भी कहते हैं। यह भू-मध्य रेखा से दोनों ओर 23 1/2° N/S तक फैला हुआ है। इसकी सीमांतक रेखा को उत्तरी गोलार्द्ध में कर्क रेखा (Tropic of Cancer) और दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा (Tropic of Capricar) कहते हैं। इस कटिबन्ध में सूर्य की सीधी किरणें अन्य स्थानों से अधिक पड़ती है, इसलिए यहाँ तापमान हमेशा उच्च रहता है और यह उष्ण कटिबन्ध कहलाता है।

ii. शीतोष्ण कटिबन्ध (Temperate Zones) : यह दोनों गोलार्द्धों में 23 1/2° N / S से 66 1/2° N/S अक्षांशों के बीच फैला हुआ है। उत्तर में उत्तरी ध्रुव वृत्त और दक्षिण में दक्षिणी ध्रुव वृत्त (Artic Circle and Antartic Circle) इसकी सीमाएँ बनाती हैं। इस कटिबन्ध में जाड़े और गरमी के तापमान का अन्तर अधिक हो जाता है। पृथ्वी का अधिकांश भाग इस भाग में स्थित है।

iii. शीत कटिबन्ध (Frigid or Cold Zones) : यह शीतोष्ण कटिबन्ध से उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तरी ध्रुव (North Pole 90°) तक तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी ध्रुव (South Pole 90° ) तक फैला हुआ है। इस कटिबन्ध में बहुत अधिक सरदी पड़ती है। इस कटिबन्ध में सूर्य की किरणें बहुत ही तिरछी पड़ती है जिसके कारण यहाँ तापमान बहुत ही कम होता है, इसलिए इसे शीत कटिबन्ध कहा जाता है।

WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 2 वायुमण्डल

प्रश्न 12.
वायुमण्डल का गरम एवं ठण्डा होने के प्रमुख विधियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
वायुमण्डल किन-किन विधियों द्वारा गरम एवं ठण्डा होता है इनकी व्याख्या प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
वायुमण्डल का गरम एवं ठण्डा होना (Heating and Coolling of the Atmosphere) : वायुमण्डल के गरम एवं ठण्डा होने की क्रियाएँ मुख्य रूप से संचालन, संवहन, विकिरण तथा अभिवाहन की विधियों से प्रस्तुत होती हैं।
i. संचालन (Conduction) : संचालन क्रिया के अंतगर्त एक अणु स्पर्श द्वारा दूसरे अणु को उष्मा प्रदान करता है। यह तभी संभव होता है जब वस्तुओं के तापक्रम में विभिन्नता होती है तथा यह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि दोनों वस्तुओं का तापक्रम समान न हो जाय। दिन के समय पृथ्वी की धरातल सूर्याताप द्वारा गरम हो जाता है। इस कारण जब वायुमण्डल की शीतल वायु तप्त धरातल के सम्पर्क में आती है तो संचालन के द्वारा वह भी गरम हो जाती है क्योंकि वायु ऊष्मा की कुचालक है। अत: इस प्रक्रिया के द्वारा वायुमण्डल की केवल निचली परते ही गरम होती हैं।

ii. संवहन (Convection) : सौर विकिरण से ऊष्मा प्राप्त करने के बाद धरातल गर्म होने लगता है जिस कारण उसके सम्पर्क में आने वाली वायु गरम होकर ऊपर उठती है तथा फैल कर हल्की हो जाती है। इसके विपरीत ऊपर स्थित वायु अपेक्षाकृत ठण्डी होने के कारण भारी होने से नीचे उतरती है, जिस कारण नीचे उतरने से सिकुड़कर भारी होने तथा धरातलीय तापक्रम से गरम होती है। पुन: हल्की होकर ऊपर उठती है। इस तरह वायुमण्डल में संवहन तरंगों का आविर्भाव होता है जिससे ऊष्मा का स्थानांतरण होने रहने से वायुमण्डल ऊँचाई तक गरम हो जाता है।

iii. विकिरण (Radiation) : किसी पदार्थ के ऊष्मा तरंगों के संचार द्वारा सीधे गरम होने को विकिरण कहते हैं। सूर्याताप को ग्रहण करने और उसे ताप में बदल देने से पृथ्वी का धरातल गरम हो उठता है। फलत: गरम धरातल ताप को पुन: शून्य में प्रसारित करने लगता है। इस प्रकार पृथ्वी से होने वाले विकिरण को भौमिक विकिरण (Terrestrial Radiation) कहते हैं। वायुमण्डल के ऊपरी भाग में कई प्रकार की गैसें और धूल कण भी स्वतंत्र रूप से सूर्याताप ग्रहण करते हैं और फिर गरम होकर स्वयं ताप शक्ति को प्रसारित करते हैं।

इनके द्वारा प्रसारित ताप पृथ्वी के धरातल पर पहुँचता है और धरातल को गरम करने में महत्वपूर्ण स्थान लेता है। इस प्रकार यह पृथ्वी से नष्ट होने वाली ताप शक्ति को बनाए रखने में सहयोग देता है। सूर्यताप पृथ्वी के धरातल पर लघु तरंगों (Short Waves) के रूप में पहुँचता है जबकि भौमिक विकिरण (Terrestrial Radiation) लम्बी तरंगों (Long Waves) के रूप में होता है। वायुमण्डल सूर्याताप की अपेक्षा भौमिक विकिरण से अधिक गरम होता है।

iv. अभिवहन (Advection) : इस प्रकिया में ऊष्मा का क्षैतिज दिशा में स्थानान्तरण होता है। गरम वायु-राशियाँ जब ठण्डे क्षेत्रों में जाती हैं तो उन्हें गरम कर देती है। इससे ऊष्मा का संचार निम्न अक्षांशीय क्षेत्रों से उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों तक भी होता है। वायु द्वारा संचालित समुद्री धाराएँ भी उष्ण कटिबन्धों से धुवीय क्षेत्रों में ऊष्मा का संचार करती है।

प्रश्न 13.
वायुदाब को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
अथवा
किसी स्थान प्रदेश के वायुदाब को प्रभावित करने वाले तत्वों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
वायुदाब को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या करो।
उत्तर :
वायुदाब को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting the Pressure belts) : पृथ्वी पर वायुदाब सर्वन्न समान नहीं है। कहीं अधिक वायुदाब है तो कहीं कम। वायुदाब की इस भिन्नता के कारण निम्नलिखित हैं :-
i. वायु का तापमान (Temperature of the Air) : वायुदाब और तापमान में घनिष्ठ सम्बन्ध है। वायु का तापमान बढ़ जाने पर उसका आयतन बढ़ जाता है और यह फैलकर इधर-उधर चलने लगती है, इससे वायु का दबाव कम हो जाता है, परन्तु जब तापमान घट जाता है तो वायु सिकुड़कर एक जगह एकत्रित होने लगती है, जिससे वायुदाब बढ़ जाता है। इस तरह तापमान में परिवर्तन के साथ-साथ वायुदाब भी घटता-बढ़ता रहता है। अर्थात हम कह सकते हैं कि तापमान अधिक हुआ तो वायुदाब कम होगा और यदि तापमान कम हुआ तो वायुदाब अधिक होगा। यही करण है कि भूमध्य रेखा के आस-पास तापमान अधिक होने पर वायुदाब कम तथा धुवों के पास तापमान कम होने पर वायुदाब अधिक होता है।

ii. वायु का जलवाष्प (Water Vapour) : जलवाष्प हवा से हल्की होती है, अत: अधिक जलवाष्प युक्त वायु हल्की होती है और उसका दाब कम होता है। शुष्क वायु भारी होती है, अत: उसका दाब अधिक होता है। ऋतु के अनुसार जलवाष्प की मात्रा घटती-बढ़ती रहती है। यही कारण है कि वर्षा ॠतु में आर्द्र वायु होने पर वायु दाब कम होता है। शीत ॠतु में शुष्क वायु के कारण वायुदाब अधिक होता है।

iii. पृथ्वी की दैनिक गति (Rotation of the Earth) : पृथ्वी की दैनिक गति से उत्पन्न अपकेन्द्री बल के कारण विषुवत रेखीय भागों मे वायु दूर हटती है, दूसरी ओर उपधुवीय क्षेत्रों के वायु गुरूत्वाकर्षण के कारण निम्न अक्षाशशों की ओर खिचती है। फलस्वरूप 40° तथा 50° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के बीच हवाएँ उतरती है और वहां के वायुभार को बढ़ा देती है।

iv. ऊँचाई का प्रभाव (Effect of Altitude) : वायुदाब वायुमण्डल के वजन के कारण होता है। समुद्र तल पर वायुमण्डल की पूरी ऊँचाई का भार पड़ता है, अत: वहाँ वायुदाब सबसे अधिक होता है वहाँ से जैसे-जैसे हम ऊपर जाते है वैसे-वैसे हमारे ऊपर वायुदाब की मात्रा कम होती जाती है। ऊपर की वायु विरल भी होती है। वैज्ञानिको का मत है कि से 6 कि॰मी॰ की ऊँचाई पर वायुदाब आधा हो जाता है। 11 कि॰मी॰ की ऊँचाई पर तो वजन एक चौथाई रह जाता है।

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प्रश्न 14.
पृथ्वी पर वायुदाब की पेटियों का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा
ग्लोब पर वायुमण्डलीय दाब के क्षैतिज वितरण को चित्र के साथ व्याख्या कीजिए।
अथवा
पृथ्वी पर वायुभार की कितनी पेटियाँ हैं। चित्र की सहायता से उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर :
वायुदाब की पेटियाँ (Pressure Belts) : यदि पृथ्वी स्थिर होती, तो विषुवत रेखा के निकट निम्न वायुदाब एवं धुवों के निकट उच्च वायुदाब की उच्च पेटियाँ मिलती। परन्तु पृथ्वी की दैनिक गति के कारण उपरोक्त दोनों पेटियों के अलावा दोनों ही गोलार्द्धों में वायुदाब की और दो-दो पेटियाँ पायी जाती हैं। इस प्रकार वायुदाब की कुल सात पेटियाँ ग्लोब पर देखने को मिलती है जिन्हें दाब कटिबन्ध (Pressure Belt) भी कहा जाता है।
इस प्रकार सम्पूर्ण ग्लोब पर सात वायुमण्डलीय दाब पेटियों को चार समूहों में सचित्र वर्णन किया जा रहा है।

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i. भूमध्य रेखीय निम्न वायुदाब की पेटी (Equatorial Low Pressure Belt) : इस पेटी का विस्तार भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5° या 10° अक्षांशों तक हुआ है। भूमध्य रेखा पर सालों पर सूर्य की किरणें लगभग लम्बवत पड़ती है जिंसके कारण सालों पर तापमान ऊँचा रहता है। अधिक तापमान के कारण इस क्षेत्र की वायु गर्म होकर ऊपर उठती है जिसे निम्न वायु दाब पेटी का निर्माण हाता है। इस कम दाब की पेटी का प्रत्यक्ष सम्बन्ध तापमान से है, अत: इसे तापजन्य न्यूनदाब की पेटी (Thermal Pressure Belt) भी कहा जाता है। इस क्षेत्र में सामन्यतः धरातलीय क्षैतिज पवन नहीं चलते है व्योंकि इस कटिबन्ध में आने वाली इसकी सीमाओं के समीप पहुँचते ही गर्म होकर ऊपर उठने लगती है। इस प्रकार इस कटिबन्ध में केवल उर्ध्वाधर या संवहनीय वायु धाराएँ पायी जाती है। वायुमण्डलीय दशा के अत्यधिक शांत रहने के कारण ही इस कटिबन्ध को शांत कटिबन्ध (Calm Belt) या डोलडूम (Doldrum) कहा जाता है।

ii. उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायु दाब की पेटियाँ (Sub-Tropical High Pressure Belts) : उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्दो में क्रमशः कर्क ओर मकर रेखाओं से 35° अक्षांशों के बीच उच्च वायुदाब की पेटियाँ पायी जाती है। इन पेटियों में उच्चदाब होने के कारण यह तापीय नहीं है बल्कि यह पेटी पृथ्वी की दैनिक गति एवं वायु के अवतलन से सम्बन्धित है, अर्थात यह उच्च वायुदाब गतिजन्य है।

इस पेटी में उच्च वायुदाब की उत्पत्ति का दूसरा कारण कारिआलिस बल है। भूमध्य रेखीय क्षेत्र से वायु ऊपर की ओर उठती है एवं धुवों की ओर चलने लगती है। वायुमण्डल के ऊपरी भाग में घर्षण के अभाव के कारण कारिआलिस बल के प्रभाव से ये हवाएँ उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में क्रमशः दायी एवं बायी और मुड़ने लगती है। इस वायु दाब पेटी को अश्व अक्षांश (Horse Latitude) भी कहा जाता है क्योंकि प्राचीनकाल में घोड़े से भरा पालवाला जलयान जब इस पेटी में पहुँचता या तो वायु के शांत रहने के कारण जलयान को आगे बढ़ने में कठिनाई होती थी। अतः जलयान के भार को कम करने के लिए कुछ घोड़ों को समुद्र में फेंक दिया जाता था। इस भार का सबसे अधिक प्रभाव 30°-35° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के बीच पड़ा, इसलिए इसे ही अश्व अक्षांश (Horse Latitude) कहा जाने लगा।

iii. उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की पेटियाँ (Sub-Polar Low Pressure Betls) : ये वायुदाब पेटियाँ क्रमशः 45° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों से क्रमशः आर्कटिक एवं अंटार्कटिक वृतों की बीच दोनों गोलार्द्धो में स्थित है। सालों पर कम तापमान होने के कारण भी यहाँ निम्न वायुदाब मिलता है। स्पष्ट है कि इस कम वायुदाब का तापमान से कोई सम्बन्ध नहीं है। वास्तव में पृथ्वी की दैनिक गति के कारण इन अक्षांशों से वायु फैलकर स्थानांतरित हो जाती है, जिस कारण गति जन्य (Dynamically Induced) वायुदाब का आविर्भाव होता है। यद्यपि इस प्रक्रिया का प्रभाव सबसे अधिक धुवों पर होना चाहिए, परन्तु वहाँ पर तापमान इतना न कम हो जाता है कि पृथ्वी की दैनिक गति के कारण वायु के फैलने का कारक कमजोर पड़ जाता है, जिसके कारण धुवो पर उच्च दाब हो जाता है जबकि उपध्रुव पर निम्न वायुदाब हो जाता है।

iv. ध्रुवीय उच्च दाब की पेटियाँ (Polar High Pressure Belts) : 80° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांश से उत्तरी धुव तथा दक्षिणी धुव तक उच्च वायुदाब की पेटियाँ पायी जाती है, जिन्हें धुवीय उच्च वायुदाब की पेटियाँ कहा जाता है। श्रुवों पर तथा समीवर्ती क्षेत्रों में अत्यंत शीत के कारण वायुदाब स्वभावतः उच्च हो जाता है। अत: यह उच्च वायुदाब ताप जन्य (Thermally induced) होता है।

प्रश्न 15.
शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात और उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात की तुलनात्मक व्याख्या कीजिए। अथवा, शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात और उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात की विशेषता लिखिए।
उत्तर :
शीतोषण कटिबन्धीय चक्रवात (Temperate Cyclone) :

  1. शीतोष्पा कटिबन्धीय चक्रवात में समदाब रेखाएँ प्राय: ‘V’ आकार की होती है।
  2. इनमें दाब प्रव्वणता (Pressure Gradient) हल्की होती।
  3. इनका विकास जल और स्थल दोनों पर होता है।
  4. इनमें वायु धीमी गीत से पश्चिम से पूरब की ओर चलती है।
  5. शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में वर्षा धीरे-धीरे तथा कई दिनों तक होती रहती है।
  6. ये शीत ॠतु में अधिक उत्पन्न होती है।
  7. शीतोण्ण कटिबन्धीय चक्रवात का विस्तार हजारों वर्ग कि०मी० क्षेत्र में होता है।

उष्मा कटिबन्धीय च्रकवात (Tropical Cyclone) :

  1. उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में समदाब रेखाएँ प्राय: गोलाकार होती है।
  2. इनमें दाब प्रवणता (Pressure Gradient) तीव्र होती है।
  3. इनका विकास केवल समुद्री भाग में होता है।
  4. इनमें वायु तीब्र वेग से पूरब से पश्चिम की ओर चलती है।
  5. उष्णा कटिबन्धीय चक्रवात में वर्षा तीब गति के साथ कुछ घण्टों से अधिक नहीं होती है।
  6. ये ग्रीष्म ऋतु में अधिक उत्पन्न होते हैं।
  7. उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात का विस्तार 80 से 300 कि॰मी० तक होती है।

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प्रश्न 16.
सामयिक पवन से आप क्या समझते हैं? सामयिक पवन को कितने वर्गों में विभाजित किया गया है ? किसी एक सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा
अस्थायी पवन किसे कहते हैं ? तथा इसे कितने वर्गों में रखा गया है ?
अथवा
मानसूवी पवन, स्थलीय समीर तथा सागरीय समीर और पर्वत तथ्था घाटी समीर का अर्थ क्या है?
अथवा
धरातल पर प्रवाहित होनेवाली सामयिक पवनों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
सामयिक पवन या अस्थायी या ऋतु पवन (Periodical wind or Temporary Wind or Seasional Wind) : धरातल पर कुछ ऐसी पवनें भी चलते हैं जो हमेशा एक ही दिशा में नहीं चलती बल्कि समय के अनुसार इनकी दिशा बदलती रहती हैं। अत: वे पवनें जिनकी गति तथा दिशा समय के अंतर के अनुसार बदलती रहती है, सामयिक या अस्थायी या ॠतु पवन कहा जाता है।
सामयिक पवनों को निम्नलिखित वर्गों में रखा गया है।
i. मानसूनी पवन (Monsoon Wind)
ii. स्थलीय तथा सागरीय समीर (Land and Sea Breeze)
iii. पर्वत तथा घाटी समीर (Mountain or Catabatic Wind and Valley or Anabatic wind)

i. मानसूनी पवने (Monsoon Winds) : ‘मानसून’ शब्द मूलरूप से अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से बना है जिसका तात्पर्य ‘मौसम’ से होता है। अत: मानसूनी पवनें वे पवनें हैं जिनकी दिशा मौसम के अनुसार बिल्कुल उलट जाती है। ये पवनें ग्रीष्म ॠतु में छ: माह में समुद्र से स्थल की ओर तथा शीत ऋतु में छ: माह में स्थल से समुद्र की और चला करती है।

मानसून शब्द का प्रयोग सबसे पहले अरब सागर पर बहने वाली हवा के लिए किया गया था, जिसकी दिशा में उलट फेर होते रहता है। सूर्य के उत्तरायण होने पर उत्तरी गोलार्द्ध में उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्ध एवं तापीय विषुवत रेखा कुछ उत्तर की ओर खिसक जाती है। एशिया में स्थलखण्ड के प्रभाव के कारण यह खिसकाव अधिक होता है, उसके फलस्वरूप विषुवतीय पछुआ पवन भी उत्तर की ओर खिसक जाती है। ये पवन महासागर से स्थल पर दक्षिण-पश्चिम मानसून के रूप में प्रवाहित होने लगती है। सूर्य के दक्षिणायन होने पर उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्ध एवं तापीय विषुवत रेखा दक्षिण की ओर वापस लौट आते हैं। पुन: उत्तर-पूरब वाणिज्य पवन चलने लगती है, यही शीतकालीन या उत्तर-पूर्वी मानसून है।

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ये पवनें मुख्य रूप से भारत, बंगलादेश, म्यानमार, श्रीलंका, पाकिस्तान, अरब चीन तथा जापान में चलती है।

ii. स्थलीय तथा सागरीय समीर (Land and Sea Breeze) : स्थलीय तथा सागरीय समीर संसार का एकमात्र स्थल तथा जल का गरम एवं ठंडा होने में परस्पर विरोधी स्वभाव का होना है।
दिन के समय स्थलीय भाग जल की अपेक्षा शीघ्र गरम हो जाता है। जिस कारण सागरवर्ती तटीय भाग पर निम्न दाब तथा सागरीय भाग पर उच्च दाब स्थापित हो जाता है, और सागर से स्थल की ओर हवाएँ चलने लगती हैं जिन्हें सागरीय या जलीय समीर (Sea Breeze) कहा जाता है।

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सूर्यास्त के बाद ही जलीय समीर समाप्त होने लगती है क्योंकि स्थलीय भाग से जल की अपेक्षा तीव्र विकिरण होने से उष्मा का ह्रासं अधिक होने से स्थालीय भाग पर उच्च वायुदाब तथा सागरों पर निम्न वायुदाब बन जाता है परिणामस्वरूप स्थल से जल की ओर हवाएँ चलने लगती हैं जिन्हें स्थलीय समीर (Land Breeze) कहते हैं।

iii. पर्वतीय तथा घाटी समीर (Mountain or Valley Breeze) : रात्रि के समय पर्वतीय ढालों तथा ऊपरी भागों पर विकिरण द्वारा ताप ह्रास अधिक होता है जिस कारण हवाएँ ठण्डी हो जाती हैं ये ठण्डी तथा भारी हवाएँ पर्वतीय ढालों के सहारे घाटियों में बीच में उतरती हैं, इन्हे ही पर्वतीय समीर या कैटाबेटिक पवन (Mountain or Catabatic Wind) कहा जाता है।

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दिन के समय पर्वतीय घाटियों के निचले भागों में अधिक तापमान के कारण पर्वतीय ढ़लानों के सहारे घाटी से ऊपर उठती है। इन्हें ही घाटी समीर या एनाबेटिक पवन (Valley Breeze or Anabatic Wind) कहा जाता है।

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प्रश्न 17.
धरातलीय मौसम पर जेट स्ट्रीम के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
जेट स्ट्रीम (Jet Stream) उच्च स्तरीय पवन संचार व्यवस्था का अंग है। क्षोभमण्डल की ऊपरी परतों में क्षोभसीमा के निकट पश्चिम से पूरब की ओर अत्यंक तीव्र गीत से चलने वाली पवन धाराओं को जेट स्ट्रीम कहा जाता है।

धरातल पर पाये जाने वाले मौसम एवं जेट स्ट्रीम में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार धवुीय वाताग्र, जहाँ शीतोष्ण कटिबन्धीय चकवातों की उत्पत्ति होती है तो इसका सम्बन्ध जेट स्ट्रीम से होता है। अपनी पूर्ण विकसित अवस्था में शीतोण्ण कटिबन्धीय चक्रवात का विस्तार क्षोभमण्डल के ऊपरी भाग तक होताहै। जब इनका पथ जेट स्ट्रीम के नीचे पड़ता है तो उनकी प्रचण्डता में वृद्धि हो जाती है एवं वर्षा की मात्रा भी अधिक हो जाती है। चक्रवातों तथा प्रतिचक्रवातों के अलावा जेट स्ट्रोम के प्रभाव के कारण कभी बाढ़ भी आ जाती है तो कभी सूखा पड़ जाती है। इन्हीं के कारण मौसम असाधारण रूप में कभी गर्म तो कभी शीतल हो जाता है।

भारतीय मानसून की उत्पत्ति पर उष्ण पूर्वी जेट एवं उपोष्ण जेट का प्रभाव की पड़ता है। इस प्रकार वर्षा, तूफान, हिमपात शीत लहरिया आदि जेट स्ट्रीम द्वारा प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होती है।

प्रश्न 18.
फोरटिंस वायुदाब मापी एवं एनीरायड बैरोमीटर से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
फोरटिंस वायुदाब मापी एवं एनीरायड बैरोमीटर का सचित्र व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
फोरटिंस बैरोमीटर (Fortins Barometer) : यह एक साधारण वायुदाब मापी का ही परिष्कृत रूप है इस यंत्र का अविष्कार फोर्टिन महोदय ने किया था, इसलिए इसका नाम फोटिन का वायुदाबमापी रखा गया है।

यह बैरोमीटर लगभग 100 से॰मी॰ लम्बी काँच की नली के रूप में होता है जो बाहर से एक दूसरे आवरण में बंद रहता है। यह आवरण काँच की नली को दूटने से बचाता है। इस नली में एक पारा (Mercury) भरा रहता है। नली के नीचे की ओर एक हौज होता है जिसमें नली का खुला हुआ निचला सिरा डुबा रहता है। इस हॉंज में चमरे की एक थैली होती है। जिसमें पारा होता है। इस थैली की तली लचीली होती है एवं इसके नीचे समंजन पेंच (Adjustment Screw) होता है जिसकी सहायता से लचीली थैली की तली ऊपर नीचे करके थैली में पारे की सतह को ऊपर नीचे किया जा सकता है। थैली के पारे की सतह के थोड़ा ऊपर हाथी दाँत का बना एक संकेतक (Index) लगा रहता है। इस संकेतक की नोक से शुन्य शुरु होता है।

वायुदाब मापने के लिए पेंच को ऊपर-नीचे करके पारे की सतह को इस प्रकार समायोजित (Adjust) किया जाता है कि वह संकेतक के निम्न भाग को स्पर्श कर सके। वायुभार मापने के लिए बैरोमीटर के ऊपरी भाग में वर्नियर मापक लगा होता है। इसे वर्नियर पेंच की सहायता से ऊपर या नीचे किया जा सकता है। इस वर्नियर का सम्बन्ध काँच की नली के पीछे की ओर स्थिर पीतल की एक प्लेट से होता है। इस प्लेट का निचला सिरा तथा वर्नियर मापनी का शून्य बिन्दु एक क्षैतिज रेखा में होती है। वर्नियर पेंच घुमाने पर यह प्लेट तथा वर्नियर मापनी इकट्ठे ही खिसकते है।

फोरिटिंस बैरोमीटर द्वारा बताया गया वायुभार, सागर तल से होता है, वायुभर इंच, से॰मी॰ तथा मीलीबार किसी भी इकाई में दिखाया जाता है।

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एनीरयड बैरोमीटर (Aneroid Barometer) : यह बैरोमीटर द्रवरहित तथा आकृति में घड़ीनुमा होता है। इसका अविष्कार लुसियन विडाई नामक विद्वान ने किया था। हल्का एवं द्रवरहित होने के कारण हवाई जहाजों में तथा पर्वतों पर चढ़ते समय इसका प्रयोग किया जाता है। इसके डिब्बे के अन्दर से वायु आंशिक रूप में निकाल दी जाती है। इसके अन्दर अत्यंत हल्की, पतली एवं मजबूत तथा लचकदार एक चादर लगी होती है जो वायु के हल्क भार से प्रभावित हो जाती है। इसके ऊपर लीवर तथा स्प्रिंग लगे होते हैं। इस लीवर के साथ एक बारीक धागे से एक सुई लगी होती है जो वास्तविक वायुदाब को प्रकट करती है। इस यंत्र में घड़ी की भाँति डायल बना होता है जिस घर इंच, सी॰मी॰ तथा मिलीवार के निशान बने हाते हैं। जैसे-जैसे वायुदाब में परिवर्तन होते रहता है वैसे-वैसे सुई भी घुमती है। इसके साथ ही डायल पर मौसम भी लिखे रहते हैं, जैसे – तूफानी, वर्षा, परिवर्तन, स्वच्छ तथा अति शुष्क।

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प्रश्न 19.
स्थानीय पवन से आप क्या समझते हैं ? निम्न गर्म स्थानीय तथा ठण्डी स्थानीय हवाओं की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
स्थानीय पवन (Local Wind) : जो पवनें किसी स्थान विशेष पर वहाँ चलने वाली प्रचलित पवन के विपरीत दिशा में चलती है उसे स्थानीय पवन (Local Wind) कहते हैं।
स्थानीय तापमान तथा वायुदाब में अंतर के कारण स्थानीय पवनों की उत्पत्ति होती है। उसका प्रभाव सीमित क्षेत्रों में देखने को मिलता है।
स्थानीय गर्म हवाएँ : निम्न स्थानीय गर्म हवाओं का विवरण नीचे दिया जा रहा है।
i. सिमूम (Simoom) : अरब एवं सहारा के मरूस्थलों में चलने वाली यह एक उष्ण, शुष्क एवं दमघोट हवा है। ये हवाएँ बालुंओं से भरी होती हैं जिसके कारण दृश्यता काफी कम हो जाती है।
ii. कारा बुरान (Kara-Buran) : यह मध्य एशिया के तारिम बेसिन में चलने वाली गर्म वायु है जो वायु धूल भरी हुई होती है। मध्य एशिया के लोयस के मैदान का निर्माण इसी वायु द्वारा हुआ है।
iii. आयला (Ayala): फ्रांस के सेंट्रल मौसिफ में तीव्र गति से बहने वाली गर्म वायु आयला कहलाती है।

स्थानीय ठण्डी हवाएँ : निम्न स्थानीय ठण्डी हवाओं का नाम इस प्रकार दिया जा रहा है।
i. पैम्पेरो (Pampero) : आर्जेन्टाइना एवं उरून्वे के पम्पास क्षेत्र में दक्षिण एवं दक्षिण-पश्चिम से चलने वाली ध्रुवीय पवन है जो बहुत ही शीतल होती है। कभी-कभी ये हवाएँ चक्रवातीय वर्षा भी लाती है।
ii. ट्रामोण्टाना (Tramontana) : पश्चिम भूमध्य सागरीय क्षेत्र में शीलतकाल में प्रवाहित होने वाली शुष्क एवं शीतल हवा को ट्रामोण्टाना कहते हैं।
iii. दक्षिणी बस्टर (Southern Buster) : धुवीय क्षेत्रों में आस्ट्रेलिया में प्रवाहित होने वाली अत्यंत शुष्क एवं शीलत वायु को दक्षिणी बस्टर कहा जाता है।

प्रश्न 20.
अन्तर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान परिषद द्वारा बादलों को कितने वर्गों में रखा गया है? प्रत्येक का संक्षिप्त व्याख्या कीजिए
अथवा
ऊँचाई के आधार पर बादलों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर :
बादलों का वर्गीकरण (Classification of Clouds) : बादलों को निम्नलिखित वर्गो में रखा गया है।

i. पक्षाभ बादल (Cirrus Clouds) : यह बादल आकाश में सबसे अधिक ऊँचाई अर्थात 7.5 से 10.5 कि०मो० पर पाये जाते हैं। ऐसे बादल कोमल और घने होते हैं। ये सफेद एवं चमकदार रंग के होते हैं। इनके रूप के अनुसार इसका नाम भी घोड़े की पूँछ (Horse’s Tail) रखा गया है। कभी-कभी ये घुंराले बालो की तरह दिखाई दते हैं। इनसे वर्षा नहीं होती है किन्तु ये चक्रवात के आगम के सूचक होते हैं।

ii. स्तरी बादल (Status Clouds) : ये एक प्रकार के निम्न बादल हैं जो धरातल से 2 से 4 कि०मी० की ऊँचाई पर बनते हैं। जैसाकि इनके नाम से प्रकट है इन बादलों में कई परते होती है। इनकी उपस्थिति सभी जगह एक सी रहती है। यह अपने रूप से ऐसे लगते हैं जैसे – कुहरा से भी ऊपर उठ गया हो, परन्तु ये बादल आकाश में पूरी तरह छा जाते हैं। ऐसे बादल शीतोष्ण कटिबन्ध में प्रायः जाड़े की ऋतु में अधिक बनते हैं। ये बादल बहुधा स्थानीय होते हैं और इनके खण्डित होते ही नीला आकाश दिखायी पड़ने लगता है।

iii. कपासी बादल (Cumulus Clouds) : सामान्यतः ये बादल 1 से 3 कि०मी० की ऊँचाई तक पाये जाते है ये लम्ब रूप स्तम्भ की भाँति बने होते हैं। ये बहुत अधिक समतल होते हैं किन्तु शीर्ष हवा की ओर ऊपर उठते हैं। ये फूल गोभी की तरह दिखते हैं। इनका रूप छोटा, श्वेत और रूई की तरह होता है। इनसे कभी-कभी वर्षा होती है।

iv. वर्षी बादल (Numbus Clouds) : ये बादल काले घने पिण्ड के समान होते हैं। ये धरातल से लगभग डेढ़ 1 \(\frac{1}{2}\) कि॰मी० नीचे होते हैं कभी-कभी धरती को छूते नजर आते हैं। इसका कोई विशिष्ट आकार नहीं होता है। ये कुँज रूप में छाये रहते हैं, इनके किनारे आपस में मिले रहते हैं। ये प्राय: इतने सघन होते हैं कि सूर्य की किरणें इनमें प्रवेश कर धरती पर नहीं पहुँच पाती है। इन बादलों से अन्धकार-सा छा जाता है तथा बहुत ही काला होता है। इनसे बहुत ही शीघ तथा मुसलाधार वर्षा होती है।

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प्रश्न 21.
वर्षा कितने प्रकार की होती है ? प्रत्येक का नाम लिखकर सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा
संवहनीय वर्षा, पर्वतीय वर्षा एवं चक्रवातीय वर्षा का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर :
वर्षा के प्रकार (Types of Rainfall) : वर्षा मुख्यतः तीन प्रकार का होता है।

  1. संवहनीय वर्षा (Convectional Rainfall)
  2. पर्वतीय वर्षा (Orgraphic or Relief Rainfall)
  3. चक्रवातीय वर्षा (Cyclonic or Frontal Rainfall)

i. संहवनीय वर्षा (Convectional Rainfall) : जब धरातल बहुत गर्म हो जाता है तो उसके साथ लगने वाली वायु भी गर्म हो जाती है। वायु गर्म होकर फैलती और हल्की हो जाती है। यह हल्की वायु ऊपर को उठ लगती है और संवहनीय धाराओं का निर्माण होता है। ऊप जाकर यह वायु ठण्डी हो जाती है और इसमें उपस्थित जलवाष्प का संघनन होने लगता है। संघनन से कपासी बादल बनते हैं जिससे घंनघोर वर्षा होती है। उसे ही संहवनीय वष्ष कहा जाता है।
भूमध्य रेखीय अंचल में यह वर्षा नियमित रूप से प्रतिदिन दोपहर बाद होती है, इसलिए इसे भूमध्यरेखीय अथवा विषुक रेखीय वर्षा (Equational Rainfall) भी कहा जाता है यह वर्षा प्रायः बादलों की गरज तथा बिजली की चमक के साथ मूसलाधार होती है।

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ii. पर्वतीय वर्षा (Orographic or Relief Rainfall) : जब जलवाष्प से लदी हुई गर्म वायु किसी पर्वत या पठार की ढलान के सहारे ऊपर उठती है तो वह वायु ठण्डी हो जाती है। ठण्डी होने से यह घनीभूत हो जाती है और ऊपर चढ़ने से जलवाष्प का संघनन होने लगता है और वर्षा होती है, उसे ही पर्वतीय वर्षा कहा जाता है। यह वर्षा उन क्षेत्रों में बहुत भारी होती है जहाँ पर्वत श्रेणी समुद्र तट के निकट तथा उसके समानान्तर होते हैं।

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ऊँचाई के साथ-साथ वर्षा की मात्रा बढ़ती जाती है। इस प्रकार पर्वत का जो ढाल पवन के सामने होता है वहाँ खूब वर्षा होती है उसे पवनाभिमुख ढाल (Windward Slope) कहते हैं। परन्तु जैसे ही पवन पर्वत की दूसरी ढलान पर उतरने लगती है वह गर्म और शुष्क होने लगती है और वर्षा कम करती है तो उसे पवनाविमुख ढाल अथवा वृष्टि छाया प्रदेश (Leenward Side or Rain Shadow Area) कहते हैं।

महावलेश्वर तथा पूणे एक दूसरे से थोड़ी दूरी पर स्थित हैं परन्तु महावलेश्वर में 600 से॰मी॰ वार्षिक वर्षा होती है जबकि पूणे में केवल 70 से॰मी० ही वर्षा होती है। उसका कारण यह है कि महावलेश्वर पवनाभुविमुख ढाल पर तथा पूणे पवन विमुख ढाल या वृष्टि छाया प्रदेश में स्थित है।

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iii. चक्रवातीय अथवा वाताग्री वर्षा (Cyclonic or Frontal Rainfall) : चक्रवातों द्वारा होने वाली वर्षा को चक्रवाती या वाताग्री वर्षा कहा जाता है। शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में उष्ण एवं आर्द्र वायु राशि हल्की होने के कारण शीतल एवं शुष्क राशि के ऊपर चढ़ जाती है इससे गर्म पवन में उपस्थित जलवाष्प का संघनन हो जाता है और वर्षा होती है। इस प्रकार की वर्षा शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के क्षेत्रों में होती है। शीत ॠतु में उत्तर-पश्चिम भारत में भी वर्षा चक्रवातों द्वारा ही होती है।

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प्रश्न 22.
मौसम मानचित्र में शुद्ध हवा, धुन्ध, बौछार, ओस, कुहासा, निरन्तर वर्षा, तुषार, रेतीला, तुफान, दानेदार हिम, निरन्तर फुआर को रूढ़ चिन्ह एवं संकेत के रूप में दिखाएँ।
उत्तर :
मौसम मानचित्र में विभिन्न रूढ़ चिन्ह :-

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प्रश्न 23.
मौसम और जलवायु में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :

मौसम (Weather) जलवायु (Climate)
1. मौसम किसी स्थान विशेष की वायुमण्डलीय दशा का अध्ययन है। 1. जलवायु किसी विस्तृत क्षेत्र के वायुमण्डलीय दशा का अध्ययन है।
2. इसमें मौसम तत्वों की अल्प अवधि का अध्ययन होता है। 2. इसमें मौसम दशओं का लम्बे समय अर्थात 30-35 वर्षों तक अध्ययन का औसत है।
3. यह जलवायु विज्ञान का एक अंग है। 3. यह अपने आप में पूर्ण विज्ञान है।

प्रश्न 24.
ग्लोब पर प्रमुख उष्ण कटिबन्धीय जलवायु समूहों का वर्गीकरण कीजिए अथवा पृथ्वी के उष्ण जलवायु क्षेत्र का सचित्र वर्णन कीजिए। किन्हीं एक का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
पृथ्वी पर उष्ण कटिबन्धीय जलवायु समूहों का वर्गीकरण एवं वर्णन निम्नलिखित है।
1. उष्ण कटिबन्ध वर्षा वाले जलवायु प्रदेश (Tropical Rainy Climate) : यह जलवायु विषुवत रेखा के समीप पायी जाती है। इस जलवायु प्रदेश की पेटी बहुत कुछ असमान है। यहाँ सालों भर तापक्रम उच्च रहता है और वर्षा सालों पर होती रहती है तथा शीत ॠतु नहीं होती है। उष्ण कटिबन्ध वर्षा वाले जलवायु प्रदेश को निम्न तीन उपविभागों में बाँटा गया है।

i. उष्ण विघुवतरेखीय जलवायु (Tropical Equatorial Climate) : विषुवत रेखा से उत्तर तथा दक्षिण 50° से 10° अक्षांश तक विस्तृत जलवायु वाले भाग को उष्ण विषुवत रेखीय जलवायु प्रदेश कहा जाता है। इसका विस्तार कभी-कभी भूमध्य रेखा के दोनों ओर 150° से 25° अक्षांश तक भी देखने को मिलता है। इस जलवायु प्रदेश के अन्तर्गत अमेजन बेसिन, कांगो बेसिन, गिनी तट, पूर्वी द्वीप समूह तथा फिलीपिन्स को सम्मिलित किया गया है।

उष्ण विषुवतरेखीय जलवायु प्रदेश की विशेषता यह है कि उस भाग में सर्वाधिक सूर्याताप प्राप्त होता है जिस कारण सालों भर तापमान उच्च बना रहता है। यहाँ औसत तापक्रम 25°F से 26°C के बीच होता है दैनिक तापान्तर वार्षिक तापान्तर से अधिक होता है। दैनिक तापान्तर 5° से 6° तक रहता है।

उस जलवायु प्रदेश में वर्षा सालों भर होती रहती है, यहाँ शुष्क मौसम का अभाव रहता है । यहाँ होने वाली अधिकांश वर्षा संवहनीय प्रकार की होती है।
यहाँ वर्ष भर उच्च तापक्रम तथा वर्षा होने के कारण उष्ण कटिबन्धीय चौड़ी पत्ती के सदाबहार वन मिलते हैं जिनमें रबर, एबोनी, महोगनी, चंदन, सिनकोना आदि प्रमुख हैं।

ii. उष्ण मानसूनी जलवायु (Tropical Monsoon Climate) : मानसूनी जलवायु का विस्तार भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5° से 30° अक्षांशों के बीच पाया जाता है, इस जलवायु के अन्तर्गत भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, थाइलैंड, काम्बोडिया, लाओस, उत्तरी तथा दक्षिणी वियतनाम, पूर्वी द्वीप समूह, अफ्रिका का पूर्वी तटीय भाग, आस्ट्रेलिया का उत्तरी भाग आदि इसी सम्मिलित किया गया है।

उष्षा मानसूनी जलवायु में तापक्रम सालों भर उच्च रहता है किन्तु सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन की स्थितियों के कारण गर्मी का मौसम तथा ठण्डी का मौसम का आविर्भाव होता है। गर्मी में औसत तापमान 27°-32°C तक रहता है जबकि ठण्डा में औसत तापमान 10°-27°C के बीच पाया जाता है। उत्तरी भारत में गर्मी के महींने में लू चला करती है जबकि शीत ऋतु में शीतलहरी चलती है।

मानसूनी प्रदेशों में वर्षा मुख्यत: चक्रवार्तीय तथा पर्वतीय प्रकार की होती है। परन्तु कुछ भी वर्षा संवहनीय प्रकार की होती है। जून से अक्ट्बर तक दक्षिण-पश्चिम मानसून हवाओं से वर्षा होती है। भारत के चेरापूंजी एवं मौसिनराम में वार्षिक वर्षा 1000 से॰मी॰ से अधिक होती है जबकि, राजस्थान के थार मरुस्थल में 12 से॰मी॰ से भी कम वर्षा होती है।
मानसूनी प्रदेशों में वर्षा की मात्रा में विषमता के कारण विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ पायी जाती हैं जिनमें सागौन, साल, आम, शीशम, महुआ आदि प्रमुख हैं।

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iii. उष्ण सवाना जलवायु (Tropical Savana Climate) : सवाना जलवायु उष्ण विषुवतरेखीय जलवायु और शुष्क सहारा जलवायु के बीच पाया जाता है। इस जलवायु प्रदेश का अधिकांश विस्तार विषुवत रेखा के दोनों ओर 5° से 15° अक्षांश तक पाया जाता है। यह जलवायु क्षेत्र वेनेजुएला, कोलम्बिया, गुयाना, दक्षिणी-मध्य ब्राजील, अफ्रिका में सुडान, नाजीरिया, घाना, आस्ट्रेलिया के उत्तरी तथा भीतरी भागों में पाया जाता है। इस जलवायु में सालों भर उच्च तापक्रम बना रहता है। ग्रीष्म ऋतु में औसत तापमान 18°C रहता है तथा शीत ऋतु में औसत तापमान 12°-16°C तक पाया जाता है।

यहाँ वर्षा का वार्षिक औसत 40 से॰मी॰ से 60 से॰मी॰ के बीच रहता है। अधिकतर वर्षा ग्रीष्म ऋतु में होती है। जाड़े की ऋतु शुष्क रूप में बीतती है। वनस्पति के रूप में घास पायी जाती है जिसका नाम सवाना है। इसलिए इसे सवाना, जलवायु प्रदेश भी कहा जाता है। यहाँ अधिकतर वृक्ष छोटे-छोटे रूप में पाये जाते हैं। घास का रंग तथा ऊँचाई एवं वृक्षों की ऊँचाई तथा संख्या में अन्तर पाया जाता है । गर्मी के दिनों में घास सूखकर पीली हो जाती है।

प्रश्न 25.
ग्लोब पर पाये जाने वाला प्रमुख जलवायु प्रदेश का नाम लिखिए तथा किन्हीं एक का सचित्र वर्णन कीजिए। अथवा, पृथ्वी पर पाये जाने वाला प्रमुख भूमध्यसागरीय जलवायु प्रदेश का सचित्र व्यख्या कीजिए। उत्तर : ग्लोब पर प्रमुख जलवायु प्रदेश को छ: भागों में बांटा गया है जो निम्नलिखित है –
1. उष्पा कटिबन्ध जलवायु प्रदेश (A) :
(A) उष्ण विषुवतरेखीय जलवायु (Af)
(B) उष्ण मानसूनी जलवायु (Am)
(C) उष्ण सवाना जलवायु (Aw)

2. शुष्क जलवायु प्रदेश (B)
(a) उष्ण तथा उपोष्ण मरूस्थलीय जलवायु (Bwh)
(b) उष्ण तथा उपोष्ण स्टेपी (Bsh)
(c) मध्य अक्षांशीय मरूस्थलीय जलवायु (Bwk)

3. शीतोष्ण आर्द्र जलवायु प्रदेश (C)
(a) भूमध्यसागरीय जलवायु (Cs)
(b) आर्द्र उपोष्ण जलवायु (Ca)
(c) पश्चिमी यूरोपीय तुल्य जलवायु (Cb)

4. शीतल आर्द्र जलवायु प्रदेश (D)
(a) आर्द्र महाद्वीपीय गरम ग्रीष्मकाल (Da)
(b) आर्द्र महाद्वीपीय शीतल ग्रीष्मकाल (Db)
(c) उपधुवीय जलवायु (Dc, Dd)

5. धुवीय जलवायु प्रदेश (E C)
(a) टुण्ड़ा जलवायु (ET)
(b) ध्रुवीय हिमाच्छादित जलवायु (EF)

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6. उच्च प्रदेश की जलवायु (H) भूमध्यसागरीय जलवायु (Mediterranean Climate – CS) :

स्थिति एवं विस्तार : यह जलवायु महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में 30° से 40° अक्षांशों के बीच पायी जाती है । इस जलवायु प्रदेश के अन्तर्गत भूमध्यसागर के चारों और फैले फ्रांस की राइन तथा सेओन नदियो की घाटियों, दक्षिणी इटली, यूनान, पश्चिमी टर्की, सीरिया, पश्चिमी इजराइल, उत्तरी-पश्चिमी अफ्रीका का अल्जीरिया प्रदेश, उत्तरी अमेरिका में कैलीफोर्निया, दक्षिणी अमेरिका में मध्य चिली, दक्षिणी आस्ट्रेलिया के भाग सम्मिलित हैं।

तापक्रम : शीतकाल में औसत तापक्रम 4.4°C से 10°C तक होता है जबकि ग्रीष्मकाल में औसत तापक्रम 21°C से 26°C तक पहुँच जाता है। शीतकाल साधारण होता है। वास्तव में यह जलवायु अपने स्वास्थ्यवर्द्धक तथा आनन्ददायक शीतकाल के लिए ही अधिक सुप्रसिद्ध है।

वर्षा : वार्षिक वर्षा औसत 15 इन्च से 25 इन्च के बीच होता है। अधिकांश वर्षा शीत ॠतु में होता है। ग्रीष्म ऋतु में वर्षा पछुवा हवाओं के साथ आने वाले चक्रवातों के द्वारा होता है।

वनस्पति : भूमध्यसागरीय जलवायु में ओक, वालनट, चेस्टनट, साइप्रस, सिडार, आदि प्रमुख वृक्ष पाये जाते हैं। इसके अलावा यह जलवायु प्रदेश अपने रसीले फलों के लिए विश्व विख्यात है जिसमें नीबु, सतरा, जौतून, अंजीर, खूबानी, अंगूर आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 26.
जल चक्र की व्याख्या करो।
उत्तर :
जलीय चक्र (Hy6drogical cycle) : सूर्यताप के कराण पृथ्वी पर स्थित जलीय भाग के उपर वाष्पीकरण की क्रिया निरन्तर होती रहती है तथा यह आर्द्रता वायु राशियों एवं हवाओं द्वारा सम्युर्ण वायुमण्डल में मिश्रित होती रहती है, आधा से अधिक जलवाष्प वायुमण्डल की निचली परतो में धरातल से 6000 मी० की ऊचाई तक सकेन्द्रित होत है, वाष्पीकरण तथा पेड़-पौधों द्वारा वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रियाओ से जल वाष्प में बदलता है तथा संघनन की क्रिया से वाष्प जल में बदलत है, इस प्रकार धरातल एवं वायुमण्डल के बीच जलवाष्प एवं जल का निरन्तर आदान-प्रदान होत रहता है। जलवाष्प एवं जल के प्राकृतिक रूप से होने वाले इस आदन-प्रदान को ‘जलीय चक्र’ कहते है।

प्रश्न 27.
भूमध्यरेखीय जलवायु का वर्णन करो।
उत्तर :
जलवायु : भूमध्यरेखीय प्रदेशो में वर्ष भर जलवायु समान रहती है। सूर्य लगभग वर्षभर लम्बवत् चमकता है तथा वर्षभर रात व दिन की अवधि में भी बहुत कम अन्तर रहता है। प्रदेशों मे वर्ष भर ऊँचे तापमान रहते है। औसत तापमान 27° एवं वार्षिक तापान्तर केवल 2°C से 3°C मिलता है। यहाँ शीत ॠतु नहीं होती है तथा वर्ष भर संवाहनिक वर्षा होती है। वर्षा प्राय: रोजना सायंकाल 3 बजे से प्रारम्भ होत है जो कि बहुत तेज व मूसलाधार होती है। वर्षा का वार्षिक औसत तटीय एवं पर्वतीय भागों में क्रमश: 200 से 300 से॰मी० है। मध्यवर्ती भागों में वर्षा तड़ित झंझा के साथ होती है। यहाँ मेघाच्छत्रता अधिक रहती है। प्राय: कपासी बादल पाए जाते है। दिन में अधिक तापमान वाले समय मेघाच्छन्नता अधिक रहती है। जबकि रात्रि तथा प्रात: काल के समय आकाश स्वच्छ रहता है।

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प्रश्न 28.
उष्ण कटिबंधी उष्ण मरुस्थलीय जलवायु प्रदेश का वर्णन करो।
उत्तर :
उष्ण कटिबंधी उष्ण मरुस्थलीय जलवायु : शुष्क एवं विषम है। वर्षा बहुत ही कम किन्तु वाष्भीकरण क्षमता कई-कई गुना अधिक है। तापमान के वितरण के आधार पर यहाँ पर दो मौसम होते हैं-ग्रीष्म काल एवं शीत काल। ग्रीष्मकाल का औसत तापमान 35° से 40° से० रहता है। दोपहर के समय तापमान 48°C से 49°C तक पहुँच जाते है। अधिकतम तापमान अल्जीरिया में 58.4C अंकित किए गए है।

दिन एवं रात्रि का तापमान्तर 15° से 20° तक एवं वार्षिक तापान्तर 20°C से 32°C शीतकाल में भी दिन के समय तापमान 15°C से 25°C तक रहते है। रात्रि के समय तापमान काफी गिर जाते है। रेतीले मरुस्थलों में रात्रि का तापमान 3°C तक पहुँच जाता है। इस प्रकार उष्ण मरुस्थली भागों में वार्षिक तथा दैनिक दोनों ही तापान्तर अधिक होते है। स्वच्छ आकाश, वनस्पति विहीन धरातल, न्यूनतम आर्द्रता, रेतीली मिट्टी आदि कारण इसके लिए उत्तरदायी है। यहाँ की वार्षिक वर्षा इतनी कम तथा परिवर्तनशील है कि औसत का निर्धारण करना भी कठिन है।

वर्षा 2 से 15 सेमी॰ के मध्य होती है। यह औसत इसलिए भी बेमाने है क्योंकि कभी-कभी 3-4 वर्षो तक एक बूँद पानी तक नहीं बरसता, तो कभी-कभी 2-3 वर्ष में एक ही दिन में 10-15 से॰मी० वर्षा हो जाती है। आकाश प्राय: मेघरहित रहता है, जिससे वर्ष भर घूप मिलती रहती है।

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