Detailed explanations in West Bengal Board Class 9 Geography Book Solutions Chapter 4 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ तथा पृथ्वी के प्रमुख स्थलरूप offer valuable context and analysis.
WBBSE Class 9 Geography Chapter 4 Question Answer – भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ तथा पृथ्वी के प्रमुख स्थलरूप
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK
प्रश्न 1.
वहिर्जात प्रक्रियाओं के दो कारण क्या हैं?
उत्तर :
गतिमान जल, हवा, हिमानी आदि।
प्रश्न 2.
अंतर्जात प्रक्रियाओं के एक कारक का नाम बताइए?
उत्तर :
पृथ्वी की आन्तरिक उष्मा।
प्रश्न 3.
किस प्रक्रिया के अन्तर्गत उच्च भाग वाह्य शक्ति से कट-छाटकर चौरस या समतल बनते हैं।
उत्तर :
निम्नीकरण (Digradation)
प्रश्न 4.
पर्वतों के सबसे ऊँचे भाग को क्या कहते हैं?
उत्तर :
चोटी या शिखर (Peak) कहते हैं।
प्रश्न 5.
भारत के एक प्राचीन मोड़दार पर्वत का नाम लिखिए।
उत्तर :
अरावली
प्रश्न 6.
मोड़दार पर्वतों में नीचे की ओर घँसे हुए मोड़ों को क्या कहते हैं?
उत्तर :
अभिनति (Syncline)
प्रश्न 7.
भारत के प्राचीन मोड़दार पर्वतों के नाम बताओ।
उत्तर :
अरावली एवं विन्ध्याचल।
प्रश्न 8.
विश्व की सबसे ऊँची पर्वत चोटी का क्या नाम है?
उत्तर :
माउन्ट एवरेस्ट।
प्रश्न 9.
हिमालय किस प्रकार के पर्वत का उदाहरण है?
उत्तर :
मोड़दार (वलित)।
प्रश्न 10.
अनावृत्ति के अन्तर्गत आनेवाली क्रिया का नाम बताइये।
उत्तर :
अनावृत्तिकरण (Denudation)
प्रश्न 11.
प्रथम क्रम की एक धराकृति का नाम बताइए।
उत्तर :
महासागर और महाद्वीप
प्रश्न 12.
पहाड़, पठार, मैदान किस क्रम की स्थलाकृतियाँ है ?
उत्तर :
द्वितोय क्रम
प्रश्न 13.
जर्मनी का ब्लैक फररेस्ट किस प्रकार का पर्वत है?
उत्तर :
ब्लॉक पर्वत या गुटका पर्वत का अंशोत्य पर्वत।
प्रश्न 14.
भारत में स्थित एक भ्रंश घाटी का नाम लिखिए।
उत्तर :
नर्मदा घाटी।
प्रश्न 15.
ज्वालामुखी पर्वतों का आकार कैसा होता है?
उत्तर :
शंकुनुमा (Cone Shaped)
प्रश्न 16.
भूतल के कितने प्रतिशत भाग पर पठारों का विस्तार है?
उत्तर :
33 प्रतिशत
प्रश्न 17.
टेथिस क्या था?
उत्तर :
सागर।
प्रश्न 18.
एक अन्तरापर्वतीय पठार का उदाहरण बताओ।
उत्तर :
तिब्बत का पठार ।
प्रश्न 19.
किसे विश्व की छत कहा जाता है?
उत्तर :
पामीर।
प्रश्न 20.
एण्डिज किस प्रकार का पर्वत है?
उत्तर :
नवीन मोड़दार पर्वत।
प्रश्न 21.
डेल्टा किस क्रम की स्थलाकृति है?
उत्तर :
तृतीय क्रम
प्रश्न 22.
जब कई पर्वत श्रेणियाँ क्रम से स्थित हो और सभी एक ही युग की बनी हो तो इसे क्या कहते है?
उत्तर :
पर्वत श्रेणी (Mountain range) या पर्वत प्रणाली
प्रश्न 23.
पर्वत प्रणाली का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
हिमालय, हिन्दूकुश, आल्पस आदि।
प्रश्न 24.
किस भू-द्रोणी की कोख में हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ था?
उत्तर :
टेथिस सागर (Tythys Sea)
प्रश्न 25.
तिब्बत का पठार किन पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ है?
उत्तर :
हिमालय एवं क्यूनलुन पर्वत से घिरा हुआ है।
प्रश्न 26.
भारत का प्रायद्वीपीय पठार किस प्रकार का पठार है?
उत्तर :
लावा निर्मित पठार।
प्रश्न 27.
लावा पठारों का निर्माण किन चट्टानों से हुआ है?
उत्तर :
बैसाल्ट चट्टानों से।
प्रश्न 28.
गंगा-सिंधु का मैदान किस प्रकार का मैदान है?
उत्तर :
जलोढ़ या नदी निर्मित मैदान।
प्रश्न 29.
हंगरी का मैदान किस प्रकार का मैदान है?
उत्तर :
झीलकृत मैदान (Lacustrine plain)
प्रश्न 30.
विश्व के सबसे प्राचीन मोड़दार पर्वत का नाम बताइए ।
उत्तर :
भारत का अरावली पर्वत।
प्रश्न 31.
ज्वालामुखी पर्वत का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
कोटापैक्सी (5897 मी०)
प्रश्न 32.
ब्लैक फरिस्ट किस प्रकार का पर्वत है?
उत्तर :
अ्रंशोत्थ पर्वत या खंड पर्वत या संवर्ग पर्वत।
प्रश्न 33.
संसार का छत किस पठार को कहा जाता है?
उत्तर :
पामीर का पठार
प्रश्न 34.
अन्तःपर्वतीय पठार का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
तिब्बत का पठार
प्रश्न 35.
ब्लैक फारेस्ट किस प्रकार का पर्वत है?
उत्तर :
गुटका पर्वत या भरोत्थ पर्वत।
प्रश्न 36.
दक्षिण भारत का पठार किस प्रकार के पठार का उदाहरण हैं?
उत्तर :
लावा निर्मित पठार ।
प्रश्न 37.
भारत के एक श्रंशोत्य पर्वत का नाम बताओ।
उत्तर :
सतपुरा।
प्रश्न 38.
महाद्वीप, पर्वत, पठार आदि भू आकृति का निर्माण किस संचलन द्वारा होता हैं?
उत्तर :
पटल विरूपणी संचलन या दीर्घकालिक संचलन।
प्रश्न 39.
पटल विरूपण के अन्तर्गत कौन सी घटनाएं सम्पिलित की जाती है?
उत्तर :
दीर्घकालिक घटनाएं।
प्रश्न 40.
धरातल पर उत्क्षेप (Uplift) एवं अवतलन (Subsidenes) किस गति द्वारा होता है?
उत्तर :
उर्ष्वाधर गति द्वारा
प्रश्न 41.
तनाव (Tension) एवं संपीडन (Compression) की क्रियाएँ किस गति से होती है?
उत्तर :
क्षैतिज गति (Horizontal movement) द्वारा
प्रश्न 42.
तनाव के कारण कौन-सी भू आकृति का निर्माण होता है?
उत्तर :
भूपटल भंग या अंश (Crustal Fracture) होता है।
प्रश्न 43.
संपीडन के कारण कौन-सी भू-आकृति का निर्माण होता है?
उत्तर :
वलन (Foids) पड़ते हैं ।
प्रश्न 44.
भूतल पर उत्पन्न विषमताओं को दूर कौन-सा बल करता है?
उत्तर :
बहिर्जात बल।
प्रश्न 45.
बहिर्जात बलों का प्रमुख कार्य क्या है?
उत्तर :
अनाच्छादन (Denudation) ।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS
प्रश्न 1.
मोनेडनॉक (Monadnok) क्या है?
उत्तर :
नदियाँ अपने अपरदन चक्र की अंतिम अवस्था में उच्च स्थलखंडों (पर्वतों, पठारों आदि) को काटकर मंद ढाल वाले समप्राय मैदानों का निर्माण करती हैं। ये मैदान पूर्ण रूप से समतल नहीं होते हैं, इनके यत्र-तत्र प्रतिरोधी चट्टानों के टीले या पहाड़ियाँ दिखायी देती हैं, जिन्हें मोनेडांक (Monadnok) कहते हैं।
प्रश्न 2.
पेडीमेण्ट प्लेन क्या है?
उत्तर :
कई पेडीमेण्ट के आपस में मिलने से निर्मित मैदान को पेडीमेण्ट प्लेन कहते हैं।
प्रश्न 3.
पर्वत किसे कहते हैं?
उत्तर :
स्थल का वह भाग जो अपने आस-पास के क्षेत्र से 1000 मीटर से भी अधिक ऊँचा हो जिसका आधार विस्तृत तथा शिखर संकीर्ण हो, पर्वत कहलाता है।
प्रश्न 4.
पर्वत श्रेणी एवं पर्वत शृंखला से आप क्या समझते हो?
उत्तर :
पर्वत माला या श्रेणी या श्रृंखला (Mountain Chain) : जब विभिन्न प्रकार के लम्बे तथा सँकरे पर्वतों का विस्तार समानान्तर रूप में चला जाता है तो उसे पर्वत माला या पर्वत श्रेणी या पर्वत श्रृखला कहते हैं।
प्रश्न 5.
अनावृत्तिकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
बाह्य शक्तियों द्वारा घरातल की ऊँचाई-निचाई समाप्त कर उसे समतल बनाने का प्रयास में लगी समस्त प्रक्रियाओं को अनावृत्ति करण (Denudation) कहते हैं।
प्रश्न 6.
अपरदन की परिवहन क्रिया से क्या समझते हो?
उत्तर :
अपरदन के अन्तर्गत गतिशील, अभिकरण (Agents or erosion) जैसे नदी, हवा, हिमनदी, समुद्री तरंगे शिलाखण्डों का स्थानान्तरण करते हैं। अपक्षयित पदार्थ को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की क्रिया को परिवहन कहते हैं।
प्रश्न 7.
कार्डिलेरा या पर्वत समूह क्या है?
उत्तर :
कार्डिलेरा या पर्वत समूह (Mauntain System) : दो या दो से अधिक पर्वत श्रेणियों द्वारा एक ही युग में बने क्रम को पर्वत समूह कहते हैं।
प्रश्न 8.
भ्रंश घाटी क्या है?
उत्तर :
दीवार के समान किनारों वाली लम्बी और गहरी घाटियाँ जो भू-पटल में बड़ी-बड़ी दरारों के पड़ने से जिन घाटियों का निर्माण होता है उसे भंश घाटी (Rift Valley) कहते हैं।
प्रश्न 9.
पठारों को ‘खनिजों का भर्डार’ क्यों कहते हैं?
उत्तर :
प्राचीन चट्टानों से निर्मित होने के कारण पठार खनिज पदार्थो से सम्पन्न होते हैं। दक्षिणी भारत के पठारी भाग में लोहा, कोयला, मैगनीज, अभक, सोना आदि खनिज पदार्थो की अधिकता है। अतः पठारों को ‘खनिज का भण्डार’ कहते हैं।
प्रश्न 10.
अपरदनात्मक मैदानों का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर :
भू-पटल पर उत्पन्न विषमताओं को समतल स्थापक शक्तियाँ (नदी, हिमनद, पवन, सागरीय लहरें) दूर करने का प्रयास करती है। जिससे उत्थित स्थलखण्ड एक सपाट एवं आकृतिविहित मैदान का आकार ग्रहण कर लेते हैं। जिन्हें अपरदनात्मक मैदान (Erosional Plain) कहते हैं।
प्रश्न 11.
अवशिष्ट पर्वत के दो उदाहरण दो ।
उत्तर :
भारत का अरावली पर्वत एवं संयुक्त राज्य अमेरिका का मोनेडनाक पर्वत अवशिष्ट पर्वतें है।
प्रश्न 12.
विछिन्न पठार के दो उदाहरण दें।
उत्तर :
भारत के छोटानागपुर का पठार एवं संयुक्त राज्य अमेरिका का कोलोरेडो का पठार विछ्धिन्न पठार के उदाहरण हैं।
प्रश्न 13.
पेनीप्लेन क्या है?
उत्तर :
नदियों के अपरदन द्वारा निर्मित मैदानों में सर्वप्रमुख पेनीप्लेन या समपदाय मैदान है। नदियाँ अपने अपरदन चक्र की अंतिम अवस्था में उच्च स्थल खण्ड (पहाड़, पठार आदि) को काटकर अपने आधार-तल को प्राप्त कर लेती है। इस तरह से निर्मित मैदान को पेनीप्लेन या समप्राय मैदान कहते हैं।
प्रश्न 14.
द्वितीय क्रम की स्थलाकृतियाँ क्या हैं ?
उत्तर :
महाद्वीपों पर उच्यावच के विचार से तीन म्रधान स्थल रूप देखने को मिलते हैं। वे हैं – पहाड़, पठार और मैदान। निर्माण के विचार से ये तीनों भिन्न स्थलाकृतियाँ उपस्थित करते है। ये द्वितीय क्रम की स्थलाकृतियाँ हैं।
प्रश्न 15.
पर्वत प्रणाली से क्या समझते हो?
उत्तर :
जब कई पर्वत श्रेणियाँ क्रम में स्थित हों और सभी एक ही युग की बनी हो उनसे पर्वत प्रणाली (Mountain Range) का निर्माण होता है।
प्रश्न 16.
नवीन मोड़दार पर्वत की परिभाषा सोदाहरण दीजिए।
उत्तर :
नये या नवीन मोड़दार पर्वत (Young Fold Mountain) पर्वत निर्माण की नवीनतम प्रक्रिया में निर्मित पहाड़ों को नये मोड़दार पर्वत कहते हैं। इनका निर्माण अल्पाइन संचलन अवधि में हुआ है। हिमालय, आल्पस, रॉकी एवं एण्डीज नये मोड़दार पर्वत है।
प्रश्न 17.
अपरदित पठार की उत्पत्ति सोदाहरण लिखिए।
उत्तर :
जब उच्च पर्वतीय भाग बाह्य शक्तियों द्वारा लगातार घर्षित होकर निम्न भूमि में परिवर्तित हो जाता है और पठार का रूप धारण कर लेता है तो इस प्रकार के पठार को अपरदित या विच्छेदित या घर्षित पठार (Dissected Plateaus) कहा जाता है। कभी-कभी पठारी भाग में अधिक अपरदन होने से वहाँ अन्तर्भेदी आग्नेय चट्टानें (जैसे ग्रेनाइट) उभर आती है। दक्षिण भारत के मैसूर और राँची क्षेत्रों में इसी प्रकार के पठारों का निर्माण हुआ है।
प्रश्न 18.
हिमानी घर्षित मैदान किसे कहते हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
हिमानी घर्षित मैदान (Glacial Plain) : हिमनद और हिमावरण से ढँके क्षेत्रों में जब हिमानी की घर्षित क्रिया से भूमि चौरंस होकर मैदान का रूप ले लेती है तो उसे हिमानी घर्षित मैदान कहते हैं। जैसे-फीनलैण्ड, स्वीडेन और कनाडा में।
प्रश्न 19.
दो लावा पठारों के नाम लिखों?
उत्तर :
भारत के दक्कन के पठार एवं संयुक्त राज्य अमेरिका का कोलम्बिया पठार लावा निर्मित पठार के उदाहरण है।
प्रश्न 20.
संरचनात्मक मैदानों का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर :
संरचनात्मक मैदानों (Structural Plain) का निर्माण महादेशीय संचलन (Epeirogenetic movement) के कारण भूपटल में उत्थान (Uplift) तथा अवतलन (Subsidenece) अथवा सागर तल के निर्गमन (Emergence) या निमज्जन (Submergence) के फलस्वरूप होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के महान मैदान तथा रूसी प्लेटफार्म का निर्माण महादेशीय संचलन के अन्तर्गत उत्थान के कारण ही हुआ है।
प्रश्न 21.
निक्षेपात्मक मैदान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
अपरदन के कारकों द्वारा धरातल के किसी भाग से अपरदित पदार्थों को परिवहित कर के अन्यत्र निक्षेपित करते रहो से निक्षेपात्मक मैदानों (Deposional Plain) का निर्माण होता है।
प्रश्न 22.
लोयस मैदान एवं लावा मैदानों का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर :
लोयस मैदान – लोयस मैदानों का निर्माण मरूस्थलीय प्रदेशों से बहुत दूर पवन द्वारा उड़ा कर लायी गयी मिट्टी के महीन कणों के निक्षेपण से होता है।
लावा मैदान – ज्वालामुखी उद्गार से निकलने वाला लावा जब निचले भागों में पतले चादर के रूप में निक्षेपित होता है तो लावा मैदानों का निर्माण होता है। लावा पठारों के अपरदन से प्राप्त अवसादों का निक्षेपण नदियों द्वारा अन्यत्र स्थानों पर किए जाने से भी लावा मैदानों का निर्माण होता है।
प्रश्न 23.
जलोढ़ पंख से क्या समझते हो?
उत्तर :
जहाँ पर नदी पहाड़ी भाग से उतरकर निचले भाग में प्रवेश करती है, वहाँ पर ढाल में अचानक कमी आ जाने के कारण नदी अपने साथ लाए गए बड़े-बड़े टुकड़ों वाला मलवा आगे नहीं ले जा पाती है। फलस्वरूप पर्वतों या पहाड़ियों के पाद के पास उसका निक्षेप होने लगता है, जिससे जलोढ़ पंख (Alluvial Fan) का निर्माण होता है।
प्रश्न 24.
मेसा क्या है?
उत्तर :
प्राचीन कठोर शैलों वाले पठारों पर अपरदन की अधिकता के कारण मेज के आकार की सपाट संरचनाएँ दृष्टिगोचर होती है, जिन्हें मेसा कहते हैं।
प्रश्न 25.
टेथिस सागर कहाँ पर स्थित था?
उत्तर :
आज से लगभग 20 करोड़ वर्ष पहले हिमालय के स्थान पर टेथिज सागर था।
प्रश्न 26.
अवशिष्ट पर्वत के धरातलीय स्वरूपों का उदाहरण दें।
उत्तर :
अवशिष्ट पर्वत (Residual or Relict Mountain) : भारत में अरावली, यूरोप में यूराल, स्काटलैण्ड की पहाड़ियाँ और नेनाइन श्रेणी, संयुक्त राज्य अमेरिका के मोनॉडनक अवशिष्ट पर्वत के उदाहरण है।
प्रश्न 27.
विभाजित पठार के धरातलीय स्वरूपों का उदाहरण दें।
उत्तर :
विभाजित पठार (Dissected Plateau) : वेल्स, स्कॉटलैण्ड, छोटानागपुर, कर्नाटक के मालनद तथा मेघालय के पठार, संयुक्त राज्य अमेरिका का कोलोरेडो तथा कनाडा का लारेशियन पठार विभाजित पठार है।
प्रश्न 28.
बजाडा क्या है?
उत्तर :
बजाडा पेडीमेण्ट के नीचे का भाग है। यहाँ पर बहकर आये पदार्थ व रेत जमा होते रहते हैं। यह वायु एवं पानी के कटाव एवं जमाव क्रिया द्वारा निर्मित होता है। इनका ढाल धीमा किन्तु लहरदार होता है। इनका निर्माण मोटे व महीन कणों के मिश्रण की अलग-अलग मोटाई की परतों के जमा होने से होता है। यहाँ कृषि कार्य एवं पशुपालन किया जाता है।
प्रश्न 29.
ओरोगेनी से क्या समझते हो?
उत्तर :
ओरोगेनी ग्रीक भाषा के दो शब्दों के मेल से बना है जिसमें ओरो का अर्थ पर्वत तथा गेनी का अर्थ निर्माण होता है। अर्थात पर्वत निर्माण । ओरोगेनी वह प्राथमिक क्रियाविधि है जिसके द्वारा पर्वतों का निर्माण किया जाता है।
प्रश्न 30.
प्राकृतिक तटबंध से क्या समझते हो ?
उत्तर :
प्राकृतिक तट बाँध (Natural Levee) : बाढ़ के समय मैदानी भाग में मिट्टी का जमाव अधिक होता है। यह कालान्तर में आस-पास की भूमि से अधिक ऊँचा हो जाता है। ये बाँध के समान होते हैं। इन्हें तट बाँध कहते हैं। चूँकि ये बाँध प्रकृति द्वारा बनाये जाते हैं तथा इनसे बाढ़ के समय सुरक्षा होती है, अतः इस तट बाँध को प्राकृतिक तट बाँध (Natural Levee) कहते हैं।
प्रश्न 31.
भू-आकृतिक देहली (Geomorphic Threshold) से क्या समझते हो?
उत्तर :
भू आकृति विज्ञान में वह स्थल या बिन्दु जहाँ बाह्य प्रभावी कारकों में परिवर्तन के अभाव में अथवा बाह्य प्रभावी कारकों में प्रगामी परिवर्तनों द्वारा स्थलरूपों में एकाएक परिवर्तन होता है, उसे भू-आकृतिक देहली (Geomorphic Threshold) कहते हैं।
प्रश्न 32.
भ्रंश या दरार क्या है?
उत्तर :
भ्रंश या दरार (Fault) : पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों के कारण जब किसी मैदान या पठार की चट्टानों पर दो विपरीत दिशाओं से दबाव या तनाव पड़ता है, तो कभी-कभी चट्टाने मुड़ने के बजाय टूट जाती हैं और उनमें दरारे पड़ जाती है, इन्हीं दरारों को भ्रंश कहते है।
प्रश्न 33.
पैंजिया क्या है?
उत्तर :
पैंजिया (Pangea) : प्राचीनकाल से सभी महाद्वीप एक साथ जुड़े हुए थे। इसे पैंजिया कहते हैं। भू-हलचल की प्रक्रिया द्वारा इन महाद्वीपों का प्रवाह हुआ और ये ट्ट कर अलग होते चले गए और वर्तमान क्रम में स्थापित हुए।
प्रश्न 34.
अंगारालैण्ड और गोण्डवाना लैण्ड क्या है?
उत्तर :
अंगारालैण्ड और गोण्डवाना लैण्ड (Angera and Gondwana Land) : टेथिस सागर के उत्तर स्थित भू-भाग को अंगारालैण्ड एवं टेथिस सागर के दक्षिण स्थित भू-भाग को गोण्डवाना लैण्ड कहा जाता है जो वर्तमान में प्रायद्वीपीय भारत में है।
प्रश्न 35.
अपनति एवं अभिनति क्या है?
उत्तर :
अपनति (Anticline) : भू-पटल के आन्तरिक बल व क्षैतिज संचलन द्वारा चट्टानों में बलन (Folds) पड़ जाते हैं। वलन के ऊपर उठे भाग को अपनति कहते हैं।
अभिनति (Syncline) : सम्पीडन के कारण जब चट्टानो के भाग नीचे की ओर मुड़ जाते हैं तो इसे अभिनति बलन कहते हैं।
प्रश्न 36.
सममित और असममिति वलन क्या है?
उत्तर :
सममति वलन (Symmetrical folds) – जब किसी वलन की दोनों भुजाओं का घ्युकाव या कोण बराबर हो तो उसे सममति वलन कहते हैं।
असममति वलन (Asymmetrical folds) – जब वलन की दोनों भुजाओं की लम्बाई या झुकाव का कोण बराबर हो तो उसे सममति वलन कहते हैं।
प्रश्न 37.
पहाड़ी (Hill) किसे कहते हैं?
उत्तर :
पहाड़ी (Hiil) स्थल का वह भाग जो अपने आस-पास के क्षेत्र से 300 मीटर से अधिक परन्तु 1000 मीटर से कम ऊँचा हो, पहाड़ी कहलाती है। जैसे बिहारीनाथ ( 450 मी०) शिशुनिय ( 440 मी०) बाघमुण्डी ( 677 मी॰) आदि।
प्रश्न 38.
भूद्रोणी (Geo Synclines) किसे कहते हैं?
उत्तर :
पृथ्वी के उन अधिक लम्बे किन्तु कम चौड़े और उथले सागरों को भूद्रोणी (Geo Synclines) कहते हैं। टेथिस सागर (Tethys Sea) इसका एक अच्छा उदाहरण है।
प्रश्न 39.
प्लेटों की गति का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर :
प्लेटों की गति का मुख्य कारण रेडियो सक्रिय तत्वों से निकली ताप के फलस्वरूप उत्पन्न संवाहनिक धाराएँ हैं।
प्रश्न 40.
रचनात्मक प्लेट किनारा क्या है ?
उत्तर :
जब दो प्लेटें एक दूसरे से विपरीत दिशा में गतिशील होती है तो उनके किनारे अपसारी या रचनात्मक प्लेट किनारा (Constructive Plate Margines) कहलाता है।
प्रश्न 41.
अभिसारी या विनाशात्मक प्लेट किनारा (Destructive Plate Margines) किसे कहते हैं?
उत्तर :
जब दो प्लेट एक दूसरे के निकट आकर आपस में टकराते हैं तो उनके किनारों को विनाशात्मक प्लेट किनारा (Destructive Plate Margines) कहते हैं।
प्रश्न 42.
संरक्षी प्लेट किनारा (Conservative Plate Margines) किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जहाँ दो प्लेट एक दूसरे के अलग-बगल सरक जाते हैं तो वहाँ रूपान्तर भंश का निर्माण होता है। ऐसे प्लेट को संरक्षी प्लेट किनारा कहते हैं।
प्रश्न 43.
पर्वत कटक (Mountain Ridge) किसे कहते हैं?
उत्तर :
पर्वत कटक (Mountain Ridge) : लम्बे, सँकरे एवं ऊँचे पर्वतों के क्रमबद्ध स्वरूप को पर्वत कटक (Mountain Ridge) कहते हैं।
प्रश्न 44.
पर्वत श्रेणी (Mountain Range) किसे कहते हैं?
उत्तर :
पर्वत श्रेणी (Mountain Range) : एक ही काल एवं एक ही प्रक्रिया द्वारा बने पर्वतों एवं पहाड़ियो का ऐसा क्रम जिसमें कई शिखर, कटक, घाटियाँ आदि सम्मिलित हों, पर्वत श्रेणी कहलाते हैं। ये एक सीध में सँकरी पट्टी के रूप में फैले होते हैं, जैसे-हिमालय पर्वत श्रेणी।
प्रश्न 45.
पर्वत श्रृंखला (Mountain Chain) किसे कहते हैं?
उत्तर :
विभिन्न युगों में निर्मित लम्बे एवं सँकरे पर्वतों का समानान्तर विस्तार पर्वत शृंखला या पर्वतमाला कहलाता है। जैसे-अप्लेशियन पर्वतमाला।
प्रश्न 46.
पर्वत तन्र (Mountain System) किसे कहते हैं?
उत्तर :
पर्वत तन्त्र (Mountain System) : एक ही युग में निर्मित विभिन्न पर्वत श्रेणियों के समूह को पर्वत प्रणाली या पर्वत तन्न (Mountain System) कहते हैं।
प्रश्न 47.
कार्डिलेरा या पर्वत समूह (Cordillera) किसे कहते हैं?
उत्तर :
कार्डिलेरा या पर्वत समूह (Cordillera) : जब विभिन्न युगों में निर्मित पर्वत श्रेणियाँ, पर्वत शृंखलाएँ तथा पर्वत तंत्र एक ही साथ बिना किसी क्रम के विस्तृत होते हैं तो इन्हें कार्डिलेरा कहा जाता है, जैसे- उत्तरी अमेरिका का प्रशान्त कार्डिलेरा।
प्रश्न 48.
बुट्टी (Butte) किसे कहते हैं?
उत्तर :
पठारों पर स्थित सपाट शिखर वाली लघु पहाड़ियाँ जो प्रतिरोधी शैल स्तरों से ढॅकी रहती है, बुट्टी (Butte) कहलाती है।
प्रश्न 49.
हमादा किसे कहते हैं ?
उत्तर :
मरूस्थलीय प्रदेशो में पवन के अपघर्षण से नग्नीकृत चद्टानों के सपाट भाग जो अधिक विस्तृत होते है, हमादा कहलाते हैं।
प्रश्न 50.
पेडीमेण्ड (Pediment) किसे कहते हैं?
उत्तर :
मरूस्थलीय प्रदेशों में पर्वतों या पठारों के अग्रढाल पर जल के अपरदन से निर्मित अवतल ढाल वाले स्थलरूप को पेडीमेण्ट (Pediment) कहते हैं।
संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 3 MARKS
प्रश्न 1.
प्राचीन मोड़दार पर्वत एवं नवीन मोड़दार पर्वत के बीच अंतर लिखिए।
उत्तर :
प्राचीन मोड़दार पर्वत :
- बहुत समय पहले इन पर्वतों का निर्माण हुआ है।
- अपक्षरण एवं विखण्डन की क्रियाओं का अधिक प्रभाव इन पर पड़ा है।
- इन पर्वतों पर कठोर चट्टाने मिलती हैं क्योंकि कोमल चट्टाने तो कट कर हट गयी है।
- ये कम ऊँचे होते हैं।
- इनके शिखर कुछ गोल होते हैं।
नवीन मोड़दार पर्वत :
- नवीन मोड़दार पर्वतों का निर्माण अपेक्षाकृत बाद में हुआ है।
- इन पर अपक्षरण एवं विखण्डन की क्रियाओं का कम प्रभाव पड़ा है।
- इन पर्वतों पर कोमल चट्टाने मिलती हैं।
- ये अधिक ऊँचे होते हैं।
- इनके शिखर नुकिले होते हैं।
प्रश्न 2.
ज्वालामुखी पर्वत एवं अवशिष्ट पर्वत में अंतर लिखो।
उत्तर :
ज्वालामुखी पर्वत :
- इनका निर्माण भू-गर्भ से निकलने वाले मैग्मा के ठण्डा तथा जमकर ठोस होने से होता है।
- इसमें शिखर की आकृति शक्वाकार होती है, जिसे क्रेटर कहा जाता है।
- ये अधिक ऊँचे होते हैं।
- ये पृथ्वी के आन्तरिक क्रिया के फलस्वरूप बनते हैं।
- ये विनाशकारी क्रियाओं से बने हैं।
अवशिष्ट पर्वत :
- इनका निर्माण किसी ऊँचे पर्वत के कटने, छँटने, घिसने तथा टूटने से होता है।
- इसका ऊपरी हिस्सा समतल या उबड़-खाबड़ होता है।
- ये कम ऊँचे होते हैं।
- इनका निर्माण बाहरी अपरदनकारी शक्तियों के वर्षा, ताप, पाला आदि से क्रिया होता है।
- ये निर्माणकारी क्रियाओं से बने हैं।
प्रश्न 3.
ज्वालामुखी पर्वत के भेद को उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
ज्वालामुखी पर्वत के तीन भेद है –
- सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcanoes)
- प्रसुप्त ज्वालामुखी (Dorment Volcanoes)
- शान्त ज्वालामुखी (Extinct Volcanoes)।
प्रसुत ज्वालामुखी पर्वत उसे कहते हैं जिसके मुख से आग, राख धुँआ आदि निकला करता है । जैसे – इटली का एटना।
प्रसुप्त ज्वालामुखी पहाड़ उसे कहते हैं जो बहुत दिन तक शान्त रहने के बाद अचानक किसी समय भड़क उठता है, जैसे जापान का फ्यूजीयामा।
मृत या शान्त ज्वालामुखी पहाड़ वे है जो हमेशा के लिए शान्त हो गये हैं। उसमें कभी भी उद्गार की आशा नहीं रह गई है। जैसे- म्यॉमार का पोपा।
प्रश्न 4.
अवशिष्ट पर्वत में ऊँची चोटियाँ क्यों नहीं पाई जाती है?
उत्तर :
अवशिष्ट पर्वत का निर्माण विखण्डन एवं अपक्षरण की क्रियाओं द्वारा होता है। इनके द्वारा प्राचीन पठारों एवं ऊँचेऊँचे पर्वत भी घिसकर-कटकर छोटे हो जाते हैं। कालान्तर में ये पर्वत घिस कर पठार बन जाते हैं। इस तरह इसकी ऊँचाई घटती जाती है और इनमें चोटियाँ नहीं पायी जाती है।
प्रश्न 5.
ज्वालामुखी पर्वत को संग्रहीत पर्वत भी कहते हैं, क्यों?
उत्तर :
ज्वालामुखी पर्वत संचयन या निक्षेपण से बने पर्वत हैं। इनका निर्माण ज्वालामुखी उद्गार से निकले पदार्थों, शिल खण्डों एवं लावा के लगातार जमाव और पर्वत रूप लेने से होता है। ज्वालामुखी नली या द्वार के सहारे पिघली चट्टान (लावा) बाहर निकल कर धरातल पर फैल जाती है और शंकु की तरह जमा होकर कोणाकार पर्वत बनाती है। यदि शिला खण्डों की अधिकता हुई तो, ऐसे पर्वत का ढाल तीव्व होगा और यदि लावा की अधिकता हुई तो ढाल क्रमिक होगा ज्वालामुखी की क्रिया से निकलने वाले पदार्थों के संग्रह से निर्मित होने के कारण ज्वालामुखी पर्वत को संग्रहीत पर्वत भी कहा जाता है।
प्रश्न 6.
मोड़दार पर्वत में क्यों जीवाश्म पाये जाते हैं?
उत्तर :
मोड़दार पर्वत में समुद्री जीव-जन्तुओं के अवशेष पाये जाते है। इन पर्वतों का निर्माण उथले समुद्रों से हुआ है। इनकी चट्टानों में छिछले सागर में रहने वाले जीवों के जीवाश्म पाये जाते हैं। नदियाँ समुद्रों में तरह-तरह के जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों के सड़े-गले अवशेषों को मलबे के साथ समुद्रों में तह के ऊपर तह के रूप में जमा करती हैं। यही कारण है कि मोड़दार पर्वतों में जीवाश्म पाये जाते हैं।
प्रश्न 7.
गुम्बदाकार पर्वत को वर्षा का द्वीप क्यों कहा जाता है?
उत्तर :
गुम्बदाकार पर्वत पृथ्वी के धरातल पर फोड़े की तरह पैदा होते हैं तथा जो मैग्मा के नीचे से ऊपर उठने के कारण बन जाते हैं। कभी-कभी मेग्मा धरातल पर न आकर मैदानों के अन्दर परतदार चट्टानों में ही जमा हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में वहाँ की चट्टाने गुम्बदाकार हो उठती हैं। ये गुम्बद के केन्द्र से बाहर की ओर समान रूप से ढालू बने रहते हैं जिनमें वर्षा के बादल टकराकर पर्याप्त मात्रा में वर्षा करते हैं । इन गुम्बदों पर अधिक वर्षा होती है। अतः इन्हे वर्षा के द्वीप (Island of precipitation) कहा जाता है।
प्रश्न 8.
पहाड़ी भागों पर जनसंख्या का घनत्व कम क्यों होता है?
उत्तर :
पर्वतीय भागों में जनसंख्या का घनत्व कम है, इसका मुख्य कारण निम्नलिखित है –
- पर्वतों की बनावट अनिश्चित होती है।
- इनकी घाटियाँ संकरी होती है।
- मिट्टी की पतली तह कृषि कार्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है।
- यातायात के साधनों का सर्वथा अभाव रहता है।
- कृषि उद्योग का स्थान नगण्य है।
- जलवायु की विषमता के कारण आबादी घनी नहीं है।
- समतल भूमि की कमी है। इन्हीं सब कारणों से इन प्रदेशों में आबादी बहुत कम रहती है।
प्रश्न 9.
मोड़दार या वलित पर्वत की विशेषता लिखिए।
उत्तर :
वलित पर्वत की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –
- ये भू-तल के नवीनतम पर्वत है, जिनमें विश्व की उच्चतम चोटियाँ पाई जाती है।
- इनका निर्माण अवसादी चट्टानों में दबाब पड़ने से मोड़ पड़ने के कारण हुआ है।
- इन पर्वतों की चट्टाने जलज हैं अर्थात् इनका निक्षेप जलीय भागों में हुआ था। इनमें सागरीय जीवों के अवशेष पाये जाते हैं।
- वलित पर्वतों में तल-छट का जमाव अत्यधिक गहरे सागर के साथ ही उथले सागर में भी हुआ है।
- वलित पर्वतों का विस्तार लम्बाई में अधिक परन्तु चौड़ाई में बहुत कम होता है। हिमालय का विस्तार पश्चिम से पूरब दिशा में 1,500 मील की लम्बाई तथा उत्तर से दक्षिण 250 मील की चौड़ाई में पाया जाता है।
- वलित पर्वत चाप के आकार में पाये जाते हैं, जिनका एक ढाल अवतल तथा दूसरा ढाल उत्तल होता है, जिधर से दबाव की शक्ति का आगमन होता है।
प्रश्न 10.
गुटका पर्वत और भ्रंशघाटी का निर्माण आपस में संबंधित है, स्पष्ट कीजिए?
उत्तर :
अवरोधी या ब्लॉक पर्वत का निर्माण तनाव या खिंचाव की शक्तियों की क्रियाशीलता के कारण होता है । खिचाव के कारण भू-पटल पर दरारें या भंश पड़ जाती हैं, जिसके कारण धरातल का कुछ भाग ऊपर उठ जाता है तथा कुछ भाग नीचे घंस जाता है। ऊपर उठे भाग के अवरोधी या ब्लोंक पर्वत कहते हैं तथा नीचे धंसे भाग जो प्रंश दरार या भ्रंश के कारण होता है, अतः इसे प्रंशोत्थ पर्वत भी कहते हैं। ये प्राय: दो समानान्तर भागों दूसरों के बीच स्थित होते हैं। इस प्रकार ब्लॉक पर्वत का निर्माण धरातलीय भागों में प्रंश पड़ने के कारण होता है। अत: ब्लॉक पर्वत्तें एवं भ्रंश घाटियों का आपस में अन्तर्सम्बन्य है।
प्रश्न 11.
भूसन्नति सिद्धांत क्या है?
उत्तर :
भूसन्नति सिद्धांत : पर्वत निर्माण संबंधी समस्याओं की व्याख्या हेतु कोबर महोदय ने भूसन्नति सिद्धांत का प्रांतपादन किया। वे एक जर्मन भूगर्भशास्त्री थे जिन्होंने बताया कि पर्वतों की उत्पत्ति भूसन्नति के गर्भ में होती है। उनकी मान्यता थी कि मोड़दार पर्वतों का निर्माण धरातल के संकुचन का परिणाम है। कोबर का सिद्धांत निम्नलिखित तीन मान्यताओं पर आधारित है।
(i) पर्वत की उत्पत्ति एक भूसन्नति या छिछले सागर में होती है।
(ii) इस भूसन्नति में नदियों द्वारा अनवरत मलवा निक्षेपण होता रहा और उनमें धँसान भी हुआ।
(iii) तीसरी मान्यता है कि भूसन्नति में होने वाले अवतलन क्रिया में चट्टानों में संकुचन हुआ और इस संकुचन से भू-सन्नति में निक्षेपित मलवे मुड़कर मोड़दार पर्वत के रूप में परिवर्तित हुए।
वस्तुत: भूसन्नति का मलवा ही मोड़दार पर्वत के रूप में उत्थित होगा। परन्तु सभी मलवों में मोड़ नहीं पड़ता है। भूसन्नति के दोनों किनारे वाले मलवे सबसे पहले मुड़कर पर्वत बनते हैं। बीच में स्थित मलवा बिना मुड़े ऊपर उठ जायेगा। जिसे मध्य पिण्ड (Medium Mass) कहते हैं। तिब्बत, हंगरी का मैदान ऐसे ही मध्य पिण्ड के उदाहरण हैं।
प्रश्न 12.
प्रशान्त महासागर की आग की अंगुठी क्या है?
उत्तर :
प्रशान्त महासागर की आग की अंगुठी (Pacific Ring of Fire) : विश्व के मानचित्र का अध्ययन करने पर हम यह पाते हैं कि ज्वालामुखी पर्वतों का एक वितरण प्रशान्त महासागर के चारों तरफ गोलाई में फैला हुआ है। इसे प्रशान्त महासागर की आग की अंगुठी (Ring of Fire) कहते हैं।
प्रश्न 13.
खण्ड पर्वत का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर :
खण्ड पर्वत या गुटका पर्वत या संवर्ग पर्वत (Block or Faulted Mountain) : पृथ्वी के बाह्य और आंतरिक शक्तियों के अचानक तनाव के कारण जब प्रस्तरित चट्टानें (Śtratified Rocks) टूट जाती हैं तो इनमें दरारें यड़ जाती हैं। जिस रेखा के सहारे ये टूटती है उसे Fault Line कहते हैं। इन दरारों के बीच का भूखण्ड कभी उठकर ऊपर चला जाता है तो कभी खिसक कर नीचे चला जाता है। ऐसी हालत में ऊपर उठा भू-भाग पर्वत के रूप में दिखाई पड़ता है, जिसे संवर्ग पर्वत (Block or Faulted Mountain) कहते हैं। संसार में मोड़दार पर्वत की अपेक्षा संवर्ग पर्वत कम है।
उदाहरण – यूरोप में हार्ज पर्वत, वॉसजेज (फ्रांस) ब्लैक फॉरेस्ट (जर्मनी) तथा पाकिस्तान का साल्ट रेंज (Salt Pange) इसी प्रकार के पर्वत हैं।
प्रश्न 14.
वलित पर्वत की विशेषताएँ क्या हैं ?
उत्तर :
वलित या मोड़दार पर्वत की विशेषताएँ – (The Characteristics of Fold Mountains)
- मोड़दार पर्वत अत्यधिक लम्बाई में पाये जाते हैं। इनकी चौड़ाई लम्बाई की अपेक्षा बहुत कम होती है।
- ये प्राय: धनुषाकार या चापतुल्य होते हैं।
- इनका निर्माण छिछले सागर या भूसन्नतियों में और तलछटी परतदार चट्टानों से हुआ है।
- मोड़दार पर्वत में चट्टानों की परतें मुड़ी हुई तथा भ्रंशित होती है।
- इन पर्वतों की चट्टानों में छिछले सागर में रहने वाले जीवों के जीवाश्मा (Fossils) पाए जाते हैं।
- विश्व के सर्वोच्च शिखर मोड़दार पर्वत में ही जाए जाते हैं।
प्रश्न 15.
ज्वालामुखी पर्वत क्या है?
उत्तर :
इन पर्वतों का निर्माण ज्वालामुखी (Vent) के उद्गारों के साथ निकले पदार्थों के उसके चारों ओर जमा हो जाने से होता है। ज्वालामुखी उद्गारों में लावा शिलाखण्ड राख, धूल, कीचड़, ज्वालामुखी बम और सिंडर जैसे पदार्थ निकलते हैं। ये पदार्थ परत- दर-परत एक शंकु की आकृति में जमा हो जाते हैं। कालांतर में शंकु एक पर्वत जैसा बन जाता है। ये पर्वत पदार्थों के जमा होने से बनते हैं। अतः इन्हें संचयित पर्वत भी कहते हैं।
प्रश्न 16.
ज्वालामुखी पर्वत के तीन उदाहरण दो।
उत्तर :
ज्वालामुखी पर्वत के उदाहरण है – जापान का फ्यूजीयामा (Fujiyama), अफ्रीका के केनिया व किलिमांजरों (Kilimanjaro), इटली का विसूवियस (Visuvious) तथा एटना एवं बर्मा का पोपा है।
प्रश्न 17.
संग्रहित पर्वत से क्या समझते हो?
उत्तर :
ज्वालामुखी उद्गार से निकलने वाले लावा, राख शिलाखण्ड चट्टानों के चूर्ण आदि पदार्थ उसके मुँह (Crater) के चारों ओर शंकु (Cone) के आकार में जमा हो जाते हैं जिससे ज्वालामुखी पर्वत बन जाता है। ये त्रिकोणाकृति के होते है तथा इनका ऊपरी भाग कीप (Funnel) के आकार का होता है। ज्वालामुखी के पदार्थों के संग्रह से निर्मित होने के कारण ज्वालामुखी पर्वत को संग्रहित पर्वत (Mountains of Accumulation) कहते हैं।
प्रश्न 18.
भ्रंशोत्थ पर्वत की विशेषताओं को उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
श्रंशोत्य या खण्ड पर्वत की विशेषताएँ (The Characteristics of Block Mountains):
- खण्ड पर्वत मोड़दार पर्वतों की अपेक्षाकृत छोटे होते हैं और इनका विस्तार सीमित क्षेत्रों में होता है।
- खण्ड पर्वत आकार में प्राय: सीधे होते है तथा भ्रंशन के कारण उपालंब बनाते हैं।
- इन पर्वतों का निर्माण पहाड़ी क्षेत्रों में होता है, चाहे वह मोड़दार पर्वत का क्षेत्र हो या पठारी क्षेत्र हो।
- खण्ड पर्वतों के निर्माण में मुख्यत: तनाव बल (Tensional force) काम करता है। यद्यपि कहीं-कहीं पार्शिवक दबाव या संपीडन बल (Compressional force) भी काम करता है।
- इनका निर्माण चट्टानों के दरार अथवा भ्रंशन से होता है न कि उनके मुड़ने से।
- विश्व में खण्ड पर्वत बहुत कम पाये जाते हैं।
प्रश्न 19.
पर्वत क्या है? पर्वत के निर्माण के लिए तीन कारकों का उल्लेख करें।
उत्तर :
पर्वत (Mountain) : पर्वत धरातल के वे ऊँचे उठे भू-भाग हैं जो अपने आस-पास की भूमि से काफी ऊँचे उठे हुए हैं। इनमें चोटियाँ पायी जाती है। इनके शिखर का क्षेत्रफल आधार के क्षेत्रफल से बहुत कम होता है। इनका निर्माण आन्तरिक हलचलों से होता है तथा इसकी औसत सागर तल से ऊँचाई 2000 मीटर से 3000 मीटर होती है।
पर्वत निर्माण के कारण (Factors) :
- मलवे का सागर की तलहटी में जमा होना।
- भू हलचल के द्वारा पर्वत निर्माणकारी गति (Orogenic Movement) का सक्रिय होना।
- भू-पृष्ठ पर बलन एवं भंश का निर्माण होना।
प्रश्न 20.
पठार किसे कहते हैं ? पठारों के निर्माण के लिए किन्हीं तीन कारकों का उल्लेख करें?
उत्तर :
पठार (Plateau) : पठार धरातल का विस्तृत ऊँचा भू-खण्ड है, जो समुद्रतट से एकदम ऊँचा उठ गया है। पठार का शीर्ष लगभग सपाट होता है। इसके किनारे खड़े ढाल वाले होते हैं । पठारो के शीर्ष का क्षेत्रफल आधार से अधिक होता है। कुछ पठारों का संस्तर कभी-कभी हुका हुआ रहता है।
पठारों के निर्माण के कारक (Factors) :
- उच्च-ऊँचाई – साधारणतया एक पठार की ऊँचाई अधिक होती है।
- क्षैतिज चट्टान स्तर – पठारों में उँचाई के साथ क्षैतिज चट्टान स्तर होता है।
- भू हलचल एवं धरातल का उठना।
- ज्वालामुखी क्रिया एवं संग्रहण के कारण पठार का निर्माण आदि।
- ऊँचे उठे भू-भाग का अपरदन के कारको द्वारा विखण्डित होना।
प्रश्न 21.
उदाहरण सहित किन्हीं तीन प्रकार के पर्वतों का उल्लेख कीजिए?
उत्तर :
- वलित पर्वत (Fold Mountains) : हिमालय, आल्पस, काकेशस, एण्डीज, पेरेनीज आदि।
- भ्रंशोत्थ पर्वत (Block Mountain) : वास्जेज एवं ब्लैक फारेस्ट, साल्टरेंज आदि।
- ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountain) : फ्यूजियामा, एकांकागुआ, कोटोपैक्सी आदि।
प्रश्न 22.
विभिन्न प्रकार के मैदानों के निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन करो।
उत्तर :
- नदियों के द्वारा मलवे का घाटी में जमाव।
- समुद्र का शान्त एवं उथला होना जिसमें मुहाने पर डेल्टा का जमाव।
- नदी द्वारा उच्च भू-भाग को काटकर समप्राय भू-भाग में बदलना।
- भू-हलचल द्वारा तटीय भागों का नीचा होना एवं उठना।
- भू-गर्भ जल तथा चूने प्रदेश का घोलीकरण आदि।
- मैदानों की उत्पत्ति पूथ्वी की आन्तरिक शक्तियों (भूकम्प, ज्वालामुखी) और बाद्य शक्तियों जैसे अपरदन और निक्षेपण से होता है।
प्रश्न 23.
उत्पत्ति के आधार पर मैदान का वर्णन करें।
उत्तर :
उत्पत्ति के आधार पर मैदनों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है –
- संरचनात्मक मैदान (Structural Plains) महाद्वीप निमग्न से ऊपर उठे मैदान।
- अपरदनजनित मैदान (Erosional Plains)
- निक्षेपण जनति मैदान (Depositional Plains)
अपरदन जनित मैदान को चार भागों में बाँटा गया है –
- समपाय मैदान (Pene Plain)
- कार्स्ट मैदान (Karst Plain)
- हिमानी अपरदित मैदान (Glacial erosion plain)
- मरूस्थलीय मैदान (Desert Plain)
निक्षेपण जनित मैदान को पाँच भागों में बाँटा जा सकता है –
- जलोढ़ मैदान (Alluvial Plain)
- अपोढ़ मैदान (Drift Plain)
- सरोवरी मैदान (Lacustrine Plain)
- समुद्रतटीय मेदान (Coastal Plain by Deposition)
- लोयस मैदान (Loess Plain)
प्रश्न 24.
कटाव द्वारा निर्मित तीन पर्वतों का वर्णन करें।
उत्तर :
कटाव की प्रक्रिया द्वारा निर्मित अवशिष्ट पर्वतों को तीन भागों में बाँटा गया है-
(a) बुटी (Buttes) : बुटी का निर्माण मेसा (Mesa) के अपरदन द्वारा होता है। यह मरूभूमि में पाया जाता है, इसका सिरा क्ठोर चट्टानों से निर्मित चौरस होता है।
(b) इन्सेलबर्ग (Inselberg) : इन्सेलबर्ग खड़े ढालों वाली पहाड़ियाँ हैं। इन्सेलबर्ग नदियों के अपरदन से निर्मित उपर उठे विस्तृत क्षेत्र हैं। ये अवशिष्ट पर्वत का ही एक रूप है।
(c) मोनाडॉक (Monadnock) : सममाय मैदान में कठोर चट्टानों से निर्मित छोटे-छोटे गुम्बदाकार टीलों को मोनाडॉक कहते हैं। इनका निर्माण नदियो के अपरदन से होता है।
प्रश्न 25.
ज्वालामुखी पर्वत एवं अवशिष्ट पर्वत में अंतर लिखों।
उत्तर :
ज्वालामुखी पर्वत :
- ज्वालामुखी पर्वत का निर्माण जमाव की प्रक्रिया से होता है।
- ज्वालामुखी पर्वत का निर्माण ज्वालामुखी विस्फोट से निकलने वाले मलवे राख, धूल, मैग्मा आदि के जमाव से होता है।
- ज्वालामुखी पर्वत का निर्माण कम समय में होता है।
अवशिष्ट पर्वत :
- अवशिष्ट पर्वत का निर्माण अपरदन की क्रिया द्वारा होता है।
- अवशिष्ट पर्वत का निर्माण अपरदन एवं अपक्षय के कारको द्वारा होता है।
- अवशिष्ट पर्वत के निर्माण में लम्बा समय लगता है।
प्रश्न 26.
मैदानों की विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर :
मैदानों की विशेषताएँ (Characteristics of Plains) :- मैदान की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- मैदान में जहाँ-तहाँ टीले पाये जाते है और इनका ढाल क्रमिक होता है।
- मैदान का धरातल विस्तृत, समतल एवं लहरदार होता है।
- मैदान में प्राय: मुलायम मिट्टी का आवरण मिलता है।
- मैदान का जमाव प्राय: एक ही प्रकार की मिट्टी से होता है।
- सामान्यत: समुद्र तल से मैदानों की औसत ऊँचाई 150 मीटर होती है।
- मैदानों के निर्माण में भिन्नता पायी जाती है।
प्रश्न 27.
ज्वालामुखी पर्वत की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
ज्वालामुखी पर्वत की विशेषताएँ (Characteristics of Volcanic Mountain) :
- ये पर्वत शंक्वाकार (Conical Shaped) होते हैं।
- इन पर्वतों का ऊपरी भाग कीप की भाँति होता है जिसे Crater कहते हैं।
- ये पर्वत बहुत जल्दी ऊँचे हो जाते हैं।
- प्रधानत: प्रशान्त महासागर के तटीय भाग एवं समुद्री शैल शिराओं के ऊपरी भाग में ये पर्वत दिखाई पड़ते हैं।
- ऐसे पर्वतों की आकृति प्राय: त्रिभुज की तरह होती है।
- भू-गर्भ से निकलने वाले तरल लावा के बाहर आकर जमने के बाद ऐसे पर्वत का निर्माण होता है।
प्रश्न 28.
अवशिष्ट पर्वत की विशेषताएँ लिखिए?
उत्तर :
अवशिष्ट पर्वत की विशेषताएँ (Characteristics of Relict or Residual Mountain :
- इन पर्वतों का ऊपरी हिस्सा घर्षण के कारण चपटा होता है।
- इस प्रकार के पर्वत पुराने पर्वतों के घर्षण से बने होते हैं।
- इन पर्वतों की ऊँचाई और ढाल अधिक नहीं होता है।
- इनका ऊपरी हिस्सा समतल या ऊबड़-खाबड़ होता है।
- इनका निर्माण बाह्य अपरदनकारी शक्तियों (पवन, वर्षा, ताप, पाला) के क्रिया से होता है।
प्रश्न 29.
पठारों की विशेषताएँ लिखिए?
उत्तर :
पठारों की निम्नलिखित विशेषताएँ होती है :
- सामान्यत: पठारों की सागर-तल से ऊँचाई 300 से 1000 मीटर तक होती है।
- पठार सागर-तल या अपने आसपास की भूमि से कम से कम एक ओर से खड़े ढाल द्वारा अलग होते है।
- इनकी धरातल मेज की भाँति विस्तृत होता है। इनमें चोटियाँ नहीं होती है।
- इनका धरातल मैदानों की भाँति बिल्कुल समतल न होकर कुछ उबड़-खाबड़ होता है।
- इनके ऊपरी भाग का क्षेत्रफल आधार की अपेक्षा कुछ कम रहता है।
- ये पृथ्वी के अति माचीन भाग हैं ।
- इनमें प्राय: कठोर चट्टानें मिलती है।
प्रश्न 30.
पर्वत और पठार में अन्तर स्पष्ट कीजिए?
उत्तर :
पर्वत (Mountain) :
- ये सागर तल या अपने आस-पास के क्षेत्र से बहुत ऊँचे उठे होते हैं।
- इनका शिखर नुकीला होता है।
- इनमें प्राय: नवीन एवं कम कठोर चट्टानें पायी जाती हैं ।
- पर्वत पर तापक्रम काफी कम रहता है।
- इनके चारों ओर का ढाल तीव्र होता है।
- ये अनुपजाऊ एवं कृषि के अयोग्य होते हैं ।
पठार (Plateau) :
- ये अपने समीप के घरातल से अपेक्षाकृत कम ऊंचे उठे होते हैं
- इनका शिखर चौरस होता है।
- इनमें अत्यन्त प्राचीन एवं कठोर चट्टाने पायी जाती हैं।
- पठारों पर तापक्रम पर्वतों से अधिक होता है।
- इनमे कम से कम एक ओर का ढाल खड़ा होता है।
- ये अपेक्षाकृत् उपयुक्त होते हैं।
प्रश्न 31.
पठार और मैदान में अंतर लिखिए ।
उत्तर :
पठार (Plateau) :
- ये मैदानों की अपेक्षा कम उपजाऊ होते है।
- इन पर जनसंख्या का घनत्व कम पाया जाता है।
- इनका शिखर विस्तृत होता है।
- इस पर खनिज पदार्थ अधिक मात्रा में पाया जाता है।
- पठारों पर तापक्रम कम रहता है।
- इनका धरातल उबड़-खाबड़ होता है।
मैदान (Plain) :
- ये उपजाऊ तथा कृषि के योग्य होते हैं।
- इन पर जनसंख्या का घनत्व अधिक पाया जाता है।
- इनका धरातल विस्तृत होता है।
- मैदानी भागों में खनिज पदार्थो का प्राय: अभाव रहता है।
- मैदानो पर तापक्रम अपेक्षाकृत अधिक रहता है।
- इनका धरातल समतल होता है।
प्रश्न 32.
मैदानी भागों में घनी जनसंख्या क्यों पायी जाती है ?
उत्तर :
मैदानी भागों में कृषि की सुविधा, उद्योग-धन्धों का विकास, यातायात के साधनों का विकास एवं अन्य जीवनपयोगी वस्तुओं की सुविधा के कारण जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है।
प्रश्न 33.
पर्वत नदियों के उद्गम स्थल होते हैं। कैसे?
उत्तर :
अधिकांश नदियाँ पहाड़ों से निकलती हैं । ऊँचे पहड़ों पर अधिक वर्षा तथा हिम के पिघलने से निरन्तर जल प्राप्त होता रहता है। अत: यहाँ से सदावाहिनी नदियों की उत्पत्ति होती है। ये नदियाँ उपजाऊ मैदानों का निर्माण करती हैं। इनसे सिंचाई भी की जाती है।
प्रश्न 34.
पर्वतीय भागों में होटल व्यवसाय का विकास क्यों हुआ है ?
उत्तर :
ऊँचाई के कारण गर्मी में भी पहाड़ी स्थान ठण्डे बने रहते हैं। अत: गर्मी में मैदानी भाग की गर्मी से बचने तथा स्वास्थ्य लाभ करने के लिए अमीर लोग पहाड़ी स्थानों पर चले जाते हैं। हिमालय पर शिमला, नैनीताल, मंसूरी, दार्जिलिंग आदि स्वास्थ्यवर्द्धक स्थान हैं। पहाड़ का दृश्य मनोरम एवं आकर्षक होता है। अत: ये पर्यटन के केन्द्र होते है, जहाँ होटल व्यवसाय का विकास हो जाता है।
प्रश्न 35.
नवीन मोड़दार पर्वतों के शिखर हिमाच्छादित ही रहते हैं।
उत्तर :
नवीन मोड़दार पर्वत टर्शियरी युगीन अल्पाइन पर्वत वर्ग में आते हैं। रॉकी, एण्डीज, आल्स, हिमालय आदि इसके उदाहरण हैं। इन पर्वतों में पर्वत वर्ग, पर्वत तंत्र, श्रेणियाँ, कटक, शिखरें पायी जाती हैं। अधिक ऊँचाई के कारण ये सदैव हिमाच्छादित रहते हैं।
प्रश्न 36.
पर्वतीय भाग आर्थिक क्रिया में विकसित क्यों नहीं होते ?
उत्तर :
असमतल एवं अनुपजाउ भूमि होने से पर्वतीय भाग कृषि के योग्य नहीं होते, कहीं-कहीं पर्वतीय ढाल पर सीढ़ीदार खेत बनाकर खेती की जाती है। दूसरी ओर यहाँ कच्चे माल एवं यतायात के साधनों की कमी के कारण आर्थिक विकास नहीं हो पाया है। यही कारण है कि पर्वतीय भाग आर्थिक दृष्टि के विकसित नहीं होते हैं।
प्रश्न 37.
मैदानी भाग आर्धिक रूप से महत्वपूर्ण क्यों होते हैं ?
उत्तर :
मैदानी भागों कीमिट्टी समतल, कोमल एवं उपजाऊ होता है। यहाँ सिंचाई की पर्याप्त सुविधा होती है। साथ ही साथ कच्चे माल की सुविधा, यातायात के साधन की सुलभता आदि सुविधा के कारण मैदानी भाग आर्थिक रूप से काफी विकसित होते हैं।
प्रश्न 38.
भंश या दरार क्या है?
उत्तर :
भ्रंश या दरार (Fault) : पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों के कारण जब किसी मैदान या पठार की चट्टानों पर दो विपरीत दिशाओ से दबाव या तनाव पड़ता है, तो कभी-कभी चट्टाने मुड़ने के बजाय टूट जाती हैं और उनमें दरारें पड़ जाती हैं, इन्ही दरारों को भंश कहते हैं।
प्रश्न 39.
भू-आकृतिक देहली से क्या समझते हो?
उत्तर :
भू-आकृतिक विज्ञान में वह स्थल या बिन्दु जहाँ बाह्य प्रभावी कारकों में परिवर्तन के अभाव में अथवा बाह्म प्रभावी कारकों में प्रगामी परिवर्तनों द्वारा स्थलरूपों में एकाएक महत्वपूर्ण परिवर्तन होता है, उसें भू-आकृतिक देहली (Geomorphic Threshold) कहते हैं।
प्रश्न 40.
विश्व की अधिकांश जनसंख्या मैदानों में निवास करती है क्यों?
उत्तर :
निम्नलिखित कारणों से विश्व की अधिकांश जनसंख्या मैदानों में निवास करती हैं –
- कृषि क्षेत्र के लिए मैदान सबसे उपयुक्त भू-आकृतिक है। नदियों द्वारा निर्मित मैदान संसार में सबसे अधिक उपजाऊ होते हैं।
- मैदानों में वर्ष भर जल की उपलब्थता रहती है। यहाँ भूमित जल का दोहन भी बड़ी सरलता से हो जाता है।
- मैदानों में यातायात की सुविधा रहती है। समतल भूमि होने के कारण सड़कों आदि का निर्माण करना आसान होता है।
- नहरों का निर्माण मैदानी भागों में ही संभव है।
- आवास की दृष्टि से मैदानी भाग सबसे अनुकूल होते हैं।
प्रश्न 41.
बाढ़ के मैदान और डेल्टाई मैदान में क्या अन्तर है?
उत्तर :
बाढ़ के मैदान (Flood Plain) | डेल्टाई मैदान (Delta Plain) |
i. इसमें मिट्टी के महीन कण मिलते है। | i. इनमें मिट्टी के कण बहुत ही महीन होते हैं। |
ii. इनमें दलदली भाग नहीं मिलते। | ii. इसमें दलदली भाग मिलते हैं। |
iii. इस भाग में धान, गेहूँ, दलहन, तिलहन आदि पैदा होते हैं। | iii. इस भाग में नारियल एवं जूट की उपज होती है। |
iv. ये सागर तल से ऊँचे उठे रहते हैं। | iv. ये सागर तल से बहुत कम ऊँचे उठे होते हैं। |
v. इनका निर्माण नदी के मध्य भाग में होता है। | v. इनका निर्माण नदी के मुहाने के पास होता है। |
विवरणात्मक प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 5 MARKS
प्रश्न 1.
भू-पटल पर परिवर्तन लाने वाले शक्तियों के बारे में उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
पृथ्वी की सृष्टि के बाद से अब तक धरातल का स्वरूप हमेशा बदलता रहा है। भू-पटल पर जैसे ही कोई भूभाग ऊँचा उठता है वैसे ही परिवर्तन की शक्तियाँ उसे समतल करने में जुट जाती है। भू-गर्भिक अर्थात् आन्तरकि शक्ति (Internal Forces) धरातल पर विभिन्न स्वरूपों की जन्म देती है और बाहरी शक्तियाँ (External Forces) इन स्वरूपों का क्षय करने में लगी रहती है। इस तरह धरातल पर परिवर्तन लाने वाली शक्तियों को दो भागों में बाटाँ जा सकता है –
(i) आन्तरिक शक्तियाँ (Internal forces or Endogenetic Forces or Tectonic Forces)
(ii) बाह्य शक्तियाँ (External Forces or Exogenetic Forces or Grandational Force)
(i) आन्तरिक शक्तियाँ (Internal or Endogenetic Forces) : ये शक्तियाँ भू-गर्भ में हमेशा परिवर्तन करने में लगी रहती है। ये शक्तियाँ तीव्र गीत से कार्य करती है। भू-गर्भ में विभिन्न प्रकार के खनिज तत्व तथा रेडियम का प्रभाव डालने वाले तत्व (Redioactive Elements) के ताप के कारण चट्टानें पिघल जाती हैं। इन पिघले पदार्थो का भूपटल पर ऊपर आने के प्रयास के फलस्वरूप ज्वालमुखी के उद्गार तथा भूकम्प आते हैं। इन भू-पटल निर्माणकारी शक्तियों से पर्वत, पठार, झील एवं सागर आदि का निर्माण होता है। ये शक्तियाँ धरातल को ऊँचा-नीचा बनाने में लगी रहती है। इनमें भू-कम्प एवं ज्वलामुखी प्रधान है।
(ii) बाह्य शक्तियाँ (External or Erogenetic Forces) : ये शक्तियाँ धरातल के ऊपरी आवरण को परिवर्तित करने का कार्य करती है। इनका कार्य भू-गर्भ के हलचलों के फलस्वरूप बने धरातल के विभिन्न स्वरूपों को नष्ट करना है। बाह्म शक्तियाँ मंद गति से कार्य करती हैं। ये निरतर
परिवर्तन के कार्य में लगी रहती है। ये शक्तियाँ दो प्रकार की है –
(a) स्थिर शक्तियाँ (Static Forces) तथा
(b) गतिशील शक्तियाँ (Dynamic or mobile force)
(a) स्थिर शक्तियाँ (Static Forces) : ये शक्तियाँ अपने स्थान पर ही कार्यशील रहती है और चट्टानों को नोड़फोड़ कर अथवा मुलायम या ढीला बनाकर उन्हें हटाये जाने योग्य बना देती है। स्थिर शक्तियों के कृरणों में वर्षा, ताप, हिम आदि हैं। इनके द्वारा चट्टानों में परितर्वन होता है। मगर उनमें गति नहीं होती। चट्टाने खण्ड खण्ड हो जाती है। और प्राय: वही पड़ी रहती हैं। इन शक्तियों को ऋतु अपक्षय कहा जाता है। इस क्रिया में तापान्तर, वर्षा, पाला आदि की भूमिका रहती है।
(b) गतिशील शक्तियाँ (Mobile Force) : ये शक्तियाँ एक ही स्थान पर स्थिर नहीं रहती। ये गतिशील होती है। ये शक्तियाँ स्थिर शक्तियों द्वारा जोड़ी गयी चट्टानों को बहाकर ले जाती है, और उन्हें दूसरे स्थान पर जमा कर देती है। गतिशील शक्तियों में बहता हुआ जल, हवा, हिमनद तथा भू-गर्भित जल प्रमुख है। इस वर्ग की शक्तियों का अपरदन, अपक्षरण अथवा आवरण क्षय कहा जाता है। इन शक्तियों से भू-पटल पर कहीं तोड़-फोड़ और कहीं भू-रचना का कार्य होता रहता है जिससे अनेक नये भू-आकार बन जाते हैं।
बाह्य शक्तियों में अपक्षय तथा अपरदन आते हैं। अपक्षय के अंन्तर्गत स्थिर शक्तियाँ है। ये स्थिर शक्तियाँ सूर्यताप, वर्षा, पाला, पेड़, पौधे, जीव-जन्तु, मनुष्य हैं। Erosion के अन्तर्गत गतिशील शक्तियों (Mobile Forces) में बहता हुआ जल, हवा, हिमनद, समुद्र तथा भूमित जल प्रमुख है।
प्रश्न 2.
पहाड़ क्या है? पहाड़ के भागों का नाम लिखिए।
उत्तर :
स्थल का वह भू-भाग जो अपने आस-पस के क्षेत्र से कम-से-कम 600 मीटर से अधिक ऊँचा हो और जिसका शीर्ष चोटीनुमा तथा पृष्ठ तीव ढाल युक्त हो, प्रव्वत कहलाता है।
पर्वत के निम्नलिखित भाग होते हैं –
(i) पर्वत कटक (Mountain Ridge) : सँकरे एवं ऊँचे पहाड़ी क्रम को ‘पर्वत कटक’ कहते हैं। ये आकार में लम्बे तथा सँकरे होते हैं। अल्पेशियन का ब्लू रिज पर्वत कटक का उदाहरण है।
(ii) पर्वत-श्रेणी (Mountain Range) : पहाड़ों तथा पहाड़ियों के क्रम के क्रम को ‘पर्वत श्रेणियाँ’ कहते हैं। जिनमें कई कटक, शिखर तथा घाटियाँ होती हैं। हिमालय को पर्वत श्रेणियों के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
(iii) पर्वत शृंखला (Mountain Chain) : इसे पर्वत माला भी कहते हैं। जब विभिन्न प्रकार से निर्मित लम्बे तथा संकरे पर्वतों का विस्तार समानान्तर रूप में पाया जाता है, तब उसे पर्वत श्रृंखला कहा जाता है। अल्यूशियन पर्वतमाला इसका प्रमुख उदाहरण है।
(iv) पर्वत तंत्र (Mountain System) : एक ही युग में निर्मित विभिन्न पर्वत श्रेणियों के समूह को पर्वत-तंत्र कहते हैं। अल्पेशियन पर्वत, पर्वत समूह का सबसे उत्तम उदाहरण है।
(v) पर्वत वर्ग (Mountain Group) : पर्वत-वर्ग को पर्वत समुदाय भी कहा जाता है। पर्वत-वर्ग में साधारणतया कटक एवं श्रेणियाँ गोलाकार रूप में पायी जाती हैं।
(vi) पर्वत-समूह (Cordillera) : पर्वत वर्ग को पर्वत समूह अथवा पर्वत प्रदेश कहा जाता है। पर्वत प्रदेश में विभिन्न युगों में भिन्न प्रकार से निर्मित पर्वत श्रेणियाँ (Range), पर्वत तंत्र (Systems) तथा श्वृखलाएँ (Chains) पायी जाती हैं । उत्तरी अमेरिका के प्रशान्त तटीय पर्वतीय भाग पर्वत प्रदेश या पर्वत समूह का प्रमुख उदाहरण है। इसे प्रशान्त कार्डिलेरा कहते है।
(vii) पर्वत शिखर (Mountain Peak) : किसी पहाड़ अथवा पहाड़ी चोटी (सर्वोच्च नुकीला भाग) जो पर्वत श्रेणी के अन्य भागों तथा आस-पास के प्रदेश से अधिक ऊँचा होती है उसे पर्वत शिखर कहते हैं। यह सुई की तरह नुकीला तथा सींग (Horn) के तरह होता है।
(viii) एकल पर्वत (Isolated Mountains) : इस प्रकार के पर्वतों की उत्पत्ति ज्वालामुखी के विस्फोट अथवा अत्यधिक विस्तृत अपरदन के कारण होती है। ये अपवादर व रूप पाये जाते हैं जैसे गुजरात की चाँदुआ पहाड़ी।
प्रश्न 3.
उत्पत्ति के आधार पर पर्वतों के भेद उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर :
उत्पत्ति के आधार पर पर्वतों के भेद निम्नलिखित हैं –
वलित पर्वत (Fold Mountain) : जब चट्टानों में पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियों द्वारा मोड़ या वलन पड़ जाते हैं। तो उसे मोड़दार पर्वत कहते हैं। वलित पर्वत विश्व के सबसे ऊँचे तथा सर्वाधिक विस्तृत पर्वते हैं जिनका विस्तार प्राय: हर महाद्वीपों में पाया जाता है। हिमालय, अल्पाइन पर्वत समूह, रॉकीज, एटलस आदि ऐसे ही पर्वत है। इनकी उत्पत्ति प्राचीन काल में महासागर में जमे अवसादों से हुई हैं।
ब्लॉक अथवा भ्रंशोत्थ पर्वत (Block Mountain) : इस पर्वत को अवरोधी पर्वत भी कहते हैं। इनका निर्माण तनाव या खिंचाव की शक्तियों द्वारा होता है। खिंचाव के कारण धरातलीय भागों में दरारें या अंश पड़ जाती है जिस कारण धरातल का कुछ भाग ऊपर उठ जाता है तथा कुछ भाग नीचे घँस जाता है। इस प्रकार दरारों के समीप ऊँचे उठे भाग को ब्लॉक पर्वत कहा जाता है। ब्लॉक पर्वत दो समानान्तर दरारों के मध्य में स्थित होते हैं जिनका आकार मेज की तरह होता है। सतपुड़ा, वासजेज तथा ब्लैक फॉरेस्ट इसका उदाहरण है। इसी प्रकार के पर्वत पाकिस्तान में साल्ट रेंज, यू०एस०ए० में सियरा नेवादा, फ्रांस में वासजेस हैं।
संग्रहित पर्वत (Mountain of Accumulation) : धरातल के ऊपर मिट्टी, मलवा, लावा इत्यादि के निरन्तर जमा होते रहने से निर्मित पर्वतों को संग्रहित पर्वत कहते हैं। ज्वालामुखी के उद्गार से विस्तृत लावा, विखण्डित पदार्थ तथा राखचूर्ण आदि के क्रमबद्ध अथवा असम्बद्ध संग्रह के फलस्वरूप ऐसे पर्वतों का निर्माण होता है। इन्हें ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountain) भी कहा जाता है। ज्वालामुखी के उद्गार के समय जो लावा आदि पदार्थ बाहर निकलता है वह मुख के चारों ओर शंकु के आकार में जमा हो जाता है। धीरे- धीरे ज्वालामुखी शंकु ऊँचा उठकर पर्वत बन जाता है। पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका में रास्ता हुड तथा रेनियर, फिलीपाइन्स में मचान तथा जापान में फ्यूजीयामा इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
गुम्बदाकार पर्वत (Donce Shaped Mountain) : जब पुथ्वी के भीतर का लावा बाहर निकलने की चेष्टा करता है तो वह धरातल की परतों में फोड़े की तरह उभार पैदा कर देता है जिससे गुम्बदाकार पर्वत का निर्माण हो जाता है। ये पर्वत केन्द्र से बाहर की ओर समान रूप से ढाल वाले होते हैं। उत्तरी अमेरिका के ऊटा राज्य का हेनरी पर्वत इसका उदाहरण है।
अवशिष्ट पर्वत (Residual Mountain) : अपरदन की शक्तियों द्वारा प्रारभिक पर्वत कटकर नीचे हो जाते हैं तथा उनका अवशिष्ट या शेष अवरोधक भाग दिखाई पड़ने लगता है। इनका निर्माण अन्य प्रकार के पर्ततों पर अत्यधिक अपरदन होने से होता है, अतः इन्हें घर्षित पर्वत (Circum rosional) या अवशिष्ट पर्वत (Residual mountain) भी कहा जाता है। भारत के विन्ध्याचल, अरावली, सतपुड़ा, महादेव, पश्चिमी घाट तथा पूर्वी घाट पहाड़, पारसनाथ आदि अवशिष्ट पर्वत के उदाहरण हैं।
प्रश्न 4.
पर्वत के महत्व को लिखिए।
उत्तर :
पर्वतों का महत्त्व निम्नलिखित है –
(i) जलवायु प्रभाव – पर्वत किसी देश की जलवायु को प्रभावित करता है। पर्वत के सामने वाले भाग में वर्षा होती है। परन्तु विपरीत भाग वृष्टि छाया में पड़ जाता है। इन प्रदेशों का तापमान निम्न रहता है, मनोरम जलवायु लोगों को आकर्षित करती हैं।
(ii) सीमा का निर्धारण – दो देशों के बीच सीमा बनाने में पर्वत सहयोग देते हैं। परिनीज पर्वत फ्रांस के बीच सीमा बनाता है। इसी प्रकार हिमालय पर्वत भी मध्य एशिया के बीच सीमा बनाता है।
(iii) शरण देना – संसार की कई आदिवासी एवं जनजातियाँ पहाड़ी भागों में रहती है।
(iv) यातायात में बाधक – पहाड़ी मार्ग कठिन होते है। यातायात में इनसे बाधा पड़ती हैं।
(v) चट्टानों की प्राप्ति – पर्वतीय भाग में चट्टाने मिलती हैं जिनसे घर बनाये जाते हैं।
(vi) जड़ी-बुटियों की प्राप्ति- पर्वतीय भाग से जड़ी-बूटियाँ मिलती हैं जिनसे लोगों का कल्याण होता है।
(vii) खनिजों की प्राप्ति- पर्वत से अनेक प्रकार के खनिज मिलते हैं। रॉकी पर्वत में पेट्रोल तथा कोयला मिलता है। एण्डीज पर्वत में सोना, चाँदी, ताँबा आदि पाया जाता है।
(viii) स्वाथ्यवर्द्धक स्थान – पर्वतों पर अनेक स्वास्थ्यवर्द्धक केन्द्र स्थापित हैं। वहाँ लोग अपना स्वास्थ्य सुधारने के लिए जाते हैं। स्विटजरलैण्ड, कश्मीर आदि इसके अच्छे उदाहरण हैं।
(ix) चारागाह – पर्वतों पर अच्छे चारागाह पाये जाते हैं। वहाँ पशुपालन होता है। पशुओं से दूध तथा ऊन प्राप्त होता है।
(x) हिमागार की प्राप्ति – पर्वतों पर स्थित हिमागार से निकलने वाली नदियाँ वर्षभर जलपूर्ण रहती हैं। ऐसी नदियों से मैदानी भाग में सिंचाई का काम होता-है। पर्वतों पर झरने एवं जल प्रपात भी पाये जाते हैं जिससे बिजली तैयार होती है जो उद्योग-धंधों में सहायक होती है।
(xi) खेती के योग्य ढाल – पहाड़ी ढालों पर चाय एवं कहवा की खेती होती है।
(x) जंगलों का पाया जाना – पहाड़ी भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार के जंगल मिलते हैं। जंगलों से हमें लकड़ियाँ, लाख, गोंद आदि अनेक चीजे मिलती है। जंगलों से लकड़ी उद्योग तथा तत्सम्बन्धी अन्य उद्योग-धन्धों को कच्चा माल प्राप्त होता है।
प्रश्न 5.
बलित पर्वत की परिभाषा लिखिए। वलित पर्वत की उत्पत्ति का वर्णन चित्रानुसार कीजिए।
उत्तर :
वलित पर्वत (Fold Mountain) – जब चट्टानों में पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियों द्वारा मोड़ या वलन पड़ जाते हैं, उसे मोड़दार या वलित पर्वत कहते हैं! वलित पर्वत विश्व के सबसे ऊँचे तथा सर्वाधिक विस्तृत पर्वत है जिनका विस्तार प्राय: हर महाद्वीप में पाया जाता है। हिमालय, रॉकीज, एटलस ऐसे ही पर्वत हैं।
मोड़दार पर्वत का निर्माण – मोड़दार पर्वतों का निर्माण पूर्व भू-अभिनति या भू सन्नति (Geasynclins) से हुआ है। भू-सन्नति या अभिनति छिछले एवं संकरे किन्तु लम्बे समुद्र को कहते हैं। जहाँ पर नदियों द्वारा लाया गया तलछट जमा किया जाता है।
भू सन्नतियों के विकास की तीन अवस्थायें होती हैं और ये तीन अवस्थायें ही मोड़दार पर्वतों के विकास की भी अवस्थाये हैशैल जनन अवस्था – भूसन्नति का निर्माण मलना का निर्माण होता है। सर्वप्रथम भूसन्नति के निर्माण के बाद समीपवर्ती उच्च स्थलीय भागों से नदियाँ अवसादों को ला-ला कर इसमें जमा करती जाती हैं। अत: भूसन्नति की तली में घंसाव होने लगता है, परन्तु विशेष बात यह है कि जमाव एवं धंसाव में ऐसा अनुपात होता है कि जल की गहराई अधिक नहीं हो पाती है। फलत: सागर छिछला ही बना रहता है।
पर्वत निर्माण अवस्था – पर्वतों के निर्माण की वास्तविक प्रक्रिया शुरू होती है। दरअसल लगातार निक्षेपण की वजह से भू संचलन प्रारम्भ हो जाता है। भूसंचलन के कारण पार्श्व भाग पर क्षैतिज दबाव पड़ने लगता है। जिसे परतदार चट्टानों को मोड़ पड़ने लगते हैं। दबाव की शक्ति किनारे पर ज्यादा पड़ती है, अत: दोनों किनारों की चट्टाने मुड़ जाती हैं। परन्तु बीच का भाग अप्रभावित रहता है। इसे मध्य पिण्ड (Median mass) कहा जाता है। हिमालय एवं क्युनलुन के मध्य तिब्बत का पठार ऐसा ही मध्य पिण्ड है।
विकास अवस्था – इसमें पर्वतों का उत्थान जारी रहता है और अत्यधिक ऊच्चाई प्राप्त कर लेता है। इस अवस्था में अपरदनकारी शक्तियाँ भी सक्रिय हो जाती है जिससे धरातलीय विषमताओं के वृद्धि होने लगती है और एक बार पुन: अवस्था उत्पन्न हो जाती है। भूसंतुलन को पुन: व्यवस्थित करने हेतु पर्वत और भी ऊँचे उठ जाते हैं। यह क्रिया लम्बे समय तक चलती रहती है और पर्वतो की ऊँचाई बढ़ती जाती है। ऐसा अनुमान है कि हिमालय में आज भी उत्थान हो रहा है और यह प्रतिवर्ष 5c.m. की दर से ऊँच्म उठ रहा है।
प्रश्न 6.
प्लेट टेक टोनिक सिद्धांत के आधार पर मोड़दार पर्वत के निर्माण पर निबंध लिखिए।
उत्तर :
‘पर्वत निर्माण भूसन्नति सिद्धांत’ – पर्वत निर्माण सम्बन्धी समस्याओ ने भूसन्नति सिद्धांत का प्रतिपादन किया। वह एक जर्मन भूगर्भ शास्त्री थे, जिन्होंने बताया कि पर्वतो की उत्पत्ति भूसन्निति के गर्भ में होती है। उनकी मान्यता थी कि मोड़दार पर्वत का निर्माण धरातल के संकुचन का परिणाम है। कोबर सिद्धांत निम्नलिखित तीन मान्यताओं पर आधारित है।
1. पर्वतों की उस्पत्ति एक भूसन्नति या छिछली सागर में होती है।
2. इस भूसन्नति से नदियों द्वारा अनवरत मलवा निक्षेपण होता रहा और उसमें धंसान भी हुआ।
3. तीसरी मान्यता है कि भूसन्नति में होने वाले अबतलन से चट्टानों में संकुचन हुआ और इस संकुचन से भूसन्नति में निक्षेपित मलवे मुड़कर मोड़दार पर्वत के रूप में परिवर्तित हुए।
वस्तुत: भूसन्नति का मलवा ही मोड़दार पर्वत के रूप में उत्थित होगा परन्तु सभी मलवों में मोड़ नहीं पड़ता है। भूसन्नति के दोनों किनारे वाले मलवे सबसे पहले मुड़कर पर्वत बनते हैं, बीच में स्थित मलवा बिना मुड़े ऊपर उठ जायेगा जिसे मध्य पिंड कहते हैं। तिब्बत के हंगर का मैदान ऐसे ही मध्य पिंड का उदाहरण है।
कोबर का पर्वत निर्माणकारी सिद्धांत तीन अवस्थाओं में पूर्ण होता है जो वस्तुतः भूसन्नति की ही अवस्था है।
1. भूसन्नति में निक्षेप की अवस्था
2. पर्वत निर्माण की अवस्था
3. विकास की अवस्था
प्रारम्भिक अवस्था में भूसन्नति के अन्तर्गत मलवे का निक्षेप होता है और निक्षेपित मलवे को दाब से स्थानीय चट्टानों में सिकुड़न आती है। इसी से वास्तविक पर्वत का निर्माण शुरू होता है। सिकुड़न से निक्षेपित परतदार चट्टानों पर दबाव होता है। इससे मोड़ पड़ता है। मोड़ का क्रिया दोनों किनारों पर सर्वाधिक होती है और बीच का भाग क्षैतिज रूप से ऊपर आ जाता है। तीसरी अवस्था में असंतुलन स्थापित हो जाता है और इस क्रिया में कहीं उत्थान और कहीं अवतलन होता है और अन्तत: संतुलन स्थापित हो जाता है।
यह सिद्धांत विश्वव्यापी महत्व रखता है। यह मोड़दार पर्वतों की भौतिक आकृति का सही विश्लेषण करता है। जैसे इस सिद्धांत के अनुसार दो मोड़दार पर्वत के बीच एक पठार होगा। इसी के अनुरूप हिमालय एवं क्युनलुन के मध्य तिब्यत पठार स्थित है।
यद्यपि यह सिद्धान्त हिमालय की उत्पत्ति को तो स्पष्ट करता है पर रॉकी एवं एण्डीज पर्वतों की व्याख्या इससे नहीं हो पाती। वर्तमान में वह सिद्धांत जो सबसे ज्यादा विश्वसनीय एवं तार्किक है, वह है प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत जिससे लगभग सभी कालों के सभी प्रकार के पर्वतों की व्याख्या हो जाती है।
प्रश्न 7.
गुटका पर्वत की परिभाषा लिखिए। गुटका पर्वत के निर्माण को चित्रानुसार समझाइए।
उत्तर :
गुटका पर्वत या अवरोधी पर्वत या भ्रंशोत्थ पर्वत (Block mountain or Horst) ; दो समानान्तर भंशो के बीच के भू-खण्ड के ऊपर उठ जाने से अथवा दो समानान्तर भ्रशों के बाहरी भू-खंडों के नीचे धँस जाने से निर्मित उच्च भूमि या घर्वत को गुटका पर्वत कहते हैं। इसका आकार मेज के समान होता है जिसका ऊपरी भाग सपाट तथा किनारे तीव्र ढाल वाले होते हैं। ऐसे पर्वतों की उत्पत्ति भ्रंशों के कारण होती है। अतः इन्हें भंशोत्थ पर्वत भी कहा जाता है। जर्मन भाषा में इसे होर्स्ट (Horst) कहते हैं। U.S.A. में वासाय रेंज तथा सियरा नेवादा, यूरोप में वासजेज तथा ल्लैक फॉरेस्ट, पाकिस्तान में साल्ट रेंज इनके उदाहरण हैं। भ्रंशोत्थ के विपरीत दो उठे हुए भागों के मध्य धँसा हुआ भाग अ्रंश घाटी (Rift Valley) कहलाता है।
गुटका का पर्वत का निर्माण (Formation of block mountain) : इस पर्वत के उत्पत्ति के संबंध में दो मत प्रचलित है। (i) भ्रंश सिद्धांत (Fault Theory) – किंग, गिलबर्ट, लूडरबैक, डेविस आदि विद्वानों का मत है कि भ्रंशोत्य पर्वत का निर्माण भू-पटल पर बड़े पैमाने में अंश या दरारें पड़ने के कारण ज्ञात होता है। इन दरारों के सहारे स्थल का एक बड़ा भाग ऊपर या नीचे चला जाता है, जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका का ग्रेट बेसिन रेंज।
(ii) विशेषक अपरदन सिद्धांत (Differential Erosion theory) : जे ई. स्पर महोदय के अनुसार भ्रंशोत्थ पर्वतों का निर्माण अंशन द्वारा नहीं हुआ है। बल्कि ये विशेषक अपरदन (Differential Erosion) का परिणाम है। किन्तु यह मत अधिक मान्य नहीं हैं।
भंश या दरार सिद्धांत के मुताबिक ब्लॉक पर्वतों का निर्माण कई रूपों में होता है।
(a) जब दो समान्य दरारों के बीच का भाग ऊपर उठ जाता है तो ल्लॉक पर्वत का निर्माण होता है। इसमें ऊपर उठे हुए स्थल खण्ड को ही ब्लॉक पर्वत कहा जाता है। इस प्रकार से निर्मित ब्लॉक पर्वत का ऊपरी भाग पठार की तरह सपाट होता है, परन्तु इसके किनारे वाले ढाल तीव्र होते हैं।
(b) जब दरार के निर्माण के समय मध्यवर्ती भाग के दोनों ओर के स्थल खण्ड नीचे की ओर खिसक जाते है तथा मध्यवर्ती भाग अपनी जगह पर स्थित रहता है तो ब्लॉक पर्वत का निर्माण होता है। समीपवर्ती भाग के नीचे धँस जाने से मध्यवर्ती भाग उठा हुआ लगता है, जो कि एक होर्स्ट (Horst) का स्वरूप होता है। ऊँचे पठारी भाग या चौड़े गुम्बदों में इस क्रिया के कारण ब्लॉक पर्वत का निर्माण होता है।
(c) जब धरातल के किसी भाग में दो समानान्तर दरारों के बीच का भाग नीचे की ओर खिसक जाता है तो किनारे वाले भाग ऊपर उठे दिखाई पड़ते हैं। धँसा हुआ भाग भू- भ्रंश घाटी (Rift Valley) कहलाता है, परन्तु किनारे वाले उठे भाग ब्लॉक पर्वत की श्रेणी में रखे जाते हैं।
प्रश्न 8.
ज्वालामुखी पहाड़ की परिभाषा लिखिए। ज्वालामुखी पर्वत निर्माण का वर्णन चित्रानुसार कीजिए?
उत्तर :
ज्वालामुखी विवर (मुख) के चारों ओर विखंडित शैल पदार्थों तथा लावा के जमाव से निर्मित शंक्वाकार पर्वत, ज्वालामुखी पर्वत कहलाता है।
ज्वालामुखी के विस्फोट से समय भू-गर्भ से निकलने वाला कंकड़-पत्थर, मिट्टी या मैग्मा आदि पदार्थ ज्वलामुखी के अलग-बगल इकट्ठे होकर ऊंचे उठ जाते हैं। इस ऊँचे उठे हुए भू-भाग ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं। इसे Mountain of Accumulation or Mountain of Deposition भी कहते है। अफ्रीका का केनिया व किलिमंजारो, इटली का विसुवियस तथा एटना, बर्मा का पोपा, सिसली का स्ट्रामबोलियन, दक्षिण अमेरिका का एकांकगुआ, चिम्बोरेजी तथा कोटोफैक्सी जापान का फ्यूजीयामा प्रमुख ज्वालामुखी पर्वतें है। संसार का सबसे ऊँचा एवं जाग्रत ज्वालामुखी पर्वत कोटोपैक्सी है जो एण्डीज पर्वत पर स्थित है।
ज्वालामुखी पर्वत का निर्माण (Formation of Volcanic Mountain) : ज्वालामुखी पर्वत का निर्माण ज्वालामुखी उद्गार से निकले पदार्थों के जमाव से पर्वत का रूप लेने से होता है। ज्वालामुखी नली से पिघली हुई चट्टान (लावा) बाहर निकल कर धरातल पर फैल जाती है और शंकु की तरह जमा होकर कोणादार पर्वत बनाती है। यदि शिलाखण्डों की अधिकता हुई तो इन पर्वतों का दाल तीव्र होता है। यदि लावा की अधिकता हुई तो ढाल क्रमिक होगा।
कभी-कभी ज्वालामुखी का निर्माण समुद्र तल पर होता है, जैसे एल्यूशियन द्वीप समूह, कभी-कभी ज्वालामुखी पर्वतों का अविर्भाव भू-संचलन द्वारा निर्मित पर्वत श्रेणियों पर होता है, जैसे दक्षिण अमेरिका की एण्डीज पर्वत माला पर। उत्तरी अमेरिका की कास्केड श्रेणी ज्वालामुखी पहाड़ी से भरी पड़ी है।
प्रश्न 9.
अवशिष्ट पर्वत क्या है? अवशिष्ट पर्वत निर्माण का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
अवशिष्ट पर्वत (Relict mountain or Residuala Mountain) : जब धरातल के ऊँचे भाग की कोमल चट्टानें, हवा, पाला, वर्षा, धूप आदि द्वारा कट जाती है तो केवल चट्टानें ही खड़ी रहती है। इस कठोर कड़ी चट्टानों को अवशिष्ट या अनावृत्त पर्वत (Residual or Relict Mountain) कहते हैं। इन्हें घर्षित पर्वत (Circum Erosional Mountain) भी कहा जाता है।
अवशिष्ट पर्वत का निर्माण (Formation of Residual Mountain) : किसी पूर्ववर्ती क्षेत्र में अपरदन के पश्चात् जो शेष पहाड़ियाँ बचती हैं, उन्हें अवशिष्ट या घर्षित पर्वत (Circum Mountain) कहा जाता है। चूँकि ये पर्वत अपनी प्रारंभिक स्थिति या रूप से परिवर्तित होकर इस स्थिति में आते हैं, अतः इन्हें परवर्ती (Subsequent) पर्वत भी कहा जाता है। अवशिष्ट पर्वतों का आकार-प्रकार अपरदन के साधनों और पर्वत की शैल रचना पर निर्भर करता है। भारत में विन्ध्याचल, अरावली, सतपुड़ा, सहयाद्रि, पारसनाथ आदि तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में ओजार्क पर्वत वर्तमान में अवशिष्ट पर्वतें हैं।
वर्तमान में सर्वोच्च वलित जो पर्वत है, वे भी कालान्तर में नदी, हिमनद वायु, तुषार आदि के प्रभाव से कटकर तथा घिसकर निम्न पर्वत का रूप धारण करके अवशिष्ट पर्वत हो सके हैं। अत्यधिक अपरदन के कारण ऊँचा उठा पर्वत घिसकर नीचा हो जाता है तथा कुछ भाग ऊपर खड़े रह जाते हैं। जो कि समीपवर्ती भाग से ऊँचे होते हैं। विंध्य पर्वत कभी एक उच्च पर्वत था परन्तु वर्तमान समय में घर्षण के कारण इसकी ऊँचाई 12,000 से 25,000 फीट तक ही रह गयी है।
प्रश्न 10.
पठार क्या है? पठारों का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर :
सपाट या लगभग सपाट भूमिवाला विस्तृत ऊँचा क्षेत्र जिसकी ऊँचाई सागर तल से समान्यत: 300 मीटर से अधिक होती है और किनारे तीव्र ढाल वाले होते हैं और जो अपने समीपवर्ती स्थल से पर्याप्त ऊँचा हो तथा जिसका शिखरीय भाग चौड़ा व सपाट हो उसे पठार कहा जाता हैं।
पठारों का निर्माण (Formation of Plateaus) : पठारों का निर्माण निम्न प्रकार से होता है-
- मैदानी भागों में लावा के निक्षेप से पठारों की रचना होती है जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका में कोलम्बिया का पाठार।
- जब किसी विस्तृत भू-भाग का कुछ भाग उत्संवलन (Up warding) द्वारा अपने समीपस्थ भू-भाग से ऊँचा उठ जाय तो ऊँचा भाग पठार बन जायेगा।
- पठार वाला भू-भाग अपने स्थान पर बना रहे किन्तु उसके आस-पास का भू-भाग अवसंलन (Down warding) से नींचा हो जाय तो ऊँचा मध्य भाग पठार बन जायेगा।
- पर्वत-निर्माण के समय पर्वतों के समीपस्थ भाग जो अधिक ऊँचे नहीं उठ पाते वे पठार का रूप ले लेते हैं। जैसेसंयुक्त राज्य अमेरिका का पीडमाण्ड पठार।
- भू-अभिनतियों में क्षैतिजिक संपीडन से तटीय भाग में वलित श्रेणियाँ बन जाती हैं किन्तु मध्य भाग कुछ ऊँचा किन्तु अप्रभावित रह जाता है। जैसे तिब्बत का पठार।
- ऊँच्च पर्वतीय प्रदेश दीर्घकाल तक अनाच्छादन के कारण पठार का रूप ले लेते हैं।
- वायु द्वारा उड़ाकर लाई गई मिट्टियों के निक्षेप से पठार का निर्माण होता है। जैसे-चीन में लोयस का पठार।
प्रश्न 11.
पठारों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
पठारों का महत्व (Importance of Plateaus) : पठारों का महत्व निम्नलिखित है :-
पठार तथा खनिज : पठार खनिज भण्डरों से समृद्ध होते हैं। पठारों में अधातु खनिज एवं धातु खनिज पाये जाते हैं। अधातु खनिजों में मृत्तिका, रेत, पत्थर, फॉस्फेट, लवण, जिप्सम, सल्फर, चूने का पत्थर, भवन-निर्माण के लिए आवश्यक पत्थर, कोयला, मिट्टी का तेल, अभ्रक, मैंगनीज आदि प्रमुख हैं। धातु खनिज में लोहा, ताम्र, जिक, काँच, रजत तथा स्वर्ण प्रमुख हैं। कनाडियन शील्ड, छोटानागपुर का पठार तथा हजारीबाग आदि खनिजों के लिय प्रसिद्ध हैं। विश्व के अधिकतम पठार खनिज समृद्ध हैं।
पठार एवं कृषि : कृषि के लिये पठार महत्वपूर्ण नहीं है। चट्टानों से उत्पन्न मिट्टियाँ लेटराइट तथा लाल होती है। ये अनुपजाऊ हैं। लावा-निर्मित पठारों पर काली मिट्टी के कारण कृषि सुलभ होती है। दक्षिण भारत की लावा-निर्मित काली मिट्टी में कपास तथा गेहूँ की खेती होती है। चट्टानी सतह के कारण नहरों तथा कुओं का खोदना कठिन होता है। अत: सिंचाई की असुविधा खेती के लिये बाधक होती है। दक्षिणी भारत में नहरों एवं कुओं का अभाव है।
पठार तथा वनस्पति – पठारों पर वनस्पति का होना वहाँ की जलवायु पर निर्भर है। आर्द्र प्रदेशों वाले पठारों पर वन पाये जाते हैं जिसमें लकड़ी व्यवसाय तथा उससे सम्बन्धित उद्योगों का विकास होता है। छोटानागपुर के पठार में लाख अधिक पाया जाता है। दक्षिण के पठार से कीमती लकड़ियाँ मिलती है। उनसे भवन निर्माण होता है। कर्नाटक, मध्यप्रदेश तथा महाराष्ट्र के बाँस कागज उद्योग में उपयोगी होते हैं। शुष्क तथा आर्द्र शुष्क जलवायु वाले भागों में पठारों पर छोटी घासें उगती है, अतः पशुचारण व्यवसाय विकसित है।
पठार तथा यातायात – समतल तथा सपाट पठारी भागों में रेलों तथा सड़कों का विकास हो जाता है, क्योकि इनमें निर्माण के लिए समतल भू-भाग तथा पत्थर, चूना आदि आसानी से मिल जाते हैं। उबड़-खाबड़ तथा तंग घाटियों वाले पठार यातायात के साधनों से रहित (कम) होते हैं।
पठार तथा जनसंख्या- खनिज-पदार्थों वाले पठारों पर खानों के पास नगर बस जाने तथा उद्योगों के स्थापना के कारण जनसंख्या अधिक हो जाती है। घने जंगलों वाले, उबड़-खाबड़ तथा पथरीली भूमि वाले पठार बिखरी जनसंख्या वाले होते हैं।
पठार तथा जलवायु – मैदानों की अपेक्षा पठार की जलवायु ठंडी होती है। अत: गरम प्रदेशों में इन पर मानव आवास होता है। परन्तु ठंडी जलवायु वाले पठार मरूस्थल हो जाते हैं। फलस्वरूप यहाँ लोग पशुचारण करने वाले विचरणशील होते हैं।
प्रश्न 12.
संरचना एवं आकृति के अनुसार ज्वालामुखी पर्वतों का वर्गीकरण तथा उनका वर्णन कीजिए। उत्तर : आकृति के आधार पर ज्वालामुखी पर्वतों को चार मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है-
अंगार अथवा राख शंकु ज्वालामुखी (Cinder or cone Volcanic Mountains) : इस प्रकार के ज्वालामुखी की रचना विस्फोटप्य ज्वालामुखी द्वारा होता है। ये ढीले एवं असंगठित पदार्थों से बनते हैं। इनमें राख (Ash) तथा अंगार (Cinder) की मात्रा अधिक होती है। ये पूर्ण शंकु के आकार के होते हैं। जापान तथा हवाई द्वीप समूह में ऐसे अनेक ज्वालामुखी मिलते हैं।
गुम्बदाकार ज्वालामुखी पर्वत (Dome Shaped Vocanic Mountains) : ज्वालामुखी के धीमे उद्गार के कारण जब ज्वालामुखी मुख के चारो ओर आम्लिक लावा का निक्षेपण होता है तो गुम्बदाकार आग्नेय पर्वत बन जाता है। हवाई द्वीप समूह में ऐसे ज्वालामुखी मिलते हैं।
विस्फोटीय ज्वालामुखी पर्वत (Explosion vent Volcanic Mountain) : ज्वालामुखी के तीव्र विस्फोट के कारण जब क्रेटर का आकार खूब बड़ा हो जाता है तो उसके चारो ओर ज्वालामुखी पर्वत बन जाते हैं। इन्हें विस्फोटीय ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं। आइसलेण्ड में ऐसे ज्वालामुखी मिलते हैं।
मिश्रित शंकु ज्वालामुखी (Composite cone Volcanic Mountain) : जब काफी लम्बी अवधि में. ज्वालामुखी के कई उद्गार होते हैं तब ज्वालामुखी पर्वत में एक मुख्य क्रेटर के साथ-साथ कई अन्य क्रेटर भी बन जाते हैं तो ऐसे ज्वालामुखी पर्वतो को मिश्रित शंकु ज्वालामुखी कहते हैं। जापान का फ्यूजीयाम तथा मैक्सिको का पोपोकेटे पेटी मिश्रित शंकु ज्वालामुखी के उदाहरण हैं।
प्रश्न 13.
निर्माण विधि के आधार पर पठारों का वर्गीकरण कीजिए तथा उनका संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
निर्माण के आधार पर पठारों के प्रमुख भेद निम्नलिखित हैं –
विभाजित पठार (Dissected Plateau) : ऐसे पठार प्राय: ऊँचे होते हैं। परन्तु तीव्रगामी नदियाँ या हिमनद इनमें गहरी व सँकरी घाटियाँ बना देती है जिससे मुख्य पठार कई उप पठारों में विभाजित हो जाता है। कई भागों में विभक्त इन पठारों को विभाजित अथव कटे-फटे पठार कहते हैं। वेल्स, स्कॉटलैण्ड, छोटानागपुर, कर्नाटक के मालनद तथा मेघालय के पठार, संयुक्त राज्य अमेरिका का कालोरेडो तथा कनाडा का लारशियमन पठार विभाजित पठार ही हैं।
अन्तःपर्वतीय पठार (Internmontane Plateau) : चारों ओर से पर्वतमालाओ से घिरे पठारों को अन्त: पर्वतीय पठार कहते हैं। ऐसे पठार काफी ऊँचे होते है परन्तु इनका विस्तार कम होता है। इन पठारों का निर्माण पर्वतों के साथ ही साथ उनके बीच के धरातल के भी उपर उठने से होता है। एण्डीज पर्वतो से घिरे हुए इक्वेडोर व बोलीबिया के पठार तथा हिमालय के क्युनलुन से घिरा तिब्बत का पठार, पूर्वों एवं पश्चिमी सियरा निवादा पर्वतों के बीच में स्थित मैविसको का पठार, एलबुर्ज एवं जेग्रोस पर्वत के बीच स्थित ईराक का पठार, पौष्टिक एवं टौरस पर्वतों के बीच में स्थित टर्की का अनात्तिया का पठार अन्तःपर्वतीय पठार ही है। गोबो, ईरान इत्यादि पठार भी अन्तः पर्वतीय पठार ही हैं।
लावा पठार (Lava Plateau) : ज्वालामुखी के उद्गार से निकलने वाला लावा ज्वालामुखी के मुख से चारों ओर दूर तक फैल जाता है। इस प्रकार यह भाग अपने आस-पास के क्षेत्र से ऊंचा हो जाता है जिससे लावा के पठार बन जाते हैं। इन पठारों का निर्माण काले रंग की बैसाल्ट चट्टानों से हुआ है। अत: इनके विखण्डन में उपजाऊ काली मिट्टी का निर्माण होता है। भारत के दक्कन का पठार के उत्तर पश्चिम में स्थित दक्कन ट्रेप, आयरलैण्ड का राष्ट्रीय पठार तथा संयुक्त राज्य अमेरिका का कोलम्बिया पाठार लावा निर्मित पठार के उदाहरण हैं।
पर्वतपदीय पठार (Piedmont Plateau) : किसी पर्वत के सहारे स्थित पठार को पीडामाण्ट पठार या गिरिपद पठार कहते है। ये पठार व मैदान अथवा पर्वत व समुद्र के बीच स्थित होते हैं। इन पठारो का निर्माण उन पर्वतों के उत्थान के साथ-साथ होता है जिनसे ये संलग्न होते हैं। उत्तरी अमेरिका की अल्पेशियन एवं अन्ध महासागर के बीच एक ऐसा पठार स्थित है जिसे पीडमाण्ट का पठार कहते हैं। इसी प्रकार दक्षिणी अमेरिका में एण्डीज पर्वत तथा अन्ध महासागर के बीच पैटागोनिया का पठार भी गिरिपद पठार ही हैं।
महाद्वीपीय पठार (Continental Plateau) : पटल विरूपणी बलों द्वारा धरातल के किसी विस्तृत भू-भाग के ऊपर उठ जाने से निर्मित विस्तृत पठारों को महाद्वीपीय पठार कहते हैं। ये पठार सागर तट या मैदानों से घिरे रहते हैं तथा सागर तट या मैदानों एवं इनका उभार स्पष्ट दिखायी देता है। भारत का प्रायद्वीपीय पठार, आस्ट्रेलिया का पठार, अरब का पठार, दक्षिण अफ्रीका का पठार आदि महाद्वीपीय पठार के उदाहरण हैं। अंटाकर्टिका एवं ग्रीनलैण्ड के पठारों को नवीन महाद्वीपीय पठारों के अन्तर्गत रखा जाता है।
प्रश्न 14.
विभिन्न प्रकार के अपरदनात्मक मैदानों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
अपरदनात्मक मैदान (Erosionel Plain) : भूपटल पर उत्पन्न विषमताओं को समतल स्थापक शक्तियाँ नदी, हिमनदी, पवन, सागरीय लहरें) दूर करने का प्रयास करती रहती हैं जिससे उत्थित स्थलखण्ड एक सपाट एवं आकृतिविहीन मैदान का आकार ग्रहण कर लेते हैं, जिन्हें अपरदनात्मक मैदान कहते हैं। अपरदनात्मक मैदानों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है।
नदी अपरदान द्वारा निर्मित मैदान या समप्राय मैदान (Peneplain): अपने अपरदन चक्र की अंतिम अवस्था में नदियाँ उच्च स्थल खण्डों, पवतों-पठारों आदि को काटकर मंद ढाल वाले समप्राय मैदानों का निर्माण करती हैं। ये मैदान पूर्ण रूप से समतल नहीं होते हैं। इनके यत्र-तत्र प्रतिरोधी चट्टानों के टीले या पहाड़ियाँ दिखायी देते हैं जिन्हें मोनेडानॉक कहते हैं। पेरिस बेसिन, आमेजन बेसिन का दक्षिणी भाग, मिसीसिपी बेसिन का ऊपरी भाग, पूर्वी इंग्लैण्ड का मैदान, भारत का अरावली क्षेत्र एवं राँची तथा हजारीबाग के मैदान समप्राय मैदान के उदाहरण हैं।
हिमानी अपरदित मैदान (Plains of Glacial Erosion) : हिमनदों के अपघर्षण से निर्मित सपाट परन्तु ऊच्चावचयुक्त मैदान इस श्रेणी में आते हैं। इन मैदानों में मिट्टी की परत् पतली होती है तथा अवरोधी चट्टानों के टीले एवं झीलें देखने को मिलती हैं। इनमें कहीं-कहीं दलदल भी पाए जाते हैं। इस प्रकार के मैदान उत्तरी अमेरिका के उत्तरी भाग तथा उत्तर-पश्चिम यूरेशिया में पाए जाते हैं। भारत में लद्दाख का मैदान हिमानी अपरदित मैदान का उदाहरण है।
पवन अपरदित मैदान (Wind eroded Plains) : शुष्क एवं अर्द्धशुष्क प्रदेशों में पवन की अपरदन क्रिया के फलस्वरूप इन मैदानों का निर्माण होता है। इन मैदानों को सहारा मरूस्थल में ऐसेरिग तथा हमादा कहते हैं। पवन अपरदित मैदानों में प्रतिरोधी चट्टानों के टीले विद्यमान रहते हैं, जिन्हें इंसेलवर्ग (Inselberg) कहते हैं।
कार्स्ट मैदान (Karst Plain) : चूना पत्थर वाले प्रदेशों में वर्षा के जल तथा भूमित जल की धुलनक्रिया द्वारा सतह के उपर तथा नीचे अपरदन होते रहता है जिससे सम्पूर्ण प्रदेश घिसकर नीचा हो जाता है तथा एक निम्न मैदान का आकार ग्रहण कर लेता है। इस तरह के मैदानों का ऊपरी सतह पूर्णत: समतल नहीं होता है। बल्कि ये उबड़-खाबड़ एवं तरंगित होते हैं तथा यत्रतत्र चट्टानों के अवशेष टीलों या ढेर रूप में विद्यमान रहते हैं। इन टीलों को ह्यूमस (Hums) कहते हैं। यूगोस्लाविया के कार्स्ट प्रदेश, उत्तरी अमेरिका के फ्लोरिडा एवं यूकाटान तथा भारत के चित्रकुट एवं उत्मोड़ा में कार्स्ट मैदान देखने को मिलते हैं।
प्रश्न 15.
नदी निर्मित मैदान या जलोढ़ मैदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
जलोढ़ या नदी निर्मित मैदान (Alluvial Plains) : नदियाँ अपने साथ बहाकर लायी गयी मिट्टी या जलोढ़ को अपने घाटी में यत्र तत्र जमा करती हैं जिससे जलोढ़ मैदानों की रचना हो जाती है। संसार के अधिकांश बड़े मैदान जैसे मिसीसिपी-मिसौरी का मैदान, गंगा-सिन्धु का मैदान, हांगहो-यांगटिसी का मैदान, वोल्गा डेन्यूब, नीले के मैदान तथा इटली की पो नदी का मैदान जलोढ़ मैदान ही हैं। स्थिति के अनुसार नदी निर्मित मैदानों के 30 उपभेद हो सकते हैं।
गिरिपद मैदान (Pledmont Plains) : पर्वतीय भाग में उतरते समय ढाल एकदम कम हो जाने से नदी का वेग अत्यंत कम हो जाता है। अत: वहाँ नदी पर्वतीय भाग से लाए गए अवसादों को जमा कर देती है। इसमें नीचे की तरफ भारी रोड़े उसके ऊपर बजरी और सबसे ऊपर बारीक रेत जमा हो जाते हैं। जिससे वहाँ एक तिकोना मैदान बन जाता है। इसे गिरिपद मैदान कहते हैं। उत्तरी भारत में इन मैदानों को भाबर मैदान कहते हैं।
बाढ़ के मैदान (Flood Plains) – नदी के मध्य भागा में मन्द ढाल के कारण नदी की गति इतनी धीमी हो जाती है कि वहाँ वह केवल सुक्ष्म कणों को ही ले जा सकती है। नदी में बाढ़ आ जाने पर ये सूक्षकण नदी-घाटी के दोनों ओर के बाढ़ क्षेत्रों में जमा हो जाते हैं। जिससे बाढ़ के मैदान बन जाते हैं। इन मैदानों की चौड़ाई उद्गम की ओर कम तथा मुहाने की ओर अधिक होती है। यहाँ नदियाँ प्रतिवर्ष नवीन मिट्टी जमा करती हैं। अतः ये मैदान अत्यन्त उपजाऊ होते हैं।
डेल्टाई मैदान (Deltaic Plains) – नदियों द्वारा लायी गयी अत्यन्त महीने मिट्टी के जमा होने से उनके मुहानों पर त्रिभुजाकार मैदान बन जाते हैं। ऐसे मैदानों को डेल्टाई मैदान कहते हैं। डेल्टाई भाग में नदी कई शाखाओं में विभाजित हो जाती है। गंगा-बह्मपुत्र का डेल्टा या सुन्दरवन का डेल्टा विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा है। सिन्यु, नील, पो, हांगहो और मिसीसिपी नदियों ने अपने मुहानों पर बड़े-बड़े डेल्टाई मैदानों का निर्माण किया है। डेल्टाई मैदान प्राय: समतल और सपाट होते हैं। इनमें यत्र-तंत्र दलदल व उथली झीलें भी पायी जाती है।
प्रश्न 16.
मैदानों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
मैदानों के महत्व का वर्णन निम्न शीर्षको के अन्तर्गत किया जा सकता है:-
(i) मानव सभ्यता का विकास – हर प्रकार की सुविधा मिलने के कारण ही मैदान प्राचीनकाल से ही मानव-सभ्यता के केन्द्र रहे हैं। सिन्धु, गंगा, दजला-फरात एवं नील नदियों के मैदान अपनी प्राचीन सभ्यताओं के लिए विख्यात हैं।
(ii) कृषि का विकास – मैदानी भाग की भूमि समतल एवं मिट्टी कोमल व उपजाऊ होती है। यहाँ कुएँ तथा नहर आसानी से बनाये जा सकते हैं। अत: सिंचाई की सुविधा रहती है । यही कारण है कि मैदानों में कृषि का विकास अधिक होता है।
(iii) यातायात की सुविधा – मैदानों का धरातल समतल होता है। अत: वहाँ सड़कों, रेलमार्गों तथा हवाई अड़ों का निर्माण आसानी से हो सकता है। नदियाँ मंद गति से बहने के कारण जल यातायात योग्य होती है। यह्ही कारण है कि मैदानों में यातायात के साधनों का विकास अधिक हुआ है।
(iv) उद्योग-धंधों का विकास – मैदानी भागों में कृषि पर आधारित कच्चे मालों के उत्पादन, यातायात के साधनों के विकास, सस्ते श्रमिकों एवं खपत क्षेत्रों की सुविधा के कारण जनसंख्या का घनत्व अधिक मिलता है एवं उद्योग-धंधों का खूब विकास हुआ है।
(v) नगरों की अधिकता – अधिक जनसंख्या एवं यातायात के साधनों के विकास के कारण विश्व के बड़े-बड़े व्यापारिक एवं औद्योगिक नगरों की स्थापना मैदनों में ही हुई है। कोलकाता, कानपुर, शिकागो, ब्यूनेस आयर्स आदि नगर मैदानों में ही स्थित हैं।
(vi) आक्रमण का भय – मैदानी भाग में प्राकृतिक सीमा के अभाव, यातायात की सुविधा एवं आर्थिक सम्पन्नता के कारण आक्रमणकारी उनकी ओर आकर्षित होते हैं। इसी से मैदान प्राचीनकाल से युद्ध के क्षेत्र बने रहे हैं।
(vii) सघन जनसंख्या – मैदानी भागों में कृषि की सुविधा, यातायात के साथनों के विकास, उद्योग-धन्धों के विकास तथा अन्य जीवनोपयोगी वस्तुओं की सुविधा के कारण सघन जनसंख्या यहाँ निवास करती है।
प्रश्न 17.
निर्माण के आधार पर पठारों का वर्गीकरण करते हुए उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर :
पठारों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधारों पर किया जा सकता है –
- उत्पत्ति के विचार से
- स्थिति के विचार से
- जलवायु के विचार से
- आकृति के विचार से।
उत्पत्ति के अनुसार पठारों का वर्गीकरण (According to Origin):-
(A) सरल पठार (Simple Plateau)
(B) संयुक्त पठार (Composite Plateau)
(A) सरल पठार (Simple Plateau) :- इसकी उत्पत्ति एक ही प्रकार की शैलों से होती है । इसकी रचना किसी एक ही कारक से होती है। कारक के अनुसार सरल पठार निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:-
- हिम्य पठार (Plateau of Glacial Origin)
- जलीय पठार (Plateau of Aqueous Origin
- वायोढ़ पठार (Plateau of Aeolian Origin)
- निः सृत पठार (Plateau of Effusive Origin)
हिम्य पठार (Glacial Plateau) :- हिम-नदियों के अपरदन तथा हिमोढ़ों के निक्षेप से बने पठार हिम्य पठार कहे जाते हैं। महाद्वीपीय हिम-नदियों ने ग्रीनलेण्ड तथा अण्टार्कटिक को घिस-घिस कर पठार बना दिया है। भारत में गढ़वाल का पठार ऐसा ही एक उदाहरण है।
जलीय पठार (Aqueous Plateau) :- जल द्वारा निक्षेपित अवसादों के शिलारूप ग्रहण करने पर कभीकभी भू-गर्भिक हलचलों के कारण शिलास्तर पठार का रूप धारण कर लेते हैं। बालुका पत्थर से निर्मित विन्ध्य पठार, चेरा पत्थर से निर्मित चेरापूँजी पठार तथा चूने के पत्थर से निर्मित शान पठार (म्यांमार) इसके सर्वोतम उदाहरण हैं। उत्तरी अमेरिका में कोलारेडो पठार भी इसी प्रकार का है। ये पठार जल में डूबे धरातल के ऊपर उठने से बनते हैं।
कायोढ़ पठार (Aeolion Plateau) :- वायु द्वारा निर्मित पठार इस श्रेणी में आते हैं । चीन का विशाल लोयस पठार तथा पाकिस्तान का पोटवारा पठार इसके उदाहरण हैं।
नि:सृत पठार (Effusive Plateau) :- ये पठार धरातल पर लावा-प्रवाह से बनते हैं। दक्षिणी भारत का लावा पठार, संयुक्त राज्य अमेरिका का कोलम्बिया पठार तथा पूर्वी अफ्रीका के पठार इसी प्रकार के हैं। इसमें बेसाल्ट की प्रधानता है।
(B) संयुक्त पठार (Composite Plateau) :- इन पठारों की उत्पत्ति कई प्रकार की शैलों के मिश्रण से होती है। दक्षिण भारत का पठार इसका उदाहरण है। यह पठार कई बार समुद्री अतिक्रमण के फलस्वरूप जलमग्न हुआ और कालान्तर में फिर बाहर निकल आया । फलतः यह पठार विभिन्न युगों की आग्नेय, अवसादी तथा कायान्तरित शैलों से निर्मित है।
स्थिति के अनुसार पठार (According to location) पठारों का वर्गीकरण :- इस तरह के पठारों के निम्नलिखित भेद है :-
अन्तरा पर्वतीय पठार (Intermontane Plateau) :- ये पठार जो चारों ओर से पर्वतों द्वारा घिरे होते हैं । इनकी रचना वलित पर्वतों के साथ हुई होती है। ये पठार प्राय: दो अभिर्नियों अथवा सीमा श्रेणी के बीच में विस्तृत मध्य पिण्ड (Median Mass) के रूप में होते हैं। संसार के उच्च पठार इसी श्रेणी में आते है। तिब्बत का पठार हिमालय तथा कुनलुन पर्वतों के बीच स्थित है। बोलीविया, कोलम्बिया तथा तारिम के पठार भी इसी प्रकार के हैं।
पर्वतपदीय पठार (Piedmont Plateau) :- ये पर्वतों के आधार पर बने होते हैं जहाँ एक ओर ऊँचे पर्वत और दूसरी ओर मैदान या समुद्र रहते हैं। इनका विस्तार अत्यन्त सीमित हीता है। ये मैदानों की तरफ कगार बनाते हैं जिनकी ऊँचाई 90 मीटर से 180 मीटर तक होती है। पेण्टागोनिया का पठार इसका उदाहरण है। यह एण्डीज पर्वत तथा अटलाण्टिक महासागर के बीच स्थित है।
महाद्वीपीय पठार (Continental Plateau) :- ये पठार स्थल के विशाल एवं विस्तृत उच्च प्रदेश हैं। मैदान या समुद्र तट से स्पष्टः ऊँचे उठे होते हैं। इनके किनारे पर ऊँची पर्वत श्रेणियाँ कदाचित् ही होती हैं। दक्षिण अफीका का पठार, दक्षिण भारत, अरब तथा स्पेन में इसी वर्ग के पठार हैं। ये पठार बहुत पुराने हैं। किन्तु ग्रीनलैंड तथा अण्टार्कटिका नवीन पठार कहे जाते हैं।
तटीय पठार (Coastal Plateau) :- ये समुद्र तट पर स्थित पठार हैं। इस प्रकार के पठारों का ऊपरी भाग तट के निकट फैला हुआ तथा निचला भाग समुद्र में डूबा हुआ होता है। भारत के कोरोमण्डल का पठार तथा इण्डोचीन के प्रायद्वीपीय पठार ऐसे ही हैं।
जलवायु के अनुसार पठारों के भेद (Plateau according to climate):- जलवायु के आधार पर पठारों के तीन भेद हैं :-
- मरुस्थली या शुष्क पठार (Arid Plateau)
- आर्द्र पठार (Humid Plateau)
- हिमाच्छादित पठार (Ice caped Plateau)
मरुस्थलों में शुष्क पठार मिलते हैं। वहाँ वर्षा का अभाव रहता है। पाकिस्तान का पोटवार पठार इसी श्रेणी का है । अधिक वर्षा वाले प्रदेशों में स्थित पठार आर्द्र पठार कहलाते हैं। जैसे असम का पठार। धुवीय जलवायु के प्रदेशों में हिम आच्छादित पठार पाये जाते हैं । जैसे ग्रीनलैंड का पठार।
आकृति के अनुसार पठारों के भेद (Plateau according to Shape) :- आकृति के अनुसार पठारों के तीन भेद हैं।
- गुम्बदाकार पठार (Dome-Shaped Plateau);
- विच्छेदित पठार (Dissected Plateau)
- सोपानतुल्य पठार (Step-like Plateau)
गुम्बदाकार पठार का बाह्य पृष्ठ गोलाकार होता है। छोटानागपुर का पठार ऐसा ही है। विच्छेदित पठार नदियों द्वारा कटे-छँटे होते हैं। दक्षिण भारत का पठार विच्छेदित पठार है। जिन पठारों की रचना सोपान-तुल्य प्रतीत होती है उनको सोपान-तुल्य पठार कहते हैं । विन्क्य पठार इसका उदाहरण है।
प्रश्न 18.
पहाड़ और पठार में क्या अन्तर है?
उत्तर :
पहाड़ (Mountain) | पठार (Plateau) |
i. इनका ऊपरी क्षेत्रफल आवार के क्षेत्रफल से अधिक होता है। | i. इनका ऊपरी क्षेत्रफल आधार के क्षेत्रफल से कम होता है। |
ii. ये सागर तल या अपने आस-पास के क्षेत्र से बहुत ऊँचे उठे होते हैं। | ii. ये अपने समीप के धरातल से अपेक्षाकृत कम ऊँचे उठे होते हैं। |
iii. इनका शिखर नुकीला होता है। | iii. इनका शिखर चौरस होता है। |
iv. इनमें प्राय: नवीन एवं कम कठोर चट्टाने पायी जाती हैं। | iv. इनमें अत्यन्त प्राचीन एवं कठोर चट्टाने पायी जाती हैं। |
v. पर्वतों पर तापक्रम बहुत कम रहता है। | v. पठारों पर तापक्रम पर्वतों से अधिक रहता है। |
vi. इनके चारों ओर का ढाल तीव होता है। | vi. इनमें कम से कम एक ओर ढाल खड़ा होता है। |
vii. ये अनुपजाऊ एवं कृषि के अयोग्य होते हैं। | vii. ये अपेक्षाकृत उपयुक्त होते हैं। |
viii. इनमें चोटियाँ होती हैं। | viii. इनमें चोटियों का अभाव होता है। |