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WBBSE Class 9 Hindi व्याकरण क्रिया
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर :-
प्रश्न 1.
क्रिया किसे कहते हैं ?
उत्तरः
क्रिया :- वह विकारी शब्द जिससे किसी काम का होना या करना जाना जाय, उसे किया (Verb) कहते है। जैसे – राम खाता है । अवन्तिका दौड़ती है । इसमें खाता’ है और दौड़ती’ है, ये दोनों क्रियाएँ हैं।
प्रश्न 2.
क्रियापद की परिभाषा लिखें ।
उत्तरः
क्रियापद :- जिस विकारी शब्द के द्वारा किसी वस्तु या व्यक्ति के सम्बन्ध में कुछ विधान किया जाता है, उसे क्रियापद कहते हैं।
प्रश्न 3.
धातु तथा क्रिया धातु में संबंध स्थापित करें ।
उत्तरः
(क) धातु और क्रिया का पारस्परिक संबंध :-
क्रिया के अन्त में ना’ को हटा देने के बाद जो उसका रूप बचता है, उसे धातु रूप कहते हैं। जैसे – करना कर; पढ़ना – पढ; चलना – चल; लिखना – लिख आदि ।
क्रिया के रूप में परिवर्तन के साथ ही धातु के रूप में भी परिवर्तन होता रहता है । इससे यह ज्ञात होता है कि धातु और क्रिया दोनों में गहरा संबंध है।
प्रश्न 4.
यौगिक धातु कितने प्रकार से बनता है ? उदाहरण सहित लिखें ।
उत्तरः
यौगिक धातु तीन प्रकार से बनता है –
मूल धातु और दूसरे मूल धातु के संयोग से जो यौगिक धातु बनता है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं । जैसे –
मूल धातु में प्रत्यय लगने से जो यौगिक धातु बनता है, वह अकर्मक या सकर्मक या प्रेरणार्थक क्रिया होती है। जैसे-
मूल धातु + प्रत्यय = यौगिक धातु
जग + ना = जगना (अकर्मक क्रिया)
जग + अना = जगाना (सकर्मक क्रिया)
जग + वाना = जगवाना (प्रेरणार्थक क्रिया)
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्दों में प्रत्यय लगने से जो यौगिक धातु बनता है, उसे नाम धातु कहते हैं। जैसे-
संज्ञा / सर्वनाम / विशेषण + प्रत्यय = यौगिक धातु
प्रश्न 5.
क्रिया के प्रमुख कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तरः
क्रिया के निम्नलिखित प्रमुख कार्य है –
गतिशीलता या स्थिरता का बोध करना :- क्रिया किसी व्यक्ति / वस्तु की गतिशीलता या स्थिरता का बोध कराती है। जैसे-
लड़के दौड़ रहे हैं।
लड़कियाँ कूद रही हैं। गतिशीलता
मैंटहल रहा हूँ।
पक्षी वृक्ष पर बैठे हैं।
कुत्ता सोया हुआ है । स्थिरता
घोड़ा मरा पड़ा है ।
किसी काम के करने या होने का बोध कराना :- किया इस बात का बोध कराती है कि कोई काम जानबूझकर किया जा रहा है या स्वत: हो रहा है । जैसे-
मैं किताब पढ़ रहा हूँ।
(किये जाने का बोध)
हवा बह रही है।
(स्वत: होने का बोध)
समय का बोध कराना :-क्रिया समय का भी बोध कराती है । जैसे –
मैं पढ़ रहा हूँ ।
(वर्तमान समय का बोध)
मैं पढ़ रहा था।
(बीते समय का बोध)
मैं कल पढूँगा।
(आनेवाले समय का बोध)
शारीरिक स्थिति का बोध कराना :- किया से किसी की शारीरिक स्थिति का पता चलता है । जैसेवह तैर रहा है । मैं बैठा हूँ।
मानसिक स्थिति का बोध कराना :- क्रिया से मानसिक स्थिति का बोध होता है । जैसे-
श्याम रो रहा है ।
राम हँस रहा है ।
प्रश्न 6.
क्रिया के कितने भेद हैं ?
उत्तरः
किया के मुख्यत: दो भेद हैं –
1. सकर्मक क्रिया (Transitive Verb)
2. अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb)
प्रश्न 7.
टिप्पणी लिखें :- (क) सकर्मक क्रिया (ख) अकर्मक क्रिया ।
उत्तरः
सकर्मक क्रिया :- जिस किया के साथ कर्म हो या कर्म के रहने की संभावना हो, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे – खाना, पीना, पढ़ना, लिखना, गाना, बजाना, मारना, पीटना आदि ।
उदाहरण :
वह आम खाता है ।
प्रश्न : वह क्या खाता है ?
उत्तर : वह आम खाता है ।
यहाँ कर्म (आम) है या किसी-न-किसी कर्म (भात, रोटी आदि) के रहने की संभावना है, अतःखाना सकर्मक क्रिया है।
अकर्मक क्रिया :- जिस क्रिया के साथ कर्म न हो या किसी कर्म के रहने की संभावना न हो, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे-
आना, जाना, हँसना, रोना, सोना, जगना, चलना, टहलना आदि ।
उदाहरण :
वह रोता है ।
प्रश्न : वह क्या रोता है ?
ऐसा न तो प्रश्न होगा और न ही इसका कुछ उत्तर
यहाँ कर्म कुछ नहीं है और न किसी कर्म के रहने की संभावना है, अतः रोना अकर्मक क्रिया है।
नोट- लेकिन, कुछ अकर्मक कियाओं-रोना, हँसना, सोना, जगना, टहलना आदि में प्रत्यय जोड़कर सकर्मक बनाया जाता है । जैसे-
रुलाना, हँसाना, सुलाना, जगाना, टहलाना आदि।
अकर्मक किया + प्रत्यय = सकर्मक क्रिया
रो.(ना) + लाना = रुलाना (वह बच्चे को रुलाता है ।)
जग (ना) + आना = जगाना (वह बच्चे को जगाता है ।)
प्रश्न :
वह किसे रुलाता/जगाता है ?
उत्तर :
वह बच्चे को रुलाता/जगाता है ।
अकर्मक क्रिया के कुछ अन्य उदाहरण :-
(ख -i) मौलिक (Monosyllabic) मूलाधातु-एकाक्षरीय -मूल क्रिया (Root verb) – मूलधातुओं से बनी क्रिया को मूल क्रिया कहते हैं । जैसे – पढ़ से पढ़ना, चल से चलना, खा से खाना, इत्यादि।
(ख-ii) यौगिक (Polysyllabic) साधितु-बहुक्षरीय – यौगिक क्रिया (Compound Verb) – दो या दो से अधिक धातुओं और अन्य शब्दों के योग से बनी क्रिया को यौगिक क्रिया कहते हैं ।जैसे – कर सकना, पढ़ लेना, दौड़ जाना इत्यादि । क्रिया और धातु से बनी) बतियाना, थरथराना, तड़पना आदि यौगिक (संयुक्त) क्रियाएँ संज्ञा से बनी हैं।
प्रश्न 8.
यौगिक क्रिया के भेदों का नामोल्लेख करें ।
उत्तरः
यौगिक क्रिया के भेद हैं –
(क) प्रेरणार्थक क्रिया
(ख) संयुक्त क्रिया
(ग) अनुकरणमूलक या ध्वनिमूलक (ध्वन्यात्मक) क्रिया।
प्रश्न 9.
टिप्पणी लिखें –
(क) प्रेरणार्थक क्रिया
(ख) संयुक्त क्रिया
(ग) नामधातु क्रिया और
(घ) अनुकरणमूलक या ध्वनिमूलक क्रिया ।
उत्तरः
(क) प्रेरणार्थक क्रिया :- जिस क्रिया से यह ज्ञात हो कि कर्ता स्वयं कार्य न कर किसी दूसरे को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, तो उस क्रिया को प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे-
माँ दाई से बच्चे को दूध पिलवाती है।
(पिलवाना-प्रेरणार्थक क्रिया)
राम श्याम से पत्र लिखवाता है।
(लिखवाना-प्रेरणार्थक क्रिया)
प्रेरणार्थक क्रिया भी दो तरह के होते हैं-प्रथम प्रेरणार्थक और द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया । अब मूल क्रिया (धातु) से बनी प्रथम प्रेरणार्थक और द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया की एक संक्षिप्त सूची को देखें-
(ख) संयुक्त क्रिया (Compound Verb) :- जिस क्रिया का निर्माण दो या दो से अधिक क्रियाओं के योग से होता है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं। जैसे – कर डालना, कर सकना, पा लेना, चल देना, पढ़ चुकना आदि । इसमें प्रथम क्रियाएँ – दे, कर, पा, चल, और पढ़ – मुख्य क्रियाएँ हैं और कर डालना, कर सकना, लेना, देना और चुकना- सहायक क्रियाएँ हैं ।
संयुक्त क्रिया बनाने में प्राय: निम्नलिखित क्रियाओं की सहायता ली जाती है – चुकना, सकना, उठना, बैठना, आना, जाना, देना, लेना, करना, चाहना, बताना, रहना, पाना, होना, डालना, पढ़ना आदि ।
कुछ उदाहरण :- राणा पढ़ने लगा है । अशोक खा चुका है । सरला आ गई है । ऊपर के उदाहरणों में पढ़ने लगा है, खा चुका है और आ गई है संयुक्त क्रिया है ।
(ग) अनुकरणमूलक या ध्वन्यात्मक (ध्वनिवाचक) क्रिया (Onomatopoeia Verb) -जो क्रिया किसी ध्वर्नि के अनुकरण पर बनाई जाती है, उसे अनुकरणमूलक या ध्वन्यात्मक क्रिया कहते हैं । जैसे-
प्रश्न 10.
संयुक्त क्रिया कितने प्रकार की है ?
उत्तरः
संयुक्त क्रियाएँ अनेक प्रकार की हैं । अर्थ के अनुसार संयुक्त क्रियाओं के निम्नलिखित भेद हैं –
- निश्चयबोधक
- इच्छाबोधक
- शक्तिबोधक
- आरम्भबोधक
- नित्यताबोधक
- अवकाशबोधक
- अभ्यासबोधक
- पूर्णताबोधक
- तत्कालबोधक
- परतन्त्रताबोधक
- योग्यताबोधक
- पुनरुक्त संयुक्त क्रिया
- अनुमतिबोधक ।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें :-
- निश्चयबोधक
- इच्छाबोधक
- शक्तिबोधक
- आरंभबोधक
- नित्यताबोधक
- अवकाशबोधक
- अभ्यासबोधक
- पूर्णताबोधक
- तत्कालबोधक
- परतंत्रताबोधक
- योग्यबोधक
- पुनरुक्त संयुक्त क्रिया
- अनुमतिबोधक।
उत्तरः
- निश्चयबोधक :- इस मुख्य क्रिया से कार्य की निश्चयता का बोध होता है । जैसे – वह उठ गया है। मैं तोड़ डालूँगा ।
- इच्छाबोधक :- इस संयुक्त क्रिया से कार्य करने की इच्छा का बोध होता है । जैसे – मैं जानना चाहता हूँ। वह कहना चाहता है ।
- शक्तिबोधक :-इस संयुक्त क्रियाओं की रचना धातु के आगे ‘सकना’ जोड़ने से होती है। जैसे-वह चल सकत। ने. तुम दौड़ सकते हो ।
- आरम्भबोधक :- इस संयुक्त क्रिया से कार्य के आरम्भ होने का बोध होता है । जैसे-लतिका दौड़ने लगी । प्रकाश पान लगा । (इसमें ना’ को ‘ने’ कर देते हैं।)
- नित्यताबोधक :- इस संयुक्त क्रिया से कार्य की नित्यता अर्थात् निरन्तरता का बोध होता है। जैसे अखिल श चान भर चलता रहा। बच्चा घण्टों रोता रहा।
- वकाशबोधक :- इस संयुक्त क्रिया से कार्य के सम्पन्न होने में कठिनता का बोध होता है। जैसे- मैं लिख नहीं पणा उम्ने परिता को जाने दिया ।
- अभ्यासबोधक :- इस संयुक्त क्रिया से अभ्यास का बोध होता है । जैसे-वह लिखा करता है । आप गाया करते हैं।
- पूर्णताबोधक (समाप्तिबोधक) :- इस संयुक्त क्रिया से कार्य की पूर्णता या समाप्ति का बोध होता है । जैसे-रंजन पढ़ चुका है। नन्दिता खा चुकी है।
- तत्कालबोधक :- इस संयुक्त क्रिया से तत्काल का बोध होता है। जैसे- तुम्हें सावधान किए देता हूँ। वह अपना धन दिए डालता है।
(इस सामान्य भूतकाल की क्रिया के ‘आ’ को ‘ए करके ‘देता’ और ‘डालना’ कियाओं का रूप लगाते हैं।) - परन्तन्रताबोधक :- संयुक्त क्रिया के इस रूप से परतन्त्रता का बोध होता है । जैसे – नागपाल को जाना पड़ा । उसे स्टेशन पर रहना पड़ा।
- योग्यताबोधक :- इन संयुक्त क्रियाओं से योग्यता का बोध होता है । जैसे- आप से लिखते नहीं बनता। उससे चलते नहीं बनता।
(इनमें वर्तमानकालिक कृदन्त के ‘आ को ए करके बनना क्रिया लगाते हैं ।) - पुनरूक्त संयुक्त क्रिया :- इस संयुक्त क्रिया में समान ध्वनि या समानार्थक क्रियाओं का मेल होता है। जैसे-आप आते-जाते रहिएगा । राकेश पहले आया-जाया करता था।
- अनुमतिबोधक :-इस संयुक्त क्रिया से अनुमति का बोध होता है। जैसे-बच्चों को खेलने दो। मुझे सोने दो।
प्रश्न 12.
नाम धातु क्रिया बनाने के नियमों को लिखें ।
उत्तरः
नाम धातु क्रिया बनाने के निम्नलिखित नियम हैं –
नामधातु क्रिया बनाने में नाम में आ’ अथवा या’ प्रत्यय लगाते हैं। शब्द का पहले दीर्घ स्वर हसस्व हो जाता है।’या प्रत्यय के परे होने पर अकारान्त (अ) का इकारान्त (इ) हो जाता है। जैसे-
कुछ नाम ही सीधे नामधातु के समान प्रयोग में आते हैं । जैसे-
कुछ नामधातु अनुकरणवाचक (ध्वनिवाचक) शब्दों से बनते हैं । जैसे-
प्रश्न 13.
असमापिका क्रिया के कितने भेद हैं ? नाम लिखें ।
उत्तरः
असमापिका क्रिया के तीन भेद हैं –
(क) तात्कालिक क्रिया
(ख) अपूर्ण क्रिया और
(ग) पूर्वकालिक क्रिया।
प्रश्न 14.
टिप्पणी लिखें :-
(क) तात्कालिक क्रिया
(ख) अपूर्ण क्रिया
(ग) पूर्वकालिक क्रिया।
उत्तरः
(क) तात्कालिक क्रिया :- जिस असमापिका क्रिया से यह जाना जाय कि कर्ता के कार्य के समाप्त होते ही दूसरा कार्य भी समाप्त हो गया, उसे तात्कालिक क्रिया कहते हैं। जैसे-तुम्हारे पहुँचते ही वह चला गया। अध्यापक को देखते ही छात्र भाग गये ।
ऊपर के दोनों वाक्यों में कार्य एक के बाद दूसरा तत्काल होता है और क्रिया में ‘ते ही’ का योग हुआ है । इसलिए पहुँचते ही’ और ‘देखते ही’ तात्कालिक क्रियाएँ है ।
(ख) अपूर्ण क्रिया :- जिस असमापिका क्रिया से यह ज्ञात हो कि वाक्य में मुख्य क्रिया के पहले होने वाली क्रिया अपूर्ण है, उसे अपूर्ण असमापिका क्रिया कहते हैं।जैसे-श्रीधर ने तुम्हें जाते हुए देखा । मैंने साँप को भागते देखा । इन वाक्यों में ‘जाते हुए’ और ‘भागते’ अपूर्ण क्रियाएँ हैं। धातु के आगे ‘ते’ और ‘हुए’ लगाकर ये क्रियाएँ बनाई जाती हैं।
(ग) पूर्वकालिक क्रिया :-क्रिया का वह रूप जिससे मुख्य क्रिया के पहले होनेवाले कार्य की समाप्ति का बोध हो, उसे पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं । जैसे – राधा खाकर बैठी। ममता पढ़के उठी । इसमें धातु के आगे ‘कर, ‘करके’ और के’ जोड़कर पूर्वकालिक किया बनाते हैं।
प्रश्न 15.
सकर्मक और अकर्मक क्रिया की पहचान कैसे की जा सकती है ?
उत्तरः
‘क्या’ लगाकर प्रश्न करने पर यदि उत्तर मिलता है, तो वह सकर्मक क्रिया होती है और उसका उत्तर न मिलने पर अकर्मक क्रिया होती है । जैसे-
अकर्मक क्रिया :- राम सोया । क्या’ सोया ? इसका उत्तर नहीं मिलता है। कौन सोया ? इसका ही उत्तर मिलता है – राम । इसलिए ‘सोया’ (सोना) क्रिया अकर्मक है ।
सकर्मक क्रिया (माध्यमिक परीक्षा – 2011) :- राम ने आम खाया । क्या खाया ? उत्तर है – ‘आम’। इसलिए ‘खाया’ (खाना) क्रिया सकर्मक है ।
विशेष द्रष्टव्य :- कुछ क्रियाए प्रयोग के अनुसार सकर्मक और अकर्मक रूपों में आती है, इन्हेंडभयविधि धातु कहते हैं। जैसे – ऐंठना, ललचाना, खुजलाना, घबराना, बदलना, घिसना आदि ।
उदाहरण –
अकर्मक
मेरा सिर खुजलाता है ।
मेरा मन ललचाता है।
सकर्मक
राम मेरा सिर खुजलाता है ।
वह मुझे ललचाता है ।
प्रश्न 16.
सकर्मक क्रिया के कितने भेद हैं ? परिभाषा तथा उदाहरण लिखें ।
उत्तरः
सकर्मक क्रिया के दो भेद हैं – (क) पूर्ण सकर्मक, (ख) अपूर्ण सकर्मक।
(क) पूर्ण सकर्मक क्रिया :-जिस क्रिया का अर्थ (आशय) एक ही कर्म से प्रकट होता है, उसे पूर्ण सकर्मक किया कहते हैं । जैसे – कला दूध पीती है । यहाँ पीने वाली कला है और पीने का प्रभाव दूध कर्म पर पड़ता है, इसलिए यह पूर्ण सकर्मक क्रिया है
(ख) अपूर्ण सकर्मक क्रिया :- जिस सकर्मक क्रिया का आशय एक कर्म से पूरा नहीं होता और आशय की पूर्ति के लिए वाक्य में कुछ और पद आवश्यक हो जाते हैं, उसे अपूर्ण सकर्मक क्रिया कहते हैं । जैसे – देना, बनाना, मानना, बतलाना, कहना, सिखाना, पूछना आदि ।
उदाहरण :- नगेन्द्र ने भूखों को भोजन दिया । इसमें दो कर्म हैं – ‘भूखों’ और ‘भोजन’ । इसलिए यह अपूर्ण सकर्मक क्रिया है।
प्रश्न 17.
अपूर्ण सकर्मक क्रिया के भेद-उपभेद को परिभाषा तथा उदाहरण सहित लिखें ।
उत्तरः
अपूर्ण सकर्मक क्रिया के दो भेद हैं – (1) द्विकर्मक और (2) कर्मपूर्तियुक्त क्रिया (Objective Complement)।
द्विकर्मक क्रिया :- जिस सकर्मक क्रिया को अपना अर्थ पूरा करने के लिए दो कर्मों की आवश्यकता होती है, उसे द्विकर्मक किया कहते हैं। जैसे- पुत्री ने पिता को पत्र दिया । यहाँ ‘पिता’ और ‘पत्र दो कर्म हैं। इसमें प्रथम कर्म प्राणिवाचक और दूसरा कर्म अप्राणिवाचक होता है। क्रिया का लिंग, वचन आदि ऐसी द्विकर्मक क्रियाओं में अप्राणिवाचक कर्म के अनुसार ही होते हैं।
इस प्रकार इसमें दो कर्म हुए – (क) मुख्य कर्म (Direct Object) और (ख) गौण कर्म (Indirect Object)।
(क) मुख्य कर्म (Direct Object) :- जिस कर्म के अनुसार क्रिया का लिंग, वचन आदि होता है, उसे मुख्य कर्म कहते हैं । यह बहुधा वस्तुबोधक (अप्राणिवाचक) होता है । जैसे-मनीष ने प्रियशील को पुस्तक दी।
ऊपर के उदाहरण में पुस्तक मुख्य कर्म है – व्योंकि क्रिया का लिंग आदि इसी अप्राणिबोधक (वस्तुबोधक) कर्म के अनुसार है – एकवचन, स्त्रीलिंग ।
(ख) गौण कर्म (Indirect Object) :- जब किसी वाक्य में दो कर्म हों और उसमें से जिस कर्म के अनुसार क्रिया का लिंग, वचन आदि न हो, उसे गोण कर्म कहते है । जैसे-ऊपर के उदाहरण में मनीष ने प्रियशील को पुस्तक दी । यहाँ प्रियशील गौण कर्म है, क्योंकि इसके अनुसार क्रिया का लिंग, वचन आदि नहीं हैं। ऐसे कर्म कोप्राणिबोधक कर्म भी कहते हैं।
कर्मपूर्तियुक्त क्रिया (Objective Complement) :- जिस सकर्मक क्रिया का अर्थ कर्म रहने पर भी पूरा नहीं होता और अर्थ की पूर्ति के लिए किसी संज्ञा या विशेषण की सहायता लेनी पड़ती है, उसे कर्मपूर्तियुक्त क्रिया कहते हैं। जैसे – मैने तुम्हें मन्त्री बनाया । यहाँ बनाया कर्मपूर्तियुक्त क्रिया है और मन्त्री कर्मपूरक है।
कुछ अन्य उदाहरण :- मैं आपको अपना मित्र मानता हूँ । बच्चों ने तुमकों नेता बनाया ।
प्रश्न 10.
कर्मक क्रिया के कितने भेद हैं ? परिभाषा तथा उदाहरण लिखें ।
उत्तरः
अकर्मक 1 ‘Intransitive Verb) के दो भेद है – (1) पूर्ण अकर्मक किया और (2) अपूर्ण अकर्मक क्रिया ।
पूर्ण अकर्मक या :- जो अकर्मक क्रिया अपना अर्थ बिना किसी संज्ञा या विशेषण के पूरा करती है, उसे पूर्ण अकर्मक क्रिया कहां है।जैसे – हाथी आता है । इसमें हाथी कर्ता के द्वारा ही कार्य की पूर्ति (आता है’) हो रही है । इसलिए ‘आता है’ क्कया पूर्ण अकर्मक है ।
अपूर्ण अकर्मक क्रिया :- जिस अकर्मक क्रिया को अर्थ की पूर्ति के लिए कर्ता के आत्तिक्त किसी अन्य संज्ञा या विशेषण की आवश्यकता होती है, उसे अपूर्ण अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे ॠचा चालाक है । इसमें अपूर्ण अकर्मक क्रिया है, जिसका अर्थ चालाक पूरक (Complement) के द्वारा पूरा होता है ।
बनना, दिखना, निकलना, ठहरना, दीखना, होना, रहना आदि कुछ ऐसी अकर्मक क्रियाएँ है जां बिना किसी सहायता के अपना अर्थ पूरा कर लेती हैं (विशेष अर्थ में) । जैसे – रमेश सज्जन दीखता है ।
सजातीय कर्म (Cognate Object) :- जब कोई अकर्मक क्रिया अपनी ही धातु से बने कर्म के साथ आती है तो वह सकर्मक हो जाती है और उसे सजातीय क्रिया तथा उससे बने कर्म को सजातीय कर्म कहते हैं। जैसे-उसने दौड़ दौड़ी। यहाँ ‘दौड़ी सजातीय क्रिया है और ‘दौड़’ सजातीय कर्म है।
कुछ अन्य उदाहरण :- लड़ाइयाँ लड़ी । खेल खेले । काम किया आदि ।
प्रश्न 19.
अकर्मक से सकर्मक बनाने के कौन-कौन से नियम हैं ?
उत्तरः
अकर्मक से सकर्मक बनाने के निम्नलिखित नियम हैं-
- कुछ अकर्मक कियाओं मे पहला स्वर दोर्घ करके सकर्मक बनाते है, जैसे – चटना- चाटना; मरना-मारना; तरना-तारना आदि ।
- कभी-कभी अकर्मक क्रियाओं के दूसरे वर्ण का स्वर दीर्घ करके सकर्मक बनाते हैं । जैसे-चलना-चलाना; उखड़ना-उखाड़ना; निकलना-निकालना आदि ।
- कुछ अकर्मक क्रियाओं के अन्त में ‘ए’ या ‘ओ’ होता है तो ‘ए” के लिए इ’ और ‘ओं के लिए ‘उ’ का प्रयोग करके सकर्मक क्रिया बनाते हैं । जैसे-देखना-दिखाना; बोलना-बुलाना आदि।
- कुछ अकर्मक क्रियाओं के पहले ‘ई और उ’ को क्रमश: ए’ और ‘आं करके सकर्मक बनाते हैं । जैसे छुटना – छोड़ना; दूटना-तोड़ना; खुलना-खोलना आदि।
- कुछ अकर्मक क्रियाओं से सकर्मक क्रियाएँ अनियमित रूप से बनाई जाती हैं। जैसं-रहना से रखना, सिलना से सीना आदि ।
प्रश्न 20.
विधि क्रिया के कितने भेद हैं ?
उत्तरः
विधि क्रिया के दो भेद हैं –
(क) सामान्य विधि (प्रत्यक्ष विधि) और
(ख) असामान्य विधि (परोक्ष विधि)।
प्रश्न 21.
टिप्पणी लिखें :- (क) सामान्य विधि क्रिया (ख) कर्म (ग) पूरक (घ) सहायक क्रिया (ङ) विधि क्रिया (च) द्विकर्मक क्रिया (छ) क्रियार्थक क्रिया।
उत्तरः
(क) सामान्य विधि क्रिया (प्रत्यक्ष विधि) :- समापिका क्रिया के जिस रूप से प्रार्थना, आज्ञा, उपदेश आदि का प्रत्यक्ष या सामान्य ज्ञान होता है, उसे सामान्य विधि (प्रत्यक्ष विधि) कहते हैं। जैसे – आप इधर बैठें । तुम ऊपर जांओ ।
असामान्य विधि क्रिया (अप्रत्यक्ष विधि) :- क्रिया के जिस रूप से आज्ञा, उपदेश, प्रार्थना आदि का परोक्ष या अप्रत्यक्ष बों होता है, उसे असामान्य विधि (अप्रत्यक्ष-विधि) कहते हैं। जैसे- तुम उससे मिलते रहना। आप आंते रहियेगा ।
(ख) कर्म :- वाक्य में सकर्मक क्रिया होने पर क्रिया का फल जिस पर पड़ता है, उसे कर्म कहते हैं ।जैसे-आपने उसको फल दिया । इसमें उसको और फल दो कर्म हैं । इसमें अप्राणिबोधक फल की ही प्रधानता है ।
(ग) पूरक :- वाक्य में जब कर्त्ता या कर्म अपना अर्थ पूरा नहीं कर पाता है और अर्थ की पूर्ति के लिए किसी संज्ञा या विशेषण की सहायता लेता है, तो उस संज्ञा या विशेषण को पूरक कहते हैं। जैसे-राम ने मुझे मूख बनाया। मूख विशेषण की सहायता से वाक्य के अर्थ की पूर्ति होती है, इसलिए ‘मूखं पूरक है।
(घ) सहायक क्रिया :- मुख्य क्रिया की सहायता करने वाली क्रिया को सहायक क्रिया कहते हैं । जैसे –
हूं, है, हैं, रहा, रही, रहे, था, थे, थी, थी आदि ।
उदाहरण :-
मैं खा रहा हू । (रहा, हूँ-सहायक क्रिया)
वह पढ़ता है ।
(है-सहायक क्रिया)
यहाँ मुख्य क्रिया ‘खाना’ और ‘पढ़ना’ है, जिसकी सहायता सहायक क्रिया कर रही है।
मुख्य क्रिया और सहायक क्रिया के संबंध में कुछ और बाते हैं, जिन्हें समझना आवश्यक है-
किसी वाक्य में सहायक क्रिया हो या न हो, एक मुख्य किया अवश्य होती है । जैसे-
वह पटना गया ।
(जाना-मुख्य क्रिया)
उसने शुभम् से कहा ।
(कहना-मुख्य क्रिया)
हूँ, है, हैं, था, थे, थी, थीं आदि सहायक क्रियाएँ हैं, लेकिन किसी वावय में कोई दूसरी क्रिया न हो, तो इनमें से कोई मुख्य क्रिया बन जाती है । जैसे-
में खाता हूँ।
(हूँ-सहायक क्रिया)
मैं अच्छा हूँ ।
(हूँ-मुख्य क्रिया)
उसने खाया है ।
(है-सहायक क्रिया)
उसके पास एक कलम है।
(है-मुख्य क्रिया)
संयुक्त क्रिया में प्रथम क्रिया मुख्य क्रिया होती है और बाकी सहायता करने वाली सहायक क्रिया’ । जैसे-
वह बैठ गया था।
(बैठ गया-संयुक्त किया)
वह खा रहा है ।
(खा रहा-संयुक्त क्रिया)
यहाँ, ‘बैठ’ (बैठना) एब ‘खा (खाना) मुख्य क्रियाएँ है । गया’ (जाना), ‘था, ‘रहा’ (रहना) एवं है’-सहायक कियाएँ हैं ।
नोट – गा, गे, गी को कुछ लोग भ्रमवश सहायक क्रिया समझते हैं, लेकिन ये सहायक क्रियाएँ नहीं हैं । ये प्रत्यय हैं । जैसं-
मै खाऊँगा । (मुख्य क्रिया – खाना) (सहायक किया – 0 )
ऊपर प्रयुक्त खाऊँगा क्रिया में मूल धातु खा है और इसमें दो प्रत्यय जुड़े हुए हैं- ऊँ एवं गा’ अर्थात्खा (मूलधातु ) + ऊँ (पहला प्रत्यय) + गा (दूसरा प्रत्यय) = खाऊँगा ।
(ङ) विधि क्रिया :-क्रिया के जिस रूप से आज्ञा, अनुमति, अनुरोध, प्रार्थना, उपदेश आदि का बोध हो, उसे विधि क्रिया कहते हैं। जैसे-
आज्ञा : अन्दर आओ ।
(आओ-विधि क्रिया)
प्रार्थना : हे ईश्वर, मेरी सहायता करो।
(करो-विधि क्रिया)
उपदेश : बड़ों का कहना मानो।
(मानो-विधि क्रिया)
अनुरोध : कृपया मेरे यहाँ जरूर आइए ।
(अएए-विधि किया)
(च) द्विकर्मक क्रिया :- जिस क्रिया के दो कर्म होते हैं, उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं । जैसे-
शिक्षक विद्यार्थी को पढ़ाते हैं।
(एक कर्म-विद्यार्थी)
शिक्षक विद्यार्थी को हिन्दी पढ़ाते हैं।
(दो कर्म-विद्यार्थी एवं हिन्दी)
प्रथम वाक्य में पढ़ाना क्रिया का एक कर्म है, लेकिन दूसरे वाक्य में पढ़ाना क्रिया के दो कर्म हैं, अतः द्वितीय वाक्य में प्रयुक्त ‘पढ़ाना’ क्रिया द्विकर्मक क्रिया कहलाएगी ।
क्रियार्थक क्रिया :- जिस क्रिया का प्रयोग मुख्य किया के पहले संज्ञा के रूप में होता है, उसे क्रियार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे –
टहलना स्वास्थ्य के लिए जरूरी है ।
(क्रियार्थक क्रिया-टहलना)
वह टहलने गया ।
(क्रियार्थक क्रिया-टहलने)
वह टहलने के लिए गया है ।
(क्रियार्थक क्रिया-टहलने के लिए)
प्रश्न 22.
क्रिया की सोदाहरण परिभाषा लिखें ।
उत्तरः
क्रिया का वह रूपान्तर, जिससे क्रिया के व्यापार का समय, उसकी पूर्ण अथवा अपूर्ण अवस्था का बोध हो, काल (क्रिया का काल) कहा जाता है । जैसे- (1) वह सोता है । (2) वह सोता था। (3) वह सोयेगा।
वह सोता है – इसमें कार्य-व्यापार वर्तमान समय में हो रहा है ।
वह सोता था – इसमें व्यापार (सोता था) बीते समय में हुआ है ।
वह सोयेगा – इसमें व्यापार (सोयेगा) आने वाले समय में होगा।
प्रश्न 23.
क्रिया का रूपान्तर किसे कहते हैं ? इसके प्रकार का वर्णन करें ।
उत्तरः
क्रियाओं के रूप वाच्य, काल, पुरुष, लिंग, वचन और प्रकार के कारण रूपान्तरित होते हैं, इन्हें क्रिया का रूपान्तर कहते हैं। जैसे-
वाच्यकृत विकार :- सन्तन पुस्तक पढ़ता है । सन्तन से पुस्तक पढ़ी जाती है ।
कालकृत विकार :- वह खाता है । वह खाएगा । वह खा रहा था ।
पुरुषकृत विकार :- मैं खाऊँगा । तुम खाओगे । वे खायेंगे।
लिंगकृत विकार :- ज्योत्स्ना सोती है । जगत सोता है ।
वचनकृत विकार :- यह दौड़ता है। वे दौड़ते हैं।
प्रश्न 24.
टिप्पणी लिखें :- (क) पूर्वकालिक क्रिया (ख) विशेषणार्थक क्रिया ।
उत्तरः
(क) पूर्वकालिक क्रिया (Perfect Participle) :- क्रिया का वह रूप जहाँ कर्ता एक काम समाप्त कर दूसरा कार्य किसी काल में करे तो पहली क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है । जैसे-नरोत्तम खाकर सोता है । तुम उठकर कहाँ चले ? वह पढ़कर बैठा है । इनमें ‘खाकर, उठकर और पढ़कर पूर्वकालिक क्रियाएँ हैं ।
(ख) विशेषणार्थक क्रिया या क्रियाद्योतक संज्ञा :- जिस क्रिया-रूप से क्रिया और विशेषण दोनों का भाव प्रकट हो, उसे विशेषणार्थक क्रिया या क्रियाद्योतक संज्ञा कहते हैं । जैसे-वह चलते- चलते थक गया । रतन पढ़तेपढ़ते उठ गया । इनमें चलते-चलते’ और ‘पढ़ते-पढ़ते’ विशेषणार्थक कियाएँ (क्रियाद्योतक संज्ञा) हैं।
प्रश्न 38.
क्रिया का भाव किसे कहते हैं ? इसके भेद को परिभाषा व उदाहरण सहित लिखें ।
उत्तरः
क्रिया का भाव (Mood) :- क्रिया के निज्नन्न होने की नीति को क्रिया का भाव कहा जाता है। यह दो प्रकार का है – (1) निर्देशक भाव (Indicative) और (2) अनुज्ञाभाव (Imnerative)।
1. निर्देशक भाव (Indicative) :- जब किसी काम को करने के लिए उसके होने, न होने, किसी प्रश्न अथवा विस्मय के द्वारा काम का निर्देश दिया जाता है, तो ऐसी क्रिया को निर्देशक क्रिया भाव कहा जाता है । जैसे – मैं प्रात: काल उठता हूँ । वाह ! मैंने तुम्हारा कारनामा देखा।
2. अनुज्ञा भाव (Imperative) :- जब किसी काम को करने के लिए अनुरोध, कामना, प्रार्थना, उपदेश, आदेश आदि दिया जाता है, तब वहाँ अनुजा भाव होता है । जैसे-वहाँ बैठो। सदा सत्य बोलो। हमेशा कुशल रहो। यह अनुज्ञा वर्तमान काल और भविष्यत् काल में पाया जाता है ।
वर्तमानकाल :- मेरे सामने बैठो । एक गाना गाओ।
भविष्यत्काल :- तुम कल आना । परसों काशी चले जाना ।
प्रश्न 39.
क्रिया के काल के अनुसार क्रिया की विभक्ति का रूप-परिवर्तन कितने प्रकार से होता है?
उत्तरः
क्रिया के काल के अनुसार क्रिया की विर्भक्ति का रूप-परिवर्तन होता रहता है । यह तीन प्रकार का है –
(1) भूतकाल, (2) वर्तमानकाल, (3) भविष्यत्काल ।
1. भूतकाल :- भूतकाल की क्रिया के अन्त में या, ली, दी, या और ई लगाते हैं । जैसे – उसने खा लिया। मैंने परीक्षा दी।
2. वर्तमानकाल :- क्रिया के अन्त में ई, ए और अ लगाते हैं, जैसे-करती है । की है, किया है, आदि।
3. भविष्यत्काल :- भविष्यत्काल की क्रिया के अन्त में गा, गी, गे आदि लगाते है, जैसे – वह पढ़ेगा, राम जायेगा।
(ख) दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर :-
प्रश्न 1.
प्रेरणार्थक क्रिया बनाने के नियमों का उल्लेख करें ।
उत्तरः
सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं के धातु के अन्त में ‘आ’ जोड़ने से प्रथम प्रेरणार्थक और वा जोड़ने से द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया बनती है। आना, जाना, सकना, रुकना, चुकना, होना आदि कुछ अकर्मक क्रियाओं से प्रेरणार्थक क्रियाएँ नहीं बनतीं । आगे प्रेरणार्थक क्रियाओं के कुछ उदाहरण दिये गये हैं –
कर सकना, पढ़ लेना, दौड़ जाना इत्यादि क्रिया और धातु से बनी हैं। बतियाना, थरथराना, तड़पना आदि यौगिक (संयुक्त) कियाएँ संज्ञा से बनी हैं।
1. अकर्मक धातु से बने सकर्मक और प्रेरणार्थक रूप –
2. यदि क्रिया का पहला अक्षर दीर्घ हो तो ऊपर के ‘आ’ और ‘वा’ प्रत्यय लगाते समय स्वर को हुस्व कर देते हैं-
3. सकर्मक धातु में सभी क्रियाओं से (धातुओं से) ऊपर के नियमों के अनुसार ही प्रथम और द्वितीय प्रेरणार्थक क्रियाएँ बनती हैं –
4. एक अक्षर वाली धातुओं में ‘ला और ‘लवा’ लगाकर प्रेरणार्थक क्रियाएँ बनाते हैं
5. कुछ प्रेरणार्थक क्रियाएँ बिना नियम के बनती हैं –
प्रश्न 2.
अर्थ या विकार की दृष्टि से क्रिया के भेदों की परिभाषा तथा उदाहरण लिखें ।
उत्तरः
अर्थ या विकार की दृष्टि से क्रिया के दो भेद हैं – (1) समापिका क्रिया (Finite Verb) और (2) असमापिका क्रिया (Verb of Incomplete Prediction) ।
समापिका क्रिया (Finite Verb) :- जिस क्रिया से कार्य की पूर्णता का बोध होता है, उसे समापिका क्रिया कहते हैं । जैसे-राम बैठा है । तुम गये । वह आया आदि।
इसमें वाक्य काल, पुरुष, लिंग और वचन के अनुसार विरक्ति लगाकर क्रिया बनाते हैं।
असमापिका क्रिया (Verb of Incomplete Prediction) :- इस क्रिया से अपूर्णता का बोध होता है। इसके कार्य की समाप्ति या सीमा नहीं होती । जैसे-वह दखते ही चला गया। वह पढ़ते ही रो उठा। इसमें देखतें’ और पढ़ते असमापिका क्रियाएँ हैं।
समापिका क्रिया के भेद (अवस्थाकृत भेद – Moods)
समापिका क्रिया के तीन भेद हैं – (क) साधारण समापिका क्रिया, (ख) सम्भाव्य समापिका क्रिया और (ग) आज्ञार्थक समापिका या विधि समापिका क्रिया।
(क) साधारण समापिका क्रिया :- किया का वह रूप जिससे किसी विधान का निश्चय जाना जाता है, उसे साधारण समापिका क्रिया कहतं हैं।जैसे-सुजाता ने सामान खरीदा। आप कहाँ जाते हैं ? वह आया है।
(ख) सम्भाव्य समापिका क्रिया :- क्रिया का वह रूप जिससे सम्भावना, सन्देह, इच्छा, अनुमान आदि का बोध होता है, उसे संभाव्य समापिका किया कहते हैं। जैसे-
इच्छा – प्रभो ! मुझे शरण दें ।
उपदेश – सर्वदा समय से पाठशाला जाओ ।
आज्ञा – यहाँ से अभी न उठना ।
प्रश्न – क्या आप ने खा लिया ?