Detailed explanations in West Bengal Board Class 9 Geography Book Solutions Chapter 5 अपक्षय या विखण्डन offer valuable context and analysis.
WBBSE Class 9 Geography Chapter 5 Question Answer – अपक्षय या विखण्डन
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK
प्रश्न 1.
किस प्रकार की जलवायु में रासयनिक अपक्षय अधिक होता है।
उत्तर :
आर्द जलवायु प्रदेश में।
प्रश्न 2.
रैगोलिया क्या है?
उत्तर :
मूल चट्टान के ऊपर बिछी हुई चट्टानी चूर्ण को रैगोलिया कहते है।
प्रश्न 3.
तालुस क्या है?
उत्तर :
भौतिक अपक्षय के कारण दानेदार विच्छेदन द्वारा उत्पत्र चूर्ण को तालुस कहा जाता है।
प्रश्न 4.
धरालत पर भू-समतल स्थापना का कार्य किन शक्तियों के द्वारा होता है ?
उत्तर :
निम्नीकरण (Degradation) एवं अधिवृद्धिकरण (Aggradation)।
प्रश्न 5.
अनाच्छादन के अन्तर्गत कौन-कौन सी क्रियाएँ सम्मिलित हैं?
उत्तर :
अपक्षय (Weathering) एवं अपरदन (Erosion)।
प्रश्न 6.
अनाच्छादन की किस क्रिया में चट्टान चूर्ण का परिवहन नहीं होता है ?
उत्तर :
अपक्षय (Weathering)।
प्रश्न 7.
अनावृत्तिकरण की कौन-सी क्रिया स्थैतिक क्रिया है?
उत्तर :
अपक्षय (Weathering) I
प्रश्न 8.
अपक्षय को प्रभावित करने वाले किसी एक कारक का नाम बताइये।
उत्तर :
सूर्यताप।
प्रश्न 9.
ऊँचे पर्वतीय भागों में अपक्षय का सबसे बड़ा साधन क्या है?
उत्तर :
पाला।
प्रश्न 10.
ऑक्सीकरण की क्रिया में किस गैस का योगदान होता है?
उत्तर :
आक्सीजन।
प्रश्न 11.
विखणिडत शैल राशि शंकु का निर्माण कहाँ होता है ?
उत्तर :
पर्वतीय ढालों एवं गॉर्ज की सीधी ढ़ालों पर।
प्रश्न 12.
भू-स्खलन कहाँ अधिक होती है?
उत्तर :
पर्वतीय प्रदेशों में।
प्रश्न 13.
यांत्रिक अपक्षय किन क्षेत्रों में प्रभावकारी होता है ?
उत्तर :
शुष्क एवं मरुस्थल प्रदेशों में।
प्रश्न 14.
ताप बढ़ने पर आग्नेय शैल पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
आग्नेय शैल फैलते हैं।
प्रश्न 15.
किस प्रकार के चट्टान में जंग लगता है?
उत्तर :
लौहयुक्त। :
प्रश्न 16.
उष्णार्द्र प्रदेशों में किस प्रकार का अपक्षय अधिक प्रभावी होता है।
उत्तर :
रासायनिक अपक्षय।
प्रश्न 17.
ताप घटने पर आग्नेय शैल पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
आग्नेय शैल संकुचित होते हैं।
प्रश्न 18.
जिस क्रिया में चट्टानों की ऊपरी परतें प्याज के छिलके की तरह चट्टानों से अलग हो जाती है, उसे क्या कहा जाता है ?
उत्तर :
अपशल्कन या अपपत्रण (Exfoliation)।
प्रश्न 19.
किस प्रकार के विघटन में सूर्यास्त के आधे घंटे के अंदर बन्दुक चलंने जैसी आवाज सुनाई पड़ती है?
उत्तर :
कणिमय विघटन (Granular Disintegration)।
प्रश्न 20.
उष्ण मरुस्थलों में किस प्रकार का अपक्षय देखने को मिलता है ?
उत्तर :
भौतिक या यांत्रिक अपक्षय!
प्रश्न 21.
किन चट्टानों में दानेदार विघटन होता है ?
उत्तर :
जो चट्टान विभिन्न खनिज एवं रंग वाले होते हैं।
प्रश्न 22.
लौहयुक्त चट्टानों में रासायनिक अपक्षय की कौन-सी विधि सक्रिय रहती है ?
उत्तर :
आक्सीकरण (Oxidation) 1
प्रश्न 23.
चूना पत्थर वाले क्षेत्रों में रासायनिक अपक्षय की कौन-सी विधि प्रभावी रहती है?
उत्तर :
कार्बनीकरण (Carbonation)।
प्रश्न 24.
किस जलवायु प्रदेश में भौतिक अपक्षय प्राय: नगण्य रहती है?
उत्तर :
शीत जलवायु प्रदेशों में।
प्रश्न 25.
शुष्क प्रदेशों में किस प्रकार का अपक्षय होता है?
उत्तर :
यात्रिंक या भौतिक अपक्षय।
प्रश्न 26.
शीतोष्ण प्रदेशों में अपक्षय का सबसे बड़ा साधन क्या है?
उत्तर :
सूर्यताप, पाला।
प्रश्न 27.
जीव-जन्तुओं द्वारा किस प्रकार का अपक्षय होता है?
उत्तर :
जैविक।
प्रश्न 28.
चूने के चट्टानों वाले प्रदेशों में किस प्रकार का अपक्षय होता है।
उत्तर :
रासायनिक अपक्षय।
प्रश्न 29.
भौतिक विखण्डन के प्रमुख कारक कौन हैं?
उत्तर :
तापक्रम परिवर्तन, तुषार या पाला एवं वर्षा।
प्रश्न 30.
चट्टानों के बड़े-बड़े टुकड़ों में टूटने की क्रिया को क्या कहते हैं?
उत्तर :
पिंड विन्छेदन (Block Disintegration)।
प्रश्न 31.
दानेदार विघटन (Granular Disintegration) किस भाग में अधिक होता है?
उत्तर :
मरुस्थल भाग से।
प्रश्न 32.
प्याज के छिलके की तरह चट्टानों के विखण्डन की क्रिया को क्या कहते हैं?
उत्तर :
अपदलन (Exfoliation)।
प्रश्न 33.
उच्च अक्षांशों अथवा उच्च पर्वत-शिखरों पर चट्टानों के विखण्डन के प्रमुख कारक क्या है ?
उत्तर :
तुषार या पाला (Frost)।
प्रश्न 34.
रासायनिक अपक्षय की विभिन्न क्रियाओं के लिए कौन-सी भौतिक परिस्थिति आवश्यक है?
उत्तर :
उच्च तापव्रम एवं पर्याप्त नमी।
प्रश्न 35.
लोहें में जंग लगना रासायनिक विखण्डन की किस विधि द्वारा होती है?
उत्तर :
ऑक्सीकरण (Oxidation)।
प्रश्न 36.
कार्बनीकरण (Carbonation) की क्रिया किस प्रदेश में अधिक प्रभावी होती है ?
उत्तर :
कार्स्ट प्रदेश में।
प्रश्न 37.
रासायनिक विधि द्वारा जल के चट्टानों के खंनिजों में अवशोषित हो जाने को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
जलयोजन (Hydration)।
प्रश्न 38.
फेलस्पार (Felspar) धातु का काओलीन (Kaolion) में बदलना किस विधि द्वारा होता है ?
उत्तर :
जलयोजन (Hydration)।
प्रश्न 39.
कौन-सा खनिज पदार्थ पानी में घुलकर घोल के रूप में बह जाते हैं?
उत्तर :
नमक तथा जिप्सम।
प्रश्न 40.
सीलिका का जल में घुलकर अलग हो जाने की क्रिया को क्या कहते हैं?
उत्तर :
डिसिलिकेशन (Desilication)।
प्रश्न 41.
जीव-जन्तुओं द्वारा होने वाले विखण्डन को क्या कहते हैं?
उत्तर :
जैविक विखण्डन (Biological Weathering)।
प्रश्न 42.
रासायनिक विखण्डन किस चट्टान में अधिक होता है ?
उत्तर :
आग्नेय चट्टान में।
प्रश्न 43.
उष्ण एवं शुष्क मरुस्थलों में किसके द्वारा चट्टानों का विखण्डन अधिक होता है ?
उत्तर :
यांत्रिक विखण्डन (Mechanical Weathering)।
प्रश्न 44.
शीत प्रदेश में किस कारक द्वारा यांत्रिक विखण्डन प्रभावित होता है?
उत्तर :
पाला (Forst) द्वारा।
प्रश्न 45.
रासायनिक विखण्डन किस जलवायु प्रदेश में अंधिक होता है।
उत्तर :
उष्ण एवं नम जलवायु प्रदेश में।
प्रश्न 46.
वह बाह्य शक्तियाँ जो उच्च भागों को काट-छांटकर समतल या चौरस बनाती है क्या कहलाते हैं?
उत्तर :
निम्नीकरण (Degradation)।
प्रश्न 47.
कटे-छटे पदार्थों के निम्न भागों में निक्षेपण से धरातल का समतल होने की क्रिया को क्या कहते हैं?
उत्तर :
अभिवृद्धिकरण (Aggradation)।
प्रश्न 48.
चट्टानों का विघटन (Disintegration) तथा अपघटन (Decomposition) किस क्रिया द्वारा होता है ?
उत्तर :
अपक्षय क्रिया द्वारा।
प्रश्न 49.
किन प्रदेशों में सूर्यास्त के आधे घंटे के अन्दर बन्दूक के चलने जैसी आवाजें सुनाई देती हैं ?
उत्तर :
शुष्क मरुस्थलीय प्रदेशों में।
प्रश्न 50.
9 घन सेंटीमीटर जल जब जमकर बर्फ बनता है तो वह कितना स्थान घेरता है?
उत्तर :
10 घन सेंटीमीटर।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS
प्रश्न 1.
अपक्षय क्या है ?
उत्तर :
अपक्षय (Weathering) : प्राकृतिक कारकों द्वारा अपने ही स्थान पर चट्टानों का भौतिक एवं रासायनिक विधि से जो विघटन और अपघटन होता है, उसे अपक्षय कहते हैं।
प्रश्न 2.
अपरदन क्या है ?
उत्तर :
अपरदन (Erosion) : अपरदन एक गतिक (Dynamic) प्रक्रिया है, जिसमें विघटित तथा विनियोजित चट्टानों का स्थानान्तरण होता है। अपरदन की क्रिया जिन कारको द्वारा सम्पन्न होती है, उसे अपरदन कर्ता कहते हैं। नदी, हिमनदी, पवन, सागरीय तरंगे, भूमिगत जल अदि प्रमुख अपरदन कर्ता हैं।
प्रश्न 3.
धरातल पर समतल स्थापना का कार्य किन रूपों में होता है ?
उत्तर :
बाह्य शक्तियाँ धरातल पर समतल स्थापना का कार्य करती हैं। इनके द्वारा समतल स्थापना का यह कार्य निम्नलिखित दो रूपों में होता है –
(a) निम्नीकरण (Degradation)
(b) अधिवृद्धिकरण (Aggradation)
प्रश्न 4.
वृहत् संचलन (Mass Wasting) क्या है ?
उत्तर :
विखण्डित चट्टान चूर्ण का ढाल के सहारे सामूहिक रूप से नीचे की ओर स्थानान्तरण वृहत् संचलन (Mass Wasting) कहलाता है।
प्रश्न 5.
पिण्ड विघटन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर :
पिण्ड विघटन (Block Disintegration) : कभी-कभी पर्वतीय क्षेत्रों में दबाव एवं तापमान सम्बन्धी विभिन्नताओं के फलस्वरूप उत्पत्न दाब के कारण शैलें बड़े-बड़े टुकड़ों में विभक्त हो जाती हैं तो इसे पिण्ड विघटन (Block Disintegration) कहते हैं। इस प्रकार के आकार नाइजीरिया तथा मोजाम्बिक में द्वीपाभगिरि (Inselbergs) की भाँति गुम्बदाकार होते हैं, जो मूल शैल से क्रमश: निकलते हैं।
प्रश्न 6.
जैविक अपक्षय किसे कहते हैं?
उत्तर :
अपक्षय मुख्य रूप से वनस्पति, जीव-जन्तुओं तथा मानव द्वारा भी होता है। इसलिए इसे जैविक अपक्षय कहते हैं।
प्रश्न 7.
अनाच्छादन किसे कहते हैं ?
उत्तर :
अनाच्छादन (Denudation) : जब अपक्षय और अपरदन की क्रियायें एक साथ होती है तो उसे अनाच्छादन कहते हैं। अपक्षय द्वारा चट्टाने असंगठित हो जाती है एवं बाह्य बल उसे उस स्थान से स्थानान्तरित कर देते हैं। इस प्रकार धरातल का आवरण हट जाता है, इसे अनाच्छादन याद अनावृत्तिकरण (Denudation) कहा जाता है।
प्रश्न 8.
रासायनिक अपक्षय क्या है?
उत्तर :
जब चट्टानों में विखण्डन की क्रिया रासायनिक प्रतिक्रियाओं के द्वारा होती है तब उसे रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering) कहते हैं।
प्रश्न 9.
भौतिक अपक्षय क्या है ?
उत्तर :
ताप, वर्षा, पाला आदि विभिन्न मौसमी तत्वों द्वारा यांत्रिक रूप से (स्वाभाविक रूप से) भू-पृष्ठ के टूटने-फूटने को यांत्रिक या भौतिक अपक्षय कहा जाता है।
प्रश्न 10.
आक्सीकरण (Oxidation) क्या है ?
उत्तर :
लौहयुक्त खनिज पदार्थो के साथ आक्सीजन के संयोग होने की रासायनिक क्रिया आक्सीकरण कहलाती है। जब आक्सीजन गैस से युक्त वर्षा का जल लौह-युक्त चट्टानों पर पहुँचता है तो वह चट्टानों के लोहा को आक्साइड में बदल देता है जिससे लोहे में जंग लग जाता है और चट्टाने जल कर नष्ट हो ज़ाती है।
प्रश्न 11.
कार्बनीकरण (Carbonation) क्या है?
उत्तर :
चट्टानों में स्थित विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थ वायुमण्डल के कार्बन-डाई-आक्साइड (CO2) से संयोग कर चट्टानों को तोड़ते हैं एवं नये खनिज का निर्माण करते हैं। इस क्रिया को कार्बनीकरण (Carbonation) कहते हैं। जैसे वर्षा का जल वायुमण्डल के कार्बन-डाई-आक्सइड से संयोग कर कार्बनिक अम्ल (Carbonic acid) H2 CO3 बनाता है। चूनायुक्त प्रदेशों में यह अम्ल चूना पत्थर को घुला देता है।
प्रश्न 12.
भौतिक अपक्षय के कौन-कौन से कारक हैं ?
उत्तर :
तापमान, वर्षा, तुषार या पाला, आर्द्रता, ओस, कुहरा आदि भौतिक या यांत्रिक अपक्षय के प्रमुख कारक हैं।
प्रश्न 13.
अपरदन के कौन-कौन से कारक हैं ?
उत्तर :
बहता हुआ जल, नदी, पवन, हिमनद, भूमिगत जल तथा समुत्री लहरें आदि अपरदन के मुख्य कारक हैं।
प्रश्न 14.
रासायनिक अपक्षय के कारक कौन-कौन हैं ?
उत्तर :
कार्बनीकरण, आवसीजन, जलयोजन, घोल, डी-सिलिकेशन आदि विरोध विधि द्वारा रासायनिक अपक्षय होता है।
प्रश्न 15.
जलयोजन क्रिया का वर्णन करो।
उत्तर :
जलयोजन (Hydration): जल चट्टान के खनिज पदार्थों में रासायनिक क्रिया करके उनके आयतन को बढ़ा देता है, जिससे खनिज पदार्थ विच्छेदित हो जाते हैं। इस क्रिया को जलयोजन (Hydration) कहते हैं।
प्रश्न 16.
चट्टानों में दानेदार विघटन का क्या कारण है ?
उत्तर :
मरूस्थलों में जहाँ चट्टाने विभिन्न खनिजों एवं रंगों वाली होती हैं वहाँ एक ही चट्टान के विभिन्न भागों में फैलाव व संकुचन विभिन्न दरों से होता है, जिससे चट्टान महीन कणों में टूट जाती है। इसे दानेदार विघटन (Granular Disintegration) कहते हैं।
प्रश्न 17.
पेड़-पौधे किस प्रकार चट्टानों के विखण्डन के लिए उत्तरदायी हैं?
उत्तर :
पेड़-पौधे की जड़ें चट्टानों के सेंधों एवं दरारों में प्रवेश कर जाती है। वृक्षों के बढ़ने के साथ उनकी जड़ें भी मोटी हो जाती हैं और वे चट्टानों की दरारों पर दबाव डालकर उन्हें और चोड़ी कर देती है। इस प्रकार जड़ें चट्टानों को निर्बल बना देती है।
प्रश्न 18.
मिट्टी संरक्षण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
विभित्र उपायों से मिट्टी की समस्याओं को दूर करके उसे लम्बे समय तक उपजाऊ एवं कृषि के योग्य बनाये रखने को मिट्टी कां संरक्षण (Soil conservation) कहते हैं।
प्रश्न 19.
अपक्षय के कौन-कौन से प्रकार हैं?
उत्तर :
अपक्षय के प्रकार (Types of Weathering) : अपक्षय तीन प्रकार के होते हैं –
- भौतिक या यांत्रिक अपक्षय (Physical or Mechanical Weathering)
- रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)
- जैविक अपक्षय (Biological Weathering)
प्रश्न 20.
अपदलन या अपपत्रण या पल्लवीकरण या अपश्लकन की क्रिया किस प्रकार होती है?
उत्तर :
मरुस्थलों एवं अर्द्ध मरुस्थलों में, जहाँ चट्टानों की तापीय चालकता कम होती है, वहाँ चट्टानों की ऊपरी परतें अधिक गर्म होकर अधिक फैलती है। वहाँ चट्टानों का ऊपरी आवरण निचली परत से उसी प्रकार अलग हो जाता है जिस प्रकार प्याज से छिलका उतारा जाता है। इस क्रिया को अपदलन या अपपत्रण या पल्लवीकरण या अपश्लकन (Exfoliation) कहते हैं।
प्रश्न 21.
कणिकामय विघटन (Granular disintegration) किस प्रकार होता है?
उत्तर :
उष्ण मरूस्थलों में दैनिक तापान्तरों की अधिकता होती है। बड़े कणों वाली बौले, जो विभिन्न खनिजों तथा रंगो वाली होती हैं, तापान्तरों से अधिक प्रभावित होती हैं। एक ही शैल के भीतर संरचना की भिन्नता के कारण ताप प्राप्ति में अन्तर पैदा होता है। परिणामत: उनमें प्रकार एवं संकुचन की भिन्नता होती है। परिणामस्वरूप ये चट्टाने छोटे-छोटे कणों के रूप में विघटित हो जाती हैं जिसे कणिकामय विघटन कहते हैं।
प्रश्न 22.
रासायनिक अपक्षय किन प्रदेशों में अधिक सक्रिय रहता है तथा क्यों ?
उत्तर :
उष्ण कटिबन्धीय आर्द्रद्रदों में उच्च तापमान एवं अधिक आर्द्रता के कारण रासायनिक अपक्षय अधिक सक्रिय रहता है।
प्रश्न 23.
भौतिक या यांत्रिक अपक्षय किन प्रदेशों में अधिक सक्रिय रहता है तथा क्यों ?
उत्तर :
उष्ण कटिबन्धीय मरूस्थलीय जलवायु प्रदेशों में उच्च दैनिक तापान्तर के कारण भौतिक अपक्षय सक्रिय रहता है।
प्रश्न 24.
मानसूनी प्रदेशों में किस ऋतु में रासायनिक अपक्षय और किस ऋतु में यांत्रिक अपक्षय प्रभावी रहता है?
उत्तर :
मानसूनी प्रदेशों में वर्षा ॠतु में उच्च तापमान एवं नमी के कारण रासायनिक अपक्षय अधिक सक्रिय रहता है तथा शुष्क ग्रीष्म ॠतु में यांत्रिक अपक्षय प्रभावी रहता है।
प्रश्न 25.
शीत जलवायु प्रदेशों में भौतिक अपक्षय प्रायः नगण्य रहता है ; परन्तु रासायनिक अपक्षय प्रभावी रहता है। क्यों ?
उत्तर :
शीत जलवायु प्रदेशों में भौतिक अपक्षय प्राय: नगण्य रहता है परन्तु यहाँ रासायनिक अपक्षय अधिक प्रभावी रहता है क्योंकि कम तापमान पर कार्बन-डाई-आक्साइड के अधिक घुलनशील होने के कारण यहाँ हिम के पिघलने से प्राप्त जल में कार्बोनिक अम्ल की अधिकता रहती है।
प्रश्न 26.
गोलाय अपक्षय (Spheroidal Weathering) क्या है ?
उत्तर :
कभी-कभी जलयोजन (Hydration) के कारण चट्टानों की ऊपरी परत फूलकर निचली परत से अलग हो जाती है। चट्टानों में इस तरह के विखण्डन को गोलाय अपक्षय (Spheroidal Weathering) कहते हैं।
प्रश्न 27.
अपक्षय और अपरदन में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर :
अपक्षय और अपरदन दोनों अलग-अलगप्रक्रियाएँ हैं। बिना अपक्षय के भी अपरदन हो सकता है। अपक्षय के पश्चात् अपरदन हो, यह आवश्यक नहीं है। अपरदन की प्रक्रिया में अपक्षय सहायक होता है, परन्तु यह अपरदन का अंग नहीं है।
प्रश्न 28.
भारत सरकार द्वारा मिट्टी के संरक्षण के लिए कहाँ पर भूमि संरक्षण अनुसंधान केन्द्र स्थापित की गई है।
उत्तर :
मिट्टी के संरक्षण के लिए भारत सरकार ने देहरादून, कोटा, आगरा तथा दूसरी ओर मरूस्थलीय भाग में जोधपुर, जयपुर एवं जैसलमेर में भूमि संरक्षण अनुसंधान केन्द्र स्थापित किये हैं।
प्रश्न 29.
भूमि सर्पण (Solifluction) एवं शैल राशि शंकु (Talus) किसे कहते हैं ?
उत्तर :
उच्च पर्वतीय भागों में भौतिक अपक्षय द्वारा होने वाले अपक्षय से प्राप्त चट्टान चूर्ण गुरूत्वाशक्ति के कारण जब निचले ढाल की ओर सरकने लगते हैं तो इसे भूमि सर्पण (Solifluction) कहते हैं तथा यही पदार्थ जब पर्वतों के निचले भाग में टीले के रूप में संचित हो जाते हैं तो उसे विखण्डित शैल राशि शंकु (Talus) कहते हैं।
प्रश्न 30.
अपक्षय को स्थैतिक क्रिया क्यों कहते हैं ?
उत्तर :
चट्टानों का अपने स्थान पर टूटना-फूटना या सड़ना-गलना अपक्षय कहा जाता है। चूंकि यह क्रिया अपने स्थान पर होती है, अत: इसे स्थैतिक क्रिया कहते हैं। इसमें टूटे-फूटे शिलाखण्ड अपने स्थान पर पड़े रहते हैं।
प्रश्न 31.
निक्षेपण (Deposition) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
भू-पृष्ठ पर क्रियाशील विभिन्न प्रकमों जैसे – बहते हुए जल, हवा, हिमनद, तथा समुद्री ज्वार द्वारा परिवहित किये गये पदार्थों को किसी विशेष स्थान पर जमा करने की क्रिया निक्षेपण (Deposition) कहलाती है।
प्रश्न 32.
जलगति क्रिया (Hydraulic action) क्या है ?
उत्तर :
बिना किसी अन्य पदार्थ की सहायता से मात्र जल द्वारा की जाने वाली अपरदन की क्रिया जलगति क्रिया (Hydraulic action) कहलाती है।
प्रश्न 33.
अपक्षय के कौन-कौन से रूप हैं ?
उत्तर :
चट्टानों का अपक्षय मुख्यत: दो रूपों में होता है :-
(i) विघटन (Disintegration)
(ii) अपघटन (Decomposition)
प्रश्न 34.
निम्नीकरण (Degradation) किसे कहते हैं?
उत्तर :
निम्नीकरण (Degradation) : जब बाद्य शक्तियाँ धरातलीय उच्च भागों को काट-छाँट कर समतल बनाने का कार्य करती हैं तो इसे निम्नीकरण (Degradation) की क्रिया कहते हैं।
प्रश्न 35.
अधिवृद्धिकरण (Aggradation) किसे कहते हैं ?
उत्तर :
अधिवृद्धिकरण (Aggradation) : जब बाह्य शक्तियाँ कटे-छंटे पदार्थों का निक्षेपण निम्न भागों में करके समतल स्थापना का कार्य करती हैं तो यह क्रिया अधिवृद्धिकरण कहलाती है।
प्रश्न 36.
तलसंतुलन (Gradation) क्या है ?
उत्तर :
अपरदन एवं निक्षेपण के माध्यम से धरातल पर उच्चावच्च के मध्य अन्तर का कम होना तलसंतुलन (Gradation) कहलाता है।
प्रश्न 37.
अनाच्छादन की क्रिया किन विधियों द्वारा होता है ?
उत्तर :
अनाच्छादन के अन्तर्गत निम्नलिखित तीन क्रियाएँ सम्मिलित हैं –
(a) अपक्षय (Weathering)
(b) वृहद् संचलन (Mass Movement)
(c) अपरदन (Erosion)
प्रश्न 38.
वृहत्क्षरण से क्या समझते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
शिलाखण्डों का सरकना या वृहतक्षरण वह किय़ा है, जिससे गुरूत्व के सीधे प्रवाह से टूटी-फूटी चट्टानें नीचे की ओर खिसकती है या गिरती है।
प्रश्न 39.
अनावृत्तिकरण के अन्तर्गत क्या क्रियाएँ होती हैं ?
उत्तर :
भू-पटल पर समतल स्थापन की सभी प्रकार की क्रियाएँ (निम्नीकरण और अभिवृद्धिकरण) इसके अन्तर्गत होती है।
प्रश्न 40.
अभिवृद्धिकरण के अन्तर्गत क्या कार्य होता है ?
उत्तर :
कटे-छटे पदार्थो के निम्न भागों में निक्षेपण से धरातल का समतल या चौरस करने का कार्य इसके अन्तर्गत होता है।
प्रश्न 41.
अपक्षय में कौन-कौन सी क्रियाएँ सम्पिलित है ?
उत्तर :
अपक्षय क्रियाओं में चट्टानों का विघटन (Disintegration) तथा अपघटन (Decomposition) की क्रियाएँ सम्मिलित हैं।
संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 3 MARKS
प्रश्न 1.
चट्टानों का क्षय कैसे होता है ?
उत्तर :
अपक्ष्य के विभिन्न साधनो द्वारा चट्टाने असंगठित हो जाती हैं एवं ढीली पड़ जाती हैं। अपक्ष्य के द्वारा चट्टाने अपने ही स्थान पर टूट-दूट कर अपखण्डित होती रहती हैं। इसके दूसरी ओर गतिशील शक्तियों (नदी, पवन, हिमानी, समुद्री लहरों) के घर्षण, अपघर्षण, भौतिक एवं रासायनिक कटाव जैसी शक्तियों का चट्टानों पर सामूहिक प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार संक्षेप में अनाच्छादन (अपक्ष्य + अपरदन) द्वारा चट्टानों का क्षय होता रहता है।
प्रश्न 2.
मरूस्थलीय भागों में सूर्यास्त के बाद पिस्तौल के छूटने की आवाज आती है क्यों ?
उत्तर :
मरूस्थलीय भागों में दिन में ऊँचे तापमान के कारण चट्टानें तेजी से फैलती हैं एवं रात के पिछले पहर में तापमान गिरने से यही चट्टानें पुन: तेजी से सिकुड़ने लगती हैं। इस प्रकार बार-बार फैलने और सिकुड़ने से चट्टाने अपने संधि के सहारे टूटने लगती हैं। ये चट्टानें कठोर होती हैं तथा जब अपने संधियों के सहारे टूटती हैं तो जोर की आवाज होती है। अत: मरूस्थल में सूर्यास्त के कुछ समय बाद चट्टानों के टूटने से उत्पन्न आवाजें बन्दूक छूटने जैसी लगती है।
प्रश्न 3.
रासायनिक अपक्षय के लिए गर्मी और आर्द्रता दोनों की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर :
रासायनिक अपक्षय में चट्टानों के खनिजों की संरचना पर जल में धुली विभिन्न गैसों का विशेष प्रभाव पड़ता है। इससे चट्टानों के आपस में जुड़ना ढीले पड़ जाते हैं। सामान्यतः उष्मा के प्रभाव से आर्द्रता पाने वाले चट्टानों के संरचना ढीलों पड़ जाते है, चट्टानें अपघटित हो जाती हैं। यही कारण है कि रासायनिक अपक्षय के लिए गर्मी और आर्द्रता दोनो की आवश्यकता पड़ती है।
प्रश्न 4.
शुष्क जलवायु में अपक्षय की गति धीमी क्यों होती है ?
उत्तर :
शुष्क जलवायु में सबसे अधिक यांत्रिक अपक्षय के मूकारक तापान्तर, वर्षा, जल व वायु हैं। इन कारकों के सम्मिलित प्रभाव से सर्वप्रथम चट्टानें अपने संन्धियों के सहारे टृटती हैं। ये चट्टानें अत्यधिक कठोर होते हैं तथा चट्टान संधि पर कमजोर होने में लम्बा समय लगता है। अत: कठोर चट्टानों के विखण्डन में काफी समय लगता है। अतः शुष्क प्रदेशों में अपक्षय अपेक्षाकृत मंद गति से होता है।
प्रश्न 6.
उष्णार्द्र प्रदेशों में रासायनिक अपक्षय क्यों अधिक सक्रिय रहता है ?
उत्तर :
रासायनिक विखण्डन मुख्यतः नम प्रदेशों में होता है, इसका प्रधान कारण निम्नलिखित है :वायुमण्डल में बहुत से तत्व मिले हुए हैं। ऑक्सीजन एवं कार्बन-डाईऑक्साइड आदि गैसें वायुमण्डलं के निचले स्तर में पाये जाती हैं। विखण्डन की दृष्टि ये गैसें तब तक निष्किय रहती हैं जब तक ये शुष्क रहती हैं। चट्टानों का जल से सम्पर्क होते ही ये गैसे सक्रिय हो जाती हैं। ये घोलक के साधन बन जाते हैं और चट्टानों में रासायनिक परिवर्तन होने लगते हैं। अत: विखण्डन आसान हो जाता है। इसी कारण रासायनिक विखण्डन नम प्रदेशों में अधिक होता है।
प्रश्न 7.
वृहद संचलन से आप क्या समझते हो ?
उत्तर :
वृहत् संचलन या वृहदक्षरण (Mass Wasting) :- जब भौतिक और रासायनिक अपक्षय द्वारा चट्टानें विघटन एवं वियोजन की क्रिया से असंगठित हो जाती हैं तब ये असंगठित चट्टाने गुरूत्व बल या जल के स्नेहन द्वारा नीचे की ओर आती हैं अथवा अपने स्थान से स्थानन्तरित होती हैं। जब यह क्रिया वृहद पैमाने पर होती है तो इसे सामूहिक क्षय (Mass Wasting) कहते हैं। इसके अंतर्गत भूमिसर्पण, भूमि स्थलन, पंकवाह, मलवा स्खलन आदि क्रियाएँ सम्मिलित हैं।
प्रश्न 8.
शीत जलवायु प्रदेशो में किस प्रकार का अपक्षय अधिक प्रभावी रहता है तथा क्यों? अथवा-शीत क्षेत्रों में भौतिक अपक्षय किस प्रकार होता है ?
उत्तर :
शीत जलवायु प्रदेशों में भौतिक या यांत्रिक अपक्षय अधिक प्रभावी रहता है, क्योंकि ऐसे भाग में रात में तापक्रम हिमांक से नीचे गिर जाता है। अतः दिन में चट्टानों की दरारों में भरा पानी रात में ठण्डक पाकर पाले (वर्फ) के रूप में जम जाता है। वर्फ के रूप में जमने पर पानी का आयत्न बढ़ जाता है जिससे वह फैलकर चट्टानों की दरारों पर दबाव डालता है जिससे दरारें चौड़ी हो जाती हैं। दिन के तापक्रम बढ़ने पर वर्फ पिघल जाता है और उसका आयतन घटने से दरारों में और पानी आ जाता है तथा रात्रि में पुन: जल जम जाता है। बार-बार यही क्रिया होने पर चट्टाने खण्ड-खण्ड होकर चूर्ण हो जाती हैं।
प्रश्न 9.
तुषार क्रिया से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
ऊँचे अक्षांशों तथा हिमालय जैसे उच्य पर्वतीय प्रदेशों में पाला चट्टानों को तोड़ता-फोड़ता रहता है। दिन के समय चट्टानों की दरारों में जल भर जाता है और रात्रि को तापमान हिमांक से कम होने के कारण जल जम जाता है। जमने से उसका आयतन बढ़ जाता है। 1 घन सेंटीमीटर जल जब ज़ कर बर्फ में परिवर्तित होता है तब वह 10 घन सेंटीमीटर स्थान घेरता है। इससे चट्टानो पर लगभग 10 किलोग्राम प्रतिवर्ग सेंटीमीटर प्रतिबल पड़ता है। इन प्रचण्ड प्रतिबल के प्रभावाधीन चट्टानें टूट-फूट जाती हैं और दरारों का आकार बड़ा हो जाता है। अगले दिन अधिक जल इन दरारों में प्रवेश करता है और चट्टाने अधिक मात्रा में टूटती हैं। इस क्रिया को जमना-पिघलना (Freeze-Thaw) भी कहते हैं।
प्रश्न 10.
अपरदन को गतिशील क्रिया क्यो कहते है ?
उत्तर :
अपरदन वह क्रिया है, जिसमें गतिशील बाह्म कारकों (नदी, हिमनद, पवन, भूमिगत जल तथा सागरीय लहर) द्वारा भौतिक एवं रासायनिक विधि से धरातल की चट्टाने खण्डित एवं गलित होकर स्थानान्तरित होती रहती हैं। इस प्रकार अपक्षय के विपरीत अपरदन एक गतिशील क्रिया है।
प्रश्न 11.
उष्ण क्षेत्रों में भौतिक अपक्षय क्यों होता है?
उत्तर :
उष्ण क्षेत्रों में ताप परिवर्तन के कारण चट्टानो का भौतिक अपक्षय अधिक होता है। इसका कारण यह है कि इन प्रदेशों में दिन के समय तापमान अधिक हो जाता है और रात्रि के समय नीचे गिर जाता है। अत: दिन में अधिक तापमान के कारण चट्टाने फैलती हैं और रात्रि के समय तापमान में कमी आ जाने से चट्टाने सिकुड़ जाती हैं। चट्टानों को इस प्रकार फैलने और सिकुड़ने से उनमें तनाव उत्पन्न होता है तथा दरारें पड़ जाती है। इस प्रकार चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों में विभाजित हो जाती हैं।
प्रश्न 12.
कणिकामय विघटन (Granular disintegration) किस प्रकार होता है?
उत्तर :
उष्ण मरूस्थलों में दैनिक तापान्तरों की अधिकता होती है। बड़े कणों वाली बौले, जो विभिन्न खनिजों तथा रंगो वाली होती हैं, तापान्तरों से अधिक प्रभावित होती हैं। एक ही शैल के भीतर संरचना की भिन्नता के कारण ताप प्राप्ति में अन्तर पैदा होता है। परिणामत: उनमें प्रकार एवं संकुचन की भिन्नता होती है। परिणामस्वरूप ये चट्टानें छोटे-छोटे कणों के रूप में विघटित हो जाती हैं जिसे कणिकामय विघटन कहते हैं।
प्रश्न 13.
जल अपघटन (Hydrolysis) क्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
जल अपघटन (Hydrolysis) :- वर्षा का जल शैल पदार्थो से ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, अनेक अम्लो तथा कार्बनिक पदार्थों को घोल लेता है तथा उस घोल से नये रासायनिक मिश्रण उत्पन्न करता है। जल की यह रासायनिक अभिक्रिया जल अपघटन (Hydrolysis) कहलाती है। इससे न केवल शैलों के खनिज भिगोकर तर किए जाते हैं अपितु उनमें रासायनिक परिवर्तन भी होता है। फलत: वह खनिज पदार्थ नये यौगिक तथा नये खनिज में बदल जाता है। इस प्रकार निर्मित नये खनिज दीर्घकाल तक स्थायी रहते हैं।
प्रश्न 14.
मनुष्य किस प्रकार अपक्षय में सहायक होता है?
उत्तर :
आज मनुष्य की आर्थिक क्रियाएं बहुत बढ़ गयी है। मनुष्य अपनी विभिन्न आर्थिक कियाओ द्वारा शैलो के अपक्षय में योग देता है। वनों के शोषण से वह वनस्पतिक अपक्षय में योग देता है। सुरंगें, खान आदि खोदकर शैलो के अपक्षय में योग देता है। इसके अतिरिक्त वह अपने आवास के लिए, गमनागमन के लिए मार्ग बनाने, खनिज संपत्ति प्राप्त करने के लिए तथा जंगलों को काटकर कृषि योग्य नई भूमि प्राप्त करने के लिए चट्टानों को तोड़ता-हटाता है।
प्रश्न 15.
पौधे किस प्रकार अपक्षय में सहायक होते हैं ? अथवा पेड़-पौधे अपक्षय के कारक होते हैं, कैसे?
उत्तर :
पौधे, घास तथा वृक्षों की जड़े भूमि में गहराई तक प्रविष्ट होती रहती हैं, नीचे की ओर फैलती जड़ें शैलों की दरारो को विस्तृत करती है जिससे शैलो में तनाव तथा विघटन होता है।
प्रश्न 16.
जीव-जन्तु अपक्षय में किस प्रकार सहायक होते है ?
उत्तर :
सभी प्रकार के जीव-जन्तु अपक्षय में सहायक होते हैं। अधिकांश जीव जैसे लोमड़ी, गीदड़, बिच्छु, केंचुए, चूहे, दीमक आदि अपनी सुरक्षा के लिए गुफाएँ तथा बिल बनाते है। जिससे भूमि का असंगठित मलवा बाहर निकाल दिया जाता और उसका परिवहन हो जाता है। होम्स के मुताबिक प्रति एकड़ भूमि में डेढ लाख केचुएँ एक वर्ष में 10-15 टन चट्टानों को उर्वर रूप में तैयार कर उपरी परत पर लाते हैं।
प्रश्न 17.
किलेटन (Chelatan) क्या है ?
उत्तर :
वनस्पतियो की जड़ों में जीवाणु पाये जाते है जो शैल खनिजों को वियोजित करके शैलो को कमजोर बनाते हैं। वनस्पतियों और जीवों के अवशेष जब सड़-गल जाते हैं तो उनके भीतर से कार्बन-डाई-ऑक्साइड तथा जैविक अम्ल पृथक हो जाते हैं। जल के साथ मिलकर ये सक्रिय घोलक का कार्य करते हैं तथा खनिज शैलों को वियोजित करते हैं। इस क्रिया को किलेटन (Chelatan) कहते हैं।
प्रश्न 18.
वेदिकाओं (Terrace) और सोपानों (Steps) का निर्माण किस प्रकार होता है ?
उत्तर :
हिमानी पंक प्रवाह शीत जलवायु वाले प्रदेशों में सामान्य रूप से घटित होता है। यहाँ स्थायी तुषार भूमि के क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ होने पर ऊपर का हिम पिघलने लगता है परन्तु नीचे की भूमि हिमाच्छादित अवस्था में ही रहती है जिससे जल अधिक गहराई तक नहीं पहुँच पाता है। ऊपरी संतृप्त मिट्टी ढाल के सहारे अति मंद गति से संचालित होती रहती है। इस प्रकार के प्रवाहों द्वारा किए गए निक्षेपो से वेदिकाओं (Terrace) और सोपनों (Steps) का निर्माण होता है।
प्रश्न 19.
आन्तरिक शक्ति और बाहम शक्ति में कभी अन्तर है ?
उत्तर :
आन्तरिक शक्ति | बाह्य शक्ति |
i. ये शक्तियाँ भू-गर्भ में नि:शुद्ध परिवर्तन करने में लगी रहती है। | i. ये शक्तियाँ धरातल के ऊपरी आवरण को परावर्तित करने का कार्य करती है। |
ii. धरातल को असमतल बनाना इनका कार्य है। | ii. ये शक्तियाँ मन्द गति से काम करती है। |
iii. ये शक्तियाँ बहुत तेज गति से काम करती है। | iii. धरातल को समतल बनाना इनका कार्य है। |
iv. ये शक्तियाँ निर्माणकारी हैं। इनसे सील, द्वीप, एवं पर्वतों का निर्माण होता है। | iv. ये शक्तियाँ विनाशकारी हैं। ये बनी हुई आकृति का विनाश कर देती है। |
v. इन शक्तियों में ज्वालामुखी एवं भूकम्प मुख्य हैं | v. इन शक्तियों में हिमनद, वायु, नदी आदि प्रमुख हैं। |
विवरणात्मक प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 5 MARKS
प्रश्न 1.
यांत्रिक अपक्षय या भौतिक अपक्षय क्या है ? इसके विभिन्न प्रक्रियायों का वर्णन करो।
उत्तर :
भौतिक या यांत्रिक अपक्षय :- सूर्यताप, तुषार तथा वायु द्वारा चट्टानो में विघटन होने की क्रिया को यान्त्रिक अपक्षय या भौतिक अपक्षय कहा जाता है। यांत्रिक अपक्षय में यद्यपि ताप का परिवर्तन सर्वाधिक प्रभावशाली कारक है फिर भी इसमें अर्न्तगत दाब मूक्ति, जल का जमना-पिघलना तथा गुरुत्व का भी सहयोग रहता है। शुष्क, अर्द्धशुष्क, तीतोष्ण तथा शीत कटिबन्धीय भागों में एवं उच्च पर्वतों के ऊपरी भाग पर यांत्रिक अपक्षय की क्रिया सक्रिय होती है। इस प्रक्रिया में विघटन द्वारा चट्टाने टुकड़ेटुकड़े हो जाती हैं। परन्तु इनमें कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं होता है। इसके निम्नलिखित प्रकार होते हैं :-
तापमान के प्रभाव से विघटन :- दिन में अधिक गर्मी पड़ती है अत: चट्टाने गर्म होकर आयतन में फैलती हैं। रात में अधिक ठण्ड पड़ने के कारण चट्टाने सिकुड़ने लगती हैं। इस प्रकार तापमान के दैनिक परिवर्तन एवं तापान्तर के कारण चट्टानों में हमेशा तनाव एवं संकुचन की क्रिया होती रहती है जिससे उनमें दरारें पड़ जाती हैं। ये दरारें क्रमश: बढ़ती हैं और अन्त में चट्टानें विखण्डित होकर टूट जाती हैं। ऐसा मरुस्थलों में अधिक होता हैं क्योंकि इन प्रदेशों में रात-दिन के तापमान में बहुत अन्तर पाया जाता है। पर्वतीय क्षेत्रों में दाब एवं तापमान सम्बन्धी विभिन्नताओं के फलस्वरूप उत्पन्न दाब के कारण चट्टाने बड़े-बड़े टुकड़ों में विभक्त हो जाती हैं तो जिसे पिण्ड विघटन (Block disintegration) कहते हैं।
इस प्रकार के आकार नाइजीरिया तथा मोजाम्बिक में द्वीपाभगिरि (Inselberg) की तरह गुम्बदाकार होते हैं जो मूल चट्टान से क्रमश: निकलते हैं। इस विधि को अपपत्रण (Exfoliation) भी कहते हैं। अधिक समय तक फैलने एवं सिकुड़ने की क्रिया से चट्टानों के खनिज अलग-अलग विभक्त हो जाते हैं, जिसे कणदार विघटन (Granular Disintegration) कहते हैं। यह क्रिया स्वच्छ आकाश, उच्च तापमान तथा अधिक तापान्तर वाले प्रदेशों में अधिक होती है। कहीं-कही चट्टानें ट्टकर तीक्ष्ण एवं कोणदार टुकड़ों में विघटित हो जाती हैं। इस क्रिया को भंजन या विखण्डन (Shattering) कहते हैं। टूटी-फूटी चट्टानों का ढेर गुरुत्वाकर्षण के कारण पहाड़ी पादों के निकट एकत्र हो जाता है। इसे शैल-मलबा (Scree या Talus) कहा जाता है। राजस्थान के मरुस्थल में यह क्रिया दिखाई देती है।
पाला या तुषार द्वारा विघटन :- रात के समय अधिक ठण्ड पड़ने के कारण चट्टानों में मौजूद जल जम जाता है और इसका आयतन बढ़ जाता है। इससे चट्टानों पर दबाव पड़ने लगता है और चट्टाने चौड़ी होती जाती है। अन्त में चट्टाने टट जाती हैं। यह क्रिया ऊँचे प्रदेशों एवं पर्वतीय भागों में अधिक तेजी से होती है। पर्वतीय ढालों के नीचे भागों में टूटी हुई शैलों का ढेर संपात के रूप में इकट्ठा हो जाता है और उसका कुछ अंश नदियों या हिमनदियों द्वारा प्रवाहित हो जाता है। इस विधि द्वारा चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों मे विभक्त हो जाती हैं। जब इन खनिज शैल-पिण्डों से विस्तृत भू-भाग आच्छादित हो जाता है तो इसको खण्डाश्मपुश (Belsenmer) कहते हैं।
पौधों एवं प्राणियों द्वारा यान्त्रिक एवं रासायनिक क्रिया :- शैलों के सूक्ष्म छिद्रों एवं दरारों में पेड़-पौधे उग आते हैं। जब इनकी जड़ें मोटी हो जाती हैं तो दरारें फैलकर चौड़ी हो जाती हैं। फलतः शैलों के टुकड़े अलग हो जाते हैं। बहुत से पेड़ों की जड़ों से निकले रस से शैलों के खनिजो पर रासायनिक प्रभाव पड़ता है और इससे इनके विघटन में सहायता मिलती है।
दीमक एवं केंचुए बिल बनाकर या कुतरकर शैल को नरम बना देते हैं। मिट्टी में मिले हुए छोटे जीवों एवं वनस्पतियों के अवशेष कीटाणुओं द्वारा नष्ट किये जाते हैं, जिससे अवशेष कार्बन-डाइ-ऑक्साइड तथा विभिन्न प्रकार के अम्लों का निर्माण होता है। इनसे जल की घोलन शक्ति में वृद्धि होती है।
दबाव में कमी के कारण विघटन :- आग्नेय या कायान्तरित चट्टानें अन्य चट्टानों के नीचे दबी रहती हैं। इनके ऊपर की चट्टानों का अपक्षय हो जाने से दबाव कम हो जाता है। इससे उनमें दरारें पड़ जाती हैं और उनका विघटन शुरू हो जाता है। इस प्रकार का विघटन कैलीफोर्निया में येसोमाइट की घाटी में होता है।
प्रश्न 2.
रासायनिक अपक्षय क्या है ? इसकी प्रक्रियायों का वर्णन करो।
उत्तर :
रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering) :- रसायनिक क्रियाओं के द्वारा जब चट्टानों में विखण्डन की क्रिया होती है तो उसे रसायनिक अपक्षय कहते हैं। वायुमडल में निचले स्तर की लगभग सभी गैसे जैसे कार्बन-डाईआक्साइड (CO2), आक्सीजन (O2), जल-वाष्प (Water Vapour), नाइट्रोजन (N2) आदि वर्षा जल से क्रिया करके रसायनिक अपक्षय को बढ़ावा देते हैं। रसायनिक अपक्षय का कार्य पृथ्वी सतह के ऊपर तथा नीचे, दोनों क्षेत्रों में होता रहता है। चूना पत्थर पर रसायनिक अपक्षय अधिक होता है। उष्ण एवं आर्द्र प्रदेशों में यह क्रिया सर्वाधिक
होती है। रासायनिक क्रिया की पाँच विधियाँ होती हैं :-
ऑक्सीकरण (Oxidation) :- इस क्रिया में वायु, जल में मिश्रित ऑक्सीजन शैलों के खनिजों के साथ मिल जाती है और इनको ढीला कर देती है। ऑक्सीकरण का स्पष्ट प्रभाव लौहमय शैलों पर दिखाई पड़ता है। लोहा फैरिक अवस्था में लाल-भूरे रंग का दिखाई पड़ता है। वर्षा ऋतु में लोहे पर लगा जंग या मोरचा (Iron Oxide) लोहे और ऑक्सीजन के मिलने से बनता है। यह क्रिया आर्द्र प्रदेशों में व्यापक रूप में होती है।
4 FeO + 3 H2O + O2 = 2 Fe2O3 + 3 H2O.
कार्बनीकरण (Carbonation) :- वर्षा तथा बहते हुए जल में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड मिलकर कार्बोनिक अम्ल का निर्माण करती है। जिसके द्वारा शैलों के कुछ खानिज कार्बनेट में बदल जाते है। इस क्रिया को कार्बनीकरण कहते है। घुलनशील होने के कारण कार्बोनेट जल में घुल जाते हैं। यह क्रिया आर्द्र जलवायु में विशेष रूप से सक्रिय होती है।
H2O + CO2 = H2CO3
CaCO3 + H2O + CO2 = Ca (HCO3)2
कार्बोनिक अम्ल चूना मिश्रित शैलों को बड़ी सुविधा से घुला डालता है। वर्षा के जल से चूने का पत्थर नहीं घुलता है। अत: भवनों के निर्माण में इसका उपयोग अधिक होता है। भूमिगत जल मे कार्बोनिक अम्ल मिला रहता है। अतः चूने के पत्थरों में अधिक परिवर्तन ला देता है। इस क्रिया से ग्रेनाइट तथा फेल्सपार की शिलायें मृत्तिका (Clay) तथा बालू के रूप में बदल जाती हैं।
जल-योजन (Hydration) :- जब भू-पृष्ठ की शैलों के खनिजों द्वारा पानी सोख लिया जाता है तो खनिजों का आयतन बढ़ जाता है और शैलों के अन्तर्गत दाब-वृद्धि होने से विघटन की क्रिया निष्पादित होने लगती है। शैलों की परतें उभर जाती हैं। जल-योजन का प्रभाव फेल्सपार खनिज पर सर्वाधिक पड़ता है।
ग्रेनाइट शैलों में अपपत्रण या अपशल्कन (Exfoliation) का कारण यह है कि जल-योजन से ग्रेनाइट में मिश्रित फेल्सपार धातु फैल जाती है और घुलित तहें यान्त्रिक विधि से अलग हो जाती हैं। जल-योजन से फेल्सपार धातु केओलिन (Kaoline) मिट्टी में परिवर्तित हो जाती है। जबलपुर की पहाड़ियों में केओलिन भी फेल्सपार के निबन्धन सेनिर्मित होता है। जल एवं कैल्सियम सल्फेट के मिश्रण से जिप्सम की रचना होती है।
घोलन (Solution) :- साधारण जल में बहुत कम शैले घुलती है। घुलनशील शैलों में शैल लवण तथा जिप्सम मुख्य हैं। पानी घुलित कार्बन-डाइ-ऑक्साइड गैस से कार्बोनिक अम्ल बनता है, जिससे चूने का पत्थर धीरे-धीरे घुलता रहता है। इस प्रक्रिया के फलस्वरूप अवशैल तथा उच्छेल का निर्माण होता है। यह कार्य पाकिस्तान स्थित नमक की पहाड़ियों पर देखा जाता है।
डिसिलिकेशन (Desilication) :- ग्रेनाइट आदि चट्टानों में सिलिका अधिक मात्रा में पायी जाती है। रासायनिक बिधि द्वारा शैलों से सिलिका का जल में घुलकर अलग हो जाने को ही डिसिलिकेशन कहा जाता है। इससे चट्टानें ढीली पड़ जाती हैं और उनका विघटन आसान हो जाता है।
प्रश्न 3.
जैविक अपक्षय क्या है ? यह कैसे होता है ?
उत्तर :
जैविक अपक्षय (Biological Weathering) :- धरातल पर जैविक अपक्षय वनस्पति, जीव-जन्तुओं तथा मानव द्वारा निष्पादित होता है। किन्तु ये सभी कारक जहाँ अपक्षय क्रिया सम्पन्न करते हैं, वहीं इनके द्वारा रचनात्मक कार्य भी होता है।
वानस्पतिक अपक्षय (Weathering due to Vegetation) :- वनस्पति द्वारा अपक्षय भौतिक तथा रासायनिक दोनों प्रकार से किया जाता है। सामान्यतः चट्टानों की दरारें या संधियों में जब वनस्पतियों की जड़ें प्रवेश करती हैं तथा वहाँ मोटी होने लगती हैं तो संधियाँ या दरारें बढ़ने लगती हैं और चट्टानें ढीली पड़कर विघटित होने लगती हैं। कुछ वनस्पतियों की जड़ें चट्टानो से विशेष प्रकार के तत्त्वों को सोखती रहती हैं जिससे रासायनिक अपक्षय होता है।
बैक्टीरिया युक्त जल भी चट्टानों के खनिजों तथा मिट्टी पर तीव्र क्रिया कर जीव (Organisms) तथा जीवाणु (Bacteria) इत्यादि नष्ट करते हैं। इन्हीं के द्वारा कुछ अम्लों की उत्पत्ति होती है, जैसे जैविक अम्ल, नाइट्रिक अम्ल तथा अमोनिया इत्यादि। वनस्पति के द्वारा मिट्टी में हुई क्रियायें ह्यूमस (Humus) की उत्पत्ति करती है। वनस्पतियाँ अपक्षय के अलावा धरातलीय मिट्टी को अपनी जड़ों द्वारा बाँधे रखती हैं, जिससे अपक्षय के कारक अधिक प्रभावी नहीं हो पाते।
जीव-जन्तु कृत अपक्षय (Animals Weathering) :- सभी पकार के जीव-जन्तु अपक्षय में सहायक होते हैं। अधिकांश जीव जैसे लोमड़ी, गीदड़, बिच्छू, केंचुए, चूहे, दीमक आदि अपनी सुरक्षा के लिये गुफाएँ तथा बिल बनाते हैं। जिससे भूमि का बहुत-सा असंगठित मलवा बाहर निकाल दिया जाता है और उसका परिवहन हो जाता है। होम्स के मुताबिक प्रति एकड़ भूमि में डेढ़ लाख केंचुए एक वर्ष में 10-15 टन चट्टानों को ऊर्वर रूप में तैयार कर ऊपरी परत पर लाते हैं।
मानव कृत अपक्षय (Human Weathering) :- मानव अपने प्रारंभिक समय से ही अपक्षय का कारक रहा है। वर्तमान काल में यह अपक्षय का एक बड़ा कारक बन गया है। आज यह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पहाड़ों को मैदान बना रहा है। सड़कें, रेलमार्ग और विशाल भवनों का निर्माण करता है, खनिजों का शोषण करता है, चट्टानो को तोड़ता, खोदता और उसे ध्वस करता है। इससे चट्टानों का भौतिक अपक्षय के साथ रासायनिक अपक्षय भी होता है।
प्रश्न 4.
अपरदन क्या है ? इसके विभिन्न कारकों एवं क्रियाओं का उल्लेख करो।
उत्तर :
अपरदन (Erosion) :- जब अपक्षय द्वारा प्राप्त प्रवाह शैल गतिशील शक्तियों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाई जाती है तो इस क्रिया को अपरदन या परिवहन कहते हैं। परिवहन किये जाते समय प्रवाह शैल भू-पृष्ठ को खरोंचता एवं घिसता है। इस क्रिया को अपरदन कहते हैं। अपरदन के निम्नलिखित कार्य होते हैं :-
- प्रवाह शैल का उठाना (Picking)
- प्रवाह शैल का अपनयन (Transportation)
- प्रवाह शैल द्वारा भू-पृष्ठ का खरोंचना (Corrasion)
- प्रवाह शैल का अन्यत्र निक्षेपण (Deposition)।
मुख्य कारक :- पवन, प्रवाहित जल (नदियाँ), भूमिगत जल, हिमानी (Glacier) तथा सागरीय लहरे अपरदन के मुख्य कारक हैं जो भिन्न-भिन्न प्रकार तथा विधियों से अपरदन कार्य निष्पादन करते हैं। इनमें प्रवाहित जल का कार्य अन्य कारकों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होता है। अपरदन के कारकों का प्रभाव उनके आयतन (Volume), वेग (Velocity), तथा उनके प्रवाह शैलों के भार (Load), पर निर्भर करता है। नदी में उसकी अवस्थानुसार आयतन भित्नभिन्न होता है। पर्वतीय मार्ग में उसका वेग अधिक होता है। अतः अपरदन की क्षमता भी अधिक होती है।
अपरदन के विभिन्न साधनो द्वारा परिवहन का कार्य भी निम्नलिखित तीन क्रमों में पूरा किया जाता है:-
1. प्रवाह शैल को घुलाकर (In Solution), जैसे जल अपने में नमक एवं चूने को घुलाकर प्रवाहित होता है।
2. भू-पृष्ठ पर एकत्रित शैल के मलबे को अपने साथ तैराते हुए (In Suspension) जैसे – नदी एवं वायु धरातल से बारीक कणों को अपने साथ उठाकर अन्यत्र ले जाते हैं।
3. अपेक्षाकृत बड़े आकार के शिलाखण्डों को जो न घुल सकते हैं और न उड़कर या तैरकर जा सकते है, उन्हें धरातल पर घसीट कर (Intraction) ले जाया जाता है। इस क्रिया से धरातल पर अत्यधिक अपरदन होता है। पर्वतीय नदियों तथा हिमनदियों में शिलाखण्डों की घर्षण शक्ति बहुत अधिक होती है।
प्रश्न 5.
संक्षेप में अपरदन के विभिन्न प्रकारों का वर्णन करो।
उत्तर :
अपरदन के प्रकार (Types of Erosion) :- कार्य के स्वभाव की दृष्टि से अपरदन निम्न प्रकार के होते हैं :-
अपघर्षण (Abrasion or Corrasion) :- अपरदन के कारकों द्वारा प्रवाह शैल उठाकर ले जाते समय धरातल को सैण्डपेपर की तरह घर्षित किया जाता है। अतः यह यंत्र की तरह काम करता है। इसी प्रक्रिया को अपघर्षण कहते हैं।
सत्रिघर्षण (Attrition) :- धरातल के असंगठित पदार्थ, जो अपरदन के विभिन्न कारकों से परिवहित होते है, वे आपस में टरकाकर चूर-चूर होते रहते हैं। बड़े-बड़े शिलाखण्ड छोटी-छोटी गिट्टियों में तथा बाद में रेत के कणो में बदल जाते हैं। यह प्रक्रिया सत्रिघर्षण कहलाती है।
संक्षारण (Corrasion) :- यह जल की एक रासायनिक क्रिया है, जिससे शैलों के खनिज घुलाकर बहा दिये जाते हैं।
अपवाहन (Deflation) :- यह क्रिया पवनों द्वारा शुष्क एवं मरुस्थलीय भागों में सम्पन्न की जाती है जिसमें भौतिक अपक्षय द्वारा विखण्डित पदार्थों को वायु अपने साथ उड़ाती रहती है।
निक्षेपण (Deposition) :- अपरदन के साधनों की परिवहन क्षमता हमेशा एक सी नहीं रहती है। परिवहन शक्ति के क्षीण होने पर साथ ढोकर लाये गये प्रवाह शैल को घरातल पर यत्र-तत्र छोड़ने को निक्षेपण कहते हैं। निक्षेपण द्वारा भू-पृष्ठ पर विभिन्न प्रकार की नवीन भू-आकृतियों का निर्माण होता है।
प्रश्न 6.
अपक्षय के क्या प्रभाव हैं ?
उत्तर :
अपक्षय अथवा विखण्डन के प्रभाव निम्नलिखित हैं :-
लाभदायक प्रभाव (Beneficial or Useful effect) :-
खनिज-पदार्थों की प्राप्ति :- अपक्षय के कारण चट्टानों से भिन्न-भिन्न तरह के खनिज-पदार्थ एक ही स्थान पर इकट्ठा हो जाते हैं। अत: उनको प्राप्त करने में आसानी हो जाती है। जिप्सम, खड़िया, चूना आदि इसी विधि द्वारा प्राप्त होते हैं।
इीलों का निर्माण :- पहाड़ी भागों में अपक्षय के कारण दूटे हुए बड़े-बड़े चट्टान फिसलकर नदियों के मार्ग में आ जाते हैं जो नदियों के प्रवाह को रोक कर झीलों का निर्माण करते हैं।
समतल भूमि का निर्माण :- हिमनदी, नदियाँ एवं हवायें अपक्षय द्वारा चूर्ण किये गये पदार्थों कोनिम्न भागों मेंनिक्षेपित करती हैं। इससे समतल भूमि की रचना होती है।
मिट्टी की रचना :- अपक्षय के करण चट्टानों में टूट-फूट होती है और मिट्टी का निर्माण होता है, जिसमे कृषि की जाती है।
हानिकारक प्रभाव (Harmful effect) :-
- हिम पिणडों का फिसलना :- उंडे प्रदेशों में चट्टानों का विघटन होता है। इसके साथ ही बड़े-बड़े हिम पिण्ड फिसलकर समुद्र में चले जाते हैं। इससे बड़े-बड़े जहाजों के चलने में बाधा होती है।
- मरुभूमि का निर्माण :- अपक्षय के कारण बड़ी-बड़ी चट्टानें टूट-फूट कर बालू के कण बन जाती हैं। ये बालू के कण चारों ओर फैल कर मरुभूमि का निर्माण करते हैं।
- मिट्टी के कटाव का होना :- अपक्षय के कारण मिट्टी ढोली पड़ जाती है। नदी, वायु आदि इसे आसानी से काटते हैं। अतः भूमि अनुपजाऊ हो जाती है।
- मानव-बस्तियों पर प्रकोप :- अपक्षय के कारण पर्वतीय भागों में विशाल शैलो के टुकड़े लुढ़कते हुए चले आते हैं और मानव-बस्ती तथा निवासियों को क्षतिग्रस्त करते है।
प्रश्न 7.
मिट्टी के निर्माण के बारे में तुम क्या जानते हो ? मिट्टी निर्माण के विभिन्न प्रक्रियाओं का वर्णन करो।
उत्तर :
मिट्टीका निर्माण एक जटिल पक्रिया है जिसमें प्राकृतिक वातावरण का प्रत्येक तत्व अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है। अपक्षय एवं अपरदन, भू-पृष्ठ की चट्टानों को चूर्ण बना देते हैं। इस चूर्ण में लम्बे समय तक वनस्पति एवं जीव-जन्तुओं के सड़े-गले अवशेष मिश्रित होकर चट्टान-चूर्ण को उप्जाऊ मिट्टी का रूप ग्रदान करते हैं। यही तत्व पेड़-पौधों को जीवन प्रदान करते हैं।
मिट्टी का निर्माण (Formation of Soil) :- चट्टानों के अपक्षय (weathering) से मिट्टी बनती है। चट्टानों का अपक्षय भौतिक (physical), रासायनिक (chemical) तथा जैविक (biological) शक्तियों (forces) द्वारा होता है।
भौतिक शक्तियाँ (Physical forces) :- ये निम्नलिखित हैं –
- पानी
- बर्फ
- हिमनद
- वायु
- तापमान।
पानी (Water) :- वर्षा का पानी अपनी शक्ति के अनुसार चट्टानों को तोड़ता है। पहाड़ी ढालो पर बहते समय वर्षा का पानी अपनें साथ अनेक छोटे-छोटे ककड़-पत्थर, रेत, सिल्ट इत्यादि लिए चलता है। ये रगड़ खाकर सूक्ष्म कणों में टूट-दूटकर मिट्टी में बदलते रहते हैं। सिंधु-गंगा का मैदान इसी प्रकार बना है।
बर्फ (lce) :- दो चट्टानों के बीच उपस्थित वर्षा तथा सोतों का जल शीतकाल में जमकर बर्फ बन जाता है। बर्फ का आयतन (volume) जल के आयतन से अधिक होने के कारण बहुत दबाव (pressure) उत्पन्न होता है, जिससे चट्टानें छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाती हैं।
हिमनद (Glacier) :- पहाड़ों पर बहते समय हिमनद में उपस्थित चट्टानों के छोटे-छोटे टुकड़े दबाव तथा घर्षण से सूक्ष्म कणों में बदलते रहते हैं। ये चूर-चूर होकर मिट्टी का निर्माण करते हैं।
वायु (Wind) :- वायु के वेग से पत्थर के टुकड़े आपस में रगड़ खाकर मिट्टी के कणों में परिवर्तित हो जाते हैं।
तापमान (Temperature) :- चट्टानों में उपस्थित विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थों के कारण चट्टाने ताप तथा उंडक में असमान रूप से फैलती तथा सिकुड़ती है, जिससे चट्टानें टूटकर छोटे-छोटे टुकड़ों में बदल जाती हैं और फिर मिट्टी का निर्माप करती हैं।
रासायनिक शक्तियाँ (Chemical forces) :- ये निम्नलिखित हैं –
- ऑक्सीकरण
- कार्बनीकरण
- जलयोजन।
ऑक्सीकरण (Oxidation) एवं लघुकरण (Reduction) :- चट्टानों में उपस्थित लोहा तथा अन्य खनिज पदार्थों के साथ ऑक्सीजन (O2) एवं जल (H2O) की रासायनिक क्रिया होती है। आयरन सल्फाइड पर O2 तथा H2O की रासायनिक क्रिया से आयरन ऑक्साइड तथा गधक का अम्ल (H2SO4) बनता है। इस अम्ल के प्रभाव से चट्टाने कमजोर होकर टूट जाती हैं। इसके अलावा, जब किसी रासायनिक पदार्थ से ऑक्सीजन बाहर निकल जाता है तब चट्टाने कमजोर होकर दूट जाती हैं।
कार्बनीकरण (Carbonation) :- कार्बन-डाइ-ऑक्साइड द्वारा उत्पन्न कार्बनिक अम्ल पानी के साथ मिलकर पानी की घुलनशीलता बढ़ा देता है जिसके ग्रभाव से चट्टानों में उपस्थित घुलनशील पदार्थ घुल जाते हैं एवं चट्टाने टूट जाती हैं।
जलयोजन (Hydration) :- कभी-कभी पानी चट्टानों में उपस्थित दूसरे पदार्थों के साथ मिलकर एक मिश्रण बनाता है, जिसके प्रभाव से चट्टान ढीली तथा कमजोर हो जाती है एव टूटकर मिट्टी में बदल जाती हैं।
जैविक शक्तियाँ (Biological forces) :- जब चट्टानों पर स्थित बड़े-बड़े वृक्ष की विशाल जड़ें भोजन की खोज में बढ़ने लगती हैं तो इससे चट्टानें टूटने-फूटने लगती हैं। इस क्रिया से चट्टानों के छोटे टुकड़े और भी छोटे टुकड़ों में बदल जाते हैं। किसी-किसी पौधे की जड़ो से अम्ल निकलता है, जो छोटी चट्टानों को तोड़ता है। इसके अलावा, विभिन्न प्रकार के प्राणी भी चट्टानों के टूटने में मदद करते हैं तथा मिट्टी के बड़े कणों को पीसकर बारीक कणों में बदल देते हैं।
प्रश्न 8.
मिट्टी अपरदन के प्रमुख कारण क्या हैं और इसके नियंत्रण का उपाय क्या है ?
उत्तर :
मिट्टी अपरदन के कारण (Causes of soil erosion) :-
1. तेज गति से वर्षा का होना :- तेज वर्षा के कारण भूमि की ऊपरी परत कटकर जल में मिलकर बह जाती है। अत: मिट्टी का कटान तेज वर्षा के कारण होता है।
2. वनों का विनाश :- आजकल वनों का विनाश तेजी से हो रहा है। वनों के नष्ट होने के कारण मिट्टी का कटाव तेजी से होने लगता है।
3. भूमि का अधिक ढालू होना :- मिट्टी का कटाव ढालू जमीन पर अधिक होता है। यर्वतीय भागो में जमीन के ढालू होने से मिट्टी का कटाव अति तीव्व गति से होता है।
4. पशु चराई :- अधिक पशुचारण के कारण मिट्टी के कण बिखर जाते हैं। पशुओं के खुर से मिट्टी के कण ढीले पड़ जाते हैं। इस तरह मिट्टी का कटाव अधिक होता है।
5. कृषि का स्थानान्तरण होना :- इस प्रकार की कृषि से वनो का विनाश तेज गति से होता है। अतः मिट्टी का कटाव भी बहुस तेजी से होने लगता है।
6. भूमि के ढाल के अनुरूप खेतों की जुताई :- खेतों की जुताई अनियन्त्रित रूप से होती है। जमीन की ढ़ाल के अनुरूप जुताई होने के कारण मिट्टी के कटाव में वृद्धि हो जाती है।
7. बाढ़ आना :- भयकर वर्षा के कारण नदियों में बाढ़ आ ज़ाती है। पानी तेज गति से बहता है। उपज़ाऊ मिट्टी कटने लगती है, मिट्टी का अधिक कटाव बढ़ के कारण होता है।
8. आँधी के कारण :- हवा में अपार शक्ति होती है। आँधी के कारण धरती के ऊपर की मुलायम मिट्टी उड़ जाती है। हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भू-कटाव का कारण वायु ही है।
9. खेतों को खाली छोड़ना :- वर्षा के समय किसान खेत जोतकर खाली,छोड़ देते हैं। अत: हवा एवं वर्षा का जल मिट्टी के कणों को बहा ले जाते हैं। अतः मिट्टी का कटान तेजी से होता है।
10. खेतों की मेढ़ों को तोड़ डालना :- किसान खेतों की मेढ़ो को व्यर्थ समझकर तोड़ डालते है। मेढ़ों से पानी की गति रुकती है तथा भूमि का कटाव नहीं हो पाता है। किसान मेढों को तोड़ कर अनाज बो देते हैं। मेढ़ न होने से पानी की गति रुकती नहीं और भूमि का कटाव होता रहता है।
मिट्टी का कटाव रोकने के उपाय :-
1. चारागाहों का प्रबन्ध :- पशुओं को चरने के लिये अलग से चारागाहों की व्यवस्था जखूरी है। ग्राम की खाली भूमि को चारागाहों मे बदला जा सकता है। उसमें उन्नत किस्म की घास बोयी जा सकती. है।
2. चराई पर प्रतिबन्ध :- पशुओं की अनियमित चराई पर प्रतिबन्ध लगाना जरूरी है। नहरों के किनारों पर पशुओं के चरने पर प्रतिबन्ध होना चाहिए। पशुओं के खुरों से उखड़नेवाली मिट्टी का तेजी से अपरदन हो जाता है। अतः इस पर ध्यान देना जरूरी है।
3. वनों के कटान पर प्रतिबन्ध :- मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिर्य वनों का कटान अंधाधुन्ध करता जा रहा है। वनों के कटाव से मिट्टी ढीली हो जाती है। वर्षा से बढ़ें आती हैं। भू-स्खुलन होता है। अतः वनों के कटाव पर रोक होनी चाहिए।
4. वृक्षारोपण :- खाली स्थानों पर वृक्ष लगाना चाहिए। इसीलिये प्रतिवर्ष वन-महोत्सव मनाया जाता है। वनों को काटने के पहले नए वनों को लगाना चाहिए जिससे मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे।
5. बालू के बन्धकों को उगाना :- पौधों की जड़ों में मिट्टी को जकड़े रहने की क्षमता होती है। सैकरम मुंजा, सैकरम स्पाण्टेनियम, साइनोडम डैक्टाइलोन, इण्डिगोफेरा, कार्डिफोलिया आदि ऐसे पौधे हैं जिनमें मिट्टी को जकड़े रहने की क्षमता होती है। ऐसे वृक्षों को नहरों के किनारे पर लगाना चाहिए।
6. बाँध का निर्माण :- नदियों पर बाँध बनाकर बाढ़ के प्रकोप को रोका जा सकता है। बाद़ रुकने पर मिट्टी का कटाव भी रुक जाता है।
7. खेतों में हरे चारे वाली फसल उगाना :- वर्षा-कतु में खेतों को खुला छोड़ने की अपेक्षा सनई, ढेंचा, मूंग आदि हरी खाद वाली फसले बो देने से भूमि का कटाव रुक जायेगा।
8. नाली एवं गड्ठों को समतल बनाना :- अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में जल बहने से गहरी नालियाँ तथा गड्दे बन जाते हैं। उन्हें मिट्टी से भरकर सपाट कर देने से मिट्टी का कटाव नहीं होगा ऐऐसे क्षेत्रों में शीघ्र घने होने वाले वृक्षों को लगाना श्रेखस्कर होता है।
9. जल के निकास की उचित व्यवस्था :- खेतों में समोच्च बाँघ होना चाहिए। जल के निकास के लिये पक्की नाली बनाना चाहिए। ढालू भूमि पर सीढ़ीदार खेत बनाना ठीक होता है।
10. ढाल के विपरीत जुताई :- भूमि में जुताई ढाल के विपरीत करने से मिट्टी का कटाव रुक जाता है।
11. स्थानान्तरित खेती को रोकना एवं स्थायी कृषि का विकास करना।
12. भूमि की उपजाऊ शक्ति सदैव एक-सी बनाये रखने के लिये खाद का प्रयोग करना।
13. मरुभूमियों एवं अन्य भूमियों पर कतारों में वृक्षारोपण करना।
14. फसल-चक्र अपनाना, हर समय भूमि पर कोई न कोई फसल खड़ी करना।
15. काटने योग्य वृक्षों को समूल नष्ट न करना।
16. परती भूमि पर कृषि करना और भूमि को परती न छोड़ना।
प्रश्न 9.
मृदा संरक्षण क्या है ? स्वाधीनता के पश्चात मृदा संरक्षण के लिए भारत सरकार द्वारा उठाये गये कदम क्या हैं ?
उत्तर :
मृदा संरक्षण वह क्रिया है जिसके अन्तर्गत विविध प्रकार से मिट्टी की उर्वरता को बनाये रखने का प्रयास किया जाता है। मिट्टी को अपने स्थान पर स्थिर रखना, उर्वरता में अभिवृद्धि करना, उर्वर तत्वों की अपेक्षित मात्रा तथा अनुपात को बनाये रखना और दीर्घकाल तक उत्पादन प्राप्त करते रहने के लिये इसकी उत्पादन क्षमता में वृद्धि करना आदि मृदा संरक्षण के प्रमुख उद्देश्य होते हैं।
विभिन्न उपायों से मिट्टी की समस्याओं को दूर करके उसे लम्बे समय तक उपजाऊ एवं कृषि के योग्य बनाये रखने को मिट्टी का संरक्षण कहते हैं।
मिट्टी के संरक्षण के लिये सरकार द्वारा निम्नलिखित कार्य किये गये हैं :-
खाद के कारखानों की स्थापना :- मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिये भारत में सिन्दरी, गोरखपुर आदि स्थानों में खाद के कारखाने खोले गये हैं।
प्रदर्शन योजनाओं को चालू करना :- अनेक स्थानों पर प्रदर्शन योजनाएँ चालू की गई है जिससे लोगों को मिट्टी संरक्षण की विधियों की जानकारी हो सके।
नये-नये वृक्षों को लगाना :- बाढ़ के नियन्त्रण के लिये तथा मिट्टी के कटान पर रोक लगाने के लिये वृक्षारोपण किया जा रहा है। इससे मरुस्थल के प्रसार पर भी रोक लगेगी।
कर्मचारियों को प्रशिक्षण :- मिट्टी के कटान को रोकने के लिये कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। सरकारी कर्मचारी देहरादून में प्रशिक्षण पा रहे हैं।
अनेक अनुसंधान केन्द्रों की स्थापना :- मिट्टी के कटान की जाँच के लिये अनुसंधान केन्द्रों की स्थापना की गई है। काली मिद्टी के लिये बेलारी, शुष्क मिट्टी के लिये जोधपुर, क्षारीय मिट्टी के लिये कोटा तथा पहाड़ी भूमि के लिये ऊटकमण्ड, चण्डीगढ़ तथा देहरादून में अनुसंधान केन्द्र स्थापित किये गये हैं।
योजनाओं के अन्तर्गत किये गये भूमि संरक्षण कार्य :- हमारे देश में विभित्र पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से भूमि संरक्षण का कार्य किया जा रहा है। प्रथम योजना में भूमि संरक्षण कार्य के लिये 1.6 करोड़ रु० व्यय किये गये, 10 क्षेत्रीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र खोले गये। राजस्थान में सन् 1952 ई० में जोधपुर में एक मरुस्थल वृक्षारोपण तथा अनुसंधान केन्द्र खोला गया। लगभग 6 हजार हेक्टेयर भूमि पर सर्वोच्च बाँध बाँधे गये। 4000 हेक्टेयर भूमि पर वृक्षारोफण किया गया तथा 1.89 लाख हेक्टेयर भूमि के संरक्षण के कार्यक्रम लागू किये गये।
द्वितीय योजना काल में इस कार्यक्रम पर 18 करोड़ रु० खर्च किये गये। महाराष्ट्र में लगभग 50 हजार हेंक्टेयर भूमि पर मेड़बन्दी की गई, 300 लाख हेक्टेयर भूमि का संरक्षण की दृष्टि से सर्वेक्षण किया गया। राजस्थान में जोधपुर के निकट ही चारागाहों के विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत 500 हेक्टयर भूमि में 55 बाड़े स्थापित करने का कार्य आरम्भ किया गया, जो सभी तैयार हो गये।
तृतीय योजना काल में 77 करोड़ रु० खर्च किया गया जिसमें 300 लाख हेक्टेयर भूमि पर मेड़बन्दी, 5.50 लाख हेक्टेयर भूमि पर शुष्क खेती, नदी घाटियों में बने बाँधों को अधिक स्थायी बनाने, बाढ़ों को रोकने, भूमि कटाव पर नियन्त्रण, मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने, औद्योगिक लकड़ी की माँग पूरा करने, भाखड़ा-नांगल, दामोदर, हीराकुण्ड तथा अन्य नदी-घाटी योजनाओं के कार्य, नमकीन ऊसर भूमि का पुनरुद्धार, मरुस्थलीय क्षेत्रों में चारागाह निर्माण एवं वृक्षारोपण क्रिया आदि कार्य किये गये।
सन् 1966 – 1969 ई० की तीन एकवर्षीय योजनाओं में भूमि संरक्षण कार्यक्रम पर 87 करोड़ रु० व्यय किये गये। चतुर्थ योजना में 161 करोड़ की लागत से 71 हेक्टेयर भूमि का सुधार किया गया।
पंचम योजना काल में 215 करोड़ रुपयों का कार्यक्रम रखा गया, जिसमें बाढ़ क्षेत्रों से जल निकास, मध्यम वर्षा क्षेत्रों मे जल संचय, मरुस्थल विस्तार रोकने, नदी-घाटी क्षेत्रों के संग्रहण क्षेत्रों में भूमि संरक्षण आदि कार्य किये गये छठी योजना में इस मद पर 450 करोड़ रुपये रखे गये जिसमें भूमि के कटाव वाले क्षेत्रों में नालियों को भरने, कंटूरबंध बनाने, मेड़बन्दी करने, बाढ़ों को रोकने और भूमि क्षरण कार्यो में लगे कर्मियों को प्रशिक्षण देने के कार्य किए गए। अब तक (1984 – 1985 तक) 29.4 मि० हेक्टेयर भूमि का सुधार किया गया।
सातवीं योजना में 740.39 करोड़ रुपये व्यय किये गये, जिसके अन्तर्गत अतिरिक्त भूमि के कटाव को रोकने मिट्टी की उत्पादकता में वृद्धि करने के कार्यक्रम कार्यान्वित किये गये।
आठवीं योजना में 1600 करोड़ रुपये भूमि संरक्षण कार्यक्रम में खर्च करने का लक्ष्य रखा गया जिसके अन्तर्गत पश्चिमी भारत एवं दक्षिणी पठार के शुष्क एवं अर्द्धशुष्क प्रदेशों में भूमि संरक्षण हेतु क्षेत्रवार वनों की पट्टियाँ लगाने, सामाजिक वानिकी कार्यक्रम को आगे बढ़ाने, समोच्च बन्द तथा मेड़बन्दी, वन क्षेत्र विस्तार, मरुभूमि, विकास कार्यक्रम एवं शुष्क क्षेत्र विकास एवं बाढ़ संरक्षण जैसे कार्य किये गये।
नवीं योजना में भी भूमि संरक्षण के कई कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। तीव्र गति से वनों का प्रतिशत बढ़ाना, नदी-घाटी क्षेत्रो का विकास सामाजिक वानिकी को आगे बढ़ाना जैसे अनेकानेक कार्य किये जा रहे हैं।
प्रश्न 10.
मिट्टी अपरदन से क्या समझते हो ? विभिन्न प्रकार के मिट्टी अपरदन का उल्लेख करो।
उत्तर :
भूमि को ऊपरी परत या आवरण के नष्ट होने को ही भूमि अपरदन कहते हैं।
प्राकृतिक शक्तियाँ जब किसी प्रदेश की भूमि के ऊपरी आवरण को नष्ट कर देती हैं तो उसे भूमि का कटाव भूमि अपरदन या भूमि अवक्रमण कहा जाता है। भूमि की ऊपरी उपजाऊ परत के नष्ट हो जाने से उस पर किसी भी प्रकार की वनस्पतियों का उगना दुष्कर हो जाता है, जिससे पृथ्वी पर रहने वाले प्राणियों का जीवन संकट में पड़ जाता है।
Types of soil erosion :- भूमि अपरदन निम्नलिखित प्रकार से होता है :-
परत अपरदन :- मिट्टी की ऊपरी उपजाऊ परत जब वायु या जल द्वारा बहाकर या उड़ाकर ले जाई जाती है, तब इसके नीचे की अनुपजाऊ परत ऊपर निकल आती है। इस मिट्टी में फसले नहीं उग पाती हैं। जल के द्वारा अपरदन दो रूपों में होता है :-
(a) नालियों के रूप में (Gully erosion)
(b) स्तर के रूप में।
भारत में जल के द्वारा अपरदन हिमालय की तलहटी के सभी क्षेत्रों, असम, बंगाल, बिहार, झारखण्ड, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हो रहा है। ढालों पर जल वर्षा से क्षरण होता है तथा तटीय भागों में लहरों के द्वारा भूमि क्षरण होता है, जैसे – केरल में। किसान इस मिट्टी को बंजर भूमि के रूप में प्राय: छोड़ देते हैं।
अवनालिका अपरदन :- जब जल नग्न भूमि पर तेजी से बहता है तो उसकी विभिन्न धारायें मिट्टी को कुछ गहराई तक काट डालती हैं जिससे जमीन पर छोटी-छोटी नालियाँ-सी बन जाती है और चारों ओर नालियों एवं धाराओं के हो जाने से एक जालीदार संरचना निर्मित हो जाती हैं, इसे ही अवनालिका अपरदन कहते हैं। यह ढालदार भूमि पर अधिक प्रभावी होता है। चम्बल क्षेत्र के बीहड़ अवनालिका अपरदन के उदाहरण हैं।
पवन द्वारा भूमि अपरदन :- रेगिस्तानी भागों में पवन द्वारा मिट्टी को उड़ा लिया ज्ञाता है जिससे उपजाऊ मिट्टी नष्ट हो जाती है। पवन द्वारा अपरदन मुख्य रूप से राजस्थान में होता है।
हिम द्वारा भूमि अपरदन :- हिमानी क्षेत्रों में हिम-घर्षण से हिमानियाँ मलबा बहाकर घाटियों में जमा कर देती है जिससे भूमि क्षरण होता है। यह क्रिया हिमालय क्षेत्रों में ही मुख्यत: होती है।
रिल अपरदन :- जब परत अपरदन अधिक समय तक निर्बाध रूप से चलता रहता है, तो कटाव के फलस्वरूप भूमि की सतह पर अंगुलियों के समान, पतली-पतली नालियाँ-सी बन जाती हैं, जिनमें जल बहता रहता है। इस प्रकार के अपरदन को रिल अपरदन कहते हैं।
तटवर्ती अपरदन :- तीव गति से बहते जल का बहाव अपनी सतह की ऊँचाई तक नदी के किनारे की मिट्टी को काटता रहता है, जिससे ऊपर की मिट्टी ढहती है। तीव्र गति से बहने वाली नदियों के किनारे कगारों की मिट्टी ढहती रहती है। इस प्रकार के अपरदन को तटवर्ती अपरदन कहते हैं।