WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 8 उत्तर-औपनिवेशिक भारत बीसवीं शताब्दी का द्वितीयार्द्ध

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WBBSE Class 10 History Chapter 8 Question Answer – उत्तर-औपनिवेशिक भारत बीसवीं शताब्दी का द्वितीयार्द्ध

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK

प्रश्न 1.
ऊषा महतो किस आन्दोलन से जुड़ी थी ?
उत्तर :
1942 ई० के भारत छोड़ो आन्दोलन या अगस्त आन्दोलन से।

प्रश्न 2.
पत्ती (पोट्टी) श्रीरामुलु कौन थे ?
उत्तर :
ये भाषायी आन्दोलन के नेता थे। इन्हें आत्र्ध प्रदेश का निर्माता कहा जाता है।

प्रश्न 3.
स्वतन्त्र भारत का प्रथम और अन्तिम गर्वनर जनरल कौन था ?
उत्तर :
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी।

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प्रश्न 4.
देशी रजवाड़ों को भारतीय संघ में शामिल होने के लिए किस दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने पड़ते थे?
उत्तर :
इंस्टूमेण्ट आँफ एक्सेसन और स्टैड स्टिल एग्रीमेण्ट पर अथवा (विलय पत्र एवं अंगीकर पत्र पर)।

प्रश्न 5.
जे० एन० चौधरी कौन थे ?
उत्तर :
हैदराबाद रियासत के विरूद्ध सैन्य कार्यवाही करने वाले टुकड़ी के नेता तथा भारतीय सेना के मेजर जनरल थे।

प्रश्न 6.
रजाकार कौन थे ?
उत्तर :
हैदराबाद के दीवान कासिम रिजवी की सम्पदायिक सेना थी।

प्रश्न 7.
हैदराबाद के प्रधान शासक को क्या कहा ज़ाता था ?
उत्तर :
निजाम।

प्रश्न 8.
‘लज्जा’ किसकी रचना है।
उत्तर :
‘लज्जा’ बंगलादेश की चर्चित लेखिका तसलीमा नसरीन की रचना है।

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प्रश्न 9.
रजाकार किसकी आतंकवादी सैन्यवाहिनी थी ?
उत्तर :
हैदराबाद के निजाम के दीवान कासिम रिजवी।

प्रश्न 10.
भारत एवं पाकिस्तान के बँटवारा ने किस समस्या को जन्म दिया ?
उत्तर :
कश्मीर एवं शरणार्थी समस्या।

प्रश्न 11.
पाकिस्तान की माँग कब की गयी थी ?
उत्तर :
सन् 1940 के लाहौर अधिवेशन में।

प्रश्न 12.
मुस्लिम लीग की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर :
सन् 1906 में।

प्रश्न 13.
‘तसलीमा नसरीन’ कौन हैं ?
उत्तर :
यह एक बंगलादेशी लेखिका हैं।

प्रश्न 14.
राज्य पुनर्गठन आयोग के अध्यक्ष कौन थे ?
उत्तर :
न्यायमूर्ति फजल अली।

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प्रश्न 15.
वी० पी० मेनन कौन थे ?
उत्तर :
रियासत संबंधी राज्य मंत्रालय के सचिव थे।

प्रश्न 16.
नेहरू-लियाकत समझौता कब और क्यों हुआ था ?
उत्तर :
8 अप्रैल, सन् 1950 को भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के बीच अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को सुलझाने के लिए यह समझौता हुआ था।

प्रश्न 17.
भारत गणतंत्र/धर्म निरपेक्ष कब बना ?
उत्तर :
26 जनवरी, 1950 ई० को।

प्रश्न 18.
‘बंगलादेश’ का गठन कब हुआ था ?
उत्तर :
बंगलादेश का गठन 1971 ई० में हुआ था। पूर्वी पाकिस्तान स्वतंत्र होकर बंगलादेश बना था।

प्रश्न 19.
महाराजा पटियाला कौन थे ?
उत्तर :
राजाओं के परिषद (Chamber of Princes) के चांसलर (मधानमंत्री) थे।

प्रश्न 20.
अन्तरिम सरकार में प्रतिरक्षा मंत्री कौन थे ?
उत्तर :
सरदार बलदेव सिंह।

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प्रश्न 21.
बरामदे के युद्ध के वास्तविक हीरो कौन थे ?
उत्तर :
बरामदे के युद्ध के वास्तविक हीरो थे – विनय बसु; दिनेश गुप्ता और बादल गुप्ता।

प्रश्न 22.
स्वतंत्रता के समय ब्रिटिश भारत का गवर्नर जनरल कौन था ?
उत्तर :
लाई माउण्टबेटन।

प्रश्न 23.
शेख अब्दुल्ला कौन थे ?
उत्तर :
शेख अब्दुल्ला कश्मीर के नेशनल कांफ्रेंस पार्टी के अध्यक्ष थे।

प्रश्न 24.
हैदराबाद में किसके नेतृत्व में सैनिक कार्यवाही की गई थी ?
उत्तर :
मेजर जनरल जे० एन० चौधरी के नेतृत्व में।

प्रश्न 25.
‘राष्ट्रभाषा आयोग’ का गठन कब हुआ था ?
उत्तर :
1950 ई० में।

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प्रश्न 26.
विभाजन के समय फ्रांस के पास कितने उपनिवेश थे ?
उत्तर :
तीन उपनिवेश- पांडिचेरी, चन्दननगर, माही।

प्रश्न 27.
पुर्तगाल के उपनिवेशों के नाम बताओ।
उत्तर :
गोवा, दमन और दीव।

प्रश्न 28.
जूनागढ़ को भारत संघ में कब मिलाया गया ?
उत्तर :
फरवरी, 1948 ई० में।

प्रश्न 29.
मराठी आन्दोलन कब आरम्भ हुआ था ?
उत्तर :
सन् 1960 में।

प्रश्न 30.
भारतीय भाषाओं को कितने भाषायी परिवार में बाँटा गया है ?
उत्तर :
दो भाषायी परिवार – (1) आर्य परिवार एवं (2) द्रविड़ परिवार।

प्रश्न 31.
भारत के प्रथम राष्ट्रपति कौन थे ?
उत्तर :
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद थे।

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प्रश्न 32.
नागालैण्ड का निर्माण कब किया गया ?
अथवा
नागालैण्ड का भारतीय संघ में विलय कब हुआ ?
उत्तर :
1963 ई० में।

प्रश्न 33.
सिंधी भाषा को कब आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया ?
उत्तर :
1967 ई० में।

प्रश्न 34.
तसलीमा नसरीन द्वारा लिखित दो पुस्तकों के नाम बताएँ जिसमें विभाजन की त्रासदी का वर्णन है।
उत्तर :
तसलीमा नसरीन बंगलादेश की प्रमुख लेखिका हैं। इनकी दो पुस्तके ‘लज्जा’ एवं ‘द्विखण्डिता’ है।

प्रश्न 35.
‘अन्तरिम सरकार’ का गठन कब हुआ था ?
उत्तर :
5 जुलाई, 1947 ई० को।

प्रश्न 36.
मेहरचन्द महाजन कौन थे ?
उत्तर :
कश्मीर के मुख्यमंत्री।

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प्रश्न 37.
कश्मीर के राजा हरि सिंह ने भारत सरकार से सैनिक सहायता की माँग कब की ?
उत्तर :
24 अक्टूबर 1947 ई० को।

प्रश्न 38.
भारत-पाकिस्तान युद्ध-विराम कब हुआ था ?
उत्तर :
1 जनवरी 1948 ई० को।

प्रश्न 39.
‘द अनफिनिश्ड मेमोएर्स’ के लेखक कौन हैं ?
उत्तर :
शेख मुजीबुर रहमान।

प्रश्न 40.
वर्तमान में भारत का कितना वर्ग कि॰मी० जमीन पाकिस्तान के अधिकार में है ?
उत्तर :
84000 वर्ग कि०मी०।

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प्रश्न 41.
हैदाराबाद के निजाम ने भारत सरकार के साथ समझौते पर हस्ताक्षर कब किया ?
उत्तर :
नवम्बर 1949 ई० में।

प्रश्न 42.
वर्तमान में भारत में कितनी भाषाओं को सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है ?
उत्तर :
22 भाषाओं को।

प्रश्न 43.
भारत की आजादी के समय गृह मंत्री कौन थे ?
उत्तर :
सरदार वल्लभ भाई पटेल।

प्रश्न 44.
पं० जवाहर लाल नेहरू ने कबं पाकिस्तान के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र संघ में अपील दायर की ?
उत्तर :
1 जनवरी, ई० 1948 को।

प्रश्न 45.
भारतीय सेनाएँ कब हैदराबाद रियासत में प्रवेश हुई ?
उत्तर :
13 दिसम्बर, 1948 ई० को।

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प्रश्न 46.
भारत में पुनर्वास विभाग की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1951 ई० में।

प्रश्न 47.
जनमत संग्रह द्वारा किस देशी रियासत को भारतीय संघ में शामिल किया गया था ?
उत्तर :
जूनागढ़ को।

प्रश्न 48.
आपरेशन ‘पोलो’ किस देशी रियासत के सैन्य कार्यवाही से जुड़ा है ?
उत्तर :
हैदराबाद से।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS

प्रश्न 1.
डार कमीशन (1948 ई०) क्यों बनाया गया था ?
उत्तर :
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद अनेक राज्यों के लोगों ने भाषा के आधार पर नवीन राज्य के गठन की मांग करने लगे थे। उनकी मांग को ध्यान में रख कर 1948 में भारत सरकार ने ड़ार कमिशन का गठन किया था।

प्रश्न 2.
पत्ती श्रीरामालू कौन थे ?
उत्तर :
पत्ती श्रीरामलू तेलगू नेता थे। इन्होंने मद्रास राज्य के 13 तेलगू भाषी जिलों को लेकर अलग राज्य गठन के लिए आन्दोलन शुरू किया। 53 दिनों तक अनशन पर बैठे रहे। इसी दौरान उनकी मृत्यु हो गयी। फलस्वरूप उनके अनुयायी5 दिनों तक उत्पात मचाते रहे। अन्तत: 1952 में सरकार भाषा के आधार पर देश का पहला राज्य ‘आन्ध्रदेश’ बनाने की घोषणा की।

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प्रश्न 3.
‘भारत मुक्ति दलील’ (Instrument of Accession) का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
1947 ई० में जम्मू-कश्मीर देशी रियासत के शासक महाराजा हरि सिंह ने जिस वैधानिक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करके भारत संघ में शामिल हुए और भारत के प्रभुत्व को स्वीकार किया था, उसे ही ‘भारत मुक्ति दलील’ या ‘विलय पत्र (दस्तावेज)’ कहा जाता है।

प्रश्न 4.
किन परिस्थितियों में कश्मीर के शासक हरि सिंह भारत के अधीन संधि पर हस्ताक्षर किये थे ?
उत्तर :
कश्मीर के शासक व महाराजा हरि सिंह जम्मू एवं कश्मीर को एक स्वतन्त्र राष्ट्र बनाना चाहते थे। पाकिस्तान ने अचानक आक्रमण कर कश्मीर के एक बड़े भाग पर कब्जा कर लिया। ऐसी दशा में कश्मीर को मुक्त कराने के लिए भारत से सैनिक सहायता प्राप्त करने के लिए संधि पत्र पर हस्ताक्षर किये थे।

प्रश्न 5.
राज्य पुनर्गठन आयोग (1953 ई०) में क्यों गठित हुआ था ?
उत्तर :
स्वाधीनता प्राप्ती के साथ देश में भाषाओं के आधार पर राज्यों के निर्माण की माँग की जाने लगी। इसी माँग को ध्यान में रखते हुए, तथा राज्यों को पुनर्गठित करने के लिए 1953 ई० में गृह मन्त्रालय ने सैयद फजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठित-आयोग गठित किया था।

प्रश्न 6.
नेहरू-लियाकत समझौता (1950 ई०) क्यों हस्ताक्षरित हुआ ?
उत्तर :
भारत विभाजन से उत्पन्न शरणार्थी समस्या तथा अल्पसंख्यको की सुरक्षा के प्रश्न को सुलझाने के लिए 1950 ई० में भारत व पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू-लियाकत अली के बीच ‘नेहरू-लियाकत’ समझौता हस्ताक्षरित हुआ।

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प्रश्न 7.
शरणार्थी समस्या के इतिहास को बताने में स्मृति किस प्रकार स्रोत की भूमिका निभाती है ?
उत्तर :
शरणार्थी समस्या के इतिहास को बताने में स्मृति ग्रंथों तथा अन्य प्रंथों का प्राथमिक स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका है। इन ग्रंथों के माध्यम से हमें शरणार्थियों के दिन-प्रतिदिन की समस्या, रोजी-रोटी की समस्या, आवास की समस्या, इज्जत-आबरू बचाने की समस्या आदि की जानकारी प्राप्त होती है।

प्रश्न 8.
होलोकॉस्ट क्या है ?
उत्तर :
बँटवारा या महाध्वंस को होलोकॉस्ट कहा जाता है। बँटवारे के दौरान हुई चौतरफा हिंसा का पता चलता है। इस बँटवारे में कई लाख लोग मारे गए।

प्रश्न 9.
पेप्सु से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
पेप्सू (Patiyala and East Punjab States Union) भारत में 1948 ई० से लेकर 1956 ई० तक का आठ देशी रियासतों का समूह था। इसकी राजधानी पटियाला थी।

प्रश्न 10.
राज्य पुनर्गठन कमीशन के सदस्य कौन-कौन थे ?
उत्तर :
राज्य पुनर्गठन कमीशन के सदस्य थे – फजल अली, के एम. पाणिक्कर और हृदयनाथ कुँजरू।

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प्रश्न 11.
भाषा पर आधारित प्रदेशों का विभाजन क्यों हुआ ?
उत्तर :
भाषा पर आधारित प्रदेशों का विभाजन इसलिए हुआ क्योंकि अलग-अलग भाषा वाले प्रान्तों में देंगे उत्पन्न हो गए थे, जिसे नियंत्रण में लाने का एकमात्र उपाय भाषा के आधार पर प्रदेशों का निर्माण करना था।

प्रश्न 12.
राज्य पुनर्गठन विधेयक के प्रस्ताव के आधार पर कितने राज्य और केन्द्र शासित राज्यों का उदय हुआ?
उत्तर :
राज्य पुनर्गठन के प्रस्ताव के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र शासित राज्यों का उदय हुआ।

प्रश्न 13.
बुढ़ी गाँधी के नाम से कौन जानी जाती है और क्यों ?
उत्तर :
मातंगिनी हाजरा को बुड़ी गाँधी कहा जाता है। ये 73 वर्ष की उम्र में गाँधी नीति पर चलते हुए भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेकर शहीद हुई थी। इसलिए इन्हें बुढ़ी गाँधी कहा जाता है।

प्रश्न 14.
राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन कब और किस उद्देश्य से किया गया था ?
उत्तर :
1953 ई० में राज्य पुर्नगठन आयोग का गठन हुआ। इसका उद्देश्य आजादी के बाद स्वतन्त्र हुए राज्यों को नये ढंग से गठित करने के लिए हुआ था।

प्रश्न 15.
हैदराबाद का भारत में कब और कैसे विलय हुआ ?
उत्तर :
नवम्बर 1947 ई० में हैदराबाद पर सैन्य कार्यवाई करने के बाद भारत में शामिल हुआ।

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प्रश्न 16.
भारत का अन्तिम तथा स्वतंन्त्र भारत का प्रथम वायसराय कौन था ?
उत्तर :
भारत का अन्तिम तथा स्वतन्त्र भारत का प्रथम वायसराय लार्ड माउण्टबेटन था।

प्रश्न 17.
वे कौन से राज्य थे, जिन्होने भारतीय संघ में विलय का विरोध किया था ?
उत्तर :
हैदराबाद, जूनागढ़ एवं जम्मू-कश्मीर ने भारतीय संघ में विलय का विरोध किया था।

प्रश्न 18.
बंगाल और पंजाब में शरणार्थियों के अनुप्रवेश में क्या अन्तर था ?
उत्तर :
बंगाल के शरणार्थियों में भाषायी एकरूपता के कारण पहचानना कठिन थां, तथा उन्हें दूसरे राज्यों में बसाना कठिन था। जबकि पंजाब के शरणार्थियों को भाषा के आधार पहचानना तथा, उन्हें दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान जैसे दूसरे राज्य में बसाना सरल था। इस प्रकार इन दोनों की शरणार्थी समस्या भिन्न थी।

प्रश्न 19.
भारत का लौह-पुरुष किसे तथा क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
सरदार वल्लभ भाई पटेल को लौह-पुरुष के नाम से जाना जाता है। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् सैकड़ों देशी रियासते जो आजादी के पश्चात् स्वतंत्र अस्तित्व में थी और जिन्हें भारत अथवा पाकिस्तान में शामिल होने अथवा स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखने की आजादी थी, को उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति एवं सूझ-बूझ से अखण्ड भारत का हिस्सा बनाया। इसी कार्य की सफलता से प्रसन्न होकर गांधीजी ने उन्हें लौह-पुरूष की उपाधि दी थी।

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प्रश्न 20.
देशी रिसायतों से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
देशी रियासतों से तात्पर्य उन राज्यों से है जो ब्विटिश शासन काल में भी अपने शासन को बनाए हुए थे। वे बाहरी और आन्तरिक रूप से अंग्रेजों की कृपा पर आश्रित थे तथा अपनी प्रजा पर स्वयं शासन करते थे।

प्रश्न 21.
जे. वी. पी. समिति का गठन क्यों हुआ था ?
उत्तर :
जे. वी. पी. समिति की स्थापना 1949 ई० में हुई थी। इसका नामकरण इस समिति के तीन सदस्यों के नाम के अंग्रेजी के पहले अक्षर के आधार पर रखा गया। इसके प्रमुख सदस्य थे – जवाहर लाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल, पट्टाभि सीतारमैया। इस समिति का प्रमुख कार्यधर कमीशन के प्रस्तावों में संशोधन करना था।

प्रश्न 22.
भाषायी आयोग का गठन कब हुआ था और इसके उद्देश्य क्या थे ?
उत्तर :
1948 ई० में भारत सरकार ने इलाहाबाद उच्च-न्यायालय के जज एस० के० धर की निगरानी में एक आयोग का गठन किया। इस आयोग का प्रमुख कार्य भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करना था।

प्रश्न 23.
देश के विभाजन के समय देशी रियासतों के समक्ष क्या विकल्प था ?
उत्तर :
देश के विभाजन के समय अंग्रेजी सरकार ने देशी रियासतों को दो तरह के विकल्प दिए थे –
(i) वह चाहे तो भारतीय संघ में सम्मिलित हो जाए या पाकिस्तान के साथ जाए।
(ii) स्वयं को पूर्ण रूप से स्वतंत्र घोषित कर दे।

प्रश्न 24.
‘राज्य मंत्रालय’ की स्थापना कब और किसके नेतृत्व में हुई थी ?
उत्तर :
5 जुलाई, 1947 ई० को सरदार पटेल के नेतृत्व में।

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प्रश्न 25.
कांग्रेस के कौन-कौन से नेता भाषायी आधार पर राज्यों के गठन के विरोधी थे ?
उत्तर :
पं० जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल एवं पट्टाभि सीतारमैया इत्यादि।

प्रश्न 26.
देशी राज्यों को भारत में मिलाने में सरदार पटेल की मदद किसने की ?
उत्तर :
देशी राज्यों को भारत में मिलाने में सरदार पटेल की मदद लॉर्ड माउण्टबेटन तथा राज्य मंत्रालय के सचिव वी. पी. मेनन और राजाओं की परिषद् के चान्सलर महाराजा

प्रश्न 27.
पश्चिम बंगाल में शरणार्थियों के पुनस्स्थापना में विधानचंद्र राय की क्या भूमिका थी ?
उत्तर :
विधानचंद्र रॉय ने पश्चिम बंगाल में शरणार्थियों के पुनस्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान से आए हिन्दू शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए अंडमान-निकोबार को चुना। इसके अलावा इन्होंने बंगाल के विभिन्न जिलों में सरकारी भूमि पर इनके पुनर्वास की व्यवस्था की।

प्रश्न 28.
हैदराबाद को भारतीय संघ में किस प्रकार शामिल किया गया ?’
उत्तर :
भारत सरकार ने निजाम के इच्छा के विरुद्ध सैनिक कार्रवाई करके तथा जनमत के बल पर हैदराबाद् को भारतीय संघ में सम्मिलित किया था।

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प्रश्न 29.
भारतीय स्वतंत्रता विधेयक में भारतीय रियासतों के विषय में क्या प्रवधान थे ?
अथवा
ब्रिटिश सरकार ने विभाजन के समय देशी नरेशों के संबंध में क्या निर्णय दिया था ?
उत्तर :
1947 ई० के अंग्रेजी संसद द्वारा पारित स्वतंत्रता विधेयक में भारतीय रियासतों के विषय में प्रावधान थे – ‘सभी संधियाँ, समझौते इत्यादि, जो महामहीम की सरकार तथा भारतीय रियासतों के प्रशासकों के बीच हैं वे सब समाप्त हो जायेंगे। शाही उपाधियों तथा शैलियों (Royal style and titles) में से ‘भारत का सम्राट’ शब्द हटा दिया जाएगा। भारतीय रियासतों को यह अनुमति होगी कि वे भारत अथवा पाकिस्तान में से किसी एक में सम्मिलित हो जाए।” या स्वतन्त्र राज्य बनाये रखे।

प्रश्न 30.
फ्रांस की उपनिवेशों चन्दननगर, कालीकट और माही को किस प्रकार भारतीय संघ में मिलाया गया?
उत्तर :
यद्यपि भारत के फ्रांसीसी क्षेत्रों को पेरिस स्थित विधानमण्डल में प्रतिनिधित्व प्राप्त था और फ्रांस के मानव अधिकार भी प्राप्त थे फिर भी वहाँ की सरकार ने अपनी स्वेच्छा से तीनों उपनिवेशों (चन्दननगर, कालीकट और माही) को भारतीय संघ में विलय के लिए सौप दिया।

प्रश्न 31.
शरणार्थियों से तुम क्या समझते हो ?
उत्तर :
स्वाधीनता आंदोलन के दौरान मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र की माँग की, फलस्वरूप पाकिस्तान की स्थापना हुई थी। पाकिस्तान में हिन्दू एवं भारत में मुसलमान खुद को असुरक्षित समझते थे। अतः पाकिस्तान से बड़ी सख्या में हिन्दुओं का तथा भारत से मुसलमानों का पलायन आरंभ हुआ ऐसे सहाराहीन लोगों को शरणार्थी कहा गया।

प्रश्न 32.
गोवा, दमन एवं दीव (पुर्तगाली उपनिवेशों) को कैसे भारत में मिलाया गया ?
उत्तर :
भारतीय संघ में विलय के संबंध में पुर्तगाल का रुख असहयोगात्मक था। उनका कहना था कि गोवा पुर्तगाल के महानगरीय क्षेत्र का भाग है इसलिए वे अपना क्षेत्र नहीं छोड़ेंगे। भारत का कहना था कि ये क्षेत्र साम्राज्यवाद के प्रतीक है और भारत मे उनका विलय परम आवश्यक है। भारतीय सरकार ने राजनयिक प्रयास भी किये परन्तु पुर्तगाल नहीं माना। अन्त में 19 सितम्बर, 1961 को सैनिक कार्यवाई कर गोवा, दमन एवं दीव तीनों को भारत में मिला लिया गया।

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प्रश्न 33.
सरकार ने पुनर्वास (Rehabilitation) विभाग की स्थापना क्यों की थी ?
उत्तर :
विभाजन के समय पाकिस्तान से आये लोगों (शरणार्थियों) की सहायता तथा उनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए केन्द्रीय सरकार ने पुनर्वास विभाग की स्थापना की थी। जो मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे, उनकी भूमि और सम्पत्तियों को इन शरणार्थियों में बाँटा भी गया था। इस कार्य में भारत के करोड़ों रुपये का व्यय हुआ था।

प्रश्न 34.
स्टेट्स पीपुल्स कांफ्रेन्स का आयोजन कब और कहाँ किया गया था ?
उत्तर :
स्टेद्स पीपुल्स कांफ्रेन्स का आयोजन 1927 ई० में बम्बई में हुआ था।

प्रश्न 35.
सन् 2000 में किन-किन राज्यों का गठन हुआ था ?
उत्तर :
सन् 2000 में छत्तीसगढ़ (मध्य प्रदेश से अलग होकर), उत्तरांचल (उत्तर प्रदेश से निकलकर) और झारखण्ड (बिहार से पृथक होकर) तीन राज्यों का निर्माण हुआ था।

प्रश्न 36.
‘सीमा आयोग’ का गठन क्यों किया गया था ?
उत्तर :
भारत के विभाजन के समय देश की सीमाओं का निर्धरण करने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा न्यायमूर्ति रेडक्लिफ की अध्यक्षता में एक सीमा आयोग का गठन किया गया था जिसका प्रमुख कार्य हिन्दू तथा मुस्लिम बहुसंख्या पर अधिक ध्यान न रखकर अन्य तत्व जैसे – संचार साधन, नदियों तथा पहाड़ों आदि को ध्यान में रखकर सीमा का निर्धरण करना था। केवल 6 सप्ताह में आयोग ने अपने आँकड़े प्रस्तुत कर दिये, जो सही नहीं थे।

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प्रश्न 37.
आन्ध्र प्रदेश के गठन ने देश में अन्य भाषायी आन्दोलन को कैसे तेज किया ?
उत्तर :
स्वतंत्रता के पूर्व ही राज्यों के पुनर्गठन के लिए भाषा को ही आधार बनाया गया जिसके परिणामस्वरूप आन्ध्ध प्रदेश पहला भाषायी राज्य बना। आन्थ प्रदेश का निर्माण होते ही अन्य स्थानों पर भी भाषा के आधार पर प्रान्तों के निर्माण के लिए आन्दोलन होने लगे। इन आन्दोलनों में अहिन्दी राज्यों में हिन्दी का विरोध भी एक मुद्दा बन गया। इस समस्या के समाधान के लिए 1954 ई० में फजल आयोग का गठन किया गया था।

प्रश्न 38.
भाषा के आधार पर बम्बई का विभाजन कैसे किया गया?
उत्तर :
भाषा के आधार पर बम्बई का विभाजन करने के लिए 1960 ई० में मराठी आन्दोलन शुरू हो गया। बम्बई में जगह-जगह हिंसा भड़क उठी और मराठी आन्दोलन का तीव्र गति से प्रचार-प्रसार शुर्रू होने लगा। अतः बाध्य होकर बम्बई राज्य का विभाजन कर महाराष्ट्र एवं गुजरात दो राज्यों की स्थापना हुई।

प्रश्न 39.
1964 ई० तक भारतीय संविधान में सूचीबद्ध भाषाएँ कौन-कौन सी थीं ?
अथवा
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 1964 ई० तक कितनी भाषाओं को सरकारी मान्यता मिली थी ?
उत्तर :
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 1964 ई० तक 14 भाषाओं को सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में मान्यता मिली थी। ये थे –

  1. असमी
  2. बंगला
  3. गुजराती
  4. हिन्दी
  5. कन्नड़
  6. कश्मीरी
  7. मलयालम
  8. मणिपुरी
  9. उड़िया
  10. पंजाबी
  11. संस्कृत
  12. तमिल
  13. तेलुगु
  14. उर्दू।

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प्रश्न 40.
2004 ई० को किन चार भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल गिया गया ?
उत्तर :
चार भाषाएँ –

  1. मैथिली
  2. संथाली
  3. डोगरी
  4. बोडो इत्यादि।

प्रश्न 41.
जूनागढ़ की समस्या क्या थी ?
अथवा
जूनागढ़ को भारतीय संघ में कैसे शामिल किया गया ?
उत्तर :
जूनागढ़, काठियावाड़ में एक छोटी सी रियासत थी, जिसने भारत में सम्मिलित होने में कठिनाई उपस्थित की। दहाँ का शासक मुस्लिम था पर राज्य की बहुसंख्यक जनता हिन्दू थी। नवाब ने अपनी रियासत को बिना जनता की राय और समर्थन से पाकिस्तान में सम्मिलित कर दिया। वहाँ की जनता ने नवाब के खिलाफ विद्रोह कर दिया और एक ‘स्वतंत्र अस्थायी हुकूमत’ की स्थापना भी कर ली। नवाब विद्रोह से घबड़ाकर पाकिस्तान भाग गया। तत्पश्वात् फरवरी, 1948 ई० नें जनमत संग्रह करवाकर जूनागढ़ को भारतीय संघ में सम्मिलित कर लिया गया।

प्रश्न 42.
भारत में विभाजन के समय कौन-कौन रियासतें पाकिस्तान में शामिल हो गई ?
उत्तर :
खैरपुर, बहावलपुर रियासतें।

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प्रश्न 43.
भारतीय संघ में शामिल होने के लिए देशी राज्यों के लिए कौन-कौन से प्रस्ताव पारित किये गये थे?
उत्तर :
दो प्रस्ताव पारित किये गये थे –
(i) इस्टूमेंट ऑंफ एक्सेशन (Instrument of accession)
(ii) स्टेंड स्टिल एग्रीमेंट (Stand still agreement)

प्रश्न 44.
भारत ने 1 जनवरी 1948 ई० में सुरक्षा परिषद में क्या शिकायत की थी ?
उत्तर :
भारत ने 1 जनवरी 1948 ई० में सुरक्षा परिषद् में कश्मीर समस्या के बारे में शिकायत की थी। भारत की शकायत थी कि पाकिस्तान से सहायता प्राप्त कबायली कश्मीर पर लगातार आक्रमण कर रहे हैं जिससे अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है। अत: इस समस्या पर शीघ्र विचार किया जाय। भारत ने सुरक्षा परिषद (UNO) में यही शिकायत की थी।

प्रश्न 45.
जे० वी० जोशी कौन थे ? उन्होंने निजाम की कार्यकरिणी से त्याग पत्र क्यों दिया ?
उत्तर :
जोशी हैदराबाद के निजाम की कार्यकारिणी के सदस्य थे। निजाम की शह पाकर मुस्लिम रजाकारों का नेता कासिम रिजवी बहुसंख्यक हिन्दुओं पर अत्याचार करने लगा और यहाँ तक की बाह्मणों को मौत के घाट उतारना प्रारम्भ कर दिया। उसने धमकी दी थी कि सम्पूर्ण भारत को जीत कर दिल्ली के लाल किले पर अपना झण्डा फहरा देंगे। निजाम बब कुछ जानते समझते हुए मूक दर्शक बना रहा। तब असन्तुष्ट होकर रिजवी के विरोध में जोशी ने त्याग पत्र दे दिया था।

प्रश्न 46.
कब और किसके प्रयास से हैदाराबाद को भारतीय संघ में मिलाया गया?
उत्तर :
मेजर जनरल जे० एन० चौधरी के नेतृत्व में 18 सितम्बर 1948 ई० को हैदराबाद में सैनिक कार्रवाई करके उसे भारतीय संघ में सम्मिलित किया गया था। इस सैन्य अभियान का नाम ‘आपरेशन योलो’ दिया गया था।

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प्रश्न 47.
अन्तरिम सरकार में शामिल बंगाल के दो केन्द्रीय मंत्रियों (Cabinet minister) के नाम बताइए।
उत्तर :
(i) डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी। (ii) के० सी॰ नियोगी।

प्रश्न 48.
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और के० सी० नियोगी ने केन्द्रीय मंत्रिमण्डल से त्याग-पत्र क्यों दिया था?
उत्तर :
अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को सुलझाने के उद्देश्य से 8 अप्रैल, 1950 ईं० को भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के बीच एक समझौता हुआ। इस समझौते को हिन्दू सम्पदायवादियों ने अस्वीकार कर दिया साथ ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी और के० सी० नियोगी ने इसी समझौता के विरोध में मंत्रिमण्डल से त्याग पत्र दिया था।

प्रश्न 49.
तत्कालीन केन्द्रीय वित्तमंत्री देशमुख ने मंत्रीपद से त्याग पत्र क्यों दे दिया था ?
उत्तर :
राज्य-पुनर्गठन अधिनियम की रिपोर्ट के आते ही महाराष्ट्र के लोग भाषा के आधार पर पृथक महाराष्ट्र राज्य की माँग करने लगे। वित्तमंत्री देशमुख पृथक महाराष्ट्र राज्य की स्थापना के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से वाच- चीत किए, परन्तु नेहरू जी नहीं माने। इसी परिप्रेक्ष्य में वित्तमंत्री देशमुख ने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया।

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प्रश्न 50.
किन-किन क्षेत्रों को मिलाकर बम्बई राज्य का गठन हुआ था ?
उत्तर :
विदर्भ राज्य और हैदराबाद राज्य के मराठवाड़ा क्षेत्र को मिलाकर बृहंद् बम्बई राज्य का गठन हुआ था।

प्रश्न 51.
खुशवन्त सिंह कौन थे ? उनकी एक रचना का नाम बताएँ।
उत्तर :
एक सिक्ख डाक्टर थे। एक रचना – ” लव इज स्टांगर देन हेट, ए रिमेम्बेरेंस ऑफ 1947 ” है।

प्रश्न 52.
सरदार बल्लभ भाई पटेल ने देशी राज्यों को भारत में शामिल करने के लिये कौन सी नीति अपनाई थी ?
उत्तर :
सरदार पटेल एक सशक्त, साहसी और दृढ़ निश्चयी व्यक्ति थे। देशी राज्यों को भारतीय संघ में शामिल करने के लिए उन्होंने कोमल और कठोर दो तरह की नीतियाँ अपनाई। कुछ राज्यों को उन्होंने भारतीय संघ में सम्मिलित होने का लाभ बताया और उन्हें समझा-बुझाकर भारत में शामिल करने की नीति अपनायी। कुछ राज्य जैसे – जूनागढ़, हैदराबाद ने उनकी बातों को ठुकरा दिया तो उन्होंने बल-प्रयोग द्वारा सीधी कार्रवाई करके उन्हें भारतीय संघ का अंग बनाने के लिए कठोर सैन्य कार्यवाही की नीति आपनायी।

प्रश्न 53.
वर्तमान समय में भारत में संविधान द्वारा स्वीकृत भाषाएँ कितनी हैं ? उनके नाम बताओ।
उत्तर :
भाषाओं को संविधान द्वारा स्वीकृति मिली है। ये हैं –

  1. आसामी
  2. बंगाली
  3. गुजराती
  4. हिन्दी
  5. कन्नड़
  6. कश्मीरी
  7. मलयालम
  8. मराठी
  9. उड़िया
  10. पंजाबी
  11. संस्कृत
  12. तमिल
  13. तेलगू
  14. उर्दू
  15. सिंधी
  16. कोंकणी
  17. मणिपुरी
  18. नेपाली
  19. मैथिली
  20. संथाली
  21. डोगरी
  22. बोडो इत्यादि।

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प्रश्न 54.
कश्मीर मुद्दा में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की क्या भूमिका थी ?
उत्तर :
1947 ई० में जब पाकिस्तान द्वारा कबाईलीयों को भड़काकर आक्रमण किया गया। तब इसके खिलाफ भारत ने स०रा० संघ में शिकायत की। तब राष्ट्र संघ इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए युद्ध-विराम तथा पूर्ण शान्ति स्थापित होने के बाद जनमत संग्रह द्वारा कश्मीर समस्या के समाधान करने की बात कही।

प्रश्न 55.
शरणार्थियों के भारत आगमन के समय भारत के खाद्यान्नों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
शरणार्थियों के आगमन के समय भारतमें खाद्यानों की बड़ी ही विकट स्थिति थी क्योंकि देश के लोगों के लिये खाद्यान्न विदेशों से आयात करना पड़ता था। भारत मे उद्योगों की संख्या नाममात्र की थी विदेशी व्यापार कम से कम होता था ऐसे में भारत को खाद्यान्य को लेकर गम्भीर स्थिति झेलना पड़ रहा था।

प्रश्न 56.
भारतीय स्वतंत्रता आधिनियम को ब्रिटिश संसद ने कब मंजूरी दी ?
उत्तर :
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम को ब्रिटिश संसद ने 18 जुलाई 1947 ई० को मंजूरी दी।

संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 4 MARKS

प्रश्न 1.
भारत सरकार ने किस प्रकार देशीय रियासतों को भारत संघ में मिलाने के प्रश्न का समाधान की थी?
अथवा
देशी रियासतों के विलय में सरदार वल्लभ भाई पटेल के योगदान का संक्षेप में वर्णन कीजिए। अथवा, भारत में देशी रियासतों का विलय कैसे हुआ ? समझाकर लिखिए।
उत्तर :
देशी रियासतों का भारतीय संघ में शामिल होना : भारत की आजादी के समय कुल 601 देशी रियासतें (देशी राजाओं का राज्य) थी, बँटवारा के बाद 565 देशी राज्य भारत में तथा 36 देशी राज्य पाकिस्तान के हिस्से में पड़े। अंग्रेज भारत को आजादी देने से पहले इनके भाग्य का निर्णय करने के लिए उन्हें स्वतंत्र दी थी कि वे भारत के साथ मिलना चाहते हैं या पाकिस्तान के साथ मिलना चाहते हैं, या अपना स्वतंत्र राज्य (देश) बनाना चाहते हैं, इस छूट से बहुत से ऐसे देशी रियासत थी, जो भारत और पाकिस्तान किसी के साथ न मिलकर अपना स्वतंत्र राज्य बनाये रखना चाहते थे, ऐसी स्थिति में भारत कई टूकड़ों में बँट जाता,

और आजादी प्राप्त करने तथा अखण्ड भारत को बनाये रखने का सपना चकनाचूर हो जाता, ऐसी विषम परिस्थिति में भारत सीमा के अन्दर स्थित सभी देश रियासतों को भारतीय संघ में विलय कर एक सुदृढ़ भारत की स्थापना करना चुनौतीपूर्ण कार्य था। इस कार्य को पूरा करने की जिम्मेदारी देशी के तत्कालीन एवं प्रथम गृह मंत्री ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल’ को सौंपी गई, उन्होंने अपने सूझ-बूझ से 551 देशी रियासतों को विलय दस्तावेज पत्र पर हस्ताक्षर करा कर भारतीय संघ में शामिल कर लिया। 216 छोटी-छोटी रियासतों को मिलाकर दो बड़े प्रान्त बम्बई और मध्यप्रदेश बनाये गये, 267 देशी राज्यों को मिलाकर पंजाब, राजस्थान, सौराष्ट्र प्रान्त बनाये गये।

कुछ छोटी-छोटी रियासतों को मिलाकर 6 केन्द्रशासित प्रदेश बनाये गये। अब केवल 4 रियासते जम्मु-कश्मीर, हैदराबाद, जूनागढ़, और ट्रावणकोर रियासते थी जिन्हें भारतीय संघ में शामिल करना था, ट्रावणकोर (वर्तमान केरल) और जम्मु-कश्मीर के शासक अपना स्वतंत्र देश बनाना चाहते थें, तो वहीं चारों तरफ भारत भूमि से घिरे हैदराबाद और जूनागढ़ पाकिस्तान में मिलना चाहते थें, इनमें से जम्मु-कश्मीर को छोड़कर तीनों रियासतों की जनता अपने शासकों के निर्णय का विरोध कर रही थीं, और वे अपने को भारत में विलय करने के लिए आन्दोलन कर रही थी, जिसे वहाँ की सेना उन पर तरह-तरह का अत्याचार कर रही थी, ऐसे में वल्लभ भाई पटेल ने भारतीय संघ में शामिल होने की चेतावनी देते हुए सैनिक कार्यवाही करने की धमकी दी।

इसके बाद भी उनके ऊपर जब कोई प्रभाव नहीं पड़ा तब उनके विरूद्ध सैनिक कार्यवाही करनी पड़ी। भारतीय सेना ज्योंहि इनके राज्य में पहुँची, वहाँ के शासक और सैनिक थोड़े-बहुत संघर्ष के बाद आत्मसमर्पण कर दिये और विलयपत्र पर हस्ताक्षर कर भारतीय संघ में शामिल हो गये। इसी प्रकार जम्मु-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह कश्मीर पर पाकिस्तान के धोखे से आक्रमण से विचलित व पेरशान होकर 26 Oct 1947 ई० को स्वेच्छा से विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर जम्मू-कश्मीर को भारतीय संघ में शामिल होने की घोषणा कर दी।

इस प्रकार अनेकों संघर्ष, सुझ-बूझ और चतुराई, धमकी आदि के कारण सरदार वल्लभ भाई पटेल सभी देशी रियासतों को भारतीय संघ में शामिल कर आज के मजबूत भारत को बनाने में अपना शत-प्रतिशत योगदान दिया, उनके इसी कठिनाईपूर्ण कायों को सही ढंग से पूरा करने से प्रसन्न होकर महात्मा गाँधी ने उन्हें ‘लौह-पुरूष” की उपाधि दी थी।

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प्रश्न 2.
काश्मीर समस्या किस प्रकार उत्पत्न हुई ?
उत्तर :
कश्मीर की समस्या : देशी राज्यों का भारतीय संघ में विलय के संबंध में जम्मू-कश्मीर राज्य की समस्या सबसे जटिल थी क्योंकि वहाँ का शासक हरि सिंह हिन्दू था परन्तु राज्य की 80 % जनता मुसलमान थी। महाराजा को यह भय था कि यदि हम भारत में शामिल होते हैं तो यहाँ की मुस्लिम जनता विद्रोह कर देगी और दूसरी ओर यदि पाकिस्तान में सम्मिलित होंगे तो हमें महाराजा की गद्दी से हाथ धोना पड़ेगा।

ऐसी स्थिति में महाराजा ने स्वतंत्र रहकर भारत तथा पाकिस्तान दोनों से मैत्रीपूर्ण समझौता करने का फैसला किया। अत: भारत सरकार ने भी महाराजा हरि सिंह पर कोई दबाव नहीं डाला परन्तु पाकिस्तान के सैनिकों ने कबाइलियों के साथ मिलकर कश्मीर पर आक्रमण कर दिया तथा हिन्दूओं पर अत्याचार करने लगे यही से कश्मीर समस्या का जन्म हुआ।

कबाइली जब आक्रमण करते हुए श्रीनगर के करीब पहुँच गए तो महाराजा ने भारत सरकार से सहायता माँगी और बिना शर्त भारत में सम्मिलित होने के लिए सहमत हो गए। 27 अक्टूबर, 1947 ई० को भारतीय हवाई सेना ने आक्रमण करके श्रीनगर को बचा लिया और वहाँ शान्ति स्थापित की। इस प्रकार आक्रमण करके युद्ध द्वारा कश्मीर को भारत में मिला लिया गया परन्तु कश्मीर का बहुत बड़ा क्षेत्र आज भी ‘आजाद कश्मीर’ के नाम से पाकिस्तान के कब्जे में है और यही क्षेत्र आज भी भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का कारण बना हुआ है।

प्रश्न 3.
हैदराबाद राज्य किस प्रकार भारत के अधीन हुआ ?
अथवा
हैदराबाद को किस प्रकार भारत संघ में सम्मिलित किया गया था ? संक्षेप में उत्तर दीजिए। अथवा, भारतीय संघ के विलय में हैदराबाद की क्या समस्यायें थीं ? समझाकर लिखिए।
उत्तर :
82 हजार वर्ग मील में फैला भारत का एक बड़ा राज्य हैदराबाद था, जहाँ की आबादी 1.86 करोड़ थीं। यहाँ की जनसंख्या का लगभग 85 % जनता हिन्दू थी और शेष मुसलमान थे। निजाम यहाँ का मुसलमान शासक था जो पाकिस्तान में शामिल होने का सपना देख रहा था परन्तु राज्य की बहुसंख्यक हिन्दू जनता हैदराबाद को भारतीय संघ में सम्मिलित करेने के पक्ष में थी। अन्त में निजाम ने अपने लिए स्वतंत्र राज्य की स्थापना करने का प्रयास किया।

इसलिए उसने मुस्लिम रज्जाकारों से साठ-गाँठ कर रज्जाकार नामक सेना का गठन भी कर लिया था जिसका नेता कासिम रिजवी था। रिजवी मुस्लिम रजाकारों को सैनिक प्रशिक्षण देकर उन्हें भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा था। ये सैनिक बड़े ही आक्रामक एवं साम्प्रदायिक थे। पाकिस्तान भी इन सैनिकों को भरपूर मदद कर रहा था और निजाम भी उनके लिए अस्त्र-शस्त्र का इंतजाम कर रहा था।

लार्ड माउण्टबेटन ने निजाम को काफी समझाया-बुझाया पर वह भारत सरकार से यथास्थिति समझौते (Standstill Agreement) पर हस्ताक्षर करने के अलावा और कुछ भी करने से मुकर गया क्योंकि पाकिस्तान उसको प्रोत्साहन दे रहा था। पाकिस्तान के बहकावे में आकर निजाम ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर लिया और उसके रज्जाकार सैनिक बहुसंख्यक हिन्दुओं पर अत्याचार करने लगे। भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थित गाँवों पर हमले किये जाने लगे। भारत से होनेवाला यातायात ठप कर दिया गया।

रज्जाकारों के नेता कासिम रिजवी ने भारत को धमकी देते हुए कहा कि समूर्ण भारत पर विजय प्राप्त करके दिल्ली के किले पर निजाम का आसफजाही झण्डा फहराएगा। ऐसी परिस्थिति में भारत सरकार ने निजाम को 1948 ई० में एक अल्टिमेटम भेजा। निजाम ने सरकार के अल्टिमेटम को अनसुना कर दिया तब 13 सितम्बर, 1948 ई० को जनरल जे० एन० चौधरी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने हैदराबाद में प्रवेश किया और 18 सितम्बर तक पूरे राज्य पर सेना ने अधिकार कर लिया।

कुछ दिनों के लिए भारत सरकार ने वहाँ सैनिक शासन स्थापित कर दिया 11 नवम्बर, 1948 ई० को हैदराबाद औपचारिक रूप से भारत संघ का अंग बन गया। निजाम को हैदराबाद का संवैधानिक पद प्रधान नियुक्त किया गया 1956 ई० के राज्य पुनर्गठन के समय हैदराबाद को तीन भाग कर उसके पास स्थित पड़ोसी प्रान्तों आक्ष, बम्बई और मैसूर में मिला दिया गया। उपरोक्त विवरणों से यह पूर्ण रूप से स्पष्ट होता है कि भारत सरकार ने निजाम की इच्छा के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करके ताकत के बल पर हैदराबाद को भारतीय संघ में सम्मिलित किया था।

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प्रश्न 4.
संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए : 1947 में देश विभाजन के पश्चात उत्पन्न शरणार्थी समस्या।
उत्तर :
15 अगस्त 1947 ई० की तिथि के साथ दो नये स्वतंत्र राज्य भारत और पाकिस्तान का जन्म हुआ। इस कारण इससे एक तरफ देश में आजादी प्राप्त करने की खुशियाँ मनायी जा रही थी, तो दूसरी तरफ अखण्ड भारत का सपना चूरचूर हो जाने तथा देश-विभाजन हो जाने से देश के विभिन्न भागों में साम्पदायिक दंगे तथा विभाजन से प्रभावित हुए, करोड़ो हिन्दूओं मुस्लमानों को अपना मूल निवास स्थान को छोड़कर असहाय, निर्वासित शरणार्थी जैसा जीवन गुजारने के लिए बाध्य होना पड़ा था।

इनके बीच भड़की हिंसा ने शरणार्थी समस्या को विकराल बना दिया था, कुछ ही महीनों में 5 लाख से अधिक लोग मार डाले गये। लाखों की सम्पत्ति लूटी और बर्बाद की गयी करोड़ों लोगों को एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र में शरणार्थी के रूप में जीवन-जीने के लिए बाध्य कर दिया। प० पाकिस्तान से आये शरणार्थियों को भाषा की समानता के कारण उन्हें बसाना आसान था, किन्तु पूर्वी पाकिस्तान के शरणार्थियों को भाषा की समस्या के कारण उन्हे दूसरे राज्यों में बसाना कठिन था।

इस प्रकार भारत के विभाजन ने भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के सामने शरणार्थीयों से सम्बंधित गंम्भीर समस्याओं ओो जन्म दिया जिसे सुलझाने के लिए 8th April 1950 ई० को भारत के प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू तथा किसान के तुधानमंत्री (लियाकत अली खाँ) Liaquet ali Khan) के बीच समझौौता हुआ।

जिसे नेहरू-लियाकत अमझौता कहा जाता है। यद्याप इस समझौते का हिन्दू-सम्पदायों ने घोर विरोध किया, किन्तु केन्द्र सरकार ने इस समझौते ओो स्वीकार कर शरणार्थी समस्या को सुलझाने के लिए शरणार्थी पुर्नवास मंत्रालय का गठन किया। इस मंत्रालय ने सबसे जहले भारत में मुसलमानों द्वारा छोड़ी गई सम्पत्ति एवं भूमि को शरणार्थियों मे बाँट दिया, पश्चिमी पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों का प० उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा एवं पंजाब जैसे राज्यों में राजकीय भूमि देकर उन्हें बसाया या, जो धीरे- धीरे भारतीय समाज से घूल-मिलकर एक हो गये।

पूर्वी पाकिस्तान से आये शरणार्थियों को भी ‘अण्डमान प्ड निकोबार’ द्वीप समूह में बसाया गया, किन्तु भाषायी समस्या होंने के कारण इन्हें दूसरे भाषायी प्रान्तों में बसाना कठिन वा। साथ ही विभाजन के बाद लम्बे समय तक चोरी- छिपे, पूर्वी पाकिस्तान अर्थात बंग्लादेश के ‘चकमा’ शरणार्थी आते हे, इसलिए इनको बसाना एक गंभीर समस्या बन गयी, जो निरन्तर आज भी जारी है। जो देश की अर्थव्यवस्था तथा एकता खण्डता के लिए चुनौती बना हुआ है।

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प्रश्न 5.
स्वतंत्रता के बाद भाषा के आधार पर भारत किस प्रकार पुनर्गठित हुआ ?
उत्तर :
भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन :- वैसे तो देश की आजादी के पहले से ही भाषा के आधार पराज्यों को बनाये जाने की माँग होती रही, किन्तु 1920 में कांग्रेस पार्टी ने अपने नागपुर अधिवेशन में सर्वप्रथम भाषायी आधार पर राज्यों के पुनः पुनर्गठन की माँग स्वीकार कर ली। 1928 में नेहरू रिपोर्ट में पुनः भाषा के आधार पर राज्यों केाठन की संस्तुति की गयी।

1948 में श्री ए. के दर के अध्यक्षता में संविधान सभा ने भाषायी आयोग की नियुक्ति की। इसी र्ष कांग्रेस ने भी जे बी. पी. (जवाहर, बल्लभ-भाई पटेल, पट्टाभि सीता रमैया) समिति की नियुक्ति की। इस समिति ने भी आषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करने की सलाह दी। इस सलाह के आने के बाद देश भर में भाषा के आधार पर उज्यों के गठन की माँग को लेकर आन्दोलन शुरु हो गया।

अक्टृबर 1952 में तेलगू नेता पोट्टि श्री रामलू ने भाषा के आधार पर आध्रराज्य की गठन को लेकर अनशन शुरु कर किया। 58 दिन तक चलने वाले अमरण अन्सन के दौरान उनकी मृत्यु हो गयी। जिसके कारण सम्पूर्ण आन्ध प्रदेश दंगो की पेट में आ गया। इसके बाद सरकार दबाव में आकर आन्ध्र राज्य की माँग को स्वीकार कर लिया।

इस प्रकार अक्टूबर 1953 में देश का पहला भाषायी राज्य आन्थ्र प्रदेश अस्तित्व में आया। इसके बाद पूरे देश में भाषा के आधार पर असम, इमिल, पंजाब, हरियाणा, उड़िसा, गुजरात, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र राज्यों का पुनर्गठन हुआ। आज यही भाषायी आधार पर शज्यों का नामकरण देश की एकता, अखण्डता के लिए संकट बन गया है।

प्रश्न 6.
भारत में शरणार्थी समस्या और इसके समाधान का संक्षिप्त वर्णन करो। इस घटना से संबंधित चार वस्तकों के नाम बताओ।
उत्तर :
शरणार्थियों की समस्या : भारत का विभाजन होते ही पाकिस्तान से हिन्दूओं का तथा भारत से मुसलमानों का पलायन आरम्भ होने लगा। भारत और पाकिस्तान सीमा के नगरों एव ग्रामों के गैर- मुसलमान (हिन्दू) भारत में असंगठित दलों के रूप में आना आरम्भ कर दिए। पाकिस्तानी सैनिको की सहायता से हिन्दू भारत की सीमा में झुण्ड के झुण्ड प्रवेश करने लगे। पाकिस्तान में हिन्दू और भारत में मुसलमान खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे थे।

अत: पाकिस्तान से बड़ी संख्या में हिन्दूओं का पलायन एवं भारत से ससलमानों कां पलायन करने से दोनों देशों में शरणार्थियों के पुनर्वास और उनके देख-रेख की समस्या पैदा हो गई थी। शरणार्थियों के पुनर्वास का प्रयास :शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या भारत और पाकिस्तान दोनो के सामने विकराल रूप ध्रारण किये खड़ी थी। साम्मदायिकता के आधार पर देश के विभाजन के कारण ही साम्पदायिक दंगे आरम्भ हुए थे। करीब एक करोड़ लोगों को अपना सबकुछ त्यागकर दूसरे राष्ट्र में जाने के लिए मजबूर कर दिया गया।

पूर्वी बंगाल के ज्यादातर शरणार्थियों का पुनर्वास भारत के नये राज्य पश्चिम बंगाल में हुआ था, इसके अलावा असम और त्रिपुरा में भी जाकर ये बस गए थे। पाकिस्तान और भारत में शरणार्थियों की समस्याओ को देखते हुए 8 औरल, 1950 ई० को भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के बीच उनकी सुरक्षा के सवाल को मुलझाने के लिए एक संधि हुई, जिसे ‘नेहरू लियाकत समझौता’ के नाम से जाना जाता है। देश के अन्दर तमाम विरोधाभास के होंते हुए भी इसे स्वीकार कर लिया गया। परन्तु इसके बाद भी पूर्वी बंगाल से हिन्दूओं का पलायन जारी रहा शरणार्थी समस्या से संबंधित चार पुस्तके हैं –

  1. ट्रेन दू पाकिस्तान (लेखक खुशवंत सिंह)
  2. तमस (लेखक, भीष्म सहानी)
  3. फ्रीडम एट मिडनाइट (लेखक लैरी कोलिंस) एवं
  4. दि सैडो लाइन (लेखक अभिताभ घोष)।

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प्रश्न 7.
स्वाधीनता के दौरान रियासती राज्यों को भारतीय उपनिवेश में मिलाने के लिए अपनाये गये पदक्षेप क्या थे ?
उत्तर :
देशी-राज्यों का भारतीय संघ में विलय का प्रयास : भारत की स्वाधीनता से पूर्व देश में 565 देशी रियासतें थीं। समस्त भारत का 2 / 5 क्षेत्र तथा 1 / 4 जनसंख्या इन रियासतों में निवास करती थी। प्रशासन, क्षेत्रफल, जनसंख्या और वित्तीय संसाधनों की दृष्टि से इन राज्यों में भारी असमानता थी। इन राज्यों में वहाँ की जनता को कोई अधिकार नहीं थे। कांग्रेस के हरिपुरा सम्मेलन के बाद कुछ देशी रियासतों में नागरिक अधिकार एवं उत्तरदायी सरकार के लए आन्दोलन हुए, परन्तु उन्हें कोई विशेष सफलतः नहों मिली।

बिटिश सरकार ने जब भारत की सत्ता भारतीयों को हस्तांतरित करने का निश्चय कर लिया तब 18 जुलाई, 1947 ई० को बिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947) पारित किया। इस अधिंनिम द्वारा देशी राज्यों पर ब्रिटिश सर्वोच्चता पुन: देशी राज्यों को लौटा दी गई अर्थात् देशी रखासते पूर्ण स्वतंत्र हो जाएगी और यह उनकी इच्छा पर निर्भर होगा कि वे चाहें तो पाकिस्तान में मिले या हिन्दुस्तान में अथवा वे चाहे तो अपना स्वतत्र अस्तित्व भी बनाए रख सकते हैं।

15 जुलाई, 1947 ई॰ को अन्तरिम सरकार के गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के निर्देशन में ‘राज्य मन्त्रालय”‘ की स्थापना की गई और उन्हे भारत की ओर से देशी नरेशों के साथ बातचीत करने का उत्तरदायित्व सौपा गया। 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत स्वतत्र हो गया। भारत के विभाजन के समय खैरपुर, बहावलपुर आदि रियासतें पाकिस्तान में सम्मिलित हो गई और शेष भारत में रह गईं।

प्रश्न 8.
भारतीय संविधान में किस प्रकार विभिन्न भाषाओं को स्वीकृति मिली।
अथवा
भारत में भाषा आन्दोलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
स्वतत्रता प्राप्ति के बाद देश के शासन व्यवस्था को चलाने के लिए एक राष्ट्रीय भाषा की जरूरत महसूस हुई, प्रत्येक राज्यो की अपनी-अपनी मातुभाषा थी, ऐसे में शासन चलाने में कठिनाई हो रही थी, इसी समस्या को सुलझाने के लिए भारत सरकार ने 1955 ई० मे रष्ट्र भाषा आयोग का गठन किया। इस आयोग ने 1956 ई० में अणे रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए सुझाव दिया था, कि सरकार के सभी विभागों में धीरे-धीरे अंग्रेजी की जगह हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे 15 वर्ष बाद अंग्रेजी को समाप्त किया जा सके। तभी हिन्दी को पूर्ण रूप से देश की राष्ट्र भाषा बनाया जा सकता है।

आयाग की इस सुझाव के बाद राष्ट्र भाषा को लेकर उत्तर और दक्षिण राज्यों के बीच विवाद हो गया, इस विवाद के बाद भारत सरकार को देश की 14 भाषा को 8 वीं अनुसूचि में 14 क्षेत्रीय/प्रान्तीय भाषाओं – आसामी, गुजराती, बंगाली, पजाबी, कश्मीरी, हिन्दी, मराठो, सस्कृत, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, उड़ीया एवं उर्दु इसके बाद 1967 ई० में हिन्दी भाषा को 1992 ई० में कोंकणी मनीपरी और नेपाली भाषा को 8 वी अनुसूची में शामिल किया गया, इस प्रकार अनेको संघर्ष एवं राजनीतिक उठा-पटक के बाद हिन्दी को राप्ट्भाषा, हिन्दी, अंग्रेजी को राजभाषा तथा 16 राज्यों की मातृभाषाओं को 8 वो अनुसूची में डालकर उनका संरक्षण और समबर्द्धन करके भाषा-विभाग का अन्त किया गया।

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प्रश्न 9.
कश्मीर समस्या क्या शी ?
उत्तर :
कश्मीर समस्या : 15 th Aug 1947 ई० को जब भारत आजाद हुआ, उस समय जम्मु-कश्मीर रियासत भारतीय संध में शामिल नहीं था। इस रियासत की बहुसख्यक जनता मुस्लिम थी, किन्तु शासक हिन्दू महाराजा हरि सिंह थे, इस राज्य की सीमायें, भारत और पाकिस्तान दोनों से मिली हुई थी ऐसे स्थिति में यहाँ के राजा हरि सिंह भारत व भाक्रिस्तान दोनों राज्यों से अलग रहते हुए स्वतंत्र राज्य बनाये रखने का निर्णय लिया।

यह निर्णय पाकिस्तान को पसंद्ध नहीं आया और उसने मुस्लिम बहुल कश्मीर का पाकिस्तान में मिलाने के लिए, उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रान्त के ‘कबाइलियों’ के भष-भूषा में पाकिस्तान के सैनिकों ने 22 अक्टबर 1947 ई० को कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। तब घबराये हुये, हरिसिंह न भारत-सरकार से सैनिक सहायता देने का अनुरोध किया, किन्तु बिना भारत में शामिल हुए, उन्हें सैनिक सहायता से सरकार सहायता देने से इन्कार कर टिया, इसके नाद 26 th oct 1947 ई० को हरि सिंह ने विलय दस्तावेज पर हस्ताक्षर करके बिना शर्त जम्मू-कश्मीर को भारत में शामिल कर दिया।

इसके बाद भारतीय सेना कश्मीर पहुँचकर पाकिस्तानो कब्जे से जम्मू-कश्मीर के आधिकांश भाग को आजाद कराया इस प्रकार जम्मू-कश्मीर भारतीय-संघ में शामिल हुआ। उसी समय से कश्मीर के कुछ भाग पर आज भी पाकिस्तान को लकर कश्मीर विवाद बना हुआ है। इस कब्जे का सफल समाधान नहीं हो सका। इस विवाद के बीच जम्मू-कश्मीर की नरीह जनता आज भी कष्ट भुगत रही है।

प्रश्न 10.
आत्म-जीवनी एवं संस्मरणों में देश के विभाजन की चित्रों किस प्रकार प्रतिविंबित हुई हैं ?
उत्तर :
स्मृति ग्रथ इतिहास जानने के एक महन्वपूर्ण साधन है। स्मृति ग्रथथ के अन्तर्गत आत्मकथा, यात्रा-वृतांत, निबंध लेखन, साहित्य, उपन्यास, इतिहास लेखन आदि ग्रन्थ आते हैं। आत्मजीवन मूलक ग्रथों का प्रधान विषय-वस्तु स्मृति कथा है। इस प्रकार स्मृति कथा एक प्रकार का साहित्य है जहाँ लेखक अपने जीवन में घटित घटनाओं का विवरण अपने स्मृति के माध्यम से करता है।

इन सब ग्रन्थों में बंगाली, पजाबी, सिन्धी, हिन्दू, शरणार्थियों का देश त्याग, अव्यवस्थित व असुरक्षित जीवन, विभिन्न शरणार्थी शिविरों की खाद्य, चिकित्सा, अभाव, विघटन एवं अपनों से विदुड़ने की पीड़ा का चित्रण बहुत से लोगों ने किया है। तत्कालीन शरणार्थी कमिशनर हिरन्यमय भट्टाचार्य ने ‘उदवास्तु’ दक्षिणा रंजन बसु ने ‘छेड़े आसा ग्राम’ मणी कुन्तला सेन ने ‘सेदिने कथा’ चौधरी खालिक्कू जमान ने ‘पाथवे टू पाकिस्तान’ में देश का बटवारा, दंगा-फसाद, शरणार्थी जीवन की अन्तहीन दुर्दशा तथा संघर्षमय जोवन की झाँकी प्रस्तुत की है। हिन्दी, अंग्रजी, उर्दू, पंजाबी भाषाओं में भी बटवारा और रारणार्थी समक्या पर लिखि गई आत्मकथाओं और समृति ग्रंथों की कमी नहीं है।

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प्रश्न 11.
राज्य-पुनर्गठन अधिनियम (State Reorganisation Act) के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर :
पं० जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में दिसम्बर, 1953 ई० में राज्य-पुनर्गठन आयोग की स्थापना की गई। इसकी स्थापना से भारत में दंगे-फसाद की सम्भावना लगभग कम हो गई। रिपोर्ट के प्रकाश में आते ही देश के विभिन्न भागों में विद्रोह शुरू हो गये। इसका सबसे अधिक प्रभाव बम्बई पर पड़ा। यहाँ दंगा-फसाद आरम्भ हो गया। महाराष्ट्र के लोग भाषा के आधार पर पृथक महाराष्ट्र राज्य की माँग करने लगे, तो दूसरी ओर गुजराती सौराष्ट्र और गुजरात को मिलाकर अलग महा गुजरात राज्य की माँग करने लगे।

केन्द्रीय वित्तमंत्री देशमुख महाराष्ट्र की स्थापना के लिये जवाहरलाल नेहरू से बातचीत किये पर नेहरू जी ने इसे अस्वीकार कर दिया। असन्तुष्ट होकर देशमुख जी ने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया। संसद के दोनों सदनों में भी इस बात पर बहस होने लगी। अन्त में जुलाई, 1956 ई० में संसद ने ‘राज्य पुर्गठठन अधिनियम’ (State Reorganisation Act) पारित कर दिया जिसके अनुसार 14 राज्यों तथा 6 राज्यों को केन्द्रशासित को राज्य का दर्जा दिया गया।

इस अधिनियम द्वारा आयोग की रिपोर्ट में कुछ परिवर्तन किये गये। इस अधिनियम के अनुसार पंजाब और पेप्सू को मिलाकर एक राज्य बना दिया गया। बम्बई राज्य को और विस्तृत कर दिया गया। विदर्भ राज्य और हैदराबाद राज्य के मराठवाड़ा क्षेत्र को बम्बई में मिला दिया गया।हैदराबाद का कुछ अंश मैसूर को दे दिया गया तथा तेलंगाना क्षेत्र को आन्ध मराठवाड़ा क्षेत्र को बम्बई में मिला दिया गया। हैदराबाद का कुछ कम्मिल कर दिया गया।

भोपाल का विलय मध्य प्रदेश में हो गया और अजमेर राजस्थान में शामिल हो गया। आयोग के संतरिश के आधार पर मध्य प्रदेश और केरल दो राज्य बनाए गए। इस अधिनियम की “व विशेषता थीं- राजाओं एवं शासकों के प्रमुख पदों की समाप्ति तथा राज्यों के लिए राज्यपात्Governer) पद की व्यवस्था करना। मिटिश प्रान्तों के चार श्रेणियों को समाप्त कर केवल दो श्रेणियाँ रखी गयी- राज्य तथा केन्द्रशासित प्रदेश।

अतः इस अधिनियम के अनुसार 14 राज्यों तथा 6 केन्द्रशासित राज्यों का गठन किया गया जिनके नाम इस प्रकार थे –

राज्य :

  1. जम्मू-कश्मीर
  2. पंजाब
  3. उत्तर प्रदेश
  4. बिहार
  5. पश्चिम बंगाल
  6. असम
  7. उड़ीसा
  8. आन्ध्र प्रदेश
  9. तमिलनाडु
  10. केरल
  11. मैसूर
  12. बम्बई
  13. मध्य प्रदेश
  14. राजस्थान।

केन्द्रशासित राज्य :

  1. हिमांचल प्रदेश
  2. दिल्ली
  3. मणिपुर
  4. त्रिपुरा
  5. अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह तथा
  6. लक्षद्वीप तथा मिनिकाय द्वीप।

समूह तथा (6) लक्षद्वीप तथा मिनकाय द्वीप। इन विवरणों से यह ज्ञात होता है कि अधिनियम ने तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही राज्यों की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया था और राज्यों की माँग के आधार पर ही नये राज्यों का गठन करने का प्रयास किया था। बाद में और भी नये राज्यों का गठन तथा निर्माण कार्य चलता रहा और आन्दोलन भी जारी रहा।

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प्रश्न 12.
सरदार पटेल भाषा के आधार पर बँटवारे के विरुद्ध क्यों थे ? संक्षेप में उत्तर दें।
उत्तर :
देश के स्वतंत्र हो जाने के बाद ब्रिटिश भारत एवं देशी राज्यों को मिलाकर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारतीय संघ की इकाइयों का निर्माण तो कर दिया, परन्तु लोगों को इससे संतोष नहीं हुआ। उनका कहना था कि अंग्रेजो के शासन काल में भारत के प्रान्तों (राज्यों) का निर्माण किसी सिद्धान्त के आधार पर नहीं किया गया था।

उन्होंने नये प्रान्तों का गठन अपने राज्य की सुरक्षा, सामरिक महत्व तथा प्रशासनिक सुविधा आदि बातों को ध्यान में रखकर किया था, भाषा और संस्कृति के आधार पर नहीं। इसके अलावा कांग्रेस प्रादेशिक भाषाओं के आधार पर राज्यों का निर्माण का आश्वासन बहुत पूर्व सन 1920 ई० में ही दे चुकी थी। जब सरकार ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया तो भाषा व संस्कृति के आधार पर प्रान्तों के पुनर्गठन की माँग जोर पकड़ने लगी।

सरदार प्टेल, जवाहरलाल नेहरू और पट्टाभि सीतारमैया इत्यादि नेताओं ने इसका जोरदार विरोध किया। सरदार पटेल तो भाषायी आधार पर राज्यों (ग्रान्तों) के गठन के बिल्कुल खिलाफ थे। उन्हें यह आशंका उत्पन्न हो गई थी कि भाषा व संस्कृति के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करने से विघटनकारी प्रवृत्तियों को बल मिलेगा, जिससे देश की राजनैतिक और सांस्कृतिक एकता के लिए भयकर खतरा उत्पन्न हो जाएगा।

सरदार पटेल ने कहा, “‘इस समय भारत की पहली और आखिरी जरूरत है कि उसे एक राष्ट्र बनाया जाय। राष्ट्रवाद का बढ़ावा देने वाली हर ड्रीज आगे बढ़नी चाहिए और उसके रास्ते में रूकावट डालने वाली हर चीज को खारिज किया जाना चाहिए।” सन् 1948 में सांविधान सभा ने न्यायपूर्ति एस० के० धर की अध्यक्षता में एक आयोग की स्थापना की जिसने भाषायी आधार पर राज्यों के गठन की माँग को ठुकरा दिया।

इसके बाद इस समस्या ने व्यापक आन्दोलन का रूप ले लिया। आन्द्र में भाषा के आधार पर राज्य की स्थापना को लेकर उग्र आन्दोलन हुए साथ ही मद्रास प्रान्त भी दंगों के लपेट में आ गया। जब स्थिति अनियन्त्रित हो गयी तो विवश होकर भारत सरकार को 953 ई० में मद्रास प्रान्त के तेलगू भाषा- भाषी लोगो को अलग कर एक नये आन्ध्र प्रदेश की स्थापना करनी पड़ी। इसके बाद देश के अन्य कई प्रान्तों का निर्माण भी भाषायी आधार पर किया गया।

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प्रश्न 13.
भारत के स्वतंत्रता के बाद देश की सबसे बड़ी समस्या क्या थी ? अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर :
भारत के स्वतंत्रता के बाद देशी राज्यों (रियासतों) के विलय और उनका एकीकरण करना एक बहुत बड़ी समस्या थी। स्वाधीनता पूर्व देश में कुल छोटी-बड़ी लगभग 600 रियासतें थीं जिनकी जनसंख्या लगभग 9 करोड़ थी और देश के 48 % भूभाग में फैले हुए थे। जनसंख्या, क्षेत्रफल, प्रशासन तथा वित्तीय संसाधनों की दृष्टि से सभी रियासतें एक दूसरे से अलग थीं।

रियासतों के संबंध में कैबिनेट मिशन का प्रस्ताव : 16 मई, 1946 ई० को कैबिनेट मिशन ने देशी राज्यों के संबंध में निम्नलिखित तीन तरह का प्रस्ताव रखा था-

  1. भारत के स्वाधीन होते ही वहाँ से बिटिश प्रभुसत्ता समाप्त हो जाएगी।
  2. आजादी के बाद भारत संघ का गठन ब्रिटिश शासित.भारत और देशी रियासतों (राजाओं द्वारा शासित) को मिलाकर होगा तथा विदेश नीति, सुरक्षा और आवागमन के संसाधनों पर भारत संघ का नियंत्रण होगा।
  3. इन तीनों विभागों के अलावा देशी रियासतों को आन्तरिक प्रशासन की स्वतंत्रता होगी।

प्रश्न 14.
भारत-पाकिस्तान विभाजन से उत्पन्न समस्या का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
देश स्वाधीन होने के पश्चात् 1947 ई० में भारत को दो संप्रभुता सम्पन्न राज्यों में बाँट दिया गया। इस प्रकार से भारत के दो टुकड़े होने का मुख्य कारण साम्भदायिक दंगो का होना था अतः हिन्दू बाहुल्य देश का नाम भारत तथा मुस्लिम बाहुल्य देश का नाम पाकिस्तान पड़ा। दोनों देशों में बहुत बड़े स्तर पर हिंसक घटनाएँ हुई तथा लाखों लोगों को पलायन करना पड़ा।

यूरोपीय महाध्वश की भाँति हमें बैंटवारें को केवल राजनीतिक घटना नहीं समझना चाहिए। इस बँटवारे के पश्चात् दोनों देशों में शरणार्थियों की समस्या का जन्म हुआ जिसके कारण बहुत बड़े पैमाने पर विध्वंश हुए और लाखों लोगों को साम्पदायिकत्ता के नाम पर जान से हाथ धोना पड़ा।

विवरणात्मक प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 8 MARKS

प्रश्न 1.
विभाजन के पश्रात भारत में देशी राज्यों (रियासतों) के विलय की व्याख्या कीजिए।
अथवा
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देशी राज्यों के विलय को लेकर भारत को किन-किन संकटों का सामना करना पड़ा और उसका समाधान किस प्रकार किया गया ?
उत्तर :
भारत के स्वतंत्रता के बाद देशी राज्यों (रियासतों) के विलय और उनका एकीकरण करना एक बहुत बड़ी समस्या थी। स्वाधीनता पूर्व देश में कुल छाटी-बड़ी लगभग 565 रियासतें थी जिनकी जनसंख्या लगभग 9 करोड़ थी और देश के 48 % भूभाग में फेले हुए थे। ज़नस्या, क्षेत्रफल, प्रशासन तथा वित्तीय संसाधनों की दृष्टि से सभी रियासते एक दूसरे से अलग थीं।

रियासतों के संबंध में कैबिनेट मिशन का प्रस्ताव : 16 मई, 1946 ई० को कैबिनेट मिशन ने देशी राज्यों के संबंध में निम्नलिखित तीन तरह का प्रस्ताव रखा था –

  1. भारत के स्वाधीन होते ही वहाँ से ब्रिटिश प्रभुसत्ता समाप्त हो जाएगी।
  2. आजादी के बाद भारत संघ का गठन ब्रिटिश शासित भारत और देशी रियासतों (राजाओं द्वारा शासित) को मिलाकर होगा तथा विदेश नीति, सुरक्षा और आवागमन के संसाधनों पर भारत संघ का नियंत्रण होगा।
  3. इन तीनों विभागों के अलावा देशी रियासतों को आन्तरिक प्रशासन की स्वतंत्रता होगी।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 ई० और देशी रियासतें (The Indian Independence Act-1947 and Native States) : स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में प्राय: 140 राज्य ऐसे थे जो अंग्रेजी शासन के अधीन रहकर राज्य करते थे परन्तु आन्तरिक रूप से वे स्वतंत्र थे। ब्रिटिश शासन द्वारा देश छोड़ने तथा स्वाधीनता प्रदान करने की बात सुनकर इन्हें (राज्यों को) बड़ी चिन्ता हुई। उन्होंने अंग्रेजी सरकार से इस संबंध में वार्तालाप भी किया पर उसका कोई परिणाम नहीं निकला।

18 जुलाई, 1947 ई० को ब्रिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम में कहा गया कि ब्रिटिश प्रभुसत्ता भारतीय राज्यों पर से समाप्त हो जाएगी और उनसे की गयी संधियाँ और समझौते उसी दिन समाप्त हो जाएंगे जिस दिन भारत व पाकिस्तान स्वतंत्र राज्यों का निर्माण होगा।

यह भी कहा गया कि वे अपनो इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में मिल सकते हैं या चाहे तो स्वतंत्र रहकर अपना अस्तित्व बनाए रख सकते हैं। यह स्पष्ट था कि देशी रियासतों के शासकों को कुछ अंग्रेजी पदाधिकारी तथा भारतीय नेता उन्हें स्वतंत्र रहने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। अतः अंग्रेजों ने जाते-जाते देश को विकट समस्याओं में डाल दिया था।

15 अगस्त, 1947 ई० को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी स्पष्ट शब्दों में घोषित किया कि अंग्रेजों को भारत छोड़कर चले जाने के बाद कांग्रेस किसी भी देशी रियासत को स्वायत्तता की मान्यता नहीं देगी। प० जवाहरलाल नेहरू का भी कहना था कि – “भारतीय संघ की भौगोलिक सीमा के भीतर किसी भी स्वतंत्र देशी राज्य को मान्यता नहीं दी जाएगी।”

देशी राज्यों का भारतीय संघ में विलय में सरदार पटेल का योगदान : देशी रियासतों को भारतीय संघ में बिलय करने के लिए भारत सरकार ने तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल के नेतृत्व में जुलाई, 1947 ई० में एक विशेष ‘राज्य मंत्रालय’ की ‘स्थापना की। सरदार पटेल इस मंत्रालय के प्रभारी (Incharge) थे और वी० पी० मेनन सचिव थे।

विभाजन के समय खैरपुर और बहावलपुर आदि रियासतें पाकिस्तान में शामिल हो गई और शेष भारत में रह गई। सरदार पटेल ने देशी रियासती के राजाओं एवं शासकों से अपील की कि वे अपनी इच्छा से भारत संघ में शामिल हो जाएं और देश की अखण्डता बनाए रखने में मदद करें। दूसरी ओर उन्होंने देशी राजाओं पर कूटनीतिक दबाव डालते हुए यह धमकी भी दिया कि यदि आवश्यक हुआ तो अलगाववादी देशी रियासतों के विरुद्ध बल प्रयोग भी किया जाएगा।

20 जुलाई, 1947 ई० को देशी राज्यों के प्रमुखों (शासकों) की बैठक हुई जिसमें लार्ड माउण्टबेटन ने सलाह दी कि वे सुरक्षा, विदेश नीति यातायात एवं संचार सेवा को भारतीय संघ को सौप कर अपना अस्तित्व बनाए रखें। सरदार पटेल ने 40 दिनों तक पूरे देश में घूम-घूमकर देशी रियासतों को भारत संघ मे शामिल होने के लिए आग्रह किया और उन्हें यह विश्वास दिलाया कि कांग्रेस राज्यों के आन्तरिक मामलों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेगा।

उन्होंने राजाओं की आर्थिक हितों का आश्षासन दते हुए उनके सांस्कृतिक भावनाओं को भी जागृत किया। देशी राज्यों को भारतीय संघ में सम्मिलित होने के लिए अन्तिम तिथि 5 अगस्त, 1947 ई० को घोषित की गई थी। इस तिथि को प्रवेश-ग्रात्र (instrument of Accession) पर सबों ने हस्ताक्षर कर दिया। केवल जूनागढ़, हैदराबाद एवं कश्मीर तीन देशी राज्य भारतीय संघ में शामिल होने में आपत्ति जताई जिन्हें भारत संघ में शामिल करने में विशेष कठिनाईयों का सामना करना पड़ा।

जूनागढ़ की समस्या : जूनागढ़, काठियावाड़ में एक छोटी सी रियासत थी, जहाँ का शासक (नवाब) मुसलमान था नवाब ने सितम्बर, 1947 ई० में जनता की राय लिए बिना पाकिस्तान में शामिल होना चाहता था। यहाँ की बहुसंख्यक जनसंख्या हिन्दू थी तथा यह राज्य भारतीय सीमाओं से घिरा हुआ था। जनता ने नवाब के फैसले का तीव्र विरोध करते हुए वहाँ ‘स्वतंत्र अस्थायी सरकार’ की स्थापना कर ली। भारत सरकार ने भी नवाब के निर्णय की निदा की। नवाब विद्रोह से घबड़ाकर पाकिस्तान भाग गया। फरवरी, 1948 ई० में जनमत संग्रह द्वारा जूनागढ़ को भारत संघ में सम्मिलित कर लिया गया।

हैदराबाद की समस्या : हैदराबाद दक्षिण भारत की एक बड़ी रियासत धी जो चारों तरफ से भारतीय सीमाओं से घिरा हुआ था। यहाँ का शासक मुसलमान था जबकि यहाँ बहुसंख्यक जनसंख्या हिन्दूओं की थी। प्रशासन के क्षेत्र में मुसलमान अधिकारियों का प्रभाव उसके राज्य में अधिक था। हिन्दू जनता हैदराबाद को भारतीय सघ में शामिल करने के पक्ष में थी परन्तु वहाँ का निजाम (नवाब) अपने राज्य के स्वतंत्र अस्तित्व को कायम रखना चाहता था।

लार्ड माउण्ट बेटन के प्रयास से नवम्बर, 1947 ई० में भारत और निजाम के बीच अस्थायी एक समझौता हुआ था किन्तु निजाम ने समझौते का पालन नहीं किया। उसके संरक्षण और प्रोत्साहन से मुसलमान रज्जाकार हिन्दुओं पर अत्याचार करने लगे। दूसरी ओर से पाकिस्तान भी इन आक्रमणकारियों को अप्रत्यक्ष रूप से मदद कर रहा था। अन्त में विवश होकर भारत सरकार ने सितम्बर, 1948 ई० में हैदराबाद के खिलाफ सैनिक कार्यवाही आरम्भ कर दी। मेजर जनरल जे० एन० चौधरी ने 18 सितम्बर, 1948 ई० को हैदराबाद के सैनिक गवर्नर का पद सम्भाला और अपने ताकत के बल पर हैदराबाद को भारतीय संघ में मिला लिया

कश्मीर की समस्या : देशी राज्यों का भारतीय सघ में विलय के संबंध में जम्म-कश्मीर राज्य की समस्या सबसे जटिल थी क्योंकि वहाँ का शासक हरि सिंह हिन्दू था परन्तु राज्य की 80 % जनता मुसलमान थी। महाराजा को यह भय था कि यदि हम भारत में शामिल होते हैं तो यहाँ की मुस्लिम जनता विद्रोह कर देगी और दूसरी ओर यदि पाकिस्तान मे सम्मिलित होंगे तो हमे महाराजा की गद्दी से हाथ धोना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में महाराजा ने स्वतंत्र रहकर भारत तथा पाकिस्तान दोनों से मैत्रीपूर्ण समझौता करने का फैसला किया।

अत: भारत सरकार ने भी महाराजा हरि सिंह पर कोई दबाव नहीं डाला परन्तु पाकिस्तान के सैनिकों ने कबाइलियों के साथ मिलकर कश्मीर पर आक्रमण कर दिया तथा हिन्दूओं पर अत्याचार करने लगे यही से कश्मीर समस्या का जन्म हुआ। कबाइली ज़ब आक्रमण करते हुए श्रीनगर के करीब पहुँच गए तो महाराजा ने भारत सरकार से सहायता माँगी और बिना शर्त भारत में सम्मिलित होने के लिए सहमत हो गए।

27 अक्टूबर, 1947 ई० को भारतीय हवाई सेना ने आक्रमण करके श्रीनगर को बचा लिया और वहाँ शान्ति स्थापित की। इस प्रकार आक्रमण करके युद्ध द्वारा कश्मीर को भारत में मिला लिया गया परन्तु कश्मीर का बहुत बड़ा क्षेत्र आज भी ‘आजाद कश्मीर’ के नाम से पाकिस्तान के कब्जे में है और यही क्षेत्र आज भी भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का कारण बना हुआ है।

इस प्रकार उपरोक्त विवरणों से यह ज्ञात होता है कि विभाजन के पहले एवं पक्षात भारत के देशी रियासतों को विलय करने में भारी मसक्कत करनी पड़ी थी। अत: सरदार पटेल, लार्ड माउण्टबेटन, जवाहरलाल नेहरू, वी० पी० मेनन, शेख अब्दुल्ला और मेजर जनरल जे० एन० चौधरी के अंथक परिश्रम से देशी राज्यों का भारतीय संघ में विलय सम्भव हो पाया।

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प्रश्न 2.
भाषाओं के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का प्रयास किस प्रकार किया गया था ?
अथवा
भाषायी आधार पर देशी राज्यों के पुनर्गठन में भारत को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ा था ? इनका समाधान किस प्रकार किया गया ?
उत्तर :
15 अगस्त, 1947 ई० को भारत स्वतंत्र हुआ और साथ हो साम्भदायिकता के आधार पर देश का विभाजन कर दिया गया। दोनों देशों में उनके अधीन राज्यों को संगठित और पुनर्गठन करने की समस्या पैदा हो गई। भारत में सबसे पहले देशी राज्यों को भारतीय संघ में सम्मिलित किया गया।

तत्पश्चात जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर की समस्याओं को सुलझाकर उन्हे भारतीय संघ का अंग बनाया गया। देशी रियासतों (राज्यों) का भारतीय संघ में विलय के पध्धात देश मे भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन को नई समस्या पैदा हो गई और देश के विभिन्न भागों में भाषायी आधार पर राज्यो के गठन की माँग जोर पकड़ने लगी।

सरदार बल्लभ भाई पटेल के दृढ़ नेतृत्व एवं कुशल कृटनीति के द्वारा देशी रियासते भारत संघ में सम्मिलित हो गई, परन्तु भारतीयों को इससे संतोष नहीं हुआ। उनका तर्क था कि अंग्रेजों के शासनकाल में भारतीय प्रान्तो का निर्माण किसी सिद्धान्त के आधार पर नहा किया गया था। धीरे-धीरे अंग्रेों का प्रभुत्व क्षेत्र बढ़ता गया और नए-नए प्रान्त भी अस्तित्व में आते गए। अंग्रेजों ने अपने विजित क्षेत्रों का संगठन किसी उचित आधार पर नहीं किया था।

उन्होंन नए प्रान्तो का गठन अंग्रेजी राज्य की सुरक्षा, विजित क्षेत्र का सामरिक महत्व, राजनीतिक आवश्यकता तथा प्रशासनिक सुविधा आदि को ध्यान में रखकर किया था, प्रान्तीय तथा भाषायो आधार पर नहीं किया था। स्वतंभ्रता के पूर्व से ही भारत में भाषायी आधार पर प्रान्तों के गठन करने की माँग की जाने लगी थी और उस समय कांग्रेस तक प्रादेशिक भाषाओं के आधार पर राज्यों के निर्माण करने का आशासन भी दे चुकी थी।

परन्तु आजादी के बाद कांग्रेस सरकार इन बातों पर ध्यान न देकर राज्यों क पुनर्गठन की कोशिश में लगी हुई थी। उसी समय एक बार फिर प्रान्तीय भाष्ण और संस्कृति के आधार पर प्रान्तों के पुनर्गठन की माँग जोर पकड़ने लगी। आजादी के प्रारम्भिक तीन-चार वर्षों तक कांग्रेस सरकार ने इस बात पर ध्यान दिया।

सरदार पटेल और जवाहरलाल नेहरू दोनों ही भाषा के आधार पर राज्यों के गठन के विरोधी थे। सरदार पटेल ने कहा कि ‘इस समय भारत की पहली और आखिरी जरूरत यह है कि इसे एक राष्ट्र बनाय” जाए। राप्र्रवाद को बढ़ावा देने वाली हर चीज आगे बढ़नी चाहिए और उसके रास्ते में रुकावट ड़ालने वाली हर चीज को खारिज किया जाना चाहिए।”

कांग्रेसी नेताओं में पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और पट्टाभि सीतारमैया इत्यादि को यहु आशंका थी कि भाषा और संस्कृति के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करने से विघटनकारी प्रवृत्तियों को बल मिलेगा, जो देश कों। राजनीतिक एवं सांस्कृतिक एकता के लिए घातक सिद्ध होगा। 1948 ई० में भारत सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज एस० के० धर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया।

इसका प्रमुख कार्य भाषा के आधार पर देशी राज्यों का पुर्गठन करना था परन्तु इसने भाषायी आधार पर राज्यों की गठन की माँग को ठुकरा दिया केवल इसने राज्यों के ऐतिहासिक, भौगोलिक एवं आर्थिक हालातों पर ही ध्यान दिया। दिसम्बर, 1948 ई० में राष्ट्रीय कांग्रेस ने जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और पट्टाभि सोतारमैया के निगरानी मे एक समिति का गठन किया जिसे जे० बी० पी० समिति कहा जाता है।

इसका प्रमुख कार्य भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के विषय को नये सिरे से देखना था। अप्रेल, 1949 ई० में इस समिति ने अपना रिपोर्ट पेश किया जिसमें भाषायी आधार पर राज्यों के गठन को अस्वीकार कर दिया गया और कहा गया कि जनता के चाहन पर ही इस विषय पर पुन: विचार किया जा सकता है।

अत: जब कांग्रेसी नेताओं और समितियों ने भाषायी आधार पर राज्यों के गठन की माँग को ठुकरा दिया तो इस समस्या ने एक विशाल आन्दोलन का रूप ले लिया। जगह-जगह विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गया। कन्नड़भाषी मलयालम भाषी और मराठी भाषा-भाषी के लोग अलग-अलग राज्य की माँग करने लगे।

सर्वपथम आथ्ध में भाषायी आधार पर आन्ध राज्य को स्थापना की माँग को लेकर आन्दोलन शुरू हुआ था। सबसे गहता असंतोष मद्रास प्रेसीडेन्सी के तेलगू भाषी जिलों में दिखाई दिया। जब 1952 ई० के आम चुनावों में नहरू जी वहाँ गए तो वहाँ के लोगों ने उन्हें काले झण्डे दिखाए और ‘हमें आव्स चाहिए” का नारा लगाया।

उसी वर्ष वयोवृद्ध गाँधीवादी नेता पोड़ी श्रैरामाल्लु ने तेलगूभाषियों के हितों की रक्षा करने के लिए आन्दोलन में शामिल हो गए। उन्होंने तत्काल आब्य प्रदेश राज की स्थापना के लिए भारत सरकार से आग्रह किया। सरकार ने जब उनकी माँग को ठुकरा दिया तो वे सरकार के विरोध में आमरण अनशन पर बैठ गए और 58 वें दिन 15 दिसम्बर, 1952 ई० को उनकी मृत्यु हो गई।

उनके मृत्यु के पक्धात मद्राल प्रान्त में दंगे आरम्भ हो गए। धीरे- धीरे आन्दोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया। सरकार के दमन चक्र के बाद भी जब स्थिति काबू में नहीं आई तो भारत सरकार ने विवश होकर अक्टूबर, 1953 ई० में मद्रास प्रान्त के कुछ तेलगू भाषा-भाषी क्षेत्रों की अलग करके एक नये आन्ध राज्य की स्थापना कर दी। इस प्रकार भाषायी आधार पर आश्भ प्रदेश सबसे पहला राज्य बना।

आक्ष प्रदेश की स्थापना के बाद अन्य भाषा-भाषी क्षेत्र के लोग भी अपने-अपने अलग राज्यों की माँग करने लगे। अत: 22 दिसम्बर, 1953 ई० को जवाहरलाल नहहरू ने फजल अली के नेतृत्व में एक समिति का गठन की घोषणा की जो भाषायी आधार पर राज्यों के गठन की माँग पर ध्यान दे। के० एम० पाणिक्कर और हुदनाथ कुँजरू इसके प्रमुख सदस्य थे। देश्रा के विभिन्न भागों का दौरा करके सन् 1955 में इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश की।

इस आयोग ने पूरे देश को सोलह राज्यों और तीन केन्द्रशासित राज्यों में पुनर्गठन करने की अपील की। परन्तु इस आयोग ने पंजाबी भाषा और मराठी भाषा के राज्य के लिए कोई अलग प्रावधान नहीं बनाया था। राज्य पुनर्गठन आयोग की त्रुटियों को दूर करने के लिए भारतीय संसद नवम्बर, 1956 ई० में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया जिसके अनुसार 14 राज़्यों और 6 केन्द्रशासित राज्यों का उद्य हुआ।

1960 ई० में आन्दोलन और हिंसा के कारण बम्बई राज्य का विघटन कर महाराष्ट्र और गुजरात राज्य कों। स्थापना इस अधिनियम के तहत की गई। फलस्वरूप भारत में राज्यों की संख्या 15 हो गई। सन् 1962 में चण्डीगढ़ नामक कंद्रशासित क्षेत्र बना। सन् 1963 में नागा लोगों के लिए नागालैण्ड का निर्माण किया गया। अब कुल राज्यों की संख्या 16 हो गई थी। सन् 1964 में गोवा, दमन एवं दीव, पाण्डीचेरी, दादर एवं नगर हवेली केन्द्रशासित क्षेत्रों का गठन किया गया।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 8 उत्तर-औपनिवेशिक भारत बीसवीं शताब्दी का द्वितीयार्द्ध

प्रश्न 3.
विभाजन के पश्चात शरणार्थियों को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ा था और उसका समाधान किस प्रकार किया गया ?
अथवा
भारत में आने वाले और भारत से पाकिस्तान जाने वाले शरणार्थियों के कष्टों और समस्याओं का उल्लेख करते हुए उसे सुलझाने के प्रयासों का वर्णन करें।
उत्तर : 15 अगस्त, 1947 ई० को हमारा देश (भारत) स्वतंत्र हुआ और उसी समय भारत का विभाजन साम्भदायिकता के आधार पर कर दिया गया था। संयुक्त भारत को दो भागों में बाँटकर पूर्वी एवं पध्धिमी पाकिस्तान तथा भारत दो अलग देशों का निर्माण हुआ था। देश के विभाजन में सबसे अधिक क्षति पंजाब और बंगाल प्रान्तों की हुई थी क्योंकि इन दोनों प्रान्तों का विभाजन कर ही पाकिस्तान का गठन हुआ था। बंगाल का पूर्वी भाग जो वर्तमान में बंगलादेश के नाम से जाना जाता है उसे पाकिस्तान में सम्मिलित कर दिया गया और पश्चिम बंगाल को भारत में शामिल कर लिया गया। उसी प्रकार पंजाब के पथ्विमी भाग को पाकिस्तान में तथा पूर्वी भाग को भारत में विभाजन कर दिया गया।

शरणार्थियों की समस्या : विभाजन होते ही पाकिस्तान से हिन्दूओं का तथा भारत से मुसलमानों का पलायन आरम्भ हुआ। भारत और पाकिस्तान सीमा के नगरों एवं ग्रामों के गैर-मुसलमान (हिन्दू) भारत में असंगठित दलों के रूप में आना आरम्भ कर दिए। पाकिस्तानी सैनिकों की सहायता से हिन्दू भारत की सीमा में झुण्ड के घुण्ड प्रवेश करने लगे। सहायता की आड़ में पाकिस्तानी सैनिक हिन्दुओं के साथ बदसलूकी करते थे। रास्ते में बच्चों एवं ख्तियों का अपहरण हो जाता था। उनकी अनाधिकृत तलाशी ली जाती थी और उनके रुपये-पैसे सब छीन लिये जाते थे।

हजारों लड़कियों को पाकिस्तानी सैनिक और अफसर रास्ते में बलपूर्वक रोक लेते थे। पाकिस्तान में हिन्दू और भारत में मुसलमान खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे थे। अतः पाकिस्तान से बड़ी संख्या में हिन्दुओं का पलायन एवं भारत से मुसलमानों का पलायन करने से दोनों देशों में शरणार्थियों के पुनर्वास और उनके देख-रेख की समस्या पैदा हो गई थी। देश के विभिन्न हिस्से में साम्पदायिकता की आग फैल गई थी। जगह-जगह दंगे आरम्भ हो गए थे।

साम्पदायिक दंगों का सबसे अधिक प्रभाव पजाब और पश्चिम बंगाल के कलकत्ता में दिखाई पड़ रहा था। विभाजन के समय पलायन के दौरान पंजाब में दंगे भड़क गए। सिक्ख, मुसलमानों को दोषी ठहराते थे और मुसलमान सिक्खों को दोषी ठहराते थे। लाहौर में कर्फ्यू लगाकर मुसलमान अफसरों ने हिन्दुओं के दुकानों में आग लगा दी, उनके दुकानों को लूट लिया। हिन्दू, सिक्ख और मुसलमानों के हथियार बन्द दस्ते (समूह) शहर के चारों ओर घूम-घूमकर निहत्थी जनता पर गोलियाँ बरसा रहे थे। साम्पदायिकता की आग में पूरा पंजाब जलकर खाक हो गया। इस आग में लगभग चार लाख लोगो की जाने चली गई। करीब 60 लाख हिन्दू और सिक्ख पाकिस्तान से भारत आए एवं करीब उतने ही मुसलमान भारत से पाकिस्तान के तरफ कूच किए।

दूसरी ओर बंगाल के नोआखाली में भी साम्पदायिक दंगे आरम्भ हो गए थे। देश के विभिन्न राज्यों में भी दंगों का प्रभाव पड़ने लगा था। धौरे-धीरे गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश और देश के अन्य हिस्सों में भी साम्पदायिक दंगे आरम्भ होने लगे थे। प्रतिरक्षा मंत्री सरदार बलदेव सिंह साम्पदायिक दंगों को रोकने में असमर्थ थे। इसके अलावा सीमा सुरक्षा बल के सैनिक अपने ही देश के लोगों पर गोली चलाने से इन्कार कर दिये थे। दिन पर दिन शरणार्थियों की समस्या विकट रूप धारण कर रही थी।

देश में भोजन एवं अन्य दैनिक आवश्यक सामग्रियों का अभाव हो रहा था और देश पर प्रशासनिक तंत्र के दूट कर समाप्त हो जाने का खतरा मँडरा रहा था। लाखों की संख्या में लोग निर्वासित होकर इधर-उधर भटकने लगे और उन्हें शरणार्थियों की तरह जीवन बिताने के लिए विवश होना पड़ा। बहुत सारे हिन्दू और मुसलमान अपने ही देश में निर्वासित हो गए। अत: देश में शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या पैदा हो गई।

शरणार्थियों को पुनर्वास करने का प्रयास : शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या भारत और पाकिस्तान दोनों के सामने विकराल रूप धारण किये खड़ी थी। साम्पदायिकता के आधार पर देश विभाजन के कारण ही साम्भदायिक दंगे आरम्भ हो गये थे। दोनों ही देशों में अल्पसंख्यकों पर भीषण अत्याचार होने लगे थे। विभाजन के कुछ ही महीनों के दौरान करीब 5 लाख निर्दोष जनता को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और अरबों की सम्पत्ति जलकर खाक हो गई। करीब एक करोड़ लोगों को अपना सबकुछ त्यागकर दूसरे राष्ट्र में जाने के लिए मजबूर कर दिया गया।

पूर्वी बंगाल के ज्यादातर शरणार्थियों का पुनर्वास भारत के नये राज्य प्विम बंगाल में हुआ था, इसके अलावा असम और त्रिपुरा में भी उन्हें बसाया गया। पाकिस्तान और भारत में शरणार्थियों की समस्याओं को देखते हुए 8 अप्रैल, 1950 ई० को भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के बीच उनकी सुरक्षा के सवाल को सुलझाने के लिए एक संधि हुई, जिसे ‘नेहरू लियाकत समझौता’ के नाम से जाना जाता है।

हिन्दू सम्प्रदाय के लोगों ने इसे अंस्वीकार कर दिया और इसी परिपेक्ष में बंगाल के दो कैबिनेट मंत्री डॉ॰० श्यामा प्रसाद मुखर्जी और के० सी० नियोगी ने मंत्रीमण्डल से विरोध स्वरूप अपना त्यार्ग पत्र दे दिया। देश के अन्दर तमाम विरोधाभास के होते हुए भी इसे स्वीकार कर लिया गया। परन्तु इसके बाद भी पूर्वी बंगाल से हिन्दूओं का पलायन जारी रहा।

देश के लिए सबसे बड़ी समस्या पाकिस्तान से आए 60 लाख शरणार्थियों के लिए पुनर्वास की व्यवस्था करना था और साथ ही उनके विकट समस्याओं को सुलझाना था। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारत सरकार एक नया विभाग पुनर्वास के लिए गठित किया। इस विभाग ने शरणार्थियों के समस्याओं को सुलझाने के लिए अथक प्रयास किया। इस विभाग ने भारत से पलायन किए हुए मुसलमानों की धन-सम्पत्ति एवं जमीनों को भारत में आए शरणार्थियों के बीच बाँट दिया।

पूर्वी बंगाल से आए शरणार्थी को भारत के अन्य राज्यों में बसाया गया। अनुमानत: करीब 5 लाख दिल्ली में एवं 3 लाख मुम्बई में और लगभग 6 लाख से ज्याद लोग बगाल में आकर बस गए। 1951 ई० तक आते-आते शरणार्थियों की समस्या लगभग हल हो गई थी। भारत में आए सभी शरणार्थी अब भारत के संविधान को स्वीकार कर पूर्ण रूप से भारतवासी बन गए।

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