WBBSE Class 6 History Solutions Chapter 8 प्राचीन भारतीय उपमहादेश की संस्कृति (चर्चा के विभिन्न पहलू : शिक्षा, साहित्य, विज्ञान और शिल्प)

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WBBSE Class 6 Geography Chapter 8 Question Answer – प्राचीन भारतीय उपमहादेश की संस्कृति (चर्चा के विभिन्न पहलू : शिक्षा, साहित्य, विज्ञान और शिल्प)

विस्तृत उत्तर वालें प्रश्न (Detailed Answer Questions) : 5 MARKS

प्रश्न 1.
प्राचीन काल में बौद्ध शिक्षा व्यवस्था के साथ आज की शिक्षा व्यवस्था की समानता-असमानता को अपनी भाषा में लिखिए :-
उत्तर :
प्राचीन युग में बौद्ध शिक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत बहुत विषयों को पढ़ाया जाता था। जैसे – काव्य, छन्द, व्याकरण, ज्योतिष विद्या, गणित, रसायन इत्यादि। आज भी कई विषयों के ऊपर शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती है। जैसेहिन्दी, बंगला, गणित, अंग्रेजी, इतिहास, भुगोल, रसायन शास्त, जीव विज्ञान इत्यादि।
बौद्ध विहारों में दाखिला के लिए छात्रों की योग्यता और बुद्धिमता की जाँच की जाती थी। आज के दिनों में भी छात्र दाखिला के लिए बुद्धिमता, विद्वता की जाँच अधिकांश शिक्षण संस्थानों में की जाती है।

प्राचीन काल में शिक्षा व्यवस्था एवं वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में समानता और असमानता निम्नलिखित हैं :-
(i) प्राचीनकाल में गुरुकुल एवं बौद्ध विहार ही शिक्षा के प्रमुख केन्द्र थे जबकि वर्तमान समय में शिक्षा व्यवस्था के प्रमुख केन्द्र-विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्चविद्यालय आदि हैं।
(ii) प्राचीनकाल में बौद्ध विहारों में रहकर ही उच्च शिक्षा ग्रहण करनी पड़ता थी जबकि वर्तमान समय में शिक्षा संस्थान के बाहर अपने घर पर रहकर भी शिक्षा ग्रहण की जा सकती है ।

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प्रश्न 2.
विहार और स्तूप में क्या अन्तर है?
उत्तर :
विहार : यह शिक्षा का केन्द्र था जहाँ पर बौद्ध धर्म के अलावे विभिन्न विषयों की शिक्षा दी जाती थी, विहारों में रहकर छात्र शिक्षा ग्रहण किया करते थे।
स्तूप : स्तूप उपासना के केन्द्र थे। स्तूपों में लोग जाकर भगवान बुद्ध की उपासना किया करते थे। स्तूपों के आस-पास चैता बनाया जाता था। वहाँ उपासकों के रहने की व्यवस्था होती थी।

प्रश्न 3.
नालन्दा विश्वविद्यालय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर :
नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासकों ने की। ््वेनसांग के विवरण से पता चलता है कि हर्ष के समय में नालन्दा विश्चविद्यालय शिक्षा का विश्व विख्यात केन्द्र था। इसमें चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत, श्रीलंका, वर्मा आदि विभिन्न देशों से विद्यार्थी अध्ययन करने के लिए आते थे। इस विशविद्यालय में लगभग 10,000 छात्र तथा 1500 अध्यापक थे। हर्षवर्द्धन ने 100 गाँव दान में नालन्दा विश्चविद्यालय को दिया था। इसमें छात्रों को रहने के लिए भोजन, वस्त आदि नि:शुल्क था। यहाँ पर विद्यार्थियों को बौद्ध धर्म, वेद, ज्यातिष, आयुर्वेद के अतिरिक्त विज्ञान एवं चिकित्सा की भी शिक्षा दी जाती थी। इसमें प्रवेश पाने के लिए छात्रों को कठिन परिश्रम करना पड़ता था। नालन्दा विश्विव्यालय के आचार्य शीलभद्र थे।

प्रश्न 4.
तक्षशिला महाविहार पर टिप्पणी लिखिए :-
उत्तर :
गाधार महाजनपदं की राजधानी तक्षशिला था। ग्रीक, फ्रांस, कुषाण, शक इत्याद् विदेशी शक्तियों ने समयसमय पर तक्षशिला पर अपना अधिकार कायम किया। इसलिए वहाँ पर विभिन्न देशों के पण्डितों का आना-जाना लगा रहता था। बौद्ध धर्म तक्षाशिला में काफी लोकप्रिय हुआ। धीरे-धीरे शिक्षा केन्द्र के रूप में भी तक्षशिला प्रसिद्ध हो गया।

देश के विभिन्न क्षेत्रों से छात्र तक्षशिला में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाते थे। सोलह से लेकर बीस वर्ष की उम्र तक छात्र वहाँ पर भर्ती हो सकते थे। धर्म और वर्ण नहीं बल्कि योग्यता के आधार पर ही छात्रों की भर्ती होती थी। लगभग आठ वर्ष तक वहाँ पर पढ़ाई-लिखाई किया करते थे। राजा और व्यापारी इस महाविहार को चलाने के लिए पैसे और जमीन का दान देते थे।
यहाँ की परीक्षा पद्धति बहुत ही सहज थी। ऐसा जाना जाता है कि वहाँ पर लिखित परीक्षा नहीं होती थी। लेकिन पढ़ाई का स्तर काफी उच्च स्तर का था। इस महाविहार के कुछ छात्र जैसे – जीवक, पाणिनी एवं चाणक्य काफी प्रसिद्ध थे।

प्रश्न 5.
विक्रमशिला विश्वविद्यालय पर टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर :
विक्रमशिला विश्धविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल ने की थी। इस महाविहार में देश-विदेश के प्राय: तीन हजार से अधिक छात्र शिक्षा ग्रहण करते थे। यहाँ 144 अध्यापक मौजूद थे। इनमें अतिश दीपकर, श्रीज्ञान, कल्याण रक्षित, श्रीधर प्रमुख थे। यहाँ बौद्ध-शारत, न्याय-शारू, तर्कशारु, दर्शन-शास्त, व्याकरण, ज्योतिष-शास्त इत्यादि विषयों की शिक्षा दी जाती थी।

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प्रश्न 6.
प्राचीन भारतीय उपमहादेश की साहित्य चर्चा का विवरण दीजिए :-
उत्तर :
भाषा का प्रयोग बातचीत करने के लिए होता है। इतना ही नहीं, लिखने के लिए भी भाषा की जरूरत पड़ती है लेकिन मौखिक और लिखित भाषा में जमीन-आसमान का अंतर है। मौखिक भाषा में आंचलिक क्षेत्र का प्रभाव रहता है, लेकिन लिखित भाषा में इन सबका प्रयोग नहीं होता है। उस समय सभी पढ़कर समझ पाए ऐसी ही भाषा में लिखा जाता है। प्राचीन भारत में मौखिक भाषा और लिखित भाषा अलग-अलग थी।

ऋग्वेद की भाषा छन्द या छन्दस जैसा अनुमान लगाया जाता था। उसी भाषा में सभी बातचीत करते थे। लेकिन धीरे-धीरे भाषा में आंचलिकता का प्रयोग होना शुरू हो गया। जिससे विभिन्न अंचलों की भाषा बनने लगी। इसलिए भाषा और उसके प्रयोग के लिए नियम बनाने की जरूरत है। उसी नियम के कारण ही व्याकरण बना। प्रसिद्ध व्याकरण आचार्य पाणिनी ने ऐसा व्याकरण लिखा जिसका नाम अष्टथ्यायी है। इसमें पाणिनी ने भाषा के विभिन्न नियमोंको बनाया जिसके फलस्वरूप भाषा का संस्कार हुआ। संस्कार होकर जो भाषा बनी उसी का नाम संस्कृत रखा गया।

विभिन्न अंचलों (क्षेत्रो) में एक ही भाषा का विभिन्न प्रकार से उच्चारण होना आरम्भ हुआ। उस भाषा को प्राकृत कहा जाता था। प्राकृत अथवा वास्तव में प्राकृत शब्द कहाँ से आया। इसलिए तो पाणिनी द्वारा संस्कार की गई भाषा से प्राकृत भाषा अलग है। दूसरी ओर छन्दस से तोड़कर पाली भाषा बनी। प्राकृत और पाली भाषा ही साधारण लोगों की मौखिक भाषा बनी। लेकिन ईसा पूर्व के षष्ठ शताब्दी से पाली और प्राकृत भाषा में लिखना आरम्भ हुआ। जैन (प्राकृत) और बौद्ध (पाली) धर्म का साहित्य भी इसी भाषा में लिखा गया।

प्रश्न 7.
प्राचीन भारतीय उपमहादेश की लिपि के बारे में तुम क्या जानते हो ? संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर :
प्राचीन भारतीय उप्रमहादेश में दो प्रकार की लिपि का प्रचलन था। खरोष्ठी और ब्राह्मी लिपि ।
खरोष्ठी लिपि दायीं ओर से बाँयीं ओर लिखी जाती थी। जबकि ब्राही लिपि बाँयी ओर से दाँयीं ओर लिखी जाती थी। उत्तर भारत में ब्राही लिपि से ही धीरे-धीरे देवनागरी लिपि बनी। धार्मिक कार्यक्रम और देवता के कार्यों के लिए नगर के बाह्मण इस लिपि का प्रयोग करते थे। इसलिए इसका नाम देवनागरी पड़ा। ब्राह्मी लिपि का सबसे अधिक प्रयोग होता था। सम्राट अशोक के शिलालेखों में अधिकांशत: ब्राही लिपि का प्रयोग हुआ है। ईसा पूर्व के षष्ठ शताब्दी से पहले ही ब्राही लिपि का प्रयोग शुरू हुआ था। धीरे-धीरे ही इस लिपि का नाम बदला।

प्रश्न 8.
पुराण के बारे में संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
पुराण शब्द का अर्थ है पुराना। पुराण में बीते हुए दिनों की बातों का उल्लेख रहता है। पुराणों की संख्या अठारह है। लगभग ईसा पूर्व के पंचम अथवा चतुर्थ शताब्दी के पहले ही कुछ पुराणों की रचना हुई थी। बाकी पुराणों की रचना ईसा के द्वितीय से लेकर सप्तम शताब्दी के मध्य हुआ था। इसके अलावा कृषि, पशुपालन, व्यापार, भूगोल, ज्योतिषी इत्यादि बाते भी पुराण में हैं। पुराणों के साथ कहीं-कहीं इतिहास शब्द भी जुड़ा हुआ है। प्राचीन भारत में पुराण और इतिहास में अंतर निर्दिष्ट नहीं था। फलस्वरूप पुराण ऐसी कहानी है, जिसमें कुछ-कुछ इतिहास का उपादान भी मिला हुआ मिलता है।

प्रश्न 9.
चरक और अश्वघोष कौन थे ?
उत्तर :
चरक कनिष्क के दरबार में प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य और अश्वघोष राजकवि एवं नाटककार थे।

प्रश्न 10.
कालिदास कौन थे ?
उत्तर :
कालिदास, चन्द्रुग्त द्वितीय के दरबार के नवरल्नों में एक थे जिन्होंने संस्कृत में अनेक पुस्तकों की रचना की। कालिदास गुप्तकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि थे। उनके द्वारा रचित पुस्तकों में मेघदूतम, रहुवंशम्, कुमारसंभवम्, विक्रमावेर्शीयम्, अभिज्ञान शाकुन्तलम्, मालविकाग्निमित्रम् और ऋतुसंहार आदि हैं। कालिदास काव्य और नाटक दोनों लिखते थे। मेघदूतम्, कुमार सम्भवम् उनके द्वारा लिखित दो प्रसिद्ध काव्य हैं। अभिज्ञान शाकुंतलम, मालविका ग्निमित्रम् इत्यादि उनके प्रसिद्ध नाटक हैं।

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प्रश्न 11.
वाराहमिहिर कौन थे? उसके बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर :
वाराहमिहिर चन्द्रगुप्त द्वितीय के नवरतों में से एक थे जो एक प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य थे। उन्होंने वृहत संहिता और पंच सिद्धांतिक नामक पुस्तकों की रचना की। सूर्य सिद्धान्त और पंच सिद्धांतिका पुस्तक में वाराहमिहिर ने पुरानी अवधारणा को काफी बदल दिया था। वर्षा का परिमाण और उसके आगामी लक्षण क्या-क्या हैं.उसे लेकर वे आलोचना किए, वहीं भूकम्प के पहले विभिन्न प्राकृतिक लक्षण विषयक आलोचना भी ‘वाराहमिहिर’ के लेखों में पाया जाता है।

प्रश्न 12.
शुद्रक का मृच्छकटिकम के बारे में क्या जानते हो?
उत्तर :
शुद्रक का मृच्छकटिकम प्राचीन संस्कृत साहित्य का एक प्रसिद्ध नाटक है। मृच्छकटिकम का अर्थ है, मिट्टी से बनी छोटी गाड़ी। मृत मतलब मिट्टी और शकटिका का मतलब छोटा शकट अथवा गाड़ी, यह दोनों मिलकर ही मृच्छकटिकम है। इस नाटक का प्रधान चरित्र चारूदत्त था। उसका पुत्र छोटू रोहसेन के पड़ोसी व्यापारी के पुत्र ने सोने से बनी खिलौने गाड़ी को देखा। इसी प्रकार की खिलौने गाड़ी को लेने की जिद रोहसेन ने की। तब उस समय उसे शांत करने के लिए एक मिट्टी की गाड़ी दी गई, लेकिन इससे भी रोहसेन का जिद और रोना बन्द नहीं हुआ। इस नाटक का दूसरा चरित्र बसंत सेन है। रोहसेन को रोता हुआ देखकर उसे दु:ख हुआ। रोहसेन के खिलौने गाड़ी को बनाने के लिए बसंत सेना ने स्वयं के सोने के गहने को दे दिया। इस नाटक के चरित्र प्राय: साधारण लोग ही हैं।

प्रश्न 13.
हर्षवर्द्धन द्वारा रचित तीन नाटकों के नाम बताइए।
उत्तर :
हर्षवर्द्धन द्वारा रचित तीन नाटक – नागानन्द, रत्नावली और प्रियदर्शिका हैं।

प्रश्न 14.
जीवक एवं आनंद कौन थे?
उत्तर :
जीवक बुद्ध के समयकाल के एक प्रसिद्ध चिकित्सक थे। वे विम्बसार के राजवैद्य थे। उनका जन्म राजगृह में होने के बावजूद उन्होंने तक्षशिला जाकर गुरु आश्रम में शिक्षा प्राप्त की थी। आनंद भगवान बुद्ध के सबसे प्रिय शिष्य थे। भगवान बुद्ध बाद में अपने उपदेशों को आनंद को ही सबसे पहले दिया करते थे और उनसे सम्बन्धित तथ्यों पर विचार विमर्श किया करते थे। आंद के विशेष आग्रह पर ही स्तियों को बौद्ध संघ में शामिल करने पर भगवान बुद्ध राजी हुए।

प्रश्न 15.
लक्ष्मण की शक्ति सेल से क्या समझते हैं?
उत्तर :
रावण के साथ युद्ध में शक्ति सेल अस्त्र के आघात से लक्ष्मण अचेत हो गए थे। विशल्यकरणी (संजीवनी बूटी) एक औषधीय पौधा है। लंका नरेश रावण के मुख्य चिकित्सक सुखेन वैद्य द्वारा बताए गये इस औषधि को ढूँढने के लिए हनुमान गंधमादन पर्वत (द्रोण पर्वत) पर गए लेकिन विशल्यकरणी पौधा को न पहचान पाने के कारण हनुमानजी पूरा गंधमादन पर्वत को ही उठाकर ले आये। विशल्यकरणी (संज़ीवनी बूटी) का रसपान करने से लक्ष्मण होश में आए। विशल्यकरणी (संजीवनी बूटी) की बातों का मतलब है विशेष रूप से शल्यकरण के बाद जो औषधि लगायी जाती है।

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प्रश्न 16.
साहित्य की नीति शिक्षा क्या है?
उत्तर :
सही-गलत पर विचार करने के लिए प्राचीन काल में एक प्रकार की पुस्तक लिखी जाती थी। उन पुस्तकों में मनुष्य और विभिन्न पशु-पक्षियों का चरित्र-चित्रण रहता था। उनकी बातचीत के जरिए ही कहानी बनती थी। विभित्र घटनाओं में कैसा आचारण करना उचित है, वही कहानी की बातें होती थी। इसलिए इस प्रकार की कहानी पुस्तकों को नीतिशिक्षा का संकलन ही कहा जा सकता है।

प्रश्न 17.
सुश्रुत संहिता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
सुभ्रुत संहिता में कहा गया है कि दक्ष कारीगर के साथ चिकित्सकों को विचार-विमर्श करना होगा। प्रयोजनीय यंत्र कैसा होगा, उसे कारीगर को समझा देना होगा। उसी के अनुसार कारीगर यंत्र तैयार कर देंगे। धातु और कीमती पत्थर का विचार और परख करना भी विज्ञान का अंश समझा जाता था। खनिज और पत्थर विषय पर चर्चा भी विज्ञान के अन्तर्गत आता था। विभिन्न प्रकार के धातु को मिलाने एवं अलग करने पर चर्चा होती थी।

प्रश्न 18.
सुश्रुत संहिता में कारीगरों के विषय में क्या वर्णन है?
उत्तर :
सुश्रुत संहिता में कारीगरों एवं हाथ के कार्यों की प्रशंसा की गई है। कहा जाता है कि हाथ हीं प्रधान यंत्र है। लेकिन धर्मशास्त में कारीगरी के कार्य को छोटा दिखाया गया है जिसके फलस्वरूप धीरे-धीरे शिल्प चर्चा, विज्ञान चर्चा से अलग हो गया। लेकिन स्थापत्य बनाने का कारीगरी शिल्प भी नष्ट नहीं हुआ। धार्मिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए अधिकांशतः स्थापत्य बनाया जाता था। फलस्वरूप वे मंदिर और मठ थे। उत्तर और दक्षिण भारत में इसी प्रकार के स्थापत्य का निर्माण हुआ था।

प्रश्न 19.
चंद्रकेतुगढ़ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर :
पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिला के बेड़ाचापा में प्राचीन बंगाल के प्राचीन स्थल चन्द्रकेतुगढ़ का ध्वंसावशेष पाया गया है। चन्द्रकेतुगढ़ विद्याधरी नदी के जरिए गंगा के साथ जुड़ा हुआ था। यह एक व्यापार का केन्द्र था, वहीं दूसरी ओर समृद्ध जनपद भी था। यहाँ पर मौर्य के समय के पहले से ही (अनुमानिक ईसा पूर्व600-700 ई० पूर्व ईसवीं तक) पाल सेन के समय तक (अनुमानिक 750-1250 ईसा के बाद तक) के विभिन्न पुरातत्व को उदाहरण पाया गया है। जैसे विभिन्न प्रकार की मिट्टी के बर्तन, सीलमोहर, मूर्ति इत्यादि। यहाँ पर टेराकोटा अथवा जली हुई मिट्टी से बनी मूर्ति पायी गयी जिनमें नारी मूर्ति की संख्या ज्यादा है।

प्रश्न 20.
गुप्त युग और पल्लव युग में मंदिरों के निर्माण का वर्णन कीजिए ।
उत्तर :
स्तूप और चैता बनाना गुप्त काल में ही आरम्भ हो गया था। सारनाथ का धामेक स्तूप पहले ईंट से बनाया गया था। इस काल में उसके ऊपर पत्थर का आस्तरण दिया गया है। गुप्त काल में प्रथम स्थापत्य के रूप में मंदिर बनाना आरम्भ हुआ। मंदिर कभी ईंट तो कभी पत्थर से बनाया जाता था। इस काल के मंदिरों में देवघर का दशावतार मंदिर प्रसिद्ध है साथ ही साथ पहाड़ और पत्थर काट कर मंदिर बनाने का प्रचलन था। पल्लव के शासन काल में महाबलीपुरम पत्थर को काट कर रथ जैसा दिखने वाला मंदिर बनाया गया था। गुप्त काल में कला के साथ धर्म का सम्बन्ध काफी स्पष्ट था।

WBBSE Class 6 History Solutions Chapter 8 प्राचीन भारतीय उपमहादेश की संस्कृति 1

गुप्त युग और पल्लव युग के मंदिरों की दीवारों पर विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्ति खुदाई की गई थी। जैसे कैलाश मंदिर में रामायण का पैनल, दशावतार मंदिर का भाष्कर्य। गुप्त युग में चित्र कला का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण मध्य भारत की अजंता गुफा के चित्र हैं। विभिन्न पेड़-पौधे और मनुष्य के चित्र वहाँ पर हैं। विभिन्न प्रकार के चित्र अजंता की गुफा में देखने को मिलते हैं। अजंता के अलावा एलोरा एवं बाघ गुफा में भी कुछ चित्र पाये गये हैं।

प्रश्न 21.
सुंग-कुषाण-सातवाहन युग की कला चर्चा के विषय में संक्षेप में उल्लेख करो।
उत्तर :
सुंग, कुषाण और सातवाहन के समय साधारण जीवन का प्रभाव कला के ऊपर पड़ा था। लेकिन धार्मिक ध्यान-सोच विचार के साथ भी कला का सम्पर्क था। इस समय धार्मिक स्थापत्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उदाहरण स्तूप, चैता और विहार था। प्रधानतः बौद्ध धर्म की चर्चा के साथ ही यह स्थापत्य शिल्प जुड़ा हुआ है। लेकिन जैन धर्म में स्तूप बनाने का उदाहरण है। ब्राह्मण धर्म के स्थापत्य का उदाहरण इस युग में काफी सामान्य था।

सुंग – कुषाण युग के अधिकांश क्षेत्र में भास्कर्य का विषय बुद्ध का जीवन और बौद्ध धर्म था। इस युग में शिल्पों का राज दरबार में प्रत्यक्ष प्रभाव देखने को नहीं मिला। इसलिए प्रकृति एवं रोज़मर्रा के जीवन के विभिन्न पहलू के रूप में भास्कर्य शिल्प बना था। तोरण के भास्कर्य में अधिकांश समय एक ही प्रकार की कहानी कही गयी है।
सुंग – कुषाण युग में गान्धार और मथुरा की शिल्प नीति का बहुत नाम था। बुद्ध का जीवन और बौद्ध-धर्म इन दोनों शिल्पकार का विषय था। गान्धार के भास्कर्य में प्रधानता ग्रीक और रोमन का प्रभाव देखा जाता था। मथुरा रीति भास्कर्य लाल चूना पत्थर का अधिक व्यवहार होता था।

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प्रश्न 22.
गांधार कला पर टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर :
गांधार कला पर यूनानी कला का अत्यधिक प्रभाव है। इसलिए गांधार कला को इण्डो-यूनानी कला भी कहा जाता है। गांधार कला के विकास का काल 50 ईं० पू० से 500 ई० तक माना जाता है। मूर्ति कला की गांधार शैली का विकास कनिष्क के समय से प्रारम्भ हुआ था। मथुरा एवं सारनाथ में कनिष्क ने कई सुन्दर भवन तथा मूर्तियों का निर्माण करवाया था। राजधानी पुरुषपुर में स्तम्भ और कनिष्कपुर में एक नगर बसाया था। उसके समय में यूनानी एवं भारतीय शिल्प कला के मेल से उत्पन्न कला गांधार क्षेत्र में ही विकसित होने के कारण उसे गांधार कला कहा गया। भगवान बुद्ध तथा कई राज़ाओं की मूर्तियाँ बनाने में गांधार शैली का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 23.
रामायण और महाभारत पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। –
उत्तर :
रामायण : राम को लेकर प्राचीन महाकाव्य लिखा गया था। इसलिए उसका नाम रामायण पड़ा। इसकी रचना संस्कृत भाषा में महार्षि वाल्मीकि के आदर्श जीवन चरित्र का वृतांत् है। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि यह पुस्तक 400 ई० पू० से 200 ई० पू० के बीच लिखी गई है। रामायण में कुल 24 हजार श्लोक हैं। पूरा महाकाव्य सात काण्ड (भाग) में बाँटा हुआ है। इनमें से प्रथम और सातवें काण्ड सम्भवतः वाल्मीकि द्वारा नहीं लिखा गया है। इन दोनों काण्डों को रामायण में बाद में जोड़ा गया था।
रामायण के प्रमुख चरित्र राम, सीता और रावण हैं। राम-रावण के युद्ध की घटना ही रामायण की मूल कहानी है।

महाभारत : महाभारत की रचना संस्कृत भाषा में महर्षि वेद व्यास ने की थी। इस महाकाव्य में 18 अध्याय हैं और 100,000 श्लोक हैं। सम्भव है आरम्भ में यह ग्रन्थ इतना बड़ा न हो और बहुत से श्लोक बाद में जोड़े गये हों। इतिहासकारों के अनुसार यह पुस्तक 400 ई० पू॰ से 400 ई० के बीच लिखी गई होगी। महाभारत की चर्चा करने से वेद चर्चा की भाँति ही सफलता मिलेगी ऐसा अनुमान लगाया जाता था। इसलिए महाभारत को पंचम्वेद भी कहा जाता है।

महाभारत का मूल विषय कौरव और पाण्डव का युद्ध है। उसके साथ ही साथ भूगोल, विज्ञान, राजनीति, अर्थनीति एवं समाज से सम्बन्धित अनेक विषयों के बारे में भी कहा गया है।

प्रश्न 24.
भास्कर्य किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
मौर्यकाल में बने स्तम्भों को मूलत: भास्कर्य कहा जाता है। स्तम्भ के एकदम ऊपर एक प्राणी की मूर्ति बैठायी जाती थी। सिंह, हाथी, साँढ़ इत्यादि प्राणी की मूर्ति इन क्षेत्रों में प्रयोग होता था। इस प्रकार के पत्थर का स्तम्भ मौर्य युग के पहले नहीं देखा गंया। ऐसा ही एक प्रसिद्ध अशोक स्तम्भ सारानाथ में है, जो आज भारत सरकार का प्रतीक चिह्न है।

प्रश्न 25.
प्राचीन भारतीय उपमहादेश में विभिन्न भाषाओं की उत्पत्ति कैसे हुई ?
उत्तर :
बातचीत करने के लिए भाषा का प्रयोग होता है। इतना ही नहीं लिखने के लिए भाषा की जरूरत पड़ती है। लेकिन मौखिक और लिखित भाषा में जमीन आसमान का अंतर होता है। मौखिक भाषा में आंचलिक क्षेत्र का प्रभाव रहता है, लेकिन लिखित भाषा में सबका प्रयोग नहीं होता है। प्राचीन भारत में मौखिक भाषा और लिखित भाषा अलग थी। ॠग्वेद की भाषा छंद अथवा छंदस था। इसी भाषा में सभी बातचीत करते थे, लेकिन धीर-धीरे भाषा में आंचलिकता का प्रयोग बढ़ना शुरू हो गया, जिससे विभिन्न अंचलों की भाषा बनने लगी। इसलिए भाषा और उसके प्रयोग के लिए नियम बनाने की जरूरत पड़ी। उसी नियम के कारण ही व्याकरण बना। प्रसिद्ध व्याकरण आचार्य पाणिनि ने ऐसा ही व्याकरण लिखा, जिसका नाम अष्टध्यायी था। इसमें पाणिनि ने भाषा के विभिन्न नियम को बनाया, जिसके फलस्वरूप भाषा का परिमार्जन हुआ। परिमार्जन होकर जो भाषा बनी उसी का नाम संस्कृत रखा गया।

विभिन्न क्षेत्रों में एक भाषा का विभिन्न प्रकार से उच्चारण होना आरंभ हुआ। उस भाषा को प्राकृत कहा जाता था। प्राकृत शब्द कहाँ से आया? इसलिए तो पाणिनि द्वारा संस्कार की गई भाषा से प्राकृत भाषा अलग है। दूसरी ओर छंदस से तोड़कर-तोड़कर पाली भाषा बनी। प्रकृत और पाली भाषा ही साधारण लोगों की मौखिक भाषा बनी। लेकिन ईसा पूर्व षष्ठ शताब्दी से पालि और प्रकृत भाषा में लिखना आरंभ हुआ। जैन (प्राकृत) और बौद्ध (पाली) धर्म का साहित्य भी इसी भाषा में लिया गया है।

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प्रश्न 26.
प्राचीन भारतीय उपमहादेश में ज्ञान-विज्ञान की स्थिति का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर :
विज्ञान का तात्पर्य है किसी विशेष विषय के प्रति ज्ञान अर्जन करना। विज्ञान में विभिन्न प्रकार के कुछ ज्ञान रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग करने की आवश्यकता होती है।

परवर्ती वैदिक और बौद्ध साहित्य में विभित्र औषधि और शल्य चिकित्सा की बातें हैं। चरक साहित्य में प्रायः सात सौ औषधि पेड़-पौधों के बारे में जानकारी मिलती है। इस पुस्तक में रोग के विभिन्न पहलू को लेकर आलोचना की गई है। एक आदर्श अस्पताल कैसा होना चाहिए, उसका विवरण भी चरक संहिता में मिलता है। हड्डी टूट जाने पर अथवा नाक, कान इत्यादि कट जाने पर उसे जोड़ने एवं ठीक करने के कार्य में शल्य चिकित्सक काफी निपुण थे। इस विद्या में शुश्रुत काफी प्रसिद्ध थे।

जाति भेद की प्रथा कठोर होने के कारण चिकित्सा-विज्ञान की चर्चा में समस्या उत्पन्न हुई थी। रोग को दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार के खाद्यों के बारे में कहा गया, लेकिन वे सारे खाद्यों में अधिकांशतः धर्मशास्त सैजा ही खाने पर प्रतिबंध था। फलस्वरूप धर्मशास़ के साथ चिकित्सा विज्ञान का विभिन्न समय पर विरोध होता रहता था। शुश्रुत संहिता के चिकित्सा विज्ञान का महत्वपूर्ण भाग शववाल्वच्छेद अथवा मरे हुए को काटना। धर्मशास्त के मतानुसार शव अथवा मृत शरीर को छूना निषेध था। फलस्वरूप मरे हुए को काटना निषेध होने के कारण शरीरविद्या और शल्य चिकित्सा की चर्चा धीरे-धीरे कम होती गई। वाणभट्ट के बाद से शल्यचिकित्सा के संबंध में वैसा उत्साह नहीं था। इसके अलावा चिकित्सक रोगियों में किसी प्रकार का भेद-भाव अर्थात् कौन ब्राह्मण हैं या शूद्र है वे इसे नहीं मानते थे। फलस्वरूप प्रचलित वर्णाश्रम प्रथा के साथ चिकित्सा विधा में विरोध शुरू हुआ।

प्राचीन भारत में ज्योतिष विज्ञान, गणित और ज्योतिष चर्चा काफी दिनों से एक साथ चल रहां था। जैन और बौद्ध भी गणित चर्चा करते थे। उनके धर्म ग्रंथ से इस विषय पर आलोचना मिलती हैं। अंक गणित, बीजगणित और ज्यामिति को मिलाकर बौद्ध ने गणित विज्ञान को बनाया था। जैन उसे संख्यायान कहते हैं। उस समय की शिक्षा में गणित का स्थान सबसे प्रमुख था। महांवीर और गौतम बुद्ध दोनों ही गणित की चर्चा की थी। ईसा के प्रथम शताब्दी में बौद्ध पण्डित नागार्जुन एक प्रसिद्ध गणितविद् थे।

गुप्त युग में ज्योतिष विज्ञान और गणित में काफी उन्नति हुई थी। लेकिन गुप्त युग में ज्योतिष विज्ञान में अधिकांशत: ज्योतिषचर्चा के कार्य में प्रयोग होता था। आर्यभट्ट ने गणित को एक अलग चर्चा का विषय बनाया था। आर्यभट्टीय पुस्तक में गणित समय और ग्रह-नक्षत्र विषय को लेकर आर्यभट्ट ने आलोचना की है। उस पुस्तक में सर्वप्रथम संख्या के हिसाब से शून्य का प्रयोग उन्होंने किया। उस चर्चा से ही दशमलव की धारणा का आरंभ हुआ था। आर्यभट्ट ने कहा था पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ने के फलस्वरूप ही चंद्रग्रहण होता है।

आर्यभट्ट के बाद वाराहमिहिर ज्योतिष विज्ञान के प्रसिद्ध वैज्ञानिक हुए। सूर्य सिद्धांत और पंच सिद्धांति की पुस्तक में वराहममिहिर ने पुरानी अवधारपणा को काफी बदल दिया। वर्षा का परिमाण और उसके आगामी लक्षण क्या-क्या हैं, उसे लेकर वे आलोचना किए। भूकंप के पहले विभिन्न प्राकृतिक लक्षण विषयक आलोचना भी वाराहमिहिर के लेखों में पाया जाता है।

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प्रश्न 27.
मौर्य युग एवं गुप्त वंश की शिल्पकला के सम्बन्ध में क्या जानते हो?
उत्तर :
मौर्य काल में भारतीय शिल्प कला काफी उन्नत दशा में थी। प्रशासनिक सुधार के कारण शिल्पों में छोटे-छोटे उद्योगों का रूप ले लिया था। राज-शिल्पी राज्य के लिये धातुओं, लकड़ियों तथा पत्थरों से विविध वस्तुओं का निर्माण करते थे। जहाज बनाने, कवच तथा आयुधों का निर्माण करने, खेती के औजार बनाने जैसे शिल्पों की प्रमुखता थी तथा जंगलों से प्राप्त धातुओं और लकड़ियों से राज्य अनेक उद्योग संचालित करता था जिनमें शिल्पी अध्यक्षों के निरीक्षण में कार्य करते थे। मौर्य युग का प्रधान उद्योग वस्त उद्योग था। मेगास्थनीज ने सोना, चाँदी, ताँबा, लोहा आदि के प्रयोग द्वारा चलाये जाने वाले उद्योगों के अतिरिक्त हाथी दाँत, मिट्टी तथा चमड़े के शिल्पियों की चर्चा भी की है।

पत्थर तराशने का शिल्प तो अति विकसित अवस्था में था। अशोककाल में एक ही पत्थर के बने स्तंभ इसके प्रमाण हैं। सारनाथ का सिंह स्तंभ तथा बाबर की गुफाओं की चमक अपूर्व है। मौर्य काल के शिल्प की उत्कृष्टता उस काल में बने स्तूपों, विहारों, मठों, लाटों, स्तंभों तथा इमारतों को देखने से ही ज्ञात होती है। राज प्रासाद को सात सौ वर्ष बाद देखने वाले फाह्यान को विश्वास ही नहीं हुआ कि वह मानव द्वारा निर्मित है। साँची और भरहुत के स्तूप, साँची, प्रयाग, सारनाथ और नंदनगढ़ की लाटें, बराबर और नागार्जुनी पहाड़ियों के गुहागृह, अशोक द्वारा निर्मित पत्थर के स्तभ मौर्य-शिल्प के श्रेष्ठ नमूने हैं। शुंग राजाओं ने लकड़ी के स्थान पर पत्थर द्वारा भवन निर्माण आरंभ किया। भोज का मठ, काली का बौद्ध मंदिर, नासिक और खंडगिरि की गुफाएँ उस काल की श्रेष्ठ रचनाएँ हैं। अमरावती का बौद्ध विहार सातवाहन राजवंश की देन है।

गुप्तवंशीय शासनकाल को उसकी सांस्कृतिक उपलब्धियों के कारण स्वर्णयुग कहा गया। इस युग में कला-शिल्पियों ने अपनी प्रतिभा के चरम विकास का परिचय दिया। वास्तु शिल्प, चित्र शिल्प तथा मूर्ति शिल्प के उत्कृष्ट्ट उदाहरण आज भी हमें उस काल की रचनाओं तथा सारनाथ के स्तूपों, अजंता-एलोरा की गुफाओं, प्रयाग-स्तंभ, मेहरौली के लौहस्तंभ, देवगढ़ के दशावतार मंदिर तथा उस काल में निर्गित देवी-देवताओं की मूर्तियों में प्राप्त होते हैं। गुप्तोत्तर काल में शिल्प के अंतर्गत वस्र निर्माण से लेकर धातु, हाथी दाँत, लकड़ी, मिट्टी तथा चमड़े के विभिन्न उद्योग आदि सम्मिलित हैं।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करो (Fill in the blanks) : (1 Mark)

1. ________ के रामायण में __________ को बड़ा दिखाया गया है।
उत्तर : कम्बन, राम

2. वाणभट्ट एक __________ थे।
उत्तर : चिकित्सक/वैद्य

3. कुषाण के समय __________ शिल्प का विकास हुआ था।
उत्तर : गांधार

4. पंचतंत्र के रचयिता __________ हैं।
उत्तर : विण्णु शर्मा

5. कालिदास __________ एवं __________ दोनों लिखते थे।
उत्तर : काव्य, नाट्य

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6. चरक शब्द का अर्थ __________ है।
उत्तर : घूमनेवाला

7. नागार्जुन एक __________ थे।
उत्तर : गणितविद्

8. वराहमिहिर __________ थे।
उत्तर : प्रसिद्ध ज्योतिष थे।

9. पुराण शब्द का अर्थ __________ है।
उत्तर : वेद

10. रामायण महाकाव्य __________ में बँटा हुआ है।
उत्तर : सात भाग

बेमेल शब्दों को ढूंढकर लिखिए :-

  1. नालन्दा, तक्षशिला, बल्लभी, पाटलिपुत्र।
  2. ब्राह्मी, संस्कृत, खरोष्टी, देवनागरी।
  3. रत्नावली, मृच्छकटिकम, अर्थशास्त, अभिज्ञान शाकुन्तलम।
  4. संस्कृत, अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति।
  5. काव्य, व्याकरण, ज्योतिष, व्यवसाय।
  6. भरहुत, मगध, साँची, अमरावती।
  7. मेघदूतम, कुमारसम्भवम, अभिज्ञान शांकुतलम, अर्थ शार्ब।
  8. नागान्द, रत्नावली, प्रियदर्शिका, दशकुमार चरित।
  9. महाभारत, जयकाव्य, पंचमवेद, सर्ग।
  10. पाटलिपुत्र, कब्नौज, मिथिला, मालदा।

उत्तर :

  1. बल्लभी
  2. संस्कृत
  3. अर्थशास्त
  4. संस्कृत
  5. व्यवसाय
  6. मगध
  7. अर्थशास्ब
  8. दशकुमार चरित
  9. सर्ग
  10. मालदा।

नीचे दिए गए वाक्यों में कौन सही एवं कौन गलत है उसे लिखिए :-

1. नालन्दा महाविहार में केवल ब्राह्मण छात्र ही पढ़ सकता था।
उत्तर : गलत

2. कम्बन के रामायमण में राम को बड़ा दिखाया गया है।
उत्तर : सही।

3. वाणभट्ट एक चिकित्सक थे।
उत्तर : सही।

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4. कुषाण के समय ही गांधार कला का विकास हुआ था।
उत्तर : सही।

5. ‘पुराण’ शब्द का अर्थ है ज्ञान।
उत्तर : गलत

6. जीवक ने गौतम बुद्ध का कई बार उपचार किया था।
उत्तर : गलत

7. महाभारत महाकाव्य अठारह सर्गों में बँटा हुआ है।
उत्तर : सही।

8. भाषा और उसके प्रयोग के लिए जो नियम थे उसे व्याकरण कहा जाता है।
उत्तर : सही।

9. रामायण महाकाव्य काण्ड छ: (भाग) में बँटा हुआ है।
उत्तर : गलत

10. अजंता को गुफा गुप्तकाल के शिल्प के उदाहरण नहीं है।
उत्तर : गलत

11. ‘चरक’ शब्द का अर्थ है जो घूमते रहते हैं।
उत्तर : सही।

12. वाराहमिहिर ज्योतिष विज्ञान के प्रसिद्ध ज्योतिष थे।
उत्तर : सही।

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13. पंचतंत्र एक रसिक परक कहानी है।.
उत्तर : गलत

14. स्तूप के चारों ओर के दरवाजे को ‘तोरण’ कहते हैं।
उत्तर : सही।

15. नागार्जुन एक प्रसिद्ध गणितज्ञ थे।
उत्तर : सही।

16. रामायण महाकाव्य को सोलह सर्गों में बाँटा गया है
उत्तर : गलत

17. वाराहमिहिर एक प्रसिद्ध शतरंज के खिलाड़ी थे।
उत्तर : गलत

18. भाषा प्रयोग के लिए जो नियम बनाए गए हैं वही व्याकरण है
उत्तर : सही।

19. वाणभट्ट एक प्रसिद्ध ज्योतिष थे।
उत्तर : गलत

20. कम्बन के रामायण में ‘सीता’ को बड़ा दिखाया गया है।
उत्तर : गलत

21. अजंता की गुफा शिल्पकाल के उदाहरण हैं।
उत्तर : सही।

22. कृषि कार्य एवं बस्ती के बढ़ाने हेतु जगल की कटाई होती है।
उत्तर : सही।

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23. नालंदा विश्वविद्यालय में केवल मात्र छात्र ही पढ़ सकते हैं।
उत्तर : गलत

24. ‘चरक संहिता’ में प्राचीन काल के औरधि एवं औषधीय पोधों आदि का विवरण मिलता है।
उत्तर : सही।

सही मिलान करो Match the following : (1 Mark)

प्रश्न 1.

स्ताम्भ (क) स्तम्भ (ख)
(i) महाबलौपुरम (क) कुषाण युग
(ii) गांधार शिल्प कला (ख) नागार्जुन
(iii) गणितविद् (ग) तमिल महाकाव्य
(iv) मनिमेखलाई (घ) गुफा का चित्र
(v) अजंता (ङ) रथ जैसा मंदिर

उत्तर :

स्ताम्भ (क) स्तम्भ (ख)
(i) महाबलौपुरम (ङ) रथ जैसा मंदिर
(ii) गांधार शिल्प कला (क) कुषाण युग
(iii) गणितविद् (ख) नागार्जुन
(iv) मनिमेखलाई (ग) तमिल महाकाव्य
(v) अजंता (घ) गुफा का चित्र

प्रश्न 2.

स्ताम्भ (क) स्तम्भ (ख)
(i) मृच्छकटिकम (क) हर्षवर्द्धन
(ii) रत्नावली (ख) मिट्टी से बनी छोटी गाड़ी
(iii) तक्षशिला (ग) महिला उपाध्याय
(iv) वैश्य (घ) गांधार महाजनपद की राजधानी
(v) उपाध्यायी (ङ) व्यापार करने वाला

उत्तर :

स्ताम्भ (क) स्तम्भ (ख)
(i) मृच्छकटिकम (ख) मिट्टी से बनी छोटी गाड़ी
(ii) रत्नावली (क) हर्षवर्द्धन
(iii) तक्षशिला (घ) गांधार महाजनपद की राजधानी
(iv) वैश्य (ङ) व्यापार करने वाला
(v) उपाध्यायी (ग) महिला उपाध्याय

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प्रश्न 3.

स्ताम्भ (क) स्तम्भ (ख)
(i) रामायण (क) तोरण
(ii) महाभारत (ख) काव्य एवं नाटक दोनों के लेख
(iii) स्तूप एवं चैता निर्माण प्रारंभ (ग) विहार
(iv) नागार्जुन (घ) प्राचीनकाल के वैद्य
(v) चरक (ङ) पंचतंत्र
(vi) घूमनेवाला (च) चरक
(vii) नालंदा विश्वविद्यालय (छ) गणितविद्
(viii) नीति परक कहानी का संकलन (ज) गुप्तकाल
(ix) कालिदास (झ) अठारह सर्ग
(x) स्तूप के चारों ओर का दरवाजा (স) छः काण्ड

उत्तर :

स्ताम्भ (क) स्तम्भ (ख)
(i) रामायण (স) छः काण्ड
(ii) महाभारत (झ) अठारह सर्ग
(iii) स्तूप एवं चैता निर्माण प्रारंभ (ज) गुप्तकाल
(iv) नागार्जुन (छ) गणितविद्
(v) चरक (घ) प्राचीनकाल के वैद्य
(vi) घूमनेवाला (च) चरक
(vii) नालंदा विश्वविद्यालय (ग) विहार
(viii) नीति परक कहानी का संकलन (ङ) पंचतंत्र
(ix) कालिदास (ख) काव्य एवं नाटक दोनों के लेख
(x) स्तूप के चारों ओर का दरवाजा (क) तोरण

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