Detailed explanations in West Bengal Board Class 9 Life Science Book Solutions Chapter 1 जीवन एवं उसकी विविधता offer valuable context and analysis.
WBBSE Class 9 Life Science Chapter 1 Question Answer – जीवन एवं उसकी विविधता
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK
प्रश्न 1.
झींगा (चिगड़ी) का वैज्ञानिक नाम क्या है ?
उत्तर :
मैक्रोब्रैकियम रोजेन्बर्गाई (Macrobrachium rosenbrgil)
प्रश्न 2.
किस किया द्वारा सजीव ऊर्जा प्राप्त करते हैं?
उत्तर :
श्वसन क्रिया द्वारा।
प्रश्न 3.
कौन सा पौघा एकलिंगी कोन का निर्माण करता है ?
उत्तर :
पाइन वृष्ष (पाइनस शैक्सबर्धिआई) Pinus roxburghii), साइकस रम्फीआइ (Cycas rumphii)
प्रश्न 4.
अपचयी क्रिया सजीवों की किस क्रिया को कहा जाता है ?
उत्तर :
सजींवों के शरीर में जटिल पदार्थों के विघटन की क्रिया को अपचयी क्रिया कहा जाता है।
प्रश्न 5.
वालयुक्त त्वचा वाले प्राणियों को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
स्तनपायी।
प्रश्न 6.
उद्दीपन के गुण किसमें नहीं पाये जाते हैं ?
उत्तर :
निर्णीवों में।
प्रश्न 7.
अनेक छिद्रों वाले अचल जन्तु का नाम बताओ।
उत्तर :
स्पंज।
प्रश्न 8.
एु-आई० ओपैरिन ने किस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था ?
उत्तर :
ए० आई० ओपैरिन ने रासायनिक विकास के सिद्धान्त को पदार्थ सिद्धान्त के नाम से प्रतिपादित किया था।
प्रश्न 9.
किस प्रकार के पौधों में स्वपोषी पोषण होता है – क्लोरोफिल युक्त या क्लोरोफिल विहीन ?
उत्तर :
क्लोरोफिल युक्त
प्रश्न 10.
कोएसरवेद्स किसकी खोज है ?
उत्तर :
औपैरिन।
प्रश्न 11.
किस वर्ग के प्राणियों का वृषण अण्डकोष में स्थित होता है ?
उत्तर :
स्तनथारी।
प्रश्न 12.
प्रारम्भिक जीवों की उत्पत्ति कब हुई थी?
उत्तर :
4अरब वर्ष पहले हुई थी।
प्रश्न 13.
किस वर्ग के जन्तुओं की त्वचा पर कठोर शल्कें होती हैं ?
उत्तर :
सरीसृष वर्ग।
प्रश्न 14.
हिस्टोलोजी क्या है?
उत्तर :
सुक्ष्म शरीर अंगों के भौतर ऊतको की संरबना तथा उनका विन्यास के अध्ययन को हिस्टोलोजी कहते हैं।
प्रश्न 15.
जीव वैज्ञानिक वर्गीकरण में सबसे निचला स्तर क्या है ?
उत्तर :
प्रज़ाति (Species)
प्रश्न 16.
टेक्सोनॉमकी का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर :
कैरोलस लिनियस को।
प्रश्न 17.
किस वैज्ञानिक ने सर्वप्रथम “टैक्सोनोमी” शब्द का प्रयोग किया ?
उत्तर :
फ्रांसीसी वैज्ञानिक “‘डि-कैडोले (De-Cadolle) ने सन् 1813 ई० में सर्वप्रथम “टैक्सोनोमी” शब्द का प्रयोग किया था।”
प्रश्न 18.
जगत प्लांटी में किसका अध्ययन किया जाता है?
उत्तर :
सभी रंगीन, बहुकोशिकीय, प्रकाश संशलेषी पौधो का अध्ययन किया जाता है।
प्रश्न 19.
“औषधि का जनक” किस वैक्रानिक को कहा जाता है ?
उत्तर :
“औषधि का जनक” हिप्येक्रेट्स (Hippocrates) को कहा जाता है।
प्रश्न 20.
पृथ्वी पर सजीवों की कितनी प्रजातियाँ हैं?
उत्तर :
लगभग 80 लाख 70 हजार।
प्रश्न 21.
अनेक छिद्रों युक्त शरीर वाले अचल जन्तु का नाम क्या है ?
उत्तर :
स्पंज (Sponge)
प्रश्न 22.
‘फाइलम’ शब्द की रचना किसने की ?
उत्तर :
कुवियर ने।
प्रश्न 23.
किस जन्तु के हृदय में 3 \(\frac{1}{2}\) प्रकोष्ठ होते हैं ?
उत्तर :
मगरमच्छ में।
प्रश्न 24.
भुजा रहित सरीसुप का उदाहरण दो।
उत्तर :
साँप।
प्रश्न 25.
“सिस्टेमा नेचुरी” नामक पुस्तक के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर :
लिनियस।
प्रश्न 26.
वर्गीकरण की मूलभूत इकाई क्या है ?
उत्तर :
प्रजाति।
प्रश्न 27.
ट्यूबफीट किस जन्तु का प्रचलन अंग है ?
उत्तर :
तारामछली।
प्रश्न 28.
जीव विज्ञान का पिता किसे कहते हैं ?
उत्तर :
अरस्तू (Aristotle) को
प्रश्न 29.
साइकान किस संघ का प्राणी है?
उत्तर :
पोरिफेरा।
प्रश्न 30.
समुद्री खीरा किस संघ का प्राणी है?
उत्तर :
इकाइनोडरमेटा।
प्रश्न 31.
साइकस किस वर्ग का पौधा है?
उत्तर :
जिम्नोस्पर्म।
प्रश्न 32.
प्रोटिस्टा शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया था?
उत्तर :
हेकल (Haekel) ने
प्रश्न 33.
उपास्थिमय मछली का एक उदाहरण दो ।
उत्तर :
ऑस्टिया (Ostia)
प्रश्न 34.
जन्तुओं में किस प्रकार का पोषण होता है?
उत्तर :
होलोजोइक।
प्रश्न 35.
लाइकोपोडियम किस वर्ग का पादप है?
उत्तर :
टेरिडोफाइटा वर्ग।
प्रश्न 36.
एक यूकैरियोटिक शैवाल का नाम बताओ ?
उत्तर :
स्साइरोगाइरा।
प्रश्न 37.
मटर का वैजानिक नाम क्या है ?
उत्तर :
पाइसम सैटाइवम (Pisum sativum)
प्रश्न 38.
किस संघ के जीवों का शरीर मेण्टल से ढंका रहता है ?
उत्तर :
मोलस्का।
प्रश्न 39.
किस समूह में ‘नग्नबीजी” पौधों को रखा गया है ?
उत्तर :
जिम्नोस्पर्म।
प्रश्न 40.
पृथ्वी पर सजीवों की कितनी प्रजातियाँ हैं ?
उत्तर :
लगभग 30 मिलियन
प्रश्न 41.
“द ओरीजीन ऑफ लाइफ” की रचना किसने की ?
उत्तर :
ओपैरिन ने।
प्रश्न 42.
ब्रायोफाइटा का एक उदाहरण दो।
उत्तर :
मॉस।
प्रश्न 43.
किस समूह के पौधौं का बीज फल के अन्दर स्थित होता है ?
उत्तर :
एन्जिओस्पर्म
प्रश्न 44.
उपसंघ हेमिकार्डेटा का एक उदाहरण लिखो।
उत्तर :
बैलेनोग्लॉंसिस (Balanoglosis)
प्रश्न 45.
“जेनेरा प्लेन्टेरम”‘ नामक पुस्तक किसके द्वारा लिखी गई है ?
उत्तर :
केरोलस लिनियस।
प्रश्न 46.
जल और जमीन पर रहने वाले जीवधारियों को कहते हैं।
उत्तर :
उभयचर।
प्रश्न 47.
जीवधारियों को विभिन्न भागों में विभाजन को कहते हैं।
उत्तर :
वर्गीकी।
प्रश्न 48.
द्विनाम पद्धति के जन्मदाता हैं।
उत्तर :
स्वीडेन के वनस्पति विज्ञानी कैरोलस लिनियस।
प्रश्न 49.
सजीवों द्वारा वातावरण के प्रभाव को प्रदर्शित करना कहलाती है।
उत्तर :
उत्तेजनशीलता।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS
प्रश्न 1.
‘कोएक्सरवेट मॉडल”‘ किसने तथा कब प्रतिपादित किया था ?
उत्तर :
A.I. Oparin ने 1920 ई० में “कोएक्सरवेट मॉडल”‘ की संरचना प्रस्तुत की।
प्रश्न 2.
जीवन किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जीवन जीवधारियों की वह शक्ति है जिसके द्वारा वे स्वयं को बनाये रखते हैं तथा अपने ही समान सन्ताने उत्पन्न करते हैं।
प्रश्न 3.
वर्गीकरण किसे कहते हैं?
उत्तर :
वर्गींकरण वह प्रक्रिया है जिसमें एकत्रित संमंक्रो को उनकी विभिन्न विशेषताओं के आधार पर अलग-अलग समुह या वर्ग में क्रमवद्ध किया जाता है ।
प्रश्न 4.
कार्बनिक क्रम-विकास किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कार्बनिक क्रम-विकास (Organic evolution) : क्रम-विकास का तात्पर्य एक अवस्था से दूसरी विकसित और अनुकूलित अवस्था में क्रमिक परिवर्तन है। सजीवों के लक्षणों में धीमी, क्रमिक तथा निध्चित परिवर्तन जो समय के साथ एवं संततियों में स्थानान्तरित होता है, उसे कार्बनिक क्रमविकास (Organic evolution) कहते हैं।
प्रश्न 5.
किस क्रिया द्वारा सजीवों को ऊर्जा प्राप्त होती है ?
उत्तर :
श्वसन (Respiration) की क्रिया द्वारा सजीवों को ऊर्जा प्राप्त होती है।
प्रश्न 6.
जीव-विविधता से क्या समझते हैं ?
उत्तर :
“जीव-विज्ञान की वह शाखा जिसमें विविध प्रकार के जीवधारियों की उनके गुणों की समानता तथा असमानताओं के-आधार पर अलग-अलग समूहों में बाँटा जाता है।”
प्रश्न 7.
जीन स्थानान्तरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
कभी-कभी किसी जीवधारी की विशेष प्रजाति के कुछ जीन लुप्त हो जाते हैं और नये जीन पुल बन जाते हैं। नये जीन पुल वाली प्रजाति जब स्थानीय प्रजाति से मिलकर संतान उत्पत्न करती है, तब नये लक्षण वाली जातियाँ उत्पन्न होती हैं। इस प्रक्रिया को जीन-स्थानान्तरण कहा जाता है। जीन स्थानान्तरण के फलस्वरूप एक नयी जाति का विकास होता है।
प्रश्न 8.
उह्दीपन से क्या समझते हो?
उत्तर :
वाह्म वातावरण में होने वाले परिवर्तन के प्रति अनुक्रिया को उद्दीपन कहते हैं। इसके घटीत होने के कारण अचानक हमारे ज्ञानेन्द्रियों में कुछ एक्सन होता है ।
प्रश्न 9.
“क्लोनिंग” क्या हैं ?
उत्तर :
क्लोनिंग का तात्पर्य है अलैंगिक विधि से एक जीव से दूसरा जीव तैयार करना। इस विधि से उत्पादित क्लोन अपने जनक से शारीरिक और आनुवांशिक रूप में समरूप होते हैं। अर्थात् किसी जीव का प्रतिरूप तैयार करना ही क्लोनिंग है।
प्रश्न 10.
कोलाएड्स से क्या समझते हो ?
उत्तर :
विभिन्न प्रोटीन के अणुओं का आपस में मिलकर निर्माण किये गए कणों को कोलाएड्स कहते हैं।
प्रश्न 11.
कवकों को अलग जगत फंजाई में क्यों रखा गया ?
उत्तर :
ये परजीवी या मृतोपजीवी होते हैं। इनमें प्रकाश संश्लेषण नहीं होता है। इसलिए इसे अलग जगत फंजाई में रखा गया है।
प्रश्न 12.
“प्रोटिस्टा” समूह के दो लक्षण लिखिए।
उत्तर :
- प्रचलन के लिए सीलिया (cilia) अथवा फ्लैजेला (flagella) की उपस्थिति।
- स्वपोषी तथा विविध पोषी दोनों प्रकार के पोषण वाले प्रोटिस्टा जगत के जीव होते हैं। विविध पोषी के अन्तर्गत मृतजीवी (saprophytes) अथवा परजीवी (Parasites) आते हैं।
प्रश्न 13.
विभिन्नता किसे कहते हैं ?
उत्तर :
सजातीय सदस्यों के लक्षणों में जो असमानताएँ या अन्तर होता है, उन्हें विभिन्नता कहते हैं।
प्रश्न 14.
पादप जगत के प्रमुख वर्गों का उल्लेख करो।
उत्तर :
1969 में आर० ह्रिटेकर (R. Whittaker) द्वारा पाँच जगत वर्गीकरण (Five Kingdom Classification) की स्थापना की गई जिन्हें मोनेरा, पोटिस्टा, फंजाई, ए्लांटी तथा एनिमेलिया नाम दिया गया।
प्रश्न 15.
ट्यूनिक्स (Tunics) क्या है ?
उत्तर :
एसिडिएंसी वर्ग के जन्तुओं का शरीर एक आवरण से ढँका रहता है जिसे ट्यूनिक्स कहते हैं। इनका शरीर थैलीनुमा होता है।
प्रश्न 16.
दर्शरूप विभिन्नताएँ किसे क्रहते हैं ?
उत्तर :
दर्शरूप विभिन्नताएँ : जो विभिन्नताएँ जीवों के जीवन काल में वातावरणीय दशाओं की जीवन रीतियों में परिवर्तन के प्रभाव से जीव के शरीर में दिखायी देती हैं उन्हें दर्शरूप विभिन्नताएँ कहते हैं।
प्रश्न 17.
प्रोटिस्टा में किस प्रकार के जीवों को रखा गया ?
उत्तर :
शैवाल, यूग्लीना, अमीबा आंदि जीवों को रखा गया है।
प्रश्न 18.
‘शैवाल”‘ और “‘ब्बायोफाइटा”‘ में दो समानताएँ लिखिए।
उत्तर :
शैवाल और ब्रायोफाइटा में दो समानताएँ :
- शैवाल एवं ब्रायोफाइटा दोनों में स्पोरफिटिक अवस्था पूर्णत: गैमिटोफिटिक अवस्था पर निर्भर होती है।
- शैवाल एवं ब्रायोफाइटा दोनों में गैमिटोफिटिक पौधों में क्लोरोफिल पाया जाता है एवं लैंगिक प्रजनन जाइगोट (2n) के निर्माण द्वारा होता है।
प्रश्न 19.
थैलोफाइटा के तीन विशेषताओं का उल्लेख करो तथा उदाहरण दो।
उत्तर :
- इस उपविभाग के पौधों का शरीर जड़, तना और पत्ती में विभक्त नहीं होते है ।
- इनकी कोशिकाओं में लवक पाये जाते हैं ।
इनके शरीर में उत्तक तंत्र का अभाव होता है । उदाहरंरण : साइरोगाइरा, वालवाक्स आदि।
प्रश्न 20.
जिम्नोस्पर्म तथा एन्जिओस्पर्म में दो समानताएँ बताइए।
उत्तर :
जिम्नोस्पर्म तथा एन्जिओस्पर्म में दो समानताएँ –
- ये पुष्पीय पौधे हैं तथा इनमें बीज का निर्माण होता है।
- स्पोसेकिटिक पौधों का शरीर जड़, तना तथा पत्ता में पूर्णरूप से विभक्त होता है।
प्रश्न 21.
शरीर क्रिया विज्ञान (Physiology) क्या है ?
उत्तर :
जीवों में होने वाली विभिन्न जैविक क्रियाओं, जैसे – श्वसन, पावन, उत्सर्जन आदि का अध्ययन जिस विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है, उसे शरीर क्रिया विज्ञान कहते हैं।
प्रश्न 22.
एक बीजपत्री एवं द्विबीजपत्री में अन्तर लिखो ।
उत्तर :
एक बीजपत्री तथा द्विबीजपत्री में अन्तर :-
एक बीजपत्री | द्विबीजपत्री |
(i) एक बीजपत्री के बीज में एक बीजपत्र पाया जाता है | (i) द्विबीजंपत्री के बीज में दो बीजपत्र पाया जाता है। |
(ii) इनकी पत्तियों में समानान्तर शिरा विन्यास होता है। | (ii) इनकी पत्तियों में जालिकावत शिरा विन्यास होता है। |
(iii) इन पौधों में तंतुमय जड़े पायी जाती है। उदाहरण : धान, गेंहू। | (iii) इन पौधों में मूसला जड़ पायी जाती है| उदाहरण : चना, मटर । |
प्रश्न 23.
घरेलू मक्खी तथा तारा मछली का वैज्ञानिक नाम लिखिए।
उत्तर :
घरेलू मक्खी का वैज्ञानिक नाम – मस्का डोमेस्टिका (Musca domestica)
तारा मछ्ली का वैज्ञानिक नाम – ऐस्टेरिआस रूबेन्स (Asterias rubens)
प्रश्न 24.
विज्ञान की शाखा पारिस्थितिकी (इकोलोजी) में क्या अध्ययन किया जाता है ?
उत्तर :
विज्ञान की शाखा पारिस्थितिकी (इकोलोजी) में जीवों तथा उनके वातावरण के विभिन्न कारकों के बीच पारस्परिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है।
प्रश्न 25.
द्विपाश्र्व सममित किसे कहते हैं ? एक उदाहरण दो।
उत्तर :
द्विपाशर्व सममित : संघ प्लैटीहेल्मिन्थीज के जन्तु चिपटे फीते सदृश परजीवी कृमि होते हैं तथा इनका शरीर द्विपार्थ सममित (bilaterally symmertrical) होता है। इसका उदाहरण है – फीताकृमि, प्लेनेरिया आदि।
प्रश्न 26.
लार्वेसी वर्ग के जन्तुओं का लक्षण बताएँ।
उत्तर :
लार्वेसी वर्ग के जन्तुओं के लक्षण :-
- ग्रसनी के साथ दो गिल स्लिट्स होते हैं।
- आवास, निर्माण, पोषण और प्रचलन में पूँछ सहायक होती है।
प्रश्न 27.
जैव विकास की शाखा में किस विषय का अध्ययन किया जाता है ?
उत्तर :
जैव विकास की शाखा के अन्तर्गत सृष्टि के आरम्भ से अब तक की निम्न श्रेणी के जीवों के परिवर्तनों द्वारा अधिकाधिक जटिल जीवों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अध्ययन किया जाता है।
प्रश्न 28.
आर्थोपोडा संघ के तीन लक्षणों का उल्लेख करो।
उत्तर :
- इन प्राणियों का शरीर सिर, वक्ष तथा उदर में विभाजित होता है ।
- इस संघ के प्राणियों के पाँव जुड़े हुए होते हैं।
- इन प्राणियों में शशन ट्रैकिया तथा उत्सर्जन मालपिजियन नलिकाओं द्वारा होता है।
उदाहरण : तिलचड्टा, घरेलू मक्खी।
प्रश्न 29.
पृथ्वी की उत्पत्ति कब हुई ?
उत्तर :
पृथ्वी की उत्पत्ति 4.5 से 5 अरब वर्ष पूर्व हुई।
प्रश्न 30.
बीज रहित पौधों को किस उपजगत में रखा गया है?
उत्तर :
अपुष्पी।
प्रश्न 31.
स्तनधारी वर्ग की विशेषतायें लिखो।
उत्तर :
इस वर्ग के जन्तु उच्चतापी एवं नयिततापी (stenothermal) होते हैं अर्थात् इनके शरीर का ताप बाहा वातावरण के तापमान परविर्तन के साथ नहीं बदलता है। इनका त्वचा बाल या रोम (hairs) से ढंका रहता है। इनकी त्वचा में स्वेद एवं तैल की ग्रन्थयाँ होती है ।
प्रश्न 32.
पृष्ठ रज्जु क्या है?
उत्तर :
पृष्ठ वंशी जन्तुओ में जीवन की किसी न किसी अवस्था में मध्य पृथक रेखा पर लचीली लम्बी छड़ नुमा संरचना, पायी जाती है जिन्हे पृष्ठ रज्जु कहते हैं।
प्रश्न 33.
वर्गीकरण के पाँच जगत के सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने तथा कब किया? इस क्गीकरण का आधार किन लक्षणों पर निर्भर करता है ?
उत्तर :
आर० एच० ह्विटेकर (R.H. Whittaker) ने सन् 1969 में वर्गीकरण के पाँच जगत के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इस वर्गीकरण का आधार निम्न लक्षणों पर निर्मर करता है :
- शरीर की संरचना,
- कोशिका की संरचना,
- प्रजनन की विधि
- जातिवृतीय सम्बन्ध।
प्रश्न 34.
वर्गिकी (Taxonomy) क्या है ?
उत्तर :
इस शाखा में सभी जीवों के नामकरण तथा वर्गीकरण का अध्ययन किया जाता है। ‘कैरोलस लिनियस’ को वर्गीकरण का जनक कहा जाता है।
प्रश्न 35.
क्रम विकास क्या है ?
उत्तर :
हर्बर्ट स्पेन्सर के अनुसार सरल जीवों की शारीरिक रचनाओं में विभिन्न परिवर्तनों के कारण धीर-धीरे जटिल शरीर तथा अंगों की सृष्टि हुई। जीवों के शरीर में इस प्रकार के परिवर्तनों को क्रम विकास कहते हैं।
प्रश्न 36.
एम्बायोलोजी (Embryology) किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जीव विज्ञान की जिस शाखा में जीव के प्रूण गठन तथा पूर्ण विकास के सम्बन्ध में अध्ययन किया जाता है, उसे एम्बायोलोजी कहते हैं।
प्रश्न 37.
माइक्रोबायोलोज़ी (Microbiology) क्या है ?
उत्तर :
जीव विज्ञान की जिस शाखा में वाइरस, बैक्टीरिया आदि अति सूक्ष्म जीवों के बारे में विस्तृत अध्ययन किया जाता है, उसे सूक्ष जीव विज्ञान (Microbiology) कहते हैं।
प्रश्न 38.
टैक्सन किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कोई जीव या जीव समूह एक निर्दिष्ट समूह के अन्तर्गत हो, उसे टैक्सन कहते हैं। जैसे – आम के पेड़ की प्रजाति।
प्रश्न 39.
उत्तेजनशीलता क्या है ? उदाहरण दें।
उत्तर :
सभी सजीवों में बाह्म एवं आंतरिक उद्दीपनों के प्रति संवेदनशीलता प्रकट करने की क्षमता होती है, जिसे उत्तेजनशीलता कहते हैं। जैसे – छूई-मुई के पत्तों को छूते ही पत्तों का सिकुड़ जाना।
प्रश्न 40.
मोनेरा जगत का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
- मोनेरा जगत के जीवधारियों में एककोशिकीय प्रोकेरियोटिक कोशिका होती है।
- इनके केन्द्रक में केन्द्रक झिल्ली नहीं पायी जाती है ।
- ये मृतोपजीवी, स्वयं पोषी, परजीवी, सहजीवी और स्वरसायन पोषी होते है ।
प्रश्न 41.
शैवाल (Algae) तथा कवक (Fungi) में अन्तर लिखें ।
उत्तर :
शैवाल (Algae) | कवक (Fungi) |
(i) इनमें क्लोरोफिल पाया जाता है। | (i) इनमें क्लोरोफिल का अभाव होता है। |
(ii) ये स्वपोषी होते हैं, अपने भोजन का निर्माण स्वयं कर लेते हैं। | (ii) ये परजीवी या मृतोपजीवी होते हैं। इसमें प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नहीं होती है। |
(iii) ये जल में या मिट्टी पर उगते हैं। | (iii) ये जल, मिट्टी, सजीव या मृत जीवों में मिलते हैं। |
प्रश्न 42.
प्रोटोजोआ (Protozoa) तथा पोरिफेरा (Porlfera) में अन्तर लिखें ।
उत्तर :
प्रोटोजोआ (Protozoa) | पोरिफेरा (Porifera) |
(i) ये एक कोशिकीय प्राणी है। | (i) ये सरलतम बहुकोशिकीय जीव हैं। |
(ii) इनमें नाल तंत्र नहीं पाया जाता है। | (ii) इनमें नालतंत्र पाया जाता है। |
(iii) इनमें प्रचलन के लिए प्रचलन अंग होते हैं। उदाहरण : अमीबा । | (iii) इनमें प्रचलन अंग नहीं होते हैं। उदाहरण : साइकान। |
प्रश्न 43.
उभयचर (Amphibia) तथा सरीसृप (Reptile) में अन्तर लिखें
उत्तर :
उभयचर (Amphibia) | सरीसृप (Reptile) |
(i) इनके हृदय में तीन कक्ष होते हैं। | (i) इनके हुदय में 31/2 कक्ष होते हैं । |
(ii) इनमें गर्दन नहीं पायी जाती है | (ii) इनमें गर्दन पायी जाती है। |
(iii) इनकी त्वचा शल्कविहीन होती है। उदाहरण : टोड | (iii) इनकी त्वचा शल्कयुक्त होती है। उदाहरण : छिपकली। |
प्रश्न 44.
एनिलिडा (Annelida) तथा आर्थोपोडा (Arthopoda) में अन्तर लिखें ।
उत्तर :
एनिलिडा (Annelida) | अर्थोपोडा (Arthopoda) |
(i) इसमें बन्द रक्त परिवहन तंत्र पाया जाता है | (i) इसमें खुला रक्त परिवहन तंत्र पाया जाता है |
(ii) इसका उत्सर्जी अंग नेफ्रिडिया है। | (ii) इसका उत्सर्जी अंग ग्रीन ग्लैण्ड, कॉक्सल ग्लैण्ड तथा मालपिजियन नलिकाएँ हैं। |
(iii) इसका शरीर खण्ड युक्त होता है । उदाहरण : केचुआँ। |
(iii) इसका शरीर सिर, वक्ष और उदर तीन खण्ड होता है। उदाहरण : तिलचट्टा |
संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 4 MARKS
प्रश्न 1.
टैक्सोनॉमी का अध्ययन क्यों आवश्यक है ? इसके कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
टैक्सोनॉमी का अध्ययन आव्रश्यक होने के कारण निम्नलिखित हैं :-
- इससे सजीवों में समानता तथा असमानता का ज्ञान प्राप्त होता है।
- जैव विकास के प्रमाण के लिए टैक्सोनॉमी आवश्यक है।
- इसमें सजीव जगत की विविधताओं की सही पहचान तथा उसका वास्तविक मूल्यांकन किया जाता है।
- संग्रहालयों में पौधों के रख-रखाव के लिए तथा अनुकूलन के लिए टैक्सोनॉमी आवश्यक है।
- नए जीवधारियों के विकास तथा उनकी उपयोगिता का पता टैक्सोनॉमी के अध्ययन से चलता है।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पौधों के वैज्ञानिक नाम लिखिए :-
गेहूँ, धान, मक्का, सरसों, चना, मटर, जूट, कपास, मसूर, आम।
उत्तर :
प्रश्न 3.
द्विपदीय नामकरण क्या है ? इसका नामकरण किसने किया ? द्विपदीय नामकरण के नियम को लिखिए।
उत्तर :
सजीवों की पहचान के लिए एक समान नामकरण की पद्धति विकसित की गई जिसे द्विपद पद्धति (Binomial nomenclature) के नाम से जाना जाता है। इस पद्धति का नामकरण स्वीडेन के वैज्ञानिक “लिने” ने सन्1 753 में किया था।
द्विपद नामकरण का नियम :
- नाम का प्रथम अंश वंशीय नाम तथा बाद वाला अंश जातीय नाम होता है।
- नाम का पहला भाग जीन्स जिसका पहला अक्षर बड़ा तथा दूसरा भाग प्रजाति जिसका सभी अक्षर छोटा में लिखना चाहिए।
- वंशीय तथा जातीय नाम सजीवों की विशेषता, वैज्ञानिक, पर्वत, देश जैसे नामों पर आधारित हो सकती है।
- वंशीय तथा जातीय नाम ग्रीक भाषा या इसी के तर्ज पर रखे जाते हैं।
- इस पद्धति में पूरा नाम अंग्रेजी में झुके हुए अक्षरों में लिखा जाता है। जब इसे हाथ से लिखा जाता है या टाइप किया जाता है तो इसे अंडर लाइन कर दिया जाता है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित फाइलम या समूहों की तीन विशेषताएँ एवं दो उदाहरण वैज्ञानिक नाम के साथ लिखिए – बायोफाइटा, टेरिडोफाइटा, जिम्नोस्पर्म, ऐन्जिओस्पर्म, फंजाई, शैवाल, मोनेरा, प्रोटिस्टा।
उत्तर :
बायोफाइटा (Bryophyta) :
(i) ये पौधे नम तथा छायादार स्थानों पर उगते हैं।
(ii) ये उभयचर पादप या प्रथम स्थलीय पादप कहलाते हैं।
(iii) मुख्य पौधा युग्मकोद्भि (gametophyte) होता है।
उदाहरण : रिक्सिया (Riccia), मॉस (फ्यूनेरिया) आदि।
टेरिडोफाइटा (Pteridophyta) :
(i) मुख्य पौधा बीजाणु उद्भद (sporophyte) होता है। यह वास्तविक जड़, तना, और पत्ती में विभक्त होता है।
(ii) वास्तविक संवहन ऊतक (True vascular tissue) अर्थात् जाइलम तथा फ्लोएम पाया जाता है।
(iii) बीजाणुओं का निर्माण बीजाणुधानियों में होता है।
उदाहरण : लाइकोपोडियम (Lycopodium), ड्रायोप्टेरिस, टेरिस (Pteris), फर्न आदि।
जिम्नोस्पर्म (Gymnosperm) :
(i) इस समुदाय के सदस्य काष्ठीय तथा बहुवर्षीय (perennial) होते हैं।
(ii) ये मरुद्भिद् (xerophytes) होते हैं। इनकी पत्तियाँ छोटी, संकरी या सूई-सदृश्य होती हैं।
(iii) पत्तियों पर उपचर्म का मोटा आवरण होता है। उदाहरण : साइकस (Cycas), चीड़ (Pinus) आदि।
ऐन्जिओस्पर्म (Angiosperm) :
(i) यह वनस्पति जगत का प्रमुख बड़ा समूह है जिसके पौधे सभी स्थानों पर पाए जाते हैं। ये शाक, झाड़ी, वृक्ष, आरोही होते हैं।
(ii) पौधा बीजाणुद्भिद् होता है। पौधं में जड़, तना तथा पत्तियाँ स्पष्ट होती हैं।
(iii) ये एकवर्षीय, द्विवर्षीय तथा बहुवर्षीय होते हैं।
उदाहरण : गेहूँ, चावल, मक्का, गत्रा, घास, जौ आदि एकबीजपत्री पौधे हैं। मटर, चना, अरहर, सरसों, आम, शीशम, नींबू आदि द्विबीजपत्री पौधे हैं।
फंजाई :
(i) फंगल सेलुलोज और काइटिन की बनी कोशिकाभित्ति उपस्थित होती है।
(ii) लवको की अनुपस्थिति के कारण विविधपोषी के अन्तर्गत मृतोपजीवी होते हैं तथा सड़े -गले पदार्थों पर उगते हैं और वहीं से अपने लिए पोषण भी प्राप्त करते हैं।
(iii) ये विषमपोषी यूकैरियोटिक जीव परजीवी अथवा सहजीवी भी हो सकते हैं।
उदाहरण : यीस्ट, मशरूम, पेनिसीलियम आदि।
शैवाल :
(i) इनके शरीर में जड़, तना तथा पत्तियों का अभाव होता है।
(ii) शैवाल नदी, झील, तालाब तथा वृक्षों की छाल या पुरानी इमारतों की नम दीवारों पर पाये जाते हैं।
(iii) ये स्वपोषी होते हैं अर्थात् इनमें पर्णहरिम (क्लोरोफिल) उपस्थित होता है।
उदाहरण : क्लेमाइडोमोनास (Chlamydomonas), क्लोरेला (Chlorella) आदि।
मोनेरा :
(i) इस जगत में प्राचीनतम, सरल तथा प्रोकैरियोटिको को सम्मिलित किया गया।
(ii) ये सभी जगहों पर पाये जाते हैं तथा स्वपोषी या परपोषी हो सकते हैं।
(iii) प्रतिकल परिस्थिति में भी जीवनयापन में समर्थ होते हैं।
उदाहरण : विभिन्न प्रकार के जीवाणु, नील-हरित शैवाल, माइक्रो प्लाज्मा आदि!
प्रोटिस्टा :
(i) इस जगत में जलीय, एक कोशिकीय, सरल तथा यूकैरियोटिकों को जगह दी गई हैं।
(ii) प्रचलन के लिए सीलिया (cilia) अथवा फ्लैजेला (flagella) की उपस्थिति।
(iii) स्वपोषी तथा विविध पोषी दोनों प्रकार के पोषण वाले प्रोटिस्टा जगत के जीव होते हैं। विविध पोषी के अन्तर्गत मृतजीवी (saprophytes) अथवा परजीवी (Parasites) आते हैं। उदाहरण : शैवाल, यूग्लीना, अमीबा आदि।
प्रश्न 5.
सजीव तथा निर्जीव के अन्तरों को स्पष्ट कीजिए :-
उत्तर :
सजीव | निर्जीव |
(i) सभी सजीवों के जीवन का मुख्य लक्षण श्वसन है। | (i) निर्जीवों में श्वसन की क्रिया नहीं होती है। |
(ii) सजीवों का अपना आकार होता है। | (ii) निर्जीव का अपना आकार नहीं होता है। |
(iii) सजीव में ऊर्जा की प्राप्ति के लिए पोषण की क्रिया होती है। | (iii) निर्जीव में पोषण की क्रिया नहीं होती है। |
(iv) सजीवों में गति तथा प्रचलन होता है। | (iv) निर्जीव में गति तथा प्रचलन की क्रिया नहीं होती है। |
(v) जीव द्रव्य के संश्लेषण हेतु सजीवों में अनक जैविक क्रियायें लगातार होती रहती है। | (v) निर्जीव में ऐसी कोई क्रिया सम्भव नहीं है। |
(vi) सजीव में अपने जैसी सन्तान उत्पन्न करने की क्षमता होती है। | (vi) निर्जोव में प्रजनन की क्रिया नहीं होती है। |
(vii) सजीवों में वृद्धि आन्तरिक होती है। | (vii) निर्जीव में वृद्धि बाहरी होती है। |
प्रश्न 6.
सजीवों के प्रमुख लक्षणों के नाम लिखते हुए किसी एक का वर्णन करें।
उत्तर :
सजीवों के प्रमुख लक्षणों के नाम :
- जीवन चक्र (Life Cycle),
- जीवद्रव्य (Protoplasm : Protos = first : plasma = form),
- उपापचय (Metabolism)
- श्वसन (Respiration)
- प्रजनन (Reproduction)
- संवेदनशीलता तथा अनुकूलनशीलता (Sensitivity and Adaptability)
- उद्दीपन (Stimuli)
- रासायनिक संगठन (Chemical Organisation)।
रासायनिक संगठन (Chemical Organisation) : सजीवों और निर्जीव वस्तुओं के बीच पदार्थ के रासायनिक संघठन में अत्यधिक भेद होता है, जब्बकि ‘जीव द्रव्य मुख्यतया बड़े-बड़े कार्बनिक (organic) अणुओं का बना एक जटिल संघटन होता है, समस्त निर्जीव वस्तुओं का पदार्थ सरल और छोटे मुख्यत: अकार्बनिक (Inorganic) अणुओं का असंघठित मिश्रण (mixture) होता है।”
प्रश्न 7.
जीवन की उत्पत्ति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर :
जीवन की उत्पत्ति :- पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विभिन्न दार्शनिको तथा वैज्ञानिकों ने समय-समय पर अपने-अपने मत प्रस्तुत किए हैं। ये मत निम्न प्रकार से प्रस्तुत किये गये हैं :-
(i) स्वत: जननवाद (Theory of spontaneous generation) – इस मत के विचारकों के अनुसार जीवन की उत्पत्ति अपने आप अजीवी पदार्थों से हुई है।
(ii) विशिष्ट सृष्टिवाद (Theory of special creation) :- इस मत के अनुसार पृथ्वी पर जीवों की उत्पत्ति किसी अलौकिक शक्ति के द्वारा हुई है। पादरी स्वरेज के अनुसार सृष्टि का निर्माण ईंभर ने छ: प्राकृतिक दिनों में किया था।
(iii) कोस्मोजोइक सिद्धान्त (Cosmozoic Theory) :- अर्हिनियम, रिचटर, प्रेयर आदि वैज्ञानिकों ने कोस्मोजोइक सिद्धान्त प्रस्तुत किया था। इन वैज्ञानिकों ने जीवन उत्पत्ति सम्बन्धी दो बाते प्रस्तुत की –
- जीव की उत्पत्ति नहीं हुई बल्कि पदार्थ की तरह यह सदा विद्यमान रहा है तथा
- जीव की उत्पत्ति अन्य ग्रहों पर हुई और वहाँ से धरती पर स्थानान्तरित हुए।
(iv) आकस्मिक उत्पत्ति (Sudden Creation) – इस मत के अनुसार जीव का विकास अकार्बनिक वातावरण में हुआ होगा, परन्तु आधुनिक जीव-रसायन के अनुसार सरलतम जीव अर्थात् जीवाणु आदि भी जलिट प्रकृति के हैं। अत: अकार्बनिक यौगिकों द्वारा कोशिका के निर्माण की सम्भावना बहुत ही कम है।
(v) प्राकृतिकवाद का सिद्धान्त (Naturalistic Theory) :- इस सिद्धान्त के अनुसार सबसे पहले जीव की सृष्टि पृथ्वी पर जल में हुई। फिर पृथ्वी पर विभिन्न परिवर्तनों के फलस्वरूप भौगोलिक परिस्थितियाँ बदलती गयी। इसके फलस्वरूप जलवायु में परिवर्तन हुआ। इन परिवर्तनों के फलस्वरूप साधारण जीवों से जटिल जीवों की उत्पत्ति होती गई। यह परिवर्तन धीमी गति से लम्बी अवधि तक होता रहा तथा क्रमशः उच्च जीवों की उत्पत्ति होती रही।
प्रश्न 8.
आदि कोशिका की उत्पत्चि का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर :
आदि कोशिका की उत्पत्ति : इस अवस्था में कोसरवेट्स के अन्दर आन्तरिक सांगठनिक व्यवस्था प्रारम्भ हुई। इसमें वृद्धि, प्रजनन, उत्परिवर्तन और विकास की क्षमता उत्पश्न हो गई। अब न्यूक्लिक अम्ल प्रोटीन के साथ मिलकर न्यूक्लिओम्रोटीन का निर्माण किये होंगे। इसके चारों ओर एक झिल्ली जैसी रचना बनी। इस प्रकार विषाणु (वायरस) से मिलती-जुलती रचना बनी। इसमें उपापचय (Metabolism) की क्षमता आ गई।
इस प्रकार आदि कोशिका का निर्माण हुआ। वे प्रारम्भिक जीव मृतोपजीवी रहे होंगे। इनमें न्यूक्लियोप्रोटीन बिखरे थे। अर्थात् इनमें केन्द्रक का अभाव था। आज भी जीवाणु और नील हरित शैवालो (Blue green algae) में सष्ट केन्द्रक नही मिलता है। इसके बाद वातावरण के अन्य अणु आदि कोशिका के मध्य में एकत्र होकर एक अन्य झिल्ली का निर्माण किये। इससे केन्द्रक झिल्ली बनी। इस झिल्ली के अन्दर जीवद्रव्य का निर्माण हो गया। इस प्रकार केन्द्रक युक्त आधुनिक कोशिका बन गई। निर्जीव वस्तुओं से सजीव की उत्पत्ति में लगभग दो अरब वर्ष लग गए।
प्रश्न 9.
विभिन्नता किसे कहते हैं ?
उत्तर :
विभिन्नता : सजातीय सदस्यों के लक्षणों में जो भी अन्तर या असमानताएँ (dissimilarities) होती हैं उन्हें विभिन्नताएँ कहते हैं। वे संरचनात्मक (morphological), क्रियात्मक (Physiological), मनोवैश्ञानिक (psychological) आदि सभी प्रकार के लक्षणों में हो सकती है।
संरचनात्मक विभिन्नताओं में शरीर या अंगों की आकृति, रूप-रंग, गठन आदि की, क्रियात्मक विभिन्नताओं में वृद्धि, पाचन, श्वसन, जनन, गमन, स्वास्थ्य आदि जैव-क्रियाओं की क्षमताओं के तथा मनोवैशानिक विभिन्नताओं में स्वभाव, प्यार, ममता, घृणा, क्रोध आदि की भावनाओं के लक्षण आते हैं। सजातीय सदस्यों की विभिन्नताएँ, वातावरणीय दशाओं के अनुसार, लाभदायक या हानिकारक हो सकती है।
प्रश्न 10.
स्रोत के आधार पर विभिन्रता को कितने भागों में बाँटा गया है ? किसी एक का वर्णन करें।
उत्तर :
सजीवों में विभिन्नताओं के स्रोत (Sources of Variations in Life) :
- कायिक या उपार्जित विभिन्नताएँ (Somatogenic Somatic or Acquired Variations)
- जननिक या भ्रूणीय विभिन्नताएँ (Germinal or Blastogenic Variations)
जननिक या भूणीय विभिन्रताएँ (Germinal or Blastogenic Variations) : ये जीन-ढाँचे (genepattern) पर आधारित वंशागत विभिम्नताएँ होती हैं। लैंगिक जनन की प्रक्रिया ऐसी होती है कि इससे बनी सन्तानो के जीन ढाँचे समान नहीं हो सकते। इसीलिए, भाई-बहनों में परस्पर विभिन्नताएँ होती है। इनमें कुछ जैसे बालों, आँखों की पुतली आदि का रंग, तो जन्म से ही दिखायी देने लगती हैं, लेकिन कुछ जन्म के कुछ समय बाद, विभिन्न आयु में प्रकट होती हैं, जैसे कि शरीर की लम्बाई, विविध अंगों की आनुपातिक माप (proportionate size) आदि।
सजातीय सदस्यों में समान जीन्स के लक्षणों के प्रदर्शन में भी विभिन्न वातावरणीय दशाओं के प्रभाव से असमानताएँ हो सकती हैं। इसीलिए कायिक एवं जननिक विभिन्नताओं में पहचान करना कठिन होता है। यह भी सम्भव है कि कुछ स्थिर वातावरणीय दशाओं के प्रभाव से पीढ़ी-दर-पीढ़ी विकसित होते हुए कुछ लक्षण जीन्स को प्रभावित करके इनमे उपयुक्त रासायनिक परिवर्तन कर दें और जननिक बन जायें। पृथ्वी पर प्राय : 30 मिलियन प्रजातियाँ (Spacies) हैं, उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट होता है कि सभी प्रजातियों के जीवों में परस्पर विभिन्नताएँ व्याप्त हैं।
प्रश्न 11.
जीव विज्ञान का अध्ययन क्यों किया जाता है ?
उत्तर :
जीव विज्ञान के अध्ययन के निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य हैं –
- प्रकृति के उन नियमों का ज्ञान प्राप्त करना जिनके आधार पर सजीवों (जन्तुओं एवं पौधों का जीवन-यापन होता है।)
- संरचना, वासस्थान, जीवन-स्थिति, जनन एवं परिवर्द्धन की दृष्टि से जन्तुओं एवं पौधों की विविधताओं से परिचित होना।
- लाभदायक एवं हानिकारक जीवधारियों के प्रति संचित और तर्क संगत ज्ञान प्राप्त करना और मानव एवं उसके पर्यावरण के हित में उनके प्रयोग की जानकारी करना।
- मानव कल्याण के लिए सजीवों का उपयोग करना।
- विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में जीव विश्रान को उपयोगी बनाना।
- वातावरणीय प्रदूषण तथा उसके निवारण सम्बन्धी उपायों की जानकारी करना।
- विभिन्न राष्ट्रीय योजनाओं जैसे – बढ़ती हुई जनसंख्या पर नियंत्रण, स्वास्थ्य सुधार की योजनाएँ, खाद्य समस्या का हल आदि के प्रति सचेष्ट रहना और उनमें सहायता करना।
प्रश्न 12.
वर्गिका (टैक्सोनॉमी) क्या है ? टैक्सोनॉमी की आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर :
वर्गिकी (टैक्सोनॉमी) :- टैक्सोनोमी शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों क्रमशः Taxis तथा Nomous से निर्मित है जिनके अर्थ अलग-अलग समूहों में सजावट तथा अध्ययन करना है। जीवों की पहचान, नामकरण तथा वर्गीकरण को टैक्सोनॉमी कहा जाता है। कार्ल वान लिने ‘वर्गीकरण विज्ञान के जनक’ कहलाते हैं।
टैक्सोनॉमी की आवश्यकता :- नए पौधों की खोज के लिए, संग्रहालयों में पौधों के रख-रखाव के लिए, जैविक विकास के प्रमाण के लिए, अध्ययन की सुविधा के लिए तथा अनुकूलन के ज्ञान के लिए टैक्सोनॉमी आवश्यक है।
प्रश्न 13.
वर्गीकरण का जनक किसे और क्यों कहा गया है ? समझाइए।
उत्तर :
कैरोलस लिनियस (Carolus Linnaeus – 1707-1778) को वर्गीकरण का जनक कहा जाता है। लिनियस ने वर्गीकरण के सोपान की रचना की जिसके अन्तर्गत सभी जीवों को दो भागों क्रमश: – वनस्पति जगत तथा जन्तु जगत में विभक्त किया गया। वर्गीकरण की इकाई प्रजाति (Species) को माना गया। उन्होंने पादप जगत को दो विभागों में बाँटा – क्रिप्टोगैमस (Cryptogames) तथा फेनरोगैमस (Phanerogames), प्राणी जगत भी 6 वर्गों में बाँटा गया है जो क्रमशः इस प्रकार है –
- स्तनपायी (Mammalia)
- पक्षी (Aves)
- उभयचर (Amphibia)
- मत्स्य (Pisces)
- कीट (Insects)
- वर्मिस (Vermis)। कैरोलस लिनियस ने “सिस्टेमा नेचुरी” (System Natural) नामक पुस्तक को दस संस्करणों में प्रकाशित किया।
प्रश्न 14.
जीव के पाँच जगत का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर :
सभी सजीवो को पाँच जगत में बाँटा गया है जिनकी विशेषताएं निम्न है :-
(i) मोनेरा : इस जगत में पाये जाने वाले जीव प्राचीनतम, सरल तथा प्रोकैरियोटिक हैं। ये सभी जगहों पर पाये जाते हैं। ये स्वपोषी तथा परपोषी दोनों हो सकते हैं। ये प्रतिकूल परिस्थिति में भी अपना जीवन-यापन करने में समर्थ हैं। जैसे जीवाणु, नील-रहित शैवाल आदि।
(ii) प्रोटिस्टा : इस जगत में पाये जाने वाले जीव एक कोशिकीय, सरल तथा यूकैरियोटिक होते हैं। इनमें सीलिया तथा फ्लैजिला द्वारा प्रचलन की क्रिया होती है। इनमें स्वपोषी तथा विविधपोषी दोनों प्रकार का पोषण होता है। जैसे – यूग्लिना, अमीबा, शैवाल आदि।
(iii) फंगी : इस जगत में पाये जाने वाले जीवों में क्लोरोफिल नहीं पायी जाती है । इसलिए ये अपना भोजन निर्जीव पदार्थों से प्राप्त करते हैं अर्थात् ये मृतोपजीवी होते हैं। ये सड़े-गले पदार्थों पर उगते हैं तथा वहीं से अपने पोषक तत्वों को प्राप्त करते हैं। इनमें कोशिकाभित्ति उपस्थित होती है। जैसे – पेनिसीलिया, यीस्ट, मशरूम आदि।
(iv) प्लांटो : इस जगत के जीव बहुकोशिकीय तथा यूकैरियोटिक होते हैं। ये स्वपोषी होते हैं। इनमें प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होती है। ये जलीय तथा स्थलीय दोनों होते हैं।
(v) एनिमेलिया : इस जगत में पाये जाने वाले अधिकांश जीव बहुकोशिकीय तथा यूकैरियोटिक होते हैं। इनमें क्लोरोफिल का अभाव होता है, इसलिए ये स्वपोषी नहीं होते हैं। इनकी कोशिकाओं में कोशिकाभित्ति अनुपस्थित होती है।
प्रश्न 15.
आर्थोपोडा संघ के जन्तुओं के सामान्य लक्षण तथा इस संघ के कुछ जन्तुओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
आर्थोपोडा संघ के जन्तुओं के सामान्य लक्षण :
- ये हवा, जल तथा जमीन पर पाये जाते हैं।
- इनके शरीर सिर, वक्ष तथा ऊदर में विभक्त हैं।
- ये एकलिंगी होते हैं।
- इनमें जुड़े हुए पैर पाये जाते हैं।
- इनमे विभिन्न प्रकार के तन्त्र विकसित होते हैं।
- इनका उत्सर्जी अंग मैलपीजियन नलिकाएँ या हरित ग्रन्थियाँ हैं।
जैसे – तिलचट्टा, मकड़ी, झिंगा, केकडा, टिड़ा आदि।
प्रश्न 16.
उभयचर वर्ग के जन्तुओं के सामान्य लक्षण लिखिए। इस वर्ग में पाये जाने वाले कुछ जन्तुओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
उभयचर वर्ग के जन्तुओं के सामान्य लक्षण :
- इस वर्ग के जन्तु जल तथा स्थल दोनों में निवास करते हैं, इसिलए इन्हें उभयचर कहा जाता है।
- ये शीत रक्त वाले अण्डज प्राणी होते हैं।
- इनका शरीर सिर तथा धड़ में विभक्त होता है।
- इनके बदय में तीन प्रकोष्ठ होते हैं जिनमें मिश्रित रक्त का परिवहन होता है।
- इनमें श्वसन की क्रिया त्वचा, गलफड़ और फेफड़ा द्वारा होती है।
- ये एकलिंगी होते हैं। इनमें बाह्य निषेचन होता है। जैसे – मेढ़क, टोड आदि।
प्रश्न 17.
स्तनधारी वर्ग के जन्तुओं की प्रमुख विशेषताएँ तथा इस संघ के कुछ जन्तुओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
स्तनधारी वर्ग के जन्तुओं की प्रमुख विशेषताएँ :
- इस वर्ग के जन्तु सबसे अधिक विकसित होते हैं।
- ये उष्ण रक्त वाले जन्तु होते हैं।
- इनकी त्वचा पर बाल के साथ-साथ स्वेद व तेल ग्रन्थि भी पायी जाती हैं।
- इन जंतुओं के मादा में स्तन ग्रंथियाँ पायी जाती हैं। इनसे दूध स्रावित होता है।
- ये मुख्यत: स्थलीय तथा कुछ जलीय भी होते हैं।
- इनमें तंत्रिका तंत्र पूर्ण विकसित होता है।
- इनका श्वसन अंग फेफड़ा है।
- इनके हृद्य में चार प्रकोष्ठ होते है – दो आलिन्द तथा दो निलय।
उदाहरण – मनुष्य, गाय, बिल्ली आदि।
प्रश्न 18.
पादप जगत के वर्गीकरण की रूपरेखा प्रस्तुत करो।
उत्तर :
पादप जगत या प्लांटी का वर्गीकरण (Classification of Plant Kingdom) : पादप जगत निम्न चार लक्षणों के आधार पर पाँच उपजगतों में विभाजित किया गया है –
(i) शैवाल (Algae) :
- इस प्रभाग के पौधों में जड़, तना और पत्तियाँ नहीं मिलती हैं, अर्थात् इनमें थैलस (Thallus) मिलता है।
- इन पौधों में ऊतकों का विभेदीकरण नहीं होता है।
- ये प्रायः जल में पाए जाते हैं।
- इनमें जनन अंगों का अभाव होता है।
जैसे – वालवाक्स, यूलोथिक्स और स्पाइरोगाइरा आदि।
(ii) ब्रायोफाइटा (Bryophyta) :
- इस प्रभाग के पौधों में तना और पत्ती जैसी रचना मिलती हैं। परन्तु वास्तविक मूल नहीं मिलता है।
- इनके शरीर में पदार्थों के संवहन के लिए विशिष्ट ऊतक मिलते हैं।
- ये पौधे नम एवं छायादार स्थानों पर मिलते है। इसलिए इन्हे पादप वर्ग का उभयवर (Amphibia) कहते हैं।
- इनके नर जन अंग एंथिरिडिया (Antheridia) और मादा जनन अंग आर्किगोनिया (Archegonia) हैं।
जैसे – माँस (फ्यूनेरिया), रिक्सिया और मार्किन्शिया आदि।
(iii) टेरिडोफाइटा (Pteridophyta) :
- इस वर्ग के पौधों में जड़, तना, पत्तियाँ स्पष्ट होती हैं।
- इनके संवहन ऊतक जाइलम और फ्लोएम अल्प विकसित होते है।
- ये जल और स्थल दोनों स्थानों पर मिलते हैं।
- इसके नर जन अंग एथिरिडिया (Antheridia) और मादा जनन अंग आर्किगोनिया (Archegonia) हैं।
- इनमें पुष्प, फल और बीज नहीं मिलते हैं। जैसे – फर्न, सिलेजिनैला, लाइकोपोडियम और इक्वीसाटम।
(iv) जिम्नोस्पर्म (Gymnosperm) :
- इस प्रभाग के पौधे में बहुवर्षीय, सदाबहार वृक्ष हैं। इनमें जड़, तना और पत्तियाँ पूर्ण विकसित होती है।
- संवहन ऊत्तक पूर्ण विकसित होते है।
- ये केवल स्थल पर मिलते है।
- इनमें जननांग शंकु (cone) की आकृति के होते हैं।
- ये नग्नबीजी पौधे होते हैं अर्थात् इनमें फल नहीं मिलता हैं। जैसे – साइकस और पाइनस।
(v) एंजियोस्पर्म (Angiosperm) :
- इस प्रभाग के पौधे एकवर्षीय, द्विवर्षोय तथा बहुवर्षीय होते हैं। इनमें जड़, तना और पत्तियाँ पूर्ण विकसित हैं।
- इनमें संवहन ऊतक पूर्ण विकसित होते हैं।
- ये जल और स्थल दोनों स्थानों पर मिलते हैं।
- ये पौधे आवृतबीजी होते हैं। इनके जननांग पुमंग और जायांग है।
- इनमें फूल, फल और बीज मिलते है। ये एक बीजपत्री (Monocotyledons) या द्विबीजपत्री (dicotyledons) दो प्रकार के होते है।
जैसे – एकबीज पत्री गेहूँ और द्विबीज पत्री – मटर।
पादप जगत को पहचान कराने वाले चार लक्षण :
- ये वहुकोशिकीय यूकेरियोटिक और उतक तथा उतक तंत्र रखने वाले हैं।
- परिपक्व कोशिकाओं में रसधानी और कोशिका मिश्र पायी जाती है।
- ये स्वपोषी होते हैं अर्थात् इनमें प्रकाशंश्लेषण की क्रिया होती है।
- इकोतंत्र में ये उत्पादन होते है ।
प्रश्न 19.
जन्तु-जगत के उपजगत-नॉन कार्डेटा के विभिन्न संघों का लक्षण बताइए।
उत्तर :
उपजगत नॉन कार्डेटा – इसे निम्न संघों में विभाजित किया गया है –
(i) संघ पोरीफेरा (Phylum-Porifera) :
- जन्तु बहुकोशीय और अचल होते हैं।
- इनके शरीर पर कंटिकाएँ या स्पंजी तन्तुओं का वाह्य ककाल (Exoskleton) होता है ।
- शरीर में आस्टिया नामक छिद्र पाये जाते है । उदाहरण : साइकान
(ii) संघ-निडेरिया (Phylum-Cnidaria) :
- इनका शरीर दोस्तरीय (diploblastic) होता है। इसमें वाह्म स्तर को वाह्य त्वघा (Ectodermis) तथा भीतरी स्तर को गेस्ट्रोडर्मिस (gastrodermis) कहते हैं। इन दोनों स्तरों के मध्य में मीसोग्लिया नामक पदार्थ रहता है।
- इनके शरीर के अगले सिरे पर स्पर्शकों (Tenticies) द्वारा घिरा हुआ मुँह होता है।
- इनके शरीर में पैरागैस्ट्रक नाम की एक गुहा पायी जाती है । उदाहरण : हाइड्रा।
(iii) टेनोफोरा (Ctenophora) :
- इस संघ के जन्तुओं का शरीर द्विअर्द्रव्यासीय सिमेट्री का होतो है ।
- इनके शरीर पर कोलोप्लास्ट नामक चूषक रचना पायी जाती है। उदाहरण :हीनोप्लाना।
- सिलियरीप्लेद्स की आट कतारे होती है।
(iv) संघ प्लेटीहेल्मन्थीस (Phylum-Platyhelminthes) :
- जन्तुओं का शरीर फीते की तरह चपटा होता है।
- शरीर एक्टोडर्म, मिजोडर्म और एण्डोडर्म अर्थात् तीन स्तरों से बना होता है, परन्तु इसमें देहगुहा नहीं होती है।
- इनमें हूक्स (hooks) और चूषक (suckers) पाये जाते हैं । उदाहरण : टेपवर्म।
(v) संग नीमेटोडा बा एस्केहेल्मन्थीस या गोलकृमि (Phylum – Nematoda or Aschelminthes or Nemathelminthes or Round ward) :
- इनका शरीर लम्बा, बेलनाकार, धागेनुमा, खण्डरहित और दोनों सिरों पर नुकीला होता है।
- इन परजीवी जन्तुओं के शरीर पर चमकदार क्यूटिकिल का आवरण होता है।
- शरीर में एक सुडोडाहा उपस्थित होती है। उदाहरण : ऐस्कोरिस ।
(vi) संघ एनिलिडा (Phylum – Annelida) :
- जन्तु लम्बे, बेलनाकार और छल्लेदार, खण्ड युक्त शरीर वाले तथा त्रिस्तरीय होते हैं।
- इनमें पाचन, संवहन, उत्सर्जन, जनन और तंत्रिका-तंत्र पाए जाते हैं। उदाहरण : केंचुआ।
(vii) संघ-आर्थोपोडा (Phylum – Arthropoda) :
- इनका शरीर, सिर, वक्ष और उदार में विभाजित रहता है।
- इनका शरीर काइटीन की बने वाह्म कंकाल (Exoskleton) से घिरा रहता है जो समय-समय पर उतरता रहता है।
- इनमें पैर जोड़युक्त (Jointed) होती हैं । उदाहरण : तिलचट्टा ।
(viii) संघ मोलस्का (Phylum – Mollusca) :
- जन्तुओं का शरीर कोमल और खण्ड रहित होता है। इस पर खण्ड युक्त उपांग नहीं पाये जाते हैं।
- शरीर, सिर, पाद, पिंडक इन तीन भागों में विभक्त रहता है।
- शरीर मैंटल (Mantle) से ढका रहता है । जैसे – पाइला।
(ix) इकाइनोडरमेटा (Echinodermata) :
- इनकी त्वचा कंटिका युक्त होता है ।
- आहार नली कुंडलित होती है ।
- उत्सर्जी अंग नहीं पाये जाते हैं । उदाहरण : तारा मछली।
(x) हेमीकार्डेटा (Hemichordata) :
- इनका शरीर मुलायम और वाह्यकंकाल रहित होता है ।
- प्रोवोसिसिक, कालर और धड़ नामक तीन खण्डों में शरीर विभाजित होता है ।
- गिलस्लिट उपस्थित होती है । उदाहरण : बेलानोग्लोसस।
प्रश्न 20.
शैवाल, कवक से किस प्रकार भिन्न है ? एक-एक उदाहरण द्वारा समझाओ।
उत्तर :
शैवाल (Algae) | कवक (Fungi) |
(i) ये पानी में या नम मिट्टी पर उगते हैं। | (i) ये पानी, मिट्टी तथा सजीव या मृत जीवों में मिलते हैं। |
(ii) इनमें पर्णहरित (Chlorophyll) पाया जाता है। | (ii) इनमें पर्णहरित नहीं होता है। |
(iii) ये स्वपोषी होते हैं और प्रकाश संश्लेषण करते हैं। | (iii) ये परजीवी या मृतोपजीवी होते हैं। इनमें प्रकाश संश्लेषण नहीं होता है। |
(iii) ये स्वपोषी होते हैं और प्रकाश संश्लेषण करते हैं। | (iv) इनमें कोशिका भित्ति म्यूकोपेप्टाइड और वसा की बनी होती है। |
(iii) ये स्वपोषी होते हैं और प्रकाश संश्लेषण करते हैं। | (v) इसमें संचित भोजन ग्लाइकोजेन या वसा के रूप में होता है। उदाहरण : यीष्ट। |
प्रश्न 21.
निम्नलिखित प्राणियों के वैज्ञानिक नाम लिखिए :-
तिलचट्टा, शेर, मनुष्य, कुत्ता, बिल्ली, गाय, मेढक, मक्खी, चूहा, रोहू
उत्तर :
प्रश्न 22.
पक्षी वर्ग की विशेषताओं को लिखो। जन्तु-जगत का सबसे बड़ा संघ कौन-सा है ?
उत्तर :
इस वर्ग के अन्तर्गत लगभग 8000 जातियाँ आती हैं। पक्षी वायवीय जीवन (aerial mode of life) के लिए अनुकूलित होते हैं। इनके मुख्य लक्षण निम्न हैं –
(i) पक्षी समतापी (warm blooded) होते हैं।
(ii) अग्रपाद (fore limbs) रूपान्तरित होकर पंख (wings) बनाते हैं। पंख कोमल परों (feathers) से बने होते हैं।
(iii) जनन छिद्र तथा गुदा (anus) पृथक-पृथक नहीं होते। ये क्लोएका छिद्र द्वारा खुलते हैं और पक्षी एकलिंगी (unisexual) तथा अण्डज (oviparous) होते हैं। उदाहरण: कबूतर (columba livia), तोता (pisttacula), कौआ (Corvus), कीवी (Apterys), शुतुरमुर्ग (Ostrich struthio), घरेलू चिड़िया (Passer domestica) आदि।
प्रश्न 23.
मानव कल्याण में जीव विज्ञान की उपयोगिता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
मानव कल्याण में जीव विज्ञान की उपयोगिता :-
(i) कृषि के क्षेत्र में : जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ पोषण के लिए खाद्यात्र का उपज बढ़ना भी आवश्यक है। अधिक उत्पादन के लिए उन्नत किस्म के बीजों द्वारा खाद्यान्न में सुधार लाया गया तथा पशु-पालन की नस्ल में भी सुधार किया गया। जिसके फलस्वरूप भोजन की समस्या से निपटने में सहायता मिली है।
(ii) स्वास्थ्य : नयी-नयी औषधियों का निर्माण करके नये-नये रोगों का उपचार किया जाता है। असाध्य रोगों तथा मानव स्वास्थ्य रक्षा के लिए औषधि पौधों तथा रसायनों की सहायता से औषधियाँ विकसित की गई।
(iii) अन्तरिक्ष विज्ञान : अत्याधुनिक तकनीकी के प्रयोग द्वारा हम अन्तरिक्ष के वातावरण के सम्बन्ध में अपनी जानकारी दिन-प्रतिदिन बढ़ा रहे हैं। इसके कारण ही चन्द्रमा पर मानव का अवतरण हो चुका है।
(iv) पेशा : जन्तु चिकित्सा, मानव चिकित्सा, कृषि कार्य, मछली-पालन, शिक्षण, आविष्कार जैसे पेशों के लिए जीव विज्ञान आधार का कार्य करता है।
(v) प्रदूषण नियंत्रण : प्रदूषण नियंत्रण में जीव विज्ञान की मुख्य भूमिका है। सड़कों के किनारे वृक्षारोपण, वनांचल विकास आदि कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं।
(vi) उद्यान-विज्ञान : फल, सज्जियाँ, फूल तथा सजावटी पौधों को उगाने का विज्ञान ही उद्यान विज्ञान कहलाता है। विभिन्न प्रकार के उद्यानों को विकसित करके हम सीधे प्रकृति के सम्पर्क में आकर प्राकृतिक दृश्यों का आनन्द उठाते हैं।
(vii) घरेलू जीव विज्ञान : घरेलू जीव विज्ञान के अन्तर्गत घरेलू पशुओं, कीड़े-मकोड़ों से मनुष्य की सुरक्षा तथा सामानों की रक्षा के उपायों का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार हर क्षेत्र में जीव विज्ञान की उपोयगिता है।
प्रश्न 24.
‘वर्गीकरण के सोपान’ की परिभाषा लिखो। सजीव एवं निर्जीव में पाँच अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर :
जीवधारियों के वर्गीकरण में जाति (Species) मूल इकाई होती है। जीवधारियों के समूह को जिसके सदस्य प्राकृतिक रूप से परस्पर लैंगिक प्रजनन करके जनन में सक्षम संतानों को उत्पन्न करते हैं, जाति कहते हैं। विभिन्न सम्बन्धित जातियों के समूह को वंश (Genus) कहते हैं। एक ही वंश की विभिन्न जातियों में अनेक समानता देखने को मिलती है।
सजीव एवं निर्जीव में अन्तर :
सजीव | निर्जीव |
(i) सजीव जीवधारी होते हैं। इनमें श्वसन क्रिया होती है। | (i) निर्जीव प्राणहीन होते हैं। इनमें श्वसन क्रिया नहीं होती है। |
(ii) सजीवों का अपना आकार होता है। | (ii) निर्जीवों का अपना आकार या आयतन नहीं होता है। |
(iii) सजीवों के अन्दर संवेदना होती है अत: इनमें उत्तेजन शीलता होती है। | (iii) निर्जीव संवेदन विहीन होते हैं। |
(iv) सजीवों में गति एवं प्रचलन होता है। | (iv) निर्जीवों में गति एवं प्रचलन की क्रिया सम्भव नहीं है। |
(v) सजीवों में शारीरिक वृद्धि होती है। | (v) निर्जीव में कोई वृद्धि नहीं होती है। |
प्रश्न 25.
संघ कार्डेटा के अन्तर्गत स्केनिया समूह के सभी उपसंघों के लक्षण लिखिए –
उत्तर :
समूह- स्क्रिनिया (Scrania) – इस समूह को निम्न तीन उपसंघों में बाँटा गया है :-
A. उपसंघ – हेमीकार्डेटा (Hemi Chordata) :- ये एकलिंगी होते हैं। इनमें अन्त: तथा बाह्या कंकाल नहीं होता है तथा ग्रसनी के बाहर की ओर ग्रसनीय क्लोम दरारे पायी जाती हैं। इनका शरीर -शुंड़, कॉलर तथा धड़ में बँटा होता है। ये समुद्र में कृमि के रूप में पाये जाते हैं। जैसे – बैलनोग्लासस।
B. उपसंघ- यूरोकार्डेटा (Urochordata) : ये द्विलिगी होते हैं। इनमे ग्रसनीय क्लोम दरारें पायी जाती हैं। नोटोकोंड शिशु अवस्था में पाया जाता है। जैसे- एसीडिया, साल्पा आदि।
C. उपसंघ – सिफैलोकार्डेटा (Cepholochordata) : ये एकलिंगी होते हैं। ग्रसनीय क्लोम दरारें स्पष्ट रूप से पायी जाती हैं। इनमें नोटोकार्ड जीवन भर पाया जाता है। ये समुद्र में स्वतंत्र रूप में रहते हैं। जैसे :- ब्रैन्किओस्टोमा, एम्फिआक्सस आदि।
प्रश्न 26.
मोलस्का संघ के जन्तुओं के लक्षण तथा मोलस्का संघ के कुछ जन्तुओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
मोलस्का संघ के जंतुओं के लक्षण :
- इस संघ के जन्तु स्थल, मीठे पानी या समुद्र में मिलते है।
- इनका शरीर कोमल तथा खण्ड रहित होता है।
- ये एकलिंगी या अण्डज होते हैं। अधिकांश जंतुओं में कवच उपस्थित रहता है।
- शरीर पतले आवरण मेण्टल से ढ़का होता है।
- आहार नाल पूर्ण होते हैं। रक्त परिवहन तंत्र विकसित होते हैं।
- इनमें श्वसन की क्रिया गलफड़ों अथवा फेफड़ों द्वारा होती है। जैसे – घोंघा, सीप, सीपिया आदि।
प्रश्न 27.
सोलेण्ट्रेटा संघ के जन्तुओं का उदाहरण सहति प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर :
सोलेण्ट्रेटा संघ नाइडेरिया के नाम से भी जाना जाता है।
सोलण्ट्रेटा संघ के जन्तुओं के लक्षण :
- ये अधिकांश जन्तु समुद्री होते है, कुछ जन्तु स्वच्छ जल में भी पाये जाते हैं।
- इस संघ के जन्तु बहुकांशिकीय होते हैं। इसके अन्दर एक गुहा पायी जाती है जिसे अन्तर गुहा कहते हैं।
- शरीर का गठन उत्तक स्तर का होता है।
- इस संघ के जन्तुओं में लैंगिक तथा अलैंगिक दोनों प्रकार की प्रजनन क्रिया होती है ।
उदाहरण – हाइड्रा, जैलीफिश, समुद्री एनीमेन आदि।
प्रश्न 28.
संघ इकाइनोडरमेटा के सामान्य लक्षण तथा इस संघ के कुछ जन्तुओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
संघ इकइनोडरमेटा के सामान्य लक्षण :
- इस संघ के जन्तुओं का शरीर गोलाकार, नालाकार या तारों की तरह होता है।
- ये जन्तु समुद्री होते है तथा इनकी त्वचा पर कंटिकायें मिलती हैं।
- इनमें लेंगिक प्रजनन की क्रिया होती हैं।
- आहारनाल प्राय: कुण्डलित होता है।
- इनम उत्सर्जन अंग नहीं होता है तथा तन्त्रिका तंत्र कम विकसित होता है।
- ये एकलिंगी होते हैं, अर्थात् नर तथा मादा अलग-अलग पाये जाते हैं।
जैसे :- तारामछली, समुद्री खीरा आदि।
प्रश्न 29.
संघ-प्लैटिहेल्मिन्यीज के सामान्य लक्षण लिखिए तथा इस संघ के जन्तुओं के कुछ नाम लिखिए।
उत्तर :
संघ प्लैटिहेल्मिन्यीज के सामान्य लक्षण :
- इस संघ के अधिकांश जन्तु परजीवी तथा कुछ स्वतंत्रंजीवी होते है।
- इस संघ के अधिकांश जन्तु उभयलिंगी होते हैं।
- ये चिपटे फीते सदृश परजीवी कृमि होते हैं।
- इनमें श्वसन तंत्र, रक्त परिवहन तंत्र आदि अनुपस्थित होते हैं।
जैसे :- फीताकृमि, प्लेनेरिया आदि।
प्रश्न 30.
आथुनिक जीव विज्ञान की विभित्र शाखाओं में उपयोग का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर :
- रेशम कृषि विज्ञान (Sericulture) : इस शाखा में रेशम कीट पालन, रेशम उत्पादन तथा रेशम संग्रह आदि का अध्ययन किया जाता है।
- मधुमक्खी पालन विज्ञान (Apiculture) : इस शाखा में मधुमक्खी पालन, मधु उत्पादन तथा मधु संग्रह के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है।
- कृषि विज्ञान (Agriculture): इस शाखा के अन्तर्गत विभिन्न फसलों तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि के उपायों का अध्ययन किया जाता है।
- अन्तरिक्ष जीव विज्ञान (Space Biology) : इस श्रुखा के अन्तर्गत अन्तरिक्ष एवं जीवों के बीच के सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।