Detailed explanations in West Bengal Board Class 10 Life Science Book Solutions Chapter 1D प्रचलन offer valuable context and analysis.
WBBSE Class 10 Life Science Chapter 1D Question Answer – प्रचलन
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK
प्रश्न 1.
मनुष्य में किस प्रकार का प्रचलन होता है ?
उत्तर :
द्विपाद प्रचलन
प्रश्न 2.
युग्लिना का प्रचलन अंग क्या है ?
उत्तर :
फ्लैजिला
प्रश्न 3.
अमीबा का प्रचलन अंग क्या है ?
उत्तर :
कूटपाद
प्रश्न 4.
मछलियों में कितने पखने होते हैं ?
उत्तर :
सात पखने
प्रश्न 5.
अमीबा में होने वाली गति क्या कहलाती है ?
उत्तर :
अमीबायी गति
प्रश्न 6.
किस प्रक्रिया में जीवधारी का पूरा शरीर अपना स्थान परिवर्तित करता है ?
उत्तर :
प्रचलन
प्रश्न 7.
मछलियों का कौन सा अंग उसके शरीर की उत्प्लावकता को बनाए रखने में सहायक होता है ?
उत्तर :
स्वीम ब्लैडर
प्रश्न 8.
आइरिस तथा सिलियरी बॉडी से जुड़ी पेशियों को क्या कहते हैं ?
उत्तर :
ससपेंसरी लिगामेंट
प्रश्न 9.
किस पखना की सहायता से मछलियाँ जल की गहराई में जाती हैं ?
उत्तर :
पेल्भिक पखना
प्रश्न 10.
मछलियों का कौन सा पखना पतवार का कार्य करता है ?
उत्तर :
कॉडल पखना
प्रश्न 11.
कौन सा जोड़ साइनोवियल संधि भी कहलाता है ?
उत्तर :
चलायमान जोड़
प्रश्न 12.
मनुष्य के शरीर के ढाँचा में कुल कितनी हड्डियाँ होती हैं ?
उत्तर :
206 हड्डियाँ
प्रश्न 13.
साइनोवियल गुहा में उपस्थित द्रव का नाम बताओ।
उत्तर :
साइनोवियल द्रव
प्रश्न 14.
मानव शरीर की सबसे लम्बी हड्डी कौन है ?
उत्तर :
फीमर (जाँघ की हड्ड़ी)
प्रश्न 15.
अंगों को समीप लाने वाली पेशी कौन है ?
उत्तर :
फ्लेक्सर पेशी
प्रश्न 16.
अंगों को दूर ले जाने वाली पेशी का नाम बताओ।
उत्तर :
इक्सटेन्सर पेशी
प्रश्न 17.
मनुष्य के ऊपरी बाहु के अग्र भाग में पायी जाने वाले पेशी कौन है ?
उत्तर :
बाइसेप पेशी
प्रश्न 18.
फ्लैजिला द्वारा गति करने वाले प्राणी का नाम बताओ।
उत्तर :
युग्लिना
प्रश्न 19.
खोपड़ी के आधार का जोड़ कैसा जोड़ है ?
उत्तर :
पिभोट जोड़ (Pivot joint)
प्रश्न 20.
दो अस्थियों को एक दूसरे के निकट लाने वाली पेशी का नाम बताओ।
उत्तर :
फ्लेक्सर पेशी
प्रश्न 21.
किस पेशी की सहायता से अंगों को चारों ओर घुमाया जाता है ?
उत्तर :
रोटेटर पेशी
प्रश्न 22.
प्रचलन क्या है ?
उत्तर :
सजीवों द्वारा अपने अंगों के संचालन के साथ-साथ स्थान परिवर्तन करने की क्रिया को प्रचलन कहते है
प्रश्न 23.
सजीवों में प्रचलन के दो उद्देश्य बताओ।
उत्तर :
(i) भोजन की प्राप्ति के लिए
(ii) प्रजनन या मनोरंजन के लिए।
प्रश्न 24.
मझलयाँ विभित्र गहराई में किस प्रकार तैरती हैं ?
उत्तर :
मछलियों में स्वीम ब्लैडर नामक एक गैसीय थैली होती है जिसकी सहायता से जल की विभिन्न गहराई में मछालियाँ तैरती है।
प्रश्न 25.
पेक्टोरल पखने का क्या कार्य है ?
उत्तर :
पेक्टोरल पखने की सहायता से मछली जल की सतह पर आती है।
प्रश्न 26.
पेल्विक पखने का क्या कार्य है ?
उत्तर :
पेल्विक पखने द्वारा मछली जल की गहराई में प्रवेश करती है।
प्रश्न 27.
मछलियों का प्रचलन अंग क्या है ?
उत्तर :
मछलियों के प्रचलन अंग पखने हैं, परन्तु पखने के साथ-साथ जुड़ी हुई पेशियाँ मछलियों के प्रचलन में सहायक है।
प्रश्न 28.
मायोफाइब्रिल क्या है ?
उत्तर :
मासपेशियों के संकुचन में सहायक पेशी तन्तु को मायोफाइब्रिल कहते हैं।
प्रश्न 29.
जोड़ की गति के लिए कौन सा ऊत्तक आवश्यक है ?
उत्तर :
जोड़ की गति के लिए लिगामेन्ट (Ligament) आवश्यक है।
प्रश्न 30.
रोहू मछली में कितने पखने होते हैं ?
उत्तर :
रोहू मछली में कुल सात पखने होते हैं। इसमें दो जोड़े तथा तीन बेजोड़े होते हैं।
प्रश्न 31.
द्विपाद प्रचलन क्या है ?
उत्तर :
मनुष्य द्वारा दो पैरों द्वारा प्रचलन करने की क्रिया को द्विपाद प्रचलन (Bipedal locomotion) कहते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS
प्रश्न 1.
एक जन्तु जो विरामावस्था में था वो गमन के लिए चेष्टा करता है इसके संभावित चार कारणों को लिखो।
उत्तर :
- भोजन प्राप्ति के लिये
- प्रजनन के लिये
- खादक से स्वंय की सुरक्षा के लिये
- आश्रय के लिये।
प्रश्न 2.
मछली के प्रचलन में मायोटोम पेशियों की क्या भूमिका है ?
उत्तर :
मछली के प्रचलन क्रिया में वर्टिब्रल कालम (vertebral column) के दोनों ओर पाई जाने वाली ‘ $V$ ‘ आकार की पेशियों के संकुचन तथा प्रसारण के फलस्वरूप शरीर में गति उत्पन्न होता है।
प्रश्न 3.
पक्षी में उपस्थित दो उड़नशील पेशी का नाम बताइए।
उत्तर :
(a) पेक्टोरैलिस मेजर
(b) पेक्टोरैलिस माइनर।
प्रश्न 4.
फ्लैजिलरी (Figaellary movement) गति कैसे होती है ?
उत्तर :
फ्लैजिला को सहायता से होने वाले प्रचलन को फ्लैजिलरी कहते है। जैसे-यूग्लिना का प्रचलन
प्रश्न 5.
साइनोवियल संधि क्या है।
उत्तर :
साइनोवियल संधि :- जब दो अस्थियाँ लिगामेंट द्वारा जुड़कर स्वतंत्र रूप से गति कराती हैं, तो इस प्रकार के अस्थि जोड़ को सचल संधि या साइनोवियल संधि कहते हैं।
प्रश्न 6.
मछली के प्रचलन में जोड़े पखने का क्या कार्य है ?
उत्तर :
पेक्टोरल (Pectoral) तथा पेल्विक (Pelvic) पखने युग्म पखने (Paired fins) होते हैं। पेक्टोरल पखने की सहायता से मछली जल की सतह पर आती है जबकि पेल्विक पखने द्वारा मछली जल की गहराई में प्रवेश करती है।
प्रश्न 7.
एब्डक्टर पेशी क्या है ?
उत्तर :
इन पेशियों में संकुचन के फलस्वरूप कोई अंग शरीर के मध्यवर्ती रेखा से दूर हटता है। जैसे- डेल्टायड पेशी हाथ को मध्य रेखा से दूर हटाने में सहायता करता है।
प्रश्न 8.
अल्प चल संधि क्या है ?
उत्तर :
अल्प चल संधि में दो अस्थियाँ कार्टिलेज द्वारा जुड़ी रहती है, फलस्वरूप इसमें अल्प गति पायी जाती है। जैसेमेरुदण्ड से जुड़ी अस्थियाँ।
प्रश्न 9.
सिनोवियल झिल्ली क्या है ?
उत्तर :
अस्थि संधि के ऊपर पायी जाने वाली पतली झिल्ली सिनोवियल झिल्ली(Synovial membrane) कहलाती है।
प्रश्न 10.
संधि (Joints) क्या है ?
उत्तर :
कंकाल तंत्र में दो या दो से अधिक अस्थियों के संयोग स्थल को संधि या जोड़ कहते हैं।
प्रश्न 11.
सिनोवियल द्रव क्या है ?
उत्तर :
सिनोवियल गुहा में एक प्रकार का द्रव भरा रहता है जिसे सिनोवियल द्रव (Synovial fluid) कहते हैं। यह घर्षण से अस्थियों की रक्षा करता है।
प्रश्न 12.
विसर्पण (gliding) किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जब पक्षियों के उड़ान में गति आ जाती है। तब वे कुछ देर के लिए पंख बिना हिलाये उड़ते रहते हैं। पंख बिना हिलाये उड़ने की क्रिया को विसर्पण कहते हैं।
प्रश्न 13.
सिलियरी बॉडी क्या है ?
उत्तर :
रंजित पटल (के सामने का पेशीयुक्त भाग जो लेंस के ससेंसरी लिंगामेंट से जुड़ा रहता है, उसे सिलियरी बॉडी कहते हैं।
प्रश्न 14.
मछली के पखनों को हटा देने पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
यह जल में स्थान परिवर्तन की क्रिया नहीं कर पायेगी।
प्रश्न 15.
कंकाल पेशी क्या है ?
उत्तर :
कंकाल पेशी : शरीर की वह पेशी जो कंकाल के हड्डियों के साथ जुड़ी रहती है, उसे कंकाल कहते हैं।
प्रश्न 16.
कीलदार संधि (पिवोट ज्वाइन्ट) किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कीलदार संधि : ऐसी संधि जिसमें एक हड्ड़ी कील का काम करती है और दूसरी इसी पर घुमती है।
प्रश्न 17.
पल्विनस क्या है ?
उत्तर :
लाजवंती, छुईमुई आदि पौधों में पत्ती के नीचे उपस्थित वृंत थोड़ा-सा फूला हुआ होता है, जिसे पल्विनस कहते हैं।
प्रश्न 18.
उपास्थि क्या है ?
उत्तर :
उपास्थि : उपास्थि हड्डी तथा पेशी के बीच की रचना है। यह लचीली तथा संयोजी उत्तक की बनी होती है।
प्रश्न 19.
फिसलने वाली संधि (ग्लाइडिंग) किसे कहते हैं ?
उत्तर :
फिसलने वाली संधि : जिस संधि में एक हड्डु दूसरी हड्दी पर फिसल जाती है, उसे फिसलनेवाली संधि कहते हैं।
प्रश्न 20.
साइनोवियल गुहा क्या है ?
उत्तर :
साइनोवियल गुहा : साइनोवियल कलाओं के बीच एक गुहा पायी जाती है, जिसे साइनोवियल गुहा कहते हैं।
प्रश्न 21.
ऐच्छिक पेशी क्या है ?
उत्तर :
ऐच्छिक पेशी : वह पेशी जो जन्तु के इच्छा के अनुरूप कार्य करती है, उसे ऐच्छिक पेशी कहते हैं। जैसेजीभ को की पेशी।
प्रश्न 22.
अनैच्छिक पेशी क्या है ?
उत्तर :
अनैच्छिक पेशी : वह पेशी जो जन्तु के इच्छा के अनुरूप कार्य नहीं करती है, उसे अनैच्छिक पेशी कहते हैं। जैसे : गर्भाशय की पेशी।
प्रश्न 23.
पक्षी में उपस्थित दो उड़नशील पेशी का नाम बताइए।
उत्तर :
(a) पेक्टोरैलिस मेजर
(b) पेक्टोरैलिस माइनर।
प्रश्न 24.
फ्लैजिलरी (Flagellary movement) गति कैसे होती है ?
उत्तर :
फ्लैजिला यूग्लिना का प्रचलन अंग है। फ्लैजिला एक बड़ा और एक छोटा होता है। इसको ऊपर नीचे करके यूग्लिना अपना स्थान बदलता है।
प्रश्न 25.
साइनोवियल संधि क्या है।
उत्तर :
साइनोवियल संधि :- जब दो अस्थियाँ लिगामेंट द्वारा जुड़कर स्वतंत्र रूप से गति कराती हैं, तो इस प्रकार के अस्थि जोड़ को सचल संधि या साइनोवियल संधि कहते हैं।
संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 3 MARKS
प्रश्न 1.
सुप्रवाही शरीर किसे कहते हैं ? पंखों के कार्यों को लिखो।
उत्तर :
अग्र भाग नुकीला और पीछे की तरफ क्रमशः चौड़े शरीर को सुपवाही कहते हैं। पंखों के कार्य :
- पक्षी के उड़ने में उसके पंख सहायक होते हैं।
- पंखों से पक्षी का शरीर हल्का रहता है।
- पंख शरीर के तापमान को भी स्थिर बनाये रखने में सहायक होते हैं।
प्रश्न 2.
पक्षियों के डैने (wings) किस अंग का रूपान्तरण हैं ?उड़न पेशयों के नाम लिखिए।
उत्तर :
पक्षियों के डैने अग्रबाहु का रूपान्तरित रूप है।
पक्षियों में पेक्टोरेलिस मेजर, पेक्टोरेलिस माइनर, कोराको बांकयलिस आदि वक्ष पेशियाँ उपस्थित रहती हैं जो उड़ते समय डैनों को उपर नीचे करने में सहायता करती हैं।
- पेक्टोरैलिस मेजर : इनके संकुचन से विंग्स Wings नीचे की ओर गति करता है जिससे पक्षी ऊपर की ओर उड़ता है।
- पेक्टौरैलिस मइनर : इनके संकुचन से विंग्स ऊपर की ओर गति करता है जिससे यह ऊपर से नीचे की ओर उतरता है।
- कोरेको ब्रेकिएल्स : यह भी संकुचित होकर विंग्स को नीचे करने में सहायता करता है।।
प्रश्न 3.
प्रचलन के समय फ्लेक्सर तथा इक्सटेन्सर पेशियाँ क्या कार्य करती हैं ?
उत्तर :
फ्लेक्सर प्रेशियाँ : इन पेशियाँ में संकुचन से किसी अंग में खिंचावट या झुकाव उत्पन्न होता है अर्थात् दो हड्डियाँ एक दूसरे के निकट आने लगती है।
इक्सटेन्सर पेशियाँ : इन पेशियाँ में संकुचन से किसी अंग में फैलाव उत्पन्न होता है, अर्थात् दो हड्डियाँ एक दूसरे से दूर जाने लगती है।
प्रश्न 4.
विभिन्न जीवों में भित्र-भिन्न प्रचलन अंग क्यों होते हैं ?
उत्तर :
विभिन्न प्रकार के जीव विभिन्न वातावरण में निवास करते हैं। अतः वातावरण के प्रभाव से जन्तुओं की शारीरिक रचना अलग-अलग होती है। इसलिए इनके प्रचलन अंग भी अलग अलग होते हैं।
प्रश्न 5.
मछली का शरीर नौकाकार क्यों होता है ?
उत्तर :
जलीय प्राणियों का शारीरिक गठन जलीय वातावरण के अनुकूल होता है। मछालयों का शरीर नौकाकार होता है ताकि जल में तैरते समय इनके शरीर पर जल का अवरोध कम से कम पडे तथा मछलियाँ आसानी से जल की सतह पर तैर सकें तथा जल की गहराई में नीचे की ओर जा सके।
प्रश्न 6.
जन्तु एक स्थान से दूसरे स्थान को गमन क्यों करते हैं ?
उत्तर :
जन्तु अपनी जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान को गमन करते हैं, जैसे-भोजन की खोज में प्राणी एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रचलित होते हैं, शत्तु से अपनी रक्षा के लिए प्राणी स्थान परिवर्तन करते हैं, सुरक्षित निवास की खोज के लिये भी प्राणि गमन करते हैं, तथा प्राणियों में संचलन वंशवृद्धि के लिए भी होता है।
दीर्घउत्तरीय प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 5 MARKS
प्रश्न 1.
जीवधारियों में प्रचलन का उदेश्य क्या है ? संक्षेप में अमीबीय प्रचलन एवं सिलियरी प्रचलन का उल्लेख कीजिए। 2 + 3
उत्तर :
जीवधारियों में प्रचलन का उदेश्य :
- भोजन प्राप्ति के लिये
- प्रजनन के लिये
- खादक से स्वंय की सुरक्षा के लिये
- आश्रय के लिये।
अमीबीय गति (Amoeboid locomotion) : एक कोशिकीय जीवों में इस प्रकार की गति होती है। अमीबा सुडोपोडिया (Pseudopodia) या कूटपाद से बनता है। कूटपाद बनने और उसमें जीव द्रव्य के बहने से कोशिका के आकार में परिवर्तन होता है और अमीबा सतह पर प्रचन करता रहता है। इस प्रकार की गति दूसरे जीवधारियों की कुछ कोशिकाएं जैसे मानव रक्त की श्वेत रक्त कणिका या ल्यूकोसाइट में पायी जाती है।
पक्ष्माभि गति (Ciliary locomotion) : इस प्रकार की गति पैरामिशयम (Paramecium) जैसे जन्तु में होती है। पैरामिशियम का शरीर छोटे-छोटे बालनुमा रचनाओं द्वारा ढँका होता है जो सिलिया कहलाते हैं। सिलिया की सहायता से पैरामिशियम जल में एक स्थान से दूसरे स्थान तक गति करता है।
साधारणत: सिलिया आगे की दिशा में गति करता है मगर प्रतिकूल दशा में यह अपने गति की दिशा बदलने की क्षमता रखता है।
प्रश्न 2.
यूग्लिना में फ्लेजेला द्वारा होने वाले गति से क्या समझते हैं ? अमीबीय प्रचलन एवं यूगिलना प्रचलन में अन्तर लिखें।
उत्तर :
यूग्लिना के शरीर से एक लम्बी चाबुकनुमा रचना जुड़ी होती है जिस फ्लेजेलम कहते हैं। यह रचना पानी में यूग्लिना के शरीर को धक्का देने के लिए मुड़ती और घूमती रहती है जिससे यूग्लिना आसानी से पानी में एक स्थान तक प्रचलन करता रहता है।
अमीबीय प्रचलन | यूगिलना प्रचलन |
i. यह अमीबा के प्रचलन की विधि है। | i. यह यूग्लिना के प्रचलन की विधि है। |
ii. यह सूडोपोडिया के द्वारा होता है। | ii. यह फ्लेजिला के द्वारा होता है। |
iii. सूडोपोडिया का निर्माण केवल प्रचलन के समय में हो होता है। | iii. यह इसके जन्म के साथ ही उत्पन्न होता है। |
प्रश्न 3.
मछली में प्रचलन की क्रिया का संक्षेप में वर्णन करो।
अथवा
मछली किस प्रकार से प्रचलन करती है ?
अथवा
मछली के प्रचलन में मायोटीम पेशियों की क्या भूमिका है ?’
उत्तर :
मछली में प्रचलन : मछलियों का प्रचलन अंग पखना है परन्तु पखना के साथ-साथ जुड़ी हुई पेशियाँ भी मछलियों के प्रचलन में सहायक है। अत: मछलियों में प्रचलन पेशियों तथा पखनों द्वारा सम्पन्न होता है।
पेशियों का कार्य : प्रचलन क्रिया में ‘V’ आकार वाली मोयोटोम पेशियों के संकुचन तथा प्रसारण के फलस्वरूप मछलियों के शरीर में गति उत्पन्न होता है। मायोटोम पेशियाँ Vertebra के दोनों वक्ष से पूँछ तक क्रमबद्ध रूप से सजी रहती है। ये पेशियाँ मछलियों के शरीर के एक ओर संकुचित होती है तथा दूसरी तरफ इसमें प्रसारण होता है। जब बायें पक्ष की मायोटोम पेशियों में संकुचन होता है तो दाहिने तरफ की मायोटोम पेशियों में प्रसारण होता है। फलस्वरूप मछली का शरीर बाँयी तरफ झुक जाता है। इसके पध्वात् यही क्रिया ठीक विपरीत दिशा में होती है। फलस्वरूप मछलियों का शरीर दाहिनी तरफ झुकने लगता है। इस झुकाव से मछली के पूँछ पर एक प्रकार का प्रतिक्रियात्मक बल कार्य करता है जो मछली को आगे की ओर बढ़ने में सहायता करता है।
पखना (Fins) का कार्य : मछलियों में कुल सात पखने होते हैं, जिनमें दो युग्म (Paired) तथा तीन एकल (Single) होते हैं। युग्म पखने में एक जोड़ी पेक्टोरल पखने तथा एक जोड़ी पेल्विक पखने होती हैं। पेल्विक पखने द्वारा मछली जल की गहराई में प्रवेश करती है। पेक्टोरल पखने की सहायता से जल के सहह पर आती है। पूँछ पखने तैरते समय दिशा परिवर्तन का कार्य करती है जिसे मछलियों का पतवार (Propeller) कहते हैं।
हाइड्रोस्टेटिक अंग या स्वीम ब्लैडर : मछलियों के उदर गुहा में एक वायु से भरी थैली पायी जाती है। यह थैली मछलियों को विभिन्न गहराई में तैरने या उतरने में सहायता करती है, अतः इसे हाइड्रोस्टेटिक अंग कहते हैं।
प्रश्न 4.
सचल संधि या साइनोवियल जोड़ (Synovial joint) कितने प्रकार के होते हैं ? परिभाषा तथा उदाहरण सहित बताओ।
अथवा
साइनोवियल संधि से आप क्या समझते हैं? हिन्ज जोड़ एवं बॉल तथा सॉकेट जोड़ का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
अथवा
मनष्य के प्रचलन में सहायक चल संधियों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
साइनोवियल जोड़ निम्न चार प्रकार के होते हैं –
हिंज जोड़ (Hinge joints) : इस प्रकार के जोड़ में अस्थियाँ हमेशा दरवाजे के किवाड़ की तरह एक ही दिशा की ओर मुड़ती है परन्तु विपरीत दिशा में कभी नहीं मुड़ती हैं। जैसे- केहुनी (Elbow), घुटना (Knee) आदि के जोड़।
बाल तथा सॉकेट जोड़ (Ball and socket joints) : इस प्रकार के जोड़ में एक अस्थि के सिरे पर स्थित Ball अन्य अस्थि के साकेट में फिट रहता है। इस जोड़ में बाल सिरे वाली अस्थि स्वतंत्रतापूर्वक साकेट के अन्दर चारों दिशाओं में घूम सकती है। जैसे- स्केपुला के अन्दर Humerus का बाल फिट रहता है।
कोणिक जोड़ (Angular या Condyloid joints) : इस प्रकार के जोड़ में एक अस्थि का अवतल भाग अन्य अस्थि के ऊत्तल भाग से जुड़ा रहता है। जैसे- Radius तथा Carpel का जोड़, Metacarpel तथा Phalanges का जोड़ आदि।
पिभोट जोड़ (Pivot joints) : इस प्रकार के जोड़ में एक अस्थि एक गोलाकार या वृत्ताकार अस्थि के ऊपर इस प्रकार जुड़ी रहती है कि एक अस्थि परस्पर चारों दिशाओं में घूम सकती है। जैसे- Vertebra का अक्ष तथा खोपड़ा।
प्रश्न 5.
अस्थि जोड़ क्या है ? मानव शरीर में विभिन्न प्रकार के जोड़ का वर्णन करो।
उत्तर :
अस्थि जोड़ (Bone joints) : दो या दो से अधिक अस्थियों के मिलाप के स्थान को अस्थि जोड़ कहते हैं। अस्थि जोड़ में निम्नलिखित पदार्थ उपस्थित रहते हैं।
(a) लिगामेंट : यह तन्तुमय संयोजी ऊत्तक है जो अस्थियों को बाँधकर रखने में सहायक है।
(b) कार्टिलेज : यह मुलायम संयोजी ऊत्तक है जो दो अस्थियों को जोड़ने का कार्य करता है।
(c) सिनोवियल झिल्ली : अस्थि जोड़ के ऊपर एक पर्दा उपस्थित रहता है जिसे Synovial memberane कहते हैं।
(d) सिनोवियल द्रव : अस्थि जोड़ के गर्त (Cavity) में एक प्रकार का द्रव उपस्थित रहता है जिसे Synovial fluid कहते हैं। यह प्रचलन के समय अस्थियों को घर्षण से रक्षा करता है।
मनुष्य में निम्न प्रकार के अस्थि जोड़ पाये जाते हैं-
- अचल संधि (Immovable joint) : इस प्रकार के जोड़ में दो अस्थियाँ एक दूसरे के साथ मिलकर एक अस्थि के समान खड़ी हो जाती है जिससे उनमें अलग-अलग गति संभव नहीं हो पाती है। जैसे- खोपड़ी(Skull) के जोड़।
- अल्प सचल संधि (Slightly movable joints) : इस प्रकार के जोड़ में दो अस्थियाँ कार्टिलेज द्वारा जुड़ी रहती हैं, फलस्वरूप इसमें अल्प गति पायी जाती है। जैसे- मेरुदण्ड से जुड़ी अस्थियाँ।
- सचल संधि (Movable joints) : इस प्रकार के जोड़ में दो अस्थियाँ लिगामेन्द द्वारा जुड़ी रहती हैं तथा दोनों अस्थियाँ स्वतंत्र रूप से गति करती है।
प्रश्न 6.
मनुष्य में विभिन्न प्रकार के पेशियों का वर्णन करो। इन पेशियों के कार्य बताओ। अथवा, फ्लेक्सर, एक्टेन्सर एवं एब्डक्टर पेशी के कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर :
पेशियाँ (Muscles) : पेशियाँ एक प्रकार की ऊत्तक है जो पेशी तन्तुओं या कोशिकाओं द्वारा निर्मित होती है। पेशियों के प्रकार : कार्य तथा बनावट के अनुसार पेशियाँ निम्न प्रकार की होती हैं-
(i) ऐच्छिक पेशियाँ (Voluntary muscles)
(ii) अनैच्छिक पेशियाँ (Involuntary muscies)
(iii) कार्डियक पेशियाँ (Cardiac or heart muscles)
(i) ऐच्छिक पेशियाँ (Voluntary muscles) : वे पेशियाँ जिन्हें इच्छानुसार संचालित अर्थात् संकुचित तथा प्रसारण किया जा सकता है। इन पेशियों पर सफेद तथा काले रंग का दाग रहता है। अतः इन्हें रेखित पेशियाँ (Striped muscles) भी कहा जाता है। ये पेशियाँ अस्थियों से जुड़ी रहती हैं। अत: Skeletal muscle भी कहते हैं।
(ii) अनैच्छिक पेशियाँ (Involuntary muscles): वे पेशियाँ जिन्हें इच्छानुसार संचालित नहीं किया जा सकता है तथा इन पर सफेद या काला चिन्ह नहीं पाया जाता है। अत: इन्हें अरेखित पेशियाँ (Unstriped muscle) भी कहा जाता है। जैसे- आहारनाल, मूत्राशय आदि की पेशियाँ।
(iii) कार्डियक पेशियाँ (Cardiac or heart muscles) : हृदय में उपस्थित पेशियों को कार्डियक पेशियाँ कहते हैं।
Skeletol से संबंधित पेशियाँ अस्थियों के दोनों किनारों पर टेंडन (Tendon) द्वारा जुड़ी रहती है। जब ये पेशियाँ संकुचित होती हैं तो अस्थियों के दोनों किनारों के बीच की दूरी घट जाती है जिससे प्रचलन में सहायता मिलती है। ये पेशियाँ निम्न प्रकार की होती हैं-
(a) फ्लेक्सर पेशियाँ (Flexor muscles) : इन पेशियों के संकुचन से किसी भाग में खिंचावट या झुकाव उत्पन्न होता है अर्थात् दो अस्थियाँ एक दूसरे के निकट आने लगती हैं। जैसे- अग्र बाहु की biceps muscles।
(b) इक्सटेन्सर पेशियाँ (Extensor muscles): इन पेशियों के संकुचन से किसी अंग में फैलाव उत्पन्न होता है अर्थात दो अस्थियाँ एक दूसरे से दूर होने लगती है। जैसे- अग्रबाहु के पश्च भाग में क्रित Triceps पेशियाँ।
(c) एडुक्टर पेशियाँ (Adductor muscies) : इन पेशियों के संकुचन से कोई अंग शरीर के मध्यवर्ती रेखा के समीप आने लगता है। जैसे- लेटीसिमस डोर्सी हाथ को शरीर के मध्य की ओर लाने में सहायता करता है।
(d) एब्डक्टर पेशियाँ (Abductor muscles) : इन पेशियों के संकुचन से कोई अंग शरीर के मध्यवर्ती रेखा से दूर हटता है। जैसे- डेल्टायड पेशी हाथ को मध्य रेखा से दूर हटाने में सहायता करता है।
प्रश्न 7.
द्विपाद गति क्या है ? मनुष्य में द्विपाद गति का वर्णन करो। अथवा, मानव में प्रचलन विधि का विवरण दो।
अथवा
मनुष्य के प्रचलन प्रक्रिया का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर :
द्विपाद गति (Bipedal locomotion) : दो पैरों पर शरीर के सम्पूर्ण भार को सम्भालते हुए स्थानान्तरण की क्रिया को द्विपाद प्रचलन कहते हैं। इस प्रकार की सक्रिय प्रचलन मनुष्य में होती है।
मनुष्य में बाईपेडल गति : मनुष्य में द्विपाद प्रचलन निम्न प्रकार से होता है –
(i) शरीर का सामने की ओर झुकना : प्रचलन के आरम्भ में कुल्हा, जाँघ तथा अगल-बगल की पेशियों को सिथिल रखने के उद्देश्य से शरीर का ऊपरी अर्द्ध भाग सामने की ओर झुक जाता है।
(ii) एड़ी का उठना : अब बायें पैर की ऐड़ी जमीन से ऊपर उठ जाती है जिससे शरीर के बाँये तरफ का भार केवल पैर की अंगुलियों के ऊपर ही केन्द्रित हो जाता है।
(iii) पैर का ऊपर उठना तथा घुटने का मुड़ना : जाँघ की संधि मुड़कर बायें पैर को ऊपर उठाकर पीछे की ओर झुका देती है।
(iv) शरीर के सम्पूर्ण भार का दायें पैर पर केन्द्रीकरण : बायें पैर के उठने के साथ-साथ शरीर का सम्पूर्ण भार दायें पैर पर आ जाता है। दायें कुल्हे की कुछ पेशियाँ संकुचित होकर इस भार को नियंत्रित करती है।
(v) एड़ी-संधि का मुड़ना : अब बायें पैर की एड़ी-संधि मुड़कर पैर की तरफ कर देती है।
(vi) बायें पैर का आगे बढ़ना : बायें पैर की पेशियाँ संकुचित होकर कुल्ह को फैला देती है और पाँव सामने की तरफ बढ़ जाता है।
(vii) बायें पैर का पुन: जमीन पर स्थिर होना : अब बायें पैर की एड़ी जमीन पर पड़ती है, साथ-साथ तलवा भी जमीन से स्पर्श करता है और पैर सीधा हो जाता है।
(viii) दायें पैर का आगे बढ़ना : बायें पैर पर शरीर का आधा भाग स्थिर होता है और दायाँ पैर आगे बढ़ने की स्थिति में आ जाता है। पहले एड़ी ऊपर उठती है, इसके बाद घुटना मुड़कर पूरे पाँव को जमीन से ऊपर उठा लेती है। अब दायाँ पैर आगे बढ़कर पुन: अपनी एड़ी और अंगुलियों द्वारा जमीन पर स्थिर हो जाता है।
इस प्रकार बायाँ तथा दायाँ पैर क्रमबद्ध रूप से जमीन से उठकर सामने की ओर बढ़ता है और शरीर का आधा भार क्रमशः इन पैरों द्वारा नियंत्रित होता रहता है। फलस्वरूप मनुष्य धीरे -धीरे या तेजी से आगे बढ़ता जाता है। दोनों भुजायें क्रमश: आगे पीछे होकर शरीर के भार के नियंत्रण में सहायक होती है।
प्रश्न 8.
जल में प्रचलन का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर :
जल में प्रचलन क्रिया मुख्यत: निम्न प्रकार से होती है-
(क) तैरना (Swimming) : विभिन्न प्रकार के जलीय जन्तु तैरकर स्थान परिवर्तन करते हैं। इस कार्य के लिए शरीर में कुछ विशेष अंग पाये जाते हैं। स्थलीय जन्तु भी कभी-कभी जल के अन्दर तैरते हैं।
मछलियों में तैरने की क्रिया के लिए विशेष उपयोजन पाया जाता है। पूँछ पेशियाँ तथा पखने इस कार्य में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। इनके शरीर की बनावट नाव के आकार की होती है ताकि तैरते समय जल का प्रतिरोध कम से कम पड़े।
मेढ़क, टोड तथा अन्य उभयचर और कुछ पक्षियाँ जैसे बत्तख इत्यादि में भी जल में तैरने के उपयोजन होते हैं। इसमें शरीर का धारा रेखित होना तथा पैरों की अँगुलियों का जाल युक्त होना मुख्य है। अन्य जन्तु जैसे- मगर, कच्छप, डोलफिन, क्हेल, मनुष्य आदि में भी यह क्रिया मिलती है।
(ख) उतराना (Floating) : अनेक जलीय जन्तु जल की सतह पर उतराते हुए धारा के साथ स्थान परिवर्तन करते हैं। हाइड्रा में यह क्रिया स्पष्ट रूप से देखी जाती है। टोड, मेढ़क आदि भी पानी की सतह पर अपने थूथन को बाहर निकालते हुए उतराते रहते हैं।
(ग) गोता लगाना (Diving) : कुछ ऐसे भी जलीय जन्तु है जो तैरते समय पानी में तीव्र गति से गोता लगाते रहते हैं, जैसे- गुरबैला (Water beetle)।
(घ) पक्ष्मी गति (Ciliary movement) : कुछ एक कोशिकीय जलीय जन्तु की सतह पर अत्यन्त सूक्ष्म रचनायें मिलती हैं जिन्हें पक्ष्म (Cilia) कहते हैं। ये पक्ष्म गतिशील होकर जन्तु को जल के अन्दर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। जैसे- पारामिसियम आदि में।
(ङ) फ्लैजरी गति (Flagellary movement) : कुछ अन्य एक कोशिकीय जलीय जन्तुओं में अपेक्षाकृत लम्बी सूत्रवत संरचनायें मिलती हैं जिन्हें Flagella कहते हैं। फ्लैजिला विशेष प्रकार से गतिशील होकर जन्तु में स्थान परिवर्तन करते हैं। जैसे- साँप, ट्रिपैनोसोमा इत्यादि में।
प्रश्न 9.
स्थल में प्रचलन का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर :
स्थल में प्रचलन निम्न प्रकार से होती है –
(क) रेंगना (Creeping or Crawling) : कुछ स्थलीय जन्तु अपने सूक्ष्म पादों अथवा प्रतिपृष्ठ सतह पर उत्पन्न तरंगों द्वारा रेंग का स्थान परिवर्तन करते हैं।
उदाहरण : साँप, छिपकली, मगर, कच्छप इत्यादि में।
(ख) चलना (Walking) : कुछ जन्तु अपने पैरों को बारी-बारी से आगे बढ़ाकर स्थान परिवर्तन करते हैं। इस प्रकार का प्रचलन चौपाया में देखी जाती है। गाय, मनुष्य, बिल्ली इत्यादि में चलना एक सामान्य क्रिया है।
(ग) दौड़ना (Running) : प्राय: सभी चलने वाले जन्तु दौड़ते भी हैं। दौड़ते समय जन्तुओं की एड़ी ऊपर उठ जाती है और वे पंजे को जमीन पर रखते हुए तीव्र गति से आगे बढ़ते जाते हैं। इस प्रकार पंजे व अँगुलियाँ विशेष योगदान देती हैं। घोड़ा जैसे तेज व धावक में पंजे खुर में रूपान्तरित होते हैं।
(घ) आरोहण (Climbing) : वृक्षों पर रहने वाले जन्तुओं में इस प्रकार का प्रचलन मिलता है। इन जन्तुओं के अग्र तथा पश्च पाद विशेष रूप से उपयोजित होकर ग्रैस्पिंग अंग का कार्य करते हैं। किसी-किसी में पूँछ भी यह कार्य करती है। इस प्रकार ये आसानी से पेड़ों पर इधर-उधर स्थानान्तरित होते रहते हैं। जैसे- लंगूर, बन्दर, चिम्पैनजी आदि।
(ङ) संकुचन व विमोचन (Contraction and expansion) : कुछ जन्तुओं में शारीरिक पेशियाँ व सिटी नामक संरचनाएँ प्रचलन में भाग लेती है। केंचुआ में इस प्रकार की गति विशेष उल्लेखनीय है।
(च) कलाबाजी करना (Sumer Saulting) : इस प्रकार के प्रचलन में जन्तु गति की दिशा में बारी-बारी से कभी अपने बेसल डेस्क व कभी टेन्टिकल के सहारे खड़ा होकर उलटता हुआ आगे बढ़ता है। जैसे- हाइड्रा में।
(छ) फिसलना (Gliding) : इस प्रकार के प्रचलन में जन्तु किसी सतह पर अपने आधार भाग से स्यूडोपोडिया व एक प्रकार के चिकने द्रव को स्रावित करके फिसलता हुआ आगे बढ़ता है। जैसे- हाइड्रा में।
(ज) अमिबीय गति (Amaeboid movement) : अमीबा जैसे सूक्ष्म जन्तु में इस प्रकार का प्रचलन होता है। इसके लिए इनके शारीरिक सतह पर अनेक अस्थाई संरचनायें उभरती रहती हैं, इन्हें कूटपाद(Pseudopodia) कहते हैं।