WBBSE Class 10 Geography Solutions Chapter 1 बहिर्जात प्रक्रियाएँ तथा उत्पन्न स्थलरूप

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WBBSE Class 10 Geography Chapter 1 Question Answer – बहिर्जात प्रक्रियाएँ तथा उत्पन्न स्थलरूप

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK

प्रश्न 1.
सहारा बालुकामय मरुस्थल को किस नाम से जाना जाता है।
उत्तर :
उष्ण मरुस्थल।

प्रश्न 2.
दो नदी व्यवस्था को अलग करने वाली उच्च भूमि का नाम लिखें।
उत्तर :
जलविभाजक (Water shed)

प्रश्न 3.
किस प्रकार के कार्य से ड्रमलिन की उत्पत्ति होती है ?
उत्तर :
हिमनद के निक्षेपण के कार्य से ड्रमलिन (Drumlin) की उत्पत्ति होती है।

प्रश्न 4.
भारत में अवस्थित हिमालय की सबसे ऊँची चोटी कौन है ?
उत्तर :
कंचनजंघा।

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प्रश्न 5.
पथरीले मरुस्थल को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर :
हमादा (Thar Desert)

प्रश्न 6.
विश्व के वृहत्तम जल-प्रपात का नाम लिखिए।
उत्तर :
न्याग्रा।

प्रश्न 7.
जलविभाजक का उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
अरावली पर्वत गंगा एवं सिन्धु क्रम की नदियों के बीच जल विभाजक है।

प्रश्न 8.
रेत के टीले क्या हैं ?
उत्तर :
तीव्र आँधी के मार्ग में किसी प्रकार की बाधा आने पर वहाँ बालू के कण संचित हो जाते हैं जिससे कहीं गोल, कहीं नवचन्द्राकर तथा कहीं अर्द्धवृत्ताकार टीले बन जाते हैं। इन्हें बालुका-स्तूप कहते हैं।

प्रश्न 9.
समतल स्थापना की दो विधियाँ कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर :
निम्नीकरण (Degradation) और अधिवृद्धिकरण (Aggradation)

प्रश्न 10.
नदी की किस अवस्था में डेल्टा का निर्माण होता है ?
उत्तर :
नदी की अंतिम अवस्था में डेल्टा का निर्माण होता है।

प्रश्न 11.
सर्क देखने में कैसा होता है ?
उत्तर :
गहरे सीट वाली आराम कुर्सी की तरह सर्क दिखायी देता है।

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प्रश्न 12.
शुष्क प्रदेश में स्थित एक स्थलरूप का नाम लिखिए जिसका निर्माण पवन एवं जल की संयुक्त क्रिया द्वारा होता है।
उत्तर :
पेडीमेण्ट।

प्रश्न 13.
नदी अपरदन की कितनी विधियाँ हैं ?
उत्तर :
नदी अपरदन की चार विधियाँ हैं –

  1. अपघर्षण
  2. सन्निघर्षण
  3. घोलीकरण
  4. जलगति क्रिया।

प्रश्न 14.
किस बल द्वारा धरातल पर समतल स्थापना का कार्य होता है ?
उत्तर :
बहिर्जात बल (Exogenetic Force)।

प्रश्न 15.
बहिर्जात बल के किसी एक अभिकर्ता का नाम लिखिए।
उत्तर :
नदी, हिमनद, पवन आदि बहिर्जात बल के अभिकर्ता हैं।

प्रश्न 16.
नदी बेसिन किससे घिरे रहते हैं ?
उत्तर :
नदी बेसिन जल विभाजकों से घिरे होते हैं।

प्रश्न 17.
उद्गम से मुहाने तक के नदी के मार्ग को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
नदी घाटी।

प्रश्न 18.
विश्व का सबसे गहरा कैनियन कौन-सा हैं ?
उत्तर :
ग्रैण्ड कैनियन (Grand canyon)।

प्रश्न 19.
विश्व का सबसे ऊँचा जल-प्रपात कौन-सा हैं ?
उत्तर :
एंजेल जलप्रपात (बेनेजुएला में)।

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प्रश्न 20.
नदी के अपरदन की अन्तिम सीमा को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
आधार तल (Base Level) कहते हैं।

प्रश्न 21.
जब नदियाँ अपने मोड़ को छोड़कर सीधे प्रवाहित होने लगती हैं तो किसका निर्माण होता है ?
उत्तर :
छाड़न झील या वृषभ-धनु (Ox-bow Lake)।

प्रश्न 22.
नदियाँ किस अवस्था में अनेक शाखाओं में बँट जाती है ?
उत्तर :
वृद्धावस्था या डेल्टाई भाग में।

प्रश्न 23.
किस डेल्टा के किनारे वक्राकार होते हैं।
उत्तर :
दंताकार डेल्टा (Cuspate Delta)

प्रश्न 24.
हिमरेखा की ऊँचाई कहाँ सागर तल पर रहती है ?
उत्तर :
ध्रुव प्रदेशों में।

प्रश्न 25.
भारत का सबसे बड़ा हिमनद कौन-सा है ?
उत्तर :
सियाचेन हिमनद।

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प्रश्न 26.
स्कॉटलैण्ड में सर्क को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
कोरी (Corrie)।

प्रश्न 27.
आल्पस पर्वत श्रेणी का मैअर हॉर्न किसका उदाहरण है ?
उत्तर :
गिरिभृंड्र का उदाहरण है।

प्रश्न 28.
मेष शैल का सम्मुख ढाल कैसा होता है ?
उत्तर :
चिकना एवं साधारण होता है।

प्रश्न 29.
हिमनद द्वारा ढोकर लाए गए पदार्थों को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
हिमोढ़ (Moraine)।

प्रश्न 30.
जहाँ ड्रमलिन समूह में पाए जाते हैं, उस स्वरूप को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
अण्डे की टोकरी की स्थलाकृति (Basket of eggs Topography)

प्रश्न 31.
जिन प्रदेशों में यारडंग का निर्माण होता है वे प्रदेश किन रूपों में बदल जाते हैं ?
उत्तर :
नालियों एवं टीलों (Furrows and ridges) कहते हैं।

प्रश्न 32.
मंगोलिया में अपवाहन बेसिन को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
पांगक्यागनाम कहते हैं।

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प्रश्न 33.
किन बालुका स्तूपों को क्रियाशील या जीवित स्तूप भी कहते हैं ?
उत्तर :
अनुप्रस्थ बालुका स्तूप (Transverse sand-dunes) कहते हैं।

प्रश्न 34.
जब नदी का वेग दोगुना हो जाता है तो उसकी अपरदन शक्ति कितनी बढ़ जाती है ?
उत्तर :
चार गुना बढ़ जाती है।

प्रश्न 35.
यदि नदी का वेग दो गुना कर दिया जाय तो उसकी भार वहन करने की क्षमता कितनी बढ़ जाती है ?
उत्तर :
चौसठ गुना हो जाती है।

प्रश्न 36.
विश्व का सबसे ऊँचा जलप्रपात किस नदी पर है ?
उत्तर :
वेनेजुएला के रियो कैरानी (Rio Caroni) नदी पर।

प्रश्न 37.
अवनमन कुंड (Plung Pool) क्या है ?
उत्तर :
जब जलगतर्तिका की गहराई एवं व्यास अधिक हो जाता है, तो इसे अवनमन कुंड कहते हैं।

प्रश्न 38.
नदी के मोड़ों का मिएण्डर नाम कैसे पड़ा ?
उत्तर :
एशिया माइनर की मिएण्डर नदी के नाम पर नदी के मोड़ो को मिएण्डर नाम दिया गया है।

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प्रश्न 39.
उपधाराओं से युक्त छोटी-छोटी नदियों को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
गुम्फित नदी (Braided river)।

प्रश्न 40.
विश्व के किस महादेश में कोई स्थाई हिमक्षेत्र नहीं पाया जाता है ?
उत्तर :
आस्ट्रेलिया महादेश में।

प्रश्न 41.
हिमालय का सबसे लम्बा हिमनद कौन-सा है ?
उत्तर :
सासाईनी हिमनद (154.8 कि॰मी०)

प्रश्न 42.
अफ्रीका के कितने प्रतिशत भू-भाग पर मरूस्थल है।
उत्तर :
34 % भाग।

प्रश्न 43.
सासाईनी हिमनदी हिमालय के किस क्षेत्र में है।
उत्तर :
काराकोरम क्षेत्र में।

प्रश्न 44.
बर्फ से ढँकी पर्वतों की ऊँची चोटियाँ जहाँ से हिमनद निकलती हैं, क्या कहलाते हैं ?
उत्तर :
हिमटोपी (Ice-cap)

प्रश्न 45.
वर्तमान समय में स्थलमण्डल का कितना प्रतिशत भाग हिमाच्छादित है ?
उत्तर :
10 प्रतिशत भाग।

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प्रश्न 46.
विश्व का कौन-सा महादेश पूर्ण रूप से हिमाच्छादित है ?
उत्तर :
अण्टार्कटिका महादेश।

प्रश्न 47.
विश्व का सबसे बड़ा हिमनद का नाम क्या है ?
उत्तर :
बियर्डमोर हिमनद (अण्टार्कटिका में)।

प्रश्न 48.
हिमनदों के लुप्त हो जाने पर बने झील का क्या नाम है ?
उत्तर :
पेटरनास्टर झील (Peternaster) कहते हैं।

प्रश्न 49.
पवन के उड़ाव क्रिया द्वारा बने अपवाहन बेसिन (Deflation Basin) को मंगोलिया में क्या कहा जाता है ?
उत्तर :
पांगक्यागनाम कहते हैं।

प्रश्न 50.
वायु के अपक्षरण द्वारा बने भू-आकृति, आग्नेय चट्टान को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
छत्रक शिला या छतरीनुमा स्तंभ कहते हैं।

प्रश्न 51.
छत्रक शिलाओं या आग्नेय चट्टान की भू-आकृति रचना को जर्मनी में क्या कहते हैं ?
उत्तर :
पिल्जफेल्सन (Pilzfelsen) कहा जाता है।

प्रश्न 52.
मरूस्थलों में रेत के अपघर्षण से निर्मित धारीदार चट्टानों को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
वेन्टीफेक्ट (Ventifact) या तिपहल कहते हैं।

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प्रश्न 53.
झाड़ियों, दीवार आदि बाधाओं के कारण निर्मित बालुका स्तूप को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
नेब्नखास (Nebkhas) कहते हैं।

प्रश्न 54.
लोयस कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
लोयस दो प्रकार के होते हैं :- (a) रेगिस्तानी लोयस (b) हिमनदीय लोयस

प्रश्न 55.
फ्रांस और बेल्जियम में लोयस को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
लिमोन।

प्रश्न 56.
अमेरिका में लोयस को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
अडोबे (Adobe)।

प्रश्न 57.
दूर तक फैली नग्न चट्टानों से निर्मित मरूस्थलों को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
हमादा (Hamada)।

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प्रश्न 58.
कंकड़-पत्थरों से निर्मित मरूस्थल को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
रेग (Reg) कहते है।

प्रश्न 59.
दंक्षिण अफ्रिका के कालाहारी के मरूस्थल में वायु के अपक्षरण के फलस्वरूप असमान शिला खण्डों को क्या कहते है ?
उत्तर :
इस्सेल्वर्ग या द्वीपगिरी कहते हैं।

प्रश्न 60.
वायु का कार्य सबसे अधिक प्रभावी कहाँ होता है ?
उत्तर :
वनस्पतिविहीन मरूभूमि में।

प्रश्न 61.
विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप कौन-सा है ?
उत्तर :
ब्रह्मपुत्र नदी की माजुली द्वीप।

प्रश्न 62.
विश्व का सबसे ऊँचा जल प्रपात कौन-सा है ?
उत्तर :
दक्षिण अमेरिका का राइयों नदी साल्टो एंजेल (Salto Angel) जल प्रपात।

प्रश्न 63.
पृथ्वी का सबसे गहरा कैनियन कहाँ है ?
उत्तर :
संयुक्त राज्य अमेरिका का कोलेरडो नदी का ग्रैण्ड-कैनियन (1800 मी॰) सबसे गहरा कैनियन है।

प्रश्न 64.
गंगा की पर्वतीय प्रवाह मार्ग या युवा अवस्था कहाँ से कहाँ तक है ?
उत्तर :
गोमुख से हरिद्वार तक।

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प्रश्न 65.
गंगा नदी की परिपक्वावस्था कहाँ से कहाँ तक है।
उत्तर :
हरिद्वार से धुलियान तक।

प्रश्न 66.
मानव जीवन के दृष्टिकोण से किस नदी को आदर्श नदी कहते हैं ?
उत्तर :
नील नदी को।

प्रश्न 67.
नदी की शक्ति किस पर निर्भर करती है ?
उत्तर :
जल की मात्रा एवं उसके वेग पर।

प्रश्न 68.
पृथ्वी की सतह या धरातल पर उत्पन्न होने वाले बल को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
बहिर्जात बल (Exogenetic Force)।

प्रश्न 69.
पृथ्वी के किस बल द्वारा धरातल पर असमासनताएँ तथा विषमताएँ उत्पन्न होती है ?
उत्तर :
अन्तर्जात बल।

प्रश्न 70.
बहिर्जात बल किन स्थितियों में कार्य करते हैं ?
उत्तर :
बहिर्जात बल दो स्थितियों में कार्य करते हैं :- (i) अपक्षय (ii) अपरदत।

प्रश्न 71.
अपरदन का कार्य किन प्राकृतिक अभिकर्ताओं द्वारा सम्पन्न होता है ?
उत्तर :
नदी, हिमनद, पवन, भूमिगत जल तथा सागरीय लहरें आदि प्राकृतिक अभिकर्ताएँ हैं।

प्रश्न 72.
अपरदन के अभिकर्ताओं द्वारा पृथ्वी की सतह पर मौजूद गर्तों में अपरदित पदार्थों को जमा करने की प्रक्रिया क्या कहलाती है ?
उत्तर :
निक्षेपण प्रक्रिया कहलाती है।

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प्रश्न 73.
बहिर्जात बल अपनी विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा भूपृष्ठ पर कौन सा कार्य करते रहते हैं ?
उत्तर :
भूपृष्ठ के ऊपर स्थलरूपों का निर्माण, विकास तथा विनाश करते रहते हैं।

प्रश्न 74.
भूतल पर समतल स्थापत्य करने वाले बलों में किसका कार्य सबसे महत्वपूर्ण है ?
उत्तर :
नदी का कार्य।

प्रश्न 75.
गंगा नदी की उत्पत्ति किस हिमनद से हुई है ?
उत्तर :
गंगोत्री हिमनद।

प्रश्न 76.
यमुना नदी की उत्पत्ति किस हिमनद से हुई है ?
उत्तर :
यमुनोत्री हिमनद।

प्रश्न 77.
गंगा नदी का मुहाना कहाँ है ?
उत्तर :
बंगाल की खाड़ी।

प्रश्न 78.
गंगा की सहायक नदियों के नाम लिखो।
उत्तर :
यमुना, घाघरा, कोसी, सोन आदि।

प्रश्न 79.
गंगा की शाखा नदी किस नदी को कहते हैं ?
उत्तर :
भागीरथी गंगा की शाखा नदी है।

प्रश्न 80.
गंगा और यमुना नदियों का संगम स्थान कहाँ है ?
उत्तर :
इलाहाबाद (प्रयाग) में।

प्रश्न 81.
भारत की सबसे बड़ी नदी बेसिन का नाम लिखो।
उत्तर :
गोदावरी नदी का बेसिन।

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प्रश्न 82.
आस्ट्रेलिया के कितने प्रतिशत भू-भाग पर मरूस्थल फैला हुआ है ?
उत्तर :
75 % भाग।

प्रश्न 83.
वह ऊँचा भू-भाग जो दो नदियों के प्रवाह क्षेत्र को अलग करता है, क्या कहलाता है ?
उत्तर :
जल विभाजक।

प्रश्न 84.
गंगा और सिन्धु क्रम की नदियों के बीच कौन जल विभाजक है ?
उत्तर :
अरावली पर्वत।

प्रश्न 85.
उद्ग्म से मुहाने तक नदी के दोनों किनारों के बीच के निम्न भाग को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
नदी घाटी (River Valley) कहते हैं।

प्रश्न 86.
भारत की एक सदावाहिनी नदी कौन है ?
उत्तर :
गंगा नदी।

प्रश्न 87.
नदी का जल किस विधि द्वारा चूनायुक्त चट्टानों को घुला कर अपने साथ बहा ले जाता है ?
उत्तर :
रासायनिक विधि।

प्रश्न 88.
हिमशीला खण्ड (Iceberge) क्या है ?
उत्तर :
समुद्र में तैरते हुए बर्फ के टुकड़ों को हमशीला खण्ड (Iceberg) कहा जाता है।

प्रश्न 89.
गंगा नदी के डेल्टाई भाग का विस्तासर कहाँ से कहाँ तक है ?
उत्तर :
राजमहल की पहाड़ी से बंगाल की खाड़ी तक।

 

प्रश्न 90.
‘छठी शक्ति का सिद्धांत’ का प्रतिपादन किसने किया ?
उत्तर :
गिलबर्ट महोदय ने।

प्रश्न 91.
विश्व के स्थल भाग में कितने प्रतिशत मरूस्थल हैं ?
उत्तर :
लगभग 35 % भाग मरूस्थल है।

प्रश्न 92.
विश्व का सबसे गहरा गार्ज कहाँ है ?
उत्तर :
काश्मीर की सिन्धु नदी में (500 मी० गहरा) (काली गण्डकी या अन्धा गलची)

प्रश्न 93.
ग्रैण्ड कैनियन की गहराई एवं लम्बाई कितनी है ?
उत्तर :
गहराई 2000 मी० तथा लम्बाई 483 कि०मी० है।

प्रश्न 94.
जब गार्ज अधिक गहरा और संकरा हो जाता है तो उसे क्या कहते हैं ?
उत्तर :
कैनियन (Canyon)।

प्रश्न 95.
एशिया के कितने प्रतिशत भू-भाग पर मरूस्थल है।
उत्तर :
31 % भाग।

प्रश्न 96.
भारत का सबसे ऊँचा जल प्रपात कौन है ?
उत्तर :
गरसोधा जल प्रपात या जोग जल प्रपात।

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प्रश्न 97.
जोग या गरसोधा जल प्रपात किस नदी पर है ?
उत्तर :
भारत के कर्नाटक राज्य में सरस्वती नदी पर।

प्रश्न 98.
न्याग्रा जल प्रपात किस देश में हैं ?
उत्तर :
उत्तरी अमेरिका में।

प्रश्न 99.
विक्टोरिया जल प्रपात किस नदी पर है ?
उत्तर :
अफ्रीका में नील नदी पर।

प्रश्न 100.
प्राचीन काल में ब्रह्मपुत्र नदी ने किस नदी अपहरण किया था ?
उत्तर :
साँपू नदी।

प्रश्न 101.
जहाँ पर अपहूत नदी समकोण पर हरणकर्ती नदी के साथ मिलती है उस मोड़ को क्या कहते हैं?
उत्तर :
अपहरण की कुहनी (Elbow of Capture)।

प्रश्न 102.
अपहरण की कुहनी तथा शीर्ष कटी नदी के ऊपरी भाग के बीच में स्थित शुष्क स्थान को क्या करते हैं ?
उत्तर :
विण्ड गैप (Wind Gap)।

प्रश्न 103.
नदी अपना अपक्षरण, परिवहन और निक्षेपण तीनों कार्य किस भाग में या अवस्था में करती है ?
उत्तर :
मैदानी या मध्य भाग या परिपक्वावस्था में।

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प्रश्न 104.
नदी के मैदानी भाग में निर्मित विसर्पण या मिएण्डर आकृति नाम किस नदी के नाम पर पड़ा।
उत्तर :
टर्की के मिएण्डर नदी के नाम पर।

प्रश्न 105.
जलोढ़ पंख में निक्षेपित पदार्थों का निक्षेपण किस प्रकार का होता है?
उत्तर :
इसमें नीचे की तरफ भारी रोड़े, उसके ऊपर बजरी और सबसे ऊपर बारीक रेत जमा हो जाती है।

प्रश्न 106.
चीन का शोक (Sorrow of China) किस नदी को कहते हैं?
उत्तर :
ह्वांगहो नदी को।

प्रश्न 107.
मुख्य नदी के साथ बहने वाली सहायक नदी को क्या कहते हैं?
उत्तर :
याजू नदी (Yazoo)।

प्रश्न 108.
भारत की एक याजू नदी का उदाहरण दें।
उत्तर :
उत्तरी बिहार की पुनपुन नदी।

प्रश्न 109.
डेल्टा का आकार किससे मिलता है?
उत्तर :
ग्रीक भाषा के डेल्टा (Δ) अक्षर से मिलता है।

प्रश्न 110.
विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा कौन सा है?
उत्तर :
गंगा-बह्मपुत्र का डेल्टा या सुन्दरवन का डेल्टा।

प्रश्न 111.
चापाकार डेल्टा की आकृति कैसी होती है?
उत्तर :
एक धनुष या पंखे की तरह।

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प्रश्न 112.
मिसीसिपी नदी किस प्रकार के डेल्टा का उदाहरण है?
उत्तर :
पंजाकार डेल्टा।

प्रश्न 113.
चापाकार डेल्टा का आधार कैसा होता है?
उत्तर :
अर्द्धवृत्ताकार होता है।

प्रश्न 114.
दंताकार डेल्टा के किनारे का आकार कैसा होता है?
उत्तर :
वक्राकार होता है।

प्रश्न 115.
इटली के पश्चिमी तट पर टाइबर नदी का डेल्टा किस प्रकार के डेल्टा का उदाहरण है?
उत्तर :
दंताकार डेल्टा (Cuspate Delta)।

प्रश्न 116.
जिस नदी का मुहाना साफ-सुथरा रहता है उसे क्या कहते हैं?
उत्तर :
एस्चुअरी कहते हैं।

प्रश्न 117.
उत्तम प्राकृतिक बन्दरगाह कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर :
एस्चुअरी पर।

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प्रश्न 118.
लन्दन किस नदी के एस्चुअरी पर है?
उत्तर :
टेम्स नदी के एस्वुअरी पर।

प्रश्न 119.
भारत में कौन-सी नदियाँ अपने मुहाने पर डेल्टा नहीं बनाती हैं?
उत्तर :
नर्मदा एवं ताप्ती नदियाँ।

प्रश्न 120.
पिछले 100 वर्षों में भूमण्डलीय तापमान में कितनी वृद्धि हुई है?
उत्तर :
लगभग 0.5° से० 0.7° से०।

प्रश्न 121.
उन द्विपों का नाम बताएँ जो सागरीय जलस्तर में वृद्धि के कारण जलमग्न हो गए हैं।
उत्तर :
लोहाछारा (Lohachara), न्यूमोर (Newmore) तथा सुपारीभांगा।

प्रश्न 122.
वर्ष भर हिमाच्छादित रहने वाले प्रदेश को क्या कहते हैं?
उत्तर :
कण हिम (Nave) या हिमक्षेत्र (Snow field) या फर्न (Firm)।

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प्रश्न 123.
एण्डीज पर्वत तथा हिमालय पर हिम रेखा की ऊँचाई कितनी है?
उत्तर :
एण्डीज पर्वत पर 5,500 मी० तथा हिमालय पर 400-500 मी० ऊँचाई है।

प्रश्न 124.
हिम रेख की ऊँचाई सागर-तट कहाँ पर पाई जाती है?
उत्तर :
ध्रुव प्रदेशों में।

प्रश्न 125.
हिमनद की गति मन्द ढाल तथा तीव्र ढाल वाले भागों में कितनी होती है?
उत्तर :
मन्द ढाल वाले भाग में प्रतिदिन 15 से॰मी० तथा तीव्र ढाल होने पर 3 से 6 मीटर होती है।

प्रश्न 126.
विश्व का सबसे तेज बहने वाला हिमनद कौन सा है?
उत्तर :
ग्रीनलैण्ड का जाकोब्सावन हिमनद (20 मी० प्रतिदिन)।

प्रश्न 127.
विश्व का सबसे लम्बा हिमनद कौन-सा है ?
उत्तर :
अण्टार्कटिका का लम्बवत हिमनद (700 कि०मी०)।

प्रश्न 128.
भारत का सबसे विशाल हिमनद कौन सा है?
उत्तर :
सियाचेन हिमनद।

प्रश्न 129.
सियाचेन हिमनद और गंगोत्री हिमनद कहाँ स्थित है?
उत्तर :
सियाचेन हिमनद काराकोरम पर्वत पर तथा गंगोत्री हिमनद हिमालय पर्वत पर।

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प्रश्न 130.
अल्पाइन हिमनद अथवा पर्वतीय या घाटी हिमनद का उदाहरण दें।
उत्तर :
भारत का सियाचेन हिमनद तथा गंगोत्री हिमनद।

प्रश्न 131.
अलास्का का मेलास्पिना हिमनद किस प्रकार का हिमनद है?
उत्तर :
गिरिपद हिमनद (Piedmont Glacier)।

प्रश्न 132.
महाद्वीपीय हिमनद किस प्रदेश में मिलती है?
उत्तर :
धुवों के समीप समतल प्रदेशों में ।

प्रश्न 133.
महाद्वीपीय हिमनद किस देश में पाए जाते है?
उत्तर :
ग्रीनलैण्ड तथा अण्टार्कटिका में।

प्रश्न 134.
उच्च पर्वतीय भागों में हिम पिघलने पर दरार बन जाता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर :
हिमगहर या सर्क।

प्रश्न 135.
गहरे सीट वाली अरामकुर्सी की आकृति को फ्रांस में क्या कहते हैं?
उत्तर :
सर्क (Cirque)।

प्रश्न 136.
हिमगहर या सर्क को स्कॉटलैण्ड में क्या कहते हैं?
उत्तर :
कौरी (Corrie)।

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प्रश्न 137.
हिमगहर या सर्क या कौरी को वेल्स में क्या कहते हैं?
उत्तर :
CWM कहते हैं।

प्रश्न 138.
हिम के पिघल जाने पर जब सर्क पहाड़ी झीलों का रूप धारण कर लेते है तो इसे क्या कहते हैं?
उत्तर :
टार्न (Torn)

प्रश्न 139.
प्रशिखा या कंघीनुमा श्रेणी का उदारहण दें।
उत्तर :
स्वीटरजलैण्ड का कंघीनुमा (Comb Ridge)।

प्रश्न 140.
स्विटजरलैण्ड का मैटरहॉर्न तथा जंगफ्रां भू-आकृति किसका उदाहरण है।
उत्तर :
गिरिशृंद्भ भू-आकृति का (Horn Pyramidal Peak)।

प्रश्न 141.
भारत में गिरिश्रृंग भू-आकृति कहाँ पाई जाती है।
उत्तर :
गंगोत्री के पास नीलकण्ठ तथा शिवलिंग गिरिभृंग है।

प्रश्न 142.
अण्डो की टोकरी की स्थलाकृति ज्यादातर किस देश में पाई जाती है?
उत्तर :
आयरलैण्ड तथा उत्तरी अमेरिका में।

प्रश्न 143.
किस प्रदेश में वायु का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण होता है?
उत्तर :
शुष्क एवं अर्द्धशुल्क मरूस्थलीय प्रदेश में।

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प्रश्न 144.
पवन की उड़ाव क्रिया द्वारा बनने वाले उथले व चौड़े तश्तरीनुमा गह्छो को क्या कहते है?
उत्तर :
वहिर्धमन या अपवाहन बेसिन (Deflation Basin)।

प्रश्न 145.
विश्व का सबसे बड़ा बहिर्धमन कहाँ है?
उत्तर :
मिस्न देश में कतारा (Qattara) गर्त है।

प्रश्न 146.
कुकुरमुत्ता जैसे भू-आकृति वाले छतरीनुमा स्तम्भ को क्या कहते हैं?
उत्तर :
छत्रक (Mushroom), गारा (Gara) या ग़र (Gour) कहते हैं।

प्रश्न 147.
वायु की प्रवाह की दिशा के समानान्तर बनने वाले स्तूपों को क्या कहते हैं?
उत्तर :
अनुदैर्ध्य बालुका स्तूप या सीफ (Seif) कहते हैं।

प्रश्न 148.
सीफ का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
सीफ अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘तलवार’ (Sword)।

प्रश्न 149.
सहारा, आस्ट्रेलिया के महान मरूस्थल में किस प्रकार के बलुका स्तूप पाए जाते हैं ?
उत्तर :
अनुदैर्ध्य बालुकास्तूप (Longitudinal Sand-dones)।

प्रश्न 150.
अर्द्धचन्द्राकार बालू के अनुप्रस्थ टीलो (Transverse sand-dunes) को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
बरखान (Bankhan) कहते हैं।

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प्रश्न 151.
वायु के निक्षेपण से बने मैदानों को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
लोयस का मैदान (Loess Plain)।

प्रश्न 152.
लोयस का मैदान कहाँ-कहाँ पाए जाते हैं ?
उत्तर :
उत्तरी चीन, मिसीसिपी बेसिन तथा मध्य यूरोप में।

प्रश्न 153.
शुष्क या अर्द्धशुष्क प्रदेशों में पर्वतों से घिरी बेसिन को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
बालसन।

प्रश्न 154.
बाल्सन के केन्द्र में स्थित अल्पकालिक झीलों को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
प्लाया (Playa)।

प्रश्न 155.
अरब के मरूस्थल में स्थित प्लाया झीलों को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
खाबरी (Khabari) एवं ममलाहा (Mamlaha)।

प्रश्न 156.
सहारा के मरूस्थल में प्लाया को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
शट्स (Shatts)।

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प्रश्न 157.
प्लाया झील में जब लवण की मात्रा बढ़ जाती तो उसे क्या कहते हैं ?
उत्तर :
सैलीना (Salina)।

प्रश्न 158.
मरूस्थली में अल्पकालिक जलप्रवाह के फलस्वरूप निर्मित घाटी को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
वाडी (Wadi)।

प्रश्न 159.
वाडी (Wadi) को अमेरिका में क्या कहते हैं ?
उत्तर :
वाश (Washes)।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS

प्रश्न 1.
‘अपवाहन गर्त’ का निर्माण किस प्रकार होता है ?
उत्तर :
अपवाहन गर्त (Deflaction hollow) : पवन धरातल की ढीली तथा असंगठित शैलों को अपवाहन क्रिया द्वारा उड़ाकर ले जाता है। इससे छोटे-छोटे गर्त बनते है जिन्हें वातगर्त या अपवाहन वर्ग कहते है। इनका आकार तश्तरीनुमा होता है। ऐसी आकृति सहारा, कालाहारी आदि मरुस्थलों में पाई जाती है।

प्रश्न 2.
हिमशैल क्या है?
उत्तर :
जब किसी प्रदेश में बहता हुआ हिमनद समुद्र तक पहुँच जाता है तो उसकी हिमशिलाएँ समुद्र में तैरने लगती है। इसे हिमशैल (lce berg) कहते है।

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प्रश्न 3.
पक्षियों के पांव की तरह डेल्टा का निर्माण कैसे होता हैं ?
उत्तर :
जब नदी के जल के साथ बारीक कण घोल के रूप में मिले हुए होते है तथा उनमें अवसाद की मात्रा अधिक होती है, तो इनके निक्षेपण से पंजाकार डेल्टा का निर्माण होता है।

प्रश्न 4.
बर्गश्रुण्ड क्या हैं ?
उत्तर :
जब उच्च पर्वतीय भागों से हिम पिघल कर नीचे आता है तो वह ढालों पर दरार बना देता है। इस दरार को वर्गश्रुण्ड (Bergschrund) कहते हैं।

प्रश्न 5.
डूमलिन या हिमोढ़ टीले या टिब्बे क्या है ?
उत्तर :
डूमलिन (Drumlin) :- हिमनद बोल्डेर क्ले के निक्षेपण द्वारा उल्टी नाव आकृति की एक स्थलाकृति का निर्माण होती है, जिसे डूमलिन या हिमोढ़ टीले या टिब्वे कहा जाता है। दूर से देखने पर ये ‘अंडे की टोकरी’ (Egg’s Topography) के समान प्रतीत होता है।

प्रश्न 6.
बहिर्जात बल को समतल स्थापक बल क्यों कहते हैं ?
उत्तर :
बहिर्जात बल को समतल स्थापक बल भी कहते है, क्योंकि ये बल पृथ्वी के अन्तर्जात बलों द्वारा भूतल पर उत्पन्न विषमताओ को दूर करने में सतत् प्रयत्नशील रहते है।

प्रश्न 7.
‘दून’ क्या है ?
उत्तर :
शिवालिक हिमालय के दक्षिण में कंकड़ और मिट्टी से बने कई ऊँचे मैदान को दून (dun) कहा जाता है।

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प्रश्न 8.
तल संतुलन (Gradation) क्या है ?
उत्तर :
तल संतुलन (Gradation) :- यह प्रक्रिया धरातल की विषमताओं को कम करके समतल भूमि का निर्माण करती है इसे ही तल संतुलन कहते है।

प्रश्न 9.
प्लाया (Playa) क्या है ?
उत्तर :
प्लाया (Playa) : मरूस्थलीय प्रदेशों में जलोढ़ में निर्मित धरातल को जिसमें कभी झील थी प्लाया कहा जाता है।

प्रश्न 10.
पेटरनाँस्टर झील (Paternoster Lake) का निर्माण कैसे होता है ?
उत्तर :
पेटरनाँस्टर (Paternoster Lake) :- जब हिम पिघल जाती है तो हिम सोपानों पर बने सिलार्गत झीलो में बदल जाते हैं, ऐसे झीलों को पेटरनाँस्टर झील कहा जाता है।

प्रश्न 11.
पेडीमेण्ट (Pediment) का निर्माण कैसे होता है ?
उत्तर :
पेडीमेण्ट (Pediment) :- शुष्क एवं अर्द्वशुष्क प्रदेशो में प्राय: किसी पर्वत, पठार अथवा द्वीपगिरी के पदों में एक सामान्य दालयुक्त अपरदित चट्टानी सतह वाले मैदान पर पेडीमेण्ट का निर्माण होता है।

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प्रश्न 12.
अवतल (Concave) और उत्तल (Convex) नदी के दोनों किनारे पर कैसे बनता है ?
उत्तर :
नदी जब मैदानी भाग से प्रवाहित होती है, तो नदी जल का वेग धीमा हो जाता है जिससे यह अपरदन के साथसाथ निक्षेपण भी करती है और नदी मार्ग में रूकावट आने पर नदी अपना मार्ग बदल देती है तथा नदी विसर्प करने लगती है। इस प्रकार नदी का मार्ग घुमावदार होकर बहने लगती है तो अवतल और उत्तल का निर्माण होने लगता है।

प्रश्न 13.
छठी शक्ति का सिद्धान्त (Six Power’s Law) क्या है ?
उत्तर :
छठी शक्ति का सिद्धान्त (Six Power’s Law) :- नदी के वेग तथा उसकी परिवहन क्षमता के बीच गहरा सम्बन्ध है जिसे गिलबर्ट ने छठी शक्ति का सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 14.
अपघर्षण (Abrasion) प्रक्रिया अपरदन में कैसे कार्य करता है ?
उत्तर :
अपघर्षण प्रक्रिया मुख्य रूप से नदी, हवा, हिमनद, समुद्री लहर तथा भूमिगत जल द्वारा होता है। जब बड़ी मात्रा में पदार्थ को नदी, हवा, हिमनद आदि द्वारा प्रवाहित करते हुए अपने साथ ले जाती है, तो पदार्थ टूटती-फूटती है।

प्रश्न 15.
एक दक्षिणी अफ्रिका और एक दक्षिणी अमेरिका के मरूस्थल का नाम बताए।
उत्तर :
दक्षिणी अफ्रिका के मरूस्थल का नाम कालाहाड़ी मरूस्थल और दक्षिणी अमेरिका का मरूस्थल का नाम अटका मरूस्थल है।

प्रश्न 16.
वैश्विक उष्मन क्या है ?
उत्तर :
वैक्षिक उष्मन या भूमण्डलीय ताप का सम्बन्ध वायुमण्डलीय तापमान में होने वाली क्रमिक वृद्धि से है। जिसके फलस्वरूप भूमण्डलीय विकरण संतुलन में बदलाव आ जाता है।

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प्रश्न 17.
जलीय अपरदन क्या है ?
उत्तर :
जलीय अपरदन (Fluvial Erosion) : नदी के अपघर्षण, जलगति क्रिया, सत्रिघर्षण एवं घोलीकरण द्वारा होने वाले कटाव को जलीय अपरदन (Fluvial Erosion) कहते हैं।

प्रश्न 18.
याजू धारा क्या है ?
उत्तर :
याजू धारा (Yazoo) : बाढ़ के दौरान कभी-कभी छोटी सहायक नदियों पर तटबन्ध का निर्माण हो जाता है। इससे सहायक नदी टेढ़ी घाटियों से बहने पर मजबूर हो जाती है। इसे याजू धारा कहते हैं।

प्रश्न 19.
नदी के किस अवस्था में सबसे अधिक जल-प्रपात पाये जाते हैं ?
उत्तर :
नदी के पर्वतीय अवस्था में सबसे अधिक जलग्रपात पाये जाते हैं।

प्रश्न 20.
एक पंजाकार डेल्टा का नाम लिखो।
उत्तर :
मिसिसिपी का डेल्टा पंजाकार डेल्टा है।

प्रश्न 21.
सहायक नदी से क्या समझते हो ?
उत्तर :
एक नदी जो दूसरे नदी में मिलती है, उसे सहायक नदी कहते हैं, जैसे गंगा की सहायक नदी यमुना है।

प्रश्न 22.
नदी और हिमनदी द्वारा निर्मित चट्टानों का आकार लिखो।
उत्तर :
नदी V-आकार की घाटी का निर्माण करती है एवं हिमनदी U – आकार की घाटी का निर्माण करती है।

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प्रश्न 23.
किस अवस्था में नदी का जमाव कार्य सबसे अधिक होता है।
उत्तर :
नदी की निम्न अवस्था (Lower Course) में उसका जमाव कार्य सबसे अधिक होता है।

प्रश्न 24.
विश्व के सबसे गहरे कैनियन का नाम लिखो।
उत्तर :
विश्व का सबसे बड़ा कैनियन ग्रैण्ड कैनियन है।

प्रश्न 25.
विसर्प क्या है?
उत्तर :
नदी मैदानी भाग में टेढ़ी-मेढ़ी घाटियों से प्रवाहित होती है। इसे विसर्प कहते हैं।

प्रश्न 26.
नदी की धारा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
किसी उच्च भू-भाग या पर्वतीय अंचल से वर्षा का वाही जल, बर्फ या पिघले हुए हिमनद का जल, जब नीचे की भूमि पर बहता हुआ बड़े जलाशयों, झील या समुद्र में जलधारा के रूप में प्रवेश करता है तो उसे नदी की जलधारा कहते हैं।

प्रश्न 27.
नदी का प्रवाह क्षेत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर :
नदी की जलधारा उद्गम क्षेत्र से मुहाने तक जिस भू-भाग से प्रवाहित होती है, उसे नदी का प्रवाह क्षेत्र कहते है।

प्रश्न 28.
नदी के प्रवाह क्षेत्र को कितने भागों में बाँटा गया है।
उत्तर :
नदी के प्रवाह क्षेत्र को तीन भागों में बाँटा गया है।
(a) पर्वतीय अवस्था
(b) मैदानी अवस्था
(c) डेल्टाई अवस्था।

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प्रश्न 29.
जलोढ़ शंकु का निर्माण कहाँ होता है ?
उत्तर :
पर्वतपदीय प्रदेशों में जलोढ़ शंकु का निर्माण होता है।

प्रश्न 30.
प्राकृतिक तटबन्ध एवं बाढ़ के मैदान का निर्माण कहाँ होता है।
उत्तर :
प्राकृतिक तटबंध एवं बाढ़ के मैदान का निर्माण नदी के प्रौढ़ावस्था (Mature Stage) में होता है।

प्रश्न 31.
नदी की निकासी (बहाव) से क्या समझते हो ?
उत्तर :
जिस क्षेत्र से होकर नदी प्रवाहित होती है उसे नदी का निकासी कहते हैं। नदी का वेग मलवे को ढोने में सहायक होता है। नदी का वेग दो गुना होने पर उसकी वहन क्षमता में 64 गुना की वृद्धि होता है। यही नदी का बहाव है।

प्रश्न 32.
छठे घात का सिद्धांत क्या है ?
उत्तर :
नदी की परिवहन क्षमता उसके वेग पर निर्भर करती है। गिलबर्ट महोदय ने नदी के वेग एवं उसके परिवहन के विषय में एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसे छठे घात का सिद्धांत कहते हैं। इसके अनुसार यदि नदी का वेग दो गुना हो जाता है तो उसकी परिवहन शक्ति की वेग में छठे घात के अनुपात में वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 33.
नदी किसे कहते हैं ?
उत्तर :
धरातल पर स्वाभाविक रूप से बहने वाली जलधारा को नदी कहते हैं।

प्रश्न 34.
नदी के उद्गम (Origin of River) से क्या समझते हो ?
उत्तर :
जहाँ से नदी निकलती है उसे नदी का उद्गम (Origin of river) कहते हैं। जैसे यमुना का उद्गम यमुनोत्री है।

प्रश्न 35.
सहायक नदी किसे कहते हैं ?
उत्तर :
सहायक नदी (Tributaries) : जब छोटी-छोटी नदियाँ बड़ी नदी में जाकर मिल जाती हैं तो उसे उस नदी की सहायक नदी (Tributaries) कहते हैं, जैसे गंगा की सहायक नदी यमुना है।

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प्रश्न 36.
नदी संगम किसे कहते हैं ?
उत्तर :
नदी संगम (Confluence): जिस स्थान पर दो या दो से अधिक नदियाँ आकर मिलती हैं उस स्थान को नदी संगम कहते हैं। जैसे – गंगा, यमुना, सरस्वती का संगम इलाहाबाद में है।

प्रश्न 37.
शाखा नदी किसे कहते हैं ?
अथवा
हिमनद के अपरदन की कौन-कौन सी विधियाँ हैं ?
उत्तर :
शाखा नदी (Distributeris) : जब कोई नदी मुख्य नदी से निकलकर समुद्र या झील में गिरती है तो उस नदी को शाखा नदी कहते हैं; जैसे भागीरथी नदी, गंगा नदी की शाखा है।

प्रश्न 38.
दोआब किसे कहते हैं ?
उत्तर :
दोआब (Doab) या दियरा : दो नदियों के बीच का क्षेत्र दोआव (Doab) कहलाता है।

प्रश्न 39.
खादर से क्या समझते हैं ?
उत्तर :
खादर (Khadar) : जिस भाग में प्रतिवर्ष बाढ़ द्वारा नई मिट्टी जमा होती है उसे खादर (Khadar) कहते हैं। पश्चिम बंगाल में खादर अधिक हैं।

प्रश्न 40.
बाँगर से क्या समझते हैं ?
उत्तर :
बाँगर (Bangar) : नदियों द्वारा लाई गई प्राचीन मिट्टी के बने उस भाग को जहाँ बाढ़ का पानी नहीं पहुँच सकता उसे बाँगर कहते हैं। उत्तर प्रदेश में बाँगर अधिक पाए जाते हैं।

प्रश्न 41.
अन्तः प्रवाह क्षेत्र क्या हैं ?
उत्तर :
अन्तः प्रवाह क्षेत्र : उन नदियों द्वारा प्रवाहित क्षेत्र जिनके द्वारा नदी का पानी सागर या महासागर में नहीं पहुँचता है।

प्रश्न 42.
वितरिकाएँ से क्या समझते हैं ?
उत्तर :
नदी की शाखाएँ जिनके द्वारा नदी का पानी बँट जाता है उन्हें वितरिकाएँ कहते हैं।

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प्रश्न 43.
नदी द्रोणी क्या है ?
उत्तर :
वह विस्तृत भू-भाग जिसके पानी को एक मुख्य नदी और उसकी सहायक नदियाँ बहाकर ले जाय उसे नदी द्रोणी कहते हैं।

प्रश्न 44.
नदी प्रवेश या प्रवाह क्षेत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर :
उद्गम से मुहाने तक नदी का प्रवाह मार्ग नदी बेसिन या प्रवाह क्षेत्र कहलाता है।

प्रश्न 45.
जल विभाजक किसे कहते हैं ?
उत्तर :
दो नदी प्रदेशों को अलग करने वाली उच्च भूमि जलविभाजक (Water portting) कहलाती है।

प्रश्न 46.
नदी घाटी या उपत्यका किसे कहते हैं ?
उत्तर :
नदी जिस मार्ग से होकर बहती है उसे उसकी घाटी कहते हैं या पहाड़ी प्रदेश का वह नीचा भू-भाग जहाँ दो पहाड़ियों के आधार मिलते हैं, नदी घाटी या उपत्यका (River Valley) कहलाता है।

प्रश्न 47.
लटकती घाटी में जल प्रपातों का निर्माण क्यों होता है ?
उत्तर :
मुख्य हिमनदी अपनी सहायक हिमनदी की अपेक्षा बड़ी होने के कारण अधिक कटाव करती है जिससे मुख्य हिमनदी की घाटी सहायक हिमनदी की घाटी की अपेक्षा अधिक गहरी होती है। अतः दोनों के संगमस्थल पर सहायक हिमनदी की घाटी मुख्य हिमनदी की घाटी पर लटकती हुई प्रतीत होती है। हिमनद के पिछले तट पर इस लटकती हुई घाटियों से जल मुख्य हिमनदी की घाटी में गिरता है तो जल प्रपात का निर्माण होता है।

प्रश्न 48.
कार्य के आधार पर नदी के प्रवाह क्षेत्र को कितने भागो में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर :
कार्य के आधार पर नदी की तीन अवस्थायें होती हैं –

  • युवावस्था या पर्वतीय भाग
  • प्रौढ़ावस्था या मैदानी भाग
  • वृद्धावस्था या डेल्टाई भाग

प्रश्न 49.
एस्चुअरी क्या है ?
उत्तर :
एस्चुअरी : सभी नदियाँ डेल्टा नहीं बनाती हैं। छोटी नदियाँ अपने मुहाने पर इतना जमाव नहीं करती कि उनके मुहाने अवरूद्ध हों। गहरे समुद्र तथा डूबे हुए तट पर गिरने वाली नदियाँ भी डेल्टा नहीं बनाती। जो नदियाँ दीर्घ ज्वार-भाटे वाले सागर में गिरती हैं उनके मुहाने का अवसाद ज्वार के समय समुद्र में बह जाता है। इनका मुहाना चौड़ा होता है, ऐसे मुहानों को एस्चुअरी कहते है। विश्व का सबसे बड़ा एस्चुअरी उत्तरी रूस में ओब नदी का मुहाना है। इसकी लम्बाई 885 कि०मी० एवं चौड़ाई 80 कि०मी० है।

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प्रश्न 50.
अभिशीर्ष अपहरण क्या है ?
उत्तर :
अभिशीर्ष अपहरण (Headword Erosion) : पर्वतीय भाग में कभी-कभी नदी अपने उदगम स्थान से ऊपर की ओर कटाव का कार्य (Headword erosion) करती है। बाद में जल विभाजक को काटकर शक्तिशाली नदी दूसरी कमजोर नदी से मिलकर उसके पानी को हड़प लेती है, जिससे कमजोर नदी की,घाटी शक्तिशाली नदी में चला जाता है। इसे अभिशीर्ष अपहरण कहते हैं। इस प्रकार नदी घाटी की लम्बाई बढ़ जाती हैं।

प्रश्न 51.
नदी अपहरण क्या है ? या नदी चोर किसे कहते हैं ?
उत्तर :
नदी अपहरण (River Capture) : जब एक नदी दूसरी नदी या जल का अपहरण कर लेती है तो उस अवस्था को नदी अपहरण (River Capture) कहा जाता है। नदी अपहरण अधिकांश पर्वतीय भाग में होता है जहाँ प्रत्येक नदी अपनी सहायक नदी में मिलती है जिसे जल विभाजन सदैव पीछे खिसकता जाता है। जल विभाजक के ढाल समान स्वभाव वाले नहीं होते हैं। यदि एक ढाल दूसरे की अपेक्षा अधिक तेज हो तथा वहाँ की चट्टाने कोमल हों, वर्षा अधिक होती हो तो ढाल से निकलने वाली नदी का जल दूसरे ढाल की नदी की अपेक्षा नीचा होता है। प्रथम नदी की कटाव शक्ति दूसरी की अपेक्षा अधिक होगी। निम्न तली वाली नदी शीर्ष की ओर अधिक कटाव करती है। बाद में जल विभाजक को काट कर दूसरी ओर की नदी के जल का अपहरण कर लेती है। इसे नदी अपहरण करते हैं। अपहरण के बाद दूसरी नदी (अपहत नदी) की घाटी सूख जाती है।

प्रश्न 52.
तट बाँध क्या है ?
उत्तर :
तट बाँध (Levee) : बाढ़ के समय मैदानी भाग में मिट्टी का जमाव अधिक होता है। यह कालान्तर में आसं पास की भूमि से अधिक ऊँचा हो जाता है। ये बाँध के समान होते हैं। इन्हें तट बाँध कहते हैं। चूँकि ये बाँध प्रकृति द्वाराबनाये जाते हैं तथा इनसे बाढ़ के समय सुरक्षा होती है, अतः इस तट बाँध को प्राकृतिक तट बाँध(Natural Levee) कहते हैं।

प्रश्न 53.
उपनदी से क्या समझते हो ?
उत्तर :
मुख्य नदी में अनेक छोटी-छोटी जलधाराएँ मिलती हैं, इन्हीं जलधाराओं को उपनदी या धारा कहते हैं।

प्रश्न 54.
नदी के घर्षण और घोल विधि से क्या समझते हो ?
उत्तर :
घर्षण (Abrassion) : नदी जब पहाड़ी क्षेत्र से बहती है तो असमान धरातल के कारण तीव्रगति से बहते हुए तली और किनारों को काटते हुई चलती है। नदी के जल की भाति उसके साथ बहते पदार्थ भी यंत्र की भांति घाटी को घिसत-खरोंचते आगे बढ़ते हैं, इसे घर्षण कहते हैं।
घोल (Corration) : यह एक रासायनिक प्रक्रिया है। जब नदी का जल घुलनशील चट्टानों (चूना युक्त प्रदेश) के ऊपर से बहता है तो इन प्रदेशों में कटान की क्रिया तीव्र गति से होती है। इसे घोल कहते हैं।

प्रश्न 55.
शाखा नदी का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
बड़ी या गुख्य नदी में मिलने वाली छोटी नदी को बड़ी नदी की सहायक नदी या शाखा नदी कहते हैं। जैसे – गंगा की सहायक नदी यमु है।

प्रश्न 56.
विसर्पण क्या है ?
उत्तर :
विसर्पण (Meander) : मैदानी भाग में नदी के प्रवाह में थोड़ी भी बाधा आने से यह साँप की भाँति मुड़कर बहने लगती है। इन मोड़ो को ‘विसर्पण’ कहते हैं।

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प्रश्न 57.
पक्षी के पैर के आकार के एक डेल्टा का नाम बताओ।
उत्तर :
मिसीसिपी नदी का डेल्टा।

प्रश्न 58.
नदी के किस भाग में सबसे अधिक संख्या में जल-प्रपात पाए जाते हैं ?
उत्तर :
नदी के ऊपरी भाग में सबसे अधिक जल प्रपात पाये जाते हैं।

प्रश्न 59.
हिमोढ़ क्या है ?
उत्तर :
हिमोढ़ (Moraine) : जब हिम नदी पिघलने लगती है या पीछे हटने लगती है तो अपने साथ लाई गई सामग्री का निक्षेप करने लगती है, जिसे हिमोढ़ (Moraine) कहते हैं।

प्रश्न 60.
हिमक्षेत्र क्या है?
उत्तर :
हिमक्षेत्र (Snow field) : जो प्रदेश या पहाड़ हिम-रेखा से अधिक ऊँचाई पर स्थित है वहाँ हिम का ढेर लगा रहता है। ऐसे प्रदेशों को हिम-क्षेत्र (Snow-field) कहते हैं। टुण्डा प्रदेश, ग्रीन-लैण्ड आदि क्षेत्र वर्ष भर हिम से ढँके रहते हैं। अतः ये हिम-क्षेत्र के अच्छे उदारहण हैं।

प्रश्न 61.
हिम-रेखा क्या है ?
उत्तर :
हिम-रेखा (Snow-line) : हिम-क्षेत्र की निचली सीमा को हिम-रेखा (Snow line) कहते हैं। यह वह रेखा होती है, जिसके ऊपर वर्ष भर हिमावरण रहता है तथा बर्फ पिघल नहीं पाती है। हिम-रेखा की ऊँचाई भू-पटल के समस्त भागों पर समान न होकर अलग-अलग होते हैं। यह भूमध्य रेखा पर अधिक ऊँचाई पर होती है तथा धुवों पर कम ऊँचाई पर होती है। हिमालय में हिमरेखा की ऊँचाई 4500 से 600 मीटर है जबकि नार्वे (यूरोप में) 1500 मीटर तथा आर्कटिक प्रदेश में यह घटकर समुद्र तल पर आ जाती है।

प्रश्न 62.
हिम-चादर क्या है ?
उत्तर :
हिम-चादर (lce-Sheet) : जब किसी विशाल क्षेत्र में हिम के लगातार संचयन के कारण हिम की विस्तृत चादर का विकास हो जाता है तो उस भाग में अलग-अलग हिमनद न होकर समस्त भाग एक हिमनदी के रूप में होता है। इस तरह के हिमनदी का विस्तार सर्वाधिक होता है। इसी कारण इसे महाद्वीपीय हिमनदी कहते हैं। महाद्वीपीय हिम को हिम-चादर (Ice-sheet) भी कहा जाता है।

प्रश्न 63.
गोलाश्म मृतिका और टिल पर टिष्पणी लिखिए।
उत्तर :
गोलाश्म मृतिका एवं टिल : हिमोढ़ के निर्माण में बड़े और गोल आकार के कंकड़-पत्थर को बोल्डर कहते है। हिमनद द्वारा सभी प्रकार के निक्षेपण को हिम ड्रिफ्ट कहते हैं। ड्रिफ्ट को टिल कहते हैं। टिल में छोटे-छोटे कंकड़ोपत्थरों का अनियमित जमाव होता है।

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प्रश्न 64.
हिम-टोपियाँ क्या हैं ?
उत्तर :
हिम-टोपियाँ (Ice-caps) : पर्वतों की चोटियों पर स्थित हिम चादर को हिम-टोपी (Ice caps) कहते हैं। ये अधिक ऊँचाई पर होती हैं। यहाँ कई हिमनदों का सृजन होता है।

प्रश्न 65.
हिमनदी द्वारा निर्मित घाटी का आकार कैसा होता है ?
उत्तर :
हिमनद द्वारा निर्मित घाटी का आकार अंग्रेजी अक्षर ‘ U ‘ के समान होता है।

प्रश्न 66.
पाशर्वस्थ हिमोढ़ किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जो हिमोढ़ हिमनद के दोनों किनारों पर पाये जाते हैं, उन्हें पाश्श्वस्थ हिमोढ़ कहते हैं।

प्रश्न 67.
किन क्षेत्रों में बालुका स्तूपों का निर्माण होता है ?
उत्तर :
शुष्क मरुस्थलों एवं समुद्र तटीय भागों में बालुका स्तूपों का निर्माण होता है।

प्रश्न 68.
हिमानी धौत मैदान क्या है ?
उत्तर :
हिमानी धौत मैदान : जहाँ अन्तिम हिमोढ़ के पश्चात पानी की धाराएँ बहना प्रारम्भ करती है, वहाँ से धीरेधीरे सभी प्रकार के हिमोढ़ बहते जल में आकर व्यवस्थित रूप में, जमा होने लगते हैं और धीरे – धीरे समतलग्राय छोटे-छोटे मैदानी क्षेत्र बनते हैं। इन्हें हिमानी के अवक्षेप (Outwash) मैदान कहते हैं।

प्रश्न 69.
भेड़-पीठ शैल क्या है ?
उत्तर :
भेड़-पीठ शैल (Rock Mountonne) : ऐसे ऊभार को जिसके एक ओर हल्का ढाल व चिकना तल तथा दूसरी ओर तीव्र उबड़-खाबड़ ढाल हों, भेड़ शिला कहते हैं। दूर से देखने पर यह आकृति बैठी हुई भेड़ों के पीठ जैसी दिखाई देती है। अतः इसे भेड़-पीठ शैल भी कहा जाता है।

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प्रश्न 70.
हिमनद निर्मित मैदान एवं शैल पद-पर्वतीय शुष्क मैदान में अन्तर करो।
उत्तर :

  1. पर्वतीय शुष्क मैदान का निर्माण वायु द्वारा होता है जबकि हिमानी मैदान का निर्माण हिमनद द्वारा होता है।
  2. पेडीमेण्ट का निर्माण वायु के अपरदन द्वारा होता है, जबकि हिमानी मैदान का निर्माण हिमनद द्वारा होता है।
  3. पेड़ीमेण्ट हल्के ढाल वाले, पथरीली मैदान भाग है जबकि हिमानी मैदान का निर्माण चट्टानों, बालू, कंकड़ों एवं पत्थरों द्वारा होता है।

प्रश्न 71.
हिमोढ़ द्रोणी क्या है ?
उत्तर :
हिमोढ़ द्रोणी (Glacial Trough) : पहाड़ी भागों में नदियों द्वारा निर्मित घाटियों में जब हिम प्रवाहित होता है तो वह घाटी में खरोंच एवं काट-छाँट द्वारा इसे ‘U’ आकार का बना देता है। इस घाटी के किनारों का ढाल विशेष तेज या खड़ा और पेंदे का ढाल समतल प्राय: होता है। इस प्रकार हिमानी द्वारा निर्मित विस्तृत U आकार की घाटी को हिमोढ़ द्रोणी कहते हैं।

प्रश्न 72.
कूरी एवं एरेटे किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कूरी (Corrie) : घाटी हिमनद की उत्पत्ति जिस स्थान पर होती है वहाँ पर विशेष प्रकार का गड्दुा पाया जाता है । यह विशाल या दैत्याकार कुर्सी की तरह होता हैं। इस रूप को सर्क (Cirque) या हिमद्रोणी कहते हैं। स्कॉटलैण्ड में इसे कोरी (Corrie) कहते हैं।
एरेटे (Arete): जब किसी पर्वत श्रेणी के दोनों तरफ सर्क का निर्माण हो जाता है तो उसके मध्य में कंघी के आकार में श्रेणी बन जाती है। इसे एरेटे कहते हैं। इसी को कंघीनुमा श्रेणी भी कहते हैं।

प्रश्न 73.
हिमरेखा क्या है?
उत्तर :
वह तल या स्तर जिसके ऊपर सदैव हिम जमी रहती है उसे हिमरेखा कहा जाता है। इसकी ऊँचाई अक्षांशों तथा धरातल की ऊँचाई के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है। विषुवत् रेखा के निकट हिमरेखा समुद्रतल से 5500 मीटर तथा हिमालय में 4500 मीटर आल्पस में 31000 मीटर, माउण्ट फोरेल पर 650 मीटर की ऊँचाई पर तथा धुवों पर सागर तल पर पाई जाती है।

प्रश्न 74.
बर्फ निर्मित मैदान किसे कहते हैं ?
उत्तर :
हिम क्षेत्र स्थाई हिम का एक प्रदेश होता है जो केवल पर्वतीय क्षेत्रों में तथा उच्च अक्षांशों में निम्न तापमान के कारण पाया जाता है।

प्रश्न 75.
प्लावी हिमशैल (Ice berge) क्या है ?
उत्तर :
जब हिमनद आगे बढ़कर समुद्र तक पहुँच जाता है तो उसकी हिमशिलाएँ समुद्र में तैरने लगती हैं। इसे प्लावी हिमशैल कहते हैं। लैब्रोडोर की ठंडी जलधाराएँ अपने साथ बहाकर प्लावी हिम शिलाओं को उत्तरी-अमेरिका के पूर्वी तट पर स्थित न्यू-फाउलैण्ड तट तक लाती है। यह जलयानों के लिए हानिकारक होती है। हिमशिला से टकराकर ही टाइटैनिक डूबा था।

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प्रश्न 76.
हिम युग से क्या समझते हो?
उत्तर :
यह वह भू-वैज्ञानिक अवधि है जिनमे महाद्वीपों पर हिमनदियाँ बर्फ की चादर के रूप में छा गई थी। इसका अवशेष है। पृथ्वी पर अब तक तीन हिम युग आ चुके हैं। इनमें से अंतिम हिमयुग प्लीस्टोसीन हिमयुग था।

प्रश्न 77.
सिरेक्स क्या है?
उत्तर :
जब हिमानी के ऊपरी तल पर कई हिम विदर बन जाते हैं तो उसका तल विषम हो जाता है। इस प्रकार कई हिम शिखर मिलकर सिरेक्स का रूप धारण करते हैं।

प्रश्न 78.
बर्गश्रुण्ड क्या है?
उत्तर :
जब घाटी हिमनद का ऊपरी भाग अलग हो जाता है तो वहाँ विशाल हिम विदर या दरार उत्पन्न हो जाता है। इसे बर्गश्रुण्ड कहते हैं।

प्रश्न 79.
हिमगर्तिका या केतली किसे कहते हैं?
उत्तर :
यह हिमनदीय अपोढ़ में पाये जाने वाला वह गर्त है जो बड़े हिम खण्डों के पिघलने से बनता है। इसमे जल भरा हाता है। इसे हिमगर्तिका कहते हैं।

प्रश्न 80.
केम क्या है?
उत्तर :
ये हिमानी धौत मैदानों में रेत और बजरी से बने गोल टीले हैं। इनकी ऊँचाई 35 मी० से 60 मी० तक होती है।

प्रश्न 81.
पाशिर्वक हिमोढ़ क्या है?
उत्तर :
हिमनद की घाटियों के किनारों पर स्थित जमाव को पार्शिवक (लेटरल) हिमोढ़ कहते हैं।

प्रश्न 82.
हिमनदी द्वारा निर्मित घाटी का आकार कैसा होता है?
उत्तर :
हिमनदी U – आकार की घाटी का निर्माण करती है।

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प्रश्न 83.
जल चक्र में नदियों की भूमिका लिखिए ।
उत्तर :
सूर्य से प्राप्त गर्मी के कारण महासागरों, सागरों एवं झीलों आदि का जल जलवाष्ष का रूप धारण कर वायुमण्डल में प्रवेश करता है। बाद में जलवाष्प का जब भी संघनन होता है तो धरातल पर वर्षा होती है। वर्षा से प्राप्त जल नदी, नालों के रूप में भू-पृष्ठ पर प्रवाहित होता है तथा अंत में महासागरों एवं सागरों में प्रवेश कर जाता है। इस प्रकार सौर ऊर्जा के कारण जल में जो चक्रीय गति उत्पन्न होती है, उसमें धरातल पर प्रवाहित होने वाली नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका है।

प्रश्न 84.
नदी के प्रवाह क्षेत्र या बेसिन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
कोई मुख्य नदी अपनी सहायक नदियों सहित जिस क्षेत्र का जल लेकर प्रवाहित होती है उसे उस नदी का प्रवाहक्षेत्र या बेसिन कहा जाता है। गोदावरी नदी का बेसिन भारत में सबसे बड़ा नदी बेसिन है। बेसिन जल विभाजको से घिरे होते हैं।

प्रश्न 85.
गुम्फित नदी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
डेल्टाई अवस्था में नदी की मुख्य धारा कई छोटी-छोटी उपधाराओं में विभाजित हो जाती है। उपधाराओं से युक्त ऐसी नदियाँ गुम्भित नदी (Braided river) कहलाती हैं।

प्रश्न 86.
भौतिक और रासायनिक अपरदन की तुलना करो।
उत्तर :
भौतिक विखण्डन मुख्यतः शुष्क प्रदेशों में होता है। रासायनिक अपरदन उष्ण-आर्द्र प्रदेश में होता है।

प्रश्न 87.
पृथ्वी की अन्तः आन्तरिक गति का नाम लिखो।
उत्तर :
पृथ्वी के आन्तरिक भाग दो प्रकार की गति होती है (i) क्षैतिज गति (ii) लम्बवत् गति।

प्रश्न 88.
अपक्षय क्या है ?
उत्तर :
पृथ्वी की सतह पर प्राकृतिक कारको द्वारा चट्टानों के अपने ही स्थान पर यांत्रिक विधि द्वारा दूटने अथवा रासायनिक अपघटन होने की क्रिया को अपक्षय कहा जाता है।

प्रश्न 89.
अपरदन क्या है?
उत्तर :
अपरदन एक गतिक प्रक्रिया है, जिसमें विघटित चट्टानो का स्थानान्तरण होता है।

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प्रश्न 90.
जैविक अपक्षय क्या है?
उत्तर :
धरातल पर जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों एवं मनुष्यो द्वारा चट्टानो के तोड़-फोड़ के कार्य को जैविक अपक्षय कहते हैं।

प्रश्न 91.
बहते हुए जल के विभिन्न क्रियाओं का नाम लिखो।
उत्तर :
बहते हुए जल अपक्षरण, परिवहन तथा निक्षेपण का कार्य करती है।

प्रश्न 92.
बहिर्जात प्रक्रिया क्या है?
उत्तर :
वे प्रक्रिया जो धरातल पर निरन्तर धीरे-धीरे क्रियाशील रहती है और धरातल पर विभिन्न स्थलाकृतियों का निर्माण करती है, बहिर्जात प्रक्रिया कहते है।

प्रश्न 93.
भूस्खलन क्या है ?
उत्तर :
गुरूत्वाकर्षण के कारण पहाड़ों पर चट्टानो एवं मिट्टी के नीचे की ओर खिसकने की प्राकृतिक प्रक्रिया को भूस्खलन कहा जाता है।

प्रश्न 94.
चट्टानो के दूटने को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
चट्टानो के टूटने की क्रिया को पिण्ड विच्छेदन (Block disintegration) कहते है।

प्रश्न 95.
ढाल अधिक होने पर नदी कटाव करती है या जमाव ?
उत्तर :
ढाल अधिक होने पर नदी कटाव कार्य अधिक करती है।

प्रश्न 96.
विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप कौन-सा है ?
उत्तर :
बह्मपुत्र नदी का माजुली द्वीप विश्ष का सबसे बड़ा नदी द्वीप है।

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प्रश्न 97.
भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर चलने पर हिमरेखा की ऊँचाई कम होती है या अधिक ?
उत्तर :
भूमध्य रेखा से धुवों की ओर चलने पर हिमरेखा की ऊँचाई कम होती है।

प्रश्न 98.
मरुस्थलीय भाग में भू-स्वरूप का निर्माण कौन करता है ?
उत्तर :
मरुस्थलीय भाग में भू-स्वरूप का निर्माण नदी करता है।

प्रश्न 99.
नदी निर्मित एक स्थलस्वरूप का नाम बताओ।
उत्तर :
नदी पर्वतीय भाग में V आकार की घाटी का निर्माण करती है।

प्रश्न 100.
अन्तर्जात और बहिर्जात बलों की तुलना करो।
उत्तर :
अन्तर्जात बल भूतल पर असमानता उत्पन्न करता है। बहिर्जात बल इस विषमता को दूर करता है।

प्रश्न 101.
अपक्षय और अपरदन की तुलना करो।
उत्तर :
अपक्षय क्रिया में चट्टाने टूट-टूट कर अपने ही स्थान पर रहती है जबकि अपरदन में चट्टाने आगे बढ़ जाती है।

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प्रश्न 102.
बहिर्जात बल के प्रमुख अभिकर्त्ता कौन-कौन से हैं ?
उत्तर :
बहिर्जात बल के प्रमुख अभिकर्त्ता नदी, हिमनद तथा वायु है।

संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 3 MARKS

प्रश्न 1.
नदी के मुहाने पर डेल्टा का निर्माण क्यों होता है ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
नदी अपनी अन्तिम अवस्था में मुहाने के पास लाये हुए मलवे का जमाव करने लगती है। नदी की मुख्य शाखा कई उपशाखाओ में विभाजित हो जाती है। समुद्र तल के निकट की असमतल जमीन एक समतल त्रिभुजाकार भू भाग में बद्ल जाती है। इस प्रकार एक त्रिकोण डेल्टा का निर्माण होता है। गंगा और पद्मा नदियों का मध्य त्रिकोण भाग संसार का सबसे बड़ा डेल्टा है।

डेल्टा के निर्माण की आवश्यक दशाएं :-

  1. नदी की धारा में पर्याप्त मात्रा में अवसाद आना चाहिए।
  2. समुद्र की ओर से ज्वारीय लहर या तूफानी लहर कम उठे।
  3. सम्पूर्ण डेल्टा का जल विशेष धीमा रहे जिससे नदी की मुख्य शाखा कई उपशाखाओं मेंबँटकर अवसाद फैलाती है।
  4. नदी के निचले बेसिन में अधिक वर्षा होते रहने से भी डेल्टा के विस्तार में विशेष सहायता मिलती है।
  5. तटीय समुद्र भाग उथला हो जिससे नदी द्वारा मुहाने पर अवसाद का जमाव सुगमता से होता है।

प्रश्न 2.
मरूस्थलीय क्षेत्रों में वायु कार्य प्रधान होता है क्यों ?
उत्तर :
मरुस्थलीय प्रदेशों में वर्षा के अभाव, वनस्पति की न्यूनता, तापमान की अधिकता, वाष्पीकरण की तीब्रता, दैनिक तापान्तर का अत्यधिक भेद और मेघरहित आकाश आदि के कारण वायु कार्य प्रधान होता है।

प्रश्न 3.
भेड़-पीठ शैल एवं ड्रमलिन में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर :
भेड़-पीठ शैल एवं डूमलिन में अन्तर :

भेड़-पीठ शैल ड्रमलिन
1. इनका निर्माण हिमनद के अपक्षरण द्वारा होता है। इनका निर्माण हिमनद के निक्षेपण द्वारा होता है।
2. ये देखने में बैठी हुई भेड़ की तरह मालूम पड़ती है। ये देखने में उल्टी नाव या अण्डे की टोकरी मालूम पड़ती हैं।
3. इसका सम्मुख ढाल चिकना एवं साधारण ढाल वाला तथा विपरीत ढाल खड़ा एवं ऊबड-खाबड़ होता है। इनका सम्मुख ढाल खड़ा एवं खुरदुरा तथा विमुख ढाल चिकना एवं मंद ढाल वाला होता है।

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प्रश्न 4.
वृहदक्षरण की व्याख्या करो।
उत्तर :
वृहदक्षरण संचालन के अन्तर्गत वे सभी सचलंन आते है। जिनमें, शैलो के मलवा की बृहद् का गरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव के कारण ढाल के अनुरूप स्थानान्तरण होता है। बृहद संलन तीन प्रकार के होते है, जो निम्नलिखित है:
i. मंद सचंलन (slow movement): मंद संचलन के प्रकार के रूप में मंद विरूपण है। यह मध्यम तीव्र एवं मृदा से आच्छादित ढाल पर घटित होता है। इसमें पदार्थो का सचलन इतना मंद होता है, कि दीर्घकालिक पर्यवेक्षण से ही इसका पता चलता है। यह प्रक्रिया उन क्षेत्रों में आम होती है, जहां परिवहमानीय एवं आर्द्र शीतोष्ण क्षेत्र होते है, जहाँ पर गहराई तक हिमकृत मैदान का सतही पिघलाव होता है। तथा जहाँ लम्बी लगातार वर्षा होती है।
ii. तीव्र सचंलन (Rapid movement) : तीव्र सचंलन आर्द्र जलवायु प्रदेशों में निम्न से लेकर तीव्र ढालो पर घटित होते है, मृदा प्रवाह (soil flow), कीचड़ प्रवाह (Mud flow) तथा मालवा अवधाव (Avalanche) इस संलन के प्रकार है।
iii. भुस्खलन (Lardslide) : (भुस्खलन अपेक्षाकृत तीव्र एवं अवगम्य सचंलन है। इसमें स्वखलित होने वाले पदार्थ अपेक्षतया शुष्क होते है।

प्रश्न 5.
लटकती घाटी में जलप्रपात की सृष्टि क्यों होती हैं ?
अथवा
लटकती घाटी में जल प्रपातों का निर्माण क्यों होता है ?
उत्तर :
लटकती घाटी में जल-प्रपात की उत्पत्ति का कारण : सहायक हिमनद के घाटी के तली मुख्य हिमनद की घाटी की तली से ऊँची होती है, जिसके कारण सहायक हिमनद की घाटियाँ मुख्य हिमनद की घाटी पर लटकती हुई सी प्रतीत होती है। तापामन बढ़ने पर हिम के पिघलने से लटकती घाटियों से जल मुख्य हिमदन की निचली घटटी में गिरने लगता है जिससे जल प्रपातों का निर्माण होता है। इसीलिए लटकती घाटियों पर जल-प्रपात जाते हैं।

प्रश्न 6.
नदी के वृद्धावस्था में डेल्टा का निर्माण कैसे होता है तथा डेल्टा के निर्माण के लिए कौन-कौन सी दशाएं आवश्यक हैं ?
अथवा
डेल्टा का निर्माण नदी की किस अवस्था में होता है ? डेल्टा के निर्माण के लिए अनुकूल दशाओं को लिखिए।
अथवा
डेल्टा के निर्माण की आदर्श दशा क्या है ?
अथवा
डेल्टा का निर्माण कैसे होता है ?
उत्तर :
नदी अपनी अन्तिम अवस्था में मुहाने के पास लाये हुए मलवे का जमाव करने लगती है। नदी की मुख्य शाखा कई उपशाखाओं में विभाजित हो जाती है। समुद्र तल के निकट की असमतल जमीन एक समतल त्रिभुजाकार भू भाग में बदल जाती है। इस प्रकार एक त्रिकोण डेल्टा का निर्माण होता है। गंगा और पद्मा नदियों का मध्य त्रिकोण भाग संसार का सबसे बड़ा डेल्टा है।

डेल्टा के निर्माण की आवश्यक दशाएं :-

  1. नदी की धारा में पर्याप्त मात्रा में अवसाद आना चाहिए।
  2. समुद्र की ओर से ज्वारीय लहर या तूफानी लहर कम उठे।
  3. सम्पूर्ण डेल्टा का जल विशेष धीमा रहे जिससे नदी की मुख्य शाखा कई उपशाखाओं में बाँटकर अवसाद फैलाती है।
  4. नदी के निचले बेसिन में अधिक वर्षा होते रहने से भी डेल्टा के विस्तार में विशेष सहायता मिलती है।
  5. तटीय समुद्र भाग उथला हो जिससे नदी द्वारा मुहाने पर अवसाद का जमाव सुगमता से होता है।

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प्रश्न 7.
नदी अपने प्रवाह मार्ग में कौन-कौन सी कार्य करती है ?
अथवा
नदी के कार्य क्या हैं ?
उत्तर :
नदी के निम्न तीन कार्य हैं :-
i. अपरदन (Erosion): नदी अपने तल को काटती, खुरचती रहती है। नदी के जल में पदार्थों के रासायनिक रूप में घुलन क्रिया होती रहती है। इस प्रकार नदी अपने मार्ग में आने वाले चट्टानों का अपरदन करती रहती है।
ii. परिवहन (Transportation): नदी द्वारा अपरदित पदार्थों को अपने जल के वेग के साथ बहाकर ले जाने की क्रिया को परिवहन कहते हैं। नदी जिन पदार्थो का परिवहन करती है उसे बोझा या नदभार (River load) कहते हैं।
iii. निक्षेपण (Deposition): जैसे ही नदी का दाल कम हो जाता है, नदी का वेग घट जाता है। नदी द्वारा अपने साथ बहाकर लाये गये मलवे का जमाव नदी की गति में कमी, जल की मात्रा में कमी या भार वृद्धि के कारण होती है।

प्रश्न 8.
नदी का अपरदन कार्य किन बातों पर निर्भर करता है ?
उत्तर :
अपरदन कार्य को प्रभावित करने वाले कारक :-

  1. जल प्रवाह का वेग : नदी की प्रवाह जितना तेज होगा वह अपरदन उतना ही अधिक करेगी।
  2. जल की मात्रा : जल की मात्रा अधिक होने से अपरदन की क्षमता बढ़ जाती है।
  3. चट्टानों के प्रकार : नदी का जल कठोर चट्टानों की तुलना में मुलायम चट्टानों का अपरदन अधिक करता है।
  4. प्रवाह में अपरदित पदार्थों की मात्रा : नदी की धारा में बहने वाले रेत, बजरी, रोड़े एवं बड़ी-बड़ी शिलाएँ आदि अपरदन कार्य में सहायता करते हैं।

प्रश्न 9.
नदी के परिवहन कार्य को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन हैं ?
उत्तर :

  1. जल का वेग : जब नदी का वेग बढ़ जाता है तो उसके परिवहन क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
  2. जल की मात्रा : प्रवाहित जल की मात्रा परिवहन की शक्ति को प्रभावित करती है।
  3. बोझ एवं उसका आकार : महीन शैल कण दूर-दूर तक बहाए जा सकते हैं एवं बड़े-बड़े शैल खण्ड कुछ दूर ही बहाये जा सकते हैं।

प्रश्न 10.
नदी के निक्षेपण को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ?
उत्तर :
निक्षेपण : जब नदी वेग एवं परिवहन न करके मलवे को जमा करने लगती है तो इसे नदी का निक्षेपण कहते हैं। नदी निक्षेपण को प्रभावित करने वाले कारक :

  1. धारा का वेग : धारा जितनी ही क्षीण होगी निक्षेपण उतना हीअधिक एवं तेज धारा में उतना ही कम होगा।
  2. परिवहन सामग्री : नदी में बोझ अधिक होने पर नदी निक्षेपण अधिक होता है।
  3. कणों का आकार : नदी भारी कणों का परिवहन सीमित दूरी तक करती है जबकि महीन कणों का परिवहन दूर तक करती है।
  4. मार्ग की बाधा : यदि नदी के मार्ग में कोई बाधा आ जाती है तो नदी बहाकर लाये गए मलवे का निक्षेपण करने लगती है।

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प्रश्न 11.
नदी मार्ग के विभित्र भागों का नाम लिखकर उनका संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करें। अथवा, किसी आदर्श नदी के प्रवाह मार्ग को कितने भागों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर :
नदी अपने उद्गम स्थान से मुहाने तक तीन अवस्थाओं से होकर गुजरती है :-
i. पर्वतीय अवस्था (Mountain stage) : यह नदी का उद्गम स्थल है। यहाँ पर नदी का ढाल अधिक होता है, नदी इस अवस्था में कटाव का कार्य अधिक करती है। नदी गहरी एवं संकरी घाटियों का निर्माण करती है।
ii. मैदानी अवस्था (Plain stage): मैदानी अवस्था में नदी का ढाल कम हो जाता है। इस अवस्था में नदी कटाव और परिवहन एवं जमाव का कार्य करती है, नदी अपनी घाटी को चौड़ा करती है।
iii. वृद्धावस्था (Old stage) : नदी जब अपने मुहाने पर पहुँचती है तो वह परिवहन करने में असमर्थ हो जाती है एवं अपने साथ बहाकर लाये गए मलवे का निक्षेप करने लगती है। मुख्य शाखा कई उप-शाखाओं में बँट जाती है एवं त्रिभुजाकार डेल्टा का निर्माण करती है।

प्रश्न 12.
नदी घाटी का निर्माण कैसे होता है ?
उत्तर :
प्रत्येक नदी का प्रमुख कार्य घाटी का निर्माण करना है। नदी घाटी का निर्माण निम्न अवस्थाओं से होकर गुजरती है :-

  1. सर्वप्रथम वर्षा जल द्वारा छोटी-छोटी नालियों का विकास होता है।
  2. द्वितीय अवस्था में कई अवनलियाँ आपस में मिलकर छोटे-छोटे स्रोतों का विकास करती है।
  3. विकसित स्रोत और विकसित होकर लम्बे होते जाते हैं।
  4. चतुर्थ दशा में विकसित स्रोत वृक्षाकार रूप में पूर्णत: विकसित हो जाते हैं।
  5. पाँचवीं अवस्था में नदी अपहरण की क्रिया प्रारम्भ हो जाती है एवं नलिकाओं का विकास प्रारम्भ हो जाता है।
  6. अन्तिम अवस्था में इसमें कई नलिकाएँ (Rivalet) आपस में मिलकर नदी का पूर्ण विकास सम्पन्न करती है। इस प्रकार उपर्युक्त विधियों द्वारा नदी घाटी का निर्माण सम्पन्न होता है।

प्रश्न 13.
जलोढ़ शंकु का निर्माण कहाँ होता है ?
उत्तर :
पर्वतीय प्रदेशों में जलोढ़ शंकु का निर्माण होता है। पर्वतीय क्षेत्रों में नदी घाटी के ढाल में एकदम कमी आने लगता है। इस प्रकार पर्वतीय भाग में नदी त्रिकोणाकार या पंखाकार जमाव फैलाकर बिछाती है। इसे ही जलोढ़ शंकु कहते हैं।

प्रश्न 14.
एस्चुअरी एवं डेल्टा में अंतर लिखो।
उत्तर :

एस्चुअरी डेल्टा
1. ये नदियों के मुहाने हैं जहाँ पर नदी का जमाव कार्य नहीं होता है। 1. ये नदियों के मुहाने हैं जहाँ पर नदियों द्वारा त्रिभुजाकार समतल भू-भाग का निर्माण किया जाता है।
2. एस्चुअरी का निर्माण जहाँ होता है वहाँ मुहाने पर तेज समुद्री धाराएँ पायी जाती हैं। 2. डेल्टा का निर्माण जहाँ होता है वहाँ समुद्र का जल शांत रहता है।
3. जहाँ पर एस्चुअरी का निर्माण होता है, उन मुहानों पर विकसित एवं प्राकृतिक बंदरगाह पाये जाते हैं। 3. डेल्टा जहाँ निर्मित होता है उन समुद्री मुहानों पर विकसित बन्दरगाह नहीं पाये जाते हैं।
4. एस्चुअरी का निर्माण काफी गहरे तटों पर होता है। 4. डेल्टा का निर्माण उथले तटों पर होता है।

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प्रश्न 15.
गार्ज और कैनियन में क्या अंतर हैं ?
उत्तर :

गार्ज कैनियन
1. जब नदी उच्च पर्वतीय भागों में कटाव कर अत्यधिक गहरे एवं संकरी घाटी का निर्माण करती है तो उसे गार्ज कहते हैं। 1. इसमें नदी अपनी धरातल से सैकड़ों मीटर की गहराई में खड़े ढालों के बीच गहरे मोड़ बनाती हुई बहती है। अत: कैनियन का आकार गार्ज से भी विस्तृत होता है।
2. गार्ज का निर्माण स्थान विशेष पर ही होती है। 2. कैनियन में गार्ज जैसी घाटी की लम्बाई कुछ कि॰मी० से कई कि०मी० तक होती है।
3. नदी की घाटी में पानी तेजी से प्रवाहित होता है। 3. तेज ढाल बना रहने के कारण नदी का पानी तेजी से घाटी में आवाज करता हआ बहता है।

प्रश्न 16.
गंगा को आदर्श नदी क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
जिस नदी में तीनों अवस्थाएँ पाई जाती हैं उसे आदर्श नदी कहते हैं।

  1. गंगा गंगोत्री ग्लेश्यिर से निकलकर हरिद्वार तक पर्वतीय अवस्था में प्रवाहित होती है।
  2. गंगा नदी हरिद्वार से मुर्शिदाबाद तक अपने मैदानी अवस्था में प्रवाहित होती है।
  3. मुर्शिदाबाद से आगे गंगा नदी भागीरथी-हुगली नदियों के रूप में प्रवाहित होती हुई अपने डेल्टा में प्रवेश करती है। इस प्रकार नदी की तीनों अवस्थाओं के पाए जाने के कारण गंगा नदी को आदर्श नदी कहते हैं।

प्रश्न 17.
नदीकृत घाटी एवं हिमानी कृत घाटी में अंतर लिखो। अथवा, नदी घाटी और हिमनद घाटी में अन्तर बताओ।
उत्तर :

नदी द्वारा निर्मित घाटी हिमानी द्वारा निर्मित घाटी
1. नदी V आकार की घाटी का निर्माण करती है। 1. हिमानी U आकार की घाटी का निर्माण करती है।
2. नदी द्वारा निर्मित घाटी तंग एवं संकरी होती है। 2. हिमानी द्वारा निर्मितघाटी चौड़ी होती है।
3. नदी की घाटी का ढाल अधिक होने से पानी तेज गति से बहता है। 3. हिमानी द्वारा निर्मित घाटी कम ढालयुक्त होती है जिसमें हिमानी धीमी गति से अग्रसर होती है।
4. नदी अपने घाटी का निर्माण स्वतः प्राकृतिक रूप से करती है। 4. नदी द्वारा निर्मित V आकार की घाटी को ही हिमानी अपरदित करके $U$ आकार की घाटी में परिवर्तित करती है।

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प्रश्न 18.
नदियों के अपरदन की विभिन्र विधियाँ कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर :
नदियाँ निम्नलिखित तरीकों से अपरदन का कार्य करती है।
i. जलगति की क्रिया (Hydraulic Action) : नदी अपने जल के वेग के धक्के से अपनी तली एवं किनारों की चट्टानों के कणों को अलग करके बहा ले जाती है।
ii. अपघर्षण (Abrasion or Corrasion) : नदी के साथ बहने वाले कंकड़ों एवं पत्थरों के टुकड़े एक छेदन यंत्र या वर्मा मशीन (Drilling tool) का कार्य करते हैं जो नदी घाटी के किनारों एवं तली की चट्टानो को काटते हैं। इसे अपघर्षण कहते हैं।
iii. सत्रिघर्षण (Attrition) : नदी के जल के साथ बहने वाले कंकड़ – पत्थर आपस में टकरा कर छोटे-छोटे कणों में टूट जाते हैं। इसे सन्रिघर्षण कहते हैं।
iv. रासायनिक विधि (Corrosion) : नदी का जल घोल तथा कार्बोनेशन आदि रासायनिक विखण्डन की क्रियाओ द्वारा घुलनशील तथा चुनायुक्त चट्टानों को घुला कर अपने साथ बहा ले जाती है।

प्रश्न 19.
किसी आदर्श नदी के प्रवाह मार्ग को कितने भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर :
किसी आदर्श नदी के मार्ग को हम तीन भागों में बाँट सकते हैं।

  • पर्वतीय भाग, ऊपरी भाग या युवावस्था,
  • मैदानी भाग, मध्य भाग या परिपक्वावस्था,
  • डेल्टाई भाग, निम्न भाग या वृद्धावस्था।

गंगा नदी में ये तीनों भाग स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते हैं। गंगा नदी का ऊपरी भाग गंगोत्री से हरिद्वार तक, मध्य भाग हरिद्वार से राजमहल की पहाड़ी तक तथा निम्न या डेल्टाई भाग राजमहल की पहाड़ी से बंगाल की खाड़ी तक है।

प्रश्न 20.
पर्वतीय अवस्था में नदियों द्वारा ‘ V ‘ आकार की घाटियों का निर्माण क्यों होता है?
उत्तर :
यह नदी की प्रारम्भिक अवस्था होती है। यहीं से नदी की उत्पत्ति होती है। प्रारम्भ में नदी पतली एवं संकीर्ण नाले के रूप में बहती है परततु बाद में कई धाराओं के मिलने पर यह नदी का रूप धारण कर लेती है। पर्वतीय भाग में भूमि का ढाल अत्यंत तीव्र होता है, अत: नदी अत्यंत तीव गति से बहती है। बड़े-बड़े शिलाखण्ड भी इनके प्रवाह को नहीं रोक पाते। नदी की तीव गति के कारण इस भाग में अपक्षरण ही होता है। नदी के ऊपरी भाग में अधिक वेग, शक्ति तथा क्रियाशीलता के कारण ही यह नदी की यौवनावस्था कही जाती है। तेज गति के कारण पर्वतीय भाग में नदी अपनी तली को काटकर उसे गहरा करने का कार्य अधिक करती है और किनारों को काटकर उसे चौड़ा करने का कार्य कम करती है। अत: यहाँ नदी की घाटी अंग्रेजी के V अक्षर के समान हो जाती है।

प्रश्न 21.
स्थिति एवं विस्तार की दृष्टि से हिमनदी को कितने भागों में बांटा गया है ?
उत्तर :
स्थिति एवं विस्तार की दृष्टि से हिमनदी का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता है :
i. पर्वतीय या घाटी हिमनद (Mountain or Valley glacier) : ऊँचे पर्वतीय भागों में ढाल के सहारे पुरानी नदियों की घाटियों से होकर फिसलने वाले हिमनद को पर्वतीय या घाटी हिमनद कहते हैं; जैसे – पश्चिमी हिमालय का सियाचेन (60 किमी० लम्बा) हिमनद, गंगोत्री हिमनद (39 किमी० लम्बा), जेमू हिमनद (26 किमी० लम्बा) है। यहीं से तिस्ता नदी निकलती है, सिन्धु घाटी का बियाको बलतोरो हिमनद (60 किमी०), हिस्पार व बाइरा हिमनद (50 किमी०) आदि। इसके अलावा रॉकी, आल्पस, एन्डीज के ऊँचे ढालों पर भी ऐसे हिमनदों का विस्तार है।

ii. गिरिपद हिमनद (Piedmont glacier) : पर्वतों से उतर कर जो हिमनद पर्वतों की तलहटी तक चला आता है, उसे गिरिपद हिमनद कहते हैं। अलास्का का मेलस्पाइना (Malaspina) इसी कोटि का हिमनद है। इसका फैलाव प्राय: 4000 वर्ग किमी० में है।

iii. महाद्वीपीय हिमनद (Continental glacier) : जो हिमनद अपने हिमावरण (Icesheets) से सम्पूर्ण महादेश को ढक लेता है, उसे महाद्वीपीय हिमनद कहते हैं। गीनलेण्ड और अण्टार्कटिका में महाद्वीपीय हिमनद अधिक पाये जाते हैं।

प्रश्न 22.
हिमनद अपना अपरदन कार्य किस प्रकार करता है ?
उत्तर :
अपरदन कार्य(Erosional Work) : हिमनद का अधिकांश अपरदन कार्य हिम दबाव के कारण दो रूपों में होता है –
(क) चट्टानों के उत्पाटन द्वारा (Big Pluking) तथा
(ख) चट्टानों के घर्षण द्वारा (By Abrasion)
i. शैलों के उत्पाटन द्वारा : जब हिमनदी की तली में बर्फ चट्टानों की संधियों में जमा हो जाता है तो वह चट्टानो को बड़े-बड़े टुकड़ों में तोड़ दैता है। ये चट्टानी टुकड़े हिम प्रवाह से आगे खिसका दिए जाते हैं। शैलों के उत्पाटन की इस क्रिया में ऊपरी हिम के लम्बवत दबाव का हाथ होता है। यह दबाव चट्टानों में खिंचाव उत्पन्न करता है जिससे संधियाँ चौड़ी हो जाती हैं। हिम जब पिघलता है तो संधियों में जल जमा हो जाता है एवं चट्टानों को तोड़कर खोखला बना देता है। धीरे-धीरे यह खोखला भाग झील में बदल जाता है।

ii. शिलाओं के घर्षण द्वारा : घर्षण का कार्य अकेले हिम द्वारा नहीं हो सकता। यह कार्य हिम में जमे शिलाखण्डों एवं चट्टानी पदार्थों द्वारा होता है। शैलों द्वारा उत्पाटित छोटे-बड़े शिलाखण्ड हिम के साथ खिसकते हैं। ये जब बढ़ते हैं तो तलों एवं किनारों को घिसते हैं। हिमानी की रगड़ से उसकी तलहटी की चट्टानों में खरोंच आ जाती है।

प्रश्न 23.
ड्रमलिन और एस्कर में क्या अन्तर है ?
उत्तर :

ड्रमलिन (Drumlin) एस्कर (Esker)
1. ये हिमनद के थोड़े समय के बाद आगे-पीछे हटने से बनता है। 1. ये हिमनद के अन्तिम सिरे से निकलने वाली तेज धारा के साथ आने वाले अवसादों के जमाव से बनते हैं।
2. ये टीले उल्टे नाव या कटे अण्डे के समान होते हैं। 2. ये टेढ़े-मेढ़े तथा पतले होते हैं।
3. ये कम लम्बे तथा अधिक ऊँचे होते हैं। 3. ये अधिक लम्बे तथा कम ऊँचे होते हैं।

प्रश्न 24.
हिमनद द्वारा किये जाने वाले विभिन्न कार्य क्या हैं ?
अथवा
हिमनद अपने प्रवाह मार्ग में कौन-कौन से कार्य करता है ?
उत्तर :
हिमनद के कार्य (Works of Glacier) : हिमनद के प्रमुख कार्य है :- i. अपरदन या कटाव (Erosion) ii. बहाव या परिवहन (Transportation) और iii. निक्षेपण (Deposition)

  1. अपरदन (Erosion) : घाटी या मार्ग में शिलाखण्डों की सहायता से खरोचने या काटने को कटाव या अपरदन कहते हैं।
  2. परिवहन (Transportation) : अपक्षय से प्राप्त शिलाखण्डों तथा अपरदन से प्राप्त शिला चूर्णों को बहाकर ले जाना परिवहन कहलाता है।
  3. निक्षेपण (Deposition) : परिवर्तित चट्टानों एवं शिलाचूर्णों को आगे ले जाकर समतल या निम्नभूमि पर जमा करने को निक्षेपण कहते हैं।

प्रश्न 25.
हिमनद में दरार पड़ने के क्या कारण हैं ?
अथवा
किन कारणों से हिमनद में दरारें पड़ जाती हैं ?
उत्तर :
हिमनद की दरारें (Crevasses) : कभी-कभी किसी कारणवश हिमनद दूट जाता है जिससे उसमें दरारें पड़ जाती हैं। हिमनद में दरार पड़ने के निम्न कारण हैं :-
i. हिमनद घाटी की असमानता : हिमनद के घाटी की चौड़ाई या तल असमान होता है, अतः हिमनद की तली तथा पार्श्वो पर दबाव पड़ने से हिमनद की सतह पर संकरी दरारें पड़ जाती हैं।
ii. ढाल से नीचे उतरना : जब उन्नतोदर ढाल के कारण हिमनद का ढाल तीव्र हो जाता है तो दरारें पड़ती हैं एवं हिम खण्ड टूट जाते हैं।
iii. हिमनद के विभिन्न भागों की गति में भित्रता : हिमनद के मध्य भाग में उसके पार्शों की अपेक्षा अधिक गति होती है। हिमनद के आर-पार तट के समानान्तर दरार पड़ जाती है। इसी तरह हिमनद के ऊपरी भाग में तली की अपेक्षा अधिक गति होती है जिससे मध्य भाग में आर पार दरार पड़ जाती है।

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प्रश्न 26.
हिमानी अपना अपरदन कार्य किस प्रकार करती है ?
अथवा
हिमनद के अपरदन की कौन-कौन सी विधियाँ हैं ?
अथवा, हिमनद कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर : हिमानी मुख्यतः तीन प्रकार से अपरदन करती है :-
i. उत्पाटन (Plucking) : हिमानी की तली में अपक्षय के कारण बने चट्टानों के बड़े-बड़े टुकड़े गतिशील हिम के साथ फंस कर आगे खिसकते रहते हैं। इसे उत्पाटन क्रिया कहते हैं।
ii. अपघर्षण (Abrasion): हिमानी का अधिकांश अपरदन कार्य अपघर्षण विधि ग्रे ही होता है। किन्तु अकेले हिम में अपघर्षण की अधिक क्षमता नहीं होती है। जब इसमें उत्पाटन द्वारा शिलाखण्ड व कंकड़-पत्थर जुड़ जाते हैं तो घाटी की तली व पार्श्वों को रगड़ने व खरोचने लगते हैं। अपरदन कार्य में हिमानी से पिघला हुआ जल भी सहायता करता है।
iii. सत्रिघर्षण (Attrition) : हिमानी के साथ प्रवाहित होते हुए कंकड़, पत्थर व शिलाखण्डं आपस में भी रगड़ खाने से खण्डित होते हैं एवं घिसते हैं। इस प्रक्रिया को सन्रिर्षण कहते हैं।

प्रश्न 27.
लटकती या निलम्बित घाटी क्या है ?
अथवा
हिमनद लटकती घाटी का निर्माण कैसे करती है ?
उत्तर :
लटकती या निलम्बित घाटी (Hanging Valleys) : मुख्य हिमनद अपनी सहायक नदी की अपेक्षा बड़े होने के कारण अधिक कटाव करती है जिससे मुख्य हिमनद की घाटी सहायक हिमनद की घाटी की अपेक्षा अधिक गहरी होती है। अत: दोनों के संगम स्थल पर सहायक हिमनद की घाटी मुख्य हिमनद की घाटी पर लटकती हुई प्रतीत होती है।

प्रश्न 28.
परस्पर संयुक्त पर्वत प्रक्षेप क्या है ?
उत्तर :
परस्पर संयुक्त पर्वत प्रक्षेप (Interlocking spur) : उच्च पर्वत का जो भाग बाहर निकलकर निम्न भाग में मिल जाता है उसे पर्वत प्रक्षेप कहते हैं। पर्वत प्रक्षेप की आकृति नदी घाटी से ठीक उल्टी होती है। पर्वतीय भाग में कभीकभी नदी के मार्ग में कठोर चट्टानों का अवरोध इस प्रकार पड़ता है कि नदी बाध्य होकर बार-बार टेढ़ी-मेढ़ी होकर बहने लगती है। इस भाग में लम्बवत कटान होने से नदी की घाटी गहरी हो जाती है। ऐसी दशा में नदी के एक ओर के उत्तल तट का पर्वत प्रक्षेप अवतल तट के धंसान में प्रवेश कर जाता है। इस प्रकार दोनों ओर के पर्वत प्रक्षेप एक दूसरे से मिले दिखाई पड़ते हैं। इन्हें परस्पर संयुक्त पर्वत प्रक्षेप (Interlocking Spur) कहते हैं।

प्रश्न 29.
शुष्क क्षेत्रों में वायु के कामों की प्रधानता क्यों होती है ?
उत्तर :
धरातल पर परिवर्तन लाने वाली बाह्म शक्तियों में वायु एक महत्वपूर्ण साधन है। पवन का कार्य अर्द्धशुष्क (Semi-arid) तथा शुष्क (arid) मरूस्थलीय भागों में अधिक होता है। प्रधानतः मरुभूमि अंचल में वायु का कार्य सबसे अधिक होता है, क्योंकि :

  1. इस क्षेत्र में पर्वत, वनस्पति आदि के न होने से वायु प्रवाह में बाधा कम पड़ती है।
  2. आर्द्रता, वृष्टिपात और वनस्पति के अभाव में भूमि का क्षय होता है। मिट्टी शिथिल रहती हैऔर धरातल के ऊपर के बालू पर वायु प्रभाव अधिक होता है।
  3. मरुभूमि अंचल में शीत-ग्रीष्म का तथा रात- दिन के तापान्तर अधिक होने के फलस्वरूप संकुचन और प्रसारण अधिक होने से भौतिक क्रियाएं प्रबल हो जाती हैं।

प्रश्न 30.
वायु के अपक्षरण या अपरदन कार्य से क्या समझते हैं? वायु अपना अपरदन कार्य किन विधियों द्वारा करती है ?
अथवा
पवन के अपरदन की विभित्र विधियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
शुष्क क्षेत्रों में वायु के कार्यो की प्रधानता क्यों होती है? वायु के अपक्षरण कार्य का वर्णन करो।
उत्तर :
शुष्क क्षेत्रों में वायु निम्नलिखित कार्य करती है –
अपक्षरण (Erosion) : शुष्क प्रदेशों में वायु का अपक्षरण कार्य प्रधान होता है क्योंकि पेड़-पौधों के अभाव में वायु तीव्र गति से चलती है तथा बालू एवं धूलकणों को उड़ाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है। वायु द्वारा मुख्यतः यांत्रिक (Mechanical) अपक्षरण होता है। पवन तीन प्रकार से अपक्षरण कार्य करता है।
i. उड़ान या अपवाहन (Deflation) : दैनिक तापान्तर, पाला, वर्षा आदि द्वारा विखण्डित चट्टानों को तेज हवा पर्त दर पर्त उड़ा ले जाती है।
ii. अपघर्षण (Abration) : जब पवन के साथ उड़ते हुए कण किसी चट्टान से टकराते हैं तो दे चट्टान को उसी प्रकार खुरच देते हैं जैसे रेगमाल (Sand paper) से लकड़ी को घिसा जाता है।
iii. सत्निघर्षण (Attrition) : पवन के साथ उड़ते हुए धूलकण मार्ग में पड़ने वाले चट्टानों को घिसने के साथ आपस में रगड़ खाकर स्वयं भी बारीक होते जाते हैं। इस क्रिया को सत्रिघर्षण कहते हैं।

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प्रश्न 31.
वायु के अपवाहन कार्य से क्या समझते हैं ? वायु अपने अपवाहन कार्य द्वारा किस प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण करती है ?
उत्तर :
अपवाहन (Deflation) : दैनिक तापान्तर, वर्षा, पाला आदि विखण्डित चट्टानों को परत दर परत हवा उड़ा ले जाती है, जिसे अपवाहन कहते हैं। इसके द्वारा निम्नलिखित स्थलाकृतियों का निर्माण होता है।
i. ध्रान्ध (Dhand) : मरुभूमि में शिथिल बालू के ढेर में अपवाहन के फलस्वरूप कहीं-कहीं छोटा-बड़ा गड्दा बन जाता है। राजस्थान की स्थानीय भाषा में इस गड्दा को धान्द कहते हैं।
ii. मरुद्यान (Oasis) : मरुस्थलीय भागों में तीव्र वायु प्रवाह द्वारा धरातलीय रेत उड़ा दिये जाते हैं, कभी-कभी रेत किसी स्थान पर जल स्तर तक उड़ा दिये जाते हैं, जिससे मरुद्यान का निर्माण होता है।
iii. हमादा (Hamada) : जब तीव्र वायु किसी प्रदेश से सम्पूर्ण बालू एवं धूल उड़ा ले जाती है तो नीचे नग्न एवं चिकनी चट्टानें विस्तृत क्षेत्र में फैली पायी जाती हैं। ऐसे मरुस्थलों को हमादा कहा जाता है। सहारा एवं लिबिया के मरूस्थलों में ऐसे हमादा अधिक पाये जाते हैं।

प्रश्न 32.
वायु के परिवहन कार्य से क्या समझते हैं ? वायु अपना परिवहन कार्य किस प्रकार करती है ?
उत्तर :
परिवहन कार्य (Transportation work) : अपक्षरण से प्राप्त पदार्थों को पवन एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है। वायु परिवहन का कार्य निम्नलिखित तीन प्रकार से सम्पन्न होता है –

  1. निलम्बन (Suspension) : महीन बालू के कण हवा में लटके हुए या हवा के साथ चलते हैं।
  2. उत्परिवर्तन (Saltation) : बालू के कुछ भाग को हवा आगे-पीछे धकेलती हुई चलती है।
  3. लुढ़कना (Surface creep) : कुछ बालू को वायु धरातल के सहारे लुढ़काते हुए ले जाती है।

प्रश्न 33.
बरखान एवं सीफ में अन्तर लिखो।
उत्तर :

बरखान (Barkhan) सीफ (Sief)
1. बरखान का निर्माण वायु की दिशा में होता है। इनका आकार चापाकर होता है। 1. सीफ अनुदैर्ध्य स्तूप है जिनका विकास वायु की दिशा के समानान्तर होता है।
2. बरखान का विस्तार सामान्यतया 15-30 मी० की ऊँचाई में तथा 50-200 वर्ग मी० के क्षेत्रफल में होता है। 2. सीफ 150-200 मी॰ इंच लंबा तथा कुछ किमी० तक विस्तृत होते हैं।
3. बरखान अस्थायी स्तूप है जिनका निर्माण एक के बाद एक होता रहता है। 3. ये विस्तृत एवं काफी संख्या में एक-दूसरे के समानान्तर विकसित होते रहते हैं।

प्रश्न 34.
ज्यूगेन (Zeugen) और यारडंग (Yardang) में क्या अंतर है ?
उत्तर :

ज्यूगेन (Zeugen) यारडंग (Yardang)
1. इनकी आकृति ढक्कनदार दावात की तरह होती है। 1. यह नुकीले शिखर वाले उठे हुए भाग की तरह होता है।
2. इनका निर्माण उन भागों में होता है जहां कठोर चट्टानों की परत कोमल चट्टानों के ऊपर क्षैजित अवस्था में मिलती है। 2. इनका निर्माण उन क्षेत्रों में होता है जहां कठोर तथा कोमल चट्टान की परत लम्बवत् अवस्था में मिलती है।
3. इनका निर्माण अपक्षय तथा वायु के अपरदन दोनों क्रिया द्वारा होता है। 3. इनका निर्माण वायु के अपरदन द्वारा होता है।
4. इनके बीच की नालियाँ अधिक गहरी तथा कम चौड़ी होती हैं। 4. इनके बीच.की नालियाँ अधिक चौड़ी किन्तु कम गहरी होती हैं।

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प्रश्न 35.
शुष्क प्रदेशो में वायु कैसे कार्य करती है ?
उत्तर :
वायु शुष्क प्रदेशों में अपक्षरण, अपवाहन, निक्षेपण एवं परिवहन द्वारा कार्य करती है।
अपक्षरण कार्य से निर्मित भूदृश्य (Resultant landforms due to Abration) : वायु के अपघर्षण द्वारा छत्रक शिला, द्वीपाभगिरी, ड्राइकाण्टर, यारडंग, ज्यूगेन एवं पाषाण जालकों का निर्माण होता है।
अपवाहन द्वारा निर्मित भूदृश्य (Resultant landforms due to Deflation) : अपवाहन द्वारा धान्द, मरुद्यान एवं हमादा का निर्माण होता है।
परिवहन द्वारा निर्मित भूदृश्य (Resultant landforms due to Transportation) : वायु परिवहन द्वारा पेडीमेण्ट का निर्माण करती है।
जमाव द्वारा निर्मित भूदृश्य (Resultant landform due to Deposition) : वायु जमाव के कार्य द्वारा बालू का स्तूप, तरंग चिन्ह एवं लोयस का निर्माण होता है।

प्रश्न 36.
बहिर्जात बल को समतल स्थापक बल क्यों कहते हैं ?
अथवा
बहिर्जात बल से क्या समझते हो ?
उत्तर :
पृथ्वी की सतह या धरातल पर उत्पन्न होने वाले बल को बहिर्जात बल (Exogenetic Force) कहत हैं। इस बल द्वारा धरातल पर समतल स्थान की प्रक्रियाओं को बहिर्जात प्रक्रियाएँ (Exogenetic processes) कहत हैं। भूसंचलन, भूकम्प, ज्वालामुखी आदि पृथ्वी के अन्तर्जात बल हैं जहाँ एक तरफ भूतल पर असमानताएँ तथा विषमताएँ उपस्थित करते रहते हैं वहीं दूसरी तरफ बहिर्जात बल इन विषमताओं को दूर करने का प्रयास करता है। इसीलिए बहिर्जात बल को समतल स्थापक बल भी कहते हैं।

प्रश्न 37.
बहिर्जात बल के प्रमुख अभिकर्ता कौन-कौन से हैं ?
उत्तर :
ये वे प्रक्रियाएँ हैं जो पृथ्वी के धरातल पर काम करती हैं, परिणामस्वरूप नयी स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। इन प्रक्रियाओं के अंतर्गत अपक्षय अथवा अपक्षरण, वृहतक्षरण, अपरदन, परिवहन तथा निक्षेप आदि होता है। ये कार्य नदी, हिमनदी, वायु तथा सागरीय धाराओं द्वारा किये जाते हैं। ये सभी प्रक्रियाएँ भू-पृष्ठ को समतल करने का काम करती हैं। ये प्रक्रियाएँ सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करती है और इसी की सहायता से काम करती है।

प्रश्न 38.
हमादा तथा रेग क्या हैं ?
उत्तर :
हमादा या चट्टानी मरुस्थल (Hamada) : ऐसे मरुस्थल जिनकी सतह पर मुख्यत: नग्न चट्टाने पायी जाती है, जहाँ चट्टानों का ऊपरी आवरण, बालू और धूल हवा द्वारा उड़ा लिया जाता है हमादा कहलाता है। वायु के अपवाहन तथा अपघर्षण कार्य से चट्टानी सतह पर कहीं गड्दु तो कहीं टीले बन जाते हैं। मरुस्थल का यह प्रकार विशेषत: सहारा में पायी जाती है।
रेग या पथरीला मरुस्थल(Reg) : ये ऐसे मरुस्थल हैं जिनकी सतह से महीन बालू उड़ गयो होती है और धरातल पर केवल छोटे-छोटे पत्थर तथा बजरी शेष रह गयी होती है। सहारा में ऐसी मरुभूमियाँ पायी जाती हैं। इसे बजरी मरुस्थल भी कहते हैं।

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प्रश्न 39.
किसी आदर्श नदी के प्रवाह मार्ग को कितने भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर :
किसी आदर्श नदी के मार्ग (Course) को हम निम्न तीन भागों में बाँट सकते हैं :-

  1. पर्वतीय भाग, ऊपरी भाग या युवावस्था
  2. मैदानी भाग, मध्य भाग या परिपक्वावस्था
  3. डेल्टाई भाग, निम्न भाग या वृद्धावस्था।

गंगा नदी में ये तीनों भाग स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते हैं। गंगा नदी का ऊपरी भाग गंगोत्री से हरिद्वार तक, मध्य भाग हरिद्वार से राजमहल की पहाड़ी तक तथा निम्न या डेल्टाई भाग राजमहल की पहाड़ी से बंगाल की खाड़ी तक है।

दीर्घउत्तरीय प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 5 MARKS

प्रश्न 1.
हिमनद के जमाव द्वारा निर्मित भू-दृश्यों का वर्णन करो।
अथवा
हिमनद के निक्षेपण से बनने वाली स्थलाकृतियों का वर्णन करो।
अथवा
हिमनद जलोढ़ द्वारा निर्मित प्रमुख निक्षेपणात्मक स्थालाकृतियों का चित्रसहित वर्णन कीजिए।
उत्तर :
तापमान बढ़ने से हिमानी की बर्फ पिघलने लगती है तो हिमानी का वहीं पर अन्तिम भाग प्रारम्भ हो जाता है। हिमानी का जमाव कार्य नदी से पूर्णतः भिन्न है। हिमानी के जमावों से बननेवाली स्थलाकृतियाँ निम्नलिखित हैं-
i. हिमोढ़ (Moraines): जब हिमनदी पिघलने लगती है या पीछे हटने लगती है तो वह अपने साथ लायी हुई सामग्री का निक्षेप करने लगती है जिसे हिमोढ़ कहते हैं। हिमोढ़ में रेत के महीन कणों से लेकर 15 से 20 मीटर व्यास वाले विशाल शिलाखण्ड सम्मिलित होते हैं। इन्हे ‘टिल’ (till) कहते हैं। हिमोढ़ निम्नलिखित प्रकार के होते हैं।

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(क) पार्शिवक हिमोढ़ (Lateral Moraines) : हिमानी के दोनों किनारों पर निक्षिप्त हिमोढ़ों को पार्श्विक हिमोढ़ कहते हैं।
(ख) अंतस्थ हिमोढ़ (Terminal Moraines) : हिमानी जहाँ पिघलती है, वहाँ हिमोढ़ों की एक कटक (Ridge) बन जाती है। जैसेजैसे हिमानी पिघलती है, वैसे-वैसे एक के बाद एक नयी कटक बनती जाती है। इन्हें अंतस्थ हिमोढ़ कहते हैं।
(ग) मध्यस्थ हिमोढ़ (Medial Moraines) : दो हिमानियों का संगम होने पर दो पार्श्विक हिमोढ़ एक दूसरे से मिल जाते हैं। इसे मध्यस्थ हिमोढ़ कहा जाता है।
(घ) तलस्थ हिमोढ़ (Ground Moraines) : कुछ मलवे को हिमानी अपने साथ नहीं ढो पाती है, वह उसके तल पर जमा होता रहता है इससे तलस्थ हिमोढ़ बन जाते हैं।

ii. हिमोढ़ टीले या टिब्धे (Dumlins) : ये हिमोढ़ों के निक्षेपण से बनते हैं। ये चौड़े कम और लम्बे अधिक होते हैं। इनकी आकृति टोकरी मे रखे अण्डों जैसी होती है। इनकी आकृति की तुलना ह्वेल की पीठ से की जाती है। ये टीले 50 मीटर तक ऊँचे, एक किलोमीटर लम्बे तथा 0.5 कि०मी० चौड़े हो सकते हैं। इन टीलों का ढाल एक ओर तीव्र तथा दूसरी ओर मंद होता है। इनकी लम्बाई हिमानी प्रवाह की दिशा के समानान्तर होती है।

सरिताहिमी निक्षेप (Fluvio-Glacial Deposits) : निक्षेपण कार्य अकेले हिमानी द्वारा ही नहीं होता अपितु हिमानी के पिघलने पर बना जल भी इसमें सहायक होता है। हिमानी और बहते जल दोनों की संयुक्त क्रिया के द्वारा निम्नलिखित स्थलाकृतियाँ बन जाती है –
(क) हिमगर्तिका या केतली (Icehole or Kettle) : सरिता हिमी निक्षेपों में बने छोटे-छोटे गड्दु हिमगर्तिका या केतली हैं। हिमानी के पिघलते समय बर्फ के कुछ बड़े-बड़े खण्ड अवसादों में दबे रह जाते हैं। कुछ समय बाद ये पिघल जाते हैं। इस तरह अवसादों में गड्दे बन जाते हैं। इनमें पानी भरे रह जाने पर छोटी-छोटी झीलें बन जाती हैं, जिन्हें केतली कहते हैं।

(ख) एस्कर या हिमनदमृद कटक (Eskar) : ये हिमजलीय प्रक्रिया से बनते हैं। ये रेत और बजरी की परतों से बनी संकरी और टेढ़ी-मेढ़ी कम ऊँचाई की कटक (Ridge) होती हैं। ये देखने में प्राकृतिक बंध जैसे लगते हैं। हिमानी के पिघलने से अवसाद वहीं जमा हो जाते हैं। ये उत्तरी अमेरिका, यूरोप, उत्तरी एशिया के हिमनदी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। यूरोप में इनके ऊपर से होकर सड़कें बनाई जाती हैं।

(ग) हिमानीधौत मैदान (Outwash plain) : हिमानी के पिघलने से जल की धाराएँ बहने लगती हैं। ये जल धाराएँ अपने साथ अंतस्थ हिमोढ़ों के महीन अवसादों को बहाकर ले जाती हैं। इन अवसादों के जमा होने से ऊँची-नीची भूमि समतल हो जाती है और डेल्टा की तरह एक मैदान बन जाता है, यही हिमानीधौत मैदान कहलाता है।

(घ) घाटी हिमोढ़ (Valley Moraine) : यह घाटी की दिवारों के बीच तथा उसके निचले भाग में निक्षेपित अवसादों से बनता है। हिमानी के पिघलने से बनी जलधाराएँ हिमोढ़ के पथरीले भाग को बहा ले जाती है। इन पथरीले अवसादों से घाटी हिमोढ़ बनते हैं।

(ङ) केम (Kame) : ये हिमानीधौत मैदानों में रेत और बजरी से बने गोल टीले हैं। ये 35-60 मीटर तक ऊँचे हो सकते हैं।

(च) सुदूर फैले या विस्थापित शिलाखण्ड (Erratic Blocks) : कभी-कभी महाद्वीपीय हिमानी अपने साथ विशाल आकार का पत्यर मैदानी भाग तक बर्फ के साथ खींचकर ले आती है। वूँकि यह अपने जन्मस्थान से सैकड़ों किलोमीटर दूर तक बहाए जाते हैं, अत: इन्हें विस्थापित शिलाखण्ड कहते हैं।

(छ) केतलीनुमा जमाव (Glacial kettle) : अन्तिम हिमोढ़ क्षेत्र में जमे हिमोढ़ के बीच प्राकृतिक रूप से छोटे-छोटे गड्दे पाये जाते हैं जो शंकु की तरह होते हैं। इनमें बड़े-बड़े हिमखण्ड होते हैं जो प्रीष्मऋतु में पिघलकर पीछे हट जाते हैं। ये गड्दे पानी के गड्दु के रूप में बदल जाते हैं। इसे केतलीनुमा जमाव या गड्दे कहते हैं।

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प्रश्न 2.
पवन एवं बहते हुए जल के संयुक्त कार्य द्वारा उत्पत्र स्थलरूपों का वर्णन कीजिए।
अथवा
शुष्क क्षेत्रों में वायु एवं जलप्रवाह के संयुक्त प्रवाह से बनी स्थल आकृतियों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर :
पवन एवं बहते हुए जल के संयुक्त कार्य द्वारा उत्पन्न स्थलरूप :- मरुस्थलीय प्रदेशों में अचानक वर्षा से उत्पन्न अल्पकालिक तथा आंतरिक नदियों का कार्य भी पवन के साथ संयुक्त रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है। इनके कटाव एवं जमाव की सम्मिलित क्रिया से निम्नलिखित महत्वपूर्ण स्थलरूपों का निर्माण होता है –
i. प्लाया (Playa) : शुष्क या अर्द्धशुष्क प्रदेशों में पर्वतों से घिरी बेसिन को बालसन (Balson) कहते हैं। चारों तरफ स्थित पर्वतों से अनेक नदियाँ निकलकर बालसन में जाती हैं। इनमें से कुछ नदियाँ मार्ग में ही सूख जाती हैं तथा कुछ बालसन के केन्द्र में पहुँच जाती हैं, जिसके केन्द्र में जल एकत्रित होने से अल्पकालीन झीलों का निर्माण होता है। बालसन के केन्द्र में स्थित इन अल्कालीन झीलों को प्लाया (Playa) कहते हैं।

प्लाया का क्षेत्रफल कुछ वर्ग किलोमीटर से लेकर सैकड़ों वर्ग किलोमीटर तक हो सकता है। तारीम बेसिन में स्थित लेपनार झील प्लाया का उदाहरण है। अरब के मरुस्थल में स्थित प्लाया झीलों को खाबरी (Khabari) एवं ममलाहा (Mamlaha) तथा सहारा के मरूस्थल में शद्स (Shatts) कहते हैं। जब प्लाया में लवण की मात्रा बढ़ जाती है तो उसे सैलीना (Salina) कहा जाता है।

ii. बजाडा (Bajada) : मरुस्थलीय प्रदेशों में पर्वतीय अग्रभाग तथा प्लाया के मर्ध्य स्थित मन्द ढाल वाले मैदान का निचला भाग बजाडा कहलाता है। यह एक निक्षेपित मैदान है, जिसका निर्माण प्लाया के किनारे पर कई जलोढ़ पंखों के मिलने से होता है। बजाडा का ढाल ऊपरी भाग में 8° से 10° तक रहता है तथा निचले भाग में प्लाया के पास 1° से भी कम होता है। ऊपरी भाग में निक्षेपित मलवा की मोटाई कम एवं निचले भाग में अधिक रहती है।

iii. शैलपद या पेडीमेण्ट (Pediment) : बालसन में पर्वतीय अग्रभाग तथा प्लाया के मध्य स्थित सामान्य ढाल वाले मैदान को शैलपद या पेडीमेण्ट कहते हैं। पेडीमेण्ट का निर्माण पर्वतीय अग्रभाग के निम्नीकरण (Degradation) से होता है। इस प्रकार पेडीमेण्ट एक अपरदित शैल सतह वाले मैदान का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका ढाल पर्वतीय अग्रभाग से दूर जाने पर कमश: मंद होता चला जाता है।

iv. वाडी (Wadi) : मरुस्थलों में अल्पकालिक जलप्रवाह के फलस्वरूप निर्मित घाटियाँ सहारा में वाडी (Wadi) कहलाती है। इस प्रकार की घाटियों को अमेरिका में वाश (Washes) कहते हैं।

प्रश्न 3.
नदी द्वारा पर्वतीय भाग में कटाव या अपरदन से निर्मित भू-दृश्यों का वर्णन करो।
अथवा
नदी के कटाव द्वारा निर्मित भू-दृश्यों का वर्णन करो।
अथवा
नदी अपने युवावस्था में किन-किन भू-आकृतियों की रचना करती है? सचित्र वर्णन करो। अथवा, पर्वतीय या ऊपरी भाग में नदी के अपरदन से बनने वाले स्थलरूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
नदी पर्वतीय भाग में निम्नलिखित भू-दृश्यों का निर्माण करती है :-
i. V आकार की घाटी (V-shaped valley) : नदी जब पर्वतीय अवस्था में रहती है तो ढाल अधिक होने के कारण नदी का वेग अधिक होता है। अतः नदी क्षैतिज अपरदन कम करती है। नदी द्वारा लम्बवत कटाव अधिक होता है। अत: नदी ‘ V ‘ अक्षर जैसे आकार की घाटी का निर्माण करती है। इस घाटी के किनारे खड़े एवं ऊँचे ढाल वाले होते हैं।

ii. गार्ज (Gorge) : पर्वतीय अवस्था में नदी जब बहुत संकरी और गहरी घाटी का निर्माण करती है तो उनके किनारे खड़े ढाल वाले होते हैं, और उसे गार्ज कहते हैं। इसका निर्माण नदी द्वारा तीव्र गति से निम्न प्रवाह होने पर होता है। सिन्धु, कोसी, सतलुज एवं बह्मपुत्र नदियों में कई स्थानों पर खड्ड या गार्ज का निर्माण हुआ है।

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iii. कैनियन (Canyon) : कैनियन गार्ज से कुछ भिन्न होता है। कैनियन में गार्ज जैसे घाटी की लम्बाई कुछ किमी० से कई किमी० तक होती है। कैनियन में अपने धरातल से सैकड़ों मीटर की गहराई में खड़ी ढालों के बीच गहरे मोड़ बनाती हुई बहती है। संयुक्त राज्य अमेरिका की को लोरेडो नदी पर कैनियन का निर्माण हुआ है जिसे प्राण्ड कैनियन कहते हैं।

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iv. जल प्रपात (Water Fall) : पर्वतीय अवस्था में जब नदी के मार्ग में मुलायम और कठोर चट्टाने क्षैतिज अवस्था में पायी जाती हैं तो नदी मुलायम चट्टान का अपरदन कर देती है तथा कठोर चट्टान के ऊपर से पानी नीचे की ओर गिरने लगता है। इस प्रकार खड़े ढ़ाल के सहारे जल के गिरने की दशा को जलम्रपात कहते हैं।
जल प्रपात के लिए आवश्यक है कि i. चट्टानों की कठोरता में अन्तर हो, ii. चट्टानों के स्तर उद्गम की ओर झुके हों iii. चट्टानों की परतें क्षैतिज अवस्था में हो एवं iv. नदी के मार्ग में अंश की क्रिया सम्पादित हो।

v. द्रुतवाह/क्षिप्रिका (Rapids) : जब नदी के मार्ग में कोमल एवं कठोर चट्टानें लम्बवत स्थिति में पायी जाती हैं तो नदी के कटाव द्वारा मुलायम चट्टाने कटकर बह जाती हैं एवं कठोर चट्टाने मार्ग में खड़ी रहती हैं। नदी का जल इन लम्बवत खड़ी कठोर चट्टानों से ऊपर उठकर आगे बढ़ता है। ऐसी स्थिति में पानी का प्रवाह आगे की ओर न होकर पीछे की ओर होने लगता है जिसे द्रुतवाह (Rapids) कहते हैं।

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vi. जलगर्तिका (Pot Holes) : पर्वतीय मार्ग में नदी के द्वारा मुलायम चट्टाने काटकर बहा ली जाती है। इन चट्टानी भाग में गड्दे बन जाते हैं। कालान्तर में नदी के साथ प्रवाहित होने वाले ककड़ और पत्थर इन गड्दों को काटकर चौड़ा तथा गहरा कर देते हैं। इसे जल गर्तिका (Pot Holes) कहते हैं।

vii. नदी अपहरण (River capture) : नदी अपहरण की दशा निरन्तर शीर्षवर्ती कटाव की क्रिया बढ़ते रहने पर विकसित होती है। इसका सम्बन्ध नदी की अपरदन क्षमता पर विकसित होता है। नदी अपहरण जल विभाजन पर विकसित होता है। नदी जल विभाजक को काटकर अपनी घाटी का प्रसार करने लगती है। दूसरी ओर स्थिर कमजोर नदी को शक्शिाली नदी हड़प लेती है। इसे नदी अपहरण कहते हैं।

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प्रश्न 4.
चित्र की सहायता से नदी के जमाव द्वारा बनाये गये तीन भू-दृश्यों का वर्णन करो।
अथवा
चित्र की सहायता से नदी निक्षेपण द्वारा बनी स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मैदानी या मध्यवर्ती भाग में नदियों के निक्षेपण कार्य द्वारा बनने वाले प्रमुख स्थलरूपों का वर्णन कीजिए।
अथवा
नदी निक्षेपण से बनने वाली स्थलाकृतियों का वर्णन करो।
उत्तर :
नदी के अवसाद कंकड़, पत्थर, रोड़े, गोलाश्म, बजरी, बालू, विविध प्रकार की महीन मिट्टी एवं रासायनिक पदार्थ आदि मैदानी भाग एवं डेल्टाई भाग में अनुकूल दशाएँ मिलने पर जमा होते रहते हैं। इनके जमाव द्वारा निम्न भूआकृतियाँ विकसित होती हैं :-
i. जलोढ़ शंकु एवं जलोढ़ पंख (Talus/Alluvial Cone and Alluvial Fan): नदी जब मैदानी भाग में पहुँचती है तो उसके ढाल में कमी आती है। नदी पर्वतपदीय भाग में त्रिकोणाकार या पंखाकार जमाव फैलाकर बिछाती है। छोटी सरिताएँ एवं नाले शंकु की आकृति के तेज ढाल वाले त्रिकोणाकार जमाव करते हैं। इन्हें ही जलोढ़ शंकु (Talus/Alluvial cone) कहते हैं। दूसरी ओर बड़ी नदियाँ पर्वतीय भाग में कंकड़, पत्थर व मोटे कण वाले जमाव पंखाकार स्वरूप में इकट्ठा करते हैं। घटटी के भीतरी भाग में मोटे कण जमा होते हैं। बजरी, बालू एवं मिट्री के जमाव बाहर की ओर फैले हुए पंख की तरह बड़े त्रिकोण के रूप में होते हैं, इसे जलोढ़ पंख कहते हैं।

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ii. नदी के मोड़ या विसर्प (River Meanders) : नदी जब मैदानी भाग में पहुँचती है तो एक तट का कटाव करती है एवं दूसरे तट पर जमाव करती है। इस प्रकार नदी का मार्ग धीरे-धीरे सर्पाकार बन जाता है। मैदानी भाग में मोड़ों को विसर्प कहते हैं। ऐसे मोड़ एवं घुमावदार विसर्प निरन्तर अधिक मोड़ या बल खाते रहते हैं।

iii. गोखुराकार या धनुषाकार झील (Oxbow Lake) : जब विसर्प या मोड़ निरन्तर बढ़ता जाता है तो ऐसे विसर्पो के आमने-सामने के भागों में कटाव होता रहता है। नदी अब विसर्पाकर मार्ग से बहकर सीधे रास्ते में बहने लगती है तो विसर्प या विशाल मोड़ वाला भाग धनुष या विशाल गोलाकार रूप में वहाँ बचा रहता है। यह मुख्य नदी से अलग हुआ भाग होता है। वर्षा ॠतु में यहाँ पर पानी भर जाता है। इसे गोखुर या धनुषाकार झील कहते है। आदर्श गोख़ुर झीलें मिसीसिपी नदी की निचली घाटी में पायी जाती हैं।

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iv. प्राकृतिक तटबन्ध (Natural Levee) : बाढ़ के समय बहाकर लाये गए अवसाद नदी के दोनों किनारों से कुछ दूर दोनों ओर जमा होते रहते हैं। इस प्रकार नदी के दोनो किनारें नदियों से ऊँचे उठने लगते हैं। यहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ के समय अधिक अवसाद मुख्य धारा से दोनों ओर फैलता रहता है। इस प्रकार किनारे पर ऊपर उठे भाग प्राकृतिक तटबन्ध कहलाते हैं।

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v. बाढ़ का मैदान (Flood plain) : वर्षा ऋतु में जब बाढ़ आती है तो नदी की घाटी के दोनों ओर विशाल मात्रा में जलोढ़ मिट्टी का जमाव होता है। इससे नदी घाटी के दोनों ओर स्थित निम्न भूमि ऊपर उठकर समतल मैदान में बदल जाते है, इसे बाढ़ का मैदान कहते हैं। इस प्रकार के मैदानों का विकास मध्य-निम्न गंगा नदी की घाटी, ह्नांगहो, यांगटिसीक्यांग और अन्य बड़ी नदियों की घाटियों से हुआ है। ये बाढ़ के मैदान अत्यधिक उपजाऊ और घने-बसे होते हैं।

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प्रश्न 5.
चित्र की सहायता से नदी द्वारा डेल्टाई मार्ग में बनाये गये विभिन्न प्रकार के भू-दृश्यों का वर्णन करो।
अथवा
नदी के अपक्षरण द्वारा बनने वाली किन्हीं दो स्थलाकृतियों का वर्णन करो।
उत्तर :
नदी अपनी अन्तिम अवस्था में अपनी परिवहन क्षमता लगभग खो देती है और अपने साथ बहाकर लाये गए मलवे का जमाव करने लगती है। नदी की मुख्य शाखा कई उपशाखाओं में विभाजित हो जाती है। इस प्रकार नदी निम्न भू-दृश्यों का निर्माण करती है :-
i. डेल्टा (Delta) : नदी अपनी अन्तिम अवस्था में समुद्र के पास अथवा समुद्र से मिलने से पूर्व अपने साथ बहाकर लाये गये अवसाद का जमाव करती है। अवसाद का जमाव अधिक होने से नदी की मुख्य शाखा कई वितरिकाओं में बँटकर प्राय: त्रिकोणाकार मैदान का निर्माण करती है। इसे डेल्टा (Delta) कहते हैं।
डेल्टा के प्रकार : सामान्यत: आकृति के आधार पर डेल्टा निम्न प्रकार के होते हैं :-
(a) चापाकार डेल्टा (Arcuate Delta) : ऐसे डेल्टा का अग्र भाग चापाकार या धनुषाकार होता है। अधिकांश नदियाँ प्राय: इसी प्रकार के डेल्टा का निर्माण करती हैं। नदी की मुख्य शाखा कई उपशाखाओं में बँट जाती हैं। नदी धारा के दोनों ओर एवं सागर से मिलने के स्थान पर मलवे का जमाव बराबर मात्रा में करती है। इससे डेल्टा त्रिकोणाकार होने के साथ आगे की ओर चापाकार होने लगता है।

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(b) पंजाकार डेल्टा (Bird’s foot Delta) : जब नदी की अन्तिम घाटी में महीन भौतिक अवसाद कम एवं रासायनिक अवसाद अधिक हो साथ ही समुद्र के तट व मुहाने पर शान्त दशाएँ पाई जाएँ तो नदियों की मुख्य शाखा के पास ही अधिक रासायनिक पदार्थ का जमाव होता रहता है। ऐसी दशा में अन्य शाखाओं पर जमाव कम गति से होता है। इस प्रकार के डेल्टा की आकृति पक्षी के पंजे जैसे होती है। उदाहरणस्वरूप मिसीसिपी नदी की डेल्टा पंजाकार डेल्टा है।

ii. एस्चुरी (Es, ‘lary) : जब नदी के मुहाने के पास समुद्र की जल धारा काफी तीव्र रहती है तो महाने पर नदी द्वारा जमा किया गया अवसाद मुख्य घाटी की धारा के साथ-साथ कुछ दूर तक सागर की ओर फैल जाता है। नदी एक धारा के रूप में सीधे सागर में गिरती है। ऐसी नदी मुख को एस्वुरी या मुहाना कहते हैं। भारत की नर्मदा, ताप्ती नदियाँ डेल्टा का निर्माण न करके सिर्फ एस्चुरी का निर्माण करती हैं।

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iii. बालू भित्ति एवं बालू द्वीप (Sand Bars and Sand Island) : कुछ नदियाँ अपने साथ चीका एवं दोमट मिट्टी के साथ-साथ बालू के कण भी लाती रहती हैं। साथसाथ समुद्री लहरों द्वारा भी मुहाने पर बालू इकट्ठा होता है। इस प्रकार अपतटीय समुद्र में अवसादों के जमा होते रहने से बालू के द्वीप का निर्माण होता है। ब्रहमपत्र नदी में ऐसे स्थायी बालू के द्वीप पाये जाते हैं।

iv. वितिरिका (Distribuary) : मुहाने के पास नदी के अत्यधिक जमाव के कारण उसकी मुख्य शाखा कई उपशाखाओं में विभाजित होकर वितिरिका का निर्माण करती है। यह उप-शाखा मुख्य नदी को छोड़ देती है। जब नदी की निचली घाटी का ढाल समान रहता है एवं अवसाद का जमाव अधिक होता है, तभी वितिरिकाएँ निर्मित होती हैं।

प्रश्न 6.
नदी के अपक्षरण या अपरदन कार्य से क्या समझते हैं ? नदी अपरदन कार्य किस प्रकार करती है ? अथवा, नदी के घर्षण और घोल विधि से क्या समझते हो ?
उत्तर :
अपरदनात्मक कार्य (Erosional work) : नदी की धारा अपनी तली व तटों को काटती हुई प्रवाहित होती है। इसे अपक्षरण या कटाव (Erosion) कहते हैं। नदियों का अपक्षरण कार्य मुख्यत: चार प्रकार से होता है।
i. जलदाब क्रिया (Hydraulic action) : पर्वतीय अंचलों में नदी की धारा की प्रबलता के कारण शिलाओं के छोटे-छोटे खण्ड हो जाते हैं और बहुत दूर तक बहाये जाते हैं, इसे जलदाब क्रिया (Hydraulic action) कहते हैं।

ii. अवर्धण (Corrosion) : नदी की धारा के साथ छोटे-छोटे शिलाखण्डों के कारण अनेक छोटे-छोटे गड्दु (Pot holes) हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को अवर्षण (Corrosion) कहते हैं।

iii. सत्निघर्षण (Attrition) : नदियों द्वारा बहा कर ले जाते हुए शिलाखण्डों एवं शिलाचूर्णों का आपस में तथा तल (Bed) से रगड़ (Attrition) खाना, फलसूप शिलाखण्डों के टूट-टूट कर गोल और चिकना होना तथा अन्त में चूर-चूर हो जाना।

iv. घोलीकरण : घोलीकरण क्रिया के अन्तर्गत कोई नदी अपने अवसादों को जल में घुलाकर निलंम्बित (SUSpended) रूप में अपरदन करती है। यह क्रिया वहाँ प्रमुखता से होती है, जहाँ पर घुलनशील चट्टानें विद्यमान होती हैं। यही कारण है कि कार्स्ट प्रदेशों (Karst Regions) में यह अपरदन की प्रमुख प्रक्रिया है।

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प्रश्न 7.
नदी का परिवहन (Transportation) कार्य क्या है ? नदी अपना परिवहन कार्य किस प्रकार करती है ?
उत्तर :
परिवहन कार्य (Transportation Work) : अपरदन से प्राप्त पदाथों को नदियाँ काट कर बहा ले जाती हैं। इसे परिवहन (Transporation) कहते हैं।
बहकर जाने वाले शिला चूर्ण नदियों के बोझ या भार हैं जो चार निम्नलिखित प्रकार से होते हैं :
i. घोल क्रिया (Load in solution): नदी की धारा में पदार्थ घुलकर बह जाते हैं। इसे Solution कहते हैं। चूना पत्थर (Limestone) क्षेत्र में और सेंधा नमक (Rock Salt) क्षेत्र में यह प्रक्रिया अधिक होती है।

ii. निलम्बित प्रतिक्रिया (Load in suspension) : छोटे-छोटे पदार्थ जैसे बालू नदी की धारा में चकाकार रूप में प्रभावित होते है और एक स्थान से दूसरे स्थान पर उल्पलावि रूप में जाते है तथा इसी रूप में नदी की धारा के साथ बहते है, इसे घसान (Suspension) कहते हैं।

iii. नदी तल के साथ सघर्षण (Saltation) : कंकड़-पत्थर नदी के जल में ऊपर-नीचे होने लगते हैं और अन्त में नदी की धारा के साथ बहते हैं। इसे सघर्षण (Saltation) कहते हैं।

iv. तल प्रवाह (Traction) : इस प्रक्रिया में भारी पदार्थ जैसे कंकड़ के टुकड़े, पत्थर आदि नदी की धारा की दिशा में परिवहन शक्ति के कारण तल के साथ प्रवाहित होते हैं।

नदी में ककड़, पत्थर, मिट्टी, बालू इत्यादि की शक्ति जल की मात्रा, जल का वेग तथा चट्टानों के ढोने के आकार पर निर्भर करती है। इस कारण नदी का परिवहन कार्य सदा एक-सा नहीं रहता।

प्रश्न 8.
हिमनद के कटाव द्वारा किस प्रकार के भू-दृश्यों का निर्माण होता है?
अथवा
हिमनद के अपरदनात्मक स्थल रूपों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
पर्वतीय हिमनद के कटाव द्वारा निर्मित भू-दृश्यों का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर :
हिमानी अपरदन से बनी स्थलाकृतियां निम्न प्रकार हैं :- (Landforms created by the erosional work of glacier)
i. हिमविदर (Crevasses) : हिमनदी के विभिन्न भागों में हिम की गति भी भिन्न होती है। उदाहरणतया, जब हिमनद किसी तीन्न ढाल पर चलती है तो हिम के ऊपरी भाग में गति अधिक होती है तथा निचला भाग जो धरातल पर होता है, मन्द गति से आगे बढ़ता है। इससे हिम के ऊपरी भाग में इसके आर-पार विदरे या दरारें पड़ जाती हैं, जिन्हें हिमविदर कहते हैं।

ii. हिमदर अथवा बर्गश्रुण्ड (Bergehrund) : घाटी हिमनद का ऊपरी सिरा जब हिम-क्षेत्र से बाहर निकल आता है तो वहाँ एक विशाल हिमदर बन जाना है जिसे बर्गश्रुण्ड कहते हैं।

iii. हिम गहवर अथवा सर्क (Cirque) : यह हिमनद के अपरदन द्वारा उत्पन्न हुई ऐसी स्थलाकृति है जो दूर से अर्ध-गोलीय रंगमंच (Amphi-theater) अथवा गहरी सीट वाली आराम कर्सी (Armchair) जैसी दिखाई देती है।

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iv. श्रृंग (Horn) : जब कई हिम गहवर उच्च पर्वतीय भाग को चारों ओर से काटना आरम्भ कर दे तो वहाँ बीच में एक नुकीली चोटी का निर्माण होता है जिसे पिरैमिडल चोटी या श्रृंग कहते हैं। स्विस आलप्स का मैटरहार्न (Materhorn) विश्व में सबसे प्रसिद्ध श्रृंग है। हिमालय पर्वत में स्थित त्रिशूल पर्वत भी श्रृंग का उत्तम उदाहरण है।

v. कॉल (Col) : यदि किसी पर्वत के दोनों ओर सर्क की अपरदन क्रिया लगभभ एक ही ऊँचाई पर हो जाए तो उन सर्को के पिछले भाग एक दूसरे से मिल जाते हैं और पर्वत के आर-पार दर्रा-सा बन जाता है। इस दर्र को कॉल कहते हैं।

vi. कंघीनुमा कटक (Comb Ridge) : जब एक पर्वतीय कटक के दोनों ढालों पर हिमनदियाँ अनके सर्क बना देती हैं तब कंघीनुमा कटक का निर्माण होता है। अधिक अपरदन के कारण तेज नुकीली सुइयाँ खड़ी दिखाई देती हैं, जिन्हें एरीस् (Arete) कहते हैं।

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vii. हिमनद श्रेणी तथा द्रोणी झील : हिमनदियों द्वारा अपने तल का घर्षण करने से हिमनद द्रोणी का निर्माण होता है। यह घाटी हिमानी का एक मार्ग ही है। यदि हिमनद द्रोणी जल से भर जाता है तो द्रोणी झील की उत्पत्ति होती है।

viii. फियोर्ड (Fiord) : जो हिमानी द्रोणी समुद्र के पास बनती है, वह समुद्र जल से भर जाती है इसे फियोर्ड कहते हैं।

ix. U आकार की घाटी (U-shaped valley) : हिमनदी अपनी घाटी स्वयं नहीं बनाती, बल्कि पूर्व स्थित नदियों की V-आकार की घाटी से होकर बहती है। कालान्तर में हिमानी अपने किनारों को काटने लगती है और निरन्तर कटाव से उस घाटी का आकार U जैसा हो जाता है।

x. लटकती घाटी (Hanging valley) : नदियों की भाँति हिमनदी की भी सहायक हिमनदियाँ होती हैं और वे मुख्य हिमनदी के साथ आकार मिलती हैं। मुख्य हिमनदी सहायक हिमनदियों की अपेक्षा अपनी घटटी को शीघ्रता से अधिक गहरा करती है और मुख्य हिमनदी तथा सहायक हिमनदी के संगम स्थल पर तीव्र ढाल पैदा हो जाता है। जब बर्फ पिघलती है तो सहायक हिमनदी का जल मुख्य हिमनदी की घाटी में जल-प्रपात के रूप में गिरने लगती है तथा सहायक हिमनदी की घाटी मुख्य हिमनदी की घाटी में लटकती हुई प्रतीत होती है, इसे लटकती हुई घाटी कहते हैं।

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xi. भेड़शिला अथवा भेड़-पीठ शैल (Sheep rocks or roche Moutonnes): ऐसे ऊभार जिसके एक और हल्का ढाल हो, भेड़ शिला कहते हैं। दूर से देखने पर यह आकृति बैठी हुई भेड़ों की पीठ जैसी दिखाई देती है। अत: इसे भेड़-पीठ शैल भी कहा जाता है।

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प्रश्न 9.
नदी की विभित्र अवस्था के कार्यों का तुलनात्मक वर्णन कीजिए।
उत्तर :
नदी की तीन अवस्थायें होती है –

  1. पर्वतीय भाग या युवावस्था
  2. मैदानी भाग या परिपक्वावस्था
  3. डेल्टाई भाग या वृद्धावस्था।

नदी अपने तीनों रूपों में अलग-अलग कार्य करती है, जिसे निम्नलिखित रेखाचित्र द्वारा समझाया जा सकता है –

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प्रश्न 10.
हिमनद किसे कहते हैं ? आकार के आधार पर हिमनदों को मुख्य रूप से कितने भागों में वर्गीकृत किया गया है ?
अथवा
हिमनदी क्या है? विभित्र प्रकार के हिमनदियों का वर्णन करो। ग्लेशियर कैसे कार्य करता है ?
उत्तर :
हिमनद (Glacier) : हिम क्षेत्रों में गुरुत्वाकर्षण व भार के कारण ढाल के अनुसार खिसकती हुई राशि को हिमानी कहते हैं। लोवेक ने हिमानी को बर्फ की नदी माना है।
हिमानियों के प्रकार (Typs of Glacier) : हिमानियों के मुख्य प्रकार निम्न हैं –
i. घाटी हिमानी (Valley Glaciers) : ऊँचे पर्वतीय भागों जहाँ विशाल हिमक्षेत्र पाए जाते हैं, वहाँ से बर्फ फिसलकर घाटी में बहता रहता है, इसे घाटी हिमनद कहते हैं। ये 2 \mathrm{~km}-10 \mathrm{~km} लम्बे होते हैं।
ii. पर्वतपदीय हिमानी (Piedmont Glacier) : शीतोष्ण प्रदेशों में हिमरेखा काफी नीचे उतर आती है। यहां छोटी-छोटी हिमानी पहाड़ों की तलहटी में उतरकर आपस में मिलने लगती हैं। इसे पर्वतपदीय हिमानी कहते हैं।
iii. महाद्वीपीय हिमानी (Continental Glaciers) : कुछ हिमानियों का विस्तार लाखों वर्ग कि०मी० क्षेत्रों में होता है। इसे महाद्वीपीय हिमानी कहते हैं।
iv. हिमटोपी (Ice cap) : महाद्वीपीय हिमानी का छोटा रूप हिम टोपी कहलाता है।
v. ज्वारीय हिमानी (Tidal Glaciers) : जब महाद्वीपीय हिमानी का विस्तार समुद्र तट तक होता है तो ऐसे बर्फ का एक भाग जीभ की तरह समुद्र की ओर खिसकता जाता है। इसी को ज्वारीय हिमानी कहते हैं।

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प्रश्न 11.
हिमोढ़ किसे कहते हैं? विभित्र प्रकार के हिमोढ़ों का नाम लिखकर वर्णन करें। अथवा, हिमोढ़ कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
हिमोढ़ (Moraine) : जहाँ हिमनदी जल के रूप में परिणत होती है ठीक उसके पहले साथ आये हुए पत्थर के टुकड़े छूट जाते हैं और उनका एक ढेर लग जाता है जिसे हिमोढ़ या मोरेन कहते हैं। मोरेन को निम्नलिखित भागों में बाँट सकते हैं।
(अ) पाश्श्ववर्ती हिमोढ़ (Lateral moraine) : जो हिमोढ़ बगल में किनारे पर बनते हैं उसे पार्श्ववर्ती हिमोढ़ कहते हैं।
(ब) मध्यवर्ती हिमोढ़ (Medial moraine) : जब हिमोढ़ हिमनद के बीच में बनते हैं, तो उन्हें मध्यवर्ती हिमोढ़ कहते हैं।
(स) तलीय या भूमिगत हिमोढ़ (Ground moraine) : जब कोई हिमनद किसी कारणवश शीघ्रता से पिघल जाता है तो उसकी तली में फँसा हुआ मलवा घाटी की तली में निक्षेपित हो जाता है। इसे तलीय या भूमिगत हिमोढ़ कहते हैं।
(द) अन्तिम हिमोढ़ (Terminal moraine) : हिमनद का अन्तिम भाग पिघल जाने से उसका आगे बढ़ना रूक जाता है। फलस्वरूप हिमनद के साथ बहाकर लाये गये पदार्थ उसके अग्रभाग में एकत्रित हो जाते हैं। इसे अंतिम हिमोढ़ कहते हैं।

प्रश्न 12.
हिमनद क्या है ? इसकी उत्पत्ति कैसे होती है ?
उत्तर :
हिमनद (Glacier) : हिम काफी चिकना पदार्थ है। यह बहुधा पहाड़ी और उच्च अक्षांशों पर जमा होता रहता है। जब हिम राशि अधिक जमा हो जाती है तो स्थिर नहीं रह पाती। यह हिम राशि गुरुत्वाकर्षण तथा अधिक दबाव के कारण उच्च स्थल से निम्न ढाल की ओर स्वयं प्रभाहित होने लगता है। इसी सरकती हुई हिम राशि को हिमनद या हिम नदी कहते हैं। हिमनद की उत्पत्ति : हिम जलवाष्प का ठोस रूप है। जब वायुमण्डल का तापमान 0°C से कम हो जाता है तो जल जमकर ठोस रूप में बदल जाता है, जिससे हिम की वर्षा होती है तो उसे ‘हिमपात’ कहते हैं।

शीत प्रदेशों (उच्च अक्षांशों तथा पर्वतीय भागो) में वायुमण्डल का तापमान कम होने के कारण बर्फ बनता है। शीतकाल में पड़ी हिम राशि जब ग्रीष्म ऋतु में पिघल नहीं पाती, अतः प्रति वर्ष हिम राशि में निरन्तर वृद्धि होती रहती है। ये प्रदेश वर्ष भर हिमाच्छादित रहते हैं। ऐसे प्रदेशों को हिम प्रदेश कहते हैं। हिम राशि अधिक हो जाने के कारण उच्च स्थानों से निम्न स्थानों की ओर खिसकाने लगती है। इस प्रकार हिमनद की उत्पत्ति होती है। हिम नदी की उत्पत्ति के लिए दो बतों की आवश्यकता होती है –
i. तापमान बहुत कम हो ताकि हिम राशि की वृद्धि होती रहे।
ii. ढाल (slope) इतना अधिक हो कि हिम राशि बाध्य होकर नीचे की ओर खिसकना प्रारम्भ कर दे।

प्रश्न 13.
नदी एवं हिमनदी के कार्यों में अन्तर करो।
अथवा
नदी और हिमनद के कार्यों की तुलना कीजिए।
उत्तर :
नदी या हिमनदी की कार्यों में अन्तर :

नदी हिमनदी
1. नदी और उसके कार्य केवल रेगिस्तान एवं बर्फ के मैदानों को छोड़कर धरातल के सभी भागों में पाया जाता है। 1. हिमनदी एवं उसके कार्य केवल ध्रुवों एवं बर्फ के मैदानों पर ही पाया जाता है।
2. नदी का बहाव तेज होता है। 2. हिमनदी अत्यन्त धीमी गति से आगे की ओर बढ़ती है।
3. नदी में जल प्रवाहित होता है। 3. हिमनदी में बर्फ प्रवाहित होता है।
4. नदी $V$-आकार की घाटी का निर्माण करती है। 4. हिमनदी $U$-आकार की घाटी का निर्माण करती है।
5. नदी की उत्पत्ति किसी ग्लेशियर या किसी उच्च पठारी भू-भाग से होती है। 5. हिमनदी की उत्पत्ति हिम क्षेत्र से होती है।
6. कटाव के कार्यों द्वारा नदी घाटी असमान एवं खुरदरी हो जाती है। 6. कटाव द्वारा हिमानी की घटी चिकनी हो जाती है।
7. नदी अपने जमाव द्वारा उपजाऊ मैदानी भाग का निर्माण करती है। 7. हिमनदी अपने निक्षेप द्वारा अनुपजाऊ मैदान का निर्माण करती है।
8. नदी का अपक्षरण कार्य अपघर्षण, सत्रिघर्षण, जलयोजन एवं घोलीकरण द्वारा होता है। 8. हिमनद का अपक्षरण कार्य तोड़ने, दबाव एवं घर्षण के द्वारा होता है।
9. नदी कंकड़, पत्थर, रेत, बजरी, कीचड़ सभी प्रकार के पदार्थो का परिवहन करती है। 9. हिमनदी अपेक्षाकृत भारी कणों का परिवहन करती है।
10. नदी अपना निक्षेपण कार्य मैदानी एवं डेल्टाई दोनों भागों में करती है। 10. हिमनदी अपना निक्षेपण कार्य जहाँ पिघलती है वहीं करती है।

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प्रश्न 14.
हिमनद की दरार से आप क्या समझते हैं ? इनके निर्माण के क्या कारण हैं ?
उत्तर :
हिमनद की दरारें (Crevasses): कभी-कभी किसी कारणवश हिमनद के दूटने से दरारें पड़ जाती हैं। इसे हिमनद की दरारे कहते हैं।
हिमनद में दरार पड़ने के निम्नलिखित कारण हैं –
i. हिमनद की घाटी का असमान होना : हिमनद की घाटी की तली एवं चौड़ाई सर्वन्र समान नहीं होती है, अत: हिमनद की हिमराशि पर तली तथा पार्श्वों से दबाव पड़ने के कारण हिमनद की सतह पर कम गहरी सँकरी दरारें पड़ जाती हैं।

ii. ढाल से नीचे उतरना : जहाँ हिमनद अचानक उन्नतोदर ढाल से नीचे उतरती है अर्थात् जहाँ हिमनद का ढाल अचानक तीव्र हो जाता है वहाँ दरारें अधिक पड़ती हैं जिससे हिम-पिण्ड खण्ड-खण्ड,होकर ट्ट जाते हैं।

iii. हिमनद के विभिन्न भागों की गति में भिन्नता : हिमनद के मध्य भाग में उसके पाश्व्वों की अपेक्षा अधिक गति होती है जिससे हिमनद के आर-पार तट के समानान्तर दरारें पड़ जाती हैं। इसी प्रकार हिमनद के ऊपरी भाग में तली की अपेक्षा अधिक गति होती है जिसे हिमनद के आर-पार मध्य भाग में दरारें पड़ जाती हैं।

प्रश्न 15.
वायु के अपदनात्मक कार्य द्वारा बने स्थलरूपों का संक्षेप में वर्णन करो।
अथवा
चित्र की सहायता से वायु के कटाव द्वारा निर्मित तीन प्रकार के भू-दृश्यों का वर्णन करो।
उत्तर :
वायु के अपरदन के कार्य :- पवन अपरदन क्रिया द्वारा निम्न प्रकार के भू-दृश्यों का विकास होता है –
i. तिपहल शिलाखण्ड (Drikanter) : पत्थर के टुकड़े ढलों पर विविध आकारों में एकत्रित होते हैं। इसके किनारें व कोने नुकीले होते हैं। ये शुष्क प्रदेशों में पवनों के प्रहार से निरन्तर घिसकर चिकने होते रहते हैं। ये तीन या चार पहलू वाले नुकीले प्रस्तर खण्ड होते हैं।

ii. गारा या छत्रक (Gara or Mushroom) : पवन भूमि से एक या दो मीटर की ऊँचाई तक सबसे अधिक कटाव कार्य करता है। इस प्रकार धरातल के निकट बड़े कण रगड़ खा-खाकर बहते रहते हैं। लम्बे समय के बाद चट्टानें कटकर कुकुरमुत्ता या छाते के आकार की हो जाती हैं। अफ्रीका के मरुस्थल में इन्हें गारा कहते हैं।

iii. जालीदार शिला (Stone Lattic) : जब शुष्क प्रदेशों में ऊभरी चट्टानों की संरचना में अंतर पाया जाता है तो मुलायम चट्टानी भाग शीघ्र घिस जाता है और वहां गड्दे बन जाते हैं। इस प्रकार इन भागों में जालीदार छिद्र बनते जाते हैं। वर्षा के समय रासायनिक अपक्षय से ये छिद्र और बड़े होकर आरिकल जालक में बदल जाते हैं।

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iv. भूस्तम्भ (Demoisels or Hoodos) : शुष्क प्रदेशों में जब कोमल और कठोर चट्टानों की परतें लम्बवत अवस्था में पायी जाती हैं तो वहां पर वायु के अपरदन क्रिया द्वारा मुलायम चट्टाने कट जाती हैं तथा कठोर चट्टाने खम्भे की तरह खड़ी रहती हैं। इसे भू-स्तम्भ कहते हैं।

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v. ज्यूगेन (Zeugen) : शुष्क प्रदेशों में जब कठोर और मुलायम चट्टानों की संरचना क्षैतिज अवस्था में पायी जाती हैं तो कठोर चट्टानो में धीरे-धीरे संधि विकसित होने के साथ-साथ हवा की अपघर्षण क्रिया से चौड़े होते जाते हैं। थोड़े समय बाद नीचे स्थित मुलायम चट्टानों में तेजी से कटाव होने लगता है। कोमल चट्टानों के स्तर कठोर होने लगते हैं। कोमल चट्टानों के स्तरों पर पड़ी कठोर चट्टानें दवात के ढक्कन जैसी आकृति लिए होती हैं। सहारा मरुस्थल में इसे ज्यूगेन कहते हैं।

यारडंग (Yardang) : जब कठोर व मुलायम चट्टानों की लम्बवत् संरचना पायी जाती है तो वायु के घर्षण द्वारा मुलायम चट्टाने कटती जाती हैं। इसे यारडंग(Yardang) कहते हैं। यारडंग का विकास स्थान पवन की दिशा के समानान्तर होता है।

vii. द्वीपाभगिरि (Inselberg) : मरुस्थली प्रदेशों में जब कठोर चट्टानें अपघर्षण के बाद भी गुम्बद् के रूप में खड़ी रहती हैं तो रेत के समुद्र में ये द्वीप की भांति दिखायी पड़ती हैं। ये प्रायः ग्रेनाइट या नीस चट्टानों से बने होते हैं। द्वीपाभगिरि दक्षिणी अफ्रीका एवं सहारा में अधिक पाये जाते हैं। दक्षिण अफ्रीका की तीन बहने(Three sisters) इन्सेलबर्ग के अच्छे उदाहरण हैं।

viii. वातगर्त (Blow out) : मरूस्थली भागों में वायु के तेज प्रवाह के कारण रेत का विशाल भाग उड़कर बह जाने से वहां बड़े-बड़े गड्दु या वातगर्त बन जाते हैं। कुछ वातगर्त समुद्र तल से नीचे तक कट-छट कर गहरे हो जाते हैं।

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प्रश्न 16.
वायु के जमाव द्वारा निर्मित भू-दृश्यों का संक्षेप में वर्णन करो।
अथवा
वायु के निक्षेपण से बनने वाले भू-दृश्यों का वर्णन करो।
अथवा
नदी एवं वायु के सम्मलित कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर :
हवा अनेक प्रकार से एवं अलग-अलग परिस्थितियों में जमाव कार्य करती है। हवा के मार्ग में जहाँ भी बाधा आ जाती है, रेत या बालू का जमाव प्रारम्भ हो जाता है। इस प्रकार हवा के निक्षेप से बनी स्थलाकृतियाँ निम्न हैं:-
i. बरखान (Barkhans) : बालू और धूल का वहन करती वायु के मार्ग में जब कोई बाधा आ जाती है तो वायु अपने साथ उड़ाकर लाये गये मलवे का निक्षेप करने लगती है। इस प्रकार चापाकर भू-दृश्य का निर्माण होता है जिसे बरखान कहते हैं। बरखान प्रचलित पवन के समकोण पर निर्मित होते हैं। इनके शिखर की ओर पूर्ण विकसित दो सींगे होती हैं। इनका निर्माण उस समय होता है, जब रेत की पूर्ति एवं पवन का वेग दोनों सामान्य हो। बरखान प्रायः भृंखला में स्थित होते हैं एवं उनकी भृंखलाएँ पवन की दिशा में होती हैं।

ii. उर्मिकायें (Ripples) : रेतीले मरुस्थलों में सतह पर सागरीय लहरों की भांति निशान पाये जाते हैं। इनका निर्माण पवन की दिशा के समकोण पर महीन रेत के निक्षेपण से होता है।

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iii. बालुका स्तूप (Sand Dunes) : शुष्क प्रदेशों की वायु के जमाव से बनी सबसे महत्तूर्ण आकृति बालुका स्तूप है। जब रेत एवं धूल का वहन करती हुई वायु के मार्ग में कोई बाधा उपस्थित होती है तो वायु अपने साथ उड़ाकर लाये मलवे का निक्षेप करने लगती है। यह निक्षेप कटक और छोटी पहाड़ियों के रूप में होता है। बालू का यह टीला धीरे-धीरे पवनप्रवाह की दिशा में आगे खिसकता रहता है। बालुका स्तूप तीन प्रकार के होते हैं :
(क) अर्ध चन्द्राकार बालुका स्तूप : इनका जमाव अर्ध चन्द्रमा के आकार के रूप में होता है। इन्हीं का विकसित रूप बरखान कहलाता है। बरखान में मिट्टी के मोटे कण होते हैं। ऐसे अर्ध चन्द्राकार स्तूप थार मरुस्थल में पाये जाते हैं।

(ख) अनुदैर्ध्य बालुका स्तूप : इनका विस्तार पवन की प्रवाह दिशा के सामानान्तर होता जाता है। इनकी लम्बाई 2 से 5 किलोमीटर एवं ऊँचाई 20-40 मी० तक होती है। सहारा में इन्हें सीफ एवं धार में इन्हें घोरे कहते हैं।

(ग) अनुप्रस्थ बालुका स्तूप : ऐसे स्तूप निरन्तर एक दिशा में चलने वाली पवन के क्षेत्र में पाये जाते हैं। बहती पवन के मार्ग में बाधा आने पर इनका निर्माण एवं विस्तार होता है। कुछ स्तूपों के मध्य के निम्न क्षेत्र में भंवर पड़ जाने से भी बालू का जमाव होता है रहता है। इन्हें अनुप्रस्थ बालुका स्तूप कहते हैं।

कभी-कभी नदी तट पर एवं समुद्र व झीलों के तट पर भी विभिन्न आकृति में स्तूपों का जमाव होता रहता है। मरुस्थलीय भागों में पुराने बालुका स्तूप पवन प्रवाह के साथ अपना स्थान बदलते रहते हैं। वनस्पति आवरण होने पर ये बालु का स्तूप स्थायी भी हो जाते हैं।

iv. बालुका चादर (Sand Sheet) : ये बालू के विस्तृत, समतल एवं आकारविहीन क्षेत्र होते हैं। इनमे मात्र उर्मियाँ पायी जाती हैं। लीबिया का सेलिमा चादर इसका श्रेष्ठ उदाहरण है।

v. लोयस (Loess) : वायु जब मरुस्थलीय सीमा के बाहर अपने साथ उड़ाकर लाये गये महीन बालू एवं मिट्टी का जमाव करती है और वायु के निक्षेपण द्वारा बड़े मैदानी भागों का निर्माण होता है तो इसे लोयस कहते हैं। यह भू-भाग उपजाऊ होता है। ढीले होने के कारण इसे नदियाँ आसानी से काट देती हैं। लोयस के निक्षेप उत्तरी चीन, न्यूजीलेण्ड, मध्यपूर्वी ऑस्ट्रेलिया व उत्तरी अमेरिका में पाये जाते हैं।

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प्रश्न 17.
वायु के कटाव एवं जमाव की सम्मिलित क्रिया से निर्मित भू-दृश्यों का वर्णन करो।
अथवा
पेडीमेण्ट, बाजाडा एवं प्लाया का वर्णन करो।
उत्तर :
अर्द्धशुष्क प्रदेशों में वायु के सम्मिलित कटाव एवं जमाव की क्रिया से पेडीमेंट, बजाडा एवं प्लाया का निर्माण होता है :
पेडीमेण्ट (Pediment) : शुष्क प्रदेशों में पर्वत, पठार एवं इन्सेलबर्ग के पदीय भागों में सामान्य ढाल वाला समतल मैदान का निर्माण होता है। शिलाखण्डों के चूर्णी को नदी और वायु बहाकर एवं उड़ाकर पदीय भागों में जमा करते हैं। इनका पीछे का पर्वतीय भाग काफी तेज ढालवाला होता है। इनके आगे के भाग में बारीक मिट्टी का जमाव पाया जाता है।

बजाडा (Bajada) : बजाडा पेडीमेण्ट के नीचे का भाग है। यहाँ पर बहकर आये पदार्थ व रेत जमा होते रहते हैं। यह वायु एवं पानी के कटाव एवं जमाव क्रिया द्वारा निर्मित होता है। इसका ढाल धीमा किन्तु लहरदार होता है। इनका निर्माण मोटे व महीन कणों के मिश्रण की अलग-अलग मोटाई की परतों के जमा होने से होता है। यहाँ कृषि कार्य एवं पशुपालन किया जाता है।

प्लाया या छिछले दलदल (Playa) : मरुस्थलीय भागों में अंतर्देशीय प्रवाह पाया जाता है। जिन भागों में नदी-नालों का पानी इकट्ठा होता रहता है वहाँ मिट्टी के जमाव में नमक भी सम्मिलित रहता है। इससे कठोर चट्टानों के परत के जमाव या ड्राकस्ट (Duracrust) बनते जाते हैं। वर्षा के दिनों में यहाँ पर पानी जमने से ये दलदल में बदल जाते हैं। इन्हें प्लाया कहते हैं। इनका विस्तार कुछ वर्ग कि॰मी० से लेकर सैकड़ों कि॰मी० तक पाया जाता है।

प्रश्न 18.
मरुस्थलों के विस्तार के क्या कारण हैं? इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है ?
उत्तर :
विश्व में मरुस्थलों के विस्तार के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं :-
i. मानव द्वारा प्राकृतिक वनस्पतियों का उन्मूलन, ii. वायु का अपरदन एवं परिवहन, iii. अनियंत्रित पशुचारण, iv. भूमिगत जल स्तर में गिरावट, v. अल्प वर्षा, vi. कृषि भूमि में लगातार एक ही फसल का बोया जाना, तथा (vii) मिट्टी की लवणता में कमी।

वास्तव में मरुस्थलों के विस्तार का मूल कारण संसाधनों का अत्यधिक शोषण है, जिसके लिए मानव स्वयं उत्तरदायी है। अतः इसे नियंत्रण करने का प्रयास भी मानव को ही करना होगा।
निम्नलिखित उपायों को अपनाकर मरुस्थलीकरण को रोका जा सकता है :-
i. मरुस्थली वनस्पतियों की कटाई पर रोक।
ii. अधिक मात्रा में ऐसे वृक्षों को लगाना जो सीमित नमी में भी विकसित हो सकें।
iii. चारागाहों का विकास करके अनियंत्रित पशुचारण पर रोक लगाना।
iv. वायु के मार्ग में वृक्षों की पेटी का विकास करना जिससे सीमान्त क्षेत्रों में मरुस्थलों का प्रसार रुक सके।v. बालुका स्तूपों के स्थानान्तरण को रोकने का उपाय।
vi. भूमिगत जल तथा वर्षा के जल का उचित उपयोग।
vii. नमी संरक्षण एवं शुष्क कृषि (Dry farming) का विकास।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि मरुस्थलों का विस्तार एक विकट समस्या बन गयी है। इसे शासकीय एवं सामाजिक प्रयासों तथा उचित प्रबन्धन द्वारा ही सीमित किया जा सकता है तथा इससे पर्यावरण को होनेवाली हानि से बचाया जा सकता है।

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प्रश्न 19.
भौतिक अपक्षय को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करो।
उत्तर :
सुर्य, जल, ताप, पाला तथा वायु द्वारा चट्टानो में विघटन होने की क्रिया को यांत्रिक अपक्षय कहते है, ये निम्नलिखित कारण से होता है :
i. सूर्य ताप : सुर्य ताप द्वारा चट्टानो के अपक्षय का कार्य शुष्क प्रदेशो में अधिक होता है, मरुस्थलीय भागों में वनस्पति के अभाव में दैनिक तापान्तर अधिक होने के कारण दिन में सुर्य की गर्मी से चट्टाने फैलती है, एवं रात में ठण्डक पड़ने से सिकुड़ती है, बार-बार फैलने और सिकुड़ने से चट्टाने कमजोर हो जाती है जिससे उसमें दरार पड़ जाती है, और वे बड़ेबड़े टुकड़ों में टुट जाती है। चट्टानो के इस प्रकार टुटने की क्रिया को पिण्ड विच्छेदन, (Block disintegration) कहते है। ये टुटे हुए चट्टानो के टुकड़ों गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से ढाल के अनुरूप लुढ़ककर निचले भाग में एकत्र हो जाते है। इस टुकड़े को सपंत Screenttalus कहते है।

ii. गोलाश्म अपक्षय, पल्लवीकरण या अपशल्कन : पहले लोगो की धारणा थी कि अपपत्तण की क्रिया चट्टानो के उपरी तथा भीतरी भागों में असमान तनाव के कारण होती है वे ऐसा सोचते थे कि यह क्रिया दैनिक तथा वार्षिक तापान्तर अधिक होने के कारण होती है, परन्तु वर्तमान वैज्ञानिको के निरीक्षण द्वारा यह सिद्ध हो गया कि अपक्षय की क्रिया चट्टानो में उपस्थित खनिज पदार्थो के प्रसारण तथा तापक्रम में परिवर्तन के कारण होती है।

चट्नानो का निर्माण करने वाले भिन्न-भिन्न खनिज भिन्न-भिन्न रंग के होते है। जो सुर्य के तापमान को विभिन्न मात्रा में ग्रहण करते है, जिससे चट्टाने दिन में फैलती है और रात में ठण्डक के कारण सिकुड़ती है, इस कारण चट्टानो के उपरी भाग में तनाव उत्पन्न होता है, और चट्टानो के उपरी भाग प्याज के छिलके के तरह अलग होने लगता है, जिससे चट्टाने गोलाकार रूप में बदल जाती है, इस क्रिया को अपपत्तण (Exfoliation) या गोलाभ अपक्षय (Spherieal weathering) कहते है।

iii. पाला एवं दरारों में जल जमना : ठण्डे प्रदेशो में चट्टानो की दरारो में जब कभी जल भर जाता है, तो रात में ठण्डक के कारण जल जम जाता है, अतएव जल का आयतन बढ़ जाता है और चट्टाने फैलती है जिससे दरारो पर दबाव पड़ता है, और वे चौड़ी हो जाती है, दिन में सुर्य ताप से जमा हुआ जल पिघल जाता है और रात में फिर जम जाता है लागातार इस क्रिया के होते रहने से चट्टानो की दरारें चौड़ी होती जाती है और अन्त में चट्टाने टूटकर टुकड़े टुकड़े हो जाते है, यह प्रक्रिया शीत प्रदेशों अथवा उच्च पर्वत शिखरों पर अधिक होती है।

iv. वर्षा : उष्ण प्रदेशों में सुर्य की गर्मी से तप्त एवं फैली हुई चट्टानो पर अचानक वर्षा का जल गिरता है तो वे उसी प्रकार चटक जाती है जिस प्रकार पानी का छिटा पड़ते ही गर्म चिमनी चटक जाती है। चिटकने से चट्टाने शीघ्रता से छोटे छोटे टुकड़ो में विखंडित हो जाते है, सयुक्त राज्य अमेरिका के टेक्सॉस प्रदेश में वर्षा के बाद टूटे हुए विशाल चट्टानो के खण्ड दिखाई पड़ते है।

v. दाब मुक्ति : भु-पृष्ठ के नीचे अग्नेय तथा रूपान्तिरत चट्टाने प्रचण्ड दाब के कारण संकुचिंत अवस्था में रहती है, अपरदन के कारण जब उपर की चट्टाने हट जाती है तब इस दाब मुक्ति के कारण ये चट्टाने थोड़ा फैल जाती है। और उनमें दरारे पड़ जाती है, इस प्रकर दाब मुक्ति के कारण चट्टानो का विघटन होता रहता है,’इस क्रिया द्वारा मुख्यत: ग्रेनाइट और सगमरमर जैसे स्थुल चट्टानों का अपक्षय होता है।

प्रश्न 20.
रासायनिक अपक्षय कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर :
रासायनिक अपक्षय चार प्रकार के होते है या रासायनिक अपक्षय चार विधियों द्वारा होते है।
i. आक्सीकरण (oxidation): इसमें आक्सीजन गैस युक्त जल चट्टान के लौह-खनिजो के साथ मिल जाती है, जिससे लौह खनिज आक्साईडो में बदल जाती है तथा इससे लोहे में जंग लग जाता है। फलतः चट्टाने ढीली पड़ जाती है। और शीघ्र ही नष्ट हो जाती है।

ii. कार्बोनीकरण (carbonation) : जब कार्बन-डाई-आक्साईड गैस का मिश्रण जल से होता है, तो कई प्रकार के कार्बोनिट बन जाते है जो कि जल में घुलनशील होते हैं। इन कार्बोनिट के निर्माण के कारण चट्टानो का घुलनशील तत्व उससे अलग होकर जल के साथ हो लेता है। जैसे चूना पत्थर का संयोग कार्बन डाई-आक्साईड युक्त जल से होता है, तो चूने का पत्थर कैल्सियम काबोनिट में बदल जाता है, जो आसानी से जल के साथ घुल जाता है, युगोस्लाविया का कार्स्ट प्रदेश इसका उदाहरण है।

iii. जलयोजन (Hydration): चट्टानो के खनिजों का जल के मिलने से खनिजों का आयतन बढ़ जाता है। जिससे. खनिज कण भीतर ही भीतर पिसकर चुर हो जाते है, इससे चट्टाने ढ़ीली पड़ जाती है। और परत बिखर जाती है, जैसे केओलिन एवं जित्सम की रचना जलयोजन द्वारा होने वाले अपक्षय से हुई है।

iv. सिल्का का पृथकीकरण (De-silication): अनेक चट्टानो में सिलीका की मात्रा अधिक होती है, जब जल द्वारा रासायनिक विधि से सिलीकायुक्त चट्टानो से सिलीका अलग हो जाता है तो इस क्रिया को डि-सीलीकेशन कहते है, सिलीकेट के जल द्वारा चट्टान का पृथकीकरण आसानी से ढीली पड़ जाती है और उसका वियोजन शीघ्र प्रारम्भ हो जाता है।

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प्रश्न 21.
तल संतुलन के कौन-कौन से कारक हैं ?
उत्तर :
धरातल को सामान्य तल पर लाने में लगी सभी प्रक्रियाओ को तल सतुलन की प्रक्रियाएँ कहते है। इसमें निम्नीकरण और अधिवृद्धि प्रक्रियाँए दोनो शामिल है।
निम्नीकरण या अनाच्छादन (Degradation or denudation) : निम्नीकरण (अनाच्छादन) भूमि के ऊचे भागो का क्रमिक रूप से नीचे होना, इस प्रक्रिया में नदी, हिमानी आदि अपरदन के कारक ऊँचे भागो को काट छांट कर दूसरे स्थानो पर ले जाकर निक्षेपित कर देती है आजकल भु-आकृतिक विज्ञान में अनाच्छादन और निम्नीकरण पर्यायवाची शब्द है। अनाच्छादन में अपघर्षण (Abrsion) संचरण (carrosion) बृहत क्षरण (Mass wasting) अपरदन और अपक्षय की प्रक्रियाएँ शामिल है।

अधिवृद्धि (Aggradation): धरातल के नीचले हिस्से या गड्दो में अपरदित पदार्थो के निक्षेपण से निम्न क्षेत्रो के भराव को अधिवृद्धि कहते है, संतुलित तल एक अस्थायी (Temporary) स्थिति है, क्योकि जैसे ही कोई भूमि भाग उपर हो जाता है, तभी अपरदन कारी शक्तियाँ अपना विनाश कार्य प्रारम्भ कर देती है।

प्रश्न 22.
नदी की कितनी अवस्थायें हैं ?वर्णन करो।
उत्तर :
नदी के मार्ग के कार्यो के आधार पर नदी को तीन अवस्थाओ में बाँटा जा सकता है।
i. पर्वतीय भाग या युवावस्था : जब नदी पहाड़ी चट्टानो से होकर बहती है तब उस अवस्था में अधिक ढाल होने के कारण उसकी धारा बहुत तेज होती है, तेजी से बहता हुआ पानी चट्टानो को तोड़ता-फोड़ता मिट्टी और पत्थर को काटता हुआ आगे बढ़ता है, जो चट्टान और पत्थर पानी की धारा में पड़ जाते है वे आपस में रगड़ खाकर महीन बालु और कंकड़ बन जाते है, इसकी रगड़ से बहते हुए पानी के नीचे की जमीन भी कटती जाती है, जिससे नदी का तल गहरा होता जाता है। इस अवस्था में नदी के तट सीधे होते है। इस अवस्था को नदी का पर्वतीय भाग या युवावस्था (mountainous or youth stage) कहते है। गंगा नदी गोमुख से हरिद्वार तक 230 कि॰मी॰ पर्वतीय भाग में बहती है।

ii. मैदानी भाग परिपक्वावस्था : जब नदी मैदान में प्रवेश करती है तो ढ़ाल कम होने के कारण नदी का वेग कम हो जाता है इसलिए उसकी धारा में जो पहाड़ी मिट्टी और पत्थर बहकर आते है वे सब नदी के तल में जमा होने लगते है, इस अवस्था में नदी का खास काम परिवहन रहता है, चौरस मैदान में वेग कम होने से यह अपने तल को गहरा करने के बदले तटो की मुलायम मिट्टी को काटती है और उसे एक जगह से बहाकर दुसरी जगह जमा करती है, इस कारण मैदान में नदी का तल अधिक गहरा नहीं होता, दुसरे मैदान में चूकि नदी का वेग कम रहता है।

इसलिए जिधर उसे मुलायम मिट्टी मिलती है, उसी और यह तट की मिट्टी को काटती है और पुरानी तलहटी को भरती जाती है, इसलिए मैदान में नदी सीधी न बहकर टेढे-मेढ़े राह से बहती है। नदी की यह अवस्था मैदानी या परिपक्वास्था (Plain or maturity stage) कहलाती है। जैसे हरिद्वार से लेकर राजमहल पहाड़ी तक गंगा नदी का मैदानी भाग है।

iii. डेल्टाई भाग या वृद्धावस्था : जब नदी समुद्र के निकट पहुँचती है उस समय उसके जल में इतनी अधिक मिट्टी और बालु मिला रहता है कि नदी की धारा बहुत मन्द हो जाती है और उसके साथ आयी हुई मिट्टी एवं बालु उसके मुहाने पर जमा होने लगता है। इस अवस्था में नदी का खास काम जमाव (Deposition) करना रहता है।

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प्रश्न 23.
सक्रिय डेल्टा क्षेत्रों पर वैश्विक ऊष्मण के प्रभाव का वर्णन करो।
उत्तर :
भुमण्डलीय तापमान में वृद्धि के अनेक दुष्परिणाम दावानल जैव विविधता की हानि, मरुस्थलीकरण, प्रवाल भण्डारो का क्षरण आदि के रुप में देखने को मिल रहा है, इसके साथ ही साथ महाद्वीपीय हिमनद तथा अण्टार्कटिका एवं ग्रीनलैण्ड के हिमचादरो के पिघलने का खतरा उपस्थित हो गया है, हिम के पिघलने से सागरीय जलस्तर में वृद्धि हो रही है जिससे छोटे द्वीप एवं नीचले तटीय स्तर जलायमान हो सकते है, नदियों के सक्रिय डेल्टा अचल अतिनिम्न तटीय भू भाग है। अत: सागरीय जलस्तर में वृद्धि के कारण इनके जलमग्न होने का खतरा सबसे अधिक रहता है।

भुमण्डलीय तापमान वृद्धि के कारण इनके जलमग्न होने का खतरा सबसे अधिक रहता है। भु मण्डलीय तापमान वृद्धि एवं जलवायु परिवर्तन के कारण सागरीय जलस्तर में होने वाली वृद्धि के कारण सुन्दरवन डेल्टा क्षेत्र के सुदुर दक्षिणी भाग में स्थित लोहाद्वार (Lohachara) न्युमोर (Newmore) तथा सुपारीभांगा द्वीप जलमग्न हो गए है, घोरामारा (Ghoramara) सहित अन्य 12 द्वीप जलमग्न होने के कगार पर खड़े है। इस प्रकार भुमण्डलीय तापन के कारण सागरीय जलस्तर में वृद्धि से नदियो के सक्रिय डेल्टा अचंल के पुर्ण या आंशिक रुप से जलमग्न होने का खतरा बना हुआ है।

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