Detailed explanations in West Bengal Board Class 10 History Book Solutions Chapter 7 20वीं शताब्दी में भारत में महिलाओं, छात्रों और अल्पसंख्यकों के द्वारा आंदोलन का संगठन, विशेषताएँ एवं निरीक्षण offer valuable context and analysis.
WBBSE Class 10 History Chapter 7 Question Answer – 20वीं शताब्दी में भारत में महिलाओं, छात्रों और अल्पसंख्यकों के द्वारा आंदोलन का संगठन, विशेषताएँ एवं निरीक्षण
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK
प्रश्न 1.
मास्टर दा के नाम से किसे जाना जाता था ?
उत्तर :
सूर्य सेन को ‘मास्टर दा’ के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 2.
मतुआ संप्रदाय के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर :
श्री हरिचाँद ठाकुर।
प्रश्न 3.
‘गाँधीबूड़ि’ किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
मातंगिनी हाजरा को।
प्रश्न 4.
अनुशीलन समिति की स्थापना का क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर :
अनुशीलन समिति की स्थापना का उद्देश्य ऋषि बंकिम चन्द्र चटर्जी के बताये व दिखाये गये क्रान्तिकारी मार्गो का अनुशीलन करना था।
प्रश्न 5.
बंगाली समाज अर्थात् बंगाल में क्रान्तिकारियों की मौसी किसे कहा जाता था ?
उत्तर :
हावड़ा की बाल विधवा ननीबाला देवी को।
प्रश्न 6.
भारत की प्रथम छात्रा संगठन का क्या नाम था ?
उत्तर :
दीपाली छात्रा संघ।
प्रश्न 7.
सर्व प्रथम राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना 8 नवम्बर 1905 को कहाँ हुई थी ?
उत्तर :
रंगपुर में।
प्रश्न 8.
देश की प्रथम स्नातक महिला कौन थी ?
उत्तर :
कांदबिनी गांगुली (गंगोपाध्याय) थी।
प्रश्न 9.
भारत में किस अधिनियम के द्वारा स्त्रियों को मताधिकार प्राप्त हुआ था ?
उत्तर :
1919 ई० के अधिनियम द्वारा।
प्रश्न 10.
अखिल भारतीय महिला संघ की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर :
1927 ई० में।
प्रश्न 11.
शहीद मातंगिनी हाजरा ने किस स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया था ?
उत्तर :
1942 ई० के भारत छोड़ो आन्दोलन में।
प्रश्न 12.
12 फरवरी को मनाया जाने वाला ‘रशिद अली दिवस’ को राष्ट्रीय काँग्रेस पार्टी किस रूप में मनाती है ?
उत्तर :
हिन्दू-मुस्लिम एकता दिवस के रूप में।
प्रश्न 13.
1904 ई० में स्थापित गुप्त संगठन ‘मित्र मेला’ का परिवर्तित नाम क्या था ?
उत्तर :
अभिनव भारत।
प्रश्न 14.
मेरठ षड़यंत्र मुकदमा के किसी एक अभियुक्त का नाम लिखिए।
उत्तर :
एम० एस० डांगे, या मुजफ्फर अहमद।
प्रश्न 15.
ताप्रलिप्त राष्ट्रीय सरकार की स्थापना किसने की ?
उत्तर :
सतीशचन्द्र सामंत ने ताम्मलिप्त राष्ट्रीय सरकार की स्थापना की।
प्रश्न 16.
बंग-भंग आन्दोलन कब समाप्त हो गया ?
उत्तर :
सन् 1911 में।
प्रश्न 17.
नामशुद्र (नमशुद्र) आन्दोलन के एक नेता का नाम लिखिए।
उत्तर :
श्री हरिचाँद ठाकुर।
प्रश्न 18.
पुलिन बिहारी दास कौन थे ?
उत्तर :
ये ढाका के अनुशीलन समिति के संचालक थे।
प्रश्न 19.
भारत के प्रथम क्रांतिकारी कौन थे ?
उत्तर :
महाराष्ट्र के बासुदेव बलवन्त फड़के।
प्रश्न 20.
बाघा जतीन किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
यतीन्द्रनाथ मुखोपाध्याय (मुखर्जी) को।
प्रश्न 21.
अनुशीलन समिति के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर :
सतीश चन्द्र बसु।
प्रश्न 22.
बंगाल का प्रथम शहीद कौन था।
उत्तर :
खुदीराम बोस सन् 1908 में।
प्रश्न 23.
‘हिन्दू मेला’ की स्थापना किसने की ?
उत्तर :
नवगोपाल मित्र ने।
प्रश्न 24.
भारत का क्रांतिकारी कवि कौन है ?
उत्तर :
काजी नजरूल इस्लाम को भारत का क्रांतिकारी कवि माना जाता है।
प्रश्न 25.
‘संजीवनी’ पत्रिका के सम्पादक कौन थे ?
उत्तर :
कृष्ण कुमार मित्र।
प्रश्न 26.
बंगाल में क्रांतिकारी आन्दोलन के जनक कौन थे ?
उत्तर :
अरविन्द घोष।
प्रश्न 27.
रशीद अली दिवस कब मनाया गया था ?
उत्तर :
12 फरवरी सन् 1946 को।
28.
बसन्ती देवी कौन थी ?
उत्तर :
बसन्ती देवी चित्तरंजन दास की पत्नी थी। वह असहयोग आन्दोलन की एक सक्रिय महिला आंदोलनकारी थी।
प्रश्न 29.
सावरकर बन्धु कौन थे?
उत्तर :
गणेश सावरकर और विनायक दामोदर सावरकर को सावरकर बन्धु कहते है।
प्रश्न 30.
चापेकर बन्यु कौन थे ?
उत्तर :
दामोदर चापेकर और बालकृष्ण चापेकर को चापेकर बन्धु कहा जाता है। दोनों महाराष्ट्र के क्रांतिकारी थे।
प्रश्न 31.
महाराष्ट्र के दो क्रांतिकारी संगठनों के नाम बताइये।
उत्तर :
‘बाल समाज’ और ‘बान्धव समाज’।
प्रश्न 32.
केशव मेनन कौन थे ?
उत्तर :
केशव मेनन दक्षिण भारत के केरल के वाईकोम सत्याग्रह आन्दोलन के नेता थे, जिन्होंने दलितों के उद्धार के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया था।
प्रश्न 33.
‘मूकनायक’ और ‘बहिष्कृत भारत’ नामक पत्रिका का प्रकाशन किसने किया था ?
उत्तर :
डॉ॰० भीमराव अम्बेदकर ने।
प्रश्न 34.
‘भारत कोकिला’ किन्हें कहा जाता है ?
उत्तर :
सरोजनी नायड्ड को।
प्रश्न 35.
श्रीमती ऐनीबेसेन्ट कौन थी ?
उत्तर :
श्रीमती ऐनीबेसेन्ट एक आयरिश महिला थी। भारत में होमरूल लीग की स्थापना में इनका महत्वपूर्ण योगदान था।
प्रश्न 36.
लक्ष्मी भण्डार की स्थापना किसने की थी ?
उत्तर :
सरला देवी चौधुरानी ने।
प्रश्न 37.
भारतीय महिला राष्ट्रीय परिषद की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
सन् 1925 में।
प्रश्न 38.
डॉ० भीमराव अम्बेदकर कौन थे ?
उत्तर :
डॉ॰ अम्बेदकर जी भारतीय संविधान के निर्माता थे। उन्होंने सबसे पहले हमारे देश में छुआ-छूत के विरुद्ध आन्द्रोलन किया था।
प्रश्न 39.
वाईकोम क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर :
वाइकोम केरल राज्य में स्थित एक गाँव है। यह गाँव दलितों द्वारा मन्दिर में प्रवेश लेकर हुए सत्याग्रह आन्दोलन के कारण प्रसिद्ध है।
प्रश्न 40.
विधवा आश्रम एवं लक्ष्मी भण्डार की स्थापना किसने की थी ?
उत्तर :
सरला देवी चौधुरानी एवं अन्य महिलाओं के प्रयास से।
प्रश्न 41.
गुजरात के छात्र-छात्राओं ने भारत-छोड़ो आन्दोलन के समय किस सेना का गठन किया था ?
उत्तर :
वानर सेना।
प्रश्न 42.
दक्षिण भारत में दलित आन्दोलन के पथ प्रदर्शक कौन थे ?
उत्तर :
केरल के श्री नारायण गुरु।
प्रश्न 43.
गाँधी जी द्वारा दलितों के लिए प्रयोग किया गया ‘हरिजन’ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
ईश्वर की सन्तान।
प्रश्न 44.
मंदिर प्रवेश बिल कब पास हुआ था ?
उत्तर :
सन् 1933 में।
प्रश्न 45.
‘बंगाल नेशनल कॉलेज और स्कूल’ की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर :
14 अगस्त, 1906 को।
प्रश्न 46.
गाँधी जी किसे अपना राजनीतिक गुरू मानते थे ?
उत्तर :
गोपाल कृष्ण गोखले को।
प्रश्न 47.
नेशनल काउन्सिल आफ एजुकेशन की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर :
16 नवम्बर 1905 ई० में।
प्रश्न 48.
भवानी मंदिर की रचना किसने की ?
उत्तर :
अरविन्द्र घोष ने।
प्रश्न 49.
स्वतंत्र भारत का प्रथम स्वास्थ्य मंत्री कौन थी ?
उत्तर :
राजकुमारी अमृता कौर।
प्रश्न 50.
एंटी-सरकुलर सोसाइटी के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर :
सचीन्द्र नाथ बसु।
प्रश्न 51.
‘आनंद मठ’ की रचना किसने की थी ?
उत्तर :
बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय (चटर्जी) ने।
प्रश्न 52.
‘युगान्तर दल’ के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर :
वारीन्द्र कुमार घोष।
प्रश्न 53.
बाघा जतीन किस युद्ध में मारे गये।
उत्तर :
बूढ़ी बालम के युद्ध या कोपाद पेदा के युद्ध में।
प्रश्न 54.
रामास्वामी नैय्यर कौन थे ?
उत्तर :
रामास्वामी नैव्यर दक्षिण भारत के सामाजिक और धार्मिक सुधारक थे, जिन्होने अस्यृश्यता के विरुद्ध अभियान चलाया था।
प्रश्न 55.
नामशुद्र आन्दोलन कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
पूर्वी बंगाल (बंगाल)।
प्रश्न 56.
पूना पैक्ट या पूना समझौता कब हुआ था ?
उत्तर :
26 अगस्त 1932 ई० में।
प्रश्न 57.
भारतीय उदारपंथी संघ के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर :
श्री पी० त्याग राय और डॉ॰० टी० एम० नैयर।
प्रश्न 58.
मंदिर प्रवेश बिल कब पास हुआ था ?
उत्तर :
सन् 1933 में।
प्रश्न 59.
‘कुमारी सभा’ का गठन किसने किया था ?
उत्तर :
इलाहाबाद में रामेश्वरी नेहरू ने इस सभा का गठन किया था।
प्रश्न 60.
‘सत्याग्रह कमिटी’ की महिला सदस्यों का नाम बताओ।
उत्तर :
‘उर्मिला देवी, हेमप्रभा दास और ज्योतिर्मयी गांगुली।
प्रश्न 61.
‘वंदेमातरम्’ नामक पत्रिका का प्रकाशन कब हुआ था ?
उत्तर :
1909 ई० में।
प्रश्न 62.
बंगाल के विभाजन के लिए सर्वप्रथम प्रस्ताव किसने दिया था ?
उत्तर :
सन् 1896 में विलियम बार्ड ने।
प्रश्न 63.
‘डान’ पत्रिका का सम्पादक कौन था ?
उत्तर :
सतीश चन्द्र मुखर्जी।
प्रश्न 64.
मानिकतल्ला में बम फैक्ट्री किसने स्थापित की थी ?
उत्तर :
उल्लासकर दत्त ने।
प्रश्न 65.
सर्वप्रथम बहिष्कार का नारा किसने दिया था ?
उत्तर :
कृष्ण कुमार मित्र ने अपनी बंगाली साप्ताहिक पत्रिका ‘संजीवनी’ में।
प्रश्न 66.
‘गीता रहस्य’ नामक पुस्तक की रचना किसने की ?
उत्तर :
बाल गंगाधर तिलक ने।
प्रश्न 67.
पश्चिम भारत में सर्वप्रथम बालिका विद्यालय की स्थापना कब और किसने किया ?
उत्तर :
ज्योतिबा फूले और उनकी पत्नी सावित्री बाई ने 1851 ई० में।
प्रश्न 68.
‘द ऑल इण्डिया डिप्रेस्ड क्लास फेडरेशन’ (The All India Depressed Class Federation) की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर :
1920 ई० में डा० अम्बेदकर जी द्वारा।
प्रश्न 69.
‘अनुसूचित जाति परसंघ’ की स्थापना कब और किसने की थी ?
उत्तर :
1924 ई० में, डा० अम्बेदकर जी ने।
प्रश्न 70.
युगान्तर दल का मुख्य केन्द्र कहाँ था ?
उत्तर :
मानिकतल्ला का गार्डेन हाउस।
प्रश्न 71.
गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन कब शुरू किया ?
उत्तर :
1 अगस्त 1920 ई० को।
प्रश्न 72.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय युगान्तर पार्टी की मुख्य सदस्य कौन थी ?
उत्तर :
कमला दास गुप्ता, बीना दास।
प्रश्न 73.
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की दुर्घटना कहाँ हुई ?
उत्तर :
फारमोसा द्वीप पर।
प्रश्न 74.
बंगाल स्वयंसेवी संस्था के प्रमुख कौन-कौन थे ?
उत्तर :
विनय बादल दिनेश।
प्रश्न 75.
सूर्यसेन को फाँसी कब हुई ?
उत्तर :
12 जनवरी 1934 ई० को।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS
प्रश्न 1.
दलित किसे कहते हैं ?
उत्तर :
हिन्दू समाज की वे अछुत जातियाँ जिन्हे लम्बे समय तक उन्हें सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक व सांस्कृतिक अधिकारो से बल पूर्वक दबाकर वंचित रखा गया। उन्हें दलित कहते है। जैसे – चमार, चंडाल, दुसाध, डोम, पासी इत्यादि।
प्रश्न 2.
मातंगिनी हाजरा का स्मरण क्यों किया जाता है ?
उत्तर :
‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में हमारे देश के पुरुषों, महिलाओं, छात्रों और किसानों ने भाग लिया था। देश के कोनेकोने में विद्रोह, हड़ताल और सभाओं का आयोजन किया जा रहा था। बंगाल के तमलुक क्षेत्र में मातंगिनी हाजरा भारत छोड़ो आन्दोलन का नेतृत्व कर रही थी। वह जुलूस लेकर तमलुक थाना पर अधिकार करने की कोशिश में पुलिस की गोलियों से मारी गई। उनके बलिदान की याद में जनता ने उन्हें ‘देश माता’ की उपाधि से विभूषित किया। इसी साहस व वीरतापूर्ण कायों से महिलाओं में जोश पैदा करने के कारण उन्हें स्मरणीय रखा जाता है।
प्रश्न 3.
‘रशीद अली दिवस’ क्यों मनाया जाता था ?
उत्तर :
कैप्टन रशीद अली आजाद हिन्द फौज के प्रसिद्ध अधिकारी थे। जब उन्हें सात वर्ष की सजा हुई तो उनके सजा के विरोध में 12 फरवरी 1946 ई० को मजदूरों, छात्रों, ट्राम के मजदूरों तथा बहुत से लोगों ने जोरदार जूलूस व हड़ताल किये। इस प्रकार उनके मुक्ति तथा राष्ट्रीय एकता के रूप में ‘राशिद अली दिवस’ मनाया गया था।
प्रश्न 4.
एन्टी सर्कुलर सोसाइटी किस उद्देश्य से स्थापित की गयी ?
उत्तर :
1905 ई० के बंग-भंग विरोधी आन्दोलन से छात्रों को दूर रखने के लिए तत्कालीन वायसराय लाई कर्जन के शिक्षा सचिव कर्लाइल ने एक परिपत्र जारी किया था, उसी परिपत्र के विरु द्ध छात्र नेता सचीन्द्र प्रसाद बसु ने 1905 ई० में एण्टी कर्लाइल जारी किया था। इसका उद्देश्य सरकारी स्कूल से बाहर निकाले गये छात्रों को वैकल्पिक शिक्षा व्यवस्था करना, तथा उनमें देश प्रेम की भावना जागृत करना था।
प्रश्न 5.
दीपाली संघ क्यों स्थापित किया गया ?
उत्तर :
लीला नाग (राय) द्वारा 1923 ई० में नारियों को शिक्षित करने, उन्हें स्वावलम्बी बनाने, देशप्रेम की भावना को जागृत करने तथा क्रान्तिकारी विचार-धारा को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से ‘दीपाली संघ’ की स्थापना की गई थी।
प्रश्न 6.
प्रीतिलता वाद्देदर के बारे में क्या जानते हो ?
या
प्रीतिलता वाद्देदर क्यों स्मरणीय है ?
उत्तर :
यह बंगाल की राष्ट्रवादी क्रांतिकारी एवं भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की प्रथम महिला शहीद नेत्री थी। वह बड़ी शूर-वीर और साहसी महिला थी एवं सूर्यसेन के साथ कई क्रांतिकारी आन्दोलनों में शामिल थी। वह छापामार दस्ता की सदस्य थी। उन्होंने एक यूरोपियन क्लब पर आक्रमण किया और पकड़े जाने के भय के कारण “पोटैशियम साइनाइड’ खाकर आत्महत्या कर ली। बंगाल की यह वीरांगना भारत माँ की गोद में सदा के लिए सो गई। इस कारण वह भारतीय इतिहास में स्मरणीय है।
प्रश्न 7.
‘श्रमिक एवं किसान पार्टी’ क्यों बनायी गयी थी ?
उत्तर :
1925 ई० में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा किसान और मजदूरों को संगठित करने तथा उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए ‘श्रमिक एवं किसान पार्टी बनायी गयी थी।
प्रश्न 8.
बाबा राम चन्द्र कौन थे ?
उत्तर :
बाबा रामचन्द्र अवध किसान सभा के एक प्रमुख नेता थे, जो अवध क्षेत्र से अपना विद्रोह शुरू किये थे तथा किसानों पर हुए अत्याचार का विरोध किये थे।
प्रश्न 9.
ताप्रलिप्ता जातीय सरकार द्वारा किस प्रकार की कार्यवाइयाँ अपनायी गयी थीं ? बीना दास क्यों प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर :
भारत छोड़ो आन्दोलन के समय बंगाल के मिदनापुर के तमलुक तहसील में सतीश सामन्ता के नेतृत्व में गठित राष्यीय सरकार ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए विद्युतवाहिनी सेना का गठन किया। सरकारी कार्यालयों पर अधिकार कर उदार शासन शुरू किया। लोगों को जमीन अधिकार प्रदान किया गया। इस प्रकार राष्ट्रीय सरकार द्वारा अनेकों जन कल्याण कार्य कीये गये।
ताम्मलिप्ता जातीय सरकार द्वारा ब्रिटिश शासन के विरोध में अपनायी गई कार्यक्रमों के आधार पर बीना दास को बंगाल के गवर्नर स्टैनले जैक्सन को मारने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। 6 फरवरी, 1932 ई० को दीक्षांत समारोह में गवर्नर ने जैसे ही भाषण देना प्रारंभ किया, बीना दास ने उसके सामने जाकर रिवाल्वर से गोली चला दी। निशाना चूक गया और वह बच गया। बीना दास को गिरफ्तार कर उन्हें 9 वर्ष की कड़ी सजा सुनाई गयी। जेल से छूटने के बाद भी ये क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ी रही किन्तु 26 दिसम्बर, 1986 ई० में ऋकेश में इनकी मृत्यु हो गई।
प्रश्न 10.
अति शुद्र या अवर्ण किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
हिन्दू समाज में चारो वर्णों से भी नीचे एक नीच वर्ण है। जिन्हें अपृश्य अधुत माना जाता है। उसे ही अतिशुद्र या अवर्ण कहा जाता है। इन्हें अछुत, मलेच्छ, पंचम वर्ण, चण्डाल आदि नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न 11.
‘अरंधन’ से क्या समझते हो ?
उत्तर :
16 अक्टूवर 1905 को बंगाल विभाजन के दिन शोक मनाने के लिए सम्पूर्ण बंगाली समाज अपने घर में चूल्हा नहीं जलाने का व्रत का पालन किया। उसे ही ‘अरंधन’ कहा जाता है।
प्रश्न 12.
बगाल में बंग-भंग विरोधी आंदोलन के दौरान छात्र आंदोलन की दो विशेषताएँ बताओ।
उत्तर :
(i) छात्रों ने सर्वप्रथम विदेशी कागज; कलम का उपयोग न करने की शपथ ली साथ ही साथ विदेशी दुकानों पर धरना देना शुरू किया और लोगों से विदेशी वस्तुएँ न खरीदने की प्रार्थना की।
(ii) छात्र नेता सचीन्द्र नाथ बसु ने कृष्ण कुमार और राधाकान्त राय की सहायता से 4 नवम्बर 1905 ई० को एण्टी सर्कुलर सोसाइटी की स्थापना की जिसका उद्देश्य सरकारी शिक्षण संस्थाओं से निकाले गए छात्रों की सहायता करना था।
प्रश्न 13.
पूना समझौता कब और किनके बीच हुआ ?
उत्तर :
पूना समझौता 1932 ई० को गाँधीजी तथा भीमराव अम्बेदकर के बीच हुआ।
प्रश्न 14.
आजाद हिन्द फौज की नारी वाहिनी की स्थापना किसने और कब की ?
उत्तर :
आजाद हिन्द फौज की सेना में महिला रेजीमेंट की घोषणा 23 अक्टूबर 1943 ई० को सुभाषचन्द्र बोस ने स्वयं किया था।
प्रश्न 15.
सांप्रदायिक निर्णय क्या था ?
उत्तर :
ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमजे मैकडॉनल्ड ने 16 अगस्त 1932 ई० को संप्रदायिक निर्णय (Communal Award) नीति की घोषणा कर दिया। इस नीति के द्वारा – मुस्लिम, सिक्ख, बौद्ध, एँग्लो-इंडियन, भारतीय ईसाई इत्यादि सम्प्रदाय को पृथक निर्वाचन का अधिकार दिया गया। हिन्दू सम्पदाय के अंदर भी पिछड़े हिन्दू एवं संपन्न हिन्दू को दो भागों में बाँट कर उन्हें भी पृथक निर्वाचन का अधिकार दिया गया।
प्रश्न 16.
एण्टी सर्कुलर सोसाइटी की स्थापना कब और क्यों की गई थी ?
उत्तर :
‘एण्टी सर्कुलर सोसाइटी’ की स्थापना 1906 ई० में कार्लाइल सर्कुलर के द्वारा स्कूल, कॉलेज से निकाले गये छात्रों को शिक्षा देने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था।
प्रश्न 17.
सत्य शोधक समाज की स्थापना किसने और किस उद्देश्य से किया था ?
उत्तर :
सत्यशोधक समाज की स्थापना ज्योतिबा फूले ने किया था इसका उद्देश्य दलित वर्ग के दशा में सुधार करना था।
प्रश्न 18.
1907 ई० का सुरत विभाजन क्या था ?
उत्तर :
1907 ई० में गुजरात के सुरत नगर में राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में काँग्रेस गरम दल और नरम दल में बँट गया था। इसे ही 1907 ई० का सुरत विभाजन कहते हैं।
प्रश्न 19.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की स्थापना कब और किसने किया ?
उत्तर :
1885 ई० को भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस पार्टी की स्थापना हुई थी। इसे ए० ओ० हयूम ने किया था।
प्रश्न 20.
रशीद अली दिवस को कांग्रेस ने किस रूप में मनाना शुरू किया ?
उत्तर :
रशीद अली दिवस को कांग्रेस हिन्दू-मुस्लिम एकता दिवस के रूप में मनाना शुरू किया।
प्रश्न 21.
लीला नाग कौन थी ?
उत्तर :
लीला नाग बंगाल की एक सक्रिय आन्दोलनकारी महिला थी। 1923 ई० में हेमचन्द्र घोष के साथ मिलकर दीपाली संघ की स्थापना की। इस संघ का मुख्य उद्देश्य महिलाओं में सामाजिक एवं राजनीतिक जागरूकता यैदा करना था।
प्रश्न 22.
कल्पना दत्त कौन थी ?
उत्तर :
कल्पना दत्त एक क्रांतिकारी महिला तथा सशस्त्र क्रांतिकारी आन्दोलन की अग्रणी नेत्री थी। एक साधारण परिवार में जन्मी कल्पना में अद्म्य साहस व वोरता की भावना कूट-कूटकर भरी थी। वह बड़ी दृढ़ इच्छा शक्ति की बालिका थी। उन्होंने सूर्यसेन के साथ कई क्रांतिकारी आन्दोलनों में भाग लिया था। फरवरी 1995 ई० में कलकत्ता में इनका निधन हो गया।
प्रश्न 23.
बंग-भंग विरोधी आंदोलन के कुछ महिला नेत्रियों के नाम बताओ।
उत्तर :
बंग-भंग विरोधी आंदोलन में भाग लेनेवाली महिला नेत्रियों में निर्मला सरकार, सरला देवी चौधुरानी, लीलावती मित्रा एवं कुमुदिनी आदि प्रमुख थी।
प्रश्न 24.
मैड़म कामा कौन थी ?
उत्तर :
मैड्रम कामा को भारत में क्रांतिकारी आंदोलन की जननी कहा जाता है। विदेश में रहकर इन्हांने क्रांतिकारी आन्दोलन को चलाया। इन्होने इण्डियन होमरूल सोसायटी (1905 ई०), पारसी इण्डियन सोसायटी की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न 25.
‘अनुशीलन समिति’ का प्रमुख कार्य क्या था ?
उत्तर :
क्रांतिकारी साहित्यों का प्रकाशन, वितरण, नवयुवकों को सैनिक व शारीरिंक प्रशिक्षण, धन इकट्ठा हेतु लूट व डकैती तथा सरकारी अंग्रेज अधिकारियों एवं उनके सहयोगी पिट्रुओं की हत्या करना इस संस्था की स्थापना का प्रमुख कार्य एवं उद्देश्य था।
प्रश्न 26.
‘समाज समता संघ’ की स्थापना किसने की थी ? इसका क्या उद्देश्य था ?
उत्तर :
डा० भीमराव अम्बेदकर ने 1924 ई० में इस संघ की स्थापना की। इसका प्रमुख उद्देश्य हिन्दुओं और अछूतों में सामाजिक समानता के सिद्धान्त का प्रचार करना था।
प्रश्न 27.
दलित समुदाय के प्रति गांधीजी का मत क्या था ?
उत्तर :
महात्मा गाँधी दलितों का उत्थान चाहते थे। उन्होंने दलितों को हरिजन का नाम दिया तथा हरिजन के नाम से दलितों के उत्थान के लिए एक पत्रिका भी निकाली। उन्होंने हरिजनों के बस्तियों में जाकर साफ-सफाई की जिम्मेदारी भी ली तथा उनके अधिकारों एवं माँगों को लेकर सदैव सजग रहे।
प्रश्न 28.
सूर्य सेन का नाम स्मरणीय क्यों है ?
उत्तर :
बंगाल के क्रांतिकारी सर्यूसेन को ‘मास्टर दा’ के नाम से जाना जाता है क्योंकि वे एक अध्यापक थे। सूर्य सेन अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर सन् 1930 में चटगाँव के शस्त्रागार का लूट किया। पुलिस ने 16 फरवरी 1933 ई० को उन्हें गिरफ्तार कर लिया और जनवरी 1934 ई० में फाँसी पर लटका दिया।
प्रश्न 29.
ज्योति राव फुले कौन थे ?
उत्तर :
ज्योतिराव फूले ने 1873 ई० में ‘सत्य शोधक समाज’ की स्थापना किया। इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य समाज के निम्न, दलित एवं कमजोर वर्ग के लोगों को न्याय दिलाना था। इस संस्था ने अनाथों तथा स्त्रियों के लिए अनेक अनाथालय तथा विद्यालयों की स्थापना की और ब्राह्मणवाद का घोर विरोध किया।
प्रश्न 30.
बंगाल का नामशुद्र आंदोलन क्या था ?
उत्तर :
पश्चिम बंगाल की अनुसूचित जातियों में नामशुद्र सबसे प्रमुख जाति थी। यह एक शिक्षित जनजाति थी, जिसने दलितों के अधिकार प्राप्ति के लिए बहुत संघर्ष किया था। बंगाल के हिन्दुओं में नमोशुद्र को अस्तृश्य (अछूत) माना जाता था जिसके कारण इन्हें जगह-जगह ब्राह्मणों की अवहेलना सहनी पड़ती थी और सामाजिक विषमता का शिकार होना पड़ता था। सन् 1872 में बाध्य होकर इन्होंने ब्राह्मणों के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ दिया।
प्रश्न 31.
बंग-भंग आन्दोलन में भाग लेने वाले कुछ समितियों के नाम लिखिए।
उत्तर :
सेवक समिति, शक्ति समिति, ब्रति समिति, अनुशीलन समिति और युगान्तर दल इत्यादि।
प्रश्न 32.
भारतीय इतिहास में सरोजनी नायड़ क्यों प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर :
वह एक क्रांतिकारी महिला थी जिन्होंने असहयोग आन्दोलन और सविनय अवज्ञा आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्होंने विधवा पुनर्विवाह, स्त्री-शिक्षा और स्त्रियों की मुक्ति के लिए भी आन्दोलन किया था। सन् 1925 में कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की अध्यक्षता भी इन्होंने की थी।
प्रश्न 33.
बंगाल की दो गुप्त समितियों के नाम लिखो।
उत्तर :
(i) अनुशीलन समिति – संस्थापक : प्रमथ नाथ मित्र।
(ii) युगान्तर दल – संस्थापक : वारीन्द्र कुमार घोष।
प्रश्न 34.
गदर पार्टी की स्थापना कब और किसने किया था ?
उत्तर :
गदर पार्टी की स्थापना लाला हरदयाल ने सन् 1913 में अमेरिका के सेनफ्रांसिस्को शहर में किया था।
प्रश्न 35.
कोर्लाइल सर्कुलर क्या था ? छात्रों ने इसका विरोध क्यों किया ?
उत्तर :
बंग-भंग प्रतिरोध आन्दोलन में पुरुषों, महिलाओं के साथ-साथ भारतीय छात्रों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। आर॰ डब्ल्यू० कोर्लाइल उस समय बंगाल के कार्यवाहक मुख्य सचिव थे। उन्होंने छात्रों को राष्ट्रीय आन्दोलन से अलग-थलग करने के लिए 10 अक्टूबर 1905 ई० को एक सर्कुलर जारी किया जिसे ‘कोर्लाइल सर्कुलर’ के नाम से जाना जाता है। इस सर्कुलर के अनुसार जो छात्र-छात्राएँ राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेंगे, उन्हें सरकारी शिक्षण-संस्थानों से बहिष्कृत कर दिया जाएगा और उनकी छात्रवृत्तियाँ बंद् कर दी जाएंगी। इसलिए छात्रों ने इस सर्कुलर का बड़े पैमाने पर पूरजोर विरोध किया।
प्रश्न 36.
बंगाल वॉलटियर्स के कुछ सदस्यों के नाम बताएँ।
उत्तर :
विनय बसु, दिनेश गुप्त और बादल गुप्त इस क्रांतिकारी संस्था के प्रमुख सदस्य थे।
प्रश्न 37.
चटगाँव शस्त्रागार पर कब्जा कब और किसने किया था ?
उत्तर :
सन् 1930 में सूर्य सेन ने किया था।
प्रश्न 38.
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान स्थापित कुछ शिक्षण संस्थानों के नाम बताओ।
उत्तर :
बिहार विद्यापीठ, काशी विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ एवं जामिया मिलिया इस्लामिया आदि।
प्रश्न 39.
‘बरामदे का युद्ध’ के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर :
विनय-बादल-दिनेश तीनों बंगाल वॉलेंटियर्स के सदस्य थे। बंगाल वॉलेंटियर्स (स्वयंसेवी संगठन) एक क्रांतिकारी संस्था थी। विनय बोस, बादल गुप्त और दिनेश गुप्त तीनों ने 8 दिसम्बर 1930 ई० को कलकत्ता के राइटर्स बिल्डिंग में घुस कर जेल अधीक्षक (सुपरिण्टेडेन्ट) सिम्पसन की हत्या कर दी। यह खबर तुरन्त आग की तरह फैल गयी और लाल बाजार से पुलिस आकर उन्हें बरामदे में ही घेर लिया। दोनो तरफ से फायरिंग (युद्ध) शुरू हो गई जिसे बरामदे का युद्ध कहा जाता है। विनय बसु और बादल गुप्त ने आत्महत्या कर ली। दिनेश गुप्त को पकड़कर 7 जुलाई 1931 ई० को फाँसी दे दी गई।
प्रश्न 40.
‘बाधा जतीन’ क्यों प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर :
यतीन्द्र नाथ मुख़्जी को बाघा जतीन के नाम से जाना जाता है। वे क्रांतिकारी संस्था युगान्तर दल के सदस्य थे, जिन्होंने बंगाल के सभी क्रांतिकारियों को संगठित किया। संस्था ने इन्हें अस्त्र-शस्त्र लुटने का दायित्व सौंपा था। सन् 1914 में अपने क्रांतिकारी साथियों की मदद से इन्होंने कलकत्ता की एक फैक्टरी से अस्त्र-शस्त्र लूट लिया। जर्मनी से हथियार मंगाने के प्रयास में पुलिस से मुठभेड़ हुई और लड़ते हुए शहीद हो गये।
प्रश्न 41.
‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एशोसियेशन’ की स्थापना कब और किसके प्रेरणा से हुई थी ?
उत्तर :
इस क्रांतिकारी संस्था की स्थापना सचीन्द्र नाथ सन्याल की प्रेरणा से सन् 1928 में की गयी थी।
प्रश्न 42.
कप्तान रशीद अली के मुकदमा को लेकर कलकते में क्या प्रतिक्रिया हुई थी ?
उत्तर :
आजाद हिन्द फौज के कप्तान पर मुकदमा चलाकर अंग्रेजी सरकार ने 10 फरवरी 1946 ई० को सात वर्ष की सश्रम कारावास की दण्ड दे दी। देश भर में इसका विरोध किया गया। कलकत्ता में 11 से 13 फरवरी तक व्यापक पैमाने पर जुलुस निकालकर छात्रों, हिन्दुओं और मुसलमानों ने सरकार का विरोध किया। 12 फरवरी को रशीद अली दिवस के रूप में बड़े पैमाने पर हड़ताल किया गया था।
प्रश्न 43.
भारत छोड़ो आन्दोलन में सुचेता कृपलानी का क्या योगदान था ?
उत्तर :
‘सुचेता कृपलानी’ भारत छोड़ो आन्दोलन की प्रमुख महिला नेत्री थी । वह भारत के सभी आन्दोलनकारियों से मिलती थी और महिलाओं को आन्दोलन में भाग लेने के लिए उत्साहित करती रहती थी । इस कार्य के लिए अंग्रेजी सरकार ने उन्हें दो साल की सजा भी दी। आन्दोलन में विरोध प्रदर्शन से लेकर हड़ताल तक के सभी कार्यों में इनकी सक्रिय भूमिका रहती थी।
प्रश्न 44.
‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ की स्थापना किस उद्देश्य से की गई. थी ?
उत्तर :
डॉ॰ भीमराव अम्बेदकर ने समाज के असृश्य जातियों के भौतिक और नैतिक उन्नति के लिए 1924 ई० में इस सभा की स्थापना बम्बई में की थी। अस्पृश्य जातियों का उद्धार करने तथा उन्हें सामाजिक अधिकार दिलाने के उद्देश्य से इसकी स्थापना की गई थी।
प्रश्न 45.
इण्डिपेनडेन्ट लेबर पार्टी की स्थापना कब और किसने की ?
उत्तर :
डॉ० भीमराव अम्बेदकर ने सन् 1936 में इस पार्टी की स्थापना की थी।
प्रश्न 46.
द्रविड़ आन्दोलन में सी० एन० अन्नादुरै की क्या भूमिका थी ?
उत्तर :
सी॰ एन० अन्नादुरै, रामास्वामी नैयर के अनुयायी तथा मित्र थे जिन्होंने द्रविड़ आन्दोलन को आगे बढ़ाया। इन्होंने सन् 1944 में न्याय दल का नाम बदल कर द्रविड़ संघ कर दिया। इन्होंने तमिलनाडु का निर्माण किया और दलितों के उत्थान के लिये आजीवन संघर्ष किया। अपने अथक परिश्रम से वे तमिलनाडु के प्रथम द्रविड़ मुख्यमंत्री भी बने। वे देश की राष्ट्रीय एकता का विरोधी नहीं थे, परन्तु राज्यों की स्वायत्तता की माँग करते रहे। इस तरह वे द्रविड़ आन्दोलन को मजबुत व सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रश्न 47.
‘मण्डल आयोग’ का गठन क्यों किया गया था ?
उत्तर :
भारतीय संविधान के भाग XVI में अनुसूचित जातियों,जन-जातियों तथा एंग्लो-इण्डियनों के लिए विशेष संरक्षण का प्रावधान है। इसी संदर्भ में 1955 ई० में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की अवस्था के निर्धारण तथा पहचान के लिए काका साहब कालेलकर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया था। सन् 1980 में इसी आयोग को बी० एन० मण्डल की अध्यक्षता में पिछड़े वर्गों की शिकायतों की जाँच-पड़ताल करने तथा उन्हें संरक्षण का सुझाव देने के लिए मण्डल आयोग का गठन किया गया था।
प्रश्न 48.
बंगाल के सशस्त्र क्रांतिकारी आन्दोलन में बीना दास का क्या योगदान था ?
उत्तर :
बीना दास कॉलेज में पढ़ने वाली एक शांत स्वभाव की छात्रा थी। यह नेताजी के शिक्षक बेनी माधव दास की सबसे छोटी पुत्री थी। अंग्रेजों के अत्याचार और शोषण को देखकर वह क्रांतिकारी आन्दोलन में शामिल हो गई। 6 फरवरी, 1932 ई० को कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में बंगाल के तत्कालीन गर्वनर स्टैनले जैक्सन को गोली मारने की कोशिश की परन्तु निशाना चुक गया। उसे गिरफ्तार कर 9 वर्ष की कारावास की सजा सुनाई गयी।
प्रश्न 49.
‘श्री नारायण धर्मपालन योगम’ की स्थापना किसने और क्यों की थी ?
उत्तर :
केरल के नारायण गुरु ने इस संस्था की स्थापना की। इसका प्रमुख उद्देश्य अस्पृश्यता की प्रथा को समाप्त करना और सभी वर्गों के लिए मंदिर बनवाना था।
प्रश्न 50.
‘शारदा ऐक्ट’ कब और किसके प्रयास से पास हुआ था ?
उत्तर :
श्री हरविलास शारदा के प्रयासों से शारदा ऐक्ट 1928 ई० में पास हुआ था। इस ऐक्ट के द्वारा बाल-विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
प्रश्न 51.
‘नारी कर्म मंदिर’ की स्थापना किसने और क्यों की थी ?
उत्तरः
उर्मिला देवी ने महिलाओं में चरखा के प्रयोग को बढ़ावा देने तथा नारियों को संगठित करने के उद्देश्य से ‘नारी कर्म मंदिर की स्थापना की थी।
प्रश्न 52.
‘सत्याग्रह कमिटी’ का प्रमुख कार्य क्या था ?
उत्तर :
इस कमिटी की अनेक शाखाएँ थी जिनके निम्नलिखित कार्य थे –
- बहिष्कार एवं लूट-पाट शाखा : यह शाखा महिलाओं को विदेशी दुकानों का बहिष्कार करने और उनमें लूटपाट करने का प्रशिक्षण देती थी।
- स्वदेशी व्यवहार शाखा : यह शाखा खादी का प्रयोग करने के लिए लीगों को प्रोत्साहित करती थी।
- प्रभात फेरी शाखा : यह शाखा देश के विभिन्न भागों में जुलूसों का आयोजन करती थी।
प्रश्न 53.
‘अरूणा आसफ अली’ क्यों स्मरणीय है ?
उत्तर :
अरूणा आसफ अली हमारे देश की एक वीरांगना थी जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन को विदेशों में जाकर जायज ठहराने का प्रयास किया था। वे प्रारम्भ से ही गाँधी जी और अब्दुल कलाम आजाद की सभाओं में जाती थी। सविनय अवज्ञा आन्दोलन में उन्होंने विभिन्न जुलुसों, धरना-प्रदर्शन तथा बहिष्कार आन्दोलन में भाग ली तथा जेल भी गई। इसी देश प्रेम के कायों के लिए वे स्मरणीय है।
प्रश्न 54.
डान सोसाइटी (Dwan Society) के बारे में क्या जानते हैं ?
उत्तर :
डान सोसाइटी : यह विद्यार्थियों का संगठन था जिसके सचिव सतीश चन्द्र मुखर्जी थे। शिक्षा के प्रचार-प्रसार में इस संस्था का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस संस्था ने छात्रों को राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया और उनमें जागृति पैदा की।
प्रश्न 55.
कब और किस अधिवेशन में भारत छोड़ो सम्बन्धी अगस्त प्रस्ताव पारित हुआ था ?
उत्तर :
8 अगस्त 1942 ई० में कांग्रेस कमिटी के बम्बई अधिवेशन में अगस्त प्रस्ताव पारित हुआ था।
प्रश्न 56.
‘अभिवन भारत’ के कुछ क्रांतिकारी सदस्यों के नाम बताएँ।
उत्तर :
दामोदर सावरकर, पाडुरंग महादेव वायट और कृष्ण जी गोपाल कर्वे।
प्रश्न 57.
‘अनुशीलन समिति’ का प्रमुख कार्य क्या था ?
उत्तर :
कार्य : क्रांतिकारी साहित्यों का प्रकाशन व वितरण, नवयुक्कों को सैनिक व शारीरिक प्रशिक्षण देना, धन इकट्ठा हेतु लूट व ड़केती करना तथा सरकारी अंग्रेज अधिकारियों एवं उनके सहयोगी पिट्ठओं की हत्या करना इस संस्था का प्रमुख कार्य था।
प्रश्न 58.
‘बंगाल स्वयं सेवक’ (Bengal Volunteers) संस्था की स्थापना क्यों की गयी थी ?
उत्तर :
बऱाल स्वय सेवक संगठन की स्थापना बंगाल के छात्र एवं छात्राओं में देश-प्रेम तथा राष्ट्रीयता की भावना का संचार करना साथ ही साथ उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ भड़काना एवं हिंसक विद्रोह करने के लिए उत्साहित करने के लिए किया गया था।
प्रश्न 59.
पंजाब के क्रान्तिकारी नेताओं के नाम बताइये।
उत्तर :
अजित सिंह, लाला हरदयाल और सूफी अम्बा प्रसाद।
प्रश्न 60.
लाल, बाल, पाल का पूरा नाम क्या था ?
उत्तर :
पंजाब केसरी लाला जालपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चन्द्र पाल था।
प्रश्न 61.
क्रांतिकारी उग्रवाद ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को किस प्रकार प्रभावित किया ? कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर :
1. क्रांतिकारियों ने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों द्वारा अंग्रेजों के मन में भय पैदा कर दिया।
2. क्रातिकारियों के साहसी और निर्भीक कार्यो ने देश के नवयुवकों को कांति के लिए प्रोत्साहित किया।
प्रश्न 62.
‘मित्र मेला’ का आयोजन किसने और किस उद्देश्य से किया था ?
उत्तर :
महाराष्ट्र के विनायक दामोदर सावर कर ने 1899 ई० में मित्र मेला का आयोजन किया था। इसका प्रमुख उद्देश्य क्रांतिकारियों को अंग्रेज्में के खिलाफ भड़काना तथा उन्हें अस्त्र-शस्त्र चलाने का प्रशिक्ष्र देना था।
प्रश्न 63.
‘स्वदेशी’ और ‘वायकाट’ शब्दों का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
‘स्वदेशी’ का अर्थ है अपने देश में निर्मित (बनी हुई) वस्तुओं का प्रयोग करना तथा ‘बायकाट’ का अर्थ है विदेशों में बनी हुई वस्तुओं का बहिष्कार (परित्याग) करना।
प्रश्न 64.
‘हरिजन’ पत्रिका का प्रकाशन कब और किसने किया था।
उत्तर :
जनवरी 1939 ई० में, गाँधी जी ने।
प्रश्न 65.
अम्बेदकर द्वारा लिखित दो रचनाओं के नाम बताइए।
उत्तर :
1. रीडिल्स ऑफ हिन्दूइज्म और
2. एनीहिलेसन ऑफ कॉस्ट।
प्रश्न 66.
पूना में रैड तथा अयर्स्ट नामक अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कब और किसने की ?
उत्तर :
जून, 1897 ई० में चापेकर बन्धुओं ने।
प्रश्न 67.
प्रिंस ऑफ वेल्स’ के भारत आने पर देश में क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर :
नवम्बर 1921 ई० में प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आने पर छात्रों ने बड़ी संख्या में संगठित होकर उनको काले झण्डे दिखाकर स्वागत किया और जगह-जगह पर धरना-प्रदर्शन किया।
प्रश्न 68.
नामशुद्र जाति कहाँ निवास करती थी ?
उत्तर :
नामशुद्र (चण्डाल) जाति सामजिक दृष्टि से अति पिछड़ी एवं अछुत, अवर्ण जाति थी जो तत्कालीन पूर्वी बंगाल के वक्रगंज, फरीदपुर, ढाका, मैमन सिंह, जैसोर तथा खुलना आदि जिले के $75 \%$ भाग में बसे हुए थे। कुछ संख्या वर्तमान पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों में निवास करती थी।
प्रश्न 69.
नामशुद्र जातियों के आन्दोलन का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर :
नामशुद्र जाति एक अस्पृश्य (अछूत) जाति थी, जो वर्णाश्रम व्यवस्था से बाहर थे। इन्हे नीच एवं पतित माना जाता था। इन्होंने अपने अस्तित्व, सम्मान तथा गौरव की रक्षा के लिए आन्दोलन किया था। इनके आन्दोलन का स्वरूप सामाजिक एवं राजनीतिक था। अतः इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य प्रचलित वाहाण प्रधान समाजिक व्यवस्था में सुधार लाना तथा सम्मान प्राप्त करना था।
प्रश्न 70.
बंग-भंग विरोधी आन्दोलन में किन-किन उग्र राष्ट्रवादियों ने योगदान दिये थे ?
उत्तर :
बंग-भंग विरोधी आन्दोलन में अरविन्द घोष, बाल गंगाधर तिलक तथा विपिनचन्द्र पाल जैसे उग्र राष्ट्रवादियों ने योगदान दिया था।
प्रश्न 71.
असहयोग आन्दोलन में भाग लेनेवाली प्रमुख महिलाएँ कौन-कौन थी ?
उत्तर :
दुर्गाबाई देशमुख, मुधुलक्ष्मो रेड़ी, स्वरूप रानी, सरोजनी नायडू आदि महिलाओं ने असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया था।
प्रश्न 72.
गाँधीजी ने नमक कानून कैसे तोड़ा ?
उत्तर :
गाँधीजी 24 दिन पैदल यात्रा करके 5 अपैल 1930 ई० को गाँधीजी दांडी पहुँचे, तत्पश्चात दूसरे दिन प्रार्थना करने के बाद समुद्री जल से नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा था।
प्रश्न 73.
न्यायदल की स्थापना किसने और कब किया ?
उत्तर :
श्री पी० त्यागराय तथा डाक्टर टी० एम नैख्यर द्वारा 1917 ई० में न्याय दल की स्थापना की गई थी।
प्रश्न 74.
दुर्गा भाभी के नाम से किन्हें जाना जाता है ?
उत्तर :
सुविख्यात क्रान्तिकारी भगवती चरण बोहरा की पत्नी दुर्गावती को दुर्गा भाभी के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 75.
स्वदेश बान्धव समिति की स्थापना किसने और कहाँ किया था ?
उत्तर :
छात्रों की मदद से बारीसाल के एक अध्यापक अश्वनी कुमार दत्त ने ‘स्वदेश बान्धव समिति’ की स्थापना किया था
प्रश्न 76.
सरला देवी चौधुरानी के बारे में क्या जानते हैं ?
उत्तर :
सरला देवी चौधुरानी रवीन्द्रनाथ टैगोर के बड़े भाई की पुत्री थी। यह एक शिक्षाविद् एवं नारीवादी महिला थी। इन्होंने नारी उत्थान एवं उनकी शिक्षा के लिये काफी कार्य किया था। टैगोर परिवार में जन्म होने के कारण शुरू से ही राजनीति एवं साहित्य में इनकी जिज्ञासा बनी रही।
प्रश्न 77.
सरोजनी नायडु के बारे में क्या जानते हैं ?
उत्तर :
असहयोग आन्दोलन में भाग लेनेवाली महिलाओं में सरोजनी नायडू की सक्रिय भूमिका रही है। उन्होंने नारी जागरण का कार्य किया। महिलाओं ने उनकी अध्यक्षता में ‘राष्ट्रीय स्त्री संघ’ की स्थापना की। उर्मिला देवी ने इस संस्था द्वारा भारतीय महिलाओं से देश की सेवा के लिये घर छोड़ने की अपील की। बम्बई की लगभग 1 हजार स्त्रियों ने प्रिंस आप वेल्स के भारत आगमन का सशक्त विरोध किया। इनकी प्रेरणा से मुस्लिम महिलाओं ने भी हिस्सा लिया था।
संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 4 MARKS
प्रश्न 1.
सशस्त्र क्रान्ति आन्दोलन में नारियों की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर :
सशस्त्र क्रांति आन्दोलन में नारियों की भूमिका : इतिहास गवाह है कि 1857 ई० से लेकर 1947 ई० तक की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में देश की माँ, बेटी, बहने घरेलू चौका-चौकी से बाहर निकल कर सशस्त्र क्रांतिकारी आन्दोलन में अंग्रेजों की विरूद्ध पुरूषों के कन्धे से कन्धे मिलाकर अपना कर्त्तव्य निभाया।
जिन महिलाओं ने आजादी की लड़ाई को अपनी वीरता तथा अदम्य साहस से सशस्त्र क्रांति द्वारा नई धार दी थी, उनमें कल्याणी दास, उज्जवला मजूमदार, वीनादास, कल्पना दत्त, लीला नाग, दुर्गा भाभी, प्रतिलता वाडेदार, मैडम भीकम जी कामा, ननी बाला, सुनीति चौधरी का अमूल्य योगदान रहा।
कल्याणी दास ने ‘छात्री संघ’ की स्थापना कर छात्राओं को क्रांति के लिए उत्साहित करती रही। बंगाल स्वंयसेवी की उग्रवादी सदस्य उज्जवला मजूमदार ने अंग्रेज अधिकारी एण्डर्सन पर जान-लेवा हमला किया, जिसमें वह तो बच गया उसकी जगह अन्य लोग मारे गये। वीना दास अपनी दीदी कल्याणी दास के साथ बंगाल स्वयम-सेवक वाहिनी से जुड़कर कई क्रान्तिकारी घटनाओं को जन्म दिया।
उन्होनें गर्वनर जैक्सन पर गोली चलाई, जिसके लिए उन्हें 7 वर्ष की जेल की सजा भुगतनी पड़ी। लीला नाग (राय) ने 1923 ई० में ढाका में दिपाली संघ की स्थापना की तथा महिलाओं को क्रान्तिकारी आन्दोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। सूर्य सेन (मास्टर दा) के क्रांतिकारी आर्दशों से प्रेरित होकर सशस्त्र क्रान्ति से जुड़ने वाली महिलाओं में कल्पना दत एवं प्रीतिलता वडेदार का नाम अग्रणीय है। कल्पना ने चटगाँव शास्त्रागार लूट मे शस्त्र भाग लिया।
क्रान्तिकारियों को गुप्त सूचनायें पहुँचाती थी। प्रीतिलता ऊर्फ फुलतार ने भी चटगाँव शास्त्रागार लूट में शस्त्र भाग लिया, उन्होने पुलिस लाइन, टेलीफोन एवं टेलीग्राफ आफिस को उड़ाने में सक्रिय भूमिका निभायी। पुलिस के हाथों गिरफ्तारी से बचने के लिए उसने जहर खाँ कर आत्महत्या कर ली।
दुर्गाभाभी भी क्रान्तिकारियों को सूचना हथियार पहुँचाने, उन्हें छिपाने भगाने में योगदान करती थी। क्रान्तिकारियों की माता कहलाने वाली मैडम कामा ने भी संगठन बनाने, चन्दा एकत्र करने, सूचनाओं को क्रान्तिकारियों तक पहुँचाने, उन्हें संरक्षण देने जैसे महत्वपूर्ण कार्य किये। इस प्रकार से भारतीय नारियों ने क्रान्तिकारी आन्दोलन में अपने कर्त्त्यों का निर्वाह किया।
प्रश्न 2.
दलित अधिकारों पर गांधी और अम्बेदकर के बीच वाद-विवाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
दलित अधिकारों पर गाँधी और अम्बेदकर के बीच वाद-विवाद :- गाँधीजी और अम्बेदकर दोनों दलित अधिकारों को लेकर अपने-अपने ढंग से आन्दोलन कर रहे थे। बहुत समय तक दोनों एक-दूसरे के व्यक्तिगत स्वभाव से अपरिचित रहे। 1932 ई० के पूना समझौता के समय वे एक-दूसरे के स्वभाव और सामाजिक कार्यों से परिचित हुए। गांधी जी अम्बेदकर के दलित आन्दोलन से प्रभावित थे। अम्बेदकर के दलितों के लिए राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के लड़ाई का समर्थन कर रहे थे।
वे पश्चिमी ढंग से दलितों की लड़ाई लड़ रहे थे। इसके लिए अम्बेदकर ने 1920 ई० में ‘आल इण्डिया डिप्रेस्ड क्लास फेडेरेशन’ 1924 ई० में बम्बई में ‘बहिष्कृत हितकारिणी’ सभा की तथा मजदूर वर्ग के हितों के लिए एक धर्मनिरपेक्ष ‘स्वतंत्र श्रमिक पार्टी’ का गठन किया। 1930 ई० में नासिक के कला राम मन्दिर में अछूतों के प्रवेश को लेकर सत्याग्रह शुरु किया। अम्बेदकर के दलित उद्धार आन्दोलन को थोड़ा-बहुत लाभ जरुर प्राप्त हुआ, किन्तु वे बाह्मणों के पुरातन व्यवस्था को पूरी तरह तोड़ न सके और अंत में हिन्दू समाज के जाति व्यवस्था से खिन्न होकर 1924 ई० में हजारों समर्थकों के साथ बदद्ध धर्म को अपना लिया।
अम्बेदकर की तरह गाँधी भी दलितों का उद्धार चाहते थे, किन्तु वे पश्चिमी व्यवस्था के तर्ज पर नहीं बल्कि भारतीय व्यवस्था के अन्तर्गत चाहते थे। उन्होंने दलितों के अपमानजनक शब्द के लिए ‘हरिजन’ शब्द का प्रयोग किया। इसके लिए उन्होंने दलितों के लिए सड़क, कुएँ, तालाब, स्कूल आदि के उपयोग के लिए समान अधिकार वर्ग की वकालत की। समाज में इनके अधिकारों के प्रति जागरुकता लाने के लिए उन्होंने ‘हरिजन सेवक संघ’ की स्थापना की। ‘हरिजन’ नामक पत्रिका का सम्पादन किया |1933-1934 ई० के बीच हजारों मील की ‘हरिजन यात्रा’ की, जिसका उद्देश्य मानवता पर कलंकरूपी जातिगत् छुआछूत को मिटाना था।
इस प्रकार दोनों महापुरुषों ने एक-दूसरे के आत्मीय सम्बन्धों को स्वीकार करते हुए दलितों के उद्धार और कल्याण के लिए कार्य किया। एक जगह अम्बेदकर ने गाँधीजी से कहा था – ‘यदि आप अपने-आप को केवल दलितों के कल्याण के लिए समर्पित कर दें, तो आप हमारे हीरो बन जायेंगे।’
इस प्रकार दोनों मनीषियों ने दलित बहुजन, हरिजनों के हितों, आकांक्षाओं, अपेक्षाओं और आशाओं को सम्मान दिलाने का प्रयास किया। उन्होंने मानवीय विचारों को उदारता पूर्वक अपनाने का प्रयास किया गांधी और अम्बेदकर दोनों दलित सुधार आन्दोलन में सितारों की तरह टिमटिमाते नजर आयेंग। अंधेरे में रास्ते का जानकारी पाने के लिए हमें टेकने के लिए लाठी और देखने के लिए प्रकाश की जरुरत होती है। ऐसे में गाँधी की हाँथ में पड़ी अहिंसा रूपी लाठी और अम्बेदकर के हाथ में पड़ी कानूनरुपी प्रकाश की पुस्तक दोनों की जरुरत पड़ेगी। जब-जब हम सामाजिक और राजनीतिक सुधार की ओर बढ़ेगे तब-तब हमें दोनों के विचारों की जरुरत पड़ेगी।
प्रश्न 3.
बंगाल में स्वयंसेवी संस्थाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
शशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन में बंगाल स्वयंसेवी संस्थाओं/ स्वयं सेवकों के योगदान का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में बंगाल स्वयंसेवी संस्थाओं का योगदान :- भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में बंगाल की धरती शुरु से ही क्रान्तिकारियों की प्रेरणा स्थली रही है तथा अरविन्द घोष बंगाल में क्रान्तिकारियों के प्रेरणादाता माने जाते हैं।
कलकत्ता में बंगाल स्वयंसेवी नामक संगठन की स्थापना 1928 ई० में देश बन्धु चितरंजन दास तथा सुभाषचन्द्र बोस के नेतृत्व में किया गया था। इससे पहले 1912 ई० में क्रान्तिकारी नेता ‘हेमचन्द्र घोष’ ने ढाका में बंगाल स्वयंसेवी नामक गुप्त क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की थी। जिसे गाँधीजी ने बंगाल के स्वयंसेवी सेवको को ‘पार्क का सर्कस’ कहकर मजाक उड़ाया था। किन्तु इसी संगठन के सदस्यों ने अपनी सशस्त्र क्रान्तिकारी कार्यों द्वारा आजादी तथा मातृभूमि की रक्षा के लिए कुर्बान हो जाने की भावना को भारत के कोने-कोने तक फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बंगाल स्वयंसेवी संगठन के सदस्यों ने जेल में कैद भारतीयों पर पुलिस द्वारा किये जाने वाले अत्याचार के विरुद्ध 1930 ई० में ‘आपरेशन फ्रीडम’ (Operation freedom) नामक आन्दोलन चलाया। इस आन्दोलन से प्रेरित होकर ही सूर्यसेन, उन्नत सेन, बिनय बसु, दिनेश गुप्ता, बादल गुप्ता, चक्रवर्ती, गणेश घोष जैसे क्रान्तिकारी इस संगठन से जुड़े। तथा विनय, बादल और दिनेश जैसे युवाओं ने 1930 ई० में राइटर्स बिलडिगं (Writers Building) में घुसकर जेल के इंस्पेक्टर (Inspector) जनरल सिम्पसन की। इस बरामदे या गलियारे के युद्ध में हत्या की और बादल, विनय और दिनेश तीनों शहीद हो गये।
सूर्यसेन ने भी चटगाँव शस्त्रागार लूट जैसी घटनाओं को जन्म दिया अन्त में बहुत से स्वयंसेवी संस्था के सदस्य सुभाष चन्द्र बोस के विचारों से प्रभावित होकर ‘फार्वड ब्लाक’ (अग्रगामी दल) (forward block) में शामिल हो गये।
इस प्रकार बंगाल के स्वयंसेवी सेवकों ने एक तरफ अपने विभिन्न कारनामों द्वारा अंग्रेजों को नाको चना चबवाते रहे तो दूसरी तरफ भारतीय नवयुवकों में स्वतंत्रता और रक्षा के लिए उनमें राष्ट्रीयता तथा बलिदान की भावना जगाते रहे। इस प्रकार उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन को अपने क्रिया-कलाप द्वारा प्रज्वलित बनाए रखा।
प्रश्न 4.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन की पृष्ठभूमि एवं कार्यक्रम का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
सविनय अवज्ञा आन्दोलन की पृष्ठभूमि :- असहयोग आन्दोलन की सफलता से देशवासियों में उत्पन्न निराशा की भावना, साईमन कमीशन एवं क्रान्तिकारी गतिविधियाँ, अंग्रेजी सरकार का दिनोंदिन बढ़ता शोषण और अत्याचार, कांग्रेस में युवा वामपंथी सदस्यों का दबाव ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों के नमक बनाने पर रोक तथा नमक पर कर लगाये जाने के कारण देश की राजनीतिक स्थिति विकट हो गई थी।
देश हिंसक क्रान्ति की ओर बढ़ रहा था। इन्हीं सब स्थितियों को देखकर कांग्रेस ने गाँधीजी के नेतृत्व में अहिंसात्मकढंग से सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरु करने का निश्चय किया। जिसका प्रस्ताव 26th January 1930 ई० को लाहौर अधिवेशन में स्वीकार कर लिया गया था। उपर्युक्त परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का निर्णय लिया फिर आन्दोलन शुरु करने से पहले अपने समाचार पत्र ‘यंग इण्डिया’ के माध्यम से तत्कालिन वायसराय लार्ड इर्विन के पास 11 सूची माँगों को भेजवाया।
किन्तु वायसराय ने उसे स्वीकार नहीं किया तब गाँधीजो ने कहा “’मैने रोटी माँगी थी बदले में पत्थर मिला’ इसी के साथ उन्होंने बाध्य होकर 6th April 1930 ई० को गुजरात के समुद्र तटीय गाँव दांडी में नमक बनाकर नमक कानून का उल्लंधन कर सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की थी।
कार्यक्रम :
सविनय अवज्ञा आन्दोलन जिसे नमक आन्दोलन या करबन्दी आन्दोलन आदि नामों से जाना जाता है। इस आन्दोलन के प्रमुख कार्यक्रम निम्नलिखित है :-
- देश के प्रत्येक गाँवों के व्यक्तियों को नमक बनाने के लिए चलना चाहिए।
- हिन्दू, छुआछुत की भावना का त्याग करें।
- विदेशी वस्तुओं की होलीका जलायी जाये।
- विदेशी समान बेचने वाले दुकानों तथा शराब बेचने वाले दुकानों के सामने धरना-पर्दश्रन किया जाना चाहिए।
- सरकारी स्कूलों का विद्यार्थियों द्वारा बहिष्कार किया जाए।
- सभी सरकारी कर्मचारी सरकारी कार्यालयों में काम करने ना जाएँ।
4th may, 1930 ई० को गाँधीजी को गिरफ्तार कर लेने के बाद कर बन्दी इसके कार्यक्रम में शामिल कर लिया गया। इन्हीं कार्यक्रमों के द्वारा संविनय अवज्ञा आन्दोलन धीरे-धीरे देश का जन आन्दोलन का रूप धारण करने लगा।
प्रश्न 5.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन में महिलाओं के योगदान का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
सविनय अवज्ञा आन्दोलन में महिलाओं का योगदान : गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरु करने के साथ देश के सभी वर्ग की महिलाओं को आन्दोलन में साथ देने के लिए आहवान किया। इसी के साथ देश के भिन्न-भिन्न भागों से देश के प्रमुख महिला नेताओं के नेतृत्व में महिलाएँ घर की चारदीवारी लांघ कर आन्दोलन में भाग लेने का निश्चय किया।
दिल्ली की लगभग 1600 महिलाओं ने सरोजनी नायडू के नेतृत्व में दिल्ली के शराब के दुकानों पर घरना दिया। विदेशी वस्त्रों एवं वस्तुओं की होलीका जलाई। इसी तरह नमक कानून भंग करने के आरोप में सरोजनी नायडू, लीलावती मुंशी, कमला नेहरू, वीणा दास, विजय लक्ष्मी पण्डित, कल्पनादत्त आदि महिलाओं ने अपने भिन्न-भिन्न कार्यों द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया।
युगांतर पार्टी की सदस्य बीना दास और कल्पना दत को गवर्नर जेक्सन को मारने के जुर्म मे गिरफ्तार कर लिया गया। बीनादास की बड़ी बहन कल्याणी ने छात्र नेता बनकर छात्रावासों की छात्राओं को आन्दोलन में भाग लेने के लिए सक्रिय किया। इस प्रकार असहयोग आन्दोलन को सफल बनाने में भारतीय महिलाओं ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रश्न 6.
सूर्यसेन (मास्टर दा) का देश के स्वतंत्रता संग्राम में क्या योगदान था ? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
अथवा
‘चट्टगाँव शस्त्रागार लूट’ (Chittagong Armary Raid) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
सूर्यसेन को भारतीय इतिहास में ‘मास्टर दा’ के नाम से जाना जाता है। इनका जन्म 22 मार्च, 1894 ई० को चट्टगाँव में हुआ था। इनके पिता (राम निरंजन) एक शिक्षक थे। सूर्यसेन की प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा चट्टगाँव में ही हुई थी। बचपन से ही ये साहसी, निडर और स्वाभिमानी थे। 22 वर्ष की अवस्था में राष्ट्रीय विचारों से प्रेरित होकर बंगाल की क्रांतिकारी संस्था ‘युगान्तर दल’ के सदस्य बन गए। चट्टगाँव के स्थानीय युवाओं और छात्रों को संगठित कर उन्हे क्रांति के लिए प्रोत्साहित करते थे।
वे शिक्षक का कार्य भी करते थे साथ ही छात्रों को क्रांति के लिए उत्साहित भी करते थे। छात्रों में इनका इतना प्रभाव था कि छात्र इनके लिए जान देने को तैयार रहते थे। चट्टगाँव का क्रांतिकारी दल इनके नेतृत्व में काफी प्रसिद्ध हो गया था। अनंत सिंह, गणेश घोष, अम्बिका चक्रवर्ती और लोकनाथ जैसे क्रांतिकारी युवक इनके दल के प्रमुख सदस्ये थे।
चट्टगाँव शस्त्रागार लूट : सूर्य सेन के नेतृत्व में बंगाल में कांतिकारी आन्दोलन का विकास तीव्र गति से होने लगा : राष्ट्रीय विद्यालय के शिक्षक होते हुए भी उन्होंने सशस्त्र विद्रोहियों को सुसंगठित किया और क्रांतिकारियों को हथियार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सरकारी शस्त्रागारों को लूटने की योजना बनाया। योजनानुसार, 18 अप्रैल 1930 ई० को सूर्य सेन ने अपने सहयोगी कल्पना दत्त और प्रीतिलता वादेदर एवं छात्र सेना को लेकर मध्य रात्रि में चट्टगाँव शस्तागार पर धावा बोल दिया और वहाँ के हथियारों पर अधिकार जमा लिया।
परन्तु गोला – बारुद उनके हाथ नहीं लगे। क्रांतिकारियों ने रेल लाइन, तार एवं टेलीफोन लाइन को नष्ट कर दिया। क्रांतिकारियों ने पुलिस शस्वागार के सामने ही ‘बंदेमातरम्’ और ‘इंकलाब जिन्दाबाद’ के नारों के साथ प्रांतीय क्रांतिकारी सरकार का गठन कर सूर्य सेन को अपना अध्यक्ष चुना और अंग्रेजी झण्डे को उतारकार अपना राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया। दूसरे क्रांतिकोंरियों ने अंग्रेजी सेना को बंगाल की खाड़ी में ही रोक दिया।
22 अप्रैल को अंग्रेजी सेना ने उन्हें घेर लिया और दोनों के बीच भारी लड़ाई हुई जिसमें 12 क्रांतिकारी शहीद हो गए। सूर्य सेन लगभग तीन वर्षों तक अंग्रेजों से लड़ते रहे। 16 फरवरी 1933 ई० को पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया। 12 जनवरी, 1934 ई० को उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया। इस प्रकार हमारे देश का एक महान क्रांतिकारी भारत माता की गोद में सदा के लिए सो गया।
प्रश्न 7.
बंगाल में नामशुद्र आंदोलन के विकास का उल्लेख करो।
उत्तर :
पश्चिम बंगाल की अनुसूचित जातियों में नामशुद्र एक अछुत जाति थी जिसने दलितों के अधिकार प्राप्ति में बहुत संघर्ष किया था। इस जाति को पहले ‘चण्डाल’ के नाम से जाना जाता था। यह जाति वैदिक धर्म के चार वर्णों से बाहर थी और अवर्ण की श्रेणी में आते थे। इनका प्रमुख पेशा खेती करना तथा नाव चलाना था।
जया चटर्जी बताती हैं कि 1870 के दशक में बक्रगंज और फरीदपुर के चण्डालों ने हिन्दुओं का बहिष्कार शुरू कर दिया जब उनके एक प्रधान के खाने के निमत्रण को हिन्दुओं ने अस्वीकार कर दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी सामाजिक स्थिति को सुद्धढ़ किया और उनमें सुधार भी किया। उन्होंने स्वयं अपनी आदरणीय पदवी ‘नमोशुद्र’ को धारण कर लिया।
भारत की एक और जनजाति मतुआ सम्पदाय के लोग भी नामशुद्र की उपाधि ले लिया था। बंगाल के हिन्दूओं में नामशुद्र को अस्पृश्य (अछूत) माना जाता था जिसके कारण इन्हें जगह-जगह ब्राह्मणों कीप्रताड़ना सहनी पड़ती थी और सामाजिक विषमता का शिकार होना पड़ता था। सन् 1872 में बाध्य होकर इन्होंने ब्राह्मणों के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ दिया।
इन्होंने घोषणा किया कि किसी भी उच्च जाति के घरों में काम तब तक नहीं करेंगे जब,तक उन्हें उच्च श्रेणी में स्थान नहीं दे दिया जाता है। यह आंदोलन हरीचंद ठाकुर के नेतृत्व में ‘ओराकांडी’ नामक ग्राम से आरम्भ हुआ था। 20 वीं शताब्दी के आरम्भ में यह विधान मण्डलों, सरकारी नौकरी तथा सरकारी संस्थानों में आरक्षण की मांग करने लगे।
1907 ई० में हरिचाँद के पुत्र गुरुचाँद ठाकुर ने बंगाल के गवर्नर के निकट उनकी स्थिति सुधारने के लिए आवेदन पत्र लिखा था। इन्होंन मुस्लिम लीग से भी सम्पर्क बनाया दोनों का सहयोग और समर्थन पा कर यह आन्दोलन शक्तिशाली हो उठा तथा सामाजिक मर्यादा पाने के लिए इसाई और इस्लाम धर्म में दीक्षित होने लगे।
प्रश्न 8.
दलित आंदोलन संगठित करने में ज्योति राव फुले एवं श्री नारायण गुरु के योगदान का संक्षिप्त विवरण लिखिए।
उत्तर :
ज्योतिबा फूले : पश्चिमी भारत में ज्योतिराव गोविन्दराव फूले (1827-1890 ई०) ने निम्न जातियों के लिए संघर्ष किया। कई स्थानों पर महिलाओं के लिए आश्रम का निर्माण करवाया। ज्योतिराव ने पुणे में माली कुल में जन्म लिया था। उनके पूर्वज पेशवाओं को पुष्प, मालाएँ इत्यादि उपलब्ध कराया करते थे इसलिए उन्हें फूले कहा जाने लगा था।
नारायण गुरु : श्री नारायण गुरु (1854-1928 ई०) ने केरल में तथा केरल के बाहर एस.एन. डी पी. (श्री नारायण धर्म परिपालन योगम्) नाम की एक संस्था तथा उसकी शखाएँ स्थापित की। श्री नारायण गुरु तथा उनके सहलयोगियों ने एझवा (एक अस्पृश्य जाति) वर्ग के उत्थान के लिए दो बिन्दुओं का कार्यक्रम बनाया जिसका पहला बिन्दु था कि अपने से नोची जातियों के प्रति असृश्यता की प्रथा को समाप्त करना। इसके अतिरिक्त नारायण गुरु ने मन्दिर बनवाए जिसके दरवाजे सभी वर्णों के लिए खुले थे।
प्रश्न 9.
भारत में दलित आंदोलन के विकास में डॉ॰ बी० आर० अम्बेदकर द्वारा पालन की गई भूमिका का उल्लेख करो।
उत्तर :
डॉ० भीमराव अम्बेदकर दलित् जाति के उद्धारक माने जाते हैं जिन्हांने सबसे पहले दलितों के उत्थान के लिए कदम बढ़ाया था। इनका जन्म महार नामक अछूत जाति में हुआ था। इनका परिवार कबीर पंथी था। इनके ऊपर भी कबीर दास के विचारों का प्रभाव पड़ा था। कबीर दास के गुणों एवं विचारों से प्रेरित होकर इन्होंने समाज में व्याप्त असृश्यता को दूर करने का बीड़ा उठाया।
भारतीय समाज में पीड़ित, शोषित तथा दलित वर्ग को समानता का अधिकार दिलाने के उद्देश्य से सन् 1920 में अम्बेदकर जी ने मराठी भाषा में मूकनायक (गूगों का नेता) नामक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरु किया। अस्पृश्य (दलित) जाति के लोगों के नैतिक तथा भौतिक उन्नति के लिये 1924 ई० में बम्बई में ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ को स्थापना की।
1927 ई० में प्रत्येक भारतीय को सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्वतंत्रता दिलाने के उद्देश्य से उन्होंने ‘बहिष्कृत भारत’ नामक मराठी पत्र का प्रकाशन शुरू किया। उन्होंने अचुतों (दलितों) के लिए मंदिरों में प्रवेश तथा जनसाधारण के कुँए से पानी भरने के अधिकार के लिए आन्दोलन किया। अछूतों के लिए अलग मताधिकार की भी माँग उन्होंने की थी। मंदिरों में दलितों एवं अचूतों के प्रवेषाधिकार के लिए उन्होंने 1930 ई० में आन्दोलन शुरू कर दिया।
मंदिर में प्रवेश के अधिकार को लेकर उन्होंने सत्याग्रह शुरू कर दिया। मंदिर के सभी फाटक बंद होने के कारण सभी सत्याग्रही फाटक के बाहर ही आन्दोलन करते रहे। लगभग एक महीने तक संघर्ष चलता रहा और संघर्ष रुकने का नाम नहीं ले रहा था 1933 ई० में बम्बई में ‘मंदिर प्रवेश बिल’ (Temple Entry Bill) पास किया गया। इस बिल के द्वारा दलितों एवं अस्पृश्य जातियों के लिए मंदिर में राजनीतिक प्रवेशाधिकार मिल गया।
महाड़ एवं नासिक में अम्बेदकर जी ने दलितों के उद्धार के लिए सत्याग्रह आन्दोलन चलाया जिसमें सवर्ण (उच्च वर्ग) के हिन्दुओं ने उग्र प्रतिक्रिया की और उन्हें प्रताड़ना दिया। जिससे क्षुब्ध होकर अम्बेदकर जी यह सोचने पर मजबर हो गये कि वे हिन्दू धर्म में रहें या त्याग दें। सन् 1955 में एक दलित सम्मेलन में उन्होंने ऐलान किया कि ‘ मेरा दुर्भाग्य है कि मैं हिन्दू धर्म में जन्मा हूँ पर बड़ी गम्भीरता से कहना चाहता हूँ कि मै एक हिन्दू के रूप में नहीं मरूँगा।” इसी घोषणा का पालन करते हुए अम्बेदकर जी अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म को ग्रहण कर लिया।
प्रश्न 10.
20 वीं सदी में गांधीजी द्वारा संगठित आंदोलन में नारी आंदोलन की विशेषताओं का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर :
प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक भारतीय महिलाओं ने समय-समय पर अपनी साहस, वीरता और त्याग का परिचय दिया है और देश के लिए मर-मिटने को हमेशा तत्पर रही है। वैदिक काल में नारियों ने वेदों की व्याख्या की, मुगल काल में रानी दुर्गावती ने मुगलों से लोहा ली और 1857 ई० के महाविद्रोह में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने मरते दम तक अंग्रेजों से लड़ती रही। भारत के स्वाधीनता आन्दोलनों में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। गाँधी जी द्वारा चलाये गये ‘सविनय अवज्ञा’ और ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलनों में महिलाओं की भागीदारी का संक्षिप्त विवरणइस प्रकार है –
i. सविनय अवज्ञा आन्दोलन : महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत अप्रैल, 1930 ई० में ‘दांडी मार्च’ से किया था। वे समुद्र तट पर नमक बनाकर सरकारी कानून को भंग किए। यह आन्दोलन धीरे-धीरे भारत के सभी प्रान्तों में फैल गया। इस आन्दोलन में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। महिलाएँ समुद्र तट पर सविनय अवज्ञा के कार्यक्रम को प्रचारित करती थीं। देश के लगभग सभी प्रान्तों की महिलाओं ने रसोई घर से निकलकर, पर्दा प्रथा को त्यागकर इस आन्दोलन में हिस्सा लिया। बम्बई और दिल्ली की महिलाओं ने इस आन्दोलन में काफ़ी उत्साह दिखाया था।
उन्होंने विदेशी कपड़ों और शराब की दुकानों पर धरना दी जिसके कारण ब्रिटिश सरकार द्वारा उनकी गिरफ्तारियाँ भी हुई, फिर भी उनका उत्साह कम नहीं हुआ। कस्तूरबा गाँधी, कमला नेहरू, सरांजिनी नायडू, बसन्ती देवी, उर्मिला देवी, सरला बाला देवी और लीला नाग आदि ने इस आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
सरकार ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए कठोर कदम उठाया और दमनात्मक नीति का सहारा लिया। महिलाओं के जुलूस और पदर्शन पर लाठी चार्ज किया गया, गिरफ्तारियाँ भी की गई फिर भी इनका उत्साह कम नहीं हुआ और उनकी भागीदारी बढ़ती गई।
ii. भारत छोड़ो आन्दोलन : गाँधी जी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के नारे के साथ सन् 1942 में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ आरम्भ किया। उन्होंने देशवासियों को ‘करो या मरो’ का नारा दिया। इस आन्दोलन में समाज के सभी वर्ग के लोगों की भांति नारियों ने भी जमकर हिस्सा लिया। नारियों में विशेषकर कॉलेज और स्कूल का छात्राआ न इस आन्दालन में भाग ली थी। मातंगिनी हाजरा, अरुणा आसफ अली, उषा महतो, सुचेता कृपलानी और कनकलता बरुआ आदि प्रमुख महिलाएँ ने भारत के विभिन्न भागों में महिलाओं का नेतृत्व किया। सभा और जुलूसों में महिलाएँ बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती थीं।
मातंगिनी हाजरा बंगाल के तामलुक क्षेत्र का नेतृत्व कर रही थीं। उन्होंने 29 सितम्बर, 1942 ई० को सरकारी अदालत और पुलिस चौकी पर कब्जे के लिए जुलूस निकाली और हाथ में तिरंगा थामे एक सभा को सम्बोधित कर रही थी। उसी समय पुलिस की गोली-बारी में उनको गोली लग गयी जिससे उनकी घटना स्थल पर ही उनकी मौत हो गई। दूसरी आन्दोलनकारी अरुणा आसफ अली भूमिगत आतंकवादियों की संगठनकर्ता थी।
वह भूमिगत रहकर महिलाओं और छात्राओं को अंग्रेजी दासता से मुक्ति के लिए प्रेरित करती रहीं। 1939 ई० में सुचेता कृपलानी गाँधी जी से मिलकर कांग्रेस कार्य समिति से जुड़ गई। बाद में उन्हें कांग्रेस की महिला विभाग के गठन की जिम्मेदारी दी गई। इस प्रकार से वे विभिन्न आन्दोलनो में सहयोग दिया।
प्रश्न 11.
गांधीवादी आंदोलन में छात्र विद्रोह की विशेषताएँ एवं महत्व का उल्लेख करो।
उत्तर :
गाँधी जी हमारे देश के एक महान नेता थे, जिन्होंने देश को स्वाधीन कराने के लिए कई महत्वपूर्ण आन्दोलन असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन और भारत छोड़ो आन्दोलन चलाए जिसमें छात्रों का महत्वपूर्ण योगदान था।
असहयोग आन्दोलन : गाँधी जी ने सन् 1920 में रौलेट एक्ट और जालियांवाला बाग हत्याकाण्ड के विरोध में अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आन्दोलन छेड़ दिया। देशबन्धु चित्तरंजन दास और गाँधीजी ने छात्रों को आन्दोलन में भाग लेने के लिए आह्नान किया। उनके आह्रान पर हजारों छात्रों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों को त्याग कर आन्दोलन में कूद पड़े। पूरे देश में लगभग 9000 विद्यार्थियों ने सरकारी विद्यालयों और काँलेजों को त्याग दिया था, जिनके लिए लगभग 80 राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों की स्थापना की गयी थी।
ये छात्र इन शिक्षण संस्थानों में पढ़ने लगे। सरकारी शिक्षा का बहिष्कार आदोलन बंगाल में चित्तरंजन दास और नेताजी के नेतृत्व में सबसे अधिक सफल रहा। पंजाब में आन्दोलन का नेतृत्व लाला लाजपत राय के हाथों में था। जिनके आह्वान पर छात्रों ने सरकारी शिक्षण संस्थानो को त्यागकर असहयोग आन्दोलन में शामिल हुए थे।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन : 6 अप्रैल, 1930 ई० को नमक कानून तोड़कर गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ किया। इस आन्दोलन में भी छात्रों ने सक्रिय योगदान दिया था। गाँधी जी के आह्धान पर हजारों छात्र-छात्राएँ सरकारी शिक्षण-संस्थानों को त्यागकर इस आन्दोलन में कूद पड़े। गुजरात विद्यापीठ के कई छात्र गाँधी जी के साथ ही पैदल साबरमती आश्रम से डांडी तक गये। छात्रों ने विदेशी वस्तुओं एवं शराब की दुकानों पर धरना-प्रदर्शन किया, विदेशी कपड़ों की होली जलाई तथा जनता से विदेशी वस्तुएँ न खरीदने का आग्रह किया।
भारत छोड़ो आन्दोलन : 8 अगस्त, 1942 ई० को गाँधी जी ने ‘करो या मरो’ के आह्वान के साथ ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ की शुरुआत की। यह आन्दोलन गाँधोजी का सबसे अन्तिम और लोकग्रिय आन्दोलन था। अन्य आन्दोलनों की तरह इस आन्दोलन में भी छात्रों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया था। इलाहाबाद विश्धविद्यालय के छात्र संगठन ने इसमें महत्वपूर्ण योगदान दिया था। आन्दोलन शुरू होते ही गाँधीजी समेत कांग्रेस के सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिये गये तभी छात्रों ने शिक्षण संस्थानों का बहिष्कार करके आन्दोलन में कूद पड़े। दिल्ली, बम्बई, बंगाल और केरल के विद्यार्थियों में उत्साह अधिक था।
पुलिस के दमन चक्र और बड़े-बड़े नेताओं की अनुपस्थिति में नवयुवक छात्र हिंसात्मक गतिविधियों को अंजाम देने लगे। हिंसक छात्र जगह-जगह रेल की पटरियाँ उखाड़ दिये, पुल तोड़ दिये, तार एवं टेलीफोन की लाइने काट दी, सरकारी भवन तथा दफ्तरों में तोड़-फोड़ की और वहाँ राष्ट्रीय झाण्डा फहरा दिये। 11 अगस्त, 1942 ई० को पटना में सात छात्र विरोध करते हुए शहीद हो गये।
प्रश्न 12.
20 वीं सदी में औपनिवेशिक प्रभुत्व के विरोध में युवाओं के विद्रोह का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर :
उदारपंथी नेताओं की नीति से राष्ट्रीय काँग्रेस का ही एक पक्ष असंतुष्ट हीकर उग्रपंथी बन गया, उसी तरह उग्रपंथियों की नीतियों से भी असंतुष्ट वर्ग संत्रासवादी नीति से काम लेने की तैयारी कर रहा था। बलिदानी युवक-युवतियों का क्रांतिकारी वर्ग हिंसा-अहिंसा किसी भी नीति का सहारा लेकर विदेशियों को देश से बाहर निकाल फेंकने को इच्छुक था।
जब सरकारी तंत्र ने जन-आंदोलनों का क्रूरतापूर्वक दमन आरंभ कर दिया और नि:सहाय स्वयंसेवको पर मनमाने जुल्म ढाने लगा, तब कुछ देशभक्तों के हृदय प्रातशोध की ज्वाला से सुलग उठे और उन्होंने हिंसा और आतंक की नीति अपनाने का संकल्प लिया। यह दल काँग्रेसी खेमे से बाहर रहकर अपनी योजनाएँ बनाता था और उसके अनुसार कार्य करता था। बींसवी सदी के आरंभ में आतंकवाद अथवा संत्रासवाद की लहर मुख्यत: बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश में तेजी के साथ प्रसारित हुआ।
क्रांतिकारी न तो वैधानिक सुधार चाहते थे और न स्वशासन की माँग करते थे, बल्कि वे अपनी मातृभूमि को विदेशी शासनश्रृंखला से सर्वथा मुक्त देखना चाहते थे। उनका विश्वास था कि हिंसा और शक्ति द्वारा स्थापित ब्विटिश राज उसी हिंसा और शक्ति द्वारा समाप्त किया जा सकता है। अतएव आतंकवादियों ने अंग्रेजों के जुल्मों का जवाब गोलियों तथा बम के गोलों से देना आरंभ किया। वे न हत्यारे थे और न लुटेरे थे, किन्तु अंग्रेज हत्यारों और अत्याचारियों को उचित सबक सिखाने के लिए वे उनकी हत्या करना आवश्यक समझते थे।
बड़े-बड़े अंग्रेज पदाधिकारियों की हत्या करना उनके आंदोलन का महत्तवपूर्ण अंग था। हथियार इकट्ठा करना, बम बनाना, गुप्त सभाएँ करना, धन के लिए सरकारी खजाना लूटना तथा समयसमय पर किसी अंग्रेज पदाधिकारी की हत्या करना उनके क्रियाकलाप थे। वे पूर्ण अराजकतावादी थे जिनकी दृष्टि में विदेशी प्रशासन के लिए कोई नरमी नहीं था। उनका एकमात्र उद्देश्य था विदेशी चंगुल से मातृभूमि की मुक्ति करना।
प्रश्न 13.
असहयोग आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
रौलैट एक्ट और जालियांवाला बाग हत्याकाण्ड के विरोध में सन् 1920 में गाँधीजी ने अहिंसक असहयोग आन्दोलन चलाया। इस आन्दोलन में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं की भी सक्रिय भागीदारी रही है। स्त्रियों ने सरकारी कार्यालय तथा विद्यालय त्याग कर आन्दोलन में भाग लिया। वे घर-घर घुमकर विदेशी वस्तुओं को त्याग कर अपने देश में बनी वस्तुओं के प्रयोग करने के लिए अनुरोध किया। वे अपने घरों का काम-काज छोड़कर जुलुसों में भाग लेना शुरू किया, विदेशी वस्तुओं की दुकानों पर धरना दी और बड़ी संख्या में गिरफ्तारियाँ भी दीं।
बसंती देवी, सरोजनी नायडू, उर्मिला देवी, सुनीति देवी और हेमप्रभा मजुमदार आदि नारियों ने इस आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा लज्जावंती, पार्वती देवी, पेरिन कैप्टन (दादा भाई नौरोजी की पौत्री) नन्दूबेन कानूनगो तथा सरदार वल्ल्बभाई पटेल की पुत्री मनिबेन आदि महिलाओं ने भी इस अहिंसक आन्दोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
चितरंजन दास की पत्नी बसन्ती देवी, उर्मिला देवी और सुनीति देवी तीनों संगठित होकर विदेशी कपड़ों के दुकानों पर धरना दी तथा सरकार द्वारा राजनीतिक धरनों पर पाबन्दी का खुलकर विरोध किया। इस विरोध प्रदर्शन में पुलिस ने बसन्ती देवी को गिरफ्तार कर लिया। इनकी गिरफ्तारी का लोगों पर विद्युत सा असर पड़ा। इस खबर से उत्तेजित लोगों ने पुलिस को घेर लिया और इन्हें मुक्त कराने के लिए बाध्य किया।
असहयोग आन्दोलन में भाग लेनेवाली महिलाओं में सरोजनी नायडू की सक्रिय भूमिका रही है। उन्होंने नारी जागरण का कार्य किया । महिलाओं ने इनकी अध्यक्षता में ‘राष्ट्रीय स्त्री संघ’ की स्थापना की। उर्मिला देवी ने इस संस्था द्वारा महिलाओं सं देश की सेवा के लिए घर छोड़ने कीअपील की। बम्बई की लगभग 1 हजार स्त्रियों ने प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन का सशक्त विरोध किया। इस आन्दोलन में मुस्लिम महिलाओं ने भी हिस्सा लिया था।
अत: अहिंसक असहयोग आन्दोलन में हमारे देश की लगभग सभी वर्ग की हिन्दू और मुस्लिम महिलाओं ने बढ़-चढ़कर अपना अमूल्य योगदान दिया था।
प्रश्न 14.
आजाद हिन्द फौज की नारी संगठन के बारे में आप क्या जानते हो ? संक्षेप में उत्तर दीजिए।
उत्तर :
आजाद हिन्द फौज का गठन सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए किया था। वे दक्षिण-पूर्व एशिया के स्तियों को भी आजाद हिन्द फौज में शामिल करने के उद्देश्य से रानी लक्ष्मी बाई के नाम पर झाँसी की रानी बिग्रेड नामक नारी सैनिक संगठन का गठन किया। इसमें मलेशिया में रहने वाली भारतीय युवतियों तथा कुछ भारतीय महिलाओं को शामिल कर उन्हें विशेषकर जंगली युद्ध कौशल (गोरिल्ला युद्ध प्रणाली) का प्रशिक्षण दिया गया।
प्रथम 500 महिलाओं को मार्च 1944 ई० में सिंगापुर में प्रशिक्षित किया गया और उन्हें भारत में आन्दोलन करने के लिए तैयार किया गया। इस बिग्रेड को आजाद हिन्द फौज के सैनिकों की सेवा और सहयोग का भी दायित्व सौंपा गया था। इस दल में लगभग 1500 महिलाएँ थीं जो नीडर और साहसपूर्वक युद्ध का संचालन कर रही थी।
इस संगठन की कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन (लक्ष्मी सहगल) थी, जिन्हें 1945 ई० में गिरफ्तार कर भारत लाया गया और उन्हें छोड़ दिया गया। इनका जन्म 24 अक्टूबर 1914 ई० को मद्रास में हुआ था। ये बचपन से ही विद्रोही प्रवृत्ति की थी। लगभग 30 वर्ष की अवस्था में सिंगापुर गयी और नेताजी से मिलकर आजाद हिन्द फौज की कप्तान बनी। आजाद हिन्द फौज के सेना के कप्तान प्रेम कुमार सहगल से विवाह कर ये लक्ष्मी सहगल बन गयी।
भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में आजाद हिन्द फौज के सैनिकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जिसमें झाँसी की रानी बिग्रेड़ ने भी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
प्रश्न 15.
बंगाल के बहिष्कार आन्दोलन (बंग-भंग आन्दोलन) में छात्रों की क्या भूमिका रही है ? संक्षेप में उत्तर दें।
उत्तर :
बंग-भंग के विरोध में हुए स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन को सफल बनाने में समाज के लगभग सभी वर्ग के पुरुषों तथा नारियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है साथ ही साथ छात्रों ने भी इसमें जमकर हिस्सा लिया था। बंगाल विभाजन की घोषणा होते ही 5 अगस्त 1905 ई० को अलबर्ट-हाल में एक सभा का आयोजन किया गया जिसमें एक कोष की स्थापना की गयी। इसका उद्देश्य उन विद्यार्थियों को सहायता देना था जिन्होंने सरकारी शैक्षणिक संस्थानों का वहिष्कार कर आंदॉलन में शामिल हुए थे।
छात्रों ने सर्वप्रथम विदेशी कागज, कलम का उपयोग न करने की शपथ ली साथ ही साथ विदेशी दुकानों पर धरना देना शुरू किया और लोगों से विदेशी वस्तुएँ न खरीदने की प्रार्थना की। वे स्वय विदेशी वस्त्रों का परित्याग किये और साथ ही साथ विदेशी सिगरेट, शराब पीना त्याग दिया। उन्होंने विदेशी समानों को नष्ट करना शुरू कर दिया।
सभाओ तथा प्रदर्शनों में छात्रों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कलकत्ता के कॉलेज स्क्वायर में बग-भंग के विरोध में लगभग 500 छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। वे ‘संयुक्त बंगाल’ और ‘बंदेमातरम्’ का नारा लगाते हुए कलकत्ता के टाउन हॉल पहुँचे तथा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की शपथ ली।
छात्रों का अन्दोलन जितना उग्र होता गया सरकारी दमन चक्र भी उतना ही कठोर होता गया। जिन स्कूलों एवं कॉलेजों के विद्यार्थी आंदोलन में सक्रिय हुए, उन्हें शैक्षणिक संस्थानों से निकालने की धमकी दी गयी, उनकी छात्रवृत्ति रोक दी गयी, आर्थिक जुर्माने के साथ ही कैद की सजा दी गयी। इसके अलावा उनके विशेषाधिकार छीन लिए गये और सरकारी नौकरी से उन्हें वचित रखने का निर्णय लिया गया।
10 अक्टूबर 1905 ई० को कार्लाइल सरकुलर जारी कर अंग्रेजी सरकार ने छात्रों के राजनीतिक क्रिया-कलापों पर अंकुश लगाना चाहा लेकिन विद्यार्थियों का उत्साह और भी बढ़ता गया। छात्र नेता सचीन्द्र नाथ बसु ने कृष्ण कुमार और रामाकान्त राय की सहायता से 4 नवम्बर 1905 ई० को एण्टी सर्कुलर सोसाइटी की स्थापना की जिसका उद्देश्य सरकारी शिक्षण संस्थाओं से निकाले गए छात्रों की सहायता करना था। निष्कासित छात्रों के लिए शिक्षण संस्थाओं की स्थापना भी की गयी।
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि छात्रों के सक्रिय सहयोग ने बंग-भंग विरोधी आन्दोलनको उग्र और सफल बनाने में भरपूर सहयोग दिया था
प्रश्न 16.
‘बंगाल वॉलेंटियर्स’ संस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘बगाल वॉलेंटियर्स’ एक क्रांतिकारी संस्था थी जिसकी स्थापना हेमचन्द्र घोष ने ढाका में की थी । धीरे-धीरे बंगाल में इसकी कई शाँखायें खुल गयीं। सर्वप्रथम इस संगठन की स्थापना कांग्रेस की मदद के उद्देश्य से की गयी थी। बाद में यह संस्था क्रांतिकारी संस्था बन गई। सन् 1930 ई० में इस संगठन ने जेलों में होने वाले पुलिस जुल्म के खिलाफ आंदोलन छेड़ने की घोषणा की।
इसी उद्देश्य से प्रेरित होकर मेडिकल कॉलेज के छात्र विनय कृष्ण बसु ने इन्सपेक्टर लोमैन और ढाका के पुलिस सुपरिटेडन्ट हडसन पर गोली चलायी। लामैन की घटनास्थल पर ही मौत हो गई और हडसन गंभीर रूप से घायल हो गया। इस घटना के बाद विनय वेश बदलकर कलकत्ता आ गए।
क्रांतिकारियों ने अगला निशाना एन० एस० सिम्पसन को बनाया जो जेल में बंद केदियों के ऊपर अत्याचार करता था। 8 दिसम्बर 1930 ई० को विनय बसु, बादल गुप्त और दिनेश गुप्त ने जेल अधीक्षक सिम्पसन को मारने के लिए कलकत्ता के राइटर्स बिल्डिंग पर आक्रमण कर दिया और उसे गोलियों से भून दिया ।
घटना स्थल पर ही उसकी मौत हो गयी। इस घटना की खबर तुरंत आग की तरह फैल गयी। लालबाजार पुलिस ने आकर उन्हें बिल्डिंग के बरामदे में ही घेर लिया। पुलिस और क्रांतिकारियों के बीच काफी गोलियाँ चली, इसे बरामदा का युद्ध कहा जाता है। पुलिस के हाथ न लगे इस भय से विनय, बादल और दिनेश ने आत्महत्या की कोशिश की ।
विनय और बादल की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। दिनेश जीवित पकड़े गए और उन्हें मुकदमा चलाकर 7 जुलाई 1931 ई० को फाँसी दे दी गयी।
बंगाल के मिदनापुर में भी यह दल काफी सक्रिय था। इस संगठन के सदस्य विमल दास गुप्त और ज्योति जीवन घोष ने निदनापुर के जिला जज, 1932 ई० में प्रद्युत भट्टाचार्य ने जिला शासक डगलस और अनाथ पंजा तथा मृगेन दत्त ने जिला मजिस्ट्रेट बार्गे की हत्या कर दी। इस दल ने पूरे बंगाल में लूट तथा हत्याकाण्ड जैसे घटनाओं का अंजाम दिया।
इसके बाद भी यह दल सक्रिय रहा और पूरे उमंग तथा उत्साह के साथ भारत के स्वाधीनता संग्राम में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता रहा।
प्रश्न 17.
दक्षिण भारत के ‘वायकोम आन्दोलन’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
वायकोम आन्दोलन : सन् 1923 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अस्पृश्यता (छुआ-छूत) को समाप्त करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाया, जिसमें केरल का वायकोम आन्दोलन सबसे प्रमुख था। केरल में छुआ-छूत की भावना तीव्र गति से पनप रही थी। समाज के दलित वर्ग और निम्न श्रेणी के लोग इस कुरीति के शिकार थे।
समाज के सवर्ण (उच्च श्रेणी) इनको घृणा को दृष्टि से देखते थे, उन पर अत्याचार भी करते थे। ‘एझवा’ तथा ‘पुलैया’ जाति सबसे ज्यादा शोषण के शिकार थी। समाज की ऐसी स्थिति को देखकर केरल प्रदेश काँग्रेस कमिटी ने छुआ-छुत उन्मूलन के लिए आन्दोलन किया और हिन्दू मंदिरों तथा सार्वजनिक सड़कों पर अवर्णो के प्रवेश के लिए आंदोलन छेड़ दिया।
त्रावणकोर के एक गाँव वायकोम में एक शिव मंदिर था, जिसके चारों ओर स्थित सड़कों पर अवर्णों का चलना वर्जित था। केरल काँग्रेस ने 30 मार्च 1924 ई० को सवर्णो और अवर्णो ने एक जुलूस निकालकर छुआ-छूत कानून का उल्लंघन करते हुए वायकोम मंदिर में पहुँच गया। अवर्ण के साथ-साथ सवर्ण के अनेक संगठनों ने भी इस आंदोलन में साथ दिया। यह आन्दोलन लम्बे अरसे तक चलता रहा। मार्च 1925 ई० में गाँधीजी केरल पहुँचे और इस समस्या का हल निकाले।
अत: गाँधोजी की प्रयास से सदर्ण और अवर्ण के बीच एक समझौता हुआ जिसके अनुसार मंदिर के बाहर की सड़कें अवर्णों क लिए खोल दो गई परन्तु मन्दिर के भीतर उनका प्रवेश वर्जित रहा। बाद में मन्दिर प्रवेश की अनुमति भी मिल गई। इस प्रकार टक्षिण भारत में अस्पृश्यता के उन्मूलन में केरल प्रांत का वायकोम आन्दोलन महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
प्रश्न 18.
भारत के सशस्त्र क्रांतिकारी आन्दोलन में कल्पना दत्त की क्या भूमिका थी ?
अथवा
कल्पना दत्त कौन थी ? भारत के सशस्त्र क्रांतिकारी आन्दोलन में उनका क्या योगदान था?
उत्तर :
कल्पना दत्त एक क्रांतिकारी महिला तथा सशस्त्र कांतिकारी आन्दोलन की अग्रणी नेत्री थी।
इनका जन्म 27 जुलाई 1913 ई० को चटगाँव के श्रीपुर गाँव में हुआ था। हाई स्कूल में पढ़ते समय ही उनके जीवन पर गण्टोंयता और कांतिकारी विचारो का गहरा प्रभाव पड़ा। माध्यमिक शिक्षा के बाद वह कलकत्ता के बेधुन कालेज में विज्ञान विषय से स्नातक करने लगी। शहीद खुदीराम बोस तथा क्रांतिकारी कानाईलाल दत्त के आदर्शो से प्रभावित होकर इन्होंने कालज़ के ‘छात्रा संब’ में शामिल हो गई।
एक साधारण परिवार में जन्मी कल्पना में अद्म्य साहस व वीरता की भावना कूट-कूटकर भरी थी। वह बड़ी दृढ़ इच्छा झ़क्ति की वालिका थी। अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के उद्देश्य से वह क्रांतिकारी आन्दोलन में कूद पड़ी। पूर्णनेन्दू दस्तीदार के माध्यम से वह सूर्यसेन के सम्पर्क में आयी और इण्डियन रिपल्बिकन आर्मी के चटगाँव शाखा में शामिल हो गई।
उन्हांने सर्यसंन के साथ कई कांतिकारी आन्दोलनों में भाग लिया था। 1931 ई० में सूर्यसेन ने कल्पना एव प्रीतिलता के साथ पहाड़ी की तल्नटी में स्थित एक यूरोपियन क्लब पर आक्रमण की योजना बनाया था। सितम्बर 1932 ई० को पहाड़ी तल्ला के पहल निरीक्षण करत समय पुरुष वेष में गिरफ्तार कर ली गयी। जेल से छुटने के बाद वह किसो गुप्त स्थान पर छिप गयी और वहीं से कातिकारी गतिविधियों में भाग लेती रही।
सन् 1933 ई० में पुलिस ने उनके गुप्त स्थान पर छापा मारा, परन्तु वहाँ से भी वह भागने में कामयाब रहीं किन्तु सूर्यसेन सहित कई क्रांतिकारी गिरफ्तार कर लिये गए। पुलिस के हाथों से वह ज्यादा दिन तंक बच नहीं पायी और एक दिन पुलिस ने उनके घर पर छापा मारकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 1934 ई० में उन्हें आजींबन् कारावास की सजा हुई। गाँधी जी और रवीन्द्रनाथ ठाकुर के प्रयास से सरकार ने उन्हें 1939 ई० में जेल से छांड़ लिया।
बाद में उन्होंन कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली और देश में साम्यवादी विचारों को फैलाने काकार्य किगा। 1946 ई० में कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से उन्होंने बगाल विधान सभा का चुनाव भी लड़ा था, परन्तु हार गई। फरवरी 995 इ० में कलकता में इनका निधन हो गया। मरणोपरांत पूना में उन्हें वीर महिला की उपाधि से विभूषित किया गया।
प्रश्न 19.
बीना दाम के बारे में क्या जानते हैं ? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
अथवा
बंगाल के सशस्त्र क्रांतिकारी आन्दोलन में बीना दास की भूमिका का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बगाल के क्रांतिकारी आन्दोलनों में महिलाओं एवं छात्राओं की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी। उन्होनें अपनी वीरता और सात सं के बल पर अंप्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। ऐसी छात्राओं में बीना दास भी शामिल थी, जिसने बंगाल के सशस्त्र क्रातिकारो गतित्रिधियो में अपना अमूल्य योगदान दिया था। इनका जन्म 24 अगस्त, 1911 ई० को बंगाल के कृष्णनगर में हुआ था। इनके पिता का नाम बेनी माधव दास था जो एक प्रसिद्ध अध्यापक थे। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसे महान व्यक्ति इनके छात्र रह चुके थे।
बोना देवी की माता सरला दास एक सामाजिक महिला थी जिसने निराश्रित महिलाओं के लिए ‘पुष्याग्रम’ नामक संस्था भी बनाई थी। इनके पूरे परिवार में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। बीना दास और उनकी बड़ी बहन कल्याणी दास पर भी इसका प्रभाव पड़ा था। मेजिनी, गैरी वाल्डी और बकिमचन्द्र जैसे महान साहित्यकारों को रचनाओं और विचारों से वह बहुत प्रभावित हुई और देश की स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ी।
कलकत्ता के बंधुन कॉलेज में पढ़ते समय ही बीना दास 1928 ई० में साइमन कमीशन के बहिष्कार आन्दोलन में शामिल हो गई और अन्य छात्राओं के साथ मिलकर कॉलेज के फाटक पर धरना प्रदर्शन की। वह कई बार काँग्रेस के अधिवेशन में भी भाग ली थी। चट्दगाँव शस्त्रागर लूट के बाद बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रियता आ गई और इसी समय वह कांतिकारी संख्था ‘युगान्तर दल’ में शामिल हो गई।
उन दिनों क्रांतिकारियों को बंगाल़ के बड़े अंग्रेज अधिकारों को मारने की जिम्मेदारी दी गई। बीना दास भी इसी कार्य में सम्मिलित हो गई और उसे बंगाल के गवर्नर स्टैनले जैक्सन को मारने की जिम्मेदारी सौपो गई। 6 फरवरी, 1932 ई० को बंगाल के गर्वनर स्टैने जैक्सन को विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में उपाधियाँ बाँटनी थी। उसी समय भाष्ण के दौरान बीना ने उसे मारने की योजना बनाई थी।
6 फरवरी, 1932 ई० दीक्षांत समारोह में गवर्नर ने जैसे ही भाषण देना प्रारंभ किया, बीना दास ने उसके सामने जाकर रिवाल्वर से गोली चला दी। बीना को तेजी से सामने आता देखकर गर्वनर अपनी जगह से हट गया जिससे निशाना चूक गया और वह बच गया। बीना को गिरफ्तार कर उन्हे 9 वर्ष की कड़ी सजा सुनाई गयी।
1937 ई० में उन्हें छोड़ दिया गया, फिर वह गाँधी जी के साथ स्वतंत्रता आन्दोलन में शामिल हो गई। भारत छोड़ो आन्दोलन के समय अंग्रेजी सरकार ने उन्हें तीन वर्ष के लिए नजरबन्द कर दिया था। गाँधी जी के साथ वह कई आन्दोलनों में भाग ली थी। 26 दिसम्बर, 1986 मे ॠषिकेश में इनकी मृत्यु हो गई।
इस प्रकार देश को अंग्रेजी की दासता से मुक्त कराने वाली एक वीर महिला क्रांतिकारी बीना दास सदा के लिए इतिहास के पत्नों में अपने को अमर बना दिया।
प्रश्न 20.
भारत में दलित वर्ग के आन्दोलन के क्या कारण थे ?
उत्तर :
भारतीय समाज की सबसे बड़ी बुराई जाति-प्रथा, अस्पृश्यता एवं छुआछूत की भावना थी। जाति-प्रथा ने हमारे समाज को दो भागों (सवर्ण और अवर्ण) में बाँट दिया था। सवर्ण हिन्दू अवर्णो को अछूत मानकर उन्हें समाज से अलगथलग कर दिया था। वे लोग सामाजिक असमानता, दमन एवं शोषण के शिकार थे अत: वे ही दलित कहलाते थे।
दलितों ने समय-समय पर सामाजिक समानता तथा अपने सुधारों के लिए तथा समाजसेवी संस्थानों ने भी दलितों के उद्धार तथा जाति प्रथा के उन्मूलन के लिए आवाजे उठाई परन्तु सफल नहहीं हुए। आज भी हमारे देश में जाति-प्रथा जैसी कुरीतियाँ व्याप्त है जिसका समूल नष्ट करने के लिए निरन्तर आन्दोलन हो रहे हैं।
दलित वर्ग के आन्दोलन के कारण :
i. शिक्षा के प्रचार-प्रसार के कारण दलितों में सामाजिक एवं सांस्कृतिक जागृति पैदा हुई और ये अपनी वर्तमान परिस्थिति से असन्तुष्ट होने लगे। इनका असन्तोष दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया। उन्हें अच्छी तरह समझ में आ गया कि कानून की नजर में सभी लोग एक समान हैं, व्यर्थ ही सवर्ण जाति के लोग दलितों पर अत्याचार करते है जो कानून के खिलाफ है।
ii. निम्न जातियाँ (दलित) पश्चिमी शिक्षा और वहाँ के स्वतंत्र विचारों से प्रभावित होकर यह अनुभव किया कि वहाँ के स्वतंत्र विचारों को अपनाने से उनकी उन्नति हो सकती है और भारतीय समाज में सम्मानीत एवं उचित स्थान मिल सकता है। क्योंकि पश्चिमी देशों में निम्न जाति जैसा कोई वर्ग नहीं था तथा समाज में सबको एक समान अधिकार प्राप्त था।
iii. यातायात और । ‘संचार माध्यमों ने भी सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा दिया। यात्रा करते समय सवर्ण और अवर्ण दोनो जाति के लोग अपने में ज्यादा अन्तर रखने में असमर्थ थे। फलस्वरूप उनके बीच की दूरी धीरे-धीरे कम होती गई और सवर्णो का जो अवर्णों के प्रति घृणा की भावना की, वह दूर होती गई। इस प्रकार अवर्ण (दलित) अपने अधिकारों के प्रति सचेत और जागरूक होने लगे।
इन प्रमुख कारणों के अलावा अन्य कई और कारण भी दलित आन्दोलन के लिए उत्तरदायी थे। दलित जातियाँ अपने उत्थान के लिए इतनी उम्म थी कि उन्होंने सवर्णो के विशेष अधिकारों और उनके राजनीतिक प्रभावों को समाप्त करने के लिए आन्दोलन करने लगे। धीरे-धीरे ये सरकार से सामाजिक स्वीकृति, रोजगार और अपने राजनीतिक अधिकारों की मांग करने लगे। यहीं से हमारे देश में जातीय आन्दोलन का प्रादुर्भाव हुआ।
देश की सामाजिक संस्थाए भी दलितों के उत्थान और उनके जीवन स्तर में सुधार के लिए आन्दोलन कर रहे थे। हमारे देश के महान नेता महात्मा गाँधी और दलित नेता अम्बेदकर ने भी दलितों के उत्थान में अपना सर्वस्व जीवन न्योछावर कर दिया। फिर भी हमारे समाज में जाति-प्रथा जैसी कुरीतियाँ आज भी विद्यमान हैं; जो देश की प्रगति के लिए घातक है। इसका समूल नष्ट करना अति आवश्यक है।
प्रश्न 21.
भारत छोड़ो आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भारत छोड़ो आन्दोलन : गाँधी जी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के नारे के साथ सन् 1942 में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ आरम्भ किया। उन्होंने देशवासियों को ‘करो और मरो’ का नारा दिया। इस आन्दोलन में समाज के सभी वर्ग के लोगों की तरह नारियों ने भी जमकर हिस्सा लिया। नारियों में विशेषकर कॉलेज और स्कूल की छात्राओं ने इस आन्दोलन में भाग लिया था।
मातंगिनी हाजरा, अरुणा आसफ अली, उषा महतो, सुचेता कृपलानी और कनकलता बरुआ आदि प्रमुख महिलाएँ थीं जिन्होंने भारत के विभिन्न भागों में महिलाओं का नेतृत्व किया था। सभा और जुलूसों में महिलाएँ बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती थीं। मातंगिनी हाजरा बंगाल के तामलुक क्षेत्र का नेतृत्व कर रही थीं।
उन्होंने 29 सितम्बर, 1942 ई० को सरकारी अदालत और पुलिस चौकी पर कब्जे के लिए जुलूस निकाला और हाथ में तिरंगा थामे एक सभा को सम्बोधित कर रही थी। उसी समय पुलिस के लाठी चार्ज और गोली-बारी में उनको गोली लग गयी। घटना स्थल पर ही इनकी मौत हो गई। दूसरी आन्दोलनकारी अरुणा आसफ अली भूमिगत आतंकवादियों की संगठनकर्त्ता थीं।
वह भूमित रहकर महिलाओं और छात्राओं को अंग्रेजी दासता से मुक्ति के लिए प्रेरित करती रहीं। 1939 ई० में सुचता कृपलानी गाँधीजी से मिलकर कांग्रेस कार्य समिति से जुड़ गई। बाद में उन्हें कांग्रेस की महिला विभाग के गठन की जिम्मेदारी मिल गई। आन्दोलनों में सक्रियता के कारण उन्हें दो साल की कैद हुई।
1942 ई० में सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया फिर वह छिपकर देश में सक्रिय सभी आन्दोलनकारियों से मिलती रही और उन्हें उत्साहित करती रही। मेदिनीपुर के महिषादल और सूताहाटा में महिला स्वयसंसिकाओं की भर्ती करके ‘भगिनी सेना’ (बहनों की सेना) का गठन किया गया था जो छिपकर महिलाओं को राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करती रहती थी और देश के लिए शहीद होने की प्रेरणा देती थी। असम की कनकलता बरुआ और पंजाब की वीर महिला योगेध्वरी फुकोननी का नाम भी शहीद होने वाली महिलाओं में शामिल है।
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि विरोध प्रदर्शन से लेकर आन्दोलन के संगठन में भारतीय महिलाओं ने बड़ी सक्रियता दिखाई। इस आन्दोलन में देश की हजारों स्रियाँ शामिल थीं, जो प्रत्यक्ष या अम्रत्यक्ष रूप से आन्दोलन का नेतृत्व कर रही थी। अतः इस आन्दोलन में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान था।
प्रश्न 22.
प्रीतिलता वादेद्दर क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर :
प्रीतिलता वाद्देदर सशख्र क्रान्तिकारी आन्दोलन की प्रथम क्रान्तिकारी शहीद नेत्री थीं। वह बचपन से ही बहुत साहसी एवं निडर थी। राष्ट्रीयता उसमें कूट-कूटकर भरी हुई थी। सूर्य सेन के नेतृत्व में वह क्रान्तिकारी आन्दोलन में शामिल हो गयी और उनके साथ कई आन्दोलनों में भाग ली। वह छापामार दस्ता की नेत्री थी। 24 सितम्बर, 1932 ई० को वह अपने साथियों के साथ पहाड़ी की तलहटी में स्थित एक यूरोपियन क्लब पर आक्रमण कर भारी तबाही मचाई। इस आक्रमण में कई अंग्रेज घायल हो गये और एक महिला की मौत हो गई। पुलिस ने क्रान्तिकारियों को चारों तरफ से घेर लिया। दोनों के बीच घण्टों गोलाबारी हुई। पुलिस के हाथों पकड़े जाने के भय से प्रीतिलता ने पोटैशियम साइनाइड (जहर) खाकर आत्महत्या कर ली थी।
प्रश्न 23.
रशीद अली दिवस पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर :
कैप्टन अब्दुल रशीद अली आजाद हिन्द फौज के साथ मिलकर बहुत सारे सैनिक कार्यवाही में हिस्सा लिये। रशीद अली की मुख्य भूमिका आजाद हिन्द फौज के सैनिकों में प्राण फूंकना था। आजाद हिन्द फौज के समर्पण के बाद रशीद अली को 7 वर्ष की सश्रम कारावास की सजा सुनाई गयी। मुस्लिम लीग द्वारा रशीद अली को अपना नायक बना लिया गया अत: उनकी सजा की खबर चुनते ही चारों तरफ प्रतिरोध और तोड़फोड़ तथा साथ ही साथ आगजनी की कार्यवाही हुई।
रशीद अली की रिहाई के उद्देश्य को ध्यान में रखकर मुस्लिम छात्र लीग ने 11 फरवरी 1946 ई० को स्दूडन्टस फेडरेशन द्वारा समर्थन मिलने पर छात्रों द्वारा हड़ताल का आयोजन किया गया था, इस हड़ताल में जब छात्र समूह डलहौजी स्क्वायर के तरफ बढ़ रहा था तब पुलिस द्वारा निहत्ये छात्रों पर गोलियाँ चलाई गई जिसमें 48 छांत्र मारे गये थे और लगभग 500 छात्र घायल हो गये थे।
उनको 11 फरवरी 1946 ई० को सजा सुनायी गई और 12 फरवरी 1946 ई० को मुस्लिम लीग ने पूरे भारत में रशीद अली दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया। जिसे रशीद अली दिवस के रूप में मनाया जाता है। रशीद अली दिवस का तात्पर्य हिन्दू मुस्लिम एकता एक स्वतन्त्रता का प्रतिक से था।
विवरणात्मक प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 8 MARKS
प्रश्न 1.
बंग-भंग प्रतिरोध आन्दोलन में भारतीय नारियों के योगदान का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
बंगभंग विरोधी आन्दोलन में नारी समाज ने किस प्रकार भाग लिया था ? उनके आन्दोलन की सीमाबद्धता क्या थी ?
उत्तर :
लार्ड कर्जन ने बंगाल की बढ़ती हुई राष्ट्रीय चेतना को कम करने तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता को खण्डित करने के उद्दश्य से 16 अक्टूबर, 1905 ई० को बंग-भंग कानून लागू कर दिया। इसके लागू होते ही पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। बंग-भंग विरोध आन्दोनल में समाज के सभी वर्गों के लोगों ने भाग लिया। इस आन्दोलन में स्तियाँ एवं छात्राओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
बंगाल के विभाजन का विरोध करने के लिए स्वदेशी और बहिष्कार आन्दोलन चलाया गया जिसमें महिला अन्दोलनकारियों ने कलकत्ता के कई स्थानों पर धरना और प्रदर्शन की। महिलाओं ने विदेशी प्रसाधन की वस्तुओं एवं कपड़ों का उपयोग करना छोड़ दिया। बंगाल की प्रतिष्ठित घंरों की औरतों ने विदेशी शराब की दुकानों पर धरना दिया, जुलूसों में भाग लिया तथा विदेशी उपहार लेना बन्द कर दिया।
यहाँ तक कि स्त्रियों ने सुहाग की निशानी चुड़ियों (विदेशी) को पहनने से इन्कार कर दिया तथा रसोई घरों में विदेशी नमक का उपयोग करना छोड़ दिया। घर-घर घुमकर उन्होंने लोगों को विदेशी सामानों का प्रयोग न करने का अनुरोध की। महिलाओं ने एक-दूसरे के हाथों में रॉखी बाँधकर एकता और अखण्डता का परिचय दिया।
उन्होंने सरकारी कार्यालयों के बाहर धरना एवं प्रदर्शन किया तथा विदेशी कपड़ों की होली जलाई। ऐसी महिलाओं में निर्मला सरकार, सरला देवी चौधुरानी, लीलावती,ममंत्रा, कुमुदिनी और हेमागिंनी दास सबसे अग्रणी थी। देवी चौधुरानी ने अपने मित्रों तथा अनुयायियों को देश की आजादी के लिए अपना जीवन कुर्बान करने का संकल्प लेने का दबाव डाला और उन्हें प्रोत्साहित किया।
इन्होंने लक्ष्मी भण्डार की स्थापना की। ब्रिटिश सरकार आन्दोलनकारियों से भयभीत हो गयी और सोचा कि भारतीय जनता की उपेक्षा कर बंगाल का विभाजन सही नहीं है। अन्त में भारत सम्राट जार्ज पंचम ने सन् 1911 में बंग-भंग कानून रह् कर दिया। यह भारतीयों का प्रथम संयुक्त आन्दोलन था जिसने राष्ट्रीय आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार की।
प्रश्न 2.
भारत के सशख्त क्रान्तिकारी आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
20 वीं शताब्दी के आरम्भ में सबसे पहले बंगाल में ही सशख्त क्रान्ति का जन्म हुआ, जिसमें पुरुषों के साथ-साथ नारियों ने भी प्राणों की बाजी लगा दी। क्रान्तिकारी आन्दोलन के प्रथम चरण में सरला देवी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। बंगाल की क्रान्तिकारी संगठन अनुशीलन समिति से जुड़कर उन्होंने कलकत्ता में एक व्यायामशाला की स्थापना की जिसका उद्देश्य शारीरिक प्रशिक्षण देना था।
बाद में यह संस्था क्रान्तिकारी संगठन के रूप में बदल गयी। सुहुटय नामक इस क्रान्तिकारी संस्था में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान था। बंगाल की दूसरी क्रान्तिकारी महिला ननीबाला देवी थी जो जेल में एक अपराधी की भाँति रहकर अनुशीलन समिति को खबर पहुँचाती रही। बाघाजतीन और उनके कुछ क्रान्तिकारियों को उन्होने आश्रय भी दिया था। क्रान्तिकारी आन्दोलन में सक्रिय होने के कारण पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जहाँ उन्हें प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा।
सन् 1920 आते-आते क्रान्तिकारी आन्दोलनों में महिलाओं की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ने लगी। उच्च घराने की महिलाएँ भी आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने लगीं। देश की मेधावी छात्राएँ पढ़ाई-लिखाई छोड़कर क्रान्तिकारी आन्दोलन में कूद पड़ी। उन्होंने जुलूस निकाला और धरना प्रदर्शन किया। बहुत सी छात्राओं ने सशर्र क्रान्तिकारी आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
मेंावी छात्रा कल्याणी दास ने छात्री संय की स्थापना की जिसका उद्देश्य छात्राओं को क्रान्ति के लिए उत्साहित करना था। जिन महिलाओं एवं छात्राओं ने सशख्त क्रान्तिकारी आन्दोलन में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भाग लिया उनमें बंगाल की प्रतिभा भद्र, किरण चक्रवर्ती, ननी बाला देवी, बीना दास, लीला नाग, कल्याणी दास, रानी गिडालू, कल्पना दत्त, प्रौतिलता वाद्देदर, उज्ज्वला मजुमदार, शान्ति घोष और सुनीति चौधरी आदि प्रमुख थी।
बंगाल वॉलेंटियर्स की उग्रवादी सदस्या उज्जवला मजुमदार ने अपने क्रान्तिकारी गारिविधियों से अंग्रेजी सरकार की निंद उड़ा दी। उसने सन् 1934 में एण्डर्सन की हत्या करने की कोशिश की पर वह बाल-बाल बच गया, उसके बदल अन्य लोग मारे गए। महिलाओं में सामाजिक और राजनीतिक जागरुकता पैदा करने के उद्देश्य से लीला नाग ने सन् 1923 में ढाका में ‘दीपाली संघ’ नामक एक महत्वपूर्ण संस्था की स्थापना की।
लीला नाग ने नारी जागरण और नारी शिक्षा के प्रचार-प्रसार में ज्यादातर कार्य किया। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय भो खोले। राजनीतिक गतिविधियों पर जोर देने के उद्देश्य से हेमचन्द्र घोष ने नेताजी सुभाषचन्द्र बोस से मिलकर दीपाली संघ का विलय बंगाल वलेंटियर्स में कर दिया। सुभाषचन्द्र बोस के आह्वान पर बंगाल की अनेक महिलाओं ने स्वयसेवी संगठनों के सदस्य के रूप में भाग लिया और धीरे- धीरे क्रान्तिकारी आन्दोलन में शामिल हो गयी।
अब महिलाएँ सैन्य वेश में आन्दोलन में भाग लेने लगीं। सूर्य सेन भी युव्वतियों और छात्राओं को आन्दोलन से जुड़ने की प्रेरणा देते थे। बगाल की कल्पना दत्त और प्रीतिलता वाद्देदर उन्हीं की प्रेरणा से सशस्त क्रान्तिकारी आन्दोलन में शामिल हुई थी। ये दोनों चट्टगाँव के सशस्त्र क्रान्तिकारी संगठन की महिला नत्री थी।
कल्पना दत्त का जन्म चट्टगाँव के श्रीपुर गाँव में हुआ था। छात्र जीवन में ही उनके ऊपर राष्ट्रीयता एव क्रान्तिकारी विधारों का गहरा प्रभाव पड़ा और वह गाँधी जी के विचारों से प्रेरित होकर असहयोग आन्दोलन में कूद पड़ीं । सूर्य सेन ने 1931 ई० में कल्पना और प्रीतिलता के साथ मिलकर एक युरोपियन क्लब पर आक्रमण की योजना बनाई थी पर पुलिस को इस बात की सूचना मिल गई और क्लब के पास ही कल्पना पुरुष वेश में गिरफ्तार कर ली गयी।
जेल सं छुटने के बाद वह भूमिगत हो गई। परन्तु उस गुप्त स्थान की भी भनक पुलिस को लग गई और पुलिस ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया। सूर्य सेन पकड़ लिए गए किन्तु कल्पना वहाँ से भाग निकली। 19 मई, 1933 ई० को पुलिस ने कल्पना को घर से गिरफ्तार कर लिया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा हुई। गाँधी जी और रवीन्द्रनाथ ठाकुर के प्रयास से 1939 ई० में ही जेल से मुक्त हुई और फिर से देश-सेवा में लग गई।
प्रीतिलता वाद्देदर सशस्त क्रान्तिकारी आन्दोलन की प्रथम क्रान्तिकारी शहीद नेत्री थीं। वह बचपन से ही बहुत साहसी एव निडर थी। राष्ट्रीयता उसमें कूट-कूटकर भरी हुई थी। सूर्य सेन के नेतृत्व में वह क्रान्तिकारी आन्दोलन में शामिल हो गयी और उनके साथ कई आन्दोलनों में भाग ली। वह छापामार दस्ता की नेत्री थी। 24 सितम्बर, 1932 ई० को वह अपने साथियों के साथ पहाड़ी की तलहटी में स्थित एक यूरोपियन क्लब पर आक्रमण कर भारी तबाही मचाई।
इस आक्रमण में कई अंग्रेज घायल हो गये और एक महिला की मौत हो गई। पुलिस ने क्रान्तिकारियों को चारों तरफ से घेर लिया। दोनों के बीच घण्टों गोलाबारी हुई। पुलिस के हाथों पकड़े जाने के भय से प्रीतिलता ने पोटैशियम साइनाइड (जहहर) खाकर आत्महत्या कर ली।
विदेशों में भी क्रान्तिकारी आन्दोलन सक्रिय था जिसका नेतृत्व पुरुषों के साथ-साथ महिलाएँ भी कर रही थीं। ऐसी महिलाओं में मैडम कामा सबसे अग्रणी थी। वह भारत तथा विदेशों में क्रान्तिकारी आन्दोलनों में श्यामजी कृष्ण वर्मा, एस०आर० राणा के साथ जुड़ी थीं। ये क्रिसमस के उपहार के रूप में रिवाल्वर को खिलौनों में छिपाकर भंजती थीं। वह एक अन्तर्राष्ट्रीय विचार वाली महिला थी जो आजीवन देश सेवा में लगी रही।
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि भारत की हजारों महिलाओं ने अंग्रेजी सरकार को समाप्त करने के लिए अपने प्राणों की बलि चढ़ा दी। इनके सशख्त क्रान्तिकारी आन्दोलनों से ब्रिटिश सरकार भयभीत हो गयी थी।
प्रश्न 3.
भारत छोड़ो आन्दोलन की पृष्ठभूमि और महत्व का संक्षेप में उल्लेख कीजिए तथा इस आन्दोलन की असफलता के कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
भारत छोड़ो आन्दोलन की पृष्ठभूमि :- भारत छोड़ो आन्दोलन गाँधीजी द्वारा शुरु किये गये सभी स्वतंत्रता आन्दोलन में अन्तिम और महत्वपूर्ण आन्दोलन था। इस आन्दोलन की पृष्ठभूमि में सविनय अवज्ञा आन्दोलन की असफलता से देशवासियों में आन्दोलन के प्रति बढ़ती निराशा की भावना, क्रिप्स मिशन की असफलता द्वितीय विश्चयुद्ध में भारत पर जापानी आक्रमण का भय आदि अन्य परिस्थितियों को देखकर कांग्रेस और गाँधीजी ने महसूस किया कि यही उपयुक्त अवसर है जब ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालकर आजादी प्राप्त की जा सकती है।
इसी को ध्यान में रखकर 8 अगस्त, 1942 ई० में कांग्रेस ने गाँधीजी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आन्दोलन शुरु करने का प्रस्ताव पास किया। उसी दिन गाँधीजी ने सम्पूर्ण देशवासियों को “करो या मरो” Do or Die का नारा देते हुए इस आन्दोलन को शुरु करने की घोषणा की।
भारत छोड़ो आन्दोलन का महत्व : यद्यपि भारत छोड़ो आन्दोलन सफल नहीं हो सका फिर भी कई अर्थो में यह महत्वपूर्ण रहा। जिसे निम्न रूप में देखा जा सकता है।
- भारत छोड़ो अगस्त आन्दोलन अब तक का सबसे बड़ा व्यापक जन आन्दोलन था। जिसकी व्यापकता को देखकर अंग्रेज सरकार की जड़ें हिल गई और वे सोचने पर बाध्य हुए कि भारत में उनके दिन पूरे हो चूके हैं।
- इस आन्दोलन में देश के कोने-कोने के सभी वर्गों ने भाग लिया था अत: यह एक जन आन्दोलन बन गया था।
- इस आन्दोलन में किसान और मजदूरों ने खुलकर साथ दिया, जिससे आन्दोलन व्यापक हो सका।
- इस आन्दोलन ने स्पष्ट कर दिया की भारत की स्वतंत्रता बहुत दूर नहीं है।
भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता :- भारत छोड़ो आन्दोलन एक व्यापक जन आन्दोलन होते हुए भी निम्नलिखित कारणों से सफल न हो सका –
- आन्दोलन शुरु होने से पहले हीं कांग्रेस तथा देश के सभी बड़े-बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। अतः उचित नेतृत्व के अभाव में यह आन्दोलन अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका।
- नेतृत्व के अभाव में जनता हिंसक आन्दोलन करने लगी। इसी हिंसा का लाभ उठाकर अग्रेजों ने इस विद्रोह का दमन कर दिया।
- इस आन्दोलन में देश के बड़े-बड़े जमीदारों मुस्लिम लीग तथा साम्यवादी दलों ने भारतीयों का साथ ना देकर अंग्रेजों का साथ दिया था।
- यह आन्दोलन भारत जैसे विविधिता वाले देश में नेतृत्व के अभाव में अचानक शुरु हो गया था। अतः संगठन साधन और उचित मार्गदर्शक के अभाव में यह आन्दोलन असफल हो गया।
प्रश्न 4.
असहयोग आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
रौलैट एक्ट और जालियांवाला बाग हत्याकाण्ड के विरोध में सन् 1920 में गाँधीजी ने अहिंसक असह्योगा आन्दोलन चलाया। इस आन्दोलन में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं की भी सक्रिय भागीदारी रही है। स्त्रियों ने सरकारी कार्यालय तथा विद्यालय त्याग कर आन्दोलन में भाग लिया। वे घर-घर घुमकर विदेशी वस्तुओं को त्याग कर अपने देश में बनी वस्तुओं के प्रयोग करने के लिए अनुरोध किया।
वे अपने घरों का काम-काज छोड़कर जुलुसों में भाग लेना शुरू की, विदेशी वस्तुओं की दुकानों पर धरना दी और बड़ी संख्या में गिरफ्तारियाँ भी दी। बसंती देवी, सरोजनी नायड्द, उर्मिला देवी सुनीति देवी और हेमप्रभा मजुमदार आदि नारियों ने इस आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा लज्जावती पार्वती देवी, पेरिन कैप्टन (दादा भाई नौरोजी की पौत्री) नन्दूबेन कानूनगो तथा सरदार वल्लभभाई पटेल की पुत्री मनिबेन आटि महिलाओं ने भी इस अहिंसक आन्दोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
चितरंजन दास को पत्नी बसन्ती देवी, उर्मिला देवी और सुनीति देवी तीनों संगठित होकर विदेशी कपड़ों के दुकानों पर धरना दी। इस विरोध प्रदर्शन में पुलिस ने बसन्ती देवी को गिरफ्तार कर लिया। इनकी गिरफ्तारी का लोगों पर विद्युत सा असर पड़ा। इस खबर से उत्तेजित लोगों ने पुलिस को घेर लिया और उन्हें मुक्त करने के लिए बाध्य किया।
असहयोग आन्दोलन में भाग लेनेवाली महिलाओं में सरोजनी नायडू की सक्रिय भूमिका रही है। उन्होंने नारी जागरण का कार्य किया। महिलाओं ने इनकी अध्यक्षता मे ‘राष्ट्रीय स्त्री संघ’ की स्थापना की। उर्मिला देवी ने इस संस्था द्वारा भहिलाओं से देश की सेवा के लिए घर छोड़ने कीअपील की। बम्बई की लगभग 1 हजार स्त्रियों ने प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन का सशक्त विरोध किया। इस आन्दोलन में मुस्लिम महिलाओं ने भी हिस्सा लिया था?
अत: अहिंसक असहयोग आन्दोलन में हमारे देश के लगभग सभी वर्ग की महिलाओं ने बढ़-चढ़कर अपना अमूल्य योगदान दिया था।
प्रश्न 5.
गाँधी जी द्वारा शुरू किये गये सविनय अवज्ञा आन्दोलन तथा भारत छोड़ो आन्दोलन में भारतीय नारियों के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक भारतीय महिलाओं ने समय-समय पर अपनी साहस, वीरता और त्याग का परिचय दिया है और देश सेवा के लिए मर-मिटने को हमेशा तत्पर रही है। वैदिक काल में नारियों ने वेदो की व्याख्या की, मुगल काल में रानी दुर्गावती ने मुगलों से लोहा ली और आधुनिक काल में 1857 ई० के महाविद्रोह के समय झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई में मरते दम तक अंग्रेजों से लड़ती रही, ठीक इसी प्रकार गाँधी जी द्वारा चलाय गये ‘सविनय अवज्ञा’ और ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलनों में महिलाओं की भागीदारी निभाई जिसका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है –
सविनय अवज्ञा आन्दोलन : महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत अप्रैल, 1930 ई० में ‘दांडी मार्च’ से किया था। उन्होंने समुद्र तट पर नमक बनाकर सरकारी कानून को भंग किया। यह आन्दोलन धीरे-धीरे भारत के सभी प्रान्तों में फैल गया। इस आन्दोलन में पुरुषों के साथ-साथ नारियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। महिलाएँ सविनय अवज्ञा के कार्यक्रम को प्रचारित करती थीं।
देश के लगभग सभी प्रान्तों की महिलाओं ने रसोई घर से निकलकर, पर्दा प्रथा को त्यागकर इस आन्दोलन में हिस्सा लिया। बम्बई और दिल्ली की महिलाओं ने इस आन्दोलन में काफी उत्साह दिखाया था। उन्होंने विदेशी कपड़ों और शराब की दुकानों पर धरना दिया जिसके कारण ब्रिटिश सरकार द्वारा उनकी गिरफ्तारियाँ भी हुई, फिर भी उनका उत्साह कम नहीं हुआ। कस्तूरबा गाँधी, कमला नेहरू, सरोजिनी नायड़, बासन्ती देवी, उर्मिला देवी, सरला बाला देवी और लीला नाग आदि नारियों ने इस आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन में सरोजिनी नायड्ड का सक्रिय योगदान रहा है। 22 मार्च, 1930 ई० को उन्होंने इस आंदोलन का नेतृत्व सम्भाला। क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण सरकार ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया। इस आन्दोलन में गिरफ्तार होने वाली यह प्रथम महिला थी। अरुण बाला सेनगुप्ता ने कलकत्ता में अपना मोर्चा सम्भाला था। उन्होंने विदेशी कपड़ों और शराब के दुकानों पर धरना प्रदर्शन किया। नागालेण्ड की रहने वाली ‘रानी गिडालू’ मात्र तेरह वर्ष की उम्र में इस आन्दोलन में कूद पड़ी। रानी ने सरकारी टैक्स न चुकाने के लिए आन्दोलन की थी।
सरकार ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए कठोर कदम उठाया और दमनात्मक नीति का सहारा लिया। महिलाओं के जुलूस और प्रदर्शन पर लाठी चार्ज किया गया, गिरफ्तारियाँ भी की गई फिर भी इनका उत्साह कम नहीं हुआ और उनकी भागीदारी बढ़ती गईं।
भारत छोड़ो आन्दोलन : गाँधी जी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के नारे के साथ सन् 1942 में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ आरम्भ किया। उन्होंने देशवासियों को ‘करो और मरो’ का नारा दिया। इस आन्दोलन में समाज के सभी वर्ग के लोगों की तरह नारियों नें भी जमकर हिस्सा लिया। नारियों में विशेषकर कॉलेज और स्कूल की छात्राओं ने इस आन्दोलन में भाग लिया था। मातंगिनी हाजरा, अरुणा आसफ अली, उषा महतो, सुचेता कृपलानी और कनकलता बरुआ आदि प्रमुख महिलाएँ थीं।
जिन्होंने भारत के विभिन्न भागों में महिलाओं का नेतृत्व किया था। सभा और जुलूसों में महिलाएँ बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती थीं। मातंगिनी हाजरा बंगाल के तामलुक क्षेत्र का नेतृत्व कर रही थीं। उन्होंने 29 सितम्बर, 1942 ई० को सरकारी अदालत और पुलिस चौकी पर कब्जे के लिए जुलूस निकाला और हाथ में तिरंगा थामे एक सभा को सम्बोधित कर रही थी।
उसी समय पुलिस के लाठी चार्ज और गोली-बारी में उनको गोली लग गयी। घटना स्थल पर ही इनकी मौत हो गई। दूसरी आन्दोलनकारी अरुणा आसफ अली भूमिगत आतंकवादियों की संगठनकर्त्ता थी। वह भूमिगत रहकर महिलाओं और छात्राओं को अंग्रेजी दासता से मुक्ति के लिए प्रेरित करती रहीं। 1939 ई० में सुचेता कृपलानी गाँधीजी से मिलकर कांग्रेस कार्य समिति से जुड़ गई। बाद में उन्हें कांग्रेस की महिला विभाग के गठन की जिम्मेदारी मिल गई।
आन्दोलनों में सक्रियता के कारण उन्हें दो साल की कैद हुई। 1942 ई० में सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया फिर वह छिपकर देश में सक्रिय सभी आन्दोलनकारियों से मिलती रही और उन्हे उत्साहित करती रही। मेदिनपपुर के महिषादल और सूताहाटा में महिला स्वयंसेविकाओं की भर्ती करके ‘भगिनी सेना’ (बहनों की सेना) का गठन किया गया था जो छिपकर महिलाओं को राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करती रहती थी और देश के लिए शहीद होने की प्रेरणा देती थी। असम की कनकलता बरुआ और पंजाब की वीर महिला योगेशररी फुकोननी का नाम भी शहीद होने वाली महिलाओं में है।
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि विरोध प्रदर्शन से लेकर आन्दोलन के संगठन में भारतीय महिलाओं ने बड़ी सक्रियता दिखाई। इस आन्दोलन में देश की हजारों स्त्रियाँ शामिल थीं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आन्दोलन का नेतृत्व कर रही थी। अत: इस आन्दोलन में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान था दिया था।
प्रश्न 6.
गाँधी जी द्वारा चलाए गये स्वाधीनता आन्दोलनों में छात्रों की भागीदारी का उल्लेख करें।
उत्तर :
गाँधी जी हमारे देश के एक महान नेता थे, जिन्होंने देश को स्वाधीन कराने के लिए कई महत्वपूर्ण आन्दोलन किये। उनके आन्दोलनों में समाज के प्रत्येक वर्ग के लोग शामिल हुए और सक्रिय भूमिका निभाई। उनके आन्दोलनो को गतिशील बनाने में छात्रों की महत्वपूर्ण भागीदारी थी। गाँधी जी ने देश को अंग्रेजों के चगुल से मुक्त कराने के तीन महत्वपूर्ण आन्दोलन असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन और भारत छोड़ो आन्दोलन चलाए जिसमें विद्यार्थियों का महत्वपूर्ण योगदान था।
असहयोग आन्दोलन : गाँधी जी ने सन् 1920 में रोलेट एक्ट और जालियांवाला बाग हत्याकाण्ड के विरोध में अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आन्दोलन छेड़ दिया। देशबन्धु चित्तरंजन दास और गाँधीजी ने विद्यार्थियों को आन्दोलन में भाग लेने के लिए आह्वान किया। उनके आद्धान पर हजारों छात्रों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों को त्याग कर आन्दोलन में शामिल हो गये।
इन छात्रों के पढ़ने के लिए काशी विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ और जामिया मिलिया इस्लामिया जैसे अनेक शिक्षण संस्थान स्थापित किये गये। पूरे देश में लगभग 9000 विद्यार्थियों ने सरकारी विद्यालयों और कोलेजों को त्याग दिया था, जिनके लिए लगभग 800 राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों की स्थापना की गयी थी। ये छात्र इन शिक्षण संस्थानों में पढ़ने लगे।
सुभाषचन्द्र बोस, राजेन्द्र प्रसाद, लाला लाजपत राय, डॉ॰ जाकिर हुसैन और आचार्य नरेन्द्र देव आदि महानुभावों ने इन विद्यालयों में पढ़ाना आरम्भ किया। सरकारी शिक्षा का बहिष्कार आंदोलन बंगाल में चित्तरंजन दास और नेताजी के नेतृत्व में सबसे अधिक सफल रहा।
पंजाब में आन्दोलन का नेतृत्व लाला लाजपत राय के हाथों में था जिनके आह्नान पर छात्रों ने सरकारी शिक्षण संस्थानों को त्यागकर असहयोग आन्दोलन में शामिल हुए थे । बिहार, उड़ीसा, असम, उत्तर प्रदेश और बम्बई के विद्यार्थियों ने भी अपने विद्यालयों और कॉलेजों को त्यागकर असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े।
असहयोग आन्दोलन में छात्रों ने जगह-जगह धरना-प्रदर्शन किया, जुलूस निकाला, विदेशी वस्तुओं तथा शराब की दुकानों पर धरना दिया और विदेशी कपड़ों की होली जलाई। उन्होंने विदेशी कागज और स्याही का उपयोग करना छोड़ दिया साथ ही साथ घूम-घूमकर विदेशी वस्तुओं का उपयोग न करने का सुझाव दूसरों को दिया। सन् 1921 में प्रिन्स ऑफ वेल्स के आने पर पूरे देश में हड़ताल और जुलूसों से उसका स्वागत किया गया, जिसमें छात्रों ने बड़ी उत्सुकता से भाग लिया था। सन् 1922 के चौरी-चौरा काण्ड के बाद गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन : 6 अप्रैल, 1930 ई० में नमक कानून तोड़कर गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ किया। इस आन्दोलन में भी छात्रों ने सक्रिय योगदान दिया था। गाँधी जी ने आन्दोलन के निम्नलिखित कार्यक्रम बनाए थे- नमक कानून तोड़ना, विदेशी वस्तुओं तथा शराब बेचने वाली दुकानों पर धरना-प्रदर्शन, विदेशी कपड़ों को नष्ट करना, सरकारी टैक्स (कर) न देना तथा सरकारी दफ्तर (कार्यालय) तथा विद्यालयों का त्याग करना।
गाँधी जी के आह्वान पर हजारों छात्र-छात्राएँ सरकारी शिक्षण-संस्थानों को त्यागकर इस आन्दोलन में कूद पड़े। गुजरात विद्यापीठ के कई छात्र गाँधी जी के साथ ही पैदल साबरमती आश्रम से दांडी तक चले गये। छात्रों ने विदेशी वस्तुओं एवं शराब की दुकानों पर धरना-प्रदर्शन किया, विदेशी कपड़ों की होली जलाई तथा जनता से विदेशी वस्तुएँ न खरीदने का आग्रह किया।
बम्बई, गुजरात तथा बंगाल के विद्यार्थियों ने इस आन्दोलन में काफी उत्साह दिखाया। छात्रों ने देश के विभिन्न प्रान्तों में ‘युवा लीग’ की स्थापना की जिसके सदस्य खादी वस्त पहनते थे। असम में ‘कनिंघम सर्कुलर’ के विरोध में छात्रों ने एकजुट होकर एक शक्तिशाली आन्दोलन चलाया।
क्योंकि इस सर्कुलर में छात्रों और उनके अभिभावकों को अपने सद्व्यवहार का प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था। छात्र एवं छात्राएँ एकजुट होकर प्रात:काल गाँवों में घूम-घूमकर राष्ट्रीय गीत गाते थे और लोगों को आन्दोलन में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे। अंग्रेजी सरकार के दमन चक्र के कारण 8 मई, 1934 ई० को कांग्रेस कमिटी ने इस आन्दोलन को समाप्त कर दिया।
भारत छोड़ो आन्दोलन : 8 अगस्त, 1942 ई० को गाँधी जी ने ‘करो या मरो’ के आह्नान के साथ ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ की शुरुआत की। यह आन्दोलन गाँधीजी का सबसे अन्तिम और लोकप्रिय आन्दोलन था। अन्य आन्दोलनों की तरह इस आन्दोलन में भी छात्रों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया था। इलाहाबाद विश्चविद्यालय के छात्र संगठन के विद्यार्थियों में इसमें प्रभावपूर्ण योगदान दिया था। आन्दोलन शुरू होते ही गाँधी जी समेत कांग्रेस के सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिये गये तभी छात्रों ने शिक्षण संस्थानों का बहिष्कार करके आन्दोलन में कूद पड़े। दिल्ली, बम्बई, बंगाल और केरल के विद्यार्थियों में उत्साह अधिक था।
पुलिस के दमन चक्र और बड़े-बड़े नेताओं की अनुपस्थिति में नवयुवक छात्र हिंसात्मक गतिविधियों को अंजाम देने लगे। हिंसक छात्र जगह-जगह रेल की पटरियाँ उखाड़ दिये, पूल तोड़ दिये, तार एवं टेलीफोन की लाइनें काट दी, सरकारी भवन तथा दफ्तरों में तोड़-फोड़ की और वहाँ राष्ट्रीय झण्डा फहरा दिये। 11 अगस्त, 1942 ई० को पटना में सात छात्र विरोध करते हुए शहीद हो गये।
यह खबर सुनकर अगले ही दिन छात्रों ने पटना के जिलाधिकारी के कार्यालय का घेराव किया जिसमें पुलिस की गोली से छात्र नेता पट्यधर लाल की मृत्यु हो गई। जगह-जगह विद्रोह बढ़ता गया और सरकार का दमन चक्र भी उतना ही कठोर होता गया। पुलिस के आतंक से विद्यार्थी बहुत भयभीत हो गये और आन्दोलन धीरे-धीरे शिथिल पड़ गया।
इस प्रकार यह सष्ट होता है कि इस आन्दोलन को सफल बनाने में पूरे देश के छात्रों ने अपने जान की बाजी लगा दी थी। इस आन्दोलन में छात्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया था।
प्रश्न 7.
सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन में छात्रों की भूमिका का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
20 वीं सदी के प्रारम्भ में देश के युवा वर्ग अंग्रेजी सरकार की नीतियों और अत्याचारों से त्रस्त होकर क्रान्तिकारी गतिविधियों के द्वारा उनको सबक सिखाने के लिए एकजुट हो गये। अंग्रेजी शासन से ये युवा वर्ग पूर्ण रूप से असंतुष्ट थे और उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए उन्होंने हिंसात्मक नीति का सहारा लिया।
क्रान्तिकारियों ने अंग्रेजों के जुल्म और अत्याचार का जवाब गोलियों तथा बमों से दिया। देश के विभिन्न भागों में क्रान्तिकारी संगठनों एवं दलों की स्थापना की गयी जिसमें अनुशीलन समिति, युगान्तर दल, गदर पार्टी, बंगाल वॉलेंटियर्स छात्री संघ, मुक्ति संघ और साधना समिति आदि प्रमुख थे। इन क्रान्तिकारी संस्थाओं ने छात्रों को सशस्र क्रान्ति की शिक्षा देकर उन्हें मातृभूमि की सेवा में मर-मिटने की प्रेरणा दी।
इनके प्रेरणा स्रोत हजारों विद्यार्थियों ने अपने शिक्षण संस्थानों को त्यागकर देश के सशस्ब क्रान्तिकारी आन्दोलनों में शामिल हो गये और देश को विदेशी चंगुल से मुक्त कराने के लिये कटिबद्ध हो गये। क्रान्तिकारी संस्थाओं को संचालन करने के लिए धन इकट्ठा करना, हथियार इकट्ठा करना, गुप्त सभाएँ करना, बम बनाना तथा अन्य अस्त्र-शख्र चलाने की प्रशिक्षण देना एवं जुल्मी-अत्याचारी अधिकारियों की हत्या करना इन संस्थाओं का प्रमुख कार्य था।
बंग-भंग के विरोध में हुए स्वदेशी और बहिष्कार आन्दोलन को सफल बनाने में छात्र-छात्राओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन्होंने विदेशी कागज, कलम, स्याही आदि का प्रयोग न करने के साथ ही विदेशी शिक्षण-संस्थानों में शिक्षा का भी बहिष्कार किया। छात्रों ने विदेशी वस्तु बेचने वाली दुकानों पर धरना-प्रदर्शन किया और विदेशी कपड़ों की दुकानों को आग के हवाले कर दिया तथा घूम-घूमकर लोगों को विदेशी वस्तु न खरीदने के लिए उनसे प्रार्थना की।
सरकार ने छात्रों को राष्ट्रीय आन्दोलनों से दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार के अध्यादेश जारी किए जिसमें सबसे महत्वपूर्ण ‘कार्लाइल सर्कुलर’ था। छात्र नेता सचीन्द्र नाथ बसु ने कलकत्ता में ‘एण्टी सर्कुलर सोसाइटी’ की स्थापना की जिसका उद्देश्य स्कूल अथवा कॉलेज से निकाले गये छात्रों के लिए नयी शिक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत शिक्षण संस्थानों की स्थापना करना था। 8 नवम्बर, 1905 ई० को रंगपुर में प्रथम राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की गयी।
11 मार्च, 1906 ई० को इसी उद्देश्य से ‘नेशनल काउन्सिल ऑफ एडुकेशन’ की स्थापना की गयी। इसी प्रकार देश के विभिन्न प्रान्तों जैसे बंगाल के ढाका, मैमन सिंह, दिनाजपुर, मालदह जिले तथा बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना की गई।
बंगाल के क्रान्तिकारी आन्दोलन में अनुशीलन समिति, युगान्तर दल के छात्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मैमन सिंह जिला में ‘साधना समिति’ और ‘सुदृढ़ समिति’, फरीदपुर की ‘वाती समिति’ तथा ढाका जिले की ‘मुक्ति संघ’ ने छात्रों को सशस्ल-क्रांति की शिक्षा देने का काम किया। बंगाल के बहुत से छात्र-छात्राएँ स्कूल और कॉलेज को त्याग कर इन संस्थानों में जुड़ गए।
23 दिसम्बर, 1907 ई० को ढाका के भूतपूर्व मजिस्ट्रेट मिस्टर ‘एलेन’ को छात्रों ने गोली मारी किन्तु वह बच गया। 30 अप्रैल सन् 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर के जज ‘किंग्सफोर्ड’ की बग्गी पर बम फेंका। किन्तु वह बच गया क्योंकि उस वग्गी में वह नहीं था, वग्गी में सवार दो व्यक्तियों (मि० कनेडी और मिसेस कनैडी) की घटना स्थल पर ही मौत हो गई। प्रफुल्ल चाकी ने पकड़े जाने के भय से आत्महत्या कर ली।
खुदीराम बोस पकड़े गए और 11 अगस्त सन् 1908 को उन्हें फाँसी दे दी गयी। इस घटना के कुछ दिनों के बाद ही पुलिस ने छापा मारकर कलकत्ता के मुरारी पुकुर (मानिकतल्ला) मुहल्ले में एक बम का कारखाना पकड़ा और कई क्रांतिकारियों को पकड़कर उन पर अलीपुर षडबंच्र मुकदमा चलाया।
इस मुकदमा में वारीन्द्र घोष, उल्लास दत्त और हेमचन्द्र दास सहित 15 क्रांतिकारियों को दण्डित किया गया। इस षड्यंत्र केस के बाद बाघा जतीन (यतीन्द्र नाथ मुखर्जी) ने बंगाल के क्रांतिकारी आन्दोलन को आगे बढ़ाया। गार्डेनरीच और बेलियाघाटा की डकैतियों का नेतृत्व इन्होंने ही किया था। इसके अलावा इन्होंने कलकत्ता की एक कम्पनी से 50 माउजर पिस्टल और 45,000 गोलियाँ लूट लिया था। जर्मनी से हथियार मंगाने के प्रयास में पुलिस से मुठभेड़ हो गई और इनकी मृत्यु हो गयी।
दूसरे चरण के क्रांतिकारी आन्दोलन में छात्रों के प्रेरणास्सोत स्कूल शिक्षक सूर्य सेन (मास्टर दा) थे। 18 अप्रैल, 1930 ई० में छात्रों ने इनके नेतृत्व में चटगाँव शखागार को लूट लिया, टेलिफोन व टेलीग्राफ की लाइने काट दीं और वहाँ क्रान्तिकारी सरकार का गठन किया। क्रान्तिकारी दल कई भागों में विभक्त होकर गुरिल्ला युद्ध प्रणाली द्वारा पुलिस से मुठभेड़ जारी रखा।
परन्तु 2 फरवरी, 1933 ई० को सूर्य सेन पुलिस के हाथों पकड़ लिए गये और उन्हें 13 जनवरी, 1934 ई० को मुकदमा चलाकर फाँसी दे दी गई। उनके सहयोगी क्रान्तिकारी गनेश घोष, अनन्त सिंह, निर्मल सेन, जीवन घोषाल, अम्बिका चक्रवर्ती और कल्पना दत्त एवं प्रीतिलता जैसी वीर नारियाँ थीं।
उसी तरह ढाका और मैमन सिंह जिलों में भी क्रांतिकारी सक्रिय थे। ढाका में हेमचन्द्र घोष ने ‘बंगाल वॉलेटियर’ नामक क्रांतिकारी संगठन का गठन किया। बंगाल में भी इस दल की कई शाखाएँ खुल गई। विनय बसु जो मेडिकल कॉलेज का छात्र था इस दल से जुड़ा हुआ था। उसने इंस्पेक्टर लामैन और ढाका के पुलिस सुपरिटेण्डेन्ट हडसन पर गोली चलायी। लामैन की घटनास्थल पर ही मौत हो गयी और हडसन गंभीर रूप से घायल हो गया। इस घटना के बाद विनय बसु कलकत्ता आ गये।
8 दिसम्बर, 1930 ई० को वह बादल गुप्त और दिनेश गुप्त के साथ मिलकर कलकत्ता के राइटर्स बिल्डिंग पर धावा बोलकर जेल सुपरिटेन्डेन्ट की हत्या कर दी। लालबाजार पुलिस ने भागते समय इन्हें बरामदे में ही घेर लिया। पुलिस के हाथों न लग सके इस भय से तीनों ने आत्महत्या करने की कोशिश की।
बादल गुप्त और विनय बसु की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई परन्तु दिनेश गुप्त बच गये और उन्हें 7 जुलाई, 1931 ई० को फाँसी पर लटका दिया गया। बंगाल के मिदनापुर में भी क्रान्तिकारी काफी सक्रिय थे। 1931 ई० में विमल दासगुप्त तथा ज्योतिजीवन घोष ने मिदनापुर के जिला जज पेड़ी की, 1932 ई० में प्रद्युत भट्टाचार्य ने जिला शासक डगलस को और 1833 ई० में अनाथ पांजा तथा मृगेन दत्त ने जिला मजिस्ट्रेट वार्गे की हत्या कर दी।
उस समय बंगाल का प्रत्येक भाग आतंक का केन्द्र बना हुआ था। छात्रों के साथसाथ छात्राएँ भी क्रान्तिकारी आन्दोलन में शामिल थीं। शान्ति घोष, बीना दास और सुनीति चौधरी प्रमुख क्रान्तिकारी छात्राएँ थीं जिन्होंने सशख्त क्रान्तिकारी आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न 8.
भारत की राजनीति में दलितों के प्रति डॉ० भीमराव अम्बेदकर की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
ॠग्वेद काल से ही हमारा समाज चार वर्णों में विभाजित था- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र जिनमें तीन वर्णों को विशेषाधिकार प्राप्त था। चौथा वर्ण जो शुद्र कहलाता था वही तीनों वर्णों की सेवा-सत्कार करता था और समाज के सबसे निम्न श्रेणी में इन्हें गिना जाता था। यही वर्ग दलित कहलाता थां।
दलित शब्द का अर्थ है- जो दले गये हैं या कुचले गये हैं अर्थात जिन जातियों के लोग सामाजिक असमानता, दमन एवं शोषण के शिकार हैं, वे ही दलित हैं। औपनिवेशिक काल में भी यही सामाजिक परम्परा प्रचलित थी। सन् 1921 में सम्पन्न जनगणना में ब्रिटिश सरकार ने अस्पृश्य (अछूत) जातियों के लिए सरकारी तौर पर डिप्रेस्ड क्लासेज (दलित वर्ग) नाम का प्रयोग किया।
डॉं० भीमराव अम्बेदकर ने भी इसी नामकरण का प्रयोग किया है। सन् 1931 की जनगणना और भारत शासन अधिनियम 1935 एवं भारतीय संविधान में दलित जातियों के लिए शिड्यूल कास्ट (अनुसूचित जाति) शब्द का प्रयोग किया गया है।
डॉ० भीमराव अम्बेदकर दलित जाति के उद्धारक माने जाते हैं जिन्होंने सबसे पहले दलितों के उत्थान के लिए कदम बढ़ाया था। इनका जन्म महार नामक अछूत जाति में हुआ था। इनका परिवार कबीर पंथी था। इनके ऊपर भी कबीर दास के विचारों का प्रभाव पड़ा था। कबीर दास के गुणों एवं विचारों से प्रेरित होकर इन्होंने समाज में व्याप्त असृश्यता को दूर करने का बीड़ा उठाया।
भारतीय समाज में पीड़ित, शोषित तथा दलित वर्ग को समानता का अधिकार दिलाने के उद्देश्य से सन् 1920 में अम्बेदकर जी ने मराठी भाषा में मूकनायक (गूंगों का नेता) नामक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरु किया। अस्पृश्य (दलित) जाति के लोगों के नैतिक तथा भौतिक उन्नति के लिये 1924 ई० में बम्बई में ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ की स्थापना की।
1927 ई० में प्रत्येक भारतीय को सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्वतंत्रता दिलाने के उद्देश्य से उन्होंने ‘बहिष्कृत भारत’ नामक मराठी पत्र का प्रकाशन शुरू किया। उन्होंने अछूतों (दलितों) के लिए मंदिरों में प्रवेश तथा जनसाधारण के कुँए से पानी भरने के अधिकार के लिए आन्दोलन किया। अछूतों के लिए अलग मताधिकार की भी माँग उन्होंने की थी।
लन्दन में आयोजित तीनों गोलमेज सम्मेलनों में वे अछूतों के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिये थे। मंदिरों में दलितों एवं अछूतों के प्रवेषाधिकार के लिए उन्होंने 1930 ई० में आन्दोलन शुरू कर दिया। उनके आह्नान पर 15 हजार स्री एवं पुरुषों ने नासिक के कालाराम मंदिर में पूजा-अर्चना करने के लिए माँग करने लगे।
मंदिर में प्रवेश के अधिकार को लेकर उन्होंने सत्याग्रह शुरू कर दिया। मंदिर के सभी फाटक बंद होने के कारण सभी सत्याग्रही फाटक के बाहर ही आन्दोलन करते रहे। लगभग एक महीने तक संघर्ष चलता रहा और संघर्ष रुकने का नाम नहीं ले रहा था। तभी 1933 ई० में बम्बई में ‘मंदिर प्रवेश बिल’ (Temple Entry Bill) पास हो गया। इस बिल के द्वारा दलितों एवं अस्पृश्य जातियों के लिए मंदिर में राजनीतिक प्रवेशाधिकार मिल गया।
ब्रिटिश सरकार भी भारतीय नेताओं के मतभेद को जानती थी क्योंकि सविनय अवज्ञा आन्दोलन में कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेता एकजुट नहीं थे। अतः अंग्रेजी सरकार ने जाति-पाँति की खाई को अपने ‘फूट डालो राज करो’ की नीति के तहत बढ़ाने का ही कार्य किया। भारतीय नेताओं में सर्वसम्मति के अभाव के चलते सन् 1932 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमजे मैकडॉनल्ड ने सांभादायिक निर्णय (Communal Award) नीति का घोषणा कर दिया जिसके अन्तर्गत दलितों (अछूतों) को अल्पसंख्यक मानकर उन्हें पृथक निर्वाचन का अधिकार दिया गया। दलितों के लिए सुरक्षित स्थानों के अतिरिक्त सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों से भी चुनाव लड़ने की छूट प्रदान की गयी।
लेकिन गाँधी जी इस विभाजन से बहुत दु:खी थे और क्षुब्ध होकर उन्होंने 20 सितम्बर, 1932 ई० को पूना की यरवदा जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया। कांग्रेसी नेताओं के प्रयास से गाँधीजी और डॉ॰ अम्बेदकर के बीच समझौता हुआ जिसे पूना पैक्ट (समझौता) के नाम से जाना जाता है।
इस समझौता के द्वारा दलित वर्गो के लिए साधारण वर्ग में ही सीटों का आरक्षण मिल गया। अत: अम्बेदकर जी के प्रयास से दलितों को कम्युनल एवार्ड के बदले में पहली बार राजनीतिक आरक्षण प्रदान किया गया। अम्बेदकर जी की यह ऐतिहासिक जीत थी।
महाड़ एवं नासिक में अम्बेदकर जी ने दलितों के उद्धार के लिए सत्याग्रह आन्दोलन चलाया जिसमें सवर्ण (उच्च वर्ग) के हिन्दुओं ने उग्र प्रतिक्रिया की और उन्हें प्रताड़ना दिया। जिससे क्षुब्ध होकर अम्बेदकर जी यह सोचने पर मजबूर हो गये कि वे हिन्दू धर्म में रहें या त्याग दें। सन् 1955 में एक दलित सम्मेलन में उन्होंने ऐलान किया कि ‘ ‘मेरा दुर्भाग्य है कि मैं हिन्दू धर्म में जन्मा हूँ पर बड़ी गम्भीरता से कहना चाहता हूँ कि मैं एक हिन्दू के रूप में नहीं मरूँगा।” इसी घोषणा का पालन करते हुए अम्बेदकर जी ने अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म को ग्रहण कर लिया।
अत: इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि डॉ॰ भीमराव अम्बेदकर आजीवन दलितों के उद्धार के लिए संघर्ष करते रहे और उन्हें राजनीतिक आरक्षण दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दलितों को सामाजिक तथा धार्मिक अधिकार प्रदान कराने में इनका महत्वपूर्ण योगदान था।
प्रश्न 9.
साम्रदायिक निर्णय (Communal Award) और पूना समझौता के बारे में क्या जानते है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भारत में साम्पदायिकता की उत्पत्ति के कई कारण थे। ब्रिटिश शासन की स्थापना के पहले हमारे देश में साम्पदायिकता नाम की कोई चीज नहीं थी। अत: यह ब्रिटिश साम्राज्य की उपज थी। अपने साम्राज्यवादी हित के लिये अंग्रेजों ने एक सम्पदाय को दूसरे के विरुद्ध भड़काना और उसकाना आरम्भ किया था। इसके अलावा अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए कुछ समुदाय के लोगों ने साम्पदायिकता की भावना को और भी बढ़ा दिया।
अंग्रेजों ने अपने राजनीतिक हितों की रक्षा के लिये हमारे देश के दो प्रमुख समुदाय (सम्पदाय) हिन्दू और मुस्लिम के बीच फूट डालने का कार्य आरम्भ कर दिया क्योंकि यह एकता अंग्रेजी सरकार के लिये घातक थी। अतः अपने साम्राज्य की सुरक्षा के लिये उन्होंने ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति का अनुसरण करना आरम्भ कर दिया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं में आपसी मतभेद को देखकर ब्रिटिश सरकार को साम्पदायिकता की खाई को चौड़ा करने का मौका मिल गया।
इसी समय भारत में साम्पदायिकता को ध्वंस एवं ब्रिटिश विरोधी आन्दोलन को कमजोर करने के लिये ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमजे मैकडॉनाल्ड ने 16 अगस्त, 1932 ई० को साम्पदायिक निर्णय (Communal Award) नीति की घोषणा कर दी।
साम्पदायिक निर्णय (Communal Award) : इसकी प्रमुख बातें निम्नलिखित थीं-
1. मुसलमान, सिक्ख, इसाई, बौद्ध, जैन तथा एंग्लो-इण्डियन (Anglo-Indian) इत्यादि सम्पदाय के लिए पृथक निर्वाचन का विधान किया गया।
2. दलितों (अछूतों) को अल्पसंख्यक मानकर उन्हें भी पृथक निर्वाचन तथा प्रतिनिधित्व का अधिकार दिया गया।
इस साम्पदायिक निर्णय की प्रमुख विशेषता यह थी कि मुसलमानों और यूरोपियनों की भौति अछूतों को भी हिन्दूओं से अलग कर उन्हें पृथक निर्वाचन तथा पृथक प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया था। इस घोषणा से गाँधी जी को बहुत दुःख हुआ परन्तु मुस्लिम नेताओं में खुशी की लहर दौड़ गई। दलितों के नेता अम्बेदकर जी भी इस निर्णय के पक्ष में थे।
इस साम्पदायिक निर्णय से क्षुब्ध होकर गाँधी जी ने 20 सितम्बर, 1932 ई० को पूने के यरवदा जेल में आमरण अनशन आरम्भ कर दिया। अनशन से गाँधी का स्वास्थ्य तेजी से गिरने लगा। सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। गाँधी जी की सोचनीय स्थिति को देखकर सी० राजगोपालाचारी और डॉ० अम्बेदकर ने 6 दिनों तक आपस में विचार-विमर्श कर एक ऐसा समझौता पत्र तैयार किया जिसे मानने के लिये गाँधी और अम्बेदकर दोनों सहमत हो गये।
पूना समझौता (Poona Pact) : गाँधी जी तथा सरकार के प्रतिनिधि अम्बेदकर के बीच एक समझौता हुआ जिसे पूना समझौता कहा जाता है। इस समझौते को बिटिश सरकार ने ख्वीकृति दे दी। इस समझौते की प्रमुख बाते निम्नलिखित थीं-
- साम्पदायिक निर्णय की तुलना में हरिजनों को ज्यादा स्थान दिए गये। उनके लिए व्यवस्थापिका सभाओं में 71 स्थान के बदले 148 स्थान सुरक्षित किये गये।
- चुनाव दोनों स्तर पर होंगे। पहले हरिजन अपना प्रतिनिधि चुनेंगे और फिर समस्त हिन्दू (हरिजन सहित) चार वर्णों में से एक प्रतिनिधि का चुनाव करेंगे।
- हरिजनों को सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों में भी मत देने का अधिकार होगा।
- केन्द्रीय एसेम्बली में लगभग 20 सीटें हरिजनों के लिए सुरक्षित कर दी गयी।
इस प्रकार पूना पैक्ट द्वारा हरिजनों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की माँग छोड़ दी गयी और संयुक्त निर्वाचन के सिद्धान्त को स्वीकार किया गया। इसकी सूचना ब्रिटिश प्रधानमंत्री मैकडॉनल्ड को दी गई। उसी दिन महात्मा गाँधी ने आमरण अनशन समाप्त कर दिया। अतः एक तरह से पूना समझौता भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिये एक पराजय थी क्योंकि परोक्ष (अप्रत्यक्ष) रूप से उसने साम्पदायिकता को स्वीकार कर लिया था। पूना समझौता हो जाने के बाद भी गाँधीजी और अम्बेदकर के बीच दलितों के उद्धार एवं अधिकार को लेकर आजीवन मतविरोध और गतिरोध जारी रहान
प्रश्न 10.
हिन्दूस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन (Hindustan Republican Association) और हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (Hindustan Socialist Republican Association) के बारे में संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
बंगाल के बाहर क्रांतिकारी आन्दोलनों में हिन्दुस्तान रिपक्लिकन एसोसियेशन और हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन का क्या योगदान था ? संक्षेप में उत्तर दीजिए।
अथवा
बंगाल के बाहर आतंकवादी गतिविधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
हिन्दूस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन : बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही हमारे देश में क्रांतिकारी गतिविधियाँ सक्रिय थी। परन्तु 1922 ई० में गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन के असफल होने के बाद देश में क्रांतिकारी कार्यों में तेजी आ गई। बंगाल की अनुशीलन समिति और युगान्तर दल पुन: सक्रिय हो गए और सारे देश में कांतिकारी संगठन बनने लगे।
अब देश के क्रांतिकारी दलों को किस प्रकार आपस में ताल-मेल कराया जाय और एक जगह संगठित होकर आपस में विचार-विमर्श किया जाए, क्रांतिकारी नेता इस बात पर जोर देने लगे। इसी उद्देश्य से सन् 1924 में समस्त क्रांतिकारियों का दल कानपुर के एक सम्मेलन में एकत्रित हुए। इसके परिणामस्वरूप सचीन्द्र नाथ सान्याल की प्रेरणा से सन् 1928 में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का जन्म हुआ।
धीरे-धीरे बंगाल, बिहार, दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा मद्रास आदि शहरों में इसकी अनेक शाखाएं खुली। इस संगठन का प्रमुख सराहनीय कार्य काकोरी रेल डकैती काण्ड था जिसका नेतृत्व राम प्रसाद बिस्मिल ने किया था। 9 अगस्त 1925 ई० को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने काकोरी स्टेशन से कुछ पहले ही रेलगाड़ी रोककर सरकारी खजाना लूट किया।
गुप्तचर विभाग की मदद से पुलिस ने 28 व्यक्तियों को शीघ्र ही गिरफ्तार कर लिया और उनपर मुकदमा चलाया गया। सन् 1927 में राम प्रसाद विस्मिल, राजेन्द्र लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्लाह को फाँसी, सचीन्द्र सान्याल, सचीन्द्र बक्सी को आजीवन कारावास तथा मन्मथनाथ गुप्त सहित बाकी लोगों को 5 वर्ष से 14 वर्ष तक की सजा का दण्ड दिया गया।
इस घटना के बाद हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिऐशन क्रांतिकारियों के अभाव में निर्बल एवं निष्किय हो गया क्योंकि काकोरी काण्ड के अभियुक्तों की तलाश में अंग्रेजी पुलिस द्वारा बंगाल एवं पंजाब में बड़े पैमाने पर तलाशी ली गयी और अनेकों को गिरफ्तार भी किया गया। सैकड़ों क्रांतिकारियों को देवली, हुगली तथा बक्सर कोर्ट में नजरबन्द कर दिया गया। पुलिस के छापेमारी से सभी क्रांतिकारी घबड़ा गये थे। परन्तु वे चोरी-छिपे संगठन का संचालन करते रहे।
हिन्दूस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के नाम में संशोधन एवं चन्द्रशेखर आजाद का नेतृत्व : हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को अधिक संगठित एवं फिर से प्रभावशाली बनाने के लिए 8-9 सितम्बर, 1928 ई० को दिल्ली के फिरोजशाह किले में देश के प्रमुख क्रांतिकारियों की एक सभा हुई, जिसमें चन्द्रशेखर आजाद को इस संस्था का सेनापति और अध्यक्ष्ष चुना गया। सरदार भगत सिंह, सुखदेव, विजय कुमार सिन्हा, कुन्दन लाल और शिव शर्मा को देश के सभी क्षेत्रों में संगठन की स्थापना तथा क्रांतिकारियों को प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
संगठन को मजबूत करने और नये क्रांतिकारियों की भर्ती का भार भी इन्हीं के कंधों पर था। चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु और बटुकेश्वर दत्त ने गरीब, शोषित, पीड़ित जनता एवं किसानों को इस संस्था की तरफ आकर्षित करने के लिए संस्था के नाम में संशोधन कर उसमें ‘सोशलिस्ट’ शब्द जोड़ दिया। अब दल का नाम ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियशन’ हो गया। धीरे-धीरे इसकी शाखायें देश के अन्य भागों में खुल गयी।
पंजाब में सन् 1928 में साइमन कमीशन का विरोध करते समय लाल लाजपत राय को पुलिस ने इतनी बूरी तरह से पीटा की कुछ दिनों के बाद ही इनकी मृत्यु हो गई। यह खबर सुनते ही देश में शोक की लहर दौड़ गई। कांतिकारियों ने इसका बदला लेने का निश्चय किया। चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह तथा सुखदेव ने मिलकर 17 दिसम्बर 1928 ई० को लाहौर के पुलिस सुपरिटेन्डेन्ट सान्डर्स जिसने लाठी चार्ज का हुक्म दिया था, की हत्या कर दी।
जनता में जागृति पैदा करने तथा संगठन के उद्देश्यों को उजागर करने के लिए सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 ई० को केन्द्रीय एसेम्बली में बम फेका। यह कार्य केवल अंग्रेजी सरकार के प्रतिरोध में उन्हें डराने के लिए किया गया था। उन्होंने भागने के बजाय अपनी गिरफ्तारी दी। इस काण्ड के बाद सरकार ने तीसरा लाहौर केस चलाया और इस केस को सांडर्स हत्याकाण्ड से जोड़ दिया। मुकदमें के निर्णय के अनुसार 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फाँसी दे दी गयी।
इसके बाद चन्द्रशेखर आजाद अकेले क्रांतिकारी कार्यों में लगे रहे। एक विश्वासघाती के गुप्त सूचना के आधार पर पुलिस ने 27 फरवरी 1931 ई० को चन्द्रशेखर आजाद को इलाहाबाद के अल्फेड पार्क में घेर लिया। आजाद ने बड़ी वीरता के साथ उनका मुकाबला किया। पुलिस से लड़ते-लड़ते जब अन्तिम गोली बची तो उन्होंने स्वयं अपने सिर में मारकर वीरगति को प्राप्त किया । जीवन के अंतिम क्षण तक वह लड़ते रहे, परन्तु अंग्रेजों के सामने नतमस्तक नहीं हुए।
जोगेशचन्द्र चटर्जी और शचीन्द्र नाथ सन्याल के नेतृत्व में आंतकवादी गतिविधियाँ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और देश के अन्य क्षेत्रों में चल रही थी। क्रांतिकारी चुपचाप शान्त बैठे हुए नहीं थे, वे घुम-घुम कर पूरे देश में क्रांति का संचालन कर रहे थे। उन्होंने 1931 में पटना षड्यंत्र केस, मोतिहारी षड्यंत्र केस तथा हाजीपुर ट्रेन डकैती का काण्ड तथा इर्विन पर बम फेकने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 14 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनायी गयी।
इस प्रकार क्रांतिकारी देश के कोन-कोने में क्रांतिकारी गतिविधियों चला रहे थे। सरकार का दमन चक्र बढ़ने के साथसाथ क्रांतिकारियों की सक्रियता भी बढ़ती जा रही थी। उन्होंने अंग्रेजी सरकार की नींद उड़ा दी थी। देश को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए क्रांतिकारी पूरी तरह से कमर कस लिए थे। अतः इससे स्पष्ट होता है कि देश के स्वतंत्रतासंग्राम में क्रांतिकारियों की महत्वपूर्ण सहयोग व समर्थन बना रहा।