WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 6 20वीं शताब्दी में भारत के किसान, मजदूर वर्ग एवं वामपंथी आन्दोलन : विशेषताएँ एवं अवलोकन

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WBBSE Class 10 History Chapter 6 Question Answer – 20वीं शताब्दी में भारत के किसान, मजदूर वर्ग एवं वामपंथी आन्दोलन : विशेषताएँ एवं अवलोकन

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type) : 1 MARK

प्रश्न 1.
‘सरदार’ उपाधि से कौन विभूषित थे ?
उत्तर :
बल्लभ भाई पटेल।

प्रश्न 2.
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (1920 ई०) में कहाँ स्थापित हुई थी ?
उत्तर :
बम्बई में।

प्रश्न 3.
फारवर्ड ब्लाक की स्थापना किस वर्ष हुई थी ?
उत्तर :
1939 ई० में।

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प्रश्न 4.
बंगाल विभाजन के दिन एकता प्रकट करने के लिए किसने ‘राखी-दिवस’ मनाने का सुझाव दिया था ?
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने।

प्रश्न 5.
संयुक्त प्रान्त (उ० प्र०) किसान आन्दोलन का प्रमुख नेता कौन था ?
उत्तर :
बाबा रामचन्द्र।

प्रश्न 6.
किस आन्दोलन की सफलता ने वल्लभ भाई पटेल को देश का किसान नेता बनाया था ?
उत्तर :
बारदोली किसान सत्याग्रह आन्दोलन ने।

प्रश्न 7.
1928 ई० का देश का सबसे बड़ी बम्बई कपड़ा मिल की हड़ताल कितने दिनों तक चली थी।
उत्तर :
6 महीने तक।

प्रश्न 8.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :
देश में राजनीतिक जागरूकता लाना तथा नमक कानून का विरोध करना।

प्रश्न 9.
गाँधीजी ने किस घटना से मर्माहत होकर असहयोग – आन्दोलन को स्थगित कर दिया था ?
उत्तर :
गोरखपुर जिले की चौरी-चौरा की हिंसक घटना से।

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प्रश्न 10.
मानवेन्द्रनाथ राय कौन थे ?
उत्तर :
मानवेन्द्रनाथ राय (वास्तविक नाम – नरेन्द्र नाथ भट्टाचार्य) भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के संस्थापक थे।

प्रश्न 11.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सबसे पहली महिला अध्यक्षा कौन थी ?
उत्तर :
ऐनी बेसेंट।

प्रश्न 12.
नमक सत्याग्रह कब शुरू किया गया ?
उत्तर :
12 मार्च,सन् 1930 में।

प्रश्न 13.
‘करो या मरो’ का नारा किस आन्दोलन के दौरान दिया गया था ?
उत्तर :
भारत छोड़ो आन्दोलन (Quit India Movemnet) के दौरान।

प्रश्न 14.
रेडिकल डेमोक्रेटिक पार्टी का गठन किसने किया था?
उत्तर :
मानवेन्द्रनाथ राय (M. N. Roy) ने।

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प्रश्न 15.
मजदूर किसान पार्टी (Workers and Peasants Party) की स्थापना सर्वप्रथम कहाँ हुई थी ?
उत्तर :
कलकत्ता में।

प्रश्न 16.
भारत छोड़ो आन्दोलन के समय भारत का गवर्नर जनरल (Governor General) कौन था ?
उत्तर :
लॉर्ड लिनलिथगो (Lord Linlithgo)।

प्रश्न 17.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष (President) कौन थे ?
उत्तर :
उ उमेशचन्द्र बनर्जी (W.C. Banerjee)।

प्रश्न 18.
मोपला विद्रोह कहाँ हुआ था?
उत्तर :
मालाबार (केरल) में।

प्रश्न 19.
भारत छोड़ो आन्दोलन के एक महिला नेत्री का नाम लिखो।
उत्तर :
मातंगिनी हाजरा।

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प्रश्न 20.
‘शेर-ए-पंजाब’ या ‘पंजाब केसरी’ के नाम से कौन जाने जाते थे ?
उत्तर :
लाला लाजपत राय।

प्रश्न 21.
दरभंगा किसान आन्दोलन किसके नेतुत्व में किया गया था ?
उत्तर :
विशुभरण उर्फ स्वामी विद्यानन्द।

प्रश्न 22.
कानपुर षड़्यंत्र केस कब चलाया गया था ?
उत्तर :
सन् 1924 में।

प्रश्न 23.
भारत की प्रथम फर्मास्यूटिकल (दवा बनाने वाली) कम्पनी का नाम लिखिए।
उत्तर :
बंगाल केमिकल भारत की प्रथम फर्मास्यूटिकल कम्पनी है।

प्रश्न 24.
एटक का पूरा नाम लिखो।
उत्तर :
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (A.I.T.U.C)।

प्रश्न 25.
बंग-भंग पूर्ण रूप से कब प्रभावी हुआ था ?
उत्तर :
16 अक्टूबर, 1905 ई० को।

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प्रश्न 26.
बारदोली किसान सत्याग्रह कब चलाया गया था ?
उत्तर :
अक्टूबर, 1928 ई० में।

प्रश्न 27.
असहयोग आन्दोलन किसने चलाया ?
उत्तर :
महात्मा गाँधी ने।

प्रश्न 28.
‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का प्रस्ताव (Proposal) किसने किया था ?
उत्तर :
काँग्रेस ने।

प्रश्न 29.
बारदोली क्षेत्र कहाँ है ?
उत्तर :
गुजरात के सूरत जिले में।

प्रश्न 30.
लाला लाजपत राय और अजीत सिंह कब किसान आन्दोलन से जुड़े ?
उत्तर :
सन् 1907 में।

प्रश्न 31.
बंगाल विभाजन का फैसला (निर्णय) कब रह हुआ था ?
उत्तर :
सन् 1911 में।

प्रश्न 32.
एटक की स्थापना कब हुआ था ?
उत्तर :
सन् 1920 में।

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प्रश्न 33.
किसने 1928 ई० में लगान में वृद्धि के खिलाफ बारदोली के किसानों के संघर्ष का नेतृत्व किया ?
उत्तर :
वल्लभ भाई पटेल ने।

प्रश्न 34.
बंगाल किसान लीग का गठन कब हुआ ?
उत्तर :
1931 ई० में।

प्रश्न 35.
एका आन्दोलन कहाँ से शुरू हुआ ?
उत्तर :
अवध से।

प्रश्न 36.
दि रेड यूनियन सेन्टर की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1931 ई० में।

प्रश्न 37.
असहयोग आन्दोलन के समय लगभग कितने श्रमिक हड़ताल पर रहे ?
उत्तर :
लगभग 15 लाख श्रमिक।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (Short Answer Type) : 2 MARKS

प्रश्न 1.
कृषक आन्दोलन में बाबा रामचन्द्र की भूमिका क्या थी ?
उत्तर :
अदभूत व्यक्तित्व के मालिक बाबा रामचन्द्र ने अवध क्षेत्र के किसानो की दुर्दशा देखकर पीढ़ियों से अत्याचार सहने की चली आ रही प्रवृत्ति को खत्म करने के लिए किसानों को जागृत किया, उनमें एकता व संघर्ष की भावना पैदा की। इनके प्रयास बे 7 अक्टूबर 1920 को ‘अवध किसान सभा’ का गठन हुआ। इस प्रकार बाबा के सहयोग एवं प्रेरणा से आन्दोलन खुब फला-फूला।

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प्रश्न 2.
मदारी पासी कौन थे ?
उत्तर :
मदारी पासी 1921 ई० में शुरू हुए अवध क्षेत्र में एका आन्दोलन का जन नायक था। अछूत होने पर भी उसने अहीर, गडेरिया, तेली, पासी, चमार, काछी, आरख और गद्दी जैसी उपेक्षित जातियों को एक जुट करने तथा आन्दोलन के जोड़ने में सफल रहा। इन्होंने अंग्रेजों और उनके चाटुकारो के नाकों में दम कर रखा था।

प्रश्न 3.
‘एका’ आन्दोलन क्यों शुरु हुआ ?
उत्तर :
1921-22 ई० में उत्तर प्रदेश के बाराबकी, सीतापुर एवं बहराइच अचंल में अत्यधिक लगान वृद्धि, जबरन कर वसूली, कृषि भूमि से बेदखल करना, एवं बेगारी के विरूद्ध मदारी पासी के नेतृत्व में स्फूर्त एका आन्दोलन हुआ था।

प्रश्न 4.
वारदोली सत्याग्रह आन्दोलन क्यों शुरु हुआ ?
उत्तर :
1928 ई० में गुजरात राज्य के सूरत जिले के बारदोली तहसील के किसानों ने उच्च वर्ग के किसानों के अत्याचार, 27 से 30% तक भू-राजस्व (लगान) में वृद्धि, जल संकट, तथा विदेशी बाजार में कपास की कीमत गिर जाने से नाराज होकर पटेल के नेतृत्व में बारदोली सत्याग्रह आन्दोलन शुरू किया था।

प्रश्न 5.
बंगाल में विज्ञान शिक्षा के विकास में ‘इण्डियन एसोसियेसन फार द कल्टीवेशन आफ साइंस’ की क्या भूमिका थी ?
उत्तर :
‘इण्डियन एसोसियेसन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइन्स’ ‘ बंगाल का ही, नही देश का सबसे प्राचीन विज्ञान की शिक्षा और शोधकार्य वाला संस्थान था। इसने विज्ञान के विद्यार्थियों को भौतिक, रसायन, जैविक ऊर्जा तथा पदार्थ विज्ञान के क्षेत्र में अध्ययन और शोध का अवसर प्रदान किया तथा यहाँ अध्ययन करने वाला छात्र अपने- ज्ञान-अनुभव एवं नईनई खोजों से देश-दुनिया में भारत के नाम को महिमामण्डित किया। सी०बी० रमन ऐसे ही छात्र थे। इस प्रकार से इस संस्थान ने बंगाल तथा देश में विज्ञान की शिक्षा के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 6.
आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना किस उद्देश्य से की गयी थी ?
उत्तर :
1920 ई० में ‘आल इण्डिया ट्रेड यूनियम कांग्रेस’ की स्थापना- श्रमिकों के हितों की रक्षा करने, संगठन को मजबूत बनाने तथा उद्योगों के राष्ट्रीयकरण की माँग को पूरा करने के उद्देश्य से की गई थी।

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प्रश्न 7.
गाँधीजी ने अचानक असहयोग आन्दोलन वापस क्यों ले लिया था ?
उत्तर :
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा की पुलिस स्टेशन की हिंसक घटना से दु:खी होकर अचानक गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया था।

प्रश्न 8.
भारत के बाहर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना कब और कहाँ हुई थी ?
उत्तर :
भारत के बाहर 1920 ई० में ताशकंद में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई थी।

प्रश्न 9.
‘गलीयारा का युद्ध’ कब और कहा हुआ था ?
उत्तर :
गलीयारा (बरामदे) का युद्ध 1930 ई० को कलकत्ता के राइर्टस बिल्डिंग के बरामदे में हुआ था।

प्रश्न 10.
‘स्कूल बुक सोसाइटी’ की स्थापना किसने और किस उद्देश्य से किया था ?
उत्तर :
जोनाथन डकन ने ‘स्कूल बुक सोसाइटी’ की स्थापना की थी। इसका उद्देश्य आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा के प्रचार के लिए पुस्तकों का वितरण करना था।

प्रश्न 11.
बंगाल में राष्ट्रीय शोक दिवस कब और क्यों मनाया गया ?
उत्तर :
16 अक्टुबर 1905 ई० को बंगाल विभाजन के कारण राष्ट्रीय शोक दिवस मनाया गया। विभाजन के विरोध में एकता प्रदर्शित करने के लिए और जागरूकता के संचार के लिए मनाया गया है।

प्रश्न 12.
अखिल भारत किसान सभा की स्थापना के दो उद्देश्य बताओ।
उत्तर :
अखिल भारत किसान सभा के कुछ विशेष उद्देश्य थे, जिनके आधार पर वह काम करती थी। पहला उद्देश्य, जमीन्दारी प्रथा का अन्त, कृषि ॠण की समाप्ति तथा बेगारी प्रथा का अन्त आदि था। दूसरा उद्देश्य, भूमि कर में 50% की कमी तथा जमीन्दारों की भूमि को भूमिहीन किसानों में बाँटना आदि था।

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प्रश्न 13.
तेलंगाना आन्दोलन के दो उद्देश्य बताओ।
उत्तर :
तेलंगाना आन्दोलन : तेलंगाना आंदोलन भी तेभागा और वर्ली आंदोलन के समान ही था जो सन् 1945 ई० से लेकर 1951 ई० तक चला। यह आंदोलन आंश्र प्रदेश के हैदराबाद समेत कई क्षेत्रों में किया गया। इस आंदोलन में किसान ठेकेदारो एवं कर संग्रहकों द्वारा बुरी तरह से प्रताड़ित हुए थे जिसका परिणाम अत्यन्त ही भयानक था। इन सभी क्षोभ के कारण ही किसानों ने ठेकेदारों और कर (Tax) संग्रहाकों के विरुद्ध यह आंदोलन चलाया।

प्रश्न 14.
तेलंगाना कृषक आन्दोलन कब और किसके नेतृत्व में आरम्भ किया गया ?
उत्तर :
तेलंगाना कृषक आन्दोलन जुलाई, 1946 ई० में पी सुन्दरैया, रवि नारायण रेड्डी के नेतृत्व में आरम्भ किया गया।

प्रश्न 15.
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना किसने और कब किया ?
उत्तर :
सन् 1920 में एन० एम० जोशी, लाला लाजपत राय, जोजेफ बैपटिस्ट, दीवान चमनलाल आदि मजदूर नेताओं ने मिल जुलकर अखिल भारतीय ट्रेड युनियन कांग्रेस की स्थापना की।

प्रश्न 16.
तीनकठिया व्यवस्था क्या है ?
उत्तर :
1917-18 ई० में गाँधीजी के नेतृत्व मे चम्पारन सत्याग्रह हुआ जिसके फलस्वरूप तीनकठिया नामक जबरन नील की खेती कराने की प्रथा समाप्त हुई। तीनकठिया के अन्तर्गत किसानों को 3 / 20 (बीस कट्ठा में तीन कट्ठा) भू भाग पर नील की खेती करनी पड़ती थी, जो जमींदारों द्वारा जबरन थोपी गई थी।

प्रश्न 17.
दाण्डी मार्च क्या है ?
उत्तर :
दाण्डी मार्च : 12 मार्च 1930 ई० को गाँधीजी ने अपने 79 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से समुद्र तट पर स्थित दाण्डी नामक स्थान पर जाकर प्राकृतिक तरीके से नमक बनाकर नमक कानून भंग करने का निश्चय किया। इस यात्रा को ही दाण्डी मार्च के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 18.
मेरठ षड्यंत्र मुकदमा के बारे में क्या जानते हैं ?
उत्तर :
सरकार ने सन् 1929 में राष्ट्रवादियों और ट्रेड यूनियन के लोगों पर सरकार के विरूद्ध षड़्यंत्र का मुकदमा चलाया जिसमें 27 लोगों को दण्डित किया गया था। यह मुकदमा सन् 1933 तक चला जिसमें जवाहरलाल नेहरू, कैलाश नाथ काटजू, अंसारी आदि प्रतिवादियों की ओर से पेश हुए थे।

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प्रश्न 19.
मोपला विद्रोह के लक्ष्य क्या थे ?
उत्तर :
मोपला कृषक आन्दोलन (1920 – 1922 ई०) : महात्मा गाँधीजी के असहयोग आन्दोलन के दौरान ही केर (मालाबार क्षेत्र) में किसानों ने अंग्रेजों से मदद प्राप्त जमीदारों और ठेकेदारों के खिलाफ मोपला आन्दोलन चलाया, जिसका नेतृत्य किसान जाति के ‘अलि मुसलियार’ ने किया था। मोपला विद्रोह मालाबार क्षेत्र में रहने वाले मोपला जाति के किसानों ने किया था जो साम्राज्यवाद के खिलाफ एक सशस्त्र और विशाल विद्रोह था।

प्रश्न 20.
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन (AITU) या अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) के दो नेताओं के नाम लिखो।
उत्तर :
एन० एम० जोशी और लाला लाजपत राय।

प्रश्न 21.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भारत छोड़ो आन्दोलन का समर्थन क्यों नहीं किया ?
उत्तर :
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भारत छोड़ो आन्दोलन का समर्थन नहीं किया क्योंकि विश्व की सारी कम्युनिस्ट पारियाँ रूस के इशार पर चलती थी और रूस इंग्लैण्ड और पश्चिमी देशों के विरुद्ध नहीं जाना चाहता था।

प्रश्न 22.
बारदोली के किसानों के संघर्ष का नेतृत्व किसने और क्यों किया ?
उत्तर :
1928 ई० में सरदार पटेल ने लगान में वृद्धि के खिलाफ बारदोली के किसानों के संघर्ष का नेतृत्व किया।

प्रश्न 23.
चम्पारण आन्दोलन क्या था ?
उत्तर :
चम्पारण क्षेत्र में यूरोपीय नील व्यापारी नील की खेती करने वाले किसानों के साथ दुर्व्यवहार करते थे। इनके अत्याचारों के कारण किसानो की स्थिति दयनीय हो गई थी। गाँधीजी ने किसानों को संगठित कर सत्याग्रह आंदोलन छेड़ दिया और वे हर परिस्थिति का सामना करने को तैयार हो गये। सरकार ने गाँधीजी सहित कई लोगों की एक समिति बनाई। किसानों का शोषण समाप्त हुआ। इस सत्याग्रह ने गाँधीजी को राष्ट्र का सफल जननेता के पद पर प्रतिष्ठित कर दिया।

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प्रश्न 24.
खेड़ा आन्दोलन की दो विशेषताएँ बताओ।
उत्तर :
गाँधोजी ने 1918 ई० में गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों की फसल नष्ट हो जाने के बावजूद सरकार द्वारा लगान में छूट न दिए जाने के कारण सरकार के विरुद्ध किसानों को लेकर सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। इस आन्दोलन में गाँधीजो का साथ वल्लभ भाई पटेल, इन्दुलाल याग्निक तथा अन्य नेताओं ने दिया।

प्रश्न 25.
अयोध्या किसान आंदोलन किस प्रकार संगठित हुआ ?
उत्तर :
बाबा रामचन्द्र ने अलध या अयोध्या के किसानों को जमींदारों के विरुद्ध संगठित किया। उन्होंने किसानों को एकताबद्ध होकर जमोंदारों और सरकार के अन्याय का विरोध करना सिखाया । 1920 ई० में किसान आंदोलन गाँधीजी के असहैयोग आंदोलन से जुड़ गया।

प्रश्न 26.
वामपंथी आन्दोलन के विकास का समय कब से कब तक माना गया तथा इसके स्टा कौन थे ?
उत्तर :
सन् 1920 से लेकर 1922 ई० तक माना गया और इसके सृष्टा मानवेन्द्रनाथ राय थे। मानवेन्द्र राय ने वामपंथी बिचारधारा को न केवल मैक्सिको एवं रूस में फैसाया बल्कि भारत में भी प्रचार-प्रसार किया।

प्रश्न 27.
जेन्मे (Jenme) किसे कहा जाता था ? उनके खिलाफ विद्रोह क्यों हुआ ?
उत्तर :
दक्षिण भागत के मालाबार क्षेत्र के मुस्लिम जमीदारों को जेन्मे कहा जाता था। मोपलाओं ने इनके अत्याचार के खिलाफ 1921 ई० में विद्रोह किया था:

प्रश्न 28.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के संदर्भ में किसान आंदोलन की दो विशेषताएँ बताओ।
उत्तर :
(i) सन् 1936 में लखनऊ में अखिल भारतीय किसान कांग्रेस का गठन किया गया था। इसके प्रथम अध्यक्ष व्वामी सुहजानंद सरस्वती थे, जिनके प्रयास से किसानों को जमीन्दारों से मुक्ति मिली।
(ii) मन् 1937 में पंजाब कृषक आन्दोलन चलाया गया तथा पंजाब के किसानों को अंग्रेजी सरकार के कर बोझ से मुक्ति दिलाया

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प्रश्न 29.
तंभागा आन्दोलन के उद्देश्य क्या थे ?
उत्तर :
तेभागा आन्दोलन में किसानों का कहना था कि जमीन जोतने वालों की है। अतः उनकी माँगे थी कि जोतदारों के जिनके अधिकार में भूमि थी, हिस्से में दी जाने वाली फसल में कटौती की जाए। किसानों ने माँग किया कि जोतदारों को कवज़ एक तिहाई फसल दी जाय और दो तिहाई फसल पर किसान का अधिकार हो।

प्रश्न 30.
क्या तेभागा आन्दोलन सफल हुआ ?
उत्तर :
नहीं, सरकार ने तभागा आदोलन को दबाने में सफलता पाई। किन्तु उसने 1949 ई० में वर्गादार नियंत्रण बिल चारित कर एक आर्डिन्स के द्वारा किसानों की अधिकांश बातें मान ली।

प्रश्न 31.
मजदूर आंदोलन पर दमन नीतियों की विशेषताएँ क्या थे ?
उत्तर :
भारताय श्रमिकों को शोषण का अभिशाप उसी प्रकार झेलना पड़ा जिस प्रकार यूरोप तथा अन्य देशों के श्रमिकों को काफी लंबी अव्वधि तक झेलना पड़ा था। कम मददूरी, दैनिक कार्य का लंबा समय, अस्वस्थ परिवेश एवं वातावरण, काम करने में किसी प्रकार की सुविधा का अभाव आदि शोषणमूलक स्थितियों में उन्हें काम करना पड़ता था। साथ ही औपनिवेशिक शासन के दुर्व्यवहार भी झेलने पड़ते थे।

प्रश्न 32.
मानवेन्द्रनाथ राय का नाम स्मरणीय क्यों है ?
उत्तर :
मानवेन्द्र नाथ राय (एम० एन० राय) वामपंथी विचारधारा के सूत्र माने जाते हैं जिन्होंने वामपंथी विचारधारा को न केवल मैक्सको और रूस में फैलाया बल्कि भारत में भी प्रचार-प्रसार किया। इन्होंने मैक्सिको में ‘Communist Party of Maxico’ तथा सन् 1925 में भारत में ‘Communist Party of India’ की स्थापना की। इतना ही नहीं, इन्होंने सन् 1940 ई० में ‘Radical Democratic Party’ की भी स्थापना किया।

प्रश्न 33.
बारदौली आंदोलन के दो नेताओं के नाम बताओ।
उत्तर :
बरदौली आंदोलन त्रिटिश सरकार के मनमाना राजस्व या भूमि कर के विरोध में किया गया कृषक आंदोलन था जिसके प्रमुख नेता बल्लभ भाई पटेल और महात्मा गाँधी थे। इसके साथ ही शारदा बेन साह एवं मीटू बेन का नाम भी उल्लेखनीय है।

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प्रश्न 34.
गिरनी कामगार यूनियन क्या था ?
उत्तर :
साम्यवादी प्रगतिशील विचारधारा से प्रभावित युवा वर्ग द्वारा 1925 ई० के आस-पास क्रांतिकारी ट्रेड यूनियन स्थापित की जाने लगी। इन्हीं यूनियनों में आर्थिक संघर्ष के साथ-साथ राजनीतिक संघर्ष में भाग लेने वाली वामपंथी विचारधारा से प्रभावित प्रथम यूनियन ‘गिरनी कामगार यूनियन’ बम्बई में स्थापित हुई। बम्बई के लगभग सभी कम्युनिस्ट नेता, जैसे आल्वे, मिराजकर, जोगलेकर आदि इससे जुड़े हुए थे।

प्रश्न 35.
मजदूर और किसान पार्टी की स्थापना किसने और कब किया ?
उत्तर :
साम्यवाद से प्रेरित भारतीय युवा वर्ग का एक दल धीरे-धीरे मजदूर संगठनों में अपनी प्रभाव वृद्धि करने लगा। कई मजदूर संगठनों का नेतृत्व भी उनके हाथों में आ गया। ऐसे युवा वर्ग ने कलकत्ता में “पीजेन्द्स एण्ड वर्कर्स पाटी” बनाई एवं बम्बई में ‘वर्कर्स एण्ड पीजेन्द्स पार्टी’ का गठन किया। मुजफ्फर अहमद, कवि नजरुल इस्लाम, कुतुबुद्दीन अहमद, हेमन्त कुम्र सर फार आदि ने इस कार्य में प्रमुख भूमिका निभाई।

प्रश्न 36.
वामपंथी आ नन के विकास का समय कब से कब तक माना गया तथा इसके स्रोता कौन थे ?
उत्तर :
सन् 1920 ₹. कर 1922 ई० तक और इसके स्रोता मानवेन्द्रनाथ राय थे।

प्रश्न 37.
किसान सभा वा है ?
उत्तर :
किसानों को निलाकर जो संघ बनायी गयी, उसे किसान सभा कहते है। अर्थात् दूसरे शब्दो में आगरा एवं अवध क्षेत्र के जमीन्दार, किसानों से मनमाना कर (Tax) वसूलते थे। इसी वजह से अवध क्षेत्र स्थित होमरूल के कार्यकर्ताओं ने किसान वर्ग को मिलाकर एक संघ बनाया, जिसका नाम ‘किसान सभा’ दिया गया।

प्रश्न 38.
संयुक्त प्रान्त का किसान आन्दोलन की शुरूआत और अंत कब हुई ?
उत्तर :
संयुक्त प्रान्त का किसान आन्दोलन की शुरूआत सन् 1920 में और अंत सन् 1922 में हुआ।

प्रश्न 39.
चौरी-चौरा घटना से क्या समझते हैं ?
उत्तर :
5 फरवरी, 1922 ई० को गोरखपुर जिले (उत्तर प्रदेश) के चौरी चौरा नामक स्थान पर असहयोग आन्दोलनकारियों ने कोध में आकर थाने में आग लगा दी, जिससे एक थानेदार एवं 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गयी। इस घटना से दु:खी होकर गाँधी जी ने 11 फरवरी, 1922 ई० को असहयोग आन्दोलन स्थांगत कर दिया।

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प्रश्न 40.
दक्कन विद्रोह कब हुआ और इसके नेताओं के नाम लिखो।
उत्तर :
दक्कन विद्रोह सन् 1875 में हुआ तथा इस विद्रोह के नेता उमा नाइक और आत्याभील थे।

प्रश्न 41.
चम्पारन सत्याग्रह कब और किसने किया ?
उत्तर :
सन् 1917 में महात्मा गाँधी जी ने बिहार में चम्पारन सत्याग्रह किया।

प्रश्न 42.
किसानों का एका आंदोलन किन-किन प्रान्तों में हुआ ?
उत्तर :
हरदोई, बहराइच, बाराबंकी तथा सुल्तानुपर इत्यादि प्रांतों में।

प्रश्न 43.
‘इण्डियन फेडरेशन ऑफ लेबर’ की स्थापना कब और किसने किया ?
उत्तर :
सन् 1940 में एम० एन० राय (मानवेन्द्र नाथ राय) ने की।

प्रश्न 44.
‘हिन्दुस्तान मजदूर सभा’ की स्थापना कब और किसने किया ?
उत्तर :
सन् 1938 में पटेल एवं राजेन्द्र प्रसाद ने किया।

प्रश्न 45.
‘बॉम्बे मिल हैन्ड्स एसोसिएशन’ की स्थापना कब और किसने किया ?
उत्तर :
सन् 1890 में एन० एम० लोखंडे ने किया।

प्रश्न 46.
अश्विनी कुमार दत्त कौन थे ?
उत्तर :
अश्विनी कुमार दत्त बारीसाल के एक शिक्षक थे। इन्होंने मुसलमान बहुल क्षेत्रों में किसानों को आन्दोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। इनके द्वारा गठित समिति बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय हुई थी।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 6 20वीं शताब्दी में भारत के किसान, मजदूर वर्ग एवं वामपंथी आन्दोलन : विशेषताएँ एवं अवलोकन

प्रश्न 47.
मोपला विद्रोह के क्या कारण थे ?
उत्तर :
मोपला विद्रोह के कारण निम्नलिखित थे :
(क) मोपलाओं पर जमींदारों का अत्याचार और
(ख) अंग्रेजी सरकार के खिलाफ विरोधी नीतियाँ।

प्रश्न 48.
बाबा रामचन्द्र कौन थे ?
उत्तर :
बाबा रामचन्द्र अवध किसान सभा के एक प्रमुख नेता थे, जिन्होने अवध क्षेत्र के किसानों पर हुए अत्याचार का विरोध किया था।

प्रश्न 49.
बारदौली आन्दोलन क्यों हुआ ?
उत्तर :
सन् 1926 में अंग्रेजी सरकार के लगान पुनर्निरीक्षण अधिकारी ने गुजरात के सूरत जिले के बारदोली तालुक में लगान में 30 फीसदी बढ़ोत्तरी की सिफारिश की जिसे देना किसानों के लिए सम्भव नहीं था, अत: उन्होंने लगान न देने का आन्दोलन (No Taxation Movement) किया।

प्रश्न 50.
मोपला कौन कहलाते थे ?
उत्तर :
केरल राज्य (दक्षिण मालावार) के मुसलमानों, पट्टेदारों तथा बंधुआ मजदूरों को मोपला कहा जाता था।

प्रश्न 51.
स्वामी सहजानंद सरस्वती कौन थे ?
उत्तर :
स्वामी सहजानंद् सरस्वती एक सन्यासी थे, गाजीपुर के रहने वाले थे। अखिल भारतीय किसान कांग्रेस (1936 इ०) के अध्यक्ष थे। इसके नेतृत्व में किसान आन्दोलन चलाया गया।

प्रश्न 52.
फिलिप स्रैट कौन था ?
उत्तर :
भारत में साम्यवादी विचारों के प्रचार-प्रसार का दायित्व इंग्लैण्ड के साम्यवादी दल ने लिया था और इस काम के लिए 1926 ई० में फिलिप सैट को भारत भेजा गया था। भारत आकर फिलिप ने यहाँ पर कई संस्थाओं का गठन किया, समाचार-पत्रों का सम्पादन किया।

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प्रश्न 53.
रौलट एक्ट क्या था ?
उत्तर :
सर सिडनी रौलट की अध्यक्षता में एक कानून पारित किया गया जिसके आधार पर किसी भी संदेहास्पद व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता था। इस कानून के तहत अभियोग पक्ष न ही वकील रख सकते थे और न ही इनकी सुनवाई होती थी।

प्रश्न 54.
अन्तर्राप्ट्रीय श्रम संगठन (Intrenational Labour Organisation) की स्थापना क्यों हुई ?
उत्तर :
पेरिस शान्ति सम्मलन में अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना की गई। इस सम्मेलन में दुनिया के मजदूरों की स्थिति ठीक करने के उद्देश्य से अन्नराष्ट्रीय श्रम सगठन (आई० एल० ओ०) की स्थापना की गयी।

प्रश्न 55.
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के अध्यक्ष बनने वाले नेताओं के नाम बताएँ।
उत्तर :
चित्तरंजन दास, जवाहरलाल, नहहरू और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस आदि।

प्रश्न 56.
भारत छोड़ो आन्दोलन को अगस्त आंदोलन क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रस्ताव 8 अगस्त, 1942 ई० कोअखिल भारतीय कांग्रेसी कमीटि द्वारा पारित किया गया था। अतः इसे अगस्त आन्दोलन कहा जाता है।

प्रश्न 57.
लेबर किसान गजट का प्रकाशन किसने आरम्भ किया ?
उत्तर :
एस० ए० डांगे, मुजफ्फर अहमद एवं सिगारवेलु चटियार ने लेबर किसान गजट का प्रकाशन आरम्भ किया।

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प्रश्न 58.
बंगाल क्यों विभाजित हुआ ?
उत्तर :
बंगाल विभाजन के पीछे लॉर्ड कर्जन का मुख्य उद्देश्य पूर्वी बंगाल के मुसलमानों तथा पश्चिम बंगाल के हिन्दुओं के बीच की एकता को भंग कर राष्ट्रीयता की लहर को कमजोर करना था।

प्रश्न 59.
तेभागा आन्दोलन के प्रमुख नेता कौन थे ?
उत्तर :
कम्पाराम सिंह और भवन सिंह ।

प्रश्न 60.
मेवाड़ का कृषक आन्दोलन कब और किनके नेतृत्व में हुआ था ?
उत्तर :
सन् 1920 में विजय सिंह पथिक, माणिकलाल वर्मा, रामनारायण तथा बाबा सीताराम दास के नेतृत्व में कृषक आदोलन हुआ था।

प्रश्न 61.
उड़ीसा में कृषक आन्दोलन कब और किसके नेतृत्व में हुआ ?
उत्तर :
सन् 1935 में मालती चौधरी के नेतृत्व में उड़ीसा कृषक आन्दोलन हुआ।

प्रश्न 62.
1921 के मोपला विद्रोह का क्या महत्व है ?
उत्तर :
मोपला विद्रोह मालाबार क्षेत्र में रहने वाले मोपला जाति के किसानों ने किया थाजो साम्राज्यवाद के खिलाफ एक सशस्त्र और विशाल विद्रोह था।

प्रश्न 63.
बंगाल विभाजन के समय स्वयंसेवक संगठनों का क्या योगदान था ?
उत्तर :
बंगाल विभाजन के समय स्वयंसेवक संगठनों द्वारा नसली भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाना, हड़तालों के दौरान ट्रेड-यूनियने कायम करना, साग्राज्यवाद का विरोध करना इत्यादि योगदान संगठनों ने की।

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प्रश्न 64.
असहयोग आन्दोलन के समय कृषक वर्ग ने किन-किन क्षेत्रों में हड़ताले की ?
उत्तर :
महात्मा गाँधी द्वारा प्रस्तावित असहयोग आंदोलन में कृषक वर्ग ने जमीदारो की अनुचित मांग को पूरा नहीं करना, सरकारी कर का भुगतान नहीं करना, विदेशी वस्तुओं का वहिष्कार करने वाले क्षेत्रों में हड़ताल किया।

प्रश्न 65.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भारत छोड़ो आन्दोलन का समर्थन क्यों नहीं किया ?
उत्तर :
भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने भारत छोड़ो आन्दोलन का समर्थन नहीं किया क्योंकि विश्व की सारी कम्यूनिस्ट पार्टियाँ रूस के इशारे पर चलती थी।

प्रश्न 66.
बंगाल विभाजन के समय मजदूर वर्गों ने किस प्रकार की हड़ताले की ?
उत्तर :
बंगाल विभाजन के समय ईस्ट इण्डिया में दो बड़ी हड़ताले हुई जिसमे पहली हड़ताल सरकारी मुद्राणालय के मजदूरों तथा नगरपालिका कर्मचारियों द्वारा की गई तथा दूसरा हड़ताल कपड़ा मिलों में भी व्यापक स्तर पर हुई।

प्रश्न 67.
इंडियन ट्रेड यूनियम कांग्रेस की स्थापना के मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :
यह संगठन अंखिल भारतीय स्तर पर मजदूरों और किसानों को भारतीय ब्रिटिश सरकार के शोषण से मुक्ति दिलातो थी। इस संगठन की स्थापना सन् 1920 में लाला लाजपत राय, जोसेफ बैपटिस्टा और दीवान चमनलाल द्वारा किया गया था।

प्रश्न 68.
पंजाब में कृषक आन्दोलन से जुड़ने वाले दो कांग्रेसी नेताओं के नाम बनाएँ।
उत्तर :
प्रथम लाला लाजपत राय तथा द्वितीय अजीत सिंह थे।

प्रश्न 69.
तेलंगाना आन्दोलन कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
1946 ई० में तेलंगाना आन्दोलन पुर्मा वायलार क्षेत्र में हुआ था।

प्रश्न 70.
दरभंगा में किसान आन्दोलन कब और किसके नेतृत्व में हुआ था ?
उत्तर :
सन् 1919-20 में दरभंगा में किसान आन्दोलन विशुभरण उर्फ स्वामी विद्यानन्द ने चलाया था ।

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प्रश्न 71.
भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना कब और किसके द्वारा की गई ?
उत्तर :
सिंगार वेलुचेट्टियार द्वारा 1925 ई॰ में कम्युनिस्ट पार्टी को स्थापना को गई

प्रश्न 72.
असहयोग आन्दोलन में किसानों ने किस रूप में योगदान दिया ?
उत्तर :
प्रथम योगदान के रूप में किसानो द्वारा सामन्तवादी विचारधारा का विरोध करना तथा द्वितीय यागदान के रूप में राष्ट्रीय आंदोलन को मुख्य धारा से जोड़ना था।

प्रश्न 73.
1905 ई० के बंग-भंग आन्दोलन को कलकता के मजदूरों ने किस रूप में लिया ?
उत्तर :
1905 ई० के बंग-भंग आन्दोलन को कलकत्ता के मजदूगें ने जनव्यापी साम्याज्य विरोधी आंटोलन कर रूप में लिया।

प्रश्न 74.
वामपंथियों ने कांग्रेस और गांधीजी की आलोचना क्यों की ?
उत्तर :
जिस समय राष्ट्रवादी आन्दोलन महात्मा गाँधी द्वारा उनके नेतृत्व में आगे बढ़ रहा धा, उसी समय 1928 ई० में अन्तर्राष्ट्रीय साम्यवादी संगठन से संकेत पाकर साम्यवादियों ने कांग्रेस और गाँधीजी की आलोचना की।

संक्षिप्त प्रश्नोत्तर (Brief Answer Type) : 4 MARKS

प्रश्न 1.
असहयोग आन्दोलन में किसानों की भूमिका/ या (योगदान) का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
असहयोग आन्दोलन में किसानों की भूमिका : भारत में दिनो-दिनों अंग्रेजों के बढ़ते शोषण और अत्याचार के कारण भारतीयों में अंग्रेजो के विरूद्ध आक्रोश क्रान्तिकारी, भावनाएँ, जाँलियावाला बाग हत्याकाण्ड जैसी घटनाएँ, रालैट एक्ट जैसे भारतीयों की स्वतंत्रता का गला घोटने वाला काला कानून, प्रथम विश्वयुद्ध के आर्थिक दुष्परिणाम, खिलाफत आन्दोलन द्वारा लोगों में जागरुकता आदि जैसी परिस्थितियों ने अंग्रेज सरक्रार के विरुद्ध संघर्षमय परिस्थितियाँ पैदा कर दी थी।

महात्मा गाँधीजी ने देश की जनता की इस मनोवृत्ति को समझा और 1920 ई० में अंग्रेजों के विरुद्ध अहिसात्मक असहयोग आन्दोलन की शुरुआत कर दी, इस आन्दोलन में गाँधी ने देश की समस्त जनता से अंग्रेजो के कार्यों में किसी भी प्रकार के सहयोग न करने का आहवान किया, इस घोषणा के बाद सभी वर्गो ने बढ़-चढ़कर भाग लिया, जिसमें देश के किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

इस आन्दोलन में संयुक्त प्रान्त के किसान सभा, बिहार का दरभंगा किसान सभा, राजस्थान का मेवाड़ कृषक सभा, बंगाल का कृषक प्रजा पारी, अवध का कृषक एका आन्दोलन, दक्षिण मालावार (केरल) का मोपला गुजरात का बारदौली, आन्धप्रदेश का गुटुर किसान सभा आदि, किसान संगठनों और उसके नेता तथा सदस्यों ने बिटिश सरकार, उनके चमचे जमीन्दारों सांमतो, सेठ-साहूकारों के विरुद्ध बढ़ चढ़कर आन्दोलन में भाग लिया बडे पैमाने पर किसानों के भाग लेने से ही अतिअल्प समय में असहयोग आन्दोलन पूरे देश के कोने-कोने में फैलकर जन आन्दोलन का रूप ग्रहण कर लिया।

इस आन्दोलन में लोगों की सक्रिय भागोदारी को देखते हुये, गाँधी ने उत्साहित होकर 1921 ई० तक स्वराज लाने की घोषणा कर दी, किन्तु दुर्भाग्यवश 5 फरवरी 1922 ई० को गोरखपुर के 3000 किसानों के शांतिपूर्ण जुलूस पर चौरी-चौरा थाने के पुलिस ने गोलियाँ चला दी, जिससे वहाँ के किसानों ने उत्तजजित होकर चौरी-चौरा थाने में आग लगा दी।और 22 पुलिस कर्मी जिन्दा जल गये, इसी घटना से दु:खी होकर गाँधीजी ने आन्दोलन को स्थगित कर दिया। इस प्रकार किसानों के सक्रिय सहयोग से सफलता की ओर बढ़ रहा, असहयोग आन्दोलन बिना किसी लक्ष्य प्राप्ति के समाप्त हो गया।

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प्रश्न 2.
किसान सभा की स्थापना के पीछे क्या उद्देश्य था ?
उत्तर :
अखिल भारतीय किसान सभा : प्रथम विश्चयुद्ध के बाद अंग्रेजों का भारतीय किसानों पर आर्थिक शोषण और अत्याचार बढ़ गया, उनकी दर्द और पीड़ा को कोई सहलाने व आँसू पोछने वाला संगठन नहीं था, ऐसे में किसानों को स्वयं अपने आँसू को पोछने के लिए आगे आना पड़ा। इसके लिए सबसे पहले भिन्न-भिन्न प्रान्तों में किसान सभाएँ जैसे 1927 ई० में बिहार किसान सभा, 1933 ई० में आन्ध प्रदेश किसान सभा, इसी तरह 1929 ई० में बंगाल में कृषक प्रजा पार्टी की स्थापना हुई।

इसके बाद सभी किसान संगठनों के सहयोग से राष्ट्रीय स्तर पर अपैल 1936 ई० में लखनऊ अधिवेशन में अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना हुई। जिसके पहले अध्यक्ष ‘स्वामी सहजानन्द’ सरस्वती’ तथा महासचिव एन०जी०रंगा चुने गये तथा इसी वर्ष 1 सितम्बर को किसान दिवस मनाने का निर्णय लिया गया।

इस प्रकार अखिल भारतीय किसान सभा का मुख्य उद्देश्य जमीदारी प्रथा की समाप्ति, किसानों के ॠण और बेरोजगारी प्रथा को समाप्त करने, भूमिहीन किसानों में भूमि वितरण करने, बटाईदार किसानों को उनका उचित अधिकार दिलाने तथां उन्हे सभी प्रकार के शोषण से मुक्त रखना था। ‘ज्यादा बोओ, ज्यादा काटो’ किसान सभा का मुख्य नारा था। इस नारा ने देश के किसानों में साहस और अपने अधिकारों के लिए लड़ने की भावना पैदा की।

प्रश्न 3.
भारत छोड़ो आन्दोलन में मजदूर वर्ग के योगदान का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
मजदूर वर्ग का भारत छोड़ो आन्दोलन में योगदान : 1942 ई० में महात्मा गाँधी जी ने जब भारत छोड़ो आन्दोलन शुरु किया तो पूरा भारतवर्ष इस आन्दोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। प्राय: हर स्कूल के छात्र-छात्राँए, कॉलेज के छात्र-छार्ताएए, औरत, बच्चे, बूढ़े सभी ने जैसे ठान लिया था, कि अब वे भारत को अंग्रेजों के चुंगल से छुड़ा कर ही रहेंगे। मजदूर वर्ग भी इस आन्दोलन से अछुता नहीं था। भारत छोड़ो प्रस्ताव के वजह से जब गाँधीजी और उनके कुछ साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया, तब पूरे भारत में इसका आक्रोश फूट पड़ा। कई जगह हड़ताले, बन्द हुई। ये हड़तालें कई सप्ताह तक चली।

दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, बंगलौर के मजदूरों ने एक सप्ताह का हड़ताल का पालन किया। ‘टाटा स्टील प्लांट’ के कर्मचारियों ने तेरह दिन (13 days) तक हड़ताल किया और उनका दावा था कि जब तक एक राष्ट्रीय सरकार का निर्माण नहीं कर लेगें, वे काम पर नहीं जायेंगे। उन मजदूरों ने लगभग साढ़े तीन महीने तक हड़ताल जारी रखी। 1945 ई० में मजदूरों का योगदान और भी प्रबल हो गया।

नेताओं द्वारा बुलाई गई मोटिंग में वे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगे। मुम्बई और कलकत्ता के बन्दरगाह के मजदूरों ने इण्डोनेशिया में जानेवाले जहाजों के समान लादकर भेजने से साफ इंकार कर दिया। 1946 ई० में एक घटना घटी। 22 फरवरी 1946 ई० में मजदूरों ने औजारों का त्याग करते हुए काम करने से साफ मना कर दिया। इस हड़ताल के कारण पुलिस हस्तेक्षेप करते ही हड़ताल ने एक तूफान का रूप ले लिया।

मजदूरों को काबू करने के लिए दो बटालियन पुलिस बुलाई और शान्ति स्थापित की प्रक्रिया में 250 मजदूरों की जान चली गई। मालिकों का जुल्म जब-जब जागते तब-तब मजदूरों का आक्रोश भी भड़क उठता था। जिसके फलस्वरूप मारपीट और हड़ताले होती थी। इस प्रकार भारत छोड़ो आन्दोलन को जन आन्दोलन बनाने में मजदूरो का सबसे बड़ा योगदान रह।

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प्रश्न 4.
श्रमिक या मजदूर आन्दोलन के रूप में मजदूर किसान दल (Workers and Peasants Party) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर :
श्रमिक या मजदूर आन्दोलन के रूप में मजदूर किसान दल (Workers and Peasants Pariy) की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस दल के माध्यम से अनेकों श्रमिको या मजदूरों तथा कृषक या किसानों को बिटिश सरकार के विभिन्न राजस्व कर (Tax) से राहत मिलती थी। इतना ही नहीं, बल्कि उनको ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रताडित भी नहीं किया जा रहा था। मजदूर किसान दल भारत की एक राजनीतिक पार्टी थी। इस पार्टी की स्थापना सर्वप्रथम कलकत्ता में प्रान्तीय स्तर पर हुई थी।

इसके बाद इस दल को ‘अखिल भारतीय मजूदर एवं किसान दल’ (All india Workers and Peasants’ Party) में रूपान्तरित किया गया था। इसका गठन सन् 1928 में हुआ और इसका पहला अधिवेशन कलकत्ता में आयोजित किया गया। इस अधिवेशन के अध्यक्ष ‘सोहनलाल जोशी’ थे।

मजदूर किसान दल (Workers and Peasants’ Party) के अन्तर्गत राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर निम्नलिखित कार्य करता रहता है –
अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization) : यह संगठन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बनायी गयी थी जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर श्रमिकों तथा किसानों की समस्याओं का समाधान करता था तथा उन्हें इन्साफ भी दिलाता था।

अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (All India Trade Union Congress) : यह भारतीय स्तर पर मजदूरों और किसानो को भारतीय ब्रिटिश सरकार के शोषण से मुक्ति दिलाती थी। इस संगठन की स्थापना सन् 1920 में लाला लाजपत राय, जोसेफ बैपटिस्टा और दीवान चमनलाल द्वारा किया गया था।

कांग्रेस समाजवादी दल (Congress Socialist Party) : इस दल की स्थापना बम्बई में सन् 1934 ई० में जय-प्रकाश नारायण, मीनू मसानी और एन० एम० जोशी ने किया था। इन सभी मजदूर किसान दलों के अतिरिक्त अन्य संगठन भी हैं जिसने मजदूर और किसानों के लिए अनेकों कार्य किये। इसमें अखिल भारतीय किसान सभा (AlI India Kishan Sabha), अखिल भारतीय ट्रेड यूनियनिस्ट फेडरेशन (All India Trade Unionist Federation) तथा इन्डियन ट्रेड यूनियन कांग्रेस (Indian Trade Union Congress) आदि हैं।

प्रश्न 5.
किसान आंदोलन के रूप में ‘एका’ आन्दोलन (Eka Movement) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर :
एका का अर्थ होता है एकता अर्थात् मिलजुल कर रहना। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो अवध के समस्त किसान, निम्न वर्ग और ब्रिटिश सरकार द्वारा अपमानित छोटे-छोटे निम्न वर्गीय किसान, जमीन्दारों के एकजुट होकर ब्रिटिश प्रशासन के अधीन जमीदारों और ठेकेदारों के विरुद्ध छेड़ा गया आन्दोलन को एका आन्दोलन (Eka Movement) कहते हैं।

एका आन्दोलन सन् 1921 में मदारी पासी और सहरेब के द्वारा चंलाया गया था। यह आन्दोलन अवध क्षेत्र के हरदोई, बहराईच, सुल्तानपुर, बाराबंकी और सीतापुर इत्यादि जिला में हुआ था। मदारी पासी और सहरेब दोनों किसान एवं निम्न वर्ग (जाति) के थे, जो भलीभांति किसानों और निम्नवर्ग के समस्या (दु:ख) को समझते थे। पासी और सहरेब इस किसान आदोलन में उन लोगों के साथ थे, जो त्रिटिश सरकार द्वारा शोषित व प्रताड़ित थे।

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प्रश्न 6.
भारत में 20 वीं सदी के कृषक आन्दोलन की विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर :
भारतीय किसान, सरकार की भू-राजस्व नीति तथा जमींदारों के अत्याचार से पीड़ित थे।20 वीं सदी तक उन्होंने समझ लिया कि संगठित हुए बिना उनकी रक्षा नहीं हो सकती। फलतः 20 वों सदी के दूसरे दशक में किसानों के सामूहिक आदोलन के दौर आरंभ हो गये। महारष्ट्रीयन ब्राह्मण बाबा रामचन्द्र ने अवध के किसानों को जमीदारों के विरुद्ध संगठित किया। सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया तो हजारों किसान कचहरी पहुँचकर उनकी रिहाई की माँग करने लगे।

1920 ई० में किसान आंदोलन गाँधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गया। 1920 ई० तक किसान आदोलन उत्तर प्रदेश के रायबरेली, फैजाबाद और सुलतानपुर जिलों तक फैल गया। किसानों के प्रदर्शन तथा जमींदारों और महाजनों के घर पर उनके धावे आरंभ हो गये। 1922 ई० के आरंभ में हरदोई, बाराबंको, सीतापुर आदि जिलों में भौ आंदोलन फैल गया। किसानों ने मदारी पासी के नेतृत्व में एक आंदोलन छड़ दिया।

उत्तर बिहार में स्वामी विद्यानन्द ने किसान आंदोलन का नेतृत्व किया। बंगाल में किसानों ने कर न देने का आंदोलन छेड़ दिया । मिदनापुर जिला में किसानों ने यूनियन बोर्ड को कर नहीं दिया फलस्वरूप यूनियन बोर्ड के सदस्यों को इस्तोफा दने पड़ा। गुजरात में वल्लभभाई पटेल तथा कनवर जी मेहता के नेतृत्व में सन् 1929 में बारदोली सत्याग्रह आन्दोलन शुरू किया गया। इसके सामने सरकार को झुकते हुए भू-राजस्व की बढ़ी हुई दर कम करनी पड़ी। उत्तर प्रदेश में सन् 1930 में लगान वृद्धि के विरुद्ध किसानों ने आंदोलन छेड़ दिया। इन्होंने लगान देना बंद कर दिया। रायबरेली, इटावा, कानपुर, उन्नाव और इलाहाबाद जनपद इससे प्रभावित हुए, किन्तु सरकार ने इसे सखी के साथ कुचल दिया।

1937-38 ई० में किसान सभा ने बिहार में जमींदारों के विरुद्ध आदोलन छेड़ दिया। यह आंदोलन किसानों को जमीन से जमींदारों द्वारा बेदखल करने के विरोध में था। बंगाल में बर्दवान के किसानों ने आंदोलन किया तो उनके कर में कमी की गयी। उत्तर बंगाल में जमीदार हाट-मेलों में चावल, सब्जी, धान आदि बेचने वालों पर कर वसूलते थे। किसानों ने कर देना मंजूर नहीं किया।

1939 ई० में किसानों ने बंगाल में बटाईदार आंदोलन छेड़ दिया। उड़ीसा और आंध प्रदेश में भी आंदोलन हुए। कृषक आंदोलन में आंध का ‘तेलंगाना विद्रोह’ और बंगाल का ‘तेभागा आंदोलन’ उल्लेखनीय आंदोलन थे।

प्रश्न 7.
भारत में 20 वीं सदी के श्रमिक आन्दोलन का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर :
मालिकों के शोषण तथा अत्याचार के शिकार मजदूरों ने 19 वीं सदी के प्रथर्मार्द्ध एवं द्वितीयार्द्ध में देश के विभिन्न उद्योगों में जहाँ-तहाँ हड़ताले आरंभ कर दी थी। 1827 ई० में पालकीवालों ने एक महीने की लंबी हड़ताल की, 1862 ई० में रेलवे के लेखा विभाग के कर्मचारियों ने, 1869 ई० में बम्बई नगरपालिका के कसाइयों ने, 1873 ई० में बम्बई के सरकारी प्रेस कर्मचारियों ने तथा 1877 ई० में नागपुर की टाटा एम्प्रेस मिल के बुनकरों की हड़ताल जैसी घटनाएँ होती रहीं। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर श्रमिकों का कोई ऐसा संगठन नहीं था जो उनकी समस्याओं को सुने तथा सरकार तक पहुँचा सके क्षेत्रिय स्तर पर कई श्रमिक संगठन सक्रीय थे।

आल इंडिया ट्रेड यूनियन काँग्रेस : प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1917 ई० से 1920 ई० तक प्रत्यकक सरकारी और गैरसरकारी क्षेत्र में मजदूरों के अनेक संगठन बन गये। 31 अक्टूबर 1920 ई० को अखिल भारतीय संस्था ‘आल इंडिया ट्रेड यूयियन काँग्रेस’ की स्थापना की गई। इसके अध्यक्ष लाल लजपत राय तथा उपाध्यक्षों में तिलक, एनी बिसेन्ट, सी० एफ० एण्डूज, ब्रेलवी तथा वपतिस्ता थे। इस संस्था की प्रेरणा से श्रमिक हड़तालों की संख्या और क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई।

साम्यवाद से प्रभावित एक युवा वर्ग मजदूर संगठनों में प्रभावी हो उठा। ए०आई०टी॰यू॰सी॰ में भी उनकी सक्रियता बढ़ गई। ऐसी ही युवा वर्ग ने कलकत्ता में पीजेन्टस एण्ड वर्कर्स पार्टी तथा बम्बई में वर्कर्स एण्ड पीजेन्टस पारी का गठन किया। 1934 ई० में कांग्रेस के वामपंथी वर्ग ने ‘सोशलिस्ट फोरम’ नामक समाजवादी गुट बनाया जिसके नेता जयप्रकाश नायायण थे। बाद में डाँगे आदि कम्यूनिस्ट नेता भी उसमें शामिल हो गये। इससे राष्ट्रीय स्तर पर मजदूर आंदोलन चल निकला। अत: मजदूर आंदोलन ने व्यवस्थित रूप ले लिया और बाद के दिनों में कई प्रखर हड़तालें होती रहीं।

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प्रश्न 8.
तेभागा एवं तेलंगाना आन्दोलन के स्वरूप का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर :
तेभागा आन्दोलन और तेलंगाना आंदोलन दोनों ही किसान आंदोलन हैं, जो आधुनिक भारतीय इतिहास में अहम स्थान रखते हैं। इन दोनों आंदोलन के माध्यम से किसान अपने वर्चस्व को कायम रख पाये थे।

तेभागा आंदोलन सन् 1946 से सन् 1947 तक चला। इस आंदोलन का नेतृतव कम्पाराम सिंह और भवानी सिंह ने किया। यह आदोलन बंगाल के कई क्षेत्रों में किया गया था। जैसे – दिनाजपुर, जलपाईगुड़ी, रंगपुर, मैमनसिंह, मेदनीपुर, मालदा और 24 परगना (काकद्वीप) आदि।
वहीं दूसरी तरफ उसी वर्ष आन्थ्र प्रदेश में तेलंगाना आंदोलन किया गया। यह आंदोलन सन् 1946 से लेकर सन् 1951 तक चला। यह संघर्ष या आंदोलन हैदराबाद के किसानों द्वारा किया गया था। उस समय हैदराबाद के निजाम के अधीनस्थ जमींदारों और ठेकेदारों ने वहाँ के किसानों के ऊपर अत्याचार किया करते थे, कभी-कभी मनमाना भूमि कर (Land tax) वसूलते थे। इसी के विरोध में वहां के किसानों ने विद्रोह छेड़ दिया था।

प्रश्न 9.
किसान आन्दोलन के रूप में बारदौली सत्याग्रह (Bardauli Satyagraha) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
किसान आन्दोलन के रूप में बारदौली सत्याग्रह की एक अहम भूमिका रही है। यह सत्याग्म या आन्दोलन ब्रिटिश सरकार के विरोध में की गयी थी, क्योंकि ब्रिटिश सरकार बारदौली के किसानों से मनमाना राजस्व या भूमि कर (Tax) वसूला करती थी। यह घटना गुजरात स्थित सूरत जिले के बारदौली इलाके की है जहाँ सन् 1928 के पहले से ही ब्रिटिश या अंग्रेजी प्रशासन किसानों से मनमाना भूमि कर वसूलती थी।

बारदौली सत्याग्रह सन् 1928 में श्री बल्लभ भाई पटेल के द्वारा किया गया था अर्थात् पटेल के नेतृत्व में बारदौली के समस्त किसानों (पुरुषों, महिलाओं तथा बच्चों और बूढ़ो) ने बढ़ी हुयी भूमिकर के विरुद्ध अंग्रेजी सरकार के खिलाफ यह सत्याप्रह या आन्दोलन चलाये। इस सत्याप्रह में भारी तादाद में महिलाओं ने भी भाग लिया। इन महिलाओं में कस्तूरबा गाँधी, मनी बेन पटेल (बल्लभ भाई पटेल की पुत्री), शारदा बेन शाह, मीटू बेन, भक्तिबा और शारदा मेहता इत्यादि थी।

यह सत्याग्रह या आन्दोलन आग की भाँति तीव्र रूप ले लिया था जिसके वजह से पटेल जो को अंग्रेज़ी सरकार गिरफ्तार करने के लिए आतूर हो गये। परन्तु अगस्त, 1928 ई० में गाँधीजी बारदौली पहुँचे और उन्होंने घोषणा किया कि यदि सरकार पटेल जी को गिरफ्तार करती है तो वे स्वयं इस आंदोलन का नेतृत्व करेंगे। अंत में सरकार ने एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल (Maxwell) से इस मामले की जांच करवाई जाय। उसने भी लगान की वृद्धि को अनुचित बताया।

अत: लगान या कर घटा दिया गया। इस प्रकार अहिंसात्मक कृषक या किसान आन्दोलन के रूप में बारदौली सत्याग्रह सफल हुआ और इस सफलता का मुख्य पात्र श्री बल्लभ भाई पटेल और गाँधीजी थे। बारदौली के किसान महिलाओं ने इस सफलता से प्रसन्न होकर पटेल जी को ‘सरदार’ नाम की उपाधि दी। तब से श्री बल्लभ भाई पटेल सरदार बल्लभ भाई पटेल कहे जाने लगे।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 6 20वीं शताब्दी में भारत के किसान, मजदूर वर्ग एवं वामपंथी आन्दोलन : विशेषताएँ एवं अवलोकन

प्रश्न 10.
सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय किसानों की भूमिका क्या थी ?
या
सविनय अवज्ञा आंदोलन के साथ किसान आंदोलन का क्या संबंध की विवेचना कीजिए।
या
सविनय अवज्ञा आन्दोलन (1930) का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर :
महात्मा गाँधी द्वारा नमक सत्याग्रह के साथ शुरू किया गया सविनय अवज्ञा आन्दोलन में देश के किसानों और मजदूरों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था। इस आन्दोलन के दौरान किसानों के विभिन्न आंदोलन शुरु हुए थे। गाँधी जी किसानों पर हो रहे अत्याचारों का सामना करने के लिए उठ खड़े हुए तथा उनकी प्रेरणा और समर्थन से निम्न आन्दोलन शुरू हुए थे –
1. लखनऊ में अखिल भारतीय किसान कांग्रेस का गठन : सन् 1936 ई० में लखनऊ में अखिल भारतीय किसान कांग्रेस का गठन किया गया था। इसके प्रथम अध्यक्ष स्वामी सहजानंद सरस्वती थे। इनके ही प्रयास से किसानों को जमीन्दारों से मुक्ति मिली।
2. पंजाब में कृषक आंदोलन : सन् 1937 ई० में पंजाब कृषक आन्दोलन चलाया गया तथा पंजाब के किसानों को अंग्रेजी सरकार के कर बोझ से मुक्ति दिलाया।

इसी प्रकार के कई और किसान आन्दोलन हैं, जिनका सविनय अवज्ञा आन्दोलन से संबंध गहरा है । जैसे :- आंध प्रदेश का कृषक आंदोलन, बिहार का कृषक आंदोलन और मालाबार क्षेत्र का किसान आन्दोलन आदि। सविनय अवज्ञा आदोलन पूर्णरूप से सन् 1934 ई० में समाप्त हो गयी लेकिन किसान आंदोलन चलती रही।

प्रश्न 11.
वामपंथी राजनीति में एम० एन० राय की भूमिका का विवरण दीजिए।
या
मानवेन्द्र नाथ राय (एम० एन० राय) के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
मानवेन्द्र नाथ राय (एम० एन० राय) वामपंथी विचारधारा के सूत्रधर माने जाते हैं जिन्होंने वामपंथी विचारधारा को न केवल मैक्सिको और रूस में फैलाया बल्कि भारत में भी प्रचार-प्रसार किया। इनको साम्यवादी विचारधारा के लोग भारत में वामपंथी राजनीति के दाता या खुदा मानते हैं।
मानवेन्द्र नाथ राय का जन्म सन् 1887 ई० में चौब्बीस परगना जिला के चांगरीपोता(Changripota) नामक गाँव में हुआ था इनको राष्ट्रवादी क्रांतिकारी और विश्वपसिद्ध राजनीतिक सिद्धान्तकार कहा जाता है। उनका मूल नाम ‘नरेन्द्रनाथ भट्टाचार्य’ था।

इन्होंने मैक्सिको में ‘Communist Party of Maxico’ तथा सन् 1925 में भारत में ‘Communist Party of India’ की स्थापना की। इतना ही नहीं, इन्होंने सन् 1940 ई० में ‘Radical Democratic Party’ की भी स्थापना किया। जो इनके राजनीतिक स्वतंत्रता के प्रयास का प्रतिफल था ।

एम० एन० राय की जीवनी लेखक ‘मुंशी और दीक्षित’ के अनुसार, राय का जीवन स्वामी विवेकानन्द, स्वामी रामतीर्थ और स्वामी द्यानन्द से प्रभावित रहा। राय जी के जीवन पर विपिन चन्द्र पाल और विनायक दामोदर सावरकर का मीं जबरदस्त प्रभाव पड़ा। राय जी हमेशा क्रान्तिकारी भाव से काम किया करते थे तथा वामपथी राजनीति का हमेशा समर्थन किय: करते थे क्योंकि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में वामपंथियों ने एक अहम भूमिका निभाया, जिसका असर राय जी पर जबरदस्त पड़।

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प्रश्न 12.
भारत में साम्यवादी दल की स्थापना कब और कैसे हुई ? वामपंथी आन्दोलन की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं ?
उत्तर :
सन् 1917 में लेनिन के नेतृत्व में रूसी कांति (Russian Revolution) इई फलस्वरूप रूस में सान्यदादी दल की स्थापना हुई । भारत में भी लेनिन के सहयोग से मानवेन्द्र नाथ राय ने साम्यवादी (Communist) दल की स्थापना की भारत में साम्यवादी को वामपंथी दल के नाम से जाना जाता है । इस प्रकार भारत में लेनिन के माध्यम से वामपंथीं विचारधाराओं का बीजारोपन हुआ। वास्तव में भारत में वामपंथी दल या कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना सन् 1920 में हुयी इस दल की स्थापना मानवेन्द्र नाथ राय (M. N. Roy), अवनी मुखर्जी, ए० टी० राय और मुहम्मद अली आदि के माध्यम से हुई थी।

वामपंथी आंदोलन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं :

  1. वामपंथी आन्दोलन के माध्यम से मजदूरों और किसानों ने अपनी-अपनी समख्याओं का समाधान करने का तरीका ढुँद्ध लियः
  2. वामपंथी आन्दोलन के होने से भारत में पहली बार देखा गया कि किसानों और मजदूरों में कितनी एकता है और वे इस आन्दोलन में पह्हली बार एक साथ भाग लिये।
  3. इस आंदोलन के माध्यम से वामपंथियों ने समस्त भारतवर्ष में साम्यवादी विचारों का प्रचार-प्रसार कियं।
  4. इस आन्दोलन के माध्यम से किसान और मजदूर दोनों ही ब्रिटिश सरकार को राजस्व कर(Land Tax) नहीं देते थे

उपर्युक्त व्याख्या से हम पाते हैं कि भारत जैसे राष्ट्र में साम्यवादी या वामपंथी आन्दोलन ने लोगों में शक्ति फूँक दी है। उसं एक नयी दिशा जैसे मिल गयी हो।

प्रश्न 13.
असहयोग आन्दोलन के साथ मजदूर आन्दोलन के संबंध का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
या
असहयोग आन्दोलन को मजदूर आन्दोलन से क्यों जोड़ा जाता है ?
उत्तर :
काँग्रेस का नागपुर अधिवेशन जो 1920 ई० में हुआ, उसमें असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव पारित किया गया। और अगस्त, 1920 ई॰ में महात्मा गाँधी जी ने भारत में यह आन्दोलन चलाया। इस आन्दोलन में गाँधी जी ने मजदूरों से अंग्रेजी सरकार को समर्थन या सहयोग न देने को कहा।

असहयोग आन्दोलन गाँधीजी द्वारा किये गये सन् 1918 का अहमदाबाद सत्याम्रह का परिणाम था जिसमें मिलों के मालिकों द्वारा मजदूरों पर किये गये शोषण और जुर्म का नजारा था। मजदूरों ने गाँधी जी के नेतृत्व में हड़ताल का सहार: लिया था और मिलो के मालिक मजदूरों पर अत्याचार करना बन्द करने को बाध्य हुए थे।

इतना ही नहीं, गाँधीजी का असहयोग आंदोलन का संबंध सन् 1920 के ‘Textile Labour Association’ से भी जिसके माध्यम से गाँधीजी ने कपड़ा मिल के मजदूरों को अपना सहयोग सर्मथन दिया। ऐसे ही कुछ श्रमिक आदोलन क् घटना असहयोग आदोलन के दौरान हुई थी जिसका परिणाम असहयोग आंदोलन था। प्रसिद्ध इतिहासकार सुमि: सरकार के अनुसार, “ट्रेड यूनियने हड़तालों से पहले बनने के स्थान पर हड़तालों के बाद संगठित होती थीं और प्राय: इनका स्वरूप अल्पकालीन होता था।”

इस प्रकार गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन को मजदूर आंदोलनों से जोड़े रखा । इतना ही नहीं, गाँधीजी ने सन् 192 ? में असहयोग आंदोलन वापस ले लेने के बाद भी वे मजदूर आन्दोलनों से जुड़े रहे।

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प्रश्न 14.
मातंगिनी हाजरा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
मातंगिनी हाजरा एक देशभक्त महिला थी जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण को न्यौछावर कर दिया। इनका जन्म सन् 1870 ई० में मिदनापुर के होगला ग्राम में हुआ था। इनके अन्दर अपने देश के प्रति कुट-कुट कर देशभक्ति की भावना थी। मातंगिनी हाजरा जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन (1930 ई०) में भाग ली थी तथा बिटिश सरकार का हमेशा विरोध की। इनके ही प्रयासों से इस आन्दोलन को कुछ हद तक सफलता मिली।

इसके बाद सन् 1942 ई० के भारत छोड़ो (Quit India) आन्दोलन में भाग लिये तथा इस आन्दोलन में इनका आन्दोलन (Contribution) महत्वपूर्ण रहा। मिदनापुर जिले के तामलुक अदालत के भवन पर राष्ट्रीय तिरंगा फहराने के लिए वे झण्डा लेकर आगे बढ़ी, जनसमूह उनके पीछे था। अंग्रेजो ने रोकने का बहुत प्रयास किये, गोलियाँ, बारूद चलवाये और आखिरकार मातंगिनी हाजरा वीरगति को प्राप्त हो गयी। इन सभी कार्यो के वजह से मातंगिनी हाजरा आज भी भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 15.
अखिल भारतीय किसान सभा पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
कांग्रेस समाजवादी दल (Congress Socialist Party) की स्थापना कांग्रेस के ही अन्दर सन् 1934 में आचार्य नरेन्द्र देव और जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बम्बई में हुआ। इस अधिवेशन में कांग्रेस के भीतर ही समाजवादियों और साम्यवादियों ने ‘अखिल भारतीय किसान कांग्रेस’ की स्थापना की। वैसे तो इस आन्दोलन में कम्यूनिस्टों ने भारी संख्या में योगदान दिया किन्तु आरंभ में इसका नेतृत्व कांग्रेस के हाथ में रहा। एन० जी० रंगा इसके सचिव और स्वामी सहजानंद सरस्वती इसके अध्यक्ष बने। सन् 1936 में इस संगठन ने अपना कार्यक्रम प्रकाशित किया।

अखिल भारतीय किसान सभा के निम्न उद्देश्य थे, जिनके आधारा पर वह काम करती थी। पहला उद्देश्य, जमीन्दारी प्रथा का अन्त, कृषि ॠण की समाप्ति तथा बेगारी प्रथा का अन्त आदि था। दूसरा उद्देश्य, भूमि कर में 0% की कमी तथा जमीन्दारों की भूमि का भूमिहीन किसानों में बाँटना आदि। इस सभा का दूसरा अधिवेशन सन् 1937 में गया के नियामतपुर में हुआ।

प्रश्न 16.
भारतीय साम्यवादी दल (Indian Communist Party) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
उत्तर प्रदेश के कम्युनिस्टों समूह के नेता सत्यभक्त ने सन् 1924 ई० में कानपुर में ‘भारतीय साम्यवादी दल’ की स्थापना की घोषणा की। सत्यभक्त इस दल के संचिव बने।
इस दल के निम्न उद्देश्य थे, जिनमें सम्पूर्ण स्वराज प्राप्त करना एवं एक ऐसे समाज की स्थापना करना जहाँ उत्पादन और धन क वितरण का स्वामित्व सामूहिक हो, प्रमुख माने जाने थे। सन् 1925 ई० में सिंगारवेलु चेट्टियार ने बम्बई में विभिन्न कम्युनिस्ट समूहों को संगठित कर ‘भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी’ की स्थापना की घोषणा की। इस दल को कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल ने अपनी मान्यता दी। इस प्रकार पार्टी का नया संविधान भी स्वीकार किया गया जिसमें तीन प्रमुख उद्देश्य निर्धारित किए गए –

  1. भारत को पूर्णरूप से स्वतंत्र कराना।
  2. ब्रिटिश शासन को समाप्त करना।
  3. भारत में सोवियत रूस जैसी सरकार की स्थापना करना।

इस प्रकार, हमलोग भारतीय सम्यवादी दल के विभिन्न कार्य एवं उद्देश्यों को देख पाते हैं।

प्रश्न 17.
मोपला कृषक आन्दोलन के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
मोपला कृषक आन्दोलन (1920 – 1922 ई०) : महात्मा गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन के दौरान ही केरल (मालाबार क्षेत्र) में किसानों ने अंग्रेजो से मदद प्राप्त करने वाला जमीदारों और ठेकेदारों के खिलाफ मोपला आन्दोलन शुरू हुआ था, जिसका नेतृत्च किसान जाति के ‘अलि मुसलियार’ ने किया था। वे गाँधी जी के द्वारा दिखाये गये रास्ते पर चल कर इस आंदोलन का नेतृत्व किये। मोपला विद्रोह मालाबार क्षेत्र में रहने वाले मोपला जाति के किसानों ने किया था।

मोपला विद्रोह की अपनी अलग विशेषता भी सामान्यत: इसे हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रादिक संघर्ष के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इस संघर्ष का वास्तविक चरित्र सामंतवाद, साम्राज्यवाद विरोधी था। मोपला कृषक आन्दोलन साम्राज्यवाद के खिलाफ एक सशस्त्र और विशाल विद्रोह था। इस विद्रोह में हजारों विद्रोही मारे गये तथा हजाग्रें-हजारों विद्रोही घायल हुये थे अन्त में सरकार सैन्य ताकत के बल पर इस विद्रोह को दबा दिया।

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प्रश्न 18.
पुत्रप्रा-वायलार किसान आंदोलन एवं संयुक्त प्रान्त किसान आंदोलन के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
पुनप्रा-वायलार एक किसान आंदोलन था, जो सन् 1946 ई० में त्रावणकोर में किया गया था। यह आंदोलन त्रावणकोर के किसानों और अंग्रेजी सरकार के नीतियों के बीच हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व पी॰ सुन्दरैया और रवि नारायण रेड़ी ने किया था। परन्तु सरकार ने इस आन्दोलन को बुरी तरह से दमन कर दिया।

असहयोग आंदोलन के समय, अवध एवं आगरा के क्षेत्रों में संयुक्त प्रान्तीय किसान आंदोलन चलाया गया था। यह आंदोलन सन् 1920 ई० में शुरू हुई थी। इस आंदोलन का मुख्य कारण जमींदारों द्वारा किसानों से मनमाना कर वसूली था। इस आदोलन के दौरान अवध एवं आगरा के क्षेत्रों में विभिन्न किसान संगठन और सभा बनायी गयी। जैसे, सन् 1920 ई० में ‘अवध किसान सभा’, सन् 1918 ई० में ‘उत्तर प्रदेश किसान सभा’ आदि। परन्तु सरकार ने इसे भी समाप्त कर दिया।

प्रश्न 19.
बंगाल विभाजन विरोधी आन्दोलन में कृषकों की क्या भूमिका थी ?
उत्तर :
बंग-भंग विरोधी आन्दोलन में किसानों की भूमिका : यह आन्दोलन किसी एक वर्ग का नहीं था अपितू. इसमें सभी श्रेणियों के साथ-साथ किसान वर्ग की भी विशेष भूमिका रही है। किसान वर्ग को उग्रपंथी विचार के लोग क्रान्तिकारी पर्चे बाँटते थे जिनमें अंग्रेजों को चोर शासक कहा गया था तथा इन्हें अपना शासक मानने से इन्कार कर दिया गया था कारण इन्हीं लोगों के कारण हमारे देश का हर प्रकार का उद्योग जैसे कपड़ा उद्योग, चमड़ा उद्योग, लोहा उद्योग को बर्बाद हुआ था, ये अपने देश की बनी हुई चीजों का आयात करते हैं और हमारे बाजारों में हमारे ही लोगों की रोटी छीन लेते है इसके अलावा हमपर दिनोंदिन नये-नये करों का बोझ लादते हैं अत: ये हमारे शासक नहीं है। इस प्रकार बंग-भंग विरोधी आंदोलन में किसानों की प्रमुख भूमिका थी।

प्रश्न 20.
बंगाल में विभाजन विरोधी आन्दोलन में मजदूरों के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बंग-भंग आन्दोलन के दौरान बहुत बड़ी संख्या में मजदूरों द्वारा सरकारी कारखानों का बहिष्कार किया गया जिसमें रेल कर्मचारियों द्वारा 1907 ई० में किया गया हड़ताल सबसे बड़ा और प्रमुख था।

मालिकों के शोषण तथा अत्याचार के शिकार मजदूरों ने 19 वीं सदी के प्रथमार्द्ध एवं द्वितीयार्द्ध में ही जहाँ-तहाँ हड़तालें करनी आरंभ कर दी थी। 1827 ई० में पालकीवालों ने एक महीने की लंबी हड़ताल की, 1862 ई० में रेलवे के लेखा विभाग के कर्मचारियों ने, 1869 ई० में बम्बई नगरपालिका के कसाइयों ने, 1873 ई० में बम्बई के सरकारी प्रेस कर्मचारियों ने तथा 1877 ई० में नागपुर की टाटा एम्पेस मिल के बुनकरों की हड़ताल जैसी घटनाएँ होती रहीं। धीरे- धीरे मजदूर संगठन बनने लगे।

आल इंडिया ट्रेड यूनियन काँग्रेस : प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1917 ई० से 1920 ई० तक प्रत्येक सरकारी और गैरसरकारी क्षेत्र में मजदूरों के अनेक संगठन बन गये। 31 अक्टूबर 1920 ई० को अखिल भारतीय संस्था ‘आल इंडिया ट्रेड यूयियन काँग्रेस’ की स्थापना की गई। इसके अध्यक्ष लाल लजपत राय तथा उपाध्यक्षों में तिलक, एनी बिसेन्ट, सी० एफ० एण्डूज, बेलवी तथा वपतिस्ता थे। इस संस्था की प्रेरणा से श्रमिक हड़तालों की संख्या और क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई।

साम्यवाद से प्रभावित एक युवा वर्ग मजदूर संगठनों में प्रभावी हो उठा। ए०आई०टी०यू०सी० में भी उनकी सक्रियता बढ़ गई। ऐसी ही युवा वर्ग ने कलकत्ता में पीजेन्टस एण्ड वर्कर्स पार्टी तथा बम्बई में वर्कर्स एण्ड पीजेन्टस पार्टी का गठन किया। अतः मजदूर आंदोलन ने व्यवस्थित रूप ले लिया और बाद के दिनों में कई प्रखर हड़तालें होती रहीं।

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प्रश्न 21.
1929 ई० के बाद वामपंथी राष्ट्रवादी आन्दोलन से क्यों अलग-थलग पड़ने लगे थे ?
उत्तर :
1928 ई० में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस ने भारत मं इण्डीपण्डेण्ट सोशलिस्ट रिपब्लिक ऑफ इण्डिया की स्थापना की माँग की जिसके कारण जमीन तथा उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया जाता। राष्ट्रवादियों के बहुलता के कारण गिरनी कामगर यूनियन को इस यूनियन में जगह नहीं मिला परन्तु 1929 ई० में नागपुर में आयोजित दसवें अधिवेशन में दक्षिणपंथी ट्रेड यूनियनिस्टों ने अखिल भारतीय ट्रेड यूनियनिस्ट फेडरेशन ऑफ इण्डिया की स्थापना की।

सरकार द्वारा ब्रिटिश राज के खिलाफ षड़यन्त्र का आरोप लगाकर उनके 33 नेताओं को गिरफ्तार किया गया। मास्को के मार्गदर्शन के कारण कांग्रेस द्वारा संचालित 1931-1932 ई० में समस्त भारत में चल रहे जन आन्दोलन में भाग नहीं लेने की गलती के कारण भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की साख जनता के बीच कमजोर हो गयी। इससे ट्रेड यूनियन आंदोलन काफी कामजोर हो गया। इस प्रकार वामपन्थी देश के राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन से अलग-थलग पड़ने लगे।

प्रश्न 22.
1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में वामपंथियों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होते ही कम्युनिस्ट पार्टी ने भारत में बिटिश सरकार का विरोध करना शुरू कर दिया। परन्तु रूस तथा मित्र राष्ट्रों द्वारा जर्मनी से युद्ध करने के कारण इस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार का समर्थन किया। इस प्रकार से समर्थन करने का एकमात्र कारण भारत की कम्युनिस्ट पार्टी का रूस के इशारों पर चलना था। इसलिये यह पार्टी 1942 ई० के भारत-छोड़ो आन्दोलन का समर्थन नहीं करने का निर्णय लिया और इसी प्रकार के गलती होने के कारण भारत में कम्युनिस्ट पार्टी का पतन होने लगा तथा बाद में इस पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

लेकिन युद्द के समाप्त होने के पश्चात् भारत की कम्युनिस्ट पार्टी राष्ट्र के प्रति होने वाले आन्दोलनों में पूर्णरूप से पुनः सक्रिय हुई। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के हुंकार पर भारतवर्ष में मजबूर वर्ग द्वारा किये गये हड़तालों का ताँता लग गया। समस्त दक्षिण भारत में 1946 ई० में चालिस दिनों तक पूर्णत: सफल रेल-हड़ताल चला। ठीक इसी प्रकार से बंदरगाहों के मजदूरों ने भी हड़ताल किया। इस प्रकार मजदूर संघ का एकीकरर हो जाने से वह और भी शक्तिशाली हो गया।

विवरणात्मक प्रश्नोत्तर (Descriptive Type) : 8 MARKS

प्रश्न 1.
भारत छोड़ो आन्दोलन में मजदूर वर्ग की भूमिका का विश्लेषण कीजिए तथा मजदूर एवं किसान दल पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर :
भारत छोड़ो आंदोलन में श्रमिक वर्ग की भूमिका : द्वितीय विश्वयुद्ध एवं भारत छोड़ो आंदोलन काल में भारतीय श्रमिक वर्ग ने आर्थिक व राजनीतिक दोनों प्रकार के संघर्षो में अपनी भागीदारी दी। 3 सितम्बर, 1939 ई० को प्रारम्भ हुए द्वितीय विश्वयुद्ध के विरोध में बम्बई के मजदूरों ने 2 अक्टूबर, 1939 ई० को सशक्त हड़ताल का प्रदर्शन किया था। इस हड़ताल में लगभग 90,000 मजदूरों ने भाग लिया था। सितम्बर 1940 ई० में एक प्रस्ताव पारित कर एटक ने साम्माज्यवादी युद्ध में सम्मिलित होने से इन्कार कर दिया। इसी वर्ष एम. एन. रॉय ने सरकार समर्थित इण्डियन फेडरेशन ऑफ लेबर की स्थापना की।

रूस के महायुद्ध में सम्मिलित होने से भारतीय मजदूर वर्ग पर इसका प्रभाव पड़ा तथा उसका एक भाग 1942 ई० के भारत छोड़ो आंदोलन से अलग बना रहा। परन्तु इससे भारत छोड़ो आंदोलन में मजदूरों की भागीदारी में ज्यादा कमी नहीं आई। भारत छोड़ो आन्दोलन के दौर में दिल्ली, कलकत्ता, लखनऊ, कानपुर, बम्बई, नागपुर, अहमदाबाद, जमशेदपुर, मद्रास, इंदौर, बंगलौर इत्यादि शहरों में जबरदस्त श्रमिक हड़ताले हुई। बिटिश साम्राज्यवाद के अन्तिम वर्षो में सम्पूर्ण भारत आर्थिक स्थिति की समस्या को लेकर मजदूर हड़तालों से अशान्त बना रहा था।

इन हड़तालों में डाक-तार विभाग की हड़ताल सर्वाधिक चर्चित थी। द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के उपरान्त श्रमिक आन्दोलन में पुन: उबाल आया। इस उबाल का श्रेष्ठतम रूप बम्बई में नौ-सेना विद्रोह के समर्थन में मजदूर संघर्ष के रूप में देखने को मिला था। धीरे-धीरे कांग्रेस तथा श्रमिक संघों में मन-मुटाव बढ़ता चला गया। राष्ट्रवादियों ने सरदार बल्लभ भाई पटेल के नतृत्व में मई, 1947 ई० में एटक से पृथक हांकर भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की जबकि कांग्रेस के समाजवादी गुट ने हिन्द मजदूर सभा की स्थापना की।

मजदूर-किसान पार्टी (Workers and Peasants’ Party) : मजदूर किसान पार्टी भारत की एक राजनीतिक पार्टी थो। इस पार्टी की स्थापना सर्वप्रथम कलकत्ता में प्रान्तोय स्तर पर हुई थी। इसके बाद सभी प्रान्तीय दलों ने मिलकर 1928 ई० में अखिल भारतीय मजदूर एवं किसान पार्टी का गठन किया। इसका प्रथम अधिवेशन सोहनलाल जोशी की अध्यक्षता में कलकत्ता में हुआ। इस दल ने कांग्रेस के साथ ही 1925 ई० से लेकर 1929 ई० तक किसानों एवं राष्ट्रहित में अनेकों काम किया। भारत में इस पार्टी ने कम्युनिस्ट पार्टी की योजनाओं को मूर्त्त रूप देने का भी कार्य किया।

1928 ई० में बम्बई कपड़ा मिल के मजदूरों ने जब हड़ताल किया, तब इस पार्टी ने मजदूरों को संगठित किया। यह आंदोलन करीक माह तक चला और इसमें करीब डेढ़ लाख लोगों ने भाग लिया। इस दल के प्रमुख नेता थे काजी नजरुल इस्लाम, हेमंत कुमार सरकार, कुतुबुद्दीन अहमद तथा शम्शुद्दीन हुसैन इत्यादि। इस दल ने प्रमुख समाजवादी नेता एवं कांग्रेस के नेता जवाहरलाल नेहरू को भी अपनी तरफ आकर्षित किया था। इस प्रकार देश के राष्ट्रीयता आन्दोलन में इस संगठन सक्रीय योगदान रहा।

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प्रश्न 2.
20 वीं सदी में गांधीजी के काल में हुए कृषक आंदोलन का वर्णन करो।
उत्तर :
सन् 1920 ई० में महात्मा गांधी जी ने असहयोग आंदोलन (Non-cooperation Movement) चलाया था। भारतवर्ष में जब अंग्रेजी शासन का दबदबा बढ़ता चला जा रहा था तब गांधी जी ने अंग्रेजों को सहयोग करने से साफ मना कर दिया। उन्होंने किसानों एवं मजदूरों को भी अंग्रेजों को सहयोग नहीं देने का आह्वान किया। जिसे गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन (Non-cooperation Movement) नाम से जन आन्दोलन शुरू किया। यह पुर्णत: अहिंसात्मक आन्दोलन था जिसमें विदेशी वस्तुओं का वहिष्कार करना, सरकारी पदों का त्याग करना तथा कर न देना आद् कार्यक्रम अपनाये गये। असहयोग आंदोलन के दौरान ही अंग्रेजों के खिलाफ अनेकों कृषक या किसान आंदोलन (Peasant Movement) हुए थे जो निम्नलखित थे –

i. मोपला किसान आंदोलन (1920-22 ई०) : गांधीजी के असहयोग आंदोलन के दौरान ही केरल (मालाबार क्षतत्र) में किसानों ने अंग्रेजों से मदद पाने वाले जमीदारों और ठेकेदारों के खिलाफ मोपला आंदोलन चलाया था जिसका नेतृत्व ‘अलो मुसलियार’ ने किया। वे गाँधीजी के द्वारा दिखाये गये रास्ते पर चल कर इस आंदोलन का नेतृत्व किए। मोपला विद्रोह मालाबार क्षेत्र में रहने वाले मोपला जाति के किसानों द्वारा किसान आन्दोलन था जो बाद में सांम्पदायिक रूप ग्रहण कर लिया था जिसमें बड़े पैमाने पर हिन्दुओं की हत्या की गई तथा उन्हें जबरन मुसलमान बनाया गया। अन्तत: ब्रिटिश सरकार मार्शल लॉ लागू कर विद्रोह को पूरी तरह समाप्त कर दिया।

ii. एका आंदोलन (1921-22 ई०) : एका आंदोलन भी एक किसान आंदोलन था, जो अवध क्षेत्रों में चलाया गया था। यह आंदोलन असहयोग आंदोलन के समय अधिक तीव्र हो गया था, जब गाँधीजी ने अंग्रेजी सरकार को समर्थन न देने की बात की। एका आंदोलन अवध के किसान ‘मदारी पासी’ और ‘सहरेब’ द्वारा चलाया गया था, यह आदोलन सन् 1921 से 1922 ई० तक अधिक तीव्र रूप ग्रहण कर लिया था। इस आंदोलन के आरंभ होने का मुख्य कारण अंग्रेजी सरकार द्वारा मदद प्राप्त जमीदारों और ठेकेदारों का किसानों के ऊपर किया गया अत्याचार तथा लगान वृद्धि था जिसे सरकार ने सैन्य ताकत के आधार पर इसे दबा दिया।

iii. दरभंगा का किसान आंदोलन (1919-20 ई०) : असहयोग आंदोलन के समय किये गये किसानों द्वारा दरभंगा किसान आंदोलन (1919-20 ई०) का भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। यह आंदोलन बिहार क्षेत्र के दरभंगा में सन् 1919 में ‘विशुभरण उर्फ स्वामी विद्यानन्द’ के नेतृत्व में हुआ था। इस आंदोलन का मुख्य कारण अंग्रेजी सरकार द्वारा मनमाना राजस्व कर वसूलना था। यह आंदोलन सन् 1922 तक चला था।

iv. संयुक्त प्रान्त का किसान आंदोलन (1920-22 ई०) : असहयोग आंदोलन के समय, अवध एवं आगरा के क्षेत्रों में संयुक्त प्रान्तीय किसान आंदोलन चलाया गया था। यह आंदोलन सन् 1920 में शुरू हुई थी। इस आंदोलन का मुख्य कारण जमीदारों द्वारा किसानों से मनमाना कर (Tax) वसूली था। इस आदोलन के दौरान अवध एवं आगरा के क्षेत्रों में विभिन्न किसान संगठन और सभा बनायी गयी, जैसे, सन् 1920 में ‘अवध किसान सभा’, सन् 1918 में ‘उत्तर प्रदेश किसान सभा’ आदि। इस आन्दोलन के प्रेरणा स्रोत व नेता बाबा रामचन्द्र दास थे।

v. मेवाड़ का किसान आंदोलन (सन् 1920) : मेवाड़ किसान आंदोलन भी उपरोक्त सभी किसान आंदोलन की भाँति सरकार के विरुद्ध बिचौलिया और बेगू को मुद्दा बनाकर मेवाड़ क्षेत्र में सन् 192 में किया गया था। इसका नेतृत्व विजय सिंह पथिक, रामनारायण, मणिकलाल एवं बाबा सीताराम दास ने किया था।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 6 20वीं शताब्दी में भारत के किसान, मजदूर वर्ग एवं वामपंथी आन्दोलन : विशेषताएँ एवं अवलोकन

प्रश्न 3.
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान किसानों की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर :
महात्मा गाँधी जी ने सन् 1942 में अंप्रेज विरोधी आन्दोलन चलाया जिसका नाम था भारत छोड़ों आन्दोलन इसका अर्थ था “अंग्रेजों भारत को छोड़ कर चले जाओ।” इसी आन्दोलन के दौरान गाँधीजी ने अंग्रेजों को कड़े शब्दो में कहा है कि अंग्रेज भारत छोड़ो वरना इसका अंजाम और भी बुरा होगा। इसी आंदोलन के समय समस्त भारतवर्ष में किसान आंदोलन छाया हुआ था अर्थात् जहाँ एक तरफ भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) चल रहा था, वहीं दूसरी तरफ भारत में किसान आदोलन अपने सब्र की बाढ़ को तोड़ चुका था।

इतना ही नहीं, जिस समय भारत में भारत छोड़ो आंदोलन (1942 ई०) चल रहा था वहीं उस समय पूरे विश्व में द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) ई० चल रहा था और इसका प्रभाव अंग्रेजी सरकार की राजस्व व्यवस्था पर पड़ा था। किसानों द्वारा किये गये आंदोलन से अंग्रेजी सरकार की नीतियों (राजस्व कर) पर अधिक प्रभाव पड़ा था। भारत छोड़ो आंदोलन के समय भारतवर्ष के कई प्रदेशों में अंग्रेजी सरकार के विरोध में किसान आंदोलन (Peasant Movement) शुरू किया गया था, जो इस प्रकार से हैं :-

i. वर्ली आंदोलन (1945-1949) ई० : बम्बई (मुम्बई) के ठाणे जिले के दनानू, पालधार एवं उम्बेर गाँव और जवाहर ताल्लुकों के बहुसंख्यक आदिवासी किसानों की भूमि जमीन्दारों एवं महाजनों के अधिकार में चली गई थी, क्यांकि उनके द्वारा अनाज के रूप में लिए गए ॠण का भुगतान वे नहीं कर सके थे। महाजन सामान्यत: पचास से दो सौ प्रतिशत का ब्याज लगाते थे। वर्ली के आदिवासी अकाल एवं अपनी कठिनाई के दिनों में महाजनो एवं जमीन्दारों से अनाज क्रण लेते रहते थे। ऋण न चुका पाने पर उनपर घोर अत्याचार किया जाता था। अत्याचार इतना बढ़ गया था कि वर्ली के आदिवासी किसानों ने जमोंदारों एवं महाजनों के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया। परन्तु अंग्रेजी सरकार द्वारा मदद प्राप्त जमींदारों और महाजनों ने इस आदोलन को दबा दिया।

ii. तेभागा आंदोलन : तेभागा आंदोलन एक किसान आंदोलन था। यह आंदोलन सन् 1946 से लेकर 1947 ई० तक बंगाल के कई क्षेत्रों में चलाया गया था जिसमें दिनाजपुर, मिदनापुर, रंगपुर, 24 परगना, खुलना, जलपाईगुड़ी और मैमनसिंह आदि हैं। यह आंदोलन किसानों के ऊपर बढ़ाये गये राजस्व (भूमि) कर के विरोध में किया गया था जिसका नेतृत्व कम्पाराम सिंह और भवन सिंह कर रहे थे। परन्तु अंग्रेजी सरकार के विशेष मदद से जमींदारों ने इस आंदोलन को दबा दिया।

iii. तेलंगाना आंदोलन : तेलंगाना आंदोलन भी तेभागा और वर्ली आंदोलन के समान ही था जो सन् 1945 से लेकर 1951 ई० तक चला। यह आंदोलन आंध प्रदेश के हैदराबाद समेत कई क्षेत्रों में किया गया। इस आंदोलन में किसान ठेकेदारों एवं कर संप्रहकों द्वारा बुरी तरह से प्रताड़ित हुए थे जिसका परिणाम अत्यन्त ही भयानक था। इन सभी क्षोभ के कारण ही हैदराबाद समेत कई क्षेत्रों के किसानों ने ठेकेदारों और कर (Tax) संग्रहकों के विरुद्ध यह आदोलन चलाया। परन्तु बाद में इस आंदोलन को दबा दिया गया।

iv. पुनप्रा-वायलार किसान आंदोलन : उपर्युक्त आंदोलनों की भाँति ही पुनप्रा-वायलार आंदोलन भी एक भयानक परिणाम वाला किसान आंदोलन था, जो सन् 1946 में त्रावणकोर में किया गया था। यह आंदोलन त्रावणकोर के किसानों और अंग्रेजी सरकार के नीतियों के बीच हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व पी॰ सुन्दरैया और रवि नारायण रेड्डी ने किया। परन्तु सरकार ने इस आंदोलन को बुरी तरह से समाप्त कर दिया। इसमें लगभग 1000 किसान मारे गये थे और बहुत सारे गाँव भी प्रभावित हुये थे।

v. बकाश्त किसान आंदोलन : बकाश्त किसान आंदोलन भी एक किसान आंदोलन था, जो सन् 1946 से लेकर 1947 ई० तक चला था। यह आंदोलन बिहार के कई क्षेत्रों में चलाया गया था, जैसे – मुंगेर, गया, दरभगा, भागलपुर, नधुबनी और मुजफ्फपुर आदि। परन्तु इस आदोलन को भी सरकार ने बड़ी दर्दनाक तरीके से दमन कर दिया।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि भारत छोड़ो आंदोलन के समय बिटिश सरकार के राजस्व कर (भूमि कर), अनाज ₹र और रैयती कर के विरुद्ध विभिन्न क्षेत्रों में किसानों आदोलन किये। परन्तु ब्रिटिश सरकार ने उन सारे आदोलनों को प्रक्ति के बल पर फिर भी दबा दिया। लेकिन विश्व के इतिहास और भारतवर्ष के इतिहास में इन सभी आंदोलनों का अहम पा महत्वपूर्ण स्थान है। जिसने आजादी की लड़ाई को अन्जाम तक पहुँचाने में सक्रीय सहयोग दिया।

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प्रश्न 4.
सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय श्रमिक या मजदूर आंदोलन का विवरण कीजिए।
या
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के साथ मजदूर आंदोलन के संबंध का वर्णन करें।
या
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
इत्कर : अंग्रेजी सरकार द्वारा गुजरात के डांडी क्षेत्र में साबरमती नदी के किनारे जिन मजदूरों द्वारा नमक बनाया जाता था, उसपर कर (Tax) बढ़ा दिया गया और इतना ही नहीं उन मजदूरों पर घोर अत्याचार किया जाता था, जो असहनीय घा इन संदी अत्याचारों और नमक पर बढ़ाये गये कर (Tax) के विरुद्ध महात्मा गाँधी जी ने अहिंसा (Non-Violence) को अप्रना आधार बनाकर डांडी अभियान किया, जिसे नमक सत्याग्रह आंदोलन कहा जाता है, जो इस प्रकार से है :

डांडी अभियान (Dandi March) : महात्मा गाँधीजी 12 मार्च, 1930 ई० को अपने 78 समर्थकों के साथ दाबरमती आश्रम से डांडी की ओर प्रस्थान किये। लगभग 24 दिनों बाद 6 अप्रेल, 1930 ई० को डांडी पहुँचकर गाँधीजी न नमक बनाकर नमक कानून भंग किया। इसी अभियान को नमक सत्याग्रह (Salt Satyagraha) कहते हैं।

नमक सत्याग्मह के बाद उसी दिन अर्थात् 6 अप्रैल, 1930 ई० को गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आदोलन (Civil Disobedience) या कानून भंग आंदोलन शुरू किये। गाँधीजी द्वारा आदोलन शुरू करने के बाद मानों भारतवर्ष में अंग्रेजी एग्कार द्वारा प्रत्येक कार्यों में जो कानून लगाया गया था, मजदूरों और छात्रो के जन आंदोलन ने उसे भग (ताड़ना) कर दिया।

एँजद्रों द्वारा किये गये इस आंदोलन का अभियान देखते ही देखते पूरे भारतवर्ष में फैल गया। साबरमती नदी के किनारे जां नमक बनाया जाता था, उसके मजदूर भी इस आंदोलन में तीव्र संक्रिय हो गये और गाँधीजी के साथ मिलकर उनके द्वारा घलायें गयं मजद्र आंदोलन में शम्मिलित हो गये, जो अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध या खिलाफ था।

गाँधीजी के साथ मिलकर मजदूरों ने कम समय में ही भारतवर्ष के सभी क्षेत्रों में आन्दोलन को आग और हवा की भाँति क्ता दिये। अंग्रेजी सरकार इस दृश्य को देखकर बौखला उठी। साथ ही साथ डरने भी लगी। वे इस आदालन को दबाना चाहते थे। परन्तु मजदूरों की भूमिका इतनी जबरजस्त थी कि वे आंदोलन को आसानी से दबा नहीं सके।

डंखत ही देखते मजदूरों का साथ देने के लिए कई ट्रेड यूनियनों (Trade Unions) सामने आये। जैसे- ‘AITUC’ और ‘हिन्दुस्तान मजदूर सभा’ आदि। 21 मई को धारासभा नमक करखाने पर ‘श्रीमतो सरोजिनी नायडु’ और ‘इमाम साहेब’ के नेतृत्व सं ढ़ाई हजार सेवकों ने धावा बोल दिया। ऐसे धावे कई बार बोले गये। परन्तु हड़तालियों ने अहिंसा को सदा ध्यान में रखा। गौधीजो द्वारा चलाये गये सविनय अवज्ञा आन्दोलन के साथ मजदूर आदोलन अपने चरम सीमा पर जा पहुँची। इस गजददृर आदालन को समाप्त करने के लिए अंग्रेजी सरकार ने अथक प्रयास किया। अंततः अंग्रेजी सरकार ने इस आंदोलन को विभिन्न समझौते के माध्यम से दबा दिया।

प्रश्न 5.
भारत छोड़ो आन्दोलन (Quit India Movement) के साथ मजदूर आंदोलन के संबंधों का वर्णन कीजिए। या, भारत छोड़ो आंदोलन में मजदूर वर्ग कहाँ तक सफल हुए बताइए।
या
भारत छोड़ो आंदोलन एक मजदूर आंदोलन है, वर्णन करें।
चा
भारत छोड़ो आंदोलन का उल्लेख करें।
उत्तर :
महात्मा गाँधी जी ने सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movment) की शुरूआत किया। इस आंदोलन में ‘बिनोवाभावे’, ‘जवाहरलाल नेहरू’, ‘बह्मदत्त’, ‘आगा खाँ’, ‘राजेन्द्र प्रसाद’ और अन्य सभी भारतीय नेताओं ने साथ दिया अत: इस आन्दोलन में मजदूर वर्ग की भागीदारी को निम्नरूप में देखा जा सकता है –

गाँधोजो ने इस आंदोलन के पहले इससे सम्बन्धित अन्य कई कार्य किये। इस आंदोलन की उत्पत्ति कुछ इस प्रकार से हुयी थी सन् 1940 का सत्याग्रह : महात्मा गाँधीजी ने 17 अक्टूबर, 1940 ई० को पावनार में व्यक्तिगत सत्याग्रह आदोलन शुरू किया। इस आदोलन के प्रथम सत्याग्रही ‘बिनोवा-भावे’, दूसरे सत्याग्रही ‘पंडित जवाहरलाल नेहरू’ एवं तीसरे त्याआ्मही ‘ब्रह्यदत्त’ थे। इस आंदोलन को ‘दिल्ली चलो’ आंदोलन भी कहा जाता है।

इस सत्याग्रह आंदोलन से सरकार घबरा गयी और सभी को गिरफ्तार कर लिया गया। इतना ही नहीं, समस्त श्रमिको को भो गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारियों के बाद से ही पूरे भारतवर्ष में हा-हाकार मच गया। पूरा भारत एकजुट हो गया। इतना ही नहीं, समस्त मजदूर वर्गों ने गाँधी जी के समर्थन में जगह-जगह अंग्रेजी सरकार का विरोध किया, पूरे भारतवर्ष में हड़तालें (Strike) किये गये, सभी मिलों को बंद कर दिया गया।

ऐसे गंभीर समय में गाँधीजी ने वर्धा से ही भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) सन् 1942 में शुरू किया। जबकि कांग्रेस ने पहले ही ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का प्रस्ताव पारित कर चुका था। 7 अगस्त, 1942 ई० को कांग्रेस की बैठक बम्बई के ऐतिहासिक ग्वालियर टैक (Gwalior Tank) में हुई। गाँधी जी के भारत छोड़ों प्रस्ताव को काँग्रेस कार्य समिति ने 8 अगस्त, 1942 ई० को स्वीकार कर लिया और गाँधीजी ने 9 अगस्त, 1942 ई० को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू कर दिया।

देखते ही देखते इस आंदोलन से श्रमिक या मजदूर वर्ग जुड़ गये और अंग्रेजों के दमननीतियों को दबाना शुरू कर दिये। इतना ही नहीं, गाँधीजी ने आंदोलन के दौरान समस्त भारतवर्ष और श्रमिक संगठनों को ‘करो या मरो’ (Do or Die) का नारा दिये। जिसके बाद से पूरे भारत में मजदूरों ने आंदोलन आरंभ कर दिया अंग्रेज विरोधी। वहीं दूसरी तरफ, 9 अगस्त, 1942 ई० को अंग्रेजो ने सबेरे ही गाँधीजी एवं कांग्रेस के अन्य समस्त महत्वपूर्ण नेताओं को गिरफ्तार कर लिया।

गाँधीजी को पूना के आगा खाँ महल में तथा काँप्रेस कार्यकारिणी के अन्य सदस्यों को अहमदनगर के दुर्ग में रखा गया था। राजेन्द्र प्रसाद को भी नजरबंद कर दिया गया था। गिरफ्तारियों के बाद समस्त भारत में अंग्रेजी सरकार के पुतले फूँके गये, जगह-जगह मजदूरों ने कारखानों को बंद कर दिया और विभिन्न प्रकार के मजदूर संगठन भी बनाया गया। दिल्ली, कलकत्ता, लखनक, कानपुर, बम्बई, नागपुर, जमशेदपुर, अहमदाबाद, मद्रास, इंदौर और बंगलौर इत्यादि शहरों में, जबरजस्त मजदूर हड़ताले हुई।

इतना ही नहीं, इस आंदोलन का प्रभाव सन् 1946 के बम्बई के नौ-सेना विद्रोह के मजूदरों पर भी पड़ा। धीरे-धीरे काँग्रेस तथा श्रमिक संगठनों में मन-मुटाव बढ़ता चला गया और काँग्रेस ने सरदार बल्लभाई पटेल के नेतृत्व में, 1947 ई० में एटक से पृथक होकर ‘भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की स्थापना किया। जबकि, काँग्रेस का सामाजवादी गुट ने ‘हिन्दू मजदूर सभा’ की स्थापना किया।

उपर्युक्त विवरणों से स्पष्ट होता है कि गाँधीजी द्वारा शुरू किया गया ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में देश के मजदूरों एवं मजदूर संघों ने भरपूर साथ दिया तथा अंग्रेजी सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों को समाप्त करने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 6 20वीं शताब्दी में भारत के किसान, मजदूर वर्ग एवं वामपंथी आन्दोलन : विशेषताएँ एवं अवलोकन

प्रश्न 6.
भारतीय राजनीति में वामपंथी विचारधारा का विवेचना कीजिए।
या
बीसवीं शताब्दी में भारत में उपनिवेश विरोधी आन्दोलन में वामपन्थियों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
20 वीं शताब्दी में भारत में साम्यवादी दल का आगमन हुआ था। यह दल रूस से होते हुए फ्रांस के माध्यम से भारत में आयी थी अर्थात् साम्यवादी दल की उत्पत्ति रूस और फ्रांस की देन मानी जाती है। इतनी ही नहीं, साम्यवादी दल का वजूद रूस एवं चीन में भी जबरदस्त है। जैसे – रूस में ‘Russian Comunist Party’ और चीन में ‘China Communist Party’ हैं।

सन् 1917 में लेनिन ने रूस में रूसी क्रांति चलाया, जिसका परिणाम रूस में साम्यवादियों की उत्पत्ति हुयी। भारत में भी लेनिन के माध्यम से ही साम्यवादी दल की स्थापना की गयी। चूँकी भारत में साम्यवादी का दूसरा नाम वामपंथी है, इसीलिए भारत में लेनिन के माध्यम से ही वामपंथी विचारधाराओं का वृक्षारोपण हुआ। वास्तव में भारत में वामपंथी दल की स्थापना सन् 1920 में हुयी। इस दल की स्थापना मानवेन्द्र नाथ राय (M. N. Roy), अवनी मुखर्जी, ए० टी॰ राय और मुहम्मद अली आदि के माध्यम से हुयी थी।
भारत में वामपंथी आन्दोलन के इतिहास को पाँच स्पष्ट चरणों में बाँटा जा सकता है :-

प्रथम चरण (First Phase) : भारत में वामपंथी आन्दोलन का इतिहास पुराना है तथा अधिक विस्तृत माना जाता है। वामपंथी लोग शुरू से ही साम्राज्यवादी नीतियों को समाप्त करना चाहते थे, जिसके प्रति उन लोगों ने आन्दोलन का सहारा लिया जिसे वामपंथी आंदोलन कहा जाता है तथा इस काल को “तीन षड्यंत्रों के मुकदमों का काल” भी माना जाता हैं क्योंकि वामपंधियों की बढ़ती शक्ति को देखकर सरकार ने उनपर तीन षड्यंत्रकारी मुकदमे चलाये। जिनमें, पेशावर षड्यंत्र केस (1922 ई०), कानपुर षड्यंत्र केस (1924 ई०) तथा मेरठ षड्यंत्र केस (1929 ई०) हैं। इन केसों के माध्यम से साम्यवादी दलों के नेताओ को पकड़ कर जेल में भर दिया गया।

द्वितीय चरण (Second Phase) : इस काल को ‘राजनीतिक पशुता का काल’ कहा जाता है। जहाँ एक तरफ महात्मा गाँधी राष्ट्रवादी आन्दोलन में सक्रिय थे वहीं साम्यवादी आन्दोलन प्रश्न के कगार पर चला गया था। 1928 ई० में अन्तर्राष्ट्रीय साम्यवादी संगठन से संकेत प्राप्त कर उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वामपंथी और दक्षिणापंथी अंगों पर प्रहार करना आरम्भ कर दिया। उन्होंने गाँधीजी को ‘बुर्जुआ वर्ग का नेता’ घोषित कर दिया। इन सब कारणों से साम्यवादियों का महत्व घट गया। 1934 ई० में ब्रिटिश सरकार ने साम्यवादी दल पर प्रतिबंध लगा दिया।

तीसरा चरण (Third Phase) : इस काल को “साम्यवादी और साम्राज्यवादी विरोधी संयुक्त मोर्चा योजना’ भी कहा जाता है। भारत में साम्यवादी दल को साम्राज्यवादी कई नीतियों का पालन करना पड़ा है जिसके तहत साम्राज्यवादी विरोधी आन्दोलन भी चलाना पड़ा। सन् 1936 ई० में आर० पी० दत्त और बैन ब्रेडली ने अपना निबंध ‘भारत में साम्माज्यवाद विरोधी जनता का मोर्चा’ प्रकाशित किया।

चौथा चरण (Fourth Phase) : इस काल को “द्वितीय विश्वयुद्ध और साम्यवादियों की उल्टी छलाँग” भी कहा जाता है। साम्यवादी दलों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सामाज्यवाद का घोर विरोध किया। इसीलिए जब 1941 ई० में हिटलर ने रूस पर आक्रमण किया तब भारतीय साम्यवादियों ने इस युद्ध को लोकयुद्ध कहना शुरू कर दिया। इसी कारण कांग्रेस के भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध भी साम्यवादियों ने किया।

पाँचवा चरण (Fifth Phase) : इस चरण को “शक्ति के हस्तांतरण के लिए बातचीत तथा साम्यवादियों की बहुराष्ट्रवादी नीति” भी कहा जाता है। इस काल में साम्यवादी नीति को मुस्लिमों का साथ मिला। साम्यवादी हमेशा भारत को जोड़ना एवं साम्राज्यवाद का नाश करना चाहते थे।

सन् 1942 ई० में साम्यवादी दल ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें घाषण की गई थी कि भारत एक बहुराष्ट्रवादी राज्य हैं और इसमें न्यूनतम 16 राष्ट्र हैं। 1946 ई० में भारतीय साम्यवादी दल ने मंत्रिमंडीय शिष्टमण्डल के सम्मुख एक प्रस्ताव रखा कि भारत को 17 पृथक् प्रभुसत्ता पूर्ण राज्यों में बाँट दिया जाए, जैसा कि बाल्कन में अथवा सोवियत संघ में हुआ था।
उपर्युक्त विवरणों से प्राप्त होता है कि वामपंथी लोगों ने भारत एवं भारतीय राजनीति में अहम भूमिका निभायी है तथा अपने विचारों से भारत में राष्ट्रवाद का विकास किया।

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प्रश्न 7.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय कृषकों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
सविनय आन्दोलन का पर्चाय भूमिकर के विरूद्ध ब्रिटिश सरकार से संघर्ष था। इस आन्दोलन के बाद किसानों ने अपने-अपने वर्ग के प्रति संगठन निर्माण का कार्य शुरू कर दिया। इस आन्दोलन में किसानों की भूमिका अत्यन्त प्रशंसनीय रही। कांग्रेस ने भूमिकर न देने का नारा दिया। इसलिये 1930 ई० में किसानों द्वारा अनेकों आन्दोलन किये गये 19291933 ई० में विश्व की बिगड़ती आर्थिक दशा ने विस्तृत रूप से अधिकांश किसानों को भिखारी बना दिया था। गाँधीजी द्वारा सबिनय अवज्ञा आन्दोलन के समर्थन में किसान संगठित होकर बड़े पैमाने पर हिस्सा लिये। इन्होंने 1930 ई० से लेकर 1940 ई० के दशक तक अपने आन्दोलन को नया आयाम दिया। इस स्थिति में 1930 ई० में सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ होते ही किसानों ने आन्ध, गुजरात तथा संयुक्त प्रान्तों में आन्दोलन शुरू किया।

इसमें इन्होंने आन्दोलन को लगानबंदी या लगान में कमी कराने को अपना विशेष मुद्दा बनाया। महाराष्ट्र, बिहार तथा मध्य प्रान्तों के किसानों ने ‘जंगल सत्याग्रह’ चलाया। इस आन्दोलन में किसानों का साथ जमींदारों ने भी सक्रिय भूमिका निभायी। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के शोषण एवं अत्याचार के विरूद्ध अहिंसा की नीति का पालन किया। विपिन चन्द्र के अनुसार – ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन ने किसान आन्दोलन के अभ्युदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई – इसके गर्भ से युवा लड़ाकू राजनीतिक कार्यकताओं की एक पूरी पीढ़ी पैदा हुई”।

इस आन्दोलन के द्वारा गाँधीजी किसानों के एकमात्र नेता सिद्ध हुए परन्तु गाँधीजी द्वारा रखे गये। सूत्री मांगों का प्रत्यक्ष रिश्ता किसानों से न होने के कारण किसानों को बिना कोई राहत दिलाये यह आन्दोलन समाप्त हो गया। राष्ट्र के प्रति तथा किसानों के प्रति उग्र राष्ट्रवादियों के प्रेम ने किसानों के साथ होने वाले अन्याय की बात सर्वप्रथम उठाया तथा उन्होंने आवश्यक रूप से किसानों के एक स्वतंत्र वर्ग संगठन के निर्माण को मान्यता दी।

इसी परिवेश में 1927 ई० में स्वामी सहजानन्द सरस्वती के नेतृत्व में बिहार किसान सभा का निर्माण हुआ। इसी संस्था ने आगे चलकर अखिल भारतीय किसान सभा का रूप लिया। गाँधीजी द्वारा इस जन आन्दोलन को 14 जुलाई 1930 ई० को रोक दिया गया परन्तु व्यक्तिगत सत्याग्रह चलता रहा। 14 अफैल 1930 ई० को महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को स्थगित कर दिया। इस वजह से कुछ समय के लिए किसानों का आन्दोलन भी मन्द पर गया।

प्रश्न 8.
भारत के मजदूर आन्दोलन को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा वामपंथी राजनीति ने किस प्रकार प्रभावित किया ?
उत्तर :
भारत में मजदूर आन्दोलन का उद्भव कांग्रेस के स्थापना के पहले ही हुआ था। सामान्य रूप से मजदूरों के सगठन का इतिहास 1884 ई० से प्रारम्भ माना जाता है। कांग्रेस के स्थापना के बाद मजदूरों को राजनीतिक आधार मिला। इस्दी एमय एन० एम० लोखंड़ द्वारा बाम्बे मिल हैन्ड्स ऐसोसिएशन की स्थापना की गई। इस संगठन के द्वारा भजदूरों के कार्य के घण्टों, साप्ताहिक अवकाश, लंच टाइम इत्यादि मुद्दों को उठाया। लोखंडे मजदूरों के हमदर्द थे तथा उन्होने ‘दीनबधु’ चत्रिका का प्रकाशन भी किया।

कांग्रेस द्वारा इनके कार्यो की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई। प्रथम मजदूर संगठन के रूप मे 1897 ई० में ‘अमलगमेटेड़ सोसायटी ऑफ रेलवे सर्वेट्स आफ इण्डिया एण्ड वर्मा’ नामक संगठन बना। इस प्रकार यह संगठन भजदूरों की पहली संगठन थी। इस संगठन ने ‘ग्रेट इण्डियन पेनन्सुला रेलवे’ नामक ब्विटिश स्वामिल और प्रबन्धन चलने वाली रेलों में हड़ताल किया। यह हड़ताल 1899 ई० में की गई। इस हड़ताल का समर्थन करने वाली लगभग सभी रांट्रीय अखबारों ने पूरे जोर-शोर से इसका प्रचार किया। अतः कांग्रेस के स्थापना काल में इसका मजदूर संगठनों के प्रति अव्नहार में सक्रियता का अभाव था परन्तु प्रथम विश्वयुद्ध के बाद इस व्यवहार में बदलाव आया।

1928 ई० बाद मजदूर आन्दोलन का शक्तिशाली रूप देखा गया। मजदूरों ने हड़ताल और प्रदर्शन ने आन्दोलन को नई दिशा दी। इस बीच मजदूरों कं संगउन में कम्युनिस्टों तथा गैर-कम्युनिस्टों के बीच भेदभाव बढ़ने के कारण बम्बई के वस्त्र उद्योगके मजदूरों द्वारा पूर्णरूप से एक गिरनी कामगर नामक संगठन बनाया गया। इस संगठन का नेतृत्व डांगे तथा एक ब्रिटिश कम्युनिस्ट द्वारा प्रदान किया गया। 1928 ई० में जो भी हड़ताले हुई वह लम्बे समय तक चलती रहीं।

1928 ई० में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस ने भारत में इण्डीपण्डेण्ट सोशलिस्ट रिपब्लिक ऑफ इण्डिया की श्रगणना की माँग की जिसके कारण जमीन तथा उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया गया। राष्ट्रवादियों के बहुलता के कारण गण० जो कामगर यूनियन् को इस यूनियन में जगह नहीं मिला परन्तु 1929 ई० में नागपुर में आयोजित दसवें अधिवेशन में दक्षिण्वथी टेड युनियनिस्टों ने अखिल भारतीय ट्रेड यूनियनिस्ट फेडरेशन ऑफ इण्डिया की स्थापना की।

सरकार द्वारा ब्विदिश राज के खिलाफ वड़यन्न्न का आरोप लगाकर उनके 33 नेताओ को गिरफ्तार किया गया। मास्को के मार्गदर्शन के कारण कांग्रेस द्वारा संचालित 1931-1932 ई॰ में समस्त भारत में चल रहे जन आन्दोलन में भाग नहीं लेने की गलती के कारण भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की साख जनता के बीच कमजोर हो गयी। इससे ट्रेड यूनियन आंदोलन काफी कामजोर हो गया।

मजदूरों का यह आन्दोलन भी किसानों के आन्दोलनों की तरह राष्ट्रीय आन्दोलन के साथ गहराई से जुड़ा था। इस आन्दोलन का मुख्य लक्ष्य श्रमिकों के जीवन-स्तर में सुधार लाना था। बाद में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, चित्तरजन दास तथा जवाहरलाल नेहरू इस मजदूर संगठन के अध्यक्ष बने। अत: इस काल में संगठन के रूप में मजदूरो द्वारा उनका आन्दोलन सब समय अग्रगति से संचालित होता रहा।

WBBSE Class 10 History Solutions Chapter 6 20वीं शताब्दी में भारत के किसान, मजदूर वर्ग एवं वामपंथी आन्दोलन : विशेषताएँ एवं अवलोकन

प्रश्न 9.
बंग-भंग प्रतिरोध आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर :
बंग-भंग प्रतिरोध आन्दोलन : 20 जुलाई 1905 ई० में बंगाल के वायसराय लार्ड कर्जन द्वारा जब बंगाल को विंगजित कर दिया गया तब उस समय बंगाल की जनसंख्या लगभग आठ करोड़ थी तथा उस समय के बंगाल में आजक विहार, झारखण्ड, उड़ीसा तथा बगलादेश भी शामिल थे। लार्ड कर्जन द्वारा बंगाल का विभाजन करने का एक है: उद्देश्य था कि आपस में मिलकर रहने वाले हिन्दू और मुसलमान भाईयों को अलग-अलग करके लड़ाया जाय। बगाल उस समय भारल की राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक था तथा बंगालियों में अधिकतमा राजनीतिक चेतना थी। जिसे दबाने के लिये लार्ड कर्जन द्वारा बगाल के विभाजन की नीति अपनाई गई।

बंगाल विभाजन की खबर जब जनता तक पहुँची ना पूरे बंगाल में इस विभाजन के विस्द्ध आवाजें उठने लगी। इस विभाजन के दिन को पूरे बंगाल में ‘शोक दिवस’ के रूप में मनाया गया। जिसमें आम नागरिक के साथ-साथ किसानों ने भी हिस्सा लिया। सम्पूर्ण बंगाल में रवीन्द्रनाथ टैगोर के सलाह पर इस दिन ‘राखी दिवस’ के रूप में मनाया गया।

विभाजन के समय बंगाल में अधिकांशतः जमीन के मालिक हिन्दू थे और मुस्लिमो का काम खेती करना था। अंग्रेजों द्वारा इस समय का लाभ उठाते हुए उन्होंने मुस्लिम किसानों में साम्पदुायिकता का जहर बोया। जिसके कारण मुस्लिम किसान इस आन्दोलन से अलग हो गये तथा ढाका के नवाब सलीमुल्लाह ने भी इस कार्य में अंग्रेजों का साथ दिया, केनल बारीसाल ही इसका अपवाद रहा। अतः ऐसा माना जाता है कि यह आन्दोलन बंगाल को प्रभावित नहीं कर पाया।

इसका परिणाम यह हुआ कि जहाँ एकतरफ पश्चिम बंगाल के किसान इस आन्दोलन में शामिल हुए तो दूसरीतरफ पूर्व बंगाल के लोग इस आन्दोलन से दूर रहे। स्वदेशी और बहिष्कार आन्दोलन किसी एक वर्ग का आन्दोलन नहों था। यह राष्ट्रीय आन्दोलन था तथा इस आन्दोलन में भाग लेनेवाले किसानों, स्त्रियों, विद्यार्थियों तथा मजदूरों ने काफी आगे बढ़कर इस आन्दोलन में भाग लिया। उग्रवादियों द्वारा गाँवो में भी ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार का प्रचार किया गया।

आन्दोलनकारियों का कहना था कि ‘हक भला इन चारों को अपना शासक कैसे मान संकते हैं जो हमारे देश में आकरघरेलू उद्योगों को नष्ट कर दिये हैं। हम इन विदेशियों को अपना शासक नहीं मानते हैं जो नित्य नये-नये कर का बोझ हमपर लादते रहने हैं। इस विभाजन के विरूद्ध न केवल बंगाल में बल्कि पूरे भारतवर्ष में सरकार के विरूद्ध तीव्र शेष व्यक्त किया गया’।

इस आन्दोलन में महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कलकत्ता के कई स्थानों पर धरना और प्रदर्शन की। ब्रिटिश सरकार आन्दोलनकारियों से भयभीत हो गयी और सोचा कि भारतीय जनता की उपेक्षा कर बंगाल का विभाजन सही नहीं है। अन्त में भारत सम्राट जार्ज पंचम ने सन 1911 ई० में बंग-भंग कानून रद्द कर दिया। यह भारतीयों का प्रथम संयुक्त आन्दोलन था जिसने राष्ट्रीय आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार की।

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प्रश्न 10.
बारदोली एवं एका आन्दोलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
एका आन्दोलन : एका आन्दोलन में शामिल होने वाले को शपथ लेना पड़ता था जो इस प्रकार है –

  1. किसी प्रकार के अपराध में संलग्न नहीं रहना होगा।
  2. सरकार को दिया जानेवाले लगान उचित होगा, किसी भी दशा में समय पर लगान दिया जायेगा।
  3. पचायत का निर्णय सर्वमान्य होगा।
  4. अपनी भृमि को छोड़कर बेगारी नहीं करेंगे।

यह आन्दोलन पूर्व के किसान आन्दोलनों से भिन्न था क्योंकि किसान आन्दोलन में केवल किसानों द्वारा भाग लिया जाता था। परन्तु एका आन्दोलन में छोटे-छोटे किस्म के जमीदार भी हिस्सा लिये थे। जमीदारों द्वारा इस आन्दोलन में हिस्सा लेने का मुख्य कारण सरकार द्वारा लगानों की बढ़ोत्तरी थी जिसके कारण वे हमेशा पेरशान रहते थे।

किन्तु सरकार ने अपने दमन चक्र के बल पर इस आन्दोलन को मार्च 1922 ई० में समाप्त कर दिया अत: एका आन्दोलन पूरी तरह सफल नही हो सका । इस आन्दोलन का मुख्य केन्द्र सुल्तानपुर, सीतापुर, बाराबंकी, बहराइच तथा हरदोई थे। इस आन्दोलन से जुड़ेप्रमुख नेता निम्न वर्ग के थे। इस असंगठित आन्दोलन को ब्रिटिश सरकार शक्ति के बल पर दबा दिया।

बारदोली आन्दोलन : 1922 ई० के बाद गुजरात में सूरत जिले के बारदौली क्षेत्र राजनीतिक क्रियालाप का केन्द्र बना हुआ था। देश में साइमन कमीशन का पूरी ताकत के साथ विरोध चल रहा था तथा दूसरी तरफ बारदौली के किसानों द्वारा लगान वृद्धि के खिलाफ सघर्ष हो रहा था। 1926-1927 ई० में कपास के मूल्यों में अत्यधिक गिरावट के बावजूद भी बारदौली के किसानों की लगान में सरकार ने 22% वृद्धि की घोषणा की थी। किसान अपनी जमीन तक बेचने को तैयार थे, परन्तु मन्दी क कारण जमीन का उचित दाम नहीं मिल रहा था।

कांग्रेस ने इस अवस्था में वल्लभ भाई पटेल को इस लगान वृद्धि के प्रतिवाद में नेतृत्व प्रदान करने का अनुरोध किया, अत: इस सिलसिले में 4 फरवरी 1928 ई० को सरदार वल्लभ भाई पटेल बारदौली गये। निर्णय लिया जबतक सरकार किसी निष्पक्ष न्यायधिकरण का गठन नहीं कर लेती। इस तरह से बारदौली सत्याप्रह का आरम्भ हुआ। सत्याग्रह में साथ देने के लिये गाँधीजी भी बारदौली पहुँचे। इस सत्याग्रह आन्दोलन में कस्तूवा गाँधी, मनी बेन पटेल, मीठ बेन शारदा बेन एवं भक्ति बा आदि अन्य महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया।

किसान आन्दोलन के रूप में बारदौली सत्याग्रह की एक अहम भूमिका रही है। यह सत्याग्रह या आन्दोलन ब्रिटिश सरकार के विरांध में किया गया था। क्योंकि ब्रिटिश सरकार बारदौली के किसानों से मनमाऩा राजस्व या भूमि कर (Tax) वसूला करती थी। यह घटना गुजरात स्थित सूरत जिले के बारदौली इलाके की है जहाँ सन् 1928 के पहले से ही ब्रिटिश या अंग्रेजी प्रशासन किसानों से मनमाना भूमि कर वसूल रही थी।

यह सत्याग्रह या आन्दोलन आग की भाँति तीव्र रूप ले लिया था जिसकी वजह से पटेल जी को अंग्रेजी सरकार गिरफ्तार करने के लिए आतूर हो गयी। परन्तु अगस्त, 1928 ई० में गाँधीजी बारदौली पहुँचे और उन्होंने घोषणा किया कि यदि सरकार पटेल जी को गिरफ्तार करती है तो वे स्वयं इस आंदोलन का नेतृत्व करेंगे। अंत में सरकार ने एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल (Maxwell) से इस मामले की जांच करवाई जाय।

उसने भी लगान की वृद्धि को अनुचित बताया। अत: लगान या कर घटा दिया गया। इस प्रकार अहिंसात्मक कृषक या किसान आन्दोलन के रूप में बारदौली किसान सत्याग्रह आन्दोलन सफल हुआ इस सफलता का मुख्य पात्र श्री बल्लभ भाई पटेल और गाँधीजी थे। बारदौली के किसान महिलाओं ने इस सफलता से प्रसत्र होकर पटेल जी को ‘सरदार’ नाम की उपाधि दी। तब से श्री बल्लभ भाई पटेल सरदार बल्लभ भाई पटेल कहे जाने लगे।

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